इन तरीकों को अपनाकर बचाएं पैसे

आप कामकाजी हैं या फिर हाउसवाइफ पैसा कहां खर्च हुआ, कितना खर्च हुआ और पैसा कैसे बचाया जाए, इसकी काफी जिम्मेदारी आप निभाती होंगी. सेविंग करने के आपके भी कुछ अनूठे तरीके होंगे. अगर आपको लगता है कि इन तरीकों से बात नहीं बन रही है तो अपने सेविंग प्लान में कुछ और तरीकों को अपना सकती हैं. चलिये बताते हैं.

महिलाओं पर पूरे परिवार का भार होता है, इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता. घर की छोटी-बड़ी जरूरतों से लेकर, मुसीबत में पैसों के खर्च की जिम्मेदारी भी आप पर ही होती है. आज बढ़ती महंगाई के दौर में महिलाओं पर बचत का भार और भी बढ़ गया है. खर्च बढ़ गया है, लाइफ स्टाइल पहले से बेहतर हो गई है,

ऐसे में यह और भी जरूर है कि मुसीबत के वक्त के लिए आपके पास पैसों की कोई कमी न हों. अधिकांश परिवार में अब पति-पत्नी दोनों ही वर्किग हैं, ऐसे में थोड़ी-सी सूझ-बूझ से आप अपना परिवार अच्छे से चलाने के साथ-साथ अच्छी-खासी सेविंग भी कर सकती हैं. पैसों की बचत करने के लिए आपको कहीं दूर जाने की जरूरत नहीं, आपको सिर्फ अपने खर्च पर ध्यान देने की जरूरत है.

कितना सेविंग तय करें

आपकी सेविंग का लक्ष्य कुछ ऐसा होना चाहिए कि आप कम से कम 6 महीनों के अपने सामान्य खर्च के लिए सेविंग कर सकें. मुसीबत कभी बता कर नहीं आती, ऐसे में महीनों की छोटी-छोटी सेविंग कर, आप स्वयं को किसी गंभीर परेशानी से बचा सकती हैं. भले ही आपकी तनख्वाह आपके खर्च से कई गुना ज्यादा हो, या फिर कम. सेविंग आपकी कमाई की प्राथमिकताओं में से एक होना चाहिए. ऐसा जरूरी नहीं हैं कि आपको अपनी सामान्य जरूरतों में कमी करके सेविंग करनी पड़े, अपनी सुविधानुसार अपने पैसों की बचत करें, बचत की आदत डालें. सिर्फ खुद में ही नहीं, अपने परिवार के सदस्यों में बचत करना या फिजूलखर्ची नहीं करने का मतलब कंजूस होना नहीं होता है, यह बात अपने बच्चों को भी समझाएं. अगर बचपन से ही बच्चे में सेविंग की आदत पड़ेगी तो बड़े होकर वे भी अपने पैसों को बेहतर तरीके से मैनेज कर पाएंगे.

बजट बनाएं

बजट बनाकर आप अपने मासिक खर्च का आकलन कर सकतीं हैं, ऐसा करने से आपको हफ्ते के और महीने के खर्च की सही जानकारी हो जाएगी. हालांकि बजट बनाना थोड़ा बोरिंग होता है, पर इसे अपनी आदत में शामिल करें. बजट बनाना और खर्चे को नियंत्रित करना सेविंग की दिशा में उठाया गया सार्थक प्रयास हो सकता है. जो भी खर्च करें और जहां भी खर्च करें, उसकी एक लिस्ट जरूर बनाएं. ऐसा करके आप अपने बच्चे की शिक्षा और दूसरी जिम्मेदारियों को भी योजनाबद्ध तरीके से पूरा कर सकती हैं.

पोस्ट औफिस

पोस्ट औफिस में कई आकर्षक सेविंग स्कीम हैं और ब्याज दर भी ज्यादा है. अगर आप लंबे वक्त के लिए निवेश करना चाहती हैं, तो पोस्ट औफिस की स्कीम्स के बारे में भी मालूम कर सकती हैं. पोस्ट औफिस के स्कीम्स की खासियत यह है कि यहां आप कम पैसे भी निवेश कर सकती हैं.

वेतन पर सेविंग

आज अधिकतर लोग प्राइवेट नौकरी में हैं. ऐसी स्थिति में अकसर लोग नौकरी तो कम उम्र से शुरू कर देते हैं, लेकिन नौकरी के बाद की कोई योजना नहीं होती. आप ऐसी गलती न करें. अपनी उम्र को ध्यान में रखते हुए यह प्लान करें कि एक बार जब आप रिटायर हो जाएंगी, तो उस समय आपकी आर्थिक जरूरतें कैसी और कितनी होंगी.

सही जगह करें निवेश

सिर्फ पैसा बचाने से काम नहीं चलेगा, उसे सही जगह पर निवेश करना भी जरूरी है, ताकि आपको अपने पैसे से अच्छा रिटर्न मिले. आय नियमित है, तो आप म्यूचुअल फंड में लंबे समय तक पैसे लगा सकती हैं. अपने पैसे को कहीं भी निवेश करने से पहले उस योजना के बारे में सारी जरूरी जानकारी इकट्ठा कर लें. अपनी कमाई सोच विचार कर निवेश करें.

सुकून प्रेमियों के लिये ये जगह हैं शानदार

प्रकृति के बीच में जाकर घूमने का अपना अलग ही मजा है. क्योंकि हरे भरे जंगल, तमाम प्रकार के जीव जन्तु जब हमारे आस पास होते हैं तो वाकई खुद को सूकून का अनुभव होता है. तो इसलिए आज हम आपको अमेरिका के कुछ राष्ट्रीय उद्यानों के बारे में बताने वाले हैं जहां वाइल्ड लाइफ प्रेमी तथा जिनको शांति पसंद हो वो यहां आकर अपने सफर का अनंद ले सकते हैं.  

पिनक्कल, कैलिफोर्निया

2013 में पिनक्कल को राष्ट्रीय स्मारक से राष्ट्रीय उद्यान के रूप में अपग्रेड किया गया. ये नेशनल पार्क  26,606 एकड़ क्षेत्र में फैले प्राचीन ज्वालामुखीय अवशेषों को संरक्षित करता है. यहां पर करीब 49 तरह के मैमल्‍स की प्रजातियां पायी जाती हैं. इसके साथ ही ब्‍लैक टेल हिरण, बनबिलाव, ग्रे लोमड़ी, रुकून्‍स, जैकबबिट, ब्रश खरगोश, जमीन गिलहरी, चिपमंक, और कई तरह के चमगादड़ भी यहां देखे जा सकते हैं.

अकादिया, मेन

कैडिलैक माउंटेन, अटलांटिक समुद्र तट पर माउंट डेजर्ट आइलैंड का हिस्सा है. यहीं पर है मेन का अकादिया नेशनल पार्क जो अपनी जंगली तटरेखा और अपतटीय चट्टानी द्वीप, पाइंस, दलदली घास के मैदानों और माउंट रेगिस्तान के दांतेदार पहाड़ों के लिए प्रसिद्ध है. लगभग 50,000 एकड़ क्षेत्र में फैला ये पार्क काफी ऊंचाई पर बना है. ये पार्क पेरेग्रीन और अन्य रैप्टर्स, गीतबर्ड्स वौर्बलर की लगभग 23 प्रजातियों, समुद्री पक्षी, हंस, खास तरह की बतख, डौल्फ़िन, व्हेल और अन्य समुद्री स्तनधारियों के लिए प्रसिद्ध है.

योसेमाइट, कैलिफ़ोर्निया

अमेरिका के कैलिफोर्निया में योसमीत घाटी पर बसा योसेमाइट राष्ट्रीय उद्यान इस राज्‍य के माथे पर सचे एक मुकुट के रूप में चमकता है. न केवल इसके ग्लेशियर बल्‍कि यहीं मौजूद है उत्तर अमेरिका का सबसे बड़ा झरना योसेमाइट जलप्रपात भी,  जो पूरी दुनिया का सबसे लंबा निर्बाध ग्रेनाइट मोलौलीथ से बना प्रपात है. इसके बीच से गुजरते हुए आप खूबसूरत ब्‍लैक बियर और सिएरा नेवादा बिघोर्न भेड़ें देख सकते हैं. एक अनुमान के अनुसार इस नेशनल पार्क में 500 के लगभग ब्‍लैक बियर मौजूद हैं. इसके साथ ही म्‍यूल हिरण, बनबिलाव और कोयोट भी यहां देखे जा सकते हैं.

चैनल द्वीप समूह, कैलिफ़ोर्निया

चैनल द्वीप दक्षिणी कैलिफोर्निया के तट से सिर्फ 11 मील दूर स्थित है, जहां नाव से एक घंटे से भी कम समय में पहुंचा जा सकता है. इस काफी हद तक अविकसित द्वीप समूह में आठ द्वीप श्रृंखला शामिल हैं जिसमें से पांच में राष्ट्रीय उद्यान बने हैं. चैनल द्वीप समूह पर बने नेशनल पार्कों में उसके पौधे और जानवर दोनों ही विशिष्‍ठ हैं. यहां पौधों की 150 से अधिक स्थानिक या अनूठी प्रजातियां हैं. यह दुनिया में एकमात्र जगह है जहां द्वीप लोमड़ी, द्वीप हिरण चूहा देखने को मिलेंगे. यहां समुद्री जानवरों की 30 से अधिक प्रजातियां हैं जिसमें समुद्री शेर, हाथी और व्हेल आदि शामिल हैं.

ग्रांड कैन्यन, एरिजोना

अमेरिका के एरिजोना में बना ग्रांड कैन्यन नेशनल पार्क यहां का दूसरा सबसे ज्यादा का घूमा जाने वाला राष्ट्रीय उद्यान है. यहां प्रतिवर्ष करीब पांच लाख लोगों के आने का अनुमान लगाया जाता है. यहां आप कई तरह के जंगली मैमल्‍स देख सकते हैं जिनमें चमगादड़ों की कई प्रजातियां, बड़े सींगों वाली भेड़ें, कोयोट्स, कौटनटेल्‍स खरगोश, एक खास किस्‍म का बारहसिंघा, पहाड़ी शेर, म्‍यूल हिरण और रैकून्‍स शामिल हैं.

मैं 26 साल की विवाहित युवती हूं. जब हम सैक्स करते हैं, उस के बाद मुझे सिर में दर्द होने लगता है. मुझे क्या करना चाहिए.

सवाल

मैं 26 साल की विवाहित युवती हूं. विवाह 6 महीने पहले हुआ है. मैं तभी से एक विचित्र परेशानी से गुजर रही हूं. जब जब हम सैक्स करते हैं, उस के तुरंत बाद मुझे सिर में जोर का दर्द होने लगता है. मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि ऐसा क्यों हो रहा है? कहीं यह किसी गंभीर भीतरी रोग का लक्षण तो नहीं है? इस से बचने के लिए मुझे क्या करना चाहिए? कोई घरेलू नुसखा हो तो बताएं?

जवाब

आप जरा भी परेशान न हों. यह समस्या कई युवक युवतियों में देखी जाती है. इस का संबंध शरीर की जटिल रसायनिकी से होता है. यों समझें कि यह एक तरह का कैमिकल लोचा है. जिस समय सैक्स के समय कामोन्माद यानी और्गेज्म प्राप्त होता है, उस समय शरीर की रसायनिकी में आए परिवर्तनों के चलते सिर की रक्तवाहिकाएं कुछ देर के लिए फैल जाती हैं. धमनियों में आए इस अस्थाई फैलाव से उन के साथसाथ चल रही तंत्रिकाओं पर जोर पड़ता है, जिस कारण सिर में दर्द होने लगता है.

आप आगे इस दर्द से परेशान न हों, इस के लिए आप एक छोटा सा घरेलू नुसखा अपना सकती हैं. सहवास से 40-45 मिनट पहले आप पैरासिटामोल की साधारण दर्दनिवारक गोली लें. साइड इफैक्ट्स के नजरिए से पैरासिटामोल बहुत सुरक्षित दवा है. इसे लेने से कोई नुकसान नहीं होता.

जिन्हें पैरासिटामोल सूट नहीं करती, उन्हें अपने फैमिली डाक्टर से सलाह लेनी चाहिए. यदि डाक्टर कहे तो नियम से प्रोप्रानोलोल सरीखी बीटा ब्लौकर दवा लेते रहने से और्गैज्म के समय सिर की धमनियों में फैलाव नहीं आता और सिरदर्द से बचाव होता है.

फटे होंठों से ऐसे मिलेगा छुटकारा

सर्दियों के मौसम में चलने वाली सर्द हवाओं से हमारे होंठ अत्याधिक रूखे हो जाते हैं और फटने लगते हैं. यह शरीर के अन्य अंगों के मुकाबले काफी नाजुक होते हैं इसलिए इन्हें ज्यादा देखभाल की जरूरत होती है. रूखे, फटे और बेजान होंठ आपकी खूबसूरती में बाधा डालते हैं. इनकी बजह से कई बार दर्द भी झेलना पड़ता है और अगर इनपर ध्यान न दिया जाए तो कभी-कभी उनमें से खून भी बहने लगता है. जरूरी है कि इस स्थिति में पहुंचने से पहले ही हम कुछ घरेलू उपायों के द्वारा फटे होंठों की इस दर्द भरी समस्या से छुटकारा पाएं.

विटामिन से भरपूर फल और सब्जियों का सेवन

अपने भोजन में अधिक से अधिक गाजर, टमाटर, चुकंदर, साबुत अनाज और हरी सब्जियों को शामिल करें क्योंकि होंठ फटने का एक मुख्य कारण शरीर में विटामिन की कमी भी है.

होठों पर भी करें ब्रश

फटे होंठों पर किसी भी तरह का मरहम लगाने से पहले उन पर से बेजान त्वचा हटा लें. इसके लिए टूथब्रश को होंठों पर धीरे-धीरे रगड़ें. फिर पानी से धोकर साफ कपड़े से पोछे. इसके इनपर नारियल तेल, विटामिन ई युक्त लिप बाम या वैसलीन लगाएं.

वैसलीन और शहद

होंठों की देखभाल के लिए शहद और वैसलीन बहुत ही प्रभावशाली माने जाते हैं. पहले शहद की कुछ बूंदे होंठों पर लगाएं और उसे सूखने दें फिर इस पर वैसलीन लगा लें. इसके 10 से 15 मिनट बाद गुनगुने पानी में एक ईयरबड को डुबायें और उससे धीरे-धीरे होंठ की बेजान परते हटायें.

पपीते का रस

थोड़ा सा पपीते का रस लेकर अपने होंठों पर लगाएं तथा थोड़ी देर बाद उसे साफ पानी से धो लें. पपीते का रस एक बहुत अच्छा विकल्प है. इससे होंठों की नमी और कोमलता बनाए रखने में मदद मिलती है.

मसाबा ने ट्रोल्स को लताड़ा तो इन सबने कहा ‘शाबास’

एक्‍ट्रेस नीना गुप्‍ता की बेटी मसाबा ने जैसे ही सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सोशल मीडिया पर पटाखों पर लगने वाले बैन का समर्थन किया, ट्रोल्‍स ने मसाबा को ‘नाजायज वेस्‍ट इंडियन’ जैसे भद्दे शब्‍दों को लिखकर चारों तरफ से घेरना चाहा. लेकिन उनकी ये मंशा नाकामयाब रही. ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि मसाबा ने ट्रोल्‍स को नजरअंदाज करने के बजाए सोशल मीडिया पर एक पत्र लिखकर उन्‍हें मुंहतोड़ जवाब दिया. जी हां, मसाबा ने इंस्टाग्राम के जरिए एक खुला पत्र साझा किया.

अपने इस खुले पत्र में उन्होंने कुछ ऐसा लिखा कि कवि और आप पार्टी के सदस्‍य कुमार विश्‍वास, चेतन भगत, सोनम कपूर, एक्‍टर सिद्धार्थ मल्‍होत्रा समेत कई लोगों ने उनकी तारीफ कर उन्हें उनके इस जज्बे के लिए शाबासी भी दी है. मसाबा के इस खुले पत्र को उनकी मां नीना गुप्‍ता ने भी अपने इंस्‍टाग्राम अकाउंट पर शेयर किया है.

मसाबा ने अपना साथ देने के लिए सभी का शुक्रिया किया है.

बता दें कि मसाबा ने अपने इस पत्र में लिखा, पटाखे छुड़ाने पर प्रतिबंध के फैसले का स्वागत करने और देश के अन्य मुद्दों चाहे वह छोटे या बड़े हो का समर्थन करने के लिए मुझे लोगों ने री-ट्वीट कर भला-बुरा कहा गया और उनका मुझे उल्टा सीधा कहने का यह सिलसिला अभी भी जारी है’ उन्होंने लिखा, ‘ मुझे भारतीय-कैरेबियाई मूल की महिला होने पर गर्व है. आपके मुझे ‘नाजायज वेस्ट इंडियन’ कह कर गाली देने से मेरा सीना सिर्फ गर्व से फूलता है. मैं दो सबसे वैध व्यक्तित्वों की अवैध संतान हूं और मैंने निजी और पेशेवर तौर पर अपने जीवन को सबसे अच्छा बनाया है…इसलिए, कृपया आगे बढ़िए और अगर इससे आपको अच्छा महसूस होता है, तो मुझे भला-बुरा कहते रहिए, मुझे इसका जरा भी इफसोस नहीं होगा क्योंकि मुझे भारतीय-कैरेबियाई महिला होने से खुद पर गर्व है.’

नीना गुप्ता और वेस्ट इंडीज के दिग्गज क्रिकेट खिलाड़ी विवियन रिचर्ड्स की बेटी पेशे से फैशन डिजाइनर हैं. उनका कहना है कि इसकी उन्हें आदत सी हो गई है क्योंकि वह 10 साल की उम्र से यह सब सुनते आ रही हैं.

अरविंद केजरीवाल पर बनी फिल्म नवंबर में होगी रिलीज

अरविंद केजरीवाल के एक अंदोलनकारी से राजनीति में उतरने और फिर दिल्‍ली के सीएम बनने की कहानी को जल्द ही निर्देशक विनय शुक्ला और खुशबू रान्का फिल्‍म के रूप में लेकर आ रहे हैं.  इस फिल्म का नाम ‘एन इनसिग्‍निफिकेंट मैन’ है. जो भारत में 17 नवंबर को अमेरिकी मीडिया कंपनी वाइस द्वारा रिलीज की जाएगी. यह एक डाक्युमेंट्री फिल्म है. इस फिल्म को लेकर विनय शुक्ला का दावा है कि पहली बार किसी फिल्म में राजनीति पार्टियों के पीछे की कहानी को दिखाया जाएगा. हालांकि, ऐसा करने की इजाजत उन्‍हें आम आदमी पार्टी ने ही दी है.

बता दें कि खुशबू और विनय ने इस डाक्युमेंट्री का निर्माण काफी पहले ही कर लिया था, जिसे कई फिल्म फेस्टिवल्स में दिखाया भी जा चुका है. लेकिन इसे सेंसर बोर्ड से सर्टिफिकेट हाल ही में मिला है. दरअसल, इस फिल्म पर केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष पहलाज निहलानी को ऐतराज था. उन्होंने फिल्म रिलीज करने के लिए फिल्म निर्माताओं से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित और अरविंद केजरीवाल से अनापत्ति प्रमाणपत्र (एनओसी) लाने को कहा था. अंत में, फिल्म प्रमाणन अपीलीय न्यायाधिकरण ने फिल्म को मंजूरी दे दी.

मोजिका ने इस फिल्म को ‘मास्टरपीस’ बताते हुए घोषणा किया कि अब वह फिल्म को पूरे भारत और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर रिलीज करेंगे. इसके लिए वह निर्माता आनंद गांधी की मेमिसिस लैब के साथ साझेदारी करेंगे. उन्होंने आगे कहा, “हम इस फिल्‍म को विश्वभर में अपने दर्शकों के सामने इसलिए लाना चाहते हैं, क्योंकि हम मानते हैं कि यह किसी भी व्यक्ति के लिए एक प्रासंगिक फिल्म है जो अपने राजनीतिक प्रणालियों में समस्याओं को देखता है और जिसमें व्यक्तिगत रूप से चीजों को बदलने की कोशिश करने का जज्बा रखता है.’

माजिका ने कहा, ‘हम पिछले कुछ महीनों में इस फिल्म पर फिल्म निर्माताओं और सेंसर बोर्ड के बीच की लड़ाई पर करीब से नजर रखे हुए थे. वाइस हमेशा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए लड़ रहे स्वतंत्र फिल्म निमार्ताओं को सहयोग करता रहेगा.’ कहा जा रहा है कि यह फिल्म 22 से ज्यादा देशों में दिखाई जाएगी.

मूर्तियों पर चढ़े रंग पर्यावरण के लिए खतरा

देश में मूर्तिपूजा बड़े पैमाने पर होती है. लोग मूर्ति की पूजा तब तक करते हैं जब तक वह अच्छी और सुंदर दिखती है. मूर्ति के टूटते, बदरंग होते या नई मूर्ति के आते ही पुरानी मूर्ति को पूजाघर से हटा दिया जाता है.  ज्यादातर मूर्तियां मिट्टी और प्लास्टर औफ पेरिस से तैयार की जाती हैं. इन को अलगअलग रंगों से रंग कर खूबसूरत बनाया जाता है. इन रंगों में खतरनाक रसायन मिले होते हैं. ये खतरनाक रसायन पर्यावरण के लिए खतरा बन गए हैं.

कुछ सालों से मिट्टी और प्लास्टर औफ पेरिस के साथ प्लास्टिक से बनी मूर्तियां भी बिकने लगी हैं. इन को कार और दूसरे वाहनों में लटकाया जाता है. ये भी समय के साथ बेकार हो जाती हैं. ऐसे में बेकार और टूटीफूटी मूर्तियों से लोगों का मोह भंग हो जाता है. और इन मूर्तियों को घर से बाहर फेंक दिया जाता है.  यह मामला अंधविश्वास और पाखंड से जुड़ा होता है. पंडों का आदेश है कि इन मूर्तियों का अपमान न किया जाए. इस कारण इन मूर्तियों को नदी के पानी में या फिर किसी पेड़ के नीचे जड़ों के पास रख दिया जाता है.  मूर्तियों पर चढ़े रंग में खतरनाक रसायन मिला होता है. यह पानी में मिल कर इसे पीने वालों को नुकसान पहुंचाता है.

पेड़ के किनारे रखे जाने पर यह रसायन पेड़ की जड़ों में जा कर पेड़ को सुखाने का काम करता है. इस से यह पर्यावरण को नुकसान पहुंचता है. आज के समय में कूड़ाकचरा, प्लास्टिक कचरा और ईकचरा को ठिकाने लगाना मुश्किल हो रहा है. ऐसे में टूटी हुई मूर्तियों को ठिकाने लगाने का काम भी मुश्किल हो गया है. यह बात अदालत तक ने महसूस की है. उस ने टूटी मूर्तियों को नदी के किनारे गड्ढा खोद कर उस में दबाने को कहा है. कई बार तो लोग मूर्तियों को नदी की रेलिंग पर या पुल पर लगी जाली पर लटका कर चले जाते हैं.

आज भी किसी न किसी तरह से लोग नदी में मूर्तियों को फेंकना सब से पुण्य का काम मानते हैं. वे मूर्तियां ही नहीं, पूजन का बाकी सामान भी वहां पर फेंक देते हैं. पुल के करीब कूड़ादान भी रखा जाने लगा है पर इस में मूर्तियां कोई नहीं डालता. लोगों को इस बात का डर बैठाया गया है कि कूड़ेदान में मूर्तियां डालने से उन का अहित होगा. अगर यह डर न बैठाया जाए तो भक्त कैसे अपनी गाढ़ी कमाई मंदिरों में बिना वजह मनमरजी से देंगे.

अंधविश्वास बना परेशानी

देवताओं की मूर्ति को बेकार होने और टूटने के बाद भी किसी भी जगह पर नहीं फेंका जा सकता, मूर्तियों को कूड़ाघर या नाली में नहीं फेंका जा सकता, ऐसा करने से भगवान नाराज हो सकते हैं. इस बात का डर लोगों के मन में बैठा दिया गया है. ऐसे में टूटी मूर्तियों को नदी या पेड़ के पास रख दिया जाता है.

इस मसले पर समाज सुधारक सुधाकर सिंह कहते हैं, ‘‘आज घरों में मूर्तियों की संख्या बढ़ गई है. मूर्तियों के पास देवताओं के फोटो, पेंटिंग्स और कलैंडर बड़ी संख्या में घरों में लगने लगे हैं. हर घर में छोटेबड़े मंदिर होते हैं. इन में 10 से 12 मूर्तियां होती ही हैं. बैडरूम से ले कर ड्राइंगरूम तक में मूर्तियां, फोटो और कलैंडर लगाए जाने लगे हैं. ऐसे में इन का निबटारा कठिन काम होने लगा है.’’

दीवाली के दिनों में ये मूर्तियां ज्यादा दिखती हैं. दीवाली या किसी त्योहार के मौके पर सफाई के समय मूर्तियों को घर से बाहर निकाला जाता है और उन को बाहर फेंक दिया जाता है. दीवाली में नई मूर्तियों के साथ पूजा करने का प्रावधान है. जब नई मूर्तियां घर में आती हैं तो पुरानी बाहर फेंक दी जाती हैं. ये बेकार मूर्तियां पर्यावरण का बड़ा खतरा बन रही हैं.

पहले ये मूर्तियां नैचुरल कलर से बनाई जाती थीं तो कम प्रभाव डालती थीं. अब ये कैमिकल कलर से बनाई जाती हैं तो ज्यादा प्रभाव डालने लगी हैं. कैमिकल रंग सेहत के लिए नुकसानदायक होते हैं.  इन कारणों से ही अदालत ने मूर्तियों के विसर्जन के लिए नदी के किनारे गड्ढे बनाने को कहा है. इस से भी पर्यावरण के होने वाले नुकसान को रोका नहीं जा सकता है.

प्रदूषण पर नहीं पाबंदी

नदी में फैलते प्रदूषण को रोकने के लिए तमाम तरह के प्रयास और कानून बन रहे हैं. इस के बाद भी नदियों में प्रदूषण कम नहीं हो पा रहा है. केवल मूर्तियां ही नहीं, मंदिर के फूल और दूसरी गंदगी भी फेंक दी जाती है. मंदिरों को नदी के प्रदूषण का जिम्मेदार नहीं माना जाता है जबकि सब से अधिक प्रभाव इन सब का ही पड़ता है.  मंदिरों के किनारे अब हर नदी में आरती का कार्यक्रम होने लगा है. असल में मंदिर के बाद नदियां इस तरह की आरती कमाई का नया जरिया हो गईर् हैं. इन पर किसी तरह का कोई दबाव नहीं है. नदी के किनारे बड़ी संख्या में मंदिर बने होते हैं. यहां पूजापाठ से ही नहीं, भक्तों के स्नान करने से गंदगी फैलती है. इस पर जब तक पाबंदी नहीं लगेगी, नदियां साफ नहीं होंगी.

गंगा जैसी नदी, जिसे साफ करने में करोड़ों रुपए का बजट लगता है, का पानी भी पीने के लायक नहीं रह गया है. भक्त नदी का गंदा पानी पी कर देवीदेवताओं को खुश करने की कोशिश करते हैं. कई बार ऐसे लोग बीमारी का भी शिकार हो जाते हैं. इस के बाद भी वे यह स्वीकार नहीं करते क्योंकि उन को डर रहता है कि ऐसा करने से भगवान नाराज हो सकते हैं.

नदियों के प्रदूषण को रोकने के लिए उन के किनारे लगने वाली हर गंदगी को रोकना होगा चाहे वह मंदिर की हो या मंदिर के बाहर की. आज के समय में खतरनाक किस्म के कैमिकल का प्रयोग किया जाने लगा है. जो पानी को ज्यादा प्रदूषित करता है. ऐसे में टूटी  हुई मूर्तियों को नदी और पेड़ दोनों के किनारे से दूर रखना होगा, तभी पर्यावरण में सुधार हो सकेगा.                 

करोड़ों का है मूर्तियों का कारोबार

मूर्तियां पर्यावरण को कितना नुकसान पहुंचा रही हैं, इस विषय पर  अदालत के आदेश के बाद से बहस भले ही शुरू हो गई हो पर अभी भी इस को गंभीरता से नहीं लिया जा रहा है. जरूरत इस बात की है कि इस परेशानी को भी गंभीरता से लिया जाए. लखनऊ जैसे शहर, जहां की आबादी करीब 50 लाख है, के करीब 10 लाख परिवारों में घरों के अंदर छोटे मंदिर हैं. एक घर में करीब 10 से 12 मूर्तियां होती हैं. ऐसे में हर साल 1 करोड़ 20 लाख मूर्तियां नई आती हैं. इतनी बड़ी संख्या में मूर्तियों का निबटारा सरल काम नहीं है. मूर्तियां बनाने में लगा खतरनाक रंग पर्यावरण के लिए खतरा बनता जा रहा है.

पर्यावरण के साथसाथ मूर्तियों का खरीदनाबेचना बड़ा आर्थिक कारोबार है. ऐसे में इस कारोबार से जिन को मुनाफा होता है वे इसे रोकने की राह में सब से बड़ा रोड़ा हैं. वे इस कारोबार को लगातार बढ़ाने में लगे हैं. जिस से पर्यावरण पर खतरा बढ़ता जा रहा है.

एक मूर्ति की कीमत करीब 50 रुपए से ले कर 1 हजार रुपए तक या इस से अधिक भी हो सकती है. ऐसे में आसानी से समझा जा सकता है कि 1 करोड़ 20 लाख मूर्तियों पर कितना पैसा खर्च होता होगा. इस के अलावा तमाम तरह की पूजा जैसे दुर्गापूजा, गणेश उत्सव और तमाम तरह के आयोजनों में मूर्तियां पहले लाई जाती हैं, फिर उन को हटाया जाता है. नदियों के किनारे या तालाब में इन को पानी में प्रवाहित किया जाता है.

कब्रिस्तान में भाषाएं

कहावत है कि किसी संस्कृति को खत्म करना हो तो उस की भाषा नष्ट कर दीजिए. यह जुमला कुछ हद तक सही ही है क्योंकि भाषा किसी समुदाय की प्रमुख पहचान होती है, जो कि तेजी से नष्ट हो रही है. वैश्वीकरण ने दुनिया को सिर्फ फायदे पहुंचाए हों, ऐसा नहीं है. इस ने हम से बहुतकुछ छीना भी है.  छोटीछोटी संसकृतियां वैश्वीकरण की आंधी में तिनके की तरह बह रही हैं. उन की बोलीभाषा, उन कीसांस्कृतिक पहचान आदि पर गंभीर खतरा मंडरा रहा है. कुछ अरसे पहले एक सर्वेक्षण में कहा गया कि पिछले 50 वर्षों में भारत में 250 भाषाएं खत्म हो गईं. भाषाएं अलगअलग वजहों से बड़ी तेजी से मर रही हैं. ऐसे में यह कहा जाने लगा है कि भारत क्या भाषाओं का कब्रिस्तान बनता जा रहा है.

काफी समय से लुप्त होती भाषाओं की चिंता करने वालों के बीच में यह सवाल उठ रहा है. यह मुद्दा काफी महत्त्वपूर्ण है क्योंकि भारत दुनिया का सब से ज्यादा भाषाओं वाला दूसरा देश है. पिछले 50 वर्षों में भारत की करीब 20 फीसदी भाषाएं विलुप्त हो गई हैं. पीपुल लिंगुइस्टिक सर्वे के मुख्य संयोजक गणेश देवी ने कुछ अरसे पहले यह खुलासा किया था. उन का दावा है कि भारत से ‘लोक’ की जबान काटने की सुनियोजित साजिश की जा रही है.

50 वर्षों से पहले 1961 की जनगणना के बाद 1,652 मातृभाषाओं का पता चला था. उस के बाद ऐसी कोई सूची नहीं बनी. उस वक्त माना गया था कि 1,652 नामों में से करीब 1,100 मातृभाषाएं थीं, क्योंकि कई बार लोग गलत सूचनाएं दे देते थे. वड़ोदरा के भाषा शोध और प्रकाशन केंद्र के सर्वे से यह बात सामने आई है. 1971 में केवल 108 भाषाओं की सूची ही सामने आई थी क्योंकि सरकारी नीतियों के मुताबिक किसी भाषा को सूची में शामिल करने के लिए उसे बोलने वालों की तादाद कम से कम 10 हजार होनी चाहिए. यह भारत सरकार ने शर्त के तौर पर रखा था.

इस बार भाषाओं के बारे में निष्कर्ष निकालने के लिए 1961 की सूची को आधार बनाया गया. इस से पहले ब्रिटिश शासनकाल में अंगरेज अफसर जौन अब्राहम ग्रियर्सन की अगुआई में 1894-1928 के बीच इस तरह का भाषाई सर्वे हुआ था. उस के 100 वर्षों बाद भाषा रिसर्च ऐंड पब्लिकेशन सैंटर नामक संस्था की ओर से भारतीय भाषाओं का लोक सर्वेक्षण यानी पीएलएसआई किया गया 

सर्वेक्षण में कहा गया है कि 1961 में भारत में 1,100 भाषाएं बोली जाती थीं. पिछले 50 वर्षों के दौरान इन में से 250 भाषाएं लुप्त हो गई हैं और फिलहाल 850 भाषाएं जीवित हैं.

सर्वेक्षण की प्रासंगिकता के सवाल पर उन के प्रवक्ता ने कहा कि हर शब्द एक अलग विश्वदृष्टि पेश करता है. मिसाल के तौर पर, हम कितने लाख बार रोए होंगे तो एक शब्द पैदा हुआ होगा आंसू, यह शब्द गया तो हमारी विश्वदृष्टि भी गई.  हालांकि, इस सर्वे में बोली और भाषा में वर्गीकरण नहीं किया गया है. इस विषय पर विद्वानों का कहना है कि यह विवाद ही फुजूल है. भाषा सिर्फ भाषा होती है. हम इस धारणा को सिरे से खारिज करते हैं कि जिस भाषा की लिपि नहीं है वह बोली है. विश्व की ज्यादातर भाषाओं के पास लिपि नहीं है.

लिपियों का अभाव

दुनिया में कुल 6 हजार भाषाएं हैं और 300 से ज्यादा के पास अपनी कोई लिपि नहीं है, लेकिन वे बहुत मशहूर भाषाएं हैं. यहां तक कि अंगरेजी की भी अपनी लिपि नहीं है. वह भी उधार की लिपि यानी रोमन में लिखी जाती है. हिंदी देवनागरी में लिखी जाती है. देवनागरी में ही संस्कृत, मराठी, नेपाली आदि भाषाएं भी लिखी जाती हैं. यानी भाषा की अपनी लिपि होनी जरूरी नहीं है.  कुछ विद्वान इस की परिभाषा देते हैं कि जो भाष कराए, वही भाषा है, उस का लिखा जाना जरूरी नहीं है. वेदों के बारे में भी कहा जाता है कि वह बोला हुआ ज्ञान है. श्रुति है. वह पढ़ा अथवा लिखा हुआ ज्ञान बाद में बना.

सैकड़ों भाषाओं के करोड़ों शब्दों की विश्वदृष्टि को अगली पीढ़ी को सौंपने के उद्देश्य से सर्वे किया गया. सर्वे के मुताबिक, करीब 400 भाषाएं ऐसी हैं जो घुमंतू, आदिवासी और गैरअधिसूचित जातियों द्वारा बोली जाती हैं.  सर्वेक्षण में जिन 780 भाषाओं का अध्ययन किया गया, उन में से 400 भाषाओं का व्याकरण और शब्दकोश भी तैयार किया गया है.

अध्ययन में पाया गया कि दिल्ली, कोलकाता, चेन्नई, हैदराबाद जैसे शहरों में 300 से अधिक भाषाएं बोली जाती हैं. अरुणाचल में 90 भाषाएं बोली जाती हैं. दादर और नागर हवेली में गोरपा नाम की एक भाषा मिली जिस का अब तक कोई रिकौर्ड नहीं है. हिंदी बोलने वालों की संख्या लगभग 40 करोड़ है, जबकि सिक्किम में माझी बोलने वालों की संख्या सिर्फ 4 है.

सर्वेक्षण में उन भाषाओं को भी शामिल किया गया जिन्हें बोलने वालों की संख्या 10 हजार से कम है. सर्वेक्षण में इन भाषाओं को शामिल करने के पीछे देवी ने तर्क दिया कि बंगलादेश युद्घ के बाद भाषाई संघर्ष की संभावनाओं को खत्म करने के लिए रणनीति के तहत उन भाषाओं को जनगणना में शामिल करना बंद कर दिया गया, जिन्हें बोलने वालों की संख्या 10 हजार से कम हो. यही वजह है कि 1961 की जनगणना में 1,652 भाषाओं का जिक्र है, जबकि 1971 में यही घट कर 182 हो गई और 2001 में 122 रह गई.

सर्वेक्षण में ऐसा माना गया कि 1961 की जनगणना में जिन 1,652 भाषाओं का जिक्र है, उन में से अनुमानतया 1,100 को भाषा का दरजा दिया जा सकता है. भारत सरकार की तरफ से 2006-07 में भारतीय भाषाओं पर सर्वेक्षण कराए जाने की पहल हुई थी, लेकिन यह योजना आगे नहीं बढ़ सकी.  भाषाओं का विमर्श केवल प्रमुख भाषाओं तक सीमित है. जैसे, हाल ही में कर्नाटक और तमिलनाडु में हिंदी थोपने के खिलाफ आंदोलन हुआ. इसी तरह कई हिंदीभाषी राज्यों में अंगरेजी को निशाना बनाया जाता है क्योंकि कुछ लोगों को लगता है कि अंगरेजी की लोकप्रियता भारतीय भाषाओं की कीमत पर बढ़ रही है.

फंड का फेर

हिंदी बनाम अंगरेजी से या हिंदी बनाम कन्नड़ की बहस से एक महत्त्वपूर्ण बहस यह भी चल रही है कि छोटी आदिवासी भाषाएं कैसे राज्यों की अधिकृत भाषाओं के सामने टिक पाएंगी. कागजों पर सरकारें लुप्त हो रही भाषाओं की मदद करते बहुतकुछ दिखाती हैं. 2014 के बाद आई सरकार ने उन भाषाओं का डौक्युमैंटेशन और संरक्षण का काम शुरू किया है जिन्हें बोलने वाले 10 हजार से कम हैं. यह काम सैंट्रल इंस्टिट्यूट औफ लैंग्वेजेज द्वारा किया जा रहा है. जिस के बारे में वहां के कर्मचारियों का कहना है कि उस के पास फंड कम है और योग्य कर्मचारियों की कमी भी है.

इस के अलावा सरकार ने 9 विश्वविद्यालयों में विलुप्त भाषाओं के केंद्र स्थापित किए हैं. अंतर्राष्ट्रीय संस्था फाउंडेशन औफ एनडैंजर्ड लैंग्वैजेज के अध्यक्ष निकोलस औस्टलर का कहना है कि इस मामले में सरकार का समर्थन जरूरी है, मगर लंबे समय में समुदाय तभी फलतेफूलते हैं जब वे मामलों को अपने हाथों में लेते हैं. वैश्विक स्तर पर देखें तो वहां भी अंगरेजी के वर्चस्व के आगे सैकड़ों भाषाओं पर अस्तित्व का संकट है. संयुक्त राष्ट्र की ओर से 2009 में जारी आंकड़ों के मुताबिक, सब से खराब हालत भारत में है जहां 196 भाषाएं विलुप्ति के कगार पर हैं. इस के बाद अमेरिका का स्थान है, जहां 192 भाषाएं विलुप्तप्राय हैं. इंडोनेशिया में 147 भाषाएं मिटने वाली हैं.

दुनिया में 199 भाषाएं ऐसी हैं जिन्हें बोलने वालों की संख्या 10 से भी कम है. 178 भाषाएं ऐसी हैं जिन्हें बोलने वालों की संख्या 150 लोगों से भी कम है. एक अनुमान के मुताबिक, दुनियाभर में 6,900 भाषाएं बोली जाती हैं, जिन में से 2,500 भाषाओं की स्थिति चिंताजनक है. यदि भाषा संस्कृति का आधार है तो इन भाषाओं के नष्ट होने के साथ ये संस्कृतियां भी नष्ट हो जाएंगी.

गणेश देवी के मुताबिक, दुनिया की 6 हजार भाषाओं में से 4 हजार भाषाओं पर विलुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है, जिन में से 10 फीसदी भाषाएं भारत में बोली जाती हैं. दूसरे शब्दों में, कुल  780 भाषाओं में से 400 भारतीय भाषाएं विलुप्त हो सकती हैं.  उल्लेखनीय है कि दुनिया की सब से ज्यादा भाषाएं पापुआ न्यू गिनी में हैं. इन की संख्या 838 है. तीसरा नंबर इंडोनेशिया का है जहां 707 भाषाएं हैं. चौथे नंबर पर नाइजीरिया है 526 भाषाओं के साथ. उस के बाद क्रमश: अमेरिका (422), चीन (300), मैक्सिको (289), कैमरून (281), आस्ट्रेलिया (245), ब्राजील (229) के नंबर आते हैं. मगर भारत में अन्य देशों की तुलना में ज्यादा भाषाएं विलुप्त हो रही हैं. पापुआ न्यू गिनी में 98, इंडोनेशिया 143, अमेरिका 191, चीन 144, मैक्सिको 143, आस्ट्रेलिया 108, ब्राजील 190 और कनाडा में  87 भाषाएं विलुप्त हो चुकी हैं.

भारत में 2 तरह की भाषाएं लुप्त हुई हैं. एक तो तटीय इलाकों के लोग ‘सी फार्मिंग’ की तकनीक में बदलाव होने से शहरों की तरफ चले गए. उन की भाषाएं ज्यादा विलुप्त हुईं. दूसरे, जो डीनोटिफाइड कैटेगरी है, बंजारा समुदाय के लोग, जिन्हें एक समय अपराधी माना जाता था. वे अब शहरों में जा कर अपनी पहचान छिपाने की कोशिश कर रहे हैं. ऐसे 190 समुदाय हैं, जिन की भाषाएं बड़े पैमाने पर लुप्त हो गई हैं.  गणेश देवी के अनुसार, बंजारों, आदिवासी या अन्य पिछड़े समाजों की भाषाएं पूरे विश्व में लगातार नष्ट हो रही हैं. यह आधुनिकता की सब से बड़ी विडंबना है. ऐसे लोग देश के लगभग हर हिस्से में फैले हैं. ऐसा नहीं है कि ये लोग जीवित नहीं हैं. ये जिंदा हैं और इन की संख्या लाखों में हैं, लेकिन ये अपनी भाषा भूल चुके हैं.

जानकारों का एक समूह मानता है कि ग्लोबलाइजेशन की वजह से मातृभाषाओं की मौत हो रही है. लोग जहां जाते हैं वहीं की भाषा अपना लेते हैं और अपनी भाषा को छोड़ देते हैं.  वैसे, ग्लोबलाइजेशन को कितना ही कोस लीजिए, वह वक्त का तकाजा है. उस में छोटे समुदायों के आपस में जुड़ने से दुनिया एक गांव बनती जा रही है. माइग्रेशन, परिवहन और संचार के साधन लोगों को पास ला रहे हैं. इस में पुरानी भाषाओं और बोलियों का क्षय होना स्वाभाविक है. मगर उस में से जो प्रमुख भाषाएं उभर कर आ रही हैं उन में से करोड़ों लोग जुड़ते हैं.

दीपिका पादुकोण के मन में क्या है?

बौलीवुड में स्थायी दोस्त व स्थायी दुशमन कोई नहीं होता. इसी तरह बौलीवुड में प्रेमी प्रेमिका कपड़े की तरह बदले जाते हैं. इसी के चलते हर कलाकार की हर हरकत पर लोगों की नजर रहती है. कभी रणबीर कपूर के साथ जीने मरने की कसमें खाने वाली दीपिका पादुकोण ने कुछ वर्ष पहले रणबीर कपूर को तन्हा छोड़ रणवीर सिंह का दमान थाम लिया था. लेकिन पिछले एक वर्ष से इन दोनों के बीच बनते बिगड़ते संबंधों की काफी चर्चा होती रही है. कभी खबर आती है कि दीपिका पादुकोण और रणवीर सिंह ने सगाई कर ली, तो कभी इनके अलगाव की खबरें आती हैं.

इन दिनों दीपिका पादुकोण प्राग में सिद्धार्थ मल्होत्रा के संग एक विज्ञापन फिल्म की शूटिंग कर रही हैं. पर दीपिका पादुकोण सोशल मीडिया के इंस्टाग्राम पर सिद्धार्थ मल्होत्रा के साथ अपनी गर्मागर्म खूबसूरत तस्वीरें पोस्ट कर रही हैं. जब से यह तस्वीरें इंस्टाग्राम पर आयी हैं, तब से बौलीवुड में अटकलों का बाजार गर्म हो गया है. कुछ लोग अटकलें लगा रहे हैं कि क्या रणवीर सिंह से छुटकारा पाकर दीपिका पादुकोण, सिद्धार्थ मल्होत्रा का साथ पकड़ना चाहती हैं? क्योंकि सिद्धार्थ मल्होत्रा और आलिया भट्ट के संबंधों में भी दरार आ चुकी है. तो कुछ लोग अटकलें लगा रहे है कि सिद्धार्थ मल्होत्रा और दीपिका पादुकोण इस तरह की तस्वीरें पोस्ट कर अपने अपने प्रेमी व प्रेमिका को चिढ़ाने का काम कर रहे हैं.

वैसे बौलीवुड के एक सूत्र का दावा है कि यह हथकंडा महज खुद को सूर्खियों में बनाए रखने के लिए है. एक तरफ फिल्म ‘पद्मावती’ के निर्देशक संजय लीला भंसाली ने दीपिका पादकोण सहित फिल्म के सभी कलाकारों पर मीडिया से बात करने पर पाबंदी लगा रखी है, तो दूसरी तरफ फिल्म ‘इत्तफाक’ के निर्माता करण जोहर ने सिद्धार्थ मल्होत्रा सहित फिल्म के सभी कलाकारों पर मीडिया से बात करने पर रोक लगा रखी है. इसी के चलते यह दोनों कलाकार इस तरह की तस्वीरे पोस्ट कर खुद को चर्चा में बनाए रखने का प्रयास कर रहे हैं.

मगर दो सवाल भी उठ रहे हैं. पहला सवाल यह कि इस तरह की तस्वीरों से क्या फिल्म को दर्शक मिलेंगे और दूसरा सबसे बड़ा सवाल यह है कि दीपिका पादुकोण के मन में क्या चल रहा है.

विशाल ददलानी ने ट्वीट कर बिग बौस कंटेस्टेंट को झूठा बताया

बिग बौस के सीजन 11 में पिछले दिनों घर में कंटेस्टेंट बन कर गए जुबैर खान पर होस्ट सलमान खान ने आरोप लगाए थे. सलमान ने कहा था कि जुबैर ने अपने आपको लेकर एक झूठ बोला और घर में एंट्री मारी. सलमान ने कहा था कि वह किसी के कोई दामाद नहीं है. इसके बाद ही जुबैर एलिमिनेट हो गए थे. वहीं अब शो में एक और कंटेस्टेंट आकाश हैं, जिनकी पहचान को लेकर सवाल खड़े हो रहे हैं.

आकाश एक रैपर हैं वह जब शो में आए थे तो उन्होंने खुद को म्यूजिक लवर बताया था. वहीं वह रैपर भी हैं. इसको लेकर माना जा रहा था कि वह म्यूजिक डायरेक्टर विशाल ददलानी के रिश्तेदार हैं. सुनने में आया था कि कंटेस्टेंट आकाश ने खुद को विशाल के मृत भाई का बेटा बताया था.

वहीं इसको लेकर खुद विशाल ने सामने आकर कहा कि वह आकाश को नहीं जानते, न ही वह उनके रिश्तेदार हैं. विशाल ने सोशल मीडिया के माध्यम से अपनी बात रखी.

 

इस दौरान विशाल ने कहा कि वह आकाश को नहीं जानते. विशाल अपने ट्विटर पोस्ट पर लिखते हैं, ‘यह बिगबौस के अंदर हो रहा है, यह उनके लिए हैं जो बिग बौस देखते हैं. बिग बौस के अंदर कोई व्यक्ति है जो मुझे अपना रिश्तेदार बता रहा हैं.

मैंने इसे चेक किया और पता चला कि वह काफी दूर के रिश्तेदार हैं. मैं उन्हें नहीं जानता. उन्होंने मुझे टेक्स्ट भी किया था, वह काम मांग रहे थे. उन्होंने कई बार मुझसे इस बारे में बात करने की कोशिश की. लेकिन सिर्फ सरनेम एक सा होने से काम ऐसे नहीं मिलता.

अगर वह मेरे पिता के ‘मरे हुए भाई’ (जैसे की वह कहते हैं) होते भी तो भी मैं उन्हें काम नहीं देता. उन्हें मेहनत के दम पर यहां तक आना होगा और अपने लिए खुद जगह बनानी होगी. मैं बता दूं मेरा कोई भाई नहीं है. यह क्लियर है कि मैं इन्हें नहीं जानता.’

 

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें