क्यों जरूरी है डिजिटल फुटप्रिंट्स?

डिजिटल फुटप्रिंट्स क्या हैं? जब भी ग्राहक इंटरनेट पर पैसों से संबंधित लेनेदेन करते हैं अर्थात ऑनलाइन किसी भी तरह का पेमेंट करना हो या कुछ खरीदारी करनी हो. इनके रिकॉर्ड और निगरानी को ही डिजिटल फुटप्रिंट्स कहते हैं.

फुटप्रिंट्स किसी व्यक्ति को उधार लेने में कैसे मदद करेंगे?

एक समय था जब बैंक के कर्मचारी खुद जाकर ग्राहक से मिलते थे और उनकी उधार लेने की क्षमता का पता करते थे. अब जबकि अधिकतर लोग सोशल मीडिया और इंटरनेट पर सक्रिय हैं तो बैंक भी इसी की मदद से ग्राहक की साख क्षमता की जांच करते हैं.

कौन से वित्तीय संस्थान लोन देने के लिए इनका प्रयोग करते हैं?

अधिकतर गैर बैंकिंग वित्तीय संस्थाएं जो तेजी से लोन देने के काम में अपनी पकड़ मजबूत करना चाहती हैं. वह इनका प्रयोग करती हैं. इनका प्रयोग करके कंपनियां ग्राहकों की साख क्षमता जानने में मदद लेती हैं, जिससे किसी को लोन देने का निर्णय लेने में आसानी रहती है.

बैंक अपने ग्राहकों के डेटा लेने के विभिन्न सोर्सेज क्यों खोज रहे हैं.

भारत विश्व की सबसे ज्यादा युवा जनसंख्या वाला देश है. बैंक और वित्तीय कंपनियां इनमें एक बड़ी मौका तलाश रही हैं. चूंकि ये कंपनियां नई हैं, इसलिए इनके पास ग्राहकों की कोई क्रेडिट हिस्ट्री नहीं होती है. इसलिए इन्हें लोन देने के लिए बैंक फुटप्रिंट्स का प्रयोग करते हैं.

किसी के डिजिटल फुटप्रिंट्स अच्छे हैं तो क्या उसे कम दर पर लोन मिलेगा?

उधार देने वाले संस्थानों ने अभी भी रिस्क आधारित प्राइसिंग नहीं अपनाई है. इस कारण अच्छे फुटप्रिंट्स वाले ग्राहकों को भी इसका लाभ नहीं मिल पाता है.

रिश्ता कागज का: भाग-1

फोनकी घंटी की आवाज सुन कर आंखें खुलीं तो देखा मैं बैड पर हूं. नजर घुमा कर देखा तो अपने ही हौस्पिटल का रूम लगा. मैं कब और कैसे यहां पहुंची, कुछ याद नहीं आया. तभी फिर से फोन की घंटी की आवाज सुनाई दी. एक बिजली सी दिमाग में कौंध गई और अचानक सब याद आ गया. मैं दोपहर में सारे समाचारपत्रों को ले कर बैठी थी. सब में मेरी बेटी का फोटो आया था. 2 दिन पहले ही उस की सगाई की थी, जिस में राज्यपाल भी शरीक हुए थे. फोटो उन के साथ का था. नीचे लिखा था कि शहर के लोकप्रिय डाक्टर की बेटी प्रशिक्षु आईएएस प्रिया की सगाई प्रशिक्षु आईएएस शरद के साथ हुई.

फोटो में बेटी और होने वाले दामाद के साथ मैं और मेरे पति भी खड़े थे. मैं गर्व से भर उठी. तभी फोन बज उठा. जैसे ही रिसीवर कान से लगाया एक निहायत कर्कश आवाज सुनाई दी, ‘‘मेरी बेटी को अपना कह कर खुश हो रही हो… वह मेरा खून है और मैं आ रहा हूं उसे सब बताने.’’

बस इतना सुनने के बाद रिसीवर गिरने की आवाज कान में पड़ी और उस के बाद अब होश आ रहा है. पता नहीं कब से यहां हूं. नजर घुमा कर देखा तो मेरा बेटा जिस ने हाल ही में डाक्टरी की पढ़ाई पूरी कर हौस्पिटल जौइन किया है, एक कुरसी पर अधलेटा सा गहरी नींद में दिखा.

बेटी कहीं नजर नहीं आई. उफ, कहीं वह दुष्ट इनसान आ कर उसे सब बता कर तो नहीं चला गया… मेरी बेटी मेरी जान… मेरे जीने का सहारा सब कुछ, पर जो उस ने कहा कि वह तो उस का खून है, क्या सच है?

तभी बारिश की आवाज सुनाई दी और मन यादों के गलियारों में घूमते हुए कई बरस पीछे चला गया…

मैं अपने छोटे शहर से पापा से बहुत लड़झगड़ कर आईएएस की कोचिंग के लिए दिल्ली आई थी. दोपहर को 2 घंटे फ्री मिलते थे. तब पास के एक होटल में लंच कर वापस क्लास में आ जाती थी. उस दिन भी जब होटल जा रही थी, तभी अचानक जोर की बारिश आ गई. एक बड़े से घर का गेट खुला देख मैं भाग कर अंदर गई और पोर्च में खड़ी हो गई. फिर ध्यान आया कि घर वाले पता नहीं क्या कहेंगे. बारिश रुकने का नाम नहीं ले रही थी. क्या करूं खड़ी रहूं या चल दूं, समझ नहीं आ रहा था.

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तभी धीरेधीरे घर का दरवाजा खुलता दिखा. मैं जब तक कुछ समझ पाती तब तक एक प्यारी सी बच्ची घुटनों के बल चलती बाहर आई, जिस की उम्र मुश्किल से 9-10 माह होगी. मुझे देख कर बच्ची मुसकराने लगी और अपनी बांहें मेरी तरफ फैला दी. मैं ने भी मुसकरा कर उसे गोद में उठा लिया और दरवाजे की तरफ देखने लगी कि उस की मां या कोई नौकर आएगा तो उसे बता दूंगी कि बच्ची पानी की तरफ जा रही थी पर जब बहुत देर तक कोई नहीं आया तब हार कर मैं ने अंदर जाने का फैसला किया. बच्ची को गोद में लिए अंदर प्रवेश किया. सामने दीवार पर एक बहुत ही सुंदर युवती का फोटो लगा था, जिस में फूलों का हार पड़ा था. मैं कुछ सोच पाती, तभी अंदर के कमरे से एक बुजुर्ग महिला ने प्रवेश किया. मैं ने उन को नमस्कार कर बच्ची के बारे में बताया और अपने पोर्च में खड़े होने की वजह बताई.

उन्होंने मुसकरा कर बैठने को कहा. मैं ने बच्ची उन्हें देनी चाही तो बच्ची मुझ से लिपट गई. अपने नन्हे हाथों से उस ने मेरी गरदन जोर से पकड़ ली. मैं असमंजस में पड़ गई.

तब उन महिला ने कहा, ‘‘बेटा थोड़ा बैठ जाओ. तुम खड़ी हो तो यह घूमने के लालच में मेरे पास नहीं आएगी.’’

मुझे क्या आपत्ति होती. मैं बच्ची को लिए सोफे पर बैठ गई. घर बहुत ही सुंदर था. मैं ने देखा कि टेबल पर एक थाली रखी थी, जिस में रखा खाना ठंडा हो गया था. मैं समझ गई कि बच्ची के कारण आंटी खाना नहीं खा पाई होंगी.

मैं ने उन से कहा, ‘‘आंटी, आप खाना खा लो. मैं इसे लिए हूं.’’

आंटी ने मुसकरा कर कहा, ‘‘यह तो रोज का काम है. इस की आया छुट्टी पर है. यह इतनी शरारती है कि रोज खाना ठंडा हो जाता है.’’

अचानक मुझे समझ में आ गया कि फोटो वाली युवती बच्ची की मां होगी और यह दादी या नानी. तभी आंटी की आवाज आई, ‘‘बेटा, यह सो गई. इसे लिटा दो और आराम से बैठ जाओ.’’

मैं ने बच्ची को वहीं रखे झूले में धीरे से लिटा दिया और जाने की इजाजत मांगी.

तब आंटी ने कहा, ‘‘अभी तुम ने बताया था कि तुम लंच के लिए जा रही थीं और बारिश आ गई. मतलब तुम ने भी खाना नहीं खाया. आओ, हम दोनों साथ खाते हैं.’’

मैं ने बहुत मना किया पर फिर उन के प्यार भरे अनुरोध को ठुकरा नहीं पाई और सच में भूख भी जोर से लग रही थी, इसलिए खाने बैठ गई. कई दिन बाद घर का खाना मिला तो कुछ ज्यादा ही खा लिया और तारीफ भी जी भर कर की.

आंटी ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘अब रोज आ जाया करो लंच टाइम पर. प्रिया भी खुश हो जाया करेगी.’’

मैं ने जब आंटी से पूछा कि इस की बाई कब तक छुट्टी पर है, तो उन्होंने बताया कि बाई की सास मर गई है, इसलिए 15 दिन तक नहीं आएगी. दूसरी बाई लगानी चाही पर कोई मिल नहीं रही. खाना बनाने के लिए नौकर है, पर बच्ची का सवाल है, इसलिए कोई महिला ही देख रहे हैं.

मेरे दिमाग में एक विचार आया, तुरंत आंटी से कहा, ‘‘कोई बात नहीं, मैं 15 दिन तक इस टाइम आ जाया करूंगी. आप खाना खा लिया करना तब तक मैं प्रिया के साथ खेल लिया करूंगी.’’

आंटी ने मेरी बात इस शर्त पर मानी कि मैं दोपहर का खाना उन के साथ खाया करूं.

मैं ने आंटी से मजाक भी किया कि किसी अजनबी पर इतना भरोसा करना ठीक नहीं, पर आंटी ने कहा, ‘‘इतनी दुनिया तो मैं ने भी देख रखी है कि किस पर भरोसा किया जाए किस पर नहीं.’’

फिर तो यह मेरा रोज का नियम हो गया. लंच टाइम पर आंटी के घर पहुंच जाती. प्रिया के साथ खेलती और आंटी के साथ खाना खाती. थोड़ाथोड़ा घर वालों के बारे में आंटी बताती थीं कि बेटा डाक्टर है. शादी के लिए तैयार नहीं हो रहा. बच्ची संभालना मुश्किल हो रहा है. मैं भी मन में सोचती कैसे तैयार होगा इतनी सुंदर बीवी थी बेचारे की. कैसे भूल पाएगा?

एक दिन दोपहर को पहुंची तो प्रिया के जोरजोर से रोने की आवाज बाहर से ही सुनाई दी. दौड़ कर अंदर गई तो देखा आंटी किचन के सामने बेहोश पड़ी थीं और प्रिया झूले में जोरजोर से रो रही थी. मैं ने जल्दी से प्रिया को उठा कर नीचे बैठाया और आंटी को पानी के छींटे मार कर होश में लाने की कोशिश की. जल्दी से अपनी सहेली निशा को फोन कर डाक्टर लाने को कहा. डाक्टर के आने के पहले निशा आ गई. जल्दी से हम ने आंटी को बैड पर लिटाया तभी डाक्टर आ गए. उन्होंने देख कर बताया कि ब्लडप्रैशर कम होने की वजह से चक्कर आ गया था. आवश्यक उपचार कर डाक्टर साहब चले गए. निशा को भी मैं ने जाने को कहा. फिर फोन के पास रखी डायरी से नंबर देख कर उन के बेटे को फोन किया. वह भी घबरा गया. तुरंत पहुंचने की बात कही. मैं आंटी के चेहरे को देख रही थी. गोरा चेहरा कुम्हला गया था. आंखें बंद किए वे बहुत कमजोर लग रही थीं. इस उम्र में छोटी बच्ची की जिम्मेदारी निभाना कठिन था. मेरी मां भी बड़ी छोटी उम्र में मुझे छोड़ गई थीं. पापा ने दूसरी शादी नहीं की पर मेरी चाची ने मुझे मां की कमी नहीं खलने दी. उन्होंने अपने बच्चों से ज्यादा मेरा खयाल रखा. शायद इसीलिए प्रिया पर मुझे बहुत प्यार आता था. पर यहां आंटी की उम्र और बीमारी के कारण बात अलग थी. इन के बेटे को शादी कर लेनी चाहिए, यही सोच रही थी कि तभी एक सुदर्शन युवक ने कमरे में प्रवेश किया. फिल्मी हीरो की तरह चेहरा, मैं देखती रह गई, पर वह आते ही पलंग की तरफ दौड़ा. बोला, ‘‘मम्मी क्या हुआ? मुझे फोन क्यों नहीं किया?’’

उस की इस बात पर अचानक मुझे गुस्सा आ गया. बोली, ‘‘अब बड़ी फिक्र हो रही है मां की. तब यह फिक्र कहां थी जब छोटी सी बच्ची की जिम्मेदारी मां पर डाल कर चले गए… क्यों नहीं दूसरी शादी कर लेते? क्या समझते हो कि सब सौतेली मांएं खराब होती हैं? कोई आप की बच्ची को प्यार नहीं करेगी या फिर देवदास बन कर अपनी शान में मां को दुख देते रहना चाहते हैं?’’

डाक्टर साहब का मुंह खुला का खुला रह गया. कालेज के दिनों में धुआंधार भाषण देती थी. वही जोश मेरी आवाज में भर गया, ‘‘बोलिए, क्यों नहीं कर लेते दूसरी शादी?’’

अचानक मैं ने देखा कि डाक्टर साहब का विस्मय चेहरे से गायब होने लगा और एक शरारती मुसकान उन के होंठों पर आ गई. वे मुसकराते हुए बोले, ‘‘अरे बाबा, दूसरी तब करूंगा जब पहली हो, अभी तो मेरी पहली शादी भी नहीं हुई.’’

‘‘क्या?’’ मैं ने आश्चर्य से आंटी की तरफ देखा. उन के चेहरे पर भी शरारती मुसकान विराजमान थी.

अब तक आंटी उठ कर बैठ गई थीं. उन्होंने धीरेधीरे समझाया कि प्रिया उन की बेटी प्रियंवदा की बेटी है, जिस का फोटो हौल में मैं ने देखा था. डाक्टर प्रियांशु उन का बेटा है. अब तो मुझे काटो तो खून नहीं. मैं ने वहां से भागने में ही भलाई समझी और आंटी से जाने की इजाजत मांगी.

आंटी ने कहा, ‘‘अब बहुत रात हो गई है. तुम्हें खाना भी नहीं मिलेगा. खाना खा लो फिर मेरा बेटा होस्टल छोड़ देगा.’’

डाक्टर साहब ने भी अपनी मां का समर्थन किया और नौकर को खाना बनाने के लिए जरूरी हिदायत देते हुए कपड़े चेंज करने चले गए. खाना खाते टाइम सब चुप थे. तब प्रियांशु ने कहा, ‘‘वैसे आप ने एक बात ठीक पहचानी कि मुझे डर है कि मेरी शादी के बाद प्रिया का क्या होगा, कोई भी लड़की एक बच्ची और सास की जिम्मेदारी नहीं उठाना चाहेगी.’’

उन का सामान्य व्यवहार देख कर मैं भी सामान्य हुई और कहा, ‘‘क्यों नहीं, कोई भी लड़की इतना अच्छा घर और इतना सुंदर लड़का देख कर तुरंत हां बोल देगी.’’

बोलने के बाद मैं ने देखा कि मांबेटा फिर मुसकरा उठे थे. मेरा ध्यान अपने शब्दों पर गया तो अपनी बेवकूफी पर शर्म महसूस हुई. अत: मैं ने जल्दी से खाना खत्म किया और जाने के लिए उठ खड़ी हुई.

तभी प्रियांशु ने कहा, ‘‘यदि ऐसा है तो क्या आप तैयार हैं मुझ से शादी करने को?’’

घबराहट के मारे मेरे तो पसीने छूटने लगे. आंटी ने बात संभाली, ‘‘बेटा, जाओ जल्दी इसे छोड़ कर आओ वरना होस्टल में अंदर नहीं जाने दिया जाएगा.’’

प्रियांशुजी ने कार निकाली. मैं चुपचाप उस में बैठ गई. कार चल पड़ी. अचानक मैं ने देखा कि कार एक आइसक्रीम की दुकान के सामने रुक गई.

