#lockdown: ऐसा देश जिसे कोरोनावायरस की चिंता नहीं

यूरोप आजकल कोरोनावायरस के फैलाव का केन्द्र बना हुआ है. लेकिन इसी यूरोप में एक ऐसा देश भी है जिसे कोरोना के फैलाव की चिंता बिल्कुल नहीं है, लेकिन इसकी वजह  लापरवाही बिल्कुल नहीं है.

बेलारूस, यूरोप का वह एकमात्र देश है जहां के अधिकारी अपने देश की जनता को कोरोना की वजह से असामान्य स्थिति में डालने के इच्छुक नहीं हैं.

बेलारूस कई पहलुओं से एक असाधारण देश है, शायद यही वजह है कि उसने कोरोना से मुक़ाबले के लिए भी अपने बेहद निकटवर्ती पड़ोसियों, रूस और यूक्रेन से भी हट कर नया रास्ता अपनाया है.

यूक्रेन में किसी भी समय अपातकाल की घोषणा की जा सकती है जबकि रूस ने‌ स्कूल बंद किए, सार्वाजनिक  कार्यक्रम रद्द किए और सभी  उड़ानें रोक कर कोरोना वायरस से मुक़ाबले की तैयारी कर ली है. लेकिन बेलारूस में कई पहलुओं से जन जीवन सामान्य है, सीमाएं खुली हुई हैं, लोग काम पर जा रहे हैं और कोई भी डर की वजह से टॉयलेट पेपर का भंडारण नहीं कर रहा.

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बेलारूस के राष्ट्रपति एलेक्ज़ेंडर लोकान्शो का कहना है कि उनके देश को कोरोना वायरस से नहीं डरना चाहिए और न ही उनके देश को कोरोना से बचाव के लिए इतनी अधिक सतर्कता की ज़रूे चीनी राजदूत के साथ एक बैठक में कहा कि ” यह सब होता रहता है , महत्वपूर्ण बात यह है कि हम डरें न.”

बेलारूस की सरकार ने सेनेमा हॉल बंद नहीं किये, थियेटर भी खुले हैं और सार्वाजिनक कार्यक्रमों पर भी कोई प्रतिबंध नहीं है. बेलारूस दुनिया के उन गिनेचुने देशों में है जहां आज भी फुटबाल मैच हो रहे हैं. बेलारूस की फुटबॉल लीग यथावत चल रही है और पड़ोस में रूस के फुटबालप्रेमी भी  उसके मैचों से आनंद उठा रहे हैं.

राष्टृपति ने कहा कि ” ट्रेक्टर कोरोना की समस्या को खत्म करेगा”. उनके इस बयान में बाद सोशल मीडिया पर उनका काफी मज़ाक़ भी उड़ाया गया. उनका आशय यह था कि खेतों में कड़ी मेहनत करने से कोरोना वायरस से बचा जा सकता है. उन्होंने यह  भी सलाह दी कि वोदका शराब की कुछ घूंट भी कोरोना से बचा सकती है हालांकि उन्होंने कहा कि वे शराब नहीं पीते.

बेलारूस से बाहर कोरोना के फैलाव और उसके बाद विभिन्न देशों की हालत देख कर हालांकि इस देश में भी कुछ लोग चिंतित हैं और उन्होंने सरकार से मांग की है कि वह बचाव का उपाय करे लेकिन बेलारूस के राष्ट्रपति का कहना है कि चिंता की ज़रूरत नहीं क्योंकि बेलारूस में घुसने वाले हर यात्री का पहले कोरोना का टेस्ट लिया जाता है.

उन्होंने बताया कि पूरे दिन के टेस्ट में दो या तीन लोग पौजिटिव पाए जाते हैं जिन्हें आइसोलेट किया जाता है और फिर एकदो हफ्ते में हम उन्हें छोड़ देते हैं.

बेलारूस के राष्ट्रपति ने बौखलाहट और चिंता को कोरोना वायरस से अधिक खतरनाक बताया है. उन्होंने खुफिया एजेन्सी को आदेश दिया है कि वह देशवासियों को डराने वालों को पकड़े और सख्त सज़ा दे.

बेलारूस कई पहलुओं से यूरोप का अनोखा देश है. मिसाल के तौर पर बेलारूस युरोप का एकमात्र देश है जहां अब भी मृत्युदंड दिया जाता है. इसी तरह यह यूरोप का एकमात्र देश है जहां के अधिकारियों पर कोरोना वायरस की वजह से बौखलाहट नहीं छायी है.

रोचक बात तो यह है कि हर बात में सरकार और राष्ट्रपति का विरोध करने वाले कड़े सरकारविरोधी आंद्रे कीम ने भी बेलारूस के राष्ट्रपति के इन विचारों का समर्थन किया है. उन्होंने कहा कि उनका मानना है कि देश में लॉकडाउन, बेलारूस की आर्थिक मौत लिख देगा. बेलारूस वह एकमात्र देश है जहां के अधिकारी जनवाद से प्रभावित नहीं हैं और अपने देश की जनता के लिए सब से अच्छा रास्ता चुनते हैं. वे आगे कहते हैं, “ मुझे पता है कि जो मैं कह रहा हूं वह सुन कर कुछ लोग मुझे ज़िंदा ही निगल जाना चाहेंगे लेकिन मैं सार्वाजनिक पागलपन के प्रति चुप नहीं रह सकता.“

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सार्वाजनिक पागलपन से उनका आशय कोरोना से बचने के लिए पूरी दुनिया में उठाए जाने वाले कद़म थे.

#lockdown: आग से निकले कढ़ाई में गिरे, गांव पहुंचे लोग हो रहे भेदभाव का शिकार

बड़े शहरों से लौट कर अपने गांव घर पहुचने वॉले लोगो के सामने आग से निकले कढ़ाई में गिरे वॉले हालत बन गए है. गांव तक पहुचने के लिए सैकड़ो किलोमीटर पैदल चलना पड़ा, ट्रक, बस या दूसरी सवारी गाड़ियों  में जानवरों की तरह ठूंस ठूंस कर सफर करना पड़ा. भूखे प्यासे रह कर जब यह लोग गांव पहुचे तक इनके और परिवार के लोगो के बीच प्रशासन और गांव के दूसरे जागरूक लोग खड़े हो गए. कुछ लोग इनकी करोना वायरस से जांच की मांग करने लगे तो कुछ लोग इनको अस्पताल में रखने की मांग कर रहे थे . वंही कुछ लोग चाहते थे कि यह 14 दिन अपने घर मे ही अलग थलग रहे. शहरों को छोड़ अपने गांव पहुचे इन लोगो को लग रहा था कि यह अछूत जैसे हो गए है. करोना वायरस के खिलाफ जागरूकता अभियान एक डर की तरह पूरे समाज के दिलो में बैठ गया है. उसे बाहर से आने वाला हर कोई करोना का मरीज लगता है और उससे वो जान का खतरा महसूस करता है.

अजनबियों सा व्यवहार

मोहनलालगंज के टिकरा गांव में रहने वाला आलोक रावत उत्तराखंड नोकरी करने गया था. लॉक डाउन होने के बाद वो किसी तरह तमाम मुश्किलों का सामना करता 30 मार्च को अपने गांव पहुचा. गांव में घुसने के पहले ही गांव के कुछ जागरूक लोगो ने उसको रोक लिया. इसके बाद पुलिस और डायल 112 पर फोन करके पुलिस को खबर कर दी कि एक आदमी बाहर से आया है. अब आलोक को घर जाने की जगह गांव के बाहर स्कूल में ही रहना पड़ा. बाद में पुलिस डॉक्टर  आये तो लगा कि उसको कोई दिक्क्क्त नही है. इसके बाद भी आलोक को हिदायत दी गई कि 14 दिन वो अपने घर के अलग कमरे में रहे किसी से ना मिले ना जुले.

मोहनलालगंज तहसील के गनियार गांव का शुभम उड़ीसा में रहता था. वो 29 मार्च को अपने गांव आया तो गांव वालों ने इसकी सूचना पुलिस को दे दी. पुलिस समय पर नही पहुची तो पूरा दिन और एक रात शुभम को अपने गांव आने के बाद भी अपने घर जाने की जगह पर गांव के बाहर स्कूल में किसी अछूत की तरह रहना पड़ा. उसके घर के लोग चाहते थे कि वो वँहा ना रहे पर पुलिस के डर से वो लोग भी कुछ नही कर सके.

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सुल्तानपुर जिले के भवानीपुर में रहने वाला दीपक पंजाब में मजदूरी करता था. दिल्ली के रास्ते किसी तरह 3 दिन में अपने गांव पहुच गया. रात में उसे किसी ने देखा नहीं. सुबह वो अपने खेत पर काम करने गया. इसी समय गांव वालों ने उसको देख लिए और इसकी सूचना पुलिस को दे दी. पुलिस उसको पहले थाने ले गई. उसके घर वालो को बुरा भला भी बोला. 3 घण्टे थाने में बैठने के बाद डाक्टर आये तो उसको ठीक पाया गया. इसके बाद भी उसको 14 दिन घर से बाहर नहीं निकलने को कहा गया.

पुलिस का डर

असल मे कोविड 19 से बचाव के लिए प्रशासन के स्तर पर हर गांव वालों को कहा गया है कि कोई भी जब बाहर से आये तो उसकी सघन तलाशी ली जाए. उसका स्वाथ्य परीक्षण किया जाए. अगर उसको कोई सर्दी जुखाम बुखार की परेशानी नही है तो उसको 14 दिन के लिए अलग रहने को कहा जाए. अगर कोई इस बात को नही मानता है तो उसके खिलाफ संक्रमण अधिनियम का उलंघन करने के लिए मुकदमा लिखा जाए. पुलिस इसमे उन लोगो को भी जिम्मेदार मॉन रही है जो बाहर से आने वाले कि सूचना पुलिस को नही देते है.

जेल के कैदियों सी मुहर

कई जगहों पर बाहर से आने वाले लोगो के हाथ पर एक मुहर लगा दी जाती है जिसको देंखने के बाद पता चलता है कि यह आदमी किस दिन बाहर से अपने गांव आया है.

झारखंड और दूसरे प्रदेशों में यह हालत सबसे अधिक है. जिन लोगो के हाथ मे यह मुहर लगी होती है उनको किसी से मिलना जुलना नही होता और उनको अपने घर मे भी कैदियों की तरह अलग रहना पड़ता है.

पत्नी बच्चे तक दूर रहते है

प्रतापगढ़ के रहने वाले रमेश कुमार अपने घर वापस आये तो उनको उनकी पत्नी और बच्चो से दूर कर दिया गया. रमेश की पत्नी को कुछ दिन पहले ही बेटा हुआ था. बेटा होने की खुशी में वो अपने घर आया तो वँहा उस पर यह प्रतिबंध लगा दिया गया कि वो 14 दिन सबसे दूर रहेगा. रमेश  को घर के बाहर उस कमरे में रहना पड़ा जंहा जानवरो के लिए चारा रखा जाता था.

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करोना वायरस से अधिक डर पुलिस और प्रशासन का लोगो को है. वो मुकदमा कायम करने की धमकी दे कर डराते है. इसके अलावा गांव के लोग जागरूकता की आड़ में लोगो की सूचना पुलिस को देकर अपनी दुश्मनी भी निकाल रहे है.

#lockdown: मेरे सामने वाली खिड़की पे (भाग-2)

‘सच में, कैसी स्थिति हो गई है देश की ? न तो हम किसी से मिल सकते हैं.  न किसी को अपने घर बुला सकते हैं और न ही किसी के घर जा सकते हैं. आज इंसान, इंसान से भगाने लगा है. लोग एक-दूसरे को शंका की दृष्टि से देखने लगे हैं.  क्या हो रहा है ये और कब तक चलेगा ऐसा? सरकार कहती रही कि अच्छे दिन आएंगे. क्या ये हैं अच्छे दिन ? किसी ने सोचा था कभी कि ऐसे दिन भी आएंगे ?’ अपने मन में ही सोच रचना दुखी हो गई.

रचना अपने घर के ही एक कोने में जहां से हवा अच्छी आती हो, वहाँ टेबल लगाकरऑफिस जैसा बना लिया और काम करने लगी, चारा भी क्या था ?वैसे,अच्छा आइडिया दिया था मानसी ने उसे. ‘थैंक यू’ बोला उसने उसे फोन कर के.  काम करते-करते जबरचना मन उकता जाता, तो ब्रेक लेने के लिए थोड़ा बहुत इधर-उधर चक्कर लगा आती. नहीं,तो अपने छत पर ही कुछ देर टहल लेती. और फिर अपने लिए चाय  बनाकर काम करने बैठ जाती. अब रचना का माइंड सेट होने लगा था. लेकिन बॉस का दबाव तो था ही जिससे मन चिड़चिड़ा जाताकभी-कभी कि एक तो इस लॉकडाउन में भी काम करो और ऊपर से इन्हें कुछ समझ नहीं आता. सब कुछ परफेक्ट और सही समय पर ही चाहिए. ये क्या बात हुई ? बार-बार फोन कर के चेक करते हैं कि कर्मचारी अपने काम ठीक से कर रहे हैं या नहीं. कहीं वे अपने घर पर आराम तो नहीं फरमा रहे हैं.

उस दिनबॉस से बातें करते हुए रचना को एहसास हुआ कि कोई उसे देख रहा है. ऐसा होता है न ? कई बार तो भीड़ भरी बस या ट्रेन के कुपे में भी ऐसी फिलिंग होती है कि कोई हम पर नजरें गड़ाए हुए है.  अक्सर हमारा यह एहसास सच साबित होता है.  अब ऐसा क्यों होता है यह तो नहीं पता. लेकिन सामने वाली खिड़की पे बैठा वह शख्स लगातार रचना को देखे ही जा रहा था. लेकिन जैसे रचना की नजर उस पर पड़ी, वह इधर-उधर देखने लगा, लेकिन फिर वही. रचना उसे नहीं जानती है. आज पहली बार देख रही है.  शायद,अभी वह नया यहाँ रहने आया होगा, नहीं तो वह उसे जरूर जानती होती.  लेकिन वह क्यों उसे देखे जा रहा है ? क्या वह इतनी सुंदर है और यंग है ? लेकिन वह बंदा भी कम स्मार्ट नहीं था.तभी तो रचना की नजर उस पर से हट ही नहीं रही थी.  लेकिन फिर यह सोचकर नजरें फेर ली उसने कि वह क्या सोचेगा?

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एक दिनफिर दोनों की नजरें आपस में टकरा गई, तो आगे बढ़कर रचना ने ही उसे ‘हाय’ कहा. इससे उस बंदे को बात आगे बढ़ाने का ग्रीन सिग्नल मिल गया. अब रोजा दोनों की खिड़की से ही ‘हाय-हैलो’ के साथ-साथ थोड़ी बहत बातें होने लगी. दोनों कभी देश में बढ़ रहे कोरोना वायरस के बारे में बातें करते, कभी लॉकडाउन को लेकर उनकी बातें होतीं, तो कभी अपने ‘’वर्क फ्रोम होम को लेकर बातें करते. और इस तरह से उनके बीच बातों का सिलसिला चल पड़ता, तो रुकता ही नहीं.

“वैसे, सच कहूँ तो ऑफिस जैसी फिलिंग नहीं आती घर से काम करने में, है न ?” रचना के पूछने पर वह बंदा कहने लगा कि ‘हाँ, सही बात है, लेकिन किया भी क्या जा सकता है?’ “सही बोल रहे हैं आप, किया भी क्या जा सकता है. लेकिन पता नहीं यह लॉकडाउन कब खत्म होगा? कहीं  लंबा चला तो क्या होगा ?” रचना की बातों पर हँसते हुए वह कहने लगा कि भविष्य में क्या होगा कौन जानता है ?‘वैसे जो हो रहा है सही ही है, जैसे हमारा मिलना’ जब उसने मुसकुराते हुए कहा, तो रचना शरमा कर अपने बाल कान के पीछे करने लगी.रचना के पूछने पर उसने अपना नाम शिखर बताया और यह भी कि वह यहाँ एक कंपनी में काम करता है. अपना नामबताते हुए रचना कहने लगी कि उसका भी ऑफिस उसी तरफ है.

काम के साथ-साथ अब दोनों में पर्सनलबातें भी होने लगी. शिखर ने बताया कि पहले वह मुंबई में रहता था. मगर अभी कुछ महीने पहले ही तबादला होकर दिल्ली शिफ्ट हुआ है.

“ओह….और आपकी पत्नी भी जॉब में हैं ?” रचना ने पूछा तो शिखर कहने लगा कि ‘नहीं, वह एक हाउसवाइफ है. “हाउस वाइफ नहीं, होममेकर कहिए शिखर जी, अच्छा लगता है”  बोलकर रचना खिलखिला पड़ी, तो शिखर उसे देखता ही रह गया. रचना से बातें करते हुए शिखर के चेहरे पर अजीब सी संतुष्टि नजर आती थी. लेकिन वहीं,अपनी पत्नी से बातें करते हुए वह झल्ला पड़ता था.

अमन को ऑफिस भेजकर, घर के काम जल्दी से निपटाकर,रचना अपनी जगह पर जाकर बैठ जाती, उधर शिखर पहले से ही उसका इंतजार करता रहता और उसे देखते ही खिड़की के पास आकर खड़ा हो जाता और दोनों बातें करने लगते.लेकिन जैसे ही शिखर को अपनी पत्नी की आवाज सुनाई पड़ती, वह भाग कर अपनी जगह पर बैठ जाता और फिर दोनों इशारों-इशारों मे बातें करने लगते.कहीं न कहीं दोनों एकदूसरे के प्रति आकर्षित होने लगे थे. लेकिन कोरोना के चलते घर में क्वारंटाइन होने की वजह से उनके प्यार की गाड़ी अटक गई थी. लेकिन उन्होंने इसका भी हल निकाल लिया.

दोनों कागज पर लिखकर अपने दिल का हाल ब्याँ करते और उस खत को रोल कर एक-दूसरे की तरह फेंकते. कभी मोबाइल से दोनों बातें करते,कभी चैटिंग करते. जोक्स बोलकर हँसते-हंसाते. लेकिन इस पर भी जब उनका मन नहीं भरता,तो दोनों अपने-अपने छत पर खड़े होकर लोगों की घरों में ताक-झांक करते कि इस लॉकडाउन में वे अपने घरों में क्या रहे हैं? कहीं पति-पत्नी साथ मिलकर खाना पका रहे होते. कहीं काम को लेकर सास बहू में झगड़े हो रहे होते. और एक घर मेंतो हसबैंड पोंछा लगा रहा था और उसकी पत्नी उसे बता रही थी कि और कहाँ-कहाँ पोंछा लगाना है. देखकर दोनों की हंसी रुक ही नहीं रही थी. रचना का तो पेट ही दुखने लगा हंस-हंस कर. बड़ा मज़ा आ रहा था उन्हें लोगों की घरों मेंताक-झाँक करने में. अक्सर दोनों छत पर जाकर लोगों की घरों में ताकते-झाँकते और खूब मज़े लेते.

जहां इस कोरोना ने पूरी दुनिया में कहर मचा रखा है. दुनियाभर में कोरोना की चपेट में लाखों लोग आ गए हैं. हजारों लोगों की मौत हो चुकी है. कोरोना के डर से करोड़ों लोग अपने घरों में कैद हैं. सोशल डिस्टेन्सिंग के चलते लोग एक-दूसरे से मिल नहीं रहे हैं. वहीं, इस दहशत के बीच रचना और शिखर के बीच प्यार का अंकुर फुट पड़ा है. यह अनोखी प्रेम कहानी भले  ही लोगों की आँखों से ओझल है, पर दोनों एक-दूसरे की आँखों में डूब चुके हैं.

लेकिन उनका प्यार अमन और शिखर की पत्नी के आँखों से छुपा नहीं है। जान रहे हैं दोनों की इन दोनों के बीच कुछ तो चल रहा है. तभी तो अमन जब भी घर में होता है रचना के आसपास ही मँडराते रहता है, और उधर शिखर की पत्नी भी खिड़की खुला देखा, आँख-भौं चढ़ा लेती है.

इसी बात पर कई बार अमन से रचना की लड़ाई भी हो चुकी है. अमन का कहना है कि क्यों वह वहीं बैठकर काम करती है? घर में और भी तो जगह हैं? लेकिन रचना कहती है कि ‘उसकी मर्ज़ी, जहां बैठकर वह काम करे. वह क्यों उसका मालिक बना फिरता है ?‘घर का एक काम तो होता नहीं उससे, और बड़ा आया है नसीहतें देने’ अपने मन में ही बोल रचना मुंह बिचका देती.

उधर शिखर भी अपनी पत्नी के व्यवहार से परेशान है.  जब देखो,वह आगे-पीछे उसके मंडराती रहती. कभी चाय, कभी पानी देने के बहाने वहाँ पहुँच जाती और फालतू की बातें कर उसे बोर करती. कहता शिखर,‘जाओ मुझे काम करने दो, पर नहीं,बकवास करनी ही है उसे. रचना को वह घूर कर देखती है और खिड़की बंद कर देती है.  लेकिन जब वह चली जाती है,खिड़की खुल भी जाता और फिर दोनों की गुपचुप बातें शुरू हो जाती है.

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अमन के सो जाने पर,देर रात तक रचना शिखर के साथ फोन पर चैटिंग करती रहती है. सुबह रचना को डेरी तक दूध लाने जाना पड़ता था, तो अब शिखर भी उसके साथ दूध और सब्जी-फल लाने , स्टोर तक जाने लगा है, ताकि दोनों को आपस में बातें कर मौका मिल सके.लोगों की नजरें बचाकर शिखर कूद कर रचना के छत पर आ जाता है और दोनों एक-दूसरे की आँखों में  झाँकते हुए घंटों बिता देते हैं.

आगे पढ़ें- हवाएँ भी कितनी ठंडी-ठंडी चल रही है” कह कर रचना उस रोज..

ज़िन्दगी-एक पहेली: भाग-9

पिछला भाग- ज़िंदगी-एक पहेली: भाग-8

देहारादून आकर अविरल 5-6 दिनों में 1 बार निशि से बात करता . दोनों काफी देर तक एक-दूसरे से बात करते. निशि को अविरल बहुत मानने लगा था. निशि भी अविरल की सारी बातें ध्यान से सुनती और बड़ी बहन की तरह समझाती.

इधर अविरल ने सुमि से मिलना कम कर दिया. यह अविरल के लिए बहुत कठिन था क्योंकि  अनु के बाद वह सुमि को सबसे ज्यादा मानता था. लेकिन अब उसे एक फैसला करना था, या तो सुमि का साथ या फिर अपने पापा के सपनों को पूरा करना.

एक दिन अविरल सुमि से मिला और बोला कि तुम आसू को छोड़ दो, हालांकि अविरल को भी पता था कि अब आसू– सुमि अलग नहीं हो सकते. थोड़ी देर तो सुमि शांत रही और फिर ज़ोर से हंसकर बोली, तुम कब से मज़ाक करने लगे. अविरल शांत रहा फिर बोला कि या तो आसू से एक साल तक बात मत करो या तो मुझसे कभी बात मत करना. फैसला तुम्हें करना है.

सुमि को कुछ समझ नहीं आया कि अविरल ने ऐसा क्यूँ बोला. सुमि ने कुछ दिन आसू से बात नहीं की लेकिन एक दिन आसू ने सुमि को राश्ते में रोककर उससे बात की. अविरल भी वहीं से गुजर रहा था, उसने यह देख लिया और अगले दिन सुमि से मिलकर सिर्फ यह बोला की सुमि आज से मुझसे कभी बात मत करना. इससे पहले कि सुमि कुछ बोलती, अविरल वहाँ से चला गया.

सुमि ने सारी बात आसू को बताई तो आसू बहुत गुस्सा हुआ और सुमि से बोला मैं तो पहले से जानता था कि उसके मन में तुम्हारे लिए कुछ है. इसीलिए उससे तुम्हारा बात करना मुझे अच्छा नहीं लगता था. लेकिन मैं अब उसे बताऊँगा, उसने ऐसा बोला भी कैसे. लेकिन सुमि को आसू की  बात का विश्वास नहीं हो रहा था. क्योंकि वो अविरल को बहुत अच्छी तरह से जानती थी. उसने आसू को अविरल को कुछ भी बोलने के लिए मना कर दिया.

इसके बाद अविरल ने कभी किसी को नहीं बताया कि उसने ऐसा सिर्फ सुमि और आसू से अलग होने के लिए किया था. कुछ दिनों बाद रक्षाबन्धन आ गया. अविरल का हाथ सूना था. वह किसी तरह अपने आँसू छुपा रहा था. तभी उसके पास अमित आया और उसे लेकर सुमि के पास गया. सुमि ने उसे राखी बांधी तो दोनों की आँखों में आँसू आ गए. अविरल ने उसे गिफ्ट देना चाहा लेकिन सुमि ने कहा कि, “अभी रहने दो …जब जरूरत होगी तब  मांग लूँगी”. अविरल ने भी कहा, “ऐसा कुछ मत मांगना जो मैं दे ना सकूँ”. इसके बाद अविरल और सुमि कभी नहीं मिले.

अब अविरल ने कुछ ही महीनों के अंदर एक और बहन खो दी थी. वह अंदर से टूटने लगा था  लेकिन जब वह अपने मम्मी- पापा के मुरझाये हुए चेहरे देखता तो वह  अपने आपको संभालता और पढ़ने बैठ जाता. अविरल रात दिन पढ़ाई करता लेकिन उसके दिमाग में कुछ नहीं जा रहा था. वह परेशान रहने लगा. अवि ने बहुत कोशिश की लेकिन वह ठीक नहीं हो सका.

एक लड़का जो पूरे स्कूल में हमेशा टॉप करता था उसकी ऐसी हालत ! उसे अपनी इस हालत पर खुद भरोसा नहीं हो रहा था.

कुछ दिनों बाद ही अवि की मौसी का फोन आया. वह बहुत दुखी थी, उन्होने बताया कि निशि के पापा ने निशि की  शादी कहीं और कर दी. अवि को तो विश्वास ही नहीं हुआ. उसने अगले दिन निशि को फोन किया और पूछा , “दीदी आपने ऐसा क्यूँ किया, आपको तो हम सब कितना चाहते थे.मैं तो आपको अपनी भाभी मान  चुका था” .उसकी यह बात सुनकर  निशि ने रोते हुए बताया कि “अमन की  मम्मी ने गुस्से में मेरे पापा की बहुत बेज्जती की.उसके बाद मेरे पापा ने जबर्दस्ती मेरी शादी कहीं और तय कर दी. अगर तब तक भी अमन मुझे एक आवाज़ भी देते तो मैं भागकर चली आती .लेकिन अमन ने मुझे रोकने की कोशिश नहीं की.मैं बहुत अकेली हो चुकी थी ‘अविरल’ .अब तो बहुत देर हो चुकी है अब मेरी शादी हो गयी है”.

अविरल बहुत दुखी हुआ. अब उसने लगभग 1 साल के अंदर अपनी तीसरी बहन भी खो दी. अब उसे लगने  लगा था कि शायद मेरी किस्मत में बहन ही नहीं है. उसने कसम खाई कि, “कुछ भी हो जाए मैं…. अब मैं किसी को अपनी बहन नहीं बनाऊँगा. अविरल की जिंदगी में तो जैसे तूफान थमने का नाम ही नहीं ले रहे थे.

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अब अविरल का 12th का एक्जाम आ चुका था. उसका मैथ्स का एक्जाम बहुत खराब गया था. अवि ने सारे question attempt तो किये थे  लेकिन एक भी question वो पूरा solve  नहीं कर पाया था.

1 माह बाद अविरल का रिज़ल्ट आया. अविरल अपने एक दोस्त के साथ अपना  रिज़ल्ट देखने गया .जब  उसने रिज़ल्ट देखा तो खड़ा का खड़ा रह गया. अनु की आवाज़ उसके कानों में गूंज रही थी “भैया तुम्हें मुझसे ज्यादा नंबर लाने हैं”.

अविरल फ़ेल हो गया था……………वो समझ नहीं पा रहा था कि उसकी ज़िन्दगी ने ये कैसा मोड़ ले लिया?अविरल के पैर अपने घर की तरफ नहीं बढ़ पा रहे थे. लेकिन उसके दोस्त ने उसे बहुत समझाया और उसे घर लेकर गया.

जैसे ही अविरल घर पहुंचा उसने देखा की मम्मी दरवाज़े पर ही उसका इंतज़ार कर रही थी.अविरल को देखकर उनके चेहरे पर उत्सुकता आई .उन्होंने पूछा ,”भैया क्या रिजल्ट आया?

अविरल सीधा घर के अंदर चला गया और रोते हुए बोला,” पापा मैं फ़ेल हो गया”.

उसके पापा बहुत निराश हुए और थोड़ी देर तक शांत रहे फिर बोले “कोई बात नहीं बेटा, अगली बार अच्छे नंबर लाना”.

अविरल अपने कमरे में चला गया और रोता रहा . सभी लोगों ने उसे बहुत समझाया लेकिन वह चुप नहीं हुआ. होता भी कैसे,अविरल जिंदगी में पहली बार किसी परीक्षा में फ़ेल हुआ था.

अविरल के पापा भी बाहर किसी से बात  नहीं कर रहे थे .उन्हें डर था की अगर किसी ने रिज़ल्ट पूंछा तो वह क्या बोलेंगे. जो हमेशा अपने बच्चों का नाम बड़े घमंड से लेते थे आज उनका सिर  झुक चुका था.

शाम को ही अविरल की मौसी लोगों का फोन आया तो उन्हें भी अविरल के फेल होने का पता चला. वो  अविरल की मम्मी से बोली “बड़े आए थे इंजीनियर बनने, कहीं के नहीं रह गए. अब तो संभल जाएँ,आर्ट साइड लेकर कहीं से नकल करके अगली बार इंटर तो पास कर लें”. अविरल की मम्मी कुछ नहीं बोल सकी.वो अपने आप को बहुत असहाय महसूस कर रही थी.

अविरल किसी से नज़र नहीं मिला पा रहा था. सभी उसे फेलियर-फेलियर कहकर चिढ़ा रहे थे. वह सारा समय अपने कमरे में ही बना रहता. अगर बाहर कुछ देखना होता तो खिड़की से छुपकर देखता. वह डायरी में सारी बातें लिखता तो उसे लगता कि उसने अनु को सब बता दिया.

एक  रात अविरल डायरी में लिखते- लिखते घंटों रोता रहा और रोते- रोते डायरी को सीने से चिपकाकर कब सो गया, उसे पता ही नहीं चला. रात में उसने अनु को पहली बार सपने में देखा. उसने देखा कि वह अनु से वही सब बोल रहा है जो उसने रोकर डायरी में लिखा था. सपने में उसे अनु समझाती है “भैया तुम अकेले नहीं हो, मैं हर पल तुम्हारे साथ हूँ. क्या हुआ जो जिंदगी में एक  बार फ़ेल हो गए. अरे सफल होने का मजा तभी है  जब सब आपको हारा हुआ  मान चुके हों. रोना बंद करो और डटकर दुनिया का सामना करो. तुम्हारी बहन तुम्हारे साथ है.”

अचानक अविरल कि नींद खुल गयी. उसने देखा कि सुबह का 5 बज चुका है. अविरल ने अपने अंदर नई ऊर्जा महसूस की और ठान लिया “मैं उठूँगा, मैं आगे बढ़ूँगा. जब मेरी बहन मेरे साथ है तो दुनिया से क्या डरना”.

वह उठा और बाहर निकला तो लोगों ने मज़ाक बनाते हुए पूंछा, यार तुम फ़ेल हो गए ?????? अविरल ने बोला, हाँ मैं फ़ेल हो गया. उसके अंदर वही कॉन्फ़िडेंस लौट आया था जो अनु के साथ रहने पर हुआ करता था.

लेकिन आगे कि डगर बहुत कठिन थी. इस साल उसे प्राइवेट फॉर्म भरना पड़ा. अविरल के पापा ने उसके कहने पर एक स्कूल में(कोचिंग की तरह) ही उसका एड्मिशन करा दिया. अविरल जब पहली बार बैग लेकर स्कूल पहुंचा तो सभी की निगाहें उसे उपेक्षा की दृष्टि से देख रही थी. वह एक पीछे की सीट पर जाकर बैठ गया. लेकिन उसने सोच रखा था कि हिम्मत नहीं हारूँगा.

घर आते ही उसने सारी बातें अनु को बताई(डायरी के माध्यम से). उसे बड़ा सुकून मिला और वह पढ़ने बैठ गया. कुछ दिनों बाद अविरल के स्कूल में केमिस्ट्री की एक टीचर आई जो अनु को जानती थी. वो अविरल को देखते साथ ही पहचान गईं. उन्होने क्लास के बाद अविरल को अपने पास बुलाया और पूछा तुम तो बहुत होशियार थे, तुम यहाँ कैसे? अविरल ने सारी बात अपनी मैम से बताई तो वह बहुत दुखी हुई और अविरल का पूरी तरह सपोर्ट करने को बोली. अविरल उन्हे प्रतिभा दीदी बोलता था.

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आज अविरल पहली बार खुश दिखाई दिया. वह स्कूल से आते ही अपने कमरे में गया और अनु को धन्यवाद दिया. अविरल के अन्दर एक विश्वास ने जन्म ले लिया था कि अनु उसके साथ है और उसने ही प्रतिभा दीदी को भेजा है. अविरल की रुकी हुई जिंदगी अब धीरे धीरे आगे बढ़ने लगी थी. प्रतिभा दीदी  उसका बहुत सपोर्ट करती थी. वह अविरल को ट्यूशन भी पढ़ाने लगी. जब अविरल ने पैसे के बारे में बोला तो उन्होने डांटते हुए बोला कि तुम मेरे छोटे भाई कि तरह हो. अब ऐसी बात मत करना. कभी- कभी जब अवि बहुत उदास होता तो उसके आँसू प्रतिभा दीदी के आगे भी निकल जाते. समय बीतता गया. अविरल के  एक्जाम कि डेट्स आ चुकी थी.

अगले भाग में हम  जानेंगे कि क्या इस बार अविरल अपनी नई जिंदगी कि पहली परीक्षा पार कर पाएगा और अपनी  जिंदगी को नई दिशा दे पाएगा…

#coronavirus: अमेरिका में फंसी ‘ये है मोहब्बतें’ की ‘रूही’, Photos Viral

दुनिया में कोरोनावायरस महामारी के चलते स्थिति गंभीर होती जा रही है, जिसका असर भारत में भी देखने को मिल रहा है. जहां भारत में लौकडाउन के चलते आम आदमी परेशान है तो वहीं कईं लोग ऐसे हैं जो विदेश में फंस गए हैं. वहीं इस लिस्ट में फंसी ‘ये है मोहब्बतें’ की ‘रूही’ यानी एक्ट्रेस अदिति भाटिया ( Aditi Bhatia) का नाम भी शामिल है. लेकिन इसी बीच वह अपने फैंस के लिए अपनी कुछ फोटोज शेयर की है. आइए आपको दिखाते हैं अदिति भाटिया की खास फोटोज…

अमेरिका में फंसी ये ये है मोहब्बतें‘ एक्ट्रेस

‘ये है मोहब्बतें’ की एक्ट्रेस अदिति भाटिया ( Aditi Bhatia) इस समय भारत से दूर अमेरिका में फंसी हुई हैं. इसी बीच घर में अदिति भाटिया ( Aditi Bhatia) ने अपनी बेहद खूबसूरत फोटोज सोशल मीडिया पर पोस्ट की.

 

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hello there! ?

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वायरल हुईं खूबसूरत फोटोज

 

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quarantine got me like Btw, Go and follow me on tik tok ?

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फोटोज में अदिति भाटिया ( Aditi Bhatia) सुनहरी धूप खाती नजर आ रही हैं. फोटो शेयर करने के बाद अदिति भाटिया ( Aditi Bhatia) की सेल्फी फोटोज सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रही हैं.

सोशल मीडिया पर एक्टिव हैं Aditi Bhatia

 

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Quarantine and chill with BAE, he loves to trouble me #couplegoals? #oops

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अमेरिका में फंसी अदिति भाटिया (Aditi Bhatia) सोशल मीडिया पर लगातार फोटोज या फिर वीडियो शेयर करते हुए अपने फैंस के करीब रहने की कोशिश कर रही हैं.

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रूही के किरदार में हुई थी फेमस

 

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Spot the cartoon

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फैंस के दिलों में राज करने वाला शो ‘ये है मोहब्बतें’ काफी पौपुलर है, वहीं उनके किरदार की बात करें तो रूही के रोल में नजर आने वाली अदिति भाटिया ( Aditi Bhatia) भी इस किरदार से फेमस हुई थीं, जिसके बाद वह कई टीवी शो में नजर आ चुकी हैं. साथ ही वह ‘ये है मोहब्बतें’ के बाद टीवी शो ‘खतरा खतरा खतरा’ में बतौर सेलिब्रिटी अपिरीयंस के तौर पर नजर आ चुकीं हैं.

Devoleena के सपोर्ट में उतरीं Rashami, सिड-नाज के फैंस के कारण हुईं थी ट्रोल

बिग बौस 13 में फैंस का दिल जीतने वाली एक्ट्रेस रश्मि देसाई (Rashami Desai) सुर्खियों में छाई हुई हैं. लेकिन सुर्खियों में रहने का कारण और कोई नहीं शहनाज गिल (Shehnaaz Gill) और सिद्धार्थ शुक्ला (Sidharth Shukla) हैं. हाल ही में सोशल मीडिया पर लाइव वीडियो के जरिए देवोलीना भट्टाचार्जी ने अपने फैंस से कहा था कि उन्हें सिद्धार्थ शुक्ला और शहनाज गिल का गाना ‘भूला दूंगा’ कुछ खास नहीं लगा, जिसके बाद शहनाज गिल और देवोलीना के बीच लड़ाई शुरू हो गई, लेकिन इसका असर रश्मि देसाई पर पड़ रहा है. आइए आपको बताते हैं क्या है पूरा मामला….

देवोलीना के कारण सुर्खियों में आईं रश्मि

कुछ दिन पहले ही सोशल मीडिया पर लाइव वीडियो के जरिए देवोलीना भट्टाचार्जी ने फैंस से कहा था कि उन्हें सिद्धार्थ शुक्ला और शहनाज गिल का गाना ‘भूला दूंगा’ कुछ खास नहीं लगा, जिसके बाद इन दिनों शहनाज गिल के फैंस और देवोलीना भट्टाचार्जी (Devoleena Bhattacharjee) के बीच काफी गहमागहमी देखने को मिल रही है.

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सपोर्ट में उतरी रश्मि देसाई


रश्मि देसाई भी अपनी खास दोस्त देवोलीना भट्टाचार्जी के बचाव में उतरीं, जिसके बाद शहनाज गिल के फैंस ने उनका सोशल मीडिया पर खिल्ली उड़ाना शुरू कर दिया. इसी बीच, रश्मि देसाई (Rashami Desai) भी चुप नहीं बैठी और उन्होंने सोशल मीडिया पर ट्वीट करते हुए कहा कि शहनाज और सिद्धार्थ के इन फैंस को तो ब्लॉक ही कर देना चाहिए.

देवोलीना ने कही थी ये बात

दरअसल, देवोलीना ने इस वीडियो में ये भी कहा था कि अगर इस गाने में सिद्धार्थ के साथ रश्मि देसाई होती तो शायद ये गाना ज्यादा खूबसूरत लगता. बस फिर क्या शहनाज गिल के फैंस ने देवोलीना को इस कमेंट के लिए ट्रोल करना शुरू कर दिया. वहीं शहनाज गिल (Shehnaaz Gill) के लिए भड़के फैंस ने देवोलीना भट्टाचार्जी और उनकी मां की बेज्जती की, जिसके बाद देवोलीना ने शहनाज गिल के फैंस के खिलाफ साइबर क्राइम के तहत शिकायत भी दर्ज करवा दी.

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बता दें, बिग बौस 13 में रश्मि देसाई और देवोलीना भट्टाचार्जी की दोस्ती गहरी हो गई थी, जिसके बाद वह सोशल मीडिया पर काफी पौपुलर हुए थे.

कोरोना का खौफ

मैं पिछले 2 साल से दिल्ली में अपनी चाची के यहां रह कर पढ़ाई कर रही हूं. चाची का घर इसलिए कहा क्योंकि घर में चाचू की नहीं बल्कि चाची की चलती है.

मेरे अलावा घर में 7 साल का गोलू, 14 साल का मोनू और 47 साल के चाचू हैं. गोलू और मोनू चाचू के बेटे यानी मेरे चचेरे भाई हैं.

मार्च 2020 की शुरुआत में जब कोरोना का खौफ समाचारों की हेडलाइन बनने लगा तो हमारी चाचीजी के भी कान खड़े हो गए. वे ध्यान से समाचार पड़तीं और सुनतीं थीं. कोरोना नाम का वायरस जल्दी ही उन का जानी दुश्मन बन गया जो कभी भी चुपके से उन के हंसतेखेलते घर की चहारदीवारी पार कर हमला बोल सकता था. इस अदृश्य मगर खौफनाक दुश्मन से जंग के लिए चाची धीरेधीरे तैयार होने लगी थीं.

“दुश्मन को कभी भी कमजोर मत समझो. पूरी तैयारी से उस का सामना करो.” अखबार पढ़ती चाची ने अपना ज्ञान बघाड़ना शुरू किया तो चाचू ने टोका, “कौन दुश्मन? कैसा दुश्मन?”

“अजी अदृश्य दुश्मन जो पूरी फौज ले कर भारत में प्रवेश कर चुका है. हमले की तैयारी में है. चौकन्ने हो जाओ. हमें डट कर सामना करना है. उसे एक भी मौका नहीं देना है. कुछ समझे.”

नहीं श्रीमतीजी. मैं कुछ नहीं समझा. स्पष्ट शब्दों में समझाओगी.”

“चाचू कोरोना. कोरोना हमारा दुश्मन है. चाची उसी के साथ युद्ध की बात कर रही हैं.” मुस्कुराते हुए मैं ने कहा तो चाची ने हामी भरी, “देखो जी सब से पहला काम, रसद की आपूर्ति करनी जरूरी है. मैं लिस्ट बना:कर दे रही हूं. सारी चीजें ले आओ.”

“तुम्हारे कहने का मतलब राशन है?”

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“हां राशन भी है और उस के अलावा भी कुछ जरूरी चीजें ताकि हम खुद को लंबे समय तक मजबूत और सुरक्षित रख सकें.”

इस के कुछ दिन बाद ही अचानक लौकडाउन हो गया. अब तक कोरोना वायरस का खौफ चाची से दिमाग तक चढ़ चुका था. अखबार, पत्रिकाएं, न्यूज़ चैनल और दूसरे स्रोतों से जानकारियां इकट्ठी कर चाची एक बड़े युद्ध की तैयारी में लग गई थीं.

वे दुश्मन को घुसपैठ का एक भी मौका देना नहीं चाहती थीं. इस के लिए उन्होंने बहुत से रास्ते अपनाए थे. आइए आप को भी बताते हैं कि कितनी तैयारी के साथ वे किसी सदस्य को घर से बाहर भेजती और कितनी आफतों के बाद किसी सदस्य को या बाहरी सामान को घर में प्रवेश करने की इजाजत देती थीं.

सुबहसुबह चाचू को टहलने की आदत थी जिस पर चाची ने बहुत पहले ही कर्फ्यू लगा दिया था. मगर चाचू को सुबह में मदर डेयरी से गोलू के लिए गाय का खुला दूध लेने जरूर जाना पड़ता है.

चाचू दूध दूध लाने के लिए सुबह में निकलते तो चाची उन्हें कुछ ऐसे तैयार होने की ताकीद करती,” पजामे के ऊपर एक और पाजामा पहनो. टीशर्ट के ऊपर कुरता डालो. पैरों में मौजा और चेहरे पर चश्मा लगाना मत भूलना. नाक पर मास्क और बालों को सफेद दुपट्टे से ढको. इस दुपट्टे के दूसरे छोर को मास्क के ऊपर कवर करते हुए ले जाओ.”

चाची को डर था कि कहीं मास्क के बाद भी चेहरे का जो हिस्सा खुला रह गया है वहां से कोरोना नाम का दुश्मन न घुस जाए. इसलिए डाकू की तरह पूरा चेहरा ढक कर उन्हें बाहर भेजती.

जब चाचू लौटते तो उन्हें सीधा घर में घुसने की अनुमति कतई नहीं थी. पहले चाचू का चीरहरण चाची के हाथों होता. ऊपर पहनाए गए कुरते पजामे और दुपट्टे को उतार कर बरामदे की धरती पर एक कोने में फेंक दिया जाता. अब मोजे को भी उतरवा कर कोने में रखवाए जाते. फिर सर्फ का झाग वाला पानी ले कर उन के पैरों को 20 सेकंड तक धोया जाता. फिर चप्पल उतरवा कर अंदर बुलाया जाता.

इस बीच अगर उन्होंने गलती से परदा टच भी कर दिया तो चाची तुरंत परदा उतार कर उसी कोने में पटक देतीं. अब चाचू के हाथ धुलाए जाते. पहले 20 सेकंड साबुन से रगड़रगड़ कर. फिर 20 सेकंड डिटॉल हैंडवॉश से ताकि कहीं किसी भी कोने में वायरस के छिपे रह जाने की गुंजाइश भी न रह जाए. इस के बाद उन्हें सीधे गुसलखाने में नहाने के लिए भेज दिया जाता.

अगर चाचू बिना पूछे कुछ ला कर कमरे या फ्रिज में रख देते तो वह हल्ला करकर के पूरा घर सिर पर उठा लेतीं.

चाचू जब दुकान से दूध और दही के पैकेट खरीद कर लाते तो चाची उन्हें भी कम से कम दोदो बार 20 -20 सेकंड तक साबुन से रगड़रगड़ कर धोतीं.

एक बात और बता दूं, घर के सभी सदस्यों के लिए बाहर जाने के चप्पल अलग और घर के अंदर घूमने के लिए अलग चप्पल रखवा दी गई थी. मजाल है कि कोई इस बात को नजरअंदाज कर दे.

सब्जी वाले भैया हमारी गली के छोर पर आ कर सब्जियां दे जाते थे. सब्जी खरीदने का काम चाची ने खुद संभाला था. इस के लिए पूरी तैयारी कर के वह खुद को दुपट्टे से ढक कर निकलतीं.

कुछ समय पहले ही उन्होंने प्लास्टिक के थैलों के 2-3 पैकेट खरीद लिए थे. एक पैकेट में 40- 50 तक प्लास्टिक के थैले होते थे. आजकल यही थैले चाची सब्जियां लाने के काम में ला रही थी.

सब्जी खरीदने जाते वक्त वह प्लास्टिक का एक बड़ा थैला लेती और एक छोटा थैला रखतीं. छोटे थैले में रुपएपैसे होते थे जिन्हें वह टच भी नहीं करती थीं. सब्जी वाले के आगे थैला बढ़ा कर कहतीं कि रुपए निकाल लो और चेंज रख दो.

अब बात करते हैं बड़े थैले की. दरअसल चाची सब्जियों को खुद टच नहीं करती थीं. पहले जहां वह एकएक टमाटर देख कर खरीदा करती थीं अब कोरोना के डर से सब्जी वाले को ही चुन कर देने को कहती और खुद दूर खड़ी रहतीं. सब्जीवाला अपनी प्लास्टिक की पन्नी में भर कर सब्जी पकड़ाता तो वह उस के आगे अपना अपना बड़ा थैला कर देती थीं जिस में सब्जी वाले को बिना छुए सब्जी डालनी होती थी.

सब्जी घर ला कर चाची उसे बरामदे में एक कोने में अछूतों की तरह पटक देतीं. 12 घंटे बाद उसे अंदर लातीं और वाशबेसिन में एक चलनी में डाल कर बारबार धोतीं. यहां तक कि सर्फ का झाग वाला पानी 20 सेकंड से ज्यादा समय तक उन पर उड़ेलतीं रहतीं. काफी मशक्कत के बाद जब उन्हें लगता कि अब कोरोना इन में सटा हुआ नहीं रह गया और ये सब्जियां फ्रिज में रखी जा सकती हैं तो धोना बंद करतीं. सब्जी बनाने से पहले भी हल्के गर्म पानी में नमक डाल कर उन्हें भिगोतीं.

दिन में कम से कम 50 बार वह अपना हाथ धोतीं. अखबार छुआ तो हाथ धोतीं सब्जी छू ली तो हाथ धोतीं. दरवाजे का कुंडा या फ्रिज का हैंडल छुआ तो भी हाथ धोतीं. हाथ धोने के बाद भी कोई वायरस रह न जाए इस के लिए सैनिटाइजर भी लगातीं.

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नतीजा यह हुआ कि कुछ ही दिनों में उन के हाथों की त्वचा ड्राई और सफेद जैसी हो गई. उन्हें चर्म रोग हो गया था. इधर पूरे दिन कपड़ों और बर्तनों की बरात धोतेधोते उन्हें सर्दी लग गई. नाक बहने लगी छींकें भी आ गईं.

अब तो चाची ने घर सर पर उठा लिया. कोरोना के खौफ से वह एक कमरे में बंद हो गईं और खुद को ही क्वॉरेंटाइन कर लिया. डर इतना बढ़ गया कि बैठीबैठी रोने लगतीं. 2 दिन वह इसी तरह कमरे में बंद रहीं.

तब मैं ने समझाया कि हर सर्दीजुकाम कोरोना नहीं होता. मैं ने उन्हें कुछ दवाइयां दीं और चौथे दिन वह बिल्कुल स्वस्थ हो गईं. मगर कोरोना के खौफ की बीमारी से अभी भी वह आजाद नहीं हो पाईं हैं.

#coronavirus: कोरोना वायरस से बचाती है शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता

कोरोना वायरस का कोई इलाज नही है. शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता ही उससे बचाव करती है. यही वजह है कि यह 60 साल उम्र से अधिक और 6 साल की उम्र से कम के लोगो को ज़्यादा असर करती है. ऐसे में जरूरी है कि कोरोना वायरस से बचने के लिए अपने शरीर मे रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाए.

”मिसेज यूपी 2019″ और न्यूट्रिशन काउंसलर अर्चना श्रीवास्तव ने “कॅरोना वायरस” के समय “लॉक डाउन” में समय बिता रहे लोगो मे लिए फिटनेस और डाइट के टिप्स दिये है.

अर्चना श्रीवास्तव कहती है “आज  हमारा देश  बहुत बड़ी संकट से गुजर रहा है हम सब का कर्तव्य है कि हम अपने देश का साथ दें और कोरोना वायरस से निपटने के सभी तरीकों को अपनाएं लोगों से दूरी बनाए और घर में ही रहे. घर के हर व्यक्ति  सफाई का विशेष ध्यान रखते हुए अपने हाथों को धोते रहें.”

1. नियमित एक्सरसाइज जरूरी :

घर में रहकर नियमित व्यायाम करें और आहार के द्वारा अपना इम्यूनिटी सिस्टम स्ट्रांग करें. इम्यूनिटी सिस्टम का सीधा मतलब है अपने शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बेहतर बनाना और इम्यूनिटी सिस्टम को मजबूत करना है. कोरोना वायरस से मुकाबले में शरीर के रोग प्रतिरोधक क्षमता का बहुत महत्व होता है. तो शरीर की क्षमता किसी भी प्रकार की एलर्जी संक्रमण से लड़ने के लिए तैयार रहती है और जिन लोगों का इम्यूनिटी सिस्टम शक्तिशाली है उनका शरीर मजबूत माना जाता है. इम्यूनिटी आपके शरीर में मौजूद टॉक्सिन से लड़ने की क्षमता को भी प्रदान करती है अगर आपका इम्यूनिटी सिस्टम मजबूत है तो आप ना केवल बदलते मौसम में होने वाली सर्दी खांसी से बचे रहेंगे साथ में संक्रमण हो से होने वाली समस्याओं का भी सामना पूरी तरह कर सकने में समर्थ रहते हैं.

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2. अच्छी डाइट का प्रयोग करे :

शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को आप अपनी छोटी-छोटी कोशिशों से बढ़ा सकते हैं अपने दिनचर्या और खानपान में बदलाव ला कर खुद भी स्वास्थ्य रहे साथ में अपने परिवार के लोगों को भी स्वास्थ्य रख सकते हैं.  इम्यूनिटी को बढ़ाने के लिए नियमित रूप से आवश्यक है व्यायाम करें साथ में अपने आहार में उन चीजों को शामिल करें जिससे शरीर को सही पोषण प्रदान हो सके…

सुबह का नाश्ता प्रोटीन और विटामिन से भरपूर मात्रा का होना बहुत अच्छा होता है बहुत से लोग सुबह का नाश्ता नहीं करते हैं जो उनकी सेहत के लिए हानिकारक होता है सुबह का नाश्ता आपके शरीर को अच्छा पोषण देता है.

आप नाश्ते में दलिया ,नट्स, अंकुरित अनाज, संतरा, मुसम्मी, पपीता और भी मौसम के आने वाले फल ले सकते हैं अंडे, जूस, गर्मियों में दही की लस्सी, छाछ, इस तरह के नाश्ते को अपनाएं जिससे आपकी सेहत तो सही रहेगी साथ में दिमाग को भी सही पोषण मिलेगा और  प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ती जाएगी.

3. भरपूर नींद ले :

अच्छे आहार और नियमित व्यायाम के साथ बहुत आवश्यक है कि रोज 8 घंटे की नींद अवश्य लें अनावश्यक तनाव से दूर रहे .

धूम्रपान और शराब से दूरी बना ले अपने आसपास का वातावरण साफ सुथरा रखें और शरीर को भी स्वच्छ रखें गंदगी से बीमारियां अधिक होती हैं.

4. खानपान में जरूरी टिप्स :

तुलसी और करी पत्ता में एंटीऑक्सीडेंट के तत्व पाए जाते हैं तो 5 – 10 पतियों को अवश्य चबाना चाहिए. टमाटर खा सकते हैं इसमें विटामिन सी और फाइबर की अच्छी मात्रा पाई जाती है जो कि इम्यूनिटी को सुधारने में मदद करती है. मौसमी खट्टे फलों में विटामिन सी भरपूर मात्रा में होता है जो कि संक्रमण से लड़ने में सहायक होते हैं.

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सुबह लहसुन की दो कलियों का सेवन करने से ब्लड प्रेशर तो नियंत्रण में रहता ही है साथ में यह एंटी ऑक्सीडेंट से भरपूर होता है तो लंबे समय तक इम्यूनिटी सिस्टम भी मजबूत बना रहता है.

पालक के सेवन से भी शरीर को रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है. मशरूम में भी एंटी ऑक्सीडेंट तत्व के साथ विटामिन बी होता है इसके अलावा मशरूम में एंटीवायरल ,एंटीबैक्टीरियल तत्व भी पाए जाते हैं जिससे शरीर के रोगों की क्षमता को मजबूत तत्व प्रदान करता है. आप भिगोकर बादाम ले सकते हैं इसमें विटामिन ई की मात्रा पाई जाती है जिससे शरीर को स्वभाविक रूप से हमारे शरीर की दिमागी तनाव से लड़ने की क्षमता भी प्रदान करता है. हल्का गुनगुना पानी का सेवन  करिए हो सके तो ग्रीन टी जरूर ले चाय में अदरक का सेवन की करिए.

इस तरह आप अपनी शारीरिक क्षमता को मजबूर कर सकते हैं साथ में आप नियमित रूप से व्यायाम जरूर कीजिए प्रयास कीजिए कि आप अपनी निजी जिंदगी में हमेशा खुश रहें और अच्छी सोच बनाएं तो आपको अपने अंदर जल्द ही परिवर्तन दिखने लगेगा.

#lockdown: फैमिली के लिए बनाएं लौकी की बर्फी

लौकी सब्जियों में एक ऐसा नाम है जिसका नाम सुनते ही बच्चों से लेकर बड़े तक नाक मुंह सिकोड़ने लग जाते हैं. देखा जाता है की कम ही लोगों को इसकी सब्जी पसंद आती है. पर क्या आप जानते है की लौकी हमारे सेहत के लिए कितनी फायदेमंद है .लौकी में  कैलोरी की मात्रा बहुत कम पाई जाती है.100 ग्राम लौकी में लगभग 15 कैलोरी होती है.इसलिए  लौकी को आसानी से पचाया  जा सकता है.

लौकी में भरपूर मात्रा में  फाइबर होता है और इसकी  तासीर ठंडी होती है . यह हमारे लिवर को दुरुस्त रखती है लौकी में काफी मात्रा में पानी होता है. लौकी खाने से आपकी बॉडी हाइड्रेट रहती है. इसमें कई ऐसे पोषक तत्व होते हैं जो शरीर को मानसिक रूप से स्वस्थ रखते हैं जिससे तनाव और चिंता जैसी समस्याओं से राहत मिलती हैं. लौकी में विटामिन C ,A  और K  के अलावा सोडियम, कैल्शियम, आयरन ,जिंक और मैग्नीशियम जैसे आवश्यक खनिज मौजूद होते  हैं. यह खराब कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम करके हृदय को भी स्वस्थ बनाते  है. यही कारण है कि गर्मी के मौसम में लौकी का सेवन किया जाता है

अगर आपको वाकई में लौकी की सब्जी नहीं पसंद है तो आप लौकी में थोड़ा सा इनोवेशन करके कुछ बेहतरीन रेसिपीज तैयार कर  सकते हैं. लौकी से बनी हमारी यह दिलचस्प रेसिपीज आपके काम को आसान बना सकती हैं .

आज हम आपको लौकी की बर्फी की रेसीपी के बारे में बताने जा रहे हैं. जिसका स्वाद इतना लाजबाव है की आप इसकी सब्जी खाए या ना खाएं लेकिन आप इसकी बर्फी को खाए बिना नहीं रह पाएंगे. इसे  घर पर बनाना काफी आसान है . तो चलिए जानते हैं इसे घर पर कैसे बनाये-

हमें चाहिए –

  • 1 किलो लौकी  ( घिसी हुई )
  • 1.5 लीटर फुल क्रीम दूध
  • 200 ग्राम चीनी
  • 8-10 काजू (कटे हुए )

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  • 8-10 बादाम(कटे हुए )
  • 9-10 किशमिश
  • ½-चम्मच इलायची पाउडर
  • 1 टेबल स्पून घी

बनाने का तरीका-

1-सबसे पहले 1 किलो लौकी  को अच्छे से पानी से साफ़ करके छील लीजिये फिर उसे घिस लीजिये.

2- अब एक कढाई  में घी गरम कर ले फिर उसमे घिसी हुई लौकी  डाल कर अच्छे से भून ले. जब लौकी थोड़ी गल जाये तो गैस की आंच थोड़ा तेज़ करके उसका पानी सुखा लीजिये. जब लौकी का पानी सूख जाये तब  उसमे 1.5 लीटर पका हुआ फुल क्रीम दूध दाल दे.

3-अब कलछी से अच्छे से  लौकी  और दूध  के मिश्रण को हर 5-6 मिनट पर तब तक चलाते रहें जब तक कि लौकी  का रस और दूध सूखने न लगे.

4-जब आपको लगे की लौकी  और दूध का मिश्रण अच्छे से मिलकर सूख गया है तब उसमे चीनी मिला दे और अच्छे से कलछी से चलाते रहे.ताकि लौकी तली में न लग जाये.

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5- फिर जब लौकी का मिश्रण बर्फी बनाने के लिए तैयार हो जाए तो आंच को बंद कर दें और इलाइची पाउडर डालकर इसे अच्‍छी तरह मिला लें.

6- अब एक थाली में चिकनाई लगाकर मिश्रण को थाली में डालकर अच्छे से फैला ले और  जमने के लिए रख दें. फिर बर्फी के ऊपर बारीक कटे हुए बादाम,किशमिश और  काजू डाल दें . लगभग 1 घंटे में लौकी की बर्फी जम जाती है. इसे फिर अपनी पसंद के टुकड़ों में काटकर सर्व करें.

7-तैयार है टेस्टी लौकी की बर्फी.

#coronavirus: सफलताओं के पीछे अब महिलाओं का हाथ ही नहीं, वह खुद भी हैं

किसी सक्सेज स्टोरी के लिखने की शुरुआत दशकों से हम आमतौर पर इसी जुमले से करते रहे हैं, ‘हर सफल पुरुष के पीछे एक महिला का हाथ होता है’. लेकिन हाल के सालों में हमने कई बार देखा है कि सफलता की खालिस हिंदुस्तानी कहानियों में महिलाओं का सिर्फ हाथ ही नहीं होता, वे खुद भी होती हैं. मीनल दखावे भोसले इसी सिलसिले का नया नाम हैं. जैसा कि हम सब जानते हैं मीनल दखावे वह वायरोलौजिस्ट हैं, जिनके नेतृत्व में भारत ने पहली कोरोना वायरस वर्किंग टेस्ट किट रिकौर्ड समय में तैयार की है. गुजरे 26 मार्च 2020 को भारत का पहला कोरोना वायरस टेस्टिंग किट ‘पाथो डिटेक्ट’ महज 4 सप्ताहों के भीतर तैयार होकर बाजार तक पहुंच गया, जबकि दुनिया में अब से पहले कोई भी कोरोना वायरस टेस्टिंग किट साढ़े तीन महीने से पहले नहीं तैयार हुआ था. यही नहीं इस टेस्टिंग किट की और भी कई ऐसी खूबियां हैं, जो इसे दुनिया का सबसे बेहतरीन किट बनाती है.

एक तो यह दुनिया में सबसे सस्ता टेस्टिंग किट है. दूसरी बात यह है कि यह दुनिया का सबसे स्मार्ट टेस्टिंग किट भी है. दूसरे टेस्टिंग किट जहां 70 से 80 फीसदी ही सही नतीजे देते हैं, वहीं यह किट 100 फीसदी सही नतीजे देता है और दुनिया के बाकी टेस्टिंग किट जहां 7 से 8 घंटे नतीजा देने में लगाते हैं, वहीं यह 2 से ढाई घंटे के बीच नतीजा दे देता है. इस तरह यह अब तक दुनिया का सबसे अच्छा, सस्ता और स्मार्ट कोरोना वायरस टेस्टिंग किट है. लेकिन इस कहानी में इससे भी कहीं ज्यादा रोमांचित करने वाला संदर्भ है. वह है इस किट को तैयार करने वाली टीम की मुखिया मीनल दखावे भोसले. यूं तो इस टेस्टिंग किट की कामयाबी में पुणे की ‘मायलैब डिस्कवरी’ फर्म के सभी कर्मचारियों का सैल्यूट के लायक योगदान है. लेकिन अगर लैब के मेडिकल मामलों के निदेशक डाॅ. गौतम वानखेड़े की मानें तो इसमें सबसे बड़ा योगदान लैब की रिसर्च एवं डेवलपमेंट प्रमुख वायरोलौजिस्ट मीनल दखावे भोसले का है. मीडिया से बातचीत करते हुए डाॅ. गौतम वानखेड़े ने उनके जिस अदम्य साहस की ओर इशारा किया है, वह है बेहद तनाव और जोखिम भरे समय में उनका बहुत कूल और संयमित बने रहना.

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हम सब जानते हैं कि आमतौर पर हम जिस कौशल में माहिर होते हैं, उसे भी तनाव और बेहद दबाव के क्षणों में उतनी कुशलता से अंजाम नहीं दे पाते, हममें गैर तनाव के मौके पर जितनी कुशलता होती है. लेकिन उस स्थिति के बारे में सोचिए जब न सिर्फ सिर पर खड़ी दहशत की मौजूदगी के बीच अपने कौशल को पूरी तरह से अंजाम देना हो बल्कि अपने कौशल से भी कई गुना ज्यादा बेहतर नतीजा हासिल करना हो. जी, हां! जब भारत सरकार ने पुणे की मायलैब डिस्कवरी से कोरोना टेस्टिंग किट को जल्द से जल्द बनाये जाने के लिए कहा, तब इस लैब पर कुछ ऐसा ही दबाव आ गया था. हालांकि आधिकारिक रूप से तो मायलैब डिस्कवरी यह नहीं कहती कि उसके दूसरे सीनियर पुरुष वायरोलाॅजिस्ट इस जिम्मेदारी को नहीं उठा सकते थे, लेकिन लैब यह मानती है कि इस मौके पर आर एंड डी हैड वायरोलाॅजिस्ट मीनल दखावे भोसले को इस जिम्मेदारी सौंपे जाने के पीछे, तनाव के समय में उनका बहुत संयमित बने रहने वाला स्त्रियोचित स्वभाव भी था.

इसमें कोई दो राय नहीं है कि माॅलिक्यूलर डायग्नोस्टिक कंपनी मायलैब को एचआईवी, हैपेटाइटिस-बी और सी सहित कई दूसरी बीमारियों के लिए टेस्टिंग किट बनाने का काफी बड़ा अनुभव है. इसके बाद भी कोविड-19 टेस्ट किट समय से काफी पहले बना लेना एक बहुत बड़ी चुनौती थी, जिससे किसी बड़े से बड़े और अनुभवी विशेषज्ञ का दबाव में आना स्वभाविक था. लेकिन हम हिंदुस्तानियों को ही नहीं पूरी दुनिया को मीनल दखावे भोसले को सैल्यूट करना चाहिए कि उन्होंने न केवल तय समय से एक तिहाई समय में ही यह किट तैयार करके बल्कि उसे पहले से लगायी गई तमाम उम्मीदों से भी ज्यादा बेहतर तैयार किया. उनकी यह सफलता तब और भी ज्यादा साहस और संयम की निशानी बन जाती है, जब हम यह जानते हैं कि जिन दिनों वह इस प्रोजेक्ट पर दिन-रात एक किये हुईं थीं उन दिनों वह नौवें महीने की गर्भावस्था से भी गुजर रही थीं. वह समय के किन दबावों में लक्ष्य को पूरा किया होगा, इसका अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि जिस दिन (18 मार्च 2020) उनके नेतृत्व में तैयार हुई इस किट को पहले नेशनल इंस्टीट्यूट आॅफ वायरोलाॅजी (एनआईवी) को सौंपा गया और वहां से पास होने के बाद उसी शाम इसे भारत सरकार के फूड एंड ड्रग्स कंट्रोल एथाॅरिटी (सीडीएससीओ) के पास व्यवसायिक उत्पादन की अनुमति के लिए भेजा गया, इन अंतिम जिम्मेदारियांे को खत्म करके ही वह अस्पताल गईं और अपनी बेटी को जन्म दिया.

कहने का मतलब यह कि वह ‘लेबर पेन’ के पहले तक अपनी ड्यूटी में मौजूद थीं. यह ड्यूटी कोई साधारण ड्यटी नहीं थी बल्कि अपनी सामान्य क्षमता से कई गुना ज्यादा परिश्रम करने और साहस दिखाने की ड्यूटी थी. क्योंकि न सिर्फ उनके नेतृत्व वाली 10 लोगों की टीम की पूरी साख और मेहनत इस प्रोजेक्ट की सफलता पर टिकी थी बल्कि पूरे देश और दुनिया की इकोनोमिक दायर में रहकर कोरोना से जंग लड़ने की उम्मीदों का भविष्य भी इसी पर टिका था. गौरतलब है कि इसके पहले जो कोरोना वायरस की टेस्टिंग किटें दुनिया में मौजूद थीं, वे कम से कम 4500 रुपये की कीमत वाली थीं और उन टेस्टिंग किट से किये गये टेस्ट का नतीजा न्यूनतम छह से सात घंटे बाद ही हासिल होता था. जबकि मीनल दखावे भोसले के नेतृत्व में तैयार हुई पहली हिंदुस्तानी कोरोना टेस्टिंग किट पाथो डिटेक्ट की अधिकतम कीमत 1200 रुपये है. जो कि दुनिया की सबसे सस्ती किट से भी 300 फीसदी सस्ती है. इस महान उपलब्धि के लिए वायरोलाॅजिस्ट मीनल दखावे और उनकी टीम का दिल से आभार व्यक्त करना बहुत कम होगा.

लेकिन यह पहला ऐसा मौका नहीं है जब सर्वाधिक तनाव पैदा करने वाले अभियानों की बागडोर भारत में किसी महिला ने संभाली हो. हाल के सालों में ऐसे कई मौके आये हैं, जब महिलाओं ने ऐसे अभियानों का नेतृत्व किया है जिनकी सफलता और असफलता अनंत जोखिमभरे दबावों और अपने क्लाईमेक्स में दिल की धड़कनों तक को रोक देने वाले नतीजों से संबद्ध थे. मसलन- पिछले साल भारत के सबसे सफल वैज्ञानिक संस्थान इसरो ने जिस दिल धड़काने वाले अब तक के सबसे महत्वाकांक्षी चंद्रयान-2 प्रोजेक्ट को 95 फीसदी तक सफलतापूर्वक अंजाम दिया, उस धड़कनें रोक देने वाले अभियान की बागडोर भी दो महिला वैज्ञानिकों के हाथ में ही थी. यूं तो इस प्रोजेक्ट में 30 फीसदी महिला वैज्ञानिकों की भूमिका थी और कोर ग्रुप में भी 8 प्रमुख महिला साइंटिस्ट जुड़ी थीं, लेकिन अंतिम क्षणों तक जिन दो महिलाओं को इस अभियान को अंजाम तक पहुंचाना था, वे थीं चंद्रयान-2 मिशन की निदेशिका ऋतु करधल श्रीवास्तव तथा इस प्रोजेक्ट की डायरेक्टर एम.वनिथा.

इसरो ने अपने 3000 से ज्यादा महान वैज्ञानिकों के बीच अपने अब तक के सबसे महत्वाकांक्षी और संवेदशील अभियान की बागडोर दो महिला वैज्ञानिकों को सौंपी थी. जो उनकी उच्च श्रेणी की प्रतिभा की तो गवाही है ही, इस बात का भी सबूत है कि जोखिम के सबसे तनाव भरे क्षणों में इसरो ने अपनी महिला वैज्ञानिकों को इस दबाव को झेलने के मामले में पुरुषों वैज्ञानिकों से कहीं ज्यादा बेहतर माना था. यह हैरान करने वाला सच भी मायने रखता है कि अंतिम क्षणों में चंद्रयान-2 के अपने लैंडर से संपर्क खत्म हो जाने पर जिस तरह इसरो प्रमुख भावुक होकर रो पड़े थे, तब इन महिला वैज्ञानिकों ने उनसे कहीं ज्यादा मजबूती से अपनी भावनाओं पर काबू रखा था.

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ये दो कोई अकेले ऐसे मौके नहीं हैं जब भारतीय महिलाओं ने हिंदुस्तान की सबसे बड़ी जिम्मेदारियों को सबसे ज्यादा संयम के साथ पूरी किया हो. साल 2016 के रियो ओलंपिक में जब हमारा कोई भी पुरुष खिलाड़ी एक भी पदक नहीं जीत पाया था और लग रहा था कि हम बिना पदक खाली हाथ लौटेंगे, तब भी ये दो महिला खिलाड़ी ही थीं, जिन्होंने हमारी लाज रखी थी. इनमें पहली थीं साक्षी मलिक जिन्होंने कुश्ती की प्रतिस्पर्धा में कांस्य पदक जीता था और दूसरी थीं पीवी सिंधु जिन्होंने बैडमिंटन में रजत पदक जीतकर हमें पदक रहित होने से बचा लिया था. इस तरह देखें तो हाल के सालों में भारत की महिलाओं ने सबसे नाजुक क्षणों में देश का नेतृत्व किया है और उसे सफलता दिलायी है.

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