Hindi Fiction Story: बेशरम- क्या टूट गया गिरधारीलाल शर्मा का परिवार

Hindi Fiction Story: पारिवारिक विघटन के इस दौर में जब भी किसी पारिवारिक समस्या का निदान करना होता तो लोग गिरधारीलाल को बुला लाते. न जाने वह किस प्रकार समझाते थे कि लोग उन की बात सुन कर भीतर से इतने प्रभावित हो जाते कि बिगड़ती हुई बात बन जाती.

गिरधारीलाल का सदा से यही कहना रहा था कि जोड़ने में वर्षों लगते हैं और तोड़ने में एक क्षण भी नहीं लगता. संबंध बड़े नाजुक होते हैं. यदि एक बार संबंधों की डोर टूट जाए तो उन्हें जोड़ने में गांठ तो पड़ ही जाती है, उम्र भर की गांठ…..

गिरधारीलाल ने सनातनधर्मी परिवार में जन्म लिया था पर जब उन की विदुषी मां  ने पंडितों के ढकोसले देखे, छुआछूत और धर्म के नाम पर बहुओं पर अत्याचार देखा तो न जाने कैसे वह अपनी एक सहेली के साथ आर्यसमाज पहुंच गईं. वहां पर विद्वानों के व्याख्यान से उन के विकसित मस्तिष्क का और भी विकास हुआ. अब उन्हें जातपांत और ढकोसले से ग्लानि सी महसूस होने लगी और उन्होंने अपनी बहुओं को स्वतंत्र रूप से जीवन जीने की कला सिखाई. इसी कारण उन का परिवार एक वैदिक परिवार के रूप में प्रतिष्ठित हो गया था.

आर्ची को अच्छी तरह से याद है कि जब बूआजी को बेटा हुआ था और  उसे ले कर अपने पिता के घर आई थीं तब पता लगातेलगाते हिजड़े भी घर पर आ गए थे. आंगन में आ कर उन्होंने दादाजी के नाम की गुहार लगानी शुरू की और गानेनाचने लगे थे. दादीमां ने उन्हें उन की मांग से भी अधिक दे कर घर से आदर सहित विदा किया था. उन का कहना था कि इन्हें क्यों दुत्कारा जाता है? ये भी तो हाड़मांस के ही बने हुए हैं. इन्हें भी कुदरत ने ही बनाया है, फिर इन का अपमान क्यों?

दादी की यह बात आर्ची के मस्तिष्क में इस प्रकार घर कर गई थी कि जब भी कहीं हिजड़ों को देखती, उस के मन में उन के प्रति सहानुभूति उमड़ आती. वह कभी उन्हें धिक्कार की दृष्टि से नहीं देख पाई. ससुराल में शुरू में तो उसे कुछेक तीखी नजरों का सामना करना पड़ा पर धीरेधीरे सबकुछ सरल, सहज होता गया.

मेरठ में पल कर बड़ी होने वाली आर्ची मुंबई पहुंच गई थी. एकदम भिन्न, खुला वातावरण, तेज रफ्तार की जिंदगी. शादी हो कर दिल्ली गई तब भी उसे माहौल इतना अलग नहीं लगा था जितना मुंबई आने पर. साल में घर के 2 चक्कर लग जाते थे. विवाह के 5 वर्ष बीत जाने पर भी मायके जाने का नाम सुन कर उस के पंख लग जाते.

बहुत खुश थी आर्ची. फटाफट पैकिंग किए जा रही थी. मायके जाना उस के पैरों में बिजलियां भर देता था. आखिर इतनी दूर जो आ गई थी. अपने शहर में होती थी तो सारे त्योहारों में कैसी चटकमटक करती घूमती रहती थी. दादा कहते, ‘अरी आर्ची, जिस दिन तू इस घर से जाएगी घर सूना हो जाएगा.’ ‘क्यों, मैं कहां और क्यों जाऊंगी, दादू? मैं तो यहीं रहूंगी, अपने घर में, आप के पास.’

दादी लाड़ से उसे अपने अंक में भर लेतीं, ‘अरी बिटिया, लड़की का

तो जन्म ही होता है पराए घर जाने के लिए. देख, मैं भी अपने घर से आई हूं, तेरी मम्मी भी अपने घर से आई हैं, तेरी बूआ यहां से गई हैं, अब तेरी बारी आएगी.’

13 वर्षीय आर्ची की समझ में यह नहीं आ पाता कि जब दादी और मां अपने घर से आई हैं तब यह उन का घर कैसे हो गया. और बूआ अपने घर से गई हैं तो उन का वह घर कैसे हो गया. और अब वह अपने घर से जाएगी…

क्या उधेड़बुन है… आर्ची अपना घर, उन का घर सोचतीसोचती फिर से रस्सी कूदने लगती या फिर किसी सहेली की आवाज से बाहर भाग जाती या कोई भाई आवाज लगा देता, ‘आर्ची, देख तो तेरे लिए क्या लाया हूं.’

इस तरह आर्ची फिर व्यस्त हो जाती. एक भरेपूरे परिवार में रहते हुए आर्ची को कितना लाड़प्यार मिला था वह कभी उसे तोल ही नहीं सकती. उस का मन उस प्यार से भीतर तक भीगा हुआ था. वैसे भी प्यार कहीं तोला जा सकता है क्या? अपने 3 सगे भाई, चाचा के 4 बेटे और सब से छोटी आर्ची.

‘‘क्या बात है भई, बड़ी फास्ट पैकिंग हो रही है,’’ किशोर ने कहा.

‘‘कितना काम पड़ा है. आप भी तो जरा हाथ लगाइए,’’ आर्ची ने पति से कहा.

‘‘भई, मायके आप जा रही हैं और मेहनत हम से करवाएंगी,’’ किशोर आर्ची की खिंचाई करने का कोई अवसर हाथ से जाने नहीं देते थे.

‘‘हद करते हैं आप भी. आप भी तो जा रहे हैं अपने मायके…’’

‘‘भई, हम तो काम से जा रहे हैं, फिर 2 दिन में लौट भी आएंगे. लंबी छुट्टियां तो आप को मिलती हैं, हमें कहां?’’

किशोर को कंपनी की किसी मीटिंग के सिलसिले में दिल्ली जाना था सो तय कर लिया गया था कि दिल्ली तक आर्ची भी फ्लाइट से चली जाएगी. दिल्ली में किशोर उसे और बच्चों को टे्रन में बैठा देंगे. मेरठ में कोईर् आ कर उसे उतार लेगा. एक सप्ताह अपने मायके मेरठ रह कर आर्ची 2-3 दिन के लिए ससुराल में दिल्ली आ जाएगी जबकि किशोर को 2 दिन बाद ही वापस आना था. बच्चे छोटे थे अत: इतनी लंबी यात्रा बच्चों के साथ अकेले करना जरा कठिन ही था.

किशोर को दिल्ली एअरपोर्ट पर कंपनी की गाड़ी लेने के लिए आ गई, सो उस ने आर्ची और बच्चों को स्टेशन ले जा कर मेरठ जाने वाली गाड़ी में बिठा दिया और फोन कर दिया कि आर्ची इतने बजे मेरठ पहुंचेगी. फोन पर डांट भी खानी पड़ी उसे. अरे, भाई, पहले से फोन कर देते तो दिल्ली ही न आ जाता कोई लेने. आजकल के बच्चे भी…दामाद को इस से अधिक कहा भी क्या जा सकताथा.

किशोर ने आर्ची को प्रथम दरजे में बैठाया था और इस बात से संतुष्ट हो गए थे कि उस डब्बे में एक संभ्रांत वृद्धा भी बैठी थी. आर्ची को कुछ हिदायतें दे कर किशोर गाड़ी छूटने पर अपने गंतव्य की ओर निकल गए.

अब आर्ची की अपनी यात्रा प्रारंभहुई थी, जुगनू 2 वर्ष के करीब था और बिटिया एनी अभी केवल 7 माह की थी. डब्बे में बैठी संभ्रांत महिला उसे घूरे जा रही थी.

‘‘कहां जा रही हो बिटिया?’’ वृद्धा ने पूछा.

‘‘जी, मेरठ?’’

‘‘ये तुम्हारे बच्चे हैं?’’

‘‘जी हां,’’ आर्ची को कुछ अजीब सा लगा.

‘‘आप कहां जा रही हैं?’’ उस ने माला फेरती उस महिला से पूछा.

‘‘मेरठ,’’ उस ने छोटा सा उत्तर दिया फिर उसे मानो बेचैनी सी हुई. बोली, ‘‘वे तुम्हारे घर वाले थे?’’

‘‘जी हां.’’

‘‘रहती कहां हो…मेरठ?’’

‘‘जी नहीं, मुंबई…’’

‘‘तो मेरठ?’’

‘‘मायका है मेरा.’’

‘‘किस जगह?’’

‘‘नंदन में…’’ नंदन मेरठ की एक पौश व बड़ी कालोनी है.

‘‘अरे, वहीं तो हम भी रहते हैं. हम गोल मार्किट के पास रहते हैं, और तुम?’’

‘‘जी, गोल मार्किट से थोड़ा आगे चल कर दाहिनी ओर ‘साकेत’ बंगला है, वहीं.’’

‘‘वह तो गिरधारीलालजी का है,’’ फिर कुछ रुक कर वह वृद्धा बोली, ‘‘तुम उन की पोती तो नहीं हो?’’

‘‘जी हां, मैं उन की पोती ही हूं.’’

‘‘बेटी, तुम तो घर की निकलीं, अरे, मेरे तो उस परिवार से बड़े अच्छे संबंध हैं. कोई लेने आएगा?’’

‘‘जी हां, घर से कोई भी आ जाएगा, भैया, कोई से भी.’’

वृद्धा निश्ंिचत हो माला फेरने लगीं.

‘‘तुम्हारी दादी ने मुझे आर्यसमाज का सदस्य बनवा दिया था. पहले ‘हरे राम’ कहती थी अब ‘हरिओम’ कहने लगी हूं,’’ वह हंसी.

आर्ची मुसकरा कर चुप हो गई.

वृद्धा माला फेरती रही.

गाड़ी की रफ्तार कुछ कम हुई. मुरादनगर आया था. गाड़ी ने पटरी बदली. खटरपटर की आवाज में आर्ची को किसी के दरवाजा पीटने की आवाज आई. उस ने एनी को देखा वह गहरी नींद में सो रही थी. जुगनू भी हाथ में खिलौना लिए नींद के झटके खा रहा था. आर्ची ने उसे भी बर्थ पर लिटा दिया और अपने कूपे से गलियारे में पहुंच कर मुख्यद्वार पर पहुंच गई.

कोई बाहर लटका हुआ था. अंदर से दरवाजा बंद होने के कारण वह दस्तक दे रहा था. आर्ची ने इधरउधर देखा, उसे कोई दिखाई नहीं दिया. सब अपनेअपने कूपों में बंद थे. आर्ची ने आगे बढ़ कर दरवाजा खोल दिया और वह मनुष्य बदहवास सा अंदर आ गया. वृद्धा वहीं से चिल्लाई, ‘‘अरे, क्या कर रही हो? क्यों घुसाए ले रही हो इस मरे बेशरम को, हिजड़ा है.’’

‘‘मांजी, मुझे दूसरे स्टेशन तक ही जाना है, मैं तो गाड़ी धीमी होते ही उतर जाऊंगा, देखो, यहीं दरवाजे के पास बैठ रहा हूं…’’ और वह भीतर से दरवाजा बंद कर वहीं गैलरी में उकड़ूूं बैठ गया.

आर्ची अपने कूपे में आ गई. वृद्धा का मुंह फूल गया था. उस ने आर्ची की ओर से मुंह घुमा कर दूसरी ओर कर लिया और जोरजोर से अपने हाथ की माला घुमाने लगी.

आर्ची को बहुत दुख हुआ. बेचारा गाड़ी से लटक कर गिर जाता तो? कुछ पल बाद ही आर्ची को बाथरूम जाने की जरूरत महसूस हुई. दोनों बच्चे खूब गहरी नींद सो रहे थे.

‘‘मांजी, प्लीज, जरा इन्हें देखेंगी. मैं अभी 2 मिनट में आई,’’ कह कर आर्ची  बाथरूम की ओर गई. उस का कूपा दरवाजे के पास था, अत: गैलरी से निकलते ही थोड़ा मुड़ कर बाथरूम था. जैसे ही आर्ची ने बाथरूम में प्रवेश किया गाड़ी फिर से खटरपटर कर पटरियां बदलने लगी. उसे लगा बच्चे कहीं गिर न पड़ें. जब तक बाथरूम से वह बाहर भागी तब तक गाड़ी स्थिर हो चुकी थी. सीट पर से गिरती हुई एनी को उस ‘बेशरम’ व्यक्ति ने संभाल लिया था.

वृद्धा क्रोधपूर्ण मुद्रा में खूब तेज रफ्तार से माला पर उंगलियां फेर रही थी. जुगनू बेखबर सो रहा था. उस बेशरम व्यक्ति का झुका हुआ एक हाथ जुगनू को संभालने की मुद्रा में उस के पेट पर रखा हुआ था. यह देख कर आर्ची भीतर से भीग उठी. यदि उस ने बच्चे संभाले न होते तो उन्हें गहरी चोट लग सकती थी.

‘‘थैंक्यू…’’ आर्ची ने कहा और एनी को अपनी गोद में ले लिया.

उस बेशरम की आंखों से चमक जैसे अचानक कहीं खो गई. हिचकिचाते हुए उस ने कहा, ‘‘मेरा स्टेशन आ रहा है. बस, 2 मिनट आप की बेटी को गोद में ले लूं?’’

आर्ची ने बिना कुछ कहे एनी को उस की गोद में थमा दिया. वृद्धा के मुंह से ‘हरिओम’ शब्द जोरजोर से बाहर निकलने लगा.

बारबार गोद बदले जाने के कारण एनी कुनमुन करने लगी थी. उस हिजड़े ने एनी को अपने सीने से लगा कर आंखें मूंद लीं तो 2 बूंद आंसू उस की आंखों की कोरों पर चिपक गए. आर्ची ने देखा कैसी तृप्ति फैल गई थी उस के चेहरे पर. एनी को उस की गोदी में देते हुए उस ने कहा, ‘‘यहां गाड़ी धीमी होगी, बस, आप जरा एक मिनट दरवाजा बंद मत करना…’’ और धीमी होती हुईर् गाड़ी से वह नीचे कूद गया. आर्ची ने खुले हुए दरवाजे से देखा, वह भाग कर सामने के टी स्टाल पर गया. वहां से बिस्कुट का एक पैकेट उठाया, भागतेभागते बोला, ‘‘पैसा देता हूं अभी…’’ और पैकेट दरवाजे के पास हाथ लंबा कर आर्ची की ओर बढ़ाते हुए बोला, ‘‘बहन, इसे अपने बच्चों को जरूर खिलाना.’’

गाड़ी रफ्तार पकड़ रही थी. आर्ची कुछ आगे बढ़ी, उस ने पैकेट पकड़ना चाहा पर गोद में एनी के होने के कारण वह और आगे बढ़ने में झिझक गई और पैकेट हाथ में आतेआते गाड़ी के नीचे जा गिरा. आर्ची का मन धक्क से हो गया. बेबसी से उस ने नजर उठा कर देखा वह ‘बेशरम’ व्यक्ति हाथ हिलाता हुआ अपनी आंखों के आंसू पोंछ रहा था.

Hindi Fiction Story

Hindi Short Story: देह – क्या औरत का मतलब देह है

Hindi Short Story: चारपाई पर लेटी हुई बुधिया साफसाफ देख रही थी कि सूरज अब ऊंघने लगा था और दिन की लालिमा मानो रात की कालिमा में तेजी से समाती जा रही थी.

देखते ही देखते अंधेरा घिरने लगा था… बुधिया के आसपास और उस के अंदर भी. लगा जैसे वह कालिमा उस की जिंदगी का एक हिस्सा बन गई है…

एक ऐसा हिस्सा, जिस से चाह कर भी वह अलग नहीं हो सकती. मन किसी व्याकुल पक्षी की तरह तड़प रहा था. अंदर की घुटन और चुभन ने बुधिया को हिला कर रख दिया. समय के क्रूर पंजों में फंसीउलझी बुधिया का मन हाहाकार कर उठा है.

तभी ‘ठक’ की आवाज ने बुधिया को चौंका दिया. उस के तनमन में एक सिहरन सी दौड़ गई. पीछे मुड़ कर देखा तो दीवार का पलस्तर टूट कर नीचे बिखरा पड़ा था. मां की तसवीर भी खूंटी के साथ ही गिरी पड़ी थी जो मलबे के ढेर में दबे किसी निरीह इनसान की तरह ही लग रही थी.

बुधिया को पुराने दिन याद हो आए, जब वह मां की आंखों में वही निरीहता देखा करती थी.

शाम को बापू जब दारू के नशे में धुत्त घर पहुंचता था तो मां की छोटी सी गलती पर भी बरस पड़ता था और पीटतेपीटते बेदम कर देता था. एक बार जवान होती बुधिया के सामने उस के जालिम बाप ने उस की मां को ऐसा पीटा था कि वह घंटों बेहोश पड़ी रही थी. बुधिया डरीसहमी सी एक कोने में खड़ी रही थी. उस का मन भीतर ही भीतर कराह उठा था.

बुधिया को याद है, उस दिन उस की मां खेत पर गई हुई थी… धान की कटाई में. तभी ‘धड़ाक’ की आवाज के साथ दरवाजा खुला था और उस का दारूखोर बाप अंदर दाखिल हुआ था. आते ही उस ने अपनी सिंदूरी आंखें बुधिया के ऊपर ऐसे गड़ा दी थीं मानो वह उस की बेटी नहीं महज एक देह हो.

‘बापू…’ बस इतना ही निकल पाया था बुधिया की जबान से.

‘आ… हां… सुन… बुधिया…’ बापू जैसे आपे से बाहर हो कर बोले थे, ‘यह दारू की बोतल रख दे…’

‘जी अच्छा…’ किसी मशीन की तरह बुधिया ने सिर हिलाया था और दारू की बोतल अपने बापू के हाथ से ले कर कोने में रख आई थी. उस की आंखों में डर की रेखाएं खिंच आई थीं.

तभी बापू की आवाज किसी हथौड़े की तरह सीधे उसे आ कर लगी थी, ‘बुधिया… वहां खड़ीखड़ी क्या देख रही है… यहां आ कर बैठ… मेरे पास… आ… आ…’

बुधिया को तो जैसे काटो तो खून नहीं. उस की सांसें तेजतेज चलने लगी थीं, धौंकनी की तरह. उस का मन तो किया था कि दरवाजे से बाहर भाग जाए, लेकिन हिम्मत नहीं हुई थी. उसी पल बापू की गरजदार आवाज गूंजी थी, ‘बुधिया…’

न चाहते हुए भी बुधिया उस तरफ बढ़ चली थी, जहां उस का बाप खटिया पर पसरा हुआ था. उस ने झट से बुधिया का हाथ पकड़ा और अपनी ओर ऐसे खींच लिया था जैसे वह उस की जोरू हो.

‘बापू…’ बुधिया के गले से एक घुटीघुटी सी चीख निकली थी, ‘यह क्या कर रहे हो बापू…’

‘चुप…’ बुधिया का बापू जोर से गरजा और एक झन्नाटेदार थप्पड़ उस के दाएं गाल पर दे मारा था.

बुधिया छटपटा कर रह गई थी. उस में अब विरोध करने की जरा भी ताकत नहीं बची थी. फिर भी वह बहेलिए के जाल में फंसे परिंदे की तरह छूटने की नाकाम कोशिश करती रही थी. थकहार कर उस ने हथियार डाल दिए थे.

उस भूखे भेडि़ए के आगे वह चीखती रही, चिल्लाती रही, मगर यह सिलसिला थमा नहीं, चलता रहा था लगातार…

बुधिया ने मां को इस बाबत कई बार बताना चाहा था, मगर बापू की सुलगती सिंदूरी आंखें उस के तनमन में झुरझुरी सी भर देती थीं और उस पर खौफ पसरता चला जाता था, वह भीतर ही भीतर घुटघुट कर जी रही थी.

फिर एक दिन बापू की मार से बेदम हो कर बुधिया की मां ने बिस्तर पकड़ लिया था. महीनों बिस्तर पर पड़ी तड़़पती रही थी वह. और उस दिन जबरदस्त उस के पेट में तेज दर्द उठा. तब बुधिया दौड़ पड़ी थी मंगरू चाचा के घर. मंगरू चाचा को झाड़फूंक में महारत हासिल थी.

बुधिया से आने की वजह जान कर मंगरू ने पूछा था, ‘तेरे बापू कहां हैं?’

‘पता नहीं चाचा,’ इतना ही कह पाई थी बुधिया.

‘ठीक है, तुम चलो. मैं आ रहा हूं,’ मंगरू ने कहा तो बुधिया उलटे पैर अपने झोंपड़े में वापस चली आई थी.

थोड़ी ही देर में मंगरू भी आ गया था. उस ने आते ही झाड़फूंक का काम शुरू कर दिया था, लेकिन बुधिया की मां की तबीयत में कोई सुधार आने के बजाय दर्द बढ़ता गया था.

मंगरू अपना काम कर के चला गया और जातेजाते कह गया, ‘बुधिया, मंत्र का असर जैसे ही शुरू होगा, तुम्हारी मां का दर्द भी कम हो जाएगा… तू चिंता मत कर…’

बुधिया को लगा जैसे मंगरू चाचा ठीक ही कह रहा है. वह घंटों इंतजार करती रही लेकिन न तो मंत्र का असर शुरू हुआ और न ही उस की मां के दर्द में कमी आई. देखते ही देखते बुधिया की मां का सारा शरीर बर्फ की तरह ठंडा पड़ गया.

आंखें पथराई सी बुधिया को ही देख रही थीं, मानो कुछ कहना चाह रही हों. तब बुधिया फूटफूट कर रोने लगी थी.

उस के बापू देर रात घर तो आए, लेकिन नशे में चूर. अगली सुबह किसी तरह कफनदफन का इंतजाम हुआ था.

बुधिया की यादों का तार टूट कर दोबारा आज से जुड़ गया. बापू की ज्यादतियों की वजह से बुधिया की जिंदगी तबाह हो गई. पता नहीं, वह कितनी बार मरती है, फिर जीती है… सैकड़ों बार मर चुकी है वह. फिर भी जिंदा है… महज एक लाश बन कर.

बापू के प्रति बुधिया का मन विद्रोह कर उठता है, लेकिन वह खुद को दबाती आ रही है.

मगर आज बुधिया ने मन ही मन एक फैसला कर लिया. यहां से दूर भाग जाएगी वह… बहुत दूर… जहां बापू की नजर उस तक कभी नहीं पहुंच पाएगी.

अगले दिन बुधिया मास्टरनी के यहां गई कि वह अपने ऊपर हुई ज्यादतियों की सारी कहानी उन्हें बता देगी. मास्टरनी का नाम कलावती था, मगर सारा गांव उन्हें मास्टरनी के नाम से ही जानता है.

कलावती गांव के ही प्राइमरी स्कूल में पढ़ाती हैं. बुधिया को भी उन्होंने ही पढ़ाया था. यह बात और है कि बुधिया 2 जमात से ज्यादा पढ़ नहीं पाई थी.

‘‘क्या बात है बुधिया? कुछ बोलो तो सही… जब से तुम आई हो, तब से रोए जा रही हो. आखिर बात क्या हो गई?’’

मास्टरनी ने पूछा तो बुधिया का गला भर आया. उस के मुंह से निकला, ‘मास्टरनीजी.’’

‘‘हां… हां… बताओ बुधिया… मैं वादा करती हूं, तुम्हारी मदद करूंगी,’’ मास्टरनी ने कहा तो बुधिया ने बताया, ‘‘मास्टरनीजी… उस ने हम को खराब किया… हमारे साथ गंदा… काम…’’ सुन कर मास्टरनी की भौंहें तन गईं. वे बुधिया की बात बीच में ही काट कर बोलीं, ‘‘किस ने किया तुम्हारे साथ गलत काम?’’

‘‘बापू ने…’’ और बुधिया सबकुछ सिलसिलेवार बताती चली गई.

मास्टरनी कलावती की आंखें फटी की फटी रह गईं और चेहरे पर हैरानी की लकीरें गहराती गईं. फिर वे बोलीं, ‘‘तुम्हारा बाप इनसान है या जानवर… उसे तो चुल्लूभर पानी में डूब मरना चाहिए. उस ने अपनी बेटी को खराब किया.

‘‘खैर, तू चिंता मत कर बुधिया. तू आज शाम की गाड़ी से मेरे साथ शहर चल. वहां मेरी बेटी और दामाद रहते हैं. तू वहीं रह कर उन के काम करना, बच्चे संभालना. तुम्हें भरपेट खाना और कपड़ा मिलता रहेगा. वहां तू पूरी तरह महफूज रहेगी.’’

बुधिया का सिर मास्टरनी के प्रति इज्जत से झुक गया. नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर उतरते ही बुधिया को लगा जैसे वह किसी नई दुनिया में आ गई हो. सबकुछ अलग और शानदार था.

बुधिया बस में बैठ कर गगनचुंबी इमारतों को ऐसे देख रही थी मानो कोई अजूबा हो.

तभी मास्टरनीजी ने एक बड़ी इमारत की तरफ इशारा करते हुए कहा, ‘‘देख बुधिया… यहां औरतमर्द सब एकसाथ कंधे से कंधा मिला कर काम करते हैं.’’

‘‘सच…’’ बुधिया को जैसे हैरानी हुई. उस का अल्हड़ व गंवई मन पता नहीं क्याक्या कयास लगाता रहा.

बस एक झटके से रुकी तो मास्टरनी के साथ वह वहीं उतर पड़ी. चंद कदमों का फासला तय करने के बाद वे दोनों एक बड़ी व खूबसूरत कोठी के सामने पहुंचीं. फिर एक बड़े से फाटक के अंदर बुधिया मास्टरनीजी के साथ ही दाखिल हो गई. बुधिया की आंखें अंदर की सजावट देख कर फटी की फटी रह गईं.

मास्टरनीजी ने एक मौडर्न औरत से बुधिया का परिचय कराया और कुछ जरूरी हिदायतें दे कर शाम की गाड़ी से ही वे गांव वापस लौट गईं.

शहर की आबोहवा में बुधिया खुद को महफूज समझने लगी. कोठी के चारों तरफ खड़ी कंक्रीट की मजबूत दीवारें और लोहे की सलाखें उसे अपनी हिफाजत के प्रति आश्वस्त करती थीं.

बेफिक्री के आलम से गुजरता बुधिया का भरम रेत के घरौंदे की तरह भरभरा कर तब टूटा जब उसे उस दिन कोठी के मालिक हरिशंकर बाबू ने मौका देख कर अपने कमरे में बुलाया और देखते ही देखते भेडि़या बन गया. बुधिया को अपना दारूबाज बाप याद हो आया.

नशे में चूर… सिंदूरी आंखें और उन में कुलबुलाते वासना के कीड़े. कहां बचा पाई बुधिया उस दिन भी खुद को हरिशंकर बाबू के आगोश से.

कंक्रीट की दीवारें और लोहे की मजबूत सलाखों को अपना सुरक्षा घेरा मान बैठी बुधिया को अब वह छलावे की तरह लगने लगा और फिर एक रात उस ने देखा कि नितिन और श्वेता अपने कमरे में अमरबेल की तरह एकदूसरे से लिपटे बेजा हरकतें कर रहे थे. टैलीविजन पर किसी गंदी फिल्म के बेहूदा सीन चल रहे थे.

‘‘ये दोनों सगे भाईबहन हैं या…’’ बुदबुदाते हुए बुधिया अपने कमरे में चली आई.

सुबह हरिशंकर बाबू की पत्नी अपनी बड़ी बेटी को समझा रही थीं, ‘‘देख… कालेज जाते वक्त सावधान रहा कर. दिल्ली में हर दिन लड़कियों के साथ छेड़छाड़ व बलात्कार की वारदातें बढ़ रही हैं. तू जबजब बाहर निकलती है तो मेरा मन घबराता रहता है. पता नहीं, क्या हो गया है इस शहर को.’’

बुधिया छोटी मालकिन की बातों पर मन ही मन हंस पड़ी. उसे सारे रिश्तेनाते बेमानी लगने लगे. वह जिस घर को, जिस शहर को अपने लिए महफूज समझ रही थी, वही उसे महफूज नहीं लग रहा था.

बुधिया के सामने एक अबूझ सवाल तलवार की तरह लटकता सा लगता था कि क्या औरत का मतलब देह है, सिर्फ देह?

Hindi Short Story

Flop Bollywood: क्यों फ्लौप हो रही हिंदी फिल्में

Flop Bollywood: हाल ही में रिलीज 2 बड़ी फिल्में जो 400 और 500 करोड़ की लागत से बनी हैं, रजनीकांत नागार्जुन की फिल्म कुली और रितिक रोशन द्वारा अभिनित ‘वार 2’ ने बौक्स औफिस पर कलैक्शन के मामले में निराश किया. इन फिल्मों पर दर्शकों और बौलीवुड वालों की बहुत उम्मीदें टिकी थीं जो निराशा में बदल गईं. ऐसे में सवाल यही उठता है कि बड़ी फिल्में, बड़े स्टार, बड़ी लागत और कड़ी मेहनत के बावजूद बौलीवुड की कई सारी फिल्मों को असफलता का आईना क्यों देखना पड़ता है?

आज के समय में 100 रिलीज फिल्मों में से ज्यादा से ज्यादा 5 फिल्में सफल होती हैं और बाकी 95 बौक्स औफिस पर पानी भी नहीं मांगतीं. मंझे हुए कलाकार, नामीगिरामी प्रोडक्शन हाउस और प्रोड्यूसरडाइरैक्टर की फिल्में आखिर किन कारणों से फ्लौप हो जाती हैं?

पेश है फ्लौप फिल्मों की लंबी कतार की वजह पर एक नजर…

हिंदी के बजाय अंगरेजी भाषा से प्रभावित

जब हम किसी भाषा से रिलेट करते हैं तो हम उसी भाषा में सोचते हैं, हमारे अंदर की भावनाएं भी उसी भाषा से प्रेरित होती हैं. जैसेकि अगर हम हिंदी भाषी हैं तो हमारी सोच भी हिंदी भाषा में ही होगी न कि हम तेलुगु और तमिल भाषा में सोचेंगे.

ठीक वैसे ही जब हम जिस भाषा में सोचतेबोलते और अपनी भावनाओं को उसी भाषा के जरीए व्यक्त करते हैं तो उस का प्रभाव भी अलग होता है जैसेकि एक ऐक्टर जब अपनी भाषा में कोई भावनात्मक डायलौग बोलता है तो वह अपने अभिनय के जरीए सही तरीके से व्यक्त कर पता है लेकिन अगर वही डायलौग उसे अंगरेजी भाषा में लिखा मिले तो उस संवाद के इमोशंस को व्यक्त करना उस ऐक्टर के लिए मुश्किल हो जाता है.

मगर आज के समय में जहां आज की पीढ़ी भले ही हिंदी सिनेमा देखती है लेकिन उस युवा पीढ़ी के बच्चे हिंदी ठीक से नहीं जानते, न ठीक से लिखना और न ठीक से बोलना क्योंकि पाश्चात्य संस्कृति के भारत पर प्रभाव के चलते ज्यादातर स्कूलकालेज अंगरेजी भाषा के ही हैं, हिंदी भाषा के स्कूल न के बराबर है, जिस के चलते बचपन से ही अंगरेजी भाषा में पढ़ाई करने वाले बच्चे जब हिंदी फिल्म इंडस्ट्री से जुड़ते हैं तो भाषा से प्रभावित यह पीढ़ी बौलीवुड से ज्यादा हौलीवुड की फिल्में देखना पसंद करती है, वह सोचती भी इंग्लिश में ही है और बोलती भी इंग्लिश में ही है, अपनी भावनाओं को इंग्लिश में ही लिख कर व्यक्त करती है.

इस पीढ़ी के नवयुवक अगर किसी प्रोडक्शन हाउस में बतौर असिस्टैंट डाइरैक्टर, राइटर, ऐडिटर, के रूप में जुड़ते हैं तो वे सारे संवाद हिंदी में लिख कर देने के बजाय अंगरेजी में ऐक्टर को लिख कर देते हैं. ऐसे में जब एक बौलीवुड ऐक्टर हिंदी के बजाय अंगरेजी में सारे डायलौग और सीन लिखता है, तो उसे ठीक ढंग से पेश करने में उस ऐक्टर को दिक्कत आती है, जिस के चलते सीन के मुताबिक वह न तो अच्छे से डायलौग बोल पाता है और न ही अच्छे से एक्सप्रैशन दे पाता है.

ऐसा हम नहीं कह रहे बल्कि बौलीवुड के कई दिग्गज ऐक्टरों का यह कहना है जैसे अमिताभ बच्चन, नवाजुद्दीन सिद्दीकी, पंकज त्रिपाठी जैसे दिग्गज कलाकारों का कहना है की इंग्लिश में लिखे हुए डायलौग उन की ऐक्टिंग पर गलत प्रभाव डालते हैं, इंग्लिश में लिखे डायलौग याद करने में और उन्हें अपनी तरह से व्यक्त करने में परेशानी होती है.

कमजोर कहानी

शायद यही वजह है कि फिल्मों में खासतौर पर कहानी का स्तर दिनबदिन गिर रहा है क्योंकि जो लेखक हिंदी में अच्छी कहानी लिखना जानते हैं निर्माता उन तक पहुंच नहीं पाते या पहुंचना नहीं चाहते क्योंकि वे रिस्क नहीं लेना चाहते.

किसी नए लेखक पर विश्वास कर के उस की दी हुई कहानी पर फिल्म बनाने के बजाय आज मेकर्स साउथ या हौलीवुड फिल्मों की सफल फिल्मों के रीमेक बनाना ज्यादा पसंद करते हैं क्योंकि उन के हिसाब से इस में खतरा कम होता है क्योंकि साउथ या हौलीवुड में बनी वह फिल्म पहले से सुपरहिट है तो उस का हिंदी रीमेक हिट हो ही जाएगा और अंगरेजी में स्क्रिप्ट लिखने वाले लेखक हिंदी भाषा की गहराई और भावनाओं को व्यक्त करने में असमर्थ होते हैं और रीमेक फिल्मों के पीछे भागने वाले मेकर्स की फिल्मों में कहानी छोड़ कर बाकी सबकुछ होता है. आज के जमाने में ओटीटी और छोटे परदे के चलते दर्शक कहानी को ले कर बहुत समझदार हैं.

इस मामले में दर्शक कोई समझौता नहीं करते. यही वजह है कि फिल्म चाहे रजनीकांत की हो, सलमान खान की हो यह रितिक रोशन की, अगर कहानी में दम नहीं है तो वे फिल्में बौक्स औफिस पर कोई कमाल नहीं दिख पातीं.

फ्लौप फिल्मों की लंबी कतार

कई सुपर स्टार ऐक्टर कमजोर कहानी और खराब ऐडिटिंग और कमजोर डाइरैक्शन के चलते बिग बजट फ्लौप फिल्म दे चुके हैं. फिर चाहे वह शाहरुख खान हों, सलमान खान हों, अजय देवगन हों, अक्षय कुमार या सनी देओल हों या फिर आमिर खान ही क्यों न हों. इन सभी ऐक्टरों ने सिर्फ अपने दम पर फिल्म हिट करने की कोशिश की, कहानी पर ध्यान नहीं दिया जिस के चलते इन्हें भारी असफलता का मुंह देखना पड़ा.

इस के विपरीत नए कलाकारों से सजी कम बजट की फिल्म जिस की कहानी और मेकिंग दोनों दमदार होने की वजह से 500 करोड़ तक का बिजनैस कर गई, जिस के बाद इस फिल्म ने पुराने दिग्गज और ऐक्टरों को सोचने पर मजबूर कर दिया.

कमजोर डाइरैक्शन

फिल्मी इतिहास गवाह है कि हीरो नया हो या पुराना फिल्में वही चलती हैं जिन की कहानी दमदार होती है और जो कहानी मास और क्लास से जुड़ी होती है, दर्शकों के दिल को छूने की ताकत रखती है, वही फिल्म हमेशा के लिए इतिहास रचती है. अच्छी कहानी के साथ अच्छा डाइरैक्शन एडिटिंग, अच्छे सिनेमा की जान होती है. लेकिन सबकुछ अच्छा होने के बावजूद अगर कहानी कमजोर होती है तो भी फिल्म असफलता का मुंह देखती है क्योंकि एक फिल्म की आत्मा कहानी होती है जो पूरी फिल्म को सही दिशा में ले जाती है.

मगर इस अहम बात को तवज्जो न देते हुए बौलीवुड ऐक्टर जो पहले एक आम कलाकार थे उन्हें लगता है कि सिर्फ उन के दम पर फिल्म हिट होगी. ऐसे ही कई सुपरस्टारों की फिल्में बौक्स औफिस पर पानी भी नहीं मांग रहीं. फिर चाहे वे सलमान खान की फिल्में ‘सिकंदर’ से पहले ‘किसी का भाई किसी की जान,’ ‘भारत,’ ‘जय हो,’ ‘ट्यूबलाइट,’ ‘रेस 3’ आदि हों या शाहरुख खान की ‘पठान’ और ‘जवान’ से पहले ‘जीरो,’ ‘फेन,’ ‘जब हैरी मेट सेजल,’ ‘अशोका,’ ‘डियर जिंदगी’ आदि फ्लौप फिल्में हों या अक्षय कुमार की ‘सम्राट पृथ्वीराज,’ ‘रक्षाबंधन,’ ‘बच्चन पांडे,’ ‘सेल्फी,’ हालिया रिलीज फिल्म ‘खेलखेल में,’ आमिर खान की ‘लाल सिंह चड्ढा,’ सनी देओल की ‘मोहल्ला अस्सी,’ ‘हीरोज,’ ‘चुप,’ अजय देवगन की फिल्में ‘मैदान,’ ‘एक्शन जैक्सन,’ ‘रनवे 34,’ ‘हिम्मतवाला,’ ‘थैंक गौड’ आदि फ्लौप फिल्में ही क्यों न हों. इन सभी हिट हीरोज की फ्लौप फिल्मों के पीछे एक ही कौमन वजह थी और वह थी फिल्म की कमजोर कहानी.

ज्यादा फिल्में बनाने का दबाव

आज के समय में पहले के मुकाबले बहुत ज्यादा फिल्में बनती हैं और पहले के मुकाबले ऐक्टरों को भी इतनी ज्यादा सुविधाएं हैं कि उन्हें फिल्म की शूटिंग के दौरान ज्यादा संघर्ष नहीं करना पड़ता. लेकिन बावजूद इस के 100 में से 1 या 2 फिल्में हिट होती हैं और बाकी फिल्मों का पता ही नहीं चलता. ऐसे में क्या वजह है कि बिग स्टार और बिग बजट फिल्में दर्शकों के गले नहीं उतरतीं? खास वजह यह है कि आज के फिल्म निर्मातानिर्देशक और ऐक्टर पहले की तरह दिल से चुनाव नहीं करते.

फिल्म में काम करना आज के समय में पैशन से ज्यादा प्रोफैशन बन गया है जिस के चलते ऐक्टर फिल्म में ऐक्टिंग से ज्यादा प्रमोशन पर ध्यान देते हैं, बड़ेबड़े ऐक्टर अपनी फिल्म को बेचने के लिए कुछ भी करने को तैयार हो जाते हैं, फिर चाहे पब्लिकली जा कर पत्रकार की तरह रिव्यू लेना हो, वड़ापाव बेचना हो या मौल में जा कर डांस करना हो, लेकिन फिल्म को बेहतर बनाने के लिए क्या किया जाए इस पर उन का कम ध्यान होता है.

आज के समय में ज्यादातर हीरोज या तो किसी साउथ फिल्म की रीमेक फिल्म में काम कर रहे हैं या अपनी ही पुरानी किसी हिट फिल्म की फ्रैंचाइजी में काम कर रहे हैं जैसे सलमान ‘किक 2,’ ‘बजरंगी भाईजान 2’ ‘दबंग 4,’ टाइगर श्रौफ ‘बागी 4,’ रितिक रोशन ‘वार 2’ ‘कृष 4,’ अक्षय कुमार ‘हाउस फुल 5,’ ‘जौली एलएलबी 2,’ ‘वैलकम 3,’ ‘हेराफेरी 3,’ अजय देवगन ‘रेड 2,’ ‘सन औफ सरदार 2,’ ‘धमाल 3’ आदि ज्यादातर ऐक्टर नई कहानी पर आधारित फिल्मों के बजाय सीक्वल या रीमेक फिल्मों में काम करने में लगे हुए हैं. बाकी साउथ के निर्देशकों को सफलता की कुंजी मान कर उन के साथ काम कर के अपना कैरियर बचाने में लगे हैं. लेकिन फिल्म की बैक बोन फिल्म की कहानी को नजरअंदाज कर रहे हैं.

यही वजह है फिल्म करोड़ों की लेकिन बौक्स औफिस पर कलैक्शन जीरो का जो फिल्मों की लोकप्रियता को धीरेधीरे अंधकार की ओर ले जा रहा है.

Flop Bollywood

Drama Story: काठ की हांडी

कहानी- सरोज शर्मा

Drama Story: रितु ने दोपहर में फोन कर के मु झे शाम को अपने फ्लैट पर बुलाया था.

‘‘मेरा मन बहुत उचाट हो रहा है. औफिस से निकल कर सीधे मेरे यहां आ जाओ. कुछ देर. दोनों गपशप करेंगे,’’ फोन पर रितु की आवाज में मु झे हलकी सी बेचैनी के भाव महसूस हुए.

‘‘तुम वैभव को क्यों नहीं बुला लेती हो गपशप के लिए? तुम्हारा यह नया आशिक तो सिर के बल भागा चला आएगा,’’ मैं ने जानबू झ कर वैभव को बुलाने की बात उठाई.

‘‘इस वक्त मु झे किसी नए नहीं, बल्कि पुराने आशिक के साथ की जरूरत महसूस हो रही है,’’ उस ने हंसते हुए जवाब दिया.

‘‘सीमा भी तुम से मिलने आने की बात कह रही थी. उसे साथ लेता आऊं?’’ मैं ने उस के मजाक को नजरअंदाज करते हुए पूछा.

‘‘क्या तुम्हें अकेले आने में कोई परेशानी है?’’ वह खीज उठी.

‘‘मु झे कोई परेशानी होनी चाहिए क्या?’’ मैं ने हंसते हुए पूछा.

‘‘अब ज्यादा भाव मत खाओ. मैं तुम्हारा इंतजार कर रही हूं.’’ और उस ने  झटके से फोन काट दिया.

रितु अपने फ्लैट में अकेली रहती है. शाम को उस से मिलने जाने की बात मेरे मन को बेचैन कर रही थी. अपना काम रोक कर मैं कुछ देर के लिए पिछले महीनेभर की घटनाओं के बारे में सोचने लगा…

मेरी शादी होने के करीब 8 साल बाद रितु अचानक महीनाभर पहले मेरे घर मु झ से मिलने आई तो मैं हैरान होने के साथसाथ बहुत खुश भी हुआ था.

‘‘अभी भी किसी मौडल की तरह आकर्षक नजर आ रही रितु और मैं ने एमबीए साथसाथ किया था. सीमा, हमारी शादी होने से पहले ही यह मुंबई चली गई थी वरना बहुत पहले ही तुम से इस की मुलाकात हो जाती,’’ सहज अंदाज में अपनी पत्नी का रितु से परिचय कराते हुए मैं ने अपने मन की उथलपुथल को बड़ी कुशलता से छिपा लिया.

मेरे 5 साल के बेटे रोहित के लिए रितु ढेर सारी चौकलेट और रिमोट से चलने वाली कार लाई थी. सीमा और मेरे साथ बातें करते हुए वह लगातार रोहित के साथ खेल भी रही थी. बहुत कम समय में उस ने मेरे बेटे और उस की मम्मी का दिल जीत लिया.

‘‘क्या चल रहा है तुम्हारी जिंदगी में? मयंक के क्या हालचाल हैं?’’ मेरे इन सवालों को सुन कर उस ने अचानक जोरदार ठहाका लगाया तो सीमा और मैं हैरानी से उस का मुंह ताकने लगे.

हंसी थम जाने के बाद उस ने रहस्यमयी मुसकान होंठों पर सजा कर हमें बताया, ‘‘मेरी जिंदगी में सब बढि़या चल रहा है, अरुण. बहुराष्ट्रीय बैंक में जौब कर रही हूं. मयंक मजे में है. वह 2 प्यारी बेटियों का पापा बन गया है.’’

‘‘अरे वाह, वैसे तुम्हें देख कर यह कोई नहीं कह सकता है कि तुम 2 बेटियों की मम्मी हो,’’ मेरे शब्दों में उस की तारीफ साफ नजर आ रही थी.

रितु पर एक बार फिर हंसने का दौरा सा पड़ा. सीमा और मैं बेचैनीभरे अंदाज में मुसकराते हुए उस के यों बेबात हंसने का कारण जानने की प्रतीक्षा करने लगे.

‘‘माई डियर अरुण, मु झे पता था कि तुम ऐसा गलत अंदाजा जरूर लगाओगे. यार, वह 2 बेटियों का पिता है पर मैं उस की पत्नी नहीं हूं.’’

‘‘क्या तुम दोनों ने शादी नहीं की है?’’

‘‘उस ने तो की पर मैं अभी तक शुद्ध अविवाहिता हूं, तलाकशुदा या विधवा नहीं. तुम्हारी नजर में मेरे लायक कोई सही रिश्ता हो तो जरूर बताना,’’ अपने इस मजाक पर उस ने फिर से जोरदार ठहाका लगाया.

‘‘मजाक की बात नहीं है यह, रितु बताओ न कि तुम ने अभी तक शादी क्यों नहीं की?’’ मैं ने गंभीर लहजे में पूछा.

‘‘जब सही मौका सामने था किसी अच्छे इंसान के साथ जिंदगीभर को जुड़ने का तो मैं ने नासम झी दिखाई और वह मौका हाथ से निकल गया. लेकिन यह किस्सा फिर कभी सुनाऊंगी. अब तो मैं अपनी मस्ती में मस्त बहती धारा बनी रहना चाहती हूं… सच कहूं तो मु झे शादी का बंधन अब अरुचिकर प्रतीत होता है,’’ 33 साल की उम्र तक अविवाहित रह जाने का उसे कोई गम है, यह उस की आवाज से बिलकुल जाहिर नहीं हो रहा था.

मगर सीमा ने शादी न करने के मामले में अपनी राय उसे

उसी वक्त बता दी, ‘‘शादी नहीं करोगी तो बढ़ती उम्र के साथ अकेलेपन का एहसास लगातार बढ़ता जाएगा. अभी ज्यादा देर नहीं हुई है. मेरी सम झ से तुम्हें शादी कर लेनी चाहिए, रितु.’’

‘‘तुम ढूंढ़ना न मेरे लिए कोई सही जीवनसाथी, सीमा,’’ रितु बड़े अपनेपन से सीमा का हाथ पकड़ कर दोस्ताना लहजे में मुसकराई तो मेरी पत्नी ने उसी पल से उसे अपनी अच्छी सहेली मान लिया.

उन दोनों को गपशप में लगा देख मैं उस दिन भी अतीत की यादों में खो गया…

एक समय था जब साथसाथ एमबीए करते हुए हम दोनों ने जीवनसाथी बनने के रंगीन सपने देखे थे. हमारा प्रेम करीब 2 साल चला और फिर उस का  झुकाव अचानक मयंक की तरफ होता चला गया.

वैसे मयंक रितु की एक सहेली निशा का बौयफ्रैंड था. इस इत्तफाक ने बड़ा गुल खिलाया कि मयंक रितु की कालोनी में ही रहता था. इस कारण निशा द्वारा परिचय करा दिए जाने के बाद मयंक और रितु की अकसर मुलाकातें होने लगीं.

ये मुलाकातें निशा और मेरे लिए बड़ी दुखदाई साबित हुईं. अचानक एक दिन रितु ने मु झ से और मयंक ने निशा से प्रेम संबंध समाप्त कर लिए.

‘‘रितु प्लीज, तुम्हारे बिना मेरी जिंदगी बहुत सूनी हो जाएगी. मेरा साथ मत छोड़ो,’’ मैं ने उस के सामने आंसू भी बहाए पर उस ने मु झ से दूर होने का अपना फैसला नहीं बदला.

‘‘आई एम सौरी अरुण… मैं मयंक के साथ कहीं ज्यादा खुश हूं. तुम्हें मु झ से बेहतर लड़की मिलेगी, फिक्र न करो,’’ हमारी आखिरी मुलाकात के समय उस ने मेरा गाल प्यार से थपथपाया और मेरी जिंदगी से निकल गई.

मु झ से कहीं ज्यादा तेज  झटका उस की सहेली निशा को लगा था. उस ने तो नींद की गोलियां खा कर आत्महत्या करने की कोशिश भी करी थी.

एमबीए करने के बाद वह मुंबई चली गई. मैं सोचता था कि उस ने मयंक से शादी कर ली होगी पर मेरा अंदाजा गलत निकला.

मैं ने अपने मन को टटोला तो पाया कि रितु से जुड़ी यादों की पीड़ा को वह लगभग पूरी तरह भूल चुका है. मैं सीमा और रोहित के साथ बहुत खुश था. उस दिन रितु को सामने देख कर मु झे वैसी खुशी महसूस हुई थी जैसी किसी पुराने करीबी दोस्त के अचानक आ मिलने से होती है.

उस दिन सीमा ने अपनी नई सहेली रितु को खाना खिला कर भेजा. कुछ घंटों में ही उन दोनों के बीच दोस्ती के मजबूत संबंध की नींव पड़ गई.

रितु अकसर हमारे यहां शाम को आ जाती थी. उस की मु झ से कम और सीमा से ज्यादा बातें होतीं. रोहित भी उस के साथ खेल कर बहुत खुश होता.

रोहित के जन्मदिन की पार्टी में सीमा ने उस का परिचय अपनी सहेली वंदना के बड़े भाई वैभव से कराया. दोनों सहेलियों की मिलीभगत से यह मुलाकात संभव हो पाई थी.

वैभव तलाकशुदा इंसान था. उस की पत्नी ने तलाक देने से पहले उसे इतना दुखी कर दिया था कि अब वह शादी के नाम से ही बिदकता था.

किसी को उम्मीद नहीं थी पर रितु के साथ हुई पहली मुलाकात में ही वैभव भाई उस के प्रशंसक बन गए थे. रितु भी उस दिन फ्लर्ट करने के पूरे मूड में थी. उन दोनों के बीच आपसी पसंद को लगातार बढ़ते देख सीमा बहुत खुश हुई थी.

रितु और वैभव ने 2 दिन बाद बड़े महंगे होटल में साथ डिनर किया है, वंदना से मिली इस खबर ने सीमा को खुश कर दिया.

‘‘वैसे यह बंदा तो ठीक है सीमा, पर मेरे सपनों के राजकुमार से बहुत ज्यादा नहीं मिलता है, लेकिन तुम्हारी मेहनत सफल करने के लिए

मैं दिल से कोशिश कर रही हूं कि हमारा तालमेल बैठ जाए,’’ अगले दिन शाम को रितु ने अपने मन की बात सीमा को और मु झे साफसाफ बता दी.

‘‘अपने सपनों के राजकुमार के गुणों से हमें भी परिचित कराओ, रितु,’’ सीमा की इस जिज्ञासा का रितु क्या जवाब देगी, उसे सुनने को मैं भी उत्सुक हो उठता था.

रितु ने सीमा की पकड़ में आए बिना पहले मेरी तरफ मुड़ कर शरारती अंदाज में मु झे आंख मारी और फिर उसे बताने लगी, ‘‘मेरे सपनों का राजकुमार उतना ही अच्छा होना चाहिए जितना अच्छा तुम्हारा जीवनसाथी, सीमा. मेरी खुशियों… मेरे सुखदुख का हमेशा ध्यान रखने वाला सीधासादा हंसमुख इंसान है मेरे सपनों का राजकुमार.’’

‘‘ऐसे सीधेसादे इंसान से तुम जैसी स्मार्ट, फैशनेबल, आधुनिक स्त्री की निभ जाएगी?’’ सीमा ने माथे में बल डाल कर सवाल किया.

‘‘सीमा, 2 इंसानों के बीच आपसी सम झ और तालमेल गहरे प्रेम का मजबूत आधार बनता है या नहीं?’’

‘‘बिलकुल बनता है. वैभव तुम्हें अगर नहीं भी जंचा तो फिक्र नहीं. तुम्हारी शादी मु झे करानी ही है और तुम्हारे सपनों के राजकुमार से मिलताजुलता आदमी मैं ढूंढ़ ही लाऊंगी,’’ जोश से भरी सीमा भावुक भी हो उठी थी.

‘‘जो सामने मौजूद है उसे ढूंढ़ने की बात कह रही थी मेरी सहेली,’’ कुछ देर बाद जब सीमा रसोई में थी तब रितु ने मजाकिया लहजे में इन शब्दों को मुंह से निकाला तो मेरे दिल की धड़कनें बहुत तेज हो गईं.

मन में मच रही हलचल के चलते मु झ से कोई जवाब देते नहीं बना था. रितु ने हाथ बढ़ा कर अचानक मेरे बालों को शरारती अंदाज में खराब सा किया और फिर मुसकराती हुई रसोई में सीमा के पास चली गई.

उस दिन रितु की आंखों में मैं ने अपने लिए चाहत के भावों को साफ पहचाना था.

आगामी दिनों में उसे जब भी अकेले में मेरे साथ होने का मौका मिलता तो वह जरूर कुछ न कुछ ऐसा कहती या करती जो उस की मेरे प्रति चाहत को रेखांकित कर जाता. मैं ने अपनी तरफ से उसे कोई प्रोत्साहन नहीं दिया था पर मु झ से छेड़छाड़ करने का उस का हौसला बढ़ता ही जा रहा था.

इन सब बातों को सोचते हुए मैं ने शाम तक का समय गुजारा. रितु के फ्लैट की तरफ अपनी कार से जाते हुए मैं खुद को काफी तनावग्रस्त महसूस कर रहा था, इस बात को मैं स्वीकार करता हूं.

अपने ड्राइंगरूम में रितु मेरी बगल में बैठते हुए शिकायती अंदाज में बोली, ‘‘तुम ने बहुत इंतजार कराया, अरुण.’’

‘‘नहीं तो… अभी 6 ही बजे हैं. औफिस खत्म होने के आधे घंटे बाद ही मैं हाजिर हो गया हूं. कहो, कैसे याद किया है?’’ अपने स्वर को हलकाफुलका रखते हुए मैं ने जवाब दिया.

‘‘आज तुम से बहुत सारी बातें कहनेसुनने का दिल कर रहा है,’’ कहते हुए उस ने मेरा हाथ अपने हाथ में ले लिया.

‘‘तुम बेहिचक बोलना शुरू करो. मैं तुम्हारे मुंह से निकले हर शब्द को पूरे ध्यान से सुनूंगा.’’

मेरी आंखों में गहराई से  झांकते हुए उस ने भावुक लहजे में कहा, ‘‘अरुण, तुम्हारे प्यार को मैं कुछ दिनों से बहुत मिस कर रही हूं.’’

‘‘अरे, अब मेरे नहीं वैभव के प्यार को अपने दिल में जगह दो, रितु,’’ मैं ने हंसते हुए जवाब दिया.

‘‘मेरी जिंदगी में बहुत पुरुष आए हैं और आते रहेंगे, पर मेरे दिल में तुम्हारी जगह किसी को नहीं मिल सकेगी. तुम से दूर जा कर मैं ने अपने जीवन की सब से बड़ी भूल की है.’’

‘‘पुरानी बातों को याद कर के बेकार में अपना मन क्यों दुखी कर रही हो?’’

‘‘मेरी जिंदगी में खुशियों की बौछार तुम ही कर सकते हो, अरुण. अपने प्यार के लिए मु झे अब और तरसने मत दो, प्लीज,’’ और उस ने मेरे हाथ को कई बार चूम लिया.

‘‘मैं एक शादीशुदा इंसान हूं, रितु. मु झ से ऐसी चीज मत मांगो जिसे देना गलत होगा,’’ मैं ने उसे कोमल स्वर में सम झाया.

‘‘मैं सीमा का हक छीनने की कोशिश नहीं कर रही हूं. हम उसे कुछ पता नहीं लगने देंगे,’’ मेरे हाथ को अपने वक्षस्थल से चिपका कर उस ने विनती सी करी.

कुछ पलों तक उस के चेहरे को ध्यान से निहारने के बाद मैं ने ठहरे अंदाज में बोलना शुरू किया, ‘‘तुम्हारे बदलते हावभावों को देख कर मु झे पिछले कुछ दिनों से ऐसा कुछ घटने का अंदेशा हो गया था, रितु. अब प्लीज तुम मेरी बातों को ध्यान से सुनो.

‘‘हमारा प्रेम संबंध उसी दिन समाप्त हो गया था जिस दिन तुम ने मु झे छोड़ कर मयंक के साथ जुड़ने का निर्णय लिया था. अब हमारे पास उस अतीत की यादें हैं, लेकिन उन यादों के बल पर दोबारा प्रेम का रिश्ता कायम करने की इच्छा रखना तुम्हारी नासम झी ही है.

‘‘ऐसे प्रेम संबंध को छिपा कर रखना संभव नहीं होता है, रितु. मु झे आज भी मयंक की प्रेमिका निशा याद है. तुम ने मयंक को उस से छीना तो उस ने खुदकुशी करने की कोशिश करी थी. तुम्हें मनाने के लिए मैं किसी छोटे बच्चे की तरह रोया था, शायद तुम्हें याद होगा. किसी बिलकुल अपने विश्वासपात्र के हाथों धोखा खाने की गहन पीड़ा कल को सीमा भोगे, ऐसा मैं बिलकुल नहीं चाहूंगा.

‘‘पिछली बार तुम ने निशा और मेरी खुशियों के संसार को अपनी खुशियों की खातिर तहसनहस कर दिया था. आज तुम सीमा, रोहित और मेरी खुशियोें और सुखशांति को अपने स्वार्थ की खातिर दांव पर लगाने को तैयार हो पर काठ की हांडी फिर से चूल्हे पर नहीं चढ़ती है.

‘‘देखो, आज तुम सीमा की बहुत अच्छी सहेली बनी हुई हो. हम तुम्हें अपने घर की सदस्य मानते हैं. मैं तुम्हारा बहुत अच्छा दोस्त और शुभचिंतक हूं. तुम नासम झी का शिकार बन कर हमारे साथ ऐसे सुखद रिश्ते को तोड़ने व बदनाम करने की मूर्खता क्यों करना चाहती हो?’’

‘‘तुम इतना ज्यादा क्यों डर रहे हो, स्वीटहार्ट?’’ मेरे सम झाने का उस पर खास असर नहीं हुआ और वह अपनी आंखों में मुझे प्रलोभित करने वाले नशीले भाव भर कर मेरी तरफ बढ़ी.

तभी किसी ने बाहर से घंटी बजाई तो वह नाराजगीभरे अंदाज में मुड़ कर दरवाजा

खोलने चल पड़ी.

‘‘यह सीमा होगी,’’ मेरे मुंह से निकले इन शब्दों को सुन वह  झटके से मुड़ी और मु झे गुस्से से घूरने लगी.

‘‘तुम ने बुलाया है उसे यहां?’’ उस ने दांत पीसते हुए पूछा.

‘‘हां.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘मैं अकेले यहां नहीं आना चाहता था.’’

‘‘अब उसे क्या बताओगे?’’

‘‘कह दूंगा कि तुम उस की सौत बनने की…’’

‘‘शटअप, अरुण. अगर तुम ने हमारे बीच हुई बात का उस से कभी जिक्र भी किया तो मैं तुम्हारा मर्डर कर दूंगी.’’ वह अब घबराई सी नजर आ रही थी.

‘‘क्या तुम्हें इस वक्त डर लग रहा है?’’ मैं ने उस के नजदीक जा कर कोमल स्वर में पूछा.

‘‘म… मु झे… मैं सीमा की नजरों में अपनी छवि खराब नहीं करना चाहती हूं.’’

‘‘बिलकुल यही इच्छा मेरे भी है, माई गुड फ्रैंड.’’

‘‘अब उस से क्या कहोगे?’’ दोबारा बजाई गई घंटी की आवाज सुन कर उस की हालत और पतली हो गई.

‘‘तुम्हें वैभव कैसा लगता है?’’

‘‘ठीक है.’’

‘‘इस ठीक को हम सब मिल कर बहुत अच्छा बना लेंगे, रितु. तुम बहुत भटक चुकी हो. मेरी सलाह मान अब अपनी घरगृहस्थी बसाने का निर्णय ले डालो.’’

‘‘क्या मतलब?’’

‘‘मतलब यह कि सीमा को हम यह बताएंगे कि हम ने उसे यहां महत्त्वपूर्ण सलाहमश्वरे के लिए बुलाया है, क्योंकि तुम आज वैभव को अपना जीवनसाथी बनाने के लिए किसी पक्के फैसले तक पहुंचना चाहती हो.’’

‘‘गुड आइडिया,’’ रितु की आंखों में राहत के भाव उभरे.

‘‘तब सुखद विवाहित जीवन के लिए मेरी अग्रिम शुभकामनाएं स्वीकार करो, रितु,’’ मैं ने उस से फटाफट हाथ मिलाया और फिर जल्दी से दरवाजा खोलने के लिए मजाकिया ढंग से धकेल सा दिया.

‘‘थैंक यू, अरुण.’’ उस ने कृतज्ञ भाव से मेरी आंखों में  झांका और फिर खुशी से भरी दरवाजा खोलने चली गई.

‘‘वैभव तलाकशुदा इंसान था. उस की पत्नी ने तलाक देने से पहले उसे इतना दुखी कर दिया था कि अब वह शादी के नाम से ही बिदकता था…’’

Drama Story

Family Story: निर्णय- पुरवा ने ताऊजी के घर रहने के बाद कैसा निर्णय लिया?

लेखक- रईस अख्तर

जब से अफरोज ने वक्तव्य दिया था, पूरे मोहल्ले और बिरादरी में बस, उसी की चर्चा थी. एक ऐसा तूफान था, जो मजहब और शरीअत को बहा ले जाने वाला था. वह जाकिर मियां की चौथे नंबर की संतान थी. 2 लड़के और उस से बड़ी राबिया अपनेअपने घरपरिवार को संभाले हुए थे. हर जिम्मेदारी को उन्होंने अपने अंजाम तक पहुंचा दिया था और अब अफरोज की विदाई के बारे में सोच रहे थे. लेकिन अचानक उन की पुरसुकून सत्ता का तख्ता हिल उठा था और उस के पहले संबंधी की जमीन पर उन्होंने अपनी नेकनीयती और अक्लमंदी का सुबूत देते हुए वह बीज बोया था, जो अब पेड़ बन कर वक्त की आंधी के थपेड़े झेल रहा था.

उन के बड़े भाई एहसान मियां उसी शहर में रहते थे. हिंदुस्तान-पाकिस्तान बनने के वक्त हुए दंगों में उन का इंतकाल हो गया था. वह अपने पीछे अपनी बेवा और 1 लड़के को छोड़ गए थे. उस वक्त हारून 8 साल का था. तभी पति के गम ने एहसान मियां की बेवा को चारपाई पकड़ा दी थी. उन की हालत दिनोंदिन बिगड़ती जा रही थी. उस हालत में भी उन्हें अपनी चिंता नहीं थी. चिंता थी तो हारून की, जो उन के बाद अनाथ हो जाने वाला था.

कितनी तमन्नाएं थीं हारून को ले कर उन के दिल में. सब दम तोड़ रही थीं. उन की बीमारी की खबर पा कर जाकिर मियां खानदान के साथ पहुंच गए थे. उन्हें अपने भाई की असमय मृत्यु का बहुत दुख था. उस दुख से उबर भी नहीं पाए थे कि अब भाभीजान भी साथ छोड़ती नजर आ रही थीं. उन के पलंग के निकट बैठे वह यही सोच रहे थे. तभी उन्हें लगा जैसे भाभीजान कुछ कहना चाह रही हैं. भाभीजान देर तक उन का चेहरा देखती रहीं. वह अपने शरीर की डूबती शक्ति को एकत्र कर के बोलीं, ‘वक्त से पहले सबकुछ खत्म हो गया,’

इतना कहतेकहते वह हांफने लगी थीं. कुछ पल अपनी सांसों पर नियंत्रण करती रहीं, ‘मैं ने कितने सुनहरे सपने देखे थे हारून के भविष्य के, खूब धूमधाम से शादी करूंगी…बच्चे…लेकिन…’

‘आप दिल छोटा क्यों करती हैं. यह सब आप अपने ही हाथों से करेंगी,’ जाकिर मियां ने हिम्मत बढ़ाने की कोशिश की थी. ‘नहीं, अब शायद आखिरी वक्त आ गया है…’ भाभीजान चुप हो कर शून्य में देखती रहीं. फिर वहां मौजूद लोगों में से हर एक के चेहरे पर कुछ ढूंढ़ने का प्रयास करने लगीं. ‘सायरा,’ वह जाकिर मियां की बीवी का हाथ अपने हाथ में लेते हुए बोली थीं,

‘तुम लोग चाहो तो मेरे दिल का बोझ हलका कर सकते हो…’ ‘कैसे भाभीजान?’ सायरा ने जल्दी से पूछा था. ‘मेरे हारून का निकाह मेरे सामने अपनी अफरोज से कर सको तो…’ भाभीजान ने अपना वाक्य अधूरा छोड़ दिया था और आशाभरी नजरों से सायरा को देखने लगी थीं. सायरा ने जाकिर मियां की तरफ देखा. जैसे पूछ रही हों, तुम्हारी क्या राय है?

आखिर आप का भी तो कोई फर्ज है. वैसे भी अफरोज की शादी तो आप को ही करनी होगी. अच्छा है, आसानी से यह काम निबट रहा है. लड़का देखो, खानदान देखो, इन सब झंझटों से नजात भी मिल रही है. ‘इस में सोचने की क्या बात है? हमें तो खुशी है कि आप ने यह रिश्ता मांगा है,’

जाकिर मियां ने सायरा की तरफ देखा, ‘मैं आज ही निकाह की तैयारी करता हूं,’ यह कहते हुए जाकिर मियां उठ खड़े हुए. वक्त की कमी और भाभीजान की नाजुक हालत देखते हुए अगले दिन ही अफरोज का निकाह हारून से कर दिया गया था. उसी के साथ वक्त ने तेजी से करवट ली थी और भाभीजान धीरेधीरे स्वस्थ होने लगी थीं. वह घटना भी अपने-आप में अनहोनी ही थी.

तब की 6 साल की अफरोज अब समझदार हो चुकी थी. उस ने बी.ए. तक शिक्षा भी पा ली थी. इसी बीच जब उस ने यह जाना था कि बचपन में उस का निकाह अपने ही चचाजाद भाई हारून से कर दिया गया था तो वह उसे सहजता से नहीं ले पाई थी. ‘‘यह भी कोई गुड्डेगुडि़यों का खेल हुआ कि चाहे जैसे और जिस के साथ ब्याह रचा दिया. दोचार दिन की बात नहीं, आखिर पूरी जिंदगी का साथ होता है पतिपत्नी का. मैं जानबूझ कर खुदकुशी नहीं करूंगी. बालिग हूं, मेरी अपनी भी कुछ इच्छाएं हैं, कुछ अरमान हैं,’’

अफरोज ने बारबार सोचा था और विद्रोह कर दिया था. जब अफरोज के उस विद्रोह की बात उस के अम्मीअब्बा ने जानी थी तो बहुत क्रोधित हुए थे. ‘‘हम से जनमी बेटी हमें ही भलाबुरा समझाने चली है,’’ सायरा ने मां के अधिकार का प्रयोग करते हुए कहा था, ‘‘तुझे ससुराल जाना ही होगा. तू वह निकाह नहीं तोड़ सकती.’’

‘‘क्यों नहीं तोड़ सकती? जब आप लोगों ने मेरा निकाह किया था, तब मैं दूध पीती बच्ची थी. फिर यह निकाह कैसे हुआ?’’ अफरोज ने तत्परता से बोलते हुए अपना पक्ष रखा था. ‘‘शायद तेरी बात सही हो लेकिन तुझे पता होना चाहिए कि शरीअत के मुताबिक औरत निकाह नहीं तोड़ सकती. हम ने तुझे इसलिए नहीं पढ़ाया-लिखाया कि तू अपने फैसले खुद करने लगे. आखिर मांबाप किस लिए हैं?’’ सायरा किसी तरह भी हथियार डालने वाली नहीं थी.

‘‘मैं किसी शरीअतवरीअत को नहीं मानती. आप को आज के माहौल में सोचना चाहिए. कैसी मां हैं आप? जानबूझ कर मुझे अंधे कुएं में धकेल रही हैं. लेकिन मैं हरगिज खुदकुशी नहीं करूंगी. चाहे मुझे कुछ भी करना पड़े. यह मेरा आखिरी फैसला है,’’ अफरोज पैर पटकती हुई अपने कमरे में चली गई थी. अफरोज के खुले विद्रोह के आगे मांबाप की एक नहीं चली थी. आखिर उन्हें इस बात पर समझौता करना पड़ा था कि शहर काजी या मुफ्ती से उस निकाह पर फतवा ले लिया जाए. शाम को उन के घर बिरादरी भर के लोग जमा हो गए थे. हर शख्स मुफ्ती साहब का इंतजार बेचैनी से कर रहा था. उन्हें ज्यादा इंतजार नहीं करना पड़ा.

कुछ ही देर बाद मुफ्ती साहब के आने की खबर जनानखाने में जा पहुंची थी. इशारे में जाकिर मियां ने कुछ कहा और अफरोज को परदे के पास बैठा दिया गया. दूसरी ओर मरदों के साथ मुफ्ती साहब बैठे थे. मुफ्ती साहब ने खंखारते हुए गला साफ किया. फिर बोले, ‘‘अफरोज वल्द जाकिर हुसैन, यह सही है कि हर लड़की को निकाह कुबूल करने और न करने का हक है, लेकिन उस के लिए कोई पुख्ता वजह होनी चाहिए. तुम बेखौफ हो कर बताओ कि तुम यह निकाह क्यों तोड़ना चाहती हो?’’ वह चुप हो कर अफरोज के जवाब का इंतजार करने लगे.

‘‘मुफ्ती साहब, मुझे यह कहते हुए जरा भी झिझक नहीं महसूस हो रही है कि मेरी अपनी मालूमात और इला के मुताबिक हारून एक काबिल शौहर बनने लायक आदमी नहीं है. ‘‘उस की कारगुजारियां गलत हैं और बदनामी का बाइस है,’’ वह कुछ पल रुकी फिर बोली,

‘‘बचपन में हुआ यह निकाह मेरे अम्मीअब्बा की नासमझी है. इसे मान कर मैं अपनी जिंदगी में जहर नहीं घोल सकती. बस, मुझे इतना ही कहना है.’’ दोनों तरफ खामोशी छा गई. तभी मुफ्ती साहब बुलंद आवाज में बोले, ‘‘अफरोज के इनकार की वजह काबिलेगौर है. मांबाप की मरजी से किया गया निकाह इस पर जबरन नहीं थोपा जा सकता. निकाह वही जायज है जो पूरे होशहवास में कुबूल किया गया हो. इसलिए यह अपने निकाह को नहीं मानने की हकदार है और अपनी मरजी से दूसरी जगह निकाह करने को आजाद है.’’

मुफ्ती साहब के फतवा देते ही चारों ओर सन्नाटा छा गया था. अपने हक में निर्णय सुन कर, जाने क्यों, अफरोज की आंखों में आंसू आ गए थे.

\Family Story

Home Fragrance: घर की वाइब्स को और बेहतरीन बनाना है, तो ये ट्राई करें

Home Fragrance: दिनभर की भागदौड़, ट्रैफिक का शोर, औफिस का तनाव और थकान भरी शाम के बाद जब हम अपने घर लौटते हैं तो बस एक ही चीज चाहिए होती है सुकून और ताजगी और यह सुकून सिर्फ साफसुथरे कमरे से ही नहीं बल्कि अच्छी महक से भी आता है. घर की हवा जब भीनीभीनी खुशबू से महकती है तो मन अपनेआप हलका महसूस करता है.

आजकल लोग घर की सजावट के साथसाथ होम फ्रैगरैंस यानी घर को महकाने वाले प्रोडक्ट्स पर भी ध्यान देने लगे हैं. आइए, जानते हैं कि कैसे आप अपने घर को सिर्फ देखने में ही नहीं, महसूस करने में भी शानदार बना सकते हैं कुछ पुराने, कुछ नए और कुछ एकदम हट कर रूम  फ्रैशनर आइडियाज के साथ:

मार्केट में कई तरह के होम फ्रैशनर मिलते हैं जो घर की सीलन, गीले कपड़ों की बदबू या किचन की गंध को मिनटों में दूर कर देते हैं. इन में से कुछ तो कमरे की मूड सैटिंग भी कर देते हैं. इन का चयन आप अपनी पसंद और मूड के हिसाब से कर सकती हैं.

होम फ्रैगरैंस के औप्शंस

आजकल मार्केट में कई तरह के होम फ्रैगरैंस उपलब्ध हैं, जिन्हें आप अपनी पसंद और जरूरत के हिसाब से चुन सकती हैं. इन में परफ्यूम डिस्पैंसर, अरोमा लैंप्स, रूम स्प्रे, एअर फ्रैशनर्स, पौटपौरी, सेंटेड औयल्स और सैंटेड कैंडल्स शामिल हैं. फ्रैगरैंस की कैटेगरीज भी अलगअलग होती हैं जैसे फ्रूटी (वैनिला, स्ट्राबैरी, चौकलेट) और फ्लोरल (जैस्मीन, गुलाब, लैवेंडर, इंडियन स्पाइस). ये खुशबुएं न सिर्फ घर को महकाती हैं बल्कि तनाव को कम कर के मूड को भी बेहतर बनाती हैं.

ट्रैडिशनल नैचुरल फ्रैगरैंस

अगरबत्तियां: अगरबत्ती खुशबूदार लकडि़यों, जड़ीबूटियों, तेलों, मसालों, जैस्मीन, चंदन, गुलाब और देवदार जैसी प्राकृतिक चीजों से बनती हैं. अगरबत्तियां 2 तरह की होती हैं:

डाइरैक्ट बर्न: ये स्टिक में होती हैं, जिन्हें जलाने पर धीरेधीरे घर के हर कोने में खुशबू फैलती है.

पौटपौरी: पौटपौरी में सूखे फूल, पत्तियां, मिट्टी लकड़ी या सिरैमिक के खूबसूरत बाउल में रखी जाती हैं. आप चाहें तो मिट्टी के बरतन में पानी भर कर ताजा गुलाब की पंखुडि़यां डाल सकती हैं और उसे दरवाजे या खिड़की पर टांग सकती हैं. हवा के साथ इस की खुशबू पूरे घर में फैलती रहेगी.

एअर फ्रैशनर्स: ये छोटेछोटे कैन में आते हैं, जिन्हें दीवार पर लगा कर एक बटन दबाने से घर में ताजगी भरी खुशबू फैल जाती है. ये इस्तेमाल में आसान और असरदार होते हैं.

रीड डिफ्यूजर: रीड डिफ्यूजर में नैचुरल और सिंथैटिक औयल का इस्तेमाल होता है. ये हवा में खुशबू को घोल कर लंबे समय तक घर को महकाते हैं. इन्हें बारबार जलाने की जरूरत नहीं पड़ती और ये अलगअलग साइज और खुशबुओं में मिलते हैं.

फ्रैगरैंस कैंडल्स: मार्केट में कई रंगों, डिजाइनों और खुशबुओं में फ्रैगरैंस कैंडल्स उपलब्ध हैं. डिजाइनर अरोमा लैंप में पानी की कुछ बूंदों के साथ अरोमा औयल डाल कर घर को लंबे समय तक महकाया जा सकता है.

कुछ नए और हट कर रूम फ्रैशनर आइडियाज

अरोमा डिफ्यूजर मशीन: यह छोटी इलैक्ट्रौनिक मशीन होती है, जिस में पानी और अरोमा औयल डाला जाता है. इसे औन करते ही मिस्ट के साथ खुशबू पूरे कमरे में फैल जाती है खासकर बैडरूम या लिविंगरूम में इस का जबरदस्त असर होता है.

ऐरोमैटिक सैशे: इन छोटेछोटे पाउचों में सूखे फूल और अरोमा तेल होते हैं. इन्हें आप अलमारी, शू रैक या बैग में रख सकती हैं. कपड़े भी महकते हैं और अलमारी भी.

फैब्रिक स्प्रे: सोफा, परदे, कुशन, बैडशीट आदि पर यह स्प्रे किया जाता है. इस से हर कोना ताजा और साफसुथरा लगता है

स्मार्ट सैंसिंग फ्रैशनर: ये औटोमैटिक सैंसर्स वाले होते हैं जो जब कोई कमरे में आता है तब खुशबू छोड़ते हैं. कुछ में मोबाइल ऐप से कंट्रोल का औप्शन भी होता है.

Hypersensitive लोगों से ऐसे निभाएं

Hypersensitive: शाम का समय था. मौसम भी एकदम अनुकूल और सही था. शुचि अपने कुछ परिचितों के साथ बैठी थी. बढि़या गपशप चल रही थी. तभी अचानक शुचि किसी बात पर जोरजोर से बहस करने लगी. सभी ने विषय को बदलने की कोशिश भी की, मगर शुचि जैसे तैश में ही आ गई थी. वह हाथपैर भी हिलाने लगी और तीखी आवाज में बोलने लगी. बाकी लोग बिलकुल नहीं चाहते थे कि ऐसी बहस आगे तक चले.

मगर शुचि का जब तक मन नहीं भरा तब तक वह बोलती ही रही. सब का मन कसैला सा हो गया था. अभी तक जो इतना बढि़या माहौल बना हुआ था. सब पर जैसे पानी फिर गया. उधर शुचि का हाल भी कोई खास अच्छा नहीं था. उस का अचनक रक्तचाप बढ़ गया. उसे उसी समय अपनी चिकित्सक से सलाह लेने जाना पड़ा.

वास्तव में शुचि जैसी परिचितों के कारण कई बार अच्छीभली स्थिति अचानक असहनीय हो जाती है. दरअसल, जो लोग हाइपरसैंसिटिव होते वे किसी की भी बात को गहराई तक महसूस कर के दूसरों से गुस्सा हो जाते हैं या अपने साथ औरों को भी लंबे समय तक टैंशन में रखते हैं. इस तरह के लोग प्राय: तर्कशील, विवेकशील होते हैं. उन के इस व्यवहार के लिए उन के भीतर का जींस जिम्मेदार होता है.

इस पर दुनियाभर के मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि हर व्यक्ति के व्यक्तित्व का आधा हिस्सा उसे अपने जींस से हासिल होता है. इस तरह का जींस कई लोगों में पाया जाता है, जिस से वे अतिरिक्त संवेदनशील होते हैं. लेकिन इन की संवेदनशीलता कई बार दूसरों की अच्छी मानसिकता पर भी भारी पड़ जाती है.

दिल के बुरे नहीं ऐसे लोग 

‘द सैंसिटिव हार्ट’ पुस्तक की लेखिका, वक्ता और मनोवैज्ञानिक जेनिला जोके का मत है कि इस तरह के लोग दिल से सचमुच इतने भी बुरे नहीं होते. इन्हें बस अपनी भावनाओं पर नियंत्रण रखना नहीं आता है. अगर ये लोग समूह में अपने समझदार परिचितों या जानपहचान के लोगों के साथ हैं तब तो फिर भी माहौल जैसेतैसे ठीक हो जाता है, मगर मुश्किल अनजान जगह पर आती है. लेखिका ने बस, ट्रेन तथा पार्क आदि जगहों में ऐसे लोगों की गतिविधियों का बहुत बारीकी से अध्ययन किया है. वे कहती हैं कि इन जगहों पर इन के अचानक से बदल गए आचरण का असर छोटे बच्चों पर पड़ता है. वे किसी अजीब सदमे से भी घिर सकते हैं.

इसी तरह के लोगों से संबंधित एक घटना के विषय में वर्णन करते हुए जेनिला ने लिखा है कि पार्क  में कुछ बच्चे बस यों ही आपस में हंस रहे थे, बतिया रहे थे.

मगर एक महिला ने उन्हें न केवल बुरी तरह फटकार दिया बल्कि तरहतरह की नसीहतें भी दे डालीं जो उन छोटे बच्चों की समझ से परे थीं. फटकार देने से वह महिला खुद भी तनाव में आ गई थी.

कुछ दिन तक वह महिला पार्क में नजर नहीं आई. इस का मतलब यही हुआ कि प्रभाव दोनों तरफ हुआ. मगर हुआ नकारात्मक. जबकि इसे रोका भी जा सकता था या बेहद सकारात्मक हो कर उन बच्चों की हंसी में शामिल हुआ जा सकता था.

इन से जुड़े रहें 

अगर इस तरह के लोग आप के आसपास भी हैं तो उन के सच्चे हितैषी बन कर उन्हें उसी हाल में न रहने दें बल्कि जब भी वे सुनने के लिए तैयार हों तो उन्हें सकारात्मक तथा नकारात्मक सोच के उदाहरण जरूर देते रहें.

Hypersensitive

Emotional Story in Hindi: ए दिल तुझे कसम है

Emotional Story in Hindi: शाम के 4 बज रहे थे. गरमी से काजल की हालत खराब थी. वह सुबह 10 बजे घर से निकली थी. अभी मैट्रो से घर वापस आई थी. अब आ कर देखा तो लाइट नहीं थी. गरमी ने इस साल पूरे देश को जला रखा था. लोग दिनभर हाय गरमी हाय गरमी कर रहे थे. समृद्ध लोग ग्लोबल वार्मिंग पर बात करते हुए दिनबदिन कम होती जा रही हरियाली को कोसते, फिर घर आ कर एसी चला कर टांगें फैला कर पसर जाते. काजल दिनभर दिल्ली में एक सरकारी औफिस से दूसरे सरकारी औफिस धक्के खाती रही थी, लंच भी नहीं किया था. कहीं किसी दुकान पर एक गिलास लस्सी पी ली थी. अब रास्ते से ही उस के सिर में दर्द था. पूरा रास्ता सोचती रही कि घर जा कर नहाधो कर चायब्रैड खाएगी.

घर का दरवाजा खोलते ही दिल भारी सा हुआ. लगा, स्नेह में डूबी एक आवाज आएगी, ‘‘बड़ी देर लगा दी, बेटा,’’ पर अब यह आवाज तो कभी नहीं आएगी, सोचते हुए एक ठंडी सांस  ली और अपना बैग सोफे पर रख टौवेल उठा कर वाशरूम चली गई. वाशरूम में जा कर खूंटी पर टौवेल टांगा ही था कि फिक्र हुई कि मेन गेट अंदर से ठीक से बंद तो कर लिया है न.

आजकल यही तो होता है पता नहीं कितनीकितनी बार घर के दरवाजे चैक करती रहती है.

छत पर जाने वाले दरवाजे का ताला पता नहीं कितनी बार चैक करती, ठीक से बंद है या नहीं. शरीर पर पानी पड़ा तो चैन की सांस आई. पूरा दिन बदन जैसे आग में तपता रहा था. नहातेनहाते रोने लगी कि आओ मम्मी देखो, आप की फूल जैसी बच्ची कहांकहां दिनभर धक्के खा कर आई है, अब आप की बच्ची फूल सी नहीं रही. आप को पता है कि अपनी जिस बेटी को आप फूल सी बना कर पालते रहे, वह फूल अब कांटों से घिरा है?

शावर से गिरते पानी में आंसू मिलते रहे. नहा कर निकली, बस एक हलका छोटा सा  स्लीवलैस टौप पहन लिया. नीचे नामभर की शौर्ट्स पहनी. अकेली ही तो थी घर में, कुछ पहनने का मन नहीं किया. अब बस 1 कप चाय और 2 ब्रैडस्लाइस, फिर थोड़ी देर आराम करेगी. फ्रिज खोला, सिर पकड़ लिया, सुबह जल्दी निकलने के चक्कर में भूल गई थी, दूध खत्म हो गया है. ब्रैड भी तो नहीं है.

पापा के रहते ऐसा कभी नहीं होता था. वह इस बात का हमेशा ध्यान रखते कि फ्रिज भरा रहे. क्या खाए, कुछ सम झ नहीं आया तो मैगी बनने रख दी. पानी, मैगी मसाला, नूडल्स एकसाथ सबकुछ डाल दिया. आंच धीमी कर थोड़ी देर लेटने चली गई. बिस्तर पर लेटी क्या, औंधी पड़ी थी.

काजल 35 साल की देखने में ठीकठाक, पढ़ीलिखी, आधुनिक, अब दुनिया में अकेली रह गई अविवाहित लड़की. 24 साल की थी तो उस की मम्मी की अचानक हार्ट फेल से डैथ हो गई थी. पितापुत्री पर कहर सा टूटा था. शांत सीधे से सरकारी अफसर पापा की देखरेख के लिए उस ने दिल्ली से बाहर शादी करने का मन नहीं बनाया, जिन पापा का हमेशा साथ देने के लिए उन की एक आवाज पर हाजिर रहती, वही अब अचानक हमेशा के लिए छोड़ कर चले गए थे. उस के पापा का भी हार्ट फेल हुआ था. भरी दुनिया में काजल उन के अचानक जाने से ठगी सी रह गई थी. इस के लिए तो सोचा ही नहीं था पर भला इंसान जो सोचता है, क्या हमेशा वही होता है? वक्त की हर शय गुलाम, वक्त का हर शय पर राज.

अभी तक काजल अपना पूरा ध्यान अपने पापा में, घर में और अपने किसी न किसी कोर्स में लगाती रही थी. अब जाने कितने काम निकल आए थे, पैंशन पेपर्स और प्रौपर्टी ट्रांसफर के पेपर्स बनवाने के लिए उसे बहुत धक्के खाने पड़ रहे थे. मैगी बनने की खुशबू आई तो भूख फिर जाग गई. पेट कोई  दुखदर्द नहीं देखता. पेट शायद हमेशा ही एक छोटे बच्चे की तरह रहता है, जब उस का टाइम हो, उसे जरूरत हो तो बस चाहिए. काजल उठी, मैगी प्लेट में डाली, उसे अपने पापा की याद आई, उन्हें भी मैगी पसंद थी. दोनों पितापुत्री बहुत शौक से मैगी खाते थे. मम्मी डांटती रह जाती कि दोनों अनहैल्दी चीजें खाते हो. काजल की आंखों के आगे वे दृश्य उपस्थित हो गए. ऐसा तो अब पता नहीं कितनी बार होता था.

टीवी देखते हुए मैगी जल्दीजल्दी खाई, बहुत भूख लग रही थी. अपनी पसंद की चीज देखते ही वैसे भी भूख बढ़ जाती है. खास दोस्त तनु और रवीना के फोन आ रहे थे. उस ने दोनों को मैसेज डाल दिया कि बहुत थकी हुई हूं, बाद में कौल करूंगी. ये दोनों सहेलियां उस की शुभचिंतक थीं, दोनों मैरिड थीं. तनु कोलकाता में और रवीना रोहिणी, दिल्ल में ही रहती थी. दोनों उस की खोजखबर लेती रहतीं.

मैगी खा कर वह बैड पर लेटी ही थी कि डोरबेल बजी. मेन गेट पर बड़ीबड़ी ग्रिल वाला डिजाइन था, किचन की खिड़की से दिख जाता कि कौन है. काजल ने किचन से  झांका, उमेश था. उसे देखते ही काजल का मूड खराब हो गया. उस का चचेरा भाई. काजल के काफी रिश्तेदार आसपास ही थे पर वह उन सब से बहुत परेशान हो चुकी थी.

जब से उस के पापा गए थे, उन की मौरल पौलिसिंग बढ़ गई थी. उस की किसी चीज की किसी को चिंता नहीं थी, उस की किसी परेशानी से मतलब नहीं था पर वह कब क्या कर रही है, इस की उन्हें पूरी जानकारी होना वे सब अपना फर्ज सम झते. उन सब को काजल को परेशान होते देख एक आनंद आता.

काजल सोच में ही थी कि क्या करे. दरवाजा खोले या नहीं. तभी उमेश जोर से आवाज देने लगा, ‘‘अरे, काजल दरवाजा खोल. अभी मैं ने तु झे आते देखा है अरे, कहां है?’’

काजल ने अभी जो आरामदायक कपड़े पहने थे, वे जल्दी से उतारे, एक कुरता और जींस पहन दरवाजा खोला. उमेश उस से 2 साल बड़ा था, विवाहित था, एक बेटे जय का पिता था. उमेश की पत्नी मेखला भी काजल को खास पसंद नहीं थी. उस के दिल में काजल के प्रति ईर्ष्या का भाव है, काजल को हमेशा यही महसूस हुआ. काजल ने बिना गेट खोले रूखे स्वर में पूछा, ‘‘क्या है? मैं अभी आराम कर रही हूं. अगर कोई जरूरी काम नहीं है तो बाद में आना.’’

‘‘अरे, दरवाजा तो खोल, तेरा भाई तेरा हाल पूछने आया है. कहां गई थी? मैं अभी दुकान पर ही था, तु झे आता देखा तो आ गया.’’

काजल ने चिढ़ते हुए दरवाजा खोल दिया, ‘‘दुकान छोड़ कर आ गया?’’

अंदर आ कर उमेश सोफे पर पसर गया, कहा, ‘‘चल, चाय पिला दे.’’

‘‘दूध नहीं है.’’

‘‘सुबह से बाहर थी, कहां घूम कर

आई है?’’

‘‘तु झे क्या मतलब है?’’

उमेश ने उसे ऊपर से नीचे तक घूरा, फिर कहा, ‘‘बड़ी थकी हुई लग रही है? कहां ऐश हो रही है?’’

‘‘यह ऐश तुम लोगों को भी मिले, यही कह सकती हूं.’’

उमेश की पास में ही कपड़ों की दुकान थी. यहां सब रिश्तेदारों के घर आसपास थे, काजल के काम तो कोई नहीं आ रहा था, उलटा जब भी कोई आता उसे चार बातें सुना जाता.

काजल ने कहा, ‘‘देख उमेश मु झे अभी बहुत काम हैं, अभी तू जा और हो सके तो तुम सभी लोग यहां आना छोड़ दो.’’

‘‘जब से अकेली रह गई है, बहुत बदतमीज होती जा रही है. अकेले छोड़ दें ताकि तू खानदान की नाक कटवा दे? पापा भी कह रहे थे कि तू किसी का फोन नहीं उठाती,’’ फिर उस की आंखों में जो भाव आए, काजल का मन हुआ उसे धक्के दे कर निकाल दे.

उमेश कह रहा था, ‘‘वैसे तू कुछ पतली सी हो गई है और अच्छी लगने लगी है.’’

काजल अभी तक खड़ी ही थी ताकि वह सम झ जाए कि काजल चाहती है कि वह जल्दी चला जाए. काजल ने जानबू झ कर कहा, ‘‘चल, तेरे पास इतनी फुरसत है तो दूध ला कर दे दे.’’

‘‘पागल हो गई है क्या, तेरा हालचाल पूछने के लिए दुकान छोड़ कर आया हूं, काम देखना है,’’ काम सुनते ही उमेश हमेशा की तरह जाने के लिए उठ कर खड़ा हो गया और चला गया.

काजल को अब 1-1 रिश्तेदार की हकीकत सम झ आ गई थी कि कोई उस का साथ नहीं देगा बल्कि उस की परेशानियां ही बढ़ाई जाती हैं. अब वह वक्त के साथ इन सब से निबटना सीख चुकी थी. उस ने फिर अंदर से गेट बंद किया और कपड़े फिर बदले और जा कर लेट गई. तभी काजल के मामा राजीव का फोन आया, ‘‘कहां घूमती रहती है? मांबाप के जाने के बाद एकदम बेलगाम हो गई है. मैं दिन में 2 बार आया, कहां थी?’’

‘‘जहां आज मैं गई थी, आप मेरे साथ कल चलना, मामाजी. मैं भी चाहती हूं कि कोई बड़ा मेरे साथ जाए तो मेरा पेपर वर्क थोड़ा जल्दी हो जाए.’’

यह बात सुन कर मामाजी की आवाज ढीली हो गई, कहा, ‘‘तू तो जानती ही है कि मेरी तबीयत कितनी खराब रहती है. ऐसा कर उमेश को ले जा, उन लोगों का भी तो फर्ज है कुछ.’’

‘‘आप का बेटा क्या सोशल मीडिया पर ही मु झे फौलो करेगा कि मैं कब क्या कर रही हूं. उसे बोलो मामाजी, रियल लाइफ में मेरे साथ चला करे.’’

‘‘वह तो अपनी जौब में बिजी है न.’’

‘‘पता है मु झे सब लोग कितने बिजी हो.’’

‘‘सचमुच बदतमीज होती जा रही है,’’ कह कर मामाजी ने फोन रख दिया.

काजल का मन खराब हो गया. इन सब से बात कर के वह बहुत देर तक उदास रहती. कोई उस से नहीं पूछता कि वह कैसी है, उसे कोई परेशानी तो नहीं. सब ऐसे व्यवहार करते हैं जैसे वह दिनरात कोई गलत काम कर रही है. अब अकेली रह गई है तो सब के लिए जवाबदेही बढ़ गई है? अकेली मतलब बुरी? इतना पढ़लिख लिया है, कोई जौब भी ढूंढ़ ही लेगी पर यह समाज क्या हमेशा ऐसा ही रहेगा? ये सब उस की पर्सनल लाइफ की खोजबीन ही करते रहेंगे? हमारे समाज में अकेली अविवाहित युवा, युवा विधवा, युवा तलाकशुदा का जीवन कितना संघर्षभरा है, ये वही जानती हैं. समाज इन्हें नीचा दिखाने का कोई मौका नहीं छोड़ता.

काजल ने तनु और रवीना को लेटेलेटे ग्रुप कौल किया, दोनों उस से उस का हालचाल लेती रहीं. उमेश और मामा से हुई बात बताते हुए काजल को रोना आ गया. दोस्त भी उदास हुईं, तनु ने कहा, ‘‘तु झे इन सब से एक दूरी बनानी होगी, तभी तू शांति से अपने काम कर पाएगी. कल कोई जौब करेगी तब भी ये सब तेरा जीना मुश्किल ही करेंगे.’’

‘‘तो क्या करूं? उमेश जब चाहे, मुंह उठा कर चला आता है जैसी नजरों से देखता है. उसे पीटने का मन करता है. एक दिन कह रहा था कि मूवी चलेगी? मैं ने मना किया तो कहने लगा कि ‘‘मु झे ही अपना बौयफ्रैंड सम झ ले, तेरी सारी परेशानियां कम हो जाएंगी.

‘‘मैं ने कहा कि चाचा को बताती हूं तो हंस दिया कि अरे मेरी बहन है तू, मजाक नहीं कर सकता क्या? चचेरे भाईबहन तो कितने ही मजाक करते हैं और फिर बेशर्मी से हंस दिया कि तु झे क्या पता, मजाक के साथसाथ क्याक्या चलता है कजिंस में मु झे सम झ नहीं आ रहा है कि मैं कैसे इन सब से निबटूं?

‘‘अब पैंशन औफिस में क्या कह रहे हैं?’’

‘‘15 दिन बाद आने के लिए कहा है. सोच रही हूं, एक वैलनैस सैंटर खुला है दिल्ली से निकलते ही, नोएडा वाले रोड पर. मु झे मैंटल पीस चाहिए, तुम लोगों को भी सही लगता है तो कुछ दिनों के लिए चली जाऊं?’’

दोनों कुछ देर सोचती रहीं, फिर रवीना ने कहा, ‘‘हां, अभी एकाध हफ्ता कहीं मूड चेंज करने के लिए चली जा. ठीक लगे तो रुकना नहीं तो या मेरे पास या तनु के घर आ जाना. हमारा घर तेरा अपना ही है, संकोच मत करना. अभी अंकल को गए 4 महीने ही तो हुए हैं, घर में मन भी नहीं लगता होगा. सम झ रही हूं, तेरे रिश्तेदार किसी काम के नहीं. तेरी मानसिक शांति ही भंग करते हैं और इस उमेश के लिए तो गेट खोला ही मत कर.’’

‘‘हां, यह फोन पर भी उलटेसीधे मैसेज भेजता रहता है.’’

‘‘पढ़वा दे इस की पत्नी को, दिमाग ठिकाने आ जाएगा.’’

‘‘सोच रही हूं, काफी रिश्तेदारों को ब्लौक कर दूं. अभी भी तो बुरी लड़की ही सम झ रहे हैं, बात नहीं होगी तो मेरा दिमाग तो नहीं खाएंगे.’’

‘‘हां, कर दे ब्लौक.’’

‘‘सचमुच कर दूं?’’

‘‘हां, कर दे.’’

थोड़ी देर बाद सब ने फोन रख दिया. फोन रखने के बाद काजल ने सोचा, वह अकेली रहती है, अब उस का कोई नहीं. जो भी दोस्त हैं, दूर हैं. 1-2 दोस्त और भी हैं, अमित और नैना. दोनों उस के साथ पढ़े हैं. अमित तो उस के घर से 2 किलोमीटर दूर ही है, नैना पटपड़गंज में. दोनों पापा के जाने के बाद उस के घर कई बार आ चुके हैं, मुसीबत में काम भी आएंगे, उसे यह भी यकीन है. ये रिश्तेदार उसे सिर्फ ताने मारते हैं, उस का मजाक उड़ाते हैं, ये सब उस के किसी काम नहीं आने वाले हैं. उमेश की गंदी नजरों से बचना ही अब बहुत मुश्किल होता जा रहा है पर अपनी सेफ्टी के लिए उसे कई कदम उठाने ही होंगे. अकेली है तो क्या जीना छोड़ दे?

काजल ने अब उमेश को और कई लोगों को फोन पर ब्लौक कर ही दिया. देखा जाएगा और बुरी सम झ लें, क्या फर्क पड़ जाएगा. फिर उस ने आसपास के वैलनैस सैंटर ढूंढे़. उस का मन था कि दिल्ली से थोड़ा बाहर निकले. यहां की हवा में तो अब सांस भी मुश्किल से आती थी, हर तरफ धुआं ही धुआं, गरमी, अजीब सा मौसम और माहौल. उसे नोएडा वाला ही सैंटर सम झ आया, नैचुरल वैलनैस सैंटर. उस के पास उस के अकाउंट में इतने पैसे थे कि उस के खर्चे आराम से पूरे हो रहे थे. यहां 15 हजार 1 हफ्ते का था, उसे पहले तो ज्यादा लगे पर उस ने सोचा कि उस की मैंटल हैल्थ के लिए यहां से कुछ दिन दूर होना उस के लिए जरूरी है. उस ने रजिस्ट्रेशन करवा लिया. उसे अब अगले दिन ही सुबह निकलना था. वह अब कुछ तैयारी करने लगी. बाहर निकल कर दूध और भी कुछ चीजें लेने निकलीं.

काजल ने सोचा इस समय बस थोड़ी सी खिचड़ी बना लेगी. सुबह चायब्रैड खा कर निकल जाएगी. 5 मिनट दूर ही सब दुकानें थीं. उस ने घर का कुछ सामान लिया. इस समय रात के 8 बज रहे थे. इस समय भी इतनी उमस थी, पसीना पोंछती सब सामान ले कर घर की तरफ बढ़ ही रही थी कि उमेश ने आ कर पीछे से जोर से बोलते हुए डरा ही दिया, ‘‘तेरे फोन को क्या हुआ?’’

काजल तेजी से चली, कहा, ‘‘मेरे पीछे आया तो तेरे घर जा कर मेखला के सामने क्याक्या कहूंगी, कई दिन याद रखेगा, सम झा?’’

पत्नियों के नाम से अच्छेअच्छों को डर लगता है. भरी भीड़ में उमेश उस समय तो चुप हो गया पर मन में सोचा, इसे तो बाद में देख लूंगा.

घर जा कर काजल ने अपने दिल की बेतरतीब धड़कनें संभालीं. हमारे समाज में एक अकेली लड़की की परेशानी सम झना आसान नहीं है. कैसेकैसे भेडि़ए अपनों की शक्ल में आसपास घूमते हैं, अपनों से ही अपनी सुरक्षा करनी होती है. उस ने नैना और अमित को भी फोन कर के सब बता दिया और सब दोस्तों को अगले हफ्ते लगातार टच में रहने के लिए कहा.

काजल ने अगले दिन निकलने के लिए अपनी पैकिंग की, खिचड़ी बनाई, स्नेहिल सुधा जिसे काजल, आंटी कहती थी, जो उस की मम्मी के समय से घर के काम करती थीं, उन्हें सुबह जल्दी आने के लिए कहा. घर में हर तरफ उसे अपने मम्मीपापा दिखते, लगता कहीं नहीं गए हैं, उस के आसपास ही हैं. मगर यह तो मन को बहलाने वाली बात थी. वह अकेली है, वह जानती थी. उस ने गूगल पर इस नैचुरल वैलनैस सैंटर के बारे में और पढ़ा. वहां प्राकृतिक माहौल में मैडिटेशन, ऐक्सरसाइज, हैल्दी लाइफस्टाइल के बारे में सिखाया जाता था. रिव्यू अच्छे थे. उसे सब ठीक ही लग रहा था. इस का एड उसे न्यूजपेपर में काफी टाइम से दिख रहा था.

अगले दिन सुधा आंटी से काम कराते हुए काजल ने अपने जाने के बारे में बता दिया. सुधा को अब उस की फिक्र रहती, उसे अपना ही सम झती थी. अब नौकर और मालिक का रिश्ता न था, इंसानियत और स्नेह

का रिश्ता था. सुधा ने उसे सुरक्षा सबंधी कई निर्देश दिए. वह भी जानती थीं काजल आज की पढ़ीलिखी लड़की है, अलर्ट रहती है. इतने सालों से एक मासूम बच्ची को मजबूत बनते देख रही थी.

काजल मैट्रो से नोएडा पहुंच गई. सैंटर तक पहुंचने में उसे कोई दिक्कत नहीं हुई. आजकल तो वह वैसे भी पता नहीं कहांकहां किसकिस विभाग में चक्कर काट रही थी. अब तो मशीन की तरह एक से दूसरी जगह पहुंचती रहती. दिल्ली में ही जन्मी और पलीबढ़ी थी. रिसैप्शन पर उस ने एक फौर्म भरा, अपनी कुछ डिटेल्स दी. वहां की हरियाली ने उस का मन मोह लिया. लगा ही नहीं कि आसपास इतना सुंदर कोई सैंटर था. बहुत शांति थी. वहां के स्टाफ की एक 20-21 साल की लड़की मुसकराते हुए उसे एक रूम तक ले गई, कहा, ‘‘काजल, आप फ्रैश हो लें. फिर 1 घंटे बाद हौल में मिलते हैं.’’

काजल ने पूछ लिया, ‘‘यहां कितने लोग हैं? सब को 1-1 रूम मिलता है?’’

‘‘इस हफ्ते के बैच में यहां 20 लोग हैं,

2 पुरुषों को एक रूम शेयर करना होता है, किसी लड़की को एक ही रूम दिया जाता है. उसे शेयर नहीं करना पड़ता.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘उन की प्राइवेसी का ध्यान रखना पड़ता है,’’ कहते हुए वह जब मुसकराई तो उस की स्माइल काजल को कुछ भाई नहीं.

1 घंटा काजल ने आराम किया, अपने दोस्तों को, यहां तक कि सुधा आंटी को भी अभी तक के अपडेट्स दे दिए. सभी ने उसे ध्यान से रहने के लिए कहा. सभी को उस की चिंता थी. सभी चाहते तो यही थे कि वह किसी अनजान जगह न जाए पर पिछले कुछ महीनों से काजल जिस उदास दौर से गुजर रही थी, सब ने उस की हां में हां यही सोच कर मिला दी थी कि कहीं निकलेगी तो उस का मन बहलेगा. हौल में पहुंच कर वहां आए लोगों पर एक नजर डाली. सभी उम्र के लोग थे. काजल ने एक बात जरूर नोट की कि स्टाफ की लड़कियां बैच के पुरुषों को कुछ अलग तरह से अटैंड कर रही थीं. उसे अजीब सा लगा. इन लड़कियों की ड्रैस थी, वाइट कलर का टौप और वाइट कलर की ही ढीली सी पैंट. यह ड्रैसकोड काफी स्टाइलिश लग रहा था. फिर वहां 2 लड़के और 2 लड़कियां आए, इन लड़कों ने बड़े स्टाइलिश कुरतेपजामे पहने हुए थे, लड़कियों ने कुरता और लैगिंग. ये चारों वहां बने एक छोटे से स्टेज पर गुरुओं की तरह बैठ कर सब का वैलकम करते हुए अपने वैलनैस प्रोग्राम के बारे में बताने लगे. बैच के लोग इन के सामने जमीन पर बिछी दरी पर बैठे थे.

स्टाइलिश गुरुओं ने सब पर नजर डाली, फिर एक गुरु की नजर काजल पर अटक गई. काजल कुछ असहज हुई. फिर कुछ प्राणायाम हुआ, कुछ ओशो जैसी बातें हुईं. काजल को याद आया कि ये सब ज्ञान की बातें तो इंस्टाग्राम पर रील्स पर खूब घूमती हैं. काफी कुछ यौगिक क्रियाओं पर बातें हुईं. कभी कोई गुरु बोल रहा था, कभी कोई, जैसे सब ने अपनीअपनी बातें रट रखी हों. काजल हैरान सी थी कि सबकुछ कितना मैनेज्ड है. 2 घंटे बाद कहा गया कि जा कर सब लोग थोड़ा आराम कर लें, फिर सैंटर में थोड़ा टहल कर आएं, लंच सब साथ करेंगे. बता दिया गया कि कैंटीन किधर है.

यहां इतनी गरमी, घुटन नहीं थी जितनी काजल को दिल्ली में लग रही थी. इस का कारण यहां की हरियाली होगा. काजल को यहां सब शांत लग रहा था, शांत पर कुछ अलग. लोग आपस में एकदूसरे से पूछने लगे कि कौन कहां से क्यों आया है. कारण लगभग एक सा ही था. बोरिंग लाइफ में

कुछ चेंज के लिए. काजल को छोड़ कर सब के साथ एक न एक परिवार वाला या दोस्त था. वही बिलकुल अकेली थी. सब रूम शेयर कर रहे थे. उसी के पास सिंगल रूम था. सादा स्वादिष्ठ खाना सब ने साफसुथरी कैंटीन में साथ ही खाया. चारों गुरुओं ने भी अपने नाम पल्लवी, ऋतु, रजत और चिराग बताए और अपना परिचय दिया. सब ने कोई न कोई बड़ी डिग्री ली हुई थी पर अब शौकिया अच्छे मनपसंद काम में समय बिता रहे थे.

खाना हो गया तो रजत ने कहा, ‘‘अब आप लोग जो चाहें करें, 4 बजे वापस हौल में आ जाएं, 1 घंटा कुछ बातें करेंगे, फिर शाम की सैर, फिर कुछ ऐक्सरसाइज. यहां वहां सामने एक छोटी सी लाइब्रेरी भी है, जो चाहे, वह करें. हौल में फोन बंद ही रखें.’’

रजत ने काजल से कहा, ‘‘आप अकेली हैं, चाहें तो हमारे स्टाफ के साथ घूम सकती हैं या हम लोग भी हैं, हमारे साथ भी टाइम बिता सकती हैं,’’ कहतेकहते उस ने काजल को जिन नजरों से देखा, उसे उमेश याद आ गया. वह दुखी तो थी पर मूर्ख तो बिलकुल नहीं थी.

काजल ने सामान्य से स्वर में कहा, ‘‘थैंक्स, अभी तो मैं थोड़ी देर सामने पेड़ के नीचे रखी चेयर पर कुछ देर बैठना चाहूंगी. फिर हौल में ही मिलती हूं.’’

‘‘श्योर, एज यू विश, ऐंजौय द ब्यूटी औफ दिस प्लेस,’’ कह कर वह चला गया.

काजल इधरउधर देखती हुई पेड़ के नीचे रखी 2 सुंदर चेयर्स में से एक पर बैठ गई. यहां अच्छा तो लग रहा था पर मन में कुछ खटक रहा था. दोस्तों के व्हाट्सऐप पर कई मैसेज आए हुए थे कि ठीक हो न, सब ठीक है? कुछ रिश्तेदारों के भी मैसेज थे कि कहां घूम रही हो? तुम्हारे घर पर ताला क्यों लगा है? सुबहसुबह कहां निकल जाती हो?

काजल ने अपने दोस्तों से बात की, सब बताया कि अभी तक क्या चल रहा है. इन रिश्तेदारों को ब्लौक कर दिया जिन्हें बस सवाल पूछने थे.

तभी काजल को एक लगभग 50 साल का व्यक्ति अपनी ओर आता दिखा, स्टाइलिश सूट में, मौडर्न शूज, शानदार परफ्यूम की खुशबू बिखेरता उस के सामने आ कर खड़ा हो गया. अपना परिचय दिया, ‘‘हैलो काजल, मैं रवि कुमार. यहां का ओनर, यहां का कांसैप्ट मेरा ही है. आप डिस्टर्ब न हों तो मैं थोड़ी देर आप को कंपनी देना चाहूंगा. आप अकेली हैं, आप को अभी तक यहां कोई प्रौब्लम तो नहीं, बस आप से मिलने आ गया.’’

‘‘नो प्रौब्लम, रविजी, आप से मिल कर खुशी हुई. आइए, बैठिए.’’

रवि उस की ऐजुकेशन, उस के पेरैंट्स के बारे में बात करता रहा, उस के आगे के प्लान पर बात करता रहा. अपने बारे में बताता रहा, उस ने शादी नहीं की थी. वह सालों से इसी कौंसैप्ट पर काम करने में बिजी रहा. फिर कहने लगा, ‘‘आप यहां 1 हफ्ता आराम से रहिए, रातदिन किसी भी टाइम कंपनी चाहिए तो मु झे फोन कर दीजिए, मैं आप की सेवा में हाजिर हो जाऊंगा, आप भी अकेली, मैं भी अकेला. यह रहा मेरा कार्ड,’’ कह कर वह जिस तरह से हंसा, काजल को उमेश की मक्कारी वाली हंसी याद आ गई. वह सोचने लगी कि यहां के लोगों को देख कर उसे उमेश का ध्यान क्यों आ रहा है. आंखों से ही बहुत कुछ कह कर रवि कुमार चला गया. काजल ने ठंडी सांस ली. उफ, उसे क्यों लग रहा है जैसे यह वैलनैस सैंटर किसी मौडर्न बाबा का मौडर्न आश्रम है, अकेली लड़की पर यहां कुछ खास मेहरबानी हो रही है. उसे उमेश जैसी नजरों से देखा जा रहा है. उसे हवा में ही किसी खतरे की गंध आई. उस ने फौरन अमित को फोन लगा दिया, ‘‘अमित, तुम मु झे यहां आ कर तुरंत ले जाओ, बोलना फैमिली इमरजैंसी है. ये लोग कुछ कहें तो अड़ जाना. सख्ती से बात करना.’’

‘‘क्या हुआ? तुम ठीक तो हो?’’

‘‘बस, मु झे आज ही यहां से ले जाओ. और हां, ये लोग हौल में फोन बंद करने के लिए कहते हैं. अब तुम देख लेना कि क्या कैसे करना है. यहां अंदर आ जाओ तो कौल करना, मैं सम झ जाऊंगी कि तुम आ गए हो.’’

‘‘चिंता मत करो, अभी औफिस से निकल रहा हूं.’’

काजल ने बाकी दोस्तों को भी सब बता दिया. सब परेशान हो गए पर सब को यही ठीक लगा कि किसी अनहोनी का इंतजार न किया जाए. अभी निकला जाए.’’

काजल हौल में सब के साथ बैठी थी, उस के कुरते में फोन वाइब्रेट कर रहा था पर इस समय वह फोन उठा नहीं सकती थी. उस ने रूमाल निकालने के बहाने देख लिया कि अमित कौल कर रहा है. वह अब कुछ निश्चिंत हो गई. इस समय मंच पर रजत और पल्लवी सही तरह से सांस लेने की टैक्नीक बता रहे थे. काजल का अब पूरा ध्यान 1-1 आवाज पर था. किसी ने आ कर रजत के कान में कुछ कहा, उस के चेहरे पर नागवारी के भाव आए.

रजत ने पल्लवी को धीरे से कुछ कहा, फिर उस ने घोषणा की, ‘‘काजल, हौल से बाहर जाइए, आप से कोई मिलने आया है. कुछ अर्जैंट है.’’

काजल कुछ न सम झने की ऐक्टिंग करते हुए बाहर निकली, औफिस की तरफ गई, वहां खड़े अमित ने बहुत ही गंभीर स्वर में कहा, ‘‘तुम्हारा फोन ही नहीं लग रहा है, बहुत बुरी खबर है.’’

‘‘अरे, क्या हुआ?’’

‘‘तुम्हारे कजिन की ऐक्सीडैंट में डैथ हो

गई है.’’

‘‘उफ…’’

‘‘जल्दी चलो, तुम्हारे चाचा ने फौरन

बुलाया है.’’

वहीं कुछ दूरी पर रवि कुमार भी खड़ा था. उस का चेहरा ऐसा था जैसे हाथ आए खजाने को कोई छीन कर भाग गया हो. फिर भी उस ने कोशिश की, ‘‘सो सौरी, काजल. बहुत दुख हुआ. आप चाहें तो दोबारा आ जाएं. आप की फीस तो जमा ही रहेगी, हम उसे तो वापस नहीं कर सकते.’’

‘‘जी, थैंक यू, कोशिश करूंगी कि जल्दी आ जाऊं.’’

काजल ने पहले से तैयार अपना बैग जल्दी से जाकर उठाया. वहां से अमित और काजल भागते हुए ही निकले. अमित अपनी कार ले कर आया था. कार में बैठते हुए अपनी सीट बैल्ट लगाते हुए दोनों ने चैन की सांस ली, अमित ने पूछा, ‘‘अब बताओ यार क्या हुआ था?’’

‘‘अभी तक तो कुछ नहीं हुआ था पर मु झे पूरा यकीन है कि यह मौडर्न वैलनैस सैंटर किसी ऐयाश बाबा के आश्रम का ही नया रूप है. नए रैपर में पुरानी मिठाई ही है.’’

‘‘फिर तो समय रहते वहां से निकलना ही ठीक था. इस जगह की शिकायत करनी है?’’

‘‘अभी मेरे पास कोई पू्रफ नहीं है.’’

‘‘हां, यह बात भी है.’’

दोनों बहुत सी बातें करते रहे. काजल ने एक जगह कहा, ‘‘बस मु झे यहीं उतार दो, यहां से मैं मैट्रो पकड़ सकती हूं. मु झे घर छोड़ने जाओगे तो तुम्हें लंबा रास्ता पड़ेगा. थैंक यू, दोस्त. अब तुम ही लोग हो मेरे पास,’’ कहतेकहते काजल का गला भर आया.

अमित ने कहा, ‘‘किसी बात की टैंशन न ले, घर जा कर आराम कर. जल्द ही सब मिलते हैं.’’

इस तरह की अकेली रहने वाली लड़कियों के पास कुछ अच्छे दोस्त भी होते हैं जिन पर ये यकीन कर सकती हैं. ऐसे दोस्तों के कारण इन की दुनिया कुछ सुंदर तो हो ही जाती है. दोस्ती में अगर स्वार्थ, ईर्ष्या न हो तो यह रिश्ता दुनिया का सब से सुंदर रिश्ता होता है.

काजल ने मैट्रो पकड़ी. उसे अच्छा लग रहा था कि आज सुबह से उसे किसी रिश्तेदार का फोन नहीं आया न आगे आना था. सब से कटने का वह मन बना ही चुकी थी. उस ने घर आ कर सुधा आंटी को बता दिया कि वह आ गई है. उस के जल्दी आने पर वह चिंतित हुई. उसे चैन नहीं आया कि काजल तो

1 हफ्ते के लिए गई थी, आज ही कैसे आ गई? वह देखने आ ही गई, ‘‘काजल. आज ही कैसे आ गई, बेटा?’’

काजल ने सब कह सुनाया. आंटी हैरान हुई, दुखी भी हुई. बोली, ‘‘कितनी सम झदार हो तुम, आज का दिन मुश्किल सा रहा होगा पर ऐसी बातें तुम्हें बहुत मजबूत बना देंगी. आराम करो, बेटा सुबह आती हूं. अपनी मम्मी वाला गाना याद कर लो,’’ स्नेह भरे स्वर में कह कर आंटी तो चली गई पर आंटी की कही बात को काजल देर तक सोचती रही, मथती रही. लगा, मम्मी घर के ही किसी कोने में गुनगुना रही हैं कि ऐ दिल तु झे कसम है, तू हिम्मत न हारना, दिन जिंदगी के जैसे भी गुजरें, गुजारना…’’

काजल को यह गाना याद कर मम्मी की याद आई तो कुछ आंसू भी गालों पर बह चले पर अपने दिल पर हाथ रख कर कहा कि चल दिल, हिम्मत नहीं हारनी है, जीना है और हिम्मत से जीना है और फिर उस ने अपने सब दोस्तों को यह एक लाइन गा कर वौइस मैसेज भेज दिया. काजल का मैसेज सब फौरन देखते थे. सब की हार्ट वाली इमोजी और थम्सअप आ गया.

Emotional Story in Hindi

Romantic Story: अगली बार कब

Romantic Story: उफ, कल फिर शनिवार है, तीनों घर पर होंगे. मेरे दोनों बच्चों सौरभ और सुरभि की भी छुट्टी रहेगी और अमित भी 2 दिन फ्री होते हैं. मैं तो गृहिणी हूं ही. अब 2 दिन बातबात पर चिकचिक होती रहेगी. कभी बच्चों का आपस में झगड़ा होगा, तो कभी अमित बच्चों को किसी न किसी बात पर टोकेंगे. आजकल मुझे हफ्ते के ये दिन सब से लंबे दिन लगने लगे हैं. पहले ऐसा नहीं था. मुझे सप्ताहांत का बेसब्री से इंतजार रहता था. हम चारों कभी कहीं घूमने जाते थे, तो कभी घर पर ही लूडो या और कोई खेल खेलते थे. मैं मन ही मन अपने परिवार को हंसतेखेलते देख कर फूली नहीं समाती थी.

धीरेधीरे बच्चे बड़े हो गए. अब सुरभि सी.ए. कर रही है, तो सौरभ 11वीं क्लास में है. अब साथ बैठ कर हंसनेखेलने के वे क्षण कहीं खो गए थे.

मैं ने फिर भी जबरदस्ती यह नियम बना दिया था कि सोने से पहले आधा घंटा हम चारों साथ जरूर बैठेंगे, चाहे कोई कितना भी थका हुआ क्यों न हो और यह नियम भी अच्छाखासा चल रहा था. मुझे इस आधे घंटे का बेसब्री से इंतजार रहता था. लेकिन अब इस आधे घंटे का जो अंत होता है, उसे देख कर तो लगता है कि यह नियम मुझे खुद ही तोड़ना पड़ेगा.

दरअसल, अब होता यह है कि हम चारों की बैठक खत्म होतेहोते किसी न किसी का, किसी न किसी बात पर झगड़ा हो जाता है. मैं कभी सौरभ को समझाती हूं, कभी सुरभि को, तो कभी अमित को.

सुरभि तो कई बार यह कह कर मुझे बहुत प्यार करती है कि मम्मी, आप ही हमारे घर की बाइंडिंग फोर्स हो. सुरभि और मैं अब मांबेटी कम, सहेलियां ज्यादा हैं.

जब सप्ताहांत आता है, तो अमित फ्री होते हैं. थोड़ी देर मेल चैक करते हैं, फिर कुछ देर टीवी देखते हैं और फिर कभी सौरभ तो कभी सुरभि को किसी न किसी बात पर टोकते रहते हैं. बच्चे भी अपना तर्क रखते हुए बराबर जवाब देने लगते हैं, जिस से झगड़ा बढ़ जाता और फिर अमित का पारा हाई होता चला जाता है.

मैं अब सब के बीच तालमेल बैठातेबैठाते थक जाती हूं. मैं बहुत कोशिश करती हूं कि छुट्टी के दिन शांति प्यार से बीतें, लेकिन ऐसा होता नहीं है. कोई न कोई बात हो ही जाती है. बच्चों को लगता है कि पापा उन की बात नहीं समझ रहे हैं और अमित को लगता है कि बच्चों को उन की बात चुपचाप सुन लेनी चाहिए. ऐसा नहीं है कि अमित बहुत रूखे, सख्त किस्म के इंसान हैं. वे बहुत शांत रहने और अपने परिवार को बहुत प्यार करने वाले इंसान हैं. लेकिन आजकल जब वे युवा बच्चों को किसी बात पर टोकते हैं, तो बच्चों के जवाब देने पर उन्हें गुस्सा आ जाता है. कभी बच्चे सही होते हैं, तो कभी अमित. जब मेरा मूड खराब होता है, तीनों एकदम सही हो जाते हैं.

वैसे मुझे जल्दी गुस्सा नहीं आता है, लेकिन जब आता है, तो मेरा अपने गुस्से पर नियंत्रण नहीं रहता है. वैसे मेरा गुस्सा खत्म भी जल्दी हो जाता है. पहले मैं भी बच्चों पर चिल्लाने लगती थी, लेकिन अब बच्चे बड़े हो गए हैं, मुझे उन पर चिल्लाना अच्छा नहीं लगता.

अब मैं ने अपने गुस्से के पलों का यह हल निकाला है कि मैं घर से बाहर चली जाती हूं. घर से थोड़ी दूर स्थित पार्क में बैठ या टहल कर लौट आती हूं. इस से मेरे गुस्से में चिल्लाना, फिर सिरदर्द से परेशान रहना बंद हो गया है. लेकिन ये तीनों मेरे गुस्से में घर से निकलने के कारण घबरा जाते हैं और होता यह है कि इन तीनों में से कोई न कोई मेरे पीछे चलता रहता है और मुझे पीछे देखे बिना ही यह पता होता है कि इन तीनों में से एक मेरे पीछे ही है. जब मेरा गुस्सा ठंडा होने लगता है, मैं घर आने के लिए मुड़ जाती हूं और जो भी पीछे होता है, वह भी मेरे साथ घर लौट आता है.

एक संडे को छोटी सी बात पर अमित और बच्चों में बहस हो गई. मैं तीनों को शांत करने लगी, मगर मेरी किसी ने नहीं सुनी. मेरी तबीयत पहले ही खराब थी. सिर में बहुत दर्द हो रहा था. जून का महीना था, 2 बज रहे थे. मैं गुस्से में चप्पलें पहन कर बाहर निकल गई. चिलचिलाती गरमी थी. मैं पार्क की तरफ चलती गई. गरमी से तबीयत और ज्यादा खराब होती महसूस हुई. मेरी आंखों में आंसू आ गए. मुझे बहुत गुस्सा आ रहा था कि इतनी बहस क्यों करते हैं ये लोग. मैं ने मुड़ कर देखा. सुरभि चुपचाप पसीना पोंछते मेरे पीछेपीछे आ रही थी. ऐसे समय में मुझे उस पर बहुत प्यार आता है, मैं उस के लिए रुक गई.

सुरभि ने मेरे पास पहुंच कर कहा, ‘‘आप की तबीयत ठीक नहीं है, मम्मी. क्यों आप अपनेआप को तकलीफ दे रही हैं?’’

मैं बस पार्क की तरफ चलती गई, वह भी मेरे साथसाथ चलने लगी. मैं पार्क में बेंच पर बैठ गई. मैं ने घड़ी पर नजर डाली. 4 बज रहे थे. बहुत गरमी थी.

सुरभि ने कहा, ‘‘मम्मी, कम से कम छाया में तो बैठो.’’

मैं उठ कर पेड़ के नीचे वाली बेंच पर बैठ गई. सुरभि ने मुझ से धीरेधीरे सामान्य बातें करनी शुरू कर दीं. वह मुझे हंसाने की कोशिश करने लगी. उस की कोशिश रंग लाई और मैं धीरेधीरे अपने सामान्य मूड में आ गई.

तब सुरभि बोली, ‘‘मम्मी, एक बात कहूं मानेंगी?’’

मैं ने ‘हां’ में सिर हिलाया तो वह बोली, ‘‘मम्मी, आप गुस्से में यहां आ कर बैठ जाती हैं… इतनी धूप में यहां बैठी हैं. इस से आप को ही तकलीफ हो रही है न? घर पर तो पापा और सौरभ एयरकंडीशंड कमरे में बैठे हैं… मैं आप को एक आइडिया दूं?’’

मैं उस की बात ध्यान से सुन रही थी, मैं ने बताया न कि अब हम मांबेटी कम, सहेलियां ज्यादा हैं. अत: मैं ने कहा, ‘‘बोलो.’’

‘‘मम्मी, अगली बार जब आप को गुस्सा आए तो बस मैं जैसा कहूं आप वैसा ही करना. ठीक है न?’’

मैं मुसकरा दी और फिर हम घर आ गईं. आ कर देखा दोनों बापबेटे अपनेअपने कमरे में आराम फरमा रहे थे.

सुरभि ने कहा, ‘‘देखा, इन लोगों के लिए आप गरमी में निकली थीं.’’ फिर उस ने चाय और सैंडविच बनाए. सभी साथ चायनाश्ता करने लगे. तभी अमित ने कहा, ‘‘मैं ने सुरभि को जाते देख कर अंदाजा लगा लिया था कि तुम जल्द ही आ जाओगी.’’

मैं ने कोई जवाब नहीं दिया. सौरभ ने मुझे हमेशा की तरह ‘सौरी’ कहा और थोड़ी देर में सब सामान्य हो गया.

10-15 दिन शांति रही. फिर एक शनिवार को सौरभ अपना फुटबाल मैच खेल कर आया और आते ही लेट गया. अमित उस से पढ़ाई की बातें करने लगे जिस पर सौरभ ने कह दिया, ‘‘पापा, अभी मूड नहीं है. मैच खेल कर थक गया हूं… थोड़ी देर सोने के बाद पढ़ाई कर लूंगा.’’

अमित को गुस्सा आ गया और वे शुरू हो गए. सुरभि टीवी देख रही थी, वह भी अमित की डांट का शिकार हो गई. मैं खाना बना रही थी. भागी आई. अमित को शांत किया, ‘‘रहने दो अमित, आज छुट्टी है, पूरा हफ्ता पढ़ाई ही में तो बिजी रहते हैं.’’

अमित शांत नहीं हुए. उधर मेरी सब्जी जल रही थी, मेरा एक पैर किचन में, तो दूसरा बच्चों के बैडरूम में. मामला हमेशा की तरह मेरे हाथ से निकलने लगा तो मुझे गुस्सा आने लगा. मैं ने कहा, ‘‘आज छुट्टी है और मैं यह सोच कर किचन में कुछ स्पैशल बनाने में बिजी हूं कि सब साथ खाएंगे और तुम लोग हो कि मेरा दिमाग खराब करने पर तुले हो.’’

अमित सौरभ को कह रहे थे, ‘‘मैं देखता हूं अब तुम कैसे कोई मैच खेलते हो.’’

सौरभ रोने लगा. मैं ने बात टाली, ‘‘चलो, खाना बन गया है, सब डाइनिंग टेबल पर आ जाओ.’’

सौरभ ने कहा, ‘‘अभी भूख नहीं है. समोसे खा कर आया हूं.’’

यह सुनते ही अमित और भड़क उठे. इस के बाद बात इतनी बढ़ गई कि मेरा गुस्सा सातवें आसमान पर जा पहुंचा.

‘‘तुम लोगों की जो मरजी हो करो,’’ कह लंच छोड़ कर सुरभि पर एक नजर डाल कर मैं निकल गई. मैं मन ही मन थोड़ा चौंकी भी, क्योंकि मैं ने सुरभि को मुसकराते देखा. आज तक ऐसा नहीं हुआ था. मैं परेशान होऊं और मेरी बेटी मुसकराए. मैं थोड़ा आगे निकली तो सुरभि मेरे पास पहुंच कर बोली, ‘‘मम्मी, आप ने कहा था कि अगली बार मूड खराब होने पर आप मेरी बात मानेंगी?’’

‘‘हां, क्या बात है?’’

‘‘मम्मी, आप क्यों गरमी में इधरउधर भटकें? पापा और भैया दोनों सोचते हैं आप थोड़ी देर में मेरे साथ घर आ जाएंगी… आप आज मेरे साथ चलो,’’ कह कर उस ने अपने हाथ में लिया हुआ मेरा पर्स मुझे दिखाया.

मैं ने कहा, ‘‘मेरा पर्स क्यों लाई हो?’’

सुरभि हंसी, ‘‘चलो न मम्मी, आज गुस्सा ऐंजौय करते हैं,’’ और फिर एक आटो रोक कर उस में मेरा हाथ पकड़ती हुई बैठ गई.

मैं ने पूछा, ‘‘यह क्या है? हम कहां जा रहे हैं?’’ और मैं ने अपने कपड़ों पर नजर डाली, मैं कुरता और चूड़ीदार पहने हुए थी.

सुरभि बोली, ‘‘आप चिंता न करें, अच्छी लग रही हैं.’’

वंडरमौल पहुंच कर आटो से उतर कर हम  पिज्जा हट’ में घुस गए.

मैं हंसी तो सुरभि खुश हो गई, बोली, ‘‘यह हुई न बात. चलो, शांति से लंच करते हैं.’’

तभी सुरभि के सैल पर अमित का फोन आया. पूछा, ‘‘नेहा कहां है?’’

सुरभि ने कहा, ‘‘मम्मी मेरे साथ हैं… बहुत गुस्से में हैं… पापा, हम थोड़ी देर में आ जाएंगे.’’

फिर हम ने पिज्जा आर्डर किया. हम पिज्जा खा ही रहे थे कि फिर अमित का फोन आ गया. सुरभि से कहा कि नेहा से बात करवाओ.

मैं ने फोन लिया, तो अमित ने कहा, ‘‘उफ, नेहा सौरी, अब आ जाओ, बड़ी भूख लगी है.’’

मैं ने कहा, ‘‘अभी नहीं, थोड़ा और चिल्ला लो… खाना तैयार है किचन में, खा लेना दोनों, मैं थोड़ा दूर निकल आई हूं, आने में टाइम लगेगा.’’

कुछ ही देर में सौरभ का फोन आ गया, ‘‘सौरी मम्मी, जल्दी आ जाओ, भूख लगी है.’’

मैं ने उस से भी वही कहा, जो अमित से कहा था.

‘पिज्जा हट’ से हम निकले तो सुरभि ने कहा, ‘‘चलो मम्मी, पिक्चर भी देख लें.’’

मैं तैयार हो गई. मेरा भी घर जाने का मन नहीं कर रहा था. वैसे भी पिक्चर देखना मुझे पसंद है. हम ने टिकट लिए और आराम से फिल्म देखने बैठ गए. बीचबीच में सुरभि अमित और सौरभ को मैसज देती रही कि हमें आने में देर होगी… आज मम्मी का मूड बहुत खराब है. जब अमित बहुत परेशान हो गए तो उन्होंने कहा कि वे हमें लेने आ रहे हैं. पूछा हम कहां हैं. तब मैं ने ही अमित से कहा कि मैं जहां भी हूं शांति से हूं, थोड़ी देर में आ जाऊंगी.

फिल्म खत्म होते ही हम ने जल्दी से आटो लिया. रास्ता भर हंसते रहे हम… बहुत मजा आया था. घर पहुंचे तो बेचैन से अमित ने ही दरवाजा खोला. मेरे कंधे पर हाथ रखते हुए बोले, ‘‘ओह नेहा, इतना गुस्सा, आज तो जैसे तुम घर आने को ही तैयार नहीं थी, मैं पार्क में भी देखने गया था.’’

सुरभि ने मुझे आंख मारी. मैं ने किसी तरह अपनी हंसी रोकी. सौरभ भी रोनी सूरत लिए मुझ से लिपट गया. बोला, ‘‘अच्छा मम्मी अब मैं कभी कोई उलटा जवाब नहीं दूंगा.’’

दोनों ने खाना नहीं खाया था, मुझे बुरा लगा.

अमित बोले, ‘‘चलो, अब कुछ खिला दो और खुद भी कुछ खा लो.’’

सुरभि ने मुझे देखा तो मैं ने उसे खाना लगाने का इशारा किया और फिर खुद भी उस के साथ किचन में सब के लिए खाना गरम करने लगी. हम दोनों ने तो नाम के कौर ही मुंह में डाले. मैं गंभीर बनी बैठी थी.

अमित ने कहा, ‘‘चलो, आज से कोई किसी पर नहीं चिल्लाएगा, तुम कहीं मत जाया करो.’’

सौरभ भी कहने लगा, ‘‘हां मम्मी, अब कोई गुस्सा नहीं करेगा, आप कहीं मत जाया करो… बहुत खराब लगता है.’’

और सुरभि वह तो आज के प्रोग्राम से इतनी उत्साहित थी कि उस का मुसकराता चेहरा और चमकती आंखें मानो मुझ से पूछ रही थीं कि अगली बार आप को गुस्सा कब आएगा?

Romantic Story

Emotional Story: अम्मां जैसा कोई नहीं

Emotional Story: अस्पताल के शांत वातावरण में वह न जाने कब तक सोती रहती, अगर नर्स की मधुर आवाज कानों में न गूंजती, ‘‘मैडमजी, ब्रश कर लो, चाय लाई हूं.’’

वह ब्रश करने को उठी तो उसे हलका सा चक्कर आ गया.

‘‘अरेअरे, मैडमजी, आप को बैड से उतरने की जरूरत नहीं. यहां बैठेबैठे ही ब्रश कर लीजिए.’’

साथ लाई ट्रौली खिसका कर नर्स ने उसे ब्रश कराया, तौलिए से मुंह पोंछा, बैड को पीछे से ऊपर किया. सहारे से बैठा कर चायबिस्कुट दिए. चाय पी कर वह पूरी तरह से चैतन्य हो गई. नर्स ने अखबार पकड़ाते हुए कहा, ‘‘किसी चीज की जरूरत हो तो बैड के साथ लगा बटन दबा दीजिएगा, मैं आ जाऊंगी.’’

50 वर्ष की उस की जिंदगी के ये सब से सुखद क्षण थे. इतने इतमीनान से सुबह की चाय पी कर अखबार पढ़ना उसे एक सपना सा लग रहा था. जब तक अखबार खत्म हुआ, नर्स नाश्ता व दूध ले कर हाजिर हो गई. साथ ही, वह कोई दवा भी खिला गई. उस के बाद वह फिर सो गई और तब उठी जब नर्स उसे खाना खाने के लिए जगाने आई. खाने में 2 सब्जियां, दाल, सलाद, दही, चावल, चपातियां और मिक्स फ्रूट्स थे. घर में तो दिन भर की भागदौड़ से थकने के बाद किसी तरह एक फुलका गले के नीचे उतरता था, लेकिन यहां वह सारा खाना बड़े इतमीनान से खा गई थी.

नर्स ने खिड़कियों के परदे खींच दिए थे. कमरे में अंधेरा हो गया था. एसी चल रहा था. निश्ंिचतता से लेटी वह सोच रही थी काश, सारी उम्र अस्पताल के इसी कमरे में गुजर जाए. कितनी शांति व सुकून है यहां. किंतु तभी चिंतित पति व असहाय अम्मां का चेहरा उस की आंखों के सामने घूमने लगा. उसे अपनी सोच पर ग्लानि होने लगी कि घर पर अम्मां बीमार हैं. 2 महीने से वे बिस्तर पर ही हैं.

2 दिन पहले तक तो वही उन्हें हर तरह से संभालती थी. पति निश्ंिचत भाव से अपना व्यवसाय संभाल रहे थे. अब न जाने घर की क्या हालत होगी. अम्मां उस के यानी अनु के अलावा किसी और की बात नहीं मानतीं.

अम्मां चाय, दूध, जूस, नाश्ता, खाना सब उसी के हाथ से लेती थीं. किसी और से अम्मां अपना काम नहीं करवातीं. अम्मां की हलके हाथों से मालिश करना, उन्हें नहलानाधुलाना, उन के बाल बनाना सभी काम अनु ही करती थी. सब कुछ ठीक चल रहा था, लेकिन अम्मां के साथसाथ आनेजाने वाले रिश्तेदारों की सुबह से ले कर रात तक खातिरदारी भी उसे ही करनी पड़ती थी. उसे हाई ब्लडप्रैशर था.

अम्मां और रिश्तेदारों के बीच चक्करघिन्नी बनी आखिर वह एक रात अत्यधिक घबराहट व ब्लडप्रैशर की वजह से फोर्टिस अस्पताल में पहुंच गई थी. आननफानन उसे औक्सीजन लगाई गई. 2 दिन बाद ऐंजियोग्राफी भी की गई, लेकिन सब ठीक निकला. आर्टरीज में कोई ब्लौकेज नहीं था.

जब स्ट्रैचर पर डाल कर उसे ऐंजियोग्राफी के लिए ले जा रहे थे तब फीकी मुसकान लिए पति उस के कंधे पर हाथ रखते हुए बोले, ‘‘चिंता मत करना आजकल तो ब्लौकेज का इलाज दवाओं से हो जाता है.’’

वह मुसकरा दी थी, ‘‘आप व्यर्थ ही चिंता करते हैं. मुझे कुछ नहीं है.’’

उस की मजबूत इच्छाशक्ति के पीछे अम्मां का बहुत बड़ा योगदान रहा है.

अम्मां के बारे में सोचते हुए वह पुरानी यादों में घिरने लगी थी. उस की मां तो उसे जन्म देते ही चल बसी थीं. भैया उस से 15 साल बड़े थे. लड़की की चाह में बड़ी उम्र में मां ने डाक्टर के मना करने के बाद भी बच्ची पैदा करने का जोखिम उठाया था और उस के पैदा होते ही वह चल बसी थीं. पिताजी ने अनु की वजह से तलाकशुदा युवती से पुन: विवाह किया था, लेकिन परिस्थितियां ऐसी बनती गईं कि अंतत: नानानानी के घर ही उस का पालनपोषण हुआ था. भैया होस्टल में रह कर पलेबढ़े. सौतेली मां की वजह से पिता, भैया और वह एक ही परिवार के होते हुए भी 3 अलगअलग किनारे बन चुके थे.

वह 12वीं की परीक्षा दे रही थी कि तभी अचानक नानी गुजर गईं. नाना ने उसे अपने पास रखने में असमर्थता दिखा दी थी, ‘‘दामादजी, मैं अकेला अब अनु की देखभाल नहीं कर सकता. जवान बच्ची है, अब आप इसे अपने साथ ले जाओ. न चाहते हुए भी उसे पिता और दूसरी मां के साथ जाना पड़ा. दूसरी पत्नी से पिता की एक नकचढ़ी बेटी विभू हुई थी, जो उसे बहन के रूप में बिलकुल बरदाश्त नहीं कर पा रही थी. घर में तनाव का वातावरण बना रहता था, जिस का हल नई मां ने उस की शादी के रूप में निकालना चाहा. वह अभी पढ़ना चाहती थी, मगर उस की मरजी कब चल पाई थी.

बचपन में जब पिता के साथ रहना चाहती थी, तब जबरन नानानानी के घर रहना पड़ा और जब वहां के वातावरण में रचबस गई तो अजनबी हो गए पिता के घर वापस आना पड़ा था. उन्हीं दिनों बड़ी बूआ की बेटी के विवाह में उसे भागदौड़ के साथ काम करते देख बूआ की देवरानी को अपने इकलौते बेटे दिनेश के लिए वह भा गई थी. अकेले में उन्होंने उस के सिर पर स्नेह से हाथ फेरा तथा आश्वासन भी दिया कि वे उस की पढ़ाई जारी रखेंगी. पिताजी ने चट मंगनी पट ब्याह कर अपने सिर का बोझ उतार फेंका.

अनु की पसंदनापसंद का तो सवाल ही नहीं था. विवाह के समय छोटी बहन विभू जीजाजी के जूते छिपाने की जुगत में लगी थी, लेकिन जूते ननद ने पहले से ही एक थैली में डाल कर अपने पास रख लिए थे. मंडप में बैठी अम्मां यह सब देख मंदमंद मुसकरा रही थीं. तभी ननद के बच्चे ने कपड़े खराब कर दिए और वह जूतों की थैली अम्मां को पकड़ा कर उस के कपड़े बदलवाने चली गई. लौट कर आई तो अम्मां से थैली ले कर वह फिर मंडप में ही डटी रही.

विवाह संपन्न होने के बाद जब विभू ने जीजाजी से जूते छिपाई का नेग मांगा तो ननद झट से बोल पड़ी, ‘‘जूते तो हमारे पास हैं नेग किस बात का?’’

इसी के साथ उन्होंने थैली खोल कर झाड़ दी. लेकिन यह क्या, उस में तो जूतों की जगह चप्पलें थीं और वे भी अम्मां की. यह दृश्य देख कर ननद रानी भौचक्की रह गईं. उन्होंने शिकायती नजरों से अपनी अम्मां की ओर देखा, तो अम्मां ने शरारती मुसकान के साथ कंधे उचका दिए.

‘‘यह सब कैसे हुआ मुझे नहीं पता, लेकिन बेटा नेग तो अब देना ही पड़ेगा.’’

तब विभू ने इठलाते हुए जूते पेश किए और जीजाजी से नेग का लिफाफा लिया. इतनी प्यारी सास पा कर अनु के साथसाथ वहां उपस्थित सभी लोग भी हैरान हो उठे थे.

ससुराल पहुंचते ही अनु का जोरशोर से स्वागत हुआ, लेकिन उसी रात उस के ससुर को अस्थमा का दौरा पड़ा. उन्हें अस्पताल में भरती करवाना पड़ा. रिश्तेदार फुसफुसाने लगे कि बहू के कदम पड़ते ही ससुर को अस्पताल में भरती होना पड़ा. अम्मां के कानों में जब ये शब्द पड़े तो उन्होंने दिलेरी से सब को समझा दिया कि इस बदलते मौसम में हमेशा ही बाबूजी को अस्थमा का दौरा पड़ जाता है. अकसर उन्हें अस्पताल में भरती कराना पड़ता है. बहू के घर आने से इस का कोई सरोकार नहीं है. अम्मां की इस जवाबदेही पर अनु उन की कायल हो गई थी.

विवाह के 2 दिन बाद बाबूजी अस्पताल से ठीक हो कर घर आ गए थे और बहू से मीठा बनवाने की रस्म के तहत अनु ने खीर बनाई थी. खीर को ननद ने चखा तो एकदम चिल्ला दी, ‘‘यह क्या भाभी, आप तो खीर में मीठा डालना ही भूल गईं?’’

इस से पहले कि बात सभी रिश्तेदारों में फैलती, अम्मां ने खीर चखी और ननद को प्यार से झिड़कते हुए कहा, ‘‘बिट्टो, तुझे तो मीठा ज्यादा खाने की बीमारी हो गई है, खीर में तो बिलकुल सही मीठा डाला है.’’

ननद को बाहर भेज अम्मां ने तुरंत खीर में चीनी डाल कर उसे आंच पर चढ़ा दिया. सास के इस अपनेपन व समझदारी को देख कर अनु की आंखें नम हो आई थीं. किसी को कानोंकान खबर न हो पाई थी. अम्मां ने खीर की तारीफ में इतने पुल बांधे कि सभी रिश्तेदार भी अनु की तारीफ करने लगे थे.

विवाह को 2 माह ही बीते थे कि साथ रहने वाले पति के ताऊजी हृदयाघात से चल बसे. उन के अफसोस में शामिल होने आई मेरी मां फुसफुसा रही थीं, ‘‘इस के पैदा होते ही इस की मां चल बसी, यहां आते ही 2 माह में ताऊजी चल बसे. बड़ी अभागिन है ये.’’

तब अम्मां ने चंडी का सा रूप धर लिया था, ‘‘खबरदार समधनजी, मेरी बहू के लिए इस तरह की बातें कीं तो… आप पढ़ीलिखी हो कर किसी के जाने का दोष एक निर्दोष पर लगा रही हैं. भाई साहब (ताऊजी) हृदयरोग से पीडि़त थे, वे अपनी स्वाभाविक मौत मरे हैं. एक मां हो कर अपनी बेटी के लिए ऐसा कहना आप को शोभा नहीं देता.’’

दूसरी मां ने झगड़े की जो चिनगारी हमारे आंगन में गिरानी चाही थी, वह अम्मां की वजह से बारूद बन कर मांपिताजी के रिश्तों में फटी थी. पहली बार पिताजी ने मां को आड़े हाथों लिया था.

अम्मां के इसी तरह के स्पष्ट व निष्पक्ष विचार अनु के व्यक्तित्व का हिस्सा बनने लगे. ऐसी कई बातें थीं, जिन की वजह से अम्मां और उस का रिश्ता स्नेहप्रेम के अटूट बंधन में बंध गया. एक बहू को बेटी की तरह कालेज में भेज कर पढ़ाई कराना और क्याक्या नहीं किया उन्होंने. कभी लगा ही नहीं कि अम्मां ने उसे जन्म नहीं दिया या कि वे उस की सास हैं. एक के बाद दूसरी पोती होने पर भी अम्मां के चेहरे पर शिकन नहीं आई. धूमधाम से दोनों पोतियों के नामकरण किए व सभी नातेरिश्तेदारों को जबरन नेग दिए. बाद में दोनों बेटियां उच्च शिक्षा के लिए बाहर चली गई थीं. अम्मां हर सुखदुख में छाया की तरह अनु के साथ रहीं.

बाबूजी के गुजर जाने से अम्मां कुछ विचलित जरूर हुई थीं, लेकिन जल्द ही उन्होंने अपने को संभाल कर सब को खुश रहने की सलाह दे डाली थी. तब रिश्तेदार आपस में कह रहे थे, ‘‘अब अम्मां ज्यादा नहीं जिएंगी, हम ने देखा है, वृद्धावस्था में पतिपत्नी में से एक जना पहले चला जाए तो दूसरा ज्यादा दिन नहीं जी पाता.’’

सुन कर अनु सहम गई थी. लेकिन अम्मां ने दोनों पोतियों के साथ मिलजुल कर अपने घर में ही सुकून ढूंढ़ लिया था.

बाबूजी को गुजरे 10 साल बीत चुके थे. अम्मां बिलकुल स्वस्थ थीं. एक दिन गुसलखाने में नहातीं अम्मां का पैर फिसल गया और उन के पैरों में गहरे नील पड़ गए. जिंदगी में पहली बार अम्मां को इतना असहाय पाया था. दिन भर इधरउधर घूमने वाली अम्मां 24 घंटे बिस्तर पर लेटने को मजबूर हो गई थीं.

अम्मां को सांत्वना देती अनु ने कहा, ‘‘अम्मां चिंता मत करो, थोड़े दिनों में ठीक

हो जाओगी. यह शुक्र करो कि कोई हड्डी नहीं टूटी.’’

अम्मां ने सहमति में सिर हिला कर उसे सख्ती से कहा था, ‘‘बेटी, मेरी बीमारी की खबर कहीं मत करना, व्यर्थ ही दुनिया भर के रिश्तेदारों, मिलने वालों का आनाजाना शुरू हो जाएगा, तू खुद हाई ब्लडप्रैशर की मरीज है, सब को संभालना तेरे लिए मुश्किल हो जाएगा.’’

अम्मां की बात मान उस ने व दिनेश ने किसी रिश्तेदार को अम्मां के बारे में नहीं बताया. लेकिन एक दिन दूर के एक रिश्तेदार के घर आने पर उन के द्वारा बढ़ाचढ़ा कर अम्मां की बीमारी सभी जानकारों में ऐसी फैली कि आनेजाने वालों का तांता सा लग गया. फलस्वरूप, मेरा ध्यान अम्मां से ज्यादा रिश्तेदारों के चायनाश्ते व खाने पर जा अटका.

सभी बिना मांगी मुफ्त की रोग निवारण राय देते तो कभी अलगअलग डाक्टर से इलाज कराने के सुझाव देते. साथ ही, अम्मां के लिए नर्स रखने का सुझाव देते हुए कुछ जुमले उछालने लगे. मसलन, ‘‘अरी, तू क्यों मुसीबत मोल लेती है. किसी नर्स को इन की सेवा के लिए रख ले. तूने क्या जिंदगी भर का ठेका ले रखा है. फिर तेरा ब्लडप्रैशर इतना बढ़ा रहता है. अब इन की कितनी उम्र है, नर्स संभाल लेगी.’’

इधर अम्मां को भी न जाने क्या हो गया था. वे भी चिड़चिड़ी हो गई थीं. हर 5 मिनट में उसे आवाज दे दे कर बुलातीं. कभी कहतीं कि पंखा बंद कर दे, कभी कहतीं पंखा चला दे, कभी कहतीं पानी दे दे, कभी पौटी पर बैठाने की जिद करतीं. अकसर कहतीं कि मैं मर जाना चाहती हूं. अनु हैरान रह जाती.

रिश्तेदारों की खातिरदारी और अम्मां की बढ़ती जिद के बीच भागभाग कर वह परेशान हो गई थी. ब्लडप्रैशर इतना बढ़ गया कि उसे अस्पताल में भरती होना पड़ा.

3 दिन अस्पताल में रहने के बाद जब मैं घर आई तो देखा घर पर अम्मां की सेवा के लिए नर्स लगी हुई है. उस ने नर्स से पूछा, ‘‘अम्मां नाश्ताखाना आराम से खा रही हैं?’’

उस ने सहमति में सिर हिला दिया.

दोपहर को उस ने देखा कि अम्मां को परोसा गया खाना रसोई के डस्टबिन में पड़ा हुआ था.

नर्स से पूछा कि अम्मां ने खाना खा लिया है, तो उस ने स्वीकृति में सिर हिला दिया, यह देख कर वह परेशान हो उठी. इस का मतलब 3 दिन से अम्मां ने ढंग से खाना नहीं खाया है. नर्स को उस ने उस के कमरे में आराम करने भेज दिया और स्वयं अम्मां के पास चली गई.

अनु को देखते ही अम्मां की आंखों से आंसू बहने लगे. अवरुद्ध कंठ से वे बोलीं, ‘‘अनु बेटी, अगर मुझे नर्स के भरोसे छोड़ देगी तो रिश्तेदारों की कही बातें सच हो जाएंगी. मैं जल्द ही इस दुनिया से विदा हो जाऊंगी. वैसे ही सब रिश्तेदार कहते हैं कि अब मैं ज्यादा दिन नहीं जिऊंगी.’’

3 दिन में ही अम्मां की अस्तव्यस्त हालत देख कर अनु बेचैन हो उठी, ‘‘क्या कह रही हो अम्मां, आप से किस ने कहा? आप अभी खूब जिओगी. अभी दोनों बच्चों की शादी करनी है.’’

अम्मां बड़बड़ाईं, ‘‘क्या बताऊं बेटी, तेरे अस्पताल जाने के बाद आनेजाने वालों की सलाह व बातें सुन कर इतनी परेशान हो गई कि जिंदगी सच में एक बोझ सी लगने लगी. यह सब मेरी दी गई सलाह न मानने का नतीजा है. अब फिर से तुझ से वही कहती हूं, ध्यान से सुन…’’

अम्मां की बात सुन कर अनु ने उन के सिर पर स्नेह से हाथ फिराते हुए कहा, ‘‘अम्मां, आप बिलकुल चिंता न करो, आप की सलाह मान कर अब मैं अपना व आप का खयाल रखूंगी.’’

उस के बाद अम्मां की दी गई सलाह पर अनु के पति ने रिश्तेदारों को समझा दिया कि डाक्टर ने अम्मां व अनु दोनों को ही पूर्ण आराम की सलाह दी है, इसलिए वे लोग बारबार यहां आ कर ज्यादा परेशानी न उठाएं. साथ ही, झूठी नर्स को भी निकाल बाहर किया.

इस का बुरा पक्ष यह रहा कि जो रिश्तेदार दिनेश व अनु से सहानुभूति रखते थे, अम्मां के लिए नर्स रखने की सलाह दिया करते थे, अब दिनेश को भलाबुरा कहने लगे थे, ‘‘कैसा बेटा है, बीमार मां के लिए नर्स तक नहीं रखी, हमारे आनेजाने पर भी रोक लगा दी.’’

लेकिन इस सब का उजला पक्ष यह रहा कि 2 महीने में ही अम्मां बिलकुल ठीक हो गईं और अनु का ब्लडप्रैशर भी छूमंतर हो गया. इस उम्र में भी आखिर, अम्मां की सलाह ही फायदेमंद साबित हुई थी. अनु सोच रही थी, सच मेरी अम्मां जैसा कोई नहीं.

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