Winter Special: Chinese Food के हैं शौकीन तो घर पर बनाएं वेज स्प्रिंग रोल

अक्सर लोग बाहर की चीजें खाना पसंद करते है जिनमें चाइनिज फूड सबसे ज्यादा लोग पसंद करते हैं, जिसें खाने के लिए वे रेस्टोरेंट और होटल में जाते हैं. पर अगर हम वही चाइनिज फूड घर पर बनाएं तो आपको बाहर के खाने की तरह हेल्थ की चिंता नहीं होगी क्योंकि वह खाना आप अपने तरीके से बनाएंगे. आज हम आपको रेसिपी बताएंगें स्प्रिंग रोल की. जिसे आप शाम के नाश्ते में अपने बच्चों को सर्व कर सकती हैं.

सामग्री

मैदा – 100 ग्राम,

पत्ता गोभी – 200 ग्राम,

पनीर – 100 ग्राम (मैश किया हुआ),

हरी मिर्च – 1 (बारीक कटी),

अदरक – एक छोटा टुकड़ा (कद्दूकस किया हुआ)

सोया सौस – 1 छोटा चम्मच,

लाल मिर्च पाउडर – 1/4 छोटा चम्मच,

काली मिर्च पाउडर– 1/4 छोटा चम्मच,

अजीनोमोटो – 1/4 छोटा चम्मच,

तेल – स्प्रिंग रोल तलने के लिये,

नमक – स्वादानुसार

स्प्रिंग रोल बनाने का तरीका

– सबसे पहले मैदे को छान लें, फिर उसमें मैदा के आयतन का डेढ़ गुना पानी (एक कप मैदा के लिए लगभग डेढ़ कप पानी) डालकर पतला और चिकना घोल बना लें. अब घोल को एक घंटे के लिये ढ़ककर रख दें, जिससे मैदा अच्छी तरह से फूल जाए।

-अब एक कढ़ाई को गैस पर गर्म करें. कढ़ाई गर्म होने पर उसमें एक छोटा चम्मच तेल डालें और उसे गर्म करें. तेल गर्म होने पर उसमें कटा हुआ पत्ता गोभी, पनीर, हरी मिर्च और अदरक डालें और मध्यम आंच पर दो मिनट तक भून लें.

-इसके बाद लाल मिर्च, काली मिर्च, अजीनोमोटो, सोया सौस और नमक डालें और अच्छी तरह से मिला लें. अब गैस बंद कर दें.

-अब स्प्रिंग रोल को कवर करने वाले रैपर को बनाने की बारी है. इसके लिए एक नौनस्टिक तवा को गरम करें और उसपर थोड़ा सा तेल डालकर उसे पूरे तवा पर फैला दें. उसके बाद एक चम्मच में घोल लें और उसे तवे पर डालकर चम्मच की सहायता से दोसा की तरह पूरे तवे पर फैला दें.

-गैस की आंच धीमी रखें और रैपर को सिंकने दें. जब रैपर के ऊपरी सतह कलर बदलने लगे और उसके किनारे तवे को छोड़ने लगें, तब उसे तवा से उठा लें और एक तेल लगी प्लेट पर रख दें.

-रैपर तैयार होने के बाद उसके ऊपर दो बड़े चम्मच भरावन रखें और उसे बीच के हिस्से में आगे से पीछे की ओर फैला दें. अब रैपर के दायें और बायें दोंनो सिरों को अंदर की ओर थोड़ा-थोड़ा मोड़ दें और फिर उसे ऊपर की ओर से मोड़ते हुये रोल बना लें.

-ऐसे ही जब सारे रोल तैयार हो जाएं, तो एक कढाई में एक बड़ा चम्मच तेल डालें और उसे गरम करें. तेल गरम होने पर उसमें दो स्प्रिंग रोल डालें और उलट-पलट कर गोल्डेन ब्राउन होने तक सेंक लें. यदि आप चाहें, तो इन्हें पकौ‍डों की तरह डीप फ्राई भी कर सकते हैं.

Washing Machine में कपड़ों के अलावा धो सकते हैं ये 6 चीजें, पढ़ें खबर

आप रोजाना कितने काम करती हैं. सुबह सबसे पहले उठती हैं और रात को सबको सुलाकर ही सोती हैं. सारा दिन दूसरों की जिन्दगी को आसान बनाने और संवारने में बिता देती हैं. जब भी खुद की बात आए तो कोई न कोई बहाना और फिर दोबारा बस दूसरों के लिए ही जीना. आपके रोजमर्रा के कामकाज को आसान करने के लिए बहुत सारी मशीनें हैं. वाशिंग मशीन से पूरे घर के कपड़ों को धोना काफी आसान हो जाता है. पर क्या आप जानती हैं कि वाशिंग मशीन में कपड़ों के अलावा भी बहुत कुछ धोया जा सकता है.

इन चीजों को भी धो सकते हैं वाशिंग मशीन में-

1. स्नीकर्स

स्नीकर्स पहनने में आरामदायक होने के साथ ही ट्रेंडी लुक भी देते हैं. रनिंग शूज तो हमारी जिन्दगी का जरूरी हिस्सा हैं. पर स्नीकर्स और रनिंग शूज को साफ करने में काफी मेहनत लगती है. अगर स्नीकर्स व्हाइट हो तो डबल मेहनत लगती है. पर आप अपने स्नीकर्स और रनिंग शूज को वाशिंग मशीन में भी धो सकती हैं. स्नीकर्स और शूज के लेस और सोल को हटा दें. अब इन्हें, टावल और रैग्स के साथ वाशिंग मशीन में डाल दें. स्नीकर्स को ड्रायर में नहीं बल्कि हवा में ही सुखाएं.

2. लंच बॉक्स

लंच बॉक्स को आप हाथों से या फिर डिशवाशर में धोती होंगी. लंच बॉक्स पर रोजाना क्या कुछ नहीं बीतता. पर आप वाशिंग मशीन में भी इन्हें आसानी से धो सकती हैं. लंच बॉक्स को टावल के साथ ही कोल्ड वाटर साइकल में डालें. लंच बॉक्स को भी ड्रायर में न सुखाएं.

3. योगा मैट्स

गंदे पड़े योगा मैट से आपको स्वास्थ्य लाभ कभी नहीं होगा. योगा मैट को भी आप वाशिंग मशीन में बड़ी आसानी से धो सकती हैं. ध्यान रहे योगा मैट को अकेले न धोयें. बेडशीट्स, टावल के साथ ही योगा मैट को भी कोल्ड वाटर साइकल में डालें. योगा मैट को हवा में सुखाएं और अगली बार फ्रेश मैट पर ही योगा और ऐक्सरसाइज करें.

4. कैप

बच्चे हो या बड़े कैप या टोपी तो सभी लगाते हैं. चाहे धूप से बचना हो या अपने गंजे सर को छिपाना हो, कैप का इस्तेमाल सभी करते हैं. पर कैप की सफाई में मशक्कत आप ही को करनी पड़ती है. आप कैप को भी वाशिंग मशीन में धो सकती हैं. कोल्ड वाटर के एक जेंटल साइकल से आपका काम हो जाएगा. समय और मेहनत दोनों बच जाएंगे.

5. स्टफ्ड टोय

बच्चों की सबसे चहेती चीजों में से एक है उनके स्टफ्ड टोय. जाहिर सी बात है आपके बच्चे जिसके साथ जितना वक्त बिताएंगे, वे चीजें उतनी ही गंदी होगी. आप स्टफ्ड टोय को भी वाशिंग मशीन में धो सकती हैं. पर खिलौनों पर लिखे निर्देशों का पालन करें. अगर मशीन वाश करने से मना किया गया है तो गल्ती से भी टोय को मशीन में न धोयें.

6. तकिए

तकिए के खोल ही नहीं. आप तकिए को भी वाशिंग मशीन में धो सकते हैं. अब आप कहेंगी कि तकिए तो बहुत सॉफ्ट होते हैं और मशीन में धोने से खराब हो जाएंगे. पर ऐसा नहीं है. एक साथ 2 तकियों को मशीन में डालें और उन्हें वार्म जेंटल वाश दें. तेज धूप में सुखाएं.

तो अगली बार अपने कंधों का जरा सा भार अपने वाशिंग मशीन पर डाल दें.

मैरिड लाइफ से जुड़ी प्रौब्लम के बारे में बताएं?

सवाल

मैं 25 वर्षीय अविवाहिता युवती हूं. मैं यह जानना चाहती हूं कि क्या प्रथम बार सैक्स करते समय ब्लीडिंग होनी जरूरी है और क्या उस समय दर्द भी होता है? मेरे मन में इस बात को ले कर अनेक डर व शंकाएं हैं. कृपया समाधान करें.

जवाब

पहली बार इंटरकोर्स के समय ब्लीडिंग हो यह जरूरी नहीं और न ही इसे वर्जिनिटी के साथ जोड़ें. कुछ लड़कियों को पहली बार सैक्स करते समय स्पौटिंग होती है, कुछ को कुछ घंटों तक ब्लीडिंग होती है तो कुछ को मासिकधर्म की तरह होती है. दरअसल, ब्लीडिंग होने का कारण सैक्स करते समय हाइमन का ब्रेक होना होता है. कई बार लड़कियों में हाइमन घुड़सवारी, मैस्ट्रूबेरेशन या टैंपून के प्रयोग से भी ब्रेक हो जाता है. सो, उन लड़कियों को फर्स्ट इंटरकोर्स के समय ब्लीडिंग नहीं होती. जहां तक पहली बार सैक्स के समय दर्द का सवाल है, वह भी तब होता है जब महिला शारीरिक व भावनात्मक रूप से पूरी तरह से तैयार न हो. अगर सैक्स से पहले फोरप्ले किया जाए और युवती इमोशनली और फिजिकली कंफर्टेबल हो तो दर्द नहीं होता. आप चाहें तो अपनी समस्या के लिए किसी गाइनीकोलौजिस्ट से भी संपर्क कर सकती हैं.

ये भी पढ़ें- 

कई दिनों से निशा की बढ़ती व्यस्तता नितिन की बेचैनी बढ़ा रही थी. जब भी नितिन सेक्स के मूड में होता वह उस की व्यस्तता के कारण यौनसुख प्राप्त नहीं कर पाता. यह नहीं कि निशा को इस की जरूरत महसूस नहीं होती, पर वह अपने काम को अपनी इस जरूरत से अधिक महत्त्व देती. इस से नितिन की यौन भावनाएं आहत होतीं.  धीरेधीरे वह यौन कुंठा का शिकार हो गया. अकसर व्यस्त दंपती अपनी सेक्सलाइफ का पूर्णरूप से आनंद नहीं उठा पाते, क्योंकि अगर वे सेक्स करते भी हैं तो किसी कार्य को निबटाने की तरह. न तो उन्हें एकदूसरे से रोमांटिक बातें करने की फुरसत होती, न ही वे परस्पर छेड़छाड़ का मजा ले पाते. सेक्स विशेषज्ञों का मानना है कि सेक्स में चरमसुख की प्राप्ति तभी हो पाती है जब पतिपत्नी दोनों पूरी तरह उत्तेजित हों और यह उत्तेजना उन में तभी आ सकती है, जब वे सेक्स से पहले आवश्यक क्रियाएं जैसे परस्पर छेड़छाड़, एकदूसरे के गुप्त अंगों को सहलाना, होंठ चूमना, आलिंगनबद्ध होना इत्यादि करें. इन क्रियाओं से सेक्सग्रंथियां तेजी से काम करना शुरू कर देती हैं व पतिपत्नी में अत्यधिक उत्तेजना पैदा हो जाती है, जो उन्हें चरमसुख प्रदान करने में सहायक होती है. पर जो दंपती अपने काम को सेक्स से ज्यादा महत्त्वपूर्ण मानते हैं, वे ऐसा कदापि नहीं कर पाते.

घातक स्थिति है यह

राघव की जौब ऐसी है कि वह रात को 11 बजे से पहले घर नहीं लौट पाता. उस की पत्नी ट्विंकल भी नौकरी करती है. दोनों इतने व्यस्त रहते हैं कि उन्हें एकदूसरे से ढंग से बात  करने तक की फुरसत नहीं मिलती. सेक्स को भी दोनों अपने जौबवर्क की तरह ही निबटाते हैं. नतीजा यह होता है कि वे कई सप्ताह तक शारीरिक तौर पर एकदूसरे के साथ जुड़ते ही नहीं, क्योंकि सेक्स में उन्हें बिलकुल भी आनंद नहीं आता और इसी कारण उन की इस में रुचि घटती जा रही है. अधिक व्यस्त रहने के कारण पतिपत्नी लगातार अपनी यौनइच्छाओं को दबाते रहते हैं, क्योंकि कई बार ऐसी स्थिति भी आती है कि उन में से एक जल्दी फ्री हो जाता है व दूसरे के साथ अपना समय गुजारना चाहता है, शारीरिक सुख प्राप्त करना चाहता है परंतु उस की यह चाहत पूरी नहीं हो पाती, क्योंकि उस का साथी बिजी है. ऐसे में पतिपत्नी न तो कभी अपनी यौन भावनाओं को एकदूसरे से शेयर कर पाते हैं, न ही सेक्स के विषय पर एकदूसरे से खुल कर बातचीत करते हैं. या तो वे लगातार सेक्स को नजरअंदाज करते हैं या इसे सिर्फ निबटाते हैं. ऐसी स्थिति में उन के सेक्स संबंधों पर प्रतिकूल असर पड़ता है. धीरेधीरे सेक्स उन्हें बोर करने लगता है.

एक और आकाश: भाग 1- क्या हुआ था ज्योति के साथ

उस गली में बहुत से मकान थे. उन तमाम मकानों में उस एक मकान का अस्तित्व सब से अलग था, जिस में वह रहती थी. उस के छोटे से घर का अपना इतिहास था. अपने जीवन के कितने उतारचढ़ाव उस ने उसी घर में देखे थे. सुख की तरह दुख की घडि़यों को भी हंस कर गले लगाने की प्रेरणा भी उसे उसी घर ने दी थी.

कम बोलना और तटस्थ रहते हुए जीवन जीना उस का स्वभाव था. फिर भी दिन हो या रात, दूसरों की मुसीबत में काम आने के लिए वह अवश्य पहुंच जाती थी. लोगों को आश्चर्य था कि अपने को विधवा बताने वाली उस शांति मूर्ति ने स्वयं के लिए कभी किसी से कोई सहायता नहीं चाही थी.

अपने एकमात्र पुत्र के साथ उस घर की छोटी सी दुनिया में खोए रह कर वह अपने संबंधों द्वारा अपने नाम को भी सार्थक करती रहती थी. उस का नाम ज्योति था और उस के बेटे का नाम प्रकाश था. ज्योति जो बुझने वाली ही थी कि उस में अंतर्निहित प्रकाश ने उसे नई जगमगाहट के साथ जलते रहने की प्रेरणा दे कर बुझने से बचा लिया था.

तब से वह ज्योति अपने प्रकाश के साथ आलोकित थी. जीवन के एकाकी- पन की भयावहता को वह अपने साहस और अपनी व्यस्तता के क्षणों में डुबो चुकी थी. प्यार, कर्तव्य और ममता के आंचल तले अपने बेटे के जीवन की रिक्तताओं को पूर्णता में बदलते रहना ही उस का एकमात्र उद्देश्य था.

उस दिन ज्योति के बच्चे की 12वीं वर्षगांठ थी. पिछली सारी रात उस की बंद आंखों में गुजरे 11 वर्षों का पूरा जीवन चित्रपट की तरह आताजाता रहा था. उन आवाजों, तानों, व्यंग्यों, कटाक्षों और विषम झंझावातों के क्षण मन में कोलाहल भरते रहे थे, जिन के पुल वह पार कर चुकी थी. उस जैसी युवतियों को समाज जो कुछ युगों से देता आया था, वह उस ने भी पाया था. अंतर केवल इतना था कि उस ने समाज से पाया हुआ कोई उपहार स्वीकार नहीं किया था. वह चलती रही थी अपने ही बनाए हुए रास्ते पर. उस के मन में समाज की परंपरागत घिनौनी तसवीर न थी, उसे तलाश थी उस साफ- सुथरे समाज की, जिस का आधार प्रतिशोध नहीं, मानवीय हो, उदार हो, न्यायप्रिय और स्वार्थरहित हो.

अपनी जिंदगी याद करतेकरते अनायास ज्योति का मन कहीं पीछे क्यों लौट चला था, वह स्वयं नहीं जान पाई थी. मन जहां जा कर ठहरा, वहां सब से पहला चित्र उस की अपनी मां का उभरा था. उसे बच्चे की वर्षगांठ मनाने की परंपरा और संस्कार उसी मां ने दिए थे. वह स्वयं उस का और उस के भाई का जन्मदिन एक त्योहार की तरह मनाती थीं. याद करतेकरते मन में कुछ ऐसी भी कसक उठी जो आंखों के द्वारों से आंसू बन कर बहने के लिए आतुर हो उठी. उस ने आंखें पोंछ डालीं. यादों का सिलसिला चलता रहा…

काश, कहीं मां मिल जातीं. केवल उस दिन के लिए ही मिल जातीं. मां प्रकाश को भी उसी तरह आशीष देतीं जैसे उसे दिया करती थीं. उसे विश्वास था कि बड़ेबूढ़ों के आशीर्वाद में कोई अदृश्य शक्ति होती है. भले ही उस की मां के आशीर्वाद उस के अपने जीवन में फलदायक न हो सके हों, परंतु वह अब जो कुछ भी थी, उस में मां के आशीर्वाद के प्रभाव का अंश, बचपन में मां से मिले संस्कारों का असर अवश्य रहा होगा.

मन रुक न सका. सुबह होतेहोते ज्योति कागजकलम ले कर बैठ गई थी. भावनाओं के मोती शब्दों के रूप में कागज पर बिखरने लगे थे. 11 वर्ष की लंबी अवधि में मां के नाम ज्योति का यह पहला पत्र था. उसे भरोसा था कि वह उस पत्र को लिखने के बाद पोस्ट अवश्य करेगी. हमेशा की तरह वह पत्र टुकड़ों में बदल जाए, अब वह ऐसा नहीं होने देगी.

वह लिखे जा रही थी और आंखें पोंछती जा रही थी. कैसी विडंबना थी कि आज उसे उस घर की धुंधली पड़ गई छवि को नए रूप में याद करना पड़ रहा था जो कभी उस का अपना घर भी था. उस में वह 16 वर्ष की आयु तक पलीबढ़ी, पढ़ीलिखी थी. उस की बनाई हुई पेंटिंगों से उस घर की बैठक की दीवारों की शोभा बढ़ी थी. उस घर के आंगन में उस के नन्हेनन्हे हाथों ने एक नन्हा सा आम का पौधा लगाया था.

वह कल्पना में अपना अतीत स्पष्ट देख रही थी. पत्र को अधूरा छोड़ कर होंठों के बीच कलम दबाए हुए आंसू भरी आंखों के साथ सोच रही थी. मां बहुत बूढ़ी हो चली थीं, शायद अपनी उम्र से अधिक. पिता के चेहरे पर कुछ रेखाएं बढ़ जाने के बावजूद उन की आवाज में अब भी वही रोब था, शान थी और अपने ऊंचे खानदान में होने का अहंकार था. वह अपने समाज और खानदान में वयोवृद्ध सदस्य की तरह आदर पा रहे थे. भाई के सिर के बाल सफेद होने लगे थे. भाभी  आ गई थीं. घर के आंगन में नन्हेमुन्ने भतीजेभतीजी खेल रहे थे.

सोच रही थी ज्योति. बैठक की दीवार पर लगी पेंटिंगें हटाई नहीं गई थीं. शायद इसलिए कि घर वालों की दृष्टि में वह भले ही मर चुकी हो, लेकिन उन पेंटिंगों के बहाने उस की याद जिंदा रही. नित्य उन की धूलगर्द झाड़तेपोंछते समय उसे जरूर याद किया जाता होगा. कभी आंगन में लगाया गया आम का पौधा बढ़तेबढ़ते आज वृक्ष का रूप ले चुका था. उस में फल आने लगे थे और प्रत्येक फल की मिठास में एक विशेष मिठास थी, उस की याद की, उस घर की बेटी की यादों की.

इस तरह वह पत्र पूरा हो चला था, जगहजगह आंखों से टपके आंसू की मुहरों के साथ. उस पत्र में ज्योति ने अपने अब तक के जीवन की पुस्तक का एकएक पृष्ठ खोल कर रख दिया था, कहीं कोई दाग न था. वह पत्र मात्र पत्र न था, कुछ सिद्धांतों का दस्तावेज था. उस के अपने आत्मविश्वास की प्रतिछवि था वह. उस में आह्वान था एक नए आकार का, जिस के तले नई सुबहें होती हों, नई रातें आती हों. उस के तले जीने वाला जीवन, जीवन कहे जाने योग्य हो. ऐसा जीवन, जो केवल अपने लिए न हो कर दूसरों के लिए भी हो.

ज्योति ने उस पत्र की प्रतिलिपि को अपने पास सहेज कर एक हितैषी द्वारा दूसरे शहर के डाकघर से भिजवा दिया था.

7 दिन बीत चुके थे. इस बीच ज्योति के मन के भीतर विचित्र अंतर्द्वंद्व चलता रहा था. कौन जाने उस के पत्र की प्रतिक्रिया घर वालों पर क्या हुई होगी. पत्र अब तक तो पहुंच चुका होगा. 33 किलोमीटर दूर स्थित दूसरे शहर के डाकघर से पत्र भेजने का अभिप्राय केवल इतना था कि वह पत्र का उत्तर आए बिना, अपना असली पता नहीं देना चाहती थी. जवाब के लिए भी उस ने दूसरे शहर में रहने वाले एक ऐसे सज्जन महेंद्र का पता दिया था जो उसे असली पते पर पत्र भेज देते.

ज्योति एकएक दिन उंगलियों पर गिनती रही थी. अब तक तो पत्रोत्तर आ जाना चाहिए था. क्यों नहीं आया था? उस के पत्र ने घर की शांति तो नहीं भंग कर दी थी? नहीं, नहीं, ऐसा नहीं हो सकता. निश्चय ही उस के हाथ की लिखावट देखते ही उस की मां ने पत्र को चूम लिया होगा. फिर खूब रोई होंगी. पिता को भलाबुरा सुनाया होगा. खुशामद की होगी कि जा कर बेटी को लिवा लाएं. पिता ने कहा होगा कि बेटी ने सौगंध दी है कि उसे केवल पत्रोत्तर चाहिए. उत्तर के स्थान पर कोई उसे लिवाने न आए. यहां आना या न आना, उस का अपना निर्णय होगा.

फिर भी पिता के मन में छटपटाहट जागी होगी कि चल कर देखें अपनी बेटी को. अनायास पिता का भूलाबिसरा वास्तविक रूप उस को याद आ गया था. नहीं, नहीं, पिता मुझ तक आएं यह उन की शान के विरुद्ध होगा. पत्र पढ़ कर जब मां रोई होंगी तब पिता की दबंग आवाज ने मां को डांट दिया होगा. परंतु वह खुद भी भावुक होने से न बच पाए होंगे.

आगे पढ़ें- मां के सो जाने के बाद उन्होंने भी लुकछिप कर…

Valentine’s Day: नया सवेरा- भाग 1

आज रोहित ने मु झ से वह कह दिया जिसे शायद मैं शायद सुनना भी चाहती थी और शायद नहीं भी. दिल तो कह रहा था कि उसी क्षण उस के साथ हो ले, पर हमेशा की तरह दिमाग ने उसे फिर जकड़ लिया, और हमेशा की तरह दिल हार गया. हालांकि वह उदास हो गया पर उदास होना तो इस दिल की नियति ही थी. जब भी मेरे दिल ने उन्मुक्त आसमान में स्वच्छंद उड़ान भरना चाही, जब भी मेरे दिल ने गुब्बारे की तरह हलका हो कर बिना कुछ सोचे, बिना कुछ सम झे हवा के वेग के साथ अपने को खुले आसमान में छोड़ना चाहा या जब भी मेरे दिल ने रोहित की बांहों में छिप कर जीभर कर रो लेना चाहा, हर बार इस दिमाग ने मेरे मन की भावनाओं को इतना जकड़ लिया कि मन बेचारा मन मार कर ही रह गया. मैं आखिर ऐसी क्यों हूं? मात्र 23 वर्ष की तो हुई हूं. मेरी उम्र की लड़कियां जिंदगी को कितना खुल कर जीती हैं, उठती लहरों की तरह लापरवाह, सुबह की पहली किरण की तरह उम्मीदों से भरी, पलपल को खुल कर जीती हैं. आखिर यह सब मेरी नियति में क्यों नहीं? परंतु मैं नियति को दोष क्यों दूं?

आखिर किस ने मु झे रोका है? आखिर किस को मेरी चिंता है? पापा, जिन से एक छत के नीचे रहते हुए भी शायद ही कभी मुलाकात होती है, या छोटी मां जिन्होंने न ही मु झे कभी रोका है, न ही कभी किसी बात के लिए टोका है. हम तीनों कहने को तो एक ही घर में रहते थे पर परिवार जैसा कुछ नहीं हमारे बीच, बिलकुल पटरियों की तरह जो एकसाथ रह कर भी कभी नहीं मिलतीं.

अपने कमरे में बैठी मैं आज जब अपने मन के डर को कुरेदना चाहती थी, उस से जीतना चाहती थी, तब अनायास ही मेरी नजर मां की तसवीर पर पड़ी. कितना प्यार करती थीं मु झ से, मेरी पसंद का भोजन बनाने से ले कर मु झे पार्क में ले कर जाना, मेरे साथ खेलना, मु झे पढ़ाना, मानो उन की दुनिया मु झ से शुरू हो कर मु झ पर ही खत्म होती थी. पापा तो हो कर भी कभी नहीं होते थे. मैं ने कई बार मां को पापा के इंतजार में आंसू बहाते देखा. कई बार मैं उन से कहती, ‘मां, आप पापा के लिए क्यों रोती हैं? क्यों हमेशा मेरे जन्मदिन का केक काटने से पहले उन से बारबार घर आने की गुहार लगाती हैं, जबकि पापा कभी नहीं आते और कभी घर आते भी हैं तो अपने कमरे बंद रहते हैं. मां, आप पापा को छोड़ क्यों नहीं देतीं?’

मेरे ऐसा कहने पर मां मु झे प्यार से सम झातीं, ‘बेटी, मैं ने तुम्हारे पिता को अपना सबकुछ माना है. उन की महत्त्वाकांक्षाओं ने उन के रिश्तों की जगह ले ली है. मु झे उस दिन का इंतजार करना है जब उन का यह भ्रम टूटे कि वे अपने पैसों से सबकुछ खरीद सकते हैं. यदि हम लोग उन्हें छोड़ कर चले जाएंगे तो कल जब उन का यह भ्रम टूटेगा, वे अकेले पड़ जाएंगे. तब उन के साथ कौन होगा? और यह मैं नहीं देख सकती. मु झे अपने प्यार और समर्पण पर पूर्ण विश्वास है, वह दिन जरूर आएगा.’

11 वर्ष की आयु में मां की ये दलीलें मु झे बिलकुल सम झ में नहीं आतीं. आज याद करती हूं तो लगता है, इतना प्यार और इतना समर्पण, इतना निश्छल प्रेम और उस प्रेम को पाने के लिए इतना धैर्य, कैसे कर पातीं थीं मां ये सब? और आखिर क्यों करती थीं? क्यों उन्होंने उस इंसान के साथ अपनी जिंदगी खराब कर ली जिस की नजरों में मां की कोई इज्जत नहीं थी. जिस की नजरों में मां के लिए कोई प्यार नहीं था और न ही प्यार था अपनी बेटी के लिए.

वह इंसान तो केवल पैसों की मशीन बन कर रह गया था जिस के भीतर भावनाओं ने शायद पनपना भी बंद कर दिया था. और एक दिन अचानक कार ऐक्सिडैंट में मु झ से वह ममता की निर्मल छाया भी छिन गई. मात्र 12 वर्ष की थी मैं, खूब रोई, चिल्लाई पर मेरी पीड़ा सुनने वाला कौन था. जितनी मु झे पीड़ा थी उतना क्रोध भी था. क्रोध उस पिता पर जिन्होंने मेरी मां को आखिरी बार भी देखना उचित नहीं सम झा. विदेश गए थे वे, जब यह दुर्घटना घटी. मैं ने पापा से रोरो कर जल्दी से जल्दी आने की अपील की परंतु वे मु झे टालते रहे और अंत में नानाजी ने मां की अंत्येष्टि की. याद है मु झे कितना बिलखबिलख कर रोए थे नानाजी.

बारबार अपनी बेटी के मृत शरीर को देख कर माफी मांगते ही रहे कि कैसे उन्होंने अपनी फूल सी कोमल बेटी की शादी इस इंसान के साथ कर दी. उस के बाद नानाजी मु झे अपने साथ ले गए. परंतु कुछ ही वक्त बाद पश्चात्ताप में वे भी इस कदर जले कि यह प्यारभरा साया भी मु झ से छिन गया. तब कहीं जा कर पापा आए और मु झे अपने साथ घर ले गए. मैं अपने पापा से लिपट कर खूब रोई थी. तब पहली बार पापा ने मु झ से कहा था, ‘मां चली गईं तो क्या हुआ? तुम्हारे पापा हैं तुम्हारे पास. सब ठीक हो जाएगा, बेटा. हम जल्दी ही बंगले में शिफ्ट हो रहे हैं. वहां हमारा अपना बागान होगा. तुम वहां खूब खेलना.’

पापा आज पहली बार मु झ से प्यार से बोले थे. मु झे लगा कि शायद मां की तपस्या रंग ला रही है. शायद सच में पापा बदल गए हैं. शायद मां के जाने के बाद उन्हें अपनी गलती महसूस हुई. लेकिन, कुछ ही वक्त के बाद मैं यह सम झ गई कि ऐसा कुछ नहीं था.

पापा जैसे थे वैसे ही हैं. उन्होंने मु झे आश्रय जरूर दिया परंतु कभी मु झे स्नेह नहीं दिया. हमेशा की तरह फिर उन के पास समय नहीं था. धीरेधीरे अकेले रहने की मेरी आदत ही पड़ती गई. घर से स्कूल और स्कूल से घर. पापा शायद ही कभी मेरे स्कूल आए होंगे. न कभी अच्छे अंक लाने से मेरी पीठ थपथपाई गई, न ही कभी बुरे अंक लाने पर डांटा. हां, स्कूल में अन्य बच्चों के मातापिता को देखती तो बहुत तकलीफ होती. मां तो नहीं थीं पर पिता थे मेरे, जो हो कर भी नहीं थे.

कई बार टीचर ने मु झ से कहा, ‘प्रीति, तुम अपने पिता से कहना कि वे पेरैंट्सटीचर मीटिंग में आएं, सभी आते हैं.’ मैं चुप ही रहती. मानो मैं मन से हार चुकी थी. कौन पिता? कैसे पिता? धीरेधीरे ये सब खत्म हो गया. अब कोई मु झ से कुछ नहीं कहता. स्कूल वालों को टाइम पर फीस मिल रही थी और अब मेरे पिता शहर के जानेमाने रईस थे. उन्हें कोई क्या सिखाता. इसी बीच मेरी आया ने मु झे बताया कि पापा फिर शादी करने वाले हैं.

मेरा किशोरमन अपनी मां की जगह किसी और को कैसे दे सकता था. पापा से तो मैं ने कुछ नहीं कहा. परंतु मन ही मन ठान लिया कि वो औरत जो भी हो, पापा की पत्नी तो बन सकती है परंतु मेरी मां नहीं. मैं अपनी मां की जगह किसी और को कभी नहीं दूंगी. पापा ने मां की मृत्यु से 9 महीने बाद ही दूसरी शादी कर ली. वह कौन थी? कैसी थी? न तो मैं जानती थी और न ही जानना चाहती थी. मेरे स्कूल में कई लोग मु झ से पूछते लेकिन मैं चुप रहती. फिर उन्होंने पूछना भी बंद कर दिया. मैं कहीं न कहीं हीनभावना से ग्रस्त रहने लगी. मैं लोगों की भीड़ से बस भाग जाना चाहती थी. अकेलापन ही धीरेधीरे मु झे अपना सा लगने लगा. खैर, पापा ने छोटी मां से मेरा परिचय करवाया. ‘प्रीति, इन से मिलो. इन का नाम आशा है और आज से यही तुम्हारी मां हैं.’ मैं चुप रही. एक नजर भी उठा कर उस आशा को नहीं देखा. मैं अब घर में और कैद रहने लगी. स्कूल से आते ही अपने कमरे में चली जाती. बस, कभीकभार आशा आया से कुछ बात कर लेती. छोटी मां ने कभी मु झ से कुछ बात करने की कोशिश नहीं की. और समय गुजरता गया. पापा अब भी नहीं बदले. कई बार वे छोटी मां पर चिल्लाते. लगता था कि फिर वही सब दोहराया जा रहा है.

आगे पढें  छोटी मां को कभी मैं ने पापा की कमाई पर ऐशोआराम…

Serial Story: लाइफ कोच – भाग 1

आज औफिस का काम जल्दी निबट गया, तो नकुल होटल न जा कर जुहू बीच आ गया. बहुत नाम सुन रखा था उस ने मुंबई जुहू बीच का. यहां आते ही उसे एक अजीब सी शांति महसूस हुई. लोगों की भीड़भाड़ से दूर वह एक तरफ जा कर बैठ गया और आतीजाती लहरों को देखने लगा. कितना सुकून, कितनी शांति मिल रही थी उसे बता नहीं सकता था.

सब से बड़ी बात यह कि यहां उसे कोई रोकनेटोकने वाला नहीं था और न ही कोई सिर पर सवार रहने वाला. यहां तो बस वह था और उस की तनहाई. उस का मन कर रहा था यहां कुछ दिन और ठहर जाए या पूरी उम्र यहीं गुजार दे तो भी कोई हरज नहीं है. अच्छा ही है न, कम से कम ऐसे इंसान से तो छुटकारा मिल जाएगा जो हरदम उस के पीछे पड़ा रहता है. लेकिन यह संभव कहां था.

खैर, एक गहरी सांस लेते हुए नकुल आतेजाते लोगों को, भेलपूरी, पानीपूरी, सैंडविच का मजा लेते देखने लगा. अच्छा लग रहा था उसे. वहीं उधर एक जोड़ा दीनदुनिया से बेखबर अपने में ही मस्त नारियल पानी का मजा ले रहा था. वे जिस तरह से एकदूसरे की आंखों में आंखें डाले एक ही स्ट्रो से नारियल पानी शिप कर रहे थे, उस से तो यही लग रहा था दोनों एकदूसरे से बेइंतहा प्यार करते हैं. आंखों ही आंखों में दोनों जाने क्या बातें करते और फिर हंस पड़ते थे.

अच्छा है न, लोगों को पता भी नहीं चलता और 2 प्यार करने वाले आंखों ही आंखों में अपनी बातें कह देते हैं. मुसकराते हुए नकुल ने मन ही मन कहा, ‘चेहरा झठ बोल सकता है पर आंखें नहीं. यदि किसी व्यक्ति की बातों का सही और गहराई से अर्थ जानना हो तो उस के चेहरे को विशेष तौर पर आंखों को पढ़ना चाहिए. यदि 2 प्यार करने वाले आपस में एकदूसरे को अच्छी तरह समझते हैं तो उन्हें बोलने की कुछ भी जरूरत नहीं पड़ती.

कवि बिहारी अपनी कविता में ऐसे ही नहीं बोल गए हैं कि कहत, नटत, रीझत, खिजत, मिलत, खिलत, लजियात… भरे मौन में कहत हैं  नैनन ही सौ बात. हम भी तो कभी इसी तरह न्यू कपल थे. हम भी तो कभी इसी तरह एकदूसरे की आंखों को पढ़ा करते थे. लेकिन किरण ने अब मेरी आंखों को पढ़ना छोड़ दिया है, नहीं

तो क्या उसे नहीं पता चलता कि आज भी मैं उस से कितना प्यार करता हूं? सच कहूं तो वह मुझे मेरी पत्नी कम और हिटलर ज्यादा लगती है. डर लगता है मुझे उस से कि जाने कब, किस बात पर उखड़ जाए और फिर मेरा जीना हराम कर दे. छोटीछोटी बातों को बड़ा बना कर इतना ज्यादा बोलने लगती है कि मेरे कान सनसनाने लगते हैं.

नकुल अपनी सोच में डूबा हुआ था, तभी अचानक एक बौल उस से आ टकराई.

‘‘अंकल, प्लीज, थ्रो द बौल,’’ दूर खड़े उस बच्चे ने बड़ी मासूमियत से कहा, तो नकुल ने अपने पैर से उस बौल को ऐसा उछाला कि वह सीधे जा कर उस बच्चे के पास पहुंच गई.

ताली बजाते हुए उस बच्चे ने कहा, ‘‘अंकल यू आर द ग्रेट,’’ सुन कर नकुल हंस पड़ा.

‘‘अंकल, जौइन मी,’’ उस 10 साल के बच्चे ने नकुल की तरफ बौल फेंकते हुए बोला तो नकुल भी जोश में आ गया और उस के साथ खेलने लगा. देखतेदेखते कुछ और लोग भी उन के साथ जुड़ गए और सब ऐसे जोश में खेलने लगे कि पूछो मत.

‘‘अंकल, यू आर सच ए ग्रेट पर्सन,’’ कह कर उस बच्चे ने ताली बजाई तो बाकी लोग भी तालियां बजाने लगे.

अपनी एक छोटी सी जीत पर आज नकुल इसलिए खुशी से झम उठा, क्योंकि

उस की काबिलीयत की तारीफ हो रही थी और यहां कोई यह बोलने वाला नहीं था कि नकुल को यह जीत तो उस की वजह से मिली है. अपने हाथ उठा कर सब को बाय कह कर नकुल आगे बढ़ गया.

‘किसी को शायद नहीं पता, पर कालेज के समय में मैं बढि़या फुटबौल प्लेयर हुआ करता था. अपने कालेज का मैं लीडर था. कालेज के ज्यादातर लड़केलड़कियां मुझ से राय लिया करते थे. पढ़ाई में भी मैं अव्वल था, इसलिए तो कालेज के प्रिंसिपल का भी मैं फैवरिट हुआ करता था. लेकिन समय के साथ सब पर धूल चढ़ गई. आज वही पुराना वाला जोश पा कर बता नहीं सकता कि अपनेआप में मैं कितना स्फूर्ति महसूस कर रहा हूं. लेकिन मैं ये सब कैसे भूल गया कि मैं एक बेहतर खिलाड़ी के साथसाथ एक आजाद सोच वाला इंसान भी हुआ करता था,’ एक गहरी सांस लेते हुए नकुल इधरउधर देखने लगा. लोग जाने लगे, पर वह वहां कुछ देर और ठहरना चाहता था, क्योंकि उसे यहां अपार शांति महसूस हो रही थी.

समुद्र किनारे रेत पर बैठ कर अपनी उंगलियों से आढ़ीतिरछी लकीरें खींचते हुए नकुल सोचने लगा कि पहले उन के बीच कितना प्यार था. दो जिस्म एक जान हुआ करते थे दोनों. लेकिन आज कितना कुछ बदल गया है. आज किरण की नजरों में वह एक बेवकूफ इंसान है. कोई सलीका नहीं है उस में. कोई काम का आदमी नहीं रहा वह. ‘काश, मैं और किरण एक न हुए होते तो आज मैं वह न बन गया होता लोगों की नजरों में, जो मैं हूं ही नहीं,’ मन ही मन बोल नकुल आसमान की तरफ देखने लगा.

किरण और नकुल दोनों एक ही कंपनी में जौब करते थे. जब नकुल ने पहली बार किरण को कंपनी मीटिंग में देखा, तो उसे देखता ही रह गया. गोरी, लंबी कदकाठी, बड़ीबड़ी आंखें, खुले बाल और उस पर उस के बात करने के अंदाज से तो नकुल की आंखें ही चौंधिया गई थीं.

किरण भी नकुल का गठीला बदन, घुंघराले बाल और उस के बात करने के अंदाज से प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाई थी. कुछ ही महीनों में दोनों की मुलाकात बढ़तेबढ़ते ऐसे मुकाम पर पहुंच गई जहां अब एक दिन भी बिना मिले उन्हें चैन नहीं पड़ता था. औफिस के बाद वे घंटों व्हाट्सऐप पर चैटिंग के साथ फोन पर भी बातें करते. साथसाथ घूमनाफिरना, फिल्म देखना, शौपिंग करने जाना और छुट्टियों में किसी हिल स्टेशन पर एकदूसरे में खो जाना उन की आदतें बन चुकी थी. अकसर नकुल किरण को महंगेमहंगे गिफ्ट देता तो किरण भी उस के पसंद का उपहार लाना नहीं भूलती थी.

दीनदुनिया से बेखबर दोनों एकदूसरे की कंपनी खूब ऐंजौय करते थे. ऐसा लगता था कि वे एकदूसरे के लिए ही बने हैं और जन्मजन्मांतर तक वे कभी एकदूसरे से अलग नहीं होंगे. दोनों इतने अच्छे और प्यारे जीवनसाथी बनेंगे कि उन का पूरा जीवन खुशनुमा हो जाएगा. किरण बड़े हक से नकुल पर और्डर पर और्डर झड़ती, तो नकुल भी हंसतेहंसते उस के सारे नखरे उठाता था.

‘‘नहीं नकुल, मुझे तो शाहरुख खान की ही फिल्म देखनी है. सोच लो, नहीं तो मैं नहीं जाऊंगी, तुम अकेले ही जाओ फिल्म देखने,’’ नाक सिकोड़ते किरण बोली.

‘‘अरे यार, तुम लड़कियां भी न… फिल्म अच्छी हो या बुरी पर देखने जाना ही है, क्योंकि उस में शाहरुख खान जो है. देखो मेरी तरफ, क्या मैं शाहरुख खान से कोई कम हूं मेरी क… क… किरण…’’ बोल कर नकुल जोर से हंसने लगा था.

उस के डायलौग पर किरण भी खिलखिला कर हंस पड़ी और बोली, ‘‘बस… बस… बस… तुम से नहीं हो पाएगा मेरे शाहरुख… तुम तो रहने ही दो,’’

इस पर किरण को बांहों में भरते हुए नकुल बोला था कि कोई बात नहीं जो उस ने डायलौग कैसा भी मारा हो, पर किरण के लिए उस का प्यार तो सच्चा है न.

‘‘हूं… बात में दम है बौस,’’ कह कर किरण ने उस के सीने पर प्यार का एक घूंसा बरसाया.

नकुल ने खींच कर उसे अपनी मजबूत बांहों में भरते हुए चूम लिया.

सिनेमाहौल से बाहर निकलते हुए नकुल ने मुंह बनाते हुए कहा था, ‘‘मुझे फिल्म जरा भी पसंद नहीं आई.

‘‘वह तो मुझे भी नहीं आई, पर उस में शाहरुख खान तो था न,’’ बोल कर जब किरण हंसी तो नकुल उसे देखते रह गया.

आगे पढ़ें- हंसते वक्त किरण के बायां गाल पर…

Athiya Shetty-KL Rahul शादी के बाद साथ में नजर आए, फैन्स बोले- कौन कहेगा इनकी शादी हुई है…

बॉलीवुड एक्ट्रेस अथिया शेट्टी और भारतीय क्रिकेटर केएल राहुल ने बीती 23 जनवरी को शादी की थी. इसके बाद ये एक कपल अपने-अपने सोशल मीडिया अकाउंट से अपने प्री-वेडिंग फंक्शन की फोटोज फैंस के लिए शेयर कर रहा है. इसी बीच अथिया शेट्टी और केएल राहुल शादी के बाद पब्लिक प्लेस पर में साथ में नजर आए हैं. इन दोनों को देखते ही पैपराजी एक्टिव हो गए और दोनों को अपने कैमरे में कैद करने लगे. अथिया शेट्टी और केएल राहुल की नई तस्वीरें सोशल मीडिया पर सामने आई हैं.

 

 

View this post on Instagram

 

A post shared by rahul athiya🧿 (@rahiyaforever)

शादी के बाद डिनर पर जाते केएल राहुल- अथिया शेट्टी

केएल राहुल और आथिया शेट्टी की डिनर डेट के वीडियोज और फोटोज को कई पैपराजी ने अपनी इंस्टाग्राम अकाउंट्स पर शेयर किया है. वीडियो में देखा जा सकता है कि आथिया नीले और भूरे रंग की प्रिंटिड शर्ट और ब्लू डेनिम पहने हुए हैं. वहीं, केएल राहुल ब्लू डेनिम और सफेद रंग की सिंपल टी शर्ट पहने हुए नजर आ रहे हैं. वीडियो में आप देख सकते हैं कि अथिया फोटोग्राफर्स से पीछे हटने के लिए कह रही हैं. इसके बाद वह राहुल के साथ चेहरे पर एक बड़ी मुस्कान के साथ पोज देने के लिए रुकती हैं.

 

 

View this post on Instagram

 

A post shared by rahul athiya🧿 (@rahiyaforever)

फैंस ने किया कपल को ट्रोल

हालांकि, फैन्स आथिया शेट्टी और केएल राहुल को उनके कैजुअल कपड़ों के लिए ट्रोल कर रहे हैं. दरअसल, शादी के बाद एक साथ दोनों पहली बार नजर आए हैं, लेकिन दोनों ने ही काफी कैजुअल कपड़े पहने हुए हैं. आमतौर पर इससे पहले जब भी कोई सेलिब्रिटी कपल शादी के बाद पहली बार पैपराजी के सामने आया है तो पूरी तरह से तैयार होकर आता है. दुल्हन हाथ में चूड़ा, मांग में सिंदूर, गले में मंगलसूत्र और साड़ी या सूट-सलवार पहने हुए नजर आती है. वहीं, आथिया शेट्टी इससे बिल्कुल अलग जींस और शर्ट पहने हुए नजर आईं. इसके साथ ही ना उनकी मांग में सिंदूर था और ना ही गले में मंगलसूत्र. ऐसे में फैन्स ने उन्हें ट्रोल करना शुरू कर दिया. एक फैन ने वीडियो पर कमेंट करते हुए कहा कि कौन कहेगा इनकी शादी हुई है.

YRKKH: अपनी गलतियों की माफी मांगेगा अभी, अभिमन्यु जानेगा आभीर का सच!

टीवी सीरियल ये रिश्ता क्या कहलता है लगभग 14 सालों से दर्शकों के दिलों में राज कर रहा है. सीरियल में अब तक कई बार स्टार कास्ट में बदलाव हुआ है लेकिन हर बार सीरियल की कहानी ने लोगों का ध्यान खींच लिया. ये रिश्ता क्या कहलाता है का करेंट ट्रैक अक्षरा और अभिमन्यु पर चल रहा है. दोनों एक-दूसरे से अलग हो चुके हैं लेकिन इन दोनों का आमना-सामना भी हो गया. बीते एपिसोड में देखने को मिला था कि अभि अक्षरा से माफी मांगता है क्योंकि उसने तलाक के समय अक्षु पर कई गंभीर आरोप लगाए थे. इस सीन पर ही बीता एपिसोड खत्म हो गया था. लेकिन अब कहानी में एक बड़ा ट्विस्ट आने वाला है. आइए आपको बताते हैं कि अपकमिंग एपिसोड में क्या-क्या होने वाला है.

 

अभिमन्यु को खरी-खोटी सुनाएगी अक्षरा

ये रिश्ता क्या कहलाता है (Yeh Rishta Kya Kehlata Hai) के अपकमिंग एपिसोड में देखने को मिलेगा कि अक्षु से माफी मांगने के बाद अभिमन्यु चला जाता है. तो वहीं अक्षरा सोच में रह जाती है. लेकिन वह अभि को हर सवाल का जवाब देना चाहती है इसलिए वह उसके पीछे भागती है और फिर एक जगह पर उसे अभि की कार दिखती है. यहां पर वह अभिमन्यु से साफ कहती है कि वह उसे माफ नहीं कर सकती. अक्षरा कहती है कि जिस तरह छह साल से दर्द में वह जी रही है उसी तरह उसे भी जीना होगा. और इसी तरह यहां से जाना भी होगा.

 

अभिनव के सामने आएगी अभिमन्यु की सच्चाई

वहीं, जहां अक्षरा अभिमन्यु से बात कर रही होती है तो घर पर अभिनव के सामने सारी सच्चाई आ जाती है. वह बैठा-बैठा सारी पुरानी बातों को जोड़ने लग जाता है, जिससे उसे पता चलता है कि अभिमन्यु ही अक्षरा का अभि है. इसके बाद वह अक्षु को बाहर ढूंढने निकल जाता है. लेकिन उसे अक्षरा नहीं मिलती। हालांकि, जब वह घर लौटता है तो अक्षु घर ही होती है. इसके बाद दोनों के बीच अभिमन्यु को लेकर बात होती है. इस मौके पर अक्षु उससे माफी मांगती है क्योंकि उसने अभिनव को सारी सच्चाई नहीं बताई.

अभिमन्यु को पता चलेगा अभीर का सच

ये रिश्ता क्या कहलाता है में एक और बड़ा ट्विस्ट आने वाला है. सीरियल में जैसे ही अभिनव को सारी सच्चाई पता चलेगी तो वह अभिमन्यु को अभीर के बारे में बताने की बात करेगा. वह अक्षरा से कहता है कि अभि को पता होना चाहिए कि अभीर उसका ही बेटा है. हालांकि इसके लिए अक्षु मना कर देती है.

क्या बहू-बेटी नहीं बन सकती

लेखक- डा. अर्जनिबी युसुफ शेख

कमरे से धड़ाम से प्लेट फेंकने की आवाज आई. बैठकरूम में टीवी देख रहे भाईबहनों के बीच से उठ कर आसिम आवाज की दिशा में कमरे में चला गया. आसिम के कमरे में जाते ही उस की बीवी रजिया ने फटाक से दरवाजा बंद कर दिया. यह आसिम की शादी का दूसरा ही दिन था.

आसिम की बीवी रजिया देखने में बड़ी खूबसूरत थी. उस की खूबसूरती और बातों पर फिदा हो कर ही आसिम ने उस से शादी के लिए हां भर दी थी. वैसे वह आसिम की भाभी की बहन की बेटी थी. बड़ी धूमधाम से दोनों की शादी हुई. घर में नई भाभी के आ जाने से आसिम के भाई और आसिम के मामू के बच्चे यानी मुमेरे भाईबहन भी बहुत खुश थे.

आसिम के घर में सगे और ममेरे भाईबहनों के बीच कोई भेद नहीं था. एक बाड़े में भाईबहन के अलगअलग घर थे परंतु साथ ऐसे रहते थे जैसे सब एक ही घर में रहते हों.

सब साथ खाना खाते, साथ खेलते, साथ मेले में जाते थे. फूप्पी भाई के बच्चों को भी अपने बच्चों की तरह संभाला करती और भाभी भी ननद के बच्चों को अपने बच्चों जैसा ही प्यार करती. वास्तव में बच्चों ने भेदभाव देखा ही नहीं था. इसलिए उन्हें यह कभी एहसास हुआ ही नहीं

कि वे सगे भाईबहन नहीं बल्कि मामूफूप्पी के बच्चे हैं.

अगले दिन शाम के समय जब फिर सब भाईबहन टीवी देखने बैठे तो आसिम कमरे में ही रहा. वह सब के बीच टीवी देखने नहीं आया. इस के अगले दिन फिर सब एकत्रित अपनी पसंद का सीरियल देखने साथ बैठे ही थे कि आसिम की बीवी दनदनाती आई और रिमोट से अपनी पसंद की मूवी लगा कर देखने बैठ गई.

आसिम की अम्मीं ने जब यह देखा तो वे बहू से कहने लगीं, ‘‘बेटा, सब जो सीरियल देख रहे हैं वही तू भी थोड़ी देर देख ले. सीरियल देखने के बाद चले जाते हैं बच्चे.’’

बातबात पर लड़ाई

दरअसल, आसिम के मामू के यहां टीवी नहीं था और न ही उन्हें अलग से टीवी लेने की जरूरत महसूस हुई कभी. एक टीवी के ही बहाने अपना पसंदीदा सीरियल या कोई खास मूवी देखने सब एक समय बैठक में नजर आते थे. अगले दिन फिर जब सब उसी वक्त टीवी देखने बैठे तो आसिम की बीवी रजिया ने आ कर टीवी बंद कर दिया. सब चुपचाप बाहर निकल गए. धीरेधीरे सब की समझ में आ गया कि रजिया भाभी को सब का बैठना अखरता है.

दोपहर के समय पार्टी मामू के यहां जमती थी. रजिया को आसिम का मामू के यहां बैठना भी अखरता. वह बुलाने चली जाती. आसिम उठ कर नहीं आता तो उस की बड़बड़ शुरू हो जाती. सुबह देर तक सोना, उठ कर सास द्वारा बना कर रखा हुआ खाना खाना और कमरे में चले जाना. न 2 देवरों की उसे कोई फिक्र थी न सासससुर से कुछ लेनेदेने की परवाह.

कुछ समय बाद छोटे भाई की शादी हुई. नई बहू ने धीरेधीरे घर को संभाल लिया. हर काम में सब की जबान पर छोटी बहू अमरीन का ही नाम रहता. अमरीन के साथ घर के सदस्यों का हंसनाबोलना रजिया को अखरने लगा. वह बातबात पर अमरीन से झगड़ने लगती.

सास को लगा समय के साथ या औलाद होने पर रजिया सुधर जाएगी. वह 3 साल में 2 बेटियों की मां बन गई, लेकिन उस के व्यवहार में कोई उचित परिवर्तन नहीं हुआ. किसी न किसी बात से रोज किसी न किसी से लड़ना, इस की बात उस से कहना और तिल का पहाड़ बना देना उस की आदत बन चुकी थी. झगड़ा भी खुद करती और अपनी मां को घंटों फोन पर जोरजोर से सुनाने बैठ जाती. पूरा घर उस की बातबात पर लड़ाई से परेशान हो चुका था.

अच्छी है समझदारी

अयाज एक पढ़ालिखा लड़का है. औनलाइन वर्क में वह थोड़ाबहुत कमा लेता है. घर में 2 भाभियां हैं. दोनों के 3-3 बच्चे हैं. छोटी बहू का छोटा बच्चा बहुत छोटा है, इसलिए वह सासससुर को चायनाश्ता जल्दी दे नहीं पाती. बड़ी बहू अपने 3 बच्चों के साथ सासससुर और देवर का भी ध्यान करती है. वालिदैन ने चाहा अब छोटे की शादी करवा देनी चाहिए ताकि बड़ी बहू के काम में कुछ आसानी हो जाए. काफी लड़कियां अयाज को दिखाई गईं. लेकिन उसे एक भी पसंद नहीं आई.

2 महीने बाद एक दोस्त ने फिर एक लड़की दिखाई. वह गांव में बेहद गरीब परिवार से थी. अयाज को वह पसंद आ गई. अयाज ने लड़की को एक मोबाइल दिला दिया. दोनों घंटों बातें करते. रिश्ता पक्का हुआ ही था कि कोरोना के चलते लौकडाउन लग गया. अयाज जल्दी शादी के लिए उत्सुक था. लौकडाउन में जरा सी ढील मिलते ही अयाज के साथ मां और दोनों भाई गए और दुलहन को निकाह पढ़ा कर ले आए. दुलहन के वालिदैन गरीब थे, इसलिए कुछ भी साथ न दे सके. रस्मों और विदाई का छोटा सा खर्च भी अयाज को ही करना पड़ा.

अयाज के वालिदैन यह सोच कर खुश थे कि अयाज की बीवी रेशमा गरीब घर से होने के कारण यहां खातेपीते घर में खुश रहेगी. वैसे भी घर में है ही कौन? 2 बड़ी बहुएं, वे भी अलगअलग. तीनों बेटियां अपनेअपने घर. इस छोटी बहू से उम्मीद थी कि उस के आने से काम में थोड़ी आसानी हो जाएगी.

अयाज का निकाह होना था कि वह जैसे सब को भूल गया. दूसरे दिन से अयाज के कमरे का दरवाजा अकसर लगा रहने लगा. अयाज आवाज देने पर बाहर आता. भाभी का बनाया हुआ खाना कमरे में ले जाता और दोनों बड़ी बैठ कर खाना खाते.

बात का बतंगड़

15 दिन बीत चुके थे. अयाज ने भाभी से कह दिया कि उन दोनों का खाना न बनाए. वह दोनों के लिए बाहर से खाना ले आता और सीधा  कमरे में चला जाता. वालिदैन बड़ी बहू के भरोसे बैठे रहते, लेकिन अयाज पूछता तक नहीं.

शायद अयाज की बीवी रेशमा को डर था  कि वह सब से छोटी बहू होने के कारण सासससुर की जिम्मेदारी उसी पर न पड़ जाए. वह कमरे के बाहर भी नहीं निकलती. एक बार सास ने जरा सा कह दिया कि ऐसे तौरतरीके नहीं होते. खानदानी बेटियां ससुराल में अपने मांबाप का नाम रोशन करती हैं. यह सुनना था कि रेशमा ने बड़बड़ शुरू कर दी. अयाज के सामने सास की मुंहजोरी करने लगी.

अयाज ने उसे चुप करने की कोशिश की, लेकिन रेशमा को यह बुरा लग रहा था कि अपनी मां को कुछ कहने की जगह अयाज उसे चुप बैठने का बोल रहा है.

सास चुप हो गई थी, लेकिन रेशमा और अयाज में ठन गई. अयाज ने गाली देते हुए रेशमा को चुप होने के लिए कहा. लेकिन रेशमा ने उसी गाली को दोहराते हुए कह दिया, ‘‘होंगे तुम्हारे मांबाप.’’

गाली को प्रत्युत्तर में सुनते ही अयाज ने रेशमा को तमाचा जड़ दिया. थप्पड़ बैठते ही रेशमा गुस्से से लालपीली हो गई. उस ने तपाक से दरवाजा बंद किया और फल काटने के लिए रखा चाकू उठा कर खुद के हाथ की नस काटने की कोशिश करने लगी. अयाज चाकू छीनने लगा.

रेशमा गुस्से में बड़बड़ा रही थी, ‘‘अब एक को भी नहीं छोड़ूंगी. सब जाएंगे जेल.’’ बाहर भाभियां, दोनों भाइयों, सासससुर को कुछ सूझ नहीं रहा था कि क्या करें. अंदर से छीनाझपटी की आवाजें उन्हें परेशान कर रही थीं. छोटे बच्चे रोने लगे. दोनों भाइयों ने दरवाजा तोड़ दिया.

अयाज ने रेशमा के हाथ से चाकू छीन लिया, लेकिन इस छीनाझपटी में हलका सा चाकू उस के हाथ पर लग गया था जिस से खून निकल रहा था. सब ने राहत की सांस ली कि शुक्र है उस के हाथ की नस नहीं कटी. शादी के 20 ही दिन में इस हादसे से पूरा परिवार सहम और डर गया था. ऐसा झगड़ा उन्होंने अपने जीवन में कभी नहीं देखा था.

मन में डर

समीर बड़ी मेहनत व मशक्कत से अपने परिवार को संभाल रहा था. दोनों बड़े भाई उसी के पास काम करते थे. वालिदैन, 3 भाई, 2 बड़ी भाभियां, उन के 4 बच्चे और 4 बहनों से परिपूर्ण परिवार में गरीबी थी पर सुकून था. अब तक 3 बहनों की शादी वे कर चुके थे. बड़ी बहन घर की जिम्मेदारी निभा रही थी, इसलिए उसे पहले अपनी छोटी बहनों की शादी करनी पड़ी. समीर हर एक काम बहन से सलाह ले कर करता. दिनबदिन तरक्की करते हुए वह अब ग्रिल वैल्डिंग ऐंड फिटिंग का बड़ा कौंट्रैक्टर बन गया.

रोज रात में सोने से पहले वह आंगन में जा कर किसी से बात करता है यह सब जानते थे. धीरेधीरे पता चला कि समीर किसी काम के सिलसिले में नहीं बल्कि किसी लड़की से बात करता है. समीर समझदार है वह किसी में यों ही नहीं फंसेगा, यह सोच कर किसी ने समीर से कुछ नहीं पूछा.

3 साल बीत गए. समीर के वालिद समीर की शादी के पीछे पड़ गए. समीर ने यह बात लड़की को बता दी. अब उस के फोन घर के नंबर पर भी आने लगे. वह दूर प्रांत से थी. घर के लोग चाहते थे समीर यहीं कि किसी अच्छी लड़की से शादी कर ले. समीर निर्णय नहीं ले पा रहा था. उसे डर था कि उस लड़की को वह करीब से जानता नहीं.

अगर उस की बात मान कर उस से शादी कर ले और बाद में वह इस से खुश न रहे तो? यह एक सवाल था जो समीर के मन को सशंकित किए हुए था और उसे उस लड़की से शादी करने से रोक रहा था. घर के लोग लड़की देख रहे थे और समीर हर किसी में कमी बताते हुए रिजैक्ट करता जा रहा था.

समीर की बड़ी बहन समीर के दिलोदिमाग को जानती थी. वह जानती थी कि किसी अन्य लड़की से शादी कर के समीर खुश नहीं रह पाएगा. 3 साल तक जिस से सुखदुख की हर बात शेयर करता रहा, उसे भुला देना आसान नहीं होगा समीर के लिए. उस ने फरहीन नामक उस लड़की से बात की और उसे साफतौर से कह दिया कि हमारे यहां और तुम्हारे यहां के माहौल में बहुत अंतर है. हमारे यहां लड़की जल्दी घर से बाहर नहीं निकलती. एक खुले माहौल में रहने के बाद बंद वातावरण में रहना तुम्हारे लिए मुश्किल होगा.

मगर फरहीन रोरो कर गिड़गिड़ाती रही, ‘‘बाजी मैं सब एडजस्ट कर लूंगी. किसी को शिकायत का मौका नहीं दूंगी.’’

तब समीर की बहन ने उस से कह दिया, ‘‘मैं कोशिश करती हूं घर के लोगों को समझने की, लेकिन वादा नहीं करती.’’

2 दिन बाद समीर की बहन ने समीर को समझने की कोशिश की और कहा उसी लड़की से शादी करनी होगी तुझे, जिसे तू ने अब तक आस में रखा. घर के सभी सदस्यों को राजी कर समीर के घर से 4 बड़े लोगों ने जा कर शादी की तारीख तय की.

हां और न की मनोस्थिति में समीर ने शादी कर ली. फरहीन दुलहन बन घर आ गई. लेकिन समीर फिर भी खुश नहीं था. फरहीन ज्यादा खूबसूरत नहीं थी और वह जानता था इस से भी अच्छी लड़की उसे आसानी से मिल सकती थी. किंतु यह भी तय था कि अगर फरहीन किए वादे निभाती है तो वह अपने दिमाग से यह सोच निकाल देगा.

समीर बाहर से आ कर थोड़ी देर बहन के पास बैठता था. यह उस की हमेशा की आदत थी. फरहीन को यह अखरने लगा. घर में किसी से भी जरा सी बात कर लेने पर उस का मुंह फूल जाता. बड़ी भाभी काम करती और वह आराम फरमाती. उसे सब में कमियां दिखाई देतीं और किसी न किसी की बात को पकड़ कर बड़बड़ाती रहती. जरा सी बात का बतंगड़ बना देती और इतनी जोरजोर से बोलती कि घर की खिड़कियां और दरवाजे बंद करने पड़ते.

अपने ही घर में पराए

घर के लोग अपने ही घर में पराए हो गए. उन्हें आपस की बात भी उस से छिप कर करनी पड़ती. इन हालात से तंग आ समीर ने तय कर लिया कि उसे मायके भेज कर फिर वापस नहीं लाना. लेकिन फरहीन के मायके जाने से पहले मालूम हुआ कि वह प्रैगनैंट है. समीर इस गुड न्यूज से खुश नहीं हुआ बल्कि उसे लगा कि वह फंस चुका है. ससुराल के लोगों को समीर से दूर रखने की कोशिश में फरहीन समीर के दिल से दूर होती जा रही थी.

वह नाममात्र के लिए ससुराल में थी दिलदिमाग उस का मायके में ही रहता. वह अपने भाईभाभियों को वालिदैन की ओर ध्यान देने की हिदायत करती. उन की समस्याएं सुनती, उन्हें समझती. अकसर वहां की खुशी और दुख उस के चेहरे से साफ समझे जा सकते थे.

समय के साथ फरहीन मां बन गई. लेकिन उस की आदतें नहीं बदलीं. बच्चे की जिंदगी बरबाद न हो यह सोच कर उसे सहना समीर

की जिंदगी का हिस्सा बन गया. वह ये सब अकेले सह भी लेता, किंतु खुद की बीवी द्वारा अपने घर के लोगों का चैनसुकून बरबाद होते देखना उस की मजबूरी बन चुकी थी. फरहीन

को एक शब्द कहना मतलब बड़े तमाशे के लिए तैयार होना था.

सवाल अहम है

सवाल यह है कि बेटी को क्या यही सीख मायके से मिलती है? ससुराल में आते ही घर की एकता को तोड़ने की कोशिश से क्या वह बहू अपना दर्जा और सम्मान पा सकती है? शौहर पर सिर्फ और सिर्फ मेरा अधिकार है यह समझना यानी शादी कर के क्या वह बहू शौहर को खरीद लेती है? क्या एक बेटी अपनी ससुराल में किए गए गलत व्यवहार से अपने पूरे गांव, गांव की सभी बेटियों को बदनाम नहीं करती?

जो बेटी ससुराल में रहते हुए अपने भाईभाभियों को वालिदैन का खयाल रखने की ताकीद करती है वह खुद अपने कर्मों की ओर ध्यान क्यों नहीं देती? एक बेटी जिस तरह निस्स्वार्थ रुप से परिवार के प्रत्येक सदस्य का सुखदुख समझ लेती है, घर को एकजुट और आनंदित रखने का प्रयास करती है तो क्या बेटी बहू बन ससुराल के घर में बेटी सा वातावरण

नहीं रख सकती? ससुराल में पदार्पण करते ही बेटी स्वार्थी बन अपना कर्तव्य, अपनी सार्थकता क्यों भूल जाती है? क्या बहू बेटी नहीं बन सकती?

बंदर भी करते है रिवेंज किलिंग, पढ़ें खबर

आपको जानकार हैरानी होगी कि केवल मानव जाति ही एक दूसरे की रिवेंज किलिंग नहीं करते, जानवर भी करते है. हालाँकि ऐसी घटनाएं कई बार बंदरों के साथ हुई है, जब उन्होंने अपने बच्चे की मरने की गम में रास्ते पर जाते हुए मनुष्य पर घात लगाकर वार किया, जिसमेवह खुद को बचाने में समर्थ नहीं हुए और उस इंसान की मृत्यु हो गयी.

ऐसी ही कुछ घटना घटी है महाराष्ट्र के बीड में, जहाँ तीन महीने से चली आ रही जंग अब ख़त्म हो चुकी है. 250 से अधिक पिल्लों की ‘रिवेंज किलिंग’में मार चुके दो खूंख्वार बंदरों को नागपुर वन विभाग ने पकड़ लिया है. इन बंदरों को नागपुर ले जाकर नजदीक के किसी जंगल में छोड़ दिया जाएगा.

बीड के लावूल गाँव में ये वार तब शुरू हुई जबकई कुत्तों ने मिलकर एक बंदर के बच्चे को मार डाला. इसके बाद ये दोनों बंदर जब भी किसी कुत्ते की पिल्ले को देखते थे, उन्हें उठा लेते थे और उन्हें किसी ऊँचे पेड़ या मकान के ऊपर ले जाकर नीचे गिरा देते थे. ऐसा करते-करते उन दो बंदरों ने तकरीबन 250 पिल्लों को मार डाला है.

गाँव वालों ने वन विभाग से इन बंदरों के बारें में शिकायत की, क्योंकि इन बंदरों ने पिल्लों को मारने के अलावा स्कूल जाने वाले कुछ बच्चों पर भी एटैक किया, ताकि लोग डरे और उन्हें इस काम में बाधा न डाले.

असल में बंदर किसी भी घटना को बहुत दिनों तक याद रखते है,उनकी याद रखने की शक्तितक़रीबन मनुष्य की तरह ही है. ऐसे में उनके बच्चे के साथ हुए किसी भी बात को वे सह नहीं पाते. कई बार उन्हें ये समझने में समय लगता है कि उनका बच्चा मर चुका है, क्योंकि मृत बच्चे को भी माँ अपने सीने से लगाये घूमती रहती है.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें