Hindi Love Stories : अधूरा समर्पण – क्यों सुष्मिता ने छोड़ दिया सागर का साथ

Hindi Love Stories : सुष्मिता के मांबाप के चेहरे पर संतोष था कि उन की बेटी का रिश्ता एक अच्छे घर में होने जा रहा है. सुष्मिता और सागर ने एकदूसरे की आंखों में देखा और मुसकराए. इस के बाद वे सुंदर सपनों के दरिया में डूबते चले गए.

सुष्मिता अपने महल्ले के सरकारी इंटर स्कूल में गैस्ट टीचर थी और उस के पिता सिविल इंजीनियर. उन्होंने अपने एक परिचित ठेकेदार के बेटे सागर

से, जो एक मल्टीनैशनल कंपनी में अच्छे पद पर था, सुष्मिता का रिश्ता तय कर दिया.

सुष्मिता और सागर जब मिले तो उन्हें आपसी विचारों में बहुत मेल लगा, सो उन्होंने भी खुशीखुशी रिश्ते के लिए हामी भर दी.

सगाई के साथ ही उन दोनों के रिश्ते को एक सामाजिक बंधन मिल चुका था. कंपनी के काम से सागर को सालभर के लिए विदेश जाना था, इसलिए शादी की तारीख अगले साल तय होनी थी.

सुष्मिता से काम खत्म होते ही लौटने की बात कह कर सागर परदेश को उड़ चला. सुष्मिता ने सागर का रुमाल यह कहते हुए अपने पास रख लिया कि इस में तुम्हारी खुशबू बसी है.

एक शाम सुष्मिता अपनी छत पर टहल रही थी और हमेशा की तरह सागर वीडियो काल पर उस से बातें कर रहा था. जब बातों का सिलसिला ज्यादा हो गया तो सुष्मिता ने सागर को अगले दिन बात करने के लिए कहा. इस के थोड़ी देर बाद सुष्मिता ने काल काट दी.

इस के बाद जब सुष्मिता नीचे जाने के लिए पलटी तो अचानक उस की आंखें अपने पड़ोसी लड़के निशांत से मिल गईं जो अपनी छत पर खड़ा उन दोनों को बातें करता हुआ न जाने कब से देख रहा था.

सुष्मिता निशांत को पड़ोस के रिश्ते से राखी बांध चुकी थी, इसलिए वह थोड़ा सकुचा गई और बोली, ‘‘अरे निशांत भैया, आप कब आए? मैं ने तो ध्यान ही नहीं दिया.’’

‘‘जब से तुम यहां आई हो, मैं भी तब से छत पर ही हूं,’’ निशांत ने अपनी परतदार हंसी के साथ कहा.

सुष्मिता ने आंखें नीची कर लीं और सीढि़यों की ओर चल पड़ी. वह निशांत की नजर को अकसर भांपती थी कि उस में उस के लिए कुछ और ही भाव आते हैं.

एक और शाम जब सुष्मिता अकेली ही छत पर टहल रही थी कि तभी निशांत भी अपनी छत पर आया.

‘‘निशांत भैया, कैसे हैं आप? कम दिखते हैं…’’ निशांत उस के मुंह से ऐसी बात सुन कर थोड़ा चौंका लेकिन फिर उस के मन में भी लड्डू फूटने लगे.

निशांत तो खुद सुष्मिता से बात

करने को बेचैन रहता था. सो, वह छत की बाउंड्री के पास सुष्मिता के करीब आ गया और बोला, ‘‘मैं तो रोज इस समय यहां आता हूं… तुम ही बिजी

रहती हो.’’

‘‘वह तो है…’’ सुष्मिता मस्ती भरी आवाज में बोली, ‘‘क्या करूं भैया, अब जब से पढ़ाने जाने लगी हूं, समय और भी कम मिलता है.’’

इस के बाद उन दोनों के बीच इधरउधर की बातें होने लगीं.

कुछ दिनों बाद एक रोज सुष्मिता घर में अकेली थी. सारे लोग किसी रिश्तेदार के यहां गए हुए थे. सुष्मिता की चचेरी बहन सुनीति उस के साथ सोने के

लिए आने वाली थी. शाम के गहराते साए सुष्मिता को डरा रहे थे. उस ने कई बार सुनीति को मैसेज कर दिया था कि जल्दी आना.

खाना बनाने की तैयारी कर रही सुष्मिता को छत पर सूख रहे कपड़ों का खयाल आया तो वह भाग कर ऊपर आई. कपड़ों को समेटने के बाद उसे अपनी एक समीज गायब मिली. उस

ने आसपास देखा तो पाया कि वह समीज निशांत की छत पर कोने में पड़ी थी.

सुष्मिता पहले तो हिचकी लेकिन फिर आसपास देख कर निशांत की छत पर कूद गई. वह निशांत के आने से पहले वहां से भाग जाना चाहती थी मगर जैसे ही वह अपनी समीज उठा कर मुड़ी, निशांत उसे मुसकराता खड़ा मिला. सुष्मिता ने एक असहज मुसकराहट उस की ओर फेंकी.

निशांत बोला, ‘‘उड़ कर आ गई होगी यहां यह…’’

‘‘हां भैया, हवा तेज थी आज…’’ सुष्मिता वहां से निकलने के मूड में थी लेकिन निशांत उस के आगे दीवार से लग कर खड़ा हो गया और बतियाने लगा. तब तक शाम पूरी तरह चारों ओर छा चुकी थी.

सुष्मिता ने कहा, ‘‘भैया, अब मैं चलती हूं.’’

‘‘हां, मच्छर काट रहे मुझे भी यहां…’’ निशांत ने अपने पैरों पर थपकी देते हुए कहा, ‘‘अच्छा जरा 2 मिनट नीचे आओ न… मैं ने एक नया सौफ्टवेयर डाउनलोड किया है… बहुत मजेदार चीजें हैं उस में… तुम को भी दिखाता हूं.’’

न चाहते हुए भी सुष्मिता निशांत के साथ सीढि़यों से उतर आई. उस के मन में एक अजीब सा डर समाया हुआ था.

निशांत ने लैपटौप औन किया और उसे दिखाने लगा. सुष्मिता का ध्यान जल्दी से वहां से निकलने पर था. तभी उस ने गौर किया कि निशांत के घर में बहुत शांति है.

‘‘सब लोग कहां गए हैं?’’ सुष्मिता ने निशांत से पूछा.

निशांत ने जवाब दिया, ‘‘यहां भी सारे लोग शहर से गए हुए हैं… कल तक आएंगे.’’

सुष्मिता का दिल धक से रह गया. उस ने कहा, ‘‘भैया, अब मैं निकलती हूं… मुझे खाना भी बनाना है.’’

सुष्मिता का इतना कहना था कि निशांत ने उस का हाथ पकड़ लिया.

‘‘यह क्या कर रहे हैं भैया?’’ सुष्मिता ने निशांत से पूछा. उसे निशांत से किसी ऐसी हरकत का डर तो बरसों से थी लेकिन आज उसे करते देख कर

वह अपनी आंखों पर भरोसा नहीं कर पा रही थी.

निशांत ने सुष्मिता की कमर में हाथ डाल कर उसे अपनी ओर खींचा और उस के हाथों में थमी समीज उस से ले कर टेबल पर रखते हुए बोला, ‘‘सागर की तसवीरों में रोज नईनई लड़की होती… तो तुम उस को एकदम पैकेट वाला खाना खिलाने के चक्कर में क्यों हो? तुम भी थोड़ी जूठी हो जाओ. किसी को पता नहीं चलेगा.’’

सुष्मिता का दिल जोर से धड़कने लगा. निशांत ने उस के मन में दबे उसी शक के बिंदु को छू दिया था जिस के बारे में वह दिनरात सोचसोच कर चिंतित होती थी.

क्या सही है और क्या गलत, यह सोचतेसोचते बहुत देर हो गई. तूफान कमरे में आ चुका था. बिस्तर पर देह

की जरूरत और मन की घबराहटों के नीचे दबी सुष्मिता एकटक दरवाजे के पास पड़े अपने और निशांत के कपड़ों को देखती रही. निशांत की गरम, तेज सांसें सुष्मिता की बेचैन सांसों में मिलती चली गईं.

सबकुछ शांत होने के बाद सुष्मिता ने अपनी आंखों के कोरों के गीलेपन को पोंछा और अपने कपड़ों और खुद को समेट कर वहां से चल पड़ी. निशांत ने भी उस से नजरें मिलाने की कोशिश

नहीं की.

कलैंडर के पन्ने आगे पलटते रहे. सुष्मिता और निशांत के बीच भाईबहन का रिश्ता अब केवल सामाजिक मुखौटा मात्र ही रह गया था. ऊपर अपने कमरे में अकेला सोने वाला निशांत आराम से सुष्मिता को रात में बुला लेता और वह भी खुशीखुशी अपनी छत फांद कर उस के पास चली जाती.

आएदिन सुष्मिता के अंदर जाने वाला इच्छाओं का रस आखिरकार एक रोज अपनी भीतरी कारगुजारियों का संकेत देने के लिए उस के मुंह से उलटी के रूप में बाहर आ कर सब को संदेशा भेज बैठा.

सुष्मिता के मांबाप सन्न रह गए. घर में जोरदार हंगामा हुआ. इस के बाद सुष्मिता की हाइमनोप्लास्टी करा कर सागर के आते ही उसे ब्याह कर विदा कर दिया गया.

सुहागरात में चादर पर सुष्मिता से छिटके लाल छींटों ने सागर को भी पूरी तरह आश्वस्त कर दिया. दोनों की जिंदगी शुरू हो गई. सुष्मिता का भी मन सागर के साथ संतुष्ट था क्योंकि निशांत के पास तो वह खुद को शारीरिक सुख देने और सागर से अनचाहा बदला लेने के लिए जाती थी.

धीरेधीरे 2 साल बीत गए लेकिन सुष्मिता और सागर के घर नया सदस्य नहीं आया. उन्होंने डाक्टर से जांच कराई. सागर में किसी तरह की कोई कमी नहीं निकली. इस के बाद बारी सुष्मिता की रिपोर्ट की थी.

डाक्टर ने दोनों को अपने केबिन में बुलाया और उलाहना सा देते हुए कहा, ‘‘मेरी समझ में नहीं आता मिस्टर सागर कि जब आप लोगों को बच्चा चाहिए

था तो आखिर आप ने अपना पहला बच्चा गिराया क्यों? बच्चा गिराना कोई खेल नहीं है.

‘‘अगर ऐसा कराने वाला डाक्टर अनुभवी नहीं हो तो आगे चल कर पेट से होने में दिक्कत आती ही है. आप की पत्नी के साथ भी यही हुआ है.’’

सागर हैरान रह गया और सुष्मिता को तो ऐसा लगा मानो उसे किसी ने अंदर से खाली कर दिया हो. सागर ने टूटी सी नजर उस पर डाली और डाक्टर की बातें सुनता रहा.

वहां से लौट कर आने के बाद सागर चुपचाप पलंग पर बैठ गया. अब तक की जिंदगी में सागर से बेहिसाब प्यार पा कर उस के प्रति श्रद्धा से लबालब हो चुकी सुष्मिता ने उस के पैर पकड़ लिए और रोरो कर सारी बात बताई. सागर के चेहरे पर हारी सी मुसकान खेल उठी. वह उठ कर दूसरे कमरे में चला गया.

उन दोनों को वहीं बैठेबैठे रात हो गई. सुष्मिता जानती थी कि इस सब

की जड़ वही है इसलिए पहल भी उसे ही करनी होगी. थोड़ी देर बाद वह सागर

के पास गई. वह दीवार की ओर मुंह किए बैठा था. अपने आंसुओं को किसी तरह रोक कर सुष्मिता ने उस के कंधे पर हाथ रखा.

सागर ने उस की ओर देखा और भरी आंखें लिए बोल उठा, ‘‘तुम भरोसा करो या न करो लेकिन तुम्हारे लिए मैं ने काजल की कोठरी में भी खुद को बेदाग रखा और तुम केवल शक के बहकावे

में आ कर खुद को कीचड़ में धकेल बैठी.’’

सुष्मिता फूटफूट कर रोए जा रही थी. सागर कहता रहा, ‘‘यह मत समझना कि मैं तुम्हारी देह को अनछुआ न पा कर तुम्हें ताना मार रहा हूं, बल्कि सच तो यह है कि पतिपत्नी का संबंध तन के साथसाथ मन का भी होता है और तन को मन से अलग रखना हर किसी के बस में नहीं होता.

‘‘तुम्हारा मन अगर तन से खुद को बचा पाया है तो मेरा दिल आज भी तुम्हारे लिए दरवाजे खोल कर बैठा है, वरना मुझे तुम्हारा अधूरा समर्पण नहीं चाहिए. फैसला तुम्हारे हाथ में है सुष्मिता. अगर तुम्हें मुझ से कभी भी प्यार मिला हो तो तुम को उसी प्यार का वास्ता, अब दोबारा मुझे किसी भुलावे में मत रखना.’’

सुष्मिता ने सागर के सिर पर हाथ फेरा और वापस अपने कमरे में आ गई. उस की आंखों के सामने सागर के साथ बिताई रातें घूमने लगीं जब वह निशांत को महसूस करते हुए सागर को अपने सीने से लगाती थी. उस के मन ने उसे धिक्कारना शुरू कर दिया.

विचारों के ज्वारभाटा में वह सारी रात ऊपरनीचे होती रही. भोर खिलने लगी थी, इसलिए उस ने अपने आंसू पोंछे और फैसला कर लिया.

सुष्मिता ने अपना सामान बांधा और सागर के पास पहुंची. सागर ने सवालिया निगाहों से उस की ओर देखा.

सुष्मिता ने सागर का माथा चूमा और सागर की जेब से उस का वही रुमाल निकाल लिया जो उस ने शादी से पहले उस के परदेश जाते समय निशानी के रूप में अपने पास रखा था.

सुष्मिता ने वह रूमाल अपने बैग में डाला और बोली, ‘‘मुझे माफ मत करना सागर… मैं तुम्हारी गुनाहगार हूं… मैं तुम्हारे लायक नहीं थी… मैं जा रही हूं… अपनी नई जिंदगी शुरू करो… और हां, इतना भरोसा दिलाती हूं कि अब तुम्हारे इस रुमाल को अपनी बची जिंदगी में दोबारा बदनाम नहीं होने दूंगी.’’

सागर ने अपनी पलकें तो बंद कर लीं लेकिन उन से आंसू नहीं रुक पाए. सुष्मिता भी अपनी आंखों के बहाव को रोकते हुए तेजी से मुड़ी और दरवाजे की ओर चल पड़ी.

Family Hindi Story: क्या रूपाली को समझ आया उसका अपना कौन है?

Family Hindi Story: ‘‘मधुकर, रूपाली कहां है?’’ विनीलाजी ने पूछा. वे मधुकर की कार की आवाज सुन कर बाहर चली आई थीं. मधुकर के अंदर आने की प्रतीक्षा भी नहीं की थी उन्होंने.

