‘झांसी की रानी’ सीरियल से बदली इस एक्ट्रेस की जिंदगी, अब करना चाहती हैं रियल लाइफ फिल्मों में काम

सीरियल ‘बालवीर’ में मेहर की भूमिका निभाकर चर्चित हुई अभिनेत्री अनुष्का सेन झारखण्ड की है. बचपन से ही उसे अभिनय का शौक था,जिसमें साथ दिया उसकी माँ राजरूपा सेन और पिता अनिर्बान सेन ने. वह सोशल मीडिया पर काफी एक्टिव रहती है. उसके फोलोवर्स करोड़ो में है. इसके अलावा उसने कई विज्ञापनों और फिल्मों में भी काम किया है. वर्ष 2018 में 20 टॉप यंग एचीवर्स का अवार्ड भी मिल चुका है. अनुष्का को डांस बहुत पसंद है और शामक डावर के डांस क्लास में नृत्य भी सीख चुकी है. स्वभाव से नम्र और चुलबुली अनुष्का इन दिनों लॉक डाउन में कई वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर शेयर कर रही है. रविन्द्रनाथ टैगोर के जन्म तिथि पर उसने एक ट्रिब्यूट वीडियो शेयर किया, जिसे लोगों ने काफी पसंद किया. उसकी जर्नी के बारें में बात हुई, पेश है कुछ अंश.

सवाल-लॉक डाउन में कैसे समय बिता रही है?

मैं इस समय उन फिल्मों को देख रही हूं, जिसे व्यस्तता के करण देख नहीं पा रही थी. खासकर सत्यजित रे और आस्कर विनिंग फिल्में देख रही हूं. साथ ही पढाई भी कर रही हूं, क्योंकि 12वीं की मेरी एक पेपर बाकी है, जिसे अब जुलाई में शिड्युल कर दिया गया है, उसकी तैयारी कर रही हूं, इसके अलावा मैं यू ट्यूब के लिए कंटेंट बनाती हूं, जिसमें वीडियो सौंग खास होता है.

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सवाल-लॉक डाउन के बाद जिंदगी कठिन होने वाली है, आप इस बारें में क्या सोचती है, क्या होने वाला है?

इस समय कई बड़ी फिल्में थिएटर में न आकर डिजिटल प्लेटफॉर्म पर आ रही है. ये पिछले कुछ दिनों से ही शुरू हो चुका है, लोग व्यस्तता की वजह से ऑनलाइन फिल्में देखना पसंद कर रहे है. मैं भी बिंज वाच अधिक करती हूं. इसमें एक साथ बैठकर सारी सीरीज या फिल्म देखी जा सकती है. लॉकडाउन के बाद थोड़े दिन लोग थिएटर में जाकर फिल्म देखना पसंद भी नहीं करेंगे, ऐसे में ये ऑनलाइन फिल्में ही अधिक चलेगी. पहले थिएटर के बाद फिल्में ऑनलाइन आती थी. अब ऑनलाइन पहले और बाद में थिएटर में जाया करेगी. इसके अलावा लोगों के बीच में हायजिन बढ़ जाएगी. जिसमें क्रू मेम्बर से लेकर एक्टर एक्ट्रेस सभी इस नियम के तहत काम करना पसंद करेंगे. इससे किसी भी प्रकार की बीमारी आप तक नहीं पहुँच सकती. शूटिंग में भी मास्क और सेनिटाइजर का प्रयोग अधिक किया जायेगा. मेरे हिसाब से इस लॉक डाउन के बाद बहुत सारी पॉजिटिवनेस दिखाई पड़ेगी.

सवाल-लॉक डाउन की वजह से आपने क्या-क्या मिस किया है?

साल 2019 मेरे लिए बहुत अच्छा था, क्योंकि तब मुझे झाँसी की रानी शो मिली थी. उस जर्नी को मैंने बहुत एन्जॉय किया, कई अवार्ड्स भी मिले. कुछ फिल्में भी थी, जो कांस फिल्म फेस्टिवल में रिलीज होने वाली थी. मैं इस समय वहां होती और मेरे लिए एक बहुत बड़ी ओपर्चुनिटी थी, उसे मैंने मिस किया. मुझे सालों से कांस फिल्म फेस्टिवल में जाने की जाने की इच्छा है. वहां काफी जाने-माने लोग आते है,जिससे मुझे बहुत कुछ सीखने का मौका मिलता. इसके अलावा मैंने एक फिल्म भी की थी, जिसका पोस्ट प्रोडक्शन बाकी रह गया है, जो अभी चल रहा है. 12 वीं की बोर्ड परीक्षा की वजह से एक महीने मैंने कई सारे मीटिंग्स भी कैंसल किये थे.

सवाल-क्या आगे पढाई करने की इच्छा है ?

मुझे मॉस मीडिया में पढाई करनी है. मैं पर्दे पर ही नहीं पर्दे के पीछे की चीजों को भी सीखना चाहती हूं.

सवाल-आपके यहां तक पहुंचने में माता-पिता कितना सहयोग करते है?

मैंने 9 साल की उम्र से अभिनय शुरू किया था. माता-पिता का प्यार और हौसला मुझे हमेशा मिला है.   रानी लक्ष्मीबाई की शूटिंग के दौरान पिता ने ही मुझे कई बार घुड़सवारी,तलवारबाज़ी आदि में हौसला मिला, क्योंकि ये सब मेरे लिए करना आसान नहीं था. इस समय भी जब मैं इस लॉक डाउन से चिंतित होती हूं तो वे मुझे कुछ अच्छा करने या सीखने की सलाह देते है.

सवाल-अभी क्वारेंटाइन, मास्क, लॉक डाउन, माइग्रेंट वर्कर आदि कुछ शब्द हमारे डिक्शनरी में शामिल हो चुके है, क्या इसे लेकर कुछ नयी कहानी कहने की इच्छा रखती है?

ऐसे कुछ विदेशी फिल्म है, जो इस पर आधारित है, लेकिन अब ये हमारे जीवन में भी शामिल हो चुका है. ऐसी कहानी की हिस्सा अगर मैं बन सकूँ, तो ख़ुशी होगी, क्योंकि इन सब चीजों को मैंने करीब से जिया है. रियल कहानी मुझे प्रेरित करती है. इस अवस्था को केवल देश में ही नहीं, विदेश में भी लोगों ने फेस किया है. इसे बनाने वाले निर्देशकों में अनुराग कश्यप, सुजीत सरकार आदि कोई भी हो सकता है.

सवाल-किस कहानी ने आपकी जिंदगी बदल दी?

शो ‘झांसी की रानी’ ने मेरी जिंदगी बदल दी. वह एक लिजेंड्री चरित्र थी. एक फ्रीडम फाइटर की किरदार निभाना बहुत मुश्किल था. इस चरित्र के साथ बहुत बड़ी ट्रेनिंग और तैयारियां थी. उस जर्नी से बहुत कुछ सीखने को मिला.

सवाल-बांग्ला में कुछ करने की इच्छा है?

मुझे करने की बहुत इच्छा है, अच्छी स्क्रिप्ट की तलाश है. बहुत सारे फैन्स मुझे इस बारें में पूछते भी है कि मैं बांग्ला फिल्म या शो कब करुँगी. मैंने इंडो बॉलीवुड और हॉलीवुड कर लिया है. अब बांग्ला की बारी है.

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सवाल-कोरोना पॉजिटिव की वजह से देश में कई समस्याएं आ रही है, क्या मेसेज देना चाहती है?

डॉक्टर्स, नर्सेज, पुलिस कर्मी और सफाई कर्मी अभी दिन –रात काम कर रहे है. जबकि हम सब घर पर है. मैं उन सबको सैल्यूट करना चाहती हूं. वे लोग सुरक्षित रहे इसके लिए उन्हें सरकार की तरफ से हर सुविधा देने की जरुरत है. उनकी बाते आम लोगों को सुनने की भी आवश्यकता है. उनका सम्मान करे मारपीट न करें. मैं चाहती हूं कि जल्दी से पेंड़ेमिक ख़त्म हो जाय और हम सब फिर से काम पर लग जाएं.

बदलती जीवनशैली में हर उम्र की महिलाओं को चाहिए पुरुष दोस्त

..तो क्या भारतीय पुरुष बदल गए हैं? या वक्त ने उन्हें बदलने पर मजबूर कर दिया है. आज जीवनषैली काफी कुछ बदल गई है जिसमें आपोजिट सेक्स के दोस्त जिंदगी का जरूरी हिस्सा बन गए हैं. फिर चाहे बात पुरुषों की हो या महिलाओं की. पर चूंकि पुरुष हमेषा से महिलाओं से दोस्ती की फिराक में रहते रहे हैं इसलिए उनके संबंध में यह कोई चैंकाने वाली बात नहीं है. लेकिन महिलाओं के नजरिये से देखें तो यह वाकई क्रांतिकारी दौर है. जब हर उम्र की महिलाओं को पुरुष दोस्तों की जरूरत महसूस हो रही है और सहज बात यह है कि उसके सगे संबंधी पुरुष चाहे वह पिता हो, भाई हो या पति सब इस जरूरत को जानते हैं और इसे महसूस करते हैं.

