नशे के अंधेरे में युवा

गोलियों, कैप्सूलों, इंजैक्शनों और तंबाकू में मिलाने, सूंघे जाने वाले पदार्थों और सौफ्टड्रिंक में डाल कर पिए जाने वाले पदार्थों से बनी है, नशे की यह दुनिया. इस के तार पंजाब राजस्थान से ले कर सुदूर पूर्वोत्तर में मिजोरम नागालैंड तक जुड़े हुए हैं. असल में जब कोई बड़ी मछली जाल में फंस जाती है, तो खूब चर्चा होती है. फिर मामला शांत हो जाता है. ग्लैमरस सितारे, फिल्मी हस्तियां, नामीगिरामी खिलाड़ी बहुत से ताकतवर लोग इस की गिरफ्त में हैं. ओलिंपियन मुक्केबाज विजेंद्र सिंह और उन के साथी राम सिंह का नाम लगातार चर्चा में है. लेफ्टिनैंट कर्नल अजय चौधरी म्यांमार सीमा पर ड्रग की तस्करी करते रंगेहाथों पकड़े गए. 11 मार्च को 1995 बैच के आईपीएस अधिकारी सजी मोहन को ड्रग्स तस्करी के मामले में 13 साल की सजा भी सुनाई गई. सजी मोहन को 2009 में मुंबई के ओशिवारा इलाके में 12 किलोग्राम हेरोइन के साथ गिरफ्तार किया गया था.

चाइल्ड लाइन इंडिया फाउंडेशन के मुताबिक, देश में नशाखोरी से ग्रस्त करीब 64 % वे लोग हैं, जिन की उम्र 18 वर्ष से कम है. यह आंकड़ा चिंतनीय इसलिए भी है कि कुछ वर्षों में भारत सब से अधिक युवा आबादी वाला देश होगा. युवाओं में अफीम, कोकीन, हेरोइन, शराब, भांग और प्रोफौक्सिफिन का चलन तेजी से बढ़ रहा है. सफेदपोशी में होने वाले जरायम पेशों में ड्रग और नशीली दवाओं की तस्करी सब से कम जोखिम में सर्वाधिक मुनाफा देने वाला संगठित अपराध है. यौन दुराचार, माफिया, मानव तस्करी, हथियार, आतंकवाद और सूदखोरी को एक डोर में पिरोने वाला धागा भी ड्रग ही है, जिस की लत इंसानियत और नैतिकता के सभी मानदंडों को धुएं में उड़ा देती है.

नशाखोरी के आईने में कन्याकुमारी से कश्मीर तक भारत एक नजर आता है. बिहार, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में ड्रग की खपत भले ही कम हो लेकिन गांजा, चरस, भांग के उपयोग में ये राज्य ऊपरी पायदान पर हैं. कई अखाड़े गांजे चरस के व्यापार के लिए सुर्खियां बटोरते रहे हैं. उत्तर प्रदेश और बुंदेलखंड का एक अखाड़ा इस के लिए कुख्यात है.

रेव पार्टी में युवाओं का जमावड़ा

2008 में मुंबई बम धमाकों के आरोपी डेविड हेडली के साथ राहुल भट्ट की दोस्ती भी ड्रग तस्करी के कारण ही हुई थी. पुलिस ने राहुल से पूछताछ भी की थी. पिछले वर्ष अक्तूबर में पंजाब पुलिस ने समझौता ऐक्सप्रैस से 101 किलोग्राम हेरोइन और 500 राउंड गोलियां बरामद की थीं. राजनीतिबाजों और ड्रग माफियाओं की यारी का एक मामला दिसंबर 2012 में गोआ से उजागर हुआ. पूर्व गृहमंत्री रवि नाइक के बेटे और पुलिस के गठजोड़ से वहां ड्रग के  कारोबार की बात सामने आई. समाज के सभी ऊंचे तबके ड्रग की चपेट में हैं.

पहले इस धंधे से मिला पैसा सिर्फ सिनेमा में लगता था, लेकिन अब प्रौपर्टी, होटल और पर्यटन उद्योग में भी तेजी से लग रहा है. गोआ इस के लिए सब से बदनाम है. गोआ के अंजुना बीच पर 2008 में लंदन की नाबालिग स्कौरलेट कीलिंग से बलात्कार कर उस की हत्या का मामला चर्चित उदाहरण है. स्कौरलेट वैलेंटाइन पार्टी के लिए गोआ आई थीं. गोआ ड्रग्स का पहला जानापहचाना होलसेल सैंटर है, जिसे रूस के एक माफिया द्वारा संचालित किया जाता बताया जाता है.

भारत में ड्रग पहुंचाने का सब से बड़ा स्रोत नाबालिग लड़कियां हैं. दिसंबर में गोआ में एक रेव पार्टी में पकड़े गए तस्कर ने बताया कि कमसिन लड़कियों के इस्तेमाल में पुलिस को सिर्फ 75:25 की ही सफलता मिल पाती है, जबकि वयस्कों के मामले में यह अनुपात 60:40 का है. नाबालिगों पर बाल कानून के तहत 2 साल से अधिक की सजा नहीं होती, जबकि वयस्कों के लिए न्यूनतम सजा 10 साल है. दिल्ली, बैंगलुरु और कुल्लूमनाली में सब से ज्यादा ड्रग्स की खपत होती है.

खपत का एक बड़ा सैंटर नागालैंड और मणिपुर की राजधानियां भी हैं. गोआ में जो ड्रग्स पहुंचता है, उस में 70 % की विदेशों में तस्करी होती है और 30 % की खपत वहां होने वाली रेव पार्टियों और पर्यटकों के बीच होती है. गोआ से ड्रग्स थाईलैंड भेजी जाती है. गोआ में तस्करी के केंद्रों में अंजुना, वागातोर और बागा बीच  प्रमुख हैं. यहां होने वाली पार्टियों में प्रचलित ड्रग सीवी-1 के टैबलेट हैं. सीबीआई ने 31 मई को भी 5 एेंटी नारकोटिक्स पुलिस को गिरफ्तार किया था. पुलिस और ड्रग माफिया के बीच गठजोड़ का एक मामला दिल्ली में उजागर हुआ था.

पंजाब की एक संस्था ‘राज्य आपदा प्रबंधन योजना’ ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि 73.5% युवा ड्रग के आदी हैं. बैंगलुरु में ड्रग का चलन समाज में इतने व्यापक स्तर पर असर करने लगा है कि वहां सरकार ने ड्रग तस्करी करने वालों के खिलाफ परगुंडा ऐक्ट के तहत कार्रवाई का प्रावधान रखा है. कर्नाटक में ड्रग्स अफगानिस्तान,पाकिस्तान, नेपाल, कंपूचिया और थाईलैंड से आ रहा है, जिसे मैंगलोर, बैंगलुरु, दिल्ली, मुंबई, गोआ और हैदराबाद में वितरित किया जा रहा है. अफीम  बिहार और उत्तर प्रदेश से आ रही है. कर्नाटक में 320 किलोमीटर का समुद्री इलाका होने के कारण तस्करी पर रोक मुमकिन नहीं है. 5 वर्ष में 1,588 तस्कर गिरफ्तार किए गए हैं. बूट पौलिश, पैट्रोल, डीजल, कफसिरप, वाइटनर, नींद की गोलियां और टरपेंटाइन का इस्तेमाल भी नशे की खुराक लेने वाले युवाओं में तेजी से बढ़ रहा है.

सजा का प्रावधान

अमेरिका, चीन औैर अरब देशों में ड्रग्स तस्करी में पकड़े जाने पर मौत की सजा है लेकिन भारत में इस के लिए 10 वर्ष से ले कर आजीवन कारावास तक की सजा है. पिछले साल जून में चीन ने अंतर्राष्ट्रीय ड्रग्स निरोधक दिवस पर 17 तस्करों को मौत की सजा सुनाई. वहां अब तक 117 लोगों को ड्रग्स तस्करी में मौत की सजा हो चुकी है. चीन में ड्रग्स का सेवन तेजी से फैल रहा है. बिहार, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड की सीमा से नेपाल के रास्ते भारत में अफगानिस्तान, पाकिस्तान, बंगलादेश और म्यांमार तक ड्रग्स की तस्करी होती है.

सीमापार नशे के व्यापार की जकड़बंदी इस कदर है कि हर साल करीब 200 टन हेरोइन अफगानिस्तान से पाकिस्तान के रास्ते तस्करी के जरिए विश्व बाजार में पहुंचती है. 2009 में विश्व स्तर पर करीब 500 टन हेरोइन की तस्करी हुई, जिस में से मात्र 58 टन यानी 11 % की ही जब्ती हो सकी. भारत में नारकोटिक्स ड्रग्स ऐंड साइकोट्रौफिक सब्सटैंसेज ऐक्ट, 1985 (एनडीपीएस) के तहत इन मामलों में कार्रवाई होती है. इस के तहत कोकीन, चरस, अफीम, हेरोइन, गांजा, हशीश समेत कुल 200 से अधिक उत्पाद हैं, जिन के उत्पादन, वितरण और क्रय पर भारत में पूरी तरह प्रतिबंध है. एनडीपीसी ऐक्ट के सैक्शन 50 में गिरफ्तारी के वक्त आरोपी को ले कर कुछ प्रावधान हैं, जिन का पुलिस कभी पालन नहीं करती और आरोपी आसानी से बरी हो जाते हैं.

भारत अवैध अफीम उत्पादन करने वाले देशों के इतना करीब है कि कारोबारियों के लिए यह आकर्षण का मुख्य केंद्र बन चुका है. पाकिस्तान, अफगानिस्तान और ईरान के पर्वतीय क्षेत्रों से ही एशिया और यूरोप में नशे का साम्राज्य चलता है. इन तीनों मुल्कों में नशे के प्रसार क्षेत्र को ‘गोल्डन क्रिसेंट’ का नाम दिया गया है. पाकिस्तान और अफगानिस्तान में अवैध अफीम का उत्पादन होता है, जबकि ईरान से कारोबार का फैलाव होता है.

म्यांमार, थाईलैंड और लाओस के जिस इलाके से नशे के विभिन्न तत्त्वों का उत्पादन औैर वितरण होता है, उसे ‘गोल्डन ट्राइएंगल’ के नाम से जाना जाता है. भारत सब से बड़ा अफीम उत्पादक देश है. भारत में उत्पादन का उपयोग इलाज और चिकित्सकीय अनुसंधान में होता है. भारत में मादक पदार्थ गोल्डन क्रिसेंट या गोल्डन ट्राइएंगल से आते हैं. तस्करों ने भारत को आव्रजन केंद्र बना लिया है. पहले नेपाल के रास्ते पाकिस्तान और म्यांमार से नशीले पदार्थ भारत लाए जाते हैं. मुंबई नशे के कारोबारियों के लिए प्रमुख वितरण केंद्र बन चुका है. 1950 के दशक की शुरुआत में चीन से अफीम के उत्पादन का काम खिसक कर म्यांमार, थाईलैंड और लाओस चला गया.

1990 तक म्यांमार ही दुनिया में अफीम उत्पादन का सिरमौर बना रहा. फिर अफगानिस्तान ने म्यांमार को मात देते हुए आधिपत्य कायम कर लिया. पूर्वोत्तर भारत तो नशे के सौदागरों का गढ़ कहा जाता है. राज्यों की सीमाएं नेपाल, भूटान, म्यांमार, बंगलादेश आदि से मिलती हैं. ये सीमाएं दुरूह हैं और इन की निगरानी मुश्किल है. तस्कर फायदा उठा कर भारत में प्रवेश कर जाते हैं.

अंधेरा भविष्य

प्रख्यात ब्रैंड ‘प्रोवोग’ के मालिक सलिल चतुर्वेदी, हौलीवुड अभिनेत्री केट मौस, बौलीवुड अभिनेत्री मनीषा कोइराला और परवीन बौबी, अभिनेता गुरुदत्त, फरदीन खान, मौडल शिल्पा अग्निहोत्री, गीतांजलि नागपाल, रेणु राठी, विवेका बाबाजी, शिवानी कपूर, वसीम अकरम कई ऐसे नाम हैं, जो ड्रग्स के कारण बदनाम हुए. मनिंदर सिंह का क्रिकेट कैरियर नशे की वजह से थम गया था.

2007 में दिल्ली के प्रीत विहार के डिफैंस एन्क्लेव स्थित गगन अपार्टमैंट में ड्रग तस्कर सायम सिद्धिकी के साथ उन्हें डेढ़ ग्राम कोकीन के साथ गिरफ्तार किया था. जिस वक्त स्टार पुत्रों के प्रवेश का दौर था, कुमार गौरव और आमिर खान के साथसाथ फिल्म ‘रौकी’ से संजय दत्त की शुरुआत हुई थी. 1982 में ‘विधाता’ रिलीज होने के बाद संजय की सोहबत बिगड़ गई और वे शराब, ड्रग्स और पार्टियों में डूबते चले गए. उन का कैरियर लगातार ढलान की तरफ था. सुनील दत्त ने उन्हें अमेरिका के एक अस्पताल में भरती कराया. वे सालभर बाद लौटे तो उन की ड्रग्स की लत छूट गई थी, लेकिन मुंबई बम धमाकों के बाद हथियार रखने के आरोप में उन का कैरियर फिर से डूब गया. पत्नी ऋचा शर्मा की मौत हो गई.

प्रमोद महाजन के बेटे राहुल महाजन भी ‘नया अनुभव’ लेना चाहते थे. इन सैलेब्रिटीज के जीवन में कोई कमी नहीं थी, लेकिन नशे ने उन्हें बहुत कुछ खोने पर मजबूर कर दिया. पिता की मौत के तुरंत बाद 2006 में उन्हें अस्पताल में भरती कराया गया. नारकोटिक्स विभाग के एक अधिकारी ने बताया, ‘देश में रेव पार्टियां बड़े शहरों में होती हैं. गोआ और मुंबई को इन का गढ़ कहा जा सकता है. छोटे शहरों और कसबों में भी रेव पार्टियां होने लगी हैं.

दिल्ली में निजी स्तर पर 25-30 लोगों के समूह मिल कर अपने आवासों पर ये पार्टियां आयोजित करते हैं, उन के आयोजक सफेदपोश और रसूखदार लोग होते हैं. रेव पार्टी में इक्सटेसी पिल्स के अलावा कोकीन और हेरोइन का ज्यादा इस्तेमाल होता है. उच्चवर्ग के 18 से 19 साल के युवा तरल रूप में मिलने वाले एनेक्सिया और टैबलेट के रूप में मिलने वाली इक्सटेसी पिल्स का इस्तेमाल करते हैं. ‘डेट रेप ड्रग’ नाम से मशहूर पानी जैसा दिखने वाला और स्वाद में थोड़ा नमकीन जीएचबी ड्रग ऐसी पार्टियों में चोरी से मिला कर लड़कियों को पिलाया जाता है.

दुनिया में लगभग 20 करोड़ लोग एक या एक से अधिक ड्रग का सेवन करते हैं. नशे में भी नए प्रयोग होने लगे हैं. कृत्रिम रसायनों और कुछ मादक पदार्थों और दवाओं को मिला कर नए नशीले पदार्थ बनाए जा रहे हैं, जिन्हें डिजाइनर ड्रग, क्लब ड्रग, सिंथैटिक ड्रग, पार्टी ड्रग, डेट रेप ड्रग आदि नामों से जाना जाता है. ये थोड़े सस्ते होते हैं और कई लोग इन्हें खुद भी आसानी से बना लेते हैं. विदेशियों को भारत में उन के देश जैसा माहौल देने के लिए गोआ में इस तरह की पार्टियों का आयोजन शुरू हुआ.

अब छोटे शहरों और कसबों तक में रेव पार्टियां लोकप्रिय हो गई हैं, भले ही वे चोरीछिपे हों. हाईप्रोफाइल लोगों, पेशेवर महिलाओं के आलावा उच्चवर्गीय गृहिणियां तक ऐसी पार्टियों में होती हैं. अभिजात्य वर्ग के बच्चे और युवा कफसीरप, दवा और इंजैक्शनों का इस्तेमाल कर रहे हैं. कोरेक्स, फेनार्गन इंजैक्शन, सर्दीखांसी की दवाएं स्विजकोडिन, टौसेक्स, फेनकफ, बेनाड्रिल, एक्जिप्लौन, कोडिस्टार, टोरेक्स, कांपोज आदि से नशा करने वालों में 8 से 15 वर्ष की आयुवर्ग के बच्चों की संख्या सब से अधिक है.

तैयार है डौन 3

बादशाह खान को एक बार फिर यह कहते सुना जा सकता है कि डौन को पकड़ना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन भी है क्योंकि ‘डौन’ फिल्म अब तीसरी बार दस्तक देने आ रहा है. निर्देशक, अभिनेता फरहान अख्तर फिल्म ‘डौन’ का तीसरा सीक्वल ले कर आ रहे हैं, जिस की तैयारियों को अंतिम रूप दिया जा रहा है. फरहान ‘डौन 3’ को अब भव्य पैमाने पर बनाना चाहते हैं और इस में शाहरुख खान एक बार फिर से डौन के किरदार में नजर आएंगे.

थीम पार्टियां पुरानी यादों को दें नए रंग

एक छोटा सा घर, 4 जोड़ी कपड़े, 2 जोड़ी जूतेचप्पल. न सोफा, न डायनिंग टेबल, न किंगसाइज बैड, न ड्रैसिंग टेबल. रसोई, मौड्युलर तो छोडि़ए, गैस तक नहीं होती थी उस जमाने में. सिगड़ी पर खाना बनता था और पीतल के 5-10 बरतनों से रसोई सजती थी. तब दीवाली आते ही इस का शोर अंदर से उठता था जैसे फूल से परागकण फूट पड़ते हैं. दीवाली आने की खुशी तभी से महसूस होने लगती थी जब घर की सफाई की जाती थी. बस, 1-2 दिन में ही सफाई का काम निबट जाता था.

उस वक्त घर में इतना सामान ही नहीं होता था कि सफाई में ज्यादा दिन लगें. सफाई के बाद कचरे में बच्चों की पुरानी किताबकौपियां, मुड़ातुड़ा तार, एकआधे खेलखिलौने ही निकलते थे. पुराने कपड़ों को भी दीवाली की सफाई के साथ निकाल दिया जाता था. इन सभी को बच्चे बहुत ही शौक से घर निकाला दे देते थे. तभी मेरी कड़कड़ाती आवाज आती. यह सामान फेंक क्यों दिया है? उन सारे सामान का मैं औडिट करता और फिर से कूड़े में फेंका गया सभी सामान वापस घर में जगह पा जाता. बच्चे भुनभुनाते कि पिताजी को कूड़ा समेटने का शौक है. लेकिन जिस सामान को बच्चे कूड़ा समझ कर फेंक देते थे उसे मैं यादों की पोटली में बांध लिया करता था ताकि भविष्य में नई पीढ़ी को पुरानी स्मृतियों का तोहफा दे सकूं.

अपनी बात पूरी होने के साथ ही कानपुर के सत्यप्रकाश गुप्ता अपने घर की ओर इशारा करते हैं. उन के घर जा कर यह समझ पाना मुश्किल हो जाता है कि उन की स्मृतियां हैं या वास्तविकता. जो भी कहिए, इस दीवाली सत्यप्रकाशजी ने अपने बेटे और बहू के लिए पार्टी की यही थीम चुनी है. उन की तरह न जाने कितने मातापिता हैं जो यादों के पुराने पिटारे से निकले सामान को थीम का जामा पहना अपने बच्चों की दीवाली खास बनाएंगे. आइए, जानें कुछ ऐसी थीम जो यादों को ताजा कर देंगी.

दीवाली के खेलखिलौने

मिट्टी के बरतन, दीए और गुजरिया. इन सभी का अपना पारंपरिक महत्त्व है लेकिन बच्चों की नजर में इन खिलौनों की बड़ी अहमियत है. वर्तमान युग में बढ़ती आधुनिकता ने इस अहमियत को कम जरूर कर दिया है लेकिन आज भी जब पुराने समय के इन खिलौनों पर नजर पड़ती है तो बचपन की अठखेलियां याद आ जाती हैं. आप ने यदि इन खिलौनों को सहेज कर रखा है तो इस दीवाली आप इन्हें पार्टी थीम बना सकते हैं.

खिलौनों को घर के सैंटर पाइंट या हर कोने पर डिसप्ले करें. लेकिन काम सिर्फ डिसप्ले करने से नहीं बनेगा. हर खिलौने के साथ ही उस से जुड़ी स्मृतियों को शब्दों में लपेट कर खिलौने के आसपास रख दें. जब आप के बच्चों की नजर उस पर पड़ेगी तो उन की आंखों पर चढ़ी अतीत की धुंधली परत साफ हो जाएगी और उस खिलौने से जुड़ी पुरानी बातें याद कर उन के चेहरे पर जो प्रसन्नता दिखेगी वह आप की दीवाली में और भी उमंग भर देगी. खिलौने के तौर पर जरूरी नहीं कि आप सिर्फ मिट्टी के बरतन और दीयों को ही डिसप्ले करें, आप अपने बच्चों के किसी भी बचपन के खिलौने को इस थीम पार्टी में डिसप्ले कर सकते हैं. हो सकता है कि उन खिलौनों की स्थिति इतनी सुधरी हुई न हो कि उन्हें डिसप्ले किया जाए लेकिन ऐसा न सोचें. आप स्मृति के तौर पर यह भी लिख सकते हैं कि खिलौने की जो दशा है वह हुई कैसे. आप के बच्चे इस थीम पार्र्टी को ऐंजौय करने के साथ ही भूलीबिसरी यादों को भी ताजा कर सकेंगे.

नए फ्रेम में यादें पुरानी

तसवीरें तो हर घर में थोक के भाव होती हैं लेकिन यादगार तसवीरें उन में से चुनिंदा ही होती हैं. ऐसी यादगार तसवीरों को बंद एलबम से बाहर निकालें और नए फ्रेम में मढ़वा के पार्टी थीम बनाएं.

इस बेहद दिलचस्प थीम के लिए आप उन तसवीरों का चुनाव करें जो आप के बच्चों के 2 पीढ़ी पहले की हों. ऐसा इसलिए क्योंकि खुद की तसवीरें तो आप के बच्चों ने कई बार देखी होंगी, इसलिए इस दीवाली उन्हें घर के पूर्वजों से मुखातिब होने का मौका दें. खासतौर पर अपनी बहू और दामाद को परिवार के उन सदस्यों से परिचित कराएं जिन्हें न तो उन्होंने कभी देखा और न उन के बारे में सुना.

वैसे खाली तसवीर दिखाने से बात नहीं बनेगी. आप तसवीरों के साथ तसवीर में मौजूद प्रत्येक सदस्य की कोई खास बात भी उन्हें जरूर बताएं ताकि वे उन के व्यक्तित्व से भी परिचित हो सकें.

जाहिर है, तसवीरें पुरानी होंगी तो उन की बनावट में कुछ खामी तो आ ही गई होगी. इस के लिए आप चुनी हुई पुरानी तसवीरों को किसी फोटो एडिटर के पास ले जा कर फोटोशौप की मदद से सुधरवा सकते हैं, साथ ही यदि तसवीरें ब्लैक ऐंड व्हाइट हैं तो उन्हें रंगीन करवा सकते हैं या कोई भी स्पैशल इफैक्ट डलवा कर उन की हालत को दुरुस्त करवा सकते हैं. यह सब करवाने में आप का ज्यादा खर्र्चा नहीं आएगा. तसवीरें तैयार हो जाने पर उन्हें सुंदर से फ्रेम में मढ़वा कर घर की दीवारों पर सजा दें.

यादगार कपड़े और गहने

हर मातापिता अपनी संतान के कपड़ों को यादगारस्वरूप एक गठरी में सहेज कर जरूर रखते हैं. आप ने भी जरूर कुछ ऐसे ही कपड़ों को पोटली में बांध कर रखा होगा. अब इस पोटली को खोलने का समय आ गया है. इस दीवाली अपने बच्चों को उन्हीं के पुराने कपड़ों का डिसप्ले कर उन्हें पुरानी यादों में ले जाएं. खासतौर पर उन के बचपन के पसंदीदा कपड़ों का डिसप्ले कर उन्हें उस कपड़े से जुड़ी कोई दिलचस्प कहानी याद दिलवाएं.

इतना ही नहीं, आप अपने पुराने कपड़ों को ड्राईक्लीन या उन का मेकओवर करा कर दीवाली वाले दिन पहनें. आप को पुराने परिधानों में देख कर आप के बच्चों की पुरानी यादें ताजा हो जाएंगी. खासतौर पर महिलाएं पुरानी साडि़यों को संदूक से निकाल कर पहनें, इस के साथ ही यदि आप के पास पुराने जमाने के जेवर हों तो उन्हें भी पहनें.

हो सके तो अपनी बहू या बेटी को अपनी कोई पुरानी साड़ी का मेकओवर करा कर दीवाली पर भेंट करें. पुराने कपड़ों को डिसप्ले करने का भी एक खास तरीका है. इस के लिए आप टैडीबियर खरीद लें और उन्हें ये कपड़े पहना कर घर में सजा दें. आप के बच्चे जब अपने बचपन के कपड़ों का इस तरह डिसप्ले देखेंगे तो जिंदगीभर के लिए यह थीम पार्टी उन के मन में बस जाएगी.

रंगोली में भरें उमंग के रंग

पुराने समय में घर को सजाने में सब से महत्त्वपूर्ण योगदान होता था रंगोली का. दीवाली की सुबह ही महिलाएं घर के आंगन और द्वार को रंगोली से सजा देती थीं. आधुनिकता ने जैसेजैसे पैर पसारे, रंगोली की जगह स्टिकर्स ने ले ली. भले ही अब लोग समय की कमी की वजह से रंगोली की जगह रंगोली स्टिकर्स लगा लेते हों लेकिन रंगोली का क्रेज नई पीढ़ी में भी देखने को मिलता है. तो क्यों न आप अपने बच्चों के इस क्रेज को पूरा करने में उन की मदद करें और घरआंगन को रंगोली से सजाएं.

मिठास पुराने पकवानों की

दीवाली आते ही मिठाइयों की दुकानें तरहतरह के पकवानों से सज जाती हैं. समाज में रेडीमेड मिठाई खरीदने का ही फैशन है. पहले ऐसा नहीं होता था. दीवाली के सारे पकवान घर पर ही तैयार किए जाते थे. दीवाली के हफ्तेभर पहले से ही घर की महिलाएं पकवान बनाने में जुट जाती थीं. गुझिया, नमकीन और चाशनी में पगी मिठाइयों का ही दौर था. घर की रसोई से आने वाली पकवानों की खुशबू दीवाली की उमंग को दोगुना कर देती थी. बच्चों की जीभ खूब लपलपाती. वे काम के बहाने रसोई में आते और मां की नजर जरा सी हटती कि मुट्ठी में जो भी आता, ले कर भाग जाते. मां बस, चिल्लाती रह जातीं. तो क्यों न इस दीवाली आप अपने बच्चों को उसी दौर में ले जाएं और सारे पकवान घर पर ही तैयार कर उन्हें पुराना स्वाद याद करवाएं.

सावधान चालू है गोरखधंधा

सामने वाला कान काटने में चाहे कितना ही माहिर क्यों न हो, लेकिन उन्हें भी चूना लगाने में एक सैकंड लगता है. आप बस, एक बार दुकान में घुस जाएं, गारंटी है कि वहां से खाली हाथ नहीं लौटेंगे. इतना ही नहीं, मोबाइल सैट के साथ नया नंबर भी आप को खरीदना पड़ेगा और आप की जेब खाली हो जाएगी. मगर कोई बात नहीं, क्योंकि आप संतुष्ट हैं. 1,000-1,200 में सैट और कनैक्शन मिल जाए, इस से बड़ी समझदारी भला क्या होगी और फिर बात ही तो करनी है. मांबाप से आप दूर रहते हैं. एसटीडी कौल्स में काफी पैसे खर्च हो जाते हैं. अच्छा है, अब आप खूब बातें करेंगे. मगर सारी समझदारी पल भर में निकल जाती है, जब अगले महीने बिल आता है. एक ही कनैक्शन वाले नंबरों में तो एसटीडी कौल का रेट कम था, फिर कैसे इतना बिल आ गया?

प्रीपेड व पोस्टपेड सिम खरीदते समय ग्राहक को कई तरीके से भरमाया जाता है. प्लान की जानकारी देते समय सिर्फ उस के फायदे गिनाए जाते हैं. बाकी सब जानने के लिए वह घुमाता रहे कस्टमर केयर का नंबर. चूंकि यह नंबर टोल फ्री होता है तो आप के पैसे भी नहीं लगेंगे, लेकिन इस के लिए आप को घंटे भर पहले से नंबर घुमाना होगा. नंबर मिल जाए तो आप को हिंदी, अंगरेजी में सुनने व बिल वगैरा की जानकारी के लिए अलगअलग नंबर दबाने होंगे. फोन बजता रहता है लेकिन औपरेटर फोन नहीं उठाते. यह सब आप को झेलना पड़ेगा.

रिलायंस टू रिलायंस, वोडाफोन टू वोडाफोन, टाटा टू टाटा, आइडिया टू आइडिया या एयरटेल टू एयरटेल फ्री टौकटाइम का मतलब यह नहीं कि आप किसी भी समय फोन करें तो बिल नहीं आएगा. भैया, बात करने का भी वक्त होता है. एक निश्चित समय पर ही आप बात करेंगे तभी आप को इस का फायदा मिलेगा. लेकिन यह तो कनैक्शन लेते समय आप को नहीं बताया गया था.

पिछले साल मेरा छोटा भाई 6 महीने की ट्रेनिंग के लिए दिल्ली आया. मैं ने सोचा कि मैं लगातार उस के टच में रहूं, इसलिए मैं ने उसे एक लोकल नंबर खरीदवा दिया. मुझे लगा कि उस के जाने के बाद इस नंबर को मैं रख लूंगा. अगले साल तो उसे नौकरी के सिलसिले में यहां आना ही है. हम दुकान में गए तो ऐग्जीक्यूटिव ने बताया कि आप एक फोन सैट खरीद लीजिए, उस के साथ लाइफ टाइम नंबर फ्री मिलेगा. 500 मैसेज फ्री मिलेंगे और उसी प्रोवाइडर के कनैक्शन नंबरों पर फोन करने से बिल भी नहीं आएगा.

बाद में पता चला कि कुछ समय के लिए ही यह लाइफ टाइम फ्री रहता है. उस के बाद आप को उसे रिन्यू करवाना पड़ेगा. जहां तक 500 मैसेज फ्री की बात थी, तो यह सुविधा सिर्फ एक ही कनैक्शन पर मैसेज करने पर थी. साथ ही निश्चित समय सीमा पर ही सेम कनैक्शन पर बात करने पर बिल नहीं आएगा. अगर आप ऐसा नहीं करते हैं तो फिर बिल भरना ही होगा या रिचार्ज करवाना पड़ेगा.

विनय फैशन इंडस्ट्री से हैं. कंसाइनमैंट के लिए वे देशविदेश घूमते रहते हैं. इसलिए उन्होंने लोकल नंबर के साथसाथ एक रोमिंग फ्री नंबर भी लिया हुआ है. मगर वे इस से संतुष्ट नहीं हैं और अपना फोन प्लान बदलना चाहते हैं. उन का कहना है कि न जाने ये किनकिन लोगों को हमारा नंबर देते हैं. एक बार मीटिंग में किसी मोबाइल से बारबार फोन आ रहा था. मुझे लगा कि कोई जरूरी फोन होगा, लेकिन जैसे ही फोन उठाया गाना बजने लगा. अकसर ऐसा होता है.

गलती से ऐसे ही मैं ने किसी फोन को मिस्डकौल समझ कर फोन कर दिया. पता चला कि वह प्लान मेरे नंबर पर अपनेआप ऐक्टिवेट हो गया. ऐसा अधिकतर होता है. रोमिंग नंबर पर भी एक निश्चित रेंज तक ही रोमिंग के पैसे नहीं लगते. उस रेंज से जैसे ही आप बाहर जाएं गे आप का बिल आएगा.

अकसर हमारे आप के नंबरों पर रिंग टोन, मैसेज अलर्ट आते रहते हैं. गलती से भी अगर आप ने उन्हें इंटरटेन कर लिया तो वहीं से यह डिफौल्ट चालू हो जाएगा. आप चाहें या न चाहें, लेकिन इस डिफौल्ट को झेलने के लिए आप मजबूर हैं. कई बार तो आप को पता ही नहीं चलता, इस का बिल आने के बाद ही पता चलता है कि माजरा क्या है.

टैलीफोन कंपनियां अपने फायदे के लिए जिन नियमों को ग्राहक को नहीं बताना चाहतीं, उन के लिए लिख देती हैं, ’नियम व सेवा शर्तें लागू. अगर आप मोटा चश्मा लगा लें तब भी इन्हें पढ़ना मुश्किल है, क्योंकि ये शर्तें बारीक अक्षरों में लिखी होती हैं. लेकिन अब इस मामले में भारतीय दूरसंचार विनियामक प्राधिकरण-ट्राई ने सख्ती दिखाई है.

कनैक्शन चालू करने से पहले मोबाइल कंपनियों को सभी गुप्त शुल्कों के बारे में बताना होगा. मैसेज के जरिए हो या फिर लिखित में मोबाइल कंपनियों को कैसे भी उपभोक्ता को इन छिपे शुल्कों के बारे में जानकारी उपलब्ध करानी होगी.

उपभोक्ता संरक्षण के तहत यह पहले से था कि उपभोक्ता को हर बात का पता होना चाहिए. फोन भी कंज्यूमर सर्विस के अंतर्गत आता है. ट्राई ने तय किया है कि वह मोबाइल कंपनियों की मनमानी रोकने के लिए टैलीकौम औपरेटर्स से टैरिफ स्कीम से संबंधित सभी डाटा लेगी, ताकि वे उपभोक्ता से किसी तरह के छिपे हुए शुल्क न लें.

हालांकि मोबाइल कंपनियां इस पर सहमत नहीं हैं. अगर ट्राई अपनी बात पर अडिग रहती है तो अब आप नंबर को बदले बिना कनैक्शन बदलने को आजाद हैं. अगर आप चाहते हैं कि आप का नंबर न बदले, लेकिन कनैक्शन बदल जाए तो ऐसा आप कर सकते हैं. आप कभी भी अपना सर्विस प्रोवाइडर बदल सकते हैं. इसलिए फोन व कनैक्शन लेते समय आप को कानआंख खोल कर रखने की सख्त जरूरत है.

दीया का दुलहन लिबास

दीया की शहनाई भले ही 18 अक्तूबर को बजनी हो पर बी टाउन में यह चर्चा जोरों से है कि दीया का ब्राइडल वौर्डरोब कलैक्शन कैसा होगा. हालांकि दीया ने अभी तक इस बात को सस्पैंस रखा है कि वे शादी वाले दिन क्या पहनेंगी. पर फैशन डिजाइनर अनीता डोंगरे के नए स्टोर की ओपनिंग पर इतना जरूर कहा कि वे अपनी शादी की एक रस्म में अनीता की डिजाइन की हुई एक ड्रैस जरूर पहनेंगी.

तो दिनोंदिन चलेंगे होम ऐप्लायंसिस

दीवाली जैसे खास त्योहार पर बाजार नईनई चीजों से भरे रहते हैं. यह त्योहार जहां लोगों के चेहरों पर मुसकराहट लाता है, वहीं कुछ न कुछ खरीदने का बहाना भी देता है. इन दिनों कंपनियां भी एक से बढ़ कर एक लुभावने औफर ग्राहकों को देती हैं. दीवाली के मौके पर अगर आप ने भी किन्हीं खास इलैक्ट्रौनिक गैजेट्स को खरीदने का मन बनाया है तो उन्हें जरूर खरीदिए, पर घर में लाने के बाद वे सिर्फ शो पीस न बन जाएं, इस का ध्यान रखिए. उन का सही रखरखाव व देखभाल बेहद जरूरी है. आइए, यह काम कैसे करें, जानते हैं-

हीटर

  1.  हीटर को बीचबीच में सफेद साफ कपड़े से साफ करती रहें.
  2.  सर्दियां खत्म होने पर हीटर को हमेशा कवर में रखें वरना उस पर धूल जम जाएगी.
  3.  हीटर को बीचबीच में चैक करती रहें कि उस का कनैक्शन ढीला तो नहीं हो रहा. अगर ऐसा हुआ तो स्पार्किंग हो सकती है और आप को नुकसान पहुंच सकता है.
  4.  रौड वाले हीटर स्प्रिंग वाले हीटर से ज्यादा बेहतर होते हैं.
  5.  यदि हीटर को एक से दूसरी जगह शिफ्ट करना हो, तो उस का स्विच बंद कर के ही हटाएं वरना करंट लगने का खतरा हो सकता है.
  6.  हीटर को खुद से कम से कम 2 फुट की दूरी पर रखें, क्योंकि ज्यादा पास रखने पर यह त्वचा के लिए हानिकारक हो सकता है.
  7.  कई बार हीटर के लिए लोग ऐक्सटैंशन प्लग का इस्तेमाल करते हैं. ऐसा करते समय ध्यान रहे कि वह जमीन पर न रखा हो.

कैमरा

  1.  आजकल कैमरे में कई तरह के फीचर्स आने लगे हैं, इसलिए उस के साथ मिलने वाली पुस्तिका को अच्छी तरह समझने के बाद ही उसे उपयोग में लाएं वरना कोई भी बटन दब जाने से आप समझ नहीं पाएंगी कि उस में क्या हो गया है.
  2.  अकसर हम जब घूमने जाते हैं, तो कैमरे को हाथ में लिए रहते हैं. लेकिन कई बार ऐसा करने पर कैमरा हाथ से छूट भी जाता है. इसलिए इस की सुरक्षा के लिए कैमरा बैग या अन्य कोई बैग कैरी करें, जिस में वह सुरक्षित रहे.
  3.  कैमरे को हमेशा कवर में रखें.
  4.  कैमरे को प्रयोग के बाद रखते समय ध्यान रहे कि उस की बैटरी अंदर ही न रह जाए. उसे निकाल कर ही कैमरे को बैग में रखें.
  5.  लैंस को भी हमेशा ढक कर रखें.
  6.  लैंस को साफ करने के लिए साफ और सौफ्ट कपड़ा ले कर बहुत ही हलके हाथों से साफ करें.
  7.  लैंस पर हाथ न रखें वरना हाथ की चिकनाई लैंस को खराब कर देगी.
  8.  डिजिटल कैमरे में फोकस करने के लिए प्रिव्यू औप्शन होता है. लेकिन उसे हर समय औन न रखें वरना बैटरी जल्दी खत्म हो जाएगी. इसे बंद रखने पर बैटरी ज्यादा देर तक चलेगी.

मिक्सी और फूड प्रोसैसर

  1.  कोई भी चीज इस्तेमाल में लाने से पहले उस के साथ आई बुकलैट को ध्यान से पढ़ कर समझें. तभी इस्तेमाल में लाएं.
  2.  अगर मिक्सर और फूड प्रोसैसर की लाइफ ज्यादा चाहिए तो इस्तेमाल के बाद इन्हें तुरंत धो कर रखें.
  3.  इन्हें साफ करने के लिए अच्छा लिक्विड सोप इस्तेमाल करें, क्योंकि साबुन या डिटर्जैंट इन के अंदर जम सकता है, लेकिन लिक्विड सोप आसानी से निकल जाता है.
  4.  जब भी मिक्सी में कोई चीज पीसें तो उस के टुकड़े कर के डालें अन्यथा मिक्सी के ब्लेड घिस जाएंगे.
  5.  मिक्सी की मोटर को साफ और सूखे कपड़े से ही साफ करें.
  6.  मिक्सी औन करने से पहले देख लें कि उस का ढक्कन ढंग से लगा हो वरना मिक्सी में डाला सामान उछल कर किचन में फैल जाएगा.
  7.  सूखा मसाला पीसने वाला जार अलग और गीला मसाला पीसने वाला जार अलग रखें.
  8.  जार को सामान से पूरा भर देने से उस के ब्लेड ठीक से नहीं घूमते और इस से मिक्सी की क्षमता पर असर पड़ता है. इसलिए जार को थोड़ा खाली रहने दें.
  9.  मिक्सी की मोटर में पानी न जाए इस का ध्यान रखें.
  10.  मिक्सी में चिपके खाद्यपदार्थों के कण मिक्सी की स्मूदनैस पर असर डालते हैं इसलिए उन्हें साफ करने के लिए टूथब्रश का इस्तेमाल करें.
  11.  अगर वोल्टेज कम आ रही हो, तो मिक्सी का इस्तेमाल न करें वरना इस की मोटर फुंकने का डर रहता है.

हैंड ब्लैंडर

  1.  हैंड ब्लैंडर को इस्तेमाल करते समय जब भी इसे बीच में जमीन पर रखने की जरूरत पड़े, तो ध्यान रहे कि जमीन गीली न हो.
  2.  अगर आप ब्लैंडर से प्याज या फिर टमाटर पीसना चाहती हैं तो अच्छा हो कि उन्हें साबूत पीसने के बजाय टुकड़ों में काट लें. इस से वे आसानी से पिस जाएंगे.
  3.  ब्लैंडर साफ करते समय या फिर धोते समय ध्यान रखें कि उस की मोटर में पानी न जाए.
  4.  ब्लैंडर को इस्तेमाल करने के बाद तुरंत धो कर रखें वरना इस के टूट कर गिर जाने का खतरा बना रहता है, साथ ही इस में चिकनाई अंदर तक लग जाती है और फिर उसे साफ करना मुश्किल हो जाता है.
  5.  कुछ ब्लैंडर में ब्लेड बदलने की सुविधा रहती है, लेकिन इस का प्रयोग सावधानी से करें. जो भी चीज ब्लैंड करनी हो उस के अनुसार ही ब्लेड का इस्तेमाल करें. गलत ब्लेड लगाने से ब्लैंडर खराब हो सकता है.
  6.  बैटरी से चलने वाला ब्लैंडर है, तो उपयोग न करने की स्थिति में बैटरी निकाल कर रख दें.
  7.  बिजली से चलने वाले ब्लैंडर का प्लग हमेशा निकाल कर रखें.

इलैक्ट्रौनिक चिमनी

  1. अकसर जब आप खाना बनाती हैं तो छौंक की वजह से परिवार के सदस्य खांसने लगते हैं, क्योंकि मसाले के छौंक की खुशबू नाक में चढ़ जाती है या फिर कभी सब्जी जल जाए अथवा परांठे बनाते समय किचन में जो धुआं होता है वह पूरे घर में सफोकेशन कर देता है. ऐसे में आप किचन में वैंटिलेशन हेतु चिमनी लगवा सकती हैं.
  2.  इलैक्ट्रौनिक चिमनी आप की रसोई में किसी भी तरह के धुएं या गंध को बाहर फेंक देती है और धुएं आदि को दीवारों पर चिपकने से भी रोकती है, जिस से दीवारें या टाइल्स गंदी नहीं होती हैं.
  3.  किचन में चिमनी लगाना जितना जरूरी है उस से भी जरूरी है यह देखना कि आप की किचन में किस तरह की चिमनी की जरूरत है. जैसे किचन कितनी बड़ी है या उस में लगा चूल्हा कितना बड़ा है.
  4.  कोई भी चिमनी तभी सही होती है जब वह आप के गैस चूल्हे के ऊपर पूरी तरह फिट हो जाए. इस की गैस चूल्हे से ऊंचाई 2 फुट होनी चाहिए. तभी यह धुएं आदि को अपनी तरफ खींच सकेगी.
  5.  किसी भी चिमनी में उस की एअर सक्शन पावर बेहद माने रखती है. यह जितनी ज्यादा होगी उतना ही ज्यादा धुआं किचन से बाहर फेंकेगी.
  6.  बाजार में मौजूद कई तरह की चिमनियां मैनुअल तरीके से काम करती हैं. इन में 2 से ले कर 4 ऐग्जौस्ट फैन तक लगे होते हैं. ये आप की रसोई में फैले धुएं को बाहर फेंकते हैं. लेकिन इन चिमनियों की साफसफाई करना भी जरूरी है, क्योंकि अगर आप चिमनी का रैग्युलर इस्तेमाल करती हैं और उस की साफसफाई नहीं करती हैं तो इस से आप का भोजन प्रभावित होता है. चिमनी गैस चूल्हे के ठीक ऊपर लगी होती है. अगर आप उसे साफ नहीं करेंगी तो उस पर लगी डस्ट चूल्हे की गरमी से पिघल कर आप के चूल्हे पर रखी सब्जी या किसी भी चीज पर गिरेगी.
  7.  इलैक्ट्रौनिक चिमनी के साथ दी गई बुकलैट के निर्देशानासुर चिमनी की सफाई करें. स्पंज में साबुन लगा कर व गरम पानी का इस्तेमाल कर चिमनी की जाली पर जमी चिकनाई साफ करें.
  8.  चिमनी के मुंह पर स्टील की जाली होती है, जिसे निकालना आसान होता है. महीने में 1 बार उसे निकाल कर साफ करें. इसे कुनकुने पानी में डिटर्जैंट डाल कर नायलौन के ब्रश से साफ करें.
  9.  चिमनी का बाहरी कवर स्टील का होता है. साबुन के पानी से इसे भी साफ किया जा सकता है.
  10.  चिमनी में फिल्टर्स लगे होते हैं. यही चिकनाई वाला धुआं सोखते हैं. अत: इन्हें बदलती रहें.
  11.  यह काम हर महीने करना चाहिए. वैसे सफाई इस बात पर निर्भर करती है कि आप किचन में कितना तलनेभुनने का काम कर रही हैं.
  12.  कुछ ऐसी चिमनियां भी मौजूद हैं जिन्हें एक नोजल के जरीए थोड़ा सा मिट्टी का तेल डाल कर साफ किया जा सकता है. इन्हें खोल कर साफ करने की जरूरत नहीं होती. ये अपनी सफाई खुद कर लेती हैं.

फैस्टिवल ज्वैलरी

खूबसूरत स्टोंस और पर्ल्स से सजे आकर्षक गोल्ड ज्वैलरी सैट्स से उत्सव का खुशरंग माहौल आप के लिए छोड़ जाएगा सुनहरी यादों का मेला…

उत्सवी कलैक्शन, मनुभाई ज्वैलर्स.

बात जो दिल को छू गई

सर्वश्रेष्ठ संस्मरण

बात तब की है जब मैं संस्कृत में एम.ए. कर रही थी. अपनी यूनिवर्सिटी में नेतागीरी करने का शौक लग जाने के कारण मैं पूरा वर्ष ठीक से पढ़ाई नहीं कर पाई. अंत में जब परीक्षा की घोषणा हुई तो मुझे लगा कि इस वर्ष मेरा पास होना बहुत मुश्किल है. मैं अपने विषय की विभागाध्यक्षा के पास परीक्षा में आने वाले प्रश्नों की जानकारी लेने गई, तो उन्होंने मेरी सहायता करने से इनकार कर दिया और मुझे खूब डांटफटकार लगाई.

अपनी बेइज्जती का बदला लेने के लिए मैं ने अपनी क्लास की सभी लड़कियों को भड़का कर उन के कार्यों में बाधाएं खड़ी करनी शुरू कर दीं.

एक दिन विभागाध्यक्षा मेरे पास आईं और मुझे एक लिफाफा देते हुए बोलीं, ‘‘बेटी, ये लो अपने विषय के महत्त्वपूर्ण प्रश्न. इन को पढ़ने से तुम पास अवश्य हो जाओगी. परंतु सोचो, जब तुम्हें अपने विषय का ज्ञान ही नहीं होगा तो डिगरी लेने से क्या फायदा? नकल से पास की गई परीक्षा से भविष्य में तुम्हें हर जगह शर्मिंदा होना पडे़गा.’’

उन की ये सीख भरी बातें मेरे दिल को छू गईं

-ज्ञानेश्वरी शुक्ला

मेरे दोनों देवर अलगअलग शहरों में रहते हैं. मेरे पति और बड़े देवर सरकारी नौकरी में अच्छे पद पर कार्यरत हैं, जबकि छोटे देवर एक प्राइवेट कंपनी में साधारण पद पर नौकरी करते हैं. तीनों परिवारों का एकदूसरे के यहां आनाजाना लगा रहता है.

मेरे यहां जब बड़े देवर का परिवार आता तो मैं उन की खूब खातिरदारी करती. फल, मीठा, नमकीन, आइसक्रीम और न जाने क्याक्या उन्हें परोसती. मुझे लगता कि इन लोगों को इन सब चीजों की आदत होगी. पर जब छोटे देवर का परिवार आता तो उन के लिए साधारण भोजन बना देती.

एक दिन मेरे पति ने मुझे समझाते हुए कहा, ‘‘तुम उमेश (छोटा देवर) और उस के बच्चों के लिए फल और मिठाई वगैरह क्यों नहीं मंगवाती हो? उन्हें तो तुम्हें ये सब चीजें खासतौर पर खिलानी चाहिए, क्योंकि उमेश इतना नहीं कमा पाता कि उस का परिवार ये सब चीजें खा सके. मैं जानता हूं कि तुम्हारे मन में अमीरीगरीबी का भेदभाव नहीं है. बस तुम जिसे जैसा खाने की आदत है वैसा परोस देती हो. किंतु एक गृहिणी को मेहमानों की खातिरदारी उन की हैसियत के हिसाब से नहीं, बल्कि अपनी हैसियत के हिसाब से करनी चाहिए.’’ पति की यह बात मेरे दिल को छू गई.                 

-कुसुम रंगा

मैं कुछ समय पहले काफी बीमार थी. इस से मैं काफी निराश हो गई थी. हर समय बच्चों व पति की चिंता लगी रहती थी, इसलिए जब भी मेरे पति मेरे पास बैठते मैं उन्हें हिदायतें देती कि मेरे मरने के बाद ऐसा करना, वैसा करना.

तब मेरे पति मुझे समझाते कि ऐसे हार नहीं मानते, जीवन में परेशानियां तो आती ही रहती हैं, तुम जल्दी ठीक हो जाओगी. पर मेरा निराशावादी दृष्टिकोण नहीं बदला. एक दिन मैं व मेरे पति बातें कर रहे थे कि मेरे मुंह से फिर वही बात निकली कि मेरे मरने के बाद ऐसा करना, बच्चों का ध्यान रखना आदि.

अचानक मेरे पति बोल उठे, ‘‘सारिका, तुम रोजरोज अपने जाने की बात करती हो. अगर मैं ही तुम से पहले चला गया तब…’’ इस से पहले कि पति की बात पूरी हो पाती मेरी आंखों में आंसू आ गए. मैं ने उन के मुंह पर हाथ रखते हुए कहा कि आगे कुछ मत कहना.

यह सुन कर मेरे पति बोले, ‘‘तुम्हें मेरी यह बात पूरी सुने बिना ही दुख हुआ तो जरा सोचो कि तुम तो रोज मुझ से अपने बारे में ऐसी बातें कहती हो तब मैं कैसे उन्हें बरदाश्त करता हूं.’’

यह बात सुन कर मुझे बहुत दुख हुआ कि अनजाने में मैं ने उन के दिल को कितना दुख पहुंचाया.

-विनोद

मेरे पापा जब इलाहाबाद में पोस्टेड थे तो हम एअरफोर्स कालोनी में रहते थे, जहां सब आर्मी वाले और एअरफोर्स वाले लोग ही रहते थे. सब में एकदूसरे के प्रति आत्मीयता थी.

उन्हीं दिनों हमारे पड़ोस में रहने वाले अंकल कर्नल नागिया का तबादला हो गया. उन की सहायता में पूरी कालोनी के लोग लगे हुए थे. जिस रात वे लोग जाने वाले थे उसी दिन सुबह मैं उन के घर गई तो देखा पूरा कमरा खाली पड़ा था और आंटी अंदर किसी काम में व्यस्त थीं.

मैं ने पूछा, ‘‘आंटीजी, आप क्या कर रही थीं?’’ तो वे बोलीं, ‘‘अरे, वाशबेसिन में दाग दिख रहे थे उन्हें साफ कर रही थी.’’ मैं थोड़ा अचंभित हुई और बोली, ‘‘अब तो आप जा ही रही हैं फिर क्यों इतनी सफाई?’’

वे मुसकराई और बोलीं, ‘‘बेटा, इन्हीं छोटीछोटी बातों से तो हमारी छवि नए आने वाले लोगों पर अच्छी बनेगी और वे सोचेंगे कि हम किस प्रवृत्ति के लोग थे. हमारा उन से मिलना शायद कभी न हो पर उन के मन के किसी कोने में हमारी याद जरूर रहेगी. अगर अभी मैं घर गंदा छोड़ कर चली जाऊं तो वे अच्छा नहीं सोचेंगे मेरे बारे में.’’

उन की कही यह बात मुझे अंदर तक छू गई और मैं ने भी इस आदत को अपना लिया.

-शालिनी सक्सेना

ड्रैस कोड और महिला सुरक्षा

ड्रैस कोड और महिला सुरक्षा का यह विषय या सवाल अपनेआप में भेदभावपूर्ण है. ड्रैस कोड तो हो लेकिन मात्र युवतियों के लिए ही क्यों, युवकों या पुरुषों के लिए क्यों नहीं? वैसे तो सार्वजनिक जीवन में कोई ड्रैस कोड होना ही नहीं चाहिए, जिस की जो मरजी पहने.

डै्रस कोड कहां और क्यों

कुछ सेवाएं ऐसी हैं, जहां ड्रैस कोड अनिवार्य है मसलन, सेना, पुलिस, चिकित्सा सेवाएं, स्कूलकालेज व कई मल्टीनैशनल कंपनियां.

जहां तक सेना व अर्द्धसैनिक बलों का सवाल है, तो वहां समान ड्रैस कोड लागू है. जो वरदी एक पुरुष सैनिक के लिए निर्धारित है, वही महिलाकर्मी के लिए भी है और यह उचित भी है. इस के विपरीत पुलिस सेवा में समान ड्रैस कोड होने के बावजूद महिला सिपाहियों को शर्टपैंट के साथसाथ खाकी साड़ी या सलवार सूट पहनने की भी छूट है, जोकि उचित नहीं है.

चिकित्सा सेवाओं में भी नर्सों के लिए वरदी (विशेषकर सफेद) तय है और चिकित्सकों (पुरुष व महिला दोनों) के लिए भी नियत वरदी है.

स्कूलों में भी विद्यार्थियों के लिए वरदी तय है. लड़कों के लिए तो शर्टपैंट ही निर्धारित है लेकिन लड़कियों के लिए सलवारसूट की छूट है. यहीं से भेदभाव की शुरुआत होती है.

स्कूली शिक्षा तक दोनों के लिए ड्रैस कोड लगभग एकसमान तय है, लेकिन उस के बाद (कालेज स्तर पर) लड़कियों को साड़ी या सूट पहनने को मजबूर किया जाता है जबकि पारंपरिक नजरिए से देखा जाए, तो लड़कियों को साड़ी या सलवारसूट के बदले लड़कों को धोतीकुरता या पाजामाकुरता पहनना चाहिए, लेकिन तथाकथित संस्कृति के ठेकेदार (खाप पंचायतें व मुल्लामौलवी) इस तरह के फरमान जारी नहीं करते. उन के सारे फरमान व फतवे युवतियों के खिलाफ ही जारी होते हैं और युवक तो मानो ‘दूध के धुले’ होते हैं.

8 अप्रैल, 2013 के समाचारपत्र में एक खास खबर पढ़ने को मिली, ‘आंध्र प्रदेश सरकार ने स्कूल शिक्षिकाओं का जींस पहनना और मोबाइल रखना बंद कर दिया. यह नियम सरकारी स्कूलों और सरकार से संबंधित स्कूल के शिक्षकों पर लागू किए गए हैं. राज्य के प्राथमिक शिक्षा मंत्री ने पुरुष शिक्षकों के लिए काली पैंटसफेद शर्ट और महिला शिक्षकों के लिए पारंपरिक प्लेन कौटन साड़ी या चूड़ीदार पाजामी पहनने का सुझाव दिया है.’

मंत्री महोदय का यह फरमान तालिबानी मानसिकता का द्योतक है न कि किसी लोकतांत्रिक व्यवस्था का.

बेटे का महिमामंडन समस्या की जड़

दरअसल, पाश्चात्य  पहनावे की वजह से नहीं बल्कि समाज की संकीर्ण व कुत्सित मानसिकता की वजह से महिलाओं के प्रति अभद्रता बढ़ रही है. हमारे समाज में बचपन से ही बेटियों की तुलना में बेटे को ज्यादा तरजीह दी जाती है. कई परिवारों में 6-6 बेटियां हो जाने के बाद भी बेटे का इंतजार किया जाता है. ऐसे में वह बेटा मांबाप व बहनों का लाड़ला होगा ही व बड़ा होने पर खुद को लड़कियों से अधिक आंकेगा, क्योंकि लड़कियों को मूल्यहीन समझे जाने की वजह से ही तो लड़के को जन्म दिया गया है. ऐसे में वह महिलाओं के प्रति अभद्रता प्रदर्शित नहीं करेगा तो और क्या करेगा?

वैसे बेटे के महिमामंडन की जड़ में ‘धर्म का धंधा’ विद्यमान है. लगभग सभी धर्मों के ‘पुरोहितवर्ग’ ने युवतियों व महिलाओं के लिए तमाम ऐसे पूजापाठ व व्रतउपवासों को गढ़ा है, जिन से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर युवकों या पुरुषों को महिमामंडित किया जाता है. तमाम व्रतउपवास पतियों व पुत्रों की कुशलता व लंबी उम्र की कामना के लिए किए जाते हैं और मजे की बात तो यह है कि ये तमाम व्रतउपवास ग्रामीण व निरक्षर महिलाएं ही नहीं बल्कि शहरी व शिक्षित महिलाएं भी कहीं ज्यादा शोरशराबे व तामझाम के साथ करती हैं. क्या ये महिलाएं अपनी बेटियों के हित में बेटों व पतियों को महिमामंडित करने वाले इन व्रतउपवासों को तिलांजलि दे सकती हैं?

दूसरी बात, दादीनानी की उम्र की महिलाओं के साथ भी बलात्कार की घटनाएं होती आई हैं. तो क्या वे सब पाश्चात्य पहनावे में होती हैं या फिर दुधमुंही बच्चियों के साथ हो रहे बलात्कार उन के पाश्चात्य पहनावे में होने के कारण हैं? दिल्ली में 16 दिसंबर, 2012 को 23 वर्षीय युवती के साथ जो सामूहिक बलात्कार हुआ, वह क्या पाश्चात्य पहनावे की वजह से हुआ? इस घटना के ठीक 4 महीने बाद गत 16 अप्रैल को दिल्ली में ही 5 वर्षीय बच्ची के साथ बलात्कार की जो घटना हुई, वह क्या बच्ची के पाश्चात्य पहनावे की वजह से हुई? इन के अतिरिक्त भी कई ऐसी खबरें आईं जिन में कुकर्मी कोई गैर नहीं बल्कि मामा, पिता आदि शामिल थे और बच्चियों की उम्र भी महज 7 साल तक की थी.

दोष पोशाक में नहीं, मानसिकता में है

आजकल तो पितापुत्री के बीच भी दुष्कर्म की घटनाएं आम होती जा रही हैं, तो क्या इन मामलों में पुत्रियों ने पाश्चात्य पोशाक पहन रखी थी, जो उन के पिता ने उन के साथ दुष्कर्म किया? फिर इस में भला आधुनिक या पाश्चात्य पोशाक को क्यों दोषी माना जाए?

आमतौर पर महिलाओं के पहनावे को ले कर धर्म के ठेकेदार (खाप पंचायतें व मुल्लामौलवी) ऊलजुलूल बयान देते रहते हैं. समझ में नहीं आता कि महिलाओं के पाश्चात्य पहनावे को ले कर इन को आपत्ति क्यों होती है. बेहतर हो वे स्वयं भी पाश्चात्य पोशाक अपनाएं ताकि महिलाओं से उन्हें ईर्ष्या न हो.

इन ठेकेदारों को पुरुषों के पाश्चात्य पहनावे पर कोई आपत्ति नहीं होती. लगता है समाज के ये ठेकेदार महिलाओं से खौफ खाते हैं, वरना कोई कैसी भी पोशाक पहने, इन्हें क्या?

यौन उत्पीड़न विरोधी कानून पारित होने के अगले ही दिन हरियाणा में कांग्रेसी विधायक राव धर्मपाल गुड़गांव के द्रोणाचार्य राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय के वार्षिक समारोह में स्वागत टीम में उपस्थित शिक्षिका सुनील डबास को शर्टपैंट में देख भड़क गए और भारतीय संस्कृति का हवाला देते हुए उन के पहनावे पर अशोभनीय टिप्पणी करने लगे.

इतना ही नहीं, महिला के परिचय के बाद भी उन के सुर नहीं सुधरे. विधायक की टिप्पणी से आहत कोच सुनील (वे भारतीय महिला कबड्डी टीम की कोच हैं व द्रोणाचार्य पुरस्कार से सम्मानित हैं.) समारोह में ही बेहोश हो गईं, तो ऐसे हैं हमारे भारतीय लोकतंत्र के तालिबानी विधायक.16 दिसंबर, 2012 की घटना के बाद हमारे गुरुओं और जनप्रतिनिधियों के भी कुछ इसी प्रकार के बयान आए :

आसाराम बापू के अनुसार ‘‘युवती बलात्कारी के सामने हाथ जोड़ कर उसे अपना भाई बना लेती, तो वे जरूर उसे छोड़ देते.’’ सवाल उठता है कि जो युवक अपने को किसी युवती का भाई समझेगा, वह बलात्कार करेगा ही क्यों?

संघ प्रमुख मोहन भागवत को लगता है कि बलात्कार भारत में नहीं, इंडिया में होते हैं. अभिजीत मुखर्जी (राष्ट्रपति के सुपुत्र व विधायक) ने कहा, ‘‘रात को डिस्को जाने वाले सुबह कैंडल मार्च करते हैं.’’ अब आप ही बताइए कि क्या डिस्को जाने वाले किसी गलत बात का विरोध भी नहीं कर सकते?

इन महानुभावों की तालिबानी विचारधारा के विपरीत 16 अप्रैल, 2013 को 5 वर्षीय बच्ची के साथ हुई दुष्कर्म की घटना पर हमारे युवाओं का आक्रोश ‘फेसबुक’ पर की गई इस टिप्पणी में साफ झलकता है :

‘‘मेरे खयाल से 5 साल की वह बच्ची छोटे और भड़कीले कपड़े पहनती होगी… बौयफ्रैंड के साथ रात को घूमने जाती होगी… जब वह दरिंदा उस का रेप कर रहा होगा, तो उस के पैर पकड़ कर उस ने नहीं कहा होगा कि भैया, मुझे छोड़ दो… और उस के मातापिता की सब से बड़ी गलती यह है कि वे भारत नहीं, इंडिया में रहते हैं.’’

पाश्चात्य पहनावा ही सुरक्षात्मक

एक तरह से देखा जाए तो पाश्चात्य पहनावा महिलाओं की सुरक्षा के लिहाज से ज्यादा उपयुक्त है. मान लिया जाए कि कोई युवती अगर शर्टपैंट या जींस में है, तो वह जरूरत पड़ने पर आसानी से दौड़भाग सकती है और पलटकर गुंडेबदमाश को 2-4 लात जमा सकती है, जबकि वह साड़ी में ऐसा नहीं कर सकती.

वस्तुत: महिलाओं या युवतियों की पोशाक व उन के साथ होने वाले दुर्व्यवहार या बलात्कार की घटनाओं के बीच कोई अंतरसंबंध नहीं है. ‘पोर्न साइट्स’ पर पाबंदी लगाने से पहले सरकार को चाहिए कि वह ‘पुरोहितगीरी’ पर पाबंदी लगाए, क्योंकि पंडेपुजारी ही महिलाओं को पुत्रप्राप्ति की लंबी उम्र के लिए व्रतउपवास करने की सलाह दे कर बेटों या पुरुषों को महिमामंडित करते हैं, जिस की परिणति आगे चल कर ‘बलात्कार’ जैसी घटनाओं के रूप में सामने आती है.

अगर समाज में ‘पुरुषों का महिमामंडन’ न हो तो बलात्कार की घटनाओं में खुदबखुद कमी आ जाएगी. ‘फेसबुक’ पर एक अन्य टिप्पणी के अनुसार, ‘‘औरतों के बारे में सारी बहस में एक बात भुला दी जाती है कि हर बालिग युवती एक स्वतंत्र नागरिक है. ऐसा कोई सामाजिक या सांस्कृतिक रिवाज जायज नहीं हो सकता, जो उस के संवैधानिक अधिकारों पर अंकुश लगाए, यह हर बहस का आदि और अंत है. इस के दायरे के बाहर आप कुढ़ते रहिए, संविधान आप को कुढ़ने का हक देता है.’’

तात्पर्य यह है कि अगर कोई ड्रैस कोड हो तो वह पुरुष व महिला के लिए एकसमान होना चाहिए जैसा कि सेना व अर्द्धसैनिक बलों में है, वरना फिर ड्रैस कोड होना ही नहीं चाहिए.

हंस…खुल कर हंस

जब हम छोटे थे तो पहली अप्रैल को अपनी बचकानी हरकतों से अप्रैल फूल बनते और बनाने का मजा लेते. फूल बनने के बाद भी किस तरह से चेहरे पर मुसकान बिखरती थी, यह तो उसी वक्त का मजा था. इतना ही नहीं, कुछ बातें तो आज भी हमारे दिलोदिमाग में बसी रहती हैं और याद आने पर चेहरे पर फिर वही मुसकान ले आती हैं. कुछ ऐसी ही होती है हंसी…

अकसर कहा जाता है कि फलां बहुत ही हंसमुख इंसान है यानी हंसी व्यक्तित्व को एक पहचान देती है. हंसने-हंसाने से जीवन खुशहाल बन जाता है. यदि लोगों पर सर्वे किया जाए, तो शतप्रतिशत लोग ऐसे ही लोगों का साथ या दोस्ती चाहते हैं, जो जीवन के हर पल को हंस कर जीते हैं. आजकल के मशीनी युग में हंसी कहीं खो सी गई है, हंसी की महफिलें, गपगोष्ठियां और परिवारों की सम्मिलित हंसी की बैठकें अब लगभग गायब हो गई हैं.

वह पेट पकड़ कर हंसना और हंसते-हंसते आंखें छलकने का मंजर अब कहां देखने को मिलता है. बस, कंप्यूटर की प्रोग्रामिंग जैसी एक हलकी सी मुसकराहट आ कर रह जाती है. हर समाचारपत्र और पत्रिका में हंसने के लिए जोक्स और हंसी का कोना दिया होता है कि पढ़ने वाला उसे पढ़ कर हंस सके, लेकिन 100 में से 80 लोगों के पास तो समय ही नहीं होता उसे पढ़ने के लिए और 10 प्रतिशत लोग पढ़ तो लेते हैं पर गौर नहीं फरमाते और बाकी बचे 10 प्रतिशत लोग ही ऐसे होते हैं, जो उन चुटकुलों का आनंद ले कर हंस पाते हैं.

कुछ कहती भी है यह हंसी

किसी से मिलते ही उस का स्वागत करते हैं तो चेहरे की भावभंगिमाओं में मुसकराहट छिपी होती है, उस से स्पष्ट हो जाता है कि आप ने दिल की गहराई से अपने दोस्त का स्वागत किया है. जिस हंसी से किसी का दिल दुखे वह हंसी नहीं है. वह हंसी का निकृष्टतम रूप है. आत्मसंतोष और आत्मविश्वास से भरा व्यक्ति अपनेआप पर भी हंसता है, यही कारण है कि जिंदादिल इंसान कई बार जटिल स्थितियां भी सहज कर देता है. घर के तनाव में यदि कोई हंसी की बात आ जाती है तो उसे उसी वक्त स्वीकार कर के हंस लीजिए, क्योंकि हंसी भरे व्यवहार से बहुत सी स्थितियां अपनेआप ही सहज हो जाती हैं.

इलाज भी है हंसी

खुल कर हंसने वालों को डाक्टर के पास जाने की कम जरूरत पड़ती है. कहा जाता है कि खुल कर हंसने से शरीर में कंपन होता है और आंतरिक अंगों की मालिश होती है. हंसने से हमारा ड्रायफाम फैलनेसिकुड़ने लगता है, जिस से आंतरिक अंगों जैसे लिवर, गुरदा, किडनी, आंतें, बाहरी त्वचा बारबार खुलती व सिकुड़ती है, जिस से इन अंगों का व्यायाम होता है. हंसी से सेरोटिन की मात्रा भी बढ़ जाती है, जिस से हमारे अंदर पौजिटिव ऐनर्जी आ जाती है जो शरीर की रोगप्रतिरोधक क्षमता को भी बढ़ाती है. कई बार हम बीमार होते हुए भी किसी उत्सव में जाते हैं और वहां का माहौल प्रसन्नता, हास्य का भाव, खुशीउमंग से भरा देख कुछ सुकून महसूस करते हैं. हंसने के दौरान हमारे मस्तिष्क में इस तरह के हारमोंस पैदा होते हैं, जिस से कोरटीसोल की मात्रा कम होती है. कोरटीसोल हमारे मस्तिष्क में से निकलता हारमोन है, जो नकारात्मक सोच को मजबूत करता है और हंसने से हमारे मस्तिष्क में इस तरह के हारमोंस पैदा होते हैं, जिन से कोरटीसोल की मात्रा कम होती है, जिस कारण सकारात्मक सोच हम पर प्रभावी हो जाती है.

फिल्म ‘आनंद’ के जिंदादिल राजेश खन्ना और ‘मुन्नाभाई एमबीबीएस’ में संजय दत्त हंसीखुशी के कारण ही अपनी और दूसरों की बीमारी को भुला कर जिंदादिली का सबक सिखाते हैं और स्वस्थ होने में हंसी का भी योगदान है, इस की भी सीख देते हैं. चिकित्सकों का मानना है कि हंसना हमारे स्नायु संबंधी और अन्य शारीरिक रोगों से बचने का सर्वोत्तम साधन है.

जरूरी है हंसी

हंसना कितना महत्त्वपूर्ण है, इसे ध्यान में रखते हुए आजकल तमाम टीवी चैनल रोनेधोने वाले सीरियलों की जगह हंसी पर आधारित कार्यक्रमों को ज्यादा महत्त्व दे रहे हैं. कई स्थानों पर मौर्निंग वौक वाले क्लब में लाफ्टर क्लब स्थापित होने लगे हैं, जिन में लोग सुबह किसी पार्क में इकट्ठा हो कर जोरजोर से हंसते हैं और भी लोग उन की हंसी की आवाजों पर हंसते हैं. कुल मिला कर माहौल हंसी का हो जाता है और सुबहसुबह की ताजगी दिनभर कायम रहती है.

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