‘‘कहां है मतलब? घर में ही होना चाहिए उसे,’’ मधुकर चकित स्वर में बोला.

‘‘लो और सुनो, सुबह तुम्हारे साथ ही तो गई थी, होना भी तुम्हारे साथ ही चाहिए था. मैं ने सोचा, तुम दोनों ने कहीं घूमनेफिरने का कार्यक्रम बनाया है. यद्यपि तुम ने हमें सूचना देने की आवश्यकता भी नहीं समझी.’’

‘‘मां, हमारा कोई कार्यक्रम नहीं था. रूपाली को कुछ खरीदारी करनी थी. मैं ने सोचा कि शौपिंग कर के वह घर लौट आई होगी,’’ मधुकर चिंतित हो उठा.

‘‘रूपाली तो दूसरे परिवार से आई है, पर तुम्हें क्या हुआ है? इस घर के नियम, कायदे तुम तो अच्छी तरह जानते हो.’’

‘‘कौन से नियम, कायदे, मां?’’ मधुकर ने प्रश्नवाचक मुद्रा बनाई.

‘‘यही कि घर से बाहर जाते समय यदि

तुम लोगों का अहं बड़ों से अनुमति लेने की औपचारिकता नहीं निभाना चाहता तो न सही, कम से कम सूचित कर के तो जा सकते हो. सुबह

9 बजे घर से निकली है रूपाली. कम से कम फोन तो कर सकती थी कि कहां गई है और घर कब तक लौटेगी,’’ विनीलाजी क्रोधित स्वर में बोलीं.

‘‘सौरी, मां, भविष्य में हम ध्यान रखेंगे. मैं अभी पता लगाता हूं…’’

मधुकर ने रूपाली का नंबर मिलाया और उस का स्वर सुनते ही बरस पड़ा, ‘‘कहां हो तुम? सुबह 9 बजे से घर से निकली हो. अभी आफिस से घर पहुंचा हूं और तुम गायब हो. मां बहुत क्रोधित हैं. तुरंत घर चली आओ.’’

‘‘अरे वाह, कह दिया घर चली आओ. मैं ने तो सोचा था कि तुम आफिस से सीधे यहां मुझे लेने आओगे.’’

‘‘कहां लेने आऊंगा तुम्हें? मुझे तो यह भी पता नहीं कि तुम हो कहां.’’

‘‘मैं कहां होऊंगी, इतना तो तुम स्वयं भी सोच सकते हो. अपने मायके में हूं मैं. और कहां जाऊंगी.’’

‘‘फिर से अपने मायके में? तुम तो शौपिंग करने गई थीं, उस के बाद अपने घर आना चाहिए था,’’ मधुकर क्रोधित हो उठा.

‘‘क्यों नाराज होते हो. आज मेरे पापा का जन्मदिन है. उन के लिए उपहार खरीदने ही तो गई थी,’’ रूपाली रोंआसे स्वर में बोली.

वह अपने अभिनय और अदाओं से अपना काम निकलवाने और दूसरों को प्रभावित करने में अत्यंत कुशल थी.

लेकिन उस ने जो नहीं बताया था वह यह कि उस ने उपहार केवल अपने पापा के लिए ही नहीं, अपनी मम्मी, भाईभाभी और उन के प्यारे से 5 वर्षीय पुत्र रिंकी के लिए भी खरीदे थे. साथ ही बड़ा सा केक, मिठाई, नमकीन आदि ले कर वह अपने पापा का जन्मदिन मनाने के इरादे से अपने घर पहुंची थी और फिर सभी उपहार अपने मम्मीपापा, भाईभाभी के समक्ष फैला दिए थे.

उपहार देख कर मायके वालों ने उत्साह नहीं दिखाया तो रूपाली को निराशा हुई.

‘‘इतना सब खर्च करने की क्या आवश्यकता थी, रूपाली? तुम तो जानती हो कि मैं जन्मदिन मनाने की औपचारिकता में विश्वास नहीं रखता. क्या तुम ने कभी मुझे जन्मदिन मनाते देखा है?’’

‘‘आप विश्वास नहीं करते न सही पर मैं तो आप का जन्मदिन धूमधाम से मनाना चाहती हूं. पर देख रही हूं कि आजकल आप लोगों को मेरा यहां आना अच्छा नहीं लगता.’’

‘‘कैसी बातें करती है, बेटी? तू तो हमें प्राणों से भी प्यारी है. पर कुछ अन्य बातों का भी खयाल रखना पड़ता है,’’ उस के पापा हरदयालजी ने उसे सीने से लगा लिया था. उस ने अपने आंसू पोंछ लिए.

‘‘ऐसी किन बातों का खयाल रखना पड़ता है, पापा?’’ रूपाली ने पूछा. इस से पहले कि पापा कुछ कह पाते, मधुकर का फोन आ गया था.

फोन पर मधुकर का स्वर सुनते ही वह सकपका गई थी. उस के स्वर से ही रूपाली को उस के क्रोध का आभास हो गया था. पर हरदयालजी के जन्मदिन की बात सुन कर वह शांत हो गया था.

‘‘तुम ने बताया नहीं था कि पापा का

जन्मदिन है आज? जरा फोन दो उन्हें, मैं भी बधाई दे दूं,’’ रूपाली ने फोन उन्हें पकड़ा दिया.

‘‘रूपाली आई है, तुम भी आ जाते तो अच्छा लगता,’’ जन्मदिन की बधाई स्वीकार कर धन्यवाद देते हुए हरदयालजी बोले.

‘‘क्षमा करिए, पापा, आज नहीं आ सकूंगा. अभी आफिस से आया हूं. कल इंस्पैक्शन है. बहुत सा काम घर ले कर आया हूं. फिर कभी आऊंगा, फुरसत से.’’

‘‘ठीक है. हम वृद्धों का जन्मदिन मनाने का समय कहां है तुम युवाओं के पास,’’ हरदयालजी हंसे.

‘‘ऐसा मत कहिए, पापा. रूपाली ने पहले कहा होता तो मैं अवश्य आता. भैया से कहिएगा कि रूपाली को घर छोड़ दें,’’ मधुकर ने स्वर को भरसक मीठा बनाने का प्रयास किया था. पर हरदयालजी ने उस के स्वर की कटुता को फोन पर भी अनुभव किया था.

हरदयालजी ने केक काटा था. रूपाली की भाभी ने कुछ अन्य पकवान बना लिए थे और रूपाली और उस के भाई रतन ने मिल कर हरदयालजी के जन्मदिन को यादगार बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी.

‘‘रतन बेटे, रूपाली को उस के घर छोड़ आओ और देर करना ठीक नहीं है.’’

‘‘15-20 मिनट रुकिए, मैं जरा बाजार तक जा कर आता हूं,’’ कह कर रतन बाहर निकल गया और रूपाली अपने मातापिता से बातचीत में व्यस्त हो गई.

तभी रिंकी, उस का 5 वर्षीय भतीजा उस का हाथ पकड़ कर खींचने लगा.

‘‘क्या है, रिंकी? कहां ले जा रहा है बूआ को?’’ हरदयालजी ने प्रश्न किया था.

‘‘दादाजी, बूआजी को मम्मी बुला रही हैं.’’

‘‘क्या बात है भाभी? आप मुझे बुला रही थीं? वहीं आ जातीं न,’’ रूपाली हैरान थी.

‘‘जो कुछ मैं तुम से कहना चाहती हूं, रूपाली, वह मां और पापा के सामने कहना संभव नहीं हो सकेगा,’’ उस की भाभी रिया बोली.

‘‘ऐसी भी क्या बात है, भाभी?’’

‘‘पहली बात तो यह कि तुम जो उपहार

अपने भैया और मेरे लिए लाई हो मैं नहीं रख सकती, रिंकी का उपहार मैं ने रख लिया है.’’

‘‘क्यों भाभी?’’

‘‘मैं तुम से बड़ी हूं, रूपाली, जो कहूंगी तुम्हारे भले के लिए ही कहूंगी. आशा है तुम मेरी बात का बुरा नहीं मानोगी.’’

‘‘आप की बात का बुरा मानने का तो प्रश्न ही नहीं उठता. आप ने तो सदा मुझे अपनी सगी बहन जैसा दुलार दिया है.’’

‘‘तो सुनो, रूपाली, तुम्हारी नईनई शादी हुई है. अब वही तुम्हारा परिवार है. नए वातावरण में हर किसी को अपना स्थान बनाने के लिए प्रयत्न करना पड़ता है. इस तरह हर दूसरे दिन तुम्हारा यहां आना उन्हें शायद ही अच्छा लगे.’’

‘‘मैं समझ गई, भाभी. यह साड़ी मैं ने आप के लिए बड़े चाव से खरीदी थी. इसे तो आप रख लीजिए.’’

‘‘सही अवसर देख कर यह साड़ी तुम मधुकर की मां को भेंट कर देना, उन्हें अच्छा लगेगा. हम सब तुम से भलीभांति परिचित हैं, रूपाली. पर ससुराल में तुम्हारे नए संबंध बने हैं. उन्हें प्रगाढ़ करने के लिए तुम्हें प्रयत्न

करना पड़ेगा.’’

‘‘आप ने मुझे ठीक से समझा नहीं है, भाभी. मैं वहां भी सब को यथोचित सम्मान देती हूं पर आप सब से मिलने को मेरा मन तड़पता रहता है. इसीलिए अवसर मिलते ही दौड़ी चली आती हूं. हर पल मांपापा की याद मुझे व्याकुल करती है, भाभी. उन को समय से दवा देना, उन के स्वास्थ्य का खयाल रखना, कौन करेगा, भाभी? यह सब मैं ही तो किया करती थी,’’ रूपाली सिसकने लगी.

‘‘मैं ने तुम्हें दुखी कर दिया, रूपाली. तुम्हारी जैसी ननद और बहन पाना तो सौभाग्य की बात है पर अब अपने लिए सोचो, रूपाली. हम सब तुम्हारी सुखी गृहस्थी देखना चाहते हैं. इसीलिए तुम्हें समझाने का यत्न कर रही थीं मांपापा की चिंता करने को मैं हूं न.’’

‘‘यह क्यों नहीं कहतीं भाभी कि अब मेरा आना आप को अच्छा नहीं लगता.’’

‘‘गलती से भी ऐसी बात मुंह से नहीं निकालना, रूपाली. अकसर महिलाओं से ही ऐसी आशा की जाती है कि वे जिस परिवार से

20-25 वर्षों तक जुड़ी रही हैं उसे एक झटके से भूल जाएं. पर चिंता क्यों करती हो, जब मन हो, फोन कर सकती हो. मोबाइल है न तुम्हारे पास. जब मेरा विवाह हुआ था तब तो यह सुविधा भी नहीं थी. प्रियजनों से बात करने को तरस जाती थी मैं.’’

भाभी का भर्राया स्वर सुन कर चौंक गई थी रूपाली. अपनों से दूर होने की त्रासदी भोगने वाली वह अकेली नहीं है. यह तो उस जैसी हर युवती की व्यथा है पर अब वह स्वयं को इस परिवर्तन के लिए तैयार करेगी. भावुकता में बह कर सब के उपहास का पात्र नहीं बनेगी.

उस की विचारधारा तो समुद्र की तरह अविरल बहती रहती पर तभी रतन भैया लौट आए थे. वे मिठाइयों के डब्बे, मेवा, नमकीन, उस के, मधुकर तथा परिवार के अन्य सदस्यों के लिए उपहार लाए थे.

‘‘इतना खर्च करने की क्या जरूरत थी, भैया?’’ रूपाली संकोच से घिर गई थी.

‘‘यह बेकार का खर्च नहीं है, पगली.

यह तो तेरे भैया के स्नेह का प्रतीक है. जब

भी इन वस्तुओं को देखोगी. भैया को याद

कर लोगी.’’

शीघ्र ही उपहारों के साथ रूपाली को ले कर रतन उस के घर पहुंचे.

‘‘यह सब क्या है, रूपाली? इस तरह बिना बताए घर से चले जाना कहां की समझदारी है. पूरे दिन चिंता के कारण हमारा बुरा हाल था,’’ रूपाली को देख कर विनीलाजी स्वयं पर संयम न रख सकीं.

‘‘भूल हो गई रूपाली से, आंटी. आज पापा

का जन्मदिन था. हर्ष के अतिरेक में आप को सूचित करना भूल गई. आज क्षमा कर दें, आगे से ऐसा नहीं होगा,’’ रतन ने रूपाली की ओर से क्षमा मांगी.

‘‘यह क्या भले घर की बहूबेटियों के लक्षण हैं? कभी सहेली के यहां चली जाती है, कभी मायके जा बैठती है. रतन बेटे, बुरा मत मानना, मैं ने रूपाली और अपनी बेटी में कभी कोई अंतर नहीं समझा पर गलती के लिए टोकना ही पड़ता है.’’

‘‘अब बस करो, मां. मैं समझा दूंगा रूपाली को. रतन भैया को चायपानी के लिए तो पूछो,’’ मधुकर ने हस्तक्षेप किया.

तभी मधुकर की छोटी बहन संगीता ने चायनाश्ता लगा दिया. अब तक विनीलाजी

का क्रोध भी शांत हो गया था. मधुकर के पिता आदित्य बाबू रतन से वार्त्तालाप में लीन हो गए.

‘‘अपने पापा को हमारी शुभकामनाएं भी देना, बेटे,’’ रतन चलने लगा तो आदित्य बाबू और विनीलाजी ने वातावरण को सामान्य करने का प्रयत्न किया.

रतन के जाते ही रूपाली के आंसुओं

का बांध टूट गया. वह देर तक फफक कर रोती रही.

‘‘यदि तुम्हारा रोने का कार्यक्रम समाप्त हो गया हो तो मैं कुछ कहूं,’’ रूपाली को धीरेधीरे शांत होते देख कर मधुकर ने प्रश्न किया.

‘‘अब भी कुछ कसर रह गई हो

तो कह डालो,’’ रूपाली सुबकते हुए बोली.

‘‘मुझे कुछ शौपिंग करनी है,

यही कह कर तुमघर से निकली थीं फिर अचानक अपने घर क्यों पहुंच गईं?’’

‘‘पापा का जन्मदिन था. वहां चली गई तो

क्या हो गया?’’

‘‘ठीक है, पर जब तुम ने यह निर्णय लिया तो मुझे या मां को सूचित करना चाहिए था या नहीं?’’

‘‘मैं क्या तुम लोगों की कैदी हूं कि अपनी इच्छा से कहीं आजा नहीं सकती?’’

‘‘रूपाली, अब तुम हमारे घर की सदस्या हो और तुम्हारे व्यवहार से हमारे परिवार की गरिमा और मानसम्मान जुड़े हुए हैं. तुम मांपापा की आशा, आकांक्षाओं का केंद्रबिंदु हो. तुम ने न केवल उन्हें, बल्कि स्वयं अपने परिवार को भी बहुत दुख पहुंचाया है. मैं भविष्य में इस घटना की पुनरावृत्ति नहीं चाहता.’’

‘‘तुम मुझे धमकी दे रहे हो?’’

‘‘यही समझ लो. सप्ताह में 3 दिन वहां जा कर पड़े रहने में तुम्हें कुछ अजीब नहीं लगता तो मुझे कुछ नहीं कहना,’’ तर्कवितर्क धीरेधीरे उग्रता की सीमा छूने लगा था.

‘‘उन लोगों पर उपकार करने नहीं जाती मैं. मेरे जाने से उन्हें असुविधा होती है, यह तो समझ में आता है. पर तुम्हें बुरा लगता है, यह मेरी समझ से परे है. आज भी देखो, रतन भैया ने कितना कुछ दिया है.’’

रूपाली लपक कर रतन द्वारा दिए गए उपहार उठा लाई. ढेर सारी मिठाई, मेवा, फल, नमकीन और घर के सदस्यों के लिए वस्त्र आदि देख कर मधुकर चकित रह गया.

‘‘रूपाली, तुम क्याक्या उपहार ले कर गई थीं वहां?’’

‘‘मां की साड़ी, पापा के लिए जैकेट, भैया और रिंकी के लिए उपहार तथा भाभी के लिए साड़ी.’’

‘‘ये उपहार नहीं थे, रूपाली, यह ऐसा बोझ तुम ने उन के सिर पर डाल दिया था जिस का प्रतिदान आवश्यक था. अत: रतन भैया को बदले में तुम्हें देने के लिए यह सब खरीदना पड़ा. दया करो उन पर और हम पर भी.’’

‘‘रतन भैया इन छोटेमोटे खर्चों की चिंता नहीं करते.’’

‘‘रूपाली, तुम्हारे छोटे भाई रमन और बहन रमोला की पढ़ाई का खर्च वे ही उठा रहे हैं. पापा की पैंशन में यह सारा खर्च नहीं उठाया जा सकता. तुम्हारे विवाह में भी सारा भार उन्हीं के कंधों पर था. तुम्हें नहीं लगता कि अब तुम्हें अधिक समझदारी से काम लेना चाहिए?’’

रूपाली चुप रह गई. भाभी ने उस के द्वारा उपहार में दी साड़ी नहीं ली, यह सोच कर वह पुन: व्यथित हो गई. शायद भाभी इसी बहाने अपनी बात कहना चाहती थीं.

हर तरफ से वही सब के निशाने पर है. वह भी कुछ ऐसा करेगी कि किसी को उंगली उठाने का अवसर न मिले.

रतन वापस पहुंचा तो घर में सभी व्यग्रता से उस की प्रतीक्षा कर रहे थे.

‘‘क्या हुआ? रूपाली के यहां सब ठीक तो है?’’ रतन को देखते ही उस की मां ने प्रश्न किया.

‘‘ठीक समझो तो सब ठीक है पर आंटी

बहुत नाराज थीं. घर में किसी को बताए बिना ही चली आई थी रूपाली. वे कह रही थीं कि यह क्या भले घर की बहूबेटियों के लक्षण हैं?’’

‘‘उत्तर में तुम ने क्या कहा?’’ हरदयालजी ने प्रश्न किया.

‘‘मैं ने तो चटपट क्षमा मांग ली और कह दिया कि भविष्य में ऐसा नहीं होगा. उन के घर के झगड़े में मैं क्यों फंसूं. यह समस्या तो रूपाली को ही सुलझाने दो.’’

‘‘मैं ने तो रिया से कहा था कि रूपाली को

समझाए. हम तो ठहरे मातापिता, बेटी को अपने ही घर आने से रोक भी नहीं सकते,’’ रतन की मम्मी दुखी स्वर में बोलीं.

‘‘बड़ा कठिन काम सौंपा था आप ने मम्मी. मैं तो रूपाली की भावभंगिमा से ही समझ गई थी. मेरी बात उसे बहुत बुरी लगी थी,’’ रिया दुखी स्वर में बोली.

‘‘कोई बात नहीं, रिया. सब ठीक हो

जाएगा. रूपाली अपने घर में व्यवस्थित हो

जाए तो हम सब क्षमा मांग लेंगे उस से,’’ हरदयालजी बोले.

रात भर ऊहापोह में बिता कर रूपाली सुबह

उठी तो भैया द्वारा दिए गए उपहार उस

का मुंह चिढ़ा रहे थे. किसी ने उन को खोला

तक नहीं था.

रूपाली सारे उपहार ले कर विनीलाजी के पास पहुंची.

‘‘मम्मी, यह सब कल भैया दे गए थे,’’ वह किसी प्रकार बोली.

विनीलाजी ने एक गहरी दृष्टि उपहारों पर डाल कर लंबी नि:श्वास ली थी.

‘‘रूपाली, तुम्हारा अपने परिवार से लगाव स्वाभाविक है, बेटी, पर हमारे दोनों परिवारों

का नया बना संबंध अभी बहुत नाजुक स्थिति में है. इसे बहुत सावधानी से सींचना पड़ता

है. तुम अब केवल उस घर की बेटी ही नहीं, इस घर की बहू भी हो. उपहार लेनादेना भी उचित समय और उचित स्थान पर ही अच्छा लगता है. नहीं तो यह अनावश्यक बोझ बन जाता है.’’

‘‘मैं समझती हूं, मम्मी. मैं भावना

के आवेग में बह गई थी. अब कभी आप को शिकायत का अवसर नहीं दूंगी,’’ रूपाली क्षमायाचनापूर्ण स्वर में बोली.

‘‘यह हुई न बात. अब जरा मुसकरा

दे. उदासी के बादल इस चांद से मुखड़े पर जरा भी नहीं जंचते. कभी कोई समस्या हो तो हम से पूछ लेना. हम संबंधों को निभाने के विशेषज्ञ हैं. तुम्हारी हर समस्या को चुटकियों में सुलझा

देंगे,’’ विनीलाजी नाटकीय अंदाज में बोल कर हंस दीं.

लगभग 2 माह बाद, रूपाली स्नानघर से

निकली ही थी कि फोन की घंटी बज उठी.

‘‘हैलो,’’ रूपाली ने फोन कान से लगाया.

‘‘अरे भाभी, कहिए, आज मेरी याद कैसे आ गई?’’

‘‘ताना दे रही हो, रूपाली? अब तक नाराज हो?’’

‘‘नहीं भाभी, आप से नाराज होने का तो

प्रश्न ही नहीं उठता. मैं आभारी हूं कि आप ने मुझे सही राह दिखाई, जो स्वयं मेरे मम्मीपापा भी नहीं कर सके.’’

‘‘तो कब आ रही हो मिलने, सभी को तुम्हारी याद आ रही है?’’

‘‘मम्मी से पूछ कर बताऊंगी. तब तक आप भी यहां का एकाध चक्कर लगा ही डालिए,’’ रूपाली बोली.

पता नहीं रूपाली के स्वर में व्यंग्य था या कोरा आग्रह पर रिया मुसकराई फिर चेहरे पर असीम संतोष के भाव तैर गए. Family Hindi Story

Funny Hindi Stories : फेसबुक खंडे ट्विटर द्वीपे

Funny Hindi Stories : दिनरात मेरे जैसे जिस भी लिच्चड़ को जहां भी देखो, जब भी देखो, कोई सपने से लड़ रहा है तो कोई अपने से लड़ रहा है. कोई धर्म से लड़ रहा है तो कोई सत्कर्म से लड़ रहा है. कोई प्रेम के चलते खाप से लड़ रहा है तो कोईकोई जेबखर्च के लिए बाप से लड़ रहा है. फौजी बौर्डर पर लड़ रहा है तो मौजी संसद में लड़ रहा है. कोई ईमानदारी से लड़ रहा है तो कोई अपनी लाचारी से लड़ रहा है. कोई बीमारी से लड़ रहा है तो कोई अपनी ही खुमारी से लड़ रहा है. आप जैसा हाथ में फटा नोट लिए महंगाई से लड़ रहा है तो मोटा आदमी अपनी बीजी फसल की कटाई से लड़ रहा है. कुंआरा पराई लुगाई से लड़ रहा है तो शादीशुदा उस की वफाई से लड़ रहा है. मतलब हरेक अपने को लड़ कर व्यस्त रखे हुए है. जिस की बाजुओं में दम है वह बाजुओं से लड़ रहा है. जिस की बाजुओं में दम नहीं वह नकली बट्टेतराजुओं से लड़ रहा है.

लड़ना हर जीव का मिशन है. लड़ना हर जीव का विजन है. मेरे जैसे जीव की क्लास का वश चले तो वह मरने के बाद भी लड़ता रहे. मित्रो, हर दौर में कुछ करना हमारा धर्म रहा हो या न रहा हो, पर लड़ना हम मनुष्यों का धर्म जरूर रहा है. लड़ना हमारा कर्म रहा है. लड़ना हमारे जीवन का मर्म रहा है. लड़ना हमारे जीवन के लक्ष्य का चरम रहा है. लड़ना सब से बड़ा सत्कर्म रहा है. हम लड़तेलड़ते पैदा होते हैं और लड़तेलड़ते मर जाते हैं.

मेरे बाप के दौर की अपनी लड़ाई थी. निहायत शरीफ किस्म की. पर गया अब वह जमाना जब बंदा रोटी से लड़ता था. गया अब वह जमाना जब बंदा लंगोटी से लड़ता था. गया अब वह जमाना जब बंदा धोती से लड़ता था. गया अब वह जमाना जब बंदा खेत से लड़ता था. गया अब वह जमाना जब बंदा पेट से लड़ता था. कुल मिला कर हम सभी अपनेअपने समय में अपनेअपने साहसदुसाहस के हिसाब से लड़ते रहे हैं. हमारे हाल देख कर उम्मीद की जानी चाहिए कि आगे भी हमजैसे कारणअकारण दिलोजान से लड़ते रहेंगे.

अब उन्हें ही देखिए, वे बूढ़े हो गए. पर उन का लड़ना नहीं गया. मुंह में एक असली दांत तक नहीं, पर दूसरे के जिस्म में दांतों का गड़ना नहीं गया. हम महल्ले में पानी की बाल्टी के लिए लड़े तो वे कुरसी के लिए संसद में, जिस में जितनी ताकत उस ने उतनी बड़ी कुरसी एकदूसरे पर दे मारी. जिस के बाजुओं में कम ताकत, उस ने फाइल ही उन के मुंह पर दे मारी. कुरसी लड़ाई में टूट गई बेचारी, पर उन्होंने लड़ने की हिम्मत न हारी. बंधुओ, हम सांस लिए बिना रह सकते हैं, पर लड़े बिना नहीं रह सकते. अगर हम एक मिनट को लड़ना बंद कर दें तो दूसरे ही पल हमारा दम घुट जाए. हमारा जिंदा रहने के लिए लड़ना बहुत जरूरी है. तभी तो हर आदमी अपनी हिम्मत के हिसाब से लड़ रहा है.

पर अब समय तेजी से बदल रहा है, भाईसाहब. सो, लड़ने के तरीके भी बदल रहे हैं. कुछ ज्ञानजीवी कहते हैं कि हम महामानव होने के युग में प्रवेश कर गए हैं. हम सभ्य हैं, ऐडवांस हैं, साहब. सो, अब हम लड़ते नहीं, भिड़ते हैं. लड़ने के परंपरागत तरीके, माफ कीजिएगा, अब तथाकथित सभ्यों ने छोड़ दिए हैं. आप आज भी जो परंपरागत ढंग से लड़ रहे हो तो अपने को पिछड़ा मान लीजिए, प्लीज. मन को लड़ते हुए भी शांति मिलेगी. इस से पहले कि कोई आप को आप के मुंह पर ही पिछड़ा, गंवार, जाहिल और जो भी मन में आए बक कर मदमाता चला जाए, आप अपने लड़ने के तौरतरीके को जरा मौडर्न बना लें. खुद जाहिल ही रहें तो कोई बात नहीं. आज की तारीख में बंदा इंसानियत से कम, लड़नेभिड़ने के तरीकों से अधिक जानापहचाना जाता है.

आज के तथाकथित सभ्य अपने हाथपांव की उंगलियों के नाखून हाथपांव की उंगलियों में दिखाते नहीं, उन्हें दिमाग में सजाते हैं. आज के स्वयंभू सभ्य बड़ी सफाई से लड़ते हैं, बड़ी गहराई से लड़ते हैं, बड़ी चतुराई से लड़ते हैं. किसी को दिखता नहीं. पर मत पूछो वे लड़तेलड़ते कैसेकैसे आपस में भिड़ते हैं. अपनों की रहनुमाई में अपनों से ही मौका हाथ लगते ही पूरी ईमानदारी से सारे रिश्तेनाते भुला मन की गहराइयों से भिड़ते हैं. पर आमनेसामने हो कर नहीं, छिप कर. छिप कर लड़ना संभ्रांतों की प्रिय कला हो गई है. कमबख्त तकनीक ने कुछ और सिखाया हो या न हो, पर छिपछिप कर एकदूसरे से लड़ना कम, भिड़ना बड़े सलीके से जरूर सिखाया है.

आज के लड़ने में सिद्धहस्त, धुरंधर लड़ाके फेसबुक पर लड़ते हैं, बच्चों की तरह ट्विटर पर भिड़ते हैं. फेसबुक के घोड़े, ट्विटर के रथ पर चढ़ कर एकदूसरे पर अचूक वार करते हैं. पर जब एकदूसरे के आमनेसामने होते हैं तो ऐसे गले मिलते हैं कि न ही पूछो तो भला. वे लड़ने के लिए बाजुओं, टांगों का नहीं, तकनीक का दुरुपयोग करते हैं. इधर से वे ट्विटर पर शब्दभेदी बाण चलाते हैं तो उधर से वे ट्विटर के माध्यम से ही उन के बाण को धूल चटाते हैं. इधर से वह शब्द उन के मुंह पर मारता है तो उधर से वह चार शब्दों का तमाचा ट्विटर पर रसीद कर देता है. तमाचा पढ़ने वाला तिलमिला उठता है तो तमाचा लिखने वाला खिलखिला उठता है. आज के लड़ाके ट्विटर पर एकदूसरे से भिड़े होते हैं, हालांकि ऐसे तो मेरे गांव के मेले में आपस में झोटे भी नहीं भिड़ते थे.

देखते ही देखते ट्विटर पर, फेसबुक पर बेमसला तीसरा विश्वयुद्ध शुरू हो जाता है. एक अपने को जीत का श्रेय ले अपने को ट्विटर का सब से बड़ा नायक बता खुद ही अपनी पीठ थपथपाता है तो दूसरा उस को कायर बता कर अपने दिमाग को खुद ही बहलाताफुसलाता है. इसलिए ज्ञान के युग में शान से जीना है तो हे दोस्त, तू भी लड़नेभिड़ने के नए तरीके अपना मौडर्न हो जा. अपनों से फेसबुक, ट्विटर पर लड़तेभिड़ते परमपद पा. चल उठ, देश के लिए नहीं, फेसबुक, ट्विटर के लिए शहीद हो जा. आने वाली पीढि़यां तेरे गुणगान गाएंगी. तुझ में अपने समय का अवतार पाएंगी.

Hindi Story : नाक का प्रश्न

Hindi Story : डाकिए से पत्र प्राप्त होते ही संगीता उसे पढ़ने लगी. पढ़तेपढ़ते उस के चेहरे का रंग उड़ गया. उस की भृकुटियां तन गईं.

पास ही बैठे संगीता के पति संदीप ने पूछा, ‘‘किस का पत्र है?’’

संगीता ने बुरा मुंह बनाते हुए उत्तर दिया, ‘‘तुम्हारे भाई, कपिल का.’’

‘‘क्या खबर है?’’

‘‘उस ने तुम्हारी नाक काट दी.’’

‘‘मेरी नाक काट दी?’’

‘‘हां.’’

‘‘क्या मतलब?’’

‘‘मतलब यह कि तुम्हारे भाई ने नए मौडल की नई कार खरीद ली है और उस ने तुम्हें पचमढ़ी चलने का निमंत्रण दिया है.’’

‘‘तो इस में मेरी नाक कैसे कट गई?’’

‘‘तो क्या बढ़ गई?’’ संगीता ने झुंझलाहट भरे स्वर में कहा.

संदीप ने शांत स्वर में उत्तर दिया, ‘‘इस में क्या शक है? घर में अब 2 कारें हो गईं.’’

‘‘तुम्हारी खटारा, पुरानी और कपिल की चमचमाती नई कार,’’ संगीता ने व्यंग्यात्मक स्वर में कहा.

संदीप ने पहले की तरह ही शांत स्वर में उत्तर दिया, ‘‘बिलकुल. दोनों जब साथसाथ दौड़ेंगी, तब लोग देखते रह जाएंगे.’’

‘‘तब भी तुम्हारी नाक नहीं कटेगी?’’ संगीता ने खीजभरे स्वर में पूछा.

‘‘क्यों कटेगी?’’ संदीप ने मासूमियत से कहा, ‘‘दोनों हैं तो एक ही घर की?’’

संगीता ने पत्र मेज पर फेंकते हुए रोष भरे स्वर में कहा, ‘‘तुम्हारी बुद्धि को हो क्या गया है?’’

संगीता के प्रश्न का उत्तर देने के बजाय संदीप अपने भाई का पत्र पढ़ने लगा. पढ़तेपढ़ते उस के चेहरे पर मुसकराहट खिल उठी. उधर संगीता की पेशानी पर बल पड़ गए.

पत्र पूरा पढ़ने के बाद संदीप चहका, ‘‘कपिल ने बहुत अच्छा प्रोग्राम बनाया है. बूआजी के यहां का विवाह निबटते ही दूल्हादुलहन के साथ सभी पचमढ़ी चलेंगे. मजा आ जाएगा. इन दिनों पचमढ़ी का शबाब निराला ही रहता है. 2 कारों में नहीं बने तो एक जीप और…’’

संगीता ने बात काटते हुए खिन्न स्वर में कहा, ‘‘मैं पचमढ़ी नहीं जाऊंगी. तुम भले ही जाना.’’

‘‘तुम क्यों नहीं जाओगी?’’ संदीप ने कुतूहल से पूछा.

‘‘सबकुछ जानते हुए भी…फुजूल में पूछ कर मेरा खून मत जलाओ,’’ संगीता ने रूखे स्वर में उत्तर दिया.

संदीप ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘तुम अपना खून मत जलाओ, उसे बढ़ाओ. चमचमाती कार में बैठ कर पचमढ़ी में घूमोगी तो खून बढ़ जाएगा.’’

‘‘मेरा खून ऐसे नहीं बढ़ेगा.’’

‘‘तो फिर कैसे बढ़ेगा?’’

‘‘अपनी खुद की नए मौडल की कार में बैठने पर ही मेरा खून…’’

‘‘वह कार क्या हमारी नहीं है?’’ संदीप ने बात काटते हुए पूछा.

संगीता ने खिन्न स्वर में उत्तर दिया, ‘‘तो तुम बढ़ाओ अपना खून.’’

‘‘हां, मैं तो बढ़ाऊंगा.’’

इसी तरह की नोकझोंक संगीता एवं संदीप में आएदिन होने लगी. संगीता नाक के प्रश्न का हवाला देती हुई आग्रह करने लगी, ‘‘अपनी खटारा कार बेच दो और कपिल की तरह चमचमाती नई कार ले लो.’’

संदीप अपनी आर्थिक स्थिति का रोना रोते हुए कहने लगा, ‘‘कहां से ले लूं? तुम्हें पता ही है…यह पुरानी कार ही हम ने कितनी कठिनाई से ली थी?’’

‘‘सब पता है, मगर अब कुछ भी कर के नहले पर दहला मार ही दो. कपिल की नाक काटे बिना मुझे चैन नहीं मिलेगा.’’

‘‘उस की ऊपर की आमदनी है. वह रोजरोज नईनई चीजें ले सकता है. फिलहाल हम उस की बराबरी नहीं कर सकते, बाद में देखेंगे.’’

‘‘बाद की बाद में देखेंगे. अभी तो उन की नाक काटो.’’

‘‘यह मुझ से नहीं होगा.’’

‘‘तो मैं बूआजी के यहां शादी में भी नहीं जाऊंगी.’’

‘‘पचमढ़ी भले ही मत जाना, बूआजी के यहां शादी में जाने में क्या हर्ज है?’’

‘‘किस नाक से जाऊं?’’

‘‘इसी नाक से जाओ.’’

‘‘कहा तो, कि यह तो कट गई. कपिल ने काट दी.’’

‘‘यह तुम्हारी फुजूल की बात है. मन को इस तरह छोटा मत करो. कपिल कोई गैर नहीं है, तुम्हारा सगा देवर है.’’

‘‘देवर है इसीलिए तो नाक कटी. दूसरा कोई नई कार खरीदता तो न कटती.’

‘‘तुम्हारी नाक भी सच में अजीब ही है. जब देखो, तब कट जाती है,’’ संदीप ने बुरा सा मुंह बनाते हुए कहा.

बूआजी की बिटिया के विवाह की तिथि ज्योंज्यों नजदीक आने लगी त्योंत्यों नई कार के लिए संगीता का ग्रह बढ़ने लगा. वह संदीप को सचेत करने लगी, ‘‘देखो, मैं नई कार के बिना सच में नहीं जाऊंगी बूआजी के यहां. मेरी बात को हंसी मत समझना.’’

ऐसी चेतावनी पर संदीप का पारा चढ़ जाता. वह झल्ला कर कहता, ‘‘नई कार को तुम ने बच्चों का खेल समझ रखा है क्या? पूरी रकम गांठ में होने पर भी कार हाथोंहाथ थोड़े ही मिलती है.’’

‘‘पता है मुझे.’

‘‘बस, फिर फुजूल की जिद मत करो.’’

‘‘अपनी नाक रखने के लिए जिद तो करूंगी.’’

‘‘मगर जरा सोचो तो, यह जिद कैसे पूरी होगी? सोचसमझ कर बोला करो, बच्चों की तरह नहीं.’’

‘‘यह बच्चों जैसी बात है?’’

‘‘और नहीं तो क्या है? कपिल ने नई कार ले ली. तो तुम भी नई कार के सपने देखने लगीं. कल वह हैलिकौप्टर ले लेगा तो तुम…’’

‘‘तब मैं भी हैलिकौप्टर की जिद करूंगी.’’

‘‘ऐसी जिद मुझ से पूरी नहीं होगी.’’

‘‘जो पूरी हो सकती है, उसे तो पूरी करो.’’

‘‘क्या मतलब?’’

‘‘मतलब यही कि नई कार नहीं तो उस की बुकिंग तो करा दो ताकि मैं नातेरिश्ते में मुंह दिखाने लायक हो जाऊं.’’

कपिल की तनी हुई भृकुटियां ढीली पड़ गईं. उस के चेहरे पर मुसकराहट खिल उठी. वह बोला, ‘‘तुम सच में अजीब औरत हो.’’

संगीता ने ठंडी सांस भरते हुए कहा, ‘‘हर पत्नी अजीब होती है. उस के पति की नाक ही उस की नाक होती है. इसीलिए पति की नाक पर आई आंच वह सहन नहीं कर पाती. उस की यही आकांक्षा रहती है कि उस के पति की नाक ऊंची रहे, ताकि वह भी सिर ऊंचा कर के चल सके. इस में उस का स्वार्थ नहीं होता. वह अपने पति की प्रतिष्ठा के लिए ही मरी जाती है. तुम पत्नी की इस मानसिकता को समझो.’’

संगीता के इस कथन से संदीप प्रभावित हुआ. इस कथन के व्यापक संदर्भों ने उसे सोचने पर विवश किया. उस के भीतर गुदगुदी सी उठने लगी. नाक के प्रश्न से जुड़ी पत्नी की यह मानसिकता उसे बड़ी मधुर लगी.

इसी के परिणामस्वरूप संदीप ने नई कार की बुकिंग कराने का निर्णय मन ही मन ले लिया. उस ने सोचा कि वह भले ही उक्त कार भविष्य में न खरीद पाए, किंतु अभी तो वह अपनी पत्नी का मन रखेगा

संगीता को संदीप के मन की थाह मिल न पाई थी. इसीलिए वह बूआजी की बिटिया के विवाह के संदर्भ में चिंतित हो उठी. कुल गिनेगिनाए दिन ही अब शेष रह गए थे. उस का मन वहां जाने को हो भी रहा था और नाक का खयाल कर जाने में शर्म सी महसूस हो रही थी.

बूआजी के यहां जाने के एक रोज पूर्व तक संदीप इस मामले में तटस्थ सा बने रहने का अभिनय करता रहा एवं संगीता की चुनौती की अनसुनी सी करता रहा. तब संगीता अपने हृदय के द्वंद्व को व्यक्त किए बिना न रह सकी. उस ने रोंआसे स्वर में संदीप से पूछा, ‘‘तुम्हें मेरी नाक की कोई चिंता नहीं है?’’

‘‘चिंता है, तभी तो तुम्हारी बात मान रहा हूं. तुम अपनी नाक ले कर यहां रहो. मैं बच्चों को अपनी पुरानी खटारा कार में ले कर चला जाऊंगा. वहां सभी से बहाना कर दूंगा कि संगीता अस्वस्थ है,’’ संदीप ने नकली सौजन्य से कहा.

‘‘तुम शादी के बाद पचमढ़ी भी जाओगे?’’ संगीता ने भर्राए स्वर में पूछा.

‘‘अवश्य जाऊंगा. बच्चों को अपने चाचा की नई कार में बैठाऊंगा. तुम नहीं जाना चाहतीं तो यहीं रुको और यहीं अपनी नाक संभालो.’’

संगीता भीतर ही भीतर घुटती रही. कुछ देर की चुप्पी के बाद उस ने विचलित स्वर में पूछा, ‘‘बूआजी बुरा तो नहीं मानेंगी?’

‘‘बुरा तो शायद मानेंगी? तुम उन की लाड़ली जो हो.’’

‘‘इसीलिए तो..?’’

संदीप ने संगीता के इस अंतर्द्वंद्व का मन ही मन आनंद लेते हुए जाहिर में संजीदगी से कहा, ‘‘तो तुम भी चली चलो?’’

‘‘कैसे चलूं? कपिल ने राह रोक दी है.’’

‘‘हमारी तरह नाक की चिंता छोड़ दो.’’

‘‘नाक की चिंता छोड़ने की सलाह देने लगे, मेरी बात रखने की सुध नहीं आई?’’

‘‘सुध तो आई, मगर सामर्थ्य नहीं है.’’

‘‘चलो, रहने दो. बुकिंग की सामर्थ्य तो थी? मगर तुम्हें मेरी नाक की चिंता हो तब न?’’

‘‘तुम्हारी नाक का तो मैं दीवाना हूं. इस सुघड़, सुडौल नाक के आकर्षण ने ही…’’

संगीता ने बात काटते हुए किंचित झल्लाहटभरे स्वर में कहा, ‘‘बस, बातें बनाना आता है तुम को. मेरी नाक की ऐसी ही परवा होती तो मेरी बात मान लेते.’’

‘‘मानने को तो अभी मान लूं. मगर गड्ढे में पैसे डालने का क्या अर्थ है? नई का खरीदना हमारे वश की बात नहीं है.’’

‘‘वे पैसे गड्ढे में न जाते. वे तो बढ़ते और मेरी नाक भी रह जाती.’

‘‘तुम्हारी इस खयाली नाक ने मेरी नाक में दम कर रखा है. यह जरा में कट जाती है, जरा में बढ़ जाती है.’

इस मजाक से कुपित हो कर संगीता ने रोषभरे स्वर में कहा, ‘‘भाड़ में जाने दो मेरी नाक को. तुम मजे से नातेरिश्ते में जाओ, पचमढ़ी में सैरसपाटे करो, मेरी जान जलाओ.’’

इतना कहतेकहते वह फूटफूट कर रो पड़ी. संदीप ने अपनी जेब में से नई कार की बुकिंग की परची निकाल कर संगीता की ओर बढ़ाते हुए कहा, ‘‘रोओ मत, यह लो.’’

संगीता ने रोतेरोते पूछा, ‘‘यह क्या है?’’

‘‘तुम्हारी नाक,’’ संदीप ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘हांहां, तुम्हारी नाक, देखो.’’

परची पर नजर पड़ते ही संगीता प्रसन्न हो गई. उस ने बड़ी मोहक दृष्टि से संदीप को निहारते हुए कहा, ‘‘तुम सच में बड़े वो हो.’’

‘‘कैसा हूं?’’ संदीप ने शरारती लहजे में पूछा.

‘‘हमें नहीं मालूम,’’ संगीता ने उस परची को अपने पर्स में रखते हुए उत्तर दिया

Emotional Story In Hindi : देहरी के भीतर

Emotional Story In Hindi : मेरी शादी क्या तय हुई घर जैसे खुशियों से खिल उठा. जिसे देखो वह शादी की ही बातें करता दिखाई देता. मां तो जैसे खुशी से बौखला ही गई थीं. पिताजी खुशी के साथसाथ तनाव में थे कि जमींदारों के घर रिश्ता जुड़ रहा है कहीं कोई चूक न हो जाए. सब कुछ उन की हैसियत के अनुरूप करना चाहते थे. बाहर की तैयारियों की भागदौड़ के बीच भी मां को बताना नहीं भूले, “देखो, अपनी लाड़ली को पारंपरिक भोजन  बनाने की खूब प्रैक्टिस करा दो. हमारी लाडो किसी परीक्षा में असफल नहीं होनी चाहिए.”

