मां बनना तो सम्मान की बात है : कंगना राणावत

फिल्म ‘क्वीन’ के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का फिल्मफेअर और राष्ट्रीय पुरस्कार हासिल करने के बाद हाल ही में प्रदर्शित फिल्म ‘तनु वैड्स मनु रिटर्न्स’ से कंगना राणावत ने साबित कर दिखाया कि बौलीवुड की सही माने में वही क्वीन हैं. इस फिल्म को देखने के बाद चर्चा गरम है कि कंगना राणावत ने प्रियंका चोपड़ा और दीपिका पादुकोण के लिए खतरे की घंटी बजा दी है.

पेश हैं, कंगना से हुई गुफ्तगू के अहम अंश:

फिल्म ‘तनु वैड्स मनु रिटर्न्स’ को जितनी सफलता मिल रही है, क्या उस की उम्मीद थी?

इस का एहसास मुझे ही नहीं, बल्कि इस फिल्म के साथ जुड़े हर इंसान को था. इस की मूल वजह फिल्म की कहानी, पटकथा के साथसाथ निर्देशक आनंद एल.राय जिस अंदाज में इस कहानी को सैल्यूलाइड कर परदे पर उतार रहे थे, उस से हम सभी को यह यकीन था.

फिल्म में तनुजा त्रिवेदी उर्फ तनु और कुसुम संगवान उर्फ दत्तो दो अलग किरदार निभाना क्या आसान रहा?

आसान नहीं काफी मुश्किल रहा. दोनों किरदार बहुत अलग हैं. दोनों का लुक, दोनों के बोलचाल का लहजा, दोनों की भाषा, दोनों की बौडी लैंग्वेज सब कुछ बहुत अलग है.

इस बार तनु का किरदार निभाते समय सिर्फ स्क्रिप्ट का सहारा लिया है या आसपास लड़ते पतिपत्नियों का?

देखिए, यह सीक्वल फिल्म है. पूरे 4 साल तक इस फिल्म से अलग रह कर ‘क्वीन’ और ‘रिवौल्वर रानी’ जैसी फिल्में कीं. उस के बाद फिर से इस फिल्म के साथ जुड़ी, तो पहला सहारा मेरे पास स्क्रिप्ट ही थी. इन दोनों फिल्मों के बीच कहानी में 4 साल का अंतराल है. इन 4 सालों में तनु और मनु के बीच क्याक्या बीता है, इस की झलक आप ने फिल्म के शुरू के एक सीन से पा ली होगी. इन 4 सालों में दोनों लंदन में साथ रहते हुए भी कभी एकसाथ नहीं रहे. हमेशा झगड़ते रहे और एक दिन अलगअलग राह चल पड़ते हैं. इस फिल्म में शादी के बाद सपनों के टूटने और फिर शादी टूटने का जो फ्रस्ट्रेशन है, वह नजर आया. इस बात को परदे पर निभाना मेरे लिए आसान नहीं था. पर मैं ने तमाम लोगों से इस तरह के घटनाक्रमों के बारे में सुना जरूर था.

अब फिल्म देखने के बाद मेरे पास बहुत मैसेज आ रहे हैं. कुछ दर्शकों का कहना है कि उन के साथ इस तरह की घटनाएं हो चुकी हैं, तो कुछ ने कहा कि उन्होंने अपने आसपास इस तरह की घटनाएं होते देखी हैं, यानी दर्शक इस फिल्म व मेरे किरदार के साथ रिलेट कर रहे हैं

क्या आप इस फिल्म के माध्यम से लोगों को यह बताना चाहती हैं कि शादी के बाद बदलना चाहिए?

देखिए, आप फिल्म देख चुके हैं, तो समझ में आया होगा कि प्यार हो या शादी आप को समझौतावादी रुख अपनाना पड़ता है. इस समय हमारे देश में जिस तरह से तलाक की घटनाएं बढ़ी हैं, उन पर यह फिल्म कमैंट करती है. हमारे देश में पश्चिमी सभ्यता का प्रभाव बहुत ज्यादा पड़ रहा है. पश्चिमी देशों में कोई रिश्ता माने नहीं रखता. वहां पतिपत्नी तो छोडि़ए उन के बच्चे भी उन के साथ नहीं रहते. जिस तरह से पश्चिमी संस्कृति व सभ्यता हम भारतीयों पर हावी हो रही है, उस से हम भारतीयों में ‘हम’ की जगह ‘मैं’ का भाव आ गया है. हर लड़की या लड़का सोचता है कि मैं ही सब कुछ हूं. यह फिल्म हमें पश्चिमी देशों की हर बात को आंख मूंद कर न मान लेने की सीख देती है.

जब आप मानती हैं कि भारतीय समाज में ईगो क्लैश, पलायनवादी प्रवृत्ति और त्याग की कमी के चलते तलाक की घटनाएं बढ़ रही हैं, तो इस का हल क्या है?

पहली बात तो अभी मेरी शादी नहीं हुई है. इसलिए अपने वैवाहिक जीवन को मैं किस तरह से सवारूंगी, उस पर कुछ कह नहीं सकती. मगर मेरी राय में हर इंसान के साथ एक ही नियम लागू नहीं किया जा सकता. हालात के अनुसार ही कदम उठाने पड़ेंगे. यदि कोई पुरुष या नारी सामने वाले का अपमान करता है या करती है तो अलग हो जाना ही सब से अच्छा रास्ता है. जहां मानसम्मान न हो, वहां कोई रिश्ता माने नहीं रखता. यदि किसी पति या पत्नी को लगता है कि उस का पति या उस की पत्नी सिर्फ उसे टौर्चर कर रही है, तो सहन नहीं करना चाहिए. अलग हो जाना ही बेहतर है. लेकिन अहंकार के चलते रिश्तों को टूटने की कगार तक ले जाना ठीक नहीं है.

क्या आप मानती हैं कि मुंबई या दिल्ली जैसे शहरों के लोेग छोटे शहरों की लड़कियों को कमतर आंकते हैं?

हां, जबकि यह गलत है. जब मैं अमेरिका जाती हूं, तो वहां के लोग हम भारतीयों को बहुत कमतर आंकते हैं. कुछ लोग सवाल करते हैं कि भारत में इंटरनैट है? मुंबई के लोग सोचते हैं कि गांव की लड़कियां बहुत अनपढ़ गंवार होती हैं. उन्हें उल्लू बनाया जा सकता है. जबकि ऐसा नहीं है. बड़े शहरों के मुकाबले छोटे शहरों, गांवों की लड़कियां ज्यादा पढ़ीलिखी, समझदार और तेजतर्रार होती हैं. तनुजा त्रिवेदी भी भारत के ही एक गांव की लड़की है. फिर अब पहले वाले गांव रहे भी नहीं. अब हम जब अपने गांव हिमालच प्रदेश जाते हैं, तो छोटेछोटे गांवों में हम कौफी डे व मैकडोनाल्ड देखते हैं. वहां के छोटेछोटे बच्चे इंटरनैट पर व्यस्त नजर आते हैं. मुझ से 5-6 साल के बच्चे पूछते हैं कि सलमान खान ट्वीटर पर हैं, आप क्यों नहीं हैं? पिछले 10 सालों में जितनी तरक्की हुई है, उतनी तरक्की पिछले 5 हजार सालों में नहीं हुई थी.

एक वक्त वह था जब आप स्क्रिप्ट व किरदार के आधार पर फिल्में चुनती थीं, पर अब आप को ध्यान में रख कर किरदार लिखे जा रहे हैं. इस बदलाव को कैसे देखती हैं?

मैं काम करते हुए ऐंजौय कर रही हूं. अब फिल्मकारों को मुझ पर व मेरी प्रतिभा पर यकीन हो चुका है. पहले जब मेरे लिए किरदार या स्क्रिप्ट नहीं लिखी जा रही थी, उस वक्त मेरी अहमियत भी नहीं थी. पर अब मेरी अहमियत बढ़ गई है. लोग मुझे महत्त्व देने लगे हैं. अब लोग मेरे लिए छोटेमोटे किरदार नहीं लिख रहे हैं, बल्कि खतरनाक किरदार लिख रहे हैं.

मेकअप और लुक किसी किरदार को निभाने में कितनी मदद करता है?

लुक तो नैचुरल प्रोसैस है. किरदार को सही तरीके से परदे पर पेश करने के लिए उस के बाकी सारे पहलुओं को भी देखना पड़ता है. मतलब उस की भाषा, बात करने का लहजा, बौडी लैंग्वेज आदि. हर इंसान की परवरिश अलग होती है. इंसान की परवरिश ही उसे औरों से अलग बनाती है. परवरिश से इंसान का लुक भी बदलता है.

नौर्थ ऐंड साउथ इंडियन मेकअप टच

हर लड़की अपनी शादी में हूबहू वैसा ही मेकअप और आउटफिट्स कैरी करना चाहती है, जो किसी फिल्म में किसी ऐक्ट्रैस ने कैरी किया होता है. अगर किसी फिल्म में ऐक्ट्रैस ने पंजाबी डिजाइनर लहंगा पहना है, तो ज्यादातर लड़कियों को अपनी शादी के लिए न सिर्फ वैसा ही डिजाइनर लहंगा चाहिए, बल्कि वे मेकअप भी उसी ट्रैंड का करना पसंद करेंगी यानी बौलीवुड दुलहनिया को कौपी करते हर लड़की उसी की तरह सजनासंवरना चाहती है. मेकअप आर्टिस्ट ऐंड हेयरस्टाइलिस्ट अर्पणा तंवर ने दिल्ली प्रैस के दिल्ली कार्यालय में अलगअलग प्रदेशों की फिल्मी दुलहनियों का मेकअप व हेयरस्टाइल बताए:

साउथ की दुलहनिया

फिल्म ‘टू स्टेट्स’ और ‘चेन्नई ऐक्सप्रैस’ की आलिया भट्ट और दीपिका पादुकोण की तरह सजने का क्रेज भी महिलाओं को आजकल दीवाना बना रहा है. दक्षिणी दुलहनिया पर सिल्क की बौर्डर वाली कांजीवरम साड़ी खूब फबती है. दक्षिण की दुलहन उत्तर की दुलहन से डिफरैंट इसलिए लगती है, क्योंकि दक्षिण की दुलहनिया को सजाने के लिए गजरे व फूलों का इस्तेमाल ज्यादा होता है.

साउथ ब्राइडल का मेकअप

पहला स्टैप सभी दुलहनों के लिए एक सा रहता है और वह है चेहरे व गले को अच्छी तरह साफ करना.

आंखों पर यलो बेस आईशैडो लगाएं. उस के बाद आईब्रोज के नीचे मैरून कलर से गोलाई में लाइनिंग करें.

ध्यान रहे कि साउथ की दुलहनिया के लिए काजल की मोटी लेयर लगाई जाती है, इसलिए हमेशा काजल ज्यादा अप्लाई करें. ऐसे ही आईलाइनर भी ज्यादा अप्लाई करें.

अब फिर एक बार यलो शैडो से आउटलाइनिंग करें.

अगर आंखों के नीचे या चीक्स पर शैडो गिर जाए तो उसे मेकअप रिमूवर से सैट करें.

अब चेहरे के लिए ब्रैंडेड प्रोडक्ट का बेस लगा कर अच्छी तरह ब्लैंड करें और बाद में स्पौंज या ब्रश से अच्छी तरह ब्लैंडिंग करें.

अब चेहरे पर लूज पाउडर लगाएं.

आईब्रोज को हाईलाइट करने के लिए लाइट ब्राउन पैंसिल का इस्तेमाल करें. काली पैंसिल का इस्तेमाल न करें.

 चेहरे की कंटूरिंग करें और अंत में हाईलाइटर लगाएं.

अब साउथ ब्राइडल को कमरबंद, गले में लंबा हार जैसे लक्ष्मी हार, रूबी मांगटीका, छोटी नोजरिंग, रूबी झुमके, रूबी चोटी लगाना न भूलें.

अंत में मैरून लिपस्टिक के साथ डार्क मैरून शेड की बिंदी लगाएं.

दक्षिणी हेयरस्टाइल

मांग निकाल कर दोनों साइड के फ्रंट के बालों को छोड़ कर पीछे पोनी करें. अब आगे के बालों की हाफ साइड बैककौंबिंग करें. स्टफिंग लगा कर बालों को पीछे की ओर पिनअप करें. अब पीछे की पोनी के बालों पर डोनर लगाएं और बालों को फैला कर उन पर पीछे की ओर रबड़बैंड लगा कर डोनर की शेप दें. अब सभी बालों को उलटा कर दें और साइड के सारे बालों को अंदर की तरफ पिनिंग करें. अब इस पर फेक ऐक्सैसरीज लगी चोटी फिक्स करें. अच्छी तरह पिनअप करें. हेयरस्टाइल सैट करने के लिए हेयरस्प्रे करें. अब रूबी मांगटीका लगाएं. बन पर असली गुलाब के फूल लगाएं और पूरे बन पर भर दें. कुछ गजरों की लटें बन पर ही रोलआउट करते हुए पिनअप करें. साउथ इंडियन ब्राइडल के सिर पर पल्ला नहीं आता, इसलिए हेयरस्टाइल पर मेहनत ज्यादा लगती है. अब अंत में गेंदे की लट को पूरी चोटी पर रोल करें. बीचबीच में सफेद व लाल रंग के फूलों से सजाएं. सामने की तरफ स्टिकर लगाएं और अंत में सारी ज्वैलरी पहना कर कमरबंद बांधना न भूलें.

उत्तरी टच (नौर्थ की दुलहनिया)

नौर्थ की दुलहनिया की झलक आप को ज्यादातर फिल्मों में देखने को मिलती है. अगर आप भी नौर्थ की दुलहन बनना चाहती हैं तो जरा गौर फरमाएं इन बातों पर:

दुलहन को लहंगाचोली पहना कर बैठाएं. फिर उस के चेहरे और गले को अच्छी तरह साफ करें.

आईब्रोज के नीचे रैड और यलो शैडो से कलरिंग करें. बेस यलो का रखें.

अब ब्रैंडेड आईलाइनर लगाएं और चेहरे पर ब्रैंडेड यलो बेस से ब्लैंडिंग करें. इसे चेहरे और गरदन तक अप्लाई करें.

अगर शैडो गिर जाए तो उसे ब्यूटी ब्लैंडर के स्पौंज से रिमूव करें.

ब्रश से लूज पाउडर लगाएं. लूज पाउडर ऐसा हो जो 8 से 10 घंटे टिका रहे. इसलिए हमेशा अच्छे व सूट करने वाले प्रोडक्ट का ही इस्तेमाल करें.

अब काजल अप्लाई करें. फिर आंखों पर गोल्डन जैल ग्लिटर लगाएं. आईलाइनर से ऊपर डंप करें.

फेक आईलैशेज पर ग्लू लगा कर फिक्स करें.

कंटूरिंग के लिए कानों के मध्य ब्रश रख कर डार्क कलर से चीक्स बोंस और जौ लाइन पर लाइनिंग दें. ऐसे ही फोरहैड ऐडिंग और नोज में भी कंटूरिंग करें और ब्रश की मदद से अच्छी तरह ब्लैंड करें.

शादी के लिए पिंक से हाईलाइट करें और दिन के लिए पाउडर फौर्म का कलर यूज करें. इसे आंखों पर भी इस्तेमाल कर सकती हैं.

लिप बेस के लिए पैंसिल का इस्तेमाल करें और फिर रैड लिपस्टिक अप्लाई करें.

अब बिंदी लगाएं और ज्वैलरी पहनाएं.

नौर्थ इंडियन ब्राइडल हेयरस्टाइल

मांग निकालते हुए फ्रंट के बालों को छोड़ कर पीछे के बालों के लिए पोनी बनाएं. अब आगे के बालों यानी क्राउन एरिया पर बैककौंबिंग कर आगे के बालों पर फैलाएं और स्टफिंग भी पीछे की ओर पिनअप करें. अब साइड के बालों के फ्लिक्स निकाल कर छोड़ें और बाकी की लटों को स्टफिंग पर ही सैट करें. अब फ्लिक्स को भी ऊपर की तरफ टर्न करें और अच्छी तरह पिनअप करें. अब डोनर लगा कर पोनी में फंसाएं. पोनी के बालों को उसी पर उलटा फैलाएं और पीछे की तरफ रबड़बैंड लगा कर सारे बालों को उसी पर घुमाएं. फिर एक लट को बालों पर रबड़बैंड की तरफ अंदर फिक्स करें और शेप दें. फिर हेयरस्प्रे करें. अब मांगटीका लगाएं और अच्छी तरह सैट करें. अब नोजरिंग लगाएं. अंत में पल्लू डालें और अच्छी तरह पिनअप करें.

घर में पाएं पार्टी लुक

अगर आप के पास ब्रैंडेड मेकअप किट नहीं है, तो घबराएं नहीं. बस अपने रोजाना के प्रोडक्ट्स को इस्तेमाल कर के ही स्मार्ट पार्टी लुक मिल जाएगा. आइए जानें कैसे:

कोई भी ब्लेमिश बाम क्रीम ले कर अपने चेहरे पर अच्छी तरह लगाएं और तब तक ब्लैंड करें जब तक कि क्रीम एकसार न लग जाए. अब ब्रश की सहायता से लूज पाउडर लगाएं.

आंखों पर गोल्ड बेस लगाएं, फिर डार्क कलर से जौ लाइन पर शेप दें.

अब आईब्रोज के नीचे भी डार्क कलर से गोलाई में शेप दें और उंगली से गोल्ड या यलो बेस फिर लगाएं ताकि यह एरिया हाईलाइट हो सके.

अब आईलाइनर लगाएं और काजल भी अप्लाई करें. इस से आंखें बहुत सुंदर दिखती हैं.

चेहरे की अच्छी तरह कंटूरिंग करें.

अब दिन के लिए पिंक शेड से कंटूरिंग करें और अच्छी तरह स्किन में ब्लैंड करें.

कंटूरिंग के लिए आप डार्क ब्राउन आई शैडो को चेहरे पर अच्छी तरह ब्लैंड करें.

आईब्रोज पर ब्राउन पैंसिल लगाएं.

अब आंखों पर ब्लशर से शिमर डस्ट करें.

अंत में पार्टी लुक में चार चांद लगाने के लिए पीले रंगों के फूलों वाला मांगटीका व फूलों वाला हार और फूलों के ही इयररिंग्स पहनाएं. पीले रंग का यूज हम ने यहां ड्रैस से मैच करता लिया है, आप जो ड्रैस पहनें उस की मैचिंग ऐक्सैसरीज अपने पास पहले से रखें.

महाराष्ट्रियन साड़ी ड्रैपिंग

महाराष्ट्रियन स्टाइल साड़ी पहनने के लिए आप की साड़ी कम से कम 9 मीटर की होनी चाहिए. इस पूरी साड़ी पर चौड़ा बौर्डर हो तो वह और भी ज्यादा फबता है. पहले साड़ी का एक छोर पकड़ कर रैप करें. याद रखें साड़ी को पहनने से पहले आप लैंगिंग या चूड़ीदार जरूर पहनें. पहले छोर को पजामी में अंदर टाइट पिनअप करें. अब दूसरे छोर की प्लेटें बांधें और बौर्डर पीछे की तरफ पीठ पर टक करें. अब आगे का छोर नीचे की तरफ यानी पैरों के बीचोंबीच निकालें और उस से पल्लू बनाएं और बौर्डर को पीठ के पीछे टक करें. अब पहले बौर्डर को भी वहीं पिनअप करें. अब बाकी बची साइड रैप करें और बाकी बचे पल्लू को साइड में क्रौस में बौर्डर फिक्स करें. अब पल्लू पर प्लेटें बनाएं और अपनी लैफ्ट साइड पिनअप करें. कमर पर करधनी लगाएं. गले में हार पहनाएं और बिंदी लगाएं. ऊपर से जैकेट पहनाएं और फिर मोती वाला हार.

बकव्हीट पैनकेक

सामग्री

थोड़ा सा वनस्पति तेल पैन में लेप लगाने के लिए

50 ग्राम मेथी का आटा

50 ग्राम आटा

3 बड़े चम्मच चीनी

1 छोटा चम्मच बेकिंग पाउडर

3 बड़े चम्मच नमकरहित पिघला मक्खन

1 अंडा

2 कप छाछ

1/2 छोटा चम्मच नमक.

विधि

आटा, चीनी, नमक और बेकिंग पाउडर को एक बड़े बरतन में मिलाएं. इस के ऊपर पिघला मक्खन डाल कर मिलाएं. छाछ के आधे भाग में अंडे को डाल कर अच्छी तरह से फेंट लें. इस मिश्रण को तैयार सामग्री में मिलाएं. फिर इस में बचे हुए छाछ को धीरेधीरे लपसी तैयार होने तक मिलाएं. यह जरूरी नहीं कि पूरे छाछ का प्रयोग करें. अब पैन में 1/2 छोटा चम्मच तेल फैला दें. कलछी से घोल को गरम सतह पर डालें और 4-5 इंच चौड़ा करें. आंच धीमी कर लें और पैनकेक को एक तरफ भूरा होने तक पकाएं. जब पैनकेक की ऊपरी सतह पर बुलबुले निकलने लगें तब पलट कर दूसरी तरफ पकाएं. पैनकेक को गरम रखने के लिए ओवन में रखें या प्लेट में रख कर पेपर नैपकिन से कवर कर दें. इसे मक्खन व मैपल सीरप के साथ गरमगरम परोसें.

मौर्निंग ग्लोरी

सामग्री

1/2 कप पाइनऐप्पल जूस

1/2 कप औरेंज जूस

1/2 कप पपीता जूस

1/4 कप क्रश्ड आइस

1/2 कप या आवश्यकतानुसार क्लब सोडा

सजाने के लिए संतरे के स्लाइस.

विधि

एक गिलास में बर्फ के क्रश्ड क्यूब्स लें और उस में पपीता जूस, पाइनऐप्पल जूस और औरेंज जूस डालें. इस के बाद सोडा डालें. अब संतरे के स्लाइस से सजा कर तुरंत परोसें.

चाइनीज कांजी

सामग्री

100 ग्राम चावल

1500 मि.लि. पानी

नमक व मसाला स्वादानुसार.

सजावट की सामग्री

1 छोटा चम्मच बीन कर्ड

5 ग्राम हरा प्याज

5 मि.लि. तिल का तेल

10 ग्राम गाजर

10 ग्राम मशरूम

10 ग्राम ब्रोकली

10 मि.लि. सोया सौस.

विधि

एक बड़े बरतन में चावलों व पानी को डाल कर उबलने के लिए रख दें. जब चावल उबल जाएं तो आंच धीमी कर दें और बरतन को ढक्कन से बंद कर दें. भाप निकलने के लिए ढक्कन थोड़ा सा खुला रखें और बीचबीच में चलाते हुए धीमी आंच पर पकाएं. जब चावल गाढ़ा और मलाईदार होने लगे तो इस में स्वादानुसार नमक व मसाला डालें और सजावट सामग्री से सजा कर परोसें.

बच्चे की देखभाल सौम्यता के साथ

गृहशोभा का मानना है कि मां के लिए अपने बच्चे सुख का खजाना हैं और इस खजाने की देखभाल में कमी न हो यह हमारा उद्देश्य है. बडे़ होते बच्चे मातापिता का सहारा बनें, साथी बनें, प्यार में नई प्रगाढ़ता दें. JOHNSON’S® द्वारा प्रस्तुत यह पुस्तिका हर मातापिता के लिए जानकारी का खजाना है.

 

सांसें रहें महकी महकी

पतिपत्नी जब एकदूसरे के करीब आते हैं, तो उन के बीच दूरी नहीं रह जाती. प्यार करते हुए उन की सांसें एकदूसरे से टकराती हैं. लेकिन ऐसे में यदि किसी एक की सांसों से बदबू आती हो, तो क्या होता है? इस अनोखी समस्या को ले कर एक सर्वेक्षण किया गया, जिस में पता चला कि कुछ पत्नियां अपने पति की सांसों से आने वाली बदबू से परेशान रहती हैं, लेकिन उन के पति इस के बारे में कभी कुछ नहीं सोचते. ऐसी पत्नियों का यह कहना था कि उन के पति जब उन्हें प्यार करते हैं, तो वे इस बदबू से परेशान हो उठती हैं, लेकिन समस्या यह है कि उस समय पति को रोकना बहुत मुश्किल होता है. पश्चिमी देशों में तो चुंबन का रिवाज बहुत ज्यादा है. ऐसे में महिलाओं के लिए यह समस्या और भी गंभीर हो जाती है. इस सर्वेक्षण में 20 से 50 वर्ष तक की महिलाओं से जब यह पूछा गया कि उन के पति जब उन्हें प्यार करते हैं, तो क्या उन्हें बदबू आती है? तो उन में से 83% ने कहा कि उन्हें बदबू आती है. मगर जब यही सवाल उन के पतियों से पूछा गया, तो उन का कहना था कि उन्हें ऐसी कोई समस्या नहीं है और उन्होंने इस के बारे में कभी सोचा ही नहीं है.

क्या होता है

मनोज और दीपिका पतिपत्नी हैं. नाजुक क्षणों में जब मनोज अपनी पत्नी का चुंबन लेता है या उस के साथ सहवास करता है, तो वह जल्दी से जल्दी उस से पीछा छुड़ाना चाहती है. उन की यह प्रेमक्रीडा एकतरफा ही होती है. पति की सांसों की बदबू उसे असहनीय लगती है. रोहित और उर्वशी अच्छे दोस्त हैं. उर्वशी रोहित से व्यक्तिगत रूप से मिल कर बात करने के बजाय मोबाइल पर बातचीत करना अधिक पसंद करती है. जब कभी उन्हें रूबरू हो कर बतियाने का मौका मिलता है, तो उर्वशी जल्दी से जल्दी बात खत्म करना चाहती है. रोहित आज तक नहीं समझ पाया कि वह ऐसा क्यों करती है. उर्वशी कैसे कहे कि उस के मुंह से बदबू आती है. लक्ष्मी एक दफ्तर में काम करती है. दफ्तर की अन्य महिलाकर्मी उस से बात करने से कतराती हैं. वे खुद तो उस के पास बात करने जाती ही नहीं, क्योंकि सभी जानती हैं कि उस के मुंह से दुर्गंध आती है.

मुंह खोलने से डरते लोग

ऐसे अनेक लोग हैं, जो यह जान ही नहीं पाते कि ऐसा उन की मुंह की दुर्गंध या सांसों की बदबू के कारण हो रहा है. यह एक ऐसी गंध है, जिस का एहसास गंध छोड़ने वाले व्यक्ति को भले ही न हो, लेकिन सामने वाले के लिए उस के सामने 2 पल खड़े रहना और बात करना दुश्वार हो जाता है. सोसायटी ऐटीकेट्स में सांसों से बदबू आना बहुत बुरी बात मानी जाती है. जब आप लोगों के बीच हों और आप के मुंह खोलते ही बदबू का भभका छूटने लगे, तो आप की छवि पल भर में धूमिल हो जाती है. आमतौर पर लोग इतने मुंहफट नहीं होते कि वे सामने वाले से यह कह सकें कि उस के मुंह से बदबू आ रही है. रिश्तों की अहमियत और सामने वाले को बुरा लगने के भय की वजह से लोग अपने मन की बात जबान पर नहीं लाते. इस कारण व्यक्ति यह जान ही नहीं पाता कि उस के मुंह से बदबू आ रही है.

मुंह से कई तरह की दुर्गंध आ सकती है. जैसे, धूम्रपान करने यानी बीड़ीसिगरेट पीने और तंबाकू का सेवन करने से उपजी गंध. इसी प्रकार शराब पीने पर भी मुंह से बदबू आती है और मुंह खोलते ही सारा वातावरण दूषित हो जाता है. इन के अलावा कुछ गंध ऐसी होती हैं, जिन्हें बताया नहीं जा सकता, लेकिन वे असहनीय होती हैं. दांतों और मसूढ़ों से जुड़ी बीमारियां भी मुंह की दुर्गंध का एक बड़ा कारण हैं. पायरिया नामक रोग में मुंह से भयंकर बदबू आती है. यह सब दांतों की ठीक से सफाई न करने अथवा आड़ेतिरछे दांतों में भोजन के कण फंसे रह जाने की वजह से होता है. कई बार हमारे खानपान, जैसे प्याजलहसुन का अधिक सेवन करने की वजह से सांसों से बदबू आती है. दरअसल, इन में सल्फर कंपोनैंट अधिक होता है, जो दुर्गंध पैदा करने वाले बैक्टीरिया को बढ़ाता है. डेरी उत्पाद भी सांस में दुर्गंध को पैदा करते हैं. चायकौफी और सिट्रस जूस की वजह से भी सांसों में दुर्गंध आती है. ऐसा इन में ऐसिडिक कंपोनैंट होने की वजह से होता है. यदि भोजन के बाद ब्रश या कुल्ले न किए जाएं तो दांतों में फंसे अन्नकण सड़ कर बदबू फैलाते हैं, इसलिए कुछ भी खाने के बाद कम से कम ठीक से कुल्ला करने की आदत अवश्य होनी चाहिए. ब्रश कर सकें तो बहुत अच्छा. वैसे सुबह उठने के पश्चात और रात को सोने से पहले ब्रश अवश्य करना चाहिए. दरअसल, हमारे मुंह में दांत, जीभ, मसूढ़े आदि में फंसे अन्नकण सड़ कर एक प्रकार की गैस बनाते हैं, जो सांस लेते समय या मुंह खोलते ही फैलती है. वैसे तो हमारी लार में जीवाणुनाशक क्षमता होती है, लेकिन लार के कम बनने या सूखने के कारण ये जीवाणु अपना प्रभाव दिखाते हैं. सोते समय तो इन्हें पनपने का भरपूर अवसर मिलता है.

क्या करें

यदि आप को दांतों या मसूढ़ों से संबंधित कोई समस्या है, तो इस के लिए दंतचिकित्सक से संपर्क करना चाहिए. वह आप को इस समस्या से नजात दिलाएगा. वैसे कुछ माउथवाश और लोशन ऐसे आते हैं, जिन से कुल्ला करने पर काफी देर तक मुंह से बदबू नहीं आती. मुंह की दुर्गंध दूर करने का दावा करने वाले अनेक टूथपेस्ट और दंतमंजन आते हैं, लेकिन इन में कोई चमत्कारिक गुण नहीं होता. यदि आप बिना टूथपेस्ट के साधारण रूप से भी ब्रश करेंगे, तो भी दांतों में फंसे अन्नकण निकल जाएंगे. इसलिए किसी ब्रैंड विशेष के पीछे न भागें. माउथ फ्रैशनर का इस्तेमाल करने से भी ताजगी का एहसास हो सकता है. इस के अलावा मुंह की दुर्गंध से बचने के लिए दिन में कई बार कुल्ला करते हुए पानी पिएं ताकि लार गं्रथियां सक्रिय हो जाएं. दांतों के साथसाथ अपनी जीभ को भी साफ रखना जरूरी है. यदि धूम्रपान, तंबाकू, शराब आदि को छोड़ सकें, तो इस से उत्पन्न मुंह की दुर्गंध से नजात पाई जा सकती है और फिर ये सेहत के लिए भी ठीक नहीं. इन का सेवन कर के आप अपने ही लोगों को अपने से दूर करते हैं.

सोना बाथ : थम कर रह जाए उम्र

आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में सब कुछ मशीनी होता जा रहा है. जहां न धूप से वास्ता रहा, न खुली हवा से आधुनिक फास्ट फूड से लैस खानपान, टीवी, कंप्यूटर के आगे घंटों बैठे रहना यानी सुबह से रात तक स्ट्रैस भरी लाइफ. प्रदूषणरहित, शांत वातावरण तो जैसे कहीं खो सा गया है. ऐसे में मिल जाएं तनावरहित फुरसत के कुछ पल, जो आप को रिलैक्स करने के साथसाथ अगर फिटनैस और खूबसूरती दे सकें तो कहना ही क्या.

सोना बाथ

लुक गुड, लूज वेट ऐंड फील ग्रेट’ के सिद्धांत पर आधारित सोना बाथ धूल व धुएं से युक्त प्रदूषित वातावरण के दुष्प्रभावों को दूर कर के तनावपूर्ण जिंदगी से टौक्ंिसस को निकाल कर शरीर में रक्तसंचार को बेहतर बनाता है और शरीर की कार्यक्षमता को भी बढ़ाता है. ‘सोना’ एक फिनिश शब्द है, जिस का अर्थ है- एक ऐसा कमरा जिस में गरम चट्टानों पर फव्वारों द्वारा पानी डाला जाता है, जिस से कमरे में भाप पैदा होती है. कमरे में अपनी जरूरत के अनुसार तापमान को कम या अधिक किया जा सकता है. सोना बाथ का प्रयोग रिलैक्सेशन के अलावा औषधीय रूप में भी किया जाता है. सोना बाथ त्वचा के रोमछिद्रों को खोल कर शरीर के टौक्सिंस को निकाल कर शरीर में रक्तसंचार को बेहतर और त्वचा को स्वस्थ व चमकदार बनाता है. त्वचा की मृतकोशिकाओं को हटा कर तन को अधिक युवा दिखाने में मदद करता है.

वैट सोना बाथ

इस में स्टीमरूम में ड्राई सोना बाथ के मुकाबले लो टैंपरेचर होता है. इस में तापमान (110-115 डिग्री) फैरनहाइट या (37-40 डिग्री) सेल्सियस होता है. यह त्वचा को अधिक गरम पानी से झुलसने से बचाता है.

ड्राई सोना

इस में तापमान अपेक्षाकृत अधिक होता है.

सोना रूम

फिक्स्ड सोना बाथ रूम सर्वोत्तम रहता है. इस सब से अच्छी क्वालिटी के पाइनवुड का प्रयोग किया जाता है. इस के वुडपैनल में टंग व ग्रूव जौइंट्स होते हैं, जो एक्सपैंशन व कौंटै्रक्शन का ध्यान रखते हैं. सोना रूम की एक्सैसरीज में सैंड टाइमर, वाटरकिट, लैडल, हीटर गार्ड, टौवल रैक्स, रोवहुक्स, हैडरैस्ट व लाइट कवर पाइनवुड के बने स्पीकर बौक्स होते हैं. सोना बाथ ट्रीटमैंट माइंड व बौडी दोनों के लिए रिलैक्सिंग व पैंपरिंग करने वाला है, यह मानना है ब्यूटी एक्सपर्टों का. उन का मानना है कि सोना बाथ में शरीर से पसीना निकलता है और त्वचा के रोमछिद्र खुलते हैं, जिस से त्वचा की डीप क्लींजिंग व टोनिंग होती है. आजकल अधिकांश हैल्थ स्पा, जिम व हैल्थ क्लब स्टीम बाथ, फ्लोरल बाथ, अरौमैटिक बाथ, जकुजी बाथ की सुविधाएं उपलब्ध कराते हैं. त्वचा शरीर का सब से विस्तृत अंग है और आज के प्रदूषित वातावरण में फिजिकल ऐक्टीविटी न के बराबर है, जहां त्वचा अनेक प्रकार के कैमिकल, डिटरजेंट, साबुन, परफ्यूम, डियोड्रैंट, धूलमिट्टी आदि से प्रभावित होती है, ऐसे में सोना बाथ तनमन दोनों पर रिलैक्सिंग व सूदिंग प्रभाव डालता है. यह टौक्सिंस को निकाल कर फैट कम करने में सहायक होता है, 15-20 मिनट के एक सैशन में 200-400 कैलोरी खर्च होती है, जो 1-2 घंटों की वाकिंग के बराबर होती है. एक बार का सोना बाथ आप को लंबे समय तक फ्रैश व रिलैक्स रखता है.

स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद

सोना बाथ मांसपेशियों के दर्द को दूर करने में भी लाभप्रद सिद्ध होता है, क्योंकि गरम भाप से रक्तसंचार बढ़ता है और शरीर की मांसपेशियां तनावरहित होती हैं. सोना बाथ उन लोगों के लिए भी फायदेमंद साबित होता है, जिन्हें अनिद्रा की शिकायत होती है. सोना बाथ रोगों से लड़ने की क्षमता को बढ़ाने में भी लाभदायक सिद्ध होता है. जब हमारे शरीर का तापमान बढ़ता है तब सोना बाथ से हमारे शरीर के वायरस व बैक्टीरिया नष्ट होते हैं और हमें कोल्ड साइनैसिस, ब्रौंकाइटिस व लारेनगाइटिस जैसी बीमारियों से भी नजात मिलती है. कुछ लोगों के लिए सोना बाथ जहां स्वास्थ्य की दृष्टि से लाभकारी होता है, वहीं कुछ लोग सोना बाथ का प्रयोग मानसिक शांति व खूबसूरती के लिए भी करते हैं. 

बदल गई कुल्फी

कुल्फी का नाम सुनते ही तुरंत लखनऊ की प्रकाश कुल्फी की याद आ जाती है. लखनऊ के सब से घने बसे अमीनाबाद में प्रकाश कुल्फी की मशहूर दुकान है. दुकान के बाहर ही मिट्टी के मटके में कुल्फी जमाई जाती थी. मिट्टी के मटके को ठंडा रखने के लिए पहले उसे बोरे से ढका जाता था, जो देखने में अच्छा नहीं लगता था. अत: मटके को लाल रंग के कपड़े से ढका जाने लगा. इसे मटका कुल्फी के नाम से भी जाना जाता था. जब ग्राहक आता था तो मटके से लोहे का डब्बा निकाल कर कुल्फी प्लेट में डाल कर फालूदा के साथ खानेको दी जाती थी. उस समय कुल्फी का एक ही स्वाद यानी रबड़ी वाला स्वाद ही मिलता था. लोग दूरदूर से प्रकाश कुल्फी खाने लखनऊ आते थे. फिर समय बदला तो स्वाद के साथसाथ हाइजीन का महत्त्व भी बढ़ने लगा. तब कुल्फी नए अंदाज में बनने और बिकने लगी. लखनऊ में फिर कुल्फी के साथ फ्रैश फ्रूट का स्वाद मिलने लगा. ग्राहकों को अब ऐसी कुल्फी पसंद आने लगी है.

देखने में फल खाने में कुल्फी

लखनऊ की मशहूर छप्पनभोग मिठाई शौप में आम और संतरा जैसे फलों के अंदर कुल्फी तैयार की जाने लगी है. इस के लिए बहुत सावधानी से अधपके आम को ऊपर से काट कर अंदर से गुठली निकाल दी जाती है. गुठली निकल जाने के बाद बची जगह में कुल्फी भर दी जाती है. इस के बाद आम को बंद कर अरारोट के आटे से पैक कर फ्रीजर में रखा जाता है. कुल्फी जम जाने के बाद इसे खाने को दिया जाता है. इसे खाते समय फ्रैश फ्रूट का एहसास होता है. छप्पनभोग के मालिक रवींद्र गुप्ता कहते हैं कि फ्रूट के अंदर भरी कुल्फी को खाने पर अलग स्वाद मिलता है. इस के जरीए मौसम के बाद भी फलों का स्वाद लिया जा सकता है. संतरा कुल्फी बनाने के लिए संतरे को ऊपर से काट कर और उस के अंदरकी फांकों को निकाल उन्हें छील कर बीज निकाल दिए जाते हैं. फिर कुल्फी में संतरे के पल्प को मिला कर संतरे के फल में भर दिया जाता है. इसे भी अरारोट के आटे से बंद कर जमने के लिए रखा जाता है और जमने के बाद खाने को दिया जाता है.

फलों के स्वाद वाली फ्रैश फ्रूट कुल्फी

कुल्फी मुख्यरूप से दूध और मेवे को मिला कर बनाई जाती है. उसे स्वादिष्ठ बनाने के लिए फालूदा डाला जाता है. अब कुल्फी के रूप बदल रहे हैं. कुल्फी अब प्लास्टिक के छोटेछोटे बौक्सों में जमाई जाती है. इन में जमाई कुल्फी सेहत के लिए सुरक्षित होती है. विनोद गुप्ता कहते हैं, ‘‘फ्रैश फ्रूट कुल्फी के जरीए गरमी का मुकाबला करने के साथसाथ खाने वाले की सेहत का भी पूरा ध्यान रखा जाता है. फ्रैश फ्रूट कुल्फी को फलों से तैयार किया जाता है. ऐसी कुल्फी बनाने के लिए जो मिश्रण तैयार होता है, उस का 60% हिस्सा रबड़ी और 40% हिस्सा ताजे फलों से बनता है. इस से खाने में ताजे फलों की ताजगी और कुल्फी की ठंडक का एहसास होता है. फ्रैश फ्रूट कुल्फी में वाटरमैलन कुल्फी, चीकू कुल्फी, मैंगो कुल्फी, लीची कुल्फी, केला कुल्फी, औरेंज कुल्फी, कोकोनट कुल्फी और केसरिया कुल्फी बनाते हैं.

सैक्स एजुकेशन छठी कक्षा से ही अनिवार्य हो :शोनाली बोस

खुद को खुलेआम बायोसैक्सुअल मानने वाली फिल्मकार शोनाली बोस ने 2005 में नारी की खोज की आड़ में 1984 के सिक्ख दंगों की पृष्ठभूमि पर फिल्म ‘अमू’ का लेखन, निर्माण व निर्देशन किया था. फिल्म को 2 राष्ट्रीय अवार्ड तथा 4 अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार मिलने के बावजूद दूरदर्शन ने इसे प्रसारित करने से इनकार कर दिया. उस के बाद शोनाली बोस ने 2012 में फिल्म ‘चिटगौंग’ का सहनिर्माण व सहलेखन किया, जिस का निर्देशन उन के पूर्व पति बेदब्रत पैन ने किया था. अब शोनाली बोस ने ‘सेरेब्रल पल्सी’ से ग्रस्त अपनी फुफेरी बहन मालिनी की जिंदगी पर आधारित फिल्म ‘मार्गरीटा विथ ए स्ट्रा’ ले कर आई हैं. इस फिल्म में ‘सेरेब्रल पल्सी’ का जिक्र कम है, मगर समलैंगिकता यानी ‘गे’ सहित उत्तरपूर्व भारत के राज्यों से जुडे़ कई मुद्दे उठाए हैं.

शोनाली बोस की मंशा 8वीं कक्षा में पढ़ने वाली लड़कियों को ‘मार्गरीटा विथ ए स्ट्रा’ दिखाने की थी, मगर सैंसर बोर्ड ने फिल्म को ‘ए’ प्रमाणपत्र दे दिया, जिस के चलते इस फिल्म को 8वीं कक्षा में पढ़ने वाली लड़कियां नहीं देख पाईं. मगर बातचीत में शोनाली बोस ने दावा किया कि वे जल्द ही टीवी पर अपनी इस फिल्म को लाएंगी. तब 8वीं कक्षा की लड़कियां इसे देख कर ऐंजौय कर सकेंगी.

पेश हैं, शोनाली से हुई गुफ्तगू के कुछ अंश:

किस मजबूरी के तहत मालिनी की ही जिंदगी पर ‘मार्गरीटा विथ ए स्ट्रा’ बनाई?

बात उन दिनों की है, जब मैं फिल्म ‘चिटगौंग’ पर काम कर रही थी. तभी एक दिन मालिनी से मेरी बात हुई. वह 40 साल की हो रही थी. मैं ने उस से पूछा कि वह अपने 40वें जन्मदिन पर क्या उपहार चाहती है? तब उस ने कहा कि वह सैक्स करना चाहती है. उस की बात सुन कर मैं चौंक गई. मुझे लगा कि मैं ने मालिनी को ले कर इस तरह से क्यों नहीं सोचा? उस वक्त मालिनी ने जो कुछ कहा, वह मेरे दिमाग में बैठ गया. मुझे लगा कि मैं ने हमेशा यह सोचा कि मेरी बहन के पास सब कुछ है, पर यह नहीं सोचा कि उस की भी प्यार व सैक्स करने की इच्छा हो सकती है. मैं ने सोचा कि मैं शादीशुदा हूं और मुझे लगता है कि शादी नहीं करनी चाहिए. पति तंग करते हैं. पर उस की भी तो शादी करने की इच्छा होती है. मैं आज तलाकशुदा हूं, पर उस वक्त मेरा तलाक नहीं हुआ था. मुझे धक्का इस बात का लगा कि मैं जिस बात को ग्रांटेड मान कर चल रही थी, वही उस का दर्द है. मेरी बहन मालिनी भी सैक्स के अनुभव से गुजरना चाहती थी. अत: मैं ने ‘मार्गरीटा विथ ए स्ट्रा’ बनाई. इसी वजह से मैं ने बारबार यह बात भी कही कि लोग इस फिल्म को विकलांग या सैक्सी अथवा गे फिल्म के रूप में न देखें.

आप ने कहा कि आप चाहती हैं कि आप की फिल्म को 8वीं कक्षा में पढ़ने वाली हर लड़की देखे, तो क्या आप 8वीं कक्षा में पढ़ने वाली लड़कियों के कोमल मस्तिष्क पर समलैंगिकता की बात भरना चाहती हैं?

देखिए, भारत में मुझे सैंसर बोर्ड से ‘ए’ सर्टिफिकेट पाने से भी परहेज नहीं था. मुझे मालूम है कि यहां लोगों की मानसिकता क्या है, जबकि फ्रांस में हमारी फिल्म को यूथ ज्यूरी का अवार्ड मिला है. पर भारत का मसला बहुत अलग है. हालत यह है कि हमारी फिल्म में लैला के छोटे भाई का किरदार मोनू ने निभाया है. मोनू के मातापिता कश्मीरी व प्रगतिशील हैं. पर उन्होंने मुझे मना किया कि मैं मोनू को पूरी स्क्रिप्ट पढ़ने के लिए न दूं. मैं ने चीटिंग नहीं की. मोनू के मातापिता ने पूरी स्क्रिप्ट पढ़ी है. इसलिए मैं ने सोचा था कि भारत में यदि मेरी फिल्म को ‘ए’ सर्टिफिकेट मिलेगा, तो भी मैं खुश रहूंगी.

अब मोनू 17 साल को हो गया है, तो मैं ने उस के मातापिता से कहा कि क्या आप अपने बेटे को फिल्म के प्रीमियर के समय फिल्म देखने की इजाजत देंगे तब उन्होंने हामी भरी है. मेरे अपने बेटे और मेरी 14 वर्षीय भतीजी ने इस फिल्म को देखा है. लेकिन टोरंटो फिल्म फैस्टिवल में फिल्म देखते समय वह मेरी बगल में बैठी थी, तो कई ऐसे दृश्य थे, जिन के आने पर उस ने अपनी आंखें बंद कर लीं थीं. मैं ने उस से इस की वजह नहीं पूछी, पर मुझे लगा कि मैं उस के साथ हूं, इसलिए उस ने ऐसा किया. वरना आंखें फाड़फाड़ कर देखती. मेरी राय में 8वीं कक्षा के बच्चे हमारी फिल्म को देखने के लिए काफी मैच्योर हैं. पर सैंसर बोर्ड ने ‘ए’ सर्टिफिकेट दिया, तो भी मुझे कोई समस्या नहीं है. अब मैं इस फिल्म को टीवी पर दिखाने वाली हूं. मैं यह मानती हूं कि 14 साल के बच्चे को सैक्स सीन नहीं दिखाए जाने चाहिए. पर 14 साल के बच्चे के सामने गे मुद्दे पर चर्चा करना गलत नहीं है.

मैं चाहती हूं कि सैक्सुअलिटी की शिक्षा खुलेआम दी जानी चाहिए. हर जैंडर और ट्रांसजैंडर वालों को भी शिक्षा दी जानी चाहिए. सैक्स ऐजुकेशन तो छठी कक्षा से दी जानी चाहिए. जब लड़का या लड़की 5वीं कक्षा में पढ़ रही होती है, तभी उस के शरीर में बदलाव आना शुरू होते हैं. वह खुद अपने शरीर में आ रहे बायोलौजिकल बदलाव को समझना शुरू करती है.

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