स्ट्रेट हेयर से बनने वाले ये हैं खास हेयरस्टाइल

एक मल्टीनैशनल कंपनी में कार्यरत स्नेहा के केश कर्ली थे. वे हमेशा किसी भी पार्टी या खास अवसर पर केशों को ले कर परेशान रहती थीं कि उन का लुक कैसे आकर्षक बनाया जाए. स्नेहा को केशों को न खुला छोड़ना अच्छा लगता था और न ही पोनीटेल बनाना. परेशान हो कर स्नेहा ने अपने केशों को स्ट्रेट करवाया तो आकर्षक लुक के साथसाथ सब की तारीफ भी सुनने को मिली. स्ट्रेट हेयर दुनिया भर में लोकप्रिय हैं.

ये हर प्रकार के चेहरे पर अच्छे लगते हैं और औपचारिक व अनौपचारिक दोनों अवसरों के अनुकूल रहते हैं. स्ट्रेट हेयर हमेशा खास लुक देते हैं और सभी वर्ग या उम्र की महिलाओं को आकर्षक बनाते हैं. इसीलिए ऐसे केश आजकल की युवा और कामकाजी महिलाओं की खास पसंद हैं. दरअसल, अधिकतर लड़कियां व महिलाएं केशों की इस शैली की सहजता को देखते हुए इसे अपनाती हैं. ऐसे केशों को किसी भी मौसम में, चाहे वह गरमी हो, सर्दी हो या मानसून, साफ और सौम्य रखा जा सकता है.

स्ट्रेट हेयर संवारने में मेहनत और समय भी कम लगता है और ऐसे केशों को धोने के बाद उन के सूखने के लिए ज्यादा इंतजार भी नहीं करना पड़ता. उन में जैल लगाने की आवश्यकता भी नहीं होती. यही वजह है कि स्ट्रेट हेयर कामकाजी लड़कियों और महिलाओं में लोकप्रिय हैं. महिलाओं की खूबसूरती पर विशेष ध्यान देने के उद्देश्य से स्ट्रेट शैंपू और कंडीशनर भी बाजार में उतारे गए हैं, जो स्ट्रेट लौक टैक्नोलौजी से बने हैं. इन से धोने के बाद केश 24 घंटों तक सुलझे हुए और स्ट्रेट बने रहते हैं. सनसिल्क से जुड़ी अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त स्ट्रेट हेयर विशेषज्ञ और स्टाइलिस्ट यूको यामाशिता बताती हैं कि उम्र चाहे जो भी हो, सभी में सब से ज्यादा लोकप्रिय स्ट्रेट हेयर ही हैं. ये छोटे, मध्यम या लंबे सभी तरह के केशों को आकर्षक लुक देते हैं.

चिकने स्ट्रेट हेयर

इस के लिए केशों को धो लें और खुला छोड़ दें. केशों को स्थिर रखने के लिए स्प्रे या थोड़ा हेयर जैल लगाएं.

पोनीटेल

इस में ऊंचा या झुका पोनीटेल हर युवती को हमेशा परफैक्ट और आकर्षक लगता है. इसे मौडर्न लुक देने के लिए स्टाइल में थोड़ा परिवर्तन करना पड़ता है. मसलन, केशों का पार्टीशन करें या फिर अच्छी तरह से कंघी कर कुछ ऐक्सैसरीज का प्रयोग करें. केशों की सतह को मुलायम बनाने और भद्दे उभारों को रोकने के लिए एक साफसुथरे टूथब्रश पर हेयर स्प्रे छिड़क कर अपनी पोनीटेल की सतह पर फिराएं.

बैंग्स और बौब कट

बैंग्स (साधना कट फ्रिंज) सभी तरह के चेहरों को आकर्षक लुक देते हैं और आंखों को भी आकर्षक बनाते हैं. बौब कट कोणदार, आधुनिक उछलने वाले सभी तरह के होते हैं. इन्हें काटने और स्टाइलिश बनाने के कई विकल्प हैं. आप के चेहरे की हड्डी की बनावट के अनुसार सही बौब आप पर सूट करते हैं. अगर चेहरा गोलाकार है तो अलगअलग बंधे हुए बौब रखें. अगर गरदन लंबी और ठुड्डी शार्प है तो सीधेसादे फ्रिंज वाले आधुनिक बौब रखें. इस से आंखें बड़ीबड़ी दिखेंगी. जब भी किसी हेयर ड्रैसर के पास जाएं, तो उस की जानकारी इस हेयर कट के बारे में अवश्य सुनिश्चित करें.

लेयर्ड हेयरस्टाइल

इस में परतों के आधार पर हेयर कट किया जाता है. महिलाएं परतदार केश पसंद करती हैं. इस से केशों की बनावट, फैलाव और आकार सुंदर लगता है. यह हेयरस्टाइल सैक्सी लुक देता है और लंबे केशों में काफी सुंदर लगता है.

पिक्सी हेयर कट

इसे 1960 के दशक की अभिनेत्री मिया फैरो ने लोकप्रिय बनाया. घने और कुदरती तौर पर लहराते केशों के लिए यह सब से सुंदर हेयर कट है. यह पतले, सीधे केशों वाली महिलाओं पर भी खूब फबता है. चेहरा लंबा हो तो पिक्सी हेयर कट से परहेज करें. चौड़े और अंडाकार चेहरे वाली महिलाओं पर भी पिक्सी हेयर कट अच्छा लगता है, लेकिन इस के लिए केश घने होने चाहिए.

नए साल में पैसा बचाने के ये हैं 4 तरीके

2019 साल का पहला महीना चल रहा है. नए साल की शुरुआत से ही आपको अपनी वित्तीय प्लान में लग जाना चाहिए. इस खबर में हम आपको पांच ऐसे ट्रिक्स बताएंगे जिनकी मदद से आपको पैसे बचाने में काफी मदद मिलेगी.

उधारी को कहें छुटकारा

नए साल में अपने सारे ऋणों से छुटकारा पाएं. आपके पास जो पैसे हैं उसका इस्तेमाल अपना लोन चुकाने में करें. क्रेडिट कार्ड पेमेंट के वक़्त कोशिश करें कि सारा बिल एक बार में देय हो जाए. अगर आपने मिनिमम बिल का भुगतान किया तो बाकी बचे रकम पर आपको ब्याज चुकाना होगा.

इमरजेंसी फंड

अपने गोल को सेट करने से पहले इमरजेंसी फंड तैयार कर लें. जानकारों की माने तो घर पर या अल्पकालिक फंड में एक निश्चित राशि रखने से आपात स्थिति के दौरान आपको इससे मदद मिलेगी.

सेट करें गोल

सबसे पहले अपने वित्तीय क्षमताओं को समझें और उसी के हिसाब से अपना वित्तीय लक्ष्य सेट करें. इससे आपके आगे का समय सुखमय बीतेगा. सबसे जरूरी अपनी लाइफस्टाइल में बदलाव करें. जरूरत के हिसाब से पैसे खर्च करें. निवेश करें.

क्रेडिट कार्ड खर्च पर करें नियंत्रण

कोशिश करें कि क्रेडिट कार्ड से ज्यादा खरीदारी ना हो. इमरजेंसी में ये एक पैसे का बेहतरीन साधन है क्रेडिट कार्ड. इसका प्रयोग करते वक्त इसके भुगतान के बारे में सजग रहें. ध्यान रखें कि आप एक महीने में जितना भुगतान कर सकती हैं, उससे अधिक उधार खर्च न करें.

औनलाइन सेक्स फैंटेसी का नया कारोबार

जब जमाना ऑनलाइन हो रहा है तो सेक्स भी ऑनलाइन नज़र आ रहा है. एक सर्वे के मुताबिक दुनियाभर में ‘डॉमीनेटरिक्स’ का बिजनेस तेजी से बढ़ रहा है. लोगों की फैंटसी पूरी करने के लिए हजारों महिलाएं पूरी दुनिया में हर वक्त ऑनलाइन रहती हैं.

डॉमीनेटरिक्स से जुड़कर महिलाएं पूरी कर रही मर्दों की फैंटेसी

एक सर्वे से साफ हुआ है कि ऑनलाइन रहने वाली महिलाएं दिनभर में एक-एक लाख रुपए तक कमा रही है. डॉमीनेटरिक्स के लिए एक मिनट का 500 रुपए तक चार्ज लिया जा रहा है. इसी सर्वे के मुताबिक अपनी सेक्सुअल फैंटेसी पूरी करने के लिए डॉमीनेटरिक्स में मर्दों की पहली पसंद बॉन्डेज सेक्स एंज़ॉय करना है.

अंग्रेजी अखबार द सन के अनुसार ब्रिटेन में पिछले दिनों 55 साल के एक डॉक्टर ने अपनी डॉमीनेटरिक्स पिक्चर ऑनलाइन पोस्ट कर दी. डॉक्टर के पेट पर उसकी मेड का नाम लिखा था जिसके साथ उसने शारीरिक संबंध बनाए. हालांकि डॉक्टर को बाद में हॉस्पिटल से सस्पेंड कर दिया गया.

ग्लासगो की रहने वाली 34 साल की एना वैसे तो काफी स्ट्रिक्ट है कि लेकिन ऑनलाइन डिमांड होने पर उन्हें लेटैक्स पहनने में भी कोई ऐतराज नहीं है. हालांकि ऑनलाइन न्यूड होने से वो परहेज करती हैं लेकिन ऑनलाइन सेक्स चैट वो अक्सर करती हैं.

उनका कहना है कि शायद मर्दों की फैंटेसी पूरा करने का ये सही तरीका है. इससे वो भी काफी हल्का महसूस करते हैं. वो हमसे अक्सर वो डिमांड करते हैं जिसे वो अपने पार्टनर के साथ पूरा नहीं कर सकते हैं. एना की फीस पर मिनट ढाई सौ रुपए है.

ब्रिजटन की मिया हरिंगटन का कहना है कि शायद मर्द हमसे कुछ ऐसा सीखना चाहते हैं जिसे वो अपने घर पर आजमा सकें. मिया कहती हैं महिलाओं और पुरुषों के अलावा तमाम कपल्स भी उनके क्लाइंट हैं और वो अपने सेक्सुअ फैंटेसी मुझे देखकर पूरी करना चाहते हैं.

डॉमीनेटरिक्स के बारे में क्या सोचते हैं साइकोलॉजिस्ट

ब्रिटेन की नॉटिंघम ट्रेंट यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर डॉ मार्क ग्रिफिथ्स को लगता है कि इंटरनेट के बढ़ते चलन के कारण लोग सेक्स फैंटेसी पूरी करने के लिए ऑनलाइन डॉमीनेटरिक्स का सहारा ले रहा है. ये आसानी से उपलब्ध है. जो लोग फेस टू फेस डॉमीनेटरिक्स का सामना करने में हिचकते हैं वो ऑनलाइन जा रहे हैं. जहां वो खुलकर सामने आते हैं.

हमें हरदम चमत्कार ही क्यों चाहिए

अभिनेता आयुष्मान खुराना की फिल्म ‘बधाई हो’ की सफलता  ने आयुष्मान खुराना की पिछली फिल्मों ‘विकी डोनर’ व ‘बरेली की बर्फी’ की तरह लीक से हट कर मगर साधारण लोगों की जिंदगियों पर बेस होने के कारण सफल हुई है. विज्ञापन फिल्में बनाने वाले अमित शर्मा ने इस फिल्म में वास्तविकता दिखाई है और यही वजह है कि थोड़ा टेढ़ा विषय होने पर भी उस ने क्व100 करोड़ का आंकड़ा पार कर लिया और बड़ी उम्र की औरतों को मां बनने के लिए एक रास्ता खोल दिया.

परिवार नियोजन से पहले बच्चे जब चाहे, हो जाते थे. जब पहला बच्चा 14-15 साल की उम्र में हो रहा हो तो आखिरी 40-45 वर्ष की उम्र में होना बड़ी बात नहीं थी और उसी समय पहले बच्चे का बच्चा भी हो सकता था. अब जब बच्चों की शादियां 30 के आसपास होने लगी हैं और परिवार नियोजन के तरीके आसान हैं, तो देर से होने वाले बच्चे पर आंखभौं चढ़ती हैं.

मामला देर से हुए बच्चे का उतना नहीं. ‘बधाई हो’ आम मध्यम परिवारों के रहनसहन की कहानी बयां करती है जो जगह की कमी, बंधीबंधाई सामाजिक मान्यताओं, पड़ोसियों के दखल के बीच जीते हैं. अमित शर्मा ने दिल्ली के जंगपुरा इलाके में बचपन बिताया और उसी महौल को उन्होंने फिल्म में उकेरा. इसीलिए फिल्म में बनावटीपन कम है. दर्शकों को इस तरह की फिल्में अच्छी लगती हैं क्योंकि ऐसी फिल्में आसपास घूमती हैं और बिना भारीभरकम प्रचार के चल जाती हैं.

हमारे यहां धार्मिक कहानियों का बोलबाला रहा है और इसीलिए हर दूसरी फिल्म में काल्पनिक सैटों, सुपरहीरो के सुपर कारनामे, मेकअप से पुती हीरोइनें होती हैं. हम असल में रामलीलाओं के आदी हैं जिन में जंगल में भी सीताएं सोने का मुकुट लगाए घूमती हैं. उन्हें देखतेदेखते हमारी तार्किक शक्ति जवाब दे चुकी है और ‘बधाई हो’ जैसी फिल्म के टिपिकल मध्यम परिवार का दर्शन पचता नहीं है.

असल में हमारी दुर्दशा की वजह ही यह है कि हम आमतौर पर वास्तविक समस्याओं से भागते हैं. हमें हरदम चमत्कार चाहिए. राममंदिर और सरदार पटेल की मूर्तियों को ले कर अरबोंखरबों रुपए खर्च इसीलिए करते हैं कि उस से कुछ ऐसा होगा कि सर्वत्र सुख संपदा संपन्नता फैल जाएगी. यह खामखयाली बड़ी मेहनत से हमारे पंडे हमारे मन में भरते हैं, जो फिल्मों में दिखता है और जहां लोग महलों में रहते हैं, बड़ी गाडि़यों में घूमते हैं और हीरो चमत्कारिक काम करते हैं. ‘बधाई हो’, ‘इंग्लिश विंग्लिश’, ‘हिंदी मीडियम’ जैसी फिल्में सफल हुईं तो इसलिए कि इस में रोजमर्रा की समस्याओं से जूझते आम लोगों को दिखाया गया उन्हीं के असली वातावरण में.

जीवन बड़ा कठिन और कठोर है. इसे समझनेसमझाने की जरूरत है. यह मंत्रोंतंत्रों से नहीं होगा. इस के लिए ऐसी कहानी कहने वाले चाहिए जो आम लोगों के सुखदुख को समझ सकें, भजन करने वाले और रामरावण युद्ध कराने वाले नहीं.

गरीबी रेखा : रेखा हीरोइन ही नहीं, सरकारी कलाकारी भी है

उन का आना कभी नागवार नहीं गुजरा. चाहे घर में कोई मेहमान आया हो या मैं कोई जरूरी काम निबटा रहा होऊं. यहां तक कि हम पतिपत्नी के बीच किसी बात को ले कर हुए विवाद की वजह से घर का माहौल अगर तनावभरा हो गया हो, तो भी.

वे जब भी आते, गोया अपने साथ हर मर्ज की दवा ले कर आते. हालांकि उन के पास दवा की कोई पुडि़या नहीं होती, फिर भी, शायद यह उन के व्यक्तित्व का कमाल था कि उन के आते ही घर में शीतल वायु सी ठंडक घुल जाती. जरूरी काम को बाद के लिए टाल दिया जाता और मेहमान तो जैसे उन्हीं से मिलने आए होते हों. पलभर में वे उन से इतना खुल जाते जैसे वर्षों से उन्हें जानते हों.

लवी तो उन्हें देखते ही उन की गोद में बैठ जाता, उन की मोटीघनी मूंछों के साथ खेलने लगता. और बेगम बड़ी अदा से मुसकरा कर कहती, ‘‘चाचाजी, आज स्पैशल पकौड़े बनाने का मूड था, अच्छा हुआ आप आ गए.’’

‘‘तुम्हारे मूड को मैं जानता हूं बेटी, जो मुझे देख कर ही पकौड़े बनाने का बन जाता है. लेकिन सौरी,’’ वे हाथ उठा कर कहते, ‘‘आज पकौड़े खाने का मेरा कोई इरादा नहीं है.’’

लेकिन बेगम उन की एक नहीं सुनती और उन्हें पकौड़े खिला कर ही मानती.

वे आते, तो कभी इतनी धीरगंभीर चर्चा करते जैसे सारे जहां कि चिंताएं उन्हीं के हिस्से में आ गई हैं, तो कभी बच्चों की तरह कोई विषय ले कर बैठ जाते. आज आए तो कहने लगे, ‘‘बेटा, यह तो बताओ, यह गरीबीरेखा क्या होती है?’’

मुझे ताज्जुब नहीं हुआ कि वे मुझ से गरीबीरेखा के बारे में सवाल कर रहे हैं. मैं उन के स्वभाव से वाकिफ हूं. वे कब, क्या पूछ बैठेंगे, कुछ तय नहीं रहता. अकसर ऐसे सवाल कर बैठते, जिन से आमतौर पर आदमी का अकसर वास्ता पड़ता है, लेकिन आम आदमी का उस पर ध्यान नहीं जाता. और ऐसा भी नहीं कि जो सवाल वे कर रहे होते हैं, उस का जवाब वे न जानते हों. वे कोई सवाल उस का जवाब जानने के लिए नहीं, बल्कि उस की बखिया उधेड़ने के लिए करते हैं, यह मैं खूब जानता हूं.

मैं बोला, ‘‘गरीबीरेखा से आदमी के जीवनस्तर का पता चलता है.’’

‘‘मतलब, गरीबीरेखा से यह पता चलता है कि कौन गरीब है और कौन अमीर है.’’

मैं बोला, ‘‘हां, जो इस रेखा के इस पार है, वह अमीर है और जो उस पार है, वह गरीब है.’’

‘‘मतलब, गरीब को उस की गरीबी का और अमीर को उस की अमीरी का एहसास दिलाने वाली रेखा.’’

‘‘हां,’’ मैं थोड़ा हिचकिचा कर बोला, ‘‘आप इसे इस तरह भी समझ सकते हैं.’’

‘‘यानी, एक तरह से यह कहने वाली रेखा कि तू गरीब है. तू ये वाला चावल मत खा. ये वाले कपड़े मत पहन वगैरहवगैरह.’’

‘‘नहीं,’’ मैं बोला, ‘‘गरीबीरेखा का यह मतलब निकालना मेरे हिसाब से ठीक नहीं होगा.’’

‘‘गरीब को उस की गरीबी का एहसास दिलाने के पीछे कोई और भी मकसद हो सकता है भला,’’ उन्होंने व्यंग्यात्मक लहजे में पहलू बदल कर कहा, ‘‘खैर, यह बताओ, यह रेखा खींची किस ने है, सरकार ने?’’

‘‘हां, और क्या, सरकार ने ही खींची है. और कौन खींच सकता है.’’

‘‘लेकिन सरकार को यह रेखा खींचने की जरूरत क्यों पड़ी भला?’’

‘‘सरकार गरीबों की चिंता करती है इसलिए. सरकार चाहती है कि गरीब भी सम्मानपूर्वक जिंदगी गुजारें. उन की जरूरतें पूरी हों. वे भूखे न रहें. गरीबों का जीवनस्तर ऊपर उठाने के लिए सरकार ने कई कल्याणकारी योजनाएं बना रखी हैं.’’

‘‘तो ऊपर उठा उन का जीवनस्तर?’’

‘‘उठेगा,’’ मैं बोला, ‘‘उम्मीद पर तो दुनिया कायम है. लेकिन यह तय है कि इस से उन्हें उन की जरूरत की चीजें जरूर आसानी से मुहैया हो रही हैं.’’

‘‘गरीबों को उन की जरूरत की चीजें गरीबीरेखा खींचे बगैर भी तो मुहैया कराई जा सकती थीं?’’

उन के इस सवाल से मेरा दिमाग चकरा गया और मुझ से कोई जवाब देते नहीं बना. फिर भी मैं बोला, ‘‘आप ठीक कह रहे हैं. ऐसा हो तो सकता था. फिर पता नहीं क्यों, गरीबीरेखा खींचने की जरूरत पड़ गई.’’

‘‘ऐसा तो नहीं कि अमीर लोग गरीबों का हक मार रहे थे, इसलिए यह रेखा खींचने की जरूरत पड़ी?’’

तभी गरमागरम पकौड़े से भरी ट्रे ले कर बेगम वहां आ गई. आते ही बोली, ‘‘थोड़ी देर के लिए आप दोनों अपनी बहस को विराम दीजिए. पहले गरमागरमा पकौड़े खाइए, उस के बाद देशदुनिया की फिक्र करिए.’’

बेगम के वहां आ जाने से चाचा के मुंह से निकला अंतिम वाक्य आयागया हो गया. मैं और चाचाजी पकौड़े खाने में मसरूफ हो गए. पकौड़े गरम तो थे ही, स्वादिष्ठ भी थे.

4-6 पकौड़े खाने के बाद चाचाजी  ही बोले, गरीबीरेखा से अगर सचमुच अमीर लोगों को गरीबों का हक मारने का मौका नहीं मिल रहा है और गरीबों को उन की जरूरत की चीजें मुहैया हो रही हैं, तो क्यों ने ऐसी दोचार रेखाएं और खींच दी जाएं.’’

मैं ने एक पकौड़ा उठा कर मुंह में रखा और चाचाजी की तरफ देखने लगा. वे समझ गए कि मैं उन का आशय समझ नहीं पाया हूं. इसलिए उन्होंने खुद ही अपनी बात आगे बढ़ाई, बोले, ‘‘एक भ्रष्टाचारी रेखा हो. एक कमीनेपन की रेखा हो. एक चुनाव के दौरान झूठे वादे करने की रेखा हो…’’

उन्होंने एक और पकौड़ा उठाया और उसे मिर्र्च वाली चटनी में डुबोते हुए बोले, ‘‘भ्रष्टाचार, कमीनापन और चुनाव जीतने के लिए झूठे वादे करना मनुष्य के स्वभावगत गुण हैं. इन्हें पूरी तरह खत्म नहीं किया जा सकता. चुनावी सीजन में जो भ्रष्टाचार खत्म करने और ब्लैकमनी वापस लाने के दावे करते थे, चुनाव जीतने के बाद वे खुद उस में रम जाते हैं. यहां तक कि अपने मूल काम को भी त्याग देते हैं, जिस का नुकसान सीधे गरीबों को होता है. इसलिए गरीबीरेखा की तरह कुछ और रेखाएं भी खींची जानी चाहिए.

‘‘भ्रष्टाचारी रेखा, भ्रष्टाचार करने वालों की लिमिट तय करेगी. तुम ने सुना होगा, यातायात विभाग के एक हैड कौंस्टेबल के पास से करोड़ों रुपए बरामद हुए थे. भ्रष्टाचारी रेखा खींच दी जाए तो भ्रष्टाचारी एक हद तक ही भ्रष्टाचार करेगा.

‘‘भ्रष्टाचार जब लाइन औफ कंट्रोल तक पहुंचेगा तो वह खुद ही हाथ जोड़ कर रकम लेने से मना कर देगा, कहेगा, ‘इस साल का मेरा भ्रष्टाचार का कोटा पूरा हो गया है, इसलिए अब नहीं. कम से कम इस साल तो नहीं. अगले साल देखेंगे.’

‘‘इसी तरह चुनावीरेखा चुनाव के दौरान झूठे वादों की लिमिट तय करेगी. चुनाव के दौरान उम्मीदवार यह देखेगा कि उस की पार्टी के नेता ने पिछली बार कौनकौन से वादे किए थे और उन में से कौनकौन से वादे पूरे नहीं हुए हैं. उस हिसाब से उम्मीदवार वादे करेगा, कहेगा, ‘पिछले चुनाव में मेरी पार्टी के नेता ने फलांफलां वादे किए थे जो पूरे नहीं हो पाए, इसलिए इस चुनाव में मैं कोई नया वादा नहीं करूंगा बल्कि पिछली बार किए गए वादों को पूरा करूंगा.’ इसी तरह कमीनीरेखा लोगों के कमीनेपन की लिमिट तय करेगी.’’

उन की इस राय के बाद मेरे पास बोलने को जैसे कुछ रह ही नहीं गया था. वे भी एकदम से खामोश हो गए थे. जैसे बोलने की उन की लिमिट पूरी हो गई हो. उसी समय बेगम भी वहां चाय ले कर पहुंच गई थी. तब तक लवी उन की गोद में ही सो गया था.

बेगम ने लवी को उन की गोद से उठाया और उसे ले कर दूसरे कमरे में चली गई. हम दोनों चुपचाप चाय सुड़कने लगे थे. चाय का घूंट भरते हुए बीचबीच में मैं उन की ओर कनखियों से देख लिया करता था, लेकिन वे निर्विकार भाव से चुप बैठे चाय सुड़क रहे थे.

उन के दिमाग की थाह पाना मुश्किल है. समझ में नहीं आता कि उन के दिमाग में क्या चल रहा होता है. एक दिन पूछ बैठे, ‘‘मुझे देख कर तुम्हारे मन में कभी यह खयाल नहीं आता कि जब दंगा होता है तो मेरी कौम के लोग तुम्हारी कौम के लोगों का गला काटते हैं, उन के घर जलाते हैं, उन की संपत्ति लूटते हैं.’’

उन के इस अप्रत्याशित सवाल से मैं बौखला गया था, बोला, ‘‘यह कैसा सवाल है चाचाजी.’’

‘‘सवाल तो सवाल है बेटा. सवाल में कैसे और वैसे का सवाल क्यों?’’

‘‘तो एक सवाल मेरा भी है चाचाजी,’’ मैं बोला, ‘‘क्या आप के मन में कभी यह खयाल आया कि आप मुसलमान हैं और मैं हिंदू हूं. जब दंगा होता है तो मेरी कौम के लोग भी आप की कौम के लोगों के साथ वही सब करते हैं जो आप की कौम के लोग हमारी कौम के साथ करते हैं. आप मांसभक्षी हैं और मैं शुद्ध शाकाहारी.’’

‘‘जवाब यह है बेटे कि यह खयाल हम दोनों के मन में नहीं आता, न आएगा.’’

‘‘फिर आप ने यह सवाल पूछा ही क्यों चाचाजी?’’

वे अपेक्षाकृत गंभीर लहजे में बोले, ‘‘दरअसल, हम यह समझने की कोशिश कर रहे थे बेटा कि जब एक आम हिंदू और एक आम मुसलमान के मन में कभी यह खयाल नहीं आता कि मैं हिंदू, तू मुसलमान या मैं मुसलमान तू हिंदू, जब आम दिनों में दोनों संगसंग व्यापार करते हैं, उठतेबैठते हैं, एकदूसरे के रस्मोरिवाज का हिस्सा बनते हैं तो आखिर दंगा होता ही क्यों है. और जब दंगा होता भी है तो इतना जंगलीपन कहां से पैदा हो जाता है कि दोनों एकदूसरे के खून के प्यासे हो जाते हैं. कहीं…’’ वे एक पल के लिए रुके, फिर बोले, ‘‘कहीं ऐसा तो नहीं कि हमारे बीच भी कोई रेखा खींच दी जाती हो, हिंदूरेखा या मुसलमानरेखा…’’

घर पर ऐसे बनाएं रेस्टोरेंट वाली डिश ‘नानवेज नूडल सैलेड’

नानवेज नूडल सैलेड

4 लोगों के लिए

सामग्री :

– 400 ग्राम चिकेन कीमा

–  2 टेबलस्पून ग्रीन पेस्ट (1 कप धनिया, 1 कप पुदीना और 4-5 हरी मिर्च को ब्लेंडर में डालकर पेस्ट बनाएं)

–  1 कप बारीक कटा स्प्रिंग अनियन

– 2 टेबलस्पून धनिया

– 1/4 कन पीनट आयल

– 200 ग्राम उबले हुए थाई राइस नूडल

– 1.5 टेबलस्पून राइस विनेगर

– 1 सूखी लाल मिर्च

–  1 टीस्पून फिश सास

– 1 टीस्पून चीनी

– 1 बारीक कटा लहसुन

– 125 ग्राम चेरी टमैटो

-1 लंबी स्लाइसेज़ में कटी गाजर

-1 स्लाइसेज़ में कटा लाल प्याज

– आवश्कतानुसार पुदीना और नमक

बनाने की विधि :

– एक बोल में चिकेन कीमा, ग्रीन पेस्ट, स्प्रिंग अनियन, राइस विनेगर, सूखी व बारीक कटी लाल मिर्च, फिश सास, चीनी, लहसुन और नमक डालकर छोटी-छोटी बाल्स बना लें.

– फ्राइंगपैन में तेल डालकर इन बाल्स को शैलो फ्राई करें.

– अब दूसरे फ्राइंगपैन में पीनट आयल गर्म करें.

– इसमें नूडल समेत बची सामग्री डालें और इसे अच्छी तरह मिलाएं.

– अब इसमें चिकेन बाल्स डालें और ऊपर से कटा धनिया डालकर कर गार्निश कर सर्व करें.

सर्दियों के दिनों में सेहत बनाए ‘गोंद के लड्डू’

सामग्री :

– 100 ग्राम गोंद (बारीक कटी)

– 2 कप आटा (गेहूं या धुली उड़द का)

– 100 ग्राम बादाम की कतरन

– 250 ग्राम शकर बूरा

– शुद्ध देसी घी

बनाने की विधि :

– सबसे पहले बारीक कटी गोंद को 2-3 घंटे तक धूप में रखें.

– अब कड़ाही में घी गर्म करें और उसमें गोंद डालकर तलें.

– जब वह आकार में फूलकर दुगुना हो जाए तो एक थाली में अलग निकालकर रख लें.

– अब बचे घी में आटे को धीमी आंच पर गुलाबी होने तक भूनें.

– घी कम लग रहा हो तो और डालें.

– आटा तब तक भूनें जब तक उसकी खुशबू चारों तरफ न फैल जाएं.

– फिर उसमें बादाम की कतरन डालें और थोड़ी देर चलाकर आंच बंद कर दें.

– अब आटे को ठंडा होने दें.

– गुनगुना आटा होने पर उसमें तली हुई गोंद और शकर का बूरा मिलाकर अच्छी तरह मिक्स कर लें.

– अब हाथों में थोड़ा-सा घी लगाएं और तैयार मिश्रण के गोल-गोल लड्डू बना लें.

सर्दियों के दिनों में सेहत बनाने के लिए तैयार है गोंद के खास लड्‍डू, खुद भी खाएं और परिवार वालों को भी खिलाएं.

बच्चों को इन रोगों से बचाने के लिए जरूरी है मां का दूध

नवजात के लिए मां का दूध बेहद जरूरी होता है. बच्चे को जितना पोषण मां की दूध से मिलता है, उतना किसी और चीज से नहीं मिलता. जानकारों की माने तो दूध में जटिल शर्करा का विशेष संयोजन होता है, जो भविष्य में होने वाली एलर्जी से बच्चों को  बचाता है. इससे उनमें रोगों से लड़ने के लिए प्रतिरोधक क्षमता विकसित होती है.

आपको बता दें कि मां के दूध में ओलिगोसैकराइड्स (एचएमओ) पाया जाता है. जिसकी संरचनात्मक में जटिल शर्करा के अणु होते हैं. यह मां के दूध में पाए जाने वाले लेक्टोज और वसा के बाद तीसरा सबसे बड़ा ठोस घटक है.

असल में बच्चे इसे पचा नहीं पाते हैं लेकिन लेकिन शिशु के आंत में माइक्रोबायोटा के विकास में प्रिबॉयोटिक के तौर पर काम करते हैं. माइक्रोबायोटा एलर्जी की बीमारी पर असर डालता है.

इस शोध को एक साल से कम उम्र के बच्चों पर किया गया. उनकी त्वचा पर इसकी जांत की गई. जिसमें पाया गया कि स्तनपान करने वाले शिशुओं ने खाद्य पदार्थ की एलर्जी के प्रति संवेदनशीलता नहीं दिखाई.

शोध में शामिल शोधार्थियों की माने तो, परीक्षण में सकारात्मक लक्षण का पाया जाना जरूरी नहीं है कि वह एलर्जी का साक्ष्य हो, लेकिन यह उच्च संवेदनशीलता का संकेत अवश्य देता है. बाल्यावस्था के संवेदीकरण हमेशा बाद के दिनों तक नहीं बने रहते हैं, लेकिन वे भविष्य में एलर्जी बीमारी के महत्वपूर्ण नैदानिक संकेतक और संभावनाओं को उजागर करते हैं.

‘एबीसीडी 3’ में श्रद्धा कपूर की बजाय होंगी सारा अली खान ?

नृत्य निर्देशक से निर्देशक बने रेमो डिसूजा को अपनी पिछली फिल्म ‘‘रेस 3’’ की असफलता का दंश अभी भी झेलना पड़ रहा है. वह लंबे समय से अपनी सफलतम नृत्य प्रधान फिल्म ‘‘एबीसीडी’’ के तीसरे सिक्वअल ‘‘ए बी सीडी 3’’(यह एक अलग बात है कि रेमो डिसूजा का दावा है कि उनकी इस नृत्य प्रधान फिल्म का नाम ‘एबीसीडी 3’ नहीं है, क्योंकि ‘एबीसीडी’ तो ‘डिजनी’ की प्रापर्टी है.) बनाने के लिए प्रयासरत हैं.

अब वह इसकी शूटिंग 22 जनवरी 2019 से अमृतसर में शुरू करने के लिए दृढ़ संकल्प हैं. पहले वह इस फिल्म को वरूण धवन और कटरीना कैफ को लेकर बनाना चाहते थे. मगर अचानक दिसंबर माह के अंतिम सप्ताह में कटरीना कैफ ने इस फिल्म को करने से मना कर दिया.

उसके बाद खबर आयी थी कि रेमो डिसूजा ने अब इस फिल्म के लिए श्रृद्धा कपूर को जोड़ा है. ज्ञातव्य है कि ‘एबीसीडी 2’ में वरूण धवन और श्रृद्धा कपूर ही थे. तथा फिल्म ने जबरदस्त सफलता बटोरी थी. पर सूत्रों की माने तो श्रृद्धा कपूर ने भी इस फिल्म को करने से मना कर दिया है. श्रृद्धा कपूर का कहना है कि वह ‘साइना’, ‘साहो’ और ‘छिछोरे’ जैसी फिल्मों में व्यस्त होने के चलते रेमो डिसूजा कि इस फिल्म के लिए समय नहीं दे सकतीं.

जब इस सिलसिले में रेमो डिसूजा से बात की गयी तो रेमो ने कहा – ‘‘यह तय है कि हम अपनी फिल्म की शूटिंग 22 जनवरी से शुरू करेंगे. पर अभी तक हीरोइन का नाम तय नही किया है.

हमारे साथ कई अभिनेत्रियां काम करने को आतुर हैं. पर अंतिम रूप से किस पर मुहर लगेगी, यह कहना जल्दबाजी होगी. 22 जनवरी तक इंतजार करें.’’

सूत्रों की मानें तो इस बार इस फिल्म का निर्माण रेमो डिसूजा की पत्नी लीजले डिसूजा, टी सीरीज के भूषण कुमार और वरूण धवन खुद कर रहे हैं. सूत्रों का दावा है कि भूषण कुमार ने इस फिल्म में अभिनय करने के लिए जैकलीन फर्नान्डीस, कृति सैनन और सारा अली खान से बात की है. बौलीवुड में चर्चाएं गर्म हैं की इस फिल्म में अंततः वरूण धवन के साथ सारा अली खान ही हीरोइन बनकर नजर आएंगी.

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