निजता पर सरकारी पहरा

पहले राजा अपने गुप्तचरों पर निर्भर रहते थे कि उन्हें अपने शासन क्षेत्र में रह रहे नागरिकों के बारे में छिपी जानकारी मिल सके. आज कंप्यूटरों ने जहां जीवन काफी सरल बना दिया है, वहीं उन्होंने गुप्तचरों की जगह भी ले ली है. कंप्यूटर के जरीए आज का राजा यानी सरकार हर नागरिक पर नजर रख सकती है. आज का तंत्र ऐसा हो गया है कि जो भी कुछ है वह कंप्यूटर के बिना नहीं रह सकता और अब सरकार ने इस विधा का लाभ उठा कर हर जानकारी इंटरनैट व कंप्यूटर से लेनी शुरू कर दी है.

कंप्यूटरों को धोखा देना आसान नहीं है, क्योंकि ये अरबों रिकौर्डों में से मतलब की जानकारी सैकंडों में जमा कर सकते हैं. आईटी क्षेत्र में नईनई तकनीकें विकसित हो रही हैं. न केवल वह जानकारी जो किसी नागरिक ने दूसरों को या सरकार को दी, बल्कि उसे भी जो उस के अपने कंप्यूटर में है, सरकार हासिल कर सकती है.

आधार नंबर पर बहस के दौरान सर्वोच्च न्यायालय आमतौर पर मान कर चला है कि सरकार के पास यह जानकारी जनहित और अच्छे शासन के लिए है चाहे उस का मनमाना उपयोग किया जाए. कहने को सरकार लगातार कहे जा रही है कि आधार के माध्यम से केवल बेईमानों, कालाबाजारियों, कर चोरों, आतंकवादियों को गिरफ्त में ले लेगी पर यह पक्का है कि अगर जानकारी जमा होगी तो हर सरकार विरोधी को कर चोर कह देना बेहद आसान है.

सरकार का आम जनता पर अंकुश अब कंप्यूटर के सहारे कई गुना बढ़ जाएगा और उसे गुप्तचरों की नहीं, टैक सेवियों की जरूरत होगी जो सरकार को हर तरह की सेवा दे सकते हों. अब हर नागरिक सरकार की निगाह में है. ऐसे में सरकार को तानाशाह बनने से कोई नहीं रोक सकता और इस के लिए सरकार को बंदूकों की भी जरूरत नहीं रहेगी, केवल कंप्यूटरों की होगी.

सरकार ने आधार नंबर को पैन से जुड़वाया है और पैन नंबर को जीएसटी से ताकि हर आर्थिक लेनदेन पर उस की नजर रहे. यह कहना गलत है कि इस से कर चोरों पर लगाम लगेगी और देश विकास की उड़ानें भरेगा. कर चोरी का, विकास से बहुत कम मतलब है. अगर देश में उत्पादकता बढ़ रही है और लोगों को नया सोचने व करने की स्वतंत्रता है तो ही विकास हो सकता है.

गांवों में कर चोरी न के बराबर होती है, क्योंकि आज भी कृषि उत्पादन पर कर नहीं है. पर क्या गांव विकास कर रहे हैं? कर चोर तो एक तरह से वहां हैं ही नहीं, फिर भी गांव वहीं के वहीं 18वीं सदी के माहौल में जी रहे हैं.

शहरों में अगर कुछ ने बड़े मकान, उद्योग बना भी लिए हैं, तो उन में 10-15% पैसा कर चोरी से लग सकता है. ज्यादातर लोग नंबर एक का लेनदेन करते हैं. और हां, रिश्वतखोर भी अपनी सफेद कमाई पर ही इतराते हैं. कर चोरी के नाम पर जनता को कंप्यूटर से बांधना असल में नागरिकों को सरकार का गुलाम बनाना है. धर्म के पहले से ही गुलाम रहे लोग अब सरकारी गुलाम भी बनने जा रहे हैं. पहले मंत्रों के वश में थे, अब कंप्यूटरों के.

लो आ गए अच्छे दिन

जो लोग फ्लैटों में पैसा लगा कर यह सोच रहे थे कि अच्छे दिन आते ही उन के फ्लैटों के दाम बढ़ जाएंगे और उन की मेहनत की कमाई दोगुनाचौगुना फल देगी  वे अब घरों को भूल ही जाएं. इस देश में मकानों की बहुतायत इतनी  है कि अब उन के दाम औंधे मुंह गिर रहे हैं. यह विकास की नैगेटिव ग्रोथ यानी नीचे गिरने का संकेत  है कि बिना खुद की छत वाले  अब मकानों के लायक पैसा नहीं बचा पा रहे.  मकानों के सैक्टर को सुधारने के नाम पर रियल स्टेट कानून और रजिस्ट्रेशन भी शुरू किया गया है और नोटबंदी व जीएसटी की भी मार पड़ी है कि इस गेम में अब पैसा ही नहीं लग रहा और जिन  का लगा है वह फंस गया है. दिल्ली के निकट कार्यरत जेपी समूह दिवालिया होने के कगार पर है. डीएलएफ व आम्रपाली ग्रुप भी डूबने लगे हैं.

बैंकों ने इस क्षेत्र में उधार देना बंद कर दिया है और जिन्हें दे दिया गया है उन से वसूली चालू हो गई है. इस क्षेत्र में निर्माणाधीन फ्लैटों पर लाखों लोगों ने अपनी जमापूंजी और उधार ले कर पैसा लगाया था. वे सब अब विकास की आंधी में धुल रहे हैं और उन का पैसा गोल हो गया है.  स्टेट बैंक औफ इंडिया के नैशनल बैंकिंग ग्रुप के मैनेजिंग डाइरैक्टर रजनीश कुमार ने साफ कह दिया है कि यह सोचना कि सिर्फ उधार देने वाले बैंक नुकसान उठाएंगे और फ्लैटों में पैसा लगाने वाले आम नागरिकों का पैसा सुरक्षित रहेगा भ्रम है. नुकसान तो दोनों को होगा.

असल में नुकसान केवल घर खरीदारों का होगा, जिन्होंने नारों और विज्ञापनों के झांसे में आ कर निवेश कर दिया था. उन्हें नहीं मालूम था कि सरकार की नीतियां ऐसी कमजोर निकलेंगी कि अर्थव्यवस्था की पहचान रियल स्टेट ही डूबने लगेगा.  यह संभव है कि भवन निर्माताओं ने बेहद मुनाफाखोरी की है पर जिस तरह के जोखिम उन्होंने लिए हैं उस में मुनाफे की अपेक्षा  तो होगी ही. आखिर इसीलिए तो बैंकों ने भरभर कर भवन निर्माताओं को भी कर्ज दिया और भवन खरीदारों को भी मासिक आय के अनुसार किश्तों पर चुकाने वाला कर्ज दिया. अगर इस धंधे में मूलभूत कमजोरी होती, तो लाखों लोग  आज शानदार फ्लैटों में सुख से न रह रहे होते.

भवन निर्माताओं को सरकारों ने नियमों और अनुमतियों के जंजाल में फांस रखा है और पगपग पर नुक्कड़ के सिपाही से ले कर मुख्यमंत्री तक वसूली करता है. जमीन जनता की, मेहनत जनता की, पैसा जनता का पर सरकार ‘मान न मान मैं तेरा मालिक’ की तर्ज पर हर जगह मालिक बन बैठी है. अब काले धन को जड़ से हटाने के पागलपन में धन की जड़ें ही खोद दी जा रही हैं. जब किसान बीज ही खाने लगे तो अकाल तो आएगा और भवन निर्माण क्षेत्र में यह आ पहुंचा है. अब भुखमरी होगी मकानों की. मकान होंगे पर खरीदार नहीं. छतें होंगी पर लोग सड़कों पर रहेंगे.

यही वजह है कि हाल ही में प्रकाशित एक सर्वे ने स्पष्ट किया है कि देश की अधिकांश जनता के पास कैदियों से भी कम जगह लायक छत है. जो छतें बन रही थीं वे अच्छे विकास और सुशासन की बाढ़ में ढह रही हैं.

क्या माइकल जैक्सन की जिंदगी सच में इतनी गंदी थी

किंग औफ पौप के नाम से मशहूर माइकल जैक्सन को तो आप जानते ही होंगे. वे एक अमेरिकी गायक, गीतकार और गजब के डांसर थे. माइकल जैक्सन अब इस दुनिया में नहीं हैं. फिर भी दुनिया में आज भी उनके अनगिनत चाहने वाले हैं जो उनको फौलो करते हैं. वे उन्हें आइकन और आइडल मानते हैं या यूं कह लें कि भगवान का दर्जा देते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं माइकल जैक्सन की ग्लैमरस जिंदगी घिनौनी भी थी. दूसरे हिस्से पर गौर करें, तो वह गंदगी और चाइल्ड पौर्नोग्राफी पसंद करते थे.

जब 2003 में नेवरलैंड में उनके घर छापा पड़ा तब जो चीजें सामने आईं थीं, वे बहुत कुछ कह रही थी. पुलिस को वहां से किताबें, पत्रिकाएं और कई दस्तावेज मिले थे, जिन्हें सार्वजनिक नहीं किया गया था. बाद में पता लगा कि वे तस्वीरें पशुओं और बच्चों से अत्याचार की थीं. न्यूड तस्वीरों पर बच्चों के चेहरे चिपके हुए मिले थे.

