पहलाज का इस्तीफा, राखी बनेंगी सेंसर बोर्ड चीफ!

ड्रामा क्वीन राखी सावंत को सेंसर बोर्ड का चीफ बनने का ऑफर मिला है. हाल ही में राखी की फिल्म ‘एक कहानी जूली की’ को सेंसर बोर्ड ने ए सर्टिफिकेट दिया था. इस बात से राखी काफी नाराज थीं और उन्होंने कहा था कि उन्हें पहलाज निहलानी की जगह बैठाया जाए तो उनसे ज्यादा अच्छा काम करेंगी.

उनका ये बयान जब पहलाज निहलानी ने सुना तो उन्होंने कहा कि अगर राखी को उनका काम पसंद नहीं है तो वो सरकार से आग्रह करेंगे कि उनकी जगह राखी को सेंसर चीफ की कुर्सी पर बैठा दिया जाए. ऐसा पहलाज ने अपना गुस्सा निकालते हुए कहा है.

राखी सावंत ने सेंसर बोर्ड पर पक्षपात का आरोप लगाया था. इसके जवाब में पहलाज ने कहा है कि पहले तो सिर्फ निर्माता और निर्देशक ही सेंसर बोर्ड की आलोचना करते थे और अब तो एक्टर्स भी करने लगे हैं.

उन्होंने आगे कहा, ‘कुछ दिन में ऐसा होगा कि फिल्म में काम करने वाला स्पॉट बॉय भी सामने आकर हमारी आलोचना करेगा.’ राखी की नाराजगी पर उन्होंने कहा कि राखी को सेंसर बोर्ड के नियमों की कोई जानकारी नहीं है.

पहलाज बताते हैं कि सेंसर बोर्ड अगर एक बार कोई फिल्म को सर्टिफाइ कर देता है तो उसे वो खुद नहीं बदल सकता, जब तक कि फिल्म के निर्माता-निर्देशक की कोई मांग ना हो. निहलानी ने कहा कि राखी को अगर उनकी कुर्सी पर बैठना है तो वो सरकार से कहेंगे कि उन्हें इस कुर्सी से हटाए और राखी को सेंसर बोर्ड की कुर्सी संभालने का मौका दें.

एकता ला रही हैं चंद्रगुप्त मौर्य की प्रेम कहानी

टीवी की ड्रामा क्वीन एकता कपूर फिर से स्टार प्लस पर अपना एक नया शो लेकर आने वाली हैं. दिलचस्प बात यह है कि इस बार वह सास-बहू के ड्रामे से अलग हटकर एक माइथोलॉजिकल शो लेकर आने वाली हैं और उनके इस धारावाहिक का नाम है ‘चंद्र-नंदिनी’.

हाल ही में शो के लॉन्च पर एकता ने कहा कि उनके इस शो की खासियत यह है कि इसमें दर्शकों को चंद्रगुप्त मौर्य के कहानी के साथ-साथ उनकी प्रेमकहानी भी देखने को मिलेगी जो तत्थयों पर पूरी तरह से आधारित है.

हालांकि एकता ने यह भी स्वीकार किया कि इसे मनोरंजक बनाने के लिए उन्होंने इसमें थोड़ा ड्रामा भी एड किया है. ‘चंद्र-नंदिनी’ में चंद्र का किरदार रजत टोकस निभा रहे हैं वहीं नंदिनी का किरदार श्वेता बासु द्वारा निभाया जा रहा है.

श्वेता बासु लंबे समय बाद स्क्रीन पर नजर आएंगी. अपने इस शो के बारे एकता ने कहा कि इस शो के लिए उन्होंने कई महीनों तक अपनी टीम के साथ बैठकर रिसर्च की है और फिर उसी के अनुसार हर एक एपीसोड की स्क्रिप्ट बनाई है. इस पूरे शो में शाही रिति-रिवाजों का खास ध्यान रखा गया है.

ऑस्कर के लिए नॉमिनेट हुई तमिल फिल्म ‘विसारनाई’

नेशनल अवॉर्ड जीतने वाली तमिल फिल्म ‘विसारनाई’ की 2017 के ऑस्कर अवार्ड्स की फोरेन लैंग्वेज फिल्म कैटेगरी में इंडिया की ओर से ऑफिशि‍यल एंट्री हो गई है. इसी के साथ फिल्म की पूरी टीम के बीच काफी खुशी का माहौल देखा जा सकता है.

फिल्म के निर्माता धनुष ने ट्विटर पर अपनी खुशी को जाहिर किया. देश की कई फिल्मों को पीछे छोड़ते हुए इस फिल्म में ऑस्कर नॉमिनेशन में अपनी जगह बनाई है.

तमिल अभिनेता और रजनीकांत के दामाद धनुष ने इस फिल्म को प्रोड्यूस किया है. यह तमिल सिनेमा की 9वीं फिल्म है जो ऑस्कर के लिए नॉमिनेट हुई है. 16 साल बाद किसी तमिल मूवी की एंट्री ऑस्कर में हुई है. इससे पहले साल 2000 में कमल हसन की फिल्म ‘हे राम’ नॉमिनेट हुई थी.

यह फिल्म अब तक तीन राष्ट्रीय पुरस्कार अपने नाम कर चुकी है. फिल्म को तमिल में सर्वश्रेष्ठ फीचर फिल्म, सर्वश्रेष्ठ अभिनेता और सर्वश्रेष्ठ संपादन के लिए पुरस्कार दिए गए. फिल्म को एमनेस्टी इंटरनेशनल इटली अवार्ड 2015 में भी खूब वाहवाही मिली थी.

वेटरीमारन्स के निर्देशन में बनी यह फिल्म राइटर एम चंद्रकुमार की नॉवल ‘लॉकअप’ पर बनी है. जल्द ही यह फिल्म तेलुगू में ‘विचाराना’ नाम से रिलीज होगी.

भारत का सबसे साफ-सुथरा शहर         

वोट बटोरने के लिये सफाई का मुद्दा तो हर नेता छेड़ते हैं लेकिन जहां बात इस मुद्दे को अमल में लाने की होती है तो अच्छे-अच्छे के पसीने छूट जाते हैं. हर जगह लगे गंदगी के ढ़ेर इसका जीता जागता उदाहरण है.

लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी की भारत में ही एक शहर ऐसा भी है जो जिसे भारत का सबसे साफ सुथरा शहर घोषित किया गया है. जी हां, ये शहर है मैसूर. इस हकीकत से तो हर कोई वाकिफ है कि कोई भी काम तभी सफल हो सकता है जब उसमें सभी का योगदान हो. इस मामले में मैसूर के लोग वाकई तारीफ के काबिल हैं. मैसूर के शहर कुंबर कोप्पल में शहर को साफ रखने के साथ-साथ लोग कूड़े से कमाई भी कर रहे हैं. कुंबर कोप्पल के नागरिक कार्यकर्ता जीरो वेस्ट मैनेजमेंट प्लांट की देखरेख करते हैं. मैसूर के इस छोटे से कस्बे में कूड़े-कचरे से होने वाली आय ही उनकी कमाई का मुख्य साधन है.

कुंबर कोप्पल में प्रतिदिन 200 घरों से कूड़ा-कचरा इकट्ठा कर गीला और सूखा कचरा अलग-अलग जमा किया जाता है. इस कचरे का 95 प्रतिशत हिस्सा बेच दिया जाता है. फिर इसे वेस्ट मैनेजमेंट प्लांट में भेज दिया जाता है जहां प्रतिदिन पांच टन कचरे से खाद तैयार की जाती है.

इसी प्रकार इकट्ठे किये गये गीले कचरे से कंपोस्ट में बदल दिया जाता है, जिसे किसानों को उर्वरक के रूप में बेचा जाता है. वहीं सूखा कचरा प्लास्टिक और मैटल के सामान को इकट्ठा कर बेच दिया जाता है. इससे प्राप्त आय को साफ सफाई में लगे कार्यकर्ताओं के बीच बांट दिया जाता है. आय के अलावा इन कार्यकर्ताओं को इस कार्य के बदले आवास और स्वास्थ्य सुविधाएं भी प्रदान की जाती है. इसके साथ ही इस कमाई के एक हिस्से को जीरो वेस्ट मैनेजमेंट प्लांट की मैंटेनेंस के लिये खर्च किया जाता है.

मैसूर को सुंदर और साफ सुथरा बनाने में यहां कि ‘स्त्री शक्ति’ का महत्वपूर्ण योगदान है. यह यहां रहने वाली महिलाओं का समूह है जो हर घर से कूड़ा कचरा एकत्रित करता है और वहां के लोगों को स्वच्छता के लिये जागरूक भी करता है. ध्यान देने योग्य बात ये है कि यहां रहने वाला प्रत्येक नागरिक सफाई का बहुत ध्यान रखता है इसलिये मैसूर का नाम सबसे स्वच्छ शहरों में आता है.

मैसूर के कुंबर कोप्पल एक ऐसा उदाहरण है जो कहता है कि एक छोटा सा प्रयास बहुत कुछ बदल सकता है. जरूरत है तो बस जागरूक होने की.

मशरूम की टेस्टी डिशेज

छत्रक, खुखड़ी, गोबरछत्ता, फफूंद आदि के नाम से मशहूर मशरूम का इस्तेमाल पौष्टिक और स्वादिष्ठ शाकाहारी भोजन के रूप में होने से इस के बाजार और उत्पादन में कई गुना इजाफा हो चुका है. मशरूम की सब्जी का लुत्फ तो आमतौर पर लोग उठाते रहते हैं, पर उस से और भी कई तरह की डिशेज बनाई जा सकती हैं. कई बीमारियों से बचाने वाली मशरूम की प्रजातियों में बटन मशरूम, ओयस्टर मशरूम, गर्भाबटन मशरूम, पैडीस्ट्रा मशरूम और श्वेत दूधिया मशरूम मुख्य हैं.

शैफ अनुपम राज बताती हैं कि मशरूम से कई तरह की स्वादिष्ठ डिशेज बनाई जाती हैं, जो खाने वालों को उंगलियां चाटने के लिए मजबूर कर देती हैं.

मशरूम कोफ्ता

सामग्री: 250 ग्राम मशरूम, 2 बड़े चम्मच बेसन, 1 चम्मच चावल पाउडर, 2-4 छोटी व बड़ी इलाइची, 2 टमाटर कटे, 2 प्याज कटे, 100 ग्राम सरसों तेल, 100 ग्राम दूध, जरूरतानुसार चिली सौस व गरममसाला, 8-10 कलियां लहसुन कटा, अजवाइन, हरीमिर्च कटी, जीरा, गोलकी, हलदी, काजू और नमक स्वादानुसार.

विधि: सब से पहले मशरूम को उबाल कर उस में अजवाइन, बेसन, चावल पाउडर, अदरक, हरीमिर्च, लहसुन, टमाटर और चिली सौस मिला कर भून लें. उस के बाद कड़ाही में प्याज, लहसुन, छोटी और बड़ी इलाइची डाल कर भूनें. इस के बाद उस में जरूरत के हिसाब से पानी और नमक डालें. 1 गिलास दूध और थोड़े काजू डाल कर करीब 20 मिनट तक पकाएं. जायकेदार मशरूम कोफ्ता तैयार है.

मशरूम की खीर

सामग्री: 250 ग्राम मशरूम, 100 ग्राम चावल, 1 लिटर दूध, 250 ग्राम चीनी, थोड़ेथोड़े काजू, किशमिश, छोटी इलायची पाउडर व केसर.

विधि: मशरूम को छोटेछोटे टुकड़ों में काट कर उसे घी में अच्छी तरह भून लें. उस के बाद 1 लिटर दूध को खौला कर करीब आधा कर लें. दूध में भुने मशरूम डाल कर पकाएं. कुछ देर पकने के बाद काजू, किशमिश, छोटी इलाइची का पाउडर, केसर मिला दें. जब मशरूम पूरी तरह पक जाए तो चीनी डाल कर मिला दें. मशरूम की खीर तैयार है.

मशरूम चिली

सामग्री: 250 ग्राम मशरूम, 50 ग्राम अरारोट पाउडर, 200 ग्राम प्याज कटा, 1 बड़ी शिमलामिर्च कटी, थोड़ीथोड़ी टोमैटो सौस, चिली सौस व सोयाबीन सौस, थोड़ा सा अदरक, 200 ग्राम रिफाइंड तेल, थोड़ा सा अजीनोमोटो व नारंगी कलर, लहसुन, हरीमिर्च और नमक.