पति की ओर देख कर मां मुसकराईं, “आप अपनी तैयारियां ठीक से करो जी, हमारी बिट्टो को पा कर समधियाने के लोग बेहद खुश होंगे. आप चिंता मत करो. यों तो उसे सबकुछ आता है फिर भी मैं रोज उस से कुछ न कुछ बनवाती रहूंगी.”

शादी की तैयारियां जोरों पर थीं और मेरे मन में धुकधुक हो रही  थी. बचपन से लखनऊ में जन्मी, पलीबड़ी मैं अचानक से जौनपुर में जा कर कैसे बस जाऊंगी? यह कैसा शहर होगा? कैसे लोग होंगे? जमींदार परिवार का क्या अर्थ है? मैं मन ही मन समझने की कोशिश करती. पर किसी से कुछ पूछ नहीं पाती. सोचती कि यदि भाई की शादी हो गई होती तो कम से कम भाभी से मन की बात तो कर सकती थी. मेरे मन में जौनपुर, जौनपुर वासियों और होने वाले परिजनों को ले कर अनेक प्रश्न सिर उठा रहे थे.

इतिहास मेरा पसंदीदा विषय कभी नहीं रहा फिर भी उस के पन्ने पलट कर जानने की कोशिश की तो पता चला जौनपुर मध्यकालीन भारत का एक स्वतंत्र राज्य था. जो शर्की शासकों की राजधानी हुआ करता था. यह कलकल बहती गोमती नदी के तट पर बसा है.

इसी सब उधेड़बुन के बीच विवाह की तिथि भी आ गई. एक शानदार आयोजन के साथ मैं विवाह बंधन में बंध कर विदा हो गई.

कार एक झटके के साथ रुकी तो मेरी तंद्रा टूट गई. हड़बड़ा कर मैं ने सिर से सरका अपना पल्लू संभाला. बगल में बैठे पति धीरे से फुसफुसाए, “हम घर पहुंच गए गए हैं.”

मैं ने कार की खिड़की के बाहर नजर दौड़ाई. चारों और दुकानें ही दुकानें दिखाई दीं. मेरे मन के दौड़ते घोड़े को लगाम लगी. यह कैसा रजवाड़ा, यह तो कसबे की बाजार सा लग रहा है. बस दुकानें बड़ीबड़ी लग रही थीं.

तभी औरतों का एक झुंड आया और जाने कौनकौन सी रस्में होने लगीं. रबर की गुड़िया की मानिंद मैं उन के आदेशों का पालन करती जाती.

“बहू जीने पर ऊपर चलो,” कहने के साथ भद्र महिला ने मेरा लहंगा संभाला और मैं धीरेधीरे जीने पर बढ़ने लगी. ऊपर पहुंच कर मैं ने नज़रे चारों ओर घुमाईं. बड़ा सा चौड़ा दालान था. दालान के अंत में सामने नक्काशीदार बड़ा सा विशालकाय दरवाजा था. मैं नजर झुकाए धीरेधीरे उस दरवाजे तक पहुंची. द्वार के बीचोबीच चौक बना कर उस के बीच रखे कलश को देख कर लगा हां, आई तो मैं किसी रजवाड़े में ही हूं. बड़ा सा चांदी का कलश जो बेलबूटों से सजा था, चावलें भरकर नई बहू के गृहप्रवेश हेतु रखा गया था.

चावलें लुढ़का कर मैं एक हौल में आ गई. मुझे एक सोफे पर बैठाया गया. शानदार नक्काशी वाला सोफा, सोफा कम सिंहासन ज्यादा लग रहा था. उस विशाल हौल में कई सोफे रखे थे जिन के हत्थे शेर या हाथी जैसे थे. मुझे अपने मायके का इकलौता नक्काशीदार सैंटर टेबल याद आया, जो पिताजी सहारनपुर से लाए थे और हम उसे कितना सहेजते रहते थे. यहां तो फर्नीचर, दरवाजे सब नक्काशी के शानदार नमूने लग रहे थे.
3 दालान पार कर थोड़ी देर बाद मुझे एक कमरे में पहुंचाया गया. “भाभी, यह मेरा कमरा है. आप यहां आराम कीजिए. आप का कमरा अभी सज रहा है,” कह कर मेरी ननद तारा शरारत से मुसकराई.
“यह घर तो बहुत बड़ा है. आप लोग खो नहीं जाते इस में?” मुसकान के साथ मैं ने पूछा.

तारा खनकती हुई प्यारी हंसी के साथ खिलखिलाई फिर मेरा हाथ पकड़ कर बोली,”भाभी, पहला वाला दालान और बैठक मेहमानों के लिए है. दूसरा दालान और उस के चारों ओर बने कमरों में रसोई, खाने का कमरा, मेहमान खाना और कुछ फालतू कमरे हैं. इस तीसरे दालान के चारों और हम सब के कमरे हैं. पर तीसरे दालान में आने की इजाजत केवल चमेली और इन्ना को ही है. धीरेधीरे आप सब जान जाएंगी. आप आराम करिए मैं मेहमानों को देख लूं. थोड़े दिनों में यहां की कमान आप के ही हाथों में ही होगी.”

शाम से ही मेरी ननदें मुझे सजाने में लग गईं. उन की चुलबुली छेड़छाड़ मन को गुदगुदाती तो मैं मुसकरा देती. वे निहाल हो जातीं. मेरी लंबी चोटी खोल कर वे मेरे केशों की तारीफ में कसीदे पढ़ने लगीं.
“हाय भाभी, भैया तो इन केशों में खो ही जाएंगे.” एक ने मुझे कुहनी मारी, “हां, भैया के काम का क्या होगा? इन से बंधे वे तो कहीं जा ही नहीं पाएंगे.” और कमरा उन की खिलखिलाहटों से भर गया.

तभी सासूमां आईं. उन के पीछेपीछे चमेली एक बड़ा सा थाल थामी हुई थी. वह साटन के लाल गोटेदार कपड़े से ढका था. “बहुरानी, यह हमारा खानदानी लहंगा है. सच्चे काम का, मतलब सोनेचांदी के तारों से काम है इस में. थोड़ा भारी है पर हमारे घर की परंपरा है. आज के दिन इस परिवार की कुलवधू इसे ही पहनती हैं.”

“जी,” मेरे उत्तर के साथ ही वे जितने ठसके के साथ आई थीं, उतनी ही ठसक से चली गईं. लहंगे को देख कर तो मेरी आंखें चुंधिया गईं. उस प्राचीन लहंगे की क्या बेहतरीन कारीगरी थी. शादी के लिए लखनऊ जैसे शहर में कितने ही लहंगे देखे थे मैं ने, पर इस के आसपास भी कोई टिक जाए ऐसा एक लहंगा मेरी नजरों के सामने नहीं आया था.

“भाभी, ऐसे क्या देख रही हैं? थोड़ा भारी तो है पर पहनना तो पड़ेगा ही.” तारा ने मुझे हिलाया.
“हां बहुत सुंदर है.” मैं ने आंखें झपकाईं तो सब फिर खिलखिला उठीं.

तैयार हो कर जब आदमकद आईने में स्वयं को देखा तो एक पल को तो भ्रम ही हो गया कि आईने में कोई महारानी खड़ी है. बिन बोले ही मैं मुसकरा दी. थोड़ी देर में सब मुझे मेरे कमरे में पहुंचा कर चली गईं. उन के जाते ही मैं ने अपने कमरे को निहारा. कमरा, नहींनहीं उसे हौल ही कहना सही होगा. ‘यह विशाल हौल मेरा है’ सोच कर ही मैं रोमांचित हो उठी. ऐसा तो कभी सपने में भी कल्पना नहीं की थी. बीच कमरे में लकड़ी का विशाल नक्काशीदार पलंग पड़ा हुआ था, जिस के सिरहाने पर नक्काशी की हुई थी.

पलंग को फूलों से सजाया गया था. कमरे में एक और बड़ा सा सोफा पड़ा हुआ था जिस पर सुंदर कारीगरी से कमल के फूल उकेरे गए थे. जमीन पर मोटी पर्शियन कालीन बिछी हुई थी. अचानक मेरी निगाह छत पर गई और मेरी आंखें फटी की फटी की रह गईं. पूरी छत काले, नीले, सफेद रंग की चित्रकारी से सजी हुई थी. 2 विशाल झाड़फानूस लटक रहे थे. अभी मैं देख ही रही थी कि कमरे के दरवाजे पर आहट हुई और मैं संभल कर बैठ गई.

नीले रंग की शेरवानी पर नारंगी साफा बांधे, गले में मोती की माला पहने, मेरे पति कमरे में दाखिल हुए. ‘यह पुरुष अब मेरा है’ सोच कर मन प्रसन्नता से खिल उठा.

कुछ दिन यों ही गहमागहमी रही फिर एक दिन सासूमां बोलीं, “तारा, अभी तक बहुरानी ने अपना पूरा घर नहीं देखा है. इसे पूरा घर दिखा दो.”

मैं और तारा हवेली भ्रमण पर निकल गईं. जितना तारा उत्साहित थीं उस से ज्यादा मैं उत्सुक थी. जिसे तारा ड्योढ़ी कह रही थी वह कलाकारी का उत्कृष्ट नमूना था. मैं पूर्वजों की कला के आगे नतमस्तक थी.
“तारा हम ऊपर नहीं जाएंगे?” मैं ने तारा से पूछा.

“भाभी, ऊपर की मंजिल को हम ने किराए पर दे रखा है. हमारी पहली मंजिल पर 3 किराएदार हैं. ऐसे जाना ठीक नहीं होगा.”

“किराएदार? लेकिन क्यों?” बरबस मेरे मुंह से निकला.

“भाभी, इतने बड़े घर का रखरखाव आसान नहीं होता.” आश्चर्य से मेरी ओर देख कर तारा बोली.
“मेरा मतलब वह नहीं था.” मैं बुरी तरह हड़बड़ा गई थी.

“कोई बात नहीं भाभी. वह स्वाभाविक प्रश्न था.” मेरे कंधे पर हाथ रख कर तारा मुझे आश्वस्त करते हुए बोली, “इस के ऊपर भी एक मंजिल है. पर मैं वहां नहीं जाती . आप भैया के साथ जा कर देख लीजिएगा.”
“आप नहीं जातीं, मतलब?”

“भाभी, आप तो जानती ही हैं, पुरानी हवेलियों के साथ कितने किस्से जुड़े रहते हैं. तो हमारी हवेली भी इस का अपवाद नहीं है.” तारा ने समझाया.

“मतलब…भ…भूत…”

“हां ऐसा ही कुछ…” तारा की आंखों में शरारत थी.

“सच बताइए न?”

“हां सच…” तारा ने अपनी बात पर जोर दिया और मेरा हाथ पकड़ कर मुझे पीछे की बगिया में ले गई और एकएक कर हर पेड़ से मेरा परिचय कराने लगी कि कौन सा पेड़ कब और किस ने लगाया था.

उसी समय चमेली आई,”भाभी, आप को भैया बुला रहे हैं.”

“भैया बुला रहे हैं” दोहराते हुए तारा ने मुझे शरारत से कुहनी मारी.

मैं लजाईलजाई सी चमेली के पीछे चल दी. पतिदेव तो जैसी मेरी प्रतीक्षा में ही बैठे थे. देखते ही बोले, “चलो तुम्हें गोमती नदी की सैर कराता हूं. वहां सूर्यास्त का नजारा देखना मजा आ जाएगा.”

 

कुछ ही समय में हम कलकल बहती गोमती नदी के ऊपर बने शाही पुल पर थे. लाल रंग का ऐतिहासिक पुल अपनी पूरी भव्यता से मेरा मन मोह रहा था. पतिदेव गर्व से बता रहे थे कि इसे अकबर के आदेश पर मुनइन खानखाना ने बनवाया था. और मां और तारा के साथ तुम जिस शाही किले को देखने गई थीं उस का निर्माण फिरोजशाह ने कराया था.”

अचानक मेरे मुंह से निकला, “मुझे अपनी कोठी की ऊपरी मंजिल कब दिखाएंगे आप?”

पतिदेव कुछ पल मुझे निहारते रहे फिर बोले, “तुम्हें ऊपरी मंजिल देखनी है?”

“हां”

“ठीक है दिखा दूंगा. चलो घर चलते हैं.”

परिवार का हर सदस्य किसी न किसी बहाने से मुझे ऊपर की मंजिल दिखाने से कतरा जाता था. ऐसा मुझे लग रहा था. मैं भी बारबार नहीं कह पा रही थी. पर मेरा डर और जिज्ञासा दोनों ही बढ़ती जा रही थी.
उस दिन सुबहसुबह मैं बीच के दालान में आई तो पहली मंजिल पर रहने वाली लीना मिल गई. “भाभी, मैं आप को ही बुलाने आ रही थी. आज आप लंच मेरे साथ करिएगा तो मुझे खुशी होगी. जब से

आप की शादी हुई है मैं आप को बुलाना चाह रही थी.”

“मैं मां से…”

मेरी बात बीच में काट कर लीना बोली, “आंटीजी से व तारा से मेरी बात हो गई है. मैं आप की प्रतीक्षा करूंगी. मैं ने आप के लिए कुछ खास बनाया है.”

“ठीक है‌.” मैं मुसकराई.

हम तीनों गपशप के साथ पिज्जा का आनंद ले रहे थे कि कमरे का दरवाजा अचानक धीरे से खुला और एक हाथ जिस में एक डब्बा और फूलों का गुलदस्ता था दिखाई दिया. मेरी तो सांस ही अटक गई. लीना और तारा ने एकदूसरे की ओर देखा. तब तक उस हाथ से जुड़ा शरीर भी सामने आ गया और लीना व तारा दोनों एक साथ बोलीं, “ओह तुम हो. डरा ही दिया था.”

सौम्य, जो कि इसी मंजिल पर दूसरी ओर रहता था हड़बड़ाया सा खड़ा था.

“यह…मैं…” वह कुछ बोल नहीं पा रहा था.

“हां, हां, सौम्य लाओ. भाभी यह गुलदस्ता मैं ने आप के लिए मंगाया था. आप पहली बार आई हैं न.” लीना ने बात संभाली और आगे बढ़ कर सौम्य से सामान ले लिया.

“ये…इमरती…” अटकता हुआ सौम्य बोला.

दोनों की हड़बड़ाहट छिपाए नहीं छिप रही थी.

 

“आओ बैठो सौम्य.” तारा बोली.

“भाभी, यहां की इमरती मशहूर है. इसलिए खास आप के लिए मंगवाई है.” कहते हुए लीना ने दोनों चीजें मुझे पकड़ा दीं.

हम चारों थोड़ी देर बातें करते रहे. पर सौम्य सामान्य नहीं हो पा रहा था . उस की नजर मेरे पास रखे गुलदस्ते पर बारबार जा कर अटक रही थी. चलती हुई जब मैं ने गुलदस्ता उठाया तो उस से लटकता हुआ छोटा सा कार्ड उन की चुगली कर गया, जिसे मैंने धीरे से निकाल लिया और लीना को गले लगा कर धीरे से सब की नजर बचा कर उस के हाथ में पकड़ा कर बोली, “यह तुम्हारे लिए है.”

कार्ड पर लिखा था, फौर माई लव.”

धीरेधीरे तीनों किराएदार मुझ से खुलने लगे थे. लीना और सौम्य तो अपनेअपने हिस्से में अकेले ही रहते थे और उन के बीच पक रही खिचड़ी अब मेरे सामने थी. दूसरी मंजिल पर ही एक बड़े हिस्से में मोहन रहता था जो किसी बैंक में काम करता था. उस के साथ उस की माताजी रहती थीं.

दिन के खाली समय में मैं अब अकसर उन के पास थोड़ी देर के लिए चली जाती. सासूमां आजाद खयाल की थीं. ज्यादा टोकाटाकी नहीं करती थीं. बस अपने काम से काम . राजसी ठसक में ही रहती थीं. घर में भी जेवरों से लदी रहती थीं. तारा कालेज चली जाती और मांजी आराम करने तो मैं ऊपर वाली माताजी के पास जा धमकती. उन के पास ढेरों किस्से थे.

“बहु तुम तीसरी मंजिल पर गईं कभी?” एक दिन अचानक उन्होंने पूछा.

“नहीं माताजी. कोई ले ही नहीं जाता मुझे.” मेरा लहजा शिकायती भरा था.

“जाना भी मत बहू.”

“ऐसा क्या है वहां?” मैं ने पूछा तो वे अजीब निगाहों से मुझे देखने लगीं.

“बताइए न,” मैं ने जोर दिया.

“फिर कभी बताऊंगी बहू, अभी तो मुझे आराम करना है.”

मैं चली तो आई पर मुझे ऊपरी मंजिल का रहस्य जानने का रास्ता मिल गया था.

मेरे बारबार कुरेदने पर उस दिन माताजी बोलीं, “देखो बहू, किसी से कहोगी नहीं तो तुम्हें बताऊं.”

“नहीं माताजी, आप की बात मैं किसी को क्यों बताने लगी भला.” मैं उत्साहित थी.

“जानती हो ऊपर की मंजिल पर न, रात में कुछ लोग आते हैं.”

“कौन लोग? और क्यों आते हैं माताजी?”

“पता नहीं पर आते तो हैं.” माताजी बोलीं.

“आप ने देखा है?’ मैं सीधे माताजी की आंखों में देख रही थी.

“और क्या, यहां सब ने देखा है. तुम्हें  भी दिख जाएंगे जल्दी ही.” माताजी के स्वर में विश्वास था.

उसी समय लीला के कमरे की खुलने की आवाज आई.

“सुन बहू, यह लीना तुम्हें कैसी लगती है?”

“बहुत मस्त लड़की है. मुझे अच्छी लगती है.”

“बता तो जरा मेरे मोहन के लिए कैसी रहेगी?” अब माताजी मेरी आंखों में देख रही थीं.

“माता जी, आजकल शादीब्याह में बच्चों की पसंद का ध्यान रखना चाहिए. उन से ही पूछना चाहिए. आप मोहन से बात करिए. क्या पता उसे कोई लड़की पसंद हो.”

“पसंद है, तभी तो तुम से पूछ रही हूं.” माता जी बोलीं.

“मतलब, मोहन ने आप को बताया है कि उसे लीना पसंद है? उन दोनों के बीच कुछ चल रहा है?” मैं ने आश्चर्य से पूछा.

“नहीं, ऐसे कौन बताता है. मां हूं न. उस का मन पढ़ सकती हूं.” स्नेह उन की आंखों में तैर रहा था.
“फिर…?”

“तुम तो अभी बच्ची हो. पता है मोहन को हमेशा लीना की फिक्र रहती है. कुछ भी फलवल लाता है तो लीना को देने को कहता है. और यह जो दूसरा लड़का रहता है न, मुझे तो फूटी आंख नहीं भाता. जाने क्या नाम है.”

“सौम्य…”

“हां, जो भी है.” रोष स्पष्ट था.

मैं उठने लगी तो माताजी बोलीं, “सुनो, अपनी सास से कह कर इस सौम्य को निकलवा दो. मैं न बहुत अच्छा किराएदार दिलवा दूंगी. किराया भी मोटी देगा. तुम बात करो उन से.”

“अरे मैं क्या कहूंगी?” मैं चकित थी.

“कहना क्या है. कह देना तारा को गलत नजर से देखता है. तुरंत हटा देंगी.”

“पर यह सच नहीं है. बरसों से तारा से राखी बंधवाता है. बहुत मानता है उसे. सुना भी है और देखा भी है मैं ने.” मैं ने स्पष्ट किया.

“अरे तो तुम झूठ कहां बोलेगी. बस लीना की जगह तारा का नाम बदल देना.” माताजी फिर से बोलीं.
“नहींनहीं यह मुझ से नहीं होगा. मैं चलती हूं.” मैं झटके से उठ भागी और हड़बड़ाहट में सामने से आ रहे पतिदेव से टकरा गई. पूरी बात सुन कर वे बोले, “अच्छा चलो तुम्हें तीसरी मंजिल दिखाता हूं.”
मैं काफी डरीडरी ऊपर पहुंची. मेरा चेहरा देख कर पतिदेव खिलखिलाए, “इतना डरती हो, तो देखने की जिद क्यों?”
“सच बताइए इस में भूत है क्या?”
“नहीं यार, सब बकवास है. भूत होता तो मैं तुम्हें यहां लाता? भूतवूत कुछ नहीं होता…” कहते हुए उन्होंने कमरे के विशाल दरवाजे को धक्का दिया. दरवाजा आवाज के साथ खुल गया. घबराहट में मैं ने पति की कमीज पीछे से पकड़ ली. वे मुसकराए और मेरा हाथ थाम कर अंदर बढ़े. अंदर आते ही आश्चर्य से मेरा मुंह खुला का खुला रह गया. मैं एक बड़ी लाइब्रेरी के अंदर खड़ी थी. लकड़ी की नक्काशीदार अलमारियों के ऊपर खूबसूरत फ्रेम में महान क्रांतिकारियों की अनेक फोटो लगी थीं.

कुछ को मैं पहचान रही थी और ज्यादातर को नहीं. एक किनारे पर मोटा गद्दा बिछा था जिस पर खूबसूरत कालीन बिछी थी और कई तकिए रखे हुए थे. मैं कल्पना कर सकती थी कि यहीं पर सब बैठते और बातचीत करते होंगे. आगे बढ़ कर पतिदेव ने एक अलमारी का दरवाजा खोल दिया. अंदर किताबें भरी पड़ी थीं.

“यह हमारे परिवार का गौरवपूर्ण इतिहास का पन्ना है जिस पर हम सब को गर्व है. यह वह स्थान है जहां नेहरू, गांधी, पटेल सरीखे महान नेता आते थे और आजादी की योजना बनाते थे. हमारे पर बाबा आजादी की लड़ाई के एक सैनिक थे. इस कमरे में कैद उन की यादें हमारी बेशकीमती धरोहर हैं.”

“और यह भूत वाली बात?”

“सब बकवास है. पहले सामने वाले भाग में दूसरे किराएदार थे.  बहुत पुराने. पर उन की नियत में खोट आ गया था. लोगों को डराने के लिए वही ऐसी अनर्गल बातें फैलाते रहते थे कि सफेद धोतीकुरते में कुछ लोग रात में तीसरी मंजिल पर आते हैं. जब पानी सिर के ऊपर हो गया तब हम ने उन्हें निकाल दिया. जब से लीना और सौम्य आए हैं सब ठीक है.”

“पर माता जी…” मैं ने बात अधूरी छोड़ दी.

“हां माताजी थोड़ा इधरउधर की बातें करती हैं. पर उन का ज्यादा किसी से मिलनाजुलना नहीं है और उन का बेटा मोहन बहुत नेक इंसान है. सब की मदद को हमेशा तैयार रहता है. और उस के पिता, बाबूजी के अच्छे मित्र थे इसलिए…”

मैं सबकुछ ध्यान से सुन रही थी.

“अच्छा श्रीमतीजी, आप का डर और भ्रम दूर हुआ या फिर भूत को बुलाऊं?” हंसते हुए वे बोले.

“मैं यहां से किताबें ले कर पढ़ सकती हूं न?” अपनी झेंप छिपाते हुए मैं ने पूछा.

“हांहां, तुम मालकिन हो यहां की. सुना था तुम्हें पढ़ने का शौक है. खूब पढ़ो. चाहो तो यहां की सफाई करा के यहीं बैठ कर पढ़ो.”

“नहीं,अपने कमरे में ही पढ़ूंगी. यहां ज्यादा एकांत है.”

“ठीक है. हां एक बात याद रखना. यह सौम्य, लीना और मोहन की प्रेम कहानी उन्हें ही सुलझाने देना, तुम बीच में मत पड़ना.”

और हम एकदूसरे के हाथ में हाथ डाले नीचे की ओर चल दिए, डर का भूत भाग गया था.

लेखिका: नीलम राकेश

Inspirational Hindi Stories : जिंदगी का चश्मा

Inspirational Hindi Stories : प्रीतिकी मम्मी उसे समझ रही थी, ‘‘अभी भी समय है. अतुल से बोलो कि अपने डैडी से कहेगा कि अतुल के हिस्से की प्रौपर्टी उस के नाम कर दे.’’

प्रीति बोली, ‘‘मम्मी मैं यह अतुल से कैसे बोल सकती हूं? वे अपने डैडी से बहुत प्यार करते हैं.’’

प्रीति की मम्मी लगातार बोले जा रही थी, ‘‘हां, तभी तो अतुल को उल्लू बना रखा है.’’

प्रीति बोली, ‘‘मैं कुछ सम?ा नहीं.’’

‘‘अरे तेरी अक्ल क्या घास चरने गई है. तेरे देवर विपुल की पत्नी रूपा दूसरी बार मां बनने वाली है.’’

प्रीति ठंडी सांस भरते हुए बोली, ‘‘हां वह तो है… मम्मीजी ने तो रूपा को मना लिया है कि वह अपना दूसरा बच्चा हमें दे देगी.’’

प्रीति की मम्मी बोली, ‘‘देवरानी पूरे घर पर राज करेगी… दूसरे का बच्चा क्या कभी अपना हुआ है? अतुल से बोल कर पहले प्रौपर्टी अपने नाम करवा ले, फिर चाहे रूपा के दोनों बच्चे गोद ले लेना.’’

प्रीति को दुनियादारी का ज्ञान बांट कर प्रीति की मम्मी तो वापस चली गई मगर प्रीति का मन अशांत हो गया.जब शाम को अतुल घर आया तो देखा प्रीति बेमतलब टीवी को फटीफटी आंखों से देख रही है. उस ने प्रीति से पूछा, ‘‘क्या बात है प्रीति इतनी उदास क्यों बैठी हो?’’

‘‘मुझे लग रहा है कि मेरा इस घर में कोई अपना नहीं है.’’

अतुल प्यार से उस के सिर पर हाथ फेरते हुए बोला, ‘‘ऐसा क्यों कह रही हो?’’

‘‘तुम्हारे डैडी की सारी प्रौपर्टी आगे जा कर विभाजित होनी ही है तो तुम अपना हिस्सा अभी क्यों नहीं मांग लेते हो?’’

‘‘ऐसा करने से क्या पूरा परिवार तुम्हारा अपना हो जाएगा,’’ अतुल बोला.

प्रीति बोली, ‘‘मुझे सिक्योर महसूस होगा. तुम्हें मालूम हैं कि मेरे मां बनने का चांस न के बराबर है.’’

अतुल बोला, ‘‘हम पहले भी इस बारे में बात कर चुके हैं. तुम मेरी जिम्मेदारी हो, मेरे डैडी की नहीं. तुम्हारी खुशी या सिक्युरिटी मेरी जिम्मेदारी है और डैडी की प्रौपर्टी से तुम्हें क्या खुशी मिलेगी, यह मु?ो आज तक समझ नहीं आया है.’’

प्रीति बिना कुछ बोले पैर पटकते हुए दूसरे कमरे में चली गई.

प्रीति और अतुल की 7 वर्ष पहले शादी हुई थी. दोनों के रिश्ते बेहद मधुर थे. दोनों की छोटी सी प्यारी दुनिया थी बस कमी थी- एक बच्चे की.शुरुआत में दोनों ही बच्चा नहीं चाहते थे. बाद में बहुत प्रयास के बावजूद प्रीति और अतुल के आंगन में फूल नहीं खिल पाया.

जब डाक्टर्स से चैकअप कराया तो पता चला कि प्रीति की फैलोपियन ट्यूब ब्लौक्ड हैं और इस का कोई इलाज नहीं है. प्रीति रिपोर्ट पढ़ने के बाद रोरो कर बुरा हाल हो गया था. परंतु अतुल ने यह बात अपने कमरे से बाहर नहीं जाने दी थी. वह खुद ही प्रीति को डाक्टर के पास ले कर जाता था. उस ने सब को यह बता दिया था कि इलाज चल रहा है. घर वाले भी यह सुन कर चुप हो गए थे.

जब प्रीति ने यह बात अपनी मम्मी को बताई तो उस की मम्मी ने प्रीति के दिमाग में यह बात डाल दी कि बच्चे के बिना उस का और अतुल का घर में कोई महत्त्व नहीं रहेगा. ऐसा भी हो सकता है कि बच्चे के कारण अतुल का परिवार उस का दूसरा विवाह कर दे. इसलिए अच्छा होगा अतुल अपने हिस्से की प्रौपर्टी अपने और प्रीति के नाम लिखवा ले.

प्रीति जबजब यह बात अतुल से करती तो वह यही बोलता, ‘‘प्रीति, आखिर हमारे बच्चा न होने में और डैडी की प्रौपर्टी के बीच क्या संबंध है?’’

फिर प्रीति की देवरानी रूपा के बेटे का जन्म हुआ. पूरा घर हर्षित हो उठा.

रूपा को जब उस की सास ने चंद्रहार दिया तो प्रीति का मन मायूस हो गया, उसे लगने लगा कि उस की मम्मी ठीक कहती थी.

अब वह रातदिन अतुल से एक ही बात बोलती रहती, ‘‘मैं घर की बड़ी बहू हूं.

मगर मम्मी ने चंद्रहार रूपा को क्यों दिया है?’’

अतुल प्रीति को समझता, ‘‘प्रीति, जब कभी हमारे बच्चा होगा तब मम्मी तुम्हें भी देगी. अगर तुम्हारा मन है तो मैं तुम्हें खुद खरीद कर दे दूंगा.’’

मगर प्रीति को अतुल की कोई भी बात समझ नहीं आती थी. वह मां न बन पाने के कारण हीनभावना का शिकार हो गई थी. बातबात पर अपनी देवरानी रूपा को नीचा दिखाने की कोशिश करती.

कभी प्रीति रूपा के मोटापे पर कटाक्ष करती तो कभी उस के झड़ते बालों पर उठी चिंता जताती.

रूपा मन ही मन प्रीति को अपनी बड़ी बहन ही मानती थी. इसलिए जब अगली बार रूपा मां बनने वाली थी तो उस ने अपनेआप ही अपना दूसरा बच्चा प्रीति को गोद देने के लिए बोल दिया था.

प्रीति और अतुल को जब यह बात पता चली तो वे बेहद खुश हो गए. प्रीति अब रूपा का बहुत ध्यान रखने लगी थी. अतुल का पूरा परिवार बेहद खुश था.

मगर जब प्रीति अपने मायके गई तो उस की मम्मी ने प्रीति के दिमाग में यह बात डाल दी कि यह उस की देवरानी और सास की चाल है.

जब प्रीति अपने मायके से वापस आई तो उस ने बड़े प्यार से रूपा को बोल दिया, ‘‘रूपा, मां से अधिक बच्चे का ध्यान कोई नहीं रख सकता है. अगर मेरे हिस्से में होगा तो मैं भी देरसवेर यह सुख प्राप्त करूंगी, मगर अपने बच्चे को तुम ही पालना.’’

घर मे किसी को प्रीति का यह बदला व्यवहार समझ नहीं आया. मगर किसी ने कुछ नहीं बोला.

जब रूपा ने दूसरे बेटे को जन्म दिया तो प्रीति ने यह जिद पकड़ ली कि अतुल अपनी प्रौपर्टी के लिए बात करे और अगर वह नहीं कर सकता तो वह अपने घर चली जाएगी.

पूरे घर में हंसीखुशी का माहौल था, मगर प्रीति न जाने क्यों उखड़ीउखड़ी थी. उसे लग रहा था कि कुदरत ने उस के साथ नाइंसाफी करी है.

जब रूपा के बेटे का नामकरण संस्कार हुआ तो प्रीति अपने घर चली गई. अतुल ने जब उसे फोन कर के आने के लिए कहा तो बोली, ‘‘मेरा तुम्हारे घर में बहुत अपमान हो चुका है. मैं मां नहीं बन सकती हूं तो क्या बड़ी बहू के सारे हक भी मुझे नहीं मिलेंगे? हर बार बच्चा होने के बाद रूपा को मम्मी कभी चंद्रहार तो कभी कड़े देती है. मेरा क्या?’’

अतुल बोला, ‘‘पगली, मम्मी ने तुम्हारे लिए भी सोने की चेन बनवा रखी है उसे वे तुम्हें नामकरण के दिन ही तो देती.’’

मगर प्रीति को विश्वास नहीं हुआ. प्रीति और उस का परिवार नामकरण में नहीं गए. सारे रिश्तेदारों में खुसरफुसर हो रही थी. अतुल दिल से प्रीति को चाहता था, उसे प्रीति का व्यवहार सम?ा नहीं आ रहा था.

जब नामकरण के पश्चात अतुल और उस के मम्मीपापा प्रीति को लेने के लिए गए तो प्रीति की मम्मी ने खुल कर बोल दिया, ‘‘मेरी बेटी तभी वापस जाएगी जब आप अतुल की प्रौपर्टी उस के नाम कर देंगे.’’

अतुल के पापा बोले, ‘‘देखिए प्रीति हमारे घर की बहू है और मुझे जान से भी अधिक प्यारी है मगर मैं अपने जीतेजी यह नहीं करूंगा.’’

अतुल ने भी कहा, ‘‘मम्मी प्रीति को हम पलकों पर बैठा कर रखेंगे.’’

मगर प्रीति के परिवार के हिसाब से अतुल के परिवार की नीयत में खोट है तभी वे प्रीति के नाम कुछ नहीं कर रहे हैं क्योंकि वे सारी प्रौपर्टी विपुल के बच्चों के नाम करना चाहते हैं.

अतुल और उस के परिवार ने बहुत कोशिश करी मगर प्रीति टस से मस नहीं हुई.

अतुल रोज फोन करता मगर प्रीति फोन नहीं उठाती. प्रीति की मम्मी उस के कान भरती रही, अतुल से बिलकुल बात मत कर, खुद रास्ते पर आ जाएगा.’’

देखते ही देखते 2 माह बीत गए. अतुल भी निराश हो उठा था. उस की तरफ से  प्रयास ढीले हो गए थे. प्रीति ने अपने परिवार के कहने पर अतुल के खिलाफ डिवोर्स का केस कर दिया.

अतुल को जब पेपर मिले तो उस में जो आक्षेप लगा रखे थे, उन्हें पढ़ कर अतुल के पैरों तले की जमीन खिसक गई. प्रीति के वकील ने लिखा हुआ था कि अतुल प्रीति को मां बनने का सुख नहीं दे सकता है इसलिए वह तलाक लेना चाहती है.

जो बात अब तक प्रीति और अतुल के बीच थी वह अब सब के सामने उजागर हो गई थी.

अतुल के मन से प्रीति हमेशा के लिए उतर गई थी. मगर अतुल को प्रीति की मैडिकल रिपोर्ट्स कोर्ट में नहीं दिखाई थी और चुपचाप तलाक के कागजों पर हस्ताक्षर कर दिए थे. प्रीति को जितनी ऐलीमनी चाहिए थी वह भी उसे दे दी थी.

प्रीति को यह सपने में भी भान नहीं था कि अतुल ऐसा कुछ करेगा. उसे पक्का विश्वास था कि अतुल उसके पास आ कर बात करेगा.

प्रीति और अतुल का तलाक हो गया. अतुल ने उस दिन के बाद मुड़ कर प्रीति की तरफ नहीं देखा. उसे समझ आ गया था कि प्रीति बेहद लालची किस्म की लड़की है.

प्रीति ने नौकरी के लिए हाथपैर मारने शुरू कर दिए थे. वहीं अतुल के घर वाले उस का विवाह दोबारा कराने की कोशिश करने लगे थे. प्रीति को जल्द ही एक छोटी सी कंपनी में नौकरी मिल गई. कंपनी में प्रीति ने थोड़े ही समय में अच्छी साख बना ली.

उस की दोस्ती संदीप से हो गई जो वहां ब्रांच मैनेजर था. प्रीति की मम्मी ने प्रीति के

मन में यह बात डाल दी थी कि अब वह संदीप के ऊपर शादी करने का दबाव डाले. प्रीति घुमाफिरा कर संदीप से विवाह के लिए बोलती रहती. मगर प्रीति को तब गहरा धक्का लगा जब संदीप बड़े मजे से अपनी मंगनी कर के वापस आ गया.

प्रीति के गुस्सा करने पर संदीप बेशर्मों की तरह बोला, ‘‘प्रीति, मैं भला क्यों तुम से शादी करूंगा? यह मेरा पहला विवाह है. मैं तुम्हारी तरह तलाकशुदा नहीं हूं.’’

प्रीति बोली, ‘‘जब मेरे साथ घूमतेफिरते थे, तब याद नहीं आया?’’

संदीप बोला, ‘‘उस में तुम्हारा भी फायदा था और वैसे भी तुम से कोई बालबच्चे वाला आदमी ही विवाह कर सकता है.’’

प्रीति उस के बाद वहां खड़ी न रह सकी. घर आ कर वह बहुत रोई. उसे लग रहा था कि उस ने बिना किसी कारण अपने सुखी संसार में आग लगा दी.

प्रीति को मालूम था कि अतुल का परिवार उस का दूसरा विवाह करना चाह रहा है. वह अब अतुल को सोशल साइट्स पर मैसेज करने लगी थी. अधिकतर मैसेज अतुल पढ़ कर छोड़ देता था. प्रीति के लिए अतुल का यह व्यवहार असहनीय था. अब अतुल को मर्फी कौल करने लगी थी. अतुल ने आरंभ में 1-2 बार फोन उठा कर प्रीति को समझाया भी, मगर बाद में प्रीति को लगा कि अतुल ने प्रीति का नंबर ही ब्लौक कर दिया.

प्रीति अब सारा दोष अपनी मम्मी को देने लगी थी. शुरू में तो प्रीति की मम्मी चुप रही पर बाद में उस ने भी पूरा दोषारोपण प्रीति के ऊपर डाल दिया, ‘‘तुम अतुल के साथ रहती थी न कि मैं. अगर अतुल से इतना ही प्यार है तो कोशिश करो, अतुल हो सकता है वापस आ जाए.’’

तभी प्रीति को मालूम चला कि अतुल का दूसरा विवाह होने वाला है. उस की दूसरी पत्नी का नाम शालिनी है. प्रीति शालिनी को देखने के लिए बेहद उत्सुक थी और जब उसे पता चला कि शालिनी देखने में बस सामान्य ही है और उस की रंगत भी गहरी है तो उसे लगा कि मानो उस की मन की मुराद पूरी हो गई. फिर एक बार प्रीति ने शालिनी को अतुल के साथ मार्केट में देख लिया.

अतुल के भव्य व्यक्तित्व के आगे शालिनी कहीं भी नहीं ठहर रही थी. प्रीति खुद आगे अपना परिचय देने लगी. प्रीति को लगा शालिनी उस की खूबसूरती को देख कर हीनभावना से भर उठेगी, मगर ऐसा कुछ नहीं हुआ. शालिनी ने बस सौम्यता से कहा, ‘‘आप के बारे में बहुत कुछ सुना है.’’

प्रीति तिरछी नजरों से अतुल की तरफ देख रही थी. मगर यह देख कर उसे बेहद निराशा हुई जब उस ने देखा कि अतुल की नजरें बस शालिनी पर टिकी हुई हैं.

प्रीति गई तो थी शालिनी को नीचे दिखाने पर खुद ही हीनभावना का शिकार हो कर लौटी.

प्रीति हर संभव कोशिश करती अतुल को अपनी ओर खींचने की मगर उसे कामयाबी नहीं मिली.

अतुल का एक दिन प्रीति के पास फोन आया. उस ने प्रीति को लंच के लिए बुलाया था. प्रीति मन ही मन मुसकरा उठी थी.

जब प्रीति पहुंची तो अतुल पहले से ही वहां बैठा था.

प्रीति के साथ पहले अतुल इधरउधर की बात करता रहा और फिर उस की पसंद का लंच मंगवाया.

प्रीति लंच के बाद बोली, ‘‘अतुल, तुम भी नहीं भूले हो न मुझे अभी तक? फिर जब पत्नी शालिनी जैसी हो तो मैं समझ सकती हूं.’’

अतुल हंसते हुए बोला, ‘‘तुम सही कह रही हो. मेरी पत्नी शालिनी जैसी सच में कोई नहीं है. उसी ने मुझे यहां भेजा है. तुम्हारे रातदिन के मैसेज और कौल्स सबकुछ शालिनी को पता हैं. मेरे से अलग होने का फैसला तुम्हारा था. मैं आगे बढ़ गया हूं प्रीति, जल्द ही शालिनी मां बनने वाली है. मैं नहीं चाहता कि मेरी पत्नी इस हालत में कोई स्ट्रैस ले.’’

प्रीति धीमे से बोली, ‘‘मेरा क्या अतुल?’’

‘‘आगे बढ़ो और जिंदगी के माने समझ. अपने फैसले खुद करो, किसी और के एडवाइस पर अपनी जिंदगी के फैसले नहीं लेते हैं. अपनी जिंदगी को अपने चश्मे से देखो, किसी और के चश्मे से देखदेख कर ही तुम आज इस मोड़ पर खड़ी हो.’’

अतुल को जाते हुए देख कर प्रीति को ऐसा लग रहा था कि शायद अब जिंदगी को अपने नजरिए के चश्मे से देखने का समय आ गया है.

Rashmika Mandanna ने 6 घंटे तक ‘कचरे के ढेर’ में लगातार कीं शूटिंग

Rashmika Mandanna : साउथ एक्ट्रेस रश्मिका मंदना अपने सशक्त अभिनय और कड़ी मेहनत के चलते साउथ के साथ साथ बौलीवुड में भी धीरेधीरे अपनी खास जगह बना रही है , जिसके चलते नेशनल क्रश कहलाने वाली रश्मिका ने सलमान खान के साथ सिकंदर, रणबीर कपूर के साथ एनिमल, और विक्की कौशल के साथ छावा जैसी फिल्मों में काम करके कई बॉलीवुड हीरोइन को पीछे छोड़ दिया है. शोहरत की ऊंचाइयों पर पहुंचने वाली रश्मिका पर्सनली बहुत ही डाउन टू अर्थ है और पूरी तरह डायरेक्टर की एक्टर है. डायरेक्टर फिल्म के लिए उन्हें जो भी कुछ करने को कहता है वह कभी इंकार नहीं करती. इसी के चलते हाल ही में रश्मिका ने अपनी आने वाली फिल्म कुबेर से जुड़ा एक किस्सा शेयर किया.

धनुष और नागार्जुन स्टारर फिल्म में काम करने के अपने अनुभव को साझा करते हुए रश्मिका ने बताया कि मैं धनुष और शेखर सर के साथ काम करना चाहती थी इसलिए मैंने यह फिल्म कुबेर साइन की, मैंने ऐसा रोल पहले कभी नहीं किया था इसलिए मैं पूरी तरह से डायरेक्टर के भरोसे थी इस फिल्म में सबसे चैलेंजिंग मोमेंट मेरे लिए वह था जब मैं और धनुष 6 घंटे तक कचरे के ढेर में शूटिंग कर रहे थे मेरे लिए ऐसा काम करना बहुत ही चैलेंजिंग और अपनी जड़ों से जोड़ने जैसा था.

मैं इसे आई ओपनर भी कह सकती हूं इस फिल्म की शूटिंग के दौरान मुझे काफी सारे अलगअलग अनुभव हुए जैसे की डायरेक्टर को रियल लोकेशंस पर काम करने की आदत है, सो जब हम शॉट दे रहे थे तब डायरेक्टर हमारे पीछे कैमरा लेकर भागते हुए शॉर्ट ले रहे थे, हम उस वक्त मॉनिटर तक नहीं देख पा रहे थे लेकिन मुझे पूरा यकीन था कि यह वाला शॉर्ट मास्टर पीस होगा, सच बात तो यह है धनुष और शेखर सर के साथ काम करना आसान नहीं है क्योंकि यह दोनों हाई लेवल के टैलेंटेड और मेहनती है. इनके साथ अगर मैं उनके 10% जितना भी मेहनत कर लूं तो मेरे लिए बड़ी बात होगी मैं अपने आप को खुशनसीब समझती हूं जो मुझे धनुष और शेखर सर जैसे मेहनती और टैलेंटेड लोगों के साथ काम करने का मौका मिला. क्योंकि बतौर एक्ट्रेस मुझे इनसे बहुत कुछ सीखने को मिला है.

62 साल की YRKKH फेम दादी सा फिटनेस और खूबसूरती में देती हैं सबको टक्कर

Anita Raj : अपने जमाने की प्रसिद्ध हीरोइन अनीता राज जो अपने अभिनय के साथसाथ खूबसूरती को लेकर भी हमेशा चर्चा में रहती थी. अनीता राज ने अपने अभिनय करियर में कई अच्छी साथ फिल्में जैसे जमीन आसमान, गुलामी, नौकर बीवी का, जरा सी जिंदगी, आदि कई बेहतरीन फिल्मों में काम करने के बाद उन्होंने फिल्मों से ब्रेक ले लिया था लेकिन बाद में छोटे पर्दे से एक बार फिर शुरुआत करने वाली अनीता राज ने टीवी सीरियल छोटी सरदारनी और यह रिश्ता क्या कहलाता है में काम करके भी फिल्मों की तरह छोटे पर्दे पर भी अपनी अलग पहचान बनाई.

इसके अलावा 62 वर्षीय अनीता राज अपने अभिनय करियर को लेकर जितना सीरियस है, उतना ही अपनी हेल्थ और फिटनेस को लेकर भी अनीता पूरी तरह सतर्क है, उनको फिटनेस फ्रीक भी कहा जा सकता है, क्योंकि चाहे जो हो जाए वह अपना जिम और एक्सरसाइज मिस नहीं करती और अपना काफी समय वर्कआउट करते हुए जिम में बिताती है.

ये रिश्ता क्या कहलाता है की दादी सा अर्थात अनीता राज फिटनेस के मामले में सबको फ़ैल करती हैं, उनके बायसेप्स देख उनके फैंस भी चौक गए ,अनीता राज इस उम्र में पुशअप और शोल्डर के लिए ज्यादा वेट उठाती है जिसकी वजह से उनके बाइसेप्स और मसल्स काफी मजबूत और शेप में है, स्क्रीन पर भले ही अनीता राज सीधी साधी सादगी से भरी नजर आती हो, लेकिन असल जिंदगी में वह बॉडीबिल्डर है.

उनके शोल्डर और बायसेप्स काफी अच्छे बने हुए हैं. गौरतलब है इस उम्र में बहुत कम लोगों को फिटनेस को लेकर सतर्क और जागरूक देखा जाता है लेकिन अनीता राज की फिटनेस और एक्सरसाइज के प्रति जागरूकता ऐसे लोगों के लिए सबक है जो उम्र का तकाजा देकर फिटनेस पर ध्यान नहीं देते हैं ,और बीमारी से जूझते रहते है. अनीता राज के अनुसार वह अपने शरीर को मंदिर मानती है और पूरी तरह उसकी देखभाल करती है. क्योंकि अगर तन स्वस्थ होगा तो मन अपने आप ही खुश और स्वस्थ होगा.

आउटडोर Mobile Photography में बननाा चाहते हैं ऐक्सपर्ट, तो अपनाएं ये टिप्स

Mobile Photography : ज्यादातर लोगों का मानना है कि अच्छी फोटोग्राफी के लिए महंगा मोबाइल फोन होना जरूरी है, लेकिन सचाई यह है कि कुछ आसान टिप्स और बेहतर तकनीक अपना कर आप अपने बजट में भी स्मार्टफोन से शानदार फोटो क्लिक कर सकते हैं. महंगे कैमरे, सेंसर या ढेर सारे लैंस की हमेशा जरूरत नहीं होती, फोटो खींचने के दौरान क्रिएटिविटी और सही तकनीक की जरूरत होती है और सस्ते फोन से भी अच्छी फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी की जा सकती है.

इस के लिए सबसे ज्यादा जरूरी है प्राकृतिक रोशनी. सुबह या शाम की गुलाबी लालिमा से भरी पर्याप्त रोशनी खासतौर पर उगता सूरज और ढलता सूरज के दौरान जो लालिमा भरी रोशनी होती है उस में फोटो खींचने का कुछ अलग ही मजा होता है क्योंकि इस दौरान खींची गई फोटो बहुत सुंदर आती है. इस के अलावा कई और तकनीकी पक्ष है जिस की बदौलत आउटडोर फोटोग्राफी अच्छे तरीके से की जा सकती है. पेश हैं, इसी सिलसिले पर एक नजर :

कैमरा ऐप की सैटिंग्स को समझना जरूरी

कभीकभी हमारे फोन अपनेआप ऐक्सपोजर ऐडजस्ट कर लेते हैं और सब्जैक्ट या लैंडस्केप बहुत ज्यादा ब्राइट या बहुत ज्यादा डार्क दिखाई देता है. तसवीर लेने से ठीक पहले ऐक्स्पोजर को ऐडजस्ट करना न भूलें. स्क्रीन पर अपनी उंगली को ऊपर या नीचे टैप करने और खींचने से आमतौर पर ऐक्स्पोजर ऐडजस्ट हो जाता है. इस के अलावा पौपसोकैट का उपयोग कर के आप चलतेफिरते अपने फोन को संतुलित रख सकते हैं.

अगर आप फोटो में शामिल होना चाहते हैं तो रिमोट के साथ एक ट्राइपौड आप को अपनी बेहतरीन तसवीर लेने में मदद करेगा.

कैमरा ऐंगल को परफैक्ट करें

आप का फोन का सरल झुकाव पूरी फोटो को नया दृष्टिकोण दे सकता है। यह प्रकाश संबंधी समस्याओं को सही कर सकता है और बेहतर दिशा प्राप्त कर सकता है। अलगअलग ऐंगल से फोटो खींचने के लिए कुछ अधिक समय लेने के लिए हिचकिचाएं नहीं. आउटडोर फोटोग्राफी में प्रैक्टिस के लिए कोई खास विषय चुनें, जैसे अगर आप को सनसेट के समय फोटो खींचना पसंद है तो अलगअलग जगह से अलगअलग फोटो लेने और कैप्चर करने के बाद उस को ऐडिट करने की प्रैक्टिस करें.

लोकेशन सोर्स के लिए हैशटैग का उपयोग करें

फोटो खींचना भी एक कला है। फोटो खींचने के लिए नईनई तरकीब सीखने के लिए, नई लोकेशन, नए दोस्त बनाने के लिए सोशल मीडिया पर हैशटैग (#) के जरीए खोजने की कोशिश करें। अधिकांश क्षेत्रों में फोटो खींचने के लोकेशन तकनीकी और कई सारी जानकारी के लिए हैशटैग का उपयोग कर के मोबाइल फोटो फोटोग्राफी को और बेहतर बनाते हैं।

इस के अलावा फोटो खींचते समय बर्श्ट मोड का उपयोग जरूर करें। यह करीबन हर मोबाइल में होता है जिस के जरीए एकसाथ कई फोटो खींच सकते हैं।

इस मोड से तेजी से चलने वाले विषयों को जैसे तितलियां, पशुपक्षी, गिलहरियां, तेजी से एकसाथ कैप्चर किया जा सकता है और बाद में स्क्रोल कर के आप अपनी पसंदीदा फोटो सिलैक्ट कर सकते हैं.

इस के अलावा जो चीजें फोटो में नहीं चाहिए उसे अपनी खींची हुई फोटो को क्रौप कर के हटा भी सकते हैं.

जब आप ऐडिटिंग करें तो इंस्टाग्राम फिल्टर के बजाय मोबाइल में मौजूद ऐडिट ऐप्स का इस्तेमाल करें जैसे स्नैपशीट और लाइटरूम आदि.

मोबाइल फोटोग्राफी के दौरान दूरी के साथ अपने फोन के जरिए खेलें

कई बार आप ऐसी जगह पर चले जाते हैं जहां पर खराब लाइट और खराब बैकग्राउंड होने की वजह से मोबाइल फोटोग्राफी उबाऊ लगने लगती है। इस दौरान अपने सब्जैक्ट पर फोकस करें जैसे खूबसूरत फूल, जंगली जानवर, अन्य छोटे वन्यजीव आदि। सुरक्षित दूरी के साथ उस सब्जैक्ट को फ्रेम में लेने की कोशिश करें। शौर्ट्स के दौरान गतिशील ऐक्शन शौट्स के साथ मध्यम दूरी तक पीछे जाएं ताकि आप का सब्जैक्ट फ्रेम में पूरी तरह से आ सके.

अगर आप अधिक आकर्षक शौर्ट लेना चाहते हैं तो अपने विषय को आंखों के स्तर से शूट करें और ज्यादा प्रभावशाली अनुभव के लिए थोड़ा नीचे से शूट करने का प्रयास करें.

अपने विषय से मनचाही अभिव्यक्ति पाने के लिए वीडियोग्राफी करते समय चेहरे पर मुसकान रखें। शूटिंग के दौरान मजाक करते रहें या बात करते रहेंगे तो वीडियोग्राफी और सुंदर होने के साथसाथ आकर्षक भी लगेगी।

अगर आप अकेले ही फोटो खींच रहे हैं और आप खुद भी फोटो में खूबसूरती से शामिल होना चाहते हैं तो फोटो खींचते समय टाइमर का उपयोग कर सकते हैं. इस के बाद आप को अपने द्वारा खींची हुई फोटो में शामिल होने के लिए समय मिल जाएगा.

फोटोग्राफी करते समय आप यही कोशिश करें कि फोटो रौ फौर्मेट में शूट करें ताकि जब आप पोस्ट प्रोडक्शन में फोटो ऐडिट करें तो वहां पर आप को लचीलापन मिल सकें.

आउटडोर फोटो शूट के दौरान पहले ही मोबाइल कैमरे की सैटिंग अच्छे से जान लें। डिजिटल जूम का प्रयोग कम से कम करें ताकि तसवीरों की क्वालिटी बरकरार रहे। ज्यादा जूम करने से फोटो की क्वालिटी खराब हो जाती है.

ग्रीड लैंस का प्रयोग करें

आउटडोर फोटोग्राफी के दौरान मोबाइल में आसान सा फीचर जो सब्जैक्ट को सही जगह पर रखने में मदद करता है। इस के बाद आप की तसवीर संतुलित और खूबसूरत दिखाई देती है। ग्रिड लैंस को औन करने के लिए अपने कैमरा सैटिंग में जाएं। क्रिएट लैंस को इनेबल करें। इस के बाद आप की फोटो अच्छी तरह से कैप्चर हो पाएगी.

स्मार्टफोन में अलगअलग तरह के कैमरा मोड्स होते हैं जो फोटो की क्वालिटी को बेहतर बनाते हैं। अलगअलग प्राकृतिक दृश्यों को कैप्चर करने के लिए अलगअलग मोड्स का इस्तेमाल किया जाता है, जैसे पोट्रेट मौड का इस्तेमाल बैकग्राउंड ब्लर करने के लिए किया जाता है. नाइट मौड का इस्तेमाल रात में या कम रोशनी में बिना फ्लैश के फोटो खींचने के लिए किया जाता है। पैनोरमा मोड का इस्तेमाल बड़ेबड़े नजारे या ग्रुप फोटो के लिए किया जाता है। मेंक्रो मोड का उपयोग क्लोजअप शौट में छोटीछोटी डिटेल्स को कैप्चर करने के लिए करते हैं.

निशुल्क और कम लागत वाले ऐडिटिंग ऐप्स के जरीए फोटो और वीडियो को और ज्यादा बेहतर बनाया जा सकता है.

इसी तरह कई सारी बातों को ध्यान में रख कर कम बजट वाले सस्ते मोबाइल से आउटडोर में भी आप खूबसूरत फोटोग्राफी का मजा ले सकते हैं.

Married Life : नई मैरिड लाइफ की प्रौब्लम को लेकर सुझाव दें?

New Married Life :  अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक पढ़ें

सवाल-

मैं 24 वर्षीय विवाहिता हूं. विवाह को 2 महीने हुए हैं. सुहागरात को मुझे सहवास के दौरान थोड़ा दर्द तो हुआ पर रक्तस्राव नहीं हुआ. मैं ने कभी किसी से संबंध बनाना तो दूर किसी लड़के से मित्रता तक नहीं की. फिर रक्तस्राव क्यों नहीं हुआ? पति ने तो कुछ नहीं कहा पर मुझे स्वयं हैरत हो रही है कि ऐसा कैसे हो सकता है. मेरी 2 सहेलियों का मुझ से पहले विवाह हुआ था. दोनों ने ही बताया था कि प्रथम सहवास के दौरान उन्हें रक्तस्राव हुआ था. फिर मेरे साथ ऐसा क्यों हुआ?

जवाब-

प्रथम समागम के दौरान आप को रक्तस्राव नहीं हुआ तो यह कोई अनहोनी घटना नहीं है, जिस से आप इतनी चिंतित हैं. कई बार दौड़नेभागने, उछलनेकूदने, साइकिल चलाने या गिरने से कौमार्य झिल्ली फट जाती है. हो सकता है आप के साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ हो. अत: इस प्रसंग को भुला दें. आप की नईनई शादी हुई है. अत: बेकार की चिंता छोड़ कर नववैवाहिक जीवन का भरपूर आनंद उठाएं.

ये भी पढ़ें-

दिल्ली के दीपक का मानना है कि शारीरिक संबंध तभी बनाया जाए जब इस की भूख हो. भावना और प्यार की इन की सोच में कहीं जगह नहीं है.

ऐसा अकसर देखने में आता है कि पतिपत्नी सहवास के दौरान एकदूसरे की इच्छा और भावना को नहीं समझते. वे बस एक खानापूर्ति करते हैं. लेकिन वे यह बात भूल जाते हैं कि खानापूर्ति से सैक्सुअल लाइफ तो प्रभावित होती ही है, पतिपत्नी के संबंधों की गरमाहट भी धीरेधीरे कम होती जाती है. ऐसा न हो इस के लिए प्यार और भावनाओं को नजरअंदाज न करें. अपने दांपत्य जीवन में गरमाहट को बनाए रखने के लिए आगे बताए जा रहे टिप्स को जरूर आजमाएं.

1. पत्नी की इच्छाओं को समझें

सागरपुर में रहने वाली शीला की अकसर पति के साथ कहासुनी हो जाती है. शीला घर के कामकाज, बच्चों की देखभाल वगैरह से अकसर थक जाती है, लेकिन औफिस से आने के बाद शीला के पति देवेंद्र उसे सहवास के लिए तैयार किए बिना अकसर यौन संबंध बनाते हैं. वे यह नहीं देखते कि पत्नी का मन सहवास के लिए तैयार है या नहीं.

सैक्सोलौजिस्ट डा. कुंदरा के मुताबिक, ‘‘महिलाओं को अकसर इस बात की शिकायत रहती है कि पति उन की इच्छाओं को बिना समझे सहवास करने लगते हैं. लेकिन ऐसा कर के वे केवल खुद की इच्छापूर्ति करते हैं. पत्नी और्गेज्म तक नहीं पहुंच पाती. आगे चल कर इसी बात को ले कर आपसी संबंधों में कड़वाहट पैदा होती है.

‘‘पति को चाहिए कि सैक्स करने से पहले पत्नी की इच्छा को जाने. उसे सैक्स के लिए तैयार करे. तभी संबंधों में गरमाहट बरकरार रहती है.’’

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें