मल्टीस्टारर फिल्म पसंद नहीं: किंग खान

फिल्म ‘फैन’ अभिनेता शाहरुख खान की पसंदीदा फिल्मों की सूची में शामिल हो चुकी है. यह फिल्म एक अलग विषय को ले कर बनाई गई है, जिस में शाहरुख ने अच्छा अभिनय किया है. इस फिल्म में शाहरुख ने 2 भूमिकाएं निभाई हैं, जो डबल रोल नहीं थीं. इसके लिए निर्देशक मनीष शर्मा ने काफी मेहनत की.

शाहरुख बताते हैं कि मनीष के साथ जब फिल्म के बारे में चर्चा कर रहे थे तभी उन्होंने सोचा था कि यह फिल्म डबल रोल नहीं लगना चाहिए. शाहरुख का  मानना था कि दूसरा यंग शाहरुख उनके तरह दिखे इसलिए बाल वैसे ही दिखें

फिल्मों में उम्र अधिक दिखाना तो आम है, कम दिखाना पहली बार हुआ.

शाहरुख लोगों से अधिक मिलते नहीं हैं. पर इतना जरूर है कि लोग उन्हें प्यार करते हैं. उन की फिल्में देखते हैं. तभी तो फिल्में चलती हैं.

शाहरुख हंसते हुए कहते हैं कि एक लड़की है, जो ट्विटर पर उनकी स्केचेस बनाती है. एक ने चांद पर मेरे लिए जमीन खरीदी है. यह सब यूथ ही करते हैं, क्योंकि इस उम्र में व्यक्ति वह सब कर जाता है, जो मैच्योर न कर सके.

एक साउथ अफ्रीकन फैन है. मुझे याद आता है कि जब मेरी स्पाइन की सर्जरी हो रही थी, तो बारबार फोन कर कह रही थी कि उसने सपने में ऑपरेशन के वक्त मेरी मृत्यु को ऑपरेशन टेबल पर देखा है. बारबार सकारात्मक सोच रखने पर भी वह मुझे ऑपरेशन से मना करती रही.

लंदन पहुंच कर भी मैं कागज साइन करते वक्त बारबार हर पहलू को पढ़ता रहा. पता नहीं यह उस की केयर थी या जनून, पर बहुत डरावनी घटना थी. फैन की भी अपनी एक सीमा होनी चाहिए.

प्राइवेट लाइफ नहीं रहती

शाहरुख की पब्लिक और प्राइवेट लाइफ में अधिक अंतर नहीं है. वे कहते हैं कि जब आप पब्लिक में स्टार हों तो आप की प्राइवेट लाइफ उतनी प्राइवेट नहीं रहती. इस बारे में मेरे परिवार का काफी सहयोग रहता है. वे समझते हैं. मैं कभी उन के साथ बैठना चाहूं तो वे मना नहीं करते.

मेरे जीवन में समय का अभाव हमेशा रहता है. मेरा परिवार कभी मुझ से शिकायत नहीं करता. मुझे बेहद खराब लगता है जब मेरी गैरहाजिरी में मेरे बच्चों के बारे में लोग गलत बातें करते हैं. गुस्सा आता है. मन खराब होता है. मैंने बच्चों को इसीलिए अपने से दूर विदेश में पढ़ाया.

मेहनत वाली फिल्म

25 सालों से शाहरुख इंडस्ट्री में काम कर रहे हैं. अलग फिल्म करना वे हमेशा पसंद करते हैं. कई बार कुछ अच्छी फिल्में भी वे समय के अभाव के कारण छोड़ देते हैं. वे हर साल 3 फिल्में करना चाहते हैं. किसी भी भूमिका को करने में अगर मजा आए तो उसे वे छोड़ते नहीं.

‘फैन’ उन की सब से मेहनत वाली फिल्म है, जिस में खास तकनीक के द्वारा उन की आंखें बड़ी की गई थीं. यह तकनीक केवल लॉस एंजिल्स में मिलती है. इस का प्रौसेस बहुत बड़ा होता है. 3-4 घंटे मेकअप में लगते हैं. एक खास तरह की रोशनी में इसे शूट किया जाता है.

अच्छा करने की कोशिश

पहली बार 7-8 सेकंड के सीन के लिए 7 दिन लगे थे. उस रोशनी में एक मूवमैंट के

200 भाव कैद किए जाते हैं. 300 लोगों ने 24 घंटे काम किया, 10 दिन लगे थे. इस का प्रभाव शूटिंग के साढ़े तीन महीने बाद दिखा. वे कहते हैं कि मैं अपने अभिनय को देख कर हैरान था. अब खुश हूं कि दर्शकों को मेरा काम पसंद आया.

फिल्मों की कलैक्शन का प्रभाव शाहरुख पर नहीं पड़ता.

वे बताते हैं कि वे 40 से 50 निर्देशकों के साथ काम कर चुके हैं. किसी को भी निर्देशन के बारे में गाइड नहीं करता. स्क्रिप्ट पढ़ कर दृश्य करता हूं. क्रिएटिव पक्ष निर्देशक का होता है. फिल्म हिट कैसे होगी, इस का फौर्मूला किसी के पास नहीं है.

हम केवल यह जानते हैं कि एक अच्छी फिल्म बनानी है. उसी पर मेहनत करते हैं. इसलिए कितना पैसा उस फिल्म से आएगा मैं ध्यान नहीं देता, बल्कि अच्छा काम करने की कोशिश करता हूं.

मल्टीस्टारर फिल्मों में काम करना अधिक पसंद नहीं करता, क्योंकि इस से बाकी कलाकारों के साथ समय का तालमेल बैठाना पड़ता है.

शाहरुख खान कभी तनाव में नहीं रहते. उन का मानना है कि अभिनय मेरी ‘लार्जर देन लाइफ’ है रियल नहीं. आप वैसे नहीं हो सकते. आपको एक इमेज के लिए मेहनत करनी पड़ती है. मेकअप करना पड़ता है. इस बात को ‘स्टार’ को समझना आवश्यक है.

फिल्म ‘रईस’ में शाहरुख अलग ही रूप में दिखेंगे. फिल्म को ले कर वे काफी उत्साहित हैं, जिस में उन्होंने गैंगस्टर अब्दुल लतीफ की भूमिका निभाई है.        

रोमांटिक गानों की नई आवाज, अंतरा मित्रा

जिसका ‘रंग दे तू मोहे गेरुआ…’, ‘साड़ी के फाल सा…’ इन गानों के साथ नाम जुड़ा हुआ है और वह है अंतरा मित्रा. उनका पश्चिम बंगाल के उत्तर 24 परगना के बनगांव प्रखंड के एक कसबे मच्छलंदपुर से मुंबई का सफर बड़ा रोमांचक रहा है.

अंतरा को बॉलीवुड में मुकाम बनाने का कोई सिल्क रूट नहीं मिला. इंडियन आइडल में ऑडिशन देने से ले कर बॉलीवुडी गायकी की दुनिया में अपने लिए एक मुकाम हासिल करने के लिए अंतरा ने रात दिन एक किया है.

आज सफलता उनके कदम चूम रही है. लेकिन अंतरा जब कभी पीछे मुड़ कर देखती हैं, तो बहुत सारे उतार चढ़ाव इन रास्तों में उन्हें नजर आते हैं. वे जानती हैं कि आगे भी उनका इन उतार चढ़ाव से सामना होता रहेगा. लेकिन इस के लिए वे पूरी तरह तैयार हैं.

‘इंडियन आइडल सीजन-2’ में अंतिम 5 में पहुंच कर अंतरा का सफर थम गया था. इस सीजन के लगभग छोर में पहुंच कर भी किनारा नहीं मिला. अंतरा कंपीटिशन से बाहर हो गईं. पहले राउंड में अंतरा ने गाना गाया था, ‘रंगीला रे…’ जिसे सुन कर अनु मल्लिक ने कहा था कि लगता है मुझे मेरा प्लेबैक सिंगर मिल गया. उस दिन सोनू निगम के मुंह से भी निकला था कि बहुत खूब.

अगले राउंड में जब अंतरा ने गाया, ‘रुकी रुकी थी जिंदगी…’ तो अनु मल्लिक ने कहा था कि तुम अगले राउंड में जा रही हो. फिर अगले राउंड में उस ने गाया, ‘मोरनी बागां में नाचे…’ जिसे सुनते ही अनु मल्लिक बस चीख पड़े कि फैंटैस्टिक सिंगिंग. मैं श्योर हूं कि मैं इसी को ढूंढ़ रहा था.

वहीं सोनू निगम ने कहा कि तुम्हें पा कर अच्छा लग रहा है, क्योंकि तुम हर तरह का गाना गा सकती हो.

‘मोरनी बागां में नाचे…’ और ‘रुकीरुकी थी जिंदगी…’ गानों पर अंतरा के लिए सब से ज्यादा एसएमएस भेजे गए. लेकिन अंतत: अंतरा ‘सीजन-2’ से बाहर हो गईं.

हार नहीं मानी

मगर अंतरा ने हार नहीं मानी. इस के बाद उन्होंने 2008 में ‘जनून कुछ कर दिखाने का’ नामक म्यूजिक रिऐलिटी शो में भाग लिया. लेकिन इन सब से कुछ खास नहीं बन पाया. अंतरा को बंगाल लौटना पड़ा. लेकिन यहां उन्हें अच्छा नहीं लग रहा था. इसलिए वह वापस मुंबई आ गईं.

मुंबई में वह प्रीतम चक्रवर्ती के स्टूडियो गईं. प्रीतम ने उन्हें ‘लविंग यू…’ गाना गाने को कहा. सोनू निगम भी इंडियन आइडल से अंतरा को पहचानते थे. सोनू निगम के साथ ‘स्पीड’ फिल्म का गाना ‘लविंग यू…’ गा कर उनके आत्मविश्वास में इजाफा हुआ.

प्रीतम ने श्रेया घोषाल के साथ ‘जब वी मेट’ के लिए ‘ये इश्क हाय, बैठे बैठाए जन्नत दिखाए…’ गवाया. यह गाना हिट रहा. लेकिन सारा क्रैडिट श्रेया घोषाल को गया. लेकिन प्रीतम ने फिर मौका दिया. इस बार ‘लाइफ पार्टनर’, फिल्म के लिए ‘कूकेकूके कोयलिया…’ गवाया.

इसके बाद उन्हें मीका सिंह के साथ भी गाने का मौका मिला. आखिरकार बात बनी फिल्म ‘राजनीति’ से मोहित चौहान के साथ ‘भीगी सी भीगी सी…’ गाने से अंतरा के पैरों को थोड़ी सी जमीन हासिल हुई. फिर तो साजिद वाजिद के संगीत पर भी गाने का मौका मिला.

कोलकाता से लगभग 80 किलोमीटर और ढाई घंटे की दूरी पर वनगांव के मच्छलंदरपुर नाम के एक कसबे में पलीबढ़ी अंतरा मित्रा के पिता म्यूजिक ट्यूटर रहे हैं. संगीत से लगाव पिता की ही देन है. पिता सलिल चौधरी के बड़े प्रशंसक रहे हैं. इसीलिए सलिल चौधरी की बेटी के नाम पर ही अंतरा का नाम रखा था. शुरू से ही पिता ने गायकी के लिए अंतरा को तैयार करना शुरू कर दिया था. बाद में शोभना मुखर्जी के पास अंतरा ने विशुद्ध शास्त्रीय संगीत का प्रशिक्षण लिया.

अंतरा हायर सेकेंडरी के बाद कल्याणी विश्वविद्यालय में अंग्रेजी साहित्य में पढ़ाई करने लगीं. मगर महज कुछ महीने ही पढ़ाई हुई. इस बीच इंडियन आइडल में ऑडिशन का मौका मिला. अत: इंडियन आइडल के लिए ऑडिशन देने के लिए वे पिता के साथ मुंबई के स्टूडियो पहुंचीं. स्टूडियो में कंपीटिशन के लिए हुजूम को देख कर अंतरा थोड़ा घबरा गईं. फिर जब पता चला कि सोनू निगम ऑडिशन लेंगे तो अंतरा के हाथपांव ही ठंडे हो गए.

तब पिता ने हौसला बढ़ाते हुए यही कहा था कि इतनी दूर पहुंचना ही बड़ी बात है. इस से ज्यादा कुछ हो जाता है, तो वह बोनस होगा. इसलिए चिंता मत करो. अपना बेस्ट देने की कोशिश करो. दिल खोल कर गाओ. और अंतरा ने दिल से गाया. आज भी पिता की बात को याद कर के अंतरा दिल से गाने की कोशिश करती हैं.

मुंबई के संघर्ष के दिनों को अंतरा बड़ी शिद्दत से याद करती हैं. दरअसल, मुंबई जब वे दोबारा लौटीं तो पेइंगगेस्ट की तरह रहना पड़ा. 1 कमरे के फ्लैट में 3 पेइंगगेस्ट थे. बेंत के सोफे पर कुंडली मार कर सोना पड़ता था. इस तरह सोने पर सारा दिन बदन में दर्द रहता था.

फ्लैट की मालकिन थोड़ी सनकी थीं. एक दिन नींद से जगा कर बताया कि तीनों के दिन इस फ्लैट में पूरे हो चुके हैं. बाकी दोनों को उनके बॉयफ्रैंड्स ने इंतजाम करा दिया. अंतरा अकेले रह गईं. तब हेमंत मुखर्जी की भतीजी अरुनिता मुखर्जी के यहां सिर छिपाने की जगह मिल गई.वह 1 महीना वहीं रहीं.

प्रीतम, अनुराग बसु के परिवार ने अंतरा को भावनात्मक सहारा दिया. अंतरा इनके घर का सदस्य सी बन गईं हैं

शाहरुख से पहली मुलाकात

‘रंग दे तू मोहे गेरुआ…’ गाने की सफलता को अंतरा बहुत अधिक महत्त्व नहीं देती हैं. वे कहती हैं कि अभी तो बहुत दूर जाना है. अंतरा शाहरुख खान की बड़ी फैन हैं. वे बताती हैं कि शाहरुख की फिल्म ‘कुछ कुछ होता है’ जब रिलीज हुई थी, तब वे छठी क्लास में पढ़ रही थीं. फिल्म में काजोल का हेयरकट उन्हें बहुत भाया था. वैसे ही बाल कटवा कर वे साइकिल से मच्छलंदपुर घूमती थीं. लेकिन प्रीतम के स्टूडियो में शाहरुख खान को देख कर उनके हाथपांव ठंडे पड़ गए.

वे बताती हैं कि प्रीतम का स्टूडियो उस के अंधेरी वेस्ट फ्लैट के करीब है. कई बार ऐसा हुआ है कि जब कभी शाहरुख खान प्रीतम का स्टूडियो आते तब प्रीतम अंतरा को शाहरुख को गाना सुनाने के लिए बुला लेते. प्रीतम गिटार बजाते और अंतरा गा कर शाहरुख को सुनातीं.

अंतरा कहती हैं कि काजोल के लिए गाना था, तो वे बहुत नर्वस थीं. दरअसल, काजोल के लिए अब तक अलका याज्ञनिक ही गाना गाती रही हैं. ऐसे में उन का गला काजोल पर फिट बैठेगा या नहीं, सोच सोच कर घबराहट होती थी.

अंतत: वह दिन आ गया जब ‘रंग दे तू मोहे गेरुआ… गाने के लिए प्रीतम ने बुलाया.

रात 2 बजे फाइनल रिकॉर्डिंग कर के शाहरुख को भेजना था ताकि आइलैंड में शाहरुख काजोल शूटिंग कर सकें. अंतरा को रात में हुई रिकॉर्डिंग पर भरोसा नहीं हो रहा था. अंतरा ने प्रीतम को फिर से रिकॉर्डिंग के लिए मना लिया. फिर से रिकॉर्डिंग कर के शाहरुख को भेजा गया. लेकिन शाहरुख को रात की रिकॉर्डिंग ही पसंद आई. इस गाने का श्रेय अंतरा संगीतकार प्रीतम को देती हैं.

बहरहाल, 9 साल के बाद अंतरा अपना एक मुकाम हासिल कर पाई हैं. बौलीवुड में अंतरा मित्रा रोमांटिक गानों की एक नई आवाज के रूप में उभर रही हैं.

संतोषम् परम् सुखम्: माधुरी दीक्षित

80 और 90 के दशक में फिल्म इंडस्ट्री में धमाल मचाने वाली अभिनेत्री माधुरी दीक्षित ने शादी के बाद फिल्मों से दूरी बना ली थी. उन्होंने 2006 में ‘आजा नचले’ फिल्म से बॉलीवुड में वापसी की, पर बॉक्स ऑफिस पर फिल्म खरी नहीं उतरी. हालांकि आलोचकों ने माधुरी की परफौर्मेंस की तारीफ की थी. इसके बाद उन्होंने ‘डेढ़ इश्किया’ और ‘गुलाब गैंग’ जैसी फिल्मों में काम किया, पर दर्शकों को खींचने में ये फिल्में भी नाकामयाब रहीं.

इसके बाद माधुरी अपने हुनर डांस की तरफ मुड़ीं और कई रिऐलिटी शोज की जज बनीं. वे कहती हैं, ‘‘डांस उन का पैशन है. 3 साल की उम्र में उन्होंने डांस सीखना शुरू कर दिया था.’’

कत्थक नृत्य की सारी शैलियों में निपुण माधुरी इन दिनों ऐंड टीवी पर ‘सो यू थिंक यू कैन डांस’ रिऐलिटी शो की एक बार फिर से जज बनी हैं. उन से बात करना दिलचस्प रहा.

पेश हैं, उन से हुए वार्त्तालाप के कुछ अंश:

डांस शो नए कलाकारों के लिए कितना महत्त्व रखता है?

डांस शो नए डांसरों को अपनी प्रतिभा दिखाने का मंच देते हैं. यहां उन्हें नए डांस फॉर्म सीखने और देखने का मौका मिलता है. साथ ही गाइडेंस भी मिलती है कि वे कैसे अपनेआप को आगे बढ़ाएं, अपनी कमियों को कैसे दूर करें. अगर कोई डांस को कॅरियर बनाना चाहता है, तो उसे अपने सपनों को साकार करने का भी अवसर मिलता है, क्योंकि पूरा देश उसे देख रहा होता है.

आप रोज कितना समय डांस कर लेती हैं?

जब मैं नृत्य करती हूं तो समय सीमा में नहीं बंधती. मेरे हिसाब से जिस काम को करने में आप खुश हों, उसके लिए समय सीमा कभी नहीं होनी चाहिए. फिर भी मैं 1-2 घंटे डांस कर लेती हूं. यह मेरे लिए वर्कआउट है, जो मुझे फिट रखता है.

नृत्य से क्या शांति मिलती है?

हर व्यक्ति अपनेआप को शांत रखने के लिए अलग-अलग तरीका अपनाते हैं. कुछ इसके लिए व्यायाम करते हैं, तो कुछ दौड़ते हैं. कुछ लोग गाना सुनते हैं, तो कुछ ऐसे भी हैं जो परेशान होने पर खूब खाते हैं. डांसिंग मेरा पैशन है. यह मुझे शांत रखता है. इसे करने से मुझे सुकून मिलता है, स्वास्थ्य फिट रहता है. मुझे जिम जाने की जरूरत नहीं पड़ती.

फिल्मों में कब आने वाली हैं?

अभिनय मेरा पहला प्यार है. जब भी मुझे कोई अच्छी स्क्रिप्ट मिलेगी, तो मैं अवश्य काम करूंगी. मैं फिल्मों से दूर नहीं जा सकती.

अच्छे नृत्य के लिए व्यक्ति में क्या क्या गुण होने चाहिए?

अच्छा डांसर बनने के लिए सही ट्रेनिंग आवश्यक है. वहां आप को अपनी कमजोरी को जान कर उसे सुधारने का मौका मिलता है. भावभंगिमा का अच्छा होना भी बहुत जरूरी है, क्योंकि नृत्य में भाव के द्वारा आप बहुत सारी बातें कह जाते हैं. अंत में सही डाइट का लेना आवश्यक है ताकि आप का स्टैमिना बढ़े और आप का ऐनर्जी लैवल हमेशा ऊपर रहे.

आप अपनी दूसरी जर्नी को कैसे देखती हैं?

हर किसी का अपना एक सपना होता है. मेरा भी है. परिवार और बच्चे मेरे सपने का एक अहम हिस्सा हैं. मेरे मातापिता, सासससुर और पति सभी का सहयोग मुझे रहता है. मैं और मेरे पति एक यूनिट की तरह हैं. जब मैं व्यस्त होती हूं, तो वे घरपरिवार को संभालते हैं और जब वे बिजी होते हैं तो मैं सब संभालती हूं. मैं ऐसे परिवार की कामना हर महिला के लिए करती हूं. मेरे लिए यह मेरा एक जर्नी है, जो अलग-अलग रास्तों में विभाजित हो चुकी है, जिस में मेरा परिवार और काम दोनों शामिल हैं.

फिल्म इंडस्ट्री में पहले से कितना बदलाव देखती हैं?

इंडस्ट्री में काफी बदलाव आया है. तकनीक से ले कर शूटिंग करने का तरीका, सबकुछ बदल गया है. पहले केवल कुछ महिलाएं फिल्म मेकिंग में थीं, पर आज लड़कियां असिस्टैंट डायरेक्टर, क्रिएटिव डायरेक्टर, सिनेमैटोग्राफर आदि हर क्षेत्र में अच्छा काम कर रही हैं. इंडस्ट्री ने भी काफी ग्रो किया है.

खुश रहने का मूल मंत्र क्या है?

जो मिले उसी में संतुष्ट रहना. इस से आप आगे बढ़ सकते है.

नहीं दिखेगी ‘‘सत्य की किरण’’

बरूण सोबती की यह बदकिस्मती है या भविष्य में उनके साथ कुछ बहुत अच्छा होने वाला है, यह तो वही जाने, मगर फिलहाल वह नुकसान में हैं. सूत्रों की माने तो ‘‘बीबीसी’’ निर्मित सीरियल ‘‘सत्य की किरण’’ का प्रसारण अब कभी नहीं होगा.

सूत्रों के अनुसार जब से बरूण सोबती ने 26 एपीसोड के इस सीरियल के तीन एपीसोड की शूटिंग की थी, तभी से इस सीरियल का भविष्य अंधकारमय नजर आ रहा था. इस सीरियल का प्रसारण जीटीवी पर होना था. मगर जीटीवी ने दो बार इसके प्रसारण की तारीखें बदलने के अलावा इसका नाम भी बदला. पर अंत में इसे प्रसारित न करने का फरमान जारी कर दिया.

बहरहाल, सीरियल ‘‘सत्य की किरण’’ को हमेशा के लिए ठंडे डिब्बे में डाल दिए जाने को लेकर बंद किए जाने पर ‘जीटीवी’ या सीरियल का निर्माण करने वाली कंपनी ‘बीबीसी’ ने चुप्पी साध रखी है.

बरूण सोबती भी चुप हैं. मगर सीरियल में अहम भूमिका निभाने वाली अदाकारा शिवानी तोमर स्वीकार करती हैं कि उनका यह सीरियल अब कभी भी प्रसारित नहीं होगा. मगर उन्हें भी इसकी वजह पता नहीं.

अजब-गजब गांव, जहां आप जरूर जाना चाहेंगी

भारत जैसे महान देश में आश्चर्यजनक चीजों की कमी नही है. यहां पर आपको हर जगह कोई न कोई अजब-गजब चीजें मिल ही जाएगी. आपने यहां पर ऐतेहासिक धरोहरें, मंदिर, खूबसूरत जगहों के बारें में सुना और देखा ही होगा. लेकिन आप क्या ऐसे गावों में गए हैं जो अपनी खासियतों के कारण प्रसिद्ध है. जिनके अपने खुद के नियम कानून,एकता, एक जैसे लोगों होने का कारण फेमस है. अगर आप कुछ अलग तरह का ट्रेवल एक्सपीरियंस लेना चाहते है तो एक बार इन गांवों में जरूर जाए जहां आपको कुछ हट कर देखनें को मिलेगा. जानिए भारत के ऐसे गांवों के बारे में..

ऐसा गांव जहां हर कोई संस्कृत में बोलता है

आज देश की राष्ट्र भाषा हिंदी भी अपने अस्तित्व के लिए जूझ रही है वही कर्नाटक के शिमोगा शहर से लगभग दस किलोमीटर दूर मत्तूर और होसाहल्ली, तुंग नदी के किनारे बसे इन गांवों में संस्कृत प्राचीन काल से ही बोली जाती है. यहां लगभग 90 प्रतिशत लोग संस्कृत में बात करते हैं. भाषा पर किसी धर्म और समाज का अधिकार नहीं होता तभी तो गांव में रहने वाले मुस्लिम परिवार के लोग भी संस्कृत उतनी ही सहजता से बोलते हैं जैसे दूसरे लोग.

एक गांव जो हर साल कमाता है 1 अरब रुपए

यूपी का एक गांव अपनी एक खासियत की वजह से पूरे देश में पहचाना जाता है. शायद आप इस गांव को नहीं जानते होंगे. इस गांव का नाम है सलारपुर खालसा जो अमरोहा जनपद के जोया विकास खंड क्षेत्र का एक छोटा सा गांव है. इस गांव की जनसंख्या 3500 है. इस गांव के फेमस होने का कारण टमाटर है. इस गांव में टमाटर की खेती बड़े पैमाने पर होती है. देश का शायद ही कोई कोना होगा, जहां पर सलारपुर खालसा की जमीन पर पैदा हुआ टमाटर न जाता हो.

हमशक्लों का गांव

केरल के मलप्पुरम जिले का एक गांव कोडिन्ही. इसे जुड़वों के गांव के नाम से जाना जाता है. इस समय यहां पर करीब 350 जुड़वा जोड़े रहते हैं जिनमे नवजात शिशु से लेकर 65 साल के बुजुर्ग तक शामिल है. विश्व स्तर की बीत करें तो हर 1000 बच्चों में 4 बच्चें जुड़वां पैदा होते है. लेकिन इस गांव में हर 1000 बच्चों पर 45 बच्चे जुड़वा पैदा होते है.

ये गांव है भगवान का बगीचा

हमारा देश में सफाई के मामले में बहुत पीछे है लेकिन हमारे देश में एक ऐसा गांव है जो एशिया का सबसे साफ़ सुथरा गांव है.. यह गांव है मोलीनॉन्ग जो मेघालय के खासी हिल्स डिस्ट्रिक्ट में है. सफाई के साथ-साथ यह गांव साक्षरता में भी नम्बर 1 है यहां पर 95 परिवार रहते है जिनकी जीविका का मुख्य कारण सुपारी है. इतना ही नहीं यहां के ज्यादातर लोग अंग्रेजी में बात करते है.

इस गांव में दूध दही मिलता है फ्री

आज जहां लोग किसी से पानी भी नहीं पूछते वहीं यह ऐसा गांव है जहां के लोग कभी दूध या उससे बनने वाली चीज़ो को बेचते नहीं हैं बल्कि उन लोगों को मुफ्त में दे देते हैं जिनके पास गाए या भैंस नहीं हैं. यह अनोखा गांव है गुजरात में बसा धोकड़ा गांव. यहां के एक व्यक्ति ने बताया कि उन्हें एक महीने में 7500 का दूध फ्री मिलता है.

यहां अब भी चलता है राम राज्य

महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले के नेवासा तालुके में शनि शिंगनापुर भारत का एक ऐसा गांव है जहां लोगों के घर में एक भी दरवाजा नहीं है यहां तक की लोगों की दुकानों में भी दरवाजे नहीं हैं, यहां पर कोई भी अपनी बहुमूल्य चीजों को ताले– चाबी में बंद करके नहीं रखता फिर भी इस गांव में आजतक कोई चोरी नही हुई.  यह जगह शनि मंदिर के लिए विश्व प्रसिद्ध है.

एक श्राप के कारण 170 सालों से है वीरान

राजस्थान के जैसलमेर जिले के कुलधरा गांव पिछले 170 सालों से वीरान पड़ा है. कुलधरा गांव के हज़ारों लोग एक ही रात मे इस गांव को खाली कर के चले गए थे और जाते-जाते यह श्राप दे गए थे कि यहां फिर कभी कोई नहीं बस पायेगा. तब से यह गांव वीरान पड़ा है.

कहा जाता है कि यह गांव रूहानी ताकतों के कब्जे में हैं, कभी एक हंसता खेलता यह गांव आज एक खंडहर में तब्दील हो चुका है. टूरिस्ट प्लेस में बदल चुके कुलधरा गांव घूमने आने वालों के मुताबिक यहां रहने वाले पालीवाल ब्राह्मणों की आहट आज भी सुनाई देती है. उन्हें वहां हरपल ऐसा अनुभव होता है कि कोई आसपास चल रहा है.

इस गांव का कुछ भी छुआ तो 1000 रुपए का जुर्माना

भारत में एक ऐसा गांव भी है जहां बाहर से आने वाले लोगों को कुछ भी छूना मना है. यहां हर देश का कानून नहीं चलता है. मलाणा हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले के अति दुर्गम इलाके में है. यहां के लोग खुद को सिकंदर का वंशज मानते है. यह इकलौता गांव है जहां पर सम्राट अखबर की पूजा होती है. इस गांव की विचित्र पंरपराओे के कारण यहां हर साल हजारों संख्या में पर्यटक आते है. लेकिन वो यहां कि कोई चीज नही छू सकते है अगर छुआ तो 1000 से 25000 तक का जुर्माना लगता है.

यह गांव कहलाता है मिनी लंदन

झारखंड की राजधानी रांची से उत्तर-पश्चिम में करीब 65 किलोमीटर दूर स्थित एक कस्बा गांव है मैक्लुस्कीगंज. एंग्लो इंडियन समुदाय के लिए बसाई गई दुनिया की इस बस्ती को मिनी लंदन भी कहा जाता है. पश्चिमी संस्कृति के रंग-ढंग और गोरे लोग होने के कारण इसे लंदन का सा रूप देती तो इसे लोग मिनी लंदन कहने लगे.

इंसानों की तरह मैकलुस्कीगंज को भी कभी बुरे दिन देखने पड़े थे. यहां के लोग उस दौर को भी याद करते हैं जब एक के बाद एक एंग्लो-इंडियन परिवार ये जगह छोड़ते चले गए. कुछ 20-25 परिवार रह गए, बाकी ने शहर खाली कर दिया.

इस गांव को घर की छत पर रखी पानी की टंकियों से पहचाना जाता है

पंजाब के जालंधर शहर का एक गांव उप्पलां. यहां के लोगों की पहचान उनके घरों पर बनी पानी की टंकियों से होती है. अब आप सोच रहे होंगे की पानी की टंकियों में ऐसी क्या खासियत है? यहां के मकानों की छतों पर आम वाटर टैंक नहीं है, बल्कि यहां पर शिप, हवाई जहाज़, घोडा, गुलाब, कार, बस आदि अनेकों आकर की टंकिया है.

इस गांव के अधिकतर लोग पैसा कमाने लिए विदेशों में रहते है. गांव में खास तौर पर एनआरआईज की कोठियां में छत पर इस तरह की टंकिया रखी है. अब कोठी पर रखी जाने वाली टंकियों से उसकी पहचानी जा रही हैं.

स्वस्थ महिला ही बन सकती है सफल महिला

चैंबर औफ कौमर्स ऐंड इंडस्ट्री द्वारा किए गए एक सर्वे के अनुसार, भारत में हर

4 में से 3 महिलाएं किसी न किसी स्वास्थ्य संबंधी समस्या से जूझ रही हैं. वहीं मल्टीटास्किंग सीरियसली अफैक्टिंग कौरपोरेट वूमन हैल्थ नाम के सर्वे से पता चलता है कि 78% कामकाजी महिलाएं शारीरिक रूप से स्वस्थ नहीं हैं. अध्ययन के मुताबिक अनियमित दिनचर्या और खराब जीवनशैली के कारण 42% महिलाओं को मोटापे, डिप्रैशन, पीठ दर्द, हृदय से जुड़ी बीमारियां और हाइपरटैंशन की शिकायत रहती है. 22% महिलाएं क्रोनिक डिजीज की शिकार हैं.

मैक्स हौस्पिटल, दिल्ली की कंसलटैंट न्यूट्रिशनिस्ट डाक्टर मंजरी कहती हैं, ‘‘अर्बन सैटिंग की महिलाओं के साथ 3 तरह की समस्याएं हैं. पहली यह कि वे वर्किंग हैं, इसलिए उन के पास समय की बहुत कमी है. अपने स्वास्थ्य पर उन का बिलकुल ध्यान नहीं होता. दूसरी, आज की महिलाएं बहुत ज्यादा ब्यूटी कौंशस हैं. स्किन टैनिंग न हो जाए, इस के लिए वे धूप में निकलने से घबराती हैं. इसलिए उन में विटामिन डी की भी बहुत कमी होती है. तीसरी समस्या यह है कि आज की महिलाएं बहुत ऐजुकेटेड हैं, इसलिए वे सिर्फ उसी बात को सही मानती हैं, जो उन्हें सही लगती है.

‘‘मगर यह कहना भी सही नहीं होगा कि वर्किंग होना और ऐजुकेटेड होना गलत है, लेकिन काम के साथसाथ खुद के लिए समय निकालना भी जरूरी है और अपनी ऐजुकेशन का सही इस्तेमाल करना उस से भी ज्यादा जरूरी.

‘‘दरअसल, आज की मौडर्न महिलाएं इंटरनैट पर ही देख लेती हैं कि अच्छे स्वास्थ्य के लिए क्या खाना चाहिए और फिर उसी हिसाब से अपनी डाइट प्लान कर लेती हैं. जबकि यह गलत तरीका है. इंटरनैट पर एक ही चीज पर लोगों के अलगअलग विचार होते हैं और जरूरी नहीं कि वे आप के लिए हों और आप के बौडी टाइप को सूट करें. हो सकता है आप पर उस का विपरीत असर पड़े. इसलिए जरूरी है कि समयसमय पर कंसलटैंट से अपना डाइट प्लान बनवाया जाए.

बढ़ती जिम्मेदारियां कमजोर होता स्वास्थ्य

निस्संदेह अब महिलाएं एकसाथ कई भूमिकाएं निभा रही हैं. चाहे वे कामकाजी हों या हाउसवाइफ उन की जिम्मदारियों में इजाफा ही होता जा रहा है. इस की एक वजह यह भी है कि अब महिलाएं ज्यादा जानकारी रखती हैं और आधुनिक चीजों का इस्तेमाल उन्हें बखूबी आता है. लेकिन एक तरफ यह उन के काम को आसान करता है, तो दूसरी तरफ जिम्मेदारियों को बढ़ा भी देता है. उदाहरण के तौर पर दोपहिया या चारपहिया वाहन चलाने वाली हाउसवाइफ पर जिम्मेदारी है कि बच्चे को स्कूल छोड़ने और लाने का काम वही करेगी. इसी तरह कामकाजी महिलाएं दफ्तर के साथ घरेलू जिम्मेदारियों को भी निभाती हैं.

ऐसे में उन के पास अपनी सेहत का खयाल रखने का भी समय नहीं होता या कहिए कि वे इतना थक चुकी होती हैं कि उन्हें अपने लिए कुछ भी अतिरिक्त कार्य करने में आलस्य आता है.

डा. मंजरी कहती हैं कि अकसर महिलाएं अपने परिवार के स्वास्थ्य का तो ध्यान रखती हैं, लेकिन अपना नहीं. सुबह पति, बच्चों और घर के बड़ेबुजुर्गों का नाश्ता और खाना तैयार करने में उन्हें आलस्य नहीं आता, लेकिन अपने लिए  नाश्ता बनाना उन्हें समय की बरबादी लगता है. इसलिए वे या तो नाश्ता करती ही नहीं या भूख लगने पर पैक्डफूड खा लेती हैं, जो फायदा करने की जगह नुकसान ही पहुंचाता है. इसलिए थोड़ा समय खुद को भी दें. कुछ अतिरिक्त न करें, लेकिन सुबह खाली पेट घर से न निकलें. हो सके तो मुट्ठी भर ड्राईफ्रूट्स का ही नाश्ता कर लें.

दरअसल, बादाम, अखरोट, काजू और मूंगफली जैसे नट्स में बड़ी मात्रा में प्रोटीन, कर्ब्स और वसा होती है. वसा सुन कर चौंकिए मत, हमारे शरीर को कुछ अच्छे फैट्स जैसे ओमेगा 3 की जरूरत होती है. यह दिमाग के लिए बहुत ही फायदेमंद होता है. साथ ही लिवर और हार्ट के लिए भी इसे सुरक्षाकवच माना जाता है. नट्स प्रोटीन के भी अच्छे स्रोत होते हैं. इन में अच्छी मात्रा में मैग्नीशियम, जिंक, कैल्सियम और विटामिन ए और ई पाया जाता है.

डा. मंजरी कहती हैं, ‘‘भारत में हर साल 1 करोड़ केस औस्टियोपीनिया के होते हैं. यह बीमारी हड्डियों में लोच खत्म हो जाने से होती है. 40 की उम्र की अधिकतर महिलाओं को यह परेशानी रहती है. उन की मांसपेशियों में भी ताकत नहीं रह जाती. इसलिए विटामिन और कैल्सियम युक्त चीजें उन के लिए खाना बहुत फायदेमंद है. वर्ल्ड हैल्थ और्गेनाइजेशन के अनुसार 50% महिलाएं ऐनीमिक होती हैं, इसलिए आयरन युक्त भोजन भी महिलाओं के लिए जरूरी है.’’

डा. मंजरी आगे बताती हैं, ‘‘इस की बड़ी वजह है कि आज की महिलाएं ज्यादातर कार्बोहाइड्रेट वाले भोजन पर ही निर्र्भर हैं. वे दाल, चावल, गेहूं की रोटी और ब्रैड खा कर काम चला लेती हैं. उन्हें लगता है कि यह सब से पोषणयुक्त भोजन है, लेकिन यह गलत सोच है.

‘‘गेहूं की ही रोटी क्यों? बाजरा, ज्वार, मक्का, चना इन सारे मोटे अनाज में फाइबर और प्रोटीन होता है. इसलिए इन्हें भी अपने आहार में शामिल करना चाहिए. चाहें तो इन सब को मिला कर आटा पिसवा सकती हैं. इस के अतिरिक्त जो महिलाएं नौनवैज नहीं खातीं उन में भी प्रोटीन की बहुत कमी होती है. इस कमी को वे दाल औैर 1/2 लिटर दूध पी कर पूरा कर सकती हैं.

‘‘कामकाजी महिलाएं, जो हर वक्त इन सब का सेवन नहीं कर सकतीं. उन्हें अपने औफिस में ही भुने चने और कुछ फल रखने चाहिए और काम के दौरान इन का सेवन करते रहना चाहिए. इस बात का भी ध्यान रखना अनिवार्य है कि एकसाथ सब कुछ न खाएं. छोटीछोटी मील प्लान करें और 3-4 घंटे के अंतराल में खाएं.’’

सही आहार के साथ व्यायाम भी है जरूरी

‘‘मैं दिन भर इतना काम करती हूं, तो अलग से व्यायाम करने की क्या जरूरत, इस भ्रम से बाहर निकलें और इस बात को समझें कि जो कार्य आप दिन भर करती हैं उस में अलगअलग तरह का तनाव होता है. यह तनाव कोर्टिसोल नामक हारमोन रिलीज करता है, जो इम्यून सिस्टम, पाचनतंत्र और त्वचा पर बुरा असर डालता है.

डा. मंजरी कहती हैं कि कई बार महिलाएं ऐसा तनाव पाल लेती हैं, जो वास्तविक तौर पर तनाव का विषय ही नहीं होता. जो काम हमारे हाथ में है, देरसवेर ही सही मेहनत और दिमाग से किया जाए, तो हो ही जाएगा. उस में तनाव करने से कुछ भी नहीं होगा. इसलिए तनाव कम करें और हलकाफुलका व्यायाम जरूर करें.

व्यायाम का मतलब यह नहीं कि आप को भारीभरकम डंबल्स उठाने हैं या पुशअप मारने हैं. हर दिन 30 मिनट की वाक और हर काम अपने हाथ से कर के भी आप व्यायाम कर सकती हैं.

एशियन इंस्टिट्यूट औफ मैडिकल साइंस के इक्यूलिब्रिम फिटनैस क्लब के ट्रेनर अभिषेक सिन्हा कहते हैं, ‘‘महिलाओं का मैटाबोलिज्म पुरुषों की अपेक्षा काफी स्लो होता है और 30 की उम्र पार करने के बाद यह और भी अधिक स्लो हो जाता है. ऐसे में वजन कम करना उन के लिए आसान नहीं होता है. इसलिए घर के कामकाज में नौकरों की सहायता लेने के बजाय खुद ही सारे काम करें. मसलन, घर की साफसफाई के लिए नौकर न रखें, बल्कि खुद करें. आप जितना काम करेंगी उतनी कैलोरी बर्न होगी.

‘‘इसी तरह यदि आप वर्किंग हैं तो जाहिर है आप का ज्यादा वक्त दफ्तर में ही बीतता होगा. इसलिए लिफ्ट के इस्तेमाल से बचें और सीढि़यों का इस्तेमाल करें. जब भी वक्त मिले थोड़ा टहलें. कई महिलाओं को भ्रम होता है कि खाना खाने के तुरंत बाद नहीं टहलना चाहिए, लेकिन टहलने का कोई वक्त नहीं होता है. आप कभी भी टहल सकती हैं. टहलने से कैलोरी बर्न होती है. वैसे कैलोरी तब भी बर्न होती है जब पानी पीते हैं या फिर खाना अच्छी तरह चबा कर खाते हैं.

कैलोरीज बर्न करने के अलावा स्ट्रैच ऐक्सरसाइज भी कर सकती हैं. जाहिर है, आप अपनी सीट पर बैठ कर ऐसा नहीं कर सकतीं, क्योंकि यह औफिस डैकोरम के खिलाफ है, लेकिन वाशरूम या फिर कैफेटेरिया में हाथ को स्ट्रैच किया जा सकता है. इस से हाथों में दर्द की शिकायत दूर हो जाएगी. इस के अतिरिक्त आप के बैठने का पोस्चर भी ठीक होना चाहिए, क्योंकि आप गलत तरीके से बैठेंगी तो आप की बैकबोन पर इस का असर पड़ेगा.

फिटनैस ट्रेनर अभिषेक कहते हैं कि बैकबोन पर ही पूरा शरीर टिका होता है. यदि सही पोस्चर में न बैठा जाए तो पीठ के दर्द की समस्या होना तय है. पोस्चर के अलावा मोटापे का असर भी बैकबोन पर पड़ता है. इसलिए ईटिंग हैबिट्स को सुधारना भी जरूरी है. फिटनैस

80% सही आहार और 20% वर्कआउट पर निर्भर करती है अर्थात महिलाओं को अपनी प्राथमिकताओं में घरपरिवार की जिम्मेदारियां और दफ्तर के काम के अलावा अपने स्वास्थ्य को भी जगह देनी चाहिए, क्योंकि स्वस्थ होने पर ही सफलतापूर्वक किसी काम को अंजाम तक पहुंचाया जा सकता है.        

टशन हील्स का

आजकल स्टाइलिश, फैशनेबल और ग्लैमरस दिखने का जमाना है. हर महिला स्वयं को भीड़ से अलग और प्रेजैंटेबल और ग्लैमरस दिखाना चाहती है और इस सब में चार चांद लगाता है हील्स वाला फुटवियर. हील्स पहनने से व्यक्तित्व सब से अलग और चाल आत्मविश्वास से भरी दिखाई देती है. आजकल बाजार में अनेक प्रकार की हील्स विभिन्न रेट्स में उपलब्ध हैं, जिन्हें आप अपनी पसंद के अनुसार खरीद कर अपने व्यक्तित्व को आकर्षक बना सकती हैं. इन्हें किसी भी बड़े शोरूम या मौल से खरीदा जा सकता है. इन की कीमत क्व500 से शुरू हो कर क्व5 हजार तक होती है. आप अपनी जेब के अनुसार इन्हें खरीद सकती हैं. औनलाइन शौपिंग साइट्स पर भी हील्स उपलब्ध रहती हैं. औनलाइन और्डर कर भी मंगवा सकती हैं.

कैसी कैसी हील्स

यों तो हील्स अनेक प्रकार की होती हैं, परंतु आमतौर पर बहुतायत में प्रचलित हील्स निम्न हैं:

किटन हील्स: ये आरामदायक और स्टाइलिश होती हैं. इन्हें ऐसे मौकों पर पहना जा सकता है जहां आप को अतिरिक्त हाइट दिखाने की आवश्यकता नहीं होती.

पंपस: इन की ऊंचाई 2 से 3 इंच के मध्य होती है. ये आमतौर पर चौड़ी और सामने की ओर से लो कट होती हैं.

स्टिलेटो: हील्स का यह सब से ऊंचा प्रकार है. इन की ऊंचाई 8 इंच तक होती है. इन्हें पहनने से कई बार बहुत सारी शारीरिक समस्याएं भी हो जाती हैं.

ऐंकल स्ट्रैप हील्स: आजकल ये हील्स सर्वाधिक चलन में हैं. इन की ऊंचाई अलगअलग होती है, परंतु सब से खूबसूरत होती हैं. इन की स्ट्रिप जो ऐंकल तक पैर को बांधे रखती है और पैर को अधिक आकर्षक बनाती है.

वेजेज हील्स: इन में पूरे सोल की हील एकसमान होती है. सोल और हील में कोई सैपरेशन नहीं होता.

कोन हील्स: इन का आकार आइसक्रीम के कोन जैसा होता है. यह हील पंजे की ओर चौड़ी तथा एड़ी पर एकदम पतली और संकरी हो जाती है.

पीप टो हील्स: इस प्रकार के फुटवियर आगे से खुले होते हैं ताकि नाखून दिखते रहें.

प्लेटफार्म हील्स: इन्हें छोटे और लंबे दोनों आकार की महिलाएं पहनती हैं. मुख्य बात यह है कि इन के सोल के नीचे का भाग बहुत मोटा होता है. हील्स की अपेक्षा ये बहुत आरामदायक होती हैं.

क्या हैं लाभ

– लंबाई व्यक्तित्व को आकर्षक बनाती है. छोटी हाइट वाली महिलाएं हील पहन कर अपनी लंबाई को 5 से 6 इंच तक बढ़ा सकती हैं.

– अलअलग ड्रैस के साथ अलग अंदाज के हील्स पहन कर अपने व्यक्तित्व में चार चांद लगाए जा सकते हैं. जैसे मिनी स्कर्ट पर हाई हील बूट्स, तो चूड़ीदार कुरतापाजामा के साथ 2 इंच हील के ओपन टो सैंडल. इसी प्रकार साड़ी पर हील्स आप की लंबाई तो बढ़ाती ही हैं, दिखती भी नहीं हैं. बौक्स हील्स आप के व्यक्तित्व को कौरपोरेट लुक देती हैं. पैंसिल हील्स ट्यूनिक को आकर्षक बनाती हैं. प्लेटफौर्म हील्स ट्राउजर्स और बौटम जींस को और अधिक आकर्षक बनाती हैं.

– हील्स पहनने से बौडी पोस्चर तो सही रहता है, साथ में आत्मविश्वास भी बढ़ता है.

– इन्हें पहनने से टांगों की लंबाई बढ़ जाती है, जिस से वे बहुत सुंदर दिखती हैं.

क्या हैं नुकसान

हील्स व्यक्तित्व को आकर्षक, प्रभावशाली और ग्लैमरस तो बनाती हैं, परंतु दूसरी ओर इन्हें पहनने से अनेक समस्याएं भी उत्पन्न हो जाती हैं, जिन में से कुछ प्रमुख हैं:

– आमतौर पर अधिकांश महिलाओं को इन्हें पहन कर लंबी दूरी तक चलने में समस्या आती है. अधिक समय तक एक ही जगह खड़े रहने से एडि़यों पर प्रैशर पड़ता है और वे दुखने लगती हैं.

– कई बार समतल जगह न होने पर संतुलन खो देने की वजह से वे गिर भी जाती हैं, जिस से पैर में मोच आ जाती है, फ्रैक्चर तक हो जाता है.

– हील्स पहनने से सारे शरीर का भार पीठ पर आ जाता है, जिस से पीठ दर्द की समस्या उत्पन्न हो जाती है.

– स्ट्रिप वाली हील्स की स्ट्रिप को बहुत अधिक कस कर बांधने से रक्तप्रवाह रुक जाता है. लंबे समय तक लगातार हील्स पहनने से पैरों में निशान पड़ जाते हैं और उन की शेप बिगड़ जाती है.

– पैरों में खिंचाव होने की मुख्य वजह अकसर हाई हील्स ही होती हैं, ऐसा आमतौर पर तब होता है जब आप को हील्स पहनने की आदत न हो.  

क्या बरतें सावधानियां

मिडवैस्ट और्थोपैडिक सर्जन डा. जार्ज बी. होम्स. जे. आर. जोकि ऐंकल और फुट स्पैशलिस्ट हैं, के अनुसार हील्स पहनते समय निम्न सावधानियां बरतनी चाहिए:

– पूरा दिन हील्स पहनने से बचें, क्योंकि रात होतेहोते अधिक दबाव के कारण पैरों में सूजन आ जाती है.

– सही नाप की हील्स ही लें, क्योंकि छोटे या बड़े साइज की लेने से चलने में असुविधा तो होगी ही, साथ ही अधिक समय तक पहनने से पैरों की शेप भी बिगड़ जाती है.

– हील्स पहन कर बहुत अधिक न चलें और न ही अधिक समय तक खड़ी रहें.

– प्रतिदिन हील्स न पहनें, साथ ही हील्स का साइज भी चेंज करती रहें.

– सदैव आरामदायक हील्स ही पहनें. फिजियोथेरैपिस्ट डा. बी. एस. सारस्वत के अनुसार, 1-2 इंच तक की हील्स पैरों के लिए सुरक्षित रहती हैं. फुटवियर खरीदते समय पैरों के आराम को प्राथमिकता दी जानी चाहिए.

– प्लेटफौर्म और पीप टो हील्स पैरों के लिए सर्वाधिक सुरक्षित रहती हैं. प्लेटफौर्म हील्स में जहां पैरों को एकसमान ऊंचाई मिलने से अधिक प्रैशर नहीं सहना पड़ता, वहीं टो हील में पंजा खुले रहने से पैरों को हवा और नमी मिलती रहने से थकान नहीं होती.  

पर्सनल लोन से बचना है, तो अपनायें ये रास्ता

अगर आपने पहले से ही होम लोन लिया हुआ है और भुगतान के कुछ वर्षों बाद आपको दोबारा कुछ अतिरिक्‍त लोन की जरूरत पड़ी तो आप क्‍या करेंगे? जाहिर है कि आप एक नए लोन के लिए आवेदन करने की सोचेंगे और आपको यह आसानी से मिल भी जाएगा, लेकिन यदि आपके पास होम लोन है तो यहां अतिरिक्‍त लोन हासिल करने का एक आसान और तेज विकल्‍प भी है, वह है टॉप-अप लोन.

कैसे काम करता है टॉप अप लोन

जब आप पहली बार होम लोन लेते हैं, तो आपकी कुछ होम लोन योग्यता सीमा होती है, जिसके तहत आप उतना लोन ले सकते हैं. यदि आप इस पूरी सीमा का उपयोग कर लेते हैं तो आपको तुरंत अतिरिक्त लोन नहीं मिलेगा. लेकिन कुछ वर्षों के बाद, जब आप अपने मौजूदा लोन की कुछ किस्‍तों का भुगतान कर देते हैं और आपकी सैलरी भी बढ़ जाती है तो यह हो सकता है कि आपकी लोन योग्‍यता भी बढ़ जाए. इस समय आप टॉपअप लोन लेने के योग्‍य होंगे, जो कि आपके मौजूदा होम लोन के बराबर हो सकता है. अधिकांश बैंकों का नियम है कि मौजूदा लोन का 6-12 किस्‍तों का भुगतान करने के बाद ही कोई टॉपअप लोन के लिए योग्‍यता हासिल कर सकता है.

टॉपअप लोन किन वजहों के लिए लिया जा सकता है

घर के रेनोवेशन

– पर्सनल लोन

– दूसरी प्रॉपर्टी खरीदने के लिए

– जमीन या प्लॉट खरीदने के लिए

– बच्चे की पढ़ाई या शादी क लिए

– बिजनेस के लिए

जानिए टॉपअप लोन से जुड़ी पांच बातें

टॉप अप लोन पर टैक्स बैनेफि‍ट

टॉपअप लोन पर टैक्स बैनेफि‍ट केवल उस स्थिति में मिलेगा अगर लोन की राशि का इस्तेमाल घर खरीदने या फिर रेनोवेशन के लिए किया जाए. इसके अतिरिक्त किसी अन्य काम के लिए लोन पर बैनेफिट नहीं दिया जाएगा.

टॉप अप के लिए इंटरेस्ट रेट

बैंक की ओर से दिए जाने वाले होम लोन के ब्याज का 1.5 से 2 फीसदी ज्यादा इंटरेस्ट रेट लगाया जाता है. मसलन, इंटरेस्ट रेट 11.5 फीसदी से 14 फीसदी तक का हो सकता है.

किसी सिक्योरिटी की जरूरत नहीं

टॉपअप लोन के लिए किसी भी एसेट को गिरवी रखने की जरूरत नहीं होती क्योंकि यह मौजूदा लिए गए होम लोन के आधार पर दिया जाता है. इसमें एक चीज का ध्यान रखें कि बैंक से अपने ओरिजनल हाउस पेपर्स मांगने से पहले होम लोन के साथ-साथ टॉपअप लोन को भी बंद कराएं.

अप लोन की राशि

सामान्य तौर पर टॉपअप लोन की राशि असल होम लोन की राशि से ज्यादा नहीं होनी चाहिए. साथ ही टॉपअप लोन के लिए बैंक एक अपर लिमिट तय करता है जो 15 लाख रुपए से 40 लाख रुपए के बीच में होता है. अगर आपने 30 लाख रुपए का होम लोन लिया हुआ है तो आप अधिकतम 30 लाख रुपए तक का टॉपअप लोन ले सकते हैं.

प्रोसेसिंग फीस

अधिकांश बैंक टॉपअप लोन अप्रूव करने से पहले प्रोसेसिंग फीस चार्ज करते हैं. यह चार्जेस होम लोन प्रोसेसिंग चार्जेस के बराबर होते हैं. यह चार्जेस 0.75 फीसदी या फिर 2000 रुपए इनमें से, जो भी ज्यादा होता है, बैंक प्रोसेसिंग फीस के तौर पर आप से ले लेता है.

पर्सनल लोन का बेहतर विकल्‍प है टॉपअप लोन

टॉपअप लोन, पर्सनल लोन का एक बेहतर विकल्प है, ऐसा इसलिए क्योंकि होम लोन लेने के बाद टॉपअप लोन मिलने की संभावना ज्यादा होती है. साथ ही अगर आपका रि-पेमेंट रिकॉर्ड अच्छा है और होम लोन रिपेमेंट के 3 से 4 वर्ष हो गए हैं तो आपको एक अच्छी राशि का टॉपअप लोन आसानी से मिल जाता है.

24 साल बाद प्रदूषण बनेगा ‘दानव’

बाह्य वायु प्रदूषण को रोकने के लिए कठोर नियमनों को लागू करने में सरकार के विफल रहने पर भारत में वर्ष 2040 तक प्रदूषित वायु के कारण रोजाना औसतन 2500 लोगों की मौत हो सकती है. यह बात एक रिपोर्ट में कही गई.

अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (आईईए) की रिपोर्ट ‘वर्ल्ड एनर्जी आउटलुक’ में इस बात का भी उल्लेख किया गया है कि 2015 में बाह्य वायु प्रदूषण से सालाना पांच लाख 90 हजार समय पूर्व मौत हुई. यह औसतन रोजाना 1600 से अधिक है. अतिरिक्त 10 लाख समय पूर्व मौतें घरेलू वायु प्रदूषण की वजह से हुईं.

रिपोर्ट में कहा गया है कि नियम बिजली क्षेत्र के प्रदूषक उत्सर्जन में कटौती करने में प्रभावी है जबकि न्यू भारत छह मानदंड परिवहन में एनओएक्स और पीएम 2.5 के उत्सर्जन में कटौती करता है लेकिन ये उपलब्धियां उद्योग क्षेत्र से उत्सर्जन में जबर्दस्त वृद्धि के मद्देनजर प्रति संतुलन से अधिक हैं. रिपोर्ट में मौजूदा नयी नीतियों समेत दो परिदृश्यों का विश्लेषण किया गया है.

स्वच्छ वायु परिदृश्य की वकालत करते हुए इसमें कहा गया है कि यह सकारात्मक प्रभाव प्रदर्शित करेगा जो समय पर और अधिक सख्त वायु प्रदूषण नियमनों का सार्वजनिक स्वास्थ्य पर हो सकता है. इसमें यह भी कहा गया है कि अगर स्वच्छ रसोई स्टोव का इस्तेमाल बढ़ता है तो घरेलू वायु प्रदूषण से समय से पूर्व होने वाली मौतों की संख्या में तकरीबन आठ लाख की गिरावट आएगी.

दिल्ली की बात करते हुए रिपोर्ट में कहा गया है कि वायु में पीएम 2.5 का स्तर डब्ल्यूएचओ की वायु गुणवत्ता दिशा-निर्देश मूल्य से 10 गुणा से अधिक है. दिल्ली की वायु की गुणवत्ता एक दशक से अधिक समय से खराब है. रिपोर्ट में कहा गया है,

‘‘कुल नतीजा यह है कि वायु की गुणवत्ता 2040 तक महत्वपूर्ण नीतिगत चिंता का विषय बनी रहेगी. यद्यपि औसत जीवन प्रत्याशा का नुकसान 16 महीने घटा है लेकिन बाह्य वायु प्रदूषण से मरने वाले लोगों की संख्या बढ़कर नौ लाख से अधिक हो गई है.’’

रिपोर्ट में कहा गया है, ‘‘घरेलू वायु प्रदूषण से समय से पूर्व होने वाली मौत घटकर तकरीबन आठ लाख पर पहुंच गई है क्योंकि स्वच्छ रसोई स्टोव का इस्तेमाल बढ़ा है.’’

बिना बच्चों के खुश नहीं रह पाते यहां के लोग

अमेरिका के लोग आमतौर पर खुशदिल माने जाते हैं और वे अप्रसन्न नहीं होते, लेकिन यहां बच्चों से दूरी इनकी अप्रसन्नता का कारण बनती है.

एक नए शोध से यह पता चला है कि अमेरिका में अभिभावक बगैर बच्चों के खुश नहीं रहते. टेक्सास के वाको काउंटी में स्थित बेलर यूनिवर्सिटी में समाजशास्त्र के सहायक प्रोफेसर और इस अध्ययन के सह-लेखक मैथ्यू एंडरसन ने बताया, इसका कारण कार्यस्थल की नीतियां हैं, जिसमें चिकित्सीय अवकाश, अवकाश, मातृत्व अवकाश और पितृत्व अवकाश जैसी भुगतान युक्त छुट्टियों की कमी शामिल है.

रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिका के 22 औद्योगिक देशों में माता-पिता और बिना बच्चों के लोगों के बीच के बीच खुशी का एक बड़ा अंतर देखने को मिला है.

ऐसे देशों में जहां यह छुट्टियां सरकार और उद्योगों द्वारा अनिवार्य की गई हैं, वहां माता-पिता और बिना बच्चों के लोगों के बीच अप्रसन्नता का बहुत छोटा अंतर है.

एंडरसन ने कहा, “वास्तव में, उन स्थानों में माता-पिता थोड़ा अधिक प्रसन्न रहते हैं.” इस शोध के लिए अध्ययनकर्ताओं ने अमेरिका, यूरोप, ऑस्ट्रेलिया, रूस और न्यूजीलैंड के संयुक्त सर्वेक्षण के आंकड़ों का अध्ययन किया था.

यह शोध ‘अमेरिकन जर्नल ऑफ सोशियोलॉजी’ पत्रिका के आगामी अंक में प्रकाशित किया जाएगा.

 

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