आने वाली है मर्दों की आफत

औरतों के लिए वियाग्रा जैसी दवा को अमेरिकी स्वास्थ्य विभाग ने अप्रूव कर दिया है. अब समझ लें कि यह मर्दों के लिए आफत हो सकती है. अपनी यौन इच्छा बढ़ाने के लिए अगर पत्नियों ने यह दवा लेनी शुरू कर दी तो पति को न केवल बिस्तर पर कलाबाजियां ज्यादा करनी होंगी और तृप्त हो कर सोई पत्नी के छोड़े गए काम भी पूरे करने होंगे. आजकल बहुत सी पत्नियां देर रात तक रसोई में खटपट करती रहती हैं कि पति सो जाए और बिस्तर पर परेशान न करे. लेडी वियाग्रा लेने पर वह काम छोड़ कर चली आएगी और स्वाभाविक है कि वह काम पूरा करने के लिए पति को मुंडू बनना पड़ेगा. अगर विवाहपूर्व प्रेमिका ने यह दवा लेनी शुरू कर दी तो भावी पति को न केवल रेस्तराओं में चायपकौड़े के पैसे देने होंगे, उन्हें बिस्तर का इंतजाम करने के लिए जेब और ढीली करनी होगी.

देश के मर्द वैसे ही परेशान रहते हैं कि वे कहीं नामर्द तो नहीं हैं. निस्संतान औरतों का इलाज करने वाले इतने विज्ञापन नहीं दिखते जितने पुरुष की कमजोर क्षमता वाले दिखते हैं. लेडी वियाग्रा के बाद मर्दों को अपनी हैसियत और ज्यादा बढ़ानी होगी और उन्हें पत्नी को खुश रखने के लिए डाक्टरों, नीमहकीमों के चक्कर लगाने होंगे. मर्दों को चाहिए कि वे जल्दी ही जंतरमंतर पर धरना दें कि उस दवा को भारत में मैगी की तरह बैन किया जाए ताकि 2 सैकंड वाले पतियों की पोलपट्टी न खुले. यह दवा निस्संदेह पतियों के लिए हानिकारक है. यह  उन का दिन भी खराब करेगी और रात का तो कहना ही क्या. दिन में ऊंघने पर दफ्तर में डांट पड़ेगी और रात को बिस्तर पर परफौर्म न करने पर पत्नी की. एड्डी नाम से जाने जानी वाली यह दवा मर्दों की हेकड़ी निकाल देगी, इतना पक्का है.

बड़े नेता छोटी सोच

अपने राज में होने वाले बलात्कारों को छोटे मामले कहने वाले नेता कई बार मन का गुबार निकालते हुए सदियों पुरानी बातें कह जाते हैं. जैसे मुलायम सिंह यादव ने एक लड़की द्वारा 4 भाइयों पर लगाए बलात्कार के आरोप के बाद कहा कि क्या 4-4 एकसाथ बलात्कार कर सकते हैं? क्या हो सकता है क्या नहीं, इस की चिंता करने वाले यह नहीं सोचना चाहते कि कैसे उस गंदी भूख को बदला जाए जिस में पुरुष हर औरत को अपना शिकार मानने का हक रखते हैं. बलात्कार 1 भी कर सकता है और 10 भी. हर जना जो गैंगरेप में भीड़ में खड़ा है, बलात्कार का दोषी है चाहे उस ने कुछ किया या नहीं, क्योंकि शारीरिक यातना के साथ बलात्कार मानसिक यातना भी है.

सदियों से औरतों को आदमियों का गुलाम बना कर रखा गया है और धर्म ने इस तरह के बीज उन के मन में डाल दिए हैं कि बलात्कार के बाद औरत खुद को दोषी मानती है, मुंह छिपा कर रोती है और आत्महत्या तक करने पर उतारू हो जाती है. यह मामला सामूहिक सोच का है जिस के मुलायम सिंह जैसे सैकड़ों नेता ही नहीं धर्म के दुकानदार, बड़ेबूढ़े, औरतें और विचारक तक समर्थक हैं. बलात्कार औरत की इज्जत पर हमला है. उस की सामाजिक प्रतिष्ठा को धूल में मिलाने की चेष्टा है. यह यौन सुख के लिए कम अपनी श्रेष्ठता दिखाने के लिए ज्यादा किया जाता है. आम जनता जिस तरह बोलचाल की भाषा में मांबहन की गालियां देती हैं उस से साफ है कि बलात्कार को एक हथियार के तरह इस्तेमाल किया जाता है ताकि कभी लड़की को खुद और कभी उस के पूरे परिवार को घुटने टेकने पर मजबूर किया जा सके.

मुलायम सिंह यादव जैसे नेता उस तरह के गांवों से आए हैं जहां बलात्कार को अल्टीमेट हथियार की तरह इस्तेमाल करने की इजाजत है. किसी ने पैसे दाबे, गलत काम किया तो बदला लेने के लिए उस की बहन, बीवी, भाभी या मां तक को बलात्कार का निशाना बना डालो. इस में गिनती कहां से आ जाएगी क्योंकि यह अपराध करने वाले 1 नहीं 10-20 भी हो सकते हैं. बलात्कार को रोकना आसान नहीं है पर इसे सामाजिक कलंक न मानना आसान है. अगर समाज लड़की को दूषित न माने तो बलात्कार का हथियार अपनेआप में कमजोर हो जाएगा. पर ऐसी सोच विकसित करना तो सदियों का काम है और यहां तो अभी शुरुआत भी नहीं हुई है.

ट्रैंडी दिखें पर शालीनता के साथ

बस या ट्रेन में यात्रा करते वक्त या फिर पब्लिक प्लेस पर कई बार हमारे समक्ष वार्डरोब मालफंक्शनिंग की स्थिति उत्पन्न हो जाती है. मौडलिंग और विज्ञापन की दुनिया से आया यह शब्द अब किसी के भी लिए नया नहीं रहा है. आए दिन ग्लैमर वर्ल्ड में ड्रैस मालफंक्शनिंग की घटनाएं देखनेसुनने को मिलती रहती हैं. जब कोई मौडल या ऐक्ट्रैस इस की शिकार होती है तो ऐसी घटनाएं खूब सुर्खियां बटोरती हैं. इस का शिकार होने वाली के लिए वल्गर, इनडिसैंट जैसे शब्दों का प्रयोग किया जाता है. दरअसल, कई बार दूसरों की देखादेखी शोऔफ के चक्कर में युवतियां उलटीसीधी ड्रैस कैरी कर लेती हैं और बाद में अपनी फजीहत खुद करवाती हैं. इसलिए बेहतर है कि मालफंक्शनिंग का शिकार होने से पहले ही यह तय कर लें कि आप के व्यक्तित्व पर क्या सूट कर रहा है और क्या नहीं? आधुनिकता के नाम पर ज्यादातर अश्लीलता ही देखने को मिलती है. स्कूल व कालेज जाने वाली लड़कियां अपने पहनावे को ले कर ज्यादा ऐक्सपैरिमैंटल और जजमैंटल होती हैं. ट्रैंडी और कूल दिखने की होड़ उन में सब से ज्यादा होती है. ऐसे में कुछ भी उलटासीधा पहन कर खुद को स्मार्ट और डैसिंग कहलवाना पसंद करती हैं. मगर उन के लिए यह जानना ज्यादा जरूरी है कि वे कौनकौन से आउटफिट्स कैरी करें जिन में वे कैंपस के भीतर और बाहर दोनों जगह कंफर्टेबल महसूस करें. इस बात का ध्यान पढ़ने वाली युवतियों को ही नहीं वरन प्रोफैशनल युवतियों और वर्किंग महिलाओं  को भी रखना चाहिए. बाहर असहज स्थिति में फंसने से बेहतर है घर पर ही अपने आउटफिट का सावधानी से परफैक्ट चुनाव करें.

क्या कैरी करें

हमेशा अपनी पर्सनैलिटी के हिसाब से और सही नाप के आउटफिट्स का चयन करें.

मौडर्न और ऐलिगैंट लुक के लिए हमेशा कंफर्टेबल ड्रैस ही कैरी करें.

जरूरी नहीं कि आप वैस्टर्न आउटफिट्स या जींस में ही मौडर्न दिखें. अगर आप के व्यक्तित्व पर सूट करती है, तो सलवारकमीज को भी ट्रैंडी व ऐलिगैंटली ट्राई करें.

इंडियन ट्रैडिशनल आउटफिट के साथ वैस्टर्न मौडर्न मिक्स का ऐक्सपैरिमैंट करें, जो आप को परफैक्ट लुक देगा.

घर से निकलने से पूर्व हमेशा नौट, जिप, बटन वाली ड्रैस को केयरफुली चैक कर लें.

क्या न करें

ज्यादा टाइट व अल्ट्रा शौर्ट आउटफिट न पहनें वरना वह आप की पर्सनैलिटी को गिरा सकता है.

हौट और सैक्सी दिखाने वाली वल्गर ड्रैसेज को बायबाय कहें.

कभी अनफिट या अनकंफर्टेबल ड्रैस कैरी न करें. पहले से ऐक्सपैरिमैंटेड ड्रैसेज के साथ और ज्यादा ऐक्सपैरिमैंट न करें.

स्मौल, बैकलैस, वनपीस या औफशोल्डर ड्रैस कभी हड़बड़ी में न पहनें, क्योंकि इस से मालफंक्शनिंग का ज्यादा खतरा रहता है.

कपड़ों के चयन में कौपी कैट न बनें.   

– प्रियदर्शनी सिंह ‘स्वीटी’ 

तो दिखेंगे टीनऐजर्स स्मार्ट

‘‘मां,देखो यह रिफ्ट जींस कैसी लग रही है?’’

‘‘उफ, यह फटी जींस का बाजार में बिकना तो मेरी समझ से बाहर है. तुम दूसरी जींस देखो.’’

‘‘मां, आप को तो मेरी पसंद की कोई ड्रैस पसंद ही नहीं आती. मेरी सभी सहेलियां ऐसे ही कपड़े पहनती हैं.’’

‘‘यहां और भी कपड़े हैं. तुम उन्हें ट्राई करो. मैं लेने से मना तो नहीं कर रही,’’ अपनी टीनऐजर बेटी को समझाते हुए मां बोलीं. हो सकता है आप को भी अपने बच्चों से ऐसा सुनने को मिलता हो. दरअसल, टीनऐजर्स सुंदर दिखना चाहते हैं. उन पर इस उम्र में फिल्मों का प्रभाव इतना अधिक हो जाता है कि हर टीनऐजर फिल्मी हीरोहीरोइन की तरह आकर्षक दिखना चाहता है.टीनऐजर्स के रोल मौडल सुंदरसुंदर कपड़े पहने हीरोहीरोइन ही होते हैं. वे भी उन के जैसा स्टाइलिश दिखना चाहते हैं. अभिभावक भी अपने बच्चों को सुंदर देखना चाहते हैं, पर उन के फैशन की वजह से वे कई बार चिंता में पड़ जाते हैं.

मातापिता का नजरिया

टीनऐजर्स बेटों की मां पूनम कहती हैं, ‘‘जैसेजैसे दोनों बेटे बड़े हो रहे हैं वैसेवैसे उन के पहनावे को ले कर हम में विरोधाभास उत्पन्न होता जा रहा है. बड़ा बेटा राहुल सारा दिन शौर्ट्स में रहना पसंद करता है. यहां तक कि पारिवारिक फंक्शन में भी वह ऐसे ही कपड़ों में जाना पसंद करता है. जबकि मैं चाहती हूं कि वह पैंटकमीज भी पहने जैसे और बच्चे पहनते हैं. पर वह हमारे टोकने पर नाराज हो कर अपने को कमरे में बंद कर लेता है. दूसरे बेटे ऋषभ ने खूब लंबे बाल रखे हैं और उन्हें रबड़बैंड से लड़कियों की तरह बांधे रखता है. उसे ऐसा करना कूल लगता है पर नातेरिश्तेदार इस का सारा दोष मुझे देते हैं. समझ में नहीं आता क्या करूं?’’

यह कहानी पूनम की ही नहीं, बल्कि लगभग हर मातापिता की है. इसी को जैनरेशन गैप कहते हैं. पहले बच्चे अपने कपड़ों के चयन पर मातापिता पर निर्भर रहते थे. उन्होंने जो कपड़े खरीद दिए जाते थे वे उन्हें पहन लेते थे. परंतु अब समय बदल गया है. कपड़ों के चयन को ले कर बच्चे काफी सजग हो गए हैं. इंटरनैट की दुनिया ने उन्हें घर पर हर नए फैशन ट्रैंड की जानकारी उपलब्ध करवा दी है. आजकल ज्यादातर मातापिता दोनों कामकाजी होते हैं, इसलिए आर्थिक रूप से वे सक्षम होते हैं. सभी अपने बच्चों को बेहतर चीजें ले कर देना चाहते हैं, लेकिन आर्थिक संपन्नता ने उन्हें सामाजिक रूप से अक्षम बना दिया है. नातेरिश्तेदारों में बच्चों की उपस्थिति काफी कम हो गई है. बच्चे अपने दोस्तों में मस्त हैं और वे सभी एकदूसरे की नकल करते हैं.

अलगअलग नजरिया

सपना अपनी इकलौती बेटी सुप्रिया से अकसर परेशान रहती है. सुप्रिया, सुप्रिया से कब सु हो गई सपना को पता ही नहीं चला. उस के सभी दोस्त उसे सु कह कर पुकारते हैं. अपने उलझे बालों का जूड़ा बनाए ही वह कालेज चली जाती है. अपने इसी स्टाइल की वजह से वह अपने दोस्तों में लोकप्रिय है. सपना को उस का यह फंकी पहनावा फूटी आंख नहीं भाता है, इसलिए वह उसे अपने साथ किसी फैमिली फंक्शन में नहीं ले जाती है. सपना को हमेशा यह डर लगा रहता है कि लोग क्या कहेंगे. धीरेधीरे सुप्रिया और सपना ने अपनी अलगअलग दुनिया बसा ली. अकसर मातापिता सपना जैसी गलती कर बैठते हैं. इस से अलगाव की स्थिति उत्पन्न हो जाती है और कुछ हासिल नहीं होता.

दिशा दें

विजयलक्ष्मी तमिल ब्राह्मण परिवार से हैं. उन के यहां पारिवारिक फंक्शन होते रहते हैं जिन में ट्रैडिशनल ड्रैस पहनना अनिवार्य समझा जाता है. उन की बेटी पारिवारिक फंक्शनों में ट्रैडिशनल ड्रैस में ही जाती है, मगर अपने कालेज और दोस्तों के साथ रहने पर जींस टीशर्ट पहनती है. विजयलक्ष्मी कहती हैं कि शुरूशुरू में वह विरोध करती थी, परंतु जब मैं ने उसे इंडोवैस्टर्न तरीके से ड्रैसअप होने का सुझाव दिया, तो उस ने उसे मान लिया. फिर जब उस ने उस परिधान में खींचा गया अपना फोटो सोशल मीडिया पर अपलोड किया तो उसे बहुत पसंद किया गया. अब जहां वह ऐसे परिधान में ऐंजौय फील करती है, वहीं उस की रचनात्मकता को भी नया आयाम मिलता है. उस की सहेलियां उस के इस अंदाज की कायल हैं. मातापिता को बच्चों को समझने और समझाने की जरूरत होती है. इस के लिए उन्हें उन के नजदीक आना होगा. थोड़ा सा प्रयत्न कर के वे बच्चों का विश्वास जीत सकते हैं. रवीना कहती हैं कि उन की बेटी को सैक्सी दिखना पसंद है. वह अकसर ऐसे कपड़ों का चयन करती है, जो मौडल पहनती हैं और उन्हें पहन कर घंटों पोज बना कर फोटो खींचती है. रवीना ने उसे समझाया कि ऐसे कपड़े पहन कर बाहर जाने से उसे तरहतरह की परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है, इसलिए जब भी बाहर जाए तो स्टोल आदि डाल लिया करे. धीरेधीरे उसे समझ में आने लगा कि समाज में रहने के कुछ कायदे होते हैं, हर जगह एकजैसे कपड़े पहन कर नहीं जाया जा सकता. विनय अपने टीनऐजर बेटे के साथ जम कर शौपिंग करते हैं. अपने कपड़ों को भी खरीदने के लिए बेटे की सहायता लेते हैं. वे बेटे की तरह ही जींस और टीशर्ट पहनते हैं. कूल पापा से बेटा भी खुश रहता है.

अभिभावक निम्न टिप्स पर गौर कर अपने टीनऐजर्स बच्चों के साथ बेहतर तालमेल बना सकते हैं: 

बच्चों के साथ भावनात्मक रूप से जुड़ें और उन का नजरिया समझने का प्रयास करें.

कभीकभी उन्हें भी मौका दें अपने अनुसार तैयार होने का.

उन्हें पारिवारिक फंक्शनों का हिस्सा बनाएं. उन के साथ बैठ कर यह निर्णय लें कि फंक्शन में सब के लिए किस प्रकार के कपड़े खरीदे जाएं.

उन्हें खूबसूरती का असली अर्थ समझाएं. उन्हें व्यावहारिक बनाने का प्रयत्न करें.

इंडोवैस्टर्न कपड़ों का महत्त्व समझाएं.

आजकल बहुत से ब्रैंड ऐसी ड्रैसेज बाजार में ला रहे हैं, जो इंडोवैस्टर्न फैशन से प्रेरित हैं और उन्हें टीनऐजर्स पसंद भी कर रहे हैं.

रोस्टेड वैजिटेबल सलाद

सामग्री

150 ग्राम शिमलामिर्च

150 ग्राम जुकीनी

150 ग्राम ब्रोकली

150 ग्राम बेबीकौर्न

100 ग्राम ऐस्परैगस

100 ग्राम गाजर

100 ग्राम बैगन

20 ग्राम लहसुन कटा

30 मिलीग्राम औलिव औयल

10 ग्राम ताजा पार्सले

100 ग्राम पनीर

50 मिलीग्राम नीबू सिरके के साथ

नमक व कालीमिर्च स्वादानुसार.

विधि

सारी सब्जियों को त्रिकोण आकार में काट लें. फिर तेल, नमक, कालीमिर्च और लहसुन से मैरिनेट करें. अब ओवन में 180 डिग्री सैल्सियस पर 15 मिनट भूनें. फिर निकाल कर ठंडा होने दें. फिर नीबू रस छिड़क कर पनीर और पार्सले से सजाएं.

रोस्टेड वैजिटेबल लसागना

सामग्री

150 ग्राम शिमलामिर्च

150 ग्राम जुकीनी

150 ग्राम ब्रोकली

150 ग्राम बेबीकौर्न

100 ग्राम ऐस्परैगस

100 ग्राम गाजर

100 ग्राम बैगन

20 ग्राम लहसुन कटा

20 ग्राम प्याज कटा

30 मिलीग्राम वर्जिन औयल

10 ग्राम ताजा पार्सले कटे

4 लसागना चीज

120 मिलीग्राम चीज सौस

120 मिलीग्राम टोमैटो सौस

120 मिलीग्राम व्हाइट सौस

50 ग्राम परमेसन चीज कद्दूकस किया

नमक व कालीमिर्च स्वादानुसार.

विधि

सभी सब्जियों को सेम आकार में काटें. अब इन्हें लहसुन, तेल, नमक और कालीमिर्च से मैरिनेट करें. फिर ओवन में 180 डिग्री सैल्सियस पर 20 मिनट भूनें. अब भुनी सब्जियों को पतला काटें. इन्हें आधे टोमैटो सौस और आधे व्हाइट सौस में पकाएं. चीज को उबले पानी में डाल कर निकालें. अब सब्जी की परत लगाएं. फिर चीज सौस और टोमैटो सौस की एक परत लगाएं. व्हाइट सौस को ऊपर से डालें. फिर ऊपर परमेसन चीज बुरकें. पार्सले से सजा कर गरमगरम सर्व करें.

क्ले ओवन रोस्टेड अबेरगिन सूप

सामग्री

4 बड़े बैगन

100 ग्राम प्याज कटा

50 ग्राम लहसुन कटा

30 ग्राम थाइम (सुगंधित पौधा)

60 ग्राम बकरी का चीज

30 मिलीग्राम वेज स्टौक

10 ग्राम लहसुन कटा व तला.

विधि

तंदूर में बैगन को भून लें. अब उन के डंठल निकाल कर प्यूरी बनाएं. अब एक बरतन में लहसुन, थाइम और प्याज को भूनें. अब बैगन पका कर प्यूरी बनाएं. फिर इस में वेज स्टौक डाल कर गाढ़ा होने तक पकाएं. अब चीज और मसाला डालें. फिर इसे भुने लहसुन के साथ गरमगरम सर्व करें.

रोस्टेड वैजिटेबल्स विद ऐक्स्ट्रा वर्जिन औयल

सामग्री

150 ग्राम शिमलामिर्च

150 ग्राम जुकीनी

150 ग्राम ब्रोकली

150 ग्राम बेबीकौर्न

100 ग्राम ऐस्परैगस

100 ग्राम गाजर

100 ग्राम बैगन

20 ग्राम लहसुन कटा

20 ग्राम प्याज कटा

30 मिलीग्राम वर्जिन औयल

10 ग्राम ताजा पार्सले

20 ग्राम स्लाइस फ्रैंच लूफ ब्रैड

50 मिलीग्राम पेस्टो सौस

नमक व कालीमिर्च स्वादानुसार.

विधि

सब्जियों को पतला काट कर नमक, कालीमिर्च, तेल और लहसुन से मैरिनेट करें. फिर सभी सब्जियों को ओवन में 15 मिनट 200 डिग्री सैल्सियस पर रोस्ट करें. अब एक बरतन में वर्जिन औयल गरम करें. रोस्टेड सब्जियों को प्याज और पार्सले के साथ मिलाएं. पार्सले से सजा कर गरमगरम सर्व करें.

सपने देखती नहीं उन्हें सच भी करती हूं -दृष्टि धामी

विश्व की ‘100 सैक्सी विमन’ में शामिल हो चुकीं छोटे परदे की दिलकश अदाकारा दृष्टि धामी आजकल हसीन और खुशमिजाज ऐक्ट्रैस के नाम से पहचानी जाती हैं. इस वक्त वे जी टीवी पर आ रहे शो ‘एक था राजा एक थी रानी’ के लिए बहुत उत्साहित हैं, जिस में वे लीड रोल में हैं. इसी शो की लौंचिंग के अवसर पर उन से बातचीत हुई जिस में उन के शो के किरदार और उन के जीवन से जुड़ी बातों पर चर्चा हुई. उसी गुफ्तगू के कुछ अंश यहां पेश हैं:

नीरज से शादी के बाद जीवन में कुछ बदलाव आए हैं?

नहीं बिलकुल नहीं. शादी के बाद ज्यादा कुछ नहीं बदला है. मैं अपनी मैरिड लाइफ को ऐंजौय कर रही हूं और यह सोचती हूं कि शादी के बाद यह शो मेरी वापसी के लिए एकदम परफैक्ट होगा. मैं काम पर वापस लौट कर बहुत खुश हूं.

1940 के समय की कहानी पर बने इस शो में उस समय की लड़की की मानसिकता वाला किरदार निभाने में कोई परेशानी तो नहीं आई?

देखिए, इस शो में मेरा किरदार उस लड़की का है जो एक सेठ की बेटी है. पर उस का परिवार वही पुरानी सोच वाला है. लड़कियों का पढ़ना, घर से निकलना वहां भी अच्छा नहीं माना जाता. शुरुआत में तो इस भूमिका को निभाने में कुछ दिक्कत हुई पर अब सब सामान्य हो गया है. इस शो में सब से ज्यादा मजा इस शो के कपड़े दे रहे हैं क्योंकि अन्य किरदारों की तुलना में सूती साड़ी वाले और कम मेकअप वाले इस किरदार का लुक मुझे बहुत अच्छा लग रहा है.

आप की नजर में महिलाओं की दशा में पुराने समय की तुलना में आज क्या सुधार हुए हैं?

यकीनन आज समय के साथ बहुत कुछ बदला है. महिलाओं ने हर क्षेत्र में उन्नति की है. पर आज भी कई ऐसे प्रदेश हैं जहां लड़कियों और लड़कों में अंतर किया जाता है. लड़कियों को पढ़ाई से वंचित रखा जाता है.महिलाओं पर अत्याचार की खबरें सुन कर तो यही लगता है कि पहले का समय ज्यादा अच्छा था. लड़कियों को आज जितनी आजादी नहीं थी परंतु वे सुरक्षित थी.

सपने देखती हैं आप?

बिलकुल देखती हूं. मेरा तो सपना है कि में शौपिंग करने जाऊं तो 3-4 लोग सामान उठा कर मेरे पीछे चलें. सिर्फ इतना ही नहीं, स्विट्जरलैंड में पहाड़ी पर मेरा एक कैसल हो. लेकिन मैं उन्हीं सपनों में यकीन रखती हूं जिन्हें मैं अपने दम पर सच कर सकूं. मैं सपने सोते हुए नहीं जागते हुए देखती हूं.

बौलीवुड में ऐंट्री करने का कोई इरादा?

हां इरादा तो है वह भी पक्का. लेकिन कब करूंगी यह कह नहीं सकती. फिलहाल तो छोटे परदे पर और पहचान बनानी है अपनी. लेकिन किसी अच्छी फिल्म के लिए अगर कोई ऐप्रोच करता है तो मना नहीं करूंगी. लेकिन वही फिल्म करूंगी जिस की कहानी मुझे पसंद आ जाए. अगर मौका मिले तो मैं ‘कंगना’ जैसी महिला प्रधान भूमिकाओं वाली फिल्में करना पसंद करूंगी.

चेलैंजिंग रोल करती हूं

फिल्म ‘दिल्ली-6’ के रमा बूआ के रोल से बौलीवुड डैब्यू करने वाली अदिति राव हैदरी खुद भारतनाट्यम की कुशल नृत्यांगना हैं. कैरियर के 7 सालों में उन के कैरियर में कोई खास उछाल तो नहीं आया है, पर अपनी परफौर्मैंस से अदिति खासी संतुष्ट नजर आती हैं. वे कहती हैं कि उन्हें वह लाइफ पसंद नहीं जहां चैलेंज न हो. मुझे ही देखिए, मैं ने पिछले साल अपने 5 प्रोजेक्ट पूरे किए जो मेरे लिए एक शानदार काम था. मेरे लिए मेरी ‘वजीर’ और ‘फितूर’ खास फिल्में हैं. मैं उन्हें ले कर बहुत उत्साहित हूं.

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