तीन तलाक : फैसले से इतर भी हैं फसाद

बीती 22 नवंबर को एक बार फिर जब यह चर्चा आम हुई कि सरकार तीन तलाक को ले कर या तो पुराने कानून में संशोधन करेगी या फिर सिरे से नया कानून बनाएगी तो लोगों को सहसा याद आया कि इस मसले पर कुछ दिन पहले ही तो खासा हंगामा मचा था, लेकिन फिर बात आईगई हो गई.

मगर इस बार इस खबर का कोई असर आम लोगों पर नहीं हुआ कि सरकार एक बार में तीन तलाक का रिवाज खत्म कर नए कानून में क्याक्या बदलाव करेगी और उस से मुसलिम महिलाओं को क्या हासिल होगा. यह जरूर लोगों ने सोचा कि क्या अब तलाक के लिए मुसलिम दंपतियों को भी अदालतों की खाक छानते हुए कानूनी सजा जिसे रहम कहा जा रहा है भुगतनी पड़ेगी?

कानून में दिचलस्पी रखने वालों को जरूर इस बात पर हैरत है कि अगर सरकार संसद के शीतकालीन सत्र में विधेयक लाती भी है तो उस का क्या हश्र होगा और यह विधेयक कानून में कब तक बदल पाएगा. तब तक क्या मुसलिम महिलाएं दुविधा की स्थिति में रहेंगी और पुरुष पहले की तरह तीन तलाक का चाबुक चलाते रहने को स्वतंत्र होंगे? वजह केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर का यह कहना था कि चूंकि सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक को असंवैधानिक बताया है, इसलिए नए कानून की जरूरत नहीं है.

यह था फैसला

22 अगस्त, 2017 को सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की बैंच ने 5-2 के बहुमत से कहा था कि एकसाथ तीन तलाक कहने की प्रथा यानी तलाक ए विद्दत शून्य असंवैधानिक और गैरकानूनी है. बैंच में शामिल न्यायाधीशों ने सरकार को 6 महीनों में कानून बनाने का निर्देश दिया था. इस के लिए सरकार ने मंत्री स्तरीय कमेटी भी बना डाली जो तय नहीं कर पा रही है कि इस रिवाज में किस तरह के संशोधन करे या फिर नया मसौदा तैयार कराए, जिस से तीन तलाक के दाग धो कर मुसलिम महिलाओं को एक बेहतर विकल्प दिया जा सके.

जैसे ही यह कथित ऐतिहासिक फैसला आम हुआ था तो देश मानो थम सा गया. घरों में, चौराहों पर, दफ्तरों में, स्कूलकालेजों में, रेलों और बसों में हर कहीं तीन तलाक की चर्चा थी. हर कोई अपनी प्रतिक्रिया देने के लिए ऐसे किसी उपयुक्त पात्र को ढूंढ़ रहा था जिसे अपनी मूल्यवान राय से अवगत करा कर अपनी बुद्धिमानी के झंडे गाड़े जा सकें.

बात थी भी कुछ ऐसी ही. आखिर सुप्रीम कोर्ट ने औरतों के हक को मारती 14 सौ साल पुरानी एक कुप्रथा महज 28 मिनट के फैसले से एक झटके में जो खत्म कर दी थी. कुछ घंटों से ले कर अगले 3 दिनों तक देश का माहौल बड़ा गरम रहा. जिन्हें कोई श्रोता नहीं मिला उन्होंने अपनी बात सोशल मीडिया पर साझा की. व्हाट्सऐप और फेसबुक पर तीन तलाक नाम की कुप्रथा से संबंध रखते हुए नएनए विचार प्रसारित हो रहे थे, जिन का सार सिर्फ इतना था कि औरत जीत गई, मजहब हार गया.

मजहब यानी इसलाम

चारों तरफ पसरती उत्तेजना और रोमांच देख महसूस यह हो रहा था मानो यह सुप्रीम कोर्ट का फैसला नहीं, बल्कि भारतपाकिस्तान के बीच चल रहा वन डे क्रिकेट मैच था, जिस के आखिरी ओवर में आखिरी गेंद पर भारत को जीत के लिए 5 रन चाहिए थे और बैट्समैन ने छक्का मारने का करिश्मा कर दिखाया और भारत मैच जीत गया. लिहाजा खूब जश्न मना. तरहतरह के कमैंट्स और तजरबे इधर से उधर झूला झूलते रहे.

जिन्होंने बारीकी से माहौल देखा उन्होंने एक अजीब बात यह महसूस की कि वाकई मुसलमानों के  चेहरे उतरे हुए हैं. मसजिदों में नमाज पढ़ कर निकल रहे लोग चिंतन और चिंता की मुद्रा में थे और लगभग सिर झुकाए चल रहे थे. टीवी चैनलों पर शरीयत का हवाला देते हुए कट्टरपंथी मुसलमानों की दलीलें गैरमुसलमानों की सुधारवादी दहाड़ों के आगे सुनाई ही नहीं दे रही थीं.

सुनने लायक सुनाई दे रहा था तो बस इतना कि हम सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हैं लेकिन तीन तलाक के जिस तरीके को सुप्रीम कोर्ट ने नाजायज ठहराया है वह दरअसल में शरीयत के मुताबिक है ही नहीं. फिर आवाजें आईं जिन में प्रमुख शब्द थे इद्दत, खुला, हवाला, वक्फा और भी न जाने क्याक्या. इस ऐतिहासिक फैसले पर मुसलमानों से ज्यादा हिंदुओं ने खुशी जताई.

सब से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बधाई देने वालों में 2 नाम उल्लेखनीय थे और वे थे भाजपा सांसद व अभिनेता परेश रावल और अभिनेता अनुपम खेर. तीसरा उल्लेखनीय नाम पाकिस्तानी मूल की नायिका सलमा आगा का था, जिन्होंने करीब 35 साल पहले बी.आर. चोपड़ा द्वारा निर्देशित फिल्म ‘निकाह’ में मुख्य भूमिका निभाई थी.

यह नीलोफर नाम की एक ऐसी युवती की कहानी थी जिसे पहला शौहर तलाक दे देता है तो वह कालेज के जमाने के एक दोस्त से दूसरी शादी कर लेती है. लेकिन एक गलतफहमी के चलते दूसरा शौहर भी तलाक देने पर उतारू हो जाता है. इस पर नीलोफर तीन तलाक को ले कर अंदर तक तीखे और कुरेदते सवाल करती है. सुप्रीम कोर्ट ने इन्हीं को विस्तार दिया है.

इधर 23 अगस्त, 2017 के अखबार भी उन नायिकाओं की चर्चा से भरे पड़े थे, जिन्होेंने तीन तलाक की प्रथा के खिलाफ मुकदमे दायर कर रखे थे. इन में भी सुपरस्टार थी शायरा बानो नाम की महिला, जिस ने फैसले के बाद प्रतिक्रिया दी थी कि मुसलिम महिलाओं में तो शादी के बाद से ही तलाक का डर बैठ जाता है. अब वे खौफ के साए में जीने के बजाय आजाद हो कर जिएंगी.

गुलामी से बदतर यह आजादी

शायरा का उत्साह स्वाभाविक बात है पर वह जिस आजादी का हवाला दे रही है वह दरअसल में एक ऐसी गुलामी है, जिस में फंस कर औरत छटपटाती ही रहती है.

कल्पना करें कि ‘निकाह’ की नीलोफर हिंदू होती तो क्या होता. होता यह कि वह घुटती रहती और पति की ज्यादतियां बरदाश्त करती रहती और जब बरदाश्त की हदें जवाब दे जातीं तो क्रूरता और तलाक का मुकदमा ठोंकने अदालत चली जाती.

फिर होता यह कि उसे सालोंसाल यह साबित करने में लग जाते कि पति वाकई क्रूर है. वह अपने व्यवसाय में व्यस्त है, इसलिए पत्नी को वक्त नहीं दे पाता, जिस से झल्लाई पत्नी एक दिन उसे सैक्स के अपने अधिकार से वंचित कर देती है तो वह और झल्ला उठता है. इस के बाद क्लाइमैक्स में पति महसूस करता है कि पत्नी ने मेहमानों के सामने उस के खानदान की नाक कटवा दी है. तब वह तलाक तलाक तलाक कह कर उसे जिंदगी और घर दोनों से निकाल देता है.

तीन तलाक नाम की कुप्रथा के बंद होने के बाद नीलोफर की स्थिति क्या होती? वह होस्टल में ही रहती और पराए मर्दों की बुरी नजरों को झेलती अपनी दास्तां डायरी में लिखती रह जाती.

भोपाल के एक वरिष्ठ अधिवक्ता हरिशंकर तिवारी (बदला नाम) आमतौर पर इंश्योरैंस और क्लेम संबंधी मुकदमे लेते हैं. उन की साली सारिका (बदला नाम) की शादी 2002 में केंद्र सरकार के एक कर्मचारी से हुई थी. दोनों परिवारों की समाज में अपनी प्रतिष्ठा थी. लिहाजा सभी को उम्मीद थी कि दोनों की पटरी अच्छी बैठेगी.

जैसाकि आमतौर पर होता है शादी के बाद डेढ़दो साल तो ठीक गुजरे पर उस के बाद दोनों में खटपट होने लगी. सारिका ने महसूस किया कि पति देवेंद्र (बदला नाम) अपनी मां और बहनों पर ज्यादा ध्यान देता है और उन्हीं के कहने में है. इस पर उस ने धीरेधीरे अपना एतराज दर्ज कराना शुरू किया जो 1 साल बाद ही रोजरोज की कलह में तबदील हो गया.

सारिका चाहती थी कि देवेंद्र जैसे ही शाम को दफ्तर से घर आए तो पहले बैडरूम में आ कर उस के पास बैठे, जबकि अपनी आदत के मुताबिक देवेंद्र दफ्तर से आ कर पहले ड्राइंगरूम में आ कर मां के पास बैठ कर बतियाता था. इस दौरान कालेज में पढ़ रही दोनों बहनें भी उन के पास आ बैठती थीं.

एकाध साल तो सारिका भी सब के साथ ड्राइंगरूम में बैठी पर उस के बाद उस ने अपना डेरा बैडरूम में जमा लिया. शुरूशुरू में देवेंद्र ने उस के इस बदलते व्यवहार के बारे में पूछा तो वह बहाने बना कर बात को टाल गई, लेकिन फिर जवाब देने लगी कि तुम्हें क्या, तुम तो जा कर बैठो अपनी बहनों और मां के पास. बीवी तो नौकरानी होती है, उस की कीमत क्या.

कुछ दिन ऐसे ही कट गए. लेकिन सारिका की जिद और अहं ने देवेंद्र का जीना दुश्वार कर दिया. अब दोनों तरफ से तरहतरह के आरोप लगने लगे. फिर एक दिन बगैर किसी को बताए सारिका अपने मायके चली गई. उस के इस अप्रत्याशित कदम से हकबकाए देवेंद्र को जब उस के ससुर ने बताया कि सारिका उन के यहां है तो उसे बेफिक्री भी हुई और सारिका की इस बेजा हरकत पर गुस्सा भी आया. अत: उस ने तय कर लिया कि अब वह अपनी तरफ से कोई पहल नहीं करेगा.

अब दोनों में बोलचाल भी बंद हो गई. सारिका के पिता ने दुनिया देखी थी. दुखी बेटी की तकलीफ सुन वे सारा माजरा भांप गए. उन्होंने बेटी को समझाया भी कि जराजरा सी बातों पर ससुराल छोड़ना बुद्धिमानी की बात नहीं. कुछ दिनों में ही सारिका के कसबल ढीले पड़ने लगे. अब वह चाहती थी कि देवेंद्र उसे लेने मायके आए. इधर खुद को बेइज्जत महसूस कर रहे देवेंद्र ने ससुर से साफसाफ कह दिया कि उस का घर है जब चाहे आए, अपनी मरजी से गई है, इसलिए वह लेने नहीं आएगा.

सारिका के घर वाले भी उसे समझासमझा कर हार गए. सारिका ने उन से स्पष्ट कह दिया, ‘‘अगर मैं आप लोगों को भार लगने लगी हूं तो किसी वूमंस होस्टल में रहने चली जाती हूं. पेट भरने के लिए किसी प्राइवेट स्कूल में पढ़ाना शुरू कर देती हूं.’’

बात कैसे भी नहीं बन रही थी. तय हुआ कि जब दोनों साथ नहीं रह सकते या रहने को तैयार नहीं, तो तलाक के अलावा कोई विकल्प नहीं. इस बाबत पहले महज धौंस देने की गरज से देवेंद्र को कानूनी नोटिस भेजा गया, तो उस का पारा 7वें आसमान पर जा पहुंचा और उस ने कानूनी भाषा में ही वकील के जरीए जवाब दिया.

अब सुलह की रहीसही गुंजाइश भी खत्म हो गई थी. सारिका जब वापस नहीं आई तो देवेंद्र ने भी तलाक का मुकदमा ठोंक दिया. शुरू में तो सारिका तलाक के नाम से डरी, लेकिन इस से ज्यादा वह कुछ और नहीं सोच सकी कि देवेंद्र अगर उसे चाहता होता तो मुकदमा दायर न करता. जरूर मां और बहनों के बहकावे में आ कर उस ने यह किया है.

अब अदालत में मुकदमा चल रहा है  आरोपप्रत्यारोप लग रहे हैं. बात रिश्तेदारी में आम हो गई है और समाज के लोग तलाक के एक और मुकदमे का लुत्फ उठा रहे हैं.

सारिका घरगृहस्थी के बंधन से आजाद है. ऐसी आजादी की उस ने कभी कल्पना भी नहीं की थी, जिस में आएदिन दिखावे की हमदर्दी और पीठ पीछे ताने और हजार तरह की बातें हैं. घर वाले भी पहले सा खयाल नहीं रखते. उस ने एक प्राइवेट स्कूल में नौकरी कर ली है. किसी भी तरह वह अदालत में यह साबित करना चाहती है कि दांपत्य की इस टूटन और मुकदमे की वजह वह नहीं, बल्कि देवेंद्र की बहनें और मां हैं. हरिशंकर तिवारी को समझ नहीं आ रहा है कि क्या करें क्या नहीं.

‘निकाह’ फिल्म की नीलोफर और सारिका की हालत में कोई खास फर्क नहीं है. बस उस की वजह अलग है. एक परित्यक्ता या तलाक का मुकदमा लड़ रही महिला की जिंदगी कितनी नीरस, उबाऊ और यंत्रणादायक होती है इस का अंदाजा सारिका को देख कर लगाया जा सकता है. देवेंद्र जैसा कोई भी पुरुष उस वक्त तक दूसरी शादी नहीं कर सकता जब तक उस का पहली पत्नी से तलाक न हो जाए.

कैसे बैठेगी पटरी

फैसला तीन तलाक के रिवाज पर आया है, जिस में महिलाओं की स्थिति का कहीं जिक्र नहीं है, न ही इस बात का उल्लेख है कि जब कोई पतिपत्नी वजहें कुछ भी हों साथ नहीं रह सकते तो कोई कानून क्या कर लेगा.

तलाक के लाखों मुकदमे अदालतों में चल रहे हैं. इन में हिंदू महिलाओं के ज्यादा हैं, मुसलमान महिलाओं के कम. वजह अब तक तीन तलाक की प्रथा थी, जिस के खत्म होने से फर्क इतना आने की संभावना है कि वे अपना पक्ष अदालत में रख सकेंगी, लेकिन शौहर को वापस पा सकेंगी इस सवाल का जवाब सारिका जैसी औरतें दें तो वह न में ही होगा.

बात हिंदू या मुसलिम की नहीं, बल्कि औरत की की जाए तो समझ आता है कि समस्या तलाक का तरीका कम पतिपत्नी में पटरी न बैठना औरतों की बदहाली की वजह ज्यादा है. तलाक एक झटके में हो या उस का मुकदमा सालोंसाल चले वे किसी भी कीमत पर पति को हासिल नहीं कर सकतीं.

पारिवारिक जिम्मेदारियों और सामाजिक दबावों के चलते कितने दंपती नर्क की सी जिंदगी जीने को मजबूर हैं, इस का ठीकठीक आंकड़ा शायद ही कोई दे पाए. लेकिन इस के उदाहरण हर कहीं आसानी से मिल जाते हैं यानी विवाद, अलगाव और तलाक सामान्य बात है, जिस का संबंध पतिपत्नी में किसी वजह से आपसी समझ और तालमेल न होना है तो तीन तलाक के रिवाज के बंद होने पर बातों के बताशे फोड़ना एक धार्मिक जिद भर नजर आती है. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से मुसलमान गुस्से में हैं.

भोपाल में 10 सितंबर, 2016 को आल इंडिया मुसलिम पर्सनल लौ बोर्ड की मीटिंग में धर्म और समाज के ठेकेदारों ने दोहराया कि वे सुप्रीम कोर्ट के फैसले की इज्जत करते हैं पर अपने मजहब और शरीयत में किसी तरह का दखल बरदाश्त नहीं करेंगे. यह बात कतई हैरानी की नहीं थी कि उन्होंने यह बात महिला प्रतिनिधियों के मुंह से भी कहलवा ली.

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में सरकार को निर्देश दिया था कि वह 6 महीनों में मुसलिम तलाक पर कानून बनाए और वह ऐसा नहीं करती है या नहीं कर पाती है तो उस का हालिया फैसला ही कानून माना जाएगा. इस निर्देश के मद्देनजर सरकार संसद के शीतकालीन सत्र में विधेयक पेश कर सकती है पर इस में बात सिर्फ मुसलिम महिलाओं की होगी, हिंदू महिलाओं की दुर्दशा पर भी सरकार संवैधानिक स्तर पर ध्यान दे तो वास्तव में वाहवाही और आभार उसे तीन तलाक पर पहल करने से भी ज्यादा मिलेगा.

देश के बुद्धिजीवी वर्ग और आकाओं ने इस फैसले को समान नागरिक संहिता की दिशा में बढ़ता सार्थक कदम बताया तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुसलिम बहनों को बधाई दे डाली. परेश रावल और अनुपम खेर जैसे हिंदूवादी अभिनेताओं की कथित खुशी यह है कि मुसलिम महिलाओं को तीन तालक से छुटकारा मिल गया. जबकि हकीकत क्या है यह हर कोई समझ रहा है. इन्हें और इन जैसे लोगों को इस बात से कोई मतलब नहीं कि तलाक की त्रासदी भुगतते पतिपत्नियों को इस से क्या हासिल होगा. तलाक तो तलाक है, फिर चाहे वह फटाफट वाला हो यह लंबा खिंचने वाला. दोनों ही स्थितियों में पतिपत्नी कुछ नहीं कर पाते. उन्हें किसी भी कीमत या शर्त पर एकदूसरे से छुटकारा चाहिए होता है.

बात तब बिगड़ती है जब कोई एक पक्ष तलाक न देने की जिद पर अड़ जाता है. अब अगर मुसलिम महिलाओं को अदालत जाने का हक मिला तो वे भी सारिका की तरह पेशी दर पेशी अपनी एडि़यां अदालत की देहरी पर रगड़ेंगी, लेकिन तलाक इतना आसान काम नहीं जितना वे समझ रही होंगी.

इन की अनदेखी क्यों

तीन तलाक पर सुप्रीम कोेर्ट का फैसला आने के बाद भी इस के मामले आने जारी रहे तो एक बार फिर केंद्र सरकार की तरफ से 1 दिसंबर को ये संकेत दिए गए कि महज एक बार में बोल कर तीन तलाक देने वाले शौहर को तीन साल की सजा हो सकती है और तीन तलाक अपराध की श्रेणी में माना जाएगा, जिस में पति को जमानत भी नहीं मिलेगी.

यकीनन मुसलिम महिलाओं के हक में यह भी सार्थक पहल है कि वे कानून बनने तक तलाक की प्रक्रिया के दौरान गुजाराभत्ता भी मांग सकती हैं और चाहे तो नाबालिग बच्चों की सरपरस्ती भी हासिल कर सकती हैं.

अदालत, सरकार और मंत्री स्तरीय कमेटी के लिए यह एक अच्छा मौका है कि वे हिंदू महिलाओं की परेशानियों के बारे में भी विचार करें खासतौर से उन पहलुओं पर जो असंवैधानिक हैं और रिवाज या प्रथा हैं, जिन के चलते हिंदू महिलाओं को मुसलिम महिलाओं से कम दुश्वारियों का सामना नहीं करना पड़ता.

जन्मकुंडली मिलान कर शादी करना और न मिलने पर प्रस्ताव का खारिज होना कोई संवैधानिक बात नहीं है. इसी तरह संविधान में कहीं उल्लेख नहीं है कि मांगलिक लड़की को मंगल की दशा के चलते रिजैक्ट कर दिया जाए. ये रिवाज सदियों से चले आ रहे हैं, जो सीधेसीधे धार्मिक दोष के दायरे में आते हैं.

जिस तरह सरकार मुसलिम महिलाओं के हक में संविधान का हवाला बारबार दे रही है उस के दायरे में तो दहेज भी आता है. दहेज कानूनन अपराध होने के बाद भी खुलेआम चलन में है और हर साल लाखों महिलाएं इस की बलि चढ़ जाती हैं. उन की क्या गलती है? अब यह नए सिरे से अदालत और सरकार के लिए तय करना जरूरी हो चला है, जिस से हिंदू महिलाओं को भी राहत मिले. रिवाज तो व्रत और उपवास का भी महिलाओं के भले का नहीं. एक हिंदू महिला पति, पुत्र और ससुराल के भले और सलामती के लिए पचासों तरह के व्रत रखती है.

सरकारें हिंदू पर्वों के आयोजनों पर पानी की तरह पैसा बहाती हैं. यह बात भी संविधान में कहीं नहीं लिखी कि वे जनता के पैसे का मनमाना दुरुपयोग धार्मिक कृत्यों व आयोजनों में करें. फिर इस पर चुप्पी और खामोशी क्यों?

मंत्री स्तरीय कमेटी को धार्मिक पूर्वाग्रह छोड़ते इन विसंगतियों और खामियों को भी नए कानून में शामिल करना चाहिए ताकि जिस से न केवल हिंदू महिलाएं, बल्कि आम लोगों को भी राहत मिले जो तमाम धार्मिक ढोंगों, पाखंडों को रिवाज मानते हुए कुछ बोल नहीं पाते. अदालत इन पर भी खुद संज्ञान ले कर सरकार को निर्देशित कर सकती है. अगर वह ऐसा करेगी तो कुछ कट्टरवादियों को छोड़ कर आम लोग उस की पहल का स्वागत ही करेंगे जैसा तीन तलाक के मामले में मुसलिम समुदाय ने किया.

वापस ‘निकाह’ फिल्म की तरफ चलें तो नायिका की दूसरी शादी इसलिए जल्दी हो गई थी कि वह एक तलाकशुदा स्त्री थी. कोई कानूनी अड़चन उस में नहीं थी. अगर मुकदमा चल रहा होता तो वह इतनी आसानी से दूसरी शादी नहीं कर पाती. यहां मकसद तीन तलाक की हिमायत करना नहीं, बल्कि यह बताना है कि सालोंसाल चलते तलाक के मुकदमों से दोनों पक्षकारों को कितना और कैसाकैसा नुकसान होता है. कोई भी कानून सुधार के लिए बने स्वागत योग्य है पर कानन जिंदगी से खिलवाड़ न कर पाए इस का खयाल रखा जाना भी जरूरी है और तलाक के मामलों में ऐसा तभी होता है जब किसी एक पक्ष को कानून से खिलवाड़ करने की सहूलत मिल जाती है.

ऐसे ढेरों समाचार मिल जाएंगे जिन में विवाहितों के प्रति दूसरे पक्ष ने हिंसक अपराध किया, जिस की वजह काननी पेंच है, जो तलाक की मियाद की गारंटी नहीं लेता. न्याय के लिए बने कानून की चौखट पर लोग महज इसलिए नहीं जाते कि वहां तो अंधेर से भी ज्यादा देर है. ऐसे कानून पर भी पुनर्विचार होना जरूरी है.

तीन तलाक के मसले पर अदालत ने खुद संज्ञान लिया था. उस में किसी शायरा या शाहबानो ने एतराज दर्ज नहीं कराया था. अदालत को चाहिए कि वह इस बात पर भी संज्ञान ले कि देर से मिला न्याय अन्याय नहीं तो क्या है. पतिपत्नी कानूनी देरी के डर के चलते घुट कर जीते हों तो यह भी कानूनी खामी नहीं तो क्या है?

फैसले पर जश्न मना रहे लोगों को भी इस खामी पर पहल करनी चाहिए कि कई देवेंद्र और सारिका तलाक के मुकदमे के लंबे खिंचने के कारण दूसरी शादी कर चैन की जिंदगी जीने की बात सोच ही नहीं पा रहे. उन्हें खुश रहने का मौका क्यों नहीं मिलना चाहिए?

अब महिलाएं घर बैठे कर सकेंगी बीपीओ में नौकरी, इन शहरो में है मौका

भारत सरकार एक नई स्कीम पर काम कर रही है. इस योजना का सबसे ज्यादा फायदा हाउस वाइफ को होगा. इसके तहत महिलाएं घर बैठकर ही बीपीओ के लिए काम कर सकेंगे. इससे उन्हें पर्सनाल्टी डेवलपमेंट के साथ ही अच्छी आमदनी भी होगी. जल्द ही सरकार इस योजना को लाने जा रही है. इस योजना के तहत ऐसे प्‍लेटफौर्म डेवलप किए जाएंगे, जिसमें लगभग 100 महिलाएं अपने घरों से ही बिजनेस प्रोसेस आउटसोर्सिंग (BPO) में काम करके अच्छी सैलरी ले सकती हैं. सरकार की यह स्कीम परवान चढ़ी तो महिलाओं के करियर के लिए यह अच्‍छा मौका साबित होगा.

ये है स्‍कीम

इंफौर्मेशन एंड टेक्नोलौजी प्रमुख ने कहा कि उन्‍होंने अपने विभाग से कहा है कि वे एक स्‍कीम बनाएं. यह स्कीम ऐसी हो जिसमें महिलाओं को घर से काम करने की छूट हो. इसमें करीब 100 महिलाओं का ग्रुप इकट्ठा होकर एक प्‍लेटफौर्म तैयार करें और मिलकर काम करें. उन्‍होंने यह जानकारी हाल ही में रूरल बीपीओ प्रमोशन स्‍कीम के एक कार्यक्रम में दी.

क्या है बीपीओ प्रमोशन स्‍कीम

देश में इंफौर्मेशन एंड टेक्नोलौजी (IT) सेक्टर का विकास चुनिंदा शहरों में ही हुआ है. अधिकतर आईटी कंपनियां दिल्ली-नोएडा-गुरुग्राम, मुंबई-पुणे, हैदराबाद, बेंगलुरु-मैसूर और चेन्नई में हैं. इसको देखते हुए सरकार ने साल 2014 में फैसला लिया था कि छोटे शहरों में भी आईटी सेक्टर की नौकरियों के मौके बढ़ाए जाएंगे. इसी तरह सरकार ने बीपीओ प्रमोशन स्‍कीम की शुरुआत की है.

finance

मिलती है 1 लाख रुपए

इस योजना के तहत हर सीट के हिसाब से एक लाख रुपए तक का विशेष प्रोत्साहन दिया जाता है. इन योजनाओं में महिलाओं और दिव्यांगों, युवाओं को रोजगार देने पर फोकस किया जाता है. बीपीओ प्रमोशन स्कीम के तहत 48,300 सीटों और पूर्वोत्तर बीपीओ प्रोत्साहन योजना के अंतर्गत 5000 सीटें लगाने का लक्ष्य रखा गया है. अब तक 87 कंपनियों की 109 इकाईयों को 18,160 सीटें अलौट भी की जा चुकी है. ये सीट 19 राज्यों और संघ शासित प्रदेशों की 60 जगहों में फैली हुई हैं.

इन शहरों में है मौका

बीपीओ प्रमोशन स्कीम उत्तर प्रदेश समेत देश के कई राज्यों के अलग-अलग शहरों में शुरू हो चुकी है. इनमें अधिकतर टियर-2 वाले शहर हैं. यूपी के बरेली, कानपुर और वाराणसी, आंध्र प्रदेश के तिरुपति, गुंटुपल्ली, राजमुंदरी, बिहार के पटना और मुजफ्फरपुर, छत्तीसगढ़ के रायपुर, हिमाचल प्रदेश के बद्दी और शिमला, मध्य प्रदेश के सागर, ओडिशा के भुवनेश्वर, कटक और जलेश्वर, तमिलनाडु के कोट्टाकुप्पम, मदुरै, मइलादुथुरई, तिरुचिरापल्ली, तिरुप्पटूर और वेल्लोर, तेलंगाना के करीमनगर, जम्मू और कश्मीर के भदेरवाह, बडगाम, जम्मू, सोपोर और श्रीनगर, महाराष्ट्र के औरंगाबाद, भिवंडी, सांगली और वर्धा में यह योजना शुरू हुई है. पूर्वोत्तर के गुवाहाटी, जोरहाट, कोहिमा, इम्फाल आदि में भी बीपीओ शुरू हो गए हैं.

यहां खुलेंगे BPO

यूपी के मथुरा, बेतालपुर (देवरिया), फर्रुखाबाद, जहानाबाद, गया, चित्तूर, दलसिंहसराय, पठानकोट, अमृतसर, ग्वालियर, रायसेन, श्रृंगेरी, उडुपी, हुबली, बालासोर, कटक, पुरी, रांची, देवघर, वेल्लोर, तिरुपुर में आने वाले दिनों में बीपीओ शुरू किए जाएंगे. पूर्वोत्‍तर के असम में दीफू, मजूली, कोकराझार और सिलचर, दीमापुर (नागालैंड) और अगरतला (त्रिपुरा) में बीपीओ खुलेंगे.

BPO की तरफ से दी जाती हैं ये सर्विस

बीपीओ की तरफ से पहली सर्विस कस्टमर सपोर्ट सर्विसेस के तौर पर दी जाती है. इसमें बीपीओ कर्मचारी वाइस, ई-मेल और चैट के जरिए 24*7 ग्राहकों की शंकाओं का समाधान करते हैं. उदाहरण के लिए जैसे आप किसी मोबाइल कंपनी के कस्टमर केयर में बात करते हैं या किसी उत्पाद या सेवा संबंधी जानकारी करते हैं. दूसरी सर्विस बीपीओ टेक्निकल सपोर्ट सर्विसेस की देते हैं. इस सर्विस में 24 घंटे ओईएम कस्टमर और कंप्यूटर हार्डवेयर, सौफ्टवेयर, पेरीफेरल और इंटरनेट इंफ्रास्ट्रक्चर मैन्यूफैक्चरिंग कंपनियों को टेक्निकल सपोर्ट उपलब्ध कराता है.

वीकेंड में करे नये साल का स्वागत, जाएं नेपाल के इस जगह

इस बार नये साल की शुरूआत वीकेंड से हो रही है. ऐसे में ज्यादातर लोग वीकेंड में शहर से दूर रिसोर्ट जैसी जगहों पर जाकर पुराने साल की विदाई और नये साल का स्वागत करना चाहते हैं. यहां नैचुरल माहौल के साथ ही साथ फाइव स्टार सुविधायें भी मिलती है. वैसे तो उत्तर प्रदेश में कई छोटे बडे रिसोर्ट है. गोरखपुर से कुछ ही दूरी पर नेपाल के भैरहवा में बने टाइगर रिसोर्ट में काफी अलग सुविधायें उपलब्ध हैं.

भैरहवा (नेपाल) में 5-स्टार इंटीग्रेटेड रिजौर्ट टाइगर पैलेस रिजौर्ट नये साल में अपने ग्राहकों के लिये तैयार है. टाइगर पैलेस रिजौर्ट ने नव वर्ष के अवसर पर कई आकर्षक पैकेज तैयार किए हैं जिनमें एक स्पेशल न्यू ईयर ईव्ज गाला डिनर है जिसमें ग्राहक अनलिमिटेड आनंद ले सकते हैं.

आसमान के सितारों से रौशन रात में कबाना एवेन्यू के पूलसाइड रेस्टोरेंट में गाला डिनर के साथ अफसार अली का गाना भी होगा जो नेपाल के विश्वप्रसिद्ध गायक हैं. पैकेज में ‘कपल’ के लिए एक रात सुपीरियर रूम में ठहरने की व्यवस्था होगी अगले दिन का ब्रेकफस्ट और लंच भी होगा. इस पैकेज का मूल्य प्रति ‘कपल’ सब मिला कर केवल 14,999रु. है. टाइगर पैलेस रिजौर्ट मस्ती और मनोरंजन का रोमांचक केंद्र है.

travel

रिजौर्ट भारत-नेपाल सीमा से केवल 8 किमी उत्तर, दक्षिण नेपाल के सबट्रौपिकल तराई क्षेत्र भैरहवा में है. उत्तर प्रदेश के गोरखपुर हवाई अड्डे से केवल 2 घंटे 45 मिनट की दूरी तय कर यहां पहुंचना आसान है. इसलिए भागदौड़ की जिन्दगी से दूर फुर्सत में मस्ती और मनोरंजन करने के इच्छुक लोगों की यह पहली मंजिल होगी.

आम जिन्दगी की भीड़ और भागदौड़ से हट कर टाइगर पैलेस रिजौर्ट की अपनी अलग दुनिया है. चारों ओर हिमालय के मनोरम तराई क्षेत्र हैं. इसके पास पर्यटन के कई अन्य आकर्षक केंद्र हैं जैसे युनेस्को की विश्व-विरासत लुम्बीनी जहां भगवान बुद्ध का जन्म हुआ था और चितवन नेशनल पार्क जो एक सींग वाले राइनो और बंगाल टाइगर समेत कई दुर्लभ जंतुओं का बड़ा बसेरा है. इनके अतिरिक्त कपिलवस्तु, देवदाहा और पल्पा जैसे प्राचीन शहर भी रिजौर्ट के पास हैं.

travel

टाइगर पैलेस रिजौर्ट के 22 एकड़ के विशाल फैलाव में 100 गेस्ट रूम और सुइट के साथ दो भव्य प्राइवेट विला हैं. आप इनके सामने पहाड़ों और चारों ओर वनों का शानदार नजारा ले सकते हैं. रिजौर्ट की डिजाइन में ऊंची पसंद रखने वाले आज के पर्यटकों की तमाम जरूरतों का पूरा ध्यान रखा गया है. गेमिंग और मनोरंजन के लिए 2500 वर्गमीटर का विशाल केंद्र है. इसमें 44 गेमिंग टेबल और 200 इलैक्ट्रौनिक गेमिंग मशीनें हैं.

रिजौर्ट में सभी आधुनिक सुविधाएं हैं जैसे खान-पान के आउटलेट, बड़े स्वीमिंग पूल, खास बच्चों का क्लब जिसमें मनोरंजन के कई साधन हैं. सेहत और तंदुरुस्ती के साथ-साथ आराम और सुकून के लिए रिजौर्ट के स्पा में बौडी ट्रीटमेंट और मसाज के कई औफर हैं. जिम, सौना और स्टीम रूम्स भी हैं. कान्फ्रेंस, मीटिंग और शादियों के लिए टाइगर पैलेस रिजौर्ट में कई वेन्यू हैं.

सोनू के टीटू की स्वीटी का ट्रेलर लौंच, प्यार के पंचनामा टीम की वापसी

लव राजन के निर्देशन में बनी फिल्म ‘सोनू के टीटू की स्वीटी’ का आधिकारिक ट्रेलर आज रिलीज कर दिया गया. फिल्म में कार्तिक आर्यन, नुसरत भरुचा और सनी सिंह अहम भूमिकाओं में हैं.

फिल्म की कहानी दो ऐसे करीबी दोस्तों की है जिनमें से एक को गर्लफ्रेंड मिल जाती है और वह उससे शादी करने के लिए तैयार हो जाता है. अब दूसरा दोस्त सोनू अपने जिगरी दोस्त टीटू को मिली गर्लफ्रेंड को लेकर काफी परेशान है. ऐसा इसलिए क्योंकि लड़की कुछ ज्यादा ही सीधी और शरीफ है. सोनू को यह शक है कि जरूर दाल में कुछ काला है.

जब इस बात की भनक स्वीटी को लगती है कि सोनू अपने दोस्त को लेकर कुछ ज्यादा ही डिफेंसिव है तो सोनू और स्वीटी में टक्कर हो जाती है. अब दोनों ही जीतने के लिए वह सब कुछ करने को तैयार हो जाते हैं जिससे न सिर्फ बेहिसाब कौमेडी जन्म लेती है बल्कि ऐसा ह्यूमर भी जो आपको पेट पकड़ने पर मजबूर कर देगा.

प्यार का पंचनामा और प्यार का पंचनामा 2 के मेकर्स द्वारा बनाई गई यह फिल्म एक बार फिर से उसी स्टार कास्ट के साथ लौटी है और फिल्म का 3 मिनट 12 सेकंड का ट्रेलर आपको थिएटर तक खींच लाने के लिए राजी कर लेता है.

रिलीज डेट की बात करें तो प्यार और दोस्ती के बीच टक्कर वाली यह फिल्म वैलेंटाइन डे से बस थोड़ा पहले यानि 9 फरवरी को सिनेमाघरों में रिलीज होगी. स्वीटी के किरदार में नुसरत भरूचा एक बार फिर से फीमेल वैम्प का किरदार निभाती नजर आ रही हैं.

लगातार ईयरफोन का इस्तेमाल कर सकता है आपको बीमार

हमारे जीवन में बढ़ती टेक्नालजी की आवश्यकता अपने साथ कई तरह की बीमारियां भी लेकर आती है. इन्हीं में शामिल हैं ईयरफोन या हेडफोन, जिसके ज्यादा देर तक इस्तेमाल से आपको अपने कानों से सम्बन्धित समस्या का सामना करना पड़ सकता है. एक रिसर्च के मुताबिक यदि कोई व्यक्ति प्रतिदिन एक घंटे से अधिक वक्त तक 80 डेसीबेल्स से अधिक तेज आवाज में संगीत सुनता है, तो उसे सुनने में संबंधित समस्या का सामना करना पड़ सकता है या फिर वह स्थायी रूप से बहरा हो सकता है.

health

अगर आप भी ईयरफोन का ज्यादा देर तक इस्तेमाल करती हैं तो समय रहते संभल जाइये क्योंकि ये ना केवल आपके कानों को नुकसान पहुंचाता है बल्कि आपके शरीर को भी कई और तरह से नुकसान पहुंचाता है. आज हम आपको ईयरफोन का ज्यादा इस्तेमाल करने से होने वाले 4 बड़े नुकसान के बारे में बता रहें है.

कम सुनाई देना

लगभग हर ईयरफोन में हाई डेसीबल वेव्स होते हैं. इसका इस्तेमाल करने से आप हमेशा के लिए अपनी सुनने की क्षमता खो सकते हैं. इसके लगातार प्रयोग से सुनने की क्षमता 40 से 50 डेसीबेल तक कम हो जाती है. कान का पर्दा वाइब्रेट होने लगता है. दूर की आवाज सुनने में परेशानी होने लगती है. यहां तक कि इससे बहरापन भी हो सकता है. इसलिए 90 डेसीबल से अधिक आवाज में गाने न सुनें और ईयरफोन से गाने सुनने के दौरान समय-समय पर ब्रेक भी लेते रहें.

दिमाग पर बुरा प्रभाव

इसके लगातार इस्तमाल से दिमाग पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है. ईयरफोन से निकलने वाली विद्युत चुंबकीय तरंगे दिमाग के सेल्स को काफी क्षति पहुंचाती हैं. ईयरफोन्स के अत्यधिक प्रयोग से कान में दर्द, सिर दर्द या नींद न आने जैसी सामान्य समस्याएं हो सकती हैं. आज लगभग पचास प्रतिशत युवाओं में कान की समस्या का कारण ईयरफोन्स का अत्यधिक प्रयोग है.

health

 

कान का संक्रमण

ईयरफोन से लंबे समय तक गाना सुनने से कान में इंफेक्शन भी हो सकता है. जब भी किसी के साथ ईयरफोन शेयर करें तो उसे सेनिटाइजर से साफ करना न भूलें. बता दें कि आमतौर पर कान 65 डेसिबल की ध्वनि को ही सहन कर सकता है. लेकिन ईयरफोन पर अगर 90 डेसिबल की ध्वनि 40 घंटे से ज्यादा सुनी जाए तो कान की नसें पूरी तरह डेड हो जाती है.

कान सुन्न होना

लंबे समय तक ईयरफोन से गाना सुनने से कान सुन्न हो जाता है जिससे धीरे-धीरे सुनने की क्षमता कम हो सकती है. तेज आवाज में संगीत सुनने से मानसिक समस्याएं तो पैदा होती ही है साथ ही हृदय रोग और कैंसर का भी खतरा बढ़ जाता है़. उम्र बढ़ने के साथ बीमारियां सामने आने लगती है़ यह बाहरी भाग के कान के परदे को नुकसान पहुंचाने के साथ-साथ अंदरूनी हेयरसेल्स को भी तकलीफ पहुंचाता है़. डाक्टरों के अनुसार इनके ज्यादा उपयोग लेने से कानों में अनेक प्रकार की समस्या हो सकती है जिनमें कान में छन-छन की आवाज आना, चक्कर आना, सनसनाहट, नींद न आना, सिर और कान में दर्द आदि मुख्य है.

इससे बचने के लिए ईयरफोन का इस्तेमाल कम से कम करने की आदत डालें. अच्छी क्वालिटी के ही हेडफोन्स या ईयरफोन्स का प्रयोग करें और ईयरफोन की बजाय हेडफोन का प्रयोग करें क्योंकि यह बाहरी कान में लगे होते हैं. अगर आपको घंटों ईयरफोन लगाकर काम करना है, तो हर एक घंटे पर कम से कम 5 मिनट का ब्रेक लें.

शाहिद ने बताया, आखिर कब रिलीज होगी ‘पद्मावती’..!

निर्देशक संजय लीला भंसाली की विवादों में घिरी फिल्म ‘पद्मावती’ के रिलीज होने का उनके फैंस बेसब्री से इंतजार कर रहें हैं. खबरों के अनुसार इस फिल्म को अभी तक केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) से प्रमाण-पत्र प्राप्त नहीं हुआ है. ऐसे में खबरे आ रही थी कि लोगों को इस फिल्म को देखने के लिए काफी लम्बे समय का इंतजार करना पड़ सकता है. लेकिन इस बारें में जब फिल्म में राजा रावल रतन सिंह की भूमिका में नजर आने वाले बौलीवुड अभिनेता शाहिद कपूर से पूछा गया तो उन्होंने उम्मीद जताई है कि  ‘पद्मावती’ की रिलीज की तारीख इस साल के अंत तक स्पष्ट हो जाएगी.

फिल्म की वर्तमान स्थिति के बारे में पूछने पर शाहिद ने एक कार्यक्रम के दौरान कहा, “मुझे पूरा यकीन है कि फिल्म की रिलीज के बारे में इस साल के अंत तक स्थिति स्पष्ट हो जाएगी. हम चाहते हैं कि फिल्म जल्द से जल्द रिलीज हो.”

मालूम हो कि फिल्म में मुख्य भूमिका में दीपिका पादुकोण नजर आएंगी जबकि शाहिद कपूर रतन सिंह और रणवीर सिंह अलाउद्दीन खिलजी का किरदार निभाते नजर आएंगे.

गौरतलब है कि यह मल्टीस्टारर फिल्म मेकिंग के वक्त से ही विवादों में बनी हुई है. यह फिल्म पहले एक दिसंबर को रिलीज होने वाली थी, लेकिन इस फिल्म के खिलाफ लगातार हो रहे विरोध के चलते फिल्म की रिलीज डेट टालनी पड़ गई थी. इतना ही नहीं विवाद यहां तक बढ़ गया था कि विरोध कर रहे लोगों ने निर्देशक भंसाली और दीपिका दोनों को जान से मारने तक की धमकी दे डाली थीं.

बता दें कि राजस्थान के कुछ दल फिल्म का यह कहते हुए विरोध कर रहे हैं कि इसमें रानी पद्मावती से जुड़े आपत्तिजनक दृश्य दिखाए गए हैं. कई राजपूत संगठनों और नेताओं ने भंसाली पर फिल्म में ‘‘ऐतिहासिक तथ्यों से छेड़छाड़’’ करने का आरोप लगाया है. इसके अलावा सेंसर बोर्ड दो बार फिल्म को सर्टिफिकेट देने से मना कर चुका है. अब मेकर्स जल्द ही तीसरी बार इसके लिए एप्लीकेशन देंगे.

अब शाहिद कपूर तो फिल्म के जल्दी रिलीज डेट आने और उसके रिलीज होने की बात कर रहे हैं पर देखना ये है कि इतने विरोध प्रदर्शन और आएं दिन आ रही रूकावटो के बावजूद ये फिल्म कब रिलीज होगी और रिलीज होने पर लोगों की इस फिल्म के प्रति कैसी प्रतिक्रिया देखने को मिलेगी. खैर उम्मीद करते हैं कि शाहिद की बात सच हो जाएं और इस फिल्म को लेकर अब फैंस को और इंतजार न करना पड़े.

पार्टी के लिए बालों की देखभाल कैसे करें

पार्टी की मस्ती में बालों की सफाई को नजर अंदाज न करें. एक अच्छे ब्रैंडेड शैंपू से बाल साफ करें और फिर कंडीशनर लगाएं. बालों पर गरम स्टाइलिंग टूल्स का इस्तेमाल करने से पहले विटामिन ई युक्त लाइट हेयर औइल की कुछ बूंदें स्टाइलिंग प्रोडक्ट में मिला कर जरूर लगाएं.

बालों पर ब्लो ड्रायर का इस्तेमाल करने से पूर्व बालों की मिड लेंथ और एंड्स पर विटामिन ई युक्त तेल की कुछ बूंदों को अच्छे से लगाएं. इससे बालों में कड़ापन नहीं आएगा. हफ्ते में बालों को एक बार थोड़ा रेस्ट जरूर दें. इसके लिए बालों को धो कर खुला छोड़ दें.

पार्टी का मौसम शुरू हो चुका है. जाहिर है आपको क्रिसमस पार्टी में जरूर जाना होगा. पार्टी में सबसे अलग दिखने के लिए आपने शौपिंग भी की होगी. लेकिन क्या सिर्फ फैंसी ड्रेस पहन कर आप सबसे अलग दिख सकती हैं? शायद नहीं. फैंसी ड्रेस के साथ स्टाइलिश हेयर स्टाइल ही आपको परफेक्ट पार्टी लुक दे सकती है.

लिहाजा स्टाइलिश हेयरस्टाइल के लिए हेयर स्टाइलिंग उत्पादों का भी इस्तेमाल करना पड़ेगा. मसलन हेयर स्प्रे, हीटिंग टूल्स और एक्सेसरीज कुछ ऐसे स्टाइलिंग उत्पाद हैं जो हेयर स्टाइल भले ही खूबसूरत बना दें मगर बालों पर इनका बहुत ही बुरा प्रभाव पड़ता है. लेकिन कुछ सावधानियां बरती जाएं तो बालों को बिना नुकसान पहुंचाए भी एक अच्छा हेयर स्टाइल पाया जा सकता है.

देखभाल की बुनियादी शुरुआत बालों की सफाई से होती है. यदि आप अपने बाल नियमित रूप से नहीं धोती हैं और उन्हें साफ नहीं रखतीं तो बालों की जड़ें कमजोर पड़ जाएंगी और हेयरस्टाइलिंग प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल कमजोर जड़ों वाले बालों को नुकसान पहुंचाएगा. इसलिए बालों को हफ्ते में 2 बार जरूर साफ करें और एक अच्छे तेल से डीप मसाज करें. इससे हेयरस्टाइलिंग उत्पादों के इस्तेमाल से बेजान और शुष्क नजर आने वाले बाल भी सुरक्षित और पोषित रहेंगे.

विटामिन ई, फौलिक ऐसिड, विटामिन बी कौंप्लैक्स, प्रोटीन तथा कैल्शियम जैसे सप्लिमैंट्स बालों के लिए बहुत अच्छे होते हैं. इनको ग्रहण करना जितना जरूरी है उतना ही बालों पर इनका ऊपरी पोषण भी आवश्यक है. बाजार में विटामिन ई युक्त तेल उपलब्ध हैं जो बालों को अच्छा पोषण देते हैं और उन्हें स्वस्थ रखते हैं.

गरम हवा फेंकने वाले स्टाइलिंग उत्पाद भी बालों के स्वास्थ्य के लिए अच्छे नहीं होते मगर इनके बिना अच्छा हेयर स्टाइल पाना भी मुश्किल हो जाता है. ऐसे में ड्रायर, स्ट्रेटनर मशीन या टोंग का इस्तेमाल करना पड़े तो नुकसान से बचने के लिए पहले ही हल्का सा तेल लगा लें.

अल्कोहल या अन्य हानिकारक रासायनिक तत्त्वों वाले स्टाइलिंग प्रोडक्ट्स भी बालों को नुकसान पहुंचाते हैं. इसलिए ऐसे तत्त्वों वाले उत्पादों के इस्तेमाल से बचें या जहां तक संभव हो सके, इनका कम से कम इस्तेमाल करें. इनके नुकसान से बचने के लिए हफ्ते में 2 बार अच्छे विटामिन युक्त औलिव औइल से बालों को हौट मसाज दें.

बालों की स्टाइलिंग में हेयर कलर की बड़ी भूमिका है मगर कैमिकल युक्त कलर बालों को रूखा बेजान बना देते हैं. इससे हेयरफाल की समस्या शुरू हो जाती है. इस समस्या से बचा जा सकता है यदि बालों को कलर करने के बाद उनकी अच्छी तरह औइलिंग की जाए तो इससे बालों में नमी लौट आएगी और बालों का सूखापन भी दूर होगा.

क्रिसमस स्पेशल : ब्रेड पुडिंग

किसी भी तयोहार पर हम मेहमानों का मुंह मीठा करवाते हैं. और जब बात क्रिसमस पर मेहमानों का मुंह मीठा कराने की हो तो ब्रेड पुडिंग की तो बात ही कुछ और है. घर में रखे ब्रेड से आप मेहमानों के लिए मजेदार पुडिंग बना सकती हैं. ऐसे बनाएं स्‍वादिष्‍ट ब्रेड पुडिंग.

सामग्री

डेढ़ लीटर दूध

12 स्लाइस ब्रेड

2 कप चीनी

1 कप ताजा नारियल कद्दूकस हुआ

एक कप कस्टर्ड पाउडर

बारीक कटा बादाम-पिस्ता-काजू

विधि

पहले ब्रेड का चूरा कर लें. फिर चूरे को कढ़ाही में थोड़ा भून लें.

अब धीरे-धीरे इसमें एक लीटर दूध डालें तथा बराबर चलाते रहें.

इसके बाद इसमें चीनी और नारियल मिलाएं और गाढ़ा करें.

जमने लायक हो जाए तो कांच के बर्तन में निकाल लें.

फिर थोड़े दूध में कस्टर्ड पाउडर घोलें व बाकी दूध में चीनी मिलाकर उबालें.

उबलते दूध में कस्टर्ड मिला लें और लगातार चलाते रहें. गाढ़ा होने पर आंच से उतारें व ब्रेड के मिश्रण के ऊपर फैला लें.

इसे ड्राई फ्रूट से गार्निश करें और फ्रिज में ठंडा करके सेट करें.

नाम बड़े और दर्शन छोटे

निजी फाइवस्टार टाइप अस्पतालों की देश भर में बाढ़ सी आ गई है. प्राइवेट स्कूलों की तरह चमचमाते अस्पताल अब खुशनुमा माहौल तो दे रहे हैं पर जब चकाचौंध के बाद मरीज के पास बिल आता है तो उस के होश फाख्ता हो जाते हैं. लाखों के बिल अब आम हो गए हैं. छोटीछोटी बीमारियों को बढ़ाचढ़ा कर बताना, बेकार में महंगे टैस्ट कराना अब आम बात है और मरीज इन की शिकायतें करना तक बंद कर चुके हैं.

इन अस्पतालों को कोसा तो बहुत जा रहा है पर ये लोगों के पास आ रहे पैसे, प्रचार, शान, बेवकूफियों और मांग व पूर्ति की देन हैं. लोग इन अस्पतालों में जा ही इसलिए रहे हैं, क्योंकि ये प्रचार करते हैं और बीमारी में यहीं जाना जीवनशैली का अंग माना जाता है. अपनी अमीरी की शान दिखाने के लिए बहुत बार वह इलाज जो नुक्कड़ के एमबीबीएस डाक्टर से कराया जा सकता है इन अस्पतालों में कराया जाता है.

ये अस्पताल अब जम कर प्रचार पर खर्र्च कर रहे हैं मानो दावत दे रहे हों कि बीमार पड़ो और हमारे यहां आओ. चूंकि जो प्रचार करते हैं उन का बिजनैस अच्छा चल रहा होता है, यह देख दूसरे भी प्रचार करने लगे हैं. मजेदार बात यह है कि आज इतना प्रचार फाइवस्टार होटल भी नहीं करते जितना फाइवस्टार अस्पताल और स्कूल करते हैं. यह समाज की बेवकूफियों का स्पष्ट प्रदर्शन है.

इन अस्पतालों में अगर कहीं भूलचूक हो जाए तो ही रोष होता है पर उस रोष के पीछे गलती से ज्यादा पैसे चुकाने का दर्द होता है. इतना पैसा खर्च किया फिर भी इलाज ठीक नहीं हुआ की भावना ज्यादा रहती है. यही समस्या का कारण है.

मानव शरीर पेचीदगी से भरी मशीन है और फाइवस्टार कल्चर का इस मशीन को समझने और इस की मरम्मत करने में कोई योगदान है ही नहीं. छोटा डाक्टर और छोटा अस्पताल भी वैसा ही इलाज दे सकता है जो इन सुपर स्पैश्यलिटी अस्पतालों में मिलता है. यह तो डाक्टर की कुशलता पर निर्भर करता है. ठीक है सुपर स्पैश्यलिटी अस्पताल ज्यादा पैसे का लालच दे कर अच्छे डाक्टरों को जमा करते हैं पर फिर वे महंगे तो होंगे ही.

बड़े अस्पताल वही अच्छे हो सकते हैं जहां सर्जरी की आवश्यकता हो और महंगे औपरेशन थिएटर बनाने पड़ें. वैसे वे भी छोटे अस्पतालों में बन सकते हैं जो केवल सर्जरी करें और जहां कोई डाक्टर आ कर महंगी मशीनों का इस्तेमाल करे.

बड़े अस्पतालों को प्रबंध और साजसज्जा पर बहुत खर्च करना पड़ रहा है. उन में बहुत पूंजी लग रही है. पार्किंग की सुविधाएं देनी पड़ रही हैं. कैफेटेरिया बन रहे हैं. इस से हजारों फुट जगह बेकार जाती है.

अच्छा होगा कि दिल्ली सरकार मैक्स अस्पताल के अनुभव से सीखे और महल्ला क्लीनिकों और छोटे अस्पतालों को बढ़ावा दे. अस्पतालों को 5-5 एकड़ के प्लाट ही न दिए जाएं. चिकित्सा व शिक्षा क्षेत्र में बड़े भवन, बड़े मैदान, बड़े बैनर निरर्थक हैं. ये एक कल्चर को जन्म देते हैं, जो घातक है. न सही इलाज मिलता है, न शिक्षा. ये तो बरगद हैं, जिन पर फल नहीं लगते.

किटेनफिशिंग का शिकार तो नहीं बन रहीं

कभीकभी डिजिटल रिश्तों के जाल में कुछ लोग इस तरह फंस जाते हैं कि उन का रिश्तों पर से विश्वास ही उठ जाता है या फिर कई बार जिंदगी से भी हाथ धोने पड़ जाते हैं. 3 साल पहले एक गैचगेकिंग साइट पर मुंबई की कोमल, वैभव नाम के एक लड़के से मिली. दोनों के विचार एकदूसरे से मिले तो बात आगे बढ़ी. 2-3 बार मिलने के बाद वैभव ने व्यस्तता के बहाने बनाने शुरू कर दिए. मैं मीटिंग में हूं, मैं शहर से बाहर हूं, जल्दी मिलेंगे आदि.

कोमल भी उस की बातों में विश्वास करती रही. लेकिन एक दिन कोमल ने उसे किसी और साइट पर देखा. फिर छानबीन की तो पता चला कि वैभव कहीं व्यस्त न था, बल्कि वह 7 साल से शादीशुदा जीवन जी रहा था. उस की बीवी का कहना था कि वह डेटिंग और मैट्रिमोनियल साइटों पर फर्जी प्रोफाइल बना कर कई लड़कियों के साथ रिलेशन में था, जिस का मकसद केवल सैक्सुअल फैंटेसी पूरी करना था. आज के समय में मैट्रिमोनियल और डेटिंग साइटें वैभव जैसा इरादा रखने वाले बहुरुपियों के लिए एक आसान विकल्प बन गई हैं.

एक अंतर्राष्ट्रीय डेटिंग ऐप्लिकेशन हिंज के मुताबिक, डेटिंग की दुनिया दिनप्रतिदिन क्रूर होती जा रही है. ऐसे में औनलाइन रिलेशन में घोस्टिंग, मूनिंग और ब्रेडक्रंबिंग इत्यादि धोखेबाजी के तरीकों के बाद किटेनफिशिंग एक नया टर्म आया है, जिस से आप को सतर्क रहने की जरूरत है.

क्या है किटेनफिशिंग

किटेनफिशिंग औनलाइन डेटिंग की दुनिया में अपनाया जाने वाला एक ऐसा हथकंडा है जिस से एक व्यक्ति खुद को वैसा दिखाने का नाटक करता है जैसा वह वास्तव में नहीं होता है. यहां किटेनफिशर्स पुराने और भ्रामक फोटो के जरीए स्वयं को अवास्तविक रूप से पेश कर सामने वाले को लुभाने का हरसंभव प्रयास करते हैं जैसे उम्र, लंबाई, पसंद इत्यादि के बारे में गलत जानकारी दे कर आकर्षित करना.

असल जिंदगी में भी होती है किटेनफिशिंग

किटेनफिशिंग कोई नया ट्रैंड नहीं है. ऐसे में यह कहना गलत होगा कि किटेनफिशिंग केवल उन के साथ होती है, जो औनलाइन रिश्ते बनाते हैं. हमारे आसपास अकसर ऐसे लोग और किस्सेकहानियां देखनेसुनने को मिल जाएंगे. एक कंपनी में कार्यरत प्रतिभा दुबे बताती है कि वह एक लड़के को डेट करती थी, जिस ने बताया था कि उस के पास घर है और वह कंस्ट्रक्शन का काम करता है. लेकिन कुछ महीनों बाद पता चला कि जिस घर में लड़का रहता है वह उस के कजिन का है, जो दुबई में रहता है. उस के बाद उस ने रिश्ता खत्म कर लिया.

कई बार देखा गया है कि शादी से पहले जो फोटो या जानकारी दी गई रहती है सचाई उस से उलट होती है. फर्क यह है कि आज का डिजिटल मीडिया इस ट्रैंड को खूब हवा दे रहा है, जहां एक पक्ष दूसरे की भावनाओं को पूरी तरह से नजरअंदाज कर के अपना उद्देश्य पूरा करता है.

मानसिक तौर पर हानिकारक

पहली नजर में देखें तो यह हानिकारक नहीं लगता है. लेकिन जब कोई जानबूझ कर एक योजना के तहत करे, तो सामने वाले पर मानसिक रूप से बुरा असर हो सकता है. भोपाल के मनोचिकित्सक, डा. सत्यकांत त्रिवेदी बताते हैं कि हर व्यक्ति के मन में खुद को ले कर असुरक्षा की भावना होती है और यह एक मानवीय प्रवृत्ति है. जब कोई अपनी असुरक्षा से बाहर नहीं निकल पाता है, तो नकली मुखौटे का सहारा लेता है जिस से ऐंटीसोशल मल्टीपर्सनैलिटी डिसऔर्डर कहते हैं. ये लोग काफी शार्प माइंड होते हैं. विशेष बात यह है कि इन लोगों की दूसरे की भावनाओं या तकलीफ से कोई फर्क नहीं पड़ता.

क्यों फंस जाते हैं लोग

डा. त्रिवेदी के अनुसार, औनलाइन डेटिंग के जाल में ज्यादातर वे लोग फंसते हैं, जो डिजिटल वर्ल्ड में पहली बार कदम रखते हैं और इमोशनल होते हैं. ऐसे लोग सामने वाले की बातों में आसानी से आ जाते हैं. इस के अलावा ऐसे लोग भी फंस जाते हैं, जो बाहरी दुनिया से कम लगाव रखते हैं और अकेलेपन से छुटकारा पाना चाहते हैं. ऐसे में औनलाइन डेटिंग ऐप्लिकेशन और साइटों पर दोस्ती करना या साथी ढूंढ़ना एक आसान विकल्प के रूप में उन के सामने उपलब्ध होता है.

कैसे पहचानें किटेनफिशर्स को

हमारे आसपास ऐसी मानसिकता के कई लोग मिल जाएंगे, जो अपने सकारात्मक गुणों को बढ़ाचढ़ा कर आप को प्रभावित करने की कोशिश करते हैं, जिन्हें आप नजरअंदाज कर देते हैं या समझ नहीं पाते हैं. डा. त्रिवेदी कहते हैं कि ये लोग आसानी से पहचान में नहीं आते. यदि थोड़ी सी सतर्कता बरती जाए तो बहुत जल्दी ऐसे लोगों को पहचान सकते हैं:

  • यदि आप किसी से औनलाइन मिले हों और उस के फोटो एकदूसरे से भिन्न हों जैसे फोटो पुराना या ऐडिटेड हो.
  • यदि कहे मीटिंग में है, औफिस के काम से बाहर है इत्यादि. लेकिन औफिस के बारे में कोई जानकारी न दे.
  • यदि बात करते वक्त अपने परिवार या दोस्तों की बात न करे. उन से मिलाने के नाम पर बहाने करे.
  • किसी सार्वजनिक जगह पर मिलने के बजाय अकेले में मिलने की बात करे.
  • औनलाइन बात करते वक्त विदेश घूमने, जिम जाने, किताबें पढ़ने की बात करे. लेकिन मिलने पर उस से संबंधित जानकारी या लक्षण न दिखाई दें.

कैसे बचें

ऐसे लोगों से बचने के लिए हमें स्वयं सतर्क रहने की जरूरत है, जिस के लिए आप को इन बातों का ध्यान रखना चाहिए जैसे यदि आप औनलाइन रिश्ता देख रहे हैं तो एकदम से सामने वाले पर विश्वास न करें. उस की बात सुन कर उत्साहित न हों. न ही मिलने की जल्दीबाजी करें. मिलने से पहले फोन पर बात करें. वीडियो कौलिंग करें. मिलने के बाद भी उसे जांचनापरखना न छोड़ें. उस के घरपरिवार और दोस्तों के बारे में जानें और उन से मिलने की बात करें. साथ ही उसे भी अपने परिवार और दोस्तों से मिलाएं.

यदि आप इन बातों का ध्यान रखते हुए सतर्कता बरतते हैं तो सही साथी की तलाश में औनलाइन डेटिंग या मैट्रिमोनियल साइटें भी काफी उपयोगी साबित हो सकती हैं. ऐसे न जाने कितने लोग हैं, जिन्हें औफलाइन से बेहतर जीवनसाथी औनलाइन मिल जाते हैं. ऐसे में कहना गलत न होगा कि इरादा साफ रखें तो कोई भी जरीया गलत नहीं होता है. बस हमें सतर्कता और जल्दीबाजी नहीं करनी चाहिए.

औनलाइन हो या औफलाइन, वे मौडर्न डेटिंग टर्म जिन्हें हम में से बहुतों ने अनुभव किया होगा:

  • घोस्टिंग यानी जब कोई फ्रैंड या प्रेमी आप की जिंदगी से अचानक बिना कुछ कहे गायब हो जाए और कौंटैक्ट के सारे रास्ते बंद कर ले.
  • स्लोफेड यानी जब कोई किसी उभरते रिश्ते को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हो, तो धीरेधीरे बातचीत और संपर्क कम कर के रिश्ता तोड़ता है.
  • ब्रेडक्रेंबिंग एक ऐसी डेटिंग टर्म है जहां एक व्यक्ति रिश्ता बनाने के बिना किसी इरादे के प्यार भरे संदेश भेज कर भावनाओं के साथ खेलता है.
  • शिपिंग यानी एक रिश्ते में रहते हुए कई लोगों के साथ रोमांटिक रिलेशन रखना.
  • कैच और रिलीज टर्म में एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति का तब तक पीछा या उसे प्रभावित करने का प्रयास करता है जब तक वह उसे मिल नहीं जाता है और फिर मिलते ही छोड़ देता है.
  • बैंचिंग एक ऐसा टर्म है जहां एक व्यक्ति अपने संभावित प्रेम के इंतजार में हो, साथ ही विकल्प भी खुले रखे हों.
  • कुशनिंग यानी एक साथी के रहते हुए डेटिंग के सभी विकल्प खुले रखना. सिर्फ इसलिए कि मुख्य रिश्ता ठीक से न चल रहा हो.
अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें