चेहरे पर ब्रशों की कलाकारी

चेहरे रूपी कैनवस पर मेकअप के लिए बाजार में ब्रशों की भरमार है. अत: किस सौंदर्य प्रसाधन के साथ कौन सा ब्रश उपयोगी है, यह बता रही हैं सौंदर्य विशेषज्ञा भारती तनेजा. 

अच्छे ब्रश की खासीयत क्या है? पूछने पर भारती तनेजा ने बताया कि कास्मेटिक प्रसाधनों के लिए प्रयोग किए जाने वाले ब्रश ऐसे होने चाहिए जिन की टिप आगे से पतली हो, साथ ही वे मुलायम होने चाहिए और उन्हें जब काम करने के दौरान छोड़ें तो वे पुन: अपने पुराने आकार में आ जाएं. ब्रश के प्रयोग के दौरान उस के धागे नहीं निकलने चाहिए.

सौंदर्य प्रसाधनों के लिए प्रयोग में लाए जाने वाले ब्रश विभिन्न आकारप्रकार के होते हैं. मसलन, नेलआर्ट के लिए पतला ब्रश प्रयोग में आएगा तो मस्कारा लगाने के लिए पंखे के आकार वाला ब्रश. यानी सभी कार्यों के लिए अलगअलग ब्रश हैं.

नेलआर्ट

नेलआर्ट के लिए मुख्य रूप से 2 ब्रशों का प्रयोग किया जाता है. इन की विशेषता यह है कि एक ब्रश में सिर्फ 4-5 लंबे धागे होते हैं जबकि दूसरे ब्रश के धागे थोड़े ज्यादा होते हैं तथा उस के धागों की लंबाई पहले वाले ब्रश की अपेक्षा कम होती है. कम व लंबे धागों वाले ब्रश को नाखूनों पर सीधी रेखाएं खींचने के लिए प्रयोग में लाते हैं, जबकि अधिक धागों व कम लंबाई वाले ब्रश से जिगजैग रेखाएं खींची जाती हैं.

आईलाइनर ब्रश

ये ब्रश थोड़े छोटे होते हैं व इन को फोल्ड भी किया जा सकता है. आंखों के नीचे बरौनियों के बिलकुल पास व पलकों के ऊपर आईलाइनर ब्रश का प्रयोग किया जाता है.

पंख के आकार वाला ब्रश

यह ब्रश बिलकुल पंखे की तरह होता है और इस में छोटी सी कंघी भी लगी होती है. मस्कारा सधे हाथों से बरौनियों पर लगाया जाता है ताकि वे आपस में चिपकें नहीं. मस्कारा सूखने के बाद छोटी सी कंघी को बरौनियों पर फेरते हैं ताकि वे अलगअलग हो जाएं.

आईशैडो ब्रश

आईशैडो ब्रश की टिप प्लास्टिक व स्पंज की होती है. यह टिप हटाई जा सकती है. एक ब्रश के साथ 5 टिप एक्स्ट्रा मिलती हैं ताकि जरूरत पड़ने पर दूसरी टिप लगाई जा सके.

लिपस्टिक ब्रश

ये ब्रश छोटे व फोल्डिंग होते हैं. इन की टिप छोटी व नुकीली होती है. ये 2 तरह के होते हैं, एक पतला, जिस से आउटलाइन बनाने का काम किया जाता है व दूसरे से होंठों के अंदर रंग भरा जाता है. इन ब्रशों का फायदा यह भी होता है कि इन पर लिपस्टिक लगा कर पर्स में रख सकते हैं. ये फोल्ड हो जाते हैं.

ब्लशआन ब्रश

ये ब्रश 2 प्रकार के होते हैं. एक मोटा व एक पतला होता है.

पाउडर ब्रश

यह ब्रश खूब मोटा व घने धागों वाला होता है व इस की मूठ प्लास्टिक की होती है. फेस पर पाउडर लगाने के लिए स्पंज की जगह इस का प्रयोग किया जाता है. इस ब्रश से बालों की कटिंग के बाद गरदन पर गिरे बालों को भी झाड़ा जा सकता है.

राजमा कबाब विद ग्रीन डिप कर्ड

सामग्री

3/4 कप कटा प्याज द्य 2 बड़े चम्मच घी 2 बड़े चम्मच बारीक कटा अदरक द्य 11/2 छोटे चम्मच बारीक कटी हरीमिर्च द्य 1/4 छोटा चम्मच हलदी पाउडर द्य 1/2 कप पनीर

1/2 कप भीगा, उबला और मैश किया राजमा 3/4 कप उबला, छिला और मैश किया आलू द्य 1 बड़ा चम्मच कटी धनियापत्ती द्य 1/2 छोटा चम्मच गरममसाला द्य 1 बड़ा चम्मच तेल  नमक स्वादानुसार.

विधि

कड़ाही में तेल गरम कर धीमी आंच पर प्याज को सुनहरा भूरा होने तक तलें. फिर तेल सोखने वाले पेपर पर रख कर एक तरफ रख दें. अब एक पैन में घी गरम करें और इस में अदरक, हरीमिर्च डाल कर 30 सैकंड भूनें. अब बाकी बची सभी सामग्री को तेल में 3-4 मिनट पकाएं. फिर इस मिश्रण को 5 बराबर भागों में बांट कर हरेक से चपटे गोल कबाब बना लें. अब कड़ाही में तेल डाल कर इन्हें मध्यम आंच पर सुनहराभूरा होने तक दोनों तरफ से तलें और तेल सोखने वाले पेपर पर रख कर डिप के साथ गरमगरम परोसें.

डिप के लिए

1 कप दही, 1 गुच्छा धनियापत्ती, 1 छोटा चम्मच कालानमक, 1 नीबू, 1 पीस आइसबर्ग लैट्यूस, 1 कप इमली का गूदा, 1 कप चीनी, 1 छोटा चम्मच जीरा पाउडर और नमक स्वादानुसार लें. इस सारी सामग्री को मिला कर एक बाउल में डिप तैयार कर लें.

जल बचत महा बचत

आज पूरा विश्व जल संकट के दौर से गुजर रहा है. विश्व के विचारकों का मानना है कि आने वाले समय में वर्तमान समय से भी बड़ा जल संकट दुनिया के सामने होने वाला है. ऐसी स्थिति में किसी की कही यह बात याद आती है कि दुनिया का चौथा विश्वयुद्ध जल के कारण होगा. यदि हम भारत के संदर्भ में बात करें तो भी हालात चिंताजनक हैं. हमारे देश में जल संकट की भयावह स्थिति है, इस के बावजूद हम लोगों में जल के प्रति चेतना जाग्रत नहीं हुई है. अगर समय रहते देश में जल के प्रति चेतना की भावना पैदा नहीं हुई तो आने वाली पीढि़यां जल के अभाव में नष्ट हो जाएंगी. हम इन छोटीछोटी बातों पर गौर करें तो जल संकट की स्थिति से निबट सकते हैं.

विकसित देशों में जल रिसाव 7 से 15% तक होता है, जबकि भारत में 20 से 25% तक. इस का सीधा मतलब यह है कि अगर मौनिटरिंग उचित तरीके से हो और जनता की शिकायतों पर तुरंत कार्यवाही हो साथ ही उपलब्ध संसाधनों का समुचित प्रबंधन व उपयोग किया जाए तो हम बड़ी मात्रा में होने वाले जल रिसाव को रोक सकते हैं.

स्थिति पर नियंत्रण जरूरी

विकसित देशों में जल राजस्व का रिसाव 2 से 8% तक है, जबकि भारत में यह 10 से 20% तक है यानी इस देश में पानी का बिल भरने की मनोवृत्ति आम जन में नहीं है और साथ ही सरकारी स्तर पर भी प्रतिबंधात्मक या कठोर कानून के अभाव के कारण या यों कहें कि प्रशासनिक शिथिलता के कारण बहुत ज्यादा मात्रा में जल का रिसाव हो रहा है. अगर देश का नागरिक अपने राष्ट्र के प्रति कर्तव्य की भावना रखते हुए समय पर बिल का भुगतान करे तो इस स्थिति से निबटा जा सकता है, साथ ही संस्थागत स्तर पर प्रखर व प्रबल प्रयास हो तो इस स्थिति पर नियंत्रण पाया जा सकता है.

जल का अपव्यय

प्रत्येक घर में चाहे गांव हो या शहर पानी के लिए नल जरूर होता है और प्राय: यह देखा गया है कि उस नल के प्रति लोगों में अनदेखा सा भाव होता है. ज्यादातर नल टपकते रहते हैं और किसी भी व्यक्ति का ध्यान इस ओर नहीं जाता है. प्रति सैकंड नल से टपकती जल बूंद से एक दिन में 17 लिटर जल का अपव्यय होता है. इस तरह एक क्षेत्र विशेष में 200 से 500 लिटर प्रतिदिन जल का रिसाव होता है. यह आंकड़ा देश के संदर्भ में देखा जाए तो हजारों लिटर जल सिर्फ टपकते नल से ही बरबाद हो जाता है. अब अगर इस टपकते नल के प्रति संवेदना उत्पन्न हो जाए और जल के प्रति अपनत्व का भाव आ जाए तो हम हजारों लिटर जल की बरबादी को रोक सकते हैं.

कुछ सूक्ष्म दैनिक उपयोग की बातों पर ध्यान दे कर जल की बरबादी को रोका जा सकता है:

काफी लोगों की आदत होती है कि दाढ़ी बनाते वक्त नल को खुला रखते हैं, ऐसा कर के ऐसे लोग 11 लिटर पानी बरबाद करते हैं. जबकि वे यह काम 1 मग ले कर करें तो सिर्फ 1 लिटर में हो सकता है और प्रति व्यक्ति 10 लिटर पानी की बचत हो सकती है.

फुहारे से या नल से सीधा स्नान करने पर लगभग 180 लिटर पानी का प्रयोग होता है, जबकि बालटी से स्नान पर सिर्फ 18 लिटर पानी का यानी हम बालटी से स्नान कर के प्रतिदिन 182 लिटर पानी की बचत प्रति व्यक्ति के हिसाब से कर सकते हैं.

दंत मंजन करते वक्त नल खोल कर रखने की आदत से 33 लिटर पानी व्यर्थ बहता है, जबकि 1 मग में पानी ले कर दंत मंजन किया जाए तो सिर्फ 1 लिटर पानी ही खर्च होता है और प्रति व्यक्ति 32 लिटर पानी की बचत प्रतिदिन की जा सकती है.

शौचालय में फ्लश टैंक का उपयोग करने में एक बार में 13 लिटर पानी का प्रयोग होता है, जबकि यही काम छोटी बालटी से किया जाए तो सिर्फ 4 लिटर पानी से काम हो जाता है. ऐसा कर के हम हर बार 9 लिटर पानी की बचत कर सकते हैं.

महिलाएं जब घर में कपड़े धोती हैं तो नल खुला रखना आम बात है. ऐसा करते वक्त 166 लिटर पानी बरबाद होता है, जबकि एक बालटी में पानी ले कर कपड़े धोने पर 18 लिटर पानी में ही यह काम हो जाता है यानी थोड़ी सी जिम्मेदारी के साथ प्रतिदिन 148 लिटर पानी प्रति घर के हिसाब से बचाया जा सकता है.

एक लौन में बेहिसाब पानी देने में 10 से 12 किलोलिटर पानी काम आता है और इतने पाने से 1 छोटे परिवार हेतु 1 माह का जल उपलब्ध हो सकता है. राष्ट्र के प्रति मानव सभ्यता के प्रति जिम्मेदारी के साथ सोचना आम आदमी को है कि वह कैसे जल बचत में अपनी महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारी निभा सकता है. याद रखें, पानी पैदा नहीं किया जा सकता है. यह प्राकृतिक संसाधन है, जिस की उत्पत्ति मानव के हाथों में नहीं है. पानी की बूंदबूंद बचाना समय की मांग है. हम और आप क्या कर सकते हैं, यह आप के और हमारे हाथ में है. समय है कि निकला जा रहा है.

सावधान… सावधान… सावधान…   

– श्याम नारायण रंगा ‘अभिमन्यु’

डिजाइनर गहने

बीते सालों में लिबास हो या शृंगार, हर जगह फैशन ने अपना प्रभाव छोड़ा और फैशन के नए ट्रेंड से गहनों का बाजार भी अछूता नहीं रह पाया है. इसलिए ज्वेलरी उद्योग में भी अब आउटफिट की तरह ही आए दिन नएनए प्रयोग होने लगे हैं और उस पर अंतर्राष्ट्रीय टें्रड की छाप साफ दिखाई देने लगी है. इन दिनों डिजाइनर ज्वेलरी का क्रेज महिलाओं के सिर चढ़ कर बोल रहा है इसलिए ज्वेलरी उद्योग में भी अब आउटफिट की तरह ही आए दिन नएनए प्रयोग होने लगे हैं और उस पर अंतर्राष्ट्रीय टें्रड की छाप साफ दिखाई देने लगी है.

सौंदर्य और आर्थिक सुरक्षा

ब्यूटीशियन शहनाज हुसैन मानती हैं,  ‘‘आभूषण सिर्फ सौंदर्य के प्रतीक ही नहीं होते बल्कि आर्थिक सुरक्षा भी देते हैं. भारतीय स्त्रियों के लिए ये बहुत अहमियत रखते हैं. मैं तो यही मानती हूं कि भारतीय स्त्रियां सोने को धन संचय के लिहाज से खरीदती हैं. एक मकसद सौंदर्य को बढ़ाना भी होता है. सुरक्षा की दृष्टि से भले ही स्त्रियां आर्टीफिशियल ज्वेलरी पहनें लेकिन इनवेस्टमेंट की दृष्टि से वे सोने के ही गहनों को प्राथमिकता देती हैं.

‘‘घरानों की बात करें तो पहले अलगअलग घरानों की ज्वेलरी भी अलगअलग होती थी. बात चाहे निजाम के हीरों की हो या फिर जयपुर घरानों के शुद्ध सोने के बने संदूक और रानी हार की, सभी राजघरानों का एक अंदाज होता है, जो एक टें्रड सेट करते हैं, जिस के अनुसार आज भी डिजाइनर अपनी ज्वेलरी को डिजाइन कर सकते हैं.’’  आभूषणों के प्रति स्त्रियों की दीवानगी सदा से रही है, यह जानते हुए गहनों की डिजाइनों में नएपन की चाहत डिजाइनरों में भी सदा से रही है. इस संबंध में डिजाइनर शाहीन का कहना है, ‘‘आज की महिलाएं अपने जीवन में एक तरह का रोमांच चाहती हैं. यही वजह है कि ज्वेलरी टें्रड में बदलाव आया है. ज्वेलरी को अगर आउटफिट के साथ सही स्थान पर पहना जाए तो व्यक्तित्व में बदलाव आ सकता है. गोल्ड, सिल्वर और बीड्स के आभूषणों के साथसाथ स्टोन और सिल्वर के आभूषण भी स्त्रियों द्वारा पसंद किए जाने के पीछे उन की यही सोच है.’’

ज्वेलरी में फ्यूजन कर के कांबिनेशन ज्वेलरी को सामने लाने के लिए डिजाइनर  प्रयासरत इसलिए भी हैं, क्योंकि कांबिनेशन ज्वेलरी में पारंपरिक छटा के साथसाथ मौडर्न लुक भी मिलता है जैसे लेडी विक्टोरियन ज्वेलरी के साथ कुंदन का संगम. एक समय था जब ज्वेलरी में फिरोजी, ब्लू, पिंक आदि रंगों को भड़कीला माना जाता था, मगर अब डिजाइनर ज्वेलरी में यही रंग सब से ज्यादा चल रहे हैं.

ज्वेलरी डिजाइनिंग

फैशन की दुनिया में सब से लंबी शर्ट बना कर अपना नाम गिनीज बुक में दर्ज कराने वाले राघवेंद्र सिंह राठौड़ नईनई डिजाइनों को सामने लाने के लिए कुछ हट कर प्रयोग करने में विश्वास रखते हैं. जोधपुर राजघराने से जुड़े राघवेंद्र राठौड़ ने फिल्मी सितारों से ले कर आम लोगों के लिए कपड़े डिजाइन करने के बाद गहने डिजाइन करने के लिए कदम बढ़ाए. राघवेंद्र कहते हैं, ‘‘पिछले 1दशक में जो फैशनेबल कपड़ों का टें्रड चल रहा था, उस के साथ बदलते परिवेश में फैशनेबल गहनों की बढ़ती मांग देख कर मैं ने चुनौती स्वीकारते हुए इंडियन गोल्ड ज्वेलरी डिजाइन में कदम रखा. मैं मानता हूं कि फैशन की दुनिया में जैसे कपड़ों के लिए सीजन्स होते हैं, ज्वेलरी के भी सीजन्स होने चाहिए, जिस से पूरा चक्र एक तरह से घूमने लगेगा. इस से बदलते वक्त में लोगों को कपड़ों की तरह ज्वेलरी भी नई से नई डिजाइन में मिलेगी, साथ ही ज्वेलरी डिजाइनिंग में जो प्रतिभाशाली लोग हैं उन्हें आगे बढ़ने के लिए भी नए रास्ते मिलेंगे. नई डिजाइन के लिए उन्हें बहुत रिसर्च भी करनी होगी, जिस से उन का हर कलेक्शन एकदूसरे से जुदा हो.’’

राघवेंद्र ने खुद भी पहली बार ज्वेलरी डिजाइनिंग के क्षेत्र में कदम रखते हुए रिसर्च पर ध्यान दिया. उन्होंने नई डिजाइनों के लिए जोधपुर, जयपुर, मेवाड़, हाड़ौती के रजवाड़ों के रियासत काल के अलावा औद्योगिक बड़े घरानों के बरसों पहले बने गहनों का गहन अध्ययन किया. उन के अनुसार, ‘‘गहने महंगे बनें, ऐसा जरूरी नहीं है, क्योंकि एक डिजाइनर का ध्यान 2 चीजों पर फोकस होता है, एक तो नई डिजाइनों को डेमोक्रेटिकली लोगों तक पहुंचाए, दूसरे, गहने सब की पहुंच में पहुंचते हुए कहीं अपनी ओरिजनलिटी न खो दें.’’

पसंद में इंडोवेस्टर्न डिजाइन

ज्वेलरी डिजाइनर निकिता शाह का मानना है, ‘‘मोती जडि़त आभूषणों के साथसाथ इंडोवेस्टर्न डिजाइनें पसंद की जाने की वजह यही है कि इन का फैशन कभी पुराना नहीं पड़ता. इसी के साथ ये रौयल लुक भी देती हैं. विभिन्न आकारों में कलर्ड स्टोन के साथ संयोजित कर मोतियों की लडि़यां, पेंडेंट, अंगूठियां, बे्रसलेट, नेकलेस, टौप्स सभी आयु वर्ग की महिलाओं द्वारा पसंद किए जाते हैं. ईवनिंग पार्टियों में स्लीवलेस डे्रसके साथ आर्मलेट्स और हाल्टर टौप केसाथ चोकर बीड्स और स्वरोस्की जडि़त बेल्ट का इस्तेमाल करने वाली महिलाओं के लिए डिजाइनर नई डिजाइनें बनाने में लगे हैं.’’ ज्वेलरी डिजाइनर अल्पना गुजराल का कहना है, ‘‘स्त्रियां आभूषण क्यों पहनती हैं, इस की ठीकठाक वजह बताना मुश्किल है, क्योंकि प्राचीनकाल से अब तक स्त्रियों की कल्पना से आभूषणों का खयाल आता रहा है कि आभूषण पहन कर कोई भी स्त्री सुंदर दिखाई देती है. सोलहशृंगार की कल्पना भी स्त्रियों को ले कर ही की गई है. इसलिए आज भी फैशन कांशस महिलाएं अपने ज्वेलरी बाक्स में फंकी ज्वेलरी से ले कर हैवी ज्वेलरी तक रखना पसंद करती हैं, जिसे वे हर अवसर पर पहन सकें. यही वजह है कि आज आधुनिक और पारंपरिक दोनों तरह की डिजाइनें चलन में हैं. फंकी ज्वेलरी या कम से कम ज्वेलरी पहनने का चलन होने के कारण केवल नेकलेस, पेंडेंट, ईयररिंग्स और ब्रेसलेट ही ज्वेलरी की रेंज में नहीं आते वरन कमर पर पतली चेन पहनने का चलन भी बढ़ गया है.’’

फैशन में डिजाइनर ज्वेलरी

डिजाइनर ज्वेलरी फैशन स्टेटमेंट बनती जा रही है. इसे एक तरह से निवेश भी मानाजा सकता है. पर उस से ज्यादा यह एक फैशन का पर्याय मानी जाती है. अभिनेत्री काजोल मानती हैं, ‘‘एक स्त्री की खूबसूरती गहनों से बढ़ती है, क्योंकि जो चीज सुंदर होती है वह हर किसी को पसंद आती है. मेरे हिसाब से ऐसा कोई शख्स नहीं होगा, जो गहनों को पसंद नहीं करता होगा. कीमती होने के साथसाथ ये हरदिल अजीज भी हैं और जब भी किसी अवसर के लिए कोई किसी स्पेशल गिफ्ट के बारे में सोचता है तो वह गहनों से ही जुड़ा होता है, क्योंकि उपहार में गहने सभी को पसंद आते हैं. गहनों में बदलाव के लिए जो प्रयोग हो रहे हैं वे इस वजह से भी हो रहे हैं. उपहार देने वाले गहनों में नवीनता लाने के लिए डिजाइनर नई सोच विकसित कर रहे हैं. जाहिर है, उस में देशीविदेशी का फ्यूजन तो होगा ही.’’

कपड़ों की तरह ज्वेलरी में बदलाव आने से ग्राहकों के सामने चुनाव करने की चुनौती तो आएगी ही, लेकिन उन के सामने कई डिजाइनों में से किसी एक को चुनने के अवसर भी उपलब्ध होंगे, जिस का फायदा वे निवेश के साथसाथ स्टाइल आइकोन बन कर भी उठा सकते हैं

सुंदर बाल अपने हाथ

काले घने, लंबे व रेशम जैसे बालों की चाह हर महिला की होती है. लेकिन यह बात बहुत कम महिलाओं को पता होती है कि बालों के रूप व गुणों का सीधा संबंध उन के स्वास्थ्य से होता है और स्वास्थ्य का सीधा संबंध बालों को ब्रश या कंघी द्वारा सही ढंग से संवारने की आदत व तरीके से है.

सही तरीका

पौष्टिक भोजन के साथ ही स्वस्थ वातावरण और बालों को संवारने का सही तरीका काफी हद तक उन के रूप व गुणों को तय करता है. लेकिन इस प्रक्रिया में ब्रशिंग व कोंबिंग भी उतनी ही महत्त्वपूर्ण है जितना कि खानापीना. यदि बालों में ब्रशिंग व कोंबिंग को सही मात्रा में समय दिया जाए तो बालों के हर छिद्र में पर्याप्त आक्सीजन व पोषण आसानी से पहुंचेगा. लेकिन ब्रश करने का अर्थ केवल यही नहीं है कि जब भी समय मिले कंघी करने बैठ जाएं. जरूरत से ज्यादा कंघी करने से बाल टूट जाते हैं. ब्रश करने का सब से सही तरीका है कि अपने शरीर को कमर से आगे की ओर झुका कर सिर को नीचे की तरफ झुका लिया जाए. ब्रश को गरदन के पीछे बालों की रेखा पर रख कर ब्रश का स्ट्रोक आगे माथे पर बालों की रेखा तक आने के बाद बालों के अंतिम सिरों तक लगाएं, जिस से पूरे सिर की त्वचा पर ब्रश के दांतों की रगड़ महसूस होने के साथ ही बालों में कंपन भी महसूस हो.

ब्रशिंग के बाद बालों में फुलाव, बौडी व स्टे्रंथ देने के लिए खुले बालों में ही ब्रश करने के तत्काल बाद शरीर को कमर से आगे की ओर इस प्रकार झुकाएं कि बाल नीचे की ओर झूलने लगें. इस के बाद शरीर को सीधा करें व गरदन को पीछे की तरफ जितना झुका सकें, झुकाएं. इस क्रिया को 5 बार दोहराने के बाद अपने सिर को 5 बार कंधों की तरफ बारीबारी से हिलाएं.

नियत समय

आप चाहें तो बालों में ब्रश कभी भी कर सकती हैं लेकिन किसी निर्धारित समय पर बालों में ब्रश करना ठीक रहता है. सुबह ब्रश करने से सिर के सभी तंतु जागरूक हो जाते हैं जिस के परिणामस्वरूप उन की कार्यशीलता बनी रहती है. बालों में शैंपू करने से पहले ब्रश करना भी लाभदायक रहता है. इस से उलझे हुए बाल तो ठीक हो ही जाते हैं, साथ ही नहाने के बाद आप को बालों को सुलझाने की मशक्कत भी नहीं करनी पड़ेगी. रात को सोने से पहले बालों में रबड़, पिन, क्लिप या दिन के समय की हुई किसी भी प्रकार की सेटिंग को खोल देना चाहिए ताकि मांसपेशियों को आराम मिले. इस से बालों में हवा का संचार ठीक प्रकार से तो होता ही है साथ ही उन में रूसी भी नहीं होती. बालों के लिए सही ब्रश का चुनाव करना भी महत्त्वपूर्ण है. वैसे तो बाजार में नाइलोन, प्लास्टिक व प्राकृतिक ब्रिसल्स वाले ब्रश मिलते हैं लेकिन आप प्राकृतिक ब्रिसल्स वाले ब्रश लें तो ज्यादा उपयुक्त रहेगा. ब्रश का चुनाव करते समय देख लें कि उस के ब्रिसल्स इतने कमजोर नहीं होने चाहिए कि वे दबाव पड़ते ही मुड़ जाएं, न ही वे इतने सख्त होने चाहिए कि सिर की त्वचा को ही छील दें

फ्लर्ट : हदें न हों पार

कालेज में हमेशा लड़कियों के बीच घिरा रहने वाला रोहित अब तक4 लड़कियों को पूरापूरा भरोसा दिला चुका था कि वह बस, उस का है और किसी का नहीं. रोहित ने हर एक के साथ अलगअलग समय पर घूमनेफिरने, मौजमस्ती करने के लिए एक शेड्यूल भी तैयार कर रखा था. रोहित का कहना है, ‘‘कालेज में किताबों से जब बोर हो जाता हूं तब यह सब काम कर के मुझे आनंद आता है. साथ ही टाइम भी पास हो जाता है. मूड भी हमेशा अच्छा बना रहता है. हालांकि रोहित उन 4 लड़कियों में से किसी से भी प्रेम नहीं करता था. बस, वह उन के साथ लव गेम खेल रहा था. लव गेम यानी प्यार का खेल. यह वह लव गेम है, जो शादी से पहले भी खेला जाता है और शादी के बाद भी. इस के लिए उम्र का कोई बंधन नहीं होता है. 16 साल की कुंआरी कन्या से ले कर 50 वर्ष का शादीशुदा पुरुष व महिला भी इस गेम को खेल सकते हैं. इस लव गेम को फ्लर्टिंग कहें तो ज्यादा बेहतर होगा, क्योंकि इसे समाज द्वारा मान्यता प्राप्त नहीं है और लोग इसे बुरी नजर से देखते हैं.

क्या है फ्लर्टिंग

आनंद प्राप्त करने और टाइमपास करने के लिए प्यार का झूठा नाटक फ्लर्टिंग कहलाता है. फ्लर्टिंग की प्रवृत्ति अधिकतर लोगों में पाई जाती है. कालेज में अकसर लड़के अपने साथ पढ़ने वाली लड़कियों के साथ और कभीकभी तो अपनी प्रोफेसर्स के साथ ही फ्लर्टिंग शुरू कर देते हैं. हालांकि उन्हें उस समय नहीं पता होता कि इस फ्लर्टिंग का अंजाम क्या होने वाला है. यह फ्लर्टिंग काफी लंबे समय तक भी चलती है और कई बार इस की उम्र बहुत छोटी होती है. ऐसा नहीं है कि फ्लर्टिंग सिर्फ लड़के ही करते हैं, लड़कियां भी फ्लर्ट करने में पीछे नहीं हैं. लड़कियां भी लड़कों के साथ फ्लर्ट करने में उन का पूरा साथ देती हैं. यह उन के लिए भी आनंदायक होता है, साथ ही उन का भी टाइमपास हो जाता है. उन्हें रोजरोज किसी को अपनी नई डे्रस दिखाने का भी मौका मिल जाता है और अपनी फरमाइशों से वे लड़कों की जेब भी हलकी करा लेती हैं.

फ्लर्ट क्यों किया जाता है

क्या आप ने नायक ‘दिलविल प्यारव्यार’ फिल्म देखी है. इस में नायक 3-3 लड़कियों के साथ फ्लर्ट करता है. एकसाथ तीनों को बेवकूफ बनाता है. इस में वे तीनों लड़कियां इसे गंभीरता से लेती हैं. नायक जानता था कि किसी न किसी दिन उस की पोल जरूर खुलेगी, लेकिन इस के बावजूद वह इस में लगा रहता है आखिर एक दिन तीनों लड़कियों के सामने उस की पोल खुल जाती है. इस के बाद नायक उन में से उस लड़की से शादी कर लेता है जिस के वह ज्यादा करीब आ गया था. वह लड़की तो फिल्म की हीरोइन थी, इसलिए नायक ने उस से शादी कर ली. लेकिन आम जिंदगी में आमतौर पर ऐसा नहीं होता है. हो सकता है कि आम जिंदगी का कोई नायक तीनों में से किसी भी लड़की से शादी करने को राजी न हो और शादी के लिए किसी चौथी लड़की का ही हाथ थाम ले.

कहने का मतलब यह है कि फ्लर्ट सिर्फ मजा लेने और टाइमपास करने के लिए किया जाता है. कई बार तो सामने वाले को पक्का पता होता है कि हमारे साथ फ्लर्टिंग हो रही है, फिर भी वह उस से पीछे नहीं हटता. वह भी इसे खूब एंज्वाय करता है. टाइमपास के लिए लव गेम खेलना कोई गलत बात नहीं है बशर्ते लव गेम खेलने वाले दोनों व्यक्ति इसे गंभीरता से न लें, साथ ही इस बात का भी ध्यान रखें कि आप की इमेज कालेज में फ्लर्टिंग बौय या गर्ल के रूप में न बन जाए. अगर आप कालेज में फ्लर्ट कर भी रही हैं तो इसे सिर्फ कालेज तक ही सीमित रखें, इसे घर तक न ले कर जाएं.

शादी के बाद लव गेम

शादीशुदा महिला और पुरुष भी फ्लर्ट करते हैं. वे भी आनंद के लिए यह सब करते हैं. पति के दोस्त या भाई, पत्नी की सहेली या बहन के साथ अकसर लव गेम चलते हैं. घर आए पति के दोस्त से आंखों ही आंखोंमें बात और बातों ही बातों में सैकड़ों सवालजवाब हो जाते हैं. इसी तरह घर आई पत्नी की सहेली के साथ भी पति फ्लर्ट शुरू कर देते हैं. अगर वह भी आशिकमिजाज है तो यह सिलसिला शुरू हो जाता है. लेकिन आप अगर फ्लर्ट कर रहे हैं या कर रही हैं तो इस बात का ध्यान रखें कि इस का असर आप के बच्चों पर भी पड़ सकता है. कई बार यह फ्लर्ट मुसीबत का कारण भी बन जाता है. इस से आप के परिवार व पतिपत्नी के रिश्तों में खटास पैदा हो सकती है.

आफिस में फ्लर्ट

आफिसों में भी लव गेम यानी फ्लर्ट का खूब बोलबाला है. आफिस में किसी खूबसूरत युवती को देख कर मन फ्लर्ट करने को मचल उठता है. आखिर दिल ही तो है. इस पर किसी का काबू कहां रहता है. आप ने बौस और सेके्रटरी के फ्लर्ट के किस्से तो खूब सुने होंगे. यह टाइमपास या आनंद के लिए नहीं बल्कि तरक्की के लिए किया जाता है. सेक्रेटरी को अगर यह लगता है कि उस का बौस आशिकमिजाज है तो वह अपने बौस को खुश कर के ऊंची पोस्ट पाने के लिए प्रयासरत रहती है. इस से पूरे आफिस में उस का दबदबा भी बना रहता है. बौस को भी लगता है कि क्या फर्क पड़ता है थोड़ा एंज्वाय कर लिया जाए. कौन सा मैं उसे अपने घर ले कर आने वाला हूं. इस से कोई फर्क नहीं पड़ता कि बौस शादीशुदा है और सेक्रेटरी कुंआरी या सेक्रेटरी शादीशुदा है और बौस कुंआरा. यह तो हुआ बौस और सेक्रेटरी का फ्लर्ट. आफिसों में कुलीग्स भी आपस मेंफ्लर्ट करने में कंजूसी नहीं बरतते. लेकिनयहां पर अपनी सीमाओं का खास ध्यान रखना पड़ता है. इसलिए इस फ्लर्ट की गति थोड़ी मद्धम होती है. यहां आंखोंआंखों में फ्लर्ट ज्यादा होता है.

किस से करें फ्लर्ट

फ्लर्ट हमेशा उस से करना चाहिए, जो इसे गंभीरता से न ले वरना आप को लेने के देने पड़ सकते हैं, क्योंकि हो सकता है कि आप तो हलके मूड में हैं लेकिन सामने वाला इसे सीरियसली ले रहा है. ऐसे में यह फ्लर्ट आप दोनों के लिए नुकसानदायक हो सकता है. एक लिमिट में रह कर किया गया फ्लर्ट ही उचित रहता है. ऐसा नहीं कि आप अपने महल्ले में ही हर किसी से फ्लर्ट शुरू कर दें. इस से आप की और आप के परिवार की छवि धूमिल हो सकती है.

कितना सही कितना गलत

फ्लर्ट करना गलत नहीं है, बशर्ते आप हदों को पार न करें. अगर आप अपनी पत्नीकी सहेली या पति के दोस्त से फ्लर्ट कर रहे हैं तो उसे सीमित दायरे में रखें. शारीरिक संबंध बनाने की भूल कभी न करें और न ही पति के दोस्त को जल्दीजल्दी घर आने का न्योता दें. आप अश्लील हरकतें व अश्लील बातें करें. कालेज में भी आप उस समय तकफ्लर्ट कर सकते हैं जब तक इस का आपकी पढ़ाई पर नकारात्मक प्रभाव न पड़ रहाहो, न ही किसी से शारीरिक संबंध बनाने का प्रयास करें.

क्यों होती है आलोचना

फ्लर्ट की हमेशा आलोचना क्यों की जाती है और यह आलोचना कौन करता है? एक कैफे में एक कालेज के 4 दोस्त बैठे हैं. उन में एक लड़की है और 3 लड़के. उन में से एक लड़के साहिल ने सीमा का हाथ पकड़ते हुए कहा कि चलो डार्लिंग, कहीं लौंग ड्राइव पर चलते हैं. लड़की हंसने लगी और फौरन तैयार हो गई. दोनों चले जाते हैं. साहिल और सीमा दोनों में से किसी ने भी इसे गंभीरता से नहीं लिया. पीछे बचे दोनों लड़के अपना मन मसोस कर रह गए. अब उन के पास उन दोनों की इस हरकत को गलत ठहराने के अलावा कोई काम नहीं था, क्योंकि उन में इतनी हिम्मत तो थी नहीं कि वे उस लड़की को लौंग ड्राइव पर चलने का औफर देते. अपनी नाकामी को छिपाने के लिए वे उन में हजारों बुराइयां निकालते हैं. कहने का मतलब साफ है कि जो लोग अपनी जिंदगी में खुद किसी लड़की या लड़के से फ्लर्ट नहीं कर सके वे फ्लर्टिंग की आलोचना करते हैं. यह तो वही बात हुई कि जब लोमड़ी को अंगूर नहीं मिले तो उस ने कहा कि अंगूर खट्टे हैं. लेकिन कई बार यह फ्लर्टिंग काफी नुकसानदायक साबित हो सकती है और आप की छवि हमेशा के लिए धूमिल हो सकती है. इसलिए फ्लर्ट करें पर जरा संभल कर.

शुगरकैन पुडिंग

सामग्री

2 छोटे चम्मच घी द्य 1 कप भीगे क्रश्ड चावल

1 बड़ा चम्मच मिक्स्ड ड्राईफू्रट्स द्य 1/2 कप शुगरकैन जूस.

विधि

एक पैन में घी, भीगे क्रश्ड चावल और ड्राईफू्रट्स मिलाएं. अब शुगरकैन जूस मिला कर गाढ़ा होने तक पकाएं. जब यह तैयार हो जाए तब एक बाउल में निकाल कर सर्व करें.

क्या है सौंदर्य का मनोविज्ञान

क्या आप अपने इर्दगिर्द खूबसूरत लड़कियों को देख कुंठा और ईर्ष्या से भर जाती हैं? क्या दूसरों की खूबसूरती आप के निजी जीवन को प्रभावित करती है? क्या आप ऐसी लड़कियों या महिलाओं से नहीं मिलतीं, जिन्हें आप खुद से ज्यादा खूबसूरत मानती हैं? क्या आप हमेशा अपनी खूबसूरती से नाखुश रहती हैं? क्या आप को लगता है कि जीवन में खूबसूरती महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करती है? यहां पूछा गया हर सवाल आप की जिंदगी से जुड़ा है. अगर आप को लगता है कि खूबसूरती महज दिखावे के लिए अहम भूमिका निभाती है, तो आप गलत हैं. खूबसूरती हमें भावनात्मक संबल देती है. खूबसूरती हमें ताकत देती है.

जी हां, वैज्ञानिक अनुसंधानकर्ताओं ने यह बात समझने में अंतत: सफलता पा ही ली है कि खूबसूरती आखिर हमें मानसिक और भावनात्मक तनाव से क्योंकर नजात दिलाती है? साथ ही यह भी कि यह सब आखिर कैसे होता है? 11 सितंबर, 2001 को जब अमेरिका इतिहास के सब से भयानक आतंक से रूबरू हुआ और सुरक्षित होने के एहसास को ले कर अमेरिकियों का मनोविज्ञान हिल गया तो उन में एक अजीब प्रवृत्ति का विस्फोट देखने को मिला. यकायक अमेरिकियों में संग्रहालयों और प्रदर्शनियों के प्रति जबरदस्त लगाव उमड़ पड़ा. बड़ी संख्या में अमेरिकी इन्हें देखने जाने लगे. इस के अलावा उन में एक और बात देखने को मिली कि वे खूबसूरत कपड़ों और फर्नीचर के दीवाने हो उठे. सौंदर्य प्रसाधनों की बिक्री आसमान छूने लगी.

वास्तव में ऐसा सिर्फ मुश्किल क्षणों में ही नहीं होता कि हमें हरेभरे बगीचों व लिपस्टिक से सजे होंठों में सुकून महसूस होता है, बल्कि जब हम भावनात्मक या मानसिक तनाव में होते हैं तब भी खूबसूरती हमें राहत देती है. सामाजिक, पर्यावरणीय और विकासवादी मनोविदों ने खूबसूरती के एक नए विज्ञान को खोज निकाला है. इस से यह सुनिश्चित होता है कि हर खूबसूरत वस्तु हमें प्रभावित करती है. फिर चाहे वह प्रकृति का मनोरम दृश्य हो या अस्पताल के कमरों में सजाई गई कलाकृतियां. टैक्सास, अमेरिका के ए ऐंड एम विश्वविद्यालय के द सैंटर फौर हैल्प सिस्टम ऐंड डिजाइन के प्रमुख पर्यावरणीय मनोविद रोजर उलरिच ने अपने एक शोध में पाया है कि जब हम कोई खूबसूरत प्राकृतिक नजारा देखते हैं, तो हमारे दिल और दिमाग दोनों को सुकून महसूस होता है.

सर्जरी के बाद ऐसे मरीज कहीं ज्यादा तेजी से रिकवर करते हैं, जिन्हें ऐसा नजारा देखने को मिलता है. जिन मरीजों को रिकवरी के दौरान खूबसूरती के एहसास से वंचित रहना पड़ता है, उन की रिकवरी देरी से होती है. दरअसल, उलरिच ने प्रभावशाली तरीके से साबित किया है कि वास्तव में हमारे दिल को ही नहीं दिमाग यानी कह सकते हैं हमारे पूरे शरीर को ही खूबसूरती की जरूरत होती है. इंसान इस तरह से प्रोग्राम्ड है कि ब्यूटी उस की अंतर्निहित जरूरत है. जब हम तनाव में होते हैं, तो यह खूबसूरती का एहसास हमें उस तनाव से मुक्त कराता है, क्योंकि मानव शरीर में विकास क्रम के हारमोंस प्राकृतिक सुंदरता को देखते ही रिचार्ज होते हैं और इस से हम सुकून महसूस करते हैं. हम में खूबसूरती से तनावमुक्त होने या खुश होने की क्षमता जन्मजात होती है.

प्रकृति से लगाव

खूबसूरती को ले कर हुए अनुसंधान इस बात की तसदीक करते हैं कि इंसान का मानव निर्मित वस्तुओं के मुकाबले प्रकृति द्वारा निर्मित चीजों के प्रति ज्यादा लगाव होता है. कुदरती खूबसूरती से दोचार होते ही इंसान में मौजूद एक नई इंद्रिय जिसे अनुसंधानकर्ताओं ने ‘सैवेंथ सैंस’ का नाम दिया है, जाग्रत हो जाती है. दूरदूर तक फैले हरेभरे घास के मैदान, साफ कलकल करता बहता पानी, चिडि़यों का चहचहाना, घने पेड़ों की कतारें, खतरारहित वन्य जीवन और आसमान में रचा इंद्रधनुषी नजारा, आखिर ये सब हमें क्यों अच्छे लगते हैं? अनुसंधानों से पता चला है कि इन नजारों के सामने आते ही हम शांत और स्थिर हो जाते हैं, आराम महसूस करने लगते हैं. ऐसे नजारे सामने आने के बाद हमारी बौडी लैंग्वेज फ्रैंडली हो जाती है.

उलरिच के अनुसंधानों के मुताबिक खूबसूरत कुदरती नजारे देख कर आदमी खुश हो जाता है, उस में उमंग भर जाती है और यह सब महज 5 मिनट के भीतर हो जाता है. मांसपेशियां शिथिल हो जाती हैं, ब्लडप्रैशर काबू में आ जाता है और हृदयगति धीमी पड़ जाती है. हम रिलैक्स्ड फील करने लगते हैं. हम में गुस्सा, चिंता, तनाव सब कुछ धीरेधीरे कम होने लगता है. खूबसूरती हमेशा एक अव्यक्त आकर्षण, एक अव्यक्त चाहत का नाम रही है. सदियों से लोग इस की निकटता में कुछकुछ होता तो महसूस करते रहे हैं, लेकिन यह कुछकुछ क्यों होता है, इस का उन्हें अंदाजा नहीं था. अब अनुसंधानकर्ता हमें यह बता रहे हैं कि यह कुछकुछ हमें इसलिए महसूस होता है, क्योंकि खूबसूरती से दोचार होते ही हमारे शरीर में ऐसे हारमोंस सक्रिय हो जाते हैं, जो हमें अच्छा एहसास कराते हैं.

यही कारण है कि सदियों से स्वास्थ्य लाभ के लिए सैनिटोरियम होते रहे हैं. लोग सैनिटोरियम की आबोहवा से न सिर्फ खुश होने का एहसास करते रहे हैं, बल्कि इस से उन का स्वास्थ्य भी बेहतर होता रहा है. जब इस तरह की रिसर्च नहीं हुई थी तब से ही खूबसूरती एक थेरैपी के रूप में इस्तेमाल होती रही है. फर्क बस इतना है कि अब ऐसा इस के नाम से हो रहा है और पहले ऐसा कोई शब्द दिए बिना हो रहा था.

सभी कहते हैं कि मैं शशि कपूर जैसा दिखता हूं -सिड

अभिनय के सफर की शुरुआत हौलीवुड से करने वाले सिड मक्कड़ का सफर बौलीवुड से होते हुए छोटे परदे तक आ पहुंचा है. जी टीवी के नए शो ‘लाजवंती’ के प्रमोशन पर दिल्ली पहुंचे सिड से उन के नए शो और उन के फिल्मी सफर के बारे में बातचीत हुई. पेश हैं, बातचीत के खास अंश:

सभी कलाकार तो थिएटर से अभिनय की शुरुआत कर के बाद में हौलीवुड पहुंचते हैं. पर आप का यह सफर उलटा क्यों रहा?

जी हां, मैं ने अपने अभिनय की शुरुआत अंगरेजी फिल्म ‘द बैस्ट एग्जौटिक मैरीगोल्ड होटल’ से की थी क्योंकि मेरी सिर्फ अच्छे अभिनय के लिए फिल्में करने चाह रही है. इस फिल्म में मैं ने हौलीवुड के चोटी के अभिनेता रिचर्ड गेरे और जूडी गेंच के साथ अभिनय किया. इस के बाद हुआ यह कि पहली ही फिल्म इतने बड़े कलाकारों के साथ करने के बाद मैं सिर्फ हौलीवुड फिल्मों के बारे में सोचने लगा. लेकिन आप अपनी पहचान सिर्फ हौलीवुड की फिल्में कर के नहीं बना सकते, इसलिए कई अच्छी कहानियों वाली बौलीवुड फिल्में भी मैं ने कीं. ‘दस तोला’, ‘लक बाई चांस’, ‘किसकिस की किस्मत’ मेरी हिंदी फिल्में हैं. फिर यह लगा कि असली पहचान बनाने का माध्यम तो छोटा परदा है. लेकिन मैं सास बहू वाले डेली सोप में काम नहीं करना चाहता था, इसलिए टीवी शोज भी मैं ने वही किए जिन की कहानियों में अभिनय दिखाने का मौका हो.

आप ने इस शो से पहले ऐपिक टीवी के शो ‘दरीबा डायरी,’ उस के बाद ‘लाजवंती’ में अभिनय किया. क्या पुरानी कहानियों से प्यार है?

‘दरीबा डायरी’ 1850 के समय की हिस्टौरिकल सीरीज थी और ‘लाजवंती’ 1947 के बंटवारे के वक्त की कहानी है. इन दोनों टीवी शोज में एक बात तो निश्चित थी कि इस के किरदारों के अभिनय की परदे पर असल परीक्षा होने वाली थी और मैं यह आप को पहले भी बता चुका हूं कि मैं सिर्फ वही शोज या फिल्में साइन करता हूं जिन में ऐक्टिंग दिखाने का मौका मिले. जब ‘लाजवंती’ की डाइरैक्टर इलाजी ने बताया कि यह उन के दादाजी की लिखी कहानी है और बहुत पहले इस पर फिल्म बनने वाली थी जिस में दिलीप कुमार साहब को काम करना था. मैं ने तुरंत हामी भर दी क्योंकि मुझे लगा कि रोल में जरूर कुछ चैलेंजिंग होगा तभी तो दिलीपजी ने इस रोल के लिए हां किया था.

महिलाओं की स्थिति में पहले से क्या सुधार आया है, आप इसे किस तरह देखते हैं?

बेशक पहले की अपेक्षा महिलाओं की स्थिति में सुधार हुआ है. आज हम अपने बराबर ही उन्हें पाते हैं. कई महिलाओं ने तो पुरुषों को कई क्षेत्रों में पीछे ही छोड़ दिया है. लेकिन आज भी कई घटनाएं ऐसी सुनने में आती हैं जिन से यही लगता है कि हमारे समाज ने कोई प्रगति नहीं की है. हम आज भी वहीं के वहीं हैं, जहां महिलाओं को सिर्फ उपभोग की वस्तु समझा जाता है.

लोग आप में शशि कपूर को देखते हैं. आप ने कभी महसूस किया?

पहले तो कभी ध्यान नहीं दिया पर जब से आप लोगों ने बताया कि मैं शशि कपूर जैसा दिखता हूं तब से जरूर शशि साहब से अपने लुक की तुलना करने लगा हूं. मैं ने उन की सारी फिल्में देख डालीं, तो उन के जैसे हेयरस्टाइल की भी कौपी की है. पर अभी उन की जैसी ऐक्टिंग करने में मात खा रहा हूं. 

यामी लगाएंगी आइटम डांस का तड़का

यामी गौतम की फिल्म ‘बदलापुर’ में छोटी ही भूमिका थी पर अपने अभिनय में उन्होंने कोई कटौती नहीं की. अब यामी भूषण कुमार की फिल्म ‘जुनूनियत’ में पुलकित सम्राट के साथ आ रही हैं. खबर है कि इस फिल्म में यामी का आइटम डांस भी है. पहली बार किसी फिल्म में आइटम कर रहीं यामी का यह सोलो डांस है और इस में उन्होंने जम कर फिल्मी लटकेझटके दिखाए हैं. अब देखना यह है कि ‘विकी डोनर’ से डैब्यू करने वाली गर्ल को इस आइटम डांस से कैरियर में कितने नंबर मिलते हैं.

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