सलाद नूडल्स: चाइनीज टेस्ट विद इंडियन ट्विस्ट

सामग्री

– 200 ग्राम फ्लैट उबली हुई नूडल्स

– 1/2 मीडियम बीन स्पाउट्स सीड्स

– 2 बड़े चम्मच तेल

– 5-6 स्प्रिंग ओनियन कटे हुए

– 1/2 मीडियम पीली शिमलामिर्च

– 1 छोटी हरी शिमलामिर्च

– 2 मीडियम आकार की गाजर की पतली स्ट्रिप्स

– 1 छोटा चम्मच सोया सौस

– 1 लालमिर्च लंबाई में कटी हुई

– 1 स्टाक हरी स्प्रिंग ओनियन कटी हुई

– 3 बड़े चम्मच रोस्टेड मूंगफली

– 1 बड़ा चम्मच नीबू का रस

– 1/2 कप बीन स्प्राउट्स

– नमक स्वादानुसार

विधि

एक पैन में तेल गरम करें. उस में प्याज, लहसुन, ब्रौकली, मशरूम्स, तीनों रंग की शिमलामिर्च व गाजर डालें और अच्छे से मिलाएं. अब इस सामग्री में नूडल्स, नमक, सोया सौस मिलाएं और अच्छे से मिक्स करें. अब इस में लालमिर्च, रोस्टेड मूंगफली, स्प्रिंग ग्रीन ओनियन डालें. अब इस मिश्रण को सर्विंग डिश में डालें. मिश्रण पर ऊपर से नीबू का रस और स्प्राउट्स डालें. बची हुई मूंगफली भी मिश्रण पर डाल दें और नयासा की खूबसूरत डिश में सर्व करें.

व्यंजन सहयोग:

शैफ सी.एस. रावत

ऐग्जीक्यूटिव शैफ, ज्यू वौंग, ईस्ट पटेल नगर, दिल्ली       

रिश्ता कागज का: भाग-2

अब तक आप ने पढ़ा:

आईएएस की कोचिंग के लिए पारुल दिल्ली के एक गर्ल्स होस्टल में रहती थी. एक दिन जब वह कोचिंग के लिए निकली तो तेज बारिश में फंस गई और एक घर के सामने बारिश से बचने के लिए खड़ी हो गई. तभी एक बच्ची गेट पर आई और उस की गोद में जा बैठी. वह बच्ची को छोड़ने घर के अंदर गई तो एक आंटी ने उसे बताया कि यह उस की नातिन है. अब पारुल रोज ही वहां जाने लगी. वहां उस की मुलाकात डाक्टर प्रियांशु से हुई, जिस ने पारुल को अपने साथ शादी करने का प्रस्ताव दे डाला. घर वालों को इस रिश्ते से कोई ऐतराज नहीं था. अत: दोनों की शादी हो गई. वह चाहती थी कि उस मासूम बच्ची की मां प्रियंवदा तो नहीं रही पर बच्ची के पिता शेखर को उस के प्यार से महरूम न किया जाए. एक दिन शेखर का पता मिला तो उस ने उसे पत्र लिख दिया…

– अब आगे पढ़ें…

करीब 1 माह बाद दरवाजे की घंटी बजी. मैं ने जा कर देखा तो कोई आदमी खड़ा था. बोला, ‘‘डाक्टर प्रियांशु, श्रीमती पारुल और कमला देवी को बुलाइए, कोर्ट का समन है. मम्मीजी भी तब तक आ गई थीं. हम ने अपने नाम उसे बताए. तब मुझे और मम्मीजी को उस ने कुछ कागज दिए. एक कौपी प्रियांशुजी के लिए थी. हमारे दस्तखत ले कर चला गया. मैं ने जब उन कागजों को देखा तो लगा चक्कर आ जाएगा. शेखर ने हम पर केस किया था कि हम उस के नाम का उपयोग प्रियंवदा की नाजायज बच्ची के लिए करना चाहते हैं और उस को बदनाम कर उस की दौलत ऐंठना चाहते हैं.

और तो और इस में प्रिया को भी जोड़ा था और उस के नाम के आगे जो लिखा था उसे देख कर तो मेरा हृदय चीत्कार कर उठा. लिखा था- प्रतिवादी क्रमांक 4 प्रिया उम्र 7 माह, आत्मजा नामालूम. उफ मैं तो रो पड़ी. मम्मीजी भी चुपचाप आंसू बहाए जा रही थीं. उन कागजों के साथ मेरी चिट्ठी की फोटोकौपी भी लगी थी, जिस को आधार बना कर उस दुष्ट इनसान ने कोर्ट से सहायता मांगी थी कि हम लोगों को प्रिया के

पिता के रूप में उस का नाम लिखने से निषेधित किया जाए और इस बात की घोषणा की जाए कि प्रिया उस की बेटी नहीं है और हम से मानहानि करने के रूप में कुछ हरजाना भी मांगा था. उफ, कोई इतना नीचे गिर सकता है, मेरी सोच के परे था.

तभी मम्मीजी ने फोन कर के प्रियांशुजी को बुला लिया. उस दिन पहली और शायद आखिरी बार मैं ने इन को गुस्सा होते देखा.

मेरे कंधे जोर से पकड़ कर बोले, ‘‘क्या जरूरत थी उस कमीने को कुछ लिखने की? वह इनसान है ही नहीं. पहले प्रियंवदा को फंसाया, फिर जब देखा कि पापा ने उसे नहीं अपनाया तो कुछ मिलने की आशा न देख उसे प्रिया के जन्म के कुछ दिन पहले बेसहारा छोड़ गया. बिना कुछ खाएपीए मेरी बहन बेहोश थी. जब पड़ोसियों ने सरकारी हौस्पिटल में भरती करवाया तो शुक्र था कि मेरा एक साथी उस हौस्पिटल में नौकरी कर रहा था, जिस ने प्रियंवदा को मेरे घर पर कभी देखा था. उस ने मुझे फोन किया. मैं जा कर अपनी बहन को लाया. सोचो जिस का पिता इतना बड़ा डाक्टर, भाई विदेश से डिग्री ले कर आया, पिता का इतना बड़ा हौस्पिटल और वह अनाथों की तरह गंदे कपड़ों में कई दिनों की भूखीप्यासी सरकारी हौस्पिटल में थी. हम लोग जब तक उसे ले कर आए बहुत देर हो चुकी थी. बच्ची को जन्म देते ही उस की मृत्यु हो गई. पापा को भी इस बात का बहुत सदमा लगा कि समय रहते उन्होंने अपनी बेटी की खबर नहीं ली.’’

कुछ देर ठहर कर इन्होंने फिर बोलना शुरू किया, ‘‘और जब हम प्रियंवदा की मौत की खबर देने के लिए उस के घर मेरठ गए और अपनी पत्नी का अंतिम संस्कार करने के लिए चलने की प्रार्थना की तब उस कमीने ने साफ मना कर दिया. उस के पिता ने कहा कि देखिए, जो होना था हो गया अब आप लोग इस बात का प्रचार मत करिए. मेरे बेटे के लिए एक से बढ़ कर एक रिश्ते आ रहे हैं. आप की लड़की के चक्कर में वैसे ही वह हम से इतने दिन दूर रहा. उस की शादी हम ने तय कर दी है. दिल्ली के ही पुराने खानदानी लोग हैं. आप लोग जाइए… तमाशा मत करिए… मैं और पापा वापस आ गए और उस सदमे से ही पापा 5 दिन बाद चल बसे,’’ सांस ले कर इन्होंने फिर मुझे गुस्से से देख कर कहा, ‘‘उस कमीने का मैं नाम भी दोबारा सुनना नहीं चाहता था और तुम ने यह क्या कर दिया?’’

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मैं नि:शब्द रोती रही. यह मुझ से क्या अनर्थ हो गया. बहुत देर तक सब यों ही बैठे रहे. फिर मैं ने ही आंसू पोंछ कर प्रियांशु से कहा, ‘‘वकील अंकल से सलाह कर लेते हैं.’’

मम्मीजी ने भी कहा, ‘‘हां बेटा, वकील साहब से मिल लो जा कर. फिर देखेंगे क्या

करना है.’’

ये चुपचाप मेरे साथ चल दिए. हम दोनों वकील अंकल के घर पहुंचे, जिन के घर और औफिस मैं शादी के पहले जाया करती थी. उन के साथ कभीकभी कोर्ट भी जाती थी. अंकल अपने घर के सामने बने औफिस में ही थे. हम दोनों ने उन के सामने सारे पेपर्स रख दिए.

अंकल ने सारे पेपर्स ध्यान से पढ़े और बोले, ‘‘घबराने की बात नहीं. शादी को साबित करना पड़ेगा. शादी का कोई फोटो या प्रमाणपत्र ले आओ. बच्ची का जन्म प्रमाणपत्र तो है ही.’’

यह सुन कर पहली बार प्रियांशुजी ने बोला, ‘‘फोटो तो जो बहन ने भेजा था पापा ने गुस्से में फाड़ दिया था और प्रमाणपत्र भी शायद नहीं है.’’

यह सुन कर अंकल सोच में पड़ गए. बोले, ‘‘यह आदमी बहुत शातिर लगता है. पूरी तैयारी के बाद ही कोर्ट गया होगा. कोई बात नहीं इन

की शादी का कोई गवाह देख लो… कोई दोस्त, पंडित या पड़ोसी. उन की गवाही हम पेश कर सकते हैं.’’