प्रियांशु ने मेरा दरवाजा खोलते हुए कहा, ‘‘अभी 9 बजने में टाइम है. चलिए, आइसक्रीम खा लेते हैं. मैं ने बड़े दिनों से नहीं खाई.’’

मैं चुपचाप नीचे उतर गई. हम दोनों जा कर अंदर बैठ गए. प्रियांशु ने पूछा कि कौन सी खानी है तो मैं ने तुरंत कहा कि चौकलेट फ्लेवर वाली. वे 2 आइसक्रीम ले आए. मुझे महसूस हो रहा था कि वे लगातार मुझे देखे जा रहे हैं.

बड़ी देर बाद बोले, ‘‘मेरी बात से आप को बुरा लगा हो तो मैं माफी चाहता हूं पर जितना आप के बारे में मां से सुना था और जब से आप को देख रहा हूं तो लगता है आप बाकी लड़कियों से अलग हैं और मैं अपने शादी के प्रस्ताव को फिर दोहराता हूं. मुझे पता है आप के सपने अलग हैं. आप कलैक्टर बनना चाहती हैं तो वह शादी के बाद भी बन सकती हैं. मेरी सपोर्ट आप को रहेगी पर जिस तरह आप प्रिया को चाहती हैं वैसा प्यार कोई दूसरी लड़की नहीं दे सकती. मुझे आप के जवाब की कोई जल्दी नहीं है. आप आराम से सोच कर बताइएगा. आप का जवाब न भी होगा तो भी कोई बात नहीं. आप प्रिया और मां से पहले की तरह ही मिलती रहना.’’

मैं ने कोई जवाब नहीं दिया. कुछ समझ ही नहीं आ रहा था कि क्या बोलना चाहिए. वे चुपचाप मुझे होस्टल के गेट पर छोड़ कर चले गए.

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रूम के अंदर जाते ही मैं सीधे बैड पर गिर गई. सारी बातें दिमाग में घूमने लगीं. अभी तक कोई लड़का यदि प्यार की बात कहता था, तो मैं उस की 7 पुश्तों की खबर ले डालती थी. सब के सामने इतना बेइज्जत करती थी कि बेचारा ऐसी हिमाकत सपने में भी नहीं करता होगा, परंतु आज प्रियांशु ने सीधे शादी की बात कह दी और मैं ने चुपचाप सुन ली. एक शब्द भी नहीं कहा. कायदे से तो मुझे गुस्सा आना चाहिए पर मुझे तो शर्म आ रही है. एक अलग सी अनुभूति हो रही थी. बड़ी देर तक सोचती रही. जब सोचतेसोचते थक गई तो पापा को फोन लगा डाला. पापा की आवाज सुनते ही रुलाई निकल गई. बोली, ‘‘पापा, आप तुरंत आ जाओ. मुझे आप की जरूरत है.’’

पापा ने बहुत पूछा पर मैं कुछ बता नहीं पाई.

 

पापा दूसरे दिन मेरे सामने थे. मैं दौड़ कर उन से लिपट गई. पापा ने सारी बात

शांति से सुनी और फिर मुझ से पूछा, ‘‘तुम क्या चाहती हो? प्रियांशु मेरे मित्र डाक्टर नीरज का बेटा है. मैं पूरे परिवार को जानता हूं.’’

पापा खुद भी डाक्टर थे. मैं ने पापा से कहा, ‘‘मेरी तो समझ नहीं आ रहा कि क्या

करूं. आप बताओ.’’

पापा बोले, ‘‘बेटा, यदि एक पिता से सलाह मांगोगी तो मेरा कहना है लड़का और घर दोनों अच्छे हैं. मैं खुद भी इतना अच्छा घर नहीं ढूंढ़ पाता और यदि एक दोस्त के रूप में सलाह दूं तो मुझे पता है तुम्हारा सपना कलैक्टर बनने का है तो शादी का विचार छोड़ दो, परंतु जैसा तुम ने बताया कि प्रियांशु ने कहा है कि शादी के बाद भी तुम कोशिश कर सकती हो तो मेरा सोचना है कि तुम्हें हां कह देनी चाहिए.’’

बस इस के 10 दिनों के अंदर ही मैं डाक्टर प्रियांशु के साथ विवाह कर उन के घर आ गई. आंटी अब मम्मी बन गई थीं और प्रिया तो मुझे हर समय पा कर बहुत खुश थी.

 

कई दिन बीत गए. मैं घरपरिवार में कुछ ज्यादा ही रम गई. मम्मी और प्रियांशु

मुझे पढ़ने को कहते भी पर मैं टाल जाती. मेरा काम बस प्रिया को संभालना, घर जमाना और तरहतरह का खाना बनाना रह गया था. पापा के दोस्त दिल्ली में वकालत करते थे. कोचिंग जाते टाइम मैं हर सप्ताह उन के औफिस जाती थी. उन्होंने शादी के बाद भी आते रहने को कहा पर मैं तो अपनी दूसरी दुनिया में मस्त थी. फिर अचानक सारी खुशियां काफूर हो गईं.

हुआ यह कि मैं प्रियंवदा का रूम जमा रही थी. मम्मीजी ने उसे वैसे ही रखा था जैसे उस की शादी के पहले था. तब मुझे कुछ डायरियां मिलीं. मुझे यह तो पता लग चुका था कि प्रिया की मां ने घर वालों की इच्छा के विरुद्ध जा कर शादी की. उस टाइम प्रियांशु एमएस की पढ़ाई के लिए अमेरिका गए थे. पापाजी ने शादी की इजाजत नहीं दी तो प्रियंवदा ने घर छोड़ दिया और जब बेटी हुई तब उस के जन्म के समय ही उस की मृत्यु हो गई. तब प्रियांशु प्रिया को अपने साथ ले आए. बेटी के गम में पापाजी भी चल बसे. इस के आगे की जानकारी मुझे प्रियंवदा की डायरी से मिली. एक डायरी उस समय की थी जब प्रिया आने वाली थी. 1-1 दिन की बातें उस में लिखी थीं. उस का पति शेखर उसे कितना प्यार करता था. शेखर चाहता था कि बेटी हो. उस का नाम उन्होंने शिखा तय किया था और प्रियंवदा चाहती थी कि बेटा हो और उस का नाम प्रियंक उस ने सोचा था. उन की प्यारी नोकझोंक पढ़ कर मेरे आंसू बहने लगे और पता नहीं किस भावना के तहत मैं ने यह सोच लिया कि बेचारे शेखरजी अपनी बच्ची को कितना याद करते होंगे. डाक्टर साहब और मम्मीजी कभी उन का नाम भी नहीं लेतीं. अपनी बच्ची को देखने का उन को भी हक है. अपनी कानून की पढ़ाई के कारण हक की बात भी दिमाग में जोर मारने लगी और मैं ने चुपके से एक चिट्ठी शेखरजी को लिख दी कि आप का मन होता होगा बच्ची को देखने का तो कभी भी आ सकते हैं. आखिर वह आप का खून है और इंतजार करने लगी कि जब शेखरजी अपनी बच्ची से मिलने आएंगे तब मैं क्याक्या दलीलें दूंगी.

– क्रमश:

‘शादी के बाद केवल प्राथमिकताएं बदलती हैं’

अगर आप में कुछ कर गुजरने की इच्छा हो तो किसी भी उम्र में कुछ भी कर सकते हैं. कुछ ऐसा ही कर दिखाया मुंबई से सटे भयंदर की रहने वाली 28 वर्षीय मोहिनी शर्मा माने ने. मोहिनी चेन्नई में आयोजित ‘मिसेज इंडिया वर्ल्ड 2016’ की विजेता हैं. स्वभाव से नम्र, हंसमुख और दृढ़ इच्छा रखने वाली मोहिनी व्यवसायी परिवार की हैं. वे लंदन में मैनेजमैंट की पढ़ाई पूरी करने के बाद मुंबई आईं और 2 स्कूल चलाने का काम करने के साथसाथ अपने पति के व्यवसाय पर भी ध्यान देने लगीं.

मोहिनी की शुरू से ही कुछ अलग करने की इच्छा थी, पर यह किस रूप में होगी, पता नहीं था. कालेज के दौरान उन्होंने कई बार फैशन शो में हिस्सा लिया. पर मुंबई आ कर काम में इतनी बिजी हो गईं कि इस तरफ ध्यान देने का मौका ही नहीं मिला. मोहिनी ने बचपन से मां और दादी को कुछ न कुछ काम करते देखा है. वे ही उन की प्रेरणास्रोत रहीं. इस दौरान उन की शादी भी हो गई पर अपनेआप को फिट रखना मोहिनी ने कभी नहीं छोड़ा. जब मिसेज इंडिया के कंपीटिशन का पता चला तो फार्म भर दिया. पति आनंद माने, माता सुनीला और पिता सत्येंद्र शर्मा ने हौसला बढ़ाया तो मिसेज इंडिया वर्ल्ड का खिताब जीत गईं.

मोहिनी कहती हैं, ‘‘40 महिलाओं के बीच डर था कि पता नहीं मुझे यह खिताब मिलेगा या नहीं. मैं बहुत नर्वस थी, पर मेरे पति ने मेरा हौसला बढ़ाया.’’

परिवार के साथ तालमेल

व्यस्त दिनचर्या के बीच मोहिनी अपने परिवार के साथ तालमेल बना कर चलती हैं. कब क्या करना है, उस की प्लानिंग खुद कर लेती हैं. रात में पति के साथ बैठ कर डिनर करना, पिक्चर देखना आदि उन की दिनचर्या में शामिल है.

वे बताती हैं, ‘‘अगर मैं दिनरात काम करती रहूं, तो परिवार से दूरी बन जाती है, इसलिए यह जरूरी है कि आप काम के साथ परिवार को भी समय दें. इस से आप का कोऔर्डिनेशन परिवार के साथ अच्छा रहता है.’’

शादी के बाद अकसर महिलाएं ऐक्टिव नहीं रहतीं, क्योंकि वे सोचती हैं कि अब उन का काम परिवार देखना है. इस बारे में आप की क्या सोच है? यह पूछने पर मोहिनी कहती हैं, ‘‘यह तो उन महिलाओं के लिए ऐक्सक्यूज है, जो काम करने से कतराती हैं. अगर आप की इच्छा है तो आप किसी भी समय कुछ भी कर सकती हैं. मेरे हिसाब से हर एक दिन नया होता है, हर दिन कुछ नया सीखने को मिलता है. शादी के बाद सिर्फ आप की प्राथमिकताएं बदलती हैं, कैरियर नहीं खत्म होता. उसे अपने हिसाब से मैनेज करना पड़ता है और अगर परिवार का साथ हो तो कोई समस्या नहीं होती. हर महिला को प्रेजैंटेबल होना चाहिए. इस से हमेशा आत्मविश्वास बना रहता है. फैशन, स्टाइल को फौलो करना बहुत जरूरी है. अगर आप को इन की जानकारी नहीं है तो आप मैगजीन या इंटरनैट के जरीए जानकारी पा सकती हैं.’’

आगे की योजना

यह मंच मोहिनी के लिए खास है. वे आगे कई सोशल वर्क करना चाहती हैं. बहुत बड़ा प्लान अभी नहीं किया है. एक समय में एक काम करना ठीक समझती हैं. फिलहाल, वे मिसेज वर्ल्ड का सपना देख रही हैं, जहां उन्हें इंडिया को रिप्रैजेंट करने का मौका मिलेगा. इस के लिए मोहिनी नियमित वर्कशौप कर ट्रेनिंग ले रही हैं.

1 घंटे तक वर्कआउट करने और 1 घंटे तक टहलने के साथसाथ फ्रैश सब्जियां खाने और फलों का जूस पीने आदि पर भी वे ध्यान दे रही हैं.

खाली समय में मोहिनी अपने परिवार और दोस्तों से मिलती हैं. वे कहती हैं, ‘‘काम के बीच किसी से मिलने का समय नहीं होता. महीनों बीत जाते हैं. बात तक नहीं होती, इसलिए मैं उन के साथ समय बिताती हूं, क्योंकि चैरिटी घर से ही शुरू होती है. इस के अलावा मैं थोड़ी फैशनेबल भी हूं. मुझे इस प्रतियोगिता में ‘मिसेज फैश्निस्ता’ का भी खिताब मिला है.’’

मोहिनी को औटोबायोग्राफी पढ़ना बहुत पसंद है. वे कहती हैं, ‘‘आत्मकथाएं पढ़ते वक्त मैं केवल लोगों की सफलता को नहीं देखती, क्योंकि कोई भी सफलता अचानक नहीं मिलती. उस के लिए असफलता का भी सामना करना पड़ता है. ऐसे में उन लोगों ने असफलता को कैसे हैंडल किया, कैसे फेल्योर ने उन्हें इंस्पायर किया आदि पढ़ती हूं. खुश रहने का मंत्र यही है कि आप को जो मिला है सैलिब्रेट करें.’’

‘गृहशोभा’ के जरीए वे महिलाओं से कहना चाहती हैं कि हर महिला सुपर वूमन है. उस में क्या खास है, वह खुद इसे समझे, खुद को वैल्यू दे. इस के अलावा अपने स्वास्थ्य और डाइट पर ध्यान दे ताकि हमेशा स्वस्थ रहे. 

ट्रेवेलर्स के लिए टिप्स

स्वास्थ की देखभाल सबसे जरूरी है. अच्छे स्वास्थ के लिए हम रोज अच्छे खाने और कसरत पर ध्यान देते हैं. यात्रियों को अपने स्वास्थ की अच्छे से देखभाल करनी चाहिए क्योंकि वे हमेशा नई-नई जगहों पर जाते हैं, बाहर ही खाते हैं. ये जोखिम भरा भी है, क्योंकि आपको नहीं पता कि अलग-अलग जगहों पर कहां कैसे बैक्टीरिया और वायरस हों. इसलिए जरूरी है कि यात्रा करने से पहले आप अपने स्वास्थ से सम्बंधित सावधानियां बरतें.

आज हम आपको ऐसे ही कुछ हेल्थ टिप्स के बारे में बताएंगे जिससे आपकी यात्रा में कोई बाधा ना आये.

सिर्फ बोतल का पानी पीयें

यात्रा में आपको हर जगह अलग-अलग पानी मिलेगा. बेहतर होगा कि आप वहां के लोकल नल के पानी को न पीयें. किसी दुकान से बोतल में भरा पानी लें और चेक कर लें की उसकी सील अच्छे से लगी है या नहीं. और सबसे बेहतर होगा अगर आप अपने साथ ऐसी बोतल ले जाएं जिसमें फिल्टेरेशन की सुविधा हो.

हद से ज्यादा न खाएं

अलग अलग जगहों पर अक्सर नए और अलग व्यंजनों का स्वाद चखने का उत्साह रहता है. पर आप लिमिट में ही खाएं. यात्रा के दौरान ज्यादा बिल्कुल भी न खाएं नहीं तो आपको पेट में इन्फेक्शन हो सकता है. हेल्थी फूड ही खाएं और उतना ही खाएं जितनी आपको जरूरत हो.

अपने साथ कुछ खाने का सामान रखें

यात्रा के दौरान हमेशा अपने साथ बिस्किट, फल, और ड्राई फ्रूट्स आदि जरूर रखें. क्योंकि हो सकता है कि आपको खाना ना मिले या अच्छा न लगे. ऐसे में ये चीजें आपकी भूख मिटाने में मदद करेंगी.

कुछ नया खाने से सावधानी बरतें

यात्रा के दौरान अलग अलग जगहों के नए नए व्यंजन ट्राय करना यात्रा की सबसे दिलचस्प चीज होती है. हां, यह अच्छा है कि आप नयी चीजों को ट्राय करें पर इस बात का ध्यान रखें की आपका पेट इसके लिए तैयार है या नहीं. जबरदस्ती कुछ भी खाने का प्रयास न करें.

दवाइयां और फर्स्ट एड किट

फर्स्ट एड किट हमेशा ही अपनी यात्रा में ले जाएं. ये आपकी छोटी चोट में भी मदद करेंगे. अपने साथ कई जरूरी और रोजाना की दवाइयां ले जाना न भूलें क्योंकि हो सकता है आप जहां जा रहें हों वहां दवाइयों की सुविधा उपलब्ध न हो.

गर्म कपड़े

यात्रा के दौरान यह हमेशा अपने साथ गर्म कपड़े जरूर रखें क्योंकि रात के समय अक्सर कई जगहों का मौसम बदल जाता है. ऐसे में आपको ठण्ड लगने के चांस हो सकते हैं.

इन्फेक्शन्स से सूचित रहें

यात्री कई बार इन्फेक्शन के खतरे से भी गुजरते हैं. इसलिए किसी नई जगह जाने से पहले पता कर लें कि उस क्षेत्र में किसी भी तरह का इन्फेक्शन तो नहीं फैला हुआ है. और बेहतर होगा कि आप ऐसी जगहों से जाने से बचें.

वैक्सीनेशन के लिए डॉक्टर से कन्सल्ट करें

अपने डॉक्टर से मिलें और उन्हें वैक्सीनेशन के बारे में बताएं. सबसे बेहतर होगा कि अपनी यात्रा से पहले आप अपना हेल्थ चेकअप करा लें.

कीट निवारक

यात्रा के लिए पैकिंग करते समय कीट निवारक क्रीम और स्प्रे रखना न भूलें. ये आपको मच्छरों और अन्य कीड़ों से होने वाले इन्फेक्शन और बिमारियों से बचाएंगे. इन सबके साथ आप अपने हाईजीन का भी ख्याल रखें जिससे कि आप किसी भी तरह के इन्फेक्शन से बचे रहें.

उड़ता मुंबई

हाल ही में आई फिल्म ‘उड़ता पंजाब’ में नशे का, नशाखोरों का जो रूप दिखाया गया है, वह सिर्फ पंजाब की ही समस्या नहीं है. ‘बल्ली’ सिर्फ पंजाब का ही स्कूल जाने वाला नशेबाज छात्र नहीं है, मुंबई में भी हजारों ‘बल्ली’ हैं. बिहार की मजदूर बनी आलिया भट्ट सिर्फ पंजाब में ही अपनी इज्जत नहीं गंवाती, मुंबई में भी हजारों लड़कियां नशाखोरों के हाथों पड़ कर या खुद नशे की चपेट में आ कर अपना जीवन बरबाद कर रही हैं या कर चुकी हैं. ‘उड़ता पंजाब’ ही नहीं, उड़ता मुंबई भी आज हजारों लोगों को नशे की चपेट में ला कर बरबाद कर रहा है. पता नहीं किस खुशी को ढूंढ़ते हजारों लोगों को मुंबई भी नशे के धुएं में उड़ा रहा है.

महाराष्ट्र में सब से ज्यादा नशाखोर हैं. पिछले 3 सालों में यहां नशे से छुटकारा पाने के लिए सब से ज्यादा लोगों का रजिस्ट्रेशन हुआ है. पिछले 3 सालों में मुंबई में डिएडिक्शन के लिए लगभग 10 हजार नशाखोरों की संख्या बताई गई है. डीएआईआरआरसी के अध्यक्ष डाक्टर युसूफ मर्चेंट ने बताया कि अधिकतर मामले 16 से 20 साल की उम्र के होते हैं. उन के अनुसार म्याऊंम्याऊं ऐसा पावरफुल ड्रग है जिसे नशेबाज आजकल सब से ज्यादा ले रहे हैं.

नशे के लिए कुछ भी

28 मई, 2014 को मुंबई के एक अखबार में प्रकाशित खबर के अनुसार, युवा छात्रछात्राएं, मेथमफेटामाइन जो बहुत ऐडिक्टिव ड्रग है और मुंबई में बड़ी मात्रा में स्मगल होता है, की गिरफ्त में खूब आ रहे हैं. 20 वर्षीय कोलाबा निवासी छात्र ने कल्याण के पास रिहैब सैंटर में ‘मेथ’ की अपनी लत से छुटकारा पाने के लिए 1 साल बिताया. उस ने बताया कि उस ने प्रसिद्ध यूएस टीवी सीरीज ‘ब्रेकिंग बैड’ देखने के बाद ड्रग लेने का मन बनाया. फर्स्ट ईयर कौमर्स के इस छात्र ने बताया कि उसे टीवी पर ड्रग लेना इतना प्रभावकारी लगा कि वह यह अनुभव करने के लिए अति उत्साहित हो गया, फिर उसे धीरेधीरे आदत ही पड़ गई और एक समय ऐसा आया कि वह क्व8,000 में एक ग्राम ‘मेथ’ खरीदने के लिए तैयार था. यह 3 दिन चलता था पर धीरेधीरे प्रतिदिन वह 1 ग्राम लेने लगा. फिर वह ‘मेथ’ खरीदने के लिए अपने मातापिता का कैश और ज्वैलरी भी चुराने लगा. वह अपनी डेली खुराक लेने के लिए कुछ भी करने को तैयार था.

कहीं का नहीं छोड़ा

उस के मातापिता उस की इस आदत से अनजान थे. उन्हें तब शक हुआ जब उस ने हिंसक व्यवहार करना शुरू किया. तब वे उसे डाक्टर के पास ले गए. फिर सब पता चल गया. 1 साल उस का इलाज चला. वह 6 महीने पहले घर लौटा, लेकिन अभी भी उस की कभीकभी नशा करने की इच्छा होती है, पर वह कहता है कि अब वह नशा बिलकुल नहीं करेगा.

30 वर्षीय वर्ली निवासी एक युवा 18 साल की उम्र से कोकीन ले रहा था. बाद में वह मेथ का भी आदी हो गया. इस नशे की लत ने उस की नौकरी ही ले ली. उस ने बताया, ‘‘मैं सिगरेट बहुत पीता था. फिर मैं ने अलगअलग ड्रग्स लेने शुरू कर दिए. मुंबई में ड्रग्स मिलना बहुत आसान है. बांद्रा में एक पान वाले ने ही मुझे ड्रग्स बेचे. उस ने कहा कि यह लैटेस्ट फैशन है.’’ ‘

उस के 66 वर्षीय रिटायर्ड सरकारी कर्मचारी पिता ने बताया कि 5 प्रयासों के बाद  भी उन का बेटा नशा नहीं छोड़ पाया. वह रिहैब सैंटर आताजाता रहा और उस का वजन भी  10 किलोग्राम कम हो गया था. नशे ने उन के बेटे को कहीं का न छोड़ा. उसे स्किन की भी बीमारियां हो गई थीं. अब वह फिर रिहैब में है और उस की दवा और काउंसलिंग चल रही है. उस के पिता को आशा है कि अब की बार उन का बेटा अपने नशे की लत से बाहर जरूर आएगा.

जानवरों जैसा जीवन

24 वर्षीय अहमद हुसैन, मुंबई में डौकयार्ड रोड पर नगरपालिका स्कूल में तो गया था पर 7 साल की उम्र में ही दोस्तों के साथ सड़कों पर घूमने लगा. फिर उस ने घर भी छोड़ दिया था. बीडि़यां पीने लगा था. वह वीटी स्टेशन, जहां खूब ड्रग्स बेचे जाते हैं, वहीं बाहर गलियों में रहने लगा. वह कई दिन बिना नहाए, बिना खाए रहता. बस, उसे ब्राउन शुगर की जरूरत रहती. वह ड्रग्स खरीदने के लिए कुछ भी करने लगा. चोरी, जेब काटना, लोगों को ठगना. कई बार उस ने आर्थर रोड, कोल्हापुर और बायकला जेल में भी दिन बिताए. वह कहता है, ‘‘वीटी मेरी मनपसंद जगह थी जहां माल (ब्राउन शुगर) आसानी से मिलता था. मुझे कई बार लोगों ने पीटा भी, गली के कुत्तों ने काटा, पर मुझे तो ड्रग्स चाहिए ही थी.’’

दुख और शर्मिंदगी

एक 14 वर्षीय लड़की को उस के कामकाजी मातापिता ने अपने संयुक्त परिवार की देखरेख में छोड़ा था, जिस में 7 बड़े थे और 3 बच्चे. एक दिन उस की मां काम से लौटीं तो उन्होंने बेटी को गहरी नींद में सोते देखा. जब वह उठी, तो उस का व्यवहार अजीब था. वह नाराज और थकी हुई थी. जब ऐसा लगातार 3 दिन तक हुआ तो मां ने फैमिली डाक्टर से बात की. डाक्टर को ड्रग्स लेने का शक हुआ. लेकिन बेटी ने साफ इनकार कर दिया. बाद में मातापिता को पता चला कि वह अपनी दोस्त से ले कर एक बोतल जूस पीती थी जिस में मेफिडोन ड्रग होती थी. डांस क्लास में उसे उस का एक दोस्त एक सफेद गोली देता था, जिसे खाने से मूड अच्छा हो जाता था. इस से वह बहुत खुश होती थी. 2 गोलियां 50 में मिलती थीं. पूरे परिवार को जब यह पता चला तो सब दुख और शर्मिंदगी से भर उठे.

ये उदाहरण यहीं खत्म नहीं होते, दिल्ली से मुंबई आई 5 सालों से मौडलिंग कर रही एक मौडल का कहना है, ‘‘सिगरेट पीना यहां कोई नई बात नहीं है. हर दूसरी लड़की यहां सिगरेट पीती है, हर शो से पहले आसपास हशीश की गंध कोई भी सूंघ सकता है, अकेले रह कर लेट नाईट पार्टी क्लब में जाना, खूब टकीला पीना, मेरा लाइफस्टाइल का हिस्सा बन गया था. मैं काम कर रही थी. अत: पैसा मेरे पास था ही. मैं ने सब से पहले ग्रास और हैश लेनी शुरू की. थका देने वाले फोटोशूट के बाद मैं हशीश ले कर जैसे पंख सी हलकी हो जाती थी. नशा कर के हर पार्टी में मैं सुबह तक डांस करती थी. एक ड्रग डीलर से मेरी अच्छी दोस्ती हो गई. वह मुझे हर रेव पार्टी में साथ ले जाने लगा. मैं नशा करती, डांस करती, सैक्स भी होता, फिर मैं रोज डबल डोज लेने लगी, अब कोक (नशे की दुनिया में प्रचलित शब्द) लेने के लिए ही मैं काम कर रही थी. मैं बुरी तरह नशे की शिकार हो रही थी. मेरी आंखों के नीचे डार्क सर्कल बढ़ते जा रहे थे. काम छूटता जा रहा था.’’

शर्म और दुख

मौडल ने बताया, ‘‘मेरा ड्रग डीलर दोस्त ही एक दिन मेरा सारा कैश और ज्वैलरी ले कर गायब हो गया. फिर एक दिन मैं औडीशन के टाइम ही बेहोश हो गई. मेरी शुभचिंतक सहेलियों ने मेरे मम्मीपापा को बुलाया. 2 महीने के इलाज के बाद मेरी नशे की आदत छूटी.

‘‘आज जब पिछले समय पर नजर डालती हूं, तो शर्म और दुख के सिवा कुछ महसूस नहीं होता. मम्मीपापा के सहयोग से मैं ने अपना ध्यान रखना शुरू किया, जौगिंग करने लगी, हैल्दी खाना खाने लगी. फिर अपने काम के लिए मेहनत की. मैं धीरेधीरे आगे बढ़ी. आज मैं एक सफल मौडल हूं.’’

एलएच हीरानंदानी हौस्पिटल, पवई के मनोरोग विशेषज्ञ डाक्टर हरीश शेट्टी का कहना है, ‘‘ड्रग्स का आसानी से मिलना ही चिंताजनक है. आजकल युवा कम समय में ही ज्यादा ऐनर्जी चाहते हैं. एमडीएमए ड्रग या तो पाउडर की तरह सूंघा जाता है या कैप्सूल की तरह लिया जाता है. 3 से 6 घंटे तक यह फीलगुड सिरोटोनिन लैवल पर अचानक बहुत ऐनर्जी देता है.’’

समाज नशे की लत से दूर रहे, हमारे युवा इस के जाल में न फंसें, इस के लिए जरूरी है कि हम स्वस्थ समाज के निर्माण में स्वयं से, अपने घरपरिवार से शुरुआत करें, घर के सदस्यों पर नजर रखें, नशे के शिकार व्यक्ति को नशामुक्ति केंद्र की सहायता से इस अंधेरी दुनिया से बाहर निकालें, प्यार और सहयोग से सही रास्ते पर लाएं, अपने आसपास के लोगों का ध्यान रखें. कदम बहकने से पहले ही संभल जाएं तो अच्छा है वरना आने वाला समय देश, समाज और परिवार के लिए बहुत दुखद होगा.              

कानूनन अपराध

मुंबई में 10 में से 8 नशाखोर सस्ता पार्टी ड्रग ‘म्याऊं’ लेते हैं. यह मार्केट में सब से लोकप्रिय पार्टी ड्रग है. दिसंबर, 2014 में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने केंद्र को लिखा कि यह ड्रग एनडीपीएस के अधीन नियंत्रित वस्तुओं की लिस्ट में शामिल हो और यह फिर फरवरी, 2015 में शामिल कर लिया गया. इस ऐक्ट के अनुसार 50 ग्राम से ज्यादा इस ड्रग की मात्रा रखने पर 10 से 20 साल तक की सजा हो सकती है और 2 लाख का जुरमाना भी.

ड्रग्स के साइड इफैक्ट्स

मूडस्विंग्स, चिंता, डिप्रैशन, गुस्सा, चिड़चिड़ाहट, यूफोरिया, हाइपरऐक्टिविटी, रिश्तों में परेशानियां. सभी ड्रग्स दिमाग पर बुरा प्रभाव डालते हैं. यहां तक कि आत्महत्या की प्रवृत्ति भी उत्पन्न हो जाती है.

नशा करने का कारण तो व्यक्ति पर ही निर्भर करता है. नशे की फैमिली हिस्ट्री, उपेक्षा या कोई और दुखद घटना, डिप्रैशन और चिंता जैसा मानसिक बीमारी, कारण कुछ भी हो सकता है.

सितंबर में करें इन शहरों की सैर…

सितंबर में मानसून पूरे भारत में हर जगह पहुंच चुका होता है और इस महीने में न तो ज्यादा गर्मी होती है न हीं ज्यादा उमस. इस मौसम में भारत के कुछ हिस्सों में घूमने जाना फायदे का सौदा हो सकता है क्योंकि मानसून में इन शहरों के नजारे देखने लायक होते हैं.

आइए जानें, ऐसे ही कुछ शानदार शहरों के बारे में जो मानसून में और भी ज्यादा खूबसूरत हो जाते हैं…

1. श्रीनगर, कश्मीर

कश्‍मीर राज्‍य की ग्रीष्‍मकालीन राजधानी श्रीनगर है जिसे धरती का स्‍वर्ग और पूरब के वेनिस के नाम से जाना जाता है. झेलम नदी के तट पर स्थित खूबसूरत झीलों, महान ऐतिहासिक, धार्मिक और पुरातात्विक महत्‍व रखने वाले इस शहर की खूबसूरती सितंबर महीने में और भी बढ़ जाती है.

2. अमृतसर, पंजाब

अमृतसर पंजाब का सबसे महत्वपूर्ण और पवित्र शहर माना जाता है. पवित्र इसलिए माना जाता है क्योंकि सिक्खों का सबसे बड़ा गुरूद्वारा स्वर्ण मंदिर अमृतसर में ही है. ताजमहल के बाद सबसे ज्यादा पर्यटक अमृतसर के स्वर्ण मंदिर को ही देखने आते हैं.

3. शिमला, हिमाचल प्रदेश

शिमला, एक खूबसूरत हिल स्टेशन है जो हिमाचल प्रदेश की राजधानी है. इस जगह को ‘समर रिफ्यूज’ और ‘हिल स्टेशंस की रानी’ के रूप में भी जाना जाता है. सितंबर में यहां के पहाड़ों जाखू, प्रॉस्पैक्ट, ऑव्सर्वेटरी, एलीसियम और समर को  देखना के सुखद अहसास हो सकता है.

4. लाचेन, सिक्किम

उत्तरी सिक्किम जिले में एक छोटा सा शांत कस्बा लाचेन स्थित है. इसके नाम का अर्थ है बड़ा दर्रा और हाल ही में सिक्किम सरकार द्वारा पर्यटन केन्द्र के रूप में विकसित किये जाने के कारण यह काफी लोकप्रिय पर्यटन गन्तव्य बनता जा रहा है. लाचेन प्राकृतिक सुन्दरता और वन्यजीव जन्तु की विविधता के कारण लगभग सभी पर्यटकों को रोचक लगता है.

5. नैनीताल, उत्तराखंड

आज भी नैनीताल में सबसे अधिक ताल हैं. इसे भारत का लेक डिस्ट्रिक्ट कहा जाता है क्योंकि यह पूरी जगह झीलों से घिरी हुई है. ‘नैनी’ शब्द का अर्थ है आंखें और ‘ताल’ का अर्थ है झील. झीलों का शहर नैनीताल उत्तराखंड का प्रसिद्ध पर्यटन स्‍थल है.

6. शि‍लांग, मेघालय

मेघालय का शिलांग छु‍टि्टयां बिताने के लिए बहुत अच्छी जगह है. गाड़ी से जाने योग्‍य पर्वतीय स्‍थानों में से एक माना जाने वाला शिलांग ऐसा पर्यटन स्‍थल जहां ज्यादा पैदल नहीं चलना होता. शिलांग की उपयुक्‍त सुविधाएं, मनोरम दृश्‍य, खुशहाल लोग, बादल और लंबे पाइन के पेड़, पर्वत, घाटियां, और एक शानदार गोल्‍फ कोर्स, इसे एक अच्‍छा पर्यटन स्थल बनाते हैं.

7. मसूरी, उत्तराखंड

मसूरी उत्तराखंड की प्रकृति की गोद में बसा हुआ अत्‍यंत मनोरम शहर है. मसूरी को ‘पहाड़ों की रानी’ भी कहा जाता है. मसूरी सौंदर्य, शिक्षा, पर्यटन व व्यावसायिक गतिविधियों के लिए प्रसिद्ध है.

8. कोच्चि, केरल

यह मध्य केरल में है. केरल की बाकी जगहों पर जाने के लिए कोच्चि से आसानी होगी. यह केरल घूमने के लिए शुरुआती पड़ाव की तरह है. इस वजह से भी कोच्चि लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र बन गया.

9. कुन्नूर तमिलनाडु

कुन्नूर तमिलनाडु राज्य के नीलगिरि जिले में स्थित एक प्रसिद्ध एवं खूबसूरत पर्वतीय पर्यटन स्थल है. यहां की हरियाली और मनमोहक दृश्य पर्यटकों को बरबस ही खींच लाते हैं. यह स्थान मनमोहक हरियाली, जंगली फूलों और पक्षियों की विविधताओं के लिए जाना जाता है. यहां ट्रैकिंग और पैदल सैर करने का अलग ही आनन्द है. चाय के बागानों की सैर पर्यटकों को खूब भाती है.

10. खंडाला, महाराष्ट्र

यह जगह महाराष्ट्र में, पश्चिमी घाट में स्थित एक पर्वतीय स्थल है. यह लोनावला से तीन किलोमीटर और कर्जत से सात किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. मुंबई और पुणे के बीच की मुख्य कड़ी मुंबई-पुणे एक्सप्रेसवे, खंडाला से ही होकर गुजरता है. ड्यूक की नाक (ड्यूक्स नोज) नामक पहाड़ी चोटी से खंडाला और भोर घाट के सुन्दर नजारों का आनन्द लिया जा सकता है.

“सूरत के कारण मैं रिजेक्ट हो गया था”

यह सच है कि मेहनत करने वालों की कभी हार नहीं होती. अगर फिल्म इंडस्ट्री में मेहनत के बलबूते पर अपनी जगह और नाम कमाने वालों की बात की जाए तो रेमो डिसूजा का नाम उनमें सब से ऊपर होगा.

रेमो ने कभी डांस की ट्रेनिंग नहीं ली. सिर्फ माइकल जैक्सन के वीडियो देख कर डांस सीखा. उन डांस वीडियोज के किराए के पैसों का भी बड़ी मुश्किल से इंतजाम कर पाते थे. पैसों की तंगी के चलते उन्होंने अपनी डांस क्लास सुपर ब्रैट्स खोली और लोगों को डांस सिखाने लगे.

शुरुआती दौर में रेमो को इस क्षेत्र में बहुत संघर्ष करना पड़ा. एक बार तो उनके पास पैसे की इतनी तंगी आ गई कि उन्हें अपनी 2 रातें बिना कुछ खाए पीए स्टेशन पर गुजारनी पड़ीं. पर कहते हैं न कि मेहनत के बाद खुशी का समय जरूर आता है. ऐसा ही रेमो के साथ भी हुआ.

एक डांस कंपिटिशन में विजेता बनने के बाद लोगों को रेमो के हुनर की पहचान हुई और पहला चांस रामगोपाल वर्मा की फिल्म ‘रंगीला’ में उर्मिला के साथ ग्रुप डांस करने का मिला. पहला बड़ा ब्रेक सोनू निगम के अलबम ‘दीवाना’ से मिला. इसके बाद रेमो ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा.

स्टार प्लस के ‘डांस प्लस’ के दूसरे सीजन के मौके पर रेमो ने रिऐलिटी शो की सचाई और अपने जीवन के कुछ अच्छेबुरे पलों को शेयर किया. पेश हैं, कुछ अहम अंश…

डांस शो में सिर्फ डांस ही होना चाहिए

कई सारे डांस रिऐलिटी शो इस समय छोटे परदे पर दस्तक दे चुके हैं और कई आने वाले हैं. इन सब के बीच कैसे अपने शो की टीआरपी बढ़ा पाएंगे? सवाल के जवाब में रेमो का कहना है, ‘‘हमारा काम सिर्फ अच्छी प्रतिभाओं को जज करने का है. शो को रोचक बनाना तो प्रतिभागियों का काम है. हमारे शो में कई नए डांस के एक्ट देखने को मिलेंगे. कई एक्ट तो ऐसे हैं, जिन्हें मैं खुद पहली बार देख रहा हूं.

एक लड़का ‘ऐनिमेशन’ डांस एक्ट ले कर आया तो एक ‘डांस होल’ ले कर, जिस का नाम मैंने भी पहली बार सुना था. मैं मानता हूं कि अगर शो डांस का है, तो उस में सिर्फ डांस ही होना चाहिए और कोई ड्रामा नहीं. हमारे देश में अच्छा डांस देखने वालों की कमी नहीं है.’’

दिल तो क्षेत्रीय नृत्य में बसता है

डांस से फिल्में बनाने के शौक पर रेमो कहते हैं, ‘‘मैं तो हमेशा डांस की दुनिया में ही जीता हूं. अगर दिल की बात बताऊं तो मुझे क्षेत्रीय डांस बहुत पसंद है. मैंने बंगाल के ‘छाऊ’ डांस के ऊपर एक बांग्ला फिल्म बनाई थी, जो आज तक रिलीज नहीं हो पाई. हमारे यहां क्षेत्रीय नृत्य की सीमा सिर्फ उसी क्षेत्र विशेष तक सीमित है जहां का वह नृत्य है.

अंतर्राष्ट्रीय लेवल की तो छोडि़ए उसे राष्ट्रीय स्तर पर भी आज पहचान प्राप्त नहीं हुई है. इसलिए मैं डांस पर आधारित फिल्में बनाता हूं. मेरी सारी फिल्में एक जैसी नहीं होतीं. सब से पहले मैंने ‘फालतू’ बनाई थी, जो अलग थी. इसके बाद ‘एबीसीडी’ के दोनों भाग डांस बेस्ड थे. एक और फिल्म मैं सलमान और शक्ति को ले कर बना रहा हूं, जिस का निर्देशन डिकोस्ट्रा कर रहे हैं. यह स्ट्रीट डांसर की कहानी पर आधारित है.’’

डांस का शौक

रेमो अपने बारे में बताते हैं, ‘‘मेरे पापा नेवी में थे, इसलिए मैं पूरा देश घूमा हुआ हूं. मैं सबसे ज्यादा गुजरात में रहा हूं. इसी कारण गुजराती और हिंदी पर अच्छी पकड़ है. मैंने किसी से डांस नहीं सीखा है. घर पर रह कर ही फिल्मी गानों पर डांस करता था.

एक दिन एक डांस वीडियो देखा, जिसे देख कर मैं ने अपने दोस्त से कहा कि एक आदमी ऐसा डांस कैसे कर सकता है? तब मुझे पता चला कि वह डांस वाला आदमी और कोई नहीं माइकल जैक्सन है. उसी दिन से मैंने उन जैसा डांस करने की कोशिश शुरू कर दी और मैंने तय किया कि मुझे इसी क्षेत्र में अपना करियर बनाना है.

दोस्तों की मदद से माइकल जैक्सन के वीडियो कैसेट मंगवाए. उस समय एक दिन का किराया 25रुप्या था. बड़ी मुश्किल से पैसों का जुगाड़ हो पाता था. मैंने उनका एक वीडियो एक दिन में 100 से भी ज्यादा बार देखा था. उन के डांस स्टैप्स को कौपी करने की कोशिश करने लगा. मैं माइकल जैक्सन को ही अपना गुरु मानता हूं.’’

ड्रीम प्रोजेक्ट

अपने ड्रीम प्रोजेक्ट के बारे में रेमो बताते हैं, ‘‘मैं एक डांस इंस्टिट्यूट खोलना चाहता हूं जहां हर तरह के डांस के प्रशिक्षण की सुविधा हो और वहां से निकलने के बाद हर छात्र को सर्टीफिकेट दिया जाए, जिसे दिखा कर वह इसी क्षेत्र में अपना करियर बना सके.

हमारे यहां क्लासिकल डांस के लिए तो डिग्री, सर्टीफिकेट दिए जाते हैं पर हिपहोप, बैले, कंटैंपररी डांस के लिए कोई इंस्टिट्यूट नहीं है. इनकी उपलब्धता से लोगों का डांस के प्रति और रुझान बढ़ेगा और प्रतिभाएं सही जगह पहुंचेंगी.’’

वह लमहा कभी नहीं भूलता

हर आदमी की जिंदगी में कुछ ऐसा घटता है कि कितना भी समय हो जाए जेहन में वह घटना हमेशा ताजा रहती है. रेमो के साथ भी ऐसी ही घटना घटी. उस के बारे में वे बताते हैं, ‘‘मैं जब ‘रंगीला’ फिल्म में डांस के लिए औडिशन देने गया तो वहां 250 प्रतिभागियों में से 50 का चयन होना था.

मेरा डांस देखे बिना ही मुझे रिजैक्ट कर दिया गया, क्योंकि जो चयनित हुए थे उनकी तुलना में मैं बहुत दुबलापतला था और फिर मेरा चेहरा भी सामान्य था. मैंने सिलेक्शन कर रहे लोगों से रिक्वैस्ट की कि चेहरे को न देख एक बार मेरे डांस को देखें. तब मैंने डांस किया और मेरा सिलैक्शन हो गया.

उस लमहे को मैं कभी नहीं भूल सकता, क्योंकि सूरत के कारण मैं रिजैक्ट हो गया था पर सीरत ने मुझे सिलैक्ट करा दिया. इस के अलावा मैं आश्रम के बच्चों को डांस सिखाता था. उन बच्चों में से एक स्पैशल बच्चा भी था, जिस के हाथों में मूवमैंट न के बराबर थी. धीरे धीरे मेरी सिखाने की लगन और उस बच्चे की मेहनत रंग लाई. वह बच्चा डांस करने में पारंगत हो गया. उसे डांस करते देख मुझे जो खुशी होती है उसे मैं शब्दों में व्यक्त नहीं कर सकता.’’

बॉलीवुड में सब को नचाया

रेमो बॉलीवुड के कई सितारों को कोरियोग्राफ कर चुके हैं. वे कहते हैं, ‘‘मैंने आमिर खान और शाहरुख खान को छोड़ कर सभी को अपनी उंगलियों पर नचाया है. दीपिका, रणवीर कपूर, रणवीर सिंह, कैटरीना कैफ, सलमान सभी डांस में परफैक्ट हैं, पर मेरी असली परीक्षा अजय देवगन को कोरियाग्राफ करने में होगी, क्योंकि उन की फिल्म ‘शिवाय’ में मैं ही कोरियाग्राफर हूं.’’

युवा बनाएं डांस में करियर

डांस में करियर बनाने का सपना देख रहे युवाओं से रेमो का कहना है, ‘‘सपना देखना और उसे सच करना 2 अलग अलग बातें हैं. जो सपना देखते हो उसे पूरा करने के लिए कड़ी मेहनत करो, लेकिन जल्दी परिणाम की आशा मत करो. आप की मेहनत और लगन को दुनिया खुद सलाम करेगी.

जब से डांस रिऐलिटी शोज शुरू हुए हैं नवयुवकों को अच्छे मौके मिल रहे हैं. धर्मेश, शक्ति, पुनीत, राघव इन्हीं शोज से निकले हैं, जो पैसा और शोहरत दोनों कमा रहे हैं.’’  

जैकी चेन को मिलेगा लाइफ टाइम अचीवमेंट का ऑस्कर

लोकप्रिय अभिनेता जैकी चेन को फिल्म एडिटर एने वी.कोआटेस, कास्टिंग डायरेक्टर लेन स्टालमास्टर और डॉक्यूमेंट्री फिल्म मेकर फ्रेडरिक विसेमान को लाइफ टाइम अचीवमेंट का ऑस्कर अवॉर्ड से सम्मानित किया जाएगा.

सूत्रों के मुताबिक जैकी को नवम्बर में गवर्नर पुरस्कार से नवाजा जाएगा. ‘अकेडमी ऑफ मोशन पिक्चर्स आर्ट्स एंड साइंसेस’ ने इसकी घोषणा की.

अपने बयान में अकादमी की अध्यक्ष चेरल बोने इसाक्स ने कहा कि यह लाइफ टाइम अचीवमेंट अवॉर्ड जैकी, लेन और फ्रैडिक जैसे लोगों के लिए ही बना है, अपने काम के सच्चे लोग.

चेरल ने कहा कि बोर्ड ऐसे कलाकारों की बेहतरीन उपलब्धि के लिए उन्हें सम्मानित कर काफी खुश है. इन चारों कलाकारों को 12 नवम्बर को हाईलैंड सेंटर और हॉलीवुड के डोल्बे बॉलरूम में अकादमी के आठवें वार्षिक गवर्नर पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा.

‘पद्मावती’ के लिए शाहरुख ने रखी ये शर्त

संजय लीला भंसाली की फिल्म ‘पद्मावती’ रिलीज होने से पहले ही काफी चर्चा में है. फिल्म की स्टारकास्ट और उनकी डिमांड को लेकर कई खबरें सामनें आ रही हैं. हाल ही में खबर आई थी की शाहिद कपूर ने फिल्म में अपने रोल को लेकर कुछ शर्ते रखी हैं, तो अब खबर आ रही है की शाहरुख खान भी फिल्म में अहम भूमिका निभाएंगे जिसके लिए उन्होंने भी भंसाली के सामने कुछ शर्त रखी है.

शाहरुख ने भंसाली से कहा है कि वो फिल्म के टाइटल में बदलाव करें. दरअसल ‘पद्मावती’ एक खूबसूरत रानी की जिंदगी पर आधारित फिल्म है, जिसमें शाहरुख को लगता है कि अगर वो इस फिल्म में काम करेंगे तो उनका रोल पद्मावती के प्रभाव के आगे दब जाएगा. बस यही वजह है कि उन्होंने भंसाली से फिल्म का टाइटल बदलने की शर्त रखी है.

बता दें कि फिल्म में पद्मावती का अहम किरदार दीपिका पादुकोण निभा रही हैं. वहीं उनके पति के रोल में शाहिद कपूर और अलाउद्दीन खिलजी की भूमिका में रणबीर सिंह नजर आएंगे जैसी की खबरें आ रही हैं. अब देखना होगा की शाहरुख का फिल्म में क्या रोल होगा. फिलहाल तो वो इम्तियाज अली की फिल्म ‘द रिंग’ की शूटिंग में व्यस्त हैं.

ऐश्वर्या राय बनेंगी कवयित्री

बॉलीवुड की जानी-मानी अभिनेत्री एश्वर्या राय सिल्वर स्क्रीन पर कवयित्री का किरदार निभाती नजर आ सकती हैं. बॉलीवुड फिल्मकार करण जौहर इन दिनों फिल्म ‘ऐ दिल है मुश्किल’ बना रहे हैं. इस फिल्म में रणबीर कपूर, ऐश्वर्या राय बच्चन और अनुष्का शर्मा की अहम भूमिका है.

सूत्रों की माने तो यह फिल्म अस्सी के दशक में बनी फिल्म दूसरा आदमी से प्रेरित है.

चर्चा है कि फिल्म में ऐश्वर्या कवयित्री का किरदार निभाती नजर आएंगी. अपनी इस भूमिका को लेकर ऐश्वर्या काफी उत्साहित हैं. यह फिल्म इस वर्ष दीपावली के अवसर पर प्रदर्शित होगी. 

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