फिल्म रिव्यू : तुम्हारी सुलु

फिल्म की पटकथा चाहे जितनी कमजोर हो, मगर कलाकार अपने अभिनय के दम पर उस फिल्म को काफी हद तक रोचक बना सकता है. इसका ताजातरीन उदाहरण है फिल्म ‘तुम्हारी सुलु’, जो महज विद्या बालन के दमदार अभिनय के लिए देखी जा सकती है. राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता विद्या बालन ने उपनगरीय मध्यमवर्गीय परिवार की गृहिणी के साथ साथ रेडियो पर फोन करने वालों से सेक्सी बातें करने वाली आर जे तक के किरदार को जिस तरह से निभाया है, उसकी जितनी तारीफ की जाए, कम है.

फिल्म ‘‘तुम्हारी सलु’’ की कहानी मुंबई महानगर से सटे विरार इलाके में रहने वाली सुलोचना उर्फ सुलु (विद्या बालन) के इर्द गिर्द घूमती है. सुलोचना (विद्या बालन) एक मध्यम वर्गीय गृहिणी है, जो कि अपने प्यारे पति अशोक दुबे (मानव कौल) और अपने बेटे प्रणव दुबे के साथ रहती है. उसके पास लक्जरी सुविधाओं से युक्त तीन बेडरूम का फ्लैट भले नहीं है, पर वह खुश रहती है. वह घर के आस पास कई तरह की प्रतियोगिताओं का हिस्सा बनती रहती हैं. उसे ‘निंबू चमचा दौड़’ में पुरस्कार भी मिलता है.

सुलोचना के अंदर आत्म विश्वास है कि मैं कुछ भी कर सकती हूं. एक दिन सुलोचना के मन में रेडियो जाकी बनने का ख्याल आता है और वह स्थानीय रेडियो स्टेशन पर आडीशन देने जाती है. रेडियो स्टेशन की मालकिन मारिया (नेहा धूपिया) को सुलोचना के अंदर एक जोश नजर आता है. वह उन्हे देर रात प्रसारित होने वाले कार्यक्रम को करने के लिए रख लेती है. इस कार्यक्रम को नाम दिया जाता है-‘तुम्हारी सुलु’.

इस कार्यक्रम में सुलोचना को श्रोताओं के फोन करने पर उनसे बात करनी होती है, जो कि फ्लर्ट करने वाली बातें करना व सुनना चाहते हैं. पति की तरफ से पूरा सहयोग मिलते हुए भी सुलोचना खुद को एक मोड़ पर फंसी हुई पाती हैं. वास्तव में एक दिन उन्हे पता चलता है कि उनके  बेटे की कुछ गलत हरकतों की वजह से उसे स्कूल से निकाल दिया गया है. अब वह अपने सपने को पूरा करने और एक सही मां बनने के बीच खुद को फंसी हुई पाती है. अब सुलोचना को लगता है कि ‘मैं कर सकती हूं’ का उनका मंत्र महज एक भ्रम ही था. वह रेडियो की आरजे वाली नौकरी छोड़ देती हैं. पर हिम्मत नहीं हारती. बेटे की पढ़ाई का ख्याल रखते हुए टिफिन सेवा से लेकर कुछ दूसरे काम करती है और फिर एक दिन पुनः ‘आरजे’ बन जाती है.

विज्ञापन फिल्में बनाते आ रहे सुरेश त्रिवेणी की बतौर लेखक व निर्देशक यह पहली फिल्म है, जिसमें वह सफल नहीं हैं. फिल्म की कथा कथन शैली काफी सहज और वास्तविक है. पर पटकथा काफी कमजोर है. कहानी के नाम पर फिल्म में टीवी सीरियल की ही तरह कुछ घटनाक्रम हैं. फिल्म की शुरुआत धीमी गति से होती हैं, पर फिर विद्या बालन अपने अभिनय के दम पर फिल्म को संभाल लेती हैं. मगर इंटरवल के बाद फिल्म लेखक व निर्देशक के हाथ से निकलती हुई नजर आती है.

सुरेश त्रिवेणी ने पति पत्नी के बीच प्यार व झगड़े के दृश्यों व अन्य पलों को फिल्म में बड़ी खूबसूरती से पिरोया है. इंटरवल के बाद फिल्म में नाटकीयता होने के बावजूद रोचकता नहीं रह जाती है. फिल्म का क्लायमेक्स गड़बड़ है. सुलोचना के बेटे प्रणव के स्कूल से जुड़े मुद्दों को और बेहतर तरीके से पेश किया जाना चाहिए था. फिल्म देखते समय दर्शक के दिमाग में ‘‘भाबी जी घर पर हैं’’ या ‘‘रजनी’’ जैसे कई टीवी सीरियल घूमने लगते हैं.

जहां तक अभिनय का सवाल है, तो विद्या बालन ने एक बार फिर साबित कर दिखाया है कि वह किसी भी किरदार को अपने बलबूते पर यादगार बना सकती हैं. वह पूरी फिल्म को अपने कंधों पर बड़ी सहजता से आगे लेकर चलती हैं. उपनगर में रहने वाली, बारवहीं फेल महिला जो कि इस बात में यकीन करती है कि ‘मैं कर सकती हूं’ कई तरह की प्रतियोगिताओं में जीत दर्ज करते कराते अचानक देर रात रेडियो पर सेक्सी कार्यक्रम में श्रोताओं से बात करने वाली आर जे बनने तक हर रूप में वह बहुत सहज लगती हैं. लोगों के दिलों से इस कदर जुड़ती हैं कि कमजोर कहानी व पटकथा के बावजूद दर्शक फिल्म से जुड़ा रहता है.

विद्या बालन ने कामेडी के साथ साथ हंसी, पति से अनबन, बेबसी आदि सभी भावों को जबरदस्त व अति सहज रूप में अपने अभिनय से पेश किया है. अशोक के किरदार में मानव कौल ने भी काफी बेहतरीन काम किया है. उनके फ्रस्टेशन के सीन कुछ ज्यादा ही अच्छे बन पड़े हैं. स्टूडियो मालकिन मारिया के किरदार में नेहा धूपिया ने लंबे समय बाद काफी अच्छी परफौर्मेंस दी है.

दो घंटे बीस मिनट की अवधि वाली फिल्म ‘‘तुम्हारी’’ सुल्लू का निर्माण ‘टी सीरीज’ के साथ मिलकर अतुल कस्बेकर और शांति शिवराम मैनी ने किया है. फिल्म के लेखक व निर्देशक सुरेश त्रिवेणी, संगीतकार गुरू रंधावा, रजत नागपाल, तनिष्क बागची, लक्ष्मीकांत प्यारेलाल, कैमरामैन सौरभ गोस्वामी तथा कलाकार हैं-विद्या बालन, मानव कौल, नेहा धूपिया, विजय मौर्य, मलिष्का, अभिषेक शर्मा, सीमा तनेजा, शांतनु घटक व अन्य.

दुल्हन के लिए खास मेकअप टिप्स

हर लड़की अपनी शादी में दुनिया की सबसे खूबसूरत दुल्हन बनना चाहती है. वह अपनी शादी में सबसे अलग और सबसे सुन्दर दिखना चाहती है, वो चाहती है कि जब लोग उसे देखें तो बस देखते ही रह जाएं. दूरदूर तक उसके खूबसूरती की चर्चा हो. इसलिए शादी से पहले ही शादी पर क्या पहनना है, कैसा मेकअप करना है, संगीत और हल्दी में कैसा मेकअप रखना है, स्किन की देखभाल कैसे करनी है. इस तरह के तमाम सवाल लगभग हर लड़की के जेहन में घूमते हैं.

आज हम आपके लिए इन सब सवालों के जवाब लेकर आए हैं, तो चलिए आपको बताते हैं कि दुल्हन का मेकअप कैसा होना चाहिए, मेकअप कैसे करना चाहिए और साथ ही स्किन की देखभाल कैसे करें.

दुल्हन के मेकअप से पहले कुछ जरूरी बातें, हमेशा रखें ध्यान

सुबह उठकर पानी पीएं

चेहरे पर मेकअप तभी अच्छा लगता है जब आपकी त्वचा खिली- खिली हो. खिली- खिली और दमकती त्वचा के लिए जरूरी है स्किन की सही तरीके से देखभाल. इसलिए शादी से 4-5 महीने पहले ही तैयारियां शुरू कर दें. रोजाना सुबह उठकर 2-3 ग्लास पानी पीएं.

नींबू और ग्लिसरीन का कमाल

रात को सोने से पहले चेहरे पर ग्लिसरीन और नींबू का रस मिलाकर लगाएं. सुबह उठकर चेहरा साफ पानी से धो दें.

शहद-चीनी का फेस पैक

शहद और चीनी का फेसपैक लगाने से आपके चेहरे के ना सिर्फ रोम छिद्र खुल जाते हैं बल्कि कम वक्त में ही दमकती हुई त्वचा भी मिल जाती है. इसके लिए एक चम्मच शहद में एक चुटकी चीनी मिलाकर चेहरे पर अच्छी तरह से लगाएं और फिर एक घंटे बाद साफ पानी से धो दें. ऐसा हफ्ते में 2 या 3 बार करें.

हल्दी

हल्दी ना सिर्फ जबरदस्त एंटी-आक्सीडेंट है बल्कि इससे आपकी रंगत भी निखरती है. हल्दी में थोड़ा से बेसन, दूध, नींबू और ग्लिसरीन मिलाकर लगाएं और फिर एक घंटे बाद चेहरा धो दें. कुछ वक्त बाद कमाल खुद ब खुद दिखने लगेगा.

इन तरीकों के जरिए त्वचा खिल उठेगी और फिर शादी के वक्त जो मेकअप होगा वो भी उभर कर सामने आएगा.

ऐसा हो दुल्हन का मेकअप

वैसे तो मेकअप बदलते मौसम के अनुसार ही करना चाहिए, लेकिन आजकल वाटरप्रूफ मेकअप पसंद किया जा रहा है जो हर सीजन में चलता है.

मेकअप से पहले क्लिनजिंग मिल्क से चेहरे की अच्छी तरह से सफाई कर लें. इसके बाद चेहरे पर कंसीलर लगाएं ताकि जो भी दाग-धब्बे हैं वो छिप सकें. कंसीलर के बाद फाउंडेशन का कोट करें. फाउंडेशन लगाते वक्त ध्यान रखें कि उसका कलर आपकी स्किन टोन से मैच करता हुआ होना चाहिए, वरना वो चेहरे पर अलग सा ही नजर आएगा. इसके बाद ब्लश आन लगाएं. ब्लश आन का चुनाव लहंगे के कलर को देखकर किया जाता है. इससे रंगत और निखरकर आती है.

लहंगे के हिसाब से मेकअप

लहंगे के ही रंग को ध्यान में रखते हुए आईशैडो लगाना चाहिए. आईलाइनर लगाएं. आंखों के लिए वाटरप्रूफ मस्कारा और आईलाइनर ही लगाएं ताकि आंखो में पानी आने पर वो छूटे ना. आंखों के हिसाब से आंखो का मेकअप करें. आप अपनी आंखो को स्मोकी लुक भी दे सकती हैं.

लगाएं ये लिप कलर

होठों पर ग्लासी लिप कलर लगाएं. ध्यान रखें कि ग्लासी लिप कलर पर्मानेंट हो यानि जल्दी ना छूटे. लिप कलर भी लहंगे से मैच करता हुआ हो. अगर लहंगा नीला या फिरोजी या पीला है तो सदाबहार लाल या मरून लिप कलर लगाएं.

दुल्हन का हेयरस्टाइल – रखें इसका खास ख्याल

दमकते चेहरे के अलावा जो चीज आपकी खूबसूरती पर ज्यादा चार चांद लगाती है वो है हेयरस्टाइल. हेयरस्टाइल अच्छा हो तो दुल्हन की खूबसूरती और निखर कर आती है. सबसे पहले बालों को अच्छे शैंपू से धो लें और फिर धोने के बाद उनमें रोलर लगा लें. जब बाल सूख जाएं तो रोलर निकाल दें.

इससे आपके बालों में कर्ल्स बन जाएंगे और उनमें वाल्यूम भी आ जाएगा. इससे मनचाहा हेयरस्टाइल देने में मदद मिलेगी. दुल्हन का हेयरस्टाइल उसके चेहरे-मोहरे और नैन-नक्श के हिसाब से होना चाहिए.

49 साल के इस डायरेक्टर ने शेयर की पत्नी के साथ लिपलौक की फोटो

शाहिद, सिटी लाइट्स, अलीगढ़ और सिमरन जैसी फिल्में बना चुकें हंसल मेहता की पहचान बेहद संजीदा विषयों पर फिल्म बनाने वाले निर्देशक के रूप में होती है. 49 वर्षीय हंसल मेहता फिल्मों के मामले में जितने ही गंभीर हैं उनकी पर्सनल लाइफ उतनी ही रोमांटिक है.

इसका अंदाजा आप उनके लेटेस्ट इंस्टाग्राम पोस्ट से लगा सकते हैं. हंसल मेहता ने हाल ही में अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर अपनी पत्नी के साथ की एक फोटो शेयर की. इस फोटो में वो अपनी पत्नी शफीना हुसैन के साथ लिपलौक करते हुए नजर आ रहे हैं.

 

A post shared by Hansal Mehta (@hansalmehta) on

फिल्म निर्देशक हंसल मेहता की इस रोमांटिक तस्वीर को अभिनेता राजकुमार राव ने खींचा है. जिसका जिक्र खुद हंसल मेहता ने सोशल मीडिया पर किया है. इस तस्वीर को शेयर करते हुए हंसल ने कैप्शन में बताया कि उनके जिंदगी की इस खूबसूरत तस्वीर को उनके फेवरेट अभिनेता राजकुमार राव ने खींचा है.

बता दें, राजकुमार राव के साथ हंसल अब तक चार फिल्मों का निर्देशन कर चुके हैं. शाहिद (2012), सिटीलाइट्स (2014), अलीगढ़ (2015) और उमेर्टो (2017) ये चारों ही फिल्में दर्शकों और क्रिटीक्स द्वारा सराही गई हैं. हंसल मेहता को उनकी फिल्म शाहिद के लिए तो राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिल चुका है.

हंसल मेहता की तस्वीर पर इंस्टाग्राम यूजर्स का रिएक्शन.

फिल्मी सितारों की चमक धमक से दूर ही रहने वाले हंसल मेहता की इस तस्वीर को उनके फैन्स द्वारा खूब पसंद किया जा रहा है. उनके फैंस इस तस्वीर पर कमेंट करते हुए लिख रहे हैं कि आप लोगों की जोड़ी ऐसे ही बनी रहे वहीं कुछ यूजर्स ने इसका मजाक भी बनाया है. एक यूजर ने लिखा कि- हंसल ने किस करते वक्त आंखें बंद नहीं की है, ऐसा कौन करता है.

 

A post shared by Hansal Mehta (@hansalmehta) on

बता दें, हंसल की पत्नी शफीना हुसैन पौपुलर सोशल एक्टिविस्ट हैं. शफीना ‘एजुकेट गर्ल्स’ नाम के नान-प्राफिट आर्गनाइजेशन की फाउंडर और एजुकेटिव डायरेक्टर भी हैं.

प्रियंका चोपड़ा को बौलीवुड में करना पड़ा था संघर्ष

प्रियंका चोपड़ा की मां मधु चोपड़ा ने बताया कि कैसे उनकी बेटी की बौलीवुड में शुरुआत काफी कठिन थी क्योंकि उन्होंने बहुत से डायरेक्टर्स की मांग को मानने से मना कर दिया था. हौलीवुड के प्रोड्यूसर हार्वे विन्सटीन द्वारा कई एक्ट्रेसेज का शोषण करने की खबर जब सामने आई थी उसके बाद दीया मिर्जा, ऋचा चढ्ढा और प्रियंका ने कास्टिंग काउच की अपनी-अपनी दास्तां को बयां किया था.

मधु चोपड़ा ने कहा

वो केवल 17 साल की थी जब वो इंडस्ट्री में आई थी. इसी वजह से तीन साल पहले तक रोजाना हर मिनट मैं उसके साथ रहती थी. ऐसे में एक जेंटलमैन ने उससे मुलाकात की और उससे कहा जब मैं आपको कहानी सुनाउं तो क्या आपकी मां बाहर बैठ सकती हैं. प्रियंका ने उसे कहा अगर कोई ऐसी कहानी है जो मेरी मां नहीं सुन सकती तो यह वो कहानी है जिसपर मैं काम नहीं कर सकती. इसी कारण एक्ट्रेस को 10 प्रोजेक्ट से हाथ धोना पड़ा.

मधु चोपड़ा ने आगे कहा

दूसरी बार एक डिजायनर ने उन्हें बताया कि डायरेक्टर चाहते हैं वो फिल्म में छोटे कपड़े पहने. डायरेक्टर ने कहा था- कैमरे के सामने किसी मिस वर्ल्ड को लेने का क्या फायदा है जब वो खुद को खूबसूरत नहीं दिखा सकती है.

प्रियंका ने फिल्म में काम करने से मना कर दिया. इसे एक प्रतिष्ठित डायरेक्टर बना रहे थे और वो नाराज हो गए. एक्ट्रेस को 10 प्रोजेक्ट से हाथ धोना पड़ा क्योंकि उन्होंने उन्हें छोड़ दिया. लेकिन उसे कोई फर्क नहीं पड़ा. यही मैं हर किसी को कहती हूं. यह आपकी जिंदगी का अंत नहीं है. आपकी जिंदगी बहुत मूल्यवान है.

आपने देखा शाहरुख के बेटे अबराम का क्यूट डांस

इन दिनों सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हो रहा है. इस वीडियो में शाहरुख खान के सबसे छोटे बेटे अबराम डांस करते हुए नजर आ रहे हैं. इस वीडियो में डांस करते हुए अबराम बहुत प्यारे लग रहे हैं. वहीं इस वीडियो को पापा शाहरुख खान ने अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर पोस्ट कर अपने फैंस के साथ शेयर किया है.

अबराम इस वीडियो में एक ऐसे फ्लोर पर डांस कर रहे हैं जिसपर उछलते ही आवाज आ रही है. वहीं किनारे में अबराम के साथ वीडियो में उनके बड़े भाई आर्यन भी दिखाई दे रहे हैं. यह वीडियो शाहरुख ने चिल्ड्रेंस डे के अवसर पर इंस्टाग्राम पर पोस्ट किया था.

शाहरुख ने इस वीडियो को पोस्ट करते हुए इसे एक प्यारा सा कैप्शन भी दिया. एसआरके लिखते हैं, ‘आर्यन और सुहाना के लिए अबराम का मैडली हैपिली चाइल्डी डांस.’ इस वीडियो में अबराम बहुत अडौरबल लग रहे हैं.

 

A madly happily childly dance for Aryan & Suhana by lil AbRam on this day of kids.

A post shared by Shah Rukh Khan (@iamsrk) on

अबराम ने इस दौरान ब्लैक डैनिम के साथ ब्लू चेक शर्ट पहनी हुई है. हाल ही में शाहरुख का बर्थडे गया है. शाहरुख के बर्थडे वाले दिन छोटे बेटे अबराम भी उनके साथ फैंस को वेव करते हुए नजर आए थे. अबराम और पापा शाहरुख दोनों ने मिलकर हजारों फैंस को घर की बेलकोनी से हेलो कहा और वेव किया. शाहरुख एक इंटरव्यू में बताते हैं कि उनके बेटे को एक चीज बहुत पसंद है वह है फैंस को वेव करना. शाहरुख बताते हैं,’अबराम को बार-बार बेलकोनी में आना पसंद है.

इन तरीकों से महिलाएं कम समय में कर सकती हैं अच्छी कमाई

नया बिजनेस शुरू करने की सोच रही हैं, तो ये रहे जरूरी टिप्स. थोड़ी सी समझदारी दिखाकर आप ऐसे कई विकल्प तलाश सकती हैं जो आपको पैसे कमाने का मौका देने के साथ-साथ आपको आत्मनिर्भर बनाते हैं.

तो आपके लिए पेश है ये खास लेख, जो आपको ऐसे ही कुछ विकल्पों से रूबरू करवा रहा है जिनके जरिए आप अपना बिजनेस खड़ा कर सकती हैं.

कुकिंग वीडियो

अगर आप एक से एक बेहतरीन रेसेपीज जानती हैं, तो आज ही एक कैमरा खरीदें और कल से ही भोजन बनाने की रेसिपीज़ वीडियो यू-ट्यूब पर अपलोड करना शुरू करें. इससे आगे चलकर बहुत ज्यादा आय हो सकती है.

फ्रीलांसिंग राइटिंग

अगर आपको पढ़ने लिखने का शौक है तो उसे बाहर निकालें. इसके लिए जरूरी नहीं किसी दफ्तर में आठ घंटे की नौकरी करने के बाद ही विचारों को पंख दिए जाएं. आप किसी मैग्‍जीन, अखबार के लिए घर बैठकर आर्टिकल लिख सकती हैं. जिससे आपको अच्छी खासी कमाई हो जाएगी.

ट्रांसलेशन

अगर आप किन्हीं दो भाषाओं पर अच्छी पकड़ रखती हैं, तो ट्रांसलेशन यानि अनुवाद का काम शुरू कर सकती हैं. इंटरनेट पर आसानी से ट्रांसलेशन के प्रोजेक्ट मिल सकते हैं.

प्रोजेक्ट मेकर/हेल्पर

बच्चों के स्कूलों में आये दिन प्रोजेक्ट बनवाये जाते हैं, आप प्रोजेक्ट बनाकर बच्चों को दे सकती हैं या उनकी मदद करने का भी पैसा चार्ज कर सवकती हैं.

ट्यूशन

आप चाहें तो घर पर ही शाम के वक्त ट्यूशन क्लासेस दे सकती हैं. आस-पास के बच्चे आपसे जरूर पढ़ने आयेंगे, फिर आप इस अपने कमाई का जरिया भी बना सकती हैं.

कुकिंग क्लास

अगर आप अच्छा भोजन पकाना जानती हैं, और आपको एक से बढ़कर एक डिश बनाना आती हैं, तो घर पर ही कुकिंग क्लासेस शुरू कर सकती हैं. इसके लिये आपके पास एक कैमरा होना चाहिये जिससे आप विडियो बनाकर यू ट्यूब पर अपलोड़ कर अच्छी खासी कमाई कर पाएं.

वेब डिजाइनिंग

अगर आपको वेब डिजाइनिंग आती है, तो घर बैठे अपनी सेवा जरूरतमंद कंपनियों को दे सकती हैं. इसके लिये कई फ्री लांसिंग कंपनियां मौजूद हैं जो आपको आपके टास्क का पैसा देती हैं.

एंटीक आइटम

सेलिंग अगर आप साज सज्जा से जुड़े एंटीक आइटम बनाना जानती हैं, तो आज ही बनाना शुरू कर दें. रही बात बेचने की तो स्नैपडील जैसी कंपनियां आपके प्रौडक्ट बेचने को तैयार खड़ी हैं.

हौबी क्‍लासेस

आपको पेंटिंग करने, गिटार बजाने जैसी कोई भी हौबी रही है तो आप दूसरों को सिखाकर अपने लिए रोजगार की राह बनाने के साथ अच्‍छी कमाई भी कर सकती हैं.

बर्थडे प्लानर

आप अपने आस-पास की कालोनी के उन बच्चों की बर्थडे पार्टी में बर्थडे प्लानर का काम कर सकती हैं, जिनके माता-पिता के पास समय नहीं है. यह काम वेडिंग प्लानर के जैसा ही होता है.

मेकअप एंड ब्‍यूटी

आज के दौर में मेकअप एंड ब्‍यूटिशियन को महिलाओं ने सबसे ज्‍यादा रोजगार के तौर पर अपनाया है. शुरुआत एक छोटे से ब्‍यूटी पार्लर से की जा सकती है. भविष्य में आप बिजनेस को आगे भी बढ़ा सकती हैं.

औनलाइन सर्वे

जौब बदलते समय के साथ औनलाइन सर्वे जौब में लोगों की डिमांड पहले की अपेक्षा काफी बढ़ गई है. ऐसे में आप औनलाइन सर्वे में थोड़ा समय देकर घर बैठे अच्‍छी इनकम कर सकती हैं.

क्राफ्ट आइटम सेलिंग

अगर आप साज-सज्जा से जुड़ी चीजों को बनाने में माहिर हैं तो क्राफ्ट आइटम का बिजनेस अच्छा औप्‍शन है. फिर अपनी क्रिएटिविटी को बाहर लाने में सोचना कैसा, संभावनाओं से भरा संसार आपके इंतजार में है.

बुटिक

आप घर पर अपना बुटिक खोलकर अच्छी कमाई कर सकती हैं. जरुरत हैं थोड़ी धैर्य और कड़ी मेहनत की. अपनी डिजाइनिंग स्कील के बल पर आप अच्छा कमा सकती हैं.

फिटनेस सेंटर

आज के दौर में लोग अपने हेल्थ को लेकर सजग हो गए हैं. ऐसे में जिम और फिटनेस सेंटर का दौर बढ़ गया हैं. आप चाहे तो कम बजट में अपना फिटनेस सेंटर खोलकर कमाई कर सकती हैं.

डे केयर

महिलाएं अपने घर पर या किसी भी छोटी सी जगह पर डे केयर की शुरुआत कर सकती हैं. ये एक अच्छा बिजनेस साबित होगा. जहां आपको कम इनवेंस्टमेंट में अपना बिजनेस शुरु करने में मदद मिलेगी. पेंटिंग अगर आपके हाथों में हुनर है, तो एक से एक बेहतरीन पेंटिंग बनाकर आप स्नैपडील जैसी वेबसाइटों के माध्यम से बेचना शुरू कर सकती हैं.

इंटीरियर डिजाइनिंग

अगर आपको घर को सजाने-संवारने का शौक है तो आप इंटीरियर डिजाइनिंग का काम शुरु कर सकती हैं.

रेस्टूरेंट

अगर आप अपना बिजनेस शुरु करना चाहती है और खाने-पीने की चीजों के बारे में आपको थोड़ा भी आइडिया है तो आप अपना रेस्टूरेंट शुरु कर सकती हैं, और अच्छी खासी कमाई कर सकती हैं.

टिफिन सर्विस

आप में अगर अच्छा खाना बनाने का हुनर है, तो आप आज ही टिफिन सर्विस शुरू कर सकती हैं. आज 10 डिब्बे से की गई शुरुआत कल एक बड़ी कंपनी बन सकती है.

मौन्ट्रियल बाक फेस्‍टि‍वल : जल्दी जाएं और छुट्टि‍यां यादगार बनाएं

क्या आप संगीत प्रेमी हैं, अगर हां तो आज हम आपके लिये ही कुछ खास लाए हैं. आप यहां जाकर संगीत और लाइव कौंसर्ट का आनंद ले सकती हैं.

नार्थ अमेरिकन देश कनाडा में द बाक फेस्‍टि‍वल का आयोजन भव्‍य रूप से होता है. हर वर्ष यह त्‍योहार सर्दि‍यों की शुरुआत में होता है और मौन्ट्रियल में मनाए जाने की वजह से मौन्ट्रियल बाक फेस्‍टि‍वल के नाम से जाना जाता है. यह म्‍यूजि‍क फेस्‍ट‍िवल मौन्ट्रियल में स्थापित एक बड़े आर्गनाइजेशन द बाक-अकादमी डे द्वारा आयोजि‍त कराया जाता है.

सुरों का जादू बिखरता है

इस साल यह त्‍योहार 17 नवंबर से 3 दिसंबर तक मनाया जाएगा. यह त्‍योहार पूरी तरह से संगीत पर आधारित होता है. यह उत्‍सव इतिहास के महान संगीतकारों के सम्‍मान में मनाया जाता है. यहां पर दुनिया भर से संगीत कार अपने सुरों का जादू बिखेरने आते हैं. वैसे तो यहां पर पूरे दिन कार्यक्रम होते हैं लेकिन शाम के समय का माहौल और सहाना हो जाता है.

विशेष व्‍यवस्‍था की जाती है

यहां पर संगीत के अलावा और भी दूसरे सांस्‍कृति‍क व शैक्ष‍िक कार्यक्रम होते हैं. द बाक फेस्‍टि‍वल में यहां पर संगीत प्रेमियों की काफी भीड़ होती है. बच्‍चों से लेकर बड़े तक यहां पर सभी खूब मस्‍ती करते हैं. लाइव म्‍यूजि‍क को सुनने का जो मजा है वो शायद यहीं मिलता है. इस कार्यक्रम में आने वाले पयर्टकों और दिव्‍यांगों के लिए विशेष व्‍यवस्‍था की जाती है.

सैकड़ों साल पुराना फेस्‍ट‍िवल

आज यह विश्व स्तर के और्केस्ट्रा, गायक और सोलो संगीतकारों को एक जगह एकत्र करने का बड़ा मंच हो गया है. नार्थ अमेरिकन देश कनाड़ा में होने वाला मौन्ट्रियल बाक फेस्‍टि‍वल को इस साल 150 वर्ष हो जाएंगे. वहीं विश्‍व स्‍तर पर संगीत संस्‍कृति‍ को विरासत के रूप में सहेजने वाले बाक फेस्‍ट‍िवल की शुरुआत 31 अक्‍टूबर 1517 को हुई थी.

हर कामकाजी पत्नी के लिए पति का साथ जरूरी : विद्या बालन

फिल्म इंडस्ट्री में 12 साल बिता चुकी अभिनेत्री विद्या बालन अपने बेहतरीन अभिनय के लिए जानी जाती हैं. उनका फिल्मी सफर काफी अच्छा रहा. इतना ही नहीं, उन्होंने कई फिल्मों में मुख्य भूमिका निभाकर यह सिद्ध कर दिया कि हिंदी सिनेमा केवल अभिनेता के दम पर ही नहीं चलती, बल्कि अभिनेत्रियां भी फिल्मों को सफल बना सकती हैं, जिसमें उनकी फिल्म ‘परिणीता’, ‘कहानी’, ‘द डर्टी पिक्चर’, ‘भूल भुलैया’ आदि है.

इन फिल्मों में उनके अभिनय को सभी ने सराहा, लेकिन पिछले कुछ दिनों से उनकी फिल्में ‘बौबी जासूस’, ‘कहानी 2’, ‘बेगम जान’ आदि कई फिल्में बौक्स औफिस पर सफल होने में असमर्थ रही. विद्या इसे लेकर अधिक चिंता नहीं करती और इसे एक खराब दौर मानती हैं, जो समय के साथ निकल जायेगा. विद्या केवल अभिनय ही नहीं, सामाजिक कार्य में भी रूचि रखती हैं, जिसे करना वह अपना फर्ज मानती हैं. हंसमुख और स्पष्टभाषी विद्या से बात करना रोचक था, पेश है अंश.

‘तुम्हारी सुलू’ फिल्म में काम करने की वजह क्या थी?

इस फिल्म की कहानी अब तक की मेरी फिल्मों से अलग है. इसमें एक साधारण महिला कैसे अपने सपनों को पूरा करती है, उसे दिखाने की कोशिश की गयी है. इसमें मैंने रेडियो जौकी की भूमिका निभाई है.

घर-परिवार सम्भालने वाली महिलाओं में ये धारणा होती है कि वे कामकाजी महिलाओं की तुलना में कमतर हैं, आप इस बात से कितनी सहमत हैं?

मेरी जब शादी हुई थी, तो सभी ने मुझसे पूछा था कि मैं परिवार के साथ काम को कैसे सम्भालती हूं. ये सही है कि कुछ महिलाओं के पास आप्शन नहीं होता है कि वे परिवार के साथ काम करें, क्योंकि ऐसा करने के लिए अच्छी सपोर्ट सिस्टम होना जरूरी होता है. मुझे घर का कोई काम करना नहीं पड़ता. ऐसे में मैं भले ही घर से दूर रहूं, लेकिन घर पर कहां क्या हो रहा है, उसकी पूरी जानकारी रखती हूं.

मुझे याद आता है जब मैं चौथी कक्षा में थी, तो मेरी एक अध्यापिका ने कही थी कि मेरी मां हर रोज खाना पकाकर, खिलाकर मुझे स्कूल भेजती है और मेरे पिता बिना चिंता के औफिस जाते हैं. ऐसे में मुझे मां को थैंक्स कहना चाहिए. मैंने जब मां को थैंक्स कही तो वह चकित हो गयी थी. मैं मध्यम वर्गीय परिवार से हूं, जहां मैंने देखा है कि मां हमेशा हमारे बारे में सेचती थी. पैसे की अहमियत, किसी से प्यार करना, किसी से हमदर्दी रखना ये सब मैंने अपनी मां से सीखा है. जिन लोगों ने पहले हमारे घर पर काम किया हो या अभी कर रहे हैं उनके बारे में मां आज भी सोचती हैं, उनकी मदद करती है.

मेरे हिसाब से कोई भी महिला अगर परिवार के साथ काम काजी है, तो पति का साथ पूरी तरह से उसे मिलनी चाहिए. तभी उसे काम करने में अच्छा लगेगा.

आपकी पिछली कुछ फिल्में सफल नहीं रही, इस बारे में क्या कहना चाहती हैं?

ये बताना बहुत मुश्किल होता है कि फिल्म चली क्यों नहीं. मैं हर फिल्म में अपनी पूरी कमिटमेंट देती हूं. कई बार कहानी अच्छी होने पर और बड़ी कलाकार को लेकर निर्देशक ढीले पड़ जाते हैं. उन्हें लगता है कि सफल एक्ट्रेस है, तो फिल्म चलेगी ही, जबकि ऐसा नहीं होता. इसके अलावा कहानी जो कही जाती है वह दर्शकों तक सही तरह से पहुंच नहीं पाती और फिल्म ‘हिट’ नहीं हो पाती, लेकिन मैं इससे मायूस नहीं होती.

आप हमेशा हंसमुख स्वभाव की दिखती हैं, क्या कभी किसी बात से गुस्सा आया?

मैं मुस्कुराना पसंद करती हूं. गुस्सा नहीं आता और निराश नहीं होती. मुझे लगता है कि कोई भी बात इतनी बड़ी नहीं हो सकती, जितना लोग सोचते हैं. अगर कोई मुश्किल घड़ी आती भी है तो वह कुछ दिनों बाद अपने आप ही निकल जाती है.

सिद्दार्थ के साथ आपकी जिंदगी कैसी चल रही है? क्या परिवार बढ़ाने की कोई इच्छा है?

सिद्दार्थ के साथ मेरी जिंदगी अच्छी चल रही है. एक छत के नीचे कैसे दो लोग रहते हैं, वह समझ में आया है. अभी हम दोनों और हमारे परिवार इस जिंदगी से खुश हैं. अभी परिवार के बारे में सोचा नहीं है.

आप हमेशा अलग-अलग साड़ियों में दिखती हैं, क्या आप को साड़ियां ही अधिक पसंद है?

साड़ियों की इतनी वैरायटी हमारे देश में है कि मैं कितना भी पहनूं, नयी-नयी साड़ियां मुझे मिलती ही जाएगी. असल में मुझे हर जगह गिफ्ट में साड़ियां ही मिलती है. कांजीवरम की साड़ियां मुझे खास पसंद है.

सामाजिक कार्य की तरफ आपका झुकाव कैसे हुआ?

मुझे सामाजिक कार्य करना हमेशा से पसंद है, फिर चाहे खुले में शौच न करने के बारे कहना, लड़कियों की शिक्षा पूरी करने के बारे में जागरूकता फैलाना, ऐसे किसी भी विषय पर मुझे बात करना पसंद है. ये मुझे अपने परिवार से ही मिला है, जहां हर किसी का ध्यान रखना बचपन से मैंने सीखा है.  

क्या कोई सपना रह गया है, जिसे आप पूरा करना चाहती हैं?

मैंने बचपन से ही अभिनेत्री बनना चाहा और वह सपना पूरा हो गया है, अब कोई मलाल नहीं है.

भारत के बाजार में चीन

राहुल गांधी ने अपने गुजरात के चुनावी दौरों में चीन व भारत के व्यापार पर काफी तंज कसे हैं. उन्हें इस बात के लिए गलत नहीं कहा जा सकता. चीन की मेजबानी में शियामेन में हाल ही में संपन्न हुए ब्रिक्स (ब्राजील, रूस, भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका) देशों के 9वें सम्मेलन में भारत और चीन के संबंधों के बीच नए तेवर देखने को मिल चुके हैं. भारत और चीन दोनों देश आर्थिक विकास पर ध्यान देने की पुरजोर वकालत करते नजर आए. इस के पीछे जहां एक तरफ भारत की लड़खड़ाती अर्थव्यवस्था जिम्मेदार है तो वहीं दूसरी तरफ चीन अपने पुनर्गठन के दौर से गुजर रहा है.

ये दोनों देश बखूबी जानते हैं कि शांति के बिना आर्थिक विकास संभव नहीं है. इसी कारण पाकिस्तान के आतंकी रुख को ले कर भी चीन में परिवर्तन आया है. भारत की कूटनीति काम आई कि एक तरफ डोकलाम विवाद पर घिरे बादल छंटने लगे, वहीं दूसरी तरफ चीन, भारत के साथ आतंकवाद को मिटाने के लिए मंच साझा करता नजर आया.

ब्रिक्स सम्मेलन के घोषणापत्र में न केवल आतंकवाद की निंदा की गई है, बल्कि हिंसा और असुरक्षा के लिए जिम्मेदार आतंकी समूहों की एक बड़ी सूची में पाकिस्तान के हक्कानी नैटवर्क, अलकायदा, लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे 4 आतंकी समूहों का नाम लिया गया.

भले ही ब्रिक्स सम्मेलन में सरकार ने चीन पर राजनीतिक जीत मान ली हो पर आर्थिक क्षेत्र में चीन अपनी अर्थव्यवस्था के साम्राज्य को बढ़ाने में ही लगा है, और राजनीतिक विश्लेषक तो यहां तक कहते हैं कि आतंकवाद विरोध पर साझा बयान दे कर चीन भारत में अपनी आर्थिक दखलंदाजी बढ़ाने की मंशा रखता है.

चीन का भारत के साथ आना सोचीसमझी रणनीति की तरफ इशारा करता है. चीन भारत को निवेश के सब से बड़े बाजार के रूप में देखता है और यहां समयसमय पर उठते स्वदेशी आंदोलन को असफल कर सरकार को बताना भी चाह रहा है कि बिना चीन की आर्थिक मदद के भारत का विकास संभव नहीं है.

माना कि सरकार अपनी अर्थव्यवस्था को एक बढ़ते दायरे में स्थापित करने की कोशिश कर रही है लेकिन क्या यह सरकार दकियानूसी सोच और विश्वबाजार में अपने को स्थापित करने के बीच संतुलन बना पाएगी. आज इस का सब से बड़ा और जीताजागता उदाहरण है देश के छोटेछोटे गलीमहल्लों में चीनी राखियों, खिलौनों और दीवाली में मिट्टी के दीयों व झालरों के विरोध का. समझ में नहीं आता कि स्वदेशी का बहाना ले कर इस फूहड़ और सस्ती राजनीतिक करने वालों की आवाज संसद के गलियारों में क्यों नहीं सुनाई देती?

सत्तारूढ़ भाजपा के कुछ आनुषंगिक संगठन जहां एक तरफ स्वदेशी की बात कर चीनी राखी के धागों का विरोध कर रहे हैं वहीं केंद्र पर बैठी आम आदमी की दुहाई देने वाली सरकार चीन का ही दामन थाम कर देश के विकास की नैया को खेना चाह रही है.

सरकार ने गरीबों के घर में गैसचूल्हे वितरित करने का प्रचारप्रसार तो बहुत कर दिया पर शायद यह ध्यान नहीं दिया कि उस चूल्हे पर जो बरतन रखा जाएगा, उस में जो पकेगा वह कहां से आएगा. आज यही गरीब किसी तरह 1,000 रुपए का चीनी सामान ले कर दिहाड़ी का ठेला लगा कर या फुटपाथ पर बैठ कर 100 रुपए का मुनाफा कमा कर जिंदा हैं. जब तक डोकलाम का मामला हल नहीं हुआ, मोदी ब्रिगेड के सिपाही छद्म और झूठे देशप्रेम का हल्लाबोल करने वाले इन छोटेछोटे मेहनतकश लोगों का स्वदेशी के माध्यम से गला घोंटने में लगे थे, जिन का देशप्रेम से कोई लेनादेना नहीं. आज यही स्वदेशी आंदोलन करने वाले अपनी जेब में चीन का ही बना मोबाइल रखे रहे हैं. सोशल मीडिया में अपनी बात रखने और कहने के लिए वे उसी चाइनीज फोन का इस्तेमाल करते रहे हैं.

चीन का भारत में निवेश

हम निर्भर से आत्मनिर्भर बने और आज पारस्परिक निर्भरता के दौर से गुजर रहे हैं. कहने का आशय यह है कि यह जमाना ग्लोबलाइजेशन के उत्कर्ष में है. क्या कारण है कि चीन का सामान आज भारत के आम आदमी की जरूरत दो तरह से बन गया है. पहला तो यह कि फुटपाथिया और दैनिक सामान बेचने वाले चीन का बना सामान बेच कर अपना गुजरबसर कर रहे हैं और दूसरी तरफ आम आदमी सस्ता सामान खरीद कर अपनी जिंदगी को बेहतर बनाने में लगा हुआ है.

मिसाल के तौर पर, जब उतनी रोशनी देने वाला एक चीनी बल्ब, भारत में बने बल्ब से काफी सस्ता मिलता है तो क्यों न वह खरीदें. इस के पीछे के सिद्धांत को शायद सरकार को समझने में कुछ देर लगे पर आम आदमी उपभोक्तावादी युग में निश्चित ही प्रतियोगी बाजार में उपलब्ध चीजों के मूल्यों को तरजीह देता है.

आज सरकार कई क्षेत्रों में चीन के सहयोग से अपना काम करने का दंभ भर रही है और ज्यादातर निवेश तो उस जगह हो रहा है जहां पर स्वदेशी का समर्थन करने वाली सरकार है.

हद तो तब हो गई जब स्वदेशी का राग अलापने वालों की नाक के नीचे चीन की एक कंपनी, चाइना रेलवे रोलिंग स्टौक को नागपुर मैट्रो के लिए 851 करोड़ रुपए का ठेका मिला. हैरानी यह भी है कि नागपुर में स्वदेशी का झंडा बुलंद करने वाले मौन क्यों हो गए? क्या यह केवल धर्मप्रचार की तरह का पर उपदेश कुशल बहुतेरे का मामला है.

इतना ही नहीं, कई चीनी कंपनियों के क्षेत्रीय कार्यालय अहमदाबाद में हैं. अब, वे महाराष्ट्र व हरियाणा की तरफ जाने लगे हैं. यह किस बात की तरफ इशारा कर रहे हैं, हमें समझना होगा. बात यहीं तक नहीं रुकी है. अब तो चीन बनाबनाया माल ही नहीं, बल्कि फरवरी 2017 की चीनी मीडिया रिपोर्ट ‘राइज ऐंड क्यूएस्टिस्ट’ के मुताबिक, चीन की 7 स्मार्टफोन कंपनियां भारत में या तो कारखाने शुरू कर चुकी हैं या शुरू करने की योजना बना रही हैं.

भारत की धरती पर चीन अपनी फैक्टरी लगा कर उत्पादन भी शुरू करेगा. इस के पीछे चीन की मंशा साफ है कि भारतीय उद्योग परिसंघ यानी सीआईआई और एवलोन कंसल्टिंग ने 2015-16 में अपनी संयुक्त रपट में अनुमान जाहिर किया था कि चीन में श्रम लागत भारत के मुकाबले 1.5 से तीनगुणा अधिक है, सो भारत में उपलब्ध कम श्रम लागत का फायदा भी चीन उठाएगा. साथ ही वह भारत में सामान बना कर पूरे विश्व में सप्लाई करेगा और ये उत्पाद ‘मेड इन इंडिया बाय चाइना’ के नाम से आएंगे.

8 जुलाई, 2015 के ‘द हिंदू’ अखबार में खबर छपी है कि कर्नाटक सरकार चीनी कंपनियों के लिए 100 एकड़ जमीन देने के लिए सहमत हो गई है.

5 जनवरी, 2016 के इंडियन ऐक्सप्रैस की खबर कहती है कि महाराष्ट्र इंडस्ट्रियल डैवलपमैंट कौर्पोरेशन ने चीन की 2 मैन्यूफैक्चरिंग कंपनियों को 75 एकड़ जमीन देने का फैसला किया है. ये कंपनियां 450 करोड़ रुपए का निवेश ले कर आएंगी.

22 जनवरी, 2016 की ट्रिब्यून की खबर है कि हरियाणा सरकार ने चीनी कंपनियों के साथ 8 सहमतिपत्र पर दस्तखत किए हैं. ये कंपनियां 10 बिलियन डौलर का इंडस्ट्रियल पार्क बनाएंगी, स्मार्ट सिटी बनाएंगी. महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़णवीस की तरह हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर भी चीन का दौरा कर चुके हैं.

24 जनवरी, 2016 की डीएनए की खबर है कि चीन का सब से अमीर आदमी हरियाणा में 60 हजार करोड़ रुपए निवेश करेगा.

अभी कुछ ही महीनों पहले डिमोनेटाइजेशन के बाद डिजिटल पेमैंट की वकालत करने वाली सरकार भी पेटीएम की तरफ मुंह ताकने लगी और भारत की सब से बड़ी डिजिटल पेमैंट कंपनी पेटीएम का 40 फीसदी का स्वामित्व चीनी ईकौमर्स फर्म अलीबाबा के ही पास है और कथिततौर पर अलीबाबा अपनी हिस्सेदारी बढ़ा कर 62 फीसदी कर रही है. चीन की चौथी सब से बड़ी मोबाइल फोन कंपनी जियोमी भारत में अपने नए कारखाने में हर सैकंड एक फोन कर निर्माण करती है.

चीन का भारत में निर्यात पिछले वर्षों में 39,765 करोड़ रुपए था. 2015 के मुकाबले निर्यात में 0.2 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी. दूसरी तरफ भारत का चीन में निर्यात 12 प्रतिशत से गिर कर 8,017 करोड़ रुपए जा पहुंचा. यह 2 देशों के मध्य आर्थिक निर्भरता को दर्शाता है. आशय साफ है कि भारत चीन से आने वाले सामान पर ज्यादा निर्भर है. सोच सकते हैं कि कितना असंतुलन है दोनों के बीच व्यापार में.

चीन सालों से लगातार भारत के बाजार में सामान डाल कमाई कर रहा है और उस सब की अनुमति भारत सरकार के वाणिज्य मंत्रालय की नीतियों से है. मतलब, सचमुच भारत का आम आदमी झोला ले कर चीनी सामान खरीदने नहीं जाता है बल्कि सरकार ने चीन के लिए बाजार खोला हुआ है. सो, दोषी कौन – जनता या सरकार? सरकार को राष्ट्रधर्म पढ़ाना चाहिए या जनता को? कांग्रेस की सरकार के वक्त भी चीन का धंधा बढ़ा और मोदी सरकार में भी चीनी सामान पर हमारी निर्भरता साल दर साल बढ़ी है.

साथ ही, भारत का फार्मा उद्योग चीन से आयात होने वाले ड्रग्स पर बहुत अधिक निर्भर है. अब सवाल यह है कि अगर भारत में चीनी सामान का बहिष्कार हो जाता है तो उस से चीन के कुल निर्यात पर क्या असर पड़ेगा. चीन के कुल निर्यात में भारत की हिस्सेदारी 2 प्रतिशत है. साफ है कि अगर चीनी माल का भारत में बहिष्कार हो भी जाता है तो उस से चीन की अर्थव्यवस्था पर इतना असर नहीं पड़ेगा. ऐसे में अगर एकदम से भारत के बाजारों से चीनी माल गायब हो जाता है तो उस का असर भारत के आम आदमी पर ही पड़ेगा क्योंकि सस्ते चीनी सामान का सब से बड़ा उपभोक्ता वर्ग वही है.

हालांकि इस से इनकार नहीं किया जा सकता कि चीन भारत जैसा बाजार खोना नहीं चाहेगा. चीन ने भारत को अपने ऊपर निर्भर बना लिया है. वह हम पर निर्भर नहीं है, हम उस पर निर्भर हैं. हम यदि उस से सामान खरीदना बंद कर देंगे तो उस की सेहत पर ज्यादा असर नहीं पड़ेगा मगर एक तरफ भारत में लोगों को सस्ता सामान मिलना बंद होगा तो दूसरी तरफ सरकार के इंफ्रास्ट्रक्चर, पावर के बड़े प्रोजैक्टों में मुश्किल होगी.

सरकार का चीन प्रेम

देशप्रेम का दंभ भरने वाली सरकार गुजरात में लौहपुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल को भी मेड इन चाइना बनाने में तुली है और अपने ही मेक इन इंडिया के मिशन की खुलेआम धज्जियां उड़ाने में लगी है. क्या देश अपने लौहपुरुष की मूर्ति नहीं बना सकता?

देशभर से लौहपुरुष के लिए लोहा मंगाया गया था और भारत के नागरिकों ने बड़ी शिद्दत से लोहा भेजा था जिस से उस विशाल मूर्ति का निर्माण होना था, पर आज 3 हजार करोड़ रुपए का ठेका एल ऐंड टी कंपनी को दिया गया और प्रतिमा का वह हिस्सा जो कांसे का होगा, चीन के एक कारखाने टीक्यू आर्ट फाउंड्री में बनवाया गया है.

टीक्यू आर्ट फाउंड्री चीन के नैनचंग में स्थित जियांग्जी टोक्वाइन कंपनी का हिस्सा है. इस बात को कहने में कोई गुरेज नहीं है कि इंडिया मेड बाई पटेल को सरकार अब पटेल मेड बाई चायना बना कर ही छोड़ेगी और पूरे देश से भेजा गया देशप्रेम की मुहर लगा हुआ लोहा चाइना प्रेम के आगे जंग खा कर अपने को ही समाप्त कर लेगा.

न दृष्टि है न इरादा

दोहरा मापदंड अपना रही भारत सरकार क्या चाहती है, समझना होगा. चीन के साथ कारोबारी रिश्तों को सरकार और अर्थव्यवस्था की कामयाबी के रूप में पेश किया जाता है लेकिन कुछ मुट्ठीभर लोगों के माध्यम से अपना निहित साधने के लिए सरकार गलियों में जा कर चीनी लडि़योंफुलझडि़यों का स्वदेशी के नाम पर विरोध शुरू करवा कर आम जनता का ध्यान खींचने की कोशिश करती है. वह जानती है कि राष्ट्र और स्वदेशी का नशा किसी भांग के नशे से कम नहीं जिस का सहारा ले कर आम आदमी को असली उद्देश्यों के लिए किए जाने वाले आंदोलनों से बेखबर किया जाए.

विरोध कीजिए पर उन का लक्ष्य और दायरा बढ़ाना होगा, स्पष्ट और सटीक राष्ट्रप्रेम को परिभाषित करने वाले आंदोलनों को समर्थन देना होगा, न कि ऐसे छद्म देशप्रेम के साथ बंध कर अपने ही देश के आम आदमी पर कुठाराघात करना. ऐसे वैश्विक सिनैरिओ में चीनी सामान के बहिष्कारों की भारत में जो बातें हो रही हैं उन का रत्तीभर असर चीन पर इसलिए नहीं होना है क्योंकि न सरकार के पास दृष्टि है, न इरादा.

हां, सकारात्मक रूप में यदि आम आदमी के लिए कुछ किया जा सकता है तो सरकार को उस की क्रयशक्ति को बढ़ाना पड़ेगा जिस से कि आने वाले समय में गुणवत्तापरक वस्तुओं की खरीद आसान हो सके.

क्या चीनी सामान का विरोध करने वाले स्वदेशप्रेमी भारत में चीन के निवेश का विरोध करेंगे? आम आदमी की दो जून की रोटी को तो कम से कम अपने आंदोलनों से दूर रखें. आखिरकार, सरकार को भी इस बात की तसदीक करनी होगी कि आर्थिक विकास के लिए चीन से हाथ मिलाने में कोई गुरेज नहीं. यदि सरकार ऐसा मुखर हो कर नहीं बोलती, तो क्या फर्क पड़ता है, चीन के भारत में निवेश के आंकड़े तो गवाही दे ही रहे हैं.

अदालतों का वैवाहिक कानूनों में धार्मिक दखल पर अंकुश

सुप्रीम कोर्ट ने अब 18 वर्ष से कम उम्र की पत्नी के साथ शारीरिक संबंध बनाने को दुष्कर्म श्रेणी की व्यवस्था दी है. लड़की की शिकायत पर पुलिस पति पर रेप का केस दर्ज कर सकती है. यह फैसला देश के सभी धर्मों व वर्गों पर समानरूप से लागू होगा. मुसलिम पर्सनल ला में 15 वर्ष की लड़की को विवाहयोग्य माना गया है पर लड़की की शिकायत पर अब मामला दर्ज करना होगा. लड़की के विवाह की उम्र अभी तक धर्म तय करता आया है. उसी आधार पर धार्मिक वैवाहिक कानून बना दिए गए. अब उन में संशोधन किए जा रहे हैं.

मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की पीठ ने एक पारसी महिला गूलरोख एम गुप्ता की याचिका पर आदेश दिया है जिसे हिंदू युवक से शादी करने के बाद पारसी समुदाय ने पारसी मानने से इनकार कर दिया था. गूलरोख गुजरात हाईकोर्ट गईं तो वहां भी कहा गया कि जब भी महिला अपने धर्म से बाहर किसी व्यक्ति से शादी करती है तो उस का धर्म वही हो जाता है जो उस के पति का है.

गूलरोख ने 1991 में विशेष विवाह कानून 1954 के तहत हिंदू युवक से विवाह किया था. गूलरोख को उस के पिता के अंतिम संस्कार में यह कह कर रोक दिया गया कि वह विवाह के बाद पारसी नहीं रही. गुजरात हाईकोर्ट ने गूलरोख की याचिका खारिज कर दी और कहा कि उसे पारसी अग्निमंदिर में प्रवेश नहीं देना सही है. इस पर मामला सुप्रीम कोर्ट में गया. यहां गूलरोख की वकील इंदिरा जयसिंह ने कहा कि गुजरात हाईकोर्ट का फैसला संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 21 और 25 के खिलाफ है.

इस औरत के सामने समस्या यह है कि वह धर्म को देखे या दांपत्य को? धर्म की वजह से बने ऐसे कानूनों ने दांपत्य की जड़ें खोखली की हैं. परिवारों में जहर घोला है.

धर्म की दखलंदाजी

वैवाहिक कानूनों में धर्म की घुसपैठ के अनगिनत मामले हैं. अगर महिला या पुरुष धर्म बदले बिना शादी करते हैं तो ऐसी शादियां वैध नहीं मानी जाएंगी. ऐसा ही एक मामला मद्रास हाईकोर्ट में आया. कोर्ट ने फैसले में कहा कि एक हिंदू महिला और एक ईसाई पुरुष के बीच शादी तब तक कानूनन वैध नहीं है जब तक दोनों में से कोई एक धर्मपरिवर्तन नहीं करता. महिला के परिजनों द्वारा दाखिल बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका को खारिज करते हुए न्यायाधीश पी आर शिवकुमार और वी एस रवि ने कहा कि यदि यह जोड़ा हिंदू रिवाजों के अनुसार शादी करना चाहता है तो पुरुष को हिंदू धर्म अपनाना चाहिए और यदि महिला ईसाई रिवाजों के अनुसार शादी करना चाहती है तो उसे ईसाई धर्म ग्रहण करना चाहिए.

अगर वे दोनों बिना धर्मपरिवर्तन के अपनाअपना धर्म बनाए रखना चाहते थे तो विकल्प के रूप में उन की शादी विशेष विवाह अधिनियम 1954 के तहत पंजीकृत करानी चाहिए थी.

याचिका दाखिल किए जाने के बाद अदालत में पेश की गई महिला ने अदालत को बताया कि उस ने पलानी में एक मंदिर में शादी की थी. इस पर अदालत ने कहा कि यदि पुरुष ने धर्मपरिवर्तन नहीं किया है तो हिंदू कानून के अनुसार, शादी वैध कैसे हो सकती है.

इसी तरह विवाह के ईसाई कानून 1872 के भारतीय ईसाई विवाह अधिनियम द्वारा शासित मामले में सुप्रीम कोर्ट का एक अहम फैसला आया था. फैसले के अनुसार, पर्सनल ला के तहत चर्च से दिए गए तलाक वैध नहीं होंगे. अदालत ने फैसला सुनाते हुए कहा था कि क्रिश्चियन पर्सनल ला, इंडियन क्रिश्चियन मैरिज एक्ट 1872 और डायवोर्स एक्ट 1869 को रद्द कर प्रभावी नहीं हो सकता.

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र की उस दलील को मान लिया जिस में 1996 के सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश का हवाला दिया गया था कि किसी भी धर्र्म के पर्सनल ला देश के वैधानिक कानूनों पर हावी नहीं हो सकते. यानी, कैनन ला के तहत तलाक कानूनी रूप से मान्य नहीं होगा.

सुप्रीम कोर्ट ने उस जनहित याचिका को खारिज कर दिया जिस में चर्च से मिले तलाक को कानूनी मान्यता दिए जाने की मांग की गई थी. याचिका में कहा गया था कि चर्च से मिले तलाक पर सिविल कोर्ट की मुहर लगनी जरूरी न हो.

दरअसल, मंगलौर के रहने वाले क्लेंरैंस पायस की इस जनहित याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने विचारार्थ स्वीकार कर लिया था. ईसाइयों के धर्मविधान के अनुसार, कैथोलिक ईसाइयों को चर्च की धार्मिक अदालत में पादरी द्वारा तलाक या अन्य डिक्रियां दी जाती हैं.

सुप्रीम कोर्ट में याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया था कि चर्च द्वारा दी जाने वाली तलाक की डिक्री के बाद कुछ लोगों ने जब दूसरी शादी कर ली तो उन पर बहुविवाह का मुकदमा दर्ज हो गया. ऐसे में सुप्रीम कोर्ट घोषित करे कि कैनन ला यानी धर्मविधान में चर्च द्वारा दी जा रही तलाक की डिक्री मान्य होगी और उस पर सिविल अदालत से तलाक की मुहर जरूरी नहीं है.

बहुचर्चित शाहबानो को भी धार्मिक कानून की ज्यादती की शिकार बनना पड़ा. तलाकशुदा शाहबानो जब सुप्रीम कोर्ट गई तो उसे निर्वाह राशि मिल गई. सर्वाेच्च न्यायालय ने आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के तहत अधिकार को मान्यता दी. मोहम्मद अहमद खान बनाम शाहबानो बेगम मामले में इंदौर की रहने वाली 62 वर्षीय शाहबानो को उस के पति मोहम्मद अहमद ने 1972 में तलाक देने के बाद केवल मामूली सी मेहर की रकम वापस की थी. शाहबानो ने सुप्रीम कोर्ट से गुहार लगाई तो कोर्ट ने धारा 125 के तहत फैसला सुनाते हुए मोहम्मद अहमद खान को शाहबानो को खानाखर्च देने का फैसला सुनाया पर कट्टरपंथी मुसलिम संगठनों ने इसे शरीयत कानून में दखल मानते हुए तब की राजीव गांधी सरकार पर दबाव बनाया. परिणामस्वरूप, राइट टू प्रोटैक्शन औन डिवोर्स-1986 कानून बना कर फैसला बदल दिया गया.

 अगर केंद्र सरकार ने दृढ़ता दिखाई होती तो इसलामिक कानूनों के जरिए महिलाओं के शोषण का मामला सालों पहले ही सुलझ गया होता पर सरकार कट्टरपंथियों के आगे झुक गई.

केंद्र सरकार मुसलिम महिलाएं (तलाक के अधिकार) बिल-1986 ले कर आई जो कि सुप्रीम कोर्ट के नियमों को बदल कर मुसलिम महिलाओं को बाकी सभी महिलाओं के अधिकारों से वंचित करता था.

अवैध विवाह

1985 में सरला बनाम यूनियन औफ इंडिया एवं अन्य का मामला सामने आया था. सरला मुद्गल सहित कई अन्य औरतों ने दूसरी शादी करने की मंशा से पुरुषों द्वारा धर्मपरिवर्तन के मामलों को चुनौती दी थी. मीना माथुर के पति जितेंद्र माथुर ने मीना को तलाक दिए बिना इसलाम धर्म स्वीकार कर मुसलिम औरत से शादी कर ली थी. 1992 में गीता रानी के पति प्रदीप कुमार ने भी इसलाम स्वीकार कर दूसरी शादी कर ली थी.

इन सभी याचिकाओं में ऐसे मामलों में रोक लगाने की सुप्रीम कोर्ट से गुहार की गई. इन मामलों में न्यायाधीश कुलदीप सिंह की पीठ ने भारतीय दंड संहिता की धारा 494 के तहत फैसला सुनाते हुए पहली बार पत्नी को तलाक दिए बिना विवाह को अवैध करार दिया था. जस्टिस कुलदीप सिंह ने कहा था कि इस तरह के मामलों पर रोक के लिए अनुच्छेद 44 पर विचार करना चाहिए.

एक एडवोकेट लिली थौमस ने वर्ष 2000 में दूसरी शादी के मकसद से इसलाम कुबूल करने को गैरकानूनी करार देने और हिंदू मैरिज एक्ट में ऐसा संशोधन करने के लिए याचिका डाली थी जिस से कि इसलाम को कुबूल कर लोग हिंदू धर्म के अनुसार ब्याहता को धोखा न दे सकें.

कुछ समय पहले हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भजनलाल के बेटे चंद्रमोहन द्वारा इसलाम धर्म अपना कर दूसरी शादी करने का मामला सामने आया था. चंद्रमोहन ने अनुराधा बाली नाम की एक महिला से शादी करने के लिए धर्म बदल लिया और अपना नाम चांद मोहम्मद कर लिया. अनुराधा बाली का नाम फिजा रखा गया. चंद्रमोहन के इस कदम से परिवार के लोग नाराज हुए और उन से रिश्ता तोड़ कर दूरी बना ली. चंद्रमोहन को संपत्ति से वंचित भी कर दिया गया.

बाद में परिवार के बढ़ते दबाव के चलते चंद्रमोहन ने फिजा को तलाक दे दिया और वापस हिंदू धर्म अपना लिया. उधर तलाक दिए जाने से नाराज अनुराधा बाली ने फरवरी 2009 में चंद्रमोहन के खिलाफ बलात्कार, धोखाधड़ी और मानहानि का मामला दर्ज कराया था. हालांकि, बाद में 16 अगस्त, 2012 को फिजा की लाश सड़ीगली अवस्था में उस के घर में मिली थी.

भारत में शादियां सदियों पुरानी धार्मिक किताबों, सड़़ेगले रीतिरिवाजों और रूढि़वादी परंपराओं व उन पर बने कानूनों से होती आ रही हैं. हर धर्म का अपना पर्सनल ला है जिस के अंतर्गत विवाह संपन्न होते हैं. विवाह के इन कानूनों में पतिपत्नी के बीच पंडा, पादरी, मुल्ला और परंपराएं अनिवार्य अंग हैं. विवाह को संस्कार माना गया है, करार नहीं.

पर्सनल धार्मिक कानूनों ने विवाह नाम की संस्था की नींव खोखली कर दी है. विवाह में धर्म की फुजूल उपस्थिति ने औरत की मरजी को हाशिए पर धकेल दिया है. उस के साथ भेदभाव, असमानता, कलह, हिंसा के रास्ते खोल दिए गए. सीधेसीधे 2 मनुष्यों के बीच एक करार के बजाय विवाह को अनावश्यक बाहरी आडंबरों का आवरण ओढ़ा दिया गया.

अब धीरेधीरे कई मामले सामने आ रहे हैं जिन में या तो औैरत ऐसे आवरण को उतार कर फेंक रही है या रूढि़यों से बगावत कर रही है.

साथ ही साथ, सुप्रीम कोर्ट पर्सनल ला को स्त्रियों के लिए अन्याय, शोषण का जरिया नहीं बनने देने के निर्णय सुना रहा है. सुप्रीम कोर्ट ने हाल में कुछ ऐसे ही फैसले किए हैं या ऐसे मामले संविधान पीठ को सौंपे हैं.

धर्म के नाम पर बने कानून के माध्यम से कैसे एक औरत की जिंदगी न केवल बरबाद की जा सकती है, उसे मरने पर मजबूर भी किया जा सकता है.

तीन तलाक का मामला भी धर्म पर आधारित एकपक्षीय था. इस में औरत का पक्ष सुने बिना उसे त्याग देने का एकतरफा फैसला न्याय के सिद्घांत का खुला उल्लंघन था.

औरतों के साथ भेदभाव को ले कर सुप्रीम कोर्ट ने समयसमय पर न सिर्फ टिप्पणियां की हैं, सरकार को इस दिशा में निर्देश भी दिए हैं. फरवरी 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा था कि यह बहुत ही आवश्यक है कि सिविल कानूनों से धर्म को बाहर किया जाए.

मई 1995 को एक सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने समान नागरिक संहिता को अनिवार्य रूप से लागू किए जाने पर जोर दिया था. कोर्ट का कहना था कि इस से एक ओर जहां पीडि़त महिलाओं की सुरक्षा हो सकेगी, वहीं दूसरी ओर राष्ट्रीय एकता बढ़ाने के लिए भी यह आवश्यक है.

कोर्ट ने उस वक्त यहां तक कहा था कि इस तरह के किसी समुदाय के निजी कानून स्वायत्तता नहीं, अत्याचार के प्रतीक हैं. भारतीय नेताओं के द्विराष्ट्र अथवा तीन राष्ट्रों के सिद्धांत को कोर्ट ने स्वीकार नहीं किया. भारत एक राष्ट्र है और कोई समुदाय मजहब के आधार पर स्वतंत्र अस्तित्व का दावा नहीं कर सकता.

जब भी धार्मिक पर्सनल कानूनों में बदलाव की बात उठती है, हर धर्म के ठेकेदार इसे धर्म में दखलंदाजी करार देते हुए धार्मिक स्वतंत्रता पर हमला बता कर विरोध पर उतर आते हैं. इन कानूनों में महिलाओं के साथ असमानता, भेदभाव व्याप्त हैं.

अलग धर्म, अलग रीतियां

हमारे देश में अलगअलग धर्मों के  लोग रहते हैं. यहां हर समुदाय के अपने पर्सनल ला हैं. हिंदू मैरिज एक्ट, क्रिश्चियन मैरिज एक् ट 1872, इंडियन डिवोर्स एक्ट 1869, भारतीय उत्तराधिकार नियम 1925. इसी तरह पारसी मैरिज ऐंड डिवोर्स एक्ट 1936, यहूदियों का मैरिज एक्ट है. इन के उत्तराधिकार और संपत्ति कानून भी अलग हैं. मुसलमानों के भी ऐसे ही हैं. हालांकि सभी कानूनों में समयसमय पर सुधार होते रहे हैं लेकिन मुसलिमों का शरीयत कानून तो करीब 100 वर्षों से वैसा ही है.

रूढि़वादी समाज में धर्म जीवन के हर पहलू को संचालित करता रहा है. आज भी धार्मिक रीतिरिवाज वैवाहिक कानूनों के आवश्यक हिस्से हैं. हिंदू विवाह में वैवाहिक वेदी, सप्तपदी, कलश, पंडित और मंत्र जरूरी हैं. दूसरे धर्मों में पादरी जैसे धार्मिक बिचौलिए की उपस्थिति आवश्यक है.

पौराणिक काल से हिंदुओं में विवाह को एक पवित्र संस्कार माना गया है और हिंदू विवाह अधिनियम 1955 में भी इस को इसी रूप में बनाए रखने की कोशिश की गई. हालांकि विवाह पहले पवित्र एवं अटूट बंधन था, अधिनियम के अंतर्गत ऐसा नहीं रह गया. पवित्र एवं अटूट बंधन वाली विचारधारा अब शिथिल पड़ने लगी है. अब यह जन्मजन्मांतर का बंधन नहीं, विशेष परिस्थितियों के उत्पन्न होने पर वैवाहिक संबंध को तोड़ा भी जा सकता है.

शारीरिक व मानसिक निर्दयता, 2 वर्षों तक त्याग, रतिज रोग, परपुरुष या परस्त्री गमन, धर्मपरिवर्तन, पागलपन, कुष्ठ रोग, संन्यास जैसी दशा में संबंध विच्छेद हो सकता है. स्त्रियों को द्विविवाह, बलात्कार, पशुमैथुन, अप्राकृतिक मैथुन जैसे आधार पर संबंध विच्छेद करने का अधिकार प्राप्त है.

अधिनियम द्वारा अब हिंदू विवाह प्रणाली में कई परिवर्तन हुए हैं. अब हर हिंदू स्त्रीपुरुष दूसरे हिंदू स्त्रीपुरुष से विवाह कर सकता है चाहे वह किसी जाति का हो. एक विवाह तय किया गया है, दूसरा विवाह अमान्य एवं दंडनीय है. न्यायिक पृथक्करण, संबंध विच्छेद तथा विवाह शून्यता की डिक्री की घोषणा की  व्यवस्था की गई है. प्रवृत्तिहीन तथा असंगत विवाह के बाद और डिक्री पास होने के बीच उत्पन्न संतान को वैध घोषित कर दिया गया है पर इस के लिए डिक्री का पास होना आवश्यक है.

न्यायालय पर यह वैधानिक कर्तव्य नियत किया गया है कि हर वैवाहिक झगड़े में समाधान कराने का प्रथम प्रयास किया जाए. बाद में संबंध विच्छेद पर निर्वाह व्यय एवं निर्वाह भत्ता की व्यवस्था की गई है. न्यायालय को इस बात का अधिकार दिया गया है कि वह अवयस्क बच्चों की देखरेख एवं भरणपोषण की व्यवस्था करे.

इस के बावजूद हिंदुओं में विवाह को अब भी संस्कार माना जाता है, जन्मजन्मांतर का बंधन माना जाता है. पर अब विवाह में लड़ाई, झगड़ा, शोषण भी दिखता है, हत्याएं भी होती हैं. पतिपत्नी में एकदूसरे को नीचा दिखाने की होड़ भी चलती है. विवाह होने पर युवती अपने पिता का घर छोड़ती है, वह अपने मांपिता को ही नहीं, अपना गोत्र, सरनेम और अपनी तरुणता भी छोड़ती है.

समान नागरिक संहिता की मांग

पर्सनल कानूनों में धर्म के आधार पर भेदभाव की वजह से समयसमय पर समान नागरिक कानून की  मांग की जाती रही है. कई बार सुप्रीम कोर्ट के सामने भी ऐसी स्थिति आई जब सरकार से जवाब मांगना पड़ा. समान नागरिक संहिता के निर्माण की मांग 1930 के दशक में उठाई गई थी और बी एन राव की अध्यक्षता में एक कमेटी गठित की गई. समिति ने 1944 में हिंदू कोड से संबंधित मसविदा सरकार को सौंपा था पर कोई कार्यवाही नहीं की गई.

आजादी के बाद अंबेडकर की अध्यक्षता वाली समिति ने हिंदू कोड बिल में विवाह की आयु बढ़ाने, औरतों को तलाक का अधिकार देने के साथ दहेज को स्त्रीधन मानने के सुझाव दिए थे.

समान नागरिक संहिता की वकालत करने वालों का दावा है कि यह आधुनिक और प्रगतिशील देश का प्रतीक है. इसे लागू करने से देश धर्म, जाति, वर्ग के आधार पर भेदभाव नहीं करेगा.

समान नागरिक संहिता के पक्षधर लोगों की दलील है कि एक धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक देश में प्रत्येक नागरिक के लिए कानूनी व्यवस्थाएं समान होनी चाहिए. सुप्रीम कोर्ट का बारबार तर्क रहा है कि कानून बनाना सरकार का काम है, इसलिए कोई इस में हस्तक्षेप नहीं कर सकता. न ही सरकार को कानून बनाने का आदेश दिया जा सकता है पर अगर कोई पीडि़त सुप्रीम कोर्ट जाता है तो कोर्ट को उस पर सुनवाई करनी पड़ती है.

हिंदू विवाह कानून 1955 में लागू हुआ था और अब तक इस में कई संशोधन हो चुके हैं.

पितृसत्तात्मक समाज व्यवस्था विवाह नामक संस्था में पत्नी को पति के बराबर आर्थिक अधिकार देने से रोकती रही है. औरतों के प्रति ऐसी सामाजिक जड़ता की कीमत उन्हें ही सब से अधिक चुकानी पड़ती है. दहेज के नाम पर औरतों से उन का संपत्ति से अधिकार छीन लिया गया. ब्रिटिश शासन के दौरान भूमि बंदोबस्त अभियान व संपत्ति संबंधी कानूनों में बहुत से स्त्रीविरोधी फेरबदल किए गए.

इस का मतलब है कि समाज में आज भी यह धारणा मजबूत है कि शादी होने के बाद लड़की पराई हो जाती है. मायके में वह मेहमान बन कर रह जाती है.

पैतृक संपत्ति में भले ही उसे कानूनन हक हासिल हो गया है पर इस का  इस्तेमाल कितनी महिलाएं करती हैं? सामाजिक तानेबाने की जकड़न व अपने हकों को मांगने वाली जागरूकता की कमी बड़ी बाधाएं हैं.

विवाह और भाग्यवाद

धर्म के बिचौलियों को विवाह के ज्यादा अधिकार दे दिए गए. धर्र्म पर आधारित कानूनों की जंजीरों से आजादी का एकमात्र रास्ता यह है कि विवाह धार्मिक बंधनों से मुक्त हों.

विवाह की बात आती है तो अकसर कहा जाता है कि जोड़ी ऊपर से बन कर आती है. वैवाहिक जीवन भाग्य पर छोड़ दिया गया है.

हालांकि पहले नानी, दादी, ताई, चाची सिखाती थीं पर उन बातों में व्यावहारिकता कम जबकि सेवा, पूजा, भक्ति की बातें अधिक होती थीं. मसलन, पति को परमेश्वर बताया गया. पत्नी उस की दासी बन कर सेवा करने का हुक्म दिया गया. बच्चे पैदा करना और गृहस्थ संभालना कर्तव्य माना गया. इस तरह की बातें इसलिए सिखाईर् जाती रही हैं ताकि धर्म के धंधेबाजों का रोजगार चलता रहे.

दिक्क्त यह है कि समाज का बड़ा तबका विवाह, तलाक और उत्तराधिकार जैसे मामलों को धर्म से जोड़ कर देखता है. कानूनों में धार्मिक दखलंदाजी की वजह से महिलाओं के बीच आर्थिक और सामाजिक असुरक्षा में बढ़ोतरी होती जा रही है.

दरअसल, विवाह एक करार है. पतिपत्नी दोनों एकदूसरे के पूरक हैं, यह बात समाज ने उन्हें नहीं सिखाई. वैवाहिक जीवन को ले कर व्यावहारिक बातें सिखाई जानी बहुत जरूरी हैं. अफसोस यह है कि विवाह संस्था को चलाने के लिए ठोस नियमकायदे और टे्रनिंग देने वाली कोई संस्था नहीं है.           

कन्यादान क्यों

धार्मिक अनुष्ठान के बाद कन्या का पिता विवाह संपन्न होने की कीमत के तौर पर अपनी बेटी को दान कर देता है. क्यों? 

लिंगभेद हर कानून में है. कानूनन वैवाहिक स्थिति में स्त्री की सुरक्षा का विशेष खयाल रखा गया है. वैवाहिक मुकदमों की प्रकृति देखें तो अकसर वधू पक्ष द्वारा वर पक्ष पर दहेज प्रताड़ना, शारीरिक शोषण और पुरुष के परस्त्री से अवैध संबंध, मानसिक प्रताड़ना जैसे मामले देखे गए हैं.

असल में स्त्री के प्रति जो सामाजिक सोच बनी हुई है उस से उसे बचाने के लिए कानून में सुरक्षा देने का प्रयास किया गया. वैसे, कई बार अदालत में यह भी साबित हुआ है कि वधू पक्ष द्वारा वर पक्ष को तंग करने के लिए अकसर दहेज के मामले दर्ज कराए जाते हैं. तिहाड़ जेल के महिला सेल में छोटे से बच्चे से ले कर 80-90 साल तक की वृद्धा दहेज प्रताड़ना के आरोपों में बंद हैं.

दहेज का मतलब विवाह के समय वधू पक्ष द्वारा वर पक्ष को दी जाने वाली संपत्ति से है. दहेज को स्त्रीधन कहा गया है. विवाह के समय सगेसंबंधियों द्वारा दिया गए धन, संपत्ति एवं उपहार दहेज के अंतर्गत आते हैं. अगर विवाह के बाद पति या  उस के परिवार वालों द्वारा दहेज की मांग को ले कर दूसरे पक्ष को किसी प्रकार का कष्ट, संताप या प्रताड़ना दी जाएं तो स्त्री को यह अधिकार है कि वह उस दहेजरूपी संपत्ति को पति पक्ष से वापस ले ले.

हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 27, स्त्री को इस प्रकार की सुरक्षा प्रदान करती है. 1985 में सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश फाजिल अली ने अपने एक फैसले में कहा था कि स्त्रीधन एक स्त्री की अपनी संपत्ति है. यह संपत्ति पति पक्ष पर पत्नी की धरोहर है और उस पर उस का पूरा अधिकार है. इस का उल्लंघन करना दफा 406 के तहत अमानत में खयानत का अपराध है.

पर सवाल है कि आखिर लड़की को विवाह के समय यह दहेज क्यों दिया जाए?

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें