#coronavirus: कोरोनावायरस की ये 5 पहेलियां

सारी दुनिया में कोरोना वायरस आज बहस और शोध का मुख्य विषय है.  इससे जुड़ी बहुत सी जानकारियां लगातार सामने आ रही हैं. इस वायरस के संबंध में पांच बिंदु ऐसे हैं जो अब तक सामने नहीं आ सके हैं.

1. अलग-अलग लोगों पर इस वायरस के असर में इतना अंतर क्यों है?

वैज्ञानिक इस बात को समझ नहीं पा रहे हैं कि वायरस की चपेट में आने वाले लगभग 80 प्रतिशत लोगों में इसके लक्षण दिखाई तक नहीं देते जबकि शेष लोगों पर वायरस का गहरा असर होता है, बल्कि लोग इसका मुक़ाबला करते करते दम तोड़ देते हैं.

हांगकांग के मेडिकल कालेज के प्रोफ़ेसर लियोबोन का कहना है कि कोरोना वायरस की शिद्दत अलग अलग लोगों में बिल्कुल अलग अलग हो सकती है. चीन में देखा गया कि कुछ लोग वायरस की चपेट में आए मगर इस वायरस ने उन पर कोई असर नहीं दिखाया और कुछ लोगों की जान ले ली.

ये भी पढ़ें- #lockdown: ऐसा देश जिसे कोरोनावायरस की चिंता नहीं

2. क्या कोरोना वायरस हवा में भी फैल जाता है?

यह तो सब जानते हैं कि कोरोना वायरस छींक या खांसी के समय निकलने वाली बूंदों के माध्यम से एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक पहुंच जाता है मगर क्या वह वायरस मौसमी इनफ़्लुएंज़ा की तरह हवा में भी फैल सकता है, इस सवाल का अभी निश्चित उत्तर नहीं मिल सका है.

न्यू इंगलैंड मेडिकल मैगज़ीन में छपे शोध के अनुसार, प्रयोगशाला में देखा गया कि वायरस तीन घंटे तक हवा में रह सकता है मगर यह नहीं पता चल सका कि हवा में बाक़ी रहने वाले पार्टिकल्स बीमारी को भी ट्रांस्फ़र करने की क्षमता रखते हैं या नहीं. पैरिस के सेंट अंतवान अस्पताल में संक्रामक रोग इकाई की प्रोफ़ेसर कारीन लाकोम्ब का कहना है कि हमें यह तो पता है कि हवा में मौजूद इस वायरस के टच में हम आते हैं लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि हवा में मौजूद यह वायरस संक्रामक होता है या नहीं?

3. किसी देश में संक्रमित लोगों की असली संख्या क्या है?

जिस समय ब्रिटेन ने अपने यहां संक्रमितों की सरकारी संख्या 2000 से कम बताई थी उस समय पूरे देश में 55 हज़ार से अधिक संक्रमित मौजूद थे. इसलिए किसी भी देश के लिए सही आंकड़ा निर्धारित कर पाना कि कितने लोग संक्रमित हैं, बहुत कठिन काम है. इसके लिए शोध के नए चरण का इंतेज़ार करना होगा.

4. क्या गर्मी का मौसम कोरोना वायरस को ख़त्म कर देता है?

क्या तेज़ धूप से कोरोना वायरस बेअसर हो जाता है, इस बारे में विशेषज्ञों का कहना है कि इसकी संभावना से इंकार तो नहीं किया जा सकता लेकिन यक़ीन के साथ कुछ कह पाना भी संभव नहीं है. इंफ़्लुएंज़ा के दूसरे वायरस तो सर्द मौसम में ज़्यादा समय तक जीवित रहते हैं और फैलते हैं. मगर हारवर्ड युनिवर्सिटी के शोध में पता चला कि केवल तापमान बढ़ने से कोरोना वायरस नहीं मिटता.

5. क्या वजह है कि बच्चे बहुत कम ही वायरस की चपेट में आते हैं?

नेचर मैगज़ीन ने चीन में किया गया शोध प्रकाशित किया है जिसके अनुसार दस बच्चों का निरीक्षण किया गया जो कोरोना से संक्रमित थे ताकि यह देखा जाए कि उन पर वायरस का क्या असर होता है? नतीजा यह निकला कि कोरोना से केवल उन्हें हल्का सा गले का इंफ़ेक्शन हुआ, हल्की खांसी और हल्के बुख़ार के बाद वायरस ख़त्म हो गया.

ये भी पढ़ें- #lockdown: आग से निकले कढ़ाई में गिरे, गांव पहुंचे लोग हो रहे भेदभाव का शिकार

शोधकर्ताओं का कहना है कि हमें यह नहीं पता चल सका कि बच्चों में कोरोना का असर इतना हल्का क्यों होता है? उम्मीद की जानी चाहिए कि वैज्ञानिक इन बिंदुओं का भी जवाब ढूंढ़ लेंगे.

#lockdown: मेरे सामने वाली खिड़की पे (भाग-3)

“लगता है बारिश होगी. हवाएँ भी कितनी ठंडी-ठंडी चल रही है” कह कर रचना उस रोज, जब दोनों एक ही छत पर साथ बैठे हुए थे,अपने आप में ही सिकुड़ने लगी, तभी अमन ने उसे अपनी बाहों मे भर लिया और दोनों वहीं जमीन पर बैठ गए. कुछ देर तक दोनों एक-दूसरे कीआँखों में ऐसे डुबे रहे, जैसे उनके आसपास कोई हो ही न.शिखर हौले-हौले रचना के बालों में  उँगलियाँ फिराने लगा और वह मदहोश उसके बाहों सिकुड़ती चली गई. “अभी तो लोगों को डिस्टेन्स बनाकर कर चलने के लिए कहा जा रहा है और हम यहाँ एक साथ बैठे प्यार-मुहब्बत कर रहे हैं। अगर किसी ने देख लिया हमारा कोरोना प्यार तो?” हँसते हुए रचना बोली.

“हाँ, सही है यार……. किसी ने देख लिया तो ?पता है, पुलिस लोगों को दौड़ा-दौड़ा कर डंडे बरसा रही है” कह कर शिखर हंसा तो रचना भी हंस पड़ी. “वैसे,क्यों न हम अपने प्यार का नाम ‘ कोरोना लव” रख दें. कैसा रहेगा ?”

तभी अचानक से शरीर पर पानी की बुँदे पड़ते देख दोनों चौंक पड़े. “ब बारिश, बारिश हो रही है शिखर ! ओ….. माँ, इस मार्च के महीने में बारिश ?’ बोलकर रचना एक बच्ची की तरह चिहुक उठी और अपनी हथेलियाँ फैलाकर गोल-गोल घूमने लगी. मज़ा आ रहा था उसे बारिश में भीगने में. लेकिन तबीयत बिगड़ने के डर से दोनों वापस में घर आ गए, क्योंकि यह बेमौसम की बारिश थी और वैसे, भी, अभी कोरोना वायरस फैला हुआ है, तो बारिश मे भिंगना ठीक नहीं.लेकिन दोनों की बातें अभी खत्म नहीं हुई थी. सो वे अपनी-अपनी खिड़की से ही इशारों मे बातें करने लगे.

ये भी पढ़ें- लंबी कहानी: कुंजवन (भाग-4)

‘आँखों की गुस्ताखियाँ माफ हो………एकटक तुम्हें देखती है………….जो बात कहना चाहे जुंवा………..तुमसे वो कहती है’एक कागज पर ढेरों तारीफ लिखकर शिखर ने रचना की तरफ अभी फेंका ही था कि अमन आ गया और उनकाकलेजा धक्क कर गया.  खैर,  वह उस कागज के गोले को देख नहीं पाया, क्योंकि रचना ने झट से उसे अपने पैर के नीचे दबा दिया और जब अमन वहाँ से चला गया, तब वह उसे खोलकर पढ़ने लगी. अपनी तारीफ़ें पढ़कर रचना का गाल शर्म से लाल हो गया. जब उसने अपनी नजरें उठकर शिखर की तरफ देखा,तो उसने एक प्यारा सा  ‘फ्लाइंग किस’रचना को भेजा.बदले में रचना ने भी भी उसे फ्लाइंग किस भेजा और दोनों मोबाइल पर चैटिंग करने लगे. जहां कोरोना के डर से लोग हदसे हुए हैं. सड़के-गलियाँ सुनसान-वीरान पड़ी है. वहीं रचना और शिखर को अपनी ज़िंदगी पहले से भी हसीन लगने लगी है. उसे वीरान पड़ी दुनिया रंगीन नजर आ रही है.  साँय-साँय करती हवा, प्यार की धुन लग रही है. अपनी ज़िंदगी में यह नया बदलाव दोनों को भाने लगा है. लेकिन यही बातें अमन और शिखर की पत्नी को जरा भी नहीं भा रहा है. उन्हें खुश देख वह जल-भून रहे हैं.  लेकिन रचना और शिखर को इस बात की कोई परवाह नहीं है.

अमन और रचना ने लव-मैरेज किया था .  परिवार के खिलाफ जाकर दोनों ने शादी की थी. वैसे, फिर बाद में सबने उनके रिश्ते को स्वीकार कर लिया. लेकिन अब वही अमन में वह बात नहीं रही जो पहले हुआ करती थी.रचना तो आज भी अमन को प्यार करती है, पर ताली तो दोनों हाथों से बजती है न ? अमन हमेशा उसे झिड़कते रहता है. उसकी कमियाँ निकालते रहता है, जैसे उसमें कोई अक्ल ही न हो. तो वह भी कब तक उसे बर्दाश्त करे भला ? सो निकल जाता है उसके भी मुझ से उल्टा-पुल्टा बात और इसी बात पर दोनों में लड़ाइयाँ शुरू हो जाती.शादी से पहले रचना को नहीं पता था कि अमन इतना शुष्क इंसान होगा.एक पत्नी अपने पति से क्या चाहती है ? प्यार के दो बोल ही न? झूठी ही सही, पर क्या वह रचना की तारीफ नहीं कर सकता जैसे पहले किया करता था ? ये बात तो विश्व प्रचलित है की तारीफ सुनना ब्रह्मांड की सभी स्त्रियॉं को पसंद है, तो अगर रचना ने ऐसा चाह लिया, तो क्या गलत हो गया?

रिश्ते के शुरुआती दिनों में हर वक़्त अमन  रचना की तारीफ किया करता था. जताता था कि वह बेहद खूबसूरत है, प्यारी है और वही उसके सपनों की रानी है. कहता अमन,‘ रचना, तुम्हारी आँखें बहुत खूबसूरत है.  तुम्हारे घने बालों में घिरे रहना चाहता हूँ हरदम.  उसकी बातों पर रचना इठला पड़ती. अच्छा लगता था उसे अपनी तारीफ़ें सुनना. लेकिन यही सब बातें अब अमन को बकवास लगने लगी है.  लेकिन वहीं जब कोई और रचना की खूबसूरती की तारीफ़ें करता है तो कैसे वह जल-भून जाता है और रचना से लड़ाई करने लगता है. जैसे रचना ने ही उसे उकसाया हो अपनी तारीफ़ें करने को.‘और क्यों न करें कोई उसकी तारीफ, जब सामने वाला इस काबिल हो तो’ रचना की इस बात पर वह और तिलमिला जाता है और पूरी रात उससे झगड़ता रहता है.शिखर, कहता है,‘ रचना अपनी उज्जवल मुस्कान से कैसे उसके दिन बना देती हैं.  और अमन कहता है, वह अपनी बातों से उसका दिन खराब कर देती है, इसलिए वह जानबूझकर ऑफिस से घर देर से आता है. लेकिन क्या वह जानती नहीं कि वह ऑफिस से घर देर से क्यों आता है ? क्योंकि वहाँ वह किंजल मैडम जो हैं उनकी, जिसके साथ वह उठता-बैठता, बोलता-हंसता, खाता-पीता हैं. घर आकर भी वह उससे ही बातें करता रहता है फोन पर. जैसे घर में कोई हो ही न. फिर शादी ही क्यों की उसने ? कर लेता उसी किंजल से.  क्या जरूरत थी रचना की ज़िंदगी बर्बाद करने की ? वह भी बेचारी किससे बात करे ? कोई है क्या यहाँ अपना ?  इस कोरोना की वजह से तो किसी दोस्त के घर भी नहीं जा सकती वह, फिर क्या करे, पागल हो जाए ? लेकिन अमन को यह बात समझ ही नहीं आती.  लगें रहते हैं अपने दोस्तों से बातें करने में. नहीं सोचते है कि रचना अकेला महसूस करती होगी.  तो ठीक है न,अब मिल गया है उसे भी एक नया दोस्त.  खुश है वह अब अपने नए दोस्त के साथ.   कोई परवाह नहीं उसे भी,की वह उसे वक़्त दे, की न दे.

शिखर भी अपनी बड़बोली पत्नी से परेशान रहता है. दिन भर बकर-बकर करती रहती है, कुछ बोलो तो लड़ने लग जाती है. शिखर के माँ-बाप ने पैसो की लालच में उसकी शादी एक ऐसी लड़की से कर दी, जो कहीं से भी उसके लायक नहीं है. लेकिन क्या करें, निभाना तो है. यह सोचकर शिखर चुप रह जाता है. लेकिन जब से रचना उसकी ज़िंदगी में आई है, उसे अपनी ज़िंदगी से प्यार होने लगा है.इधर से रचना को हमेशा खुश और हँसते-मुसकुराते देख अमन चिढ़ने लगा है और उधर शिखर को गुनगुनाते देख उसकी पत्नी ‘चुचु-चीची करती रहती है,लेकिन कोई परवाह नहीं उन्हें किसी के चिढ़ने-रूठने से.

ये भी पढ़ें- ज़िंदगी-एक पहेली: भाग-3

अमन को ऑफिस भेजकर जैसे ही रचना ऑफिस जाने के लिए घर से निकली, शिखर ने अपनी गाड़ी उसके सामने रोक दिया और खींच कर उसे अंदर बैठा लिया. हक्की-बक्की सी रचना उसे देखती रहा गई. वह अभी कुछ बोलती ही कि शिखर ने उसके होठों पर अपनी उंगली रख दी और गाना लगा दिया.‘बैठ मेरे पास तुझे देखता रहूँ………बैठ मेरे पास………..न तू कुछ कहे न मैं कुछ कहूँ…….. बैठ मेरे पास’  अचानक से माहौल एकदम रोमांटिक हो गया.  दोनों को लगने लगा,वक़्त यही ठहर जाए, आगे बढ़े ही न.  दोनों एकदूसरे की आँखों में झाँक रहे थे.  वह मंजर किसी फिल्म का भले लग रहा हो पर दोनों इस तजुर्बे से गुजर रहे थे.  उनकी नजरें चार हो रही थी और आसपास के माहौल धुंधले.

सिंगल पेरैंटिंग के लिए अपनाएं ये 7 टिप्स

आधुनिक काल में परिवार को किसी एक खास दायरे में बांध कर नहीं देखा जा सकता है. यह हमारे समय की खूबसूरती को बखूबी दर्शाता है. आज हमें ऐसी पेरैंटिंग भी दिखती है जहां मातापिता 2 धर्मों के हो सकते हैं, समान लिंग के हो सकते हैं अथवा सिंगल भी हो सकते हैं. सरोगेसी और एडौप्शन के मामले भी काफी दिखते हैं.

मगर इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि कहीं न कहीं अब भी हमारे समाज में एक सिंगल पेरैंट को बेचारा के रूप में ही देखा जाता है. उसे हर कदम पर लोगों के सवालों का सामना भी करना पड़ता है, क्योंकि वे समाज में चल रहे कौमन पेरैटिंग के चलन से अलग जीवन जी रहे होते हैं.

सदियों से यह माना जाता रहा है कि बच्चे शादी के बाद की महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारी होते हैं. मांबाप बन कर हमें समाज और परिवार के प्रति अपना दायित्व निभाना होता है. ऐसे में जाहिर सी बात है कि सिंगल पेरैंटिग के प्रति लोगों की भौंहें तो तनेंगी ही. ऐसे मामलों में लोग पेरैंट की नैतिकता और बच्चे की परवरिश पर भी सवाल उठाते हैं. सिंगल पेरैंट और उन के बच्चे जीवन के हर स्तर पर मानसिक प्रताड़ना का शिकार तो होते ही हैं, एक सिंगल पेरैंट को अपने बच्चे की परवरिश करने में भी काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है. आइए, विस्तार से जानते हैं सिंगल पेरैंटिंग के कुछ मनोवैज्ञानिक पहलुओं और टिप्स के बारे में.

जिम्मेदारियों का एहसास बढ़ जाता है

सिंगल पेरैंट द्वारा बड़े किए जाने वाले बच्चों में जिम्मेदारी का एहसास कहीं अधिक होता है और यह एहसास उन के पेरैंट में भी अधिक होता है. पेरैंट जहां अपने जीवनसाथी पर निर्भर नहीं होते वहीं बच्चे भी कम उम्र में ही ज्यादा समझदार हो जाते हैं और अपनी जिम्मेदारियां महसूस करने लगते हैं. परिस्थितियां उन्हें आत्मनिर्भरता और जवाबदेही का महत्त्व स्वत: सिखा देती हैं. ऐसे गुण सिंगल पेरैंटिंग वाले बच्चों को बाकी बच्चों से अलग बनाते हैं. वे अधिक संतुलित और मैच्योर होते हैं.

ये भी पढ़ें- #lockdown: सोशल डिस्टेंस रखे, मेंटल डिस्टेंस नहीं 

विवाद कम होते हैं

ईमानदारी से कहा जाए तो कोई भी शादी परफैक्ट नहीं होती है और हर पतिपत्नी के बीच कभी न कभी कुछ विवाद होता ही है. कई बार ये इतना भयावह रूप ले लेते हैं कि जोड़ों को अलग भी होना पड़ता है. छोटे बच्चों के लिए ऐसे विवादित माहौल में रहना बड़ा कठिन होता है और जब मातापिता अलग होते हैं तो उन के जीवन में अलग उलझनें पैदा हो जाती हैं. वे मांबाप के सम्मिलित प्यार के लिए तरस जाते हैं. बारबार उन का दिल टूटता है.

सिंगल पेरैंट वाले घर में शादी में आने वाले झगड़े और विवादों के लिए बेहद कम जगह होती है. ऐसे में न सिर्फ पेरैंट, बल्कि बच्चों के लिए भी अधिक स्वस्थ वातावरण उपलब्ध होता है और कठिन व अच्छे दिनों के साथ आगे बढ़ने की राह आसानी से तलाश लेते हैं.

पेरैंट और बच्चों के बीच बेहतर संबंध

एक खूबसूरत घरपरिवार उसे ही कहा जा सकता है जहां परिवार के सभी सदस्यों के बीच प्रेम, सम्मान और समझ विकसित हो. लेकिन अकसर ऐसा देखा जाता है कि आधुनिक दौर के एकाकी परिवारों में लगाव की बेहद कमी होती है, जिस में बेहद व्यस्त मातापिता बच्चों को पूरा वक्त और दुलार नहीं दे पाते हैं और इस की भरपाई तोहफों से करना चाहते हैं.

वहीं सिंगल पेरैंट वाले परिवार में ऐसा देखा गया है कि पेरैंट और बच्चों के बीच लगाव कहीं अधिक होता है. ऐसे बच्चे अपने हमउम्र अन्य बच्चों की तुलना में अधिक मैच्योर और स्नेहिल होते हैं. पेरैंट और बच्चे दोनों ही एकदूसरे को सब से महत्त्वपूर्ण व्यक्ति के रूप में देखते हैं और हर परिस्थिति में दोनों की एकदूसरे पर निर्भरता भी अधिक होती है.

पेरैंटिंग में सावधानियां

1. पेरैंटिंग अपनेआप में ही एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी है. पति या पत्नी की मौजूदगी चीजों को आसान बना देती है जबकि सबकुछ अकेले संभालना थोड़ा कठिन होता है. इसी वजह से

2. पेरैंट्स के परिवार को ही एक आदर्श परिवार माना जाता है, जिस में मदर और फादर मिल कर बच्चों की परवरिश करते हैं. दोनों आपस में काम शेयर करते हैं, अपनी फाइनैंशियल कंडीशन स्ट्रौंग रख पाते हैं और बच्चों की देखभाल में एकदूसरे की हैल्प करते हैं. सिंगल पेरैंट को माता और पिता दोनों की कमी पूरी करनी होती है और उस के लिए पर्याप्त समय और शक्ति बनाए रखना जरूरी है.

3. कई बार ऐन्वायरन्मैंट पौजिटिव नहीं मिलता. अविवाहित मांओं के बच्चों को समाज द्वारा स्वीकार नहीं किया जाए तो बच्चों को कमी महसूस होती है. इसी तरह फाइनैंशियल कंडीशन स्टैबल नहीं है तो भी बच्चों पर नैगेटिव इंपैक्ट पड़ने लगता है. घर में कोई और केयरटेकर उपलब्ध नहीं है तो दिक्कतें आ सकती हैं. बीमारी के वक्त भी अकेला अभिभावक बहुत असहाय महसूस करता है.

ये भी पढ़ें- Ex से भी हो सकती दोस्ती

4. सिंगल पेरैंट्स को और भी कई तरह के तनावों का सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए. कई परिस्थितियां जैसेकि अपने लिए समय न मिल पाना, बच्चों के साथ बहुत अधिक जुड़ाव हो जाना, आर्थिक तंगी आदि की तैयारी कर के रखें.

5.  बच्चे एडजस्टमैंट करने में कठिनाई महसूस कर सकते हैं अथवा अलग तरह के व्यवहार कर सकते हैं. उन में संतुलन स्थापित करने की आदत का अभाव हो सकता है जो आगे चल कर दोनों पेरैंट की मौजूदगी अथवा अन्य बच्चे के आने पर कठिनाई महसूस होने के रूप में सामने आ सकता है.

6. पौजिटिव वातावरण होने पर भी कई बार सिंगल पेरैंट्स बच्चों के लिए ओवरपजैसिव हो जाते हैं. इस तरह ज्यादा प्रोटैक्टिव हो जाना या बच्चों को ज्यादा पैंपर करना ताकि उन्हें दूसरे पेरैंट की कमी महसूस न हो, ऐसा व्यवहार भी बच्चों की पर्सनैलिटी डैवलपमैंट को प्रभावित कर सकता है. बच्चे खुद को स्पैशली प्रिविलिज्ड महसूस करते हैं. ऐसी स्थिति में उन के व्यवहार में नैगेटिव इंपैक्ट आ सकते हैं.

7. जरूरी है कि बच्चों को नैचुरल वातावरण दें ताकि वे बड़े हो कर अपनी जिंदगी को अच्छी तरह हैंडल कर सकें. ध्यान रखें बच्चे अपने भविष्य के लिए प्रिपेयर हो रहे हैं, इसलिए उन्हें ट्रस्टिंग ऐन्वायरन्मैंट मिलना चाहिए जहां वे पौजिटिव इंटरैक्शन देखते हैं, स्ट्रैस को हैंडल करना और संघर्ष करना सीखते हैं.

8. यदि समाज ऐक्सैप्ट नहीं कर रहा है, तो सिंगल मदर को स्ट्रैस होना स्वाभाविक है. उसे लगेगा कि लोग उसे सही नहीं मानते. इस से कहीं न कहीं मां के मन में हीनभावना घर करने लगेगी. उसे लगेगा कि वह बच्चे को सबकुछ नहीं दे पा रही. उस के मन की स्थिति का सीधा असर बच्चों पर पड़ेगा. यदि समाज में बारबार कहा जाए कि इन के तो पापा नहीं हैं, ये कुछ नहीं कर पाएंगे तो उन बच्चों के मन पर गहरा असर पड़ता है. अत: जरूरी है कि बच्चों को संतुलित वातावरण दिया जाए.

ये भी पढ़ें- सहेलियां जब बन जाएं बेड़ियां

9. एक सिंगल पेरैंट और उन के बच्चों के बीच का लगाव, प्रेम और प्रतिबद्धता का एक बेहतरीन उदाहरण होता है, लेकिन इस के साथ कुछ अन्य वास्तविकताएं भी जुड़ी होती हैं. अगर इन के बीच बेहतरीन संतुलन बना रहे तो ये बच्चे बेहद प्रतिभाशाली और मानवता के लिए बेहतरीन उदाहरण बन कर उभर सकते हैं. लेकिन इस के लिए सामाजिक स्तर पर भी कुछ जिम्मेदारियां निभानी होंगी. मसलन, सिंगल पेरैंट और उन के बच्चों के लिए भी प्रेम और सम्मान का माहौल उपलब्ध कराना, उन्हें दिल से स्वीकार करना और उन के संबंधों के जरीए जीवन की खूबसूरती को देखने का प्रयास करना.

-डा. ज्योति कपूर मदान, मनोचिकित्सक, पारस हौस्पिटल गुरुग्राम, से गरिमा पंकज द्वारा की गई बातचीत पर आधारित. 

#lockdown: मैं बुद्ध हूं (भाग-3)

लेखक- नीरज कुमार मिश्रा

उन दोनों को बाहर की दुनिया से परिचित करने वाला एकमात्र साधन था टीवी और मोबाइल पर उपलब्ध इंटरनेट के द्वारा ,टीवी लगातार अपना काम कर रहा था और घर से न निकलने की ताकीद कर रहा था.

“स्साला ….घर से न निकलो …भला ये भी किसी समस्या का समाधान हुआ ….कितने काम खराब हो जायेंगे इससे …और फिर इतने दिनों की कमाई का हर्जाना कौन देगा ?

माना कि कोरोना वायरस की समस्या एक बड़ी समस्या हो सकती है पर लाकड़ाऊन इसका कोई इलाज़ नहीं?” चिड़चिड़ा उठा था जसवंत

“तो क्या इक्कीस दिन तक हम यहीं इसी गेस्ट हाउस में फसे रहेंगे?”

खुशबू ने शंका व्यक्त की

“फिलहाल हालात तो ये ही हैं ,पर अभी सुबह ही है अगर हम अभी यहाँ से निकल लें तो हो सकता है कि पुलिस हमारी मजबूरी समझते हुए जाने दे ” जसवंत ने कहा और कहते ही वह बिस्तर से बाहर आ कर मुंह धोने लगा और खुशबू से भी अपना सामान समेटने को कहा

दस मिनट में दोनों गाड़ी के अंदर थे

“हमें जल्दी करनी होगी नहीं तो ये कोरोना हमें यहीं फसा के रख देगा”कहने के साथ ही जसवंत ने गाड़ी आगे बढ़ा दी

मुश्किल से वे अभी दो किलोमीटर भी नहीं चल पाये होंगे कि आगे के चौक पे उन्होंने देखा कि पुलिस की एक टुकड़ी तैनात है जो लोगों को कहीं भी आने जाने से रोक रही है और लोगों के विरोध करने पर  उन्हें डंडों से मार रही है

तभी एक पुलिस वाले ने गाड़ी रोकने का इशारा किया

“क्या आपको पता नहीं है कि पूरे देश में लाकड़ाऊंन है ,और अगर पता है तो आप इस का पालन  क्यों नहीं कर रहे हैं  “पुलिसवाला गुर्रा रहा था

“सर हमें दिल्ली जाना है ,हम यहाँ काम से आये थे ,प्लीज़ हमें जाने दीजिए अगर हम यहाँ फसँ गए तो बड़ी दिक्कत हो जायेगी “जसवंत ने रिक्वेस्ट की

“दिक्कत तो पूरे देश को हो रही है  आप वापिस जाइये और घर में बैठिए या कहीं भी जाइये पर हम आपको इस तरह से आगे नहीं जाने देंगे”

जसवंत ने गाड़ी घुमा ली थी और वापिस गेस्ट हाउस में आ गए थे .

गेस्ट हाउस में खाना बनाने वाला आज आ नहीं पाया था और अब ना ही उसके वापिस आने की संभावना ही दिख रही थी.

दोपहर होने को आ रही थी ,समस्याएं जितनी भी आये पर पेट अपना काम करना कभी नहीं भूलता और यही कारण था कि दोपहर आते आते इन दोनों को भूख का आभास होने लगा था .

किचन में खुशबू ने चेक किया तो दाल ,चावल और आता तो पर्याप्त मात्रा में रखे मिल गये थे पर फ्रिज में सब्जियां नहीं थी

पालक थी ,उसकी भी पत्तियां पीली पड़ने लगी थी .

अतः उसने दाल और चावल खा कर काम चलानी की नीयत से दाल कुकर मे रख गैस पर चढ़ा दी.

इस दौरान खुशबू  के घर से फोन आया तो खुशबू को घर वालों को बहुत ही विस्तृत तरीके से बताना पड़ा कि वो लाकड़ाऊन में फसी हुई है और जल्दी से जल्दी वापिस आने की कोशिश करेगी ,पर उधर से घर वालों का अपनी अपनी समस्याओं को लेकर रोना जारी ही रहा .

वो अपनी बेटी की सुरक्षा को लेकर भी परेशान थे और अपने स्वयं के लिए भी कि बिना खुशबू के वे इक्कीस दिन तक परिवार कैसे चलाएंगे

वैसे भी अभी खुशबू का परिवार नोटबंदी की खट्टी खारी यादो  से उबरा भी नहीं था कि  अब ये घरबंदी ,तालाबंदी या लाकड़ाउन ,चाहेजो कह लीजिये पर बीतती तो गरीब जनता पर ही है ,

“लगता है ये सरकार हम लोगों की जीवन बंदी ही कर देना चाहती है “बुदबुदा उठे थे खुशबू के पिताज़ी .

जब हमारे पास कोई चीज़ आसानी से उपलब्ध हो जाती है ,अमूमन  तो उसकी कीमत का अंदाज़ा नहीं लग पाता है ,उसकी कीमत हुमी तभी पता चलती है जब वो हमसे  छीनली जाती है.

मसलन जैसे आजकल खुशबू और जसवंत की आज़ादी पर बैन लग चुका था और अब उन्हें अपनी स्वतंत्रता की कीमत पता चल रही थी

 

“काम हो तो चौबीस घण्टे भी कम लगते है और काम न हो तो दिन कितना बड़ा लगता है “खाने के बाद उठती हुयी खुशबू बोल रही थी .

“हाँ …ये तो है ही ,  या आज हमारे पास कोई काम नहीं है सिवाय ये सोचने के कि कैसे लॉकड़ाउन खुलेगा और कैसे हम अपने  घर पहुचेंगे

 

तभी टीवी पर समाचारों में बताया गया कि ज़रूरी सामान के लिए बाज़ार खुले रहेंगे ,नियत समय पर बाजार जाकर सामान खरीद जा सकता है ,जसवंत ने तुरंत ही खुशबू से कहा कि उसे जो भी सामान चाहिए वह उसकी एक लिस्ट तैयार कर  दे ताकि वह बाज़ार जाकर सामान ले आया सके

खुशबू ने ऐसा ही किया और एक ज़रूरी सामान की लिस्ट बनाकर दी  जिसे लेकर जसवंत पैदल ही बाजार चल दिया ,रस्ते में उसे एक पुलिस वाले ने मास्क लगाकर ही आगे जाने को कहा .

जसवंत ने एक दुकान से एक साधारण सा मास्क खरीद तो यह जानकर चौक गया कि दुकानदार उस मास्क की आठ गुनी ज्यादा कीमत वसूल रहा है पर मरता क्या न करता ,जसवंत ने मास्क खरीद कर लगाया और बाजार पंहुचा .

वहाँ  जाकर भी उसने पाया की कीमतें बहुत बड़ी हुयी है और दुकानदार  मनचाहा रेट वसूल रहें हैं  और कोई भी आदमी सोशल डिस्टैंसिंग को फॉलो करता नहीं दिख रहा है .

 

अभी जसवंत सामान खरीद  ही रहा था कि उसे कुछ लोगों का एक पैदल जुलुस सा दिखाई दिया जिसमें चलने वाले लोग मज़दूर लग रहे थे उन्होंने अपने सर पर काफी सामान रखा हुआ था और छोटे बच्चों को भी पैदल चला रहे थे.

जब वह जुलुस निकल गया तो पूछने पर पता चला कि ये वो लोग थे जो दूर दराज के गांव से आगरा शहर में काम धन्धा ढूंढने आये थे पर अब लाकडाऊन की हालत में उनके पास न ही काम रह गया है और न ही पैसा लिहाज़ा अपने और अपने परिवार वालों को भुखमरी से बचने के लिए वे सब पैदल ही अपने गांव वापसी कर रहे हैं.

 

यह सब देखकर जसवंत का मन खट्टा सा होने लगा और इस अचानक किये गए लॉकडाऊन पर गुस्सा आने लगा .

 

जसवंत वापिस गेस्ट हाउस में आ गया और निढाल सा होकर बिस्तर पर आकर पड गया

खाने पीने की चीज़ों को देखकर खुशबू के मन में कुछ संतोष का अनुभव हुआ  .

 

शाम होने लगी थी खुशबू जाकर किचन में जाकर खाना बनाने लगी ,टीवी देखते हुए दोनों लोग खाना खाने लगे .

 

मीडिया पर अब भी कोरोना से हुयी मौतों का विवरण बताया जा रहा था ,हालात काबू से बाहर हो रहे थे ऐसे में बार बार लॉकडाऊन के महत्व को सही बताया जा रहा था.

 

बिस्तर पर लेटते समय खुशबू के बदन से एक अलग ही गंध फूट रही थी , और खुशबू बहुत ही रूमानी मूड में लग रही थी

“आज तो मैंने तुम्हारी पसंद का “मस्क “वाला परफ्यूम लगा रखा  है  और तुम हो कि मुझ पर धान ही नहीं दे रहे हो …अभी कल तक तो मेरे साथ हमबिस्तर होने के लिए मौका ढूंढते थे और आज जब इस पूरे गेस्ट हाउस में हम दोनों के अलावा कोई भी नहीं है और मैं पूरी रात  सारी की सारी तुम्हारी  हूँ ,फिर भी तुम मुझे प्यार नहीं कर रहे हो “खुशबू ने अंगड़ाई लेते हुए कहा

“खुशबू …देखो  यार आज मन कुछ उचाट सा हो गया है …मैं बाहर जाकर गरीबों और मज़दूरों को जान बचानेके लिए उनको उनके गांव की तरफ पैदल ही जाते देख आया हूँ और उससे मेरे मन में ये विचार आ रहा है कि एक मैं हूँ जो अपनी मस्ती और मज़े के लिए अपने घरवालों से झूठ बोलकर तुम्हारे साथ यहाँ मुझ करने आता हूँ ,जाहिर सी बात है इसमें मेरे काफी पैसे भी खर्च होते हैं और एक ये  दिहाड़ी मज़दूर लोग हैं  जिनको सुबह पता भी नहीं होता है कि शाम को उन्हें खाना मिलेगा भी या नहीं ,इसलिए मुझे लग रहा है कि मैं कुछ गलत कर रहा हूँ .
“ओह्हो …..तो  तुम महात्मा बुद्ध बनने की कोशिश कर रहे हो ”
“नहीं खुशबू…मैं  अभी तक किसी तरह की व्यक्ति पूजा में भरोसा नहीं करता और न ही मेरी इस तरह की कोई चाह है ,पर अगर भूख से बिलखते बच्चे को देखकर दुखी होने ही बुद्ध होना है ,तो मैं बुद्ध हूँ…
किसी मज़दूर के छालों को देखकर यदि मेरा मन भी काँप उठता है ,तो  मैं बुद्ध हूँ..
और भी बड़ी बड़ी बातें करता रहा जसवंत ,उसका यह अजीब सा रूप पहले बार खुशबू की नज़र में पहली बार आया था ,उसे जसवंत की बातों में कोई  रस  नहीं आया ,उसने करवट ली और सो गयी.
लॉकडाऊन का दूसरा दिन भी अपने साथ बढ़ते हुए संक्रमण की खबरें लेकर आया था .

,खुशबू और जसवंत सुबह नौ बजे तक सोये ,जसवंत अभो बिस्तर पर ही था कि उसका मोबाइल बज उठा .
उधर से उसका नौकर कुछ पैसों की मांग कर रहा था

“पैसा ..पैसा पैसा ..हर किसी को पैसा ही चाहिए ….कोई भला मुझसे क्यों नहीं पूछता कि मैं कैसा हूँ …किस हाल में हूँ”

तभी खुशबू ने चाय रख दी आकर ,संयोग से चाय में आज दूध था क्योंकि कल बाजार से जसवंत पाउडर वाला दूध ले आया था ,दूध वाली चाय पीकर जसवंत का माँ थोड़ा हल्का हुआ .

” सर ये आपने मुझे कहाँ फँसा दिया है लाकर ,मेरा मतलब है कि मैं यहाँ पर हूँ ,बाहर लॉकडाऊन है और वहां मेरे घर पर मेरे माँ और पापा अकेले परेशान हो रहे हैं ” खुशबू ने परेशान होते हुए कहा

“वाह जी वाह ,उल्टा चोर कोतवाल को डाटें,तुम तो ऐसे कह रही हो जैसे कि मै जबर्दस्ती तुम्हे उठाकर लाता हूँ और तुम्हारा रेप करता हूँ  और तुम्हारी कोई मर्ज़ी नहीं होती बल्कि सच्चाई तो ये है कि तुमने जॉब में प्रमोशन पाने के लिए मुझे अपने रूप के जाल में फसाया और इसी उम्म्मीद में मेरे साथ सोती भी हो …और मेरे साथ मेरी गाड़ी में घूमने का मज़ा भी तो लेती हो “अंदर का अवसाद गुस्से के रूप में बाहर आने लगा था

“खुशबू …मैं तुम्हारी जैसी लड़कियों को खूब जानता हूँ ,जो अपने फायदे के लिए अपने जिस्म तक का सौदा कर डालती हैं ,स्साला मैं ही मूर्ख था जो तुम्हारे चक्कर में आ गया ”

खुशबू को जैसे आइना दिखा दिया था जसवंत ने ,उसे जसवंत की बातें ज़हर के सामान कड़वी लगने लगी थी ,कहाँ वो सोचती थी कि जसवंत उसके रूप पर फ़िदा है  पर ये क्या ?

आज ये ऐसी बातें क्यों कर रहा है?

जसवंत के भीतर का गुस्सा और घर में बंद रहने के कारण जो घुटन महसूस हो रही थी वो किस्तों में बाहर आती रही .

खुशबू को कुछ बोलने समझ नहीं आया तो वह भी आँसुओं में टूट गयी और पूरे दिन में खाना तक नहीं बनाया उसने .

जसवंत और खुशबू भूखे ही अलग अलग कमरों में सो गए..

आज लाकडाऊन का तीसरा दिन था ,संक्रमण से मरने वालों की संख्या तेज़ी से बढ़ रही थी ,बहुत सारे मज़दूर दिल्ली और अन्य शहरों  से अपने गांव की  और जा रहे थे .

खुशबू ने  टीवी पर घर जाते उन मजदूरों के चेहरे पर देखा ,वहां भूख थी ,डर था ,असंतोष था फिर भी एक अलग ही तरह का संतोष दिखता था जो ये बताता था कि आज नहीं तो कल वे सब अपने घर ज़रूर पहुँच जाएंगे ,उस घर में जिसे पैसे कमाने के लिए  एक दिन वो सब छोड़कर शहर आ गए थे ये जानते हुए भी कि हो सकता है उनकी अब शहर वापसी कभी भी न हो सके .

जसवंत भी जाग चुका था और उठते ही  मोबाइल को कान से लगाया पर ये क्या?मोबाइल तो डिस्चार्ज हो चुका था और वो पावरबैंक भी नहीं लाया था ,हाँ पर कार में चार्जर ज़रूर था पर उसके लिए बाहर तक जाना पड़ता .

इस बात का भी गुस्सा जसवंत ने खुशबू पर ही उतारा और चार्जर की बात को लेकर  भला बुरा सुनाने लगा था .

“स्साली….कुतिया….कहीं की …एक चार्जर भी नहीं ला सकती है …बड़ी आयी रांड कहीं की”जसवंत जी भर के गालियां देता जा रहा था.

जसवंत के साथ रहना अब खुशबू के लिए असहय हो रहा था,

उसकी खरी खोटी सुनकर भी आज खुशबू रोई नहीं थी ,बल्कि उसके चेहरे पर एक शांति थी ,जब जसवंत खूब चीख चिल्ला लिया फिर खुशबू के पास जाकर उसे पुचकारने लगा और दिखावटी माफी मांगकर खाने की मांग करने लगा ,बदले में खुशबू सिर्फ मुस्कुरा भर दी थी

किचन में जाकर  खुशबू ने खाना बनाया और बिना कुछ बहस के जसवंत के साथ बैठ कर खाना खाया और दोपहर में बैठकर टीवी देखने लगी.

शाम को जसवंत के चेहरे पर खुशी के भाव थे क्योंकि वो कार में जाकर अपना मोबाइल चार्ज कर लाया था और फोन पर ही अपने माँ और पापा से बात कर ली थी.

लॉकडॉउन का तीसरा दिन आज खत्म हो रहा था ,रात के खाने के बाद  जसवंत गहरी नींद में जब सो गया तब खुशबू दबे पैर  उठी और गेस्ट हाउस से बाहर निकल आयी .

लॉकडाऊन के बाद हो सकता है मुझे किसी नयी जगह नयी नौकरी ढूंढनी पड़ेगी ” बुदबुदा रही थी खुशबू पैदल चलते चलते खुशबू अब  उन मजदूरों की लाइन में शामिल हो गयी थी जो शहर से अपने घर की तरफ जा रहे थे.

उसके मन में जसवंत के ही स्वर गूंज रहे थे

“अगर किसी मज़दूर को अगर भूख से बिलखते बच्चे को देखकर दुखी होने ही बुद्ध होना है ,तो मैं बुद्ध हूँ…

किसी मज़दूर के छालों को देखकर यदि मेरा मन भी काँप उठता है ,तो  मैं बुद्ध हूँ..

#lockdown: मैं बुद्ध हूं (भाग-2)

लेखक- नीरज कुमार मिश्रा

ऐसा बिल्कुल भी नहीं है खुशबू ….दरअसल मुझे ऑफिस में , होटल में रुकने का प्रूफ दिखाना पड़ता है तभी तो मेरा बिल पास होता है, और फिर घबराओ नहीं  इस बार तुम्हारे साथ दो घण्टे अधिक रुक लूंगा मैं ” हसते हुए जसवंत ने कहा

“तो फिर ठीक है सर ,मैं आज ऑफिस से दो  घण्टे पहले घर निकल जाऊंगी आखिर मुझे और तैयारियां भी तो करनी हैं” खुशबू ने कहा

“ओके .. ठीक है …मैं तुम्हे चलते समय पिक कर लूंगा”

 

शाम का पांच बजे होगा  , निकलते समय जसवंत ने खुशबू को रिसीव कर लिया .

आज उसने क्रीम कलर की साड़ी और स्लीवलेस ब्लाउज पहन रखा था और एक सफ़ेद रंग का गुलाब उसके जूड़े मे टका हुआ था ,कुल मिलाकर हुस्न की एक मलिका लग रही थी खुशबू .

 

दिल्ली से आगरा पहुचने में करीब ढाई घण्टे लग गए वहां  पहुचकर दोनों कंपनी के गेस्ट हाउस में  जा कर आराम करने लगे ,उस समय गेस्ट हाउस में सिर्फ  एक नौकर था ,खाना वगैरह मेज़ पर लगाकर वह  सुबह दस बजे आनेकी बात कह कर चला गया .

जसवंत वहीँ सोफे पर पसर गया और टीवी ऑन कर दिया .

 

सभी न्यूज़ चैनल टीवी पर चीख रहे थे कि देश में प्रधानमंत्री ने पूरे इक्कीस दिन का लॉकडाउन घोषित किया है और जनता को “सामाजिक दूरी (सोशल डिस्टेनसिंग ) रखने को कहा जा रहा है .

 

“लॉकड़ाउन यानी सब कुछ बंद हो जायेगा ,सारे ऑफिस ,ट्रेन ,बस , मॉल ,बाज़ार ,स्कूल और जो व्यक्ति जहाँ हैं वहीँ रहेगा ,घर में ही कैद होना ही सबकी जान बचा सकता है ,आप सब मास्क लगाएं और सेनेटाइजर का प्रयोग करें  ” इसी तरह की खबरों को लगातार प्रसारित किया जा रहा था .

