क्या आपको भी है डबल चिन की प्रौब्लम, हो सकती हैं ये खतरनाक बीमारियां

मोटापे से कई तरह की परेशानियां पैदा होती हैं. इससे शरीर के सारे अंग प्रभावित होते हैं. डबल चिन मोटापे के कारण होता है. इससे आपकी सुंदरता पर बुरा असर होता है. आम तौर पर लोग इसे पसंद नहीं करते और इससे छुटकारा पाने के लिए काफी मशक्कत करते हैं, पर परिणाम हमेशा सकारात्मक नहीं होता. इस खबर में हम आपको उन कारणों के बारे में बताएंगे जिनके चलते डबल चिन की परेशानी होती है.

1. थायराइड

थायराइड डबल चिन का एक प्रमुख कारण है. आपको बता दे कि वजन बढ़ना हाइपोथायरायडिज्म सामान्य सूचक है. लेकिन क्या यह जानते हैं कि आपके जबड़े के बढ़ने का भी यही कारण हो सकता है? यदि आपके जबड़े की हड्डी के नीचे स्थित क्षेत्र में त्वचा समय के साथ फैट से भर जाती है, तो आपको डबल चिन की समस्या हो सकती है. थायराइड के बढ़ने से गर्दन में भी सूजन आ सकती है.

2. कुशिंग सिंड्रोम

कुशिंग सिंड्रोम के प्रमुक लक्षम हैं उपरी शरीर का मोटा होना और गर्दन में फैट का जमा होना. इसमें लंबे समय तक कोर्टिसोल का अधिक उत्पादन होने लगता है जिसका परिणाम पिट्यूटरी एडेनोमा के रूप में दिखता है. अगर आप एडेनोमा से पीड़ित हैं, तो ट्यूमर को निकालने के लिए सर्जरी जरूरी हो सकती है.

3. साइनस इंफेक्शन

क्रोनिक साइनसाइट के कारण लिंफ नोड्स बढ़ता है. इसके कारण आपके चेहरे और गर्दन पर मोटापा आ सकता है. इस तरह की पुरानी साइनसिसिस जो डबल चिन के लिए जिम्मेदार है उसमें एलर्जी रैनिटिस, अस्थमा, नाक की समस्याएं या स्यूनोसाइटिस शामिल हैं.

4. सलवेरी ग्लैंड इन्फ्लमेशन

कई बार लार ग्रंथी में इंफेक्शन की वजह से जबड़े वाले हिस्से में सूजन हो जाती है जिसके कारण डबल चिन हो जाती है. ओरल हाइजीन, लार की नली की समस्या, पानी में अपर्याप्त जल, पुरानी बीमारी और धूम्रपान इस सूजन के कुछ सामान्य कारण हैं.

वीकेंड पर बनाएं चना वड़ा, बहुत आसान है इसकी रेसिपी

फैस्टिव सीजन में अगर आप हेल्दी और टेस्टी रेसिपी ट्राई करना चाहती हैं तो चना वड़ा की ये आसान रेसिपी जरूर बनाएं.

सामग्री

1 कप चने कच्चे

1/2 कप आलू उबला व मैश किया

3 बड़े चम्मच चावल का आटा

3/4 कप ब्रैडक्रंब्स

1 छोटा चम्मच चाटमसाला

1/2 छोटा चम्मच अमचूर पाउडर

वड़े तलने के लिए पर्याप्त रिफाइंड औयल

लालमिर्च पाउडर व नमक स्वादानुसार.

विधि

चनों को धो कर 7-8 घंटे पानी में भिगोएं और फिर प्रैशरकुकर में पानी डाल कर गलने तक पकाएं. उबले चनों को छलनी में रखें ताकि सारा पानी निथर जाए. फिर दरदरा कर लें. सारी सामग्री मिलाएं और नीबू के बराबर थोड़ाथोड़ा मिश्रण ले कर हाथ से चपटा कर के बीच में उंगली से छेद करें और गरम तेल में मीडियम आंच पर सुनहरा सेंक लें. वड़ों को चटनी या सौस के साथ सर्व करें.

प्रैगनैंसी रोकने के लिए गर्भनिरोधक कितना फायदेमंद है?

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल-

मैं 24 साल की हूं. मेरे विवाह को 2 महीने हुए हैं. प्रैगनैंसी से बचे रहने के लिए कौपर टी, कंडोम और डायाफ्राम में से कौन सा गर्भनिरोधक मेरे लिए सब से अच्छा रहेगा और ये गर्भनिरोधक कितनेकितने साल तक प्रैगनैंसी रोकने के लिए अपनाए जा सकते हैं, कृपया विस्तार से जानकारी दें?

जवाब-

प्रत्येक गर्भनिरोधक विधि के अपने लाभ और अपनी सीमाएं हैं, जिन के बारे में पूरी जानकारी पा कर आप सही फैसला ले सकती हैं. कौपर टी उन स्त्रियों के लिए उपयुक्त गर्भनिरोधक है, जो कम से कम 1 बार संतान धारण कर चुकी होती हैं. नवविवाहिताओं के लिए कौपर टी ठीक नहीं, क्योंकि इसे लगाने पर पैल्विस में सूजन होने का डर रहता है और आगे चल कर प्रैगनैंट होने में भी परेशानी हो सकती है. इस का इस्तेमाल 2 बच्चों के बीच फासला रखने के लिए ही किया जाना चाहिए.

नवविवाहिताओं के अलावा ऐसी स्त्रियां, जिन्हें पहले से पैल्विस का इन्फैक्शन हो, मासिकस्राव ज्यादा या अनियमित हो, पेड़ू में दर्द रहता हो, गर्भाशय की रसौली हो, गर्भाशयग्रीवा की सूजन हो, ऐनीमिया हो या पहले कभी ऐक्टोपिक प्रैगनैंसी हुई हो, उन के लिए भी कौपर टी का इस्तेमाल ठीक नहीं. कंडोम गर्भनिरोध का आसान और सुलभ तरीका है. इस के इस्तेमाल से पहले डाक्टर की सलाह लेना भी जरूरी नहीं. इस के कामयाब बने रहने के लिए सिर्फ इस का सही इस्तेमाल आना जरूरी है. असावधानी बरतने पर सैक्स के दौरान कंडोम के फिसल जाने या फट जाने पर परेशानी खड़ी हो सकती है. डायाफ्राम के साथ भी कंडोम जैसी ही समस्याएं हैं और इस का फेल्यर रेट भी काफी है.

नवविवाहिताओं के लिए सुरक्षा का एक और अच्छा उपाय ओरल कौंट्रासैप्टिक पिल्स हैं. इन्हें लेने से कामसुख में किसी तरह का विघ्न नहीं पड़ता और पूरीपूरी सुरक्षा भी मिलती है. लेकिन इन्हें शुरू करने से पहले डाक्टर से सलाह लेना जरूरी है. यदि डाक्टर इजाजत दे, तो इन्हें लगातार 3 साल तक ले सकती हैं. रोज 1 गोली लेनी होती है. प्रैगनैंसी का मन बने तो गोली लेना बंद करने के 1 से 3 महीनों के बाद दोबारा प्रजनन क्षमता पहले जैसी हो जाती है और प्रैगनैंसी में कोई दिक्कत नहीं आती.

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पान खाए सैयां हमारो

शाम के 6 बजे जब सब 1-1 कर घर जाने के लिए अपनाअपना बैग समेटने लगे तो सिया ने चोरी से एक नजर अनिल पर डाली. औफिस में नया आया सब से हैंडसम, स्मार्ट, खुशमिजाज अनिल उसे देखते ही पसंद आ गया था. वह मन ही मन उस के प्रति आकर्षित थी.

अनिल ने भी एक नजर उस पर डाली तो वह मुसकरा दी. दोनों अपनीअपनी चेयर से लगभग साथ ही उठे. लिफ्ट तक भी साथ ही गए. 2-3 लोग और भी उन के साथ बातें करते लिफ्ट में आए. आम सी बातों के दौरान सिया ने भी नोट किया कि अनिल भी उस पर चोरीचोरी नजर डाल रहा है.

बाहर निकल कर सिया रिकशे की तरफ जाने लगी तो अनिल ने कहा, ‘‘सिया, कहां जाना है आप को मैं छोड़ दूं?’’

‘‘नो थैंक्स, मैं रिकशा ले लूंगी.’’

‘‘अरे, आओ न, साथ चलते हैं.’’

‘‘अच्छा, ठीक है.’’

अनिल ने अपनी बाइक स्टार्ट की, तो सिया उस के पीछे बैठ गई. अनिल से आती परफ्यूम की खुशबू सिया को भा रही थी. दोनों को एकदूसरे का स्पर्श रोमांचित कर गया. बनारस में इस औफिस में दोनों ही नए थे. सिया की नियुक्ति पहले हुई थी.

अचानक सड़क के किनारे होते हुए अनिल ने ब्रेक लगाए तो सिया चौंकी, ‘‘क्या हुआ?’’

‘‘कुछ नहीं,’’ कहते हुए अनिल ने अपनी पैंट की जेब से गुटका निकाला और बड़े स्टाइल से मुंह में डालते हुए मुसकराया.

‘‘यह क्या?’’ सिया को एक झटका सा लगा.

‘‘मेरा फैवरिट पानमसाला.’’

‘‘तुम्हें इस की आदत है?’’

‘‘हां, और यह मेरी स्टाइलिश आदत है, है न?’’ फिर सिया के माथे पर शिकन देख कर पूछा, ‘‘क्या हुआ?’’

‘‘तुम्हें इन सब चीजों का शौक है?’’

‘‘हां, पर क्या हुआ?’’

‘‘नहीं, कुछ नहीं,’’ कह कर वह चुप रही तो अनिल ने फिर बाइक स्टार्ट कर ली.

धीरेधीरे यह रोज का क्रम बन गया. घर से आते हुए सिया रिकशे में आती, औफिस से वापस जाते समय अनिल उसे उस के घर से थोड़ी दूर उतार देता. धीरेधीरे दोनों एकदूसरे से खुलते गए.

अनिल का सिया के प्रति आकर्षण बढ़ता गया. मौडर्न, सुंदर, स्मार्ट सिया को वह अपने भावी जीवनसाथी के रूप में देखने लगा था. कुछ ऐसा ही सिया भी सोचने लगी थी. दोनों को विश्वास था कि उन के घर वाले उन की पसंद को पसंद करेंगे.

अनिल तो सिया के साथ अपना जीवन आगे बढ़ाने के लिए शतप्रतिशत तय कर चुका था पर सिया एक पौइंट पर आ कर रुक जाती थी. अनिल की लगातार मुंह में गुटका दबाए रखने की आदत पर वह जलभुन जाती थी. कई बार उस ने इस से होने वाली बीमारियों के बारे में चेतावनी भी दी तो अनिल ने बात हंसी में उड़ा दी, ‘‘यह क्या तुम बुजुर्गों की तरह उपदेश देने लगती हो. अरे, मेरे घर में सब खाते हैं, मेरे मम्मीपापा को भी आदत है, तुम खाती नहीं न, इसलिए डरती हो. 2-3 बार खाओगी तो स्वाद अपनेआप अच्छा लगने लगेगा. पहले मेरी मम्मी भी पापा को मना करती थीं. फिर धीरेधीरे वे गुस्से में खुद खाने लगीं और अब तो उन्हें भी मजा आने लगा है, इसलिए अब कोई किसी को नहीं टोकता.’’

सिया के दिल में क्रोध की एक लहर सी उठी पर अपने भावों को नियंत्रण में रखते हुए बोली, ‘‘पर अनिल, तुम इतने पढ़ेलिखे हो, तुम्हें खुद भी यह बुरी आदत छोड़नी चाहिए और अपने मम्मीपापा को भी समझाना चाहिए.’’

‘‘उफ सिया. छोड़ो यार, आजकल तुम घूमफिर कर इसी बात पर आ जाती हो. हमारे मिलने का आधा समय तो तुम इसी बात पर बिता देती हो. अरे, तुम ने वह गाना नहीं सुना, ‘पान खाए सैयां हमारो…’ फिर हंसा, ‘‘तुम्हें तो यह गाना गाना चाहिए, देखा नहीं कभी क्या कि वहीदा रहमान यह गाना गाते हुए कितनी खुश होती हैं.’’

‘‘वे फिल्मों की बातें हैं. उन्हें रहने दो.’’

अनिल उसे फिर हंसाता रहा पर वह उस की इस आदत पर काफी चिंतित थी. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह अनिल की इस आदत को कैसे छुड़ाए.

एक दिन सिया अपने मम्मीपापा और बड़े भाई राहुल से मिलवाने अनिल को घर ले गई. अनिल का व्यक्तित्व कुछ ऐसा था कि देखने वाला तुरंत प्रभावित होता था. सब अनिल के साथ घुलमिल गए. बातें करतेकरते जब ऐक्सक्यूज मी कह कर अनिल ने अपनी जेब से पानमसाला निकाल कर अपने मुंह में डाला, तो सब उस की इस आदत पर हैरान से चुप बैठे रह गए.

अनिल के जाने के बाद वही हुआ जिस की उसे आशा थी. सिया की मम्मी सुधा ने कहा, ‘‘अनिल अच्छा लगा पर उस की यह आदत …’’ सिया ने बीच में ही कहा, ‘‘हां मम्मी, मुझे भी उस की यह आदत बिलकुल पसंद नहीं है. क्या करूं समझ नहीं आ रहा है.’’

थोड़े दिन बाद ही अनिल सिया को अपने परिवार से मिलवाने ले गया. अनिल के पापा श्याम और मम्मी मंजू अनिल की छोटी बहन मिनी सब सिया से बहुत प्यार से पेश आए. सिया को भी सब से मिल कर बहुत अच्छा लगा. मंजू ने तो उसे डिनर के लिए ही रोक लिया. सिया भी सब से घुलमिल गई. फिर वह किचन में ही मंजू का हाथ बंटाने आ गई. सिया ने देखा, फ्रिज में एक शैल्फ पान के बीड़ों से भरी हुई थी.

‘‘आंटी, इतने पान?’’ वह हैरान हुई.

‘‘अरे हां,’’ मंजू मुसकराईं, ‘‘हम सब को आदत है न. तुम तो जानती ही हो, बनारस के पान तो मशहूर हैं.’’

‘‘पर आंटी, हैल्थ के लिए…’’

‘‘अरे छोड़ो, देखा जाएगा,’’ सिया के अपनी बात पूरी करने से पहले ही मंजू बोलीं.

किचन में ही एक तरफ शराब की बोतलों का ढेर था. वह वौशरूम में गई तो वहां उसे जैसे उलटी आने को हो गई. बाहर से घर इतना सुंदर और वौशरूम में खाली गुटके यहांवहां पड़े थे. टाइल्स पर पड़े पान के छींटों के निशान देखते ही उसे उलटी आ गई. सभ्य, सुसंस्कृत दिखने वाले परिवार की असलियत घर के कोनेकोने में दिखाई दे रही थी. ‘अगर वह इस घर में बहू बन कर आ गई तो उस का बाकी जीवन तो इन गुटकों, इन बदरंग निशानों को साफ करते ही बीत जाएगा,’ उस ने इन विचारों में डूबेडूबे ही सब के साथ डिनर किया.

डिनर के बाद अनिल सिया को घर छोड़ आया. घर आने के बाद सिया के मन में कई विचार आ जा रहे थे. अनिल एक अच्छा जीवनसाथी सिद्ध हो सकता है, उस के घर वाले भी उस से प्यार से पेश आए पर सब की ये बुरी आदतें पानमसाला, शराब, सिगरेट के ढेर वह अपनी आंखों से देख आई थी. घर आ कर उस ने अपने मन की बात किसी को नहीं बताई पर बहुत कुछ सोचती रही. 2-3 दिन उस ने अनिल से एक दूरी बनाए रखी. सिया के इस रवैए से परेशान अनिल बहुत कुछ सोचने लगा कि क्या हुआ होगा पर उसे जरा भी अंदाजा नहीं हुआ तो शाम को घर जाने के समय वह सिया का हाथ पकड़ कर जबरदस्ती कैंटीन में ले गया, वहां बैठ कर उदास स्वर में पूछा, ‘‘क्या हुआ है, बताओ तो मुझे?’’

सिया को जैसे इसी पल का इंतजार था. अत: उस ने गंभीर, संयत स्वर में कहना शुरू किया, ‘‘अनिल, मैं तुम्हें बहुत पसंद करती हूं, पर हम इस रिश्ते को आगे नहीं बढ़ा पाएंगे.’’

अनिल हैरानी से चीख ही पड़ा, ‘‘क्यों?’’

‘‘तुम्हें और तुम्हारे परिवार को जो ये कुछ बुरी आदतें हैं, मुझ से सहन नहीं होंगी, तुम एजुकेटेड हो, तुम्हें इन आदतों का भविष्य तो पता ही होगा. भले ही तुम इन आदतों के परिणामों को नजरअंदाज करते रहो पर जानते तो हो ही न? मैं ऐसे परिवार की बहू कैसे बनूं जो इन बुरी आदतों से घिरा है? आई एम सौरी, अनिल, मैं सब जानतेसमझते ऐसे परिवार का हिस्सा नहीं बनना चाहूंगी.’’

अनिल का चेहरा मुरझा चुका था. बड़ी मुश्किल से उस की आवाज निकली, ‘‘सिया, मैं तो तुम्हारे बिना जीने की कल्पना भी नहीं कर सकता.’’

‘‘हां अनिल, मैं भी तुम से दूर नहीं होना चाहती पर क्या करूं, इन व्यसनों का हश्र जानती हूं मैं. सौरी अनिल,’’ कह उठ खड़ी हुई.

अनिल ने उस का हाथ पकड़ लिया, ‘‘अगर मैं यह सब छोड़ने की कोशिश करूं तो? अपने मम्मीपापा को भी समझांऊ तो?’’

‘‘तो फिर मैं इस कोशिश में तुम्हारे साथ हूं,’’ मुसकराते हुए सिया ने कहा, ‘‘पर इस में काफी समय लगेगा,’’ कह सिया चल दी.

आत्मविश्वास से सधे सिया के कदमों को देखता अनिल बैठा रह गया.

आदतन हाथ जेब तक पहुंचा, फिर सिर पकड़ कर बैठा रह गया.

सिंगल वूमन: क्या सुमित अपनी पड़ोसिन का पा सका

सुमित औफिस से लौटा तो सुधा किचन में व्यस्त दिखी. उस ने पूछा, ‘‘क्या बात है, आज तो बाहर तक खुशबू आ रही है?’’

सुधा मुसकराई, ‘‘जल्दी से फ्रैश हो जाओ, गैस्ट आ रहे हैं.’’

‘‘कौन?’’

‘‘बराबर वाले फ्लैट में जो किराएदार आए हैं, मैं ने उन्हें डिनर पर बुलाया है.’’

‘‘अच्छा, कौन हैं?’’

‘‘एक सिंगल वूमन है और उस की 10 साल की 1 बेटी

भी है.’’

‘‘ठीक है,’’ कह कर सुमित फ्रैश होने लगा. दोनों की 20 वर्षीय बेटी तनु और 17 वर्षीय बेटा राहुल भी अपनी बुक्स समेट कर डिनर के लिए तैयार थे.

सुधा ने तनु के साथ मिल कर डिनर टेबल पर लगाया. तभी घंटी की आवाज सुनाई दी. सुधा ने दरवाजा खोला और फिर मुसकराते हुए बोली, ‘‘आओ अनीता, हैलो बेटा, अंदर आओ.’’

अनीता अपनी बेटी रिनी के साथ अंदर आई. सुधा ने अपने परिवार से उन का परिचय करवाया. सुमित उसे देखता ही रह गया. जींसटौप, कंधों तक लहराते बाल, सलीके से किया गया मेकअप… बहुत स्मार्ट थी अनीता. रिनी तनु और राहुल को हैलो दीदी, हैलो भैया कहती उन से बातें करने लगी. तनु और राहुल उस की बातों का आनंद उठाने लगे. सुमित अनीता के रूपसौंदर्य में घिर बैठा रहा. उस का अनीता के चेहरे से नजरें हटाने का मन नहीं कर रहा था. अनीता और सुधा बातों में व्यस्त थीं. सुमित कनखियों से अनीता को निहार रहा था. सुंदर गोरा चेहरा, खूबसूरत हाथपैर, उन पर लगी आकर्षक नेलपौलिश, हाथ में महंगा फोन, कान व गले में डायमंड सैट. वाह, क्या बात है, सुमित ने उसे मन ही मन खूब सराहा. फिर उन की बातों की तरफ कान लगा दिए. वह दवाओं की एक मल्टीनैशनल कंपनी में प्रोडक्ट मैनेजर थी. यहां मुंबई में इस फ्लैट में वह अपनी बेटी के साथ रहेगी. औफिस के कुछ सहकर्मियों ने उसे यह फ्लैट दिलवाया है. इस सोसाइटी में उस का अच्छा फ्रैंड सर्कल है.

खाने की तारीफ करते हुए अनीता और रिनी ने सब के साथ डिनर किया और फिर थैंक्स बोल कर चली गईं.

उन के जाने के बाद तनु ने कहा, ‘‘मम्मी, आंटी तो बहुत स्मार्ट हैं.’’

सुधा ने कहा, ‘‘मुझे भी यह अच्छी लगी. इस से आतेजाते जितनी भी बातचीत हुई वह मुझे अच्छी लगी. अकेली है इसलिए आज बुला लिया था. वैसे भी इस फ्लोर पर दोनों फ्लैट बंद पड़े थे. खालीखाली सा लगता था. अब कोई तो दिखेगा.’’

सुमित मन ही मन सोच रहा था कि सिंगल वूमन, वाह, अकेली औरत मतलब आसान शिकार. अकेली है सौ काम पड़ेंगे इसे हम लोगों से. चलो, खूब टाइमपास होगा. और फिर मन ही मन अपनी सोच पर मुसकराया. फिर सुधा से बोला, ‘‘चलो, अब तुम्हारा मन लगा रहा करेगा.’’

‘‘हां, यह तो है,’’ सुधा ने कहा.

कुछ दिन और बीत गए. अनीता का घर सैट हो गया था. इस बिल्डिंग में 2 टू बैडरूम फ्लैट थे, तो 2 वन बैडरूम फ्लैट थे. सुमित का टू बैडरूम फ्लैट था और अनीता का वन बैडरूम. सुधा बड़ी उत्सुकता से अनीता की दिनचर्या नोट कर रही थी. उस ने सुधा की मेड को ही रख लिया था. सुबह उस से काम करवा कर अनीता रिनी को अपनी कार से स्कूल छोड़ती, फिर लंचटाइम में स्कूल से ले कर सोसाइटी में ही स्थित डे केयर सैंटर में छोड़ देती. वहां से शाम को ले कर लौटती. रिनी बहुत ही प्यारी और सम?ादार बच्ची थी. अनीता ने उसे बहुत मैनर्स सिखा रखे थे. अनीता दिन में व्यस्त रहती थी. शाम को खाली होती तो सुधा से मिलती. कभी उसे अपने यहां कौफी के लिए बुला लेती तो कभी खुद सुधा के पास आ जाती. अनीता की आत्मनिर्भरता सुधा को काफी अच्छी लगती.

शनिवार को अनीता और रिनी की छुट्टी रहती थी. दोनों मांबेटी मार्केट जातीं. कभी रिनी की फ्रैंड्स आ जातीं तो कभी अनीता की अपनी फ्रैंड्स. कुछ महीनों की दोस्ती के बाद अनीता सुधा से काफी घुलमिल गई थी. एकदिन उस ने अपने बारे में सुधा को इतना ही बताया था, ‘‘सुधाजी, मैं ने अपने पति और ससुराल वालों से निभाने की बहुत कोशिश की थी, लेकिन सब व्यर्थ गया. तलाक लेने के अलावा मेरे पास कोई रास्ता नहीं बचा था. अब मैं रिनी के साथ अपनी लाइफ से बहुत खुश हूं.’’

सुधा मन ही मन अनीता की हिम्मत की दाद देती रहती थी. दोनों के संबंध काफी

अच्छे हो गए थे. सुमित अनीता से बात करने का मौका ढूंढ़ता रहता था, लेकिन सुमित के औफिस से आने के बाद अनीता कभी सुधा के घर नहीं जाती थी. सुमित यहांवहां देखता रहता. अनीता से तो उस का आमनासामना ही नहीं हो पा रहा था. कहां वह अनीता के साथ टाइमपास के सपने देख रहा था और कहां अब अनीता की शक्ल ही नहीं दिखती थी. एक दिन सुमित ने घुमाफिरा कर बातोंबातों में सुधा से कहा, ‘‘और तुम्हारी पड़ोसिन का क्या हाल है?’’

‘‘ठीक है.’’

सुमित थोड़ा ?ाल्लाया, यह सुधा तो उस की कोई बात बताती ही नहीं, फिर दोबारा पूछा, ‘‘मिलती है या नाम की पड़ोसिन है?’’

‘‘जब उसे टाइम मिलता है, मिलती है?’’

सुमित मन ही मन झंझलाया कि कब अनीता से मिलना होगा, कुछ तो करना पड़ेगा. क्या करे वह और फिर पता नहीं क्याक्या सोचता रहा.

संडे को जैसे सुमित के मन की मुराद पूरी हो गई. अनीता ने सुबह ही घंटी बजा दी. सुधा ने दरवाजा खोला तो परेशान सी कहने लगी, ‘‘रिनी को बहुत तेज बुखार है, कोई डाक्टर है, जो घर आ जाए?’’

सुधा ने कहा, ‘‘हांहां, अंदर आ जाओ, मैं नंबर देती हूं.’’

सुमित ड्राइंगरूम में पेपर पढ़ रहा था. फौरन उठ कर खड़ा हो गया. अनीता को देख कर उस का चेहरा खिल उठा. नाइटसूट में अनीता उसे बहुत ही आकर्षक लगी फिर मन ही मन वह उस की सुंदरता की तारीफ करता रहा. प्रत्यक्षत: चिंतित स्वर में बोला, ‘‘मैं डाक्टर को फोन करता हूं.’’

‘‘नहीं, थैंक्स, आप मुझे नंबर दे दें, मैं कर लूंगी.’’

सुधा ने नंबर लिख कर दे दिया. अनीता चली गई तो सुधा ने सुमित से कहा, ‘‘मैं जरा रिनी को देख आती हूं.’’

सुमित ने फौरन कहा, ‘‘मैं भी चलता हूं.’’

सुधा के साथ सुमित पहली बार अनीता के फ्लैट में गया. अनीता के घर में चारों ओर नजर दौड़ाई. घर पूरी तरह से आधुनिक साजसज्जा से सुसज्जित था. वाह, घर भी सुंदर सजाया है अपनी तरह. सुमित मन ही मन अनीता की हर बात पर फिदा हो रहा था.

सुधा ने रिनी का माथा छुआ. बोली, ‘‘हां, तेज बुखार है.’’

अनीता डाक्टर को फोन कर रही थी. लेकिन उधर से फोन उठाया नहीं गया तो कहने लगी, ‘‘संडे है, शायद सो रहे हों. ऐसा करती हूं अस्पताल ही ले जाती हूं.’’

सुमित ने फौरन कहा, ‘‘मैं चलता हूं, आप रिनी को उठा लें. मैं कपड़े चेंज कर के गाड़ी निकालता हूं, आप नीचे आ जाओ.’’

‘‘ठीक है.’’

सुधा ने कहा, ‘‘मैं भी चलती हूं.’’

सुमित ने कहा, ‘‘नहीं, तुम क्या करोगी, बच्चों को क्लास के लिए उठाना है. मेड भी आने वाली होगी. मैं दिखा लाता हूं.’’

‘‘ठीक है,’’ कह कर सुधा अपने घर

आ गई.

सुमित कपड़े चेंज कर के बोला, ‘‘बेचारी सिंगल वूमन है, परेशानी तो होती ही है.’’

सुमित कार की चाबी उठा कर नीचे उतर गया. अनीता भी रिनी को उठा कर कार तक पहुंची. सुमित ने एक नजर उस पर डाली,

टीशर्ट और जींस में अनीता का फिगर देख

कर एक आह भरी और फिर ड्राइविंग सीट पर बैठ गया.

अनीता ने कहा, ‘‘अगर आप को बुरा न लगे तो मैं रिनी के साथ पीछे बैठना चाहूंगी.’’

‘‘हांहां, ठीक है,’’ कह कर सुमित ने मन में सोचा, चलो फिर कभी आगे बैठेगी, फिर कोई काम तो पड़ेगा ही, साथ में तो है, पीछे ही सही. शीशे में सुमित उसे कई बार देखता रहा, वह पूरी तरह से रिनी में खोई थी. उसे बहुत तेज बुखार था. वह लगभग बेसुध थी.

डाक्टर ने चैकअप के बाद उसे तुरंत ऐडमिट कर लिया. अनीता ने एक फोन किया. आधे घंटे में उस की कई सहेलियां और दोस्त पहुंच गए. सब औफिस के लोग थे. लेकिन उस के शुभचिंतक हैं यह बात सुमित ने साफसाफ महसूस की. अनीता ने सुमित का परिचय पड़ोसी कह कर करवा दिया. सब के आने से सुमित असहज हो गया और फिर बोला, ‘‘मैं चलता हूं. कोई जरूरत हो तो फोन कर देना,’’ और सुमित घर आ गया और सुधा को सारी बात बता दी.

सुधा सारे काम निबटा कर और अनीता के लिए खाना बना कर अस्पताल जाने के लिए तैयार हुई तो सुमित ने कहा, ‘‘वहां उस के कई जानपहचान वाले हैं, मैं ही जा कर दे आता हूं खाना,’’ सुमित ने मन ही मन सोचा ऐसा करने से अनीता के दिल में मेरे लिए खास जगह बनेगी. कुछ नजदीकी बढ़ेगी, मजा आएगा.

सुधा ने कहा, ‘‘ठीक है, मैं शाम को चली जाऊंगी.’’

सुमित अच्छी तरह तैयार हो कर अनीता के लिए खाना ले कर अस्पताल पहुंचा तो उसे अकेली देख कर खुश हुआ. वह रिनी के पास अकेली बैठी थी. सब दोस्त जा चुके थे. अनीता ने खाने के लिए कई बार थैंक्स कहा. सुमित अनीता के साथ कुछ समय रह कर खुश था. वह थोड़ी देर रिनी की तबीयत के बारे में बात करता रहा. वह अपनी तरफ से अनीता को प्रभावित करने

का कोई मौका नहीं छोड़ना चाहता था. तभी अनीता की एक सहेली भी खाना ले आई, तो अनीता हंस पड़ी. बोली, ‘‘मेरा ध्यान रखने वाले कितने लोग हैं.’’

थोड़ीबहुत बातों के बाद सुमित घर लौट आया. शाम को सुधा अनीता के लिए डिनर ले कर गई. अनीता ने प्यार से सुधा का हाथ पकड़ लिया, ‘‘आप मेरे लिए कितना कर रही हैं… थैंक्यू वैरी मच.’’

‘‘तो क्या हुआ अनीता, हम दोस्त हैं, पड़ोसी हैं, इतना तो हमारा फर्ज बनता ही है, तुम बेकार की औपचारिकता में न पड़ कर बस रिनी की देखभाल करो. और हां, सुबह तो तुम ऐसे ही उठ कर आ गई थीं, रात को रुकने के लिए तुम्हें कपड़े चाहिए होंगे न. ऐसा करो मैं यहां बैठी हूं, जो चाहिए जा कर ले आओ.’’

‘‘हां, यह ठीक रहेगा. मैं अपना कुछ सामान ले आती हूं.’’

सुमित फौरन खड़ा हो गया, ‘‘आइए, मैं ले चलता हूं.’’

अनीता ने हां में सिर हिलाया तो सुमित का मन खिल उठा कि कार में बस वह और अनीता, वाह.

बराबर की सीट पर बैठी अनीता को सुमित ने कनखियों से कितनी बार देखा, अपने मन के चोर को उस ने किसी भी हावभाव से बाहर नहीं आने दिया. बाहर से वह एकदम शिष्ट, सभ्य पुरुष बना हुआ था, लेकिन अंदर ही अंदर मन में कुटिलता लिए एक अकेली औरत को प्रभावित करने का कोई मौका हाथ से नहीं जाने देना चाहता था.

रास्ते भर दोनों की कोई खास बात नहीं हुई, लेकिन सुमित खुश था. अनीता के कई दोस्त आ गए तो सुधा और सुमित घर लौट आए. रात को बैड पर सुमित की आंखों के आगे अनीता का चेहरा आता रहा.

सुधा ने प्यार से कहा, ‘‘आज तो संडे को काफी व्यस्त रहे तुम, आराम नहीं कर पाए.’’

‘‘तो क्या हुआ? सिंगल वूमन है पड़ोस

में, इतना तो करना ही पड़ता है… बेचारी

अकेली औरत…’’

‘‘हां, यह तो है. लेकिन काफी हिम्मती है, घबराती नहीं है बिलकुल भी. मु?ो उस की यह बात बहुत अच्छी लगती है.’’

अगले दिन सोमवार को सुमित ने औफिस जाते हुए कार अस्पताल के बाहर रोकी, अनीता उसे सुबहसुबह देख कुछ हैरान हुई. रिनी ठीक थी. जब अनीता ने बताया कि शाम तक छुट्टी मिल जाएगी तो सुमित ने कहा, ‘‘ठीक है, औफिस से सीधा इधर ही आ जाऊंगा, साथ ही चलेंगे.’’

‘‘नहींनहीं, मेरी फ्रैंड आ जाएगी कार ले कर.’’

‘‘अरे, एक ही जगह जाना है, उन्हें क्यों परेशान करेंगी?’’

‘‘अच्छा ठीक है, मैं उन्हें फोन कर के मना कर दूंगी.’’

सुमित औफिस चला गया और दिन भर अनीता के खयालों में डूबा रहा. शाम को अनीता और रिनी को ले कर घर आ गया.

अनीता घर आ कर भी बारबार सुधा और सुमित को थैंक्स बोलती रही. सुधा ने कहा, ‘‘मैं तुम्हारा खाना ले कर आती हूं, रिनी के लिए मैं ने सूप और खिचड़ी बना दी है.’’

‘‘आप मेरा कितना ध्यान रखती हैं सुधाजी.’’

सुधा ने अनीता का कंधा प्यार से थपथपा दिया. अगले दिन अनीता ने औफिस से छुट्टी ले ली थी. उस की फ्रैंड्स आतीजाती रहीं. फिर पुराना रूटीन शुरू हो गया. कुछ दिन और बीत गए. अब अनीता और रिनी सुधा से और खुल चुकी थीं. कभीकभी सुमित टूर पर होता तो तीनों मूवी देखने जातीं. बाहर खातीपीतीं. तनु और राहुल तो अनीता आंटी के फैन थे. कुल मिला कर सब सामान्य था. बस सुमित के मन में अनीता को ले कर क्या चलता रहता था, यह वही जानता था. अब उसे इस बात का विश्वास हो गया था कि अनीता भी उस से इंप्रैस्ड है और अगर वह कोई हरकत करता है तो वह पक्का आपत्ति नहीं करेगी. किसी पुरुष के साथ की उसे भी तो जरूरत होती होगी. सुधा के प्यार और विश्वास की एक बार भी चिंता न करते हुए वह अनीता से नजदीकी के सपनों में डूबा रहता.

एक दिन अचानक सुधा के मायके से फोन आया. दिल्ली में उस की मम्मी की तबीयत खराब थी.

सुमित ने फौरन दिल्ली के लिए उस की फ्लाइट बुक की. मेड को खाना बनाने के कई निर्देश दे कर सुधा दिल्ली के लिए फौरन तैयारी करने लगी. सुधा को एअरपोर्ट छोड़ कर आते हुए सुमित कई तरह की योजनाएं बनाता रहा. तनु और राहुल कालेज चले जाते, सुमित अनीता से बात करने के मौके ढूंढ़ता रहता. लेकिन सुधा के जाने के बाद अनीता बच्चों से तभी मिलती जब सुमित औफिस में होता. सुमित सोचता रहा और 6 दिन बीत गए थे. सुमित सोच रहा था आज तनु और राहुल को एक बर्थडे पार्टी में जाना है, सुधा कल सुबह आ जाएगी, उस की मम्मी अब ठीक है, रिनी 8 बजे तक सो ही जाती है. आज ही मौका है, आज ही वह अनीता के और करीब जाने की कोशिश करेगा. वह मन ही मन कई योजनाएं बनाता रहा.

शाम को तनु और राहुल पार्टी में चले गए. कह कर गए थे 11 तो बज ही जाएंगे. सुमित ने नहाधो कर बढि़या कुरतापाजामा पहना, परफ्यूम लगाया, घर में बढि़या रूमस्प्रे किया, बैडरूम ठीक किया. मेड जो खाना गरम कर के रख गई थी, गरम कर के खाया. समय देखा, 9 बज रहे थे. सुधा से भी फोन पर बात कर ली थी. तनु व राहुल से भी बात कर ली थी. उन्हें आने में अभी काफी समय था. रिनी सो ही चुकी होगी. सब मन ही मन हिसाब लगा कर सुमित ने अनीता के घर की घंटी बजाई. उस ने दरवाजा खोला तो सुमित ने कहा, ‘‘एक तकलीफ देनी है आप को.’’

‘‘जी, कहिए.’’

‘‘प्लीज, 1 कप कौफी बना देंगी? पता नहीं सुधा ने कहां रखी है, मिल नहीं रही है. सिर में बहुत दर्द हो रहा है, आप को कोई प्रौब्लम तो नहीं होगी न?’’

‘‘अरे नहीं, आप चलिए, मैं लाती हूं.’’

‘‘आप को भी इस समय कौफी पीने की आदत है न, अपनी भी ले आइए, साथ ही पी लेंगे,’’ कह कर सुमित अपने घर आ गया.

10 मिनट बाद घंटी बजी. अनीता ट्रे में 1 कप कौफी लिए आई. उस ने अनीता को हाथ से अंदर आने का इशारा किया. अनीता जैसे ही अंदर आई, सुमित ने दरवाजा अंदर से बंद कर लिया. पूछा, ‘‘आप अपने लिए

नहीं लाईं?’’

ट्रे टेबल पर रख कर अनीता जैसे ही सीधी हुई, सुमित ने उस के कंधे पर हाथ रख कर कहा, ‘‘बैठो न, कब से तुम से कुछ कहना चाह रहा था,’’ फिर अचानक अनीता की बगल में दबे बैग को देखते हुए बोला, ‘‘इस में क्या है?’’

अनीता ने एक व्यंग्यभरी मुसकान उस पर डाली, बैग की चेन खोल कर स्प्रे निकाला. बोली, ‘‘यह खास स्प्रे है. क्या आप देखेंगे कि कैसे काम करता है?’’ सुमित ने सोचा कि कोई मादक स्प्रे होगा. वह और निकट खिसका तो अनीता ने उस पर स्पे्र कर दिया.

अनीता गुर्राई, ‘‘उन लंपट पुरुषों का इलाज हमेशा मेरे पास रहता है, जो सिंगल वूमन को आसान शिकार सम?ाते हैं,’’ फिर सुमित का चेहरा देख कर बोली, ‘‘उफ सौरी यह तो आप पर स्प्रे हो गया.’’

सुमित बुरी तरह कराह रहा था. अनीता बोली, ‘‘आप मुंह धो लो. शायद रात भर में उतर जाए और कोई गलतफहमी हो तो वह भी दूर हो जाएगी,’’ और फिर अनीता बड़े आराम से सुमित के घर से निकल कर चली गई.

सुमित छटपटाता हुआ जल्दी से बाथरूम में शौवर के नीचे खड़ा हो गया, आंखें बुरी तरह जल रही थीं, वह अनीता को गालियां दे रहा था. आंखों की जलन कम हुई तो जल्दी से गीले कपड़े मशीन में डाले, कपड़े बदले. तनु, राहुल आए तो सुमित की लाल आंखें देख कर परेशान हो उठे.

‘‘बस, आई इन्फैक्शन है, तबीयत कुछ ठीक नहीं है,’’ कह कर सुमित जल्दी सोने चला गया.

सुबह सुधा खुद ही टैक्सी ले कर आ गई थी. आ कर सब से बातें करती रही, फिर दिल्ली से लाई मिठाई अनीता को देने गई. फिर लौट कर बोली, ‘‘कितनी तेज बारिश हो रही है… देखो पहले रिनी को स्कूल छोड़ेगी, फिर औफिस जाएगी, बेचारी सिंगल वूमन, कितनी परेशानियां होती हैं इन की लाइफ में.’’

‘‘कोई बेचारीवेचारी नहीं होती हैं सिंगल वूमन,’’ सुमित ने कहा तो सुधा कुछ सम?ा तो नहीं, बस उस का मुंह देखती रह गई जो अभी तक लाल था.

मेरे हसबैंड चाहते हैं कि मैं उनके दोस्त के साथ सैक्स करूं…

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल

मेरी शादी को 15 साल हो गए, हम हाल ही में लखनऊ शिफ्ट हुए हैं. बच्चों की पढ़ाई के लिए हमें गांव से इस शहर में आना पड़ा. पति को नई जौब भी मिल गई और एक आदमी से उनकी गहरी दोस्ती भी हो गई है. दोनों एकदूसरे के घर आते-जाते हैं. लेकिन समस्या यह है कि मेरे पति ने एक दिन मुझसे कहा कि मैंने अपने दोस्त की बीवी के साथ सैक्स किया है, वह भी तुम्हारे साथ सैक्स करने के लिए किसी दिन आएगा. ये सुनकर मेरे होश उड़ गए है. मैं उन पर बहुत चिल्लाई कि आपकी हिम्मत कैसे हुई, दोस्त की बीवी के साथ सैक्स करने की, तो उन्होंने कहा कि ये आजकल नौर्मल बात है. तुम भी मेरे दोस्त के साथ सैक्स कर लेना. वह मेरी कोई भी बात समझने को तैयार ही नहीं है… अब मैं उनकी हरकतों के कारण उनसे अलग होना चाहती हूं, कुछ समझ नहीं आ रहा कैसे क्या करूं?

जवाब

आपके हसबैंड ने सबसे बड़ी गलती की, अपनी दोस्त की बीवी के साथ सैक्स किया, अब वह आपसे डिमांड कर रहे हैं कि आप भी उनके दोस्त के साथ सैक्स करें, यह बहुत ही गलत है. अभी आप अलग होने की बात न सोचें… आप पहले आराम से अपने पति को समझाएं, अगर वह आपकी बात नहीं मानते हैं, तो आप अपने परिवार वालों से मदद ले सकती हैं. शायद किसी दूसरे व्यक्ती के कहने पर वह ये बात समझ जाएं कि उन्होंने खुद गलत किया और आपसे भी गलत डिमांड कर रहे हैं.

अगर वह अपनी गलत आदत नहीं छोड़ते हैं, तो आप उनसे तलाक ले सकती हैं. शादी में हसबैंड-वाइफ को एक दूसरे की सम्मान करना बेहद जरूरी है. यह बराबरी का रिश्ता है, सिर्फ पति का आदेश मानना जरूरी नहीं है, महिलाओं का भी उतना ही हक जितना कि एक पुरुष का..

पत्नी कोई प्रौपर्टी नहीं है कि अदलबदल कर उसे एक दूसरे को इस्तेमाल करने के लिए दिया जा सके. ऐसा पति कभी भरोसे लायक नहीं होगा, यह याद रखें.

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प्यार कितना भी गहरा हो पर कोई भी कपल हर समय एकदूसरे के प्यार में डूबे नहीं रहते. उन्हें अपनी जिम्मेदारियां भी निभानी होती है. कामकाज पर जाना पड़ता है. जिंदगी के उतारचढ़ाव सहने पड़ते हैं. मगर इन वजहों से प्यार का एहसास नहीं घटता. जब भी मिलते हैं उतनी ही शिद्दत से प्यार महसूस करते हैं.

मगर कभीकभी ऐसी परिस्थितियां भी आती हैं जब अपने प्रेमी या पति के करीब हो कर भी आप को प्यार महसूस न हो. करीब हो कर भी वे आप को दूर लगें. अगर ऐसा है तो समझ जाइए कि वह  वाकई आप से दूर जा रहे हैं यानी आप का ब्रेकअप होने वाला है.

पहले से इस बात का आभास रहे तो इस दर्द को सहना थोड़ा आसान हो जाता है. ध्यान दीजिए आप के करीब रहने पर उन की कुछ खास शारीरिक गतिविधियों पर.

जब आप किसी के साथ रिलेशन में होते हैं या प्यार करते हैं तो रातदिन उसे ही देखना और महसूस करना चाहते हैं. मगर जब कोई आप का दिल तोड़ जाता है या उस के लिए आप के मन में प्यार नहीं रह जाता तो उस का सामना करने या उस की तरफ देखने से भी कतराने लगते हैं.

प्यार में इंसान करीब जाने और बातें करने के बहाने ढूंढता है मगर दूरी बढ़ने पर एकदूसरे से दूर जाने के बहाने ढूंढने लगता है. कपल्स जो इमोशनली जुड़े होते हैं उन की बौडी लैंग्वेज ही अलग होती है. जैसे कि अनजाने ही एकदूसरे की ओर सर झुकाना, गीत गुनगुनाना, केयर करना और एकदूसरे की बातें ध्यान दे कर सुनना आदि.

मगर जब रिश्ता बैकअप के कगार पर पहुंच चुका होता है तो वे बातें कम और बहस ज्यादा करने लगते हैं. एकदूसरे के बगल में बैठने के बजाय आमनेसामने बैठते हैं और केयर करने के बजाए इग्नोर करने लगते हैं.

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या हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- sampadak@delhipress.biz सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

खतरनाक गुंडों को सबक सिखाएगी आध्या, क्या फिर से Anupama को देख कहीं चली जाएगी दूर?

टीवी सीरियल अनुपमा में लगातार ट्विस्ट देखने को मिल रहा है. सीरियल में इन दिनों हाईवोल्टेज ड्रामा देखने को मिल रहा है. शो में लीप आने के बाद आध्या और अनुपमा की जिंदगी पूरी तरह से बदल गई है. शो में दिखाया जा रहा है कि आध्या अनुपमा को छोड़कर भाग गई है. वह दूसरे जगह नए नाम से रह रही है. लेकिन अनुपमा अपनी बेटी आध्या की हर जगह तलाश कर रही है.

अनुपमा के बीते एपिसोड में आपने देखा था कि अंश के साथ अनुपमा द्वारका जाती है इसी बीच बा से उसकी बहस होने लगती है. दूसरी तरफ शो में आध्या की लव स्टोरी को दिखाया जा रहा है. शो में प्रेम और आध्या की दिलचस्प कैमिस्ट्री देखने को मिल रही है. अब शो के अपकमिंग एपिसोड में बड़ा ट्विस्ट देखने को मिलेगा.

आध्या ने बर्थडे सेलिब्रेट करने से किया मना

सीरियल अनुपमा में दिखाया गया कि आश्रम के लोग आध्या के बर्थडे की तैयारी करते हैं, लेकिन आध्या गुस्सा होती है और वह अपना बर्थडे सेलिब्रैट करने से मना करती है. दूसरी तरफ तोषु अपनी आदतों से बाज नहीं आता है और बारबार जताता है कि उसे पर ही सारे काम का प्रेशर है. इतना ही नहीं वह माही को सुनाता भी है.

गुंडों से लड़ेगी आध्या

आश्रम पर गुंडे हमला कर देते हैं और सारा सामान घर से बाहर निकालते हैं. तभी आध्या उन्हें सबक सिखाती है और वहां से भगा देती है. शो में आगे दिखाया जाएगा कि अनुपमा गेस्ट बनकर आश्रम में फोन करती है. आध्या को पता नहीं होता है कि वह अनुपमा ही है. वह गेस्ट को लेने के लिए बस स्टैंड निकलती है. तभी वह रास्ते में प्रेम से टकरा जाती है, इस दौरान दोनों की घाट पर बहस हो जाती है. दूसरी तरफ आध्या का फोन भी पानी में गिर जाता है.

घाट पर ही अनुपमा-आध्या का होगा आमनासामना

इसके बाद वह आश्रम में दूसरे नंबर से फोन कर अनुपमा का नंबर मांगती है, इसी बीच उसे पता चलता है कि जो गेस्ट आने वाले हैं, वो लोग अहमदाबाद से आ रहे हैं, तो वह शौक्ड हो जाती है और उन्हें आश्रम में लाने से मना करती है. शो में ये भी दिखाया जाएगा कि घाट पर ही आध्या अनुपमा को देख लेगी. अब सीरियल में ये देखना दिलचस्प होगी कि क्या फिर से अपनी मां को देखकर आध्या भाग जाएगी ?

Diwali Special: त्यौहारों में बालों को दें कुछ अलग लुक  

त्यौहारों के मौसम में हर कोई सजना सवरना पसंद करते है. ऐसे में नए लुक, परिधान हेयर और मेकअप सब सही हो इसकी कोशिश पुरुष और महिला सभी करते है. इसके लिए वे पार्लर में जाकर भी अपनी लुक को बदलने से कतराती नहीं. इस बारें में गोदरेज प्रोफेशनल की एजुकेशन एम्बेसेडर आशा हरिहरन जो पिछले 35 सालों से इस क्षेत्र में है कहती है कि आजकल की महिलाएं बालों को अलग-अलग लुक में देखना पसंद करती है.

1. स्किन टोन के हिसाब से कलर

स्किन टोन के हिसाब से केशों को कलर करने से परिधान अधिकतर स्टाइलिस्ट बन जाता है. ट्रेंडी और न निकलने वाले रंग लोग खूब पसंद करते है. इसमें पीकौक ब्लू कलर जो बबली, फनलविंग और एडवेंचर पसंद करने वाली महिलाओं के लिए है और उन्हें अधिक सूट करता है. इसमें कान के नीचे वाईव्रेंट और उसके उपर डार्क रंग का प्रयोग किया जाता है.

2. औफिस के लिए परफेक्ट है ये हेयर कलर

काम पर जाने वाली महिलाओं के लिए ये सबसे अच्छा हेयर कलर है. औफिस में फौर्मल लुक पसंद किया जाता है, लेकिन त्यौहार या पार्टी में फनलविंग महिलाओं के लिए भी ये अच्छा कलर है. दूसरा हेयर कलर हेयर स्टाइलिस्ट रायन ने बनाया है और वह ब्राउन है. ये इंडियन हेयर पर बहुत जंचता है, क्योंकि हमारी स्किन टोन लाइट और मीडियम है. ब्राउन में भी कई अलग-अलग रंग है, जैसे कौफी ब्राउन, ऐश ब्राउन पर्पल ब्राउन आदि है. इसकी पौपुलैरिटी की वजह फैशन में रेट्रो लुक का फिर से आना है.

3. पर्सनैलिटी बेस्ड हो कलर

हेयर कलर व्यक्ति के व्यक्तित्व पर आधारित होना सही होता है इससे ब्यूटी निखर कर आती है. आशा आगे कहती है कि ब्लौन्ड हेयर को मैंने इस बार परिचय करवाया है, जिसे बालयाग कहते है. ये पश्चिमी देशों में बहुत प्रचलित है और ये लुक इन्स्पीरेशनल होता है. कलरिस्ट हाई लाइट्स कलर करता है. इसके अलावा ब्लॉन्ड में भी कई रंग होते है, मसलन ऐश ब्लौन्ड में सिल्वर टोन अधिक होता है, जबकि प्लेटिनम ब्लौन्ड में लाइट शेड होता है, वेनीला ब्लौन्ड में क्रीम कलर का ब्लौन्ड, गोल्ड ब्लौन्ड में सुनहरे रंग की अधिकता होती है.

4. लाइफस्टाइल के हिसाब से

लाइफस्टाइल के हिसाब से ब्लौन्ड का प्रयोग किया जाता है. इसमें बहुत सारा कैलकुलेशन होता है जिसे सैलून में ही किया जा सकता है. इसमें बाल को बिना नुक्सान के रंग देना मेरे लिए चुनौती होती है. इस त्यौहार में ब्लौन्ड विथ ब्राउन या रेड विथ ब्राउन चर्चा में है. इसके अलावा पीकॉक ब्लू, रेड, ब्राउन आदि भी इस त्यौहार में प्रयोग कर सकती है.

5. हेयर कलर के बाद कुछ सावधानियां,

  • सभी रंग अमोनिया फ्री है, इसलिए इसका फोर्मुलेशन माइल्ड होना चाहिए,
  • सही रंग का चयन करना जरुरी,
  • कलर ऐसे लगानी चाहिए,ताकि वह स्कैल्प को प्रोटेक्ट करें,
  • शैम्पू रंग को प्रोटेक्ट करने वाली होनी चाहिए, ताकि 6 महीने बाद भी हेयर सुंदर लगे.

जिस्म की सफेदी: सुषेन क्यों अंजान बन रहा था

इनसान की चमड़ी भी उस की जिंदगी में कितनी अहमियत रखती है… काली चमड़ी… गोरी चमड़ी… मोटी चमड़ी… महीन चमड़ी… खूबसूरत और बदसूरत चमड़ी…

खूबसूरत… हां… सुषेन भी तो खूबसूरत था… बांका और सजीला नौजवान… सुषेन 20 साल पहले की यादों में डूबने लगा था.

कालेज में बीएससी करते समय बहुत सी लड़कियां सुषेन की दीवानी थीं, क्योंकि वह दिखने में तो हैंडसम था ही, साथ ही साथ विज्ञान के प्रैक्टिकल करने में भी उसे महारत हासिल थी.

पर सुषेन के दिल में तो किसी और ही लड़की का राज था और वह लड़की थी एमएससी फाइनल में पढ़ने वाली सुरभि.

सुरभि और सुषेन दोनों अकसर लाइब्रेरी में मिलते थे और वहीं दोनों की आंखें मिलीं, बातें हुईं और 2 जवान दिलों में प्यार होते देर नहीं लगी. दोनों ने महसूस किया कि वे एकदूसरे को जाननेपहचानने लगे हैं और दोनों के विचार भी आपस में मिलते हैं. यकीनन वे एकदूसरे के लिए बने हैं, इसलिए सुषेन और सुरभि ने एकदूसरे से शादी का वादा भी कर डाला.

सुरभि के घर वालों को इस रिश्ते से कोई परेशानी नहीं थी और सुषेन ने भी बगैर यह सोचे ही हामी भर दी थी कि क्या उस के घर वाले उस से उम्र में 2 साल बड़ी लड़की से शादी करने की इजाजत देंगे?

और वही हुआ भी. सुषेन के घर वालों को उस की उम्र से बड़ी लड़की से शादी कर लेने पर घोर एतराज हुआ, पर शायद सुषेन मन ही मन ठान चुका था कि उसे अपने आगे की जिंदगी कैसे और किस के साथ गुजारनी है,
इसलिए उस ने पहले अपनी पढ़ाई पूरी की और फिर नौकरी लगने के बाद सुरभि के साथ ब्याह भी रचा लिया.

सुषेन और सुरभि के ब्याह में सुषेन के घर से कोई नहीं आया था. मतलब साफ था कि उस ने घर वालों से बगावत कर के यह शादी की थी और इसी के साथ ही सुषेन के घर वालों ने उसे अपनी जायदाद से बेदखल कर दिया था.

सुरभि को पाने के लिए सुषेन ने अपना सबकुछ खो दिया था और इतनी पढ़ीलिखी और समझदार पत्नी पा कर वह मन ही मन बहुत खुश भी था. दोनों अपने जिंदगी मन भर कर जी लेना चाहते थे और इस के लिए उन्होंने कोई कमी नहीं छोड़ी थी.

सुरभि खुश थी और सुषेन भी, पर अचानक उन की खुशियों को तब ग्रहण लग गया जब एक दिन शेव करते समय सुषेन को अपने होंठों के किनारे एक छोटा सा सफेद दाग दिखाई दिया.

सभी की तरह सुषेन ने भी यह सोच कर अनदेखा कर दिया कि शायद ज्यादा सिगरेट पीने की वजह से होंठ कुछ सफेद हो गया होगा, पर उस की चिंता कुछ महीनों बाद बढ़ गई, क्योंकि वह छोटा सा दाग अब न केवल बड़ा हो गया था, बल्कि उसी तरह के चकत्ते शरीर में और जगह भी हो गए थे.

“तो क्या मुझे सफेद दाग हो गया है?” सुषेन मन ही मन शक से बुदबुदा उठा था. ड़ाक्टर को दिखाया तो उस का डर सही निकला. सुषेन को सफेद दाग नामक बीमारी हो गई थी.

डाक्टर ने सुषेन से तनाव नहीं लेने को कहा और बताया कि यह बीमारी धीरेधीरे ही ठीक होती है, इसलिए बताए मुताबिक दवा खाते रहें. पर नियम से लगातार दवा खाने के बाद भी सुषेन के शरीर पर सफेद दाग फैलते ही गए.

‘आखिर मुझे सफेद दाग जैसी बीमारी कैसे हो गई, क्योंकि मैं तो बहुत साफसफाई से रहता हूं… जल्दी किसी से हाथ नहीं मिलाता और अगर मिलाना भी पड़ जाए तो तुरंत हाथों को सैनेटाइज़ करता हूं… फिर भी… मुझे… कैसे?… क्यों…’ वगैरह सवाल सुषेन के दिमाग में घूम रहे थे.

“लोग मुझे देख कर नजरें चुरा लेते हैं… मेरी सूरत की तरफ कोई देखना भी नहीं चाहता है… मैं क्या करूं?” एक दिन सुषेन ने अपने खास दोस्त राघव से कहा.

राघव ने उसे एक बाबा का पता बताया और कहा, “वे बाबा तुम्हारे बदन पर भभूत मलेंगे और कुछ तंत्रमंत्र… और बस तू भलाचंगा हो जाएगा.”

सुषेन बिना देर किए उस बाबा के पास पहुंचा. बाबा ने सुषेन को ऊपर से नीचे तक देखा और बोला, “यह सफेद दाग की बीमारी है जो पिछले जन्म के पाप कर्मों से ही पनपती है. तू ने जरूर किसी सफेद खाल वाले बेजबान जानवर को सताया होगा, इसीलिए तेरा खून खराब हो चुका है और तेरी खाल का रंग भी सफेद हो गया है.

“हमें तेरे खून को साफ करने के लिए सोनेचांदी की भस्म का लेप तेरे पूरे बदन पर लगाना होगा और सोने को गला कर उस का काढ़ा तुझे पिलाना होगा, तब कहीं जा कर यह बीमारी सही हो पाएगी, पर…”

“पर क्या बाबा?” सुषेन ने पूछा.

“क्या है कि इलाज थोड़ा महंगा होगा, इसलिए कुछ एडवांस भी जमा करना पड़ेगा तुझे,” बाबा ने कहा.

“कितना भी महंगा इलाज हो बाबा, आप बस मुझे ठीक कर दो. मैं तो समाज में बैठने लायक नहीं रह गया हूं. आप इलाज शुरू कीजिए, मैं पैसे का इंतजाम करता हूं,” यह कहते हुए सुषेन बहुत जोश में लग रहा था.

बाबा ने इलाज का खर्चा 50,000 रुपए बताया था और 25,000 रुपए पहले ही जमा करा लिए थे.

बाबा ने इलाज शुरू किया. सुषेन को कई तरह के काढ़े पिलाए गए, शरीर के ऊपर भभूत भी मली गई, पर उन सब चीजों से उसे फायदा मिलने के बजाय नुकसान ही होता गया.

धीरेधीरे सुषेन हर तरफ से इलाज करा कर हार गया था. पाखंडी तांत्रिकों, झोलाछाप डाक्टरों, मुल्लेमौलवियों सब ने सुषेन को बस लूटा ही था. अब कहीं न कहीं सुषेन भी यह मान चुका था कि इस बीमारी का कोई इलाज नहीं है.

सुषेन एक तरफ तो इस बीमारी के चलते दिमागी तौर पर परेशान रहता था, दूसरी तरफ सामाजिक बहिष्कार ने उसे दुखी कर रखा था और तीसरी तरफ उसे यह भी लगने लगा था कि सुरभि की नजरों में अब उस के लिए प्यार की जगह तिरस्कार आता जा रहा है. अब वह पहले की तरह उस के पास नहीं बैठती थी और रात में उस के सोने के बाद वह अकसर सोफे पर चली जाती है और उसे शारीरिक संबंध भी नहीं बनाने देती है.

सुषेन को एहसास होने लगा था कि सुरभि अब उसे छोड़ देगी. सुरभि से इस बारे में पूछने पर उस का बड़ा सहज सा जवाब आया था, “हां.”

सुषेन के कानों में बहुतकुछ सनसनाता सा चला गया. उस ने जो सुना था, उस पर उसे भरोसा नहीं हो रहा था.

“बुरा मत मानना पर अब तुम्हें यह लाइलाज बीमारी हो गई है. तुम्हें तो इसी के साथ जीना होगा, पर मैं अभी जवान और खूबसूरत हूं. अपने पिछले जन्म के कर्मों का कियाधरा तुम भुगतो… मैं भला उस में क्यों पिसूं? मेरी और तुम्हारी राह आज से अलग है. मैं ने वकील से बात कर ली है. आपसी रजामंदी रहेगी तो तलाक आसानी से हो जाएगा…” और सुरभि ने बड़ी आसानी से इतनी बड़ी बात कह दी.

दोनों में तलाक हो गया. सुरभि कहां गई, यह जानने में सुषेन को कोई दिलचस्पी नहीं थी. वह अब मन ही मन घुटने लगा था. तनाव हमेशा उस के दिमाग और चेहरे को घेरे रहता. खुदकुशी तक करने का विचार आया, पर सुषेन को लगा कि यह तो सरासर बुजदिली होगी.

सुषेन ने अपनेआप को संभाला तो थोड़ा सहारा उसे रमोला ने भी दिया, जो उस के साथ ही काम करती थी. रमोला यह भी जानती थी कि अगर इस समय सुषेन को सहारा नहीं दिया गया तो वह कुछ भी कर सकता है.

“सुषेनजी, क्या आज आप मुझे मेरे घर तक छोड़ सकते हैं? अंधेरा ज्यादा हो गया है और आजकल शहर में अकेली औरत का निकलना सही नहीं है,” एक दिन रमोला ने सुषेन से कहा.

“क्यों नहीं… बिलकुल छोड़ दूंगा… बस, 15 मिनट और रुक जाइए, फिर साथ ही निकलते हैं,” सुषेन ने हामी भरते हुए कहा.

दरअसल, रमोला एक तलाकशुदा औरत थी. उस के पति ने सांवला रंग होने के चलते उस से तलाक ले लिया था और अब वह अकेली ही जिंदगी काट रही थी.

जब सुषेन अपनी मोटरसाइकिल पर रमोला को उस के घर छोड़ने जा रहा था, तब उस ने महसूस किया कि रमोला उस से कुछ ज्यादा ही सट कर बैठी है. पहले तो सुषेन को लगा कि यह अनजाने में भी हो सकता है, पर जब लगातार रमोला ने अपने गदराए जिस्म को सुषेन के बदन से सटाए रखा तो वह समझ गया कि रमोला को मर्दाना जिस्म की जरूरत है.

“अंदर आ कर एक कप चाय तो पी लीजिए,” रमोला ने कहा तो सुषेन भी मना नहीं कर सका.

वे दोनों अंदर आए ही थे कि बारिश शुरू हो गई. रमोला किचन में चाय बनाने चली गई. सुषेन को रमोला का यह लगाव बहुत सुहा रहा था.

“रमोलाजी, आप मुझे अपने घर के कप में चाय पिला रही हैं. क्या आप को मुझ से कोई परहेज नहीं है? मेरा मतलब है कि मेरे इन सफेद दाग की वजह से?”

“नहीं सुषेनजी, मैं ने आप को आज से पहले भी देखा है. आज भी आप इतने हैंडसम हैं, जितना पहले थे.”

यह सुन कर सुषेन को बहुत अच्छा लगा और वह रमोला की तरफ खिंचता चला गया. रमोला भी मन ही मन सुषेन को पसंद करती थी, जिस का नतीजा यह हुआ कि उन दोनों में जिस्मानी संबंध बन गए. जब एक बार दोनों ने एकदूसरे के जिस्म को भोगा तो फिर प्यार का ऐसा सिलसिला शुरू हुआ कि दोनों के बीच अकसर संबंध बनने लगे.

बाद में उन दोनों ने इस रिश्ते को एक नाम देने की सोची और आपस में शादी कर ली. दोनों एक दूसरे के साथ जिंदगी बिता कर बहुत खुश थे, पर सुषेन के मन में कहीं न कहीं अपनी बीमारी को ले कर निराशा भी थी, क्योंकि समाज में उसे एक छूत की बीमारी माना जाता था और उस ने महसूस किया कि देश में ऐसे न जाने कितने लड़केलड़कियां हैं, जिन की शादी इस बीमारी के चलते नहीं हो पाती है.

लिहाजा, सुषेन और रमोला ने इस दिशा में कुछ ठोस काम करने की सोची और अपने खर्चे पर ऐसी 2 लड़कियों की शादी कराई, जिन की शादी में अड़चनें आ रही थीं. इस काम में कुछ समाजसेवी संस्थाओं ने भी उन की पैसे से मदद की थी.

आज जीतोड़ मेहनत कर के उन्होंने देश में अपनी एक पहचान बना ली है और इस काम को ढंग से करने के लिए उन के पास एक शानदार औफिस भी है.

आज सुरभि को सुषेन की जिंदगी से गए पूरे 25 साल हो गए थे. सुषेन अपने औफिस में बैठा हुआ काम में बिजी था कि उस के चपरासी ने बताया, “सर, कोई आप से मिलना चाहता है.”

सुषेन ने अंदर बुलवाने को कहा. थोड़ी देर में एक औरत एक आदमी के साथ अंदर आई. उन के साथ शायद उन की भी बेटी थी.

25 साल का समय लंबा जरूर होता है पर इतना लंबा भी नहीं कि आप उसे पहचान न सकें, जिस से शादी करने के लिए आप ने अपने घर वालों से बगावत कर दी थी. यह सुरभि थी. सुषेन उसे देखते ही पहचान गया था.

“जी, बात यह है कि मेरी बेटी को सफेद दाग की बीमारी है और इसी वजह से उस की शादी में अड़चन आ रही है,” वह आदमी बोला.

‘तो यह सुरभि का पति है. इस का मतलब है कि मुझे छोड़ते ही सुरभि ने इस आदमी से शादी कर ली थी और यह लड़की भी इसी आदमी की है, क्योंकि मुझे तो सुरभि ने अपने पास ही फटकने नहीं दिया था,’ सुषेन के मन में यह सब चल रहा था.

“जी, ठीक है. आप अपनी बेटी का नाम और उस के फोटो हमारे पास जमा करवा दीजिए. हमारी तरफ से जो भी मदद होगी, वह आप को दी जाएगी,” सुषेन ने सुरभि को देखते हुए कहा जो उस की घनी दाढ़ी के बीच छिपे चेहरे को पहचान लेने के बाद भी अनजान बनने की कोशिश कर रही थी.

मेरी पहचान: क्या मां बन पाई अदिति

आज पार्टी में सभी मेरे रंगरूप की तारीफ कर रहे थे. निकिता बोली, ‘‘दीदी, आप की उम्र तो रिवर्स गियर में चल पड़ी है. लगता ही नहीं आप की 4 वर्ष की बेटी भी है.’’

सोनल भी खिलखिलाते हुए बोली, ‘‘आप की त्वचा से आप की उम्र का पता ही नहीं चलता. यह है संतूर साबुन का कमाल,’’ और फिर एक सम्मिलित ठहाके से अनु दीदी का ड्राइंगरूम गूंज उठा.

मैं भी मंदमंद मुसकान के साथ सारी तारीफों का मजा ले रही थी. 32 वर्षीय औसत रंगरूप की महिला हूं तो जब से नौकरी आरंभ करी है तो हाथ थोड़ा खुल गया है. अपने रखरखाव पर थोड़ा अधिक ध्यान देना शुरू कर दिया है. नतीजतन 2 वर्षों के भीतर ही खुद की ही छोटी बहन लगने लगी हूं.

मेरा नाम अदिति है और मैं एक प्राईवेट विद्यालय में प्राइमरी कक्षा के विद्यार्थियों को पढ़ाती हूं. शादी से पहले मैं डंडे की तरह पतली थी, पार्लर बस बाल कटाने ही जाती थी, क्योंकि उन दिनों लड़कियों का पार्लर अधिक जाना अच्छा नहीं समझा जाता था. घनी जुड़ी हुई भौंहें और होंठों के ऊपर रोयों की एक स्पष्ट छाप थी, फिर भी अच्छी लड़की के तमगे के कारण मैं ने कभी उन मूंछों या भौंहों को छुआ नहीं. कपड़े भी अपने से दोगुना बड़े पहनती थी ताकि मेरा पतलापन ढका रहे. अब ऐसे में 10 बार मेरे रिश्ते के लिए न हो चुकी थी पर फिर न जाने मेरे पति कपिल को इस रिश्ते के गणित में क्या नफा दिखा कि उन्होंने मुझे देखते ही पसंद कर लिया.

न न ऐसे मत सोचिए कि कपिल कोई हीरो थे. वे भी मेरी तरह औसत रंगरूप के ही स्वामी थे, पर इस देश में हर ठीकठाक कमाने वाले लड़के को ऐश्वर्य की दरकार होती है. मैं खुश थी और पहली बार फेशियल, ब्लीच, वैक्सिंग इत्यादि कराई और अपनी नाप के कपड़े भी सिलवाए. गलत नहीं होगा अगर मैं कहूं कि शादी में मैं बेहद खूबसूरत लग रही थी, कम से कम आईना और मेरी सहेलियां तो यही कह रही थीं.

शादी के बाद कपिल और उन के परिवार के प्यार और सम्मान ने मुझे आत्मविश्वास के पंख दे दिए और मैं आकाश में उड़ने लगी. कपिल एक सरकारी विभाग में क्लास टू ग्रेड के इंप्लोई थे पर फिर भी उन्होंने खर्चों पर जरा भी टोकाटाकी नहीं की. हर महीने पार्लर जाती हूं और जो भी नई डिजाइनर ड्रैस आती है उस की कौपी जरूर खरीद लेती हूं.

फिर 2 वर्ष के भीतर दीया ने मुझे मां बनने का सुख प्रदान किया पर सुख के साथ बढ़ गई जिम्मेदारियां और खर्चे भी. तब कपिल के कहने पर मैं ने नौकरी के लिए हाथपैर मारे और जल्द ही मुझे एक नामी विद्यालय में शिक्षिका की नौकरी मिल गई. घर पर दीया की देखभाल के लिए उस के दादादादी थे.

एक नया अध्याय शुरू हुआ जिंदगी का, खुद को सही माने में आजाद महसूस करने

का, खुद के वजूद से रूबरू होने का. शुरू में हर काम में घबराहट होती थी. यहां स्कूल में हर काम लैपटौप पर करना होता था. बहुत पहले किया हुआ कंप्यूटर कोर्स काम आ गया. तनाव और नईनई चीजों को सीखने की कोशिश करते हुए 1 माह बीत गया और पहली सैलरी हाथ में आते ही तनाव और अनिश्चितता के बादल हट गए. नए लोगों से दोस्ती के साथ जीवन को एक नए नजरिए से देखना भी आरंभ कर दिया. सच पूछो तो सबकुछ एकदम सही चल रहा था. आज कपिल की दीदी के यहां हाउसवार्मिंग पार्टी में इन सब तारीफों का आनंद ले रही हूं और साथ ही कुदरत को धन्यवाद भी दे रही हूं मुझे इतना अच्छा घरपरिवार देने के लिए.

रात को बहुत थक कर जैसे ही सोने की कोशिश कर रही थी, कपिल नजदीक आने की मनुहार करने लगे पर मैं ने ठंडे स्वर में कहा, ‘‘यार मन नहीं है. 10 दिन ऊपर हो गए हैं, अब तक डेट नहीं आई.’’

कपिल चुहल करते हुए बोले, ‘‘मुबारक हो, लगता दीया के लिए छोटा भाई या बहन आने वाली है… मम्मीपापा की भी दिल की इच्छा पूरी हो जाएगी.’’

मैं ने कपिल के हाथ को झटकते हुए कहा, ‘‘तुम्हें पता है न अभी मैं दूसरा बच्चा नहीं कर सकती, नहीं तो कन्फर्मेशन रुक जाएगी.’’

कपिल ने प्यार से सिर थपथपाते हुए कहा, ‘‘अरे बाबा तनाव के कारण ये सब हो रहा है. लाओ सिर पर तेल की मालिश कर दूं.’’

ऐसे ही देखतेदेखते 10 दिन और बीत गए, फिर बाजार में उपलब्ध प्रैगनैंसी किट से टैस्ट किया पर नतीजा नैगेटिव था.

रविवार को कपिल और मैं डाक्टर के पास गए. डाक्टर ने सारी बातें ध्यान से सुनीं और फिर कुछ टैस्ट कराने के लिए कहा. मंगलवार को रिपोर्ट आ गई और फिर से हम डाक्टर के सामने बैठे थे. रिपोर्ट पढ़ते हुए डाक्टर के चेहरे पर चिंता की रेखाएं थीं.

चश्मा निकाल कर डाक्टर बहुत स्नेहिल परंतु गंभीर स्वर में बोली, ‘‘ये सारी रिपोर्ट्स पैरिमेनोपौजल की तरफ इशारा कर रही हैं. आप को प्रीमैच्योर ओवेरियन फेल्योर है.’’

मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्यों और कैसे यह तूफान मेरी जिंदगी में आ गया है. मैं अब तक एक पूर्ण स्त्री थी. अभी तक तो मैं ने अपने स्त्रीत्व को पूर्णरूप से भोगा भी नहीं था और मेरा शरीर मेनोपौज की तरफ जा रहा है और वह भी मात्र 32 वर्ष की उम्र में. इस उम्र में तो बहुत बार लड़कियों की शादी होती है.

एक टूटा हुआ मन और अधूरा तन ले कर मैं कपिल के साथ घर आ गई. सासससुर बहुत आशा से कपिल की तरफ देख रहे थे, कोई खुशखबरी सुनने की आस में पर कपिल ने कहा, ‘‘कोई खास बात नहीं है.’’

मैं ने कपिल से कहा, ‘‘झूठ क्यों बोला? क्यों नहीं बताया मैं अब कभी चाह कर भी मां नहीं बन पाऊंगी?’’ और यह कहते हुए एक तीव्र दर्द की लहर मुझे भीतर तक हिला गई.

पहले मेरी मां बनने की कोई लालसा नहीं थी पर अब मैं दोबारा मां न बन पाने की लिए बिसूर रही थी. सब से ज्यादा साल रहा था एक खालीपन, मेरे स्त्री होने की पहचान मुझ से छूट रही थी वह भी मात्र 32 वर्ष की उम्र में, मैं जब शाम को भी अपने कमरे से बाहर नहीं निकली तो सासूमां अंदर आईं. उन्हें देख कर मैं सकपका गई. बहुत प्यार से उन्होंने सिर पर हाथ फेर कर पूछा तो मैं अपने को रोक नहीं पाई. रोते हुए उन्हें सब बता दिया. वे बिना कुछ बोले कमरे से बाहर निकल गईं. मुझे उन से ऐसी ही प्रतिक्रिया की उम्मीद थी. अब मैं उन्हें उन का दूसरा पोता या पोती नहीं दे पाऊंगी न, फिर वे क्यों परवाह करेंगी मेरी…ये सब सोचतेसोचते मुझे रोतेरोते सुबकियां आने लगीं.

अब मुझे सब समझ आ रहा था कि क्यों मुझे इतना पसीना आता था. क्यों हर समय मैं चिड़चिड़ी रहती थी. क्यों मुझे कपिल का संग अब थोड़ा तकलीफदेह लगने लगा था. मैं इन सारी चीजों को अपने रोजमर्रा के तनाव से जोड़ रही थी पर असली कारण तो पैरिमेनोपौज था.

अगले दिन मैं ने स्कूल में अपनी सब से अच्छी दोस्त से जब यह बात साझा

करी तो उस की आंखों में अपने लिए चिंता और दया के मिलेजुले भाव दिखे पर फिर वह हंसते हुए बोली, ‘‘चल अच्छा है तेरा हर महीने सैनिटरी पैड्स खरीदने का खर्चा बच जाएगा.’’

हर तरफ से बस सहानुभूति मिल रही थी, ‘‘बेचारी अभी उम्र ही क्या थी, अब पति को कैसे बांध कर रख पाएगी.’’

‘‘सुनो अदिति, जिम आरंभ कर लो… इस चरण में तेजी से वजन बढ़ता है.’’

‘‘देखो कहीं जोड़ों का दर्द अभी से आरंभ

न हो जाए, हारमोंस रिप्लेसमैंट थेरैपी करवा लो.’’

मेरा दिमाग चक्करघिन्नी की तरह घूम रहा था. उधर रोज मेरे करीब आने की चाह रखने वाले मेरे प्यारे पति ने पिछले 15 दिनों से मेरे करीब आने की कोशिश नहीं करी. वजह मुझे पता है. उन्हें भी लगता है अब मैं उन्हें सुख नहीं दे पाऊंगी.

न जाने क्यों खिंचेखिंचे से रहते हैं. अगर कुछ बांटना चाहती हूं तो फौरन बोल देंगे, ‘‘अब रोनेबिसूरने से क्या होगा? जो है जैसा है उसे स्वीकार करो और आगे बढ़ो.’’

कैसे समझाऊं उन्हें अपने दिल की बात, मुझे ऐसा लगता है जैसे हरियाली आने से पहले ही मैं बंजर हो गई हूं. यह स्वीकार करना मेरे लिए बहुत मुश्किल हो रहा था कि मेरा यौवनाकाल कुछ ज्यादा ही तेज गति से चला है और जो गंतव्य 47-48 वर्ष के बाद आता है वह 17-18 वर्ष पहले ही मेरे जीवन में आ गया है.

मुझे लग रहा था शारीरिक से ज्यादा मैं मानसिक रूप से कमजोर हो गई हूं. उधर कपिल ने अपनेआप को एक दायरे में कैद कर लिया था. न जाने सारा दिन लैपटौप पर क्या करते रहते हैं. उधर सासूमां ने कहा तो कुछ नहीं पर ऐसा लगता है जैसे मुझ से खुश नहीं हैं या यह मेरा वहम है.

1 माह होने को आ गया और मैं ने अपने मन को समझा लिया था कि अब ये ही मेरी जिंदगी है. आईने को रोज घूरघूर कर देखती थी कि कहीं झुर्रियों ने अपना जाल तो नहीं बना लिया. तेज चलने से डरने लगी कि कहीं गिर कर हड्डी न टूट जाए. आखिर हड्डियां रजोनिवृत्ति के बाद तेजी से कमजोर होती हैं.

आज पूरे 1 महीने बाद ठीक से तैयार हो कर स्कूल के लिए निकली तो पुरुषों

की निगाहों में अपने लिए प्रशंसा के भाव देखे. खुद को अच्छा भी लगा कि अभी भी मैं सराहनीय हूं. आज कुछ मन ठीक था तो दीया को ले कर पार्क जाने लगी. सासूमां भी मुसकरा कर बोलीं, ‘‘ऐसे ही खुश रहा करो, पूरा घर चुप हो जाता है तुम्हारे चुप रहने से और बेटे उतारचढ़ाव का नाम ही तो जिंदगी है, मन को स्थिर रख कर समस्या का समाधान खोजो.’’

मैं ने बुझे मन से कहा, ‘‘पर मम्मी अगर कोई समाधान ही न हो…’’

वे मुसकराते हुए बोलीं, ‘‘यानी कोई समस्या ही नहीं है.’’

रात के 10 बज गए थे पर कपिल का कुछ अतापता नहीं था. आज जब वे आए तो मैं ने आते ही आड़े हाथों लिया, ‘‘तुम्हें याद है कि तुम्हारा एक परिवार भी है?’’

कपिल व्यंग्य कसते हुए बोले, ‘‘हां, अच्छी तरह याद है एक परिवार है और एक रोतीबिसूरती कमजोर बीवी.’’

मैं खड़ीखड़ी कपिल को देखती रह गई… कहां गया यह प्यार और दुलार का… क्या औरत और मर्द का रिश्ता बस दैहिक स्तर तक ही सीमित है? खुद के ही शरीर से पसीने की गंध आ रही थी तो नहाने चली गई. आईने में फिर से खुद को पागलों की तरह देखने लगी. अभी तो शरीर में कसावट है पर शायद 2-3 वर्ष में शरीर ढीला पड़ जाएगा, जब ऐस्ट्रोजन हारमोंस बनना बंद हो जाएगा.

बाहर आई तो कपिल गहरी नींद में सोए थे, बहुत मन हुआ कहूं कि मुझे तुम्हारे साथ की जरूरत है, मुझे अकेला मत छोड़ो.

आज फिर कपिल देर से आए पर मैं ने बिना कुछ कहे खाना लगा दिया. खाना खाते हुए कपिल बोले, ‘‘मुझे तुम से कुछ जरूरी बात करनी है. कल का डिनर हम बाहर करेंगे.’’

मेरा दिल धकधक कर रहा था कि कहीं कपिल किसी और से तो नहीं जुड़ गए हैं. यदि हां तो मैं उन्हें रिहाई दे दूंगी, कोई हक नहीं है मुझे उन से कोई सुख छीनने का. पूरी रात इसी उधेड़बुन में बीत गई और सुबह मैं ने काफी हद तक अपनेआप को तैयार कर लिया था.

अगले दिन कपिल टाइम से घर आ गए थे और फिर हमारी कार एक बिल्डिंग के बाहर खड़ी थी. हम लोग लिफ्ट में ऊपर गए तो देखा वह काउंसलर का औफिस था. मैं कपिल को देखने लगी, कपिल मेरा हाथ पकड़ कर अंदर ले गए. एक बेहद ही खूबसूरत और जहीन महिला थी. कपिल ने मेरा परिचय दिया और मुझ से बोले, ‘‘अदिति, तुम बात करो, मैं थोड़ी देर में आता हूं.’’

काउंसलर से मैं ने अपने मन की सारी बात कर दी. वह बिना कुछ बोले बहुत धैर्य से मेरी बात सुनती रही और फिर बोली, ‘‘अदिति, तुम स्त्री होने से भी पहले एक इंसान हो… तुम्हारी पहचान बस तुम्हारे स्त्रीत्व तक सीमित नहीं है.

‘‘यह जरूर है कि तुम्हें इस दौर का सामना थोड़ा जल्दी करना पड़ रहा है. पर खानपान में थोड़ा बदलाव, थोड़ा व्यायाम करने से तुम्हारी जिंदगी सही पटरी पर आ जाएगी… यह जिंदगी का एक नया अध्याय है. इसे समझो, स्वीकार करो और मुसकराते हुए आगे बढ़ो.’’

थोड़ी देर बाद कपिल आ गए और फिर

हम दोनों आज काफी दिनों बाद एकसाथ डिनर कर रहे थे. कपिल वर्षों बाद मुझे प्यार से देख रहे थे.

मैं ने भीगे स्वर में कहा, ‘‘कहो क्या कहना था?’’

कपिल बोले, ‘‘ध्यान से सुनना… बीच में मत टोकना. तुम मेरी जिंदगी का सब से महत्त्वपूर्ण पन्ना हो. तुम स्त्री हो और मैं पुरुष हूं? इसलिए समाज ने हमें विवाह के बंधन में बांध दिया है पर तुम मेरे लिए एक स्त्री नहीं हो मेरा सबल भी हो. अगर मैं किसी समस्या से गुजर रहा हूंगा तो क्या तुम मुझे अकेला कर दोगी या मेरे साथ खड़ी रहोगी?

‘‘मैं तुम्हारे साथ खड़े रहना चाहता हूं पर तुम ने मुझे अपने से बहुत दूर कर दिया है, अपने इर्दगिर्द इतनी नकारात्मक ऊर्जा इकट्ठी कर ली है कि मैं तो क्या कोई और भी चाह कर तुम्हारी सहायता नहीं कर सकता है.’’

मैं आंखों में आंसू भर कर बोली, ‘‘पर तुम तो खुद मुझ से कटेकटे रहते हो?’’

कपिल हंसते हुए बोले, ‘‘पगली, तुम्हारे रोने की आदत के कारण से कटाकटा रहता हूं, तुम्हारे कारण नहीं? यह जिंदगी में एक मोड़ आया है, थोड़ा सा ज्यादा घुमावदार है तो क्या हुआ हम एकसाथ पार करेंगे… तुम एक शरीर नहीं हो, उस से भी ज्यादा तुम्हारी पहचान है.

‘‘स्पीडब्रेकर पर रुकना पड़ता है न पर संभल कर चलने से पार कर लेते हैं न?’’

कपिल की बातों से यह तो मुझे समझ आ गया था कि क्यों हुआ, कैसे हुआ से ज्यादा महत्त्वपूर्ण है उस समस्या का समाधान कैसे कर सकते हैं.

आज इस बात को 3 वर्ष हो गए हैं.

अभी भी मैं रजोनिवृत्ति के दौर से गुजर रही हूं पर डाक्टर की सलाह और उचित खानपान से काफी हद तक समस्या सुलझ गई है.

अब मेरा वजन पहले से कम हो गया है और मेरी त्वचा भी दमकने लगी हैं, क्योंकि अपनेआप को मेनोपौज के लिए तैयार करने के लिए मैं ने पूरा खानपान ही बदल दिया है. जो है, जैसा है मैं स्वीकार करती हूं, यह सोच अपनाते ही सबकुछ बदल गया और बदल गई मेरी पहचान.

मेरी पहचान न आंकी जाए मेरे स्त्रीत्व से, यह है बस मेरे अस्तित्व का एक हिस्सा, जिंदगी का बचा हुआ है अभी भी, एक और नया सकारात्मक किस्सा.

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