‘कुछ ऐसा करो कि लोग आप को आप के काम से जानें’

जहां लोग अपने बच्चों को दो वक्त की रोटी नहीं दे पाते, वहीं सुशीला सिंह 20 सालों से लगातार कई अनाथ बच्चियों को खूबसूरत जिंदगी दे रही हैं. सुशीला के द्वारा किया जा रहा यह काम सराहनीय है.

यों शुरू हुआ कारवां

सुशीला बताती हैं कि बचपन से समाजसेवा की ओर मेरा रुझान रहा है. बहुत छोटी उम्र में मैं अपने घर (राजस्थान) से एक मिशनरी के साथ इंदौर, मुंबई जैसे शहरों में समाजसेवा करने आई थी. एक संस्था के अंतर्गत काम करते हुए मैं ने कई केसेज देखे, जो इनसानियत को शर्मसार करने वाले थे. रैड लाइट एरिया में महिलाओं, नाबालिग और मासूम बच्चियों के साथ बदसलूकी की जा रही थी. स्ट्रीटगर्ल्स की जिंदगी दरिंदों ने बदतर बना दी थी. हालांकि अपराधियों को हम ने सलाखों के पीछे पहुंचवा दिया. लेकिन मन में एक सवाल टीस बन कर चुभता कि शाम 5 बजे हमारे घर लौट जाने के बाद इन बच्चियों का क्या होगा? बारबार सिर उठाते इस सवाल ने मुझे संस्था की स्थापना करने पर मजबूर कर दिया.

मुंबई में अपने बसेबसाए घर को छोड़ कर मैं पति के साथ ठाणे के उत्तन गांव में आ बसी और 1996 में 4 अनाथ बच्चियों के साथ मैं ने ‘आमचा घर’ संस्था की स्थापना की.

आसान नहीं थी राह

अपने संघर्ष के बारे में सुशीला ने बताया कि संस्था की स्थापना तो कर दी, लेकिन इसे चलाने के लिए पैसे नहीं थे. तब महसूस हुआ कि पैसा हार्डवर्क और डैडिकेशन से भी बड़ा होता है. शुरुआत में मेरे पति ने काफी मदद की. परिवार वाले ताने देते ‘लोग पैसा कमाते हैं तुम गवां रही हो, पागल हो गई हो’ लेकिन मैं पीछे नहीं हटी.

स्कूल में बच्चियों के दाखिले के लिए कुछ संस्थाएं मदद के लिए आगे आईं, पर वे चाहते थे कि बच्चियां मराठी माध्यम से पढे़ं, जबकि मैं उन्हें अंगरेजी माध्यम से पढ़ाना चाहती थी. मैं खुद हिंदी माध्यम से पढ़ी थी. गांव में मैं बकरियां चराया करती थी और मेरी मां बकरियों का दूध बेच कर मेरी फीस भरती थीं. मुंबई आने पर मुझे महसूस हुआ कि अंगरेजी आना जरूरी है. मेरे मन में बस यही खयाल आता कि अगर ये मेरे अपने बच्चे होते, तो क्या मैं इन्हें सिर्फ मराठी माध्यम से पढ़ाती? एक बात यह भी थी कि इन बच्चियों पर पहले से अनाथ की मुहर लगी थी.

गर्व महसूस होता है

अपने काम पर सुशीला को गर्व है. वे कहती हैं कि रैड लाइट एरिया में कार्यरत महिलाएं जो एड्स की वजह से मर गईं, उन के बच्चों को भी ‘आमचा घर’ ने पनाह दी. धीरेधीरे बच्चियों की संख्या बढ़ने लगी. बाहर के स्कूलों में पढ़ाना बहुत मुश्किल हो रहा था, इसलिए लोन ले कर मैं ने ‘आमचा घर’ स्कूल खोला, जहां पढ़ाई के साथसाथ बच्चियों को कंप्यूटर ट्रेनिंग और कराटे भी सिखाए जाते है. मेरे सारे बच्चे अंगरेजी में बात करते हैं. कई बच्चे आज हाई पोस्ट पर कार्यरत हैं. कुछ शादी कर के सैटल हो गई हैं. मेरे 20 साल के अनुभव में मेरा एक भी बच्चा गलत राह पर नहीं गया है.

मैं अपने बच्चों से यही कहती हूं कि मैं ने अपना सब कुछ छोड़ कर समाजसेवा की, आप भी कुछ ऐसा करो कि लोग आप को आप के काम से जानें.

बेचारे नहीं मेरे बच्चे

सुशीला कहती हैं कि मेरे बच्चे कहीं से भी बेचारे नहीं लगते, क्योंकि कोई जना अगर दोनों संस्थाओं को 500-500 देता है, तो कुछ संस्था बच्चों पर 250 खर्च करती है, लेकिन मैं पूरे 500 बच्चों पर खर्च करती हूं, जिस से बच्चों में काफी सुधार देखने को मिलता है, जबकि बाकी बच्चे आज भी बेचारे नजर आते हैं, इसलिए उन्हें ज्यादा डोनेशन दिया जाता है.

अपनी निजी जिंदगी के बारे में बात करते हुए सुशीला कहती हैं कि हालांकि मैं ने अपनी पूरी जिंदगी ‘आमचा घर’ के बच्चों को समर्पित कर दी है, लेकिन इस बीच मैं अपनी पारिवारिक जिम्मेदारी निभाने के लिए भी वक्त निकालती हूं.

जीवन का सहारा

अपने काम से फ्री होने के बाद मैं अपने पति के साथ क्वालिटी टाइम बिताना नहीं भूलती. मैं उन के साथ दिन भर में हुई सारी बातें शेयर करती हूं. इस दौरान हम नईनई योजनाएं भी बनाते हैं, जैसे छुट्टियों में हम कहां घूमने जाएंगे इत्यादि.

जब अपने ससुराल जाती हूं, तो बहू की सारी जिम्मेदारी निभाती हूं और जब अपने मायके राजस्थान में होती हूं, तो घर की छोटी बेटी बन जाती हूं. मैं अपनी निजी जिंदगी और अपने काम को अलगअलग रखती हूं.

मेरा मानना है कि परिवार के सहयोग के बिना किसी भी काम में सफलता पाना दुश्वार हो जाता है.

अपने कठिन फैसले के बारे में बताते हुए सुशीला कहती हैं कि हम ने तय किया था कि हम अपनी संतान पैदा नहीं करेंगे. इन्हीं बच्चियों की परवरिश करेंगे. मुझे कभी इस बात का एहसास नहीं हुआ कि ये हमारे अपने बच्चे नहीं हैं.

आज भी जब मुसीबत आती है, तो ये बच्चियां ससुराल छोड़ कर आ जाती हैं. इन से मैं ने यह जाना है कि जरूरी नहीं है कि आप का अपना बच्चा, आप का खून ही आप को संभाले. ऐसे बच्चे भी जीवन का सहारा बन सकते हैं.

स्टाइलिश पोशाक के साथ लौंच हुई वोल्वो एस 90

फैशन और लक्ज़री दोनों साथ-साथ चलते हैं, इसी बात को ध्यान में रखते हुए पिछले दिनों मुंबई में लक्ज़री कार वोल्वो एस 90 का लौंच डिज़ाइनर अबू जानी और संदीप खोसला के स्टाइलिश पोशाक के साथ किया गया. आजकल भारत में लोगों का रुझान नई और लक्ज़री कारों की ओर अधिक बढ़ रहा है. यह गाड़ी दुनिया की सबसे आकर्षक और सुरक्षित लक्ज़री कार है.

कोमल नापा लेदर से बनी इसकी सीटें वेंटिलेटेड है, जिसे अपनी इच्छानुसार गर्म और ठंडा किया जा सकता है. इसके अलावा विंटेज लुक को लेकर इसे नया रूप दिया गया है. इस कार की खासियत यह है कि गाड़ी चलाने वाले और बैठने वाले दोनों ही इसमें सफ़र कर सुकून अनुभव करते है.

इस अवसर पर वोल्वो ऑटो इंडिया के मैनेजिंग डायरेक्टर टॉम वोन बोन्सडोर्फ़ने कहा कि फैशन का कार से सीधा संबंध होता है. लक्ज़री कार के साथ अगर फैशन भी वैसा ही हो, तो उसकी खूबसूरती और बढ़ जाती है. अबू जानी और संदीप खोसला के कपड़ों ने यह सिद्ध कर दिया कि एक अच्छी गाड़ी के साथ एक स्टाइलिश ड्रेस, इसे और भी आकर्षक बनाती है.

 

उमर अब्दुल्ला पर कानूनी फंदा

यह सितंबर, 2011 की बात है जब जम्मूकश्मीर के तत्कालीन मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने ट्वीट कर यह स्वीकारा था कि उन के और उन की पत्नी पायल अब्दुल्ला के बीच अलगाव हो चुका है. लेकिन यह उन का व्यक्तिगत मामला है, इसलिए गुजारिश है कि लोग और मीडिया उन की निजता का ध्यान रखने का कष्ट करें.

सितंबर, 2016 तक झेलम का कितना पानी बह चुका, यह कोई नहीं नाप सकता, लेकिन ठीक 5 साल बाद उमर अब्दुल्ला और पायल के बीच कुछ खास नहीं रह गया था. जब पायल ने दिल्ली की एक अदालत में एक अर्जी दाखिल करते हुए अपने पति से बतौर गुजाराभत्ता क्व15 लाख महीने की मांग की. उस से पहले दिल्ली की ही अरुण कुमार आर्य की अदालत ने उमर अब्दुल्ला द्वारा दायर तलाक की अर्जी खारिज करते हुए कहा था कि वादी उमर ऐसी एक भी स्थिति दिखाने में नाकाम रहे हैं, जिस में प्रतिवादी पायल के साथ संबंध बनाए रखना उन के लिए असंभव हो रहा हो.

कलह और मतभेद

उमर अब्दुल्ला ने अपने वाद पक्ष में यह दावा किया था कि 2007 से उन के और उन की पत्नी के बीच किसी तरह के संबंध नहीं हैं. 1 सितंबर, 1994 को शादी करने के बाद वे दोनों 2009 से अलग रह रहे हैं. इन के 2 बेटे हैं जो मां के साथ रहते हैं. इस फैसले के खिलाफ उमर ने हाई कोर्ट में अपील की और पायल ने गुजाराभत्ते का दावा ठोंक दिया, जिस की बाबत अपनी बात रखने के लिए अदालत ने उमर अब्दुल्ला को 27 अक्तूबर की तारीख दी.

