असली सुख बचत में ही

एक सेमी बैंकिंग कंपनी ने टैलीविजन विज्ञापन जारी किए हैं जिन में मुख्य किरदार बारिश में या तो पैदल चल कर काम पर निकलता है या पैसा बचाने के लिए औटो की जगह बस लेता है. कंपनी का दावा है कि ऐसे ही लोगों को कंपनी आसानी से कर्ज देती है.

इस में शक नहीं है कि असली सुख बचत में है. कम खर्चों में है. ज्यादातर विज्ञापनबाजी कहती है कि सुख पाने के लिए खर्च करो, ज्यादा खर्च करो जबकि विज्ञापनों का असल उद्देश्य है सही दाम पर अच्छा सामान दिलवाना और ग्राहकों को उन की चौइस देना. आजकल होड़ लगी है कि लोग खरीदें, ज्यादा खरीदें पर यह कोई नहीं बता रहा कि पैसा बचाइए ताकि कल सुरक्षित रहे.

ऐसा नहीं कि पैसा बचाने के चक्कर में कंजूस मक्खीचूस बन जाएं. इस से और ज्यादा नुकसान होता है. जीवन स्तर खराब हो जाता है. सही जगह खर्च करने में भी हिचक होने लगती है. पढ़नेलिखने तक में पैसा खर्च करना बंद कर दिया जाता है. बचत के नाम पर दूसरों का पैसा हड़पना शुरू कर दिया जाता है और घर वालों पर एक उदासी छा जाती है.

पर दूसरी तरफ जो दोपहर में 2 टोस्ट सेंक कर खाने की कोशिश कर रहा हो, उसे बाजार का महंगा सैंडविच डिलीवर करा करपत्नी दफ्तर में काम कर के भी पैसा बचाने वाली बात नहीं कर रही, बरबादी की बात कर रही है, जो अनावश्यक है और जिस का विरोध होना चाहिए. मौजमस्ती के लिए 500 भी खर्च करें पर जहां 5 में काम चल सकता हो वहां 50 याक्व500 खर्च कराना ऐश करना नहीं मूर्खता है.

बचत के बल पर ही चीन, जापान जैसे देशों ने उन्नति की है. बचत के बल पर ही अमीर देशों में गए गरीब देशों के मजदूरों ने साम्राज्य खड़े किए हैं. इन में भारतीय, चीनी, नाइजीरियाई, यहूदी, व इरानी शामिल हैं, जो अमेरिका में जा कर खाली हाथ बसे थे पर 2 पीढ़ी बाद अमेरिका में अमीरों में गिने जाने लगे हैं.

हर घर को बचत करना सीखना चाहिए. खुद काम करना चाहिए, ज्यादा से ज्यादा और खाली हाथ बैठना नहीं चाहिए, न टैलीविजन स्क्रीन के आगे न मोबाइल की स्क्रीन पर.

पल भर का जनून, छीने जीवन का सुकून

नैशनल क्राइम रिकौर्ड्स ब्यूरो की हालिया रिपोर्ट के अनुसार भारत में 1 दिन में लगभग 92 महिलाएं बलात्कार का शिकार बनती हैं. साल 2012 में दर्ज किए गए रेप केसेज की संख्या 24,923 थी, जो कि साल 2013 में बढ़ कर 33,707 हो गई. रिपोर्ट में यह भी खुलासा किया गया कि ज्यादातर बलात्कार पीडि़तों की उम्र 14 से 18 वर्ष (8,877 मामले) और 18 से 30 वर्ष (15,556 मामले) के बीच थी.

यू. एन. क्राइम ट्रैंड सर्वे की एक रिपोर्ट के अनुसार बलात्कार के मामलों में भारत का स्थान विश्व में तीसरा है. एनसीआरबी की रिपोर्ट में इस से भी ज्यादा चौंकाने वाला तथ्य दिया गया है कि भारत में दर्ज किए गए बलात्कार के मामलों में ज्यादातर ऐसे हैं जिन में बलात्कार करने वाला या तो पीडि़ता का कोई रिश्तेदार, पड़ोसी था या फिर उस का कोई बेहद करीबी व्यक्ति था.

मेरे जैसी शायद ही कोई और लड़की होगी. न बैंडबाजा, न मेहंदी की रस्म, न संगीत की रात. न वरमाला पड़ी, न फेरे हुए. फिर भी मैं कन्या से औरत बन गई. क्या कोई मेरे दुख को महसूस कर सकता है? नहीं, क्योंकि जा के पांव न फटी बिवाई वो क्या जाने पीर परायी. मौखिक सहानुभूति प्रकट करने वाले तो बहुत आए, लेकिन हार्दिक संवेदना महसूस करने वाला कोई नहीं. कुदरत का यह कैसा न्याय है? करे कोई भरे कोई. नारी की क्या गलती है? उसे क्यों इतना कमजोर बनाया? उस पर ज्यादतियां क्यों होती हैं? जबरदस्ती करने वाला शान से छुट्टा घूमता है और जिस के साथ

जबरदस्ती हुई होती है वह सिर नीचा किए, अपराधबोध से ग्रस्त घर में छिपती है.

मैं एक मध्यवर्गीय परिवार की लाडली बेटी हूं. मातापिता की तीसरी संतान. लड़के की चाह में परिवार में 4 लड़कियां हो गईं. फिर भी लड़कियां मातापिता की लाडली तो होती ही हैं, क्योंकि वे यह जानते हैं कि ये पराया धन हैं. मैं भी अपने मातापिता की लाडली थी, खासतौर पर इसलिए कि अपने परिवार में सब से सुंदर थी. मेरी पढ़ाई पूरी हो गई थी. मातापिता को मेरी शादी की चिंता थी. मुझ से 2 बड़ी बहनों की शादी हो चुकी थी. अब मेरी बारी थी. वे लड़का ढूंढ़ रहे थे, लेकिन दहेज का दानव दाल नहीं गलने देता था. इसलिए जब तक शादी नहीं होती तब तक के लिए पिताजी ने एक गारमैंट ऐक्सपोर्ट हाउस में नौकरी दिलवा दी. सुंदर लड़कियों को नौकरी मिलने में कहां मुश्किल होती है, फिर मैं तो पोस्ट गै्रजुएट थी. ड्राइंग अच्छा बनाती थी. सिलाई का भी ज्ञान था.

उस समय मेरा 26वां वर्ष चल रहा था. यौवन की इस अवस्था में हर लड़की सुंदर लगती है. फिर मैं तो पैदाइशी सुंदर थी. यौवन खुद सब से बड़ा शृंगार है, उसे और विशेष शृंगार की जरूरत नहीं होती. पर इस उम्र में सजनेसंवरने की नैसर्गिक चाह होती है ताकि जो देखे, तारीफ करे और हम गर्व महसूस करें. चूंकि मैं गारमैंट ऐक्सपोर्ट कंपनी में काम करती थी, इसलिए अच्छे कपड़े पहनने का शौक हो गया. कंपनी में कुल 10 लोगों का स्टाफ था. बौस और गार्ड को छोड़ कर स्टाफ में 3 फीमेल थीं. बाकी सब मेल. मेरा काम लेडीज गारमैंट्स की डिजाइनिंग का था. डिजाइन तैयार होने पर कपड़े बनते थे. सारा स्टाफ अपने काम में लगा रहता था. केवल सुबह की चाय सब लोग साथ पीते थे. तभी आपस में कुछ बातचीत होती थी. मेरे साथ की 2 लड़कियां जो मेरी सहेलियां भी बन चुकी थीं तो मेल स्टाफ के साथ जल्दी घुलमिल जाती थीं, पर मुझे ऐसा करना असहज लगता था. सहेलियां मुझे रूपगर्विता कहती थीं. चाय के समय मैं अधिकतर चुप ही रहती थी. नीचे मुंह कर के सब की बातें सुनती रहती थी.

उस दिन मैं 3 दिन की छुट्टी के बाद औफिस पहुंची. सप्ताह का आखिरी दिन था. अधिकतर लोग छुट्टी पर थे. मैं सपरिवार एक शादी में गई थी और उसी दिन शादी से लौटी थी अत: साड़ी पहने ही औफिस आ गई. जिस ने भी देखा तारीफ की कि बहुत अच्छी लग रही हो.

दोपहर बाद जो थोड़ाबहुत स्टाफ आया था, वह भी चला गया. मुझे 3-4 दिन का काम पूरा करना था. अत: कुछ डिजाइन बनाए. फिर सोचा बौस को दिखा कर स्वीकृति ले लूं ताकि गारमैंट्स सिलने चले जाएं. यह काम खत्म कर के मैं भी घर 1 घंटा पहले ही चली जाऊंगी, सोच कर मैं 4 डिजाइनें हाथ में ले कर बौस के कैबिन में पहुंची.

हमारे बौस लंबे कद के स्वस्थ, बलिष्ठ व्यक्ति थे. उम्र होगी करीब 30 वर्ष. अभी अविवाहित थे. कुछ शर्मीले थे. खासतौर पर लेडी स्टाफ के साथ. जब मैं कैबिन में गई तो अकेले थे. मुझे देख कर मेरी ड्रैस की तारीफ करने लगे. अपनी तारीफ किसे अच्छी नहीं लगती. मुझे भी अच्छी लगी. मैं ने नई डिजाइंस के चार्ट उन्हें देखने के लिए दिए तो मेरा हाथ उन के हाथ से छू गया. मुझे सिहरन सी हुई.

उन्होंने कहा कि सौरी, बट इट इज माई प्लेजर. मैं शरमा गई. उन्होंने डिजाइंस को गौर से देखना शुरू किया. मैं सामने बैठी रही. तभी पंखे की हवा से एक डिजाइन का चार्ट उड़ कर उन की कुरसी से दूर जा गिरा. शिष्टाचार के नाते मैं उठी और झुक कर उसे उठाने लगी. तभी मेरी साड़ी का पल्लू कंधे से खिसक कर नीचे गिर गया. मैं ने पल्लू ठीक कर आंखें ऊपर उठाईं तो देखा बौस मुझे ही आंखें फाडे़ देख रहे हैं. मुझे शर्म आई, इसलिए डिजाइन का चार्ट टेबल पर रख कर बाहर जाने लगी. बौस ने मुझे रोकने के लिए हाथ बढ़ाया और मेरा हाथ पकड़ लिया, परंतु मैं ने झटके से छुड़ा लिया. जब मैं दरवाजे की तरफ बढ़ी तो बौस ने झपट कर मुझे पकड़ने की कोशिश की. उन के हाथ में मेरे ब्लाउज का पिछला हिस्सा आ गया. आजकल ब्लाउज होते भी कितने बड़े हैं. बित्ते भर का ब्लाउज उस झपट्टे में आ कर फट गया. मैं तो शर्म के मारे जमीन में गड़ गई. मेरे दोनों हाथ अपनेआप मेरी लज्जा को ढकने में लग गए. बौस तो पागल हो चुके थे. उन्होंने अपनी बलिष्ठ भुजाओं में मुझे कस लिया. मैं छटपटाई पर कुछ न कर सकी. मेरी चेतना न जाने कहां चली गई. दिमाग शून्य से भर गया. मेरा विरोध ढीला पड़ता गया. मुझे लगा कि मैं तेज आंधी में किसी सूखे पत्ते कि तरह कहीं उड़ी जा रही हूं. बरसात में जिस तरह कागज की नाव पानी के बहाव के साथ बहती है, मेरी भी वही हालत थी. धीरेधीरे मेरी आंखें मुंद गईं. मैं बिलकुल होश खो बैठी. सच कहूं तो मुझे उस समय अवर्णनीय आनंद की अनुभूति हुई थी. हालांकि अब तो सोच कर भी ग्लानि होती है.

जब सब कुछ खत्म हो गया तो बौस उठे और बोले कि आई एम सौरी और फिर बाथरूम में चले गए. मैं ने कपड़े ठीक किए और अपने कमरे में आ कर रोने लगी. फिर चुपचाप बैग ले कर लुटी हुई अपने घर आ गई. घर वालों ने मुझे बेहाल देख कर पूछना शुरू किया तो मुझे फिर रोना आ गया. बहुत देर तक रोती रही फिर सब कुछ बता दिया. सब ने मिल कर तय किया कि थाने में एफआईआर लिखवाते हैं.

आगे हुआ यह कि बौस को 3 साल की सजा हो गई. लेकिन मुझ बेकुसूर को तो जिंदगी भर की सजा मिली. कौन मुझ से शादी करेगा? क्या कभी मेरी डोली उठेगी? क्या सुंदर होना कोई अपराध है? इस पुरुषप्रधान समाज में बलात्कार की सजा इतनी कम क्यों है? क्यों नहीं ऐसे व्यक्ति को कालापानी भेज देते? क्यों नहीं उसे फांसी पर लटकाया जाता ताकि अन्य किसी पुरुष की ऐसा करने की हिम्मत न हो?

बलात्कारी का आत्ममंथन

मनुष्य कितना ही बड़ा क्यों न हो, समय के सामने वह कुछ भी नहीं है. अच्छा समय व्यक्ति को जहां आसमान में पहुंचा देता है, वहीं बुरा समय उसे धरती पर पटकने में देर नहीं करता.

मैं एक छोटे कसबे के साधारण परिवार में जन्मा पुरुष हूं. कुदरत ने अच्छा शरीर दिया, लंबाचौड़ा और बलिष्ठ. पढ़ाई में भी अच्छा था. लगन और मेहनत की मदद से कार्यक्षेत्र में सफलता और तरक्की मिलती गई. मैं कार्य में इतना व्यस्त रहता था कि पता ही नहीं चलता था कि कब दिन हुआ और कब रात. कुछ सोचने का समय ही नहीं मिलता था. नतीजा यह हुआ कि मैं 30 साल का हो गया, पर अभी तक कुंआरा था.

यह मेरी तीसरी नौकरी थी. गारमैंट ऐक्सपोर्ट हाउस का मैं बौस था. प्राइवेट नौकरी में जितना अच्छा काम करो उतना ही पैसा और प्रमोशन दोनों मिलते हैं. व्यस्तता के कारण शादी के बारे में सोचने का कभी वक्त ही नहीं मिला. लेकिन इस कंपनी में एक लड़की गारमैंट डिजाइनर थी, जिसे बारबार देखने को जी चाहता था.

स्त्रियों की मानसिकता को समझ पाना बहुत मुश्किल है. शायद इसीलिए नारी को पहेली कहा गया है, जिसे समझना मुश्किल है. हमारी कंपनी की गारमैंट डिजाइनर भी इस का अपवाद नहीं थी. वह न केवल आधुनिकता का पुट लिए फैशनेबल कपड़े डिजाइन करती थी बल्कि पहनती भी थी. आज चाय के समय उसे देखा तो देखता रह गया. नीचे बंधी पारदर्शी साड़ी, लो कट व स्लीवलेस ब्लाउज जो पीठ पर नाममात्र की उपस्थिति दर्ज करवा रहा था, देख कर मेरा दिल जोरजोर से धड़कने लगा. खून का दौरा बहुत तेज हो गया. चाय पी कर मैं अपने कमरे में आ गया, परंतु उत्तेजना कम होने का नाम ही नहीं ले रही थी.

अचानक कमरे का दरवाजा खुला और उस ने प्रवेश किया. मैं अभी भी उत्तेजित अवस्था में था. वह ड्रैस डिजाइंस दिखाने आई थी, परंतु मेरा ध्यान तो कहीं और था. बातोंबातों में मेरा हाथ उस के हाथ से छू गया. कितना मृदु स्पर्श था. मन में आया जीवन भर उस का हाथ थामे रहूं. तभी हवा से उड़ कर एक डिजाइन का चार्ट नीचे गिर गया. वह उसे उठाने के लिए झुकी तो उस की साड़ी का पल्लू नीचे गिर गया. मुझे लगा मेरे दिमाग में कोई विस्फोट हुआ है और मेरी सोचने की शक्ति खत्म हो गई. मैं इंसान से शैतान बन गया. मेरा पूरा शरीर ज्वालामुखी की तरह अंदर ही अंदर फूट पड़ने के लिए सुलग रहा था. अंत में ज्वालामुखी फूट पड़ा, लावा निकल गया और सब कुछ शांत हो गया. 

मगर अब इतने दिनों बाद मुझे अपने किए पर पछतावा हो रहा है और अपनेआप से ग्लानि भी. मुझे क्या हक था किसी की जिंदगी बिगाड़ने का. पुलिस रिपोर्ट हुई, अदालत में केस हुआ, मुझे सजा हुई. एक क्षण की कमजोरी ने मुझे कहां से कहां पहुंचा दिया. मैं सोचता हूं मेरी जो बदनामी हुई क्या वह मृत्यु से कम है? इस से तो अच्छा था मौत ही आ जाती.

मनोविश्लेषक का दृष्टिकोण

हमारे समाज की संरचना ही ऐसी है कि पुरुष और नारी की सामाजिक स्थिति बहुत भिन्न है. जो स्वतंत्रता पुरुष संतान को उपलब्ध है वह स्वतंत्रता स्त्री संतान को दुर्लभ है. शुरू से ही लड़कों और लड़कियों को अलगअलग रखा जाता है. अलग परवरिश, अलग परिवेश, अलग स्कूल, अलग कालेज. हालांकि बड़े शहरों में यह स्थिति बदल रही है, लेकिन उस की भी अपनी समस्याएं हैं. किशोरवय और युवावस्था में विपरीत सैक्स के व्यक्ति के प्रति आकर्षण स्वाभाविक है. समस्या तब आती है जब यह आकर्षण सामाजिक मान्यताओं और वर्जनाओं को तोड़ता है. ऐसा न हो इस के लिए स्त्री व पुरुष दोनों में कामभावना के जागरण, उत्तेजना व उस की अनुक्रिया का अंतर समझना होगा. पुरुषों की कामभावना मुख्य रूप से उन के देखनेसुनने पर निर्भर रहती है. वे स्त्री या उस के शरीर को देखने भर से चाहे स्वप्न में या चित्र में या फिर वास्तव में बहुत जल्दी उत्तेजित हो जाते हैं और यह उत्तेजना अपनी तृप्ति चाहती है. शिखर पर पहुंच कर क्षरण के चरमआंनद की प्राप्ति के बाद उत्तेजना उतनी ही जल्दी ढल जाती है, इसलिए पुरुष बाद में काम से अनासक्त हो जाते हैं.

लड़कियों और स्त्रियों को पुरुष का यह मनोविज्ञान समझना बहुत जरूरी है, क्योंकि जानेअनजाने वे ऐसी ड्रैस पहन लेती हैं, जो शरीर की नुमाइश करती है. उस का प्रभाव पुरुषों पर कई बार क्षणिक उत्तेजना व आवेश का कारण बनता है. मानसिक तौर पर हर पुरुष बलात्कारी है. वह सपनों या खयालों में परायी स्त्रियों को भोग चुका होता है. पर वास्तविकता में वह किसी का बलात्कार करेगा या नहीं, यह कई बातों पर निर्भर करता है. जैसे उस समय एकांत है या नहीं, उत्तेजना का कारण, व्यक्ति विशेष का मानसिक चरित्र एवं परिवारिक संस्कार आदि.

जज का फैसला

हमारे देश की न्याय प्रणाली मुख्यतया गवाहों के बयानों पर निर्भर करती है. गवाह सच्चा हो या झूठा उस की बात मान ली जाती है. लेकिन उस समय क्या किया जाए जब कोई चश्मदीद गवाह ही न हो? बलात्कार यानी रेप इसी श्रेणी का अपराध है, जिस में कोई गवाह नहीं होता. गवाहों के अभाव में जज को अपना फैसला परिस्थितिगत साक्ष्य एवं मैडिकल जांच के आधार पर देना होता है. अत: ऐसे मसलों में फैसला देना बहुत मुश्किल होता है. इस के अलावा बलात्कार पीडि़ता और उस के परिवार वालों की झिझक, पुलिस व समाज का नजरिया, बलात्कारी की ऊंची पहुंच अथवा उस की मनी पावर, ये सभी अंतत: मुकदमे के सही फैसले में बाधक बनते हैं. नतीजतन बलात्कारी छूट जाते हैं या सजा कम करवा लेते हैं. इस मुकदमे में मुझे फैसला देना था. पीडि़ता के प्रति संवेदनशील होते हुए भी फैसला तो कानूनसम्मत देना था. बलात्कार के मामले में हमारा कानून बहुत लचर है और अधिकतम 7 साल की सजा होती है. पीडि़ता की मैडिकल रिपोर्ट तथा दोनों के कपड़ों पर लगे धब्बों की डीएनए व अन्य जांचों से बलात्कार की पुष्टि तो हुई, परंतु बचाव पक्ष बलात्कारी की पूर्व छवि, पीडि़ता से पूर्व पहचान और अन्य तर्कों से यह साबित करने में सफल रहा कि पीडि़ता का रवैया सहयोगात्मक था. इस वजह से मुझे सजा कम कर के 3 साल की कैद की सजा सुनानी पड़ी. काश, हमारे कानून अधिक कड़े होते.

पुलिस अफसर का कथन

मुझे पुलिस महकमे में काम करते हुए 25 साल हो गए है. मैं ने अपने कार्यकाल में बलात्कार अथवा रेप के केसेज बहुत देखे. गांवों के अधिकतर मामलों में तो एक अजीब बात देखने को मिली. आरोपी शादी करने का वादा कर के या बहलाफुसला कर भगा कर लड़की के साथ लगातार सैक्स संबंध बनाता रहता है. लड़की भी शादी के नाम पर वह सब करने को तैयार हो जाती है, जो शादी के बाद करना चाहिए. यह सिलसिला चलता रहता है. कभीकभी तो महीनों तक. दिक्कत तब आती है जब आरोपी शादी से मुकर जाता है. तब यह सैक्स संबंध रेप बन जाता है.

मेरे कार्यकाल में यह केस तो ऐसा आया जो इन सब से अलग था. यह केस तो यह बता रहा था कि परिस्थितिवश कैसे एक सामान्य व्यक्ति रेप कर बैठता है. यह व्यक्ति पढ़ालिखा एक कंपनी में अच्छे ओहदे पर था. पीडि़ता उसी के औफिस में काम करने वाली सुंदर, सुशील, फैशनेबल कन्या थी. औफिस में दोनों अकेले थे. जबकि किसी भी लड़की को परपुरुष के साथ अकेले नहीं रहना चाहिए. और रहना ही पड़े तो सावधान रहना चाहिए. विपरीतलिंगी जवान सहकर्मियों में आवेश में क्या कुछ घटित नहीं हो जाता है. लड़की की तरफ से एफआईआर दर्ज की गई. नतीजतन लड़के को 3 साल की सजा हुई. उस की अच्छीखासी नौकरी भी हाथ से चली गई और समाज में बदनामी हुई वह अलग.

कहते हैं बद अच्छा बदनाम बुरा. रेप केस में तो यह अक्षरश: सत्य है. ऐसी बातों को लोग मजा ले ले कर कहते सुनते हैं. लड़की की भी बदनामी हुई. उस का परिवार शहर छोड़ कर चला गया. पता नहीं उस की शादी हुई या नहीं. लड़का सजा काट कर आ गया है, परंतु नौकरी नहीं मिल रही है. जहां भी जाता है उस की बदनामी पहले पहुंच जाती है. दोनों को 3 मिनट के लिए जीवन भर का कर्ज चुकाना पड़ रहा है.

जीवन को आसान बनाए बीमा पौलिसी

भारत जैसे बढ़ती आबादी वाले देश में जीवन बीमा को उतना महत्त्व नहीं दिया जाता, जितना दिया जाना चाहिए. जबकि जीवन बीमा सिर्फ आप के पैसों को ही सुरक्षा प्रदान नहीं करता, बल्कि आप का भविष्य भी सुरक्षित करता है.

आज आमदनी के नए स्रोत की आवश्यकता है. यही वजह है कि सरकारी और निजी कंपनियों ने इस ओर दिलचस्पी दिखाई है. फलस्वरूप आज बैंकों की करीब 90 हजार शाखाएं भारत में हैं, जिन में से 15 से 20% बीमा का व्यवसाय भी कर रही हैं. इसलिए बैंक बीमा पौलिसी का सरल माध्यम बन गए हैं. समझना यह है कि आप अपने बैंक से बीमा पौलिसी कैसे लें :

हर बैंक का बीमा अधिकारी ग्राहक को पूरी जानकारी के साथ सभी कागजात व फार्म भी उपलब्ध करवाता है. बीमा राशि अधिक होने पर बैंक अधिकारी बीमा कंपनी की सहायता से मैडिकल परीक्षण का भी प्रबंध करवाता है. ग्राहकों का बैंक के साथ लंबा संबंध रहता है. सभी सहकारी क्षेत्र के बैंक, निजी क्षेत्र के कई बड़े बैंक भी इंश्योरैंस का काम कर रहे हैं. बस, समझना यह है कि आप बैंक से बीमा कैसे लें. आईआरडीए के अनुसार बैंक की शाखाओं में एक बीमा अधिकारी होता है, जिसे ‘स्पेसिफइडपर्सन’ भी कहते हैं. वह व्यक्ति बैंक की शाखाओं में ग्राहक की पूरी जानकारी उपलब्ध करवाता है. बीमा कराने से पहले उस के सभी पहलुओं पर अच्छी तरह गौर कर लें.

अब जानिए एक खास पौलिसी के बारे में

रिवर्स मौडगेज

5 साल पहले रिवर्स मौडगेज स्कीम बैंकों द्वारा बाजार में लाई गई, लेकिन यह अधिक लोकप्रिय नहीं हो पाई. 3 साल पहले सैंट्रल बैंक औफ इंडिया के चेयरमैन और नैशनल हाउसिंग बैंक के चेयरमैन के साथ स्टार यूनियन दाईची लाइफ इंश्योरैंस के मैनेजिंग डायरैक्टर और सीईओ के. सहाय की बैठक हुई. इस बैठक में रिवर्स मौडगेज विषय पर चर्चा हुई.

के. सहाय ने सुझाव दिया कि रिवर्स मौडगेज लोन स्कीम को बीमा कंपनी के लाइफ एन्यूनिटी स्कीम के साथ जोड़ दिया जाए तो ग्राहकों के लिए यह अधिक आकर्षक होने के साथसाथ बैंक के द्वारा दिया गया पैसा सुरक्षित रहेगा. इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए जनवरी 2009 में एक रिवर्स मौडगेज लोन एनेवल एन्वीटी प्लान को लौंच किया गया. इस के मुख्य बिंदु इस प्रकार हैं :

कोई भी व्यक्ति जिस के पास अच्छा मकान है, पर उस की बुढ़ापे में कोई नियमित आय नहीं है. वह इस मकान के मूल्यांकन के आधार पर नियमित मासिक आय प्राप्त कर सकता है.

रिवर्स मौडगेज लोन के तहत मकान का स्वामित्व आजीवन पति या पत्नी के पास रहता है. किसी भी स्थिति में वे मकान से बाहर नहीं होते.

एन्यूनिटी की रकम व्यक्ति की उम्र पर निर्भर करती है. 60 साल की उम्र वाले व्यक्ति के मकान की कीमत अगर 50 लाख है जिस में से 30 लाख इंश्यारैंस कंपनी को मिला है, तो आज के हिसाब से उस रकम में से करीब 20 हजार रुपए प्रति महीने तक उस व्यक्ति को मिलते हैं. इसे लोगों तक पहुंचाने के लिए स्टार यूनियन दाईची इंश्योरैंस कंपनी ने आसान शर्तें रखी हैं.

धन सुरक्षा प्लैटिनम

इस बारे में के. सहाय आगे कहते हैं कि यह सिंगल प्रीमियम पौलिसी है, जिस के अंतर्गत बीमा राशि पूरी तरह गारंटीड होती है. ग्राहक को इस पौलिसी को खरीदते समय पूरी सूचना लिखित रूप में दी जाती है. 1 लाख रुपए तक की रकम पर इनकम टैक्स की छूट है. 5 करोड़ तक का रिस्क इस में कवर किया जा सकता है. ये रिस्क फ्री है. अगर बीच में पैसे की आवश्यकता है तो सरेंडर करने की आवश्यकता नहीं पड़ती. लोन लेने की भी इस में व्यवस्था है.

फरवरी में स्टार यूनियन दाइची लाइफ इंश्योरैंस 3 साल पूरे करेगी, 3 साल में कपंनी ने साढ़े 3 लाख लोगों को बीमा पौलिसी बेची है. पिछले साल 933 करोड़ प्रीमियम हासिल कर कंपनी को इस साल 15 सौ करोड़ प्रीमियम प्राप्त करने की संभावना है. 34 साल से इस क्षेत्र में काम कर रहे के. सहाय का मानना है कि बीमा योजनाओं में महिलाओं की भागीदारी कम है, इसलिए वे महिलाओं के लिए छोटे पैमानों पर एजेंसी चैनल बनाने वाले हैं.

मैं जैसा था वैसा ही हूं : रणवीर सिंह

29 वर्षीय अभिनेता रणवीर सिंह ने अलगअलग भूमिका निभा कर उस मुकाम को हासिल कर लिया जहां पहुंचना आसान न था. फिल्मों में आने की इच्छा उन्हें शुरू से थी. लेकिन जिस तरह फिल्म इंडस्ट्री में फिल्मी परिवारों के बच्चों को लौंच किया जा रहा था उसे देख कर उन के लिए कोई जगह होगी या नहीं, यह सोच कर उन्होंने क्रिएटिव राइटिंग की तरफ गंभीरता से सोचना शुरू किया. इसी उद्देश्य से उन्होंने इंडियाना यूनिवर्सिटी से क्रिएटिव राइटिंग की कला सीखी. लेकिन उन्हें तो फिल्मों में काम करना था. अत: वापस मुंबई आ गए. इसी बीच उन्हें यशराज बैनर तले काम करने का मौका मिला और फिर वे फिल्म इंडस्ट्री में रम गए.

रणवीर को बनावटी लोग पसंद नहीं. वे किसी भी बात को कहने में कभी संकोच नहीं करते. पिछले दिनों उन से बातचीत हुई. पेश हैं, उस के कुछ खास अंश:

आप अपने कैरियरग्राफ को कैसे देखते हैं?

मैं अपने काम से बहुत संतुष्ट हूं. मैं ने हमेशा अलगअलग भूमिकाएं निभाई हैं. जोया अख्तर की फिल्म ‘दिल धड़कने दो’ का काम चल रहा है. यह बहुत ही वास्तविक और फ्रैश फिल्म है. यह संपूर्ण फिल्म है. इस तरह की फिल्में बहुत कम मिलती हैं. पहले मुझे शक था कि अभिनय के क्षेत्र में मैं सफल हो पाऊंगा या नहीं. पर अब लगता है कि ठीक जा रहा हूं, क्योंकि हर बार एक नया किरदार करने का औफर मिलता है. ‘बैंड, बाजा, बारात’ से ले कर ‘लेडीज वर्सेस रिकी बहल’, ‘लुटेरा’, ‘रामलीला’, ‘गुंडे’, ‘किल दिल’, ‘दिल धड़कने दो’ आदि फिल्में अपनेआप में अलग और बेहतरीन फिल्में हैं. मेरा काम दर्शकों को पसंद आ रहा है तो मैं सफल हूं. मैं आगे भी अच्छा काम करने की इच्छा रखता हूं.

आप बहुत ऐनर्जेटिक ऐक्टर माने जाते हैं. इस का राज क्या है?

कई बार लोग मुझे ऐसा कहते हैं पर यह ऐनर्जी मुझे लोगों से ही मिलती है, जो मुझे देखते हैं और मेरे बारे में अपनी प्रतिक्रिया देते हैं. मैं हमेशा लोगों को कुछ अधिक देना चाहता हूं. फिल्म ‘लुटेरा’ के समय मेरी पीठ की हड्डी टूट गई थी. 3 महीने मैं बैड पर पड़ा रहा. तब सोचता था कि पता नहीं ठीक होने पर दोबारा ऐक्शन, डांस कर पाऊंगा या नहीं. इस के बाद डेंगू हुआ. उस वक्त भी मुझे काम छोड़ कर आराम करना पड़ा. मैं अपने जीवन के हर काम को लास्ट समझ कर उसे पूरी तरह जी लेने की कोशिश करता हूं. फिर चाहे वह मां से मिलना हो या फिल्म की शूटिंग. शायद मैं इसी वजह से इतना ऐनर्जेटिक दिखता हूं.

अभी आप विज्ञापनों में भी काफी पौपुलर हो रहे हैं. क्या किसी स्क्रिप्ट में अपनी क्रिएटिविटी डालते हैं?

मैं किसी से कहता नहीं हूं कि मैं कुछ नया करूंगा या करना चाहता हूं. अगर कोई मुझ से मेरी राय मांगता है, तो मैं उसे अवश्य राय देता हूं. कई विज्ञापनों के क्रिएटिव औस्पैक्ट को मैं ने ही बनाया है. निर्देशक शाद अली हमेशा कुछ भी बनाते समय मुझ से परामर्श अवश्य लेते हैं. मैं 16 वर्ष की उम्र से उन से मिलता आ रहा हूं. वे मेरे भाई की तरह हैं. उन के साथ रह कर मैं ने काम सीखा, उन के साथ मैं ने असिस्टैंट डाइरैक्टर बन कर कई फिल्में बनाईं. उन्होंने ही मुझ में अभिनय कला को देख कर फिल्मों में काम करने की सलाह दी थी.

विज्ञापनों या फिल्मों को चुनते वक्त किस बात का खास ध्यान रखते हैं?

मेरा मानना है कि विज्ञापनों के जरीए गलत मैसेज नहीं जाना चाहिए. मैं नैगेटिव विज्ञापन नहीं करता. फिल्म वही चुनता हूं जिस में कुछ नयापन हो, जो अलग लगे और दर्शक मुझे याद रखें.

फिल्मों में आने के बाद आप की जिंदगी कितनी बदली है?

समय कम हो गया है. जिम्मेदारी बढ़ गई है. परिवार के साथ समय कम बिता पाता हूं. लेकिन अच्छी कहानियों पर काम करने की भूख बढ़ गई है. इस के अलावा कुछ अधिक बदलाव नहीं आया है. मैं जैसा था वैसा ही हूं.

आने वाली फिल्म कौन सी है?

‘किल दिल’ मेरी आने वाली फिल्म है, जिस में परिणीति चोपड़ा मेरे साथ है. उस ने अपनेआप को काफी निखारा है. बहुत प्रोफैशनल अभिनेत्री है.

आप किसे अपना आदर्श मानते हैं?

शाहरुख खान, सलमान खान, आमिर खान आदि सभी ने मुझे प्रभावित किया है. इस के अलावा गोविंदा की सभी परफौर्मैंस मेरे लिए खास हैं. उन के साथ फिल्म ‘किल दिल’ में अभिनय करना मेरे लिए बहुत बड़ी बात है. वे जबरदस्त अभिनेता हैं. हर किरदार में फिट हो जाते हैं.

अभी तो बच्ची है आलिया

2006 से ही इलियाना ने फिल्मों में काम करना शुरू कर दिया था पर हिंदी फिल्मों में पहला ब्रेक उन्हें फिल्म ‘बरफी’ से मिला. आलिया भट्ट और श्रद्धा कपूर से अपनी तुलना किए जाने पर इलियाना कहती हैं, ‘‘मेरी तुलना इन दोनों से करना गलत होगा, क्योंकि मुझे लगता है कि मैं उन दोनों से उम्र में थोड़ी बड़ी हूं.’’

वे आगे कहती हैं, ‘‘आलिया तो मेरे लिए बच्ची है. मैं और आलिया एक ही जिम में जाती हैं और मैं उसे वहां वर्कआउट करते हुए देखती हूं तो उस से कहती हूं कि आलिया तुम अभी बहुत छोटी हो, तुम्हें अपनी जिंदगी को और एंजौय करना चाहिए.’’ पर इलियाना मैम, आलिया ने जो पहचान इतनी कम उम्र और कम समय में हासिल की है, वहां तक आप का पहुंचना…

दीदी से तुलना पसंद नहीं

‘दावत ए इश्क’ की दावत के बाद अब परिणीति फिल्म ‘किलदिल’ में सभी के दिलों को निशाना बना रही हैं. पर मैडम तब बिलकुल उखड़ जाती हैं जब कोई उन की तुलना उन की कजिन प्रियंका से करने लगता है. परिणीति का कहना है कि उन की (प्रियंका) जगह अलग है मेरी अलग, हमारा कोई मैच नहीं. हमेशा कुछ नया करने की शौकीन परिणीति को अलगअलग किरदारों को परदे पर उतारने का शौक है. इस बारे में उन का कहना है कि मैं अपने कैरियर की शुरुआत से किरदारों के साथ ऐक्सपैरिमैंट करती आ रही हूं और अब मैं रीजनल फिल्में करना चाहती हूं, क्योंकि उन फिल्मों में काम करना मेरे लिए पूरी तरह से चुनौती भरा होगा.

बिग बी बनेंगे दीपिका के पापा

बिग बी के प्रधानमंत्री के स्वच्छ भारत अभियान में हिस्सा लेने पर माइक्रो ब्लौगिंग साइट ट्विटर पर मोदी ने लिखा, ‘जब अमिताभ बच्चन खुद झाड़ू उठा कर स्वच्छ भारत अभियान में शामिल हो गए हैं तो कौन इस से प्रेरित नहीं होगा. यह बहुत ही सार्थक प्रयास है.’

पिछले दिनों बिग बी सुजीत सरकार की फिल्म ‘पीकू’, जिस में वे दीपिका पादुकोण के पिता की भूमिका में हैं, की शूटिंग के लिए कोलकाता पहुंचे, तो शहर से जुड़ी कई यादों का आनंद लिया. यहां उन्होंने बीबीडी बाग में साइकिलिंग भी की. उन्होंने अपने ट्विटर अकाउंट पर लिखा है कि फिल्म ‘पीकू’ के शहर में हवाईअड्डे से ड्राइव करने पर कई सारी यादें उमड़ रही हैं. पिता और उस की बेटी के रिश्ते पर बनने वाली इस फिल्म में बिग बी बंगाली मोशाय के किरदार में काफी मोटे नजर आएंगे. फिल्म के फर्स्टलुक की पिक्चर जारी हो गई है, जिस में बिग बी चैकओवर शर्ट और हैट में नजर आ रहे हैं. फिल्म में इरफान खान लीड रोल में नजर आएंगे. यह फिल्म अप्रैल, 2015 में रिलीज होगी.

सुगंध महकाए तनमन

हर किसी को सुगंध अच्छी लगती है. जिस से सुगंध आ रही हो, उस की ओर दूसरे व्यक्ति का खिंचाव सहज ही हो जाता है. सुखद सुगंध तनमन दोनों को आनंदित करती है. परफ्यूम लगाने के बाद आप ज्यादा फैमिनिन और सिडक्टिव भी महसूस करती हैं. यही वजह है कि परफ्यूम लगाना हर कोई पसंद करता है. बाजार में उपलब्ध इस की वैराइटी से यह अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है कि लोगों को इसे लगाने का कितना शौक है.

कामोत्तेजक भी

परफ्यूम कामोत्तेजक की तरह होता है. सही परफ्यूम निश्चित रूप से आप की पर्सनैलिटी को एक अपील देता है. लगातार परफ्यूम का इस्तेमाल करते रहने से एक वक्त में वह आप के लाइफस्टाइल की निशानी बन जाता है. परफ्यूम की गंध बता देती है कि अभीअभी कौन यहां से गुजरा है.

बेहतरीन क्वालिटी का परफ्यूम बेशक पौकेट पर भारी पड़े, पर अन्य साधारण फ्रैगरैंस जैसे डियोडरेंट, बौडी स्प्रे, कोलोन या पैकेज्ड फ्रैगरैंस की तुलना में न सिर्फ आप को अपनी सुगंध से सराबोर करता है वरन आप को यह एहसास भी कराता है कि यह वाकई महंगा सौदा नहीं है. यह लंबे समय तक आप के शरीर पर लिपटा रहता है और आप को तरोताजा भी रखता है.

फ्रैगरैंस कंसल्टैंट रितेश के अनुसार, ‘‘फैशन और फ्रैगरैंस दोनों एकदूसरे से जुड़े हुए हैं. इन दिनों फ्रैश और ट्रांसपरैंट फ्रैगरैंस का चलन है, क्योंकि महिलाएं अपनी एक अलग व खुली सोच रखने लगी हैं. परफ्यूम भी अब ऐक्सैसरीज बनते जा रहे हैं.’’

पर्सनैलिटी के अनुसार चयन

परफ्यूम में करीब 22% ऐसेंशियल औयल होता है और किस परफ्यूम में ऐसेंशियल औयल की मात्रा कितनी होती है, उसी के आधार पर उस की क्वालिटी, कीमत व खुशबू निर्भर करती है. लेकिन परफ्यूम महंगा है या सब से लोकप्रिय है, इसलिए आप को उसे खरीदना चाहिए, यह जरूरी नहीं है, क्योंकि हो सकता है कि उस की खुशबू आप के शरीर के नैचुरल कैमिकल्स के साथ मेल न खाए. किसी और के परफ्यूम की खुशबू से प्रभावित हो उसे खरीदने की भूल न करें.

परफ्यूम का चयन करने से पहले अपनी पर्सनैलिटी का ध्यान रखें. यह जानें कि आप किस तरह की सोच रखती हैं. साथ ही मौसम का ध्यान रख कर ही परफ्यूम खरीदें. अगर सर्दी का मौसम है तो ओरिऐंटल सैंट्स ले सकती हैं, क्योंकि उन की स्ट्रौंग मस्की खुशबू गरमाहट का एहसास कराती है. गरमियों और वसंत के मौसम में फ्रूटी या फ्लोरल फ्रैगरैंस इस्तेमाल कर सकती हैं.

टैस्टिंग

परफ्यूम की टैस्टिंग करते समय उसे सीधे शरीर पर स्प्रे करें और 30 से 60 सैकंड तक इंतजार करें ताकि स्प्रे आप के रोमकूपों में समा जाए और आप को सैंट की पूरी सुगंध का पता भी चल जाए और यह भी जान जाएं कि वह आप के शरीर के नैचुरल कैमिकल्स के साथ किस तरह रिएक्ट करता है. एक बार में अलगअलग परफ्यूम के केवल 2-3 सैंपल ही टैस्ट करें अन्यथा उन की फ्रैगरैंस आपस में घुलमिल जाएगी और आप के लिए अपनी पसंद का परफ्यूम चुनना कठिन हो जाएगा. परफ्यूम नोट्स बोतल पर लिखे होते हैं, वे उस की खुशबू का निर्धारण करते हैं, इसलिए उन्हें ध्यान से पढ़ें.

सारे परफ्यूम में 3 नोट्स होते हैं- टौप नोट, जो सब से पहले उड़ता है, मिडिल नोट, जो कुछ देर बाद बनता है और तीसरा बेस नोट, जो वास्तविक सैंट होता है.

परफ्यूम खरीदते समय एक समय में एक ही बोतल लें, क्योंकि उस के नोट्स और महक केवल 1 वर्ष तक ही कायम रहते हैं. उस के बाद फ्रैगरैंस बदल जाती है और उस का असर भी खत्म हो जाता है. परफ्यूम खरीदने से पहले हर चीज के बारे में बारीकी से जान लें. सब से पहले यह तय करें कि आप कितनी तरह की फ्रैगरैंस का प्रयोग करती हैं, फिर कितनी बार और कितना परफ्यूम लगाती हैं. जो महिलाएं बहुत ज्यादा परफ्यूम लगाती हैं, वे 100 मि.ली. की बोतल खरीदें और जो विभिन्न अवसरों पर विभिन्न तरह के परफ्यूम लगाने की शौकीन हैं, उन के लिए 50 मि.ली. की बोतल ही पर्याप्त है.

कहां लगाएं

कई महिलाएं शिकायत करती हैं कि ब्रैंडेड परफ्यूम लगाने के बावजूद उस की फ्रैगरैंस बहुत देर तक नहीं रहती है. इस की वजह है कि आप उसे कहां लगा रही हैं. परफ्यूम हमेशा शरीर के पल्स पौंइट्स (जहां धड़कन होती है) पर ही लगाएं. पल्स पौइंट्स एक छोटे पंप का काम करता है यानी धड़कनों की धकधक के साथ परफ्यूम की खुशबू चारों ओर फैलती है.

परफ्यूम को दोनों कलाइयों, कानों के पीछे, गले के बीचोबीच और कुहनियों के जोड़ों पर लगाएं. कुछ लोग कपड़ों यहां तक कि बालों पर भी इसे छिड़क लेते हैं, जो ठीक नहीं.

बहुत अधिक मात्रा में परफ्यूम लगाने से महक ज्यादा देर तक कायम रहेगी यह जरूरी नहीं है. पल्स पौइंट्स पर इसे 1-2 बार ही लगाएं.

ऐलर्जी से बचें

डर्माटोलौजिस्ट डा. अमन वर्मा के अनुसार, ‘‘परफ्यूम आमतौर पर सिंथैटिक होते हैं और अधिकांश कैमिकल्स से बने होते हैं. ये कैमिकल्स त्वचा के लिए हानिकारक हो सकते हैं. इन से ऐलर्जी भी हो जाती है. दाने, जलन, ड्राइनैस यहां तक कि इन के इस्तेमाल से पिगमैंटेशन भी हो जाती है. संवेदनशील त्वचा के लिए तो ये बहुत हानिकारक साबित होते हैं. अगर त्वचा में किसी तरह का रिएक्शन हो जाए तो प्रभावित स्थान को ठंडे पानी से धोएं. फिर अच्छा वाटरबेस्ट मौइश्चराइजर लगाएं. उस जगह को खुजलाएं नहीं वरना सूजन हो सकती है. ऐसे नैचुरल परफ्यूम का इस्तेमाल करें जिस में कैमिकल्स न हो. मस्क और बर्गामोट में नैचुरल तत्त्व होते हैं. हालांकि वे बहुत महंगे होते हैं.’’

जांचपरख कर खरीदें ज्वैलरी

आज आभूषण सिर्फ सजनेसंवरने के लिए ही नहीं, निवेश के लिहाज से भी चलन में हैं. इसलिए इन्हें खरीदने से पहले कुछ बातों का ध्यान अवश्य रखें.

गहने खरीदते समय क्याक्या सावधानियां बरतनी चाहिए यह जानने के लिए हम ने बात की जैम व आभूषणों की जानीमानी प्रयोगशाला ‘जैमोलौजिकल इंस्टिट्यूट औफ अमेरिका’ (जीआईए) के  भारतीय संस्थान की मैनेजिंग डायरैक्टर निरूपा भट्ट से.

जैमोलौजिकल इंस्टिट्यूट औफ अमेरिका प्रयोगशाला के मुख्य कार्य कौनकौन से हैं?

इस प्रयोगशाला में आभूषणों को उत्तम गुणवत्ता प्रदान करने के लिए डायमंड के कैरेट, क्लैरिटी व कट क ो निर्धारित किया जाता है. इस के अतिरिक्त यह लोकप्रिय ज्वैलरी शैक्षिक संस्थान भी है. यह भारत भर में आभूषणों पर उपयोगी सेमिनार व वर्कशौप का भी आयोजन करता है. 1950 में स्थापित यह लाभ निरपेक्ष संस्था आज विश्व स्तर पर ख्याति प्राप्त कर चुकी है और वर्तमान में 14 देशों में कार्यरत है.

जीआईए कैसे कार्य करता है?

यह जैमोलौजिकल लैबोरेटरी व जानामाना हौलमार्क ब्रैंड है, जो डायमंड, कलर्ड स्टोंस व पर्ल्स की गुणवत्ता व विश्वसनीयता को प्रामाणिकता प्रदान करता है. इस के अलावा जीआईए देश भर में जैम व आभूषणों से संबंधित कोर्सेज भी कराता है.

आधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल कर के लैब में नकली आभूषणों की जांच की जाती है. वहीं नैचुरल जैम्स के रंग व क्लैरिटी में सुधार कर उन के लुक को आकर्षक बनाने का कार्य भी किया जाता है.

आभूषण खरीदने से पहले किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?

किसी भी बेशकीमती आभूषण को खरीदने से पहले इंटरनैट पर रिसर्च जरूर करें व जीआईए जैसे विशेषज्ञों से सुझाव भी ले सकती हैं. जीआईए की वैबसाइट पर आभूषणों से संबंधित आवश्यक सुझाव व जानकारी दी गई है. इस संस्था के विशेषज्ञों से आभूषणों की गुणवत्ता व उन के रूप को बदलने से संबंधित प्रश्न भी पूछे जा सकते हैं, जो विश्वसनीय व आकर्षक आभूषण खरीदने के लिए काफी उपयोगी सिद्ध होते हैं.

जीआईए जैसी प्रतिष्ठित प्रयोगशाला द्वारा प्रमाणित किए गए आभूषण खरीदना फायदेमंद रहता है. उपभोक्ताओं को ज्वैलर से आवश्यक  जानकारी व विश्वसनीयता से संबंधित तर्कपूर्ण सवाल भी जरूर करने चाहिए. आभूषण खरीदना भी एक निवेश ही है. अत: इसे खरीदने से पहले पूरी जानकारी प्राप्त कर लें.

ज्वैलरी इंडस्ट्री में कैरियर कैसे बनाया जा सकता है?

आज ज्वैलरी इंडस्ट्री में काफी अवसर उभर रहे हैं. हमारे द्वारा कराए जाने वाले ग्रैजुएट जैमोलौजिस्ट के कोर्स में जैमस्टोंस के निर्माण व उन की गुणवत्ता की जांच के बारे में सिखाया जाता है. इस में डिप्लोमा कोर्स किया जा सकता है, जिस में ज्वैलरी रिटेल सैक्टर के विषय में पढ़ाया जाता है.

ज्वैलरी डिजाइनिंग कोर्स भी भविष्य के लिए अच्छा विकल्प है. इस के अलावा आभूषणों के विषयों पर हौबी कोर्सेज भी किए जा सकते हैं. इन कोर्सेज द्वारा आभूषणों की मूलभूत जानकारी प्रदान की जाती है.

आज नकली आभूषणों का बाजार गरम है. कहीं इस का कारण लोगों में रत्नों को ले कर अंधविश्वास तो नहीं?

मैं लोगों के अंधविश्वास पर कोई टिप्पणी नहीं करना चाहती. मेरे हिसाब से आभूषण निवेश का बहुत अच्छा विकल्प हैं. जैमस्टोन खरीदने से पहले उपभोक्ताओं को निवेश को सुरक्षित करना चाहिए. उन्हें देख लेना चाहिए कि आभूषण प्रमाणित हैं कि नहीं. प्रमाणपत्र में आभूषणों को उन की गुणवत्ता के अनुसार ग्रेड दिया जाता है. यह सुनिश्चित कर लें. नकली आभूषणों की जांच के लिए जीआईए विशेषज्ञ वैज्ञानिक रिसर्च कर रहे हैं, वहीं ज्वैलर्स को भी अपना कर्तव्य निभाना चाहिए कि उपभोक्ताओं को आभूषण बेचते समय सारी आवश्यक जानकारी व विश्वसनीयता सुनिश्चित कर दें.

आधुनिकता में सजे परंपरागत परिधान

ग्लोबलाइजेशन की वजह से फैशन का जलवा चाहे भारत हो या विदेश, हर जगह देखने को मिलता है. फैशन की दुनिया आज इतनी बड़ी हो चुकी है कि हर कोई इसे किसी न किसी रूप में अपनाना चाहता है. चाहे डिजाइनर हो या खरीदार या आम इंसान आज हर कोई फैशन में शामिल होना चाहता है. और ऐसा हो भी क्यों न? आज बौलीवुड से ले कर टीवी तक का हर कलाकार एक बार रैंप पर प्रसिद्ध डिजाइनर के कपड़े पहन कर उतरना चाहता है, जिन्हें डिजाइन करने का मौका जाहिर सी बात है डिजाइनरों को, तो उन्हें देख कर उन्हें अपनाने का मौका हर किसी को मिलता है.

ऐसा ही जलवा इस साल लैक्मे फैशन वीक विंटर फैस्टिव के इंडियन टैक्सटाइल डे पर देखने को मिला, जिस में सभी नामचीन डिजाइनरों ने भारतीय वस्त्र उद्योग को विश्व स्तर तक पहुंचाने की भरपूर कोशिश की. टसर, सिल्क, जामदानी, पेशावरी, सिल्क, बनारसी, रौ सिल्क आदि के दर्जनों भारतीय परिधान अलगअलग रूप में उतारे गए.

डिजाइनर प्रतिमा पांडे के ‘प्रमा’ लेबल ने ‘मिडवे गार्डन’ के दृश्य को साकार किया. इस में नैचुरल फैब्रिक को अधिक महत्त्व दिया गया, इसलिए सिल्क, चंदेरी और मद्रास कौटन चैक्स के ऊपर फ्लोरल ऐंब्रौयडरी का प्रयोग किया गया, जो देखने में काफी ऐलिगैंट थी. इस बारे में प्रतिमा का कहना था कि यह कलैक्शन सन 1920 से प्रेरित है. इस तरह के कपड़े आप किसी भी अवसर पर पहन सकते हैं. यह रैट्रो फैशन की याद दिलाता है और यह स्टाइलिश कलैक्शन हर किसी पर जंचता है.

डिजाइनर श्रुति संचेती के ‘पिनाकेल’ ब्रैंड ने सिल्क के ऊपर बाइबै्रंट कलर और डिजाइन प्रस्तुत किया. श्रुति बताती हैं कि मेरा विंटर कलैक्शन सिल्क को समर्पित था. भारत में सिल्क की बहुत वैराइटी है जिसे लोग जानते नहीं हैं. ऐसे में हम डिजाइनर का फर्ज बनता है कि हम उसे अलगअलग रूप में विश्व स्तर तक पहुंचाएं. मैं ने उत्तर के बनारसी सिल्क और दक्षिण की पोचमपल्ली को नए रूप में उतारा है. इस की रिचनैस को बनाए रखने के लिए जरदोजी, कट वर्क और ऐंब्रौयडरी का प्रयोग किया गया है. त्योहारों के समय इस तरह के चटकदार रंग और परिधान सभी पहन सकते हैं. युवाओं से ले कर वयस्क तक सभी इस तरह के परिधान पहन सकें, इसे सोच कर केवल साड़ी ही नहीं बल्कि स्कर्ट, प्लैजोपैंट, लौंग कुरता, प्लीटिड पैंट, ब्लाउज आदि सभी प्रकार के वस्त्र बनाए गए हैं, जिन्हें हर समय व्यक्ति प्रयोग में ला सकता है.

कोलकाता के डिजाइनर सौमित्र मंडल पिछले 5 साल से इस फैशन वीक में आते हैं. उन का कहना था कि मैं बंगाल टैक्सटाइल को अपने वस्त्रों में प्रयोग करता हूं, जिस में खादी के कपड़े अधिक होते हैं. इस बार मैं ने रौयल फैमिली लाइफस्टाइल को ध्यान में रख कर वस्त्र बनाए हैं, जो विंटर में बहुत आकर्षक होंगे. आज के परिवेश को ध्यान में रख कर मैं ने पीच कलर और वेज कलर रखा है, जिन्हें कोई भी महिला आज से कई सालों बाद भी पहन सकती है. दरअसल, फैशन हमेशा बदलता है, इसलिए स्टाइल पर अधिक ध्यान केंद्रित करना पड़ता है. इस में अधिकतर बंद गला कुरता, जैकेट्स, पैरेलल पैंट्स, कैपरीज व मिनी कुरता आदि फौर्मल और इनफौर्मल सभी तरह के परिधान हैं.

हरियाणा, पंजाब और राजस्थान की राबाड़ी जनजाति से प्रेरित हो कर वैशाली एस. ने रंगबिरंगे परिधान रैंप पर उतारे. वैशाली कहती हैं कि चटकदार रंग हमेशा त्योहारों में पौपुलर होते हैं. वैशाली को लाल, औरेंज, गुलाबी, नीला, पीला आदि सभी रंग अच्छे लगते हैं, इसलिए उन्होंने उन्हीं रंगों के प्रयोग से लहंगाचोली, साड़ीब्लाउज आदि बनाए हैं. उन्हें लगता है कि ये आदिवासी रंग लोग अधिक पसंद करते हैं और अधिक घेर वाली रंगबिरंगी लहंगाचोली किसी खास अवसर पर हमेशा अलग लुक देती है.

जिस तरह एक अच्छा परिधान आप के व्यक्तित्व को निखारता है, वैसे ही मेकअप उस में चार चांद लगाता है. लैक्मे इनोवेशन की हैड पूर्णिमा लांबा बताती हैं कि फैशन और मेकअप साथसाथ चलते हैं. अगर मनीष मल्होत्रा ने पर्पल घाघरा बनाया है, तो मुझे पर्पल मेकअप के 3-4 शेड निकालने पड़ते हैं. इस साल आगे ब्राइडल सीजन है. ऐसे में चटकदार रंग नए रूप में पेश किए गए. मेकअप शेड्स हम अपने मेकअप ऐक्सपर्ट और डिजाइनर से बात कर के निकालते हैं. हमारी कोशिश रहती है कि इंडियन टैक्सटाइल को नए रूप में लोगों तक पहुंचाया जाए, ताकि आज के युवा उसे पहन कर गर्व महसूस करें, न कि उसे पुराना स्टाइल समझ कर अपनाने से बचें. इस बार प्लम, मैजैंटा, वायलेट व पर्पल रंग थोड़े मौडर्न कलर कौंबिनेशन में नजर आएंगे.

फैशन का बदलता स्वरूप

पिछले कुछ सालों से भारतीय फैशन हर 6 महीने में बदलता है. फैशन को आगे बढ़ाने में मध्यवर्ग का काफी योगदान है, जिस की क्रय शक्ति पहले की तुलना में काफी बढ़ चुकी है.

आज हर व्यक्ति ऐसा फैशन चाहता है जो कार्यालय से ले कर पार्टी तक चल सके. साथ ही आरामदायक और आकर्षक भी हो. इसी को ध्यान में रख कर डिजाइनर नएनए डिजाइन बना कर ऐफोर्डेबल कपड़े मार्केट में उतारता है.

इस बारे में कोलकाता के डिजाइनर सौमित्र मंडल बताते हैं कि पहले फैशन फिल्मों से आता था. हीरोइनें या हीरो जैसे कपड़े पहनते थे वैसे ही लोग भी पहनने लगते थे. श्रीदेवी, रेखा, डिंपल आदि का स्टाइल सभी महिलाएं अपनाना पसंद करती थीं. यहां तक कि हेयरस्टाइल भी कौपी किए जाते थे. पर अब फिल्में फैशन जगत से प्रभावित हो रही हैं. बदलाव नैटवर्किंग, टीवी चैनल्स और रैंप शो के आधार पर होता है. इस के अलावा क्षेत्रीय संस्कृति और रहनसहन भी उस से जुड़ा होता है.

आज कोई भी व्यक्ति जब औफिस जाता है तो उस वक्त वह ऐसी पोशाक पहनना चाहता है, जो उस की इमेज को बनाए रखे. और अगर उसे शाम को किसी पार्टी में जाना होता है तो वह चाहता है कि वही पोशाक पहन कर वह पार्टी में जा सके. यह वैस्टर्न परिधान से संभव हो पाता है. लेकिन आज हमारे देश के परिधान विदेशों में भी पसंद किए जाने लगे हैं.

भारत का फैशन एक ग्लैमरयुक्त फैशन है, जिस में पारंपरिकता के साथसाथ आधुनिकता भी होती है, इसलिए मौडल से ले कर अभिनेत्रियां सभी इसे पहनना पसंद करती हैं.

फैशन में वस्त्रों के साथसाथ लिंजरी में भी काफी बदलाव आया है. लिंजरी हमेशा आरामदायक होनी चाहिए जिस से आप की पोशाक सुंदर दिखे. भारत में लिंजरी का बाजार आज काफी विकसित हो चुका है. आज फैशन के लेटैस्ट स्टाइल में लो बैक ब्लाउज और कुरते पहने जाते हैं, इसलिए हमें लिंजरी भी लेटैस्ट स्टाइल की उपलब्ध है. सही लिंजरी से आप का आत्मविश्वास बढ़ता है.

भारत में थोड़ी ढकी हुई लिंजरी महिलाएं पसंद करती हैं, जबकि विदेशों में ट्रांसपेरैंट लिंजरी पसंद की जाती है. हर महिला को बौडी शेप के आधार पर लिंजरी पहननी चाहिए. अगर हैवी वेट है, तो आरामदायक और अपलिफ्ट वाली लिंजरी ठीक रहती है और अगर पतली महिला है तो पुशअप या एनहांस वाली लिंजरी स्टाइल के लिए सही होती है.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें