WELCOME 2020: सारा से लेकर करीना तक, जानें कहां नए साल का जश्न मनाएंगे स्टार्स

वक्त के साथ बहुत कुछ बदला है. कल तक 31 दिसंबर की रात देश के पांच सितारा होटलों में फिल्मी सितारे नाच गाना करते हुए आम लोगों और अपने प्रशंसकों के साथ नव वर्ष का आगाज किया करते थे. मगर अब वक्त बदल गया है. अब ज्यादा दिग्गज फिल्मी सितारे अपने परिवार के साथ क्रिसमस और नए वर्ष की छुट्टियां मनाने के लिए विदेश जाने लगे हैं. इस वर्ष भी लोग 2020 का आगाज करने के लिए कई देशों में जा चुके हैं. आइए देखें कौन कहां गया है.

हुमा कुरेशी पहुंची प्रागः

हुमा कुरेशी अपनी सहेलियों संग प्राग,अम्सर्टडम और पेरिस की ात्रा पर हें.वह दस जनवरी तक मुंबई वापस लौंटेंगी.

इमरान पहुंचे अम्सटर्डमः

पोलैंड में अपनी फिल्म ‘‘चेहरे’’की शूटिंग पूरी करते ही अभिनेता इमरान हाशमी अपनी पत्नी व बेटे के संग अम्सटर्डम पहुंच चुके हैं, जहां वह पांच जनवरी 2020 तक रहेंगें.

मनाली पहुंची कंगनाः

 

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Ice ice baby. Kangana Ranaut and fam enjoy a day out in the snow. ?⛄❄️

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कंगना रानौट अपनी बहन रंगोली चंदेल के संग मनाली पहुंच गयी हैं. कंगना ने मनाली में ही अपना बंगला बनवाया है. रंगोली चंदेल ने अपने सोशल मीडिया एकाउंट पर कंगना संग मनाली की तस्वीरें डालकर इसकी सूचना दी है.

दुबई पहुंचे परिवार संग संजय दत्त

 

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Nothing better than spending time with your family during the holiday season! Here’s wishing everyone a Merry Christmas?♥️

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संजय दत्त अपनी पत्नी मान्यता दत्त, बेटे शहरान व बेटी इकरा संग दुबई पहुंच गए हैं.

अक्षय कुमार पहुंचे केप टाउनः

अक्षय कुमार अपनी पत्नी ट्विंकल खन्ना और बेटी नितारा के साथ केप टाउन में हैं. उनका बेटा आरव भी वहीं लंदन से आकर मिला 28 दिसंबर है. ज्ञातब्य है कि अक्षय कुमार का बेटा आरव लंदन पढ़ाई कर रहा है.

कियारा अडवाणीः

 

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Monochrome or Gold.. Keepin’ it Bold? @lakshmilehr @makeupbylekha @aasifahmedofficial @savar_9

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कियारा अडवाणी भी अपने दोस्तों के साथ दक्षिण अफ्रीका रवाना हो चुकी हैं. सूत्र बता रहे हैं कि वहां पर उनके परिवार के लोग भी मिलेंगे.

परिणीति पहुंची यूरोपः

 

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White christmas ☃️❄️?

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घूमने की शौकीन परिणीति चोपड़ा पिछले वर्ष शूटिंग में व्यस्तता के चलते घूमने नहीं जा पायी थी.इस बार वह अपने दोस्तों के संग यूरोप की सैर पर निकली हैं. सूत्रों के के अनुसार परिणीति चोपड़ा छह जनवरी तक यूरोप की यात्रा करेंगी. इस दैरान वह बुद्धापेस्ट, औस्ट्रिया व म्यूनिख की सैर करेंगी.

यामी गौतम पहुंची चंडीगढ़ः

 

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My happy place needs no filter , n me in no make-up? #home #winters #chandigarh ?

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यामी गौतम अपने परिवार के साथ क्रिसमस और नए वर्ष का जश्न व छुट्टियां मनाने के लिए सात जनवरी तक चंडीगढ़ में रहेंगी.

करीना कपूर फैमिली संग पहुंची स्विट्जरलैंड 

 

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❄️❤️? #swissalps #sistersledge #holidays @therealkarismakapoor

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एक्ट्रेस करीना कपूर खान स्विट्जरलैंड में पति सैफ अली खान, बेटे तैमूर और बहन करिश्मा कपूर के साथ वेकेशन एन्जौय कर रही हैं.

राधिका आप्टे अपने पति के पास पहुंची लंदनः

क्रिसमस और नए साल का जश्न अपने पति बेनेडिट टेलर संग मनाने के लिए लदंन के अपने घर पहुंच गयी हैं. ज्ञातब्य है कि राधिका आप्टे के पति ब्रिटिश म्यूजीशियन हैं और लंदन में ही रहते हैं.

सारा अली खान चली दोस्तों के साथः

सारा अली खान अपने पिता सैफ अली खान के साथ नहीं, बल्कि अपनी हम उम्र सहेलियों के साथ विदेश की यात्रा पर निकली हैं. उन्होने देश का नाम छिपाया है. मगर उस देश के किसी स्थल पर जाकर सहेलियों संग स्वीमिंग पुल के अंदर मजा लेने की कुछ तस्वीरें जरुर सोशल मीडिया पर डाली हैं. कुछ लोगों का मानना है कि वह मालदीव में छुट्टियां मना रही हैं.

पत्रलेखा संग राज कुमार राव की यूरोप यात्राः

राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता अभिनेता राज कुमार राव अपनी प्रेमिका पत्रलेखा संग दस दिन की यात्रा पर यूरोप पहुंच गए हैं. वह दस दिनों के अंदर स्विटजरलैंड और फ्रांस में रहेंगे.

दुबई में हैं अनन्या पांडेः

अपने कैरियर की पहली फिल्म ‘‘स्टूडेंट आफ द ईअर 2’’ से लोकप्रियता बटोर चुकी अनन्या पांडे दुबई में मौज मस्ती कर रही हैं. अनन्या पांडे ने इंस्टाग्राम पर दुबई में इंज्वौय करते हुए तस्वीर पोस्ट की है. इस तस्वीर में सफेद पोशाक में वह काफी हॉट लग रही हैं.

तापसी पन्नू पहुंची मौरीशसः

तापसी पन्नू नए साल की छुट्टियां मनाने के लिए मॉरीशस गयी हैं.सूत्र बताते हैं कि वह अपने साथ अपनी बहन व माता पिता को भी लेकर गयी हंै और दो जनवरी तक मॉरीशस में ही रहेंगी.

देओल परिवार लंदन से नार्वेः

धर्मेंद्र और सनी देओल का पूरा परिवार पहले लंदन गया और वहां पर क्रिसमस मनाया.अब यह सभी नए साल का जश्न मनाने के लिए नार्वे पहुंचे हैं.

रितिक रोशनः

हर बार की तरह इस बार भी रितिक रोशन अपने दोनों बेटों ह्रेहान व हरीधान के अलावा कजिन पशिमा के साथ फ्रांस पहुंच गए हैं. वहां पर वह स्काइंग भी करने वाले हैं. सूत्रों के अनुसार पांच जनवरी तक वापस मुंबई पहुंचेंगे.

आयुष्मान खुराना पत्नी ताहिरा संग पहुंचे बहामास

 

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Xmas happens a day later in Bahamas. #merrychristmas?

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राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता अभिनेता आयुष्मान खुराना अपनी पत्नी ताहिरा संग छुट्टियां मनाने के लिए बहामास पहुंच गए हैं. इन्होंने सोशल मीडिया पर वहां से जो तस्वीरें डाली हैं, उसमें आयुष्मान खुराना बिना शर्ट पहने हुए हैं, जबकि ताहिरा ने नीले और सफेद प्रिंटेड टू पीस वाली पोशाक पहनी है.

दिशा पटनी पहुंची जापान

दिशा पटनी जापान में छुट्टियां मना रही हैं.वह दो जनवरी के बाद वापस लौटेंगी.

स्वाद का खजाना है इलाइची

इलाइची के दो प्रकार की आती है, हरी या छोटी इलायची तथा बड़ी इलायची. जहाँ हरी इलायची मिठाइयों की खुशबू बढ़ाती है, वहीं बड़ी इलायची व्यंजनों को लजीज बनाने के लिए एक मसाले के रूप में प्रयुक्त होती है. तों आईये एक नजर डालते है,  इलाइची के सुनहरे इतिहास पर साथ ही जानते है,  इलाइची की अदभुत खेती, इलाइची पहाड़ी एवं  इलाइची के औषधीय गुण के बारे में ….

1. काफी सुनहरा हैइतिहास

हमारे देश  में इलायची के उत्पादन, उपयोग एवं व्यापार का इतिहास काफी और बड़ा है. कहा जाता है कि इलायची का कारोबार हमारे देश  में कम से कम 1000 साल पुराना है. प्राचीन काल से ही इसे मसालो की रानी के रूप में जाना जाता है, जबकि काली मिर्च को मसालो का राजा कहा जाता है. कई ऐतिहासिक एवं धार्मिक भारतीय ग्रंथों में भी एक स्वादिष्ट बनाने का मसाला और दवा के रूप में इलायची का उल्लेख है. चिकित्सा संग्रह चरक को 2 शताब्दी ईसा पूर्व से 2 शताब्दी ई. के बीच  गया था, इन ग्रथों में इलायची का जिक्र यह साबित करता है कि इलायची का उपयोग सदियों से होते आ रहा है. इसके अलावा चाणक्य के कौटिल्य के साथ कई संस्कृत ग्रंथों में इलायची का उल्लेख मिलता है.

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भारत में 11 वीं सदी में इलायची का उपयोग बडे पैमाने पर होता है, तभी तो उस समय के कई राज्यो का यह पसंदीदा खाद्य साम्रगी में एक था. कई जगह इसे पांच खुशबू पान चबाना के लिए सामग्री की सूची में शामिल किया गया था, तो कई जगह यह उस समय के व्यंजनों को लजीज बनाता था. दक्षिण भारत के पश्चिमी घाट के जंगलों का कुछ हिस्सों सदियो से इलायची हिल्स के नाम से प्रसिद्ध है, अगर हम इन की प्रसिद्ध पर बात करते है तो हमे 200 साल पीछे जाना होगा, क्योकि उन दिनो इन पहाडि़यो का स्वार्णिक काल चल रहा था. इन पहाडि़यों के जंगली में एक सुनहरी इलायची की दुनिया बसती थी, यहां उत्पादित इलाइची का निर्यात दुनिया के कई देशो में किया जाता था.

2. इलाइची की खेती

इलाइची की खेती के लिए वह इलाका काफी श्रेष्ठ होता है, जहाँ 600-1500 मीटर के बीच उन्नतांश वाला उष्णदेशीय वन के साथ 1520 सेमी से अधिक वर्षा की अच्छी उपलब्धता हो और वहा का तापमान 10-35 डिग्री सें.ग्रे. के दायरे में हो. इलाइची के पौधे बेहद नाजुक होते है, इनके विकास के लिए बड़े एवं हमेशा हरा रहने वाले वनों के पेड़ों की छाया के साथ हल्के गर्म एवं नम मौसम काफी उपयुक्त होता है. हवा और सूखे के प्रति अत्यधिक संवेदनशील होने के साथ यह जल-जमाव या अत्यधिक नमी के प्रति भी अत्यधिक संवेदनशील होता है. इलायची के उत्पादको को इन बातो का ख्याल रखना पडता है.  इलायची के लिए अनुकूल क्षेत्र ढलुआ भूमि है जहां जल निकासी की अच्छी व्यवस्था हो. फसल को मुख्यतः अच्छी जल निकासी वाली उपजाऊ दोमट वन भूमि तथा लाल गहरी, अच्छी बनावट वाली लाल मिट्टी में लगाया जाता है. जहां पर्याप्त मात्रा में खाद मिट्टी या पत्ती युक्त-चिकनी मिट्टी उपलब्ध हो लगाया जा सकता है. पौधे जैविक तत्वों से भरी दुमट मिट्टी को ज्यादा पसंद करते हैं. इनका स्वभाव आमतौर पर अम्लीय होता है तथा इनका पीएच मान 5.0 से 6.5 के बीच होता है.

बड़े पैमाने पर उत्पादन के लिए पहले विशेष नर्सरी में बीज बोना जाता है, फिर एक से दो सप्ताह में बीज से पौधों अंकुर होने लगते है, इन पौधों को छायादार पेड़ के नीचे लगाया जाता है. पौधों को विकास एवं इनके फल का पकाना एक विस्तारित अवधि के दौरान होता  हैं. इस दौरान पौधों का पुरा ख्याल रखना पडता है. तय समयावधि पर इन फलो का काटा जाता है .

3. इलायची की पहाड़ी

भारत में इलायची की खेती प्राकृति परिस्थितियों के अंतर्गत हमेशा हरा-भरा रहने वाली पश्चिमी घाट के वनों में की जाती है. इलायची की पहाड़ी पश्चिमी घाट का दक्षिणी विस्तार हैं. केरल तथा तमिलनाडु में इन पहाडियों का अत्यधिक विस्तार है. यहाँ पर इलायची की खेती बहुतायत से की जाती है, इसी कारण से इन्हें इलायची की पहाड़ी कहते हैं.

4. इलायची का सबसे बड़ा उत्पादक देश

 हमारे देश के अलावा कई के देशो में इसकी खेती बडे पैमाने पर किया जाता है. चीन, लाओस और वियतनाम के स्थानीय क्षेत्रों में अधिक ऊंचाई पर रहने वाले किसानों के लिए एक आय का प्रमुख स्त्रोत हैं. किसी जमाने में नेपाल बड़ी इलायची का सबसे बड़ा उत्पादक देश गया था, लेकिन फिलहाल ग्वाटेमाला दुनिया का सबसे बड़ा उत्पादक और निर्यातक है. ग्वाटेमाला के बाद भारत इलायची का सबसे बड़ा उत्पादक देश हैं.

5. कई औषधीय गुणों का भंडार हैइलाइची

हरी इलायची का इस्तेमाल दक्षिण एशिया के कई देशो के साथ विश्व के कई देशो में किया जाता है. चीन में पारंपरिक चीनी चिकित्सा, भारत, पाकिस्तान, जापान, कोरिया और वियतनाम में आयुर्वेद के सिस्टम में पारंपरिक चिकित्सा में एक घटक के रूप में इसका इस्तेमाल किया जाता है. इसके साथ कई यूरोपिय देशो, अमेरिकन प्रयाद्वीपो, आस्ट्रेलिया एवम् अफ्रीका के कई इलाको में इलायची का उपयोग मसालो के साथ पारंपरिक चिकित्सा भी में किया जाता है.

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यदि आपका आवाज बैठ गया है या गले में खराश है, तो सुबह उठते समय और रात को सोते समय छोटी इलायची चबा-चबाकर खाएँ एवं इसके साथ गुनगुना पानी पीएँ, सब कुछ पहले जैसे हो जायेगा.

यदि आप के गले में सूजन आ गई हो, तो आप पानी में छोटी इलायची पीसकर सेवन कर सकते है.सर्दी-खाँसी और छींक की समस्या होने पर आप एक छोटी इलायची के साथ अदरक, लौंग, तुलसी के पत्ते एवं पान को सही मात्र में मिला कर लेते है तो यह काफी लाभदायक सिद्ध होता हैँ.

मुँह में छाले हो जाने पर बड़ी इलायची को महीन पीसकर उसमें पिसी हुई मिश्री मिलाकर जबान पर रखें, इससे आपको तुरंत लाभ मिलता है.

जी मिचलाना या जी घबराता पर आप एक छोटी इलायची को मुँह में रख सकते है, इससे आपको तुरंत आराम मिलता हैं.

यदि आपको यात्रा के दौरान बस में बैठने पर चक्कर आता हैं या जी घबराता है, तो आप  इससे निजात पाने के लिए एक छोटी इलायची मुँह में रख सकते है. इससे तुरंत आराम मिलता है.

छोटी सरदारनी: नए साल में देखना ना भूलें मेहर और सरब का फिल्मी अवतार

कलर्स के शो छोटी सरदारनी में इन दिनों हरलीन की चेतावनी के चलते मेहर काफी परेशानी में है, लेकिन सरब हर तरह से कोशिश कर रहा है कि वह मेहर की मदद कर सके. वहीं अब नए साल के मौके पर मेहर और सरब शो में अपने डांस और कैमेस्ट्री के साथ मस्ती करते हुए नजर आने वाले हैं. आइए आपको बताते हैं कि  किस तरह मेहर और सरब करेंगें नए अंदाज में नए साल का स्वागत…

मेहर की ख्वाहिश पूछेगा सरब

सरब और मेहर धीरे-धीरे अपनी जिंदगी से जुड़े किस्से शेयर कर रहे हैं. इसी के चलते सरब मेहर से नए साल के मौके पर उसकी एक ख्वाहिश पूछेगा.

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पुराने दिनों को याद करेगी मेहर

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आज आप देखेंगे कि मेहर सरब से कहेगी कि उसकी ख्वाहिश है कि वह पुरानी लव स्टोरीज की फैन है और उसे पुराने गानें बहुत पसंद है, जिसके साथ ही दोनों सपने में खो जाएंगे. जहां एक तरफ मेहर अपने कौलेज के दिनों में रोमियो जुलियट के किस्से को याद करेगी तो वहीं सरब सरबिया में रिहर्सल को याद करेगा.

मेहर के साथ सरब करेगा डांस

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मेहर की ख्वाहिश जानकर सरब सपनों में अलग-अलग एऱा के गानों पर मेहर के साथ डांस करते हुए नजर आता है, जिनमें फिर मिलेंगे चलत-चलते जैसे फेमस गानें शामिल हैं.

सरब और मेहर का है ये कहना

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इस स्पेशल परफार्मेंस को लेकर मेहर यानी निमरत का कहना है- “मैं बहुत गौरविंत महसूस कर रही हूं कि मुझे बौलीवुड के लिजेंडरी एक्टर्स के गानों पर परफार्म करने का मौका मिला. मैं इन्हीं गानों को सुनती हुई बड़ी हुई हूं, मुझे उम्मीद है कि मैंने इन गानों पर सही तरीके से परफार्म किया होगा.” सरबजीत का रोल कर रहे हैं अविनेश ने कहा- “ये एक बेहतरीन अनुभव था, हालांकि मैं कोई बहुत अच्छा डांसर नहीं हूं फिर भी मुझे ये करते हुए बहुत अच्छा लगा. क्योंकि ये हमारे रूटीन से कुछ हटकर था. नए साल की इससे अच्छी शुरुआत हो ही नहीं सकती.”

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नए साल पर मेहर और सरब का नया अंदाज और मस्ती को देखने के लिए बने रहिए ‘छोटी सरदारनी’ के साथ, सोमवार से शनिवार, रात 7:30 बजे, सिर्फ कलर्स पर.

शुभारंभ: हल्दी की रस्म की हो गई है शुरूआत, पर कीर्तिदा करने वाली है कोई टेढ़ी बात

कलर्स के शो ‘शुभारंभ’ में राजा और रानी की शादी की तैयारियों का भी शुभआरंभ हो गया है. वहीं एक-दूसरे का साथ पाने के लिए राजा-रानी एक नये रिश्ते में बंधने के सपने देख रहे हैं, लेकिन क्या राजा-रानी का ये रिश्ता बिना किसी दिक्कत के जुड़ पाएगा. आइए आपको बताते हैं क्या होगा आज के एपिसोड में…

कीर्तिदा की चालें नही हो रही कम

अब तक आपने देखा कि जहाँ एक तरफ राजा और रानी के बीच नज़दीकियाँ बढ़ रही हैं तो वहीं दूसरी तरफ कीर्तिदा दोनों की शादी के सपनों पर पानी फेरने के लिए चालें चलने में लगी हुई है.

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कुंडली दोष की चाल चलेगी कीर्तिदा

आज के एपिसोड में आप देखेंगे कि राजा और रानी अपनी शादी को लेकर बहुत खुश दिखाई देंगे, लेकिन कीर्तिदा अपनी नई चाल चलेगी और रानी की कुंडली में दोष होने का नया ड्रामा रचेगी. ताकि दोनों की शादी ना हो पाए. वहीं रानी के कुंडली दोष को मिटाने के लिए कीर्तिदा किसी गली के कुत्ते से शादी कराने के लिए कहेगी.

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अब देखना ये है कि क्या रानी अंधविश्वास के चलते गली के कुत्ते से शादी कर लेगी या कीर्तिदा की इस नई चाल से बचने के लिए कोई नया रास्ता निकालेगी? क्या राजा उसका साथ देगा या परिवार के प्यार में चुप रहेगा? जानने के लिए देखते रहिए ‘ शुभारंभ’ सोमवार से शुक्रवार रात 9 बजे, सिर्फ कलर्स पर.

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क्रिमिनल एक्ट की जिम्मेदारी केवल दिमाग पर होती है– मेघना गुलज़ार

गीतकार संगीतकार गुलज़ार की बेटी मेघना गुलज़ार अपनी पढाई पूरी करने के बाद पहले अपने पिता को एसिस्ट किया और बाद में पटकथा लेखन के क्षेत्र में उतरी. उसे नयी कहानियां कहना पसंद है और इसके लिए वह पूरी मेहनत करती है. फिल्म फिलहाल उसकी निर्देशित डेब्यू फिल्म थी. इसके बाद उसने जस्ट मैरिड, दस कहानियां, तलवार, राज़ी आदि कई फिल्मों का निर्देशन किया और कमोवेश सफल रही. वह हर कहानी को अपने तरीके से कहने की कोशिश करती है. वह अपने आप को महिला निर्देशक नहीं, केवल निर्देशक कहलाना पसंद करती है. यही वजह है कि उसने ‘छपाक’ जैसी फिल्म का निर्देशन किया और उसने इसे अलग ढंग से इसे फिल्माने की कोशिश की है. फिल्म के प्रमोशन पर उनसे बात करना रोचक था, पेश है कुछ अंश.

सवाल- दीपिका को इस तरह की भूमिका में लेने की खास वजह क्या रही?

दीपिका पादुकोण ने सिर्फ ग्लैमरस भूमिका ही नहीं निभाई है, उसने कई अलग तरह की फिल्में भी की है. उनका काम का दायरा बहुत बड़ा है. दीपिका को इस भूमिका में लेने की खास वजह दीपिका की शारीरिक बनावट लक्ष्मी अग्रवाल से मिलना है. आज से 10 साल पहले की दीपिका और लक्ष्मी की पिक्चर बहुत मेल खाती हुयी है. इसलिए उससे अलग किसी और को लेना मेरे लिए सम्भव नहीं था.

सवाल- दीपिका को उस भूमिका में ढालना कितना मुश्किल था?

प्रोस्थेटिक के प्रयोग के अलावा उस व्यक्ति की चाल चलन को अडॉप्ट करना कलाकार के पास होता है. मैं केवल उसे निर्देश दे सकती हूँ उसकी मानसिक अवस्था को महसूस कर उसी रूप में सामने लाना कलाकार की प्रतिभा और मेहनत होती है, जो दीपिका ने हूबहू किया है.

सवाल- दीपिका इसकी प्रोड्यूसर भी है इसका फायदा आपको कितना हुआ?

इससे वह मेरे साथ हर काम में रही और अपना सबसे अच्छा प्रदर्शन देना चाह रही थी. कलाकार के रूप में अच्छे अभिनय की इच्छा तो रहती है, लेकिन प्रोड्यूसर बनने के बाद इसका फायदा अधिक होता है.

सवाल- ये कहानी किस तरह के सन्देश देने की कोशिश कर रही है?

ये कहानी एसिड वायलेंस की हकीकत को दिखाती है. कहेगी क्या ये कहना मुश्किल है. मैं हर फिल्म को दर्शकों के उपर छोड़ती हूँ. दर्शक काफी सेंसेटिव है और मेरा अनुभव ये रहा है कि वे कुछ न कुछ फिल्म से ले लेते है और मैं उसे कंट्रोल नहीं करना चाहती.

सवाल- इस फिल्म को करने में मुश्किल क्या रही?

इस फिल्म को करते समय मुश्किल नहीं, पर कुछ बातें ध्यान में रखनी जरुरी थी. पहली, ये लोग कोई भी बेचारे नही, दूसरी, फिल्म बनाते वक़्त इसे भी बहुत अधिक डरावनी बनाना नहीं था, ताकि दर्शक इसे देखकर डर जाय या अपनी आँखे बंद कर लें. इसके अलावा इसे शुगर कोट भी नहीं कर सकते, क्योंकि जो सच्चाई है उसे लोगों तक पहुँचाने की जरुरत है. ये बैलेंस करना बहुत जरुरी था. मेरे इमोशन फिल्म के रिलीज के बाद में आती है. इतना ही नहीं दीपिका के लिए भी ये फिल्म बहुत चुनौतीपूर्ण थी. दिल्ली की गर्मी उसमें प्रोस्थेटिक, धूप, धूल, पसीना आदि सबकुछ सहना पड़ा.

सवाल- क्या गुलज़ार ने आपकी फिल्म देखी है?

वे हमेशा मेरी फिल्म को देखकर अपनी प्रतिक्रिया देते है अभी तक उन्होंने पूरी फिल्म देखी नहीं  है, क्योंकि अभी वे मुंबई में नहीं है, लेकिन जितना भी उन्होंने देखा है, उससे उनकी आँखे नम हो गयी थी. वे रो पड़े थे. मैं ये समझ नहीं पाती कि वे मेरी फिल्म को देखकर इतना इमोशनल क्यों हो जाते है?

सवाल- इस तरह की तेजाब फेंकने की घटनाएं आज भी हमेशा अख़बारों की  सुर्ख़ियों में होती है, इसे कैसे कम किया जा सकता है? आप इस बारें में क्या कहना चाहेंगी?

क्रिमिनल एक्ट की जिम्मेदारी केवल उसके दिमाग पर होती है, उसके परिवार, समाज या किसी पर नहीं होती. एसिड वायलेंस ऐसा है कि ये किसी भी वजह से लोग कर देते है. ये स्वत: हो जाया करती है. एकतरफा प्यार के अलावा संपत्ति विवाद पर भी एसिड एटैक होते है. ये इतने आधारहीन होते है कि इसे सम्हालना मुश्किल होता है. हमारे पास एसिड एटैकर की कोई क्लियर प्रोफाइल नहीं है, ताकि वजह समझी जा सकें. वो कोई भी हो सकता है, क्योंकि एसिड आसानी से बाज़ार में मिलता है.

सवाल- ऐसी फिल्में व्यवसाय को ध्यान में रखकर बनायी जाती है, पर पीड़ित लोगों को इसका फायदा कितना होता है?

मेरी इस फिल्म में कई और एसिड एटैकर ने काम किया है. यहाँ मेरा सबसे कहना है कि उन्हें हम पैसे तो देते है, पर क्या उन्हें हम अपने साथ देखना या काम करना पसंद करते है? मैंने इसे महसूस किया है.

सवाल- क्या ईगो की वजह से ऐसे काम अधिक होते है? आज ये अधिक बढ़ चुका है?

इसे परिभाषित करना मुश्किल है, क्योंकि केवल पुरुष ही नहीं, महिलाये भी तेजाब पुरुषों पर फेंकती है, अगर उसने शादी से इंकार किया. एक पिता भी अपनी नवजात बेटी पर तेजाब फेकता है. इसलिए इसे कम करने की जरुरत है और कैसे इसे करना है? इसका हल सबको खोजने की जरुरत है.

सवाल- आगे क्या करने की इच्छा है?

मुझे बच्चे की फिल्म बनाने की इच्छा है, क्योंकि मेरा बेटा चाहता है. इसके अलावा कौमेडी फिल्म बनाने की इच्छा है.

जीत गया जंगवीर: भाग-2

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मैं दिल्ली आ गई. जगवीरी 7 साल में भी डाक्टर न बन पाई, तब उस के भाई उसे हठ कर के घर ले गए और उस का विवाह तय कर दिया. उस के विवाह के निमंत्रणपत्र के साथ जगवीरी का स्नेह, अनुरोध भरा लंबा सा पत्र भी था. मैं ने कुणाल को बता रखा था कि यदि जगवीरी न होती तो पहले दिन ही मैं कालेज से भाग आई होती. मुझे डाक्टर बनाने का श्रेय मातापिता के साथसाथ जगवीरी को भी है.

जयपुर से लगभग 58 किलोमीटर दूर के एक गांव में थी जगवीरी के पिता की शानदार हवेली. पूरे गांव में सफाई और सजावट हो रही थी. मुझे और पति को बेटीदामाद सा सम्मानसत्कार मिला. जगवीरी का पति बहुत ही सुंदर, सजीला युवक था. बातचीत में बहुत विनम्र और कुशल. पता चला सूरत और अहमदाबाद में उस की कपड़े की मिलें हैं.

सोचा था जगवीरी सुंदर और संपन्न ससुराल में रचबस जाएगी, पर कहां? हर हफ्ते उस का लंबाचौड़ा पत्र आ जाता, जिस में ससुराल की उबाऊ व्यस्तताओं और मारवाड़ी रिवाजों के बंधनों का रोना होता. सुहाग, सुख या उत्साह का कोई रंग उस में ढूंढ़े न मिलता. गृहस्थसुख विधाता शायद जगवीरी की कुंडली में लिखना ही भूल गया था. तभी तो साल भी न बीता कि उस का पति उसे छोड़ गया. पता चला कि शरीर से तंदुरुस्त दिखाई देने वाला उस का पति गजराज ब्लडकैंसर से पीडि़त था. हर साल छह महीने बाद चिकित्सा के लिए वह अमेरिका जाता था. अब भी वह विशेष वायुयान से पत्नी और डाक्टर के साथ अमेरिका जा रहा था. रास्ते में ही उसे काल ने घेर लिया. सारा व्यापार जेठ संभालता था, मिलों और संपत्ति में हिस्सा देने के लिए वह जगवीरी से जो चाहता था वह तो शायद जगवीरी ने गजराज को भी नहीं दिया था. वह उस के लिए बनी ही कहां थी.

एक दिन जगवीरी दिल्ली आ पहुंची. वही पुराना मर्दाना लिबास. अब बाल भी लड़कों की तरह रख लिए थे. उस के व्यवहार में वैधव्य की कोई वेदना, उदासी या चिंता नहीं दिखी. मेरी बेटी मान्या साल भर की भी न थी. उस के लिए हम ने आया रखी हुई थी.

जगवीरी जब आती तो 10-15 दिन से पहले न जाती. मेरे या कुणाल के ड्यूटी से लौटने तक वह आया को अपने पास उलझाए रखती. मान्या की इस उपेक्षा से कुणाल को बहुत क्रोध आता. बुरा तो मुझे भी बहुत लगता था पर जगवीरी के उपकार याद कर चुप रह जाती. धीरेधीरे जगवीरी का दिल्ली आगमन और प्रवास बढ़ता जा रहा था और कुणाल का गुस्सा भी. सब से अधिक तनाव तो इस कारण होता था कि जगवीरी आते ही हमारे डबल बैड पर जम जाती और कहती, ‘यार, कुणाल, तुम तो सदा ही कनक के पास रहते हो, इस पर हमारा भी हक है. दोचार दिन ड्राइंगरूम में ही सो जाओ.’

कुणाल उस के पागलपन से चिढ़ते ही थे, उस का नाम भी उन्होंने डाक्टर पगलानंद रख रखा था. परंतु उस की ऐसी हरकतों से तो कुणाल को संदेह हो गया. मैं ने लाख समझाया कि वह मुझे छोटी बहन मानती है पर शक का जहर कुणाल के दिलोदिमाग में बढ़ता ही चला गया और एक दिन उन्होंने कह ही दिया, ‘कनक, तुम्हें मुझ में और जगवीरी में से एक को चुनना होगा. यदि तुम मुझे चाहती हो तो उस से स्पष्ट कह दो कि तुम से कोई संबंध न रखे और यहां कभी न आए, अन्यथा मैं यहां से चला जाऊंगा.’

यह तो अच्छा हुआ कि जगवीरी से कुछ कहने की जरूरत नहीं पड़ी. उस के भाइयों के प्रयास से उसे ससुराल की संपत्ति में से अच्छीखासी रकम मिल गई. वह नेपाल चली गई. वहां उस ने एक बहुत बड़ा नर्सिंगहोम बना लिया. 10-15 दिन में वहां से उस के 3-4 पत्र आ गए, जिन में हम दोनों को यहां से दोगुने वेतन पर नेपाल आ जाने का आग्रह था.

मुझे पता था कि जगवीरी एक स्थान पर टिक कर रहने वाली नहीं है. वह भारत आते ही मेरे पास आ धमकेगी. फिर वही क्लेश और तनाव होगा और दांव पर लग जाएगी मेरी गृहस्थी. हम ने मकान बदला, संयोग से एक नए अस्पताल में मुझे और कुणाल को नियुक्ति भी मिल गई. मेरा अनुमान ठीक था. रमता जोगी जैसी जगवीरी नेपाल में 4 साल भी न टिकी. दिल्ली में हमें ढूंढ़ने में असफल रही तो मेरे मायके जा पहुंची. मैं ने भाईभाभियों को कुणाल की नापसंदगी और नाराजगी बता कर जगवीरी को हमारा पता एवं फोन नंबर देने के लिए कतई मना किया हुआ था.

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जगवीरी ने मेरे मायके के बहुत चक्कर लगाए, चीखी, चिल्लाई, पागलों जैसी चेष्टाएं कीं परंतु हमारा पता न पा सकी. तब हार कर उस ने वहीं नर्सिंगहोम खोल लिया. शायद इस आशा से कि कभी तो वह मुझ से वहां मिल सकेगी. मैं इतनी भयभीत हो गई, उस पागल के प्रेम से कि वारत्योहार पर भी मायके जाना छूट सा गया. हां, भाभियों के फोन तथा यदाकदा आने वाले पत्रों से अपनी अनोखी सखी के समाचार अवश्य मिल जाते थे जो मन को विषाद से भर जाते.

उस के नर्सिंगहोम में मुफ्तखोर ही अधिक आते थे. जगवीरी की दयालुता का लाभ उठा कर इलाज कराते और पीठ पीछे उस का उपहास करते. कुछ आदतें तो जगवीरी की ऐसी थीं ही कि कोई लेडी डाक्टर, सुंदर नर्स वहां टिक न पाती. सुना था किसी शांति नाम की नर्स को पूरा नर्सिंगहोम, रुपएपैसे उस ने सौंप दिए. वे दोनों पतिपत्नी की तरह खुल्लमखुल्ला रहते हैं. बहुत बदनामी हो रही है जगवीरी की. भाभी कहतीं कि हमें तो यह सोच कर ही शर्म आती है कि वह तुम्हारी सखी है. सुनसुन कर बहुत दुख होता, परंतु अभी तो बहुत कुछ सुनना शेष था. एक दिन पता चला कि शांति ने जगवीरी का नर्सिंगहोम, कोठी, कुल संपत्ति अपने नाम करा कर उसे पागल करार दे दिया. पागलखाने में यातनाएं झेलते हुए उस ने मुझे बहुत याद किया. उस के भाइयों को जब इस स्थिति का पता किसी प्रकार चला तो वे अपनी नाजों पली बहन को लेने पहुंचे. पर तब तक बहुत देर हो चुकी थी, अनंत यात्रा पर निकल चुकी थी जगवीरी.

मैं सोच रही थी कि एक ममत्व भरे हृदय की नारी सामान्य स्त्री का, गृहिणी का, मां का जीवन किस कारण नहीं जी सकी. उस के अंतस में छिपे जंगवीर ने उसे कहीं का न छोड़ा. तभी मेरी आंख लग गई और मैं ने देखा जगवीरी कई पैकेटों से लदीफंदी मेरे सिरहाने आ बैठी, ‘जाओ, मैं नहीं बोलती, इतने दिन बाद आई हो,’ मैं ने कहा. वह बोली, ‘तुम ने ही तो मना किया था. अब आ गई हूं, न जाऊंगी कहीं.’

तभी मुझे मान्या की आवाज सुनाई दी, ‘‘मम्मा, किस से बात कर रही हो?’’ आंखें खोल कर देखा शाम हो गई थी.

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जीत गया जंगवीर: भाग-1

‘‘खत आया है…खत आया है,’’ पिंजरे में बैठी सारिका शोर मचाए जा रही थी. दोपहर के भोजन के बाद तनिक लेटी ही थी कि सारिका ने चीखना शुरू कर दिया तो जेठ की दोपहरी में कमरे की ठंडक छोड़ मुख्यद्वार तक जाना पड़ा.

देखा, छोटी भाभी का पत्र था और सब बातें छोड़ एक ही पंक्ति आंखों से दिल में खंजर सी उतर गई, ‘दीदी आप की सखी जगवीरी का इंतकाल हो गया. सुना है, बड़ा कष्ट पाया बेचारी ने.’ पढ़ते ही आंखें बरसने लगीं. पत्र के अक्षर आंसुओं से धुल गए. पत्र एक ओर रख कर मन के सैलाब को आंखों से बाहर निकलने की छूट दे कर 25 वर्ष पहले के वक्त के गलियारे में खो गई मैं.

जगवीरी मेरी सखी ही नहीं बल्कि सच्ची शुभचिंतक, बहन और संरक्षिका भी थी. जब से मिली थी संरक्षण ही तो किया था मेरा. जयपुर मेडिकल कालेज का वह पहला दिन था. सीनियर लड़केलड़कियों का दल रैगिंग के लिए सामने खड़ा था. मैं नए छात्रछात्राओं के पीछे दुबकी खड़ी थी. औरों की दुर्गति देख कर पसीने से तरबतर सोच रही थी कि अभी घर भाग जाऊं.

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वैसे भी मैं देहातनुमा कसबे की लड़की, सब से अलग दिखाई दे रही थी. मेरा नंबर भी आना ही था. मुझे देखते ही एक बोला, ‘अरे, यह तो बहनजी हैं.’ ‘नहीं, यार, माताजी हैं.’ ऐसी ही तरहतरह की आवाजें सुन कर मेरे पैर कांपे और मैं धड़ाम से गिरी. एक लड़का मेरी ओर लपका, तभी एक कड़कती आवाज आई, ‘इसे छोड़ो. कोई इस की रैगिंग नहीं करेगा.’

‘क्यों, तेरी कुछ लगती है यह?’ एक फैशनेबल तितली ने मुंह बना कर पूछा तो तड़ाक से एक चांटा उस के गाल पर पड़ा. ‘चलो भाई, इस के कौन मुंह लगे,’ कहते हुए सब वहां से चले गए. मैं ने अपनी त्राणकर्ता को देखा. लड़कों जैसा डीलडौल, पर लंबी वेणी बता रही थी कि वह लड़की है. उस ने प्यार से मुझे उठाया, परिचय पूछा, फिर बोली, ‘मेरा नाम जगवीरी है. सब लोग मुझे जंगवीर कहते हैं. तुम चिंता मत करो. अब तुम्हें कोई कुछ भी नहीं कहेगा और कोई काम या परेशानी हो तो मुझे बताना.’

सचमुच उस के बाद मुझे किसी ने परेशान नहीं किया. होस्टल में जगवीरी ने सीनियर विंग में अपने कमरे के पास ही मुझे कमरा दिलवा दिया. मुझे दूसरे जूनियर्स की तरह अपना कमरा किसी से शेयर भी नहीं करना पड़ा. मेस में भी अच्छाखासा ध्यान रखा जाता. लड़कियां मुझ से खिंचीखिंची रहतीं. कभीकभी फुसफुसाहट भी सुनाई पड़ती, ‘जगवीरी की नई ‘वो’ आ रही है.’ लड़के मुझे देख कर कन्नी काटते. इन सब बातों को दरकिनार कर मैं ने स्वयं को पढ़ाई में डुबो दिया. थोड़े दिनों में ही मेरी गिनती कुशाग्र छात्रछात्राओं में होने लगी और सभी प्रोफेसर मुझे पहचानने तथा महत्त्व भी देने लगे.

जगवीरी कालेज में कभीकभी ही दिखाई पड़ती. 4-5 लड़कियां हमेशा उस के आगेपीछे होतीं.

एक बार जगवीरी मुझे कैंटीन खींच ले गई. वहां बैठे सभी लड़केलड़कियों ने उस के सामने अपनी फरमाइशें ऐसे रखनी शुरू कर दीं जैसे वह सब की अम्मां हो. उस ने भी उदारता से कैंटीन वाले को फरमान सुना दिया, ‘भाई, जो कुछ भी ये बच्चे मांगें, खिलापिला दे.’

मैं समझ गई कि जगवीरी किसी धनी परिवार की लाड़ली है. वह कई बार मेरे कमरे में आ बैठती. सिर पर हाथ फेरती. हाथों को सहलाती, मेरा चेहरा हथेलियों में ले मुझे एकटक निहारती, किसी रोमांटिक सिनेमा के दृश्य की सी उस की ये हरकतें मुझे विचित्र लगतीं. उस से इन हरकतों को अच्छी अथवा बुरी की परिसीमा में न बांध पाने पर भी मैं सिहर जाती. मैं कहती, ‘प्लीज हमें पढ़ने दीजिए.’ तो वह कहती, ‘मुनिया, जयपुर आई है तो शहर भी तो देख, मौजमस्ती भी कर. हर समय पढ़ेगी तो दिमाग चल जाएगा.’

वह कई बार मुझे गुलाबी शहर के सुंदर बाजार घुमाने ले गई. छोटीबड़ी चौपड़, जौहरी बाजार, एम.आई. रोड ले जाती और मेरे मना करतेकरते भी वह कुछ कपड़े खरीद ही देती मेरे लिए. यह सब अच्छा भी लगता और डर भी लगा रहता.

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एक बार 3 दिन की छुट्टियां पड़ीं तो आसपास की सभी लड़कियां घर चली गईं. जगवीरी मुझे राजमंदिर में पिक्चर दिखाने ले गई. उमराव जान लगी हुई थी. मैं उस के दृश्यों में खोई हुई थी कि मुझे अपने चेहरे पर गरम सांसों का एहसास हुआ. जगवीरी के हाथ मेरी गरदन से नीचे की ओर फिसल रहे थे. मुझे लगने लगा जैसे कोई सांप मेरे सीने पर रेंग रहा है. जिस बात की आशंका उस की हरकतों से होती थी, वह सामने थी. मैं उस का हाथ झटक अंधेरे में ही गिरतीपड़ती बाहर भागी. आज फिर मन हो रहा था कि घर लौट जाऊं.

मैं रो कर मन का गुबार निकाल भी न पाई थी कि जगवीरी आ धमकी. मुझे एक गुडि़या की तरह जबरदस्ती गोद में बिठा कर बोली, ‘क्यों रो रही हो मुनिया? पिक्चर छोड़ कर भाग आईं.’

‘हमें यह सब अच्छा नहीं लगता, दीदी. हमारे मम्मीपापा बहुत गरीब हैं. यदि हम डाक्टर नहीं बन पाए या हमारे विषय में उन्होंने कुछ ऐसावैसा सुना तो…’ मैं ने सुबकते हुए कह ही दिया.

‘अच्छा, चल चुप हो जा. अब कभी ऐसा नहीं होगा. तुम हमें बहुत प्यारी लगती हो, गुडि़या सी. आज से तुम हमारी छोटी बहन, असल में हमारे 5 भाई हैं. पांचों हम से बड़े, हमें प्यार बहुत मिलता है पर हम किसे लाड़लड़ाएं,’ कह कर उस ने मेरा माथा चूम लिया. सचमुच उस चुंबन में मां की महक थी.

जगवीरी से हर प्रकार का संरक्षण और लाड़प्यार पाते कब 5 साल बीत गए पता ही न चला. प्रशिक्षण पूरा होने को था तभी बूआ की लड़की के विवाह में मुझे दिल्ली जाना पड़ा. वहां कुणाल ने, जो दिल्ली में डाक्टर थे, मुझे पसंद कर उसी मंडप में ब्याह रचा लिया. मेरी शादी में शामिल न हो पाने के कारण जगवीरी पहले तो रूठी फिर कुणाल और मुझ को महंगेमहंगे उपहारों से लाद दिया.

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सत्ता की चाबी राजनीतिक परिवारों की औरतों के हाथ

देशभर में हिंदुत्व के नारे को बुलंद करने का काम शिवसैनिकों ने किया, गौहत्या रोकने के लिए पहली आवाज शिवसेना ने उठाई, राम मंदिर के लिए लड़ाई शिवसेना ने लड़ी, बाबरी मसजिद शिवसैनिकों ने ढहाई, जबकि इस सब का फायदा पूरे देश में भाजपा ने उठाया. इस बात को शिवसेना भलीभांति सम झ रही थी. इसीलिए महाराष्ट्र में विधान सभा गठित होने से पहले उस ने अपना हक मांग लिया और महाराष्ट्र में ढाई साल शिवसेना के मुख्यमंत्री की अपनी मांग भाजपा के सामने रख दी. शिवसेना को यह उम्मीद नहीं थी कि ‘छोटा भाई छोटा भाई’ कह कर जो भाजपा उस से लगातार फायदा उठाती रही है वह महाराष्ट्र में ढाई साल के लिए मुख्यमंत्री पद मांगने पर औकात बताने लग जाएगी. आघात गहरा था, लिहाजा 30 साल पुरानी दोस्ती टूट गई.

फिर शरद पवार ने सरकार बनाने के लिए जोड़नेजुटाने का जो अभूतपूर्व अभियान शुरू किया उस के चलते 3 पार्टियां- शिवसेना, राकांपा यानी राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी और कांग्रेस, जिन की विचारधारा और एजेंडा एकदूसरे से बिलकुल विपरीत था, शरद पवार के सम झाने पर एकदूसरे का हाथ थामने को तैयार हो गईं. 28 नवंबर, 2019 का दिन शिवसैनिकों के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे देश के लिए ऐतिहासिक दिन बना. महाराष्ट्र के जिस शिवाजी पार्क में कभी शिवसेना प्रमुख बाला साहेब ठाकरे ने नारियल फोड़ कर शिवसेना का गठन कर राजनीति में पदार्पण की हुंकार भरी थी, उसी शिवाजी पार्क में उन के सुपुत्र उद्धव ठाकरे ने पूरी आनबानशान से मुख्यमंत्री पद की शपथ ली.

अद्भुत हाल था कि पहले जो भाजपा से ढाई साल के लिए मुख्यमंत्री पद की याचना कर रहे थे, उन्होंने पूरे 5 सालों के लिए महाराष्ट्र की सत्ता की कमान अपने हाथों में ले ली. लेकिन इस मुकाम तक पहुंचने से पहले एक आश्चर्यजनक घटना घटी. राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा और सरकार गठन के लिए शरद पवार का तीनों पार्टियों से बातचीत का अभियान चल ही रहा था कि अचानक शरद पवार के भतीजे अजित पवार भाजपा की गोद में जा बैठे. अब अजित पवार को डराधमका कर भाजपा ने अपने खेमे में आने को मजबूर किया या लोभ दे कर, यह रहस्य अभी तक बना हुआ है. गौरतलब है कि अजित पवार पर क्व70 हजार करोड़ के घोटाले का आरोप है, जिस की जांच विभिन्न जांच एजेंसियां कर रही हैं. अब जांच एजेंसियां किस तरह केंद्र सरकार के इशारे पर काम करती हैं, यह किसी से छिपा नहीं है.

न घर के रहे न घाट के

तो अजित पवार अपने चाचा शरद पवार के अभियान को धता बता कर भाजपा का साथ देने क्यों निकल पड़े होंगे, यह सम झना भी कोई मुश्किल नहीं है. उल्लेखनीय है कि अजित पवार का राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी में रोबरुतबा शरद पवार से कम नहीं है. वे राकांपा में विधायक दल के नेता भी थे. विधायक दल का नेता होने के नाते उन के पास अपने निर्वाचित 56 विधायकों के हस्ताक्षर मौजूद थे. बस उन्हीं हस्ताक्षरों को ले कर अजित पवार देवेंद्र फडणवीस के पास पहुंच गए. इधर 24 नवंबर की अलसुबह जब लोगों ने अपने टीवी सैट खोले तो पता चला कि महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने देवेंद्र फडणवीस को मुख्यमंत्री पद की और अजित पवार को उपमुख्यमंत्री पद की शपथ दिलवा दी.

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शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे हैरान रह गए. उन्हें अपने सितारे गर्दिश में जाते नजर आए. कुरसी एक बार फिर दूर की कौड़ी हो गई. लेकिन 24 घंटे के अंदरअंदर शरद पवार ने न सिर्फ तीनों पार्टियों के विधायकों को एकजुट कर लिया, बल्कि मीडिया को आमंत्रित कर के ‘वी-162’ के जरीए उन्होंने भाजपा को यह संदेश भी दे दिया कि अजित पवार अकेले ही तुम्हारी गोद में बैठे हैं, उन के साथ 1 भी विधायक नहीं है.

परिवार बना ताकत

भाजपा भले पानी पीपी कर परिवारवाद और वंशवाद को कोसती रहे, मगर सच तो यह है कि भारतीयों के लिए परिवार बहुत माने और ताकत रखता है. हमारे लिए परिवार सर्वोपरि है. परिवार सब से बड़ी ताकत है और परिवार का टूटना गहरा आघात पहुंचाता है. परिवार के मुद्दे पर हम इमोशनल हो जाते हैं. कुछ यही हुआ अजित पवार के मामले में भी, जब राजनीतिक महत्त्वाकांक्षा पर परिवार का प्यार भारी पड़ गया.

अजित को मनाने के लिए घर के सभी सदस्य तुरंत सक्रिय हो गए. शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले ने इस कठिन वक्त में बहुत अहम भूमिका निभाई और भाई को वापस लाने के लिए जीजान एक कर दिया. परिवार के कई सदस्य एक के बाद एक अजित से जा कर मिले और उन्हें सम झाबु झा का वापस लौटने के लिए कहा.

अंतत: अजित भाजपा की गोद से उतर कर घर लौट आए. उन की घरवापसी की वह तसवीर लंबे समय तक लोगों के जेहन से नहीं उतरेगी, जब सुप्रिया सुले ने उन्हें सामने पा कर न सिर्फ भाई के गले लग कर अपना प्यार प्रकट किया, बल्कि उन के पैर छू कर उन का आशीर्वाद भी लिया और उन के प्रति इज्जत जाहिर की.

इस एक घटना ने साबित कर दिया कि राजनीतिक महत्त्वाकांक्षा पर परिवार का प्यार कितना हावी है. देखा गया है कि भारतीय राजनीति में लंबे समय तक सत्ता उसी की रही है, जिस का परिवार उस के पीछे एकजुट रहा है. हां, जहां परिवार टूटा वहीं सत्ता भी छूटी. फिर चाहे समाजवादी पार्टी की बात करें या राष्ट्रीय जनता दल की, राजनीति में परिवार का बड़ा महत्त्व है.

लोकतंत्र पर परिवार हावी

भाजपा जिस राम और रामराज की बात करती है, आखिर वहां भी तो एक वंशविशेष की ही बात होती है. पूरा महाभारत एक वंश को सत्ता पर स्थापित करने के लिए हो गया. सारी की सारी धर्मकथाएं ही वंशवाद और परिवारवाद पर आधारित हैं. ऐसे में वंशवाद को सत्ता से अलग कर के कैसे देखा जा सकता है?

भारत में वंशवाद की जड़ें बहुत मजबूत हैं. नेहरू खानदान का नाम इस में प्रमुखता से लिया जाता है, जहां जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, सोनिया गांधी और अब राहुल गांधी व प्रियंका गांधी कांग्रेस के सर्वेसर्वा हैं.

जम्मू और कश्मीर के दिवंगत मुख्यमंत्री शेख अब्दुल्ला के परिवार का नाम भी वंशवाद को ले कर बहुत आगे आता है. यहां उन के बेटे फारूख अब्दुल्ला और पोते उमर अब्दुल्ला दोनों राज्य के मुख्यमंत्री रह चुके हैं. ठीक उसी तरह जैसे पीपुल्स डैमोक्रेटिक पार्टी के मुफ्ती मुहम्मद सईद और उन की बेटी महबूबा मुफ्ती.

उत्तर प्रदेश में जहां समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव का पूरा कुनबा राजनीति में है, वहीं बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव भी वंशवाद के मामले में पीछे नहीं रहे. 1997 में जब वे जेल जाने वाले थे, तो उन्होंने अपनी पत्नी राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री बनाया, साथ ही अपने बेटे तेज प्रताप और तेजस्वी को

भी बिहार में मंत्री और उपमुख्यमंत्री की कुरसी दे दी. जो कसर बाकी थी वह लालू ने बेटी मीसा को 2016 में राज्य सभा का सदस्य बना कर पूरी कर दी.

यादवों के बाद अगर वंशवाद का वृक्ष कहीं तेजी से बढ़ा है तो वह है कर्नाटक. यहां पूर्व प्रधानमंत्री और जनता दल सैकुलर के अध्यक्ष देवेगौड़ा परिवार का नाम आता है. देवेगौड़ा ने अपने 2 पोतों निखिल मांड्या और प्रज्वल को राजनीति में उतारने की घोषणा की, तो कर्नाटक में लोगों को कोई आश्चर्य नहीं हुआ, क्योंकि यहां जनता दल सैकुलर को एक पारिवारिक पार्टी के नाम से ही जाना जाता है.

डीएमके, एनसीपी, लोक दल ओर तेलंगाना राष्ट्रीय समिति प्रमुख परिवारवाद या वंशवाद के मामले में पीछे नहीं हैं. तमिलनाडु के दिवंगत मुख्यमंत्री के. करुणानिधि के बेटे स्टालिन के हाथों में डीएमके की कमान है. उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी को देख कर कहा जाता था कि यहां परिवारवाद नहीं है, लेकिन देखते ही देखते वहां भी इस की छाप दिखने लगी. दरअसल, मायावती के बाद पार्टी को संभालने वाला कोई भी नेता नजर नहीं आता है, लिहाजा मायावती को अपने भतीजे को अपना उत्तराधिकारी घोषित करना पड़ा.

गांधी परिवार के बिना कांग्रेस की कल्पना ही नहीं की जा सकती है. परिवार जितना मजबूत होगा, पार्टी उतनी ही मजबूत होगी. परिवार में टूटफूट का सीधा असर पार्टी पर पड़ता है, यह बात शिवसेना के मामले में भी दिखी, तो मुलायम और लालू परिवार के मामले में भी राजनीति में सफलता पाने के लिए परिवार का एकजुट रहना महत्त्वपूर्ण है.

लोहिया के लाल परिवारवाद की ढाल

राजनीति में परिवारवाद को बढ़ावा देने की शुरुआत वैसे तो पं. जवाहरलाल नेहरू ने की थी, पर लोहिया के चेले कहे जाने वाले मुलायम सिंह यादव ने इसे खूब आगे बढ़ाया. आज अगर

डा. राममनोहर लोहिया जीवित होते तो परिवारवाद की बुराइयों को ले कर उन का सब से पहला और बड़ा संघर्ष समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव से होता. लोहिया वंशवाद के घोर विरोधी थे और आज देश की राजनीति में उन के चेले मुलायम सिंह यादव का कुनबा सब से बड़ा सियासी कुनबा है, जो बिखराव के पड़ाव पर पहुंच कर कमजोर हो गया है. चाचाभतीजे की राजनीतिक महत्त्वाकांक्षाओं ने परिवार को तोड़ा तो इस का नुकसान पार्टी को ही हुआ.

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गांधी परिवार के बिना कांग्रेस की कल्पना नहीं

कांग्रेस का मतलब है गांधी परिवार. इस परिवार के बिना कांग्रेस की कल्पना नहीं की जा सकती है. कांग्रेस और गांधी परिवार को. एक करने का श्रेय जाता है इंदिरा गांधी को, मगर एक वक्त वह भी था जब इंदिरा गांधी और कांग्रेस अलगअलग थे. यह वक्त था जवाहरलाल नेहरू की मृत्यु के बाद का. जब तक नेहरू जिंदा थे तब तक सरकार पर उन का एकछत्र राज था. उन के आगे कांग्रेस का वही हाल था, जो आज मोदी के आगे भाजपा का है.

नेहरू ने इंदिरा को सक्रिय राजनीति से हमेशा दूर रखा था. लेकिन उन की मौत के बाद भारत की राजनीति में एक शून्य पैदा हो गया. तब शुरू हुई नेहरू के उत्तराधिकारी की खोज. तब इंदिरा गांधी कहीं किसी गिनती में नहीं थीं. उस वक्त के. कामराज कांग्रेस अध्यक्ष हुआ करते थे, जो दक्षिण भारत की निचली जाति के प्रभावशाली नेता थे. मगर उन के दिमाग में भी इंदिरा का नाम नहीं था. तब प्रधानमंत्री पद के जो 2 मजबूत दावेदार थे वे थे-मोरारजी देसाई और लाल बहादुर शास्त्री.

मोरारजी देसाई को ज्यादातर कांग्रेसी पसंद नहीं करते थे, क्योंकि वे बड़े जिद्दी किस्म के व्यक्ति थे. उन के विपरीत लालबहादुर काफी शांत और सौम्य थे. कांग्रेसी नेताओं ने एकमत से प्रधानमंत्री के रूप में लालबहादुर शास्त्री को चुना, बिलकुल वैसे ही जैसे सोनिया गांधी ने मनमोहन सिंह को चुना? मगर शास्त्रीजी मनमोहन सिंह नहीं बन पाए. शास्त्रीजी इंदिरा की तेजी को सम झते थे और जानते थे कि बाहर रह कर वे ज्यादा खतरनाक साबित होंगी. लिहाजा अपनी कैबिनेट में शामिल कर के उन्होंने इंदिरा को कम महत्त्व वाले सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय का मंत्री बना दिया.

मगर इंदिरा को यह पद भाया नहीं. वे भीतर ही भीतर अपने समर्थकों का गुट बनाने में जुट गईं. इंदिरा गांधी पार्टी के अंदर अपनी ताकत बढ़ा रही थीं और लालबहादुर शास्त्री अकेले पड़ते जा रहे थे. शास्त्री की मौत के बाद कांग्रेस में फिर उत्तराधिकार की तलाश शुरू हुई. अब तक इंदिरा गांधी काफी अनुभवी हो चुकी थीं. लिहाजा कांग्रेस अध्यक्ष के. कामराज ने प्रधानमंत्री पद के लिए इंदिरा का नाम आगे किया. कांग्रेस संसदीय दल के सांसदों ने भी इंदिरा को चुना और इंदिरा पहली बार देश की प्रधानमंत्री बनीं.

हालांकि तब तक इंदिरा की उम्र 49 साल पार कर चुकी थी. अपनी मंजिल तक पहुंचने में इंदिरा को लंबा वक्त लगा. लेकिन गांधी परिवार ने ही कांग्रेस को ताकत दी. गांधी परिवार के अलावा जबजब कांग्रेस ने किसी अन्य को सिर चढ़ाया, पार्टी कमजोर हुई.

प्रियंका हैं परिवार और पार्टी की ताकत

प्रियंका गांधी वाड्रा जो अब तक सक्रिय राजनीति से दूर थीं, अब वे भी पूरी तरह इस में उतर चुकी हैं. परिवार और पार्टी दोनों ही मोरचों पर वे मजबूती से खड़ी हैं. उन की कार्यकुशलता की तारीफ होती है. वे लंबे समय से अमेठी और रायबरेली में कांग्रेस की रैलियों के आयोजन का कार्यभार संभाल रही हैं. अब पूरे देश में कांग्रेस को मजबूत करने का भार उन के कंधों पर है. उन की कार्यशैली अनूठी है. उन की छवि और कार्यशैली में उन की दादी इंदिरा की छाप और असर है. अजनबियों के साथ वे पलक  झपकते स्नेहिल संबंध बना लेती हैं.

आज कांग्रेस पार्टी में प्रियंका से बड़ा स्टार प्रचारक कोई नहीं है. आने वाले वक्त में उन के पति राबर्ट वाड्रा और उन के रिश्तेदार इस कुनबे को और बड़ा करेंगे. ऐसे में 56 इंच सीने पर सांप लोटना लाजिम है.

राज ठाकरे के जाने से शिवसेना कमजोर हुई

शिवसेना प्रमुख बाला साहेब ठाकरे के राजनीतिक उत्तराधिकारी उन के बेटे उद्धव को नहीं, बल्कि उन के भतीजे राज ठाकरे को माना जाता था. राज ठाकरे उन की विरासत को संभालने के लिए तैयार हो रहे थे. राज के अंदर राजनीति को ले कर वही जोश, जनून और उन्माद नजर आता था जो बाला साहेब ठाकरे में लोगों को दिखता था. युवा खून राज के हाथों में पार्टी का स्टूडैंट विंग भारतीय विद्यार्थी सेना की कमान थी. बाल ठाकरे उन्हें अपनी हर रैली में ले जाते थे.

बाल ठाकरे की चालढाल, भाषण देने की कला सबकुछ राज में हूबहू नजर आता था. जबकि बाला साहेब के अपने बेटे उद्धव ठाकरे को तब फोटोग्राफी का शौक था. फोटोग्राफी उन का शौक भी था और पेशा भी. राजनीति में उन की कोई दिलचस्पी नहीं थी. मगर धीरेधीरे वक्त ने करवट ली. मां मीना ताई ने बेटे उद्धव को राजनीतिक रैलियों में जाने के लिए प्रेरित किया. बाल ठाकरे पर दबाव बनाया कि वे अपने बेटे उद्धव पर ध्यान दें.

यह वक्त था 1994 का जब पहली बार बेटे उद्धव भी एक रैली में नजर आए. भतीजे राज के नेतृत्व में भारतीय विद्यार्थी सेना ने नागपुर में एक मोरचा निकाला. इस में उद्धव पहुंचे. एकदम शांति से. लोगों को तब नहीं पता था कि वह किस तूफान से पहले की शांति है.

उद्धव पार्टी के कामों में दिलचस्पी लेने लगे. बाल ठाकरे भी तमाम कार्यकर्ताओं को उन के कामों के लिए बेटे उद्धव के पास भेजने लगे. उद्धव पार्टी के कार्यक्रमों में हिस्सा लेने लगे. 1997 में बीएमसी चुनाव के वक्त तमाम टिकट उद्धव के मनमुताबिक बांटे गए. राज के कई लोगों के टिकट काट दिए गए. राज ठाकरे को अपनी जमीन खिसकती नजर आई. अत: भाइयों में दूरियां बढ़ने लगीं.

भाइयों में मनमुटाव के चलते शिवसेना का किला दरक रहा था. यह किला उस वक्त बहुत कमजोर हो गया जब 2006 में भतीजे राज ठाकरे ने शिवसेना छोड़ दी. उन्होंने अपनी अलग राजनीतिक पार्टी मनसे बना ली और ठाकरे परिवार की पुश्तैनी रिहाइश मातोश्री से भी विदा ले ली.

राज ठाकरे का मातोश्री से जाना शिवसेना के लिए बड़ा आघात था. दोनों भाइयों के साथ उन की सेना भी टूटी. अगर राज और उद्धव दोनों के कंधों पर सेना का दायित्व बराबर से होता तो महाराष्ट्र का राजनीतिक दृश्य ही कुछ और होता. महाराष्ट्र में शिवसेना के आगे कांग्रेस और भाजपा दोनों का कद कम ही रहता. मगर परिवार में टूट ने शिवसेना का बड़ा नुकसान किया और सत्ता तक पहुंचने का रास्ता बहुत लंबा कर दिया.

हालांकि 28 नंवबर, 2019 को जब उद्धव ठाकरे ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री का पद संभाला तो उन के शपथ ग्रहण में राज ठाकरे को उपस्थित देख कर लोगों को बहुत सुखद महसूस हुआ. परिवार को एक होता देख लोगों को आत्मीय हर्ष हुआ, क्योंकि हम भारतीयों के लिए परिवार बड़ा आकर्षण है.

ऐसे में आने वाले वक्त में अगर राज ठाकरे की पार्टी मनसा का विलय शिवसेना में होता है, तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए. इस से शिवसेना की ताकत ही बढ़ेगी. सत्ता में स्थापित रहने के लिए परिवार की ताकत बहुत जरूरी है और भाजपा इसी परिवारवाद से डरी हुई है.

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महिलाओं की बड़ी भूमिका

सियासी परिवारों को एकजुट रखने में महिलाओं के महत्त्व को नकारा नहीं जा सकता है. शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले ने जिस तरह अपने चचेरे भाई अजित पवार को भाजपा खेमे से वापस लाने के लिए दिनरात एक किया और जिस तरह उन के वापस आने पर उन का आदरसत्कार किया और कोशिश की कि उन्हें किसी प्रकार की शर्मिंदगी महसूस न हो, यह अभूतपूर्व था. गांधी परिवार में भी सब को जोड़ कर रखने का जिम्मा प्रियंका गांधी वाड्रा पर है. वे पूरी पार्टी की धुरी हैं. कार्यकर्ताओं, नेताओं से ले कर उन की मां सोनिया गांधी तक उन पर अटल भरोसा रखती हैं. वे हरेक का खयाल रखती हैं. हरेक को जोड़े रखती हैं.

कहना गलत न होगा कि सुख और सत्ता की चाबी हमेशा औरत के पल्लू से बंधी होती है. इस चाबी को जिम्मेदारी से संभालना और ठीक समय पर इस का प्रयोग करना घर और देश दोनों के लिए उन्नतिदायक साबित होता है.

‘‘भाजपा भले पानी पीपी कर परिवारवाद और वंशवाद को कोसती रहे, मगर सचाई तो यही है कि भारतीयों के लिए परिवार बहुत माने और ताकत रखता है…’’

‘‘राजनीति में परिवारवाद को बढ़ावा देने की शुरुआत वैसे तो पं. जवाहरलाल नेहरू ने की थी, पर लोहिया के चेले कहे जाने वाले मुलायम सिंह यादव ने इसे खूब आगे बढ़ाया…’’

रानी की खुशियों के लिए, राजा ने गुलाबी रंगों से किया रंगारंग मौहल्ला

कलर्स के शो ‘शुभारंभ’ में कीर्तिदा अपनी चालें चल कर राजा और रानी का प्री वेडिंग शूट रद्द करने में कामयाब तो हो जाती है, लेकिन राजा भी हार नही मानता है. रानी की प्री वेडिंग शूट ना होने की उदासी को दूर करने के लिए राजा एक नया रास्ता निकालता है. आइए आपको बताते हैं कैसे किया राजा ने रानी को खुश…

उदास रानी को राजा ने मनाया ऐसे

रानी के चेहरे पर प्री वेडिंग शूट न होने की उदासी साफ नजर आती है, जिसके चलते राजा रानी को खुश करने के लिए उसके मौहल्ले में ही प्री वेडिंग फोटोशूट करने का फैसला करता है.

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रानी के मौहल्ले को कुछ ऐसे सजाया राजा ने

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राजा, रानी के लिए पूरे मोहल्ले को गुलाबी रंग से सजा देता है ताकि दोनों का प्री वेडिंग शूट यादगार हो जाए. वहीं रानी भी अपने प्री वेडिंग शूट के लिए खूबसूरत सफेद कलर के सूट में नजर आई.

रोमांस करते दिखे राजा-रानी

धीरे-धीरे राजा-रानी के बीच रोमांस नजर आ रहा है. प्री वेडिंग शूट में भी राजा और रानी का रोमांस देखने को मिला. इसी के साथ दोनों इस प्री वेडिंग शूट में डांस भी करते दिखे.

अब देखना ये है कि सौदे पर टिकी राजा-रानी की ये कहानी बिखर जाएगी या दोनों शादी के बंधन में बंध जाएंगे? जानने के लिए देखते रहिए शुभारंभ, सोमवार से शुक्रवार रात 9 बजे, सिर्फ कलर्स पर.

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