विशाल ददलानी ने ट्वीट कर बिग बौस कंटेस्टेंट को झूठा बताया

बिग बौस के सीजन 11 में पिछले दिनों घर में कंटेस्टेंट बन कर गए जुबैर खान पर होस्ट सलमान खान ने आरोप लगाए थे. सलमान ने कहा था कि जुबैर ने अपने आपको लेकर एक झूठ बोला और घर में एंट्री मारी. सलमान ने कहा था कि वह किसी के कोई दामाद नहीं है. इसके बाद ही जुबैर एलिमिनेट हो गए थे. वहीं अब शो में एक और कंटेस्टेंट आकाश हैं, जिनकी पहचान को लेकर सवाल खड़े हो रहे हैं.

आकाश एक रैपर हैं वह जब शो में आए थे तो उन्होंने खुद को म्यूजिक लवर बताया था. वहीं वह रैपर भी हैं. इसको लेकर माना जा रहा था कि वह म्यूजिक डायरेक्टर विशाल ददलानी के रिश्तेदार हैं. सुनने में आया था कि कंटेस्टेंट आकाश ने खुद को विशाल के मृत भाई का बेटा बताया था.

वहीं इसको लेकर खुद विशाल ने सामने आकर कहा कि वह आकाश को नहीं जानते, न ही वह उनके रिश्तेदार हैं. विशाल ने सोशल मीडिया के माध्यम से अपनी बात रखी.

 

इस दौरान विशाल ने कहा कि वह आकाश को नहीं जानते. विशाल अपने ट्विटर पोस्ट पर लिखते हैं, ‘यह बिगबौस के अंदर हो रहा है, यह उनके लिए हैं जो बिग बौस देखते हैं. बिग बौस के अंदर कोई व्यक्ति है जो मुझे अपना रिश्तेदार बता रहा हैं.

मैंने इसे चेक किया और पता चला कि वह काफी दूर के रिश्तेदार हैं. मैं उन्हें नहीं जानता. उन्होंने मुझे टेक्स्ट भी किया था, वह काम मांग रहे थे. उन्होंने कई बार मुझसे इस बारे में बात करने की कोशिश की. लेकिन सिर्फ सरनेम एक सा होने से काम ऐसे नहीं मिलता.

अगर वह मेरे पिता के ‘मरे हुए भाई’ (जैसे की वह कहते हैं) होते भी तो भी मैं उन्हें काम नहीं देता. उन्हें मेहनत के दम पर यहां तक आना होगा और अपने लिए खुद जगह बनानी होगी. मैं बता दूं मेरा कोई भाई नहीं है. यह क्लियर है कि मैं इन्हें नहीं जानता.’

 

अब घर बैठे सोशल मीडिया से कमाएं पैसे

सोशल मीडिया सिर्फ सूचनाएं और आपस में जुड़ने का ही तरीका नहीं है. बल्कि इससे आप पैसा भी कमा सकतीं हैं. 23 साल के एक विदेशी नागरिक की सालाना कमाई करीब 5 लाख (भारतीय रुपयों में करीब 3.10 करोड़) डौलर है. यह कमाई वे ट्‍वीट के जरिए करते हैं. वे ट्‍विटर पर दिलचस्प तथ्य पोस्ट करते हैं. जी हां, सोशल मीडिया के प्लेटफार्म से भी रुपए कमाए जा सकते हैं. ट्‍विटर से आप आसानी से 20 हजार रुपए महीना तक कमा सकतीं हैं. इसके लिए आपको ऐसा ट्‍विटर हैंडल बनाना होगा, जिसमें आपके फौलोअर्स की तेजी से संख्या बढ़े.

पहले करें ये काम

सबसे पहले आप अपना एक ट्विटर हैंडल(आईडी) बनाएं. हैंडल अपने नाम से बनाएं और उसमें सही जानकारी दें. फेक आईडी से आपको फौलोअर्स तो मिल जाएंगे, लेकिन जब बात पैसा कमाने की आएगी तो आपको निराश होना पड़ेगा. इससे अच्छा है आप अपना ओरिजनल ट्विटर हैंडल बनाएं.  

करेंट अफेयर्स में रहें अपडेट

अब आप सामाजिक मुद्दों और समाचारों पर अपडेट रहिए. अपनी रचनात्मकता का प्रयोग करते हुए ट्‍वीट करें, ताकि लोग उसे रीट्वीट करें. इससे आपके फौलोअर्स बढ़ेंगे. जो आपको फौलो करे, उसे आप भी फौलो कीजिए, लेकिन ध्यान रखें हर किसी को अनफौलो न करें. अपने वास्तविक फौलोअर्स बढ़ाने की कोशिश करें. ज्यादा से ज्यादा हैशटैग पर ट्वीट करने और ट्रेंडिंग टौपिक्स पर ट्वीट करने से आपके फौलोअर्स की संख्या बढ़ने लगेगी. 

ट्‍विटर हैंडल पर आपके फौलोअर्स की संख्या 50 हजार से ऊपर चले जाए तब आप किसी स्थानीय विज्ञापन एजेंसी से संपर्क करें. दिल्ली, बेंगलुरु, मुबई समेत कई शहरों में ऐसी विज्ञापन एजेंसियां हैं जो ट्विटर कैम्पेन के लिए रुपए देती हैं. अगर आपके 50 हजार फौलोअर्स हैं, तो आपको एक ट्वीट करने पर 10 रुपए मिलेंगे. अगर फौलोअर्स की संख्या  1 लाख हैं, तो 20 से 30 रुपए प्रति ट्वीट. जितने ज्यादा ट्वीट उतना ज्यादा पैसा.  बेंगलुरु, दिल्ली समेत जैसे शहरों में लोग जो सिर्फ ट्वीट से ही 20 से 25 हजार रुपए महीना कमाते हैं.

 अगर बहुत ज्यादा फौलोअर हैं, तो 50 हजार से एक लाख रुपए तक कमाई की जा सकती है. तो अब आप भी ट्‍विटर को रुपए कमाने का जरिया बना सकती हैं. 

दुबई जा रहीं हैं तो वहां की नाईटलाइफ को जीना ना भूलें

दुबई में रात का दृश्य शानदार होता है. ऐसा लगता है कि वास्‍तव में यहां पर जीवन शाम‍ को ही शुरू होतीं है. आधी रात को लोग अपने घरों से सड़कों पर मस्‍ती करने निकलते हैं. बड़ी संख्‍या में लोग बार और नाइटक्लब में जाते हैं. दुबई में विभिन्‍न तरह के बार और नाइटक्‍लब बने हैं. पुरानी दुबई में और नई दुबई के जुमेरा और अल बारशा जिलों में कई ऐसे होटल हैं जहां लोग सुकून से अपना समय बिताते हैं. वहीं पार्टी प्‍लेसेज यहां औद मीता, अल रिगा और अल करामा जिलों में सबसे ज्‍यादा स्‍थ‍ित‍ हैं. रात के समय यहां का दृश्‍य काफी शानदार होता है. दुबई में रात 9 बजे का बाद वहां की चका चौंध देखने लायक होती है.

3 बजे सुबह बंद होते क्‍लब

दुबई में ड्रिंक‍ करने की आयु 21 वर्ष से शुरू होती है. ऐसे में जो बार व होटल इससे कम उम्र के लोगों को शराब सर्व करते है उनके खिलाफ एक्‍शन लिया जाता है. दुबई में, नाइट क्लबों को 3 बजे सुबह बंद करना आवश्यक है. अगर प्रति‍बंधित समय के बाद संगीत आदि‍ नाइटक्‍लब में चलता है तो उन पर भारी जुर्माना लगाया जाता है. अगर आप दुबई की यात्रा पर जाने का प्‍लान कर रहीं हैं तो पहले यह जान लें कि‍ नाइटक्‍लब खुले हैं या नहीं. ज्‍यादातर नाइटक्‍लब इस टाइम पीरियड में बंद हो जाते हैं.

शानदार हैं ये नाइटक्‍लब

दुबई में नाइटक्लब, बार, रेस्तरां और बहुत सारे कैफे ऐसे हैं जहां जाने पर इंडियन लुक मिलता है. यहां बौलीवुड बार या चिल रूफटौप क्लब का माहौल काफी खूबसूरत है. वहीं अरबी वातावरण का मजा लेने के लिए डीरा बेहद खूबसूरत एक जगह है. अल जुमोर्रोफ में अरबी नाइट क्लब और ईरानी नाइट क्लब के साथ अल मुशफिक जैसे कई बार हैं. किडीरा भारतीय और फिलिपिनो क्लबों से भरा है. यहां का रौयल मिराज होटल में कस्बा नाइट क्लब काफी फेमस है. यह मोरोक्को-थीम पर बना है. यह रौयल होटल में स्‍थि‍त सबसे बड़ा नाइट क्‍लब माना जाता है. 

वाइन के किसी ब्रांड का लें मजा

दुबई में वेस्टिन होटल में ओनो वाइन बार एक ऐसी जगह है जहां पर एक से बढ़कर एक एल्‍कोहल का मजा लिया जा सकता है. यहां रात यादगार बनाने के लिए विंटेज चैंपियन, रम जैसा कोई ब्रांड चूज किया जा सकता है. ली मेरिडियन मीना सेहही बीच रिजौर्ट और मरीना भी बहुत नाइट लाइफ को शानदार बनाने में खास भूमि‍का निभाते हैं. वहीं बार्स्टी बार समुद्र के किनारे बैठने के लिए एक अच्‍छा स्‍थान है. यहां पर बड़ी स्‍क्रीन पर लाइव स्पोर्ट्स इवेंट्स होते हैं, जि‍नमें प्रवेश करने का कोई शुल्क नहीं है. यहां डीजे म्‍यूजिक के साथ कौकटेल व स्वादिष्ट भोजन और दोस्‍तों के साथ बाते की जा सकतीं हैं.

फीमेल टूरिस्‍ट मस्‍ती करते

दुबई होटल नाइटक्लब और नाइट लाइफ के लिए काफी फेमस हो चुका है. इन नाइटक्‍लब में जर्मन और अंग्रेजी पब से लेकर रूसी डिस्को तक का मजा लिया जा सकता है. दुबई क्रीक के पास एविएशन क्लब स्थित है. बीयर के लिए यह एक शानदार जगह है. वहीं मदीनात जुमेराह कांपलेक्‍स और अटलांटिस जैसी जगहों पर काफी हाईटेक डिस्को हैं. दुबई मरीना परिसर में चालीस अलग अलग बार और लाउंज हैं. इन्‍हीं में पार्टी आदि के लिए चर्चित बुद्ध बार भी शामिल है. यहां पर दुनिया के कई देशों से मेल व फीमेल टूरिस्‍ट घूमने आते हैं. वे इन नाइटक्‍लब में भरपूर मस्‍ती करते हैं.

मराठी फिल्म रिव्यू : हलाल

तीन तलाक जैसे विवादित मुद्दे पर फिल्म बनाना बहुत ही हिम्मत का काम है. और यह हिम्मत दिखाई है निर्देशक शिवाजी लोटण-पाटिल और उनकी पूरी टीम ने, जो काफी रोचक बात है.

मुस्लिम समाज में तलाक लेने की प्रक्रिया अन्य धर्मों की तुलना में बहुत आसान है. लेकिन पुरुष प्रधान समाज होने के कारण यह प्रथा महिलाओं के लिए अन्यायपूर्ण साबित हो जाती हैं. कई बार ऐसा होता है कि कुछ ठोस कारण नहीं होते हुए भी मुस्लिम पुरुष जल्दबाजी में तीन बार तलाक कहकर अपनी पत्नी को तलाक दे देते है. लेकिन हलाल फिल्म में बताया गया है कि कुरान के अनुसार, ये गलत है.

मुस्लिम पुरुषों को यदि पत्नी से तलाक लेना है तो तीन महीने में तीन बार मुस्लिम पंचों के सामने सार्वजनिक रूप से तलाक कहना पड़ता है. और विवाह के समय शगुन के तौर पर तय की गई मेहर की रकम वापस करनी पड़ती है. लेकिन यह धार्मिक प्रक्रिया छोड़कर अमानवीय पद्धति से तलाक देने वाले मुस्लिम युवकों की आंखे खोलने का प्रयास ‘हलाल’ फिल्म के माध्यम से किया गया है.

हलीम (प्रीतम कागने) और कुद्दुस (प्रियदर्शन जाधव) का तलाक हो चुका है, लेकिन दोनों एक दूसरे से बहुत प्यार करते है. कुद्दुस की मां हमेशा हलीम को प्रताड़ित करती रहती है. मां एक दिन हलीम को जान से मार देगी, इस डर से कुद्दुस उसको तलाक दे देता है. दो साल बाद जब कुद्दुस की मां गुजर जाती है तो वह हलीम को वापस लेने जाता है. लेकिन एक बार तलाक होने के बाद लड़की को वापस ससुराल जाने को मुस्लिम समाज में मान्यता नहीं है, इसलिए हलीम के पिता (विजय चव्हाण) ले जाने से इंकार कर देते है. लेकिन हलीम की मां (छाया कदम) के कहने पर वे गांव के मौलवी (चिन्मय मंडलेकर) के पास उपाय पूछने जाते हैं.

मौलवी ‘हलाला’ करने की सलाह देता है. ‘हलाला’ मतलब एक बार पुरुष अपनी पत्नी को तलाक दे देता है और वापस साथ रहना चाहता है तो पहले उस तलाकशुदा महिला को किसी और से शादी करके पति को तलाक देना होता है. इसके बाद ही वह पहले पति के साथ शादी कर सकती है. मौलवी बताता है कि महिलाओं को कम समझने वाले पुरुषों की इस मानसिकता पर रोक लगाने के लिए ही कुरान में ‘हलाला’ जैसी प्रक्रिया बनाई गई है.

कुद्दुस नहीं चाहता है कि हलीम की दूसरे व्यक्ति से शादी हो. लेकिन वह कुरान में विश्वास करने वाला एक सामान्य मुस्लिम पुरुष है इसलिए धर्म के विरोध में नहीं जा सकता है. और हलीम की शादी के लिए तैयार हो जाता है. उसके बाद हलीम के लिए लड़का ढूंढने का प्रयास किया जाता है लेकिन कोई विश्वास के लायक नहीं मिलता है. इसके बाद हलीम के पिता और गांव के सरपंच मौलवी के पास जाते है और हिम्मत करके हलीम के लिए मौलवी का ही हाथ मांगते है. मौलवी यह बात सुनकर हैरान हो जाता है, लेकिन अल्लाह द्वारा दिखाए मार्ग पर चलना उनका कर्त्तव्य है. इसलिए हलीम की मदद करने के लिए वो तैयार होता है. हलीम को फिर से पाने के लिए कुद्दुस खुद उसकी शादी करवाता है.

शादी के बाद धर्म अनुसार हलीम और मौलवी पति पत्नी की तरह शरीरिक संबंध बनाते है. जिस वजह से दोनों भावनात्मक रूप से एक दुसरे से जुड़ जाते है. लेकिन तय नियमानुसार मौलवी पहले दो तलाक देता है लेकिन तीसरे तलाक के लिए हलीम तैयार नहीं होती है. और लोगों के सामने मौलवी को रोकती है और बताती है कि पुरुषों के लिए कुरान में लिखी गई सजा असल में महिलाओं को भुगतनी पड़ती है. हलीम की बात से सभी सहमत हैं लेकिन कोई धर्म के विरुद्ध नही जाता है. अंत में हलीम पर हो रहे अत्याचार को देखते हुए कुद्दुस स्वयं आगे आता है और तलाक रोकने के लिए कहता है.

वैसे देखा जाए तो कुल मिलाकर फिल्म काफी अच्छी है. लेकिन फिल्म में भीड़ के बीच चल रही खुसुर-फुसुर और अंत में हलीम का संवाद देख के लगता है जैसे निर्देशक को फिल्म से ज्यादा नाटक निर्देशित करने का अनुभव है. चिन्मय मंडलेकर ने मुस्लिम की भूमिका में खरा उतरने के लिए बहुत मेहनत की है जो फिल्म में दिखाई देती है. विजय चव्हाण मुस्लिम पिता की भूमिका में ठीक हैं, लेकिन बोलचाल से मुस्लिम नहीं लगते हैं. छाया कदम और प्रियदर्शन जाधव ने भी अच्छा अभिनय किया है.

देखा जाए तो फिल्म के जरिये इस्लाम में ‘हलाला’ परंपरा को दिखाया गया है, लेकिन फिल्म का नाम ‘हलाल’ है. मुस्लिम समाज में प्राणी की हत्या को ‘हलाल’ कहते है. फिल्म के जरिये ‘हलाला’ परंपरा में महिलाओं की भावनाओं को किस तरह से हलाल किया जाता है, यह बताने का प्रयास किया गया है.

निर्माता – लक्ष्मण कागने, अमोल कागने

निर्देशक – शिवाजी लोटन पाटिल

पटकथा एवं संवाद – निशांत धापसे

कलाकार – प्रीतम कागने, प्रियदर्शन जाधव, चिन्मय मंडलेकर, विजय चव्हाण एवं छाया कदम.    

मूवी रेटिंग : तीन स्टार            

हैल्दी बौडी हैल्दी माइंड

हैल्थ इज वैल्थ, यह कथन बिलकुल सही है. एक स्वस्थ व्यक्ति ही जीवन को भरपूर जी सकता है. घूमनाफिरना, खानापीना, सामाजिक संबंधों को निभाना, व्यक्तिगत जीवन की उन्नति सबकुछ स्वास्थ्य पर ही निर्भर है. स्वस्थ व्यक्ति ऊर्जावान होता है. वह अपनी शक्ति का प्रयोग जीवन के किसी भी क्षेत्र में कर सकता है.

शारीरिक स्वास्थ्य न केवल बाहरी जगत के संबंधों को अच्छा बनाता है बल्कि आत्मिक उन्नति में भी सहायक होता है. बौडी के हैल्दी होने से दिमाग भी हैल्दी रहता है. एक बीमार व्यक्ति कभी भी मानसिक रूप से विकसित नहीं हो सकता क्योंकि उस की शारीरिक बीमारियों का असर उस के मस्तिष्क पर लगातार पड़ता रहता है.

किसी भी व्यक्ति के जीवन का उद्देश्य होता है कि वह अपनी रुचि के अनुसार जीवन की ऊंचाइयों को छू ले पर यह तभी संभव है जब वह शारीरिक और मानसिक रूप से पूर्ण स्वस्थ हो तो क्या संपूर्ण स्वास्थ्य हम प्राप्त कर सकते हैं? आइए जानते हैं.

हम में से प्रत्येक व्यक्ति चाहे वह किसी भी आयुवर्ग का हो को शरीर के प्रति सजग होना चाहिए. बचपन से ही हमें शारीरिक व्यायाम, सैर करना, टहलना, आउटडोर गेम खेलना, पैदल चलना, अपने काम स्वयं करना जैसी आदतें जीवनशैली का हिस्सा बनानी चाहिए. यदि जीवन के आरंभिक काल से ही शरीर के स्वास्थ्य का ध्यान रखा जाए तो स्वास्थ्य बेहतर बन सकता है.

हैल्दी फूड

शारीरिक स्वास्थ्य का दूसरा मुख्य पहलू है हमारा भोजन क्योंकि शरीर को ऊर्जा प्रदान करना इसी का कार्य है. संतुलित भोजन खाने की आदत भी बचपन से ही डाली जानी चाहिए. हमें अपनी थाली में सभी रंगों को शामिल करना चाहिए. उदाहरण के लिए एक पौष्टिक थाली में हरा, सफेद, लाल, पीला सभी रंग होने चाहिए. हरे रंग का मतलब सलाद, हरी सब्जियां, सफेद यानी दही, चावल, चपाती, लाल यानी टमाटर, गाजर, पीला यानी दालें.

इस प्रकार का भोजन हमारे शरीर को वसा, कार्बोज, विटामिन, प्रोटीन और मिनरल सभी संतुलित मात्रा में प्रदान करता है.

आजकल की जीवनशैली में समय की कमी होने के कारण हम लंच में एक बर्गर और कोल्डड्रिंक ले लेते हैं. इस से हमारा पेट तो भर जाता है पर धीरेधीरे शरीर को पोषक तत्त्व मिलने बंद हो जाते हैं और हम मोटापे, शुगर, ब्लडप्रैशर जैसी बीमारियों के शिकार हो जाते हैं.

शरीर को पोषक तत्त्व मिलें, इस के लिए हमें सजग रहने की आवश्यकता है. हम कितने भी व्यस्त क्यों न हों, कुछ हैल्दी आदतों को अपने जीवन में शामिल करें. उदाहरण के लिए किसी भी आयुवर्ग के लोग बिना मेहनत के केला तथा सेब जैसे फल आसानी से बिना काटे खा सकते हैं. अधिक से अधिक पानी पिएं. कोल्डड्रिंक के बजाए नारियल पानी पिएं.

आजकल बाजार में अनेक प्रकार की लस्सी, छाछ फ्लेवर्ड मिल्क जैसे पेय पदार्थ भी उपलब्ध हैं.

यदि कोल्डड्रिंक्स के स्थान पर इन्हें पिया जाए तो निश्चित रूप से शारीरिक ऊर्जा अधिक महसूस होगी. खीरा, गाजर आदि सलाद भी आसानी से औफिस या काम करने के स्थान पर ले जाए जा सकते हैं. शरीर में आयरन के लिए यदि हरी सब्जियां नहीं खा सकते तो एक छोटी डब्बी में भुने चने तथा गुड़ साथ रख सकते हैं.

सकारात्मक सोच

केवल हैल्दी फूड ही खाना काफी नहीं, खाना खाते समय मन भी शांत रखना बहुत अवश्यक है. खाने को जल्दबाजी में न खा कर चबाचबा कर खाना चाहिए. ये सब उपाय हमें शारीरिक स्वास्थ्य प्रदान करते हैं. एक अच्छी नींद लेना भी बहुत जरूरी है. अधिक से अधिक सकारात्मक सोच भी स्वस्थ जीवन की ओर एक अच्छा कदम है. शारीरिक स्वास्थ्य के लिए एक आवश्यक बात यह भी है कि यदि आप लगातार थकान महसूस करते हैं तो डाक्टर से जांच अवश्य करा लेनी चाहिए. यदि किसी बीमारी से ग्रस्त हैं तो जीवनशैली तथा खानपान में संयम अवश्य अपनाएं ताकि जीवन को भरपूर जी सकें. किसी भी प्रकार का नशा न करें.

हैल्दी माइंड

अब बात करते हैं हैल्दी माइंड की. यदि शरीर स्वस्थ होगा तो मन भी प्रसन्न रहेगा और मन अधिक से अधिक क्रिएटिव कार्य कर सकेगा. हमें याद रखना चाहिए कि मनुष्य का व्यक्तित्व उस के विचारों का प्रतिबिंब है. मस्तिष्क ही पूरे शरीर को संचालित करता है. यदि मानसिक रूप से कोई स्वस्थ नहीं, तो उस व्यक्ति को जीवन में कुछ भी प्राप्त नहीं हो सकता.

अत्यधिक इंटरनैट, स्मार्टफोन, टीवी आदि का इस्तेमाल निष्क्रिय कर देता है. इन से निकलने वाली हानिकारक तरंगे हमारे सोचने की कोशिकाओं पर बुरा असर डालती हैं. इन का इस्तेमाल अवश्य करें पर अनावश्यक नहीं.

प्रत्येक व्यक्ति अपनी एक हौबी अवश्य विकसित करे. यह अपनी रुचि के अनुरूप कुछ भी हो सकती है. उदाहरण के लिए सिंगिंग, डांसिंग, कुकिंग, स्टिचिंग, ड्राइंग, पेंटिंग, इंडोर आउटडोर गेम, समाजसेवा का कार्य आदि. सभी उम्र तथा सामाजिक वर्ग के लोग इन में से कुछ न कुछ अवश्य कर सकते हैं. ये सभी कार्य हमें मैंटली हैल्दी बनाते हैं. इन्हें करने से हमें जो संतुष्टि मिलती है वह हमारे ब्रेन को ऊर्जावान बनाती है.

अच्छा सोचने की आदत विकसित करें. जब भी आप खाली बैठें, अपने विचारों का मंथन करें. नकारात्मक विचार आते ही स्वयं को सकारात्मक सोचने की ओर प्रेरित करें. बहुत अधिक भविष्य के विषयों में सोचना भी हमें वर्तमान में जीवन का आनंद नहीं लेने देता.

जीवन में सकारात्मक चिंतन तथा खुश रहने की कला सीखें. ऐसा करने से हमारे मित्रों की संख्या बढ़ेगी. हमें मानसिक खुशी मिलेगी. हैल्दी माइंड से हैल्दी बौडी और हैल्दी बौडी से हैल्दी माइंड मिलता है.

हैल्दी बौडी के 10 टिप्स

अपनी डाइट में फलों व सब्जियों को शामिल करें.

स्टै्रस से दूर रहने के लिए रैगुलर ऐक्सरसाइज.

7-8 घंटे की भरपूर नींद लें.

पूरे दिन में 6-8 गिलास पानी पीएं.

फास्टफूड खाने की आदत छोड़ें.

ब्रेकफास्ट स्किप करने की भूल न करें.

सुबह सैर करें.

आउटडोर ऐक्टिविटीज से खुद को रखें तरोताजा.

बाहर से आ कर हाथ जरूर धोएं.

गैजेट्स की लत न पालें.

हैल्दी माइंड के 10 टिप्स

बातों में मन में दबाने से अच्छा अपने करीबियों से डिसकस करें.

मौर्निंग वाक से माइंड रखें तरोताजा.

अच्छा सोचने के लिए सोएं जरूर.

पौष्टिक खाने से ही अच्छा सोचेंगे.

न्यू चैलेंज ऐक्सैप्ट करने से माइंड रहेगा ऐक्टिव.

बातबात पर नर्वस न हों.

भविष्य की चिंता में अपना आज खराब न करें.

पढ़ने की आदत डालें.

गेम्स जैसे क्रौस वर्ड से रखें माइंड को हैल्दी.

नैगेटिव लोगों से दूर रहें.

घर पर ऐसे बनाएं हेयर डाई

आज के समय में असमय बालों के सफेद होने की समस्या बेहद आम हो गई है. पोषक तत्वों की कमी, प्रदूषण और केमिकल्स के इस्तेमाल से बालों की सेहत को काफी नुकसान पहुंचता है. ऐसे में बाल झड़ते भी हैं और कभी-कभी वे असमय सफेद भी होने लगते हैं. ऐसे में अपने सफेद बालों को काला करने के लिए लोग तमाम तरह के हेयर डाई का प्रयोग करते हैं. नुकसानदेह केमिकल्स से बना यह डाई न सिर्फ बालों के लिए हानिकारक हैं बल्कि सिर की त्वचा के लिए भी काफी नुकसानदेह हैं. ऐसे में आप अपने बालों को रंगने के लिए कुछ ऐसे प्राकृतिक घरेलू नुस्खों से हेयर डाई को बना सकती है जो न सिर्फ बालों के लिए सुरक्षित रहेंगे बल्कि उनकी सेहत के लिए भी काफी लाभकारी रहेंगे.

आज हम आपको ऐसे ही कुछ नुस्खों के बारे में बताने वाले हैं.

काफी पाउडर

एक कप हिना, 3 चम्मच आंवला पाउडर और एक चम्मच काफी पाउडर लें. रात के समय इन सबको एक साथ मिलाकर पेस्ट बना लें. अब अगले दिन सुबह इस पेस्ट को अपने बालों में लगाएं और एक घंटे के लिए छोड़ दें. बाद में शैंपू से बाल धो लें. आंवला और मेंहदी दोनों बालों को प्राकृतिक रूप से डाई करते हुए उन्हें कोमल भी बनाते हैं. इस नुस्खे को महीने में एक बार जरूर अपनायें.

नींबू का रस

इसके लिए एक तिहाई कप नींबू का रस, दो कैमोमाइल टी बैग्स, एक चम्मच पिसी दालचीनी, एक चम्मच नारियल या फिर बादाम का तेल लें. एक बर्तन में पानी उबालकर उसमें टी बैग्स डालें और ठंडा होने के लिए छोड़ दें. फिर इसमें नींबू का रस, दालचीनी पाउडर और नारियल का तेल मिला लें. अब इस मिश्रण को एक स्प्रे बोतल में डाल लें. उन्हें बालों पर स्प्रे करें. इससे बाल कलर तो होते ही हैं साथ ही यह उन्हें कंडिशनिंग भी करते हैं. हफ्ते में दो बार इस नुस्खे का इस्तेमाल अवश्य करें.

ब्लैक टी

इसे बनाने के लिए आपको दो चम्मच ब्लैक टी , एक कप पानी और एक चम्मच नमक की जरूरत पड़ेगी. सबसे पहले पानी में चायपत्ती डालकर उबाल लें और फिर उसमें नमक डालें. इस मिश्रण से बाल धोकर उसे पंद्रह मिनट के लिए छोड़ दें. बाद में ठंडे पानी से बाल धो लें. इससे बाल प्राकृतिक रूप से काले व चमकदार होते हैं. हफ्ते में दो बार इस नुस्खे का इस्तेमाल जरूर करें.

आप अपने बालों को रंगने के लिए इन प्राकृतिक घरेलू नुस्खों का इस्तेमाल करके घर पर ही हेयर डाई बना सकती हैं और नेचुरल तरिके से बालों को कलर भी कर सकती हैं. इस उपाय से न सिर्फ आपके बाल सुरक्षित रहेंगे बल्कि देखने में सुन्दर व आकर्षित भी लगेंगे.

सोशल मीडिया पर ट्रोल हुई नीना गुप्ता की बेटी ने दिया यह करारा जवाब

एक्‍ट्रेस नीना गुप्‍ता की डिजाइनर बेटी मसाबा गुप्ता को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पटाखे छुड़ाने पर लगाये गये बैन का समर्थन करने के चलते सोशल मीडिया पर ट्रोल होना पड़ा. लोगों ने उन्हें काफी भला-बुरा भी कहा.

दरअसल मसाबा ने पटाखे छुड़ाने पर लगाए जाने वाले प्रतिबंध का समर्थन किया था, जिसके बाद वह लोगों के निशाने पर आ गईं. सोशल मीडिया पर उन्हें ‘नाजायज वेस्ट इंडियन’ कहा गया, जिसके बाद मसाबा ने इंस्टाग्राम के जरिए एक खुला पत्र साझा किया. इस ओपन लेटर के माध्‍यम से उन्होंने ट्रोलर्स को करारा जवाब देते हुए कहा कि उन्हें भारतीय-कैरेबियाई मूल की महिला होने पर गर्व है.

मसाबा ने अपने इस पत्र में लिखा, पटाखे छुड़ाने पर प्रतिबंध के फैसले का स्वागत करने और देश के अन्य मुद्दों चाहे वह छोटे या बड़े हों का समर्थन करने के लिए मुझे री-ट्वीट कर भला-बुरा कहने का सिलसिला शुरू हो गया.’ उन्होंने लिखा, ‘मुझे ‘नाजायज वेस्ट इंडियन’ कह कर गाली देने से मेरा सीना सिर्फ गर्व से फूलता है. मैं दो सबसे वैध व्यक्तित्वों की अवैध संतान हूं और मैंने निजी और पेशेवर तौर पर अपने जीवन को सबसे अच्छा बनाया है…इसलिए, कृपया आगे बढ़िए और अगर इससे आपको अच्छा महसूस होता है मुझे भला-बुरा कहते रहिए, लेकिन इतना जान लें कि मुझे एक भारतीय-कैरेबियाई महिला होने पर गर्व है.’

नीना गुप्ता और वेस्ट इंडीज के दिग्गज क्रिकेट खिलाड़ी विवियन रिचर्ड्स की डिजाइनर बेटी ने कहा कि उन्हें इसकी आदत हो गई है क्योंकि वह 10 साल की उम्र से वह यह सब सुनते आ रही हैं. मसाबा ने यह भी कहा कि उन्हें अपनी जड़ों पर गर्व है.

जब प्रेमिका के साथ होटल में रुकें

नोएडा के रहने वाले मंजू और अमित की शादी तय हो चुकी थी. दोनों के घर वालों ने उन की मंगनी कर दी थी जिस से उन्हें मिलनेजुलने और साथ घूमनेफिरने की आजादी मिल गई थी. अकसर दोनों दिल्ली घूमते, अपनी आने वाली जिंदगी के ख्वाब बुना करते और प्यारभरी बातें किया करते थे.

मामूली खातेपीते घरों के मंजू और अमित जब भी मिलते थे तो उन का दिल एकदूसरे से लिपटने का भी होता था. उन्हें लगता था कि वक्त थम जाए, दुनिया में कोई न हो और दोनों एकदूसरे की बांहों में लिपटे वहां पहुंच जाएं जहां पहुंचने में बस चंद दिन ही बाकी थे. अपनी यह ख्वाहिश दोनों एकदूसरे से जताने भी लगे थे और एकदूसरे को तसल्ली भी देते रहते थे कि बस, अब कुछ दिनों की बात और है, फिर तो…

जाहिर है इस ‘फिर तो’ का मतलब शादी के बाद सैक्स करना था. हर बार मिलने के दौरान एकदूसरे को छूने, सहलाने और चूमने से उन के मन में हमबिस्तर होने की चाहत जोर पकड़ने लगी थी. दोनों पढ़ेलिखे, समझदार थे और चूंकि मंगेतर थे, इसलिए इन बातों को गलत नहीं समझते थे. मन से तो दोनों एकदूसरे के हो ही चुके थे, अब तन से मिलने के लिए सुहागरात का इंतजार कर रहे थे. हालांकि अब और सब्र कर पाना दोनों के लिए ही मुश्किल हो चला था.

एक दिन दोनों की यह मुराद बिन मांगे ही पूरी हो गई जब मंजू के घर वालों ने उसे ग्वालियर जाने के लिए कहा. वहां एक नजदीकी रिश्तेदार के यहां घरेलू जलसा था. मंजू के घर वालों ने खुद  ही पहल करते हुए कहा कि वह अमित को भी साथ लेती जाए जिस से रिश्तेदारों से उस की जानपहचान हो जाए. जैसे ही मंजू ने यह बात अमित को बताई और अमित के घर वालों ने भी उसे मंजू के साथ जाने की इजाजत दे दी तो वह उछल पड़ा. महबूबा को इतने नजदीक से महसूस करने का मौका जो उसे मिल रहा था.

दोनों 30 अप्रैल की रात को ट्रेन से दिल्ली से ग्वालियर के लिए रवाना हुए. मंजू के कहने पर अमित ने स्लीपर क्लास का रिजर्वेशन कराया था वरना अमित की ख्वाहिश यह थी कि होने वाली बीवी के साथ पहला सफर एसी में करे. कुछ पैसे बचाने की नीयत से मंजू ने स्लीपर क्लास में जाने का फैसला लिया था. दिल्ली से ग्वालियर 5-6 घंटे का रास्ता है. दोनों स्लीपर कोच में अपनी बर्थ पर बैठे ऐसे एकदूसरे की बातों में खोए कि उन्हें भीषण गरमी का एहसास भी नहीं हुआ. ग्वालियर आतेआते दोनों चुंबक की तरह एकदूसरे से चिपके, बतियाते रहे और ढेरों फैसले जिंदगी के ले डाले.

और जब होटल में ठहरे तो

मुरैना स्टेशन आतेआते अमित ने मंजू को इस बाबत मना लिया कि रात दोनों किसी लौज में गुजारेंगे क्योंकि रिश्तेदार के यहां फंक्शन तो अगले दिन है. इसलिए क्यों उन के यहां एक दिन पहले से जाया जाए.  अमित का इशारा और मंशा समझ चुकी मंजू ने कोई खास एतराज इस पेशकश पर नहीं जताया क्योंकि खुद उस का दिल मिलन के लिए बेचैन हुआ जा रहा था.

ग्वालियर स्टेशन पर उतर कर दोनों होटल उत्तम पैलेस में चले गए जो कि उन के बजट में था. होटल के रजिस्टर में अपने नामपतों की ऐंट्री करा कर दोनों ने नियम के मुताबिक मैनेजर को फोटो आईडी भी दी और अपने कमरे में पहुंच गए.  कमरे में पहुंचते ही उतावले अमित ने मंजू को आगोश में भर लिया और उस रात दोनों ने उसी कमरे में सुहागरात मना डाली.  शादी तय होने क बाद से इन्हें जिस एकांत की या मौके की तलाश थी, मिलने पर उसे उन्होंने गंवाया नहीं. रातभर जीभर कर जिस्मानी संबंध का सुख उठाया.  दूसरे दिन रिश्तेदार के यहां वे सुबहसुबह पहुंचे और रात होटल में गुजारने की बात छिपा गए जिसे बताने की न तो कोई जरूरत थी और न ही वजह थी.  उसी शाम दोनों दिल्ली होते हुए वापस नोएडा आ गए और अपनेअपने घर जा कर फिर शादी की तैयारियों में जुट गए जिस के 2 ही महीने बचे थे.

बन गई थी ब्लू फिल्म

ग्वालियर के होटल की वह रात मंजू और अमित के लिए एक हसीन ख्वाब बन कर रह गई थी, जिसे याद कर दोनों अकसर तनहाई में भी मुसकरा दिया करते थे.  इस बात को कोई एक महीना गुजर चुका था. एक दिन मंजू ने अपने फेसबुक अकाउंट पर एक अंजान आदमी की फ्रैंड रिक्वैस्ट देखी पर उस पर ध्यान नहीं दिया क्योंकि आएदिन मनचले और आवारा किस्म के लड़के लड़कियों की प्रोफाइल देख उन्हें दोस्ती का न्योता देते हैं और वे कुबूल कर लें तो धीरेधीरे अश्लील और सैक्सी बातें करने लगते हैं.

दूसरे दिन मंजू ने उसी शख्स की  फ्रैंड रिक्वैस्ट पर एक टैग लगा देखा

‘अ सीके्रट नाइट इन होटल’.

यह टैग देख कर उसे बरबस ही ग्वालियर के होटल में गुजारी रात याद हो आई. उस ने यह रिक्वैस्ट कुबलू कर ली पर उस वक्त उस के होश उड़ गए जब उस ने इस नए फेसबुक फ्रैंड का संदेश पढ़ा.  मैसेज में लिखा था, ‘मंजूजी, आप बहुत खूबसूरत और सैक्सी हैं, होटल में जिस तरह आप एक नौजवान के साथ सैक्स क्रियाएं कर रही हैं उस से मुझे जलन हो रही है. आप को यकीन न हो तो यह वीडियो देखें.’  मैसेज के साथ अटैच वीडियो जब मंजू ने खोला तो वह मारे डर और शर्म के पसीने से नहा उठी. इस वीडियो में होटल में गुजारी रात की पूरी शूटिंग थी. दोनों एकदूसरे से इस तरह से पेश आ रहे थे जैसे कि ब्लू फिल्मों के किरदार करते हैं.

घबराई मंजू ने तुरंत फोन कर अमित को बुलाया और वह वीडियो दिखाया तो उस के भी होश फाख्ता हो गए. क्योंकि यह वीडियो अगर वायरल हो जाता तो तय है इन की और घर वालों की खासी बदनामी होती.  अब दोनों के लिए यह जानना जरूरी हो गया था कि आखिर वीडियो फिल्म भेजने वाला चाहता क्या है. इस बाबत जब उन्होंने फेसबुक पर ही मैसेज कर उस से पूछा तो जवाब उम्मीद के मुताबिक आया कि ढाई लाख रुपए देदो, वरना यह वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल कर दिया जाएगा. जाहिर है, उन्हें ब्लैकमेल किया जा रहा था बावजूद इस के कि होटल में साथ ठहर कर इन दोनों ने कोई गलती या गुनाह नहीं किया था. ढाई लाख रुपए इन के पास नहीं थे और शादी सिर पर थी, इसलिए इन्होंने समझदारीभरा फैसला पुलिस की मदद लेने का लिया और घर वालों से बहाना बना कर सीधे ग्वालियर जा कर एसपी आशीष खरे से मिल सारी समस्या बताई.

पुलिस ने संजीदगी से इस मामले को लिया और योजना बना कर कार्यवाही कर होटल के मैनेजर 63 वर्षीय विमुक्तानंद और वेटर भूपेंद्र राय को पकड़ लिया. पकड़े जाने के बाद मुजरिमों ने कुबूला कि इस तरह कमरों के टीवी के औनऔफ स्विच में छोटे कैमरे लगा कर उन्होंने कइयों की वीडियो फिल्में बना कर उन्हें ब्लैकमेल करते हुए लाखों रुपए बनाए थे.

कैसे ढूंढें कैमरा

मंजू और अमित ने जल्दबाजी में इस बात पर ध्यान नहीं दिया था कि होटल के कमरे में छिपा कैमरा लगा हो सकता है. इस बाबत भूपेंद्र राय ने खुलासा किया कि नौकरी के बाद उसे होटल में आने वाले जोड़ों और ग्राहकों को देख कर समझ आ गया था कि अधिकतर लोग सैक्स और मौजमस्ती के लिए आते हैं. जल्द अमीर बन जाने के लिए उसे लगा कि क्यों न उन की फिल्में बना कर पैसा ऐंठा जाए क्योंकि कोई नहीं चाहता कि उन की प्राइवेसी की फिल्म दुनिया के सामने आए.

भूपेंद्र दिल्ली जा कर छोटे नाइटविजन कैमरे ले आया और टीवी के खटके में फिट कर दिए. ग्राहकों के जाने के बाद वह फिल्में देख कर शिकार फांसता था. मंजू और अमित की तरह कोई सोच भी नहीं पाता था कि टीवी के स्विच में भी कैमरे लगे हो सकते हैं.

इस मामले से एक बड़ी दिलचस्प बात यह भी सामने आई कि आजकल प्यार और सैक्स करने जगह की कमी हो चली है. ऐसे में आशिक और माशूका होटल में कमरा ले कर अपनी सैक्स की जरूरत पूरी करने लगे हैं. पर अब वहां भी कैमरों का खतरा मंडराने लगा है. इसलिए जब भी होटल में माशूका या मंगेतर को ले कर जाएं तो ये एहतियात जरूर बरतें ताकि किसी पचड़े या परेशानी में पड़ने से खुद को बचाया जा सके और राज भी उजागर न हो-

होटल के कमरे में या कहीं भी कैमरे की जांच के लिए आजकल कुछ ऐप भी आ गई हैं जिन्हें प्लेस्टोर से डाउनलोड किया जा सकता है. इन्हें चालू कर कैमरे की लोकेशन पता चल जाती है जिन्हें तुरंत होटल वालों को हड़का कर, हटवा लेना चाहिए. किसी होटल वाले को यह कानूनी हक नहीं कि वह आदमी की प्राइवेसी यों कैमरे में कैद करे.

कमरे में घुप अंधेरा कर बारीकी से देखें. अगर कहीं कोई हलकी लाइट नजर आए तो समझ लें कि वह कैमरा है. ये कैमरे बाथरूम में भी फिट किए जा सकते हैं. ऐप के जरिए भी ये पकड़ में आ जाते हैं. इन्हें ढक देना चाहिए फिर ये काम नहीं कर पाते.

अगर होटल के कमरे में या कहीं भी कैमरा छिपाया गया है तो वहां मोबाइल फोन का नैटवर्क काम नहीं करता, इसलिए कमरे में घूमघूम कर किसी से फोन पर बात करें, अगर बात करतेकरते नैटवर्क जाता है तो तय है वहां कैमरा है.

बिजली के स्विच, परदे की रौड, आईने के पीछे और दूसरे कोनों  को नंगी आंखों से बारीकी से देखें. अगर कैमरा होगा तो दिख जाएगा.

इस के बाद भी कोई शूटिंग कर ले तो ब्लैकमेल न हों, बल्कि मंजू और अमित की तरह हिम्मत और समझदारी दिखाते हुए तुरंत पुलिस की मदद लें. इस में बदनामी नहीं होती और ब्लैकमेलर पकड़ा भी जाता है जैसा कि ग्वालियर में हुआ. मुजरिमों के पकड़े जाने के बाद यह बात भी सामने आई कि शहर के अधिकांश होटलों में इस तरह के नई तकनीक वाले कैमरे लगे हैं जो आसानी से नहीं दिखते.

भीड़भाड़ वाली जगहों बसस्टैंड या रेलवेस्टेशन के पास वाली लौज या होटल में न ठहरें. वहां रातभर लोग आतेजाते रहते हैं. उन में शराबी और आवारा लोग भी होते हैं. पुलिस वालों की नजर भी इन होटलों और लौजों पर रहती है, वे यहां चौबीसों घंटे गश्त लगाते हैं.

होटल में कमरा लेते वक्त बेवजह घबराएं नहीं. 2 बालिग लोग मरजी से सैक्स करें, यह उन का हक है, कोई जुर्म नहीं. डर दुनिया और समाज का रहता है कि कहीं देखे न जाएं तो एकांत में उन से डरने की कतई जरूरत नहीं.

अगर ठहरने के बाद अंजान लोग या पुलिस वाले पूछताछ करें तो भी न डरें और न ही घबराएं. कोई आप का कुछ नहीं बिगाड़ सकता. इन लोगों का मकसद आप के डर को भुना कर पैसे ऐंठने का रहता है.

यह भी ध्यान रखें कि सैक्स करते वक्त कमरे में अंधेरा कर दें. मुमकिन हो तो सैक्स दिन में करें क्योंकि रात को अकसर पुलिस वाले पैसा झटकने की गरज से होटलों में ठहरे लोगों को घेरा करते हैं. हालांकि, अगर कोई सख्ती से पेश आए तो पुलिस वाले चुपचाप खिसक भी लेते हैं. अगर वे कहें कि थाने चलो, तो नानुकुर न करें बल्कि तुरंत चल दें और उन से पूछें कि किस जुर्म में वे परेशान कर रहे हैं. इस के बाद भी वे न मानें तो आला अफसरों से शिकायत करने की और मीडिया में बात आम करने की धमकी दें. इस से वे बेवजह परेशान नहीं कर पाते हैं.  

तीन तजरबे – तीन सबक

एक : भोपाल के कारोबारी इलाके एमपी नगर के एक होटल के मैनेजर का कहना है कि अकसर लड़के व लड़कियां मौजमस्ती करने के लिए होटलों में ठहरते हैं जिस से होटल वालों को कोई वास्ता नहीं होता. अगर पुलिस वाले मांगें तो ऐंट्री रजिस्टर उन्हें देना ही पड़ता है.  एक मामले का जिक्र करते हुए यह मैनजर बताता है कि सीहोर से आ कर उस के होटल में ठहरे लड़केलड़की ने खुद को भाईबहन लिखाया था. जब रात को पुलिसचैकिंग हुई तो बात छिपी नहीं रह सकी.

ऐसे मामलों में पुलिस वाले लड़कालड़की से अलगअलग पूछताछ कर एक से सवाल करते हैं, मसलन पिता और दादा का नाम क्या है. घर में कितने लोग हैं और होटल तक कैसे आए. चूंकि यह बात ठहरने वालों को पता नहीं रहती, इसलिए लड़कालड़की के जवाब अलगअलग होते हैं. सीहोर से आया जोेड़ा भी इसी तरह पकड़ा गया था. पुलिस वालों ने कार्यवाही तो नहीं की लेकिन उन का पूरा पैसा झटक लिया. बाद में मैनेजर ने उन्हें वापसी का किराया और खानेपीने के पैसे दिए.

दो : अकसर लड़कियां घर से झूठ बोल कर या बहाने बना कर लड़के के साथ होटल में आती हैं. इसलिए वे ज्यादा डरती हैं. ऐसे में कोई फसाद खड़ा हो जाए तो बात बिगड़ने में देर नहीं लगती.

होशंगाबाद का नवीन कुशवाह (बदला नाम) अपनी माशूका को ले कर भोपाल आया तो स्टेशन के पास हमीदिया रोड के एक होटल में ठहरा. वहां उस का झगड़ा एक शराबी से हो गया. इस पर मैनेजर ने पुलिस बुला ली. शराबी तो पकड़ा गया पर नवीन और उस की माशूका के घर वालों को भी पुलिस ने खबर कर दी जिस से दोनों की खूब खिंचाई हुई. मौजमस्ती का उन का मकसद झगड़े की वजह से पूरा नहीं हो पाया. इसलिए ऐसे वक्त में लड़ाईझगड़ों में नहीं पड़ना चाहिए.

तीन : विदिशा की रहने वाली रश्मि कोचिंग में ऐडमिशन के लिए इंदौर गई तो अपने आशिक विवेक को भी ले गई थी. मकसद हमबिस्तरी ही था, जिस का मौका विदिशा में नहीं मिलता था. दोनों इंदौर के बसस्टैंड के पास के एक होटल में रुके पर पता गलत लिखाया. रात को होटल पर छापा पड़ा तो कुछ कौलगर्ल्स और ग्राहक पकड़े गए. पुलिस ने रश्मि और विवेक को भी पकड़ लिया. दोनों घबरा गए और अपने निर्दोष होने की दुहाई देते रहे.

पुलिस ने उन के बताए पतों की छानबीन विदिशा कोतवाली से की तो वह गलत निकली. मौजमस्ती की रात दोनों को थाने में काटनी पड़ी. एक इंस्पैक्टर को इन की मासूमियत देख भरोसा हो गया कि वे दोनों इस गिरोह के नहीं हैं तो उस ने दया दिखाते हुए इन्हें भगा दिया. साथ ही, नसीहत भी दी कि अब कभी झूठा पता मत लिखाना, वरना कोर्टकचहरी के चक्कर लगाने पड़ेंगे.

आस्था का धंधा : गुरमीत राम रहीम कथा

लाखों अनुयायियों के गुरु माने जाने वाले गुरमीत राम रहीम को बलात्कार के मामले में अदालत द्वारा दोषी करार दिया गया तो उपद्रव, हिंसा से कई शहर जल उठे. इस घटना से स्तब्ध देश में बाबाओं की बढ़ती भीड़ को ले कर प्रश्न उठ रहे हैं. क्यों बाबाओं की जमातें बढ़ रही हैं. उन के पीछे लाखों अंधभक्त क्यों पागल हो रहे हैं?

असल में बाबाओं की यह खरपतवार हमारे देश की भेदभावपूर्ण सामाजिक, धार्मिक व्यवस्था की देन है. बाबाओं ने हमारे सामाजिक विभाजन का पूरा फायदा उठाया. सदियों से दलित, पिछड़े, वंचित लोग हाशिए पर थे, ये लोग उन के लिए अवतार, भगवान बन गए. लाखों, करोड़ों लोग उन के चरणों में झुकने लगे. बाद में राजनीतिबाजों ने उन्हें लपक लिया.

पंथ के नामों पर बने हुए डेरे, आश्रम, मठ, मंदिर अलगअलग धर्म, जाति, विभाजित समाज को मुंह चिढ़ाते नजर आते हैं. इन के बीच आपसी प्रेम, सौहार्द नहीं है. आएदिन झगड़े, खूनखराबा, पुलिस, अदालती मामले सामने आते रहते हैं. कभीकभी लगता है कि देश में गृहयुद्ध सा चल रहा है.

देश के हर हिस्से में बाबा विराजते हैं. बाबागीरी का लबादा ओढ़े ज्यादातर बाबा जमीन हथियाने, राजनीतिक दलाली करने में जुटे हैं. इन के कालेधंधे भी चलते हैं. इन की करतूतों का अकसर परदाफाश होता भी रहा है.

ऐशोआराम का धंधा

हैरानी की बात है कि हर डेरा, आश्रम, मठ पांचसितारा से कम नहीं दिखता. बाबा लोग सोनेचांदी के सिंहासनों पर विराजते हैं. ये एअरकंडीशंड आश्रमों में रहते हैं और  महंगी लक्जरी गाडि़यों में घूमते हैं. इन के यहां ऐशोआराम के सभी साधन उपलब्ध हैं. आश्रमों में अप्सराएं भी थोक में उपलब्ध रहती हैं.

राम रहीम के लाखों अनुयायी देशविदेश में फैले हुए हैं. इन में अधिकतर निचले, दलित, पिछड़े वर्ग के स्त्रीपुरुष हैं. आसाराम, रामपाल जेल में हैं. इन गुरुओं के भक्त भी बड़ी तादाद में निचले तबके के हैं.

राम रहीम के उदय की कहानी 1990 से शुरू होती है. उस समय वह 23 साल का ऐयाश आदमी था. 1948 में डेरा सच्चा सौदा, सूफी गुरु माने जाने वाले बाबा मस्ताना महाराज ने स्थापित किया था. बाद में शाह सतनाम सिंह ने गद्दी संभाली. सतनाम सिंह ने 1990 में राम रहीम को डेरा का मुखिया बनाया. डेरा की कुरसी मिलने के बाद राम रहीम ने खूब दौलत और शोहरत बटोरी. उस ने तेजी से अपने समर्थक बनाए, बढ़ाए और राजनीतिक संबंध बढ़ाए. देशभर में करोड़ों अनुयायी बना लिए. हरियाणा के 9 जिलों में 30 से अधिक विधानसभाई सीटों में उस का दखल है. पंजाब की दर्जन से अधिक विधानसभा सीटों पर डेरा निर्णायक की हैसियत रखता है.

राम रहीम ने कुछ समय पहले अपना पहला म्यूजिक अलबम ‘लव चार्जर’ जारी किया था. उस के अधिकतर खरीदार उस के भक्त ही थे. फिर ‘एमएसजी’ (मैसेंजर औफ गौड) फिल्म बनाई. बाबाओं, गुरुओं की परंपरागत पोशाक के बजाय राम रहीम चमकीले, भड़कीले कपड़ों में अधिक रहता है. वह नई महंगी गाडि़यों और मोटरबाइकों का शौकीन है.

चमकीला बाबा

गुरमीत राम रहीम की यह चमकदमक समर्थकों को खूब पसंद आई. सदियों से भेदभावपूर्ण सामाजिक, धार्मिक, जातीय व्यवस्था से पीडि़त लोग तथाकथित गुरुओं के पास इसलिए पहुंच जाते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि ऊंची जाति वालों और उन के वर्चस्व वाली राजनीति ने उन के लिए कुछ नहीं किया, उन के साथ हमेशा भेदभाव बरता गया.

अमीरों और गरीबों के बीच बड़े फासलों वाली जातीय, धार्मिक व्यवस्था में सवर्ण धर्मगुरुओं ने उन्हें जानबूझ कर न्यूनतम स्तर पर रखा. उन्हें जलालत की जिंदगी जीने को मजबूर किया गया. मानसम्मान देने की जगह उन्हें अपमानित किया गया.

यह गैरबराबरीपूर्ण व्यवहार निचली जातियों को आसाराम, रामपाल, राम रहीम, रामवृक्ष यादव जैसे बाबाओं के पास ले जाता है. स्पष्ट है कि बाबाओं और पंथों का उदय यह बताता है कि हमारा देश अंदरूनी तौर पर कितना बंटा हुआ है और किस कदर गैरबराबरी व्याप्त है.

समाजशास्त्रियों के मुताबिक, राम रहीम जैसे बाबाओं का उत्थान हमें यह बताता है कि किस तरह से सरकारें, राजनीति और धर्म लोगों की एक बड़ी संख्या को संतुष्ट नहीं कर पा रहे हैं. ऐसे लोग सम्मान और बेहतर जिंदगी की आस में सतलोक आश्रम, डेरा सच्चा सौदा जैसे, हिंदू धर्म की सनातन परंपरा से अलग बने, पंथों की ओर चल पड़ते हैं. ये पंथ जाति, वर्ग, धर्म की बात नहीं करते, न कोई भेदभाव बरतते हैं. ये लाखों भक्तों को एक जगह इकट्ठा कर के उन्हें समानता का एहसास दिलाते हैं. विदेशों में गए दलित, पिछड़े इन डेरों को खूब पैसा भेजते हैं. इस के अलावा, भक्त दानदक्षिणा देते रहते हैं.

अंधभक्तों का दुस्साहस

राम रहीम की करतूतों का परदाफाश होने के बाद बाबाओं पर बहुत सवाल उठ रहे हैं और राम रहीम के अंधभक्तों के दुस्साहस की आलोचना हो रही है. सच यह है कि अंधभक्ति प्रवचनों, सत्संगों, भाषणों, पुस्तकों, टीवी कार्यक्रमों से रातदिन लोगों के दिमागों में भरी जा रही है. हां, फर्क इतना है कि जब ऊंची जातियों के शंकराचार्यों, रविशंकरों, रामदेवों के प्रति भक्ति का पाठ पढ़ाया जाता है तो हिंदू धर्मग्रंथों का हवाला दे कर इसे महान संस्कृति माना जाता है.

हमारे देश में सदियों से गुरु की परंपरा रही है. गुरु को ईश्वर का अवतार, उस तक पहुंचने का मार्ग बताने वाला माध्यम माना गया है. धर्म में गुरु को बहुत सम्मानजनक और सर्वाेपरि स्थान दिया गया है. गं्रथों में गुरु की महिमा का खूब गुणगान किया गया है. गुरुभक्ति, गुरुसेवा को बहुत महत्त्व दिया गया है. इस का दिनरात प्रचारप्रसार भी हो रहा है.

गुरु का महिमामंडन

पुराण, रामायण, महाभारत, भगवद्गीता जैसे ग्रंथों में गुरु की महत्ता का खूब वर्णन है. गुरु वशिष्ठ (राम के गुरु), विश्वामित्र, सांदीपनि (कृष्ण के गुरु), महर्षि वेदव्यास, द्रोणाचार्य (पांडवों के गुरु), कृपाचार्य (कुरुवंश के गुरु), गौतम, भारद्वाज, च्यवन, कृपाचार्य की महिमा गाई गई हैं. बाद में, गुरु गोरखनाथ, गुरुनानक, नामदेव, रामकृष्ण परमहंस, महर्षि अरविंद, धीरेंद्र ब्रह्मचारी, चंद्रास्वामी जैसे गुरुओं की लंबी शृंखला है.

धर्मगं्रथों के अनुसार पैल, जैमिनी, वैशंपायन, समंतुमुनि, रोमहर्षण महर्षि वेदव्यास के शिष्य थे. गुरुपूजा के लिए दिन भी तय किया गया है. भविष्योत्तर पुराण में गुरुपूर्णिमा के बारे में लिखा है-

मम जन्मदिने सम्यक् पूजनीय. प्रयत्नत:,

आषाढ़ शुक्ल पक्षेतु पूर्णिमायां गुरौ तथा.

पूजनीयो विशेषण वस्त्राभरणधेनुभि:,

फलपुष्पादिना सम्यगरत्नकांचन भोजनै.

दक्षिणाभि: सुपुष्ठाभिर्मत्स्वरूपरूप

प्रपूजयेत.

अर्थात, आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा को मेरा जन्मदिन है. इसे गुरुपूर्णिमा कहते हैं. इस दिन पूरी श्रद्धा के साथ गुरु को सुंदर वस्त्र, आभूषण, गाय, फल, पुष्प, रत्न, स्वर्ण मुद्रा आदि समर्पित कर उन का पूजन करना चाहिए. ऐसा करने से गुरुदेव में मेरे ही स्वरूप के दर्शन होते हैं.

ग्रंथों में बारबार कहा गया है कि गुरु के बिना ज्ञान नहीं, गुरु के बिना मोक्ष नहीं. गुरु ही मनुष्य के समस्त पापों का हरण करने वाला होता है. गुरु का पद ईश्वर से ऊपर बताया गया है.       

गुरु गोविंद दोऊ खड़े,

काके लागूं पांव

बलिहारी गुरु आप ने

गोविंद दियो बताए.

गुरु बिन ज्ञान न उपजे,

गुरु बिन मिलै न मोक्ष,

गुरु बिन लखै न सत्य को,

गुरु बिन मिटै न दोष.

अर्थात, गुरु के बिना ज्ञान मिलना कठिन है. गुरु के बिना मोक्ष नहीं है. गुरु के बिना सत्य को पहचानना असंभव है और गुरु बिना दोष का, मन के विकारों का मिटना मुश्किल है.

गुरु समान दाता नहीं,

याचक सीष समान,

तीन लोक की संपदा,

सो गुरु दिन्ही दान.

यानी, गुरु के समान कोई दाता नहीं है. शिष्य के समान कोई याचक यानी मांगने वाला नहीं है. ज्ञानरूपी अनमोल संपत्ति, जो तीनों लोकों की संपत्ति से बढ़ कर है, शिष्य के मांगने पर गुरु उसे यह ज्ञानरूपी संपदा दान में दे देते हैं.

गुरु शरणगति छाडि़ के,

करै भरोसा और,

सुखसंपत्ति को कह चली,

नहीं नरक में ठौर.

अर्थात, जो व्यक्ति सतगुरु की शरण छोड़ कर, उन के बताए रास्ते पर न चल कर अन्य बातों में विश्वास करता है उसे जीवन में दुखों का सामना करना पड़ता है और उसे नरक में भी जगह नहीं मिलती.

और देखिए-

सतगुरु महिमा अनंत है,

अनंत किया उपकार,

लोचन अनंत उघारिया,

अनंत दिखावा हार.

अर्थात, सतगुरु की महिमा अनंत है. उन्होंने मुझ पर अनंत उपकार किए हैं. उन्होंने मेरे ज्ञानचक्षु खोल दिए और मुझे अनंत यानी ईश्वर के दर्शन करा दिए.

सब धरती कागद करूं,

लिखनी सब बनराय,

सात समुद्र का मसि करूं,

गुरु गुण लिखा न जाए.

यानी, सारी धरती को कागज बना लिया जाए, सारे वनों की लकडि़यों को कलम बना लिया जाए, सात समुद्र को स्याही बना लिया जाए तो भी गुरु के गुण नहीं लिखे जा सकते, गुरु की महिमा का वर्णन नहीं किया जा सकता क्योंकि गुरु की महिमा अपरंपार है.

गुरु की महिमा में इस तरह के सैकड़ों श्लोक रचे गए हैं.

आधुनिक गुरु सतपाल महाराज अपने प्रवचनों की पुस्तक ‘अपने आप को जानो’ में लिखते हैं, ‘‘शिष्य के जीवन में आज्ञा का ही सब से बड़ा महत्त्व है. जो शिष्य अपने गुरु की आज्ञा नहीं मानता, दरबार की पवित्रता की तरफ ध्यान नहीं देता, वह इस मार्ग में सफल नहीं हो सकता.’’

एक जगह लिखा है-

‘‘माया ही मनुष्य को संसार के जंजाल में उलझाए रखती है. संसार के मोहजाल में फंस कर मनुष्य मन में अहंकार, इच्छा, राग और द्वेष के विकारों को उत्पन्न करता रहता है. विकारों से भरा मन माया के प्रभाव से ऊपर नहीं उठ सकता. वह जन्ममृत्यु के चक्र में फंसा रहता है. सतगुरु की कृपा से मनुष्य मोहमाया के जाल से छूट सकता है. जो मनुष्य गुरु की आज्ञा नहीं मानता और गलत मार्ग पर चलता है वह दुनिया और धर्म दोनों से ही पतित हो जाता है, साथ ही दुख व कष्टों से घिरा रहता है.’’

भेदभावभरी बाबाओं की दुनिया

अब मामला राम रहीम का है जिस के समर्थकों में ऊंची जातियों के कम ही लोग हैं. और इसीलिए बाबा के खिलाफ सही व उचित माहौल पैदा हो गया. काश, यह पहले ही हो गया होता और धर्म के इन दुकानदारों को चप्पेचप्पे पर आश्रम खोलने की इजाजत न होती.

हमारे गुरुओं की दुनिया भेदभाव से भरी हुई है. ऊंची जातियों के धार्मिक संगठन व गुरु निचलों को अपने यहां घुसने नहीं देते. राधास्वामी सत्संग, श्रीश्री रविशंकर का आर्ट औफ लिविंग, शंकराचार्यों के मठ, रामदेव के योग आश्रम अमीर सवर्णों की जागीर माने जाते हैं.

ऐसे में दलितों, पिछड़ों को जातीय, धार्मिक भेदभाव रहित राम रहीम, आसाराम, आशुतोष महाराज, रामपाल, रामवृक्ष, निरंकारी, साईं बाबा जैसों की शरण में जा कर अपने दुखों का निवारण खोजना पड़ता है.

डेरा सच्चा सौदा के राम रहीम पर जैसे ही आरोप तय हुए, हरियाणा, पंजाब सहित दिल्ली, राजस्थान में अनुयायियों का गुस्सा भड़क उठा. चारों ओर उपद्रव, आग, अराजकता और चीखपुकार मच गई. पंचकूला और सिरसा जल उठे. हिंसा में 38 लोग मारे गए. सैकड़ों वाहन आग के हवाले कर दिए गए. शासनप्रशासन राम रहीम के अनुयायियों के सामने बेबस दिखा. इस हिंसा से समूचा देश स्तब्ध रह गया पर सरकार और समर्थक इसे कलंक मानने को तैयार नहीं. वे तो इसे लीला समझ रहे थे.

राम रहीम के काफिले में 400 विदेशी एयूवी कारें, 120-140 तक की स्पीड से सड़क पर दौड़ रही थीं, हजारों लोग हाथ जोड़े सड़क पर बैठे थे. पुलिसअर्धसैनिक बल मानो स्वागत में खड़े थे. पूरा देश धड़कते दिल से बाबा के अंधभक्तों का शक्तिप्रदर्शन देख रहा था. सत्ता लाभहानि के अनुमान में लगी नतमस्तक थी. उस वक्त एक जज, सीधेसादे कपड़े पहन कर, कोर्ट पहुंचा, कुछ वीरोचित नहीं, शक्तिप्रदर्शन नहीं, उसी जज ने साहसिक फैसला सुनाया.

अदालत द्वारा राम रहीम को दोषी करार दिए जाने के बाद आक्रोशित भक्तों द्वारा हिंसा किए जाने का ऐसा वीभत्स दृश्य दिखाईर् दे रहा था मानो कुरुक्षेत्र में गदर छिड़ गया हो. 800 से अधिक गाडि़यों के काफिले और अन्य साधनों से पहुंचे लाखों अनुयायियों से पूरा पंचकूला शहर पट गया था. शहरवासी दहशत में आ कर घरों में कैद हो गए. सुरक्षा बलों और सेना के हजारों जवान शहर के चप्पेचप्पे पर तैनात थे.

हिंसा की आंच राजधानी दिल्ली समेत 6 राज्यों तक पहुंच गई. दिल्ली के आनंद विहार रेलवेस्टेशन पर खड़ी रीवा ऐक्सप्रैस की 2 बोगियां फूंक दी गईं. दर्जनभर बसों में आग लगा दी गई. हिंसा को देखते हुए स्कूलों की छुट्टी कर दी गई. राजधानी की सीमाएं सील करने के साथसाथ धारा 144 लागू कर दी गई.

सरकार को एहतियात के तौर पर बिजली, इंटरनैट बंद करने पड़े. पंजाब, हरियाणा, जम्मूकश्मीर, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश जाने वाली कई रेलगाडि़यां रद्द करनी पड़ीं.

आस्था के नाम पर ढोंग और ऐयाशी का बाजार देशभर में खूब फूलाफला है. इस बाजार में लाखों ढोंगी गुरु, बाबा, संत, साधु उतरे और वे अनुयायियों की बड़ी भीड़ को अपनी ओर खींचने में कामयाब रहे हैं. दरअसल, गैरबराबरी की व्यवस्था वाले समाज को गुरुओं और गुरुओं को समाज की जरूरत रही है. वहीं, गुरुओं के बीच आपसी मतभेद, कलह, हिंसा समयसमय पर सामने आती रही हैं.

निरंकारी और अकाल तख्त के बीच विवाद रहा है. अकाल तख्त को निचले वर्गों के लिए आध्यात्मिक रास्ता दिखाने वाला निरंकारी पंथ कभी रास नहीं आया. लंबे समय तक उस के प्रमुख रहे बाबा गुरबचन सिंह की जरनैल सिंह भिंडरावाले के लोगों ने यह कह कर हत्या कर दी थी कि वह खुद को गुरु बताता है.

सिख पंथ और डेरा सच्चा सौदा के अनुयायियों के बीच कई बार हिंसक झड़पें हुई हैं, एकदूसरे के समागमों पर हमले किए गए हैं.भिंडरावाला के चेलों ने 1978 में बैसाखी के दिन निरंकारियों के धार्मिक जलसे के सामने प्रदर्शन किया. उस में  16 लोग मारे गए थे. उस के बाद स्वर्ण मंदिर स्थित अकाल तख्त से हुक्मनामा जारी हुआ कि निरंकारियों के साथ कोई संबंध न रखा जाए. सिख परिवार न उन्हें अपनी बेटी दें, न उन के घर का खानापानी करें.

अपराध के अड्डे

पंजाब के नूरमहल में आशुतोष महाराज के अनुयायियों और सिख गुरुओं के समर्थकों के बीच हिंसक टकराव रहा है. आशुतोष के अनुयायियों की तादाद भी लाखों में है और वे अधिकतर निचले वर्गों के हैं. जनवरी 2014 में आशुतोष की मौत हो गई थी. डाक्टरों की टीम ने उसे क्लिनिकली डैड करार दे दिया था पर अनुयायी मानते हैं कि आशुतोष महाराज समाधि में हैं और लौट आएंगे.

रामदेव अमीर ब्राह्मण और बनियों से  मोटी फीस ले कर योग शिविरों में प्रवेश देते हैं. लोग बारबार आवाज उठाते हैं कि रामदेव गरीबों को मुफ्त में योग क्यों नहीं सिखाते.                

राधास्वामी सत्संग के प्रमुख रेलिगरे, फोर्टिस और रैनबैक्सी जैसी विख्यात कंपनियों के मालिक हों, तब क्या कोई दलित, शूद्र उन के सत्संग, आश्रमों में जाने का साहस कर सकता है?

रामदेव, श्रीश्री रविशंकर, शंकराचार्य जैसे ब्राह्मणवादी साधुसंतों के खिलाफ भी गैरकानूनी कई मामले सामने आए हैं. यमुना किनारे श्रीश्री रविशंकर के कार्यक्रम के दौरान पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने के कारण एनजीटी, जिस की सुप्रीम कोर्ट के समकक्ष हैसियत है, के आदेश को दरकिनार कर श्रीश्री रविशंकर की संस्था आर्ट औफ लिविंग ने जुर्माने के 50 लाख रुपए देने से इनकार कर दिया. आज तक कोई भी अदालत, सरकार या संगठन श्रीश्री रविशंकर के खिलाफ कुछ नहीं कर पाए. रामदेव के कैंसर, अस्थमा, टीबी जैसी लाइलाज बीमारियों को योग से मुक्त कर देने के भ्रमित दावे, उन की दिव्य पुत्र जीवक बीज पर विवाद के बावजूद उन का बाल बांका नहीं हो सका.

शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती द्वारा साईं बाबा की हिंदू मंदिरों में मूर्तिस्थापना के खिलाफ मुहिम चलाने और उन्हें अवतार न मानने के बावजूद उन पर धार्मिक भावना को ठेस पहुंचाने का कोई मामला दर्ज नहीं कराया गया.

हैरत है कि सिखों के जुलूसों में पंचप्यारों की पोशाक पहनने पर किसी की धार्मिक भावना को ठेस नहीं पहुंचती जबकि राम रहीम पर गुरु गोविंद सिंह की पोशाक पहनने पर मामला दर्ज करा दिया जाता है.

इसीलिए, राम रहीम, आसाराम, आशुतोष, रामपाल, जयगुरु देव निचले तबकों में अधिक लोकप्रिय हैं. लेकिन ऊंचे समझे जाने वाले पंथों अकाल तख्त, शंकराचार्य, श्रीश्री रविशंकर जैसे बाबा इन बाबाओं की निंदा करते हैं. वे इन्हें धर्मी मानने से इनकार करते हैं और अधर्मी करार देते हैं. स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने साईंबाबा को अवतार मानने से मना कर दिया. शंकराचार्य सवर्णों में मान्य हैं जबकि साईं बाबा के यहां जाति, धार्मिक, अमीरगरीब का कोई भेद नहीं माना जाता. उन के अधिकतर अनुयायी निचले, पिछड़े तबकों के हैं.

गुरुवाद का यह संघर्ष सवर्ण साधुओं, गुरुओं, शंकराचार्यों बनाम निचलों, दलितों, पिछड़ों के गुरुओं के प्रति भेदभाव की उपज है. यह भेदभाव है. सवर्ण बाबाओं में अपराध के बावजूद बच निकलने की कूवत है. निचलों के बाबा शुरुआती जांच से ही अदालतों में मात खा रहे हैं.    

सरकारें चाहे किसी भी दल की हों, वे ऐसे बाबाओं का इस्तेमाल अपने वोटबैंक के तौर पर तो करती आई हैं पर उन्हें संरक्षण नहीं देतीं, वह चाहे कांग्रेस की हो, अकाली दल की, शिवसेना या भाजपा की हो. डेरा सच्चा सौदा के वोटबैंक का उपयोग इन तीनों पार्टियों ने किया है. पंचकूला में हुई हिंसा एक बार फिर जाहिर करती है कि राम रहीम जैसे बाबा किस तरह से अपनी समानांतर सत्ता चला  सकते हैं और सरकारें इन के आगे नतमस्तक दिखाई देती हैं.

गैरबराबरी के शिकार

पिछले चुनाव में राम रहीम ने भाजपा की मदद इसलिए की थी ताकि वह हत्या, बलात्कार मामले में सीबीआई से बच सके लेकिन सरकार ने नहीं बचाया. ये बाबा बेशक ढोंगी हैं, अपराधी हैं, भारतीय कानून के अनुसार सजा के लायक हैं. वहीं, सच यह भी है कि ये सामाजिक भेदभाव का दंश झेल रहे लोगों के तारणहार बने दिखते हैं. हालांकि ये खुद भी गैरबराबरी के शिकार हो रहे हैं.

यही वजह है कि राम रहीम की सजा का किसी भी राजनीतिक दल ने स्वागत नहीं किया है. हरियाणा की मनोहर लाल खट्टर सरकार तो सन्नाटे में चली गई. ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ का नारा देने वाली भाजपा की केंद्र सरकार की भी बोलती बंद है. न तो कानून मंत्री और न ही महिला एवं बाल कल्याण मंत्री की ओर से, हरियाणा की 2 युवतियों का यौन शोषण किए जाने के मामले में, राम रहीम को मिली सजा पर किसी तरह का बयान जारी किया गया.

देश के हर क्षेत्र में ऐसे बाबाओं की उपज और फूलनेफलने के पीछे वजह यही है. यह भूमि बाबाओं के लिए अत्यधिक उपजाऊ है.

सवाल यह भी है कि बड़ी तादाद में महिलाएं गुरुओं की शरण में क्यों जाती हैं? गुरु से आशीर्वाद पाने के लिए गुरुभक्ति, सेवा के नाम पर महिलाएं कुछ भी करने को तैयार रहती हैं. गुरु भी आखिर इंसान होते हैं. ऐसा नहीं है कि उन के भीतर कामवासना जागृत नहीं होती. मौका देख कर गुरु अपनी चेलियों को धीरेधीरे बिस्तर तक ले आते हैं. सबकुछ आपसी रजामंदी से चलता रहता है. मामला तब बिगड़ता है जब दूसरी औरतों को गुरुशिष्या के बीच के संबंधों का पता चल जाता है. फिर अपनेआप को बचाने के लिए चीखनाचिल्लाना शुरू होता है.

समाज विज्ञानियों का मानना है कि हर धर्म भेदभाव की नींव पर खड़ा है. धर्म व्यक्तियों के बीच ऊंचनीच, छुआछूत, भेदभाव, शोषण, लैंगिक दुराचार पर आधारित हैं.

निचले तबकों की धार्मिक भूख, बराबरी का सम्मान पाने की लालसा इन बाबाओं के आश्रमों, डेरों में पूरी हो रही है. बाबाओं ने उन्हें बराबरी का स्पेस उपलब्ध कराया.

कौन हैं पीडि़त?

लोगों को दुख, गरीबी, बीमारी और विपरीत हालात के समय ऐसे किसी ईश्वरीय अवतार की जरूरत महसूस होती है. इन बाबाओं ने इस मनोविज्ञान को समझा और अपनीअपनी दुकानें खोल लीं. इन दुकानों पर दलितों, पिछड़ों की इच्छानुसार बातें होने लगीं. उन्हें दिमागी संबल मिला, अपना गुरु बनाने की इच्छा पूरी होने लगी. मुफ्त में खाना, पढ़ाई मिलने लगी. और सब से बड़ी बात, हजारों लोगों के बीच उन्हें इकट्ठा हो कर बराबरी का एहसास मिला. इस से वे खुद को सम्मानित समझने लगे. सवर्णों के गुरुओं के पास फटकने की उन में हिम्मत नहीं.

इन बाबाओं की चमकदमक ने उन्हें प्रभावित किया, उन के कई तथाकथित चमत्कारों ने असर किया हालांकि वे फरेब थे. पर, ये भोलेभाले लोग समझ नहीं पाते और चमत्कार मान बैठते हैं.

इस के अलावा निचला वर्ग सब से अधिक त्रस्त रहा है. वह नशा, मांसाहार, गालीगलौज की भाषा, औरतों के साथ मारपीट जैसी बुराइयों से पीडि़त रहा है. ये बाबा उन्हें इस तरह की बुराइयां छोड़ने की सीख देते हैं. लोगों पर खासतौर से महिलाओं पर बाबाओं की सीख वाले इस तरह के प्रवचन असर डालते हैं क्योंकि इन बुराइयों से गरीब, दलित तबके की महिलाएं ही अधिक पीडि़त होती हैं.

सवाल यह भी है कि आसाराम, राम रहीम, रामपाल जैसे निचलों के गुरु ही एक के बाद एक जेलों में जा रहे हैं. श्रीश्री रविशंकर, रामदेव, शंकराचायर्ोें के खिलाफ गैरकानूनी मामले सामने आने के बाद भी उन का साम्राज्य ज्यों का त्यों चमक रहा है. बाबाओं की यह दुनिया गैरबराबरी की है. गुरुओं, बाबाओं के प्रति लोगों की अंधभक्ति से ऐसी घटनाएं होती रहेंगी. सुधार केवल कानून से नहीं होगा, न सरकार कुछ कर पाएगी. समाज को स्वयं अपने भीतर झांकने की क्षमता विकसित करनी होगी. उसे किसी भगवान, अवतार या गुरु का अवलंबन छोड़ना होगा. उसे समझना होगा कि समस्याएं, कष्ट दूर करने के उपाय उसे खुद करने होंगे. उसे खुद में विवेक, व्यावहारिकता, तर्क और नैतिकता की स्थापना करने की जरूरत है.      

बाबा रे बाबा

सालडेढ़ साल पहले की बात है. मौर्निंग वाक के लिए निकली तो एक अनोखा सा नजारा देखने को मिला. सैकड़ों लोग मुंह पर कपड़ा बांधे, हाथों में बड़ीबड़ी झाड़ू लिए सड़कों की साफसफाई में जुटे थे. मेरे महल्ले में ही नहीं, बल्कि पूरे शहर में ये लोग फैले थे. उत्सुकतावश मैं ने एक व्यक्ति से पूछा, ‘‘यह क्या हो रहा है, आप लोग किस संस्था से जुड़े हैं?’’

वह बोला, ‘‘हम डेरा सच्चा सौदा वाले गुरु गुरमीत राम रहीम इंसा के अनुयायी हैं और यह हमारा मिशन है. इस के तहत हम किसी एक शहर को चुनते हैं और सब मिल कर कुछ ही घंटों में पूरे शहर की सड़कोंगलियों आदि की सफाई कर देते हैं.’’ यह सुन कर दिल को लगा कि कुछ अच्छा हो रहा है, साथ ही मुझे उस बाबा के बारे में जानने की उत्सुकता बढ़ी.

संयोग से कुछ ही दिनों बाद एक औफिशियल टूर पर कोलायत जाना हुआ. रास्ते में दियातरा के पास ड्राइवर ने एक बड़ा सा आश्रम दिखाते हुए कहा, ‘‘यह बाबा गुरमीत राम रहीम का आश्रम यानी डेरा सच्चा सौदा है.’’ बस, फिर क्या था, मैं ने ड्राइवर से गाड़ी रोकने और आश्रम देखने की बात कही.

आश्रम के बाहर एक छोटा सा होटल बना हुआ था और सड़क के दूसरी तरफ डेरे की कई एकड़ जमीन थी जिस पर बेरों से लदी झाडि़यां थीं. वहां काउंटर पर बैठे व्यक्ति ने सरकारी गाड़ी देख कर हमें चायनाश्ता औफर किया. हम ने आश्रम देखने की इच्छा जाहिर की. यों तो आश्रम में किसी अनजान को जाने की इजाजत नहीं थी मगर शायद यह सरकारी गाड़ी की ताकत थी कि इच्छा न होते हुए भी वह हमें अंदर ले गया.

अंदर का दृश्य सचमुच देखने लायक था. एक बड़ा सा टीनशेड लगा था. वहां बेर के ढेर लगे थे और बहुत से सेवादार उन्हें छांटछांट कर बोरियों में भर रहे थे. खुली जमीन पर अन्य सब्जियां और खासतौर से एलोवेरा के पौधे लगे थे. मेरे पूछने पर बताया गया कि ये सब बेर और सब्जियां भक्तों को पहुंचाए जाएंगे. मुझे जान कर आश्चर्य हुआ कि भक्त यहां मुफ्त में काम कर रहे हैं और यहां पैदा होने वाली फलसब्जियां मूल्य दे कर खरीदते हैं.

उन्हीं दिनों मेरी एक रिश्तेदार ने मुझे अपने यहां बाबा गुरमीत राम रहीम के सत्संग में आमंत्रित किया. मैं इस तरह के ढकोसले जरा कम ही पसंद करती हूं, इसलिए मैं ने टाल दिया. मगर शाम को जब उन्होंने प्रसाद भिजवाया तो मुझे और भी आश्चर्य हुआ कि प्रसाद के नाम पर बाबा की फैक्टरी के बने बिस्कुट थे. जिन्हें भक्त ‘पिताजी’ कह कर संबोधित करते हैं, के प्रति भक्तों की अंधश्रद्धा देखते ही बनती थी. मैं ने अपनी रिश्तेदार को बहुत समझाया मगर वे ‘पिताजी’ के खिलाफ कुछ भी सुनने को तैयार नहीं होतीं. यहां तक कि अपने छोटे बच्चों को भी जन्मदिन पर आशीर्वाद दिलाने के लिए डेरे पर ले कर जाती हैं. यही नहीं, अपनी नई खरीदी गाड़ी भी सब से पहले सिरसा ले कर गईं ताकि ‘पिताजी’ का आशीर्वाद उसे मिल सके.

25 अगस्त को जब अदालत ने बाबा को दोषी करार दिया तो मैं ने अपनी उसी रिश्तेदार को फोन किया. मगर घोर आश्चर्य  कि इतना सबकुछ साबित होने के बाद भी वह राम रहीम के खिलाफ कुछ भी सुनने को तैयार न थी. उसे अब भी भरोसा था कि वे निर्दोष हैं और बहुत जल्दी वे कोई चमत्कार करेंगे और उन्हें दोषी साबित करने वाले वकील और जज को सजा मिलेगी.

वाह रे अंधभक्ति, इन्हें कहां ले कर जाएगी, पता नहीं. कैसे इन की आंखों पर बंधी अंधभक्ति की पट्टी खुलेगी और इन्हें सचाई नजर आएगी.                                                  

– आशा शर्मा

इ़न्होंने जो कहा

हम कब जागेंगे

पाखंड की दुकानें जब अपनी शैशव अवस्था में रहती हैं तभी उन के फन कुचलने चाहिए न कि उन के तक्षक बनने की राह देखनी चाहिए. हम सभी को अपने कानआंख खोल कर रखने होंगे ताकि समाज की कोई फुंसी, फोड़ा न बन जाए. अन्याय को सहना भी तो अन्याय करने की तरह होता है.

दुखद है कि खबरिया चैनल भी एयरकंडीशंड कार्यालय में बैठ खबरों की रचनाएं करना चाहते हैं. जब सबकुछ इतना उजागर था तो उंगली पहले ही उठानी थी.

ठगी के धंधे के अलावा जनता को धर्म और आस्था के नाम पर गुमराह और मतिभ्रष्ट किया जा रहा है. बेहतर है कि जल्दी से जल्दी आवाज उठाई जाए ताकि कट्टरपंथी पाखंड और ठगी का कोई और बाबा लोगों को मानसिक गुलामी की जंजीरों में न जकड़ ले. इस के लिए आम जनता और हम जैसे लोगों को आवाज उठानी चाहिए.                     

– रीता गुप्ता

 

धर्म का डर

धर्म से डरना हम ने बचपन से सीखा है, इसलिए बाबा के प्रति भी लोग अपना मुंह बंद कर लेते हैं.      

– पद्मा

 

डर की जड़ें

हम सचाई को कुबूल करना नहीं चाहते. कुछ दिन गुजरेंगे और सब भूल जाएंगे. फिर एक नया बाबा और उस के अनुयायी पैदा हो जाएंगे. यही हमारी कमजोरी है जिस का फायदा ये लोग खूब उठाते हैं. धर्म हमारी जड़ों में डर के साथ इतनी गहरी जड़ें जमा चुका है कि ‘ऐसा नहीं किया तो, यह अनिष्ट, वह नुकसान हो जाएगा…’ वाली सोच से उबर पाना बेहद मुश्किल है.       

– मीनू परियानी

 

विरासत की भक्ति

इतना अंधाविश्वास है कि मातापिता अपने बेटेबेटियों को भी बाबाओं की सेवा में, कृपा, आशीर्वाद लेने भेज देते हैं कि सबकुछ आसानी से मिल जाए, जीवन सफल हो जाए मिनटों में. धर्म में और गुरुओं में आस्था, श्रद्घा, भक्ति विरासत में मिली, जो चली ही आ रही है.

– नीरजा श्रीवास्तव

 

दस जन्मों की सजा होती

काश, कोई ऐसी तरकीब होती

काश, कोई ऐसा कानून होता

खुद को देवता बताने वाले को

काली करतूत करने वाले को

दस साल की नहीं,

दस जन्मों की सजा होती

हर जन्म में पीछा करती उस का

उस के करतूतों की काली छाया

शायद तब समझ में आता

कैसा लगता है उस लड़की को

जो उठाती है हर पल, हर घड़ी

साधुमहात्माओं की

मौजमस्ती का बोझ

और जब उस के साथसाथ

उम्रभर चलता है

बलात्कार का काला धब्बा…            

– कविता

 

मानसिकता बदलें

महिलाओं को अपनी सोच बदलनी होगी क्योंकि महिलाएं इन से बहुत अधिक प्रभावित होती हैं. उन का एक ही कथन होता है कि इतने बड़े बाबा हैं, कुछ तो बात होगी.

महिलाएं एक व्रत करती हैं-ऋषि पंचमी, इसे इसलिए रखा जाता है कि रजस्वला स्त्री घर के बरतन आदि छूती है तो इस व्रत के करने से वह पापमुक्त हो जाती है. उत्सुकतावश, इस से संबंधित एक पुस्तक पढ़ी. उस में लिखा है, ‘जो महिला इसे नहीं करती है वह कुतिया की योनि को प्राप्त होती है और उस के शरीर में कीड़े पड़ते हैं.’

इस व्रत को करने वाली अशिक्षित ही नहीं, बल्कि एमबीए पास महिलाएं भी हैं. मैं ने उन से पूछा तो उन का उत्तर था, ‘‘अब इतने बड़े ऋषियों ने पुस्तक में लिखा है तो सचाई होगी ही.’’

ऐसी महिलाएं क्या सिखाएंगी अपने बच्चों को?         

– प्रतिभा अग्निहोत्री

 

राजनीतिक संरक्षण

बाबाओं की दिनदूनी रातचौगुनी तरक्की का मुख्य कारण उन्हें प्राप्त राजनीतिक संरक्षण है. उन की संपत्ति पर टैक्स नहीं लगता. आम नागरिकों से खून चूस कर टैक्स वसूलने वाली सरकारें बाबाओं और मंदिरों या धार्मिक संस्थाओं की संपत्ति को टैक्स के दायरे में क्यों नहीं लातीं? दूसरे, बाबाओं के अनुयायी पार्टियों के वोटबैंक भी होते हैं.

वोटों की राजनीति ने बाबाओं को राजनीतिक दलों के लिए बड़ा वोटबैंक उपलब्ध कराने वाला साधन भी बना दिया है. इसीलिए बाबाओं के दामन पर कोई राजनीतिक दल हाथ नहीं डालता है.

ऐसे माहौल में देश के भविष्य के प्रति कोई आशा या उम्मीद नहीं महसूस होती.

– गीता यादवेंदु

 

ठगी का कारोबार

हमें डर और अंधभक्ति विरासत में मिली है. इस का फायदा राम रहीम जैसे पाखंडी उठाते हैं. मेरी बड़ी ननद मध्य प्रदेश में रहती हैं. पिछले साल वे हमारे यहां आईं. उन्हें देख कर एक पंडित आ गया.

पंडित ने कहा कि आप अपने बेटे की शादी कर के परेशान हैं. मैं कुछ उपाय आप को लिख कर देता हूं. इस से आप के घर में शांति आएगी. जबकि, ऐसा कुछ नहीं था. उस ने एक कागज पर लिख कर दिया और बीचबीच में यह लिख दिया कि आप गुलाब का फूल लिखेंगी, आप गंगा का नाम लिखेंगी आदिआदि. यह पाखंडी पंडित की चाल है. कागज देने के बाद वह सब से पूछता है कि आप को कौन सा फूल अच्छा लगता है, कौन सी नदी को आप मानते हैं?

ज्यादातर लोग गुलाब और गंगा ही बताते हैं और उस की धाक जम जाती है. उस ने मेरी ननद से भी पूछा. उन्होंने बताया कमल का फूल और साबरमती नदी. वह कुछ नहीं बोला लेकिन दक्षिणा में हजार रुपए ऐंठ ले गया. मैं ने उन से कहा भी कि आप ने अलग नाम बताया. वह ठग है. लेकिन मेरी ननद ने जवाब दिया, ‘‘साबरमती को गंगा भी बुलाते हैं. मुझे गुलाब ही पसंद है. हम ने ही उन्हें गलत बताया था.’’    

– कविता कुमारी

 

अंधविश्वास से अंधभक्ति

अज्ञानता से भय पैदा होता है, भय से अंधविश्वास पैदा होता है और अंधविश्वास से अंधभक्ति पैदा होती है. अंधभक्ति से मनुष्य का विवेक शून्य

हो जाता है. जिस का विवेक शून्य हो जाता है वह इंसान तर्क नहीं कर सकता, तर्क सुन भी नहीं सकता और फिर यहीं से शुरू होती है मानसिक गुलामी और शुरू होता है बाबाओं का खेल. भारत में करोड़ों लोग इस समस्या से पीडि़त हैं.               

– मोनिका

 

सार्थक संदेश की जरूरत

दिल्ली प्रैस की पत्रिकाएं जिस प्रकार ढोंगी बाबाओं की पोल खोलती आ रही हैं, वह संदेश अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचे तो निश्चय ही लोगों के सोचनेसमझने का दृष्टिकोण बदलेगा.

जब मैं बहुत छोटी थी, पढ़लिख भी नहीं सकती थी. उस समय मेरी मम्मी ने मुझे सरिता में प्रकाशित एक कहानी ‘उड़ने वाले बाबा’ सुनाई थी. उस में एक ढोंगी बाबा गुब्बारे को मानवाकृति का रूप दे कर रात में धागे से बांध कर उड़ाते थे. मम्मी ने समझाया था कि ऐसे लोगों और उन के तथाकथित चमत्कारों पर कभी विश्वास मत करना. संभव है कि प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में यदि बाबाओं का विरोध न हुआ होता तो अंधविश्वासी लोगों की संख्या कहीं अधिक होती.  

– मधु शर्मा

 

सच स्वीकार नहीं

मेरे घर में झाड़ूपोंछा करने के लिए जो महिला आती है वह राम रहीम की भक्त है. वर्षों से वह राम रहीम के आश्रम जाती रही है. राम रहीम की करतूतों का परदाफाश हुआ तो वह अब रो रही है, कहती है, ‘‘बाबा ऐसे नहीं हैं, उन पर इल्जाम लगाया गया है.’’ मेरी सास ने उसे समझाने की कोशिश की तो उसे उन पर भी गुस्सा आ गया. लोगों में इतनी अंधभक्ति भरी हुई है कि वे सच को सामने देख कर भी स्वीकार नहीं कर रहे.        

– पारुल

 

आखिर धर्म है क्या?

कई धर्मों व कई धार्मिकस्थलों के होने के बावजूद हम इंसानों को एक बाबा की जरूरत पड़ ही जाती है. आम इंसान ही नहीं, खास इंसान भी इन के चक्करों में पड़ते हैं.

इंदिरा गांधी न तो अनपढ़ थीं, न ही गरीब, फिर भी धीरेंद्र ब्रह्मचारी को गुरु मानती थीं. आज भी कई राजनेता, अभिनेता, उद्योगपति, खिलाड़ी ऐसे हैं जो किसी बाबा या माता के चरणों में सिर झुकाते हैं. गरीब जनता की तो बात ही छोड़ दीजिए.

इस सब के व्यावहारिक कारण कई हैं. भक्तों के मन में सुख पाने की लालसा रहती है, बाबा के मन में भी यही सब रहता है. सभी सांसारिक सुखों को भोगना चाहते हैं. इस के लिए माध्यम बनता है धर्म, जिसे कोई नहीं जानता कि आखिर है क्या? ऐसे में होता है जन्म नए बाबा का और यह सिलसिला रुकता ही नहीं.

भक्तों को सोचना होगा कि वे किस के पीछे, क्यों भाग रहे हैं. काम करो और आगे बढ़ो. वरना समझ लो, बाबा गुरमीत तो एक मास्क है, कितने ही बाबा और हैं जो आप को बेवकूफ बनाने को आमंत्रण देने को तत्पर हैं.               

– श्वेत

क्या फिर होगी ‘बिग बौस’ में प्रियांक शर्मा की एंट्री?

‘बिग बौस’ सीजन 11 पहले ही दिन से काफी सुर्खियां बटोर रहा है. बिग बौस के घर का तापमान काफी बढ़ा हुआ है. इस घर के प्रतियोगी हर दिन आपस में लड़ते भिड़ते हुए दिखाई दे रहे हैं. वैसे तो बिग बौस के असली बिग बौस सलमान ही हैं, लेकिन लगता है इस बार शो मेकर्स प्रियांक को खोने के बाद शायद उन्‍हें बहुत मिस कर रहे हैं. इसीलिए तो उन्हें शो में वापस लाने की बात कही जा रही है. दरअसल मीडिया में आ रही खबरों के अनुसार प्रियांक इस शो में एकबार फिर से एंट्री मार सकते हैं.

बता दें कि पहले हफ्ते में घर में हो रही जबरदस्त लड़ाई से सलमान का पारा बढ़ा हुआ था, फिर जब विकास गुप्ता और आकाश डडलानी के बीच लड़ाई में प्रियांक ने आकाश से मारपीट और हाथापाई की तो शो के होस्ट अपने गुस्से पर काबू नहीं रख पाए और उन्होंने पिछले वीकेंड के वार में शनिवार को सेलीब्रिटी के तौर पर घर में एंट्री लेने वाले प्रियांक को घर से बाहर का रास्ता दिखा दिया.

प्रियांक के घर से जाने के बाद टीवी एक्‍ट्रेस और इस घर की सदस्‍य हिना खान ने काफी हंगामा कर प्रियांक के जाने का विरोध किया था.

क्या था पूरा मामला

बिग बौस के घर में शुक्रवार रात विकास गुप्ता और आकाश के बीच तू-तू-मैं-मैं हो गई और आकाश ने विकास की सेक्सुअलिटी को लेकर सवाल उठाते हुए उन्हें ‘गे (समलैंगिक)’ कहा, तो विकास बेकाबू हो गए और वे आकाश की तरफ दौड़ पड़े. मामला पूरी तरह से गरमा गया था और इस लड़ाई में प्रियांक शर्मा भी कूद पड़े. प्रियांक विकास से भी ज्यादा अपसेट हो गए और उन्होंने धक्का-मुक्की शुरू कर दी. इस घटना के बाद अनुशासनात्मक कार्रवाई करते हुए उन्हें शो से बाहर कर दिया गया.

बता दें कि बिग बौस के पूर्व कंटेस्टेंट रह चुके कमाल आर खान ने अपने ट्विटर पर प्रियांक और विकास को लेकर कुछ और सनसनीखेज बात कही है. उन्होंने ट्वीट किया, ब्रेकिंग न्यूज- सूत्रों के मुताबिक प्रियांक शर्मा विकास गुप्ता का ब्नाय फ्रेंड है, इसलिए तो दोनों बिग बौस 11 में हैं.

घर के अंदर विकास और प्रियांक की दोस्ती को लेकर अर्शी खान भी कई तरह की टिप्पणी कर चुकी हैं.

बता दे कि बिग बौस से पहले भी प्रियांक शर्मा एमटीवी के रिएलिटी शो ‘रोडीज’ और ‘स्‍प्‍लिट्सविला’ का हिस्‍सा रह चुके हैं.

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