यह भी बताया जाता है कि जैक्सन नशीली दवा और सेक्स के आदी थे. वह अलार्म लगाकर घंटो सेक्स करते थे. वे अपने अंतिम दिनों में फर्श पर ही टौयलेट किया करते थे. एक बार तो सन 2002 में उन्होंने अपने दूसरे बेटे प्रिंस माइकल को बालकनी से लटका दिया था. साल 2005 में उन पर बच्चों के शोषण का मुकदमा भी चला.

उनकी मौत ने अपने पीछे कई सारे शंकाओं को जन्म दिया. उनकी मौत के बाद जब उनका पोस्टमार्टम हुआ तब लोगों का कहना था कि उनकी हत्या हई है.

महिलाएं बच्चे पैदा कर सकती हैं तो फिल्म भी बना सकती हैं : टिस्का चोपड़ा

बौलीवुड में महिलाओं के लिए काफी बदलाव आया है, लेकिन टिस्का चोपड़ा को लगता है कि अभी भी काफी कुछ बदलना बाकी है. टिस्का का मानना है कि फिल्म जगत में एक सकारात्मक बदलाव लाने के लिए महिलाओं को खुद आगे आकर लेखन, निर्माण और निर्देशन को अपने हाथों में लेना होगा. टिस्का का कहना है कि चीजें बदल रही हैं, लेकिन बहुत कुछ ऐसा है जिसे बदलना बाकी है. जितना होना चाहिए उतना बदलाव अभी नहीं आया है. हमें बदलाव की रफ्तार में तेजी लानी होगी और महिलाओं को लेखन, निर्माण और निर्देशन के क्षेत्र में भी आना होगा. उन्होंने कहा, “महिलाओं का नजरिया महिलाओं का ही नजरिया होता है. अगर एक महिला बच्चे पैदा कर सकती है तो वह निश्चित तौर पर फिल्म निर्माण भी कर सकती है.”

अभिनेत्री ने कहा, “मैंने एक लघु फिल्म ‘चटनी’ बनाई थी. मेरी अगली लघु फिल्म तैयार है और हम तीसरी फिल्म पर काम कर रहे हैं. तीसरी फिल्म का शीर्षक ‘दिल्ली वाले भाटिया’ है. हम इसे लोगों के सामने लाने को लेकर बहुत उत्साहित हैं.

काफी लंबे समय से भारतीय फिल्म इंटस्ट्री में सक्रिय रहने के बाद, टिस्का को उम्मीद है कि अच्छे कंटेट को इंडस्ट्री में अहमियत दी जाएगी. उन्होंने कहा कि “मैं बौलीवुड में बदलाव देखना चाहती हूं और यह भी चाहती हूं कि बेसिर पैर की जगह अच्छे कंटेट को अहमियत दी जाए. मुझे अधिक खुशी होगी अगर पैसा कंटेट और लेखकों पर खर्च किया जाए क्योंकि आखिर उससे फिल्म को मदद मिलेगी. मैं यह नहीं कहती कि बाकी फिल्में नहीं चलती लेकिन कंटेट बेस्ड फिल्म चलती हैं और लोग उसे पसंद भी करते हैं.

‘चटनी’ उनके प्रोडक्शन बैनर द ईस्टर्न वे की पहली फिल्म थी. टिस्का ने 1993 में ‘प्लेटफार्म’ के साथ उन्होंने बौलीवु़ड में डेब्यू किया और अपनी शानदार परफार्मेंस से अपना नाम बनाया. वह ‘तारे जमीन पर’, ‘फिराक’, ‘किस्सा’, टीवी शो ’24’ और ‘घायल वंस अगेन’ जैसी फिल्मों में नजर आ चुकी हैं. उनकी फिल्म ‘द हंगरी टोरंटो’ इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल (टीआईएफएफ) 2017 में प्रीमियर हुई थी. ‘द हंगरी’ विलियम शेक्सपियर के ‘टाइटस एंड्रोनिकस’ पर आधारित है. इसमें नसीरुद्दीन शाह, नीरज काबी, अर्जुन गुप्ता, सयानी गुप्ता, एंटोनियो अकील और सूरज शर्मा जैसे सितारे भी हैं. इस फिल्म में ताकत और प्रेम के बीच मौजूद हिंसा को दर्शाया गया है. फिल्म में टिस्का तुलसी जोशी के किरदार में हैं.

‘द हंगरी’ के बारे में बात करते हुए टिस्का ने कहा, “नसरुद्दीन सर के साथ शेक्सपियर पर काम करने से बेहतर कुछ नहीं हो सकता.” बतौर अभिनेत्री यह किरदार मेरे द्वारा निभाए गए किरदारों में सबसे चुनौतीपूर्ण था. मैं सामान्य तौर पर कड़ी मेहनत करती हूं, लेकिन इस बार मैंने थोड़ी ज्यादा मेहनत की. यह मेरे लिए एक नया अनुभव है जिसने मुझे अभिनेत्री के तौर पर एक नया आयाम दिया है.

त्योहारों के बाद ऐसे सुधारें अपना बिगड़ा बजट

हम त्योहारों पर चाहे कितनी ही कोशि‍श करें कि बजट में खर्च करेंगे और कोई फालतू या गैर जरूरी चीज नहीं खरीदेंगे, लेकिन ऐसा हो नहीं पाता. लिहाजा कुछ समय के लिए बजट गड़बड़ा जाता है. ऐसे में बिगड़े बजट को पटरी पर लाना एक बड़ी चुनौती होता है. आइए जानते हैं कुछ ऐसे टिप्स जिससे आप अपने बजट को फिर से संतुलित कर पाएंगी.

बाहर का खाना कम करें

त्योहारों पर मिठाइयां, कपड़े और पटाखे आदि की खरीदारी आप के खर्च बढ़ा देती हैं. ऐसे में कोशिश करें कि कम से कम एक महीने तक बाहर खाना खाने का प्लान न बनाएं. इससे ही काफी बचत हो जाएगी.

कुछ महीने मूवी देखने का प्लान न बनाएं

अगर आप एक महीने में 1 से 2 बार भी मूवी देखने जाती हैं, तो इस प्लान को कुछ दिनों के लिए टाल दें. इससे आप 2-3 हजार तो आराम से बचा ही लेंगी.

मेहमानों को घर बुलाने से बचें

त्योहारों में बिगड़े बजट के बाद मेहमानों को खाने पर बुलाना भी खर्च बढ़ाता है. जब भी आप उन्हें बुलाती हैं तो उनकी खातिरदारी के लिए आपको अपनी जेब ढीली करनी पड़ती है. ऐसे में कुछ दिनों के लिए ऐसे प्लान बनाने से बचें.

जिम की बजाय घर पर ही एक्सरसाईज करें

त्योहारों के सीजन में चाहकर भी आप अपने आप को मिठाई खाने से रोक नहीं पाती हैं. ऐसे में आप न चाहते हुए भी काफी कैलोरी बढ़ा लेती हैं. इसको बर्न करने का सबसे अच्छा तरीका है कि जिम ज्वाइन करने की बजाय पार्क में टहलें या कुछ दूरी तक सामान लेने जाने के लिए कार या स्कूटर की बजाय पैदल चलें. इससे आप अपना बिगड़ा बजट और सेहत, दोनों सुधार लेंगी.

महंगी खरीदारी से बचें

चाहे जितने भी डिस्काउंट ऑफर्स आपको लुभाएं, लेकिन ऐसे वक्त में आपको शॉपिंग से दूर ही रहना चाहिए.  क्रेडिट कार्ड से खरीदारी करने से भी बचें, वरना बाद में आप ब्याज चुकाने में ही लगी रहेंगेी.

मिक्स-मैच स्टाइल अपनाएं

त्योहारों के सीजन के बाद तुरंत बाद शादियों का सीजन भी आ जाता है और आपके पास भी खूब निमंत्रण आएंगे. ऐसे में नई ड्रेस खरीदना आपके बजट को बि‍गाड़ेगा. बेहतर है कि पुरानी चीजों को नए तरीके से पहनें. मसलन पुरानी साड़ी के साथ नए स्टाइल का ब्लाउज तैयार करवा लें. लड़के अपने पुराने सूट को स्टाइलिश ब्रोच व कफ बटन्स आदि से नया लुक दे सकते हैं.

आरके स्टूडियों में लगी आग, लंदन से शूटिंग छोड़ लौटे रणबीर कपूर

भारतीय फिल्म इंडस्ट्री के लिए आर.के स्टूडियो बेहद खास है. इसे स्टूडियो को राज कपूर ने बनवाया था. शनिवार को मुंबई के चेम्बूर स्थ‍ित इस स्टूडियो में भीषण आग लग गई थी. बताया गया कि इस आग में सुपर डांसर के नए सीजन का सेट पूरी तरह से जलकर राख हो गया है. मगर ये नुकसान सिर्फ इतना ही नहीं है,ऋषि कपूर की मानें, तो सिनेमा के कई बेशकीमती पन्ने इस आगजनी में राख हो गए हैं.

कपूर परिवार के लिये यह किसी बड़ी दुर्घटना सेकम नहीं है क्योंकि वे कहीं ना कहीं इससे भावनात्मक रुप से जुड़े हुए थे. आज जब बहुत सी यादें जलकर खाक हो गई, तो कपूर परिवार कहीं ना कहीं इस बात से काफी दुखी भी है. 

हाल ही में इस बारे में बात करते हुए ऋषि कपूर ने बताया कि इस दुर्घटना की वजह से उनके परिवार की विरासत से जुड़ी कई चीजें जल गई हैं. इन खास चीजों में उन्होंने राज कपूर के मेरा नाम जोकर फिल्म के मशहूर मास्क का भी जिक्र किया. ऋषि ने बताया कि आर. के फिल्मस के बैनर तले बनी हर फिल्म से जुड़े कौस्ट्यूम भी इस आगजनी के कारण जलकर राख हो गए हैं. इस बारे में उन्होंने एक ट्वीट भी किया है.

ऋषि की मानें तो आर.के. स्टूडियो में आर.के बैनर में काम करने वाली हर एक हीरोइन से जुड़े कौस्ट्यूम बहुत संभाल कर रखे गए थे. इसमें नरगिस से लेकर ऐश्वर्या राय तक के कौस्ट्यूम शामिल हैं. ये सब कुछ इस दौरान जल गया है.

उन्होंने कहा कि इस दुर्घटना में उन्होंने अपने पिता की विरासत का बड़ा हिस्सा खो दिया है. ऋषि ने कहा कि वह दोबारा से इस स्टूडियो को ठीक करवा सकते हैं, लेकिन इस हादसे में हुऐ नुकसान की भरपाई किसी भी तरह नहीं की जा सकती है. बताया जाता है कि कपूर फैमिली होली और गणपति उत्सव भी आर.के स्टूडियो में ही मनाती थी.

बीते कुछ दिनों से रणबीर कपूर लंदन में थे, घटना का पता चलते ही वह भी वापस लौटकर सबसे पहले आर.के स्टूडियो ही पहुंचे. वह लंदन में संजय दत्त की बायोपिक की शूटिंग कर रहे थे. बताया जा रहा है कि दुर्घटना के बारे में पता चलते ही वह तुरंत मुंबई लौट आए.

सुशांत के ‘चंदामामा दूर के’ छोड़ने की क्या है वजह

सुशांत सिंह का अहम और गुस्सा और बिगड़ी हुई आदतें इस कदर सिर चढ़कर बोलने लगी है कि वह किसी भी इंसान का अपमान करने से बाज नहीं आते हैं. उनके निजी स्वभाव का असर अब धीरे धीरे उनके करियर पर भी पड़ने लगा है.

यूं तो सुशांत सिंह राजपूत ने 2008 में टीवी सीरियल में अभिनय करते हुए अपने अभिनय करियर की शुरुआत की थी. पर उन्हें शोहरत मिली सीरियल ‘‘पवित्र रिश्ता’’ से, जिसे वह अभी भी भुनाते आ रहे हैं. सुशांत सिंह राजपूत ने 2013 में फिल्म ‘‘कई पो छे’’ से फिल्मों में कदम रखा था. लेकिन इसके बाद प्रदर्शित उनकी फिल्मों ‘शुद्ध देसी रोमांस’, ‘डिटेक्टिब ब्योमकेश बक्शी’’ को सफलता नहीं मिली. फिल्म ‘पी के’ में सुशांत ने छोटा सा किरदार निभाया था, पर इस सफल फिल्म में आमिर खान व अनुष्का शर्मा थीं. फिल्म ‘‘एम एस धोनी : अनटोल्ड स्टोरी’ ने किसी तरह बाक्स आफिस पर अपनी सफलता दर्ज करायी थी. पर उसके बाद उनका दिमाग आसमान पर पहुंच गया.

फिल्म ‘‘राब्ता’ ’के समय उनके अभिनय की बजाय कृति सैनन के साथ उनके रिश्तों की ही चर्चा होती रही. फिल्म के प्रमोशन के समय सुशांत सिंह राजपूत खुद को बौलीवुड का सबसे बड़ा महान कलाकार के एटीट्यूड के साथ पेश आए. अहम रावण का नहीं चला, तो भला सुशांत सिंह राजपूत किस खेत की मूली हैं. फिल्म ‘‘राब्ता’’ की बाक्स आफिस पर बुरी दुर्गति हुई. इसके बावजूद सुशांत सिंह राजपूत के एटीट्यूड में अंतर नहीं आया. ‘‘एम एस धोनी : अनटोल्ड स्टोरी’’ के चलते सुशांत सिंह राजपूत ने एक साथ चार फिल्में ‘चंदा मामा दूर के’, ‘केदारनाथ’, ‘रौ’ और ‘ड्राइव’ अनुबंधित कर ली थी. मगर फिल्म ‘राब्ता’ के बाक्स आफिस परिणाम के बाद ‘रौ’ से सुशांत का नाता खत्म हो गया, वैसे सुशांत सिंह राजपूत का दावा है कि उन्होंने खुद फिल्म ‘रौ’ छोड़ी और निर्माता को चार करोड़ रूपए लौटा दिए.

मगर अब उनकी बड़े बजट की फिल्म ‘‘चंदामामा दूर के’’ के बंद होने की खबरे गर्म हो चुकी हैं. ‘ईरोज इंटरनेशनल’ द्वारा बनायी जाने वाली ‘‘चंदामामा दूर के’’ को अमरीका के नासा में फिल्माया जाना है. इसके लिए सुशांत सिंह राजपूत अमरीका में नासा जाकर ट्रेनिंग भी हासिल की. लेकिन सूत्रों के अनुसार जैसे ही सुशांत सिंह राजपूत को पता चला कि इस फिल्म में एक अहम किरदार में आर माधवन भी हैं, तो सुशांत सिंह राजपूत ने आर माधवन के किरदार पर कैंची चलवाने का प्रयास किया, मगर जब इस बात के लिए निर्माता और निर्देशक तैयार नहीं हुए, तो वह अमरीका से वापस आकर इस फिल्म की बजाय दूसरी फिल्म ‘केदारनाथ’ की शूटिंग करने चले गए. उसके बाद फिल्म निर्माण कंपनी से सुशांत की पता नही क्या बात हुई पर चर्चाएं हो रही है कि अब ईरोज इंटरनेशनल ने ‘चंदा मामा दूर के’का निर्माण करने से इंकार कर दिया है.

इतना ही नहीं सूत्र तो यह भी दावा कर रहे हैं कि इरोज इंटरनेशनल ने सुशांत सिंह राजपूत की निर्माणाधीन फिल्मों ‘केदारनाथ’, ‘ड्राइव’ व ‘चंबल’ के निर्माताओं तक संदेश भेज दिया है कि उन्होंने ‘चंदामामा दूर के’ से अपना हाथ खींच लिया है. तो क्या अब सुशांत सिंह राजपूत की ‘केदारनाथ’ व दूसरी फिल्मों का निर्माण भी अधर में लटकेगा. सुशांत सिंह राजपूत को याद रखना चाहिए कि बौलीवुड में कुछ भी संभव है.

उधर ईरोज इंटरनेशनल कंपनी की तरफ से ‘‘चंदामामा दूर के’’ का निर्माण बंद होने की खबरों पर सफाई देते हुए कहा गया है कि ,‘‘अभी हमें फिल्म के बजट, कलाकारों का चयन, पटकथा आदि पर अंतिम निर्णय लेना है. जब यह सब तय हो जाएगा, तब सोचा जाएगा.’’

उधर फिल्म ‘‘चंदामामा दूर के’’ के लेखक व निर्देशक संजय पूरण सिंह चैहाण ने हमसे बात करते हुए कहा, ‘मैं सिर्फ इतना कह सकता हूं कि फिल्म ‘चंदामामा दूर के’ बंद नहीं हुई है, यह फिल्म सौ प्रतिषत बनेगी.’’

‘ईरोज इंटरनेशनल’की तरफ से दिए गए बयान और संजय पूरण सिंह की बातों पर ध्यान दिया जाए, तो क्या ‘चंदामामा दूर के’ बनेगी, पर उसमें सुशांत सिंह राजपूत को लेकर रहस्य है. देखें सच क्या सामने आता है. पर बौलीवुड में हर तरफ एक ही चर्चा है कि सुशांत सिंह राजपूत को जमीन पर लौट आना चाहिए और अपने एटीट्यूड को बदलना चाहिए.

ओल्ड इज गोल्ड का बढ़ रहा है फैशन ट्रेंड

आज फैशन का दौर लगातार बदलता ही जा रहा है. जहां पहले कई महीनों में फैशन बदलता था, वहीं आज हर घंटे में फैशन बदलता हुआ नजर आता है. लेकिन अब धीरे-धीरे लोग उसी पुराने फैशन को अपनाते दिख रहे हैं. आपको शायद यकीन नहीं होगा, लेकिन यह सच है कि 1980 के दशक का फैशन एक बार फिर वापसी कर रहा है.

1980 का दशक चमकीले व चटक रंगों, सितारे व मनके जड़े ड्रेस और बोल्ड कपड़ों के लिए जाना जाता है और अब उसी दशक के फैशन स्टाइल रैंप और डेली वेयर कपड़ों में वापसी कर रहा है. विशेषज्ञों का कहना है कि बेल बौटम से लेकर कस्टमाइज जैकेट तक एक बार फिर से प्रचलन में आ रहे हैं.

1980 के कुछ फैशन ट्रेंड को अपनाकर आप 2017 में स्टाइल आइकौन बन छा सकती हैं.

– 1980 के दशक का पसंदीदा बेलबौटम पीस एक्सट्रा फ्लेयर वाला था, लेकिन 2017 में वे सीमित फ्लेयर के साथ है. गंजी या क्रौप टौप के साथ बेलबौटम पहनने से आपके कपड़ों को बेहतरीन लुक मिलेगा. आप इसके साथ संदेश लिखा कोई टी-शर्ट भी पहन सकती हैं.

– 1980 के दशक में हिपस्टर लुक के लिए लेदर या डेनिम जैकेट पर ब्रोच, बैज या पिन लगाना काफी प्रचलन में था, यह स्टाइल सिर्फ महिलाओं तक ही सीमित नहीं था, बल्कि पुरुष भी इसे अपनाते थे.

– 1980 के दशक में सुपर मिरर सनग्लासेस से लेकर आकार में बड़े गोल ग्लेयर वाले ग्लासेस काफी चलन में थे. इनकी अब फिर से वापसी हो रही है.

– इस दशक में चमकीले सितारों और मनकों के काम वाले ड्रेस, टौप काफी चलन में थे. काले डेनिम या शौर्ट के साथ सिक्विन टौप पहनने से आपका लुक देखने में रौकस्टार जैसा लगेगा.

– पिछले कुछ सालों से चलन में रहने वाली लाल रंग की लिपस्टिक 1980 के दशक के फैशन स्टेटमेंट की ही देन है. प्लेन काले या सफेद रंग के ड्रेस के साथ होठों पर लाल रंग की लिपस्टिक लगाएं, इससे आपके चेहरे को भड़कदार लुक मिलेगा.

– आप आंखों में विंग स्टाइल में काजल या आईलाइनर लगाएं, जिससे आप देखने में बहुत सुंदर लगेंगी. विंग स्टाइल में काजल या आईलाइनर भी 1980 के दशक में खासा प्रचलन में था.

जगजीत सिंह की जिंदगी के वो शरारती दिन

गजल के बादशाह जगजीत सिंह को भला कौन नहीं जानता. उनकी गजलों ने और उनकी जिंदगी ने ना जाने कितनों को जीने का सही मायना दिया है. जगजीत सिंह की जिंदगी में बहुत कुछ ऐसा घटा था जिसे वे अपने अंदर समेटे रहते, मगर किसी को वो इस बात का एहसास तक नहीं होने देते. लोग उनकी इन तकलीफों का अंदाजा उनकी गायकी और मुस्कुराते चेहरे को देख लगा ही लेते थे.

एक बार एक इंटरव्यू में जब उनसे उनकी जिंदगी बारें में पूछा गया तो उनका कहना था, कि मै बाहर से जो हूं वो तो हूं लेकिन अंदर क्या हूं मै क्यों दिखाऊं किसी को. बौलीवुड में लोग उन्हें गजल किंग कहकर पुकारा करते थे.

वैसे जगजीत सिंह के जीवन की कुछ रोचक घटनाएं भी हैं, जिसके बारे जानकर शायद आपको यकीन नही होगा. उनके जीवन की कुछ आदतें ऐसी थी जो उनके जीवन के शरारती हिस्से को बयां करती हैं. गजल गीत संग रमे ढले जगजीत नकल और चोरी करने में भी उस्ताद थे. रुपए चुरा कर खूब फिल्में देखते और गाने सुनते थे. परीक्षाएं सर पर होतीं तो नकल करते और दूसरों को भी कराते. जगजीत ने ये मजेदार किस्से खुद बताए थे.

एक टीवी इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि वह रुपए चुराकर फिल्म देखने जाते थे. फिल्मों में अच्छे गाने आते थे. वह उन्हें सीखने जाते थे. कई बार चौकीदार को रिश्वत भी देते. फटी टिकट के दो टुकड़े जोड़ लेते थे और लोगों को बेवकूफ बना कर उसी से वो सिनेमा हौल में एंट्री करते थे. मां बाजार से सामान लाने को जो रुपए देती तो रुपए की हेराफेरी भी करते, उन रुपयों से रसगुल्ला खाते थे और चाय पीते थे.

उनकी पढ़ाई लिखाई में कोई खास दिलचस्पी नहीं थी. इम्तिहान नजदीक आते तो पास होने के लिए नकल करते. दूसरों को भी कराते थे. एक बार एग्जाम हौल में नकल मारते हुए पकड़े गए जगजीत सिंह को इंस्पेक्टर (फ्लाइंग स्काउट) आया, तो वह उन लोगों को दूसरे कमरे में ले गया. वहां उस औफिसर ने  बोला अब आराम से नकल मारिए आप लोग यहां.

पत्नी चित्रा के घर के सामने साइकिल में गड़बड़ी के वाकये पर सवाल किया गया तो उन्होंने कहा कि हां हमेशा उसी लड़की के घर के बाहर उनकी साइकिल पंचर होती थी. उनका कहना था कि वह अपने घर के बाहर कीले बिछा कर रखती थीं. ऐसे ही एक बार पकड़े जाने पर लड़की के पिता ने जगजीत सिंह को उनके पिता के पास ले जाकर शिकायत भी की और कहा कि आपके लड़के की साइकिल जरा ठीक करा दीजिए, क्योंकि रोज मेरे घर के बाहर इसकी साइकिल की चैन उतर जाती है.

आज जगजीत सिंह हमारे बीच नहीं रहें, लेकिन उनकी गजलों और गायकी को लोग आज भी उसी अंदाज में याद करते हैं जैसे पहले किया करते थे.

औनलाइन शौपिंग के दौरान रखें इन 6 बातों का ध्यान

आज के जमाने में ई कौमर्स बाजार में औनलाइन खरीदारी का ट्रेंड बढ़ता जा रहा है. ऐसे में अगर आपको भी औनलाइन शौपिंग का शौक है तो समझदारी और सावधानी दोनों जरूरी हैं. शौपिंग शुरू करने से पहले याद रखिए कि कंप्यूटर में एंटी वायरस जरूर होना चाहिए.

इसके साथ ही आइए जानते हैं औनलाइन शौपिंग के दौरान हमेशा याद रखने वाली 6 बातें जो आपको किसी भी तरह की धोखाधड़ी से बचाएंगी  

अनजान साइट से शौपिंग ना करें

औनलाइन खरीदारी के समय इंटरनेट सिक्युरिटी बेहद जरूरी है. इसका मतलब यह है कि आप हमेशा किसी भरोसे वाली साइट से ही खरीदारी करें. अगर आप किसी अनजान साइट से पेमेंट करती हैं तो हो सकता है कि आपका एकाउंट कुछ ही घंटों में साइबर क्राइम के घेरे में आकर खाली हो जाए. वहीं अनजान साइट से शौपिंग करने पर आप इस रकम को क्लेम भी नहीं कर पाएंगी.

http और https का फर्क समझें

अगर आप औनलाइन शौपिंग कर रही हैं तो सबसे पहले ध्यान रखें कि जिस वेबसाइट से सामान खरीद रही हैं, उसके एड्रेस में https हो, नाकि http. यहां इस जुड़े ‘S’ का मतलब सिक्योरिटी की गारंटी से होता है. इसका मतलब है कि यह साइट फेक नहीं है. हालांकि कभी कभी यह ‘S’ लेटर वेबसाइट में तब जुड़ता है जब बारी औनलाइन पेमेंट करने की आती है.

वेबसाइट की जानकारी चेक करें

हमेशा यह चेक करें कि जहां से आप सामान खरीद रहीं हैं उसका पता, फोन नंबर और ईमेल एड्रेस वेबसाइट पर लिखा ही हो. जहां धोखाधड़ी की गुंजाइश होती है वहीं अक्सर जानकारी छिपाई जाती है.

पेमेंट सिस्टम

इसके अलावा एक और बात ध्यान दी जाने वाली है वो ये कि क्या आप वेबसाइट के पेमेंट सिस्टम में वेरीफ़ाइड बाइ वीज़ा या मास्टरकार्ड सिक्योरकोड के ज़रिए पेमेंट कर सकती हैं. इसका जवाब हमेशा हां होना चाहिए क्योंकि यह धोखाधड़ी से आपको बचाने में मदद करता है. अगर इन सब जांच परख के बाद आप संतुष्ट हैं तभी खरीदारी करें.

कंपनी की शर्तों को अच्छे से समझें

अक्सर ऐसा होता है कि कंपनियां 500 रुपये से ज्यादा की खरीदारी पर फ्री डिलिवरी का औफर देती हैं. कस्टमर को भी यह काफी सुविधाजनक लगता है. लेकिन कभी कभी फ्री डिलिवरी के साथ ही कुछ शर्तें भी लिखी रहती हैं जिन पर ग्राहक ध्यान नहीं देते और इस वजह से बाद में उनको अतिरिक्त कीमत चुकानी पड़ती है. ये वो चार्ज होते हैं जो कस्टमर को लुभाने के लिए शुरू में बताए ही नहीं जाते.

 सामान को तुरंत चेक करें

कई बार ऐसे मामले सामने आए है जिनमें कंपनियों की खूब धांधली देखने को मिलती है. कई लोग अपना और्डर खोल के देखते है तो उसमें पुरानी चीजें या फिर दी गई जानकारी से हटकर घटिया स्तर का सामान मिलता है. इसलिए सामान को डिलीवरी ब्वाय के सामने ही चेक करें. अगर कुछ गड़बड़ी लगे तो उसी के सामने ही सामान की तस्वीर ले लें. ऐसे में रकम क्लेम करने में आसानी होगी.

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