Hindi Fiction Stories : चेतावनी – मीना आंटी ने अर्चना की समस्या का क्या सामाधान निकाला

Hindi Fiction Stories  : संदीप और अर्चना के प्रति मीना की दिलचस्पी इतनी बढ़ी कि वह उन की परेशानी जानने को आतुर हो उठी, यहां तक कि अर्चना को परेशानी से उबारना मीना की जिद बन गई.

पिछले कुछ दिनों से वे दोपहर 1 से 2 के बीच रोज पार्क में आते. उन दोनों की जोड़ी मुझे बहुत जंचती. युवक कार से और युवती पैदल यहां पहुंचती थी. दोनों एक ही बैंच पर बैठते और उन के आपस में बात करने के ढंग को देख कर कोई भी कह सकता था कि वे प्रेमीप्रेमिका हैं.

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मैं रोज जिस जगह घास पर बैठती थी वहां माली ने पानी दे दिया तो मैं ने जगह बदल ली. मन में उन के प्रति उत्सुकता थी, इसलिए उस रोज मैं उन की बैंच के काफी पास शौल से मुंह ढक कर लेटी हुई थी, जब वे दोनों पार्क में आए.

उन के बातचीत का अधिकांश हिस्सा मैं ने सुना. युवती का नाम अर्चना और युवक का संदीप था. न चाहते हुए भी मुझे उन के प्रेमसंबंध में पैदा हुए तनाव व खिंचाव की जानकारी मिल गई.

नाराजगी व गुस्से का शिकार हो कर संदीप कुछ पहले चला गया. मैं ने मुंह पर पड़ा शौल जरा सा हटा कर अर्चना की तरफ देखा तो पाया कि उस की आंखों में आंसू थे.

मैं उस की चिंता व दुखदर्द बांटना चाहती थी. उस की समस्या ने मेरे दिल को छू लिया था, तभी उस के पास जाने से मैं खुद को रोक नहीं सकी.

मुझ जैसी बड़ी उम्र की औरत के लिए किसी लड़की से परिचय बनाना आसान होता है. बड़े सहज ढंग से मैं ने उस के बारे में जानकारी हासिल की. बातचीत ऐसी हलकीफुलकी रखी कि वह भी जल्दी ही मुझ से खुल गई.

इस सार्वजनिक पार्क के एक तरफ आलीशान कोठियां बनी हैं और दूसरी तरफ मध्यवर्गीय आय वालों के फ्लैट्स हैं. मेरा बड़ा बेटा अमित कोठी में रहता है और छोटा अरुण फ्लैट में.

अर्चना भी फ्लैट में रहती थी. उस की समस्या पर उस से जिक्र करने से पहले मैं उस की दोस्त बनना चाहती थी. तभी जिद कर के मैं साथसाथ चाय पीने के लिए उसे अरुण के फ्लैट पर ले आई.

छोटी बहू सीमा ने हमारे लिए झटपट अदरक की चाय बना दी. कुछ समय हमारे पास बैठ कर वह रसोई में चली गई. चाय खत्म कर के मैं और अर्चना बालकनी के एकांत में आ बैठे. मैं ने उस की समस्या पर चर्चा छेड़ दी.

‘‘अर्चना, तुम्हारी व्यक्तिगत जिंदगी को ले कर मैं तुम से कुछ बातें करना चाहूंगी. आशा है कि तुम उस का बुरा नहीं मानोगी,’’ यह कह कर मैं ने उस का हाथ अपने दोनों हाथों में ले कर प्यार से दबाया.
‘‘मीना आंटी, आप मुझे दिल की बहुत अच्छी लगी हैं. आप कुछ भी पूछें या कहें, मैं बिलकुल बुरा नहीं मानूंगी,’’ उस का भावुक होना मेरे दिल को छू गया.

‘‘वहां पार्क में मैं ने संदीप और तुम्हारी बातें सुनी थीं. तुम संदीप से प्रेम करती हो. वह एक साल के लिए अपनी कंपनी की तरफ से अगले माह विदेश जा रहा है. तुम चाहती हो कि विदेश जाने से पहले तुम दोनों की सगाई हो जाए. संदीप यह काम लौट कर करना चाहता है. इसी बात को ले कर तुम दोनों के बीच मनमुटाव चल रहा है ना?’’ मेरी आवाज में उस के प्रति गहरी सहानुभूति के भाव उभरे.

कुछ पल खामोश रहने के बाद अर्चना ने चिंतित लहजे में जवाब दिया, ‘‘आंटी, संदीप और मैं एकदूसरे के दिल में 3 साल से बसते हैं. दोनों के घर वालों को हमारे इस प्रेम का पता नहीं है. वह बिना सगाई के चला गया तो मैं खुद को बेहद असुरक्षित महसूस करूंगी.’’

‘‘क्या तुम्हें संदीप के प्यार पर भरोसा नहीं है?’’

‘‘भरोसा तो पूरा है, आंटी, पर मेरा दिल बिना किसी रस्म के उसे अकेला विदेश भेजने से घबरा रहा है.’’
मैं ने कुछ देर सोचने के बाद पूछा, ‘‘संदीप के बारे में मातापिता को न बताने की कोई तो वजह होगी.’’
‘‘आंटी, मेरी बड़ी दीदी ने प्रेम विवाह किया था और उस की शादी तलाक के कगार पर पहुंची हुई है. पापामम्मी को अगर मैं संदीप से प्रेम करने के बारे में बताऊंगी तो मेरी जान मुसीबत में फंस जाएगी.’’
‘‘और संदीप ने तुम्हें अपने घरवालों से क्यों छिपा कर रखा है?’’

अर्चना ने बेचैनी के साथ जवाब दिया, ‘‘संदीप के पिता बहुत बड़े बिजनेसमैन हैं. आर्थिक दृष्टि से हम उन के सामने कहीं नहीं ठहरते. मैं एमबीए पूरी कर के नौकरी करने लगूं, तब तक के लिए उस ने अपने मातापिता से शादी का जिक्र छेड़ना टाल रखा है. मेरी एमबीए अगले महीने समाप्त होगा, लेकिन उस के विदेश जाने की बात के कारण स्थिति बदल गई है. मैं चाहती हूं कि वह फौरन अपने मातापिता से इस मामले में चर्चा छेड़े.’’

अर्चना का नजरिया तो मैं समझ गई लेकिन संदीप ने अभी विदेश जाने से पहले अपने मातापिता से शादी का जिक्र छेड़ने से पार्क में साफ इनकार कर दिया था और उस के इनकार करने के ढंग में मैं ने बड़ी कठोरता महसूस की थी. उस ने अर्चना के नजरिए को समझने की कोशिश भी नहीं की थी. मुझे उस का व्यक्तित्व पसंद नहीं आया था. तभी दुखी व परेशान अर्चना का मनोबल बढ़ाने के लिए मैं ने उस की सहायता करने का फैसला लिया था.

मेरा 5 वर्षीय पोता समीर स्कूल से लौट आया तो हम आगे बात नहीं कर सके क्योंकि उस की मांग थी कि उस के कपड़े बदलने, खाना परोसने व खिलाने का काम दादी ही करें.

अर्चना अपने घर जाना चाहती थी पर मैं ने उसे यह कह कर रोक लिया कि बेटी, अगर तुम्हें कोई ऐतराज न हो तो मैं भी तुम्हारे साथ चलूं. तुम्हारी मां से मिलने का दिल है मेरा.

रास्ते में अर्चना ने उलझन भरे लहजे में पूछा, ‘‘मीना आंटी, क्या संदीप के विदेश जाने से पहले उस के साथ सगाई की रस्म हो जाने की मेरी जिद गलत है?’’

‘‘इस सवाल का सीधा ‘हां’ या ‘न’ में जवाब नहीं दिया जा सकता है,’’ मैं ने गंभीर लहजे में कहा, ‘‘मेरी समझ से इस समस्या के 2 महत्त्वपूर्ण पहलू हैं.’’

‘‘कौनकौन से, आंटी?’’

‘‘पहला यह कि क्या संदीप का तुम्हारे प्रति प्रेम सच्चा है? अगर इस का जवाब ‘हां’ है तो वह लौट कर तुम से शादी कर ही लेगा. दूसरी तरफ वह ‘रोकने’ की रस्म से इसलिए इनकार कर रहा हो कि तुम से शादी करने का इच्छुक ही न हो.’’

‘‘ऐसी दिल तोड़ने वाली बात मुंह से मत निकालिए, आंटी,’’ अर्चना का गला भर आया.

‘‘बेटी, यह कभी मत भूलो कि तथ्यों से भावनाएं सदा हारती हैं. हमारे चाहने भर से जिंदगी के यथार्थ नहीं बदलते,’’ मैं ने उसे कोमल लहजे में समझाया.

‘‘मुझे संदीप पर पूरा विश्वास है,’’ उस ने यह बात मानो मेरे बजाय खुद से कही थी.

‘‘होना भी चाहिए,’’ मैं ने प्यार से उस की पीठ थपथपाई.

‘‘आंटी, मेरी समस्या का दूसरा पहलू क्या है?’’ अर्चना ने मुसकराने की कोशिश करते हुए पूछा.

‘‘तुम्हारी खुशी है. तुम्हारे मन की सुखशांति.’’

‘‘मैं कुछ समझ नहीं, आंटी.’’

‘‘अभी इस बारे में मुझ से कुछ मत पूछो पर मैं तुम्हें विश्वास दिलाती हूं कि संदीप के विदेश जाने में अभी 2 सप्ताह बचे हैं और इस समय के अंदर ही तुम्हारी समस्या का उचित समाधान मैं ढूंढ़ लूंगी.’’

ऐसा आश्वासन पा कर अर्चना ने मुझ से आगे कुछ नहीं पूछा.

अर्चना की मां सावित्री एक आम घरेलू औरत थीं. मेरी 2 सहेलियां उन की भी परिचित निकलीं तो हम जल्दी सहज हो कर आपस में हंसनेबोलने लगे.

मैं ने अर्चना की शादी का जिक्र छेड़ा तो सावित्री ने बताया, ‘‘मीना बहनजी, इस के लिए इस की बूआ ने बड़ा अच्छा रिश्ता सुझाया है पर यह जिद्दी लड़की हमें बात आगे नहीं चलाने देती.’’

‘‘क्या कहती है अर्चना?’’ मैं ने उत्सुकता दर्शाई.

‘‘यही कि एमबीए के बाद कम से कम सालभर नौकरी कर के फिर शादी के बारे में सोचूंगी.’’
‘‘उस के ऐसा करने में दिक्कत क्या है, बहनजी?’’

‘‘अर्चना के पापा इतना लंबा इंतजार नहीं करना चाहते. अपनी बहन का भेजा रिश्ता उन्हें बहुत पसंद है.’’

मैं समझ गई कि आने वाले दिनों में अर्चना पर शादी का जबरदस्त दबाव बनेगा. अर्चना की जिद कि संदीप सगाई कर के विदेश जाए, मुझे तब जायज लगी.

‘‘अर्चना, कल तुम पार्क में मुझे संदीप से मिलाना. तब तक मैं तुम्हारी परेशानी का कुछ हल सोचती हूं,’’ इन शब्दों से उस का हौसला बढ़ा कर मैं अपने घर लौट आई.

अगले दिन पार्क में अर्चना ने संदीप से मुझे मिला दिया. एक नजर मेरे साधारण से व्यक्तित्व पर डालने के बाद संदीप की मेरे बारे में दिलचस्पी फौरन बहुत कम हो गई.

मैं ने उस से थोड़े से व्यक्तिगत सवाल सहज ढंग से पूछे. उस ने बड़े खिंचे से अंदाज में उन के जवाब दिए. यह साफ था कि संदीप को मेरी मौजूदगी खल रही थी.

उन दोनों को अकेला छोड़ कर मैं दूर घास पर आराम करने चली गई.

संदीप को विदा करने के बाद अर्चना मेरे पास आई. उस की उदासी मेरी नजरों से छिपी नहीं रह सकी. मैं ने प्यार से उस का हाथ पकड़ा और उस के बोलने का इंतजार खामोशी से करने लगी.

कुछ देर बाद हारे हुए लहजे में उस ने बताया, ‘‘आंटी, वह सगाई करने के लिए तैयार नहीं है. उस की दलील है कि जब शादी एक साल बाद होगी तो अभी से दोनों परिवारों के लिए तनाव पैदा करने का कोई औचित्य नहीं है.’’

कुछ देर खामोश रहने के बाद मैं ने मुसकराते हुए विषय परिवर्तन किया, ‘‘देखो, परसों मेरे बड़े बेटे अंकित की कोठी में शानदार पार्टी होगी. मेरी पोती शिखा का 8वां जन्मदिन है. तुम्हें उस पार्टी में मेरे साथ शामिल होना होगा.’’

अर्चना ने पढ़ाई का बहाना कर के पार्टी में आने से बचना चाहा पर मेरी जिद के सामने उस की एक न चली. उस की मां से इजाजत दिलवाने की जिम्मेदारी मैं ने अपने ऊपर ले ली थी.

मेरा बेटा अमित व बहू निशा दोनों कंप्यूटर इंजीनियर हैं. उन्होंने प्रेम विवाह किया था. मेरे मायके या ससुराल वालों में दोनों तरफ दूरदूर तक कोई भी उन जैसा अमीर नहीं है.

अमित ने पार्टी का आयोजन अपनी हैसियत के अनुरूप भव्य स्तर पर किया. सभी मेहमान शहर के बड़े और प्रतिष्ठित आदमी थे. उन की देखभाल के लिए वेटरों की पूरी फौज मौजूद थी. शराब के शौकीनों के लिए ‘बार’ था तो डांस के शौकीनों के लिए डीजे सिस्टम मौजूद था.

मेरी छोटी बहू सीमा, अर्चना और मैं खुद इस भव्य पार्टी में मेहमान कम, दर्शक ज्यादा थे. जो एकदो जानपहचान वाले मिले वे भी हम से ज्यादा बातें करने को उत्सुक नहीं थे.

अमित और निशा मेहमानों की देखभाल में बहुत व्यस्त थे. हम ठीक से खापी रहे हैं, यह जानने के लिए दोनों कभीकभी कुछ पल को हमारे पास नियमित आते रहे.

रात को 11 बजे के करीब उन से विदा ले कर जब हम अपने फ्लैट में लौटे, तब तक 80 प्रतिशत से ज्यादा मेहमानों ने डिनर करना भी नहीं शुरू किया था.

पार्टी के बारे में अर्चना की राय जानने के लिए अगले दिन मैं 11 बजे के आसपास उस के घर पहुंच गई थी.

‘‘आंटी, पार्टी बहुत अच्छी थी पर सच कहूं तो मजा नहीं आया,’’ उस ने सकुचाते हुए अपना मत व्यक्त किया.

‘‘मजा क्यों नहीं आया तुम्हें?’’ मैं ने गंभीर हो कर सवाल किया.

‘‘पार्टी में अच्छा खानेपीने के साथसाथ खूब हंसनाबोलना भी होना चाहिए. बस, वहां जानपहचान के लोग न होने के कारण पार्टी का पूरा लुत्फ नहीं उठा सके हम.’’

‘‘अर्चना, हम दूसरे मेहमानों के साथ जानपहचान बढ़ाने की कोशिश करते तो क्या वे हमें स्वीकार करते? मैं चाहूंगी कि तुम मेरे इस सवाल का जवाब सोचसमझ कर दो.’’

कुछ देर सोचने के बाद अर्चना ने जवाब दिया, ‘‘आंटी, वहां आए मेहमानों का सामाजिक व आर्थिक स्तर हम से बहुत ऊंचा था. हमें बराबर का दर्जा देना उन्हें स्वीकार न होता.’’
‘‘एक बात पूछूं?’’

‘‘पूछिए.’’

‘‘क्या ऐसा ही अंतर तुम्हारे व संदीप के परिवारों में नहीं है?’’

‘‘है,’’ अर्चना का चेहरा उतर गया.

‘‘तब क्या तुम्हारे लिए यह जानना जरूरी नहीं है कि उस के घर वाले तुम्हें बहू के रूप में आदरसम्मान देंगे या नहीं?’’

‘‘आंटी, क्या संदीप का प्यार मुझे ये सभी चीजें उन से नहीं दिलवा सकेगा?’’

‘‘अर्चना, कल की पार्टी में अमित की मां, भाईभतीजा व भाई की पत्नी मौजूद थे. लगभग सभी मेहमान हमें पहचानने के बावजूद हम से बोलना अपनी तौहीन सम?ाते रहे. सिर्फ संदीप की पत्नी बन जाने से क्या तुम्हारे अमीर ससुराल वालों का तुम्हारे प्रति नजरिया बदल जाएगा?’’

अनुभव के आधार पर मैं ने एकएक शब्द पर जोर दिया, ‘‘तुम्हें संदीप के घर वालों से मिलना होगा. वे तुम्हारे साथ सगाई करें या न करें पर इस मुलाकात के लिए तुम अड़ जाओ, अर्चना.’’

मेरे कुछ देर तक समझने के बाद बात उस की समझ में आ गई. मेरी सलाह पर अमल करने का मजबूत इरादा मन में ले कर वह संदीप से मिलने पार्क की तरफ गई.

करीब डेढ़ घंटे बाद जब वह लौटी तो उस की सूजी आंखों को देख कर मैं संदीप का जवाब बिना बताए ही जान गई.

‘‘वह अपने घर वालों से तुम्हें मिलाने को नहीं माना?’’

‘‘नहीं, आंटी,’’ अर्चना ने दुखी स्वर में जवाब दिया, ‘‘मैं उस के साथ लड़ी भी और रोई भी पर संदीप नहीं माना. वह कहता है कि इस मुलाकात को अभी अंजाम देने का न कोई महत्त्व है और न ही जरूरत है.’’
‘‘उस के लिए ऐसा होगा पर हम ऐसी मुलाकात को पूरी अहमियत देते हुए इसे बिना संदीप की इजाजत के अंजाम देंगे, अर्चना. संदीप की जिद के कारण तुम अपनी भावी खुशियों को दांव पर नहीं लगा सकतीं,’’ मेरे गुस्से से लाल चेहरे को देख कर वह घबरा गई थी.

डरीघबराई अर्चना को संदीप की मां से सीधे मिलने को राजी करने में मुझे खासी मेहनत करनी पड़ी पर आखिर में उस की ‘हां’ सुन कर ही मैं उस के घर से उठी.

जीवन हमारी सोचों के अनुसार चलने को जरा भी बाध्य नहीं. अगले दिन दोपहर को संदीप के पिता की कोठी की तरफ जाते हुए अर्चना और मैं काफी ज्यादा तनावग्रस्त थे पर वहां जो भी घटा वह हमारी उम्मीदों से कहीं ज्यादा अच्छा था.

संदीप की मां अंजू व छोटी बहन सपना से हमारी मुलाकात हुई. अर्चना का परिचय मुझे उन्हें नहीं देना पड़ा. कालेज जाने वाली सपना ने उसे संदीप भैया की खास ‘गर्लफ्रैंड’ के रूप में पहचाना और यह जानकारी हमारे सामने ही मां को भी दे दी.

संदीप की जिंदगी में अर्चना विशेष स्थान रखती है, अपनी बेटी से यह जानकारी पाने के बाद अंजू बड़े प्यार व अपनेपन से अर्चना के साथ पेश आईं. सपना का व्यवहार भी उस के साथ किसी सहेली जैसा चुलबुला व छेड़छाड़ वाला रहा.

जिस तरह का सम्मान व अपनापन उन दोनों ने अर्चना के प्रति दर्शाया वह हमें सुखद आश्चर्य से भर गया. गपशप करने को सपना कुछ देर बाद अर्चना को अपने कमरे में ले गई.

अकेले में अंजू ने मुझ से कहा, ‘‘मीनाजी, मैं तो बहू का मुंह देखने को न जाने कब से तरस रही हूं पर संदीप मेरी नहीं सुनता. अगला प्रमोशन होने तक शादी टालने की बात करता है. अब अमेरिका जाने के कारण उस की शादी सालभर को तो टल ही गई न.’’

‘‘आप को अर्चना कैसी लगी है?’’ मैं ने बातचीत को अपनी ओर मोड़ते हुए पूछा. ‘‘बहुत प्यारी है. सब से बड़ी बात कि वह मेरे संदीप को पसंद है,’’ अंजू बेहद खुश नजर आईं.

‘उस के पिता बड़ी साधारण हैसियत रखते हैं. आप लोगों के स्तर की शादी करना उन के बस की बात नहीं.’’

‘‘मीनाजी, मैं खुद स्कूलमास्टर की बेटी हूं. आज सबकुछ है हमारे पास. सुघड़ और सुशील लड़की को हम एक रुपया दहेज में लिए बिना खुशीखुशी बहू बना कर लाएंगे.’’

बेटे की शादी के प्रति उन का सादगीभरा उत्साह देख कर मैं अचानक इतनी भावुक हुई कि मेरी आंखें भर आईं.

अर्चना और मैं ने बहुत खुशीखुशी उन के घर से विदा ली. अंजू और सपना हमें बाहर तक छोड़ने आईं.

‘‘कोमल दिल वाली अंजू के कारण तुम्हें इस घर में कभी कोई दुख नहीं होगा अर्चना. दौलत ने मेरे बड़े बेटे का जैसे दिमाग घुमाया है, वैसी बात यहां नहीं है. अब तुम फोन पर संदीप को इस मुलाकात की सूचना फौरन दे डालो. देखें, अब वह सगाई कराने को तैयार होता है या नहीं.’’ मेरी बात सुन कर अब तक खुश नजर आ रही अर्चना की आंखों में चिंता के बादल मंडरा उठे.

संदीप की प्रतिक्रिया मुझे अगले दिन शाम को अर्चना के घर जा कर ही पता चली. मैं इंतजार करती रही कि वह मेरे घर आए लेकिन जब वह शाम तक नहीं आई तो मैं ही दिल में गहरी चिंता के भाव लिए उस से मिलने पहुंच गई.

हुआ वही जिस का मुझे डर पहले दिन से था. संदीप अर्चना से उस दिन पार्क में खूब जोर से झगड़ा. उसे यह बात बहुत बुरी लगी कि मेरे साथ अर्चना उस की इजाजत के बिना क्यों उस की मां व बहन से मिल कर आई.

‘‘मीना आंटी, मैं आज संदीप से न दबी और न ही कमजोर पड़ी. जब उस की मां को मैं पसंद हूं तो अब उसे सगाई करने से ऐतराज क्यों?’’ अर्चना का गुस्सा मेरे हिसाब से बिलकुल जायज था.
‘‘आखिर में क्या कह रहा था संदीप?’’ उस का अंतिम फैसला जानने को मेरा मन बेचैन हो उठा.
‘‘मुझ से नाराज हो कर भाग गया वह, आंटी. मैं भी उसे ‘चेतावनी’ दे आई हूं.’’

‘‘कैसी ‘चेतावनी’?’’ मैं चौंक पड़ी.

‘‘मैं ने साफ कहा कि अगर उस के मन में खोट नहीं है तो वह सगाई कर के ही विदेश जाएगा वरना मैं समझ लूंगी कि अब तक मैं एक अमीरजादे के हाथ की कठपुतली बन मूर्ख बनती रही हूं.’’

‘‘तू ने ऐसा सचमुच कहा?’’ मेरी हैरानी और बढ़ी.

‘‘आंटी, मैं ने तो यह भी कह दिया कि अगर उस ने मेरी इच्छा नहीं पूरी की तो उस के जहाज के उड़ते ही मैं अपने मम्मीपापा को अपना रिश्ता उन की मनपसंद जगह करने की इजाजत दे दूंगी.’’

एक पल को रुक कर अर्चना फिर बोली, ‘‘आंटी, उस से प्रेम कर के मैं ने कोई गुनाह नहीं किया है जो मैं अब शादी करने को उस के सामने गिड़गिड़ाऊं. अगर मेरा चुनाव गलत है तो मेरा उस से अभी दूर हो जाना ही बेहतर होगा.’’

‘‘मैं तुम से पूरी तरह सहमत हूं, बेटी,’’ मैं ने उसे अपनी छाती से लगा लिया और बोली, ‘‘दोस्ती और प्रेम के मामले में जो दौलत को महत्त्व देते हैं वे दोस्त या प्रेमी बनने के काबिल नहीं होते.’’

‘‘आप का बहुत बड़ा सहारा है मुझे. अब मैं किसी भी स्थिति का सामना कर लूंगी, मीना आंटी,’’ उस ने मुझे जोर से भींचा और हम दोनों अपने आंसुओं से एकदूसरे के कंधे भिगोने लगीं.

वैसे अर्चना की प्रेम कहानी का अंत बढि़या रहा. अपने विदेश जाने से एक सप्ताह पहले संदीप मातापिता के साथ अर्चना के घर पहुंच गया. अर्चना की जिद मान कर सगाई की रस्म पूरी कर के ही विदेश जाना उसे मंजूर था.

अगले दिन पार्क में मेरी उन दोनों से मुलाकात हुई. मेरे पैर छू कर संदीप ने पूछा, ‘‘मीना आंटी, मैं सगाई या अर्चना को अपने घर वालों से मिलाना टालता रहा, इस कारण आप ने कहीं यह अंदाजा तो नहीं लगाया कि मेरी नीयत में खोट था?’’

‘‘बिलकुल नहीं,’’ मैं ने आत्मविश्वास के साथ झुठ बोला, ‘‘मैं ने जो किया, वह यह सोच कर किया कि कहीं तुम नासमझ में अर्चना जैसे हीरे को न खो बैठो.’’
‘‘थैंक यू, आंटी,’’ वह खुश हो गया.

एक पल में ही मैं मीना आंटी से डार्लिंग आंटी बन गई. अर्चना मेरे गले लगी तो लगा कि बेटी विदा हो रही है.

Hindi Stories Online : बिकाऊ माल – क्या बेटों का मोल सिर्फ दहेज है?

Hindi Stories Online : बूआ मुंह से तो न कहतीं लेकिन उन की मंशा यही थी कि लड़कों की शादी में मोटा दहेज वसूलें. लेकिन कहते हैं न ‘लालच बुरी बला.’

रिश्ते में मेरी बूआ की बेटी है जानकी. वह खूब बातूनी है और खूब कंजूस भी. बस, बातों ही में सब की मेहमानदारी कर डालती है और किसी को यह महसूस ही नहीं होने देती कि बूआ और उस ने किसी को पानी तक के लिए नहीं पूछा. कंजूस तो हमारे तीनों कजिन भी हैं.

उन की जानकी मुझे बहन की तरह मानती है. भूलेभटके ही मैं उन के घर जाती हूं तो सभी खुशी से पागल हो जाते हैं. वे समझ नहीं पाते कि मेरी खातिरदारी वे कैसे करें. बातों ही बातों में खानेपीने की चीजों का अंबार लगा देते हैं, लेकिन सामने एक भी डिश नहीं आती. जब मैं उन के घर से वापस आती हूं तो मेरे पेट में भूखे चूहों की इतनी उछलकूद हो रही होती है कि मैं समझ नहीं पाती, घर कैसे जल्दी पहुंचूं और इन्हें थोड़ा चारा डाल कर रास्ते में कैसे शांत करूं.

वैसे तो थोड़ाबहुत मैं खा कर ही जाती हूं, क्योंकि मुझे मालूम होता है कि वहां से खाली पेट आना पड़ेगा. लेकिन जानकी की बातों के जवाब देतेदेते मेरे पेट को भूख महसूस होने लगती है. जब मैं उठने लगती हूं तो जानकी मेरा हाथ पकड़ कर तपाक से कह उठती, ‘नहींनहीं, इतनी जल्दी चली जाएगी, वह भी सुच्चे मुंह, अभी तो बातों से ही मेरा मन नहीं भरा. ठहर, मैं कुछ खाने को मंगवाती हूं.’ फिर वह अपने तीनों भाइयों को आवाज लगा कर अपने पास बुलाएगी और डांटने लगेगी, ‘क्यों रे, बेवकूफो, तुम्हें जरा भी तमीज नहीं है. शादी लायक हो गए लेकिन अक्ल नहीं आई. देख रहे हो, तुम्हारी कजिन 3 घंटे से आई बैठी है और तुम लोग हो कि उस के लिए अभी तक चायनाश्ता ही नहीं मंगाया?’

और वे तीनों शातिर एकदूसरे का मुंह देखने लगते हैं, जैसे पूछ रहे हों, ‘क्या, जानकी सचमुच लाने को कह रही है?’ तभी जानकी फुंफकार उठती है, ‘खड़ेखड़े मुंह क्या देख रहे हो, कौफी बना लाओ.’

उन तीनों के पीठ मोड़ते ही जानकी बोल उठती, ‘ठहरो, इतनी गरमी में वह क्या कौफी पिएगी, पहले ही उस का सिर दुखता है. कुछ ठंडावंडा ले आओ. क्यों, रमा, तू बता न, क्या पिएगी? क्या मंगाऊं? तेरा गला तो ठीक है न? अच्छा रहने दे, दहीपकौड़ी मंगवा देती हूं. हायहाय, मैं भी कैसी भुलक्कड़ हूं. याद ही नहीं रहा, चंदू स्वीट्स की तो आज छुट्टी है. कल उस के बड़े भाई गुजर गए थे न.’

रास्ते में आते हुए मैं ने देखा था कि चंदू स्वीट्स के शोकेस खाने से चमक रहे थे पर नतीजा यह होता है कि मुझे जानकी से हंसतेहंसते कहना पड़ता है, ‘छोड़ो इस खानेपिलाने की झंझट को, क्यों तकलीफ करती हो. मैं तो घर से खा कर आई थी. अभी तक पेट भरा है…’ और इस तरह हर बार मुझे बिना पानी पिए वापस आना पड़ता है.

घर के बाहर तक जानकी छोड़ने आती तो चिंता के मारे उस का चेहरा पीला पड़ गया होता. वह अगली बार के लिए अपने सिर की कसम दे देती कि खबरदार, जो मैं कुछ घर से खा कर आऊं?

इच्छा तो होती है जानकी से कहूं, ‘तेरी अकाल मौत के डर से मैं आज भी भूखी आई थी,’ लेकिन बोलने की इतनी भी ताकत नहीं थी कि मैं उसे समझ सकूं कि झुठी कसमें मत खाया करो, जानकी. क्या पता, किस दिन तुम्हारी वाणी पर सरस्वती विराजमान हो जाए और मेरे सामने ही तुम एनीमिया की शिकार हो जाओ. खाली पेट तो मुझ से अस्पताल भी जाना नहीं हो पाएगा.

हमारी बूआ के 3 बेटे हैं और एक जानकी है. तीनों कजिन ब्याहने लायक हैं. नाम हैं उन के राम, कृष्ण और महावीर. पूरा परिवार बड़ा धार्मिक व अंधविश्वासी है. चाचा ने तो देख कर शादी की थी पर फूफा को न जाने कौन सा भक्ति का रंग चढ़ा कि स्वतंत्रता संग्रामी का चोला छोड़ कर वे देश से विधर्मियों को निकालने की बातें करने लगे और जम कर पूजापाठ करते. हां, दानदक्षिणा कम ही देते, बातें बहुत बनाते.

लड़का रामनवमी के दिन पैदा हुआ था, सो, बूआजी कहती हैं, यह रामचंद्रजी का आशीर्वाद है, इसीलिए इस का नाम राममोहन रखा. बिचला कृष्ण जन्माष्टमी के दिन दुनिया में आया था, सो वह भगवान कृष्ण का प्रसाद है. तीसरा महावीर हनुमान जयंती के दिन पैदा हुआ था इसीलिए वह हनुमानजी की कृपा का फल है. मेरी तीनों कजिनों से कभी नहीं बनी. लेकिन हैं तो कजिन ही न. तीनों अलगथलग रहते थे.

जानकी की समझ में आ गया था कि जब तक उन तीनों की शादियां न होंगी, उस का नंबर नहीं आ सकेगा. वह सब से छोटी जो थी. सो, जानकी उन तीनों के विवाह के लिए चिंतित रहती थी. आतेजाते से लड़कियां ढूंढ़ने के लिए तकाजा करती. मेरे पति को भी वह दिनरात याद दिलाती, ‘भूलना नहीं, जीजाजी. लड़कियां ऐसी ढूंढ़ना, अंदर बैठें तो बाहर तक उन के रूपरंग का उजाला पड़े.’

मेरे पति कभीकभी हंसते हुए जानकी से कह देते, ‘क्यों, जानकी, घर के बिजली खर्च में कटौती करने का इरादा है क्या?’

‘अरे, नहींनहीं, जीजाजी. महिला घर में सुंदर हो तो घर भराभरा लगता है. दहेज तो अपने मुंह से मांगेंगे नहीं. वह तो, बस, लड़की सुंदर मांगती हूं,’ जानकी कहती.

‘यह तो तुम ने अच्छी याद दिलाई, जानकी. कल ही मेरे एक मित्र कह रहे थे, कोई ऐसा लड़का बताओ जो दहेज के चक्कर में न पड़े. आप की तो मुझे याद ही नहीं आई. अब आज ही उस से बात करूंगा.’

‘न, न, बेटा. वहां बात मत करना,’ बीच में बूआ घबरा कर बोली, ‘हमारे कहने का यह मतलब नहीं कि हम तीन ही कपड़ों में लड़की ले आएंगे. मैं तो यह कहती हूं कि मैं दहेज नहीं मांगूंगी. वैसे, लड़की के मातापिता देने में कोई कसर थोड़े ही रखते हैं. लड़की खाली हाथ चली आए तो भला ससुराल में उस की कोई इज्जत होती है. पति भी बातबात में बहू को डंक मारता है कि कैसी भिखमंगों की लड़की पल्ले पड़ी है.’

बूआ बड़ी तर्कपूर्ण बात करती. जानकी भी बड़ीबूढ़ी की तरह सिर हिलाती.

‘लेकिन बूआजी, आप अपने राजकुमारों की पढ़ाई तो पूरी हो जाने दो. यह बीवी का ढोल क्यों उन के गले में बांधती हो?’ पति बूआ को समझते.

‘अरे भैया, तुम समझते क्यों नहीं, लड़कियां क्या रास्ते में बैठी हैं जो बात की और उठ कर चल देंगी. समय लगता है उन्हें ढूंढ़ने में. फिर कुछ समय तो सगाई भी रहनी चाहिए. दोनों परिवारों को एकदूसरे को समझने का मौका मिल जाता है. लड़की के चालचलन का भी पता लग जाता है. इन तीनों का निबटारा हो तो जानकी की बात चलाऊं.’

‘और, बूआजी, यह क्यों नहीं कहतीं कि समधियों से खाने को माल भी मिल जाता है. आप हैं बड़ी समझदार, दूर की सोचती हैं. खैर, यह तो बताइए, हमारे सालों की उम्र क्या है?’

‘अरे, वे क्या छोटे हैं, इसीलिए तो चिंता खाए जा रही है. बड़ा राम रामनवमी पर पूरा 24 का हो जाएगा,’ बूआ होंठों को दांत के नीचे दबा कर बोली थी.
‘और अभी तक वह तो क्लर्क की नौकरी के लिए एग्जाम दे रहा है?’ मेरे पति हैरानी से बोले थे.
‘अरे, वह क्या जानबूझ कर पड़ा है. यह मेरी सरकार ही रिजल्ट सही से नहीं निकालती.

राममोहन खिलाड़ी भी था, हौकी खेलता है. सारा दिन मैदान के पास बैठा रहता है. पहले तो लड़के आते थे पर अब सब की नौकरियां लग गईं तो बच्चों के साथ थोड़ाबहुत खेल कर मन बहलाता है.

जन्माष्टमी पर 21 का हो जाएगा, वह भी 2-3 बार कौरेसपौंडेंस परीक्षा में बैठ कर फेल हो चुका है. तीसरा भी 20 का हो जाएगा. मैं जानती थी कि तीनों अव्वल दर्जे के निकम्मे हैं. फर्नीचर के नाम पर जानकी के घर में 4 कुरसियां और 2 मेजें थीं. हर कुरसी अलग डिजाइन की.

एक कुरसी का बेंत ढीला था. दो कुरसियां अभी जवान थीं. मैं ने एक बार बूआ से कहा था, ‘बूआ, फेंको इन पुरानी कुरसियों को. बैठो तो डर लगता है. न जाने किस वक्त गुस्से में इन की टांग लडखड़ा जाए और बैठने वाले को दंडवत प्रणाम करना पड़े.’

बूआ बड़ी हैरानी से मुझे देखतीं, फिर कहतीं, ‘क्यों बेटा, घर में जो बूढ़े मांबाप हो जाते हैं उन्हें भी फेंक देना चाहिए?’

मैं ने कहा, ‘इंसान और सामान में फर्क होता है, बूआ. कोई ऐसा तो है नहीं कि तुम गरीब हो. प्रकृति का दिया सबकुछ है. मकान, जायदाद, पैसा, जेवर और फूफा की अच्छीखासी ऊपर की कमाई वाली नौकरी.’ जानकी हमेशा की तरह सिर हिलाती बोली, ‘दीदी, ऐसी बातें क्या मुंह से निकाली जाती हैं, दीवारों के भी कान होते हैं. पापा क्या इस पचड़े में पड़ने वाले थे. वह तो भले ही जिद समझ जो थोड़ाबहुत ले लेते हैं. तुम ही सोचो, दीदी खालिस तनख्वाह में कहीं 6 जनों का गुजारा होता है?’

‘लेकिन घर का थोड़ाबहुत सामान तो बनवा लो. आजकल तो मेजकुरसी पर खाने का फैशन है. लेकिन तुम हो कि अभी तक कोने पर, बक्सों पर कुशन रख कर काम चलाती हो. न सही ज्यादा फर्नीचर, बैठने को एक सोफा.’

‘न, न, जैसे हैं, हम उसी तरह अच्छे हैं. घर में कुछ भी सामान लाने का मतलब है लोगों का मुंह खुलवाना. किसी का मुंह बंद तो नहीं किया जाएगा, न यही कहेंगे, ‘साला ऊपर की कमाई खाता है.’ इस तरह सीधेसादे रहने से किसी को शक नहीं होता. फिर अब तेरे भाइयों के ब्याह हैं, तीनतीन दहेज आएंगे. घर भर जाएगा सामान से,’ बूआ ने कहा था.

उन्हीं दिनों जानकी का किसी लड़के से चक्कर चलने लगा था. उस ने मुझे बताया तो सही पर कुछ ज्यादा नहीं. लड़का शायद विधर्मी था पर अच्छा कमा लेता था. जानकी ने बूआ से कई बार कहा कि भाइयों की शादी कर दो पर बूआ तो दहेज के लालच में थी. जब तक मोटा दहेज न मिले वह किसी भी बेटे की शादी करने को तैयार न थी चाहे वे मामूली शक्लसूरत के और निखट्टू थे.

‘‘लेकिन बूआ, यह मकान तो ठीक करवा लो, जगहजगह से टूट रहा है. कल को लड़की वाले घरवर देखने आएं तो ऐसा घर देख तुम्हें कौन अपनी लड़की देगा?’’
‘‘कहती तो तू सच है. हम ने भी इंतजाम कर लिया है. इन के दफ्तर का काम चल रहा है. वह पूरा हुआ कि देखना ठेकेदार हमारे घर का कैसे हुलिया बदल देगा,’’ बूआ धीरे से बोली.
‘‘वह कैसे, बूआ?’’
‘‘तेरे फूफा ने इसी शर्त पर उसे ठेका दिया था,’’ बूआ ने मेरे कान में धीरे से कहा. जानकी के कहने पर बूआ लड़कों की शादी के लिए बड़ी परेशान हो गई. बहुत से लोगों से कह रखा था. लेकिन बूआ के गुणगान सुनते ही लड़की वाले दूर से सलाम कर लेते. बूआ में एक और भी गुण था और वह था झगड़े करने का. झगड़े के ही मारे न तो घर में फूफाजी ही टिकते थे, न बरतन मांजने वाली बाई. बूआ को इस बात से हमेशा ही शिकायत रही, ‘तेरे फूफाजी को 2 बातें घर ले आती हैं, एक भूख और दूसरी नींद. अगर इस आदमी का इन बातों के लिए भी बाहर इंतजाम हो जाए तो घर में झांके तक नहीं.’ और बरतन मांजने वालियां तो बूआ को देखते ही बस कान पकड़ लेतीं. जानकी खुल कर मां से कुछ न कह सकी.

एक दिन बूआ का सवेरेसवेरे बड़े खुश स्वर में फोन आया.

‘‘रमा, मैं कहती थी न कि मेरे लड़के का अच्छा रिश्ता आएगा. अब पास के शहर के घर से रिश्ता आया है. लड़की का फोटो भी आया है. वे 5 लाख रुपए लगाएंगे शादी में.’’

जानकी को मैं ने फोन किया तो बोली, ‘‘दीदी, मां तो वैसे ही कह रही हैं. लड़की पर असल में बचपन में किसी ने तेजाब डाल दिया था और अब उन के पिता वैसे भी शादी कर देना चाहते हैं. तीनों ने फोटो देख कर ही नापसंद कर दिया पर मां अड़ी हैं कि एक से तो शादी कराएंगी,’’ थोड़ा रुक कर वह फिर बोली, ‘‘दीदी, इस चक्कर में मैं बेकार ही पिस रही हूं. मां से कुछ कहना तो आफत बुलवाना है.’’

जानकी और बूआ के घर में क्या चल रहा था, यह मुझे नहीं मालूम चल पा रहा था. बूआ का फोन कुछ कम आता था. अब वे जब भी बात करतीं तो 5 लाख रुपए के दहेज की बात जरूर बता देतीं.

एक दिन मैं ने कहा, ‘‘बूआ, पहले अपना घर तो ठीक करवा लो, एकाध कोई नीलाम घर से ही सोफा ले लो. एकाध दरी ले लो. समधी आएं तो घर देख कर कुछ तो प्रभावित हों.’’

‘‘कुरसियां तो मेरे पास हैं, बेटी.’’
‘‘कहां, इन कुरसियों पर कौन बैठ सकता है बूआ.’’
‘‘बस, दहेज मिलने दे, मैं पूरा घर चकाचक करा दूंगी.’’

हम लोग एक दिन रास्ते में टकरा गए थे. बूआ ने एक बार भी घर आने को नहीं कहा. हां, यह जरूर पूछ लिया कि मेरी गैस्ट लिस्ट में कौनकौन हैं ताकि वे होने वाले समधी को बता सकें.

यह सुनते ही हंसी तो बहुत आई लेकिन पिताजी का खयाल आते ही दबा लेनी पड़ी और कुछ बूआ की नाराजगी का भी डर था. मरते हुए पिताजी ने कहा था, ‘मैं जानता हूं, बेटी, बूआ तुम्हें कभी पसंद नहीं रही. तुम लोग तो मुझे भी मिलने से रोकते थे. लेकिन क्या करूं, सात भाईबहनों में से हम 2 ही तो बचे थे, कैसे छोड़ देता उसे, बहन जो थी. अब मैं तो जा रहा हूं. तुम्हारे दादा की यह अंतिम निशानी रह गई है, इस से रूठना मत, बेटी. मिलतीमिलाती रहना.’

एक दिन मैं ने ही उन्हें फोन किया. इधरउधर की बातें करने के बाद मैं ने बूआ से कहा. ‘‘अभी तो घर पर खर्चा कर डालो. जब शादी होगी तो मय सूद के पैसा वापस आ जाएगा.’’ बूआ ने कोई जवाब नहीं दिया.

खैर, एक दिन आने का संदेश दे दिया. तीनों लड़कों को बूआ ने खूब सजाया था. यही अच्छा था, लड़के अब कालेज में पढ़ते थे, सो चार कपड़े उन के पास अच्छे थे. बूआ के पास न जाने कब का सैंट रखा था. उन्होंने वह भी उन के शरीर पर मल दिया. मेरे पूछने पर बोली, ‘‘कमबख्त 8-8 दिन तक नहाते नहीं. पसीने की बू के बारे नाक सड़ने लगती है. सो, सैंट की गंध से पसीने की बू नहीं आएगी.’’

‘‘कुछ उन के लिए चायपानी का प्रबंध किया, बूआ?’’ मेरे पति बोले.
‘‘अरे बेटा, वे क्या बेटी के घर का खाएंगे?’’
‘‘पर अभी उन्होंने अपनी बेटी दी कहां है?’’ मैं ने कहा.

बूआ बुरा सा मुंह बनाती मान गईं.

लड़की वालों के साथ केवल बूआ ही बात करेंगी, ऐसी बूआ की आज्ञा थी. फूफा तो यह कह कर वहां से चले गए, ‘‘बेटी, तुम पतिपत्नी हो. बात संभाल लेना. मैं यहां रहा तो तेरी बूआ की पचरपचर कहीं मुझे आपे से बाहर न कर दे.’’ जाने को तो मेरे पति भी उठ खड़े हुए लेकिन मैं ने मिन्नत कर उन्हें रोक लिया, ‘‘पुरुष के साथ किसी पुरुष को ही बैठना चाहिए. भले ही उस का मुंह सिला हुआ हो.’’

जानकी कहीं दिख नहीं रही थी. मैं और मेरे पति बाहर वाले कमरे में बैठे थे. तब ही लड़की वाले आए. उन के हाथ खाली थे. 2 पुरुष थे. बूआ ने हमें बाहर ही रोक दिया. शायद वह दहेज की बात गुप्त रखना चाहती थी. हमें कुछ जोर से बोलने की आवाजें सुनाई दे रही थीं.

अचानक बूआ की चीख सुनाई दी, ‘हाय दैया, में तो मर गई.’

हम दोनों अंदर भागे, देखा, बूआ जोरजोर से रो रही थीं और जानकी को कोस रही थीं. सब बातों के बाद लड़कों को दिखाने की बात आई तो बूआ झट से उन के फोटो उठा लाईं. लड़की का पिता बोला, ‘‘हमें सैंपल नहीं, माल चाहिए.’’

उन्हें महावीर मोहन पसंद आया. बूआ ने झट से उस की कीमत भी बता दी, ‘‘मैं ने तो सोचा था, मैं अपने मुंह से दहेज नहीं मांगूंगी लेकिन आप अड़ ही गए हैं तो इस के लिए तो मैं 2 लाख रुपए का दहेज लूंगी.’’

‘‘मेरी तो 3 लड़कियां हैं. गरीब आदमी हूं, इतना कहां दे पाऊंगा. आप ने तो एक एकदम इतने भाव…’’

‘‘इस की बीमारी पर ही मेरा इतना खर्चा हो गया है, भाईसाहब. पढ़ाई का तो मैं ने बताया ही नहीं. जानते हैं, महंगाई का जमाना है. 2 लाख रुपए की कीमत ही क्या है? आप कृष्णमोहन से कर दीजिए रिश्ता,’’ बूआ बोलीं.

‘‘उस की आंख में नुक्स है, बहनजी. फिर जरा वह दादा टाइप है, जैसा कि आप ने बताया है. इसी से छोटा पसंद आया था,’’ समधी नम्रता से बोले.

पता चला कि जानकी ने अपने बौयफ्रैंड से शादी कर ली थी और उस की सूचना अपनी मम्मीपापा को देने की जगह लड़की वालों को दी थी. वे लोग तहकीकात करने आए थे. बूआ को पहले से शक था क्योंकि जानकी एक दिन घर से यह कह कर गई हुई थी कि वह कालेज ट्रिप में कश्मीर जा रही है. उसे स्कौलरशिप मिली है. उसी से पैसे का इंतजाम हो गया. लड़की वालों ने जानकी की शादी के फोटो और वौयस मैसेज लड़की के पिता को भेज दिए थे.

अब लड़की के पिता अपनी तेजाब डाली लड़की की शादी भी निखट्टू लड़कों से करने को मना करने आए थे.

हम दोनों नहीं समझ पा रहे थे कि बूआ का गम क्या है. 5 लाख का नुकसान, जानकी की शादी या बेटों का कुंआरा रह जाना. मेरे पति ने बूआ से कहा, ‘‘बूआ जानकी ने बिलकुल सही किया. मेरे घर के दरवाजे तो उस के लिए हमेशा खुले रहेंगे पर आप के घर के दरवाजे कोई लड़की वाला नहीं खटखटाएगा क्योंकि वजह आप का लालच और झगड़ालूपन है. यह बात सब को मालूम है. मैं बता दूं रमा को बताए बिना मैं जानकी की शादी में गवाह था. मेरे कहने पर ही मजिस्ट्रेट ने बिना कोई अड़चन लगाए शादी कराई थी क्योंकि वह मेरा सहपाठी रह चुका था. रमा को मैं ने नहीं बताया था क्योंकि कहीं आप हमारे घर में क्लेम करने न आ जाएं.’’ यह कह कर मेरे पति मेरा हाथ पकड़ कर बाहर निकल गए. बूआ दहाड़ें मारमार कर रो रही थी.

Modular Kitchen : मौड्यूलर किचन बनाते समय रखें इन बातों का ध्यान

Modular Kitchen : किचन हमारे घर की वह जगह होती है, जहां पूरे घर के लिए भोजन बनाया जाता है. पहले जहां केवल घर की महिला ही किचन में काम करती थी, वहीं आज घर के पुरुष भी किचन में जम कर कुकिंग कर रहे हैं. पहले जहां किचन केवल खाना बनाने का स्थान हुआ करता था, वहीं अब घर के ड्राइंगरूम की ही तरह ही किचन को भी महंगीमहंगी ऐक्सैसरीज के साथ आकर्षक बनाया जा रहा है.

वास्तव में, किचन अब केवल कुकिंग करने की जगह ही नहीं बल्कि ड्राइंगरूम की ही तरह आधुनिकता का प्रतीक है, जिसमें एअरफ्रायर, राइस कुकर, वोफ्ल मेकर, आटा और ब्रैड मेकर जैसे आधुनिक उपकरणों के साथ साथ भांतिभांति की महंगी क्रौकरी भी मौजूद रहती है.

यदि आप भी अपनी पुरानी किचन को मौडर्न लुक देना चाहते हैं या फिर आप अपनी नई किचन भी बनवाने जा रहे हैं, तो निम्न बातों का ध्यान अवश्य रखें ताकि आप अपनी मौडर्न किचन में काम करते समय कंफर्टेबल भी फील कर सकें.

कैबिनेट्स हैं जरूरी

मौड्यूलर किचन का सब से जरूरी पार्ट होती है उस की कैबिनेट्स क्योंकि कैबिनेट्स के द्वारा ही मौड्यूलर किचन को बनाया जाता है. कैबिनेट्स बनाने के लिए पहले पत्थर या ईंटों के द्वारा पूरी किचन को जगह के अनुसार विभिन्न छोटेबड़े पार्ट्स में विभाजित किया जाता है। उस के बाद उन सभी पार्ट्स पर कुछ बड़े, कुछ छोटे और कुछ लंबे खाने बनाए जाते हैं ताकि किचन का समस्त सामान और बर्तन आसानी से आ सकें.

अब इन स्टील के कैबिनेट्स को लकड़ी के बोर्ड और सनमाइका से कवर किया जाता है ताकि वे देखने में खूबसूरत लगें. आवश्यकतानुसार स्टील के कैबिनेट्स बनाए जाते हैं. कैबिनेट्स में हमेशा हैवी स्टील और अच्छी कंपनी के कैबिनेट्स ही लगवाएं क्योंकि सस्ती क्वालिटी के कैबिनेट्स में जंग लगने का डर रहता है. इन कैबिनेट्स को लकड़ी की अपेक्षा पत्थर या ग्रेनाइट से ही बनवाएं ताकि भविष्य में इन की साफसफाई करना आसान रहे.

आजकल किचन के कौर्नर में लगाने के लिए विशेषरूप से सिंगल और डबल लेयर वाले कैबिनेट बाजार में उपलब्ध हैं, जिन्हें आसानी से खोला भी जा सकता है और इन में सामान भी अच्छीखासी मात्रा में आ जाता है.

माइका देगी खूबसूरती

किचन कैबिनेट्स के बाहरी हिस्से यानि माइका के कलर को चुनते समय विशेष ध्यान रखें क्योंकि माइका कैबिनेट्स का बाहरी हिस्सा होता है जो आप की किचन को आकर्षक लुक देता है. इस के रंग को चुनते समय ट्रैंड का ध्यान रखना बेहद जरूरी होता है. आजकल टू टोन कलर फैशन में हैं जिस में एक डार्क रंग के साथ हलके रंग को पेअर किया जाता है. अर्थ टोन, ग्रे, ब्रोंज, मोका या ग्रीन जैसे सूदिंग न्यूट्रल कलर्स को ओक, वौलनट और मेपल जैसे नैचुरल वुड फिनिश के साथ मैच किया जा सकता है.

इस तरह के रंग किचन को मौडर्न के साथ साथ रूरल लुक भी देते हैं. पूरे घर की माइका से किचन की माइका को मैच करने की कोशिश न करें क्योंकि आजकल एकरूपता के स्थान पर विविधता फैशन में है.
आप कंट्रास की अपेक्षा रैट्रो डिजाइन किचन कैबिनेट्स को ज्यामितीय लुक देते हैं. बोल्ड रंगों के साथ लाइट और डार्क शेड्स का मैच कर के आप माइका को चुन सकते हैं. इस में माइका में सैल्फ में ज्यामितीय डिजाइंस होते हैं जिस से कैबिनेट्स बहुत आकर्षक लगते हैं.

हैंडल भी हों आधुनिक

कुछ समय पूर्व तक जहां किचन कैबिनेट्स को खोलनेबंद करने के लिए नौब और हैंडल लगाए जाते थे, वहीं अब किचन कैबिनेट्स को खोलने और बंद करने के लिए हैंडल के स्थान पर पूरी ड्रावर को कवर करने वाले मैटेलिक पुल हैंडल का प्रयोग किया जाता है। इन के प्रयोग से कैबिनेट्स दिखने में तो आकर्षक लगते ही हैं साथ ही इन्हें औपरेट करना भी आसान होता है. इसके अतिरिक्त गंदी हो जाने पर इन्हें साफ करना भी काफी आसान होता है.

आप किचन कैबिनेट्स की माइका के अनुसार मैटेलिक रंग के पुल हैंडल का प्रयोग कर सकते हैं. यदि आप के घर में छोटे बच्चे हैं तो आप लौक वाले हैंडल्स का प्रयोग भी कर सकते हैं.

इलैक्ट्रिक बोर्ड्स हों पर्याप्त

संपूर्ण घर की ही भांति इलैक्ट्रिक बोर्ड्स किचन में भी बहुत अहम भूमिका निभाते हैं क्योंकि आजकल किचन के अधिकांश उपकरण बिजली से ही चलते हैं, भले ही आप के पास कुछ आधुनिक उपकरण न हों पर फिर भी आप उन के लिए बोर्ड्स की व्यवस्था कर के रखें ताकि भविष्य में आप जब भी उपकरण खरीदें तो आप को अपनी किचन में किसी प्रकार की टूटफूट न करवानी पड़े. इलैक्ट्रिक बोर्ड्स को प्लेटफौर्म से 6 इंच से 1 फूट की दूरी पर ही लगवाएं ताकि उपकरणों को प्रयोग करते समय उन के वायर किचन में इधरउधर फैल कर अनावश्यक जगह न घेरें.

स्टोरेज स्पेस

किचन में पर्याप्त स्टोरेज स्पेस बनवाएं, टोमेटो सौस, शरबत, तेल जैसी लंबी और छोटी बौटल्स को रखने के लिए बोतल पुलआउट वही सब्जी फल आदि रखने के लिए वैजिटेबल बास्केट, मसालों, उपकरणों, बर्तनों के लिए स्मार्ट स्टोरेज और सैक्शनल ड्रावर्स बनवाएं ताकि किचन का सभी सामान एक ही स्थान पर रखा जा सके.

आजकल सालभर की खाद्य सामग्री को स्टोर करने का चलन समाप्त हो चुका है। इसलिए किचन में बहुत अधिक बड़े कंटेनर्स को लाने से बचें. काउंटर टौप के ऊपर और बैक वाले हिस्से में कैबिनेट्स को कवर करने के लिए हाइड्रोलिक और शटर वाले डोर्स का प्रयोग करें ताकि इन्हें आसानी से कम जगह में खोला जा सके.

किचन के एक साइड में क्रौकरी के लिए स्पेस अवश्य बनवाएं ताकि आप अपनी बहुमूल्य क्रौकरी को डिस्प्ले कर सकें.

काउंटर टौप

काउंटर टौप बनवाते समय उस की चौड़ाई पर ध्यान देना बेहद आवश्यक है.

कामकाजी महिला सीमा ने कुछ समय पूर्व ही अपनी मौड्यूलर किचन बनवाई पर तब उस के पास 2 बर्नर वाला गैस चूल्हा था तो उस ने उस की चौड़ाई पर विशेष ध्यान नहीं दिया। पर अब वह 4 बर्नर वाला गैस चूल्हा खरीदना चाहती है, जिस के लिए उसके काउंटरटौप की चौड़ाई कम है, क्योंकि 4 बर्नर वाले चूल्हे 2 बर्नर वाले चुल्हे की अपेक्षा अधिक चौड़े होते हैं। अब दोबारा से काउंटर टौप को तो बनवाया नहीं जा सकता इसलिए मन मार कर उसे अब 2 बर्नर वाले चूल्हे से ही काम चलाना पड़ रहा है.

काउंटर टौप को हैवी ड्यूटी वाले व्हाइट, ग्रे, ब्लैक या रैड ग्रेनाइट से ही बनवाएं क्योंकि ग्रेनाइट को मेनटेन करना भी काफी आसान होता है.

लाइट और चिमनी

किचन में लाइट की पर्याप्त व्यवस्था होना आवश्यक होता है. यों तो आजकल किचन में भी फाल्स सीलिंग बनाई जाने लगी है, इस में रोशनी के लिए एलईडी लाइट्स का प्रयोग किया जाता है, जिस से किचन में भी अच्छीखासी मात्रा में लाइट हो जाती है.

यदि संभव हो तो किचन में अतिरक्त हैंगिग लाइट भी लगवाएं। यह आप की किचन में रोशनी के साथसाथ उसे आकर्षक लुक भी प्रदान करेंगी.
कुकटौप के जस्ट ऊपर चिमनी लगवाएं ताकि खाना बनाते समय निकलने वाला तैलीय धुआं आप की किचन को गंदा न कर सके.

सिंक

सिंक मूलतया 2 प्रकार के होते हैं- डबल सिंक और सिंगल सिंक. यदि आप की किचन में पर्याप्त स्पैस है तो आप डबल सिंक का चुनाव कर सकते हैं. इस में एक सिंक बर्तन धोने के लिए और दूसरे सिंक का प्रयोग सब्जी, फल आदि धोने के लिए किया जाता है.

यों तो ग्रेनाइट, मार्बल और पत्थर के भी सिंक बनाए जाते हैं पर आजकल सर्वाधिक रूप से स्टील के सिंक ही बनाए जाते हैं क्योंकि इन्हें प्रयोग करना काफी आसान होता है. आप अपनी आवश्यकतानुसार और बजट के अनुसार स्टील के सिंक का प्रयोग कर सकते हैं.

फिल्म सिलसिला में जब परवीन बौबी को आउट करके Jaya Bachchan को लिया गया….

Jaya Bachchan : अमिताभ बच्चन रेखा की प्रेम कहानी और रेखा अमिताभ जया की, पतिपत्नी और वो वाली ट्रैंगल लव स्टोरी किसी से छुपी नहीं है, आज भी रेखा अमिताभ के प्रति अपना प्यार पब्लिकली धड़ल्ले से एक्सप्रेस कर देती है. भले ही अमिताभ पब्लिकली रेखा के साथ अपने प्रेम संबंध को छुपा कर रखते हैं, लेकिन जब भी किसी अवार्ड फंक्शन में यह दोनों हस्तियों आमनेसामने होती हैं तो सभी की नजर उनकी नजरों पर होती है, इसी के चलते बात उन दिनों की है, जब अमिताभ बच्चन, रेखा. परवीन बौबी, जीनत अमान आदि कलाकारों का दौर चल रहा था. लेकिन उस दौरान भी अमिताभ बच्चन के साथ किसी हीरोइन का काम करना उस हीरोइन के फिल्मी करियर के लिए फायदेमंद माना जाता था.

उसी दौरान फिल्म सिलसिला के लिए मेकर यश चोपड़ा ने जया बच्चन वाले रोल के लिए पहले अभिनेत्री परवीन बौबी को साइन किया था, लेकिन जब रेखा और अमिताभ की प्रेम कहानी की वजह से जया बच्चन दोनों के आड़े आई, तो इस रियल लाइफ ट्रैंगल लव स्टोरी को भुनाने के चक्कर में यश चोपड़ा ने फिल्म सिलसिला से परवीन बौबी को हटाकर जया बच्चन को फिल्म ले लिया.

इस बात का अफसोस परवीन बौबी को इतना हुआ कि वह फिल्म छूटने के दुख से रोने लगी, इस बात का जिक्र हाल ही में विलेन रंजीत ने एक इंटरव्यू के दौरान किया. रंजीत के अनुसार परवीन बौबी के साथ उनके अच्छे संबंध थे, उस दौरान जब परवीन बौबी को बिना वजह फिल्म से हटा दिया गया तो परवीन बौबी ने अपना यह दुख रंजीत के साथ शेयर किया था. पहले मैंने परवीन बौबी की यह बात सीक्रेट रखी थी क्योंकि वह मेरी अच्छी फ्रेंड थी, लेकिन अब मैं यह बात बोल सकता हूं कि फिल्म सिलसिला में अगर जया जी नहीं होती तो परवीन बौबी उनकी जगह होती. तब शायद फिल्म का इफैक्ट भी कुछ और होता.

Met Gala 2025 : देसी गर्ल ने पोल्का डौट्स में रेड कार्पेट पर बिखेरा जलवा, यूजर्स ने कहा ‘भूमि पेडनेकर की कौपी’

Met Gala 2025 :  मेट गाला 2025 इस बार भारतीयों के लिए बेहद ही खास साबित हुआ. क्योंकि भारतीय सेलिब्रिटीज शाहरुख खान से लेकर कियारा अडवाणी तक इस फैशन शो में जलवा दिखाया. मौम टू बी कियारा ने अपने बेबी बंप लुक से सबका ध्यान आकर्षित किया तो वहीं ग्लोबल स्टार बन चुकी प्रियंका चोपड़ा का मेट गाला लुक सुर्खियों में रहा.

कोऔर्ड सेट में प्रियंका चोपड़ा ने सबका ध्यान खींचा

इस फैशन शो में प्रियंका चोपड़ा और निक जोनस ने अपनी शानदार स्टाइल से लोगों का ध्यान खींच लिया.
प्रियंका का मेट गाला लुक बालमैन के डिजाइनर ओलिवियर रूस्टिंग द्वारा बनाया गया एक खास कोऔर्ड सेट को प्रियंका चोपड़ा ने वियर किया. जिसमें सफेद और काले पोल्का डौट्स थे.

प्रियंका चोपड़ा ने  मेट गाला 2025 के थीम से मैच की अपनी ड्रैस

प्रियंका का यह लुक मेट गाला 2025 के थीम “सुपरफाइन: टेलरिंग ब्लैक स्टाइल” और ड्रेस कोड “टेलर्ड फार यू” से पूरी तरह मैच किया. प्रियंका का यह आउटफिट जिसमें काले पोल्का डौट्स इसे क्लासिक और मौडर्न दिखा. उन्होंने इस ड्रैस के साथ काले हैट और बुल्गारी के शानदार ज्वेलरी सेट के साथ कैरी किया.जिसमें पेंडेंट सबसे ज्यादा अट्रैक्टिव लग रहा था.

यूजर ने कहा, गोरे लोगों को कौपी ना करें

हालांकि सोशल मीडिया पर कुछ यूजर्स ने कहा कि प्रियंका, ऐक्ट्रैस भूमि पेडनेकर जैसी लग रही हैं. एक यूजर ने प्रियंका के फोटो पर कमेंट करते हुए लिखा कि नॉट गुड तो वहीं दूसरे यूजर ने कहा कि गौरे लोगों को कॉपी ना करें. एक अन्य यूजर ने कहा कि मुझे लगा ये भूमि पेडनेकर हैं. प्रियंका के लुक को लेकर इस तरह के कई कमेंट्स लगातार सोशल मीडिया पर आ रहे हैं. आपको बता दें कि प्रियंका चोपड़ा मेट गाला 2025 में पांचवीं बार पहुंची थीं. इससे पहले भी एक्ट्रेस चार बार इस फैशन शो में जा चुकी हैं.

छोटी उम्र की हीरोइन के साथ काम करने में एतराज नहीं : सलमान खान

Salman Khan : बौलीवुड के सुपरस्टार सलमान खान की फिल्म हिट हो या फ्लौप, दर्शकों के बीच उन का क्रेज लगातार बना हुआ है. लाखोंकरोड़ों फैंस की वजह से आज भी वे इंडस्ट्री में सिर्फ टिके हुए ही नहीं हैं बल्कि बेइंतहा लोकप्रिय भी हैं. हर साल ईद पर सलमान खान की नई फिल्म रिलीज होती है. लिहाजा हर ईद पर दर्शकों को उन की फिल्म का इंतजार रहता है.

इस बार भी ईद पर सलमान खान की फिल्म ‘सिकंदर’ रिलीज हुई जिस का क्रेज दर्शकों के बीच देखने को मिला. फिल्म रिलीज से पहले ही टिकटों की लाखों में बिक्री हो गई थी और यह सिलसिला अभी भी जारी है.

इसी फिल्म के प्रमोशन के लिए हाल ही में जब सलमान खान से मुलाकात हुई तो ऐसा लगा कि वे शायद अपनी जान के खतरे को ले कर डरे हुए नजर आएंगे. लेकिन इस के विपरीत सलमान मीडिया से न सिर्फ प्यार से मिले बल्कि हंसीमजाक करते हुए भी नजर आए. लिहाजा, हम ने बातचीत की शुरुआत करते हुए सलमान के लिए कड़क सिक्युरिटी के बीच उन का रहने का अनुभव, ‘सिकंदर’ की रिलीज को ले कर प्रतिक्रिया, बड़ी उम्र के साथ छोटी हीरोइन रश्मिका के साथ फिल्म में रोमांस करने को ले कर कई दिलचस्प सवाल किए जिन के जवाब सलमान ने पूरी ईमानदारी के साथ, हलकेफुलके मजाकिया अंदाज में.

पेश हैं, सलमान खान से हुई खास बातचीत की चुनिंदा अंश:

सलमान आप की सिक्युरिटी लगातार बढ़ रही है. पर्सनल सिक्युरिटी के अलावा महाराष्ट्र पुलिस भी आप को सुरक्षा दे रही है. बिश्नोई गैंग की धमकी और इस कड़क सिक्युरिटी के बीच रहना पर्सनली आप को कितना डरा रहा है? क्या आप अपनी जान के खतरे को ले कर नर्वस हैं?

अपनों से ही डर

अपने लिए नहीं अपनों के लिए डर लगता है जो मुझ से जुड़े हुए हैं, जो मेरी जिम्मेदारी हैं और जो मेरे भरोसे हैं उन के लिए चिंता होती है. मौत को ले कर नहीं डरता क्योंकि वह पहले से तय है कि कब जाना है. अगर मेरा समय आ गया है तो दुनिया की कोई ताकत मुझे बचा नहीं सकती और अगर मेरी और सांसें बाकी हैं तो मुझे दुनिया की कोई ताकत मार नहीं सकती. इसलिए मैं मौत से नहीं डरता. लेकिन कई लोगों की जिंदगी मुझे से जुड़ी है इसलिए अब मैं शूटिंग के बाद सीधा घर गैलेक्सी अपार्टमैंट चला जाता. पहले की तरह अपने मनमुताबिक कहीं भी जा कर मटरगश्ती अब नहीं करता.

आप की फिल्म से लोगों को बौक्स औफिस पर 300 करोड़ तक कमाने की उम्मीद होती है. इस बार आप अपनी फिल्म से कितना उम्मीद कर रहे हैं?

मैं तो चाहूंगा कि मेरी फिल्म 300 करोड़ से भी ज्यादा बिजनैस करे. लेकिन यह भी जरूरी नहीं है कि जो मैं सोचूं वह हो ही. अगर फिल्म दर्शकों को अच्छी लगी तो वह अच्छा बिजनैस करेगी और अगर अच्छी नहीं लगी तो फ्लौप भी हो सकती है. लेकिन दिल से तो मैं चाहता हूं कि फिल्म अच्छी चले क्योंकि मैं ने फिल्म में बहुत मेहनत की है. मैं ने यही कोशिश की है कि दर्शकों को मेरा काम पसंद आए और ‘सिकंदर’ अच्छा बिजनैस करे.

बेहतरीन अनुभव

‘सिकंदर’ के डाइरैक्टर साउथ के प्रसिद्ध डाइरैक्टर ए.आर. मुरुगदास हैं जिन की इस से पहले की फिल्म ‘गजनी’ ने बौक्स औफिस पर बहुत अच्छा बिजनैस किया था. इस के अलावा भी उन्होंने हिंदी और साउथ में कई अच्छी फिल्में बनाई हैं. आप का उन के साथ काम करने का अनुभव कैसा रहा?

बहुत ही अच्छा. मुरुगदास बहुत अच्छे डाइरैक्टर हैं. मेरा उन के साथ काम करने का अनुभव बहुत अच्छा रहा. उन की डाइरैक्शन में बहुत अच्छी पकड़ है. कलाकारों से कैसे काम निकालना है यह बहुत अच्छी तरह से जानते हैं. उन्हें टैक्निकल जानकारी भी बहुत है जो आप को फिल्म में देखने को मिलेगी.

आप की फिल्म ‘सिकंदर’ की हीरोइन रश्मिका मंदाना को ले कर भी आप को ट्रोल किया जा रहा है. लोगों का मानना है कि अपने से आधी उम्र की हीरोइन के साथ जोड़ी बनाना सही नहीं लगता. आप इस बारे में क्या कहते हैं?

पहली बात यह है कि मैं हीरोइन का चयन नहीं करता. मेकर्स डिसाइड करते हैं कि किस को हीरोइन लेना है और किस को नहीं. जहां तक मेरी इस बारे में क्या राय है तो मैं यही कहूंगा कि मुझेअपने से छोटी उम्र की हीरोइन के साथ काम करने में कोई एतराज नहीं है हीरोइन को काम करने में कोई एतराज नहीं है तो लोगों को क्यों तकलीफ हो रही है कि मैं किस के साथ काम कर रहा हूं और किस के साथ नहीं? मैं तो अनन्य पांडे और जाह्नवी कपूर के साथ भी काम करना चाहूंगा अगर वे मेरे साथ काम करना चाहें तो.

काम करने में तकलीफ नहीं

हाल ही में यूट्यूब पर एक सर्वे में पाकिस्तान की टौप की हीरोइन ने आप के साथ काम करने की इच्छा जताई. क्या आप उन के साथ फिल्म करना चाहेंगे?

जैसाकि मैं ने कहा कि मुझे किसी भी हीरोइन के साथ काम करने में कोई तकलीफ नहीं है फिर चाहे वह साउथ की हो, बौलीवुड की हो या मुझ से कम उम्र या बड़ी उम्र की हो. जहां तक पाकिस्तानी हीरोइन का सवाल है तो अगर वह भारत सरकार से एनओसी ले कर आए तो मुझे उन के साथ भी काम करना पसंद है.

काफी समय से आप ने दाढ़ी के साथ अपना लुक रखा था. यहां तक कि फिल्म ‘सिकंदर’ में भी आप दाढ़ीमूंछों के साथ ही नजर आए हैं. लेकिन अब आप पूरी तरह से क्लीन शेव कर चुके हैं. ऐसे में क्या आप बताएंगे कि आप को कौन सा वाला लुक ज्यादा पसंद है?

वैसे तो मुझे दोनों ही लुक पसंद हैं, दाढ़ीमूंछों के साथ भी और क्लीन शेव भी लेकिन दाढ़ी रखने पर बहुत सारी कमियां छिप जाती हैं. दाढ़ी करते ही चेहरे पर कहांकहां चरबी चढ़ गई है, चेहरा कहां से मोटापतला और खराब दिख रहा है वह सब नजर आने लगता है. इसलिए क्लीन शेव रखते समय चेहरे को ले कर सचेत रहना पड़ता है.

असफल फिल्मों का दौर

अगर फिल्मों की सफलता की बात करें तो आज सौ में से 2-3 फिल्में ही चल रही हैं. कई सारी फिल्मों की लगातार असफलता को देख कर आप इस बारे में क्या कहेंगे?

कहीं न कहीं मेकिंग में गलती हो रही है, जिस के चलते फिल्में दर्शकों का दिल नहीं जीत पा रहीं. सच बात तो यह है कि अगर अच्छी फिल्म होती है तो वह जरूर चलती है. वैसे फिल्मों की असफलता को ले कर कई सारे कारण बताए जा रहे हैं जैसे मल्टीप्लैक्स, टिकट का ज्यादा प्राइस, सिंगल स्क्रीन की कमी, ओटीटी प्लेटफौर्म का  बोलबाला आदि लेकिन एक सच यह भी है कि अगर मल्टीप्लैक्स या टिकट के प्राइस फिल्म की असफलता का कारण हैं तो ‘पुष्पा 2,’ ‘स्त्री 2’ आदि कई फिल्में कैसे हिट हो जाती हैं. कहने का मतलब यही है कि अगर फिल्म अच्छी होगी तो वह जरूर चलेगी.

साउथ की फिल्में ज्यादातर अच्छी चलती हैं. लेकिन बौलीवुड फिल्मों को सफलता हमेशा नहीं मिलती जैसेकि आप के लाखोंकरोड़ों फेन हैं लेकिन आप की भी पिछली कई फिल्में नहीं चलीं?

यह सच है कि मेरे बहुत सारे फैन हैं लेकिन साउथ के कलाकारों की जो फैन फौलोइंग है वह बहुत स्ट्रौंग है. वहां के फैन अपने कलाकार को बहुत मानते हैं और चाहे जो हो जाए वे अपने फैवरिट ऐक्टर की फिल्म देखने जरूर जाते हैं. हमारे भी यहां बहुत फैन हैं लेकिन वे अगर फिल्म अच्छी नहीं है तो फैन होने के नाते तारीफ नहीं करते, अगर फिल्म अच्छी है तो ही तारीफ करते हैं और फिल्म देखने जाते हैं.

राजनीति में कोई दिलचस्पी नहीं

फिल्म ‘सिकंदर’ में आप का डायलौग है अगर पीएम, सीएम नहीं बना तो एमएलए, एमपी तो बन ही सकता हूं. कहीं इस डायलौग के जरीए आप का इशारा राजनीति में जाने की ओर तो नहीं है?

नहीं, मेरी राजनीति में कोई दिलचस्पी नहीं है क्योंकि मेरा मानना है जिस चीज की आप को पूरी तरह से जानकारी हो वही काम करना चाहिए. मैं हमेशा ऐक्टर ही रहना चाहूंगा. मेरी किसी और काम में दिलचस्पी नहीं है.

आप शाहरुख खान की फिल्म जवान के डाइरैक्टर एटली के साथ एक फिल्म कर रहे थे, जिस की काफी चर्चा भी थी लेकिन बाद में यह फिल्म नहीं बनीं इस के पीछे क्या वजह है?

उस फिल्म को ले कर हमारे बीच काफी बातचीत भी हुई. फिल्म शुरू भी होने वाली थी. लेकिन बाद में फिल्म का काम बंद हो गया. शायद बजट की प्रौब्लम थी. एटली के साथ वाली फिल्म मेगा बजट वाली फिल्म थी जो बाद में संभव नहीं हो पाया. अब वह फिल्म डब्बाबंद हो गई है.

Women Health Tips : 35 की उम्र के बाद फैमिली प्लानिंग कर सकते हैं?

Women Health Tips : अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल

मेरी उम्र 26 साल है. पिछले महीने ही मेरी शादी हुई है. मुझे पिछले कुछ सालों से फायब्रौयड्स की समस्या है. क्या इस से मुझे गर्भधारण करने में परेशानी आएगी?

जवाब

फायब्रौयड्स की समस्या महिलाओं में आम है. अगर हम 10 महिलाओं का अल्ट्रासाउंड करते हैं तो उन में 5 महिलाओं में यह समस्या होती है. दरअसल, फायब्रौयड्स के आकार, संख्या और स्थिति पर निर्भर करता है कि गर्भधारण करने में कितनी परेशानी आएगी. अगर फायब्रौयड्स छोटे हैं और संख्या कम है तो आप को उपचार की कोई जरूरत नहीं है. आप सामान्य रूप से गर्भधारण कर सकती हैं. लेकिन अगर फायब्रौयड्स का आकार बड़ा है तो उन का उपचार कराना जरूरी हो जाता है. लैप्रोस्कोपिक तकनीक ने फायब्रौयड्स के उपचार को आसान बना दिया है. उपचार के पश्चात ऐसी स्थिति में भी सामान्य रूप से गर्भधारण करना संभव है.

सवाल

मुझे पीरियड्स को लेकर काफी समस्या है. 2-3 महीनों में एक बार पीरियड्स आते हैं. शादी को 7 साल हो गए, लेकिन मेरी कोई संतान नहीं है. क्या मैं कभी मां नहीं बन पाऊंगी?

जवाब

2-3 महीनों में एक बार पीरियड्स आना पीसीओडी (पौलिसिस्टिक ओवरी डिसऔर्डर) की ओर संकेत देता है. यह आज एक आम समस्या है. खानपान व जीवनशैली में बदलाव और मोटापा इस के सब से प्रमुख कारण हैं. लेकिन इस का उपचार भी बहुत आसान है. आप रोज वर्कआउट करें, ताजा फल, सब्जियां खाएं, कार्बोहाइड्रेट (रोटी, चावल, ब्रैड) का सेवन कम करें, रिफाइंड शुगर का सेवन बंद कर दें और अपना वजन सामान्य बनाए रखें. इन बदलावों से आप की माहवारी सामान्य हो जाएगी. लेकिन इस के बाद भी अगर गर्भधारण करने में परेशानी आ रही है तो किसी स्त्री रोग विशेषज्ञा को दिखाएं. दवा, इंजैक्शन आदि उपचारों के द्वारा पीसीओडी के मामलों में आसानी से गर्भधारण किया जा सकता है.

सवाल

मुझे ऐंडोमिट्रिओसिस है. 2 महीने बाद मेरी शादी है. क्या इस वजह से मुझे गर्भधारण करने में समस्या आएगी?

जवाब

ऐंडोमिट्रिओसिस गर्भाशय से जुड़ी एक समस्या है. यह समस्या महिलाओं की प्रजनन क्षमता को सर्वाधिक प्रभावित करती है, क्योंकि गर्भधारण करने और बच्चे को जन्म देने में गर्भाशय की सब से महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है. ऐंडोमिट्रिओसिस के

4 ग्रेड होते हैं, मिनमल, माइल्ड, मौडरेट और सीवियर. ज्यादातर कोई परेशानी होती है, पहले वाली 2 स्थितियों में गर्भधारण करने में कोई परेशानी नहीं होती है, लेकिन अगर समस्या 3 और 4 ग्रेड तक पहुंच गई है तो गर्भधारण मुश्किल हो सकता है. शादी के बाद 6 महीनों तक प्रयास करें. अगर आप गर्भधारण नहीं कर पाएं तो किसी स्त्री रोग विशेषज्ञ को दिखाएं. उपचार कराने में देरी न करें.

सवाल

मेरी उम्र 34 साल है. अगले 5 सालों तक मैं और मेरे पति दोनों कैरियर पर फोकस करना चाहते हैं. कहीं बढ़ती उम्र बांझपन का कारण तो नहीं बन जाएगी और हम अपनी प्रजनन क्षमता कैसे सुरक्षित रख सकते हैं?

जवाब

34 साल महिलाओं के लिए प्रजनन क्षमता के हिसाब से एक महत्त्वपूर्ण उम्र है, क्योंकि हर महिला एक निश्चित संख्या में अंडों के साथ जन्म लेती है, जिसे ओवेरियन रिजर्व कहते हैं. उम्र के साथ यह रिजर्व घटता जाता है और 35 के बाद ये ओवेरियन रिजर्व तेजी से कम होने लगते हैं. इसलिए 35 के पहले ही फैमिली प्लानिंग कर लेनी चाहिए. बहुत देर नहीं करनी चाहिए. लेकिन आज कई लोग बहुत सारे कारणों से35 के बाद फैमिली प्लानिंग करते हैं.

ऐसी स्थिति में हमारे पास कई विकल्प उपलब्ध हैं, जैसे एग फ्रीजिंग और ऐंब्रयो फ्रीजिंग आदि. अगर आप यह विकल्प नहीं चुनना चाहती हैं, तो एएमएच ब्लड टैस्ट करा लें, जिस से आप को पता चल जाएगा कि आप की प्रजनन क्षमता कैसी है और आप कितना डिले कर सकती हैं. इस के अलावा आप अपने खानपान पर ध्यान दें. अपनी डाइट में फल, सब्जियां, सूखे मेवे, खजूर आदि शामिल करें. ये सेहत के लिए जरूरी हैं और अंडाशय और गर्भाशय की सेहत के लिए भी महत्त्वपूर्ण हैं. अपनी प्रजनन क्षमता को बेहतर बनाए रखने के लिए शराब और धूम्रपान से दूर रहें, क्योंकि इन का सीधा प्रभाव अंडों और गर्भाशय पर पड़ता है.

मैं 32 साल की कामकाजी महिला हूं. मेरी शादी को 5 साल हो गए हैं. मेरे गर्भाशय की लाइनिंग बहुत पतली है. डाक्टरों का कहना है कि मैं मां नहीं बन सकती?

जब गर्भाशय की सब से अंदरूनी परत जिसे ऐंडोमिट्रिओसिस कहते हैं, बहुत पतली हो तो गर्भधारण करने में ज्यादातर परेशानी आती है. लेकिन आज बहुत सारी तकनीकें हैं, जिन से इस का उपचार संभव है. अगर आप को माहवारी सही समय पर आती है और फ्लो भी ठीक है तो दवा, इंजैक्शन, स्पेम सैल और पीआरपी (प्लेटलेट रिच प्लाज्मा-ग्रोथ फैक्टर) तकनीक के  द्वारा गर्भाशय की लाइनिंग, जिसे ऐंडोमिट्रियल थिकनैस कहा जाता है को मोटा किया जा सकता है. आजकल ऐंडोमिट्रियल थिकनेस को बढ़ाने में पीआरपी का इस्तेमाल बहुत अधिक किया जा रहा है.

पाठक अपनी समस्याएं इस पते पर भेजें : गृहशोभा, ई-8, रानी झांसी मार्ग, नई दिल्ली-110055

कृपया अपना मोबाइल नंबर जरूर लिखें. व्हाट्सऐप मैसेज या व्हाट्सऐप औडियो से अपनी समस्या 9650966493 पर भेजें.

टेक्नोलौजी का सही उपयोग करके बिजनेस पर स्थायी प्रभाव डाला जा सकता है : जया वैद्यनाथन

Jaya Vaidhyanathan : जया वैद्यनाथन बीसीटी डिजिटल प्राइवेट लिमिटेड की सीईओ हैं जो एक अग्रणी फिनटेक, रेगटेक और सस्टेनेटेक कंपनी है. वह PwC ग्लोबल और PwC इंडिया के बोर्ड में नॉन-एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर के रूप में कार्यरत हैं. इसके अलावा वह यूटीआई एसेट मैनेजमेंट कंपनी, इंडीग्रिड और गोदरेज प्रॉपर्टीज में इंडिपेंडेंट डायरेक्टर के रूप में काम करती हैं.

इंजीनियर से मैनेजमेंट प्रोफेशनल बनीं जया ने मद्रास विश्वविद्यालय से कंप्यूटर साइंस और इंजीनियरिंग में बीई की डिग्री प्राप्त की है और कॉर्नेल यूनिवर्सिटी से फाइनेंस और स्ट्रैटेजी में एमबीए किया है. वह सीएफए चार्टर होल्डर भी है. दो दशकों से अधिक के अनुभव के साथ जया वैद्यनाथन ने एचसीएल टेक्नोलॉजीज, एक्सेंचर और स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक जैसी प्रमुख कंपनियों में महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया है.

उन का मानना है कि टेक्नोलॉजी का सही उपयोग करके बिजनेस पर स्थायी प्रभाव डाला जा सकता है. उन के अनुसार भविष्य के लिए तैयार ऐसे वित्तीय इकोसिस्टम बनाए जाएं जो इनोवेशन, स्ट्रेंथ और एथिकल गवर्नेंस का सही तालमेल हो.

पेश है उन से की गई बातचीत के मुख्य अंश;

आपने इस क्षेत्र में आने का निर्णय कब और कैसे लिया?

शुरू से ही मुझे बड़ी समस्याओं को हल करने में रुचि थी और फाइनेंस में कुछ सबसे जटिल चुनौतियां होती हैं जैसे रिस्क मैनेजमेंट और रेगुलेटरी कंप्लायंस. उस में मैंने अपने आपको निखारा. जब मैं लीडर के रोल में आई तो मैंने देखा कि कैसे पारंपरिक सिस्टम बदलते वित्तीय माहौल के साथ तालमेल नहीं बैठा पा रहे थे. टेक्नोलॉजी केवल एक सहायक माध्यम नहीं थी बल्कि यह पूरे फाइनेंसियल इंस्टीट्यूशन्स को बदलने की एक महत्वपूर्ण कड़ी थी.

यह एहसास मुझे ऐसे सॉल्यूशंस बनाने की दिशा में ले गया जो जोखिमों को रोकने और उसका पूर्वानुमान करने में मदद कर सकें बजाय इसके कि नुकसान होने के बाद सॉल्यूशन खोजे जाएं. यही सोच एआई-आधारित रियल-टाइम रिस्क इंटेलिजेंस पर ध्यान केंद्रित करने का कारण बनी जिससे आरटी 360 बना जो
वित्तीय संस्थानों को जोखिम और फ्रॉड से बचाने में मदद करता है. मेरा लक्ष्य हमेशा स्पष्ट रहा है कि टेक्नोलॉजी का उपयोग करके वास्तविक वित्तीय समस्याओं को हल करना और मजबूत, भविष्य-के-लिए-तैयार सिस्टम बनाया जाए.

आपका सबसे बड़ा सपोर्ट कौन रहा है?

सफलता कभी भी एक व्यक्ति की नहीं होती है. यह मेंटर, सहकर्मियों और परिवार के समर्थन पर आधारित होती है. मुझे प्रेरित करने वाले मेंटर मिले जिन्होंने मुझे रूढ़ियों को चुनौती देने के लिए प्रोत्साहित किया. एक समर्पित टीम जो मेरे विजन को अपनाती है और एक परिवार जिसने हमेशा मेरी महत्वाकांक्षाओं का समर्थन किया है. मुझ पर उनका विश्वास प्रोफेशनल और व्यक्तिगत दोनों तरह से मेरे विकास का आधार रहा है.

आपके जीवन में घटी कोई घटना जिसने आपका नजरिया बदल दिया हो या आपके जीवन
को नया स्वरूप दिया हो?

मेरे करियर के सबसे निर्णायक क्षणों में से एक, कॉरपोरेट लीडरशिप से टेक ड्रिवेन रिस्क सॉल्यूशन कंपनी बनाने का फैसला था. चैलेंजेज को मैनेज करने से लेकर उन्हें बड़े पैमाने पर हल करने तक जाने से मेरा दृष्टिकोण बदल गया. सच्चा प्रभाव समस्याओं पर प्रतिक्रिया करने के बारे में नहीं है बल्कि यह उन सॉल्यूशन को बनाने के बारे में है जो उन्हें पहले स्थान पर होने से रोकते हैं. इस विश्वास ने लीडरशिप, इनोवेशन और रिस्क मैनेजमेंट के प्रति मेरे एप्रोच को आकार दिया है.

आपकी राय में महिलाओं की सबसे बड़ी ताकत क्या है?

महिलाओं की सबसे बड़ी ताकत उन की फ्लेक्सिबिलिटी और एम्पैथी है. आज की तेजी से विकसित होती दुनिया में ये दो गुण आवश्यक हैं. महिलाएं सिर्फ चुनौतियों का सामना नहीं करतीं वे उसे अपनाती भी हैं. इनोवेट करती हैं और बाधाओं को अवसरों में बदल देती हैं.

लीडरशिप पॉइंट ऑफ़ व्यू से मुझे हर दिन इसका नजारा देखने को मिलता है जहां महिलाएं प्रॉब्लम सॉल्विंग, सहयोग और परिवर्तन लाने में आगे हैं. वे लॉजिक और इंट्यूशन को संतुलित करती हैं, यह सुनिश्चित करती हैं कि निर्णय स्ट्रैटेजिक और पीपुल सेंटर्ड हों. यह टेक्नोलॉजी से लेकर फाइनेंस तक
किसी भी क्षेत्र में एक जरूरी एसेट है.

महिलाओं को जो बात अलग बनाती है वह है उनकी स्ट्रेंथ और कम्पैशन के साथ लीडरशिप की क्षमता. वे बड़ी बात को ध्यान में रखते हुए कठिन निर्णय लेती हैं जिससे टीमों, व्यवसायों और समाज के लिए दीर्घकालिक सफलता सुनिश्चित होती है. खुद आगे बढ़ते हुए दूसरों को आगे बढ़ाने की उनकी क्षमता उन्हें
प्रगति और इनोवेशन के लिए अमूल्य बनाती है.

एक महिला के सफल बिजनेसवुमेन बनने के लिए क्या जरूरी है?

किसी भी व्यवसाय का लक्ष्य किसी समस्या का स़ॉल्यूशन करना होता है और साथ ही हितधारकों के लिए वैल्यू क्रिएशन के इरादे से रेवेन्यू और प्राफिट अर्जित करना होता है. जो भी महिला व्यवसाय की दुनिया में प्रवेश करना चाहती हैं उन्हें पहला कदम उठाने और आगे आने की जरूरत है. पहला कदम समस्या की पहचान करना, रूढ़िवादिता को तोड़ना और यथास्थिति को चुनौती देना है.

आप दूसरों से अलग कैसे सोचती हैं?

मैं कम इस्तेमाल होने वाला रास्ता चुनती हूं. मैं चुनौतियों का सामना साल्यूशन-फर्स्ट माइंडसेट के साथ करती हूं. इस बात पर ध्यान केंद्रित करती हूं कि कैसे टेक्नोलॉजी जोखिमों पर प्रतिक्रिया करने के बजाय उन्हें पहले से ही रोक सकती है. सीमाओं को स्वीकार करने के बजाय मैं बाधाओं को तोड़ने का तरीका देखती हूं चाहे वह फाइनेंस, टेक्नोलॉजी या लीडरशिप में हो.

मैं इनोवेशन और प्रैक्टिकैलिटी के बीच बैलेंस बनाने में विश्वास करती हूं. मुश्किलें तभी मूल्यवान होती हैं जब वे रियल, मापने योग्य प्रभाव पैदा करती हैं. मेरा फोकस विजन और एग्जीक्यूशन के बीच की खाई को पाटने पर है. यह सुनिश्चित करना कि विचार व्यावसायिक परिणामों में तब्दील हों.

मेरे लिए अलग ढंग से सोचने का मतलब सिर्फ नए विचार रखना नहीं है. इसका मतलब है उन्हें प्रभावी ढंग से क्रियान्वित करने का दृढ़ विश्वास रखना.

आपके जीवन का कोई ऐसा पल जब आप बहुत भावुक हो गईं हों?

मेरे लिए कई भावुक करने वाले पल हैं जैसे मेरे बेटे का जन्म. पहली बार जब उस ने चलना शुरू किया और मुझे ‘अम्मा’ कहकर पुकारा तो मैं बहुत भावुक हो उठी थी इसके अलावा कॉर्नेल यूनिवर्सिटी में पढ़ने का मौका मिलना मेरे लिए ‘सपनों को पंख लगने’ जैसा था.

हमें अपने बिजनेस के बारे में बताएं

बीसीटी डिजिटल एक रिस्क और कंप्लायंस प्रोडक्ट कंपनी है. हम वित्तीय संस्थानों को धोखाधड़ी से निपटने, कंप्लायंस का प्रबंधन करने और रिस्क को सक्रिय रूप से कम करने के लिए रियल टाइम साल्यूशंस से लैस करके रिस्क मैनेजमेंट को फिर से परिभाषित करते हैं. हमारा rt360 सुइट मार्केट में सबसे आगे है. भारत के सरकारी बैंकों में 80% हिस्सा हासिल करता है और सालाना 21 लाख करोड़ रुपये ($250 अरब) से अधिक की संपत्ति पर की निगरानी करता है. इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि इसने संभावित NPA में 2,100 करोड़ रुपये ($2.5 अरब) की रिकवरी करने में मदद की है जिससे वित्तीय
स्थिरता मजबूत हुई है.

हमारे इनोवेशंस को रेगुलेटर्स ने भी मान्यता दी है. भारतीय रिजर्व बैंक के रेगुलेटरी सैंडबॉक्स के हिस्से के रूप में, हमारे आरटी360 रियल-टाइम मॉनिटरिंग सिस्टम (आरटीएमएस) का एक अग्रणी बैंक के साथ सफलतापूर्वक परीक्षण किया गया जिससे मिलीसेकंड में धोखाधड़ी वाले लेनदेन का पता लगाने
की इसकी क्षमता साबित हुई.

आपकी सफलता का क्या राज है?

किसी भी बिजनेस की सफलता के केंद्र में टीम होती है. ऐसे लोगों को काम पर रखें जिन पर आप भरोसा करते हैं और जो आप पर भरोसा करते हैं और उन्हें सशक्त बनाएं. इस के परिणाम स्वरुप ऐसे लोग मिलते हैं जो रूढ़ियों को चुनौती देते हैं, स्वतंत्र रूप से सोचते हैं और विविध दृष्टिकोण रखते हैं.

सफलता की कुंजी लचीलापन, दूरदर्शिता और एग्जीक्यूशन में निहित है. चुनौतियों का पहले से अनुमान लगाना और सार्थक परिवर्तन लाने के लिए टेक्नोलौजी का लाभ उठाना ही सफलता के प्रति मेरा विजन रहा है.

साल्यूशन-फर्स्ट माइंडसेट ने मुझे बैंकिंग जोखिमों, एआई-संचालित वित्तीय स्थिरता और उद्योग व्यवधानों से निपटने में मदद की है. सफलता सिर्फ इनोवेशन के बारे में नहीं है. यह स्केलेबिलिटी और इम्पैक्ट के बारे में है.

आज के समय में महिलाओं को किस तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है?

प्रोग्रेस के बावजूद महिलाओं को अभी भी ऐसी सिस्टेमिक चैलेंजेज का सामना करना पड़ रहा है जो उनके प्रोफेशनल ग्रोथ और आर्थिक भागीदारी में बाधा डालती हैं. कार्यस्थल पर पक्षपात, नेतृत्व में कम प्रतिनिधित्व और जेंडर पे गैप महिलाओं को खुद को साबित करने के लिए कड़ी मेहनत करने के लिए मजबूर करता है, जिससे निर्णय लेने वाली भूमिकाओं तक उनकी पहुंच सीमित हो जाती है. इसके अलावा अनपैड लेबर , केयरगिविंग और घरेलू जिम्मेदारियों का बोझ कैरियर की उन्नति को प्रभावित करती हैं. व्यवसायों में शिक्षा और कौशल विकास में लिंग-आधारित बाधाएं अवसरों को सीमित करती हैं.

इन बाधाओं को तोड़ने के लिए इनक्लूजिव लीडरशिप, समान वेतन, फंडिंग तक पहुंच और मेंटरशिप कार्यक्रमों की आवश्यकता होती है. विविधता को अपनाने वाली कंपनियां न सिर्फ महिलाओं को सशक्त बनाती हैं वे मजबूत फाइनेंशियल परफॉरमेंस और इनोवेशन को बढ़ावा देती हैं. बिजनेस का भविष्य एक ऐसा माहौल बनाने पर निर्भर करता है जहां महिलाएं आत्मविश्वास से नेतृत्व कर सकें और बिना किसी सीमा के उद्योगों को आकार दे सकें.

आपकी उपलब्धियां क्या हैं? क्या आपको कोई पुरस्कार मिला है?

मेरी एक महत्वपूर्ण उपलब्धि यह रही कि भारतीय रिजर्व बैंक ने वित्तीय धोखाधड़ी से निपटने में हमारी आरटी360 रियल-टाइम मॉनिटरिंग प्रणाली (आरटीएमएस) को इसकी प्रभावशीलता के लिए रिकग्नाइज किया जिसके परिणामस्वरूप रेगुलेटेड संस्थाओं द्वारा इसे अपनाया गया. आज हमारे सॉल्यूशन 21 लाख करोड़ रुपये ($250 बिलियन) से अधिक की एसेट्स को ट्रैक करते हैं और 2,100 करोड़ रुपये ($2.5 बिलियन) के संभावित एनपीए को रोकने में मदद कर चुके हैं.

इंडस्ट्री रिकग्निशन:

चार्टिस ने रिस्कटेक 100 रिपोर्ट में बीसीटी डिजिटल को 68वां स्थान दिया भारतीय रिजर्व बैंक ने रेगुलेटरी सैंडबॉक्स के चौथे कॉहोर्ट के दौरान बीसीटी डिजिटल के आरटी360 रियल टाइम मॉनिटरिंग सॉल्यूशन का सफलतापूर्वक परीक्षण और मूल्यांकन किया.

फिनटेक लीडर ऑफ द ईयर 2025 (भारत फिनटेक समिट, द डिजिटल फिफ्थ)

द फिनटेक मेवरिक – मोस्ट डेयरिंग सीईओ 2024 (एंटरप्रेन्योर इंडिया)

फिनटेक लीडर ऑफ द ईयर 2023 (बिजनेसवर्ल्ड फेस्टिवल ऑफ फिनटेक)

भारत का सबसे भरोसेमंद सीईओ अवार्ड 2022 (WCRC)

लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड 2022 (वर्ल्ड एचआरडी कांग्रेस और तमिलनाडु
बिजनेस लीडर ऑफ द ईयर)

उन्हें फिनटेक लीडर पुरस्कार सहित विभिन्न वैश्विक पुरस्कार मिले हैं.

Hindi Fiction Stories : एक अच्छा दोस्त

Hindi Fiction Stories :  सतीश लंबा, गोरा और छरहरे बदन का नौजवान था. जब वह सीनियर क्लर्क बन कर टैलीफोन महकमे में पहुंचा, तो राधा उसे देखती ही रह गई. शायद वह उस के सपनों के राजकुमार सरीखा था.

कुछ देर बाद बड़े बाबू ने पूरे स्टाफ को अपने केबिन में बुला कर सतीश से मिलवाया.

राधा को सतीश से मिलवाते हुए बड़े बाबू ने कहा, ‘‘सतीश, ये हैं हमारी स्टैनो राधा. और राधा ये हैं हमारे औफिस के नए क्लर्क सतीश.’’

राधा ने एक बार फिर सतीश को ऊपर से नीचे तक देखा और मुसकरा दी.

औफिस में सतीश का आना राधा की जिंदगी में भूचाल लाने जैसा था. वह घर जा कर सतीश के सपनों में खो गई. दिन में हुई मुलाकात को भूलना उस के बस में नहीं था.

सतीश और राधा हमउम्र थे. राधा के मन में उधेड़बुन चल रही थी. उसे लग रहा था कि काश, सतीश उस की जिंदगी में 2 साल पहले आया होता.

राधा की शादी 2 साल पहले मोहन के साथ हुई थी. वह एक प्राइवेट कंपनी में असिस्टैंट मैनेजर था. घर में किसी चीज की कमी नहीं थी, मगर मोहन को कंपनी के काम से अकसर बाहर ही रहना पड़ता था. घर में रहते हुए भी वह राधा पर कम ही ध्यान दे पाता था.

यों तो राधा एक अच्छी बीवी थी, पर मोहन का बारबार शहर से बाहर जाना उसे पसंद नहीं था. मोहन का सपाट रवैया उसे अच्छा नहीं लगता था. वह तो एक ऐसे पति का सपना ले कर आई थी, जो उस के इर्दगिर्द चक्कर काटता रहे. लेकिन मोहन हमेशा अपने काम में लगा रहता था.

अगले दिन सतीश समय से पहले औफिस पहुंच गया. वह अपनी सीट पर बैठा कुछ सोच रहा था कि तभी राधा ने अंदर कदम रखा.

सतीश को सामने देख राधा ने उस से पूछा, ‘‘कैसे हैं आप? इस शहर में पहला दिन कैसा रहा?’’

सतीश ने सहज हो कर जवाब दिया, ‘‘मैं ठीक हूं. पहला दिन तो अच्छा ही रहा. आप कैसी हैं?’’

राधा ने चहकते हुए कहा, ‘‘खुद ही देख लो, एकदम ठीक हूं.’’

इस के बाद राधा लगातार सतीश के करीब आने की कोशिश करने लगी. धीरेधीरे सतीश भी खुलने लगा. दोनों औफिस में हंसतेबतियाते रहते थे.

हालांकि औफिस के दूसरे लोग उन की इस बढ़ती दोस्ती से अंदर ही अंदर जलते थे. वे पीठ पीछे जलीकटी बातें भी करने लगे थे.

राधा के जन्मदिन पर सतीश ने उसे एक बढि़या सा तोहफा दिया और कैंटीन में ले जा कर लंच भी कराया.

राधा एक नई कशिश का एहसास कर रही थी. समय पंख लगा कर उड़ता गया. सतीश और राधा की दोस्ती गहराती चली गई.

राधा शादीशुदा है, सतीश यह बात बखूबी जानता था. वह अपनी सीमाओं को भी जानता था. उसे तो एक अजनबी शहर में कोई अपना मिल गया था, जिस के साथ वह अपने सुखदुख की बातें कर सकता था.

सतीश की मां ने कई अच्छे रिश्तों की बात अपने खत में लिखी थी, मगर वह जल्दी शादी करने के मूड में नहीं था. अभी तो उस की नौकरी लगे केवल 8 महीने ही हुए थे. वह राधा के साथ पक्की दोस्ती निभा रहा था, लेकिन राधा इस दोस्ती का कुछ और ही मतलब लगा रही थी.

राधा को लगने लगा था कि सतीश उस से प्यार करने लगा है. वह पहले से ज्यादा खुश रहने लगी थी. वह अपने मेकअप और कपड़ों पर भी ज्यादा ध्यान देने लगी थी. उस पर सतीश का नशा छाने लगा था. वह मोहन का वजूद भूलती जा रही थी.

सतीश हमेशा राधा की पसंदनापसंद का खयाल रखता था. वह उस की हर बात की तारीफ किए बिना नहीं रहता था. यही तो राधा चाहती थी. उसे अपना सपना सच होता दिखाई दे रहा था.

एक दिन राधा ने सतीश को डिनर पर अपने घर बुलाया. सतीश सही समय पर राधा के घर पहुंच गया.

नीली जींस व सफेद शर्ट में वह बेहद सजीला जवान लग रहा था. उधर राधा भी किसी परी से कम नहीं लग रही थी. उस ने नीले रंग की बनारसी साड़ी बांध रखी थी, जो उस के गोरे व हसीन बदन पर खूब फब रही थी.

सतीश के दरवाजे की घंटी बजाते ही राधा की बांछें खिल उठीं. उस ने मीठी मुसकान बिखेरते हुए दरवाजा खोला और उसे भीतर बुलाया.

ड्राइंगरूम में बैठा सतीश इधरउधर देख रहा था कि तभी राधा चाय ले कर आ गई.

‘‘मैडम, मोहनजी कहां हैं? वे कहीं दिखाई नहीं दे रहे,’’ सतीश ने पूछा.

राधा खीज कर बोली, ‘‘वे कंपनी के काम से हफ्तेभर के लिए हैदराबाद गए हैं. उन्हें मेरी जरा भी फिक्र नहीं रहती है. मैं अकेली दीवारों से बातें करती रहती हूं. खैर छोड़ो, चाय ठंडी हो रही है.’’

सतीश को लगा कि उस ने राधा की किसी दुखती रग पर हाथ रख दिया है. बातोंबातों में चाय कब खत्म हो गई, पता ही नहीं चला.

राधा को लग रहा था कि सतीश ने आ कर कुछ हद तक उस की तनहाई दूर की है. सतीश कितना अच्छा है. बातबात पर हंसतामुसकराता है. उस का कितना खयाल रखता है.

तभी सतीश ने टोकते हुए पूछा, ‘‘राधा, कहां खो गई तुम?’’

‘‘अरे, कहीं नहीं. सोच रही थी कि तुम्हें खाने में क्याक्या पसंद हैं?’’

सतीश ने चुटकी लेते हुए जवाब दिया, ‘‘बस यही राजमा, पुलाव, रायता, पूरीपरांठे और मूंग का हलवा. बाकी जो आप खिलाएंगी, वही खा लेंगे.’’

‘‘क्या बात है. आज तो मेरी पसंद हम दोनों की पसंद बन गई,’’ राधा ने खुश होते हुए कहा.

राधा सतीश को डाइनिंग टेबल पर ले गई. दोनों आमनेसामने जा बैठे. वहां काफी पकवान रखे थे.

खाते हुए बीचबीच में सतीश कोई चुटकुला सुना देता, तो राधा खुल कर ठहाका लगा देती. माहौल खुशनुमा हो गया था.

‘काश, सब दिन ऐसे ही होते,’ राधा सोच रही थी.

सतीश ने खाने की तारीफ करते हुए कहा, ‘‘वाह, क्या खाना बनाया?है, मैं तो उंगली चाटता रह गया. तुम इसी तरह खिलाती रही तो मैं जरूर मोटा हो जाऊंगा.’’

‘‘शुक्रिया जनाब, और मेरे बारे में आप का क्या खयाल है?’’ कहते हुए राधा ने सतीश पर सवालिया निगाह डाली.

‘‘अरे, आप तो कयामत हैं, कयामत. कहीं मेरी नजर न लग जाए आप को,’’ सतीश ने मुसकरा कर जवाब दिया.

सतीश की बात सुन कर राधा झूम उठी. उस की आंखों के डोरे लाल होने लगे थे. वह रोमांटिक अंदाज में अपनी कुरसी से उठी और सतीश के पास जा कर स्टाइल से कहने लगी, ‘‘सतीश, आज मौसम कितना हसीन है. बाहर बूंदों की रिमझिम हो रही?है और यहां हमारी बातोें की. चलो, एक कदम और आगे बढ़ाएं. क्यों न प्यारमुहब्बत की बातें करें…’’

इतना कह कर राधा ने अपनी गोरीगोरी बांहें सतीश के गले में डाल दीं. सतीश राधा का इरादा समझ गया. एक बार तो उस के कदम लड़खड़ाए, मगर जल्दी ही उस ने खुद पर काबू पा लिया और राधा को अपने से अलग करता हुआ बोला, ‘‘राधाजी, आप यह क्या कर रही?हैं? क्यों अपनी जिंदगी पर दाग लगाने पर तुली हैं? पलभर की मौजमस्ती आप को तबाह कर देगी.

‘‘अपने जज्बातों पर काबू कीजिए. मैं आप का दोस्त हूं, अंधी राहों पर धकेलने वाला हवस का गुलाम नहीं.

‘‘आप अपनी खुशियां मोहनजी में तलाशिए. आप के इस रूप पर उन्हीं का हक है. उन्हें अपनाने की कोशिश कीजिए,’’ इतना कह कर सतीश तेज कदमों से बाहर निकल गया.

राधा ठगी सी उसे देखती रह गई. उसे अपने किए पर अफसोस हो रहा था. वह सोचने लगी, ‘मैं क्यों इतनी कमजोर हो गई? क्यों सतीश को अपना सबकुछ मान बैठी? क्यों इस कदर उतावली हो गई?

‘अगर सतीश ने मुझे न रोका होता तो आज मैं कहीं की न रहती. बाद में वह मुझे ब्लैकमेल भी कर सकता था. मगर वह ऐसा नहीं है. उस ने मुझे भटकने से रोक लिया. कितना महान है सतीश. मुझे उस की दोस्ती पर नाज है.’

लेखक- नरेंद्र सिंह ‘नीहार’

Latest Hindi Stories : मसीहा – शांति की हिम्मत ने उसे बनाया कामयाब इनसान

Latest Hindi Stories : दोपहर का खाना खा कर लेटे ही थे कि डाकिया आ गया. कई पत्रों के बीच राजपुरा से किसी शांति नाम की महिला का एक रजिस्टर्ड पत्र 20 हजार रुपए के ड्राफ्ट के साथ था. उत्सुकतावश मैं एक ही सांस में पूरा पत्र पढ़ गई, जिस में उस महिला ने अपने कठिनाई भरे दौर में हमारे द्वारा दिए गए इन रुपयों के लिए धन्यवाद लिखा था और आज 10 सालों के बाद वे रुपए हमें लौटाए थे. वह खुद आना चाहती थी पर यह सोच कर नहीं आई कि संभवत: उस के द्वारा लौटाए जाने पर हम वह रुपए वापस न लें.

पत्र पढ़ने के बाद मैं देर तक उस महिला के बारे में सोचती रही पर ठीक से कुछ याद नहीं आ रहा था.

‘‘अरे, सुमि, शांति कहीं वही लड़की तो नहीं जो बरसों पहले कुछ समय तक मुझ से पढ़ती रही थी,’’ मेरे पति अभिनव अतीत को कुरेदते हुए बोले तो एकाएक मुझे सब याद आ गया.

उन दिनों शांति अपनी मां बंती के साथ मेरे घर का काम करने आती थी. एक दिन वह अकेली ही आई. पूछने पर पता चला कि उस की मां की तबीयत ठीक नहीं है. 2-3 दिन बाद जब बंती फिर काम पर आई तो बहुत कमजोर दिख रही थी. जैसे ही मैं ने उस का हाल पूछा वह अपना काम छोड़ मेरे सामने बैठ कर रोने लगी. मैं हतप्रभ भी और परेशान भी कि अकारण ही उस की किस दुखती रग पर मैं ने हाथ रख दिया.

बंती ने बताया कि उस ने अब तक के अपने जीवन में दुख और अभाव ही देखे हैं. 5 बेटियां होने पर ससुराल में केवल प्रताड़ना ही मिलती रही. बड़ी 4 बेटियों की तो किसी न किसी तरह शादी कर दी है. बस, अब तो शांति को ब्याहने की ही चिंता है पर वह पढ़ना चाहती है.

बंती कुछ देर को रुकी फिर आगे बोली कि अपनी मेहनत से शांति 10वीं तक पहुंच गई है पर अब ट्यूशन की जरूरत पड़ेगी जिस के लिए उस के पास पैसा नहीं है. तब मैं ने अभिनव से इस बारे में बात की जो उसे निशुल्क पढ़ाने के लिए तैयार हो गए. अपनी लगन व परिश्रम से शांति 10वीं में अच्छे नंबरों में पास हो गई. उस के बाद उस ने सिलाईकढ़ाई भी सीखी. कुछ समय बाद थोड़ा दानदहेज जोड़ कर बंती ने उस के हाथ पीले कर दिए.

अभी शांति की शादी हुए साल भर बीता था कि वह एक बेटे की मां बन गई. एक दिन जब वह अपने बच्चे सहित मुझ से मिलने आई तो उस का चेहरा देख मैं हैरान हो गई. कहां एक साल पहले का सुंदरसजीला लाल जोड़े में सिमटा खिलाखिला शांति का चेहरा और कहां यह बीमार सा दिखने वाला बुझाबुझा चेहरा.

‘क्या बात है, बंती, शांति सुखी तो है न अपने घर में?’ मैं ने सशंकित हो पूछा.

व्यथित मन से बंती बोली, ‘लड़कियों का क्या सुख और क्या दुख बीबी, जिस खूंटे से बांध दो बंधी रहती हैं बेचारी चुपचाप.’

‘फिर भी कोई बात तो होगी जो सूख कर कांटा हो गई है,’ मेरे पुन: पूछने पर बंती तो खामोश रही पर शांति ने बताया, ‘विवाह के 3-4 महीने तक तो सब ठीक रहा पर धीरेधीरे पति का पाशविक रूप सामने आता गया. वह जुआरी और शराबी था. हर रात नशे में धुत हो घर लौटने पर अकारण ही गालीगलौज करता, मारपीट करता और कई बार तो मुझे आधी रात को बच्चे सहित घर से बाहर धकेल देता. सासससुर भी मुझ में ही दोष खोजते हुए बुराभला कहते. मैं कईकई दिन भूखीप्यासी पड़ी रहती पर किसी को मेरी जरा भी परवा नहीं थी. अब तो मेरा जीवन नरक समान हो गया है.’

उस रात मैं ठीक से सो नहीं पाई. मानव मन भी अबूझ होता है. कभीकभी तो खून के रिश्तों को भी भीड़ समझ उन से दूर भागने की कोशिश करता है तो कभी अनाम रिश्तों को अकारण ही गले लगा उन के दुखों को अपने ऊपर ओढ़ लेता है. कुछ ऐसा ही रिश्ता शांति से जुड़ गया था मेरा.

अगले दिन जब बंती काम पर आई तो मैं उसे देर तक समझाती रही कि शांति पढ़ीलिखी है, सिलाईकढ़ाई जानती है, इसलिए वह उसे दोबारा उस के ससुराल न भेज कर उस की योग्यता के आधार पर उस से कपड़े सीने का काम करवाए. पति व ससुराल वालों के अत्याचारों से छुटकारा मिल सके मेरे इस सुझाव पर बंती ने कोई उत्तर नहीं दिया और चुपचाप अपना काम समाप्त कर बोझिल कदमों से घर लौट गई.

एक सप्ताह बाद पता चला कि शांति को उस की ससुराल वाले वापस ले गए हैं. मैं कर भी क्या सकती थी, ठगी सी बैठी रह गई.

देखते ही देखते 2 साल बीत गए. इस बीच मैं ने बंती से शांति के बारे में कभी कोई बात नहीं की पर एक दिन शांति के दूसरे बेटे के जन्म के बारे में जान कर मैं बंती पर बहुत बिगड़ी कि आखिर उस ने शांति को ससुराल भेजा ही क्यों? बंती अपराधबोध से पीडि़त हो बिलखती रही पर निर्धनता, एकाकीपन और अपने असुरक्षित भविष्य को ले कर वह शांति के लिए करती भी तो क्या? वह तो केवल अपनी स्थिति और सामाजिक परिवेश को ही कोस सकती थी, जहां निम्नवर्गीय परिवार की अधिकांश स्त्रियों की स्थिति पशुओं से भी गईगुजरी होती है.

पहले तो जन्म लेते ही मातापिता के घर लड़की होने के कारण दुत्कारी जाती हैं और विवाह के बाद अर्थी उठने तक ससुराल वालों के अत्याचार सहती हैं. भोग की वस्तु बनी निरंतर बच्चे जनती हैं और कीड़ेमकोड़ों की तरह हर पल रौंदी जाती हैं, फिर भी अनवरत मौन धारण किए ऐसे यातना भरे नारकीय जीवन को ही अपनी तकदीर मान जीने का नाटक करते हुए एक दिन चुपचाप मर जाती हैं.

शांति के साथ भी तो यही सब हो रहा था. ऐसी स्थिति में ही वह तीसरी बार फिर मां बनने को हुई. उसे गर्भ धारण किए अभी 7 महीने ही हुए थे कि कमजोरी और कई दूसरे कारणों के चलते उस ने एक मृत बच्चे को जन्म दिया. इत्तेफाक से उन दिनों वह बंती के पास आई हुई थी. तब मैं ने शांति से परिवार नियोजन के बारे में बात की तो बुझे स्वर में उस ने कहा कि फैसला करने वाले तो उस की ससुराल वाले हैं और उन का विचार है कि संतान तो भगवान की देन है इसलिए इस पर रोक लगाना उचित नहीं है.

मेरे बारबार समझाने पर शांति ने अपने बिगड़ते स्वास्थ्य और बच्चों के भविष्य को देखते हुए मेरी बात मान ली और आपरेशन करवा लिया. यों तो अब मैं संतुष्ट थी फिर भी शांति की हालत और बंती की आर्थिक स्थिति को देखते हुए परेशान भी थी. मेरी परेशानी को भांपते हुए मेरे पति ने सहज भाव से 20 हजार रुपए शांति को देने की बात कही ताकि पूरी तरह स्वस्थ हो जाने के बाद वह इन रुपयों से कोई छोटामोटा काम शुरू कर के अपने पैरों पर खड़ी हो सके. पति की यह बात सुन मैं कुछ पल को समस्त चिंताओं से मुक्त हो गई.

अगले ही दिन शांति को साथ ले जा कर मैं ने बैंक में उस के नाम का खाता खुलवा दिया और वह रकम उस में जमा करवा दी ताकि जरूरत पड़ने पर वह उस का लाभ उठा सके.

अभी इस बात को 2-4 दिन ही बीते थे कि हमें अपनी भतीजी की शादी में हैदराबाद जाना पड़ा. 15-20 दिन बाद जब हम वापस लौटे तो मुझे शांति का ध्यान हो आया सो बंती के घर चली गई, जहां ताला पड़ा था. उस की पड़ोसिन ने शांति के बारे में जो कुछ बताया उसे सुन मैं अवाक् रह गई.

हमारे हैदराबाद जाने के अगले दिन ही शांति का पति आया और उसे बच्चों सहित यह कह कर अपने घर ले गया कि वहां उसे पूरा आराम और अच्छी खुराक मिल पाएगी जिस की उसे जरूरत है. किंतु 2 दिन बाद ही यह खबर आग की तरह फैल गई कि शांति ने अपने दोनों बच्चों सहित भाखड़ा नहर में कूद कर जान दे दी है. तब से बंती का भी कुछ पता नहीं, कौन जाने करमजली जीवित भी है या मर गई.

कैसी निढाल हो गई थी मैं उस क्षण यह सब जान कर और कई दिनों तक बिस्तर पर पड़ी रही थी. पर आज शांति का पत्र मिलने पर एक सुखद आश्चर्य का सैलाब मेरे हर ओर उमड़ पड़ा है. साथ ही कई प्रश्न मुझे बेचैन भी करने लगे हैं जिन का शांति से मिल कर समाधान चाहती हूं.

जब मैं ने अभिनव से अपने मन की बात कही तो मेरी बेचैनी को देखते हुए वह मेरे साथ राजपुरा चलने को तैयार हो गए. 1-2 दिन बाद जब हम पत्र में लिखे पते के अनुसार शांति के घर पहुंचे तो दरवाजा एक 12-13 साल के लड़के ने खोला और यह जान कर कि हम शांति से मिलने आए हैं, वह हमें बैठक में ले गया. अभी हम बैठे ही थे कि वह आ गई. वही सादासलोना रूप, हां, शरीर पहले की अपेक्षा कुछ भर गया था. आते ही वह मेरे गले से लिपट गई. मैं कुछ देर उस की पीठ सहलाती रही, फिर भावावेश में डूब बोली, ‘‘शांति, यह कैसी बचकानी हरकत की थी तुम ने नहर में कूद कर जान देने की. अपने बच्चों के बारे में भी कुछ नहीं सोचा, कोई ऐसा भी करता है क्या? बच्चे तो ठीक हैं न, उन्हें कुछ हुआ तो नहीं?’’

बच्चों के बारे में पूछने पर वह एकाएक रोने लगी. फिर भरे गले से बोली, ‘‘छुटका नहीं रहा आंटीजी, डूब कर मर गया. मुझे और सतीश को किनारे खड़े लोगों ने किसी तरह बचा लिया. आप के आने पर जिस ने दरवाजा खोला था, वह सतीश ही है.’’

इतना कह वह चुप हो गई और कुछ देर शून्य में ताकती रही. फिर उस ने अपने अतीत के सभी पृष्ठ एकएक कर के हमारे सामने खोल कर रख दिए.

उस ने बताया, ‘‘आंटीजी, एक ही शहर में रहने के कारण मेरी ससुराल वालों को जल्दी ही पता चल गया कि मैं ने परिवार नियोजन के उद्देश्य से अपना आपरेशन करवा लिया है. इस पर अंदर ही अंदर वे गुस्से से भर उठे थे पर ऊपरी सहानुभूति दिखाते हुए दुर्बल अवस्था में ही मुझे अपने साथ वापस ले गए.

‘‘घर पहुंच कर पति ने जम कर पिटाई की और सास ने चूल्हे में से जलती लकड़ी निकाल पीठ दाग दी. मेरे चिल्लाने पर पति मेरे बाल पकड़ कर खींचते हुए कमरे में ले गया और चीखते हुए बोला, ‘तुझे बहुत पर निकल आए हैं जो तू अपनी मनमानी पर उतर आई है. ले, अब पड़ी रह दिन भर भूखीप्यासी अपने इन पिल्लों के साथ.’ इतना कह उस ने आंगन में खेल रहे दोनों बच्चों को बेरहमी से ला कर मेरे पास पटक दिया और दरवाजा बाहर से बंद कर चला गया.

‘‘तड़पती रही थी मैं दिन भर जले के दर्द से. आपरेशन के टांके कच्चे होने के कारण टूट गए थे. बच्चे भूख से बेहाल थे, पर मां हो कर भी मैं कुछ नहीं कर पा रही थी उन के लिए. इसी तरह दोपहर से शाम और शाम से रात हो गई. भविष्य अंधकारमय दिखने लगा था और जीने की कोई लालसा शेष नहीं रह गई थी.

‘‘अपने उन्हीं दुर्बल क्षणों में मैं ने आत्महत्या कर लेने का निर्णय ले लिया. अभी पौ फटी ही थी कि दोनों सोते बच्चों सहित मैं कमरे की खिड़की से, जो बहुत ऊंची नहीं थी, कूद कर सड़क पर तेजी से चलने लगी. घर से नहर ज्यादा दूर नहीं थी, सो आत्महत्या को ही अंतिम विकल्प मान आंखें बंद कर बच्चों सहित उस में कूद गई. जब होश आया तो अपनेआप को अस्पताल में पाया. सतीश को आक्सीजन लगी हुई थी और छुटका जीवनमुक्त हो कहीं दूर बह गया था.

‘‘डाक्टर इस घटना को पुलिस केस मान बारबार मेरे घर वालों के बारे में पूछताछ कर रहे थे. मैं इस बात से बहुत डर गई थी क्योंकि मेरे पति को यदि मेरे बारे में कुछ भी पता चल जाता तो मैं पुन: उसी नरक में धकेल दी जाती, जो मैं चाहती नहीं थी. तब मैं ने एक सहृदय

डा. अमर को अपनी आपबीती सुनाते हुए उन से मदद मांगी तो मेरी हालत को देखते हुए उन्होंने इस घटना को अधिक तूल न दे कर जल्दी ही मामला रफादफा करवा दिया और मैं पुलिस के चक्करों  में पड़ने से बच गई.

‘‘अब तक डा. अमर मेरे बारे में सबकुछ जान चुके थे इसलिए वह मुझे बेटे सहित अपने घर ले गए, जहां उन की मां ने मुझे बहुत सहारा दिया. सप्ताह  भर मैं उन के घर रही. इस बीच डाक्टर साहब ने आप के द्वारा दिए उन 20 हजार रुपयों की मदद से यहां राजपुरा में हमें एक कमरा किराए पर ले कर दिया. साथ ही मेरे लिए सिलाई का सारा इंतजाम भी कर दिया. पर मुझे इस बात की चिंता थी कि मेरे सिले कपड़े बिकेंगे कैसे?

‘‘इस बारे में जब मैं ने डा. अमर से बात की तो उन्होंने मुझे एक गैरसरकारी संस्था के अध्यक्ष से मिलवाया जो निर्धन व निराश्रित स्त्रियों की सहायता करते थे. उन्होंने मुझे भी सहायता देने का आश्वासन दिया और मेरे द्वारा सिले कुछ वस्त्र यहां के वस्त्र विके्रताओं को दिखाए जिन्होंने मुझे फैशन के अनुसार कपड़े सिलने के कुछ सुझाव दिए.

‘‘मैं ने उन के सुझावों के मुताबिक कपड़े सिलने शुरू कर दिए जो धीरेधीरे लोकप्रिय होते गए. नतीजतन, मेरा काम दिनोंदिन बढ़ता चला गया. आज मेरे पास सिर ढकने को अपनी छत है और दो वक्त की इज्जत की रोटी भी नसीब हो जाती है.’’

इतना कह शांति हमें अपना घर दिखाने लगी. छोटा सा, सादा सा घर, किंतु मेहनत की गमक से महकता हुआ.  सिलाई वाला कमरा तो बुटीक ही लगता था, जहां उस के द्वारा सिले सुंदर डिजाइन के कपड़े टंगे थे.

हम दोनों पतिपत्नी, शांति की हिम्मत, लगन और प्रगति देख कर बेहद खुश हुए और उस के भविष्य के प्रति आश्वस्त भी. शांति से बातें करते बहुत समय बीत चला था और अब दोपहर ढलने को थी इसलिए हम पटियाला वापस जाने के लिए उठ खड़े हुए. चलने से पहले अभिनव ने एक लिफाफा शांति को थमाते हुए कहा, ‘‘बेटी, ये वही रुपए हैं जो तुम ने हमें लौटाए थे. मैं अनुमान लगा सकता हूं कि किनकिन कठिनाइयों को झेलते हुए तुम ने ये रुपए जोड़े होंगे. भले ही आज तुम आत्मनिर्भर हो गई हो, फिर भी सतीश का जीवन संवारने का एक लंबा सफर तुम्हारे सामने है. उसे पढ़ालिखा कर स्वावलंबी बनाना है तुम्हें, और उस के लिए बहुत पैसा चाहिए. यह थोड़ा सा धन तुम अपने पास ही रखो, भविष्य में सतीश के काम आएगा. हां, एक बात और, इन पैसों को ले कर कभी भी अपने मन पर बोझ न रखना.’’

अभिनव की बात सुन कर शांति कुछ देर चुप बैठी रही, फिर धीरे से बोली, ‘‘अंकलजी, आप ने मेरे लिए जो किया वह आज के समय में दुर्लभ है. आज मुझे आभास हुआ है कि इस संसार में यदि मेरे पति जैसे राक्षसी प्रवृत्ति के लोग हैं तो

डा. अमर और आप जैसे महान लोग भी हैं जो मसीहा बन कर आते हैं और हम निर्बल और असहाय लोगों का संबल बन उन्हें जीने की सही राह दिखाते हैं.’’

इतना कह सजल नेत्रों से हमारा आभार प्रकट करते हुए वह अभिनव के चरणों में झुक गई.

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