Romantic Story In Hindi: प्रेम लहर की मौत- भाग 2

पिछला भाग पढ़ने के लिए- प्रेम लहर की मौत: भाग-1

लेखक- वीरेंद्र बहादुर सिंह 

  ‘‘शायद जरूरत ही महसूस नहीं हुई. या फिर दोनों में से कोई हिम्मत नहीं कर सका. हम दोनों के इस प्यार की मूक साक्षी थी निकी. पर पता नहीं क्यों उस ने भी हमारे प्रेम को एकदूसरे के सामने व्यक्त नहीं किया.’’

  ‘‘तुम और असीम, कभी मिले नहीं?’’ मैं ने अनु को रोक कर पूछा.

  ‘‘नहीं, कभी जरूरत ही महसूस नहीं हुई.’’ उस ने कहा.

  ‘‘तुम लोगों की मिलने की इच्छा भी नहीं हुई? एकदूसरे को देखने का भी मन नहीं हुआ?’’ मैं ने पूछा.

  ‘‘क्यों नहीं हुआ? इच्छा तो होती ही है, लेकिन आधुनिक टेक्नोलौजी थी न जोड़े रखने के लिए हम हर रविवार को वीडियो चैट करते थे. यह मिलने जैसा ही था. आज हमारी पहली और अंतिम रूबरू मुलाकात थी.’’ कह कर वह सहज हंसी हंस पड़ी.

  ‘‘जब तुम दोनों के बीच इतनी अच्छी ट्यूनिंग थी तो फिर इस में तुम दोनों के अलग होने की बात कहां से आ गई?’’ मैं ने पूछा.

उस ने अपनी बात आगे बढ़ाई.

हम दोनों का एकदूसरे के प्रति प्रेम चरम पर था. अब तक असीम मुझे मुझ से ज्यादा जाननेपहचानने और समझने लगा था. मेरी छोटी से छोटी तकलीफ को बिना बताए ही जान जाता था. कई बार छोटीछोटी बात में मेरा मूड औफ हो जाता था. पर मुझे मनाने में उस का जवाब नहीं था. मुझे हंसा कर ही रहता था. मैं कभी भी उस से झूठ नहीं बोल पाती थी. वह तुरंत पकड़ लेता था कि मैं कुछ छुपा रही हूं. सच्चाई जान कर ही रहता था.

उस का ध्यान रखना, उस की देखभाल करना मुझे अच्छा लगता था. उस की मीटिंग हो या उसे कहीं बाहर जाना हो, मैं उसे सभी चीजों की याद दिलाती. उस के खाने, सोने और उठने, लगभग सभी बातों का मैं खयाल रखती थी.

सब ठीक चल रहा था कि एक दिन निकी ने मुझ से कहा, ‘‘अनु, असीम और तुम पिछले 4 महीने से एकदूसरे को जानते हो और जहां तक मैं समझा हूं 3 महीने से तुम दोनों एकदूसरे को प्रेम करते हो. इस बीच असीम ने तुम से कभी प्रियम के बारे में कोई बात की?’’

ये भी पढ़ें- Romantic Story: भूल जाना अब- क्या कभी पूरा होता है कॉलेज का प्यार

  ‘‘प्रियम…? प्रियम कौन है?’’

  ‘‘सौरी टू से यू बट… मुझे लगा कि तुम्हें प्रियम के बारे में पता नहीं है. अगर पता होता तो तुम इस संबंध में इतना आगे न बढ़ती.’’ निकी ने कहा.

  ‘‘यार निकी प्लीज, अब तू इस तरह पहेली मत बुझा, जो भी बात है सीधेसीधे बता दे. कौन है यह प्रियम और असीम से उस का क्या संबंध है?’’ मैं ने झल्ला कर कहा.

  ‘‘अनु, असीम और प्रियम ने एक साथ एमबीए किया था और पिछले 4 सालों से दोनों एक साथ प्रणयफाग खेल रहे हैं. 6 महीने पहले प्रियम फ्यूचर स्टडीज के लिए यूएसए चली गई है.’’

  ‘‘निकी इतने दिनों तक तुम ने मुझ से यह बात छुपाए क्यों रखी, तुम्हें पहले ही बता देना चाहिए था.’’

  ‘‘अनु, मैं सोच रही थी कि यह बात तुम से असीम खुद कहे तो ज्यादा अच्छा होगा. पर जब मुझे लगा कि शायद असीम भी तुम्हें प्यार करने लगा है तो अब वह तुम से यह बात नहीं कह सकता. तब मुझे यह बात कहनी पड़ी. अनु असीम प्रियम को बहुत प्यार करता है, इसलिए अब तुम्हें इस संबंध में और अधिक गहरे जाने की जरूरत नहीं है. क्योंकि बाद में जब सहन करने की बात आएगी तो वह तुम्हारे हिस्से में ही आएगी.’’ निकी ने कहा.

  ‘‘सहन करने वाली बात मेरे ही हिस्से में क्यों आएगी?’’ निकी की बात मेरी समझ में नहीं आई, इसलिए मैं ने पूछा.

  ‘‘अगर प्रियम को अंधेरे में रख कर यानी उसे धोखा दे कर असीम तुम से शादी कर लेता है और भविष्य में कभी तुम्हें प्रियम और असीम के पुराने संबंध के बारे में पता चलता तो मन में अपराध बोध की जो भावना पैदा होगी वह तुम्हें.

  ‘‘अनु, तुम मेरी बात पर गहराई से विचार करो. उस के बाद खूब सोचसमझ कर आगे बढ़ो. मेरे कहने का मतलब यह है कि इस मामले में पूरी परिपक्वता दिखा कर ही निर्णय लो. मुझे तुम पर पूरा विश्वास है कि तुम जो भी निर्णय लोगी, सोचसमझ कर ही लोगी. तुम्हारा जो भी निर्णय होगा, उस में मैं तुम्हारे साथ हूं.’’ निकी ने कहा.

निकी की बात सुन कर मेरे मन में भूकंप सा आ गया था. उस की इन बातों से मेरे दिल पर क्या बीती, यह सिर्फ मैं ही जानती हूं. मैं पूरे दिन रोती रही. मैं ने न तो असीम को फोन किया और न ही मैसेज भेजा. उस के मैसेज के जवाब भी नहीं दिए. सच बात तो यह थी कि मुझे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था. मैं बिजी होऊंगी. यह सोच कर असीम ने भी कोई रिएक्ट नहीं किया.

पर शाम को जब उस ने फोन किया तो मेरी बातों से ही उसे लग गया कि कुछ गड़बड़ है. तब उस ने पूछा, ‘‘अनु बात क्या है, आज तुम्हारी आवाज अलग क्यों लग रही है? ऐसा लगता है आज तुम खूब रोई हो, शायद अभी भी रो रही हो?’’

  ‘‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है.’’ मैं ने कहा.

ये भी पढ़ें- Romantic Story: सार्थक प्रेम- कौन था मृणाल का सच्चा प्यार

पर असीम कहां मानने वाला था. उस ने कहा, ‘‘अनु, तुम्हें तो पता है कि तुम मेरे सामने झूठ नहीं बोल पातीं. इसलिए बेकार की कोशिश मत करो. सचसच बताओ, क्या बात है? तुम्हें मेरी कसम, बताओ तुम डिस्टर्ब क्यों हो? औफिस में कुछ हुआ है? किसी ने कुछ कहा है? प्लीज अनु, आइ एम वरीड यार…’’

  ‘‘मैं आज औफिस गई ही नहीं थी.’’ मैं ने कहा.

  ‘‘ क्यों? जब तुम औफिस नहीं गई थीं तो फोन क्यों नहीं किया, मैसेज करने की कौन कहे, जवाब भी नहीं दिया? क्यों अनु?’’ असीम को मेरी बात पर आश्चर्य हुआ.

  ‘‘असीम, यह प्रियम कौन है?’’ मैं ने असीम से सीधे पूछा.

मेरे इस सवाल पर पहले वह थोड़ा हिचकिचाया, फिर बोला, ‘‘…तो यह बात है. आखिर निकी ने बता ही दिया.’’

  ‘‘हां, उसी ने बताया है मुझे.’’ मैं ने बेरुखी से कहा, ‘‘पिछले 4 महीने में तुम ने कभी भी नहीं बताया, तुम्हें कभी नहीं लगा कि तुम्हें प्रियम के बारे में मुझे बताना चाहिए?’’

  ‘‘लगा था मुझे, कई बार लगा था, कई बार सोचा भी कि तुम से प्रियम के बारे में बता दूं. पर जुबान ही नहीं खुलती थी.’’

आगे पढ़ें- बिकाज…बिकाज… आई लव यू…

ये भी पढ़ें- Family Story: झिलमिल सितारों का आंगन होगा

Serial Story: गुंडा (भाग-3)

मेरी ने उस का हाथ थामा, ‘‘नीरू, मुझे घर जाना है, जरूरी काम है. तू चलेगी क्या मेरे साथ?’’ मेरी अब उस की बहुत अच्छी दोस्त बन चुकी थी.

रास्ते में मेरी ने कहा, ‘‘नीरू, मैं बहुत दिन से एक बात कहना चाह रही थी, मगर डर रही थी कि कहीं तुम बुरा न मान जाओ. मेरा विचार है कि सगाई से पहले एक बार आनंद के बारे में पुनर्विचार कर लो. उस के और तुम्हारे स्वभाव में जमीनआसमान का अंतर है. वह जो दिखता है वह है नहीं और तुम्हारा मन बिलकुल साफ है.’’

‘‘जिसे मैं शांत, गंभीर और नेक व्यक्ति मानती थी उस में अब मुझे पैसोें का गरूर, अपनेआप को सब से श्रेष्ठ और दूसरों को तुच्छ समझने की प्रवृत्ति, दूसरों के दुखदर्द के प्रति संवेदनशून्यता आदि खोट क्यों दिखाई दे रहे हैं? शायद यह मेरी ही नजरों का फेर हो.’’ नीरू की आंखों में आंसू आ गए. उसे मंगल की याद आई. उस ने आंसू पोंछे.

मेरी समझ गई. उस ने मन में सोचा, ‘अब तुम ने आनंद को ठीक पहचाना.’

‘‘मेरी, मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि जब बात सगाई तक पहुंच गई है अब मैं क्या कर क्या सकती हूं?’’

‘‘सगाई तो क्या, बात अगर शादी के मंडप तक भी पहुंच जाती है और तुझे लगता है कि तू उस के साथ सुखी नहीं रह सकती, तेरा स्वाभिमान कुचला जाएगा, तो ऐसे रिश्ते को ठुकराने का तुझे पूरा हक है,’’ मेरी उसे घर छोड़ कर चली गई.

2 दिन तक नीरजा कालेज नहीं गई. उसे कुछ भी करने की इच्छा नहीं हो रही थी. अगले दिन तो वह और भी बेचैन हो उठी थी. उस का दम घुट रहा था. शाम होतेहोते वह और भी बेचैन हो उठी.

‘‘मां, थोड़ी देर वाकिंग कर के आती हूं.’’

‘‘मैं साथ चलूं?’’

‘‘नहीं मां, यों ही जरा चल के आऊंगी तो थोड़ा ठीक लगेगा,’’ वह चप्पल पहन कर निकल गई.

नीरू की मां जानती थी कि उसे कोई चीज बेचैन कर रही है. छोटीमोटी बात होगी तो वापस आ कर ठीक हो जाएगी. ऐसीवैसी कोई बात होगी तो वह अवश्य उस के साथ चर्चा करेगी. वे अपने काम में लग गईं.

ये भी पढ़ें- फैसला: क्यों रंजना की एक मजबूरी बनी उसकी मौत का कारण?

थोड़ी देर चलते रहने के बाद उस ने देखा कि वह किसी जानेपहचाने रास्ते से जा रही है. वह रुक गई. उसे अचानक ध्यान आया कि वह मेघा के घर के आसपास खड़ी है. उस के कदम मेघा के घर की ओर बढ़ गए. फाटक खोल कर उस ने अंदर प्रवेश किया. चारों ओर शांति थी. वहां चंदू की बाइक नहीं थी. ‘चलो, अच्छा है घर पर नहीं है. मेघा और उस की मां से थोड़ी देर बात कर के उस की मनोस्थिति में थोड़ा बदलाव आएगा.’

‘तनाव मुक्त हो कर आज रात वह मां से खुल कर बात कर सकेगी.’ दरवाजा बंद था. उस ने घंटी बजाने को हाथ उठाया ही था कि अंदर से आवाज आई, ‘‘नहीं मेघा, यह नहीं हो सकता.’’ अरे, यह तो चंदू की आवाज है.

‘‘क्यों भैया, क्यों नहीं हो सकता? मैं जानती हूं कि तुम उस से बहुत प्यार करते हो.’’

‘‘हांहां, तू तो सब जानती है, दादी है न मेरी.’’

‘‘हंसी में बात को मत उड़ाओ भैया. अगर तुम नीरू से नहीं कह सकते तो बोलो, मैं बात करती हूं.’’

‘‘नहींनहीं मेघा, खबरदार ऐसा कभी न करना. मैं जानता हूं कि वह किसी और की अमानत है तो फिर मैं कैसे…’’

‘‘चलो, एक बात तो साफ है कि आप उस से…’’

‘‘मगर इस से क्या होता है मेघा? वह किसी और से प्यार करती है, दोचार दिन में उस की सगाई होने वाली है और फिर शादी.’’

अब नीरू की समझ में आ रहा था कि शायद वे लोग उस की बात कर रहे थे.

‘‘भैया, आप से किस ने कह दिया कि नीरजा आनंद से प्यार करती है. यह तो केवल घटनाओं का क्रम है. वह उस के साथ खुश नहीं रह पाएगी.’’

‘‘यह तू कैसे कह सकती है?’’ चंदू ने झुंझलाते हुए कहा.

‘‘दोनों के स्वभाव में जमीनआसमान का अंतर है. आनंद स्वार्थी और अहंभावी है. वह वह नहीं है जो दिखता है. वह और भी खतरनाक है.’’

‘‘मैं सब जानता हूं मेघा, मगर अब कुछ नहीं हो सकता. सब से बड़ी बात यह है कि मैं कालेज में बदनाम हूं. धनवान भी नहीं हूं.’’

‘‘मगर मैं जानती हूं कि तुम कितने अच्छे हो. दूसरों की भलाई के लिए कुछ भी कर सकते हो.’’

‘‘मैं तेरा भाई हूं न, इसलिए तुझे ऐसा लगता है. मेघा अब छोड़ न यह सब. उस को शांति से आनंद के साथ आनंदपूर्वक जीने दे. इस समय तू मुझे जाने दे. मेरी गाड़ी अब तक ठीक हो गई होगी,’’ चंदू ने कहा.

घर की खिड़की से बचती हुई नीरू घर के पिछवाड़े की तरफ चली गई.

घर पहुंचने के बाद मां ने देखा कि अब वह तनावमुक्त थी, पर किसी आत्ममंथन में अभी भी उलझी हुई है. उन्होंने कुछ नहीं कहा. नीरू चुपचाप रात का खाना खाने के बाद अपने कमरे की बत्ती बुझा कर बालकनी में आ कर बैठ गई. बाहर चांदनी बिछी हुई थी.

वह जैसे किसी तंद्रा में थी. उस की आंखों के सामने तरहतरह की घटनाएं आ रही थीं, जिन में वह कभी आनंद को देख रही थी तो कभी चंदू को. जिसे सीधा, सरल, उत्तम और सहृदय मानती रही वह किस रूप में सामने आया और जिसे गुंडा, मवाली, फूलफूल पर मंडराने वाला भंवरा मानती आई है उस का स्वभाव कितना नरमदिल, दयालु और मददगार है, मगर उस ने चंदू को कभी उस नजरिए से नहीं देखा.

मेरी ने कई बार उसे समझाया भी कि चंदू साफ दिल का इंसान है जो अन्याय बरदाश्त नहीं कर सकता.

कोई लड़कियों को छेड़ता है, किसी बच्चे या बूढ़े को सताता है तो उस से लड़ाई मोल लेता है. वह लड़कियों के पीछे नहीं भागता, बल्कि उस के शक्तिशाली व्यक्तित्व और चुलबुलेपन से आकर्षित हो कर लड़कियां ही उसे घेरे रहती हैं. आज क्या बात हो गई उस के सामने सबकुछ साफ हो गया. शायद उस की आंखों पर लगा आनंद की नकली शालीनता का चश्मा उतर गया था.

‘ये क्या किया मैं ने. क्या मेरी पढ़ाई मुझे इतना ही ज्ञान दे पाई? मेरे संस्कार क्या इतने ही गहरे थे? मुझे सही और गलत की पहचान क्यों नहीं है? क्या मेरी ज्ञानेंद्रियां इतनी कमजोर हैं कि वे हीरे और कांच में फर्क नहीं कर पातीं? क्या मैं इतनी भौतिकवादी हो गई हूं कि मुझे आत्मा की शुद्धता और पवित्रता के बजाय बाहरी चमकदमक ने अधिक प्रभावित कर दिया.

ये भी पढ़ें- परिंदे को उड़ जाने दो: क्या मां से आजादी पाकर अपनी शर्तों पर जिंदगी जी पाई शीना?

‘मेघा सही कहती थी कि वह आनंद के साथ कभी खुश नहीं रह पाएगी. न वह ऐश्वर्य में पलीबढ़ी है, न उसे पाना चाहती है. वह ऐसी सीधीसादी साधारण लड़की है जो एक शांतिपूर्ण, तनावमुक्त जिंदगी जीना चाहती है. वह अपने पति और परिवार से ढेर सारा प्यार पाना चाहती है.’

अचानक उस ने जैसे कुछ निश्चय कर लिया कि वह उस व्यक्ति से हरगिज शादी नहीं करेगी, जिस में संवेदनशीलता नहीं है, आर्द्रता नहीं है, जो भौतिकवादी है. फिर चाहे वह करोड़पति हो या अरबपति, उस का पति कदापि नहीं बन सकता. वह उस गुंडे, मवाली से ही शादी करेगी जो दिल का सच्चा है, नरमदिल और मानवतावादी है. वह जितना बिंदास दिखता है उतना ही परिपक्व और जीवन के प्रति गंभीर है. उसे पूरा विश्वास है कि उस की जिंदगी ऐसे व्यक्ति की छत्रछाया में बड़ी शांति से गुजर जाएगी. ऐसा निश्चय करने के बाद नीरजा को बड़े चैन की नींद आई.

ये घर बहुत हसीन है: भाग-3

सहसा आर्यन का फ़ोन बज उठा. आर्यन सब भूल जूस का गिलास टेबल पर रख बच्चे से बातें करने लगा.
रात को अकेले बिस्तर पर लेटी हुई वान्या विचित्र मनोस्थिति से गुज़र रही थी. ‘कभी लगता है आर्यन जैसा प्यार करने वाला न जाने कैसे मिल गया? लेकिन अगले ही पल स्वयं को छला हुआ महसूस करती हूं. सिर से पांव तक प्रेम में डूबा आर्यन एक फ़ोन के आते ही सब कुछ बिसरा देता है? क्या है यह सब?’ आर्यन की पदचाप सुन वान्या आंखें मूंदकर सोने का अभिनय करते हुए चुपचाप लेटी रही. आर्यन ने लाइट औफ़ की और वान्या से लिपटकर सो गया.

अगले दिन भी वान्या अन्यमनस्क थी. स्वास्थ्य भी ठीक नही लग रहा था उसे अपना. सारा दिन बिस्तर पर लेटी रही. आर्यन बिज़नस का काम निपटाते हुए बीच-बीच में हाल पूछता रहा. वान्या के घर से फ़ोन आया. अपने मम्मी-पापा को उसने अपने विषय में कुछ नहीं बताया, लेकिन उनकी स्नेह भरी आवाज़ सुन वह और भी बेचैन हो उठी.

रात को आर्यन खाने की दो प्लेटें लगाकर उसके पास बैठ गया. टीवी औन किया तो पता लगा कि अगले दिन ‘जनता कर्फ़्यू’ की घोषणा हो गयी है.

“अब क्या होगा? लगता है पापा का कहा सच होने वाला है. वे आज ही फ़ोन पर कह रहे थे कि लौकडाउन कभी भी हो सकता है.” वान्या उसांस लेते हुए बोली.

आर्यन ने उसके दोनों हाथ अपने हाथों में ले लिए, “घबराओ मत तुम्हें कोई काम नहीं करना पड़ेगा. प्रेमा कहीं दूर थोड़े ही रहती है कि लौकडाउन में आएगी नहीं. तुम क्यों उदास हो रही हो? लौकडाउन हो भी गया तो हम दोनों साथ-साथ रहेंगे सारा दिन….मस्ती होगी हमारी तो!”

ये भी पढ़ें- Short Story: साथी- कौन था प्रिया का साथी?

वान्या को अब कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था. पानी पीकर सोने चली गयी. मन की उलझन बढ़ती ही जा रही थी. ‘पहले क्या मैं कम परेशान थी कि यह जनता कर्फ़्यू ! लौकडाउन हुआ तो अपने घर भी नहीं जा सकूंगी मैं. आर्यन से फ़ोन के बारे में कुछ पूछूंगी और उसने कह दिया कि हां, मेरी पहले भी शादी हो चुकी है. तुम्हें रहना है तो रहो, नहीं तो जाओ. जो जी में आये करो तो क्या करूंगी? यहां इतने बड़े घर में कैसी पराई सी हो गयी हूं. आर्यन का प्रेम सच है या ढोंग?’ अजीब से सवाल बिजली से कौंध रहे थे वान्या के मन-मस्तिष्क में.
अपने आप में डूबी वान्या सोच रही थी कि इस विषय में कहीं से कुछ पता लगे तो उसे चैन मिल जाये. ‘कल प्रेमा से सफ़ाई करवाने के बहाने पूरे घर की छान-बीन करूंगी, शायद कोई सुराग हाथ लग जाये.’ सोच उसे थोड़ा चैन मिला तो नींद आ गयी.

अगले दिन सुबह से ही प्रेमा को हिदायतें देते हुए वह सारे बंगले में घूम रही थी. आर्यन मोबाइल में लगा हुआ था. दोस्तों के बधाई संदेशों का जवाब देते हुए कुछ की मांग पर विवाह के फ़ोटो भी भेज रहा था. वान्या को प्रेमा के साथ घुलता-मिलता देख उसे एक सुखद अहसास हो रहा था.
इतना विशाल बंगला वान्या ने पहले कभी नहीं देखा था. जब दो दिन पहले उसने बंगले में इधर-उधर खड़े होकर खींची अपनी कुछ तस्वीरें सहेलियों को भेजी थीं तो वे आश्चर्यचकित रह गयीं थीं. उसे ‘किले की महारानी’ संबोधित करते हुए मैसेजेस कर वे रश्क कर रहीं थी. इतने बड़े बंगले का मालिक आर्यन आखिर उस जैसी मध्यमवर्गीया से सम्बन्ध जोड़ने को क्यों राज़ी हो गया? और तो और कोरोना के बहाने शादी की जल्दबाजी भी की उसने.

वान्या का मन बेहद अशांत था. प्रेमा के साथ-साथ घर में घूमते हुए लगभग दो घंटे हो चुके थे. रहस्यमयी निगाहों से वह घर को टटोल रही थी. बैडरूम के पास वाले एक कमरे में चम्बा की सुप्रसिद्ध कशीदाकारी ‘नीडल पेंटिंग’ से कढ़ी हुई हीर-रांझा की खूबसूरत वौल हैंगिंग में उसे आर्यन और अपनी सौतन दिख रही थी. पहली बार लौबी में घुसते ही दीवार पर टंगी मौडर्न आर्ट की जिस पेंटिंग के लाल, नारंगी रंग उसे उसे रोमांटिक लग रहे थे, वही अब शंका के फनों में बदल उसे डंक मार रहे थे. बैडरूम में सजी कामलिप्त युगल की प्रतिमा, जिसे देख परसों वह आर्यन से लिपट गयी थी आज आंखों में खटक रही थी. ‘क्या कोई अविवाहित ऐसा सामान सजाने की बात सोच सकता है? शादी तो यूं हुई कि चट मंगनी पट ब्याह, ऐसे में भी आर्यन को ऐसी स्टेचू खरीदकर सजाने के लिए समय मिल गया….हैरत है!’ घर की एक-एक वस्तु आज उसे काटने को दौड़ रही थी. ‘कैसा बेकार सा है यह मनहूस घर’ वह बुदबुदा उठी.

लगभग सारे घर की सफ़ाई हो चुकी थी. केवल एक ही कमरा बचा था, जो अन्य कमरों से थोड़ा अलग, ऊंचाई पर बना था. पहाड़ के उस भाग को मकान बनाते समय शायद जान-बूझकर समतल नहीं किया गया होगा. बाहर से ही छत से थोड़ा नीचे और बाकी मकान से ऊपर उस कमरे को देख वान्या बहुत प्रभावित हुई थी. प्रेमा का कहना था कि उस बंद कमरे में कोई आता-जाता नहीं इसलिए साफ़-सफ़ाई की कोई आवश्यकता नहीं है, लेकिन वान्या तो आज पूरा घर छान मारना चाहती थी. उसके ज़ोर देने पर प्रेमा झाड़ू, डस्टर और चाबी लेकर कमरे की ओर चल दी. लकड़ी की कलात्मक चौड़ी लेकिन कम ऊंचाई वाली सीढ़ी पर चढ़ते हुए वे कमरे तक पहुंच गए. प्रेमा ने दरवाज़े पर लटके पीतल के ताले को खोला और दोनों अन्दर आ गए.

ये भी पढ़ें- Short Story: पीली दीवारें- क्या पति की गलतियों की सजा खुद को देगी

कमरे में अखरोट की लकड़ी से बनी एक टेबल और लैदर की कुर्सी रखी थी. काले रंग की वह कुर्सी किसी भी दिशा में घूम सकती थी. पास ही ऊंचे पुराने ढंग के लकड़ी के पलंग पर बादामी रंग की याक के फ़र से बनी बहुत मुलायम चादर बिछी थी. कुछ फ़ासले पर रखी एक आराम कुर्सी और कपड़े से ढके प्यानो को देख वान्या को वह कमरा रहस्य से भरा हुआ लगने लगा. दीवार पर घने जंगल की ख़ूबसूरत पेंटिंग लगी थी. वान्या पेंटिंग को देख ही रही थी कि दीवार के रंग का एक दरवाज़ा दिखाई दिया. ‘कमरे के अन्दर एक और कमरा’ उसका दिमाग चकरा गया. तेज़ी से आगे बढ़कर उसने दरवाज़े को धक्का दे दिया. चरर्र की आवाज़ करता हुआ दरवाज़ा खुल गया.

आगे पढें-  छोटा सा वह कमरा खिलौनों से भरा हुआ था, उनमें…

ये घर बहुत हसीन है: भाग-2

अचानक तिपाही पर रखा आर्यन का मोबाइल बज उठा. ‘वंशिका कौलिंग’ देखा तो याद आया यह सुरभि दीदी की बेटी का नाम है. वान्या ने फ़ोन उठा लिया. उसके हैलो कहते ही किसी बच्चे की आवाज़ सुनाई दी, “पापा कहां है?”

दीदी के बच्चे तो बड़े हैं. यह तो किसी छोटे बच्चे की आवाज़ है, सोचते हुए वान्या बोली, “किस से बात करनी है आपको? यह नंबर तो आपके पापा का नहीं है. दुबारा मिलाकर देखो, बच्चे!”
“आर्यन पापा का नाम देखकर मिलाया था मैंने….आप कौन हो?” बच्चा रुआंसा हो रहा था.
वान्या का मुंह खुला का खुला रह गया. इससे पहले कि वह कुछ और बोलती आर्यन बाथरूम से आ बाहर आ गया. “किसका फ़ोन है?” पूछते हुए उसने वान्या के हाथ से मोबाइल ले लिया और तोतली आवाज़ में बातें करने लगा.
निराश वान्या कपड़े हाथ में लेकर बाथरूम की ओर चल दी. ‘किसने किया होगा फ़ोन? आर्यन भी जुटा हुआ है उससे बातें करने में. क्या आर्यन की पहले शादी हो चुकी है? हां, लगता तो यही है. तलाक़ हो चुका है शायद. मुझे बताया भी नहीं….यह तो धोखा है!’ वान्या अपने आप में उलझती जा रही थी.
आधुनिक सुख-सुविधाओं से लैस कमरे के आकार का बाथरूम जिसके वह सपने देखती थी, उसकी निराशा को कम नहीं कर रहा था. एअर फ्रैशनर की भीनी-भीनी ख़ुशबू, हल्की ठंड और गरम पानी से भरा बाथटब! जी चाह रहा था कि अभी आर्यन आ जाये और अठखेलियां करते हुए उसे कहे कि ‘फ़ोन उसके लिए नहीं था, किसी और आर्यन का नंबर मिलाना चाहता था वह बच्चा. मुझे पापा कब बनना है, यह तो तुम बताओगी….!’ वान्या फूट-फूट कर रोने लगी.

बाहर आई तो डायनिंग टेबल पर नाश्ते के लिए आर्यन उसकी प्रतीक्षा कर रहा था. ऊंची बैक वाली गद्देदार काले रंग की कुर्सियां वान्या को कोरी शान लग रहीं थी. वान्या के बैठते ही आर्यन उसके बालों से नाक सटाकर लम्बी सांस लेता हुआ बोला, “कौन सा शैम्पू लगाया है? कहीं यह ख़ुशबू तुम्हारे बालों की तो नहीं? महक रहा हूं अन्दर तक मैं!”

ये भी पढ़ें- लौकडाउन में दिल मिल गए: एक रात क्या हुआ सविता के साथ

वान्या को आर्यन की शरारती मुस्कान फिर से मोहने लगी. सब कुछ भूल वह इस पल में खो जाना चाहती थी. “जल्दी से खा लो. अभी प्रेमा सफ़ाई कर रही है. उसे जल्दी से वापिस भेज देंगे….अपना बैड-रूम तो तुमने देखा ही नहीं अब तक. कब से इंतज़ार कर रहा है मेरा बिस्तर तुम्हारा ! ” आर्यन का नटखट अंदाज़ वान्या को मदहोश कर रहा था.

नाश्ता कर वान्या बैडरूम में पहुंच गयी. शानदार कमरे में कदम रखते ही रोमांस की ख़ुमारी बढ़ने लगी. “मुझे ज़रूर ग़लतफहमी हुई है, आर्यन के साथ कोई हादसा हुआ होता तो वह प्यार के लम्हों को जीने के लिए इतना बेताब न दिखता. उसका इज़हार तो उस आशिक़ जैसा लग रहा है, जिसे नयी-नयी मोहब्बत हुई हो.” सोचते हुए वान्या बैड पर लेट गयी. फ़ोम के गद्दे में धंसे-धंसे ही मखमली चादर पर अपना गाल रख सहलाने लगी. प्रेमा और नरेंद्र के जाते ही आर्यन भी कमरे में आ गया. खड़े-खड़े ही झुककर वान्या की आंखों को चूम मुस्कुराते हुए उसे अपने बाहुपाश में ले लिया.
“कैसा है यह मिरर? कुछ दिन पहले ही लगवाया है मैंने?” बैड के पास लगे विंटेज कलर फ़्रेम के सात फुटिया मिरर की ओर इशारा करते हुए आर्यन बोला.
दर्पण में स्वयं को आर्यन की बाहों में देख वान्या के चेहरे का रंग भी आईने के फ़्रेम सा सुर्ख़ हो गया.
प्रेमासिक्त युगल एकाकार हो एक-दूसरे की आगोश में खोए-खोए कब नींद की आगोश में चले गए, पता ही नहीं लगा.

सायंकाल प्रेमा ने घंटी बजाई तो उनकी नींद खुली. ग्रीन-टी बनवाकर अपने-अपने हाथों में मग थामे दोनों घर के पीछे की ओर बने गार्डन में रखी बेंत की कुर्सियों पर जाकर बैठ गए. वहां रंग-बिरंगे फूल खिले थे. कतार में लगे ऊंचे-ऊंचे पेड़ों की शाखाएं हवा चलने से एक-दूसरे के साथ बार-बार लिपट रहीं थीं. सभी पेड़ों पर भिन्न आकार के फल लटक रहे थे, रंग हरा ही था सबका. वान्या की उत्सुक निगाहों को देख आर्यन बताने लगा, “मेरे राइट हैंड साइड वाले चार पेड़ आलूबुखारे के और आगे वाले तीन खुबानी के हैं. अभी कच्चे हैं, इसलिए रंग हरा दिख रहा है. दीदी की बेटी को बहुत पसंद है कच्ची खुबानी. हमारी शादी में नहीं आ सकी, वरना खूब एंजौय करतीं.”

“अपने बच्चों को साथ क्यों नहीं लाईं दीदी? वे दोनों आ गए तो बच्चे भी आ सकते थे. दीदी की बेटी नाम वंशिका है न? सुबह इसी नाम से कौल आई तो मैंने अटैंड कर ली, पर वह तो किसी और का था. किस बच्चे के साथ बात कर रहे थे तुम?” वान्या का मस्तिष्क फिर सुबह वाली घटना में जाकर अटक गया.
“तुम्हें देखते ही शादी करने को मन मचलने लगा था मेरा. दीदी से कह दिया था कि कोई आ सकता है तो आ जाये, वरना मैं अकेले ही चला जाऊंगा बारात लेकर! सबको लाना पौसिबल नहीं हुआ होगा तो जीजू को लेकर आ गयीं देखने कि वह कौन सी परी है जिस पर मेरा भाई लट्टू हो गया!”
आर्यन का मज़ाक सुन वान्या मुस्कुराकर रह गयी.

“एक मिनट…..शायद प्रेमा ने आवाज़ दी है, वापिस जा रही होगी, मैं दरवाज़ा बंद कर अभी आया.” वान्या की पूरी बात का जवाब दिए बिना ही आर्यन दौड़ता हुआ अन्दर चला गया.

कुछ देर तक जब वह लौटकर नहीं आया तो वान्या उस बच्चे के विषय में सोचकर फिर संदेह से घिर गयी. व्याकुलता बढ़ने लगी तो बगीचे से ऊपर की ओर जाती हुई सफ़ेद रंग की घुमावदार लोहे की सीढ़ियों पर चढ़ गयी. ऊपर खुली छत थी, जहां से दूर तक का दृश्य साफ़ दिखाई दे रहा था. ऊंची-ऊंची फैली हुई पहाड़ियों पर पर पेड़ों के झुरमुट, सर्प से बलखाते रास्ते और छोटे-बड़े मकान. मकानों की छतों का रंग अधिकतर लाल या सलेटी था. सभी मकान एक-दूसरे से कुछ दूरी पर थे. ‘क्या ऐसी ही दूरी मेरे और आर्यन के बीच तो नहीं? साथ हैं, लेकिन एक फ़ासला भी है. क्या राज़ है उस फ़ोन का आखिर?’ वान्या सोच में डूबी थी. सहसा दबे पांव आकर आर्यन ने अपने हाथों से उसकी आंखें बंद कर दीं.

ये  भी पढ़ें- Short Story: फैसला- क्या हुआ जब अविरल ने मोड़ा आभा के प्यार से मुंह?

“तुम ही तो आर्यन….! कब आये छत पर?”

“हो सकता है यहां मेरे अलावा कोई और भी रहता हो और तुम्हें कानों कान ख़बर भी न हो.” आर्यन शरारत से बोला.
“और कौन होगा?” वान्या घबरा उठी.

“अरे कितनी डरपोक हो यार….यहां कौन हो सकता है?” वान्या की आंखों से हाथों को हटा उसकी कमर पर एक हाथ से घेरा बनाकर आर्यन ने अपने पास खींच लिया. “चलो, छत पर और आगे. तुम्हें यहां से ही कुछ सुन्दर नज़ारे दिखाता हूं.”

आर्यन से सटकर चलते हुए वान्या को बेहद सुकून मिल रहा था. उसकी छुअन और ख़ुशबू में डूब वान्या के मन में चल रही हलचल शांत हो गयी. दोनों साथ-साथ चलते हुए छत की मुंडेर तक जा पहुंचे. देवदार के बड़े-बड़े शहतीरों को जोड़कर बनाई गयी मुंडेर की कारीगरी देखते ही बनती थी. ‘काश! इन शहतीरों की तरह मैं और आर्यन भी हमेशा जुड़े रहें.’ वान्या सोच रही थी.

“देखो वह सामने सीढ़ीदार खेत, पहाड़ों पर जगह कम होने के कारण बनाये जाते हैं ऐसे खेत…..और दूर वहां रंगीन सा गलीचा दिख रहा है? फूलों की खेती होती है उधर.”

कुछ देर बाद हल्का कोहरा छाने लगा. आर्यन ने बताया कि ये सांवली घटायें हैं जो अक्सर शाम को आकाश के एक छोर से दूसरे तक कपड़े के थान सी तन जाती हैं. कभी बरसती हैं तो कभी सुबह सूरज के आते ही अपने को लपेट अगले दिन आने के लिए वापिस चली जाती हैं.”
सूरज ढलने के साथ अंधेरा होने लगा तो दोनों नीचे नीचे आ गए. घर सुन्दर बल्बों और शैंडलेयर्स से जगमग कर रहा था. वान्या का अंग-अंग भी आर्यन के प्रेम की रोशनी से झिलमिला रहा था. सुबह वाली बात मन के अंधेरे में कहीं गुम सी हो गयी थी.

प्रेमा के खाना बनाकर जाने के बाद आर्यन वान्या को डायनिंग रूम के पास बने एक कमरे में ले गया. कमरे की अलमारी में महंगी क्रौकरी, चांदी के चम्मच, नाइफ़ और फ़ोर्क आदि वान्या को बेहद आकर्षित कर रहे थे, लेकिन थकान से शरीर अधमरा हो रहा था. कमरे में बिछे गद्देदार सिल्वर ग्रे काउच पर वह गोलाकार मुलायम कुशन के सहारे कमर टिकाकर बैठ गयी. आर्यन ने कांच के दो गिलास लिए और पास रखे रेफ़्रीजरेटर से एप्पल जूस निकालकर गिलासों में उड़ेल दिया. वान्या ने गिलास थामा तो पैंदे पर बाहर की ओर क्रिस्टल से बने गुलाबी कमल के फूल की सुन्दरता में खो गयी.
“फूल तो ये हैं….कितने खूबसूरत !” कहते हुए आर्यन ने अपने ठंडे जूस में डूबे अधरों से वान्या के होठों को छू लिया. वान्या मदहोश हो खिलखिला उठी.
“जूस में भी नशा होता है क्या? मैं अपने बस में कैसे रहूं?” आर्यन वान्या के कान में फुसफुसाया.
“नशा तो तुम्हारी आंखों में है.” कांपते लबों से इतना ही कह पायी वान्या और आंखें मूंद लीं.

आगे पढें- रात को अकेले बिस्तर पर लेटी हुई वान्या विचित्र मनोस्थिति…

ये भी पढ़ें- Short Story: विश्वास- अमित के सुखी वैवाहिक जीवन में क्यों जहर घोलना चाहती थी अंजलि?

ये घर बहुत हसीन है: भाग-4

छोटा सा वह कमरा खिलौनों से भरा हुआ था, उनमें अधिकतर सौफ़्ट टौयज़ थे. पास ही आबनूस का बना एक वार्डरोब था, वान्या ने अचंभित होकर वार्डरोब खोलने का प्रयास किया, लेकिन वह खुल नहीं रहा था. पीतल के हैंडल को कसकर पकड़ जब उसने अपना पूरा दम लगाया तो वार्डरोब झटके से खुल गया और तेज़ धक्का लगने के कारण अन्दर से कुछ तस्वीरें निकलकर गिर गयीं. वान्या ने झुककर एक फ़ोटो उठाया तो सन्न रह गयी. आर्यन एक विदेशी लड़की के साथ बर्फ़ पर स्कीइंग कर रहा था. गर्म लम्बी जैकेट, कैप, आंखों पर गौगल्स और हाथों में दस्ताने पहने दोनों बेहद खुश दिख रहे थे. बदहवास सी वह अन्य तस्वीरें उठा ही रही थी कि प्रेमा की आवाज़ सुनाई दी, “मेम साब, इस कमरे में क्या कर रहीं हैं आप?”

वान्या ने झटपट सारी तस्वीरें वार्डरोब में वापिस रख दीं. “यहां की सफ़ाई करनी होगी. मोबाइल के ज़माने में यहां कौन सी फ़ोटो रखी हैं? सामान को निकालकर इस रैक को साफ़ कर लेते हैं.” अपने को संयत कर वान्या ने वार्डरोब की ओर इशारा कर दिया.

“नहीं, ऐसा मत कीजिये. आप जल्दी-जल्दी मेरे साथ अब नीचे चलिए. साहब आ गए तो….!”

“साहब आ गए तो क्या हो जायेगा? घर साफ़ करना है या नहीं?” वान्या बेचैनी और गुस्से से कांपने लगी.

“साहब कितने खुश हैं आपके साथ. यहां आ गए तो….दुखी हो जायेंगे. मेम साब आप चलिए न नीचे….मैं

नहीं करूंगी आज यहां की सफ़ाई.” वान्या का हाथ पकड़ खींचते हुए प्रेमा कातर स्वर में बोली.

“नहीं जाऊंगी मैं यहां से…..बताओ मुझे कि यहां आकर क्यों दुखी हो जायेंगे साहब.”

“सुरभि मेम साब ने मुझे आपको बताने से मना किया था, लेकिन अब आप ही मेरी मालकिन हो. जैसा आप कहोगी मैं करुंगी. ऐसा करते हैं इस छोटे कमरे से निकलकर बाहर वाले बड़े कमरे में चलते हैं.”

ये भी पढ़ें- Short Story: लॉकडाउन- बुआ के घर आखिर क्या हुआ अर्जुन के साथ?

बड़े कमरे में आकर वान्या पलंग पर बैठ गयी. प्रेमा ने दरवाज़े को चिटकनी लगाकर बंद कर दिया और वान्या के पास आकर धीमी आवाज़ में कहना शुरू किया, “मेम साब, यह कमरा आर्यन साहब के बड़े भाई का है. उन दोनों की उम्र में तीन साल का फ़र्क था, लेकिन प्यार वे पिता की तरह करते थे आर्यन साहब को. आपको पता होगा कि साहब के मां-पिताजी को गुजरे कई साल हो चुके हैं. बड़े भाई ने अपने पिता का धंधा अच्छी तरह संभाल लिया था. एक बार जब बड़े साहब काम के सिलसिले में देश से बाहर गए तो वहां अंग्रेज लड़की से प्यार कर बैठे. शादी भी कर ली थी दोनों ने. अंग्रेज मैडम डॉक्टरी की पढ़ाई कर रहीं थी,

इसलिए साहब के साथ यहां नहीं आयीं थीं. साहब वहां आते-जाते रहते थे. एक साल बाद उनका बेटा भी हो गया. बड़े साहब बच्चे को यहां ले आये थे. यह बात आज से कोई ढाई-तीन साल पहले की है. उस टाइम आर्यन साहब पढ़ाई कर रहे थे और मुम्बई में रह रहे थे. जब पिछले साल अंग्रेज मैडम की पढ़ाई पूरी हुई तो बड़े साहब उनको हमेशा के लिए लाने विदेश गए थे. वहां….बहुत बुरा हुआ मेम साब.” प्रेमा अपने सूट के दुपट्टे से आंसू पोंछ रही थी. वान्या की प्रश्नभरी आंखें प्रेमा की ओर देख रही थी.
“मेम साब, बर्फ़ पर मौज-मस्ती करते हुए अचानक साहब तेज़ी से फिसल गए और वे लड़खड़ा कर गिरे तो अंग्रेज मैडम भी गिरीं, क्योंकि दोनों एक-दूसरे का हाथ पकड़े थे. लुढ़कते-लुढ़कते दोनों नीचे तक आ गए और जब तक लोग अस्पताल ले जाते, बहुत देर हो चुकी थी. साथ-साथ हाथ पकड़े हुए चले गए दोनों इस दुनिया से. उनका बेटा कृष अब सुरभि दीदी के पास रहता है.”

वान्या दिल थामकर सब सुन रही थी. रुंधे गले से प्रेमा का बोलना जारी था. “मेम साब, इस दुर्घटना के बाद जब सुरभि दीदी यहां आईं थीं तो कृष आर्यन साहब को देखकर लिपट गया और पापा, पापा कहकर बुलाने लगा, क्योंकि बड़े साहब और छोटे साहब की शक्ल बहुत मिलती थी. ये देखो….!” प्रेमा ने प्यानों पर ढका कपड़ा उठा दिया. प्यानों की सतह पर एक पोस्टर के आकार वाली फ़ोटो चिपकी थी जिसमें आर्यन और बड़ा भाई एक-दूसरे के गले में हाथ डाले हंसते हुए दिख रहे थे. दोनों का चेहरा एक-दूसरे से इतना मिल रहा था कि किसी को भी जुड़वां होने का भ्रम हो जाये.

“मेम साब, अभी आप कह रही थीं न कि मोबाइल के टाइम में भी ऐसे फ़ोटो? ये बड़े साहब ने पोस्टर बनवाने के लिए रखे हुए थे. बहुत शौक था बड़े-बड़े फ़ोटो से उन्हें घर सजाने का.” प्रेमा आज जैसे एक-एक बात बता देना चाहती थी वान्या को.
“ओह! अच्छा एक बात बताओ, कृष ने आर्यन से अपनी मम्मी के बारे में कुछ नहीं पूछा ?” वान्या व्यथित होकर बोली.
“नहीं, अपनी मां के साथ तो वह तब तक ही रहा जब दो महीने का था. बताया था न मैंने कि बड़े साहब ले आये थे उसको यहां. कभी-कभी साहब के साथ जाता था तभी मिलता था उनसे. वैसे भी वे छह महीने की ट्रेनिंग पर थीं और कहती थीं कि अभी बच्चा मुझे मम्मी न कहे सबके सामने. कृष कोई दीदी-वीदी समझता होगा शायद उनको.”

वान्या सब सुनकर गहरी सोच में डूब गयी. कुछ देर तक शांत रहने के बाद प्रेमा फिर बोली, “मेम साब, जब आपका रिश्ता पक्का नहीं हुआ था और साहब आपसे मिलकर आये थे तो आपकी फ़ोटो साहब ने मुझे और मेरे पति को दिखाई थी. हमें उन्होंने आपके बारे में बताते हुए कहा था कि इनका चेहरा जितना भोला-भाला लग रहा है, बातों से भी उतनी मासूम हैं. वैसे स्कूल में टीचर हैं, समझदार हैं, मेरे पास रुपये-पैसे की तो कोई कमी नहीं है. मुझे ज़रुरत है तो उसकी जो मेरा साथ दे, मेरे अकेलेपन को दूर कर दे, जिसके सामने अपना दर्द बयां कर सकूं. मैंने इनको तुम्हारी मेम साब बनाने का फ़ैसला कर लिया है….!”
वान्या प्रेमा के शब्दों में अभी भी खोयी हुई थी. प्रेमा के “मेम साब अब नीचे चलते हैं” कहते ही वह गुमसुम सी सीढियां उतरने लगी.

ये भी पढ़ें- Short Story: ममता की मूरत- सास के प्रति कैसे बदली सीमा की धारणा?

प्रेमा के वापिस चले जाने के बाद वह आर्यन के साथ लंच कर आराम करने बैडरूम में आ गयी. वान्या को प्यार से अपनी ओर खींचते हुए आर्यन बोला, “रात में बहुत नींद आ रही थी, अब नहीं सोने दूंगा.”
“लेकिन एक शर्त है मेरी.” वान्या आर्यन के सीने पर सिर रखकर बोली.
“कहो न ! कोई भी शर्त मानूंगा तुम्हारी.” वान्या के चेहरे से अपना चेहरा सटा आर्यन बोला.”
“कोरोना के हालात ठीक होने के बाद हम दीदी के पास चलेंगे और अपने बेटे कृष को हमेशा के लिए अपने साथ ले आयेंगे.”
आर्यन की सांस जैसे वहीं थम गयी. “प्रेमा ने बताया न !” भर्राये गले से वह इतना ही बोल सका.
वान्या ने मुस्कुराकर ‘हां’ में सिर हिला दिया.
आर्यन वान्या को अपने सीने से लगाये ख़ामोश होकर भी बहुत कुछ कह रहा था. वान्या को प्रेम में डूबे युगल की मूर्ति आज बेहद ख़ूबसूरत लग रही थी. मन ही मन वह कह उठी, ‘बेकार नहीं, मनहूस नहीं….ये घर बहुत हसीन है!’

लौकडाउन में दिल मिल गए: भाग-3

ओंकार पुरानी फिल्मों व गाने के बहुत शौकीन थे. इधर सविता भी बहुत अच्छा गाती थी लेकिन वक्त के बहाव ने इस शौक को धूमिल कर दिया था. लेकिन अब ओंकार की संगत में उसे अपने पुराने दिनों की याद हो आई और एक दिन बातों ही बातों में इस का पता चलते ही ओंकार उस से गाने का हठ कर बैठे.

“दिल की गिरह खोल दो चुप न बैठो कोई गीत गाओ… “सविता द्वारा यह गीत छेड़ते ही मानो फिजां में एक रुमानियत सी घुल गई.

“हम तुम न हम तुम रहे अब कुछ और ही हो गए…सपनों के झिलमिल जहां में जाने कहां खो गए अब…” तन्मय हो कर गाने की अगली कड़ी को गाते हुए ओंकार जैसे कहीं खो से गए.

दोनों ने नज्म की रूह को महसूस करते हुए गाने को पूरा किया.

“वाह दीदी, आप तो बड़ी छुपी रूस्तम निकलीं. पिछले 2 सालों से मुझे अपनी इस कला की भनक भी न लगने दी और साहब आप की प्रतिभा को भी मानना पड़ेगा.”

गाना सुन कर पार्वती ने सविता से झूठमूठ की नाराजगी जताई.

“वाकई मैं तो आप की सुमधुर आवाज में खो कर रह गया.”

“वह तो ऐसे ही…” कहते हुए सविता की आंखे ओंकार से जा मिलीं और उस के चेहरे पर उभर आई हया की हलकी लालिमा पार्वती की अनुभवी निगाहों से न छिप न सकी.

ये भी पढ़ें- Short Story: टीचर- क्या था रवि और सीमा का नायाब तरीका?

लौकडाउन की बोरियत छंटने लगी थी. कभी सविता तो कभी ओंकार के घर गपशप के साथ चाय के दौर पर दौर चलते. किसी दिन चेस की बाजी लगती तो कभी तीनों मिल कर देर रात तक लूडो खेला करते. कभी दोनों के युगल गीतों से शाम रंगीन हो उठती और खूबसूरत समां सा बंध जाता.

ओंकार और सविता की दोस्ती धीरेधीरे चाहत में बदलती जा रही थी. जहां ओंकार की जीवंतता ने सविता के अंदर जिंदगी जीने की लालसा पैदा कर दी थी, वहीं सविता की सादगी ने ओंकार के दिल को सहज ही अपने आकर्षण में बांध लिया था.

पार्वती को भी दोनों के बीच पनप रहे इस इमोशनल टच का अंदेशा हो चुका था क्योंकि वह अपनी दीदी सविता में नित नए बदलाव देख रही थी. हमेशा अपने कालेज के कामों में खोई, स्वभाव से तनिक गंभीर सविता अब बातबात पर खिलखिला उठती थी. उस के व्यक्तित्व का एक दूसरा पहलू अब खुल कर सामने आ रहा था. सविता अभी 53-54 साल की हो चली थी मगर अब वे एक तरुणी के समान व्यवहार करती दिखाई देती थीं. अब उन के चेहरे पर उजास उमंग से भरी एक आभा दिखाई देती थी.

“दीदी, एक बात कहूं अगर आप बुरा न मानें तो?” एक दिन पार्वती ने कहा तो गुनगुनाते हुए डस्टिंग कर रही सविता के हाथ रुक गए.

“क्या जो मैं सोच रही हूं वह सही है?”

“हां, पार्वती… तुम मेरी अंतरंग सहेली ही नहीं सब से बड़ी शुभचिंतक भी हो. तुम्हें ये जानने का पूरा हक है कि मेरी जिंदगी में आखिर क्या चल रहा है?” कह कर सविता ने पार्वती का हाथ पकड़ कर उसे अपने साथ सोफे पर बैठा लिया.

“प्रतीक के जाने के बाद मेरे जीवन का एक कोना उदास, खाली और वीरान हो चुका था, पर उस वक्त 40 वर्षीया सविता यानी मुझे सामने सिर्फ अपना 16 वर्षीय मासूम बेटा नजर आ रहा था, जिसे पालने की जद्दोजेहद में मुझे अपनी उदासी और अकेलेपन का भान ही न रहा. उस की शादी के वक्त मेरी उम्र 50 पार कर चुकी थी और ढलती उम्र में अपने बारे में सोचना मुझे बचकानी बात लग रही थी. लेकिन पार्वती यह समय है और इस में अगले पल क्या होना है हमें कुछ भी पता नहीं.

“कभी यह बिना इजाजत हम से हमारी सब से प्यारी चीज छीन लेता है और कभी बिना मांगे ही हमारी झोली खुशियों से भर देता है. इतने सालों से मेरे दिल में प्रतीक की जगह कोई नहीं ले पाया और न ही कोई ले पाएगा. पर ओंकार से मिल कर उस कोने की उदासी और अकेलापन दूर हो गया जो प्रतीक के जाने के बाद वीरान था.

“जिंदगी तो पहले भी कट रही थी मगर अब इस के हर पल को जैसे मैं जीने लगी हूं. तुम्हें नहीं पता ओंकार ने भी क्या कुछ झेला है…” कहतेकहते सविता कुछ देर को रुकी,

“फौजी होने के नाते सीमा पर वह दुश्मनों से लड़ने में व्यस्त रहा और इधर उस की पत्नी उसे धोखा देने में. पता चलने पर जब उस ने सवाल किया तो इकलौते बेटे को ले कर वह अलग हो गई. एलिमनी राशि और साथ में अपना पैतृक घर उसे सौंपने के बाद खुद दरबदर हो किराए के फ्लैट में अकेले अपनी जिंदगी बिता रहा है.

“तुम ही बताओ क्या गलती थी उस की? उस के जैसे सभ्य और जीवंत इंसान के साथ कोई बेवफाई कैसे कर सकता है? देशसेवा का उसे यह कैसा इनाम मिला? पता नहीं कैसी होगी वह स्त्री जिस ने सिर्फ शारीरिक सुख के लिए ओंकार जैसे व्यक्ति को धोखा दिया.

“इतना होने पर भी ओंकार ने जीने का हौंसला नही छोड़ा. मालूम है, अपने घर के अकेलेपन से घबरा कर वह बहाने से हमारे घर कभी अदरक तो कभी शक्कर मांगने आ जाता था, ताकि कुछ देर तो किसी से बात कर सके. बेटाबहू अपनी जिंदगी में खुश हैं. कुछ यारदोस्त थे, पर लौकडाउन के चलते उन से भी मुलाकात नहीं हो पा रही थी.

“मैं ने जी है अकेली जिंदगी पार्वती, इसलिए मुझे उस की तकलीफ का अंदाजा है. सोचो हमें तो एकदूसरे का सहारा भी है. लेकिन वह किस के संग अपने गम अपनी खुशियों को बांटे? वैसे भी ओंकार का साथ मुझे खुशी देता है, उस के साथ वक्त बिताना मुझे अच्छा लगता है, कह कर सविता चुप हो गईं.

“लेकिन दीदी, अब आगे क्या, मेरा मतलब भैया को पता चला तो?”

“तो क्या पार्वती, उस की अपनी जिंदगी है जिस में वह पूरी तरह खुश है. पर अब अपनी मुट्ठी में कैद खुशियों को मैं जीना चाहती हूं. मेरा भी जिंदगी को गले लगाने को जी चाहता है और मुझे इस का पूरा हक है.

“ऐ जिंदगी गले लगा ले…” गाने को गुनगुनाते हुए सविता ने तुरंत पार्वती के दोनों हाथ थामे और उस के साथ हौल में थिरकने लगीं. उस की चमकती आंखें जैसे सुनहरे सपनों की अंगड़ाइयां ले रहे थे.

ये  भी पढ़ें- Short Story: क्षोभ- शादी के नाम पर क्यों हुआ नितिन का दिल तार-तार

2-4 दिनों बाद सविता ने घुमाफिरा कर पूछा,”ओंकार, तुम बाकी जिंदगी बिताने के बारे में क्या सोचते हो?”

ओंकार समझ गया कि मामला अब गंभीर है. उस ने बहुत संजीदगी से सविता के दोनों हाथ अपने हाथों में ले कर कहा,”सविता, इतने साल मैं जानबूझ कर किराए के मकानों में रहता रहा हूं ताकि एक जगह ऊब जाने के बाद नई जगह जाने की गुंजाइश रहे. अब मैं जिंदगी में ठहराव चाहता हूं, तुम्हारे साथ. पर मैं यह भी जानता हूं कि हमारे बच्चों को हम से ज्यादा हमारी संपत्ति की चिंता है.”

सविता को भी यही डर था. वह जीवन के फैसले बच्चों से पूछ कर कैसे ले सकती है? फिर क्या करें? उस ने गेंद ओंकार के पाले में डाल दी, “हम साथ रह कर भी अलग रहेंगे. मैं अपना फ्लैट खरीद लेता हूं, परमानैंट ठिकाना हो जाएगा. हमेशा साथ रहेगा. तुम मेरा घर संभालोगी और मैं तुम्हें. बच्चों से छिपाने की जरूरत नहीं पर उन्हें नहीं लगेगा कि हमारे बाद घरबार उन को नहीं मिल पाएगा.”

“ठीक है, फिर आज इसी खुशी में मैं एक बड़ी पार्टी दूंगी जो दोनों फ्लैटों में एकसाथ चलेगी,” सविता पुलकित हो कर बोली.

“और फिर कोरोना का डर खत्म होने और तुम्हारे फ्लैट की कागजी काररवाई के बाद हम दोनों लंबी छुट्टी पर चलेंगे,”सविता ने जोड़ा.

“कमरे 2 लेंगे या एक बड़े किंगसाइज वाले बैड वाला?” ओंकार ने चुटकी ली.

सविता शर्मा कर बोली,”तुम्हें पैसे बरबाद करने की जरूरत नहीं, एक ही में ऐडजस्ट कर लेंगें न…”

फिर दोनों एकसाथ हंस पङे.

लौकडाउन में दिल मिल गए: भाग-2

‘मान न मान मैं तेरा मेहमान…’ मन ही मन भुनभुनाते हुई पार्वती चाय बनाने को उठ खड़ी हुई.

“सुनो पार्वती, अदरक थोड़ी ज्यादा ही रखना. बिना अदरक के चाय भी कोई चाय है. दरअसल, मेरे पास आज ही अदरक खत्म हो चुकी है तो मैं ने सोचा….”

“जी हां, क्यों नहीं. पार्वती, तुम साहब के लिए 2-4 अदरक की टुकङी भी ले आना,” सविता ने किचन की ओर मुंह कर के आवाज लगाई.

“बंदे को ओंकार कहते हैं. एक रिटायर्ड फौजी. बस यही छोटी सी पहचान है अपनी,” बेबाकी से ओंकार ने अपना परिचय दिया.

बातों की श्रृंखला में एक हलका सा अल्पविराम आ गया जब पार्वती ने चाय का मग और अदरक के 2 टुकड़े ला कर जरा जोर से सैंटर टेबल पर रखे.

“पार्वती, बस इतना ही…” सविता ने आंखें तरेरीं.

“हां दीदी, अब ज्यादा अपने पास भी नहीं है.”

“अरे, इतना बहुत है मेरे लिए. कम से कम 3-4 दिन चलेगा. वैसे चाय बहुत बढ़िया बनाई है तुम ने,” पहला सिप लेते हुए ओंकार बोल पङे.

उन के जाने के बाद पार्वती ने बड़बड़ाते हुए पूरी जगह को अच्छे से सैनेटाइज किया और अपने काम में लग गई. उस की मुखमुद्रा देख सविता के चेहरे पर हंसी आ गई.

ये भी पढ़ें– Short Story: ब्रेकअप- आखिर क्यों नविका ने यश के साथ किया रिश्ता खत्म?

उस दिन सविता का जन्मदिन था. मना करतेकरते भी पार्वती ने उस की पसंदीदा रैसिपी छोलेकुलछे बना लिए. उस दिन स्वाद ही स्वाद में वे कुछ ज्यादा ही खा गईं. शाम होतेहोते उन का जी मितलाया और उन्हें  उलटी हो गयी. पार्वती ने जल्दी से  ग्लूकोज का पानी पिलाया पर थोड़ी देर बाद फिर हुई उलटी हुई. बाद में 3-4 उलटियां और होने से शरीर में पानी की कमी के चलते सविता को बहुत कमजोरी व चक्कर आने लगे. पेट मे रहरह कर मरोड़ भी उठने लगी थी. वे लगातार कराह रही थीं.

रात के 1बजे थे. पार्वती को समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. कहीं डायरिया की नौबत आ गई तो कैसे क्या होगा? घर मे उलटी की कोई दवा भी नहीं थी. कोई और रास्ता न देख उस ने फौरन ही जा कर ओंकार के फ्लैट की घंटी बजा दी…

“साहब, दीदी को बहुत उलटियां हो रही हैं. पेट में दर्द भी है. घरेलू नुसखों से भी कोई आराम नहीं मिला,” यह कह कर पार्वती रोआंसी हो गई.

“लगता है फूड पौइजिनिंग हो गई है. रुको, मेरे पास मैडिसीन है. मैं ले कर आता हूं, तब तक हो सके तो तुम गरम पानी से उन के पेट की सिंकाई करो.”

2-3 मिनट बाद ही वे मैडिसीन का पूरा पत्ता हाथ में लिए सविता के सामने खड़े थे.

“यह एक गोली अभी ले लीजिए और देखिए तुरंत आराम मिल जाएगा.”

“जी धन्यवाद, पर आप ने तकलीफ क्यों की? पार्वती से भिजवा दिया होता,” सविता ने कराहते हुए कहा.

“अरे तकलीफ किस बात की? मैं तो वैसे भी अकेले बोर ही होता रहता हूं,” कहते हुए ओंकार ठठा कर हंस पड़े.

उत्तर में सविता भी धीरे से मुसकराई और उठने की कोशिश करने लगी.

आज पहली बार उस ने ओंकार के चेहरे पर एक भरपूर नजर डाली और फिर देखती रह गई. लंबा कद, रौबीले चेहरे पर घनी व तावदार मूंछें. हां, उम्र का अंदाजा उन के चेहरे से लगाना मुश्किल था, क्योंकि बढ़ती उम्र के बोझ से बेअसर उन के चेहरे की रौनक बता रही थी कि वे अपने जीवन में कितने अनुशासित रहे हैं. कुल मिला कर आकर्षक व्यक्तित्व के धनी ओंकार ने आज पहली बार उसे काफी प्रभावित किया था. अभी तक तो बिन बुलाया मेहमान मान वह उन से ढंग से बात भी न करती थी.

“आप बैठिए न,” सामने पड़ी कुरसी की ओर सविता ने इशारा किया.

“जी जरूर…” तभी पार्वती ट्रे में पानी ले आई, “क्या लेंगे आप, ठंडा या चायकौफी?” उस ने प्रश्नवाचक निगाह उन पर डाली.

“फिलहाल कुछ नहीं. आप की चाय ड्यू रही.” ओंकार फिर खिलखिला उठे.

बच्चों जैसी उन की मासूम निश्छल हंसी सविता के दिल को छू गई. थोड़ी देर बाद ही दवा ने अपना प्रभाव दिखाया और सविता को तनिक आराम मिला. ओंकार से बात करतेकरते वे न जाने कब सो गईं.

“साहब आप भी जा कर सो जाइए. 3 बज रहे हैं,” पार्वती ने ओंकार का धन्यवाद अदा करते हुए कहा.

“1-2 घंटे और देख लेते हैं, वैसे भी मुझे जागने का अच्छा अभ्यास है. जाओ तुम सो जाओ,” साइड टेबल पर पड़ी गृहशोभा मैगजीन उठाते हुए ओंकार ने कहा.

सुबह 5 बजे के करीब जब पार्वती की आंखें खुलीं तो सविता गहरी नींद में सो रही थी और कुरसी पर बैठेबैठे ओंकार भी ऊंघ रहे थे.

उस ने उन्हें उठाया और घर भेजा. “ठीक है, जब सविता जी उठें तो उन्हें 1-2 बिस्कुट खिला कर फिर यह दवा दे देना,” कह कर ओंकार चले गए.

सुबह 11 बजे के करीब बेल बजने पर पार्वती ने जा कर दरवाजा खोला, “क्या कह रही हैं? अब आप की तबियत कैसी है?” ड्राइंगरूम में प्रवेश करते ही सामने बैठी सविता को देख ओंकार ने पूछा.

ये भी पढ़ें- Short Story: झूठा सच- कंचन के पति और सास आखिर क्या छिपा रहे थे?

“जी काफी आराम है और अब तो भूख भी लग रही है.”

“मैं जानता था, इसलिए ही मूंगदाल की पानी वाली खिचड़ी बना कर ले आया हूं. यही इस वक्त आप के हाजमे के लिए बैस्ट है,” ओंकार आदतन हंस पड़े.

“पर आप ने क्यों तकलीफ उठाई, मैं बना देती न…” इस बार सविता को बोलने का मौका दिए बिना पार्वती बोल उठी.

“तुम तो रोज ही बनाती हो पार्वती. आज मेरे हाथ का सही. जाओ 3 प्लैटें ले आओ. तुम भी खा कर बताओ जरा कैसी बनी है?” ओंकार ने कैसरोल खोलते हुए कहा.

हींग की सोंधी महक वाली खिचड़ी वाकई बहुत स्वादिष्ठ बनी थी. उस के साथ भुने पापड़ों के जोड़ ने खाने के स्वाद को दोगुना कर दिया. सविता का पेट भर गया पर थोड़ी खिचड़ी और लेने की लालसा वह रोक नहीं सकी और खिचड़ी परोसने के लिए अपनी प्लेट आगे बढ़ाई.

“बस अब ज्यादा न खाएं. भूख से थोड़ा कम ही खाएं तो जल्दी ठीक होंगी,” कहते हुए ओंकार ने साधिकार उस के हाथ से प्लेट ले ली और किचन की तरफ बढ़ चले. सविता चकित हो उन्हें निहारती रह गई.

उस दिन काफी देर बातों का सिलसिला जारी रहा. ओंकार के व्यवहार की सादगी और स्पष्टता ने पार्वती के दिल में भी उन के लिए सम्मान की भावना जगा दी थी.

आगे पढ़ें- ओंकार पुरानी फिल्मों व गाने के बहुत शौकीन थे. इधर सविता भी…

 

लौकडाउन में दिल मिल गए: भाग-1

सविता बारबार घर की बालकनी से नीचे झांक रही थी. पार्वती अभी तक आई नहीं थी. बेकार ही सामान मंगवाया, सबकुछ तो रखा था. थोड़ा कम में काम चल जाता पर बेवजह अधिक जमा करने के चक्कर में उस बेचारी को दौड़ा दिया. तभी नीचे पार्वती को आता देख उन्होंने राहत की सांस ली और लगभग दौड़ कर दरवाजा खोला.

लगभग हांफती हुई पार्वती ने दोनों थैले घर के कोने पर पड़ी एक टेबल पर रखे और नीचे बैठ गई.

“बड़ी मुश्किल से मिला है दीदी, सभी दुकानों पर भारी भीड़ थी. सोसाइटी की दुकान पर तो खड़े होने की जगह भी नहीं थी, फिर बाहर जा कर कोने वाली एक दुकान से खरीद कर ले  आई हूं.”

“ओह, इतनी दूर क्यों गईं, नहीं मिलता तो न सही, ऐसी भी क्या जरूरत थी?”

“नहीं दीदी, पता नही यह लौकडाउन कब तक चलेगा? स्थिति बहुत खराब हो चली है. बाहर निकलना खतरे से खाली नहीं. बस, आप को किसी चीज की कमी नहीं होनी चाहिए.”

“कितनी चिंता करती है मेरी? चल सब से पहले हाथों और सामान को सैनेटाइज कर लें.”

रात को बिस्तर पर सोते समय सविता की आंखों से नींद कोसों दूर थी. सच में कितना करती है पार्वती उस के लिए. अगर वह नहीं होती तो उस का क्या होता? सोचते हुए सविता 2 साल पहले उन यादों के झरोखे में जा पहुंची जहां पति के अत्याचारों से तंग पार्वती से वह पहली बार अपने कालेज में मिली थी.

वह जिस कलेज में पढ़ाती थी, वहां पार्वती भी बाई का काम करती थी. लगभग रोज ही उस का सूजा चेहरा और जगहजगह पड़े नील स्याह के निशान पति के दुर्दांत जुल्मों की इंतहा की याद दिलाते रहते. उस की नौकरी के बल पर ऐयाशी करने वाला उस का शराबी पति बातबात पर उसे पीटा करता था. उन दोनों की एक ही लड़की थी जो शादी कर अपनी ससुराल जा चुकी थी.

उस वक्त उस ने आगे बढ़ कर न सिर्फ उस की मदद की थी बल्कि उस के पति को सलाखों के पीछे भी पहुंचाया था. दुखी पार्वती को घर लाते वक्त उसे बोध भी न था कि जिसे निराश्रित, निस्सहाय समझ वह मानवता के नाते आश्रय दे रही है, वही कल को उस का सब से बड़ा संबल बन जाएगी.

सविता के पति पहले ही एक सड़क दुर्घटना में उसे छोड़ कर जा चुके थे. इकलौता बेटा बहू के साथ कनाडा में रह रहा था. बेटेबहू के बहुत कहने के बावजूद वह उन के साथ कनाडा नहीं शिफ्ट हुई थीं. क्योंकि हाथपांव के चलते रहने तक वे किसी पर बोझ नहीं बनना चाहती थीं. वैसे भी नौकरी के 8-10 साल बचे थे और स्वावलंबी सविता अपने बल पर ही अपनी जिंदगी जीना चाहती थीं.

तब से वे अपने फ्लैट पर अकेली रहती आई थीं. वैसे तो कालेज में बच्चों के बीच वह काफी व्यस्त रहती थी, पर छुट्टी का दिन उस से काटे न कटता था.

हां, पार्वती के आने से उस की जिंदगी बेहद आसान हो चली थी. पार्वती के रूप में उसे एक सखी, सहायक और शुभचिंतक मिल गई थी, जिस ने बड़ी कुशलता से उस के घर को संभाल लिया था और इस तरह दोनों एकदूसरे का सहारा बन कर अपनी जिंदगी जिए जा रही थीं. हालांकि बेटेबहू ने बारबार उसे पार्वती के लिए चेताया था.

उन का कहना था कि किसी पर इतनी जल्दी ऐसा भरोसा करना ठीक नहीं. शायद वे अपनी जगह सही भी थे. मगर कोई रिश्ता न होते हुए भी पार्वती उस की कितनी अपनी हो चुकी है यह बात सिर्फ वही समझती थी. यही सब सोचतेसोचते जाने कब सविता को नींद ने आ घेरा.

सुबह सविता की नींद कुछ देर से खुली. घर का काम निबटा कर पार्वती नहाधो चुकी थी. सविता को उठा देख वह झटपट चाय बना लाई. बालकनी में बैठे वे दोनों चाय की चुसकियां ले ही रही थीं कि दरवाजे की बेल बजी.

ये भी पढ़ें- Short Story: झूठा सच- कंचन के पति और सास आखिर क्या छिपा रहे थे?

लौकडाउन के दौरान किसी के कहीं भी आनेजाने पर पूर्णतः पाबंदी लगी हुई है. फिर कौन हो सकता है?

“दीदी, मैं देखती हूं, जो भी होगा बाहर से चलता कर दूंगी,” चेहरे पर मास्क लगाए पार्वती ने उठ कर दरवाजा खोला.

“माफ कीजिएगा, थोड़ी शक्कर मिल सकती है क्या?”

“आप यहीं ठहरिए, मैं दीदी से पूछ कर बताती हूं,” कह कर पार्वती ने दरवाजा चिपका दिया.

“दीदी, सामने वाले फ्लैट में जो नए किराएदार आए हैं उन्हें शक्कर चाहिए,” पार्वती ने सविता पर प्रश्नवाचक नजर डाली.

“मना कर दूं क्या, कल ही लौकडाउन की घोषणा हुई है, तो क्या ला कर नहीं रख सकते थे? एक बार दिया तो बारबार किसी भी चीज को मांगने आ जाएंगे.”

“नहींनहीं… ऐसा कर, एक डब्बे में आधा किलोग्राम के करीब दे दे. अपने पास कोई कमी नहीं, बहुत रखी है,” सविता ने चाय का कप उसे पकड़ाते हुए कहा.

“लेकिन दीदी…”

“अरे जितना कहा है उतना कर दे न,” सविता ने झूठमूठ की त्योरियां चढ़ाईं.

“यह लीजिए शक्कर…” पार्वती ने आगंतुक को घूरा.

“आप की मैडम नहीं दिखाई नहीं दे रहीं?”

“आप को मैडम चाहिए या शक्कर?” पार्वती ने अपनी खीझ उतारी. हाथ में शक्कर की थैली लिए वे महानुभाव जैसे आए थे वैसे ही अपने फ्लैट में वापस लौट गए.

“बड़ा अजीब था. आप के बारे में पूछने लगा. भला यह क्या बात हुई? ऐसे लोगों से तो थोड़ी दूरी ही अच्छी है,” पार्वती के स्वर में झल्लाहट थी.

“जाने दे पार्वती, अभी नएनए आए हैं. ज्यादा किसी को जानते नहीं होंगे इसलिए पूछे होंगे,” कह कर सविता ने बात खत्म की.

सरकार द्वारा लौकडाउन का दूसरा चरण और भी सख्ती से लागू कर दिया गया था. कुछ दिन बाद शाम के वक्त सविता और पार्वती टीवी पर कोरोना के बारे में न्यूज देख रही थीं कि तभी बेल बजी. चिटकनी खोलते ही फिर वही सज्जन दरवाजे पर खड़े दिखाई दिए.

ये  भी पढ़ें- Short Story: अपनी खुशी के लिए- क्या जबरदस्ती की शादी से बच पाई नम्रता?

“ओहो… चाय का दौर चालू है.” कह कर बड़ी ही बेतकल्लुफी से वे सामने वाले सोफे पर जा विराजे.

“अभी बस पी कर खत्म ही की है. आप चाहें तो आप के लिए भी…” अभी सविता की बात पूरी भी न होने पाई थी कि आगंतुक ने कहा, “हांहां… क्यों नहीं, चाय के लिए मना मैं कभी कर ही नहीं सकता… हाहाहाहाहा….”

आगे पढ़ें- उन के जाने के बाद पार्वती ने…

सैलाब से पहले

भाग-1

कमरे में धीमी रोशनी देख इंदु ने सोचा शायद विनय सो चुके हैं. वह दूध का गिलास लिए कमरे में आई तो देखा विनय आरामकुरसी पर आंखें मूंदे बैठे हुए हैं. उन्हें माथे पर लगातार हथेली मलते देख इंदु ने प्यार से पूछा, ‘‘सिर में दर्द है क्या? लो, दूध पी लो और लेट जाओ, मैं बाम मल देती हूं,’’ और इसी के साथ इंदु ने दूध का गिलास आगे बढ़ाया.

‘‘मेज पर रख दो, थोड़ी देर बाद पी लूंगा,’’ आंखें खोलते हुए विनय ने कहा, ‘‘पुरू, क्या कर रही है…सो गई क्या?’’

‘‘नहीं, लेटी है. नींद तो जैसे उस की आंखों से उड़ ही गई है,’’ पुरू के बारे में बात करते ही इंदु का स्वर भर्रा जाता था, ‘‘क्या सोचा था और क्या हो गया. सच ही है, आदमी के चेहरे पर कुछ नहीं लिखा होता. अब दीनानाथजी और सुभद्रा को देख कर क्या कोई अंदाज लगा सकता है कि अंदर से कितने विद्रूप हैं ये लोग…कितने कू्रर…असुर. कुदरत ने दोनों बेटे ही दिए हैं न. एक बेटी होती तो जानते कि बेटी का दर्द क्या होता है. इन्हें हमारी फूल सी बेटी नहीं बस, पैसा नजर आ रहा था और वही चाहिए था,’’ इंदु सिसक पड़ी.

‘‘अब बस करो, इंदु…क्यों बारबार एक ही बात ले कर बैठ जाती हो,’’ विनय ने चुप कराते हुए कहा.

‘‘तुम कहते हो बस करो…मैं तो सहन कर लूंगी  पर जानती हूं कि तुम्हारे जी में जो आग लगी है वह अब कभी ठंडी नहीं पड़ेगी. बचपन से पुरू का पक्ष ले कर बोलते रहे हो…पुरू में तो जैसे तुम्हारे प्राण बसे हैं, क्या मैं यह जानती नहीं हूं? जब से पुरू ससुराल से इस तरह लौटी है, तुम्हारे दिल पर क्या बीत रही है, अच्छी तरह समझ रही हूं मैं. अपने दुखों को अंदर ही अंदर समेट लेने की तुम्हारी पुरानी आदत है.’’

इंदु लगातार बोले जा रही थी पर विनय आरामकुरसी पर अधलेटे, शून्य में टकटकी बांधे सोच में डूबे हुए थे…फिर अचानक बोल पड़े, ‘‘इंदु, सुबह जल्दी उठ जाना और हां, पुरू को भी जल्दी नहाधो कर तैयार होने के लिए कह देना… पुलिस स्टेशन चलना है. कुछ आवश्यक काररवाई बाकी है.’’

‘‘उन लोगों की जमानत तो नहीं हो गई? 4 दिन लाकअप में बंद रह कर होश ठिकाने आ गए होंगे दीनानाथजी और सुभद्रा के…और अरविंद, उसे तो कड़ी सजा मिलनी चाहिए. पराई बेटी पर अत्याचार करते इन लोगों को शर्म नहीं आई. पर विनय, इन लोगों को यों ही नहीं छोड़ना है…कड़ी से कड़ी सजा दिलवाना ताकि फिर किसी लड़की को ये लोग दहेज के लिए सताने की हिम्मत न कर सकें,’’ बोलतेबोलते इंदु की सांसों की गति तेज हो गई और वह लगभग हांफने सी लगी.

सच है, खुद कष्ट उठाना उतना कठिन नहीं होता जितना अपने प्रिय को कष्ट झेलते हुए देखना और बच्चे तो मांबाप के कलेजे के टुकड़े होते हैं…वे कष्ट में हों तो मांबाप चैन की सांस कैसे ले सकते हैं भला.

‘‘हां, इंदु, सजा जरूर मिलेगी…और मिलनी ही चाहिए… दोषी को सजा मिलनी ही चाहिए…’’ विनय ने दृढ़ता से कहा, ‘‘चलो, सो जाओ, सुबह जल्दी उठना है तुम्हें.’’

विनय के स्वर की दृढ़ता से आश्वस्त हो कर इंदु अपने पल्लू के छोर से आंसू पोंछती हुई कमरे से बाहर निकल गई. पिछले हफ्ते जब से पुरुष्णी ससुराल से दहेज के लिए प्रताडि़त हो कर बच कर भाग आई, इंदु ने एक पल को भी उसे अकेला नहीं छोड़ा था. रात में भी वह पुरू के पास ही लेटती थी और रातरात भर जाग कर कभी उस के माथे को तो कभी बालों को सहलाती रहती…मानो पुरू नन्ही बच्ची हो.

विनय की आंखों से नींद कोसों दूर थी. इंदु के जाते ही उन्होंने मेज पर नजर डाली…पीने के लिए दूध से भरा गिलास उठाया…दो घूंट जैसेतैसे गटके फिर मन नहीं हुआ, सो गिलास वापस मेज पर रख दिया. मन की बेचैनी को कम करने के लिए वह दोनों हाथों को कमर के पीछे बांधे कमरे में ही चहलकदमी करने लगे.

कभीकभी लगता है मानो समय रुक सा गया है पर समय कहां रुकता है…वह तो घड़ी की टिकटिक के साथ हमेशा गतिमान रहता है. हम ही आगेपीछे हो जाते हैं. जब पुरुष्णी छोटी थी तो विनय उस के लिए कितने आगे तक की सोच लेते थे और आज न चाहते हुए भी बारबार वह पीछे की ओर…अतीत में ख्ंिचे चले जा रहे थे. जिस गति से घड़ी की सुइयां निरंतर आगे की ओर बढ़ रही थीं उसी तीव्रता से विनय का विचारचक्र विपरीत दिशा में घूमने लगा था.

ये भी पढ़ें- शादी

विवाह के दिन कितनी प्यारी लग रही थी उन की पुरू. पुरू ही क्यों अरविंद भी. दोनों की जोड़ी देख मेहमान तारीफ किए बिना नहीं रह पा रहे थे. सुयोग्य वर और घर दोनों ही लड़की के सौभाग्य से प्राप्त होते हैं…ऐसा ही कुछ उस दिन विनय ने सोचा था. गर्व से सीना ताने अपने बेटे वरुण के साथ दौड़दौड़ कर व्यवस्था देखने में जुटे हुए थे. अपने दोस्त केदार पर भी उन्हें उस दिन नाज हो रहा था…वाह, क्या दोस्ती निभाई है दोस्त ने.

केदार ने ही तो यह इतना सुंदर रिश्ता सुझाया था. अरविंद कंप्यूटर इंजीनियर था और यहीं दिल्ली में ही कार्यरत था. पिता दीनानाथ महाविद्यालय में हिंदी विभागाध्यक्ष और मां सुभद्रा सीधीसादी घरेलू धार्मिक महिला थीं. छोटा भाई मिलिंद अभी कालिज में पढ़ रहा था. छोटा सा सुसंस्कृत परिवार. यदि चिराग ले कर ढूंढ़ते तो भी इस जन्म में ऐसा घरवर नहीं ढूंढ़ पाते, यह सोच कर केदार के प्रति विनय कृतज्ञ हो गए थे.

‘रिश्ता तो अच्छा है पर थोड़ी तहकीकात तो करवा लेते,’ इंदु ने कहा तो विनय तुरंत बोल पड़े, ‘अरे, केदार ने रिश्ता सुझाया है… अविश्वास का तो प्रश्न ही नहीं उठता, तहकीकात भला क्या करवानी है. भई, मुझे तो दीनानाथजी से बात कर के ही तसल्ली हो गई. ऐसे घर में पुरू को दे कर तो मैं निश्ंिचत हो जाऊंगा.’

इतना कहने के बाद विनय ने शरारत से मुसकरा कर इंदु की ओर देखा और बोले, ‘और एक बात इंदु, तुम्हारे मुकाबले तो सुभद्राजी 10 प्रतिशत भी नहीं हैं.’

‘किस बात में?’ इंदु ने इठला कर आतुरता से पूछा.

‘अरे भई, तेजतर्रारी में और किस में,’ विनय ने जोरदार ठहाका लगाया तो इंदु ने भी बनावटी गुस्से में आंखें तरेरीं. इतना उन्मुक्त हास्य आज पहली बार ही विनय के चेहरे पर देखा था. बेटी के भविष्य को ले कर आज कितने निश्ंिचत हो गए हैं विनय. यही सोच कर इंदु का मन तृप्ति से भर गया था.

पर यह सुखद स्वप्न चार दिन की चांदनी बन कर ही रह गया. पहली बार जब पुरू मायके आई तो इंदु की अनुभवी आंखों ने उस के चेहरे पर चढ़ी उदासी की परत को तुरंत ही ताड़ लिया था. खूब कुरेदकुरेद कर इंदु ने पूछताछ की फिर भी पुरू की उदासी का कारण जानने में असमर्थ ही रही. हर बार पुरू का एक ही उत्तर होता, ‘कहां मां…कुछ तो नहीं है… आप का वहम है यह…खुश तो हूं मैं.’

पुरू ससुराल लौट गई पर भ्रम के कांटे इंदु की मनोधरा पर जहांतहां बिखेर गई थी. पुरू के व्यवहार में कई अनपेक्षित बातें अवभासित हुई थीं इंदु को, जो समझ से परे थीं. बचपन से हर बात मां को बताने वाली पुरू अचानक इतनी चुपचुप सी क्यों हो गई…कहीं कोई कष्ट तो नहीं है ससुराल में…नाना प्रकार की अटकलों के बीच मन घूमता रहता.

और एक दिन चिंताओंदुश्ंिचताओं के बीच पुरू का वह पत्र, ‘आप नानानानी बनने वाले हैं…वरुण मामा बनेगा…’ ऐसा पुलकित कर गया था कि आनंदातिरेक में खुशी के आंसू बह निकले. अचानक ही सारे भ्रम, शंकाएंकुशंकाएं इस बहाव में जाने कहां तिरोहित हो गईं. मन पुन: स्वच्छ आकाश सा साफ हो गया.

विनय और वरुण तो खुशी के मारे फूले नहीं समा रहे थे. जहांजहां, जोजो ध्यान आया हरेक को फोन, ई-मेल, पत्र लिख कर यह शुभसमाचार दे रहे थे. इंदु तो भविष्य में आने वाले नन्हे मेहमान की क्याक्या तैयारी करनी होगी इसी सोच में रम गई थी.

इंदु ने गणित लगाया कि तीसरा महीना लगभग पूरा होने को है पुरू का. बस, केवल 6 माह की ही तो प्रतीक्षा है. पर ये 6 माह भी इंदु को 6 युग की तरह लंबे लग रहे थे. फिर भी समय निर्बाध गति से सरकता जा रहा था…सुख भरे दिन यों भी समय की लंबाई का एहसास नहीं कराते.

2 माह ही तो हुए थे इन सुखों की सौगात भरे एहसासों को चुनचुन कर समेटते हुए कि अचानक एक दिन सूटकेस ले कर दरवाजे पर पुरू को खड़ी पाया तो सब के सब खुशी से झूम उठे थे, ‘अरे बेटी, अचानक कैसे आना हुआ…फोन भी नहीं किया,’ खुशी से पुरू को गले लगाते हुए इंदु ने पूछा, ‘अरविंद कहां है?’ अरविंद को साथ न देख कर पुरू के पीछे आजूबाजू उत्सुकतावश इंदु झांकने लगी.

‘मैं अकेली आई हूं, मां. हमेशाहमेशा के लिए वह घर छोड़ कर,’ पुरू, इंदु से लिपट कर बिलख पड़ी और क्षण भर में ही वे सारे  सपने, जो विनय, वरुण और इंदु ने बड़े जतन से बुने थे, जल कर भस्म हो गए.

पुरू की बातों ने सब को स्तब्ध कर दिया था. विनय का तो इस बात पर रत्ती भर भी विश्वास नहीं जम रहा था कि सुभद्रा जैसी सीधीसादी महिला ने उन की पुरू को दहेज के लिए प्रताडि़त किया होगा. और दीनानाथ? दीनानाथजी पर तो उन्हें स्वयं से अधिक विश्वास था. एक बार वह स्वयं पुरू के साथ डांटफटकार कर सकते थे परंतु दीनानाथजी तो वात्सल्य की साक्षात मूर्ति थे.

ये भी पढ़ें- समझौता

‘रहने दीजिए अपने तर्क…ये सब दुनिया को दिखाने के लिए पहने हुए मुखौटे हैं. ये तो अच्छा हुआ कि पुरू उन के चंगुल से बच कर निकल आई वरना कल को न जाने क्या सलूक करते वे लोग,’ इंदु क्रोधावेश से तप्त हो रही थी.

‘पर इंदु, यदि पुरू जो कह रही है वह सच भी हो तो क्या अरविंद ने उन्हें रोका नहीं होगा. अरविंद पर तो तुम्हें भरोसा है न. हमारे बेटे जैसा है वह. मुझे एक बार फोन कर के बात कर लेने दो उन लोगों से, वैसे भी पुरू के अचानक बिना बताए आ जाने से परेशान होंगे वे लोग,’ विनय अब भी वस्तुस्थिति पर भरोसा नहीं कर पा रहे थे.

‘पापा, आप भी न बस,’ वरुण झल्ला पड़ा, ‘अब भी उन्हीं लोगों की भलाई के बारे में सोच रहे हैं आप. वे परेशान हो रहे होंगे तो होने दीजिए. परेशान वे पुरू दीदी के लिए नहीं अपनी इज्जत के लिए हो रहे होंगे, जो अब हमारे हाथ में है. पुरू दीदी ठीक ही कह रही हैं कि उन सब के खिलाफ हमें पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करा देनी चाहिए,’ वरुण का नया खून अपनी पुरुष्णी दीदी को कष्ट में रोतेसिसकते देख पूरे उबाल पर आ गया था.

तत्क्षण विनय ने विरोध करते हुए कहा, ‘चलो, मान लेते हैं कि उन लोगों ने पुरू के साथ ज्यादती की है पर उन से मिले बिना…पूरी बात जाने बिना सीधे पुलिस काररवाई करना मुझे तो कुछ ठीक नहीं लगता,’ विनय कुछ सोचते हुए फिर बोले, ‘वरुण, एक काम करो. केदार को फोन मिलाओ, पहले उस से बात कर लूं फिर दीनानाथजी से मैं खुद जा कर मिल लूंगा.’

चिंताग्रस्त होने के बावजूद विनय अपने विवेक और विचारशीलता का धैर्यपूर्वक उपयोग करना अच्छी तरह जानते थे. हालांकि बेटी के कष्ट ने उन्हें अंदर तक हिला कर रख दिया था, फिर भी उन्हें यह एहसास था कि बेटी अब केवल उन की ही नहीं दीनानाथजी के घर की भी इज्जत है और फिर इस वक्त यह गर्भवती भी है. सारी स्थितियां रिश्तों के नाजुक धागों से गुंथी हुई थीं. विनय नहीं चाहते थे कि किसी भी झटके से एक भी धागा खिंच कर टूट जाए.

‘देखो, इंदु, पुरू तो अभी नादान है. भावावेश में यह जो कदम उठा बैठी है उस का नतीजा कभी सोचा है इस ने? जिस स्थिति में यह है…तुम तो अच्छी तरह समझती हो इंदु, फिर भी इस की बातों को शह दे रही हो. अरे, इतने करीबी रिश्ते क्या इतने कमजोर होते हैं, जो जरा सी विषमता से टूट जाएं. पुरू के साथ उस नन्ही जान के भविय के बारे में भी हमें सोचना होगा, जो इस वक्त उस के गर्भ में पल रही है,’ विनय धैर्य से स्थिति संभालने का पुरजोर प्रयास कर रहे थे.

पर बेटी के दुख से विचलित इंदु लगातार विनय पर जोर डाल रही थी कि अब दोबारा उस नरक में पुरू को नहीं भेजना है.

‘पानी सिर से गुजरने तक इंतजार करना तो मूर्खता होगी. उन लोगों ने लगातार पुरू पर दबाव डाला है कि मायके से 4-5 लाख की व्यवस्था कर दे. बहाना यह कि अरविंद को खुद का बिजनेस शुरू करवाना है. वह तो पुरू थी जो अड़ी रही कि मैं अपने मांबाप को क्यों परेशानी में डालूं…और नतीजा देखा? जान से मारने की धमकी दे डाली सुभद्रा ने तो.’

‘यदि यह बात थी तो पुरू ने हमें पहले कभी क्यों नहीं बताया…बोलो, पुरू,’ विनय ने पुरू का कंधा पकड़ कर झकझोरते हुए पूछा.

‘पापा, मैं आप को परेशान नहीं करना चाहती थी,’ पुरू की सिसकियां हिचकियों में बदलने लगीं.

ये भी पढ़ें- यह कैसी मां

‘कुछ भी हो, पहले हमें दीनानाथ और सुभद्रा से मिल कर इस मामले को स्पष्ट तो कर लेना चाहिए कि वास्तविकता क्या है?’ विनय ने कहा.

पुरू फिर बिलख पड़ी, ‘मैं झूठ बोलूंगी, ऐसा लगता है क्या पापा आप को?’ इंदु की गोद में सिर छिपा कर पुरू लगातार रोए जा रही थी,

शायद यही सच है

भाग-1

बैंक से निकलते हुए भारती ने घड़ी पर निगाह डाली तो 6 बजे से अधिक का समय हो चुका था. यद्यपि उस के तमाम सहयोगी कर्मचारी 5 बजे से ही घर जाने की तैयारी में जुट जाते हैं, पर भारती को घर जाने की कोई जल्दी नहीं रहती. उस अकेले के लिए तो जैसे बैंक वैसे घर. एक अकेली जीव है तो किस के लिए भाग कर घर जाए. बैंक में तो फिर भी मन काम में लगा रहता है लेकिन तनहा घर में सोने व दीवारों को देखने के अलावा वह और क्या करेगी.

पार्किंग से भारती ने अपनी कार बाहर निकाली और घर की ओर चल दी. वही रास्ते, वही सड़कें, वही पेड़, कहीं कोई बदलाव नहीं, कोई रोमांच नहीं. एक बंधे बंधाए ढर्रे पर जीवन की गाड़ी जैसे रेंग रही है. सुस्त चाल से घर पहुंच कर वह सोफे पर निढाल सी जा पड़ी. अकसर ऐसा ही होता है, खाली घर जैसे उसे खाने को दौड़ता है. एक टीस सी उठती है, काश, कोई तो होता जो घर लौटने पर उस से बतियाता, उस के सुखदुख का भागीदार होता.

यद्यपि भारती अतीत की गलियों में भटकना नहीं चाहती, मन पर कठोरता से अंकुश लगाने की कोशिश करती रहती है लेकिन कभीकभी मन चंचल बच्चे सा मचल उठता है. आज भी भारती ने सोफे पर पड़ेपड़े आंखें बंद कीं तो उस का मन नियंत्रण में नहीं रहा. पलों में ही लंबीलंबी छलांगें लगा कर मन ने उस के अतीत को सामने ला खड़ा किया.

उन दिनों वह बी. काम. अंतिम वर्ष की छात्रा थी. कुदरत ने उसे आकर्षक व्यक्तित्व प्रदान किया था. ऊंची कद- काठी, गोरे रंग पर तीखे नाकनक्श, लंबे घने काले बाल जिन्हें चोटी के रूप में गूंध देती तो वह नागिन का रूप ले लेती.

उसे बनसंवर कर रहने का भी बेहद शौक था. जब भी वह परिधान के साथ मेल खाते टौप्स, चूडि़यां पहन पर्स लटकाए कालिज आती तो उस की सहेलियां उसे छेड़ते हुए कहतीं, ‘वाह, आज तो गजब ढा रही हो. रास्ते में कितनों को घायल कर के आई हो?’

वह भी बड़ी शोख अदा के साथ कहती, ‘तुम ने देखा नहीं, अभीअभी बेहोश लड़कों से भरी एम्बुलेंस यहां से गुजर कर अस्पताल की ओर गई है. वे सभी मुझे देख कर ही तो बेहोश हुए थे.’ फिर जोरदार ठहाके लगते.

पढ़ाई में भी वह अव्वल थी. उस की दिली इच्छा थी कि पढ़लिख कर वह बड़ा अफसर बने. इस के लिए प्रतियोगिता परीक्षाओं की तैयारी भी उस ने शुरू कर दी, लेकिन मांबाप उस की शादी कर के जिम्मेदारी से मुक्त होना चाहते थे. जब उस ने आगे पढ़ने की बहुत जिद की तो वे इस शर्त पर तैयार हुए कि जब तक कोई अच्छा मनपसंद लड़का नहीं मिल जाता वह पढ़ाई करेगी, लेकिन जैसे ही उपयुक्त वर मिल गया उसे पढ़ाई छोड़नी पड़ेगी.

एम. काम. का पहला सत्र शुरू हो गया था. वह पढ़ाई में व्यस्त हो गई थी और मांबाप उस के लिए लड़का ढूंढ़ने में. 2 भाइयों के बीच इकलौती बहन होने के कारण भारती मांबाप की लाड़ली भी थी और भाइयों की दुलारी भी. अपनी सुंदरता का गुमान तो उसे था ही, इसलिए जब पहली बार मांबाप ने उस के लिए लड़का देखा और बात चलाई तो उस का फोटो देखते ही वह बिदक कर बोली, ‘इसे आप लोगों ने पसंद किया है? इस की लटकी सूरत देख कर तो लगता है कहीं से दोचार जूते खा कर आया हो. मुझे नहीं करनी इस से शादी.’

मांबाप ने बहुतेरा समझाया कि लड़का पढ़ालिखा अफसर है, लेकिन भारती ने साफ मना कर दिया.

अगली बार उन्होंने भारती को न तो लड़के की फोटो दिखाई और न परिचय- पत्र. सीधेसीधे लड़के व उस के मातापिता को होटल में मुलाकात का समय दे दिया. इस बार भारती और चिढ़ गई, ‘जिस के बारे में मुझे कुछ जानकारी नहीं है, न उस की फोटो देखी है, उस के सामने अपनी प्रदर्शनी करने चली जाऊं?’

मांबाप ने समझाया, ‘देखो बेटी, हमें इन के बारे में संतोषप्रद जानकारी प्राप्त हुई है. तुम जो भी पूछना चाहो पूछ सकती हो. आखिर शादी तो तुम्हें ही करनी है. तुम्हारी तसल्ली के बाद ही बात आगे बढ़ेगी. तुम बेकार तनाव क्यों ले रही हो, कोई जबरदस्ती तो है नहीं,’ तब जा कर वह कुछ सामान्य हुई.

बातचीत केदौरान भारती ने लड़के के घर वालों से स्पष्ट कह दिया कि वह शादी के बाद घर बैठने वाली लड़कियों में से नहीं है. उस का कैरियर माने रखता है. वह महत्त्वाकांक्षी है और शादी के बाद भी वह नौकरी करेगी.

लड़के की मां ने साफ कह दिया, ‘बेटा, हमें तो घर संभालने वाली पढ़ीलिखी बहू चाहिए. अगर तुम 8-10 घंटे की नौकरी करोगी, सारा दिन घर के बाहर रहोगी तो हमें ऐसी बहू का क्या फायदा?’

बात खत्म हो गई पर घर आ कर मां ने भारती को फटकारा, ‘यह सब अभी से कहने की क्या जरूरत थी? शादी के बाद भी तो ये बातें की जा सकती थीं.’

इस पर तुनक कर भारती बोली थी, ‘अच्छा हुआ, अभी खुली बात हो गई. देखा नहीं आप ने, लड़के की मां को घर संभालने वाली, घर का काम करने वाली बहू नहीं नौकरानी चाहिए. इतना पढ़लिख कर भी रोटीदाल बनाओ, बच्चे पैदा करो, उन के पोतड़े धोओ और घर के कामों में जिंदगी बरबाद कर दो.’

कुछ समय गुजरने के बाद एक दिन मां ने भारती को विश्वास में लेते हुए कहा, ‘बेटा, हम देख रहे हैं कि हमारे पसंद किए लड़के तुम्हारी कसौटी पर खरे नहीं उतर रहे. अगर तुम ने अपनी तरफ से किसी को पसंद कर के रखा है तो हमें बता दो. तुम्हारी खुशी में ही हम सब की खुशी है.’

‘मम्मी, ऐसी कोई बात नहीं है,’ भारती बोली थी, ‘अगर होगी तो आप को जरूर बताऊंगी.’

लेकिन असलियत यह थी कि पिछले कुछ समय से अपने सहपाठी हिमेश के साथ भारती का प्रेमप्रसंग चल रहा था. भारती उसे अच्छी तरह से परख कर ही कोई फैसला लेना चाहती थी. वह जानती थी कि प्रेमी और पति में काफी फर्क होता है. उस ने सोच रखा था, हिमेश अगर उस की कसौटी पर खरा उतरेगा तभी वह अंतिम निर्णय लेगी और मां को इस बारे में बताएगी. 2 बहनों के बीच अकेला भाई होने के कारण हिमेश के मांबाप की सभी आशाएं उसी पर टिकी थीं.

छुट्टी का दिन था. भारती तथा हिमेश ने आज घूमने तथा किसी अच्छे से होटल में खाना खाने का प्रोग्राम बनाया. सिद्धार्थ पार्क के एक कोने में प्रेमालाप करते हुए हिमेश व भारती अपने भविष्य के रंगीन सपने बुनते रहे. तभी भारती ने कहा, ‘हिमेश, मैं बैंक की प्रतियोगिता परीक्षा में बैठ रही हूं. तैयारी शुरू कर दी है. तुम्हारी क्या योजना है भविष्य की?’

‘डैडी का अपना कारोबार है, जो दूसरे शहरों तक फैला हुआ है. मुझे तो वही संभालना है. बस, इस वर्ष की अंतिम परीक्षा के बाद मेरा सारा ध्यान अपने व्यवसाय में ही होगा.’

‘यह भी ठीक है. तुम अपने व्यवसाय में व्यस्त रहोगे और मैं अपनी बैंक की नौकरी में व्यस्त रहूंगी. वरना दिन भर घर में अकेली कितना बोर हो जाऊंगी,’ भारती ने कहा तो हिमेश हैरानी से बोला, ‘तुम अकेली कहां होेगी, मेरी बहनें और मां भी तो रहेंगी तुम्हारे साथ.’

‘हिमेश, एक बात अभी से स्पष्ट कर देना चाहती हूं, मैं संयुक्त परिवार में तालमेल नहीं बैठा पाऊंगी. छोटीछोटी बातों पर रोकटोक वहां आम बात होती है, जो मुझ से सहन नहीं होगी. फिर मैं शादी के बाद भी नौकरी पर जाती रहूंगी. तुम्हारी बहनों की पटरी भी मेरे साथ जम पाएगी, इस में मुझे शक है, इसलिए तुम्हें अपने परिवार से अलग रहने की मानसिकता अभी से बना लेनी चाहिए.’

भारती की बातें सुन कर हिमेश स्तब्ध रह गया. फिर भी अपनी ओर से उसे समझाते हुए बोला, ‘भारती, हर मांबाप की चाह होती है कि उन की बहू संस्कारी हो और घर के सदस्यों के साथ हिलमिल कर रहे, बड़ों को मानसम्मान दे. मेरे मातापिता की भी तो यही ख्वाहिश होगी, आखिर मैं उन का इकलौता बेटा हूं. उन की मुझ से कुछ उम्मीदें भी होंगी. मैं उन्हें छोड़ अलग कैसे रह सकता हूं?’

‘तो फिर मेरे और तुम्हारे रास्ते आज से अलगअलग हैं. मैं तो अपनी इच्छा से जीवन जीने वाली लड़की हूं. कल को मेरे उठनेबैठने और नौकरी करने पर तुम्हारे मम्मीडैडी किसी तरह का एतराज करें, यह मैं सहन नहीं कर सकती. इस से अच्छा है हम इस रिश्ते को यहीं समाप्त कर दें.’

‘भारती, तुम्हारी बातों से स्वार्थ की बू आ रही है,’ हिमेश बोला, ‘जिंदगी में केवल अपनी ही सुखसुविधाओं का ध्यान नहीं रखा जाता बल्कि दूसरों के लिए भी सोचना पड़ता है. केवल अपने लिए सोचने वाले स्वार्थी लोग अंदर से कभी खुश नहीं रह पाते…’

हिमेश की बात को बीच में काटते हुए भारती बोली, ‘अपनी दार्शनिकता अपने पास ही रहने दो. मुझे इन में कोई दिलचस्पी नहीं है और अब इस रिश्ते का कोई अर्थ नहीं रह जाता,’ वह उठ कर चल दी. हिमेश उसे पुकारता रहा लेकिन वह नहीं रुकी.

बैंक की प्रतियोगी परीक्षा में सफल हो कर भारती अधिकारी के पद पर नियुक्त हो गई. अब उस में बड़प्पन व अहम की भावना और बढ़ने लगी. इस बीच मांबाप द्वारा पसंद किए 2-3 और रिश्तों को उस ने ठुकरा दिया. कहीं लड़का स्मार्ट नहीं, कहीं उस की आय कम लगी तो कहीं परिवार बड़ा. उस के भाई की उम्र भी शादी के लायक हो गई थी. बेटी की कहीं बात बनती न देख कर मांबाप ने भारती के भाई की शादी कर दी. 2-3 साल और सरक गए. दोचार रिश्ते भारती के लिए आए तो कहीं लड़का अच्छी नौकरी न करता, कहीं लड़के की उम्र उस से कम होती. एक परिवार ने तो दबे स्वर में कह भी दिया कि लड़की इतनी नकचढ़ी है, खुद को आधुनिक मानती है, कैसे विवाह के बंधन को निभा पाएगी.

अब भारती की छवि नातेरिश्तेदारों में एक बिगडै़ल, क्रोधी, नकचढ़ी, बदमिजाज लड़की के रूप में स्थापित हो गई थी. इस बीच दूसरे बेटे के लिए रिश्ते आने लगे तो मांबाप ने अपनी जिम्मेदारी मान कर उस की भी शादी कर दी. भारती अब 30 वर्ष की उम्र पार कर चुकी थी. अब चेहरे का वह लावण्य कम होने लगा था, जिस पर उसे नाज था.

एक दिन पिता सोए तो सवेरे उठे ही नहीं. उन्हें जबरदस्त दिल का दौरा पड़ा था. घर भर में कोहराम मच गया. मां तो बारबार बेहोश हो जाती थीं. जब होश आता तो विलाप करतीं, ‘हमें किस के भरोसे छोड़े जा रहे हो…भारती के हाथ तो पीले करवा जाते. अब कौन करेगा.’

पिता की मृत्यु के बाद घर में उदासी पसर गई. दोनों बेटेबहुओं का व्यवहार भी बदलने लगा. छोटीछोटी बातों पर उलझाव, तनाव, कहासुनी होने लगी. इन सब के केंद्र में अधिकतर भारती ही होती. सालभर में ही दोनों बेटे अपनेअपने परिवारों को ले कर अलग हो गए. इस से मां को गहरा सदमा पहुंचा. एक दिन अपने गिरते स्वास्थ्य की दुहाई देते हुए वह बोलीं, ‘भारती बेटा, अगर मेरे जीतेजी तेरी शादी हो जाए तो मैं चैन से मर सकूंगी. मुझे दिनरात तेरी ही चिंता रहती है. मेरे बाद तू एकदम अकेली हो जाएगी. मेरी मान, मेरे दूर के रिश्ते में एक पढ़ालिखा इंजीनियर लड़का है, घर खानदान सब अच्छा है, एक बार तू देख लेगी तो जरूर पसंद आ जाएगा.’

‘मम्मी, तुम मेरी शादी को ले कर इतनी परेशान क्यों होती हो? अगर शादी नहीं हुई तो कौन सा पहाड़ टूट पड़ेगा? क्या जीवन की सार्थकता केवल शादी में है? आज मैं प्रथम श्रेणी की अफसर हूं. अच्छा कमाती हूं, क्या यह उपलब्धियां कम हैं?’

‘बेटा, औरत आखिर औरत होती है. अभी इस उम्र में ऊर्जा, सामर्थ्य होने के कारण तू ऐसी बातें कर रही है लेकिन उम्र ठहरती तो नहीं. एक दिन ऐसी स्थिति भी आती है जब व्यक्ति थक जाता है. तब वह अपनों का प्यार, संबल और आराम चाहता है. उम्र के उस पड़ाव पर जीवनसाथी का संग ही सब से बड़ा संबल बन जाता है. तुम खुद इतनी पढ़ीलिखी हो कर भी इन बातों को क्यों नहीं समझतीं? एक औरत की पूर्णता उस के पत्नी, मां बनने पर ही होती है. बेटी, अभी भी वक्त है, मेरी बातों पर गौर कर के इस रिश्ते को स्वीकार कर लो.’

मां की इन बातों का इतना असर हुआ कि भारती राजी हो गई. मोहित को देखने के बाद उस ने अपनी स्वीकृति दे दी. मोहित उम्र में परिपक्व था. 35 पार कर चुका था. उस ने भी भारती को पसंद कर लिया. मां उन की शादी जल्द से जल्द करना चाहती थीं ताकि कहीं कोई अड़चन न आ जाए. उन्हें आशंका थी, अत: शादी की तारीख भी एक महीने बाद की तय कर दी गई.   -क्रमश:

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें