Romantic Story in Hindi: मौसमें गुल भी

Romantic Story in Hindi: ‘‘खालिद साहब, एक गलती तो मैं ने आप से शादी कर के की ही है, लेकिन अब आप के साथ जीवनभर सिसकसिसक कर दूसरी गलती नहीं करूंगी. बस, आप मुझे तलाक दे दें,’’ गजल बोलती रही और खालिद सुनता रहा.

थोड़ी देर बाद खालिद ने संजीदगी से समझाते हुए कहा, ‘‘गजल, तुम ठीक कह रही हो, तुम ने मुझ से शादी कर के बहुत बड़ी गलती की है. तुम्हें पहले ही सोचना चाहिए था कि मैं किसी भी तरह तुम्हारे काबिल न था. लेकिन अब जब एक गलती हो चुकी है तो तलाक ले कर दूसरी गलती मत करो. जानती हो, एक तलाकशुदा औरत की समाज में क्या हैसियत होती है?’’ खालिद ने चुभते हुए शब्दों में कहा, ‘‘गजल, उस औरत की हैसियत नाली में गिरी उस चवन्नी जैसी होती है, जो चमकतीदमकती अपनी कीमत तो रखती है, मगर उस में ‘पाकीजगी’ का वजूद नहीं होता.’’

‘‘बस या कुछ और?’’ गजल ने यों कहा जैसे खालिद ने उस के लिए नहीं किसी और के लिए यह सब कहा हो.

‘‘गजल,’’ खालिद ने हैरत और बेबसी से उस की तरफ देखा. गजल उस की तरफ अनजान नजरों से देख रही थी. जिन आंखों में कभी प्यार के दीप जलते थे, आज वे किसी गैर की लग रही थीं.

‘‘गजल, तुम्हें कुछ एहसास है कि तुम क्या चाहती हो? तुम जो कदम बिना सोचेसमझे उठाने जा रही हो उस से तुम्हारी जिंदगी बरबाद हो जाएगी.’’

‘‘मैं अच्छी तरह से जानती हूं कि मैं कौन सा कदम उठाने जा रही हूं और मेरे लिए क्या सही और क्या गलत है. मैं अब इस घुटन भरे माहौल में एक पल भी नहीं रह सकती. रोटी, कपड़ा और एक छत के सिवा तुम ने मुझे दिया ही क्या है? जब से हमारी शादी हुई है, कभी एक प्यार भरा शब्द भी तुम्हारे लबों से नहीं फूटा. शादी से पहले अगर मुझे मालूम होता कि तुम इस तरह बदल जाओगे तो हरगिज ऐसी भूल न करती.’’

‘‘क्या?’’ हैरत से खालिद का मुंह खुला का खुला रह गया, ‘‘तुम्हारे खयाल में यह मेहनत, दिनरात की माथापच्ची मैं किसी और के लिए करता हूं? यकीन मानो, यह सब मैं तुम्हारी खुशी की खातिर ही करता हूं, वरना दालरोटी तो पहले भी आराम से चलती थी. रही बात शादी से पहले की, तो शादी से पहले तुम मेरी महबूबा थीं, पर अब तुम मेरी जिंदगी का एक हिस्सा हो, मेरी बीवी हो. मेरे ऊपर तुम्हारा अधिकार है, मेरा सबकुछ तुम्हारा है और तुम पर मेरा पूरा अधिकार है.’’

‘‘लेकिन औरत सिर्फ एक मशीन से मुहब्बत नहीं कर सकती, उसे जज्बात से भरपूर जिंदगी की जरूरत होती है,’’ गजल ने गुस्से से कहा.

‘‘तो यह तुम्हारा आखिरी फैसला है?’’ खालिद ने दुख भरे लहजे में कहा.

‘‘हां.’’

‘‘ठीक है, फैसले का हक तुम्हें जरूर हासिल है, लेकिन मेरी एक बात मानना चाहो तो मान लो वरना तुम्हारी मरजी. शायद अभी भी तुम पर मेरा इतना हक तो बाकी होगा ही कि मैं तुम से कुछ गुजारिश कर सकूं.

‘‘तुम्हें तलाक चाहिए, इसलिए कि मैं तुम्हें जिंदगी से भरपूर व्यक्ति नजर नहीं आता. तुम्हारी हर शाम क्लबों और होटलों के बजाय घर की चारदीवारी में गुजरती है. तुम्हारी नजर में घर में रहने वाली हर औरत बांदी होती है, जबकि ऐसा हरगिज नहीं है. वैसे अगर तुम्हारा यही खयाल है तो फिर मैं कर ही क्या सकता हूं. मगर मेरी तुम से हाथ जोड़ कर विनती है कि तुम तलाक लेने से पहले कुछ दिन के लिए मुझ से अलग हो जाओ और यह महसूस करो कि तुम मुझ से तलाक ले चुकी हो, भले ही दुनिया वालों पर भी यह जाहिर कर दो.’’

कुछ क्षण रुक कर खालिद ने आगे कहा, ‘‘सिर्फ चंद माह मुझ से अलग रह कर जहां दिल चाहे रहो. जहां दिल चाहे आओजाओ. जिस से तुम्हारा मन करे मिलोजुलो और फिर लोगों का रवैया देखो. उन की निगाहों की पाकीजगी को परखो. अगर तुम्हें कहीं मनचाही पनाहगाह मिल जाए, एतबार की छांव और जिंदगी की सचाइयां मिल जाएं तो मैं अपनी हार मान कर तुम्हें आजाद कर दूंगा.

‘‘वैसे आजाद तो तुम अभी भी हो. मगर गजल, मैं तुम्हें भटकने के लिए दुनिया की भीड़ में अकेला कैसे छोड़ दूं. तलाक मांग लेना बहुत आसान है, मगर सिर्फ मुंह से तीन शब्द कह देना ही तलाक नहीं है. तलाक के भी अपने नियम, कानून होते हैं और इस तरह छोटीछोटी बातों पर न तो तलाक मांगे जाते हैं और न ही दिए जाते हैं.’’

गजल खालिद द्वारा कही बातों पर गहराई से मनन करती रही. उसे लगा कि खालिद का विचार ऐसा बुरा भी नहीं है. वह आजादी से तजरबे करेगी. वह खालिद की ओर देखते हुए बोली, ‘‘ठीक है खालिद, मैं जानती हूं कि हमें हर हाल में अलग होना है. मगर मैं जातेजाते तुम्हारा दिल तोड़ना नहीं चाहती, लेकिन मेरा तलाक वाला फैसला आज भी अटल है और कल भी रहेगा. फिलहाल, मैं तुम से बिना तलाक लिए अलग हो रही हूं.’’

‘‘ठीक है,’’ खालिद ने डूबते मन से कहा, ‘‘तुम जाना चाहती हो तो जाओ. अपना सामान भी लेती जाओ, मुझे कोई आपत्ति नहीं है. जितना रुपयापैसा भी चाहिए, ले जाओ.’’

‘‘शुक्रिया, मेरे वालिद मेरा खर्च उठा सकते हैं,’’ गजल ने अकड़ कर कहा और खालिद के पास से उठ गई.

खालिद खामोशी से गजल को सामान समेटते हुए देखता रहा.

शीघ्र ही गजल ने सूटकेस उठाते हुए कहा, ‘‘अच्छा, मैं चलती हूं.’’

‘‘गजल, तुम सचमुच जा रही हो?’’ खालिद ने दर्द भरे स्वर में पूछा.

‘‘हां…’’ गजल ने सपाट लहजे में कहा और बाहर निकल गई.

उस के जाते ही खालिद के दिलोदिमाग में हलचल सी मच गई. उस का दिल चाहा कि दौड़ कर गजल का रास्ता रोक ले, उसे अपने प्यार का वास्ता दे कर घर में रहने के लिए विवश कर दे. उस ने गेट के बाहर झांका, लेकिन गजल उस की आंखों से ओझल हो चुकी थी. उसे घर काटने को दौड़ने लगा. वहां की प्रत्येक चीज से दहशत सी होने लगी. वह आराम से कुरसी पर अधलेटा सिगरेट पर सिगरेट फूंकता रहा.

उधर जैसे ही गजल मायके पहुंची, उस के वालिद ने चौंक कर कहा, ‘‘अरे बेटी तुम…क्या इस बार तीनचार दिन तक रहोगी?’’ उन की नजर सूटकेस की तरफ गई.

‘‘जी हां, मेरा अब हमेशा के लिए यहां रहने का इरादा है,’’ उस ने लापरवाही से कंधे उचकाए.

‘‘मैं कुछ समझा नहीं.’’

‘‘ओह, आप तो बस पीछे ही पड़ जाते हैं. दरअसल, मैं ने आप की बात न मान कर अपनी मरजी से खालिद से शादी की थी, लेकिन यह मेरी बहुत बड़ी भूल थी, अब मैं ने खालिद से अलग होने का फैसला कर लिया है. बहुत जल्दी तलाक भी हो जाएगा.’’

‘‘क्या तुम तलाक लोगी?’’

‘‘जी हां, अब मैं घुटघुट कर नहीं जी सकती. काश, मैं ने पहले ही आप की बात मान ली होती. खैर, तब न सही अब सही.’’

‘‘देखो गजल, जिंदगी के कुछ फैसले जल्दबाजी में नहीं किए जाते. एक भूल तुम ने पहले की थी और अब जिंदगी का इतना बड़ा फैसला भी जल्दबाजी में करने जा रही हो. ऐसा न हो कि तुम्हें सारी जिंदगी रोना पड़े और तुम्हारे आंसू पोंछने वाला भी कोई न हो.

‘‘देखो बेटी, मैं ने खालिद से शादी के लिए तुम्हें क्यों मना किया था, शायद तुम उस हद तक कभी सोच नहीं सकती. दरअसल, हर मांबाप अपने बच्चे की आदत से अच्छी तरह वाकिफ होते हैं. वे बखूबी जानते हैं कि उन का बच्चा किस माहौल में, किस तरह और कब तक सामंजस्य बैठा सकता है.

‘‘मैं जानता था कि तुम एक आजाद परिंदे की मानिंद हो, तुम्हारे और खालिद के खयालात में जमीनआसमान का फर्क है. तुम्हारा नजरिया ‘दुनिया मेरी मुट्ठी में’ जैसा है, जबकि खालिद समाज के साथ उस की ऊंचनीच देख कर फूंकफूंक कर कदम रखने वाला है. मैं जानता था कि जब जज्बात का नशा उतर जाएगा, तब तुम पछताओगी. वैसे खालिद में कोई कमी नहीं थी. लेकिन मैं नहीं चाहता था कि तुम्हें शादी के बाद पछताना पड़े.’’

‘‘ओह, आप बिना वजह मुझे परेशान कर रहे हैं. मैं ने अपना फैसला आप को सुना दिया है और यही मेरे हक में सही है. पर अभी मैं रिहर्सल पर हूं, मैं अभी कुछ माह तक तलाक नहीं लूंगी. बस, उस से अलग रह कर खुशी के लिए तजरबे करूंगी.’’

‘‘तो गोया तुम्हारे दिल में उस की चाहत है, पर तुम अपने वालिद की दौलत के नशे में चूर हो.’’

‘‘अब्बाजान, आप भी कैसी दकियानूसी बातें करने लगे हैं. मुझे बोर मत कीजिए. अब मैं आजादी से चैन की सांस लूंगी.’’

दिन गुजरने लगे. घर में रोज गजल के दोस्तों की महफिलें जमतीं, उस ने भी क्लब जाना शुरू कर दिया था. भैया और भाभी अब उस से खिंचेखिंचे से रहने लगे थे. उन के प्यार में अब पहले जैसी गर्मजोशी नहीं थी, लेकिन गजल ने इन बातों पर खास ध्यान नहीं दिया. वह दोनों हाथों से दौलत लुटा रही थी. अपने पुरुष मित्रों को अपने आसपास देख कर वह खुशी से फूली न समाती.

रात देर गए जब गजल घर लौटती तो कभीकभी जेहन के दरीचों में खालिद का वजूद अठखेलियां करने लगता. वह अकसर बगैर तकिए के सो जाती. सुबह उसे ध्यान आता कि खालिद हर रोज उस के सिर के नीचे तकिया रख देते थे.

एक दिन गजल अपनी जिगरी दोस्त निशा के घर गई. थोड़ी देर बाद एकांत में वह उस से बोली, ‘‘यह क्या, हमेशा बांदियों की तरह अपने पति के इर्दगिर्द मंडराती रहती हो?’’

‘‘यही तो जिंदगी की असली खुशी है, गजल,’’ निशा ने मुसकराते हुए कहा.

‘‘ऊंह, यह असली खुशी तुम्हीं को मुबारक हो.’’

जब वह लौटने लगी तो निशा ने कहा, ‘‘हम चारपांच सहेलियां अपनेअपने परिवार के साथ पिकनिक पर जा रही हैं… जूही, शैल, कल्पना, गजला आदि चल रही हैं. तुम भी चलो न…कल सुबह चलेंगे.’’

‘‘हांहां, जरूर जाऊंगी,’’ गजल ने मुसकराते हुए कहा.

पिकनिक पर गजल अपनेआप को बहुत अकेला महसूस कर रही थी. उस की सहेलियां अपने पति और बच्चों के साथ हंसखेल रही थीं. उसे पहली बार खालिद की कमी का एहसास हुआ. उस की सहेलियों के शौहर उसे अजीब नजरों से देख रहे थे, जैसे वह कोई अजूबा हो.

वापसी पर गजल बहुत खामोश थी. घर आ कर भी वह बुझे मन से अपने कमरे में पड़ी रही. वह एकटक छत को घूरते कुछ सोचती रही. अब भैयाभाभी का सर्द रवैया भी उसे अखरने लगा था. वालिद भी उस से बहुत कम बातें करते थे. एक दिन अचानक गम का पहाड़ गजल पर टूट पड़ा. उस के पिता को दिल का दौरा पड़ा और वे हमेशाहमेशा के लिए उसे अकेला छोड़ कर चले गए.

कुछ दिन इसी तरह बीत गए. अब जब वह भैया से पैसों की मांग करती तो वे चीख उठते, ‘‘यह कोई धर्मशाला या होटल नहीं है. एक तो तुम अपना घरबार और इतना अच्छा पति छोड़ कर चली आई, दूसरे, हमें भी तबाह करने पर तुली हो.

‘‘कान खोल कर सुन लो, अब तुम्हें फूटी कौड़ी भी नहीं मिलेगी,’’ तभी भाभी की कड़क आवाज उस के कानों में पड़ी, ‘‘और तुम्हारे लफंगे दोस्त भी इस घर में कदम नहीं रखेंगे. यह हमारा घर है, कोई तफरीहगाह नहीं.’’

‘‘भाभी…’’ वह चीख पड़ी, ‘‘अगर यह आप का घर है तो मेरा भी इस में आधा हिस्सा है.’’

‘‘इस भ्रम में मत रहना गजल बीबी, तुम्हारा इस घर में अब कोई हक नहीं. यह घर मेरा है, तुम तो अपना घर छोड़ आई हो. औरत का असली घर उस के पति का घर होता है और फिर जायदाद का तुम्हारे पिता बंटवारा नहीं कर गए हैं. जाओ, मुकदमा लड़ कर जायदाद ले लो.’’

गजल हैरत से भैयाभाभी को देखती रही. फिर शिथिल कदमों से अपने कमरे तक आई और बिस्तर पर गिर कर फूटफूट कर रोने लगी. आज उसे एहसास हुआ कि यह घर उस का अपना नहीं है. इस घर में वह पराई है. यह तो भाभी का घर है. वह देर तक आंसू बहाती रही. रोतेरोते उस की आंख लग गई. तभी टैलीफोन की घंटी से वह हड़बड़ा कर उठ बैठी. न जाने क्यों, उस के जेहन में यह खयाल बारबार आ रहा था कि हो न हो, खालिद का फोन ही होगा. उस ने कांपते हाथों से रिसीवर उठा लिया, ‘‘हैलो, मैं गजल…’’

‘‘गजल, मैं निशान बोल रहा हूं. तुम जल्दी से तैयार हो कर होटल ‘बसेरा’ में आ जाओ. हम आज बहुत शानदार पार्टी दे रहे हैं. तुम मुख्य मेहमान हो, आ रही हो न?’’

‘‘हां, निशान, मैं तैयार हो कर फौरन पहुंच रही हूं,’’ गजल ने घड़ी पर नजर डाली, शाम के 6 बज रहे थे, वह स्नानघर में घुस गई.

होटल के गेट पर ही उसे निशान, नदीम, अभय और संदीप खड़े मिल गए. चारों दोस्तों ने उस का गर्मजोशी से स्वागत किया, गजल ने चारों तरफ नजर दौड़ाई, ‘‘अरे, और सब कहां हैं? शैला, जूही, निशा, कल्पना, गजला वगैरह कहां हैं?’’

‘‘गजल, किन लोगों का नाम गिनवा रही हो. क्योें उन दकियानूसी औरतों की बात कर रही हो. अरे, वे सब तुम्हारी तरह स्मार्ट और निडर नहीं हैं. वे तो इस समय अपनेअपने पतियों की मालिश कर रही होंगी या फिर बच्चों की नाक साफ कर रही होंगी. वे सब बुजदिल हैं, उन में जमाने से टकराने का साहस नहीं है.’’

गजल दिल ही दिल में अपनी तारीफ सुन कर बहुत खुश हो रही थी.

‘‘संदीप हाल में बैठोगे या फिर यहीं लौन में,’’ गजल ने चलतेचलते पूछा.

‘‘ओह गजल, यहां बैठ कर हम बोर नहीं होना चाहते. हम ने एक कमरा बुक करवाया है, वहीं चल कर पार्टी का आनंद लेते हैं.’’

‘‘पर तुम लोगों ने किस खुशी में पार्टी दी है?’’

‘‘तुम्हें आश्चर्यचकित करने के लिए क्योंकि आज तुम्हारी शादी की वर्षगांठ है.’’

चलतेचलते गजल के कदम रुक गए, उस के अंदर कहीं कुछ टूट कर बिखर गया.

कमरे में पहुंचते ही खानेपीने का कार्यक्रम शुरू हो गया

‘‘गजल, एक पैग तुम भी लो न,’’ निशान ने गिलास उस की ओर बढ़ाया.

‘‘नहीं, धन्यवाद. मैं पीती नहीं.’’

‘‘ओह गजल, तुम तो आजाद पंछी हो, कोई दकियानूसी घरेलू औरत नहीं…लो न.’’

‘‘नहीं निशान, मुझे यह सब पसंद नहीं.’’

‘‘घबराओ मत बेबी, सब चलता है, आज के दिन तो तुम्हें एक पैग लेना ही चाहिए वरना पार्टी का रंग कैसे आएगा?’’ संदीप ने बहकते हुए कहा. तभी अभय ने बढ़ कर गजल को अपनी बांहों में जकड़ लिया. नदीम ने भरा गिलास उस के मुंह से लगाना चाहा तो वह तड़प कर एक ओर हट गई, ‘‘मुझे यह सब पसंद नहीं, तुम लोगों ने मुझे समझ क्या रखा है…’’

‘‘बेबी, तुम क्या हो, यह हम अच्छी तरह जानते हैं. ज्यादा नखरे मत करो, इस मुबारक दिन को मुहब्बत के रंगों से भर दो. तुम भी खुश और हम भी खुश,’’ अभय ने उस की ओर बढ़ते हुए कहा,

‘‘1 साल से तुम अपने पति से दूर हो, हम तुम्हारी रातें रंगीन कर देंगे.’’

गजल थरथर कांप रही थी. वह दौड़ती हुई दरवाजे की तरफ बढ़ी, पर उसे निशान ने बीच में ही रोक लिया. वह चीखने लगी, ‘‘छोड़ दो मुझे, मैं कहती हूं छोड़ दो मुझे.’’ तभी दरवाजे का हैंडल घूमा. सामने खालिद को देख कर सब को सांप सूंघ गया. गजल दौड़ कर उस से लिपट गई, ‘‘खालिद, मुझे इन दरिंदों से बचाओ…ये मेरी इज्जत…’’ आगे उस की आवाज गले में अटक गई.

वे चारों मौका देख कर खिसक गए थे.  ‘‘घबराओ नहीं गजल, मैं आ गया हूं. शायद अब तुम्हारा तजरबा भी पूरा हो गया होगा? 1 साल का समय बहुत होता है. वैसे अगर अभी भी तुम और…?’’

गजल ने खालिद के मुंह पर अपनी हथेली रख दी. वह किसी बेल की भांति खालिद से लिपटी हुई थी. खालिद धीरे से बोला, ‘‘वह तो अच्छा हुआ कि मैं ने तुम्हें कमरे में दाखिल होते हुए देख लिया था वरना आज न जाने तुम पर क्या बीतती? मैं एक मीटिंग के सिलसिले में यहां आया था. तभी इन चारों के साथ तुम पर नजर पड़ गई.’’

‘‘मुझे माफ नहीं करोगे, खालिद?’’ गजल ने नजरें झुकाए हुए कहा, ‘‘मैं बहुत शर्मिंदा हूं. मैं ने तुम्हें जानने की कोशिश नहीं की. झूठी आन, बान और शान में मैं कहीं खो गई थी. तुम ने सही कहा था, बगैर शौहर के एक औरत की समाज में क्या इज्जत होती है, यह मैं ने आज ही जाना है.’’

‘‘सुबह का भूला  शाम को घर लौट आए तो हर हालत में उस का स्वागत करना चाहिए.’’

‘‘तो क्या तुम ने मुझे माफ कर दिया?’’

‘‘हां, गजल, तुम मेरी अपनी हो और अपनों से गलतियां हो ही जाती हैं.’’

Hindi Story : सुंदर सी लड़की

Hindi Story : लाइब्रेरी के इश्यू काउंटर पर बैठी उस सुंदर सी लड़की ने उन की तरफ मुसकरा कर देखा व बोली, ‘‘ये किताबें इश्यू करनी हैं या जमा करनी हैं.’’

वे भी मुसकरा पड़े, ‘‘इश्यू करनी हैं, प्लीज.’’

उस ने झटका दे कर अपने माथे पर आई बालों की लट को पीछे किया व किताबें अपनी तरफ खींच लीं.

3 किताबें थीं. उन्होंने अपने कार्ड तीनों किताबों के कवर के नीचे लगा दिए थे ताकि इश्यू करने में आसानी हो. लड़की ने अपने सामने पड़ा मोटा सा रजिस्टर खींच लिया व किताबों की एंट्री करने लगी. रजिस्टर व किताबों में एंट्री कर के किताबें उन की तरफ बढ़ा दीं. वे एकटक उसे देख रहे थे. उस ने किताब पर उंगली टकटकाई.

‘‘ओ यस,’’ कहते उन्होंने किताबें उठा लीं व वापस मुड़े.

‘‘अरे, टोकन तो ले लीजिए,’’ उस ने आवाज दी.

‘‘आय एम सौरी,’’ उन्होंने घूम कर उस की हथेली से टोकन उठा लिया, ‘‘मैं किसी ध्यान में था.’’

‘‘नो प्रौब्लम, यू आर औलवेज वैलकम सर,’’ तीखी मुसकान से उस लड़की ने कहा.

‘‘आप यहां नई आई हैं क्या?’’ उन से पूछे बिना न रहा गया, ‘‘मैं ने आप को पहले नहीं देखा.’’

‘‘जब पहले नहीं देखा तो नई ही हूं,’’ वह खिलखिला कर हंस पड़ी, ‘‘मैं पहले पब्लिक लाइब्रेरी में थी, आज ही यहां आई हूं.’’

उस की हंसी पूरे इश्यू ऐंड डिपौजिट रूम के काउंटर, फर्नीचर, खिड़कियों में भर गई.

‘‘थैंक्यू,’’ कह कर वे रूम के बाहर निकल आए. बाहर के काउंटर पर किताबें चैक करा कर व टोकन सौंप कर वे लाइब्रेरी से बाहर आ गए व साइड में पार्क की गई अपनी कार के दरवाजे को रिमोट से खोल कर सीट पर बैठते हुए अपने माथे को हाथ से दबाया, ‘लड़की वाकई बड़ी खूबसूरत व तेज है भाई.’

लड़की की उम्र मुश्किल से 23-24 वर्ष की रही होगी. रंग गोरा, गुलाबी था. नाकनक्श जरा से तीखे थे. बाल घने व सीधे थे. बड़ीबड़ी आंखों की पुतलियां एकदम काली थीं व आंखें गहरी थीं. ऊंचे काउंटर पर बैठी वह लड़की उन्हें आकर्षक लगी थी.

वे कम उम्र के नौजवान नहीं थे. उन की उम्र 60 वर्ष की हो चुकी थी. अभी पिछले वर्ष ही वे अपनी 40 वर्ष की नौकरी पूरी कर के रिटायर हुए थे. एक सरकारी विभाग में उन का ओहदा एडीशनल सैक्रेटरी के स्तर का था. हालांकि उन्होंने अपनी नौकरी क्लर्क से शुरू की थी लेकिन सफलता की सीढि़यां बड़ी तेजी से चढ़ी थीं. औफिसर ग्रेड में तो वे 30 के पहले ही आ गए थे. वे बड़े मेहनती पर मस्तमौला टाइप के आदमी थे. पढ़नेलिखने का शौक उन्हें पहले से ही रहा था. वे अपने समय में आकर्षक व्यक्तित्व के मालिक रहे थे. उन का रंग गोराचिट्टा था. कद भी अच्छा था. 5 फुट 10 इंच.

बचपन में गांव में पिताजी के निर्देश पर अखाड़े में की गई मेहनत ने उन का साथ ताउम्र दिया था. अभी भी सुबह आधा घंटा व्यायाम करने के कारण जिस्म चुस्त था. वे शुरू से ही पौष्टिक भोजन ही करते रहे. जीवनचर्या अनुशासित रही. कपड़े का चयन उन का हमेशा यूनीक हुआ करता था. इसी कारण उन के दोस्त कहा करते थे, ‘यार विशाल, तुम तो एकदम देवानंद लगते हो.’

विशाल की शादी 26 वर्ष की आयु में हुई थी. उन की पत्नी माधुरी भी कम खूबसूरत नहीं थी. वह उन से 2 वर्ष छोटी थी पर अब उम्र के साथ स्थूल हो गई थी. उस को उम्रभर मीठे का शौक रहा. चौकलेट व आइसक्रीम उस की कमजोरी रही. सो, वजन बढ़ना लाजिमी था. गनीमत थी उसे ब्लडप्रैशर या शुगर जैसी कोई बीमारी नहीं हुई थी.

उन के 2 पुत्र थे. पुत्री कोई नहीं थी. दोनों पुत्र इंजीनियर थे. रिटायरमैंट से पहले ही दोनों पुत्रों के विवाह कर के

वे अपनी जिम्मेदारियों से फ्री हो गए

थे. दोनों लड़के व बहुएं विदेश में थे. बड़ा वाला बेटा अमेरिका में व छोटा कनाडा में.

घर पहुंचतेपहुंचते वे उस लाइब्रेरी वाली लड़की को भूल चुके थे. पर कार की पिछली सीट से किताबें उठाते हुए बड़ी तेजी से उस की याद आई, पर उन्होंने मुसकरा कर सिर झटक दिया व अंदर की तरफ बढ़ गए. सामने ड्राइंगरूम में ही माधुरी बैठी कोई मैगजीन देख रही थी.

‘‘आ गए,’’ माधुरी ने मुसकरा कर कहा, ‘‘कहां गए थे मटरगश्ती करने शशिकपूर.’’ वह उन्हें शुरू से ही शशिकपूर कहती थी. अभिनेता शशिकपूर उस का फेवरिट जो था.

‘‘आज तो लाइब्रेरी गया था,’’ उन्होंने कहा.

‘‘लाइब्रेरी में कहीं मटरगश्ती होती है क्या?’’

‘‘तुम को कैसे पता चल जाता है भई. आज तो सच में लाइब्रेरी में मटरगश्ती करने गया था. बड़ी खूबसूरतखूबसूरत लड़कियां होती हैं वहां. मजा आ जाता है.’’

‘‘चलो मूर्ख मत बनाओ, खाना लगा देती हूं, खा लो.’’

‘‘लाइब्रेरी के पहले सरला आंटी के यहां चला गया था. वे तो करीबकरीब बैडरिडेन हो गई हैं. अंकल परेशान थे.’’

‘‘चलो यह अच्छा किया,’’ माधुरी उठ गई, ‘‘सोचती हूं मैं भी किसी दिन उन्हें देख आऊं.’’

‘‘चलो न, अगले हफ्ते ही चलते हैं,’’ कह कर वे कमरे में कपड़े बदलने लगे.

यह मकान उन्होंने करीब 10 वर्ष पहले बनवाया था. जमीन तो पहले की ली हुई थी. 3 कमरे व हौल नीचे थे, ऊपर एक कमरा बनवाया था. उस के ऊपर खुली छत थी व सामने 15 फुट का बगीचा था. गाड़ी खड़ी करने को पोर्टिको भी था. मकान उन्होंने बड़े शौक से बनवाया था. माधुरी मकान को रखती भी बड़े सलीके से थी. उस से खुद तो ज्यादा मेहनत नहीं होती थी पर झाड़ू, डस्ंिटग के लिए कामवाली लगी थी. हौल में पड़ा सोफा व 2 बुकशैल्फ शानदार व चमकदार थीं. घर में रहने वाले वे 2 ही थे. लड़के तो बाहर ही थे. हां, 2 साल में एकबार वे साथसाथ आने का प्रोग्राम बनाते थे. तब घर में पूरी रौनक हो जाती थी.

बड़े लड़के के एक बेटी थी. छोटे बेटे के अभी कोईर् संतान नहीं थी. वे फैमिली प्लानिंग कर रहे थे. वे जब आते थे तो पूरे घर में तूफान सा आ जाता था. रुपएपैसे की कोई कमी नहीं थी. रिटायरमैंट के बाद पीएफ व ग्रेच्युटी की पूरी रकम बैंक में पड़ी थी. उन की पैंशन भी अच्छीखासी थी. बेटे भी कुछ भेजते रहते थे. घर में खाना बनाने का काम माधुरी खुद ही करती थी. बाहर की मार्केटिंग व सब्जी वगैरह लाने का काम विशाल खुद करते थे. 2 ही तो लोग थे, काम ही कितना था.

वे आमतौर पर 15 दिनों में लाइब्रेरी की किताबें पढ़ लिया करते थे. दिन में भी पढ़ते थे, रात में तो पढ़े बिना उन्हें

नींद ही नहीं आती थी. करीब 15 दिनों के बाद उन्होंने लाइब्रेरी जाने का

प्रोग्राम बनाया.

गरमी के दिनों में वे टीशर्ट ही पहना करते थे. आज भी उन्होंने बड़े जतन से हलके नीले रंग की टीशर्ट व गाढ़े नीले रंग का फिट पैंट पहना था. आंखों पर फोटोक्रोमिक लैंस का चश्मा भी लगा लिया था. हालांकि चश्मे का नंबर जीरो था. आराम से ड्राइविंग करते हुए वे लाइब्रेरी पहुंच गए. वे अनजाने में ही हलकेहलके सीटी बजा रहे थे. कार से उतरने के पहले हलका सैंट भी स्प्रे कर लिया था. सब से पहले उन्हें इश्यू व डिपौजिट काउंटर या रूम में ही जाना था.

उन का दिल धक से रह गया. आज वह लड़की काउंटर पर नहीं थी. उस की जगह कोई और लड़की काउंटर पर बैठी किताबें इश्यू व जमा कर रही थी. जब उन का नंबर आया तो उस ने सामान्यभाव से उन की किताबें जमा कर के उन के तीनों कार्ड उन्हें दे दिए.

क्या हो गया उस लड़की को. कहीं किसी और लाइब्रेरी में ट्रांसफर तो

नहीं हो गया. पर

इतनी जल्दीजल्दी तो ट्रांसफर होता नहीं है. जरूर तबीयत खराब हो गई होगी. उन्हें तो उस का नाम भी नहीं मालूम वरना किसी से पूछ ही लेते. उन की उम्र को देखते हुए कोई कुछ सोचता भी नहीं. यही सब सोचते हुए वे एक शैल्फ से दूसरी शैल्फ  में लगी किताबें देखते रहे. आज उन से अपनी मनपसंद किताबें छांटते नहीं बन पा रहा था.

Family Kahaniyan: बदलता नजरिया

Family Kahaniyan: दीपिका औफिस से लौट रही थी, तो गाड़ी की तेज गति के साथ उस के विचार भी अनियंत्रित गति से भागे जा रहे थे. आज उसे प्रमोशन लैटर मिला था. 4 लोगों को सुपरसीड कर के उसे ब्रांच मैनेजर के पद के लिए चुना गया था. उसे सफलता की आशा तो थी पर पूरी भी होगी, इस बात का मन में संशय था, क्योंकि उस से भी सीनियर औफिसर इस पद के दावेदार थे.

उन सब को सुपरसीड कर के इस पद को पाना उस की अपनेआप में बहुत बड़ी उपलब्धि थी. इस उपलब्धि पर औफिस में सभी लोगों ने बधाई तो दी ही थी, ट्रीट की मांग भी कर डाली थी. उस ने उसी समय अपने चपरासी को बुला कर मिठाई लाने के लिए पैसे दिए थे तथा सब का मुंह मीठा करवाया था.

यह खुशखबरी वह सब से पहले जयंत को देना चाहती थी, जिस ने हर अच्छेबुरे पल में सदा उस का साथ दिया था. चाहती तो फोन के द्वारा भी उसे यह सूचना दे सकती थी पर ऐसा करने से सामने वाले की प्रतिक्रिया तो नहीं देखी जा सकती थी.

बहुत पापड़ बेले थे उस ने. घरबाहर हर संभव समझौता करने का प्रयत्न किया था. एकमात्र पुत्र की पुत्रवधू होने के कारण सासससुर को जहां उस से बहुत अरमान थे, वहीं कर्तव्यों की अनेकानेक लडि़यां भी उसे लपेटने को आतुर थीं. विवाह से पूर्व सास अमिता ने उस से पूछा था, ‘‘अगर जौब और फैमिली में तुम्हें कोई एक चुनना पड़े, तो तुम किसे महत्त्व दोगी?’’

‘‘फैमिली को,’’ मां के सिखाए शब्द उस के मुंह से अनायास ही निकल गए थे, क्योंकि मां नहीं चाहती थीं कि उस की किसी बेवकूफी के कारण इतना अच्छा घर व वर हाथ से निकल जाए. उन्होंने उसे पहले ही नपातुला तथा सोचसमझ कर बोलने की चेतावनी दे दी थी.

उस के ममापापा को जयंत बहुत पसंद आया था. उस का स्वभाव, अच्छा ओहदा उस से भी अधिक उस का सुदर्शन व्यक्तित्व. जयंत एक मल्टीनैशनल कंपनी में प्रोजैक्ट मैनेजर था. जबकि वह स्वयं बैंक में प्रोबेशन अधिकारी थी. वह किसी हालत में अपनी नौकरी नहीं छोड़ना चाहती थी, लेकिन सास तो सास, मां का भी यही कहना था कि एक लड़की के लिए उस का घरपरिवार उस की महत्त्वाकांक्षा से अधिक होना चाहिए. हम चाहे स्वयं को कितना भी आधुनिक क्यों न मानने लगें पर मानसिकता नहीं बदलने वाली.

स्त्री चाहे पुरुष से अधिक ही क्यों न कमा रही हो पर उस का हाथ और सिर सदा नीचे ही रहना चाहिए. यह बात और है कि एक स्त्री अपनी इसी विशेषता और विनम्रता के बल पर एक दिन सब के दिलों पर राज करने में सक्षम हो सकती है. बस इसी मानसिकता के तहत ममा ने सोचसमझ कर उत्तर देने के लिए कहा था और उस ने वही किया भी था.

सासूमां दीपिका के उत्तर से बेहद संतुष्ट हुई थीं और उन्होंने उसे अपनी बहू बनाने का फैसला कर लिया था. विवाह के बाद धीरेधीरे उस के लिए भी अपने कैरियर से अधिक घरपरिवार महत्त्वपूर्ण हो गया था, क्योंकि उस का मानना था कि अगर घर में सुखशांति रहे तो औफिस में भी ज्यादा मनोयोग से काम किया जा सकता है. उस की ससुराल में संयुक्त परिवार और अच्छा व बड़ा 4 बैडरूम का घर था. उस के विवाह के 2 महीने बाद ही ससुरजी रिटायर हो गए थे और ननद विभा का विवाह हो गया था. पर उसी शहर में रहने के कारण उस का आनाजाना लगा रहता था.

विवाह के बाद सारी जिम्मेदारी सासूमां ने उसे सौंप दी थीं. इस बात से जहां उसे खुशी का अनुभव होता था, वहीं कभीकभी कोफ्त भी होने लगती थी, क्योंकि सुबह से ले कर देर रात तक वह किचन में ही लगी रह जाती थी. कहने को तो खाना बनाने के लिए नौकरानी थी, पर उसे सुपरवाइज तथा गाइड करना, सब के मनमुताबिक नाश्ताखाना बनवा कर सर्व करना उस का ही काम था.

सुबहसुबह सब को बैडटी तथा रात में गरमगरम दूध देना तो उसे ही करना पड़ता था, वह भी सब के समय के अनुसार. विवाह से पूर्व जिस लड़की ने कभी एक गिलास पानी भी खुद ले कर न पिया हो, सिर्फ पढ़ना ही जिस का मकसद रहा हो, दोहरी जिम्मेदारी निभाना तथा साथ में सब को खुश रखना किसी चुनौती से कम नहीं था. पर जहां चाह हो वहां राह निकल ही आती है.

दीपिका जब गर्भवती हुई तो घर भर में खुशियों के फूल खिल गए थे. सासूमां ने उस की कुछ जिम्मेदारियां शेयर कर ली थीं. डिनर अब वे अपनी देखरेख में बनवाने लगी थीं. उस दिन रविवार था. शाम की चाय सब एकसाथ बैठे पी रहे थे कि अचानक ससुरजी आलोकनाथ ने चाय का कप टेबल पर रख दिया तथा बेचैनी की शिकायत की. जब तक कोई कुछ समझ पाता वे अचेत हो गए.

जयंत ने आननफानन गाड़ी निकाली और उन्हें अस्पताल ले गए. पर वे बचे नहीं. सासूमां अचानक हुई इस दुर्घटना को सह नहीं पाईं. बारबार अचेत होने लगीं, तो डाक्टर ने उन्हें नींद का इंजैक्शन दे कर सुला दिया. उस के बाद विधिविधान से सारे काम हुए पर सासूमां सामने रहते हुए भी नहीं थीं. आखिर 34 वर्षों का साथ भुलाना आसान नहीं होता. फिर वे सब से कटीकटी रहने लगीं और घर में सब कुछ बिखराबिखरा सा लगने लगा. ऐसे में दीपिका कभीकभी यह सोचती कि वह नौकरी छोड़ दे.

लेकिन थोड़ी देर में उसे लगता कि ऐसी कठिनाइयां तो हर किसी की जिंदगी में आती हैं तो क्या हर कोई पलायन कर जाता है? नहीं, वह नौकरी नहीं छोड़ेगी.

फिर वक्त गुजरता गया और दीपिका को बेटी हुई. उस का नाम कविता रखा गया. दीपिका ने 6 महीने का ब्रेक लिया. फिर औफिस जाना शुरू किया तो कविता के लिए नौकरानी की व्यवस्था कर दी. उस पर भी सासूमां के ताने कि जरा भी आराम नहीं करने देती. हर समय चिल्लपों. क्या जिंदगी है, अपने बच्चे भी पाले और अब बच्चों के बच्चे भी पालो. दीपिका यह सब सुनती पर यह सोच कर मन को शांत करने का प्रयत्न करती कि वे अभी भी अपने दुख से उबर नहीं पाई हैं. पर फिर भी मन अशांत रहने लगा था.

औफिस पहुंचने में जरा भी देरी होने पर सहकर्मी ताने कसते कि ये औरतें काम करने के लिए नहीं मस्ती करने के लिए आती हैं. धीरेधीरे समय गुजरता गया और कविता ने स्कूल जाना शुरू कर दिया. सासूमां ने भी स्वयं को संभाल लिया. कविता के स्कूल से आने पर जहां वे कविता का खयाल रखती थीं, वहीं उस के साथ बाहर भी आनेजाने लगी थीं.

घर का वातावरण सामान्य होने और कविता के बड़ा और समझदार होने पर जयंत को उस की कंपनी के लिए एक और बच्चे की चाहत हुई. चाहत तो उसे भी थी पर फिर वही परेशानी और अस्तव्यस्त जिंदगी, यह सोच कर वह इतना बड़ा निर्णय लेने में झिझक रही थी. फिर सोचा कि अगर प्लानिंग करनी है तो अभी ही क्यों नहीं? जैसेजैसे समय गुजरता जाएगा कठिनाइयां और बढ़ती जाएंगी.

उस की कोख में फिर हलचल हुई तो नवागंतुक के आने की सूचना मात्र से सासूमां चहक उठीं, लेकिन कहा, ‘‘दीपिका इस बार लड़का ही होना चाहिए, बस इतना ध्यान रखना.’’

मांजी यह मेरे बस में नहीं है, यह कहना चाह कर भी नहीं कह पाई थी दीपिका. पर इतना अवश्य मन में आया था कि हम चाहे कितना भी क्यों न पढ़लिख जाएं, आधुनिक होने का दम भर लें पर लड़कालड़की में अभी भी भेद कायम है. संयोग से इस बार उसे बेटा ही हुआ, लेकिन पहले की तरह इस बार भी अड़चनें बहुत आईं. पर अपने लक्ष्य से वह नहीं भटकी. क्योंकि उस ने मन ही मन यह फैसला किया था कि अपने कार्य और कर्तव्य का निर्वहन वह पूरी ईमानदारी से करेगी.

दूसरा क्या कहता है इस पर ध्यान नहीं देगी. शायद उस की एकाग्रता और सफलता का यही मूलमंत्र था.  चौराहे पर लालबत्ती के साथ ही उस के विचारों पर भी ब्रेक लग गया. यहां से घर तक का सिर्फ 10 मिनट का रास्ता था. 4 लोगों को सुपरसीड कर के ब्रांच मैनेजर बनना उस के कैरियर का अहम मोड़ था. वह इस खुशी को सब के साथ शेयर करना चाहती थी, चाहे प्रतिक्रियास्वरूप कुछ भी क्यों न सुनना पड़े.

दीपिका के घर के अंदर प्रवेश करते ही जयंत ने कहा, ‘‘दीपिका तुम आ गईं…कल मुझे कंपनी के काम से मुंबई जाना है. सुबह 6 बजे की फ्लाइट है. प्लीज, मेरा सूटकेस पैक कर देना… और हां कल मां को डा. पीयूष को शाम 6 बजे दिखाना है. तुम ले जाना… और प्लीज, मुझे डिस्टर्ब मत करना. कल के लिए मुझे प्रैजेंटेशन तैयार करना है.’’

जयंत का तो यह रोज का काम था… औफिस तो औफिस, वे घर में भी हमेशा ऐसे ही व्यस्त रहा करते हैं. कभी प्रैजेंटेशन, कभी कौन्फ्रैंसिंग तो कभी टूअर. और कुछ नहीं तो उन का फोन से ही पीछा नहीं छूटता. सीईओ जो हैं कंपनी के. आज वह अपने लिए उन से समय का एक टुकड़ा चाह रही थी पर वह भी नहीं मिला.

‘‘दीपिका आ गई हो तो जरा मेरे लिए अदरक वाली चाय बना देना. सिर में बहुत दर्द हो रहा है,’’ सासूमां की आवाज आई. दीपिका सासूमां को चाय दे कर लौट ही रही थी कि पल्लव ने कहा, ‘‘ममा, आज मेरे मित्र रवीश का बर्थडे है. वह होटल ग्रांड में ट्रीट दे रहा है, देर हो जाए तो चिंता मत कीजिएगा.’’ उस का लैटर पर्स में ही पड़ा रह गया.

सब को व्यस्त देख कर तथा सासूमां की पिछली बातों को याद कर मन का उत्साह ठंडा पड़ गया था. अब अपनी सफलता का लैटर किसी को भी दिखाने का उस का मन नहीं हो रहा था. उस की सारी खुशियों पर मानों किसी ने ठंडा पानी डाल दिया था. बुझे मन से उस ने किचन की ओर कदम बढ़ाया. आखिर डिनर की तैयारी के साथ जयंत का सूटकेस भी तो उसे लगाना था.

‘‘ममा, पापड़ रोस्ट करने जा रही हूं, आप लेंगी?’’ कविता ने दीपिका से पूछा. लेकिन दीपिका के कोई प्रतिक्रिया व्यक्त न करने पर कविता ने उसे झकझोरते हुए फिर अपना प्रश्न दोहराया. फिर भी जवाब में सूनी आंखों से उसे अपनी ओर देखता पा कर उस ने पूछा, ‘‘क्या बात है ममा, क्या तबीयत ठीक नहीं है?’’

‘‘ठीक है. तुम अपने लिए पापड़ रोस्ट कर लो, मेरा खाने का मन नहीं है.’’

‘‘ममा, कुछ बात तो है वरना रोस्टेड पापड़ के लिए आप कभी मना नहीं करती हो.’’

‘‘कोई बात नहीं है.’’

‘‘कुछ तो है जो आप मुझे भी नहीं बताना चाहतीं. आफ्टर औल वी आर फ्रैंड… आप ही तो कहती हो.’’ कविता के इतने आग्रह पर आखिर दीपिका से रहा नहीं गया. उस ने प्रमोशन लैटर की बात उसे बता दी.

‘‘वाऊ ममा, कौंग्रैचुलेशन. यू आर ग्रेट. वी औल आर प्राउड औफ यू. मैं अभी डैड को बता कर आती हूं.’’ ‘‘उन्हें डिस्टर्ब मत करना बेटा. जरूरी काम कर रहे हैं, कल उन्हें मुंबई जाना है.’’

‘‘पल्लव…’’

‘‘वह अपने मित्र की बर्थडे पार्टी में गया है.’’

‘‘तब ठीक है, दादी को बता कर आती हूं.’’

‘‘नहीं बेटा, उन के सिर में दर्द हो रहा है. उन्हें चाय और दवा दे कर आई हूं. वे आराम कर रही होंगी.’’ ‘‘ठीक है, डिनर के समय यह खुशखबरी सब के साथ शेयर करूंगी. मैं अभी आई.’’

जब तक दीपिका कुछ कहती तब तक वह जा चुकी थी. डिनर की सब्जियां बना कर रख दीं तथा जयंत का सूटकेस लगाने चली गई. लगभग 1 घंटे बाद लौट कर डिनर के लिए डाइनिंग टेबल अरेंज करने जा रही थी कि कविता को एक बड़ा सा पैकेट हाथ में ले कर अंदर प्रवेश करते हुए देखा.

‘‘यह क्या है बेटा?’’

‘‘एक सरप्राइज.’’

‘‘कैसा सरप्राइज?’’

‘‘वेट ममा, वेट.’’

‘‘ममा, दीदी ने मुझे फोन कर के जल्दी घर आने के लिए कहा था पर कारण नहीं बताया. क्या बात है ममा, सब ठीक है?’’ थोड़ी ही देर बाद पल्लव ने अंदर आते हुए कहा. उस के चेहरे पर चिंता की झलक थी. ‘‘ममा, आप अंदर जाइए. जब मैं बुलाऊं तब आइएगा,’’ उस के हाथ से डिनर प्लेट लेते हुए कविता ने कहा, ‘‘ममा प्लीज, बस थोड़ी देर,’’ दीपिका को आश्चर्य में पड़ा देख कविता ने कहा. वह अंदर चली गई. थोड़ी देर बाद कविता ने सब को बुलाया.

‘‘केक, किस का जन्मदिन है आज?’’ डाइनिंग टेबल पर केक रखा देख कर सासूमां ने प्रश्न दागा. जयंत और पल्लव भी कविता की ओर आश्चर्य से देख रहे थे. ‘‘वेट… वेट… वेट… ममा, प्लीज आप इधर आइए,’’ कहते हुए कविता दीपिका का हाथ पकड़ कर उसे डाइनिंग टेबल के पास ले गई तथा हाथ में चाकू पकड़ाते हुए कहा, ‘‘ममा, केक काटिए.’’

कविता की बात सुन कर सासूमां, जयंत और पल्लव कविता को आश्चर्य से देखने लगे. ‘‘आज मेरी ममा का जन्मदिन है. आई मीन मेरी ममा के कैरियर का नया जन्मदिन,’’ उस ने सब के आश्चर्य को देखते हुए कहा.

‘‘कैरियर का नया जन्मदिन… क्या कह रही हो दीदी?’’  आश्चर्य से पल्लव ने पूछा.

‘‘हां, मैं ठीक कह रही हूं. आज मेरी ममा का प्रमोशन हुआ है. वे ब्रांच मैनेजर बन गई हैं. ममा प्लीज, इस खुशी के अवसर पर केक काट कर हम सब का मुंह मीठा करवाइए,’’ कविता ने दीपिका से आग्रह करते हुए कहा.

‘‘कौंग्रैचुलेशन ममा… वी औल आर प्राउड औफ यू…’’ पल्लव ने उस के गले लग कर बधाई देते हुए कहा.

‘‘तुम ने बताया नहीं कि तुम्हारा प्रमोशन हो गया है,’’ जयंत बोले.

‘‘तुम बिजी थे.’’

‘‘बधाई… कब जौइन करना है?’’

‘‘कल ही अलीगंज ब्रांच में.’’

‘‘बधाई बहू… बड़ा पद, बड़ी जिम्मेदारी. पर औफिस में ही इतना मत उलझ जाना कि घर अस्तव्यस्त हो जाए. घर में तू बहू के रूप में भी सफल हो कर दिखाना.’’ ‘‘मांजी, आप निश्चिंत रहें. मैं औफिस में ही ब्रांच मैनेजर हूं, घर में तो आप की बहू ही हूं,’’ दीपिका ने उन के कदमों में झुकते हुए कहा. ‘‘वह तो मैं ने ऐसे ही कह दिया था दीपिका.

सच तो यह है कि तू ने घर की सारी जिम्मेदारियों के साथ बाहर की जिम्मेदारियां भी बखूबी निभाई हैं. मुझे तुझ पर गर्व है. और मेरी जितनी सेवा तू ने की है, उतनी तो मेरी बेटी भी नहीं कर पाती.’’ ‘‘ऐसा मत कहिए मांजी, आप मां हैं मेरी. अगर आप पगपग पर मेरे साथ खड़ी न होतीं, तो शायद न मैं सफलता प्राप्त कर पाती और न ही अपने कर्तव्यों का निर्वहन सही ढंग से कर पाती.’’

‘‘ममा, केक,’’ कविता ने कहा.

‘हां बेटा.’’ मांजी और जयंत की आंखों में स्वयं के लिए सम्मान देख कर दीपिका के मन में जमी बर्फ पिघलने लगी थी. हर उत्तरदायित्व को निभाते जाना ही एक बार फिर उस के जीवन का लक्ष्य बन गया था. Family Kahaniyan

Hindi Social Story: इंद्रधनुष का आठवां रंग

Hindi Social Story: वसुधा की नजरें अभी भी दरवाजे पर ही टिकी थीं. इसी दरवाजे से अभीअभी रावी अपने पति के साथ निकली थी. पीली साड़ी, सादगी से बनाया जूड़ा, माथे पर बिंदिया, मांग में सिंदूर, हाथों में भरीभरी चूडि़यां… कुल मिला कर संपूर्ण भारतीय नारी की छवि को साकार करती रावी बहुत खूबसूरत लग रही थी. गोद में लिए नन्हे बच्चे ने एक स्त्री को मां के रूप में परिवर्तित कर कितना गरिमामय बना दिया था.

वसुधा ने अपना सिर कुरसी पर टिका आराम की मुद्रा में आंखें बंद कर लीं. उन की आंखों में 3-4 साल पहले के वे दिन चलचित्र की भांति घूम गए जब रावी के मम्मीपापा उसे काउंसलिंग के लिए वसुधा के पास लाए थे.

वसुधा सरकारी हौस्पिटल में मनोवैज्ञानिक हैं, साथ ही सोशल काउंसलर भी. हौस्पिटल के व्यस्त लमहों में से कुछ पल निकाल कर वे सोशल काउंसलिंग करती हैं. अवसाद से घिरे और जिंदगी से हारे हताशनिराश लोगों को अंधेरे से बाहर निकाल कर उन्हें फिर से जिंदगी के रंगों से परिचित करवाना ही उन का एकमात्र उद्देश्य है.

रावी को 3-4 साल पहले वसुधा के हौस्पिटल में भरती करवाया गया था. छत के पंखे से लटक कर आत्महत्या की कोशिश की थी उस ने, मगर वक्त रहते उस की मां ने देख लिया और उसे तुरंत हौस्पिटल लाया गया. समय पर चिकित्सा सुविधा मिलने से रावी को बचा लिया गया था. मगर वसुधा पहली ही नजर में भांप गई थीं कि उस के शरीर से भी ज्यादा उस का मन आहत और जख्मी है.

वसुधा ने हकीकत जानने के लिए रावी की मां शांति से बात की. पहले तो वे नानुकुर करती टालती रहीं, मगर जब वसुधा ने उन्हें पूरी बात को गोपनीय रखने और उन की मदद करने का भरोसा दिलाया तब जा कर उन्होंने अपने आधेअधूरे शब्दों और इशारों से जो बताया उसे सुन कर वसुधा का मासूम रावी पर स्नेह उमड़ आया.

शांति ने उन्हें बताया, ‘‘रावी दुराचार का शिकार हुई है और वह भी अपने पिता के खास दोस्त के द्वारा. पिता का जिगरी दोस्त होने के नाते उन के घर में उस का बिना रोकटोक आनाजाना था. कोई शक करे भी तो कैसे? उस की सब से छोटी बेटी रावी की सहेली भी थी. दोनों एक ही क्लास में पढ़ती थीं. एक दिन रावी अपनी सहेली से एक प्रोजैक्ट फाइल लेने उस के घर गई. सहेली अपनी मां के साथ बाजार गई हुई थी. अत: उस के पापा ने कहा कि तेरी सहेली का बैग अंदर रखा है. अंदर जा कर ले ले जो भी लेना है. उस के बाद जब रावी वापस घर आई, तो चुपचाप कमरे में जा कर सो गई. सुबह उसे तेज बुखार चढ़ गया. हम ने इसे काफी हलके में लिया. कई दिन तक जब रावी कालेज भी नहीं गई, तो हम ने सोचा शायद पीरियड नहीं लग रहे होंगे.

‘‘फिर एक दिन जब इन के दोस्त घर आए तो हमेशा की तरह उन्हें पानी का गिलास देने को भागने वाली रावी कमरे में जा कर छिप गई. तब मेरा माथा ठनका. मैं ने रावी का सिर सहलाते हुए उसे विश्वास में लिया, तो उस ने सुबकतेसुबकते इस घिनौनी घटना का जिक्र किया, जिसे सुन कर मेरे तनबदन में आग लग गई. मैं ने तुरंत इस के पिता से पुलिस में शिकायत करने को कहा. मगर इन्होंने मुझे शांति से काम लेने को कह समझाया कि पुलिस स्टेशन में एफआईआर दर्ज करा कर केस करना तो बहुत आसान है, मगर उस की पेशियां भुगतना बहुत कष्टदाई होता है. अपराधी को सजा दिलवाना तो नाकों चने चबाना जैसा होता है. सब से पहले तो अपराध को साबित करना ही मुश्किल होता है, क्योंकि ऐसे केस में कोई गवाह नहीं होता. फिर हर पेशी पर जब रावी को वकीलों के नंगे करते सवालों के जवाब देने पड़ेंगे, तो हमारी फूल सी बेटी को फिर से उस हादसे को जीना पड़ेगा. अभी तो यह बात सिर्फ हमारे बीच में ही है, जब समाज में चली जाएगी तो बेटी का जीना मुश्किल हो जाएगा. पूरी जिंदगी पड़ी है उस के सामने… कौन ब्याहेगा उसे?’’

कुछ देर रुक शांति ने एक उदास सी सांस ली और फिर आगे कहना शुरू किया, ‘‘बेटी का हाल देख कर मन तो करता था कि उस दरिंदे को भरे बाजार गोली मार दूं, मगर पति की बात में भी सचाई थी. बेटी का वर्तमान तो खराब हो ही चुका था कम से कम उस का भविष्य तो खराब न हो, यही सोच कर हम ने कलेजे पर पत्थर रख लिया. रावी को समझाबुझा कर फिर से कालेज जाने को राजी किया. भाई उसे लेने और छोड़ने जाता. मैं भी सारा दिन उस के आसपास ही रहती. उसे आगापीछा समझाती, मगर उस की उदासी दूर नहीं कर सकी. इसी बीच एक दिन मैं थोड़ी देर के लिए पड़ोसिन के घर किसी काम से गई, तो इस ने यह कदम उठा लिया.’’

वसुधा बड़े ध्यान से सारा घटनाक्रम सुन रही थीं. जैसे ही शांति ने अपनी बात खत्म की, वसुधा जैसे नींद से जागीं. यों लग रहा था मानो वे सुन नहीं रही थीं, बल्कि इस सारे घटनाक्रम को जी रही थीं. उन्होंने शांति से रावी को अपने घर लाने के लिए कहा.

पहली बार वसुधा के सामने रावी ने अपनी जबान नहीं खोली. चुपचाप आंखें नीचे किए रही. दूसरी बार भी कुछ ऐसा ही हुआ. बस फर्क इतना था कि इस बार रावी ने नजरें उठा कर वसुधा की तरफ देखा था. इसी तरह 2 और सिटिंग्स हुईं. वसुधा उसे हर तरह से समझाने की कोशिश करतीं, मगर रावी चुपचाप खाली दीवारों को ताकती रहती.

एक दिन रावी ने बहुत ही ठहरे हुए शब्दों में वसुधा से कहा, ‘‘बहुत आसान होता है सब कुछ भूल कर आगे बढ़ने और जीने की सलाह देना. मगर जो मेरे साथ घटित हुआ वह मिट्टी पर लिखा वाक्य नहीं, जिसे पानी की लहरों से मिटा दिया जाए… आप समझ ही नहीं सकतीं उस दर्द को जो मैं ने भोगा है…जब दर्द देने वाला कोई अपना ही हो तो तन से भी ज्यादा मन लहूलुहान होता है,’’ और फिर वह फफक पड़ी.

वसुधा उसे सीने से लगा कर मन ही मन बुदबुदाईं कि यह दर्द मुझ से बेहतर और कौन समझ सकता है मेरी बच्ची.

रावी ने आश्चर्य से वसुधा की ओर देखा. उन की छलकी आंखें देख कर वह अपना रोना भूल गई. वसुधा उस की बांह थाम कर उसे 20 वर्ष पहले की यादों की गलियों में ले गईं.

‘‘स्कूल के अंतिम वर्ष में फेयरवैल पार्टी से लौटते वक्त रात अधिक हो गई थी. मैं और मेरी सहेली रूपा दोनों परेशान सी औटो की राह देख रही थीं. तभी एक कार हमारे पास आ कर रुकी. हम दोनों कुछ समझ पातीं, उस से पहले ही 2 गुंडों ने मुझे कार में खींच लिया. रूपा अंधेरे का फायदा उठा कर भागने में कामयाब हो गई. उस ने किसी तरह मेरे घर वालों को खबर दी. मगर जब तक वे मुझ तक पहुंच पाते गुंडे मेरी इज्जत को तारतार कर मुझे बेहोशी की हालत में सड़क के किनारे फेंक कर जा चुके थे.

‘‘मुझे अधमरी हालत में घर लाया गया. मांपापा रोतेधोते खुद को कोसते रह गए. मुझे अपनेआप से घिन होने लगी. मैं ने कालेज जाना छोड़ दिया. घंटों बाथरूम में अपने शरीर को रगड़रगड़ कर नहाती, मगर फिर भी उस लिजलिजे स्पर्श से अपनेआप को आजाद नहीं कर पाती. मुझे लगता मानो सैकड़ों कौकरोच मेरे शरीर पर रेंग रहे हों. एक दिन मुझे एहसास हुआ कि उस हादसे का अंश मेरे भीतर आकार

ले रहा है. तब मैं ने भी तुम्हारी ही तरह अपनी जान देने की कोशिश की, मगर जान देना इतना आसान नहीं था. मेरी कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करूं. मैं बिलकुल टूट चुकी थी. मेरी इस मुश्किल घड़ी में मेरी मां मेरे साथ थीं. उन्होंने मुझे समझाया कि मैं क्यों उस अपराध की सजा अपनेआप को देने पर तुली हूं, जो मैं ने किया ही नहीं…शर्म मुझे नहीं उन दरिंदों को आनी चाहिए… धिक्कार उन्हें होना चाहिए…

‘‘और एक दिन मां मुझे अपनी जानपहचान की डाक्टर के पास ले गईं. उन्होंने मुझे इस पाप की निशानी से छुटकारा दिलाया. वह मेरा नया जन्म था और उसी दिन मैं ने ठान लिया था कि आज से मैं अपने लिए नहीं, बल्कि अपने जैसों के लिए जीऊंगी. मुझे खुशी होगी, अगर मैं तुम्हें वापस जीना सिखा सकूं,’’ वसुधा ने सब कुछ एक ही सांस में कह डाला मानो वे भी आज एक बोझ से मुक्त हुई हों.

‘‘आप को समाज से डर नहीं लगा?’’ रावी ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘कैसा डर? किस समाज से… अब मैं हर डर से आजाद हो चुकी थी. वैसे भी मेरे पास खोने के लिए बचा ही क्या था. अब तो मुझे सब कुछ वापस पाना था.’’

‘‘फिर क्या हुआ? मेरा मतलब. आप यहां, इस मुकाम तक कैसे पहुंचीं?’’ रावी को अभी भी वसुधा की बातों पर यकीन नहीं हो रहा था.

‘‘उस हादसे को भूलने के लिए मैं ने वह शहर छोड़ दिया. आगे की पढ़ाई मैं ने होस्टल में रह कर पूरी की. अब बस मेरा एक मात्र लक्ष्य था मनोविज्ञान में मास्टर डिगरी हासिल करना ताकि मैं इनसान के मन के भीतर की उस तह तक पहुंच सकूं जहां वह अपने सारे अवसाद, राज और विकार छिपा कर रखता है. मैं ने अपनी कमजोरी को अपनी ताकत बना कर अपनी लड़ाई लड़ी और उस पर विजय पाई,’’ थोड़ी देर रुक कर वसुधा ने रावी के कंधे पर हाथ रखते हुए कहना जारी रखा, ‘‘बेटा, हमें यह जीवन कुदरत ने जीने के लिए दिया है. किसी और के कुकर्मों की सजा हम अपनेआप को क्यों दें? तुम्हें भी बहादुरी से अपनी लड़ाई लड़नी है… अभी तुम्हारी उम्र ही क्या है… तुम अपनी पढ़ाई पूरी करो…और हां, अपने बच्चे के नामकरण पर मुझे जरूर बुलाना,’’ वसुधा ने रावी के चेहरे पर मुसकान लाने की कोशिश की.

‘‘आप ने शादीक्यों नहीं की?’’ रावी ने यह जलता प्रश्न उछाला, तो इस बार उस की लपटें वसुधा के आंचल तक जा पहुंचीं. एक लंबी सांस ले कर वे बोलीं, ‘‘हां, यहां मैं चूक गई. मेरे साथ पढ़ने वाले डा. नमन ने मेरे सामने शादी का प्रस्ताव रखा था. मैं भी उन्हें पसंद करती थी, मगर मेरी साफगोई शायद उन्हें पसंद नहीं आई. मैं ने शादी से पहले उन्हें अपने बारे में सब कुछ बता दिया, जिसे उन का पुरुषोचित अहं स्वीकार नहीं कर पाया. हालांकि उन्होंने शादी करने से मना नहीं किया था, मगर मैं ही पीछे हट गई. अब मुझे उन के प्यार में दया की बू आने लगी थी और इस मुकाम पर पहुंचने के बाद मैं किसी की दया की पात्र नहीं बनना चाहती थी. मैं जानती थी कि आज नहीं तो कल यह प्यार सहानुभूति में बदल जाएगा और मैं वह स्थिति अपने सामने नहीं आने देना चाहती थी.’’

‘‘फिर आप मुझे शादी करने के लिए क्यों कह रही हैं? यह परिस्थिति तो मेरे सामने भी आएगी.’’

‘‘वही मैं तुम्हें समझाना चाह रही हूं कि जो गलती मैं ने की वह तुम भूल कर भी मत करना. यह एक कड़वी सचाई है कि खुद कई गर्लफ्रैंड्स रखने वाले पुरुष भी पत्नी वर्जिन ही चाहते हैं. तुम्हें किसी को भी सफाई देने की जरूरत नहीं  है. जब तक तुम खुद किसी को नहीं बताओगी, तुम्हारे साथ हुए हादसे के बारे में किसी को कुछ पता नहीं चलेगा.’’

‘‘मगर यह तो किसी को धोखा देने जैसा हुआ?’’ रावी अभी भी तर्क कर रही थी.

‘‘धोखा तो वह था जो तुम्हारे पापा के दोस्त ने तुम्हारे पापा को दिया… अपने परिवार को दिया… तुम्हारी मासूमियत और इनसानियत को दिया. हम औरतों को अब अपने लिए थोड़ा स्वार्थी होना ही पड़ेगा… जीवन के इंद्रधनुष में 8वां रंग हमें खुद भरना होगा. अच्छा एक बात बताओ तुम्हारा वह तथाकथित अंकल बिना किसी को कुछ बताए समाज में शान से रह रहा है न? फिर तुम क्यों नहीं? अगर सोने पर कीचड़ लग जाए, तो भी उस की शुद्धता में रत्ती भर भी फर्क नहीं आता. तुम्हें भी इस हादसे को एक बुरा सपना मान कर भूलना होगा,’’ कह वसुधा ने उसे सोचने के लिए छोड़ दिया.

‘‘अगर अंकल ने मुझे ब्लैकमेल करने की कोशिश की तो?’’ रावी ने अपनी शंका जाहिर की.

‘‘वह ऐसा नहीं करेगा, क्योंकि ऐसा करने पर खुद उस की पहचान भी तो उजागर होगी और फिर कोई भी व्यक्ति अपने परिवार और समाज के सामने जलील नहीं होना चाहेगा,’’ वसुधा ने अपने अनुभव के आधार पर कहा.

बात रावी की समझ में आ गई थी. वह पूरे आत्मविश्वास के साथ उठ कर वसुधा के चैंबर से निकल गई. उस के कालेज के लास्ट ईयर के फाइनल ऐग्जाम का टाइमटेबल आ चुका था. उस ने मन लगा कर परीक्षा दी और प्रथम श्रेणी से पास हुई. उस के बाद उस ने कंप्यूटर का बेसिक कोर्स किया और फिर उसी संस्थान में काम करने लगी. साल भर पहले एक अच्छा सा लड़का देख कर उस के घर वालों ने उस की शादी कर दी. उस के बाद रावी आज ही वसुधा से मिलने आई थी. अपने बेटे के नामकरण का निमंत्रण देने.

इस बीच वसुधा निरंतर शांति के संपर्क में रहीं. कदमकदम पर उन्हें राह दिखाती रहीं, मगर रावी से दूर ही रहीं. वे उसे खुद ही गिर कर उठने देना चाहती थीं. वे संतुष्ट थीं कि उन्होंने एक और कली को मुरझाने से बचा लिया.

रावी ने तो अपना वादा निभा दिया था, अब उन की बारी थी. अत: तैयार हो वे अपना पर्स उठा नन्हे मेहमान के लिए गिफ्ट लेने बाजार चल दीं. Hindi Social Story

Sad Story in Hindi: खामोशियां- क्यों पति को इग्नोर कर रही थी रोमा?

Sad Story in Hindi: देखने में तो घर में सब सामान्य लग रहा था पर ऐसा था नहीं. रोमा के दिल में एक तूफ़ान सा उठा था. वह कैसे बाहर जाए, सारा दिन तो घर में नहीं बैठ सकती थी, वह भी वन बैडरूम के इस फ्लैट में.

सुजय से बात करने के लिए रोमा को कोई कोना नहीं मिल रहा था. पति रवि कोरोना के टाइम में पूरा दिन घर में रहता, सारा दिन वर्क फ्रौम होम करता. 2 साल का बेटा सोनू खूब खुश था कि मम्मीपापा सारा दिन सामने हैं. पर मां के दिल में उठते तूफ़ान को वह 2 साल का बच्चा कैसे जान पाता.

जैसे ही औफिस के काम से कुछ छुट्टी मिलती, रवि घर के कामों में रोमा का खूब हाथ बंटाता. पर फिर भी रोमा के चेहरे पर चिढ़ और गुस्से के भाव कम होने का नाम ही नहीं ले रहे थे तो उस ने कहा, “रोमा, घर के काम जो भी मुश्किल लग रहे हैं, मुझे बता दिया करो, तुम्हारे चेहरे से तो हंसी जैसे गायब हो गई है.”

रोमा फट पड़ी, “नहीं रहा जाता मुझ से पूरा दिन घर में बंद हो कर.”

“पर डिअर, तुम तो पहले भी घर पर ही रहती थीं न, मैं ही तो औफिस जाता था और मैं तो चुपचाप हूं घर पर, कोई शिकायत भी नहीं करता. तुम्हें और सोनू को देख कर ही खुश हो जाता हूं.”

रोमा मन ही मन फुंफकारती रह गई. कैसे कहे किसी से कि सुजय से प्यार हो गया है उसे और वह रोज उस से मिलती थी. शाम को जब वह सोनू को ले कर पार्क में जाती, तो वह भी वहीं दौड़ रहा होता. आंखों ही आंखों में उस के सुगठित शरीर को देख कर तारीफ़ कर उठती तो सुजय भी समझ जाता और उसे देख एक स्माइल करता पास से निकल जाता. धीरेधीरे हायहैलो से शुरू हुई बातचीत अब एक अच्छाख़ासा अफेयर बन चुकी थी. सुजय अविवाहित था. वह पास की ही एक बिल्डिंग में अपने पेरैंट्स और एक छोटी बहन के साथ रहता था.

रवि की अनुपस्थिति में रोमा ने एकदो बार सुजय को घर भी बुलाया था. ज्यादातर बातें मिलने पर या फोन पर ही होतीं. रोज मिलना एक नियम बन गया था. अच्छी तरह सजसंवर कर रोज सोनू को ले कर पार्क में जाना और सुजय से बातें करना जैसे रोमा को एक नए उत्साह से भर जाता.

अब लौकडाउन में सबकुछ बंद था. पार्क को बंद कर दिया गया था. सामान लेने के बहाने भी वह बाहर नहीं जा सकती थी. शौप्स बंद थीं. सब सामान औनलाइन आ रहा था. सुजय भी बाहर नहीं निकल रहा था.

सुजय के कभीकभी एकदो मैसेज आते जिन्हें रोमा फौरन डिलीट इसलिए करती कि कहीं रवि देख न ले. रवि रोमा को खुश रखने की बहुत कोशिश कर रहा था. पर रोमा की चिड़चिड़ाहट कम होने का नाम ही नहीं ले रही थी. रात के अंतरंग पलों में जब रोमा का मन होता तो

रवि का साथ देती, जब सुजय की तरफ मन खिंच रहा होता तो रवि का हाथ झटक देती.

रोमा जानती थी कि रवि एक सादा इंसान है जिस की ख़ुशी पत्नी और बच्चे को खुश देखने में ही है. न रवि में कोई ऐब था, न कोई और बुराई. कमाल की सादगी थी उस में. पर रोमा अलग स्वभाव की लड़की थी जिस ने पेरैंट्स के दबाव में आ कर रवि से शादी कर तो ली थी पर शादी के बाद सुजय से संबंध रखने में जरा भी नहीं हिचकिचाई थी. वह हमेशा रवि पर हावी

रहने की कोशिश करती.

एक दिन रवि ने पूछा, “रोमा, तुम मुझ से शादी कर के खुश तो हो न? आजकल जब से मैं घर

पर हूं, तुम बहुत गुस्से में दिखती हो.”

“शादी तो हो ही गई, अब खुश रहूं या दुखी, क्या फर्क पड़ता है, रोमा ने अनमनी हो कर जवाब दिया तो रवि ने उसे बांहों में भर कर कहा, “मुझे बताओ तो, आजकल क्यों इतना मूड खराब रहता है तुम्हारा?”

“मुझे घर में घुटन हो रही है, मुझे बाहर जाना है.”

“अच्छा,बताओ, कहां जाना है, मैं घुमा कर लाता हूं. पर, सब तो बंद है.”

“तुम्हारे साथ नहीं, अकेले जाने का मन है,” रोमा ने सपाट स्वर में कहा तो रवि उस का मुंह देखता रह गया. रोमा ने उस का बढ़ा हुआ हाथ झटका और बेरुखी से वहां से चली गई.

रवि की कुछ जरूरी मीटिंग थी, वह लैपटौप पर बैठ तो गया पर उस का दिल आज बहुत उदास था. वह सोचने लगा, क्या मिल रहा है उसे अपने पेरैंट्स की पसंद से शादी कर के. रोमा उसे पसंद नहीं करती, यह एहसास उसे होने लगा था. उस के पेरैंट्स रोमा से कुंडली मिलने पर बहुत

खुश हुए थे कि खूब अच्छी जोड़ी रहेगी. पर आज वह अपने मन का दुख किसी से भी शेयर नहीं कर सकता था.

रोमा से रुका नहीं गया तो रवि जब एक दिन नहाने गया, उस ने सुजय को फोन मिला दिया. सुजय मीटिंग में था. वह भी घर से काम कर रहा था. वह फोन नहीं उठा पाया. रोमा का दिल बुझ गया. सुजय ने जब वापस उसे फोन किया तो रवि आसपास था. वह फोन नहीं उठा पाई और उसे रवि पर इतनी जोर से गुस्सा आया कि उस ने रवि को नाश्ते की प्लेट इतनी जोर से पटक कर दी कि रवि को गुस्सा आ गया, बोला, “दिमाग खराब हो गया है तुम्हारा? यह खाना देने की तमीज है तुम्हारी?”

रोमा पर सुजय का भूत सवार था, आवारागर्दियां याद आ रही थीं, चिल्ला कर बोली, “खाना है, तो खाओ वरना मेरी बला से.”

रोमा के इतनी जोर से चिल्लाने पर सोनू डर कर जोर से रो उठा. रवि ने उसे सीने से लगा लिया और चुप करवाने लगा. अभी जो भी हुआ था, रवि को यकीन ही नहीं आ रहा था कि कभी रोमा ऐसे भी बात कर सकती है. वह हैरान था, खामोश था. यह खामोशी अब उसे अंदरअंदर जलाने लगी थी. क्या हुआ है रोमा को, कुछ समझ नहीं आ रहा था.

रोमा का फोन कभी रवि ने चैक नहीं किया था. उस ने रोमा के पर्सनल स्पेस में कभी हस्तक्षेप नहीं किया था. उस ने हमेशा उसे पूरी आज़ादी दी थी. गलती कहां हो रही है जो घर का माहौल इतना खराब होता जा रहा था, यह सोचसोच कर रवि का दिमाग परेशान हो चुका था.

एक दिन लंच कर के रोमा सोनू के साथ सोने के लिए लेटी. रवि लिविंगरूम में काम कर रहा था. रोमा ने सुजय को मैसेज किए. उधर से भी फौरन रोमांस शुरू हो गया. सुजय की बेचैनी देख रोमा को अच्छा लगा पर मिलने की मजबूरी ने रोमा का फिर मूड खराब कर दिया और उसे रवि पर फिर गुस्सा आने लगा कि पता नहीं कितने दिनों तक रवि घर में बैठा रहेगा, कब जाएगा औफिस.

थोड़ी देर में फोन रख वह बिना बात के किचन में जा कर खटपट करने लगी. रवि ने इशारा किया कि वह जरूरी मीटिंग में है, शोर न हो. पर रोमा जानबूझ कर और शोर करने लगी. यहां तक कि लिविंगरूम में रखा टी वी भी चला कर बैठ गई. मीटिंग से

उठते ही रवि ने रोमा को डांटा, “यह क्या बदतमीजी है, टीवी अभी देखना जरूरी था?”

“तो कब देखूं? सारा दिन तो घर में डटे हो, कहीं जाते भी नहीं जो थोड़ी देर चैन से जी लूं. सारी प्राइवेसी ख़त्म हो गई मेरी. अपनी मरजी से जी भी नहीं सकती,” यह कहतेकहते रोमा ने रिमोट जोर से सोफे पर पटका तो रवि ने यह सोच कर कि सोनू फिर न रोने लगे, अपनी आवाज धीरे की और समझाया, “क्यों इतनी परेशान हो रही हो, अच्छा, तुम देख लो टीवी, मैं अंदर ही बैठ कर काम कर लूंगा.” यह कह कर रवि अपना लैपटौप उठा कर अंदर जाने लगा तो रोमा ने अंदर जाते हुए कहा, “नहीं, अब मैं आराम करने जा रही हूं.”

हैरानपरेशान रवि सिर पकड़ कर बैठ गया. क्या हो गया है रोमा को, कैसे चलेगा ऐसे. फिर सोचा, शायद घर में रहरह कर सभी को ऐसी ही परेशानी है, वह खुद एडजस्ट कर लेता है हर चीज तो जरूरी तो नहीं कि कोई और परेशान न हो. छोटा बच्चा है, उस के भी काम आदि करने में वह थक जाती होगी. मेड आ नहीं रही है, लखनऊ में केसेस भी काफी हो गए हैं.

कहां इस सोसाइटी में रोमा कितनी ख़ुशी से घूमतीफिरती थी, कहां उस का सबकुछ बंद हो गया. किस पर गुस्सा निकलेगा, मुझ पर ही न, सब रिश्तेदार भी जब फोन पर बातें करते हैं, यही कोरोना की बातें तो रह गई हैं. इंसान खुश भी हो तो किस बात पर. कहीं तो चिढ़ निकलेगी ही न रोमा की. नहीं, ये हालात की ही बात है.

सबकुछ रोमा के पक्ष में ही सोच कर रवि फिर रोमा के पास जा कर बैठ गया और उस का सिर सहलाने लगा. सोनू सोया हुआ था. सुजय ने अभी चैट शुरू ही की थी कि रवि के आने से उस में विघ्न पड़ गया. रोमा आगबबूला हो गई, गुर्राई, “तुम चैन से मत जीने देना मुझे.”

रवि का चेहरा अपमान से लाल हो गया. क्याक्या सोच कर वह रोमा के पास आया था. चुपचाप उठ कर सोफे पर आ कर लेट गया. आंखों की कोरों से नमी सी बह निकली.

सोसाइटी की हर बिल्डिंग में पार्किंग के एरिया में थोड़ी खुली जगह थी. वहां रात को इक्कादुक्का लोग टहलने के लिए आ जाते. सुजय ने प्रोग्राम बनाया कि रात 9 बजे डिनर के बाद वहां टहलते हुए, दूर से ही सही, एकदूसरे को देखा जा सकता है. और कोई न रहा, तो बातें भी हो सकती हैं. रोमा को यही सब तो चाहिए था. वह चहक उठी. उस दिन रवि से भी कुछ बदतमीजी नहीं की.

रवि ने भी अब खामोशी ओढ़ ली थी. हर समय रोमा का मूड देख कर ही बात करना मुश्किल था. अब वह सिर्फ काम की ही बात करता, सोनू से खेलता और घर के कई काम चुपचाप करता रहता. रोमा डिनर के बाद अकेली टहलने जाने लगी. यह एक नियम सा बन गया. कहां रवि और सोनू को घर से निकलते हुए लंबा टाइम हो जाता, वहां रोमा रोज अब चहकती सी जाने लगी.

रवि ने यह सोच कर तसल्ली कर ली कि चलो, इतने से ही रोमा खुश है, तो अच्छा है. इस का मतलब, यह बस घर में ही परेशान हो रही थी. इस का बाहर जाना बंद हो गया था, इसलिए यह गुस्से में रहती थी. ऐसा तो कोरोना के टाइम में बहुत से लोगों के साथ हुआ

है. चलो, कोई बात नहीं.

सुजय के पेरैंट्स कुछ बीमार चल रहे थे, इसलिए उस ने रोमा को मैसेज किया, “रोमा, कुछ दिन अब फिर नहीं मिलेंगे, मम्मीपापा का ध्यान रखना है. नीचे काफी लोग आने लगे हैं. मैं कहीं कोई इंफैक्शन न ले आऊं, मम्मीपापा को कोई प्रौब्लम न हो जाए, इसलिए घर पर ही रहूंगा अभी. फिर कभी मिलेंगे.”

रोमा को फिर एक झटका सा लगा. उस का मूड खराब हो गया. उसे तो यही लगने लगा था कि लाइफ में जो भी उत्साह है, सब सुजय से है. रवि तो घर में रहरह कर उस की प्राइवेसी को ही भंग करता है. रवि के कारण ही वह फोन पर सुजय से बात भी नहीं कर पाती है. रवि पर वह फिर खूब बरसने लगी. रवि परेशान था. वह कितना चुप रहे, क्या करे, लड़नाझगड़ना उस की फितरत ही नहीं थी. बेहद शांत स्वभाव का इंसान ऐसी स्थिति में खामोश रहना ही हल

समझने लगता है. रवि भी वही कर रहा था.

कुछ दिन ऐसे ही खराब, अनमने से बीते. फिर एक दिन सुजय का मैसेज आया, “रोमा, बहुत बढ़िया मौका है. यहां से थोड़ी दूर की सोसाइटी में हमारा जो फ्लैट किराए पर था, वह किराएदार अपने घर चला गया है. अब वह फ्लैट खाली है. फुली फर्निश्ड है. वहां मिल सकते हैं. कितने दिन हो गए, तुम्हें जीभर देखा भी नहीं, आओगी?”

रोमा ने टाइप किया, “आना है तो बहुत मुश्किल, पर कोशिश करूंगी.”

“अरे, यह मौका जाने दोगी?”

“रवि से क्या कहूंगी? वह वर्क फ्रौम होम करता है, सोनू को भी देखना होता है.”

“यार, ये सब अब तुम देखो, आओ किसी तरह.”

रोमा ने सारा दिमाग लगा दिया कि कैसे निकले घर से, कोई बहाना काम करता नहीं दिख रहा था. बात नहीं बनी तो सारे कोप का भाजन रवि ही बनता चला गया. उस दिन रवि लंच लगाने में हैल्प करने उठा तो रोमा ने कहा, “रहने दो, मैं कर लूंगी.”

 

रवि कुछ बोला नहीं, चुपचाप प्लेट्स रखता रहा. आजकल वह खामोश होता जा रहा था. कुकर गरम था. जैसे ही वह राइस का कुकर उठा कर लाने लगा, रोमा के दिल में सुजय से न मिल पाने की कसक उस पर इतनी हावी थी कि उस ने चिढ़ कर उसे धक्का सा दे दिया. गरम कुकर रवि के हाथ से छूट कर उस के पैर पर गिरा. वह दर्द से तड़प उठा. रोमा ने एक जलती निगाह उस पर डाली, फिर कुकर उठा टेबल पर जा कर रखा और सोनू को पास रखी चेयर पर बिठाया व अपनी प्लेट में खाना निकाल कर खुद भी खाने लगी और उसे भी खिलाने लगी.

रवि अब तक अपने पैर पर लगाने के लिए फ्रिज से आइस पैक निकाल कर सोफे पर आ कर बैठ गया. रोमा पर नजर डाली, वह आराम से रवि को अनदेखा कर खाना खाने में बिजी थी. जलन से रवि का बुरा हाल था. बहने को तैयार आंसुओं को बड़ी मुश्किल से रोक रखा था रवि ने.

कौन कहता है पुरुष को रोना नहीं आता, आता है जबजब रोमा जैसी पत्नियां इस पर उतर आती हैं कि उन्हें अपनी मौजमस्ती के आगे घर, पति बंधन लगने लगें तब यही होता है. पुरुष के सीने में ऐसी खामोशियों का सागर तूफ़ान मचा रहा होता है जिन की आवाज भी बाहर नहीं आ पाती. इन खामोशियों का शोर बहुत जानलेवा होता है.

बहुत ही बेबस रवि को कुछ समझ नहीं आ रहा था. वह आराम से खाना खाती रोमा को देखता रह गया. उसे किस बात की सजा मिल रही है, यह वह समझ ही नहीं पा रहा था. Sad Story in Hindi

Love story in Hindi: पार्टनर- कुछ पाने के लिए कुछ खोना भी पड़ता है

Love story in Hindi: आवाज में वही मधुरता, जैसे कुछ हुआ ही नहीं. काम है, करना तो पड़ेगा, कोई लिहाज नहीं है. दुखी हो तो हो जाओ, किसे पड़ी है. बिजनैस देना है तो प्यार से बोलना पड़ेगा. छवि अब भी फोन पर बात करती तो उसी मिठास के साथ कि मानो कुछ हुआ ही नहीं. वैसे कुछ हुआ भी नहीं.

बस, एक धुंधली तसवीर को डैस्क से ड्रौअर के नीचे वाले हिस्से में रखा ही तो है. अब उस की औफिस डैस्क पर केवल एक कंप्यूटर, एक पैनहोल्डर और उस के पसंदीदा गुलाबी कप में अलगअलग रंग के हाइलाइटर्स रखे थे. 2 हफ्ते पहले तक उस की डैस्क की शान थी ब्रांच मैनेजर मिस्टर दीपक से बैस्ट एंप्लौयी की ट्रौफी लेते हुए फोटो. कैसे बड़े भाई की तरह उस के सिर पर हाथ रख वे उसे आगे बढ़ने को प्रेरित कर रहे थे.

आज उस ने फोटो को नीचे ड्रौअर में रख दिया. अब वह ड्रौअर के निचले हिस्से को बंद ही रखती. वह फोटो उस के लिए बहुत माने रखती थी. इस कंपनी में पिछले 6 महीने से छवि सभी एंप्लौयीज के लिए रोलमौडल थी और दीपक सर के लिए एक मिसाल. छवि ने घड़ी देखी, 5 बजने में अब भी 25 मिनट बाकी थे. अगर उस के पास कोई अदृश्य ताकत होती तो समय की इस बाधा को हाथ से पकड़ कर पूरा कर देती. समय चूंकि अपनी गति से धीरेधीरे आगे बढ़ रहा था, छवि ने अपने चेहरे पर हाथ रख, आंखों को ढक अपनी विवशता को कुछ कम किया.

अभी तो उसे लौगआउट करने से पहले रीजनल मैनेजर विनोद को दिनभर की रिपोर्टिंग करनी थी, यही सोच कर उस का मन रोने को कर रहा था. अगर उस ने फोन नहीं किया तो कभी भी उन का फोन आ सकता है. औफिस का काम औफिस में ही खत्म हो जाए तो अच्छा है.

घर तक ले जाने की न तो उस की ताकत थी और न ही मंशा. यह आखिरी काम खत्म कर छवि एक पंख के कबूतर की तरह अपनी कंपनी के वन बैडरूम फ्लैट में आ गई. फ्लैट की औफव्हाइट दीवारों ने उस का स्वागत उसी तरह किया जैसे उस ने किसी अनजान पड़ोसी को गुडमौर्निंग कहा हो. फ्लैट में कंपनी ने उसे बेसिक मगर ब्रैंडेड फर्नीचर मुहैया करवा रखे थे. कभी उसे लगता घर भी औफिस का ही एक हिस्सा है और वह कभी घर आती ही नहीं. सच भी तो है, पिछले 6 महीने में वह एक बार भी घर नहीं गई थी.

मात्र 100 किलोमीटर की दूरी पर उस का कसबा था, सराय अजीतमल. पर वहां दिलों की बहुत दूरी थी. पिता के देहांत के बाद मां ने पिता के एक दोस्त प्रोफैसर महेश से लिवइन रिलेशन बना लिए. अब छवि का घर, जहां वह 22 साल रही, 2 प्रेमियों का अड्डा बन गया जहां उस के पहुंचने से पहले ही उस के जाने के बारे में जानकारी ले ली जाती.

कभीकभी तो उसे अपनी मां पर आश्चर्य होता कि वह क्या उस के पिता के मरने का ही इंतजार कर रही थी. पिता पिछले 5 सालों से कैंसर से जूझ रहे थे. इसी कारण छवि को बीच में पढ़ाई छोड़ जौब करनी पड़ी और महेश अंकल ने तो मदद की ही थी. यह बात और है कि उसे न चाहते हुए भी अब उन्हें पापा कहना पड़ता.

छवि ने अपनेआप को आईने में देखा और थोड़ा मुसकराई, वह सुंदर लग रही थी. औफिस में नौजवान एंप्लौयी चोरीछिपे उसे देखने का बहाना ढूंढ़ते और कुछेक अधेड़ बेशर्मी के साथ उस से कौफी पीने का अनुरोध करते. दीपक सर की चहेती होने से कोई सीधा हमला नहीं कर पाता. क्या फोन पर रिपोर्टिंग करते समय विनोद सर जान पाते होंगे कि यह एक पंख की कबूतर कौन्ट्रैक्ट की वजह से अब तक इस नौकरी को निभा रही है, हां…दीपक सर का अपनापन भी एक प्रमुख कारण था कि वह दूसरा जौब नहीं ढूंढ़ पाई. क्या पता उन्हें मालूम हो कि औफिस जाना उसे कितना गंदा लगता है.

वह नीचे झुकी, ड्रैसिंग टेबल पर फाइवस्टार रिजोर्ट में 2 दिन और 3 रातों का पैकेज टिकट पड़ा था. मन किया उस के टुकड़ेटुकड़े कर फाड़ कर फेंक दे, पर उस ने केवल एक आह भरी और कमरे की दीवारों को देखने लगी. दीवारों की सफेदी ने उसे पिछले महीने गोवा में समंदर किनारे हुई क्लाइंट मीटिंग की याद दिला दी. मन कसैला हो गया. कैसे समुद्र का चिपचिपा नमकीन पानी बारबार कमर तक टकरा रहा था और 2 क्लाइंट उस से अगलबगल चिपके खड़े थे. उन दोनों की बांहों के किले में वह जकड़ी थी और विनोद सर से ‘चीज’ कह कर एक ग्रुप फोटो लेने में व्यस्त थे.

छवि एक बिन ताज की महारानी की तरह कंपनी और क्लाइंट के बीच होने वाली डील में पिस रही थी. एक लहर ने आ कर उसे गिरा दिया, वह सोचने लगी कि क्या वह सचमुच गिर गई थी. बस, विनोद सर बीचबीच में हौसला बढ़ाते रहते, ‘बिजनैस है, हंसना तो पड़ेगा.’ उन के शब्द याद आते ही उस का मन रोने का किया. उसे लगा इस कमरे की दीवारें सफेद लहरें हैं जो उस के मुंह पर उछलउछल कर गिर रही हैं.

वह जमीन पर बैठ गईर् और घुटनों को सीने से लगा सुबकने लगी. अपनी कंपनी से एक कौन्ट्रैक्ट साइन कर उस ने 3 साल की सैलरी का 60 प्रतिशत हिस्सा पहले ही ले लिया था. सारा पैसा पिता की बीमारी में लग गया. छवि का मन रोने से हलका हो गया. थोड़ी राहत मिली तो उठ कर बैड पर बैठ गई. डिनर करने का मन नहीं था, इसलिए सो गई.

सुबह 7 बजे सूरज की किरणें जब परदे को पार कर आंखों में चुभने लगीं तो वह हड़बड़ा कर उठी. वह ठीक 9 बजे औफिस पहुंच गई, उस के पास एक छोटा बैग था. दीपक सर उसे देख कर हलका सा मुसकराए. वह उन से भी छिपती हुई जल्दी से अपने कैबिन में आ कर बैठ गई.

1 घंटा प्रैजैंटेशन बनाने के बाद उसे बड़ी थकान लगने लगी, लगता था कल के रोने ने उस की बहुत ताकत खींच ली थी. तभी फोन बजा और उस का आलस टूटा. दूसरी लाइन पर दीपक सर थे, बोले, ‘‘तुम ने क्या सोचा?’’

ड्रौअर के नीचे के आखिरी खाने में कौन्ट्रैक्ट की कौपी और दीपक सर के साथ उस की फोटो थी. उस ने कौन्ट्रैक्ट को बिना देखे, फोटो को उठा अपने बैग में डाल लिया और बोली, ‘‘आप के साथ पार्टनरशिप,’’ और छवि ने फोन काट दिया. यह कोई पागलपन नहीं था, बल्कि एक सोचासमझा फैसला था.

छवि ने ड्रौअर को ताला लगाया और चाबियों को झिझकते हुए, पर दृढ़ता से, पर्स में डाल दिया. 15 दिन लगे पर उसे अपने फैसले पर विश्वास था. फोटो को बैग से निकाल कर एक बार फिर देखा, थोड़ा धुंधला लग रहा था पर उस में अब भी चमक थी.

छवि की आंखों में हलका गीलापन था, कौन्ट्रैक्ट का पैसा दीपक सर की हैल्प से भर पा रही थी. अब वह कंपनी में कभी नहीं आएगी. वह अब आजाद थी. पर 2 दिन और 3 रातें दीपक सर के साथ रिजोर्ट में बिता कर वह उन्हीं के नए फ्लैट में रहेगी, एक पार्टनर बन कर. Love story in Hindi

Hair Care Tips: बाल धोने के अगले ही दिन चिपचिपे हो जाते हैं. कोई उपाय?

Hair Care Tips

 बाल धोने के अगले ही दिन चिपचिपे हो जाते हैं जबकि मैं शैंपू अच्छे से करती हूं. कोई उपाय बताएं?

शायद आप शैंपू तो सही कर रही हैं लेकिन कंडीशनर स्कैल्प पर लग जाता है जिस से जड़ें औयली हो जाती हैं या फिर शैंपू सल्फेट फ्री नहीं है जो नैचुरल औयल को पूरी तरह हटा देता है और स्किन उस से लड़ने के लिए ऐक्स्ट्रा औयल बनाती है. हमेशा कंडीशनर को सिर्फ बालों के बीच और उन के सिरों तक ही लगाएं, जड़ों पर नहीं. लाइट आयुर्वेदिक या सल्फेट फ्री शैंपू यूज करें. हफ्ते में 1 बार बालों में नीम के पानी या मेथी के पानी से रिंस करें.

 मेरे सिर की स्किन बहुत टाइट और गरम लगती है, बाल भी झड़ते हैं. क्या करूं?

यह ‘स्कैल्प हीट’ कहलाता है. जब आप की स्कैल्प में ब्लड सर्कुलेशन सही नहीं रहता या बहुत स्ट्रैस होता है तो सिर गरम हो जाता है और बालों की जड़ें कमजोर हो जाती हैं. गरमियों में या स्ट्रीट फूड ज्यादा खाने पर भी ऐसा होता है. इस से बचने के लिए हफ्ते में 2 बार ठंडी तासीर वाले तेल जैसे ब्राह्मी, भृंगराज या नारियल से मसाज करें. खाने में चटपटा, ज्यादा तला हुआ खाना कम करें. कुछ दिन रात को सोने से पहले आंवला या शतावरी का चूर्ण पानी के साथ लें. स्कैल्प कूलिंग मिस्ट या हर्बल हेयर टौनिक का यूज भी बहुत फायदेमंद रहता है.

Health Problems: रोज एक्सरसाइज फिर भी वजन नहीं घट रहा, क्या करूं?

Health Problems

मैं 32 वर्षीय कामकाजी महिला हूं. पिछले 2 वर्षों से मैं नियमित रूप से ऐक्सरसाइज कर रही हूं, लेकिन मेरा वजन कम नहीं हो रहा है. मैं जानना चाहती हूं कि खानपान की वजन कम करने में क्या भूमिका है?

वजन कम करने में खानपान की सब से महत्त्वपूर्ण भूमिका है. आप कितनी भी ऐक्सरसाइज कर लें, लेकिन अगर आप अपनी कैलोरी इनटेक को नियंत्रित नहीं रखेंगी तो वजन कम कर पाना संभव नहीं होगा. दिन में 3 बार मेगा मील खाने के बजाय 6 बार मिनी मील खाएं. गेहूं के बजाय मल्टीग्रेन आटे का सेवन करें. हरी सब्जियां जैसे पालक, मेथी और सरसों खूब खाएं. 1 दिन में 600 ग्राम हरी सब्जियां खाने की कोशिश करें.

जितनी बार भोजन करें उतनी बार आप की थाली में एक ऐसा पकवान जरूर हो, जिस में प्रोटीन हो. चावल, चौकलेट, कौफी, चिप्स, मिठाई तथा फास्ट फूड के स्थान पर सादा, सुपाच्य तथा संतुलित भोजन लें. भोजन को खूब चबाचबा कर खाएं तथा हमेशा कुछ न कुछ खाते रहने से परहेज करें. रात का खाना सोने से 2 घंटे पहले कर लें.

 

मुझे फल खाने बहुत पसंद हैं, लेकिन मुझे डायबिटीज है. ऐसे में क्या मुझे इन्हें खाना बंद कर देना चाहिए?

यह एक सामान्य लेकिन पूरी तरह से गलत धारणा है. जिन्हें डायबिटीज है वे सामान्य लोगों की तरह सभी फल खा सकते हैं लेकिन उन्हें केवल मात्रा का ध्यान रखना है. आप रोज 150-200 ग्राम फल बिना किसी परेशानी के खा सकती हैं. जिन्हें डायबिटीज है, उन्हें ऐसे फल खाने चाहिए जिन का ग्लाइसेमिक इंडैक्स कम हो जैसे सेब, संतरा, पपीता, नाशपाती, अमरूद, अनार. अंगूर, आम, चीकू, पाइनऐप्पल से परहेज करना चाहिए, लेकिन अगर बहुत मन करे तो कभीकभार बिलकुल थोड़ी मात्रा में इन्हें ले सकती हैं. आप कभीकभी 1 छोटा केला भी खा सकती हैं, लेकिन बड़े आकार का केला न खाएं.

 

मैं 45 वर्षीय कामकाजी महिला हूं. मुझे पिछले कुछ महीनों से उच्च रक्तदाब की शिकायत हो गई है. क्या मुझे नमक खाना पूरी तरह बंद कर देना चाहिए?

नहीं, आप को बिलकुल ऐसा नहीं करना चाहिए. शरीर के सुचारु रूप से काम करने के लिए उचित मात्रा में नमक का सेवन जरूरी है. आप का रक्तदाब सामान्य से अधिक रहने लगा है, इसलिए आप को नमक का सेवन थोड़ा कम कर देना चाहिए. जिन्हें हाइपरटैंशन है, नमक का अधिक मात्रा में सेवन उन के रक्तदाब को खतरनाक स्तर तक बढ़ा देता है.

नमक में सोडियम होता है जो रक्तनलिकाओं को कड़ा और संकरा कर देता है. इस से हृदय को शरीर में रक्त पंप करने के लिए अतिरिक्त मेहनत करनी पड़ती है, जिस से हृदय रोगों, स्ट्रोक और गुरदे की बीमारियां होने की आशंका बढ़ जाती है. अगर आप नमक का सेवन पूरी तरह बंद कर देंगी तो आप का रक्तदाब खतरनाक स्तर तक कम हो जाएगा और शरीर के दूसरे अंगों की कार्यप्रणाली भी प्रभावित होगी.

Hindi Love Story: राधा, रवि और हसीन सपने

Hindi Love Story: ‘‘अगर तुम ने मेरी बात नहीं मानी, तो मैं खुद को खत्म कर लूंगी. फिर तुम मुझे कभी नहीं पा सकोगे. अगर तुम वाकई मुझ से प्यार करते हो, तो जैसा मैं कहती हूं, वही तुम्हें करना होगा.’’

रवि ने जब राधा की धमकी सुनी, तो उस के होश उड़ गए. उस ने कभी नहीं सोचा था कि राधा अपने ही भाई को मौत के घाट उतारने के लिए इस कदर बेकरार होगी.

रवि एक बार फिर उसे समझाते हुए बोला, ‘‘राधा, अगर हम ने तुम्हारे भाई उमेश की जान ली, तो हमें भी अपनी जवानी जेल की दीवारों के बीच गुजारनी पड़ सकती है.’’

रवि की बात सुनते ही राधा गुस्से में बोली, ‘‘तो ठीक है, तुम जाओ यहां से. मैं सबकुछ समझ गई. तुम्हें मेरी बात पर जरा भी भरोसा नहीं है…’’

इतना कह कर राधा ने रवि की तरफ से मुंह फेर लिया और करवट बदल कर दूसरी तरफ देखने लगी. रवि और राधा इस वक्त रवि के घर की दूसरी मंजिल पर पलंग पर बिना कपड़ों के लेटे थे. रवि का सारा मजा किरकिरा हो गया था, लेकिन वह हार मानने वाला नहीं था. रवि ने राधा को अपनी तरफ घुमा कर पहले जी भर कर चूमा और फिर जब दोनों प्यार की आग में दहकने लगे, तो एकदूसरे में समा गए.  राधा रवि को तब से चाहती थी, जब वह 12वीं जमात के इम्तिहान देने शहर के स्कूल गई थी.

चूंकि राधा और रवि एक ही जगह के रहने वाले थे, इसलिए वहां उन की जानपहचान हो गई थी. राधा अगड़ी जाति की थी और रवि निचली जाति का, इसलिए दोनों के लिए परेशानी थी. लेकिन तकरीबन 3 साल तक लुकछिप कर मुहब्बत करने के बाद जब एक दिन राधा ने परिवार वालों को अपने और रवि के बीच प्यार और शादी की तमन्ना वाली बात बताई, तो उस के घर का माहौल अचानक खराब हो गया.

राधा की 5 बहनों की शादी हो चुकी थी. वह सब से छोटी थी. उमेश इन बहनों के बीच अकेला भाई था. उसी ने राधा के इस प्यार का विरोध किया था. राधा की मां काफी बूढ़ी हो चुकी थीं. पिताजी की मौत एक हादसे में पहले ही हो चुकी थी. उमेश को पिताजी की जगह क्लर्क की नौकरी मिल चुकी थी. उमेश शादीशुदा था, लेकिन राधा का बेहद विरोधी था, इसीलिए राधा भाई उमेश और भाभी साक्षी को अपना दुश्मन मानती थी.

जब एक दिन रात को राधा रवि से फोन पर बातें कर रही थी, तभी उमेश ने उसे बातें करते देख कई तमाचे जड़ दिए थे. इतना ही नहीं, राधा के हाथ से मोबाइल फोन छीन कर उसे बड़ी बहन के घर छोड़ आया था. राधा रवि को किसी भी कीमत पर छोड़ना नहीं चाहती थी, वहीं उमेश की जिद थी कि वह राधा की शादी रवि से कभी नहीं होने देगा.

राधा चाहती थी कि रवि उमेश को जान से मार दे, ताकि उस के प्यार पर कोई पाबंदी लगाने वाला न बचे, लेकिन रवि राधा की बात मानने को तैयार नहीं था. वह जानता था कि राधा जो चाहती है, वह जुर्म है. लकिन रवि भी इश्क की चाशनी का स्वाद चख चुका था. लाख मना करने के बाद भी आखिर में वह वही करने को तैयार हो गया, जो राधा चाहती थी. तय समय और तारीख पर रवि को राधा के फोन का इंतजार था.

जब राधा का फोन आया, तब रवि तुरंत अपने मनसूबों को अंजाम देने चल दिया. राधा और रवि एकएक कदम सावधानी से आगे बढ़ा रहे थे. शायद इसीलिए जब वे दोनों एकसाथ उमेश के कमरे के पास पहुंचे, तो अचानक राधा ने रवि को हाथ से इशारा कर के रोक दिया और अकेले ही उस के कमरे में घुस गई. राधा ने सब से पहले कमरे की लाइट जलाई और देखा कि उमेश गहरी नींद में सो गया है या नहीं. जब राधा को इतमीनान हो गया कि उमेश गहरी नींद में है, तो उस ने रवि को अंदर बुलाया.

रवि ने उमेश को चादर में लपेट दिया और जोर से उस का गला दबाने लगा. उमेश छटपटा कर पलंग के नीचे गिर गया, लेकिन जल्दी ही राधा और रवि ने उस पर काबू पा लिया था. जब उन दोनों को भरोसा हो गया कि उमेश अब जिंदा नहीं है, तभी उन्होंने उसे छोड़ा था. फिर उन दोनों ने उमेश का बिस्तर ठीक किया और दोबारा चादर इस तरह ढक दी, जैसे वह गहरी नींद में सो रहा हो. फिर वे दोनों एकदूसरे को बांहों में भर कर चूमने लगे. उस समय राधा काफी सैक्सी लग रही थी. एक बार जब राधा की प्यास जाग जाती थी, तो आसानी से उसे संतुष्ट कर पाना सब के बस की बात न थी. रवि कसरती बदन का मालिक था. वह राधा को बेहद और भरपूर मजा देता था, इसीलिए राधा उसे जीजान से चाहती थी. राधा और रवि इस कदर इश्क में अंधे हो गए कि बगल में पड़ी लाश भी न दिखाई दी. दोनों वहीं पर प्यार के समुद्र में गोते लगाने लगे.

सुबह हुई, तो राधा बिलखबिलख कर पूरे महल्ले के सामने कह रही थी, ‘‘हाय, मेरा एकलौता भाई… कहां चला गया तू…’’ उस ने उमेश की मौत को स्वाभाविक मौत मानने पर सब को मजबूर कर दिया था.

पुलिस भी यही मान कर चल रही थी कि उमेश की मौत स्वाभाविक है कि तभी थाना इंचार्ज ने कहा, ‘‘उमेश की तो शादी हो चुकी है. इस की बीवी को आ जाने दीजिए.’’ तब राधा ने बड़ी चालाकी से कहा, ‘‘अरे साहब, वह तो इस से झगड़ा कर के मायके गई है. वह आ भी जाएगी, तो क्या करेगी. कम से कम मेरे भाई का अंतिम संस्कार तो समय पर हो जाने दीजिए.’’ राधा की बारबार अंतिम संस्कार की बात पर पहले तो सभी को अटपटा लगा, लेकिन जब वह लाश के सड़नेगलने की बात करने लगी, तो पुलिस भी इस के लिए राजी हो गई. पुलिस अपना काम पूरा समझ कर वहां से जाने ही वाली थी, तभी बाजी पलट गई. उसी वक्त उमेश की पत्नी साक्षी अपने मायके वालों के साथ वहां आ गई. साक्षी ने आते ही पुलिस से लाश का पोस्टमार्टम कराने की बात कही, तो राधा के होश उड़ गए. जैसे ही पुलिस को पोस्टमार्टम की रिपोर्ट मिली, तो पुलिस तुरंत हरकत में आ गई.

शक होते ही राधा को तुरंत गिरफ्तार कर पुलिस थाने ले आई. इस के बाद पुलिस रवि की खोज में दौड़ गई और उसे भी धर दबोचा. राधा और रवि के हसीन सपने बहुत देर तक पुलिस केसामने टिक न सके.

राधा खुद अपनी जबान से काली करतूत बयान करने लगी, ‘‘साहब, हम 6 बहनें हैं. उमेश मेरा एकलौता भाई था. लेकिन केवल कहने का भाई था. उसे अपनी बीवी के अलावा किसी और की चिंता न थी. वह अपनी बीवी के कहने पर मुझ पर जुल्म ढाता था, इसलिए मैं ने उसे खत्म करने का फैसला कर लिया था.

‘‘मैं मौके की तलाश में थी, तभी इस का अपनी बीवी से झगड़ा हो गया. वह अपने मायके चली गई. मैं ने मौका पा कर रवि को फोन कर के बुलाया था. हम दोनों ने उमेश का गला दबा कर उसे मार डाला था.

‘‘साहब, मैं रवि से प्यार करती हूं और उसे मैं किसी भी कीमत पर छोड़ना नहीं चाहती थी…’’ राधा बिना किसी झिझक के अपना बयान दे रही थी. रवि पुलिस के सामने जहां फूटफूट कर रो रहा था, वहीं राधा की आंखों में आंसू का एक भी कतरा नहीं था. उसे अपने हसीन सपनों के लिए भाई की जान लेने का जरा भी दुख नहीं था. Hindi Love Story

लेखक- केपी सिंह ‘किर्तीखेड़ा’

Family Story in Hindi: लिमिट लाइन

Family Story in Hindi: तनु और नलिन के दांपत्य जीवन में सैकड़ों बार छोटीछोटी बातों को ले कर नोकझोंक हुई, लेकिन उस की एक सीमा थी. आज जब नलिन कुछ ज्यादा ही नाराज हो गया तो भी क्यों दोनों ने अपने इगो को छोड़ कर अपनीअपनी गलती मान ली? इस प्रकार उन दोनों के द्वारा उस बौर्डरलाइन को पार न करने पर क्या उन्हें सैटिस्फैक्शन मिली ही? ‘‘तुम हमेशा दूध का पाउच यों ही सिंक में छोड़ देती हो, बिना धोए.’’ ‘‘हमेशा?’’ ‘‘जी हां हमेशा.

धो कर वेस्ट बास्केट में डालने में तकलीफ होती है तुम्हें?’’ ‘‘सवेरे और भी ढेर सारे काम रहते हैं. अब गुडि़या 2-3 बजे दूध पीएगी. पाउच फाड़ कर दूध उबाला, उसे चुप कराया फिर ठंडा कर के पिलाया तो थोड़ी देर में धो कर फेंक दूंगी तो कौन सा पहाड़ टूट पड़ेगा? कभीकभी ही तो रखी रह जाती है, हमेशा नहीं.’’ ‘‘कभीकभी नहीं अकसर रखी रह जाती है.’’ ‘‘अकसर कहां रखी रह जाती है?’’ तनु की आवाज में तेजी आ गई थी.

‘‘एक तो पाउच धो कर नहीं रखा, ऊपर से बहस कर रही हो. सुबहसुबह पाउच स्मैल करने लगता है. तुम्हारी हमेशा की आदत है… चाय की छलनी भी पड़ी है. अभी तक वह भी नहीं धो कर रखी,’’ नलिन भी तमतमा गया. ‘‘आप रसोई में घुसते ही क्यों हैं? जब देखो तब मेरे क्षेत्र में दखल देते रहते हैं,’’ तनु तुनक कर बोली. नाश्ते के लिए भीगे चने बीनते हुए उस के हाथ रुक गए, ‘‘खाना बनाने को कह दूं तो कह देते हो कि तुम्हें लैपटौप पर काम करना है.’’ ‘‘यह देखने के लिए कि हमारी मेहनत की कमाई का कैसा दुरुपयोग हो रहा है. देवीजी, पाउच का बचा हुआ दूध वैसा ही बंद पड़ापड़ा सड़ जाएगा, जब तक आप को उसे धोने की फुरसत मिलेगी,’’ कहते हुए नलिन ने पाउच धो कर डस्टबिन में डाल दिया.

‘‘हांहां मुझो तो कोई काम करना नहीं आता. 10 साल से तो भाड़ झोंक रही हूं,’’ नलिन की बात पर तनु तिलमिला गई. बड़बड़ाना जारी ही था तनु का कि नलिन रसोई से बाहर निकल गया. चने कड़ाही में छौंक कर तनु ने लंच बौक्स में परांठे, सब्जी और अचार रख कर उसे बंद कर दिया. काफी देर हो रही थी. आज उसे उठने में भी देर हो गई थी. हड़बड़ाहट में उस ने कुछ कच्चे चने ही प्लेट में निकाल दिए.

जल्दीजल्दी उन के ऊपर कच्चा प्याज बुरका फिर जैसे ही दही का कटोरा उठाया कि चिकनाई की वजह से वह हाथ से फिसल गया. सारा दही जमीन पर बिखर गया. ‘‘उफ शिट,’’ उस के मुंह से निकला, ‘‘आज तो वे वैसे ही बहुत नाराज हैं. देर भी हो गई है ऊपर से दही भी फैल गया मेरी लापरवाही से.’’ तनु ने जल्दी से चनों में नीबू छिड़का और प्लेटें हाथ में उठा कर बाहर आ ही रही थी कि बाहर से बाइक स्टार्ट होने की आवाज आई. उस ने प्लेटें मेज पर रख दीं और जल्दीजल्दी बाहर दौड़ी. तब तक बाइक अगले मोड़ पर मुड़ गई और नलिन आंखों से ओझल हो गया.

तनु निराश सी अंदर आ गई. घड़ी देखी 9.40 हो रहे थे. जरा सी ही तो देर हुई है, सिर्फ 10 मिनट. ऐसा भी क्या? कह कर तो जाते. लंचबौक्स भी नहीं ले गए, तनु ने मन ही मन सोचा. वह रसोई में जा कर सफाई करने लगी. मूड तो पहले ही उखड़ गया था. धीरेधीरे तनु को क्रोध आने लगा कि चले गए तो चले जाएं. अभी ऐसा क्या हो गया जो जनाब तुनक कर चले गए. कई बार कहा कि मेरे काम के बीच में न बोला करो पर नहीं. भुनभुनाते हुए उस ने आंच जला कर दूध की बोतल उबलने रख दी. इसी मुई के पीछे लड़ाई हुई आज. अब गुडि़या की बोतल से दूध पीने की आदत भी छुड़ानी है.

2 साल की होने को आई पर अभी भी दूध पीने के लिए बोतल ही चाहिए. अब उसे गुडि़या पर गुस्सा आने लगा. पर उस बेचारी की क्या गलती, वह तो नासमझ है अभी. फिर वह सोचने लगी कि मेरी ही गलती है. सोचती हमेशा हूं, पर छुड़ाने की कोशिश में कोई उपाय नहीं करती. आखिर ऐसा कब तक चलेगा. मोनू ने भी 3 साल तक बोतल से दूध पीया था. बड़ी परेशानी हुई थी. रसोई साफ कर के तनु जल्दी बाहर गई. आज उस का मन नहीं लग रहा था. गुडि़या पड़ोस में खेल रही थी. तनु ने गुडि़या को आवाज दी तो रीता उसे ले आई. ‘‘जा अपनी मां के पास, मुझे भी कालेज जाना है,’’

गुडि़या को प्यार से धौल जमाती हुई रीता ने गुडि़या को तनु के हवाले कर दिया. गुडि़या को ले कर वह जल्दी अंदर आ गई. उस का मन छटपटा रहा था कि रीता से कह दे आज गुडि़या के पापा बिना नाश्ता किए गुस्से में चले गए पर फिर मन काबू में कर लिया कि क्या बताना? अभी यह बताऊंगी फिर यदि वह कहीं बढ़ाचढ़ा कर अपनी भाभी या मां को बता देगी तो वे पूछने ही चली आएंगी. उन्हें पूरा विस्तार सहित वर्णन कर के सुनाओ. फिर फायदा ही क्या है? अपनी ही बदनामी होगी.

कल को महल्लेभर में हवा फैल जाएगी कि तनु की तो अपने पति से पटती ही नहीं है. जबतब नाराज हो कर भूखे ही चले जाते हैं बेचारे. यही तो होता है इस कालोनी में. हालांकि 10 वर्षों में ऐसा पहली बार हुआ है. वैसे पड़ोसी अच्छे हैं. बच्चों के कारण उठनाबैठना हो जाता है. उन के घर में छोटे बच्चे नहीं हैं तो सब शौक से ले जाते हैं गुडि़या को खिलाने. वह भी सोचती है चलो अच्छा ही है काम आराम से हो जाता है थोड़ा, नहीं तो यह गुडि़या परेशान करती है. तनु ने गुडि़या को नहलाधुला कर तैयार किया.

फिर दोपहर बाद मोनू स्कूल से आ गया. मोनू के भी कपड़े बदलवा कर मुंहहाथ धुलाए. खाना खिला कर दोनों को सुला दिया. आज उस का मन बड़ा अनमना था. तनु को बीते दिनों की यादें सहलाने लगीं… जब उस की शादी हुई थी और नईनई आई थी तो नलिन कितनी तारीफ करता था उस की. तब नयानया चाव था. घर को खूब साफसुथरा और सजा कर रखती थी वह. उस की जौब अच्छी थी. दिनभर काम कर के भी वह घर सजाने में थकती नहीं थी. दिनरात कैसे इंद्रधनुष की तरह सतरंगे थे. फिर मोनू आ गया.

दोनों बहुत खुश हुए. वे दोनों मोनू की 1-1 हरकत को जिज्ञासु बन कर देखते, उस के साथ बच्चे बन कर खेलते. फिर मोनू हो गया. अब चाह कर मेड होने पर भी वह घर को उतना साफसुथरा नहीं रख पाती थी. मोनू में भी व्यस्त रहना पड़ता. मोनू के 5 साल के होतेहोते गुडि़या हो गई. तनु खुश हो गई कि उस का परिवार पूर्ण हो गया. वह सोचती अब और कुछ नहीं चाहिए. छोटीछोटी बातों को ले कर तो 10 वर्षों में सैकड़ों बार नोकझोंक हुई दोनों में पर ऐसा पहली बार हुआ कि नलिन नाश्ता और खाना छोड़ कर बिना बताए चला गया. इसीलिए तनु का बिलकुल मन नहीं लग रहा था किसी भी काम में.

उस ने भी खाना नहीं खाया. न नाश्ता ही किया. भूखी ही पड़ी रही. भूख के कारण रहरह कर क्रोध भी आ रहा था. मां के यहां रहने को कितना मन करता है, वह सोचने लगी पर रह नहीं पाती, इसीलिए कि इन्हें खानेपीने की तकलीफ होगी मेरे पीछे. उसे गए 10-12 दिन हुए नहीं कि नलिन के फोन आने लगेंगे, धड़ाधड़. फिर उस का मन ही नहीं लगता. पर मां से कहते हुए झिझक लगती है कि मैं अब जाऊंगी.

इसीलिए भाभी से कहलवाती है. पर भाभी भी कम थोड़े ही हैं, बहुत तेज हैं. बड़ी शरारत से मां से कहेंगी, ‘‘दीदी का अब मन नहीं लग रहा है मां आप के घर में. उन्हें भेज दीजिए.’’ तनु आंखें तरेरती है. तब चुटकी काट कर भाभी कहतीं, ‘‘अब आंखें क्यों दिखा रही हो? तुम्हीं ने तो कहा था कि मां से कह कर तुम्हें भिजवा दूं.’’ भाभी की शरारतें याद कर के तनु को मीठीमीठी गुदगुदी सी होने लगी कि बड़ी अच्छी हैं बेचारी, पर उन के पास अधिक दिन रह नहीं पाती. तनु फिर वर्तमान में लौट गई. पता नहीं क्या खाया होगा नलिन ने. 2 बार सोचा फोन करे पर फिर डर लगा कि कहीं वे गुस्सा न करें. कैंटीन का खाना नलिन को बिलकुल पसंद नहीं आता. मिर्च ज्यादा रहती है और वे मिर्च एकदम नहीं खा पाते, इसीलिए घर से खाना ले जाते हैं.

तनु का क्रोध बर्फ पर पड़ रही धूप की तरह धीरेधीरे पिघलने लगा. अब उसे स्वयं पर क्रोध आने लगा कि गलती मेरी है, ठीक ही तो कहते हैं नलिन, मैं छोटीछोटी बातों में बहुत लापरवाही करती हूं कई बार. सुबह से बहस में लग गई. बस यही कह देती कि भूल गई अभी रख दूंगी. बात वहीं खत्म हो जाती. तनु को मन ही मन ग्लानि होने लगी… कितना प्यार करते हैं नलिन उसे और एक वह है कि उन का जरा ध्यान नहीं रख पाती. बहुत देर से दबाया हुआ सैलाब उमड़ पड़ा. वह अभी रो ही रही थी कि मोनू जाग गया. उसे रोता देख कर वह सहम गया, ‘‘क्या हुआ मां?’’ मोनू ने पूछा. ‘‘कुछ नहीं,’’ तनु जल्दी से आंसू पोंछ कर बोली, ‘‘तुम मुंह धो कर आओ मैं दूध ला रही हूं.’’

‘‘अच्छा,’’ मोनू ने आगे कुछ नहीं पूछा और मुंह धोने चला गया. तनु रसोई में दूध गरम कर ही रही थी कि मोनू वहीं पहुंच गया, ‘‘अरे आज पापा लंच बाक्स नहीं ले गए?’’ रसोई में रखे लंचबौक्स को देख कर मोनू ने पूछा. बिलकुल बाप पर गया है, तनु मन ही मनु बड़बड़ाई. हर बात की खबर रहती है इसे. ‘‘क्यों नहीं ले गए मां,’’ मोनू ने कोई जवाब न पा कर फिर पूछा. ‘‘जल्दी में भूल गए और सुन, तू रसोई में मत घुसा कर. अभी से हर बात में ऐसा क्यों, वैसा क्यों नहीं करते.’’ झिड़की सुन कर मोनू चुप हो गया. फिर जल्दीजल्दी दूध पी कर अपने मोबाइल में बिजी हो गया.

तनु फिर सोचने लगी कि नलिन कहता है छोटीछोटी तकरार और नोकझोंक जीवन का स्वाद बदलने के लिए जरूरी है तनु. इस से आपसी प्यार भी बढ़ता है, पर इस की भी एक सीमा होनी चाहिए. उस चरमसीमा को हम कभी पार नहीं करेंगे. आज वह सीमा पार कर गई है क्या? नहीं, बिलकुल नहीं. तनु ने सोचा कि नलिन के आते ही वह उस से माफी मांग लेगी. गलती उसी की है. वह सीमा तो तब पार होगी जब उस का झठा अहं आड़े आएगा. पतिपत्नी के बीच अहं कैसा? 10 वर्षों से सुखी दांपत्य जीवन में उन के अहं आपस में कभी नहीं टकराए.

गलती महसूस हुई तो स्वीकार भी कर ली, नहीं हुई तो बात को वहीं छोड़ कर भूल गए. यह नहीं कि बोलचाल बंद हुई हो या मनमुटाव बढ़ गया हो. आज यह पहली बार हुआ कि नलिन तनु से बिना कुछ कहे चला गया. शायद ज्यादा नाराज हैं. तनु ने सोचा कि मना लूंगी. 5 बजते ही मोनू अपना होमवर्क पूरा कर मोबाइल छोड़ कर बालकनी में खड़ा हो गया. कितना भी खेल में मस्त होगा, पर न जाने उसे समय का अंदाज कैसे पड़ जाता है. नलिन की बाइक दिखते ही दोनों बच्चे खुश हो जाते हैं. ‘‘पापा, पापा आज आप अपना लंचबौक्स नहीं ले गए थे, फिर खाया क्या?’’ मोनू ने नलिन के आते ही गले में लटक कर पूछा. ‘‘खा लिया था कैंटीन में ही.’’ ‘‘पापा, आज मां पता नहीं क्यों रो रही थीं?’’ ‘‘चलो भागो, अपना काम करो,’’ नलिन चुगली की आदत पर नाराज हो गया.

कनखियों से नलिन के चेहरे पर होने वाली प्रतिक्रिया पर तनु ने गौर किया. एक क्षण को उस के चेहरे पर ग्लानि के भाव उभरे. ‘‘आज मेरे कारण ही सब हुआ. मुझ से सचमुच गलती हो गई,’’ तनु की रोंआसी सी आवाज निकली. अपनी सफाई में वह अधिक नहीं बोल पाई. ‘‘अरे नहीं, गलती मेरी है. तुम्हें तुम्हारे ढंग से काम नहीं करने देता, अपनी टांग अड़ाता हूं हर काम में,’’ नलिन तनु को बांहों के घेरे में समेट कर बोला, ‘‘और सुबह तो मैं गुस्से में था ही. अचानक याद आया कि आज तो जल्दी जाना था तो बस फटाफट तैयार हो कर चल दिया. मैं ने बाहर से ही आवाज भी दी थी कि मैं जा रहा हूं. शायद तुम ने सुना न होगा.

अंदर आ कर कहता तो तुम्हें सब बताना पड़ता. कहां जाना है? क्यों जाना है? देर हो जाती. इसलिए बाद में बहुत पछताया. बिलकुल समय नहीं मिला, नहीं तो बीच में मैसेज कर देता. एक के पीछे एक काम लगा रहा.’’ ‘‘मेरा तो दिनभर किसी काम में मन ही नहीं लगा,’’ तनु बोली, ‘‘अब ऐसा मत करना. कुछ खाया भी नहीं गया. पर अब मैं बेमतलब की बहस नहीं करूंगी. वादा करती हूं.’’ ‘‘ऐसे वादे तो तुम पहले भी कई बार कर चुकी हो और मैं भी कई बार कह चुका हूं कि मैं भी तुम्हारे काम में दखल नहीं दूंगा.

अब घरगृहस्थी की जिम्मेदारी तुम्हारी है, तुम जानो,’’ नलिन ठहाका लगा कर बोला. ‘‘चलो इसी खुशी में आज चाय मैं बनाता हूं.’’ ‘‘लेकिन तुम तो अभी कह रहे थे…’’ ‘‘कि तुम्हारे काम में दखल नहीं दूंगा. चाय बनाते समय खबरदार तुम किचन में आई. पकौड़े भी बनाऊंगा. चायपकौड़े बनाने के लिए थोड़े ही मना किया है,’’ नलिन ने इस ढंग से कहा कि तनु भी जोर से हंस पड़ी. उस की दिनभर की उदासी और नलिन की थकान दूर हो गई और दोनों खो गए फिर अपने सुखमय संसार में, जहां एकदूसरे के सान्निध्य में उन्हें एक अलौकिक सुख की अनुभूति होती है, आत्मिक तृप्ति मिलती है. Family Story in Hindi

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