सारी जानकारी ले कर और जरूरी गवाहों की लिस्ट बना कर हम लोग निकल पड़े. लगातार 4-5 दिन प्रियंवदा के दोस्त और पड़ोसियों को ढूंढ़ते रहे. परंतु इतना आसान नहीं था दिल्ली जैसे शहर में ऐसा कोई मंदिर और पंडित ढूंढ़ना. सब जगह तलाश किया, कहीं भी कोई प्रमाण नहीं मिला. प्रियंवदा के जो कुछ दोस्त मिले उन को तो उस की शादी और प्यार के बारे में कोई जानकारी ही नहीं थी. सब ने यही कहा कि वह तो बहुत चुपचाप रहती थी और शेखर जैसे लड़के से तो प्यार कर ही नहीं सकती थी. शेखर के कुछ दोस्तों को उन के साथ घूमने की जानकारी थी पर शादी की किसी को खबर नहीं थी. जहां वे लोग रहते थे और जिन पड़ोसियों ने प्रियंवदा को बीमार हालत में हौस्पिटल में भरती करवाया था वे भी घर बदल कर कहीं चले गए थे. 7 दिन तक दिनरात भटकने के बाद हम फिर अंकल के सामने थे. एक भी प्रमाण नहीं था हमारे पास. प्रिया का जन्म प्रमाणपत्र था पर उस के बारे में ही शेखर ने आरोप लगाया था कि प्रियंवदा के पिता और भाई ने जानबूझ कर उस के नाम का उपयोग किया और अपना हौस्पिटल होने का फायदा उठाया. अब क्या करें किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था.

अंकल ने कहा, ‘‘कोर्ट में सुबूत पेश करने होते हैं. शेखर ने तो लिखा ही है कि वह कालेज छोड़ने के बाद मेरठ चला गया था और अपने पापा के साथ व्यापार कर रहा है. दिल्ली आया ही नहीं और जरूर उस ने कुछ झूठे कागज भी बनवा लिए होंगे. उन्हें झूठा साबित करने के लिए हमारे पास कुछ नहीं.’’

प्रियंवदा के सामान में एक फोटो तक नहीं मिला था, जिस में दोनों साथ हों. मुझे तो गुस्सा भी आ रहा था दिल्ली जैसे शहर में पढ़ने वाली लड़की इतनी मूर्ख और नासमझ कैसे हो सकती है कि चुपचाप शादी कर ली. बच्चा भी होने वाला था, फिर भी कुछ नहीं सोचा. खैर, अंकल ने आगे कहा कि हम प्रोटैस्ट तो कर ही सकते हैं. प्रियांशु ने पूछा कि यदि वह जीत गया तब क्या परिणाम हो सकता है? अंकल ने और मैं ने समझाया कि प्रिया को अपने पिता की संपत्ति नहीं मिलेगी और उस के नाम के आगे से शेखर नाम हट जाएगा.

बहुत देर सोचने के बाद प्रियांशुजी ने कहा, ‘‘प्रिया को संपत्ति तो अपनी मां की इतनी मिलेगी कि उस कमीने की संपत्ति की जरूरत नहीं है और अच्छा है उस का नाम प्रिया के नाम से हट जाए.’’

तब अंकल ने कहा कि फिर तो आप कोर्ट में उपस्थित ही मत होइए. तब कोर्ट एकपक्षीय डिक्री उसे दे देगा. मेरा मन इस बात के लिए तैयार नहीं था, पर और कोई चारा भी नहीं था. हम लोग वापस आ गए. मैं जब भी प्रिया को देखती तो कोर्ट के कागज में लिखा आत्मजा नामालूम मेरे दिमाग में हथौड़े की तरह पड़ने लगता और मेरे आंसू निकल जाते. न मैं वह चिट्ठी शेखर को लिखती न यह सब होता. यह मैं ने क्या कर दिया, यही सोचते हुए मेरे दिनरात निकल रहे थे. एक दिन फिर डाक से 2-3 पत्र आए. एक शेखर का था, जिस के साथ कोर्ट के निर्णय की कौपी थी, जिस में घोषणा की गई थी कि प्रिया, उम्र 7 माह, आत्मजा नामालूम शेखर की पुत्री नहीं है और मुझे प्रियांशु, मम्मीजी और प्रिया को शेखर के नाम का उपयोग प्रिया के पिता के रूप में करने से स्थाई रूप से निषेधित किया गया था. कानून की जानकार होने के बाद भी मेरा मन यह मानने को तैयार नहीं था कि कोई कोर्ट कैसे रिश्तों की घोषणा कर सकता है और दूसरा पत्र जन्ममृत्यु पंजीकरण औफिस का था कि कोर्ट का और्डर मिलने पर उन्होंने प्रिया के नाम के आगे से उस के पिता के रूप में लिखे शेखर का नाम हटा कर आत्मजा नामालूम लिख दिया.

मैं बहुत देर तक यों ही बैठी रही. समझ ही नहीं आया मम्मीजी को कैसे इन पत्रों के बारे में बताऊं. फिर जब रहा नहीं गया तो प्रिया को गोद में उठाए फिर से अंकल के औफिस पहुंच गई. इस बार अंकल भी मेरी बात से सहमत थे. वापसी में मेरे हाथों में कुछ कागज थे जिन को जा कर प्रियांशुजी और मम्मीजी के सामने रख दिया और उन से उन पर हस्ताक्षर करने को कहा. दोनों ने ही प्रश्नवाचक निगाहों से मेरी तरफ देखा. मैं ने उन से कहा, ‘‘यह मेरा अनुरोध है कि मैं प्रिया को गोद ले कर अपनी बेटी बनाना चाहती हूं.’’

मम्मीजी ने रोते हुए मुझे गले लगा लिया. प्रियांशुजी भी भीगी आंखों से मुझे देखते रहे. दोनों ने हस्ताक्षर करने में देर नहीं की. फिर तो जैसे मेरे पंख लग गए. अब काम बड़ा आसान था. मम्मीजी को प्रिया का संरक्षक बना कर हम ने गोद लेने के लिए कोर्ट में आवेदन दिया और किसी को सूचना देने की जरूरत नहीं थी. कोर्ट ने भी 1 माह के अंदर प्रिया को हमारी दत्तक पुत्री घोषित कर दिया.

मेरे मन को कुछ ठंडक तो मिली, परंतु अब एक दूसरा भय मेरे मन में सवार हो गया था कि नौकर और पड़ोसी कहीं प्रिया के बड़े होने पर उसे असलियत न बता दें. तभी प्रियंक के आने की आहट भी मिल गई. मैं खुश रहने के बदले दिन भर सोच में डूबी रहती. मम्मीजी और प्रियांशुजी ने बहुत कोशिश की मुझे समझाने की पर न जाने मुझे क्या हो गया था. हार कर प्रियांशुजी ने पापा को रायपुर से बुलवाया. दोनों मिल कर मुझे मनोचिकित्सक के पास ले गए. उन की सलाह पर प्रियांशु ने दिल्ली से कहीं दूर बसने का निर्णय लिया. फिर पापा के अनुरोध पर वे दिल्ली की सारी संपत्ति बेच कर रायपुर आ गए. पापा के हौस्पिटल को नए ढंग से बनवा लिया था. पापा का घर तो वैसे ही बहुत बड़ा था. उस में कुछ सुधार कर मम्मीजी के दिल्ली के घर की तरह ही साजसज्जा करवा दी. मम्मीजी भी मेरी और प्रिया की खुशी के लिए भारी मन से दिल्ली छोड़ने को राजी हो गई थीं. बस, कुछ ही दिनों में हम लोग छोटे से प्रियंक और उस से थोड़ी बड़ी प्रिया को ले कर रायपुर आ गए.

मेरे मायके में तो कोई बचा नहीं था. चाचाचाची पहले ही अपने बेटे के पास कनाडा शिफ्ट हो गए थे, इसलिए मुझे अब कोई डर नहीं था. मैं ने सब को अपने 2 बच्चे बताए, प्रिया तो पहले ही इन को पापा कहना सीख चुकी थी और मुझ को मम्मी. अब मम्मीजी को दादी कहती और मेरे पापा को नानू. हम लोग जल्दी इस नए माहौल में रम गए. इन का नाम यहां बहुत जल्दी अच्छे डाक्टरों में शुमार हो गया.

जिंदगी आराम से गुजर रही थी. मैं भी भूल गई थी कि प्रिया मेरी अपनी कोख से जन्मी बेटी नहीं है. दोनों बहनभाई बहुत प्यार से रहते. पढ़ने में दोनों बड़े होशियार थे. अचानक एक दिन जब प्रिया शायद 9वीं कक्षा में थी तब उस ने मुझ से पूछा, ‘‘क्यों मम्मा, नानू बता रहे थे आप कलैक्टर बनना चाहती थीं. फिर क्यों नहीं बनीं?’’ मैं ने इन की तरफ देखा ये फौरन बोले, ‘‘बेटे तेरी मम्मी को तुम्हारी मां बनने की जल्दी थी न इसलिए,’’ मैं ने जल्दी से जवाब दिया, ‘‘बेटा, मेरा सपना तो था कलैक्टर बनने का पर तेरे पापा मुझ पर ऐसे फिदा हुए कि शादी के लिए पीछे पड़ गए. फिर तुम मिल गईं और मैं अपने सपने को भूल गई,’’ बोलतेबोलते जैसे मैं पुरानी यादों में खो गई.

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प्रिया ने पता नहीं क्या समझा और फिर मेरे गले लग कर बोली, ‘‘डोंट वरी मां आप के सपने को आप की बेटी पूरा करेगी,’’ फिर अपने भाई का कान पकड़ कर बोली, ‘‘सुन नालायक मैं अब डाक्टर नहीं बनूंगी तू बनेगा और पापा का हौस्पिटल संभालेगा. मैं तो अपनी मम्मा का सपना पूरा करूंगी.’’

