आर्थिक आजादी से हम अब भी दूर

आजादी के बाद देश को केवल राजनीतिक आजादी मिली, आर्थिक आजादी नहीं. इसलिए हम आर्थिक विकास के मामले में पिछड़ गए. लाइसैंस, कोटा, परमिट राज के कारण देश में उद्योगधंधों और व्यापार करने पर कई तरह की पाबंदियां लगी हुई थीं. हम ने आर्थिक नीतियों के नाम पर वह रास्ता चुना जो विकासविरोधी था.

उन दिनों साम्यवाद और समाजवाद वैचारिक फैशन थे. साम्यवाद से प्रभावित पंडित जवाहरलाल नेहरू इस भेड़चाल में शरीक हो गए और उन्होंने देश के लिए समाजवाद का रास्ता चुना.

विकास के इस मौडल ने देश की प्रगति के सारे रास्ते अवरुद्ध कर दिए. देश की उत्पादक शक्तियों को परमिट, कोटा राज की जंजीरों में जकड़ दिया गया. इसलिए, देश को राजनीतिक आजादी तो मिली, मगर आर्थिक आजादी एक दूर का सपना बनी रही.

नोबेल पुरस्कार विजेता अमेरिकी अर्थशास्त्री मिल्टन फ्रीडमैन (1912-2006) उन  गिनेचुने अर्थशास्त्रियों में से थे जिन्होंने अपने समय के आर्थिक चिंतन को बहुत गहरे तक प्रभावित किया. भारत जब आजादी के बाद आर्थिक नियोजन के जरिए 5वें दशक में अपनी आर्थिक विकास की राह तय कर रहा था तब 1963 में मिल्टन फ्रीडमैन को सलाहकार के तौर पर बुलाया था. इस के बाद फ्रीडमैन ने एक लेख ‘इंडियन इकोनौमिक प्लानिंग’ लिखा था. उस में वे भारत के आर्थिक विकास की अपार संभावनाओं को पुरजोर तरीके से उजागर करते हैं.

आर्थिक नीति का अभाव

फ्रीडमैन के विश्लेषण से भारत की आर्थिक बदहाली के कारण की शिनाख्त करने के नाम पर पिछले कई दशकों में जो कई मिथक पैदा किए गए हैं, वे ध्वस्त हो जाते हैं. और असली कारण सामने आ जाता है. उन्होंने कहा था  कि भारत की निराशापूर्ण धीमी विकास दर की वजह धार्मिक और सामाजिक व्यवहार या लोगों की गुणवत्ता में नहीं, बल्कि भारत द्वारा अपनाई गई आर्थिक नीति में मिलेगा. भारत के पास आर्थिक विकास के लिए जरूरी किसी चीज का अभाव नहीं है. अभाव है तो सही आर्थिक नीति का.

इसलिए 1991 में नरसिंहा राव ने लाइसैंस, कोटा, परमिट राज खत्म किया तो लोगों को पहली बार लगा कि देश को दूसरी आजादी मिली है या देश को पहली बार आर्थिक आजादी मिली है.

भारत की आजादी के आसपास  कई देश स्वतंत्र हुए थे. उन में से जो नियंत्रणमुक्त अर्थव्यवस्था के रास्ते पर चले, वे कहां के कहां पहुंच गए. जापान, इसराईल, मलयेशिया, इंडोनेशिया जैसे देश शून्य से उठ कर खड़े हो गए और विकास की दौड़ में बहुत आगे निकल गए. दूसरी ओर, भारत आज भी अविकसित देशों की कतार में खड़ा है.  जुलाई 1991 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पी वी नरसिंहा राव की अल्पमत सरकार ने स्पष्ट उदारीकरण की नीति की घोषणा की.

हालांकि 1991 के बाद के सुधार धीमे, अधूरे और हिचकिचाहटभरे थे लेकिन फिर इन्होंने भारतीय समाज में कई आधारभूत और गंभीर परिवर्तनों की प्रक्रिया को शुरू किया. यह भी उतना ही महत्त्वपूर्ण पड़ाव है जितनी कि दिसंबर 1978 में चीन में हुई डेंग की क्रांति.  देश के कई अर्थशास्त्री मानते हैं कि 1991 में नरसिंहा राव सरकार द्वारा लाइसैंस, कोटा राज खत्म करने के बाद देश आर्थिक आजादी की बयार को अनुभव कर पाया. इसे हमें आर्थिक सुधारों के जरिए ज्यादा कारगर बनाना चाहिए. कुछ आर्थिक सुधार हुए भी, मगर हम दुनिया के बाकी देशों से काफी पीछे हैं.

आर्थिक आजादी का मतलब होता है देश में उद्योगधंधे, व्यापार, व्यवसाय करना सुगम हो. उन पर बेवजह की पाबंदिया न लगाई जाएं. मगर भारत में उद्योगधंधे करना आज 2017 में भी काफी मुश्किल काम है. यह बात आर्थिक आजादी सूचकांक में झलकती भी है.

वैश्विक स्तर पर प्रतिष्ठित आर्थिक आजादी के एक सूचकांक में भारत  पिछड़ कर 143वें पायदान पर पहुंच गया है. जबकि पिछले साल इस सूचकांक में भारत 123वें पायदान पर था. खास बात यह है कि अमेरिका के एक थिंकटैंक हैरिटेज फाउंडेशन द्वारा तैयार किए जाने वाले इस सूचकांक में पाकिस्तान सहित अनेक दक्षिण एशियाई पड़ोसी देश भारत से बेहतर स्थिति में हैं. रपट में भारत के खराब प्रदर्शन के लिए आर्थिक सुधारों की दिशा में समानरूप से प्रगति न हो पाने को जिम्मेदार ठहराया गया है.  हैरिटेज फाउंडेशन ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि भले ही पिछले 5 वर्षों में भारत की औसत सालाना विकास दर करीब 7 फीसदी रही है लेकिन विकास को गहराईपूर्वक नीतियों में जगह नहीं दी गई है. और यह बात जो आर्थिक आजादी को सीमित करती है. थिंकटैंक ने भारत को ‘अधिकांश रूप से अस्वतंत्र’ अर्थव्यवस्था की श्रेणी में रखा है और कहा है कि बाजारोन्मुख सुधारों की दिशा में प्रगति समानरूप से नहीं हो पा रही है.

दावों की खुलती पोल

सरकार सरकारी क्षेत्र के उद्योगों के जरिए बहुत से  क्षेत्रों में व्यापक रूप से मौजूदगी बनाए हुए है. रिपोर्ट के मुताबिक, रैगुलेटरी माहौल उद्योगिकता को हतोत्साहित कर रहा है. यही नहीं, भारत को इस सूचकांक में मिले कुल 52.6 अंक गत वर्ष के मुकाबले 3.6 अंक कम हैं, जब भारत 123वें पायदान पर था.

आर्थिक आजादी सूचकांक में हौंगकौंग, सिंगापुर और न्यूजीलैंड अव्वल रहे हैं. दक्षिण एशियाई देशों में सिर्फ अफगानिस्तान 163 पायदान और मालदीव 157 पायदान के साथ भारत के नीचे हैं. 125 पायदान के साथ नेपाल, 112वें पर श्रीलंका, 141 पर पाकिस्तान, 107वें पर भूटान और 128वें पर बंगलादेश ने आर्थिक आजादी के मामले में भारत को पीछे छोड़ दिया है.

भारत में अकूत संपत्ति और दरिद्रता दोनों समानरूप से विद्यमान हैं. भारत एक ओर तेजी से अपना विकास कर रहा है, वहीं, दूसरी ओर अपनी विशाल व विविधतापूर्ण आबादी के लिए हरेक के लायक विकास का रास्ता भी ढूंढ़ रहा है.

यह रपट मोदी सरकार के सुधार के दावों पर पूरी तरह सवालिया निशान लगाती है. देश के बहुत सारे राजनीतिक पंडित और अर्थशास्त्री चुनाव होने से पहले नरेंद्र मोदी के बारे में कह रहे थे कि वे भारत के लिए मार्गेट थैचर या तेंग सियाओ पिंग साबित हो सकते हैं. इन दोनों नेताओं की खासीयत यह थी कि उन्होंने अपने देशों को समाजवादी मकड़जाले से मुक्त किया और बाजार द्वारा तय विकास के रास्ते पर आगे बढ़ा कर संपन्न बनाया.

विकास की धीमी रफ्तार

गुजरात मौडल का सपना देश में जम कर बेचा गया और उस की अद्भुत सफलता के बाद नरेंद्र मोदी से भी यह उम्मीद की जाने लगी कि वे आर्थिक सुधारों के रास्ते पर चल कर भारत को तरक्की के रास्ते पर ले जाएंगे. लेकिन 3 साल में ज्यादातर उद्योगपति, अर्थशास्त्री इसी निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि मोदी जिस कछुआ चाल से आर्थिक सुधार कर रहे हैं उन से किसी बुनियादी सुधार करने की उम्मीद करना बेकार है. पिछले कुछ वर्षों से कोई भी कार्य करना आसान नहीं रहा. उल्टे, और कठिन हो गया है.

बेशक, भारत ने दुनिया के सब से तेज विकास दर वाले देश के तौर पर हाल ही अपना मुकाम बनाया है. लेकिन देश में बुनियादी परिवर्तन के मामले में आर्थिक सुधारों की दृष्टि से मोदी सरकार की कोशिशें नाकाफी हैं. तो क्या इस सरकार ने आर्थिक सुधार नहीं किए? यह तो नहीं कहा जा सकता लेकिन मोदी सरकार यह नहीं जान पाई कि कितने बड़े पैमाने पर सुधार जरूरी हैं. मोदी की कोशिश ऐसे फलों को तोड़ने की है जिन तक आसानी से हाथ पहुंच सके.

भारत में व्यवसाय करना कठिन है. विदेशी कंपनियों की यह आम राय है. यह राय केवल विदेशी कंपनियों की ही नहीं है बल्कि देशी उद्योगपति भी यही शिकायत कर रहे हैं.

बजाज आटो के प्रबंध निदेशक राजीव बजाज ने देश में नए प्रयोगों को ले कर सरकारी रवैए पर बड़ा करारा व्यंग्य किया. अपनी क्वाड्रिसाइकिल को बाजार में उतारने में आ रही अड़चनों का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि देश की रैगुलेटरी संस्थाएं और सरकारी मंजूरी से जुड़ी शर्तें नवाचारों का गला घोंटने का काम कर रही हैं.

अगर ऐसा ही रहा तो ‘मेक इन इंडिया’ की पहल ‘मैड इन इंडिया’ में बदल जाएगी. बजाज आटो के प्रबंधक निदेशक ने यह भी कहा कि देश में क्वाड्रिसाइकिल की बिक्री शुरू करने के लिए उन्हें 5 वर्षों से इंतजार करना पड़ रहा है, जबकि यूरोपीय, एशियाई और लैटिन अमेरिकी देशों में इस चौपहिया गाड़ी का चलन बढ़ रहा है. उन्होंने इस पर आश्चर्य जताया कि प्रदूषणमुक्त, ईंधन के मामले में किफायती और सुरक्षित होने के बावजूद क्वाड्रिसाइकिल को मंजूरी नहीं दी जा रही. शायद इसलिए मंजूरी नहीं मिल रही कि कुछ लोगों को लगता है कि चारपहिया वाहन खतरनाक होते हैं और लोगों को तीनपहिया वाहनों की सवारी करनी चाहिए. ये दोनों बयान इस बात के सुबूत हैं कि भारत में आर्थिक स्वतंत्रता की अब भी बेहद कमी है. यहां नए उद्योगधंधे चलाना अब भी लोहे के चने चबाने जैसे हैं.

पर्याप्त आर्थिक सुधारों की हिमायत करने वाले ये लोग भले ही उद्योगपति हों मगर आर्थिक स्वतंत्रता का उपयोग केवल अमीरों के लिए नहीं  है. इस की जरूरत उन के लिए ज्यादा है जो समाज के सब से ज्यादा निम्न आर्थिक वर्ग में गिने जाते हैं.

एक गरीब फेरीवाले से बड़ा मुक्त उद्यम का हिमायती कोई नहीं हो सकता. आर्थिक स्वतंत्रता के लिए विभिन्न लाइसैंसों और निरर्थक कानूनों को हटाना भी जरूरी है जिन के दायरे में लोग जीते हैं. स्वतंत्रता के अभाव और अत्यधिक नियंत्रण से गरीब लोग ही सब से ज्यादा शिकार बनते हैं. अमीर लोग तो सरकारी नियंत्रण के बावजूद अपना रास्ता निकाल लेते हैं जबकि गरीबों के पास आर्थिक स्वतंत्रता के अलावा कोई चारा नहीं है. इस मामले में भी हम पिछड़े हुए हैं. आर्थिक विकास में नाटकीय वृद्धि लाखों भारतीयों को गरीबी से मध्यवर्ग की समृद्धि में ले गई. इस से भारत की गरीबी की दर में कमी आई. उन्हें आर्थिक उदारवाद का लाभ मिला. दूसरी तरफ बड़ी संख्या में कृषि पर निर्भर भारतीयों को इस का लाभ नहीं मिल पाया क्योंकि कृषि का क्षेत्र सुधारों से अछूता है.

वितरण क्षेत्र में छोटे क्रोनीज की भरमार है जो उदारवाद को रोकते हैं. वे किसानों और उपभोक्ताओं के बीच बाधा बन कर खड़े हो जाते हैं और दोनों को नुकसान पहुंचाते हैं. लेकिन किसानों को गंभीररूप से नुकसान पहुंचाते हैं. शहरी क्षेत्रों में आर्थिक उदारवाद के अभाव के कारण अवैध और अनौपचारिक क्षेत्र बरकरार हैं. इस कारण रेहड़ी वाले जैसे हाशिए के व्यवसायी, कानून का शासन न होने के कारण, परेशानी झेलने को मजबूर हैं.

आर्थिक सुधार उन तक पहुंचने चाहिए ताकि वे कानून और मार्केट पूंजीवाद का लाभ उठा सकें. जहां आर्थिक स्वतंत्रता ज्यादा होती है वहां भ्रष्टाचार कम होता है. यह पता चलता है कि श्रेष्ठ भ्रष्टाचार विरोधी अभियान केवल बयानबाजी या कठोर दंडों पर आधरित नहीं होते, बल्कि खरीदने व बेचने के आर्थिक एजेंटों को मिलने वाले प्रोत्साहनों को कम करने और ऐसे फेवर करने के  अधिकार को खत्म करने पर निर्भर करते हैं.

बिगड़ती कानून व्यवस्था

मोदी समर्थकों और विरोधियों की यह शिकायत रही है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में 2 कदम आगे, 3 कदम पीछे की चाल से ही सुधार हो रहे हैं. वैसे, मोदी धड़ाकेदार सुधारों या बिगबैंग सुधारों पर नहीं, नारों पर विश्वास करते हैं. इस के बावजूद मोदीभक्त अर्थशास्त्री दावा करते हैं कि मोदी ने बाकी प्रधानमंत्रियों की तुलना में ज्यादा आर्थिक सुधार किए.

जानेमाने मोदीभक्त अर्थशास्त्री सुरजीत भल्ला कहते हैं, ‘‘मोदी के 2 वर्षों के शासन में पिछले 22 वर्षों के मुकाबले ज्यादा सुधार हुए हैं.’’ जबकि, इस दौरान नोटबंदी और जीएसटी ने छोटे उद्योग में और व्यापारियों को करारी लात मारी है. गौरक्षकों ने पशु व्यापार को पंगु बना दिया है. बिगड़ती कानून व्यवस्था उद्योगों को चलाने में कठिनाई पैदा कर रही है.

पिछले वर्षों में हम ने भले ही कई आर्थिक बदलाव किए हों मगर इस मोरचे पर सुधार करना बाकी है. कालाबाजारी खत्म करने का नारा काफी नहीं है.

बैंकों में बढ़ते एनपीए से स्पष्ट है कि बैंकिंग सैक्टर में किस तरह सरकार की नाक के नीचे बेईमानी हो रही है. इस क्षेत्र में सुधारों की सख्त जरूरत है.

लंबे समय से जिस सुधार की सब से ज्यादा जरूरत है और कई सरकारें आने के बावजूद वह लटका हुआ है वह है – श्रम सुधार.  कम्युनिस्ट विचारधारा की देन के कारण रोजगार वृद्धि रुक रही है. मेक इन इंडिया की सफलता के लिए भी यह सुधार बेहद जरूरी है. इस के बगैर हमारी विशाल आबादी हमारी ताकत बनने के बजाय हमारे लिए बोझ बन जाएगी.

चाहे कांग्रेस की सरकार हो या भाजपा की सरकार, दोनों ने तय किया है कि वे श्रम सुधार करेंगे तो ब्राह्मणों द्वारा संचालित यूनियनों की सहमति से जो कभी काम को महत्त्व ही नहीं देते और आसानी से इस के लिए तैयार नहीं हो रहे. इस से पहले जरूरत है प्रशासनिक सुधारों की भी. इस के बारे में वीरप्पा मोईली की रपट मौजूद होने के बावजूद उस पर अमल नहीं किया गया.  दरअसल, लोगों को तेज गति से सुधारों की उम्मीद थी जो पूरी नहीं हो पाई है. जब तक आर्थिक सुधार लागू नहीं होते, देश आर्थिक आजादी सूचकांक के पायदान पर सब से नीचे के देशों के साथ रहेगा. झंडा फहराना और वंदे मातरम का नारा या भारत माता की जय कहने से आर्थिक विकास नहीं होगा.

आप के सपनों की राजकुमारी

अश्विनी काफी अपसेट थी. अविनाश ने जब उस से कई बार पूछा तो आखिर उस ने रोतेरोते बताया कि जानते हो, पापा ने मेरे लिए लड़का देखा है. कल हमारा रिश्ता भी पक्का होने वाला है. अविनाश ने उस से कहा कि अरे, यह तो खुशी की बात है. इस में रोने की क्या जरूरत है? तुम्हें तो हमें मिठाई खिलानी चाहिए. अश्विनी नाराज हो कर बोली कि तुम्हें तो मिठाई की पड़ी है, यहां मेरी जान निकल रही है. मैं तो सिर्फ और सिर्फ तुम से शादी करना चाहती हूं किसी और से नहीं.

अश्विनी की बात सुन कर अविनाश हैरान रह गया. उस ने तो अश्विनी के बारे में ऐसा कभी सोचा भी नहीं था, लेकिन यह भी सच था कि वह दिन में जब तक एक बार उस से बात नहीं कर लेता तब तक उसे चैन नहीं पड़ता था. और यह भी सच था कि अश्विनी ने उस के अच्छेबुरे समय में हमेशा साथ दिया था. अविनाश ने उसे ढांढ़स बंधाते हुए कहा कि तुम चिंता मत करो, मैं तुम्हारे पापा से अपने पापा की अभी बात करवाता हूं.

बात बन गई. अश्विनी के पापा तुरंत मान गए, क्योंकि एक तो अविनाश जानापहचाना लड़का था, ऊपर से अच्छा पढ़ालिखा और कमाऊ भी. लेकिन कई बार यह सब इतना सहज नहीं होता और जब तक बात संभल पाती है, तब तक गाड़ी छूट जाती है.

कई बार आप ध्यान नहीं दे पाते, लेकिन एक लड़की आप की जिंदगी में होती है. चाहे वह आप के पड़ोस में हो, क्लासमेट हो या फिर औफिस कलीग. आप लगभग हर दिन उस से मिलते और बात भी करते हैं, लेकिन आप जिसे जस्ट फ्रैंड समझते हैं, वही दरअसल आप की गर्लफ्रैंड होती है और उस में लाइफपार्टनर मैटीरियल भी होता है. यदि आप की जिंदगी में भी है कोई ऐसी लड़की तो जरा ध्यान दें, कहीं वह कुछ ऐसा तो नहीं करती :

जब आप किसी मुसीबत में हैं या उदास रहते हैं, तो वह आप से बारबार उदासी का कारण पूछती है. आप खाने के मूड में नहीं रहते, लेकिन आप को जबरन खिलाती है. चाहे अपने टिफिन बौक्स से खिलाए या फिर किसी रेस्तरां में ले जा कर. आप को तरहतरह के अल्टरनेट सजेशन भी देती है और धैर्य रखने की सलाह भी.

वह युवती अपनी किसी भी प्रौब्लम से आप को परेशान नहीं करना चाहती. घर में, औफिस में या फिर कौलेज में तमाम समस्याओं से रूबरू होने के बावजूद उस ने आप को कभी इनवौल्व नहीं किया. जब भी आप को बताया, मुसीबत का समय बीतने के बाद बताया.

आप ने महसूस किया होगा कि आसपास के युवक भले ही उस पर कितना भी मरते हों, चाहे जितने डोरे डालें, लेकिन वह किसी को खास अहमियत नहीं देती. वहीं, आप के प्रति उस के मन में न सिर्फ सौफ्ट कौर्नर रहता है बल्कि वह आप से बातचीत करने या आप के साथ दो बातें करने के मौके तलाशती रहती है.

आप उस के सामने दूसरी युवतियों से बातचीत करते हैं या उन से मिलते हैं, इस के बावजूद वह आप को पूरा स्थान देती है. भले ही उसे यह सब पसंद नहीं आता, लेकिन उस ने आज तक आप को टोका नहीं. हां, उस के चेहरे पर आप ने एक इनसिक्योर फीलिंग जरूर देखी होगी. इन सब के बाद भी वह घर लौटते वक्त या जौब पर या कालेज जाते वक्त आप का साथ ढूंढ़ती है.

कई बार आप किसी कंसर्ट या मूवी शो में जाने का प्रोग्राम सिर्फ इसलिए कैंसिल कर देते हैं कि आप के पास फाइनैंस की प्रौब्लम है. ऐसे में वह जबरदस्ती आप को पैसे थमा देती है या फिर खुद साथ चलने का औफर देती है. बाद में जब आप पैसे लौटाने की कोशिश करते हैं, तो वह आप के लाख कहने के बावजूद पैसे वापस नहीं लेती.

आप के हर झूठ को वह बेहद सहजता से स्वीकार कर लेती है, जबकि उसे पता होता है कि आप झूठ बोल रहे हैं और आप को भी पता है कि उसे वास्तविकता मालूम है. वह ऐसा सिर्फ इसलिए करती है कि आप के साथ उस का किसी प्रकार का तर्कवितर्क न हो. इसे उस का आप के प्रति समर्पण ही मानिए.

आप उस का स्मार्टफोन हाथ में ले कर उस के सोशल मीडिया अकाउंट्स, व्हाट्सऐप मैसेज, एसएमएस या कौल हिस्ट्री चैक करते हैं, तो वह कुछ नहीं कहती. आप पूछेंगे तो अपना पासवर्ड तक बता देगी. क्या यह आप को टू बी पार्टनर मैटीरियल से कम लगता है?

 क्या आप ने कभी सोचा है कि  आप अपनी कोई भी सुखदुख की बात अनजाने में ही सब से पहले उस के ही साथ शेयर करते हैं. जब तक आप उस को कौल या मैसेज कर के समाचार नहीं दे देते तब तक आप को सुकून नहीं मिलता. जब आप उदास होते हैं या किसी से झगड़ा हो जाता है, तब भी आप उसी को सब से पहले फोन करते हैं और वह आप की हर खुशी या दुख में बढ़चढ़ कर हिस्सा लेते हैं.

उस के अपनेपन और सैल्फलैस स्वभाव की प्रशंसा आप मन ही मन कई बार कर चुके हैं. कई बार आप की मां या भाईबहन भी कह चुके हैं कि इसे बड़ी परवा है तेरी. कभी आप उस की तुलना अपने किसी दूसरे फ्रैंड्स से कर के देखिए, आप उस का पलड़ा सदैव भारी पाएंगे.

आप ने कई बार मूड औफ रहने की स्थिति में उस के साथ बहुत गुस्से से बातचीत की है और उसे झिड़क भी दिया है, लेकिन उस ने कभी पलट कर आप से झगड़ा नहीं किया. हो सकता है उस वक्त आप के गुस्से से मायूस या रोंआसी हो कर वह चली गई हो, लेकिन अगले ही दिन वह वापस आप के पास आ गई या खुद उसी ने फोन कर के पूछा, ‘अब मूड ठीक है? मुझे पता है कि गुस्सा जनाब की नाक पर रहता है.’ ऐसे में आप अपनी बेरुखी पर शर्मिंदा हो जाते हैं. अगर वाकई कोई ऐसी युवती आप के आसपास मौजूद है तो उसे अपना जीवनसाथी बनाने का मौका न गंवाएं.

इस कैफे ने किया दावा, माहिरा सिगरेट नहीं शेक पी रही थीं

पाकिस्तान के एक कैफे ‘कैफे लिक्वेटेरिया’ ने हाल ही में वायरल हुई माहिरा खान की तस्वीर को अपने कैफे के प्रमोशन के तौर पर इस्तेमाल किया है. दिलचस्प बात यह है कि इसमें माहिरा सिगरेट नहीं बल्कि स्ट्रा से शेक पीती नजर आ रही हैं.

पाकिस्तानी एक्ट्रेस माहिरा खान और रणबीर कपूर की हाल ही में सिगरेट पीते हुए कुछ तस्वीरें सामने आई थी. देखते ही देखते यह तस्वीरें इतनी वायरल हो गई कि हर तरफ माहिरा और रणबीर कपूर के रिश्तों की बातें होने लगी.

इस तस्वीर ने इतनी चर्चाएं बटोरीं कि पाकिस्तान के एक कैफे ने तो इसे मारकेटिंग टूल बना लिया और उसने माहिरा की इन तस्वीरों को एक नए और अलग अंदाज में पेश किया, इसके अनुसार माहिरा रणबीर के साथ सिगरेट नहीं बल्कि शेक पीते दिखाई दे रही हैं.

कैफे ने इस तस्वीर को सोशल मीडिया पर भी शेयर किया है. जिसे लोगों द्वारा जमकर ट्रोल भी किया गया. लोगों ने इस तस्वीर पर बेहद बुरे-बुरे कमेंट किए हैं. उन्होंने इसे घटिया प्रमोशनल स्ट्रेटेजी करार दिया. उनका यह भी कहना है कि कमाल है… पाक एक्ट्रेस का मजाक उसी के मुल्क का कैफ बना रहा है. हालांकि, विवाद के बाद कैफे ने तस्वीरों को सभी सोशल मीडिया प्लैटफार्म से हटा दिया है.

मालूम हो कि 32 वर्षीय माहिरा तलाकशुदा और एक बेटे की मां हैं. इनकी गिनती पाकिस्तान की सबसे फैमस और सबसे ज्यादा फीस लेने वाली हीरोइनों में होती है. इसी साल उन्होंने शाहरुख खान की फिल्म रईस से बौलीवुड डेब्यू किया है.

ब्लाउज के ये डिजाइन आपके लुक में लगा देंगे स्टाइल का तड़का

त्योहारों की शुरुआत हो चुकी है और इस समय सभी के मन में यही एक बात चल रही है कि इस समय सबसे हटकर कैसे दिखा जाए? खास तौर पर युवतियां हर त्योहारों में सबसे सुंदर और अलग हटकर दिखना चाहती हैं. आज कल के ट्रेंड के अनुसार वे अपने कपड़े तैयार करवाना चाहती हैं और नए रूप में खुद को संवारना चाहती हैं. तो ऐसा क्या अलग किया जाए कि उनका रूप बिलकुल हटकर और बदला हुआ लगे?

ये तो सभी जानते हैं कि लड़कियां आज कल देसी स्टाइल बेहद पसंद करती हैं. तो फिर साड़ी से ज्यादा खूबसूरत पोशाक उनके लिए होगी भी क्या? लेकिन आज के ट्रेंड के मुताबिक प्लेन साड़ी के साथ हैवी ब्लाउज का ट्रेंड चल पड़ा है.

इन डिजाइन को लेकर डिजाइनर कोमल जोशी का कहना है कि ‘डिफरेंट स्टाइल को अपनाने से पहले आपको अपना कम्फर्ट नहीं खोना चाहिए. यदि आप नए तरह के डिजाइनर बलाउज पहनना चाहती हैं, तो आपको अपनी सुविधा का विशेष ध्यान रखना चाहिए. क्योंकि यदि आप उस डिजाइन को कैरी नहीं कर पाईं या असुविधा की वजह से हर वक्त सचेत रहीं, तो आपका लुक बुरी तरह से बिगड़ सकता है. इसलिए आप अपने कम्फर्ट का पूरी तरह से खयाल रखें.’

आज हम आपके लिए ब्लाउज के कुछ ऐसे ही डिजाइन लेकर आए हैं, जो आपकी खूबसूरती में चार चांद लगा देंगे.

राउंड नैक के साथ फुल स्लीव ब्लाउज: आजकल पूरी बाहों के गोल गले वाले ब्लाउज काफी चलन में हैं. इस तरह के ब्लाउज में कढाई का काम बेहद सुन्दर लगता है. चाहे वह जरदोजी हो या मिरर वर्क, इस डिजाइन में हर तरह की कढाई जंचती है.

फ्रिल स्ट्रैप ब्लाउज: इन दिनों फ्रिल का फैशन फिर एक बार ट्रेंड में है. ऐसे में आप फ्रिल बाजू वाले या फ्रिल गले के साथ ब्लाउज बनवा सकती हैं. जो आपको एक डिफरेंट लुक देने के लिए काफी होगा.

हाई नेक ब्लाउज: हाई नेक ब्लाउज का अपना ही एक लुक होता है. ये आपके गले और कंधों को खूबसूरती से उभारता है. यह ब्लाउज हर साड़ी के साथ अच्छा लगता है.

बोट नैक ब्लाउज: बोट नैक ब्लाउज आपके गले के भाग को हाईलाईट करने में मदद करता है. ये ब्लाउज फुल और हाफ स्लीव दोनों के साथ अच्छा लगता है. इसके डिजाइन में डोरी का भी इस्तेमाल किया जा सकता है.

सिंगल स्लीव ब्लाउज: ये ब्लाउज आपको बेहद ट्रेंडी और बोल्ड लुक देते हैं. इस ब्लाउज को प्योर शिफौन की साड़ी के साथ पहना जा सकता है. इसकी डिजाइन आपकी सुडौल बाहों को हटकर लुक देंगी.

वेस्ट कोट स्टाइल: अगर आप अपने देसी लुक में वेस्टर्न स्टाइल का तड़का देना चाहती हैं, तो ये स्टाइल सिर्फ आपके लिए ही है. वेस्ट कोर्ट स्टाइल आपको अलग और ट्रेंडी लुक देगा. इस ब्लाउज को आप किसी भी साड़ी के साथ पहन सकती हैं.

स्पैगेटी स्टाइल: अगर आप आस्तीन वाले ब्लाउज पहन-पहनकर बोर हो चुकी हैं या आपको अगले फंक्शन में वैस्टर्न और बोल्ड लुक चाहिए, तो ये स्टाइल आपको जरूर आजमाना चाहिए. इस स्टाइल में आप डोरी के साथ रंग-बिरंगे बीट्स का इस्तेमाल कर सकती हैं.

तो बस अब देर किस बात की, इन त्योहारों में आप इन खुबसुरत और ट्रेंडी डिजाइन को ट्राय कीजिये और साथ ही लगाइये अपने लुक में चार-चांद.

ब्रेस्ट में होने वाली हर गांठ कैंसर नहीं होती

भारत मेंब्रेस्ट में होने वाली गांठ को लेकर दो तरह की प्रतिक्रिया आम है. या तो लोग इसे पूरी तरह से नजर अंदाज कर देते हैं या एकदम से दहशत में आ जाते हैं. ये दोनों ही स्थितियां पूरी तरह से विपरीत हैं, लेकिन दोनों की ही वजह जागरूकता का अभाव है. ब्रेस्ट कैंसर भारत में महिलाओं की मौत के सबसे बड़े कारणों में से एक है. एक हालिया अध्ययन से पता चलता है कि बीमारी के प्रसार का यह स्तर एक लाख महिलाओं में 25.8 में है और इसमें मृत्यु दर प्रति 1 लाख पर 12.7 है. बावजूद इसके यहां महिलाओँ के बीच इस जानलेवा समस्या के प्रति जागरुकता बेहद कम है.

मेदांता-द मेडीसिटी की रेडियोलाजी विभाग की एसोसिएट डायरेक्टर डा. ज्योति अरोडा कहती हैं, जागरुकता की कमी की वजह से लाखों पीडित महिलाएं न तो वक्त पर जांच कराती हैं और न ही इलाज. ब्रेस्ट कैंसर के कुछ शुरुआती लक्षणोँ में से एक है गांठ बनना. लेकिन आज भी बहुत सी ऐसी महिलाएं हैं जो पढी-लिखी और जागरुक वर्ग की नहीं हैं इसलिए वे ब्रेस्ट में गांठ को नहीं पहचान पाती हैं. दूसरी तरफ जो महिलाएं इस बारे में जागरूक हैं उनमेँ भी अधिकतर यह नहीं समझती हैं कि ब्रेस्ट में गांठ के 10 में से 8 मामलों का सम्बंध कैंसर से नहीं होता है. उनके लिए तो ब्रेस्ट की गांठ ही कैंसर का ही दूसरा नाम होता है और अगर उन्हें अपने शरीर में गांठ दिख जाए तो वे मान लेती हैं कि अब उनके जीवन का अंत करीब हैतो अब जांच कराके भी क्या फायदा.

डा. ज्योति अरोडा कहती हैं, महिलाओँ का एक अन्य ग्रुप भी है जो सिर्फ यह देखकर डाक्टर के पास जांच के लिए नहीं जातीं क्योंकि उन्हें गांठ में दर्द महसूस होता है. कैंसर वाली गांठों को महसूस कर पाना अक्सर कठिन होता है और इनका सम्बंध दर्द से नहीं होता. नान कैंसर गांठ सिस्ट बनने का परिणाम हो सकती हैं, जिसे हम फाइब्रो-एडिनोमा कहते हैं और जो असामान्य किंतु नान-कैंसर ग्रोथ होती है. कई मामलोँ में यह महिला की माहवारी साइकल से सम्बंधित अस्थायी गांठ हो सकती है. ऐसे में अगर किसी महिला को गांठ महसूस हो रही है तो उसे तुरंत ब्रेस्ट स्पेशलिस्ट के पास जाना चाहिए जहां उनकी मेमोग्राफी और अल्ट्रासाउंड किया जाएगा. अगर इमेजिंग में कोई सलिड गांठ दिखती है तो यह पता लगाने के लिए कि इसका सम्बंध कैंसर से है अथवा नहीं, बायाप्सी की जाती है. बायाप्सी के दौरान एक रेडियोलाजिस्ट प्रभावित जगह से टिश्यु निकालता है ताकि लैब में इसकी जांच कर पता लगाया जा सके कि यह कैंसर है अथवा नहीं.

डा. ज्योति अरोडा कहती हैं “ऐसे मामलोँ में कई तरह की बायाप्सी की जाती है. अधिकतर मामलोँ में ट्रु-कट नीडल बायाप्सी की जाती है, लेकिन अगर असामान्यता बेहद मामूली और संवेदी होती है अथवा मेमोग्राम में यह सिर्फ कैल्सफिकेशन जैसी दिखती है अथवा सिर्फ ब्रेस्ट की एमआरआई में दिखती है तभी हम वैक्क्म असिस्टेड ब्रेस्ट एमआरआई (वीएबीबी) को प्राथमिकता देते हैं, क्योंकि इस प्रक्रिया में प्रभावित जगह का एक्युरेट सैम्पल हासिल करने की सम्भावना बढ जाती है. वीएबीबी के जरिए, ट्रु कट नीडल बायाप्सी की तुलना में अधिक टिश्यु निकाले जा सकते हैं और ऐसे में पैथलाजिस्ट ज्यादा एक्युरेट रिपोर्ट तैयार कर सकता है.“ 

लोगों को अपने ब्रेस्ट में आने वाले बदलावो पर भी गौर करना चाहिए. खासतौर से शेप और साइज में. गांठ के अलावा यह भी देखना चाहिए कि उनकी त्वचा के रंग में ज्यादा लाली या सूजन तो नहीं है, जन, निप्पल अंदर की ओर धंसने तो नहीं लगा है और अगर दर्द है तो इरिटेशन, रंग में बदलाव और त्वचा से पपडी उतरने या निप्पल की त्वचा फटने जैसी समस्याएं तो नहीं हैं.

ब्रेस्ट में नान कैंसर गांठ होना आम बात है और इनसे जीवन को कोई खतरा नहीं होता, लेकिन सबसे अहम बात है वक्त पर इसकी जांच कराना और इलाज कराना. भारत में, एक अलग मानसिकता की वजह से ब्रेस्ट सम्बंधी समस्याओँ के बारे में लोग खुलकर चर्चा नहीं करते हैं और इसकी अनदेखी कर देते हैं.

एक हालिया रिपोर्ट के मुताबिक, ब्रेस्ट कैंसर के मामलोँ में मृत्यु दर काफी अधिक है, खासतौर से ग्रामीण इलाकोँ में तो 66 तक है जबकि शहरी इलाकों में यह बेहद कम 8 तक देखा गया है. मौजूदा समय की सबसे बड़ी चिंता यह है कि ब्रेस्ट में होने वाली अधिकतर गांठे कैंसर न होने के बावजूद भी यह बीमारी महिलाओं की मौत की सबसे बड़ी वजह बनी हुई है. ऐसे में जांच को कभी भी दरकिनार नहीं करना चाहिए.

साड़ी ड्रैपिंग के हौट स्टाइल

साड़ी ऐसा पहनावा है, जो पारंपरिक होते हुए भी हौट लुक दे सकता है. साड़ी हर किसी पर फबती है. इसे पहनने का तरीका हर प्रदेश में अलगअलग होता है. लहंगा, बटरफ्लाई, जलपरी आदि प्रचलित स्टाइलों में से हैं. साड़ी पहनने के कुछ हौट स्टाइल निम्न हैं.

बटरफ्लाई साड़ी

बटरफ्लाई स्टाइल साड़ी डिजाइन में साड़ी पहनने का तरीका निवी स्टाइल जैसा होता है. सिर्फ पल्लू का अंतर होता है. इस साड़ी स्टाइल में पल्लू को काफी पतला कर दिया जाता है, जिस से शरीर का मध्यम भाग दिखता है.

पैंट स्टाइल

पैंट और जैगिंग के साथ साड़ी को एक लाजवाब स्टाइल दे सकते हैं. यह लेटैस्ट फैशन लड़कियों और महिलाओं का पसंदीदा स्टाइल बन चुका है. सौलिड पैंट के लिए आप प्रिंटेड साड़ी चुन सकती हैं. यह एक बहुत अच्छा मेल बनेगा और आप इस में बेहद खूबसूरत लगेंगी.

निवी साड़ी

निवी साड़ी ओढ़ना काफी आसान है और यह साड़ी पहनने का काफी प्रचलित तरीका भी है. यह साड़ी आप आसानी से रोजाना के इस्तेमाल में या किसी उत्सव में भी पहन सकती हैं. निवी स्टाइल ने आंध्र प्रदेश में जन्म लिया था और आज यह सारे भारत में एक प्रचलित स्टाइल है.

मुमताज स्टाइल

पार्टी में जाते वक्त रैट्रो लुक के लिए मुमताज स्टाइल से बेहतर भला क्या विकल्प हो सकता है. आप की खूबसूरत फिगर है, तो आप के लिए इस स्टाइल से बेहतर कोई विकल्प नहीं है.

लहंगा स्टाइल

यह साड़ी डिजाइन एक आधुनिक स्टाइल है, जो साड़ी और लहंगे के रूप में 2 खूबसूरत भारतीय परिधानों का मिश्रण करती है. साड़ी को लहंगे की तरह पहना जाता है और इस के लिए चुन्नटों की मदद ली जाती है. इस स्टाइल के लिए आमतौर पर उलटे पल्लू का प्रयोग किया जाता है. किसी भी खास उत्सव पर पहनने के लिए यह बिलकुल सही विकल्प है.

बंगाली स्टाइल

ट्रैडिशनल लुक के लिए साड़ी के मामले में बंगाली पैटर्न का कोई जवाब नहीं है. यह न केवल ग्रेसफुल लुक देता, बल्कि इसे संभालना भी ज्यादा मुश्किल नहीं होता है.

कूर्गी स्टाइल

यह एक बहुत ही अनोखा स्टाइल है. इस में प्लेट्स पीछे बनाई जाती हैं ताकि आप ठीक से चल सकें. इस स्टाइल में पल्लू फ्रंट चैस्ट में लपेटा होता है और पीछे से घुमा कर आगे कंधे पर डाला जाता है, बगल की नैकलाइन का ध्यान रखते हुए.

मराठी स्टाइल

आम साडि़यों के पैटर्न के मुकाबले यह स्टाइल काफी अलग है. इस के लिए 6 हाथ के बजाय 9 हाथ की लंबाई वाली साडि़यों का इस्तेमाल किया जाता है और नीचे पेटीकोट नहीं पहनते हैं.

तो त्योहारों के इस सीजन में परंपरागत भारतीय लुक पाने के लिए इन में से साड़ी ड्रैपिंग का अपना मनपसंद अंदाज चुनें और फैस्टिव मस्ती का खुल कर आनंद उठाएं.

– विनीत छज्जर, डाइरैक्टर, विनीत साड़ीज

‘लगान’ में आमिर खान क्रिकेट मैच जीते नहीं बल्कि हार गए थे..!

15 जून 2001 को रिलीज हुई फिल्म ‘लगान’ का आमिर खान को हिट एक्टर बनाने में बहुत बड़ा योगदान है. इस फिल्म में आमिर खान के पात्र का नाम भुवन था और आमिर खान ने अपनी जबरदस्त एक्टिंग से भुवन के करेक्टर को अमर बना दिया. इस फिल्म को देखकर ऐसा लगा था कि मानो यह किरदार सिर्फ आमिर खान के लिए ही बना है. लेकिन आशुतोष गोवारिकर के लिए लगान बनाना काफी चुनौती पूर्ण रहा था.

डायरेक्टर आशुतोष गोवारिकर के लगान बनाने के सपने को इंड्रस्टी के कई लोगों ने नकार दिया था. उन लोगों का मानना था कि ये फिल्म बन ही नहीं सकती और अगर बन भी गयी तो बनाने वाला बर्बाद हो जायेगा क्योंकि ऐसी फिल्में भारत में कोई नहीं देखता. आइए फिल्म से जुड़ा एक रोचक किस्सा आपको बताते हैं जिसके बारे में शायद ही आप जानते होंगे.

जैसा कि हम आपको पहले भी बता चुके हैं कि आशुतोष गोवारिकर लगान में लीड हीरो के लिए शाहरुख को लेना चाहते थे. इस रोल के लिए आमिर खान डायरेक्ट आशुतोष गोवारिकर की दूसरी पंसद थे. आशुतोष इस फिल्म के लिए शाहरुख खान को साइन करना चाहते थे लेकिन शाहरुख ने इस रोल के लिए मना कर दिया था. लेकिन जब आशुतोष ने इस रोल के लिए आमिर खान से बात की और उन्हें स्क्रिप्ट सुनाई तो आमिर ने उन्हें तुरंत हां कर दिया था. कहानी सुनकर आमिर इतने उत्साहित हुए थे की फिल्म का प्रोड्यूसर बनने को भी तैयार हो गए थे.

लगान जो आज हिंदी सिनेमा की मिसाल बन चुकी है. साहस, दृढ़ निश्चय और जूनून की महागाथा. 16 साल भी लगान वैसी ही लगती है जैसी रिलीज़ के वक्त देखने पर लगी थी. एक सच्ची सदाबहार फिल्म. फिल्म में अंग्रेज क्रिकेट टीम और गांव वालों की टीम के बीच लगान को लेकर हुए उस मैच को लोगों ने उस वक्त भी काफी पंसद किया था और आज भी करते हैं. लेकिन क्या आपको पता है फिल्म में तो गांव की टीम ने मैच जीत लिया था और लगान माफ करा लिया था.

वहीं असल में जीत अंग्रेज टीम की हुई थी. जी हां, फिल्म के सेट पर दोनों टीमों के बीच दोस्ताना मैच हुआ था जिसमें आमिर खान की टीम हार गई थी.

खैर, फिल्म के सेट पर भले ही आमिर का बल्ला ना चला हो. लेकिन फिल्म में तो आमिर और उनकी टीम ने अंग्रेज टीम को धूल चटा दी थी और लगान माफ हो गया था, और क्या चाहिए.

शादीशुदा महिलाएं भी घर बैठे कमा सकती हैं इस तरह पैसे

दिन प्रतिदिन बढ़ती महंगाई में एक ओर जहां खर्चे बढ़ते जा रहे हैं वहीं पति पत्नी दोनों के कमाने के बावजूद सैलरी पूरी नहीं हो पा रही है. हो सकता है कि आप अक्सर ऐसे विकल्पों के बारे में सोचती हों, जिससे कुछ एक्स्ट्रा कमाई भी हो जाए और आप अपना घर भी अच्छे से संभाल लें.

हालांकि घर बैठे कमाई के जरिए तो बहुत हैं लेकिन उसके लिए आपको अनुशासित, और्गेनाइज्ड और फोकस होने की जरूरत है. अगर ये तीनों क्वालिटीज आप में हैं तो आप आराम से औफिस के अलावा अपने लिए एक नया इनकम सोर्स पा सकती हैं. ये कुछ ऐसे काम हैं जिन्हें करके आप अपने घर के बजट को और स्ट्रौंग बना सकतीं हैं.

ब्लौगिंग के जरिये

अगर आपको लिखने का, फोटो खींचने का या फिर वीडियो बनाने का शौक है तो आप अपने इस शौक से पैसे कमा सकती हैं. आपको जरूरत है तो सिर्फ एक ब्लौग बनाकर उसे अपडेट करते रहने की. इसके बाद अगर आपका ब्लौग या वेबसाइट लोगों को पसंद आना शुरू हो जाएगा तो आपके अकाउंट में पैसे आना भी शुरू हो जाएंगे. गूगल ऐडसेंस और कुछ दूसरी विज्ञापन कंपनियां ऐसे ब्लौग्स और वेबसाइट को अच्छी कीमत देती हैं.

पेड डिनर कराकर पैसा कमायें

अगर आपको खाना बनाने में महारत है तो ये आपके लिए घर पर कमाई का जरिया बन सकता है. आप चाहें तो पेड डिनर का विकल्प अपना सकती हैं. आप प्रति गेस्ट रेट तय कर सकती हैं. आजकल शहरों में टिफिन सिस्टम भी चलन में है. जिसमें आप कुछ घरों को टिफिन प्रोवाइड कराने काम करके पैसा कमा सकती हैं.

कार रेंट पर देकर

अगर आपके पास दो कारें हैं और आप एक ही कार का इस्तेमाल करती हैं तो ये आपके लिए कमाई का जरिया बन सकता है. अक्सर नई कार आ जाने के बाद पुरानी कार गैरेज में खराब होने के लिए छोड़ दी जाती है. पर आप ऐसा मत कीजिए और अपनी पुरानी कार को रेंट पर दे दीजिए. इससे एक ओर जहां आपको बंधी बंधाई कमाई होगी वहीं चलते रहने से गाड़ी भी अच्छी हालत में बनी रहेगी.

गैरेज के जरिये

आज कल के समय में जबकि एक अच्छा घर अर्फोड करना मुश्किल हो गया है ऐसे में अगर आपके पास एक बड़ा घर है तो आप उसे कमाई के लिए इस्तेमाल कर सकती हैं. आप अपने गैरेज को किराए पर दे सकती हैं. ये घर को रेंट पर देने जैसा ही है. अच्छा होगा. अगर आपका गैरेज घर के बाहरी हिस्से में हो. इससे आपकी प्राइवेसी भी बनी रहेगी और सुरक्षा भी.

भाषा ट्यूशन के जरिये

किसी भी जगह को अपनाने के लिए उस जगह की भाषा आना बहुत जरूरी है और अगर आप किसी ऐसी जगह रहती हैं जहां बाहर से आकर बसने वालों की संख्या अधिक है तो ये आपके लिए अच्छी बात है. आप उन्हें अपनी भाषा सिखाने के बदले पैसे कमा सकती हैं. ये काफी कुछ ट्यूशन टीचिंग जैसा ही है पर उतना टाइम टेकिंग नहीं.

बेबी सीटिंग

अगर आपको बच्चे अच्छे लगते हैं तो ये काम आपके लिए बेस्ट इनकम सोर्स बन सकता है. आप सोच रही होंगी कि आपको तो खुद औफिस जाना होता है, ऐसे में आप बच्चा कब संभालेंगी. दरअसल, ज्यादातर क्रैच पब्लिक हौलीडे और रविवार को बंद रहते हैं. ऐसे में मां बाप अगर कहीं ऐसी जगह जाना चाहें जहां वो बच्चे को नहीं ले जा सकते तो उनके लिए ये परेशानी की बात हो जाती है. ऐसे में आपकी ये सर्विस उन्हें राहत देगी और आपको पैसे.

हालांकि क्रैच चलाना एक फुल टाइम काम है. अगर आप इसे पार्ट टाइम करके खुश है और आगे बढ़ाना चाहती हैं तो ये किसी हालत में बुरा नहीं है.

‘पोपटलाल’ ने भी छोड़ दिया ‘तारक मेहता का उल्टा चश्मा’ का साथ

छोटे परदे पर पिछले 8 सालो से ‘तारक मेहता का उल्टा चश्मा’ प्रसारित किया जा रहा है. देखा जाए तो सब टीवी पर आने वाला यह शो दर्शकों के बीच काफी लोकप्रिय भी है. लेकिन अब लगने लगा है कि आपके चहेते शो ‘तारक मेहता का उल्टा चश्मा’ के लिए शायद मुसीबत की घड़ी आ गई है.

मीडिया रिपोर्ट्स की माने तो इस शो में हाल ही में कई आरोप लगाये गये हैं. आपको बता दें कि एक सिख समुदाय ने शो पर आरोप लगाते हुए कहा था कि इस शो में गुरु गोविंद सिंह जी के जीवित स्वरुप को दिखाया गया है, जो उनके धर्म के खिलाफ है. कोई भी इंसान गुरू के जीवित स्वरूप को धारण नहीं कर सकता. ये सिखों की धार्मिक मान्यताओं के खिलाफ है. इस कारण से यह कामेडी शो अब विवादों के घेरे में फंस गया है और शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी ने भी इस शो पर बैन लगाने की मांग भी की है.

अब इस शो के बारे में एक और बुरी खबर यह भी आ रही है कि दुनिया को हिलाने वाले पत्रकार पोपटलाल भी इस शो से अलग होने वाले हैं. पोपटलाल का शो के प्रोड्यूसर असित मोदी से हुए विवाद के कारण वह जल्द ही शो छोड़कर जा सकते हैं. मीडिया रिपोर्ट्स की माने तो ‘पोपटलाल’ यानी श्याम पाठक की निर्माताओं के साथ जबरदस्त बहस हुई, जिसके बाद उन्हें शो छोड़ने के लिए कह दिया गया था.

दरअसल बात यह है कि हाल ही में श्याम पाठक और जेठालाल यानी दिलीप जोशी किसी इवेंट के लिए लंदन गए थे. इस दौरान दिलीप जोशी ने तो शो मेकर्स को लंदन जाने की जानकारी दे दी थी, लेकिन श्याम ने अपने जाने की कोई जानकारी नहीं दी. जिस वजह से शो मेकर्स ने श्याम का सेट पर काफी देर तक इंतजार किया था. उसके बाद जब श्याम सेट पर आये तो प्रोड्यूसर और श्याम के बीच काफी विवाद खड़ा हो गया और असित मोदी ने श्याम को सेट पर से जाने को कह दिया. हालांकि अब तक शो के प्रोड्यूसर और श्याम की तरफ से इस बात का कोई जवाब नहीं आया है.

आपको बता दे कुछ दिनों पहले दया भाभी यानी दिशा वाकाणी की भी शो छोड़ने की खबर सुनने में आयी थी. हालांकि दिशा प्रेग्नेंट है, इसलिए वह शो छोड़कर मैटरनिटी पीरियड एंज्वाय करेंगी. खबरों के मुताबिक दिशा पेड मैटरनिटी लीव पर रहेंगी.

‘कुमकुम भाग्य’ की बुलबुल ने ठुकरा दी आमिर खान की फिल्म

मशहूर धारावाहिक ‘कुमकुम भाग्य’ की बुलबुल उर्फ एक्ट्रेस ‘मृणाल ठाकुर’ की हाल ही में एक चौंकाने वाली खबर सामने आई है. मृणाल इन दिनों अपनी हौलीवुड फिल्म ‘लव सोनिया’ को लेकर काफी चर्चा में है. खबरों की माने तो अभिनेता आमिर खान फिल्म ‘लव सोनिया’ में मृणाल की जबरदस्त परफारमेंस को देखकर इतने इम्प्रेस हुए कि उन्होंने अपनी आने वाली फिल्म ‘ठग्स आफ हिन्दोस्तान’ के लिए मृणाल को साइन करने का मन बना लिया था. लेकिन मृणाल ने आमिर के साथ काम करने से इनकार कर दिया.

सूत्रों कि माने तो आमिर खान ने मृणाल को मैसेज कर कहा था कि वह उनके साथ काम करना चाहते हैं. इतना ही नहीं बल्कि फिल्म ‘ठग्स आफ हिन्दोस्तान’ के प्रोड्यूसर आदित्य चोपड़ा ने तो मृणाल को एक साथ 3 फिल्मों के आफर भी दे डालें, लेकिन मृणाल ने आमिर के साथ आदित्य का आफर भी ठुकरा दिया. एक सूत्र के मुताबिक उन्होंने आदित्य चोपड़ा के एक साथ तीन फिल्मों के आफर को इसलिए भी ठुकरा दिया ताकि इसका असर उनके इंटरनेशनल करियर पर ना पड़े.

आपको बता दे कि आमिर खान की फिल्म ‘ठग्स आफ हिन्दोस्तान’ के लिए दंगल एक्ट्रेस फातिमा शेख नहीं बल्कि मृणाल उनकी पहली पसंद थीं. लेकिन उनके इनकार करने पर उन्हें रिप्लेस कर फातिमा शेख को फिल्म के लिए चुना गया.

आपको बता दें कि मृणाल ने स्टार प्लस के शो ‘मुझसे कुछ कहती..ये खामोशियां’ से अपने करियर की शुरुआत की थी. इसके बाद मृणाल कई टीवी शो में नजर आयीं. लेकिन उन्हें असली पहचान जी टीवी पर आने वाले धारावाहिक ‘कुमकुम भाग्य’ से मिलीं थी.

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