Winter Special: सर्दियों की परेशानियों को कहें बायबाय

पपड़ीदार व रूखी त्वचा, कटेफटे होंठ, फटी एडि़यां आदि ऐसी आम समस्याएं हैं, जिन का सामना सर्दियों में सभी को करना पड़ता है. सर्दियों में हम रूमहीटर और ब्लोअर का भी इस्तेमाल करते हैं. इस से हमारी त्वचा का रूखापन बढ़ता है, क्योंकि ये हमारी त्वचा से नमी सोखते हैं, जिस से त्वचा बेजान और पोषणविहीन हो जाती है. इसीलिए हम आप को कुछ टिप्स दे रहे हैं, जिन पर गौर कर आप सर्दी के मौसम में भी पा सकती हैं दमकती त्वचा:

त्वचा में नमी बनाए रखें

त्वचा शरीर का महत्त्वपूर्ण अंग है. इसे कोमल और पोषित बनाए रखने के लिए अतिरिक्त देखभाल की जरूरत होती है. क्रीमयुक्त मौइश्चराइजर, औयल बाथ और नहाते समय विटामिन ई युक्त बौडी वाश का इस्तेमाल करने से त्वचा में नमी बरकरार रहती है.

बौडी लोशन आप घर पर भी बना सकती हैं. औलिव औयल, आमंड औयल और विटामिन के कुछ कैप्सूल्स का ऐक्स्ट्रैक्ट अच्छी तरह मिलाएं. आप का बौडी लोशन तैयार हो गया.

इस मौसम में एक बार सैलून में जा कर फेशियल या बौडी मसाज कराना भी फायदेमंद रहता है. फेशियल के लिए आप रैडिएंस ग्लो फेशियल का चयन कर सकती हैं. इस में भरपूर ऐंटीऔक्सीडैंट्स होते हैं, जो त्वचा में नमी के स्तर को संतुलित रखते हैं. सर्दियों में कोकोआ बटर से बौडी मसाज कराने से बेहतर और कुछ नहीं हो सकता है. कोकोआ बटर त्वचा को कोमल तो बनाता ही है, उसे दागधब्बे और मृत कोशिकाओं से भी मुक्त करता है.

कोमल होंठ

सूखे, पपड़ीदार, कटेफटे होंठों की समस्या से छुटकारा पाने का सब से आसान तरीका है कि अपने हैंडबैग में छोटा सा लिप बाम रखें. प्राकृतिक रूप से होंठों में नमी लाने के लिए नियमित तौर पर नारियल या बादाम तेल लगाएं. इस से सूखे होंठ जल्दी भरते हैं और उन का कालापन भी दूर होता है.

फटी एडि़यां

फटी एडि़यां न केवल बदसूरत दिखती हैं बल्कि उन में दर्द भी होता है. इस की प्रमुख वजह होती है. सर्दियों में परेशानी ज्यादा हो जाती है. फटी एडि़यों की समस्या से छुटकारा पाने के लिए नियमित तौर पर उन की क्लीनिंग, स्क्रबिंग और मौइश्चराइजिंग जरूरी है. इस के लिए आप सैलून से इंटैंस मौइश्चराइजिंग पैडीक्योर करा सकती हैं.

इंटैंस मौइश्चराइजिंग पैडीक्योर से मांसपेशियों को आराम मिलना है. पैडीक्योर त्वचा में रक्तप्रवाह बढ़ा कर त्वचा को पोषण देता है. इस के अतिरिक्त नियमित रूप से पैट्रोलियम जैली, फुट क्रीम लगाने से भी फटी एडि़यों को आराम मिलता है. इस के अलावा धूल आदि से बचने के लिए मोजे या फिर बंद जूते पहनें.

हाथों, घुटनों और टखनों की देखभाल

अकसर सर्दियों में घुटने और टखने काले पड़ने लगते हैं. उन पर नीबू और शहद रगड़ने से उन का रंग निखरने के साथसाथ उन में नमी बरकरार रखने में मदद मिलती है.

किशोरावस्था में यौन संबंधों पर नियंत्रण

एक अध्ययन के अनुसार हाल के वर्षों में किशोरावस्था के लड़केलड़कियों में यौन संबंधों में तेजी से वृद्धि होने का मुख्य कारण विवाह की उम्र का बढ़ना है. जीव विज्ञानियों के अनुसार, बच्चे शारीरिक रूप से 13 साल की उम्र में परिपक्व हो जाते हैं और उन में सैक्स की इच्छा जाग्रत होने लगती है, जबकि अब उन का विवाह औसतन 27 वर्ष की उम्र में होता है. ऐसी स्थिति में वे इतने लंबे समय तक सैक्स की इच्छा को दबा पाने में असमर्थ होते हैं और वे यौन संबंध स्थापित कर लेते हैं.

अध्ययन में पाया गया है कि लड़कियों की तुलना में लड़के सैक्स संबंध में अधिक रुचि लेते हैं, जबकि लड़कियां भावनात्मक लगाव पसंद करती हैं. लेकिन लड़कियां जब लड़कों से भावनात्मक रूप से जुड़ती हैं, तो वे भी यौन संबंध की इच्छा प्रकट करने लगती हैं. आम धारणा है कि लड़कियां खुद को सैक्स से दूर रखना चाहती हैं, लेकिन इस का कारण परिवार और समाज का डर होता है. इसलिए इस से यह साबित नहीं होता कि लड़कियों में यौन इच्छा कम होती है.

कुछ लड़कियों का मानना है कि यौन संबंध के बगैर भी किसी लड़के से दोस्ती निभाई जा सकती है, लेकिन कुछ समय बाद भी जब लड़की यौन संबंध के लिए राजी नहीं होती है, तो उसे असामान्य मान लिया जाता है और उन की दोस्ती टूट जाती है. इसलिए मजबूरीवश भी लड़कियों को इस के लिए तैयार होना पड़ता है. कुछ लड़कों का कहना है कि लड़कियां शर्मीले स्वभाव की होती हैं, इसलिए वे सैक्स के मामले में पहल नहीं करती हैं, लेकिन बाद में इस के लिए तैयार हो जाती हैं.

किशोर लड़केलड़कियों के बीच यौन संबंध महानगरों में तो आम बात हैं ही, छोटे शहर व कसबे भी अब इन से अछूते नहीं हैं. कुछ लड़कों का कहना है कि कौमार्यता उन के लिए कोई माने नहीं रखती. शादी से पहले यौन संबंध बनाना कोई बुरी बात नहीं है. जबकि कुछ लड़कियों का कहना है कि इस मामले में लड़के दोहरा मानदंड अपनाते हैं. एक तरफ तो वे शादी से पूर्व शारीरिक संबंधों को बढ़ावा देते हैं, लेकिन शादी के मामले में वे ऐसी लड़की से ही शादी करना चाहते हैं, जिस ने शादी से पूर्व यौन संबंध स्थापित न किए हों.

यौन संबंधों की शुरुआत

किशोरावस्था के लड़केलड़कियों में यौन संबंधों की शुरुआत शारीरिक आकर्षण से होती है. जब लड़कालड़की एकदूसरे से सम्मोहित हो जाते हैं, तो वे एकदूसरे को प्यार से छूते और चूमते हैं और फिर बहुत जल्द ही उन में यौन संबंध कायम हो जाते हैं. लेकिन प्यार और दोस्ती उसी अवस्था में अधिक दिनों तक कायम रह पाती है जब शारीरिक संबंधों को महत्त्व न दिया जाए. जब प्यार पर सैक्स हावी हो जाता है तो जल्द ही उन का मन सैक्स से भर जाता है और संबंध टूट जाते हैं, क्योंकि यहां भावनात्मक लगाव कम या कह सकते हैं कि न के बराबर होता है. माना जाता है कि ऐसे मामलों में लड़कियां खुद को अधिक असुरक्षित महसूस करती हैं.

अधिकतर मामलों में वे लड़कों पर आंख बंद कर विश्वास नहीं करतीं. कभीकभी वे बड़ों से भी सलाह लेती हैं. लड़कियां किशोरावस्था में अपने व्यक्तित्व के विकास पर अधिक ध्यान देती हैं. वे लड़कों के बराबर चलना चाहती हैं. लेकिन इस का अर्थ यह नहीं है कि लड़कियां संबंध बनाने में दिलचस्पी नहीं लेतीं, बल्कि वे इस में बराबर की भागीदार होती हैं. कुछ लड़कों का तो यहां तक कहना है कि आज के समय में लड़कियां लड़कों से आगे हो गई हैं. वे लड़कों के बीच भेदभाव पैदा कर देती हैं. सैक्स एवं यौन संबंधों के बारे में जानकारी के मुख्य स्रोत टैलिविजन, पत्रपत्रिकाएं, सिनेमा आदि हैं. लेकिन सैक्स शिक्षा के अभाव तथा सही मार्गदर्शन न मिलने के कारण वे भटक जाते हैं. इस का सब से अधिक खमियाजा लड़कियों को भुगतना पड़ता है.

लड़कियां यौन संबंध स्थापित तो कर लेती हैं, लेकिन गर्भनिरोध की जानकारी के अभाव में वे गर्भवती हो जाती हैं. हालांकि अधिकतर मातापिता का यह कहना है कि भारत में गैरशादीशुदा किशोर लड़कियों में गर्भवती होने के बहुत कम मामले होते हैं. शिक्षकों का भी यही मानना है. इस का कारण यह है कि मातापिता और शिक्षक इस मामले में अनभिज्ञ होते हैं, क्योंकि अधिकतर मामलों में उन्हें पता ही नहीं होता कि उन के बच्चे शारीरिक संबंध बनाए हुए हैं. बच्चे भी डर से ऐसी बातें मातापिता या शिक्षकों को नहीं बताते. लड़केलड़कियां खुद ही गर्भपात कराने डाक्टर के पास चले जाते हैं. ऐसे मौके पर उन के दोस्त उन का साथ देते हैं. हालांकि कुछ मामलों में लड़कियां गर्भपात नहीं कराना चाहतीं, लेकिन चूंकि उन के पास दूसरा कोई उपाय नहीं होता, इसलिए अंतत: उन्हें गर्भपात कराना ही पड़ता है.

इंटरनैशनल प्लांड पैरेंटहुड फैडरेशन के अनुसार विश्व भर में हर साल कम से कम 20 लाख युवतियां गैरकानूनी गर्भपात कराती हैं. चिकित्सकों के अनुसार महिलाओं की तुलना में किशोरवय की लड़कियों में गर्भपात अधिक घातक साबित होता है. अवैध और असुरक्षित यौन संबंध एड्स का बहुत बड़ा कारण है. हालांकि एड्स के भय से अब एक ही साथी से यौन संबंध बनाने में लड़केलड़कियां अधिक रुचि रखने लगे हैं, फिर भी शारीरिक संबंध बनाने के समय वे कोई सावधानी नहीं बरतते. कुछ स्कूलों में बच्चों को एड्स के बारे में शिक्षा दी जाने लगी है और कुछ मातापिता भी अपने बच्चों को एड्स तथा सुरक्षित सैक्स की जानकारी देने लगे हैं. फिर भी एचआईवी के नियंत्रण के लिए चलाए जा रहे एकीकृत राष्ट्रीय कार्यक्रम के कार्यकारी निदेशक की रिपोर्ट के अनुसार एचआईवी के नए मामलों में 60% मामले 15 से 24 वर्ष के बीच के युवाओं के पाए गए. इन में लड़कों की तुलना में दोगुनी लड़कियों में एड्स के मामले पाए गए.

अधिकतर मामलों में मातापिता को पता नहीं होता कि उन के बच्चे शारीरिक संबंध स्थापित किए हुए हैं. फिर भी यदि मातापिता और शिक्षक चाहें तो सैक्स अपराध को कुछ हद तक नियंत्रित कर सकते हैं. इस के लिए बच्चों को समय पर उचित सैक्स शिक्षा दी जानी चाहिए. प्रतिकूल हालात में उन की मदद करनी चाहिए. इस के अलावा उन्हें अपनी ऊर्जा किसी खेल या इसी तरह के दूसरे किसी शौक में लगाने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए.

आज एड्स जैसी बीमारियों का प्रकोप तेजी से फैल रहा है. ऐसे में किशोरों में फैल रही यौन उच्छृंखलता पर नियंत्रण आवश्यक है. इस के लिए किशोरों को सैक्स से दूर रहने की शिक्षा देने या सैक्स के बारे में आधीअधूरी जानकारी देने के बजाय उन्हें सही अर्थों में सैक्स के बारे में ज्ञानवान बनाया जाना चाहिए ताकि वे अपने विवेक का इस्तेमाल करते हुए सही मार्ग अपना सकें.

अपना कौन: मधुलिका आंटी का अपनापन

मम्मीपापा अचानक ही देहरादून छोड़ कर दिल्ली आ बसे. यहां का स्कूल और सहेलियां कशिश को बहुत पसंद आईं. देहरादून पिछली कक्षा की किताबों की तरह पीछे छूट गया. बस, मधुलिका आंटी की याद गाहेबगाहे आ जाती थी.

‘‘देहरादून से सभी लोग आप से मिलने आते हैं. बस, मधुलिका आंटी नहीं आतीं,’’ कशिश ने एक रोज हसरत से कहा.

‘‘मधुलिका आंटी डाक्टर हैं और देवेन अंकल वकील. दोनों ही अपनी प्रैक्टिस छोड़़ कर कैसे आ सकते हैं?’’ मां ने बताया.

मां और भी कुछ कहना चाह रही थीं लेकिन उस से पहले ही पापा ने कशिश को पानी पिलाने को कहा. वह पानी ले कर आई तो सुना कि पापा कह रहे थे, ‘कशिश की यह बात तुम मधु को कभी मत बताना.’

कशिश को समझ में नहीं आया कि इस में न बताने वाली क्या बात थी.

जल्दी ही उम्र का वह दौर शुरू हो गया जिस में किसी को खुद की ही खबर नहीं रहती तो मधु आंटी को कौन याद करता.

मम्मीपापा न जाने कैसे उस के मन की बात समझ लेते थे और उस के कुछ कहने से पहले ही उस की मनपसंद चीज उसे मिल जाती थी. उस की सहेलियां उस की तकदीर से रश्क किया करतीं. कशिश का मेडिकल कालिज में अंतिम वर्ष था. मम्मीपापा दोनों चाहते थे कि वह अच्छे नंबरों से पास हो. वह भी जीजान से पढ़ाई में जुटी हुई थी कि दादी के मरने की खबर मिली. दादादादी अपने सब से छोटे बेटे सुहास और बहू दीपा के साथ चंडीगढ़ में रहते थे. पापा के अन्य भाईबहन भी वहां पहुंच चुके थे. घर में काफी भीड़ थी. दादी के अंतिम संस्कार के बाद दादाजी ने कहा, ‘‘शांति बेटी, तुम्हारी मां के जो जेवर हैं, मैं चाहता हूं कि वह तुम सब आपस में बांट लो. तू सब से बड़ी है इसलिए सब के जाने से पहले तू बराबर का बंटवारा कर दे.’’

रात को जब कशिश दादाजी के लिए दूध ले कर गई तो दरवाजे के बाहर ही अपना नाम सुन कर ठिठक गई. दादाजी शांति बूआ से पूछ रहे थे, ‘‘तुझे कशिश से चिढ़ क्यों है. वह तो बहुत सलीके वाली और प्यारी बच्ची है.’’

‘‘मैं कशिश में कोई कमी नहीं निकाल रही पिताजी. मैं तो बस, यही कह रही हूं कि मां के गहने हमारी पुश्तैनी धरोहर हैं जो सिर्फ  मां के अपने बच्चों को मिलने चाहिए, किसी दूसरे की औलाद को नहीं. मां के जो भी जेवर अभी विभा भाभी को मिलेंगे वह देरसवेर देंगी तो कशिश को ही, यह नहीं होना चाहिए.’’ शांति बूआ समझाने के स्वर में बोलीं.

कशिश इस के आगे कुछ नहीं सुन सकी. ‘दूसरे की औलाद’ शब्द हथौड़े की तरह उस के दिलोदिमाग पर प्रहार कर रहा था. उस ने चुपचाप लौट कर दूध का गिलास नौकर के हाथ दादाजी को भिजवा दिया और सोचने लगी कि वह किसी दूसरे यानी किस की औलाद है.

दूसरी जगह और इतने लोगों के बीच मम्मीपापा से कुछ पूछना तो मुनासिब नहीं था. तभी दीपा चाची उसे ढूंढ़ती हुई आईं और बरामदे में पड़ी कुरसी पर निढाल सी लेटी कशिश को देख कर बोलीं, ‘‘थक गई न. जा, सो जा अब.’’

तभी कशिश के दिमाग में बिजली सी कौंधी. क्यों न दीपा चाची से पूछा जाए. दोनों की उम्र में ज्यादा फर्क न होने के कारण उस की दीपा चाची से बहुत बनती थी और पिछले 3-4 रोज से एकसाथ काम करते हुए दोनों में दोस्ती सी हो गई थी.

‘‘आप से कुछ पूछना है चाची, बताएंगी ?’’ उस ने निवेदन करने के अंदाज में कहा.

‘‘जरूर,’’ दीपा ने प्यार से उस का सिर सहलाया.

‘‘मैं कौन हूं?’’

कशिश के इस प्रश्न से दीपा चौंक पड़ी फिर संभल कर बोली, ‘‘मेरी प्यारी भतीजी, कशिश.’’

‘‘मगर मैं आप की असली भतीजी तो नहीं हूं न, क्योंकि मैं डा. विकास और डा. विभा की नहीं किसी दूसरे की औलाद…’’

‘‘यह तू क्या कह रही है?’’ दीपा ने बात काटी.

‘‘जो भी कह रही हूं  चाची, सही कह रही हूं’’ और कशिश ने शांति बूआ और दादाजी के बीच हुई बातचीत दोहरा दी.

दीपा झल्ला कर बोली, ‘‘तुम्हारी शांति बूआ को भी बगैर बवाल मचाए खाना नहीं पचता…’’

‘‘उन्होंने कोई बवाल नहीं मचाया, चाची, सिर्फ सचाई बताई है पर अगर आप मुझे यह नहीं बताएंगी कि मैं किस की औलाद हूं तो बवाल मच सकता है.’’

‘‘मैं जो बताऊंगी उस पर तू यकीन करेगी?’’

अगर यकीन नहीं करना होता तो आप से पूछती ही क्यों? असलियत जानने के बाद मैं मम्मीपापा से कुछ नहीं पूछूंगी और कम से कम यहां तो कतई नहीं.

‘‘कभी भी और कहीं भी नहीं पूछना बेटे, वरना वे बहुत दुखी होंगे कि शायद उन की परवरिश में ही कोई कमी रह गई. तुम डा. मधुलिका और देंवेंद्र नाथ वर्मा की बेटी हो. विभा भाभी और मधुलिका बचपन की सहेलियां हैं. यह स्पष्ट होने पर कि बचपन में हुई किसी दुर्घटना के चलते विभा भाभी कभी मां नहीं बन सकतीं, मधुलिका ने उन की गोद में तुम्हें डाल दिया था. विभा भाभी और विकास भाई साहब ने तुम्हें शायद ही कभी शिकायत का मौका दिया हो.’’

कशिश ने सहमति में सिर हिलाया.

‘‘मम्मीपापा से मुझे कोई शिकायत नहीं है लेकिन मधु आंटी ने मुझे क्यों और कैसे दे दिया?’’

‘‘दोस्ती की खातिर.’’

‘‘दोस्ती ममता से ज्यादा…’’

तभी अंदर से बहुत उत्तेजित स्वर सुनाई देने लगे. सब से ऊंचा स्वर विकास का था.

‘‘मेरे लिए मेरे जीवन की सब से अमूल्य निधि मेरी बेटी है, जिस के लिए मैं देहरादून से सरकारी नौकरी छोड़ कर चला आया. उस के लिए क्या चंद गहने नहीं छोड़ सकता? मैं कल सवेरे यानी आप के बंटवारे से पहले ही यहां से चला जाऊंगा’’

‘‘लेकिन मां की उठावनी?’’ शांति बूआ ने पूछा.

‘‘उस के लिए आप सब हैं न. मां की अंत समय में सेवा कर ली, मेरे लिए यही बहुत है,’’ विकास ने कड़वे स्वर में कहा, ‘‘जो लोग मेरी बेटी को पराया समझते हों उन के साथ रहना मुझे गवारा नहीं है.’’

दीपा ने कशिश की ओर देखा और उस ने चुपचाप सिर झुका लिया.

‘‘यह अब नहीं रुकेगा. रोक कर शांति तुम बात मत बढ़ाओ,’’ दादाजी का स्वर उभरा. उसी समय विकास कशिश को पुकारता हुआ वहां आया और उसे इस तरह बांहों में भर कर अपने कमरे में ले गया जैसे कोई कशिश को उस से छीन न ले, ‘‘कल हम दिल्ली लौट रहे हैं कशिश, सो अब तुम सो जाओ. सुबह जल्दी उठना होगा,’’ विकास ने कहा.

‘‘जी, पापा,’’ कशिश ने कहा और चुपचाप बिस्तर पर लेट गई. विकास ने बत्ती बुझा दी.

‘‘विकास,’’ कुछ देर के बाद विभा का स्वर उभरा, ‘‘मुझे लगता है इस तरह लौट कर तुम सब की भावनाओं को ठेस पहुंचा रहे हो.’’

‘‘शांति बहनजी ने जिस बेदर्दी से मेरी भावनाओं को कुचला है न उस के मुक ाबले में मेरी ठेस तो बहुत मामूली है,’’ विकास ने तल्खी से कहा, ‘‘जो भी मेरी बेटी को नकारेगा उसे मैं कदापि स्वीकार नहीं करूंगा… चाहे वह कोई भी हो… यहां तक कि तुम भी.’’

अगली सुबह उन्हें विदा करने को केवल दादाजी, सुहास और दीपा ही थे और सब शायद अप्रिय स्थिति से बचने के लिए नींद का बहाना कर के उठे ही नहीं.

घर आ कर विभा और विकास अपने काम में व्यस्त हो गए और कशिश पढ़ाईर् में. हालांकि कशिश को लग रहा था कि चंडीगढ़ से लौटने के बाद पापा उसे ले कर कुछ ज्यादा ही पजेसिव हो गए हैं लेकिन वह अपने असली मातापिता से मिलने और यह जानने को बेचैन थी कि उन्होंने उसे अपनी गोद से उठा कर दूसरे की गोद में क्यों डाल दिया? उस ने मम्मी की डायरी में से मधुलिका मौसी का फोन नंबर और पता तो नोट कर लिया था मगर वह खत या फोन के जरिए नहीं, स्वयं मिल कर यह बात पूछना चाहती थी.

परीक्षा सिर पर थी और पढ़ाई में दिल नहीं लग रहा था. कशिश यही सोचती रहती थी कि क्या बहाना बना कर देहरादून जाए. समीरा उस की खास सहेली थी. उस से कशिश की बेचैनी छिप नहीं सकी. उस के पूछने पर कशिश को बताना ही पड़ा.

‘‘समझ में नहीं आ रहा कि देहरादून किस बहाने से जाऊं.’’

‘‘तू भी अजब भुलक्कड़ है. कई बार तो बता चुकी हूं कि सालाना परीक्षा खत्म होते ही मेरे बड़े भाई की शादी है और बरात देहरादून जाएगी. मैं तुझे बरात में ले चलती हूं. वहां जा कर तू जहां कहेगी तुझे पहुंचवाने का इंतजाम करवा दूंगी. सो अब सारी चिंता छोड़ कर पढ़ाई कर.’’

समीरा की बात से कशिश को कुछ राहत मिली. और फिर शाम को समीरा उस के मम्मीपापा से मिल कर बरात में चलने की स्वीकृति लेने उस के घर आ गई.

‘‘बरात में जाने के बारे में सोचने के बजाय फिलहाल तो तुम दोनों पढ़ाई में ध्यान लगाओ,’’ पापा ने समीरा की बात सुन कर बड़े प्यार से दोनों का सिर सहलाया.

‘‘अंतिम साल की परीक्षा है. इस के नतीजे पर तुम्हारा पूरा भविष्य निर्भर करता है. कशिश को तो मैं कार्डियोलोजी में महारत हासिल करने के लिए अमेरिका भेज रहा हूं. तुम्हारा क्या इरादा है, समीरा?’’

‘‘अगर मैं भी कार्डियोलोजिस्ट बन गई अंकल, तो मुझ में और कशिश में दोस्ती के  बजाय स्पर्धा हो जाएगी और हमारी दोस्ती खत्म हो ऐसा रिस्क मुझे नहीं लेना है. सो कुछ और सोचना पडे़गा मगर सोचने को फिलहाल आप ने मना कर दिया है,’’ समीरा हंसी.

समीरा को विदा कर के कशिश जब अंदर आई तो उस ने अपने पापा को यह कहते सुना, ‘‘मैं नहीं चाहता विभा कि कशिश देहरादून जाए और मधुदेवेन से मिले. इसलिए समीरा के भाई की शादी से पहले ही कशिश को ले कर कहीं और घूमने चलते हैं.’’

‘‘कैसे जाओगे विकास? इस बार आई.एम.ए. का वार्षिक अधिवेशन तुम्हारी अध्यक्षता में होगा और वह उन्हीं दिनों में है.’’

कशिश लपक कर कमरे में आई और कहने लगी, ‘‘मेरी एक बात मानेंगी, मम्मा? आप प्लीज, मधु मौसी को मेरे देहरादून आने के बारे में कुछ मत बताना क्योंकि मैं शादी की रौनक छोड़ कर उन से मिलने नहीं जाने वाली.’’

पापा के चेहरे पर यह सुन कर राहत के भाव उभरे थे.

‘‘ठीक कहती हो. अपनी सहेलियों को छोड़ कर मां की सहेली के साथ बोर होने की कोई जरूरत नहीं है.’’

‘‘थैंक यू, पापा,’’ कह कर कशिश बाहर आ कर दरवाजे के पास खड़ी हो गई.

पापा, मम्मी से कह रहे थे कि अच्छा है, कशिश उन दिनों शादी में जा रही है क्योंकि हम दोनों तो अधिवेशन की तैयारी में व्यस्त हो जाएंगे और यह घर पर बोर होती रहने से बच जाएगी. इस तरह समस्या हल होते ही कशिश जीजान से पढ़ाई में जुट गई.

देहरादून स्टेशन पर बरात का स्वागत करने वालों में कई महिलाएं भी थीं. लड़की के पिता सब का एकदूसरे से परिचय करवा रहे थे. एक अत्यंत चुस्तदुरुस्त, सौम्य महिला का परिचय करवाते हुए उन्होंने कहा, ‘‘यह डा. मधुलिका हैं. कहने को तो हमारी फैमिली डाक्टर और पड़ोसिन हैं लेकिन हमारे परिवार की ही एक सदस्य हैं. हमारे से ज्यादा शादी की धूमधाम इन की कोठी में है क्योंकि सभी मेहमान वहीं ठहरे हुए हैं.’’

कशिश को यकीन नहीं हो रहा था कि उस का काम इतनी आसानी से हो जाएगा. उस ने आगे बढ़ कर मधुलिका को अपना परिचय दिया. मधुलिका ने उसे खुशी से गले से लगाया और पूछा कि विभा क्यों नहीं आई?

‘‘आंटी, मम्मीपापा आजकल एक अधिवेशन में भाग ले रहे हैं. मैं भी इस बरात में महज आप से मिलने आई हूं,’’ कशिश ने बिना किसी हिचक के कहा, ‘‘मुझे आप से अकेले में बात करनी है.’’

मधुलिका चौंक पड़ी फिर संभल कर बोली, ‘‘अभी तो एकांत मिलना मुश्किल है. रात को बरात की खातिरदारी से समय निकाल कर तुम्हें अपने घर ले चलूंगी.’’

‘‘उस में तो बहुत देर है, उस से पहले ही घर ले चलिए न,’’ कशिश ने मनुहार की.

‘‘अच्छा, दोपहर को क्लिनिक से लौटते हुए ले जाऊंगी.’’

दोपहर को मधुलिका ने खुद आने के बजाय उसे लाने के लिए अपनी गाड़ी भेज दी. वह अपने क्लिनिक में उस का इंतजार कर रही थी.

‘‘तुम अकेले में मुझ से बात करना चाहती हो, जो फिलहाल घर पर मुमकिन नहीं  है. बताओ क्या बात है?’’ मधुलिका मुसकराई.

‘‘मैं यह जानना चाहती हूं कि आप ने मुझे क्यों नकारा, क्यों मुझे दूसरों को पालने के लिए दे दिया? मां, मुझे मालूम हो चुका है कि मैं आप की बेटी हूं,’’ और कशिश ने चंडीगढ़ वाला किस्सा उन्हें सुना दिया.

‘‘विभा और विकास ने तुम्हें क्या वजह बताई?’’ मधुलिका ने पूछा.

‘‘उन्हें मैं ने बताया ही नहीं कि मुझे सचाई पता चल गई है. वह दोनों मुझे इतना ज्यादा प्यार करते हैं कि  मैं कभी सपने में भी उन से कोई अप्रिय बात पूछ कर उन्हें दुखी नहीं कंरूगी.’’

‘‘यानी कि तुम्हें विभा और विकास से कोई शिकायत नहीं है?’’

‘‘कतई नहीं. लेकिन आप से है. आप ने क्यों मुझे अपने से अलग किया?’’

‘‘कमाल है, बजाय मेरा शुक्रिया अदा करने के कि तुम्हें इतने अच्छे मम्मीपापा दिए, तुम शिकायत कर रही हो?’’

‘‘सवाल अच्छेबुरे का नहीं बल्कि उन्हें दिया क्यों, यह है?’’

‘‘मान गए भई, पली चाहे कहीं भी हो, रहीं वकील की बेटी,’’ मधुलिका ने बात हंसी में टालनी चाही.

‘‘मगर वकील की बेटी को डाक्टर की बेटी कहलवाने की क्या मजबूरी थी?’’

‘‘मजबूरी कुछ नहीं थी बस, दोस्ती थी. विभा मां नहीं बन सकती थी और अनाथालय से किसी अनजान बच्चे को अपनाने में दोनों हिचक रहे थे. बेटे और बेटी के जन्म के बाद मेरा परिवार तो पूरा हो चुका था. सो जब तुम होने वाली थीं तो हम लोगों ने फैसला किया कि चाहे लड़का हो या लड़की यह बच्चा हम विभा और विकास को दे देंगे. ऐसा कर के मैं नहीं सोचती कि मैं ने तुम्हारे साथ कोई अन्याय किया है.’’

‘‘अन्याय तो खैर किया ही है. पहले तो सब ठीक था मगर असलियत जानने के बाद मुझे अपने असली मातापिता का प्यार चाहिए…’’

तभी कुछ खटका हुआ और एक प्रौढ़ पुरुष ने कमरे में प्रवेश किया. मधुलिका चौंक ०पड़ी.

‘‘आप इस समय यहां?’’

‘‘कोर्ट से लौट रहा था तो बाहर तुम्हारी गाड़ी देख कर देखने चला आया कि खैरियत तो है.’’

‘‘ऋचा की बरात में कशिश भी आई है. मुझ से अकेले में बात करना चाह रही थी, सो यहां बुलवा लिया,’’ मधुलिका ने कहा और कशिश की ओर मुड़ी,‘‘यह तुम्हारे देवेन अंकल हैं.’’

‘‘अंकल क्यों, पापा कहिए न?’’ कशिश नमस्ते कर के देवेन की ओर बढ़ी लेकिन देवेन उस की अवहेलना कर के मधुलिका के जांच कक्ष में

जाते हुए कड़े स्वर में बोले, ‘‘इधर आओ, मधु.’’

मधुलिका सहमे स्वर में कशिश को रुकने को कह कर परदे के पीछे चली गई.

‘‘यह सब क्या है, मधु? मैं ने तुम्हें कितना समझाया था कि अपने बेटेबेटी का प्यार और हक बांटने के लिए मुझे तीसरी औलाद नहीं चाहिए, तुम गर्भपात करवाओ. मगर तुम नहीं मानीं और इसे अपनी सहेली के लिए पैदा किया. खैर, उन के दिल्ली जाने के बाद मैं ने चैन की सांस ली थी मगर यह फिर टपक पड़ी मुझे पापा कहने, हमारे सुखी परिवार में सेंध लगाने के लिए. साफ कहे दे रहा हूं मधु, मेरे लिए यह अनचाही औलाद है. न मैं स्वयं इस का अस्तित्व स्वीकार करूंगा न अपने बच्चों…’’

कशिश आगे और नहीं सुन सकी. उस ने फौरन बाहर आ कर एक रिकशा रोका. अब उसे दिल्ली जाने का इंतजार था, जहां उस के मम्मीपापा व्यस्तता के बावजूद उस के बगैर बेहाल होंगे. प्यार जन्म से नहीं होता है. प्यार तो प्यार करने वालों से होता है और जो प्यार उसे अपने दिल्ली वाले मातापिता से मिला, उस का तो कोई मुकाबला ही नहीं.

डाक्टर की मेहरबानी: कौनसी गलती कर बैठी थी आशना?

एकदिन गौतम अपनी मोटरसाइकिल से आशना को ले कर शहर से कुछ दूर स्थित एक पार्क में पहुंचा.  झील के किनारे एकांत में दोनों प्रेमी पैर पसारे बैठे थे. उन्हें लगा दूरदूर तक उन्हें देखने वाला कोई नहीं है.

तभी  झील के पानी में छपाक की धीमी सी आवाज हुई, तो आशना बोली, ‘‘लगता है किसी ने पानी में पत्थर फेंका है… कोई आसपास है और हमें देख रहा है.’’

‘‘अरे, ऐसा कुछ नहीं है. कभीकभी मछलियां ही पानी के ऊपर उछलती रहती हैं. यह उन्हीं की आवाज है,’’ गौतम बोला.

आशना के बालों से उठती भीनीभीनी मादक खुशबू से गौतम को बिन पीए ही अजीब सा नशा हो रहा था. उस ने पूछा, ‘‘तुम कौन से ब्रैंड का तेल लगाती हो?’’

आशना मुसकरा दी और फिर उस ने धीरेधीरे गौतम की जांघ पर अपना सिर रख दिया. गौतम उस के लंबे बालों को हाथों में ले कर

कभी सूंघता तो कभी सहलाता. मौसम भी खुशनुमा था. वह आशना के चेहरे पर देर से निगाहें टिकाए था.

आशना ने पूछा, ‘‘क्या देख रहे हो?’’

‘‘तुम्हारे मृगनयनों को.’’

‘‘अब चलें? शाम हो चली है. अंधेरा होने से पहले घर पहुंचना होगा,’’ कह वह धीरेधीरे उठ खड़ी हुई और अपनी साड़ी की सलवटें ठीक करने लगी. आसमानी रंग की प्लेन साड़ी उस पर अच्छी लग रही थी. तभी हवा का एक झोंका आया और उस के आंचल ने उड़ कर गौतम के चेहरे को ढक लिया.

गौतम ने उस के पल्लू को पकड़ लिया तो वह बोली, ‘‘छोड़ दो आंचल.’’

‘‘मौसम है आशिकाना और आज प्यार करने को जी चाह रहा है.’’

‘‘छोड़ो, देर हो रही है.’’

‘‘चलो आज छोड़ देता हूं,’’ कह आशना की कमर के खुले हिस्से को अपनी बांह के घेरे में ले कर उसे कस कर अपनी ओर खींच लिया और फिर सट कर दोनों बाइक की तरफ चल पड़े.

गौतम और आशना की इन हरकतों को थोड़ी ही दूर बैठा एक दंपती देख रहा था. डाक्टर प्रेम लाल और डाक्टर शीला माथुर. उस पार्क से थोड़ी दूर उन का अस्पताल था. कभीकभी अस्पताल से छूटने पर अपना तनाव और थकान कम करने के लिए वे भी इसी झील के किनारे बैठते थे.

उन दोनों प्रेमियों के जाने पर शीला बोलीं, ‘‘मैं इस लड़के को जानती हूं. कुछ दिनों तक मैं उस के महल्ले में रही थी. एकदम आवारा लड़का है. अमीर बाप का बिगड़ा लड़का है. कालेज में एक ही क्लास में 3 साल से फेल होता आ रहा है और नईनई लड़कियों को फंसाता है. एक लड़की ने इस के दुष्कर्मों के चक्कर में पड़ कर आत्महत्या का भी प्रयास किया था.’’

डाक्टर प्रेम ने कहा, ‘‘छोड़ो, हमें क्या लेनादेना है इन लोगों से.’’

इस घटना के करीब 4-5 महीने बाद डाक्टर दंपती की नाइट ट्यूटी थी. अचानक एक औटोरिकशा से एक दंपती ने एक लड़की को सहारा दे कर उतारा. वे उस लड़की के साथ इमरजैंसी रूम में डाक्टर के पास गए. औरत बोली, ‘‘डाक्टर साहब, यह मेरी बेटी है. आज दोपहर से ही इस के पेट में बहुत दर्द हो रहा है और ब्लीडिंग भी हो रही है.’’

डाक्टर ने लड़की का ब्लड प्रैशर चैक किया और तुरंत फोन पर कहा, ‘‘डाक्टर शीला, आप तुरंत यहां आ जाएं. एक इमरजैंसी केस है.’’

2 मिनट के अंदर ही स्त्रीरोग विशेषज्ञा शीला वहां आ गईं. उन्होंने रोगी को बैड पर लिटा कर परदा लगा दिया. कुछ देर बाद वे बोलीं, ‘‘इसे तो बहुत ज्यादा ब्लीडिंग हो रही है. फौरन औपरेशन थिएटर में ले जाना होगा… मु झे लगता है औपरेशन करना होगा.’’

औपरेशन का नाम सुन कर उस लड़की के मातापिता घबरा उठे. पिता ने पूछा, ‘‘डाक्टर साहिबा, खतरे की कोई बात तो नहीं है?’’

‘‘अभी कुछ नहीं कहा जा सकता है. आप लोग ओटी के बाहर इंतजार करें,’’ कह वे अपने पति डाक्टर प्रेम के साथ औपरेशन थिएटर में गईं.

थोड़ी देर बार एक नर्स ने बाहर आ कर पूछा, ‘‘इस लड़की के गार्जियन आप लोग हैं?’’

उस के पिता उठ कर बोले, ‘‘हां, मैं उस का पिता हूं.’’

नर्स ने एक पेपर देते हुए कहा, ‘‘आप जल्दी से इस पर साइन कर दें, लड़की का औपरेशन करना है, अभी तुरंत.’’

‘‘क्या बात है सिस्टर?’’

‘‘अभी बात करने का वक्त नहीं है. बाकी बातें औपरेशन के बाद डाक्टर से पूछ लेना. आप को डिस्चार्ज से पहले एक बोतल खून ब्लड बैंक में जमा कराना होगा. अभी हम अपने स्टौक से खून चढ़ा रहे हैं.’’

उस आदमी ने ब्लड बैंक में जा कर अपना खून जमा किया और वापस आ कर ओटी के बाहर बैंच पर बैठते हुए पत्नी से कहा, ‘‘पता नहीं बैठेबैठाए आशना बिटिया को अचानक क्या हो गया है?’’

औपरेशन टेबल पर डाक्टर ने आशना से पूछा, ‘‘क्या यह उसी लड़के के साथ का नतीजा है, जिस के साथ अकसर तुम लेक पार्क में जाती हो?’’

आशना ने रोते हुए कहा, ‘‘जी डाक्टर, पर मेरी एक गलती का अंजाम यह होगा, मैं नहीं जानती थी. आप मेरी जान बचाने की कोशिश न करें, मुझे मरने दें.’’

‘‘मैं तुम्हारी तरह बेवकूफ और गैरजिम्मेदार नहीं हूं… मैं अपनी ड्यूटी जानती हूं.’’

‘‘पर मैं इस कलंक के साथ जी कर क्या करूंगी? अगर मु झे बचा भी लेती हैं तो भी मैं सुसाइड करने वाली हूं… मेहरबानी कर मुझे मरने दें.’’

‘‘तुम घबराओ नहीं, मैं तुम्हें बदनाम नहीं होने दूंगी और तुम यहां से सहीसलामत घर जाओगी. आगे अपनी पढ़ाई पर ध्यान देना और अपने मातापिता की इज्जत का खयाल करना.’’

‘‘जी, डाक्टर.’’

‘‘बस, अब तुम पर ऐनेस्थीसिया का असर होगा और मैं औपरेशन करने जा रही हूं.’’

करीब 2 घंटे बाद डाक्टर शीला ओटी से बाहर आईं. उन्हें देखते ही आशना के मातापिता दौड़े आए. पूछा, ‘‘अब कैसी है हमारी बेटी?’’

‘‘आप बेटी को सही समय पर अस्पताल ले आए वरना और ज्यादा ब्लीडिंग होने से जान का खतरा था. आप की बेटी का औपरेशन सफल रहा और खतरे की कोई बात नहीं है.’’

‘‘पर उसे हुआ क्या है?’’ आशना के पिता ने पूछा.

‘‘आप मेरे साथ मेरे कैबिन में आएं.’’

दोनों मातापिता डाक्टर के कैबिन में गए, तो डाक्टर शीला ने पेशैंट के पिता से पूछा, ‘‘आप ने फाइल में बेटी की उम्र 17 साल लिखी है यानी वह नाबालिग है… माफ करना आशना गर्भवती थी?’’

‘‘पर यह कैसे संभव है?’’

‘‘यह तो आप की बेटी ही बता सकती है. उस का एक फर्टलाइज्ड एग गर्भाशय तक नहीं पहुंच सका और फैलोपियन ट्यूब में ही ठहर गया था. जब गर्भ बड़ा हो गया तो उस की नली फट गई और ब्लीडिंग होने लगी. उस नली को हम ने काट कर निकाल दिया है. अब चिंता की कोई बात नहीं है.’’

आशना के मातापिता ने आश्चर्य से डाक्टर की तरफ देखा और फिर शर्म से सिर  झुका लिया.

आशना को 1 सप्ताह बाद डिस्चार्ज होना था. डाक्टर शीला की सहायक ने पूछा, ‘‘डिस्चार्ज फाइल में क्या लिखें मैम? आप ने कहा था डिस्चार्ज फाइल तैयार करते समय आप से पूछने को?’’

‘‘पेशैंट को देने वाली डिस्चार्ज स्लिप पर तुम पूरा सच लिखना और हौस्पिटल की फाइल में लिखना दाहिनी साइड की फैलोपियन ट्यूब फट गई थी, जिसे औपरेशन कर निकाल दिया गया है. आगे एक नोट लिख देना कि डिटेल रिपोर्ट्स औफ सर्जरी गायनोकोलौजिस्ट की फाइल में है और यह डिटेल पेपर्स की फाइल मुझे दे देना, साथ ही यह बात बस हमारे बीच ही रहे. तुम भी एक औरत हो, समझ सकती हो.’’

शीला के पति डाक्टर प्रेम भी तब तक वहां आ गए थे. उन्होंने कहा, ‘‘शीला, यह तुम क्या कर रही हो? हौस्पिटल फाइल में ही औपरेशन नोट्स रहने दो. तुम्हें ऐसा नहीं करना चाहिए, पेशैंट के प्रति हमदर्दी का यह मतलब नहीं है कि तुम अस्पताल के नियम तोड़ दो.’’

‘‘तरीके से तो आप सही कह रहे हैं, पर इस नाबालिग बच्ची की नाजायज प्रैगनैंसी की खबर और लोगों के बीच फैल सकती है जिस से लड़की की बदनामी होगी. इस के भविष्य पर भी प्रतिकूल असर हो सकता है. मैं डाक्टर के साथ एक औरत भी हूं और इस लड़की का दर्द समझ सकती हूं.’’

फिर वे आशना के पिता से बोलीं, ‘‘मुझे आप की फाइल में सच लिखना पड़ेगा. यह फाइल आप की है, आप चाहें तो इसे नष्ट करें या रखें. आप की बेटी के हित में जितना मुझसे हो सकता था, मैंने वही किया है.’’

मां ने पूछा, ‘‘आशना भविष्य में मां बन सकती है या नहीं?’’

‘‘हां, बन सकती है. उस की एक फैलोपियन ट्यूब बिलकुल सही सलामत है.’’

‘‘पर इसके औपरेशन का दाग तो पेट पर रह जाएगा? शादी के बाद कहीं पति को कोई शक की संभावना तो नहीं रहेगी?’’

‘‘मैं ने लैप्रोस्कोपिक विधि से औपरेशन किया है. बहुत ही छोटा सा चीरा लगाया है. उस के पेट पर कोई बड़ा निशान नहीं रहेगा. जो है वह भी जल्दी भर जाएगा. आशना की शादी में अभी काफी समय बाकी है. मैं ने उस से बात की है. वह अपनी भूल पर शर्मिंदा है और बता रही थी कि अब वह पढ़ाई पर सीरियस होगी और एमए करने के बाद ही शादी करेगी.’’

आशना जब डिस्चार्ज हो कर घर आई तो उस ने मां से कहा, ‘‘अब मैं किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं रही… जी कर क्या करूंगी?’’

‘‘खबरदार जो ऐसी बेवकूफी की बातें दिमाग में लाई. इसे एक हादसा समझ कर भूल जाओ. आगे किसी से इस की चर्चा भी नहीं करना. पति से भी नहीं. मन लगा कर पढ़ोलिखो. हम तुम्हारी शादी धूमधाम से करेंगे.’’

फिर मां ने अपने पति से कहा, ‘‘आप अब आशना से इस बारे में कुछ न कहेंगे. मैंने उस से बात की है. वह अपनी भूल पर बहुत शर्मिंदा है. वह अब पूरा ध्यान पढ़ाई पर लगाएगी.

‘‘भला हो उस लेडी डाक्टर का जिस ने हमारी इज्जत बचाने में कोई कसर नहीं छोड़ी.’’

इस घटना के 7 साल बाद आशना फिर डाक्टर शीला के अस्पताल में आई. इस बार वह शादीशुदा थी और अपने पति के साथ थी. वह गर्भवती थी और चैकअप के लिए आई थी. शीला ने उस के पति को बाहर इंतजार करने के लिए कहा और आशना को अंदर बुलाया.

डाक्टर शीला ने आशना से पूछा, ‘‘तुम्हारे पेट का दाग लगभग मिट गया है. अभी कौन सा महीना चल रहा है?’’

‘‘5वां महीना चल रहा है मैम.’’

चैक करने के बाद डाक्टर शीला बोलीं, ‘‘बच्चा एकदम ठीक है. बस अपने खानपान पर ध्यान देना और थोड़ा ऐक्टिव रहने की कोशिश करना. इस से नैचुरल प्रसव में आसानी होगी. कंप्लीट रैस्ट की कोई जरूरत नहीं है. तुम्हारे पति बाहर बेचैन हो रहे हैं, तुम से बहुत प्यार करते हैं न?’’

‘‘जी मैम, मैं ने अपने पास्ट की बात उन्हें नहीं बताई है. मैं तो आत्महत्या करने की सोच रही थी, आप ने मुझे मरने से बचा लिया और मेरा भविष्य भी संवार दिया. आप के आभार के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं,’’ और उस की आंखें भर आईं.

‘‘यह गुड न्यूज जल्दी से अपने पति को दो,’’ डाक्टर शीला बोलीं.

आशना कैबिन से बाहर निकली तो उस की आंखें अभी तक गली थीं. उस के पति ने पूछा  ‘‘क्या बात है आशना, सब ठीक है न? तुम्हारी आंखें गीली क्यों हैं?’’

‘‘ये खुशी के आंसू हैं… जच्चाबच्चा दोनों ठीक हैं. मिठाई खिलाना न भूलना आशना,’’ डाक्टर शीला ने कहा.

आशना और उस के पति दोनों ने हंस कर डाक्टर को थैंक्स कहा.

मैं अपना लिवर दान करना चाहती हूं ऐसा करने से मेरे स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव पड़ेगा?

सवाल

मैं 46 वर्षीय घरेलू महिला हूं. मेरे भाई को लिवर ट्रांसप्लांट की जरूरत है. मैं उसे अपना लिवर दान करना चाहती हूं. ऐसा करने से मेरे स्वास्थ्य और जीवन पर तो कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा?

जवाब

लिवर ट्रांसप्लांट के लिए जीवितदाता से लिवर का केवल एक भाग ही लिया जाता है पूरा लिवर नहीं. किसी भी इंसान को जीवित रहने के लिए 25% लिवर ही काफी है. हम 75% प्रतिशत लिवर निकाल सकते हैं. लिवर का जितना भाग निकाला जाता है

वह छह सप्ताह में फिर से विकसित हो कर सामान्य आकार ले लेता है. लिवर दान करने के लिए दाता का शारीरिक और मानसिक रूप से फिट होना बहुत जरूरी है.

दाता से लिवर लेने के पहले सारे टैस्ट किए जाते हैं कि लिवर लेने के बाद वह फिर से विकसित होगा या नहीं. सारे टैस्ट पौजिटिव आने के बाद ही दाता से लिवर लिया जाता है.

Winter Special : घर पर तैयार करें दालसब्जी बिरयानी

घर पर अपनों के साथ खाने का मजा ही कुछ ओर होता है और उसके लिए ज़रुरी है कि हम कुछ आसान तरीकों से जल्दी खाना पका लें, तो ऐसे में आपके लिए तैयार है दालसब्जी बिरयानी की रेसेपी.

सामग्री

-1/4 कप धुली मसूर दाल

-1 कप चावल

-1/2 कप गोभी के छोटे कटे टुकड़े

-1/4 कप हरे मटर के दाने

-1/2 कप प्याज लंबाई में कटा

-2 टमाटर कद्दूकस किए

-1 छोटा चम्मच अदरक व लहसुन पेस्ट

-1/4 छोटा चम्मच लालमिर्च पाउडर

-2 छोटे चम्मच धनिया पाउडर

–1 छोटा चम्मच जीरा2 छोटे चम्मच खसखस

-10-12 केसर के धागे

-1/2 छोटा चम्मच गरममसाला

-3 बड़े चम्मच घी या तेल

-नमक स्वादानुसार.

विधि

-खसखस को 1 घंटा गरम पानी में भिगो कर पीस लें. चावलों व दाल को 20 मिनट अलगअलग पानी में भिगो दें. फिर चावलों को 5 कप उबलते पानी में गलने तक पकाएं.

-अब पानी निथार दें. मटरों और गोभी के टुकड़ों को भाप में थोड़ा कम गलने तक पका लें. केसर के धागों को 1 चम्मच कुनकुने दूध में भिगो दें.

-एक नौनस्टिक कड़ाही में घी गरम कर के प्याज सुनहरा होने तक भून कर निकाल लें. बचे घी में जीरे का तड़का लगा कर अदरक व लहसुन पेस्ट भूनें. फिर टमाटर डालें. 2 मिनट बाद लालमिर्च, धनिया पाउडर, नमक

-खसखस व गरममसाला डाल कर घी छूटने तक भूनें इस में दाल और सब्जियां डाल कर 2 चम्मच पानी डाल कर ढक कर पकाएं ताकि दाल गल जाए.

-जब सब्जियों व दाल से मसाला अच्छी तरह लिपट जाए तब केसर डाल कर कुछ सैकंड भूनें. अब एक बाउल में नीचे भुने प्याज के कतले डालें, फिर चावलों की तह लगाएं.

-ऊपर से थोड़ी सब्जी डालें. पुन: चावलों की तह, फिर भुना प्याज डालें. 2 चम्मच दूध डाल कर इसे ओवन में 200 डिग्री सैल्सियस पर 5 मिनट पकाएं. बिरयानी तैयार है. चटनी, दही या सौस के साथ टिफिन में रख लें.

Divya Aggarwal ने ब्रेकअप के 8 महीने बाद की सगाई, जानें कौन होगा दूल्हा?

मशहूर बिग बॉस11 ओटीटी की विजेता दिव्या अग्रवाल ने रचाई सगाई. जी हां, बिजनेसमैन और ब्याफ्रेंड अपूर्व पडगांवकर संग सगाई कर ली है.इस बात की जानकारी खुद दिव्या ने अपने इंस्टाग्राम पर फोटो शेयर कर के दी है.

आपको बता दे, कि एक्ट्रेस दिव्या अग्रवाल ने सगांई अपने जन्मदिन पर सेलिब्रेट की है. उन्होने अपनी सगाई से जुड़ी तस्वीरें सोशल मीडिया पर साझा की है. इससे पहले एक्ट्रेस वरुण सूद को डेट कर रही थी, जिनसे ब्रेकअप के 8 महीने बाद अब उन्होंने सगाई कर ली है लेकिन ये सगाई उन्होने अपूर्वा पडगांवकर  से की है.

जी हां,अपूर्वा द्वारा पहनाई गई अंगूठी की फोटो साझा की है साथ ही कैप्शन में लिखा कि “अब मैं कभी भी अकेली नहीं चलूंगी” हालांकि फोटो शेयर कर दिव्या ट्रोलर्स के निशाने पर आ गई. कुछ यूजर्स ने उन्हे जमकर ट्रोल किया है. कुछ यूजर्स ने जहां वरुण सूद को दिव्या अग्रवाल के लिए बेस्ट बताया तो वहीं कुछ यूजर्स ने बिजनेसमैन संग सगाई करने के लिए एक्ट्रेस पर निशाना साधा.


बता दें,कि उनकी सगाई कोई हिन्दू रीती रिवाजों के साथ नहीं है बल्कि, जन्मदिन की पार्टी के समय ही बिजनेसमैन अपूर्वा पडगांवकर ने दिव्या अग्रवाल को रिंग देकर प्रोपज किया और दिव्या ने अगूंठी पहनकर अपूर्वा पडगांवकर को अपना जीवन साथी चुन लिया है.

इंस्टाग्राम पर की फोटो शेयर

दिव्या अग्रवाल ने इंस्टाग्राम पर अपूर्वा के साथ फोटोज साझा कर रिलेशनशिप की जानकारी दी.एक्ट्रेस ने लिखा, “क्या मैं कभी मुस्कुराना बंद करूंगी? बिल्कुल नहीं. जिंदगी और चमकदार हो गई है और यह सफर साझा करने के लिए मुझे एक सही इंसान भी मिल गया है. इनका #Baico इस बात का वादा है. इस खास दिन के बाद मैं कभी भी अकेले नहीं चलूंगी”.

खास मौके पर की Kiss

 

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दिव्या अग्रवाल और अपूर्वा पडगांवकर पार्टी में सबके सामने रोमांटिक भी हुए. एक तस्वीर में अपूर्वा एक्ट्रेस के माथे पर किस करते दिखाई दिए. दिव्या अग्रवाल बिग बॉस 11 का हिस्सा रह चुकी है. इससे पहले वो प्रियांक शर्मा को भी डेट कर चुकी है. दोनों की मुलाकात ‘स्प्लिट्सविला’ में हुई थी. हालांकि उनका रिलेशनशिप ज्यादा दिनों तक नहीं चल पाया था.

GHKKPM: सई-विराट की जिंदगी में आएगा नया मोड़, होगी बड़ी अनहोनी

“गुम है किसी के प्यार में” मशहूर शो इन दिनों मीडिया की सुर्खियों में बना हुआ है टीवी शो टीआरपी की रेस में शामिल है शो में आने वाले मोड़ फैंस को काफी पसंद आ रहे है. हाल ही में गुम है किसी के प्यार में का एक प्रोमो वीडियो सामने आया है. जिसे देख काफी एंटरटेन हो जाएंगे. शो में नया मोड़ आया है जिसका असर सई, पाखी और विराट की जिंदगी पर पडेगा. वीडियो को देखकर ये कहा जा सकता है तीनों की जिंदगी अब बदल जाएगी.

आपको बता दें, कि प्रोमो वीडियो में दिखाया गया है कि सपने में सई और विराट एक बस के साथ खेलते दिखाई देते हैं, जिसे लेकिन विनायक कहता है कि इसमें हम जल्द ही पिकनिक करने जाएंगे. वह जैसे ही बस को रिमोट से चलाता है, सवि उसकी स्पीड को बढ़ाने के लिए कहती है. आगे जाकर बस नीचे गिर जाती है. दूसरी तरफ सई और विराट भी चौंककर नींद से उठ जाते हैं और बुरी तरह घबरा जाते हैं.बता दे, इस प्रोमो वीडियो को अबतक 20 हजार लोग देख चुके है .

 

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प्रोमो वीडियो को देख फैंस कई तरह के कमेंट्स कर रहे है और तरह-तरह के सवाल कर रहे है. एक यूजर ने प्रोमो पर कमेट करते हुए लिखा है कि “फिर से बस हादसा” तो वहीं दूसरे यूजर ने सवाल किया है, “इस हादसे के बाद सई और विराट एक होंगे या फिर विराट और पाखी एक होंगे” दूसरे यूजर ने शो को लेकर बात कही और लिखा, कि “इस हादसे के बाद यह भी सच बाहर आएगा कि विनायक सई और विराट का बेटा है”

 

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खुशियों के फूल – भाग 3 : किस बात से डर गई अम्बा

वह  दिन उन दोनों की जिंदगी का एक अहम दिन था जब दोनों अस्पताल में टेस्ट के बाद कोरोना नेगेटिव निकले थे. अभी उन्हें चौदह दिनों तक क्वारंटाइन में और रहना था. सो दोनों फिर से निनाद के घर चले गए.

घर पहुंचकर निनाद ने अम्बा से  कहा, “अम्बा,  में ताउम्र तुम्हारा शुक्रगुजार रहूंगा कि तुम मेरी सारी ज़्यादतियाँ  भुलाकर मुझे मौत के मुंह से वापस खींच लाई. मैं वादा करता हूं तुमसे, अब कभी पुरानी  गलतियां  नहीं दोहराऊंगा. कभी बेबात तुम पर नहीं चिल्लाऊंगा. आई एम रीयली वेरी सॉरी. मुझे माफ कर दो.’’

“निनाद, तुम्हारे माफ़ी मांगने से क्या रो रो कर, कुढ़ते झींकते तुम्हारे साथ बिताए तीन साल अनहुए हो जाएँगे? उन तीन सालों में तुमने मुझे जो दर्द दिया, तुम्हारे सॉरी कह देने से क्या उनकी भरपाई हो जाएगी? मैं कैसे मान लूँ कि तुम अब पुरानी बातें नहीं दोहराओगे? नहीं नहीं, हम अलग अलग ही ठीक हैं. अब मुझमें तुम्हारी फ़िज़ूल की कलह को झेलने की सहनशक्ति भी नहीं बची है.मैं अकेले बहुत सुकून से हूँ.“

उसकी बातें सुन निनाद ने उससे फिर से मिन्नतें की “अम्बा, मेरा यकीन करो, तुमसे अलग रह कर अब मुझे अपनी गलती का एहसास हो गया है कि मैंने तुम्हारे साथ बहुत अन्याय किया. बेवज़ह तुमसे झगड़ा करता रहा. प्लीज़ अम्बा, एक बार मुझे माफ़ करदो. वादा करता हूँ, तुम्हें कभी मुझसे शिकायत नहीं होगी. प्लीज़ अम्बा.’’

निनाद की ये बातें सुन अम्बा को अभी तक यकीन नहीं हो रहा था कि यह वही निनाद है जो कुछ महीनों पहले तक उससे बात बात पर लड़ाई मोल लेता था. बहाने बहाने से उसे सताता था. कुछ सोच कर उसने निनाद से कहा, “इस बार तो मैं तुम्हारी बात मान  लेती हूँ, लेकिन एक बात कान खोलकर सुन लो, अगर  अब तुमने फिर से बेबात मुझसे कभी भी कलह की, बेवज़ह मुझसे झगड़े तो मैं उसी वक़्त  तुम्हें छोड़ कर चली जाऊँगी और तुमसे तलाक लेकर रहूंगी. पढ़ी लिखी अपने पैरों पर खड़ी हूं, अकेले जिंदगी काटने का दम खम  रखती हूं. इतने दिनों से अकेली बड़े चैन से रह ही रही हूँ. अब मैं तुम्हें अपनी मानसिक शांति भंग करने की इज़ाजत  हर्गिज़ हर्गिज़  नहीं दूँगी. ना ही अपनी बेइज्ज़ती करवाऊंगी. तुम्हें अपनी गलती का एहसास हो गया, इसलिए इस बार तो मैंने तुम्हें माफ़ किया लेकिन याद रखना, अगली बार तुम्हें कतई माफ़ी नहीं मिलेगी.“

“नहीं, नहीं अम्बा, भरोसा रखो, अब मैं तुम्हें शिकायत का मौका हर्गिज़ हर्गिज़ नहीं दूंगा. मैं वास्तव में अपनी पुरानी ज़्यादतियों के लिए बहुत शर्मिंदा हूँ. अब हम एक नई जिंदगी की शुरुआत करेंगे. जिंदगी की यह दूसरी पारी तुम्हारे नाम, माय लव,” यह  कहते हुए निनाद ने अम्बा  को अपने सीने से लगा लिया था .

पति की बाहों में बंधी अम्बा  को लगा, मानो पूरी दुनिया उसकी मुट्ठी में थी. निनाद  के साथ साझा, सुखद  भविष्य के सतरंगे  सपने उसकी आंखों में झिलमिला उठे.उसे लगा, एक अर्से बाद उसके चारों ओर खुशियों के फ़ूल गमक महक उठे थे.

वास्तुदोष कहां है

सुबहसुबह तैयार हो कर जब भानुप्रकाश ने गैराज का ताला खोल कार को स्टार्ट करने लगे, तो वह घर्रघर्र कर के रह गई. वह एकदम से झल्ला कर के चिल्लाए, “सुधा… ओ सुधा, जरा बाहर तो आना.”

वह हड़बड़ाती हुई आई, तो भानुप्रकाश बोले- “देखो, आज फिर कार स्टार्ट नहीं हो रही है.”

“ओह… पिछले दिनों ही इसे रिपेयरिंग कराए थे ना. रोजरोज यह क्या हो जाता है?”

“मैं कहता था ना कि हमारा गैराज सही दिशा में नहीं है,” वह बोले, “पिछले सप्ताह इस में सांप निकला था, जिस से मैं बालबाल बचा था. यहां आए हमें 6 महीने भी नहीं हुए कि कार दो बार दुर्घटनाग्रस्त हुई है.”

“आप कहना क्या चाह रहे हैं?”

“यही कि गैराज में वास्तुदोष है. यही कारण है कि कार के साथ कुछ न कुछ परेशानी आ रही है और यह बीचबीच में खराब भी हो जा रही है. यह गैराज दक्षिणपश्चिम में है, जबकि इसे उत्तरपश्चिम यानी वायव्य कोण में होना चाहिए.”

“अरे, ऐसा कुछ नहीं है,” वह जानते हुए भी बोली कि भानु प्रकाश प्रारब्ध, ज्योतिष आदि पर आंख मूंद कर विश्वास करते हैं, उन की शंका का निवारण करना चाहा, “यह संयोग भी तो हो सकता है.”

“क्या बात करती हो, 18 लाख की नई गाड़ी है. और यह बारबार खराब हो जाती है. फिर यहां के गैराज में भी कोई न कोई हादसा हो जा रहा है. मुझे लगता है कि यह गैराज के सही दिशा में न होने के कारण है. मुझे अब किसी दूसरी जगह पर गैराज बनाना होगा.”

“कितनी मुश्किल से तो यह घर मिला है… इतने बड़े शहर में जगह कहां है, जो कोई अलग से गैराज बनवाए. फिर सरकार तो बनवाने से रही. और हम बनाएंगे तो हजारों रुपए का खर्च आएगा.”

“तो क्या करें…? रोजरोज की परेशानी तो नहीं देखी जा सकती?”

“लेकिन, गैराज बनाने के लिए जगह तो चाहिए?”

“जगह का क्या है… हम बंगले के सामने ही क्यों न गैराज बना लें?”

“अरे, इतनी अच्छी फुलवारी है. उसे तहसनहस कर दें.”

“और कोई उपाय भी तो नहीं है. मैं कल ही यहां काम लगा दूंगा.”

भानु प्रकाश सरकारी महकमे में कनिष्ठ सचिव ठहरे. बस ठेकेदार को बताना भर था. आननफानन काम लग गया. जहां कभी खूबसूरत फूलपत्तों के पौधे शोभायमान थे, उसे उजाड़ कर वहां सीमेंट की फर्श बन चुकी थी. लोहे की चादरों की दीवार और ऊपर एसबेस्टस की छत डाली जा चुकी थी. और पुराने गैराज का फाटक उखाड़ कर वहीं लगा दिया गया था. उन के कहेअनुसार अब गैराज वायव्य कोण अर्थात उत्तरपश्चिम में बन चुका था. और इसी चक्कर में बीसेक हजार रुपए खर्च हो गए थे.

“अब यहां कोई परेशानी नहीं होगी,” खुश होते हुए वह बोले.

“मगर, यह अब बंगले की चारदीवारी के बाहर है,” वह चिंतित स्वरों में बोली, “और, मैं ने सुना है, इधर चोरियां बहुत होती हैं.”

“अरे, ऐसा कुछ नहीं,” भानु प्रकाश निश्चिंत भाव से बोले, “बंगले के सामने ही तो है. फिर फाटक में मजबूत ताला लगाऊंगा.”

सुधा को इस बात का मलाल था कि एक खूबसूरत फुलवारी उजड़ गई थी और उस की जगह बंगले के ठीक सामने गैराज था. पहले बंगले के परिसर में ही चारदीवारी के भीतर गैराज था. अब गैराज के बाहर होने से उस के लिए अलग से ताले की व्यवस्था करनी पड़ी थी.

कुछ दिन तो ठीकठाक बीते. मगर, फिर भी एक हादसा हो ही गया.
वह 3 दिनों के लिए राजधानी में दौरे पर गए थे. वहीं उन्हें फोन आया कि गांव में मां की तबीयत ठीक नहीं है. उन्होंने तुरंत सुधा को फोन किया कि वह अविलंब गांव चली जाए. शाम की ट्रेन पकड़ कर वह गांव चली आई थी.

अगले दिन ही वह भी राजधानी से सीधे गांव चले आए.

उस के अगले दिन वह दोनों वापस लौटे. कार गैराज में नहीं थी. किसी ने ताला तोड़ कर दिनदहाड़े कार चोरी कर ली थी.

और वह थाने में कार चोरी की रपट लिखा रहे थे.

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