डैनिम के स्टाइल अनेक

क्रिएटिव लाइफस्टाइल की डिजाइनर रितु जानी बताती हैं कि जींस 1800 के आसपास फैशन में आई थी. उस समय कार्गो जींस चलन में थी. इसे फैक्टरियों के कर्मचारी अधिक पहनते थे. धीरेधीरे यह फैशन बन कर हाई क्लास लोगों के वार्डरोब तक पहुंच गई. इस की वैराइटी की बात की जाए तो लगभग 20 तरह के वाश्ड स्टाइल बाजार में उपलब्ध हैं. इस की टैक्स्चर भी बहुत वैराइटी में मिलती है. मौनसून को ध्यान में रखते हुए डैनिम की कई ड्रैसेज बाजार में उपलब्ध हैं, जो हलकी हैं. ये भीग जाने पर भी जल्दी सूख जाती हैं.

  1. डैनिम सभी के आकर्षण का केंद्र है. हाई वैस्ट डैनिम अगर सफेद टीशर्ट के साथ पहनी जाए तो कैजुअल के साथसाथ स्मार्ट लुक भी देती है.
  2. कंटैंपररी डैनिम बौटम, जिस में खासकर पैंट्स, प्लाजो पैंट्स, कैप्रीज आती हैं, मौनसून में काफी प्रयोग की जाती है. इस की पैंट्स किसी भी टौप के साथ आकर्षक लगती हैं.
  3. क्लासिकल डैनिम शर्ट को आप किसी भी प्रकार की स्कर्ट या फिर पैंट के साथ पहन सकती हैं.
  4. डैनिम जैकेट्स आजकल बाजार में खूब प्रचलित हैं. इन्हें इंडियन विमंस को खास ध्यान में रख कर बनाया गया है. इस जैकेट को किसी भी परिधान के साथ पहना जा सकता है.

आजकल कई प्रकार के डैनिम उत्पाद बाजार में उपलब्ध हैं. कई बड़ीबड़ी कंपनियों ने डैनिम की आकर्षक ट्यूनिक शर्ट्स, जैकेट्स आदि निकाली हैं. डैनिम के ये कपड़े बाकी डैनिम फैब्रिक से अलग होते हैं. इसे वाटर रैजिस्टैंट डैनिम कहते हैं. इस फैब्रिक को बनाने के बाद ट्रीटमैंट के द्वारा इस पर अलग तरीके से मोम की कोटिंग की जाती है. यह डैनिम पानी को सोखती नहीं है, बल्कि पानी इस पर फिसल कर बह जाता है. अधिकतर यूथ बाइक चलाते समय इसे पहनना पसंद करते हैं. इसे धोया भी आसानी से जा सकता है. साथ ही प्रेस करने पर इस की पानी प्रतिरोधक क्षमता और बढ़ जाती है. हां यह थोड़ी महंगी जरूर है, इसीलिए कम लोग ही इसे खरीदते हैं.

डिजाइनर रितेश बताते हैं कि पहले डैनिम की हार्ड फैब्रिक की जो अवधारणा थी वह अब बदल चुकी है. आजकल सौफ्ट डैनिम उपलब्ध है, जिस पर ऐंब्रौयडरी कर उसे नया लुक दिया जाता है. कौटन और मलमल जैसे फैब्रिक के साथ डैनिम को मिला कर डिजाइनर्स ड्रैसेज डिजाइन करा रहे हैं. इसे कैरी करना भी आसान है. डैनिम की चोली के तौर पर प्रयोग कर ग्लैमरस लुक दिया जा सकता है. इतना ही नहीं, डिजाइनर्स ने लैगिंग्स और डैनिम को मिला कर जौगिंग रेंज भी पेश की है, जो लड़कियों को खूब पसंद आ रही है.

चले सालोंसाल

डैनिम एक यंग फैब्रिक है, जिसे धीरेधीरे सब के पहनने लायक बनाया जा रहा है. डिजाइनर अनिता डोंगरे बताती हैं कि पहले जींस की मोटाई 14 औंस होती थी. लेकिन अब 8-9 औंस की डैनिम ट्रैंड में है. डैनिम शर्ट फिर से फैशन में है. डैनिम ड्रैस हर मौसम में पहनी जा सकती है. डैनिम ड्रैस को धोना और सुखाना भी बहुत आसान है. ऐलिफैंट पैंट और फ्लेयर्ड हेम स्कर्ट में भी डैनिम का प्रयोग होता है. मौनसून में वाश्ड और कलर्ड डैनिम का प्रयोग अधिक किया जाता. इस में थ्रीफोर्थ और टूफोर्थ ड्रैसेज की मांग ज्यादा है. डैनिम सालोंसाल चलती है. इस की सही तरह से देखभाल की जाए तो इस की चमक हमेशा बनी रहती है. सही देखभाल के कुछ टिप्स इस तरह हैं:

डैनिम को हमेशा मोड़ कर रखें. कुछकुछ दिनों के बाद अगर इसे अलगअलग तरीके से मोड़ कर रखेंगी तो इस का रंग फेड नहीं होगा.

अगर आप रोज पहन रही हैं तो हफ्ते या 15 दिन में 1 बार ही धोएं और छाया में ही सुखाएं. धूप में कभी न सुखाएं वरना रंग उड़ सकता है.

इसे धोते वक्त पानी में ब्लीच न डालें. इस से कपड़े खराब हो सकते हैं.

अगर आप की जींस का रंग गाढ़ा है और उसे बचाए रखना चाहती हैं तो उसे नमक या सिरके के घोल में 3-4 घंटे भिगोए रखें. फिर साफ पानी से धो लें.

अधिक रगड़ कर न धोएं वरना यह कमजोर पड़ जाती है.

अगर डैनिम गहरे रंग की है तो उसे मशीन में अलग से धोएं.

बनारसी साड़ी की दुनिया दीवानी

वैसे तो बनारस और तिब्बत के बीच बहुत दूरी है, लेकिन बनारसी सिल्क  के बिजनैस ने इस दूरी को काफी कम कर दिया है. तिब्बत में रहने वाले बौद्धगुरु दलाईलामा को भी बनारस का सिल्क बहुत पसंद आया था और इस से तैयार होने वाला ब्रोकेड सिल्क वहां के लोगों को बहुत पसंद आता था. 1959 के पहले तिब्बत पर चीन का कब्जा नहीं था तो पूरे क्षेत्र में ब्रोकेड सिल्क यानी जरी से तैयार होने वाली ड्रैस बिजनैस का मुख्य आधार थी. अब भी काफी बड़े हिस्से में बनारस से सिल्क भेजा जाता है. रेशम के धागों की बुनाई और जरी मिला कर तैयार की जाने वाली डिजाइनर साडि़यों को बनारस की साड़ी कहा जाता है. ये साडि़यां मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश के चंदौली, बनारस, जौनपुर, आजमगढ़, मिर्जापुर, भदोही, मुबारकपुर, मऊ, खैराबाद में तैयार की जाती हैं, लेकिन इन सब की पहचान बनारस की साड़ी के रूप में ही होती है. बनारस की साड़ी इन क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की आय का सब से बड़ा जरीया है. बड़ी तादाद में लोग बनारस की साड़ी लेने के लिए इन जगहों पर आते हैं. बनारस की साडि़यों का कारोबार सदियों पुराना है. मुगलकाल के समय इस की शुरुआत हुई थी. बनारस में पीली कोठी इलाके में250 सालों से बनारसी साडि़यों को तैयारकरने का काम होता है.

1886 में ब्रिटिश सरकार के द्वारा सिल्क इंपोरियम में काम करने वाले यहां के कारीगरों को राजकुमार अल्बर्ट पुरस्कार दिया गया था. बनारसी साडि़यों को पहले कडुवा कहा जाता था और इन्हें तनछुई, जामवार और शिफौन पर बनाया जाता था. जामवार डिजाइन कश्मीर के शौल से प्रभावित थी. जब इन साडि़यों में बनारस की कारीगरी दिखने लगी तो इन को बनारसी साडि़यों के नाम से जाना जाने लगा. एक बनारसी साड़ी को बनाने में करीब 4,200 मूल्य का कच्चा माल खर्च होता है. बनारसी साड़ी तैयार करने से पहले उस का डिजाइन तैयार किया जाता है. इस के बाद हथकरघा से इस डिजाइन का नमूना तैयार होता है. बनारसी साड़ी की कीमत 5,000 से शुरू हो कर लाखों रुपयों तक होती है. पहले पटका, शेरवानी, पगड़ी, साफा, दुपट्टे, बैडशीट, मसनद जैसी चीजें बनाने के लिए इस का प्रयोग किया जाता था. लेकिन भारत में साडि़यों का चलन अधिक था. ऐसे में इराक और बुखारा शरीफ जैसी जगहों से आए कारीगरों ने साड़ी बनाने का काम शुरू किया. ये साडि़यां हथकरघा का प्रयोग कर के तैयार की जाती थीं. बनारसी साड़ी की बुनाई करने वालों में एक नाम कबीर का भी है.

बदल गया है स्वरूप

शुरुआत में बनारसी साडि़यों में शुद्ध सोने और चांदी से तैयार धागे का प्रयोग किया जाता था. इस को जरी कहते हैं. महंगाई के बढ़ने से शुद्ध सोने और चांदी की जगह पर नकली जरी का उपयोग किया जाने लगा है.  यह कीमत में सस्ती होती है. नकली जरी और रेशम के धागे अब चाइना से आयात होने लगे हैं. हथकरघा की जगह भी चाइनीज बुनाई मशीनों ने ले ली है. बनारसी साड़ी में अलगअलग डिजाइन के नमूने तैयार किए जाते हैं. इन नमूनों को मोफिफ कहा जाता है. बनारसी साडि़यों के ये मोफिफ बहुत मशहूर हैं. इन को बेल, बूटी, बूटा, कोनिया, बेल, जाल, आंचल, जंगला और झालर जैसे नामों से जाना जाता है. पहले बनारस की साडि़यां नक्शा और जाला से बनाई जाती थीं. उस के बाद डाबी और जेकार्ड का प्रयोग होने लगा. अब यह पावरलूम के रूप में विकसित हो चुका है.

पहले शादियों में बनारसी साड़ी देने का बहुत चलन था. आज भी यह परपंरा के रूप में कायम है. अब फैशन डिजाइनर भी बनारसी साडि़यों का उपयोग करने लगे हैं और फिल्मी नायिकाओं के डिजाइनर अपनी फिल्मों में इन का उपयोग करने लगे हैं. ये अब भी साधारण साडि़यों के मुकाबले बहुत कीमती होती हैं, लेकिन नकली जरी से बनी बनारसी साडि़यां कम कीमत में मिलती हैं. नकली जरी के चलते खरीदारों का भरोसा असली बनारसी साडि़यों से दूर होने लगा है. दरअसल, अभी भी ग्राहक असली बनारसी साडि़यों की ही खरीदारी करना चाहते हैं.

बदल गया ज्वैलरी का अंदाज

विवाह एक ऐसा बंधन है जिस से हर लड़की बंध कर अपने जीवन में आगे बढ़ना चाहती है. यह दिन हर लड़की के लिए खास होता है, इसलिए वह विवाह के हसीन ख्वाब को यादगार बनाने के लिए भरसक प्रयास करती है. इस अवसर पर यदि दुलहन के लुक, उस के परिधान और गहने को अगर नजरअंदाज किया जाए तो गलत होता है, क्योंकि दुलहन की सुंदरता को निखारने में इन्हीं की तो खास भूमिका होती है. अब दुलहन का स्टाइल और उस की पसंद बदल चुकी है. ऐसे में ज्वैलर्स भी अलगअलग ढंग के आकर्षक गहने बनाने की कोशिश करते हैं. मुंबई के दादर क्षेत्र के भगत ज्वैलर्स के ओनर आनंदभाई का कहना है कि दादर एरिया में महाराष्ट्रियन अधिक हैं, इसलिए यहां ट्रैडिशनल ज्वैलरी पर अधिक जोर दिया जाता है. यहां पर शादी के लिए थोड़े हैवी और पार्टी के लिए फैंसी गहने अधिक बिकते हैं. यहां पर कई नामचीन कंपनियों के गहने भी रखे जाते हैं, जो हौलमार्क के साथ उपलब्ध होते हैं.

आजकल ग्राहक जागरूक हो गए हैं. इसीलिए बिना हौलमार्क के गहने वे नहीं खरीदते. हमारी 25 साल पुरानी दुकान है, जिस की वजह से लोगों का हम पर विश्वास अधिक है. इस का हमें पूरा खयाल रखना पड़ता है. इस के अलावा यहां ट्रैडिशनल फैंसी मंगलसूत्र, नैकलैस की मांग भी अधिक है. कोई भी दुलहन अधिकतर अपनी ड्रैस के अनुसार ही गहने खरीदती है. विवाह के आभूषणों में वैराइटी के लिए गोल्ड और डायमंड के साथसाथ मोती, कुंदन व रत्नजडि़त गहने पौपुलर हैं. बढ़ती महंगाई के साथसाथ लोगों के बजट में भी कमी आई है, इसलिए कम सोने में आकर्षक गहनों की खोज अधिक की जाती है.

बदल रही है पसंद

49 साल से प्रचलित दादर क्षेत्र के जगन्नाथ गंगाराम पेडनेकर ज्वैलर्स के विकास पेडनेकर का कहना है कि समय के साथ गहने भी बदले हैं. पहले जहां शादियों में भारीभरकम गहनों का रिवाज था, वहीं अब भारी से अधिक आकर्षक और फैंसी गहने पसंद किए जाते हैं ताकि शादी के बाद भी उन का इस्तेमाल किया जा सके. ब्राइडल गहने 2 तरह के होते हैं- एक सांचे में बने और दूसरे हैंडमेड. सांचे से बनाए जाने वाले गहने हलके और कम बजट में बनते हैं. इन की डिजाइन भी सीमित होती है, जबकि हैंडमेड की क्वालिटी अच्छी होती है. इन में सोना थोड़ा अधिक लगता है, साथ ही लुक भी आकर्षक होता है. शादी के गहनों में हंस, मोर और सांप की डिजाइनें अधिक पसंद की जाती हैं. शादी के गहने बाकी गहनों से अलग होते हैं. इन गहनों में विविधता लाने की भरपूर कोशिश की जाती है. मसलन, अगर नैकलैस खरीदा है तो अलगअलग रंग की डोरी लगा कर ड्रैस के हिसाब से पहनने की व्यवस्था की जाती है. पैंडेंट हटा कर थोड़ा हलका लुक भी दिया जाता है. 

ब्रैस्ट कैंसर : कीमोथेरैपी कितनी जरूरी

किसी व्यक्ति के कैंसर का पता चलते ही उस की जिंदगी तहसनहस हो जाती है. जान की आफत बनी इस बीमारी और लंबे समय तक चलने तथा व्यथित कर देने वाले इस के इलाज का सामना करते हुए मरीज के मन में कई सारे सवाल आने लगते हैं. क्या मेरी जिंदगी यहीं खत्म हो जाएगी? क्या कोई उम्मीद है जीवन की? मेरे इलाज के विकल्प क्या हो सकते हैं? मेरे कैंसर की पुनरावृत्ति की कितनी संभावना हो सकती है? इन सब से भी अहम सवाल यह कि क्या मुझे कीमोथेरैपी भी करानी पड़ेगी? कैंसर एक ऐसी खतरनाक बीमारी है, जिस के बारे में अच्छी जानकारी रखने वाले सहित बहुत सारे लोग समझते हैं कि कीमोथेरैपी ही एकमात्र उचित समाधान है. कीमोथेरैपी के जरीए कैंसर की कोशिकाओं को मारने के लिए शरीर के अंदर इंटैंसिव टौक्सिन (शक्तिशाली विष) डाला जाता है. यह टौक्सिन सिर्फ कैंसर कोशिकाओं को ही नहीं मारता, बल्कि स्वस्थ कोशिकाओं को भी खत्म कर देता है. कुछ मरीजों, खासकर बुजुर्ग मरीजों के शरीर कीमोथेरैपी के हमले सहने में सक्षम नहीं होते हैं और इस के साइफ इफैक्ट्स के कारण उन की मौत हो जाती है. यानी कैंसर के कारण जितने दिनों में उन की मौत होती है, उस से पहले ही कीमोथेरैपी कराने में उन की जान चली जाती है.

कुछ मामलों में कैंसर बहुत धीरेधीरे फैलता है. मसलन, प्रोस्टेट ग्लैंड के कैंसर मामले में मरीज के सुझाए गए लाइफस्टाइल को अपनाने से ही यह बीमारी उस का पीछा छोड़ देती है. ऐसे मामले में कई बार मरीजों को 20 साल तक जिंदा रहते देखा गया है. लेकिन हम यह नहीं जान पाते कि किस तरह के कैंसर में किस तरह का इलाज कारगर होगा. रोग के प्रकार को भांपने में असमर्थ डाक्टर अभी तक सभी मरीजों का इलाज अंधेरे में तीर चलाने की तरह ही करते हैं. लेकिन अब कुछ नए उल्लेखनीय जीन टैस्ट के कारण डाक्टरों के अंधेरे में तीर चलाने के तौरतरीकों में बदलाव आ सकता है. इस तरह की जांचों के बाद अब उच्च स्तरीय परिशुद्धता यानी ऐक्यूरेसी के साथ कैंसर की पुनरावृत्ति संबंधी आकलन संभव हो सकता है और यह अनुमान लगाया जा सकता है कि इंटैंसिव इलाज की जरूरत है या नहीं.

सभी कैंसरों की एक जैसी प्रवृत्ति नहीं होती. यही वजह है कि मुश्किल लेकिन अपरिहार्य उपाय के तौर पर कैंसर के इलाज में कीमोथेरैपी सभी मरीजों के लिए जरूरी नहीं रह गई है. दुनिया भर के औंकोलौजिस्ट आजकल अलगअलग मरीजों के ट्यूमर की प्रकृति के बारे में जानते हुए इलाज की पद्धति अपनाने के लिए ब्लूप्रिंट जैसे जिनोमिक टैस्ट पर ज्यादा भरोसा करने लगे हैं. आईलाइफ डिस्कवरीज ने हाल में भारत में क्रांतिकारी नए जीन टैस्ट पेश किए हैं, जिन से औंकोलौजिस्टों को ट्यूमर की अंदरूनी संरचना में झांकने और यह तय करने में मदद मिलेगी कि ब्रैस्ट कैंसर के कुछ मरीजों में कीमोथेरैपी की प्रक्रिया को टाला जा सकता है या नहीं. ब्रैस्ट कैंसर महिलाओं को होने वाले सब से आम कैंसरों में से एक है.

मैमाप्रिंट और ब्लूप्रिंट जांच

मैमाप्रिंट और ब्लूप्रिंट जांच में डीएनए का गहन परीक्षण किया जाता है जिस से ट्यूमर की प्रकृति बेहतर ढंग से समझी जा सकती है. ये दोनों जांचें कैंसर के मोलेकुलर सबटाइप और शुरुआती चरण के कैंसर की पुनरावृत्ति का विश्लेषण करने में सक्षम होती हैं. इस से मैडिकल औंकोलौजिस्ट बेहतर जानकारी के आधार पर इलाज की पद्धति अपनाने में सक्षम हो पाते हैं. भारत में ब्रैस्ट कैंसर के लाखों मरीजों के लिए अपनाई जाने वाली दोहरी टेक्नोलौजी अगले दौर में पहुंच चुकी है, जिस से यह तय करने में एक नई राह मिली है कि सर्जिकल प्रक्रिया के बाद कष्टकारी कीमोथेरैपी की प्रक्रिया के बगैर मरीज का इलाज संभव है अथवा नहीं. आईलाइफ डिस्कवरीज के संस्थापक और सीएमडी आनंद गुप्ता बताते हैं, ‘‘प्रत्येक ट्यूमर की अलगअलग प्रकृति होती है. कैंसर का पता लग जाने के अलावा इस के इलाज की सफलता कैंसर की संरचना और सबटाइप जानने पर बहुत हद तक निर्भर करती है. कैंसर के सभी मरीजों की कष्टकारी और चुनौतीपूर्ण कीमोथेरैपी कराने की जरूरत नहीं पड़ती है, जो कैंसर की कोशिकाओं के पुनर्जीवित होने की संभावना को खत्म करने के लिए सर्जिकल प्रक्रिया के बाद अपनाई जाती है. हालांकि कैंसर की प्रभावशाली अंदरूनी जानकारी देने वाली विश्वसनीय प्रणाली के प्रभाव में और इस की पुनरावृत्ति की संभावना के कारण ज्यादातर औंकोलौजिस्ट कीमोथेरैपी पद्धति आजमाने का सहारा लेते हैं. मैमाप्रिंट और ब्लू प्रिंट टेक्नोलौजी डाक्टरों की अनावश्यक कीमोथेरैपी का इस्तेमाल कम करने में मदद कर सकती है और वे इस के खतरों तथा इस की जरूरत का अच्छी तरह आकलन कर सकते हैं.’’

इंद्रप्रस्थ अपोलो हौस्पिटल, नई दिल्ली में सर्जिकल औंकोलौजी की सीनियर कंसल्टैंट डा. रमेश सरीन बताती हैं, ?‘‘एक सर्जिकल औंकोलौजिस्ट होने के नाते मुझे मास्टेक्टौमी (स्तन उच्छेदन) या लम्पेक्टौमी के जरीए मरीज के स्तन से कैंसर वाले ट्यूमर निकालने को ले कर चिंता रहती है क्योंकि कुछ महिलाओं में ब्रैस्ट कैंसर इस के बाद भी फैलता रहता है. अब तक हमारे पास ऐसी कोई जांच प्रणाली नहीं थी जो यह बता सके कि महिलाओं में किस तरह का कैंसर फैल सकता है और किस तरह का कैंसर नहीं फैलेगा. लेकिन अब हमारे पास एफडीए द्वारा अनुमोदित 70 जीन मैमाप्रिंट टैस्ट मौजूद है, जिस के द्वारा हम ट्यूमर की जिनोमिक प्रोफाइलिंग पर नजर रखते हुए इस के व्यवहार का आकलन कर सकते हैं और उसी मुताबिक मरीज की इलाज प्रक्रिया जारी रखते हैं.’’ ब्रैस्ट कैंसर के इलाज के लिए अपनाई जाने वाली ज्यादातर पद्धतियां बहुत विषाक्त होती हैं, इसलिए खास महिलाओं के लिए खास तरह की पद्धति को चुनना और आजमाना बेहतर होता है. मैमाप्रिंट 70 जीन की जांच करता है जिस के जरीए मरीजों को 2 अलगअलग समूहों में संतुष्टि मिलती है.

हाई रिस्क वाले मैमाप्रिंट के मरीजों में सहायक कीमोथेरैपी से सांख्यिकी आधार पर लाभ देखे गए हैं. एफडीए की रिपोर्ट है कि इस में 98.5% परिणामात्मक परिशुद्धता जबकि 97.7% वर्गीकृत परिशुद्धता देखी गई है. ब्लूप्रिंट एक प्रकार की मौलेकुलर सबटाइप जांच है जो शुरुआती चरण (स्टेज-1 या स्टेज-2) के ब्रैस्ट के कैंसर मरीजों के लिए मैमाप्रिंट टैस्ट के साथ ही इस्तेमाल की जाती है. ब्रैस्ट कैंसर सबटाइप की पहचान करते हुए ब्लूप्रिंट जांच मरीज में अधिक परिशुद्धता के साथ कीमोथेरैपी के संभावित असर निर्धारित करने की सुविधा देती है. आनंद गुप्ता बताते हैं, ‘‘भारत में अब तक हमारे पास ऐसी कोई जांच प्रणाली नहीं थी जो यह बता सके कि कैंसर पीडि़त किस महिला में सर्जिकल प्रक्रिया के बाद किस तरह का कैंसर फैल सकता है और किस महिला में नहीं. नई एफडीआई अनुमोदित 70 जीन मैमाप्रिंट जांच ट्यूमर की जिनोमिक प्रोफाइलिंग पर नजर रखते हुए इस के व्यवहार का अनुमान लगा सकती है और इसी मुताबिक मरीज के इलाज की पद्धति निर्धारित होती है. आईलाइफ के जरीए भारत में हम निकट भविष्य में ऐसे ही और जीन टैस्ट पेश करने का इरादा रखते हैं, जो मरीजों में कई प्रकार के कैंसर की जांच करने में कारगर होते हैं. यह हमारे दौर के सब से घातक हत्यारों में से एक को मात देने के प्रयासों की एक नई शुरुआत है.’’  

– आनंद गुप्ता
संस्थापक एवं सीएमडी, आईलाइफ डिस्कवरीज

आर्थ्राइटिस : दूर रहना है आसान

क्या आप लंबे समय तक जमीन पर पालथी मार कर या फिर उकड़ू बैठे रहते हैं? क्या अपने कामकाज के कारण आप के घुटनों पर रोजाना ज्यादा जोर पड़ता है? यदि हां, तो आप को अन्य लोगों की तुलना में बहुत पहले औस्टियोआर्थ्राइटिस की परेशानी हो सकती है. हो सकता है कि 50 साल की उम्र तक आतेआते आप के घुटने चटक जाएं. हड्डियों और टिशूज के घिसने के कारण होने वाली औस्टियोआर्थ्राइटिस की समस्या उम्र बढ़ने के साथ बढ़ती जाती है. लेकिन आनुवंशिक कारणों, जोड़ों पर अधिक जोर पड़ने, शारीरिक निष्क्रियता या शरीर का अधिक वजन होने से भी यह समस्या बढ़ सकती है. घुटनों का औस्टियोआर्थ्राइटिस सब से आम समस्या है, क्योंकि अन्य जोड़ों के मुकाबले घुटनों के जोड़ों पर पूरी जिंदगी शरीर का सब से अधिक बोझ पड़ता है.

टहलने, सीढि़यां चढ़ने, बैठने आदि रोजाना की गतिविधियों का हमारे घुटनों की कार्यप्रणाली पर सीधा असर पड़ता है. घुटनों का आर्थ्राइटिस चलनेफिरने से लाचार कर सकता है, काम करने की क्षमता को नुकसान पहुंचा सकता है. यहां तक कि अपंग भी बना सकता है. हालांकि आनुवंशिक, कोई बड़ी चोट और उम्र जैसे कारक घुटनों का आर्थ्राइटिस बढ़ा सकते हैं. आइए, कुछ ऐसी लाइफस्टाइल प्रवृत्तियों पर नजर डालते हैं, जो आर्थ्राइटिस की समस्या का कारण बन सकती हैं:टौयलेट आज भी भारतीय ग्रामीण इलाकों में उकड़ू या फिर पालथी मार कर बैठने की परंपरा है. इसी तरह आ भी ज्यादातर ग्रामीण घरों में जमीन पर ही खाना बनाने और खाने का रिवाज है. इस के अलावा भारत के ज्यादातर लोग उकड़ू बैठने वाली टौयलेट सीट का ही इस्तेमाल करते हैं.

आज भी लाखों भारतीयों के घरों में शौचालय नहीं हैं. वे खेतखलिहान में उकड़ू बैठ कर ही शौच से निवृत्त होते हैं. अत: उकड़ू बैठने से घुटनों पर ज्यादा जोर पड़ता है. ज्यादा समय तक बैठने के कारण घुटनों के कार्टिलेज पर घिसाव बढ़ जाता है. यही कारण है कि शहरवासियों के मुकाबले ग्रामीणों में घुटनों के आर्थ्राइटिस के मामले बहुत ज्यादा हैं. 5.8% ग्रामीण युवा इस समस्या से ग्रस्त हैं.

कम शारीरिक श्रम

पश्चिमी देशों के लोग व्यायाम करने और साहसिक गतिविधियों में ज्यादा वक्त बिताते हैं जबकि भारतीय अभी भी ज्यादा वक्त टीवी के सामने बैठ कर ही बिताते हैं. पूरा दिन औफिस की कुरसी से चिपके रहने के बाद घर आ कर भी बिस्तर पर जाने से पहले टीवी देखने में ही समय बिताते हैं. नियमित व्यायाम करने की तरफ कतई ध्यान नहीं जाता, जबकि व्यायाम करने से कई बीमारियां इनसान से दूर रहतीं या दूर हो जाती हैं. आज की भागदौड़ वाली जिंदगी उन्हें निष्क्रिय लाइफस्टाइल की ओर प्रवृत्त कर रही है. औफिस जाने के लिए पैदल चलने या स्कूल जाने के लिए साइकिल चलाने जैसी परंपरा अब लगभग खत्म हो चुकी है जबकि इस तरह के शारीरिक श्रम से जोड़ों की मांसपेशियां और लिगामैंट्स मजबूत होते हैं. शोध बताते हैं कि सक्रिय जीवनशैली अपनाने वालों की तुलना में निष्क्रिय जीवनशैली वालों में घुटनों के आर्थ्राइटिस के मामले अधिक होते हैं.

अत्यधिक वजन बढ़ जाना

घुटने शरीर के सब से मजबूत जोड़ होते हैं, जो पूरे शरीर का बोझ सहते हैं. शरीर का वजन बढ़ने से घुटनों पर अतिरिक्त बोझ पड़ता है, जिस से उन के घिसाव की समस्या बढ़ जाती है. आजकल की जीवनशैली के चलते एक तो लोग शारीरिक श्रम कम करते हैं और फिर अधिक तेलमसाले वाले खाद्यपदार्थ खाना ज्यादा पसंद करते हैं. ये दोनों कारक शरीर का वजन बढ़ा देते हैं. भारत में मोटापा एक गंभीर समस्या बनता जा रहा है, क्योंकि इस का सीधा असर घुटनों की सेहत पर पड़ता है. 

– डा. राजीव के. शर्मा,  इंद्रप्रस्थ अपोलो हौस्पिटल, नई दिल्ली

खराब क्यूटिकल्स कहीं करा न दें किरकिरी

जरा सोचिए आप की रिंग सैरेमनी में जब आप को अंगूठी पहनाने के लिए लड़का आप का हाथ मांगे और फिर अगले ही पल आप के नाखूनों के इर्दगिर्द कटेफटे क्यूटिकल्स देख कर वह नाकभौं सिकोड़े तो आप पर क्या बीतेगी? आप का बौयफ्रैंड प्यार से आप का हाथ थामे, लेकिन हाथ थामते ही आप की रूखी और सख्त हो चुकी त्वचा उसे चुभ जाए, तो भला आप का क्या इंप्रैशन पड़ेगा? आजकल महिलाएं चेहरे की खूबसूरती के साथसाथ हाथों और पैरों की सुंदरता पर भी ध्यान देने लगी हैं. खासतौर पर हाथों की खूबसूरती पर वे ज्यादा ध्यान दे रही हैं. इस के लिए हर 15 दिन में एक चक्कर पार्लर का भी लगा लेती हैं. हर वक्त महिलाओं के नाखून नेलपेंट से सजे रहते हैं. लेकिन क्या हाथों की खूबसूरती के लिए इतना ही काफी है? महंगे मैनीक्योर के बाद भी कई महिलाओं के क्यूटिकल्स निकले रहते हैं, जो उन के हाथों की खूबसूरती को तो कम करते ही हैं, नाखूनों को इन्फैक्शन भी दे देते हैं.

खासतौर पर सर्दी के मौसम में जब त्वचा रूखी हो जाती है तब क्यूटिकल्स भी ड्राई और सख्त हो जाते हैं. ऐसे में कई बार क्यूटिकल्स की पीड़ा से उबरने और हाथों की खूबसूरती पर लगे दाग को मिटाने के लिए महिलाएं ऐसे उपाय अपनाती हैं जो क्यूटिकल्स को नुकसान पहुंचाते हैं. कई बार तो स्थिति इतनी बिगड़ जाती है कि नेल सर्जरी तक की नौबत आ जाती है. इस बाबत द स्किन क्लीनिक के डर्मैटोलौजिस्ट डाक्टर वरुण कत्याल कहते हैं, ‘‘ज्यादातर महिलाएं नाखूनों की देखभाल को केवल फैशन से जोड़ कर देखती हैं. लेकिन नाखूनों की साफसफाई यानी देखभाल भी उतनी ही जरूरी है जितनी कि शरीर के अन्य हिस्सों की. यही नहीं क्यूटिकल्स के बारे में भी उन्हें कम ही जानकारी होती है. ज्यादातर महिलाएं क्यूटिकल्स को डैड स्किन समझ कर उसे काट देती हैं या दांत से चबाती रहती हैं, जबकि क्यूटिकल्स त्वचा का मृत नहीं जीवित हिस्सा होते हैं और नाखूनों के सुरक्षाकवच. क्यूटिकल्स ही नाखूनों को बैक्टीरियल अटैक और इन्फैक्शन से बचाते हैं.’’

यदि आप के क्यूटिकल्स रूखे या फट गए हों तो उन का तुरंत उपचार बेहद जरूरी है, क्योंकि उपचार के अभाव में क्यूटिकल्स डैमेज हो जाएंगे और इस का सीधा असर नाखूनों पर पड़ेगा. डाक्टर वरुण के अनुसार क्यूटिकल्स के डैमेज होने का अर्थ है नाखूनों के आकारप्रकार का बिगड़ना. कई बार नाखूनों में सफेद दाग और लाइनें देखी जाती हैं, जिस की वजह क्यूटिकल्स का डैमेज होना ही है. ऐसा न हो, इस के लिए सर्दी आते ही क्यूटिकल्स पर मौइश्चराइजर लगाएं. डाक्टर वरुण कहते हैं कि क्यूटिकल्स पर मौइश्चराइजर लगाने का भी एक तरीका होता है. कोई भी मौइश्चराइजर लगा लेने से क्यूटिकल्स को डैमेज होने से नहीं बचाया जा सकता. इस के लिए हैवी मौइश्चराइजर क्रीम आती है, जिस के प्रयोग से क्यूटिकल्स को कटनेफटने से बचाया जा सकता है.

क्यूटिकल्स केयर टिप्स

  1. क्यूटिकल्स को मौइश्चराइज करने के लिए सब से पहले उन्हें तैयार करें. इस के लिए 10 से 15 मिनट तक नाखूनों को हलके गरम पानी में रखें. जब वे सौफ्ट हो जाएं तब देखें कि क्यूटिकल्स ज्यादा बड़े या मोटे तो नहीं हो गए हैं. यदि ऐसा है तो क्यूटिकल्स को हलके हाथ से ही पीछे की ओर धकेलें. इस के लिए किसी औजार का प्रयोग न करें.
  2. अब क्यूटिकल्स मौइश्चराइजर के लिए तैयार हैं. लेकिन इस के लिए आप अपना रोजाना इस्तेमाल में आने वाला बौडी लोशन न प्रयोग करें. इस लोशन से क्यूटिकल्स को कोई फायदा नहीं होता है, क्योंकि क्यूटिकल्स पर चढ़ी त्वचा ज्यादा नाजुक होती  उस पर हैवी मौइश्चराइजर लगाना ही फायदेमंद होता है.
  3. यदि आप के क्यूटिकल्स ड्राई हैं, लेकिन नाखूनों से ही चिपके हुए हैं, तो ऐसी स्थिति में आप बाजार से क्यूटिकल्स के लिए ऐसी क्रीम खरीदें, जिस में सिट्रिक ऐसिड हो. ऐसे मौइश्चराइजर क्यूटिकल्स के लिए बेहद फायदेमंद होते हैं. इस के अलावा पैट्रोलियम जैली, ग्लिसरीन, सनफ्लौवर सीड औयल आदि भी क्यूटिकल्स को सुरक्षा प्रदान करते हैं. साथ ही ये प्राकृतिक मौइश्चराइजर आप के हाथों की त्वचा को भी सुरक्षित रखते हैं.
  4. कभीकभी क्यूटिकल्स नाखून से अलग हो जाते हैं. इस स्थिति में क्यूटिकल औयल सब से अच्छा विकल्प होता है. नाखून पर चोट लगने, गलत तरीके से मैनीक्योर होने से यह स्थिति उत्पन्न होती है. इसे डीअटैच क्यूटिकल्स भी कहते हैं. इस स्थिति से उबरने के लिए अलसी का तेल, सिट्रिक ऐसिड बेस्ड लोशन का इस्तेमाल कर सकती हैं. ये क्यूटिकल्स को हाइडे्रट करते हैं, साथ ही उन की रिपेयर कर रीअटैच कर देते हैं.
  5. कई महिलाएं नाखूनों को शरीर का डैड पार्ट समझती हैं. लेकिन नेल ग्रोथ मैट्रिक्स नेल का वह हिस्सा होता है, जो जीवित होता है और लगातार नाखून का साइज बढ़ाता है. जो नाखून त्वचा को छोड़ कर आगे निकल जाता है बस वही डैड कहलाता है. इसलिए क्यूटिकल के डैमेज होने पर पूरे नाखून पर प्रभाव पड़ता है.
  6. सर्दी के मौसम में यदि बहुत अधिक गरम पानी का इस्तेमाल करती हैं, तो त्वचा रूखी और बेजान हो जाती है. इसी वजह से क्यूटिकल्स की त्वचा भी रूखी और बेजान हो जाती है. इसलिए नहाने के लिए कुनकुने पानी का ही प्रयोग करें.
  7. यदि आप ऐंटीबैक्टीरियल साबुन या बहुत अधिक खुशबू वाले साबुन का प्रयोग करती हैं, तो इस से भी क्यूटिकल्स को नुकसान पहुंच सकता है, क्योंकि इस तरह के साबुन में अधिक कैमिकल का प्रयोग किया जाता है.
  8. यदि हैंडक्रीम खरीद रही हैं तो पहले देख लें कि वह डीमैथीकोन और ग्लिसरीन युक्त है या नहीं, क्योंकि ये दोनों त्वचा में नमी बनाए रखते हैं.
  9. लैक्टिक ऐसिड और यूरिया युक्त हैंडक्रीम रूखी त्वचा के लिए बहुत फायदेमंद होती है, क्योंकि यह त्वचा को हाइड्रेट रखती है.
  10. कई महिलाएं बातबात पर सैनिटाइजर हाथों में लगा लेती हैं. लेकिन यह गलत है, क्योंकि ज्यादातर सैनिटाइजर अलकोहल युक्त होते हैं. अलकोहल में जर्म से लड़ने की शक्ति होती है. लेकिन दूसरी तरफ सैनिटाइजर त्वचा को बहुत अधिक रूखा भी बना देता है. ऐसे में यदि आप सैनिटाइजर का इस्तेमाल कर रही हैं तो उस के बाद हैंडक्रीम भी जरूर लगाएं.
  11. कुछ महिलाओं को डार्क क्यूटिकल्स की परेशानी होती है. इस से छुटकारा पाने के लिए वे क्यूटिकल्स को रगड़ती हैं. बस यहीं सब से बड़ी गलती हो जाती है, क्योंकि रगड़ने से क्यूटिकल्स डैमेज हो जाते हैं और फिर इन्फैक्शन का खतरा बढ़ जाता है.
  12. डार्क क्यूटिकल्स के लिए सब से अच्छा विकल्प है कि हाथों में भी सनस्क्रीन लोशन लगाया जाए, जिस से क्यूटिकल्स पर हुई टैनिंग कम होगी.
  13. डार्क क्यूटिकल्स होने की सब से बड़ी वजह है विटामिन बी 7 और फौलिक ऐसिड की शरीर में कमी. इस कमी को दूर करने के लिए बायोटिन और फौलिक ऐसिड युक्त डाइट लेनी चाहिए.
  14. सर्दी के सीजन में दस्तानों का सहारा ले कर भी क्यूटिकल्स को डैमेज होने से बचाया जा सकता है. अत: घर से निकलने से पहले दस्ताने जरूर पहन लें, क्योंकि सर्दी के मौसम में चलने वाली सर्द हवाएं त्वचा को रूखा बनाती हैं. रात में सोने से पहले हाथों में हैंडक्रीम लगाएं और दस्ताने पहन कर सो जाएं. सर्दी से सख्त हो चुके हाथ सुबह एकदम मुलायम मिलेंगे. 

फटे होंठ अब नहीं

फटे होंठ न केवल तकलीफ देते हैं, बल्कि खूबसूरती में भी बाधक होते हैं. असल में होंठों की त्वचा काफी नाजुक और पतली होती है. इसीलिए जाड़े के दिनों में इन पर शुष्क सर्द हवाओं का असर अधिक होता है. अत: इस मौसम में होंठों की खास देखभाल करनी पड़ती है. डर्मैटोलौजिस्ट व कौस्मैटिक सर्जन डा. माधुरी अग्रवाल कहती हैं कि जाड़े में शुष्कता अधिक होती है. फिर महिलाएं पानी भी कम पीती हैं. रूमहीटर का ज्यादा प्रयोग करती हैं. इस से भी त्वचा रूखी हो जाती है, जिस का सब से अधिक असर होंठों पर पड़ता है. इस के अलावा अधिक मैंथोल वाला टूथपेस्ट भी होंठों को नुकसान पहुंचाता है. स्पाइसी फूड खाने की शौकीनों के होंठ भी अधिक फटते हैं. अत: पेश हैं, लिप केयर से संबंधित कुछ सुझाव:

ज्यादा स्पाइसी फूड खाने से बचें, क्योंकि इस का सब से ज्यादा असर होंठों पर ही पड़ता है.

भोजन में जिंक, मैग्नीशियम, आयरन, कैल्सियम, विटामिन बी12 का होना आवश्यक है और ये सब हरी सब्जियों, मौसमी फलों में अधिक होते हैं. सेब, संतरा, तरबूज आदि का सेवन जरूर करें.

आजकल महिलाएं तरहतरह की लिपस्टिक लगाती हैं. पहले महिलाएं लिपस्टिक कम लगाती थीं. इसीलिए उन के होंठ कम फटते थे. लेकिन आज फैशन का युग है. इस में बिना लिपस्टिक के रहना संभव नहीं. सोशल लाइफ आजकल बदल चुकी है. ऐसे में हमेशा अच्छे ब्रैंड की लिपस्टिक ही लगाएं. मैट लिपस्टिक कम लगाएं. अगर मैट फिनिश के लिए वैसी लिपस्टिक लगाती हैं तो होंठों को पहले मौइश्चराइज करना न भूलें.

लिपस्टिक के गलत चयन से होंठ फटने के अलावा डार्क भी हो जाते हैं.

अगर होंठ फटते हों तो अच्छा लिपबाम जिस में बीज वैक्स, हनी वैक्स हो उसे लगाएं. लिक्विड पैराफिन औयल, औलिव औयल, कोकोनट औयल आदि भी होंठों पर लगा सकती हैं.

रात को हमेशा लिपस्टिक रिमूव कर के ही सोएं. लिप रिमूवर के अलावा कोकोनट औयल या औलिव औयल होंठों पर लगा कर थोड़ी देर बाद डैंप कौटन से पोंछ कर मौइश्चराइजर लगाएं.

सर्दियों में होंठों पर डैड स्किन जमा हो जाती है. ऐसे में कोकोनट या औलिव औयल होंठों पर लगा कर बच्चों के सौफ्ट टूथब्रश को गीला कर हलके हाथ से होंठों पर फेरें. इस से डैड स्किन निकल जाएगी. लैक्मे मेकअप ऐक्सपर्ट कोरीवलिया बताते हैं कि जब होंठ फटते हैं तो महिलाएं अधिकतर उन पर जीभ फेरती रहती हैं. ऐसा करने से वे अधिक फटने लगते हैं. अत: नाजुक होंठों पर हमेशा अच्छे लिप केयर प्रोडक्ट का ही इस्तेमाल करें. लिप केयर प्रोडक्ट केवल होंठों को फटने से ही नहीं बचाता, बल्कि उन्हें प्रदूषण और सूर्य की अल्ट्रावायलेट किरणों से भी सुरक्षा देता है. जिन्हें ब्लौक नोज की शिकायत होती है, उन के भी होंठ जाड़े में अधिक फटते हैं. ऐसे में सोने से पहले होंठों को अच्छी तरह मौइश्चराइज करें. पेट खराब होने से भी होंठ फटते हैं.

जैसी स्किन वैसा मेकअप

मौसम का मिजाज केवल रहनसहन को ही नहीं, बल्कि त्वचा को भी बदल देता है. सर्द हवाओं में रंगरूप खूबसूरत नजर आए और इन का कहर त्वचा पर न पड़े, इस के लिए जरूरी है कि सर्दी के मौसम और अपनी त्वचा को ध्यान में रख कर मेकअप किया जाए.

अलगअलग स्किन के लिए कैसा हो मेकअप, इस के लिए निम्न सुझावों पर गौर फरमाएं:

मेकअप औन ड्राई स्किन

जिन की त्वचा गरमी व मौनसून के सीजन में ड्राई रहती हो, सर्दी के मौसम में उन की त्वचा का सुपर ड्राई होना स्वाभाविक है. ऐसे में बेहतर होगा कि मेकअप से पहले अपनी त्वचा को नैचुरली नरिश करने के लिए एक पैक बना लें. इस के लिए 1 चम्मच मुलतानी मिट्टी में मलाई व स्ट्राबैरी को मिक्स कर के फेस पर लगाएं. कुछ देर बाद चेहरे को धो लें. अत्यधिक रूखी त्वचा होने के कारण ऐसी स्किन वालों को ज्यादा से ज्यादा क्रीम बेस्ड प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल करना चाहिए. अपनी स्किनटोन से मैच करता क्रीमी बेस फेस पर लगाएं. पर ध्यान रहे, इसे सैट करने के लिए पाउडर की एक हलकी परत लगाना बहुत जरूरी है. इस से बेस ज्यादा देर तक टिकता है और ठीक से सैट भी हो जाता है. गालों पर पिंक या पीच शेड का क्रीम बेस्ड ब्लशर लगाएं. इसे अच्छी तरह ब्लैंड करने के लिए ब्रश की जगह स्पौंज का इस्तेमाल करें. आईज पर हलका सा कलरफुल क्रीमी आईशैडो लगाएं. उसे सैट करने के लिए मैचिंग शेड का पाउडर बेस्ड आईशैडो लगाएं. लिप्स पर विटामिन ई युक्त लिपस्टिक इस मौसम के लिए बैस्ट है.

मेकअप औन नौर्मल स्किन

सर्दी के मौसम में ऐसी त्वचा पर भी हलकी ड्राईनैस नजर आने लगती है. त्वचा के इस रूखेपन को दूर करने के लिए 1 चम्मच कैलेमाइन पाउडर में अधपका केला, 1 चम्मच बादाम रोगन, 1/2 चम्मच शहद और 2 चम्मच दूध डाल कर पेस्ट बनाएं और फिर चेहरे पर लगाएं. कुछ देर बाद चेहरे को कुनकुने पानी से धो लें. अपनी स्किन को सर्द हवाओं से प्रोटैक्ट करने के लिए और फाउंडेशन के तौर पर टिंटिड मौइश्चराइजर लगाएं. इस से स्किन सौफ्ट हो जाएगी और त्वचा ग्लोइंग नजर आएगी. सुर्ख गालों के लिए क्रीमी ब्लश का इस्तेमाल करें. ऐसा करने से मौइश्चर बरकरार रहेगा. आंखों पर मेकअप शुरू करने से पहले क्रीमी लुक के लिए आईप्राइमर जरूर लगाएं. उस के बाद अपनी मरजी के मुताबिक आईमेकअप करें. लिप्स को हाईड्रेट करना इस मौसम में बेहद जरूरी है, इसलिए उन पर पहले अच्छी क्वालिटी का लिपबाप लगाएं, उस के बाद अच्छी क्वालिटी की क्रीमी लिपस्टिक लगाएं.

मेकअप औन औयली स्किन

विंटर सीजन औयली स्किन वालों के लिए वरदान की तरह होता है. इस मौसम में उन की त्वचा हरदम हैल्दी ग्लो करती है. बस उसे मेकअप के जरीए संवारने की जरूरत होती है. ऐसी स्किन को फ्लालैस लुक देने के लिए चेहरे पर बीबी क्रीम लगाएं. बीबी क्रीम फाउंडेशन और मौइश्चराइजर का परफैक्ट मिक्सचर होती है. इसलिए इसे लगाते ही स्किनटोन एकसार व मौइश्चराइज हो जाती है. चीक्स पर मूज बेस्ड ब्लशऔन लगाएं, क्योंकि इसे लगाते ही पाउडर फौर्म में बदल जाएगा और चेहरे पर चिपचिप भी नहीं करेगा. इस सीजन में ब्राइट शेड्स आंखों को लुभाते हैं. ऐसे में चटक शेड वाला पाउडर बेस्ड आईशैडो उचित रहेगा. इस मौसम में मैट लिपस्टिक के इस्तेमाल से बचें.  

– भारती तनेजा (डाइरैक्टर औफ एल्पस ब्यूटी क्लीनिक ऐंड ऐकैडमी)

स्पैनिश पऐल्ला

सामग्री

2 कप मिक्स वैजिटेबल्स (शिमलामिर्च, मटर, मशरूम,ब्रोकली, टमाटर, बेबीकौर्न)

2 कप रिसोटो चावल

1 प्याज कटा

1 कप टोमैटो प्यूरी

1 बड़ा चम्मच पार्सले कटा

1 बड़ा चम्मच लहसुन कटा

1/2 कप छोले उबले

2-3 केसर के धागे

वैजिटेबल स्टौक

3 बड़े चम्मच औलिव औयल

नमक और कालीमिर्च स्वादानुसार.

विधि

केसर को कुछ देर 1 बड़ा चम्मच पानी में भिगो कर रखें. पैन में तेल गरम करें और उस में प्याज को धीमी आंच पर मुलायम होने तक भूनें. अब इस में लहसुन, छोले और मिक्स वैजिटेबल डालें और 5 मिनट तक उसे हिलाएं. अब इस में चावल डालें. चावल को 1 मिनट तक हिलाएं ताकि वह सारी सामग्री के साथ मिल जाए. अब वैजिटेबल स्टौक, टोमैटो प्यूरी और केसर का पानी डालें, साथ ही नमक और कालीमिर्च भी डालें. अब इसे उबालें और आंच को धीमा कर के पकाएं. बीचबीच में पैन हिलाएं और सामग्री को चलाएं. चावल पकने पर इस में कटा पार्सले डालें और गरमगरम सर्व करें.

मूंग दाल व ग्रीन पीस वाफले

सामग्री

1 कप मूंग दाल द्य 1/4 कप उबले हरे मटर द्य 2 बड़े चम्मच ओट्स

2 बड़े चम्मच अदरकमिर्च का पेस्ट द्य 2 बड़े चम्मच मेथी कटी

2 छोटे चम्मच बेसन द्य चुटकी भर हींग द्य 2 छोटे चम्मच तेल

1/4 छोटा चम्मच खाने का सोडा द्य नमक स्वादानुसार.

विधि

हरे मटर व दाल को 3-4 घंटे पानी में भिगो कर रखें. फिर अच्छी तरह साफ करें. अब दाल व मटर को थोड़े से पानी के साथ ब्लैंडर में ब्लैंड करें और बैटर तैयार करें. फिर इस में मेथीपत्ता, ओट्स, बेसन, हींग, सोडा, तेल और नमक डालें और अच्छी तरह मिलाएं. अब वाफले के सांचे पर थोड़ा तेल लगाएं और उसे गरम करें. फिर इस में थोड़ा सा बैटर डालें और तब तक बेक करें जब तक कि वह क्रिस्पी न हो जाए. बाकी बैटर के लिए इसी विधि को दोहराएं. अब इसे हरी चटनी के साथ परोसें.

वैरिएशन

यदि आप के पास वाफले आयरन नहीं है, तो आप नौनस्टिक तवे पर बैटर से पैनकेक्स बना सकती हैं.

हरे मटर की जगह पालक की प्यूरी का भी इस्तेमाल किया जा सकता है.

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