 

इतने में खुशबू भी वाशरूम से बाहर आ चुकी थी और वह भी टीवी पर आती हुयी खबरों पर आँखे गड़ाए हुयी थी .

 

कहीं न कहीं जसवंत और खुशबू दोनों ही मन ही मन में  परेशान हो रहे थे , क्योंकि अगर ऐसा वास्तव मे हुआ  तो पूरे इक्कीस दिनों के लिए यहीं इसी गेस्ट हाउस  मे कैद हो जाने वाले थे दोनों .

और यही दोनों नहीं बल्कि पूरा देश ही इस समय परेशान हो रहा था  ,सभी अपनी अपनी ज़ररूतों का सामान जुटाने में लग गए थे .

इधर मीडिया अपना काम करने में लगा हुआ था और उधर जसवंत कुछ और ही काम करने की तैयारी करने लगा था ,उसने खुशबू की पीठ सहलानी शुरू कर दी थी ,और पीठ सहलाते हुए जब जसवंत का हाथ खुशबू के सीने की और बढ़ने लगा तो खुशबू ने उसके हाथों पर अपना हाथ मारते हुए कहा कि” देखो खबरों में सामाजिक दूरी बनाए रखने को कहा गया है ”

“अरे भाड़ में जाए  ‘सामाजिक दूरी ‘

आज तो मुझे सारी दूरियां खत्म करनी है ” और इतना कहकर अपने होठों को खुशबू के होठों पर रख दिया .

खुशबू के होठ दहक उठे थे  पर उसने इठलाते हुए कहा “नहीं….ऐसे नहीं …देखो …पहले हाथ मुह धो कर आओ और अपने आपको सेनेटाइज़ करो …उसके बाद ही प्यार हो पायेगा

“अरे…जानेमन …तुम्हारे ये होठों के रस से मैं पूरा ही सेनेटाइज़ हो जाऊंगा ,मुझे भला किसी और सेनेटाइजर की क्या ज़रूरत है ” और इतना कहते कहते ही किसी भूखे भेड़िये सा टूट पड़ा था जसवंत .

 

उसने खुशबू की क्रीम कलर की साड़ी खोल डाली और खुशबू के जूड़े के गुलाब को भी नोच डाला .

खुशबू और जसवंत कुछ देर तक चरम सुख पाने के लिए बढ़ने  लगे और फिर दोनों की पकड़ ढीली हो गयी और फिर वे  दोनों निढाल होकर बेड पर लुढ़क गए .

 

सुबह जब खुशबू की आँखें खुली तो झट से उठकर उसने टीवी ऑन किया और देश दुनिया में क्या हो रहा है ये जाने के लिए समाचार चैनल लगा दिया .

समाचार अब भी वही था ,इक्कीस दिन का लॉकड़ाउन .

 

खुशबू ने जसवंत की और देखा तो वो भी जाग चुका था और लेटा लेटा ही टीवी देख रहा था

“अरे सर…ये तो बड़ा लफड़ा हो जायेगा ”

“क्या हो …जायेगा भाई ”

“सर ये लाकड़ाऊंन ….इसमें तो हम और आप यही फसे रह जाएंगे….? आतंकित सी दिखाई दे रही थी खुशबू

“अरे छोडो जाने भी दो वापिस जाना भी कौन चाहता है ….हम होंगे …तुम होगी और ये बिस्तर ….हमारे प्यार करने का सबूत बनेगा …और वो भी पूरे इक्कीस दिन तक …हा हा हा”हँसने लगा था जसवंत

 

ऊपर से भले ही जसवंत ठिठोली करता दिख रहा था पर मन ही मन इस मामले की गम्भीरता का अनुभव भी कर रहा था .

हाँ लॉकडाउन का मामला वास्तव में बहुत ही गंभीर था क्योंकि ऐसे में ट्रांसपोर्ट का कोई साधन न होने के कारण उसे यहीं खुशबू के साथ इसी गेस्ट हाउस में गुज़ारने होंगे और जसवंत को तो अच्छे होटलों मे ही रहने की आदत है और फिर घर पर उसकी पत्नी पूर्वी की तबीयत भी तो ठीक नही है ,उसकी देखभाल के लिए भी तो कोई चाहिये और फिर जब वह लगातार इक्कीस दिन तक ऑफिस नहीं पहुँचेगा तो उसका काफी नुकसान भी हो जायेगा जिसकी भरपाई किसी तरह से नहीं हो पाएगी तभी जसवंत को याद आया कि उसे माँ की दवाई खरीद कर कोरियर भी तो करनी थी अब तो ये काम भी नहीं हो पायेगा क्योंकि मेडिकल स्टोर तो गेस्ट हाउस से दूर है

 

मन में इसी तरह के ख्यालों से दो चार कर रहा था

जसवंत रात में देर तक जागने के कारण उसके सर मे भी दर्द हो रहा था  और उसे जागते ही बेड टी लेने की आदत थी

“अरे …जरा एक कप चाय तो बना दो”

“कहाँ से बना दूँ …लाकड़ाउन होने के कारण ना तो यहाँ का नौकर आया है और ना ही  दूध वाला आया है  ,किचन में भी दूध नहीं है , अब कैसे चाय बनाऊ मैं?” खुशबू ने कहा

उसकी ये बात सुनकर जसवंत का मन किया कि वो अपना सर पीट ले ,पर उसने अपने गुस्से को कंटोल में रखकर कहा “कोई बात नहीं है खुशबू ,तुम मुझे बिना दूध की चाय ही बना दो ,मैं पी लूँगा तो सर दर्द मे रहत मिल जायेगी”

गेस्ट हाउस के किचन में चाय बनाते समय खुशबू लॉकडाऊन को कोसने लगी

“तो इस का मतलब है कि मुझे इक्कीस दिन तक यहीं इसके साथ रहना होगा ….ये जसवंत तो हब्शियों की तरह व्यवहार करता है  इतने दिनों में तो ये मेरी बैंड ही बजा देगा  और फिर घर में माँ और पापा भी अकेले होंगे और मैं अगर नहीं पहुँच पायी तो  सैलरी भी नहीं पहुचेगी और घर के खर्च में दिक्कत आयेगी….उफ्फ इस लॉकडाऊन ने  तो एकदम से मुश्किलें बढ़ा दी  हैं.

दो कप बिना दूध की चाय बन चुकी थी और जसवंत और खुशबू साथ बैठकर चाय सुड़कने लगे.

आगे पढ़ें- उन दोनों को बाहर की दुनिया से परिचित…

#lockdown: मैं बुद्ध हूं (भाग-1)

लेखक- नीरज कुमार मिश्रा

“सुनो …प्रीती ….कल तुम मुझे रोज़ की तरह ऑफिस के लिए पिक करने मत आना ” खुशबू ने कहा

“क्यों …क्या तू कल ऑफिस नहीं आयेगी ? ” प्रीती ने पूछा

”  अ…..हाँ यार ….कल थोड़ा शहर के बाहर जाना है मुझे “खुशबू ने थोड़ा मुस्कुराते हुए उत्तर दिया

“शहर के बाहर ….ओह  समझ गयी यार …सीधे सीधे बता ना कि तू ओवरटाइम करने जा रही है ” खुशबू के कंधे पर हाथ मारते हुए उसकी ऑफिस की सहेली प्रीती ने कहा

“भाई  तेरा काम ही बढ़िया  है ….ऑफिस की सारी लडकियां बॉस के आगे पीछे लगी रहती है कि बॉस एक नज़र उन पर भी डाल ले पर वो है कि बस ओवरटाइम करने का मौका तुझे ही देता है “बेशर्मी से हसते हुए प्रीती ने कहा

” अब क्या करूँ यार ….इस बेदर्द ज़माने में जमे रहने के लिए सबसे ज़रूरी चीज़ होती है रुपया और रुपया आता है मेहनत करने से …अब ये बात अलग है कि वो मेहनत ऑफिस टाइम में करी जाए या कि ऑफिस के बाद ओवरटाइम करके ..….”कहकर शरारत से मुस्कुराने लगी थी खुशबू.

खुशबू … एक सामान्य घर की लड़की,जिसने इस ज़माने के लगभग हर रंग को देखा था और यही वजह थी कि वो सबसे ज्यादा पैसे को अहमियत देती थी और पैसे के लिए वो सब कुछ करने को तैयार रहती थी.

ये भी पढ़ें- फैसला दर फैसला: भाग 4

अभी इस ऑफिस को ज्वाइन किये हुए खुशबू को कुछ एक महीना ही हुआ था पर अपने बॉस की नज़रों में बहुत अच्छा स्थान हासिल कर लिया था खुशबू ने .

और यह स्थान उस शाम के बाद और भी पुख्ता हो गया था जब ऑफिस से निकलने के बाद बारिश में भीगकर ऑटो के इंतज़ार में स्टैंड पर खड़ी थी खुशबू .

“अरे… ऐसे कब तक भीगती रहोगी खुशबू ,आओ मैं छोड़ देता हूँ तुम्हे घर तक ”

कार को ठीक खुशबू के पास खड़े करके बॉस ने उसे अंदर आने के इशारे किया

एक पल को भी बिना देर किये कार में बैठ गयी थी वो.

“तुम तो पूरी तरह से भीग गयी हो  ,कहीं जुकाम न हो जाये ” बॉस ने शरारती अंदाज़ में कहा

” न….नहीं सर कोई बात नहीं है ”

” पर एक बात बताऊँ …..तुम पानी में भीगने के बाद और भी खूबसूरत लग रही हो “बॉस ने कहा

“सर….दरअसल …खूबसूरती  तो देखने वाले की आँखों में होती है और इसीलिए उसे सारा जहाँ सुंदर लगता है और मुझे लगता है कि आपकी आंखें बहुत सुंदर हैं “खुशबू ने बॉस की आँखों में झांकते हुए कहा

खुशबू के बॉस जसवंत ने इसे एक लड़की का मौन आमंत्रण समझ लिया था इसीलिये जब जसवंत ने खुशबू को उसके घर के सामने उतारा तो खुशबू की हथेली पर अपना हाथ धीरे से रख दिया था  जसवंत ने और खुशबू ने भी इसका कोई प्रतिरोध नहीं किया

बस उस दिन के बाद जसवंत की ये जूनियर सेक्रेट्री  की पहुंच कब उसके दिल के अंदर तक हो गयी किसी को समझ नहीं आया था

अगले ही दिन से जसवंत के केबिन में बार बार जाने लगी थी खुशबू.

बॉस जसवंत को भी इसकी ये नजदीकियां बहुत अच्छी लग रही थी और जसवंत सिंह ने ऐसे मौके को कैश करने में कोई देर नहीं करी और मौका देखकर  एक दिन खुशबू को ऑफिस में देर रात तक काम के बहाने से रोक लिया और जाहिर सी बात है कि खुशबू को भी इससे कोई आपत्ति नहीं हुई .

उस रात जब जसवंत खुशबू को घर छोड़ने के लिए जाने लगे तो रोड पर एक यू टर्न आया और खुशबू ने अपने शरीर को जसवंत के शरीर से सटा दिया .

खुशबू के बदन की भीनी भीनी खुशबू जसवंत को उत्तेजित कर गयी और जसवंत ने कार रोककर  खुशबू से कहा “मैं तुम्हे किस करना चाहता हूँ खुशबू “और इतना कहने के साथ साथ ही जसवंत खुशबू के नर्म अधरों का पान करने लगा

“नहीं ….बॉस …कोई आ जायेगा” खुशबू ने जसवंत को हटाते हुए कहा पर जसवंत को पता था कि जब भी कोई लड़की ये कहती है कि’ कोई आ जायेगा ‘ तो इसका मतलब है कि वह आपको मौन आमंत्रण दे रही है.

और फिर जसवंत ने गाड़ी को एक कोने में पार्क किया और गाड़ी की पिछली सीट पर ही खुशबू के अधरों को चूसने लगा और अपने अरमानों को खुशबू के साथ ठंडा करने लगा आकर इस काम में खुशबू बॉस का पूरा साथ दे रही थी.

उस दिन शर्म की दीवार क्या टूटी ,फिर तो जसवंत के लिए ये आये दिन की बात हो गयी थी और अक्सर ही वह खुशबू के यौवन का स्वाद चखा करता , इसके अलावा जसवंत जब भी कम्पनी के काम से आगरा जाता तो हमेशा ही खुशबू को साथ ले जाता जहाँ पर कंपनी के गेस्ट हाउस में वे दोनों  आराम करते , और रात में अपनी जवानी की आग को रात भर ठंडा करते और उसके बाद जसवंत खुशबू को गेस्ट हाउस में ही छोड़ देता और स्वयं अपने लिए पहले से ही अपने लिए होटल बुक करा कर रखता क्योंकि जसवंत का मानना था कि फूल की खुशबू ज़रूर लेनी चाहिए पर उसके कांटे से बच बचकर  और पैरों की जूती को अगर सर पर रखा जाये तो ये ठीक नहीं होता है.

ये भी पढ़ें- लौकडाउन के वे दिन या एक रिश्ता प्यारा सा

फ़िर   अगले दिन वे दोनों  कंपनी का काम करवाकर दोनों लौट आते .

जसवंत के आने जाने और खाने का खर्च कम्पनी देती थी और खुशबू का सारा खर्चा जसवंत उठता था .

खुशबू के इस तरह से बाहर जाने से उसके घरवालों को भी कोई आपत्ति नहीं होती थी क्योंकि  खुशबू उनकी अकेली संतान थी उसके पापा रिटायर हो चुके थे और घर खर्च के लिए  उसका कमाना बहुत ज़रूरी था.

खुशबू ऑफिस में बैठी हुई अपने कंप्यूटर पर काम कर रही थी कि तभी उसके मोबाइल पर जसवंत का फोन आया

” हाँ ….खुशबू….तुम अपनी तैयारी कर लो ..और अपने घर वालो को भी इन्फॉर्म कर दो …हम दोनो को आज शाम ही कम्पनी के काम से आगरा के लिए निकलना होगा…..” मीठी  सी आवाज़ में जसवंत बोल रहा था

” ठीक है सर”

“और हाँ …तुम इस बार भी वही “मस्क” वाला परफ्यूम लगाना ,जो तुमने पिछली बार लगाया था ….माँ कसम …तुम्हारे जिस्म में जन्नत का मज़ा आ गया था मुझे ” जसवंत ने रोमांटिक होते हुए कहा

“अरे छोड़िये ..सर ,आप हमेशा ही अपना काम निकाल लेते हैं और फिर मुझे गेस्ट हाउस में तनहा छोड़ जाते हैं और खुद  होटल में रुकने चले जातें है …..क्या पता ..वहां भी मेरे जैसी होगी कोई …जिससे मिलने जाते होंगे आप”खुशबू ने शिकायती लहज़े मैं कहा”

आगे पढ़ें- ऐसा बिल्कुल भी नहीं है खुशबू ….दरअसल…

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें