Bigg Boss 16: Sumbul ने जोड़े सलमान के सामने हाथ, घर जाने की मांगी भीख!

कलर्स का रियलिटी शो ‘बिग बॉस 16’ (Bigg Boss 16) में आए दिन लड़ाइयां होती रहती हैं. वहीं बीते कुछ दिनों से घर का माहौल बिगड़ गया है, जिसके चलते लड़ाइयां हाथापाई तक जा पहुंची है. दरअसल, हाल ही में हुई एमसी स्टैन और शालीन भनौट के बीच हुई लड़ाई ने कई रिश्तों पर सवाल खड़ा कर दिया है. आइए आपको बताते हैं पूरी खबर…

सुंबुल पर लगा ऑब्सेस्ड का टैग

 

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शो की शुरुआत से ही टीना और शालीन की दोस्ती फैंस को खटकी है तो वहीं सुंबुल को नाम इस रिश्ते में हर बार सामने आया है. इसी बीच हाल ही में हुई एक लड़ाई ने सुंबुल का एक बार फिर कटघरे में लाकर खड़ा कर दिया है, जिसके चलते अब सलमान खान ने भी रिश्ते पर सवाल उठा दिया है. दरअसल, बीते एपिसोड में शालीन और एमसी स्टैन के बीच हुई लड़ाई में सुम्बुल का रिएक्शन देखकर फैंस हैरान हो गए हैं. इसी के चलते सोशलमीडिया पर जहां उनका मजाक उड़ रहा है तो वहीं हाल ही के रिलीज किए गए प्रोमो में सलमान ने सुंबुल को फटकारते हुए शालीन के लिए ऑब्सेस्ड होने की बात कही है. वहीं टीना इस बात पर जहां हामी भरती दिख रही हैं तो वहीं सलमान का कहते दिख रहे हैं कि शालीन को भी सुंबुल के बारे में ये बात पता है.

रोने लगीं सुंबुल

सलमान के वीकेंड के वार में सुंबुल को ऑब्सेस्ड कहने पर वह रोती हुई नजर आ रही हैं. इसी के साथ वह घर जाने की बात कहती दिख रही हैं. वहीं सलमान उन्हें घर जाने की बात कहते दिख रहे हैं. वहीं दूसरे प्रोमो में एमसी स्टैन और शिव की शालीन से हुई हाथापाई में सलमान सभी को फटकार लगाते दिख रहे हैं. प्रोमो देखकर जहां सुबुंल के फैंस उदास हैं तो वहीं अपकमिंग एपिसोड के लिए बेताब दिख रहे हैं.


बता दें, बीते दिन शालीन के साथ एमसी स्टैन और शिव ठाकरे की बहस और हाथपाई ने सोशलमीडिया पर दो गुट बना दए हैं. जहां सेलेब्स शालीन के सपोर्ट में दिख रहे हैं तो वहीं फैंस एमसी स्टैन और शिव के सपोर्ट में खड़े हो गए हैं.

18 सालों के संघर्ष के बाद Bollywood में पंकज त्रिपाठी को मिली पहचान, पढ़ें इंटरव्यू

पिछले 18 वर्षों से बौलीवुड में अपनी पहचान बनाने के लिए संघर्ष करते आए अभिनेता पंकज त्रिपाठी ने ‘निल बटे सन्नाटा’, ‘अनारकली आफ आरा’,‘न्यूटन’,‘फुकरे रिटर्न’,‘स्त्री’,‘गुंजन सक्सेना’ जैसी फिल्मों के साथ ही ओटीटी प्लेटफार्म पर ‘मिर्जापुर’ व ‘क्रिमिनल जस्टिस’ जैसी वेब सीरीज में अपने दमदार अभिनय की बदौलत बौलीवुड में अपनी एक अलग पहचान बना ली है. दर्शक उन्हें अंतरराष्ट्रीय फिल्म ‘‘मैंगो ड्रीम्स’’ के अलावा रजनीकांत के साथ तमिल फिल्म ‘‘काला’’ में भी देख चुके हैं.

प्रस्तुत है पंकज त्रिपाठी से हुई एक्सक्लूसिब बातचीत के खास अंश. .

आपने ‘नेशनल स्कूल आफ ड्रामा’ से अभिनय की ट्रेनिंग हासिल करने के बाद 16 अक्टूबर 2004 में बौलीवुड में कदम रखा था. मगर ‘‘नेशनल स्कूल आफ ड्रामा’ में ‘मैथड एक्टिंग’ सिखायी जाती है,जो कि बॉलीवुड में काम नही आती?

-आपने एकदम सही फरमाया. बीच के कुछ दशकों में काम नही आती थी.  मगर अब काम आने लगी है. ओम पुरी, इरफान खान,नसिरूद्दीन शाह,अनुपम खेर,मुकेश तिवारी,यशपाल राणा,आशुतोष राणा,सीमा विश्वास, रोहिणी हट्टंगड़ी,राज बब्बर व हमारे आने के बाद ‘नेशनल स्कूल आफ ड्रामा’ से ट्रेनिंग लेकर आने वालों की बॉलीवुड में कद्र होने लगी.  इतना ही नही ‘ओटीटी’ प्लेटफार्म के आने के बाद ‘नेशनल स्कूल आफ ड्ामा’ की ‘मैथड एक्टिंग’ ज्यादा काम आने लगी है. यह सभी कलाकार सिनेमाई अभिनय से थोड़ा अलग अभिनय करते थे. अस्सी के दशक में सिनेमा में अलग तरह का अभिनय होता था. अब पैरलल सिनेमा व मेन सिनेमा का विभाजन नही रहा. जो पैरलल है,वह भी मेन स्ट्रीम हो जाती है और जो मेन स्ट्ीम होती है,वह पैरलल हो जाती है. क्योंकि अब सब कुछ बाक्स आफिस की कमायी पर निर्भर करता है. जो ज्यादा कमाई करे,वह मेन स्ट्ीम सिनेमा गिना जाता है. एन एस डी में जिस तरह का अभिनय सिखाया जाता है,उसमें लॉजिक,तर्क,नीड्स,अर्जेंसी, करेक्टराइजेशन,एक्टर प्रिपेअर्स, करेक्टर प्रिपेअरर्स, कंटेंट, टेक्स्ट,सब टेक्स्ट सहित बहुत सारी चीजें सिखायी जाती हैं,जिसका हिंदी सिनेमा में बीच के काल खंड में या कमर्शियल सिनेमा में बहुत जरुरत नही है. न अभिनेता उतनी गहराई में जाते हैं और न ही निर्देशक चाहते हैं कि कलाकार उतनी गहराई में उतरे. लेकिन अब सिनेमा बदला है. दर्शक भी दुनिया भर का सिनेमा देख रहा है. इसलिए अब अभिनय के स्तर में भी बदलव देखा जा रहा है. अब एनएसडी का मैथड एक्टिंग का तरीका कारगर है.

बालीवुड से जुड़ना कैसे हुआ?

-मैं दिल्ली में ही रह रहा था,तभी मुझे घर बैठे ही फिल्म ‘‘रन’’ में छोटा सा किरदार निभाने का अवसर मिल गया था. फिर अक्टूबर 2004 में मंुबई आया. और स्ट्गल का दौर चला. स्ट्गल के दौरान कुछ विज्ञापन फिल्में की. इक्का दुक्का फिल्म व सीरियल करता रहा. पर फिल्म‘‘गैंग ऑफ वासेपुर’’में सुल्तान के किरदार ने मुझे बतौर अभिनेता एक पहचान दिलायी. उसके बाद‘‘फुकरे,‘सिंघम रिटर्न’,‘स्त्री’,‘लुकाछिपी’,‘गंुजनसक्सेना’ सहित कई फिल्में आयी. अब अर्थपूर्ण फिल्मों के साथ साथ व्यावसायिक फिल्में भी कर रहा हूं. मैं वेब सीरीज भी कर रहा हूं. यानी कि काफी व्यस्त हूं.

आपने संघर्ष के दिनों में ज्यादातर हिंसक या गैंगस्टर के ही किरदार निभाए?

-जी नही. . इतने अधिक हिंसक किरदार नहीं निभाए. दूसरी बात मंैने पहले ही कहा कि मेरी कोई योजना नही थी. मेरे पास जो किरदार आए,मैं करता गया. ‘गैंग्स आफ वासेपुर’ में

नगेटिब किरदार था. वह काफी लोकप्रिय हुआ. लेकिन आप ध्यान से देंखेगे तो ‘गैंग्स आफ वासेपुर’ के अलावा वेब सीरीज ‘मिर्जापुर’ में ही नगेटिब किरदार किया है. ‘मिर्जापुर’ के कालीन भईया साफ्ट स्पोकेन हैं. ‘गुड़गांव’ में नगेटिब था. पारंपरिक विलेन नही लगते. इसके अलावा दो तीन छोटी फिल्मों में किए होंगे. उसके बाद आप ‘मसान’, ‘निल बटे सन्नाटा’,‘गंुजन सक्सेना’या ‘क्रिमिनल जस्टिस’ में माधव मिश्रा यह सब पॉजीटिब किरदार ही हैं. मेरे गैंगस्टर वाले किरदार इस कदर लोकप्रिय हुए कि लोगो को अनुभूति होती है कि मंैने गैंगस्टार या नगेटिब किरदार ज्यादा निभाए.

लेकिन आपने ‘निल बटे सन्नाटा’जैसी फिल्मों में सकारात्मक किरदार निभाने के ेबाद ‘गुड़गांव’ में पुनः गैंगस्टर का किरदार निभा लिया?

-इसकी एकमात्र वजह यह थी कि इसकी कहानी बहुत अच्छी थी. किसान किस तरह बिल्डर बनता है और उसकी अपनी क्या स्थिति होती है. जब इंसान अकूट संपत्ति कमा ले,तो फिर उसके लिए सही गलत में कोई फर्क नहीं रह जाता. इसका असर किस तरह से व्यक्ति पर पड़ता है. वह अपनी ही दुनिया में रहने लगता है. एक ग्रंथि का शिकार होकर इंट्ोवर्ट हो जाता है. वह कहानी मुझे बहुत पसंद आयी थी. वह किरदार गैंगस्टर से कहीं ज्यादा एक डार्क फिल्म थी.

फिल्म के निर्देशक श्ंाकर रमण ने जिस तरह से मुझे कहानी सुनायी, उससे मैं बहुत प्रभावित हो गया. इसके अलावा इसके निर्माता भी ‘निल बटे सन्नाटा’ वाले अजय राय ही हैं. तो उनकी बात भी रख ली.

किसी भी किरदार की तैयारी कहां से शुरू होती है?

-आप शायद यकीन न करें,मगर जब हम शौचालय में जाते हैं,तब भी हमारे साथ व हमारे दिमाग में किरदार चलता रहता है. वैसे भी किरदारों की हिस्ट्ी बहुत रोचक चीज है,जो कि दिखता नही है. जैसे कि यह इमारत जिस नींव पर टिकी है,वह नींव दिखती नही है. किरदारों की हिस्ट्ी सोचना मुझे कलाकार के तौर पर मजा देता है. तो में बाथरूम में बैठकर किरदारों की हिस्ट्ी बनाते रहता हूं. उस वक्त यह तय नहीं करता कि किस तरह परफार्म करुंगा. मसलन-यह सोचता हूं कि कालीन भैया,कालीन भैया कैसे बने होंगें? उनके बचपन,स्कूल की पढ़ाई,उनके दोस्त,क्या इतिहास रहा, उस पर जाता हूं. यह रोचक काम होता है. कलाकार के तौर पर मजा आता है. इनमें से कुछ चीजें पटकथा में भी होती हैं. संवाद में भी एक आध जगह आ जाती हैं. इसके अलावा हम निर्देशक से भी बात करते हैं.  कमर्शियल सिनेमा में भी जब कलाकार पूछता है,तो लेखक सोचकर जवाब देता है. मेरा मानना है कि लेखक लिखते समय किरदार की हिस्ट्री के बारे में सोचता होगा. कोई किरदार इस तरह से व्यवहार कर रहा है,तो क्यों कर रहा है? इसकी वजहों पर लेखक भी सोचते ही हैं,लिखते समय.

हर कलाकार दावा करता है कि वह हर किरदार में अपनी निजी जिंदगी का कुछ न कुछ अवश्य पिरोता है. आप भी ऐसा कुछ करते हैं?

-जी हॉ! हम भी ऐसा करते हैं. यह सब हमारी अपनी कल्पनाशक्ति व अनुभव की शक्ति के आधार पर ही होता है. इनके चलते हमारे अभिनय में हमारे जीवन का कोई न कोई हिस्सा आ ही जाएगा. मान लीजिए शादी का दृश्य फिल्माया जा रहा है. अब हमने निजी जीवन में कई शादियां अटैंड की हैं. तो हमें माहौल पता है कि फूफा या मौसा ऐसा करते थे. तो यह अनुभव कलाकार के तौर पर हम रोकना चाहें,तो भी अभिनय में कहीं न कहीं आ ही जाएगा. जिंदगी का अनुभव रोचक होगा ही होगा.

फिल्म ‘न्यूटन’ के किरदार को निभाते समय तो निजी जिंदगी का अनुभव नहीं रहा होगा?

-जी हॉ! उस किरदार में मेरे निजी जीवन का कोई अनुभव नहीं था. मगर मेरे फूफा जी,जो कि नेवी में अफसर हैं, उन दिनों यहीं नजदीक में ही ‘आई एन एस हमला’ में थे. तो मैं उनके पास चला गया था और उनसे ंलबी चैड़ी बातें की थी. लेफ्टीनेंट कमांडेट और उनकी हैरायकी,सब सुना. मैं उनकी कैंटीन में भी जाता था,तो बहुत कुछ देखता था. तो ‘न्यूटन’ के वक्त मैंने कल्पना की कि मेरा किरदार आज न्यूटन से मिल रहा है,पर आज शाम के बाद दोबारा कभी नही मिलेगा. पहले पटकथा में था कि मेरे किरदार को न्यूटन के ेप्रति बड़ी खुन्नस है. कुंठा है. मैने निर्देशक से कहा कि काहे को एरोगेंट या कुंठा? उसे तो पता है कि आज शाम को वोटिंग खत्म होने तक ही इस आदमी को झेलना है,फिर तो मिलना नही है.  तो फिर सिनीकलकाहे को? मेरा किरदार आत्मा सिंह समझ गया कि न्यूटन जिद्दी है,तो उसने तय किया कि इसका मजा लो,इसे खिलाओ. मैने निर्देशक अमित मसुरकर से कहा कि मैं तो ऐसा सोच रहा हूं. उन्होने कहा कि ठीक है,कुछ करो, देखते हैं. आप जो कह रहे हैं,वह दृश्य में किस तरह नजर आता है,वह देखने पर अंतिम निर्णय करते हैं. मैं अपने हिसाब से एक दृश्य में अभिनय करता हूं. आत्मा सिंह, न्यूटन को देखता रहता है. न्यूटन  हाथ से इशारा करता है,तो आत्मा सिंह भी हाथ दिखाता है. तो आत्मा सिंह व न्यूटन के बीच दिनभर चूहे बिल्ली का खेल चलता रहता है. नक्सली इलाका है,इसलिए तनाव भी है. तो कलाकार के जीवन के अनुभव और कल्पनाशक्ति न चाहते हुए भी किरदारों में आ ही जाता है.

‘मिर्जापुर’ के कालीन भैया की प्रेरणा कहां से ली थी?

-मैं एक आध बार पूर्वांचल के बाहुबलियों से मिला था,उनसे मिला भी था. उन्हे देखकर मेरी समझ में आया कि इन्हे दक्षिण भारत जाने वाली किसी ट्ेन में बैठा दिया जाए,तो कोई भी इंसान इनसे डरेगा नही. बल्कि कहेगा कि ,‘जरा सरकिए. मुझे भी बैठना है. ’क्योंकि हर बाहुबली के बारे में लोगो के दिमाग में मीडिया के माध्यम से एक ईमेज है,इसलिए लोग उनसे डरते हैं. अन्यथा वह भी एक इंसान ही है. इसलिए मेरे दिमाग में आया कि बाहुबली कालीन भैया को मैं थोड़ा साफ्ट स्पोकेन व अपप्रिडिक्टेबल बनाता हूं. उनकी नाराजगी या खुशी जल्दी समझ में  न आए.  कालीन भैया हंसकर अपनी खुशी या गुस्सा होकर अपना गुस्सा व्यक्त नहीं करते हैं.

आपने अब तक कई किरदार निभाए. क्या किसी किरदार ने आपकी निजी जिंदगी पर असर किया?

-फिल्म ‘गुड़गांव’ के किरदार ने थोड़ा सा असर किया था. बहुत ही कॉम्पलेक्स किरदार था. इस फिल्म को करते हुए और उसके बाद भी पंद्रह दिनों तक मैं परेशान रहा था.

ऐसे में परेशानी से मुक्त होने के लिए क्या करते हैं?

-कुछ खास नही. घूमना शुरू कर देते हैं. कुछ दिन अलग माहौल में रहते हैं. अथवा दूसरी फिल्म के किरदार की तरफ दिमाग को मोड़ते हैं. जब हम पत्नी व बेटी के साथ घूमने जाते हैं,तो पारिवारिक माहौल में रहते ही दिमाग पूरी तरह से पिछले किरदार से मुक्त हो जाता है. यानी कि उस किरदार का बोझ धीरे धीरे उतर जाता है. इसके अलावा जब नई फिल्म की पटकथा को पढ़ना व उस पर सोचना शुरू करते ेहैं,तब भी पिछला किरदार धीरे धीरे गायब हो जाता है.

बीच में आप फेशबुक पर किस्सा गोई के कुछ किस्से शुरू किए थे. फिर बंद क्यों कर दिया?

-एकमात्र वजह मेरी अति व्यस्तता है. इसके अलावा वीडियो फार्मेट में मेरे इतने इंटरव्यू आ रहे हैं. मेरी अपनी खुद की कहानियां वीडियो फार्मेट में आती हैं. मैने कुछ प्रशंसकों के कहने पर लॉकडाउन एक में ‘किस्सागोई ’ किया था. लोगो ने कहा था कि,‘ हम महामारी की वजह से घरांे में कैद हैं. आप कुछ किस्से सुनाइए. इससे हमारा मनोरंजन होगा और इस मुश्किल वक्त में हौसला मिलेगा. ’ऐसे में बतौर अभिनेता  हमारी भी जिम्मेदारी बनती है कि हम समाज का मनोबल बढ़ाने के लिए कुछ योगदान दें. तो मैंने सोचा कि अपने जीवन से जुड़े कुछ किस्से सुनाऊं,जो कि मनोरंजन के साथ-साथ कुछ प्रेरणादायक भी हों. इन कहानियों में एक संदेश छिपा है. मैं इसी तरह के किस्से सुनाने लगा था. इसलिए मैने छह सात सीरीज चलायी थी. अप्रत्याशित सफलता मिली थी.  मेरे फेश बुक पेज पर एक कहानी को दो करोड़ लोगोंे ने देखा था. पर कुछ माह बाद फिर से सुनाउंगा.

आपको नही लगता कि इंटरनेट के मकड़जाल में युवा पीढ़ी फंसकर रह गयी है?

-जी हॉ!फिलहाल युवा पीढी की समस्या यह है कि युवा पीढ़ी को इंटरनेट ने एक अंधेरे कंुएं में कैद कर लिया है और इंटरनेट कहता है कि सिर्फ वही देेखो,जो हम दिखा रहे हैं. इंटरनेट कहता है कि जो कुछ सीखना है,यहीं से सीखो. यह गलत है.  यदि आप वास्तव में कुछ सीखना चाहते हैं,तो लोगों से मिलना पड़ेगा. आप आसमान में देखोगे,तो सुंदर बादल व उड़ते पंछी भी काफी कुछ सिखाते हैं. बादल में कई तरह की आकृतियां हैं. किताबें पढ़ें. लोगों की पढ़ने की आदत ही खत्म हो गयी है. गलत है. हर इंसान को खासकर युवा पीढ़ी को ज्यादा से ज्यादा किताबें पढ़नी चाहिए.

बीच बीच में आप अपने गांव जाकर किसानी करने लगते हैं. इसके पीछे की सोच क्या है?

-मैं गांव से बहुत जुड़ा हुआ हूं. मेरे माता पिता गांव में ही रहते हैं. मंुबई की जीवन की आपाधापी से कुछ समय निकालकर गांव में समय बिताना सुखद अहसास देता है. फिल्मनगरी की दुनिया तो बनावटी है. गांव में जितने दिन रहता हूं,चप्पल नहीं पहनता हूं. मिट्टी पर नंगे पांच चलता हूं. मंुबई में मिट्टी से हमारा जुड़ाव ही नहीं होता. मुझे खेती, किसानी,खलिहानी बहुत अच्छा लगता है. इसलिए मैं हर तीन माह में कुछसमय के लिए गांव चला जाता हूं. दूसरी बात गांव जाने का मतलब जमीन व जड़ों से जुड़ना होता है. यही वजह है कि मेरा अभिनय अलग नजर आता है. मेरे अभिनय में रिलेटीविटी नजर आती है. देखिए,यदि आपका किसी चीज से या धरती से जुड़ाव नहीं रहेगा ,तब तो रिलेटीविटी का तार टूट जाएगा. मैं हर चीज से जुड़े रीने का प्रयास करता हूं. मुझे झुणका भाकर खाए हुए काफी दिन हो गए. पुणे के पास कैलाश प्रेम होटल है. बहुत अच्छा झुणका भाकर मिलता है. महाराष्ट्यिन भोजन बहुत अच्छा मिलता है.  कल ही हम पति पत्नी आपस में बात कर रहे थे कि एक दिन पुणे झुणका भाकर खाने के लिए चलते हैं. उसके मालिक से हमने बात भी की. मैं वाई से हलदी मंगाता हूं. तलेगांव से बाजरा व मक्का मंगाता हूं. नार्थ इस्ट से मिर्ची आयी है. कच्छ से कॉटन का कपड़ा मंगाता हूं.

2022 में बॉलीवुड फिल्में असफल हो रही हैं और दक्षिण की फिल्में सफल हो रही हैं. इसकी क्या वजह नजर आती है?

-मेरी समझ से लेखन की कमी हो सकती है. वैसे दक्षिण की भी सिर्फ तीन फिल्में ही सफल हुई है. हिंदी की भी दो तीन सफल रही हैं.

हमदर्दों से दूर: क्या सही था अखिलेश और सरला का फैसला

“हैलो अखिलेशजी, आप फ्री हों तो आज शाम मिलें?” “जी जरूर, मैं तो खाली ही हूं. मगर कहां?” हड़बड़ाते हुए अखिलेश ने पूछा. “जी वही बंजारा रेस्तरां में ठीक 6 बजे मिलते हैं,” सरला ने जवाब दिया.

“ओके…” अखिलेश सरला से खुद मिलना चाहता था. वह खुश था कि सरला ने ही फोन कर के मिलने बुला लिया. दरअसल, जब से उस ने मैट्रिमोनियल साइट में अपनी प्रोफाइल बनाई थी सरला पहली महिला थी जो उसे एक ही नजर में ही पसंद आ गई थी.

समय 6 बजे का था मगर अखिलेश 2 घंटे पहले ही तैयार हो गया. आखिर सरला से जो मिलने जाना था. हलके ग्रे कलर की शर्ट और पैंट पहन कर वह आईने में ठीक से अपना मुआयना करने लगा. हर ऐंगल से खुद को जांचापरखा. कान के पास

किनारेकिनारे झांक रहे सफेद बालों को छिपाने की कोशिश की. 4 दिन पहले ही डाई लगाई थी मगर सफेदी फिर सामने आ गई थी. आंखों का चश्मा और माथे की सिलवटें वह चाह कर भी छिपा नहीं सकता था. खुद ही दिल को यह सोच कर दिलासा देने लगा कि 60 साल की उम्र में इतना फिट और आकर्षक भला कौन नजर आता है? जेब में पर्स और हाथ में मोबाइल ले कर वह चल दिया.

अखिलेश की पत्नी का करीब 10 साल पहले देहांत हो गया था. उस वक्त बच्चे साथ थे इसलिए ज्यादा पता नहीं चला. मगर धीरेधीरे बच्चों की शादी हो गई और वे अपनीअपनी दुनिया में मशगूल हो गए. बेटी ब्याह कर दूसरे शहर चली गई और

छोटे बेटे ने भी जौब के चक्कर में यह शहर छोड़ दिया. बड़ा बेटा पहले ही शादी के बाद मुंबई में बस चुका था. इस तरह मेरठ के घर में वह नितांत अकेला रह गया था.

अब पत्नी की याद ज्यादा ही आने लगी थी. नौकरानी घर संभाल जाती. नाश्ताखाना भी बना देती. मगर पत्नी वाली केयर कैसे कर सकती थी. यही वजह थी कि अखिलेश ने फिर से शादी करने का फैसला लिया ताकि अपनी बची जिंदगी इस तरह अकेलेपन और उदासी के साथ गुजारने के बजाय किसी विधवा से पुनर्विवाह कर के गुजार सके.

इस के लिए उस ने मैट्रिमोनियल साइट में अपनी प्रोफाइल बना डाली. 3-4 दिनों के अंदर ही बहुत सारी महिलाओं ने उन्हें इंटरैस्ट भेज दिया. इन सबों में सरला सब से ज्यादा पसंद आई थी. रेस्तरां की मेज पर सरला और अखिलेश आमनेसामने बैठे थे. सरला की उम्र करीब 50 साल थी. वह भी विधवा थी. एक बेटी थी जिस की शादी हो चुकी थी.

गोरा रंग, तीखे नैननक्श और चेहरे की चमक बता रही थी कि किसी जमाने में वह बला की खूबसूरत रही होगी. सरला ने साफ शब्दों में अपनी बात रखी,” करीब 5 साल पहले एक सड़क दुर्घटना में मेरे पति की मौत हो गई. आप को पता ही होगा कि पति के जाते ही औरत की

जिंदगी से सारी रौनक चली जाती है. मेरी बेटी भी मायके चली गई. अब बिलकुल दिल नहीं लगता है. बस इसी अकेलेपन की वजह से शादी का फैसला लिया है.”

“सरलाजी, मेरे साथ भी बिलकुल यही बात है. मेरा भी खयाल रखने के लिए कोई अपना मेरे पास नहीं. अकेलापन खाने को दौड़ता है. क्यों न हम एकदूसरे के साथी बन कर इस अकेलेपन को हमेशा के लिए दूर कर दें. मुझे आप की जैसी

समझदार और सरल महिला की ही जरूरत है.” सरला ने हौले से मुसकरा कर अपनी सहमति दे दी. दोनों 1-2 घंटे वहीं बैठे बातें करते रहे. अगले दिन फिर मिलने का वादा कर अपनेअपने घर लौट आए.

आते ही अखिलेश ने मैट्रिमोनियल साइट से अपनी प्रोफाइल हटा दी. उसे जिस की तलाश थी वह मिल चुकी थी. देर रात बेटे का फोन आया तो अखिलेश ने बेटे से अपनी खुशी शेयर की. सुन कर बेटा एकदम चुप हो गया.

कुछ देर बाद समझाते हुए बोला,”पापा, यह क्या करने जा रहे हो? क्या जरूरत है इस उम्र में शादी की? वह औरत पता नहीं कैसी हो? किस मकसद से शादी कर रही हो?”

“बेटा तमीज से बात कर, वह औरत तेरी होने वाली मां है. मैं जो यहां अकेलापन महसूस करता हूं उसे मिटाने के लिए शादी कर रहा हूं.” “यार पापा, अकेलापन मिटाने के सौ तरीके हैं. इस के लिए शादी कौन सा

रास्ता है?” झुंझलाए स्वर में बेटे ने कहा. “शादी ही सही रास्ता है बेटा. मुझे जो उचित लगा वही कर रहा हूं.तुम लोग तो मेरे साथ नहीं रहते न. फिर मेरी समस्या कैसे समझोगे?”

“पापा, इस बार मैं कोशिश करूंगा कि अपना ट्रांसफर दिल्ली करा लूं. फिर पास रहूंगा तो हर वीकेंड आ जाया करूंगा. डोंट वरी पापा.”

“देख 5 साल से तू यही कह रहा है बेटे. पर क्या हुआ? तू आया यहां? ” अखिलेश ने बेटे से सवाल किया. “पापा आप तो समझ ही नहीं रहे.” “तू भी नहीं समझ रहा है सुजय. ”

बेटे ने गुस्से में फोन काट दिया. अखिलेश थोड़ी देर उदास पड़ा रहा फिर सहसा ही उस की आंखों में चमक उभरी. मोबाइल उठा कर सरला का नंबर लगाने

लगा. फिर देर रात तक दोनों बातें करने में मशगूल रहे. कुछ दिनों तक दोनों के बीच इसी तरह बातों और मुलाकातों का दौर चलता रहा. इधर अखिलेश के बच्चे उसे शादी न करने की सलाह देते रहे मगर सही समय देख अखिलेश ने बहुत सादगी के साथ सरला को अपना जीवनसाथी बना लिया.

शादी के लिए अखिलेश ने बहुत सादा समारोह रखा था. अखिलेश का छोटा बेटा और सरला की बेटी और भाई विवाहस्थल पर मौजूद थे. अखिलेश की बेटी नहीं आ पाई थी. उसने वीडियो कौल के जरीए अपने पिता की शादी देखी. बड़ा बेटा औफिस के काम में फंसा होने का बहाना बना कर नहीं आया. अखिलेश के बच्चे अपने पिता की दूसरी शादी से बिलकुल भी खुश नहीं थे.

उस दिन अखिलेश बेटे से बात कर रहा था. सरला बाहर गई हुई थी. अचानक वह लौट आई पर अखिलेश को इस की खबर नहीं थी. अखिलेश फोन स्पीकर पर रख कर बातें करता था क्योंकि उसे कम सुनाई देता था. हमेशा की तरह बेटा सरला के खिलाफ जहर उगल रहा था. मगर अखिलेश लगातार उस की हर बात का प्रतिकार सही दलीलों के साथ पूरे विश्वास से करता रहा. अखिलेश का अपने प्रति यह विश्वास देख कर सरला को बहुत अच्छा लगा.

उम्र की परवाह किए बिना नए जीवन की शुरुआत दोनों ने शिमला की वादियों में जा कर किया. उन्होंने वहां साथ में बहुत खूबसूरत वक्त बिताया. दोनों काफी खुश थे.

अकेलेपन का दर्द एकदूसरे का साथ पा कर कहीं गायब हो चुका था. मगर उन के बच्चों को अभी भी यह शादी रास नहीं आ रही थी. खासकर अखिलेश के बच्चों को डर था कि कहीं सरला उनकी जमीनजायदाद न हड़प ले.

एक दिन बड़ा बेटा सुजय बिना बताए अखिलेश से मिलने चला आया. आते ही उस ने सरला के प्रति रूखा व्यवहार दिखाना शुरू कर दिया. सरला और अखिलेश दोनों

ही जानते थे कि वह सरला को पसंद नहीं करता. सरला बहाना बना कर कुछ दिनों के लिए अपने मायके चली गई. इधर सुजय को पिता से अकेले में बात करने का पूरा मौका मिल गया.

उस ने अखिलेश को समझाने की कोशिश की, “पापा, आप इस बात से अनजान हो कि इस उम्र में विधवा औरतें सिर्फ इसलिए किसी रईस पुरुष से शादी करती हैं ताकि उस की सारी संपत्ति पर अपना हक जमा सके. पापा वह आप की दौलत ले कर गायब हो जाएगी फिर क्या करोगे ? उस की नजर सिर्फ और सिर्फ आप के पैसों पर है.”

“पर तुम ऐसा कैसे कह सकते हो सुजय?” “क्यों नहीं पापा, यदि ऐसा नहीं तो उस ने आप से शादी क्यों की ?” सुजय ने सवाल किया. “तुम ने अपनी बीवी से शादी क्यों की थी?” अखिलेश ने उलटा सवाल किया.

“अरे पापा, यह तो हर कोई जानता है, परिवार बनाने और परिवार बढ़ाने के लिए. पर शादी की भी एक उम्र होती है. आप को कौन सा अब बच्चे पैदा करने हैं जो शादी करनी थी,” सुजय की आवाज में चिढ़ थी.

“ठीक है, बच्चे नहीं पैदा करने पर तुम्हें शादी के बाद बच्चों के अलावा और क्या मिला? पत्नी का साथ नहीं मिला? उस का प्यार नहीं मिला?” “पापा, अब इस उम्र में आप को कौन से प्यार की जरूरत है?”

“जरूरत हर उम्र में होती है बेटा, भले ही रूप बदल जाए और फिर एक साथ भी तो जरूरी है न,” अखिलेश ने उसे समझाने की कोशिश की. “पापा, आप चाहे कितनी भी दलीलें दे लो पर याद रखना, इस औरत की नजर सिर्फ और सिर्फ आप के पैसों पर है,” कहता हुआ सुजय उठ गया.

अखिलेश बोलना तो बहुत चाहता था पर चुप रहा. सुजय के बाद अखिलेश की बेटी भी फोन पर पिता को सावधान करने लग गई,” पापा, ध्यान रखना। ऐसी औरतें जमीनजायदाद अपने नाम करवाती हैं या फिर गहने और कैश लूट कर फरार हो जाती हैं. कई बार अपने पति की हत्या भी कर डालती हैं.”

“बेटे, ऐसी औरतों से क्या मतलब है तुम्हारा?” “मतलब विधवा औरतें जो बुढ़ापे में शादी करती हैं. मैं ने बहुत से मामले देखे हैं, पापा इसलिए समझा रही हूं,” बेटी ने कहा. बच्चों ने अखिलेश के मन में सरला के विरुद्ध इतनी बातें भर दीं कि अब उसे भी इस बात को ले कर शक होने लगा था कि कहीं ऐसा ही तो नहीं?

मैट्रिमोनियल साइट के अपने प्रोफाइल में उस ने इस बात का जिक्र भी काफी अच्छे से किया था कि उस के पास काफी संपत्ति है. इधर सरला मायके गई तो उस के घर वाले और बेटी उस का ब्रैनवाश करने के काम में लग गए. यह तो सच था कि सरला एक साधारण परिवार से संबंध रखती थी जबकि अखिलेश के पास काफी दौलत थी.

सरला की बेटी बहाने से मां को कहने लगी,”मां, तुम्हारे दामाद का काम ठीक नहीं चल रहा. पिछले महीने उन की बाइक भी बिक गई. मां हो सके तो अपने नए पति से कह कर इन के लिए बाइक या गाड़ी का इंतजाम करा दो न और एक दुकान भी खुलवा दो. वे तो बहुत पैसे वाले हैं न.”

“मगर वे तुम्हारे पति के लिए यह सब क्यों करेंगे?” सरला ने पूछा. “अरे मां क्यों नहीं करेंगे? आखिर मैं उन की बेटी ही हुई न भले ही सौतेली सही.””देख बेटी, तू ब्याहता लड़की है. तेरा अपना घरपरिवार है. तेरी देखभाल करना उन की जिम्मेदारी नहीं,” सरला ने दोटूक जवाब दिया.

तब तक भाई बोल पड़ा,”क्या दीदी, तुम तो ऐसे शब्द बोल रही हो जैसे यह तुम्हारी नहीं तुम्हारे पति की जबान हो. अरे दीदी, बच्ची के लिए नहीं तो अपने लिए तो सोचो. सुनहरा मौका है. रईस बुड्ढे से शादी की है. थोड़ा ब्लैकमेल करोगी तो मालामाल हो जाओगी. वरना बुड्ढे ने तो पहले से ही अपने तीनों बच्चों के नाम सब कुछ कर रखा होगा. कल को वह नहीं रहेगा तब तुम्हारा क्या होगा? अपने बुढ़ापे के लिए रुपए जोड़ कर रखना तो पड़ेगा न.

“जब पैसे आ जाएं तो थोड़ीबहुत मदद मेरी या अपने दामाद की भी कर लेना. आखिर हम तो अपने ही हैं न. तुम्हारे भले के लिए ही कह रहे हैं. “अब देखो न, पुराने जीजाजी के साथ तुम ने सारी जवानी गुजार दी मगर वह मरे तो तुम्हें क्या मिला? सब कुछ उन के भाइयों में बंट गया. इसलिए कह रहा हूं कि दीदी कि अपने पति की संपत्ति पर अपना कानूनी हक रखो फिर चाहे कुछ भी हो.”

“भाई मेरे तू ठीक कह रहा है. मैं सोचूंगी. अब ज्यादा नसीहतें न दे और अपने काम पर ध्यान दे,” कह कर सरला ने बात खत्म कर दी. 2-3 दिनों में सुजय चला गया. इधर सरला भी घर वापस लौट आई. दोनों ही थोड़े गुमसुम से थे. अपने बच्चों की बातें उन्हें रहरह कर याद आ रही थी.

इस बीच अखिलेश की तबीयत खराब हो गई. उसे ठंड लग कर तेज बुखार आया. सरला घबरा गई. उस ने जल्दी से डाक्टर को बुलवाया. डाक्टर ने दवाएं लिख दीं और खयाल रखने की बात कह कर चला गया. इधर सरला के भाई को पता चला कि अखिलेश को बुखार है तो वह उसे सलाह देने लगा,” यह बहुत सही समय है दीदी, अपना जाल फेंको ताकि अखिलेश हमेशा के लिए

ऊपर चला जाए. फिर तुम उस की सारी दौलत की अकेली मालकिन बन जाओगी.” सरला ने उसे झिड़का,” बेकार की बातें मत कर. वह मेरे पति हैं और मैं किसी भी तरह उन्हें ठीक कर के रहूंगी.”

इधर दवा खाने के बावजूद अखिलेश का माथा बुखार से तप रहा था. सरला ने जल्दी से उस के माथे पर ठंडे पानी की पट्टियां रखनी शुरू कीं. पूरी रात वह पति के सामने बैठी पट्टियां बदलती रही. अखिलेश बेहोश सा सोया हुआ था. बीचबीच में आंखें खुलती तो पानी मांगता. सरला जल्दी से उसे पानी पिलाती और साथ में कुछ खिलाने की भी कोशिश करती. मगर वह खाने से साफ इनकार कर देता.

सुबह होतेहोते अखिलेश का बुखार कम हो गया. खांसी भी कंट्रोल में आ गई. मगर इस बीच सरला को बुखार महसूस होने लगा. पति का बुखार उस ने अपने सिर ले लिया था. अगले दिन दोनों की भूमिका बदल गई थी. अब सरला बेड पर थी और अखिलेश उस की देखभाल कर रहा था.

इस तरह एकदूसरे का खयाल रखतेरखते दोनों ठीक हो गए. अब एक अलग तरह का बंधन दोनों एकदूसरे के लिए महसूस करने लगे थे.

एक दिन शाम में अखिलेश ने सरला से कहा,” मेरी सारी संपत्ति दोनों लड़कों के नाम की हुई है. यह मकान भी बड़े बेटे के नाम है. मैं चाहता हूं कि हम दोनों कहीं दूर जा कर एक नई जिंदगी की शुरुआत करें. क्या तुम इस के लिए तैयार हो?”

“हां ठीक है. इस में समस्या क्या है? हम सब कुछ छोड़ कर कहीं दूर चलते हैं. बस रहने और खाने का प्रबंध हो जाए फिर हमें किस चीज की जरूरत? दोनों आराम से एक छोटा सा घर ले कर रह लेंगे. वैसे भी मेरे पहले पति ने मेरे लिए बैंक में थोड़ीबहुत रकम रख छोड़ी है. जरूरत पड़ी तो उस का भी उपयोग कर लेंगे.”

सरला की बात सुन कर अखिलेश की आंखें भीग गईं. एक तरफ बच्चे जिस महिला को दौलत का लालची बता रहे थे वही इस गृहस्थी में अपनी सारी जमापूंजी लगाने को तैयार थी. अखिलेश को यही सुनने की इच्छा थी.

उस ने सरला को गले से लगा लिया और बोला,” ऐसा कुछ नहीं है सरला. सारी संपत्ति अभी भी मेरे ही नाम है. मैं तो तुम्हारा रिएक्शन देख कर तुम्हें

परखना चाहता था. तुम से अच्छी पत्नी मुझे मिल ही नहीं सकती. वैसे कहीं दूर जाने का प्लान अच्छा है. यह घर बेच कर किसी खूबसूरत जगह घर लिया जा सकता है. ” “सच, मैं भी सब से दूर कहीं चली जाना चाहती हूं,”सरला ने कहा.

अगले ही दिन अखिलेश ने घर बेचने के कागज तैयार करा लिए. काफी समय से उस का एक दोस्त घर खरीदने की कोशिश में था. अखिलेश ने बात कर अपना घर उसे बेच दिया और मिलने वाली रकम से देहरादून के पास एक छोटा सा खूबसूरत मकान खरीद लिया.

उस ने अपना नया पता किसी को भी नहीं दिया था. फोन भी स्विच औफ कर दिया. अपना बैंकबैलेंस भी उस ने दूसरे बैंक में ट्रांसफर करा लिया और पूर्व पत्नी के गहने भी लौकर में रखवा दिए. सरला ने भी अपने घर में किसी को नया पता नहीं बताया.

सारे हमदर्द रिश्तेदारों से दूर दोनों ने अपना एक प्यारा सा आशियाना बना लिया था. यहां वे अपनी जिंदगी दूसरों की हर तरह की दखलंदाजी से दूर शांतिपूर्वक एकदूसरे के साथ बिताना चाहते थे.

दो नंबर की बातें: क्यों लोग देते हैं कमजोरी को मजबूरी का नाम

काले धन को ले कर इन दिनों मौजूदा सरकार बड़ीबड़ी बातें कर रही है. खबरिया चैनलों में ऐंकर चिल्लाचिल्ला कर यह कहते नहीं थकते कि दो नंबर का रुपया स्विस बैंकों से वापस आने वाला है. दो नंबर का रुपया वह कालाधन होता है जिसे लेने अथवा देने वाले को पकड़े जाने का भय होता है. इसी तरह दो नंबर का माल, चोरी का वह माल होता है जिसे लेने अथवा देने वाले को सरकारी मेहमान बन कर जेल की हवा खाने का भय रहता है. अब सुनिए दो नंबर की बातें. घबराइए मत. इस में आप को यानी सुनने वाले को कोई भय नहीं क्योंकि आप को कोई नहीं जानता. इस में अगर किसी को कोई भय है तो वह केवल मुझे है क्योंकि मेरा नाम ऊपर साफसाफ लिखा है और मेरा पता भी आसानी से मालूम किया जा सकता है.

मैं ने बीसियों बार भाषण दिए हैं और सुनने वालों पर देश, समाज तथा परिवार सुधार के साथ उन का अपना मानसिक एवं आध्यात्मिक सुधार तथा अन्य सभी प्रकार के सुधार करने पर भी जोर डाला है. इसी  के फलस्वरूप मेरी प्रसिद्धि होती रही है और मैं कभी आर्य समाज का मंत्री, कभी किसी संगठन का प्रधान, कभी किसी यूनियन का अध्यक्ष इत्यादि बनता रहा हूं. भाषणों में सच्चीझूठी बातें रोचकता पूर्वक सुनने पर जब दर्शक तालियां बजाते या वाहवाह करते ?तो मुझे आंतरिक प्रसन्नता होती. पर कमबख्त रमाकांत का डर अवश्य रहता क्योंकि एक वही मेरा ऐसा अभिन्न मित्र तथा पड़ोसी है जो मेरे भाषण सुनने के बाद निजी तौर पर मुझे चुनौती दे डालता, कहता, ‘‘ठीक है गुरु, कहते चले जाओ, पर जब स्वयं करना पड़ेगा तो पता चलेगा.’’

‘‘मेरे दोस्त, मैं अपने भाषणों में जो कुछ कहता हूं वही करता भी हूं. मसलन, मैं अपने घर में रोज न हवन करता हूं और न संध्या. इसीलिए मैं ने अपने किसी भी भाषण में यह नहीं कहा कि लोगों को घर में प्रतिदिन हवन और संध्या करनी चाहिए,’’ मैं ने एक बार अपनी सफाई में कहा. ‘‘और वह जो देशप्रेम की और देश के लिए जान निछावर करने की बड़ीबड़ी बातें कह कर तुम ने हनुमंत को भी पीछे छोड़ दिया है?’’ रमाकांत ने मेरी बात काटते हुए कहा.

मैं ने पूछा, ‘‘कौन हनुमंत?’’

‘‘हनुमंत को नहीं जानते? अरे, वही राजस्थान का गाइड, जो उस राज्य को देखने के लिए आने वाले विदेशी पर्यटकोें को बड़े गौरव से अपना प्रदेश दिखाते हुए कहता है, ‘जनाब, यह है हल्दीघाटी का मैदान जहां महाराणा प्रताप ने मुगलों के दांत खट्टे कर दिए. यह है चित्तौड़गढ़ का किला जहां अलाउद्दीन खिलजी ने पद्मिनी को पाने की जीजान से कोशिश की पर उस की हार हुई. यह है वह स्थान जहां पृथ्वीराज चौहान ने मुहम्मद गोरी को बारबार हराया और यह है…’ तब आश्चर्यचकित हो कर पर्यटक पूछते हैं कि ‘क्या आप का मतलब यह है कि राजस्थान में मुगलोें को कभी एक भी विजय प्राप्त नहीं हुई?’ इस पर हनुमंत छाती फुला कर कहता है कि ‘हां, राजस्थान में मुगलों की कभी एक भी विजय नहीं हुई और जब तक राजस्थान का गाइड हनुमंत है कभी होगी भी नहीं.’’’

हनुमंत के अंतिम शब्द सुन कर मुझे बड़ी हंसी आई. रमाकांत भी मेरे चेहरे को देख कर हंस पड़ा और बोला, ‘‘तुम ने हनुमंत का दूसरा किस्सा नहीं सुना है?’’

मैं ने कहा, ‘‘नहीं तो.’’

‘‘यह कैसे हो सकता है? भई, तुम ने जरूर सुना होगा.’’

मैं ने फिर कहा, ‘‘नहीं, मैं ने नहीं सुना.’’

रमाकांत बोला, ‘‘अच्छा तो सुनो, एक दिन हनुमंत गा रहा था– ‘जन, गण, मन, अधिनायक…’ सुना है न? ’’

मैं ने कहा, ‘‘नहीं सुना है, भई.’’

‘‘कैसे नहीं सुना? अपना राष्ट्रीय गान ही तो है,’’ यह कह कर रमाकांत जोर से हंस दिया.

मैं ने कहा, ‘‘आ गए हो न अपनी बेतुकी बातों पर?’’

‘‘हां जी, हमारी बातें तो बेतुकी, क्योंकि हमें भाषण देना नहीं आता है. और आप की बातें जैसे तुक वाली होती हैं?’’

मैं ने पूछा, ‘‘कौन सी बातें?’’

‘‘वही जो आज तुम ने दहेज के बारे में कही थीं कि न दहेज लेना चाहिए, न देना. शादियों पर धूमधाम नहीं करनी चाहिए. न रोशनी करनी चाहिए, न शादी में बैंडबाजा होना चाहिए और न बरात ले जानी चाहिए, न गोलीबंदूक. अरे, यदि तुम्हारी कोई लड़की होती और तुम्हें उस की शादी करनी पड़ती तब देखता कि तुम दूसरों को बताए हुए रास्तों पर स्वयं कितना चलते.’’

‘‘मेरी कोई लड़की कैसे नहीं है. मेरी अपनी न सही, मेरे कोलकाता वाले भाईसाहब की तो है. हां, याद आया. रमाकांत, कोई अच्छा सा लड़का नजर में आए तो बताना. कल ही भाईसाहब का फोन आया था कि आशा ने एमएससी तथा बीएड कर लिया है. अब वह 22 साल की हो चुकी है, इसलिए उस की शादी शीघ्र कर देनी चाहिए. कोलकाता में तो अच्छे पंजाबी लड़के मिलते नहीं, इसलिए दिल्ली में मुझे ही उस के लिए कोई योग्य वर ढूंढ़ना है. सोचता हूं कि मैट्रोमोनियल, वैबसाइट व न्यूजपेपर में विज्ञापन दे दूं.’’ रमाकांत बोला, ‘‘सो तो ठीक है गुरु, पर लड़की दिखाए बिना दिल्ली में कौन लड़का ब्याह के लिए तैयार होगा?’’

‘‘तुम ठीक कहते हो रमाकांत, इसीलिए मैं ने भाईसाहब को लिख दिया है कि आप ठहरे सरकारी अफसर, आप को वहां से छुट्टी तो मिलेगी नहीं, इसलिए आशा और उस की मम्मी को दिल्ली भेज दो.’’

‘‘तुम ने मम्मी कहा न, गुरु एक तरफ तो हिंदी के पक्ष में बड़े जोरदार भाषण करते हो और स्वयं  मम्मी शब्द का प्रयोग खूब करते हो.’’ खैर, मैं ने दिल्ली के अंगरेजी के सब से बड़े समाचारपत्र के वैवाहिक कौलम में निम्न आशय का विज्ञापन छपवा दिया.

‘‘एमएससी और बीएड पास, 163 सैंटीमीटर लंबी, 22 वर्षीया, गुणवती और रूपवती, पंजाबी क्षत्रिय कन्या के लिए योग्य वर चाहिए. कन्या का पिता प्रथम श्रेणी का सरकारी अफसर है. ×××××98989.’’ अगले दिनों मोबाइल बजने लगा. मैं ने सब को ईमेल आईडी दे दी कि बायोडाटा उस पर भेज दें. ईमेल आए जिन्हें भिन्नभिन्न लड़के वालों ने विज्ञापन के उत्तर में भेजा था. मैं और रमाकांत उन ईमेल्स को पढ़ने, समझने और उत्तर देने में लग गए. 4 दिनों के भीतर 45 मेल आ गए. उस के एक सप्ताह बाद 30 मेल और आए. इस प्रकार एक विज्ञापन के उत्तर में लगभग 140 लड़के वालों के मेल आ गए. कई सारे मेल और एसएमएस भी आए. 5 तो हमारे महल्ले में ही रहने वालोें के थे. अन्य 30 मेल विवाह करवाने वाले एजेंटों के थे. उन पर लिखा था कि यदि हम उन को फौर्म भर कर देंगे तो उन की एजेंसी योग्य जीवनसाथी खोजने में निशुल्क सेवा करेगी.

मैं ने रमाकांत से विचार कर के 140 में से 110 को अयोग्य ठहरा कर बाकी 30 के उत्तर भेज दिए. उन में से 20 ने हमें लिख भेजा अथवा टैलीफोन, मोबाइल व ईमेल किया कि वे लड़की को देखना चाहते हैं. उन्हीं दिनों आशा और उस की मम्मी कोलकाता से दिल्ली आ गईं. हम ने उन से भी परामर्श कर के लड़के को देखना और लड़की को दिखाना प्रारंभ कर दिया. पर कहीं भी बात बनती नजर नहीं आई. लड़के वालों की ओर से अधिकतर ऐसे निकले जो प्रत्यक्षरूप से तो दहेज नहीं मांगते थे पर परोक्षरूप से यह जतला देते कि उन के यहां तो शादी बड़ी धूमधाम से की जाती है. कोई कहता ‘लेनादेना क्या है? जिस ने लड़की दे दी, वह तो सबकुछ ही दे डालता है.’ यदि बातों ही बातों में मैं लड़के वालों से कहता कि ‘आजकल तो देश में दहेज के विरोध में जोरदार अभियान चल रहा है,’ तो लड़के वाले कहते, ‘जी, विरोध में काफी कहा जा रहा है, पर अंदर ही अंदर सब चल रहा है.’

सगाई न हो पाने के कुछ और कारण भी थे. यदि मेरे विचार में कोई लड़का योग्य होता तो आशा की मम्मी को लड़के वालों के घर का रहनसहन पसंद न आता. दूसरा कारण था, आशा की ऐनक, जिसे देखते ही बहुधा लड़के वाले टाल जाते. इसीलिए आशा ने ऐनक की जगह कौंटैक्ट लैंस लगवा लिए, लेकिन मेरा और रमाकांत का निश्चय था कि हम कोई बात छिपाएंगे नहीं, परिणाम यह होता कि जब हम लड़के वालों को बता देते कि लड़की ने कौंटैक्ट लैंस लगा रखे हैं तो वे कोई न कोई बहाना कर के बात को वहीं खत्म कर देते. तीसरा कारण था, आशा का रंग, जो काला तो नहीं था पर गोरा भी नहीं था. कई लड़के वाले इस बात पर भी जोर देते कि उन का लड़का तो बहुत गोरा है. चौथा कारण यह था कि आशा एमएससी और बीएड तो थी, पर नौकरी नहीं करती थी. और पांचवां कारण यह था कि आशा अमेरिका अथवा यूरोप में रहने वाले किसी लड़के से शादी करना चाहती थी. वह शादी कर के विदेश जाना चाहती थी.

इसी चक्कर में 2 मास बीत गए. आशा निराश होने लगी. उस की मम्मी मेरे घर के सोफे, परदोें तथा सजावट के सामान को और रमाकांत मेरे प्रगतिशील विचारों को दोषी ठहराने लगा. हम ने फिर इकट्ठे बैठ कर स्थिति पर विचार किया. रमाकांत ने आशा से पूछा, ‘‘बेटी, तू क्यों इस बात पर बल देती है कि विदेश में रहने वाले लड़के से ही शादी होनी चाहिए. तुझे क्या पता नहीं कि जो लड़के विदेशों से भारत में शादी करने आते हैं उन में कई धोखेबाज निकल आते हैं?’’

आशा बोली, ‘‘अंकल, मेरी कई सहेलियां शादी कर विदेश गई हैं. वे सब सुखी हैं. उन के व्हाट्सेप व ईमेल मुझे आते रहते हैं और फिर, यही तो उम्र है जब मैं अमेरिका, कनाडा या इंगलैंड जा सकती हूं. नहीं तो सारी उम्र मुझे भी यहीं रह कर अपनी मम्मी की तरह रोटियां ही पकानी पड़ेंगी.’’

मैं ने कहा, ‘‘बेटी, अपनी जननी और जन्मभूमि हर चीज से अच्छी होती है.’’

‘‘ये सब पुरानी व दकियानूसी बातें हैं,’’ आशा ने कहा, ‘‘अंकल, आप यह भी कहते हो कि सारी धरती ही अपना कुटुंब है. फिर मुझे क्यों निराश करते हो?’’ घर के बड़ेबूढ़े समझाते कि शादीब्याह तो जहां लिखा होता है, वहीं होता है. कुछ दिन पहले की बात है कि एक शाम, रमाकांत हमारे घर आया और बोला, ‘‘वह कुछ दिनों के लिए दौरे पर दिल्ली से बाहर जा रहा है.’’ अगले ही दिन किसी लड़के के पिता का मोबाइल पर फोन आया कि उन का लड़का अमेरिका से आया हुआ है और वे लोग आशा को देखने हमारे घर आना चाहते हैं. कोई जानपहचान न होने पर भी हम लोगों ने उन्हें अपने घर बुला लिया. लड़के के पिता, माता और बहन को लड़की पसंद आ गई और हमें वे लोग पसंद आ गए.

अगले दिन लड़के को लड़की और लड़की को लड़का पसंद आ गया. जब लड़के को बताया गया कि लड़की कौंटैक्ट लैंस लगाती है तो उस ने कहा, ‘‘इस में क्या बुराई है, अमेरिका में तो कौंटैक्ट लैंस बहुत लोग लगाते हैं.’’ नतीजतन, 2 दिनों बाद ही उन की सगाई हो गई और सगाई के 5 दिनों बाद शादी कर देने का निश्चय हुआ, क्योंकि लड़के को 10 दिनों के भीतर ही अमेरिका वापस जाना था.

सगाई और शादी में कुल 5 दिनों का अंतर था, इसलिए सारे काम जल्दीजल्दी में किए गए. सगाई के अगले दिन 200 निमंत्रणपत्र अंगरेजी में छप कर आ गए और बंटने शुरू हो गए. 2 दिनों बाद कोलकाता से भाईसाहब आ पहुंचे और वे मुझे डांट कर बोले कि बिना जानपहचान के अमेरिका में रहने वाले लड़के से तुम ने आशा की सगाई क्यों कर दी. उन्होंने 2-3 किस्से भी सुना दिए. जिन से शादी के बाद पता चला था कि लड़का तो पहले से ही ब्याहा हुआ था, बच्चों वाला था, आवारा था या अमेरिका में किसी होटल में बैरा था. मैं ने बहुत समझाया कि यह लड़का बहुत अच्छा है, इंजीनियर है, अच्छे स्वभाव का है. पर भाईसाहब ने मुझे ऐसीऐसी भयानक संभावनाएं बताईं कि मेरे पसीना छूट गया और नींद हराम हो गई. लेकिन मुझे तो लड़के वाले अच्छे लग रहे थे और जब वे भाईसाहब से आ कर मिले तो वे भी संतुष्ट दिखाई देने लगे. शादी से 2 दिन पहले ही घर मेहमानोें से भर गया. सब मनमानी करने लगे. घर की इमारत पर बिजली के असंख्य लट्टू लग गए और घर के आगे की सड़क पर शामियाने लगने शुरू हो गए. महंगाई के जमाने में न जाने कितने गहने और कपड़े खरीदे गए. हलवाइयों का झुंड काम पर लग गया.

शादी की शाम को ब्याह की धूमधाम देख कर मैं स्वयं आश्चर्यचकित था. बैंड के साथ घोड़ी पर चढ़ कर आशा का दूल्हा बरात ले कर आया, जिस के आगेआगे आदमी और औरतें भांगड़ा कर रहे थे. लड़के वाले सनातनधर्मी थे और उन्होंने मुहूर्त निकलवा रखा था कि शादी रात को साढ़े 8 से 11 बजे के बीच हो और ठीक 11 बजे डोली चल पड़े. ठीक मुहूर्त पर शादी हो गई. 11 बजे डोली चलने लगी तो पता चला कि आशा रो रही है. मैं ने आगे बढ़ कर उसे प्यार किया और कहा, ‘‘लड़की तो पराई होती है, रोती क्यों हो?’’ आशा ने मेरे कान में कहा कि वह इसलिए रो रही है कि उस के कौंटैक्ट लैंस रखने की छोटी डब्बी उस के पुराने पर्स में ही रह गई है. जब तक मैं उसे लैंस ला कर नहीं दूंगा वह वहां से जा नहीं सकेगी.

शादी के दूसरे दिन दौड़धूप कर के एक उच्चाधिकारी से सिफारिश करवा कर उसी दिन आशा का पासपोर्ट बनवाया गया. आननफानन जाने की सारी तैयारियां हो गईं. मैं आज ही सुबह आशा और उस के पति को हवाईअड्डे पर? छोड़ कर वापस लौटा हूं और मन ही मन डर रहा हूं कि आज रमाकांत दौरे से वापस लौटेगा और पूछेगा, ‘‘ गुरु, तुम्हारे आदर्शों का कहां तक पालन हुआ? बड़े देशप्रेमी बनते थे, पर अपनी लड़की की शादी विदेश में ही की? आखिर अमेरिका की सुखसुविधाएं भारत में कहां मिलतीं?’’ मैं सोच रहा हूं कि रमाकांत यहीं तक ही पूछे तो कोई बात नहीं, मैं संभाल लूंगा लेकिन अगर उस ने आगे पूछा कि दूसरों के आगे तो सुधार की बड़ीबड़ी बातें करते हो और अपने घर शादी की तो कौनकौन से सुधार लागू किए तो क्या जवाब दूंगा. वह जरूर पूछेगा, क्या निमंत्रणपत्र हिंदी में छपे थे? क्या अंधविश्वासियोें की तरह मुहूर्त को नहीं माना? क्या दहेज नहीं दिया? क्या घर को असंख्य लट्टुओें से नहीं सजाया? क्या धूमधाम से सड़क पर शामियाने नहीं लगाए? क्या सैकड़ों

लोगों ने कानन की टांग मरोड़ कर शादी पर बढि़या से बढि़या खाना नहीं खाया? क्या बरात में बैंडबाजे के साथ उछलकूद कर औरतों ने भी भांगड़ा नहीं किया? क्या जगहजगह काम  निकलवाने में सिफारिशें नहीं लगवाईं और सत्ता का दुरुपयोग नहीं किया? मुझ से इन प्रश्नों का समाधान नहीं हो पा रहा है. मैं क्या करता? मैं तो सभी लोगों को खुश रखना चाहता था. खुशी का मौका था, जैसा घर वाले और मेहमान चाहते थे, होता चला गया. मैं किसकिस को रोकता? मैं रमाकांत से साफ कह दूंगा कि मैं मजबूर था. पर मुझे ऐसा लग रहा है कि रमाकांत कहेगा, ‘रहने दो, अपनी दो नंबर की बातें. दो नंबर के धंधे में पकड़े जाने पर सब लोग अपनी कमजोरी को मजबूरी ही कहते हैं.

बढ़ती जीएसटी और महंगाई

नरेंद्र मोदी सरकार बढ़ते जीएसटी कलेक्शन पर बहुत खुश हो रही है. 2017 में जीएसटी लागू होने के कई सालों तक मासिक कलेक्शन 1 लाख करोड़ के आसपास रही थी पर इस जूनजुलाई से उस में उछाल आया है और 1.72 लाख करोड़ हो गई है. 1.72 लाख करोड़ मिलने होते हैं यह भूल जाइए, यह याद रखिए कि जीएसटी अगर ज्यादा है तो मतलब है कि सरकार जनता से ज्यादा टैक्स वसूल कर रही है. अगर साल भर में टैक्स 25-35 बढ़ता है और लोगों की आमदनी 2-3′ भी नहीं बढ़ती तो मतलब है कि हर घरवाली अपने खर्च काट रही है.

निर्मणा सीतारमन ने नरेंद्र मोदी की तर्ज पर एक आम गृहिणी की तरह अपना वीडियो एक सब्जी की दुकान पर सब्जी खरीदते हुए खिंचवाया. और इसे भाजपा आईटी सेल वायरल किया कि देखो वित्त मंत्री भी आम औरत की तरह हैं. पर यह नहीं समझाया गया कि सब्जी पर भी भारी टैक्स लगा हुआ या चाहे वह उस मिडिल एज्ड दुकानदार महिला ने चार्ज वहीं किया हो.

सब्जी आज दूर गांवों से आती है और ट्रक पर लद कर आती है. इस ट्रक पर जीएसटी, डीजल पर केंद्र सरकार का टैक्स है. सब्जी जिस खेत में उगाई जाती है उस पर चाहे लगान न हो पर जिस पंप से पानी दिया जाता है उस पर टैक्स है, जिस बोरी में सब्जी भरी गई, उस पर टैक्स है, जिस केब्रिज पर बोली गई उस पर टैक्स है.

उस एज्ड दुकानदार ने जिन इस्तेमाल किए लकड़ी के तख्तों पर अपनी दुकान लगाई, उन पर टैक्स है, जीवनी उस ने चलाई उस पर टैक्स है, जिस थैली, चाहे कागज की हो या पौलीथीन की हो, उस पर टैक्स है. निर्मला सीतारमन 100-200 रुपए की जो सब्जी खरीदी थी उस पर कितना है या इस का अंदाजा लगाना बहुत मुश्किल नहीं है.

बढ़ता जीएसटी देश के बढ़ते उत्पादन को नहीं जानता यह महंगार्ई को भी बताता है. पिछले एक साल से हर चीज का दाम बढ़ रहा है. दाम बढ़ेंगे तो टैक्स भी बढ़ेगा. हर घर वेसे ही बढ़ती कीमत से परेशान है पर वह इस के लिए जिम्मा दुकानदार या बनाने वाले को ठहराता है जबकि कच्चे माल से दुकान तक बढ़ी कीमत वाले मौल पर कितना ज्यादा जीएसटी देना पड़ा. यह नहीं सोचता.

वह इसलिए नहीं सोचता क्योंकि उसे पट्टी पढ़ा दी गई है कि उस के आकाओं ने उसे राममंदिर दिला दिया, चारधाम का रास्ता साफ कर दिया, महाकाल के मंदिर को ठीक कर दिया तो सभी भला करेगा. वह मंदिरों को अपनी झोली खुदबखुद खाली कर के देता है और सरकार उस की झोली से बंदूक के बल पर छीन लेती है.

अमीरी का डर: खाई अंतर्मन की

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घर से भागना नहीं है समाधान

वे कौन से हालात हैं जो लड़की को घर छोड़ने को मजबूर कर देते हैं. आमतौर पर सारा दोष लड़की पर मढ़ दिया जाता है, जबकि ऐसे अनेक कारण होते हैं, जो लड़की को खुद के साथ इतना बड़ा अन्याय करने पर मजबूर कर देते हैं. जिन लड़कियों में हालात का सामना करने का साहस नहीं होता वे आत्महत्या तक कर लेती हैं. मगर जो जीना चाहती हैं, स्वतंत्र हो कर कुछ करना चाहती हैं वे ही हालात से बचने का उपाय घर से भागने को समझती हैं. यह उन की मजबूरी है. इस का एक कारण आज का बदलता परिवेश है. आज होता यह है कि पहले मातापिता लड़कियों को आजादी तो दे देते हैं, लेकिन जब लड़की परिवेश के साथ खुद को बदलने लगती है, तो यह उन्हें यानी मातापिता को रास नहीं आता है.

कुछ ऊंचनीच होने पर मध्यवर्गीय लड़कियों को समझाने की जगह उन्हें मारापीटा जाता है. तरहतरह के ताने दिए जाते हैं, जिस से लड़की की कोमल भावनाएं आहत होती हैं और वह विद्रोही बन जाती है. घर के आए दिन के प्रताड़ना भरे माहौल से त्रस्त हो कर वह घर से भागने जैसा कदम उठाने को मजबूर हो जाती है. यह जरूरी नहीं है कि लड़की यह कदम किसी के साथ गलत संबंध स्थापित करने के लिए उठाती है. दरअसल, जब घरेलू माहौल से मानसिक रूप से उसे बहुत परेशानी होने लगती है तो उस समय उसे कोई और रास्ता नजर नहीं आता. तब बाहरी परिवेश उसे आकर्षित करता है. मातापिता का उस के साथ किया जाने वाला उपेक्षित व्यवहार बाहरी माहौल के आगोश में खुद को छिपाने के लिए उसे बाध्य कर देता है.

आज लड़केलड़कियों को समान दर्जा दिया जा रहा है. उन में आपस में मित्रता आम बात है. मगर पाखंडों में डूबे मध्यवर्गीय परिवारों में लड़कियों का लड़कों से दोस्ती करने को शक की निगाह से देखा जाता है. यदि कोई लड़की किसी लड़के से बात करती है, तो उस पर संदेह किया जाता है. जब घर वालों के व्यंग्यबाण लड़की की भावनाओं को आहत करते हैं तो उस के अंदर विद्रोह की भावना जागती है, क्योंकि वह सोचती है कि जब वह गलत नहीं है तब भी उसे संदेह की नजरों से देखा जा रहा है, तो क्यों न अपने व्यक्तित्व को लोग और समाज जैसा सोचते हैं वैसा ही बना लिया जाए? जब बात सीमा से परे या सहनशक्ति से बाहर हो जाती है तो यह विद्रोह की भावना विस्फोट का रूप इख्तियार कर लेती है. लेकिन ऐसे हालात में भी घर वालों का सहयोगात्मक रवैया उस के बाहर बढ़ते कदमों को रोक सकता है, मगर अकसर मातापिता का उपेक्षापूर्ण रवैया ही इस के लिए सब से ज्यादा जिम्मेदार रहता है.

मातापिता की बड़ी भूल

ज्यादातर मातापिता सहयोग की भावना की जगह गुस्से से काम लेते हैं. दरअसल, युवावस्था एक ऐसी अवस्था होती है, जब बच्चों को सब कुछ नयानया लगता है. उन के मन में सब को जानने और समझने की जिज्ञासा रहती है. यदि उन्हें सही ढंग से समझाया जाए तो वे ऐसे कदम न उठाएं, क्योंकि यह उम्र का ऐसा पड़ाव होता है, जहां वह किसी के रोके नहीं रुकता. युवा बच्चे के मन की हर बात, हर इच्छा उस पर जनून बन कर सवार होती है, जिसे सिर्फ और सिर्फ मातापिता की सहानुभूति और प्रेमपूर्ण व्यवहार ही शिथिल कर सकता है. यदि मातापिता यह सोचते हैं कि बच्चे उन की डांट, मार या उपेक्षापूर्ण रवैए से सुधर जाएंगे तो यह उन की सब से बड़ी भूल होती है.

जरूरी है सहयोगात्मक रवैया

माना कि लड़कियों के घर से भागने की जिम्मेदार वे खुद हैं. पर इस में मातापिता और परिवेश का भी पूरापूरा योगदान रहता है. मातापिता लड़कियों की भावनाओं को समझने का प्रयास नहीं करते. जबकि उन का सहयोगात्मक रवैया बेहद जरूरी होता है. मगर लड़कियों को भी चाहिए कि वे भावावेश या जिद में आ कर कोई निर्णय न लें. बड़ों की बात को विवेकपूर्ण सुन कर ही कोई निर्णय करें, क्योंकि यथार्थ यह भी है कि एक पीढ़ी अंतराल के कारण विचारों में परिवर्तन होता है, जिस से मतभेद स्थापित होते हैं. बड़ों का विरोध करें, मगर उन की उचित बातों को जरूर मानें वरना यही पलायन प्रवृत्ति जारी रही तो आप ही जरा कल्पना कीजिए कि भविष्य में हमारे समाज का स्वरूप क्या होगा?

टैक्स्चर के अनुरूप करें बालों की केयर

आप के बालों का आकारप्रकार न केवल आप की जीवनशैली को प्रदर्शित करता है, बल्कि आप की मनोस्थिति का भी आभास देता है. बालों का प्राकृतिक सौंदर्य बनाए रखने के लिए जरूरी है कि उन की बनावट को ध्यान में रख कर उन की देखभाल की जाए.

कैसे करें टैक्स्चर के अनुरूप बालों की केयर जानते हैं इशिका तनेजा से.

सामान्य बाल और उन की देखभाल

– अगर आप को गरमी के मौसम में 2 दिन बाद और सर्दी के मौसम में 3 दिन बाद बाल धोने की जरूरत महसूस हो, तो समझें आप के बाल सामान्य हैं. जरूरत और समय के अनुसार बालों को वाश करती रहें.

– हफ्ते में 1 बार रात को तिल और बादाम के तेल को मिक्स कर के बालों की मसाज कर सुबह शैंपू से धो लें.

– बालों को ज्यादा टाइट बांध कर न सोएं और धोने के लिए कुनकुने पानी का प्रयोग करें.

– सामान्य बालों को ज्यादा देखभाल की जरूरत नहीं पड़ती. इन में बादाम, नारियल या आंवले का कोई भी तेल लगा सकती हैं.

औयली बाल और उन की देखभाल

अगर बाल धोने के बाद गरमी के मौसम में अगले दिन और सर्दियों के 2 दिन में ही चिपचिपे लगें और उन्हें दोबारा धोने की जरूरत महसूस हो, तो समझ जाएं कि बाल तैलीय हैं.

– शैंपू करने से सिर की त्वचा एवं बालों से तेल की सफाई हो जाती है, रूसी, धूल इत्यादि दूर हो जाती है. इसलिए बालों को सप्ताह में कम से कम 1 बार शैंपू से धो लेना चाहिए. शैंपू से बालों का पीएच लैवल बना रहता है.

– बाल फूलेफूले व खिले हुए रहें इस के लिए नीबू का प्रयोग कंडीशनर की तरह करें. 1 मग पानी में 1/2 नीबू डालें. बालों को वाश करने के बाद इस पानी से लास्ट रिंस करें.

– औयली बाल बिना तेल लगाए ही तेल लगे बालों जैसे दिखते हैं, क्योंकि इस तरह के बाल पहले से ही नमीयुक्त होते हैं. इन बालों को अच्छी तरह साफ करने की जरूरत होती है, क्योंकि ये जल्दी गंदे हो जाते हैं. इन में जैतून या तिल के तेल का प्रयोग कर सकती हैं.

– यदि बाल अत्यधिक तैलीय होने के कारण सिर में रूसी हो गई है, तो 1/2 कप पानी में 1 चम्मच त्रिफला डाल कर कुछ देर उबाल कर ठंडा होने दें. फिर छान लें. अब इस में 1 चम्मच सिरका मिला कर रात में बालों में लगाएं और फिर मसाज करें. सुबह बालों को शैंपू से धो लें.

– ठंड में बालों में रूसी होने लगती है, इसलिए मौइश्चराइजिंग यानी जिस में बादाम, औलिव औयल और शहद जैसी चीजें हों का इस्तेमाल करें.

– डैंड्रफ को हलके में न लें. वरना यह बालों तक न्यूट्रिशन नहीं पहुंचने देगा. इस के लिए नीम के कैप्सूल खा सकती हैं या उन्हीं कैप्सूलों को काट कर बालों में लगा सकती हैं. ऐक्सपर्ट की सलाह लेना बेहतर होगा.

ड्राई बाल और उन की देखभाल

शैंपू और कंडीशनर करने के बावजूद यदि बाल रूखेसूखे और सख्त दिखाई दें, तो समझ जाएं कि बालों का टैक्स्चर शुष्क है.

– बाल धोने से पहले औलिव और कैस्टर औयल को मिक्स कर के सिर की मालिश करें.

– घरेलू कंडीशनर के तौर पर अंडे में नीबू और औलिव औयल की कुछ बूंदें मिला कर बालों में लेप की तरह 1/2 घंटा लगाए रखें. फिर किसी कंडीशनरयुक्त शैंपू से सिर धो लें ताकि अंडे की गंध चली जाए.

– रूखे बालों के लिए ऐसे तेल का चुनाव करें, जो उन्हें अंदरूनी तौर पर नमी प्रदान करे. इस के लिए नारियल, जैतून या सरसों का तेल बालों में लगा सकती हैं. बालों के अंदर तक तेल पहुंचाने के लिए बालों की तेल से मालिश करने के बाद गरम तौलिए की भाप लें. इस से तेल बालों की जड़ों तक आसानी से पहुंच जाएगा. यह बालों को अंदरूनी पोषण देने का काम करता है.

– ठंड के दिनों में अर्निका ट्री औयल इस्तेमाल करें. यह वाटर बेस्ड होता है. पानी जैसा पतला होने के कारण स्कैल्प इसे तुरंत अजौर्ब कर लेती है. इस से हेयरफाल

नहीं होगा और न ही स्कैल्प ड्राई होगी.

– इशिका तनेजा, ऐग्जीक्यूटिव डाइरैक्टर, एल्प्स कौस्मैटिक क्लीनिक

बिगड़ैल बेटी के बाद जेठानी को सबक सिखाएगी Anupama, करेगी घर से बाहर

रुपाली गांगुली (Rupali Ganguly) स्टारर सीरियल ‘अनुपमा’ (Anupama) महिलाओं को प्रेरित करने का काम करता है, जिसके चलते सीरियल टीआरपी लिस्ट में अक्सर टॉप पर रहता है. वहीं मेकर्स भी सीरियल की कहानी में नए-नए ट्विस्ट लाकर फैंस हैरान करते हैं. इसी बीच बेटी को सबक सिखाने के फैसले के बाद सीरियल में अनुपमा अपनी जेठानी की अक्ल ठिकाने लगाने वाली हैं. हालांकि इस नए मोड़ के साथ कई नए ट्विस्ट आने वाले हैं.

पाखी के बाद बरखा होगी घर से बाहर

बिगड़ेल पाखी को सबक सिखाने के बाद अनुपमा का बरखा पर गुस्सा नजर आने वाला है. दरअसल, आने वाले एपिसोड में पाखी को कपाड़िया हाउस से निकालने के बाद अनुपमा (anupama) अपनी जेठ और जेठानी यानी बरखा और अंकुश को कपाड़िया हाउस से निकालने का फैसला लेगी. दरअसल, अनुपमा, अंकुश से कहेगी कि पाखी को उकसाने वाली बरखा थीं, ऐसे में उन्हें भी घर से जाना पड़ेगा. वहीं अनुपमा के फैसले पर अनुज भी अंकुश से अपने दूसरी जगह रहने का इंतजाम करने के लिए कहेगा. हालांकि इतने में अनुज और अनुपमा (anuj and anupama) की मुसीबतें खत्म नहीं होगी. दरअसल, शो के अपकमिंग प्रोमो में अनुपमा और अनुज जैसे ही कुछ दिन के लिए शहर से बाहर जाने के लिए निकलेंगे वैसे ही दरवाजे पर  एक साइन बोर्ड होगा, जिसे देखकर अनुपमा परेशान हो जाएंगी.

अधिक के फैसले से खुश होगी अनुपमा

 

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अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि पाखी के लालच से हटकर अधिक अपने पैरों पर खड़े रहने की बात करेगा. हालांकि पाखी, वनराज से उसे शाह हाउस में ले जाने के लिए कहेगी. लेकिन अपने दामाद का ईगो दिखाते हुए अधिक शाह हाउस जाने से मना कर देगा. वहीं अधिक के फैसले पर अनुपमा को गर्व महसूस होगा और वह उन्हें आशीर्वाद देगी कि परिवार से दूर रहकर वह कामयाबी और संघर्ष का सामना कर सके.

परिवार ने छोड़ा पाखी का साथ

अब तक आपने देखा कि संगीत फंक्शन को रोकते हुए अनुपमा अपनी बिगड़ेल बेटी पाखी को खरी खोटी सुनाती है. वहीं पूरी फैमिली के सामने उसके लालच का पर्दा फाश भी करती है, जिसके चलते अनुपमा का साथ देते हुए घरवाले पाखी का साथ छोड़ देते हैं. वहीं उसे लालच छोड़कर सही रास्ते पर चलने की सलाह देते हैं.

GHKKPM: सई के चौह्वाण निवास आने से परेशान होगी पाखी, करेगी ये काम

स्टार प्लस के सीरियल ‘गुम है किसी के प्यार में’  (Ghum Hai Kisikey Pyaar Meiin)की कहानी में विराट और सई के बीच लड़ाइयां बेटी सवि के कारण जारी है. जहां एक तरफ, सवि से विराट का बार-बार मिलने सई को पसंद नहीं आ रहा तो वहीं पति के बदले बिहेवियर के कारण पाखी की रातों की नींद चली गई है, जिसके चलते अब सीरियल में पाखी का एक बार फिर बदला रुप दिखने वाला है. आइए आपको बताते हैं क्या होगा सीरियल में आगे (Ghum Hai Kisikey Pyaar Meiin Upcoming Episode)…

परेशान होगी पाखी

अब तक आपने देखा कि सवि के बेटी होने का सच जानने के बाद विराट उसे चौह्वाण हाउस जाने की बात कहता है. हालांकि सई मना कर देती है. लेकिन विराट, सवि को अपनी बेटी बताकर  उसके और सई के साथ एक परिवार की तरह फोटो क्लिक करवाता हैं, जिसे देखकर पाखी परेशान नजर आती है. हालांकि भवानी, सवि को चौह्वाण हाउस लाने से मना करेगी. लेकिन विराट का साथ देते हुए पाखी उसकी बात मान जाएगी.

विराट से सवाल करेगी पाखी

अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि विराट, पाखी से पूछेगा कि क्या उसे कोई चीज  परेशान कर रही है, जिसका जवाब देते हुए वह विराट से उसके फैसले के बारे में अपने इमोशन शेयर करेगी और कहेगी  वह उसके सवि के प्रति प्यार और सई के साथ रिश्ते को लेकर डर रही है. पाखी की बात सुनकर विराट भड़क जाएगा और पाखी को गलत समझेगा. इसके साथ ही विराट, पाखी से कहेगा कि वह उसे सवि से अलग करना चाहती है. वहीं पाखी, विराट को समझाने की कोशिश करती है. लेकिन विराट गुस्से में नजर आता है.

चौह्वाण हाउस आएगी सवि

पाखी और विराट की बहस के अलावा आप देखेंगे कि भवानी के खिलाफ जाकर विराट, सवि को चौह्वाण निवास लेकर आएगा. वहीं परिवार के लोग सवि का गृहप्रवेश करेंगे और एक कपड़े पर सवि के पैरों के निशान लेंगे. लेकिन सवि को गिरता देख सई भी उस कपड़े पर पैर की छाप छोड़ देगी. वहीं ये होते देख पाखी परेशान हो जाएगी और परिवार के सामने पैरों के निशान मिटाना शुरु कर देगी, जिसे देखकर परिवार वाले हैरान रह जाएंगे.

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