Hindi Fiction Story: हाय रे पर्यटन

Hindi Fiction Story: आजकल पर्यटन पर खास जोर है. जिसे देखो वही कहीं न कहीं जा रहा है. कोई शिमला, कोई मनाली, कोई ऊटी. पत्नी भी कहां तक सब्र रखती, आखिर एक दिन कह ही दिया, ‘‘देखो, बहुत हो गया. इतने साल हो गए हमारी शादी को, आप कहीं नहीं ले जाते. ले दे कर पीहर और रिश्तेदारों के अलावा आप की डायरी में दूसरी कोई जगह ही नहीं है. अब तो किटी में भी लोग मुझ से पूछते हैं, ‘मिसेज शर्मा, आप कहां जा रही हो.’ अब मैं क्या जवाब दूं. मैं ने भी उन से कह दिया कि हम भी इस बार हिल स्टेशन जा रहे हैं.

‘‘इस बार आप पक्की तरह सुन ही लो. हमें इस बार किसी न किसी हिल स्टेशन पर जाना ही है, चाहे लोन ही क्यों न लेना पड़े. मेरी नाक का सवाल है,’’ यह कह कर वह कोपभवन में चली गईं.

हमारे जैसे शादीशुदा लोग पत्नी के कोप से अच्छी तरह परिचित हैं. वे जानते हैं कि एक बार निर्णय लेने के बाद पत्नियों को कोई नहीं समझा सकता, सो मैं ने समझौतावादी नीति अपनाई और उन्हें बातचीत के लिए आमंत्रित किया. एकतरफा बातचीत के बाद मैं ने मान लिया कि इस बार शिमला जाना ही हमारी नियति है.

रेलवे टाइमटेबिल में से कुछ गाडि़यां नोट कर मैं रिजर्वेशन कराने रेलवे के आरक्षण कार्यालय पहुंचा. कार्यालय बिलकुल खाली पड़ा था. मैं मन ही मन खुश हो उठा कि चलो अच्छा हुआ, अभी 5 मिनट में रिजर्वेशन हो जाएगा.

चंद मिनटों में मेरा नंबर भी आ गया.

‘‘लाइए,’’ यह कहते हुए आरक्षण क्लर्क ने मेरा फार्म पकड़ा और उस पर अपनी पैनी नजर फिरा कर मुझे वापस पकड़ा दिया.

‘‘क्या हुआ?’’ मैं ने चौंक कर पूछा, ‘‘आप ने फार्म वापस क्यों दे दिया?’’

वह क्लर्क हंस कर बोला, ‘‘भाईसाहब, गाड़ी में नो रूम है यानी कि अब जगह नहीं है.’’

‘‘तो कोई बात नहीं, दूसरी गाड़ी में दे दीजिए.’’

‘‘इस समय इस ओर जाने वाली किसी भी गाड़ी में कोई जगह नहीं है.’’

‘‘कैसी बात करते हैं. सारे काउंटर खाली पड़े हैं और आप हैं कि…’’

‘‘ऐसा है, आप तैश मत खाइए. सारी गाडि़यां 2 महीने पहले ही बुक हो गई हैं. अब कहें तो जुलाई का दे दें.’’

एकाएक मुझे खयाल आया कि मैं भी कैसा बेवकूफ हूं. नहीं मिला तो अच्छा ही हुआ. अब कम से कम इस बहाने जाने से तो बचा जा सकता है.

मैं खुशीखुशी घर लौट आया और जैसे ही घर में प्रवेश किया तो यह देख कर हैरान रह गया कि वहां महल्ले की किटी कार्यकारिणी की सभी महिला पदाधिकारी अपने बच्चों सहित मौजूद थीं.

‘‘भाईसाहब, बधाई हो, आप ने शिमला का निर्णय ठीक ही लिया, पर लगे हाथ कुल्लूमनाली भी हो आइएगा,’’ मिसेज वर्मा बोलीं.

‘‘अरे, जब वहां जा रहे हैं तो कुल्लूमनाली को कैसे छोड़ देंगे,’’ श्रीमतीजी चहक कर बोलीं.

‘‘और भाईसाहब, रिजर्वेशन ए.सी. में ही करवाइएगा, नहीं तो आप पूरे रास्ते परेशान हो जाएंगे.’’

‘‘अरे भाभीजी, हमारे साहब के स्वभाव में तकलीफ उठाना तो बिलकुल नहीं है. हम ने तो ए.सी. में ही रिजर्वेशन करवाया है. इन्होंने तो होटल में भी ए.सी. रूम ही बुक करवाए हैं.’’

मुझे काटो तो खून नहीं. केवल स्टेटस सिंबल के लिए श्रीमतीजी झूठ पर झूठ बोलती जा रही थीं.

चायनाश्ते के दौर के बाद जब महिला ब्रिगेड विदा हुई तो मैं धम से सोफे पर पड़ गया.

उन्हें छोड़ कर वे अंदर आईं तो मेरा हाल देख कर घबरा गईं, ‘‘क्या हो गया, तुम्हारी तबीयत तो ठीक है न.’’

मैं ने श्रीमतीजी को रिजर्वेशन की असलियत बताई तो वह बिफर उठीं, ‘‘तुम कैसे आदमी हो, तुम से एक रिजर्वेशन नहीं हुआ. मैं नहीं जानती. मुझे इस बार शिमला जरूर जाना है. अब तो मेरी नाक का सवाल है,’’ कह कर वह अंदर चली गईं.

बेटी, मां की बात सुन कर मुसकराई, ‘‘देखो पापा, मम्मी की नाक का सवाल बहुत बड़ा होता है. इस सवाल में अच्छेअच्छों के कान भी कट जाते हैं. ऐसा करते हैं, गाड़ी कर के चलते हैं.’’

अब इस फैसले को मानने के अलावा मेरे पास कोई चारा नहीं था.

सीने पर पत्थर रख कर मैं गाड़ी की बात करने गया. गाड़ी का रेट सुन कर मेरे होश उड़ गए, पर क्या करता, श्रीमतीजी की नाक का सवाल सब से बड़ा था. मुझे लगा, जितने पैसे में घूम कर आ जाते, उतना तो गाड़ी ही खा जाएगी, लेकिन अब कुछ नहीं हो सकता था.

देखतेदेखते वह दिन भी आ गया. सोसायटी की सभी महिलाएं विदा करने आईं. श्रीमतीजी फूली नहीं समा रही थीं. वह मेरी तरफ ऐसे देख रही थीं जैसे कह रही हों, देखो, मेरी इज्जत. हां, बात करतेकरते सभी महिलाएं अपने लिए शिमला से कुछ न कुछ लाने की फरमाइश कर रही थीं, जिसे श्रीमतीजी सहर्ष स्वीकार करती जा रही थीं. इन फरमाइशों की सूची सुन कर मेरा दिल घबराने लगा था.

अंतत: गाड़ी रवाना हुई तो श्रीमतीजी ने प्रधानमंत्री की तरह हाथ हिला कर सोसायटी वालों से विदा ली. थोड़ी देर में सूरज सिर पर आ गया. लू के थपेड़े चलने लगे. गाड़ी बुरी तरह तप रही थी. जहां हाथ लगाओ वहीं ऐसा लगता था जैसे गरम सलाख दाग दी गई हो. कुछ देर में पत्नी, फिर बेटी धराशायी हो गई.

बेटा मां से लड़ने लगा, ‘‘यह कौन सा हिल स्टेशन है? हम सहारा मरुस्थल में चल रहे हैं क्या?’’

श्रीमतीजी कराहती हुई बोलीं, ‘‘अरे बेटा, यह तेरे पापा की कंजूसी से ऐसा हुआ है. मैं ने तो ए.सी. गाड़ी लाने को कहा था.’’

जवाब में बेटा और बेटी अपने कलियुगी पिता को घूरने लगे. मैं क्या करता, मैं ने निगाहें नीचे कर लीं.

दवाइयां खाते, उलटियां करते जैसेतैसे कर के शिमला तक पहुंचे. शिमला तक का रास्ता आलोचनाओं में अच्छी तरह कटा. उन की आलोचनाओं का केंद्र मैं जो था.

शिमला पहुंच कर सब ने चैन की सांस ली. ड्राइवर ने सड़क के एक ओर गाड़ी लगा दी.

बेटा अचानक गाड़ी को रुकते देख बोला, ‘‘क्यों पापा, होटल आ गया?’’

‘‘हां, बेटा, तेरे पापा ने फाइव स्टार होटल बुक करा रखा है,’’ श्रीमतीजी व्यंग्य से बोलीं.

ड्राइवर भी हैरान रह गया, ‘‘क्या साहब, आप ने होटल भी बुक नहीं करवाया? सीजन का टाइम है. क्या पहली बार घूमने आए हो?’’

‘‘हां, भैया, पहली बार ही आए हैं. हमारी तकदीर में बारबार घूमने आना कहां लिखा है,’’ श्रीमतीजी लगातार वार पर वार कर रही थीं, ‘‘जा बेटा, उठ और होटल ढूंढ़, मेरे तो बस की नहीं है.’’

फिर बेटे और बेटी को ले कर गलीगली घूमने लगा. ज्यादातर होटल भरे हुए थे, हार कर एक बहुत महंगा होटल कर लिया. अब सब बहुत खुश थे.

उस दिन आराम किया. शाम को माल रोड घूमने निकले. मैं उन्हें बता रहा था, ‘‘देखो, रेलिंग के नीचे घाटी कितनी सुंदर लग रही है,’’ पर घाटी को निहारने के बाद अपना सिर घुमाया तो पाया मैं अकेला था. ये तीनों अलगअलग दुकानों में घुसे हुए थे.

थोड़ी देर बाद बेटी आई और हाथ पकड़ कर दुकान में ले गई, ‘‘देखो पापा, कितनी सुंदर ड्रेस है.’’

‘‘अच्छा भई, कितने की है?’’ लाचारी में मुझे पूछना पड़ा.

‘‘बस सर, सस्ती है. आप को डिस्काउंट में दे देंगे. मात्र 2 हजार रुपए.’’

मुझे मानो करंट लगा, ‘‘अरे भई, तुम तो दिन दहाड़े लूटते हो. यह डे्रस तो कोटा में 300-400 से ज्यादा की नहीं मिलती है.’’

दुकानदार ने डे्रस मेरे हाथ से छीन ली, ‘‘कोई दूसरी दुकान देखिए साहब, हमारा टाइम खराब मत कीजिए.’’

बेटी को भारी धक्का पहुंचा. बाहर निकलते ही वह रोने लगी, ‘‘आप भी बस पापा, कितना अपमान करवाते हैं.’’

तभी श्रीमतीजी भी बेटे के साथ आ गईं. बेटी को रोते देख उन्होंने मेरी जो क्लास ली कि मेरी जेब का अच्छाखासा पोस्टमार्टम हो गया.

दूसरे दिन कूफरी घूमने का प्रोग्राम बना. कूफरी में घोड़े वाले पीछे पड़ गए कि साहब, ऊपर पहाड़ी पर चलें. मुझे घुड़सवारी में कोई दिलचस्पी नहीं है और फिर रेट इतने कि मैं ने साफ मना कर दिया.

‘‘तुम ऊपर चले चलोगे तो बच्चों का मन बहल जाएगा. बच्चों का मन रखने के लिए क्या इतना भी नहीं कर सकते.’’

‘‘नहीं, बिलकुल नहीं कर सकता,’’ मुझे पत्नी पर गुस्सा आ गया, ‘‘एक बार घर वालों का मन रखने के लिए घोड़ी पर चढ़ा था जिस का मजा आज तक भोग रहा हूं… अब और रिस्क नहीं ले सकता.’’

मेरे इस व्यंग्य को सुन कर श्रीमतीजी ने रौद्र रूप धारण कर लिया. फिर क्या था, मुझे सपरिवार घोड़े की सवारी करनी ही पड़ी. लेकिन जिस बात का डर था, वही हुआ. घोड़े पर से उतरते वक्त मैं संतुलन खो बैठा और धड़ाम से नीचे जा गिरा. मेरे पांव में मोच आ गई. मेरा उस दिन का सफर गाड़ी में बैठेबैठे ही पूरा हुआ. वे बाहर घूमतेफिरते, मजे करते रहे और मैं अंदर बैठाबैठा कुढ़ता रहा.

शाम को वहीं एक डाक्टर को दिखाया. उस ने कहा, ‘‘कोई चिंता की बात नहीं है. एकदो दिन आराम करोगे तो ठीक हो जाएगा.’’

दूसरे दिन सुबह मैं पलंग पर लेटा रहा. तीनों सदस्य अर्थात श्रीमतीजी, पुत्र व पुत्री तैयार होते रहे. थोड़ी देर बाद वे तीनों एकसाथ आ कर मेरे सामने बैठ गए.

मैं बोला, ‘‘कोई बात नहीं. चोट लग गई तो लग गई. तुम लोग परेशान मत हो. जा कर घूम आओ.’’

‘‘हम क्यों परेशान होंगे. हम तो पैसे के लिए बैठे हैं.’’

पैसे ले कर तीनों सुबह के निकले तो रात तक ही लौट कर आए. उन्होंने इतना सामान लाद रखा था कि बड़ी मुश्किल से उठा पा रहे थे.

धीरेधीरे उन्होंने एकएक सामान का रेट बताना शुरू किया तो मेरा दिल बैठ गया. मैं ने खर्च का हिसाब लगाया तो सिर्फ इतने ही रुपए बचे थे कि बस होटल का बिल चुका कर हम जैसेतैसे घर पहुंच सकें.

रात को बैठ कर सारी पैकिंग की गई. कुल्लूमनाली न जाने की बाबत अफसोस जाहिर किया गया और यह चिंता जतलाई गई कि अब श्रीमतीजी घर पहुंच कर कैसे मुंह दिखाएंगी.

दूसरे दिन उदासी भरे चेहरों को ले कर वे शिमला से रवाना हुए और साथ में मुझे लेना भी नहीं भूले.

कुछ घंटों बाद जब हमारी कार पहाड़ों को छोड़ कर मैदानों में पहुंची तो गरमी अपना विकराल रूप दिखाने लगी. लू के थपेड़े खाते हुए जब हम घर पहुंचे तो श्रीमतीजी के आगमन पर पूरा महल्ला इकट्ठा हो गया. श्रीमतीजी रास्ते की थकान भूल गईं.

वह बढ़ाचढ़ा कर शिमला का बखान सुनाने लगीं. सब लोग धैर्य से सुनते रहे. फिर समापन के समय वस्तुवितरण समारोह हुआ. श्रोताओं का धैर्य टूट गया. वे सामानों की आलोचना करने लगे.

‘‘अरे, मिसेज शर्मा, यह शाल थोड़ा आप हलका ले आई हैं.’’

‘‘हां, कपड़े भी ठीक नहीं आए. फुटपाथ से लेने में क्वालिटी हलकी आ ही जाती है.’’

‘‘मिसेज शर्मा, आप ने तो बस घूमने का नाम ही किया, कुल्लूमनाली हो कर आतीं तो कुछ बात भी थी.’’

थोड़ी देर बाद सब चले गए. घर की 3 सदस्यीय ज्यूरी के सामने मैं अपराधी बैठा था. अपराध सिद्ध करने के लिए महल्ले के सभी गवाह पर्याप्त थे.

मुझे दोषी माना गया और सजा दी गई कि अब क्रिसमस की छुट्टियों में गोवा घूमने चलेंगे, जिस का सब इंतजाम बेटा पहले से ही कर लेगा और मुझे सिर्फ एक काम करना होगा, एक भारी राशि का चेक साइन करना होगा ताकि सबकुछ अच्छी तरह से निबट सके.

लेखक- शरद उपाध्याय

Hindi Social Story: हिंदी व्याकरण में सियासत

Hindi Social Story: मैं जब भी किसी नेता को यह कहते हुए सुनता हूं कि वे तो राजनीति छोड़ना चाहते हैं, पर राजनीति उन्हें नहीं छोड़ती, मुझे उस गरीब की याद आ जाती है जो घोर सर्दी में कहीं से एक कंबल पा गया था. उस से अगर कोई पूछता था, ‘‘बहुत सर्दी है क्या?’’ तो उस का जवाब होता था, ‘‘कतई नहीं.’’ अगला सवाल, ‘‘तो कंबल में यों ठिठुर क्यों रहे हो?’’ उस का जवाब होता, ‘‘मैं तो यह कंबल छोड़ना चाहता हूं पर यह कंबल मुझे नहीं छोड़ता.’’

उक्त प्रसंग का एक खास कारण है कि मेरी भी दशा उन नेताओं जैसी बरबस होती जा रही है. मैं कतई राजनीति नहीं पसंद करता. मैं आजीवन हिंदी लेखन का एक छात्र बना रहना चाहता हूं पर मुसीबत तो यह है कि यह राजनीति मेरे व्याकरण पर भी सवार हो चुकी है. अब क्योंकि हिंदी लेखन तो मैं छोड़ नहीं पाऊंगा लिहाजा, इस से भी पिंड छूटता नजर नहीं आता.

गौर कीजिए, जब देश के राष्ट्रपति के पद के लिए प्रतिभा देवीसिंह पाटिल के नाम का प्रस्ताव आया था तो राजनीतिक हलकों में एक बहस छिड़ गई थी कि अगर उस खास पद पर एक पुरुष हो तो राष्ट्रपति कहा जाना तर्कसंगत है पर जब उस पर कोई महिला हो तो क्या उसे राष्ट्रपत्नी कहा जाना चाहिए? भाई लोगों ने चटखारे लेले कर इस सियासती व्याकरण की खूब खिल्ली उड़ाई थी. प्रतिभा पाटिल के बहाने चली बहस में महात्मा गांधी को भी लपेट लिया गया था कि अगर वे राष्ट्रपिता थे तो क्या कस्तूरबा गांधी राष्ट्रमाता थीं. ऐसी बचकाना हरकत  इंदिरा गांधी के समय में भी एक बार उछाली गई थी. यह एक व्याकरणात्मक राजनीति थी.

अगर इसे आधार मान लिया जाए तो जवाहर लाल नेहरू क्योंकि चाचा नेहरू के नाम से मशहूर हो गए थे, तो क्या उन की पत्नी कमला नेहरू चाची कहलाई गईं?

हरियाणा के एक नेता देवीलाल ताऊ कहलाए जाने लगे थे तो क्या उन की पत्नी ताई कहलाई गईं?

उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ के एक नेता राजा भैया के नाम से मशहूर हैं. सवाल है कि क्या उन की पत्नी को राजा बहन कहा जाए या रानी भैया कहा जाए या रानी बहन कहा जाए? ये सभी मामले विशुद्ध व्याकरणात्मक राजनीति के हैं जिन से मेरा कोई लेनादेना नहीं है पर जब ये लिखने वाली भाषा के व्याकरण में आने लगते हैं तो मेरी तकलीफ नाजायज नहीं कही जाएगी.

अब गौर कीजिए साली का पुल्लिंग, साला हुआ पर गाली का गाला नहीं हुआ. गठरी का गट्ठा तो हुआ लेकिन मठरी का मट्ठा नहीं हो सकता. लंगड़ी का लंगड़ा तो हुआ, पर गृहिणी का गृहणा नहीं हो सकता, पत्नी का पत्ना भी नहीं हो सकता. पुत्री का पुत्र तो होता है पर नेत्री का नेत्र नहीं हो सकता. खाली का खाला नहीं हो सकता और राजनीति का राजनीता भी नहीं हो सकता. इसी तरह कोयल का कोयला भी नहीं हो सकता.

चाचा का स्त्रीलिंग चाची तो होता है, मामा का मामी भी होता है पर बप्पा का बप्पी कतई नहीं होता. सरकारी कार्यालयों में जूता बोलता है, वह चाहे चांदी का हो या चमड़े का या फिर चाचा, दादा का, पर जूती कतई नहीं बोलती. जबकि दूसरी तरफ दबंग की तूती बोलती है, पर किसी का तूता बोलते आप ने कभी नहीं सुना होगा.

यह समस्या केवल पुल्लिंग और स्त्रीलिंग में ही नहीं है, एकवचन और बहुवचन में भी है. गाड़ी का बहुवचन गाडि़यां होता है, साड़ी का साडि़यां होता है पर कबाड़ी का कबाडि़यां नहीं होता. बात का बातें तो होता है, लात का लातें भी होता है पर तात (पिता) का तातें नहीं हो सकता. पेड़ का बहुवचन भी पेड़ ही है. आप यह नहीं कह सकते कि इस बाग में 10 पेड़ें हैं, सही तो यही होगा कि इस बाग में 10 पेड़ हैं, ‘जंगल में मोर नाचा’ का बहुवचन होगा ‘जंगल में मोर नाचे’ न कि मोरें नाचे.

अब आप ही बताइए, जैसे दबंग सियासतदां कभी भी और कहीं भी अवैध कब्जों के लिए अलिखित अधिकार पाए हुए होते हैं इसी तरह यह सियासत भी कहीं भी अवैध कब्जा करने के लिए आजाद है. वह लेखन के क्षेत्र में ही नहीं, नदी, तालाब या पाताल तक भी जा सकती है. मामला लिंग का जो ठहरा, इस के पास सत्ता होती है. अब सत्ता का शब्द खुद ही पुल्लिंग जैसा दिखता है, इस का पुल्लिंग कैसे बनाया जा सकता है. यह एक व्याकरणात्मक समस्या है राजनीतिक नहीं.

कुछ ऐसा ही मामला विलोम शब्दों के साथ भी है. अंकुश का निरंकुश तो होता है पर माता का निर्माता नहीं हो सकता आदि.

Funny Story in Hindi: सहेलियों की बाढ़

Funny Story in Hindi: ‘जोर लगा के हैया, पत्नी बीमार है मन लगा कर काम करो सैंया.’

पिछले एक सप्ताह से इस लाइन का मनन बेहद सत्यनिष्ठा के साथ कर रहा हूं, ठीक उसी तरह जैसे भक्त भगवान का करते हैं. इस लाइन को भूलना भी चाहूं तो बेचारे बिस्तर को 24 घंटे कष्ट दे रही हमारी श्रीमतीजी की गुब्बारे सी काया हमें भूलने नहीं देती है. इस लाइन को अभी से भूल गया तो आने वाले 3 सप्ताह का सामना कैसे करूंगा, क्योंकि डाक्टर ने कम से कम 4 सप्ताह तक उन्हें पूर्ण आराम की सलाह दी है और उन की संपूर्ण देखरेख की हिदायत मुझे दी है.

आप यह मत सोचिए कि उन्हें कोई गंभीर, खानपान से परहेज वाली बीमारी है. ऐसा बिलकुल नहीं है. उन्हें तो बस, काम से मुक्त आराम करने वाला प्रसाद के रूप में एक अचूक झुनझुना मिल गया है जिस का नाम है ‘स्लिप डिस्क.’

इस की प्राप्ति भी उन्हें कोई गृह कार्यों के बोझ तले दब कर नहीं हुई बल्कि अपनी ढोल सी काया को कमसिन बनाने के लिए की जा रही जीतोड़ उलटीसीधी एक्सरसाइज के कारण हुई है. वैसे तो इस प्रसाद को उन के साथसाथ मैं भी चख रहा हूं. लेकिन दोनों के स्वाद में जमीनआसमान का अंतर है. जहां श्रीमतीजी के सुखों का कारवां फैल कर दोगुना हो गया है वहीं हमारे घरेलू अधिकारों की अर्थी उठने के साथसाथ कर्तव्यों की फसलें सावन में हरियाली की तरह लहलहा रही हैं.

श्रीमतीजी अपनी रेपुटेशन एवं खुशनुमा दिनचर्या के लिए जिन्हें आधार मानती हैं वे मेरे लिए कर्तव्यों की फसल में खरपतवार के समान हैं. यानी उन का हालचाल पूछने व इधरउधर की सनसनीखेज खबरें बताने के लिए दिन भर थोक में आने वाली और श्रीमतीजी पर हम से कई गुना ज्यादा प्रेम बरसा कर हमदर्दी जताने वाली कोई और नहीं उन की प्रिय सहेलियां हैं.

बेमौसम सहेलियों की बाढ़ से घर की अर्थव्यवस्था निरंतर क्षतिग्रस्त होती जा रही है. मेरी समस्या असार्वजनिक होने के कारण दूरदूर तक मुआवजे की भी कोई उम्मीद नहीं है. कपप्लेट, गिलास और ट्रे के साथ मैं भी फुटबाल की तरह दिन भर इधर से उधर टप्पे खाता फिर रहा हूं.

फुटबाल के खेल में दोनों पक्ष गुत्थमगुत्था मेहनत करते हैं तब कहीं जा कर एक पक्ष को जीत नसीब होती है लेकिन यहां तो अंधेर नगरी चौपट राजा है, कमरतोड़ मेहनत भी हम करें और हारें भी हम ही. उधर हमारी श्रीमतीजी की पौबारह है. पांचों उंगली घी में और सिर कड़ाही में है. काम से परहेज किंतु कांवकांव से कोई परहेज नहीं.

अकेले में हलके से हिलना भी हो तो हमारी हाजरी लिफाफे पर टिकट की तरह बेहद जरूरी है. वहीं 4-6 ने आ कर जैसे ही बाहरी दुनिया का बखान शुरू किया नहीं कि यहांवहां की स्वादिष्ठ बातों का श्रवण कर बातबात पर स्ंिप्रग की भांति उन का उछलना तथा आहें भरभर कर प्रतिक्रिया जाहिर करते हुए कभी खिसियाना या कभी खीसें निपोरना देखने लायक होता है.

‘‘कल किटी पार्टी में किस ने किस की आरती उतारी, किस ने अध्यक्षा को अपने कोमल हाथों से चरण पादुकाएं पहनाईं, किस ने किस को मक्खन लगाया, पकवानों में कौनकौन से दुर्गुण थे, चाय के नाम पर गरम पानी पिलाया आदि.’’

यह देख हमारे आश्चर्य का ठिकाना न रहता कि एक से बढ़ कर एक जहर से लिपटे शब्दबाण हमारी श्रीमतीजी को घायल करने के बजाय इतना स्फूर्तिदायक बना देते जैसे वह अमृत का प्याला हों. वाह रे खुदा, तेरी खुदाई देख कर लगता है कि इन महिलाओं के लिए निंदा रस से बढ़ कर और कोई मिठाई नहीं है. इन की महफिल से जो परिचिता गायब है, समझ लो वही इन सब के हृदय में निंदा रस प्रज्वलित करने का माध्यम है और इस निंदा रस में डुबकी लगा कर उन सभी के चेहरे एकदम तरोताजा गुलाब की तरह खिल जाते हैं.

निंदा रस के टौनिक से फलती- फूलती इन महिलाओं को लगता है आज किसी की नजर लग गई क्योंकि कमरे के अंदर से आते हुए सभी का सुर अचानक एकदम बदल गया है. ऐसा लग रहा था मानो हमारे बेडरूम में विधानसभा या संसद सत्र चल रहा हो.

हम ने भीगी बिल्ली की तरह चुपके से अंदर झांका तो सभी की भवें अर्जुन के धनुष सी तनी हुई थीं. माथे पर पसीने की बूंदें रेंगती हुई, जबान कौवे की सी कर्कश, चेहरा तपते सूरज सा गरम और हाथ अपनी स्वामिनी के पक्ष में कला- बाजियां खाते इधरउधर डोल रहे थे.

सभी नारियों के तीनइंची होंठ एकसाथ हिलने के कारण अपने कानों व दिमाग की पूर्ण सक्रियता के बावजूद यह समझ नहीं पाए कि इस विस्फोटक नजारे के पीछे किस माचिस की तीली का हाथ है. वह तो भला हो गरमी की छुट्टियों का जिस की वजह से फिलहाल अड़ोसपड़ोस के मकान खालीपन का दुख झेल रहे हैं.

कोई घंटे भर की चांवचांव के बाद लालपीली, शृंगारिकाएं एकएक कर बाहर का रास्ता नापने लगीं. जब श्रीमतीजी इकलौती बचीं तब हम ने उन से व्यंग्यात्मक लहजे में पूछा, ‘‘आज क्या सामूहिक रूप से तबीयत गरम होने का दिन था?’’

‘‘यह सब तुम्हारी वजह से हुआ है.’’

‘‘क्या?’’ हमारा मुंह खुला का खुला रह गया.

‘‘और नहीं तो क्या…तुम आ कर इतना भी नहीं बता सकते थे कि मधु मेरी तबीयत देखने के बहाने अंदर आ रही है. हम उसी की बात कर रहे थे और वह कमरे के बाहर कान लगा कर खड़ी हो गई. फिर क्या, ये सब तो होना ही था. अब कोईर् नहीं आएगा मेरा हालचाल पूछने, पड़ी रहूंगी अकेली दिन भर टूटे हुए पत्ते की तरह.’’

इतना कहतेकहते नयनों से झरना फूट पड़ा. ऊपरी मन से हम भी श्रीमतीजी के असह्य दुख में शामिल हो उन्हें सांत्वना देने लगे.

‘‘कोई नहीं आता है तो न आए, मैं तो हूं, सात जन्मों तक तुम्हारी सेवा करने के लिए. मेरे रहते क्यों इतनी दुखी होती हो, प्रिय.’’

लेकिन हमारी इस सांत्वना से बेअसर श्रीमतीजी का बोझिल मन उन के आंसुओं में लगातार इजाफा कर रहा था. हम ने श्रीमतीजी को वहीं, उसी हाल में छोड़ कर पुरानी पेटी से चवन्नी ढूंढ़ घर के देवता को सवा रुपया चढ़ा, उन की चरण वंदना करते हुए कहा, ‘‘हे कुल के देवता, तुझे लाखलाख प्रणाम, जो तुम ने मेरे घर को सहेलियों की बाढ़ से समय पर बचा लिया. अगर इस बाढ़ पर अब शीघ्र अंकुश नहीं लगता तो अनर्थ हो जाता. श्रीमतीजी तो थोड़ी देर में रोधो कर चुप हो जाएंगी लेकिन मैं जितने दिनों दुकान के कर्ज को भरता, रोता ही रहता.’’

Hindi Drama Story: अफवाह के चक्कर में

Hindi Drama Story: जैसे ही बड़े साहब के कमरे में छोटे साहब दाखिल हुए, बड़े साहब हत्थे से उखड़ पड़े, ‘‘इस दीवाली पर प्रदेश में 2 अरब की मिठाई बिक गई, आप लोगों ने व्यापार कर वसूलने की कोई व्यवस्था ही नहीं की. करोड़ों रुपए का राजस्व मारा गया और आप सोते ही रह गए. यह देखिए अखबार में क्या निकला है? नुकसान हुआ सो हुआ ही, महकमे की बदनामी कितनी हुई? पता नहीं आप जैसे अफीमची अफसरों से इस मुल्क को कब छुटकारा मिलेगा?’’

बड़े साहब की दहाड़ सुन कर स्टेनो भी सहम गई. उस के हाथ टाइप करते-करते एकाएक रुक गए. उस ने अपनी लटें संभालते हुए कनखियों से छोटे साहब के चेहरे की ओर देखा, वह पसीनेपसीने हुए जा रहे थे. बड़े साहब द्वारा फेंके गए अखबार को उठा कर बड़े सलीके से सहेजते हुए बोले, ‘‘वह…क्या है सर? हम लोग उस से बड़ी कमाई के चक्कर में पड़े हुए थे…’’

उनकी बात अभी आधी ही हुई थी कि बड़े साहब ने फिर जोरदार डांट पिलाई, ‘‘मुल्क चाहे अमेरिका की तरह पाताल में चला जाए. आप से कोई मतलब नहीं. आप को सिर्फ अपनी जेबें और अपने घर भरने से मतलब है. अरे, मैं पूछता हूं यह घूसखोरी आप को कहां तक ले जाएगी? जिस सरकार का नमक खाते हैं उस के प्रति आप का, कोई फर्ज बनता है कि नहीं?’’

यह कहते-कहते वह स्टेनो की तरफ मुखातिब हो गए, ‘‘अरे, मैडम, आप इधर क्या सुनने लगीं, आप रिपोर्ट टाइप कीजिए, आज वह शासन को जानी है.’’

वह सहमी हुई फिर टाइप शुरू करना ही चाहती थी कि बिजली गुल हो गई. छोटे साहब और स्टेनो दोनों ने ही अंधेरे का फायदा उठाते हुए राहत की कुछ सांसें ले डालीं. पर यह आराम बहुत छोटा सा ही निकला. बिजली वालों की गलती से इस बार बिजली तुरंत ही आ गई.

‘‘सर, बात ऐसी नहीं थी, जैसी आप सोच बैठे. बात यह थी…’’ छोटे साहब ने हकलाते हुए अपनी बात पूरी की.

‘‘फिर कैसी बात थी? बोलिए… बोलिए…’’ बड़े साहब ने गुस्से में आंखें मटकाईं. स्टेनो ने अपनी हंसी को रोकने के लिए दांतों से होंठ काट लिए, तब जा कर हंसी पर कंट्रोल कर पाई.

‘‘सर, हम लोग यह सोच रहे थे कि मिठाई की बिक्री तो 1-2 दिन की थी, जबकि फल और सब्जियों की बिक्री रोज होती है, पापी पेट भरने के लिए सब्जियां खरीदा जाना आम जनता की विवशता है. तो क्यों न उस पर…’’

इतना सुनना था कि बड़े साहब की आंखों में चमक आ गई, वह खुशी से उछल पडे़, ‘‘अरे, वाह, मेरे सोने के शेर. यह बात पहले क्यों नहीं बताई? अब आप बैठ जाइए, मेरी एक चाय पी कर ही यहां से जाएंगे,’’ कहतेकहते फिर स्टेनो की तरफ मुड़े, ‘‘मैडम, जो रिपोर्ट आप टाइप कर रही? थीं, उसे फाड़ दीजिए. अब नया डिक्टेशन देना पड़ेगा. ऐसा कीजिए, चाय का आर्डर दीजिए और आप भी हमारे साथ चाय पीएंगी.’’

अगले दिन से शहर में सब्जियों पर कर लगाने की सूचना घोषित कर दी गई और उस के अगले दिन से धड़ाधड़ छापे पड़ने लगे. अमुक के फ्रिज से 9 किलो टमाटर निकले, अमुक के यहां 5 किलो भिंडियां बरामद हुईं. एक महिला 7 किलो शिमलामिर्च के साथ पकड़ी गई?थी, पर 2 किलो के बदले में उसे छोड़ दिया. जब आईजी से इस बाबत बात की गई तो पता चला कि वह सब्जी बेचने वाली थी, उस ने लाइसेंस के लिए केंद्रीय कार्यालय में अरजी दी हुई है. शहर में सब्जी वालों के कोहराम के बावजूद अच्छा राजस्व आने लगा. बड़े साहब फूले नहीं समा रहे थे.

एक दिन बड़े साहब सपरिवार आउटिंग पर थे. औफिस में सूचना भेज दी थी कि कोई पूछे तो मीटिंग में जाने की बात कह दी जाए. छोटे साहब और स्टेनो, दोनों की तो जैसे लाटरी लग गई. उस दिन सिवा चायनाश्ते के कोई काम ही नहीं करना पड़ा. अभी हंसीमजाक शुरू ही हुआ था कि चपरासी ने उन्हें यह कह कर डिस्टर्ब कर दिया कि कोई मिलने आया है.

छोटे साहब ने कहा, ‘‘मैं देख कर आता हूं,’’ बाहर देखा तो एक नौजवान अच्छे सूट और टाई में सलाम मारता मिला. उसे कोई अधिकारी जान छोटे साहब ने अंदर आने का निमंत्रण दे डाला. उस ने हिचकिचाते हुए अपना परिचय दिया, ‘‘मैं छोटा-मोटा सब्जी का आढ़ती हूं. इधर से गुजर रहा था तो सोचा क्यों न सलाम करता चलूं,’’ यह कहते हुए वह स्टेनो की ओर मुखातिब हुआ, ‘‘मैडम, यह 1 किलो सोयामेथी आप के लिए?है और ये 6 गोभी के फूल और 2 गड्डी धनिया, छोटे साहब आप के लिए.’’

छोटे साहब ने इधरउधर देखा और पूछा, ‘‘बड़े साहब के लिए?’’

उस ने दबी जबान से बताया, ‘‘एक पेटी टमाटर उन के घर पहुंचा आया हूं.’’

बड़े साहब की रिपोर्ट शासन से होती हुई जब अमेरिका पहुंची तो वहां के नए राष्ट्रपति ने ऐलान किया कि अगर लोग हिंदुस्तान की सब्जी मार्किट में इनवेस्ट करना शुरू कर दें तो वहां के स्टाक मार्किट में आए भूचाल को समाप्त किया जा सकता है.

एक अखबार ने हिंदुस्तान की फुजूलखर्ची पर अफसोस जताते हुए खबर छापी, ‘‘अगर चंद्रयान के प्रक्षेपण पर खर्च किए धन को सब्जी मार्किट में लगा दिया जाता तो उस के फायदे से लेहमैन जैसी 100 कंपनियां खरीदी जा सकती थीं.’’

जैसे आयकर के छापे पड़ने से बड़े लोगों के सम्मान में चार चांद लगते हैं, बड़ेबड़े घोटालों के संदर्भ में छापे पड़ने से राजनीतिबाज गर्व का अनुभव करते हैं, आपराधिक मुकदमों की संख्या देख कर चुनावी टिकट मिलने की संभावना बढ़ती है वैसे ही सब्जी के संदर्भ में छापे पड़ने से सदियों से त्रस्त हम अल्पआय वालों को भी सम्मान मिल सकता है, यह सोच कर मैं ने भी अपने महल्ले में अफवाह उड़ा दी कि मेरे घर में 5 किलो कद्दू है.

छापे के इंतजार में कई दिन तक कहीं बाहर नहीं निकला. अपनी गली से निकलने वाले हर पुलिस वाले को देख कर ललचाता रहा कि शायद कोई आए. मेरा नाम भी अखबारों में छपे. 15 दिन की प्रतीक्षा के बाद जब मैं यह सोचने को विवश हो चुका था कि कहीं कद्दू को बीपीएल (गरीबी रेखा के नीचे) में तो नहीं रख दिया गया? तभी एक पुलिस वाला आ धमका. मेरी आंखों में चमक आ गई. मैं ने बीवी को बुलाया, ‘‘सुनती हो, इन को कद्दू ला के दिखा दो.’’

बीवी मेरे द्वारा बताए गए दिशा- निर्देशों के अनुसार पूरे तौर पर सजसंवर कर…बड़े ही सलीके से 250 ग्राम कद्दू सामने रखती हुई बोली, ‘‘बाकी 15 दिन में खर्च हो गयाजी.’’

पुलिस वाले ने गौर से देखा कि न तो चायपानी की कोई व्यवस्था थी और न ही मेरी कोई मुट्ठी बंद थी. उस की मुद्रा बता रही थी कि वह मेरी बीवी के साजशृंगार और मेरे व्यवहार, दोनों ही से असंतुष्ट था. वह मेरी तरफ मुखातिब हो कर बोला, ‘‘आप को अफवाह फैलाने के अपराध में दरोगाजी ने थाने पर बुलवाया है.’’

Emotional Story : न भूलने वाली यादें

Emotional Story: ‘‘सुनिए, पुताई वाले को कब बुला रहे हो? जल्दी कर लो, वरना सारे काम एकसाथ सिर पर आ जाएंगे.’’

‘‘करता हूं. आज निमंत्रणपत्र छपने के लिए दे कर आया हूं, रंग वाले के पास जाना नहीं हो पाया.’’

‘‘देखिए, शादी के लिए सिर्फ 1 महीना बचा है. एक बार घर की पुताई हो जाए और घर के सामान सही जगह व्यवस्थित हो जाए तो बहुत सहूलियत होगी.’’

‘‘जानता हूं तुम्हारी परेशानी. कल ही पुताई वाले से बात कर के आऊंगा.’’

‘‘2 दिन बाद बुला ही लीजिए. तब तक मैं घर का सारा कबाड़ निकाल कर रखती हूं जिस से उस का काम भी फटाफट हो जाएगा और घर में थोड़ी जगह भी हो जाएगी.’’

‘‘हां, यह ठीक रहेगा. वैसे भी वह छोटा कमरा बेकार की चीजों से भरा पड़ा है. खाली हो जाएगा तो अच्छा है.’

जब से अविनाश की बेटी सपना की शादी तय हुई थी उन की अपनी पत्नी कंचन से ऐसी बातचीत चलती रहती थी. जैसेजैसे शादी का दिन नजदीक आ रहा था, काम का बोझ और हड़बड़ाहट बढ़ती जा रही थी.

घर की पुताई कई सालों से टलती चली आ रही थी. दीपक और सपना की पढ़ाई का खर्चा, रिश्तेदारी में शादीब्याह, बाबूजी का औपरेशन वगैरह ऐसी कई वजहों से घर की सफाईपुताई नहीं हुई थी. मगर अब इसे टाला नहीं जा सकता था. बेटी की शादी है, दोस्त, रिश्तेदार सभी आएंगे. और तो और लड़के वालों की तरफ से सारे बराती घर देखने जरूर आएंगे. अब कोई बहाना नहीं चलने वाला. घर अच्छी तरह से साफसुथरा करना ही पड़ेगा.

दूसरे ही दिन कंचन ने छोटा कमरा खाली करना शुरू किया. काफी ऐसा सामान था जो कई सालों से इस्तेमाल नहीं हुआ था. बस, घर में जगह घेरे पड़ा था. उस पर पिछले कई सालों से धूल की मोटी परत जमी हुई थी. सारा  कबाड़ एकएक कर के बाहर आने लगा.

‘‘कल ही कबाड़ी को बुलाऊंगी. थक गई इस कबाड़ को संभालतेसंभालते,’’ कमरा खाली करते हुए कंचन बोल पड़ीं.

आंगन में पुरानी चीजों का एक छोटा सा ढेर लग गया. शाम को अविनाश बाहर से लौटे तो उन्हें आंगन में फेंके हुए सामान का ढेर दिखाई दिया. उस में एक पुराना आईना भी था. 5 फुट ऊंचा और करीब 2 फुट चौड़ा. काफी बड़ा, भारीभरकम, शीशम की लकड़ी का मजबूत फ्रेम वाला आईना. अविनाश की नजर उस आईने पर पड़ी. उस में उन्होंने अपनी छवि देखी. धुंधली सी, मकड़ी के जाले में जकड़ी हुई. शीशे को देख कर उन्हें कुछ याद आया. धीरेधीरे यादों पर से धूल की परतें हटती गईं. बहुत सी यादें जेहन में उजागर हुईं. आईने में एक छवि निखर आई…बिलकुल साफ छवि, कंचन की. 29-30 साल पहले की बात है. नईनवेली दुलहन कंचन, हाथों में मेहंदी, लाल रंग की चूडि़यां, घूंघट में शर्मीली सी…अविनाश को अपने शादी के दिन याद आए.

संयुक्त परिवार में बहू बन कर आई कंचन, दिनभर सास, चाची सास, दादी सास, न जाने कितनी सारी सासों से घिरी रहती थी. उन से अगर फुरसत मिलती तो छोटे ननददेवर अपना हक जमाते. अविनाश बेचारा अपनी पत्नी का इंतजार करतेकरते थक जाता. जब कंचन कमरे में लौटती तो बुरी तरह से थक चुकी होती थी. नौजवान अविनाश पत्नी का साथ पाने के लिए तड़पता रह जाता. पत्नी को एक नजर देख पाना भी उस के लिए मुश्किल था. आखिर उसे एक तरकीब सूझी. उन का कमरा रसोईघर से थोड़ी ऊंचाई पर तिरछे कोण में था. अविनाश ने यह बड़ा सा आईना बाजार से खरीदा और अपने कमरे में ऐसे एंगल (कोण) में लगाया कि कमरे में बैठेबैठे रसोई में काम करती अपनी पत्नी को निहार सके.

इसी आईने ने पतिपत्नी के बीच नजदीकियां बढ़ा दीं. वे दोनों दिल से एकदूसरे के और भी करीब आ गए. उन के इंतजार के लमहों का गवाह था यह आईना. इसी आईने के जरिए वे दोनों एकदूसरे की आंखों में झांका करते थे, एकदूसरे के दिल की पुकार समझा करते थे. यही आईना उन की नजर की जबां बोलता रहा. उन की जवानी के हर पल का गवाह था यह आईना.

आंगन में खड़ेखड़े, अपनेआप में खोए से, अविनाश उन दिनों की सैर कर आए. अपनी नौजवानी के दिनों को, यादों में ही, एक बार फिर से जी लिया. अविनाश ने दीपक को बुलाया और वह आईना उठा कर अपने कमरे में करीने से रखवाया. दीपक अचरज में पड़ गया. ऐसा क्या है इस पुराने आईने में? इतना बड़ा, भारी सा, काफी जगह घेरने वाला, कबाड़ उठवा कर पापा ने अपने कमरे में क्यों लगवाया? वह कुछ समझ नहीं पा रहा था. वह अपनी दादी के पास चला गया.

‘‘दादी, पापा ने वह बड़ा सा आईना कबाड़ से उठवा कर अपने कमरे में लगा दिया.’’

‘‘तो क्या हुआ?’’

‘‘दादी, वह कितनी जगह घेरता है? कमरे से बड़ा तो आईना है.’’

दादी अपना मुंह आंचल में छिपाए धीरेधीरे मुसकरा रही थीं. दादी को अपने बेटे की यह तरकीब पता थी. उन्होंने अपने बेटे को आईने में झांकते हुए बहू को निहारते पकड़ा भी था.

दादी की वह नटखट हंसी… हंसतेहंसते शरमाने के पीछे क्या माजरा है, दीपक समझ नहीं सका. पापा भी मुसकरा रहे थे. जाने दो, सोच कर दीपक दादी के कमरे से बाहर निकला.

इतने में मां ने दीपक को आवाज दी. कुछ और सामान बाहर आंगन में रखने के लिए कहा. दीपक ने सारा सामान उठा कर कबाड़ के ढेर में ला पटका, सिवा एक क्रिकेट बैट के. यह वही क्रिकेट बैट था जो 20 साल पहले दादाजी ने उसे खरीदवाया था. वह दादाजी के साथ गांव से शहर आया था. दादाजी का कुछ काम था शहर में, उन के साथ शहर देखने और बाजार घूमने दीपू चल पड़ा था. चलतेचलते दादाजी की चप्पल का अंगूठा टूट गया था. वैसे भी दादाजी कई महीनों से नई चप्पल खरीदने की सोच रहे थे. बाजार घूमतेघूमते दीपू की नजर खिलौने की दुकान पर पड़ी. ऐसी खिलौने वाली दुकान तो उस ने कभी नहीं देखी थी. उस का मन कांच की अलमारी में रखे क्रिकेट के बैट पर आ गया.

उस ने दादाजी से जिद की कि वह बैट उसे चाहिए. दीपू के दादाजी व पिताजी की माली हालत उन दिनों अच्छी नहीं थी. जरूरतें पूरी करना ही मुश्किल होता था. बैट जैसी चीजें तो ऐश में गिनी जाती थीं. दीपू के पास खेल का कोई भी सामान न होने के कारण गली के लड़के उसे अपने साथ खेलने नहीं देते थे. श्याम तो उसे अपने बैट को हाथ लगाने ही नहीं देता था. दीपू मन मसोस कर रह जाता था.

दादाजी इन परिस्थितियों से अच्छी तरह वाकिफ थे. उन से अपने पोते का दिल नहीं तोड़ा गया. उन्होंने दीपू के लिए वह बैट खरीद लिया. बैट काफी महंगा था. चप्पल के लिए पैसे ही नहीं बचे, तो दोनों बसअड्डे के लिए चल पड़े. रास्ते में चप्पल का पट्टा भी टूट गया. सड़क किनारे बैठे मोची के पास चप्पल सिलवाने पहुंचे तो मोची ने कहा, ‘‘दादाजी, यह चप्पल इतनी फट चुकी है कि इस में सिलाई लगने की कोई गुंजाइश नहीं.’’

दादाजी ने चप्पल वहीं फेंक दीं और नंगे पांव ही चल पड़े. घर पहुंचतेपहुंचते उन के तलवों में फफोले पड़ चुके थे. दीपू अपने नए बैट में मस्त था. अपने पोते का गली के बच्चों में अब रोब होगा, इसी सोच से दादाजी के चेहरे पर रौनक थी. पैरों की जलन का शिकवा न था. चेहरे पर जरा सी भी शिकन नहीं थी.

हाथ में बैट लिए दीपक उस दिन को याद कर रहा था. उस की आंखों से आंसू ढलक कर बैट पर टपक पड़े. आज दीपू के दिल ने दादाजी के पैरों की जलन महसूस की जिसे वह अपने आंसुओं से ठंडक पहुंचा रहा था.

तभी, शाम की सैर कर के दादाजी घर लौट आए. उन की नजर उस बैट पर गई जो दीपू ने अपने हाथ में पकड़ रखा था. हंसते हुए उन्होंने पूछा, ‘‘क्यों बेटा दीपू, याद आया बैट का किस्सा?’’

‘‘हां, दादाजी,’’ दीपू बोला. उस की आंखें भर आईं और वह दादाजी के गले लग गया. दादाजी ने देखा कि दीपू की आंखें नम हो गई थीं. दीपू बैट को प्यार से सहलाते, चूमते अपने कमरे में आया और उसे झाड़पोंछ कर कमरे में ऐसे रख दिया मानो वह उस बैट को हमेशा अपने सीने से लगा कर रखना चाहता है. दादाजी अपने कमरे में पहुंचे तो देखा कि दीपू की दादी पलंग पर बैठी हैं और इर्दगिर्द छोटेछोटे बरतनों का भंडार फैला है.

‘‘इधर तो आइए… देखिए, इन्हें देख कर कुछ याद आया?’’ वे बोलीं.

‘‘अरे, ये तुम्हें कहां से मिले?’’

‘‘बहू ने घर का कबाड़ निकाला है न, उस में से मिल गए.’’

अब वे दोनों पासपास बैठ गए. कभी उन छोटेछोटे बरतनों को देखते तो कभी दोनों दबेदबे से मुसकरा देते. फिर वे पुरानी यादों में खो गए.

यह वही पानदान था जो दादी ने अपनी सास से छिपा कर, चुपके से खरीदा था. दादाजी को पान का बड़ा शौक था, मगर उन दिनों पान खाना अच्छी आदत नहीं मानी जाती थी. दादाजी के शौक के लिए दादीजी का जी बड़ा तड़पता था. अपनी सास से छिपा कर उन्होंने पैसे जोड़ने शुरू किए, कुछ दादाजी से मांगे और फिर यह पानदान दादाजी के लिए खरीद लिया. चोरीछिपे घर में लाईं कि कहीं सास देख न लें. बड़ा सुंदर था पानदान. पानदान के अंदर छोटीछोटी डब्बियां लौंग, इलायची, सुपारी आदि रखने के लिए, छोटी सी हंडिया, चूने और कत्थे के लिए, हंडियों में तिल्लीनुमा कांटे और हंडियों के छोटे से ढक्कन. सारे बरतन पीतल के थे. उस के बाद हर रात पान बनता रहा और हर पान के साथ दादादादी के प्यार का रंग गहरा होता गया.

दादाजी जब बूढ़े हो चले और उन के नकली दांत लग गए तो सुपारी खाना मुश्किल हो गया. दादीजी के हाथों में भी पानदान चमकाने की आदत नहीं रही. बहू को पानदान रखने में कोई दिलचस्पी नहीं थी. अत: पानदान स्टोर में डाल दिया गया. आज घर का कबाड़ निकाला तो दादी को यह पानदान मिल गया, दादी ने पानदान उठाया और अपने कमरे में ले आईं. इस बार सास से नहीं अपनी बहू से छिपा कर.

थरथराती हथेलियों से वे पानदान संवार रही थीं. उन छोटी डब्बियों में जो अनकहे भाव छिपे थे, आज फिर से उजागर हो गए. घर के सभी सदस्य रात के समय अपनेअपने कमरों में आराम कर रहे थे. कंचन, अविनाश उसी आईने के सामने एकदूसरे की आंखों में झांक रहे थे. दादादादी पान के डब्बे को देख कर पुरानी बातों को ताजा कर रहे थे. दीपक बैट को सीने से लगाए दादाजी के प्यार को अनुभव कर रहा था जब उन्होंने स्वयं चप्पल न खरीद कर उन पैसों से उसे यह बैट खरीद कर दिया था. नंगे पांव चलने के कारण उन के पांवों में छाले हो गए थे.

सपना भी कबाड़ के ढेर में पड़ा अपने खिलौनों का सैट उठा लाई थी जिस से वह बचपन में घरघर खेला करती थी. यह सैट उसे मां ने दिया था.

छोटा सा चूल्हा, छोटेछोटे बरतन, चम्मच, कलछी, कड़ाही, चिमटा, नन्हा सा चकलाबेलन, प्यारा सा हैंडपंप और उस के साथ एक छोटी सी बालटी. बचपन की यादें ताजा हो गईं. राखी के पैसे जो मामाजी ने मां को दिए थे, उन्हीं से वे सपना के लिए ये खिलौने लाई थीं. तब सपना ने बड़े प्यार से सहलाते हुए सारे खिलौनों को पोटली में बांध लिया था. उस पोटली ने उस का बचपन समेट लिया था. आज उन्हीं खिलौनों को देख कर बचपन की एकएक घटना उस की आंखों के सामने घूमने लगी थी. दीपू भैया से लड़ाई, मां का प्यार और दादादादी का दुलार…

जिंदगी में कुछ यादें ऐसी होती हैं, जिन्हें दोबारा जीने को दिल चाहता है, कुछ पल ऐसे होते हैं जिन में खोने को जी चाहता है. हर कोई अपनी जिंदगी से ऐसे पलों को चुन रहा था. यही पल जिंदगी की भागदौड़ में कहीं छूट गए थे. ऐसे पल, ये यादें जिन चीजों से जुड़ी होती हैं वे चीजें कभी कबाड़ नहीं होतीं.

Evening Snacks Recipe: चाय के साथ करारे और चटपटे स्नैक्स

Evening Snacks Recipe: छोलिया पकौड़े

सामग्री

– 200 ग्राम छोलिया

– 100 ग्राम लहसुन की पत्ती कटी

– 3/4 कप चावल का आटा

– 1 छोटा चम्मच अदरकलहसुन का पेस्ट

– 1 छोटा चम्मच हरी मिर्चों का पेस्ट

– 1 छोटा चम्मच गरममसाला

– तलने के लिए पर्याप्त तेल

– नमक स्वादानुसार.

विधि

छोलिया धो कर दरदरी ग्राइंड कर लें. अब एक बाउल में छोलिया मिश्रण के साथ लहसुन की पत्तियां, चावल का आटा, अदरकलहसुन का पेस्ट, हरीमिर्चों का पेस्ट, नमक व गरममसाला पाउडर मिक्स कर फ्रिटर्स बनाएं और गरम तेल में तल कर परोसें.

दाल पकौड़े

सामग्री

– 1 कप चना दाल

– 1/2 कप चावल का आटा

– 1/2 छोटा चम्मच अजवाइन

– 1 चुटकी हींग

– तेल तलने के लिए

– 1/2 छोटा चम्मच हलदी

–  नमक स्वादानुसार.

विधि

चने की दाल को 1 कटोरी पानी के साथ उबाल लें. बचा पानी निथार लें. दाल में चावल का आटा, नमक, हलदी, हींग और अजवाइन डालें. 1 बड़ा चम्मच मोयन मिला कर आटा गूंध लें. आटा थोड़ा कड़ा होना चाहिए. आवश्यकता हो तो थोड़ा पानी मिला लें. इसे 10-15 मिनट ढक कर रख दें.

अब इस आटे की छोटीछोटी लोइयां बना कर रोटी जैसा बेलें. थोड़ा मोटा रखें. अब चाकू की सहायता से रोटी की लंबी पट्टियां काट लें. इन्हें मनचाहा आकार दे कर तलें और चाय के साथ परोसें.

 

साबूदाना क्यूब्स

सामग्री

-1 कप भीगा साबूदाना

-1/4 कप चावल का आटा

– 1 बड़ा चम्मच कसी गाजर

– 1 बड़ा चम्मच भूनी व कुटी मूंगफली

– 1 बड़ा चम्मच प्याज बारीक कटा

– 1 बड़ा चम्मच उबले मटर

– 1 छोटा चम्मच सरसों

– थोड़ा सी धनियापत्ती कटी

– तलने के लिए तेल

– थोड़े से करीपत्ते

– 1 छोटी हरीमिर्च

– नमक स्वादानुसार.

विधि

एक पैन में 1 चम्मच तेल गरम कर उस में सरसों चटकाएं. थोड़े से करीपत्ते डाल कर भूनें. 1 कप पानी डालें और उबाल आने तक पकाएं. इस उबलते पानी में चावल का आटा मिलाएं, साथ ही थोड़ा सा नमक मिला दें. इसे लगातार चलाते हुए गुंधे आटे जैसा हो जाने तक पकाएं. भीगे साबूदाने से पानी अच्छी तरह से निचोड़ लें. सारी सब्जी, साबूदाना व नमक मिला कर अच्छी तरह मिक्स कर लें. 1 इंच गहरे केकटिन या थाली में भीतर की तरफ अच्छी तरह तेल लगा कर चिकना कर लें.

इस में तैयार मिश्रण डाल कर अच्छी तरह से दबा कर सैट करें. इसे कुछ देर के लिए फ्रिज में रख दें. फिर निकाल कर टिन को पलट कर जमा हुआ मिश्रण निकाल लें. यह केक जैसा जमा हुआ होगा. इस के चौकोर टुकड़े काटें और गरम तेल में सुनहरा होने तक तल कर गरमगरम परोसें.

Cleaning Tips: फलों और सब्ज‍ियों को साफ करने के ये हैं तरीके

Cleaning Tips: जिन फलों और सब्ज‍ियों को हम सेहत बनाने के लिए खाते हैं उन्हें कई प्रकार की कृत्रिम खादों और कीट-नाशकों का प्रयोग करके उगाया जाता है. फसलों को नुकसान से बचाने के लिए किसान खेतों में कीट-नाशकों का छिड़काव करते हैं.

खेत से जब ये फल और सब्ज‍ियां बाजार पहुंचती हैं तो इनमें कीट-नाशकों को कुछ अंश चिपके ही रह जाते हैं. ये हमारे शरीर के लिए नुकसानदायक होता है. ये कीट-नाशक शरीर में जमा होने लगता है और शरीर में विषाक्त पदार्थ की मात्रा बढ़ती जाती है. इसके साथ ही हमारा इम्यून सिस्टम भी खराब हो जाता है.

ऐसे में सब्ज‍ियों की सफाई करना बहुत जरूरी हो जाता है. पर कुछ लोग गलत तरीके से सब्ज‍ियों की सफाई करते हैं जिसके चलते सब्जि‍यों और फलों के पोषक तत्व समाप्त हो जाते हैं. इन तरीकों से फलों और सब्ज‍ियों को साफ करने से एक ओर जहां आप विभिन्न प्रकार की बीमारियों से बचे रहते हैं वहीं उनके पोषक तत्व भी नष्ट नहीं होते हैं.

  1. सिरके से करें सब्जी साफ

सिरका एक ऐसी चीज है सब्ज‍ियों और फलों में मौजूद कीटों को तो साफ करते ही है साथ ही कीट-नाशक को भी बेहतर तरीके से हटा देता है. एक बड़े बर्तन में पानी लेकर उसमें कुछ मात्रा में सिरका मिला लें. फलों और सब्ज‍ियों को उसमें डुबोकर रख दें. कुछ देर बाद उन्हें हल्के हाथों से मलकर बाहर निकाल लें. उसके बाद एक साफ बर्तन में उन्हें रखकर इस्तेमाल में लाएं.

2. बेकिंग सोडा

सिरके के साथ ही बेकिंग सोडा से भी सब्ज‍ियों और फलों को साफ करना एक अच्छा उपाय है. पांच गिलास पानी में चार चम्मच बेकिंग सोडा डालकर फलों और सब्जियों को 15 मिनट के लिए इस मिश्रण में डुबो दें. इससे उनकी बाहरी त्वचा पर मौजूद सभी प्रकार की अशुद्ध‍ियां दूर हो जाएंगी.

3. हल्दी के पानी से भी कर सकते हैं साफ

बेकिंग पाउडर और सिरके के अलावा आप हल्दी के घोल से भी फलों और सब्ज‍ियों को साफ कर सकते हैं. हल्दी में एंटी-बैक्टीरियल गुण पाया जाता है जिसकी वजह से हल्दी के घोल से फलों और सब्ज‍ियों को धोना बहुत ही अच्छा माना जाता है. इसके अलावा आप चाहें तो नमक के घोल से भी फलों और सब्ज‍ियों को साफ कर सकते हैं. cleaning tips

How to Maintain Weight: फिगर भी बर्गर भी…

How to Maintain Weight: ज्यादा खाने से मोटापा बढ़ता है और एक्सरसाइज करने व सेहतमंद भोजन से अच्छी फिगर बनती है, यह ठीक है पर आखिर ये फिगर और फूड का संबंध इतना अच्छा नहीं है जितना हम सभी चाहते हैं. फिगर भी बनानी है और बर्गर दिन में 3 बार खाना भी है. उसके बाद पछताना भी है लेकिन खाना नहीं छोड़ना.

इस पर या तो अपने खाने की आदतों में सुधार करने की जरूरत है या फिगर पाना भूलने की. अब फिगर पाने की चाह को मारना आसान नहीं है. आखिर होगा भी कैसे, जब टीवी देखो तो एक से एक जीरो साइज फिगर की अभिनेत्रियां नजर आती हैं. इंस्टाग्राम खोलो तो सुडौल शरीर की मौडल. फैशन में ड्रैसेज ऐसी बनने लगी हैं जिन में यदि पेट एक इंच भी बाहर दिख जाए तो ड्रैस का लुक खराब हो जाता है और पैर जरा मोटे हों तो शौर्ट्स पहनना बेकार.

1 अपनी पसंद के डिजाइन वाले कपड़ों का साइज न आना

कितनी बार तो होता यों है कि अपनी पसंद के डिजाइन वाले कपड़ों का साइज इतना ज्यादा छोटा होता है कि जीरो साइज से एक साइज ज्यादा वाला भी उन्हें नहीं पहन सकता. सो, फिगर को भूल पाना तो नामुमकिन ही है क्योंकि फिगर भूल कर आप आगे बढ़ने की कोशिश करें भी तो आप के आसपास वाले आप के रास्ते में रोड़े बन कर खड़े हो जाएंगे.

सेहत भी शारीरिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति की ही अच्छी होती है तो फिगर में रहने की जरूरत भी है. लेकिन फिगर की जो समझ हमें दी जा रही है, असल में वह ठीक नहीं है. ऐसे भी तरीके हैं जिन से आप फिगर में बने भी रह सकती हैं और आप को अपने बर्गर का त्याग भी नहीं करना पड़ेगा.

2 फिगर की गलत परिभाषा से निकलना

beauty

हम सभी के लिए सही फिगर वह है जिसे हम फिल्मों और अखबारों में आए दिन देखते हैं. वर्तमान समय में आप जितनी पतली दिख सकती हैं उतनी दिखें क्योंकि अच्छी फिगर की परिभाषा ही यह बन गई है, पतला दिखना. पेट अंदर होना चाहिए, कमर पतली होनी चाहिए, वक्ष और नितंब का आकार जितना ज्यादा बाहर की तरफ हो उतना अच्छा और न भी हो तब भी ठीक है. बस, पतली दिखनी चाहिए.

यह ज्यादातर लड़कियों में है. पर ऐसी फिगर को पाने के लिए वह अपने खाने को लेकर इतनी गंभीर हो जाती हैं कि आसानी से ईटिंग डिस्और्डर की चपेट में आ जाती हैं.

3 ईटिंग डिस्और्डर का हो सकते हैं शिकार

इस ईटिंग डिस्और्डर में एक डिस्और्डर है बुलिमिया नर्वोसा जिसे हम बुलिमिया के नाम से भी जानते हैं. बुलिमिया की सही परिभाषा देते हुए बौलीवुड अभिनेत्री रिचा चड्ढा ने बताया कि बौलीवुड में आ कर उन्होंने अपने आत्मविश्वास को किस तरह खो दिया और कैसे एक सही फिगर की चाह ने उन्हें बुलिमिया की गोद में ढकेल दिया. वे बताती हैं, ‘‘मुझे कहा गया कि मुझे वजन बढ़ाना चाहिए, फिर कहा गया कि वजन घटाना चाहिए, अपनी नाक ठीक, होंठ मोटे, फैट घटाना, अपने बाल बढ़ाना या काट लेना, हाईलाइट, फेक आईलैश एक्सटैंशन कराना चाहिए और बड़े नितंब के लिए स्क्वैट करना चाहिए.’’

उन्होंने बताया कि किस तरह अपने फिगर को सही करने के लिए उन्होंने खाना खाते ही उलटी कर देना और बारबार खाना शुरू कर दिया, वह कुछ भी खातीं तो यह सोच कर परेशान हो जातीं कि कहीं उन का वजन न बढ़ जाए. वे बुलिमिया की शिकार हो गईं. साथ ही, डिप्रैशन, एंग्जायटी और इनसोमिनिया की भी.

रिचा की तरह ऐसी कितनी ही लड़कियां हैं जो केवल इसीलिए अपनी फिगर को ले कर फिक्रमंद रहती हैं. जबकि यूएस नैशनल रिसर्च कौंसिल की एक स्टडी के अनुसार, स्वास्थ्य का असली मतलब शरीर के साथ मानसिक रूप से भी स्वस्थ होना है. सही फिगर के रूप में आवरग्लास और पीअर शेप को सही बताया गया है. यानी, जीरो साइज होना ही स्वस्थ और सही फिगर में होना नहीं है.

किसी भी तरह से फिगर की प्रवृत्ति को किसी लड़की पर थोप कर उसे बौडीशेम करना सही नहीं है, लड़की चाहे किसी भी शेप की हो, उस का स्वस्थ होना आवश्यक है. स्वस्थ होने के लिए सही खानपान और व्यायाम करना ही पर्याप्त है. पेट अंदर होना जरूरी इसलिए है क्योंकि इस से सिद्ध होता है कि शरीर में कोलैस्ट्रौल और वसा की मात्रा सही है और वह ओबेसिटी, ब्लडप्रैशर और मधुमेह का कारण नहीं बनेगी.

4 खानपान की आदतों में बदलाव जरूरी

reasons for white hairs in young age

लड़कियों में अकसर फिगर को ले कर चिंता रहती है लेकिन मन खाने की ओर भी लगा रहता है. इस के परिणामस्वरूप ग्लानि में ही वे रोज वसा और अत्यधिक कार्बोहाइड्रेट से युक्त खाद्यपदार्थों का सेवन करने लगती हैं. इसी तरह फूड मैमोरी के कारण वे रोज ही अपने स्वास्थ्य में बाधा उत्पन्न करती हैं. फूड मैमोरी का अर्थ है, मान लीजिए आप रोज शाम 4 बजे चाय पीती हैं तो इस से होता यह है कि आप के दिमाग में यह बात बैठ जाती है कि आप को शाम 4 बजे चाय पीनी है.

4 बजते ही आप को चाय की तलब लगनी शुरू हो जाती है. इसी तरह यदि आप रोज रात में खाने के बाद भी चौकलेट या चिप्स खाने के लिए आतुर होती हैं तो यह सब आप की फूड मैमोरी का कियाधरा है. इसे खत्म करने के लिए आप को लगातार कुछ दिन अपनी असमय खाने की आदतों को बंद करना होगा.

इसी तरह एक और खाने से जुड़ी आदत है जिसे नौन हंगरी ईटिंग कहा जाता है. नौन हंगरी ईटिंग में लड़कियां अपनी क्रेविंग्स के चलते कुछ न कुछ खाती रहती हैं. यह क्रेविंग्स भूख के कारण नहीं होती बल्कि खाने के स्वाद के लालच की होती है. अचानक से केक, चौकलेट या कुछ चटपटा खाने का मन करना फूड क्रेविंग है.

बिना भूख के खाने से आप के पाचनतंत्र पर असर पड़ता है जिस से शरीर में फैट जमा होने लगता है. इस नौन हंगरी ईटिंग से बचने के लिए अपनी क्रेविंग्स को दूर करें लेकिन केवल टेस्ट करें और बाकी भूख लगने पर ही खाएं.

5 कोशिश करें कि हैल्दी फूड खाएं …

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गिल्ट ईटिंग भी खाने का एक प्रकार है जिसमें लड़कियां अच्छे फिगर की चाह के साथ-साथ खाने की चाह भी कम नहीं करतीं और परिणामस्वरूप गिल्ट ईटिंग करने लगती हैं. मतलब जंकफूड खाती भी हैं और पछताती भी हैं. इस से शारीरिक रूप से अस्वस्थ होने के साथसाथ वे अपना मानसिक स्वास्थ्य भी बिगाड़ लेती हैं.

जो सैलिब्रिटीज जैसा फिगर पाना चाहती हैं उन्हें उस फिगर को पाने के लिए साधारण खाने का त्याग करना पड़ता है. वे अपने घर का खाना तक नहीं खा पातीं और इतनी स्ट्रिक्ट डाइट फौलो करती हैं कि उन का मानसिक स्वास्थ्य भी उस से अत्यधिक प्रभावित होता है. आम लड़कियों व महिलाओं का ऐसी फिगर को पाने की चाह रखने से बेहतर स्वस्थ शरीर की चाह रखना ज्यादा जरूरी होना चाहिए.

फिगर और बर्गर में से एक को चुनने के बजाय आप दोनों चुन सकती हैं. बस, करना यह है कि खाने की बाकी सभी बुरी आदतों को हटा दिया जाए और हफ्ते में एक बार खुशी से थोड़ाबहुत खा लिया जाए. व्यायाम करना बेहद जरूरी है पर उतना जितना आवश्यक हो.

फिगर की धारणा जो इस समय सोसाइटी में मौजूद है वह गलत है. इस से प्रभावित हो कर अपनी सेहत से खिलवाड़ करने के बजाय एक्सपर्ट से सलाह लें. लड़कियों का बड़ी मात्रा में परफैक्ट फिगर के पीछे भागना सचमुच ही चिंता का विषय है, जिस पर ध्यान दिया जाना जरूरी है.

How to Maintain Weight

Styling Tips: दोस्तों के बीच कूल व स्टाइलिश दिखने के लिए मैं क्या करुं?

Styling Tips:
सवाल-

ऐसा क्या करूं कि कालेज या दोस्तों के बीच कूल व स्टाइलिश दिखूं?

जवाब-

Styling Tips: कूल दिखने के लिए आप कालेज में नैचुरल मेकअप ही करें. इस के लिए क्लीजिंग, टोनिंग, मौइस्चराइजिंग के अलावा सुबह और दोपहर सनस्क्रीन जरूर लगाएं. रात में चेहरे को साफ करना न भूलें. स्किन टोन और स्किन टाइप के अनुसार मेकअप करें. लुक को नैचुरल या न्यूड रखें.

आईलाइनर लगाएं. साथ ही ग्लौसी लिप कलर ट्रैंड में है. डे लुक के लिए लाइट और ईवनिंग लुक में डार्क शेड लगाएं. होंठ ज्यादा सूख रहे हैं तो वैसलीन लगाएं. नैक पर डिजाइन वाले आउटफिट्स आजकल ट्रैंड में हैं. ये आप को सिंपल और स्टाइलिश लुक देने के साथसाथ ज्वैलरी कैरी करने के झंझट से भी बचाएंगे. शौर्ट जंपर्स या फ्लोरल प्रिंट की ड्रैस कालेज के लिए अच्छा औप्शन है. लाइट ब्लू और ब्लैक जींस पर हर तरह के रंग खिलते हैं, इसलिए इन्हें अपने वार्डरोब में हमेशा रखें.

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गरमियों में हर किसी को घूमना पसंद है. आप वौटर पार्क और बीच यानी समुद्र के पास घूमना या ट्रैवल करना पसंद करते होंगे, जिसके लिए आप कम्फरटेबल कपड़े पहनना पसंद करते हैं और आप शौर्टस का फेवरेट हैं. तो आज हम आपको शौर्टस के कुछ स्टाइलिश कौम्बीनेशन के बारे में बताएंगे, जिससे आपको एक स्टाइलिश लुक के साथ-साथ कम्फर्ट भी मिलेगा.

1. रफ कट डेनिम शौर्टस के साथ शर्ट का कौम्बिनेशन

अगर आप कहीं फौर्मल या मार्केट घूमने का प्लान बना रहीं हैं तो ये कौम्बिनेशन आपके लिए बेस्ट होगा. यह ड्रैसअप आपके लिए गरमी के लिए सबसे कम्फरटेबल आउटफिट साबित होगा.

Hair Removal At Home: अपर लिप्स के बाल हटाने के 6 होममेड टिप्स

Hair Removal At Home: होठों के ऊपर मौजूद बाल जिसे आमतौर पर अपर लिप हेयर कहते हैं, किसी भी लड़की के लिए काफी शर्मिंदगी भरे होते हैं. इससे आपकी पर्सनालिटी पर भी असर पड़ता है. और तो और इससे बचने के लिए हर महीने पार्लर के चक्कर लगाने के साथ-साथ इसे हटाते समय काफी दर्द भी झेलना पड़ता है.

लेकिन अब आप इसे आसानी से घर पर हटा सकती हैं और वो भी बिना किसी दर्द के. बस अपनाएं ये कुछ घरेलू तरीके और अपर लिप्स के बालों को  खत्म करें.

दही और चावल का आटा

एक कटोरी में 1 बड़ा चम्मच दही और 1 बड़ा चम्मच चावल का आटा मिलाकर गाढ़ा पेस्ट बना लें. इसे अपने अपर लिप्स पर लगाएं और जब ये सूख जाए तो रगड़कर इसे हटा लें. एक कटोरी में 1 बड़ा चम्मच दही में 1 बड़ा चम्मच चावल का आटा मिलाकर गाढ़ा पेस्ट बना लें. इसे अपने अपर लिप्स पर लगाएं और जब ये सूख जाए तो रगड़कर इसे हटा लें.

चीनी और नींबू

किचेन में आसानी से मिलने वाले इन दो इंग्रीडिएंट्स की मदद से आप अपर लिप्स के बालों से झटपट छुटकारा पा सकती हैं. जहां चीनी एक स्क्रब की तरह काम करता है वहीं, नींबू एक ब्लीचिंग एजेंट होता है. एक कोटरी में दो नींबू का रस और चीनी अच्छी तरह मिलाकर पेस्ट तैयार कर लें. इसे अब अपने अपर लिप्स पर लगाएं और 10-15 मिनट बाद रगड़कर हटा लें और फिर पानी से धो लें.

अंडा, बेसन और चीनी

एक कटोरी में 1 बड़ा चम्मच बेसन, थोड़ी चीनी और अंडे का सफेद हिस्सा तब तक मिलाएं जब तक एक चिपचिपा सा पेस्ट तैयार ना हो जाए. इसे अपर लिप्स पर लगाएं. जब ये सूख जाए तो ऊपर के डायरेक्शन में रगड़ते हुए हटा लें. बेहतर रिजल्ट के लिए ऐसा हफ्ते में दो बार करें.

दूध और हल्दी

फेशियल हेयर के ग्रोथ को कम करने में हल्दी काफी असरदार होती है. 1 बड़ा चम्मच दूध और 1 बड़ा चम्मच हल्दी मिलाकर पेस्ट तैयार करें और अपर लिप्स पर लगाएं. जब ये सूख जाए तो हल्के हाथों से रगड़ते हुए इसे हटा लें.

दही, हल्दी और बेसन

एक कटोरी में समान मात्रा में दही, हल्दी और बेसन मिलाकर मोटा पेस्ट तैयार करें. इसे अपने अपर लिप्स पर लगाएं और 15-20 मिनट बाद हल्के हाथ से रगड़कर हटा लें और फिर पानी से इसे धो लें.

नींबू और शहद

एक कटोरी में 1 बड़ा चम्मच शहद और 2 बड़े चम्मच नींबू का रस मिलाकर पेस्ट बनाएं और अपर लिप्स पर लगाएं. जब ये सूख जाए तो रगड़कर हटा लें और फिर इसे पानी से धो लें. ऐसा लगातार चार दिन तक हर रोज़ करें. धीरे-धीरे अपर लिप्स के बाल कम हो जाएंगे.

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