लेखक- नीरज कुमार मिश्रा
उन दोनों को बाहर की दुनिया से परिचित करने वाला एकमात्र साधन था टीवी और मोबाइल पर उपलब्ध इंटरनेट के द्वारा ,टीवी लगातार अपना काम कर रहा था और घर से न निकलने की ताकीद कर रहा था.
“स्साला ….घर से न निकलो …भला ये भी किसी समस्या का समाधान हुआ ….कितने काम खराब हो जायेंगे इससे …और फिर इतने दिनों की कमाई का हर्जाना कौन देगा ?
माना कि कोरोना वायरस की समस्या एक बड़ी समस्या हो सकती है पर लाकड़ाऊन इसका कोई इलाज़ नहीं?” चिड़चिड़ा उठा था जसवंत
“तो क्या इक्कीस दिन तक हम यहीं इसी गेस्ट हाउस में फसे रहेंगे?”
खुशबू ने शंका व्यक्त की
“फिलहाल हालात तो ये ही हैं ,पर अभी सुबह ही है अगर हम अभी यहाँ से निकल लें तो हो सकता है कि पुलिस हमारी मजबूरी समझते हुए जाने दे ” जसवंत ने कहा और कहते ही वह बिस्तर से बाहर आ कर मुंह धोने लगा और खुशबू से भी अपना सामान समेटने को कहा
दस मिनट में दोनों गाड़ी के अंदर थे
“हमें जल्दी करनी होगी नहीं तो ये कोरोना हमें यहीं फसा के रख देगा”कहने के साथ ही जसवंत ने गाड़ी आगे बढ़ा दी
मुश्किल से वे अभी दो किलोमीटर भी नहीं चल पाये होंगे कि आगे के चौक पे उन्होंने देखा कि पुलिस की एक टुकड़ी तैनात है जो लोगों को कहीं भी आने जाने से रोक रही है और लोगों के विरोध करने पर उन्हें डंडों से मार रही है
तभी एक पुलिस वाले ने गाड़ी रोकने का इशारा किया
“क्या आपको पता नहीं है कि पूरे देश में लाकड़ाऊंन है ,और अगर पता है तो आप इस का पालन क्यों नहीं कर रहे हैं “पुलिसवाला गुर्रा रहा था
“सर हमें दिल्ली जाना है ,हम यहाँ काम से आये थे ,प्लीज़ हमें जाने दीजिए अगर हम यहाँ फसँ गए तो बड़ी दिक्कत हो जायेगी “जसवंत ने रिक्वेस्ट की
“दिक्कत तो पूरे देश को हो रही है आप वापिस जाइये और घर में बैठिए या कहीं भी जाइये पर हम आपको इस तरह से आगे नहीं जाने देंगे”
जसवंत ने गाड़ी घुमा ली थी और वापिस गेस्ट हाउस में आ गए थे .
गेस्ट हाउस में खाना बनाने वाला आज आ नहीं पाया था और अब ना ही उसके वापिस आने की संभावना ही दिख रही थी.
दोपहर होने को आ रही थी ,समस्याएं जितनी भी आये पर पेट अपना काम करना कभी नहीं भूलता और यही कारण था कि दोपहर आते आते इन दोनों को भूख का आभास होने लगा था .
किचन में खुशबू ने चेक किया तो दाल ,चावल और आता तो पर्याप्त मात्रा में रखे मिल गये थे पर फ्रिज में सब्जियां नहीं थी
पालक थी ,उसकी भी पत्तियां पीली पड़ने लगी थी .
अतः उसने दाल और चावल खा कर काम चलानी की नीयत से दाल कुकर मे रख गैस पर चढ़ा दी.
इस दौरान खुशबू के घर से फोन आया तो खुशबू को घर वालों को बहुत ही विस्तृत तरीके से बताना पड़ा कि वो लाकड़ाऊन में फसी हुई है और जल्दी से जल्दी वापिस आने की कोशिश करेगी ,पर उधर से घर वालों का अपनी अपनी समस्याओं को लेकर रोना जारी ही रहा .
वो अपनी बेटी की सुरक्षा को लेकर भी परेशान थे और अपने स्वयं के लिए भी कि बिना खुशबू के वे इक्कीस दिन तक परिवार कैसे चलाएंगे
वैसे भी अभी खुशबू का परिवार नोटबंदी की खट्टी खारी यादो से उबरा भी नहीं था कि अब ये घरबंदी ,तालाबंदी या लाकड़ाउन ,चाहेजो कह लीजिये पर बीतती तो गरीब जनता पर ही है ,
“लगता है ये सरकार हम लोगों की जीवन बंदी ही कर देना चाहती है “बुदबुदा उठे थे खुशबू के पिताज़ी .
जब हमारे पास कोई चीज़ आसानी से उपलब्ध हो जाती है ,अमूमन तो उसकी कीमत का अंदाज़ा नहीं लग पाता है ,उसकी कीमत हुमी तभी पता चलती है जब वो हमसे छीनली जाती है.
मसलन जैसे आजकल खुशबू और जसवंत की आज़ादी पर बैन लग चुका था और अब उन्हें अपनी स्वतंत्रता की कीमत पता चल रही थी
“काम हो तो चौबीस घण्टे भी कम लगते है और काम न हो तो दिन कितना बड़ा लगता है “खाने के बाद उठती हुयी खुशबू बोल रही थी .
“हाँ …ये तो है ही , या आज हमारे पास कोई काम नहीं है सिवाय ये सोचने के कि कैसे लॉकड़ाउन खुलेगा और कैसे हम अपने घर पहुचेंगे
तभी टीवी पर समाचारों में बताया गया कि ज़रूरी सामान के लिए बाज़ार खुले रहेंगे ,नियत समय पर बाजार जाकर सामान खरीद जा सकता है ,जसवंत ने तुरंत ही खुशबू से कहा कि उसे जो भी सामान चाहिए वह उसकी एक लिस्ट तैयार कर दे ताकि वह बाज़ार जाकर सामान ले आया सके
खुशबू ने ऐसा ही किया और एक ज़रूरी सामान की लिस्ट बनाकर दी जिसे लेकर जसवंत पैदल ही बाजार चल दिया ,रस्ते में उसे एक पुलिस वाले ने मास्क लगाकर ही आगे जाने को कहा .
जसवंत ने एक दुकान से एक साधारण सा मास्क खरीद तो यह जानकर चौक गया कि दुकानदार उस मास्क की आठ गुनी ज्यादा कीमत वसूल रहा है पर मरता क्या न करता ,जसवंत ने मास्क खरीद कर लगाया और बाजार पंहुचा .
वहाँ जाकर भी उसने पाया की कीमतें बहुत बड़ी हुयी है और दुकानदार मनचाहा रेट वसूल रहें हैं और कोई भी आदमी सोशल डिस्टैंसिंग को फॉलो करता नहीं दिख रहा है .
अभी जसवंत सामान खरीद ही रहा था कि उसे कुछ लोगों का एक पैदल जुलुस सा दिखाई दिया जिसमें चलने वाले लोग मज़दूर लग रहे थे उन्होंने अपने सर पर काफी सामान रखा हुआ था और छोटे बच्चों को भी पैदल चला रहे थे.
जब वह जुलुस निकल गया तो पूछने पर पता चला कि ये वो लोग थे जो दूर दराज के गांव से आगरा शहर में काम धन्धा ढूंढने आये थे पर अब लाकडाऊन की हालत में उनके पास न ही काम रह गया है और न ही पैसा लिहाज़ा अपने और अपने परिवार वालों को भुखमरी से बचने के लिए वे सब पैदल ही अपने गांव वापसी कर रहे हैं.
यह सब देखकर जसवंत का मन खट्टा सा होने लगा और इस अचानक किये गए लॉकडाऊन पर गुस्सा आने लगा .
जसवंत वापिस गेस्ट हाउस में आ गया और निढाल सा होकर बिस्तर पर आकर पड गया
खाने पीने की चीज़ों को देखकर खुशबू के मन में कुछ संतोष का अनुभव हुआ .
शाम होने लगी थी खुशबू जाकर किचन में जाकर खाना बनाने लगी ,टीवी देखते हुए दोनों लोग खाना खाने लगे .
मीडिया पर अब भी कोरोना से हुयी मौतों का विवरण बताया जा रहा था ,हालात काबू से बाहर हो रहे थे ऐसे में बार बार लॉकडाऊन के महत्व को सही बताया जा रहा था.
बिस्तर पर लेटते समय खुशबू के बदन से एक अलग ही गंध फूट रही थी , और खुशबू बहुत ही रूमानी मूड में लग रही थी
“आज तो मैंने तुम्हारी पसंद का “मस्क “वाला परफ्यूम लगा रखा है और तुम हो कि मुझ पर धान ही नहीं दे रहे हो …अभी कल तक तो मेरे साथ हमबिस्तर होने के लिए मौका ढूंढते थे और आज जब इस पूरे गेस्ट हाउस में हम दोनों के अलावा कोई भी नहीं है और मैं पूरी रात सारी की सारी तुम्हारी हूँ ,फिर भी तुम मुझे प्यार नहीं कर रहे हो “खुशबू ने अंगड़ाई लेते हुए कहा
“खुशबू …देखो यार आज मन कुछ उचाट सा हो गया है …मैं बाहर जाकर गरीबों और मज़दूरों को जान बचानेके लिए उनको उनके गांव की तरफ पैदल ही जाते देख आया हूँ और उससे मेरे मन में ये विचार आ रहा है कि एक मैं हूँ जो अपनी मस्ती और मज़े के लिए अपने घरवालों से झूठ बोलकर तुम्हारे साथ यहाँ मुझ करने आता हूँ ,जाहिर सी बात है इसमें मेरे काफी पैसे भी खर्च होते हैं और एक ये दिहाड़ी मज़दूर लोग हैं जिनको सुबह पता भी नहीं होता है कि शाम को उन्हें खाना मिलेगा भी या नहीं ,इसलिए मुझे लग रहा है कि मैं कुछ गलत कर रहा हूँ .
“ओह्हो …..तो तुम महात्मा बुद्ध बनने की कोशिश कर रहे हो ”
“नहीं खुशबू…मैं अभी तक किसी तरह की व्यक्ति पूजा में भरोसा नहीं करता और न ही मेरी इस तरह की कोई चाह है ,पर अगर भूख से बिलखते बच्चे को देखकर दुखी होने ही बुद्ध होना है ,तो मैं बुद्ध हूँ…
किसी मज़दूर के छालों को देखकर यदि मेरा मन भी काँप उठता है ,तो मैं बुद्ध हूँ..
और भी बड़ी बड़ी बातें करता रहा जसवंत ,उसका यह अजीब सा रूप पहले बार खुशबू की नज़र में पहली बार आया था ,उसे जसवंत की बातों में कोई रस नहीं आया ,उसने करवट ली और सो गयी.
लॉकडाऊन का दूसरा दिन भी अपने साथ बढ़ते हुए संक्रमण की खबरें लेकर आया था .
,खुशबू और जसवंत सुबह नौ बजे तक सोये ,जसवंत अभो बिस्तर पर ही था कि उसका मोबाइल बज उठा .
उधर से उसका नौकर कुछ पैसों की मांग कर रहा था
“पैसा ..पैसा पैसा ..हर किसी को पैसा ही चाहिए ….कोई भला मुझसे क्यों नहीं पूछता कि मैं कैसा हूँ …किस हाल में हूँ”
तभी खुशबू ने चाय रख दी आकर ,संयोग से चाय में आज दूध था क्योंकि कल बाजार से जसवंत पाउडर वाला दूध ले आया था ,दूध वाली चाय पीकर जसवंत का माँ थोड़ा हल्का हुआ .
” सर ये आपने मुझे कहाँ फँसा दिया है लाकर ,मेरा मतलब है कि मैं यहाँ पर हूँ ,बाहर लॉकडाऊन है और वहां मेरे घर पर मेरे माँ और पापा अकेले परेशान हो रहे हैं ” खुशबू ने परेशान होते हुए कहा
“वाह जी वाह ,उल्टा चोर कोतवाल को डाटें,तुम तो ऐसे कह रही हो जैसे कि मै जबर्दस्ती तुम्हे उठाकर लाता हूँ और तुम्हारा रेप करता हूँ और तुम्हारी कोई मर्ज़ी नहीं होती बल्कि सच्चाई तो ये है कि तुमने जॉब में प्रमोशन पाने के लिए मुझे अपने रूप के जाल में फसाया और इसी उम्म्मीद में मेरे साथ सोती भी हो …और मेरे साथ मेरी गाड़ी में घूमने का मज़ा भी तो लेती हो “अंदर का अवसाद गुस्से के रूप में बाहर आने लगा था
“खुशबू …मैं तुम्हारी जैसी लड़कियों को खूब जानता हूँ ,जो अपने फायदे के लिए अपने जिस्म तक का सौदा कर डालती हैं ,स्साला मैं ही मूर्ख था जो तुम्हारे चक्कर में आ गया ”
खुशबू को जैसे आइना दिखा दिया था जसवंत ने ,उसे जसवंत की बातें ज़हर के सामान कड़वी लगने लगी थी ,कहाँ वो सोचती थी कि जसवंत उसके रूप पर फ़िदा है पर ये क्या ?
आज ये ऐसी बातें क्यों कर रहा है?
जसवंत के भीतर का गुस्सा और घर में बंद रहने के कारण जो घुटन महसूस हो रही थी वो किस्तों में बाहर आती रही .
खुशबू को कुछ बोलने समझ नहीं आया तो वह भी आँसुओं में टूट गयी और पूरे दिन में खाना तक नहीं बनाया उसने .
जसवंत और खुशबू भूखे ही अलग अलग कमरों में सो गए..
आज लाकडाऊन का तीसरा दिन था ,संक्रमण से मरने वालों की संख्या तेज़ी से बढ़ रही थी ,बहुत सारे मज़दूर दिल्ली और अन्य शहरों से अपने गांव की और जा रहे थे .
खुशबू ने टीवी पर घर जाते उन मजदूरों के चेहरे पर देखा ,वहां भूख थी ,डर था ,असंतोष था फिर भी एक अलग ही तरह का संतोष दिखता था जो ये बताता था कि आज नहीं तो कल वे सब अपने घर ज़रूर पहुँच जाएंगे ,उस घर में जिसे पैसे कमाने के लिए एक दिन वो सब छोड़कर शहर आ गए थे ये जानते हुए भी कि हो सकता है उनकी अब शहर वापसी कभी भी न हो सके .
जसवंत भी जाग चुका था और उठते ही मोबाइल को कान से लगाया पर ये क्या?मोबाइल तो डिस्चार्ज हो चुका था और वो पावरबैंक भी नहीं लाया था ,हाँ पर कार में चार्जर ज़रूर था पर उसके लिए बाहर तक जाना पड़ता .
इस बात का भी गुस्सा जसवंत ने खुशबू पर ही उतारा और चार्जर की बात को लेकर भला बुरा सुनाने लगा था .
“स्साली….कुतिया….कहीं की …एक चार्जर भी नहीं ला सकती है …बड़ी आयी रांड कहीं की”जसवंत जी भर के गालियां देता जा रहा था.
जसवंत के साथ रहना अब खुशबू के लिए असहय हो रहा था,
उसकी खरी खोटी सुनकर भी आज खुशबू रोई नहीं थी ,बल्कि उसके चेहरे पर एक शांति थी ,जब जसवंत खूब चीख चिल्ला लिया फिर खुशबू के पास जाकर उसे पुचकारने लगा और दिखावटी माफी मांगकर खाने की मांग करने लगा ,बदले में खुशबू सिर्फ मुस्कुरा भर दी थी
किचन में जाकर खुशबू ने खाना बनाया और बिना कुछ बहस के जसवंत के साथ बैठ कर खाना खाया और दोपहर में बैठकर टीवी देखने लगी.
शाम को जसवंत के चेहरे पर खुशी के भाव थे क्योंकि वो कार में जाकर अपना मोबाइल चार्ज कर लाया था और फोन पर ही अपने माँ और पापा से बात कर ली थी.
लॉकडॉउन का तीसरा दिन आज खत्म हो रहा था ,रात के खाने के बाद जसवंत गहरी नींद में जब सो गया तब खुशबू दबे पैर उठी और गेस्ट हाउस से बाहर निकल आयी .
लॉकडाऊन के बाद हो सकता है मुझे किसी नयी जगह नयी नौकरी ढूंढनी पड़ेगी ” बुदबुदा रही थी खुशबू पैदल चलते चलते खुशबू अब उन मजदूरों की लाइन में शामिल हो गयी थी जो शहर से अपने घर की तरफ जा रहे थे.
उसके मन में जसवंत के ही स्वर गूंज रहे थे
“अगर किसी मज़दूर को अगर भूख से बिलखते बच्चे को देखकर दुखी होने ही बुद्ध होना है ,तो मैं बुद्ध हूँ…
किसी मज़दूर के छालों को देखकर यदि मेरा मन भी काँप उठता है ,तो मैं बुद्ध हूँ..