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दाग: एक गलती जब कर देती है कलंकित

कहानी- मंगला रामचंद्रन

वह दौरे से लौटे ही थे. मैं ने अरदली से चाय बनाने को कहा. यह नहा कर गुसलखाने से निकले. मैं ने थोड़ा नमकीन चिवड़ा और मीठे बिस्कुट प्लेट में निकाल कर मेज पर रखे. इतने में अरदली ट्रे में करीने से चाय लाया.

अचानक अंदर के कमरे से ही इन की तेज आवाज आई, ‘‘ये दशहरी आम कौन लाया है?’’

‘‘बताती हूं. आप पहले चाय तो ले लीजिए,’’ मैं खुशी दबाते हुए बोली. बताने की उत्सुकता मेरी आवाज में साफ झलक रही थी.

हथेलियों में क्रीम मलते हुए यह आ  कर बैठे और चाय का कप उठा लिया. मैं ने भी चाय हाथ में ली.

‘‘सब इंस्पेक्टर विनोद आया था. कहने लगा, साहब तो हम को पास फटकने भी नहीं देते. हम को सेवा करने का मौका ही नहीं देते,’’ मैं ने भूमिका बांधने की कोशिश की.

‘‘उस को तो मालूम था कि हम दौरे पर गए हैं. फिर आया क्यों?’’

‘‘नहीं, उस को नहीं मालूम था. बड़े आश्चर्य से कह रहा था-हैं, साहब नहीं हैं. दौरे पर गए हैं. खैर, हमारे लिए तो आप में और साहब में फर्क ही क्या है. आप दोनों ही हमारे माईबाप हैं.’’

‘‘उस ने कहा और तुम मान गईं. दौरे पर जाते समय थाने में उस से मिलते हुए गया हूं. वह जानबूझ कर मेरे पीछे आ कर आम दे गया है. मेरे सामने तो दुम दबा कर रहता है. ‘जी हां, साहब’ के अलावा मुंह से कुछ निकलता ही नहीं. वह तो चालाक और धूर्त है, पर तुम इतनी नासमझ तो नहीं हो कि उस ने दिया और रख लिया.’’

‘‘बस, तुम रहे भोलेनाथ. भई, कोई प्रेम से अपने अधिकारी को भेंट दे रहा है. खुद तो लोगे नहीं, घर आ कर दे रहा है तो भी गलतसलत सोचोगे? क्या सभी को ऐसे डरा कर रखा है? बेचारे झूठ न बोलें तो क्या करें?’’

‘‘डरा कर मैं ने रखा है? जिस के मन में मैल न हो, खोट न हो, वह किसी से क्यों डरेगा? मेरी सेवा करना चाहता है. यदि वास्तव में सेवा करना चाहता है तो दफ्तर के काम में ढील नहीं करता. मामले की तहकीकात करने गया तो गांव के बड़े आदमी के साथ शराब के नशे में डूब कर असली अपराधी को छोड़ गरीब को पकड़ कर नहीं लाता.’’

चेहरे पर आई कड़वाहट से लग रहा था, अभी और कड़वाहट उगलेंगे. पर नहीं, एक उसांस ले कर यह चुप हो गए.

‘‘पता नहीं, आप के दफ्तर में या आपसी रिश्ते क्या हैं. मुझ से तो बहुत आदरपूर्वक बोल रहा था. कहने लगा, ‘आप को दीदी कहूं तो आप बुरा तो नहीं मानेंगी न? मेरी कोई बहन नहीं है. दिल ही दिल में रंज होता है. पर आज तक किसी को बहन बनाने की इच्छा ही नहीं हुई. आप को देखा तो लगा मानो आप मेरी सगी बहन हैं.’’’

‘‘आप उस की बहन बनिए या अम्मां, पर याद रखिए, इस बहाने मेरे साथ कोई रिश्ता उस का नहीं हो सकता. बदमाश, चाल चलता है. उस को मैं अभी बुलाता हूं. उस के आम वापस कर दो.’’

‘‘पर काफी आम खत्म हो गए. कुछ तो बच्चों और मैं ने खा लिए और थोड़े आसपास बांट दिए.’’ मेरी सहमी हुई सी आवाज एकदम संभल गई, ‘‘यदि आम वैसे ही रखे होते तो क्या आप सचमुच वापस कर देते?’’

‘‘और नहीं तो क्या, यों ही बोल रहा हूं. तुम इतने वर्षों में मुझे पहचान नहीं पाईं, इसी बात का तो दुख है. अपने उसूल और आदर्शों को निभा सकूं, इस में तुम्हीं सहायता कर सकती हो. इस से ज्यादा कुछ भी कहना व्यर्थ है,’’ इन की आवाज में थोड़ा दर्द, थोड़ी निराशा थी.

‘‘बस, आप भी कमाल करते हैं. जरा से आम कोई क्या दे गया, सदमे के मारे मानो दिल का दौरा पड़ जाएगा. और भी तो लोग हैं, मांग कर लेने वाले. खुद आंखें मूंदे रहते हैं, बीवी पिछवाड़े से मंगवाती है तो अनजान बने रहते हैं. साल भर का गल्ला, रोज की सब्जीभाजी, सूखे मेवे, मौसम के फल, यहां तक कि बच्चों के दूध, बिस्कुट तक का प्रबंध हो जाता है.’’

इतना बोल कैसे गई, सोच कर आश्चर्य हो रहा था. मन को संभाल रही थी कि इन की निराशा और दर्दभरी आवाज में हमेशा की तरह बह न जाऊं. मन को मार कर जीने में क्या रखा है? क्यों न मैं भी और लोगों की बीवियों की तरह फायदा उठाऊं? हो सकता है, कुछ समय बाद इन को भी मेरी बात रास आ जाए.

काश, यह खयाल मेरे मन में उस दिन आता ही नहीं. उस दिन तो मैं ने न जाने किस तरह और किस मनोदशा में इन से ऐसी बातें कहीं. यह जानते हुए भी कि किस तरह इन का दिल दुखा रही हूं, पिछले डेढ़ साल में कभी इन बातों को महसूस ही नहीं किया. शायद अभी भी मेरा पागलपन खत्म नहीं होता, अगर सचाई मेरे सामने न आ गई होती.

इन से इस तरह बातें कर के मैं ने सोचा कि बहस में जीत हासिल कर ली. यह भी मान लिया कि अब मैं जो करूंगी उस में इन की स्वीकृति होगी, भले ही यह चुप रहें. अब तो सोचते हुए शरम आती है. पर उस दिन तो यही लगा था कि मैं इन से कई गुना अधिक बुद्धिमान हूं. जो यह नहीं कर सकते वह मैं ने कर दिखाया. मैं भी और अफसरों की बीवियों की तरह शानोशौकत से रह रही हूं. बच्चों का मनमाफिक खानेपहनने का शौक पूरा हो रहा है.

इंस्पेक्टर विनोद ने तो दीदी बनाया ही, और लोग भी आने लगे. कोई भाभी, कोई भौजी, कोई बेटी कहता. गरज के मारे रिश्ते कायम होते रहे और मैं समझ नहीं पाई. जो रिश्ता प्रेम और विश्वास के आधार पर टिका था उस को नकारने की भूल कैसे कर बैठी? लोग अपना काम करवाने के लिए नजर भेंट लाते और घर पर मुझे ही देते.

‘‘दीदी, आप साहब से कहेंगी तो हमारा काम जरूर हो जाएगा. आप की बात को साहब मना नहीं करेंगे.’’

मेरी तो शायद सोचनेसमझने की शक्ति ही खत्म हो गई थी, नहीं तो मैं इन बातों से अपनेआप को गौरवान्वित महसूस कैसे करती?

‘‘भाभी, आप ही तो सबकुछ हैं. देवी हैं देवी. बस, आप की कृपादृष्टि हो जाए तो हम तर जाएं. आप का चेहरा देख कर कोई किसी बात के लिए न नहीं कर सकता. फिर भला साहब आप की बात क्यों नहीं मानेंगे?’’

मैं तो एक समझदार महिला कहलाने योग्य भी नहीं रही पर इन खोखली बातों का नशा ऐसा था कि मैं अपनेआप को देवी मानने लगी.

कई बार इन के दोस्तों ने मजाक में कहा भी, ‘‘असली पुलिस अधीक्षक तो भाभीजी हैं. आप तो बस, दफ्तर और दौरों में जांच वगैरह में लगे रहते हैं.’’

मैं इन लोगों का व्यंग्य समझ ही नहीं पाई. यदि कोशिश करती तो इन का चेहरा देख कर ही भांप जाती कि असलियत क्या है. उस समय तो इन का दुख से काला पड़ता चेहरा देख कर एक दबा हुआ गुस्सा ही फूटता था, जो धीरेधीरे इन की उपेक्षा में बदल गया. मैं सचमुच अपने को पुलिस अधीक्षक की कुरसी की हकदार समझने लगी.

अरदलियों से इन का और मेरा व्यवहार बड़ा संयत और शिष्ट था पर धीरेधीरे मेरी अकड़ रंग लाने लगी. उन्हें डांटना, फटकारना, बारबार बाजार दौड़ाना, उन की व्यक्तिगत परेशानी या दुखदर्द की बातें सुनने या जानने का मामूली सा भी धीरज न दिखाना मानो पुलिस अधीक्षक की पत्नी हो जाने से उन के साथ इनसानियत के नाते खत्म हो जाते हैं. मालिक और गुलाम का रिश्ता ही रह जाता हो.

एक बार शहर में हड़ताल हुई और भयंकर दंगा हुआ. इन्होंने जान पर खेल कर दंगाइयों को बस में किया. इन के साहस और प्रेमपूर्ण व्यवहार से दंगाइयों के दिल में इन की इज्जत कई गुना बढ़ गई. उस समय एक हवलदार ने घर आ कर खबर दी कि साहब कुशलपूर्वक हैं. बस, मामूली सी चोट आई है. स्थिति काबू में आ गई है.

हवलदार बूढ़ा था. इन के प्रति वफादार भी था. उस के मुंह से निकल गया, ‘‘बाईजी, आप के सुहाग का प्रताप है कि साहब आज उन दंगाइयों के बीच से सहीसलामत बच भी गए और शांति भी स्थापित कर सके.’’

इन का साहस, धीरज और समझदारी से किया गया कार्य भी मैं अपने द्वारा किया गया समझती रही. बाद में इन को जब तमगा मिला तो बोलना नहीं चूकी कि मैडल की सही हकदार तो मैं हूं. तब इन्होंने कितनी सहजता से कहा, ‘‘और नहीं तो क्या, यदि तुम्हें पत्नी के रूप में न पाता तो इतना सब कर पाता?’’ इन की वाणी में कहीं छलावा नहीं था, यह मैं दावे के साथ कह सकती हूं.

मैं गलतफहमियों से घिरी रही. सावन के अंधे को हर चीज हरी दिखती है. मेरी व्यक्तिगत उपलब्धि कुछ न होते हुए भी मैं इन की सारी उपलब्धियों का श्रेय अपनेआप को देती रही. बच्चों पर मेरे इस व्यवहार का जो खराब असर हुआ उस को तब तो समझ नहीं पाई, पर अब उन की उच्छृंखलता को अच्छी तरह समझ कर भी कुछ नहीं कर पा रही हूं. बच्चे इन से ज्यादा मुझे महत्त्व देते हैं, ऐसा खयाल मन में बैठ गया.

पत्नी पति से ज्यादा लायक हो तब भी पति की भावनाओं का खयाल और बच्चों के मन में पिता की सम्मानपूर्ण छवि बनाने के लिए प्रयत्नशील रहती है. मैं तो योग्य न होते हुए भी अपनेआप को इन से उंचा समझने लगी. मेरी नालायकी का इस से बड़ा सुबूत और क्या होगा? बच्चे मुझे प्राथमिकता नहीं दे रहे, बल्कि अपना स्वार्थ मेरे द्वारा साध रहे हैं, यह तब समझ में नहीं आया था. उसी का फल था कि बच्चे मेरी उपेक्षा करने लगे.

अपनेआप को सर्वेसर्वा समझने वाली मैं अब न तो उपेक्षा को ग्रहण करने की स्थिति में थी न उन को डांटने या समझाने की. बच्चों के सामने सही बात, सही आदर्श रखने की आवश्यकता को ताक पर रख दिया था.

दोनों बच्चों के बात करने के ढंग से मैं उन के स्वभाव को समझ सकती थी, यदि थोड़ी सी जागरूक होती.

‘‘मां, क्या हम रंगीन टेलीविजन नहीं ले सकते? ब्लैक एंड ह्वाइट में भी कोई मजा आता है?’’

‘‘हां, मां, सब के यहां रंगीन टेलीविजन है. बस, हमारे यहां ही नहीं है?’’

‘‘तुम दोनों तो ऐसे कह रहे हो, मानो अभी तुरंत रंगीन टेलीविजन आ जाएगा. इतना सरल नहीं है. पैसे कहां से आएंगे?’’

‘‘मां, आप चाहें तो क्या नहीं कर सकतीं?’’

बस, दोनों ने मिल कर मुझे गर्व के शिखर पर चढ़ा दिया. मैं दिमागी तौर पर दिवालिया होते हुए भी खुद को सब से बुद्धिमान समझने लगी.

रंगीन टेलीविजन जिस दिन आया, बच्चे और मैं फूले नहीं समा रहे थे. 10-15 दिन तक इन से तर्क, कुतर्क, बहस कर मंगवा ही लिया. मैं ने इन के मातहत से ही पहले कहा था. खून मुंह को लग चुका था. उस को अपना तबादला रुकवाना था. सोचा, ऐसे समय कहूंगी तो जरूर जल्दी और सस्ते में करवा देगा. पर जैसे ही इन को पता लगा सब की शामत आ गई.

इतना गुस्सा होते इन्हें कभी नहीं देखा था. उस दिन खाना भी नहीं खाया. काफी दिनों बाद मैं थोड़ा डर गई. अपनी ओर से गलती हो रही है, ऐसा लग रहा था, पर मन मानने को तैयार नहीं था.

‘‘तुम ने बच्चों का मन भी बिगाड़ दिया और अपने मन की कर के रहीं. पर तुम को अंदाज भी है कि मैं ने किस तरह प्रबंध किया? अपनी भविष्यनिधि से उधार लिया है. पूरी कीमत दे कर लाया हूं. जिस धन को आदमी बच्चों का भविष्य सुधारने, अपने बुढ़ापे में खर्च करने के लिए संचित करता है, तुम्हारी बेहूदा हरकत से नष्ट हो रहा है.’’

मैं वास्तव में मूर्ख ही थी, जो तब भी संभली नहीं, मुंह से निकल ही गया, ‘‘क्या, भविष्यनिधि से पैसे निकाले? आप सचमुच कुछ नहीं कर सकते. मैं तो करीबकरीब मुफ्त करा देती. बस आप भी… पैसे यों ही खर्च हो गए.’’

‘‘बस, चुप रहो. मेरे उसूलों की तो तुम ने धज्जियां उड़ा दीं. मेरा साथ न दे पाईं, उलटे मुझे भी गलत बात सिखाने पर तुली हो. सुना था, हर सफल आदमी के पीछे एक स्त्री होती है. पर तुम ने सिद्ध कर दिया कि असफलता की ओर चरण बढ़ाने के लिए भी पुरुष को स्त्री का साथ ही नहीं संरक्षण भी मिल सकता है. आज तक तुम को समझा कर हार गया. अब मैं हुक्म देता हूं कि जिस कुरसी का मैं अधिकारी हूं, उस अधिकार का तुम दुरुपयोग नहीं कर सकतीं.’’

यह गुस्से में तमतमाते हुए बाहर चले गए. दोनों बच्चे भी सहम गए थे. अरदली की आंखों में तभी से एक व्यंग्यभरी मुसकान देखती आ रही हूं.

कुछ ही दिनों में इन का तबादला हो गया. उस समय तो नहीं पर अब पता लग गया कि इन्होंने खुद ही तबादला करवाया था. मैं चाह रही थी कि बच्चों की परीक्षा तक वहीं रुक जाऊं. इन्होंने कहा भी कि ऐसा कोई खास फर्क नहीं पड़ने वाला. वहां के स्कूलों की जानकारी ले चुके थे वह. पर मेरे सिर पर तो भूत सवार हो गया था. कुछ तो इन के गुस्से वाले मूड से दूर रहना चाह रही थी. दो महीने के लिए बच्चों की पढ़ाई में होने वाले नुकसान या उस नुकसान को पूरा करने की जिम्मेदारी से भी बचना चाह रही थी.

इन्होंने कहा भी, ‘‘मैं जब तक हूं तभी तक ये अरदली और कर्मचारी ध्यान देंगे फिर तो नए साहब की जी हजूरी में लग जाएंगे.’’ मुझ में जो झूठा दंभ था, उस ने फिर सिर उठाया. मेरी गलतफहमी कि इन के मातहत मुझे बहुत मानते हैं, मेरे जरा से इशारे पर बिछ जाएंगे. इन के बहुत कहने पर भी मैं वहीं रुक गई. बच्चों को पढ़ाने के कारण तो यह व्यवस्था अच्छी लगी पर मेरा व्यवहार शायद उन को भी अटपटा लगा था.

अपने पिताजी के इतना कहने पर भी मेरा रुकना उन्हें ठीक नहीं लगा था. वे दोनों दोएक बार बोले, ‘‘मां, चले चलते हैं. थोड़ी सी मेहनत से हमारी पढ़ाई ठीक चलने लगेगी.’’

इन के जाने के तीसरे दिन ही नए पुलिस अधीक्षक आ गए. एक बूढ़ा अरदली हमारे पास रह गया, जो करीबकरीब किसी काम का न था. सारा काम खुद ही करना पड़ रहा था. खीज के मारे उस बूढ़े अरदली पर जबतब गुस्सा निकलता. वह भी अब किसी तरह सहन नहीं करता था. साहब तो हमेशा से ही बहुत मधुरता और प्यार से बोलते थे. मैं भी पहले मीठे स्वभाव की ही थी. अब क्यों सहेगा जब साहब कोई और हो?

अब तो कहीं से जरा भी आसरा नहीं था. कोई झांक कर भी न देखता. फोन भी नहीं रह गया था कि किसी इंस्पेक्टर, सबइंस्पेक्टर को बुला कर कोई काम बता सकूं.

मैं जिस प्राप्य के बारे में सोचसोच कर खुश हुआ करती थी, वह मेरा खुद का, व्यक्तिगत न था, यह समझने में देर जरूर हो गई. मेरा आदर, सम्मान होता रहा था इन की पत्नी होने के कारण और मुझे भी इन पर गर्व था. सिवा इन बीच के कुछ दिनों के जब मैं ने अपनेआप को इस का हकदार माना था. मैं एक सफल, अच्छे अफसर की पत्नी बन कर संतुष्ट रहती तो आज मेरा सम्मान बढ़ जाता.

जो मुझे दीदी और भाभी बना कर तारीफों के पुल बांधते थे, अब इधरउधर इन से, उन से कहते फिर रहे थे, ‘‘अजी, सब दूसरों की आंखों में धूल झोंकने वाली करतूत है. साहब तो एकदम सीधे बन जाते थे, कुछ लेते नहीं थे. अब साहब लें या मेम साहब, फर्क क्या पड़ता है? बात तो एक ही हुई न. भई, असली साहब तो वही हैं. साहब के चार्ज में तो बस, पुलिस अधीक्षक की कुरसी है.’’

अरदली और दफ्तर के सिपाहियों की ये बातें कानों मे पड़ने लगीं, ‘‘सारे के सारे साहब एक जैसे हुए हैं. मेम साहब ने राजपूत साहब का तबादला रुकवा लिया. बदले में रंगीन टेलीविजन मुफ्त. साहब भले ही ऊपर से मेम साहब को डाटें पर मन ही मन खुश ही हुए होंगे कि चलो भई, पैसा न धेले का खर्च और मुफ्त का मनोरंजन घर बैठेबैठे.’’

सुन कर मैं एकदम बौखला गई. ओह, मैं ने यह क्या किया? इन के इतने साल की तपस्या भंग कर दी. इन के 10 हजार रुपयों का नुकसान कराया और नाम भी खराब करवा दिया. किसकिस का मुंह बंद करूं, किसकिस को सफाई देती फिरूं?

वे 2-3 महीने मेरे और बच्चों के कैसे कटे, सिर्फ हम ही जानते हैं. मैं ने तो टेलीविजन की ओर देखना तक छोड़ दिया. उस को देख कर न जाने कैसा दर्द उठता है. बच्चों के परचे भी ज्यादा अच्छे नहीं हुए. मेरी नादानी से एक ऐसा नुकसान हुआ था, जिस की भरपाई मुश्किल ही लगती रही. इन के पास पहुंच कर मैं ने अपने किए पर पश्चात्ताप किया. भविष्य में दोबारा ऐसी गलती न होने देने का वादा भी किया.

इन का इतना ही कहना था, ‘‘हम अपराधी को पकड़ते हैं. इलजाम लगा कर जेल भेजते हैं कि वह अपने किए की सजा भुगतने के बाद एक अच्छे नागरिक का जीवन जी सके. उन को इस का मौका मिलता है.’’

‘‘हम सरकारी कर्मचारी, वह भी खासकर पुलिस में साफसुथरों को भी दाग लगा ही माना जाता है. फिर एक बार की गलती हमेशा के लिए कलंकित कर देती है. हर तबादले पर हमारे पहुंचने से पहले उस की ख्याति पहुंच जाती है. इस दाग को दुनिया की कोई जेल नहीं मिटा सकती.’’

चिंता की कोई बात नहीं: क्या सुकांता लौटेगी ससुराल

लेखिका प्रतिमा डिके

आज अगर कोई मुझ से पूछे कि दुनिया का सब से सुखी व्यक्ति कौन है? तो सीना तान कर मेरा जवाब होगा, मैं. और यह बात सच है कि मैं सुखी हूं. बहुत सुखी हूं, औसत से कुछ अधिक ही रूप, औसत से कुछ अधिक ही गुण, शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य, अच्छी शिक्षा, अच्छी नौकरी, अच्छा पैसा, मनपसंद पत्नी, समझदार, स्वस्थ और प्यारे बच्चे, शहर में अपना मकान.

अब बताइए, जिसे सुख कहते हैं वह इस से अधिक या इस से अच्छा क्याक्या हो सकता है? यानी मेरी सुख की या सुखी जीवन की अपेक्षाएं इस से अधिक कभी थीं ही नहीं. लेकिन 6 माह पूर्व मेरे घर का सुखचैन मानो छिन गया.

सुकांता यानी मेरी पत्नी, अपने मायके में क्या पत्र लिखती, मुझे नहीं पता. लेकिन उस के मायके से जो पत्र आने लगे थे उन में उस की बेचारगी पर बारबार चिंता व्यक्त की जाने लगी थी. जैसे :

‘‘घर का काम बेचारी अकेली औरत  करे तो कैसे और कहां तक?’’

‘‘बेचारी सुकांता को इतना तक लिखने की फुरसत नहीं मिल रही है कि राजीखुशी हूं.’’

‘‘इन दिनों क्या तबीयत ठीक नहीं है? चेहरे पर रौनक ही नहीं रही…’’ आदि.

शुरूशुरू में मैं ने उस ओर कोई खास ध्यान नहीं दिया. मायके वाले अपनी बेटी की चिंता करते हैं, एक स्वाभाविक बात है. यह मान कर मैं चुप रहा. लेकिन जब देखो तब सुकांता भी ताने देने लगी, ‘‘प्रवीणजी को देखो, घर की सारी खरीदफरोख्त अकेले ही कर लेते हैं. उन की पत्नी को तो कुछ भी नहीं देखना पड़ता…शशिकांतजी की पसंद कितनी अच्छी है. क्या गजब की चीजें लाते हैं. माल सस्ता भी होता है और अच्छा भी.’’

कई बार तो वह वाक्य पूरा भी नहीं करती. बस, उस के गरदन झटकने के अंदाज से ही सारी बातें स्पष्ट हो जातीं.

सच तो यह है कि उस की इसी अदा पर मैं शुरू में मरता था. नईनई शादी  हुई थी. तब वह कभी पड़ोसिन से कहती, ‘‘क्या बताऊं, बहन, इन्हें तो घर के काम में जरा भी रुचि नहीं है. एक तिनका तक उठा कर नहीं रखते इधर से उधर.’’ तो मैं खुश हो जाता. यह मान कर कि वह मेरी प्रशंसा कर रही है.

लेकिन जब धीरेधीरे यह चित्र बदलता गया. बातबात पर घर में चखचख होने लगी. सुकांता मुझे समझने और मेरी बात मानने को तैयार ही नहीं थी. फिर तो नौबत यहां तक आ गई कि मेरा मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य भी गड़बड़ाने लगा.

अब आप ही बताइए, जो काम मेरे बस का ही नहीं है उसे मैं क्यों और कैसे करूं? हमारे घर के आसपास खुली जगह है. वहां बगीचा बना है. बगीचे की देखभाल के लिए बाकायदा माली रखा हुआ है. वह उस की देखभाल अच्छी तरह से करता है. मौसम में उगने वाली सागभाजी और फूल जबतब बगीचे से आते रहते हैं.

लेकिन मैं बालटी में पानी भर कर पौधे नहीं सींचता, यही सुकांता की शिकायत है, वह चाहे बगीचे में काम न करे. लेकिन हमारे पड़ोसी सुधाकरजी बगीचे में पूरे समय खुरपी ले कर काम करते हैं. इसलिए सुकांता चाहती है कि मैं भी बगीचे में काम करूं.

मुझे तो शक है कि सुधाकरजी के दादा और परदादा तक खेतिहर मजदूर रहे होंगे. एक बात और है, सुधाकरजी लगातार कई सिगरेट पीने के आदी हैं. खुरपी के साथसाथ उन के हाथ में सिगरेट भी होती है. मैं तंबाकू तो क्या सुपारी तक नहीं खाता. लेकिन सुकांता इन बातों को अनदेखा कर देती है.

शशिकांत की पसंद अच्छी है, मैं भी मानता हूं. लेकिन उन की और भी कई पसंद हैं, जैसे पत्नी के अलावा उन के और भी कई स्त्रियों से संबंध हैं. यह बात भी तो लोग कहते ही हैं.

लेदे कर सुकांता को बस, यही शिकायत है, ‘‘यह तो बस, घर के काम में जरा भी ध्यान नहीं देते, जब देखो, बैठ जाएंगे पुस्तक ले कर.’’

कई बार मैं ने उसे समझाने की कोशिश की, लेकिन वह समझने को तैयार ही नहीं. मैं मुक्त मन से घर में पसर कर बैठूं तो उसे अच्छा नहीं लगता. दिन भर दफ्तर में कुरसी पर बैठेबैठे अकड़ जाता हूं. अपने घर में आ कर क्या सुस्ता भी नहीं सकता? मेरे द्वारा पुस्तक पढ़ने पर, मेरे द्वारा शास्त्रीय संगीत सुनने पर उसे आपत्ति है. इन्हीं बातों से घर में तनाव रहने लगा है.

ऐसे ही एक दिन शाम को सुकांता किसी सहेली के घर गई थी. मैं दफ्तर से लौट कर अपनी कमीज के बटन टांक रहा था. 10 बार मैं ने उस से कहा था लेकिन उस ने नहीं किया तो बस, नहीं किया. मैं बटन टांक रहा था कि सुकांता की खास सहेली अपने पति के साथ हमारे घर आई.

पर शायद आप पूछें कि यह खास सखी कौन होती है? सच बताऊं, यह बात अभी तक मेरी समझ में भी नहीं आई है. हर स्त्री की खास सखी कैसे हो जाती है? और अगर वह खास सखी होती है तो अपनी सखी की बुराई ढूंढ़ने में, और उस की बुराई करने में ही उसे क्यों आनंद आता है? खैर, जो भी हो, इस खास सखी के पति का नाम भी सुकांता की आदर्श पतियों की सूची में बहुत ऊंचे स्थान पर है. वह पत्नी के हर काम में मदद करते हैं. ऐसा सुकांता कहती है.

मुझे बटन टांकते देख कर खास सखी ऊंची आवाज में बोली, ‘‘हाय राम, आप खुद अपने कपड़ों की मरम्मत करते हैं? हमें तो अपने साहब को रोज पहनने के कपड़े तक हाथ में देने पड़ते हैं. वरना यह तो अलमारी के सभी कपड़े फैला देते हैं कि बस.’’

सराहना मिश्रित स्वर में खास सखी का उलाहना था. मतलब यह कि मेरे काम की सराहना और अपने पति को उलाहना था. और बस, यही वह क्षण था जब मुझे अलीबाबा का गुफा खोलने वाला मंत्र, ‘खुल जा सिमसिम’ मिल गया.

मैं ने बड़े ही चाव और आदर से खास सखी और उस के पति को बैठाया. और फिर जैसे हमेशा ही मैं वस्त्र में बटन टांकने का काम करता आया हूं, इस अंदाज से हाथ का काम पूरा किया. कमीज को बाकायदा तह कर रखा और झट से चाय बना लाया.

सच तो यह है कि चाय मैं ने नौकर से बनवाई थी और उसे पिछले दरवाजे से बाहर भेज दिया था. खास सखी और उस के पति ‘अरे, अरे, आप क्यों तकलीफ करते हैं?’ आदि कहते ही रह गए.

चाय बहुत बढि़या बनी थी, केतली पर टिकोजी विराजमान थी. प्लेट में मीठे बिस्कुट और नमकीन थी. इस सारे तामझाम का नतीजा भी तुरंत सामने आया. खास सखी के चेहरे पर मेरे लिए अदा से श्रद्धा के भाव उमड़ते साफ देखे जा सकते थे. खास सखी के पति का चेहरा बुझ गया.

मैं मन ही मन खुश था. इन्हीं साहब की तारीफ सुकांता ने कई बार मेरे सामने की थी. तब मैं जलभुन गया था, आज मुझे बदला लेने का पूरापूरा सुख मिला.

कुछ दिन बाद ही सुकांता महिलाओं की किसी पार्टी से लौटी तो बेहद गुस्से में थी. आते ही बिफर कर बोली, ‘‘क्यों जी? उस दिन मेरी सहेली के सामने तुम्हें अपने कपड़ों की मरम्मत करने की क्या जरूरत थी? मैं करती नहीं हूं तुम्हारे काम?’’

‘‘कौन कहता है, प्रिये? तुम ही तो मेरे सारे काम करती हो. उस दिन तो मैं यों ही जरा बटन टांक रहा था कि तुम्हारी खास सहेली आ धमकी मेरे सामने. मैं ने थोड़े ही उस के सामने…’’

‘‘बस, बस. मुझे कुछ नहीं सुनना…’’

गुस्से में पैर पटकती हुई वह अपने कमरे में चली गई. बाद में पता चला कि भरी पार्टी में खास सखी ने सुकांता से कहा था कि उसे कितना अच्छा पति मिला है. ढेर सारे कपड़ों की मरम्मत करता है. बढि़या चाय बनाता है. बातचीत में भी कितना शालीन और शिष्ट है. कहां तो सात जनम तक व्रत रख कर भी ऐसे पति नहीं मिलते, और एक सुकांता है कि पूरे समय पति को कोसती रहती है.

अब देखिए, मैं ने तो सिर्फ एक ही कमीज में 2 बटन टांके थे, लेकिन खास सखी ने ढे…र सारे कपड़े कर दिए तो मैं क्या कर सकता हूं? समझाने गया तो सुकांता और भी भड़क गई. चुप रहा तो और बिफर गई. समझ नहीं पाया कि क्या करूं.

सुकांता का गुस्सा सातवें आसमान पर था. वह बच्चों को ले कर सीधी मायके चली गई. मैं ने सोचा कि 15 दिन में तो आ ही जाएगी. चलो, उस का गुस्सा भी ठंडा हो जाएगा. घर में जो तनाव बढ़ रहा था वह भी खत्म हो जाएगा. लेकिन 1 महीना पूरा हो गया. 10 दिन और बीत गए, तब पत्नी की और बच्चों की बहुत याद आने लगी.

सच कहता हूं, मेरी पत्नी बहुत अच्छी है. इतने दिनों तक हमारी गृहस्थी की गाड़ी कितने सुचारु रूप से चल रही थी, लेकिन न जाने यह नया भूत कैसे सुकांता पर सवार हुआ कि बस, एक ही रट लगाए बैठी है कि यह घर में बिलकुल काम नहीं करते. बैठ जाते हैं पुस्तक ले कर, बैठ जाते हैं रेडियो खोल कर.

अब आप ही बताइए, हफ्ते में एक बार सब्जी लाना क्या काफी नहीं है? काफी सब्जी तो बगीचे से ही मिल जाती है. जो घर पर नहीं है वह बाजार से आ जाती है. और रोजरोज अगर सब्जी मंडी में धक्के खाने हों तो घर में फ्रिज किसलिए रखा है?

लेकिन नहीं, वरुणजी झोला ले कर मंडी जाते हैं, तो मैं भी जाऊं. अब वरुणजी का घर 2 कमरों का है. आसपास एक गमला तक रखने की जगह नहीं है. घर में फ्रिज नहीं है, इसलिए मजबूरी में जाते हैं. लेकिन मेरी तुलना वरुणजी से करने की क्या तुक है?

बच्चे हमारे समझदार हैं. पढ़ने में भी अच्छे हैं, लेकिन सुकांता को शिकायत है कि मैं बच्चों को पढ़ाता ही नहीं. सुकांता की जिद पर बच्चों को हम ने कानवेंट स्कूल में डाला. सुकांता खुद अंगरेजी के 4 वाक्य भी नहीं बोल पाती. बच्चों की अंगरेजी तोप के आगे उस की बोलती बंद हो जाती है.

यदाकदा कोई कठिनाई हो तो बच्चे मुझ से पूछ भी लेते हैं. फिर बच्चों को पढ़ाना आसान काम नहीं है. नहीं तो मैं अफसर बनने के बजाय अध्यापक ही बन जाता. अपना अज्ञान बच्चों पर प्रकट न हो इसीलिए मैं उन की पढ़ाई से दूर ही रहता हूं. शायद इसीलिए उन के मन में मेरे लिए आदर भी है. लेकिन शकीलजी अपने बच्चों को पढ़ाते हैं. रोज पढ़ाते हैं तो बस, सुकांता का कहना है मैं भी बच्चों को पढ़ाऊं.

पूरे डेढ़ महीने बाद सुकांता का पत्र आया. फलां दिन, फलां गाड़ी से आ रही हूं. साथ में छोटी बहन और उस के पति भी 7-8 दिन के लिए आ रहे हैं.

मैं तो जैसे मौका ही देख रहा था. फटाफट मैं ने घर का सारा सामान देखा. किराने की सूची बनाई. सामान लाया. महरी से रसोईघर की सफाई करवाई. डब्बे धुलवाए. सामान बिनवा कर, चुनवा कर डब्बों में भर दिया.

2 दिन का अवकाश ले कर माली और महरी की मदद से घर और बगीचे की, कोनेकोने तक की सफाई करवाई. दीवान की चादरें बदलीं. परदे धुलवा दिए. पलंग पर बिछाने वाली चादरें और तकिए के गिलाफ धुलवा लिए. हाथ पोंछने के छोटे तौलिए तक साफ धुले लगे थे. फ्रिज में इतनी सब्जियां ला कर रख दीं जो 10 दिन तक चलतीं. 2-3 तरह का नाश्ता बाजार से मंगवा कर रखा, दूध जालीदार अलमारी में गरम किया हुआ रखा था. फूलों के गुलदस्ते बैठक में और खाने की मेज पर महक रहे थे.

इतनी तैयारी के बाद मैं समय से स्टेशन पहुंचा. गाड़ी भी समय पर आई. बच्चों का, पत्नी का, साली का, उस के पति का बड़ी गर्मजोशी से स्वागत किया. रास्ते में सुकांता ने पूछा, (स्वर में अभी भी कोई परिवर्तन नहीं था) ‘‘क्यों जी, महरी तो आ रही थी न, काम करने?’’

मैं ने संक्षिप्त में सिर्फ ‘हां’ कहा.

बहन की तरफ देख कर (उसी रूखे स्वर में) वह फिर बोली, ‘‘डेढ़ महीने से मैं घर पर नहीं थी. पता नहीं इतने दिनों में क्या हालत हुई होगी घर की? ठीकठाक करने में ही पूरे 3-4 दिन लग जाएंगे.’’

मैं बिलकुल चुप रहा. रास्ते भर सुकांता वही पुराना राग अलापती रही, ‘‘इन को तो काम आता ही नहीं. फलाने को देखो, ढिकाने को देखो’’ आदि.

लेकिन घर की व्यवस्था देख कर सुकांता की बोलती ही बंद हो गई. आगे के 7-8 दिन मैं अभ्यस्त मुद्रा में काम करता रहा जैसे सुकांता कभी इस घर में रहती ही नहीं थी. छोटी साली और उस के पति इस कदर प्रभावित थे कि जातेजाते सालीजी ने दीदी से कह दिया, ‘‘दीदी, तुम तो बिना वजह जीजाजी को कोसती रहती हो. कितना तो बेचारे काम करते हैं.’’

सालीजी की विदाई के बाद सुकांता चुप तो हो गई थी. लेकिन फिर भी भुनभुनाने के लहजे में उस के कुछ वाक्यांश कानों में आ ही जाते. इसी समय मेरी बूआजी का पत्र आया. वह तीर्थयात्रा पर निकली हैं और रास्ते में मेरे पास 4 दिन रुकेंगी.

मेरी बूआजी देखने और सुनने लायक चीज हैं. उम्र 75 वर्ष. कदकाठी अभी भी मजबूत. मुंह के सारे के सारे दांत अभी भी हैं. आंखों पर ऐनक नहीं लगातीं और कान भी बहुत तीखे हैं. पुराने आचारव्यवहार और विचारों से बेहद प्रेम रखने वाली महिला हैं. मन की तो ममतामयी, लेकिन जबान की बड़ी तेज. क्या छोटा, क्या बड़ा, किसी का मुलाहिजा तो उन्होंने कभी रखा ही नहीं. मेरे पिताजी आज तक उन से डरते हैं.

मेरी शादी इन्हीं बूआजी ने तय की थी. गोरीचिट्टी सुकांता उन्हें बहुत अच्छी लगी थी. इतने बरसों से उन्हें मेरी गृहस्थी देखने का मौका नहीं मिला. आज वह आ रही थीं. सुकांता उन की आवभगत की तैयारी में जुट गई थी.

बूआजी को मैं घर लिवा लाया. बच्चों ने और सुकांता ने उन के पैर छुए. मैं ने अपने उसी मंत्र को दोहराना शुरू किया. यों तो घर में बिस्तर बिछाने का, समेटने का, झाड़ ू  लगाने का काम महरी ही करती है, लेकिन मैं जल्दी उठ कर बूआजी की चाकरी में भिड़ जाता. उन का कमरा और पूजा का सामान साफ कर देता, बगीचे से फूल, दूब, तुलसी ला कर रख देता. चंदन को घिस देता. अपने हाथ से चाय बना कर बूआजी को देता.

और तो और, रोज दफ्तर जातेजाते सुकांता से पूछता, ‘‘बाजार से कुछ मंगाना तो नहीं है?’’ आते समय फल और मिठाई ले आता. दफ्तर जाने से पहले सुकांता को सब्जी आदि साफ करने या काटने में मदद करता. बूआजी को घर के कामों में मर्दों की यह दखल देने की आदत बिलकुल पसंद नहीं थी.

सुकांता बेचारी संकोच से सिमट जाती. बारबार मुझे काम करने को रोकती. बूआजी आसपास नहीं हैं, यह देख कर दबी आवाज में मुझे झिड़की भी देती. और मैं उस के गुस्से को नजरअंदाज करते हुए, बूआजी आसपास हैं, यह देख कर उस से कहता, ‘‘तुम इतना काम मत करो, सुकांता, थक जाओगी, बीमार हो जाओगी…’’

बूआजी खूब नाराज होतीं. अपनी बुलंद आवाज में बहू को खूब फटकारतीं, ताने देतीं, ‘‘आजकल की लड़कियों को कामकाज की आदत ही नहीं है. एक हम थे. चूल्हा जलाने से ले कर घर लीपने तक के काम अकेले करते थे. यहां गैस जलाओ तो थकान होती है और यह छोकरा तो देखो, क्या आगेपीछे मंडराता है बीवी के? उस के इशारे पर नाचता रहता है. बहू, यह सब मुझे पसंद नहीं है, कहे देती हूं…’’

सुकांता गुस्से से जल कर राख हो जाती, लेकिन कुछ कह नहीं सकती थी.

ऐसे ही एक दिन जब महरी नहीं आई तो मैं ने कपड़ों के साथ सुकांता की साड़ी भी निचोड़ डाली. बूआजी देख रही हैं, इस का फायदा उठाते हुए ऊंची आवाज में कहा, ‘‘कपड़े मैं ने धो डाले हैं. तुम फैला देना, सुकांता…मुझे दफ्तर को देर हो रही है.’’

‘‘जोरू का गुलाम, मर्द है या हिजड़ा?’’ बूआजी की गाली दनदनाते हुए सीधे सुकांता के कानों में…

मैं अपना बैग उठा कर सीधे दफ्तर को चला.

बूआजी अपनी काशी यात्रा पूरी कर के वापस अपने घर पहुंच गई हैं. मैं शाम को दफ्तर से घर लौटा हूं. मजे से कुरसी पर पसर कर पुस्तक पढ़ रहा हूं. सुकांता बाजार गई है. बच्चे खेलने गए हैं. चाय का खाली कप लुढ़का पड़ा है. पास में रखे ट्रांजिस्टर से शास्त्रीय संगीत की स्वरलहरी फैल रही है.

अब चिंता की कोई बात नहीं है. सुख जिसे कहते हैं, वह इस के अलावा और क्या होता है? और जिसे सुखी इनसान कहते हैं, वह मुझ से बढ़ कर और दूसरा कौन होगा?

फैस्टिव सीजन में साड़ी को दे मौर्डन ट्विस्ट, इस तरह करें कैरी

फैस्टिव सीजन शुरू हो चुका है. ऐसे में अपने लुक को खास और खूबसूरत दिखाने के लिए आप की पहली चौइस साड़ी ही होती है. और हो भी क्यों न, साड़ियां सालों से सुंदरता और परंपरा का प्रतीक रही हैं और हर फैस्टिवल और इवेंट के लिए परफैक्ट होती हैं.

लेकिन अब बदलते फैशन के हिसाब से साड़ियों में भी कई ट्रैंड देखने को मिल रहे हैं. तो क्यो न मौर्डन जमाने के साथ चलते हुए आप भी इस फैस्टिवल पर ट्रैडिशनल साड़ी में मौर्डन टच दे कर अपने लुक में स्टाइल का तड़का लगाएं. जो आप को स्टाइलिश और ट्रैंडिंग दिखाए.

फैशन डिजाइनर प्रगति नागपाल (लेबल मस्तानी) का कहना है, “फैस्टिव सीजन में साड़ी ही एक ऐसा आउटफिट है जो हर महिला पर परफैक्ट लगता है. लेकिन समय और फैशन के हिसाब से साड़ी में कई बदलाव हुए हैं. आजकल फ्यूजन साड़ियों का ट्रैंड देखने को मिल रहा है. आप भी इन बदलाव को फौलो कर फैस्टिव सीजन में कुछ ऐसा ट्राई करें, जिस से आप भी इस खास मौके पर स्टाइलिश और ट्रैंडिंग नजर आएं.”

साड़ी को दे मौर्डन ट्विस्ट

बदलते फैशन के ट्रैंड में अब ट्रैडिशनल साड़ियां नए रूप में सामने आ रही हैं. चाहे आप प्री ड्रेप्ड साड़ियों का ऐलिगेंट लुक पसंद करती हों या फिर इंडो वैस्टर्न फैशन का फ्यूजन, साड़ी हर फैशन के लिए परफैक्ट औप्शन है.

इंडो वैस्टर्न पेंट स्टाइल साड़ी

इंडो वैस्टर्न आउटफिट है, ट्रैडिशनल इंडियन और वेस्टर्न आउटफिट दोनों को एकसाथ जोड़ता है. पैंट स्टाइल की साड़ी उन फैशनपरस्त महिलाओं के लिए आदर्श है जिन का इंडियन ट्रैडिशनल ड्रैसेज के प्रति लगाव है. इस स्टाइल में नौरमल पेटीकोट के बजाय पैंट या लैगिंग के ऊपर साड़ी ड्रेप करना शामिल है जिस से एक स्टाइलिश फ्यूजन लुक तैयार होता है जो महिलाओं को खूब पसंद आता है. इस साड़ी ड्रैस में 3 चीजें होती हैं. पेंट साड़ी और टौप. यह एक कमरबंद के साथ आता है. इसशमें साड़ी को बौडी के चारों ओर लपेट कर सोल्डर के ऊपर पल्लू की तरह सैट किया जाता है. फिर इस में एक फिटेड शौर्ट स्लीव्स लेस वाला टौप जैसा ब्लाउज साड़ी और पेंट की मैचिंग का कैरी किया जाता है.

स्टाइलिश धोती साड़ी

ये मार्केट में डिफरैंट कलर, पैटर्न और डिजाइन में मिल जाती हैं. धोती साड़ी पहनने में बहुत स्टाइलिश लगती है. इस साड़ी के नीचे पेटीकोट नहीं पहना जाता बल्कि इस में आप लैगिंग या फिर टाइट पजामी को पहन सकती हैं. जैंट्स द्वारा पहनी जाने वाली ट्रैडिशनल धोती से इंस्पायर्ड इस स्टाइल में साड़ी को धोती जैसा बनाया जाता है, जिस में पैरों के बीच प्लीट्स को टक किया जाता है और पल्लू को कंधे पर लपेटा जाता है.

लहंगा स्टाइल साड़ी

लहंगा स्टाइल ड्रेपिंग मौर्डन स्टाइल है, जो साड़ी को लहंगे के स्टाइल के साथ मिलाती है. साड़ी को लहंगे की स्कर्ट की तरह ड्रेप किया जाता है, जिस में पल्लू लैफ्ट सोल्डर पर होता है. खास मौकों के लिए यह स्टाइल परफैक्ट है.

गाउन स्टाइल साड़ी

आप फ्लोर लेंथ वाली इंडो वैस्टर्न साड़ी ट्राई कर सकती हैं. इस में ए कट गाउन होता है. इस के ऊपर से गाउन से मैचिंग साड़ी पल्लू को ऊपर से शोल्डर पर टक करें और कमर पर बेल्‍ट लगा कर स्‍टाइलिश लुक दें.

स्लिट कट स्टाइल साड़ी

इस ट्रैडिशनल आउटफिट में थाई हाई स्लिट दे कर इसे मौर्डन और ट्रैंडी लुक दिया जा रहा है. ये रेडीमेड साड़ियां अलगअलग पार्ट्स में आती हैं जिसे टक कर के थाई हाई स्लिट बना सकते हैं. अगर आप इस साड़ी को और भी अक्ट्रैटिव बनाना चाहती हैं तो ब्रोकेट के औफ सोल्डर ब्लाउज के साथ पहनें. ध्यान रहे हैवी थाइज पर स्मौल स्लिट पहनें.

कस्टमाइज फिश टेल साड़ी

फिश टेल वाली साड़ी को नया और खास स्टाइल देने के लिए आप स्ट्रैपलेस ब्रालेट ब्‍लाउज के साथ कैरी करें और ब्लाउज डिजाइन को फ्लौंट करने के लिए आप काउल स्‍टाइल में पल्लू को ड्रैप कर सकती हैं.

अगर आप अपनी पसंद के अनुसार कोई साड़ी डिजाइन करवाना चाहती हैं तो कस्टमाइज साड़ी आप को मार्केट में कई वैरायटी में आसानी से मिल जाएंगी, नहीं तो आप अपने टेलर से डिजाइन दे कर भी उसे बनवा सकती हैं.

प्री ड्रैप्ड साड़ियां दें मौर्डन ट्विस्ट

आज की महिलाएं फैस्टिवल पर साड़ियां पहनना तो चाहती हैं लेकिन समय की कमी की वजह से ड्रैप करने में उन्हें दिक्कत होती है. ऐसी महिलाओं के लिए मार्केट में प्री ड्रैप्ड साड़ियां उपलब्ध हैं. ये साड़ियां बनीबनाई होती हैं, जिस में प्लीट बना कर सिल दिया जाता है.

इन साड़ियों को आप आसानी से पहन सकती हैं. चाहे वह कैजुअल आउटिंग हो या कोई फंक्शन हो, प्री ड्रैप्ड साड़ियां आसानी से पहनने और स्टाइलिश दिखने का एक शानदार तरीका है.

स्‍टाइलिश और ऐलिगेंट साड़ियां

आजकल साड़ी को डिफरैंट स्टाइल में ड्रैप किया जा रहा है. इस के अलावा अगर आप को साड़ी ड्रैप करना नहीं आता तो आप को प्री ड्रैप स्‍टाइलिश और ऐलिगेंट साड़ियां भी मार्केट से मिल जाएंगी. इन्‍हें ड्रैप करना बहुत आसान होता है.

मौर्डन प्लीटिंग वाली साड़ियां

आप पारंपरिक तरीके से साड़ी पहनने का आनंद लेती हैं लेकिन कुछ नया करना चाहती हैं, तो मौर्डन प्लीटिंग तकनीक से तैयार की गई साड़ियों को कैरी कर सकती हैं. इस लुक में आप पल्लू को औफ सैंटर कर के तिरछा रहने दें. इस मौर्डन, ग्लैमरस लुक को और निखारने के लिए पल्लू को बेल्ट या पिन के साथ बांध लें.

जैकेट स्टाइल साड़ी

आजकल इस तरह की साड़ी ट्रैंड में हैं. इस में साड़ी को ओवरआल एक ड्रैस जैसा लुक मिलता है. इन में भी हैवी लुक के लिए ब्रोकेड या सिल्क, रा सिल्क या हैवी ऐंब्रौयडरी के जैकेट पहने जाते हैं जबकि सिंपल लुक के लिए जौर्जेट, शिफौन, प्रिंटेड सिल्क या मल कौटन के श्रग जैसे जैकेट्स पसंद किए जा रहे हैं.

इंडो वैस्टर्न साड़ी

इंडो वैस्‍टर्न लुक के लिए साड़ी की लोअर प्‍लेट्स तो बेसिक तरीके से ड्रेप करें मगर शोल्‍डर प्‍लेट्स को कंधे पर कैरी करने की जगह अपने हाथों में फोल्‍ड करे. साड़ी ड्रैपिंग का यह अंदाज आजकल काफी ट्रैंड में है. इस तरह की साड़ी में स्टाइलिश और डिजाइनर ब्लाउज डिजाइन करवा सकती हैं और उसे फ्लौंट कर सकती हैं. आप ब्‍लाउज की जगह क्रौप टौप या फिर शौर्ट कुरती भी कैरी कर सकती हैं.

मरमेड साड़ी ड्रैपिंग

यह एक ग्लैमरस और मौर्डन ड्रैप है जो साड़ी को एक स्लिक, फिगर हगिंग लुक और बैस्ट बनाता है. इस स्टाइल में साड़ी को कमर और कूल्हों के चारों ओर कस कर लपेटा जाता है, जिस में प्लीट्स को मरमेड की पूंछ जैसा दिखने के लिए टक किया जाता है और पल्लू बाएं कंधे पर लपेट दिया जाता है.

प्लाजो साड़ी ड्रैपिंग

प्लाजो साड़ी ड्रैपिंग एक फ्यूजन स्टाइल है जो साड़ी की शान और प्लाजो पैंट को जोड़ती है. इस स्टाइल में साड़ी को प्लाजो पैंट के ऊपर पहना जाता है और पल्लू को बाएं कंधे पर लपेटा जाता है जिस से यह फौरमल और इनफौरमल दोनों अवसरों के लिए बैस्ट है.

बेल्टेड साड़ी ड्रैपिंग स्टाइल

बेल्ट वाली साड़ी ड्रैपिंग स्टाइल एक कंटेंपररी ट्विस्ट है जो ट्रैडिशनल साड़ी में स्ट्रक्चर और स्टाइल को ऐड करता है. इस स्टाइल में साड़ी को लपेटने के बाद कमर को कसने के लिए बेल्ट लगाई जाती है, जिस से पल्लू तो सैट रहता ही है, कमर को उभारने में मदद मिलती है.

बेल्ट वाली साड़ी का स्टाइल वर्सेटाइल है, क्योंकि इसे कई साड़ियों जैसे सिल्क साड़ियों, शिफौन साड़ियों और जौर्जेट साड़ियों के साथ ऐड किया जा सकता है, जिस से यह 2024 में एक ट्रैंडी विकल्प औप्शन बन जाएगा.

डबल साड़ी ड्रैपिंग स्टाइल

डबल साड़ी ड्रैपिंग स्टाइल एक यूनिक और डिटेल्ड स्टाइल है. इस में 2 साड़ियों को यूज किया जाता है. यह स्टाइल एक लेयर्ड लुक बनाता है, जिस में पहली साड़ी ट्रैडिशनल रूप से ड्रैप की जाती है और दूसरी साड़ी उस के ऊपर कौंप्लिमैंटरी स्टाइल में ड्रैप की जाती है. दूसरी साड़ी का पल्लू सोल्डर पर लपेटा जाता है, जिस से उस में वौल्यूम आ जाता है।

दुपट्टा साड़ी ड्रैपिंग स्टाइल

दुपट्टा साड़ी ड्रैपिंग स्टाइल ट्रैडिशनल साड़ी ड्रैपिंग का मिक्सचर है जिस में दुपट्टा ऐड कर एक बेहतर लुक दिया जाता है. इस स्टाइल में साड़ी को बेसिक मैथेड से ड्रैप किया जाता है, जिस में दुपट्टा या तो पल्लू के ऊपर या फिर सिर और कंधों पर अलग से डाला जाता है.

साड़ी के साथ मौर्डन स्टाइल में ऐक्सेसरीज

परफैक्ट ऐक्सेसरीज आप की साड़ी को स्टेटमैंट इयररिंग्स, बेल्ट्स और स्टाइलिश क्लच आप के लुक में एक मौडर्न टच दे सकता है. इसलिए ज्वैलरी के साथ ऐक्सपेरिमैंट्स करना न भूलें. इस से आप का फैशन का लुक पूरा हो सकेगा और आप परफैक्ट दिखेंगी.

बर्तन को रखना चाहती हैं चकाचक, तो किचन में लाएं डिशवाशर

महक की कामवाली हर 6 महीने में अपने गांव जाती है. 15 दिन का बोल कर 1 महीने बाद वापस आती है. पतिपत्नी दोनों कामकाजी हैं. दिनचर्या फिक्स है. दिनभर काम करने के बाद या सुबहसुबह रोज बर्तन साफ करने में ऊर्जा खर्च करना संभव नहीं था इसलिए डिशवाशर खरीद लिया.

आज के व्यस्त जीवन में महिलाएं और पुरुष दोनों ही अपने कामकाज और घरेलू जिम्मेदारियों के बीच संतुलन बनाए रखने की कोशिश करते हैं और ऐसे में घर के बर्तन धोने जैसे कामों के लिए कामवाली पर निर्भर रहते हैं. जब वह अचानक छुट्टी पर चली जाती है, तो घर के सभी काम प्रभावित होते हैं. अगर महिला कामकाजी है तो फिर तो उस की आफत आ जाती है क्योंकि घर के काम को पूरा करने के लिए उसे ही छुट्टी लेनी पड़ती है.

ऐसे में डिशवाशर किसी वरदान से कम नहीं है. आप घर में मंदिर नहीं बनवाएं, मगर किचन में डिशवाशर को पूरी जगह दें. लेकिन किसी भी डिशवाशर को खरीदने से पहले आप को इन बातों का खयाल रखना चाहिए कि किस तरह का डिशवाशर आप के घर के लिए परफैक्ट है.

भारत में एलजी, वोल्टास, सैमसंग जैसे ब्रैंड के डिशवाशर ज्यादा डिमांड में हैं. ये डिशवाशर आजकल ज्यादातर घरों में देखने को मिल जाते हैं. इस मशीन के कारण बहुत सारा वक्त बचता है और बर्तन भी सही तरीके से धूल जाते हैं.

ये डिशवाशर बिलकुल वाशिंग मशीन के तरह काम करता है. बस, इस में कपड़े की जगह बर्तन साफ किए जाते हैं .

डिशवाशर कामकाजी महिलाओं के साथ, बैचलर्सशव बुजुर्गों के लिए भी कई तरह से फायदेमंद साबित होता है. डिशवाशर हमारी जिंदगी को आसान बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है. यह एक ऐसी मशीन है जो बर्तन धोने के काम को आसान, तेज और कुशल बना देती है.

तो आइए, जानें किन तरीकों से डिशवाशर हमारी जिंदगी को आसान बनाता है.

समय की बचत

डिशवाशर का सब से बड़ा फायदा यह है कि इस से हमारा समय बचता है. जहां बर्तनों को हाथ से धोने में काफी समय लगता है, वहीं डिशवाशर में केवल बर्तन रखना, साबुन डालना और मशीन चालू करना होता है. इस से आप का समय और मेहनत दोनों बचते हैं.

स्वच्छता और हाइजीन

डिशवाशर बर्तनों को बहुत ही उच्च तापमान पर धोता है, जोकि हाथ से बर्तन धोने पर संभव नहीं होता. इस से बर्तन न केवल साफ होते हैं, बल्कि कीटाणुरहित भी हो जाते हैं. यह स्वास्थ्य के लिए भी बेहतर होता है, क्योंकि उच्च तापमान पर धुलाई से जर्म्स और बैक्टीरिया खत्म हो जाते हैं.

पानी की बचत

हाथ से बर्तन धोने में अकसर अधिक पानी का इस्तेमाल होता है, लेकिन डिशवाशर पानी का प्रभावी ढंग से उपयोग करता है. यह कम पानी में अधिक बर्तन धो सकता है, जिस से पानी की बचत होती है.

कम मेहनत

डिशवाशर का उपयोग शारीरिक मेहनत को काफी कम कर देता है. हाथ से बर्तन धोने में झुकने, रगड़ने और समय देने की जरूरत होती है जबकि डिशवाशर में बर्तन सैट करने के बाद आप को कुछ नहीं करना पड़ता.

पर्यावरण के अनुकूल

नए माडल के डिशवाशर ऊर्जा और पानी की खपत को कम करने के लिए डिजाइन किए गए हैं, जो पर्यावरण के लिए अनुकूल होते हैं. इस से बिजली और पानी दोनों की बचत होती है.

सुविधाजनक और कुशल

डिशवाशर में बर्तन सैट करना और धुलाई के बाद उन्हें निकालना काफी आसान और सुविधाजनक है. यह मशीन न केवल बड़े बल्कि छोटे और नाजुक बर्तनों को भी कुशलता से धोती है.

बड़े परिवारों के लिए उपयोगी

बड़े परिवारों में या जब घर में मेहमान आते हैं, तो बर्तनों की संख्या अधिक हो जाती है. ऐसे में हाथों से बर्तन धोना काफी समय और मेहनत वाला काम बन जाता है. डिशवाशर इस समस्या का समाधान करता है और बड़ी संख्या में बर्तनों को एकसाथ धोने में सक्षम होता है.

खरीदने से पहले कुछ बातें जान लें.

* डिशवाशर लेने से पहले यह तय कर लें कि कौन सा साइज आप के लिए बैस्ट होगा.
* किचन में किधर रखेंगे, बिजली, पानी का कनैक्शन कैसे होगा, आदि सोच लें.
* वही डिशवाशर लें जिस में मैमोरी फंक्शन हो, मतलब बिजली जाने के बाद वाश साइकल वहीं से शुरू हो जिधर रुकी थी.
* हाथों से बर्तन धोने की तुलना में इस में पानी बहुत कम लगता है.
* लकड़ी, अल्युमीनियम के बर्तन इस में नहीं धुलते, उन्हें हाथ से ही धोने पड़ेंगे. आगे से वही बर्तन खरीदें जो डिशवाशर सेफ हों.
* पुरुष भी इस में बर्तन रख सकते हैं.
* हाथ से धोने की तुलना में यह कहीं ज्यादा बेहतर सफाई करता है.शखासकर स्टील, सिरेमिक और कांच के बर्तन तो एकदम नए ही लगते हैं.
* बहुत ठंडे या बहुत गरम मौसम में बर्तन धोने की परेशानियों से छुटकारा मिलता है.
* इस में बर्तन जमाने में 5 मिनट लगते हैं, रात को लगा कर सो जाएं तो सुबह चमचमाते बर्तन मिलते हैं. कई महिलाओं को सुबह उठते ही पहली चिंता यही होती है कि कामवाली आएगी या नही, उस से छुटकारा मिलता है.

किचन के काम में हसबैंड भी करें मदद, घर का माहौल रहेगा खुशनुमा

अकसर यह देखा जाता है कि घर के काम, विशेषरूप से किचन का काम महिलाओं की जिम्मेदारी मान ली जाती है. हालांकि यह जरूरी नहीं है. जब पति और पत्नी दोनों कामकाजी होते हैं, तो घरेलू जिम्मेदारियों को साझा करना एक खुशहाल और संतुलित रिश्ते की कुंजी हो सकता है.

आज के समय में जब महिलाएं विभिन्न क्षेत्रों में काम कर रही हैं और अपनी प्रोफैशनल जिम्मेदारियों को बखूबी निभा रही हैं, तो घर के कामों में भी साझेदारी की उम्मीद होना स्वाभाविक है.

एक संतुलित और स्वस्थ रिश्ते के लिए यह जरूरी है कि पतिपत्नी दोनों मिल कर घर की जिम्मेदारियों को बांटें. खासकर वर्किंग महिलाओं के लिए किचन का काम अकेले संभालना थकानभरा हो सकता है. ऐसे में, पति को किचन में मदद के लिए तैयार करना एक सकारात्मक कदम हो सकता है.

यहां कुछ सुझाव दिए गए हैं, जो आप के पति को किचन के काम में हाथ बंटाने के लिए प्रेरित कर सकते हैं :

खुले और ईमानदार संवाद से शुरुआत करें

सब से पहले अपने पति से इस मुद्दे पर खुल कर बात करें. अपने विचारों और भावनाओं को स्पष्ट रूप से व्यक्त करें कि किचन का काम सिर्फ एक व्यक्ति की जिम्मेदारी नहीं होनी चाहिए, बल्कि यह साझेदारी का काम है. उन्हें बताएं कि एक वर्किंग महिला के रूप में आप के पास समय और ऊर्जा की सीमाएं होती हैं, और उन की मदद से काम जल्दी और आसानी से निबट सकता है. यह बातचीत शिकायत या नाराजगी के बजाय एक समझदारी और सहयोग पर आधारित होनी चाहिए.

साझा जिम्मेदारी का महत्त्व बताएं

घर के काम केवल महिला की जिम्मेदारी नहीं होते. यह महत्त्वपूर्ण है कि आप का पति यह समझे कि घर और किचन का काम दोनों की जिम्मेदारी है. यह साझेदारी न केवल आप के काम को हलका करेगी, बल्कि आप दोनों को एक टीम की तरह काम करने में भी मदद मिलेगी. इस से आप दोनों को एकदूसरे के साथ अधिक समय बिताने का मौका मिलेगा, जो रिश्ते को भी मजबूत बनाएगा.

काम को बांटने की योजना बनाएं

अपने पति के साथ मिल कर किचन के कामों को बांटने का एक व्यवस्थित तरीका बनाएं. उदाहरण के लिए, आप दोनों इस बात पर सहमत हो सकते हैं कि एक दिन आप खाना बनाएंगी और दूसरे दिन आप का पति सब्जियां काटेगा या सफाई करेगा.

काम बांटने से किचन का बोझ एक व्यक्ति पर नहीं पड़ेगा और दोनों अपनीअपनी जिम्मेदारियों को संतुलित कर सकेंगे.

मदद को एक सहज और प्राकृतिक प्रक्रिया बनाएं

कभीकभी पति किचन में काम करने से घबराते हैं क्योंकि वे इसे मुश्किल या समय लेने वाला मानते हैं. इसलिए, शुरुआत में छोटे और सरल कामों से शुरू करें, जैसे बर्तन निकालना, सब्जियां धोना या टेबल लगाना. जब वे इन कामों में सहज हो जाएंगे, तो धीरेधीरे बड़े कामों में भी मदद करने के लिए तैयार हो सकते हैं.

प्रशंसा और प्रोत्साहन दें

जब भी आप का पति किचन में मदद करे, उन की सराहना जरूर करें. चाहे वे कितना ही छोटा काम क्यों न करें, उन की मदद की प्रशंसा करने से उन्हें और मदद करने की प्रेरणा मिलेगी.

उदाहरण के लिए, अगर उन्होंने कुछ अच्छा किया हो, तो उन्हें बताएं कि उनशकी मदद ने आप का काम कितना आसान कर दिया. सकारात्मक फीडबैक हमेशा प्रेरणा का काम करता है.

काम को मजेदार बनाएं

किचन के काम को उबाऊ न होने दें. आप इसे एक मजेदार गतिविधि बना सकती हैं, जिस में आप दोनों साथ में संगीत सुनते हुए या हंसीमजाक करते हुए काम करें.

इस से किचन का काम बोझिल नहीं लगेगा और आप का पति भी इसे बोझ की तरह नहीं लेगा, बल्कि एक अच्छा अनुभव मानेगा.

संतुलित जीवन का महत्त्व समझाएं

एक वर्किंग महिला के रूप में संतुलित जीवन जीना बहुत जरूरी है. यह बात अपने पति को भी समझाएं कि अगर दोनों मिल कर घर और किचन का काम करेंगे, तो आप के पास एकदूसरे के साथ समय बिताने और अपनी व्यक्तिगत जिंदगी को भी संतुलित रखने का मौका होगा. इस से न केवल घर का काम सुचारु रूप से चलेगा, बल्कि दोनों के बीच समझ और आपसी सहयोग भी बढ़ेगा.

जब पति को यह एहसास होता है कि किचन में मदद करना उन के परिवार की भलाई और सुखशांति के लिए है, तो वे इसे बिना किसी दबाव के करने को तैयार होते हैं.

रूटीन बनाएं

कभीकभी लोग किचन के काम से इसलिए बचते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि यह बहुत समय लेने वाला और थकाऊ है. अगर आप अपने पति को यह दिखा सकें कि रूटीन और टाइम मैनेजमेंट से किचन का काम जल्दी और प्रभावी ढंग से किया जा सकता है, तो वे इसे करने के लिए अधिक इच्छुक हो सकते हैं.

उदाहरण के लिए, आप किचन में समय बचाने के लिए आसान और जल्दी बनने वाली रैसिपी आजमा सकते हैं या फिर एक दिन आपशका पति सब्जी काट सकता है और आप खाना बना सकती हैं. इस से न केवल काम जल्दी निबट जाएगा, बल्कि दोनों को यह भी महसूस होगा कि यह उनशकी साझा जिम्मेदारी है.

रोल माडल्स का उदाहरण दें

कभीकभी अपने आसपास के उदाहरण दिखाशकर भी आप अपने पति को प्रेरित कर सकती हैं. अगर आप के आसपास ऐसे कपल्स हैं जहां पति भी किचन के काम में मदद करता है, तो आप उन उदाहरणों को साझा कर सकती हैं. यह दिखाने से कि समाज में ऐसे भी परिवार हैं जो घर के कामों को साझा कर के एक खुशहाल जीवन जीते हैं, उन्हें प्रेरणा मिल सकती है.

धैर्य और समर्थन

अपने पति को किचन के काम में पूरी तरह शामिल करने में समय लग सकता है. हो सकता है कि शुरुआत में वे झिझकें या काम में कम रुचि दिखाएं, लेकिन धैर्य और लगातार समर्थन से वे धीरेधीरे इस जिम्मेदारी को अपनाने लगेंगे. उन्हें दोषी महसूस कराने के बजाय उन्हें सहयोग और समर्थन दें, ताकि वे इसे स्वाभाविक रूप से अपनाएं.

अपने पति को किचन में मदद करने के लिए तैयार करना एक सकारात्मक और संतुलित घरेलू जीवन की दिशा में एक बड़ा कदम हो सकता है.

कई बार समाज और पारंपरिक सोच के कारण पुरुष किचन के काम में हाथ नहीं बंटाते, लेकिन बदलते समय के साथ यह धारणा भी बदल रही है. जब पतिपत्नी दोनों घर के कामों में मिलकर हाथ बंटाते हैं, तो न केवल घर का माहौल सुखद होता है, बल्कि रिश्ते में भी एक गहरी समझ और सहयोग का भाव विकसित होता है.

बालों में कराने जा रही हैं Rebonding और Smoothing, तो इन बातों का रखें ध्यान

आपके लुक को बदलने में बाल महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. ये सौंदर्य तो बढ़ाते ही हैं, साथ ही व्यक्तित्व को भी आकर्षक बनाते हैं.

 

रिबौंडिंग

सब से पहले बालों की क्वालिटी के बारे में जानकारी होनी चाहिए यानी बाल मोटे, पतले, मीडियम, रफ या फिर डैमेज हैं, क्योंकि जो स्ट्रेट थेरैपी क्रीम इस्तेमाल की जाती है वह बालों की क्वालिटी पर निर्भर करती है. यह जान लेने के बाद बालों में अच्छी तरह शैंपू करें और फिर ड्रायर से सुखा लें.

जब बाल सूख जाएं तो आयरनिंग करें. इस के बाद स्ट्रेट थेरैपी क्रीम सैक्शन बाई सैक्शन ऊपरी बालों की लटों से ले कर नीचे की लटों तक लगाएं. 15 से 20 मिनट बाद एक बाल को खींच कर देखें. यदि बाल स्प्रिंग की तरह घूम रहा हो तो समझ लें कि सल्फर बन्स टूट गए और अगर ऐसा नहीं हुआ तो 5-10 मिनट रुकें.

इस के बाद बालों को अच्छी तरह धो लें और मीडियम हीट पर ड्रायर कर लेयर बाई लेयर आयरनिंग करें. इस के तुरंत बाद न्यूट्रलाइजर सैक्शन बाई सैक्शन उसी प्रकार करें जिस प्रकार स्ट्रेट थेरैपीक्रीम अप्लाई की गई थी. इस दौरान बिलकुल भी न हिलें. 15-20 मिनट बाद बालों को अच्छी तरह धो लें. ठंडा ड्रायर करें. बाल सूख जाएं तो सीरम लगाएं और फिर मास्क.

स्मूदनिंग

पहले बालों को अच्छी तरह शैंपू से धो कर क्रीम अप्लाई करें. जब क्रीम सूख जाए तो बालों को धोए बिना ड्रायर करें. इस के बाद प्रैसिंग करें. इस के 3 दिन बाद अपनी हेयरड्रैसर की सलाह से सिर धो कर ड्रायर करें. अंत में सीरम लगा लें.

ध्यान रहे कि ऐक्चुअल स्मूदनिंग में आयरनिंग नहीं होती है. केवल बालों का टैक्सचर इंपू्रव होता है वैव 50-60% बना रहता है. कुछ लड़कियां स्मूदनिंग करवाती हैं. वे चाहती हैं कि बाल सीधे रहें, तो इस के लिए एक बार आयरनिंग करनी पड़ती है.

सावधानियां

रिबौंडिंग या स्मूदनिंग में इन बातों का ध्यान रखना जरूरी होता है.

स्कूटी न चलाएं.

बाइक के पीछे न बैठें.

बालों को दबाएं या मोड़ें नहीं.

जूड़ा न बनाएं.

रबड़बैंड न लगाएं.

मसाज न करें.

बालों को टाइट न बांधें.

बालों को धोने के बाद रगड़ें नहीं.

कलर न करवाएं. अगर करवाना ही हो तो कम से कम 20 दिन बाद करवाएं.

प्राकृतिक तरीके से कैसे करें देखभाल

खानेपीने का ध्यान रखें.

प्रोटीनयुक्त चीजों का सेवन करें.

पानी अधिक पीएं.

हरी सब्जियां और मौसमी फल ज्यादा से ज्यादा खाएं.

बालों में हफ्ते में 3 बार तेल लगाएं.

बालों को धोने के बाद रगड़ें या झाड़ें नहीं.

टैंशन से बचें.

स्टीम करें (गरम पानी में तौलिया भिगो कर सिर में लपेट लें).

बालों को हमेशा साफ रखें.

लौटते हुए: क्या हुआ सुप्रिया को गलती का एहसास

धनंजयजी का मन जाने का नहीं था, लेकिन सुप्रिया ने आग्रह के साथ कहा कि सुधांशु का नया मकान बना है और उस ने बहुत अनुरोध के साथ गृहप्रवेश के मौके पर हमें बुलाया है तो जाना चाहिए न. आखिर लड़के ने मेहनत कर के यह खुशी हासिल की है, अगर हम नहीं पहुंचे तो दीदी व जीजाजी को भी बुरा लगेगा…

‘‘पर तुम्हें तो पता ही है कि आजकल मेरी कमर में दर्द है, उस पर गरमी का मौसम है, ऐसे में घर से बाहर जाने का मन नहीं करता है.’’

‘‘हम ए.सी. डब्बे में चलेंगे…टिकट मंगवा लेते हैं,’’ सुप्रिया बोली.

‘‘ए.सी. में सफर करने से मेरी कमर का दर्द और बढ़ जाएगा.’’

‘‘तो तुम सेकंड स्लीपर में चलो, …मैं अपने लिए ए.सी. का टिकट मंगवा लेती हूं,’’ सुप्रिया हंसते हुए बोली.

सुप्रिया की बहन का लड़का सुधांशु पहले सरकारी नौकरी में था, पर बहुत महत्त्वाकांक्षी होने के चलते वहां उस का मन नहीं लगा. जब सुधांशु ने नौकरी छोड़ी तो सब को बुरा लगा. उस के पिता तो इतने नाराज हुए कि उन्होंने बोलना ही बंद कर दिया. तब वह अपने मौसामौसी के पास आ कर बोला था, ‘मौसाजी, पापा को आप ही समझाएं…आज जमाना तेजी से आगे बढ़ रहा है, ठीक है मैं उद्योग विभाग में हूं…पर हूं तो निरीक्षक ही, रिटायर होने तक अधिक से अधिक मैं अफसर हो जाऊंगा…पर मैं यह जानता हूं कि जिन की लोन फाइल बना रहा हूं वे तो मुझ से अधिक काबिल नहीं हैं. यहां तक कि उन्हें यह भी नहीं पता होता कि क्या काम करना है और उन की बैंक की तमाम औपचारिकताएं भी मैं ही जा कर पूरी करवाता हूं. जब मैं उन के लिए इतना काम करता हूं, तब मुझे क्या मिलता है, कुछ रुपए, क्या यही मेरा मेहनताना है, दुनिया इसे ऊपरी कमाई मानती है. मेरा इस से जी भर गया है, मैं अपने लिए क्या नहीं कर सकता?’

‘हां, क्यों नहीं, पर तुम पूंजी कहां से लाओगे?’ उस के मौसाजी ने पूछा था.

‘कुछ रुपए मेरे पास हैं, कुछ बाजार से लूंगा. लोगों का मुझ में विश्वास है, बाकी बैंक से ऋण लूंगा.’

‘पर बेटा, बैंक तो अमानत के लिए संपत्ति मांगेगा.’

‘हां, मेरे जो दोस्त साथ काम करना चाहते हैं वे मेरी जमानत देंगे,’ सुधांशु बोला था, ‘पर मौसीजी, मैं पापा से कुछ नहीं लूंगा. हां, अभी मैं जो पैसे घर में दे रहा था, वह नहीं दे पाऊंगा.’

धनंजयजी ने उस के चेहरे पर आई दृढ़ता को देखा था. उस का इरादा मजबूत था. वह दिनभर उन के पास रहा, फिर भोपाल चला गया था. रात को उन्होंने उस के पिता से बात की थी. वह आश्वस्त नहीं थे. वह भी सरकारी नौकरी में रह चुके थे, कहा था, ‘व्यवसाय या उद्योग में सुरक्षा नहीं है या तो बहुत मिल जाएगा या डूब जाएगा.’

खैर, समय कब ठहरा है…सुधांशु ने अपना व्यवसाय शुरू किया तो उस में उस की तरक्की होती ही गई. उस के उद्योग विभाग के संबंध सब जगह उस के काम आए थे. 2-3 साल में ही उस का व्यवसाय जम गया था. पहले वह धागे के काम में लगा था. फैक्टरियों से धागा खरीदता था और उसे कपड़ा बनाने वाली फैक्टरियों को भेजता था. इस में उसे अच्छा मुनाफा मिला. फिर उस ने रेडीमेड गारमेंट में हाथ डाल लिया. यहां भी उस का बाजार का अनुभव उस के काम आया. अब उस ने एक बड़ा सा मकान भोपाल के टी.टी. नगर में बनवा लिया है और उस का गृहप्रवेश का कार्यक्रम था… बारबार सुधांशु का फोन आ रहा था कि मौसीजी, आप को आना ही होगा और धनंजयजी ना नहीं कर पा रहे थे.

‘‘सुनो, भोपाल जा रहे हैं तो इंदौर भी हो आते हैं,’’ सुप्रिया बोली.

‘‘क्यों?’’

‘‘अपनी बेटी रंजना के लिए वहां से भी तो एक प्रस्ताव आया हुआ है. शारदा की मां बता रही थीं…लड़का नगर निगम में सिविल इंजीनियर है, देख भी आएंगे.’’

‘‘रंजना से पूछ तो लिया है न?’’ धनंजय ने पूछा.

‘‘उस से क्या पूछना, हमारी जिम्मेदारी है, बेटी हमारी है. हम जानबूझ कर उसे गड्ढे में नहीं धकेल सकते.’’

‘‘इस में बेटी को गड्ढे में धकेलने की बात कहां से आ गई,’’ धनंजयजी बोले.

‘‘तुम बात को भूल जाते हो…याद है, हम विमल के घर गए थे तो क्या हुआ था. सब के लिए चाय आई. विमल के चाय के प्याले में चम्मच रखी हुई थी. मैं चौंक गई और पूछा, ‘चम्मच क्यों?’ तो विमल बोला, ‘आंटी, मैं शुगर फ्री की चाय लेता हूं…मुझे शुगर तो नहीं है, पर पापा को और बाबा को यह बीमारी थी इसलिए एहतियात के तौर पर…शुगर फ्री लेता हूं, व्यायाम भी करता हूं, आप को रंजना ने नहीं बताया,’ ऐसा उस ने कहा था.’’

‘‘लड़की को बीमार लड़के को दे दो. अरे, अभी तो जवानी है, बाद में क्या होगा? यह बीमारी तो मौत के साथ ही जाती है. मैं ने रंजना को कह दिया था…भले ही विमल बहुत अच्छा है,    तेरे साथ पढ़ालिखा है पर मैं जानबूझ कर यह जिंदा मक्खी नहीं निगल सकती.’’

पत्नी की बात को ‘हूं’ के साथ खत्म कर के धनंजयजी सोचने लगे, तभी यह भोपाल जाने को उत्सुक है, ताकि वहां से इंदौर जा कर रिश्ता पक्का कर सके. अचानक उन्हें अपनी बेटी रंजना के कहे शब्द याद आए, ‘पापा, चलो यह तो विमल ने पहले ही बता दिया…वह ईमानदार है, और वास्तव में उसे कोई बीमारी भी नहीं है, पर मान लें, आप ने कहीं और मेरी शादी कर दी और उस का एक्सीडेंट हो गया, उस का हाथ कट गया…तो आप मुझे तलाक दिलवाएंगे?’

तब वह बेटी का चेहरा देखते ही रह गए थे. उन्हें लगा सवाल वही है, जिस से सब बचना चाहते हैं. हम आने वाले समय को सदा ही रमणीय व अच्छाअच्छा ही देखना चाहते हैं, पर क्या सदा समय ऐसा ही होता है.

‘पापा…फिर तो जो मोर्चे पर जाते हैं, उन का तो विवाह ही नहीं होना चाहिए…उन के जीवन में तो सुरक्षा है ही नहीं,’ उस ने पूछा था.

‘पापा, मान लें, अभी तो कोई बीमारी नहीं है, लेकिन शादी के बाद पता लगता है कि कोई गंभीर बीमारी हो गई है, तो फिर आप क्या करेंगे?’

धनंजयजी ने तब बेटी के सवालों को बड़ी मुश्किल से रोका था. अंतिम सवाल बंदूक की गोली की तरह छूता उन के मन और मस्तिष्क को झकझोर गया था.

पर, सुप्रिया के पास तो एक ही उत्तर था. उसे नहीं करनी, नहीं करनी…वह अपनी जिद पर अडिग थी.

रंजना ने भोपाल जाने में कोई उत्सुकता नहीं दिखाई. वह जानती थी, मां वहां से इंदौर जाएंगी…वहां शारदा की मां का कोई दूर का भतीजा है, उस से बात चल रही है.

स्टेशन पर ही सुधांशु उन्हें लेने आ गया था.

‘‘अरे, बेटा तुम, हम तो टैक्सी में ही आ जाते,’’ धनंजयजी ने कहा.

‘‘नहीं, मौसाजी, मेरे होते आप टैक्सी से क्यों आएंगे और यह सबकुछ आप का ही है…आप नहीं आते तो कार्यक्रम का सारा मजा किरकिरा हो जाता,’’ सुधांशु बोला.

‘‘और मेहमान सब आ गए?’’ सुप्रिया ने पूछा.

‘‘हां, मौसी, मामा भी कल रात को आ गए. उदयपुर से ताऊजी, ताईजी भी आ गए हैं. घर में बहुत रौनक है.’’

‘‘हांहां, क्यों नहीं, तुम सभी के लाड़ले हो और इतना बड़ा काम तुम ने शुरू किया है, सभी को तुम्हारी कामयाबी पर खुशी है, इसीलिए सभी आए हैं,’’ सुप्रिया ने चहकते हुए कहा.

‘‘हां, मौसी, बस आप का ही इंतजार था, आप भी आ गईं.’’

सुधांशु का मकान बहुत बड़ा था. उस ने 4 बेडरूम का बड़ा मकान बनवाया था. उस की पत्नी माधवी सजीधजी सब की खातिर कर रही थी. चारों ओर नौकर लगे हुए थे. बाहर जाने के लिए गाडि़यां थीं. शाम को उस की फैक्टरी पर जाने का कार्यक्रम था.

गृहप्रवेश का कार्यक्रम पूरा हुआ, मकान के लौन में तरहतरह की मिठाइयां, नमकीन, शीतल पेय सामने मेज पर रखे हुए थे पर सुधांशु के हाथ में बस, पानी का गिलास था.

‘‘अरे, सुधांशु, मुंह तो मीठा करो,’’ सुप्रिया बर्फी का एक टुकड़ा लेते हुए उस की तरफ बढ़ी.

‘‘नहीं, मौसी नहीं,’’ उस की पत्नी माधवी पीछे से बोली, ‘‘इन की शुगर फ्री की मिठाई मैं ला रही हूं.’’

‘‘क्या इसे भी…’’

‘‘हां,’’ सुधांशु बोला, ‘‘मौसी रातदिन की भागदौड़ में पता ही नहीं लगा कब बीमारी आ गई. एक दिन कुछ थकान सी लगी. तब जांच करवाई तो पता लगा शुगर की शुरुआत है, तभी से परहेज कर लिया है…दवा भी चलती है, पर मौसी, काम नहीं रुकता, जैसे मशीन चलती है, उस में टूटफूट होती रहती है, तेल, पानी देना पड़ता है, कभी पार्ट्स भी बदलते हैं, वही शरीर का हाल है, पर काम करते रहो तो बीमारी की याद भी नहीं आती है.’’

इतना कह कर सुधांशु खिलखिला कर हंस रहा था और तो और माधवी भी उस के साथ हंस रही थी. उस ने खाना खातेखाते पल्लवी से पूछा, ‘‘जीजी, सुधांशु को डायबिटीज हो गई, आप ने बताया ही नहीं.’’

‘‘सुप्रिया, इस को क्या बताना, क्या छिपाना…बच्चे दिनरात काम करते हैं. शरीर का ध्यान नहीं रखते…बीमारी हो जाती है. हां, दवा लो, परहेज करो. सब यथावत चलता रहता है. तुम तो मिठाई खाओ…खाना तो अच्छा बना है?’’

‘‘हां, जीजी.’’

‘‘हलवाई सुधांशु ने ही बुलवाया है. रतलाम से आया है. बहुत काम करता है. सुप्रिया, हम धनंजयजी के आभारी हैं. सुना है कि उन्होंने ही सुधांशु की सहायता की थी. आज इस ने पूरे घर को इज्जत दिलाई है. पचासों आदमी इस के यहां काम करते हैं…सरकारी नौकरी में तो यह एक साधारण इंस्पेक्टर रह जाता.’’

‘‘नहीं जीजी,…हमारा सुधांशु तो बहुत मेहनती है,’’ सुप्रिया ने टोका.

‘‘हां, पर…हिम्मत बढ़ाने वाला भी साथ होना चाहिए. तुम्हारे जीजा तो इस के नौकरी छोड़ने के पूरे विरोध में थे,’’ पल्लवी बोली.

‘‘अब…’’ सुप्रिया ने मुसकरा कर पूछा.

‘‘वह सामने देखो, कैसे सेठ की तरह सजेधजे बैठे हैं. सुबह होते ही तैयार हो कर सब से पहले फैक्टरी चले जाते हैं. सुधांशु तो यही कहता है कि अब काम करने से पापा की उम्र भी 10 साल कम हो गई है. दिन में 3 चक्कर लगाते हैं, वरना पहले कमरे से भी बाहर नहीं जाते थे.’’

रात का भोजन भी फैक्टरी के मैदान में बहुत जोरशोर से हुआ था. पूरी फैक्टरी को सजाया गया था. बहुत तेज रोशनी थी. शहर से म्यूजिक पार्टी भी आई थी.

धनंजयजी को बारबार अपनी बेटी रंजना की याद आ जाती कि वह भी साथ आ जाती तो कितना अच्छा रहता, पर सुप्रिया की जिद ने उसे भीतर से तोड़ दिया था.

सुबह इंदौर जाने का कार्यक्रम पूर्व में ही निर्धारित हुआ था. पर सुबह होते ही, धनंजयजी ने देखा कि सुप्रिया में इंदौर जाने की कोई उत्सुकता ही नहीं है, वह तो बस, अधिक से अधिक सुधांशु और माधवी के साथ रहना चाह रही थी.

आखिर जब उन से रहा नहीं गया तो शाम को पूछ ही लिया, ‘‘क्यों, इंदौर नहीं चलना क्या? वहां से फोन आया था और कार्यक्रम पूछ रहे थे.’’

सुप्रिया ने उन की बातों पर कोई ध्यान नहीं दिया, वह यथावत अपने रिश्तेदारों से बातचीत में लगी रही.

सुबह ही सुप्रिया ने कहा था, ‘‘इंदौर फोन कर के उन्हें बता दो कि हम अभी नहीं आ पाएंगे.’’

‘‘क्यों?’’ धनंजयजी ने पूछा.

सुप्रिया ने सवाल को टालते हुए कहा, ‘‘शाम को सुधांशु की कार जबलपुर जा रही है. वहां से उस की फैक्टरी में जो नई मशीनें आई हैं, उस के इंजीनियर आएंगे. वह कह रहा था, आप उस से निकल जाएं, मौसाजी को आराम मिल जाएगा. पर कार में ए.सी. है.’’

‘‘तो?’’

‘‘तो तुम्हारी कमर में दर्द हो जाएगा,’’ उस ने हंसते हुए कहा.

धनंजयजी, पत्नी के इस बदले हुए मिजाज को समझ नहीं पा रहे थे.

रास्ते में उन्होंने पूछा, ‘‘इंदौर वालों को क्या कहना है, फिर फोन आया था.’’

‘‘सुनो, सुधांशु को पहले तो डायबिटीज नहीं थी.’’

‘‘हां.’’

‘‘अब देखो, शादी के बाद हो गई है, पर माधवी बिलकुल निश्चिंत है. उसे तो इस की तनिक भी चिंता नहीं है. बस, सुधांशु के खाने और दवा का ध्यान दिन भर रखती है और रहती भी कितनी खुश है…उस ने सभी का इतना ध्यान रखा कि हम सोच भी नहीं सकते थे.’’

धनंजयजी मूकदर्शक की तरह पत्नी का चेहरा देखते रहे, तो वह फिर बोली, ‘‘सुनो, अपना विमल कौन सा बुरा है?’’

‘‘अपना विमल?’’ धनंजयजी ने टोका.

‘‘हां, रंजना ने जिस को शादी के लिए देखा है, गलती हमारी है जो हमारे सामने ईमानदारी से अपने परिवार का परिचय दे रहा है, बीमारी के खतरे से सचेत है, पूरा ध्यान रख रहा है. अरे, बीमारी बाद में हो जाती तो हम क्या कर पाते, वह तो…’’

‘‘यह तुम कह रही हो,’’ धनंजयजी ने बात काटते हुए कहा.

‘‘हां, गलती सब से होती है, मुझ से भी हुई है. यहां आ कर मुझे लगा, बच्चे हम से अधिक सही सोचते हैं,’’…पत्नी की इस सही सोच पर खुशी से उन्होंने पत्नी का हाथ अपने हाथ में ले कर धीरे से दबा दिया.

लड़की के इनकार के डर से मैं प्यार का इजहार नहीं कर पा रहा, मैं क्या करूं?

सवाल

मैं 18 वर्षीय युवक हूं. मैं अभी तक काफी अंतर्मुखी रहा हूं. चूंकि शुरू से लड़कों के स्कूल में पढ़ा हूं, इसलिए लड़कियों के साथ बात करने से घबराता हूं. साल भर से एक लड़की से प्यार करता हूं. लड़की की गली से जब कभी गुजरना होता है तो वह दिखाई पड़ जाती है. मेरे देखने पर वह मुसकराने लगती है. मुझे लगता है वह भी मुझ से प्यार करती है. एकाध बार राह चलते भी उस से मुलाकात हुई है. पर मैं प्यार का इजहार नहीं कर पाया. डरता हूं कि कहीं वह इनकार या कोई बवाल न कर दे. मुझे क्या करना चाहिए?

जवाब

इस उम्र में अपोजिट सैक्स के प्रति आकर्षण होना स्वाभाविक है. पर सिर्फ देखने भर से उसे प्यार समझ लेना उचित नहीं है. यों तो आप की उम्र अपने कैरियर पर ध्यान देने की है, पर आप उक्त लड़की से फ्रैंडशिप करना चाहते हैं, तो इस के लिए आप को स्वयं पहल करनी होगी. उस के बाद ही मालूम चलेगा कि उस की आप में दिलचस्पी है या नहीं.

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साल 1993 में शाहरुख खान की मशहूर थ्रिलर फिल्म ‘बाजीगर’ आई थी. इस फिल्म के नायक और खलनायक शाहरुख ही बने थे. फिल्म ब्लौकबस्टर साबित हुई और शाहरुख खान रातोंरात सुपरस्टार बन गए, जिस के बाद उन के पांव कभी थमे नहीं. इस फिल्म का जिक्र करने का मकसद शाहरुख की बुलंदियों को बताने का नहीं है, बल्कि फिल्म के एक खूबसूरत गाने, ‘छिपाना भी नहीं आता, जताना भी नहीं आता…’ से है जो एक पार्टी में बज रहा होता है. यह गाना आशिकों की साइकोलौजी को दर्शाता है. अब इस गाने के बोल और उस में दिखाए कैरेक्टर हैं ही इतने दिलचस्प कि बात बननी लाजिमी है.
मामला यह है कि इस फिल्म में इंस्पैक्टर करण की भूमिका निभा रहे सिद्धार्थ रे कालेज के दिनों से ही प्रिया (काजोल) से प्यार करते थे. अपनी हथेलियों में प्रिया का नाम गुदवाए जहांतहां घूमा करते थे, चोरीचुपके उसे देखा करते थे, अंदर ही अंदर उसे अपनी प्रियतमा बना चुके थे, लेकिन जनाब कभी समय पर हाल ए दिल का इजहार ही नहीं कर पाए. फिर क्या, अजय शर्मा (शाहरुख) इतने में एंट्री मारते हैं और प्रिया के प्रेम की बाजी मार ले जाते हैं. अब ये करण जनाब पछताते हुए पूरी पार्टी में यही गाना गाते फिर रहे हैं. अजय के हाथों में प्रिया का हाथ देख रहे हैं तो खुद पर अफसोस जताते रह जाते हैं. यह तो है कि अगर करण साहब समय पर प्रिया से प्रेम का इजहार कर देते तो शायद पार्टी में अपना दुखड़ा न सुना रहे होते. हो सकता था इंस्पैक्टर करण ही बाजीगर कहलाए जाते.

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शिकार: क्यों रंजन से नफरत करने लगी काव्या

वह एक बार फिर उस के सामने खड़ा था. लंबाचौड़ा काला भुजंग. आंखों से झांकती भूख. एक ऐसी भूख जिसे कोई भी औरत चुटकियों में ताड़ जाती है. उस आदमी के लंबेचौड़े डीलडौल से उस की सही उम्र का पता नहीं लगता था, पर उस की उम्र 30 से 40 साल के बीच कुछ भी हो सकती थी.

वहीं दूसरी ओर काव्या गोरीचिट्टी, छरहरे बदन की गुडि़या सी दिखने वाली एक भोलीभाली, मासूम सी लड़की थी. मुश्किल से अभी उस ने 20वां वसंत पार किया होगा. कुछ महीने पहले दुख क्या होता है, तकलीफ कैसी होती है, वह जानती तक न थी.

मांबाप के प्यार और स्नेह की शीतल छाया में काव्या बढि़या जिंदगी गुजार रही थी, पर दुख की एक तेज आंधी आई और उस के परिवार के सिर से प्यार, स्नेह और सुरक्षा की वह पिता रूपी शीतल छाया छिन गई.

अभी काव्या दुखों की इस आंधी से अपने और अपने परिवार को निकालने के लिए जद्दोजेहद कर ही रही थी कि एक नई समस्या उस के सामने आ खड़ी हुई.

उस दिन काव्या अपनी नईनई लगी नौकरी पर पहुंचने के लिए घर से थोड़ी दूर ही आई थी कि उस आदमी ने उस का रास्ता रोक लिया था.

एकबारगी तो काव्या घबरा उठी थी, फिर संभलते हुए बोली थी, ‘‘क्या है?’’

वह उसे भूखी नजरों से घूर रहा था, फिर बोला था, ‘‘तू बहुत ही खूबसूरत है.’’

‘‘क्या मतलब…?’’ उस की आंखों से झांकती भूख से डरी काव्या कांपती आवाज में बोली.

‘‘रंजन नाम है मेरा और खूबसूरत चीजें मेरी कमजोरी हैं…’’ उस की हवस भरी नजरें काव्या के खूबसूरत चेहरे और भरे जिस्म पर फिसल रही थीं, ‘‘खासकर खूबसूरत लड़कियां… मैं जब भी उन्हें देखता हूं, मेरा दिल उन्हें पाने को मचल उठता है.’’

‘‘क्या बकवास कर रहे हो…’’ अपने अंदर के डर से लड़ती काव्या कठोर आवाज में बोली, ‘‘मेरे सामने से हटो. मुझे अपने काम पर जाना है.’’

‘‘चली जाना, पर मेरे दिल की प्यास तो बुझा दो.’’

काव्या ने अपने चारों ओर निगाह डाली. इक्कादुक्का लोग आजा रहे थे. लोगों को देख कर उस के डरे हुए दिल को थोड़ी राहत मिली. उस ने हिम्मत कर के अपना रास्ता बदला और रंजन से बच कर आगे निकल गई.

आगे बढ़ते हुए भी उस का दिल बुरी तरह धड़क रहा था. ऐसा लगता था जैसे रंजन आगे बढ़ कर उसे पकड़ लेगा.

पर ऐसा कुछ नहीं हुआ. उस ने कुछ दूरी तय करने के बाद पीछे मुड़ कर देखा. रंजन को अपने पीछे न पा कर उस ने राहत की सांस ली.

काव्या लोकल ट्रेन पकड़ कर अपने काम पर पहुंची, पर उस दिन उस का मन पूरे दिन अपने काम में नहीं लगा. वह दिनभर रंजन के बारे में ही सोचती रही. जिस अंदाज से उस ने उस का रास्ता रोका था, उस से बातें की थीं, उस से इस बात का आसानी से अंदाजा लगाया जा सकता था कि रंजन की नीयत ठीक नहीं थी.

शाम को घर पहुंचने के बाद भी काव्या थोड़ी डरी हुई थी, लेकिन फिर उस ने यह सोच कर अपने दिल को हिम्मत बंधाई कि रंजन कोई सड़कछाप बदमाश था और वक्ती तौर पर उस ने उस का रास्ता रोक लिया था.

आगे से ऐसा कुछ नहीं होने वाला. लेकिन काव्या की यह सोच गलत साबित हुई. रंजन ने आगे भी उस का रास्ता बारबार रोका. कई बार उस की इस हरकत से काव्या इतनी परेशान हुई कि उस का जी चाहा कि वह सबकुछ अपनी मां को बता दे, लेकिन यह सोच कर खामोश रही कि इस से पहले से ही दुखी उस की मां और ज्यादा परेशान हो जाएंगी. काश, आज उस के पापा जिंदा होते तो उसे इतना न सोचना पड़ता.

पापा की याद आते ही काव्या की आंखें नम हो उठीं. उन के रहते उस का परिवार कितना खुश था. मम्मीपापा और उस का एक छोटा भाई. कुल 4 सदस्यों का परिवार था उस का.

उस के पापा एक ट्रांसपोर्ट कंपनी में काम करते थे और उन्हें जो पैसे मिलते थे, उस से उन का परिवार मजे में चल रहा था. जहां काव्या अपने पापा की दुलारी थी, वहीं उस की मां उस से बेहद प्यार करती थीं.

उस दिन काव्या के पापा अपनी कंपनी के काम के चलते मोटरसाइकिल से कहीं जा रहे थे कि पीछे से एक कार वाले ने उन की मोटरसाइकिल को तेज टक्कर मार दी.

वे मोटरसाइकिल से उछले, फिर सिर के बल सड़क पर जा गिरे. उस से उन के सिर के पिछले हिस्से में बेहद गंभीर चोट लगी थी.

टक्कर लगने के बाद लोगों की भीड़ जमा हो गई. भीड़ के दबाव के चलते कार वाले ने उस के घायल पापा को उठा कर नजदीक के एक निजी अस्पताल में भरती कराया, फिर फरार हो गया.

पापा की जेब से मिले आईकार्ड पर लिखे मोबाइल से अस्पताल वालों ने जब उन्हें फोन किया तो वे बदहवास अस्पताल पहुंचे, पर वहां पहुंच कर उन्होंने जिस हालत में उन्हें पाया, उसे देख कर उन का कलेजा मुंह को आ गया.

उस के पापा कोमा में जा चुके थे. उन की आंखें तो खुली थीं, पर वे किसी को पहचान नहीं पा रहे थे.

फिर शुरू हुआ मुश्किलों का न थमने वाला एक सिलसिला. डाक्टरों ने बताया कि पापा के सिर का आपरेशन करना होगा. इस का खर्च उन्होंने ढाई लाख रुपए बताया.

किसी तरह रुपयों का इंतजाम किया गया. पापा का आपरेशन हुआ, पर इस से कोई खास फायदा न हुआ. उन्हें विभिन्न यंत्रों के सहारे एसी वार्ड में रखा गया था, जिस की एक दिन की फीस 10,000 रुपए थी.

धीरेधीरे घर का सारा पैसा खत्म होने लगा. काव्या की मां के गहने तक बिक गए, फिर नौबत यहां तक आई कि उन के पास के सारे पैसे खत्म हो गए.

बुरी तरह टूट चुकी काव्या की मां जब अपने बच्चों को यों बिलखते देखतीं तो उन का कलेजा मुंह को आ जाता, पर अपने बच्चों के लिए वे अपनेआप को किसी तरह संभाले हुए थीं. कभीकभी उन्हें लगता कि पापा की हालत में सुधार हो रहा है तो उन के दिल में उम्मीद की किरण जागती, पर अगले ही दिन उन की हालत बिगड़ने लगती तो यह आस टूट जाती.

डेढ़ महीना बीत गया और अब ऐसी हालत हो गई कि वे अस्पताल के एकएक दिन की फीस चुकाने में नाकाम होने लगे. आपस में रायमशवरा कर उन्होंने पापा को सरकारी अस्पताल में भरती कराने का फैसला किया.

पापा को ले कर सरकारी अस्पताल गए, पर वहां बैड न होने के चलते उन्हें एक रात बरामदे में गुजारनी पड़ी. वही रात पापा के लिए कयामत की रात साबित हुई. काव्या के पापा की सांसों की डोर टूट गई और उस के साथ ही उम्मीद की किरण हमेशा के लिए बुझ गई.

फिर तो उन की जिंदगी दुख, पीड़ा और निराशा के अंधकार में डूबती चली गई. तब तक काव्या एमबीए का फाइनल इम्तिहान दे चुकी थी.

बुरे हालात को देखते हुए और अपने परिवार को दुख के इस भंवर से निकालने के लिए काव्या नौकरी की तलाश में निकल पड़ी. उसे एक प्राइवेट बैंक में 20,000 रुपए की नौकरी मिल गई और उस के परिवार की गाड़ी खिसकने लगी. तब उस के छोटे भाई की पढ़ाई का आखिरी साल था. उस ने कहा कि वह भी कोई छोटीमोटी नौकरी पकड़ लेगा, पर काव्या ने उसे सख्ती से मना कर दिया और उस से अपनी पढ़ाई पूरी करने को कहा.

20 साल की उम्र में काव्या ने अपने नाजुक कंधों पर परिवार की सारी जिम्मेदारी ले ली थी, पर इसे संभालते हुए कभीकभी वह बुरी तरह परेशान हो उठती और तब वह रोते हुए अपनी मां से कहती, ‘‘मम्मी, आखिर पापा हमें छोड़ कर इतनी दूर क्यों चले गए जहां से कोई वापस नहीं लौटता,’’ और तब उस की मां उसे बांहों में समेटते हुए खुद रो पड़तीं.

धीरेधीरे दुख का आवेग कम हुआ और फिर काव्या का परिवार जिंदगी की जद्दोजेहद में जुट गया.

समय बीतने लगा और बीतते समय के साथ सबकुछ एक ढर्रे पर चलने लगा तभी यह एक नई समस्या काव्या के सामने आ खड़ी हुई.

काव्या जानती थी कि बड़ी मुश्किल से उस की मां और छोटे भाई ने उस के पापा की मौत का गम सहा है. अगर उस के साथ कुछ हो गया तो वे यह सदमा सहन नहीं कर पाएंगे और उस का परिवार, जिसे संभालने की वह भरपूर कोशिश कर रही है, टूट कर बिखर जाएगा.

काव्या ने इस बारे में काफी सोचा, फिर इस निश्चय पर पहुंची कि उसे एक बार रंजन से गंभीरता से बात करनी होगी. उसे अपनी जिंदगी की परेशानियां बता कर उस से गुजारिश करनी होगी

कि वह उसे बख्श दे. उम्मीद तो कम थी कि वह उस की बात समझेगा, पर फिर भी उस ने एक कोशिश करने का मन बना लिया.

अगली बार जब रंजन ने काव्या का रास्ता रोका तो वह बोली, ‘‘आखिर तुम मुझ से चाहते क्या हो? क्यों बारबार मेरा रास्ता रोकते हो?’’

‘‘मैं तुम्हें चाहता हूं,’’ रंजन उस के खूबसूरत चेहरे को देखता हुआ बोला, ‘‘मेरा यकीन करो. मैं ने जब से तुम्हें देखा है, मेरी रातों की नींद उड़ गई है. आंखें बंद करता हूं तो तुम्हारा खूबसूरत चेहरा सामने आ जाता है.’’

‘‘सड़क पर बात करने से क्या यह बेहतर नहीं होगा कि हम किसी रैस्टोरैंट में चल कर बात करें.’’

काव्या के इस प्रस्ताव पर पहले तो रंजन चौंका, फिर उस की आंखों में एक अनोखी चमक जाग उठी. वह जल्दी से बोला, ‘‘हांहां, क्यों नहीं.’’

रंजन काव्या को ले कर सड़क के किनारे बने एक रैस्टोरैंट में पहुंचा, फिर बोला, ‘‘क्या लोगी?’’

‘‘कुछ नहीं.’’

‘‘कुछ तो लेना होगा.’’

‘‘तुम्हारी जो मरजी मंगवा लो.’’

रंजन ने काव्या और अपने लिए कौफी मंगवाईं और जब वे कौफी पी चुके तो वह बोला, ‘‘हां, अब कहो, तुम क्या कहना चाहती हो?’’

‘‘देखो, मैं उस तरह की लड़की नहीं हूं जैसा तुम समझते हो,’’ काव्या ने गंभीर लहजे में कहना शुरू किया, ‘‘मैं एक मध्यम और इज्जतदार परिवार से हूं, जहां लड़की की इज्जत को काफी अहमियत दी जाती है. अगर उस की इज्जत पर कोई आंच आई तो उस का और उस के परिवार का जीना मुश्किल हो जाता है.

‘‘वैसे भी आजकल मेरा परिवार जिस मुश्किल दौर से गुजर रहा है, उस में ऐसी कोई बात मेरे परिवार की बरबादी का कारण बन सकती है.’’

‘‘कैसी मुश्किलों का दौर?’’ रंजन ने जोर दे कर पूछा.

काव्या ने उसे सबकुछ बताया, फिर अपनी बात खत्म करते हुए बोली, ‘‘मेरी मां और भाई बड़ी मुश्किल से पापा की मौत के गम को बरदाश्त कर पाए हैं, ऐसे में अगर मेरे साथ कुछ हुआ तो मेरा परिवार टूट कर बिखर जाएगा…’’ कहतेकहते काव्या की आंखों में आंसू आ गए और उस ने उस के आगे हाथ जोड़ दिए, ‘‘इसलिए मेरी तुम से विनती है कि तुम मेरा पीछा करना छोड़ दो.’’

पलभर के लिए रंजन की आंखों में दया और हमदर्दी के भाव उभरे, फिर उस के होंठों पर एक मक्कारी भरी मुसकान फैल गई.

रंजन काव्या के जुड़े हाथ थामता हुआ बोला, ‘‘मेरी बात मान लो, तुम्हारी सारी परेशानियों का खात्मा हो जाएगा. मैं तुम्हें पैसे भी दूंगा और प्यार भी. तू रानी बन कर राज करेगी.’’

काव्या को समझते देर न लगी कि उस के सामने बैठा आदमी इनसान नहीं, बल्कि भेडि़या है. उस के सामने रोने, गिड़गिड़ाने और दया की भीख मांगने का कोई फायदा नहीं. उसे तो उसी की भाषा में समझाना होगा. वह मजबूरी भरी भाषा में बोली, ‘‘अगर मैं ने तुम्हारी बात मान ली तो क्या तुम मुझे बख्श दोगे?’’

‘‘बिलकुल,’’ रंजन की आंखों में तेज चमक जागी, ‘‘बस, एक बार मुझे अपने हुस्न के दरिया में उतरने का मौका दे दो.’’

‘‘बस, एक बार?’’

‘‘हां.’’

‘‘ठीक है,’’ काव्या ने धीरे से अपना हाथ उस के हाथ से छुड़ाया, ‘‘मैं तुम्हें यह मौका दूंगी.’’

‘‘कब?’’

‘‘बहुत जल्द…’’ काव्या बोली, ‘‘पर, याद रखो सिर्फ एक बार,’’ कहने के बाद काव्या उठी, फिर रैस्टोरैंट के दरवाजे की ओर चल पड़ी.

‘तुम एक बार मेरे जाल में फंसो तो सही, फिर तुम्हारे पंख ऐसे काटूंगा कि तुम उड़ने लायक ही न रहोगी,’ रंजन बुदबुदाया.

रात के 12 बजे थे. काव्या महानगर से तकरीबन 3 किलोमीटर दूर एक सुनसान जगह पर एक नई बन रही इमारत की 10वीं मंजिल की छत पर खड़ी थी. छत के चारों तरफ अभी रेलिंग नहीं बनी थी और थोड़ी सी लापरवाही बरतने के चलते छत पर खड़ा कोई शख्स छत से नीचे गिर सकता था.

काव्या ने इस समय बहुत ही भड़कीले कपड़े पहन रखे थे जिस से उस की जवानी छलक रही थी. इस समय उस की आंखों में एक हिंसक चमक उभरी हुई थी और वह जंगल में शिकार के लिए निकले किसी चीते की तरह चौकन्नी थी.

अचानक काव्या को किसी के सीढि़यों पर चढ़ने की आवाज सुनाई पड़ी. उस की आंखें सीढि़यों की ओर लग गईं.

आने वाला रंजन ही था. उस की नजर जब कयामत बनी काव्या पर पड़ी, तो उस की आंखों में हवस की तेज चमक उभरी. वह तेजी से काव्या की ओर लपका. पर उस के पहले कि वह काव्या के करीब पहुंचे, काव्या के होंठों पर एक कातिलाना मुसकान उभरी और वह उस से दूर भागी.

‘‘काव्या, मेरी बांहों में आओ,’’ रंजन उस के पीछे भागता हुआ बोला.

‘‘दम है तो पकड़ लो,’’ काव्या हंसते हुए बोली.

काव्या की इस कातिल हंसी ने रंजन की पहले से ही भड़की हुई हवस को और भड़का दिया. उस ने अपनी रफ्तार तेज की, पर काव्या की रफ्तार उस से कहीं तेज थी.

थोड़ी देर बाद हालात ये थे कि काव्या छत के किनारेकिनारे तेजी से भाग रही थी और रंजन उस का पीछा कर रहा था. पर हिरनी की तरह चंचल काव्या को रंजन पकड़ नहीं पा रहा था.

रंजन की सांसें उखड़ने लगी थीं और फिर वह एक जगह रुक कर हांफने लगा.

इस समय रंजन छत के बिलकुल किनारे खड़ा था, जबकि काव्या ठीक उस के सामने खड़ी हिंसक नजरों से उसे घूर रही थी.

अचानक काव्या तेजी से रंजन की ओर दौड़ी. इस से पहले कि रंजन कुछ समझ सके, उछल कर अपने दोनों पैरों की ठोकर रंजन की छाती पर मारी.

ठोकर लगते ही रंजन के पैर उखड़े और वह छत से नीचे जा गिरा. उस की लहराती हुई चीख उस सुनसान इलाके में गूंजी, फिर ‘धड़ाम’ की एक तेज आवाज हुई. दूसरी ओर काव्या विपरीत दिशा में छत पर गिरी थी.

काव्या कई पलों तक यों ही पड़ी रही, फिर उठ कर सीढि़यों की ओर दौड़ी. जब वह नीचे पहुंची तो रंजन को अपने ही खून में नहाया जमीन पर पड़ा पाया. उस की आंखें खुली हुई थीं और उस में खौफ और हैरानी के भाव ठहर कर रह गए थे. शायद उस ने सपने में भी नहीं सोचा था कि उस की मौत इतनी भयानक होगी.

काव्या ने नफरत भरी एक नजर रंजन की लाश पर डाली, फिर अंधेरे में गुम होती चली गई.

आलिया ही नहीं ये ऐक्ट्रैसेस भी हुई ऊप्स मोमेंट का शिकार, रिवीलिंग ड्रैस पहनने से पहले जानें ये टिप्स

बौलीवुड ऐक्ट्रैसेस खूबसूरत दिखने के लिए अपनी फैन फौलोइंग बढ़ाने के लिए क्याक्या नहीं करती. ऐक्टिंग से लेकर ड्रैसिंग तक, हर एक चीज का उन्हें ध्यान रखना पड़ता है. इसके अलावा ऐक्ट्रैसेस  कोई भी ड्रैसेज कैरी करती हैं, तो वो फैशन बन जाता है.

फैशनेबल दिखने के लिए बौलीवुड ऐक्ट्रैसेस पहनती हैंं अजीबोगरीब कपड़े

फैशन और लाइमलाइट में बने रहने के लिए बौलीवुड डीवाज अजीबोगरीब कपड़े पहनती हैं. कई बार ये फैशन उन पर भारी भी पड़ जाता है और उन्हें पब्लिकली शर्मिंदा भी होना पड़ता है. कई ऐक्ट्रैसेस हैं, जो अपनी आउटफिट की वजह से ही ऊप्स मोमेंट का शिकार होती है. हाल ही में आलिया भट्ट का एक वीडियो सोशल मीडिया पर सामने आया है. जिसमें ब्लैक कलर की लेदर ड्रैस में नजर आ रही हैं. ऐक्ट्रैस ने रुककर कैमरे के लिए पोज भी दिया है. हौल्टर नेक की आलिया ने जो ड्रैस पहनी हुई थी, उस पर एक स्लिक बन भी बना हुआ था. आलिया अपने लुक को कम्पलीट करने के लिए मिनमल मेकअप भी किया था. ऐक्ट्रैस इस ड्रैस में बेहद खूबसूरत नजर आ रही थी, लेकिन गाड़ी से उतरते समय आलिया ऊप्स मोमैंट का शिकार हुई, जो कैमरे में साफ दिखाई दे रहा है.

सोशल मीडिया पर फैंस को आलिया का ये रूप जरा भी पसंद नहीं आया और वो कमेंट करने लगे. हालांकि कुछ यूजर्स ने ऐक्ट्रैस की तारिफ भी की तो वहीं कुछ लोगों ने आलिया की ड्रैस को खराब बताया.

आलिया के अलावा ये ऐक्ट्रैसेस भी हुईं ऊप्स मोमेंट का शिकार

दिशा पटानी

दिशा पटानी अपनी क्यूट अंदाज के कारण फैंस के दिल पर राज करती हैं. वह अपनी दमदार ऐक्टिंग के लिए भी जानी जाती है, लेकिन वह कई बार उप्स मोमेंट का शिकार हो चुकी हैं. उनका एक वीडियो सामने आया था जिसमें दिशा पैपराजी को पोज दे रही होती हैं कि तभी तेज हवा चलने के कारण उनका टौप उड़ने लगता है, ऐसे में दिशा अनकम्फर्टेबल हो जाती है, वो अपने टौप को संभालते हुए गाड़ी में जाकर बैठ जाती है. ये वीडियो सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुआ था, लोगों ने भद्दे कमेंट्स भी किए थे.

अंकिता लोखंडे

पौपुलर ऐक्ट्रैस अंकिता लोखंडे भी इस लिस्ट में शामिल है. वो भी अपनी ड्रैस की वजह से ऊप्स मोमेंट का शिकार हो चुकी हैं. दरअसल, एक अवार्ड शो में अंकिता लोखंडे अपने पति के साथ पहुंची थी. उन्होंने बहुत ही डीपनेक ड्रैस पहनी थी, जिसकी वजह से झुकते समय अंकिता को ऊप्स मोमेंट का सामना करना पड़ा.

नोरा फतेही 

नोरा फतेही हर ड्रैसेज में ग्लैमरस नजर आती हैं, लेकिन कई बार ऐक्ट्रैस ऐसी ड्रैस पहन लेती हैं, जिससे उन्हें ऊप्स मोमेंट का सामना करना पड़ता है. जब वह अपने गाने बड़ा पछताओंगे के  सक्सेस पार्टी में  पहुंची थी, जहां नोरा उप्स मोमेंट का शिकार हुई थीं.

ऐक्ट्रैसेज कुछ भी पहनती हैं, आम लड़कियां भी उनकी कौपी करने की कोशिश करती हैं. अगर ऐक्ट्रैस की तरह उनको ड्रैसेज मिल गया तो उन्हें लगता है कि वो सबसे फैशनेबल दिखेंगी, लेकिन आप उस तरह का ड्रैस पहनें जो आपके बौडी पर सूट करे. कम्फर्टेबल  ड्रैस पहनने आप कौन्फिडैंट नजर आएंगी और आपकी खूबसूरती भी बढ़ेगी.

जानें ऊप्स मोमेंट से कैसे बचें 

  • छोटी ड्रैस या डीपनेक ड्रैस सही तरीके से पहना जाए तो किसी भी तरीके के ऊप्स मोमेंट से बचा जा सकता है.
  • अगर आप शौर्ट ड्रैस पहनने जा रही हैं, तो हमेशा अंडरगार्मेट्स का ख्याल रखें.
  • शौर्ट ड्रेस के साथ न्यूड शेड या फिर स्किन कलर की अंडर गार्मेट्स जरूर कैरी करें.
  • अगर आपका ड्रैस उठनेबैठने के दौरान स्ट्रैच भी होती है, तो किसी भी तरह के ऊप्स मोमेंट से बच सकती हैं.
  • छोटी और टाइट फिटिंग ड्रेस पहनने के दौरान लेजर कट, थौन्ग्स, लैस वाली अंडरवियर और स्ट्रैपलेस बौडीसूट कैरी कर सकती हैं.
  • अगर आप ट्रांसपैरेंट टौपवियर या डीपनेक ड्रैस पहन रही हैं, तो स्ट्रैपलेस ब्रा पहन सकती हैं.
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