उस दिन के बाद से वह जैसे नए जोश में भर गई. तुरंत विज्ञान विषय को बदल कर हिस्ट्री, इंग्लिश और इकौनोमिक्स ले लिया. मेरा मार्गदर्शन तो था ही. जल्दी ही वह दिन आ गया जब एमए करने के बाद उस ने यूपीएससी की परीक्षा दी और पहले ही प्रयास में कुछ कम नंबर आने पर दोबारा परीक्षा में बैठी. इस बार शुरू के 50 लोगों में नंबर था. मसूरी से ट्रेनिंग करने के बाद उस की रायपुर में ही अतिरिक्त कलैक्टर के पद पर प्रशिक्षु के रूप में नियुक्ति हो गई. उस के बैच के 6 और लड़के थे. उन को हम ने खाने पर बुलाया. सभी बहुत खुशमिजाज थे. खाना खाने के बाद भी बड़ी देर बातचीत चलती रही. मैं ने महसूस किया कि उन में से एक की नजर प्रिया पर ही थी. प्रिया भी उस को अलग नजर से देख रही थी. पूछताछ करने पर पता चला कि वह गुजरात का रहने वाला था. उस के पापा आर्मी में थे. उस का नाम शरद था. मैं लड़की की मां की तरह सोच रही थी कि लड़का अच्छा है. बराबर के पद पर है और सब से बड़ी बात कि प्रिया को पसंद भी कर रहा है. प्रिया भी शायद उसे पसंद करती है. मैं ने इन से बात करनी चाही पर इन्होंने मुझे मीठी झिड़की दी कि अरे कुछ तो सोच बदलो. आजकल का जमाना नया है. लड़केलड़की बराबरी से हंसीमजाक करते हैं. जरूरी नहीं कि वे आपस में प्यार करते हों. मुझे गुस्सा आ गया और मैं करवट बदल कर सो गई. पर मेरा अंदाजा कितना सही था, यह मुझे दूसरे दिन पता लग गया. शाम को जब प्रिया औफिस से आई तब कार में उस के साथ शरद भी था. मैं ने तुरंत चायनाश्ता लगवाया. कुछ देर इधरउधर की बातें करने के बाद मैं ने देखा दोनों एकदूसरे को कुछ इशारे कर रहे हैं. मुझे भी हंसी आने लगी. मैं जानबूझ कर औफिस और राजनीति की बातें करती रही.

आखिर प्रिया ने कहा, ‘‘मां, शरद को आप से कुछ कहना है.’’

मेरे कान खड़े हो गए. जब कोई बात मनवानी होती थी तब दोनों बच्चे मुझे मां कहते थे. अत: मैं ने कहा, ‘‘हां, बोलो बेटा क्या बात है?’’

शरद ने धीरेधीरे पर बड़े विश्वास से मुझे अपने और परिवार के बारे में बताया. उस के पापा आर्मी में ब्रिगेडियर थे. वह अकेला लड़का था. प्रिया उस को पसंद थी. मसूरी में ही उन की अच्छी दोस्ती हो गई थी. उस के मातापिता को शादी पर कोई ऐतराज नहीं. प्रिया को मेरी मंजूरी चाहिए थी.

मुझे इस शादी पर तो कोई ऐतराज था ही नहीं और मैं तो कल रात से ही सपने देख रही थी पर मुझे एहसास हुआ कि शरद को सच बता देना चाहिए. कुछ सोचने के बाद मैं ने कहा कि मैं उस से अकेले में बात करना चाहती हूं. यह सुन कर प्रिया ने हंसते हुए कहा, ‘‘मम्मी जरूर तुम्हें अपनी लड़की का पीछा छोड़ने के लिए पैसे देने वाली हैं. तुम फिल्मी हीरो की तरह पैसे ठुकरा मत देना. अच्छीखासी रकम मांग लेना. फिर हम दोनों खूब शौपिंग करेंगे.’’

मैं ने उस के इस मजाक का कोई जवाब नहीं दिया. बस उसे वहीं रुकने की बोल शरद को अपने कमरे में ले गई. कमरा बंद कर मैं ने अपनी अलमारी से वे बरसों पुराने कोर्ट के कागज निकाल कर उसे दिखाए और बताया कि प्रिया हमारी अपनी बच्ची नहीं, गोद ली हुई है, पर वह है इसी घर की बच्ची. संक्षेप में उसे प्रिया की कहानी बताई.

अंत में मैं ने कहा, ‘‘हम इस बात को भूल चुके हैं, पर तुम उसे जीवनसाथी बना रहे हो तो इस के लिए यह जरूरी है कि तुम सच जान लो. अब तुम्हारा जो फैसला हो बता दो,’’ कह कर मैं आंखें बंद कर बैठ गई. दिल धकधक कर रहा था कि पता नहीं मैं ने अपने ही हाथों अपनी बेटी का बुरा तो नहीं कर दिया.

थोड़ी देर बाद महसूस हुआ कि शरद मेरे आंसू पोंछ रहा है. शरद ने सारे कागज वापस अलमारी में रखे और मेरे हाथों को अपने माथे से लगाते हुए बोला, ‘‘अब तो किसी भी कीमत पर मैं इस घर से रिश्ता जोड़ कर रहूंगा.’’

बस इस के बाद शरद के मम्मीपापा आए. बड़े ही अच्छे माहौल में सारी बातें तय हुईं और सगाई तय कर दी. प्रियंक भी अमेरिका से अपनी एमएस की पढ़ाई पूरी कर वापस आ गया. शहर के बड़े होटल में हम ने प्रिया की सगाई रखी. पापा के बहुत पुराने दोस्त आर्मी से रिटायर हो कर गवर्नर बन गए थे. पापा ने उन्हें भी बुलाया. वे सहर्ष आए. शहर के कुछ प्रमुख लोग, कुछ परिचित और प्रिया और शरद के औफिस के अधिकारी सब मिला कर करीब सौ मेहमान हो गए थे. गवर्नर साहब के आने से फोटोग्राफर्स ने तो बस मौका ही नहीं छोड़ा. हजारों फोटो ले डाले और उन्हीं में से एक फोटो समाचारपत्रों में छपा था, जिसे मैं उस दिन देख रही थी. तभी वह फोन आया था.

मैं वापस वर्तमान में लौट आई. पता नहीं क्याक्या हुआ होगा. प्रिया को सब पता लग गया क्या? क्या वह मुझ से नाराज हो गई? यदि नहीं तो वह यहां क्यों नहीं दिख रही? मुझे कुछ हो और प्रिया पास न हो ऐसा कभी हो सकता है?

तभी रूम की घड़ी ने सुबह के 6 बजाए. बेटा झटके से उठा और मेरी तरफ बढ़ा. मुझे आंखें खोले देख खुशी से चिल्ला पड़ा, ‘‘ओह मां, आप जाग गईं. पता है तुम्हारी बेटी ने तो मेरा 4 दिन से जीना मुश्किल कर दिया था. कल रात जब मैं ने बोला कि अब मां ठीक हैं सुबह तक ठीक हो जाएंगी तब पापा को घर ले जाने के बहाने उसे घर भेज पाया हूं. दोनों बोल गए थे चाहे कितनी रात को तुम्हें होश आए उन्हें जरूर बुला लूं,’’ फिर दरवाजे की तरफ देख कर बोला, ‘‘लो, आप के देवदास और आप की चमची दोनों हाजिर हैं. बिना बुलाए सुबह 6 बजे आ धमके.’’

मैं ने भी दरवाजे की तरफ देखा. प्रियांशु और प्रिया भागे चले आ रहे थे. दोनों आ कर बैड की एक तरफ खड़े हो गए. प्रिया तो मेरे गले लग कर रोने ही लगी, ‘‘क्या मां, आप ने तो डरा ही दिया. मेरी शादी का इतना दुख है, तो मैं नहीं करती शादी.’’

मेरा बेटा फौरन बोला, ‘‘अरे, जाओ, मम्मी तो खुशी बरदाश्त नहीं कर पाईं… और अटैक तो मुझे आना था खुशी का कि अब कम से कम घर पर मेरा राज होगा.’’

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प्रिया ने तुरंत उस का कान पकड़ा, ‘‘बड़ा आया… विदेश से क्या पढ़ कर आया है. 4 दिन लगा दिए मम्मी को ठीक करने में… पहले डाक्टरी तो ठीक से कर, फिर घर पर राज करना.’’

दोनों की नोकझोंक सुन कर मैं निहाल हुई जा रही थी. प्रिया पहले की तरह ही थी. लगता है वह नहीं आया होगा. मैं ने चैन की सांस ली.

1 सप्ताह बाद मैं अपने घर की राह पर थी. कार में प्रियांशु और शरद आगे बैठे थे. प्रिया मुझे संभाले पीछे थी. अचानक प्रिया ने कहा, ‘‘मुझे पता है आप को किस बात का सदमा लगा. वह आदमी आया था जिस के कारण आप हौस्पिटल पहुंची.’’

मैं ने चौंक कर उसे देखा. तभी प्रियांशु ने बात संभाली और बोला, ‘‘हां पारुल वह आया था. मुझे तो समझ ही नहीं आया कि क्या करूं पर अच्छा हुआ तुम ने शरद को सब बता दिया था. उस ने ही प्रिया को तुम्हारे कमरे में ले जा कर कोर्ट के सारे कागज दिखाए और फिर बाकी कहानी मैं ने प्रिया को बताई. इन दोनों ने उस का वह हाल किया कि मजा आ गया. मेरी बहन और पापा के मन को भी शांति मिल गई होगी.’’

सारी बात जानने को उत्सुक हो गई तब इन लोगों ने बताया कि प्रिया ने उसे बहुत खरीखोटी सुनाई. उस के बेटे निकम्मे निकले. सारी संपत्ति पहले ही खो चुका था, इसलिए सोचा होगा कि तुम्हें डरा कर कुछ पैसे ऐंठ लेगा, पर तुम तो उस का फोन सुनते ही बेहोश हो गईं. वह जब घर आया तब तुम हौस्पिटल में थीं. उस ने यह नहीं सोचा था कि उस का सामना प्रिया से ही हो जाएगा. वह अपनी बेटी के आधार पर भरणपोषण का दावा करने की सोच रहा था पर प्रिया ने सारे कागज उस के सामने लहरा दिए और धमकी भी दे डाली कि यह सोच कर आए थे कि मेरे मम्मीपापा से पैसे वसूल करोगे? तुम हो कौन? मेरी मां से तो तुम्हारा कोई संबंध ही नहीं, यह तो तुम कई बरस पहले कोर्ट में बता चुके हो. मैं तुम्हारी बेटी नहीं. फिर कैसे मुझ से भरणपोषण मांगने का केस करोगे और केस तो अब मैं करूंगी… मेरे परिवार को तुम ने नुकसान पहुंचाया है. मेरी मां तुम्हारे कारण हौस्पिटल में हैं. अब जाते हो या पुलिस को बुलाऊं?’’ और फिर तुरंत एसपी साहब को फोन भी कर दिया कि एक आदमी धमकी देने आया है. अब वह इस शहर में दिखना नहीं चाहिए. तुरंत पुलिस आ गई और उसे यह कह कर चले जाने को कहा कि दोबारा इस शहर में पैर रखा तो सीधे जेल में दिखोगे.

प्रिया ने मेरे गले लगते हुए कहा, ‘‘आप की बेटी इतनी कमजोर नहीं मां और न हमारा रिश्ता इतना कमजोर है जो किसी के कुछ कहने से खत्म हो जाए, फिर आप क्यों दिल से लगा कर बैठ गईं उस की धमकी को? उस की तो शक्ल देखने लायक थी… अब पता चलेगा बच्चू को. सुना है भूखे मरने की नौबत आ गई है उस की.’’

मैं ने राहत की सांस ले कर प्रिया को गले लगा लिया. घर आ गया था, पर फिर मेरा भावुक मन यह सोच कर परेशान हो गया कि आखिर है तो प्रिया का पिता ही… भूखों मर रहा है यह तो ठीक नहीं…

प्रिया ने जैसे मेरे मन की बात जान ली. बोली, ‘‘आप चिंता न करो मां. मैं ने और शरद ने मेरठ के कलैक्टर से बात कर के उसे वृद्धाश्रम भेजने का प्रबंध कर लिया है. जब तक जीवित है निराश्रित पैंशन भी उसे मिलती रहेगी. वह भूखा नहीं मरेगा.’’

मैं ने जब नजर भर कर उसे देखा तो मेरे गले लग कर बोली, ‘‘मुझे धरती पर लाने का एहसान तो किया था उस ने वरना इतनी प्यारी मां कैसे मिलतीं, इसलिए वह कर्ज चुका दिया. अब और इस से ज्यादा की आशा मत रखना कि मैं कभी उस से मिलने जाऊंगी या और कुछ करूंगी.’’

मैं ने हंस कर अपनी बेटी को गले लगा लिया. हमारा रिश्ता कागज से बना था पर खून के रिश्ते से ज्यादा गहरा और प्यारा था. मैं ने अपनी प्यारी बिटिया को गले लगाए घर में प्रवेश किया.

जीवनसाथी: दीया और बाती

जैसे जैसे अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव की सरगर्मियां तेज हो रही हैं वैसे वैसे हिलेरी क्लिंटन राष्ट्रपति पद के लिए एक सशक्त उम्मीदवार के तौर पर सामने आ रही हैं, साथ ही उन का 40 सालों का वैवाहिक जीवन भी पुन: चर्चा में है.

हिलेरी ने अपने वैवाहिक जीवन में कई उतारचढ़ाव देखे हैं खासकर 1998 में व्हाइटहाउस इंटर्न मोनिका लेविंस्की के साथ बिल क्लिंटन के अफेयर की खबर ने इस शादी की नींव हिला दी थी. लेकिन जल्द ही हिलेरी ने यह कह कर लोगों की जबान पर ताला लगा दिया कि वे पति के साथ अपने गहरे रिश्ते और शादी की हकीकत को जानती हैं और वे पति के साथ हैं. एक इंटरव्यू में उन्होंने स्वीकार किया कि न तो कोई उन्हें बिल की तरह समझ सकता है और न ही हंसा.

उन के इस वक्तव्य ने यह स्पष्ट कर दिया कि वे अपने जीवनसाथी से कितनी गहराई से जुड़ी हुई हैं. उन के रिश्ते से दंपती सीख ले सकते हैं कि कैसे अहं को दरकिनार कर कठिन समय में भी जीवनसाथी का साथ दिया जा सकता है.

तब तक रिश्ते को निभाना बहुत आसान है जब तक सब ठीक हो. असली कमिटमैंट तब देखी जाती है जब कठिन हालात में भी व्यक्ति जीवनसाथी के साथ उतनी ही शिद्दत से जुड़ा रहता है. गहरे जुड़ाव से कमिटमैंट स्ट्रौंग होती है, जो सच्चे रिश्ते का आधार है.

एक और सैलिब्रिटी कपल है, जिस की वैवाहिक जिंदगी एक उदाहरण है और वह है मिशेल और बराक ओबामा. दुनिया के सब से शक्तिशाली व्यक्ति से शादी कर तालमेल बैठाए रखना आसान नहीं होता. मगर मिशेल और बराक ओबामा की जोड़ी को देख एहसास होता है कि वाकई वे इस रिश्ते को बेहद खूबसूरती से निभा रहे हैं. वे एकदूसरे को पूरी अहमियत देते हैं.

एक पत्रिका को दिए गए इंटरव्यू में मिशेल ने कहा था कि उन्होंने अपने पति से सीखा है कि जिंदगी में आने वाले अपडाउन से कभी प्रभावित न हों, बस लंबी सांस लें, जो हुआ उस के अनुरूप जीना सीख लें. वहीं बराक ने भी स्वीकार किया कि उन्होंने मिशेल से अनुशासन सीखा है. समय की पाबंदी, कपड़ों को सही जगह रखना, बच्चों के साथ समय बिताने के लिए प्लानिंग करना वगैरह मिशेल ने ही उन्हें सिखाया है.

रिश्ता सिर्फ नाम का नहीं होता खासतौर पर विवाह बंधन. यह तो उम्र भर का बंधन होता है. एकदूसरे के साथ हर परिस्थिति में खड़े होना, एकदूसरे की ढाल बनना, आपसी विश्वास, प्रेम व सहयोग को हमेशा बढ़ावा देना और साथी के साथसाथ उस के परिवार का भी सम्मान करना जैसी बातें दांपत्य जीवन की फुलवारी को हमेशा गुलजार रखती हैं.

टिप्स हैप्पी मैरिड लाइफ के

 इन सैलिब्रिटिज के खुशहाल वैवाहिक जीवन जीने के तरीकों को जान कर आप भी अपने जीवनसाथी के साथ रिश्ते को मजबूती दे सकती हैं.

सकारात्मक रुख जरूरी: इस में कोई शक नहीं कि जितना ही ज्यादा व्यक्ति सकारात्मक सोच वाला होता है, उस की वैवाहिक जिंदगी भी उतनी ही खुशहाल रहती है.

शिकागो यूनिवर्सिटी में किए गए एक अध्ययन के मुताबिक जब पति सकारात्मक विचारों वाला होता है, तो दांपत्य जीवन में संघर्ष की संभावना घट जाती है. जीवनसाथी एकदूसरे की जिंदगी में घटी अच्छीबुरी घटनाओं के प्रति किस तरह प्रतिक्रिया देते हैं, इस बात का भी प्रभाव उन के रिश्ते पर पड़ता है.

जर्नल औफ पर्सनैलिटी ऐंड सोशल साइकोलौजी में प्रकाशित एक अध्ययन के मुताबिक पार्टनर एकदूसरे की गुड न्यूज पर किस तरह से रैस्पौंस देते हैं, उत्साहित हो कर, गर्व से या फिर उदासीनता से. इस बात का उन के बीच की घनिष्ठता पर गहरा प्रभाव पड़ता है.

संवाद कायम रखें: पैसों को ले कर तकरार और कमजोर संवाद दोनों एक रिश्ते को तोड़ने या अस्वस्थ बनाने में सब से महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.अकसर हम यह ऐक्सपैक्ट करते हैं कि हमारा जीवनसाथी बिना कुछ कहे ही हमारे मनमस्तिष्क में उमड़ रही बातों को समझ लेगा. हम मन की बातें कहते नहीं और अंदर ही अंदर परेशान होते रहते हैं. इसलिए जरूरी है कि अपने जीवनसाथी से दिल की हर बात जाहिर करें.

यदि किसी बात पर विवाद है तो अपना पक्ष जरूर रखें. सिर्फ अहं की खातिर विवाद बढ़ाते जाना उचित नहीं. विवाद जल्द से जल्द खत्म करना जरूरी है.

एकदूसरे के दोस्त बनें: पतिपत्नी बहुत अच्छे दोस्त बन सकते हैं. वे एकदूसरे की आदतों, जरूरतों व विचारों से पूरी तरह वाकिफ होते हैं. रोमांस व फन ऐक्टिविटीज के साथ खुशनुमा लमहे गुजारें. आप जितना ज्यादा फन और फ्रैंडशिप के साथ इन्वैस्टमैंट करेंगे, उतना ही अधिक रिश्ता मजबूत रहेगा.

घर के कामों में सहयोग: यूनिवर्सिटी औफ कैलिफोर्निया, लास एंजिल्स (यूसीएलए) के शोधकर्ताओं ने बहुत से लोगों के रिश्तों का 4 सालों तक अध्ययन कर के यह निष्कर्ष निकाला कि जितना ही ज्यादा घर के कामों को सिस्टेमैटिक हैंडल किया जाता है, कामों का बंटवारा किया जाता है, जिंदगी उतनी ही खुशहाल गुजरती है.

कहीं अनकही दूरी न आ जाए: कई दफा हम वीडियो गेम्स, मोबाइल चैटिंग वगैरह में इतने व्यस्त हो जाते हैं कि अपने पार्टनर का अकेलापन महसूस ही नहीं कर पाते. इसी तरह कुछ लोगों को कंप्यूटर ऐडिक्शन होता है तो कुछ यारदोस्तों में ही इतने व्यस्त हो जाते हैं कि घर की सुध देर से आती है. रिश्ते में इस दूरी को सदैव दूर रखने का प्रयास करें.

समय दीजिए: अपने रिश्ते को मजबूत रखने के लिए एकदूसरे को समय दीजिए.

कपल्स के लिए यह आवश्यक है कि कम से कम 12 से 15 घंटों का वक्त (इस में नींद व टीवी देखने में व्यतीत समय शामिल नहीं है) हर सप्ताह साथ बिताएं. इस दौरान उन गतिविधियों के लिए समय निकालें, जिन्हें आप दोनों ऐंजौय करते हैं और जो आप को करीब लाती हैं. अपनी वैवाहिक जिंदगी से जुड़े महत्त्वपूर्ण दिनों जैसे सालगिरह आदि उत्साह के साथ मनाएं.

पति ज्यादा सैंसिटिव

यूनिवर्सिटी औफ शिकागो के एक नए अध्ययन के मुताबिक वैवाहिक जिंदगी की सफलता पति की सेहत व ऐटीट्यूड पर निर्भर करती है न कि पत्नी के.

इस अध्ययन में 63 से 90 साल की आयु के कई कपल्स शामिल किए गए. शोधकर्ताओं ने पाया कि जब पति की सेहत खराब रहती है, तो वैवाहिक जिंदगी में अधिक संघर्ष/विवाद पाए जाते हैं, मगर जब परिस्थिति इस के विपरीत हो और पत्नी की तबीयत खराब हो तो ऐसा कोई असर नहीं पाया गया.

दरअसल, पति इन मामलों में ज्यादा संवेदनशील पाए जाते हैं और एक पति के लिए अवसाद में आना या नाखुश होना पत्नी के मुकाबले सहज होता है. भले ही परिस्थितियां पत्नी और पति के लिए समान ही क्यों न हों और फिर जब पति अप्रसन्न रहता है तो रिश्ते के डगमगाने की संभावना अधिक रहती है. इस के विपरीत पत्नी अपनी समस्याएं हल करने में ज्यादा माहिर होती है. मगर इस का मतलब यह नहीं कि वैवाहिक सफलता केवल पति पर ही निर्भर है.

डिवोर्स मीडिएटर नैंसी फैगन कहती हैं कि 85% रिश्ते पत्नियों द्वारा खत्म किए जाते हैं. वे डिवोर्स के लिए आगे बढ़ती हैं, क्योंकि वे पतियों की इस बात से आजिज आ चुकी होती हैं कि वे रिश्ते को बचाने का प्रयास नहीं करते.

एक अध्ययन में पाया गया है कि उम्र बढ़ने के साथसाथ पत्नियों में डिप्रैशन और आत्महत्या की प्रवृत्ति बढ़ती जाती है. ज्यादातर पति रिश्ते में कंपिटैंसी व प्रौब्लम सौल्विंग को अहमियत देते हैं जबकि पत्नियां इंटीमेसी व इमोशनल कनैक्शन को महत्त्व देती हैं.

ऐक्सपर्ट की राय

भावना मोंगा, औथर ऐंड रिलेशनशिप वैलनैस ऐक्सपर्ट के अनुसार, ‘‘पति और पत्नी

के बीच रिश्ता मधुर बना रहे, इस के लिए जरूरी है कि वे आपस में बात करें. एकदूसरे से कुछ छिपाएं नहीं. जो सच होता है वह आज नहीं तो कल सामने आ ही जाता है. दंपतियों के लिए जरूरी है कि हमेशा एकदूसरे पर विश्वास करें. यही नहीं एकदूसरे के परिवार को भी समझें. विवाह केवल 2 जनों के बीच नहीं, बल्कि 2 परिवारों के बीच होता है. यह केवल पत्नी की जिम्मेदारी नहीं कि वह पति के परिवार को अपना माने और साथ रहे. पति की भी उतनी ही जिम्मेदारी है कि वह पत्नी के परिवार को समझे.’’

सम्मान जरूरी

‘‘पतिपत्नी का रिश्ता ऐसा होता है, जिस में प्यार के साथसाथ एकदूसरे के प्रति सम्मान होना भी बहुत जरूरी है. एकदूसरे की फैमिली को अहमियत दें. एकदूसरे की भावनाओं को समझें. तभी रिश्ता सदा मजबूत डोर में बंधा रह पाएगा.’’

– दीपिका कक्कर, टीवी कलाकार

 

यदि आप चाहती हैं कि आप को एक बेहतर जीवनसाथी मिले या जानना चाहती हैं कि जिसे आप पसंद करती हैं वह एक बेहतर जीवनसाथी साबित होगा या नहीं, तो सब से अच्छा उपाय है कि आप उस की ईयरबुक फोटोज चैक करें. वर्ष 2009 में किए गए एक अध्ययन में दिलचस्प बात सामने आई. शोधकर्ताओं ने कालेज ईयरबुक की तसवीरों में से कुछ लोगों की मुसकराहटों की गहराई को 1 से 10 नंबरों में बांटा है. उन्होंने पाया कि टौप 10% में आने वाले लोगों में से, जिन के चेहरों पर सब से ज्यादा सहज मुसकराहट थी, किसी ने भी तलाक नहीं लिया, मगर सब से निचले स्तर के 10% वालों में से 25% ने अपनी शादी तोड़ दी…

झिझक से समस्या बढ़ती है

‘‘हर रिश्ते की बुनियाद सचाई, प्यार, विश्वास, आपसी बौंडिंग आदि से मजबूत होती है और शादी तो एक ऐसा बंधन है, जिस में पतिपत्नी अपने जीवन के सारे दुखसुख का सामना एकसाथ करते हैं. वैवाहिक जिंदगी में सब से महत्त्वपूर्ण है प्यार और विश्वास. जब पत्नी अपने जीवन के रोमांटिक पलों में कमी महसूस करती है, तो भी पति से यह बात कहने में हिचकती है. सिर्फ पत्नी ही नहीं, कई बार पति भी बात करने में झिझक महसूस करता है. ऐसे में समस्या कम होने के बजाय बढ़ती जाती है. प्यार तो सब करते हैं पर कभीकभी इसे जताना भी चाहिए. ऐसा करने से एकदूसरे के लिए फीलिंग्स बढ़ने लगती हैं और रिश्ता मजबूत होता है.’’

– डा. संजू गंभीर, मनोवैज्ञानिक, प्राइम्स सुपर स्पैश्यलिटी हौस्पिटल

 

ईमानदार है बहुमूल्य

‘‘अपने साथी के साथ ईमानदार होने पर आप को रिश्ते में बहुमूल्य विश्वास मिलेगा, जोकि मजबूत, खुश और ताउम्र टिकने वाले रिश्ते के आधार है. याद रखें, झूठ ज्यादा समय तक नहीं चल पाता और एक दिन खुदबखुद सामने आ जाता है. अपने जीवनसाथी से झूठ बोलना निश्चित रूप से एक अच्छा विकल्प नहीं है.’’            

– अनामिका यदुवंशी. लाइफ कोच और ट्रेनर. 

समाज की मानसिकता बदलनी जरूरी: प्रिसिलिया मदान

अगर मन में कुछ अलग करने का जज्बा हो, तो आप किन्हीं भी हालात में कामयाब होंगे. महाराष्ट्र के पनवेल की 22 वर्षीय प्रिसिलिया मदान और 26 वर्षीय सुमित परिन्जे इस की ताजा मिसाल हैं. दोनों की जोड़ी श्रीलंका से खार डूंगला तक बैंबू से बनी साइकिल से साइक्लिंग कर ‘गर्ल चाइल्ड’ की शिक्षा के लिए जागरूकता और फंड को बढ़ाने की कोशिश कर रही हैं. 63 दिनों तक चलने वाले इस अभियान में वे छोटेछोटे गांवों और शहरों के लोगों से मिलेंगे. इस से इकट्ठा किए गए करीब क्व50 लाख के फंड से 1,500 लड़कियां पढ़ेंगी. इसे वे अपना बड़ा अभियान मानते हैं.

सफलता का सफर

बचपन से ही कुछ अलग करने की चाहत रखने वाली प्रिसिलिया के पिता धनंजय मदान भी साइक्लिस्ट थे. उन्होंने काम के साथसाथ कई अवार्ड्स भी जीते हैं. यहीं से प्रिसिलिया को प्रेरणा मिली. उन्होंने कंप्यूटर साइंस में मास्टर्स किया है. 3 साल पहले वे मुंबई से पुणे तक 50 किलोमीटर साइकिल चला चुकी हैं. इस से पहले ‘कुल्लू टु खार डूंगला’ 600 किलोमीटर साइकिल चला कर ‘लिम्का बुक औफ रिकौर्ड्स’ में अपना नाम दर्ज करा चुकी हैं. इतना ही नहीं, उन्होंने पनवेल से पुरी तक 2,200 किलोमीटर का सफर भी साइकिल से ही तय किया है. समस्या उन्हें तब आती है जब सफर के अंत में साइकिल खराब होने लगती है, लेकिन उन्हें उसे ठीक करना भी आता है.

इस अभियान में बैंबू साइकिल चलाने की वजह के बारे में पूछे जाने पर वे बताती हैं कि जब उन्होंने सोलो साइकिल चलाई तो मीडिया उन तक पहुंचा. इस से कुछ लोग उन से जुड़े. उन में से एक ने उन से बैंबू साइकिल चलाने की बात कही. प्रिसिलिया को सुझाव अच्छा लगा. थोड़ीबहुत फेरबदल के बाद उन्होंने ओके किया.

वे बताती हैं कि बैंबू साइकिल चलाना, कट मारना, भीड़ से निकलना, ट्रैफिक पर ध्यान देना आदि आसान नहीं होता. 20 किलोग्राम सामान के साथ 4,400 किलोमीटर का सफर साइकिल से करना बहुत कठिन होता है. कहीं भी जाने से पहले उस की पूरी प्लानिंग करनी पड़ती है. हर 2 घंटे के बाद थोड़ा खाना जरूरी होता है ताकि थकान न हो.

प्रिसिलिया कहती हैं कि ऐसे अभियान में शरीर का स्वस्थ होना आवश्यक है, इसलिए खाना पौष्टिक हो, इस का खास खयाल रखा जाता है. अगर कोई बीमार हो जाता है तो लोकल डाक्टर की सहायता ली जाती है. वे दोनों तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, दिल्ली, पंजाब, चंडीगढ़, हिमाचल प्रदेश और जम्मू ऐंड कश्मीर आदि स्थानों पर जाएंगे. उन के अनुसार साइकिल द्वारा लोगों तक पहुंचना काफी रोचक होता है. एक से दूसरे स्थान के बदलाव को महसूस करना काफी दिलचस्प होता है. कई प्रकार के अनुभव मिलते हैं.

प्रिसिलिया बताती हैं कि लोग उन के जज्बे को देख कर खुश हो जाते हैं. लोग बड़े प्यार से मिलते हैं. इस तरह की ऐडवैंचर से उन्हें वहां की संस्कृति और रहनसहन के बारे में भी पता चलता है.

सड़क की सुरक्षा के बारे में वे बताती हैं कि लोग उन के ऐडवैंचर को देख कर हैरान होते हैं. बड़ी खुशी से उन से मिलते हैं, घर बुलाते हैं. महिलाएं ज्यादा खुश होती हैं, इसलिए कभी सड़क पर असुरक्षा महसूस नहीं हुई.

कुछ बदलाव जरूरी

प्रिसिलिया बताती हैं कि यह सही है कि हमारे देश की लड़कियों की पढ़ाई पर कोई ध्यान नहीं देता, जबकि विदेशों में ऐसा नहीं है, वहां वे अपनी इच्छा को पूरा करने के लिए आजाद हैं. हमारे देश में कम उम्र में शादी कर दी जाती है. जबकि आजकल लड़कियां हर क्षेत्र में आगे हैं. फिर भी छोटे गांवों और शहरों में कन्या भ्रूण हत्या आज भी हो रही है. ऐसे में जितना भी काम किया जाए कम ही होगा, क्योंकि लोगों

की मानसिकता नहीं बदली है. इसलिए जरूरी है छोटे शहरों और कसबों में जा कर इस बारे में बात की जाए.

आगे प्रिसिलिया साइकिल से ‘वर्ल्ड टूअर’ करना चाहती हैं. पूरे विश्व में घूम कर वे अच्छा फंड इकट्ठा करना चाहती हैं ताकि अधिक से अधिक लड़कियां शिक्षित हों. प्रिसिलिया भरतनाट्यम की क्लासिकल डांसर हैं. कई स्टेज शो भी किए हैं. इस के अलावा माउंटेनियरिंग की शिक्षा भी ली है.                 

भारत की बेटी

कैसा विरोधाभास है. एक तरफ जहां टीवी चैनल्स पीवी सिंधु द्वारा रियो ओलिंपिक खेलों में सिल्वर मैडल जीतने पर उस का गुणगान करते नहीं थक रहे, वहीं दूसरी तरफ मेरे पड़ोस वाले घर में बेटी पैदा होने के कारण मातम छाया है. मैं सोच में पड़ गई कि कब हमारे समाज की मानसिकता बदलेगी? बदलते समय के साथ लोगों की सोच क्यों नहीं बदलती? ऐसा कौन सा कार्य है, जिसे पुरुष कर सकते हैं, स्त्रियां नहीं? हमारे इतिहास में ऐसे कई उदाहरण हैं जब लड़कियों ने अपने मातापिता के साथसाथ पूरे देश का नाम भी रोशन किया है. बस आवश्यकता है उन्हें परिवार और समाज के सहयोग की.

सिंधु के मेरे शहर हैदराबाद की ही निवासिनी होने के कारण मुझे उस में खासी दिलचस्पी जागी. वैसे तो सायना नेहवाल, सानिया मिर्जा का भी यह निवासस्थान तथा कार्यस्थल है, लेकिन बैडमिंटन में पहली महिला खिलाड़ी सिंधु ने ओलिंपिक में सिल्वर मैडल जीत कर नया कीर्तिमान स्थापित कर के अपने देश का नाम रोशन किया है.

बचपन से ही खेल में रुचि

21 वर्षीय सिंधु ने मात्र 6 वर्ष की आयु में बैडमिंटन में रुचि लेनी शुरू कर दी थी. तब उस का रुझान पड़ोस में खेलने तक ही सीमित था. उस समय वह मारेडपल्ली, सिकंदराबाद में रहती थी. इस समय वह कोकापेट, हैदराबाद में रहती है, जहां वह पुलेला गोपीचंद बैडमिंटन ऐकैडमी में अभ्यास के लिए जाती है. सिंधु के पिता पीवी रमण और मां पी विजया वौलीबौल के खिलाड़ी थे. पिता को अर्जुन अवार्ड से भी नवाजा गया है. वे उस इंडियन वौलीबौल टीम के मैंबर थे, जिस ने 1986 में सिओल एशियन गेम्स में कांस्य पदक जीता था. उन्होंने सिंधु की ओलिंपिक की तैयारी कराने के लिए रेलवे की नौकरी से लंबी छुट्टी ली थी और मां ने तो रेलवे की नौकरी ही उस के उद्देश्य की पूर्ति के लिए छोड़ दी थी. बड़ी बहन सौम्या भी राष्ट्रीय स्तर की हैंडबौल खिलाड़ी थी, लेकिन एमबीबीएस की पढ़ाई के लिए उस ने खेल जगत से दूरी बना ली.

सिंधु की मां विजया का कहना है कि जब वह 7 साल की थी तो अपने सीनियर्स के साथ नहीं खेल पाती थी. तब प्रसिद्ध बैडमिंटन कोच दिवंगत महबूब अली ने सिंधु से कहा कि वह दीवार पर शटल मार कर खेले और तब तक खेले जब तक दीवार का पेंट न उखड़ जाए.

सब से लंबी महिला खिलाड़ी

पुलेला गोपीचंद से कोचिंग लेने से पहले सिंधु ने कोच एसएम आरिफ, गोवर्धन रेड्डी तथा महबूब अली से भी कोचिंग ली है. पुलेला गोपीचंद बैडमिंटन ऐकैडमी जोकि हैदराबाद में है, उस ने सिंधु के जीवन को खेल जगत में पदार्पण करने के लिए सशक्त मोड़ दिया. यह ऐकैडमी गोपीचंद द्वारा बनाई गई है. यह विश्वस्तर पर बैडमिंटन अभ्यास के लिए सभी सुविधाओं से युक्त होने के कारण प्रसिद्ध है.

सिंधु के अलावा सायना नेहवाल, 2012 में इंगलैंड ओलिंपिक में कांस्य पदक जीतने वाली किदांबी श्रीकांत, पारुपल्ली कश्यप आदि भी इसी ऐकैडमी की खोज हैं.

गोपीचंद ने न केवल सिंधु को खेल की बारीकियां सिखाईं, बल्कि वे उसे अपने स्वास्थ्य के प्रति भी सचेत रहने के लिए निर्देश देते रहते थे. मधुर स्वभाव वाली सिंधु को बैडमिंटन कोर्ट में कैसे आक्रामक व्यवहार करना है, यह भी गोपीचंद ने सिखाया. 5 फुट 11 इंच लंबी सिंधु वर्तमान अंतर्राष्ट्रीय महिला बैडमिंटन खिलाडि़यों में सब से लंबी है. उस की लंबाई न केवल प्रतिद्वंद्वी को खेलते समय भयभीत करती है, बल्कि कोर्ट वेल तक आसानी से पहुंचने का अतिरिक्त लाभ भी देती है.

पुलेला गोपीचंद ने सिंधु के उच्चस्तरीय खेल पर टिप्पणी करते हुए कहा कि उस की खेल के प्रति प्रतिबद्धता तथा उस का स्वभाव ही उसे खेल जगत की ऊंचाइयों तक पहुंचाने में सहायक हुआ है.

इतिहास में नया कीर्तिमान

सिंधु ने वर्ल्ड बैडमिंटन चैंपियनशिप में 2 बार, 2013-14 में महिला एकल कांस्य पदक तथा मात्र 18 साल की उम्र में अर्जुन अवार्ड प्राप्त किया. 2013-16 में मलयेशिया मास्टर्स एकल खिताब जीता. 2013, 14, 15 में मकाउ ओपन महिला एकल खिताब जीता. 2014 में नई दिल्ली में उबेर कप टीम स्पर्धा में कांस्य पदक जीता, 2014 में ग्लासगो राष्ट्रमंडल खेलों में महिला एकल कांस्य पदक जीता, 2014 में एशियाई खेल टीम स्पर्धा में कांस्य पदक जीता, 2016 में उबेर कप टीम स्पर्धा में कांस्य पदक जीता, 2016 में गुवाहाटी, दक्षिण एशियाई खेलों में महिला एकल रजत पदक तथा टीम स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीता और 2016 में रियो ओलिंपिक में महिला एकल रजत पदक जीत कर भारत के इतिहास में नया कीर्तिमान स्थापित किया.

चेन्नई के स्पौंसर्स ने सिंधु को करीब 60 लाख दे कर प्रीमियर बैडमिंटन लीग औक्शन में बुलाया. मलयेशियन ली चोंग वेइ और भारतीय महिला खिलाड़ी सायना नेहवाल के बाद सिंधु तीसरी सब से महंगी खिलाड़ी है.

खाली समय में परिवार का साथ

सिंधु का सब से अधिक समय बैडमिंटन कोर्ट में या यात्रा में बीतता है. खाली समय में वह फिल्में देखना या संगीत सुनना पसंद करती है. उसे सब से अधिक तेलुगु फिल्मों के हीरो महेश बाबू तथा प्रभास पसंद हैं. उस का कहना है कि थिएटर से अधिक वह हवाईजहाज से यात्रा करते समय फिल्में देखती है. रविवार को वह कोर्ट में अभ्यास से अवकाश ले कर अपने परिवार के साथ समय बिताती है. उसे पार्टियों में जाना बिलकुल पसंद नहीं है. उस के मातापिता ही उस के वित्तीय तथा अन्य मामलों को देखते हैं ताकि वह अपना पूरा ध्यान खेल पर केंद्रित रखे. वह अधिकतर अपनी बैडमिंटन खिलाडि़यों के ही संपर्क में रहती है. उसे दम बिरयानी और अपनी मां के हाथ से बना मटन कीमा व फिश बहुत पसंद है.

जुझारू प्रवृत्ति

रियो ओलिंपिक खेलों में पीवी सिंधु ने पहले 2 बार की कांस्य पदक विजेता, चीनी खिलाड़ी ताइपै की तेइजु यिंग को हराया. उस के बाद दुनिया की नंबर एक खिलाड़ी और लंदन खेलों की रजत पदक विजेता वांग यिहान को क्वार्टर फाइनल में हरा कर महिला एकल सेमीफाइनल में अपना स्थान बना कर जापान की नोजोमो ओकुहारा को हरा कर पीवी सिंधु महिला एकल के फाइनल में पहुंची. लेकिन फाइनल में शीर्ष वरीयता प्राप्त स्पेनिश खिलाड़ी कैरोलिना मारिन, जो 2 बार विश्व चैंपियनशिप विजेता रही है, से हार गई और रजत पदक पर ही संतोष करना पड़ा.

फाइनल में हारने पर सिंधु का कहना था, ‘‘मैं ने खेल में अपनी पूरी ताकत झोंक दी, लेकिन मुझे लगता है, आज कैरोलिना मारिन का दिन था. लेकिन रजत पदक जीत कर भी मुझे बहुत गर्व है. मैं बहुत खुश हूं. मैं स्वर्ण पदक नहीं जीत पाई, लेकिन मैं ने जीतने की पूरी कोशिश की.’’

भारत आगमन पर भव्य स्वागत

सिंधु ने रजत पदक ले कर भी भारत को गौरवान्वित किया. उन के भारत लौटने पर एअरपोर्ट पर भव्य स्वागत किया गया. उन्हें गोपीचंद ऐकैडमी तक भव्य जुलूस के साथ ले जाया गया, जिस में जनसमुदाय के साथसाथ प्रमुख मंत्री भी शामिल थे. उस के बाद विशेष विमान से आंध्र प्रदेश के विजयवाड़ा के गन्नावरम हवाईअड्डा पहुंचे. वहां पीवी सिंधु तथा पी गोपीचंद का कई मंत्रियों के अतिरिक्त वहां के छात्रों तथा कई जनप्रतिनिधियों ने इंदिरागांधी स्टेडियम तक विजयोत्सव रैली निकाल कर

भव्य स्वागत किया. एअरपोर्ट से ले कर स्टेडियम 2 किलोमीटर मार्ग पर राष्ट्रीय ध्वज के साथ स्कूली बच्चे उन के स्वागत के लिए खड़े रहे. वहां पहुंचने के बाद आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने सिंधु के साथ मंच पर ही बैडमिंटन खेल कर उस का सम्मान किया.

सिंधु के हैदराबाद निवासी होने के कारण वहां के लोगों के सिर गर्व से तन गए. उन्होंने कहा कि वह तेलंगाना की बेटी है, तो आंध्र प्रदेश वाले कह रहे हैं कि वह आंध्रा की बेटी है. तभी उन के मुंह गोपीचंद ने यह कह कर बंद कर दिए कि सिंधु ‘भारत की बेटी’ है.

कई पुरस्कारों से सम्मानित

भारत लौटने पर सिंधु को सरकार की तरफ से कई पुरस्कार मिले. तेलंगाना राज्य ने उसे 5 करोड़, पुलेला गोपीचंद बैडमिंटन ऐकैडमी, गच्चीबौली के पास 1000 वर्ग गज रिहायशी प्लाट पुरस्कार स्वरूप दिया. आंध्र प्रदेश के चीफ मिनिस्टर के द्वारा 3 करोड़ एवं 1000 वर्ग गज रिहायशी प्लाट, अमरावती में और ग्रेड-1 की पोस्ट पुरस्कारस्वरूप दी. बीपीसीएल द्वारा 75 लाख तथा असिस्टैंट मैनेजर से डिप्टी मैनेजर के पद पर प्रोन्नति पुरस्कार में दी गई है. बीएएल द्वारा 50 लाख का पुरस्कार दिया गया है.

किसी से कम नहीं हैं बेटियां

फिल्मों के महानायक अमिताभ ने ट्वीट किया कि सिंधु ने बोलने वालों की बोलती बंद कर दी. कर्म बोलता है और कभीकभी कलम को भी हरा देता है.

क्रिकेट खिलाड़ी सचिन तेंदुलकर ने सिंधु को बीएमडब्ल्यू कार भी उपहारस्वरूप दी. इस से पहले भी उन्होंने सिंधु को 2012 में एशियन यूथ अंडर 19 चैंपियनशिप में गर्ल्स सिंगल्स टाइटल जीतने पर मारुति स्विफ्ट कार उपहारस्वरूप दी थी.

पीवी सिंधु के कीर्तिमान को देख कर उस के बारे में लिखते समय बराबर मेरी आंखों के आगे उन रेप पीडि़ताओं के मातापिता के चेहरे आ रहे थे, जिन की बेटियां, बिना किसी कुसूर के फूल बनने से पहले ही मसल दी गईं और हमारी गरदन शर्म से झुकने को मजबूर है यह सोच कर कि क्या उन में से कोई सिंधु बनने लायक नहीं थी? लेकिन अफसोस कि उन्हें भविष्य के लिए सुनहरे सपने देखने का मौका मिलने से पहले ही गहरी नींद सुला दिया गया.     

राधिका खुद को क्यों नहीं मानती हैं बॉलीवुड स्टार!

बॉलीवुड की बोल्ड एक्ट्रेस ‘राधिका आप्टे’ खुद को स्टार नहीं मानती हैं. ‘फोबिया’, ‘अहिल्या’ जैसी फिल्मों में अपने अभिनय से खास पहचान बना चुकी राधिका ने कहा है ‘मैं खुद को बॉलीवुड स्टार नहीं मानती हूं, अभी मुझे लंबा रास्ता तय करना है.’

राधिका ने कहा, ‘मुझे नहीं लगता कि मैं स्टार हूं. बॉलीवुड की यात्रा मुश्किल है, लेकिन मुझे भरोसा है, मैं यह सफर जरूर पूरा करूंगी. राधिका ‘लीना यादव’ के निर्देशन में बनी फिल्म ‘पाचर्ड’ में दिखाई देंगी. यह फिल्म भारत के ग्रामीण जीवन की पृष्ठभूमि पर बनी है. कहानी चार महिला दोस्तों के इर्द-गिर्द रची गई है, जो सदियों पुरानी परंपराओं से बंधी हुई हैं.

राधिका ने कहा, ‘मुझे लगता है कि लीना उल्लेखनीय महिला है. उनकी सोच समय से बहुत आगे है. उनके साथ काम करना मजेदार था. उम्मीद है मुझे दोबारा उनके साथ काम का मौका मिलेगा. वह कलाकारों के साथ बहुत अच्छी हैं.’ अजय देवगन निर्मित फिल्म ‘पार्च्ड’ 23 सितंबर को रिलीज होगी.

राजपूतों की शान: चित्तौड़गढ़ का किला

राजस्थान के बेराच नदी के किनारे बसा, चित्तौड़गढ़ अपनी ऐतिहासिक भव्यता को लिए शालीनता से खड़ा है. यह किला पहाड़ी के ऊपर बना हुआ है और राज्य के प्रमुख पर्यटक स्थलों में से एक है. यह भारत के सबसे बड़े परिसर वाले किलों में से भी एक है.

चलिए आज हम आपको इसी किले से जुड़ी कुछ दिलचस्प बातें बताते हैं, जो राजसी राज्य राजस्थान का गर्व है.

भारत का सबसे बड़ा किला

चित्तौड़गढ़ किले को भारत का सबसे बड़ा किला माना जाता है. यह लंबाई में लगभग 3 किलोमीटर है व परिधि में लगभग 13 किलोमीटर लंबा. लगभग 700 एकड़ की जमीन में फैला हुआ है यह किला.

चित्तौड़गढ़ का प्रवेश द्वार

इस किले में लगभग 7 प्रवेश द्वार हैं. ये हैं राम पोल, लक्ष्मण पोल, पडल पोल, गणेश पोल, जोरला पोल, भैरों पोल और हनुमान पोल. इस किले तक पहुंचने के लिए सबसे पहले आपको इन 7 प्रवेश द्वारों को पार करना होगा और उनके बाद किले के मुख्य द्वार सूर्य पोल को भी.

किले के अंदर के महल

किले के अंदर ही कई महल व अन्य रचनाएं स्थापित हैं. इन अद्भुत रचनाओं में शामिल हैं, रानी पद्मिनी महल, राणा कुंभा महल और फतेह प्रकाश महल.

किले के अंदर स्थापित मंदिर

किले के अंदर कई सारे मंदिर स्थापित हैं, जिनमें कलिका मंदिर, जैन मंदिर, गणेश मंदिर, मीराबाई मंदिर ,सम्मिदेश्वरा मंदिर, नीलकंठ महादेव मंदिर और कुंभ श्याम मंदिर सम्मिलित हैं. यहां स्थित ये सारे मंदिर इनमें हुए बारीक नक्काशीदार कामों के लिए सबसे ज्यादा प्रसिद्द हैं.

किले की मीनारें

किले में स्थित दो मीनारें, किले के और राजपूत वंश के गौरवशाली अतीत को दर्शाती हैं. इन मीनारों के नाम हैं, विजय स्तम्भ और कृति स्तम्भ.

किले का आकार

अगर इस किले को विहंगम दृश्य से देखा जाए तो, यह मछली के आकार का लगता है.

विश्व धरोहर विरासत

चित्तौड़गढ़ किला यूनेस्को द्वारा राजस्थान के पहाड़ी किलों के तौर पर वैश्विक धरोहर की सूचि में शामिल है.

इसके मूल्य का चित्रण

यह किला राजपूतों जो एक समय राजस्थान के शासक हुआ करते थे, उनके साहस, बड़प्पन, शौर्य और त्याग का प्रतीक है.

तो क्या वरुण धवन लेने वाले हैं 7 फेरे…!

अभिनेता वरुण धवन कुछ वक्त पहले ही रिलीज हुई अपनी फिल्म ‘ढिशूम’ को लेकर काफी चर्चा में बने हुए थे. उनकी इस फिल्म को काफी सराहना भी हासिल हुई थी. लेकिन इस बार वह अपनी जिंदगी में किसी खास को लेकर सुर्खियों में छा गए हैं. वरुण ने जब से सिनेमाजगत में कदम रखा है तभी से उनके रिलेशनशिप को लेकर खूब चर्चाएं रही हैं. उन्होंने कभी इसके बार में खुलकर बात नहीं की है. लेकिन हाल ही में वरुण ने अपनी जिंदगी में आए किसी खास को लेकिर खुलकर बात की है.

उनका कहना है कि उनके जीवन में कोई खास है, लेकिन वह इस बात को लेकर सुनिश्चित नहीं हैं कि उन्हें जीवनसाथी मिल गई है. बॉलीवुड में कदम रखने के बाद से हमेशा उनके रिश्तों के बारे में चर्चाएं होती रही हैं. पहले उनका नाम फिल्म ‘स्टूडेंट ऑफ द इयर’ की सह-कलाकार आलिया भट्ट के साथ जुड़ा और अब वह अपनी दोस्त नताशा के साथ करीबी रिश्तों को लेकर खबरों में बने हुए हैं.

जब फिल्म ‘बदलापुर’ के अभिनेता वरुण ने यह कहा कि उनके लिए आदर्श रिश्ते का मंत्र जीवन में एक शख्स के प्रति समर्पित होना है. इस पर जब उनसे पूछा गया कि क्या वह किसी के प्रति समर्पित हैं तो वरुण ने पहले इसका गोलमोल जवाब देते हुए कहा कि उनके जीवन में वह शख्स उनकी मां हैं.

हालांकि बाद में उन्होंने कहा, ‘हां, मेरे जीवन में कोई है जिसकी मैं बहुत परवाह करता हूं, पर मैं अभी इस बात को लेकर आश्वस्त नहीं हूं कि मेरी जीवनसाथी की तलाश पूरी हो गई है या नहीं. मैं फिलहाल इससे ज्यादा आपको कुछ नहीं बता सकता.’

‘बंग विभूषण’ से सम्मानित होंगी स्वर कोकिला

महान गायिका लता मंगेशकर को बंगाली गीतों में योगदान के लिए पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा ‘बंगा विभूषण’ पुरस्कार के लिए चयनित किया गया है. मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने यह जानकारी दी. ममता बनर्जी ने राज्य सचिवालय नाबन्ना में मीडिया को बताया, ‘लता मंगेशकर ने कई यादगार बांगला गीतों को गाया है. उनके योगदान को सम्मानित करने के लिए हमने इस साल उन्हें ‘बंगा विभूषण’ पुरस्कार देने का फैसला किया है.’

लता मंगेशकर से पहले ही बात कर ली गई है

ममता बनर्जी ने बताया कि इस संबंध में लता मंगेशकर से पहले ही बात कर ली गई है और वह पुरस्कार लेने के लिए राजी भी हो गई हैं. मुख्यमंत्री ने बताया कि दुर्गा पूजा त्योहार के बाद वह संगीत कंपनी सारेगामा के चेयरमैन संजीव गोयनका के साथ गायिका के निवास पर जाकर उन्हें यह पुरस्कार देंगी.

पुरस्कार पाने वालों में ये हस्तियां भी हैं शामिल

साल 2011 में शुरू हुए इस पुरस्कार को पाने वालों में सरोद वादक अमजद अली खान, प्रख्यात गायक मन्ना डे, लेखिका महाश्वेता देवी, फुटबॉलर सैलेन मन्ना, हॉकी ओलंपियन लेस्ली क्लॉडियस, चित्रकार जोगन चौधरी, फिल्मकार गौतम घोष और पूर्व क्रिकेट कप्तान सौरव गांगुली जैसी हस्तियां शामिल हैं.

तो ये है मीरा-शाहिद की बेटी का नाम

बॉलीवुड अभिनेता शाहिद कपूर की पत्नी मीरा राजपूत ने 26 अगस्त को एक बच्ची को जन्म दिया. इस खुशखबरी के लिए इन दोनों को ढरों शुभकामनाएं मिल रही हैं. शाहिद के फैंस बेसब्री से उनकी बच्ची का नाम जानना चाहते हैं. लेकिन पिछले दिनों आई खबरों के अनुसार कहा जा रहा था कि शाहिद और उनके पिता पंकज कपूर सतसंग ब्यास के मुखिया बाबा गुरिंदर सिंह के फॉलोअर हैं, इसलिए वहीं उनकी बच्ची का नामकरण भी करेंगे. लेकिन अब शाहिद-मीरा की इस प्यारी सी बेटी को एक नाम मिल गया है. शाहिद ने हाल ही में अपनी बेटी के नाम की घोषणा करते हुए ट्वीट किया है, ‘मीशा कपूर डैडी को कहीं जाने ही नहीं देती.’

बच्ची का नाम शाहिद के ‘शा’ और मीरा के ‘मी’ को जोड़कर रखा गया है. वैसे बॉलीवुड में इन दिनों यह एक नया फैशन आया है जिसमें माता-पिता के नाम को जोड़कर बच्चे का नाम रखा जाता है. इनसे पहले रानी मुखर्जी और आदित्या चोपड़ा नें भी अपना जोड़कर बेटी ‘आदिरा’ का नाम रखा था. शाहिद और मीरा पिछले साल जुलाई में एक दूसरे के साथ शादी के बंधन में बंध थे. इनके इस खास मौके पर केवल परिवार के ही सदस्य शामिल हुए थे. इसके बाद रखी गई रिसेप्शन पार्टी में परिवार के सदस्यों के अलावा लगभग पूरा बॉलीवुड शामिल हुआ था.

शाहिद ने पिछले दिनों आई फिल्म ‘उड़ता पंजाब’ को लेकर काफी सुर्खियां बटोरी थीं. फिलहाल वह संजय लीला भंसाली के निर्देशन में बनने जा रही फिल्म ‘पद्मावती’ के कारण चर्चा का विषय बने हुए हैं. फिल्म में उनके अलावा दीपिका पादुकोण और रणवीर सिंह भी मुख्य भूमिकाओं में दिखेंगे.

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