क्यों जरूरी है कोचिंग

लेखक- नवीन सिंह पटेल

सीमा की ख्वाहिश मैडिकल में कैरियर बनाने की थी. उस के शिक्षक मम्मीपापा भी इकलौती बेटी को डाक्टर बनाना चाहते थे. उन्हें अपनी बेटी की मेहनत पर पूरा भरोसा था. 10वीं कक्षा में उस ने 95 फीसदी अंक हासिल कर के न सिर्फ अपनी क्षमता दिखाई वरन घर वालों के सपनों को पंख भी लगा दिए. मैडिकल के कंपीटिशन से सभी वाकिफ थे. सीमा ने दिल्ली के एक प्रतिष्ठित कोचिंग सैंटर में दाखिला ले लिया. स्कूल की पढ़ाई के साथ 2 साल तक नियमित मैडिकल की कोचिंग ने रंग दिखाया. आज वह एक मैडिकल कालेज में अपने सपनों की पढ़ाई में जुटी हुई है.

सीमा कहती है, ‘‘मु झे कोचिंग सैंटर में2 सालों में जो सिखायाबताया गया वह मैं और कहीं हासिल नहीं कर सकती थी. पढ़ाई के तौरतरीके और बेसिक्स क्लियर करने में कोचिंग ने बहुत मदद की.’’

शानदार सफलता पाने की हसरत हर किसी की होती है. बात चाहे आला दर्जे की नौकरी पाने की हो या फिर ऊंची कमाई दिलाने वाले कोर्स में दाखिला लेने की, कोचिंग अचूक हथियार साबित हो रही है. तभी तो कोचिंग लेने वालों की भीड़ दिनबदिन बढ़ती जा रही है और कोचिंग सैंटरों की भी. कई स्कूलों ने तो अपने ही कैंपस में कोलैबोरेशन कर के इंजीनियरिंग या मैडिकल की कोचिंग दिलानी शुरू कर दी है.

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कोचिंग बच्चों को सही दिशा और प्रोत्साहन देती है, लक्ष्य पाने का हुनर सिखाती है. कोचिंग सैंटरों की पढ़ाई टौनिक सरीखी होती है.

दिल्ली के एक प्रतिष्ठित कोचिंग सैंटर में सिविल सेवा की तैयारी में जुटे एक छात्र राजीव कहते हैं, ‘‘आईएएस की परीक्षा के लिए कोई किताब प्रकाशित नहीं हुई है कि उसे पढ़ो और पास हो जाओ. उस का कोर्स बहुत विस्तृत है. इस के लिए सैकड़ों किताबें खरीदनी और पढ़नी पड़ती हैं. इस में पैसा तो खर्च होता ही है, नोट्स बनाने में भी काफी समय बीत जाता है. जबकि कोचिंग सैंटर से हमें पढ़ने का सारा मैटीरियल तैयार किया मिल जाता है. परीक्षा के पैटर्न और सिलेबस में बदलाव होने पर भी कोचिंग में ऐक्सपर्ट फटाफट तैयारी करा देते हैं. यह सब घर बैठे पढ़ाई में कहां संभव है?’’

1. सही दिशा

कैरियर प्लानिंग सैंटर की निदेशक डा. शीला कहती हैं, ‘‘हम यह मान कर चलते हैं कि जो किताबें हमें रूटीन में पढ़नी हैं, प्रतियोगी परीक्षा में भी उन्हीं में से पूछा जाना है. पर ऐसा होता नहीं है. रूटीन और प्रतियोगी पढ़ाई का अंतर तब पता चलता है, जब बच्चा कोचिंग सैंटर जाता है. वहां टाइम मैनेजमैंट तो सिखाया ही जाता है, कंपीटिशन की प्रैक्टिस भी कराई जाती है. इस से एग्जाम क्रैक करना आसान हो जाता है.’’

यह मान लेना भी ठीक नहीं कि कोचिंग सैंटर में दाखिला लेने से ही सबकुछ हासिल हो जाएगा. कोचिंग का काम पौलिशिंग का है. पर कोयले पर पौलिश से क्या मिलेगा? हीरे पर पौलिश होगी तो वह चमक उठेगा. इसीलिए, वही बच्चे कामयाब हो पाते हैं, जिन में खुद कुछ है और आगे करना चाहते हैं.

2. सफलता की कुंजी

प्रतियोगी परीक्षाओं का दौर बढ़ने के साथ कोचिंग क्लासेज की उपयोगिता भी तेजी से बढ़ी है. आज सीए, सीएस, एमबीए जैसे कोर्सेज के लिए कोचिंग प्रवृत्ति बन गई है. बैंकिंग, रेलवे और एसएससी जैसे कंपीटिशन की तैयारी के लिए भी कोचिंग की संख्या में इजाफा हो रहा है. छात्रों को लगता है कि कोचिंग ही सफलता का मूल मंत्र है.

दरअसल, बच्चों को प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए कालेज में न माहौल मिल पाता है, न कोचिंग सैंटर के प्रोफैशनल टीचर सरीखी पढ़ाई ही मिल पाती है. कोचिंग क्लासेज में हर विषय का बढि़या स्टडी मैटीरियल मिल जाता है, जो अच्छे अंक प्राप्त करने में मददगार बनता है.

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3. कोचिंग की जरूरत

कोचिंग की जरूरत और उपयोगिता निरंतर बढ़ रही है और छात्रों की संख्या भी. कमाल की बात है कि यह कारोबार हजारों करोड़ में पहुंच चुका है. राजस्थान में कोटा, उत्तर प्रदेश में कानपुर, इलाहाबाद व लखनऊ, बिहार में पटना, मध्य प्रदेश में इंदौर और महाराष्ट्र में मुंबई जैसे शहर अब अच्छी कोचिंग के लिए जाने जाते हैं. अकेले कोटा में ही हर साल करीब 6 लाख से अधिक छात्र कोचिंग के लिए पहुंचते हैं. आईआईटी हो या अन्य प्रतियोगी परीक्षाएं, कोटा को कोचिंग का मक्का समझा जाने लगा है.

कोचिंग सैंटरों के बीच बढ़ती प्रतिस्पर्धा के चलते यहां पढ़ाने के तौरतरीकों मैं टैक्नोलौजी का इस्तेमाल भी शुरू हो गया है. आज हर बड़ा कोचिंग इंस्टिट्यूट औनलाइन टैस्ट के जरिए अपने छात्रों की दक्षता आंक रहा है. एयरकंडीशंड क्लासरूमों और लाइबे्ररियों की सुविधा भी कोचिंग सैंटर दे रहे हैं. कई कोचिंग सैंटर गरीब बच्चों को मुफ्त कोचिंग भी दे रहे हैं.

क्यों भा रहीं पुरुषों को बड़ी उम्र की महिलाएं

1981 में रिलीज हुई ‘प्रेम गीत’ फिल्म के गाने की एक लाइन ‘न उम्र की सीमा हो न जन्म का हो बंधन…’ बौलीवुड सितारों पर एकदम सटीक बैठती है. इन दिनों फिल्म इंडस्ट्री में मलाइका अरोड़ा और ऐक्टर अर्जुन कपूर के अफेयर की चर्चा है और इस से ज्यादा चर्चा उन के बीच एज गैप की है. दोनों की उम्र में लगभग 11 साल का अंतर है और इस वजह से उन्हें अकसर सोशल मीडिया पर ट्रोल होना पड़ता है.

एक इंटरव्यू के दौरान मलाइका अरोड़ा ने कहा था कि हम एक ऐसे समाज में रहते हैं जहां अगर एक उम्रदराज आदमी एक यंग लड़की के साथ रोमांस करे तो लोग उसे स्वीकार कर लेते हैं लेकिन वहीं एक ज्यादा उम्र की महिला अपने से कम उम्र के लड़के से प्यार करें तो लोग उसे ऐक्सैप्ट नहीं करते.

समाज में यह धारणा है कि शादी के वक्त लड़की की उम्र लड़के से कम होनी चाहिए, क्योंकि माना जाता है कि पति घर का मुखिया होता है तो उसे अनुभवी और ज्यादा सम झदार होना चाहिए. भारत में सरकार की तरफ से भी शादी की कानूनन उम्र लड़के के लिए 21 और लड़की के लिए 18 साल रखी गई है.

मगर बदलते समय में प्यार करने के अंदाज में भी काफी बदलाव आया है और इस का सब से बड़ा उदाहरण है लड़कों का अपनी उम्र से बड़ी लड़कियों के प्रति आकर्षित होना. अब उम्र के अंतर को नजरअंदाज कर प्यार को सम्मान के भाव से देखा जा रहा है. लड़के अपने से उम्र में छोटी नहीं, बल्कि खुद से बड़ी लड़कियों को ज्यादा पसंद करने लगे हैं.

पुरुषों का महिलाओं के प्रति आकर्षित होना हमेशा से ही स्वाभाविक प्रक्रिया रही है. प्रकृति ने वैसे भी पुरुष और महिला को एकदूसरे के पूरक के तौर पर बनाया है, जिस की वजह से इन दोनों के बीच परस्पर आकर्षण होना लाजिम है. लेकिन जब यह आकर्षण अपने से बड़ी उम्र की महिला के प्रति होने लगे तो यह खास बन जाता है.

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हाल ही में एक रिसर्च में पाया गया है कि पुरुष अपने से बड़ी उम्र की महिला से संबंध बनाने के बाद मानसिक और शारीरिक रूप से ज्यादा संतुष्टि प्राप्त करते हैं.

मर्द और औरत की उम्र में इस अंतर का रिलेशनशिप बनते देखे जाना आज आम बात होती जा रही है. लेकिन इस के क्या कारण हैं? क्या उम्र के साथ जहां खूबसूरती ढलती है, वहीं कुछ सकारात्मक चीजें भी महिलाओं में बढ़ जाती हैं, जिन्हें पुरुष शायद नोटिस करते हैं या ऐसी क्या चीजें हैं जो पुरुष को बड़ी उम्र की महिलाओं की ओर आकर्षित करती हैं? आइए जानते हैं:

क्या कहते हैं साइकोलौजिस्ट

कुछ साइकोलौजिस्ट मानते हैं कि 45 से 50 साल की उम्र में उन में सैक्स के प्रति उत्तेजना और सम झ बढ़ जाती है और किसी कम उम्र की महिला की तुलना में वे पुरुष को ज्यादा संतुष्ट कर सकती हैं. यह भी एक कारण है कि पुरुष मैच्योर महिलाओं के प्रति आकर्षित होते हैं. वहीं कई शोध बताते हैं कि जहां पुरुष इंटीमेट होने में ज्यादा वक्त नहीं लगाते वहीं महिलाओं को इस के लिए वक्त चाहिए होता है.

महिलाएं भी अपने से कम उम्र पुरुष की ओर अट्रैक्ट होती हैं, क्योंकि वे अधिक ऊर्जावान होते हैं. इस के अलावा सैक्सुअल प्रेजैंटेशन महिलाओं के बेहद माने रखती है, साथ ही वे फिजिकल और इमोशनल दोनों ही भावनाओं को बांटती हैं. इसलिए पुरुषमहिलाओं की उम्र का यह कौंबिनेशन परफैक्ट कहा जा रहा है. और भी बहुत से कारण है, जिन के चलते पुरुष को बड़ी उम्र की महिलाएं भा रही हैं, जैसे-

आत्मविश्वास: बड़ी उम्र की महिलाएं अपनेआप को बहुत अच्छी तरह सम झती हैं. वे भी फैसला बचपने में नहीं, बल्कि बहुत सोचसम झ कर लेती हैं. वे अपनेआप में बहुत हद तक मैनेज्ड होती हैं. वे जानती हैं कि उन्हें अपनी लाइफ से क्या अपेक्षाएं रखनी चाहिए और क्या नहीं. वे आत्मविश्वासी होती हैं और इसीलिए पुरुष को मैच्योर महिलाएं ज्यादा आकर्षित करती हैं.

जिम्मेदार: समय और तजरबे के साथ मैच्योर महिलाएं जहां अपनी जिम्मेदारियों को बखूबी निभाना सीख जाती हैं, वहीं वे मुश्किल हालात का भी अच्छी तरह सामना कर पाती हैं. कई मामलों में वे न सिर्फ अपने तजरबे की मदद लेती हैं, बल्कि जरूरत पड़ने पर इन के हल भी ढूंढ़ निकालती हैं, जिस की वजह से कई जगहों पर पुरुष उन के साथ रिलैक्स महसूस करते हैं.

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ऐसी महिलाएं अपने कैरियर को ले कर काफी सैट होती हैं. अपनी लाइफ को और बेहतर बनाने के लिए पुरुषों को ऐसी ही जिम्मेदार साथी की जरूरत होती है जो हर पथ पर उन के साथ कंधे से कंधा मिला कर चले.

स्वतंत्र: युवतियों और किशोरियों से एकदम अलग सोच रखने वाली बड़ी उम्र की महिलाएं मानसिक तौर पर स्वतंत्र होती हैं. अकसर बड़ी उम्र की महिलाएं कमाऊ होती हैं और पूरी तरह से आत्मनिर्भर होती हैं. अत: जरूरत पड़ने पर वह अपने साथी को आर्थिक रूप से सपोर्ट भी करती हैं.

ईमानदार: प्रेम संबंधों में सम्मान और स्पेस, दोनों ही अलग महत्त्व रखते हैं और बड़ी उम्र की महिलाएं यह बात अच्छी तरह सम झती हैं. वे अपने रिश्ते के प्रति बहुत ईमानदार होती हैं, साथ ही अपने साथी की भावनाओं को भी सम झती हैं. लेकिन अगर वे अपने साथी के प्रति ईमानदार हैं तो चाहत भी रखती हैं कि उन का साथी भी उन के प्रति वफादार रहे.

अनुभवी: बड़ी उम्र की महिलाएं अनुभवी होती हैं, क्योंकि उन्होंने अपने जीवन में बहुत कुछ अनुभव कर लिया होता है. इसलिए जीवन में आने वाली मुश्किलों के लिए वे तैयार रहती हैं.

बात करने का सलीका: बड़ी उम्र की महिलाओं का व्यवहार, ‘पल में तोला पल में मासा’ की तरह नहीं होता. वे कोई भी बात सोचसम झ कर और बड़े सलीके से करती हैं.

सैक्स: शरमाने की जगह बड़ी उम्र की महिलाएं सैक्स के दौरान अपने पार्टनर को पूरीपूरी सपोर्ट करती हैं. वे स्पष्ट तौर पर बता देती हैं कि उन्हें अपने पार्टनर से क्या अपेक्षाएं हैं जो पुरुष को बहुत पसंद आता है.     -मिनी सिंह द्य

प्रेम के आगे फीका उम्र का अंतर

बौलीवुड से ले कर हौलीवुड तक में इस तरह के कई कपल्स मिल जाएंगे जिन की उम्र में काफी अंतर है:

इमैनुएल मैक्रों: फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों अपनी पत्नी से 24 साल छोटे हैं. जिस वक्त इमैनुएल मैक्रों स्कूल में पढ़ते थे तब वे उन की टीचर थीं और दोनों के बीच उसी समय प्रेम परवान चढ़ा था.

उर्मिला मातोंडकर: एैक्ट्रेस उर्मिला मातोंडकर ने अपने से 9 साल छोटे लड़के मीर मोहसिन अख्तर से शादी की. मोहसिन बिजनैस करने वाले कश्मीरी परिवार से हैं.

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फराह खान: बौलीवुड की जानीमानी डाइरैक्टर और कोरियोग्राफर फराह खान ने भी अपने से 9 साल छोटे शिरीष कुंदर से 2001 में शादी की और आज वे 3 बच्चों के मातापिता हैं. बता दें कि फराह खान ‘मैं हू न’ फिल्म के सैट पर शिरीष कुंदर से पहली बार मिली थीं और फिर दोनों में प्यार हो गया.

प्रीति जिंटा: ऐक्ट्रैस प्रति जिंटा ने अपने से 10 साल छोटे जीन गुडइनफ से 2016 में शादी की थी. आज दोनों खुशहाल जीवन व्यतीत कर रहे हैं.

प्रियंका चोपड़ा: ऐक्ट्रैस प्रियंका चोपड़ा ने पिछले साल ही ईसाई और हिंदू रीतिरिवाज के साथ हौलीवुड ऐक्टर और सिंगर निक जोनस से शादी की थी. दोनों का अफेयर काफी चर्चा में रहा. निक जोनस, प्रियंका से 10 साल छोटे हैं.

40 पार ढूंढ़ लें खुशियां अपार

अकेली होने का कारण चाहे कोई भी हो यानी अविवाहित हों, तलाकशुदा हों या फिर विधवा यदि आर्थिक रूप से सक्षम हैं तो अपनेआप को खुशहाल ही मानें. इतने वर्षों का अनुभव है आप के पास. यही वक्त है जब आप अपने दम पर सही निर्णय ले कर अपने जीवन को खुशहाल बना सकती हैं, खुद को पहचान कर दुनिया में अपनी पहचान बना सकती हैं. आर्थिक रूप से सक्षम न भी हों तो भी घबराने की आवश्यकता नहीं. आप स्वतंत्र हैं. अपने अनुकूल काम कर कमाई कर सकती हैं. अपना रूटीन तय कर सकती हैं कि आप अपना समय अपने ढंग से कैसे व्यतीत करना चाहती हैं. कैसे खुश रह सकती हैं. बस इस के लिए टाइम मैनेजमैंट जरूरी है यानी जिंदगी में अपार खुशियां पाने के लिए सकारात्मक सोच और समय प्रबंधन बेहद जरूरी है.

सदैव कुछ अच्छा सीखने की ललक और इंसानी जज्बा अपने व्यक्तित्व में ढाल लें. अपनी सोच, अपना नजरिया सकारात्मक रखते हुए निम्न मुख्य बातों के लिए समय प्रबंधन अवश्य करें:

– काम का समय.

– सेहत का समय.

– शौक का समय.

– पड़ोसियों, रिश्तेदारों व दोस्तों का समय.

– मनोरंजन का समय.

– सामाजिक कार्यों का समय.

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इन में सब से पहला है कामकाज का समय. यदि आप नौकरी, व्यवसाय अथवा अन्य किसी पेशे में हैं तो उस के लिए समय पहले ही निर्धारित हो. बेहतर हो उस की तैयारी का समय भी आप अवश्य निर्धारित कर लें जैसे क्या पहनना व ले जाना है, ये सब पहले ही तैयार रखें. जरूरी पेपर, फाइल, फोटोकौपी इत्यादि. यदि काम न करती हों और आर्थिक स्थिति सही न हो तो अपने अनुरूप कोई काम अवश्य पकड़ लें या छोटामोटा व्यवसाय ही कर लें ताकि आप का समय और घर दोनों ही सुव्यवस्थित हो सकें.

खुद के लिए समय

फिर आते हैं घरबाहर के काम. रोज के काम यानी खाना बनाना, गमलों, कूलर में पानी डालना, राशनसब्जी लाना या मंगाना, साफसफाई करनाकराना, बिल जमा करना, बैंक जाना आदि. इन के लिए भी समय तय करें. चौबीसों घंटे न लगी रहें ताकि आप अपनी अन्य जरूरतों के लिए भी समय निकाल सकें.

सुबह 1 घंटा सेहत को देना आप को पूरा दिन स्फूर्तिमय रखेगा. नियमित जो भी अनुकूल लगे व्यायाम अवश्य करें और सारे दिन के लिए चार्ज हो जाएं. स्वस्थ मनमस्तिष्क, शरीर होगा तो आप खुश रहेंगी. सकारात्मक ऊर्जा हमें अच्छा और सही कार्य करने में सहयोग करती है, यह सब को पता है.

हौबी यानी शौक के लिए भी समय रखना जिंदगी के लिए बेहद जरूरी है. एक व्यक्ति अपने जीवन में कोई न कोई शौक जरूर रखता है, जिस में वह अपने सारे दुखदर्द भूल कर खुशी और सुकून पाता है. यह मनुष्य के रिलैक्स और रिचार्ज होने का अद्भुत व अचूक उपाय है. अपना टाइम मैनेजमैंट कर इस के लिए भी थोड़ा समय रोज निकालें.

हौबी का साथ

कुछ शौक तो ऐसे होते हैं कि उन के साथ छोटेछोटे काम भी निबटाए जा सकते हैं जैसे संगीत सुनने के साथ डस्टिंग, टेबल अरेंजमैंट, कुकिंग आदि कुछ भी खुशीखुशी कर सकती हैं. हां, किताबें पढ़ने, पेंटिंग, नृत्य, घूमने, कुछ नया सीखने आदि के लिए आप को अलग से समय निकालना ही होगा, भले ही आधा घंटा. आप अनुभव करेंगी कि आप के अंदर ऊर्जा का अनोखा संचार हो रहा है. हौबी का साथ है तो फिर आप अकेली कहां? आप का सारा जहां आप के पास होगा.

रिश्तेदारों और दोस्तों के लिए भी थोड़ा समय निकालें. किसी अपने से बातें कर के सुखदुख बांटें. कभी फोन पर तो कभी मिल कर सकारात्मक बातें करें. कभी उन के साथ घूमने जाएं, बिंदास शौपिंग, मौजमस्ती करें. मनपसंद साथियों का ग्रुप बनाएं. गंभीर विषयों पर भी विचारों का आदानप्रदान करें और अपने प्रेरक अनुभवों को सा झा करें. यह थोड़ा समय भी आप को खुशी से चार्र्ज कर देगा.

कुछ देर प्रकृति, पालतू पशुपक्षी का साथ भी महसूस करें. बहुत रिलैक्स रहेंगी, साथ ही खुशी और सुकून की अनुभूति होगी.

खुशियों की चाबी

मनोरंजन और दुनिया से जुड़े रहने का समय भी अपने रूटीन में अवश्य रखें. इस के लिए सब से आसान माध्यम टीवी है. आधेपौने घंटे का समय बहुत है. ऐसा कर अपनेआप को अपडेट रखें और खुश रहें.

अंतिम प्रमुख कार्य जो खुशियों की चाबी है वह है सामाजिक कार्य. आप सप्ताह में एक बार अवश्य समाज की भलाई के लिए कुछ समय निकालें. फिर चाहे गरीब, अनाथ बच्चों, बुजुर्गों, बेसहारा औरतों, निरीह पशुओं किसी की भी भलाई का काम हो अथवा भ्रष्टाचार विरोध, नशामुक्ति आदि किसी भी मुद्दे पर कार्य करें. यह कुछ समय का आप का सहयोग समाज को तो लाभान्वित करेगा ही, साथ ही आप को भी अपार खुशियों से भर देगा.

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और भी बहुत कुछ है 40 के पार. घबराएं नहीं. फिर देखें आप अकेली कहां. बिंदास खुशियां मनाएं, नेक कामों में बढ़ कर हिस्सा लें. कुछ अच्छा सीखेंसिखाएं, ऐंजौय करें. जीवन बिताएं नहीं, जीवन जीएं. ढूंढ़ लें खुशियां.

जानें बच्चों के बिगड़ने के पीछे क्या हैं ये 7 बड़े कारण

बच्चे मन के सच्चे होते हैं. लेकिन समय के साथ बड़े होते-होते उनकी शरारतें, बदतमीजी में बदलने लगती हैं. इसके पीछे का कारण पेरेंट्स भी होते हैं. जी हां, अक्सर पेरेंट्स अपने बच्चों के द्वारा की गई शरारतों के लिए उन्हें समझाते हैं और इसके लिए वे सख्त रवैया अपनाते हैं. जो कि बच्चों पर बुरा असर डालता हैं और ये बच्चों के बिगड़ने के पीछे का कारण बनते हैं. आज हम आपको पेरेंट्स का कुछ ऐसा व्यवहार बताने जा रहे हैं, जो बच्चों के बिगड़ने का कारण बनता हैं.

1. कभी भी बच्चे की तुलना उसके भाई-बहनों या दोस्तों के साथ न करें. इससे उसके मन में आपके लिए नेगेटिव सोच तो आएगी ही साथ ही वह अपने भाई-बहनों या दोस्तों के साथ भी सहज नहीं रह पाएगा.

2. बच्चे तो हर काम गलती करके ही सीखते हैं लेकिन आपका बात-बात पर उनपर चिल्लाना गलत है. इससे बच्चों पर बुरा असर पड़ता है और वह इस माहौल में अच्छे से बढ़ नहीं पाते. इसलिए अपने व्यवहार में थोड़ा-सा संतुलन रखें.

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3. बच्चों को अच्छे संस्कार या उनसे किसी भी तरह की उम्मीद करने से पहले अपनी बुरी आदतों को बदलें. क्योंकि बच्चा वही करता है जो अपने आसपास देखता है. इसके लिए आपको किताबों के साथ कुछ समय बिताना, देर रात तक टीवी न देखना, चीजों को सही जगह पर रखना, बच्चों के समाने झगड़ा न करना आदि जैसे कुछ अच्छी आदतें खुद में विकसित करें.

4. बच्चों को पढ़ाई के लिए या किसी और बात की वजह से कभी डराना-धमकाना नहीं चाहिए क्योंकि इससे बच्चों पर बुरा असर पड़ता है और उनका मानसिक विकास नहीं हो पाता.

5. जब बच्चे को हर बात पर डांटा जाए और उन पर पढ़ाई का दबाव बनाया जाता है तो बच्चे चिड़चिड़े हो जाते हैं और किसी की बात नहीं मानते. ऐसे में कभी भी बच्चे का स्वभाव चिड़चिड़ा न होनें दें और उनकी जरूरतों को समझते हुए व्यवहार करें.

6. आपका बार-बार डांटना के बच्चे के दिमाग पर बुरा असर डालता है. इससे कई बार बच्चा बात-बात पर डरने लगता है और किसी भी काम को करने से पहले ही पीछे हट जाता है. इसलिए अपने बच्चों को शांत तरीके से समझाए कि वह जो कर रहा है वो गलत हो.

7. बच्चों की गलती के लिए उनकी पिटाई करना या उन्हें अंधेरे कमरे में बंद करना भी गलत है. इससे बच्चों के दिमाग और मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है और वह बिगड़ैल हो जाता है. इसके अलावा बार-बार पिटाई करने की आपकी आदत बच्चे को आपसे अलग कर सकती हैं.

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जानें क्या हैं जादू की झप्पी के फायदे

किसी को गले लगाना या किसी के गले लगना सब से सुखद अनुभूति है. यह ऐसा एहसास है जो किसी भी इंसान के दिल की गहराइयों को छू जाता है. कितने ही परेशान क्यों न हों, किसी अपने के गले लग कर बहुत अच्छा महसूस होता है. इसे ही जादू की झप्पी कहते हैं.

चाहे आप अपने पार्टनर की बाहों में हों, या अपने बच्चे को गले लगाया हो या फिर अपने दोस्त को ही क्यों न जादू की झप्पी दी हो, गले लगाना या किसी का आलिंगन करना हमें हमेशा अच्छा और खुशी महसूस कराता है. हमें सुरक्षा और प्यार का अनुभव होता है.

जादू की झप्पी

फिल्म ‘मुन्ना भाई एमबीबीएस’ में एक सीन था जो मूवी के अंत में आता है, जहां संजय दत्त और सुनील दत्त पहली बार गले मिलते हैं. मूवी में सुनील दत्त का डायलौग था, ‘‘हमेशा मां को जादू की झप्पी देता आया है आज बाप को भी दे दे.’’ उस वक्त दोनों गले मिल रोने लगते हैं.

फिल्म में जिस तरह से मुन्ना को पारंपरिक तरीकों के बजाय रोगियों को प्यार, स्नेह और जादू की झप्पी से ठीक करने कोशिश करते दिखाया गया है, वाकई दर्शाता है कि किसी को गले लगा लेना कितना असर छोड़ता है.

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हम कह सकते हैं कि हग करना केवल भावनाओं का इजहार करना ही नहीं है, बल्कि हैल्थ बूस्टर भी है, और यह बात मैडिकल साइंस भी साबित कर चुकी है. दिल से दी गई एक झप्पी हमारे मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए बहुत फायदेमंद साबित हो सकती है.

आजकल की आधुनिक लाइफस्टाइल में हमें सोशल इंटरैक्शन और स्पर्श के बहुत कम मौके मिलते हैं क्योंकि हम एकांत और व्यस्त जिंदगी जीते हैं, जबकि थेरैपिस्ट कहते हैं कि हमें सर्वाइवल के लिए 1 दिन में 4 बार गले लगना चाहिए.

अगर आप अपने बारे में अच्छा महसूस करना चाहते हैं, अपने तनाव को कम करना चाहते हैं, अपनी बातचीत को प्रभावी बनाना चाहते हैं, खुश होना चाहते हैं और इस के अलावा एक हैल्दी जिंदगी जीना चाहते हैं, तो गले लगाना और लगना दोनों करने का यही सही समय है.

फायदे ही फायदे

हमारे शरीर की त्वचा में छोटेछोटे प्रैशर पौइंट्स होते हैं जिन्हें पेसिनियन कोरपस्केल्स कहते हैं. ये पौइंट्स शारीरिक स्पर्श सेंस करते हैं और दिमाग तक वेगस नर्व के जरिए सिग्नल पहुंचाते हैं. वेगस नर्व शरीर के कई अंगों से जुड़ी होती है जैसे कि हार्ट. यह औक्सीटोसिन रिसेप्टर्स से भी जुड़ी होती है और औक्सीटोसिन (हैप्पी हार्मोन) के स्तर को बढ़ाती है.

किसी को गले लगाने से हमारे शरीर में औक्सीटोसिन हार्मोन का स्राव होने लगता है और इस की वजह से हम बहुत ज्यादा रिलैक्स्ड महसूस करते हैं और शरीर में तनाव के हारमोन कोर्टिसोल का स्तर कम हो जाता है, जिस से हमें दिल की बीमारी या दिल के दौरे पड़ने का खतरा कम होता है.

– नवजात शिशुओं को हग करने से बच्चे का शारीरिक तथा मानसिक विकास आसानी से होता है. इस के अलावा गले मिलना बच्चे को मानसिक सुकून देता है जिस से बच्चे को यह एहसास होता है कि कोई उस के करीब है और यह एहसास बच्चे का आत्मविश्वास बढ़ाने व व्यक्तित्व के लिए भी फायदेमंद होता है.

– हग करने से स्ट्रैस कम होता है. इस के अलावा गले लगना, इन्फैक्शन की आशंका को कम करता है. एक रिसर्च के अनुसार तनाव शरीर की रोगप्रतिरोधक क्षमता को कम करता है, लेकिन यदि हग किया जाए तो यह फिर हासिल की जा सकती है, जिस से स्टै्रस के साथसाथ इन्फैक्शन से भी छुटकारा मिलता है.

– हग करने से शरीर में प्रवाहित रक्त में औक्सिटोसिन हारमोन का स्राव होता है जिस से बढ़ा हुआ रक्तचाप कम होता है, जिस से इंसान तनाव और घबराहट से बचा रहता है. इसी के साथ मस्तिष्क की नसें मजबूत होती हैं व स्मरणशक्ति बढ़ती है.

– गले लगाने से सेरोटोनिन नाम का न्यूरोट्रांसमीटर जो हमारे मूड के बननेबिगड़ने के लिए जिम्मेदार होता है, उस में बढ़ोत्तरी होती है. यह हारमोन डिप्रैशन से संबंधित है. इसलिए जब हम किसी को गले लगाते हैं तो हमारा मूड एकदम से बहुत अच्छा हो जाता है.

– आमतौर पर संवाद शब्दों से या चेहरे के ऐक्सप्रैशन से होता है लेकिन वैज्ञानिकों ने प्रूफ कर दिया है कि एक अनजान

आदमी किसी दूसरे इंसान को उस के शरीर के अलगअलग अंगों को छू कर बहुत सारे इमोशंस को ऐक्सप्रैस कर सकता है. ये इमोशंस गुस्सा, चिड़चिड़ापन, प्यार, कृतज्ञता, खुशी, दुख और सिंपैथी जैसे हो सकते हैं. हगिंग बहुत आरामदायक और दिल को सुकून पहुंचाने वाला टच है.

अपने पार्टनर को हग करने से आपसी बौंडिंग बढ़ती है. शारीरिक स्पर्श से आप एकदूसरे से ज्यादा कनैक्टेड महसूस करते हैं, इंटिमेसी बढ़ती है, लौयल्टी की भावनाएं आती हैं व आपसी ट्रस्ट बढ़ता है जोकि सिर्फ शब्दों से नहीं व्यक्त किया जा सकता.

– रिसर्च में साबित हुआ है कि शारीरिक स्पर्श में दर्द को कम करने की क्षमता होती है. उन लोगों को जिन्हें फाइब्रोमाइल्जिया, जो एक प्रकार का शारीरिक दर्द होता है, के उपचार के लिए शारीरिक स्पर्श दिया गया और इस से आश्चर्यजनक तरीके से उन के दर्द में कमी आई.

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– जब भी आप किसी को गले लगाते हैं तो इस से उन के शरीर में ब्लड सर्कुलेशन तेज होता है, जिस से औक्सीजन का स्तर और प्रवाह सही रहता है. इस से हार्ट संबंधी और ब्लडप्रैशर की बीमारियों की आशंका कम होती है.

– हग करने से दिल में खुशी का एहसास होता है, जो सेहत के लिए फायदेमंद होता है. रिसर्च की मानें तो किसी अपने के गले लगने से दर्द में काफी राहत महसूस होती है. इस के अलावा किसी का प्यार से हाथ पकड़ने से भी दर्द में राहत मिलती है.

अगर आप अपने लव पार्टनर के साथ रहते हैं या मैरिड कपल हैं तो आप अपने पार्टनर को ज्यादा देर तक गले लगाएं, इस से आप दोनों को खुशी मिलेगी और नजदीकिया बढ़ेंगी. हो सकता है आप के आपसी झगड़े भी बस एक आलिंगन से ही निबट जाएं.

किसी को गले लगाना वास्तव में अच्छा लगता है. हगिंग से हमें स्पैशल फील होता है और भला किस को स्पैशल फील करना पसंद नहीं होगा.

कहीं आपके पति भी तो नही निकालते कमियां

प्रतिमा पोस्टग्रैजुएट है. शक्लसूरत भी ठीकठाक है. खाना भी अच्छा बनाती है. व्यवहारकुशल भी है. चाहे रिश्तेदार हों, पड़ोसी हों या फिर सहेलियां सभी में वह लोकप्रिय है. मगर पति की नजरों में नहीं. क्यों? यह सवाल सिर्फ प्रतिमा के लिए ही नहीं है, बल्कि ऐसी बहुत सी महिलाओं के लिए है, जिन की आदतें, तौरतरीके, रहनसहन उन के पति के लिए नागवार होते हैं, तो क्या हमेशा अपनी पत्नी में नुक्स निकालने वाले पति परफैक्ट होते हैं?

हर व्यक्ति का अपनाअपना स्वभाव, तौरतरीके, नजरिया और पसंद होती है. ऐसे में हम यह सोचें कि फलां हमारी तरह नहीं है इसलिए परफैक्ट नहीं है, तो यह ज्यादती होगी. यह जरूरी नहीं कि जिस में हम नुक्स निकालते हैं उस में कोई गुण हो ही न.

प्रतिमा को ही लें. वह अच्छा खाना बनाती है. व्यवहारकुशल भी है. वहीं उस के पति न तो व्यवहारकुशल हैं और न ही उन में कोई बौद्धिक प्रतिभा है, जिस से वे दूसरों से खुद को अलग साबित कर सकें. सिवा इस के कि वे कमाते हैं. कमाने को तो रिकशे वाला भी कमाता है. प्रतिमा स्वयं घर पर ट्यूशन कर के क्व 8-10 हजार कमा लेती है. सुबह 5 बजे उठना. बच्चों के लिए टिफिन तैयार करना, उन्हें तैयार करना, घर को इस लायक बनाना कि शाम को पति घर आए तो सब कुछ व्यवस्थित लगे. शाम को बच्चों को खुद पढ़ाना. अगर पति कभी पढ़ाने लगें तो पढ़ाने पर कम पिटाई पर ज्यादा ध्यान देते हैं.

अत्यधिक अपेक्षा

पति महोदय किसी भी हालत में सुबह 7 बजे से पहले नहीं उठते हैं. वजह वही दंभ कि मैं कमाता हूं. मुझ पर काम का बोझ है. सुबह पहले उठना और रात सब से बाद में सोना प्रतिमा की दिनचर्या है. उस पर पति आए दिन उस के काम में मीनमेख निकालते रहते हैं. उस की हालत यह है कि दिन भर खटने के बाद जैसे ही शाम पति के आने की आहट होती है वह सहम जाती है कि क्या पता आज किस काम में नुक्स निकालेंगे?

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पति महोदय आते ही बरस पड़ते हैं, ‘‘तुम दिन भर करती क्या हो? बच्चों के कपड़े बिस्तर पर पड़े हैं. अलमारी खुली हुई है. आज सब्जी में ज्यादा नमक डाल दिया था. मन किया फेंक दूं.’’

सुन कर प्रतिमा का मन कसैला हो गया. यह रोजाना का किस्सा था. कल अलमारी बंद थी. आज नहीं कर सकी, क्योंकि उसी समय पड़ोसिन आ गई थी. ध्यान उधर बंट गया. बच्चे की कमीज का बटन निकल गया था. उसे लगाने के लिए उस ने उसे बिस्तर पर रखा था. अब कौन सफाई दे. सफाई देतेदेते शादी के 10 साल गुजर गए, पर पति की आदतों में कोई सुधार नहीं आया. कभीकभी प्रतिभा की आंखें भीग जातीं कि उस की भावनाओं से पति को कुछ लेनादेना नहीं. उन्हें तो सब कुछ परफैक्ट चाहिए.

पति की तानाशाही

सवाल उठता है कि परफैक्ट की परिभाषा क्या है? सब्जी में नमक कम है या ज्यादा कैसे परफैक्ट माना जाएगा? हो सकता है कि जितना नमक पति को पसंद हो उतना प्रतिमा को नहीं. प्रतिमा ही क्यों उस के घर आने वाले हर मेहमान को प्रतिमा का बनाया खाना बेहद पसंद आता है. ऐसे में पति की परफैक्शन की परिभाषा को किस रूप में लिया जाए? क्या यह पति की तानाशाही नहीं कि जो वे कह रहे हैं वही परफैक्ट है?

नुक्स निकालने की आदत एक मनोविकार है. मेरी एक परिचिता हैं. वे भी ऐसे ही मनोविकार से ग्रस्त हैं. चैन से बैठने की उन की आदत ही नहीं है. जहां भी जाएंगी सिवा नुक्स के उन्हें कुछ नहीं दिखता. नजरें टिकेंगी तो सिर्फ नुक्स पर. किसी की आईब्रो में ऐब नजर आएगा, तो किसी की लिपस्टिक फैली नजर आएगी. किसी की साड़ी पर कमैंट करेंगी.

हर आदमी एक जैसा नहीं होता. बेशक प्रतिमा के पति को सब कुछ परफैक्ट चाहिए परंतु उन्हें यह भी सोचना चाहिए कि अकेली प्रतिमा से चूक हो सकती है. इस का मतलब यह नहीं कि उसे डांटाफटकारा जाए. औफिस और घर में फर्क होता है. औफिस में सफाई के लिए कर्मचारी रखे जाते हैं. मगर घर में पत्नी के हिस्से तरहतरह के काम होते हैं. हर काम में वह समान रुचि दिखाए, यह संभव नहीं. इसलिए परफैक्शन के लिए पति का भी कर्तव्य होता है कि पत्नी के काम में हाथ बंटाए.

कलह की शुरुआत

किसी भी चीज की अति बुरी होती है. परफैक्शन के चलते घरघर नहीं, बल्कि जेलखाना बन जाता है. ऐसे लोगों के घर जल्दी कोई जाता नहीं. अगर पत्नी के मायके के लोग चले आएं, तो पति महोदय सामने तो कुछ नहीं कहेंगे, पर उन के जाते ही उलाहना देना शुरू कर देंगे, ‘‘तुम्हारे भाईबहनों को तमीज नहीं है. दो कौड़ी की मिठाई उठा लाए थे.’’

मायके के सवाल पर हर स्त्री आगबबूला हो जाती है. हंसमुख स्वभाव की प्रतिमा की भी त्योरियां चढ़ जातीं. फिर शुरू होती कलह.

नुक्स के चलते पति से मिली लताड़ का गुस्सा पत्नियां अपने बच्चों पर निकालती हैं. वे अकारण उन्हें पीटती हैं, जिस से बच्चों की परवरिश पर बुरा प्रभाव पड़ता है. धीरेधीरे पत्नी के स्वभाव में चिड़चिड़ापन भी आ जाता है. वह अपनी खूबियां भूलने लगती है. प्राय: ऐसी औरतें डिप्रैशन की शिकार होती हैं, जो घरपरिवार के लिए घातक होता है. क्या पति महोदय इस बारे में सोचेंगे?

पति के नुक्स निकालने की आदत की वजह से जब कभी प्रतिमा मायके आती है, तो ससुराल जाने का नाम नहीं लेती. जाएगी तो फिर उसी दिनचर्या से रूबरू होना पड़ेगा. जब तक पति औफिस नहीं चले जाते तब तक उस का जीना हराम किए रहते हैं. वह बेचारी दिन भर घर समेटने में जुटी रहती है ताकि पति को शिकायत का मौका न मिले. मगर पति महोदय तो दूसरी मिट्टी के बने हैं. शाम घर में घुसते ही नुक्सों की बौछार कर देंगे.

समझौता करना ही पड़ता है

नुक्स निकालने वाले व्यवहारकुशल नहीं होते. उन के शुभचिंतक न के बराबर होते हैं. नकारात्मक सोच के चलते वे सभी में अलोकप्रिय होते हैं. माना कि पति महोदय परफैक्ट हैं, तो क्या बाकी लोग अयोग्य और नकारा हैं? प्रतिमा की बहन एम.एससी. है. स्कूल में पढ़ाती है. अच्छाखासा कमाती है. वहीं उस के पति भी सरकारी कर्मचारी हैं. घर जाएं तो कुछ भी सिस्टेमैटिक नहीं मिलेगा. तो भी दोनों को एकदूसरे से शिकायत नहीं है. वे लोग सिर्फ काम की प्राथमिकता पर ध्यान देते हैं. जो जरूरी होता है उस पर ही सोचते हैं. रही घर को ठीकठाक रखने की बात तो वह समय पर निर्भर करता है. काम में परफैक्शन होना अच्छी बात है. मगर इस में टौर्चर करने वाली बात न हो. जरूरी नहीं कि हर कोई हमारी सोच का ही हो खासतौर पर पतिपत्नी का संबंध. समझौता करना ही पड़ता है. प्रतिमा साड़ी का पल्लू कैसे ले, यह उस का विषय है. वह किसी से कैसे बोलेबतियाए यह उस पर निर्भर करता है. पति महोदय अपने हाथों जूतों पर पौलिश तक नहीं करते. यह काम भी प्रतिमा को ही करना पड़ता है. उस में भी नुक्स कि तुम ने ठीक से चमकाए नहीं. प्राय: यह काम पति खुद करता है.

पत्नी ही क्यों पति को अपने बच्चों की आदतों में भी हजार ऐब नजर आते हैं. पति को पत्नी के हर काम में टोकाटाकी से बाज आना चाहिए वरना पत्नी, बच्चों में आत्मविश्वास की कमी हो जाती है. उन्हें हमेशा भय रहता है कि वे कुछ गलत तो नहीं कर रहे हैं?

क्या पति के काम में नुक्स नहीं निकाला जा सकता? खुद उन का बौस उन के काम में नुक्स निकालता होगा. पति इसलिए चुप रहते होंगे कि उन्हें नौकरी करनी है. ऐसे ही प्रतिमा चुप इसलिए रहती है कि उसे कमाऊ पति के साथ जीवन गुजारना है.

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खुद पहल करें

मिस्टर परफैक्शनिस्ट के नाम से मशहूर आमिर खान की फिल्म ‘धोबीघाट’ असफल रही. गलतियां वही करता है, जो काम करता है. खाना खाते समय चावल का दाना गिर जाए इस का मतलब यह नहीं कि उसे खाना खाने का तरीका नहीं आता. नुक्स निकालने वाले पति अगर खाने पर साथ बैठेंगे तो चैन से खाना भी नहीं खाने देंगे. कभी ठीक से कौर न उठाने के लिए टोकेंगे, तो कभी पानी का गिलास न होने पर टोकेंगे. वे खुद पानी का गिलास रख कर पत्नी का काम हलका नहीं करेंगे. गृहस्थ जीवन में यह सब होना आम बात है. इसे नुक्स नहीं समझना चाहिए. एक औरत किसकिस पर ध्यान दे? कमी रह ही

जाती है. फिर हर आदमी एक जैसा नहीं होता. अगर हमें गृहस्थ जीवन में कुछ खास चाहिए, तो खुद पहल करनी होगी. पत्नी को मुहरा बना कर उसे डांटनाडपटना खुदगर्जी है. पतियों को यह सोचना चाहिए.

आखिर क्यों अपनी पार्टनर को धोखा देते हैं आदमी, जानें ये 4 वजह

एक रिलेशनशिप में एक-दूसरे के प्रति ईमानदार होना जरुरी होता है, तभी एक रिश्ता सही रहता है. एक-दूसरे की भावनाओं को समझना रिश्ते को मजबूत बनाता है. लेकिन आज के समय में बहुत से पुरूष अपने रिश्ते के प्रति वफादार नहीं रहते हैं और अपने पार्टनर को धोखा देते हैं. जो पुरूष अपनी साथी को धोखा देने के बारे में सोचते हैं उन्हें इस बात का बिल्कुल आभास नहीं होता है कि वे कुछ गलत कर रहें हैं. पुरूषों की अपेक्षा महिलाएं अपने साथी को कम धोखा देती हैं.

1. साथी के प्रति वफादार नहीं होते हैं…

कुछ ऐसे पुरूष होते हैं जो अपने साथी के लिए वफादार होते हैं, लेकिन कुछ ऐसे होते हैं जिन्हें किसी की भावनाओं की कद्र नहीं होती. इस तरह के पुरूष सिर्फ अपनी महिला साथी का इस्तेमाल करते हैं. वे उन्हें स्पेशल महसूस कराते हैं. लेकिन वास्तव में वह अपनी साथी के लिए बिल्कुल भी ईमानदार नहीं होते हैं.

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2. असुरक्षित महसूस करते हैं…

हर व्यक्ति धोखा दे ऐसा जरुरी नहीं होता है. लेकिन कुछ ऐसे पुरुष होते हैं जो अपने रिश्ते को लेकर थोड़े असुरक्षित होते हैं. जिसके कारण ना चाहते हुए भी वह अपने पार्टनर के साथ गलत कर बैठते हैं. उन्हें इस बात का डर होता है कि कहीं वे अपने साथी को खो तो नहीं देंगे. इस डर की वजह से वे अपने रिश्ते के प्रति ईमानदार नहीं रह पाते हैं और अपने पार्टनर को धोखा दे बैठते हैं.

3. रिश्ते की कद्र नहीं…

हमेशा लोगों को जितना मिलता है उससे अधिक पाने कि इच्छा होती है. और इनके पास जो होता है वह उसकी कद्र नहीं करते हैं. ऐसा पुरूषों के साथ भी होता है कि उन्हें जैसी पार्टनर मिली होती है वह उन्हें कम ही लगता है. उनके दिमाग में हमेशा यह बात होती है कि जो मिला है उन्हें उससे और बेहतर मिल सकता है. ऐसे पुरूषों में अपने पार्टनर को धोखा देने की प्रवृत्ति अधिक होती है क्योंकि इन्हें जितना मिलता है उसमें उन्हें संतुष्टि नहीं मिलती है.

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4. भावनात्मक रूप से कमजोर होते हैं…

पुरूष भावनात्मक और मानसिक रूप से कमजोर होते हैं इसलिए उन्हें उन्हें बेवकूफ बनाना आसान होता है. मानसिक रूप से कमजोर होने के कारण उनमें सेल्फ कंट्रोल की कमी होती है इस वजह से उनके लिए अपने पार्टनर को धोखा देना ज्यादा मुश्किल नहीं होता है. ऐसे लोग बहुत जल्दी लोगों से प्रभावित हो जाते हैं और कभी-कभी दूसरे की बातें सुनकर अपने पार्टनर की भावनाओं को नजरअंदाज कर देते हैं.

तो नहीं सताएगा उन से दूरी का एहसास

रिया और वंश इंटरनैट के जरीए एकदूसरे से मिले और दोनों के बीच प्यार हो गया. फिर दोनों ने शादी करने का फैसला किया. लेकिन इन की शादी के बीच आ रही थी इन की नौकरी. दरअसल, दोनों अलगअलग शहर में नौकरी करते थे और नौकरी चेंज करना दोनों के लिए मुश्किल था. फिर भी दोनों ने आपसी सहमति से शादी कर ली और अलगअलग शहर में रहने लगे.

रिया और वंश की तरह और भी न जाने कितने जोड़े नौकरी, बुजुर्ग मातापिता की देखरेख, पढ़ाई आदि कारणों से लौंग डिस्टैंस रिलेशनशिप में रहते हैं. इन शादियों को कंप्यूटर मैरिज कहा जाता है यानी ऐसी शादियां जिन में पतिपत्नी अस्थायी रूप से अलग रहते हैं और कंप्यूटर के माध्यम से एकदूसरे से जुड़े रहते हैं.

लौंग डिस्टैंस रिलेशन निभाना काफी मुश्किल है. छोटीछोटी बातें भी रिश्ते में दूरी लाती हैं.

शादी के कुछ महीने बाद से ही लौंग डिस्टैंस में रहने वाली दिल्ली की 26 वर्षीय अमृता कहती हैं, ‘‘हमारी शादी को 10 महीने हो चुके हैं. मैं दिल्ली में रहती हूं और मेरे पति की पोस्टिंग चंडीगढ़ में है. शादी के बाद दूरदूर रहना काफी मुश्किल होता है. एकदूसरे की बहुत कमी खलती है. अकेलापन महसूस होता है. लेकिन फिर यह सोच कर खुद को संभाल लेती हूं कि यह कदम हम ने अपने अच्छे भविष्य के लिए उठाया है. कभीकभी तो छोटीछोटी बातों को ले कर हमारे बीच इतना बड़ा झगड़ा हो जाता है कि हम 2-2, 3-3 दिन तक बातचीत नहीं करते. कई बार तो ऐसा भी होता है कि मैं कुछ पूछती हूं तो उन्हें लगता है कि मैं उन की जासूसी कर रही हूं.’’

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दरअसल, ऐसा होने की मुख्य वजह है कि हम लौंग डिस्टैंस रिलेशन में अपनी भावनाओं को जाहिर करने में विफल रहते हैं. पास रहने पर भावनाओं को आसानी से जाहिर कर लेते हैं.

इस बारे में दिल्ली के रोहिणी स्थित परफैक्ट हैल्थ इंस्टिट्यूट के मनोवैज्ञानिक डा. आर. पाराशर का कहना है, ‘‘पतिपत्नी के रिश्ते में दूरी का बहुत असर होता है, क्योंकि यह रिश्ता बेहद नाजुक और अन्य रिश्तों से अलग होता है. हम भाईबहनों, मातापिता से बड़ी आसानी से दूर रह सकते हैं, लेकिन पतिपत्नी न केवल भावनात्मक बल्कि शारीरिक रूप से भी एकदृसरे से जुड़े होते हैं और दूर रहने पर इस से वंचित रहते हैं. जिस की वजह से शरीर में पौजिटिव हारमोंस नहीं बन पाते. पौजिटिव हारमोंस की कमी होने की वजह से वे स्वभाव से चिड़चिड़े हो जाते हैं. उन की क्रिएटिविटी खत्म होने लगती है. वे डिप्रैशन में जाने लगते हैं.’’

कुछ कपल तो ऐसे भी होते हैं, जो इस दूरी की वजह से इतना अकेलापन महसूस करते हैं कि अगर कोई भी उन्हें जरा सा प्यार देता है तो वे उस के प्रति आकर्षित हो जाते हैं.

एक केस को याद करते हुए डा. पारासर आगे कहते हैं, ‘‘मेरे पास एक केस आया था, जिस में पतिपत्नी एकदूसरे से दूर रहते थे. पत्नी शारीरिक सुख न मिलने की वजह से खुद को इतना अकेला महसूस करती थी कि उस ने इस अकेलेपन को दूर करने के लिए अपने औफिस के ही एक साथी के साथ संबंध बना लिए.’’

इस तरह के कई केसेज हैं, जिन में पतिपत्नी का साथ न रहने पर पार्टनर ने किसी और के साथ संबंध बना लिए. कुछ कपल्स ऐसे भी होते हैं, जो अपनी इस दूरी का गम मनाते रहते हैं और जिंदगी को जीना भूल जाते हैं. यह ठीक है कि दूर होने पर रिश्ते में गरमाहट बनाए रखना थोड़ा मुश्किल होता है. लेकिन आज फोन, ईमेल, इंटरनैट आदि माध्यमों से जुड़ कर लौंग डिस्टैंस रिलेशनशिप में प्यार को बढ़ाया जा सकता है.

निम्न टिप्स को फौलो करें, फिर देखें दूरी कैसे प्यार बढ़ाने का काम करती है:

1. सरप्राइज दें

सरप्राइज हर किसी को पसंद आता है. खासतौर पर तब जब इसे देने वाला आप से कोसों दूर हो. चौकलेट, फ्लौवर, ड्रैस, ई कार्ड्स या फिर साथी की पसंद का गिफ्ट भेज कर आप उसे सरप्राइज दे सकते हैं. गिफ्ट के साथ एक खास नोट भी लिख कर भेजें कि आप उन के लिए कितने स्पैशल हैं. कभी खुद उन्हें बिना बताए मिलने पहुंच जाएं, इस से रिश्ते की नीरसता खत्म होगी और ऊर्जा का संचार होगा.

रोचक पलों को शेयर करें

तकनीक ने आजकल कई चीजों को आसान बना दिया है, इसलिए कोशिश करें कि आप दिन के रोचकरोमांचक पलों को फोटो और वीडियो के जरीए कैप्चर करें, जो साथी के चेहरे पर खुशी ला सकें. यकीन मानिए यह छोटी सी चीज साथी के चेहरे पर लंबी मुसकान लाएगी.

बातचीत करते रहें

मोबाइल, इंटरनैट के जरीए एकदूसरे से जुड़े रहें. थोड़ेथोड़े समय के अंतराल पर मैसेज या फोन के द्वारा साथी की खबर पूछते रहें. स्काइप पर बातें करें. वीडियो चैट करें. वीडियो चैट करते समय कभीकभी वर्बल फोरप्ले भी करें. इस से रिश्ते में मिठास बनी रहती है.

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फीलिंग्स ऐक्सप्रैस करें

जब भी आप का पार्टनर आप से दूर हो तो उसे बीचबीच में ‘आई लव यू’ कहते रहें. ये 3 शब्द आप के रिश्ते को मधुर बनाए रखेंगे. रात में सोने से पहले एक रोमांटिक मैसेज करें. जब भी वीडियो चैट करें तो अच्छी तरह तैयार हो कर करें. इसे हमेशा एक डेट के रूप में लें. आप को खुश देख कर पाटर्नर को भी अच्छा लगेगा.

ईमानदार रहें

ईमानदारी दूरी निभाने की पहली नीति है. इस का मतलब यह है कि न सिर्फ साथी, बल्कि स्वयं के प्रति भी ईमानदार रहें. अन्यत्र अफेयर्स के बजाय अपने वास्तविक प्यार के बारे में सोचें.

साथ छुट्टी लें

साथ छुट्टी ले कर कहीं घूमने जाएं. एकदूसरे को पूरा समय दें. इस से रोमांस बना रहता है. बर्थडे, मैरिज ऐनिवर्सरी जैसे खास पलों को यादगार बनाने के लिए कुछ स्पैशल प्लान करें.

क्या न करें

बात करें बहस नहीं

कपल हमेशा बात करतेकरते बहस करने लगते हैं और जब दूर होते हैं तो छोटीछोटी बातों का भी बुरामान जाते हैं. तुम ने मुझे फोन नहीं किया, तुम्हारे पास मेरे लिए टाइम नहीं है, मैं तुम्हारे पास होती या होता तो तुम ऐसा नहीं करते जैसी छोटीछोटी बातों पर वे झगड़ पड़ते हैं और एकदूसरे से बात नहीं करते. ऐसा बिलकुल न करें. ऐसा करने से प्यार नहीं, बल्कि दूरी ही बढ़ती है. जब भी बात करें तो उन पलों को खास बनाएं.

शक न करें

पतिपत्नी हमेशा शक करते हैं कि कहीं पार्टनर किसी और के क्लोज तो नहीं है. वह झूठ तो नहीं बोल रहा, सचाई तो नहीं छिपा रहा. इस तरह का बरताव बिलकुल न करें. ये बातें एकदूसरे को पास नहीं लातीं, बल्कि एकदूसरे से दूर ही करती हैं.

कम्यूनिकेशन गैप न आने दें

जब लौंग डिस्टैंस में रह रहे हों तो बात कर के ही आप एकदूसरे से जुड़े रह सकते हैं. इसलिए झगड़ा कर के बात करना बंद न करें. इस से कम्यूनिकेशन गैप आता है. वक्त निकाल कर दिन में 4-5 बार एकदूसरे से बात जरूर करें. लेकिन ध्यान रखें कि यह सिर्फ औपचारिकता न हो, बल्कि बातों में प्यार और रोमांस का तड़का हो.

पार्टनर पर गुस्सा न उतारें

जब आप दूरदूर हों तो किसी भी बात का गुस्सा अपने पार्टनर पर न उतारें. किसी एक के साथ कुछ गलत होता है तो वह अपना सारा गुस्सा दूसरे पर उतारता है.

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जासूस न बनें

बातबात पर जासूसी न करें. बारबार फोन कर के यह पता लगाने की कोशिश न करें कि साथी कहां है. किस केसाथ है और क्या कर रहा है. आपसी विश्वास बनाए रखें.

बातें न छिपाएं

कोई भी बात पार्टनर से न छिपाएं, क्योंकि बाते छिपाने पर पार्टनर के मन में तरहतरह के विचार आने लगते हैं और फिर दूरी बढ़ने लगती है.

जिद न करें

अपनी बातें मनवाने की जिद न करें. अगर आप का पार्टनर व्यस्त है और आप का फोन नहीं उठा रहा है, तो उसे बारबार फोन न करें और उस के फोन उठाते ही चिल्लाने न लगें और आप बेहतर रोमांटिक लाइफ जीना चाहते हैं, तो रिश्ते में औफिस की टैंशन कभी न लाएं.

पहली जौब में रखें इन 7 बातों का ध्यान

आपकी भी अगर पहली जौब है तो आपको कुछ बातों का खास ध्यान रखना होगा क्योंकि अक्सर ऐसा होता कि लोगों की जब पहली जौब लगती है तो उन्हें पता ही नहीं होता कि क्या गलत है और क्या सही. ऐसे में वो कुछ लापरवाही बरतने लग जाते हैं जो उनको बाद में महंगी पड़ जाती है और जौब  से भी हांथ धोना पड़ जाता हैं क्योंकि प्राइवेट जौब  में आपकी जौब  जाते ज्यादा देर नहीं लगती है इसलिए जरूरी है कि आपको हर बात पता होनी चाहिए और कुछ सावधानी भी आपको बरतनी चाहिए जो आपके करियर और जौब दोनों के लिए अच्छा होगा साथ ही आपके फ्यूचर के लिए भी अच्छा रहेगा.

1. ड्रेसिंग सेन्स पर दें ध्यान

सबसे पहले तो आपका ड्रेसिंग सेन्स अच्छा होना चाहिए ताकि आपका इंप्रेशन आपके बॉस पर अच्छा पड़े.ये नहीं कि आप कुछ भी पहन कर औफिस में चले जाएं और कोशिश करें कि अगर आप फार्मल ज्यादा पहने तो ये बहुत अच्छा रहेगा आपके लिए और आपका आपके बौस पर इंप्रेशन भी अच्छा पड़ेगा. कोशिश करें लाइट कपड़े ही ज्यादा पहने ये भी एक प्लस प्वाइंट होता है.

2. चुगली करने की आदत छोड़ें

औफिस में कभी भी किसी की चुगली किसी से ना करें. वहां पर कब आपकी बातें आपके बौस तक पहुंच जाएं आपको पता भी नहीं चलेगा और ये आपके लिए बिल्कुल भी अच्छा नहीं होगा. गुट बनाकर कभी भी बातें न करें ऐसे आप अपने बौस की नजरों में आ सकते हैं. इधर-उधर की बातों से ज्यादा आप अपने काम पर फोकस करें और कंपनी के लिए नए-नए आइडियाज दें.

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3. चापलूसी से बचें

अपने बौस की बातों को माने लेकिन उनकी चापलूसी न करें ऐसे में आप औफिस के लोगों को खटकने लगते हैं और लोग फिर आपको बौस की नजरों में गिराने का सोचने लगते हैं. आपके खिलाफ साजिश भी हो सकती है. ताकि आपको कंपनी के बाहर का रास्ता दिखा दिया जाए.

4. जरूरत से ज्यादा छुट्टी न लें

कभी भी जरूरत से ज्यादा छुट्टी न लें.कोशिश करें कि आप सिर्फ अपना औफ लें और जरूरत पड़ने पर ही एक्स्ट्रा औफ लें क्योंकि अगर आप जरुरत से ज्यादा छुट्टियां लेने लगते हैं लोगों को यही लगता है कि यार ये तो हमेशा छुट्टियां लेता हैं. काम को लेकर कर्मठ नहीं है और आपके बौस पर भी इंप्रेशन अच्छा नहीं जाएगा इसलिए कोशिश करें की कम छुट्टी लें.

5. काम में रहें बेहतर

बेहतर से और बेहतर काम करने की पूरी कोशिश करें ताकि ये आपके आगे के करियर में आपके लिए अच्छा साबित होगा.जितना अच्छा काम होगा आपका प्रमोशन भी उतना ही अच्छा होगा क्योंकि वहीं पर आपके काम की अहमियत होती है.

6. औफिस के लोगों से बनाएं अच्छा रिलेशन

कोशिश करें कि औफिस में किसी से भी पंगे ना हों.सभी से आपका रिश्ता अच्छा बना रहे साथ ही चपरासी से लेकर कलिग तक सभी की राय आपके बारे में अच्छी हो तभी आप उस औफिस में अपनी एक अच्छी छवि बना पाएंगे.

7. पर्सनल और प्रौफेशनल लुक को रखें अलग

सबसे अहम बात अक्सर कई लोगों को औफिस में किसी से प्यार हो जाता है और दो लोगों रिलेशन में आ जाते हैं और इसमें कोई बुराई नहीं है लेकिन ध्यान रहे कि वो रिश्ता कभी भी आपके काम के बीच ना आए और आपकी पर्सनल और प्रोफेशनल लाइफ दोनों अलग-अलग हों. ये सभी बातें आपके पहले जौब  और आपके करियर में आपको सक्सेज दिलाएंगी. इसलिए हमेशा ये बातें याद रखें.भूल से भी कभी कोई गलत काम ना करें.

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क्या करें जब कोई मारे ताना

लेखक- पूजा पाठक

क्षिप्रा के घर किट्टी पार्टी चल रही थी. अचानक घड़ी पर नजर पड़ते ही रागिनी उठ कर चल दी.

‘‘अरे अभी तो 5 ही बजे हैं, 6 बजे तक चली जाना,’’ क्षिप्रा ने उस का हाथ पकड़ कर चिरौरी की.

‘‘माफ करना. मुझे तो कल सुबह औफिस जाना है. अब तेरी तरह हाउसवाइफ तो हूं नहीं कि आराम की जिंदगी जी सकूं. मुझे तो घरबाहर दोनों देखना होता है,’’ रागिनी ने महीन ताना करते हुए कहा. अपनेपन से पकड़े गए हाथ की पकड़ ढीली हो गई. क्षिप्रा ने सामने कुछ नहीं कहा लेकिन इस एक व्यंग्य से दोनों सखियों की दोस्ती में एक अनकही दरार तो आ ही गई.

कई लोग व्यंग्य, फब्तियां कसने, ताना देने और किसी के मजे लेने को अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझते हैं. पर वास्तव में इस के पीछे उन की जलन की भावना काम करती है. उक्त परिदृश्य में भी किट्टी पार्टी के दौरान क्षिप्रा के घर की साजसंभाल को ले कर हो रही तारीफ रागिनी आसानी से हजम नहीं कर पाई और न चाहते हुए भी उस के मुंह से क्षिप्रा को नीचा दिखाने वाली बात निकल गई, जिस ने पार्टी का माहौल तो बोझिल किया ही साथ ही 2 सखियों के बीच मनमुटाव को भी जन्म दे दिया.

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क्या है इस मानसिकता की वजह

आखिर ताना करने के पीछे किसी का क्या मंतव्य हो सकता है. दरअसल, जब आप किसी को सुपीरियर देखते हैं तो मन में एक स्वाभाविक जिज्ञासा उठती है कि आखिर वह हम से बेहतर कैसे? बस यहीं एक सकारात्मक विचार वाला व्यक्ति इस बात को प्रशंसात्मक रूप में ले कर सामने वाले की प्रशंसा करता है. उस के हुनर या प्रतिभा से सीखने की कोशिश करता है जबकि हीनभावना से ग्रसित इंसान उक्त व्यक्ति से ईर्ष्या, द्वेष व जलन की भावना रखने लगता है और अंतत: आसानी से दुराग्रह की चपेट में आ कर उसे नीचा दिखा कर दुखी करने की फिराक में लग जाता है.

इस किस्म के लोग वास्तव में बीमार मानसिकता के गुलाम होते हैं. उन्हें दूसरों की खूबसूरती, प्रतिभा, खुशी या सफलता रास नहीं आती. जब वे अपनी इस भावना पर अंकुश नहीं लगा पाते तब उन के मुंह से ताना निकल जाते हैं जो सामने वाले को अप्रत्यक्ष रूप से अपमानित करने के लिए होते हैं.

कभीकभी ये ताना किसी बदले की भावना के तहत किए जाते हैं या शायद अपनी खुन्नस निकालने के लिए भी. बहरहाल, ये वाक्य शब्दों को घुमाफिरा कर इस तरह से कहे जाते हैं ताकि साफसाफ उन पर कोई आरोप न आए और वक्त पड़ने पर वे यह कह कर अपना बचाव भी कर सकें कि मैं ने तो ऐसे ही कह दिया था. मेरा वह मतलब नहीं था.

बचने का रास्ता

आखिर ऐसा क्या करें कि सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे. यानी उसे आईना भी दिखा दें और स्वयं भी दुखी न हों, आइए जानते हैं:

– इस बात को ज्यादा तरजीह न देते हुए उस वक्त यह सोच कर चुप्पी साध जाएं कि आप पर फब्तियां कसना उस की कमजोरी है. हां, बाद में सही वक्त देख कर उस के मन में अपने लिए बैठे मैल को दूर करने का प्रयास करें.

– उस की जो भी खूबी आप को भाती हो उस की दिल खोल कर तारीफ करें, ताकि वह स्वयं ही अपनी करनी पर शर्मिंदा हो कर आप के प्रति दोगुने सम्मान से भर उठे.

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– उसे साफ शब्दों में ऐसी कोई बात न कहने के लिए जरूर कहें. इस से वह सचेत हो जाएगा और किसी और से भी ऐसा व्यवहार करने से पहले कई बार सोचेगा.

तो यह फैसला व्यक्ति या परिस्थितियां देख कर आप को स्वयं लेना होगा कि किसी के द्वारा ताना किए जाने पर आप की क्या प्रतिक्रिया होनी चाहिए. सिर्फ इतना निश्चित करना पड़ेगा कि किसी के ताना पर आप अपना दिल न दुखाएं और न ही स्वयं बेवजह किसी पर कोई व्यक्तिगत आक्षेप या टिप्पणी करें.

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