विधि: मशरूम को छोटेछोटे टुकड़ों में काट लें और फिर उबाल कर अच्छी तरह छान लें. उस में नमक, खाने का रंग, सोयाबीन सौस, अरारोट, चिल्ली सौस मिला कर तेल में अच्छी तरह फ्राई कर लें.

फ्राई मशरूम को कड़ाही से निकाल कर अलग रख लें. उस के बाद शिमलामिर्च, अदरक, लहसुन, प्याज एवं हरीमिर्च को मिला कर फ्राई कर लें. फिर कड़ाही में तेल डाल उसे गरम कर उस में जीरा, हरीमिर्च, प्याज का पेस्ट डाल कर भून लें. कड़ाही में पानी और पहले से तैयार किए गए मिक्स्चर को डाल कर खौलाएं. उस के बाद आंच से उतार कर उस में सौस और विनेगर डाल कर मिलाएं.

मशरूम अचार

सामग्री: 250 ग्राम मशरूम, 50 ग्राम सरसों पाउडर, 100 ग्राम सरसों तेल, 10 ग्राम मिर्च पाउडर, 1/2 चम्मच हलदी पाउडर, नमक स्वादानुसार.

विधि: अचार बनाने के लिए मशरूम को उबाल कर अच्छी तरह निचोड़ लें. फिर कुछ देर तक धूप में सूखने दें. सूखने के बाद मशरूम को छोटेछोटे टुकड़ों में काटें. उस में सरसों पाउडर, लालमिर्च पाउडर, हलदी पाउडर, नमक, सिरका और सरसों तेल को अच्छी तरह मिला कर शीशे के साफ बरतन में भर लें. 4-5 दिनों तक धूप में रखें. टेस्टी अचार तैयार है.

मशरूम सूप

सामग्री:100 ग्राम मशरूम, 2 टमाटर, 10 ग्राम घी, कालानमक, कालीमिर्च व धनियापत्ती जरूरतानुसार.

विधि: मशरूम को उबाल कर मिक्सी में पीस लें और फिर घी में हलका भून लें. 2-3 टमाटरों को अलग से उबाल कर छान लें. उस के बाद मशरूम को कड़ाही में डाल कर टमाटरों का रस डाल कर हलके से चलाएं. खौलने पर बाउल में निकाल

लें और कालानमक, कालीमिर्च और धनियापत्ती डाल दें. गिलास में निकाल कर गरमगरम सूप का मजा लें.           

पेट में गैस बनती है तो अवॉयड करें ये फूड

क्‍या होता है जब आपके पेट में गैस बनती है, पेट फूलने लगता है और अन्‍य गैस्‍ट्रिक समस्‍याएं पैदा होने लगती हैं? जी हां, आप डॉक्‍टर के पास जाते हैं और ढ़ेर सारी दवाइयां और सीरप पीते हैं.

पर इससे अच्‍छा है कि ऐसे फूड को खाने से बचा जाए जो पेट में गैस बनाते हैं. आइये जानते हैं इनके बारे में….

पत्‍ता गोभी- लिस्‍ट में पहले नाम पर है पत्‍ता गोभी. यह सब्‍जी पचाने में काफी मुश्‍किल होती है और अगर इसे रात में खाया जाए तो पेट में गैस, अपच और अन्‍य समस्‍याएं पैदा होती हैं.

आलू- अगर आपको पहले से ही पेट फूलने या गैस्‍ट्रिक से संबन्‍धित कई समस्‍याएं हैं तो, अच्‍छा होगा कि आप यह सब्‍जी रात में ना खाएं. इसमें ढेर सारा स्‍टार्च होता है जो यदि दाल के साथ खाया गया तो बहुत ही ज्‍यादा नुकसान करता है.

खीरा- बहुत से लोग मानते हैं कि अगर खीरे को रात में खाया जाए तो वजन कम करने में मदद मिलती है. मगर यह गैस्‍ट्रिक प्रॉब्‍लम पैदा कर सकता है क्‍योंकि इसमें ढेर सारा पानी और फाइबर होता है, जिससे पाचन क्रिया में बाधा आती है, जिससे गैस बनने लगती है.

तरबूज- खीरे की ही तरह तरबूज में भी पानी और फाइबर की मात्रा अधिक पाई जाती है, जो कि पचाने में थोड़ा मुश्‍किल होता है. इसके साथ ही इसमें शक्‍कर भी होती है जिससे पेट फूलने लगता है.

दुग्ध उत्पाद: दुग्ध उत्पाद जैसे दूध में शुगर लैक्‍टोज होता है, जो बहुत से लोंगो को नहीं हजम हो पाता. इससे गैस और पेट में मरोड़ होने लगती है. कई लोंगो को तो दूध पी कर डायरिया भी हो जाता है.

जब बैंक अकांउट से कट जायें पैसे

इन दिनों अकाउंट से ऑनलाईन फ्रॉड की घटनाएं आम हो गईं हैं. ऑनलाइन फ्रॉड करने वाले कई गिरोह सक्रिय हैं जो आपकी पर्सनल डिटेल चुरा कर आपके अकाउंट को हैक कर निकाल लेते हैं.

इसके अलावा लोगों के अकाउंट से एटीएम के जरिए भी पैसे निकल जाते हैं. ऐसे में जरूरी है कि आप नेट बैंकिंग करते हुए सावधानी बरतें और अपना अकाउंट नंबर और ऑनलाइन बैंकिंग से जुड़ी डिटेल्‍स किसी के साथ साझा न करें. अगर फिर भी आप ऑनलाईन फ्राड के शिकार हो जाते हैं  या एटीएम के जरिए ‍पैसे निकल जाते हैं तो हम आपको कुछ तरीके बता रहे हैं जिसके जरिए आपको अपना पैसा वापस मिल जाएगा.

ब्‍लॉक कराएं अपना डेबिट कार्ड और नेटबैंकिंग

आपको सबसे पहले बैंक के कस्‍टमर केयर को कॉल करके पैसे निकलने की जानकारी देनी चाहिए. आप सबसे पहले अपना डेबिट कार्ड और नेट बैंकिंग को ब्‍लॉक कराएं. आप अपने डेबिट कार्ड को बैंक में जमा करा दें और बैंक से नया डेबिट कार्ड लें. आप बैंक से यह पता करें कि आपके अकाउंट से कितनी रकम निकाली जा चुकी है. किस जगह से किस समय पैसा निकाला गया है यह भी पता करें. इसके साथ ही आप बैंक से अपना पैसा वापस पाने की प्रक्रिया शुरू करने के लिए भी कहें.

सोशल मीडिया पर करें पोस्‍ट

आप बैंक को फ्रॉड के बारे में इन्‍फॉर्म करने के बाद फेसबुक ओर टि्वटर पर घटना के बारे में पोस्‍ट करें और संबंधित बैंक को टैग करें. इन दिनों कोई भी संस्‍थान सोशल मीडिया को गंभीरता से लेते हैं. ऐसे में ज्‍यादा संभावना इस बात की है कि बैंक आपके मामले की तेजी से जांच पड़ताल कर आपके पैसे वापस करने की प्रक्रिया शुरू करेगा क्‍योंकि यह बैंक की जिम्‍मेदारी है और उनको अपनी इमेज की भी परवाह होती है.

दर्ज कराएं एफआईआर

आपको इस बारे में नजदीकी पुलिस स्‍टेशन में एफआईआर दर्ज करानी चाहिए. आपकी कंप्‍लेन में घटना का पूरा ब्‍यौरा होना चाहिए. कंप्‍लेन में समय, जगह, डेबिट कार्ड नंबर, जैसी अहम सूचनाएं मिस न करें. आप पुलिस को आपके पास आए मैसेज का स्‍क्रीनशॉट भी दे सकते हैं जिसमें यह बताया गया है कि आपके अकाउंट से पैसा निकल गया है. आप पुलिस स्‍टेशन से कंप्‍लेन की स्‍टॉंप लगी हुई कॉपी लेना न भूलें. आप पुलिस अधिकारी से अपना मामला साइबर क्राइम यूनिट को ट्रांसफर करने को भी कहें.

बैंक को सबमिट करें सारे डाक्‍यूमेंट         

आप अपने बैंक जाकर एफआईआर की कॉपी और एक अप्‍लीकेशन सबमिट करें. अब यह बैंक की जिम्‍मेदारी है कि वह मामले की जांच करे. आम तौर पर बैंक 15 दिन में जांच प्रक्रिया पूरी कर लेते हैं और 15 दिन से एक माह के अंदर आपको अपना पैसा वापस मिल जाएगा.

Film Review: बैंजो

‘नटरंग’, ‘बालक पालक’, ‘बाल गंधर्व’ और ‘टाइम पास’ जैसी फिल्मों के दर्शकों को इन फिल्मों के निर्देशक रवि जाधव निर्देशित पहली हिंदी फिल्म ‘बैंजो’ देखकर निराश होना स्वाभाविक है. क्योंकि ‘बैंजो’ पूर्ण रूपेण बॉलीवुड की मुंबईया मसाला फिल्म है. पहचान के संकट से गुजर रहे ‘बैंजो’ को यह फिल्म पहचान दिलाने में कामयाब नहीं होती है.

फिल्म की कहानी मुंबई की झोपड़पट्टी बस्ती में रहने वाले नंद किशोर उर्फ तैरात के बैंजों बैंड के इर्द-गिर्द घूमती है. तैरात के साथ तीन और लड़के ग्रीस, पेपर और वाजा रहते हैं. यह चारो गणेषोत्सव के दौरान संगीत बजाते हैं.

बैंजो बजाने में तैरात का कोई सानी नही है. तैरात ऐरोगेंट है और जब कोई उसके पास बैंजो बजाने का कार्यक्रम लेकर जाता है, तो वह मनमाने पैसे मांगता है. तैरात व उसके तीनों साथियों के लिए बैंजो बजाना अंशकालिक काम है.

पेपर (आदित्य कुमार) हर दिन सुबह लोगों के घरों में समाचार पत्र पहुंचाता है. वाजा (राम मेमन) पानी भरता है. जबकि ग्रीस (धर्मेश येलंडे) एक गैरज में काम करता है. तैरात स्थानीय नेता पाटिल के लिए पैसा वसूली व मारा मारी का काम करता है.

पाटिल और एक सिंधी भवन निर्माता गोडानी के बीच कलह है. गोडानी की नजर पाटिल के इलाके के एक खेल के मैदान पर है,जिसे पाटिल, बस्ती वालों के भले की बात सोचकर उसे नहीं देना चाहता.

तैरात व उसके साथ मुंबई के गणेषोत्सव के दौरान बैंजो बजाते हैं, जिसे माइकल रिकार्ड कर न्यूयार्क की अपनी दोस्त क्रिस्टिना उर्फ क्रिस (नरगिस फाखरी) के पास भेजता है. क्रिस्टिना को बैंजो की धुन भा जाती है. उसे लगता है कि न्यूयार्क की एक संगीत कंपनी द्वारा आयोजित संगीत प्रतियोगिता के लिए वह बैंजो की धुन पर दो गाने बनाकर देगी और इस बैंजो वादक को वह न्यूयार्क ले जाकर संगीत कंपनियों के साथ जोड़ेगी.

इसी मकसद से वह इनकी तलाश में मुंबई आती है. मुंबई में एक मित्र की माध्यम से क्रिस, तैरात के पास पहुंचती है. तैरात अपने दोस्तों के कहने पर क्रिस्टिीना को नहीं बताता कि वह बैंजो बजाता है. उधर क्रिस उसके साथ हर गंदी बस्ती में घूमती है, तस्वीरें खींचती है. तो वहीं वह माइकल के साथ उस बैंजो वादक की तलाश भी की करती रहती है.

कई बैंजो वादकों को बुलाकर वह परफॉर्म कराती है, पर उसे वह धुन नहीं मिलती,जिसे सुनने के बाद वह न्यूयार्क से मुंबई आयी है. वह वापस न्यूयार्क जाने का फैसला कर लेती है. क्रिस वापस जाने से पहले तैरात से मिलने जाती है, तो उसके कानों में वही बैंजो की धुन पड़ती है, जिसकी उसे तलाश है.

जब क्रिस उस जगह पहुंचती है, तो वह तैरात व उसके साथियों को बैंजो बजाते हुए पाती है. तैरात बताता है कि उसने अपने साथियों के कहने पर बैंजों बजाने की बात छिपायी थी, बैंजों बजाना गिरा हुआ काम माना जाता है. हम तो पेट के लिए पैसा कमाने के लिए बजा लेते हैं. उसके बाद क्रिस, तैरात व उसके साथियों के साथ मिलकर संगीत तैयार करती है. नायर से बात कर उसके क्लब में तीन मिनट का बैंजो का कार्यक्रम रखवाती है, जिससे तैरात व उसके साथी स्टार बन जाते हैं.

अब वह सोबो संगीत समारोह में हिस्सा लेना चाहती है. पर इसी बीच तैरात से जलन रखने वाले दूसरे बैंजो पथक के मुखिया (महेष शेट्टी) तथा पाटिल व गोडानी की दुश्मनी के चलते पाटिल के जन्मदिन पर पाटिल को गोली मारी जाती है. आरोप तैरात पर लगता है. तैरात व उसके साथियों की पुलिस पिटाई करती है. क्रिस व माइकल वकील की मदद लेकर इन्हे जमानत पर छुड़ाते हैं. पर इस घटनाक्रम के बाद तैरात के सभी साथी उसका साथ छोड़ देते हैं. क्रिस भी निराश होकर न्यूयार्क चली जाती है. माइकल बैंगलोर चला जाता है.

होश आने पर पाटिल अपने बयान में तैरात को निर्दोश बताता है. तैरात के पिता की मौत हो जाने पर वह अपने साथियों के साथ पिता की अंतिम यात्रा में बैंजो बजाता है. सब कुछ सामान्य हो जाता है. सोबो संगीत समारोह से पहले तैरात व उसके साथी तथा माइकल मिलते हैं.नायर के विरोध करने पर तैरात एक टेक में बैंजो वाद्ययंत्र सजाकर अपने साथियों के साथ सोबो संगीत समारोह के दरवाजे पर जाकर परफॉर्म करता है, सारे श्रोता व दर्शक उनकी तरफ हो जाते हैं. माइकल इसका वीडियो बनाकर क्रिस के पास भेजता है. अंततः क्रिस, तैरात व उसके साथियों को न्यूयार्क बुलाती है.

इंटरवल से पहले फिल्म खिसकती हुई चलती है. इंटरवल के बाद फिल्म गति पकड़ती है, लेकिन फिल्म के अंतिम पच्चीस मिनट में निर्देशक व पटकथा लेखक दोनों ही अपनी फिल्म पर अपनी कमांड छोड़ बैठते हैं. फिल्म को असल जिंदगी के करीब रखने के प्रयास में पूरी फिल्म एक खास क्षेत्रीयता तक सीमित रह जाती है.

इंटरवल से पहले रितेश देशमुख व नरगिस फाखरी पर सपने में रोमांस का गाना डालकर फिल्म को कमजोर कर दिया गया. राजनेता पाटिल का किरदार काफी बनावटी लगता है. फिल्म देखते समय लगता है कि निर्देशक रवि जाधव इस कश्मकश से गुजर रहे हैं कि वह इसे ‘गुड फील सिनेमा’ की रंगत दें या ‘फार्मुला प्रधान एक्शन फिल्म’ की रंगत दें.

जब आप संगीत के एक वाद्ययंत्र को उसकी पहचान दिलाने की बात कर रहें हैं, तो फिर राजनीति व अपराध को कहानी का हिस्सा बनाना मकसद से भटकाव का संकेत है. पर खेल के मैदान को हड़पने और पाटिल पर हमले के प्लॉट ने पूरी फिल्म को तहस नहस कर दिया. यदि कहानी बैंजो पथक, क्रिस के मकसद, क्रिस व तैरात के संबंधों तक सीमित होती, तो भी ठीक रहता. पर निर्देशक के तौर पर रवि जाधव इन चीजों को भी सही परिपेक्ष्य में पेश करने में बुरी तरह से असफल रहे हैं. फिल्म को डुबाने में इसकी लेखकीय टीम और एडीटर भी दोशी हैं. वैसे भी इस ढर्रे पर ‘रॉक ऑन’ और ‘एबीसीडी’ जैसी फिल्में बन चुकी हैं. 

जहां तक अभिनय का सवाल है, तो रितेश देशमुख ज्यादातर दृष्यों में खुद को दोहराते हुए ही नजर आए हैं. वह तैरात के किरदार में फिट नजर नहीं आते हैं. रोमांस में वह बहुत बेकार नजर आते हैं. पर इसके लिए कुछ हद तक फिल्म के संवाद व संवाद लेखक भी दोशी हैं. नरगिस फाखरी एक बेहतरीन अदाकारा के रूप में उभरी हैं. अन्य कलाकारों ने भी अच्छी परफार्मेंस दी है.

संगीतकार विशाल शेखर की तारीफ की जानी चाहिए. एक दो गाने अच्छे बन पड़े हैं. गणपतिजी का गाना काफी सुंदर बना है.

दो घंटे 17 मिनट की अवधि वाली फिल्म ‘बैंजो’ की निर्माता कृशिका लुल्ला, निर्देशक रवि जाधव, पटकथा लेखक कपिल सावंत, निखिल मेहरोत्रा, रवि जाधव, संगीतकार विशाल शेखर व रितेश देशमुख, नरगिस फाखरी, धर्मेश येलंडे, लुक केणी व अन्य कलाकार हैं.

अजब एमपी का गजब का इतिहास

भारत के बीचों-बीच बसा भारतीय संस्कृति से समृद्ध राज्य है मध्य प्रदेश. भारत की संस्कृति में मध्यप्रदेश अलग महत्व है. यहां के जनपदों की आबोहवा में आज तक कला, साहित्य और संस्कृति की मधुमयी सुवास तैरती रहती है. मध्य का अर्थ बीच में है, मध्य प्रदेश की भौगोलिक स्थिति भारतवर्ष के मध्य अर्थात बीच में होने के कारण, इस प्रदेश का नाम मध्य प्रदेश दिया गया, जो कभी ‘मध्य भारत’ के नाम से जाना जाता था.

मध्य प्रदेश अपनी ऐतिहासिक संस्कृति व ऐतिहासिक खजानों में भी भारत के सबसे समृद्ध राज्यों में से एक है. मध्य प्रदेश में भारतीय ऐतिहासिक संस्कृति के अनेक अवशेष, जिनमें पाषाण चित्र और पत्थर व धातु के औजार शामिल हैं, नदियों, घाटियों और अन्य इलाकों में मिले हैं. वर्तमान मध्य प्रदेश का सबसे प्रारम्भिक अस्तित्वमान राज्य अवंति था, जिसकी राजधानी उज्जैन थी.

चलिए आज हम मध्य प्रदेश के उन्हीं इतिहास से जुड़े किलों की समृद्धि की झलक देखते हैं.

1. अहिल्या का किला

मध्यप्रदेश के महेश्वर में 18वीं सदी में निर्मित होल्कर किला एक आश्चर्यजनक पर्यटक आकर्षण है. नर्मदा नदी के सुन्दर तट पर स्थित यह किला अहिल्या किला के रूप में भी प्रसिद्ध है. अहिल्या किला मालवा की तत्कालीन रानी अहिल्याबाई होल्कर का निवास था.

2. असीरगढ़ का किला

असीरगढ़ का किला या असीरगढ़ किले को अहीर राजवंश के राजा, आसा अहीर ने बनाया था. पहले इस किले को आसा अहीर गढ़ कहा जाता था, लेकिन समय के साथ इस किले का नाम छोटा कर दिया गया, और आज अपने मौजूदा नाम से जाना जाता है. स्थानीय किंवदंतियों के अनुसार यह माना जाता है कि, इस किले को बल से नहीं जीता जा सकता.

3. बजरंग गढ़ का किला

मध्य प्रदेश के गुना आरोन रोड पर स्थित बजरंगगढ़ किले की प्रसिद्धि झारकोन के रूप में भी है. भले ही आज यह किला पूरी तरह से नष्ट हो गया है, फिर भी यह देखने में अद्भुत है, जिससे यहां आने वाले पर्यटक रोमांचित हुए बिना नहीं रह सकते. बजरंग गढ़ किला 92.2 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है.

4. बांधवगढ़ का किला

बांधवगढ़ किले का निर्माण कब किया गया, इस संबंध में कोई ऐतिहासिक प्रमाण उपलब्ध नहीं है. इस किले का विवरण नारद-पंच रात्र और शिव पुराण में मिलता है, इसलिए ऐसा माना जाता है कि, यह किला 2000 साल पुराना है.

5. चंदेरी का किला

चंदेरी का किला, चंदेरी का सबसे प्रसिद्ध स्मारक है. यह किला शहर से 71 मीटर की ऊंचाई पर एक पहाड़ी पर स्थित है. यह किला 5 किमी. लंबी दीवार से घिरा हुआ है. चंदेरी के इस महत्वपूर्ण स्मारक का निर्माण राजा कीर्ति पाल ने 11 वीं शताब्दी में करवाया था. इस किले पर कई बार आक्रमण किये गए और अनेक बार इसका पुन: निर्माण किया गया.

6. धार का किला

धार नगर के उत्तर में स्थित धार का किला एक छोटी पहाड़ी पर बना हुआ है. लाल बलुआ पत्थर से बना यह विशाल किला समृद्ध इतिहास के आइने का झरोखा है, जो अनेक उतार-चढ़ावों को देख चुका है. 14वीं शताब्दी के आसपास सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक ने यह किला बनवाया था. 1857 के विद्रोह के दौरान इस किले का महत्व बढ़ गया था. क्रांतिकारियों ने विद्रोह के दौरान इस किले पर अधिकार कर लिया था. यह किला हिन्दु, मुस्लिम व अफगान शैली में बना है.

7. गढ़-कुंडार का किला

गढ़-कुंडार मध्य प्रदेश के टीकमगढ़ जिले में स्थित एक गांव है. इस गांव का नाम यहां स्थित प्रसिद्ध दुर्ग (या गढ़) के नाम पर है. यह किला उस काल की न केवल शिल्पकला का नमूना है, बल्कि उस खूनी प्रणय गाथा के अंत का गवाह भी है, जो विश्वासघात की नींव पर रची गई थी. गढ़ कुंडार का प्राचीन नाम गढ़ कुरार है.

8. गोहद का किला

गोहद का किला, मध्य प्रदेश के भिंड जिले में स्थित छोटे से नगर गोहद का ऐतिहासिक किला है. यह जाट राज्य का मुख्य दुर्ग था. इसे देखकर जाट शासकों की समृद्धि का सहज अनुमान लगाया जा सकता है. यह दुर्ग स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना है. इस दुर्ग को एक ओर से शत्रुओं से प्राकृतिक सुरक्षा, बेसली नदी प्रदान करती है तो, दूसरी ओर से खाई खोद कर कृत्रिम सुरक्षा प्रदान की गई है. गोहद दुर्ग की स्थापत्य कला, राजपूताना स्थापत्य कला से मिलती-जुलती है.

9. ग्वालियर का किला

ग्वालियर का किला, मध्य प्रदेश के ग्वालियर शहर का प्रमुख स्मारक है. भारत का शानदार और भव्य स्मारक, ग्वालियर का किला ग्वालियर के केंद्र में स्थित है. पहाड़ी की चोटी पर स्थित इस स्थान से घाटी और शहर का सुंदर दृश्य देखा जा सकता है. पहाड़ी की ओर जाने वाले वक्र रास्ते की चट्टानों पर जैन तीर्थांकरों की सुंदर नक्काशियां देखी जा सकती हैं. वर्तमान में स्थित ग्वालियर किले का निर्माण तोमर वंश के राजा मान सिंह तोमर ने करवाया था.

10. हिंगलाज गढ़ की किला

हिंगलाज गढ़ किला, मध्य प्रदेश के मंदसौर जिले में भानपुरा तहसील के नवाली गांव के पास ही स्थित है. यह किला परमारों के शासन के दौरान अपनी भव्यता की चरम सीमा पर था. किले के अंदर विभिन्न अवधियों की कई कलात्मक मूर्तियां स्थापित हैं. हिंगलाज गढ़ का नाम मुख्यतः यहां विराजमान हिंगलाज देवी के नाम पर पड़ा है.

11. मदन महल

मध्यप्रदेश में जबलपुर का मदन महल किला, उन शासकों के अस्तित्व का साक्षी है, जिन्होंने यहां 11वीं शताब्दी में काफी समय के लिए शासन किया था. राजा मदन सिंह द्वारा बनवाया गया यह किला, शहर से करीब 2 किलोमीटर दूर एक पहाड़ी की चोटी पर स्थित है. यह किला राजा की मां रानी दुर्गावती से भी जुड़ा हुआ है, जो कि एक बहादुर गोंड रानी के रूप में जानी जाती है.

12. मंदसौर का किला

मंदसौर के किले को दासपुर के किले के नाम से भी जाना जाता है, जो मंदसौर जिले में स्थापित है. चरों तरफ से ऊंची दीवारों से घिरे हुए इस किले के 12 प्रवेशद्वार हैं. इसका दक्षिण पूर्वी द्वार नदी दरवाजा के नाम से जाना जाता है. द्वार के पास ही एक शिलालेख स्थापित है, जिससे पता चलता है कि इस किले का निर्माण, एक सेना के अधिकारी मुकबिल खान द्वारा सन् 1490 ईसवीं में गियास शाह के शासनकाल में करवाया गया था.

13. मांडू का किला

मांडू का किला मध्य प्रदेश के धार जिले में स्थित एक पर्यटन स्थल है. मांडू के किले में दाखिल होने के लिए 12 दरवाजे हैं. मुख्य द्वार दिल्ली दरवाजा कहलाता है. परमार शासकों द्वारा बनाए गए इस किले में जहाज और हिंडोला महल खास हैं. यहां के महलों की स्थापत्य कला देखने लायक है.

14. नरवर किला

नरवर किला, शिवपुरी के बाहरी इलाके में शहर से 42 किमी. की दूरी पर स्थित है, जो काली नदी के पूर्व में स्थित है. यह भारत के देदीप्‍यमान अतीत का एक अवशेष है. यह किला एक शाही किला है, जो क्षेत्र के शाही साम्राज्‍य के बारे में बताता है.

15. ओरछा का किला

ओरछा का किला मध्य प्रदेश के ओरछा नगर में कई महलों, किलों, मंदिरों व अन्य स्मारकों का समूह है. इस किले व अन्य स्मारकों का निर्माण 16 वीं शताब्दी में बुंदेला राजपूत के शासक रूद्र प्रताप सिंह द्वारा करवाया गया था. बेतवा नदी के किनारे किले के पास कई स्मारक और छतरियां हैं.

16. रायसेन किला

रायसेन किला कई खूबियों के लिए तो जाना ही जाता है. यहां का 800 साल पुराना वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम है. रायसेन का किला रूफ वाटर हार्वेस्टिंग का अनूठा उदाहरण है. किले पर 4 बड़े तालाब और 84 छोटे टांके है. यह सभी बिना किसी साधन के सिर्फ बारिश के पानी से हमेशा लबालब रहा करते थे.

17. सबलगढ़ का किला

मुरैना के सबलगढ़ नगर में स्थित यह किला मुरैना से लगभग 60 किमी. की दूरी पर है. मध्यकाल में बना यह किला एक पहाड़ी के शिखर पर बना हुआ है. इस किले की नींव सबला गुर्जर ने डाली थी जबकि करौली के महाराजा गोपाल सिंह ने 18वीं शताब्दी में इसे पूरा करवाया था. कुछ समय बाद सिंकदर लोदी ने इस किले को अपने नियंत्रण में ले लिया था लेकिन बाद में करौली के राजा ने मराठों की मदद से इस पर पुन: अधिकार कर लिया.

सेक्स और किसिंग सीन पर है सबका ध्यान: फराह खान

80 से अधिक फिल्मों में कोरियोग्राफी कर चुकी फराह खान एक निर्माता, निर्देशक, अभिनेत्री और एक मां हैं. अपने काम के बीच वह अपने पारिवारिक जीवन को भी संभालती हैं. ‘जो जीता वही सिकंदर’ फिल्म की कोरियोग्राफी जब सरोज खान ने अधिक काम के चलते छोड़ी थी, तब फराह ने उस काम  को लिया और फिल्म के सफल होते ही रातों रात प्रसिद्ध हो गई. इसके बाद तो उनके पास काम की झड़ी लग गई. ‘कभी हां कभी ना’ के सेट पर फराह, शाहरु खान से मिलीं और अच्छे दोस्त बने और साथ मिलकर फिल्में बनाने लगे. इस कड़ी में उन्होंने कई फिल्में बनायीं, जिसमें कुछ सफल तो कुछ असफल रही. ‘ओम शांति ओम’, ‘मैं हूं ना’ ‘हैप्पी न्यू इयर’ उनकी सफल फिल्म हैं. फराह आज भी अच्छी और रोमांटिक फिल्में बनाना पसंद करती हैं. पेश है “एम्बीप्योर” के इवेंट के दौरान उनसे हुई बातचीत के अंश.

प्र. अच्छी सुगंध आप को किस तरह प्रभावित करती है?

अच्छी सुगंध मेरे लिए बहुत आवश्यक है. मुझे याद आता है जब मेरे बच्चे छोटे थे मैं उनको नहलाने के बाद टेलकॉम पाउडर लगाया करती थी और उस महक को मैं आज भी ‘मिस’ करती हूं. काम के दौरान जब मैं पूरे दिन शूट करती हूं तो थकान को दूर करने के लिए अच्छी ‘स्मेल’ होनी चाहिए. इसलिए मैं अपने पर्स में हमेशा परफ्यूम रखती हूं. मुझे ‘जोमेलोन’ जो यूरोपियन परफ्यूम है, उसका ऑरेंज और लाइम के मिक्सचर वाले सुगंध बहुत पसंद हैं.

प्र. फिल्म से आप अभी इतनी दूर क्यों हैं?

फिल्म का कोई निश्चित समय नहीं होता, आप जो चाहे वह मिले जरुरी नहीं. अचानक से फिल्म की स्टोरी आप तक पहुंचती है और आप फिल्म बना लेते हो.

प्र. कोई खास तरह की फिल्म क्या आप बनाना चाहती हैं?

मैं दो तीन प्रोजेक्ट पर काम कर रही हूं .दो छोटी और एक बड़ी फिल्म है. कौन सी बनाने वाली हूं अभी फाइनल नहीं किया है. काम चल रहा है. मुझे लव स्टोरी पसंद है पर पहले मैं जैसी लव स्टोरी की फिल्में देखती थी, अब नहीं दिखती. ‘लव स्टोरी’, ‘बोबी’, ‘एक दूजे के लिए’ आदि ऐसी ही खूबसूरत फिल्में हैं. ऐसी फिल्में देखकर ही मैं बड़ी हुई हूं. आजकल की फिल्में ‘सेक्स’ और ‘किसिंग सीन्स’ पर अधिक फोकस्ड है. प्यार का अनुभव अब लगता है, कहीं  खो गया है.

प्र. फिल्मों में जरुरत से अधिक ‘सेक्स’ परोसने का अर्थ आपके हिसाब से क्या है?

शायद उन्हें लगता है कि वे अधिक मॉडर्न हो गए हैं. किसिंग कोई गलत नहीं है अगर उसको सही परिप्रेक्ष्य में दिखाया जाये. इसके अलावा प्यार को फिल्माने का यह आसान तरीका है. पहले आपको प्यार के दृश्य के लिए कई संवाद बोलने पड़ते थे, आंखों में दिखाने पड़ते थे, अभिनय भाव-भंगिमा सब करना पड़ता था. अब उसे कम कर किसिंग करवा लेते हैं, और फटाफट प्यार हो गया दिखा दिया जाता है. मैंने तो अभी तक कोई किसिंग सीन शूट नहीं किया है. मुझे करण जौहर पाखंडी कहते हैं. मेरे बच्चे इस अवस्था में किसिंग देखकर आंखें मूंद लेते हैं. लेकिन मैं जानती हूं कि 10 साल बाद उन्हें ये अच्छा लगेगा.

प्र. काम के साथ परिवार में सामंजस्य कैसे बिठाती हैं?

यही वजह है कि मैंने काम को थोड़ा कम किया है, उनके साथ समय बिताना , हॉलिडे प्लानिंग करना ये सब मैं करती हूं और इस समय को ‘मिस’ नहीं होने देना चाहती. अभी मेरे बच्चे 8 साल के हो गए हैं, वे हमेशा चाहते हैं कि माता पिता उनके साथ कही भी जायें. थोड़ी दिनों के बाद वे खुद आत्मनिर्भर हो जायेंगे. तब मैं अधिक से अधिक फिल्में बनाउंगी. मेरे बेटे को किताबें पढने का शौक है. मेरी बेटियां पेंटिंग सीखती हैं. इसके अलावा तीनो जुडो और लड़कियां बैले डांस सीख रही हैं. मैं बच्चों को अधिक दबाव में नहीं रखती, उनको पूरी आज़ादी देती हूं.

प्र. कुछ ड्रीम प्रोजेक्ट है?

मैं हमेशा चाहती हूं कि जो भी फिल्म बनाऊं, सबको एंटरटेन करं. बोर न करुं. आज एक दौर यह भी चला है कि निर्माता, निर्देशक बड़े-बड़े स्टार ले लेते हैं और सही स्क्रिप्ट न होने से फिल्म का मज़ा खत्म हो जाता है. फिल्म जो भी बने, दर्शक पसंद करें. आजकल लोग ‘रिव्यू’ पर अधिक जाने लगे हैं जबकि फिल्मों का बिजनेस जरुरी है. सभी फिल्में कमोबेश देखी जानी चाहिएं, तभी आगे और फिल्में बनेंगी, व्यवसाय के अभाव में आज कई स्टूडियो बंद हो चले हैं. रिव्यू लिखने वाले को भी फिल्मों को सहयोग देने की आवश्यकता है.

प्र. रियल स्टोरी बेस्ड फिल्में मसलन सीरियल किलर, मर्डर वाली फिल्में खूब बन रही हैं ,ऐसे में मनोरंजन की भूमिका कहां रह पाती है?

ये सही है, लेकिन इसमें फिल्म बनाने वाले की नियत सामने आती है. कई फिल्में मैंने देखी हैं जिन्हें बड़े ही संजीदा तरीके से बनाया गया है. ऐसी फिल्मों में रिसर्च की आवश्यकता अधिक होती है. जिससे व्यक्ति उसे सोचने पर मजबूर हो. ‘भाग मिल्खा भाग’ ‘तलवार’ जैसी फिल्म जो मुझे काफी अच्छी लगी. जिसे दर्शकों ने भी पसंद किया. अगर लोग किसी घटना को जल्दी कैश करने के उद्देश्य से फिल्म बनाते हैं तो वह ठीक नहीं. इससे फिल्म का स्तर गिरता है और फिल्म दर्शकों को पसंद नहीं आती. विषय भी हर निर्देशक को अलग रूप में आकर्षित करता है. लेकिन इसे रुचिकर कैसे बनाएं ये निर्देशक पर निर्भर करता है.

प्र. जीवन में आए नकारात्मक भाव को कैसे दूर करती हैं?

जीवन में हमेशा मैं खुश रहती हूं. किसी काम के न होने पर मैं देखती हूं कि लोग बहुत अपसेट हो जाते हैं. उनका दिन ख़राब हो जाता है. एक अच्छी चीज से आप सौ बातें ऐसी गिन सकती हैं जो अच्छी हो रही हें. सौ नहीं तो दस ही सही, ये मैं अपनी आंखों से देख सकती हूं. निगेटिव कोई बात होने पर मैं उसे छोड़ आगे बढ़ने में विश्वास करती हूं.

प्र. आप की फिटनेस का राज क्या है?

मेरा ट्रेनर योगेश है जो मुझे नियमित वर्क आउट और डाइट पर ध्यान दिलाता है. अभी मैं आयुर्वेद पर काफी ध्यान दे रही हूं. खाने की नियमित रूटीन मेरे पास है और उस हिसाब से मैं चलती हूं.

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