एकांत कमजोर पल- भाग 3

बड़ी बेगम ने भूमिका बांधी, ‘‘जब तुम्हारे अब्बू दूसरी बीवी ले आए थे तो मैं भी उन्हें छोड़ना चाहती थी पर सामने तुम दोनों बच्चे थे.’’

‘‘आप की बात अलग थी मैं खुद को और अपनी बच्ची को संभाल सकती हूं. उस की गलती की सजा उसे मिलना ही चाहिए, सनोबर बोली.’’

‘‘उस की गलती की सजा उस के साथसाथ तुम्हारी बेटी को भी मिलेगी या तो उस का बाप छिनेगा या मां और अगर तुम दोनों ने दूसरी शादी कर ली तो इस का क्या होगा?’’

‘‘अम्मी एक शादी से दिल नहीं भरा जो दूसरी करूंगी? रह गया पिता तो ऐसे पिता के होने से ना होना भला,’’ सनोबर के मन की सारी कड़वाहट होंठों पर आ गई.

बड़ी बेगम जानती थीं इस का गुस्सा निकलना अच्छा है. उन्होंने बहस नहीं की.

बोलीं, ‘‘ठीक है तुम को लगता है तुम अकेली ही अच्छी परवरिश कर सकती हो तो ठीक है, पर मैं चाहती हूं कि तुम तलाक की अर्जी 6 महीने बाद दो. कुछ वक्त दो फिर जो तुम्हारा फैसला होगा मैं मानूंगी.’’

‘‘नो वे अम्मी मैं 6 दिन भी न दूं. जबजब मुझे याद आता है साहिल और बाई… घिन आती है उस के नाम से. कोई इतना गिर सकता है?’’

बड़ी बेगम ने दुनिया देखी थी. अपने पति को बहुतों के साथ देखा था. उन्होंने अपने अनुभव का निचोड़ बताया, ‘‘वह एक वक्ती हरकत थी. उस का कोई अफेयर नहीं था. जब एक औरत और एक मर्द अकेले हों तो दोनों के बीच तनहाई में एक कमजोर पल आ सकता है.’’

मैं भी तो औफिस में अकेली मर्दों के साथ घंटों काम करती हूं. मेरे साथ तो कभी ऐसा नहीं हुआ. आत्मसंयम और मर्यादा ही इंसान होने की पहचान हैं वरना जानवर और आदमी में क्या फर्क है?’’

‘‘मैं ने अब तक तुम से कुछ नहीं कहा पर बहुत सोच कर तुम से समय देने को कह रही हूं. आगे तुम्हारी जो मरजी.’’

‘‘ठीक है आप कहतीं हैं तो मान लेती हूं पर मेरे फैसले पर कोई असर नहीं पड़ेगा.’’

सनोबर यह सोच कर मान गई कि उसे भी तो कुछ काम निबटाने हैं. प्रौपर्टी के पेपर अपने नाम करवाना और सेविंग्स में नौमिनी बदलना आदि. फिर अभी औफिस का भी प्रैशर है. रात को रोज की तरह साहिल ने फोन किया तो सनोबर ने उठा लिया.

साहिल खुशी और अचंभे के मिलेजुले स्वर में बोला, ‘‘सनोबर मुझे माफ कर दो, वापस आ जाओ.’’

सनोबर ने तटस्थ स्वर में कहा, ‘‘मुझे तुम से मिलना है.’’

साहिल बोला, ‘‘हां, हां… जब कहो.’’

सनोबर बोली, ‘‘कल औफिस के बाद घर पर.’’ और फोन रख दिया.

औफिस के बाद सनोबर घर पहुंची. साहिल उस की प्रतिक्षा कर रहा था. घर भी उस ने कुछ ठीक किया था. साहिल ने सनोबर का हाथ पकड़ना चाहा तो उस ने झिड़क दिया और दूर बैठ गई.

‘‘साहिल मैं कोई तमाशा नहीं करना चाहती. शांति से सब तय करना चाहती हूं. मेरातुम्हारा जौइंट अकाउंट बंद करना है. इंश्योरैंस पौलिसीज में नौमिनी हटाना है. इस फ्लैट में तुम्हारा जो पैसा लगा वह तुम ले लो. मैं इसे अपने नाम करवाना चाहती हूं. मुझे तुम से कोई पैसा नहीं चाहिए, मैं काजी के यहां खुला (औरत की ओर से निकाह तोड़ना) की अर्जी देने जा रही हूं.’’

थोड़ी देर के लिए साहिल चुप रहा फिर बोला, ‘‘सनोबर, मेरा जो कुछ है सब तुम्हारा और हमारी बेटी का है. तुम सब ले लो मुझे मेरी सनोबर दे दो. मुझे एक बार माफ कर दो. मेरी गलती की इतनी बड़ी सजा न दो. अगर तुम मेरी जिंदगी में नहीं तो मैं यह जिंदगी ही खत्म कर दूंगा,’’ सनोबर जानती थी साहिल भावुक है पर इतना ज्यादा है यह नहीं जानती थी. वह उठ कर चली गई.

अब बस औफिस जाने और मन लगा कर काम करने में और बेटी के साथ उस का समय बीतने लगा. बड़ी बेगम के कहने पर और बेटी की जिद पर वह राजी हुई कि साहिल सप्ताह में एक बार बेटी से मिल सकता है. उसे बाहर ले जा सकता है. वह नहीं चाहती थी कि उस की बेटी को उस के पिता की असलियत पता चले. इस आयु में यदि उसे पिता के घिनौने कारनामे का पता चलेगा तो वह जाने क्या प्रतिक्रिया करे. साहिल सप्ताह में 2 घंटे के लिए बेटी को घुमाने ले जाता, गिफ्ट दिलाता और सनोबर की पसंद का भी कुछ बेटी के साथ भेजता पर सनोबर आंख उठा कर भी न देखती.

तभी सनोबर की पदोन्नति हुई साथ ही मुख्यालय में तबादला भी. सनोबर को न चाह कर भी दिल्ली जाना पड़ा. बेटी को नानी के पास छोड़ना पड़ा. स्कूल का सैशन समाप्त होने में अभी 2 महीने थे. बड़ी बेगम ने आश्वासन दिया, ‘‘मैं संभाल लूंगी तुम जाओ मगर हर वीकैंड पर आ जाना.’’

मुख्यालय में उस के कुछ पूर्व साथी भी थे, सब ने स्वागत किया. एक प्रोजैक्ट में उस को समीर के साथ रखा गया. समीर भी सनोबर का पुराना साथी था और उस पर फिदा भी था.

