कैसे निभाएं जब पत्नी ज्यादा कमाए

पत्नी कमाऊ और पति बेरोजगार ऐसे उदाहरण पहले बहुत कम मिलते थे, मगर पिछले 10-12 सालों में ऐसे उदाहरणों की संख्या बढ़ती जा रही है. ऐसे में आपसी तालमेल बैठाना मुश्किल होता जा रहा है. इसलिए जरूरत इस बात की है कि अब कमाऊ बहू को मानसम्मान और अधिकार देने के साथसाथ उस के साथ तालमेल बैठाने की भी शुरुआत की जाए. पति को भी पत्नी से तालमेल बैठा कर चलना चाहिए तभी गृहस्थी की गाड़ी चल सकेगी. मेरठ की रहने वाली नेहा की शादी उस के ही सहपाठी प्रदीप से हुई. शादी के समय से ही दोनों एकसाथ जौब के लिए कई कंपीटिशनों में एकसाथ बैठ रहे थे. मगर प्रदीप किसी भी कंपीटिशन में कामयाब नहीं हुआ, पर नेहा ने एक कंपीटिशन पास कर लिया. वह सरकारी विभाग में औफिसर नियुक्त हो गई. प्रदीप ने इस के बाद भी कई प्रयास किए पर जौब नहीं मिल सकी. इस के बाद उस ने अपना बिजनैस शुरू किया.

शादी के कुछ साल तक दोनों के बीच तालमेल बना रहा पर फिर धीरधीरे आपस में तनाव रहने लगा. नेहा की जो शानशौकत और रुतबा समाज में था वह प्रदीप को खटकने लगा. वह हीनभावना से ग्रस्त रहने लगा. यही हीनभावना उन के बीच दरार डालने लगी. धीरधीरे उन के बीच संबंध बिगड़ने लगे. नतीजा यह हुआ कि 4 साल में ही शादी टूट गई. सर्विस में गैरबराबरी होने से पतिपत्नी के बीच अलगाव के मामले अधिक बढ़ते जा रहे हैं. पिछले 10 सालों का बदलाव देखें तो पता चलता है कि लड़कों से अधिक लड़कियों ने शिक्षा से ले कर रोजगार तक में अपनी धाक जमाई है. किसी भी परीक्षा के नतीजे देख लें सब से अधिक लड़कियां ही अच्छे नंबरों से पास हो रही हैं.

पहले शादी के बाद लड़कियों को नौकरी छोड़ने के लिए कहा जाता था. सरकारी नौकरियों में बड़ी सुविधाओं के चलते अब शादी के बाद कोई लड़की अपनी सरकारी नौकरी नहीं छोड़ती. अब उन मामलों में तनाव बढ़ रहा है जहां पत्नी अच्छी सरकारी नौकरी कर रही है पर पति किसी प्राइवेट जौब में है.

बड़ी वजह है सामाजिक बदलाव

पहले बहुत कम मामलों में लड़कियां शादी के बाद जौब करती थीं. अब बहुत कम मामलों में लड़कियां शादी के बाद जौब छोड़ती हैं. इस का सब से बड़ा कारण लोगों की सामाजिक सोच का बदलना है. अब शादी के बाद महिला काम करे इसे ले कर किसी तरह का कोई दबाव नहीं होता. शहरों में रहना, बच्चों को पढ़ाना और सामाजिक रहनसहन के साथ तालमेल बैठाना मुश्किल होता जा रहा है. ऐसे में पति ही नहीं उस का पूरा परिवार चाहता है कि पत्नी भी जौब करे. केवल सर्विस के मामले में ही नहीं, बिजनैस के मामले में भी ऐसा ही हो रहा है.

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राहुल प्राइवेट बैंक में काम करता है. उस की सैलरी अच्छी है. बावजूद इस के उस ने अपनी पत्नी को अपनी पसंद का ब्यूटी बिजनैस करने की अनुमति दे दी. राहुल की पत्नी संध्या ने एक ब्यूटीपार्लर की फ्रैंचाइजी ले ली. इस में पैसा तो था ही, साथ ही सामाजिक दायरा भी बढ़ा. अब राहुल से अधिक संध्या को लोग जानने लगे थे. बिजनैस में सफल होने के बाद संध्या की पर्सनैलिटी में भी बहुत बदलाव आ गया. नातेरिश्तेदारी में पहले जो लोग उस के काम का मजाक उड़ाते थे वही अब उस की तारीफ करते नहीं थकते हैं. पति की सैलरी से ज्यादा संध्या अपने यहां काम करने वालों को वेतन देने लगी है. वह कहती है, ‘‘10 साल पहले मैं ने जब इस बिजनैस को शुरू किया था तब घरपरिवार और नातेरिश्तेदार यह सोचते थे कि मैं ने टाइमपास के लिए काम शुरू किया है. कई लोग सोचते थे कि पति के वेतन से मदद ले कर मैं काम कर रही हूं. मगर जब कुछ ही सालों के अंदर मेरे काम की तारीफ होने लगी तो सब को यकीन हो गया.

‘‘अब वही लोग मेरा परिचय देते हुए गर्व से कहते हैं कि मैं उन की बहू हूं. पति भी मजाकमजाक में कह देते हैं कि मेरे से ज्यादा लोग तुम्हें जानते हैं.’’ महिलाएं पहले भी काम करती थीं, पर तब उन के सामने काम करने के अवसर कम थे. उन में खुद पर भरोसा नहीं होता था. समाज का भी पूरा सहयोग नहीं मिलता था. ऐसे में उन में आत्मविश्वास पैदा नहीं होता था. ज्यादातर संयुक्त परिवार होते थे, जिस से महिला की कमाई पर उस का अधिकार कम ही होता था. मगर अब ऐसा नहीं है. यह बचत किया पैसा महिला में आत्मविश्वास पैदा करता है. इस आत्मविश्वास से ही सही माने में महिलाओं का सशक्तीकरण हुआ है. वे अपने फैसले खुद लेने लगी हैं. इस से उन की अलग पहचान बन रही है.

35 साल की रीना बताती है, ‘‘मुझे केकपेस्ट्री बनाने का शौक बचपन से था. जो भी खाता खूब तारीफ करता था. मैं शादी से पहले प्राइवेट जौब करती थी. शादी के बाद वह छूट गई. कुछ सालों के बाद मैं ने दोबारा अपना काम शुरू करने की योजना बनाई. मेरे पति ने कहा कि जौब कर लो पर मैं ने कहा कि नहीं अब केकपेस्ट्री बनाने का काम करूंगी. पति को यह काम अच्छा नहीं लगा. ‘‘मैं ने मेहनत से काम किया और फिर 3 सालों में ही मेरे बनाए केक शहर के लोगों की पहली पसंद बन गए. मेरे पास अब काफी स्टाफ है. मैं शहर में बिजनैस वूमन बन गई हूं. लोग मेरी खूब तारीफ करते हैं. पति को भी अब लगता है कि मेरा फैसला सही था.’’ इन बदलावों को देखते हुए लड़कियों को पढ़ाने के लिए परिवार पूरी मेहनत करने लगे हैं. 12वीं कक्षा के बाद की पढ़ाई के लिए कालेज, नर्सिंग स्कूल, इंजीनियरिंग कालेज सभी कुछ खुलने लगे हैं. जहां पर स्कूल नहीं हैं वहां की लड़कियां पढ़ाई करने दूर के स्कूलों में जाने लगी हैं. कई मांबाप ऐसे भी हैं जो पढ़ाई के लिए मकान तक बेचने या किराए पर देने लगे हैं. बड़े शहरों में चलने वाली कोचिंग संस्थाओं को देखें तो बात समझी जा सकती है. पढ़ाई और नौकरी के जरीए सही माने में महिलाओं का सशक्तीकरण होने लगा है. यह सच है कि बदलाव की बयार धीरेधीरे बढ़ रही है.

पति को करना होगा समझौता एक समय था जब शादी के बाद केवल लड़कियों को समझौता करना होता था. पत्नी घर में चौकाचूल्हा करती थी और पति नौकरी करता था. अब हालात बदल गए हैं. इस तरह के समझौते अब पतियों को करने पड़ रहे हैं. जब पत्नी से दिनभर नौकरी करने के बाद घर में पहले की तरह काम करने की अपेक्षा की जाती है तो वहां विवाद खड़े होने लगते हैं. इन विवादों से बचने के लिए पति को समझौता करना होगा. उसे पत्नी का हाथ बंटाना चाहिए.

जिन परिवारों में ऐसे बदलाव हो रहे हैं वहां हालात अच्छे हैं. जहां पतिपत्नी आपसी विवाद में उलझ रहे हैं वहां मामले झगड़ों में बदल रहे हैं. पतिपत्नी के बीच तनाव बढ़ रहा है. बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान, दिल्ली, उत्तर प्रदेश सहित कई प्रदेशों में हाल के कुछ सालों में शिक्षक के रूप में पुरुषों से अधिक महिलाओं को नौकरी मिली है. ऐसे में पति अपनी पत्नी को स्कूल में नौकरी करने जाने के लिए खुद मोटरसाइकिल से छोड़ने जाता है. शहरों में रहने वाली लड़कियां अब सरकारी नौकरी के चक्कर में गावों के स्कूलों में पढ़ाने जा रही हैं. स्कूल का काम खत्म कर के वे शहर वापस आ रही हैं.

पत्नी दोहरी जिम्मेदारी उठाने लगी है. ऐसे में उस का तनाव बढ़ने लगा है. अब अगर पति, परिवार का सहयोग नहीं मिलता तो विवाद बढ़ जाता है. पहले शादी के समय दहेज ही नहीं, शक्लसूरत को ले कर भी सासससुर कई बार नाकभौंहें सिकोड़ते थे. मगर अब ऐसा नहीं है. लड़की सरकारी नौकरी कर रही है, तो उस में लोग समझौता करने लगे हैं. यही नहीं अब लड़की भी ऐसे ही किसी लड़के के साथ शादी नहीं करती. वह भी देखती है कि लड़का उस के लायक है या नहीं.

कई बार तो शादी तय होने के बाद भी लड़की ने अपनी तरफ से शादी तोड़ने का फैसला किया है. समय के इस बदलाव ने समाज और परिवार में लड़की को अपर हैंड के रूप में स्वीकारना शुरू कर दिया है. यहीं से पतिपत्नी के बीच दूरियां बढ़नी शुरू हो जाती हैं. कानपुर में एक पति ने पत्नी की हत्या कर दी. मामला यह था कि पत्नी विधि विभाग में अधिकारी थी और पति साधारण वकील. पति को लगता था कि पत्नी उस के साथ सही तरह से व्यवहार नहीं कर रही. वह खुद को बड़ा अधिकारी समझती है. ऐसे में दोनों के बीच दूरियां बढ़ने लगीं. दोनों ने अलगअलग रहना शुरू कर दिया. फिर परिवार के दबाव में साथ रहने लगे. मगर यह साथ बहुत दिनों तक नहीं चला. ऐसे में दोनों के बीच तनाव बढ़ा और मसला हत्या तक पहुंच गया. पति फिलहाल जेल में है.

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शिक्षा और स्वास्थ्य में बढ़े अवसर

पहले लड़कियों के लिए केवल नर्स और बैंकिंग के क्षेत्र में ही अवसर थे. पिछले 10-12 सालों में लड़कियों के लिए शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी सरकारी नौकरियों के बहुत विकल्प आए हैं. इन में कम पढ़ीलिखी महिलाओं से ले कर अधिक शिक्षित महिलाएं तक शामिल हैं. गांवों में जहां स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम करने वाली ‘आशा बहू’ के रूप में नौकरी मिली, वहीं शहरों में नर्स के रूप में काम करने के बहुत अवसर आए. शिक्षा विभाग में शिक्षा मित्र से ले कर सहायक अध्यापक तक के क्षेत्र में महिलाओं को सब से अधिक जौब्स मिलीं.

शादी से पहले प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाने का काम लड़कियां पहले भी करती थीं. कई दूसरी तरह की निजी नौकरियां भी करती थीं. शादी के बाद किसी न किसी वजह को ले कर उन्हें नौकरी छोड़ने के लिए मजबूर किया जाता था. सरकारी विभाग में नौकरी पाने वाली महिलाओं को शादी के बाद भी नौकरी छोड़ने के लिए कोई मजबूर नहीं करता है. सरकारी नौकरी में तबादला एक मुश्किल काम होता है. उत्तर प्रदेश में बहुत सारी लड़कियां इस का शिकार हैं. उन की ससुराल और नौकरी वाली जगह में बहुत दूरी है. ऐसे में वे दोनों जगहों को नहीं संभाल पा रही हैं. बड़े पैमाने पर सरकार पर दबाव पड़ रहा है कि लड़कियों को उन की मनचाही जगह तबादला दिया जाए. कई टीचर्स को तो 50 किलोमीटर से ले कर 150 किलोमीटर तक रोज का सफर तय करना पड़ता है.

सरकारी नौकरी में मिलने वाली सुविधाओं के चलते सरकारी नौकरी वाली बहू का मान बढ़ गया है. जरूरत इस बात की है कि पतिपत्नी के बीच तालमेल बना रहे. पतिपत्नी वैवाहिक जीवन के 2 पहिए हैं. ये साथ चलेंगे तो जीवन की गाड़ी तेजी से दौड़ेगी. अगर इन के बीच कोई फर्क होगा तो जीवन सही नहीं चलेगा.

#lockdown: कोरोना संकट और अकेली वर्किंग वूमन्स

कोरोना के खिलाफ यह जंग लंबी चलेगी ऐसा लग रहा है.  जो लोग परिवार के साथ घरों में हैं वे इस संकट का मुकाबला मिलकर कर रहे हैं. लेकिन वो कामकाजी महिलाएं जो इस मुश्किल समय में अकेली हैं. उनके लिए यह समय और परिस्थितियां किस तरह के अनुभव, दिक्कतें लेकर आई हैं? कोरोना महामारी के बीच वे अकेले अपने दम पर किस तरह हालात का सामना कर रही हैं? कहीं उनके हौंसले पस्त तो नहीं हुए? कोरोना से खुद को सुरक्षित रखने और इस डर पर अपनी जीत दर्ज कराने की उनकी क्या तैयारी है? आजकल दिनचर्या कैसी है? यही सब जानने के लिए हमने कुछ महिलाओं से बातचीत की. आइए जानें क्या कहा इन्होंने –

किश्वर जहां – जागरूक रहें, डरें नहीं

कस्बा गंगो, जिला साहनपुर, यूपी के सरकारी प्राथमिक स्कूल में प्रधानाचार्य किश्वर जहां के माता-पिता नहीं हैं. उन्होंने शादी नहीं की. अकेली रहती हैं और एकल जीवन जीने की आदि हैं. कोरोना की वजह से स्कूल में छुटि्टयां हैं इसलिए आजकल घर पर हैं.

जिस तेजी से कोरोना फैल रहा है किश्वर की सबसे बड़ी चिंता क्या है? “मैं कोरोना पीड़ितों की बढ़ती संख्या से चिंतित हूं. मैं पहले से समाचारों के माध्यम से दुनिया में फैली इस बीमारी के प्रकोप से परिचित थीं. यह कैसे फैलता है? इससे कैसे बचा जा सकता है. इन बातों की जानकारी मुझे थी. जब भारत में कोरोना मरीज सामने आए तो मैं सर्तक हो गईं. क्योंकि मैं जानती हूं कि यह तेजी से एक दूसरे के संपर्क में आने से फैलता है. मैं आस-पड़ोस के लोगों को जागरूक करने लगी. कैसे सोशल डिस्टेंस मेनेटेन करना है. क्यों मास्क लगाना जरूरी है. घर से बाहर नहीं निकलना आदि. कोरोना से मैं सतर्क हूं भयभीत नहीं. क्योंकि इससे बचाने की मेरी पूरी तैयारी है. मैं सभी सावधानियों का पालन कर रही हूं.”

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किश्वर अपने आसपास के लोगों को ही अपना परिवार मानती हैं. वे बताती हैं, “जब 22 मार्च को जनता कर्फ्यू गया तभी से यह संभावना थी कि यह आगे बढ़ेगा. टीवी व अखबारों के माध्यम से मैंने बाकी देशों की स्थिति का जायजा लिया था कि किस प्रकार कोरोना रोकने के लिए कई शहरों को लॉक डाउन किया गया है. इस बात को ध्यान में रखते हुए मैंने लगभग महीने-डेढ़ महीने का राशन लाकर पहले ही रख लिया ताकि बार-बार बाजार न जाना पड़े. ”

किश्वर कहती हैं, ‘मुझे मौत का डर नहीं. मौत बरहक है वो आनी है. चिंता यह है कि अगर मुझे यह बीमारी होती है तो क्या चिकित्सीय सुविधाएं मिल पाएंगी या नहीं?”

इन दिनों किश्वर का रुटीन थोड़ा बदल गया है. अब वे शारीरिक व मानसिक मजबूती व शांति के लिए सुबह योग व ध्यान लगाती हैं. पौष्टिक हल्का सुपाच्य खाना खाती हैं. किताबें पढ़ती हैं. दिन के समय फोन पर दोस्तों व भाई-बहनों से बात करती हैं. अब ज्यादा टीवी नहीं देखती क्योंकि कई बार हर तरफ से महामारी के बढ़ते आंकड़े किश्वर को परेशान कर देते हैं. इसलिए बस मुख्य समाचार देखती हैं. पुराने गाने सुनती हैं. घर की साफ सफाई के साथ ही बागवानी करती हैं. यूट्ब्यू पर कुकरी शो देखती हैं और आशा करती हैं कि जब सब ठीक हो जाएगा तो वे यह सभी रेसिपी बनाकर अपने आसपास के लोगों को खिलाएंगी.

राखी रानी देब मन में डर है पर कोरोना को हराना है

जानिए कुछ  राखी रानी देब के बारे में. राखी असम की रहने वाली हैं. परिवार असम में रहता है. राखी दिल्ली में एक पीआर एजेंसी में काम करती हैं और काफी समय से अकेली रह रही हैं. राखी बताती हैं, “पहले और अब लॉकडाउन के बाद की जिंदगी में काफी अंतर आ चुका है. पहले मैं सुबह ऑफिस जाती थीं और वहां काम व ऑफिस के लोगों के बीच कब समय बीत जाता था पता नहीं चलता था. कभी दोस्तों के साथ बाहर डिनर करना. घर में रहने का मौका बहुत कम मिलता था. ऐसा लगता था जैसे रात को सोने के लिए घर आती हूं और सुबह फिर से ऑफिस और देर तक ऑफिस का काम. लेकिन अब चौबीसों घंटे घर पर हूं”

राखी बताती हैं कि ऐसे समय में लगातार खबरों को जानना भी जरूरी है दूसरी तरफ कोरोना जिस तेजी से बढ़ रहा है ऐसे में अकेले रहते हुए यह खबरें नकारात्मक विचारों को जन्म देती हैं. मैं परिवार से दूर हूं और इस समय मेरे पास खाली समय भी है कहते हैं खाली दिमाग शौतान का घर. ऐसे में कई बार नकारात्मक चीज़ें सोचने लगती हूं. कई बार यह भी सोचती हूं कि अगर मुझे कुछ हो गया तो क्या करूंगी? दिल्ली या उसके आसपास मेरा कोई रिश्तेदार भी नहीं जो मेरी मदद करे. मुझे नहीं पता उस समय मुझे खुद को कैसे मैनेज करना होगा. यही सब नेगेटिव बातें सोचकर कई बार बहुत डर जाती हूं. फिर यही डर मुझे यह भी सोचने के लिए बोलता है कि कैसे खुद को कोरोना से बचाया जाए.

जब लॉकडाउन की घोषणा हुई तो राखी ने क्या तैयारी की थी? “सच कहूं तो मैंने अपने लिए कुछ भी खानेपीने का सामान नहीं रखा था. वही जो थोड़ा बहुत राशन रहता है घर पर, वही मेरे पास था. जैसे ही 21 दिन के लॉकडाउन की घोषणा हुई. मैंने अपनी बालकनी से बाहर देखा, लोग अपनी गाड़ी और बाइक लेकर बाजार जा रहे थे. तब मुझे घबराहट हुई कि मेरे पास तो खानेपीने का सामान बहुत कम है. लेकिन उस दिन मैं बाजार नहीं गई. अगले दिन सब जगह बंद था. सबसे बड़ी मुश्किल तब आई जब लॉकडाउन के पहले ही दिन मेरी रसोई गैस खत्म हो गई. मैं सोच में पड़ गई, अब क्या करूं? आसपास गैस सप्लाई करने वाले जितने लोग थे सबको फोन किया सबका एक ही जवाब था कि दुकान बंद है. उस रात मैंने कुछ नहीं खाया. अगले दिन कई गुप्स में मैसेज किया तो एक व्यक्ति ने घर आकर गैस का सिलेंडर दिया और मैंने राहत की सांस ली. ऑनलाइन सामान की सप्लाई भी बंद हो चुकी थी. कुछ जो सामान मेरे पास था उसी से मैंने काम चलाना शुरु किया. फिर दो दिन बाद जब हमारे मार्किट की दो-तीन दुकाने खुली तो मैं राशन लेकर आई. ”

दो सप्ताह से ज्यादा समय लॉकडाउन को हो चुका है. कोरोना के केस रोज बढ़ते जा रहे हैं ऐसे में राखी की मनस्थिति कैसी है? राखी बताती हैं, “अमेरिका, इटली, फ्रांस में जो हालात हैं उसे देखकर डर समा गया है कि कहीं भारत में भी स्थिति बिगड़ न जाए. मुझे कोरोना न हो जाए. कई बार बहुत नकारात्मक विचार आते हैं.”

नकारात्मक विचारों से खुद को दूर रखने के लिए क्या करती हैं? “कोरोना का डर व नकारात्मक विचार मुझसे दूर रहें इसके लिए मैं रोज अपने परिवार से फोन पर बात करती हूं. दोस्तों से बात करती हूं. चैटिंग करती हैं. सोशल मीडिया पर एक्टिव रहती हूं ताकि ध्यान बंटा रहे और मैं पॉजिटिव सोचूं. घर के अंदर रहती हूं बाहर नहीं निकलती. यही एक मात्र उपाय है खुद को सेफ रखने का.”

राखी अपने परिवार को बहुत मिस करती हैं. वे मानती हैं अगर परिवार साथ होता तो इस समय को फेस करना आसान हो जाता. मम्मी चाहती हैं जैसे ही हवाई सेवा शुरु हो मैं तुरंत घर लौट आऊं.

राखी कोरोना से इतनी डरी हुई हैं तो उससे लड़ेगी कैसे? राखी कहती हैं, “मैं लड़ रही हूं. मैं घर से बाहर नहीं निकलती. बार-बार हाथ धोती हूं. सामान लेने जाती हूं तो मास्क पहनकर पूरी सावधानी के साथ. वापस लौटकर अपने हाथ धोना. मैं जानती हूं कि ऐसे कठिन समय में मुझे अपना ख्याल खुद रखना है.”

राखी का रुटीन पहले जैसा ही है. पहले वे छह बजे उठती थीं अब सात बजे. पहले की तरह सुबह उठकर योग करती हैं. फिर फ्रैश होकर अपने लिए नाश्ता बनाती हैं. उसके बाद ऑफिस का काम शुरु हो जाता है. इन दिनों वे वर्क फ्रॉम होम कर रही हैं. एक नई चीज़ जो राखी के शेड्यूल में शामिल हुई है वो है किताबें. राखी रोज श्याम को किताबें पढ़ती हैं. परिवार व दोस्तों से फोन पर बातचीत. समाचार सुनना और 11 बजे तक सो जाना. इस उम्मीद के साथ कि जल्दी ही सब ठीक हो जाएगा.

निकिता वर्मा अपनी डाइट का ख्याल रखें

पेशे से इंजीनियर और फैशन, लाइफस्टाइल ब्लॉगर निकिता वर्मा  अपने काम के सिलसिले में परिवार से दूर नोएडा, यूपी में रहती हैं. निकिता मानती हैं, “कोरोना वायरस ने हम सभी को बहुत डरा दिया है. ऐसे समय में अकेले रहते हुए मुझे परिवार की बहुत याद आती है. एकता में शक्ति होती है जो आपको कठिन समय में भी हारने नहीं देती. अगर इस समय परिवार मेरे पास होता तो इस कठिन समय का सामना करना मेरे लिए आसान हो जाता. वैसे मैं रोज विडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए परिवार के संपर्क में हूं. पहले भी अकेली रहती थी लेकिन जब से कोरोना फैला है और लॉकडाउन हुआ है इसने सभी की जिंदगी को हिलाकर रख दिया है.

“कोरोना को खत्म करने में हर नागरिक की अपनी भागीदारी है. इस समय हम नागरिक होने का फर्ज इसी तरह निभा सकते हैं कि हम घर पर रहें. बाहर न निकलें. ऐसा करके हम अपनी जान तो बचाएंगे ही साथ ही समाज के लिए भी खतरा नहीं बनेंगे. अब तो नोएड़ा के कई इलाके सील कर दिए गए हैं. इससे और घबराहट बढ़ गई है.”

निकिता ने काफी पहले ही अपनी मेड को आने से मना कर दिया था. अपने घरेलू काम वे खुद कर रही हैं. 22 तारीख के बाद से ही लंबे लॉकडाउन की आशंका थी इसलिए निकिता ने खानेपीने का जरूरी सामान पहले ही ऑनलाइन मंगा लिया था ताकि बाजार जाने की जरूरत न पड़े.

निकिता बताती हैं, “कोरोना से लड़ने के लिए मेरी तैयारी यह है कि मैं अपनी और घर की सफाई का ख्याल रखूं. बार-बार हाथ धोने के साथ ही हाइजीन का बहुत ख्याल रखती हूं. शारीरिक व मानसिक फिटनेट के लिए सुबह-श्याम योग करती हूं. एक्सरसाइज करती हूं. ऐसी डाइट ले रही हूं जो मेरे इम्यूनिटी सिस्टम को सही रखे. विटामिन सी, सूखे मेवे और हरी सब्जियां इन दिनों मेरी डाइट में ज्यादा हैं. रोज एक गिलास दूध पी रही हूं.”

लक्ष्मी सकारात्मकता व सावधानी से हारेगा कोरोना

बिहार की रहने वाली लक्ष्मी की जो  पत्रकार हैं, दिल्ली में अकेली रहती हैं. लक्ष्मी कहती हैं, भले ही इस समय देश व दुनिया में लॉकडाउन है लेकिन इस बुरे समय में भी मैं अच्छा देखने की कोशिश करती हूं. और महसूस करती हूं कि कोरोना की वजह से कई सकारात्मक परिवर्तन हम सबकी जिंदगी में आ गए हैं. कोरोना के भय ने हमारी जिंदगी को अनुसाशन में ला दिया है. अब हमें साफ सफाई की अहमियत ज्यादा समझ में आ गई है. कई अच्छी आदतें जीवन में शुमार हो चुकी हैं. अपनी फिटनेस और डाइट पर हमने गंभीरता से सोचना शुरु किया. सीमित साधनों में कैसे सब कुछ मैनेज करना है यह सीख लिया. अब हम उतना ही खाना बना रहे हैं जितने की जरूरत है. बस इन अच्छी आदतों को हमें आगे भी बनाए रखना है.

कोरोना से मुकाबला कैसे करेंगी? लक्ष्मी कहती हैं, मैं केवल सकारात्मक सोचती हैं. कोरोना से भयभीत नहीं हूं. कुछ लोग टीवी देखकर कोरोना की खबरों से भी डर रहे हैं. इसमें डर की कोई बात नहीं है. खबरों का मक्सद हमें जानकारी देना है. जानकारी ही नहीं होगी तो हम समस्या का सामना कैसे करेंगे? हेल्थ मिनिस्ट्री जो गाइड लाइन जारी कर रही है मैं उसका पालन करती हूं. लक्ष्मी सहारा अखबार में काम करती हैं. सामान्य दिनों की तरह ऑफिस जा रही हैं. इस दौरान पूरी सावधानी का ख्याल रखती हैं.

इस मुश्किल समय में लक्ष्मी सकारात्मक सोच विचार बनाए रखने को सबसे जरूरी मानती हैं. साथ ही अपने आसपास के माहौल को भी सकारात्मक बनाए रखने की अपील करती हैं. लक्ष्मी मजबूत लड़की हैं. उनके माता-पिता बिहार में रहते हैं. लक्ष्मी का कहना है कि हम जहां रहते हैं वहीं हमारा एक परिवार बन जाता है. माता-पिता ने हमें समाज में कैसे मिलजुल कर रहना है यह सिखाया है. यही वजह है कि इस संकट की घड़ी में सभी लोग अलग-अलग रूपों में एक दूसरे की मदद कर रहे हैं. पूरा देश एक परिवार बन गया है. इसलिए मैं बेशक अपने माता-पिता से दूर हूं लेकिन मैं उन्हें मिस नहीं कर रही. मेरे आसपास के लोग ही परिवार की तरह मेरे साथ हैं.

लॉकडाउन की घोषणा हुई तो लक्ष्मी की क्या तैयारी थी? वे कहती हैं, लोगों ने काफी राशन घरों में भर लिया था लेकिन मैंने नहीं भरा. न मैं यह सोचती हूं कि हमें आने वाले दिनों में खाना नहीं मिलेगा. इस समय तो हमें उन लोगों की मदद करनी चाहिए जो गरीब मजदूर हैं. उन्हें खाना खिलाने के बारे में सोचना चाहिए.

कोरोना से जंग जीतने की क्या तैयारी है? बस इतनी तैयारी है कि मैं स्वच्छता का ख्याल रखती हूं. मास्क लगाकर बाहर निकलती हूं. जो बिना मास्क लगाए दिखते हैं उन्हें टोकती हूं. ऑफिस से लौटते वक्त एक बारी में ही सारा जरूरी सामान ले आती हूं. विश्व स्वास्थ संगठन व भारत सरकार की ओर से जो निर्देश सामने आ रहे हैं उनका पालन करती हूं. इस मुश्किल समय में सकारात्मक सोचती हूं सतर्क रहती हूं इसलिए मन में कोरोना का भय नहीं है. कुछ लोगों के मन में कोरोना का डर इस कदर भर चुका है कि सामान्य खांसी होने पर भी सोच रहे हैं कहीं कोरोना तो नहीं हो गया. नकारात्मक बातें मुश्किल घड़ी में इंसान को परेशान कर देती हैं. इस समय हमारा एक ही मंत्र होना चाहिए नकारात्मकता आउट, सकारात्मकता इन.

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कोरोना की वजह से लक्ष्मी की दिनचर्या में कोई खास बदलाव नहीं आया. पहले की तरह सुबह योग करती हैं. फिर नहा कर नाश्ता और फिर ऑफिस के लिए रवाना. श्याम को घर आकर साफ सफाई और अपने लिए डिनर बनाती हैं.

पंखुड़ी परिवार पास होता तो अच्छा था 

अब बात करते हैं पंखुड़ी की. पंखुड़ी एक पीआर प्रोफेशनल हैं. भोपाल, मध्यप्रदेश की रहने वाली हैं. परिवार भोपाल में ही रहता है. पंखुड़ी दिल्ली के सुखदेव विहार में रहती हैं. पंखुड़ी के लिए सबसे बड़ा डर यही है कि इस समय वे परिवार से दूर हैं. जिस तेजी से कोरोना मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही है और लॉकडाउन आगे बढ़ा दिया गया है. ऐसे में अगर चीज़ें समय रहते ठीक न हुईं और महामारी ज्यादा फैल जाए तो वे अकेली क्या करेंगी.

लॉकडाउन की घोषणा होने से कुछ समय पहले ही पंखुड़ी महीने डेढ़ महीने का राशन ला चुकी थी. लॉकडाउन के बाद मन में यह ख्याल जरूर आया कि अगर थोड़ा और राशन ले आती तो ठीक रहता.

पंखुड़ी कहती हैं लॉकडाउन से पहले भी मैं अकेले रहती थी लेकिन अब वर्क फ्रॉम होम कर रही हूं. कोशिश करती हूं कि किसी न किसी काम में खुद को व्यस्त रखूं. ऑफिस वर्क के अलावा घर की साफ-सफाई. कुछ शौक जो लंबे समय से पूरे नहीं हो पा रहे थे वो पूरे कर रही हूं जैसे – ड्रॉईंग, कुकिंग, रीडिंग. बाहर बहुत कम निकलती हूं बस दूध सब्जी फल लेने. वह भी ज्यादा ले आती हूं ताकि 2-3 दिन फिर बाहर न निकलूं.

पंखुड़ी को लगता है कि इस समय अगर वे परिवार के साथ होती तो उन्हें इतनी चिंता न होती. जैसे-जैसे समय बीत रहा है वैसे-वैसे पंखुड़ी को परिवार की याद आ रही है. पंखुड़ी बताती हैं कि लॉकडाउन के पहले सप्ताह तक तो फिर भी सब ठीक रहा लेकिन अब महसूस कर रही हूं कि मन बहुत उदास हो गया है. भीतर से बेवजह की खीज, चिड़चिड़ापन, अकेलापन महसूस हो रहा है.

कोरोना की अपडेट व देश दुनिया का हाल जानने के लिए पंखुड़ी समाचार सुनती हैं. कोरोना मरीज़ों की बढ़ती संख्या पंखुड़ी को डराती है. लेकिन यही डर पंखुड़ी को सीख भी दे रहा है कि कोरोना से बचना है तो घर पर रहो. यही एक मात्र उपाय है.

पंखुड़ी फेसबुक, इंस्टाग्राम, व्हाट्सएप, ट्वीटर पर एक्टिव रहती हैं. फोन पर परिवार व दोस्तों से बातें करती हैं. पंखुड़ी बताती हैं कि लॉकडाउन के बाद से मेरी दिनचर्या में बहुत बदलाव आ गया है. जैसे अब रोज दिन की शुरुआत योग से होती है. फिर नहाकर नाश्ता बनाती हूं. लंच और डिनर भी कर रही हूं जोकि पहले मेरा ज्यादातर छूट जाता था. अब खाने का एक निश्चित समय तय हो गया है जोकि सेहत के लिए बहुत जरूरी था. श्याम को मैं घर के अंदर, बालकोनी या छत पर टहलती हूं. अपनी इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए रोज हल्दी वाला दूध पीती हूं.

पूजा मेहरोत्रा मजबूत हूं जागरूक हूं सतर्क हूं

अब मिलाती हूं एक मजबूत, जागरुक लड़की पूजा मेहरोत्रा से. पूजा पत्रकार हैं द प्रिंट में काम करती हैं और फिलहाल एक महीने से घर से ही काम कर रही हैं. पूजा बिहार की रहने वाली हैं. लगभग बीस साल से दिल्ली में अकेली रह रही हैं. पूजा सिंगल हैं इसलिए अपना ख्याल खुद रखना जानती हैं.

कोरोना वायरस के भय के बीच पूजा की सबसे बड़ी चिंता अपने माता-पिता को लेकर है. दोनों बिहार में हैं और बुर्जुग हैं. बढ़ती उम्र की कई तकलीफें भी फेस कर रहे हैं. पूजा के लिए उसके माता-पिता का ठीक रहना बहुत जरूरी है. इसलिए वे उन्हें फोन पर बताती रहती हैं कि आजकल उन्हें कैसे रहना है. कैसा खानपान और साफ सफाई का ख्याल रखना है. किस प्रकार बार-बार हाथ धोना है. सेनेटाइज़र कैसे यूज़ करना है.

खुद पूजा की तैयारी कैसी है? मैं सारे प्रिकॉशन्स ले रही हूं. काफी पहले से ही मास्क लगाकर घर से निकलती थी. दुनिया में जब कोरोना फैल रहा था तभी से इस बात को लेकर अवेयर थी कि अगर भारत में यह संक्रमण फैलता है तो हमें क्या सावधानी बरतनी होंगी. मैंने अपनी कामवाली बाई को भी पहले ही कोरोना और उसके परिणामों के बारे में बता दिया था. मेरा घर पूरी तरह सैनेटाइज़ है.

बेशक पूजा कई सालों से अकेली रह रही हैं लेकिन क्या इस समय परिवार को मिस कर रही हैं? पूजा कहती हैं, परिवार का साथ होना हमेशा सपोर्ट देता है. अगर फैमली साथ होती तो एक दूसरे की केयर कर पाते. मुझे अपने माता-पिता की इतनी चिंता नहीं होती जितनी अब दूर रहकर हो रही है. जिंदगी थोड़ा आसान हो जाती.

लॉकडाउन की वजह से क्या पूजा ने भी अपना राशन घर पर रख दिया था? नहीं, बिल्कुल नहीं. बल्कि मैंने लोगों को समझाया कि बहुत ज्यादा राशन मत भरो. लॉकडाउन हो या कर्फ्यू जरूरी सामान की सप्लाई बंद नहीं होती. इसलिए मैंने उतना ही खरीदा जितने की जरूरत थी. दो सप्ताह से ज्यादा समय हो चुका है मुझे इस दौरान राशन फल सब्जी की कोई दिक्कत नहीं हुई. हां, क्योंकि मैं सिंगल हूं इसलिए कुछ जरूरी दवाएं डॉक्टर की सलाह पर मैंने रखी हैं ताकि जरूरत पड़ने पर दिक्कत न हो.

पूजा रोज योग व प्राणायाम करती हैं. काम के बीच में पांच-दस मिनट का ब्रेक लेती हैं. श्याम को थोड़ा टहलती हैं. पूजा बताती हैं कि जब बहुत ज्यादा कोरोना कोरोना हो जाता है तो मन दुखी होता है यह देखकर कि दुनिया में कितने लोग मर रहे हैं. समाज कहां जा रहा है? इतना होने के बाद भी कुछ लोग लॉकडाउन की गंभीरता को नहीं समझ रहे हैं तो बहुत गुस्सा भी आता है.

पूजा ने अपने घर की सफाई के साथ-साथ अपनी बिल्डिंग की सारी रेलिंग्स साफ कीं. स्विचबोर्ड साफ किए. रोज डिटॉल के पानी से दरवाजे के हैंडिल साफ करती हैं. पूजा बताती हैं कि इतना होने के बाद भी जब कुछ लोग डॉक्टर्स, नर्स, हेल्थ सेक्टर से जुड़ा स्टाफ, आशा वर्कर, आंगनवाणी, पुलिस स्टाफ को सहयोग नहीं करते तो बहुत दुख होता है.

शुचि सहाय सबसे पहले अपनी सुरक्षा

अब एक सिंगल मदर शुचि सहाय के बारे में बात करते हैं. शुचि जी की एक बेटी है जो अमरीका में पढ़ती हैं. यहां वे वैशाली गाजियाबाद में लंबे समय से अकेली रह रही हैं. शुचि मेडिकल ट्रांसक्रप्शन के क्षेत्र में क्वालिटी एनालिस्ट हैं. शुचि जी वर्क फ्रॉम होम ही करती रही हैं इसलिए लॉकडाउन का असर उनके काम पर नहीं पड़ा. लेकिन कोरोना की वजह से एक अनजान सा भय वे जरूर महसूस करती हैं. कोरोना का खतरा जैसे ही भारत पर मंडराया शुचि जी ने तय किया कि सबसे पहले उन्हें अपना ख्याल रखना है. खुद को सुरक्षित रखना है.

लॉकडाउन के दौरान के लिए उनकी तैयारी कैसी थी? इस पर वे बताती हैं कि बहुत ज्यादा तो नहीं लेकिन थोड़ी बहुत तैयारी मैंने भी की. महीने डेढ़ महीने का सामान मैंने भी घर पर लाकर रखा.

वैसे तो शुचि जी लंबे समय से अकेली ही रहती हैं लेकिन मानती हैं कि इस संकट काल में अगर परिवार साथ होता तो समय कैसे कट जाता है पता नहीं चलता.

देश-दुनिया में कोरोना मरीज़ों की बढ़ती संख्या शुचि जी को भी डराती है. वे कहती हैं- जब अमेरिका की बिगड़ती स्थिति देखती हूं तो बहुत डर लगता है मेरी बेटी वहां पर है. रोज उससे फोन पर बात करती हूं. कभी विडियो कॉल करती हूं. हिदायतें भी देती हूं. जब वो बताती है कि वो घर पर सुरक्षित है. बाहर नहीं निकलती, उसने राशन रखा हुआ है. इम्यूनिटी का ख्याल रखते हुए डाइट ले रही है तो मन को तसल्ली होती है.

शुचि बताती हैं कि इस समय एक नागरिक होने के नाते मेरा यह फर्ज है कि जो भी सरकार की ओर से, मीडिया के माध्यम से. डॉक्टरों द्वारा दी जा रही सेहत संबंधी सलाह हैं उनको माना जाए. शुचि जी सफाई का खास ख्याल रखती हैं. वैसे तो घर पर रहती हैं. अगर दूध सब्जी खरीदने बाजार जाना पड़े तो सामाजिक दूरी का ख्याल रखती हैं, मास्क पहनती हैं. वे मानती हैं कि अगर हर इंसान इन बातों का ख्याल रखे तो हम कोरोना को फैलने से रोक सकते हैं.

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शुचि के लिए लॉकडाउन का शुरुआती सप्ताह बहुत ज्यादा परेशान करने वाला था. बड़े-बड़े देशों की कोरोना की वजह से क्या हालात हो गई है. यह सब देखकर बहुत घबराहट होती थी. फिर शुचि ने तय किया कि इस विषय पर ज्यादा नहीं सोचना. घर पर रहो. ऑफिस का काम करो. अपनी नींद पूरी लो. अपनी डाइट सही रखो बस.

शुचि की दिनचर्या पहले की तरह योग व प्राणायाम से शुरु होती है. योग से उन्हें शारीरिक व मानसिक शांति मिलती है. पॉजिटिव एनर्जी मिलती है. फिर वे अपने रोज के काम करती हैं. श्याम को कुछ किताबें पढ़ती हैं. परिवार व दोस्तों से बातें करती हैं. सबसे महत्वपूर्ण वे सकारात्मक रहने की कोशिश करती हैं.

महिलाओं के लिए बातें बहुत और नौकरियां होती हैं कम

मेकिंसे ग्लोबल इंस्टीट्यूट का एक अध्ययन बताता है कि अगर भारतीय अर्थव्यवस्था में महिलाओं को पुरुषों के बराबर की भागीदारी दी जाए तो साल 2025 तक देश के सकल घरेलू उत्पाद में महिलाओं के श्रम की भूमिका 60 फीसदी तक हो सकती है. गौरतलब है कि साल 2011 की जनगणना के मुताबिक सवा अरब से ज्यादा की आबादी में महिलाओं की तादाद 60 करोड़ है. लेकिन हैरानी की बात यह है कि देश के 55 करोड़ की श्रमशक्ति में महिलाओं की हिस्सेदारी महज 5 करोड़ कामगारों की है.

इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि आज भी हिंदुस्तान में नौकरियों के क्षेत्र में महिलाओं के साथ किस तरह का भेदभाव किया जाता है. दो साल पहले संयुक्त राष्ट्र द्वारा किये गये 188 देशों के महिला श्रमिकों के एक अध्ययन में भारत का स्थान 170वां आया था यानी हम 188 देशों में से नीचे से ऊपर की तरफ 18वें स्थान पर थे. हमसे 17 देश ही ऐसे थे, जहां महिला कामगारों की तादाद प्रतिशत में हमारे यहां से भी कम थी. लेकिन इनमें से कोई भी ऐसा देश नहीं था, जो भारत का एक चैथाई भी हो, अर्थव्यवस्था तो छोड़िये किसी भी मामले में.

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इससे पता चलता है कि भारत में महिलाओं को या तो नौकरियां मिल नहीं रही हैं या आज भी भारतीय समाज उन्हें नौकरी कराने से हिचकता है. तमाम अध्ययन और विशेषज्ञ बार-बार कहते हैं कि अगर अर्थव्यवस्था में महिलाओं की भागीदारी बराबरी की हो जाती है तो कोई भी अर्थव्यवस्था कहीं ज्यादा मजबूत हो जाती है. भारत के संबंध में तो तमाम विश्व संगठन लगातार कह रहे हैं कि अगर भारत को वाकई आर्थिक महाशक्ति बनना है तो महिलाओं को बड़ी भूमिका देना होगा. लेकिन हाल के सालों में काफी उलट पुलट स्थितियां देखने को मिली हैं. यह तो तय है कि दक्षिण एशिया में अकेला भारत ही नहीं पाकिस्तान भी उन देशों में शामिल हैं, जहां महिलाओं को बड़ी आर्थिक भागीदारी नहीं दी गई.

हद तो यह है कि भारत में नेपाल, वियतनाम और कंबोडिया जैसे छोटे देशों से भी प्रतिशत में कम महिलाएं श्रम में भागीदारी निभा रही हैं. अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के 185देशों में हाल के सालों में जहां महिला कामगारों की संख्या बढ़ी है, वहीं 41 देशों में यह कम हुई है और जिन देशों में कम हुई है उनमें भारत सबसे ऊपर है. आखिर क्या वजह है कि भारत में नौकरियों के क्षेत्र में महिलाओं की संख्या घट रही है? हाल के सालों में जब भारत पूरी दुनिया के विकास के इंजन के रूप में चीन के साथ आगे बढ़कर आया है, उस स्थिति में भारत में महिलाओं की श्रम में भागीदारी की कमी का पहलू क्या है?

इसके पीछे एक बड़ी वजह यह है कि हाल के सालों में भारतीय पुरुषों की औसत आय में काफी वृद्धि हुई है जिससे घरों में महिलाओं को खासकर खेतों और निर्माण के क्षेत्र में काम कराने से रोका गया है. देखा जाए तो यह एक सकारात्मक पक्ष है क्योंकि भारत में असंगठित मजदूरों के लिए काम की परिस्थितियां बेहद अमानवीय होती हैं, चाहे फिर वे महिलाएं ही क्यों न हो या बाल श्रमिक ही क्यों न हों? पिछले एक दशक में भारतीय पुरुषों की आय में हुई बढ़ोत्तरी के कारण महिलाओं को घर की देखरेख में ज्यादा फोकस करने के लिए प्रेरित किया गया है. हालांकि यहीं पर एक विरोधाभासी आंकड़ा यह भी है कि मनरेगा जैसे रोजनदारी वाले काम के क्षेत्र में महिलाओं की संख्या न सिर्फ बढ़ी है बल्कि मनरेगा में महिलाओं की भागीदारी से ग्रामीण क्षेत्र में बेहद गरीब लोगों की सामाजिक स्थिति में काफी सुधार आया है.

इस सुधार के पीछे महिलाओं की आय का बड़ा योगदान है. चूंकि मनरेगा में मजदूरों को नकद और त्वरित भुगतान किया जाता है, इस वजह से मनरेगा की आय ने देश के सबसे कमजोर तबकों में दिखने वाला सुधार किया है. लेकिन जहां यह बात समझ में आती है कि पारिवारिक आय में हुई बढ़ोत्तरी के कारण महिलाओं को भारी, जटिल और कठिन श्रम क्षेत्रों से काफी हद तक मुक्ति मिली है, जो उनकी सेहत और सुरक्षा के लिहाज से अच्छी बात है. लेकिन संगठित क्षेत्र में जहां श्रम की स्थितियां कठिन या अमनावीय नहीं हैं, वहां महिलाओं की भागीदारी में कमी क्यों आयी है? इस कमी के दो कारण हंै, एक कारण में महिलाएं खुद जिम्मेदार हैं और दूसरे कारण में अप्रत्यक्ष रूप से इम्प्लायर ही महिलाओं की भागीदारी को हतोत्साहित करता है.

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दरअसल हमारे यहां महिलाओं की सुरक्षा को लेकर कानून कितने भी बन गये हांे, लेकिन आज भी महिलाएं न सिर्फ कार्यस्थल पर बल्कि कार्यस्थल से घर तक की दूरी में भी काफी ज्यादा असुरक्षित हैं. प्राइवेट नौकरियों में जिन कामगारों की सबसे ज्यादा तनख्वाहें इम्प्लाॅयर द्वारा मारी जाती हैं, उनमें महिलाओं की संख्या 90 फीसदी होती है. अगर किसी कंपनी के बंद होने की स्थिति बनती है तो सबसे पहले महिलाओं के आर्थिक हितों का नुकसान होता है. इसका मनोविज्ञान यह है कि आज भी भारतीय समाज में यह माना जाता है कि महिलाओं को आसानी से दबाया जा सकता है, फिर चाहे वो कामगार ही क्यों न हों? लेकिन तमाम खामियां अपनी जगह है. मगर यदि भारत को वाकई आर्थिक महाशक्ति के रूप में उभरकर आना है, तो महिलाओं के साथ आर्थिक भागीदारी के मामले में होने वाले भेदभाव को जल्द से जल्द खत्म करना होगा.

कुछ तो लोग कहेंगे

रात 10 बजे माया के घर के आगे एक बड़ी सी कार आ कर रुकी. स्लीवलेस टॉप और जींस पहने माया अपने फ्लैट की सीढ़ियों से दनदनाती हुई नीचे उतर रही थी कि सामने रूना आंटी टकरा गई. रूना आंटी उस की मां की पक्की सहेली है. अपनी जिम्मेदारी समझते हुए उन्होंने माया को टोका,” बेटा इतनी रात गए कहां जा रही हो? जरा सोचो तो लोग क्या कहेंगे.”

माया ने हंसते हुए आंटी का कंधा थपथपाया और बोली,” आंटी मैं ऑफिस जा रही हूं अपने सपनों को पूरा करने, जर्नलिस्ट का दायित्व निभाने. मुझे इस बात से कभी कोई सरोकार नहीं रहा कि लोग क्या कहेंगे. मेरी अपनी जिंदगी है. मेरी अपनी प्राथमिकताएं हैं. मेरे जीने का अपना तरीका है. इस में लोगों का क्या लेनादेना ? मैं क्या कभी लोगों से पूछती हूँ कि वे कब क्या कर रहे हैं?”

रूना आंटी को माया से ऐसे जवाब की उम्मीद नहीं थी. वे चुपचाप खड़ी रह गई और माया जिंदगी को एक नया मकसद देने की ललक के साथ आगे बढ़ गई.

32  साल की माया दिल्ली में अकेली रहती है. रात में भी अक्सर काम के सिलसिले में उसे बाहर निकलना पड़ता है. रूना आंटी हाल ही में उस की सोसाइटी में शिफ्ट हुई है.

अक्सर बड़ेबुजुर्ग माया जैसी लड़कियों को तरहतरह की हिदायतें देते दिख जाते हैं. मसलन;

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‘ ऐसे कपड़े पहन कर कहां जा रही है ? जरा सोचो तो लोग क्या कहेंगे,’  ‘अरे, इतने लड़कों के साथ तू अकेली क्यों जा रही है ? समाज की कोई परवाह नहीं तुझे ?,’ ‘ क्लब में लड़कों के साथ डांस करते हुए शर्म नहीं आई तुझे ? यह भी नहीं सोचा कि लोग क्या कहेंगे,’  ‘ इतनी रात में अकेली कहां जा रही है ? सिर पर कपड़ा तो रख. ऐसे जाएगी तो लोग क्या कहेगे ?,’

‘इतनी जोरजोर से हंसना लड़कियों को शोभा नहीं देता,’  ‘ अरे, यह क्या लड़कों वाले काम करती रहती है. इतनी बड़ी हो गई है पर इतना भी नहीं सोचती कि लोग क्या कहेंगे.’

लोगों का क्या है उन्हें तो लड़की अकेली रह रही है तो परेशानी, लिव इन में रह रही है तो परेशानी, बच्चे नहीं हुए तो परेशानी, जॉब कर रही है तो परेशानी, लड़कों से हंस कर बातें कर ली तो परेशानी, क्लब में लेट नाईट चली गई तो परेशानी. और तो और पति के होते हुए भी गैरमर्द की तरफ नजर भर कर देख लिया तो भी परेशानी.

1. समाज की परवाह क्यों

लोगों की फ़िक्र न करें क्यों कि, हम लोग जानवर नहीं इंसान है. हम सब अपनी अलग पहचान और सोच ले कर पैदा हुए हैं. हम सिर्फ इस वजह से भीड़ की नकल नहीं कर सकते क्योंकि समाज ऐसा चाहता है. हम सबों के अलगअलग सपने हैं और उन्हें पूरा करने के लिए अपनी तरफ से हर संभव प्रयास करने का अधिकार हम सबों को है.

आप हर किसी को खुश नहीं रख सकते. यदि किसी की नजर में आप गलत है तो इस का मतलब यह नहीं कि वास्तव में ऐसा है. आप हर किसी की नजर में सही नहीं हो सकती.

आप के पास अधिक समय नहीं है. इसलिए अपना समय किसी दूसरे की सोच के हिसाब से जीने में बरबाद न करें.

हार केवल आप की होगी. याद रखिए कि आप की जीत का सेहरा लोग अपने सर बंधवाने में तनिक भी देर नहीं लगाएंगे पर आप की हार के लिए आप को ही उत्तरदायी ठहराया जाएगा. इसलिए अपने जीवन से और अपने मन से इस डर को निकाल फेंकिए कि लोग क्या कहेंगे.

हकीकत में किसी को भी आप की परवाह नहीं. लोगों की सोच के अनुसार चल कर भी यदि आप किसी परेशानी में फंस जाएंगी तो कोई आप की मदद के लिए आगे नहीं आएगा. अपनी मदद आप को खुद करनी है. इसलिए वह कीजिए जो आप करना चाहती हैं बिना यह सोचे कि दूसरे लोग क्या कहेंगे.

जो लोग अपने दिल की सुनते हैं वे ही सफल होते हैं. यदि आप इतिहास के पन्ने पलट कर देखेंगी तो पाएंगी कि कोई भी व्यक्ति सफल इसलिए बना क्यों कि उस ने अपने सपनों का पीछा किया और कठिन मेहनत की.

2. हस्तक्षेप एक असहनीय पीड़ा

जब भी हम कोई नया कार्य शुरू करने जा रहे होते हैं या लोगों द्वारा तय मानदंडों से कुछ अलग करने वाले होते हैं तो हम में से अधिकतर यह सोच कर ही डर जाते हैं कि लोग क्या कहेंगे. यहाँ लोगों से तात्पर्य समाज से है जिसे हम ने मिल कर बनाया है. समाज में हम मिलजुल कर रहते हैं. कई तरह से एकदूसरे के ऊपर निर्भर भी रहते हैं. मगर यह निर्भरता सकारात्मक अर्थों में होनी चाहिए. एक ऐसी निर्भरता जो किसी की सफलता का मार्ग प्रशस्त कर सके, किसी के चेहरे पर मुस्कान ला सके. जहां सब एकदूसरे के बुरे समय में काम आए, एकदूसरे के दुखों को बांट सकें और सुखों को चौगुना कर सकें !

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लेकिन मुसीबत तब होती है जब समाज हमारे हर कार्य पर नजर रखने लगता है. नकारात्मक रूप से हस्तक्षेप करने लगता है. इस से न केवल सामाजिक सौहार्द व सामंजस्य बिगड़ने लगता है बल्कि व्यक्ति के अधिकारों पर भी सीधी चोट पहुँचती है.

कई बार देखा गया है कि जब किसी व्यक्ति के जीवन में सफलता का समय ठीक पीक पर होता है तभी कुछ संकुचित दृष्टिकोण के लोगों के हस्तक्षेप से व्यक्ति के सपने चकनाचूर हो जाते हैं. एक कसक ताउम्र पीड़ा पहुंचाती रहती है. समय आगे निकल जाता है परंतु वह दुख व्यक्ति के जीवन में ठहर जाता है.

3. हस्तक्षेप की सीमा निर्धारित कीजिए

अपने जीवन में लोगों के हस्तक्षेप की एक सीमा निर्धारित कीजिए. जीवन आप का है. लक्ष्य आप का है तो फैसले भी आप के ही होने चाहिए. आप के भविष्य की चिंता आप के घरपरिवार, मित्रों और आप से ज्यादा किसी और को नहीं हो सकती.

जरा सोच कर देखिए कि जब लोगों की बारी आती है तो क्या वे अपने जीवन में आप का हस्तक्षेप स्वीकार करते हैं ? नहीं न? तो आप क्यो?

4. पितृसत्तात्मक समाज की सोच 

दरअसल पितृसत्तात्मक समाज के पुरुष स्त्री को अपनी अमानत या जागीर समझते है. वे स्त्रियों को अपने अधीन रखना और अपने हिसाब से चलाना चाहते हैं. वे ही उन की जिंदगी के निर्माता बनना चाहते हैं. स्त्री की ‘यौन पवित्रता’ के नाम पर पाबंदियों का जाल बनाते हैं जिस में फंस कर स्त्रियां तड़पती रह जाती हैं. धार्मिक नेता इस मानसिकता का फायदा उठाने से नहीं चूकते. वे अलगअलग तरह से स्त्री विरोधी नियमकायदों और पाबंदियों की फ़ेहरिस्तें जारी कर अपना मतलब साधते रहते हैं.

पढ़ीलिखी लड़कियां भी ऐसे लोगों की सुनने लगेंगी तो एक समय ऐसा भी आ सकता है कि उन का दम घुटने लगे. आजादी की खुली हवा में सांस लेना तो दूर लड़कियां अपनी पहचान भी खो देंगी.

5. ‘इज्जत’ के ठेकेदारों की असलियत

धार्मिक आदेशों, स्त्रियों की ‘सुरक्षा’ और जाति की इज्जत के नाम पर झंडा उठाने और बातें बनाने वाले यही लोग स्त्रियों के लिए सब से बड़े संकट हैं. राजस्थान और हरियाणा में गर्भ में बड़ी संख्या में लड़कियों की हत्या करने वाले इन लोगों के साथ स्त्रियां कैसे सुरक्षित रह पायेंगी यह सोचने की बात है. उन्हें बाहरी पुरुषों से पहले अपने ही घर के लोगों से ख़तरा है. कभी उन्हें गर्भ में ही मार डालना, कभी प्रेम करने की सजा के रूप में जान लेना, कभी फोन इस्तेमाल करने की सजा सुनाना तो कभी गिद्ध दृस्टि रख कर अपने घर की स्त्रियों की इजात की ही धज्जियाँ उड़ा देना. स्त्रियों की सांसों पर इन इज्जत के ठेकेदारों का ऐसा पहरा है जो मौत से भी कई हजार गुना अधिक भयावह और पीड़ादायक है.

आज भी हमारा समाज 2 तरह के जीवन मूल्यों से संचालित हो रहा है. एक जीवन मूल्य वर्णवादी-पितृसत्ता द्वारा स्थापित है. यह पूरी तरह से अन्याय और गैरबराबरी पर आधारित है जिस में उच्च जाति और पुरुष की सत्ता स्थापित की गई है. महिलाओं के खिलाफ फरमान जारी करने वालों का सामाजिक जीवन इन्हीं मूल्यों से संचालित हो रहा है.

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दूसरी तरफ वे जीवन मूल्य हैं जो संविधान ने प्रदान किए हैं. इन जीवन मूल्यों में आधुनिकता, स्वतंत्रता, समानता है. इन्हीं की वजह से आज महिलाएं आगे बढ़ पा रही हैं. देश के सामने सब से बड़ी चुनौती है कि कैसे इन सड़ेगले असमानता आधारित सामाजिक मूल्यों को ध्वस्त किया जाए और समानता के मूल्यों की स्थापना की जाए. लोगों के कहने की परवाह ज्यादातर लड़कियों को ही करना पड़ता है. लड़कियों पर ही लोगों की सवालिया नजरें आ कर टिकती हैं. लड़कियों के ही चालचलन सवाल उठते हैं. मगर कब तक ? समय आ गया है कि हम पितृसत्तात्मक ढांचें को तोड़ें  और समान अधिकार की राह पर आगे बढ़ें.

एटीएम से कम नहीं स्मार्ट पत्नी

काफी प्रयास करने के बाद भी जब रमेश की नौकरी नहीं लगी तो उस के पिता ने उसे एक किराने की दुकान खुलवा दी. मगर 6 माह बीतने के बाद भी दुकान ठीक से नहीं चल पा रही थी. किसी तरह काम भर चल रहा था. कुछ समय बाद एक शिक्षित लड़की से रमेश का विवाह भी हो गया. विवाह के कुछ महीनों बाद ही उस की पत्नी भी समयसमय पर दुकान आने लगी. जहां रमेश के चिड़चिड़े और रूखे व्यवहार से ग्राहक उस की दुकान पर आना कम पसंद करते थे, वहीं उस की पत्नी के हंसमुख व्यवहार, ग्राहकों की प्रत्येक बात पर ध्यान देने और हरेक से प्यार व सम्मान से बात करने के कारण दुकान में कुछ ही समय में ग्राहकों की चहलपहल नजर आने लगी. उस की स्मार्ट पत्नी शहर के बड़ेबड़े स्टोर्स पर समयसमय पर मिलने वाले औफर्स पर अपनी पैनी नजर रखती और वहां से कम दाम पर सामान ला कर अपनी दुकान में रखती. इस से दुकान की ग्राहकी 50 हजार रूपए प्रति माह के आंकड़े को पार कर के 1 लाख रूपए प्रतिमाह जा पहुंची.

पत्नी की कुशलता और बुद्धिमत्ता से अपनी दुकान में इतनी समृद्धि होते देख रमेश ने अब अपनी पत्नी की राय से ही काम करना शुरू कर दिया, साथ ही पत्नी के कहने पर खुद के स्वभाव में भी काफी परिवर्तन कर लिया, जिस से उस के ग्राहक भी खासे खुश और संतुष्ट नजर आते हैं.

आज रमेश के विवाह को 10 वर्ष हो चुके हैं. परिवार में 2 बच्चों के आगमन के अलावा उस की निर्मल जनरल स्टोर के नाम से खोली गई छोटी सी दुकान अब तीनमंजिल की निर्मल किराना स्टोर के रूप में परिवर्तित हो कर एक मेगा स्टोर का रूप ले चुकी है. रमेश इस का पूरा श्रेय अपनी पत्नी निशा को देता है.

एक कोचिंग संचालक अजय तिवारी कहते हैं कि जब से मेरी पत्नी ने कोचिंग में मेरा साथ देना शुरू किया मेरी कोचिंग में छात्रों की संख्या निरंतर बढ़ती गई. इस का कारण था उस की प्रत्येक विषय पर अच्छी पकड़, बच्चों के मानसिक स्तर के अनुकूल पढ़ाने का तरीका, व्यवहारकुशलता, कुशल नेतृत्व क्षमता और सभी के साथ सकारात्मक व्यवहार. सच पूछा जाए तो मेरी पत्नी एटीएम से भी बढ़ कर है, जो हमेशा मेरा फायदा ही कराती है. एटीएम तो फिर भी रुपए स्टोर न होने पर पैसे न निकाल कर केवल बैलेंस ही बताता है, बीवी तो कभी अपने कामों का बैलेंस नहीं बताती, उस के गुण और प्रतिभा का खजाना कभी खाली ही नहीं होता. पत्नी की बदौलत ही आज हम एक अच्छा जीवन जी रहे हैं. किसी चीज की कमी नहीं है. उस के मेरी जिंदगी में आने के बाद से बस अच्छा ही अच्छा हुआ है. उस के पास कितनी भी बड़ी समस्या ले कर जाओ हल अवश्य मिलेगा.

क्यों है स्मार्ट पत्नी एटीएम

एटीएम मशीन एक ऐसी औटोमैटिक चलने वाली मशीन है, जिस में हमें सिर्फ एक कार्ड डालने की आवश्यकता होती है. उस में कार्ड डाल कर पिन डालते ही पैसे निकलना शुरू हो जाते हैं, ठीक उसी प्रकार एक पति के लिए स्मार्ट पत्नी ऐसा एटीएम है, जो अपने गुणों और काबिलीयत के बल पर किसी विशेष समय पर नहीं, अपितु हर समय कुशलतापूर्वक घर चला कर न केवल पैसे बचाती है, बल्कि उस धनराशि का उचित समायोजन कर के कमा कर भी देती है.

स्मार्ट पत्नी अपनी प्रतिभा के बल पर घरबाहर दोनों मोरचों को बखूबी संभालती है. अपने घर और परिवार के साथसाथ अपने पति को स्मार्टली संभाल कर अपने परिवार को खुशहाल भी बनाती है.

अब रश्मि को ही देखिए. जब वह ब्याह कर अपनी ससुराल आई थी तो 2 साल से बीमार पिताजी के इलाज में घर की आर्थिक स्थिति तंगहाल हो चुकी थी. परिवार में विवाह योग्य

2 ननदें और सास थीं. आय का जरीया उस के पति की एकमात्र नौकरी थी. एक नौकरी के सहारे इतने बड़े परिवार का गुजारा कर पाना वास्तव में बहुत बड़ी चुनौती थी. पति और सास को विश्वास में ले कर उस ने पास के ही स्कूल में अपनी दोनों ननदों की नौकरी लगवा दी. सिलाईकढ़ाई में पारंगत होने के कारण उस ने स्वयं सास की मदद से बुटीक खोल लिया.

देखतेदेखते परिवार की आर्थिक तंगहाली कम होने लगी. दोनों ननदों की शादी कर के जब फ्री हुई तो उस के अपने बच्चे भी स्कूल जाने लायक हो गए. स्वयं ही उन्हें घर पर पढ़ा कर उस ने न सिर्फ अपनी शिक्षा का सदुपयोग किया, बल्कि उन की ट्यूशंस पर होने वाले खर्च को भी बचाया. आज उस का परिवार समृद्ध और खुशहाल जीवन जी रहा है.

हम यदि अपने आसपास नजर उठा कर देखें तो अनेक ऐसे उदाहरण देखने को मिलेंगे जहां पत्नी की मदद से पति अपने कैरियर में सफलता की सीढि़यां चढ़ता गया.

तिथि इस की जीतीजागती मिसाल है. विवाह के बाद जब वह अपनी ससुराल में आई तो देखा कि 2 वर्ष पूर्व ससुर के देहांत के बाद से सास एकदम टूट सी गई थीं. पति राहुल का पालनपोषण एक पैंपर्ड चाइल्ड के रूप में किए जाने से वे दुनियादारी से कोसों दूर थे. सर्वसुखसुविधा से संपन्न घर को संभालने के लिए दोनों ननदें अभी काफी छोटी थीं. अत: परिस्थितियों और अवसर का लाभ उठा कर घर में अनेक दूरदराज के रिश्तेदारों ने कब्जा किया हुआ था, जो घर की जमापूंजी को पानी की तरह बहा रहे थे और अपनी जेबें भी जम कर भर रहे थे.

तिथि ने अपनी बुद्धि का प्रयोग कर के धीरेधीरे परिस्थितियों को अपने अनुकूल बनाया. ननदों को सुशिक्षित कर उन की शादियां कीं. अपनी बुद्धिचातुर्य, कुशलता और बुद्धिमत्ता से न केवल पति राहुल के बिजनैस को व्यवस्थित किया, अपितु समस्त संपत्ति को एक सीए की मदद से उचित योजनाओं में निवेश कर के अपने भविष्य को भी सुरक्षित कर लिया है.

कैसे बनें स्मार्ट पत्नी

हौबी खोजें

अधिकांश महिलाएं विवाह के बाद अपने सारे शौकों का त्याग कर देती हैं, जिस से वे शरीर के साथसाथ मानसिक रूप से भी कमजोर हो जाती हैं.

अपनी हौबी को विकसित करें. उसे अधिकाधिक निखार कर उस में पारंगत बनने का प्रयास करें और चाहें तो उसे अपनी कमाई का एक सशक्त माध्यम भी बनाएं. अपने द्वारा की गई छोटी सी कमाई से आप के आत्मविश्वास में अतिवृद्धि होती है. इसलिए अपनी हौबी पर काम करना प्रत्येक महिला के लिए बेहद आवश्यक है.

शिक्षा का करें सही उपयोग

भारतीय महिलाएं विवाह से पूर्व जिस पढ़ाई के लिए पूरा दिन किताबों में सिर खपाए नजर आती हैं, वे ही शादी होते ही घरपरिवार और बच्चों में स्वयं को इतना व्यस्त कर लेती हैं कि किताबों और पत्रिकाओं से अपना कोई नाता नहीं रखतीं जैसे शिक्षा की प्राप्ति महज केवल विवाह के लिए ही की गई थी.

अपनी शिक्षा का सही उपयोग कर के अपने घर में पठनपाठन का वातावरण बनाएं, जिस से आप के बच्चों में भी पत्रपत्रिकाओं के प्रति रुचि उत्पन्न हो सके. पत्रपत्रिकाएं न केवल आप के ज्ञान में वृद्धि करती हैं, बल्कि आप के व्यक्तित्व को भी निखारती हैं. जहां तक संभव हो अपने बच्चों को स्वयं पढ़ाने की कोशिश करें ताकि आप पढ़ातेपढ़ाते उन में जीवनमूल्यों का बीजारोपण भी कर सकें.

पति की सहचरी बनें

कार्तिक जब भी अनामिका को अपने औफिस की कोई बात बताना चाहता अथवा किसी मुद्दे पर राय जानना चाहता अनामिका का एक ही जवाब होता कि अरे ये अपने औफिस की बातें अपने पास ही रखो. मैं क्या राय दूं तुम्हारे औफिस के मैटर पर? धीरेधीरे कार्तिक ने अनामिका को औफिस से संबंधित कोई भी बात बतानी बंद कर दी. इस के विपरीत धवल जब भी अपने कुलीग या औफिस की कोई भी बात या घटना जिज्ञासा को बताता वह बहुत ध्यान से सुनती और जहां आवश्यकता होती उसे राय भी देती. धवल कहते हैं कि कितनी ही बार जिज्ञासा ने मु झे अनेक गंभीर औफिसियल मुद्दों पर मु झे राय दी, जो मेरे लिए बहुत लाभकारी साबित हुई.

आत्मनिर्भर बनें

छोटेछोटे कार्यों के लिए पति पर निर्भर होने के स्थान पर आप स्वयं दोपहिया अथवा चारपहिया वाहन चलाना सीख कर बैंक, पोस्टऔफिस, बच्चों के स्कूल और बाजार आदि के काम स्वयं निबटाएं ताकि औफिस से आने के बाद आप का पूरा परिवार एकसाथ वक्त बिता सके. यदि आप के घर की स्थितियों अनुकूल नहीं हैं और आप घर से बाहर निकल कर कार्य करने नहीं जा पा रही हैं तो घर पर ही कोई छोटामोटा कार्य शुरू करें. कुछ कमा कर के आप पति की आर्थिक रूप से भी सपोर्ट कर सकती हैं.

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धर्म के फेर में न पड़ें

धर्म बहुत खर्चीला है. यह सोच कर कि भगवान को चढ़ाया हुआ पैसा वापस आ जाता है तो यह पंडितों द्वारा फैलाया गया कोरा भ्रम है. अपना पैसा अपने पर खर्च करें, बच्चों पर खर्च करें, उन की पढ़ाई पर खर्च करें पर फालतू की तीर्थयात्राओं, पूजाओं, मंदिरों पर खर्च न करें. बहुत से अमीर जम कर धर्म पर खर्च करते दिखते हैं पर अधिकांश ने जनता को लूट कर पैसा कमाया होता है और उन में गहरा अपराधबोध होता है. आप का पैसा मेहनत का है तो स्वाभिमान व आत्मविश्वास में जीएं. अंधविश्वास में नहीं.

कुछ स्मार्ट पत्नियां

प्रसिद्ध उद्योगपति मुकेश अंबानी की पत्नी नीता अंबानी, राज कुंद्रा की पत्नी शिल्पा शेट्टी, प्रसिद्ध अभिनेता शाहरुख खान की पत्नी गौरी खान, पूर्व अमेरिकन राष्ट्रपति बराक ओबामा की पत्नी मिशेल ओबामा, आईटी कंपनी इन्फोसिस के मालिक नारायणमूर्ति की पत्नी सुधा मूर्ति, बिल गेट्स की पत्नी मिलिंडा गेट्स कुछ ऐसी सफल और स्मार्ट पत्नियों के नाम हैं, जिन्होंने अपने पति का हर कदम पर साथ दे कर न केवल उन्हें शिखर पर पहुंचाया, बल्कि स्वयं भी अनेक क्षेत्रों में कार्य कर के अपना भी एक अलग नाम बनाया.

मैंने अपनी बेटी और बिजनैस को साथ-साथ पाला है- निधि यादव

 निधि यादव संस्थापक, अक्स क्लोथिंग

फैशन डिजाइनर निधि यादव ने अपने परिवार और व्यवसाय में तालमेल बैठा कर अपनी अलग पहचान बनाई. निधि ने अपने ब्रैंड ‘अक्स’ के साथ फैशन की दुनिया में कदम रखा. ‘अक्स’ महिलाओं के लिए कुरतियां, प्लाजो, ऐथनिक सैट, अनारकली आदि की विशाल रैंज प्रस्तुत करता है. इस रेंज में लैगिंग और पारंपरिक जूते भी शामिल हैं. 2019 में निधि को ऐंटरप्रन्योर इंडिया द्वारा लघु व्यवसाय पुरस्कार ‘वूमन ऐंटरप्रन्योजर औफ द ईयर’ मिला. 2019 में ‘आउटलुक बिजनैस वूमन औफ वर्थ’ अवार्ड्स से भी सम्मानित किया गया. पेश हैं, निधि यादव से हुई गुफ्तगू के कुछ अहम अंश:

बतौर महिला इस मुकाम तक पहुंचने में किस तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ा?

एक महिला होने के नाते सब से बड़ी चुनौती होती है अपने घर को संभालना और साथसाथ अपना काम करना. ऊपर से अगर आप मां भी हों तो यह काम और मुश्किल हो जाता है, क्योंकि घर का काम तो कोई और भी कर सकता है पर आप का बच्चा बस आप के साथ रहना चाहता है. अत: मेहनत थोड़ी ज्यादा करती हूं.

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बच्चों के साथ अपने व्यवसाय को कैसे मैनेज करती हैं?

2014 में जब मैं ने अपना व्यवसाय शुरू किया था तब मेरी बेटी 18 महीने की थी और उसे ज्यादातर समय अपने साथ ही रखना पड़ता था. मैं जब भी डीलर से या किसी मैन्युफैक्चरर से बात करने जाती तो बेटी हर जगह साथ होती थी. जैसेजैसे मेरा काम बढ़ने लगा तो लगातार डील्स के लिए जयपुर भी जाना पड़ता था. तब भी बेटी साथ होती थी. मैं ने और पति दोनों ने मिल कर अपनी बेटी और बिजनैस का ध्यान रखा.

क्या कोई ऐसा पल आया जब परिवार के लिए काम छोड़ने का फैसला लिया?

नहीं. मैं जिंदगी की बहुत शुक्रगुजार हूं कि ऐसा पल कभी नहीं आया. मेरे परिवार ने सदा मेरा साथ दिया. मु झे बहुत बुरा लगता है जब मैं सुनती हूं कि कोई महिला इसलिए आगे नहीं बढ़ पाई, क्योंकि उसे उस के परिवार की देखरेख करनी थी. परिवार का पालन औरत की जिम्मेदारी है, लेकिन इस का यह कतई मतलब नहीं कि

उस के लिए वह अपने सपनों का बलिदान कर दे. यह परिवार की जिम्मेदारी बनती है कि वह अपनी बेटीबहू के सपनों को पूरा करने में उस की मदद करे.

अपनी सफलता का श्रेय किसे देना चाहेंगी?

यकीनन अपने परिवार और पति को दूंगी. मैं इस जगह नहीं होती अगर सतपाल साथ नहीं देते. एक 7 महीने की बेटी जब गोद में हो, उस वक्त शायद ही कोई मां ऐसी होगी जो अपना नया बिजनैस शुरू करने के बारे में सोचे और शायद ही कोई ससुराल ऐसी होगी जो कहे कि तू आगे बढ़ हम तेरे साथ हैं. जब मैं अपनी बेटी को सुलानेखिलाने में व्यस्त होती थी तो सतपाल कंपनी का सारा काम संभालते थे. रात में जब बेटी सो जाती थी तब हम रात में जाग कर पूरा प्लान बनाते थे.

जिंदगी का वह पल जब आप की जिंदगी ने अपना रुख बदला?

एक पल नहीं, एक फेज कहूंगी. हम ने जब कंपनी शुरू की थी तो इतने बेहतर मार्केट रिस्पौंस की उम्मीद नहीं की थी. हम ने शुरुआत 2 कमरों के घर से की थी. एक में हम सोते थे और दूसरे में सामान रखते थे. काम बेहतर चल निकला. पहले क्व100 करोड़, फिर 2019 में क्व150 करोड़ और अब 2020 में हम क्व200 करोड़ रैवन्यू का टारगेट ले रहे हैं और आने वाले 4-5 सालों में इसे क्व1,000 करोड़ तक ले जाना चाहते हैं.

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आप की नजर में फैशन और ब्यूटी क्या है?

मेरे लिए अच्छा फैशन वह है जो कंफर्टेबल, हो जो आप को खूबसूरत दिखाए. इसी सिद्धांत पर हमारा ब्रैंड ‘अक्स’ बना है.

महिलाओं की कमाई पर पुरुषों का हक क्यों

आज जब महिलाएं पुरुषों के बराबर और कई बार उन से भी ज्यादा सैलरी ले रही हैं, तो यह उन का अधिकार बनता है कि वे अपने कमाए पैसों को अपनी इच्छानुसार खर्च करें.

मगर पुरुष हमेशा स्त्री पर शासन करता आया है और आज भी पत्नी पर अपना अधिकार सम झता है.

प्रोफैशनल कालेज में लैक्चरर इला चौधरी के फोन पर मैसेज आया कि उन के पति ने उन के जौइंट अकाउंट से क्व40 हजार निकाले हैं. उन का मूड खराब हो गया. वे  झल्ला उठीं.

घर आ कर अपनेआप को बहुत रोकतेरोकते कुछ तीखी आवाज में बोल ही पड़ीं, ‘‘कालेज के फंक्शन के लिए मैं ने मौल में एक ड्रैस और मैचिंग सैंडल पसंद किए थे. मेरे अकाउंट में अब केवल क्व10 हजार बचे हैं और अभी पूरा महीना पड़ा है. क्या वह ड्रैस बिकने से बची रहेगी भला?’’

फिर क्या था. पति आदेश नाराज हो कर चीखने लगे, ‘‘न जाने अपने पैसों का कितना घमंड हो गया है. ड्रैसों और सैंडलों की भरमार है, लेकिन नहीं पौलिसी ऐक्सपायर हो जाती, इसलिए मैं ने पैसे निकाल लिए.’’

इला चौधरी कहने लगी, ‘‘मेरी सैलरी क्व60 हजार है. मु झे कालेज में अच्छी तरह ड्रैसअप हो कर जाना पड़ता है. लेकिन जैसे ही मैं कुछ नया खरीदना चाहती हूं, आप गुस्सा दिखा कर मु झे मेरे मन का नहीं करने देते.’’

पति ने बनाया बेवकूफ

एक बड़े स्टोर में मैनेजर के पद पर काम कर रहीं मृदुला अवस्थी कहती हैं, ‘‘हमारे अपने स्टोर के मैनेजर ने रकम में काफी हेरफेर किया. इसलिए उसे हटा दिया. पति परेशान थे. मैं घर पर खाली रहने के कारण दिनभर ऊबती थी, इसलिए मैं ने कहा कि मैं एमबीए हूं. यदि आप कहें तो स्टोर संभाल लूं. लेकिन मेरी शर्त है कि मैं पूरी सैलरी यानी उतनी ही जितनी मैनेजर लेता था लूंगी.’’

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पति अमर खुश हो कर बोले, ‘‘हां, तुम पूरी सैलरी ले लेना… वैसे सबकुछ तुम्हारा ही तो है.’’

पहले महीने तो कई बार मांगने पर दे दी, लेकिन अगले महीने से कुछ नहीं. ‘सबकुछ तुम्हारा वाला’ डायलौग बेवकूफ बनाने के लिए काफी है.

इस के साथ ही कोई भी गलती हो जाने पर सारे स्टाफ के सामने अपमानित करने से भी नहीं चूकते.

मध्यवर्गीय परिवार की इशिता शादी से पहले से ही काम करती थीं. वे अपने भाई को अपने पैसों से पढ़ा रही थीं और फिर शादी के दौरान दहेज आदि में भी उन का पैसा काफी खर्च हुआ था.

पति आशीष ने सीधे तो नहीं, लेकिन घुमाफिरा कर पूछा कि तुम तो पिछले कई सालों से काम कर रही थीं, बैंक बैलेंस तो कुछ भी नहीं है.

पति की बात सुनते ही इशिता हैरान हो उठीं. वे ऐडवर्टाइजिंग फील्ड में थीं, साथ ही कपड़ों का भी बहुत शौक था. पार्लर जाना उन के लिए आवश्यक था पर पति के लिए फुजूलखर्ची. पत्नी का औफिस अच्छी तरह ड्रैसअप हो कर जाना पति को पसंद नहीं आता था.

इशिता की सैलरी बाद में आती उस के पहले ही खर्च और इनवैस्टमैंट की प्लानिंग तैयार रहती. यदि वे कुछ बोलतीं, तो रिश्तों में खटास. इसलिए मन मार कर रहतीं.

मुंबई की रीना जौहरी अपना दर्द सा झा करते हुए कहती हैं, ‘‘मेरी सब की उंगलियों में डायमंड रिंग देख कर खुद भी पहनने की बहुत इच्छा थी. मैं ने पति को बता कर एक रिकरिंग स्कीम से 1 लाख जोड़े. जब वह रकम मैच्योर हुई तो मैं ने जब अंगूठी की बात कही, तो पति सुधीर बोले,

‘‘क्या फर्क पड़ता है कि अंगूठी डायमंड की है या गोल्ड की?’’

मैं ने रुपए म्यूचुअल फंड में इनवैस्ट कर दिए हैं. वे रुपए तुम्हारे ही रहेंगे. तुम्हारे नाम से ही इनवैस्ट किए हैं. रीना की आंखों में आंसू आ गए. सवाल है कि पैसा पत्नी का, फैसला पति क्यों लें?

पति का फर्ज

लखनऊ की नीरजा त्रिपाठी की शादी बहुत संपन्न परिवार में हुई थी. वे बताने लगीं, ‘‘मैं ने ससुराल जा कर कुछ दिनों बाद फिर से जौब जौइन की. औफिस लगभग 10 किलोमीटर दूर था. मैं पति से स्कूटी या गाड़ी दिलवाने को कहती रही, लेकन वे अपनी आदत के अनुसार टालते रहे कि तुम कैब से जा सकती हो, टैक्सी से जा सकती हो आदि. मगर लखनऊ में ये आसानी से नहीं मिलतीं.’’

जब उन्होंने अपने पैसों से स्कूटी खरीदने की बात कही तो घर में  झगड़ा हुआ.

आवश्यकता यह है कि पति पत्नी की जरूरतों को सम झे, पत्नी की आवश्यकता, इच्छा, जरूरतों का सम्मान करे. उस की प्राथमिकताओं को सम झने की कोशिश करे.

मल्टीनैशनल कंपनी में काम करने वाली रिद्धि की बहन सिद्धि उस के घर पहली बार आई थी. वह छोटी बहन को मुंबई घुमाने के लिए रोज कहीं न कहीं जाती. उस समय पति अर्पित भी उन लोगों के साथ ही रहते. एक दिन वह औफिस गए थे. दोनों बहनें मौल में शौपिंग करने गईं. उस ने छोटी बहन को 2-3 महंगी ड्रैसेज खरीदवा दीं. पेमैंट करते ही पति के फोन पर मैसेज पहुंचा.

अर्पित ने घर आते ही गुस्से में रिद्धि से कहा, ‘‘खर्च करने की कोई लिमिट होती है. तुम तो इस तरह से पैसे उड़ा रही हो जैसे हम करोड़पति हों.’’

छोटी बहन के सामने रिद्धि से अपनी बेइज्जती सहन नहीं हुई और जरा सी बात पर अच्छाखासा  झगड़ा शुरू हो गया.

समय की जरूरत

आज समय की जरूरत है कि पतिपत्नी दोनों मिल कर अपने परिवार को आधुनिक सुखसुविधाएं प्रदान करें. आर्थिक रूप से स्वावलंबी होना महिलाओं को कामकाजी होने के लिए सब से ज्यादा प्रेरित करता है. काम करने से महिलाओं में आत्मविश्वास बढ़ता है.

वर्किंग कपल्स में अधिकतर पति अपनी पत्नी की सैलरी पर अपना पूरा हक सम झते हैं. वे चाहते हैं कि पत्नी की सैलरी भी वही अपनी मरजी के अनुसार खर्च करें.

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शुरू में कुछ महीने पत्नी भले ही संकोच में यह बरदाश्त कर ले हो सकता है कि वह मुंह से न बोले, लेकिन मन में तो सोचेगी कि जब वह पति से उस की सैलरी नहीं मांगती तो आखिर पति को क्या हक है कि वह हर महीने उस की सैलरी हथिया ले?

पतिपत्नी का रिश्ता तर्क नहीं वरन समर्पण और सम झौते से चलता है. आजकल वर्किंग कपल्स में पैसों को ले कर अकसर विवाद सुनने को मिल रहे हैं. कई बार विवाद की यह नौबत तलाक तक पहुंच जाती है.

अलग-अलग प्राथमिकताएं

आजकल मांबाप बेटियों को बेहद स्पैशल ट्रीटमैंट दे कर पालते हैं, जिस की वजह से वे ससुराल में भी स्पैशल ट्रीटमैंट चाहती हैं और जहां यह नहीं मिल पाता वहीं यह  झगड़े और असंतोष का कारण बन जाता है.

पतिपत्नी दोनों अलगअलग परिवेश, विचार एवं परिस्थितियों से गुजरे होते हैं. इसलिए दोनों की प्राथमिकताएं अलगअलग होती हैं.

पतिपत्नी में कोई भी डौमिनेटिंग नेचर का हो सकता है. ऐसी स्थिति में दूसरा हर्ट हो जाता है.

यदि पति पत्नी की किसी गलती पर नाराज होता है तो वह तुरंत चिढ़ जाती है कि आखिर उसे किसी का ऐटिट्यूड सहने की क्या जरूरत है. वह भी तो कमाती है.

कई बार कामकाजी पत्नी छोटी सी बात पर ओवररिएक्ट कर के चिढ़ कर नाराज हो बात का बतंगड़ बना देती है.

ऐसा कौन सा रिश्ता है, जिस में थोड़ाबहुत लड़ाई झगड़ा न हो. पतिपत्नी का रिश्ता तो छोटे बच्चों की दोस्ती की तरह होना चाहिए. पल में कुट्टी, पल में सुलह. खुशियां तो हमारे आसपास ही बिखरी पड़ी हैं. बस उन्हें ढूंढ़ने की जरूरत होती है. इसलिए जीवन में हर पल खुशियां ढूंढ़ें. -पद्मा अग्रवाल –

इन बातों पर ध्यान दें

पति-पत्नी का रिश्ता बहुत नाजुक होता है. इसलिए जरूरी है वे कि इन बातों पर अमल करें:

– एकदूसरे की इज्जत करें.

– एकदूसरे पर विश्वास करें.

– गुस्से को बीच में न आने दें.

– हर समय दूसरे की गलतियां, कमियां न निकालें.

– माफी मांगना सीखें.

– अपने पार्टनर को अपनी फरमाइश या इच्छा जरूर बताएं.

– परिवार के फैसले दोनों मिल कर करें.

– मुंह पर अपशब्द न लाएं.

– एकदूसरे की तारीफ जरूर करें.

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फैशन में रहने के लिए कपड़ों का चुनाव करें सही

फैशन एक्सपर्ट शिप्रा जी का कहना है कि मन में अक्सर यही कशमकश रहती है कि क्या पहनकर जाएं ताकि हम सबसे अलग दिखे. पहने गए कपड़े आपकी इमेज को बेहतर दिखाते हैं और कई बार पहने हुए कपड़े आपको फूहड़ भी साबित कर सकते हैं. इसलिए बेहद जरूरी है कि कपड़ों का चुनाव ठीक से करें. अगर आप औफिस गोइंग हैं तो कपड़ों और उसे कैरी करने के स्टाइल को लेकर यह बात और भी ज्यादा अहम हो जाती है, लेकिन क्या आपके भी मन में अक्सर यहीं सोचते रहते हैं कि आज औफिस क्या पहनकर जाएं या किसे से मिलने जा रहे हैं तो क्या पहने  ताकि लगें सबसे एकदम अलग.

मिडी ड्रेस

औफिस में हाल में मिडी ड्रेस काफी ट्रेंड कर रही हैं  मिडी ड्रेस पहनना एक अच्छा औप्शन हो सकता है. इसके साथ चाहें तो सिम्पल सा इयररिंग और ब्लौक हील वाले सैंडल भी कैरी कर सकती हैं.


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लेयर्ड क्रौप टौप्स

लेयर्ड क्रौप टौप्स’ प्लाजो का भी फैशन जीरो पर चल रहा है क्रौप टौप के साथ ब्लैक कलर का प्लाजो पहन सकती हैं हाफ हेयर लेकर पोनीटेल के साथ लाइट मेकअप और न्यूड लिपस्टिक के साथ कानों में खूबसूरत ईयररिंग्स पहन सकती हैं. जिसमें आप काफी खूबसूरत दिख सकती हैं.

 ह्यूज फ्लोरल मोटिफ्स

बात अगर  पैटर्न्स की करें तो डायग्नल स्ट्राइप्स और ह्यूज फ्लोरल मोटिफ्स का भी फैशन काफी चल रहा है  बात करें लेयर्ड फैशन की इस तरह के स्टाइल स्टेटमेंट  में आप जहां, जितने चाहें, उतने कपड़े पहन सकते हैं लेकिन याद रखें कि आप कौन सा रंग या किस तरह के कपड़े पहन रहे हैं.

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लेयर्ड फैशन


लेयर्ड फैशन में ब्लैक कलर के बौटम पहन सकती हैं इस तरह के आउटफिट के साथ हेयरस्टाइल के तौर पर आप मेस्सी बन बनाएं. यकीन मानिए कि आपके इस लेयर्ड फैशन को देखकर सबकी निगाहें आप पर ही अटक जाएंगी.

अगर आप भी करती हैं 8-9 घंटे काम तो ऐसे रखें अपनी फिटनेस का ख्याल

कौरपोरेट लाइफ की जो सब से बड़ी कमी है वह है सेहत से समझौता और बढ़ता मोटापा. जंक फूड्स, शारीरिक गतिविधि की कमी, काम का तनाव और लगातार बैठे रहने  की वजह से आप की सेहत प्रभावित हो सकती है. सारा दिन काम करने के बाद हम इतना थक जाते है और वैसे भी उस के बाद इतनी एनर्जी नहीं बचती कि हम जिम जा कर अपने शरीर का ध्यान रखें. इस सन्दर्भ में जानते हैं फिटनेस एक्सपर्ट विकास डबास से फिटनेस के कुछ खास टिप्स और ट्रिक्स ;

1. ज्यादा चाय-कौफी हो सकती है खतरनाक

देखा जाये तो हम सभी को सुबह और शाम के वक्त चाय और कौफी पीना बहुत पसंद होता है. कुछ लोगो की दिन की शुरुआत ही कौफी से होती है. पर अगर आप उन में से है जो लगातार 7 से 8 घंटे औफिस में एक जगह बैठ कर काम करती है तो चाय और कौफी पीना आप के लिए नुकसानदायक साबित हो सकता है. चाय और कौफी में चीनी और हैवी क्रीम मिल्क का इस्तेमाल किया जाता है. दोनों ही हमारी सेहत के लिए नुकसानदायक है. इस की जगह आप ग्रीन टी या फिर ग्रीन कौफी पी सकती है जो आप को काफी फ्रेश और एक्टिव रखेगा और साथ ही साथ आप की क्रेविंग्स पर भी संतुलन बनाए रखेगा.

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2. करें तबाटा व्यायाम

तबाटा व्यायाम उन लोगों के लिए है जो प्रतिदिन निर्धारित समय पर व्यायाम नहीं कर पाते. तबाटा व्यायाम के लिए आप को बस एक कार्डियो गतिविधि चुननी है जैसे कि दौड़ना, रस्सी कूदना, या साइकिल चलाना और 20 सेकंड तक लगातार यह करना है. 10 सेकंड के लिए आराम कर के  5-7 बार यह क्रिया दोहरानी होती है.

3. फ्रूट्स है जरूरी

जितना जरूरी सही मात्रा में खाना और सोना होता है उतना ही जरुरी सही मात्रा में वेजटेबल्स और फ्रूट्स लेना भी है. हमे पूरे दिन में कम से कम 5 अलग तरह की सब्जियां और 2 तरह के फल खाने चाहिए. कोशिश करे कि आप एक सब्जी उबली हुई और एक कच्ची खाएं. फ्रूट्स की बात करे तो हमें रोज सेब, केला और पपीते का सेवन जरूर करना चाहिए. इन सभी में एंटी-औक्सीडेंट और माइक्रो-न्यूट्रीशन की काफी मात्रा होती है जो हमारे शरीर के लिए काफी फायदेमंद होता है .

 

4. ग्रीन टी है बेस्ट

शाम को चाय के समय हमें बाहरी तली भुनी चीजें या पैकेट्स की चीजें बिस्कुट आदि नहीं खानी चाहिए. कोशिश करें की चाय की जगह ग्रीन टी लें और किसी बिस्कुट या समोसे के बजाए रोस्टेड चना या फिर मूंगफली खाए. आप चाहे तो फ्रूट सलाद भी खा सकती है जिस में अपने मनपसंद के फ्रूट्स डाल सकती हैं. अगर आप को कुछ चटपटा खाने का मन है तो उबली हुई मूंगदाल में प्याज,टमाटर चाट मसाला डाल कर टेस्टी स्नैक बना कर ऑफिस ले जा सकती हैं. इस में फाइबर और प्रोटीन की मात्रा भरपूर होती है.

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5. नींद है जरूरी

न्यूनतम 8 घंटे की नींद शरीर के लिए बेहतर होती है. इस 8 घंटे की नींद में आप के शरीर को अच्छे से आराम करने का समय मिलता है जिस से आप सारा दिन एक्टिव फील करती है. सोते समय यह सुनिश्चित करें लें कि आप के आसपास लैपटॉप, मोबाइल फोन, गेमिंग गैजेट्स जैसी चीज़े दूर हो.

जानें क्यों वर्किंग वुमंस के लिए जरूरी है इमोशनल बैलेंस

आज की तेज रफ्तार भागतीदौड़ती जिंदगी में रोजमर्रा की कामकाजी चुनौतियों तथा घरपरिवार दोनों जिम्मेदारियों को संभालते हुए तनाव तथा भावनात्मक उतारचढ़ाव आज की नारी की जिंदगी का हिस्सा बन गए हैं.

आज महिलाएं घर की चारदीवारी से बाहर निकल कर व्यावसायिक जगत में अपनी पहचान बनाने व पांव जमाने के लिए प्रयत्नशील हैं. किंतु पुरुष वर्चस्व को चुनौती देने का यह सफर आसान नहीं होता. आमतौर पर महिला को कहीं लिंग भेद का सामना करना पड़ता है, तो कहीं पुरुष की कामुक दृष्टि का. मातृत्व का दायित्व तथा घरेलू उत्तरदायित्वों का बोझ उस पर होने से अकसर बिना परखे ही उसे अयोग्य मान लिया जाता है. घर तथा बाहर के इस संघर्ष में खीज, क्रोध और चिड़चिड़ापन मन पर हावी होने लगता है और मन तनाव से घिरने लगता है. मानसिक संतुलन तथा निराशावादी सोच उसे हतोत्साहित करने लगती है. ऐसे में अपनी भावनात्मक ऊर्जा व शक्ति को बढ़ा कर स्थितियों का संयम, बुद्धिमत्ता तथा दृढ़ता से सामना करना और घर व नौकरी दोनों के अंतहीन कार्यों के मध्य सामंजस्य की क्षमता बढ़ाना ई क्यू यानी इमोशनल कोशंट ही करता है.

आप नौकरी के लिए इंटरव्यू देने जाती हैं तो आजकल आप का आईक्यू चैक नहीं किया जाता. इंटैलिजैंट तो आप हैं पर क्या आप का ईक्यू भी उतना ही स्ट्रौंग है? क्या आप में इतनी भावनात्मक शक्ति है कि आप प्रैशर में, तनाव में रह कर कार्य कर सकेंगी? आप टीम स्पिरिट में कितना चल पाएंगी? कहीं आप का नर्वस ब्रेकडाउन तो नहीं हो जाएगा? ऐसा कुछ न हो इस के लिए आप को अपना ई क्यू बढ़ाना पड़ेगा.

आज की नारी निस्संदेह बहुमुखी प्रतिभा संपन्न है. लेकिन जहां एक ओर दफ्तर में उस से पूर्ण अपेक्षा की जाती है, वहीं घर को सुरुचिपूर्ण ढंग से व्यवस्थित करना, बच्चों को समुचित मार्गदर्शन देना, उन्हें प्यार व देखभाल से पालना, पढ़ाईलिखाई व खेलकूद में सहयोग देना, सोसाइटी में पति के कंधे से कंधा मिला कर चलना, परिवार व मित्रों के साथ सामाजिक आचारव्यवहार निभाना जैसे कार्य भी उसी से अपेक्षित होते हैं. ऐसे में शारीरिक व मानसिक थकावट कब तनाव का रूप धारण कर लेती है, पता ही नहीं चलता. बिना मानसिक संतुलन खोए आने वाली हर कठिन परिस्थिति का संयम, बुद्धिमत्ता तथा दृढ़ता से सामना करने के योग्य बनाना ही ई क्यू का लक्ष्य होता है.

परिस्थिति का मुकाबला

आज जब आप इंटैलिजैंस तथा अवेयरनैस यानी बुद्धिमत्ता व जागरूकता को अपने व्यक्तित्व का एक अहम पहलू मानती हैं, तो यह अति आवश्यक है कि इमोशनल स्मार्टनैस का भी ध्यान रखें. घर हो या दफ्तर, आप को हर रोज कई तरह की परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है. याद रखें की विपरीत परिस्थितियां तो रहेंगी, कहीं न कहीं ऐसे लोग भी आप के आसपास रहेंगे, जो सिर्फ दूसरों के लिए परेशानियां तथा कठिनाइयां उत्पन्न करना ही अपना फर्ज मानते हैं.

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दफ्तर में बौस अगर आप को बेवजह डांटते हैं या आप के सहकर्मी आप से व्यावसायिक प्रतिस्पर्धा रखते हैं अथवा किसी प्रोजैक्ट की डैड लाइन तक आप काम पूरा नहीं कर पा रही हैं, तो समस्या की जड़ पर ध्यान दें.

यह आप का नितांत व्यक्तिगत निर्णय होता है कि दुख, तनाव और परेशानी में घिर कर रोनाबिसूरना है या शांत व तटस्थ रह कर समस्या का हल ढूंढ़ना है.

यही इमोशनल स्मार्टनैस है, जिस के अभाव में आप अपनी अक्षमताओं, असफलताओं तथा बेबसी पर बैठ कर आंसू बहाते हुए सब के सामने ‘इमोशनल फूल’ बन कर रह जाएंगी.

भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद ने वर्ष 2001-2011 के बीच किए अध्ययन में पाया है कि 30 से 45 साल की 36% कामकाजी महिलाएं तनाव तथा हाई ब्लडप्रैशर की शिकार हैं. इतना ही नहीं, 31% कामकाजी युवा महिलाएं माइग्रेन के अथवा किसी अन्य प्रकार के दर्द की शिकार हैं. 65% दर्द के कारण 6 से 8 घंटे की सामान्य नींद नहीं ले पातीं. 49% पर दर्द की वजह से मानसिक स्वास्थ्य पर भी असर हो रहा है. वहीं 13% को क्रौनिक दर्द की वजह से नौकरी तक छोड़नी पड़ी है.

नैशनल इंस्टिट्यूट औफ औक्युपेशनल हैल्थ की रिपोर्ट के अनुसार पिछले 5 सालों में युवाओं की कार्यक्षमता पर प्रतिकूल असर पड़ा है. मैट्रो शहरों में काम करने वाले पुरुष ही नहीं महिलाएं भी तनाव, अनिद्रा, डायबिटीज और मोटापे का शिकार पाई गई हैं.

आप क्या करें

आप ई क्यू के प्रयोग से कार्यक्षेत्र का तनाव कम करें और इस के लिए अपनाएं आगे बताए जा रहे तरीके:

न कहना सीखें

यह सत्य है कि अधिक योग्य व्यक्ति को ही अधिक जिम्मेदारियां सौंपी जाती हैं. बेशक आप योग्य हैं तथा सभी कार्य पूर्ण कुशलता से कर सकती हैं. पर कभीकभी ‘न’ कहने की कला भी सीखें. कोई भी व्यक्ति पूर्ण नहीं होता, इस बात को स्वीकारें. बौस की नजरों में ऊपर उठने के लिए क्षमता से अधिक स्ट्रैस लेना ठीक नहीं.

रखें सकारात्मक सोच

कार्यक्षेत्र से जुड़ी समस्याओं से जूझने के लिए हमेशा अपनी सोच को आशावादी तथा सकारात्मक रखें. दूसरों से मिली आलोचनाओं तथा अतीत में मिली असफलताओं को स्वयं पर हावी न होने दें.

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एकाग्रता बढ़ाएं

जब आप तनावमुक्त तथा शांत हो कर कोई कार्य करेंगी तभी उस कार्य की गुणवत्ता प्रभावशाली होगी. इसलिए अपने लक्ष्य की ओर ध्यान केंद्रित करें तथा एकाग्रचित्त हो कर बिना इधरउधर की व्यर्थ की बातों पर ध्यान दिए लगन से अपना कार्य करें.

कार्यक्षेत्र की राजनीति से दूर रहें

अकसर कार्यस्थलों में वैचारिक एवं कार्यप्रणाली संबंधी राजनीति हावी रहती है. आप बिना तनाव में आए ध्यानपूर्वक अपना कार्य करें. इमोशनल ब्लैकमेलिंग की राजनीति से बच कर रहें.

बौस के साथ संपर्क में रहें

कार्यक्षेत्र की किसी भी प्रकार की शारीरिक अथवा मानसिक परेशानी सदैव बौस के साथ शेयर करें. अपने क्रियात्मक तथा व्यावहारिक सुझाव भी बौस के साथ बांटने की हिम्मत रखें. इस से आप की कार्यशैली का पता चलता है.

यह सदैव याद रखें कि तनाव तो हर कार्यक्षेत्र में होता ही है, किंतु अपनी योग्यता एवं इमोशनल स्मार्टनैस से आप अपने कार्य को सरल एवं तनावमुक्त बना सकती हैं. उसी कार्यकुशलता से आप घर में भी छोटेछोटे प्रयोगों द्वारा अपने कामकाज को सहजता से कर पाने में सक्षम होंगी.

नियमित करें व्यायाम

फिजियोथेरैपिस्ट रजनी कहती हैं कि व्यायाम से ऐंडोर्फिंस में वृद्धि होती है. यह रसायन दिमाग में उल्लास का संचार करता है, जिस से शारीरिक तनाव अपनेआप ही कम हो जाता है. व्यायाम शरीर की क्षतिग्रस्त कोशिकाओं को निर्मित करता है. याद रखें कि मोटापा तथा वजन कम करना ही व्यायाम का एकमात्र कार्य नहीं होता. इम्यून सिस्टम में सुधार के साथसाथ व्यायाम तनाव के नकारात्मक असर को भी समाप्त करता है.

यदि हम इमोशनली स्मार्ट व सुदृढ़ होंगे तो अपनी कार्यशैली व जीवनशैली में सकारात्मक परिवर्तन ला कर तनाव को दफ्तर ही नहीं घरेलू कामकाज में अड़चन बनने से भी रोक पाएंगे.

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मान लीजिए कि आप को दफ्तर समय पर पहुंचना है किंतु आप की कामवाली बाई बिना पूर्व सूचना के छुट्टी पर चली गई है. सारा घर व रसोई फैली पड़ी है. नाश्ता बनाना, सब का लंच पैक करना, बच्चों को स्कूल भेजना आदि अंतहीन कामों में आप की चिड़चिड़ाहट सातवें आसमान को छूने लगती है. तनाव तथा बौखलाहट में आप अपना सारा क्रोध पति तथा बच्चों पर निकालेंगी. स्वयं पर तरस खाएंगी कि सब कुछ आप को अकेले ही झेलना पड़ता है. यह स्थिति वास्तव में विकट होती है किंतु इस से जूझने का जो तरीका आप चुनती हैं, वह आप की इमोशनल दृढ़ता व स्मार्टनैस पर ही निर्भर करता है.

आप स्मार्ट हैं तो सुबहसुबह क्रोध व तनाव से घिरीं रोतेझींकते हुए दिन की शुरुआत करने के बजाय धैर्य से काम लेंगी. पति को मुसकरा कर एक कप गरम चाय का प्याला पकड़ाएंगी तथा प्यार से उन्हें रसोई में अपनी सहायता के लिए बुलाएंगी. बच्चों के साथ मित्रवत व्यवहार करते हुए उन्हें अपना स्कूल बैग, यूनिफौर्म तथा जूते इत्यादि स्वयं तैयार करने को प्रेरित करेंगी. लंच यदि न भी पैक हो पाया तो कोई बात नहीं. चिकचिक करने से कहीं बेहतर होगा कि बच्चे स्कूल कैंटीन से ले कर कुछ खा लें. एकाध दिन बाहर खा लेने में कोई हरज नहीं. आप भी खुश और बच्चे भी.

रिश्तों का तनाव

कहते हैं कि रिश्ते बनाए नहीं निभाए जाते हैं. यदि आप इमोशनली स्मार्ट हैं, तो इस बात को आप बेहतर ढंग से समझ पाएंगी कि 2 व्यक्तियों में वैचारिक मतभेद होता ही है. अत: छोटीछोटी बातों से घबरा कर रिश्तों में कड़वाहट तथा तनाव लाने से बेहतर है उन्हें नजरअंदाज कर देना. कभीकभी ऐसा भी होता है कि न चाहते हुए भी आप स्वयं को भावनात्मक रूप से टूटा व हारा हुआ पाती हैं. घर का कोई न कोई सदस्य बेवजह आप को कुछ चुभने वाली बातें सुना जाता है. सास, जेठानी या ननद आप के हर काम में मीनमेख निकालती हैं, पति की अपेक्षाओं पर आप खरी नहीं उतरती हैं, इसलिए उन के क्रोध का पात्र बनी रहती हैं.

घबराएं नहीं, धैर्य से काम लें. एकांत में बैठ कर एकाग्रचित्त हो कर अपने व्यवहार तथा कार्यों का निष्पक्षता से विश्लेषण करें. यदि वास्तव में आप को अपने व्यवहार में कुछ गलत लगे तो बिना किसी पूर्वाग्रह व अहं को आड़े लाए स्वयं को बदलने की कोशिश करें तथा संबंधित व्यक्ति से माफी मांग लें. वार्त्तालाप कभी बंद नहीं होना चाहिए. ऐसा होने पर गलतफहमियां और बढ़ जाती हैं. आप स्मार्ट हैं, स्ट्रौंग हैं, आप में आत्मविश्वास भरा है, तो आप ये सब निश्चित रूप से कर पाएंगी, क्योंकि आप जानती हैं कि तनाव तथा परेशानियों में जीना स्वयं की गलतियां सुधार लेने से कहीं कठिन होता है.

यदि आप सही हैं तो अनर्गल तथा व्यर्थ की बातों से व्यथित होने की कतई आवश्यकता नहीं. स्वयं को भावनात्मक रूप से सबल बनाएं तथा परिवार वालों को अपना दृष्टिकोण प्यार से समझाएं. सामने वाला गरम हो रहा हो तो आप ठंडी रहें. पहले उसे ठंडा होने दें फिर स्नेह से उसे पिघला कर अपने सांचे में ढाल लें. बात बन जाएगी.

ये सब मेरे साथ ही क्यों होता है? सब मुझे ही गलत क्यों समझते हैं? सब मिल कर मेरे लिए सिर्फ समस्याएं ही क्यों बढ़ाते हैं? हर बार सिर्फ मैं ही क्यों झुकूं? यह सब सोचते ही आप स्वयं को बेचारी तथा शक्तिहीन मानने लगती हैं. ‘मैं ही क्यों’ आप को एहसास दिलाता है कि आप लोगों एवं परिस्थितियों की सताई हुई हैं. ‘बेचारी मैं’ का भाव आप को आत्मदया के अंधे कुएं में धकेल देता है.

समस्याओं का हल

परीक्षा में बच्चों के परिणाम अच्छे न आना अथवा युवा होते बच्चों के साथ वैचारिक संघर्ष होना अथवा बच्चों की समुचित देखभाल की कमी के चलते बच्चों में असंयमित तथा असंतुलित व्यवहार का बढ़ना भी महिलाओं के लिए बहुत बड़ा सिरदर्द बन जाता है. ऐसे में आप क्या करेंगी? संयम खो कर अनापशनाप डांटफटकार एवं टोकाटाकी तथा रोकटोक शुरू कर करेंगी या स्वयं पर काबू रख कर बच्चों के मनोविज्ञान को समझते हुए अपने मित्रवत व्यवहार से उन्हें अपने विश्वास में ले कर समस्याओं का युक्तिपूर्ण हल निकालने की चेष्टा करेंगी? बच्चों के सामने कभी भी ‘परफैक्ट’ या ‘रोल मौडल’ बनने की चेष्टा न करें. अपनी समस्याओं, सफलताओं, कठिनाइयों, अपने डर, सपने, उम्मीदों तथा असफलताओं को खुल कर बच्चों के साथ बांटें.

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ऐसा भी होता है

कई बार महिलाओं के साथ ऐसा भी होता है कि सब कुछ जानतेसमझते हुए भी वे अपनी भावनाओं पर काबू पाने में असमर्थ रहती हैं तथा ‘इमोशनल ब्लास्ट’ का शिकार हो जाती हैं. इस की परिणिति डर, निराशा, अवसाद, हीनभावना, डिप्रैशन तथा आत्मविश्वास की कमी जैसी समस्याओं में होती है. हारमोनल परिवर्तन इस समस्या का कारण हो सकते हैं. बड़ी उम्र में मेनोपौज के समय में ऐसे लक्षण अकसर महिलाओं में दिखने लगते हैं.

ऐसे में योग्य चिकित्सक से सलाह लें. खानपान तथा जीवनशैली में सकारात्मक परिवर्तन लाएं. अच्छी तथा आशावादी सोच को बढ़ाने वाली पुस्तकें पढ़ें तथा छोटीछोटी बातों में प्रसन्न रहना सीखें.

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