शुभारंभ: क्या राजा को उसकी जिम्मेदारियाँ समझा पाएगी रानी?

कलर्स के शो, ‘शुभारंभ’ में एक तरफ जहाँ धीरे-धीरे रानी और राजा एक दूसरे के करीब आ रहे हैं. दूसरी तरफ, राजा की माँ, आशा ने राजा-रानी को अलग करने का मन बना लिया है, जिसके पीछे हाथ है राजा की ताई जी, कीर्तिदा का. आइए आपको बताते हैं क्या होगा शो में आगे.

कीर्तिदा के प्लान का मोहरा बनी आशा

कीर्तिदा अब आशा के जरिए अपनी सारी साजिशों को अंजाम देने लग गई है. कीर्तिदा के ही कहने पर, आशा, रानी की माँ, वृंदा को फोन करके कहती है कि वह पड़ोस के मौहल्ले में काम करने से मना कर दे, जिसे वृंदा को बिना किसी सवाल के मानना पड़ता है. जिसके बाद, कीर्तिदा, आशा को ये भरोसा दिलाती है, कि वो बस उनके कहने के मुताबिक काम करती जाए, क्योंकि उसके पास राजा-रानी को अलग करने के लिए एक ठोस योजना है.

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राजा को ऐसे देखकर हैरान हुई रानी 

दुकान में महत्वपूर्ण मीटिंग के लिए साधारण कपड़ों में जा रहे राजा को रानी रोककर, सही कपड़ों का चुनाव करके देती है और मीटिंग सफलतापूर्वक करने की शुभकामना भी देती है. इसी सुझाव से राजा को कपल कौम्बिनेशन का आइडिया आता है, जो राजा के ताऊ, गुणवंत को बहुत पसंद आता है. इसके बाद रानी, राजा की दुकान पर जाती है और देखती है कि राजा ग्राहकों को नाश्ता परोस रहा है, जबकि राजा के भाई, हितांक और गुणवंत बिजनेस के मुख्य कार्य संभाल रहे हैं. वहीं राजा को ऐसे देखकर रानी को बहुत बुरा लगता है.

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रानी की कशमकश

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राजा को दुकान में देख कर, रानी एक कशमकश में घिर जाती है कि आखिर वो इस बारे में राजा से बात करे या नहीं. इसी बीच, घर लौटते वक्त वह, वृंदा से मिलती है और अपनी मन की बात बताती है. लेकिन वृंदा उसे ये आश्वासन देती है कि इसमें चिंता की कोई बात नहीं है. वहाँ घर पहुंचने के बाद, राजा आइडिया के लिए उसका शुक्रिया अदा करता है.

रानी के मन में चल रही है हलचल

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राजा का आइडिया होने के बावजूद, दुकान में राजा को नाश्ते की जिम्मेदारी लेते देख, रानी बहुत बेचैन हो जाती है. आज के एपिसोड में आप देखेंगे कि रानी दोबारा दुकान जाएगी और देखेगी कि राजा बच्चों को संभालने का काम कर रहा है, जबकि हितांक ग्राहकों को संभालने का महत्वपूर्ण काम कर रहा है, जिसे देखकर वो निराश हो जाएगी.

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अब देखना ये है कि क्या रानी, राजा को अपनी परेशानी का कारण समझा पाएगी? क्या रानी के इस कदम से राजा के जीवन में कोई बदलाव आएगा? जानने के लिए देखते रहिए शुभारंभ, सोमवार से शुक्रवार रात 9 बजे, सिर्फ कलर्स पर.

कम करना है वजन तो खाएं ये पांच चीजें

बढ़ते हुए वजन से अक्सर लोग परेशान रहते हैं. यही कारण है कि अपने वजन को समान्य करने  के लिए वो तरह तरह के उपाय करते रहते हैं. जैसे डाइटिंग और जिम. हालत से होती है कि लाख कोशिशों के बाद भी उनकी सेहत पर कुछ खास असर नहीं होता है और वो अवसादग्रस्त हो जाते हैं.

वजन कम करने के लिए लोग डाइटिंग करते हैं पर इससे कोई खास फायदा नहीं होता. उल्टे वो कमजोर होते जाते हैं. खानापीना कम करने से सेहत पर भी खासा बुरा असर पड़ता है. वजन कम करने के लिए जरूरी है कि आपकी डाइट काफी बैलेंस्ड हो. जिससे आपका वजन भी कंट्रोल में रहे और आपको जरूरी उर्जा भी मिलती रहे.

इस खबर में हम आपको ऐसी डाइट के बारे में बताएंगे जिससे आपको जरूरी उर्जा भी मिलेगी और आपका वजन भी काबू में होता. तो आइए जाने कि क्या खाना आपकी सेहत के लिए अच्छा होगा.

1. वेजिटेबल और फ्रूट सैलड

जितना फैट हम बर्न करते हैं उससे ज्यादा कैलोरी कंज्यूम करते हैं जिसके कारण हमारा वजन बढ़ जाता है. हेल्दी रहने के लिए और वजन को कंट्रोल में रखने के लिए जरूरी है कि हम हरे साग, सब्जियों और फलों का सेवन करें. आपको बता दें कि हरे साग सब्जियों और फलों में पानी की मात्रा भरपूर होती है. इसके अलावा इनमें फाइबर भी प्रचूर मात्रा में पाई जाती है. इनका सेवन करने से वजन नहीं बढ़ता और सेहत भी अच्छी रहती है.

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2. फलियां

आपको बता दें कि फलियों में प्रोटीन की मात्रा काफी अधिक होती है. फाइबर का भी ये प्रमुख स्रोत है. मेटाबौलिज्म को मजबूत करने में इनका काफी अहम योगदान होता है. इनका सेवन करने से प्रोसेस्ड फूड की क्रेविंग नहीं होती, जिससे वजन काबू में रहता है.

3. नट्स

भरपूर मात्रा में एनर्जी, प्रोटीन और अनसैचूरेटेड फैट का स्रोत होते हैं नट्स. कई तरह की बीमारियों में हमें बचाने में ये काफी कारगर होते हैं. हालांकि जरूरी है कि इनका प्रयोग सीमित मात्रा में हो.

4. पानी

अगर आप वजन कम करना चाहती हैं तो जरूरी है कि आप खूब पानी पिएं. डीहाइड्रेटड मांसपेशियां वजन कम करने में सबसे बड़ी बाधा होती हैं. कम पानी पीने से शरीर के मेटाबौलिज्म पर काफी बुरा असर होता है. ज्यादा पानी पीने से भूख भी काबू में रहती है जिससे वजन नहीं बढ़ता है.

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5. अंडा

लोगों में ये धारणा आम है कि अंडा खाने से वजन बढ़ता है. पर हम आपको बता दें कि आपका सोचना गलत है. अंडे में प्रोटीन की मात्रा अधिक होती है, वहीं उसके पीले हिस्से में, जिसे जर्दी कहते हैं, प्रोटीन का प्रमुख स्रोत है. जानकारों की माने तो नाश्ते में अंडा खाना हमारी सेहत के लिए काफी लाभकारी होता है. इससे हमारे शरीर को जरूरी पोषण भी मिलता है और वजन भी कंट्रोल में रहता है. एक रिपोर्ट की माने तो जिन लोगों ने 5 दिनों तक ब्रेकफास्ट में अंडे खाए, उन लोगों का वजन दूसरे लोगों के मुकाबले 65 फीसदी ज्यादा कम हुआ.

16 साल के लड़के का रोल करने के लिए कार्तिक आर्यन ने घटाया इतना वजन

अपने किरदार में ढलने के लिए कलाकार क्या-क्या नहीं करते. वह हर तरह के चैलेंज लेने के लिए तैयार रहते हैं और अपने किरदार में फिट बैठने के लिए किसी भी हद तक जाना हो तो वह तैयार रहते हैं. एक ऐसे ही अभिनेता हैं कार्तिक आर्यन, जो अपने किरदार को परफेक्ट तरीके से निभाने में कोई कोताही नहीं कर रहे और खुद को अपनी हर फिल्म के लुक के अनुसार चैलेंज कर रहे हैं.

यही वजह है कि जब इम्तियाज़ ने उन्हें अपनी आने वाली फिल्म लव आजकल के लिए आठ किलो वजन घटाने को कहा तो वह फौरन तैयार हो गए और उन्होंने मेहनत में कोई कसर नहीं छोड़ी. दरअसल, लव आजकल में वह दो दौर के किरदार में हैं. तो ऐसे में उन्हें 90s के दौर के लुक में ढलने के लिए अपने मौजूदा वजन से कम वजन में दिखना था. इसीलिए वह फौरन तैयार हो गए.

फिल्म में वह रघु और वीर के किरदार में हैं. रघु का किरदार 90s से संबंध रखता है. वहीं वीर नए जमाने का है. ऐसे में दोनों किरदारों में पूरी तरह से भिन्नता दिखाने के लिए ही उन्हें इम्तियाज़ ने वजन कम करने को कहा. चूंकि रघु का किरदार स्कूल गोइंग बौय है, इसलिए उन्होंने अपने लुक को बदलने में कोई कसर नहीं छोड़ी. इस किरदार के लिए उन्होंने अपने सिग्नेचर अंदाज़ के हेयर स्टाइल को भी बदला, ताकि वह स्कूल किड लग सकें.

 

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90s hot kids be like ? Kartik minus 8kgs= #Raghu ????❌ #FiftyShadesOfRaghu ?? ? #CoolBoyz Squad Goals ? #School #LoveAajKal ❤️

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कार्तिक ने इस किरदार के लिए स्ट्रिक्ट डायट फौलो किया और लगभग आठ किलो वजन कम किया. कार्तिक ने आज ही लव आजकल के सेट की एक और तस्वीर साझा किया है, जिसमें वह अपने बाकी सह कलाकारों के साथ पोज स्कूल यूनिफौर्म में पोज देते नजर आ रहे हैं.


तस्वीर देख कर ऐसा लग रहा है कि कार्तिक अभी अभी हाई स्कूल से आए हो. तस्वीर में उनका ट्रांसफॉर्मेशन साफ रूप से नजर आ रहा है. उन्होंने उसे कैप्शन देते हुए लिखा हैं.

90s hot kids be like. Kartik minus 8kgs = Raghu. #FiftyShadesOfRaghu #CoolBoyz Squad Goals. #School #LoveAajKal.’ Now that’s truly commendable for the young actor to go an extra mile for his role.

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वाकई कार्तिक अपने हर किरदार के साथ न्याय करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं. वह हर बार कुछ चैलेंजिंग करने की कोशिश में जुटे हुए हैं. बताते चलें कि कार्तिक के दोनों ही लुक की खूब तारीफ ही रही है. फिल्म के ट्रेलर को दर्शकों ने हरी झंडी दिखाई है और कार्तिक पर सभी बेशुमार प्यार लुटा रहे हैं.

जाहिर सी बात है कि इस बार इम्तियाज़ जो कि रोमांटिक फिल्में बनाने में माहिर माने जाते हैं और उनके साथ कार्तिक जो कि इन दिनों सबके चहेते रोमांटिक हीरो हैं. ऐसे में जब दोनों पहली बार साथ आ रहे हैं, तो दर्शकों की उत्सुकता और अधिक बढ़ी हुई है. सारा अली खान और नई डेब्यू कलाकार आरुषि के साथ कार्तिक जंच रहे हैं. कार्तिक के फैन्स को फिल्म की रिलीज का इंतजार है.

ट्रैवलिंग से पहले ऐसे करें फुटवियर्स की पैकिंग

ट्रिप के लिए सही फुटवियर को चुनना जितना जरूरी है उतनी ही जरूरी है उसकी पैकिंग करना भी. आपके बहुत सारे मैचिंग फुटवियर्स की पैकिंग करना सिर्फ और सिर्फ बैग का वजन बढ़ाना है और कई बार तो इनमें से कुछ को पहनने का मौका भी नहीं मिल पाता.

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बेशक हील्स स्टाइलिश लुक के साथ कौन्फिडेंस भी देते हैं लेकिन ट्रैवलिंग में कम्फर्टेबल रहने के लिए फ्लैट्स का विकल्प हर तरह से बेहतर है. तो आइए आज फुटवेियर्स की पैकिंग कैसे करें इसके बारे में जानते हैं.

fashion

  • ब्लैक और ब्राउन जैसे डार्क कलर के फुटवियर्स हर तरीके से जचते हैं. जो आपके हर एक आउटफिट्स के साथ मैच भी हो जाते हैं और जल्दी गंदे भी नहीं होते. स्टाइलिश लुक के लिए बैग में ब्लैक या ब्राउन कलर का बेल्ट जरूर रखें.
  • सफर के दौरान ऐसे फुटवियर्स रखें जिन्हें आप ज्यादातर आउटफिट्स के साथ मिक्स एंड मैच कर पहन सकती हैं.

campus fashion for boys and girls

  • फुटवियर्स को हमेशा किसी प्लास्टिक के बड़े बैग में रखें इससे आपको उन्हें ढूंढ़ने में भी आसानी होती है और इसके साथ ही किसी भी प्रकार की बदबू और गंदगी से आपका सामान भी सुरक्षित रहता है.
  • फुटवियर्स रखते समय उनके सोल एक-दूसरे के विपरीत रखें जिससे वो सुरक्षित भी रहेंगे और बैग में जगह भी बचेगा.

Smart look with stylish pants and high-heels

  • ट्रैकिंग, बीच या एडवेंचर ट्रिप, हर एक जगह के लिए अलग-अलग तरह के फुटवियर्स की जरूरत होती है.
  • ट्रैवलिंग में कम्फर्टेबल रहने के लिए वैसे तो फ्लैट्स चप्पल या सैंडल पहनने चाहिए लेकिन अगर आपका सामान जूतों की वजह से भारी हो रहा है तो बेहतर होगा कि आप उसे पहनकर यात्रा करें.
  • आपके पास लेस वाले फुटवियर्स को बैग के साइड में बांधने का भी विकल्प है. इससे जगह भी बचती है और जूतों से आने वाली बदबू भी बाहर रहने से कम हो जाती है.

शिक्षा अधिकार कानून के बाद भी आखिर स्कूल क्यों नहीं जा रहीं 40% किशोरियां?

शिक्षा का अधिकार कानून (आरटीई) को लागू हुए दस वर्ष हो गये हैं. लेकिन आज भी 15 से 18 वर्ष आयु वर्ग की लगभग 40 प्रतिशत किशोर लड़कियां स्कूल नहीं जा रही हैं.जबकि गरीब परिवारों की 30 प्रतिशत लड़कियों ने तो कभी क्लास रूम में क़दम रखा ही नहीं है.ऐसा विश्व बैंक व यूनिसेफ़ के सहयोग से तैयार की गई राइट टू एजुकेशन फोरम और सेंटर फॉर बजट पालिसी स्टडीज की रिपोर्ट से उजागर हुआ है.अत: यह प्रश्न महत्वपूर्ण हो जाता है कि जब संविधान के अनुच्छेद 21ए के तहत आरटीई कानून में 6 से 14 वर्ष के बच्चों के लिए आवश्यक रूप से शिक्षा प्राप्त करने का प्रावधान है तो फिर 30 प्रतिशत गरीब लड़कियों ने कभी स्कूल का रुख क्यों नहीं किया है ? साथ ही यह भी कि 40 प्रतिशत किशोर लड़कियां स्कूल में क्यों नहीं हैं?

यह प्रश्न इसलिए भी प्रासंगिक हो जाता है क्योंकि सत्ता संभालने के बाद से ही वर्तमान केंद्र सरकार का नारा ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ का रहा है. बेटी कितनी बच रही हैं.फ़िलहाल बहस इस पर नहीं है; यहां सवाल यह है कि बेटियां पढ़ क्यों नहीं रही हैं? दरअसल, इसकी प्रमुख वजह यह है कि शिक्षा को अधिकार तो बना दिया गया लेकिन पूरे देश में आरटीई का पालन मात्र 12.7 प्रतिशत ही हुआ है, जोकि निश्चितरूप से चिंताजनक है.आरटीई का  पालन हो भी तो कैसे हो जब शिक्षा पर सरकारी खर्च निरंतर कम होता जा रहा है.भारत सरकार के बजट दस्तावेजों से मालूम होता है कि 2014 से शिक्षा पर कुल खर्च निरंतर कम किया जाता रहा है.

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साल 2014-15 के बजट में कुल सरकारी खर्च का मात्र 4.14 प्रतिशत शिक्षा पर व्यय किया गया और इसके बाद इसमें इस प्रकार कटौती की गई – 3.75 प्रतिशत (2015-16), 3.65 प्रतिशत (2016-17), 2017-18 में यह पिछले वर्ष की तुलना में थोड़ा बढ़कर 3.74 प्रतिशत हुआ, लेकिन फिर 2018-19 में गिरकर 3.4 प्रतिशत रह गया और 2019-20 में भी इतना ही यानी 3.4 प्रतिशत था.अगर इस अवधि के दौरान जीडीपी के हिसाब से कुल शिक्षा खर्च देखें तो हम अपनी जीडीपी का एक प्रतिशत भी शिक्षा पर खर्च नहीं करते हैं.साल  2014-15 में जीडीपी का मात्र 0.53 प्रतिशत शिक्षा पर खर्च किया गया, जो 2015-16 व 2016-17 में गिरकर क्रमश: 0.5 प्रतिशत व 0.47 प्रतिशत रह गया.2017-18 में यह 0.48 प्रतिशत था, 2018-19 में 0.44 प्रतिशत और 2019-20 में 0.45 प्रतिशत.

बहरहाल,उक्त रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि शिक्षा व सशक्तिकरण इंडेक्स का सीधा संबंध प्रति-बच्चा खर्च से है. देश के हर राज्य में यह अलग अलग है. केरल में शत-प्रतिशत साक्षरता संभवत: इसी कारण से है कि वह इस इंडेक्स में टॉप करते हुए प्रति वर्ष प्रति बच्चा 11,574 रूपये खर्च करता है, जबकि इस संदर्भ में देश के 17 बड़े राज्यों में उत्तर प्रदेश व बिहार क्रमश: 16वें व 17वें स्थान पर हैं. बिहार प्रति वर्ष प्रति बच्चा सबसे कम पैसा खर्च करता है, मात्र 2869 रूपये.यह रिपोर्ट इंटरनेशनल डे ऑफ़ एजुकेशन और नेशनल गर्ल चाइल्ड डे (24 जनवरी) को जारी की गयी.

इस रिपोर्ट में कहा गया है कि हालांकि वहनीय विकास लक्ष्यों का उद्देश्य सभी महिलाओं व लड़कियों के लिए लिंग समता और सशक्तिकरण है, लेकिन भारत में लाखों बच्चे ‘आउट ऑफ़ स्कूल’ हैं, जिनमें बड़ा हिस्सा लड़कियों का है.इस तथ्य पर चिंता व्यक्त करते हुए कि लड़कों की तुलना में लड़कियां दो गुणा कमज़ोर स्थिति में हैं कम से कम चार वर्ष की स्कूलिंग प्राप्त करने के संदर्भ में,रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों की 30 प्रतिशत लड़कियों ने अपने जीवन में कभी क्लास रूम के भीतर कदम नहीं रखा है.भारत में महिलाओं का साक्षरता दर 65 प्रतिशत है.

आरटीई फोरम के राष्ट्रीय संयोजक अम्बरीश राय के अनुसार, भारत में 60 मिलियन से अधिक बच्चों में शिक्षा का अभाव है और इसकी बड़ी वजह स्कूली शिक्षा के लिए अपर्याप्त फंडिंग है.जिससे आरटीई कानून के तहत जो लाभ मिलने चाहिए वह नहीं मिल पा रहे हैं. जबकि आरटीई कानून प्रारम्भिक शिक्षा के सार्वभौमिकीकरण का महत्वपूर्ण माध्यम है.राय कहते हैं, “देश में जो बालिका शिक्षा की स्थिति है वह गंभीर चिंता का विषय है.” इस रिपोर्ट के अनुसार, अनेक अध्ययनों से ज्ञात हुआ है कि शिक्षा में जन निवेश और बाल विकास व सशक्तिकरण में गहरा संबंध है.रिपोर्ट का कहना है कि स्कूलिंग का प्रत्येक अतिरिक्त वर्ष, आय में 8 से 10 प्रतिशत का इज़ाफा कर देता है (महिलाओं के लिए अधिक वृद्धि होती है), जिसका अर्थ यह है कि शिक्षा न केवल अर्थव्यवस्था के विकास में सहायक होती है बल्कि गरीबी दूर करने में भी मदद करती है|.

रिपोर्ट में जिन 17 राज्यों का उल्लेख किया गया है, उनमें से 11 – केरल (0.98), हिमाचल प्रदेश (0.82), तमिलनाडु (0.74), कर्नाटक (0.7), तेलंगाना (0.62, चार वर्ष का डाटा), महाराष्ट्र (0.61), ओडिशा (0.55), आंध्रप्रदेश (0.53. चार वर्ष का डाटा), गुजरात (0.53), असम (0.51) व छतीसगढ़ (0.5) – का ईईआई (शिक्षा व सशक्तिकरण इंडेक्स) 2012 व 2018-19 के बीच 0.5 या उससे अधिक रहा, उन्होंने प्रति वर्ष प्रति बच्चा 6000 रूपये से अधिक खर्च किया. दरअसल, राष्ट्रीय शिक्षा नीति में जो शिक्षा लक्ष्य रखे गये हैं,उनकी पूर्ति के लिए आवश्यक अधिक जन खर्च की भरपाई अकेले राज्य नहीं कर सकते हैं.शिक्षा शुल्क पर अत्याधिक निर्भरता भी चिंता का विषय है.

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रिपोर्ट में कहा गया है, “शुल्क सरकारी फंडिंग का आपात व परिवर्तनशील स्रोत है,जिसका उद्देश्य कर राजस्व/बजटीय समर्थन के खर्च स्रोतों को सहयोग करना होता है. जब 2015 से शिक्षा खर्च के लिए बजटीय समर्थन में कमी आने लगी तो कुल शिक्षा खर्च का 70 प्रतिशत शुल्क से फण्ड किया जाने लगा. इसका अर्थ यह है कि आपात शुल्क फंडिंग का नियमित मार्ग बन गया है.”

परिवार में अब दामाद हुए बेदम

भारतीय समाज में कोई 4 दशक पहले की बात करें तो उन दिनों ‘दामाद’ को बड़ा आदरसम्मान प्राप्त होता था. दामादजी ससुराल आएं तो सास से ले कर सालियां तक उन की सेवा में जुट जाती थीं. ससुराल में दामादजी की आवभगत में कोई कमी न रह जाए, दामादजी के मुख से बात निकले नहीं कि पूरी हो जाए, किसी बात पर कहीं वे नाराज न हो जाएं, हर छोटीछोटी बात का ध्यान रखा जाता था. उन की आवभगत में हर छोटाबड़ा सदस्य अपने हाथ बांधे आगेपीछे लगा रहता था. उन के खानेपीने, रहनेघूमने की उच्चकोटि की व्यवस्था घर के मुखिया को करनी होती थी और जब ससुराल में सुखद दिन गुजार कर दामादजी अपने घर को प्रस्थान करते थे, तो भरभर चढ़ावे के साथ उन को विदा दी जाती थी. उन से यह आशा की जाती थी कि इस आदरसत्कार से दामादजी प्रसन्न हुए होंगे और उन के घर में हमारी कन्या को कभी कोई दुख नहीं मिलेगा.उत्तर भारत में दामाद की खातिरदारी की खातिर कुछ भी करगुजरने की परंपरा रही है. भले ही गैरकानूनी हो, पर दामाद को खुश करने का यह सिलसिला विवाह के समय दहेज से शुरू हो कर आगे तक चलता ही रहता है. फिर आंचलिक परंपरा तो किसी एक घर के दामाद को गांवभर का दामाद मान कर उस की खातिरदारी करने की भी रही है.

भारतीय समाज में दामाद से ज्यादा महत्त्वपूर्ण परिवार का कोई अन्य सदस्य नहीं होता. दामाद सिर्फ आदमी नहीं है. एक परंपरा है. एक उत्सव है. दामाद आता है तो पूरा घर मुसकराने लगता है. गरीब घर का बच्चा भी उछलनेकूदने लगता है. जिस घर में दालरोटी भी मुश्किल से जुटती है, और दालरोटी के साथ भाजी शायद ही कभी बनती है, उस घर में भी दामाद के आने पर पकवान बनते हैं. खीरपूरी बनती है. फलमिठाइयां आती हैं. इस सब के लिए साधन किधर से आता है, इस का खुलासा भी कभी दामाद के सामने नहीं होता. दामाद बेटे से भी बढ़ कर होता है. आप अपने बेटे के नाम के आगे कभी ‘जी’ लगा कर नहीं बुलाते, मगर झोंपड़ी में रहने वाला ससुर भी अपने दामाद को ‘कुंवरजी’ बोलता है. भीखू, ननकू, छोटेलाल का सीना गर्व से फूल कर56 इंची हो जाता है जब ससुरजी उन को ‘कुंवरजी’ के संबोधन से पुकारते हैं.

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औरत की आर्थिक मजबूरी ने दामाद को हौआ बनाया

बचपन की एक घटना मुझे याद है. उम्र रही होगी यही कोई 8-9 बरस की. पिताजी मुझे और मां को ले कर हमारे ननिहाल गए थे. पिताजी अपनी ससुराल बहुत मुश्किल से ही जाते थे. मां को बड़ी चिरौरी करनी पड़ती थी, तब जा कर कहीं 2-3 साल में एकबार पिताजी का मन बनता था कि चलो, कुछ दिनों के लिए सब को लिए चलते हैं. गोरखपुर जिले के एक गांव में नाना बसते थे. खेतीखलिहानी काफी थी. गांव में दोचार पक्के मकान थे, जिन में से एक नाना का भी था. मेरे 2 मामा थे और उन के बीवीबच्चों से नाना का घर गुलजार रहता था.मुझे याद है कि जिस वक्त हम वहां पहुंचे, शाम के कोई 5 बजे होंगे. घर की देहरी पर ही खाट बिछी थी. जिस पर मोटे से गद्दे पर रेशमी चादर बिछी थी. पिताजी को नाना ने वहां बड़े सत्कार से बिठाया. मैं भी पिताजी की बगल से सट कर बैठ गई. मां दोनों हाथों में संदूकची उठाए भीतर चली गईं. इतने में नानी बड़ी सी परात में पानी ले कर आईं और पिताजी के सामने जमीन पर बैठ कर उन्होंने उन के जूतेमोजे अपने हाथों से उतारे और उन के पैर ठंडे पानी की परात में डाल कर अपने हाथों से मलमल कर धोने लगीं. नानी घूंघट में रोए जातीं, बारबार पिताजी के पैर चूमें जातीं और धोए जातीं. मैं हैरान कि ऐसा क्या हो गया कि नानी इतनी जोरजोर से रो रही हैं. मेरे मन में आशंका उठी कि ऐसा तो नहीं कि हमारे आने से नानी खुश नहीं हैं. मैं पिताजी से जरा और सट गई कि कहीं ऐसा न हो कि यहीं से वापसी हो जाए.मगर पिताजी का नानी के क्रियाकलापों की तरफ कोई खास ध्यान नहीं था. वे आराम से बगल में खड़े नानाजी से बातें कर रहे थे. आने वालों से दुआसलाम कर रहे थे. हालचाल पूछ रहे थे. थोड़ी देर में नानी ने उन के पैरों के नीचे से पानी की परात हटाई और अपने पल्लू से पिताजी के पैर पोंछे. इस के बाद मेरी बड़ी मामी अपनी पानी की परात ले कर सामने जमीन पर बैठ गईं और उन्होंने भी रोरो कर पिताजी के पैर धोए, फिर छोटी मामी और गांव की कुछ और औरतों ने भी यही क्रम दोहराया. कोई आधेपौने घंटे तक तो पिताजी के पैर धुलते रहे, पानी से भी और आंसुओं से भी, और उस के बाद वे घर के भीतर गए.इस क्रिया के बारे में बाद में बड़े होने पर मां से पता चला कि यह उन के ही नहीं, बल्कि पूर्वांचल के अनेक गांवों की रीत है कि दामाद के आगमन पर घर की औरतें उन के आने की खुशी को आंसुओं से व्यक्त करती हैं और उन के पैर पानी से ही नहीं, वरन अपने आंसुओं से भी धो कर इस बात की प्रसन्नता प्रकट करती हैं कि उन का दामाद उन की लड़की को सुखी रख रहा है और वह उस को उस के मातापिता से मिलवाने लाया है.हम करीब 15 दिन वहां रहे. अच्छाअच्छा खाने को मिला. दूधदही, मट्ठा, खीर, मांसाहार क्या नहीं खाया. खूब नईनई पोशाकें मिलीं. मुझे याद है कि जब हम वहां गए थे तो हमारे पास2 संदूक थे, मगर वापसी में हमारे पास4 संदूक, एक बड़ा बैग और 2 बड़े फल के टोकरे थे. साथ में, घी का कनस्तर, लड्डुओं और गुड़ का डब्बा, अपने खेत में उगे चावल का बोरा, मोरपंख से बने4 सुंदर पंखे, मामियों द्वारा हाथ की कढ़ी चादरें और न जाने क्याक्या सामान दिया था नानानानी ने.  मेरे 40 वर्षों के जीवनकाल में मैं4 चार बार ही अपने ननिहाल गई होऊंगी. हां, बहुत चिरौरी करने पर पिताजी मां को ले कर जरूर 5-6 बार गए होंगे, ज्यादा नहीं. मगर हर बार उन की आवभगत वैसी ही होती रही, जैसी मैं ने अपनी याददाश्त में पहली बार देखी थी. नानी की मृत्यु के बाद भी मेरी दोनों मामियां उस परिपाटी का पालन करती रहीं. आज यह पीढ़ी अपने उम्र के चौथे पड़ाव पर है, मगर आज भी अगर पिताजी मां को ले कर चले जाएं तो मुझे विश्वास है कि मेरी मामियां उसी तरह उन के पैर पानी के साथसाथ अपने आंसुओं से धोएंगी, उसी तरह उन की आवभगत करेंगी, जैसी नानी के वक्त में होती थी.मैं कभीकभी मां को उलाहना देती हूं कि तुम तो वैसी आवभगत अपने दामाद की नहीं करतीं, जैसी नानी पापा की किया करती थीं. तो वे हंस देती हैं. उन की हंसी में एक पीड़ा छिपी है. दरअसल, मां आर्थिक रूप से पिताजी पर आश्रित थीं, इसलिए उन की हर इच्छा पिताजी की हां, ना पर ही निर्भर होती थी. वे सालों अपने मायके जाने के लिए तरसती रहती थीं. यहां तक कि नानी की मृत्यु का समाचार मिलने पर भी वे उस वक्त नहीं जा पाईं, 2 माह बाद जब पिताजी को काम से थोड़ी फुरसत हुई, तब गईं. मगर मैं आर्थिक रूप से आजाद हूं. इसलिए अपनी मरजी की मालिक हूं.आज मुझे अपने मातापिता से मिलना होता है तो उस के लिए मुझे अपने पति की मिन्नतें करने की आवश्यकता नहीं होती. मेरे पति साथ जाना चाहें तो ठीक, वरना मैं अकेले ही सक्षम हूं. जब चाहती हूं, टिकट कटा कर मांपिताजी के पास पहुंच जाती हूं. औरत की आर्थिक आजादी ने बीते दशकों में जहां औरत को मजबूत बनाया है, वहीं ससुराल में दामाद की आवश्यकता से अधिक आवभगत और सत्कार, जो पहले इज्जत से ज्यादा एक डर की वजह से हुआ करता था, को खत्म किया है.औरत की आर्थिक आजादी ने उस के मायके वालों पर उस बड़े आर्थिक दबाव को भी खत्म कर दिया है, जो उन्हें मजबूरन दामादजी और उन के परिवार को खुश रखने के लिए झेलना पड़ता था.

बेटा बनने को मजबूर दामाद

लड़कियों की आर्थिक आजादी ने लड़कों की मनमरजी पर रोक लगाई है, तो उन को भी ससुराल में अपने मानसम्मान को बचाए रखने के लिए अपनी भूमिका में परिवर्तन के लिए मजबूर होना पड़ा है. पहले जहां दामाद अपनी ससुराल में एक मेहमान की तरह जाता था और मेहमान की तरह उस का सादरसत्कार होता था, वहीं आज वह घर के बेटे की तरह देखा जाता है. इसलिए दिखावे के आदरसत्कार में कमी आई है और प्रेम व विश्वास में बढ़ोतरी हुई है. कहींकहीं तो इकलौता दामाद सासससुर का ऐसा लाड़ला हो गया है कि वह अपनी बेटी से घर की बातें इतनी डिस्कस नहीं करते, जितनी दामाद के साथ कर लेते हैं. कई घरों में तो ससुरजी बिजनैस संबंधी सलाह बेटे से ज्यादा दामाद से करते नजर आते हैं. वहीं, सासें भी बेटे से ज्यादा प्यार दामाद पर लुटाती दिखाई देती हैं.अब फिल्म ऐक्टर अक्षय कुमार को ही ले लीजिए. उन की पत्नी ट्विंकल खन्ना से ज्यादा उन की सास डिंपल कपाडि़या अक्षय को प्यार करती हैं. अक्षय और उन की सासुमां का रिश्ता बेहद खास है. खुद अक्षय यह बात कई बार कह चुके हैं कि उन की लाइफ में उन की बीवी, बेटी के अलावा उन की सासुमां बहुत अहम स्थान रखती हैं. इन दोनों को अकसर इवैंट्स पर साथ देखा जाता है और दोनों की कैमिस्ट्री देख कर लगता है कि ये असल जिंदगी में सासदामाद नहीं, बल्कि मांबेटे हैं.वहीं, शर्मिला टैगोर अपने दामाद कुणाल खेमू को अपना दूसरा बेटा मानती हैं. कुणाल की शादी शर्मिला टैगोर की छोटी बेटी सोहा अली खान से हुई है. फैमिली के हर पार्टी फंक्शन में भले शर्मिला का बेटा सैफ मौजूद न हो, मगर दामादजी जरूर मौजूद होते हैं.साउथ के सुपरस्टार रजनीकांत और उन के दामाद धनुष की बौडिंग भी जबरदस्त है. धनुष की शादी रजनीकांत की बेटी ऐश्वर्या से हुई है, मगर धनुष और रजनीकांत को साथ देख कर अकसर लोग उन्हें बापबेटा समझ लेते हैं.वहीं करीना के पापा रणधीर कपूर का अपने छोटे दामादजी यानी सैफ अली खान से रिश्ता काफी करीबी है. इन दोनों की आपस में खूब बनती है. इसीलिए ससुरदामाद की यह जोड़ी भी अकसर फैमिली फंक्शन में साथ पोज देते देखी जाती है.ये तो हुई बौलीवुड की बातें, छोटे शहरों के मध्यवर्गीय और निम्नवर्गीय परिवारों में भी अब दामाद अपनी ससुराल में बेटे की जगह लेते जा रहे हैं. खासतौर पर वे दामाद जिन की पत्नियां अपने मांबाप की इकलौती हैं, या जिन की सिर्फ बहनें ही हैं, भाई नहीं हैं. इस बदलाव की बड़ी वजहें हैं औरत का पढ़ालिखा होना, नौकरीपेशा होना, अपने पैरों पर खड़ा होना और अपनी मरजी को पूरा करने के लिए पति पर आश्रित  न होना. इस बदलाव के चलते ही दामाद को ससुराल वालों के प्रति अपना व्यवहार और भूमिका में चेंज लाने के लिए मजबूर होना पड़ा है. मगर इस मजबूरी ने रिश्तों को नए रंगरूप भी दिए हैं. इस से दिखावा, डर और पराएपन की भावना खत्म हुई है और रिश्तों में निकटता आई है, तो साथ ही, दामाद पर 2 परिवारों की जिम्मेदारी और दोनों परिवारों के बुजुर्गों की देखभाल का बोझ भी आन पड़ा है.

दामाद निभा रहे बेटे का फर्ज

नेहा अपने मांबाप की इकलौती बेटी थी. उस की शादी के बाद उस के मांबाप अकेले हो गए. नेहा की शादी दूसरे शहर में हुई थी. उस का पति विकास भी अपने मातापिता का इकलौता बेटा था. नेहा और विकास दोनों नौकरीपेशा थे. कई सालों तक तो कोई परेशानी नहीं हुई, मगर जैसेजैसे नेहा और विकास के मातापिता की उम्र बढ़ती गई, अनेक रोगों ने बूढ़े शरीरों में अपनी जड़ें जमानी शुरू कर दीं. ऐसे में नेहा कभी अपनी ससुराल में तो कभी अपने मातापिता की देखभाल के लिए मायके में रहने लगी. उस की 11 साल की बेटी की पढ़ाई बहुत प्रभावित हुई. बारबार लंबी छुट्टियां लेने से नेहा की नौकरी भी जाती रही. मगर मांबाप को बीमारी में अकेले कैसे छोड़ती, लिहाजा बेटी को ले कर वह अपने मायके में ही रहने लगी. उधर, ससुराल में उस के सासससुर के साथ भी दिक्कतें शुरू हो गईं. ऐसे में विकास ने एक रास्ता निकाला. उस ने नेहा के मातापिता को अपने साथ रहने के लिए किसी तरह मना लिया. नेहा ने अपना घर बेच कर पहले से बड़ा घर खरीदा, जहां दोनों के मातापिता पूरी आजादी के साथ भी रहें और नेहा और विकास की आंखों के सामने भी रहें. अब विकास और नेहा चारों बुजुर्गों की देखभाल ठीक से कर पाते हैं. नेहा ने नई नौकरी भी जौइन कर ली है. आसिमा का निकाह फैज से हुआ था. आसिमा का कोई भाई नहीं था, मगर उस से छोटी 2 बहनें और थीं, जिन की शादी की जिम्मेदारी उसे निभानी थी. ससुराल आने के बाद वह इसी चिंता में घुली जाती थी कि बहनों के लिए रिश्ता कैसे ढूंढे़. आखिरकार एक दिन उस ने फैज को अपनी परेशानी बताई. फैज को आसिमा की मां अपने बेटे की तरह चाहती थीं, लिहाजा फैज ने भी बेटा होने का फर्ज अदा किया और उस की मेहनत से आसिमा की दोनों बहनों के घर भी बस गए.आज आसिमा बहुत खुश है क्योंकि उस का पति जितना प्यार अपने परिवार के सदस्यों को देता है, जो जिम्मेदारी उन के प्रति निभाता है, वैसा ही प्यार, सम्मान और जिम्मेदारी वह आसिमा की फैमिली के लिए भी प्रकट करता है. यही वजह है कि आसिमा के मन में भी अपने पति और अपने ससुराल वालों के लिए उतनी ही इज्जत और प्यार है, जितनी अपने परिवार के लिए है. जिन परिवारों में बेटे नहीं होते, वहां दामाद ही ससुर के बाद मुखिया बन जाते हैं और उन्हें ही सारी पारिवारिक जिम्मेदारियां वहन करनी होती हैं.

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दोहरी जिम्मेदारी में पिस रहे दामाद

बदलाव के असर अगर अच्छे हैं, तो बुरे भी हैं. मदनलाल की आमदनी बहुत ज्यादा नहीं है. छोटी सी किराने की दुकान है, जिस से उस का 5 जनों का परिवार चलता है. ऐसे में जब उस पर उस के सासससुर की देखभाल और इलाज का बोझ भी पड़ने लगा तो घर में आएदिन पत्नी के साथ लड़ाईझगड़े शुरू हो गए. पत्नी कहती कि अपने बीमार मांबाप की देखभाल और इलाज मैं न करवाऊं तो कौन करवाएगा? वहीं मदनलाल कहता है कि इलाज के लिए मैं तो पैसे नहीं दूंगा. पत्नी कहती, मत दो, मैं अपने गहने बेच दूंगी, मगर तुम ने अगर अपने मांबाप पर भी रुपया खर्च किया तो मैं तुम को थाने तक घसीटूंगी. वह मदनलाल पर चीखती कि मेरे बाप ने इतना दहेज दिया, हर तीजत्योहार पर तुम्हारी जेबें भरीं, तब उन से पैसा लेते तुम्हें कभी झिझक नहीं हुई, अब जब उन को बुढ़ापे में देखभाल की, दवाइलाज की जरूरत है तो तुम पीठ दिखा रहे हो?मदनलाल जैसे दामादों की भी समाज में कमी नहीं है जो दोहरी जिम्मेदारी की चक्की में पिस रहे हैं. ऐसी स्थिति में वे पुरुष ज्यादा फंसे हैं, जिन की आय कम है और जिन की ससुराल में बुजुर्गों की देखभाल व जिम्मेदारी उठाने के लिए कोई मर्द नहीं है. जब तक सासससुर की सेहत ठीक रहती है, तब तक तो कोई परेशानी नहीं होती, मगर बुढ़ापा और बीमारी उन्हें अपने दामाद पर बोझ बना देते हैं.

छोटी सरदारनी: आखिरकार मेहर को मिला छोटी सरदारनी का खिताब, क्या करेगी हरलीन?

कलर्स के शो, ‘छोटी छरदारनी’ में मेहर और परम का औपरेशन सफल हो गया है, जिसके बाद वह घर लौट गए हैं. परम के लिए दिए बलिदान के बाद हरलीन, मेहर की शुक्रगुजार है, लेकिन वह अभी भी मेहर के होने वाले बच्चे को दिल से अपना नहीं पाई है. वहीं शो में आगे सरब का उठाया एक कदम हरलीन के मन में फिर से मेहर के लिए कड़वाहट पैदा कर देगा. आइए आपको बताते हैं क्या होगा शो में आगे…

सरब करता है बड़ा ऐलान

अब तक आपने देखा कि मेहर और परम के अस्पताल से सही सलामत लौटने की खुशी में सरब अस्पताल के उद्घाटन की बात कहता है, जिसमें वह एक सरप्राइज देने का ऐलान करता है. वहीं सरप्राइज के बारे में सुनकर पूरी फैमिली के साथ-साथ हरलीन भी एक्साइटेड होती है कि आखिर सरब का सरप्राइज है क्या.

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आखिरकार मेहर को मिला ‘छोटी सरदारनी’ का खिताब

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इसी बीच, सरब अस्पताल का उद्घाटन करते वक्त मेहर और परम की मूर्ति से परदा उठाता है और सभी को बताता है कि मेहर ने परम की जिंदगी बचाने के लिए बहुत बड़ा बलिदान दिया है. वहीं सरब मेहर के नाम अस्पताल करते वक्त छोटी सरदारनी का खिताब भी देता है. छोटी सरदारनी का खिताब देते हुए सरब कहता है कि मेहर जी ने हर कदम पर कंधे से कंधा मिलाकर मेरा साथ दिया है चाहे वह परम के लिए एक मां की जिम्मेदारी हो या परिवार के लिए एक बहू का फर्ज.

हरलीन को लगता है बुरा

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दूसरी तरफ पूरी गिल फैमिली के साथ हरलीन हैरान हो जाती है क्योंकि उन्हें यकीन था कि माता-पिता के बाद सरब के सबसे करीब उसकी बहन हरलीन है तो जाहिर है कि वो ये अस्पताल भी हरलीन के नाम पर ही बनाएगा.

सरब के फैसले से हरलीन होगी नाखुश

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आज के एपिसोड में आप देखेंगे कि एक तरफ जहां सरब, मेहर को छोटी सरदारनी का खिताब देते हुए तारीफ करेगा. इसी के साथ सरब छोटी सरदारनी का खिताब का असली मतलब समझाते हुए कहेगा कि छोटी सरदारनी का खिताब उसी को मिलता है जो साहस, करूणा, ममता और दृढ़निश्चय की मिसाल हो और ये सारी खूबियां मेहर में है. वहीं दूसरी तरफ सरब के इस फैसले से हरलीन नाखुश नजर आएगी और अपने आपको सब के सामने कम महत्वपूण महसूस करेगी.

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अब देखना ये है कि क्या सरब के दिल में मेहर के लिए बढ़ती अहमियत हरलीन को कर देगी उसके भाई सरब से दूर? जानने के लिए देखते रहिए ‘छोटी सरदारनी’, सोमवार से शनिवार, रात 7:30 बजे, सिर्फ कलर्स पर.

मलाई कोफ्ता रेसिपी

अगर आप अपनी फैमिली के लिए लंच या डिनर में कोई टेस्टी डिश ट्राय करना चाहते हैं तो मलाई कोफ्ता की रेसिपी घर पर ट्राय करना ना भूलें.

हमें चाहिए-

– कदुकस किया हुआ (1 कप पनीर)

– उबले हुए (2 आलू)

– काजू (1 टी स्पून)

– किशमिश (1 टी स्पून)

– कौर्न्फ्लौर (3 टी स्पून)

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– गरम मसाला (1/4 टी स्पून)

– लाल मिर्च (1/2 टी स्पून)

– तेल (2 टी स्पून)

– 2 प्याज़

– 2 टमाटर

– अदरक लहसुन का पेस्ट (1 टी स्पून)

– हल्दी (1/2 टी स्पून)

– काजू का पेस्ट (1/4 कप)

– 1 तेज़ पत्ता

– दालचीनी (1 टुकड़ा)

– 2 इलायची

– 2 लौंग

– कसूरी मेंथी (1 टी स्पून)

– धनिया पत्ता (2 टी स्पून)

– क्रीम (2 टी स्पून)

– नमक (स्वादानुसार)

बनाने की विधि

– मलाई कोफ्ता बनाने के लिए सबसे पहले उबले हुए आलू को ले छील कर मैश कर ले.

– अब एक बाउल मे मैश किया हुआ आलू, कौर्नफ्लोर, कदुकस किया हुआ पनीर, नमक, मिर्च, गरम मसाला, काजू, किशमिश आदि डाल कर अच्छे से मिक्स कर लें.

– इन सब को मिला कर एक मिश्रण बना लें.

– इस मिश्रण को गोल करके कोफ्ता बना लें.

– अब एक कढ़ाई लें, उसमे तेल गरम कर लें.

– अब बनाए हुए कोफ्ते उसमे डाल कर तल लें.

– सभी कोफ्तों को ऐसे ही तले और एक प्लेट मे निकाल कर रख लें.

– प्याज़ और टमाटर को काट कर बारीक पीस लें.

– कढ़ाई को गैस पर रख कर तेल गरम कर के उसमे जीरा डालें.

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– जीरा गरम होने पर उसमे दाल चीनी, इलायची, लौंग, तेज़ पत्ता डालकर भूने साथ ही उसमे प्याज़ टमाटर का बना हुआ मिश्रण भी डाल दें.

– अब पूरी सामग्री को अच्छे से मिला लें.

– अब इसमें हल्दी, मिर्च, अदरक लहसून का पेस्ट, गरम मसाला आदि डालकर तब तक पकाए जब तक तेल अलग ना होने लगें.

– इतना करने के बाद 2-3 कप पानी डाल दें

– और कुछ देर गैस पर पकने के लिए छोड़ दें.

– जब इतना मिश्रण पक जाए तब उसमे बनाए हुए कोफ्ते डाल दें.

– कुछ देर पकाने के लिए हल्की आंच पर छोड़ दें.

– कुछ ही देर में आपका गरम गरम मलाई कोफ्ता तैयार है.

रीम शेख इंटरव्यू: टीवी की ‘कल्याणी’ को ‘मलाला’ बनने के लिए करने पड़ी ये खास तैयारी

सीरियल ‘तुझसे है राबता है’ फेम एक्ट्रेस इन दिनों अपने शो के लेकर सुर्खियों में है. वहीं अब उनकी फिल्म ‘गुल मकई’ रिलीज पर है, जिसमें उन्होंने मलाला युसुफजई की भूमिका निभाई है. हाल ही में हमने शांत और विनम्र स्वभाव की रीम से बातचीत की जिसमें उन्होंने कई अहम खुलासे किए…..

सवाल- आपका अभिनय में आना कैसे हुआ? प्रेरणा कैसे मिली?

परिवार की मैं पहली लड़की हूं, जिसने अभिनय को अपना प्रोफेशन बनाया है. मैं मुंबई से हूं और मेरी मां राजस्थान की है, पर उनका पालन पोषण यही हुआ है. बचपन से अभिनय का शौक था और माता-पिता ने सहयोग दिया. इस तरह से मैं आगे बढ़ती गयी.

सवाल- इस फिल्म का मिलना कैसे हुआ और इसके लिए क्या खास तैयारी की?

मैंने फिल्म ‘वजीर’ में अमिताभ बच्चन के साथ एक छोटी सी भूमिका की थी, जिसे इस फिल्म के निर्देशक ने देखा था और मुझे ऑफर मिला. ऑफर मिलने के बाद मैंने मलाला पर काफी रिसर्च की. ये कहानी मुझे बहुत प्रेरणादायक लगी. मुझे पहले से जानकारी मलाला के बारें में थी, जिसने तालिबानियों के विरुद्ध शिक्षा के लिए आवाज उठाई थी. वह नोबेल पीस प्राइज विनर है, जो इतनी कम उम्र में मिलना काबिलेतारीफ है. इसके अलावा मैं इस कहानी में अभिनय के द्वारा काफी लोगों को प्रोत्साहित कर सकती हूं, बहुत सारी बातें सीख सकती हूं. मैं हमेशा से वैसी भूमिका निभाना चाहती हूं, जिसके द्वारा मैं लोगों की सोच को सही दिशा में बदल सकूं. इस फिल्म के ज़रिये मुझे ये मौका मिला और मैं इसे गंवाना नहीं चाहती थी.

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सवाल- इस फिल्म के लिए कितना होमवर्क करना पड़ा? क्या चुनौती रही आपके लिए?

प्रोजेक्ट मिलने के बाद काफी होम वर्क किया. उसके कई इंटरव्यू मैंने यू-ट्यूब पर देखे. उनके बात करने का तरीका सीखना पड़ा, क्योंकि वह पाकिस्तानी हैं और पश्तों बोलती हैं, जबकि मैं मुंबई में पली-बढ़ी हूं. मेरी चाल चलन उनसे काफी अलग है. इसके अलावा उनके सारे इंटरव्यू अंग्रेजी में थे जबकि मूवी में संवाद हिंदी में थे. इसलिए थोड़ी समस्या आई पर मैंने कर लिया.

सवाल- ऐसी इमोशनल भूमिका को करने के बाद इस रोल से बाहर निकलना कितना मुश्किल था?

मैं एक्टिंग बहुत सालों से कर रही हूं, इसलिए मुझे इसे करने में अधिक चुनौती नहीं थी. जब कोई काम मैं दिल से करती हूं तो उसमें समस्या नहीं आती. मुझे एक्टिंग हमेशा से पसंद है और मैं इसे करने में एन्जॉय करती हूं. इसलिए इससे निकलना भी मुश्किल नहीं था.

सवाल- क्या आप रीम शेख और मलाला की तुलना होने पर प्रेशर महसूस कर रही हैं?

शुरू शुरू में लगता था कि मलाला और दर्शकों को मेरा काम पसंद आयेगा या नहीं, लेकिन फिल्म को देखते हुए जब मलाला के पिता ने कहा कि वे मलाला को फिल्म में देख रहे है तो मुझे तसल्ली हुई. प्रेशर भी कम हुआ है.

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सवाल- आप इस चरित्र से खुद को कितना जोड़ पाती हैं?

मैं अपने आपको इस चरित्र से जोड़ नहीं पाती ,क्योंकि मैं मुंबई में पली-बड़ी हुई हूं और यहां हर किसी को अपनी बात रखने का हक है. इसके अलावा मेरा पूरा परिवार आत्मनिर्भरता पर विश्वास करता है मेरी मां भी आत्मनिर्भर है. मैं मलाला से रिलेट नहीं करती पर प्रेरित जरूर हूं.

सवाल- क्या आप असल जिंदगी में मलाला से मिली हैं?

मिल तो नहीं पायी, लेकिन इस फिल्म की स्क्रीनिंग लन्दन में हुई थी. मूवी ख़त्म होने के बाद मलाला के पिता ने उसका एक दुपट्टा मुझे गिफ्ट के तौर पर दिया, जिससे मुझे बहुत ख़ुशी मिली और मैंने उसे सम्हाल कर रखा है.

सवाल- फिल्मों में इंटिमेट सींस करने में कितनी सहज हैं?

मैं अपने पैशन की वजह से अभिनय क्षेत्र से जुड़ी हूं और ये मेरा करियर है. मुझे या मेरे माता-पिता को जिस हद तक मुझे अभिनय करने में कोई समस्या नहीं है, मैं कर सकती हूं. उन्होंने हमेशा मुझे सहयोग दिया है. उन्हें मेरे किसी दृश्य से अगर कोई एतराज है, तो मैं उसे नहीं करुंगी.

सवाल- टीवी की जर्नी को आप कैसे देखती हैं?

मेरे अभिनय की शुरुआत टीवी से हुई हैं. उसी से मुझे पहचान मिली. अभी भी मैं टीवी शो ‘तुझसे है राब्ता’ कर रही हूं जिसमें कल्याणी के किरदार को बहुत प्यार मिला है. मुझे बहुत अच्छा लगता है जब मुझे लोग रीम नहीं कल्याणी या मलाला कहकर बुलाते है. बहुत संतुष्टि मिलती है. मेरे बहुत दोस्त इंडस्ट्री में है. बड़े-बड़े कलाकारों के साथ काम करने का मौका भी मुझे मिला है.

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सवाल- टीवी और फिल्मों में अंतर क्या पाती हैं?

टीवी और फिल्म में कोई अंतर नहीं होता, केवल चरित्र में अंतर होता है. इसके अलावा आज कई प्लेटफार्म कलाकारों को मिलने लगा है.

सवाल- मलाला ने अन्याय के विरुद्ध आवाज उठाई थीक्या आप किसी अन्याय के विरुद्ध कदम उठा सकती हैं?

मैंने बचपन से यही सीखा है कि जो बात आपको सही नहीं लगता उसके विरुद्ध कहने की जरुरत है. कभी मेरे साथ अगर ऐसा हुआ तो मैं अवश्य अपनी आवाज उठाऊंगी. इसके लिए मुझे मजबूत होने की जरुरत है.

सवाल- आप कितनी फैशनेबल और फूडी हैं?

मैं किसी खास अवसर पर फैशन करना पसंद करती हूं, वरना मैं साधारण रहती हूं. मेरी मां मारवाड़ी और मेरे पिता मुस्लिम हैं. हम सब यहां अपने हिसाब से त्यौहार मनाते हैं.

वैसे तो मैं हर तरह का खाना खाती हूं लेकिन मां के हाथ का बना हुआ मसाले वाला तड़का चावल मुझे बहुत पसंद है और दादी के हाथ की बनी बिरयानी भी मुझे बहुत अच्छी लगती है.

सवाल- आपके सपनो का राजकुमार कैसा होगा?

जो मेरी, मेरे परिवार और काम की रेस्पेक्ट करें, वही मेरा जीवनसाथी बन सकता है.

सवाल- तनाव होने पर उसे कैसे दूर करती हैं?

मैं अपनी मां के बहुत करीब हूं और उनसे सारी बातें शेयर करती हूं इसके अलावा मैं थोड़ा बहुत लिखती भी हूं.

डाक्टरों ने मुझे नी रिप्लेसमैंट की सलाह दी है, क्या ये ट्रीटमेंट मेरे लिए सही है?

सवाल-

मेरी उम्र 36 साल है. मुझे जुवेनाइल आर्थ्राइटिस की समस्या है. डाक्टरों ने मु झे नी रिप्लेसमैंट की सलाह दी है. मैं जानना चाहती हूं कि मेरे लिए यह उपचार कितना उपयुक्त रहेगा?

जवाब-

कई प्रकार के आर्थ्राइटिस में फिजियोथेरैपी बहुत कारगर होती है. इस से अंगों की कार्यप्रणाली सुधरती है और जोड़ों के आसपास की मांसपेशियां शक्तिशाली बनती हैं. अगर आर्थ्राइटिस शुरुआती चरण में है तो उसे फिजियोथेरैपी और जीवनशैली में बदलाव ला कर कंट्रोल में किया जा सकता है. लेकिन अगर आप को दूसरे उपचारों से आराम नहीं मिल रहा है और बहुत तकलीफ में हैं तो नी रिप्लेसमैंट ही आप के लिए अंतिम विकल्प बचता है.

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क्या आप को हैरानी हुई है कि छरहरी महिलाएं भी कमजोर और अस्वस्थ क्यों हो जाती हैं?

क्या आप ने कभी सोचा है कि सब का खयाल रखने वाली परिवार की कोई सदस्य अकसर बीमार क्यों पड़ जाती है?

एक दशक पहले तक हैजा, टीबी और गर्भाशय का कैंसर महिलाओं को होने वाली सेहत से जुड़ी मुख्य समस्याएं थीं. इन दिनों नई बीमारियां, जैसे कार्डियो वैस्क्यूलर डिजीज, डायबिटीज और आस्टियोआर्थराइटिस जैसे रोग 30 वर्ष से अधिक आयुवर्ग की युवा महिलाओं में फैले हुए हैं.

आर्थराइटिस फाउंडेशन की ओर से हाल ही में हुए अध्ययन के अनुसार, यह अनुमान लगाया गया है कि 2013 तक देश में लगभग 3.6 करोड़ लोग आस्टियोआर्थराइटिस रोग से प्रभावित हो जाएंगे. कम आमदनी वाले वर्ग की 30-60 वर्ष की भारतीय महिलाओं के बीच हुए एक अध्ययन में अस्थि संरचना के सभी महत्त्वपूर्ण जगहों पर बीएमडी (अस्थि सघनता) विकसित देशों में दर्ज किए गए आंकड़ों से काफी कम थी, जिस के साथ अपर्याप्त पोषण से होने वाले आस्टियोपेनिया (52%) और आस्टियोपोरोसिस (29%) की मौजूदगी ज्यादा थी. अनुमान है कि 50 वर्ष से अधिक की 3 में से 1 महिला को आस्टियोपोरोटिक फ्रैक्चर का अनुभव होगा.

इन दिनों कम शारीरिक सक्रियता वाली जीवनशैली की वजह से दबाव संबंधी कारक और मोटापा जोखिम पैदा करने वाले कुछ ऐसे कारक हैं जिन का संबंध आस्टियोआर्थराइटिस जैसी समस्याओं से माना जाता है. इसलिए, यदि कोई स्वस्थ जीवन जीना चाहता है तो जरूरी है कि वह अपनी हड्डियों की देखभाल पर विशेष ध्यान दे. आस्टियोआर्थराइटिस की रोकथाम और काम व जीवन के बीच स्वस्थ संतुलन कायम करने के लिए यहां ऐसे टिप्स बताए जा रहे हैं, जिन पर महिलाओं को ध्यान देना चाहिए.

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