समीर और सनोबर साथसाथ काम करते हुए काफी समय एकदूसरे के साथ बिताते. सनोबर ने साहिल और अपने बारे में समीर को नहीं बताया. जिस प्रोजैकट पर दोनों काम कर रहे थे उस में क्लाइंट की लोकेशन पर भी जाना होता था. दोनों साथसाथ जाते, होटल में रहते और काम पूरा कर के आते. घंटों अकेले एकसाथ काम करते. आज भी दोनों सुबह की फ्लाइट से गए थे. दिन भर काम कर के रात को होटल पहुंचे. समीर बोला, ‘‘फ्रैश हो लो फिर खाना खाने नीचे डाइनिंगरूम में चलते हैं.’’

सनोबर बोली, ‘‘तुम जाओ. मैं अपने रूम में ही कुछ मंगवा लूंगी.’’

समीर बोला, ‘‘ठीक है मेरा भी कुछ और्डर कर देना, साथ ही खा लेंगे.’’

सनोबर को समीर चाहता भी था, उस का आदर भी करता था. सनोबर के हैड औफिस आने के बाद समीर ने कभी अपने पुराने प्यार को प्रकट नहीं किया. वह अपनी पत्नी और बच्चों में खुश था.

समीर सनोबर के कमरे में आ गया. खाना आने की प्रतीक्षा में दोनों काम से जुड़ी बातें ही करते रहे. समीर की पत्नी का फोन भी आया. समीर की और उस की पत्नी की बातों से लग रहा था दोनों सुखी व संतुष्ट हैं.

समीर ने साहिल के बारे में पूछा तो सनोबर बात टाल गई. फिर खाना आया, दोनों खाना खातेखाते पुराने दिनों की बातें करने लगे.

समीर ने सनोबर से पूछा, ‘‘अच्छा एक बात बताओ यदि तुम साहिल से शादी न करतीं तो क्या मुझ से शादी करतीं?’’

सनोबर झिझकी फिर बोली, ‘‘शायद हां.’’

समीर ने मजाकिया अंदाज में कहा, ‘‘अरे पहले बताती तो मैं उस को गोली मार देता,’’ बात आईगई हो गई. दोनों ने खाना खाया फिर समीर अपने कमरे में चला गया.

सनोबर सोचने लगी समीर अच्छा दोस्त हैं. फिर जाने क्यों साहिल याद आ गया. वह काफी थकी थी. कुछ ही देर में सो गई. अगले दिन भी दोनों बहुत व्यस्त रहे.

‘‘आज भी खाना कमरे में मंगवाते हैं ठीक है?’’ समीर ने पूछा तो सनोबर बोली, ‘‘हां, ठीक है.’’

फिर समीर फ्रैश हो कर सनोबर के कमरे में आ गया. खाना और्डर कर के दोनों बातें करने लगे. सनोबर को खाते समय खाना सरक गया वह खांसने लगी. समीर ने उसे जल्दी से पानी निकाल कर दिया. पानी पी कर ठीक हुई. खाने के बाद समीर ने चाय बना कर सनोबर की दी तो दोनों का हाथ एकदूसरे से टकराया. दोनों चुपचाप धीरेधीरे चाय पीने लगे.

एक अजीब सा सन्नाटा छा गया. दोनों पासपास बैठे थे. एक अजीब सी चाह सनोबर ने अपने मन में महसूस की जैसे वह समीर के सीने से लग के रोना चाहती हो. फिर उस ने देखा समीर की निगाहें भी उस के ऊपर टिकी हैं. शायद वह भी सनोबर को अपनी बांहों में जकड़ना चाहता है. तभी उसे लगा कहीं यही वह एकांत कमजोर पल तो नहीं है जिस के बारे में अम्मी कह रही थी. वह संभल गई और उठ कर इधरउधर कुछ रखनेउठाने लगी. समीर से बोली, ‘‘अच्छा, कल मिलते हैं.’’

समीर भी उठते हुए बोला, ‘‘हां देर हो गई, गुड नाईट.’’

अगले दिन दोनों वापस आ गए. सनोबर अपनी अम्मी के पास चली गई. अम्मी उसे बताने लगीं कि उस की बेटी खाने में नखरा करती है. साहिल बेटी का बहुत ध्यान रखता है. अपने साथ ले जाता है, बराबर फोन करता है. अम्मी साहिल की प्रशंसा किए जा रही थीं.

सनोबर ने साहिल को फोन किया, ‘‘मैं तुम से मिलना चाहती हूं अभी.’’ वह साहिल से मिलने चल पड़ी. साहिल पलकें बिछाए उस की राह ताक रहा था. घर लगता था साहिल ने ही साफ किया था. बैडरूम पर नजर गई तो बदलाबदला लग रहा था. साहिल बहुत प्यार से बोला, ‘‘अब तो वापस आ जाओ, मुझे माफ कर दो.’’

सनोबर एकांत कमजोर पल क्या होता है यह जान चुकी थी. उस ने साहिल को माफ कर दिया. साहिल ने सनोबर का हाथ पकड़ा और दोनों एकदूसरे के बहुत पास आ गए.

भारत में दलितों के प्रति भेदभाव

अमेरिका के एक शहर सीएटल में एक भारतीय मूल की नगर पार्षद की मेहनत से जाति के नाम पर भेदभाव को धर्म, रंग, रेस, सैक्स, शिक्षा, पैसे के साथ जोड़ दिया गया है. हालांकि अमेरिका में भारतीय मूल के लोग ही कम हैं और सिएटल में तो और भी कम पर इस से भी भारतीय मूल के ऊंची जातियों के भारतीय बहुत खफा हैं.

भारतीय मूल के ऊंची जातियों वाले बड़ी कंपनियों में अक्सर दिखते हैं. तमिल ब्राह्मïणों की एक बड़ी लौवी वहां टैक कंपनियों में है जहां रटतुपीरों की बहुत जरूरत होती है और ब्राह्मïणों के मंत्रों की याद रखने की सदियों की आदत है. इन्होंने इस सिएटल के कानून को भारत और भारतीयता के खिलाफ होने की जंग छेड़ी हुई है.

भारत सरकार दलितों के प्रति भेदभाव को हमेशा से छिपाती रही है पर असल में हमारी समस्या वही नहीं है, हमारी एक बड़ी समस्या सवर्ण औरतों के प्रति देश और विदेश में हो रहे भेदभाव है. सती प्रथा क्या थी. सती महिला क्या है. दहेज प्रथा क्या है. भोगलिक होने का दोष क्या है. 16 शुक्रवारों के व्रत अच्छे पति को पाने के लिए क्या हैं. करवाचौथ क्या है. विधवाओं की मांगलिक कामों में अलग रखना क्या है. यह सवर्ण औरतों के साथ होने वाला भेदभाव है जो आज भी औरतें सह रही हैं. सासससुर की सेवा, पति का आदरसम्मान करना, कामकाजी हैं तो सारा वेतन पति के पास में रख देना, केवल पत्नी ही रसोई में जाए, यह सोचना, ये सब स्वर्ण औरतों के प्रति भेदभाव हैं.

जब औरतों के नाम पर जाति व्यवस्था आज खुलेआम पनप रही है तो देशभर में फैली हुई जाति व्यवस्था का एक्सपोर्ट नहीं हुआ होगा. यह कैसा तर्क है. हर भारतीय जब एयरक्राफ्ट में बैठना ही उस के सिर पर एक अदृश्य गठरी होती है जिस में अंधविश्वास, रीतिरिवाज, पूजापाठ, दानपुण्य के साथ जातिगत अहम अहंकार या जातिगत दयनीयता साथ होती है. अमेरिका में भारतीय मजदूर कम गए हैं पर जो गए हैं वे ऊंची जातियों के शिक्षिकों के साथ उठतेबैठते नहीं हैं. उन के घर मोहल्ले अलगथलक हैं.

अमेरिका में रह कर कुछ बदलाव आया है पर यह तो भारत के शहरों में भी हुआ है पर जोरजबरदस्ती, सरकारी फ्लैटों में हर जाति के लोगों को अगलबगल रहना पड़ता है पर जल्दी ही औरतों का लेनदेन जाति के अनुसार हो जाता है. यही आदत औरत होने की जाति व्यवस्था में बदल जाती है. लगभग सभी ग्रंथों ने औरतों को निम्य स्तर दिया है तो भारतीय धर्म ग्रंथ क्यों पीछे रहते. औरतों की इस देश में जब बात होती है तो वह दलितों की औरतों की क्या, ओबीसी की औरतों की कम, स्वर्ण औरतों की ज्यादा होती है कि आज भी वे अत्याचार व अत्याचार घरों की 4 दीवारो में सह रही हैं. अफसोस यह है कि देश की पढ़ीलिखी, सक्षम, एक्टीविस्ट औरतें भी इस जातिगत व्यवस्था पर चुप हैं. पितृ….समाज का अर्थ यही है कि औरत जाति को दबा कर रखा जाए. तेजाब फैकने की घटनाएं हो या भ्रूण हत्या की या दहेज हत्या की, यह ङ्क्षहदू स्वर्ण औरतों के साथ ज्यादा होता है जहां तकनीक भी मालूम है और जरूरत भी.

किट्टी पाॢटयां और लंबे घंटों या दिनों चलने वाले धाॢमक अनुष्ठïान एक तरह से सवर्ण ङ्क्षहदू औरतों को उलझाए रखने के लिए गढ़े गए हैं ताकि वे इन में बिजी रहें. घरों में ओबीसी जाति की मेड्र्स होने से जो औरतें खाली हो गई उन्हें काम पर जाने की छूट कम दी गई, उधरउधर फंसा दिया गया. बच्चों को, घर को, बूढ़े होते मांबाप को कौन संभालेगा कह कर सवर्ण औरतों पर जाति व्यवस्था को सीखा पाठ थोपा गया है. पहले वहीं सती होती थीं भी या विधवाओं के शहरों वृंदावन या काशी में झोंक दी जाती थीं. आज यह मानसिकता दूसरे रूप में पनप रही है. यह कम दिखे पर दिलों पर उतनी ही गहरी चोट करती है जितनी अमेरिका के दलितों के दिल पर जिन्होंने यह कानून बनवाया है.

फ्रूट फेस पैक से पाएं नैचुरल ग्लो

ब्यूटी पार्लर का कैमिकल्स वाला ट्रीटमैंट केवल बाहरी निखार दे सकता है और कभीकभी यह त्वचा को नुकसान भी पहुंचा सकता है, जबकि नैचुरल उपचार त्वचा को अंदर से निखार कर उसे मुलायम और जवां बनाता है. खिलीखिली और नैचुरल ग्लो वाली त्वचा के लिए घर पर फलों से बने ये फेस पैक आजमाएं.

केले से बना पैक:

केला ऐंटीऔक्सीडैंट से भरपूर फल है. इस से बना पैक त्वचा की खुश्की दूर कर उसे मुलायम बनाता है. इस का पैक बनाने के लिए 1 पके केले को मसल लें. फिर उस में शहद और औलिव औयल मिला कर चेहरे पर लगाएं. 10 मिनट लगा रहने के बाद चेहरे को धो लें.

पपीते से बना पैक:

पपीता ऐंटीऔक्सीडैंट, फ्लावोनौइड्स और मिनरल्स से भरपूर फल है. यह नैचुरल ऐंटीएजिंग है. इस का पैक बनाने के लिए इस का गूदा निकाल कर उस में शहद, नीबू का रस और मुलतानी मिट्टी मिला कर चेहरे पर लगाएं. यह पैक त्वचा को नमी तो देगा ही, साथ ही डैड स्किन हटा कर त्वचा की भीतरी परत को भी स्मूद बनाएगा.

स्ट्राबैरी से बना पैक:

इस से बना पैक त्वचा के सूर्य के संपर्क में आने पर हुई परेशानी को दूर करेगा. इस का पैक बनाने के लिए इस का रस निकाल कर उस में योगर्ट मिला कर चेहरे पर लगाएं. यह पैक त्वचा को प्राकृतिक निखार देता है.

तरबूज से बना पैक:

तरबूज पानी से भरपूर फल होने के कारण त्वचा को अंदरूनी नमी दे उस की खुश्की दूर करता है. इस का पैक बनाने के लिए इस का रस निकाल कर इस में योगर्ट और मिल्क पाउडर मिला कर चेहरे पर लगाएं. 15 मिनट लगाए रखने के बाद चेहरे को धो लें.

संतरे से बना पैक:

संतरा विटामिन सी से भरपूर होने के कारण त्वचा को हाइड्रेट करता है, साथ ही त्वचा को गहराई तक साफ भी करता है. इस का पैक बनाने के लिए इस का रस निकाल कर उस में योगर्ट और गुलाबजल मिला कर चेहरे पर लगा कर 20 मिनट बाद चेहरे को धो लें.

मेरी माताजी की उम्र 62 वर्ष है, उन की किडनियां फेल हो गई हैं, क्या इस उम्र में उन का किडनी ट्रांसप्लांट संभव है?

सवाल

मेरी माताजी की उम्र 62 वर्ष है. उन की किडनियां फेल हो गई हैं. हम डायलिसिस से परेशान आ चुके हैं. क्या इस उम्र में उन का किडनी ट्रांसप्लांट संभव है?

जवाब

अधिकतर लोग किडनी ट्रांसप्लांट करा सकते हैं. इस से कोई अंतर नहीं पड़ता कि मरीज की उम्र क्या है. यह प्रक्रिया उन सब के लिए उपयुक्त है जिन्हें ऐनेस्थीसिया दिया जा सकता है और कोई ऐसी बीमारी नहीं हो जो औपरेशन के पश्चात बढ़ जाए जैसे कैंसर आदि. हर वह व्यक्ति किडनी ट्रांसप्लांट करा सकता है जिस के शरीर में सर्जरी के प्रभावों को सहने की क्षमता हो. किडनी ट्रांसप्लांट की सफलता की दर दूसरे ट्रांसप्लांट से तुलनात्मक रूप से अच्छी होती है. जिन्हें गंभीर हृदयरोगकैंसर या एड्स है उन के लिए प्रत्यारोपण सुरक्षित और प्रभावकारी नहीं है.

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मुझे पिछले 10 वर्षों से डायबिटीज है. कुछ दिनों से मुझे हाथोंटखनों और पंजों में सूजन की समस्या हो रही है. इस का कारण क्या हो सकता है?

दरअसलडायबिटीज केवल एक रोग नहीं मैटाबोलिक सिंड्रोम है जिस का प्रभाव किडनियों सहित शरीर के प्रत्येक अंग और उस की कार्यप्रणाली पर पड़ता है. हाथोंटखनों और पंजों में सूजन की समस्या डायबिटिक नैफ्रोपैथी के कारण हो सकती है. डायबिटीज से पीडि़त 30-40% लोगों में डायबिटिक नैफ्रोपैथी के कारण किडनियां खराब हो जाती हैं. आप अपनी यूरिन की जांच कराएं. यूरिन में ऐल्ब्यूमिन का आना और शरीर में क्रिएटिनिन बढ़ना डायबिटिक नैफ्रोपैथी के संकेत हैं. अगर यूरिन में माइक्रो ऐल्ब्यूमिन नहीं आ रहा है तो किडनियों पर असर नहीं हुआ है. डायबिटिक नैफ्रोपैथी को ठीक नहीं किया जा सकता है लेकिन उपचार के द्वारा इस के गंभीर होने की प्रक्रिया को बंद या धीमा किया जा सकता हैउपचार में रक्त में शुगर के स्तर और रक्तदाब को जीवनशैली में परिवर्तन ला कर और दवाइयों से नियंत्रित रखा जाता है.

 

जब मरीज को देखने अस्पताल जाएं

हाल ही में उत्तराखंड के रुड़की के नारसन बौर्डर पर क्रिकेटर ऋषभ पंत भीषण कार हादसे का शिकार हुए और उन्हें देहरादून के मैक्स अस्पताल में भरती कराया गया. वहां कुछ दिनों तक उन का इलाज चला. इस दौरान ऋषभ पंत और उन के घर वाले इस वजह से परेशान रहे क्योंकि उन्हें मिलने के लिए लगातार लोग आते रहे. मिलने आने वालों की बढ़ती संख्या के कारण ऋषभ पंत आराम नहीं कर पा रहे थे.

दरअसल, ऋषभ पंत के घायल होने की सूचना से उन के फैंस चिंतित हो गए. प्रसिद्ध व्यक्ति होने के कारण कुछ खास लोगों के अलावा फैंस भी उन के स्वास्थ्य की जानकारी लेने के लिए अस्पताल पहुंचने लगे. खास लोगों में विधायक, मंत्रियों, अधिकारियों के साथसाथ कुछ फिल्म अभिनेता तक ने मैक्स अस्पताल पहुंच कर ऋषभ पंत का हालचाल जाना. आगंतुकों की इस भीड़ की वजह से घायल ऋषभ और उन के परिजन थोड़े असहज हो उठे.

ऋषभ पंत के परिजनों का कहना था कि लोग निर्धारित घंटों के बाद भी उन से मुलाकात करने आ रहे थे. पंत के स्वास्थ्य की देखभाल कर रही मैडिकल टीम के एक सदस्य का कहना था कि ऋषभ को आराम करने के लिए पर्याप्त समय मिलना आवश्यक है. शारीरिक के साथ मानसिक रूप से भी उन्हें आराम की जरूरत है. दुर्घटना में लगी चोटों के कारण वे दर्द में थे.

मिलने आने वाले लोगों से बात करने से उन की ऊर्जा खत्म हो जाती थी. इस ऊर्जा को उन्हें तेजी से ठीक होने के लिए उपयोग में लाना चाहिए. अंतत: डाक्टर को कहना पड़ा कि जो लोग उन से मिलने की योजना बना रहे हैं उन्हें अभी इस से बचना चाहिए. ऋषभ पंत को उन्हें आराम करने देना चाहिए.

एक अहम उद्देश्य अस्पताल में आने का समय सुबह 11 बजे से दोपहर 1 बजे तक और शाम 4 बजे से शाम 5 बजे तक था. इस समय सीमा में केवल एक विजिटर मरीज से मिल सकता है. ऋषभ पंत का मामला एक हाई प्रोफाइल मामला होने की वजह से काफी अधिक लोग मिलने आ रहे थे. इसलिए यह एक बड़ी समस्या बन गई.

सिर्फ प्रसिद्ध व्यक्ति ही नहीं अपना कोई परिचित या रिश्तेदार भी बीमार हो जाता है तो शिष्टाचारवश हम उस से मिलने, उस का हौसला बढ़ाने या उस की मदद करने अस्पताल पहुंच जाते हैं. कोविड-19 में जब लोगों का घरों से निकलना बंद था तो हम वीडियो कौलिंग पर एकदूसरे का हालचाल पूछ रहे थे. बीमार व्यक्ति से मिलने जाने का एक अहम उद्देश्य यह भी होता है कि बीमार को ऐसा नहीं लगे कि वह दुखदर्द में अकेला है. हम मुख्य रूप से उस की हिम्मत बढ़ाने और यह जताने के लिए जाते हैं कि वह अकेला नहीं और हम इस परेशानी के समय में उस के साथ हैं.

मगर मरीज के प्रति हमारी यह चिंता कभीकभी मरीज के लिए ही कठिन पड़ जाती है. इसलिए अस्पताल में किसी बीमार व्यक्ति से मिलने जाना हो तो हमें इन सामान्य ऐटिकेट्स का खयाल रखना चाहिए:

सही समय पर जाएं

जाने से पहले अस्पताल में मुलाकात का समय ज्ञात कर लें. प्रत्येक हौस्पिटल में मिलने का समय निर्धारित होता है. हमें उस नियम का हमेशा पालन करना चाहिए. सब से पहले हमें वार्ड बौय से मरीज से मिलने की अनुमति लेनी चाहिए. जो समय हमें दिया जाता है उसी समय में मरीज से मिलने जाना चाहिए. हमें डाक्टर के हौस्पिटल राउंड, मरीज के खाने के समय, हौस्पिटल सैनिटेशन या मरीज की साफसफाई के समय उस के पास जाने से बचना चाहिए.

पूरी कोशिश करें कि आप सही समय पर अस्पताल पहुंचें और उचित समय पर वहां से लौट सकें. गलत समय पर जाने से से न तो आप मरीज की मदद कर पाएंगे और न ही कोई बात हो पाएगी.

भीड़ न लगाएं

जहां तक संभव हो बीमार व्यक्ति के पास भीड़ न लगाएं. डाक्टर के विजिट का समय हो तो चुपचाप बाहर निकल आएं. परिजनों और डाक्टर को ही बीमार के पास रहने दें.

दूसरों का भी खयाल रखें

बीमार को ज्यादा बोलने के लिए न उकसाएं. हंसीमजाक कर के माहौल को हलका करने की गलतफहमी न रखें. अस्पताल में और भी मरीज होते हैं जो हो सकता है गंभीर स्थिति से जू?ा रहे हों. उन का भी खयाल रखें.

जब बीमार कोई महिला हो

यदि आप बीमार महिला से मिलने जा रहे हों तो विशेष ध्यान रखें. बिना पूछे हरगिज कमरे में प्रवेश न करें. बीमार के पास बहुत ज्यादा देर न बैठें. इलाज के दौरान कई तरह के मैडिकल उपकरण महिला की मदद को लगे होंगे जिन के कारण उन की स्थिति अस्तव्यस्त हो सकती है. ऐसे में हो सकता है कि वह महिला या उस के परिजन आप की उपस्थिति में कुछ असहज महसूस करें. इसलिए मदद के लिए भी जाना हो तो बस कुछ पल बैठें और बाहर आ जाएं. बाहर परिजनों से बात कर सकते हैं.

हौस्पिटल स्टाफ से सही व्यवहार करें

अस्पताल पहुंचने पर वहां के कर्मचारियों जैसेकि वार्ड बौय, नर्स, डाक्टर, वार्ड सिस्टर, रिसैप्शनिस्ट वगैरह सभी से अच्छा व्यवहार करना चाहिए क्योंकि अस्पताल में वे सब मरीज का खयाल रखते हैं. उन के काम में बाधा पहुंचाने की कोशिश कभी न करें. इलाज के बाद मरीज को लगाए गए उपकरणों के साथ किसी तरह की छेड़छाड़ न करें. डाक्टर से फुजूल बात न करें. जानपहचान निकालने की कोशिश में उन का समय बरबाद न करें.

पेशैंट रूम को पिकनिकरूम न बनाएं

अकसर हम कई लोग मिल कर अस्पताल जाते हैं और अपने साथ मरीज के लिए फलाहार के साथसाथ और कई तरह की खानेपीने की चीजें भी ले जाते हैं. इस तरह एक तरह से हम पेशैंटरूम को पिकनिकरूम की तरह बनाने का इंतजाम कर लेते हैं. मगर हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि बीमारी सामान्य हो या गंभीर, ज्यादातर मामलों में मरीज को सब से अधिक नुकसान दूसरे लोगों से होने वाला इन्फैक्शन ही पहुंचाता है.

एक समय में एक से ज्यादा व्यक्ति मरीज से मिलने न जाएं. यदि खानेपीने के लिए मरीज को कुछ देना चाहते हैं तो पहले डाक्टर या डाइटीशियन से पूछ जरूर लें. बेहतर होगा कि आप मरीज के लिए नहीं बल्कि उस की तीमारदारी कर रहे परिजनों के लिए घर से कुछ बना कर चायनाश्ता आदि ले जाएं. उन्हें इस वक्त इन की जरूरत होगी.

साफसफाई का रखें ध्यान

मरीज से मिलने जाने से पहले अपने हाथों को अच्छी तरह साबुन या हैंडवाश से धो लें. सब से अधिक इन्फैक्शन बैक्टीरिया युक्त नाखूनों और हाथों से ही फैलते हैं. खुद को सैनिटाइज करने के बाद ही मिलने जाएं. बेहतर होगा कि मास्क भी पहन कर जाएं. इजाजत मिलने पर ही मरीज के करीब जाएं वरना परिजनों से बातचीत कर के ही हालचाल जान लेना बेहतर होगा.

नकारात्मक बातें न करें

अकसर कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी के मरीजों से मिलने जाने पर लोग नकारात्मक बातें करने लग जाते हैं. मरीज के सामने बीमारी के खर्चे, जीनेमरने आदि की बातें करना गलत है. हम चिंता जताते हुए अचानक किसी ऐसे केस के बारे में बात कर जाते हैं जिस में कैंसर पीडि़त की मौत हो गई हो. जरा सोचिए उस समय कैंसर ग्रस्त मरीज पर क्या बीतती होगी.

किसी भी बीमारी से ग्रस्त मरीज के सामने हमेशा सकारात्मक और हौसला बढ़ाने वाली बातें ही करें. मरीज को आप के प्यार और प्रोत्साहन की जरूरत है, आप की सलाह और दिशानिर्देशों की नहीं. हमें यह जरूर खयाल रखना चाहिए कि वह व्यक्ति पहले से ही अपनी बीमारी से परेशान है. उसे और ज्यादा परेशान करने की जरूरत नहीं है.

अपने ज्ञान पर रखें कंट्रोल

मरीज की बीमारी के लिए किस तरह का इलाज किया जा रहा है इस बारे में बात करते हुए आप इलाज के और संभावित विकल्पों की बात कर सकते हैं, मगर कभी जरूरत से अधिक ज्ञान न बघारें. उसे किसी तरह की टैंशन न दें. अकसर हम इंटरनैट पर रोग के बारे में अधकचरा ज्ञान प्राप्त कर रोगी और डाक्टर के सामने अपना ज्ञान बघारते हैं. हमें इस से बचना चाहिए.

यह याद रखना चाहिए कि जिस बीमारी और इलाज के बारे में डाक्टर ने कई सालों तक पढ़ाई की है उन के सामने अपना ज्ञान बघारना गलत है. अपनी तरफ से किसी नुसखे या दवा की सलाह न दें. वैसे भी मरीज से अधिक बातें न करें इस से वह थकान अनुभव करती है.

गरमी में इन 7 टिप्स से करें बेबी केयर

गरमी में बच्चों की स्किन व हैल्थ से जुड़ी समस्याएं जैसे कि घमौरियां, रैशेज व डिहाइड्रैशन देखने को मिलती हैं. वैसे भी इस मौसम में मांएं अकसर अपने छोटे बच्चों की स्किन की सुरक्षा को ले कर चिंतित रहती हैं, क्योंकि बच्चों की स्किन बड़ों की स्किन से3 गुना अधिक कोमल होती है. बच्चों के लिए मौनसून को सहन करना थोड़ा असुविधाजनक होता है और बच्चे को इस मौसम में आराम महसूस हो सके यही हर मां का प्रयास होता है. आइए, जानते हैं कि मौनसून के दिनों में बच्चों की देखभाल के बेहतर तरीके:

1. कपड़ों का सही करें चुनाव

गरमियों में जब आप अपने लिए सूती कपड़े लेना पसंद करती हैं, तो भला बच्चे के लिए क्यों नहीं? कोशिश करें कि बच्चों को हलके रंग व फैब्रिक के कपड़े पहनाएं ताकि बच्चा असहज न महसूस करे. गलत कपड़ों के चयन की वजह से उसे कहीं घमौरियां या रैशेज न पड़ जाएं.

बाहर जाते वक्त बच्चे को पूरी बांह के कपड़े पहनाएं. कौटन की टोपी भी पहना कर ले जा सकती हैं, ताकि धूप सीधे उस के चेहरे पर न पड़ें.

2. रोजाना नहलाना है जरूरी

जितनी गरमी आपको लगती है उतनी ही गरमी आप के बच्चे को भी लगती है. इसलिए कोशिश करें कि बच्चे को रोजाना नहलाएं और हो सके तो आप उसे शाम को भी नहला सकती हैं. शाम को नहला नहीं सकती हैं, तो बच्चे को स्पौंज कर उस के कपड़े बदल दें. इस से बच्चा तरोताजा महसूस करेगा और वह चैन की नींद सो पाएगा.

3. डायपर बदलना न भूलें

गरमी में बच्चे अधिक मात्रा में तरल पदार्थों का सेवन करते हैं, जिस की वजह से डायपर जल्दी हैवी हो जाती है. कोशिश करें कि हर 3 घंटे पर बच्चे का डायपर बदल दें ताकि अधिक नमी से बच्चे की स्किन को कोई नुकसान न पहुंचे और बच्चे को रैशेज या बैक्टीरिया न हो जाएं. डायपर बदलने से पहले उस जगह को पानी से साफ करें और फिर साफ कपड़े से अच्छे से सुखाने के बाद ही दूसरा डायपर पहनाएं

4. बच्चे को पिलाएं भरपूर पानी

गरमियों में बच्चों में डिहाइडे्रशन की समस्या आम है. यदि आप बच्चे को स्तनपान करा रही हैं और उस की मांग के अनुसार उसे दूध पिला रही हैं तो आप अपने बच्चे को उचित तरीके से हाइड्रेट कर रही हैं. यदि आप ने बच्चे का दूध छुड़ाया हुआ है, तो ध्यान रखें कि गरमियों के दौरान उस की भूख बहुत कम हो जाती है. उसे अन्य तरल पदार्थ जैसे फलों का रस, छाछ या मिल्क शेक आदि पिलाएं. उसे पिलाने से पहले गिलास को कुछ मिनट के लिए फ्रिज में रखें पर ध्यान रहे कि यह बहुत अधिक ठंडा न हो.

5. मालिश करने से बचें

गरमियों के दौरान स्किन पर तेल लगाने से फायदे की जगह नुकसान ही होता है. यदि इसे अच्छी तरह नहीं धोया गया तो स्किन में जोड़ों के स्थान पर यह रह जाता है जिस कारण हीट रैशेज, खुजली एवं फोड़फुंसियों आदि की समस्याएं हो सकती हैं. बच्चे के पूरे शरीर पर पाउडर न लगाएं क्योंकि पसीना आने पर पाउडर उस स्थान पर जम जाता है, जिस कारण स्किन संबंधी प्रौब्लम हो सकती है.

6. बाहर ले जाने का समय करें तय

बच्चे को धूप से बचाने के लिए सुबह 10 से शाम 5 बजे तक बाहर ले कर न जाएं. सूर्यास्त के बाद उसे थोड़े समय के लिए बाहर ले जाएं. यदि आप के बच्चे की उम्र 2 वर्ष से अधिक है तो गरमियों में उसे वाटर स्पोर्ट्स के लिए प्रोत्साहित करें.

7. कमरे का टैम्प्रेचर रखें स्थिर

यदि आप एसी इस्तेमाल कर रही हैं तो कमरे का तापमान 24 डिग्री पर स्थिर रखें. तापमान में परिवर्तन होने से बच्चे को सर्दी, खांसी आदि की समस्याएं हो सकती हैं. इस के अलावा इस बात का भी ध्यान रखें कि नहाने के बाद बच्चा सीधे एसी के सामने न बैठे.

8. बच्चे के लिए रहेगा पाउडर फायदेमंद

गरमियों में बच्चे को पाउडर लगाना भी सही रहता है. इसे लगाने से बच्चा फ्रैश महसूस करता है. साथ ही उसे ठंडक का भी एहसास होता है. पाउडर लगाते वक्त इस बात का ध्यान रखें कि पाउडर ज्यादा न लगाएं, क्योंकि पसीने के साथ मिल कर यह जमने लगता है.

मेहमानों के लिए घर पर बनाएं गुझिया

रंगों के त्योहार होली के अवसर पर घरों में गुझिया बनाई जाती है. कुछ लोगों को घर में गुझिया बनाना मुश्किल लगता है. लेकिन इसे बनाना बेहद आसान है. आइए जानें इसकी रेसिपी.

गुझिया

सामग्री

– 1 कप मैदा द्य जरूरतानुसार तेल

– जरूरतानुसार पानी.

स्टफिंग के लिए

– 11/2 कप मावा कद्दूकस किया द्य 1/4 कप सूखा नारियल कद्दूकस किया द्य 2 बड़े चम्मच बारीक सूजी द्य 1 टेबल स्पून काजू द्य 1 बड़ा चम्मच बादाम द्य 1 बड़ा चम्मच किशमिश

– 1 बड़ा चम्मच चिरौंजी द्य 1 बड़ा चम्मच मगज

-1/2 छोटा चम्मच इलाइची पाउडर द्य 4-5 टेबल स्पून बूरा या पाउडर चीनी द्य जरूरतानुसार चीनी चाशनी के लिए द्य 6 केसर के धागे.

विधि स्टफिंग की

एक पैन में नारियल को अच्छी तरह से सुनहरा होने तक भूनें और अलग निकाल लें. उसी पैन में सूजी को सुनहरा होने तक ड्राई रोस्ट करें ओर निकाल लें. काजू और बादाम को एकसाथ भून कर दरदरा पीस लें. मगज और चिरौंजी को भी एकसाथ भून लें. आखिर में मावा भून कर इलायची पाउडर और किशमिश मिलाएं और नरम होने तक पकाएं. फिर उसे भी बाउल में निकाल लें और चीनी डाल कर अच्छी तरह सभी चीजों को मिक्स कर लें.

विधि चाशनी की

पानी में चीनी मिला कर चीनी के घुलने तक पकाएं और उस में केसर डाल कर दें.

विधि गुझिया की

एक बाउल में मैदा और तेल को अपनी उंगलियों से तब तक मिलाएं जब तक वह चिकना और परतदार न हो जाए. फिर उस में थोड़ाथोड़ा पानी डाल कर सख्त आटा गूंध लें. तैयार आटे को हलके गीले कपड़े से ढक कर 30 मिनट तक रेस्ट दें. उस के बाद करीब 5 मिनट तक आटे को हाथों से मसल कर चिकना कर लें और छोटेछोटे पेड़े बना लें. आटे को पूरी की तरह गोल आकार में बेल लें. बेलने के लिए सूखे मैदे का इस्तेमाल करें लेकिन अधिक मैदा डालने से बचें. तैयार पूरी को गुझिया मोल्ड में रखें. किनारों को हलका गीला करें ताकि यह अच्छी तरह से सील हो जाए. स्टफिंग डाल कर गुझिया मेकर को बंद कर दें. गुझिया को निकाल कर एक तरफ रख दें और एक नम कपड़े से ढक दें जबकि बाकी तैयार हो रही हैं. गुझिया बनाते हुए ध्यान रखें कि गुझिया कहीं से क्रैक न हो नहीं तो तलने के समय गुझिया फट कर खराब हो जाएगी. कड़ाही में तेल गरम कर मध्यम आंच पर सभी गुझिया सुनहरी होने तक तल लें. थोड़ी देर बाद उन्हें चाशनी में डिप कर दें.

लेक्मे फैशन वीक में ग्लैमरस और खूबसूरत अभिनेत्री सुष्मिता सेन ने क्या कहा, आइये जाने

विवाह किसी भी मौसम में हो उसकी रौनक जारी रहती है. इस बार भी ऍफ़डीसी आई लेक्मे फैशन वीक स्प्रिंग समर कलेक्शन में रंगों के बहार दिखे, हर तरफ वेडिंग की धुन सुनाई पड़ी,ऐसे में डिज़ाइनर अनुश्री रेड्डी ने अपना वेडिंग कलेक्शन ‘अहिल्या’रैंप पर उतारे, जिसमे कलरफुल मेडली के साथ फ्यूज़न को दिखाते हुए सूर्यास्त के शेड्स,सॉफ्ट पेस्टल्स, जिसमे गोल्ड टच को देते हुए एक अनोखा रूप दिया. इसमें गाती हुई चिड़िया और झूलते हुए फ्लावर्स के मोटिफ्स हर ड्रेस की सुन्दरता को बढ़ा रहे थे. इसकी प्रेरणा इतिहास के पन्नों से लिया गया है, जिसमे फैशन को लेकर मॉडर्न लुकमें परिवर्तित गया है. कभी ऐसा समय था जब रेशम फेब्रिक पर हैण्ड जारदोजी एम्ब्रायडरी से पोशाक को लक्ज़री का लुक दिया जाता था. इसमें रॉ सिल्क, कतान और ओर्गेंज़ा को काफी अहमियत दी जाती रही, जिसमे हर रंग एक अलग कहानी कहती रही. इसी को डिज़ाइनर अनुश्री ने अपने ऑउटफिट पर जगह दिया है. दुल्हन के पोशाक रेड,पिंक, येल्लो, ऑरेंज आदि सभी रंग एक एलीगेंट लुक को दे रहे थे. इसमें डिज़ाइनर अनुश्री रेड्डी ने दुल्हन के लिए सुंदर दुपट्टे के साथ घाघरा चोली, गोल्डन हाई हील्स, दुल्हे के लिए शेरवानी, कुरता, बन्दगला कुर्ता आदि क्रिएट किये है.

अनुश्री के इस शो में शो स्टॉपर मिस यूनिवर्स 1994अभिनेत्री सुष्मिता सेन रही, उन्होंने रैंप पर पीले रंग की वेडिंग लहंगा चोली और जारदोजी वर्क के दुपट्टे के साथ एक अलग समां बाँधा. हार्ट एटैक के बाद ठीक होकर लौटने वाली अभिनेत्री सुष्मिता सेन को एक बार फिर रैंप पर देखना दर्शकों के लिए ख़ुशी की बात रही. उनकी वही अंदाज, नजाकत और चेहरे की खूबसूरती रैम्प पर दिखी. सुष्मिता कहती है कि अनुश्री की डिजाईन की जितनी तारीफ की जाय कम है. ये कलेक्शन उन अप्सराओं के लिए है, जिन्होंने इस मैजिकल वर्ल्ड में पावरफुल महिला के रूप में नाम दर्ज किया है. उन्होंने मुझे इस पोशाक के साथ रैप्म पर चलने का मौका दिया, जो मेरे लिए एक नई जिंदगी देने जैसा है.

 

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इसके अलावा सुष्मिता का कहना है कि जीवन में अभी बहुत कुछ करना बाकी है. सभी महिलाओं से मेरा कहना है कि जीवन जीने का नाम है और अगर आप अपनी जिंदगी को एक मिसाल की तरह जी लें, तो आप अपने आसपास की सभी को इंस्पायर कर सकते है. हर महिला को अपने लिए जीना है, इसके लिए उन्हें खुद ही सोचना है.

 

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डिज़ाइनर पुनीत बलाना की कलेक्शन उत्सव भी वेडिंग कलेक्शन रहा, इसमें टाइमलेस डिजाईन पर अधिक ध्यान दिया गया, इसलिए इसमें सुर्ख लाल, गुलाबी, पिकल ग्रीन आदि इस शो के खास रहे. वे राजस्थान के ‘कालबेलिया कम्युनिटी’ से प्रेरित होकर इस क्रिएशन को बनाया है, जिसमे उनके कपडे, उनके डांस मूड बहुत ही सुंदर और एलीगेंट होते है. इसमें मारोडी, रेशम,गोत्ता, मिरर वर्क को ब्लाक प्रिंट के साथ बांधनी के साथ एक ट्रेडिशनल टच दिया है. इसमें महिलाओं के लहंगे के साथ अंगरखा चोली और पुरुषों के लिए हैवी एम्ब्रायडरी के कुछ ख़ास आकर्षक लगे. पुनीत कहते है कि मुझे जड़ से किसी डिजाईन को क्रिएट करना पसंद है और इसमें राजस्थान के कालबेलिया समुदाय सालों से खुश रहने और गाना बजाना करते हुए आ रहे है. इसलिए मेरे कलेक्शन भी ऐसे है, जिसे लोग सालों तक पहन सकेंगे और एक जेनरेशन से दूसरे को पासअन भी कर सकेंगे.

इसके शो स्टॉपर अभिनेत्री सारा अलीखान रही, उन्होंने सुर्ख लाल रंग की लहंगा चोली और हेवी एम्ब्रायडरी की दुपट्टा पहन रही थी. सारा कहती है कि रैम्प पर मैं पहली बार चल रही हूँ और मेरे लिये ये बहुत ही नर्वस होने वाला शो रहा,लेकिन डिज़ाइनर के इस ऑउटफिट ने मुझे रैम्प पर चलना आसान बना दिया है.

इसके अलावा कोरल थीम पर आधारित डिज़ाइनर अभिषेक शर्मा के कपडे, डिज़ाइनररितिका मीरचंदानी, नम्रता जोशीपुरा आदि सभी ने अपने पोशाक से रैम्प को सुशोभित किया, जिसमे ट्रेडिशन के साथ मॉडर्न टच को पेश किया गया.

हक की लड़ाई

इस में अब संदेह नहीं रह गया है कि जनता के हित के जो काम वोटों से चुन कर आई सरकारों को करने चाहिए, अदालतें उन्हीं सरकारों के बनाए कानूनों की जनहित व्याख्या करते हुए काम करने लगी है. अदालतों ने साबित कर दिया है कि हमारी सरकारों के पास या तो मंदिर बनाने का काम रह गया है या ठेके देने का जिन में जनता का गला घोंट कर पैसा छीन कर लगाया जा रहा है, सरकारों को आम जनता के दुखदर्द की ङ्क्षचता दाव ही होती है जब मामला टैक्स का हो या वोट का या फिर धर्म का.

चेन्नै उच्च न्यायालय ने एक अच्छे फैसले में कहा है कि हालांकि एक मुसलिम औरत को खुला प्रथा के अनुसार तलाक लेने का हक पूरा है पर इस का सॢटफिकेट कोर्ई भी 4 जनों की जमात नहीं दे सकती. अब तक शरीयत कोर्ट ऐसे सॢटफिकेट देती थी जिन्हें कैसे बनाया जाता था और उन के तर्कवितर्क क्या होते थे, वहीं रिकार्ड नहीं किए जाते थे. उच्च न्यायालय ने औरत को फैमिली कोर्ट जा कर अपना सॢटफिकेट लेना चाहिए जहां उस के खाङ्क्षवद की भी सुनी जाएगी. इसी तरह सेना में एउल्ट्री यानी पतिपत्नी में से एक का किसी दूसरे से सैक्स संबंध इंडियन पील्ल कोर्ड में अब आपराधिक गुनाह नहीं रह गया हो, सेनाओं में सेना कानूनों के हिसाब से चलता रहेगा. यह बहुत जरूरी है क्योंकि सैनिकों को महीनों घरों से बाहर रहना पड़ता है और उन के पास उन के पीछे वीबियों के गुलछर्रे उड़ाने की खबरें आती रहती हैं.

इसी तरह महीनों पत्नी से दूर रहे सैनिक पति कहां किसी……….औरत से संबंध न बना लें, इस गम में पत्नियां घुलती रहती हैं. अपराधी होने का साया देशों के काबू में रख सकता है. सैनिक युद्ध में बिना घर की फिक्र किए तैनात रहे पर देश की सुरक्षा के लिए जरूरी है. केंद्र सरकार मुसलिम कानून में 3 तलाक को बैन करने का ढोल बजाती रहती है पर उसे इन लाखों ङ्क्षहदू औरतों की ङ्क्षचता नहीं है जो तलाकों के मुकदमों के अदालतों के गलियारों में चप्पलें घिस रही हैं. अगर पति या पत्नी में से एक मीनिट पर अड़ जाए से तलाक महीनों बरसों टलता रहता है. जैसे ङ्क्षहदू कानून शादी मिनटों में कोई भी तिलकधारी करा सकता है, तलाक भी क्यों नहीं हो सकता.

हां, अगर ङ्क्षहदू औरतें इतनी पतिव्रता, धर्मकर्म, जन्मजन्मांतरों को मानने वाली वो बात दूसरी होती. वे तो आम दुनिया भर की औरतों की तरह जिन्हें तलाक की तलवार के नीचे आता पड़ सकता है. सरकार उन्हें तरसातरसा कर तलाक दिलवाती है, सरकार कानून में रद्दोबदल करने में कोई इंटरेस्ट ही नहीं लेती क्योंकि यह मुद्दा न तो वोट का है न नोट का.

बड़बोला: विपुल से आखिर क्यों परेशान थे लोग

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