दरअसल आज की इस तेज रफ्तार जीवनषैली में समस्याओं का वैसा वर्गीकरण नहीं रहा है जैसा वर्गीकरण आधी सदी पहले तक हुआ करता था. मगर जमाना बदल गया है. कामकाज के तौरतरीके और ढंग बदल गए हैं, भूमिकाएं बदल गई हैं इसलिए अब समस्याओं का बंटवारा या कहें वर्गीकरण महिलाओं और पुरुषों के लिए अलग-अलग तरह का नहीं रह गया है बल्कि जो समस्याएं आज के कॅरिअर लाइफ में पुरुषों की हैं, वही समस्याएं महिलाओं की भी हैं. ऐसा होना आष्चर्य की बात भी नहीं हैै. जब महिलाएं हर जगह पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हों तो भला समस्याएं कैसे अलग-अलग किस्म की हो सकती हैं. तनाव और खुशियां दोनों ही मामलों में पुरुष और महिलाएं करीब आ गए हैं. नई कामकाज की शैली में देर रात तक पुरुष और महिलाएं विषेषकर आईटी और इंटरटेनमेंट इंडस्ट्री में साथ-साथ काम करते हैं. ..तो दोनों के बीच इंटीमेसी विकसित होना भी आम बात है.

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स्त्री और पुरुष एक दूसरे के पूरक होते हैं. मगर पहले चूंकि पुरुषों और महिलाओं के काम अलग-अलग थे इसलिए पूरक होने की उनकी परिस्थितियां भी अलग-अलग थीं. आज जो काम वर्षाें से सिर्फ पुरुष करते रहे हैं, महिलाएं भी उन कामों में हाथ आजमा रही हैं तो फिर महिलाओं को इन कामों में मास्टरी हासिल करने के लिए दिषा-निर्देष किससे मिलेगा? पुरुषों से ही न? ठीक यही बात पुरुषों पर भी लागू होती है. वेलनेस और सौंदर्य प्रसाधन क्षेत्र में पहले इस तरह पुरुष कभी नहीं थे जैसे आज हैं. तो फिर भला इन क्षेत्रों में वह महिलाओं से ज्यादा कैसे जान सकते हैं? ऐसे में कामकाज के लिहाज से उनकी स्वाभाविक दोस्त कौन होंगी? महिलाएं ही न! चूंकि दोनों ने एक दूसरे के क्षेत्र में हस्तक्षेप किया है, प्रवेष किया है इसलिए दोनों ही एक दूसरे के भावनात्मक और सहयोगात्मक स्तर पर भी नजदीक आ गए हैं. यह जरूरत भी है और चाहत भी. इसलिए पुरुषों और महिलाओं की दोस्ती आज शक के घेरों से बाहर निकलकर सहज स्वाभाविक पूरक होने के दायरे में आ गई है.

सिग्मंड फ्रायड ने 19वीं सदी में ही कहा था ‘आॅपोजिट सेक्स’ न सिर्फ एक दूसरे को आकर्षित करते हैं बल्कि प्रेरित भी करते हैं; क्योंकि दोनों कुदरती रूप से एक दूसरे के पूरक होते हैं. हालांकि इंसानों में यह भाव हमेषा से रहा है; लेकिन सामाजिक झिझक और मान्यताओं के दायरे में फंसे होने के कारण पहले स्त्री या पुरुष एक दूसरे की नजदीकी हासिल करने की स्वाभाविक इच्छा का खुलासा नहीं करते थे. मगर कामकाज के आधुनिक तौर-तरीकों ने जब एक दूसरे के बीच जेंडर भेद बेमतलब कर दिया तो इस मानसिक चाहत के खुलासे में भी न तो पुरुषों को ही, न ही महिलाओं को किसी तरह की दिक्कत नहीं रही.

पढ़ाई चाहे गांव में हो या शहरों में, अब आमतौर पर सहषिक्षा के रूप में ही हो रही है. पढ़ाई के बाद फिर साथ-साथ कामकाज और साथ-साथ कामकाज के बाद लगभग इसी तरह की जीवनषैली यानी ऐसे समाज में जीवन गुजारना, जहां स्त्री और पुरुष के बीच मध्यकालीन भेद नहीं होता. ऐसे में पुरुष स्त्री एक दूसरे के दोस्त सहज रूप से बनते हैं. मगर यह बात तो दोनों पर ही लागू होती है फिर पुरुषों के बजाय महिलाओं के मामले में ही यह क्यों चिन्हित हो रहा है या देखने में आ रहा है कि आज हर उम्र की महिलाओं को पुरुष दोस्तों की जरूरत है? इसके पीछे वजह यह है कि महिलाओं के संदर्भ में यह नई बात है. यह पहला ऐसा मौका है जब महिलाएं खुलकर अपनी इस जरूरत को रेखांकित करने लगी हैं. जबकि इसके पहले तक वह घर-परिवार, समाज और जमाने की नाखुषी से अपनी इस चाहत और जरूरत को रेखांकित करने में झिझकती रही हैं. लेकिन इंटरनेट, भूमंडलीकरण और तेजी से आर्थिक और कामकाजी दुनिया मंे परिवर्तन के चलते जो आध्ुनिकता आयी है उसने यह वातावरण बनाया है कि महिलाएं अपनी बात खुलकर कह सकें, अपनी जरूरत को सहजता से सबके सामने रख सकें.

समाजषास्त्रियों को यह सवाल परेषान कर सकता है कि महिलाएं तो हमेषा से पुरुषों के साथ ही रही हैं. पति, पिता, पुत्र और भाई के रूप में हमेषा महिलाओं के साथ पुरुषों की मौजूदगी रही है. फिर उन्हें अपनी मन की बात शेयर करने के लिए या तनाव से राहत पाने के लिए अथवा कामकाज सम्बंधी सहूलियतें व जानकारियां पाने के लिए पुरुष दोस्तों की इतनी जरूरत क्यों पड़ रही है? दरअसल पति, पिता, पुत्र और भाई जैसे रिष्ते महिलाओं के पास सदियों से मौजूद रहे हैं और सदियों की परम्परा ने इनके कुछ मूल्यबोध भी निष्चित कर दिये हैं. इसलिए रातोंरात उन मूल्यों या बोधों को उलटा नहीं जा सकता. कहने का मतलब यह है कि पुरुष होने के बावजूद भाई, पिता, पति और पुत्र अपने सम्बंधों की भूमिका में ज्यादा प्रभावी होते हंै. इसलिए कोई भी महिला इन तमाम पुरुषों से सब कुछ शेयर नहीं कर सकती या अपनी चाहत या जिंदगी, महत्वाकांक्षाओं और दुस्साहसों को साझा नहीं कर सकती जैसा कि वह किसी पुरुष दोस्तों से कर सकती है.

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इसलिए इन तमाम पुरुषों के बावजूद महिलाओं को आज की तनावभरी जीवनषैली में सफलता से आगे बढ़ने के लिए घर के पुरुषों से इतर पुरूष दोस्तों की षिद्दत से जरूरत महसूस होती है. 10 या 12 घंटे तक लगातार पुरूषों के साथ काम करने वाली महिलाएं उनके साथ वैसा ही बर्ताव नहीं कर सकतीं जैसा बर्ताव वह अपनी निजी सम्बधों वाले जीवन में करती हैं. 8 से 12 घंटे तक लगातार काम करने वाली कोई महिला सिर्फ सहकर्मी होती है और उतनी ही बराबर जितना कोई भी दूसरा पुरुष सहकर्मी यानी वह पूरी तरह से सहकर्मी के साथ स्त्री के रूप में भी होती है और पुरूष के रूप में भी. यही ईमानदारी दोनों को आकर्षित भी करती है और प्रेरित भी करती है. जिससे काम, बोझ की बजाय रोमांच का हिस्सा बन जाता है. इसलिए तमाम सगे संबंधी पुरुषों के बावजूद महिलाओं को आज की जिंदगी में सहजता से संतुष्ट जीवन जीने के लिए हर मोड़ पर, हर कदम पर पुरुषों के साथ और उनसे दोस्ती की दरकार होती है.

यह देखा गया है कि जहां पुरुष-पुरूष काम करते हैं या सिर्फ महिला-महिला काम करती हैं, वहां न तो काम का उत्साहवर्धक माहौल होता है और न ही काम की मात्रा और गुणवत्ता ही बेहतर होती है. इसके विपरीत जहां पुरूष और महिलाएं साथ-साथ काम करते हों, वहां का माहौल काम के लिए ज्यादा सहज, अनुकूल और उत्पादक होता है. इसलिए तमाम कारपोरेट संगठन न सिर्फ पुरुषों और महिलाओं को साथ-साथ काम में रखने के लिए प्रोत्साहित करते हैं बल्कि उनमें दोस्ती पैदा हो, गाढ़ी हो इसके लिए भी माहौल का सृजन करते हैं. यही कारण है कि आज चाहे वह स्कूल की किषोरी हो, काॅलेज की युवती हो, दफ्तर की आकर्षक सहकर्मी हो या कोई भी हो. हर महिला को अपनी दुनिया में पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने के लिए पुरुषों का साथ चाहिए. यह बुरा कतई नहीं है बल्कि बेहतर समाज का बुनियादी रुख ही दर्षाता है. अगर पुरुष और महिला एक दूसरे के दोस्त होंगे, एक दूसरे के ज्यादा नजदकी होंगे तो वह एक दूसरे को ज्यादा बेहतर समझेंगे और ज्यादा बेहतर समझेंगे तो दुनिया ज्यादा रंगीन होगी.

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लॉकडाउन में किशोरों में बढ़ रही है घातक निष्क्रियता 

लॉकडाउन के इस चौथे चरण में काफी कुछ खुला हुआ है. दुकानें खुली हैं. बाजार खुले हैं. नियम के दायरे में आने जाने की भी छूट है. लेकिन स्कूल-काॅलेज अब भी बंद हैं. जिम अब भी बंद हैं. पार्कों में घूमने-फिरने और कसरत की तमाम गतिविधियां अब भी बंद हैं. खेल के मैदानों में खेल-कूद के आयोजन अब भी बंद हैं और सबसे बड़ी बात यह कि आपस में मिल जुलकर मटरगश्ती करने की अभी भी कतई छूट नहीं है. इस सबका नतीजा यह है कि देशभर में किशोर बेहद आलसी और निष्क्रिय हो गये हैं. इस बात की तस्दीक पिछले दिनों आया गैलप का सर्वे कर चुका है. इस सर्वे के निष्कर्षों और मौजूदा परिदृश्य को देखकर देश के फिटनेस विशेषज्ञों को चिंता है कि कहीं कोरोना का खौफ स्थायी रूप से हमारे किशोरों को निष्क्रियता की लत न लगा दे.

यह आशंका इसलिए भी पैदा हो रही है क्योंकि कोरोना के संकट के पहले भी विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) भारतीय किशोरों के निरंतर निष्क्रिय होते जाने पर चिंता व्यक्त कर चुका है. यही नहीं डब्ल्यूएचओ भारत सहित इस तरह की समस्या से पीड़ित तमाम दूसरे देशों के युवाओं में फिजिकल एक्टिविटी को प्रोत्साहित करने के लिए एक नई ग्लोबल योजना ‘मोर एक्टिव पीपल फॉर अ हेल्दियर वल्र्ड’ (स्वस्थ संसार के लिए अधिक सक्रिय लोग) भी लांच कर चुका है, जिसका उद्देश्य साल 2030 तक विभिन्न आयु वर्गों में व्याप्त मौजूदा फिजिकल निष्क्रियता को 15 प्रतिशत तक कम करना है. शायद इस योजना को लांच करते समय डब्ल्यूएचओ ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि उसे जल्द ही आने वाले दिनों में लोगों को फिजिकल सक्रियता की बजाय घर में कैद रहने की सलाह देनी पड़ेगी.

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वैसे घर में कैद होने का निष्क्रिय होना नहीं है. लेकिन आमतौर पर हम भारतीय इतने आलसी और अनुशासनहीन हैं कि अगर हमें कहीं जाना न हो, हमारा एक नियमित रूटीन न हो तो हम ज्यादातर समय निष्क्रिय रहते हुए इंज्वाॅय करना चाहते हैं. शायद हमारी इन्हीं आदतों के चलते पिछले साल डब्ल्यूएचओ को हमारे लिए ‘मोर एक्टिव पीपल फॉर अ हेल्दियर वल्र्ड’ जैसी योजना लानी पड़ी थी, लेकिन पूरी दुनिया में फैले कोरोना संक्रमण और उसकी काट के लिए लगाये गये लॉकडाउन ने इस योजना को बेमतलब कर दिया है. इस लॉकडाउन संकट के पहले भी डब्ल्यूएचओ ने एक ताजा अध्ययन से यह चिंताजनक निष्कर्ष निकाले थे कि 2016 में ग्लोबली 81 प्रतिशत किशोर बहुत कम या फिर कहें कि जितना सक्रिय होना चाहिए, उससे कम शारीरिक रूप से सक्रिय थे.

डब्ल्यूएचओ ने कोरोना संक्रमण के पहले भी यह निष्कर्ष निकाला था कि भारत और हमारे जैसे ही दूसरे विकासशील देशों में औसतन 77.6 प्रतिशत लड़के असक्रिय हैं, जबकि इस संदर्भ में लड़कियों का प्रतिशत 84.7 है. यह सर्वे 146 देशों में 11 से 17 वर्ष के 16 लाख किशोर छात्रों पर किया गया था. हिंदुस्तान में डब्ल्यूएचओ के मुताबिक पहले से ही हर चार में से तीन किशोर पर्याप्त सक्रिय नहीं थे. कहने का मतलब यह कि वे रोजाना कम से कम एक घंटे शारीरिक रूप से सक्रिय नहीं थे. चूंकि पहले इस निष्क्रियता का सबसे बड़ा बहाना यही था कि हम सब बहुत व्यस्त हैं, इसके लिए हमारे पास वक्त नहीं हैं. मगर इस समय यह बहाना नहीं बनाया जा सकता. क्योंकि कम से कम कुछ और हो न हो इस समय हम सबके पास वक्त खूब है.

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लेकिन अपनी आलसी आदतों के कारण हमने लॉकडाउन को मानसिक के साथ साथ शारीरिक संकट में भी बदल दिया है. भारत में 73.9 प्रतिशत किशोर बहुत कम शारीरिक रूप से सक्रिय हैं, यह इस लॉकडाउन के पहले का डब्लूएचओ का निष्कर्ष था. अब शारीरिक रूप से निष्क्रिय रहने वाले किशोरों और युवाओं का प्रतिशत और ज्यादा बढ़ गया है. शारीरिक रूपसे पर्याप्त सक्रिय न होने के चलते सिर्फ हमारे चेहरे में ही कई परतें नहीं बनतीं बल्कि इसके चलते पैदा होने वाला मोटापा किसी को भी हृदय रोग, डायबिटीज, डिप्रेशन सहित तमाम शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के चक्रव्यूह में फंसा देता है. वैसे इस मामले में भारत की ही स्थिति खराब नहीं हैं, बांग्लादेश के किशोर हमारे किशोरों से भी कम सक्रिय हैं. दूसरे शब्दों में बांग्लादेशी किशोर भारतीयों से भी ज्यादा निष्क्रिय होते हैं.

लॉकडाउन के पहले भी हमारे ज्यादातर किशोर और युवा अपने स्मार्टफोन से चिपके रहते थे. लॉकडाउन के बाद यह स्थिति और गंभीर हो गई है. अब जबकि ज्यादातर समय घर में ही रहना होता है, तो भी हमारे किशोर और युवा लोग चैट और सैट में ही व्यस्त रहते हैं. पहले तो इसके लिए उलाहना भी था कि किशोर और युवा पार्कों में जाकर शारीरिक खेलकूद से बचते हैं, इन दिनों तो खैर इसकी मनाही ही है. अगर डब्ल्यूएचओ की मानें तो हमारे किशोरों को अधिक से अधिक एक्सरसाइज की जरूरत है. फिलहाल आउटडोर प्ले की पाबंदियों के कारण घरों में रहते हुए भी हम इन गतिविधियों को बढ़ा सकते हैं.

इस संबंध में आल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (एम्स) ने भी गंभीरता से किशोरों और युवाओं में बढ़ते मोटापे के कारणों का पता लगाने की कोशिश की है और इस निष्कर्ष पर पहुंचा है कि इसके लिए स्लीप एपनिया भी जिम्मेदार है जो कि एक किस्म का अव्यवस्थित नींद संबंधी परेशानी है. इसके चलते सही से नींद नहीं आती. एम्स दिल्ली में इस संबंध में छात्रों का मोटापे, डायबिटीज, ह्रदय रोग के खतरे जैसे कोलेस्ट्रॉल व ब्लड प्रेशर के लिए स्क्रीन किया और पाया कि मोटापा दर प्राइवेट स्कूलों में कहीं अधिक है. जहां बच्चे ज्यादा सम्पन्न परिवारों से आते हैं. डाटा के विश्लेषण से मालूम होता है कि ये बच्चे स्क्रीन (स्मार्टफोन, टेबलेट, गेमिंग कंसोल, लैपटॉप व टीवी) पर अधिक समय गुजारते हैं. साथ ही फिजिकल एक्टिविटी में कम शामिल होते हैं. इसके अलावा ये जंक फूड का भी अधिक सेवन करते हैं.

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फिजिकल असक्रियता यूं तो कोरोना संकट के चलते पूरी दुनिया की एक बड़ी समस्या है. लेकिन भारत में लोगों ने इसे कुछ और ही बड़ी समस्या इसलिए बना दिया है, क्योंकि हमने तमाम निर्देशों और सूचनाओं के बाद भी लॉकडाउन को एक पिकनिक जैसा ही ले रहे हैं. इन दिनों जबकि लॉकडाउन की अवधि में करीब 2 महीने बीत रहे है, एक अनुमान के मुताबिक गैर लॉकडाउन दिनों के मुकाबले मध्यवर्गीय घरों में डेढ़ से दो गुना ज्यादा खाना खाया गया है. भले बाहर से फास्ट फूड इस बीच घर न आये हों, लेकिन सोशल मीडिया में लोगों द्वारा शेयर किये गये व्यंजनों को देखें तो पता चलता है कि लॉकडाउन में घरों में जबरदस्त पकवान बने हैं. वास्तव में इस समस्या का बड़ा कारण हम भारतीयों की यही अनुशासनहीनता है.

आर्थिक विनाश की ओर भारत

केंद्र सरकार की दोषपूर्ण आर्थिक नीतियों के चलते देश की अर्थव्यवस्था सबसे बुरे दौर से गुजर रही है. हाल यह है कि अप्रैल महीने में तेजी से आगे बढ़ रही दुनिया की 10 अर्थव्यवस्थाओं में भारत सबसे पीछे है.

कोरोना और लौकडाउन की वजह से हुई आर्थिक तबाही को ही नहीं, बल्कि इसके पहले के तीनचार वर्षों के नरेंद्र मोदी सरकार के कार्यकाल में हुई आर्थिक बदहाली को भी दुरुस्त करना होगा.

उधर, भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने कहा है कि इस साल सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी ग्रोथ नैगेटिव रहेगी. आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने प्रैस कौन्फ्रैंस में कहा कि दुनियाभर में हालात चिंताजनक बने हुए हैं और लौकडाउन के कारण मांग में कटौती हुई है. दास ने कहा, ‘कोरोना के कारण अर्थव्यवस्था को नुक़सान हुआ है.’

वहीं, भारतीय रिज़र्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन का मानना है कि देश आर्थिक महाविनाश की कगार पर खड़ा है और अर्थव्यवस्था को सुधारना अकेले प्रधानमंत्री कार्यालय के बूते की बात नहीं है. इसलिए, पीएमओ व पूरी सरकार को पूर्व वित्त मंत्रियों समेत कई अर्थशास्त्रियों की मदद लेनी चाहिए और इसमें यह नहीं देखना चाहिए कि वह ऐक्सपर्ट किस राजनीतिक दल का है. उन्होंने इस पर चिंता जताई और कहा कि स्थिति बदतर हो सकती है.

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‘द वायर’ पोर्टल के साथ लंबी बातचीत में रघुराज राजन ने यह भी कहा कि सिर्फ नोवल कोरोना वायरस और लौकडाउन की वजह से हुई आर्थिक तबाही को ही नहीं, बल्कि इसके पहले के तीनचार वर्षों के दौरान हुई आर्थिक बदहाली को भी दुरुस्त करना होगा.

अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के पूर्व मुख्य अर्थशास्त्री रघुराम राजन ने ज़ोर देकर कहा कि कोरोना वायरस से लड़ना जितना ज़रूरी है, उतना ही जरूरी अर्थव्यवस्था को फिर से पटरी पर लाना भी है.

रघुराम राजन ने कहा कि एअरलाइंस, पर्यटन, निर्माण और औटोमोटिव जैसे सैक्टर्स वाकई संकट में हैं. सरकार अमेरिका की तरह बड़े राहत पैकेज का एलान नहीं कर सकती, पर इन लोगों के लिए वह क़र्ज़ का इंतजाम कर सकती है.

बता दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 20 लाख करोड़ रुपए के आर्थिक पैकेज का एलान किया. उसके बाद वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने काफी विस्तार से 5 चरणों में उस पैकेज के बारे में बताया. लेकिन पर्यवेक्षकों का कहना है कि इस पैकेज का बड़ा हिस्सा पहले की रियायतों का है, जिसे इसमें जोड़ दिया गया है.

पैकेज का जो बचा हिस्सा है, वह बड़े पैमाने पर क़र्ज़ की गारंटी है. इसके अलावा कई बड़े और दूरगामी आर्थिक सुधारों को भी पैकेज में डाल दिया गया है. ये वैसे सुधार हैं, जिनका असर कई वर्षों बाद दिखेगा. पर ज़रूरत तो लोगों की स्थिति सुधारने की आज है.

वहीं, बदहाल अर्थव्यवस्था पर लौकडाउन का चाबुक पड़ने से उत्पादन, निर्यात और स्टौक मार्केट एकदम नीचे हो गए हैं. हाल इतना बुरा है कि पूरी दुनिया में सिर्फ तुर्की और मेक्सिको ही अप्रैल महीने में भारत से पीछे थे. लाइवमिंट ने एक अध्ययन में यह पाया है.

लाइवमिंट का ‘इमर्जिंग मार्केट्स ट्रैकर’ 7 संकेतकों को आधार बना कर अध्ययन करता है और पता लगाता है कि कौन देश किस स्थिति में है.

अप्रैल में एकत्रित किए गए आंकड़ों के अनुसार, भारत के निर्यात में 60 प्रतिशत की कमी आई. यह आगे बढ़ रही 10 अर्थव्यवस्थाओं में सबसे तेज गिरावट है. ज्यादातर देशों में 5 से 25 फीसदी की कमी देखी गई. सिर्फ 2 देशों चीन और थाईलैंड का निर्यात इस दौरान बढ़ा है.

भारत का उत्पादन अप्रैल में 27.4 प्रतिशत गिरा. यह 10 इमर्जिंग मार्केट में सबसे बड़ी गिरावट है. एकमात्र चीन ऐसा देश है, जहाँ इस दौरान भी उत्पादन बढ़ा है.

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भारत ने जनवरी-मार्च के दौरान सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी का आंकड़ा जारी नहीं किया है. इन्वैस्टमैंट बैंकिंग कंपनी गोल्डमैन सैक्स ने 17 मई को कहा है कि भारतीय अर्थव्यवस्था 45 फीसदी सिकुड़ जाएगी.

कुलमिला कर गरीबभारत की आर्थिक हालत बहुत ज्यादा दयनीय हो गई है. वक्त आ गया है कि केंद्र सरकार देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए अपना ईगो त्याग कर विपक्षी दलों व योग्य अर्थशास्त्रियों की सलाह के साथ प्रभावी कदम बढ़ाए, वरना…

लॉकडाउन में वर्क फ्रॉम होम में आने वाली दिक्कतों को ऐसे करें दूर

कोरोना ने इस वक्त सभी की जिंदगी को रोक सा दिया है और सबसे बड़ी समस्या तो ये है कि जो लोग डेली ऑफिस जाकर काम करते थे अब उनको वर्क फ्रॉम होम यानी की घर से ही काम करना पड़ रहा है. हालांकि इस बीच कुछ ऐसे भी लोग हैं जिन्हें ऐसी सिचुएशन में भी ऑफिस जाकर काम करना पड़ रहा है या बाहर निकलना पड़ रहा है जिन्हें हम कोरोना वारियर्स कह सकते हैं और कह नहीं बल्कि कहते हैं.क्योंकि वो अपनी जान जोखिम में डालकर देश के लिए काम कर रहे हैं.यहां सबसे बड़ी जिम्मेदारी डॉक्टर्स की है उसके बाद पुलिस, सफाईकर्मी, मीडिया कर्मी ये सभी अपनी-अपनी जिम्मेदारियां जान को खतरे में डालकर निभा रहे हैं.

अब बात करते हैं उन लोगों की जो अपने घर से बैठकर काम कर रहे हैं तो जाहिर है उन्हें भी दिक्कतें हो रही हैं क्योंकि जो कंफर्ट जोन उन्हें ऑफिस की चेयर पर बैठकर काम करने में मिलता है वो उन्हें घर में नहीं मिलता है और ना वैसा महौल मिलता है जो उन्हें ऑफिस में काम करने पर मिलता है, जिसके कारण उन्हें काफी दिक्कतें आती हैं.कहीं बेड पर बैठे-बैठे उनके कमर में दर्द होता है तो कभी गर्दन दर्द होने लगती है तो पेट में गैस की शिकायत होना होना भी लाजिम है.तो अब आप कैसे उस चीज से बच सकते हैं?

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तो आप इतना कर सकते हैं कि आपने जैसे ही काम शुरु किया तो आप पहले तो कुछ खा लें उसके बाद ही काम शुरु करें,इससे आपके पेट में ना गैस बनेगी और आपको पेट से संबंधित कोई भी परेशानी नहीं होगी.

जब भी आप काम करते हैं तो कोशिश करें की घर के किसी टेबल पर अपना सिस्टम रखें जो आपसे थोड़ी ऊंचाई पर हो और अगर आपके पास टेबल की सुविधा नहीं है तो कोशिश करें कोई और ऐसी जगह जो आपके घर में ऊंचाई पर हो वहां सिस्टम सेट करें यानी की आपका लैपटॉप ताकि आप काम सही से कर सकें.

अगर आप बिस्तर पर बैठकर काम कर रहे हैं तो भी आप लगातार ना बैठे और बीच-बीच में उठते रहें क्योंकि लगातार बैठने से भी आपको दिक्कत हो सकती है आपकी कमर में दर्द,पीठ में दर्द,गर्दन में दर्द ये सारी शिकायतें हो सकती हैं तो इसलिए आप बीच-बीच में उठकर छोटा सा ब्रेक जरूर लें और कुछ – न- कुछ खाते भी रहें.और जितना हो सके उतना इम्युनिटी सिस्टम बढ़ाने वाली चीजें खाएं लेकिन सावधानी के साथ.क्योंकि कोरोना किस सामाने के साथ आपके घर में प्रवेश कर जाए ये कह नहीं सकते हैं.इसलिए सावधानी जरूरी है.

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लोगों को लगता है कि घर पर काम करना बहुत आसान होता है लेकिन ऐसा नहीं होता है सबसे ज्यादा दिक्कतें आती हैं घर से काम करने में औऱ क्यों आती हैं ये आपको अबतक समझ आ चुका होगा इसलिए ये सारे उपाये अपनाएं औऱ खुद को सुरक्षित भी रखें.

शह और मात: भाग-2

पल्लवी बिना कुछ कहे अपने कमरे में चली गई. वहां रुक कर करती भी क्या, संजीव को शराब पीने के बाद होश ही कहां रहता था. वैसे भी अब तो उस की इच्छा पूरी हो गई थी. उस के हाथ में रुपए पहुंच गए थे. इसलिए वह कम से कम 2-4 दिन तो शांति से जी सकती थी.

कुछ देर बाद रसोई में खाना पकाते समय पल्लवी अपनी नियति के बारे में सोच रही थी. उसे वह दिन याद आ रहा था जब उस के परिवार वालों को उस के और पड़ोस में रहने वाले संजीव के रिश्ते के बारे में पता चला था. घर में कुहराम मच गया था. एक तो संजीव उस समय बेरोजगार था, ऊपर से पल्लवी के मातापिता और भाई की नजरों में उस की छवि कुछ खास अच्छी नहीं थी. उस समय पल्लवी की हालत चक्की के 2 पाटों के बीच पिसते गेहूं की तरह हो गई थी. एक तरफ पापा ने साफ कह दिया था कि वह अपनी बेटी का हाथ संजीव के हाथों में कभी नहीं देंगे. दूसरी तरफ संजीव उस पर शादी करने का दबाव बना रहा था.

पल्लवी समझासमझा कर‌ थक गई थी, मगर पापा और संजीव में से कोई भी झुकने के लिए तैयार नहीं हुआ. दोनों ने पल्लवी को जल्दी ही कोई निर्णय लेने के लिए कहा था.

इसलिए पल्लवी ने निर्णय ले लिया. उस ने अपने मातापिता और परिवार की मरजी के खिलाफ जा कर संजीव का हाथ थाम लिया. उसे संजीव पर इतना भरोसा था कि वह बिना कुछ सोचेसमझे अपना घर छोड़ कर उस के साथ चली आई. उस के मातापिता ने उसी समय उस से रिश्ता तोड़ लिया था. मां ने जातेजाते उस से कहा था कि एक दिन वह अपने इस फैसले पर जरूर पछताएगी.

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घर छोड़ने के बाद दोनों दिल्ली आ गए जहां उन्होंने शादी कर ली. संजीव को नौकरी भी मिल गई थी. शादी के बाद कुछ दिनों तक तो सब ठीक रहा. पल्लवी अपने प्यार को पा कर बहुत खुश थी. लेकिन जैसेजैसे उस के सिर से नई शादी का खुमार उतरना शुरू हुआ, उसे संजीव का असली चेहरा नजर आने लगा. संजीव को शराब की लत थी. वह अकसर शराब के नशे में उस पर हाथ भी उठाने लगा था. सिर्फ यही नहीं, वह पैसे कमाने के लिए उलटेसीधे काम करने से भी बाज नहीं आता था. उस ने बहुत लोगों को चूना लगाया था. इन्हीं आदतों के चलते उस की नौकरी भी चली गई थी.

एक बार काम से निकाले जाने के बाद संजीव ने नौकरी ढूंढ़ने की जहमत नहीं उठाई.

तब घर चलाने के लिए पल्लवी ने एक औफिस में नौकरी कर ली. उसे सारी तनख्वाह ला कर संजीव के हाथों पर रखनी पड़ती. लेकिन उस से भी संजीव का पेट नहीं भरता. वह आएदिन उस से रुपए मांगता और जब पल्लवी उस की फरमाइशें पूरी नहीं कर पाती तो वह उसे रूई की तरह धुन देता. अगले दिन वह उस से माफी मांग लेता और‌ पल्लवी उसे माफ भी कर देती. वह किसी भी कीमत पर संजीव से अलग नहीं होना चाहती थी. वापस लौट कर मांपिता के घर भी तो नहीं जा सकती थी.

जिंदगी इसी तरह ऊबड़खाबड़ रास्तों पर चल रही थी. समय के साथ संजीव की फरमाइशें बढ़ती जा रही थीं. जब उस के लिए पल्लवी की तनख्वाह कम पड़ने लगी तो उस ने एक रास्ता निकाला. वह चाहता था कि पल्लवी किसी आदमी को अपने प्रेमजाल में फंसा कर उस से ठगी करे. पल्लवी ने ऐसा करने से साफ इनकार कर दिया. उसे हैरानी हो रही थी कि कोई पति अपनी पत्नी से ऐसा करने के लिए भी कह सकता है. लेकिन उसे कुछ ही दिनों में अपना फैसला बदलना पड़ा.

एक दिन जब संजीव लहूलुहान हालत में घर आया, तब उसे पता चला कि उस ने शराब और जुए के लिए कुछ गलत लोगों से बहुत मोटा कर्ज ले रखा है और वे लोग अपना पैसा वापस लेने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं. जब उन लोगों से बचने और‌ उन का कर्ज चुकाने का और कोई रास्ता नजर नहीं आया, तो पल्लवी ने मजबूरन वही किया जो संजीव ने उसे करने के लिए कहा था.

पल्लवी का एक सहकर्मी दिनेश उसे पसंद करता था और यह बात उस से छिपी नहीं थी. पल्लवी ने पहले उस से दोस्ती की और फिर उसे अपनी दुखभरी दास्तान सुना कर धीरेधीरे उस के साथ नजदीकियां बढ़ाने लगी.

थोड़े ही दिनों में दिनेश उस की खातिर कुछ भी कर गुजरने के लिए तैयार हो गया. यहां से झूठीसच्ची कहानियां सुना कर पैसे ऐंठने का सिलसिला शुरू हो गया. दिनेश उस के झूठों को सच मान कर उस पर विश्वास करता गया. इस तरह कुछ महीनों में संजीव का सारा कर्ज उतर गया. लेकिन पल्लवी के लिए दिनेश को संभालना मुश्किल होता जा रहा था. वह उस से शादी करना चाहता था और कई बार उस के घर तक पहुंच गया था. अगर उसे सचाई पता चल जाती तो उन के लिए बड़ी मुसीबत हो जाती. पल्लवी उस के लाखों रुपए कहां से लौटाती.

अपनी पोल खुलने से बचाने के लिए संजीव और पल्लवी ने रातोरात शहर बदल लिया. शहर बदलने के बाद भी संजीव में कोई बदलाव नहीं आया. पल्लवी ने यहां भी नौकरी कर ली थी. वह संजीव से भी नौकरी ढूंढ़ने के लिए कहती‌ थी. लेकिन संजीव के दिमाग में तो कोई और ही खिचड़ी पक रही थी. कुछ ही दिनों में वह फिर से कर्ज में डूब गया था और उस ने पल्लवी पर दोबारा वही खेल खेलने का‌ दबाव बनाना शुरू कर दिया था. पल्लवी ने फिर से उस की बात मान ली.

बस इसी तरह शहर बदलबदल कर लोगों के साथ ठगी करना उन का पेशा बन गया था. लेकिन इस पेशे के भी कुछ नियम थे जो संजीव ने बनाए थे. उसे हर वक्त यह शक होता कि कहीं पल्लवी अपने शिकार के ज्यादा नजदीक तो नहीं जा रही है. और इस बात की झुंझलाहट वह उस पर हाथ उठा कर निकालता. कभीकभी पल्लवी को लगता था कि वह एक अंधे कुएं में गिरती जा रही है. वह जब भी संजीव से ऐसा करने के लिए मना करती, वह उस से वादा करता कि बस यह आखिरी बार है. इस के बाद वह खुद को पूरी तरह से बदल लेगा और वे दोनों एक नई जिंदगी की शुरुआत करेंगे.

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पल्लवी न चाहते हुए भी उस पर भरोसा कर बैठती थी. उसे लगता था कि संजीव पर भरोसा करने के अलावा उस के पास विकल्प भी क्या था? अपने सारे रिश्तेनाते तो वह खुद ही पैरों तले रौंद आई थी.

कुछ महीने पहले इंदौर आने के बाद भी संजीव ने उस से वादा किया था कि वह अब सुधर जाएगा. लेकिन हुआ क्या, अब वह पैसों के लिए शरद जैसे शरीफ और अच्छे आदमी को बेवकूफ बना रही थी. इस बार भी संजीव ने वादा किया था कि यह उन की आखिरी ठगी है, क्योंकि नई जिंदगी शुरू करने के लिए रुपयों की जरूरत तो पड़ेगी ही.

उसे अकसर यह महसूस होता था कि वे पुरुष मूर्ख नहीं हैं जिन्हें उस ने ठगा है, असल में वह खुद मूर्ख है जो बारबार संजीव की बात मान लेती है.

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शह और मात: भाग-4

अपने इनकार का खामियाजा पल्लवी को कई बार भुगतना पड़ा. संजीव बातबात में राई का पहाड़ बना कर उस पर हाथ उठाने लगा. उसे शक था कि पल्लवी उसे धोखा दे रही है. जब शरद ने उस के जिस्म पर पड़े निशानों को देखा तो वह अपने आपे से बाहर हो गया.

“आज मैं संजीव को‌ छोड़ूंगा नहीं. उसे ऐसा सबक सिखाऊंगा कि वह जिंदगी भर याद रखेगा,” शरद ने गुस्से मैं दांत पीसते हुए कहा और बाहर जाने लगा.

“नहीं शरद, तुम ऐसा कुछ नहीं करोगे,” पल्लवी ने उसे रोका.

“इतना कुछ होने के बाद भी उस आदमी की तरफदारी कर रही हो?” शरद ने आश्चर्य से पूछा.

“मैं किसी की तरफदारी नहीं कर रही हूं शरद. मैं बस इतना चाहती हूं कि तुम संजीव से दूर रहो. तुम नहीं जानते हो कि वह कितना घटिया आदमी है. कैसेकैसे लोगों के साथ उस का उठनाबैठना है,” पल्लवी ने उसे समझाया.

“मैं किसी से डरता नहीं हूं पल्लवी,” शरद जोश में आ गया था.

“लेकिन मैं तो डरती हूं. अगर तुम्हें कुछ हो गया तो मैं क्या करूंगी,” पल्लवी ने सिर झुका कर कहा तो शरद ने उसे सीने से लगा लिया, “ओह पल्लवी, मैं तुम्हें इस हाल में नहीं देख सकता. तुम संजीव को छोड़ क्यों नहीं देतीं ? मैं ने पहले भी कहा था पल्लवी, मैं हमेशा तुम्हारा खयाल रखूंगा, बस एक बार मेरा हाथ थाम लो.”

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“संजीव मेरी जान ले लेगा, मगर मुझे तलाक नहीं देगा. मैं ने देखा है कि वह किस हद तक‌ जा सकता है. शरद मैं चाह कर भी उसे नहीं छोड़ सकती हूं,” पल्लवी की आंखों से आंसू टपक पड़े.

“क्या तुम मुझ से प्यार करती हो?”

“हां शरद. मैं तुम से बहुत प्यार करती हूं.”

“तो फिर मेरे साथ भाग चलो.”

“शरद, यह तुम क्या कह रहे हो? यह मजाक का वक्त नहीं है,” पल्लवी हैरान हो गई.

“मेरी आंखों में देखो पल्लवी, क्या तुम्हें लगता है कि मैं मजाक कर रहा हूं? मुझ पर भरोसा करो, बस एक बार हां कह दो. फिर हम दोनों यहां से बहुत दूर चले जाएंगे, जहां तुम पर उस संजीव का साया तक नहीं पड़ेगा,” शरद ने पल्लवी की आंखों में झांकते हुए कहा.

शरद की आंखों में अपने लिए प्यार की गहराई देख कर पल्लवी सिहर उठी. उस से कुछ कहते नहीं बना. उस ने शरद से सोचने के लिए कुछ वक्त मांगा और घर चली आई.

कुछ दिन बीत जाने के बाद भी पल्लवी ने शरद को जवाब नहीं दिया था. संजीव ने उसे जलील करने में कोई कसर नहीं छोड़ रखी थी. एक रात जब उस के कोप का भाजन बनने के बाद पल्लवी बिस्तर पर पड़ी कराह रही थी, उस वक्त उस के कानों में शरद की कही बातें गूंज रही थीं. सालों पहले उस ने अपने मातापिता की बात न मान कर जो गलती की थी, उस की कीमत वह आज तक चुका रही थी. संजीव पर भरोसा कर के उस ने अपनी जिंदगी की सब से बड़ी गलती की थी इसलिए आज वह शरद पर भरोसा करने से भी डर रही थी. हालांकि उस ने शरद की आंखों में अपने लिए जितना प्यार देखा था, उस का आधा भी उसे संजीव की आंखों में कभी नजर नहीं आया था. मगर अब वह कोई भी कदम उठाने से पहले पूरी तरह निश्चिंत हो जाना चाहती थी.

वह जानती थी कि इस तरह संजीव को धोखा दे कर शरद के साथ भागना गलत होगा. लेकिन अगर वह संजीव से अलग होने या तलाक लेने की कोशिश करेगी तो शरद के सामने उन की सारी असलियत आ जाएगी. शरद को पता चल जाएगा कि पल्लवी उसे किस तरह मूर्ख बना कर उस से पैसा ऐंठती रही और वह उस से नफरत करने लगेगा. नहीं, वह किसी भी कीमत पर शरद को खोना नहीं चाहती थी. आज तक उस ने गलत काम के लिए झूठ और धोखे का सहारा लिया, तो अब एक आखिरी बार अपने प्यार को पाने के लिए ही सही.

पल्लवी के दिल से डर खत्म हो गया था. वह शरद को पाने की खातिर किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार थी. वह कई सालों से जिस पिंजरे में कैद थी, अब वह उसे तोड़ कर उड़ जाना चाहती थी.

पल्लवी ने धीरे से मोबाइल उठा कर शरद का नंबर डायल किया और उस के फोन उठाने पर बस इतना कहा, “मैं तैयार हूं.”

अगले दिन पल्लवी शरद की बताई जगह पर उस से मिलने गई. शरद ने उसे पूरी योजना बताई. पल्लवी ने अपनी सहमति दे दी और घर वापस आकर सामान्य व्यवहार करने लगी जिस से संजीव को उस के ऊपर जरा भी शक न हो.

3 दिन बाद शरद के कहे अनुसार पल्लवी ने अपने कपड़े, कुछ जरूरी कागजात और कुछ रुपए एक बैग में रख लिए. उस ने बैग को पलंग के नीचे छिपा कर रख दिया. उस रात भी संजीव रोज की तरह नशे में धुत्त हो कर घर आया. पल्लवी ने कुछ मीठे बोल बोल कर उसे थोड़ी और शराब पिला दी. थोड़ी ही देर बाद संजीव बेसुध हो गया. पल्लवी ने धीरे से अपना बैग निकाला और घर के बाहर चली आई. बाहर आ कर वह रेलवे स्टेशन के लिए टैक्सी में बैठ गई. कुछ दूर तक वह बारबार पीछे मुड़ कर देखती रही. उसे डर था कि कहीं संजीव उस का पीछा तो नहीं कर रहा है. रेलवे स्टेशन पहुंच कर उस की जान में जान आई.

उस ने अंदर जा कर देखा तो पाया कि शरद पहले से ही वहां उस का इंतजार कर रहा था. उस ने अगली ट्रेन की 2 टिकटें भी ले ली थीं.

“तुम ठीक हो न?” शरद ने पूछा.

“मैं ठीक हूं शरद. हम कहां जा रहे हैं?”

“बस कुछ ही मिनटों में जम्मू जाने वाली ट्रेन आती होगी. मैं ने उसी की 2 टिकटें ले ली हैं. कुछ दिन वहीं रहेंगे, बाद में कोई और इंतजाम कर लूंगा. तुम्हें कोई दिक्कत तो नहीं है न?”

“शरद हम दोनों साथ हैं, बस मुझे और कुछ नहीं चाहिए.”

तभी ट्रेन भी आ गई. पल्लवी और शरद ट्रेन में चढ़ कर एक खाली बर्थ पर बैठ गए.

“तुम सो जाओ पल्लवी. जब सुबह तुम्हारी आंखें खुलेंगी तो एक नया सवेरा तुम्हारा इंतजार कर रहा होगा,” शरद‌ ने मुसकराते हुए कहा.

पल्लवी ने उस के कंधे पर सिर टिका कर आंखें बंद कर लीं. वह कुछ ही देर में नींद के आगोश में समा गई.

सुबह जब पल्लवी की आंख खुली तो ट्रेन एक स्टेशन पर रुकी हुई थी और शरद उस के पास नहीं था. उसे लगा कि वह शायद स्टेशन से कुछ लाने के लिए उठा होगा. लेकिन जब कुछ मिनटों के बाद भी शरद वापस नहीं आया तो पल्लवी घबरा गई. उस ने पूरे डिब्बे में देख लिया, लेकिन शरद वहां नहीं था.

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“शरद…शरद…” वह खिड़की से बाहर झांक कर उसे पुकारने लगी. उस ने पर्स से मोबाइल निकाल कर शरद का नंबर डायल किया तो उस का फोन बंद आ रहा था.

पल्लवी बुरी तरह से घबरा गई. वह घबरा कर इधरउधर देख ही रही थी कि उस की नजर सीट पर रखे अपने बैग के नीचे दबे एक कागज पर पड़ी.

पल्लवी ने कांपते हाथों से कागज उठाया और खोल कर पढ़ना शुरू किया. वह उसके नाम शरद का पत्र था. उस में लिखा था-

‘पल्लवी,

जब तक तुम्हारी आंखें खुलेंगी, मैं तुम से बहुत दूर जा चुका होऊंगा. हां, तुम्हारा डर बिलकुल सही है. मैं ने तुम्हें धोखा दिया है. तुम्हें सुंदर भविष्य के सपने दिखा कर बीच रास्ते में तुम्हारा साथ छोड़ दिया है. मगर यह धोखा उस धोखे के आगे कुछ भी नहीं है जो तुम ने मुझे दिया. अब तुम सोच रही होगी कि मुझे तुम्हारी असलियत के बारे में कैसे पता चला? पल्लवी, जिस दिन मैं ने तुम्हें ₹1 लाख दिए थे, उस दिन तुम्हारे जाने के बाद मुझे तुम्हारी बहुत फिक्र हो रही थी. मुझे डर था कि कहीं संजीव तुम से वे रुपए न छीन ले जो तुम्हारी मां की जान बचा सकते हैं. लेकिन तुम्हारे घर के बाहर आ कर मुझे कुछ और ही सचाई नजर आई. उस दिन मैं ने तुम्हारी और संजीव की सारी बातें सुन ली थीं. मुझे पता चल गया था कि किस तरह तुम दोनों पतिपत्नी मुझे पैसों के लिए बेवकूफ बना रहे हो. सिर्फ मुझे ही नहीं तुम ने न जाने कितने लोगों को अपने प्यार के जाल में फंसा कर लूटा होगा.

‘पल्लवी, मैं तुम से बहुत प्यार करता था. लेकिन तुम ने मेरे साथ क्या किया? तुम ने मेरे जज्बातों के साथ खिलवाड़ किया. मेरे प्यार का मजाक बनाकर रख दिया. मैं ने सोच लिया था कि मैं तुम्हें सबक जरूर सिखाऊंगा, इसलिए मैं ने तुम से अपने साथ भाग चलने के लिए कहा ताकि तुम्हें पता चले कि दिल टूटने पर कितना दर्द होता है. अब जिंदगी भर सोचना कि तुम ने कितने लोगों के साथ कितना गलत किया. और हां, घर वापस जाने के बारे में मत सोचना. मैं ने संजीव को चिट्ठी लिख कर उसे सब बता दिया है. अब तुम्हारे लिए उस घर में भी कोई जगह नहीं है.

‘मैं तुम से सच्चा प्यार करता था पल्लवी. मैं तुम्हारे लिए कुछ भी कर गुजरने के लिए तैयार था. लेकिन शुक्र है कि सही समय पर मेरी आंखें खुल गईं. तुम्हें लोगों को शतरंज के मुहरे बना कर उन के साथ खेल खेलने का बहुत शौक था न पल्लवी. आज मैं ने तुम्हें तुम्हारे ही खेल में अपने दांव से मात दे दी है. हो सके तो जो तुम ने मेरे साथ किया वह आइंदा किसी के साथ मत करना…

शरद’

पल्लवी की आंखों से आंसू टपकटपक कर चिट्ठी पर गिर रहे थे. झूठ और धोखे का सहारा ले कर वह आज कहीं की भी नहीं रही थी. वह भूल गई थी कि छल के सहारे शतरंज की चाल भले ही जीती जा सकती थी, किसी का प्यार नहीं.

उस के मुंह से हौले से वे शब्द निकले जो शरद चिट्ठी के आखिर में लिखना भूल गया था,’शह और मात’.

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इवांका ट्रंप भी हुई भारतीय बेटी ज्योति की मुरीद

ज्योति के सहनशक्ति की कायल हुई इवांका ट्रम्प, अब आप सोचेंगे की ऐसा क्या हुआ जो वो मुरीद हो गईं. तो ज्योति ने काम ही कुछ ऐसा किया. ज्योति ने गुरुग्राम से दरभंगा तकरीबन 1200 किमी की दूरी तय की वो भी साइकिल से और अपने पिता को पीछे बिठा कर.

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की बेटी इवांका ट्रम्प ने इस दिलेर बेटी ज्योति की तारीफ की और इवांका ने सोशल मीडिया पर ट्वीट भी किया और अपने ट्वीट में लिखा है कि 15 साल की ज्योति कुमारी ने अपने घायल पिता को साइकिल से सात दिनों में 12,000 किमी दूरी तय करके अपने गांव ले गई.

इवांका ट्रंप ने उस खबर को लेकर ट्वीट किया है जिसमें ज्योति के इस जज्बे की सराहना भारतीय साइकिलिंग फेडरेशन ने भी की है और इसीलिए ज्योति को दिल्ली बुलाया. ये बात शायद आपको चौंका रही होगी लेकिन ऐसा हुआ है.

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जी हां गुरुग्राम से दरभंगा साइकिल से आनेवाली इस बेटी के जज्बे को सलाम करते हुए ज्योति को साइक्लिंग फेडरेशन आफ इंडिया ने ट्रायल का आफर दिया है और ऐसा इसलिए क्योंकि इस लड़की ने जो किया है शायद इसे ही कहेंगे हम कुछ कर गुजर जाने की दृढ़ इच्छा शक्ति. लॉक डाउन खत्म होते ही ज्योती को दिल्ली आने का न्योता मिला है.

JyotiCycle 2

अगर ज्योति ट्रायल में सफल हो गई तो उनको एकेडमी में जगह मिलेगी वहां ज्योति की पढ़ाई का सारा खर्च उठाया जाएगा. ज्योति ने बीमार पिता को साइकिल पर बैठा कर 8 दिनों में की थी गुरुग्राम से दरभंगा की यात्रा जिसके आज सभी मुरीद हो गए हैं ज्योती के जज्बे को सलाम.

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ज्योति अभी 15 साल की हैं और 8 वीं में पड़ती हैं. ज्योति लॉकडाउन के दौरान गुरुग्राम से बीमार पिता को साइकिल पर बैठाकर कमतौल थाना क्षेत्र के टेकटार पंचायत के सिरहुल्ली गांव आयी थीं. ज्योति ने 8 दिनों में 12000 किलो मीटर का सफर तय किया था. ज्योति की इच्छा आगे पढ़ने की है वो पढ़ लिख कर कुछ बनना चाहती है जिसके लिए उनको काफी मदद मिलेगी इस फेडरेशन से और ज्योति भी साइकिल रेस के लिए दिल्ली जाने को तैयार है.

फेडरेशन के चेयरमैन ओंकार सिंह ने कहा कि ज्योति अगर ट्रायल में सफल रहती है तो उसे दिल्ली स्थित नेशनल साइक्लिंग एकेडमी में जगह दी जायेगी. उन्होंने इसके लिए ज्योति से फोन पर बात भी की है. ज्योति के पिता काफी बीमार थें लेकिन पैसे ना होने के कारण उनका इलाज नहीं हो पाया था और इसी कारण से ज्योति ने ये कदम उठाया.

लोग ज्योति की खूब तारीफ कर रहे हैं औऱ तो और समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव ने भी उन्हें एक लाख रुपये देने का ऐलान किया है. आज दुनिया इस दिलेर बेटी की तारीफ करते थक नहीं रही है और इसने जो किया वो शायद ही कोई कर पाए. क्योंकि इस कठिन समय में ऐसा कदम उठाना कोई मामूली बात नहीं है.

सच में इस बेटी को सलाम है.

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Periods के चलते ट्रोल हुईं Divya Agarwal तो Bollywood एक्ट्रेसेस ने उठाई आवाज

सेलेब्रिटिज का ट्रोलिंग का शिकार होना इन दिनों आम बात बन गया है. एमटीवी के रिएलिटी शो ‘स्प्लिस्टविला 10’ फेम एक्ट्रेस दिव्या अग्रवाल (Divya Agarwal) इन दिनों ट्रोलिंग का शिकार हो रही हैं. लेकिन दिव्या ने भी इन ट्रोलर्स को तगड़ा जवाब देते हुए इन लोगों को घटिया बताया है.

पीरियड्स को लेकर ट्रोल हुईं थी दिव्या

divya

दरअसल, दिव्या अग्रवाल ने हाल ही में इंस्टाग्राम पर एक पोस्ट शेयर किया था, जिसमें वह अपने पीरियड्स के बारे में बात करती नजर आई थीं. वहीं इस पोस्ट को फोटो के साथ शेयर करते हुए लिखा दिव्या अग्रवाल ने लिखा था कि, ‘जब मुझे पीरियड्स होते हैं तो मेरे बॉयफ्रेंड को यह नहीं समझ आता कि उसको क्या करना चाहिए.’ कुछ लोगों को दिव्या अग्रवाल का पीरियड्स पर इस तरह बात करना पसंद नहीं आया तो लोगों ने उन्हें ट्रोल करना शुरू कर दिया और भद्दे कमेंट्स भी किए.

 

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Drop went wrong @varunsood12 #tiktokindia

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ट्रोलर्स को दिया करारा जवाब

 

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🔴 Put a period to shaming the period @post.for.change @unicefindia #RedDotChallenge #PostForChange

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दिव्या अग्रवाल ने ट्रोलर्स को करारा जबाव देते हुए लिखा, ‘पीरियड के दौरान मेरे मूड में तेजी से बदलाव होता है. मैं चाहती हूं कि लोगों को इस बारे में शिक्षा दी जाए. गुस्सा करने से कुछ नहीं होगा. अगर कुछ करना ही है तो पीरियड्स के दौरान किसी लड़की को परेशान मत करो. हर महीने हम लड़कियों को पीरियड्स का सामना करना पड़ता है.’

बौलीवुड एक्ट्रेसेस आईं दिव्या के साथ

पीरियड्स को लेकर दिव्या के इस पोस्ट के बाद बौलीवुड एक्ट्रेसेस ने भी उनका साथ देना शुरू कर दिया है. वहीं दिव्या अग्रवाल को सपोर्ट करने के लिए बौलीवुड एक्ट्रेसेस सोशल मीडिया पर ‘रेड डॉट’ नाम के चैलेंज शेयर कर रही हैं, जिसमें वह  एक्ट्रेसेस अपने हाथ पर रेड डॉट बनाए नजर आ रहे हैं. वहीं इस चैलेंज के जरिए बॉलीवुड हसीनाएं ‘पीरियड शेमिंग’ पर खुलकर बात कर रही हैं.  बॉलीवुड एक्ट्रेस डायना पेंटी (Diana Penty) और अदिति राव हैदरी (Aditi Rao Hydari) ने हाल ही में ‘रेड डॉट चैलेंज’ एक्सेप्ट करते हुए अपनी फोटोज शेयर की हैं.

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बता दें, भारत में आज भी कुछ लोग ऐसे हैं जो पीरियड्स को लेकर खुले में बात करना पसंद नहीं करते. लेकिन बौलीवुड इन पुरानी धारणाओं को लोगों में बदलना चाहता है.

कोरोना काल में लिपिस्टिक पर मार !

कोरोना काल में मांगलिक उत्सव जन्मदिन, पार्टियों, शादी-ब्याह, घूमना-फिरना बंद होने के चलते महिलाओं ने सजना संवरना बंद सा कर दिया है और अब इसे नियति सा ही मान लिया है और हर वक्त सजी-धजी रहने वाली महिलाओं ने इसके बिना जीना सीख लिया है. जिससे अब सौंदर्य इनके लिये गुज़रा दौर और गुजरी बात सी हो चली है. जिसकी मार इससे जुड़े व्यवसाय पर खासी देखने को मिल रही है.

कोरोना वैश्विक महामारी ने बड़े-बड़े उद्योग धंधे व्यापार तो सब बंद करा ही दिए हैं तो वही सौंदर्य प्रसाधन पर भी इसकी जबरजस्त मार पड़ी है. जिसके चलते रोजमर्रा और चेहरे की खूबसूरती बढ़ाने वाली लिपिस्टिक भी इस संकट काल के चलते बर्बाद और बंद सी होने के कगार पर है.

छतरपुर: इस विभीषिका के दौर में महिलाओं का सबसे खूबसूरत सौंदर्य प्रसाधन लिपस्टिक बिजनेस खासा भी प्रभावित हुआ है. यह व्यवसाय अधिकांशतः महिला-पुरुष दोनों ही संचालित करते हैं. तो वहीं ब्यूटीशियन अधिकांश जगह महिला प्रोपराईटर ही रहतीं हैं या संचालित करती हैं. इसके अलावा शहर से लेकर ग्रामीण क्षेत्र में कामकाजी महिलाओं से लेकर छोटे छोटे व्यापार के रूप में महिलाओं के लिए आर्थिक स्रोत का मानक जरिया बना हुआ है मसलन कोरोना त्रासदी ने महिलाओं के स्वावलंबन पर चोट पहुंचाई है.

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महिलाओं/युवतियों की मानें तो महामारी के इस भीषण काल में जहां हर वक्त चेहरे और मास्क और हाथों में ग्लब्ज़ (दस्ताने) लगाने पड़ रहे हैं तो ऐसे में लिपिस्टिक/नैलपालिस लगाने का क्या औचित्य है, गर लगा भी ली तो वह दिखनी नहीं है और मास्क में छुप और छुट जाना है जिससे मास्क भी खराब हो सकता है.

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कॉस्मेटिक और जनरल स्टोर व्यवसाई अखिलेश (डालडे) मातेले की मानें तो सौंदर्य प्रसाधन सहित लिपिस्टिक व्यवसाय में आई भारी मंदी के चलते बड़े और छोटे व्यवसाई काफी परेशांन हैं. उनका रखा माल आउट डेटिड हो चला है जिसके चलते वह इसे ओने-पोने दामों में बेचने को मजबूर हैं. भीषण स्टॉक और बिक्री की कमी के चलते दुकानदारों ने इससे निपटने के लिये एक लुभावना तरीका निकाला है. ब्रांडेड लिपिस्टिक को एक पर एक फ्री कर दिया है या आधे दामों में बेच रहे हैं. ताकि कुछ तो रकम वसूल सकें. भले ही इन्हें इसमें अच्छा खाशा घटा है पर आउट डेटिड और खराब होने पर इन्हें कोई नहीं लेगा और फेकना पड़ेंगीं जिससे हमें 100%लॉस ही लगाना है इससे बेहतर है कुछ तो मिले. वहीं ग्राहक सरस्वती सोनी ने बताया महिलाएं भी इस स्कीम का भरपूर फायदा उठाते हुए कंपनी की 500 वाली लिपिस्टिक 250 में और 600-700 वाली 300-350 में खरीद रहीं हैं कि कोरोना जाने के बाद तो काम में आयेंगीं ही.

वहीं इस मामले में PSCE चयनित ब्यूटी गर्लस अनामिका जैन की मानें तो इस कोरोना कॉल में सौंदर्य प्रसाधन और लिपिस्टिक व्यवसाय में मंदी की वजह बताई हैं और अपने अलग-अलग तर्क समझाईस दी हैं, कि अभी सिर्फ कोरोना से लड़ना है, बाकी गर जान रही तो सौंदर्य तो फिर भी होता रहेगा.

ब्यूटीसियन्स (हनी ब्यूटीपार्लर संचालक) कविता दुबे ने भी इस कोरोना काल में सौंदर्य व्यवसाय में आई भीषण मंदी को भी स्वीकारा है और इसकी वजहें भी बताई हैं.

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मामला चाहे जो भी हो पर इतना यतों तय है कि कोरोना महामारी कॉल में महिलाओं का घरों से निकलना सजना, संवरना बंद है जिसकी वजह से इस व्यवसाय पर खासी मार पड़ रही है. जिसके चलते लोग इस भीषण मंदी से निकलने और माल बेचने के महिलाओं को लुभाने के लिए अलग अलग तरीके ईजाद कर रहे हैं जो कि कुछ हद तक कारगर सिद्ध होते दिख रहे हैं पर फिर भी घाटे पर माल बेचने पर नुकसान तो दुकानदार को ही है पर भले ही थोड़ा कम हो और न बेचने फेकने से तो बेहतर ही है.

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