एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा: भाग-3

वह कालेज पहुंचा और अपनी कैंटीन में जा कर बैठ गया. उस का अब क्लास में जाने का भी मन नहीं था. कुछ मिनटों बाद ही सुमित वहां आ गया.

‘‘यार, बड़ी गड़बड़ हो गई,’’ कनिष्क ने कहा.

‘‘क्या हो गया?’’ सुमित ने पूछा.

‘‘वह लड़की याद है कल वाली, उस से मिला आज मैं.’’

‘‘ओहहो, यह कैसे हो गया, कैसा रहा सब. नाम क्या है उस का? नंबर लिया या नहीं?’’ सुमित एक के बाद एक सवाल करने लगा.

‘‘रीतिका नाम है उस का और नंबर मांगता मैं आज लेकिन… यार उस का चेहरा… यह देख,’’ कनिष्क ने फोन खोल रीतिका की इंस्टा पर जितनी तसवीरें थीं सुमित को दिखाईं.

तसवीरें देख कर सुमित का मुंह भी खुला का खुला रह गया. उस के मुंह से अनायास ही निकल पड़ा, ‘‘भाईसाहब यह क्या है, कैसे, क्यों, मतलब यह कैसे हुआ?’’

‘‘यार, मुझे क्या पता. मैं बस उस की शक्ल नहीं देख पा रहा अब. मुझे कल ही उस की शक्ल दिख जाती तो ऐसा नहीं होता न.’’

‘‘तो कल तू ने शक्ल कैसे नहीं देखी? इंस्टाग्राम पर तो तुझे कल भी शक्ल दिख ही गई होगी.’’

‘‘उस ने मुझे फंसाया है,’’ कनिष्क बोल उठा.

‘‘क्या मतलब?’’ सुमित ने पूछा.

‘‘पहले तो उस ने मेरी रिक्वैस्ट एक्सैप्ट नहीं की ताकि मैं उस की शक्ल न देख पाऊं, फिर इतनी मीठीमीठी बातें कीं मुझ से, लेकिन यह नहीं बताया कि उस की शक्ल ऐसी है. अब तो मुझे लग रहा है कल मेरे बगल में भी वह जानबूझ कर ही बैठी होगी और अपना यूजरनेम भी जान कर ही दिखाया होगा. आजकल की लड़कियां इतनी चालाक हैं न कि क्या बताऊं…’’ कनिष्क लगातार बोले ही जा रहा था कि उस के फोन पर इंस्टाग्राम का नोटिफिकेशन आ गया.

उस ने फोन खोला तो देखा रीतिका का मैसेज था, ‘‘हाय, मुझे तुम्हें देख कर लगा था तुम अलग हो पर तुम भी सब की तरह ही निकले. सौरी, मुझे तुम से बात करने से पहले अपनी शक्ल दिखा देनी चाहिए थी ताकि आज सुबह जो हुआ वह न होता. मेरी शक्ल के आगे तुम मेरी सारी खूबियां भूल गए होगे, है न? तुम पहले नहीं हो जिस ने ऐसा किया है. मेरा चेहरा बचपन से ही ऐसा है और यकीन मानो, मेरे लिए भी इसे देखना एक वक्त पर बहुत मुश्किल था, लेकिन अब नहीं है. तुम्हें मुझ से बात करने की या मुझे आगे जाननेसमझने की कोई जरूरत नहीं है, एक दिन में कौन सा तुम और मैं एकदूसरे को इतना जानते ही हैं जो किसी तरह की कोई मुश्किल होगी. चिल्ल करो.’’

कनिष्क और सुमित दोनों ने ही यह मैसेज पढ़ा. कनिष्क ने मैसेज पढ़ कर रिप्लाई किए बिना ही फोन बंद कर दिया.

‘‘तू रिप्लाई नहीं करेगा?’’ सुमित ने पूछा.

‘‘नहीं,’’ कनिष्क बोला.

‘‘पर क्यों नहीं?’’ सुमित हैरान था.

‘‘तू ने देखा नहीं? एक तो इस की शक्ल इतनी बुरी है ऊपर से इतना घमंड, इतना एटीट्यूड, किस बात का? पहले खुद मुझे फंसाने की कोशिश की अब मुझे इमोशनल करने की कोशिश कर रही है अपना दुखड़ा सुना कर. ‘मुझे लगा तुम अलग हो’ इस का क्या मतलब है. खुद की शक्ल ऐसी है तो मैं क्या करूं. मुझे न इस से कोई बात करनी है न इस को देखना है. पता नहीं कौन सी घड़ी में मुझे यह अच्छी लग गई,’’ कनिष्क जिस मुंह से कल तक फूल गिरा रहा था, आज जहर उगल रहा था.

‘‘तू यह बोल क्या रहा है, कुछ सोच भी रहा है? तू उस के पीछे था, तू ने उसे सामने से अप्रोच किया, अब तू कह रहा है कि उस में सैल्फरिस्पैक्ट तक नहीं होनी चाहिए क्योंकि उस की शक्ल बुरी है. तू ही था न जिस ने पिछले साल एसिड अटैक पर भाषण दिया था स्टेज पर और कहा था कि खूबसूरती सीरत में होती है सूरत में नहीं, अब अपनी बात से ऐसे कैसे पलट रहा है.’’

‘‘यार, तू मेरा दोस्त है या उस का?’’ कनिष्क ने चिढ़ते हुए कहा.

‘‘हूं तो तेरा ही पर अब लग रहा है कि क्यों हूं. तेरी सारी खूबियां तेरी घटिया सोच के आगे फीकी पड़ गई हैं और यकीन मान, तू परफैक्ट नमूना है इस बात का कि लोग शक्ल से सुंदर हों तो जरूरी नहीं मन से भी हों.’’

‘‘मुझ से इस तरह बात करने की कोई जरूरत नहीं है सुमित,’’ कनिष्क ने कहा.

‘‘मेरे आगे किसी के बारे में इस तरह की बात करने की तुझे भी कोई जरूरत नहीं है. मैं तेरा दोस्त हूं, इस का मतलब यह नहीं तेरी हर गलतसलत बातें सुनूंगा. और पता है, मैं खुश हूं कि वह लड़की  बच गई. क्या कौन्फिडैंस है उस में. तुझ जैसे लड़के की गर्लफ्रैंड बनती तो आत्मग्लानि और इंसिक्योरिटी से भर जाती.’’ सुमित अपनी बात कह कर चला गया और कनिष्क गुस्से से भर गया. उस ने फोन उठाया और इंस्टाग्राम से रीतिका को ब्लौक कर दिया.

उस शाम कनिष्क न चाहते हुए भी बारबार रीतिका के बारे में ही सोच रहा था. उसे सुमित की कही बातें भी याद आ रही थीं. कनिष्क ने फोन उठाया और रीतिका को अनब्लौक कर मैसेज टाइप किया, ‘सौरी, मैं ने इतनी बुरी तरह बिहेव किया.’ कनिष्क के मैसेज भेजने के कुछ ही सैकंड्स में उसे रीतिका का रिप्लाई आया, ‘कोई बात नहीं.’

कनिष्क के चेहरे पर एक बार फिर मुसकराहट लौट आई थी. एक बार फिर उन दोनों की बातों का सिलसिला चल पड़ा था.

‘अपना नंबर ही दे दो, मुझ से इंस्टाग्राम पर बात करना बहुत बोरिंग लगता है,’ कनिष्क ने कहा तो रीतिका ने उसे अपना नंबर दे दिया. उन दोनों ने फिर कभी उस सुबह की बात नहीं की लेकिन फिर कभी मैं और तुम से हम होने का खयाल भी दोनों के जेहन में नहीं आया. कनिष्क इस बारे में बात नहीं करना चाहता था और रीतिका की अब हिम्मत नहीं थी इस बारे में कुछ कहने की. वह चाहे जितनी भी मजबूत थी लेकिन रिजैक्शन सहने का डर उस में अंदर तक घर कर चुका था. खैर, दोनों को ही एक नया दोस्त मिल चुका था. कभीकभी दोनों साथ मैट्रो से राजीव चौक तक जाते तो ढेरों बातें किया करते, उस के बाद अपनेअपने कालेज के रूट पर निकल जाया करते.

‘‘तू ने वह सीरीज देखी जो मैं ने रात में बताई थी?’’ कनिष्क मैट्रो में रीतिका से पूछने लगा.

‘‘हां, उस लड़की  का कैरेक्टर कितना मजबूत था न, मैं तो इंप्रैस हो गई उस से,’’ रीतिका उत्सुकता से भर कर कहने लगी.

‘‘तू भी तो वैसी ही है, मजबूत और नकचढ़ी,’’ कनिष्क कह कर हंसने लगा.

‘‘नकचढ़ी और मैं? तू न, जलता है मुझ से, बस, आया बड़ा,’’ रीतिका झूठा गुस्सा दिखाने लगी.

‘‘तुझ से जलूंगा मैं, हाहा, रहने दे सुबहसुबह हंसा मत.’’

‘‘चल जा न, तंग मत कर मुझे अब.’’

‘‘तुझे तंग नहीं करूंगा तो दिन कैसे कटेगा मेरा,’’ कनिष्क ने कहा तो रीतिका और वह दोनों ही हंस पड़े.

‘‘मैं आज राइटिंग कंपीटिशन में जा रही हूं. जीत गई तो तेरी पार्टी पक्की.’’

‘‘पिज्जा से कम कुछ नहीं चलेगा, पहले ही बता रहा हूं.’’

‘‘हां भुक्खड़, खा लियो पिज्जा.’’

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 क्या कभी खत्म होगी लैंगिक असमानता

संयुक्त राष्ट्र ने हाल ही में एक रिपोर्ट जारी की. इस में दुनिया के 75 देशों और क्षेत्रों में शिक्षा और राजनीति समेत विविध क्षेत्रों में लैंगिक भेदभाव का विश्लेषण किया गया. रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि दुनिया में कोई भी देश ऐसा नहीं है, जहां लैंगिक समानता हो. रिपोर्ट के मुताबिक 86 फीसदी महिलाएं और 90 फीसदी पुरुष, महिलाओं के प्रति किसी न किसी तरह का भेदभाव (2018) बरतते हैं.
रिपोर्ट से यह पता चलता है कि दुनिया के लगभग आधे पुरुष और महिलाएं महसूस करते हैं कि पुरुष बेहतर राजनीतिक नेता बनते हैं और 40% अधिक लोगों को लगता है कि पुरुष बेहतर व्यावसायिक अधिकारी बनते हैं.
इसलिए दुनियाभर में केवल 24% संसदीय सीटें महिलाओं के पास हैं, और सरकार की संभावित 193 महिला प्रमुखों में से केवल 10 हैं.

राजनीति में पूरी भागीदारी नहीं

अमेरिका जैसे बड़े देश की ही बात करें तो काबिलियत के बाद भी अमेरिका की प्रथम महिला हिलेरी क्लिंटन को वह स्थान नहीं मिल पाया, जिस की वह हकदार थीं.

कौन है हिलेरी क्लिंटन:

हिलेरी डायेन क्लिंटन अमेरिका के न्यूयार्क प्रांत से कनिष्ठ सेनेटर हैं. वे अमेरिका के 42वें राष्ट्रपति बिल क्लिंटन की पत्नी हैं और सन 1993 से 2001 तक अमेरिका की प्रथम महिला रहीं. बराक ओबामा के कार्यकाल में हिलेरी क्लिंटन विदेश मंत्री थीं. अमेरिका की पूर्व विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन ने 2016 के राष्ट्रपति चुनाव में डैमोक्रेटिक पार्टी की उम्मीदवारी के लिए दावा पेश किया था. हिलेरी का कहना था कि वह अमेरिकी लोगों की चैंपियन बनना चाहती हैं लेकिन वे ट्रंप से हार गईं. हिलेरी क्लिंटन ने 2008 में भी डैमोक्रेटिक पार्टी की ओर से राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी पेश की थी, लेकिन बराक ओबामा से भी वे हार गईं.
राष्ट्रपति चुनाव में अपनी हार की वजह हिलेरी क्लिंटन ने रूस के राष्ट्रपति पुतिन को ठहराया. उन्होंने यह भी कहा कि मुझे दुख इस बात का है कि मैं ट्रंप को राष्ट्रपति बनने से नहीं रोक पाई.

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कहां चूक गई हिलेरी

अमेरिकी इतिहास का सब से साधारण राष्ट्रपति चुनाव 2016 का था और वह दरअसल, राजनीतिक व्यवस्था के खिलाफ विद्रोह था. और इस राजनीतिक व्यवस्था का सब से बड़ा प्रतीक कोई और नहीं, खुद हिलेरी क्लिंटन थीं. चुनाव प्रचार के दौरान करोड़ों गुस्साए हुए वोटरों के लिए वे अमेरिका की खंडित राजनीति का चेहरा बन कर उभरी थीं.
वहीं, डोनाल्ड ट्रंप कई प्रांतों के काफी मतदाताओंके लिए एक ऐसा इंसान बन कर उभरे थे, जो बिगड़ी हुई व्यवस्था को ठीक कर सकते थे. वे अपने एक बिलकुल अंदरूनी आदमी को खिलाफ एक बाहरी आदमी के रूप में स्थापित करने में कामयाब रहे.
हिलेरी क्लिंटन यह दावा करती रहीं कि वे राष्ट्रपति पद के लिए सब से योग्य इंसान हैं. एक तरह से वे अपनी सीवी रटती रहीं जैसे प्रथम महिला के तौर पर उन का अनुभव, न्यूयार्क सीनेटर और विदेश मंत्री. लेकिन असंतोष और गुस्से के माहौल में ट्रंप के समर्थन ने अनुभव और योग्यता को नकारात्मक ही माना. वहां के तमाम लोग व्हाइट हाउस में एक पारंपरिक राजनेता नहीं, बल्कि एक व्यवसायी को देखना चाहते थे. वाशिंगटन के प्रति लोगों की नफरत साफ थी.
इसलिए, क्लिंटन के प्रति भी लोगों के मन में नफरत थी. उन के प्रति घृणा बेइंतहा और तेजी से फैलने लगी थी. इतना कि एक अधेड़ उम्र की विनम्र महिला भी हिलेरी क्लिंटन का नाम सुनते ही बिदक पड़ी थीं.
हिलेरी क्लिंटन के साथ विश्वास की समस्या पहले से ही थी. यही वजह थी कि ईमेल स्कैंडल इतना बड़ा मामला बन गया था. उन की छवि पूर्वी तट के कुलीन खानदान की ऐसी इंसान की बन गई, जो मजदूर वर्ग को हिकारत की नजरों से देखती है. मजदूरों से उन की दूरियां इतनी बढ़ती चली गईं कि उसी मजदूर वर्ग ने स्टेट अरबपति को खुशीखुशी वोट दिया.
अमेरिका में महिला वोटरों की तादाद पुरुष वोटरों से 10 लाख ज्यादा है. समझा जाता था कि हिलेरी को इस का फायदा होगा. मगर ऐसा नहीं हुआ. क्योंकि प्राइमरी में बनीं सैंडर्स का मुकाबला करने के दौरान ही यह साफ हो गया था कि युवतियों को देश की पहली महिला राष्ट्रपति के नाम पर एकजुट करना बहुत आसान भी नहीं था. कई महिलाएं उन के साथ सहज हो ही नहीं पाईं.

नहीं बन पाई अच्छी वक्ता

हिलेरी क्लिंटन स्वाभाविक प्रचारक नहीं हैं. उन के भाषण अमूमन सपाट होते हैं और कुछकुछ ऐसा लगता है कि मानों रोबोट बोल रहा हो. उन की कही बातें बनावटी लगती है और कुछ लोगों को वे बातें गंभीर नहीं लगती थीं.
डोनाल्ड ट्रंप ने उन पर प्रेम संबंध में पति की मदद का आरोप लगाया था. उन्होंने हिलेरी की यह कह कर आलोचना की थी कि जिन महिलाओं ने बिल क्लिंटन पर छेड़छाड़ का आरोप लगाया, हिलेरी ने उन की निंदा की थी. जब ट्रंप यह सब कह रहे थे, उन की बातों पर कई महिलाओं ने रजामंदी जताई थी.
हिलेरी क्लिंटन का दिया नारा नहीं चला, अमेरिका के बारे में अपनी दृष्टि को उन्हें हमेशा सहेज कर पेश करने की जद्दोजहद करनी होती थी. ‘‘स्ट्रौंगर टुगैदर’’ नारे में वह दम नहीं था जो ‘‘मेक अमरीका ग्रेट अगेन’’ में था. क्लिंटन के नारे को अलगअलग दर्जनभर तरीके से पेश किया गया था. इस से यही साबित होता था कि एक साफ संकेत देने में वे सहज नहीं हैं.
माना जाता है कि उन के प्रचार अभियान में कुछ गलतियां भी हुई. उन्हें उत्तरी कैरोलिना और ओहियो जैसे उन राज्यों पर समय और संसाधन नहीं बरबाद करना चाहिए था. क्योंकि डैमोक्रेटिक पार्टी पहले से ही मजबूत स्थिति में थी. उन्हें ‘नीली दीवार’ कहा जाता है. ये वे 18 राज्य थे, जहां पिछले 6 चुनावों में उन की पार्टी को बढ़त मिलती आई थी.
ट्रंप ने गोरे मजदूर वर्ग के मतदाताओं की मदद से पैंसिलवेनिआ और विस्कोन्सिन राज्य जीत कर इस मजबूत ‘नीली दीवार’ को भी ढहा दिया. ये वे राज्य थे, जहां 1984 से अब तक रिपब्लिकन पार्टी को जीत नसीब नहीं हुई थी.
यह सिर्फ हिलेरी क्लिंटन को नकारना नहीं था. आधे देश से अधिक ने अमेरिका को ले कर बराक ओबामा की दृष्टि को खारिज कर दिया था.
कहा जाता था कि अमेरिका में अगर हिलेरी क्लिंटन चुनाव जीत जातीं तो अमेरिका की पहली महिला प्रैसिडैंट होने का इतिहास रचतीं. लेकिन ऐसा नहीं हो पाया.
पूर्व प्रथम महिला और सांसद हिलेरी क्लिंटन के पास लंबा अनुभव है. लेकिन उन्हें अमेरिकी राजनीति में एक बांटने वाली शख्शियत के रूप में भी देखा जाता है. राष्ट्रपति बराक ओबामा ने भी उन की तारीफ करते हुए कहा था कि वे एक शानदार राष्ट्रपति साबित होंगी.

महिला राष्ट्रपति मंजूर नहीं

इस में कोई संदेह नहीं है कि पुराने जमाने के लैंगिक भेदभाव की भी चुनावों में भूमिका रही है. कई पुरुषों ने महिलाओं को राष्ट्रपति के रूप में उन्हें मंजूर नहीं किया.
मिशैल ओबामा अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति ओबामा की पत्नी हैं, एवं वह अमेरिका की प्रथम महिला रह चुकी हैं.
राष्ट्रपति बनने के सवाल पर मिशैल ओबामा कहती हैं कि नहीं, बिल्कुल नहीं. मैं राष्ट्रपति पद की दौड़ का हिस्सा नहीं बनूंगी. उन का कहना है कि हिलेरी क्लिंटन के पदचिन्हों पर चलने और राष्ट्रपति पद की दौड़ में शामिल होने में उन की कोई दिलचस्पी नहीं है. उन का कहना था कि वे वाशिंगटन की धु्रवीय राजनीति से अलग रह कर भी अधिक प्रभावी हो सकती हैं.
पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने भी साफतौर पर कहा था कि मिशैल की राष्ट्रपति पद के चुनाव में शरीक होने की कोई मंशा नहीं है.
जब बराक ओबामा अमेरिका के राष्ट्रपति बने थे तो लोगों की जितनी निगाह बराक ओबामा पर थी उतनी ही सुर्खियां मिशैल ओबामा ने भी बटोरी थीं.

नकारात्मक छवि:

बताया जाता है कि शुरू में मिशैल को बराक ओबामा की राजनीतिक महत्वाकांक्षा पर ऐतराज था. लेकिन ‘‘द ओबामाज’’ किताब लिखने वाली जोड़ी कैंटर का कहना है जब मिशैल बराक ओबामा का समर्थन करने का फैसला कर लेती है तब वह ओबामा की सब से बड़ी समर्थक बन जाती है.
जो लोग मिशैल को लंबे समय से जानते हैं उन का कहना है कि मिशैल स्पष्टवादी हैं. वे हावर्ड में ट्रेनिंग प्राप्त वकील हैं. वे अपने पति के तर्कों को सामने रखने में यकीन रखती हैं. लेकिन इस बात का लोगों पर अच्छा असर नहीं हुआ. शायद इसलिए कि आमतौर पर राजनेताओं की पत्नियां हाशिए पर रहती हैं और शायद इसलिए भी कि मिशैल के लिए भी यह सब नया था.
2008 में डेमोक्रेटिक पार्टी के डेनवर में हुए राष्ट्रीय सम्मेलन में मिशैल ने भाषण दिया था और कहा था कि वह एक अच्छी पत्नी, मां और बेटी के तौर पर खड़ी रहेंगी.
ओहिओ यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर कैथरीन जेलिसन ने कहा जिस दिन ओबामा ने राष्ट्रपति की शपथ ली, तभी से मिशैल एक ऐसी फर्स्ट लेडी के तौर पर दिखीं जो अमेरिका देखना चाहता था. समर्पित पत्नी और मां.
राष्ट्रपति बनने के बाद जहां बराक ओबामा की रेटिंग गिरने लगी थी वहीं मिशैल की रेटिंग बढ़ती रही. मई 2012 में गैलअप के सर्वे में ओबामा की रेटिंग 52 फीसदी थी तो मिशैल की 60 फीसदी.

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हाशिए पर रहना पसंद किया

प्रोफेसर बोनी डाओ के मुताबिक, फर्स्ट लेडी बनने के बाद मिशैल ने बच्चों और परिवारों से जुड़ी योजनाओं को अपनाया. वे व्हाइट हाउस में सब्जियों का बगीचा लगा चुकी हैं, वजन घटाने के फायदे समझाने के लिए रिऐलिटी शो पर भी आ चुकी हैं और बागबानी पर किताब लिख चुकी हैं.
न्यूजवीक में वरिष्ठ लेखक एलिसन सैम्युल्स कहते हैं मिशैल को समझ आ गया था कि व्हाइट हाउस में सब कुछ ओबामा के इर्दगिर्द घूमता है. इसलिए उन्होंने ऐसे मुद्दों पर ध्यान देना शुरू किया जिस से वे पृष्ठभूमि में ही रहें और ओबामा पर हावी न हों.
रिपब्लिकन पार्टी के कई सदस्य भी उन के प्रशंसक हैं. हालांकि आलोचक भी हैं जो उन के कपड़ों, योजनाओं और विचारों में खामियां निकालते रहे हैं.
पत्रकार और लेखक जोडी कैंटर कहती हैं कि मिशैल ऐसा दिखाती हैं कि राजनीति से परे हैं लेकिन सच तो ये है कि वे प्रचार भी करती हैं, चुनाव अभियान के लिए पैसा भी जुटाती हैं. वे सब से लोकप्रिय राजनीतिक हस्तियों में से एक हैं.
दरअसल, फर्स्ट लेडी होने का विरोधाभास यही है कि महिला जितनी गैर राजनीतिक नजर आती है, राजनीतिक स्तर पर वह उतनी ही प्रभावी साबित होती हैं.
विश्लेषकों का कहना है कि लोगों में मिशैल का राजनीतिक आकर्षण अब भी बरकरार है. 2012 के चुनाव में भी मिशैल ने अपनी लोकप्रियता का इस्तेमाल अपने पति को जीत दिलाने की कोशिश में किया.

होममेकर की भूमिका तक सीमित

यह बात किसी से छिपी नहीं है कि महिलाओं में नेतृत्व के गुण कूटकूट कर भरे हुए हैं. फिर भी उस नेतृत्व का दायरा उस की होममेकर की भूमिका तक सीमित कर दिया जाता है. औरतों की सीमा रेखा आज भी घरपरिवार की देहरी बना दी जाती है. जब महिलाएं एक अपराधी समाज का सामना कर सकती हैं तो राजनीति का क्यों नहीं? मगर यह बात पुरुष समाज समझना ही नहीं चाहता.
भारत में भी (2014-15) 97 फीसदी महिलाएं और 99 फीसदी पुरुष, महिलाओं से भेदभाव करते हैं. 5 सालों में महिला राष्ट्राध्यक्षों की संख्या में महज 10 रह गई है, जबकि 2014 में यह संख्या 25 थी.
भारत में उदार कांग्रेस ने इंदिरा और सोनिया को तो जगह दे दी, पर कट्टर भाजपा ने एक भी महिला नेता को वह स्थान नहीं दिया जिस की वह हकदार थी. सिर्फ सुषमा स्वराज को ही नहीं, बल्कि उमा, अनुप्रिया, मेनका गांधी की भी भाजपा सरकार में बुरी गत हुई.
शपथ समारोह के बाद सुषमा स्वराज ने ट्वीट कर कहा था कि प्रधानमंत्री जी, आप ने मुझे 5 साल तक बतौर विदेश मंत्री देश की सेवा का मौका दिया, सम्मान दिया, इसलिए मैं आप की आभारी हूं. सुषमा स्वराज ने भले ही खुद को सरकार में शामिल नहीं किए जाने को सहजता से ले रही थीं लेकिन अंदर ही अंदर दुख तो उन्हें भी हो रहा होगा. जबकि सुषमा स्वराज ने भाजपा सरकार में रहते हुए क्या कुछ नहीं किया था.
सुषमा स्वराज ने कई विषम परिस्थितियों में देश का मान बढ़ाया. लेकिन सब व्यर्थ, क्योंकि वह आडवाणीजी की शुभचिंतक थी और इसी बात की उन्हें कीमत चुकानी पड़ी. 66 साल की सुषमा राजनीति में 25 साल की उम्र में आई थीं. सुषमा स्वराज के राजनीतिक गुरु लाल कृष्ण आडवाणी रहे थे.
सुषमा स्वराज एक प्रखर और ओजस्वी वक्ता, प्रभावी पार्लियामेंटेरियन और कुशल प्रशासक मानी जाती थीं.
राजनीतिक विश्लेषक बताते हैं कि साल 2013 में नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री का उम्मीदवार बनने से रोकने की लाल कृष्ण आडवाणी की मुहिम में वे आडवाणी के साथ थीं. इस मुहिम में उन्होंने आखिर तक आडवाणीजी का साथ दिया था. 2014 में मोदी की जीत के बाद उन्होंने पीछे मुड़ कर नहीं देखा.
जानकारों का मानना था कि उसी अपराध की सजा सुषमा स्वराज को भविष्य में मिली. इंदिरा गांधी के बाद सुषमा स्वराज दूसरी महिला थीं जिन्होंने विदेश मंत्री का पद संभाला था.
बसपा ने मायावती को सहज अपनाया पर सोशल मीडिया में भगवाई पहलवानों ने उस पर तरहतरह के भद्दे जोक बना कर डाले, पर उन पर कोई मुकदमा नहीं चला. भाजपा नेता दयाशंकर ने तो मायावती पर अभद्र टिप्पणी की थी. भाजपा के नेता दयाशंकर ने मायावती पर बेहद भद्दा तंज कसते हुए उन की तुलना यौनकर्मी से कर दी थी. उन्होंने मायावती पर टिकटों की बिक्री का भी इल्जाम लगाया था.

सशक्तिकरण के बावजूद भेदभाव

महिला सशक्तिकरण को ले कर आज पूरी दुनिया में कई प्रकार के अभियान चलाए जा रहे हैं. लैंगिक समानता के क्षेत्र में सुधार के बावजूद आज भी दुनिया भर के हर 10 में से 9 लोग महिलाओं के साथ भेदभाव करते हैं या पूर्वाग्रह रखते हैं.
‘राजनीतिक भागीदारी’ इस शब्द का उच्चारण जितना महान और विशाल है, अगर महिलाओं के पक्ष में देखें तो बहुत ही कमतर और तुच्छ दिखाई पड़ता है, क्योंकि भारत जैसे देश में जब सारी राजनीतिक पार्टियों को कोई और राह दिखाई नहीं पड़ती है तब उन्हें महिलाओं की अचानक से याद आती है, जिन्हें वे हथियार के तौर पर समाज से इस्तेमाल कर सकें.
उन्हें राजनीति के अखाड़ों में उन के पतियों, भाइयों और पिताओं के पीछे खड़ा कर के अपनेअपने पार्टी की प्रत्याशी के तौर पर दिखाते हैं.

महिलाओं के लिए राजनीतिक संघर्ष:

प्राचीन काल से आधुनिक काल यानी वर्तमान समय तक भारत में स्त्रियों की स्थिति परिवर्तनशील रही है. हमारा समाज प्राचीन काल से आज तक पुरुष प्रधान ही रहा है. विश्व का इतिहास और विश्व के प्रगतिशील देशों की राजनीतिक, सामाजिक एवं आर्थिक प्रगति इस बात का प्रमाण है कि किसी भी देश की वांछित प्रगति के लिए उस देश की महिलाओं की भागीदारी आवश्यक एवं महत्वपूर्ण है. संयुक्त राष्ट्रसंघ की महासभा द्वारा घोषित ‘अंतर्राष्ट्रीय महिला वर्ष’ एवं ‘महिला दशक 1990-2000’ की समाप्ति तक भी भारत की संपूर्ण कार्यात्मक शक्ति में महिला कार्यकर्ताओं की संख्या कम है.
विश्व की आधी शक्ति एवं क्षमता होने के बावजूद राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक क्षेत्र में महिलाओं की भूमिका, उन की काम में भागीदारी तथा कमजोर स्थिति और सहभागिता पर प्रश्नचिन्ह यथावत लगा हुआ है. भारतीय राजनीति में महिलाओं के लिए किसी प्रकार का प्रतिबंध न होने के बावजूद भी वे भारत के आम चुनावों में बहुत कम संख्या में भाग लेती हैं तथा जो भाग लेती हैं वे प्राय: राजनीति की ऊंची कुर्सी तक पहुंचने अथवा उसे प्राप्त करने में असमर्थ रहती हैं.
इतिहास गवाह है कि जबजब महिलाओं को मौका मिला है, उन्होंने हर तरीके से अपनी काबिलीयत सिद्ध की है और कई मायनों में पुरुषों से कहीं ज्यादा बेहतर ढंग से सिद्ध की है.
चाहे हम बहुत पीछे जा कर रानी लक्ष्मीबाई को देखें या 19वीं सदी की आयरन लेडी इंदिरा गांधी को, ऐसे अनेकों सुंदर उदाहरण महिलाओं के मिल जाएंगे, जिन्होंने विश्व स्तर पर देशदुनिया को गौरवान्वित किया है.
आज की तारीख में कोई भी ऐसा देश नहीं है, जिस ने पुरुषों और महिलाओं के बीच का फर्क मिटाने में पूरी तरह से सफलता प्राप्त कर ली हो. चाहे खेल जगत हो, मनोरंजन जगत या फिर राजनीतिक, महिलाएं सभी जगह असमानता का दंश झेल रही हैं.

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संयुक्त राष्ट्र महिला संस्थान:

यूएन की कार्यकारी निदेशक फुमजिली क्लाक्बो नाक्यूका का कहना है, ‘‘महिलाधिकारों की समीक्षा दिखाती है कि कुछ प्रगति हासिल करने के बावजूद, कोई भी देश ऐसा नहीं है जहां लिंग समानता हासिल कर ली गई हो.’’
उन्होंने कहा कि समानता का मतलब केवल यह नहीं है कि राजनीति से संबंधित केवल एक चौथाई सीटें महिलाओं के लिए छोड़ दी जाएं, जबकि दुनियाभर में महिला प्रतिनिधित्व के मामले में ऐसी ही स्थिति है.
सांसदों में 75% सीटों पर पुरुष विराजमान हैं और प्रबंधन संबंधी पदों पर 73% पुरुषों का नियंत्रण है. साथ ही जलवायु परिवर्तन के पदों में से 70% पर पुरुष विराजमान हैं.
राजनीति के लंबे इतिहास में महिला नेत्री उंगलियों पर गिनी जा सकती हैं, इंदिरा गांधी से ले कर सुचेता कृपलानी, भंडारनायक से ले कर मार्गरेट अल्वा तक अधिकांश ने उच्च पदों पर जा कर भी महिलाओं की बेहतरी के लिए कोई बड़ा कदम नहीं उठाया. महिलाओं के हक में किसी भी बड़े फैसले को पारित होने में दशकों लग गए.
कारण यह भी है कि उन की आवाज सुनी ही नहीं गई, चाहे वह सुभाषनी अली हों या वृंदा करात. परिवार के तहत आई नेत्रियों ने समाज में ओहदा तो लिया पर पर्याप्त हस्तक्षेप नहीं किया.
महिला जब तक वर्ग, जाति और धर्म की फांस से बाहर नहीं निकलतीं, तब तक राजनीति तो क्या घर में भी उस की सहभागिता सार्थक और सम्मानजनक नहीं हो सकती है. धर्म का ध्वज वाहक बने रहने से पितृसत्ता ही मजबूत होती है. पितृसत्ता और स्त्री चेतना या स्त्री अस्मिता एकदूसरे के विलोम होते हैं.
यह कहना गलत नहीं होगा कि पुरुषों ने राजनीति को अपना अखाड़ा बना डाला है, जहां या तो महिलाएं ऊंचे पदों तक आ नहीं पाती या उन के खानदान की महिलाओं के सिवाय ऊंचे पद पर किसी सामान्य औरत को टिकने ही नहीं दिया जाता. अथवा उन के द्वारा नियुक्त स्त्री मात्र स्टार प्रचारक मार्का शोपीस या कठपुतली बना दी जाती है.
महिला सशक्तिकरण की पहल के बावजूद अब भी संसद में महिलाओं की भागीदारी सिर्फ 12% है. पंचायतों में भी स्त्रियां प्रौक्सी नेता, मुखिया ही हैं. फिर भी नियमों का बिसरण और व्यापन ही सामाजिक जड़ता को तोड़ने का काम करेगा.
शिक्षा, खेलकूद, चिकित्सा, इंर्फोमेशन टैक्नोलौजी, फिल्में, बैंकिंग, व्यापार, अंतरिक्ष, सेना और यहां तक कि अंडरवर्ल्ड में भी महिलाएं पुरुष के कंधे से कंधा मिला कर चल रही हैं. यहां तक कि युद्ध रिर्पोटिंग जैसे साहस भरे कामों को अंजाम दे रही हैं और अपना मनवा रही हैं. तो राजनीति जैसे क्षेत्र में उन की ऐसी धनक कम क्यों है यह एक शोध का विषय हो सकता है.

चुनौतीपूर्ण है स्थिति

भारत समेत दुनिया के सभी देशों में चाहे वह विकसित देश हो या विकासशील या तीसरी दुनिया महिलाओं के लिए राजनीति में आना, बने रहना एक चुनौतीपूर्ण है.
जनरल औफ इकोनोमिक बिहैवियर एंड और्गेनाइजेशन में प्रकाशित एक अध्ययन में कहा गया है कि जिन सरकारों में महिलाओं की भागीदारी अधिक होती है, वहां भ्रष्टाचार कम होता है. संयुक्त राष्ट्र महासभा की अध्यक्ष मारिया फर्नांडा एस्पिनोसा ने न्यूयार्क में महिला की स्थिति पर आयोग के 63वें सत्र के दौरान महिलाओं की भागीदारी के विषय में चर्चा करते हुए इस बात को रेखांकित किया कि मौजूदा रुझान के जारी रहते दुनिया को लैंगिक बराबरी हासिल होने में 107 साल और लग जाएंगे.

अंतर्राष्ट्रीय संस्था अंतर संसदीय यूनियन के ताजा आंकड़े बताते हैं कि राजनीति में महिलाओं को अधिकार देने के मामले में भारत विश्व में 98 नंबर पर आता है. भारत में लोकसभा की 545 सीटों में 59 महिलाएं हैं. राज्य सभा की 242 सीटों में सिर्फ 25 महिलाएं हैं. पाकिस्तान की संसद में नीचे सदन में 22.2% महिलाएं हैं, जबकि ऊपरी सदन में 17%. पाकिस्तान 51 स्थान पर. चीन 55वें और बंगलादेश 65वें नंबर पर है.
अफ्रीकी देश रवांडा इस सूची में पहले नंबर पर है. जहां संसद के निचले सदन में 56% महिलाओं की भागीदारी है और ऊपरी सदन में 34% की. स्वीडन 45% के साथ दूसरे नंबर पर और दक्षिण अफ्रीका तीसरे स्थान पर, नंबर 4 पर क्यूबा, आइसलैंड, फिनलैंड और नार्वे आते हैं.
महिलाओं को राजनीति में शामिल करने के मुद्दे पर जर्मनी दुनिया में 19 नंबर पर है जबकि अमेरिका 72वें नंबर पर. रिपोर्ट में बताया गया है कि सऊदी अरब, कतर और ओमान में राजनीति में महिलाओं की भागीदारी शून्य है.
आज हम विश्व स्तर पर सतत विकास में लैंगिक भेदभाव को दूर करने की बात कर रहे हैं. वहीं दूसरी ओर लैंगिक भेदभाव की जड़ें समाज और राजनीति में मजबूती पकड़ रही है. ऐसे में हमें सोचना होगा कि कैसे हम लैंगिक समानता की मंजिल तक पहुंच कर विश्व में सतत विकास का सपना पूरा कर पाएंगे या फिर एक बार फिर लैंगिक असमानता हमारे लिए एक बड़ी चुनौती साबित होगी, एक शांतिपूर्ण और सुंदर विश्व की कल्पना बिना लैंगिक समानता के नहीं पूरा हो सकता है. जब तक लैंगिक समानता नहीं होगी तब तक एजेंडा 2030 का पूरा होना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन भी है.

समर में चाहिए फ्रेश-फ्रेश लुक

गर्मियों के दिनों में स्किन बहुत खराब हो जाती है. धूल, धूप और पसीना स्कीन को बहुत प्रभाव डालता है. ऐसे में यह बेहद जरूरी हो जाता हैं कि समर में फ्रेश लुक कैसे बरकरार रखा जाये.

गर्मियों के दौरान स्किन की देखभाल और मेकअप का ख्याल रखना बेहद जरूरी होता है. आइना मेकअप एंड ब्यूटी सैलून की मेकअप आर्टिस्ट अंकिता सिंह बताती हैं “समर से परेशान होने की जरूरत नही है. जरूरत इस बात की है कि समर में भी अपने लुक को लेकर सजग रहें. जिससे समर में भी हमारा लुक फ्रेश फ्रेश सा रहे”.

समर में फ्रेश फ्रेश लुक के लिए  गर्मियों के मेकअप टिप्स और स्किन केयर पर ध्यान देने की जरूरत होती है. इससे गर्मियों में स्टाइल के साथ ही साथ फ्रेश लुक भी रखा जा सकता है.

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इससे आपका मेकअप गर्मियों कर पसीने भरे मौसम में भी लंबे समय तक चल सकता है.

गर्मियों में बाहर निकलने से 30 मिनट पहले एसपीएफयुक्त सनस्क्रीन ज़रूर लगाएं. इससे  स्किन सनबर्न से बची रहेगी.

समर में मॉइश्‍चराइज़र ज़रूर लगाएं. समर में स्किन को सॉफ्ट बनाए रखने के लिए ऑयलफ्री लाइट मॉइश्‍चराइज़र लगाएं.

गर्मियों में मेकअप करते समय  ज़रूरी हो तो ही कंसीलर लगाएं. कंसीलर लगाते समय पूरे चेहरे की बजाय आंखों के नीचे और दाग़-धब्बों पर ही कंसीलर लगाये.

गर्मियों में सन टैन, पसीना, चिपचिपापन आदि स्किन की ख़ूबसूरती बिगाड़ देती हैं. ऐसे में गर्मियां में भी मेकओवर की जरूरत पड़ती है. गर्मियों में ब्राइट मेकअप करने से बचना चाहिए. इस मौसम में लाइट मेकअप अच्छा रहता है. सामान्य रूप में लोग लाइट शेड्स वॉले कपड़े पहनते है उसपर मेकअप भी खास होता है.

गर्मियों में लाइट ऑयल फ्री फाउंडेशन लगाएं. इससे स्किन सुंदर दिखती है और चेहरा चिपचिपा नहीं नज़र आता है. एसपीएफ युक्त फाउंडेशन का इस्तेमाल करें, ताकि सूर्य की अल्ट्रा वायलेट किरणों से आपकी स्किन को कोई नुक़सान न हो.

इस मौसम  में हैवी फाउंडेशन लगाने से बचें. गर्मियों में पसीना बहुत आता है इसलिए लिक्विड या क्रीम बेस्ड फाउंडेशन का इस्तेमाल करने से बचें. इस मौसम में कम से कम मेकअप करने की कोशिश करें. गर्मियों में स्कीन की जरूरत के हिसाब से कॉम्पैक्ट लगाना चाहिए.

गर्मियों में हैवी आई मेकअप करने से बचें. यदि आई मेकअप करना ही चाहती हैं तो लाइट आई मेकअप करें. समर में आई मेकअप करते समय आईशैडो के लिए लाइट व न्यूट्रल शेड्स चुनें. इवनिंग पार्टी में आई मेकअप के लिए वॉर्म चॉकलेट, स्लेटी ग्रे या नेवी ब्लू शेड्स सिलेक्ट करें. यह आई मेकअप कूल लुक देता है.

गर्मियों में ब्लैक की बजाय सॉफ्ट ब्राउन का मस्कारा लगाएं. ट्रांस्पेरेंट मस्कारा भी प्रयोग किया जा सकता है. वॉटरप्रूफ आईलाइनर लगाएं. यह इधर उधर फैलता नही है. आई लैशेज का प्रयोग किया जा सकता है.

गर्मियों में लिप मेकअप में हैवी लिप मेकअप ना करे. लाइट मेकअप के लिए स़िर्फ लिप ग्लॉस ही काफ़ी है. समर में लिपस्टिक लगाते समय मैट की बजाय क्रीमी लिपस्टिक लगाएं. समर में लाइट कलर की लिपस्टिक लगाएं. पिंक, पीच जैसे लाइट शेड की लिपस्टिक गर्मियों में यंग और फ्रेश लुक देगी. इवनिंग पार्टी के लिए भी डार्क शेड की लिपस्टिक न लगाएं. यदि डार्क शेड लगाना ही चाहती हैं, तो ब्राइट पिंक, रेड, ऑरेंज, मोव आदि शेड्स ट्राई करें.

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गर्मियों में हैवी मेकअप करना ठीक नहीं इसलिए हो सके तो ब्लशर न लगाएं. यदि ब्लशर लगाना ही चाहती हैं, तो लाइट पिंक, पीच कलर का ब्लशर अप्लाई करें. समर में ऑयल बेस्ड ब्लशर लगाने से बचें.

गर्मियों में हेयर केयर के लिए बालों को जहां तक हो सके, बांधकर रखें. हर दूसरे या तीसरे दिन बाल धोएं, इससे आप फ्रेश महसूस करेंगी. तेज़ धूप से बालों की हिफ़ाजत करने के लिए घर से बाहर निकलते समय बालों को स्कार्फ से कवर करें.

गर्मियों में फ्रेश और क्लीन लुक  के लिए दिन में दो-तीन बार माइल्ड फेस वॉश से चेहरा धोएं. मेकअप से पहले चेहरे पर आइस रब करें. आइस रब करने से मेकअप ज़्यादा देर तक टिका रहता है. गर्मियों में पास ब्लॉटिंग पेपर ज़रूर रखें, ताकि जब भी ज़रूरत हो, इससे स्किन से एक्स्ट्रा ऑयल हटा सकती हैं.

बहुत काम के हैं ये 7 किचन टिप्स

कुकिंग आने के साथसाथ किचन को व्यवस्थित रखना भी बेहद जरूरी है. अव्यवस्थित किचन न सिर्फ खाने का स्वाद खराब करती है, बल्कि खाना बनाने वाले और खाने वाले की सेहत को भी खराब कर सकती है. ऐसा आप के साथ न हो, इस के लिए पेश हैं कुछ टिप्स.

1. शैफ चाकू का करें इस्तेमाल

चाकू के बिना किचन में काम करने के बारे में सोचा भी नहीं जा सकता है, इसलिए 7 चाकुओं वाले किसी सस्ते पैक को खरीदने के बजाय एक अच्छे स्टोर से ₹300 से ₹700 की कीमत वाला एक अच्छा शैफ नाइफ खरीदें. साल में 1 बार किसी प्रोफैशनल से उस में धार जरूर लगवाएं. भूल से भी उसे डिशवाशर या ऐल्यूमीनियम के स्क्रब से साफ न करें. हमेशा स्पंज से हलके से साफ करें.

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2. कैसे करें मीट को साफ

जैसे हम सब्जियों और फलों को साफ करते हैं उसी तरह शैफ मीट को भी साफ करने की सलाह देते हैं. मीट में किसी तरह के कीटनाशक या फर्टिलाइजर का इस्तेमाल नहीं किया जाता है, पर उसे काटने के तरीके से कई बार वह गंदा हो जाता है. अत: उसे धो कर पकाएं. धोने के बाद भी उस का वही स्वाद बरकरार रहता है.

3. सिंगल यूज वाले बरतन न लें

किचन का व्यवस्थित होना बहुत जरूरी है. ज्यादा भरी किचन अच्छी नहीं लगती है. इस परेशानी से बचने के लिए ऐसे बरतन खरीदें, जिन का कई चीजें बनाने के लिए प्रयोग किया

जा सके. अपने अनुभव और रचनात्मकता के साथ कुछ समय बाद बड़े और बेहतर बरतन  खरीद सकती हैं. कोशिश करें कि हर बरतन का इस्तेमाल कम से कम 3 चीजों के लिए हो रहा हो.

4. व्यवस्थित रखें सामान

किचन संभाल रही हैं तो इस बात को समझें कि पत्तागोभी, टमाटर, ब्रोकली हर सब्जी को स्टोर करने का तरीका अलग होता है. यह पता कर लें कि किन चीजों को फ्रिज में रखा जा सकता है और किन्हें नहीं. मसालों को स्टोर करने का तरीका भी अलगअलग होता है. इन सब बातों को जाननेसमझने के लिए 1 घंटे का समय इंटरनैट रिसर्च के लिए तय करें ताकि आप का सामान खराब होने से बच सके और लंबे समय तक चले.

5. ताजा हों हर्ब्स

किसी भी डिश का स्वाद ताजा हर्ब्स के बिना अधूरा सा लगता है. उन के इस्तेमाल से खाना ताजा और स्वादिष्ठ बनता है. हर्ब्स के साथ सब से बड़ी परेशानी होती है कि खाने में उन की मात्रा जरा सी डलती है पर उन्हें खरीदना ज्यादा मात्रा में पड़ता है. रोजमैरी, बे लीव्स और थाइम जैसे हर्ब्स को अगर ड्राई पेपर टौवेल में लपेट कर फ्रीजर में रखेंगी तो ये 7 दिनों तक ताजा रहेंगे. फ्रीजर में ताजा नीबू भी रख सकती हैं. खाने के स्वाद को थोड़ा बदलने के लिए डिश में नीबू का रस मिला सकती हैं.

6. अहम है मौसमी सामग्री

अपने खाने को अधिक स्वादिष्ठ बनाने का सब से अच्छा तरीका यह है कि उस में मौसमी सामग्री का इस्तेमाल किया जाए. उदाहरण के तौर पर ऐस्पैरेगस एक सीमित समय तक के लिए ही उपलब्ध होता है. अत: उस के पीक सीजन में उस का भरपूर इस्तेमाल कर लें.

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7. व्यवस्थित रहें

घर में खाना बना रही हों या किसी प्रोफैशनल जगह पर, एक कुकिंग प्लान होना आवश्यक है. सभी मसालों, हर्ब्स और सब्जियों की निश्चित मात्रा को बाउल्स में निकाल लें. डिशेज का जिस और्डर में इस्तेमाल करना हो, उसी हिसाब से उन्हें किचन की सीट पर व्यवस्थित कर लें. यहां तक कि अपने सौसपैन को भी पहले ही स्टोव पर रख दें. सारा सामान और सामग्री व्यवस्थित होगी तो खाना बनाना आसान हो जाएगा.

लॉकडाउन में मिली छूट के बाद बाहर जाते समय किन बातों का रखें विशेष ध्यान

 लंबे समय तक पूरी तरह से बंदी के बाद अब शर्तों के साथ बाहर निकलने और काम करने की छूट दी जा रही है. वायरस के संक्रमण के चलते और लंबे समय से घर पर रहने के बाद अब हमारे शरीर, मन और मस्तिष्क को ज्यादा अलर्ट रहने की जरूरत है. संक्रमण के वजह से बहुत ज्यादा समय तक घर पर रहना संभव नहीं है तो बाहर जाते समय कुछ बातों का विशेष ध्यान रखें –

1- पहला काम हमें खुद को साफ – सुथरा और संक्रमण रहित रहना है. इसके लिए ऑफिस में माइल्ड सोप या लिक्विड और सेनिटाइजर को जरूर रखना है. बार बार हाथ धोना है तो हाथों की नमी बरकरार रखने के लिए माइल्ड सोप/लिक्विड ही ले. जहां संभव हो वहाँ हाथ ही धो ले और बाकी समय पर सेनिटाइजर इस्तेमाल करें.

2- हाथों को धोना और सेनिटाइजर का इस्तेमाल लंबे समय तक करना है तो ये जरूर ध्यान रखना पड़ेगा कि इसका इस्तेमाल जरूरत से ज्यादा नहीं करना हैं. इस समय सेनिटाइजर/डिस्फंक्शन बनाने वाली कंपनियां अपने लुभावने  प्रचार में दिखा रही है कि हर एक वस्तु को/खाने के पैकेट पर भी disinfect इस्तेमाल करें जो कि गलत हैं. खाने के किसी भी पैकेट पर कभी भी सेनिटाइजर या डिसइन्फेक्ट नहीं डालना है. इसमें मौजूद केमिकल आपको नुकसान पहुंचा सकते हैं स्किन और साँस संबंधी या अन्य दिक्कत हो सकती है. बे‍हतर होगा कि खाने की सभी चीज़े घर से लेकर जाए और अगर ऑफिस में मंगा रहे हैं तो खाने से दो तीन घंटे पहले मंगा ले और उसको खुला छोड़ दे.. Virus की existence केवल प्लास्टिक और मेटल पर ही चार पांच घंटे और विशेष परिस्थितियों में ही 24 घंटे या ज्यादा की होती है. प्लास्टिक पैक को ठीक से हटाकर हाथ धुल ले.

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3- खाने के बाद थोड़ा गर्म पानी जरूर पिये और इसका इंतज़ाम ऑफिस में ही करवा ले. कहीं गर्म पानी पीने से वायरस के खत्म होने की बात हो रही है तो कुछ इसे झुठला रहे हैं. आप इस चर्चा को किनारे रखते हुए केवल इतना ध्यान रखें कि जल्दी जल्दी बदलते हुए मौसम में सर्दी – जुकाम की समस्या होना आम बात है और गर्म पानी हमें ऐसी समस्याओं से दूर रखता है बस. हाँ लेकिन सर्दी जुकाम जैसा कुछ लग रहा है तो तुरंत डॉक्टरी सलाह ले और ठीक होने पर ही ऑफिस जाए. ये ध्यान रखना हैं कि हर सर्दी जुकाम कोरोना नहीं हो सकता है लेकिन होने की संभावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता है तो बचाव और एतिहात बहुत जरूरी है.

4- गर्मी ज्यादा हो रही है तो कई बार अपना फेस को धुलने का मन  करता है तो पानी उपलब्ध होने पर जरूर धुले लेकिन चेहरा धुलने से पहले हाथों को अच्छे से धुल ले.

5- मास्क का प्रयोग अब अनिवार्य हो गया है तो सबको लगाना ही है. गर्मी ज्यादा है तो सुविधाजनक और breathing में दिक्कत न करने वाले मास्क का चुनाव करें. अगर आपका हर बार किसी नए व्यक्ति से बात करना है तो ऐसे में सर्जिकल मास्क या N95 का ही चुनाव करें. सर्जिकल इस्तेमाल कर रहे हैं तो एक बार ही इस्तेमाल करना है और उसके बाद उसे डस्टबिन में ही डालना है.. खुले में नहीं और डस्टबिन भी घर या ऑफिस के बाहर ही रखा होना चाहिए.

N95 है तो उसे धुल कर दोबारा इस्तेमाल हो सकता है.

6- ऑफिस में काम करते समय, और ब्रेक टाइम में एक दूसरे से बातें भरपूर करें लेकिन थोड़ी दूरी बनाकर.. इतने लंबे समय तक घर में बंद रहने के कारण तनाव जैसी समस्या भी दिख रही है तो एक दूसरे का हालचाल पूछते रहे, सुनते /सुनाते रहे बस थोड़ी दूरी रखकर. रिश्तों और दोस्ती में गर्माहट बिल्कुल न कम होने दे और जरूरत पर एक दूसरे की मदद करें. ऑफिस बॉय और बाकी लोगों से जरूर पूछे खैरियत.

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7- स्मोकिंग से पूरी तरह से बचे क्यू कि इसके लिए आपको बार बार मास्क हटाना पड़ेगा और हाथ मुंह पर लगाना होगा. पब्लिक ट्रांसपोर्ट इस्तेमाल करने के बाद या कोई भी वस्तु को छूने के बाद हाथों को सैनिटाइज कर ले. रास्ते में मोबाइल फोन को पॉकेट में ही रखे और ऑफिस पहुंचने पर हाथ साफ करके ही मोबाइल टच करें. घर पहुंचने पर सबसे पहले मोबाइल, चाभी, पर्स को अच्छे से सैनिटाइज कर ले.

घर पहुचते ही कपड़े भिगो दे और सर से नहा का ही कहीं बैठे, अगर घर में बच्चे हैं तो घर लौटते ही सबसे पूरी तरह से सेनिटाइज होकर ही कुछ करें.

ध्यान दे, सुरक्षित रहे, स्वस्थ्य रहे यहीं आसान तरीका है Covid 19 के संक्रमण से बचने का.

#lockdown: प्रवासी मजदूरों पर कैमिकल कहर भी

कहर पर कहर. कहर दर कहर. कोरोना कहर, गरीबी कहर, मजदूरी कहर, मजबूरी कहर, बेरोजगारी कहर, पलायन कहर और अब तो घरवापसी भी एक कहर सा है. ये सारे कहर प्रवासी मजदूर परिवारों पर टूट पड़े हैं.

पेट के लिए रोटी, तन के लिए कपड़ा और रहने के लिए मकान बनवाने के सपने को पूरा करने के लिए अतिगरीब ग्रामीण अपनी झोंपड़ी से निकल बड़े शहरों को पलायन करते रहे हैं. रोटी, कपड़ा और मकान के उनके सपने किसी हद तक पूरे होते भी रहे हैं और वे सकुशल, सुरक्षित व प्रेमभाव के साथ घरवापसी करते रहे हैं.

समय की मार झेलनेसहने वाले इस तबके पर अब एक असहनीय कहर ढाया गया है जो जारी भी है. और वह कहर है – लौकडाउन. देशभर में प्रवासी मजदूर महानगरों से अपने घरों तक पहुंचना चाहते हैं क्योंकि लौकडाउन के कारण महानगरों में उनका जिंदा रहना मुश्किल हो गया है.

देशव्यापी लौकडाउन वैसे तो पूरे देशवासियों के लिए एक कहर सा है लेकिन गरीब तबके, विशेषकर प्रवासी मजदूरों, के लिए तो यह कहरपरकहर जैसा है. इस दौरान उन्हें हर तरफ से व हर तरह से घोर प्रताड़ना का शिकार बनाया जा रहा है.

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इस संबंध में सभी को काफीकुछ मालूम है. ताजा कहर का जिक्र करते हैं. राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली
के लाजपत नगर में कोरोना की मैडिकल स्क्रीनिंग के लिए अपनी बारी के इंतजार में खड़े प्रवासी मजदूरों पर दक्षिण दिल्ली नगर निगम के कर्मचारी ने इन्फ़ैक्शन से बचाने वाले कैमिकल यानी जीवाणुनाशक का छिड़काव कर दिया. इन प्रवासी मजदूरों को श्रमिक स्पैशल ट्रेनों से अपने गांवघर को वापस जाना था. ट्रेन पर चढ़ने से पहले यह स्क्रीनिंग कराना नियमानुसार आवश्यक है.

सोशल मीडिया के इस युग में इस घटना का वीडियो वायरल हो गया. श्रमिक स्पैशल ट्रेन पकड़ने के लिए मैडिकल स्क्रीनिंग टैस्ट करवाने के लिए प्रवासी मजदूर लाइन में खड़े थे कि तभी दक्षिणी दिल्ली नगर निगम के कर्मचारी टैंकर के साथ वहां पहुंचे और उन पर जीवाणुनाशक कैमिकल का छिड़काव कर दिया. टैंकर में 4 कर्मचारी थे.

निगम कर्मियों ने यह भी नहीं देखा कि वहां कई बूढ़े, महिलाएं व बच्चे भी हैं. यह घटना दिल्ली के पौश इलाके लाजपत नगर के हेमू कलानी सीनियर सैकंडरी स्कूल के बाहर घटी.

दिल्ली के एक इंग्लिश डेली की रिपोर्ट के मुताबिक, भाजपाशासित नगर निगम के 4 कर्मचारियों में से एक कर्मचारी स्कूल के आगे की सड़क को संक्रमणमुक्त करने के लिए छिड़काव कर रहा था, तभी उसने जीवाणुनाशक कैमिकल का पाइप मजदूरों की ओर मोड़ दिया.

इस दौरान दूसरा कर्मचारी उसे ऐसा करने को कह रहा था कि पाइप से सीधे उन्हीं प्रवासियों पर जीवाणुनाशक डालो. कैमिकल पड़ते ही कई मजदूर खांसने लगे और वहां से भागने लगे.

कुछ लोगों ने भागकर स्टील के पिलर के पीछे बच्चों और महिलाओं को बचाया, कुछ ने अपने को अपने बैग या किसी सामान से ढका.

प्रवासियों ने बताया कि वे लोग वहां पिछले 48 घंटों से इंतजार कर रहे हैं ताकि बिहार और यूपी जाने के लिए ट्रेन में एक सीट हासिल कर सकें. बाटला हाउस से पैदल चलकर पहुंचे तौफीक (30 साल) नाम के एक प्रवासी का कहना था, “हमें बिहार के समस्तीपुर जाना है. हमने पहले चिलचिलाती धूप सही, पुलिस का भेदभावपूर्ण रवैया झेला और अब कैमिकल.

“अब हम पर कोई फर्क नहीं पड़ता, हमें घर जाना है. लेकिन हमें यह मालूम भी नहीं कि हमारी ट्रेन निर्धारित समय पर है भी या नहीं. मैं यहां कल रात से ही इंतजार कर रहा हूं. आगे और इंतजार करने को तैयार हूं ताकि किसी तरह मुझे ट्रेन में सीट मिल सके.”

इस घटना का वीडियो सामने आने के बाद दक्षिणी दिल्ली नगर निगम ने अपने कर्मचारी के बचाव में सफाई दी है कि ऐसा ग़लती से हुआ क्योंकि कर्मचारी मशीन से पाइप पर लगने वाले प्रैशर को नहीं संभाल सका और इस वजह से पाइप ग़लत दिशा में मुड़ गया. नगर निगम के अधिकारियों ने इसके लिए प्रवासियों से माफ़ी भी मांगी है.

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मालूम हो कि इससे पहले मार्च में उत्तर प्रदेश के बरेली से ऐसा ही एक वीडियो सामने आया था जिसमें घर लौट रहे प्रवासी मजदूरों को एक जगह बैठाकर उन पर जीवाणुनाशक कैमिकल का छिड़काव किया गया था. इसका वीडियो सामने आने पर लोगों ने उत्तर प्रदेश सरकार को जमकर घेरा था.

इन 8 टिप्स को फौलो कर आप भी बन सकती हैं सफल गृहिणी

एक साथ कई काम करने के चक्कर में आप अवसाद से न घिरे इसलिए इन बातों को जिंदगी में जरूर अपनाइए:

1. प्रतिक्रिया दें:

जो कुछ भी आप के चारों ओर घट रहा है, उस के प्रति अपनी प्रतिक्रिया अवश्य व्यक्त करें. सब कुछ चुपचाप रोबोट की तरह न स्वीकारें. परिवर्तन की प्रक्रिया से उत्पन्न अपनी भावनाओं को स्वीकार करें. याद रखें, आप की भावनाओं को आप से बेहतर और कोई नहीं जान सकता. क्षमता से अधिक काम न करें: घर हो या दफ्तर, अच्छा बनने के चक्कर में न पड़ें. याद रखें, यदि आप अपनी क्षमता से बढ़ कर काम करेंगी तो आप को कोई मैडल तो मिलेगा नहीं, बल्कि लोगों की अपेक्षाएं और बढ़ जाएंगी. दूसरे-गलतियों का खामियाजा भी भुगतना पड़ेगा. आज का जमाना टीम वर्क का है. इस से दूसरे के बारे में जानने या समझने में तो मदद मिलती ही है, थकान व तनाव से भी राहत मिलती है. घर के काम में भी घर वालों की मदद लें.

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2. पौजिटिव सोच:

गलतियों के लिए आप जिम्मेदार हैं, इस भावना को दिल से निकाल दें. इसी तरह दफ्तर में कोई प्रोजैक्ट हाथ से निकल गया हो, तो ‘‘यह काम तो मैं कर ही नहीं सकती’’ या ‘‘मैं इस काम के लायक ही नहीं हूं’’ जैसे नकारात्मक विचार दिमाग में न आने दें.

3. बनिए निडर:

कई बार मातापिता से मिले व्यवहार की जड़ें इतनी गहरी हो जाती हैं कि वयस्क होने पर भी उन से छुटकारा पाना मुश्किल हो जाता है. कुछ महिलाएं असंतुष्ट रिश्तों को सारी उम्र इसलिए बनाए रखती है, क्योंकि वे डरती हैं कि इन रिश्तों को तोड़ने से समाज में बदनामी होगी. लेकिन सच तो यह है कि आज के इस मशीनी युग में लोगों को इतनी फुरसत ही कहां है, जो दूसरों के बारे में सोचें. सभी अपनी दुनिया में जी रही हैं. इसी तरह यदि दफ्तर में भी अपने बौस से तालमेल न बैठा पा रही हों, तो तबादला दूसरे विभाग में करा लें.

4. कुदरत से जुड़ें:

सुबह सूर्योदय से पहले उठें तथा घूमने जाएं. घूमने के लिए वे स्थान चुनें जहां हरियाली हो. नदी, तालाब, झरने, समुद्र, बागबगीचों में घूमने से मनमस्तिष्क को राहत महसूस होगी.

5. समाधान ढूंढ़ें:

कितनी भी परेशानी हो उसे सहजता से लें. हड़बड़ी से परेशानी और बढ़ जाती है. धैर्य रख कर प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करें. उन पहलुओं पर विचार करें, जिन से आप की समस्या का समाधान मिल सकता है.

6. दिनचर्या बदलें:

रोजरोज आप एक ही काम कर के थक गई हैं, औफिस में भी बोरियत महसूस कर रही हैं, तो कुछ दिन बाहर घूमने जाएं या परिवार समेत पिकनिक पर जाएं. स्पा लें, पार्लर जाएं. कभीकभी छोटा सा ‘गैटटुगैदर’ भी मन को राहत देता है.

7. अच्छी श्रोता बनें:

यदि आप दूसरों की बात से सहमत नहीं हैं, तो भी बिना निर्णय लिए दूसरों की बात सुनें. वह क्या कह रहा है, उसे समझने की कोशिश करें और उसे एहसास दिलाएं कि आप उस की बात ध्यान से सुन रही हैं.

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8. फिट रहें:

स्वास्थ्य संबंधी किसी भी समस्या को नजरअंदाज न करें. अपना रूटीन चेकअप करते रहने से आप कई समस्याओं से बची रहेंगी. अंत में सारे काम किए जा सकते हैं, लेकिन सारे काम एक बार में नहीं किए जा सकते. स्त्री परिवार की केंद्र भी है और परिधि भी. उसे मां, पत्नी और वर्किंग वूमन बनने की जरूरत है, सुपर वूमन बनने की नहीं.

लॉकडाउन के बाद Yeh Rishta में आएंगे नए ट्विस्ट, नायरा और कार्तिक की जिंदगी में होगी नई एंट्री

कोरोनावायरस लॉकडाउन के कारण सीरियल्स की शूटिंग बंद है तो वहीं फैंस शो के सितारों से दोबारा शूटिंग की मांग कर रहे हैं. हाल ही में टीवी प्रौड्यूसर्स ने सीएम उद्धव ठाकरे से शूटिंग शुरू करने की इजाजत मांगी थी, जिसके बाद कयास लगाए जा रहे हैं कि शूटिंग जल्द शुरू होगी. इसी बीच फैंस के लिए शो में आने वाले ट्विस्ट के भी खुलासे हो रहे हैं. स्टार प्लस के पौपुलर शो ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ (Yeh Rishta Kya Kehlata Hai) में भी मेकर्स ने नए ट्विस्ट के साथ नई एंट्री की तैयारी कर ली है. आइए आपको बताते हैं क्या होगा शो में आने वाला नया ट्विस्ट….

कीर्ति की होगी वापसी

शिवांगी जोशी और मोहसिन खान स्टारर सुपरहिट सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ में जल्द ही नई हसीना की एंट्री होगी. ये नई हसीना कीर्ति के रोल में नजर आएंगी.  बता दें, कीर्ति के रोल में नजर आने वाली मोहेना कुमारी सिंह ने बीते साल शादी से पहले शो को अलविदा कह दिया था, जिसके बाद मेकर्स नए चेहरे की तलाश कर रहे थे.

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बेटी से मिलेंगे नायरा-कार्तिक

 

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मोहसिन खान (Mohsin Khan) और शिवांगी जोशी (Shivangi Joshi) स्टारर ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ (Yeh Rishta Kya Kehlata Hai) टेलीविजन जगत के मशहूर शोज में से एक है. लॉकडाउन से पहले सीरियल में दिखाया गया था कि कार्तिक और नायरा को पता चल गया है कि उनकी बेटी कायरा जिंदा है. ऐसे में दोनों ने अपनी बेटी को पाने के लिए हरसंभव कोशिश करते हुए नजर आए थे. वहीं लॉकडाउन के बाद औडियंस देखेंगे कि नायरा और कार्तिक अपनी बेटी से मिल जाएंगे और इस तरह से गोयनका परिवार में एक बार फिर से खुशियां दस्तक दे देंगी.

आदित्य का सच आएगा सामने

 

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Newspaper ka shot with our Shaikh saaheb @shehzadss

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बेटी के मिलते ही नायरा-कार्तिक को पता चलेगा कि आदित्य ही वो शख्स है जिसके चलते वह अपनी बेटी से दूर हो गए थे. ऐसे में जब नायरा और कार्तिक कायरा को घर ले आएंगे तो आदित्य का खून खौल जाएगा. आदित्य एक बार फिर से नायरा और कार्तिक की जिंदगी में तबाही लाने के लिए नए-नए प्लान बनाना शुरु कर देगा.

बता दें, हाल ही में शिवांगी के बर्थडे के दिन उनके दादा जी का निधन हो गया था, जिसके बाद वह सदमें में हैं. वहीं मोहसिन की बात करें तो वह फैंस के लिए लगातार फोटोज और वीडियो पोस्ट कर रहे हैं. वहीं फैंस दोनों से सवाल कर रहे हैं कि वह दोबारा कब साथ नजर आएंगे.

लॉकडाउन के चलते ‘Naagin 4’ से कटा Rashami Desai का पत्ता! पढ़ें पूरी खबर

कोरोनावायरस लॉकडाउन में धीरे-धीरे जहां छूट मिल रही है. वहीं कईं लोगों की नौकरी जाने का खतरा भी मंडरा रहा है. आम आदमी ही नहीं बड़े-बड़े सितारों पर भी इसकी मार पड़ रही है. हाल ही में खबर है एकता कपूर के सुचरनैचुरल शो नागिन 4 से एक्ट्रेस रश्मि देसाई (Rashami Desai) का पत्ता कटने वाला है. आइ आपको बताते हैं क्या है पूरा मामला…

मेकर्स ने लिया ये फैसला

‘नागिन 4’ में शलाका के रोल में नजर आने वाली रश्मि देसाई (Rashami Desai) के सीरियल से निकाले जाने पर उनके फैंस को काफी दुख होने वाली है. रिपोर्ट्स की मानें तो कुछ समय पहले ही चैनल ने ‘नागिन 4’ के स्टारर्स के साथ मीटिंग की थी. इस मीटिंग में यह फैसला लिया गया है कि लॉकडाउन के बाद होने वाली शूटिंग में अब रश्मि देसाई (Rashami Desai)नहीं नजर आएंगी. शो के मेकर्स अब ‘नागिन 4’ के बजट को कम करना चाहते हैं. कोरोना वायरस लॉकडाउन की वजह से हो रहे नुकसान को झेलने के लिए ‘नागिन 4’ के मेकर्स ने यह बड़ा कदम उठाया है.

 

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सीरियल बंद होने का खतरा मंडरा रह है स्टार्स पर

रश्मि देसाई (Rashami Desai) ‘नागिन 4’ में काम करने के लिए मोटी रकम लेती हैं. मेकर्स लॉकडाउन के बाद रश्मि देसाई पर इतना खर्चा करने के लिए तैयार नहीं हैं. ऐसे में रश्मि देसाई को ‘नागिन 4’ से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है. साथ ही यह भी कहा जा रहा है कि ‘नागिन 4’ के लीड एक्टर निया शर्मा और विजेंद्र कुमेरिया को भी निकाला जा सकता है और अगर ऐसा हुआ तो दूसरे सीरियल्स की तरह इस सीरियल के भी बंद होने के आसार है. लेकिन अब तक इन दोनों सितारों पर मेकर्स ने कोई फैसला नहीं लिया है लेकिन हो सकता है कि जल्द ही इन दोनों को भी शो से बाहर कर दिया जाए.

 

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बता दें, हाल ही में एकता कपूर और दूसरे सीरियल्स की निर्माताओं ने शूटिंग शूरू करने के लिए सीएम उद्धव ठाकरे से मीटिंग की थी, जिसकी जानकारी एकता कपूर ने सोशल मीडिया के जरिए दी है. मीटिंग की फोटोज शेयर करते हुए एकता कपूर ने लिखा कि, ‘हमने सीएम को बताया कि नए एपिसोड्स की कमी के चलते दर्शक पुराने शोज देख रहे हैं. हम सभी लोगों ने सीएम से अपील की है कि जल्द ही इस समस्या का समाधान किया जाए. अगर सरकार शूटिंग शुरु करने की इजाजत दे देती है तो हम सेट पर हर तरह की सावधानी बरतेंगे. इस मुद्दे की गंभीरता को देखते हुए हम जल्द ही एक टीम का गठन करेंगे.’

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लॉकडाउन में इसे बनाना आसान नहीं था – श्रेया धन्वन्तरी

हिंदी फिल्म व्हाई चीट इंडिया में डेब्यू करने वाली अभिनेत्री श्रेया धन्वन्तरी दिल्ली की है. हिंदी के अलावा उसने तेलगू फिल्मों में भी अभिनय किया है.साल 2008 में मिस इंडिया रनर अप बनने के बाद उसने पहले मॉडलिंग शुरू की और बाद में फिल्मों और शोर्ट फिल्मों में काम करने लगी.

इनदिनों लॉक डाउन की वजह से श्रेया मुंबई में घर पर है और खुद लिखी कहानी ए वायरल वेडिंग की छोटी वेब सीरीज बनायीं, जो 8 एपिसोड में ख़त्म हो जाती है. इसकी एक एपिसोड की अवधि 8 मिनट से कम है, जिसे श्रेया ने लॉक डाउन के बाद बनायीं और रिलीज की है. ये पहली ऐसी वेब सीरीज है, जो लॉक डाउन के बाद बनायीं गयी है. अपनी इस कामयाबी से वह बेहद खुश है और आगे भी ऐसी कई कहानियां कहने की इच्छा रखती है. इस लॉक डाउन में कैसे उन्होंने काम को अंजाम दिया आइये जानते है उन्ही से.

सवाल-इस किस तरह की वेब सीरीज है?

यह एक अलग तरीके से लॉक डाउन के दौरान बनायीं गयी वेब सीरीज है. इसमें काम करने वाले कलाकार कभी किसी से मिले नहीं है. सबने घर पर रहकर शूट किया है. एडिटिंग से लेकर म्यूजिक सब कुछ मोबाइल पर हुआ है. सभी लोग अलग-अलग राज्यों के अलग-अलग शहरों में रहते हुए काम किया है.

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सवाल-इसका ख्याल आपको कैसे आया?

मैं निर्माता निर्देशक राज एंड डीके के साथ एक दिन बात कर रही थी. उन्होंने ही घर पर बैठकर कुछ करने की सलाह दी. मुझे अच्छा लगा और मैंने इस पर सोचना शुरू किया, कहानी लिखी और पूरी वेब सीरीज बनायीं. ये पहली ऐसी वेब सीरीज है, जिसे लॉक डाउन के समय बनाया गया है.

सवाल-ये वेब सीरीज क्या कहना चाहती है?

ये एक सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर के बारें में है, जिसकी शादी लॉक डाउन की वजह से प्रधान मंत्री ने कैंसिल करवा दी. ये एक जर्नी है, जिसमें शादी होगी या नहीं, कैसे होगी, आदि कई बातों पर प्रकाश डालती है. जब मैंने इस सीरीज को बनाकार एडिटिंग करवाने लगी, तो पता चला कि कई अलग-अलग तरीके से ऑनलाइन शादियाँ रियल में भी हो रही है, जो मुझे अच्छा लगा. जब मैंने लिखा तो पता नहीं चला था कि ऑनलाइन शादियाँ भी हो सकती है.  मुझे अच्छा लगा कि मेरा आईडिया असल जिंदगी में भी संभव हो सकता है.

सवाल-इसे बनाने में क्या-क्या कठिनाई आई ? क्या किसी प्रकार की वित्तीय समस्या हुई ?

मेरा पूरा कास्ट पूरी तरह से हेल्पफुल था. सबको इसे शूट करने की बारीकियां बतायीं गयी, जिसमें उनके लुक, एंगल, ड्रेस आदि सभी को समझाया गया. इससे शूटिंग करने में कोई समस्या नहीं आई. सबने आपने-अपने घरों में शूट किया. मैं अकेली घर में हूं, पर बाकी लोग अपने परिवार या दोस्तों के साथ रहते है. सभी को एक दूसरे का हेल्प मिला और मैं इधर वाट्स एप पर देखकर सुधार करती जाती थी. सभी को इन्टरनेट पर निर्भर रहना पड़ा. कई बार बिजली चली जाती थी, रुकना पड़ता था, लेकिन इस शो के जरिये मैं नए-नए लोगों से मिली हूं.

इसके अलावा बहुत समय और मेहनत लगी है. शूटिंग केवल 10 दिन में ख़त्म हो गया . पोस्ट प्रोडक्शन में 20 दिन लगे, क्योंकि कई लोग ओड़िसा और कर्नाटक में अभी रह रहे है. वित्तीय रूप से भी अधिक समस्या नहीं आई, क्योंकि इस तरीके की ये पहली सीरीज है, जिसे आज तक किसी ने किया नहीं, इसलिए इरोज की रिद्धिमा लुल्ला ने अपनी रूचि दिखाई और ये सीरीज बन गयी.

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सवाल-क्या आगे भी आपको लगता है कि ऐसे ही काम इंडस्ट्री में हो सकेगा?

आगे बताना अभी संभव नहीं, क्योंकि जब लॉक डाउन की बात शुरू हुई थी, तो किसी को भी लगा नहीं था कि ये लॉक डाउन इतने दिनों तक चलेगा. ये सही है कि थिएटर खुलने में समय लगेगा. ओटीटी में भी समय और नए कंटेंट की जरुरत होगी, क्योंकि जो बना था, उसे लोग रिलीज कर रहे है. ये कैसे होगा अभी समझना मुश्किल है.

सवाल-आगे क्या मेसेज देना चाहती है?

मैं सबसे यही कहना चाहती हूं कि लोग अपने घरों में रहकर इस बीमारी को फैलने से रोके. जो दिशा निर्देश सरकार और हेल्थ वर्कर्स ने जारी किये है, उसे माने. इस बीमारी से अपने आप को और परिवार को बचाएं. तभी इस लॉक डाउन से सबको मुक्ति मिलेगी. साथ ही हेल्थ वर्कर्स के काम की सराहना करें, जो इस मुश्किल घड़ी में काम कर रहे है.

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