अंतरिक्ष के बारे में जानने में है दिलचस्पी, तो यहां चले आएं

क्या आपको अंतरिक्ष की दुनिया अचंभे में डालती है, क्या आप अंतरिक्ष की दुनियां की सैर करना चाहती हैं तो आज हम आपको दुनिया के कुछ ऐसे ही जगहों के बारे में बताने जा रहे हैं जहां जाने के बाद शायद आपको आपके सारे सवालों का जवाब मिल जाए.

स्मिथसोनियन नेशनल एयर एंड स्पेस म्यूजियम

अमेरिका के वाशिंगटन डीसी में बना स्मिथसोनियन नेशनल एयर एंड स्पेस म्यूजियम आपके लिए किसी खजाने से कम नहीं है. यहां आपको डिस्‍कवरी यान देखने को मिलेगा. यहां ढेरों स्‍पेस व्हीकल मौजूद हैं. आगर आप स्‍पेस साइंस में रुचि रखती हैं तो ये जगह आपको जन्‍नत नजर आएगी.

कैनेडी स्‍पेस सेंटर

कैनेडी स्पेस सेंटर यूएस के फ्लोरिडा में बना है. नेशनल एरोनौटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन में 1968 से हर वो स्‍पेस फ्लाइट जिसमें मानव थें यहीं से लौन्‍च की गई है. यह फ्लोरिडा के सबसे बड़े आकर्षणों में से एक है. एटलांटिस शटल को लान्च करते समय यहां हजारों लोगों की भीड़ थी.

यूएस स्‍पेस एंड रौकेट सेंटर

यूएस स्‍पेस एंड रौकेट सेंटर अमेरिका के अलाबामा में बना हुआ दुनिया का सबसे शानदार स्‍पेस फ्लाइट म्‍यूजियम है. मार्शल स्‍पेस फ्लाइट सेंटर से यहां पर औफीशियल विजिटर आते हैं. ये जगह बहुत सारे स्‍पेस व्हीकल का घर है. यहां 1500 से अधिक स्‍पेस एक्‍सप्‍लोरेयान आर्टीफैक्‍ट हैं. बच्‍चे यहां लगने वाले कैंप में हिस्‍सा ले सकते हैं.

स्‍पेस सेंटर ह्यूस्‍टन

अमेरिका के टेक्‍सास में बना ह्यूस्‍टन स्‍पेस सेंटर भी नासा का ही हिस्‍सा है. ये रिसर्च और ट्रेनिंग के लिये प्रयोग में लाया जाता है. यहां आने वालों के लिए स्‍पेस व्हीकल, एस्‍ट्रोनौट गियर, ट्रेलिंग फैसिलिटी और प्रयोगशाला है. सेंटर की ओर से मीट एन एस्‍ट्रोनौट डे प्रोग्राम भी चलाया जाता है.

हौन्‍गकौन्‍ग स्‍पेस म्‍यूजियम

हौन्‍गकौन्‍ग में बना यह स्‍पेस म्‍यूजियम यहां के लिए बेहद खास है. यहां होने वाले सभी रिसर्च और प्रोजेक्‍ट को यहां पर सजाकर रखा गया है. यहां पर एक स्‍पेस थिएटर के साथ दो बड़े प्रदर्शिनी कक्ष भी है. यहां पर एस्‍ट्रोनौमी कार्निवल और एस्‍ट्रोनौमी कंपटीशन और लैक्‍चर समय-समय पर होते रहते हैं.

वर्णव्यवस्था की शिकार साफसफाई

6 अगस्त, 2017, दिल्ली के लाजपत नगर में गटर की सफाई कर रहे  3 मजदूरों की जहरीली गैस के रिसाव के चलते मौत हो गई. यह पहली घटना नहीं है. इस से पहले दक्षिणी दिल्ली के घिटोरनी इलाके में सैप्टिक टैंक में मजदूरी करने उतरे 4 लोग भी मौत के मुंह में समा चुके हैं. इसी  तरह 3 मई, 2017 को पटना, बिहार में सफाई करने के दौरान गटर में गिरने से 2 सफाईकर्मियों की मौत हो गई.

स्वच्छ भारत अभियान के तहत नेता व अफसर हाथों में झाड़ू ले कर फोटो खिंचवा लेते हैं और इश्तिहारी ढोल बजा कर मीडिया में गाल भी बजा लेते हैं. लेकिन सचाई यह है कि साफसफाई के मामले में हम आज भी अमीर मुल्कों से कोसों पीछे हैं. सही व्यवस्था नहीं होने के कारण 1 सितंबर को दिल्ली के गाजीपुर में कचरे का पहाड़ का एक हिस्सा धंस जाने से 2 लोगों की मौत हो गई. ज्यादातर गांवों, कसबों व शहरों में आज भी गंदगी के ढेर दिखाई देते हैं.

वर्णव्यवस्था का जाल

हमारी धार्मिक, सामाजिक व्यवस्था ने हमें अपनी गंदगी, कूड़ाकरकट स्वयं साफ करने की सीख नहीं दी. हमें सिखाया गया है कि आप अपनी गंदगी वहीं छोड़ दें या बाहर फेंक दें. कोई दूसरा वर्ग है जो इसे उठाएगा. गंदगी उठाने वाले वर्ग को यह कार्य उस के पूर्वजन्म के कर्मों का फल बताया गया. गंदगी को उस की नियति करार दिया गया. इसलिए निचले वर्गों को बदबूदार गंदगी के ढेर में रहने की आदत है.

वर्णव्यवस्था में शूद्रों यानी पिछड़ों का काम ऊपर के 3 वर्णों की सेवा करना, उन का बचा हुआ भोजन खाना और उतरा हुआ कपड़ा पहनना बताया गया. इस व्यवस्था की वजह से यह वर्ग भी गंदगी को त्याग नहीं पाया. वहीं इन चारों वर्णों से बाहर का एक पांचवां वर्ण था दलित. उसे गांव, शहर से बाहर रहने का आदेश दिया गया. उसी का काम गंदगी उठाना, साफसफाई करना और मरे हुए पशुओं को ठिकाने लगाना था. सदियों बाद भी यह वर्ग इस सब से उबर नहीं पाया है.

आबादी का बड़ा हिस्सा पुलों के नीचे, सड़कों व नालों के किनारे, उड़ती धूल व कीचड़ के पास बनी झुग्गी बस्तियों में रहता है. गंदगी के कारण बहुत से लोग बीमारियों से  भरी जिंदगी जीते हैं. ठेलेखोमचों पर चाटपकौड़ी व खानेपीने की दूसरी बहुत सी चीजें खुली हुई बिकती रहती हैं और लोग बड़े आराम से उन्हें खातेपीते रहते हैं.

सिर्फ एअरपोर्ट, महानगरों की पौश कालोनियों, रईसों के बंगले, अमीरों के फार्महाउस व नेताओं की कोठियों आदि कुछ अपवादों को छोड़ कर देश के ज्यादातर इलाकों में गंदगी की भरमार है. नदी, नाले, गली, महल्ले, बसअड्डे, रेलवेस्टेशन, रेल की पटरियां, प्लेटफौर्म, सिनेमाघर, सड़कें, पार्क, सरकारी दफ्तर, स्कूल, अस्पताल आदि सार्वजनिक इमारतों में जहांतहां गंदगी पसरी रहना आम बात है.

भारी गंदगी के कारण देश में तरक्की के बजाय पिछड़ापन, निकम्मापन व बदइंतजामी दिखती है. इस वजह से विदेशी सैलानी भारत के नाम पर नाकभौं सिकोड़ते हैं. वे हमारे देश में आने से हिचकते हैं. सो, हमारे रोजगार के मौके घटते हैं. गंदगी से बहुत सी बीमारियां फैलती हैं. इस के चलते इंसान की कम वक्त में बेहतर व ज्यादा काम करने की कूवत घटती है. परिणामस्वरूप, उस की आमदनी कम होती है.

हक से बेदखल

बहुत से लोग आज भी गंदे रहते हैं क्योंकि हमारे समाज में धर्म के ठेकेदारों  ने अपनी चालबाजियों से जातिवाद के जहरीले बीज बोए. सारे अच्छे काम अपने हाथों में ले कर शूद्रों को सिर्फ सेवा करने का काम दिया. जानबूझ कर इन को हर तरह से कमजोर बनाया गया. धर्म की आड़ में चालें चली गईं कि सेवाटहल करने वाले माली व अन्य पिछड़े वर्ग सामाजिक तौर पर ऊपर न उठने पाएं. नियम बना कर उन्हें गंदा व गांवों से बाहर गंदी जगहों में जानवरों के साथ व जानवरों की तरह जीने, रहने पर मजबूर किया गया.

दलितों व पिछड़ों को बुनियादी हकों से बेदखल रखा गया. इसी कारण ज्यादातर लोग आज भी गंदगी में ही रहने, खाने व जीने के आदी हैं. आबादी का बड़ा हिस्सा दलितों व पिछड़ों का है और उन्हें सदियों से गंदा रहने के लिए मजबूर किया जाता रहा है. जहांतहां पसरी भयंकर गंदगी की असली वजह यही है. इस में सब से बड़ी व खास बात यह है कि निचले तबके के लोग अपनी मरजी से नहीं, बल्कि उन पर जबरदस्ती थोपे गए सामाजिक नियमों के कारण गंदगी में रहते हैं.

सब से बड़ी खोट तो अगड़ों की उस गंदी व पुराणवादी हिंदू पाखंडी सोच में है जिस में वे खुद को सब से आगे व ऊपर रखने के लिए दूसरों, खासकर कमजोरों, को जबरदस्ती धकेल कर नीचे व पीछे रखा जाता है. बेशक, आगे बढ़ना अच्छा है लेकिन यह हक सभी का है. सिर्फ अपनी बढ़त के लिए दूसरों को उन के अधिकारों से बेदखल करना सरासर गलत तथा समाज, संविधान व इंसानियत के खिलाफ है. इसलिए सफाई के लिए दिमाग के जाले साफ करने भी जरूरी हैं.

ऊंची जातियों की साजिश

मुट्ठीभर ऊंची जातियों वाले अमीर दबंग वर्णव्यवस्था के नाम पर अपनी दबंगई, अमीरी व बाहुबल पर सदियों से दलितों व पिछड़ों पर राज करते रहे हैं. अपने हक में तरहतरह के नियम बना कर निचले तबकों को नीचे व पीछे रखने की साजिशें रचते रहे हैं. उन्हें कुओं पर चढ़ने, मंदिरों में घुसने व बरात निकालने व मरने पर आम रास्ते से लाश ले जाने तक से वंचित किया गया. पिछले दिनों बिहार में दलितों को अपने संबंधी की लाश को तालाब से हो कर ले जाना पड़ा था.

मंदिर कोई पैसा कमा कर नहीं देते पर उन में घुसने न देना दलितों में हीनभावना भर देता है. पंडेपुजारियों की मदद से अगड़ों द्वारा दलितों व पिछड़ों के खिलाफ बनाए गए सामाजिक नियमों की फेहरिस्त बहुत लंबी है. पुनर्जन्म और पिछले जन्म के कर्मों का फल बताने के साथ नीच व मलेच्छ बता कर उन के नहानेधोने, नल से पानी लेने, साफसुथरे रहने, अच्छे कपड़े पहनने, पक्के घर बनाने व पढ़नेलिखने तक पर पाबंदियां लगाई गईं. गंदगी में रह कर जानवरों से बदतर जिंदगी जीने पर उन्हें मजबूर किया गया ताकि वे ऊपर उठ कर या उभर कर किसी भी तरह मजबूत न होने पाएं.

धर्मग्रंथों में अगड़ों के कुल वंश में जन्म लेने को पुण्य का परिणाम व दलितों को पाप की पैदाइश बताया गया है. हालांकि हमारे संविधान में सभी को बराबरी का दरजा हासिल है लेकिन दलित व पिछड़े आज भी गंदगी में रहते हैं क्योंकि वे अगड़े, अमीरों व दबंगों के रहमोकरम पर जीते हैं. आज कुछ को मंदिरों में जाने दिया जा रहा है लेकिन उन्हें दूसरे दरजे के देवीदेवता दिए गए हैं.  साफसुथरे रह कर कहीं वे सामने आ कर मुकाबला करने लायक न हो जाएं, इस डर से अगड़ों ने दलितों व पिछड़ों को सदियों तक किसी भी तरह उबरने नहीं दिया. उन का खुद पर से यकीन तोड़ने के लिए ही उन्हें उतरन व जूठन की सौगातें बख्शिश में दी जाती हैं. इतना ही नहीं, ऊपर से उन्हीं के सामने जले पर नमक बुरकते हुए यह भी कहा जाता है कि ये तो गंदगी में रहने के ही आदी हैं.

दोषी कौन?

आम आदमी की जिंदगी में जो कुछ भरा गया, जहां जैसे खराब माहौल में उन्हें रखा गया, सामाजिक नियमों के चलते जो गंदे हालात उन्होंने देखे, उसी के मुताबिक वे आज भी गंदगी में जीते, खाते व रहते हैं. इस में दोष उन का नहीं है. असल दोषी तो वे हैं जिन्होंने अपने मतलब की वजह से समाज में उन्हें  गंदा बनाए रखने के नियम बनाए. उन्हें साफसफाई की अहमियत नहीं जानने दी. साफसुथरा नहीं रहने दिया. सो, जागरूक हो कर इन चालबाजियों को समझना बेहद जरूरी है ताकि जिंदगी दुखों की गठरी न साबित हो.

ज्यादातर अगड़े, अमीर खुद साफसफाई जैसे किसी भी काम को हाथ नहीं लगाते. दरअसल, उन की नजर में काम करना तो सिर्फ दलितों व पिछड़ों का फर्ज व जिम्मेदारी है. अमीर मुल्कों में नेता, अफसर व अमीर सब खुद अपनी मेज आदि साफ करने में जरा भी नहीं हिचकते, जबकि यहां इसे हिमाकत समझा जाता है. हर काम के लिए दलितों का सहारा लिया जाता है. इसलिए हमारे देश में गंदगी की समस्या भयंकर होती जा रही है.

समाज में आज भी ऐसे घमंडी सिरफिरों की कमी नहीं है जो जाति के आधार पर ऊंचनीच का फर्क करते हैं, कमजोरों के साथ भेदभाव करते हैं. उन्हें दलितों व पिछड़ों की खुशहाली खटकती है. दलितों, पिछड़ों के पास वाहन व पक्के घर होना, उन का साफसुथरे रहना भी अगड़ों को जरा नहीं सुहाता. सो, वे उन्हें पीछे और नीचे रखने की सारी कोशिशें करते हैं.

बदलें हालात

अपवाद के तौर पर पुरानी लीक, अंधविश्वास, गरीबी व दबंगों के चंगुल  से दूर रहने वाले कुछ दलित व पिछड़े पढ़लिख कर आगे निकले और वे शहरों में बस गए. लेकिन ज्यादातर आज भी गंदगी व गरीबी के शिकार हैं. उन की दुनिया आज भी जस की तस है. वे आज भी घासफूंस व खपरैल की छत वाली कच्ची झोंपडि़यों में अपने जानवरों के साथ रहते हैं. जरूरत उन की जिंदगी में सुखद बदलाव लाने की, उन्हें हिम्मत व हौसला देने की है.  साफसुथरा रहना महंगा, मुश्किल या नामुमकिन नहीं है. कम खर्च में भी साफसुथरा रहा जा सकता है, अपने आसपास का माहौल बेहतर बनाया जा सकता है. उत्तराखंड के पंतनगर के पास एक गांव है नंगला. वहां बंगालियों के बहुत से परिवार रहते हैं. उन में से बहुतों की आर्थिक हालत अच्छी नहीं है, लेकिन उन के घरों के अंदरबाहर साफसफाई व सजावट देखते ही बनती है. इसलिए आज जरूरत गंदगी से उबर कर ऐसी ही मिसाल कायम करने की है.

हर इलाके में रहने वालों को अब खुद तय करना होगा कि कूड़ा, मलबा आदि इधरउधर बिलकुल नहीं फैलाना है. कचरे का निबटारा हमेशा ठीक तरीके से करना है. नालेनालियों में गोबर व पौलिथीन आदि नहीं फेंकने हैं. साफसफाई के लिए सरकारी कर्मचारियों का इंतजार किए बिना खुद अपने हाथपैरों को भी हिलाना है. यह नजरिया बदलना होगा कि सफाई करना दलितों, पिछड़ों व सफाई कर्मचारियों की जिम्मेदारी है. यह भी जरूरी है कि उन्हें गंदगी में रहने  को मजबूर न किया जाए. उन्हें भी साफसुथरा रहने का हक है. इसलिए पहले दिमाग में बसी ऊंचनीच व गैरबराबरी की गंदगी दूर करें, तभी समाज में बाहरी गंदगी दूर होगी. वरना गंदगी रुकने वाली नहीं है. और ऐसे  में स्वच्छता अभियान भी सिर्फ एक ढकोसला बन कर रह जाएगा.

त्योहारों पर बधाई संदेश व्हाट्सऐप नहीं फोन से दें

त्योहारों के आते ही बधाई संदेशों का सिलसिला तेज हो जाता है. समय के साथसाथ बधाई संदेशों का चलन बदलता जा रहा है. टैलीग्राम, ग्रीटिंगकार्ड, ईमेल, एसएमएस से गुजरते हुए बधाई संदेश व्हाट्सऐप और फेसबुक तक पहुंच गए. एसएमएस और व्हाट्सऐप से बधाई संदेश भेजने में यह सहूलियत होने लगी कि एकसाथ सैकड़ों लोगों को ये भेजे जा सकते हैं. एसएमएस के जरिए केवल टैक्सट यानी लिखे हुए मैसेज ही भेजे जा सकते हैं. व्हाट्सऐप में लिखे हुए मैसेज के साथ फोटो, वीडियो और वौयस मैसेज भी भेजे जाने की सुविधा मिल गई. यह एसएमएस से अधिक प्रभावी दिखने लगा. मल्टीमीडिया फोन के चलन में आने के बाद से एसएमएस लगभग पूरी तरह बंद हो गए. अब ज्यादातर व्हाट्सऐप के जरिए ही बधाई संदेशों को भेजा जाता है.

व्हाट्सऐप में कटपेस्ट कर के एक ही मैसेज, फोटो, बधाई संदेश या औडियोवीडियो संदेश कई दोस्तों को भेजे जा सकते हैं. व्हाट्सऐप में ब्रौडकास्ट और व्हाट्सऐप ग्रुप जैसे औप्शन मिलने लगे जिन के जरिए हर तरह के बधाई संदेश एकसाथ सैकड़ों लोगों को भेजे जाने लगे. समय के साथ बधाई संदेश देने का पुराना साधन पीछे छूटता गया. बधाई संदेश देने का नया साधन आगे बढ़ता गया. एसएमएस के जमाने में टैलीकौम कंपनियां होली, दीवाली, क्रिसमस और नए साल पर एसएमएस वाले अपने रैगुलर पैकेज बंद कर देती थीं क्योंकि वे कम बजट वाले होते थे. बधाई संदेश के लिए टैलीकौम कंपनियां ज्यादा पैसे वसूलने लगी थीं.

अपनेपन से दूर बधाई संदेश

मल्टीमीडिया फोन आने के बाद व्हाट्सऐप और फेसबुक बधाई संदेश देने के नए माध्यम बन गए. फेसबुक मैसेंजर और फेसबुक वाल पर बधाई संदेश का चलन बढ़ा तो सामान्य लिखे मैसेज वाले बधाई संदेश पुराने दिनों की बात हो कर रह गए. फेसबुक के साथ इंस्ट्राग्राम और ट्विटर भी बधाई संदेश देने के साधन बन गए हैं. आज के समय में व्हाट्सऐप ने बाकी बधाई संदेश देने के औप्शंस को सीमित कर दिया है. व्हाट्सऐप के बधाई संदेश लोगों को शुरुआत में बहुत पसंद आए पर बाद में ये बहुत औपचारिक से लगने लगे. बहुत ही जल्द व्हाट्सऐप के बधाई संदेश अपनेपन से दूर भी होने लगे.  व्हाट्सऐप पर रोज ही सुबहशाम गुडमौर्निंग, गुडईवनिंग के अलावा और भी तरह के मैसेज आते रहते हैं. मैसेज की अधिकता के कारण व्हाट्सऐप से बधाई संदेश देने में नएपन का एहसास खत्म होने लगा. बधाई संदेश आने पर कुछ नयापन नहीं लगता.

कई बार एक ही बधाई संदेश बारबार अलगअलग लोगों से मिलता है. जिस से यह लगता है कि कहीं से आया मैसेज, कहीं भेज दिया गया. इस से बधाई संदेश का आकर्षण खो जाता है.   व्हाट्सऐप से बधाई संदेश देने के लिए अपनी वौयस रिकौर्ड कर के भी बधाई संदेश दे सकते हैं. इस से पाने वाले को अलग किस्म का एहसास होगा. बेहतर यह होगा कि एक ही रिकौर्ड को सभी को न भेजें. सब के लिए अलगअलग वौयस रिकौर्ड करें. जब आप वौयस रिकौर्ड करते समय उस का नाम लेंगे या उस को अपनेपन सेसंबोधित करेंगे तो पाने वाले को अलग लगेगा. इस से आप सीधे तौर पर जुडे़ भी होंगे और अच्छी तरह सेआप की बात सामने वाले तक पहुंच भी जाएगी.

लाजवाब थे ग्रीटिंग कार्ड

बधाई संदेश की बात चलती है तो आज भी लोग सब से अधिक ग्रीटिंगकार्ड को पसंद करते हैं. आज समय पर डाक और कूरियर की व्यवस्था न होने के कारण इस का चलन कम हो गया है पर यह अपनेपन का अलग ही एहसास कराते हैं.  ग्रीटिंगकार्ड को भेजने से पहले खरीदने और फिर पोस्टऔफिस या कूरियर तक पहुंचाने के लिए की जाने वाली जद्दोजेहद से पता चलता था कि जिसे हम भेज रहे हैं वह कितना खास है. ग्रीटिंगकार्ड की खाली जगह में अपने हाथ से कुछ सुंदर पक्तियां लिखना सहज एहसास कराता है. कई टैलेंटेड लोग तो अपने हाथ से तैयार कर के ग्रीटिंगकार्ड भेजते थे. ऐसे बधाई संदेश रिश्तों को नई मजबूती देते थे. ग्रीटिंगकार्ड की खरीदारी करते समय देने वाले की आयु, रिश्तों और अवसर का पूरा ध्यान रखा जाता था. खरीदने वाला हर संभव यह कोशिश करता था कि पाने वाले का दिल ग्रीटिंगकार्ड देख कर ही खुश हो जाए. इस के लिए कईकई दुकानों में कार्ड खेजे जाते थे.

फोन है बेहतर जरिया

ग्रीटिंगकार्ड को भेजना तो अब बहुत पुराना अंदाज हो गया है. व्हाट्सऐप के बधाई संदेश की जगह पर अगर आप अपनों को फोन से बधाई संदेश दें तो यह दिल को छूने वाला संदेश होगा. फोन से बात करने पर एकदूसरे के बारे में पता चल जाता है. कई बार हम कई दोस्तों, रिश्तेदारों से बात नहीं करते, क्योंकि  कोई काम नहीं होता है. दीवाली की शुभकामनाएं देते समय ऐसे लोगों से बात हो जाती है जिस से उन को भी रिश्तों के नएपन का एहसास होता है.

आज के दौर में जब सभी व्हाट्सऐप पर बधाई संदेश दे रहे हों और अचानक उसी समय किसी का फोन बधाई संदेश देने के लिए आ जाए तो दिल खुश हो जाता है.  फोन से ही लगता है कि उस के दिल में कितना सम्मान रहा होगा. फोन से बात करने पर एकदूसरे से अच्छी तरह से बात हो जाती है. बधाई के साथ भावनाओं का आदानप्रदान हो जाता है. फोन से बधाई संदेश देना अपनेपन का एहसास कराता है. ऐसे में व्हाट्सऐप के साथ फोन से भी बधाई संदेश दे सकते हैं. 

जीवंत होते हैं फोेन से दिए संदेश

व्हाट्सऐप पर वौयस रिकौर्डिंग के साथ भी बधाई देने का सिलसिला चल रहा है. इस के बाद भी यह फोन का विकल्प नहीं हो सकता. वौयस रिकौर्डिंग एक तरफ से होती है. उस में नयापन होता है पर जीवंतता का एहसास नहीं रहता. दूसरे, सामने वालों के एहसास को समझ नहीं सकते. फोन से बधाई संदेश देने से एकदूसरे की भावनाओं को समझा जा सकता है. सब से बड़ी बात यह है कि फोन से दिया गया बधाई संदेश इस बात का एहसास कराता है कि आप का महत्त्व क्या है.

फेसबुक और व्हाट्सऐप में बहुत सारी कलात्मकता हो सकती है पर जीवंतता का अभाव होता है. व्हाट्सऐप और फेसबुक के बधाई संदेशों से यह लगता है जैसे मशीनी अंदाज में दिया गया हो. यह सच है कि फेसबुक और व्हाट्सऐप के बधाई संदेश कम समय में अधिक लोगों तक पहुंच जाते हैं पर वहीं यह भी सच है कि ये अपनेपन के एहसास को मिटा देते हैं.  सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव के बीच आप को अपने करीबी रिश्तों में नएपन के एहसास को बनाए रखना जरूरी होता जा रहा है. ऐसे में फोन से दिए गए संदेश बहुत उपयोगी हो सकते हैं. ये रिश्तों में नया एहसास जगा सकते हैं.

यहां पैसे लगा कमाएं ज्यादा मुनाफा

आज के दौर में हर कोई सुनहरे भविष्‍य के लिए अपनी कमाई को कहीं न कहीं निवेश करना चाहता है जिसके लिए भारतीय बाजार में कई कंपनियां या योजनाएं भी खूब चल रही हैं. लेकिन ऐसे में लोग भ्रम में पड़ जाते हैं. उन्‍हें समझ में नहीं आता है कि वे अपना पैसा कहां निवेश करें. जिसमें बाजार के उतार चढ़ाव को देखते हुए निवेशक अपना पैसा ऐसी जगह लगाने की कोशिश करता है जहां से उसे अच्‍छा प्रौफिट हो. ऐसे में अगर आप भी अपना पैसा निवेश कर अच्‍छा रिटर्न पाना चाहती हैं तो आप इन जगहों पर निवेश कर सकती हैं.

एफडी

बैंकों में हमेशा से ही फिक्‍स्‍ड डिपौजिट के प्रति लोगों का रूझान अधिक देखने को मिला है. ऐसे में यह फिक्‍स्‍ड डिपौजिट फंडा वर्तमान में भी काफी कारगर साबित हो रहा है. इसमें पैसा निवेश करते समय यह आपके ऊपर निर्भर करता है कि आप उसे कितने साल के लिए फिक्‍स कर रही हैं. जिससे पैसा जमा होने के बाद कंपनी की तरफ से आपको ब्‍याज मिलता है. इसके साथ अगर आप निश्चित अविध से पहले पैसा निकालती हैं तो बैंक आपका जुर्माना काटकर आपका पैसा वापस कर देगी.

पीपीएफ

निवेश के मामले में PPF मतलब (Public Provident Fund) सबसे ज्‍यादा भरोसेमंद ओर सुरक्षित माना जाता है. इसमें हर कोई आसानी से निवेश कर सकता है. इसके निवेश की सबसे खास बात यह है कि इसमें सार्वजनिक और निजी बैंकों से लेकर पोस्‍टाफिस तक कहीं भी निवेश किया जा सकता है. पैसा निवेश करने के बाद आपको इसमें सिर्फ ब्‍याज का लाभ मिलेगा लेकिन आपका पैसा यहां बिल्‍कुल सेफ रहता है. इसमें एक बार में 15 साल तक का इन्‍वेस्‍टमेंट किया जा सकता है.

गोल्‍ड निवेश

गोल्‍ड यानि की सोने में निवेश हमेशा से फायदेमंद रहा है. पुराने जमाने में भी लोग सोने को खरीदने की कोशिश करते रहें क्‍योंकि गोल्‍ड में भी काफी अच्‍छा रिटर्न मिलता है. वर्तमान दौर को देखते हुए आगे भी यही उम्‍मीद है कि सोने के घटने की बजाय भाव बढ़ेंगे. ऐसे में गोल्‍ड निवेश अपनाकर आप एक अच्‍छा रिटर्न पा सकते हैं, क्‍योंकि वर्तमान में सोने के भाव काफी ऊंचाई पर है.

रियल स्‍टेट

पैसे निवेश के मामले में वर्तमान हालात को देखते हुए रियल स्‍टेट भी काफी बेहतर औप्‍शन है. यहां पर भी पैसा निवेश करने में एक अच्‍छा रिटर्न मिलता है. आज लोग इसकी ओर काफी तेजी से बढ रहे हैं. अगर आप कहीं भी कोई भूमि संपत्ति खरीद रहे हैं तो यह आपको भविष्‍य में आपकी खरीद में लगाए गए पैसों से अधिक का मुनाफा देगी.

स्टौक मार्केट

स्टौक मार्केट निवेश मतलब की शेयर मार्केट में पैसा लगाना. यहां पर निवेश का फंडा भी अपनाया जा सकता है. हालांकि बेहतर रिटर्न के साथ यहां भी रिस्‍क है, लेकिन आज लोग इसकी ओर बढ़ रहे हैं. यहां पर शेयरों की खरीद फरोख्त तथा बिक्री की जाती है. इसमें शेयरों के आधार पर प्रौफिट होता है और आपके निवेश की वापसी होती है. इसके साथ ही शेयर होल्‍डर्स को निवेश के समय तय की गई निर्धारित राशि मिलती रहती है. इसमें होल्‍डर्स पर कंपनी के लौस या प्राफिट का असर नही होता है.

एनएससी

सुरक्षित निवेश, ठीक-ठाक रिटर्न और टैक्स बचत तीनों चीजों का ध्‍यान रखते हुए नेशनल सेविंग्स सर्टिफिकेट (एनएससी) काफी उपयुक्त है. आजकल इसकी ओर लोगों का रूझान काफी तेजी से बढ़ रहा है. इसमें सबसे खास बात यह है कि अगर आपके पास पैसा लिमिटेड है और आप उसे थोड़ समय के लिए ही निवेश करना चाहते हैं तो यह नेशनल सेविंग्स सर्टिफिकेट बेहतर है. इसमें आपको 8 प्रतिशत की दर से हर छह माह पर ब्‍याज का लाभ मिलता है.

करण जोहर कब होते हैं सेक्स के लिये उत्तेजित

बौलीवुड के मशहूर फिल्म निर्माता और निर्देशक करण जोहर अपनी सुपरहिट फिल्मों और मजेदार टौक शोज के लिए जाने जाते हैं. करण अपनी सेक्स लाइफ को लेकर तब विवादों में आ गए जब उन्होंने अपनी बायोग्राफी (एन अनसूटेबल बौय) रिलीज की थी.

करण अच्छी तरह जानते हैं कि औडियंस को अपने साथ कैसे जोड़े रखना है. हाल ही में उन्होंने एक्ट्रेस नेहा धूपिया के टाक शो नो फिल्टर नेहा में सेक्स संबंधी अपनी रुचियों पर बात की. उन्होंने बताया कि कौन सी चीजे हैं जो सेक्स के बारे में उन्हें उत्तेजित करती हैं और कौन सी बाते हैं जो उनका मन खराब कर देती हैं.

बत्तियां बुझा दो

करण जोहर ने बताया कि ज्यादा तेज रोशनी सेक्स के मामले में मूड औफ करती है इसलिए माहौल को रोमांटिक बनाने के लिए या तो लाइट्स डिम होनी चाहिए या उन्हें औफ होना चाहिए.

सुबह सुबह भी चलेगा

करण ने कहा कि सुबह सुबह का वक्त सेक्स के लिए सबसे अच्छा होता है क्योंकि उस वक्त सब कुछ शांत होता है और सुबह सुबह ताजगी का एहसास होता है.

होटल में

करण ने कहा कि होटल में कई बार बत्तियां बंद नहीं होती हैं और जब तक आप स्विच ढूंढेंगे मेरा मूड औफ हो जाता है.

करण जोहर ने नेहा के सामने इन बातों का खुलासा कर तो दिया लेकिन इसके बाद वह अचानक से काफी शर्माने लगे. बता दें कि करण की आखिरी फिल्म ऐ दिल है मुश्किल थी, जो बौक्स औफिस पर काफी हद तक सही रही थी.

अमिताभ ने कही कुछ ऐसी बात कि जितेंद्र ने छोड़ दी सिगरेट

बौलीवुड में बेहद कम ऐसे एक्टर हैं जो लोगों के बीच अपनी एक अलग पहचान बनाने में कामयाब हो पाते हैं. ऐसे ही अभिनेता हैं जितेंद्र. जितेंद्र का असली नाम रवि कपूर था, लेकिन फिल्मों में आने के बाद उन्होंने अपना नाम बदलकर जितेंद्र रख लिया था.

बौलीवुड में जितेंद्र को ‘जंपिंग जैक’ के नाम से बुलाया जाता है. अपने करियर में कई हिट फिल्में देने वाले जितेंद्र एक समय नशे की लत से काफी परेशान थे. रिपोर्ट्स की मानें तो जितेंद्र एक दिन में 80-80 सिगरेट पी जाया करते थे. इसके अलावा वह शराब भी खूब पीया करते थे.

अक्सर फिल्म की शूटिंग खत्म होने के बाद दोस्तों की महफिल जमती थी. इसमें कई बौलीवुड एक्टर भी आया करते थे जिनमें एक नाम बौलीवुड के महानायक अमिताभ बच्चन का भी हुआ करता था. जितेंद्र की इस आदत से उनकी पत्नी शोभा कपूर काफी परेशान रहा करती थीं.

शोभा ने गुस्से में आकर एक दिन जितेंद्र से कह दिया कि तुम जो हर समय नशे में डूबे रहते हो, देखना ये नशा ही एक दिन तुम्हें ले डूबेगी. जितेंद्र अक्सर शोभा की बातों को सुनकर टाल दिया करते थे लेकिन अपनी बेटी एकता के जन्म के बाद वो शोभा की बातों को सीरियसली लेने लगे.

किसी भी तरह से वह सिगरेट छोड़ना चाहते थे, लेकिन बहुत कोशिश करने के बाद भी वो ऐसा नहीं कर पा रहे थे. ऐसे में एक दिन उनकी मुलाकात अमिताभ बच्चन से हुई तो उन्होंने बिग बी को  बताया कि यार मैं सिगरेट छोड़ना चाह रहा हूं लेकिन ऐसा हो नहीं पा रहा है. बिग बी ने जितेंद्र की बातों को सीरियसली लेते हुए उन्हें कहा ‘इस सिगरेट को फेंक दो और खाओ अपनी बेटी की कसम की आज के बाद तुम कभी फिर सिगरेट को हाथ नहीं लगाओगे’. अमिताभ की ये बात काम कर गई और जितेंद्र ने इस दिन के बाद से सिगरेट पीना बंद कर दिया.

करीना कपूर के साथ इंटेंस सीन भी किया : सुमित व्यास

मशहूर रंगकर्मी और लेखक बी एम व्यास के बेटे सुमित व्यास सोलह साल की उम्र से थिएटर करते आ रहे हैं. 2009 से उन्होंने टीवी सीरियल व फिल्मों में अभिनय करना शुरू किया था. सुमित व्यास ने श्रीदेवी के साथ ‘इंग्लिश विंग्लिश’ के अलावा ‘पार्च्ड’, ‘औरंगजेब’, ‘गुड्डू की गन’ सहित कुछ फिल्में की. पर उन्हें शोहरत मिली सफल वेब सीरीज ‘परमानेंट रूममेट्स’ में लेखक मिकेश के किरदार में. पर अब वह तीन नवंबर को प्रदर्शित हो रही कलकी केकला के साथ फिल्म ‘रिबन’ हीरो बनकर आ रहे हैं. इतना ही नहीं उन्हें करीना कपूर के साथ फिल्म ‘वीरे दी वेडिंग’ में अभिनय करने का मौका मिल गया है.

खुद सुमित व्यास बताते हैं कि ‘‘फिल्म ‘वीरे दी वेडिंग’ से जुड़ना एक बड़ा अवसर है. वैसे अभी इस फिल्म को लेकर बहुत ज्यादा कुछ नहीं बता सकता. मगर शशांक घोष निर्देशित इस फिल्म की शूटिंग शुरू हो चुकी है. इसमें मेरा किरदार करीना कपूर के अपोजिट है. करीना कपूर के साथ मेरे कुछ इंटेंस सीन भी हैं.’’

सुमित व्यास आगे कहते हैं, ‘‘16 साल की उम्र से थिएटर कर रहा हूं. 2009 से टीवी व फिल्में भी कर रहा हूं. 2000 में मैंने के नादिरा बब्बर के नाट्य ग्रुप के साथ जुड़कर अभिनय करना शुरू किया था. अब तक पचास से अधिक नाटकों के कई हजार शो कर चुका हूं. मगर थिएटर में पैसा कम है, जबकि कलाकार के तौर पर काम करने में थिएटर पर ही ज्यादा मजा आता है. जबकि टीवी सीरियल व फिल्मों में पैसा ज्यादा है. सच कह रहा हूं. कुछ वर्षों तक मैं सीरियल पैसे के लिए करता रहा, बाकी दिन थिएटर करते हुए मजे ले रहा था. फिर मुझे लगा कि पहचान बनाने के लिए टीवी व फिल्म पर ध्यान देना जरुरी है. बौलीवुड की विडंबना यह है कि कलाकार की कहानी वहीं से शुरू होती है, जहां से उसकी फिल्म को सफलता मिले, तो कुछ लोगों के अनुसार मैं ‘परमानेंट रूममेट्स’ से सफल हुआ. अब मुझे कलकी केलका के संग फिल्म ‘रिबन’ करने में मजा आया. इस फिल्म में अभिनय करने के लिए मुझे वह सब भूलना पड़ा, जो मुझे आता था और नए सिरे से एक किरदार को निभाने में मजा आया.’’

फिल्म ‘रिबन’ की चर्चा करते हुए सुमित व्यास कहते हैं, ‘‘इसमें नए नवेले पति पत्नी करण व शहाना के जीवन की शादी से एक वर्ष पहले से लेकर शादी के बाद चार पांच वर्ष तक की कहानी है. आज के जमाने की कहानी है. जब पति पत्नी अकेले रहते हैं और दोनों कामकाजी हैं. उनके बीच उनका अपना एक बच्चा आ जाने से किस तरह उनका अपना रिश्ता हिलने लगता है. उसमें दरार पड़ने लगती है. दोनों के मन में अक्सर सवाल उठता है कि, ‘जब हमारा बच्चा होगा, तो हमारे बीच का रोमांस कहां चला गया’. बच्चे के आने के बाद धीरे धीरे किस तरह से एक रिश्ता बिगड़ने लगता है. जब कोई बड़ी समस्या आती है, तो अंदर का पुरुषत्व जाग उठता है. बच्चे के हो जाने पर पत्नी का घर से बाहर नौकरी पर जाना बंद हो जाता है. करण को बाहर ज्यादा काम करना पड़ता है. फिर कुछ समय बाद पत्नी चाहती है कि अब वह पुनः अपनी नौकरी पर जाए, तब सवाल उठता है कि बच्चे के साथ कौन रहेगा. फिल्म में मूल मुद्दा यही है कि बच्चा पति और पत्नी में से किसकी जिम्मेदारी है. इस फिल्म में एक ऐसी लड़ाई है, जिससे आज की युवा पीढ़ी का हर नौजवान लड़ रहा है.’’

अपने पिता बी एम व्यास की ही तरह सुमित व्यास को भी लेखन का शौक है. वह बताते हैं कि ‘‘मैं लिखता हूं. मैंने एक वेब सीरीज ‘ट्रिपलिंग’ लिखी थी. उसके बाद ‘यशराज फिल्मस’ की वेब सीरीज ‘बैंड बाजा बारात’ लिखी. इन दिनों ‘ट्रिपलिंग’ का भाग दो लिख रहा हूं. कुछ लघु फिल्में लिखी हैं. एक फीचर फिल्म ‘पर स्कवायर फुट’ लिखी है, जिसका निर्माण सिद्धार्थ राय कपूर कर रहे हैं.’’

मैडम तुसाद म्यूजियम में अब नजर आएगा वरुण धवन का पुतला

मोम की प्रतिमाओं के लिए प्रसिद्ध हांगकांग के मैडम तुसाद म्‍यूजियम में अब जल्द ही निर्देशक डेविड धवन के बेटे वरुण धवन का पुतला नजर आएगा. अपने आधिकारिक टि्वटर हैंडल पर मैडम तुसाद संग्रहालय ने स्वयं पोस्ट कर इस बात की जानकारी दी है. उन्होंने लिखा कि, बौलीवुड सुपरस्टार वरुण धवन की पहली वैश्विक प्रतिमा हांगकांग तुसाद में.

संग्रहालय के ट्वीट पर उनका शुक्रिया करते हुए बौलीवुड अभिनेता वरुण धवन ने लिखा कि, ‘बड़ा सम्मान. मैं मैडम तुसाद आकर अपनी ही मोम की प्रतिमा को निहारने का इंतजार कर रहा हूं. धन्यवाद.’

वरुण ने अपने ट्विटर अकाउण्ट पर अपने ट्वीट के साथ मैडम तुसाद संग्रहालय के कर्मचारी द्वारा कद-काठी का नाप लेते हुए तस्वीरें भी साझा की हैं. बता दें कि वरुण 2018 की शुरुआत में हांगकांग में अपनी प्रतिमा का अनावरण करेंगे.

निर्देशक करण जौहर ने ट्वीट किया है, ‘सोचो अब मैडम तुसाद में कौन पहुंचा?? हांगकांग में….. वरुण धवन…. जल्दी ही.’

करण जौहर की फिल्म ‘स्टूडेंट आफ द ईयर’ से करियर की शुरुआत करने वाले वरुण धवन की फिल्म ‘जुड़वा -2’ आजकल बौक्स आफिस पर धूम मचा रही है. फिल्म को वरुण धवन के पिता डेविड धवन ने डायरेक्ट किया है. इस फिल्म में डबल रोल का किरदार निभाने वाले वरुण धवन के साथ जैकलीन फर्नांडिस और तापसी पन्नू लीड रोल में हैं. यह फिल्‍म काफी अच्‍छी कमाई भी कर गई है. रिलीज के 8 दिनों में इस फिल्म ने 100 करोड़ रुपये कमाई का आंकड़ा पार कर लिया है.

मेरा भी हुआ यौन शोषण : मल्लिका दुआ

हौलीवुड एक्‍ट्रेस एलिसा मिलानो के #MeToo अभियान से दुनियाभर की महिलाएं जुड़ रही हैं. इस अभियान के तहत जहां यह महिलाएं अपने साथ हुई यौन शोषण की घटनाओं का खुलासा कर रही हैं, वहीं अ‍ब प्रसिद्ध कामेडियन मल्लिका दुआ ने भी बचपन में अपने साथ हुई यौन शोषण की घटना का खुलासा किया है.

 

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कामेडियन मल्लिका दुआ ने सोशल मीडिया पर एक पोस्‍ट शेयर कर बचपन में अपने साथ हुई घटना की आपबीती बताई है. इस पोस्ट के जरिये उन्होंने बताया कि वह 7 साल की थी, जब उनके साथ यौन शोषण की दर्दनाक घटना हुई. मल्लिका ने लिखा कि, ‘ मैं भी… अपनी खुद की कार में. मेरी मां कार चला रही थीं जबकि वह हमारे साथ पीछे बैठा था. मैं सिर्फ 7 साल की थी और मेरी बहन 11 साल की. उसका हाथ पूरे समय मेरी स्‍कर्ट के अंदर था और दूसरा हाथ मेरी बड़ी बहन की पीठ पर था. मेरे पिता ने, जो उस समय दूसरी कार में थे, उन्‍होंने उसे रंगे हाथों पकड़ लिया था और उसका मुंह तोड़ दिया.

मल्लिक के इस इंस्‍टाग्राम पोस्‍ट पर कमेंट करते हुए भी कई और लड़कियों ने भी अपने साथ हुई यौन शोषण की घटनाओं का खुलासा किया है.

गौरतरब है कि हौलीवुड एक्‍ट्रेस एलिसा मिलानो ने अपने साथ हुए यौन शोषण का खुलासा करते हुए दुनियाभर की महिलाओं से आह्वान करते हुए कहा है कि वह भी अपने साथ हुई इस तरह की घटनाओं के बारे में बताएं ताकि इसके जरिये यह साबित किया जा सके कि यह कोई छोटी या नजरअंदाज कर दी जाने वाली घटना नहीं है.

एलिसा के इस ट्वीट के बाद दुनियाभर से महिलाएं #MeToo के साथ जुड़कर अपने साथ हुई घटनाओं को शेयर कर रही हैं. अभी तक एलिसा के इस ट्वीट पर 27,000 से ज्‍यादा ट्वीट आ चुके हैं जिसमें हजारों महिलाओं ने अपने साथ हुई घटनाओं का खुलासा किया है.

बता दें कि एआईबी के कई वीडियो में नजर आ चुकी मल्लिका दुआ जानेमाने पत्रकार विनोद दुआ की बेटी हैं और इन दिनों वह स्‍टार प्‍लस के शो ‘द ग्रेट इंडियन लाफ्टर चैलेंज’ में जज बनीं नजर आ रही हैं.

बालों को झड़ने से रोकेगा मेथी का हेयर मास्क

आजकल बालों का झड़ना एक आम समस्या है. बालों में डैंड्रफ हो जाने और आवश्यक पोषक तत्वों की कमी की वजह से यह समस्या जन्म लेती है. इससे छुटकारा पाने के लिए लोग अनेकोप्रकार के उपाय आजमाते हैं. बाजार में बहुत सी ऐसी दवाएं मिलती हैं जो बालों के झड़ने की समस्या से तुरंत छुटकारा दिलाने का दावा करती हैं लेकिन ऐसी दवाओं के साइड इफेक्ट्स भी बहुत होते हैं. ऐसे में प्राकृतिक उपचार इस समस्या से निपटने में हमारी मदद कर सकती हैं. ऐसा ही एक प्राकृतिक उपचार है मेथी जो आपकी इस समस्या को दूर करने में बेहद कारगर साबित हो सकती है. खाने को स्वादिष्ट बनाने के अलावा यह शरीर को तमाम तरह के पोषक तत्वों की आपूर्ति भी करती है. तो आइए जानते हैं कि मेथी के इस्तेमाल से हम बालों का झड़ना कैसे रोक सकते हैं.

मेथी में बालों को स्वस्थ और मजबूत बनाने वाले ऐसे आनश्यक तत्व होते हैं. जिनका अगर हेयर मास्क बनाकर इस्तेमाल किया जाये तो जल्द ही बालों की कई तरह की समस्या से निजात पाया जा सकता है.

आइए, जानते हैं कि हेयर मास्क बनाने के तरीके

दो चम्मच मेथी को रातभर पानी में भिगोकर रख दें. सुबह उसे पीसकर पेस्ट बना लें. अब इसे अपने बालों की जड़ों में लगाकर और 20 मिनट के लिए छोड़ दें. बालों को शैंपू से धोने से पहले हल्का मसाज करें और फिर धो लें. बालों से डैंड्रफ दूर करना है तो आप इस पेस्ट में एक चम्मच नींबू का जूस भी मिला सकते हैं.

मेथी के दानों को पीसकर पाउडर बना लें और फिर इसमें थोड़ा सा दूध मिलाकर पेस्ट तैयार कर लें. अब इस पेस्ट को बालों पर लगाएं.

मेथी और नारियल के तेल का प्रयोग कर बालों का झड़ना काफी हद तक कम किया जा सकता है. इसके लिए 2 चम्मच मेथी को पीस कर पाउडर बना लें. अब इसमें एक चम्मच नारियल तेल मिलाकर पेस्ट बना लें. इस पेस्ट को बालों की जड़ो में लगाकर सूखने के लिए छोड़ दें. सूखने के बाद इसे शैंपू से धो लें.

बालों को झड़ने से रोकने के लिए मेथी के पत्तों का भी इस्तेमाल किया जा सकता है. इसके लिए मेथी के पत्तों को उबाल लें. उबाले पत्तों को पीसकर उसका पेस्ट बना लें. अब इसमें दही मिलाकर बालों की जड़ों में लगाएं. 45 मिनट बाद में बालों को ठंडे पानी से धो लें. बहुत जल्द ही इसका असर होगा और बालों का झड़ना बंद हो जाएगा.

रोजाना इस हेयर मास्क का प्रयोग करने से बहुत जल्द आपको बालों के झड़ने सम्बन्धी समस्या से छुटकारा मिल जाएगा.

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