दुनिया परेशान मोटापे से

मोटापा विश्व के लिए बड़ी चुनौती बनता जा रहा है. लोगों के मोटापे की समस्या जलवायु परिवर्तन की समस्या से कम गंभीर नहीं है. कहने को तो यह समस्या अभी अपने विस्तार से काफी पीछे है लेकिन इस के गंभीर रूप धारण करने में ज्यादा समय नहीं रह गया है. क्योंकि विश्व भर में 50% से भी ज्यादा लोग सामान्य से अधिक वजन की समस्या से जूझ रहे हैं. लेकिन सामान्य से अधिक वजन को मोटापे की श्रेणी से अलग रखा गया है. यदि बौडी मास इंडेक्स (बीएमआई) 18.5 से 25 के बीच है तो इस मात्रा को स्वस्थ माना जाता है, लेकिन 25 से ऊपर बीएमआई को सामान्य से अधिक व 30 से अधिक को मोटापे की निशानी माना जाता है. यों तो बीएमआई के आंकने का स्तर सभी देशों में अलग है, लेकिन मानक के तौर पर इसी इंडेक्स को तवज्जो दिया जा सकता है. पुरुषों में 40 इंच से ज्यादा और महिलाओं में 35 इंच से ज्यादा मोटी कमर बीमारी का सबब है.

भारतीय भी पीछे नहीं

दुनिया भर में जितने लोग मोटापे की समस्याओं का सामना कर रहे हैं, उन में से फिलहाल भारतीय मूल के लोगों का लगभग एक चौथाई यानी 25% हिस्सा है. अगर यही रफ्तार जारी रही तो यह संख्या बढ़ कर 2020 में 40% हो जाएगी. विश्व स्वास्थ संगठन के अध्ययन में भी बताया गया है कि वजन बढ़ने का खतरा एशिया वालों में ज्यादा पाया गया है. वैज्ञानिकों ने कुछ ऐसे कारणों का पता लगाने का दावा किया है कि भारतीय मूल के लोगों में मोटापे से संबंधित समस्याएं ज्यादा क्यों होती हैं. ऐसा पाया गया है कि भारतीय मूल के लोगों में एक ऐसा जीन होता है, जो कमर के आसपास वजन बढ़ाने की वजह बनता है. यह जीन एमसी4आर नामक जीन के पास स्थित रहता है और इस जीन को प्रभावित भी करता है. एमसी4आर नामक यह जीन शरीर में ऊर्जा के स्तर को नियंत्रित करता है और निर्धारित करता है कि हम कितना और किस तरह का खाना खाते हैं. हमारे शरीर को कितनी ऊर्जा खर्च करने और कितनी इकट्ठा करने की जरूरत होती है. इसी प्रक्रिया में भारतीय मूल के कुछ बच्चों में भी मोटापा हो जाता है.

यह जीन समूह कमर के आसपास रहता है और इस से 2 मिलीमीटर तक वहां वसा जमा हो जाती है और इसी वजह से शरीर पर इंसुलिन का असर होना बंद हो जाता है. और इस से टाइप-2 डायबिटीज होने का रास्ता खुल जाता है. इसलिए भारत में अन्य बीमारियों के पनपने और मरीजों की संख्या में लगातार हो रही वृद्धि के पीछे मोटापे का एक बड़ा हाथ माना जा सकता है.

मोटापा सभी देशों में

दक्षिण और पूर्वी एशिया को छोड़ कर विश्व के सभी हिस्सों में लोग मोटापे के शिकार हो रहे हैं. विश्व के 63 देशों में रहने वाली 50% से 66% जनसंख्या का वजन सामान्य से अधिक पाया गया. अमेरीका की दो तिहाई जनसंख्या का वजन सामान्य से अधिक है और इस में से एक तिहाई मोटापे से ग्रस्त है. कनाडा और दक्षिण अफ्रीका जैसे देशों में भी मोटापा गंभीर रूप ले चुका है. यहां सामान्य से ज्यादा वजन वाले लोगों को 40% महिलाएं और पुरुषों का वजन सामान्य से ज्यादा पाया गया. जबकि दक्षिण अफ्रीका में यह 45% पाया गया. जिन लोगों का वजन सामान्य से अधिक होता है उन में हृदय रोग, टाइप-2 मधुमेह होने की संभावना ज्यादा होती है. दुनिया भर के मधुमेह रोगियों में 85% टाइप-2 मधुमेह ही होता है और इन में से 90% या तो मोटे या फिर अधिक वजन वाले हैं. इसलिए इस पर नियंत्रण जरूरी है.

विश्वस्तरीय कोशिश

एस्कार्ट हास्पिटल के हृदय रोग विशेषज्ञ डा. अनिल ढल कहते हैं कि सामान्य से अधिक शारीरिक वजन की समस्या स्वाइन फ्लू और एचआईवी जैसे संक्रामक रोगों से भी बड़ी है. देश में लगभग 48% लोग सामान्य से अधिक और 5% मोटापे से ग्रस्त हैं. यह एक दुखद विडंबना है कि विश्व में अनेक लोग भुखमरी के शिकार हैं, वहीं विश्व के कई विकसित देशों के नागरिक मोटापे की समस्या से जूझ रहे हैं. इसलिए इस के समाधान के लिए तत्परता से कदम उठाने और दुनिया भर के नेताओं से समान कार्यनीति पर सहमति कायम करने की कोशिश की जानी चाहिए. इस पर काबू पाने के लिए सभी को स्वास्थ्यवर्धक भोजन मुहैया करना जरूरी है और दुनिया भर के नेता इस बारे में एक वैश्विक समझौते पर सहमत हों. बाजार में बिकने वाले खाद्यपदार्थों की बिक्री और लेबलिंग के नियमों को और कड़ा करना चाहिए. इस से निबटने के लिए भोजन और व्यायाम संबंधित आदतों में बड़े पैमाने पर बदलाव की जरूरत है.

पुरानी आदतों की वजह से मोटापे पर काबू पाना उतना आसान नहीं है, इस से नजात पाने के लिए मजबूत इच्छा शक्ति की जरूरत है. जहां मोटापे का स्तर आनुवंशिक गुणों पर आधारित है वहां आनुवंशिक गुणों या अवगुणों को बदलना तो मुश्किल है पर ऐसी ही अन्य स्वास्थ्य समस्याओं की रोकथाम पर ज्यादा जागरूक तरीके से ध्यान तो दिया जा सकता है. डायबिटीज और दिल का दौरा पड़ने से संबंधित समस्याओं के पीछे जिस जीन का हाथ होता है. अगर इस के बारे में बेहतर तरीके से जानकारी और समझदारी हासिल कर ली जाए तो लोगों की इस समस्या के बारे में पता लगाने में ज्यादा आसानी हो सकती है कि उन का कौन सा आनुवंशिक जीन मोटापे के लिए उन्हें ज्यादा संवेदनशील बनाता है. और उस को ध्यान में रखते हुए धीरेधीरे जोर पकड़ रही इस बीमारी के लिए विकल्पों की परवाह किए बगैर इस से निबटने के लिए शीघ्र तैयारी की जरूरत है.

मैरिज काउंसलिंग जरूरी

भारतीय समाज में आज भी इतना खुलापन नहीं आया है कि विवाहपूर्व नौजवान काउंसलिंग के लिए बेधड़क डाक्टर के पास जाएं. लेकिन इस संबंध में जानकारों की यही राय है कि जब आप किसी अनजान सफर पर निकलते हैं तो 10 लोगों से पूछने के बदले उस विशेषज्ञ से जानकारी लेना ज्यादा उचित समझते हैं, जो आप को सफर के बारे में ज्यादा सटीक और बेहतर जानकारी दे सके. इसलिए विवाह के सफर पर निकलने से पहले यह एक समझदारी भरा कदम ही माना जाएगा कि आप इस डगर के संबंध में किसी विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें. इस संबंध में दिल्ली के मैरिज काउंसलर डा. एस.के. शर्मा का कहना है कि मैरिज काउंसलिंग 2 बातों से जुड़ी होती है. पहली स्वास्थ्य से संबंधित तो दूसरी रिश्तों से संबंधित. जहां विवाह के पश्चात स्वास्थ्य संबंधी काउंसलिंग आप के वैवाहिक जीवन में काम आती है, वहीं रिश्तों से संबंधित जानकारी होने से नवविवाहित नए माहौल में खुद को एडजस्ट आसानी से कर लेते हैं.

हेल्थ काउंसलिंग

दिल्ली के मशहूर मैरिज काउंसलर डा. कमल खुराना का कहना है कि विवाह बंधन में बंधने वाले लड़केलड़कियों को हम सब से पहले यही सलाह देते हैं कि वे एकदूसरे के रक्त के आर.एच. फैक्टर की जानकारी जरूर लें. यह जानकारी विवाह के बाद बच्चों के जन्म के लिए बेहद आवश्यक है. इस के अलावा आप को अपने भावी जीवनसाथी के थैलिसीमिया टेस्ट और एच.आई.वी. टेस्ट के संबंध में भी जानकारी अवश्य रखनी चाहिए. डायबिटीज और ब्लडप्रेशर के मरीजों को अपनी यह समस्या अपने भावी जीवनसाथी को सब से पहले बता देनी चाहिए. इस के लिए वे यह सोच कर चुप न लगाएं कि उन की इस समस्या को जान कर उन्हें पसंद करने वाला नापसंद न कर दे. अगर रिश्ता जुड़ने से पहले ही सब कुछ साफसाफ बता दिया जाए तो बाद में कई दिक्कतों से बचा जा सकता है. यह बात लड़के और लड़की दोनों पर ही लागू होनी चाहिए.

खुल कर बात करें

डा. एस.के. शर्मा कहते हैं कि हम लड़केलड़कियों की काउंसलिंग करते हुए उन से यही कहते हैं कि शादी के बाद सेक्सुअली इंटीमेसी के दौरान खयाल रखें कि यदि कोई परेशानी आए तो अपने स्पाउस से खुले दिमाग से बातचीत करें, क्योंकि कुछ परेशानियां स्पाउस से बातचीत करने के कारण खुदबखुद सुलझ जाती हैं.

स्वास्थ्य संबंधी काउंसलिंग में डाक्टर विवाह योग्य युवकयुवतियों को सलाह देते हैं कि वे जब मानसिक, शारीरिक, भावनात्मक और आर्थिक रूप से सक्षम हों तभी शादी करें. शादी एक म्युचुअल नरिशमेंट की तरह है, इसलिए विवाह जब जुड़ता है तो इन बातों का एकदूसरे से आदानप्रदान होना भी जरूरी है. अगर आप इन चारों में से एक भी बात में पूरी तरह सक्षम नहीं हैं तो बेशक विवाह देर से करें लेकिन किसी दबाव में आ कर कभी शादी न करें. डा. खुराना का कहना है कि हम लड़कियों को भावनात्मक रूप से सक्षम होने की सलाह इसलिए भी देते हैं, क्योंकि विवाह के पश्चात गर्भावस्था में उन के भावनात्मक स्वास्थ्य का पूरा असर गर्भस्थ शिशु पर पड़ता है. इसलिए वे बेबी के लिए तभी प्लानिंग करें जब वे मानसिक और शारीरिक रूप से तैयार हों.

विकास पर असर

यह बात शोध द्वारा सत्यापित भी हो चुकी है कि भावनाओं से प्रभावित होने पर मस्तिष्क से निकलने वाले सिगनल्स को शरीर सुनता है. अगर ये भावनाएं दुख से भरी हों तो वे गर्भावस्था तथा डिलीवरी को भी दुखदायी बना देती हैं. अगर मां तनाव में होगी तो निश्चित है कि बच्चा भी तनाव में आएगा. इस से ब्लीडिंग होना, दर्द होना जैसी समस्याओं का सामना गर्भवती को तो करना ही पड़ता है, साथ ही इस से बच्चे के विकास पर भी बुरा असर पड़ता है.

रिलेशन काउंसलिंग

डा. एस.के. शर्मा कहते हैं कि शादी के बाद के रिश्तों में निजी रिश्तेदारों और सामाजिक दायरे में आने वाले परिचितों से संबंध बनते हैं. ये संबंध इस बात पर निर्भर करते हैं कि आप ने उन लोगों को कितना एक्सप्लोर किया है. शादी जैसे रिश्ते को ताउम्र बनाए रखने के लिए पहले तो एकदूसरे को समझना बेहद जरूरी है, उस के बाद अपने स्पाउस से जुड़े रिश्तेदारों की भावनाओं को समझना होता है.

समझने में आसानी

अकसर होता यह है कि शादी होने से पहले तक लड़कालड़की एकदूसरे के सामने अपनी अच्छाइयां ही दिखाते हैं, लेकिन जब शादी होती है तो वास्तविक जिंदगी से सामना होता है. तब एकदूसरे की अच्छाइयां, कमियां सामने आती हैं, जिन्हें जान कर नवविवाहित अपनी प्रतिक्रियाएं व्यक्त करने लगते हैं. ये प्रतिक्रियाएं कभीकभी कड़वी भी होती हैं, इसलिए एकदूसरे की अपेक्षाओं पर खरा उतरने के लिए जरूरी है पहले ही एकदूसरे के सामने अपनी अच्छाइयों और बुराइयों को खोल कर रखें. एक बार किसी व्यक्ति की समझ में यह आ जाए कि दूसरा व्यक्ति उस से किस बात में अलग है तो उसे दूसरे को समझने में ज्यादा आसानी हो जाती है.

सामंजस्य जरूरी

डा. कमल खुराना नवविवाहितों को एकदूसरे के फैमिली सेटअप को जानने की सलाह अवश्य देते हैं. अलगअलग पृष्ठभूमि के कारण लड़के और लड़की के परिवार की सोच में कुछ भिन्नता तो होती ही है जैसे जहां अगर लड़की के परिवार में सामाजिक तौर पर लोगों से घुलनामिलना कम होता है, वहीं लड़के के घर में लोगों का आनाजाना बहुत होता है. ऐसे में लड़की से अपेक्षा की जाती है कि वह लोगों के साथ घुलेमिले, बातचीत करे. ऐसे में लड़की सामंजस्य बैठा ले तो तालमेल बन जाता है. इसी तरह लड़के को भी लड़की के फैमिली स्टाइल को जानने के लिए उस के ही लेवल पर बातचीत करनी चाहिए. साथ ही दोनों को एकदूसरे के परिवारों के कस्टम जानने के लिए भी हमेशा दिमाग खुला रखना चाहिए.

आजकल यह भी देखने में आ रहा है कि लिव इन रिलेशन में रहने वाले लोग पहले तो एकदूसरे से छोटीछोटी बातें शेयर करते हैं, लेकिन शादी होते ही उन के बीच सारी बातें बदल जाती हैं. क्यों? इस संबंध में डा. एस.के. शर्मा का कहना है कि शादी करने के बाद तो 2 लोगों को एक मौका मिलता है कि वे अपनी हर बात, चीज बेहद करीबी तौर पर शेयर कर सकते हैं लेकिन जब यह नहीं होता तो रिश्तों के बीच स्वार्थ की बू आने लगती है. होना तो यही चाहिए कि अपनी डिफरेंट स्टाइल को बदल कर एक कौमन स्टाइल को अपनाया जाए. इस के लिए एकदूसरे से कंप्रोमाइज न कर के एकदूसरे को एकमोडेट करेंगे तो हर चीज का ज्यादा आनंद ले सकते हैं.

एकदूजे को समझें

डा. खुराना मानते हैं कि आमतौर पर लड़केलड़कियां शादी के बाद ‘दो जिस्म एक जान हैं हम’ कहावत पर चलते हैं. लेकिन हम उन्हें सलाह देते हैं कि आप दोनों 2 जिस्म हैं तो उन्हें 2 जिस्म ही बना रहने दें और अपने स्पाउस को थोड़ी जगह दें. 2 हाथ थाम कर एक बनें यह जरूरी नहीं बल्कि जरूरी है 2 को 2 ही रहने दें. अकसर एकदूसरे के प्यार में खोने वाले पतिपत्नी इस कदर एकदूसरे की आदतों को अपना लेते हैं कि उन का अपना कुछ निजी व्यक्तित्व रहता ही नहीं.

पर्सनैलिटी का विकास

लिहाजा वक्त के साथ जब उन्हें इस बात का एहसास होता है तो वे डिप्रेस भी होने लगते हैं.इसलिए जरूरी है अपनी सोच, अपनी पसंद को अलग बनाए रखें. यह इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि 2 अलगअलग सोच के लोग जब जुड़ते हैं और वे अपनीअपनी बात एक प्लेटफार्म पर रखते हैं, तो यह हो सकता है कि दूसरे की बात को एक नई समझ  मिल सकती है या यह भी हो सकता है कि दोनों की बात से तीसरी ही चीज निकल कर सामने आए, जिस से दोनों को ही उस बात का नया पहलू समझ में आए. अब एक तीसरी चीज पर अमल करना है या नहीं, यह अलग बात है लेकिन इतना तो है किइस से आप को अपने स्पाउस के नजरिए से देखने पर एक नई दिशा दिखाई दे सकती है. इस से रिश्ते तो विकसित होते ही हैं, आप की अपनी पर्सनैलिटी भी विकसित होती है.शादी के बाद एकदूसरे से जुड़ना लड़केलड़की की इच्छा पर भी निर्भर करता है. शादी होती है, जिसे सब मिल कर सेलिब्रेट करते हैं, यह बड़ी बात नहीं है. बड़ी बात है नए रिश्ते में बंधे पतिपत्नी का एकदूसरे से जुड़ना. इस से शादी का सफर बेहद आसा न बन जाता है.

कलर विद डिफरेंट

कहा जाता है कि खूबसूरती बालों से ही शुरू होती है. नारी की सुंदरता का बखान करते हुए सब से पहले लंबे घने बालों का ही जिक्र किया जाता है. यह सच भी है कि आप के खूबसूरत बाल आप की सुंदरता को हजार गुना बढ़ा देते हैं. प्राय: पुरुषों के घुंघराले बालों को खासतौर पर पसंद किया जाता है. सदियों से बालों को बनानेसंवारने का चलन रहा है. पहले बालों में फूलपत्तियां लगा कर उन्हें आकर्षक बनाया जाता था. फिर शुरू हुआ बालों को रंगने का चलन. स्त्रीपुरुष प्राकृतिक चीजों से अपने बालों को रंगते थे. ऐसा करना उन्हें अच्छा लगता था.

यह चलन आज भी बरकरार है या कहा जाए कि और ज्यादा बढ़ा है तो गलत नहीं होगा. आज न सिर्फ स्त्रियां बल्कि पुरुष भी अपने बालों को रंगने में पीछे नहीं हैं. आज भी कई प्राकृतिक तरीकों से जैसे हिना आदि से केशों को रंगा जाता है. लेकिन इस में समय ज्यादा लगता है. पहले मेहंदी को भिगोया जाता है, फिर उस में मनचाहा कलर देने के लिए कौफी पाउडर आदि मिलाया जाता है. यह ज्यादा समय के लिए बालों पर नहीं टिकता. इसलिए उसे जल्दीजल्दी लगाना पड़ता है. लेकिन आज की भागतीदौड़ती जिंदगी में जहां लोगों के पास खाने का भी वक्त नहीं है, ऐसे में कई बार बालों को चाहते हुए भी नहीं रंगा जाता. बालों को आजकल कई रंगों में रंगा जा रहा है. इन में लाल, नीले, सुनहरे, कत्थई, हरे और भूरे बालों को ज्यादा पसंद किया जा रहा है. बालों को रंगने के लिए कई रेडी टू यूज हेयर कलर बाजार में उपलब्ध हैं, जिन्हें आप आसानी से इस्तेमाल कर सकते हैं. गोदरेज ने भी हेयर कलरिंग की अपनी पूरी रेंज बाजार में उतारी है, जिन का इस्तेमाल कर के आप अपने बालों को मनचाहा रंग दे सकते हैं. बालों को रंगने के लिए 4 प्रमुख तरह के हेयर कलर बाजार में मौजूद हैं :

टेंपररी हेयर कलर

सेमी परमानेंट हेयर कलर

डेमी परमानेंट हेयर कलर

परमानेंट हेयर कलर

टेंपररी हेयर कलर

टेंपररी हेयर कलरिंग के लिए जेल, स्प्रे, फोम आदि का इस्तेमाल किया जाता है. टेंपररी हेयर कलर सेमी परमानेंट हेयर कलर की तुलना में ज्यादा चमकदार और भड़कीले होते हैं.

टेंपररी हेयर कलर का इस्तेमाल किसी खास मौके या पार्टी आदि के लिए किया जाता है. यह शैंपू करने के बाद निकल जाता है. 

सेमी परमानेंट हेयर कलर

 सेमी परमानेंट हेयर कलर टेंपररी हेयर कलर की तुलना में कुछ अधिक समय तक बालों पर टिका रहता है. यह 4-5 शैंपू करने के बाद बालों से निकल जाता है.

डेमी परमानेंट हेयर कलर

 डेमी परमानेंट हेयर कलर सेमी परमानेंट हेयर कलर से कुछ ज्यादा समय तक बालों पर बना रहता है. डेमी परमानेंट हेयर कलर सेमी परमानेंट की तुलना में ग्रे/सफेद बालों को ढकने में ज्यादा प्रभावकारी है पर परमेंट हेयर कलर की तुलना में कम.

परमानेंट हेयर कलर

परमानेंट हेयर कलर से बालों को रंगने पर इसे बालों से हटाया नहीं जा सकता. यह परमानेंट तरीके से बालों को रंग देता है. पर जड़ों से उगने वाले नए बाल अपने प्राकृतिक रंग में ही निकलते हैं. इसलिए अगर आप बालों को परमानेंट रंगवाना चाहते हैं तो आप को रेगुलर बालों को कलर कराते रहना होता है. महीने में एक बार या 6 सप्ताह में आप को बालों को रंगवाना पड़ेगा ताकि लंबे समय तक आप के बालों पर रंग बना रहे. परमानेंट हेयर कलर कराने से पहले पूरी तरह से सोचसमझ लेना चाहिए व किसी हेयर एक्सपर्ट की सलाह जरूर ले लेनी चाहिए कि आप पर कौन सा कलर सूट करेगा. 

बंटवारे की आग में पनपती प्रेम कहानी

बिमल रौय और ऋषिकेश मुखर्जी की कई फिल्मों की स्क्रिप्ट लिखने वाले पंजाबी और उर्दू के लेखक राजिंदर सिंह बेदी की कहानी ‘लाजवंती’ को उन की पोती और लेखिका इला बेदी छोटे परदे पर ला रही हैं. कश्मीर और पंजाब में शूट हुए इस टीवी शो के बारे में इला ने बताया इस कहानी को टीवी पर लाने पर 15 साल का समय लग गया क्योंकि कहानी बड़ी बोल्ड है. यह हिंदुस्तानपाकिस्तान बंटवारे के पहले से शुरू हो कर बाद तक चलती है. इसी के बीच एक गांव की अल्हड़ लड़की लाजो और लाहौर शहर के रहने वाले जनूनी प्रेमी सुंदर लाल के बीच की प्रेम कहानी है. हालातों से गुजर दोनों की प्रेम कहानी क्याक्या मोड़ लेती है और कैसे अपने अंजाम तक पहुंचती है, बताने वाला यह शो अवश्य ही सासबहू वाले डेली सोप के बीच दर्शकों का मनोरंजन करेगा.

मिलावट की पहचान है आसान

इनसान की जिंदगी में खानेपीने की चीजों की अहमियत से इनकार नहीं किया जा सकता. हमारी स्वस्थ जिंदगी का आधार ही खानापीना है. लेकिन पिछले कुछ अरसे से खानेपीने की चीजों में मिलावट के मामले बहुत तेजी से सामने आ रहे हैं. नामीगिरामी कंपनियों की चीजों में भी मिलावट का जहर तेजी से घुलता जा रहा है. नैस्ले, मैकडोनाल्ड्स, डौमिनोज, मदर डेरी व अमूल डेरी जैसी तमाम कंपनियां मिलावट के मोरचे पर पकड़ी जा चुकी हैं. ऐसे में बेचारा आम आदमी तो घबरा ही जाएगा.

हमेशा नसीहत दी जाती है कि छोटीमोटी कंपनियों की चीजें इस्तेमाल न की जाएं. बस मशहूर ब्रैंडेड कंपनियों की चीजें ही खाई जाएं. मगर जब वे भी खराब साबित हों तो क्या किया जाए? वैसे भी आम लोगों के लिए ब्रैंडेड कंपनियों की महंगी चीजें खाना मुमकिन नहीं होता और फिर जब वे भी कसौटी पर फेल साबित हों, तब तो मामला ही गड़बड़ा जाता है. रईस भी हैरान रह जाते हैं कि आखिर किया क्या जाए?

बहरहाल, मिलावट वाली खतरनाक खानेपीने की चीजों के बीच इनसान सिर्फ चौकन्ना रह कर ही महफूज रह सकता है. यहां कुछ ऐसी ही जानकारी दी जा रही है, जिस पर ध्यान दे कर महफूज रहा जा सकता है:

बात दूध की

दूध को बहुत ही अच्छा व सेहत बनाने वाला माना जाता है. इसे पीने से शरीर को कैल्सियम व फैट सहित तमाम उम्दा तत्त्व हासिल होते हैं. लिहाजा हर कोई अपनी हैसियत के मुताबिक दूध का सेवन करना चाहता है. बच्चों के लिए तो दूध ही पूरा आहार होता है. मगर जब से मदर डेरी व अमूल जैसी नामी कंपनियों के दूध में मिलावट की बात उजागर हुई है तब से लोग दूध के नाम से घबराने लगे हैं. मामूली दूधियों के दूध में तो केवल गंदा पानी मिला होता है, मगर नामी कंपनियों के दूध में डिटर्जैंट व खतरनाक रसायन तक मिले पाए गए हैं.

मिलाई जाने वाली चीजें

दूध में पानी मिलाने का सिलसिला तो मुद्दत से चला आ रहा है. इस से दूध बस पतला और बेस्वाद हो जाता है. अलबत्ता गंदा पानी मिलाने से पीने वाले को बुरा तो लगता है, पर इस से ज्यादा नुकसान नहीं होता है. पानी के अलावा दूध में रंग, यूरिया, वाशिंग पाउडर व डिटर्जैंट वगैरह की मिलावट की जाती है. इन चीजों की मिलावट से इनसान की किडनियों व लिवर को नुकसान पहुंचाता है. मानव के इन अंगों का स्वस्थ रहना जीवन के लिए बेहद जरूरी है. रंग, यूरिया व डिटर्जैंट वाले दूध से ब्लडप्रैशर सहित और कई दिक्कतें हो सकती हैं, लिहाजा ऐसे दूध के सेवन से बचना जरूरी है. मिलावटी दूध की पहचान लैक्टोमीटर नामक यंत्र से की जा सकती है.

सही दूध का सापेक्षिक घनत्व 1.030 से 1.034 तक होता है. परखने के लिए दूध की कुछ मात्रा ले कर लैक्टोमीटर से उस का सापेक्षिक घनत्व परखा जा सकता है. उपकरणों की दुकान से लैक्टोमीटर खरीदते वक्त उस के इस्तेमाल का तरीका जरूर पूछें. कृषि विज्ञान केंद्र के पशु वैज्ञानिक से भी इस की जानकारी ली जा सकती है. दूध में मिलावट मिलने पर एक जागरूक नागरिक की तरह उस की शिकायत दर्ज कराने से नहीं चूकना चाहिए. किसी भी तरह की मिलावट अच्छाखासा गुनाह है.

खुशबूदार मिलावटी चावल

रोटी खाने वालों के साथसाथ चावल खाने के शौकीन भी बड़ी तादाद में पाए जाते हैं. बहुत से लोगों का तो मुख्य खाना ही चावल होता है. बिहार, बंगाल व दक्षिण भारत के ज्यादातर लोग रोटी के बजाय चावल खाना पसंद करते हैं. ऐसे में मिलावटखोर व बेईमान लोग चावलों में भी मिलावट कर के उन्हें महंगा बनाने की कोशिश से बाज नहीं आते. मैटानिल रंग व ऐसेंस की मिलावट के बल पर तमाम मिलों में उम्दा किस्म के खुशबूदार चावल तैयार किए जाते हैं, जो हकीकत की कसौटी पर उम्दा नहीं होते. लोग उन्हें बढि़या मान कर महंगे दाम पर खरीद लेते हैं और उन के खतरे से अनजान रहते हैं. ऐसे चावल खाने से खाना पचाने के सिस्टम पर तो खराब असर पड़ता ही है, इस के अलावा लिवर को भी नुकसान पहुंचता है.

हींग में भी मिलावट

रसोई में रोजाना इस्तेमाल की जाने वाली तीखी महक वाली हींग में भी आजकल खूब मिलावट की जा रही है. हींग चाहे किसी भी कंपनी की हो, मगर उस का शुद्ध होना मुश्किल होता है. आमतौर पर बेईमान किस्म के लोग हींग की मात्रा बढ़ाने के लिए उस में अरारोट मिला देते हैं. अरारोट में तो महक होती नहीं, लिहाजा उस में हींग की खुशबू (ऐसेंस) वाला कैमिकल मिला दिया जाता है. इस मिलावट से एकबारगी हींग बहुत उम्दा किस्म की मालूम पड़ती है. अलबत्ता बाद में रसायन की महक उड़ कर खत्म सी हो जाती है, पर उस का नुकसान बरकरार रहता है. मिलावटी हींग की पहचान सरल है.

माचिस की जलती तीली हींग के करीब ले जाने पर उस की लौ चमकदार हो जाती है. अगर हींग नकली होगी तो ऐसा नहीं होगा. इसी तरह शुद्ध हींग पर पानी डाल कर रगड़ने से पानी का रंग दूधिया हो जाता है, जबकि नकली हींग से पानी का रंग दूधिया यानी सफेद नहीं होता. खाद्य सुरक्षा विभाग के माहिरों के मुताबिक नकली हींग भी सेहत के लिए घातक होती है. इस से पाचनतंत्र को नुकसान पहुंचता है. लिहाजा, यह सभी का कर्तव्य है कि नकली हींग या किसी भी खराब चीज की शिकायत खाद्य सुरक्षा विभाग से जरूर करें.

बेसन का नकली पीलापन

पकौड़े, कढ़ी, हलवा वगैरह बनाने के लिए बेसन का घरघर में इस्तेमाल बड़े पैमाने पर किया जाता है. एक नामी कंपनी के बेसन में खेसारी दाल की मिलावट का मामला कुछ अरसा पहले सामने आया था. चूंकि चना काफी महंगा है, लिहाजा साधारण आटे और सफेद पाउडर में मैटानिल पीला रंग मिला कर धड़ल्ले से नकली बेसन तैयार किया जा रहा है. यह नकली बेसन असली चने के बेसन के मुकाबले ज्यादा पीला और खूबसूरत नजर आता है.

मैटानिल रंग वाला बेसन इनसान की किडनियों, लिवर और प्रजननतंत्र को खासा नुकसान पहुंचाता है. इस से लोगों का हाजमा भी बिगड़ जाता है. नकली बेसन की पहचान भी आसान है. इस के लिए कांच के गिलास में जरा सा बेसन लें और उस में थोड़ा सा पानी डालें. फिर उस में सांद्र हाइड्रोक्लोरिक ऐसिड (एचसीएल) की 4-5 बूंदें डालें. ऐसिड डालते ही जामुनी रंग नजर आएगा, जो इस बात का गवाह होगा कि बेसन नकली है.

आटे की नकली सफेदी

गेहूं का आटा रोजाना खाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है. सस्ते गेहूं की कत्थईपन लिए हुए बनने वाली रोटियां हमेशा से मामूली मानी जाती हैं, जबकि धवल सफेद रोटियां शान का प्रतीक समझी जाती हैं. मगर हकीकत यह है कि आटे में मिलावट कर के उसे फालतू सफेदी दी जाती है, जो नुकसानदेह होती है. बेईमान लोग आटे में भूसी का पाउडर मिला कर उसे फालतू सफेदी देते हैं.

खाद्य सुरक्षा विभाग ने इस पाउडर को ‘फीका स्वाद’ नाम दिया है. मिलावटी आटे को गूंधने में असली आटे के मुकाबले कम पानी की जरूरत होती है. मिलावटी आटे की रोटियां बेशक ज्यादा सफेद होती हैं, मगर उन में कुदरती मिठास नहीं होती है. इस मिलावटी आटे के इस्तेमाल से भी खाने वाले का हाजमा खराब होने का खतरा रहता है.

चटपटा अचार कितना बेकार

दादीनानी के तजरबे से बनने वाला स्वादिष्ठ अचार सदियों से प्रचलन में रहा है, मगर अब तैयार यानी रैडीमेड अचार ज्यादा बिकने लगा है. मसरूफ या निकम्मी औरतें अचार बनाने जैसे काम को फुजूल मानती हैं और बनाबनाया खरीदना ही बेहतर समझती हैं. आजकल बिकने वाले अचार में आर्जीमोन की मिलावट की जाती है, जो किडनियों व पाचनतंत्र के लिए घातक होती है. अचार में कंपनियों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले तमाम मसाले भी मिलावटी होते हैं, नतीजतन बाजारू यानी रैडीमेड अचार ज्यादा ही खतरनाक हो जाता है. ज्यादा खट्टा व चटपटा अचार खाने में मजेदार जरूर लगता है, पर बाद में रुला देता है.

घटिया बिस्कुटों की भरमार

पिछले कुछ अरसे से तमाम नामी कंपनियों के बिस्कुटों में भी मिलावट के मामले लगातार उजागर हो रहे हैं यानी अब बिस्कुट भी इतने सुरक्षित नहीं रहे कि अच्छी कंपनी के बिस्कुट आंख मूद कर खा लिए जाएं. हाल ही में नामी कंपनी प्रिया गोल्ड के बिस्कुट में कमी पाई गई थी. इसी तरह मोनैको जैसे जानेमाने बिस्कुट भी कसौटी पर फेल हो गए थे.

2014 में उत्तराखंड की एक बिस्कुट कंपनी के 10 में से 5 नमूने फेल साबित हुए थे. इसी तरह मुरादाबाद की एक कंपनी के बिस्कुट भी जांच में फेल पाए गए थे. आमतौर पर बिस्कुट बनाने में इस्तेमाल किया जाने वाला मैदा घटिया व मिलावटी होता है. उस में दूसरे अनाज के साथसाथ सफेद पाउडर की भी मिलावट की जाती है. सफेद पाउडर वाले घटिया मैदे से हाजमा खराब होने का खतरा रहता है. दूसरे अनाज की मिलावट से भी नुकसान होने का डर रहता है.

नमक भी नकली

खानेपीने की चीजों में चीनी से ज्यादा नमक की अहमियत होती है. पुराने जमाने में नमक को लगभग मुफ्त का माना जाता था. तब नमक डली की शक्ल में बेहद सस्ता मिलता था. अब आयोडीन वाला नमक शानदार पैकिंग में चीनी की लगभग आधी कीमत में मिलता है. यह बात अलग है कि 1 किलोग्राम नमक का असर 1 किलोग्राम चीनी के मुकाबले कहीं ज्यादा होता है. अब यही असरदार और जरूरी नमक भी नकली मिलने लगा है. पिछले दिनों ‘खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन’ ने वाराणसी के 3 ब्रैंडों के नमक के नमूने लिए थे.

जांच की रिपोर्ट में इन नमूनों में मिट्टी के भूरेकाले कण पाए गए. शुद्ध नमक की परख के लिए उसे कांच के गिलास में पानी में घोलना चाहिए. पानी में घुलनशील होने की वजह से नमक पूरी तरह से घुल जाना चाहिए, लेकिन उस में मौजूद रेत या मिट्टी के कण वगैरह गिलास की तली में बैठ जाएंगे. इस प्रकार मिलावटी नमक की पहचान आसानी से हो जाएगी. दूसरी मिलावटी चीजों की तरह ही मिलावटी नमक भी सेहत के लिए घातक होता है. इस के इस्तेमाल से मूत्राशय में पथरी हो सकती है, जो बाद में मुसीबत साबित हो सकती है.

कुल मिला कर गेहूं, चावल से ले कर नमक तक हर मिलावटी खाने की चीज सेहत के लिए नुकसानदायक होती है. लिहाजा, इस मामले में सतर्क रहने में ही भलाई व समझदारी है. मिलावट से बचने के लिए हर मुमकिन कोशिश तो खुद ही करनी चाहिए. दूध के लिए अगर मुमकिन हो व जगह हो तो खुद ही गाय पाल लेनी चाहिए, क्योंकि गाय मिलावटी दूध नहीं देगी. इसी तरह तमाम मसाले साबुत ला कर घर में ही पीस लेने चाहिए. छोटी घरेलू चक्की लगा कर घर में ही आटा, बेसन व अन्य चीजें पीसने का इंतजाम करना अक्लमंदी होगी. इसी तरह चावलदाल वगैरह भी परिचित लोगों से खरीद कर इत्मीनान की सांस ली जा सकती है. इस के बावजूद किसी भी चीज में मिलावट का अंदेशा हो तो फौरन खाद्य सुरक्षा विभाग, निकटतम थाने या इलाके के फूड इंस्पैक्टर से शिकायत करना न भूलें.

रसीला पुलाव

सामग्री

21/2 कप गन्ने का रस द्य 1 कप चावल द्य 1 बड़ा चम्मच देशी घी द्य  1 कप अखरोट, बादाम और काजू द्य 1 बड़ा चम्मच चीनी.

विधि

चावलों को धो कर 2-3 घंटे पानी में भिगोए रखें. भारी तले के बरतन में देशी घी डाल कर काजू, बादाम व अखरोट को भून लें. फिर चावल डाल कर 1-2 मिनट तक पकाएं. थोड़ा सा पानी डालें व 30% तक पका लें. अब गन्ने का रस व चीनी डाल कर धीमी आंच पर पकने दें. 10-12 मिनट में पुलाव तैयार हो जाएगा. फिर गरमगरम ही परोसें.

अक्षय और नीरज की जोड़ी छा जाने को तैयार

अक्षय कुमार के साथ ‘स्पेशल 26’ और ‘बेबी’ जैसी सुपरडुपर हिट फिल्में देने वाले निर्देशक नीरज पांडे एक बार फिर से खिलाड़ी कुमार के साथ फिल्म ‘रुस्तम’ बना रहे हैं. इस फिल्म की कहानी भी बाकी फिल्मों की तरह है यानी ‘रुस्तम’ भी एक रोमांटिक थ्रिलर है. लेकिन इस का लुक किसी इंटरनैशनल फिल्म जैसा होगा क्योंकि इसे कई मुल्कों में फिल्माया जाएगा. इस में 2 हीरोइन होंगी और दोनों के ही रोल स्ट्रौंग होंगे. पिछले दिनों अक्षय ने ट्विट कर के फिल्म के बारे में बताया कि यह फिल्म एक सच्ची घटना पर आधारित है. इस बार नीरज इस का निर्देशन नहीं करेंगे, बल्कि सहनिर्माण करेंगे, डायलौग लिखेंगे और विपुल रावल के साथ स्क्रिप्ट में योगदान देंगे.

डा. मल्लिका साराभाई

समाजसेवी, कुचिपुड़ी और भरतनाट्यम डांसर और पद्मभूषण प्राप्त डा. मल्लिका साराभाई मशहूर अंतरिक्ष वैज्ञानिक विक्रम साराभाई और क्लासिकल डांसर मृणालिनी साराभाई की बेटी हैं. डा. मल्लिका गुजरात के अहमदाबाद की दर्पणा अकादमी औफ आर्ट्स की निदेशक भी हैं. बचपन से ही नृत्य की शौकीन मल्लिका को अलगअलग क्षेत्रों में काम करना अच्छा लगता है. अपने कैरियर में उन्होंने कई पुरस्कार भी जीते हैं. भारत में ही नहीं विदेशों में भी वे कई महोत्सवों में भाग ले चुकी हैं. कोरियोग्राफर, डांसर के अलावा उन्होंने कई हिंदी और गुजराती फिल्मों में भी काम किया है. डा. मल्लिका साराभाई का जीवन कई उतारचढ़ावों के बीच से गुजरा पर वे कभी विचलित नहीं हुईं. मल्लिका और विपिन शाह की कालेज के दिनों में मुलाकात हुई. फिर कई साल साथ रहने के बाद शादी की. 7 साल बाद उन्होंने पति से तलाक ले लिया. उन के एक बेटा रिवांता और एक बेटी अनाहिता है. वे कहती हैं कि महिलाएं चाहे कितनी भी आगे बढ़ जाएं, जब तक पुरुषों की मानसिकता नहीं बदलती है तब तक वे सुरक्षित नहीं हो सकतीं.

प्रस्तुत हैं पिछले दिनों उन से हुई गुफ्तगू के कुछ अहम अंश:

आप की नजरों में देश की महिलाओं की स्थिति में कितना सुधार आया है?

मैं गुजरात के एक गांव में गई तो पता चला कि वहां 5 दलित गांवों में केवल एक लड़की को डिग्री मिली है. उस के लिए भी यहां तक पहुंचना आसान नहीं था. उसे समाज मार देना चाहता था. उस के मातापिता उस की शादी कर देना चाहते थे. उच्चवर्ग के लोग जला डालना चाहते थे. मगर उस लड़की का तब यही कहना था कि अगर यही मेरी नियति है तो मैं मरने के लिए भी तैयार हूं. सच, लड़की के इस साहस को सैलिबे्रट करना चाहिए. गांवों के इस तरह के वातावरण को खत्म करना बेहद जरूरी है. तभी लड़कियों, महिलाओं की स्थिति में सुधार आएगा.

आप इस की बड़ी वजह क्या मानती हैं?

इस की कई वजहें हैं, जिन में सब से बड़ी वजह हमारी फिल्में और टीवी धारावाहिक हैं. औरतों का कौमोडीफिकेशन हो रहा है. हिंसा बढ़ती जा रही है. ऐसिड अटैक पहले से काफी बढ़ गए हैं. लोग बहुत जल्दी हिंसा पर उतर आते हैं. पुरुष मानसिकता इतनी ऐंटीवूमन है कि खुद पर तरस आता है. दरअसल, हमारा समाज और धर्म हमें इतना दबा कर रखे हुए है कि अगर एक लड़की पत्नी, मां नहीं बनी तो उस की जिंदगी अधूरी समझी जाती है. फिर जो भी समस्या आती है उसे हम ग्रहण करती जाती हैं. कोई प्रश्न नहीं करतीं. शादी का अर्थ प्यार होना चाहिए. आप ने मार खाने, गालियां सुनने के लिए शादी नहीं की है.

आप ने राजनीति में भी काम किया. क्या कलाकार को राजनीति में आने पर अधिक अहमियत मिलती है?

आप भारत की राजनीति में स्वतंत्र कुछ नहीं कर सकतीं. सब पैसे का खेल हो गया है. गुंडागर्दी चलती है. इस में अगर आप कुछ अच्छा करना चाहें भी तो भी नहीं कर सकतीं. मैं ने आम आदमी पार्टी को जौइन किया था. लगा था कि कुछ अच्छा करूंगी. पर इस में भी झगड़े शुरू हो गए. राजनीति ऐसे नहीं बदल सकती. राजनीति में जाने पर कलाकार को अधिक अहमियत मिले, ऐसा कोई नियम नहीं है.

आगे और क्या करने वाली हैं?

मैं ने तय किया है कि 30 साल से मैं ने महिलाओं के साथ काम किया है. अब लड़कों के साथ काम करने का समय आ गया है, क्योंकि अगर मैं लड़कों को यह नहीं समझा पाई कि लड़का बनना और किसी को मारनापीटना, जुल्म ढाना मर्दानगी नहीं कायरता है, तो मेरा काम अधूरा रहेगा. लड़कों को पहले इनसान बनना होगा. अगर लड़का रोता है तो मातापिता कहते हैं कि लड़का हो कर तू क्यों रो रहा है? तू लड़की थोड़े ही है. बस यहीं से शुरू होता है लड़का और लड़की में अंतर. 99% हिंसा औरतों के खिलाफ पुरुष करते हैं. अगर वे नहीं बदले तो महिलाएं कितनी भी सशक्त क्यों न हो जाएं, कुछ नहीं हो सकता. मैं हर मां से कहना चाहती हूं कि अपने बच्चों को लड़का, लड़की, जाति, धर्म आदि का पाठ न पढ़ाए. दो इनसानों को बड़ा करो. तब 25 सालों में हिंदुस्तान पूरी तरह बदल जाएगा.

आप की संस्था किस तरह का काम करती है?

मेरी संस्था ‘तमाशा’ महिलाओं की हैल्थ, कैरियर सहित किसी भी समस्या पर काम करती है. इस के अलावा गरीब लड़कियां जो रास्तों से प्लास्टिक चुनती हैं, उन का बहुत शोषण होता है, जो उन से सामान खरीदते हैं उस का वे बहुत कम दाम देते हैं. हम उन के साथ सीधा काम करते हैं. उन से प्लास्टिक ले कर उन्हें बुनने की विधि सिखाते हैं. बिना प्रदूषण फैलाए इस से सजावट की कई वस्तुएं बनाई जाती हैं. ये उत्पाद सुंदर, वाटरपू्रफ और टिकाऊ होते हैं. गांधीनगर के एक गांव में हमारा यह पायलट प्रोजैक्ट चल रहा है. 

वेडिंग प्लानर बनाए मैरिज को आसान

कुछ समय पहले तक शादी की तैयारियां करने के नाम से ही बड़ेबड़ों के माथे पर पसीना आ जाता था. शादी के दिन लड़की और लड़के के घर वाले, खास रिश्तेदार कामकाज में बेहद व्यस्त रहते थे. हैरानपरेशान घर वालों को दूर से ही देख कर पहचान लेना मुश्किल नहीं होता था. लेकिन समय के साथसाथ शादी के मौके पर होने वाली तैयारियों के लिए भी अब काम करने वाले लोग मिलने लगे हैं. ये शादी का इंतजाम करने के एवज में पैसे लेते हैं. अब सहूलियत यह हो गई है कि घर वाले भी नातेरिश्तेदारों की ही तरह सजेधजे नजर आते हैं, शादी का पूरा मजा लेते हैं. शादी में होने वाले सभी कामों का इंतजाम करने वालों का पूरा बाजार बन गया है. दूसरे बाजारों की ही तरह यहां भी हर काम का दाम देना पड़ता है.

एक अनुमान के मुताबिक शादी का यह कारोबार 50 से ले कर 100 हजार करोड़ रुपए तक फैल गया है और हर साल यह कारोबार 25% की दर से बढ़ता जा रहा है. शादी की तैयारियां करने वालों को मैरिज प्लानर के नाम से जाना जाता है. ये लोग शादी का खाना, शादी की जगह, खाने का स्टाल, मंडप, गेट, स्टेज की सजावट, शादी के कार्ड, फोटोग्राफी, विदाई की सजी हुई कार तक का इंतजाम करते हैं. मैरिज प्लानर इन के अलावा गहनों को खरीदने, शादी की थीम बनाने, शादी में पहने जाने वाले कपड़ों की डिजाइनिंग करने का काम भी करते हैं. कई लोग यह चाहते हैं कि उन के यहां होने वाली शादी में कोई बड़ा कलाकार भी शामिल हो, जिस से सोसाइटी में उन का स्टेटस बढ़ जाए. मैरिज प्लानर फिल्म अभिनेता शाहरुख खान से ले कर दूसरे अन्य कलाकारों तक को बुलाने का इंतजाम कर सकते हैं. इन मैरिज प्लानरों के भरोसे आप एमएफ हुसैन जैसे जानेमाने पेंटिंग आर्टिस्ट से शादी का कार्ड भी डिजाइन करा सकते हैं.

शाही अंदाज

शादी के लिए सब से पहले यह तय किया जाता है कि किस जगह पर शादी का आयोजन किया जाए. कुछ समय पहले तक मैरिज गेस्टहाउस ही एकमात्र विकल्प हुआ करते थे. अब गेस्टहाउस के बजाय खुले मैदान में पंडाल लगा कर शादी करने का प्रचलन बढ़ता जा रहा है. इस की सब से बड़ी वजह यह है कि खुले मैदान में सजावट ठीक तरह से हो जाती है. पार्टियों के शौकीन लोगों को खुले में पार्टी का मजा आता है. इस के अलावा बड़ेबड़े होटलों को भी शादी करने के लिए अच्छी जगह माना जाता है. जितना पैसा खर्च करने का मन हो, उसी हिसाब से होटल का इंतजाम किया जाता है. अब शहर के बाहर बने रिसोर्ट में भी शादी करने का रिवाज बढ़ रहा है.

जगह तय हो जाने के बाद बात आती है खरीदारी की. शादी में खरीदारी का सब से बड़ा बजट गहनों की खरीद का होता है. इस के बाद पोशाकों, जूतों और एक्सेसरीज का होता है. अब गहनों का शौक केवल औरतें ही नहीं रखती हैं, आदमी भी चेन, अंगूठी, इयररिंग पहनने लगे हैं. कई लोग तो अपने सूट के बटन में भी सोने अथवा हीरे की मांग करने लगे हैं. मैरिज का मार्केट बढ़ने का ही कारण है कि अब शादी में क्या पहना जाए, इस को ले कर प्रदर्शनियों का आयोजन भी होने लगा है.भारत के बाहर रहने वाले लोग अब अपने ही देश में शादी करने को पहली पसंद बना चुके हैं. वे एक ही जगह पर सारा सामान चाहते हैं. इन की जरूरतों को पूरा करने के लिए वेडिंग मौल तक बन चुके हैं, जहां एक ही छत के नीचे हर काम को पूरा कर दिया जाता है. विदेशों में रहने वाले भारतीय भी अब अपनी परंपरा के हिसाब से शादी करना चाहते हैं. इसलिए शादी के सामान की खरीदारी वे एक ही जगह कर लेना चाहते हैं. इस के चलते मैरिज प्लानर का कारोबार बहुत तरक्की कर रहा है. दूसरे देशों में रहने वाले भारतीय गोवा और जयपुर जैसी जगहों पर शादी करना चाहते हैं. साधारण तौर पर शादी का आयोजन करने के लिए मैरिज प्लानर लगभग 1,000 रुपए प्रति व्यक्ति के हिसाब से पैसा लेते हैं. इस में खाना, सजावट मंडप, स्टेज, फोटोग्राफी और बिदाई का खर्च शामिल होता है. बड़े शहरों में यह खर्च ज्यादा होता है.

फिल्मों का असर

आजकल की शादियों पर फिल्म और टीवी का असर बढ़ता जा रहा है. जिस तरह की पोशाक फिल्मों और टीवी सीरियलों में कलाकार पहनते हैं वैसी ही पोशाकें सभी लोग पहनना चाहते हैं. अपने को दूसरों से अलग रखने के लिए ये लोग पत्रिकाएं पढ़ते हैं. शादी में किस तरह के गहने और कपड़े पहनने चाहिए, किस तरह का मेकअप करना चाहिए, इस बात की जानकारी पत्रिकाओं से मिलती है. शादी के कार्यक्रम कईकई दिनों तक चलते हैं. इस में शामिल होने वाला हर आदमी रोजरोज नए डिजाइन के कपड़े पहनना चाहता है. शादी के इन कार्यक्रमों पर अपनी छाप छोड़ने के लिए महीनों पहले से लोग तैयारी करते हैं. इन के लिए हेयरस्टाइल, मेकअप और एक्सरसाइज पर ध्यान देते हैं. रिवैंप ब्यूटीपार्लर की ब्यूटी एक्सपर्ट रजनी सिंह कहती हैं कि दुलहन को शादी के लिए तैयार करने की महीनों पहले शुरुआत हो जाती है. इस से लड़की की त्वचा में चमक आती है. शादी के दिन मेकअप मौसम के हिसाब से करना चाहिए.

सालसा डांस की टे्रनिंग देने वाली नंदिता बाहरी का कहना है कि लेडीज संगीत के दौरान गाने और डांस करने का रिवाज बढ़ रहा है. इसलिए जिन घरों में शादी होती है, उन घरों के लड़केलड़कियां डांस और गाना सीखने की टे्रनिंग लेने जाते हैं. इस की खास वजह यह होती है कि अब शादी में केवल फोटो ही नहीं खींचे जाते बल्कि वीडियो फिल्म भी बनती है. इस में सुंदर दिखने के लिए फिल्मी कलाकारों की तरह बनावशृंगार भी किया जाता है.

थीम वेडिंग का चलन

शादी का आयोजन अब स्टेटस सिंबल बन गया है. हर आदमी यह चाहता है कि उस के यहां होने वाली शादी का आयोजन यादगार बन जाए. इस के लिए शादी की पार्टी की एक थीम तैयार की जाती है. यह थीम कई तरह की होती है. थीम तैयार करते समय इस बात की कोशिश की जाती है कि थीम पूरी तरह से नई हो. इस तरह की थीम पार्टी में खेल का मैदान, अरेबियन नाइट, राजस्थानी गांव और पानी के अंदर का माहौल तैयार किया जाता है. थीम पार्टी में सबकुछ थीम के हिसाब से ही बनाया जाता है. इस तरह की पार्टी का आयोजन करने वाले मोक्ष इवेंट के संजय निगम कहते हैं कि अगर पार्टी की थीम राजस्थानी रखी जाती है तो शादी वाली जगह को पूरी तरह राजस्थानी बनाया जाता है. मैदान में रेत डाल कर उसे रेतीला बनाया जाता है. दूल्हादुलहन को भी राजस्थानी लिबास पहनाया जाता है. कोशिश यह भी की जाती है कि आने वाले मेहमान भी उसी तरह की पोशाकों में हों.

सस्ते पड़ते हैं मैरिजहाल

खुले मैदान में शादी करने के मुकाबले मैरिजहालों में शादी करना कम खर्चीला होता है. यहां पर पंडाल लगाने का खर्च बच जाता है. लाइट का खर्च भी कम ही आता है. मैरिजहाल में शादी करते समय थोड़ा होशियार रहने की जरूरत होती है. अकसर मैरिजहाल चलाने वाले कैटरिंग, सजावट, मंडप, बाजा, गेट, स्टेज और फूलमाला जैसे दूसरे काम भी करते हैं. खाना किस तरह का होता है, इस को परखने के लिए वहां पर होने वाली किसी शादी में आयोजक की अनुमति ले कर देखा जा सकता है. मैरिजहाल का चयन अपनी जरूरत के हिसाब से ही करें. अगर मेहमान ज्यादा हों तो बड़ा हाल और कम हों तो छोटा हाल ही चयन करें. शादी में अपनी हैसियत के हिसाब से ही खर्च करें. आजकल दिन में शादी का प्रचलन भी शुरू हो रहा है. इस के जरिए कई तरह के खर्चें कम किए जा सकते हैं. 

बनें फैशनेबल

अंकिता जब भी कोई ड्रेस पहनती है, सभी उस की बहुत तारीफ करते हैं. वह हमेशा नए ट्रेंड में दिखती है. फैशन ट्रेंड के बारे में वह बहुत कुछ जानती है, साथ ही उसे फौलो भी करती है. हम तो उस के आगे गंवार नजर आते हैं. यदि आप को भी मालूम नहीं है कि अभी कौन सी ड्रेस ट्रेंड में है तो चलिए, हम आप की इस परेशानी को दूर करते हैं :

ट्यूनिक्स

नए और आकर्षक लुक के लिए ट्यूनिक फैशनेबल लोगों की पहली पसंद है. लैगिंग्स के साथ ट्यूनिक का कांबिनेशन आप को ग्लैमरस लुक देने के लिए काफी है. कालेज की क्लासेज हों या फिर बौयफ्रेंड के साथ डेट, मौका चाहे कोई भी हो, ट्यूनिक टौप आप को खूबसूरत लुक देने में कामयाब रहेगा. पिछले कुछ समय से यह टौप काफी पसंद किया जा रहा है.

हैरम पैंट्स

हैरम पैंट्स वैसे तो काफी समय से फैशन में हैं, पर ‘जब वी मेट’ में करीना ने इस पैंट को पहना, उस के बाद इस की डिमांड कुछ ज्यादा ही बढ़ गई. फेमेनिन और क्यूट लुक के लिए आप भी इसे आजमा सकती हैं. यह न सिर्फ आरामदायक होती है, बल्कि स्टाइलिश भी होती है. अगर आप करेंट फैशन ट्रेंड को फौलो करना चाहती हैं तो अपने कलेक्शन में कम से कम काले रंग की हैरम पैंट जरूर शामिल करें.

जींस विद नैरो बौटम्स

टाइट फिटिंग जींस एक बार फिर से फैशन में है. अपनी फेवरेट टाइट जींस को ब्लैक या पिंक टीशर्ट के साथ पहन कर अपना एक अलग स्टाइल बनाइए. जींस के साथ ट्यूनिक की पेयरिंग भी आप को मनचाहा स्मार्ट लुक दे सकती है.

लैगिंग्स

अपने वार्डरोब को अगर आप अपटूडेट रखना चाहती हैं, तो उस में फैंसी प्रिंटिंग वाली लैगिंग्स को जरूर शामिल करें. आप चाहें तो फुल लेंथ लैंगिग्स या फिर थ्री फोर्थ लंबाई वाली लैगिंग्स अपने लिए चुन सकती हैं. अगर कोई पार्टी अटैंड करनी है तो छोटी ड्रेस या स्कर्ट के साथ लैगिंग्स आप को परफेक्ट लुक देगी. अगर आप अपनी जिंदगी के किसी खास मौके के लिए ड्रेस का चुनाव नहीं कर पा रही हैं, तो ऐसे मौकों पर भी लैगिंग्स आप के काम आ सकती है.

कुछ खास टिप्स

लैटेस्ट ट्रेंड को अगर फौलो करने की ख्वाहिश है तो इस बात की समझ होनी जरूरी है कि क्या फैशन में है और क्या आउट आफ फैशन. इस से भी जरूरी है कि आप अपने लिए जो भी ड्रेस चुनें, उसे पहन कर आप कंफर्टेबल महसूस करें.फ्लोरल प्रिंट्स फैशन में है और खासकर ट्यूनिक में फ्लोरल प्रिंट का चुनाव कर के आप आकर्षक लुक पा सकती हैं. आजकल फ्राक की लंबाई वाली ट्यूनिक्स भी चलन में है.अगर आप हमेशा फैशनेबल दिखना चाहती हैं तो स्ट्रीट शौपिंग करें. फैशन की दुनिया का कोई भी नया ट्रेंड सब से पहले इन्हीं रोड साइड मार्केट में आता है.

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