शुभस्य शीघ्रम: कौनसी घटना घटी थी सुरभि के साथ 

हैडऔफिस से ब्रांच औफिस के कर्मचारियों को अचानक निर्देश मिला कि इस काम को आज ही पूरा किया जाए, तो काम पूरा करते रात के 10 बज गए. नई नियुक्त सुरभि को उस के घर छोड़ने की जिम्मेदारी मैं ने ले ली, क्योंकि मेरा और उस का घर आसपास है.

मैं सुरभि के साथ घर के लिए रवाना हुआ, तो वह चुप बैठी थी. बातचीत मैं ने शुरू की, ‘‘तुम ने एम.बी.ए. कहां से किया सुरभि?’’

‘‘जी, वाराणसी से.’’

‘‘यहां फ्लैट में रहती हो या पी.जी. में?’’

‘‘सर, पी.जी. में.’’

‘‘घर पर कौनकौन है?’’

‘‘सर, मैं अकेली हूं.’’

‘‘हांहां यहां तो अकेली ही हो. मैं तुम्हारे घर के बारे में पूछ रहा हूं.’’

‘‘जी, मैं अकेली ही हूं.’’

‘‘क्या मतलब सुरभि, घर पर मम्मीपापा, भाईबहन तो होंगे न?’’

‘‘सर, मेरा कोई नहीं. मेरे पापा बहुत पहले चल बसे थे. 4 माह पहले मां का भी देहांत हो गया. मैं उन की इकलौती संतान हूं,’’ उस का चेहरा दुख से मलिन हो गया तथा आंखें सजल

हो गईं.

‘‘ओह सौरी, मैं ने तुम्हें दुखी कर दिया.’’

हम दोनों के बीच कुछ देर चुप्पी पसर गई. फिर चुप्पी तोड़ते हुए मैं ने पूछा, ‘‘तुम्हें, फिल्में देखना पसंद है?’’

‘‘सर, टीवी पर देख लेती हूं. मेरा टीवी हर समय औन रहता है.’’

‘‘ओहो, पूरे समय टीवी का शोर. सिरदर्द नहीं हो जाता तुम्हें?’’

‘‘नहीं सर, बंद टीवी से हो जाता है. शांत वातावरण में मुझे अपने दुखदर्द कचोटते हैं.’’

उस ने इतनी गमगीन गंभीरता से यह बात कही तो मैं ने कहा, ‘‘सही बात है, स्वयं को व्यस्त रखने का कोई बहाना तो चाहिए ही. मैं भी हर समय म्यूजिक सुनता रहता हूं.’’

फिर थोड़ी देर में उस का पी.जी. आ गया तो उस ने नीची नजरों से मुझे थैंक्स कहा और गाड़ी से उतर गई. मैं भी उसे बाय, गुडनाइट कहता हुआ आगे निकल गया.

अगले दिन से हम दोनों की ही नजरों में एकदूसरे के लिए कुछ विशेष था. मुझ से नजरें मिलते ही वह नजरें झका लेती थी. मौका देख कर मैं ने कहा, ‘‘सुरभि, हम दोनों का औफिस आनेजाने का रास्ता एक ही है. हम रोज साथ में आनाजाना कर सकते हैं. हां मैं इतना दावे के साथ कह सकता हूं कि तुम मुझ पर विश्वास कर सकती हो.’’

उस ने मुसकराते हुए नीची नजरों से सहमति प्रकट कर दी.

फिर हम दोनों साथसाथ ही आनेजाने लगे.

हमारे बीच अपनत्व पनप चुका था. एक दिन मैं ने पहल करते हुए कहा, ‘‘सुरभि, हमें मिले ज्यादा समय तो नहीं हुआ, किंतु मेरा मन रातदिन तुम्हारे नाम की माला जपता रहता है. मैं तुम्हें चाहने लगा हूं और तुम से शादी करना चाहता हूं. मैं तुम्हारे मन की बात भी जानना चाहता हूं. और हां, मेरा नाम राज है, वही बोलो. ये सर, सर क्या लगा रखा है?’’

मेरे इतना कहने पर भी वह खामोश रही तो मैं ने उस के कंधे पर हाथ रख पूछा, ‘‘क्या बात है, सुरभि खामोश क्यों हो?’’

मेरा अपनत्व पा कर वह फफक कर रो पड़ी, ‘‘राज सर, मेरा बलात्कार हो चुका है. मैं कलंकित हूं. मुझे कोई कैसे स्वीकार करेगा? मैं इस कलंक को पूरी उम्र ढोने के लिए मजबूर हूं…’’

मैं ने उस के होंठों पर अपना हाथ रखते हुए कहा, ‘‘सुरभि, स्वयं को संभालो. मैं तुम्हें अपनाऊंगा. तुम से शादी करूंगा. स्वयं को हीन न समझे. चलो सब से पहले थोड़ा पानी पी कर स्वयं को संयत करो.’’

वह पानी पी कर कुछ शांत हुई, किंतु आंसू बहाती रही.

‘‘देखो सुरभि, तुम्हारे गुजरे कल से मेरा कोई सरोकार नहीं है, लेकिन मैं तुम्हारे साथ अपना आज और आने वाला कल संवारना चाहता हूं. किंतु हां, जो हादसा तुम्हें इतना दुखी कर गया है, उसे अवश्य बांटना चाहूंगा. तुम अपनी आपबीती, बे?िझक मुझे बताओ. तुम्हारे सामने तुम्हारा दोस्त, हितैषी, हमदर्द बैठा हुआ है.’’

वह धीमे स्वर में बोली, ‘‘राज, हमारे गांव में दादा साहब के यहां मेरे पापाजी अकाउंटैंट का काम करते थे. उन के बेटे बाबा साहब भी अपने पिता की तरह पापाजी की ईमानदारी की बहुत इज्जत करते थे और दोनों ही पापाजी से मित्रवत व्यवहार करते थे. एक दिन काम करते हुए अचानक पापाजी का दिल का दौरा पड़ने से देहांत हो गया. उन दोनों ने हम लोगों की सहायता के लिए हर माह पैंशन देने की घोषणा करते हुए आदेश दिया कि जब तक वे दोनों हैं तब तक पैंशन हमारे परिवार को दी जाए.

‘‘पैंशन से हम लोगों का घर खर्च चलने लगा, फिर 3 सालों में दादा साहब एवं बाबा साहब का निधन हो गया तो उन का बेटा शहर से गांव आ गया और कामकाज देखने लगा.

‘‘उस दिन हर माह की तरह मैं पैंशन लेने पहुंची थी. मैं बहुत खुश थी, क्योंकि मेरा 12वीं का रिजल्ट आ गया था और मुझे बहुत अच्छे अंक मिले थे. वहां काम करने वाले रजत से मालूम हुआ कि मुझे पैंशन लेने लंच टाइम में पुन: आना होगा, क्योंकि अभी छोटे साहब बाहर गए हुए हैं.

‘‘मैं लंच टाइम में दोबारा वहां पहुंची तो देखा वह बैठा हुआ जैसे मेरा इंतजार ही कर रहा था. मुझे देखते ही बोला, ‘बधाई हो सुरभि, सुना है तुम्हारे बहुत अच्छे नंबर आए हैं.’

‘‘मैं ने पैंशन की बात कही तो बोला, ‘अरे बैठो, खड़ी क्यों हो? थोड़ा शरबत तो पी लो. इतनी दुपहरिया में तो आई हो.’

‘‘फिर शरबत का एक गिलास उस ने स्वयं उठा लिया तथा दूसरा मेरी ओर सरका दिया.

‘‘मैं यह सोच कर कि ये बडे़ लोग हैं, इन की कही बातों को मानना चाहिए शरबत पी गई. फिर जब होश आया तो स्वयं को निर्वस्त्र पाया. मेरे ऊपर वह दरिंदा भी निर्वस्त्र पड़ा हुआ था. सारा माहौल देख कर व अपनी शारीरिक पीड़ा से इतना तो समझ सकी कि इस दुष्ट ने मेरा सर्वनाश कर दिया है.

‘‘मेरी दशा घायल शेरनी सी हो रही थी, पर वह दरिंदा मेरी बरबादी का आनंद

लेता हुआ बोला, ‘मुफ्त में पैसा ले जाती है तो अच्छा लगता है. आज अपना हक वसूल लिया

तो काटने दौड़ती है. खबरदार, चुपचाप निकल ले. वह तेरे बाप की पैंशन रखी है, तेरी कीमत

भी बढ़ा कर उस में रख दी है. गिन ले, कम

लगे तो और ले ले. जो कीमत कहेगी दे दूंगा. बहुत आनंद मिला. तू ने मुझे अपना प्रशंसक

बना लिया है. तू तो मुझे पहली नजर में ही भा

गई थी…’ और न जाने क्याक्या वह निर्लज्ज बकता रहा.

‘‘उस के पैसे वहीं छोड़ कर, लड़खड़ाते कदमों से मैं जब घर पहुंची तो उस वक्त मां के पास पासपड़ोस की औरतें भी बैठी हुई थीं. मैं मां के गले लग कर फफकफफक कर रोती हुई सब बोल गई. मां के साथ सभी ने मेरी आपबीती सुन ली तो वे अपनेअपने ढंग से सभी ढाढ़स बंधा कर चली गईं. मां पत्थर की मूर्ति सी बन गईं.

‘‘2 दिनों तक हम मांबेटी, अपने दुख के साथ घर में अकेली बंद पड़ी रहीं. जो पासपड़ोस रातदिन हमारे घर आताजाता रहता था, कोई झंकने नहीं आया, जैसे हमारे घर में छूत की बीमारी हो गई हो. 2 दिनों बाद पड़ोस की राधा दीदी खाना ले कर आईं और बोलीं, ‘भाभी,

यों पत्थर बनने से काम नहीं चलेगा. दिल को मजबूत करो. बिट्टो की हिम्मत बन कर उसे

राह दिखाओ, मेरा कहा मानो तो इस गांव से दूर चली जाओ.’

‘‘दीदी का अपनत्व पा कर, मां के दिल में जमा दर्द आंखों से आंसू बन कर बह निकला. वे रोते हुए बोलीं, ‘दीदी, जिस गांव को अपना रक्षक मानती थी, वही तो इज्जत का भक्षक बन बैठा, अब मैं अकेली विधवा, एक जवान, खूबसूरत लड़की को ले कर कहां जाऊं?’

‘‘दीदी, मां को सस्नेह गले लगा कर बोलीं, ‘भाभी, यों हिम्मत हारने से काम नहीं बनेगा. यहां रातदिन इसी कुकर्म की चर्चा से जीना दूभर हो जाएगा. बिट्टो अच्छे अंक लाई है. यहां का घरबार बेच कर, वाराणसी चली जाओ. उसे पढ़ाओ, पैरों पर खड़ा करो. भैया भी तो यही चाहते थे. भाभी, उन का सपना पूरा करना भी तो तुम्हारा कर्तव्य है.

‘‘मां पर उन की बातों का अवश्य कुछ असर हुआ, जिस से वे कुछ शांत हो गईं. फिर धीरे से बोलीं, ‘घर के लिए इतनी जल्दी ग्राहक ढूंढ़ना भी कठिन है, सौ बातें उठेंगी.’

‘‘तो वे बोलीं, ‘भाभी, तुम उठने वाली बातों की चिंता छोड़ो, बिट्टो का जीवन संवारने की सोचो. बहुत से लोग हैं जो घरजमीन खरीदना चाहते हैं. तुम तो जाने की तैयारी करो. हां इस बात का पूरा ध्यान रखना कि किसी को कानोकान खबर न हो कि तुम कहां जा रही हो.’

‘‘दीदी की मदद से गांव का सब काम निबटा कर हम वाराणसी आ पहुंचे. यहां थोड़ी भागदौड़ के बाद मां को एक बुटीक में काम मिल गया और मुझे अच्छे कालेज में ऐडमिशन. दोनों अपनेअपने काम में तनमन से लग गईं.’’

राज, यह मां ने ही कहा था कि कभी शादी के निर्णय का समय आए, तो अपने साथी को अवश्य बता देना. अन्य किसी के सामने कभी भी इस दुष्कर्म की चर्चा न करना.’’

यह कह कर सुरभि खामोश हो गई तो मैं ने उस के हाथों पर हाथ रखते हुए कहा, ‘‘मैं तुम्हें और तुम्हारी मां की हिम्मत को तहे दिल से सलाम करता हूं. रोज ही टीवी पर, पेपर्स में इस तरह की दुर्घटनाएं सुनने, पढ़ने को मिल जाती हैं. हमेशा से पुरुष वर्ग स्त्रियों पर इस तरह के जुल्म करता रहा है.

‘‘इन ज्यादतियों की जड़ें हमारे धार्मिक ग्रंथों से भी जुड़ी हुई हैं. रामायण में वर्णित है कि सीता को रावण हरण कर ले जाता है तो उन के पति राम उन की पवित्रता की अग्निपरीक्षा लेते हैं. उस के बाद भी उन्हें त्याग कर वनवास हेतु मजबूर कर दिया जाता है.’’

वह दिन शनिवार का दिन था. हम दोनों लगभग 2 बजे औफिस से निकले थे और अब समय 4 से ऊपर हो चुका था. हम दोनों का मन भी कसैला हो गया था तथा कुछ भूख भी लग आई थी, इसलिए हम पास के रैस्टोरैंट में चले गए. वहां सुरभि ने आहिस्ता से कहा, ‘‘राज, मैं अपने कलंक से आप का जीवन बरबाद नहीं करना चाहती. मुझे माफ कीजिएगा, मैं बेवजह आप की राह में आ गई.’’

‘‘कैसी बातें करती हो सुरभि’’, मैं ने उस के करीब आ कर कहा, मैं तहेदिल से तुम से प्यार करने लगा हूं. प्यार कोई सूखा पत्ता नहीं होता, जो हवा से उड़ जाए. वह तो मजबूत चट्टान सा अडिग होता है, जो अनेक तूफानों का सामना कर सकता है.

‘‘एक अनजान पुरुष ने तुम्हारे साथ दुष्कर्म किया, उस से तुम कैसे कलंकित हो

गई? उस की सजा तुम क्यों पाओगी? जो भी सजा मिलनी चाहिए, उस दुष्कर्मी को मिलनी चाहिए, तुम स्वयं को हीन न समझे, मैं तुम्हारे साथ हूं. हम दोनों मिल कर एक खुशहाल दुनिया बसाएंगे, जहां घृणा तिरस्कार नहीं, सिर्फ प्यार और विश्वास होगा.’’

‘‘राज, आप को विश्वास है कि आप के मातापिता मुझ जैसी लड़की को अपनाएंगे, स्वीकार करेंगे?’’ उस ने अपनी शंका धीरे से व्यक्त की.

‘‘हां, मुझे पूरा विश्वास है. वे दोनों बहुत समझदार हैं और दकियानूसी विचारों के नहीं हैं. मेरे परिवार में मेरे कुछ कजिंस ने अंतर्जातीय विवाह किए तो उस मौके पर सारे परिवार को समझने का काम मेरे मम्मीपापा ने ही किया.

‘‘मैं अपने मम्मीपापा को अपने प्यार

अपने निर्णय के बारे में तो बताऊंगा. मुझे पूरा विश्वास है कि जीवन और समाज के प्रति

मेरी इस सकारात्मक सोच, मेरी पहल का वे स्वागत करेंगे.’’

मैं ने प्यार से उस का हाथ अपने हाथों में

ले कर कहा, ‘‘सुरभि, मेरी इस सकारात्मक

पहल में मेरा साथ दोगी न? मेरी हमसफर बन कर मेरा संबल बनोगी न? यदि मम्मीपापा को समझने में थोड़ा समय लग जाए, तो मेरा इंतजार करोगी न?’’

उस ने मुसकराते हुए सहमति से सिर हिला दिया.

मैं ने गाड़ी की रफ्तार बढ़ाते हुए कहा, ‘‘चलो, फिर आज ही तुम्हें मम्मीपापा से मिलवा देता हूं, देरी क्यों करना, शुभस्य शीघ्रम.’’

वह खिलखिला कर हंस पड़ी. उस की हंसी में मेरी खुशी समाहित थी, इसलिए वह खुशहाल जीवन की ओर इशारा करती प्रतीत हो रही थी.

Festival Special: इस दीवाली अपनों को दीजिए ये 7 यादगार तोहफे

पूरा साल तो घरगृहस्थी की जिम्मेदारियां इतना समय ही नहीं देतीं कि अपनों को खुश करने के लिए कुछ किया जा सके, मगर दीवाली में हर कोई अपने बजट के अनुसार खरीदारी की प्लानिंग करता है. ऐसे में हम आप को बताते हैं कि बजट में किस तरह के उपहार लें ताकि अपनों की जरूरत भी पूरी हो जाए और उन के चेहरे पर उपहार पा कर मुसकान भी तैर जाए.

1. सेहत वाला तोहफा

अगर परिवार का कोई सदस्य बीमार है तो उस के लिए रियल ट्रोपिकाना जैसी कंपनियों के जूस पैक ले सकती हैं. 3 लिटर का गिफ्ट पैक ₹400 के करीब मिल जाएगा. इसी तरह बास्केट गिफ्ट में 20-30 आइटम्स होती हैं- लस्सी, कोल्ड ड्रिंक, जूस, नमकीन, कुरकुरे, चौकलेट, चिप्स, बिस्कुट आदि. यह पैक घर के हर सदस्य के स्वाद को ध्यान में रखते हुए भी तैयार कराया जा सकता है.

2. शुगर फ्री गिफ्ट

दीवाली पर बुजुर्गों को तोहफा देते समय उन की पसंद के साथसाथ उन की सेहत का भी खयाल रखना जरूरी होता है. यह बात जगजाहिर है कि बुजुर्ग मीठा बहुत पसंद करते हैं. मगर अकसर उस के साथ इंसान डायबिटीज जैसी समस्याओं से भी ग्रस्त हो जाता है. ऐसे में आप उन के लिए शुगर फ्री मिठाई ले सकते हैं. उन्हें मुरब्बा पैक या फ्रूट्स पैक आदि दे सकते हैं. इस से मुंह तो मीठा होगा ही, साथ ही सेहत भी बनेगी.

3. नटखट के लिए

मात्र ₹100, ₹200 के पैक में बच्चों के लिए आटा नूडल्स, पास्ता और मसाला नूडल्स या फिर चौकलेट्स और बिस्कुट के पैक ले सकती हैं. दीवाली में हल्दीराम, क्रोनिका, सनफीस्ट, प्रिया गोल्ड जैसी तमाम बड़ी कंपनियां नमकीनबिस्कुट की ढेरों वैराइटी उतारती हैं.

4. गिफ्ट करें गिफ्ट कार्ड

दीवाली पर आप अपने दोस्तों, रिश्तेदारों या घर वालों को गिफ्ट देना चाहती हैं तो आप के लिए गिफ्ट कार्ड एक अच्छा औप्शन है. आप गिफ्ट कार्ड किसी भी बैंक की ब्रांच या नैटबैंकिंग के जरीए खरीद सकती हैं. इस का सब से बढि़या फायदा यह है कि इस के जरीए कोई भी व्यक्ति अपनी मरजी से शौपिंग कर सकता है. यह कार्ड मूवी टिकट, रेस्तरां बिल, औनलाइन शौपिंग आदि के लिए यूज कर सकते हैं.

एचडीएफसी बैंक गिफ्ट प्लस कार्ड, आईसीआईसीआई बैंक गिफ्ट कार्ड, ऐक्सिस बैंक गिफ्ट कार्ड, येस बैंक गिफ्ट कार्ड, स्टेट बैंक औफ इंडिया जैसे बहुत से बैंकों के ‘गिफ्ट कार्ड’ मिल जाते हैं.

5. कैंडल स्टैंड

दीवाली के मौके पर कैंडल स्टैंड गिफ्ट करना एक अच्छा औप्शन है. कैंडल्स का इस्तेमाल अब लोग आम दिनों में भी करने लगे हैं. इन की गिनती डैकोरेटिव आइटम्स के रूप में होने लगी है. कैंडल स्टैंड को घर के कोने में रखा जाए तो वह कमरे को बहुत अच्छा लुक देता है. कैंडल स्टैंड औनलाइन भी मिल जाएंगे. इन की कीमत ₹250 से ले कर ₹10 हजार तक हो सकती है.

6. ड्राई फ्रूट्स

मावा, बेसन की मिठाई में मिलावट के बढ़ते मामलों के चलते बेकरी प्रोडक्ट्स, बड़ीबड़ी कंपनियों के गिफ्ट पैक्स और ड्राई फ्रूट्स का चलन बढ़ गया है. आमतौर पर दीवाली के मौके पर ड्राई फ्रूट्स के पैकेट या डब्बे गिफ्ट के रूप में देने का चलन सब से ज्यादा रहता है. आप भी अपने करीबी लोगों को ड्राई फ्रूट्स के पैक के रूप में सेहत का वादा उपहारस्वरूप दे सकती हैं. इन की कीमत ₹1 हजार से शुरू हो कर ₹5 हजार तक हो सकती है. ये गिफ्ट औनलाइन और औफलाइन दोनों तरीकों से मिल जाते हैं.

7. पेंटिंग्स का यादगार उपहार

यह भी दीवाली गिफ्ट का एक शानदार औप्शन है. दीवाली पर जब साफसफाई होती है तो पुरानी पेंटिंग्स हटा दी जाती हैं. ऐसे में यदि आप कोई खूबसूरत पेंटिंग का उपहार देती हैं तो यह भी तारीफ पाने लायक गिफ्ट होगा. पेंटिंग की तरह ही कोई अच्छा आर्ट पीस भी गिफ्ट कर सकती हैं ताकि वह गिफ्ट उस व्यक्ति के घर के इंटीरियर में शामिल जाए. आप ऐसी पेंटिंग्स ईकौमर्स वैबसाइट, ओपन मार्केट या किसी आर्ट गैलरी से खरीद सकती हैं. यही नहीं, आप हैंडमेड चीजें जो मन के भावों को प्रदर्शित करती हैं, भी अपने हाथ से बना कर या फिर खरीद कर उपहार में दे सकती है. ऐसे उपहार आप के संबंधों को और मधुर बनाते हैं.

इन उपहारों के साथसाथ एक और बेशकीमती उपहार आप अपनों को जरूर दें. यह उपहार है आप का समय. अपनों के साथ बैठ कुछ उन की सुनें कुछ अपनी कहें और फिर देखें कि कैसे ये पल आप के दिलदिमाग को अगली दीवाली तक तरोताजा रखेंगे.

Diwali Special: दीवाली पार्टी के लिए ट्राय करें ये हेयर स्टाइल्स

फेस्टिवल में कपड़ों के बाद हेयरस्टाइल जरूरी होता है. हर को कोई चाहता है कि वह नया हेयरस्टाइल ट्राय करके खूबसूरत दिखे अगर आप भी अपने बालों को दिवाली पर खूबसूरत लुक देना चाहती हैं तो ये लुक आपके लिए परफेक्ट औप्शन रहेगा. आज हम आपको बन हेयरस्टाइल फैशन के कुछ टिप्स बताएंगे, जिसे आप आसानी से ट्राय कर सकते हैं.

ब्रैडेड बन

स्टैप 1: अपने बालों को अच्छी तरह धो कर व सुखा कर के पोनीटेल बना कर एक रबड़बैंड से सुरक्षित कर लें.

स्टैप 2: बालों को 3 भागों में बांट कर चोटी बना लें.

स्टैप 3: चोटी के अंत पर एक रबड़बैंड से बांध कर उन्हें सुरक्षित कर लें.

स्टैप 4: अपनी पोनीटेल के बेस के आसपास चोटी को अच्छी तरह लपेटें. जरूरत के अनुसार ब्रैडेड बन को जगहजगह पिन करें. आप का ब्रैडेड बन तैयार है.

हाफ अप हेयर रैप

स्टैप 1: वौल्यूम के लिए हेयरस्प्रे छिड़क कर बालों की जड़ों को तैयार करें.

स्टैप 2: अपने बालों की फ्रंटलाइन से पीछे तक हाफ पोनीटेल बनाएं और फिर उन बालों को छोटे हिस्सों में अच्छी तरह तैयार करें ताकि आप के बालों में वौल्यूम आ जाए.

स्टैप 3: बालों के शीर्ष को बालों के आधे भाग के साथ हाफअप पोनी बनाएं और फिर उसे रबड़बैंड से सुरक्षित कर लें.

स्टैप 4: हाफअप पोनी के रबड़बैंड के नीचे सीधे बालों के 1 इंच के हिस्से को पकड़ें और रबड़बैंड को छिपाने के लिए हाफपोनी के चारों ओर बालों के ढीले 1 इंच के हिस्से को लपेटें. आप का हाफ अप हेयर रैप तैयार है.

ब्रैडेड हाफ अप

स्टैप 1: अपने चेहरे के सामने बाईं ओर बालों के 2 इंच भाग बनाने के लिए उंगलियों का प्रयोग करें.

स्टैप 2: मिनी बाल लोचदार के साथ बाएं ब्रैड को सुरक्षित करें.

स्टैप 3: अपने सिर के दाईं ओर स्टैप 1 और स्टैप 2 को दोहराएं.

स्टैप 4: मोटी ब्रैड के रूप में धीरेधीरे उंगलियों का प्रयोग कर के प्रत्येक ब्रैड को अलग कर दें.

स्टैप 5: अपने बालों के ऊपर से अनुभाग बंद करें और बिखरने से रोकने के लिए हेयरक्लिप से सुरक्षित रखें.

स्टैप 6: दोनों ब्रैड्स अपने सिर के पीछे लाएं और फिर सिर के केंद्र में मिनी हेयर लोचदार के साथ उन्हें सुरक्षित रखें.

स्टैप 7: बालों के शीर्र्ष भाग को नीचे ले जाएं. इसे एक छोटे से बालों वाली पोनी के साथ एक मिनी बालों के रबडबैंड के साथ सुरक्षित रखें जैसे रबड़बैंड एकसाथ ब्रैड को पकड़े हो.

स्टैप 8: शीर्ष रबड़बैंड में एक बौबी पिन सुरक्षित करें और इसे ब्रैड पर नीचे रबड़बैंड के माध्यम से थ्रैड करें, फिर सिर पर दोनों इलास्टिक्स फ्लैट सुरक्षित करने के लिए इसे दबाएं. आप का ब्रैडेड हाफअप तैयार है.

मेरे बौयफ्रैंड की शादी है, लेकिन इसके बाद भी हम रिलेशनशिप में रहेंगे… क्या यह सही फैसला है?

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल-

मेरी उम्र 23 वर्ष है और मैं अपनी पोस्टग्रेजुएशन की पढ़ाई कर रही हूं. अगले हफ्ते मेरे बौयफ्रैंड की शादी है. मैं और मेरा बौयफ्रैंड पिछले 4 सालों से एकदूसरे के साथ रिलेशनशिप में थे और अब वह शादी कर रहा है. इस शादी की वजह है उस का परिवार जो अपनी जाति के बाहर शादी कराने को तैयार नहीं है. मैं और मेरा बौयफ्रैंड एकदूसरे के बिना नहीं रह सकते, हमें एकदूसरे से बहुत प्यार है और इसीलिए हम ने फैसला किया है कि हम उस की शादी के बाद भी रिलेशनशिप में रहेंगे. इस से उस के घरवालों और पत्नी को भी कुछ पता नहीं चलेगा और न ही हमें ब्रेकअप ही करना पड़ेगा. हां, जब मेरी शादी होनी होगी तब हम देख लेंगे कि इस रिश्ते को आगे बढ़ाना चाहिए या नहीं. मैं, बस, थोड़ा डाउटफुल हूं.

आप की बात पता नहीं क्यों गले नहीं उतर रही. आप अपने इस प्यार के चक्कर में किसी और की जिंदगी बरबाद करने जा रही हैं. और आप अकेले नहीं, बल्कि आप दोनों ही उस लड़की के साथ इतना बड़ा धोखा करने वाले हैं जिस से आप का बौयफ्रैंड शादी करने वाला है. जो लड़का आप से प्यार करने का दावा कर रहा है क्या वह अपने परिवार के सामने आप के लिए खड़ा नहीं हो सकता? क्या सचमुच आप को ऐसे लड़के के पीछे समय बरबाद करना चाहिए?

जवाब-

आप अभी सिर्फ 23 साल की हैं. माना आप को अपने बौयफ्रैंड से प्यार है और इसीलिए आप यह सब करना चाहती हैं, लेकिन यह पूरी तरह से गलत है. आप के आगे आप की पूरी जिंदगी है, उस पर फोकस करिए. आप दोनों का अफेयर उस लड़की को कितनी चोट पहुंचाएगा जब उसे पता चलेगा कि उस के पति के किसी और लड़की से नाजायज संबंध हैं. उस लड़की की जगह जरा खुद को रख कर देखिए, शायद तब आप को सम झ आ जाएगा कि असल में आप क्या करने जा रही हैं. अपने दिल को मजबूत कीजिए और अपने बौयफ्रैंड से ब्रेकअप कर लीजिए. तकलीफ होना लाजिमी है लेकिन उस तकलीफ के चलते गलत कदम उठाना ठीक नहीं.

व्हाट्सऐप मैसेज या व्हाट्सऐप औडियो से अपनी समस्या इस नम्बर 8588843415 पर  भेजें. 

या हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- sampadak@delhipress.biz सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

समलैंगिक होना गलत नहीं : आदित्य सील

हैंडसम और हंसमुख अभिनेता आदित्य सील ने फिल्मी कैरियर की शुरुआत साल 2002 में आई फिल्म एक छोटी सी लव स्टोरी से की है. इस फिल्म में उन्होंने मनीषा कोइराला के साथ किशोर का किरदार निभाया था. इस के बाद उन्होंने साल 2016 में आई रोमांटिक ड्रामा फिल्म ‘तुम बिन टू’ में काम किया है. फिल्म ‘स्टूडैंट औफ द ईयर 2’ में उन्होंने सहायक भूमिका का किरदार निभाया. फिल्मों के अलावा उन्होंने वैब सीरीज में भी काम किया है.

आदित्य अभिनय के अलावा ताइक्वांडो चैंपियन भी हैं. वे ताइक्वांडो में ब्लैक बेल्ट हैं और जिमनास्टिक और मार्शल आर्ट का भी अभ्यास करते हैं.

आदित्य को वर्ष 2019 और 2020 में मोस्ट डिजायरेबल मैन का रैंक भी मिल चुका है. काम के दौरान उन का परिचय अनुष्का रंजन से हुआ और फिर 4 सालों की डेटिंग के बाद दोनों ने शादी कर ली.

पिता रवि सील गढ़वाली फिल्मों के निर्माता रहे जबकि आदित्य को बचपन से क्रिकेटर बनने की इच्छा थी, लेकिन चोट लगने की वजह से उन्होंने अभिनय में जाने का मन बनाया और आज अपनी जर्नी से खुश हैं.

जियोसिनेमा पर उन की फिल्म ‘अमर प्रेम की प्रेम कहानी’ एक ड्रामा फिल्म है, जिस में उन्होंने प्रेम की भूमिका निभाई है. इस फिल्म में समलैंगिक प्रेम की जटिलताओं को दिखाने की कोशिश की गई है.

पेश हैं, उन से हुई बातचीत के कुछ खास अंश :

इस फिल्म को करने की खास वजह क्या रही?

मैँ हमेशा चुनौतीपूर्ण भूमिका निभाने की कोशिश करता हूं ताकि सैट पर काम करने में मजा आए. मैं सैट पर जाने से पहले चरित्र को डेवलप करने की प्रक्रिया को अधिक ऐंजौय करता हूं. इस फिल्म में अच्छी बात यह है कि इस फिल्म में समलैंगिकता का मजाक नहीं उड़ाया जा रहा, जैसा अधिकतर फिल्मों में
होता है। न ही फिल्म में किसी संघर्ष को दिखाया गया है. इस में मैं ने एक आम लड़के और लड़की की तरह ही 2 लड़के के संबंध की गहराईयों और उन से जुड़ी चुनौतियों को दिखाने की कोशिश की है, जिस में झगड़ा और प्यार दोनों ही होता है. इस रिश्ते में एक फ्रैश तरीका संघर्ष का दिखाया गया है.

छोटे शहरों में आज भी 2 लड़कों के प्यार व शादी को अच्छी नजरों से नहीं देखा जाता है. एक स्टिग्मा है और लोग इस बात को छिपाते हैं. आप ने ऐसी घटनाएं अपने आसपास देखी हैं?

मेरे कई दोस्त ऐसे हैं, जिन के संबंधों को परिवार वाले स्वीकार नहीं करते, परिवार में बोलने से वे झिझकते हैं क्योंकि उन्हें परिवार वालों के रिऐक्शन का पता नहीं होता है. ऐसे में उसे छिपाते फिरते हैं. बड़े शहरों में भी पूरी तरह से लोग इसे नहीं स्वीकारते. दोस्तों के बीच में भी वे अपनी बात नहीं कह पाते.

ऐसे में उन के पास 2 तरीके निकल कर आते हैं, जिस में पहला परिवार के स्वीकारने से लाइफ अच्छी बन जाती है और दूसरा, अगर परिवार इस बात को नहीं मान पाते, तो वे इसे अपने जीवन की सचाई मान खुद को बदलना नहीं चाहते। परिवार और समाज से दूर अपनी जिंदगी बसा लेते हैं. यह दुर्भाग्यपूर्ण है और कई लोग ऐसे हैं, जो परिवार से दूर किसी दूसरे शहर में अपनी जिंदगी शुरू कर लेते हैं.

मेरे हिसाब से परिवार को ऐसे लोगों की भावनाओं को समझ कर अपनाना आवश्यक है, क्योंकि समलैंगिक होना गलत नहीं है.

आप को कभी समलैंगिक लड़कों से पाला पड़ा?

बहुत बार पड़ा है, जैसे एक बार मैं एक पार्टी में गया था। एक लड़के ने मुझे अप्रोच किया और कहा कि तुम जानते नहीं कि तुम कितने लड़कों के क्रश हो. मेरे इंस्टाग्राम पर लड़कियों से अधिक लड़कों के मैसेज आते हैं, उन का अधिकतर मैसेज होता है, ‘आई वांट टू मैरी यू’, ‘आई वांट टू बी योर हसबैंड…’ वे मुझे उन से शादी के लिए रिक्वैस्ट करते रहते हैं। मैं बहुत कन्फ्यूज्ड हो जाता हूं। सामने से आ कर अगर कोई अप्रोच करता है तो ‘हग’ कर थैंक यू कह देता हूं. मेरे लिए यह कौंप्लीमैंट ही है, इसलिए मैं उन्हें नाराज नहीं करता.

आप को ऐक्टिंग की प्रेरणा कहां से मिली?

मैं बचपन में एक क्रिकेटर बनना चाहता था, लेकिन चोट लगने की वजह से मैं इस क्षेत्र में नहीं जा पाया और ऐक्टर बन गया. मेरे पिता ने कई सालों पहले एक गढ़वाली फिल्म बनाई थी और उस में उन्होंने ऐक्टिंग भी किया था. उन्हें ही ऐक्टिंग का शौक था, इसलिए उन्होंने मुझे ऐक्टिंग का रास्ता दिखाया और यहीं से मेरी ऐक्टिंग की जर्नी शुरू हुई.

ऐक्टिंग की शुरुआत कैसे की?

मैँ 12-13 साल का था, जब मेरे पिता मुझे औडिशन में ले जाते थे. वहां सैकङों बच्चे होते थे। वहां मैं अपना इंट्रोडक्शन देने में ही काफी नर्वस हो जाता था जबकि बाकी बच्चे बहुत स्मार्टली अपना इंट्रोडक्शन देते थे. धीरेधीरे मैं सीखने लगा कि कैसे औडिशन देना है.

ऐसे ही मुझे ‘एक छोटी सी लव स्टोरी’ का औडिशन मिला, लेकिन मेरी इस में समस्या यह रही कि मैं किसी भी संवाद को रट नहीं सकता, उसे मैं अपने हिसाब से कहता हूं. यहां भी मुझे स्क्रिप्ट दिया और अपने तरीके से कहने को कहा गया। मैं ने अपने तरीके से कहा और शाम तक मुझे औफर मिल गया.

इस तरह मुझे 14 साल की उम्र में यह औफर मिला. इस के बाद कुछ सालों की गैप के बाद मैं पूरी तरह से अभिनय के क्षेत्र में उतर गया. इस दौरान मैं ने अपनी ग्रैजुएशन की पढ़ाई पूरी की और खुद को अभिनय के लिए ग्रूम भी करता रहा, जिस में मैं ने मार्शल आर्ट्स और डांस में खुद को प्रशिक्षित किया.

आप मोस्ट डिजायरेबल मैन का रैंक पा चुके हैं, क्या इस की वजह से काम मिलना आसान हुआ या कठिन रहा?

इन चीजों पर मैं अधिक ध्यान नहीं देता, क्योंकि मुझे अगर कोई कौंप्लीमैंट देता है, तो मैं नर्वस हो जाता हूं. काम पर अधिक फोकस्ड करता हूं.

चेहरे को ले कर कभी समस्या नहीं आई, लेकिन मैं भी फिल्मों का ग्रीक गौड बनना चाहता हूं, जैसा ऋत्विक रोशन कहलाते हैं.

परिवार का सहयोग कितना रहा?

परिवार वालों ने शुरू से ही साथ दिया है। कई बार फिल्म आई लेकिन नहीं चली, पर उन का साथ हमेशा मिला। फिल्म ‘तुम बिन टू’ जब आई, तो नहीं चली। हिट सौंग और कहानी होने के बावजूद फिल्म नहीं चली, जबकि इस फिल्म से मुझे काफी उम्मीदें थीं. तब भी मेरे पेरैंट्स ने पूरा साथ दिया.

आप पत्नी अनुष्का रंजन से कैसे मिले? उन की कौन सी बात आप को बहुत पसंद है?

उन की एक एनजीओ ‘बेटी’ है, हर साल फंड रेज के लिए शो होता था, वहां मैं उन से मिला और 4 साल की डेटिंग के बाद शादी की. उन के सोचने का तरीका बहुत अच्छा है, जो मुझे बहुत पसंद है.

आप का सपना क्या है?

फिल्म ‘रंग दे बसंती’ अगर दोबारा बने, तो उस में मैं ऐक्टिंग करना चाहता हूं. दूसरी फिल्म ‘खलनायक’ में मैं संजय दत्त की भूमिका निभाना चाहता हूं.

त्योहार किस तरह मनाते हैं, आप के लिए इस दिन क्या खास होता है?

त्योहार सब साथ मनाते हैं. दीवाली पर पटाखे बचपन में जलाता था, अब नहीं, क्योंकि जानवर डरते हैं। इस दिन दोस्तों से मिलता हूं और अच्छेअच्छे पकवान खाता हूं. इस साल मैं सिर्फ एक फुलझड़ी जलाऊंगा.

13 साल छोटी नायरा को डेट कर रहे हैं Kushal Tandon, कई कंट्रोवर्सी का रहे हिस्सा

‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ फेम नायरा यानी शिवांगी जोशी लंबे समय से अपने रिलेशनशिप को लेकर सुर्खियों में छायी हुई हैं. उनका नाम बिग बौस फेम कुशाल टंडन (Kushal Tandon) के साथ जोड़ा जा रहा था. हालांकि दोनों ने इस रिलेशनशिप पर कभी खुलकर बात नहीं की थी. हालांकि अब उनका रिश्ता कन्फर्म हो चुका है.

शिवांगी जोशी के साथ कुशाल टंडन ने कन्फर्म किया रिश्ता

kushal tandon

एक इंटरव्यू के अनुसार, कुशाल ने खुद इस बात को ऐक्सेप्ट किया है कि वह और शिवांगी जोशी एकदूसरे से प्यार करते हैं. रिपोर्ट के मुताबिक कुशाल ने बताया कि दोनों एकदूसरे को डेट कर रहे हैं. जब शादी के बारे में उनसे पूछा गया तो कुशाल ने कहा कि “मैं फिलहाल शादी नहीं कर रहा हूं, लेकिन मैं प्यार में हूं. हमलोग इस चीज को काफी स्लो रख रहे हैं. मेरी मां मुझे शादीशुदा देखना चाहती हैं और उनका बस चले तो वो मेरी शादी आज ही करवा दें.” कुशाल टंडन ने अपने लेडीलव के बारे में बात करते हुए कहा कि, “वैसे देखा जाए तो कभी भी कुछ भी हो सकता है, लेकिन सबसे अच्छी चीज ये है कि मेरे पैरेंट्स ने मेरे लिए सुटेबल लड़की की तलाश छोड़ दी है.”

इस टीवी शो से हुई लव स्टोरी की शुरुआत

शिवांगी जोशी और कुशाल टंडन टीवी शो ‘बरसातें’ में एक साथ काम किया था. कहा जाता है कि इसी शो के दौरान दोनों के बीच नजदीकियां बढ़ी. साल 2023 में यह टीवी शो स्ट्रीम किया गया लेकिन सात महीनों बाद यह शो औफ एयर हो गया. हालांकि दोनों की कैमेस्ट्री दर्शकों को काफी पसंद आयी थी.

बिग बौस 7 में गौहर खान के साथ था अफेयर

कुशाल टंडने ने बिग बौस 7 से भी काफी फेमस हुए. बिग बौस हाउस में अफेयर को लेकर उन्होंने काफी सुर्खियां बटोरीं. शिवांगी जोशी से पहले कुशाल गौहर खान के साथ रिलेशनशिप में थे. बिग बौस में कुशाल कंट्रोवर्सी में छाए रहें. कुशाल अफेयर से लेकर लड़ाईझगड़े तक हमेशा चर्चे में रहें. गौहर के साथ उनकी इंटिमेट तस्वीरें भी सामने आई थी. बिग बौस के 7 वें सीजन में अरमान और तनीषा के साथ भी जमकर लड़ाई हुई थी. इतना ही नहीं कुशाल ने शो में एंडी की पीटाई भी की थी. जिस वजह से उन्हें बिग बौस हाउस से बाहर जाना पड़ा था.

कुशाल और गौहर खान क्यों हुए अलग

बिग बौस 7 से दोनों की लव स्टोरी शुरू हुई थी. फैंस इन्हें प्यार से गौशाल कहते थे. करीब 2 सालों तक कुशाल और गौहर ने एकदूसरे को डेट किया था. इसके बाद ब्रेकअप हो गया. एक रिपोर्ट के मुताबिक कुशाल और गौहर के अलग होने की वजह धर्म बताई गई. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक गौहर खान ने कुशाल टंडन को अपना धर्म बदलने की डिमांड की थी. ब्रेकअप के बाद इन दोनों ने एक दूसरे पर आरोप भी लगाए थे. दरअसल, एक इंटरव्यू में कुशाल टंडन ने कहा था कि वह कभी भी गौहर से दोस्ती रखना भी पसंद नहीं करेंगे. कुशाल के इस बयान पर गौहर खान ने रिएक्ट किया और कहा, ये सब सिर्फ वह पब्लिसिटी के लिए कर रहे हैं.

‘एक हजारों में मेरी बहना’ से कुशाल ने किया करियर की शुरुआत

कुशाल ने अपना करियर साल 2011 में शुरू किया था. टीवी शो ‘एक हजारों में मेरी बहना’ उनका पहला सीरियल था. इस शो में निया शर्मा के साथ उनकी जोड़ी दर्शकों को खूब पसंद आई थी. तो वहीं शिवांगी जोशी ने 2013 में ‘खेलती है जिंदगी आंख मचोली’ टीवी सीरियल से डेब्यू किया था.

शिवांगी जोशी से 13 साल बड़े हैं कुशाल टंडन

कुशाल टंडन और शिवांगी जोशी के उम्र में 13 सालों का अंतर है. शिवांगी जोशी से कुशाल 13 साल बड़े हैं. दोनों की सोशल मीडिया पर तगड़ी फैन फौलोइंग है. अब लोग उनके औफस्क्रीन जोड़ी के लिए भी बधाई और शुभकामनाएं दे रहे हैं.

असली चेहरा : अवंतिका अपनी पति की क्यों बुराई करती थी ?

नई कालोनी में आए मुझे काफी दिन हो गए थे. किंतु समयाभाव के कारण किसी से मिलनाजुलना नहीं हो पाता था. इसी वजह से किसी से मेरी कोई खास जानपहचान नहीं हो पाई थी. स्कूल में टीचर होने के कारण मुझे घर से सुबह 8 बजे निकलना पड़ता और 3 बजे वापस आने के बाद घर के काम निबटातेनिबटाते शाम हो जाती थी. किसी से मिलनेजुलने की सोचने तक की फुरसत नहीं मिल पाती थी. मेरे घर से थोड़ी दूर पर ही अवंतिका का घर था. उस की बेटी योगिता मेरे ही स्कूल में और मेरी ही कक्षा की विद्यार्थी थी. वह योगिता को छोड़ने बसस्टौप पर आती थी. उस से मेरी बातचीत होने लगी. फिर धीरेधीरे हम दोनों के बीच एक अच्छा रिश्ता कायम हो गया. फिर शाम को अवंतिका मेरे घर भी आने लगी. देर तक इधरउधर की बातें करती रहती.

अवंतिका से मिल कर मुझे अच्छा लगता था. उस की बातचीत का ढंग बहुत प्रभावशाली था. उस के पहनावे और साजशृंगार से उस के काफी संपन्न होने का भी एहसास होता था. मैं खुश थी कि एक नई जगह अवंतिका के रूप में मुझे एक अच्छी सहेली मिल गई है. योगिता वैसे तो पढ़ाई में ठीक थी पर अकसर होमवर्क कर के नहीं लाती थी. जब पहले दिन मैं ने उसे डांटते हुए होमवर्क न करने का कारण पूछा, तो उस ने बड़ी मासूमियत से जवाब दिया, ‘‘पापा ने मम्मा को डांटा था, इसलिए मम्मा रो रही थीं और मेरा होमवर्क नहीं करा पाईं.’’ योगिता आगे भी अकसर होमवर्क कर के नहीं लाती थी और पूछने पर कारण हमेशा मम्मापापा का झगड़ा ही बताती थी.

वैसे तो मात्र एक शिक्षिका की हैसियत से घर पर मैं अवंतिका से इस बारे में बात नहीं करती पर वह चूंकि मेरी सहेली बन चुकी थी और फिर प्रश्न योगिता की पढ़ाई से भी संबंधित था, इसलिए एक दिन अवंतिका जब मेरे घर आई तो मैं ने उसे योगिता के बारबार होमवर्क न करने और उस के पीछे बताने वाले कारण का उस से उल्लेख किया. मेरी बात सुन उस की आंखों में आंसू आ गए और फिर बोली, ‘‘मैं नहीं चाहती थी कि आप के सामने अपने घर की कमियां उजागर करूं, पर जब योगिता से आप को पता चल ही गया है हमारे झगड़े के बारे में तो आज मैं भी अपने दिल की बात कह कर अपना मन हलका करना चाहूंगी… दरअसल, मेरे पति का स्वभाव बहुत खराब है.

उन की बातबात पर मुझ में कमियां ढूंढ़ने और मुझ पर चीखनेचिल्लाने की आदत है. लाख कोशिश कर लूं पर मैं उन्हें खुश नहीं रख पाती. मैं उन्हें हर तरह से बेसलीकेदार लगती हूं. आप ही बताएं आप को मैं बेसलीकेदार लगती हूं? क्या मुझे ढंग से पहननाओढ़ना नहीं आता या मेरे बातचीत का तरीका अशिष्ट है? मैं तो तंग आ गई हूं रोजरोज के झगड़े से… पर क्या करूं बरदाश्त करने के अलावा कोई रास्ता भी तो नहीं है मेरे पास.’’

‘‘मैं तुम्हारे पति से 2-4 बार बसस्टौप पर मिली हूं. उन से मिल कर तो नहीं लगता कि वे इतने बुरे मिजाज के होंगे,’’ मैं ने कहा.

‘‘किसी के चेहरे से थोड़े ही उस की हकीकत का पता चल सकता है… हकीकत क्या है, यह तो उस के साथ रह कर ही पता चलता है,’’ अवंतिका बोली.

मैं ने उस की लड़ाईझगड़े वाली बात को ज्यादा महत्त्व न देते हुए कहा, ‘‘तुम ने बताया था कि तुम्हारे पति अकसर काम के सिलसिले में बाहर जाते रहते हैं… वे बाहर रहते हैं तब तो तुम्हारे पास घर के काम और योगिता की पढ़ाई दोनों के लिए काफी समय होता होगा? तुम्हें योगिता की पढ़ाई पर ध्यान देना चाहिए.’’ ‘‘किसी एक के खयाल रखने से क्या होगा? उस के पापा को तो किसी बात की परवाह ही नहीं होती. बेटी सिर्फ मेरी ही तो नहीं है? उन की भी तो है. उन्हें भी तो अपनी जिम्मेदारी का एहसास होना चाहिए. समय नहीं है तो न पढ़ाएं पर जब घर में हैं तब बातबात पर टोकाटाकी कर मेरा दिमाग तो न खराब करें… मैं तो चाहती हूं कि ज्यादा से ज्यादा दिन वे टूअर पर ही रहें…कम से कम घर में शांति तो रहती है.’’

अवंतिका की बातें सुन कर मेरा मन खराब हो गया. देखने में तो उस के पति सौम्य, सुशिक्षित लगते हैं, पर अंदर से कोई कैसा होगा, यह चेहरे से कहां पता चल सकता है? एक पढ़ालिखा उच्चपदासीन पुरुष भी अपने घर में कितना दुर्व्यवहार करता है, यह सोचसोच कर अवंतिका के पति से मुझे नफरत होने लगी. अब अकसर अवंतिका अपने घर की बातें बेहिचक मुझे बताने लगी. उस की बातें सुन कर मुझे उस से सहानुभूति होने लगी कि इतनी अच्छी औरत की जिंदगी एक बदमिजाज पुरुष की वजह से कितनी दुखद हो गई… पहले जब कभी योगिता को बसस्टौप पर छोड़ने अवंतिका की जगह योगिता के पापा आते थे, तो मैं उन से हर विषय पर बात करती थी, किंतु उन की सचाई से अवगत होने के बाद मैं कोशिश करती कि उन से मेरा सामना ही न हो और जब कभी सामना हो ही जाता तो मैं उन्हें अनदेखा करने की कोशिश करती. मेरी धारणा थी कि जो इनसान अपनी पत्नी को सम्मान नहीं दे सकता उस की नजरों में दूसरी औरतों की भला क्या अहमियत होगी.

एक दिन अवंतिका काफी उखड़े मूड में मेरे पास आई और रोते हुए मुझ से कहा कि मैं 2 हजार योगिता के स्कूल टूअर के लिए अपने पास से जमा कर दूं. पति के वापस आने के बाद वापस दे देगी. चूंकि मैं योगिता की कक्षाध्यापिका थी, इसलिए मुझे पता था कि स्कूल टूअर के लिए बच्चों को 2 हजार देने हैं. अत: मैं ने अवंतिका से पैसे देने का वादा कर लिया. पर उस का रोना देख कर मैं पूछे बगैर न रह सकी कि उसे पैसे मुझ से लेने की जरूरत क्यों पड़ गई?

मेरे पूछते ही जैसे अवंतिका के सब्र का बांध टूट पड़ा. बोली, ‘‘आप को क्या बताऊं मैं अपने घर की कहानी… कैसे जिंदगी गुजार रही हूं मैं अपने पति के साथ… बिलकुल भिखारी बना कर रखा है मुझे. कितनी बार कहा अपने पति से कि मेरा एटीएम बनवा दो ताकि जब कभी तुम बाहर रहो तो मैं अपनी जरूरत पर पैसे निकाल सकूं. पर जनाब को लगता है कि मेरा एटीएम कार्ड बन गया तो मैं गुलछर्रे उड़ाने लगूंगी, फुजूलखर्च करने लगूंगी. एटीएम बनवा कर देना तो दूर हाथ में इतने पैसे भी नहीं देते हैं कि मैं अपने मन से कोई काम कर सकूं. जाते समय 5 हजार पकड़ा गए. कल 3 हजार का एक सूट पसंद आ गया तो ले लिया.1 हजार ब्यूटीपार्लर में खत्म हो गए. रात में 5 सौ का पिज्जा मंगा लिया. अब केवल 5 सौ बचे हैं. अब देख लीजिए स्कूल से अचानक 3 हजार मांग लिए गए टूअर के लिए तो मुझे आप से मांगने आना पड़ गया… क्या करूं 2 ही रास्ते बचे थे मेरे पास या तो बेटी की ख्वाहिश का गला घोट कर उसे टूअर पर न भेजूं या फिर किसी के सामने हाथ फैलाऊं. क्या करती बेटी को रोता नहीं देख सकती, तो आप के ही पास आ गई.’’

अवंतिका की बात सुन कर मैं सोच में पड़ गई. अगर 2 दिन के लिए पति क्व5 हजार दे कर जाता है, तो वे कोई कम तो नहीं हैं पर उन्हीं 2 दिनों में पति के घर पर न होते हुए उन पैसों को आकस्मिक खर्च के लिए संभाल कर रखने के बजाय साजशृंगार पर खर्च कर देना तो किसी समझदार पत्नी के गुण नहीं हैं? शायद उस की इसी आदत की वजह से ही उस के पति एटीएम या ज्यादा पैसे एकसाथ उस के हाथ में नहीं देते होंगे, क्योंकि उन्हें पता होगा कि पैसे हाथ में रहने पर अवंतिका इन्हीं चीजों पर खर्च करती रहेगी. पर फिर भी मैं ने यह कहते हुए उसे पैसे दे दिए कि मैं कोई गैर थोड़े ही हूं, जब कभी पैसों की ऐसी कोई आवश्यकता पड़े तो कहने में संकोच न करना.

कुछ ही दिनों बाद विद्यालय में 3 दिनों की छुट्टी एकसाथ पड़ने पर मेरे पास कुछ खाली समय था, तो मैं ने सोचा कि मैं अवंतिका की इस शिकायत को दूर कर दूं कि मैं एक बार भी उस के घर नहीं आई. मैं ने उसे फोन कर के शाम को अपने आने की सूचना दे दी और निश्चित समय पर उस के घर पहुंच गई. पर डोरबैल बजाने से पहले ही मेरे कदम ठिठक गए. अंदर से अवंतिका और उस के पति के झगड़े की आवाजें आ रही थीं. उस के पति काफी गुस्से में थे, ‘‘कितनी बार समझाया है तुम्हें कि मेरा सूटकेस ध्यान से पैक किया करो, पर तुम्हारा ध्यान पता नहीं कहां रहता है. हर बार कोई न कोई सामान छोड़ ही देती हो तुम… इस बार बनियान और शेविंग क्रीम दोनों ही नहीं रखे थे तुम ने. तुम्हें पता है कि गैस्टहाउस शहर से कितनी दूर है? दूरदूर तक दुकानों का नामोनिशान तक नहीं है. तुम अंदाजा भी नहीं लगा सकती हो कि मुझे कितनी परेशानी और शर्म का सामना करना पड़ा वहां पर… इस बार तो मेरे सहयोगी ने हंसीहंसी में कह भी दिया कि भाभीजी का ध्यान कहां रहता है सामान पैक करते समय?’’

‘‘देखो, तुम 4 दिन बाद घर आए हो… आते ही चीखचिल्ला कर दिमाग न खराब करो. तुम्हें लगता है कि मैं लापरवाह और बेसलीकेदार हूं तो तुम खुद क्यों नहीं पैक कर लेते हो अपना सूटकेस या फिर अपने उस सहयोगी से ही कह दिया करो आ कर पैक कर जाया करे? मुझे क्यों आदेश देते हो?’’ यह अवंतिका की आवाज थी.

‘‘जब मुझे पहले से पता होता है कि मुझे जाना है तो मैं खुद ही तो पैक करता हूं अपना सूटकेस, पर जब औफिस में जाने के बाद पता चलता है कि मुझे जाना है तो मेरी मजबूरी हो जाती है कि मैं तुम से कहूं कि मेरा सूटकेस पैक कर के रखना. मैं तुम्हें कार्यक्रम तय होते ही सूचित कर देता हूं ताकि तुम्हें हड़बड़ी में सामान न डालना पड़े. इस बार भी मैं ने 3 घंटे पहले फोन कर दिया था तुम्हें.’’

‘‘जब तुम्हारा फोन आया था उसी समय मैं ने चेहरे पर फेस पैक लगाया था. उसे सूखने में तो समय लगता है न? जब तक वह सूखा तब तक तुम्हारा औफिस बौय आ गया सूटकेस लेने, बस जल्दी में चीजें छूट गईं. इस में मेरी इतनी गलती नहीं है जितना तुम चिल्ला रहे हो.’’

‘‘गलती छोटी है या बड़ी यह तो नतीजे पर निर्भर करता है. 3 दिन मैं ने बिना बनियान के शर्ट पहनी और अपने सहयोगी से क्रीम मांग कर शेविंग की. इस में तुम्हें न शर्म का एहसास है और न अफसोस का.’’ ‘‘तुम्हें तो बस बात को तूल देने की आदत पड़ गई है. कोई दूसरा पति होता तो बीवीबच्चों से मिलने की खुशी में इन बातों का जिक्र ही नहीं करता… और तुम हो कि उसी बात को तूल दिए जा रहे हो.’’ ‘‘बात एक बार की होती तो मैं भी न तूल देता, पर यह गलती तो तुम हर बार करती हो… कितनी बार चुप रहूं?’’

‘‘नहीं चुप रह सकते हो तो ले आओ कोई दूसरी जो ठीक से तुम्हारा खयाल रख सके. मुझ में तो तुम्हें बस कमियां ही कमियां नजर आती हैं.’’ टूअर पर गए पति के पास पहनने को बनियान नहीं थी, दाढ़ी करने के लिए क्रीम नहीं थी अवंतिका की गलती की वजह से. फिर भी वह शर्मिंदा होने के बजाय उलटा बहस कर रही है. कैसी पत्नी है यह? अवंतिका का असली रूप उजागर हो रहा था मेरे सामने. अंदर के माहौल को सोच कर मैं ने उलटे पांव लौट जाने में ही भलाई समझी. पर ज्यों ही मैं ने लौटने के लिए कदम बढ़ाया. अंदर से गुस्से में बड़बड़ाते उस के पति दरवाजा खोल कर बाहर निकल आए.

दरवाजे पर मुझे खड़ा देख उन के कदम ठिठक गए. बोले, ‘‘अरे, मैम आप? आप बाहर क्यों खड़ी हैं? अंदर आइए न,’’ कह कर दरवाजे के एक किनारे खड़े हो कर उन्होंने मुझे अंदर आने का इशारा किया साथ ही अवंतिका को आवाज दी, ‘‘अवंतिका देखो नेहा मैम आई हैं.’’ मुझे देखते ही अवंतिका खुश हो गई. उस के चेहरे पर कहीं भी शर्मिंदगी का एहसास न था कि कहीं मैं ने उन की बहस सुन तो नहीं ली है. किंतु उस के पति के चेहरे पर शर्मिंदगी का भाव साफ नजर आ रहा था.

अवंतिका के घर के अंदर पहुंचने से पहले ही पतिपत्नी के झगड़े को सुन खिन्न हो चुका मेरा मन अंदर पहुंच कर अवंतिका के बेतरतीब और गंदे घर को देख कर और खिन्न हो गया. अवंतिका के हर पल सजेसंवरे व्यक्तित्व के ठीक विपरीत उस का घर अकल्पनीय रूप से अस्तव्यस्त था. कीमती सोफे पर गंदे कपड़े और डाइनिंगटेबल पर जूठे बरतनों के साथसाथ कंघी और तेल जैसी वस्तुएं भी पड़ी हुई थीं. योगिता का स्कूल बैग और जूते ड्राइंगरूम में ही इधरउधर पड़े थे. आज तो स्कूल बंद था. इस का मतलब यह सारा सामान कल से ही इसी तरह पड़ा है. बैडरूम का परदा खिसका पड़ा था. अत: न चाहते हुए वहां भी नजर चली ही गई. बिस्तर पर भी कपड़ों का अंबार साफ नजर आ रहा था. ऐसा लग रहा था कि धुले कपड़ों को कई दिनों से तह कर के नहीं रखा गया. उस के घर की हालत पर अचंभित मैं सोफे पर कपड़े सरका कर खुद ही जगह बना कर बैठ गई. ‘‘आप आज हमारे घर आएंगी यह सुन कर योगिता बहुत खुश थी. बेसब्री से आप का इंतजार कर रही थी पर अभीअभी सहेलियों के साथ खेलने निकल गई है,’’ कहते हुए अवंतिका मेरे लिए पानी लेने किचन में गई तो पीछेपीछे उस के पति भी चले गए.

मुझे साफ सुनाई दिया वे कह रहे थे, ‘‘जब तुम्हें पता था कि मैम आने वाली हैं तब तो घर को थोड़ा साफ कर लिया होता…क्या सोच रही होंगी वे घर की हालत देख कर?’’

‘‘मैम कोई मेहमान थोड़े ही हैं… कुछ भी नहीं सोचेंगी… तुम उन की चिंता न करो और जरा जल्दी से चायपत्ती और कुछ खाने को लाओ,’’ कह उस ने पति को दुकान पर भेज दिया. उस के घर पहुंच कर मुझे झटके पर झटका लगता जा रहा था. मैं अवंतिका की गृहस्थी चलाने का ढंग देख कर हैरान हो रही थी. 2 दिन पहले ही अवंतिका मेरे घर से चायपत्ती यह कह कर लाई थी कि खत्म हो गई है और तब से आज तक खरीद कर नहीं लाई? बारबार कहने और बुलाने के बाद आज पूर्व सूचना दे कर मैं आई हूं फिर भी घर में चाय के साथ देने के लिए बिस्कुट तक नहीं?

उस के पति के जाने के बाद मैं ने सोचा कि अकेले बैठने से अच्छा है अवंतिका के साथ किचन में ही खड़ी हो जाऊं. पर किचन में पहुंचते ही वहां जूठे बरतनों का अंबार देख और अजीब सी दुर्गंध से घबरा कर वापस ड्राइंगरूम में आ कर बैठने में ही भलाई समझी. मेरा मन बुरी तरह उचट चुका था. मैं समझ गई थी कि अवंतिका उन औरतों में से है, जिन के लिए बस अपना साजशृंगार ही महत्त्वपूर्ण होता है. घर के काम और व्यवस्था से उन्हें कुछ लेनादेना नहीं होता और उन पर कोई उंगली न उठा पाए, इस के लिए वे सब के सामने अपने को बेबस और लाचार सिद्ध करती रहती हैं और सारा दोष अपने पति के मत्थे मढ़ देती हैं. उस के घर आने के अपने निर्णय पर मुझे अफसोस होने लगा था. हर समय सजीसंवरी दिखने वाली अवंतिका के घर की गंदगी में घुटन होने लगी थी. चाय के कप पर जमी गंदगी को अनदेखा कर जल्दीजल्दी चाय का घूंट भर कर मैं वहां से निकल ली. वहां से वापस आ कर मेरी सोच पलट गई. उस के घर की तसवीर मेरे सामने स्पष्ट हो गई थी. अवंतिका उन औरतों में से थी, जो अपनी कमियों को छिपाने के लिए अपने पति को दूसरों के सामने बदनाम करती हैं. अवंतिका के पति एक सौम्य, सुशिक्षित और सलीकेदार व्यक्ति थे. निश्चित ही वे घर को सुव्यवस्थित और आकर्षक ढंग से सजाने के शौकीन होंगे तभी तो अपनी मेहनत की कमाई का एक बड़ा हिस्सा उन्होंने घर में कीमती फर्नीचर, परदों और शो पीस पर खर्च किया था. पर उन के रखरखाव और देखभाल की जिम्मेदारी तो अवंतिका की ही होगी. पर अवंतिका के स्वभाव में घर की सफाई और सुव्यवस्था शामिल नहीं थी. इसी वजह से उस के पति नाखुश और असंतुष्ट हो कर उस पर अपनी खीज उतारते होंगे.

सुबहसवेरे घर छोड़ कर काम पर गए पतियों के लिए घर एक आरामगाह होता है. वहां के लिए शाम को औफिस से छूटते ही पति ठीक उसी तरह भागते हैं जैसे स्कूल से छूटते ही छोटे बच्चे भागते हैं. बाहर की आपाधापी, भागदौड़ से थका पति घर पहुंच कर अगर साफसुथरा घर और शांत माहौल पाता है, तो उस की सारी थकान और तनाव खत्म हो जाता है. पर अवंतिका के अस्तव्यस्त घर में पहुंच कर तो किसी को भी सुकून का एहसास नहीं हो सकता है. जिस घर के कोनेकोने में नकारात्मकता विद्यमान हो वहां रहने वालों को सुकून और शांति कैसे मिल सकती है? सुबह से शाम तक औफिस में खटता पति अपनी पत्नी के ही हाथों दूसरों के बीच बदनाम होता रहता है. अवंतिका के घर से निकलते वक्त मेरी धारणा पलट चुकी थी. अब मेरे अंदर उस के पति के लिए सम्मान और सहानुभूति थी और अवंतिका के लिए नफरत.

अपने अपने रास्ते: सविता ने विवेक को क्यों अपना जिस्म सौंप दिया?

‘‘एक बार अपने फैसले पर दोबारा विचार कर लें.  पतिपत्नी में झगड़ा होता ही रहता है. तलाक ही समस्या का समाधान नहीं होता. आप की एक बच्ची भी है. उस के भविष्य का भी सवाल है,’’ जिला एवं सत्र न्यायाधीश ने अपने चैंबर में सामने बैठे सोमदत्त और उन की पत्नी सविता को समझाने की गरज से औपचारिक तौर पर कहा. यह औपचारिकता हर जज तलाक की डिगरी देने से पहले पूरी करता है.

सोमदत्त ने आशापूर्ण नजरों से सविता की तरफ देखा. मगर सविता ने दृढ़तापूर्वक इनकार करते हुए कहा, ‘‘जी नहीं, मेलमिलाप की कोई गुंजाइश नहीं बची है.’’

‘‘ठीक है, जैसी आप की मरजी.’’

अदालत से बाहर आ पतिपत्नी अपनेअपने रास्ते पर चल दिए. उस की पत्नी इतनी निष्ठुर हो जाएगी, सोमदत्त ने सोचा भी नहीं था. मामूली खटपट तो आरंभ से थी. मगर विवाद तब बढ़ा जब सविता ने आयातनिर्यात की कंपनी बनाई. वह एक फैशन डिजाइनर थी. कई फर्मों में नौकरी करती आई थी. बाद में 3 साल पहले उस ने जमापूंजी का इंतजाम कर अपनी फर्म बनाई थी.

सोमदत्त सरकारी नौकरी में था. अच्छे पद पर था सो वेतन काफी ऊंचा था. शुरू में आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी इसलिए उस ने पत्नी को नौकरी करने के लिए प्रोत्साहित किया था. धीरेधीरे हालात सुधरते गए. सरकारी मुलाजिमों का वेतन काफी बढ़ गया था.

सविता काफी सुंदर और अच्छे व्यक्तित्व की स्त्री थी. उस की तुलना में सोमदत्त सामान्य व्यक्तित्व और थोड़ा सांवले रंगरूप का था. सरकारी नौकरी का आकर्षण ही था जो सविता के मातापिता ने सोमदत्त से बेटी का रिश्ता किया था. सविता को अपना पति पसंद नहीं था तो नापसंद भी नहीं था. जैसेतैसे जिंदगी गुजारने की मानसिकता से दोनों निबाह रहे थे.

सविता के अपने अरमान थे, उमंगें थीं, महत्त्वाकांक्षाएं थीं. फैशन डिजाइनर की नौकरी से उस को अपनी कुछ उमंगें पूरी करने का मौका तो मिला था मगर फिर भी उस का मन हमेशा खालीखाली सा रहता था.

सोमदत्त अपनी पत्नी के सुंदर व्यक्तित्व से दबता था. इसलिए वह उस को उत्पीडि़त करने में आनंद पाता था. कई बार सविता घर देर से लौटती थी. उस का चालचलन, चरित्र सब बेबाक था. इसलिए उस को अपने पति द्वारा कटाक्ष करना, शक करना अखरता था.

बाद में जब सविता ने अपनी आयातनिर्यात की फर्म बना ली और अच्छी आमदनी होने लगी तो सोमदत्त खुद को काफी हीन समझने लगा. उस की खीज बढ़ गई. रोजरोज क्लेश और झगड़े की परिणति तलाक में हुई. दोनों की एक बच्ची थी, जो 12-13 साल की थी और कान्वैंट में पढ़ रही थी. बच्ची की सरपरस्ती भी सविता को हासिल हुई थी.

तलाक का फैसला होने के बाद सविता अपने आफिस पहुंची तो उस की स्टेनो रेणु ने उस का अभिवादन किया. लगभग 22-23 साल की रेणु पूरी चमकदमक के साथ अपनी सीट पर मौजूद थी.

स्टेनो से लगभग 20 साल बड़ी उस की मैडम यानी मालकिन सविता भी अपने व्यवसाय और चलन के हिसाब से ही बनीठनी रहती थी. वह अपनी फिगर का ध्यान रखती थी. उस का पहनावा भी अवसर के अनुरूप होता था.

सविता को स्टेनो रेणु ने मोबाइल से आफिस में बैठे विजिटर के बारे में बता दिया था. उस ने स्वागतकक्ष में बैठे आगंतुकों की तरफ देखा. कई चेहरे परिचित थे तो कुछ नए भी. सभी का मुसकरा कर मूक अभिवादन करती वह अपने कक्ष में चली गई.

मिलने वालों में कुछ वस्त्र निर्माता थे तो कुछ अन्य सामान के सप्लायर. एकएक कर सभी निबट गए. अंत में एक सुंदर लंबे कद के नौजवान ने अंदर कदम रखा.

उस का विजिटिंग कार्ड ले कर सविता ने उस को बैठने का इशारा किया. विवेक बतरा, एम.बी.ए., आयातनिर्यात प्रतिनिधि. साथ में उस का पता और मोबाइल नंबर दर्ज था.

‘‘मिस्टर बतरा, आप एक्सपोर्ट एजेंट हैं?’’

‘‘जी हां.’’

‘‘कितने समय से आप इस लाइन में हैं?’’

‘‘2 साल से.’’

‘‘आप के काम का एरिया कौन सा है?’’

‘‘सिंगापुर और अमेरिका.’’

‘‘क्या आप के पास कोई एक्सपोर्ट आर्डर है?’’

‘‘बहुत से हैं,’’ कहने के साथ विवेक बतरा ने अपना ब्रीफकेस खोला और सिलेसिलाए वस्त्रों के नमूने निकाल कर मेज पर फैला दिए. साथ ही उन की डिटेल्स भी समझाने लगा. कुछ परिधान जनाना, कुछ मरदाना और कुछ बच्चों के थे.

‘‘इन सब की प्रोसैसिंग में तो समय लगेगा,’’ सविता ने सभी आर्डरों के वितरण समझने के बाद कहा.

‘‘कोई बात नहीं है. हमारे ग्राहक इंतजार कर सकते हैं.’’

‘‘क्या कमीशन लेते हैं आप?’’

‘‘5 प्रतिशत.’’

‘‘बहुत ज्यादा है. हम तो 3 प्रतिशत तक ही देते हैं.’’

‘‘मैडम, मेरा काम स्थायी और कम समय में लगातार आर्डर लाने का है. दूसरे एजेंटों के मुकाबले में मेरा काम बहुत तेज है,’’ विवेक बतरा के स्वर में आत्मविश्वास था जिस से सविता बहुत प्रभावित हुई.

‘‘ठीक है मिस्टर बतरा, फिलहाल हम प्रोसैसिंग के बेस पर आप के साथ एक्सपोर्ट आर्डर ले लेते हैं, काम का भुगतान होने के बाद आप को 5 प्रतिशत कमीशन दे देंगे.’’

‘‘ठीक है, मैडम.’’

‘‘क्या आप रसीद या लिखित मेें कोई करार करना चाहते हैं?’’

‘‘नहीं, इस की कोई जरूरत नहीं है. मुझे आप पर विश्वास है,’’ कहता हुआ विवेक बतरा उठ खड़ा हुआ. अपना ब्रीफकेस बंद किया और ‘बैस्ट औफ लक’ कहता चला गया.

सविता उस के व्यक्तित्व और बेबाक स्वभाव से प्रभावित हुई. थोड़े दिनों में विवेक बतरा के निर्यात आदेशों में अधिकांश सिरे चढ़ गए. सविता की कंपनी को पहली बार ढेर सारा काम मिला था. विवेक ने भी भारी कमीशन कमाया.

फिर कामयाबी का सिलसिला चल पड़ा. विवेक बतरा नियमित आर्डर लाने लगा. बाहर जाने, विदेशी ग्राहकों से मिलने, बात करने, डील फाइनल करने आदि कामों के सिलसिले में सविता, विवेक के साथ जाने लगी. नियमित मिलनेजुलने से दोनों करीब आने लगे. विवेक बतरा इस बात से काफी प्रभावित था कि सविता एक किशोरवय की बेटी की मां होने के बाद भी काफी जवान नजर आती थी.

एक दिन ऐसा भी आया जब दोनों में सभी दूरियां मिट गईं. सविता की औरत को एक मर्द की और विवेक के मर्द को एक औरत की जरूरत थी. अपने प्रौढ़ावस्था के पुराने खयालों के पति की तुलना में विवेक बतरा स्वाभाविक रूप से ताजादम और जोशीला था, दूसरी ओर विवेक बतरा के लिए कम उम्र की लड़कियों के मुकाबले एक अनुभवी औरत से सैक्स नया अनुभव था.

एक रोज सहवास के दौरान विवेक बतरा ने कहा, ‘‘मुझ से शादी करोगी?’’

इस सवाल पर सविता सोच में पड़ गई. विवेक उस से काफी छोटा था. उस को हमउम्र या छोटी उम्र की लड़कियां आसानी से मिल जाएंगी. अपने से उम्र में इतनी बड़ी महिला से वह क्या पाएगा?

‘‘क्या सोचने लगीं?’’ सविता को बाहुपाश में कसते हुए विवेक ने कहा.

‘‘कुछ नहीं, जरा तुम्हारे प्रस्ताव पर विचार कर रही थी. मैं तुम से उम्र में बड़ी हूं. तलाकशुदा हूं. एक किशोर लड़की की मां हूं. तुम्हें तुम्हारी उम्र की लड़की आसानी से मिल जाएगी.’’

‘‘मैं ने सब सोच लिया है.’’

‘‘फिर भी फैसला लेने से पहले सोचना चाहती हूं.’’

इस के बाद विवेक और सविता काफी ज्यादा करीब आ गए. दोनों में व्यावसायिक संबंध काफी प्रगाढ़ हो गए. विवेक अन्य फर्मों को आयातनिर्यात के आर्डर देने से कतराने लगा, उस की कोशिश थी कि ज्यादा से ज्यादा काम सविता की कंपनी को मिले.

सविता भी उसे पूरी तरजीह देने लगी. उस ने अपने दफ्तर में विवेक के बैठने के लिए एक केबिन बनवा दिया जो उस के केबिन से सटा हुआ था. धीरेधीरे अनेक ग्राहकों को, जो पहले सविता के ग्राहक थे, विवेक अपने केबिन में बुला कर हैंडल करने लगा. आफिस स्टाफ को भी विवेक अधिकार के साथ आदेश देने लगा. मालकिन या मैडम का खास होने के कारण सभी कर्मचारी न चाहते हुए भी उस का आदेश मानने लगे.

अभी तक विवेक, सविता से हर आर्डर पर कमीशन लेता था. सविता ने उस को कभी अपने व्यापार का हिसाबकिताब नहीं दिखाया था. मगर वह कभी कंप्यूटर से और कभी लेजर बुक्स से भी व्यापार के हिसाबकिताब पर नजर रखने लगा.

अभी तक विवेक फर्म का प्रतिनिधि और एजेंट ही था. उस को किसी सौदे या डील को फाइनल करने का अधिकार न था. ऐसा करने के लिए या तो वह फर्म का पार्टनर बनता या फिर उस के पास सविता का दिया अधिकारपत्र होता मगर एकदम से उस को यह सब हासिल नहीं हो सकता था. जो भी था आखिर वह एक एजेंट भर था, जबकि सविता फर्म की मालकिन थी.

वह एकदम से सविता से पावर औफ अटौर्नी देने को या पार्टनर बनाने को नहीं कह सकता था इसलिए वह अब फिर से सविता से विवाह के लिए कहने लगा था.

‘‘शादी किए बिना भी हम इतने करीब हैं फिर शादी की औपचारिकता की क्या जरूरत है?’’ सविता ने हंस कर कहा.

‘‘मैं चाहता हूं कि आप मेरी होममिनिस्टर कहलाएं. आप जैसी इतनी कामयाब और हसीन खातून का खादिम बनना समाज में बड़ी इज्जत की बात है,’’ विवेक ने सिर नवा कर कहा.

इस पर सविता खिलखिला कर हंस पड़ी. आखिर कोई स्त्री अपने रूपयौवन की प्रशंसा सुन कर खुश ही होती है. उस शाम विवेक उसे एक फाइवस्टार होटल के रेस्तरां में खाना खिलाने ले गया. वहीं एक ज्वैलरी शोरूम से हीरेजडि़त एक ब्रेसलेट ले कर भेंट किया तो सविता और भी अधिक खुश हो गई.

उस शाम यह तय हुआ कि सविता 3 दिन के बाद अपना पक्का फैसला सुनाएगी.

इन 3 दिनों के बीच में किसी विदेशी फर्म को एक सौदे के लिए भारत आना था जिसे अभी तक सविता खुद ही हैंडल करती आई थी. विवेक भी इस फर्म के प्रतिनिधि के रूप में सविता के साथ उस फर्म के प्रतिनिधि से मिलना चाहता था.

इस बार का सौदा काफी बड़ा था. दोपहर को सविता के दफ्तर में मिस रोज, जो एक अंगरेज महिला थी, ने सविता और विवेक से बातचीत की. सौदा सफल रहा. विवेक ने भी अपने वाक्चातुर्य का भरपूर उपयोग किया. मिस रोज भी विवेक के व्यक्तित्व से खासी प्रभावित हुई.

फिर कांट्रैक्ट साइन हुआ. सविता कंपनी की मालकिन थी. अत: साइन उसी को करने थे. विवेक खामोशी से सब देखता रहा था.

मिस रोज विदा होने लगी तो सविता ने उस को सौदा फाइनल होने की खुशी में रात के खाने पर एक फाइवस्टार होटल के रेस्तरां में आमंत्रित किया. मिस रोज ने खुशीखुशी आना स्वीकार किया.

उस शाम सविता ने आफिस जल्दी बंद कर दिया. फ्लैट पर नहा कर अपनी ब्यूटीशियन के यहां गई. नए अंदाज में मेकअप करवाने के बाद अब सविता और भी दिलकश लग रही थी.

ब्यूटीपार्लर से निकल कर सविता अपने लवर के पास गई. आज विवेक को उसे अपना पक्का फैसला सुनाना था. ज्वैलर्स के यहां से विवेक को देने के लिए उस ने एक महंगी हीरेजडि़त अंगूठी खरीदी.

मिस रोज ठीक समय पर आ गई. वह नए स्टाइल के स्कर्ट, टौप में थी. उस ने हाईहील के महंगे सैंडिल पहने थे. गहरे रंग के स्कर्र्ट व टौप उस के सफेद दूधिया शरीर पर काफी फब रहे थे.

विवेक बतरा भी गहरे रंग के नए फैशन के इवनिंग सूट में था. अपने गोरे रंग और लंबे कद के कारण वह ‘शहजादा गुलफाम’ लग रहा था.

तीनों ने हाथ मिलाए. फिर पहले से बुक की गई मेज के इर्दगिर्द बैठ गए. वेटर चांदी के गिलासों में ठंडा पानी सर्व कर गया.

थोड़ी देर बाद वही वेटर उन के पास आया और सिर नवा कर खड़ा हो गया तो सविता ने ड्रिंक लाने का आर्डर दिया.

थोड़ी देर बाद वेटर आर्डर सर्व कर गया. सभी अपनाअपना ड्रिंक पीने लगे. तभी हाल की बत्तियां बुझ गईं. डायस पर धीमाधीमा संगीत बजने लगा. हाल में एक तरफ डांसिंग फ्लोर था. कुछ जोड़े उठ कर डांसिंग फ्लोर पर चले गए.

वहां का माहौल बहुत रोमानी हो चला था. विवेक ने अपना गिलास खत्म किया और उठ खड़ा हुआ. सिर नवाता हुआ मिस रोज की तरफ देखता हुआ बोला, ‘‘लैट अस हैव ए राउंड.’’

मिस रोज मुसकराई. उस ने अपना गिलास खत्म किया और उठ कर अपना बायां हाथ विवेक के हाथ में  थमा दिया. उस की पीठ पर अपनी बांह फिसला विवेक उसे डांसिंग फ्लोर की तरफ ले गया. दोनों साथसाथ थिरकने लगे.

सविता ईर्ष्यालु नहीं थी. उस ने कभी ईर्ष्या नहीं की. मुकाबला नहीं किया था. मगर आज जाने क्यों ईर्ष्या से भर उठी थी. हालांकि वह जानती थी. आयात- निर्यात के धंधे में विदेशी ग्राहकों को ऐंटरटेन करना व्यवसाय सुलभ था, कोई अनोखी बात न थी.

मगर आज वह एक खास मकसद से विवेक के पास आई थी. इस खास अवसर पर उस का किसी अन्य के साथ जाना, चाहे वह ग्राहक ही क्यों न हो, उसे सहन नहीं हो रहा था.

पहला राउंड खत्म हुआ. विवेक बतरा चहकता हुआ मिस रोज को बांहों में पिरोए वापस आया. मिस रोज ने कुरसी पर बैठते हुए कहा, ‘‘सविताजी, आप के साथी बतरा बहुत मंझे हुए डांसर हैं, मेरी तो कमर टूट रही है.’’

‘‘मिस रोज, यह डांसर के साथसाथ और भी बहुत कुछ हैं,’’ सविता ने हंसते हुए कहा.

‘‘बहुत कुछ का क्या मतलब है?’’

‘‘यह मिस्टर बतरा धीरेधीरे समझा देंगे.’’

डांस का दूसरा दौर शुरू हुआ. विवेक उठ खड़ा हुआ. उस ने अपना हाथ मिस रोज की तरफ बढ़ाया, ‘‘कम अलांग मिस रोज लैट अस हैव अ न्यू राउंड.’’

‘‘आई एम सौरी, मिस्टर बतरा. मैं थक रही हूं. आप अपनी पार्टनर को ले जाएं,’’ मिस रोजी ने अर्थपूर्ण नजरों से सविता की तरफ देखते हुए कहा.

इस पर विवेक बतरा ने अपना हाथ सविता की तरफ बढ़ा दिया. सविता निर्विकार ढंग से उठी. विवेक बतरा ने अपनी एक बांह उस की कमर में पिरोई और उसे अपने साथ सहारा दे कर डांसिंग फ्लोर पर ले गया.

सविता पहले भी विवेक के साथ डांसिंग फ्लोर पर आई थी. मगर आज उस को विवेक के बाहुपाश में वैसी शिद्दत, वैसा जोश, उमंग और शोखी नहीं महसूस हुई जिन्हें वह हर डांस में महसूस करती थी. दोनों को लग रहा था मानो वे प्रोफेशनल डांसर हों, जो औपचारिक तौर पर डांस कर रहे थे.

विवेक बतरा मुड़मुड़ कर मिस रोज की तरफ देख रहा था. स्त्री ही स्त्री की दुश्मन होती है. वह न सौत सह सकती है न मुकाबला या तुलना. विवेक बतरा अनजाने में यह सब कर उसे उत्पीडि़त कर रहा था.

आज से पहले सविता ने कभी विवेक बतरा के व्यवहार की समीक्षा न की थी. उस ने अपने दफ्तर और व्यापार में उस  की खामखा की दखलंदाजी और अनावश्यक रौब जमाने की प्रवृत्ति को यह सोच कर सह लिया था कि वह उस से शादी करने वाली था. मगर आज मात्र 1 घंटे में उस की सोच बदल गई थी.

 

उस के पूर्व पति ने अपनी हीन भावनावश उस को हमेशा सताया था. बेवजह शक किया था. विवेक बतरा उस के पूर्व पति की तुलना में प्रभावशाली व्यक्तित्व का था. वह भी कल को शादी के बाद उसे सता सकता है. एक बार पति का दर्जा पाने पर या पार्टनर बन जाने पर कंपनी का सारा नियंत्रण अपने हाथ में ले सकता है.

आज मात्र एक नई उम्र की हसीना के रूबरू होने पर उस का ऐसा व्यवहार था, कल न जाने क्या होगा?

विवेक बतरा को भी मिस रोज, जो आयु में सविता से काफी छोटी थी, ताजे और खिले गुलाब जैसी लगी थी. उस की तुलना में सविता एक पके फल जैसी थी, जिस में मिठास पूरी थी, मगर यह मिठास ज्यादा होने पर उबा देती थी. इस मिठास में जीभ को ताजगी भरने वाली खास मिठास न थी जो पेड़ से तोड़े गए ताजे फल में होती थी.

डांस का दूसरा दौर समाप्त हुआ. कई महीने से जो फैसला न हो पाया था, मात्र 45 मिनट के डांसिंग सेशन में हो गया था.

नई मोमबत्तियां लग गईं. खाना काफी लजीज था. मिस रोज ने खाने की तारीफ के साथ आगे फिर मिलने की बात कहते हुई विदा ली. विवेक बतरा उसे छोड़ने बाहर तक गया. सविता निर्विकार भाव से सब देख रही थी.

मिस रोज को छोड़ कर विवेक वापस आया तो बोला, ‘‘सविता डार्लिंग, आज आप को अपना फैसला सुनाना था?’’

‘‘क्या जरूरत है?’’ लापरवाही से सविता ने कहा.

‘‘आप ने आज ही तो कहा था,’’ विवेक बतरा जैसे याद दिला रहा था.

‘‘हम दोनों में जो है वह शादी के बिना भी चल सकता है.’’

‘‘मगर शादी फिर शादी होती है.’’

‘‘देखिए, मिस्टर बतरा, जब तक फासला होता है तभी तक हर चीज आकर्षक नजर आती है. पहाड़ हम से दूर हैं, हमें सुंदर लगते हैं मगर जब हम उन पर जाते हैं तब हमें पत्थर नजर आते हैं. आज मैं थोड़ी जवान हूं, कल को प्रौढ़, वृद्धा हो जाऊंगी मगर आप तब भी जवान होंगे. तब आप को संतुष्टि के लिए नई कली का रस ही सुहाएगा, इसलिए अच्छा है आप अभी से नई कली ढूंढ़ लें. मैं आप की व्यापार में सहयोगी ही ठीक हूं.’’

विवेक बतरा भौचक्क था. उसे ऐसे रोमानी माहौल में ऐसे विपरीत फैसले की उम्मीद न थी. वेटर को 500 रुपए का नोट टिप के लिए थमा, सविता सधे कदमों से वापस चली गई. ‘रिंग सेरेमनी’ की अंगूठी बंद की बंद ही रह गई थी. डांस फ्लोर पर डांस का नया दौर आरंभ हो रहा था.

पिया बावरी: कौनसी तरकीब निकाली थी आरती ने

अजयऔफिस के लिए निकला तो आरती भी उसे कार तक छोड़ने नीचे उस के साथ ही उतर आई. यह उस का रोज का नियम था. ऐसा दृश्य कहीं और देखने को नहीं मिलता था कि मुंबई की सुबह की भागदौड़ के बीच कोई पत्नी रोज अपने पति को छोड़ने कार तक आए. आरती का बनाया टिफिन और अपना लैपटौप बैग पीछे की सीट पर रख आरती को मुसकरा कर बाय बोलते हुए अजय कार के अंदर बैठ गए.

आरती ने हाथ हिला कर बाय किया और अपने रूटीन के अनुसार सैर के लिए निकलने लगी तो कुछ ही दूर उस की नैक्स्ट डोर पड़ोसिन अंजलि भी औफिस के लिए भागती सी चली जा रही थी. आरती पर नजर डाली और कुछ घमंड भरी आवाज में कहा, ‘‘हैलो आरती, भई सच कहो, सब को औफिस के लिए निकलते देख दिल में कुछ तो होता होगा कि सभी कुछ कर रहे हैं, काश मैं भी कोई जौब करती? मन तो करता होगा सुबह तैयार हो कर निकलने का. यहां तो लगभग सभी जौब करती हैं.’’

आरती खुल कर हंसी, ‘‘न बाबा, तुम लोगों को औफिस जाना मुबारक. अपन तो अभी सैर से आ कर न्यूज पेपर पढ़ेंगे, आराम करेंगे, फिर बच्चों को कालेज भेजने की तैयारी.’’

‘‘सच बताओ आरती, कभी दिल नहीं  करता कामकाजी स्त्री होने का?’’

‘‘नहीं, बिलकुल नहीं करता. कमाने के लिए पति है मेरे पास,’’ आरती हंस दी, फिर कहा, ‘‘तुम थकती नहीं इस सवाल से? कितनी बार पूछ चुकी हो?’’

‘‘फिर तुम किसलिए हो?’’ कुछ कड़वे से लहजे में अंजलि ने पूछा तो उस के साथ तेज चलती हुई आरती ने कहा, ‘‘अपने पति को प्यार करने के लिए… लो, तुम्हारी बस आ गई,’’ आरती उसे बाय कह कर सैर के लिए निकल गई.

बस में बैठ कर अंजलि ने बाहर झंका. आरती तेज कदमों से सैर कर रही थी.

रोज की तरह 1 घंटे की सैर कर के जब तक आरती आई, पीहू और यश कालेज जाने के लिए तैयार थे. फै्रश हो कर बच्चों के साथ ही उस ने नाश्ता किया, फिर दोनों को भेज न्यूज पेपर पढ़ने लगी. उस के बाद मेड के आने पर रोज के काम शुरू हो गए.

आरती एक पढ़ीलिखी हाउसवाइफ थी. नौकरी न करने का फैसला उस का खुद का था. वह घरपरिवार की जिम्मेदारियां बहुत संतोष और खुशी से निभा कर अपनी लाइफ में बहुत खुश थी. आराम से रहती, खूब हंसमुख स्वभाव था, न किसी से शिकायतें करने की आदत थी, न किसी से फालतू उम्मीदें.

वह वर्किंग महिलाओं का सम्मान करती थी, सम?ाती थी कि इस महानगर की भागदौड़ में घर से निकलना आसान काम नहीं होता, पर उसे यह बात हमेशा अजीब लगती कि वह वर्किंग महिलाओं का सम्मान करती है तो आसपास की वर्किंग महिलाएं अंजलि, मीनू और रीता उस के हाउसवाइफ होने का मजाक क्यों बनाती हैं? उसे नीचे क्यों दिखाती हैं?

उसे याद है जब वह शुरूशुरू में इस सोसाइटी में रहने आई तो अंजलि ने पूछा था, ‘‘कुछ काम नहीं करतीं आप? बस घर में रहतीं?’’

उस के पूछने के ढंग पर आरती को हंसी आ गई थीं. उस ने अपने स्वभाव के अनुसार हंस कर जवाब दिया था, ‘‘भई, घर में भी जो काम होते हैं, उन्हें करती हूं, अपना हाउसवाइफ होना ऐंजौय करती हूं.’’

‘‘तुम्हारे पति तुम्हें कहते नहीं कि कुछ काम करो बाहर जा कर?’’

‘‘नहीं, वे इस में खुश रहते हैं कि जब वे औफिस से लौटें तो मैं उन्हें खूब टाइम दूं, उन्हें भी घर लौटने पर मेरे साथ समय बिताना अच्छा लगता है.’’

‘‘कमाल है.’’

आरती हंस दी पर उसे यह समझ आ गया था कि इन लोगों को आसपास की हाउसवाइफ की लाइफ बिलकुल खराब लगती है. यहां तो मेड भी आ कर उत्साह से पहला सवाल यही पूछती है कि मैडम, काम पर जाती हैं क्या?

उस के आसपास वर्किंग महिलाएं ही ज्यादा थीं जो पूरा दिन घर में रहने वाली महिलाओं को किसी काम का न समझतीं. अजय और आरती ने प्रेम विवाह किया था.

आरती के कोई जौब न करने का फैसला अजय को ठीक लगा था. इस में उसे कोई भी परेशानी नहीं थी. अंजलि, मीनू, रीता के पति भी एकदूसरे को अच्छी तरह जानते थे. वह तो किसी पार्टी में किसी के दोस्त के यह पूछने पर कि भाभीजी क्या करती हैं तो आरती को निहारता हुआ हंस कर कह देता कि उस का काम है मुझे प्यार करना और वह बखूबी इस काम को अंजाम देती है.

आसपास खड़ी हो कर यह बात सुन रहीं अंजलि, मीनू और रीता इस बात पर एकदूसरे को देखतीं और इशारे करतीं कि यह देखो यह भी अजीब ही है.

ऐसी ही एक पार्टी में मीनू के पति ने बात छेड़ दी, ‘‘आरतीजी, आप बोर नहीं होतीं घर रह कर? मीनू तो घर में रहने पर बहुत जल्दी बोर हो जाती है. यह तो बहुत ऐंजौय करती है अपने पैरों पर खड़ी होने को. हर काम अपनी मरजी से करने में एक अलग ही खुशी होती है. आप तो काफी ऐजुकेटेड हैं, आप क्यों कोई जौब नहीं करतीं?’’

आरती ने खुशदिली से कहा, ‘‘मुझे तो शांति से घर रहना पसंद है. मैं ने तो शादी से पहले ही अजय से कह दिया था, मैं कोई जौब नहीं करूंगी, मैं बस घर में रह कर अपनी जिम्मेदारियां उठाऊंगी. फिर आरती ने और मस्ती से कहा, ‘‘मैं क्यों करूं कोई काम, मेरा पति है काम करने के लिए, वह कमाता है, मैं खर्च करती हूं मजे से, और मजे की बातें आज बता ही देती हूं, मैं अपने मन में अजय को आज भी पति नहीं, प्रेमी ही  समझती हूं अपना जो मेरे आसपास रहे तो मुझे अच्छा लगता है, मैं नहीं चाहती कि मैं कोई जौब करूं और वह मुझ से पहले आ कर घर में मेरा इंतजार करे.

‘‘किसी भी मेड के हाथ का बना खाना खा कर मेरे पति और मेरे बच्चों की हैल्थ खराब हो, मुझे तो अजय का हर काम अपने हाथों से करना अच्छा लगता है. आप लोगों को पता है कि मैं लाइफ की किन चीजों को आज भी ऐंजौय करती हूं. जब अजय नहा कर निकलें तो मैं उन का टौवेल उन के हाथ से ले कर तार पर टांग दूं, उन का टिफिन कोई बोझ समझ कर नहीं, मुहब्बत से पैक करूं और बदले में पता है मुझे क्या मिलता है, आरती बताते हुए ही शर्मा गई, ‘‘अपने लिए ढेर सी फिक्र और प्यार. असल में आप लोग घर में रहने को जितनी बुरी चीज सम?ाने लगे हैं, उतनी बुरी बात यह है नहीं.

‘‘मैं जब वर्किंग लेडीज की रिस्पैक्ट कर सकती हूं तो आप लोगों को एक हाउसवाइफ के कामों की वैल्यू क्यों समझ नहीं आती. कल हमारी पीहू भी अपने पैरों पर खड़ी होगी, जौब करेगी, यह उस की चौइस ही होगी कि उसे क्या पसंद है. हां, वह किसी हाउसवाइफ का मजाक कभी नहीं उड़ाएगी, यह भी जानती हूं मैं.’’

सब चुप से हो गए थे. आरती के सभ्य शब्दों में कही बात का असर जरूर हुआ था. सब इधरउधर हुए तो रीता ने कहा, ‘‘आरती, मुझे तुम्हें थैंक्स भी बोलना था. उस दिन जब घर पर रिमी अकेली थी, हम दोनों को औफिस से आने में देर हो गई थी तो तुम ने उसे बुला कर पीहू के साथ डिनर करवाया, हमें बहुत अच्छा लगा.’’

‘‘अरे, यह कोई बड़ी बात नहीं है, बच्चे तो बच्चे हैं, पीहू ने बताया कि रिमी अब तक अकेली है तो मैं ने उसे बुला लिया था.’’

मीनू आरती के ऊपर वाले फ्लैट में रहती थी. उस ने पूछ लिया, ‘‘आरती, तुम ने जो अजय को औफिस में कल करेले की सब्जी दी थी, उस की रैसिपी देना. अमित ने भी टेस्ट की थी. बोल रहे थे कि बहुत बढि़या बनी थी. ऐसी सब्जी उन्होंने कभी नहीं खाई थी और पता है अमित बता रहे थे कि अजय तुम्हारी बहुत तारीफ करते हैं.’’

अमित और अजय एक ही औफिस में थे. आरती हंस पड़ी, ‘‘अजय का बस चले तो वे रोज करेले बनवाएं, रैसिपी भी बता दूंगी और जब भी कभी बनाऊंगी, भेज भी दूंगी.’’

थोड़े दिन आराम से बीते. काफी दिन से कोई आपस में मिला नहीं था. कोरोना वायरस का प्रकोप शुरू हो गया था. सब वर्क फ्रौम होम कर रहे थे. अब अंजलि, मीनू, रीता की हालत खराब थी, न घर में रहने का शौक, न आदत. सब घर में बंद. लौकडाउन ने सब की लाइफ ही बदल कर रख दी थी, न कोई मेड आ रही थी, न कोई घर के काम संभाल पा रहा था. अब सब आपस में बस कभीकभी फोन ही करते.

एक आरती थी जिस ने कोई भी शिकायत किसी से नहीं की. जितना काम होता, उस में किसी की थोड़ी हैल्प ले लेती. अजय तो अब और हैरान था कि जहां उस का हर दोस्त फोन करते ही शुरू हो जाता कि यार, कहां फंस गए, औफिस के काम करो. फिर घर में लड़ाई भी होने लगी है ज्यादा. वहीं वह आरती को धैर्य से सब संभालता देखता. वह भी थोड़ेबहुत काम सब से करवा लेती पर ऐसे नहीं कि घर में जैसे कोई तूफान आया है.

आराम से जब बच्चे औनलाइन पढ़ते, वह खुद औफिस के कामों में बिजी होता, आरती सब शांति से करती रहती. इस दौरान तो उस ने आरती के और गुण भी देख लिए. वह उस पर और फिदा था.

अमित परेशान था. घर से काम करने पर तो औफिस के काम ज्यादा रहने लगे थे. ऊपर

से उसे अपने बड़े बालों पर बहुत गुस्सा आता रहता. सारे सैलून बंद थे. कहने लगा, ‘‘एक तो इतनी जरूरी वीडियो कौल है आज, औफिस के कितने लोग होंगे और मेरे बाल देखो, शक्ल ही बदल गई घर में रहतेरहते. क्या हाल हो गया है बालों का.’’

उस की चिकचिक देख मीनू ने कहा, ‘‘चिढ़ क्यों कर रहे हो. सब का यही हाल होगा. बाकियों ने कहां कटवा रखे होंगे बाल. सब ही परेशानी में हैं आजकल.’’

अमित को बहुत देर झंझलाहट होती रही. उस दिन की मीटिंग शुरू हुई तो सभी के बाल बढ़े हुए थे. पहले तो सब कलीग्स इस बात पर हंसे, फिर अचानक अजय के बहुत ही फाइन हेयर कट पर सब की नजर गई तो सब बुरी तरह चौंके.

एक कलीग ने कहा, ‘‘यह तुम्हारा हेयरकट कहां हो गया इतना बढि़या. कहां हम सब जंगली लग रहे हैं और तुम तो जैसे अभीअभी किसी सैलून से निकले हो.’’

अजय ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘आरती ने किया है यह और मेरा ही नहीं, बच्चों का भी.’’

सब दोस्त आरती की तारीफ करने लगे थे. अमित अपने लुक पर बहुत ध्यान देता था. जब वह काम से फ्री हुआ, उस ने एक ठंडी सांस ली. उठ कर फ्रैश हुआ और शीशे के सामने खड़ा हो कर खुद को देखने लगा.

मीनू भी वहीं लैपटौप पर कुछ काम कर रही थी. पूछा, ‘‘क्या निहार रहे हो?’’

‘‘अपने बाल.’’

‘‘क्या कोई और काम नहीं है तुम्हें? हो गई न मीटिंग? सब के ऐसे ही बढ़े हुए थे न?’’

‘‘अजय का हेयरकट बहुत जबरदस्त था.’’

‘‘क्या?’’ मीनू चौंकी.

‘‘हां, आरती ने अजय और बच्चों का बहुत शानदार हेयरकट कर दिया है. मुंह चमक रहा था अजय का, यह औरत क्या है.’’

मीनू ने ठंडी सांस ले कर कहा, ‘‘यह पिया बावरी है.’’

अमित को हंसी आ गई, ‘‘डियर, कभी तुम भी बन जाओ पिया बावरी.’’

मीनू ने हाथ जोड़ दिए, मुसकरा कर कहा, ‘‘आसान नहीं है.’’

ओकेजन के अनुसार ऐसे करें Makeup कि आप पर टिकी रहे लोगों की नजरें

टीनऐज लड़कियों के लिए मेकअप (Makeup) एक खास कला है, जो मौके के अनुसार सही तरीके से अपनाने पर उन की खूबसूरती को और निखार सकता है. यहां हम कुछ अलगअलग मौकों के अनुसार मेकअप टिप्स दे रहे हैं, ताकि टीनऐज लड़कियां अपने लुक को सही तरीके से स्टाइल कर सकें :

स्कूल या कालेज के लिए नैचुरल लुक

टीनऐज लड़कियों के लिए स्कूल या कालेज का मेकअप हलका और नैचुरल होना चाहिए ताकि उन की मासूमियत और फ्रैशनैस बरकरार रहे.

क्लींजर और मौइश्चराइजर है जरूरी

सब से पहले चेहरा अच्छी तरह साफ कर लें और एक लाइट मौइश्चराइजर लगाएं ताकि त्वचा नमी से भरी रहे.फाउंडेशन की बजाय हलकी बीबी क्रीम या टिंटेड मौइश्चराइजर का इस्तेमाल करें, जो स्किन टोन को एकसार करेगी. होंठों पर हलका टिंटेड लिप बाम लगाएं, जो नैचुरल दिखे.

अगर चाहें तो हलका मसकारा और पेंसिल आईलाइनर का इस्तेमाल कर सकती हैं. आईलाइनर बहुत गहरा न हो. चेहरे पर थोड़ा ब्लश लगाएं ताकि त्वचा में एक नैचुरल ग्लो नजर आए.

पार्टी के लिए ग्लैमरस लुक

किसी भी पार्टी या खास मौके के लिए थोड़ा ग्लैमरस लुक अपनाया जा सकता है. यह लुक आप को आकर्षक और आत्मविश्वासी दिखाएगा. पार्टी में बोल्ड मेकअप लुक पाने के लिए सब से पहले प्राइमर लगाएं ताकि मेकअप देर तक टिका रहे और फिर अपनी त्वचा के अनुसार हलका फाउंडेशन लगाएं. आंखों को आकर्षक बनाने के लिए हलके शिमरी आईशैडो का उपयोग करें. आईलाइनर को विंग्ड स्टाइल में लगाएं ताकि आंखें बड़ी और खूबसूरत दिखें. इस मौके के लिए एक ग्लौसी लिपस्टिक चुनें. पिंक, कोरल या हलके रेड शेड्स पार्टी के लिए परफैक्ट होते हैं. थोड़ी सी कंटूरिंग और हाइलाइटिंग से चेहरे के फीचर्स को उभारें.

हाइलाइटर को चीकबोंस, नाक के ऊपरी हिस्से और ठुड्डी पर लगाएं. अंत में सेटिंग पाउडर से मेकअप को लौक कर दें ताकि मेकअप लंबे समय तक टिका रहे.

फैमिली फंक्शन के लिए ट्रैडिशनल लुक

फैमिली फंक्शन जैसे शादियों या त्योहारों के लिए थोड़ा ट्रैडिशनल मेकअप सही रहता है. इस लुक के लिए आंखों पर गोल्डन या ब्रौंज टोन का आईशैडो लगाएं, जो पारंपरिक ड्रैस के साथ अच्छा लगेगा. आंखों को झील सी गहरी बनाने के लिए काजल और मसकारा का उपयोग करें. काजल को थोड़ा डार्क लगा सकती हैं. लिपस्टिक के लिए गहरे शेड्स जैसे डार्क पिंक, मैरून या रैड का चुनाव करें. ट्रैडिशनल लुक में बिंदी का इस्तेमाल जरूर करें. यह आप के लुक को पूरा करेगा. साथ ही मेकअप के साथ स्किन को ग्लोइंग बनाए रखने के लिए हाइलाइटर का इस्तेमाल करें.

कैजुअल आउटिंग के लिए मिनिमल लुक

दोस्तों के साथ कैफे या मूवी आउटिंग के लिए बहुत ज्यादा मेकअप की जरूरत नहीं होती. एक मिनिमल लुक इस मौके के लिए परफैक्ट रहता है. अगर चेहरे पर कोई दागधब्बे हैं तो हलका कंसीलर लगाएं. होंठों पर हलका लिप टिंट या ग्लौस लगाएं. आईब्रो को हलका शेड दें ताकि चेहरा अधिक डिफाइंड लगे. मसकारा से पलकें कर्ल करें ताकि आंखें खूबसूरत और नैचुरल दिखें.

फ्रैंड्स के साथ नाइट आउट के लिए बोल्ड लुक

नाइट आउट के लिए थोड़ा बोल्ड और ड्रामैटिक लुक परफैक्ट है, खासकर अगर आप एक अनूठा और स्टाइलिश अंदाज चाहती हैं.

स्मोकी आईज का इस्तेमाल इस मौके के लिए बेहतरीन होता है. डार्क आईशैडो और आईलाइनर से अपनी आंखों को आकर्षक बनाएं.मैट लिपस्टिक का इस्तेमाल करें और बोल्ड रंगों जैसे डीप रैड, प्लम या वाइन लिपस्टिक लगा कर जाएं.अगर आप को ऐक्सपेरिमैंट करना पसंद है, तो हलके ग्लिटर का इस्तेमाल भी कर सकती हैं, जो पार्टी मूड में चार चांद लगा देगा.

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