अब तक ये पतिपत्नी दोनों एकदूसरे पर आरोपप्रत्यारोप से खुद को यथा संभव बचाते रहे हैं लेकिन अब लगता है कि पानी सिर से गुजर चुका है और होगा वही जो तलाक के आम मुकदमों में होता है. एक अदालत ही है जहां जा कर अच्छेअच्छों की सारी ठसक और समझदारी हवा हो जाती है और वे सीधेसीधे सच और झूठ दोनों बोलने को मजबूर हो जाते हैं कि यह नकचढ़ी है, जिद्दी है, मेरे साथ नहीं रहती. उधर पत्नी कहती है कि इन के पास मेरे लिए वक्त नहीं होता. ये भी कम कू्रर नहीं हैं.

तब कहीं जा कर अदालत मानती है कि वाकई अब कलह और मतभेदों के चलते पतिपत्नी साथ नहीं रह सकते. लिहाजा, कुछ शर्तों पर तलाक की डिक्री दे दी जाए. ये शर्तें आमतौर पर यही होती हैं कि पतिपत्नी को अपनी हैसियत के मुताबिक इतना गुजाराभत्ता देगा और महीने में 1 दिन बच्चों से मिल सकेगा वगैरहवगैरह.

प्यार से अलगाव तक

उमर अब्दुल्ला का नाम किसी पहचान का मुहताज नहीं, जिन के पिता फारूख अब्दुल्ला भी जम्मूकश्मीर के मुख्यमंत्री रह चुके हैं और उन के दादा शेख अब्दुल्ला की भी घाटी में खासी पूछ थी. अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद उमर ने दिल्ली के नामी ओबेराय होटल में नौकरी कर ली.

यहां पायल नाम की खूबसूरत युवती भी नौकरी करती थी जिस के रहने का अपना एक खास अंदाज था. पायल मूलतया सिख हैं और उन के पिता मेजर जनरल रामनाथ सेना से सेवानिवृत्त हुए थे. तब इन दोनों ने जवानी की दहलीज में पहला कदम रखा था. होटल में जानपहचान हुई जो प्यार में और फिर प्यार शादी में तबदील हो गया.

उमर की पारिवारिक पृष्ठभूमि के लिहाज से यह कतई हैरत की बात नहीं थी, क्योंकि उन के पिता ने भी इसी तरह अंतरधर्मीय शादी की थी. लेकिन बावजूद इस के फारूख अब्दुल्ला बेटे के इस फैसले से खुश नहीं थे. घाटी के मुसलमानों को भी यह शादी रास नहीं आई थी और कश्मीरी पंडितों ने भी इस पर भौंहें सिकोड़ी थीं.

लेकिन लव मैरिज करने वाले किसी की परवाह नहीं करते. शादी के बाद 4-5 साल तो रोमांस में गुजर गए. पायल उमर के साथ हर सामाजिक और राजनीतिक समारोह में नजर आईं. इसी दौरान उन के 2 बेटे जाहिद और जमीर हुए. पायल दिल्ली में ही रह कर अपना ट्रैवलिंग का कारोबार संभालने लगीं.

फिर शुरू हुई खटपट. वजह उमर का राजनीति में सक्रिय होना था जो उन्हें विरासत में मिली थी. वे सांसद और केंद्रीय मंत्री भी बने और फिर 2008 में जम्मू कश्मीर में सब से कम उम्र के मुख्यमंत्री बने.

मुकदमेबाजी का दौर

2008-09 के चुनाव में उन की पार्टी नैशनल कौंफ्रैंस को सब से ज्यादा सीटें मिली थीं. कांग्रेस से उस का गठबंधन था. एक मुख्यमंत्री की अपनी व्यस्तताएं और जिम्मेदारियां होती हैं और वह राज्य अगर जम्मू कश्मीर हो तो वे और बढ़ जाती हैं. इस के बाद भी उमर बीवीबच्चों से मिलने दिल्ली आते रहते थे. अब तक पायल पति को मिले सरकारी आवास में रहने चली गई थीं. उन्हें व बेटों को जेड श्रेणी की सुरक्षा मिली हुई थी. उमर को आवंटित दिल्ली के अकबर रोड के टाइप 8 आवास में वे बीते अगस्त तक रहीं. 2014 का चुनाव नैशनल कौंफ्रैंस हारी तो विरोधियों की नजर इसे ले कर तिरछी होने लगी. नतीजतन, पायल पर इसे खाली करने के लिए दबाव बढ़ने लगा और फिर भारी विवाद के चलते अदालती आदेश पर उन्हें बेइज्जत हो कर इसे खाली करना पड़ा.

फिर जो मुकदमेबाजी का दौर चला तो नतीजा सामने है कि उमर अब्दुल्ला एक बेबस पति की तरह कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं, जिस में तलाक मिल भी जाए तो उन की दांपत्य की कसक कायम रहेगी और आम पतियों की तरह वे यह सोचने से मजबूर होंगे कि आखिर पायल से शादी कर उन्हें मिला क्या?

मिला भी तो क्या

इन दोनों के विवाद और फसाद की जड़ में किस की कितनी गलती है, इस का बहुत छोटा हिस्सा ही अदालत में सामने आ पाएगा, लेकिन सोचने वाली बात यह है कि आखिरकार उमर को मिला क्या और उन की गलती क्या है?

उमर दरअसल कानून के साथसाथ पत्नी की ज्यादतियों के भी शिकार रहे हैं. उन की मानें तो 8-9 सालों से कोई सुख उन्हें बीवीबच्चों का नहीं मिल रहा. पायल अपनी मरजी से अलग दिल्ली में रहीं और बच्चों को भी साथ रखा. उन का सारा खर्च उमर उठाते रहे और आगे भी उठाने को बाध्य रहेंगे.

जब पत्नी साथ नहीं रह रही तो पति क्यों उस का आर्थिक बोझ उठाए, यह बात विवाद की है. वह अलग रहते पति को कोई शारीरिक, पारिवारिक, भावनात्मक या सामाजिक सुख नहीं देती और खुद सुकून से पति के पैसों पर विलासी जिंदगी जीती है. यही जिंदगी जीते रहने के लिए पायल ने 15 लाख महीना उमर से मांगे हैं, जिन में 10 लाख खर्चे के और 5 लाख मकान के लिए बताए गए हैं.

पतिपत्नी के विवादों की तरह अब 2 मुकदमे समानांतर चल रहे हैं. इधर निचली अदालत ने उमर की तलाक की अर्जी खारिज करते हुए उन की मुसीबतें और बढ़ा दी हैं तो पायल ने भी मौका पा कर भारीभरकम रकम मांग डाली, जबकि 2011 में हवा यह उड़ी थी कि इन दोनों का तलाक परस्पर सहमति से हो चुका है और उमर एक टीवी ऐंकर से शादी करने जा रहे हैं, पर यह कोरी अफवाह थी.

इस विवाद का असर उमर के राजनीतिक जीवन और आत्मविश्वास पर साफ दिख रहा है. घाटी के हालात हिंसक हैं, जिन्हें प्रभावी तरीके से वे पार्टी के हित में नहीं भुना पा रहे हैं. हालांकि अपनी मौजूदगी बनाए रखने के लिए मुख्यमंत्री महबूबा सईद और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर हमले करते रहे हैं. लेकिन उन में वह धार नहीं दिखती जो विपक्ष के एक नेता में इस नाजुक मौके पर होनी चाहिए.

गलती किस की

पायल जैसी महत्त्वाकांक्षी मध्यवर्गीय युवतियां राजनीति नहीं समझतीं तो न समझें पर पति की बेचारगी और तनहाई पर भी उन्हें कोई तरस नहीं आता. पायल की खुदगर्जी भी साफ दिख रही है कि वह अगर आसानी से तलाक ले लेगी तो उस से वे सारी सुविधाएं छिन जाएंगी जो पति की वजह से उसे मिली हुई हैं. इन में जेड सुरक्षा भी शामिल है.

मुकदमों का फैसला होने तक उमर अब्दुल्ला दूसरी शादी भी नहीं कर सकते, क्योंकि यह भी कानूनन जुर्म होगा, तो सहज सोचने वाली बात है कि एक पति जिसे पत्नी से कुछ नहीं मिल रहा, जो अपने बच्चों को गले से नहीं लगा सकता और पत्नी के गुजारे के लिए भी खर्चा देने को बाध्य होता है उसे आखिरकार मिलता क्या है और उस की गलती क्या एक पति होना भर रहती है?

पब्लिक रोती रहे सरकार को क्या

देश के सारे शहर पटरियों पर लगने वाली दुकानों और खाने के ढाबों से परेशान हैं. कुछ शहरों में तो बेहद भीड़भाड़ वाले इलाके में पहले तो दुकानदार अपना सामान दुकान से निकाल कर 5-7 फुट तक पटरी पर सजा देते हैं और फिर उस के आगे जगह बचती है तो असली पटरी वाले दुकानें लगा लेते हैं. कहीं भी एक बार दुकान लग गई और 4-5 दिन चल गई तो इस जगह पर परमानैंट कब्जा समझिए, चाहे उस से गंद फैले, ट्रैफिक रुके, सड़क पर चलने को मजबूर होना पड़े.

आम संभ्रांत मध्यवर्गीय शहरी इन पटरी वालों को जम कर कोसता है और इन्हें राजनीतिबाजों और पुलिस वालों की देन समझता है. औरत किट्टी पार्टियों में और आदमी ग्रुपों में इन पर हल्ला मचाते रहते हैं और लगता है कि मानो इतने विरोध के बावजूद सरकार के कानों में जूं तक नहीं रेंगती.

सरकार सुने या न सुने, पहली बात तो यह समझ लेनी चाहिए कि पटरी की दुकानें चलती तभी हैं जब वहां बिक्री हो. इसलिए दोषी दुकानदार नहीं, खरीददार हैं, जो इन से सामान खरीदते हैं और इन्हें दानापानी देते हैं. लंबी गाडि़यों में चलने वाले अकसर इन पटरी दुकानों से ड्राइव इन शौपिंग करते नजर आ सकते हैं और इस दौरान जहां वे दुकानदार से ज्यादा पैसे दे कर सामान खरीदते हैं, क्योंकि यह सुविधाजनक है, वहीं वे सड़क पर ट्रैफिक रोकते समय यह भूल जाते हैं कि चाय की चुसकियों के समय वे ही पौलीटिशियनों और अफसरों को गालियां देते हैं.

पटरियों पर दुकानें इस वजह से भी पनप रही हैं कि हर शहर में गांवोंकसबों से आने वाले फटेहाल से लोगों की गिनती बढ़ रही है, जिन्हें बड़ी दुकानों और एअरकंडीशंड मौलों में जाने में हिचक होती है.

शहरों को जिंदा रखने के लिए करोड़ों लोग गांव छोड़ कर शहरों में छोटेमोटे काम करने आ रहे हैं और वहां झोंपडि़यों और छोटे मकानों में ठुंसठुंस कर रह रहे हैं. उन्हें सामान तो चाहिए पर सामान किस ब्रैंड का और किस क्वालिटी का है, इस से उन्हें कोई मतलब नहीं. उन्हें सामान मुहैया कराना दुकानों के बस का नहीं, क्योंकि शहरों में दुकानों की कीमतें बेहद बढ़ गई हैं और जहां खाली जगह मिले वहीं बनी दुकानें ही उन्हें सामान दे सकती हैं.

दुकानदार भी बहुत होते हैं, क्योंकि ज्यादातर के पास कोई हुनर होता ही नहीं. वे थोक बाजार से सामान ले कर पटरी पर बेचते हैं और एक ही सामान 1 मील की दूरी पर 20-25 पटरी दुकानों पर मिल जाएगा. जब तक शहरों के प्रबंधक दुकानों का प्रबंध न करेंगे, पटरी दुकानें लगेंगी ही. यह साफसुथरी सड़क पर चाहे कब्जा हो, इस का कोई सरल उपाय नहीं है.   

 

भारत के प्रसिद्ध मछलीघर

भारत में जानवरों और पक्षियों के लिए कई खुले और संरक्षित क्षेत्र मौजूद हैं. चिड़ियाघरों, राष्ट्रीय उद्यानों और अभ्यारण्यों के साथ-साथ मछलीघर और सर्प उद्यान जैसे क्षेत्रों में विलुप्त होते जा रहे प्रजातियों को संरक्षित किया जाता है.

भारत में कई ऐसे मछलीघर स्थित हैं जहां जल जीवों को संरक्षित रखा गया है. हालांकि इस काम को बनाये रखना बहुत ही मुश्किल है, फिर भी कई संगठनों ने इस शानदार काम के जरिये जलीय जीवन को भोजन प्रदान कर उनके लिए उचित वास बनाया है. पर्यटकों का आकर्षक स्थल होने के साथ-साथ कई मछलीघर ऐसे भी हैं जो इन जलीय जीवों को बेचते हैं और इसके लिए उन्हें पर्याप्त खरीददार भी मिल जाते हैं.

चलिए आज हम ऐसे ही कुछ भारत में सबसे प्रसिद्ध मछलीघरों की सैर पर चल जलीय जीवन का लुफ्त उठाते हैं.

बाग-ए-बहु एक्वेरियम, जम्मू

जम्मु का बाग-ए-बहु एक्वेरियम भारत का सबसे बड़ा भूमिगत मछलीघर है. मछली के आकार वाले प्रवेश द्वारा के अंदर घुसते ही आपको विदेशी मछलियों की कई सुन्दर प्रजातियां देखने को मिलेंगी जो आपकी आंखों में एक नई चमक लेकर आएगी. पहाड़ की चोटी पर स्थित इस मछलीघर के आसपास का नजारा भी बहुत ही खूबसूरत है.

तारापोरवाला एक्वेरियम, मुंबई

मुंबई का तारापोरवाला एक्वेरियम भारत का सबसे पुराना मछलीघर है. मरीन ड्राइव के पास ही स्थित होने की वजह से यहां कई समुद्री और ताजे पानी की मछलियां आती हैं. इस मछलीघर में एक खास पूल बना हुआ है जहां दर्शक इन मछलियों को छू कर इनका अनुभव कर  सकते हैं और यह मछलियों को हानि भी नहीं पहुंचाता. यहां मछलियों के 400 से अधिक प्रजातियां हैं.

सरकारी मछलीघर, बेंगलुरु

बेंगलुरु का सरकारी मछलीघर, बैंगलोर मछलीघर के नाम से भी जाना जाता है. यह भारत का दूसरा सबसे बड़ा मछलीघर है. शहर में स्थित कब्बन उद्यान के प्रवेश द्वार में ही स्थित यह मछलीघर कृषि योग्य मछलियों और सजावटी मछलियों की विशाल विविधता का वास स्थल है.

सी वर्ल्ड एक्वेरियम, रामेश्वरम

रामेश्वरम बस स्टैंड के विपरीत ही स्थित सी वर्ल्ड एक्वेरियम रामेश्वरम के प्रसिद्ध आकर्षणों में से एक है जिसे देखना आप मिस न करें. यह समुद्री मछलीघर अपने तरह का इकलौता मछलीघर है जहां आप समुद्री जीवन को देख एक अलग और नए अनुभव का आनंद ले सकेंगे.

मरीना पार्क एंड एक्वेरियम, पोर्ट ब्लेयर

अंडमान निकोबार द्वीप के अनेक आकर्षणों में से यह मछलीघर भी एक है. संग्रहालय की तरह यहां कई मछलियों को संरक्षित कर रासायनिक घोलों में रखा गया है. अगर आप जलीय जीवन के बारे में ज्यादा जानना चाहते हैं तो भारतीय नौसैनिकों द्वारा संरक्षित इस मछलीघर की यात्रा करना न भूलें.

‘‘मेरी मरजी के बिना मुझे कोई छुए यह पसंद नहीं’’

मेघालय की राजधानी शिलौंग की रहने वाली 24 वर्षीय एंड्रिया तरियंग ने फिल्म ‘पिंक’ से डेब्यू किया. इस से पहले वे मौडल और सिंगर रह चुकी हैं. फिल्मों में आने की उन की कोई इच्छा नहीं थी. वे सिंगर बनना चाहती थीं. सुजीत सरकार की स्क्रिप्ट उन्हें इतनी पसंद आई कि उन्होंने तुरंत हां कह दी. फिल्म का मिलना और उस में काम करना खास था.

एंड्रिया शिलौंग से डेढ़ साल पहले मुंबई आई थीं, मेकअप का काम सीखने. 5 महीने काम सीखा पर उस में खास मजा नहीं आया. फिर एक इवेंट मैनेजमेंट कंपनी के साथ 3 महीने इंटर्न के तौर पर काम किया. उस के बाद सोचा कि अब घर लौट जाएंगी. लेकिन इसी बीच उन के पिता का फोन आया कि क्या वह बौलीवुड फिल्म करना चाहती है? इस पर एंड्रिया ने पूछा वे ऐसा क्यों पूछ रहे हैं, क्योंकि न तो उन्हें हिंदी आती है, न ही बौलीवुड सर्कल से परिचित थीं लेकिन उन के कहने पर औडिशन के लिए गईं.

फिर उन की बड़ी बहन भी उन के साथ रहती हैं. उन्हें भी किसी ने इस फिल्म के औडिशन के लिए बुलाया था. इस तरह दोनों बहनें साथ गईं. मजेदार बात यह थी कि दोनों को ही पता नहीं था कि वे दोनों एक ही फिल्म के औडिशन के लिए जा रही हैं. फिर औडिशन हुआ और एंड्रिया को यह फिल्म मिल गई. पेश हैं, एंड्रिया से हुई बातचीत के कुछ अंश.

फिल्म ‘पिंक’ आप को कैसे प्रेरित करती है?

यह एक साहसी फिल्म है. इसे करने के बाद मैं ने सीखा है कि मुझे कैसे किसी परिस्थिति में खड़ा होना है, मैं कैसे खुद को सुरक्षा दूं और जिस बात पर मैं विश्वास करती हूं उस के लिए मैं कैसे लड़ूंगी?

अमिताभ बच्चन के साथ काम करने का अनुभव कैसा रहा?

मैं अपनेआप को गर्वित महसूस करती हूं. मुझे उन के साथ अभिनय करने में बड़ी सहजता महसूस हुई. जब मैं उन से मिलने उन के औफिस गई तो पूरी दीवार पर उन के अवार्ड देख कर चौंक गई. वे मुझे पूरापूरा सहयोग करते रहे. इस से काम करना और आसान हो गया.

इस फिल्म का चरित्र आप से कितना मिलता है?

यह चरित्र बिलकुल मेरे चरित्र जैसा है. फिल्म में मुझे वैसी ही दिखाया गया है जैसी मैं हूं. इसलिए मुझे किसी को कौपी नहीं करना पड़ा. केवल कोर्ट का दृश्य मेरे लिए अलग था, क्योंकि मैं ने कभी कोर्टकचहरी देखी नहीं है.

क्या रियल लाइफ में आप को कभी ऐसी स्थिति से गुजरना पड़ा?

हर महिला ऐसी स्थिति से गुजरती है. लोग राह चलते आप से बुरा व्यवहार करते हैं. मेरे साथ ऐसी 2 घटनाएं हुईं. मैं टीनएजर थी. एक शो में गाना गाने के बाद भीड़ में जा रही थी तभी एक व्यक्ति ने मुझे गलत जगह छुआ. मैं ने पलट कर उसे 2 थप्पड़ जड़ दिए. मुझे पसंद नहीं कि कोई मेरी मरजी के बगैर मुझे छुए. मेरा शरीर मेरा है. किसी को हक नहीं कि मेरे मरजी के बिना कोई उसे टच करे.

दूसरी घटना शाम के समय जब मैं अपनी बहन के साथ शिलौंग कुछ खरीदने जा रही थी तब की है. कुछ लोग वापस घर जा रहे थे. तभी अचानक एक ने मुझे पीछे से पकड़ लिया. मैं पीछे मुड़ी तो मेरा पैर उस की चप्पल पर पड़ा, जिस से वह गिर गया. मैं ने उसे खूब पीटा.

फिल्म मैं काम करने के बाद आप के जीवन में क्या बदलाव आया?

सब से पहले तो लोगों का रिस्पौंस बदल गया. मैं इस फिल्म के बाद घर गई. वहां हमारा एक स्कूल है. मेरे चाचा और स्कूल के बच्चे मुझे देख कर बहुत खुश हुए. उन्होंने इस फिल्म को देखा था. पूरा हौल शिलौंग में बुक किया गया था.

आप खुद को कैसे ऐक्सप्लेन करना चाहतीं हैं?

मैं एक शर्मीली और रिजर्व्ड लड़की हूं. मुझे गाना बहुत पसंद है. हर वक्त मैं गा सकती हूं. अब मुझे ऐक्टिंग भी पसंद है. मुझे दोस्तों से अधिक मिलना पसंद नहीं. मुझे बिल्ली पालना पसंद है.

कितनी फैशनेबल हैं और मेकअप कितना पसंद करती हैं?

मुझे आरामदायक पोशाकें अच्छी लगती हैं. हील्स कभी कभी पहनती हूं. इस फिल्म के बाद मुझे अच्छे कपड़े पहनने का शौक हो गया है, मुझे मेकअप बहुत पसंद नहीं है. इस फिल्म में मेरा मेकअप बहुत कम है. लेकिन मेकअप अच्छा लगता है. बाहर जाने पर मैं मेकअप करती हूं. मुझे शौपिंग पसंद नहीं.

नौर्थईस्ट के होने की वजह से आप को कोई समस्या आई?

कोई खास नहीं. लेकिन जिस से भी मैं मिलती थी, वही मुझे नेपाली या चाइनीज कहता था. यह बहुत गलत है.

किसे अपना आइडियल मानती हैं?

अपने पिता रुडिवाला को. इस के अलावा दादी को बहुत मानती हूं. मेरे पिता भारत के एकमात्र ब्लू गिटारिस्ट हैं. बचपन में ही मां की मौत के बाद उन्होंने ही हमें पाला है. वे मेरे सुपर हीरो, सुपर फादर हैं.

अब कटरीना ने बढ़ाई करण की मुश्किलें

बॉलीवुड डायरेक्टर करण जौहर की फिल्म ‘ऐ दिल है मुश्किल’ कई मुश्किलों के बाद 28 अक्टूबर को रिलीज तो हो गई है, लेकिन लगता है करण की मुश्किलें अभी खत्म नहीं हुई हैं.

दरअसल, करण अब धर्मा प्रोड्क्शन बैनर तले ‘रात बाकी’ बनाने की प्लैनिंग कर रहे हैं. इस फिल्म को आदित्य धर डायरेक्ट करने वाले हैं. इस फिल्म के लिए करण ने पहले कटरीना के अपोजिट फवाद खान को फाइनल किया था, लेकिन अब पाकिस्तानी कलाकारों के विरोध को देखते हुए करण, फवाद को फिल्म में ले नहीं सकते. इस कारण करण के सामने नए हीरो के चयन की मुश्किल खड़ी हो गई.

करण अब कटरीना के अपोजिट सिद्धार्थ मल्होत्रा को लेना चाहते हैं, लेकिन दोनों की फिल्म ‘बार बार देखो’ के बॉक्स ऑफिस पर बुरे हाल को देखते हुए वह सोच में पड़ गए हैं.

सूत्रों की मानें तो करण अपनी फिल्म की मुश्किलें कम करने के लिए कटरीना को फिल्म से निकाल सकते हैं. कटरीना के बारे में बात करें तो वह जल्द ही ‘जग्गा जासूस’ में नजर आने वाली हैं. फिल्म में उनके साथ रणबीर कपूर लीड रोल में हैं. फिल्म अगले साल रिलीज होगी.

करण संग काम करना चाहती हैं उर्वशी

अभिनेत्री उर्वशी रौतेला फिल्मकार करण जौहर के साथ काम करना चाहती हैं. अभिनेत्री के मुताबिक, “करण जौहर बेहद शानदार निर्देशक हैं. मैं करण के साथ काम करने का सपना देखती हूं.”

निर्देशक की हालिया रिलीज फिल्म ‘ऐ दिल है मुश्किल’ की तारीफ करते हुए अभिनेत्री ने कहा, “ऐ दिल है मुश्किल आज के दौर की फिल्म है. रणबीर कपूर ने बहुत अच्छा काम किया है. अनुष्का शर्मा सच में प्रतिभाशाली अभिनेत्री हैं. ऐश्वर्या राय बच्चन की भूमिका भले ही छोटी है, लेकिन वह हमेशा से एक प्रेरणा रही हैं.”

‘ऐ दिल है मुश्किल’ के साथ रिलीज हुई अजय देवगन की फिल्म ‘शिवाय’ के बारे में पूछे जाने पर उर्वशी ने कहा कि वह फिलहाल कोई टिप्पणी नहीं कर सकतीं, क्योंकि उन्होंने अभी तक फिल्म नहीं देखी है.

..इस बात से डरती हैं आलिया

अपनी आने वाली फिल्म ‘डियर जिंदगी’ की रिलीज के लिए तैयार अभिनेत्री आलिया भट्ट का कहना है कि असफलता का डर एक ऐसी चीज है जो उन्हें एक्टिव बनाए रखती है.

एक फैन ने आलिया से असफलता के डर के बारे में पूछा. इस पर आलिया ने कहा, “असफलता का डर मुझे काम में लगाए रखता है. तो, मैं इससे डरती हूं लेकिन यही मुझे इंसपायर करता है.”

ट्विटर पर एक फैन ने पूछा कि अपने खिलाफ बोलने वालों का वह किस तरह सामना करती हैं? इस पर उन्होंने कहा, “सभी को आपके बारे में विचार रखने का अधिकार है. इसलिए किसी का सामना करने की जरूरत नहीं है. आप पॉजिटिव रहें और खुद के बारे में जानें कि आप कैसे इंसान हैं. बस, इसी बात का महत्व है.”

गौरी शिंदे की निर्देशित ‘डियर जिंदगी’ में बॉलीवुड सुपरस्टार शाहरुख खान प्रमुख भूमिका में हैं. यह पहली बार होगा, जब आलिया 51 वर्षीय शाहरुख के साथ दिखाई देंगी. अभिनेत्री ने बताया कि उन्हें शाहरुख की ‘दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे’, ‘कुछ कुछ होता है’, ‘चक दे इंडिया’ और ‘डियर जिंदगी’ जैसी फिल्में पसंद हैं.

ऑनलाइन टर्म इंश्योरेंस खरीदने के फायदे

जीवन बीमा कराने का सबसे सरल तरीका टर्म इंश्योरेंस होता है. इसे किसी एजेंट से खरीदने की जरूरत नहीं होती है. तमाम जीवन बीमा कंपनियों के टर्म इंश्योरेंस ऑनलाइन उपलब्ध रहते हैं, इसलिए जीवन बीमा प्रोडक्ट की खरीदारी ऑनलाइन करना ज्यादा फायदेमंद रहता है. ऑनलाइन माध्यम के जरिए ग्राहक एक क्लिक में किसी भी समय दुनिया की किसी भी जगह से पॉलिसी खरीद सकते हैं. ऑनलाइन पॉलिसी खरीदने से पहले प्रोडक्ट को अच्छे से समझ लेना जरूरी होता है. साथ ही आपको पूरी रिसर्च करनी चाहिए कि यह आपकी जरूरतों के अनुरूप है या नहीं.

जानिए टर्म इंश्योनरेंस कंपनियों की वेबसाइट से ही लेना क्यों है फायदेमंद

– ऑनलाइन माध्यम से जीवन बीमा कंपनियों के खर्चे बचते हैं. इससे एजेंट के कमीशन और डिस्ट्रीब्यूशन खर्च की बचत होती है. इस बचत का लाभ कंपनियां ऑनलाइन ग्राहकों को देती है. यह पूरी प्रक्रिया वर्चुअल और पेपरलैस होती है जिस वजह से यह सस्ती हो जाती है. ऑनलाइन पॉलिसी खरीदने का सबसे बड़ा फायदा यह होता है कि ग्राहकों को किसी पर भी निर्भर रहने की जरूरत नहीं होती है.

– ध्यान रखें कि कोई भी एजेंट कभी भी ऑनलाइन टर्म इंश्योरेंस लेने की सलाह नहीं देगा ऐसा इसलिए क्योंकि उस पर कमीशन सबसे कम होता है. किसी एजेंट के जरिए टर्म इंश्योरेंस खरीदना कम से कम 25 फीसदी महंगा पड़ता है.

– ऑनलाइन प्रोडक्ट खरीदने के लिए निश्चित कंपनी की वेबसाइट पर जाएं जिससे टर्म इंश्योरेंस लेना चाहते हैं. सभी जरूरी जानकारी देने के बाद डॉक्यूमेंट्स अपलोड कर दें और नेट बैंकिंग, डेबिट या क्रेडिट कार्ड से भुगतान करें.

– यदि मेडिकल जांच के लिए कहा जाता है तो अपनी सुविधानुसार स्थान का चयन कर सकते हैं. मेडिकल जांच ठीक रहने पर पॉलिसी दस्तावेज कुछ ही दिनों में दिए गए पते पर पहुंचा दिए जाते हैं.

– अधिकांश पोर्टल ग्राहकों को ऑनलाइन टर्म इंश्योरेंस के प्रीमियम की तुलना करने की भी सुविधा उपलब्ध कराते हैं. इस सुविधा का लाभ जरूर उठाएं.

– तुलना के बाद जिन कंपनियों की पॉलिसी सस्ती लगती हैं उनका क्लेम रेश्यो देखें. क्लेम रेश्यो का मतलब होता है कि कंपनी 100 क्लेेम करने वालों में से कितने लोगों को बीमा के पैसों का भुगतान करती है. इसके बाद वेबसाइट के रिव्यूज और कमेंट्स सेक्शन पर जाकर ग्राहकों के रिव्यूज पढ़ें. इससे इंश्योरर की सर्विसेज के बारे में पता मौजूदा ग्राहकों से पता चलता है.

– इंश्योरेंस कंपनियों की वेबसाइट पर लाइव चैट का भी प्रावधान होता है जहां ग्राहक अपने संदेह दूर कर सकते हैं. साथ ही साइट पर दिए गए टोल फ्री नंबर की मदद से फोन पर भी बात की जा सकती है.

– क्लेम के समय दी गई जानकारी गलत पाए जाने पर कंपनी क्लेम खारिज कर सकती है. यह कंपनी का अधिकार होता है.

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