Love Story in Hindi: खुली छत- कैसे पतिपत्नी को करीब ले आई घर की छत

Love Story in Hindi: रमेश का घर ऐसे इलाके में था जहां हमेशा ही बिजली रहती थी. इसी इलाके में राजनीति से जुड़े बड़ेबड़े नेताओं के घर जो थे. पिछले 20 सालों से रमेश अपने इसी फ्लैट में रह रहा है. 15 वर्ष मातापिता साथ थे और अब 5 वर्षों से वह अपनी पत्नी नीना के साथ था. उन का फ्लैट बड़ा था और साथ ही 1 हजार फुट का खुला क्षेत्र भी उन के पास था.

7वीं मंजिल पर उन के पास इतनी खुली जगह थी कि लोग ईर्ष्या कर उठते थे कि उन के पास इतनी ज्यादा जगह है.

रमेश के पिता का बचपन गांव में बीता था और उन्हें खुली जगह बहुत अच्छी लगती थी. रिटायर होने से पहले उन्होंने इसी फ्लैट को चुना था, क्योंकि इस में उन के हिस्से इतना बड़ा खुला क्षेत्र भी था. दोस्तों और रिश्तेदारों ने उन्हें समझाया था कि इस उम्र में 7वीं मंजिल पर घर लेना ठीक नहीं है. यदि कहीं लिफ्ट खराब हो गई तो बुढ़ापे में क्या करोगे पर उन्होंने किसी की भी नहीं सुनी थी और 1 लाख रुपए अधिक दे कर यह फ्लैट खरीद लिया था.

पत्नी ने भी शिकायत की थी कि अब बुढ़ापे में इतनी बड़ी जगह की सफाई करना उन के बस की बात नहीं है. नौकरानियां तो उस जगह को देख कर ही सीधेसीधे 100 रुपए पगार बढ़ा देतीं. पर गोपाल प्रसाद बहुत प्रसन्न रहते. उन की सुबह और शामें उसी खुली छत पर बीततीं. सुबह का सूर्योदय, शाम का पहला तारा, पूर्णिमा का पूरा चांद, अमावस्या की घनेरी रात और बरसात की रिमझिम फुहारें उन्हें रोमांचित कर जातीं.

उस छत पर उन्होंने एक छोटा सा बगीचा भी बना लिया था. उन के पास 50 के करीब गमले थे, जिस में  तुलसी, पुदीना, हरी मिर्च, टमाटर, रजनीगंधा, बेला, गुलाब और गेंदा आदि सभी तरह के पौधे लगा रखे थे. हर पेड़पौधे से उन की दोस्ती थी. जब वह उन को पानी देते तो उन से मन ही मन बातें भी करते जाते थे. यदि किसी पौधे को मुरझाया हुआ देखते तो बड़े प्यार से उसे सहलाते और दूसरे दिन ही वह पौधा लहलहा उठता था. वह जानते थे कि प्यार की भाषा को सब जानते हैं.

मातापिता के गुजर जाने के बाद से घर की वह छत उपेक्षित हो गई थी. रमेश और नीना दोनों ही नौकरी करते थे. सुबह घर से निकलते तो रात को ही घर लौटते. ऐसे में उन के पास समय की इतनी कमी थी कि उन्होंने कभी छत वाला दरवाजा भी नहीं खोला. गमलों के पेड़पौधे सभी समाप्त हो चुके थे. साल में एक बार ही छत की ठीक से सफाई होती. उन का जीवन तो ड्राइंगरूम तक ही सिमट चुका था. छुट्टी वाले दिन यदि यारदोस्त आते तो बस, ड्राइंगरूम तक ही सीमित रहते. छत वाले दरवाजे पर भी इतना मोटा परदा लटका दिया था कि किसी को भी पता नहीं चलता कि इस परदे के पीछे कितनी खुली जगह है.

नीना भी पूरी तरह से शहरी माहौल में पली थी, इसलिए उसे कभी इस बात का एहसास ही नहीं हुआ कि उस के ससुर उन के लिए कितना अमूल्य खजाना छोड़ गए हैं. काम की व्यस्तता में दोनों ने परिवार को बढ़ाने की बात भी नहीं सोची थी पर अब जब रमेश को 40वां साल लगा और उसे अपने बालों में सफेदी झलकती दिखाई देने लगी तो उस ने इस ओर ध्यान देना शुरू किया. अब नीना भी उस से सहमत थी, पर अब वक्त उन का साथ नहीं दे रहा था. नीना को गर्भ ठहर ही नहीं रहा था. डाक्टरों के भी दोनों ने बहुत चक्कर लगा लिए. काफी दवाएं खाईं. डी.एम.सी. कराई. स्पर्म काउंट कराया. काम के टेंशन के साथ अब एक नया टेंशन और जुड़ गया था. दोनों की मेडिकल रिपोर्ट ठीक थी फिर भी उन्हें सफलता नहीं मिल रही थी. अब उन के डाक्टरों की एक ही सलाह थी कि आप दोनों तनाव में रहना छोड़ दें. आप दोनों के दिमाग में बच्चे की बात को ले कर जो तनाव चल रहा है वह भी एक मुख्य कारण हो सकता है आप की इच्छा पूरी न होने का.

इस मानसिक तनाव को दूर कैसे किया जाए? इस सवाल पर सब ओर से सलाह आती कि मशीनी जिंदगी से बाहर निकल कर प्रकृति की ओर जाओ. अपनी रोजमर्रा की पाबंदियों से निकल कर मुक्त सांस लेना सीखो. कुछ व्यायाम करो, प्रकृति के नजदीक जाओ आदि. लोगों की सलाह सुन कर भी उन दोनों की समझ में नहीं आता था कि इन पर अमल कैसे किया जाए.

इसी तरह की तनाव भरी जिंदगी में वह रात उन के लिए एक नया संदेश ले कर आई. हुआ यों कि रात को 1 बजे अचानक ही बिजली चली गई. ऐसा पहली बार हुआ था. ऐसी स्थिति से निबटने के लिए वे दोनों पतिपत्नी तैयार नहीं थे, अब बिना ए.सी. और पंखे के बंद कमरे में दोनों का दम घुटने लगा. रमेश उठा और अपने मोबाइल फोन की रोशनी के सहारे छत के दरवाजे के ताले की चाबी ढूंढ़ी और दरवाजा खोला. छत पर आते ही जैसे सबकुछ बदल गया.

खुली छत पर मंदमंद हवा के बीच चांदनी छिटकी हुई थी. आधा चंद्रमा आकाश के बीचोंबीच मुसकरा रहा था. रमेश अपनी दरी बिछा कर सो गया. उस ने अपनी खुली आंखों से आकाश को, चांद को और तारों को निहारा. आज 20-25 वर्षों बाद वह ऐसे खुले आकाश के नीचे लेटा था. वह तो यह भी भूल चुका था कि छिटकी हुई चांदनी में आकाश और धरती कैसे नजर आते हैं.

बिजली जाने के कारण ए.सी. और पंखों की आवाज भी बंद थी. चारों ओर खामोशी छाई हुई थी. उसे अपनी सांस भी सुनाई देने लगी थी. अपनी सांस की आवाज सुननेके लिए ही वह आतुर हो उठा. रमेश को लगा, जिन सांसों के कारण वह जीवित है उन्हीं सांसों से वह कितना अपरिचित है. इन्हीं विचारों में भटकतेभटकते उसे लगा कि शायद इसे ही ध्यान लगाना कहते हैं.

उस के अंदर आनंद का इतना विस्तार हो उठा कि उस ने नीना को पुकारा. नीना अनमने मन से बाहर आई और रमेश के साथ उसी दरी पर लेट गई. रमेश ने उस का ध्यान प्रकृति की इस सुंदरता की ओर खींचा. नीना तो आज तक खुले आकाश के नीचे लेटी ही नहीं थी. वह तो यह भी नहीं जानती थी कि चांदनी इतनी धवल भी होती है और आकाश इतना विशाल. अपने फ्लैट की खिड़की से जितना आकाश उसे नजर आता था बस, उसी परिधि से वह परिचित थी.

रात के सन्नाटे में नीना ने भी अपनी सांसों की आवाज को सुना, अपने दिल की धड़कन को सुना, बरसती शबनम को महसूस किया और रमेश के शांत चित्त वाले बदन को महसूस किया. उस ने महसूस किया कि तनाव वाले शरीर का स्पर्श कैसा अजीब होता है और शांत चित्त वाले शरीर का स्पंदन कैसा कोमल होता है. दोनों को मानो अनायास ही तनाव से छुटकारा पाने का मंत्र हाथ लग गया.

वह रात दोनों ने आंखों ही आंखों में बिताई. रमेश ने मन ही मन अपने पिता को इस अनमोल खजाने के लिए धन्यवाद दिया. आज पिता के साथ गुजारी वे सारी रातें उसे याद हो आईं जब वह गांव में अपने पिता के साथ लेट कर सुंदरता का आनंद लेता था. पिता और दादा उसे तारों की भी जानकारी देते जाते थे कि उत्तर में वह ध्रुवतारा है और वे सप्तऋषि हैं और  यह तारा जब चांद के पास होता है तो सुबह के 3 बजते हैं और भोर का तारा 4 बजे नजर आता है. आज उस ने फिर से वर्षों बाद न केवल खुद भोर का तारा देखा बल्कि पत्नी नीना को भी दिखाया.

प्रकृति का आनंद लेतेलेते कब उन की आंख लगी वे नहीं जान पाए पर सुबह सूर्यदेव की लालिमा ने उन्हें जगा दिया था. 1 घंटे की नींद ले कर ही वे ऐसे तरोताजा हो कर उठे मानो उन में नए प्राण आ गए हों.

अब तो तनावमुक्त होने की कुंजी उन के हाथ लग गई. उसी दिन उन्होंने छत को धोपोंछ कर नया जैसा बना दिया. गमलों को फिर से ठीक किया और उन में नएनए पौधे रोप दिए. बेला का एक बड़ा सा पौधा लगा दिया. रमेश तो अपने अतीत से ऐसा जुड़ा कि आफिस से 15 दिन की छुट्टी ले बैठा. अब उन की हर रात छत पर बीतने लगी. जब अमावस्या आई और रात का अंधेरा गहरा गया, उस रात को असंख्य टिमटिमाते तारों के प्रकाश में उस का मनमयूर नाच उठा.

धीरेधीरे नीना भी प्रकृति की इस छटा से परिचित हो चुकी थी और वह भी उन का आनंद उठाने लगी थी. उस ने  भी आफिस से छुट्टी ले ली थी. दोनों पतिपत्नी मानो एक नया जीवन पा गए थे. बिना एक भी शब्द बोले दोनों प्रकृति के आनंद में डूबे रहते. आफिस से छुट्टी लेने के कारण अब समय की भी कोई पाबंदी उन पर नहीं थी.

सुबह साढ़े 4 बजे ही पक्षियों का कलरव सुन कर उन की नींद खुल जाती. भोर के टिमटिमाते तारों को वे खुली आंखों से विदा करते और सूर्य की अरुण लालिमा का स्वागत करते. भोर के मदमस्त आलम में व्यायाम करते. उन के जीवन में एक नई चेतना भर गई थी.

छत के पक्के फर्श पर सोने से दोनों की पीठ का दर्द भी गायब हो चुका था अन्यथा दिन भर कंप्यूटर पर बैठ कर और रात को मुलायम गद्दों पर सोने से दोनों की पीठ में दर्द की शिकायत रहने लगी थी. अनायास ही शरीर को स्वस्थ रखने का गुर भी वे सीख गए थे.

ऐसी ही एक चांदनी रात की दूधिया चांदनी में जब उन के द्वारा रोपे गए बेला के फूल अपनी मादक गंध बिखेर रहे थे, उन दोनों के शरीर के जलतत्त्व ने ऊंची छलांग मारी और एक अनोखी मस्ती के बाद उन के शरीरों का उफान शांत हो गया तो दोनों नींद के गहरे आगोश में खो गए थे. सुबह जब वे उठे तो एक अजीब सा नशा दोनों पर छाया हुआ था. उस आनंद को वे केवल अनुभव कर सकते थे, शब्दों में उस का वर्णन हो ही नहीं सकता था.

अब उन की छुट्टियां खत्म हो गई थीं और उन्होंने अपनेअपने आफिस जाना शुरू कर दिया था. फिर से वही दिनचर्या शुरू हो गई थी पर अब आफिस से आने के बाद वे खुली छत पर टहलने जरूर जाते थे. दिन हफ्तों के बाद महीनों में बीते तो नीना ने उबकाइयां लेनी शुरू कर दीं. रमेश पत्नी को ले कर फौरन डाक्टर के पास दौड़े. परीक्षण हुआ. परिणाम जान कर वे पुलकित हो उठे थे. घर जा कर उसी खुली छत पर बैठ कर दोनों ने मन ही मन अपने पिता को धन्यवाद दिया था.

पिता की दी हुई छत ने उन्हें आज वह प्रसाद दिया था जिसे पाने के लिए वह वर्षों से तड़प रहे थे. यही छत उन्हें प्रकृति के निकट ले आई थी. इसी छत ने उन्हें तनावमुक्त होना सिखाया था. इसी छत ने उन्हें स्वयं से, अपनी सांसों से परिचित करवाया था. वह छत जैसे उन की कर्मस्थली बन गई थी. रमेश ने मन ही मन सोचा कि यदि बेटी होगी तो वह उस का नाम बेला रखेगा और नीना ने मन ही मन सोचा कि अगर बेटा हुआ तो उस का नाम अंबर रखेगी, क्योंकि खुली छत पर अंबर के नीचे उसे यह उपहार मिला था. Love Story in Hindi

Romantic Story: एक रिक्त कोना- क्या सुशांत का अकेलापन दूर हो पाया

Romantic Story: सुशांत मेरे सामने बैठे अपना अतीत बयान कर रहे थे: ‘‘जीवन में कुछ भी तो चाहने से नहीं होता है. इनसान सोचता कुछ है होता कुछ और है. बचपन से ले कर जवानी तक मैं यही सोचता रहा…आज ठीक होगा, कल ठीक होगा मगर कुछ भी ठीक नहीं हुआ. किसी ने मेरी नहीं सुनी…सभी अपनेअपने रास्ते चले गए. मां अपने रास्ते, पिता अपने रास्ते, भाई अपने रास्ते और मैं खड़ा हूं यहां अकेला. सब के रास्तों पर नजर गड़ाए. कोई पीछे मुड़ कर देखता ही नहीं. मैं क्या करूं?’’

वास्तव में कल उन का कहां था, कल तो उन के पिता का था. उन की मां का था, वैसे कल उस के पिता का भी कहां था, कल तो था उस की दादी का.

विधवा दादी की मां से कभी नहीं बनी और पिता ने मां को तलाक दे दिया. जिस दादी ने अकेले रह जाने पर पिता को पाला था क्या बुढ़ापे में मां से हाथ छुड़ा लेते?

आज उन का घर श्मशान हो गया. घर में सिर्फ रात गुजारने आते हैं वह और उन के पिता, बस.

‘‘मेरा तो घर जाने का मन ही नहीं होता, कोई बोलने वाला नहीं. पानी पीना चाहो तो खुद पिओ. चाय को जी चाहे तो रसोई में जा कर खुद बना लो. साथ कुछ खाना चाहो तो बिस्कुट का पैकेट, नमकीन का पैकेट, कोई चिप्स कोई दाल, भुजिया खा लो.

‘‘मेरे दोस्तों के घर जाओ तो सामने उन की मां हाथ में गरमगरम चाय के साथ खाने को कुछ न कुछ जरूर ले कर चली आती हैं. किसी की मां को देखता हूं तो गलती से अपनी मां की याद आने लगती है.’’

‘‘गलती से क्यों? मां को याद करना क्या गलत है?’’

‘‘गलत ही होगा. ठीक होता तो हम दोनों भाई कभी तो पापा से पूछते कि हमारी मां कहां है. मुझे तो मां की सूरत भी ठीक से याद नहीं है, कैसी थीं वह…कैसी सूरत थी. मन का कोना सदा से रिक्त है… क्या मुझे यह जानने का अधिकार नहीं कि मेरी मां कैसी थीं जिन के शरीर का मैं एक हिस्सा हूं?

‘‘कितनी मजबूर हो गई होंगी मां जब उन्होंने घर छोड़ा होगा…दादी और पापा ने कोई रास्ता ही नहीं छोड़ा होगा उन के लिए वरना 2-2 बेटों को यों छोड़ कर कभी नहीं जातीं.’’

‘‘आप की भाभी भी तो हैं. उन्होंने घर क्यों छोड़ दिया?’’

‘‘वह भी साथ नहीं रहना चाहती थीं. उन का दम घुटता था हमारे साथ. वह आजाद रहना चाहती थीं इसलिए शादी के कुछ समय बाद ही अलग हो गईं… कभीकभी तो मुझे लगता है कि मेरा घर ही शापित है. शायद मेरी मां ने ही जातेजाते श्राप दिया होगा.’’

‘‘नहीं, कोई मां अपनी संतान को श्राप नहीं देती.’’

‘‘आप कैसे कह सकती हैं?’’

‘‘क्योंकि मेरे पेशे में मनुष्य की मानसिकता का गहन अध्ययन कराया जाता है. बेटा मां का गला काट सकता है लेकिन मां मरती मर जाए, बच्चे को कभी श्राप नहीं देती. यह अलग बात है कि बेटा बहुत बुरा हो तो कोई दुआ भी देने को उस के हाथ न उठें.’’

‘‘मैं नहीं मानता. रोज अखबारों में आप पढ़ती नहीं कि आजकल मां भी मां कहां रह गई हैं.’’

‘‘आप खूनी लोगों की बात छोड़ दीजिए न, जो लोग अपराधी स्वभाव के होते हैं वे तो बस अपराधी होते हैं. वे न मां होते हैं न पिता होते हैं. शराफत के दायरे से बाहर के लोग हमारे दायरे में नहीं आते. हमारा दायरा सामान्य है, हम आम लोग हैं. हमारी अपेक्षाएं, हमारी इच्छाएं साधारण हैं.’’

बेहद गौर से वह मेरा चेहरा पढ़ते रहे. कुछ चुभ सा गया. जब कुछ अच्छा समझाती हूं तो कुछ रुक सा जाते हैं. उन के भाव, उन के चेहरे की रेखाएं फैलती सी लगती हैं मानो कुछ ऐसा सुना जो सुनना चाहते थे.

आंखों में आंसू आ रहे थे सुशांत की.

मुझे यह सोच कर बहुत तकलीफ होती है कि मेरी मां जिंदा हैं और मेरे पास नहीं हैं. वह अब किसी और की पत्नी हैं. मैं मिलना चाह कर भी उन से नहीं मिल सकता. पापा से चोरी-चोरी मैं ने और भाई ने उन्हें तलाश किया था. हम दोनों मां के घर तक भी पहुंच गए थे लेकिन मां हो कर भी उन्होंने हमें लौटा दिया था… सामने पा कर भी उन्होंने हमें छुआ तक नहीं था, और आप कहती हैं कि मां मरती मर जाए पर अपनी संतान को…’’

‘‘अच्छा ही तो किया आप की मां ने. बेचारी, अपने नए परिवार के सामने आप को गले लगा लेतीं तो क्या अपने परिवार के सामने एक प्रश्नचिह्न न खड़ा कर देतीं. कौन जाने आप के पापा की तरह उन्होंने भी इस विषय को पूरी तरह भुला दिया हो. क्या आप चाहते हैं कि वह एक बार फिर से उजड़ जाएं?’’

सुशांत अवाक् मेरा मुंह देखते रह गए थे.

‘‘आप बचपना छोड़ दीजिए. जो छूट गया उसे जाने दीजिए. कम से कम आप तो अपनी मां के साथ अन्याय न कीजिए.’’

मेरी डांट सुन कर सुशांत की आंखों में उमड़ता नमकीन पानी वहीं रुक गया था.

‘‘इनसान के जीवन में सदा वही नहीं होता जो होना चाहिए. याद रखिए, जीवन में मात्र 10 प्रतिशत ऐसा होता है जो संयोग द्वारा निर्धारित किया जाता है, बाकी 90 प्रतिशत तो वही होता है जिस का निर्धारण व्यक्ति स्वयं करता है. अपना कल्याण या अपना सर्वनाश व्यक्ति अपने ही अच्छे या बुरे फैसले द्वारा करता है.

‘‘आप की मां ने समझदारी की जो आप को पहचाना नहीं. उन्हें अपना घर बचाना चाहिए जो उन के पास है…आप को वह गले क्यों लगातीं जबकि आप उन के पास हैं ही नहीं.

‘‘देखिए, आप अपनी मां का पीछा छोड़ दीजिए. यही मान लीजिए कि वह इस संसार में ही नहीं हैं.’’

‘‘कैसे मान लूं, जब मैं ने उन का दाहसंस्कार किया ही नहीं.’’

‘‘आप के पापा ने तो तलाक दे कर रिश्ते का दाहसंस्कार कर दिया था न… फिर अब आप क्यों उस राख को चौराहे का मजाक बनाना चाहते हैं? आप समझते क्यों नहीं कि जो भी आप कर रहे हैं उस से किसी का भी भला होने वाला नहीं है.’’

अपनी जबान की तल्खी का अंदाज मुझे तब हुआ जब सुशांत बिना कुछ कहे उठ कर चले गए. जातेजाते उन्होंने यह भी नहीं बताया कि अब कब मिलेंगे वह. शायद अब कभी नहीं मिलेंगे.

सुशांत पर तरस आ रहा था मुझे क्योंकि उन से मेरे रिश्ते की बात चल रही थी. वह मुझ से मिलने मेरे क्लीनिक में आए थे. अखबार में ही उन का विज्ञापन पढ़ा था मेरे पिताजी ने.

‘‘सुशांत तुम्हें कैसा लगा?’’ मेरे पिता ने मुझ से पूछा.

‘‘बिलकुल वैसा ही जैसा कि एक टूटे परिवार का बच्चा होता है.’’

पिताजी थोड़ी देर तक मेरा चेहरा पढ़ते रहे फिर कहने लगे, ‘‘सोच रहा हूं कि बात आगे बढ़ाऊं या नहीं.’’

पिताजी मेरी सुरक्षा को ले कर परेशान थे…बिलकुल वैसे जैसे उन्हें होना चाहिए था. सुशांत के पिता मेरे पिता को पसंद थे. संयोग से दोनों एक ही विभाग में कार्य करते थे उसी नाते सुशांत 1-2 बार मुझे मेरे क्लीनिक में ही मिलने चले आए थे और अपना रिक्त कोना दिखा बैठे थे.

मैं सुशांत को मात्र एक मरीज मान कर भूल सी गई थी. उस दिन मरीज कम थे सो घर जल्दी आ गई. फुरसत थी और पिताजी भी आने वाले थे इसलिए सोचा, क्यों न आज  चाय के साथ गरमागरम पकौडि़यां और सूजी का हलवा बना लूं.

5 बजे बाहर का दरवाजा खुला और सामने सुशांत को पा कर मैं स्तब्ध रह गई.

‘‘आज आप क्लीनिक से जल्दी आ गईं?’’ दरवाजे पर खड़े हो सुशांत बोले, ‘‘आप के पिताजी मेरे पिताजी के पास गए हैं और मैं उन की इजाजत से ही घर आया हूं…कुछ बुरा तो नहीं किया?’’

‘‘जी,’’ मैं कुछ हैरान सी इतना ही कह पाई थी कि चेहरे पर नारी सुलभ संकोच तैर आया था.

अंदर आने के मेरे आग्रह पर सुशांत दो कदम ही आगे बढे़ थे कि फिर कुछ सोच कर वहीं रुक गए जहां खड़े थे.

‘‘आप के घर में घर जैसी खुशबू है, प्यारीप्यारी सी, मीठीमीठी सी जो मेरे घर में कभी नहीं होती है.’’

‘‘आप उस दिन मेरी बातें सुन कर नाराज हो गए होंगे यही सोच कर मैं ने भी फोन नहीं किया,’’ अपनी सफाई में मुझे कुछ तो कहना था न.

‘‘नहीं…नाराजगी कैसी. आप ने तो दिशा दी है मुझे…मेरी भटकन को एक ठहराव दिया है…आप ने अच्छे से समझा दिया वरना मैं तो बस भटकता ही रहता न…चलिए, छोडि़ए उन बातों को. मैं सीधा आफिस से आ रहा हूं, कुछ खाने को मिलेगा.’’

पता नहीं क्यों, मन भर आया मेरा. एक लंबाचौड़ा पुरुष जो हर महीने लगभग 30 हजार रुपए कमाता है, जिस का अपना घर है, बेघर सा लगता है, मानो सदियों से लावारिस हो.

पापा का और मेरा गरमागरम नाश्ता मेज पर रखा था. अपने दोस्तों के घर जा कर उन की मां के हाथों में छिपी ममता को तरसी आंखों से देखने वाला पुरुष मुझ में भी शायद वही सब तलाश रहा था.

‘‘आइए, बैठिए, मैं आप के लिए चाय लाती हूं. आप पहले हाथमुंह धोना चाहेंगे…मैं आप के लिए तौलिया लाऊं?’’

मैं हतप्रभ सी थी. क्या कहूं और क्या न कहूं. बालक की तरह असहाय से लग रहे थे सुशांत मुझे. मैं ने तौलिया पकड़ा दिया तब एकटक निहारते से लगे.

मैं ने नाश्ता प्लेट में सजा कर सामने रखा. खाया नहीं बस, देखते रहे. मात्र चम्मच चलाते रहे प्लेट में.

‘‘आप लीजिए न,’’ मैं ने खाने का आग्रह किया.

वह मेरी ओर देख कर कहने लगे, ‘‘कल एक डिपार्टमेंटल स्टोर में मेरी मां मिल गईं. वह अकेली थीं इसलिए उन्होंने मुझे पुकार लिया. उन्होंने बड़े प्यार से मेरा हाथ पकड़ लिया था लेकिन मैं ने अपना हाथ छुड़ा लिया.’’

सुशांत की बातें सुन कर मेरी तो सांस रुक सी गई. बरसों बाद मां का स्पर्श कैसा सुखद लगा होगा सुशांत को.

सहसा सुशांत दोनों हाथों में चेहरा छिपा कर बच्चे की तरह रो पड़े. मैं देर तक उन्हें देखती रही. फिर धीरे से सुशांत के कंधे पर हाथ रखा. सहलाती भी रही. काफी समय लग गया उन्हें सहज होने में.

‘‘मैं ने ठीक किया ना?’’ मेरा हाथ पकड़ कर सुशांत बोले, ‘‘आप ने कहा था न कि मुझे अपनी मां को जीने देना चाहिए इसलिए मैं अपना हाथ खींच कर चला आया.’’

क्या कहती मैं? रो पड़ी थी मैं भी. सुशांत मेरा हाथ पकड़े रो रहे थे और मैं उन की पीड़ा, उन की मजबूरी देख कर रो रही थी. हम दोनों ही रो रहे थे. कोई रिश्ता नहीं था हम में फिर भी हम पास बैठे एकदूसरे की पीड़ा को जी रहे थे. सहसा मेरे सिर पर सुशांत का हाथ आया और थपक दिया.

‘‘तुम बहुत अच्छी हो. जिस दिन से तुम से मिला हूं ऐसा लगता है कोई अपना मिल गया है. 10 दिनों के लिए शहर से बाहर गया था इसलिए मिलने नहीं आ पाया. मैं टूटाफूटा इनसान हूं…स्वीकार कर जोड़ना चाहोगी…मेरे घर को घर बना सकोगी? बस, मैं शांति व सुकून से जीना चाहता हूं. क्या तुम भी मेरे साथ जीना चाहोगी?’’

डबडबाई आंखों से मुझे देख रहे थे सुशांत. एक रिश्ते की डोर को तोड़ कर दुखी भी थे और आहत भी. मुझ में सुशांत क्याक्या तलाश रहे होंगे यह मैं भलीभांति महसूस कर सकती थी. अनायास ही मेरा हाथ उठा और दूसरे ही पल सुशांत मेरी बांहों में समाए फिर उसी पीड़ा में बह गए जिसे मां से हाथ छुड़ाते समय जिया था.

‘‘मैं अपनी मां से हाथ छुड़ा कर चला आया? मैं ने अच्छा किया न…शुभा मैं ने अच्छा किया न?’’ वह बारबार पूछ रहे थे.

‘‘हां, आप ने बहुत अच्छा किया. अब वह भी पीछे मुड़ कर देखने से बच जाएंगी…बहुत अच्छा किया आप ने.’’

एक तड़पतेबिलखते इनसान को किसी तरह संभाला मैं ने. तनिक चेते तब खुद ही अपने को मुझ से अलग कर लिया.

शीशे की तरह पारदर्शी सुशांत का चरित्र मेरे सामने था. कैसे एक साफसुथरे सचरित्र इनसान को यों ही अपने जीवन से चला जाने देती. इसलिए मैं ने सुशांत की बांह पकड़ ली थी.

साड़ी के पल्लू से आंखों को पोंछने का प्रयास किया तो सहसा सुशांत ने मेरा हाथ पकड़ लिया और देर तक मेरा चेहरा निहारते रहे. रोतेरोते मुसकराने लगे. समीप आ कर धीरे से गरदन झुकाई और मेरे ललाट पर एक प्रगाढ़ चुंबन अंकित कर दिया. फिर अपने ही हाथों से अपने आंसू पोंछ लिए.

अपने लिए मैं ने सुशांत को चुन लिया. उन्हें भावनात्मक सहारा दे पाऊंगी यह विश्वास है मुझे. लेकिन उन के मन का वह रिक्त स्थान कभी भर पाऊंगी ऐसा विश्वास नहीं क्योंकि संतान के मन में मां का स्थान तो सदा सुरक्षित होता है न, जिसे मां के सिवा कोई नहीं भर सकता. जो जीवन रहते बेटी को बेटी कह कर छाती से न लगा सकी. Romantic Story

Social Media: रिश्ते बिगाड़ रहा सोशल मीडिया

Social Media: आज का समय डिजिटल तकनीक और सोशल मीडिया का है. हमारे जीवन का प्रत्येक पहलू अब डिजिटल हो चला है. चाहे वह पढ़ाई हो, कामकाज हो या फिर व्यक्तिगत संबंध इन में से सब से प्रमुख और व्यापक रूप से उपयोग में आने वाला माध्यम है व्हाट्सऐप. किसी समय में यह साधन अपनों से जुड़ने का, आपसी संवाद को आसान और त्वरित बनाने के लिए उपयोग में लाया जाता था. व्हाट्सऐप और अन्य सोशल मीडिया प्लेटफौर्म अब हमारे जीवन का अभिन्न हिस्सा बन चुके हैं.

हम इन्हें अपने दोस्तों, परिवार और काम के सहयोगियों के साथ जुड़े रहने के लिए उपयोग करते हैं. हालांकि, इन सारे प्लेटफौर्म पर अधिक समय बिताना और वास्तविक जीवन में अपने रिश्तों के लिए कम समय देना आपसी रिश्तों में नुकसान पहुंचा रहा है. परंतु समय के साथ यही माध्यम अब आपसी रिश्तों में दूरी, भावनात्मक रिक्तता और गलतफहमियों का कारण बनने लगा है.

व्हाट्सऐप बेहद लोकप्रिय मैसेजिंग प्लेटफौर्म है. यह लोगों के लिए व्यावसायिक एवं व्यक्तिगत संवाद का महत्त्वपूर्ण साधन बन चुका है. हालांकि यह भी कुछ लोगों के लिए एक चिंता का भी कारण बनता जा रहा है क्योंकि कुछ लोगों का कहना है कि यह आपसी रिश्तों में तनाव और दूरी पैदा कर रहा है. व्हाट्सऐप जैसे सोशल मीडिया प्लेटफौर्म पर बातचीत करने की आदत आपसी रिश्तों को खराब कर सकती है.

ऐसा इसलिए क्योंकि ये प्लेटफौर्म व्यक्ति को वास्तविक समय में बातचीत करने और भावनात्मक रूप से जुड़ने से दूर कर देते हैं. वे संचार के तरीके को बदल देते हैं, जिस से रिश्तों में अंतरंगता, समझ और विश्वास कम हो जाता है. बातचीत का विकल्प नहीं कुछ लोगों का मानना है कि व्हाट्सऐप का अत्यधिक उपयोग लोगों को एकदूसरे के साथ वास्तविक बातचीत और शारीरिक संपर्क से दूर कर देता है. व्हाट्ऐप पर एकदूसरे को संदेश भेजना आपसी बातचीत का विकल्प कभी भी नहीं हो सकता है. व्हाट्सऐप पर संदेशों को गलत समझ जा सकता है, जिस से आपसी रिश्तों में गलतफहमी और विवाद हो सकते हैं.

व्हाट्सऐप पर किसी के स्टेटस को चैक करना विश्वास की कमी का संकेत हो सकता है, जिस से रिश्ते में तनाव हो बढ़ सकता है. व्हाट्सऐप की बात करते हुए रश्मि कहने लगीं कि कुछ दिन पहले वे पारिवारिक समारोह में गईं तो वहां बहुत समय बाद रिश्तेदारों से मुलाकात हुई और सब से जुड़े रहने के लिए एक व्हाट्सऐप गु्रप बनाया गया कि अब सब एकदूसरे से जुड़े रहेंगे. एक खुशनुमा अनुभव और माहौल से वे अपने घर लौटी थीं. जब अगले दिन वे अपना मोबाइल उठा कर मैसेज देखने लगीं तो हैरान रह गईं. गुड मौर्निंग और भगवान की फोटो वाले लगभग 20 मैसेज.

वे समझ नहीं पा रहीं थीं कि क्या उन्हें यह ग्रुप बनाने की सजा दी जा रही है. वे परेशान हुईं लेकिन फिर शांत रह कर चुप बनी रहीं. अब व्हाट्सऐप पर गुडमौर्निंग का मैसेज उन्हें सिरदर्द देता सा लगता है. संवाद की गहराई में कमी: व्हाट्सऐप जैसे प्लेटफौर्म पर अकसर संक्षिप्त और सतही बातचीत होती है जो व्यक्तिगत संवाद और आपसी बातचीत की गहराई को कम कर देती है.

व्यक्तिगत बातचीत में कमी आ जाती है. व्हाट्सऐप पर जब कोई मैसेज करता है तो वह आप से उम्मीद करता है कि आप उस के मैसेज का तुरंत उत्तर देंगे और यह चैटिंग वास्तविक बातचीत की जगह ले लेती है. व्हाट्सऐप के मैसेज को गलत भी समझ जा सकता है क्योंकि वे शारीरिक भाषा या लहजे के बिना होते हैं, जिस से गलतफहमी और झगड़े बढ़ सकते हैं. कई बार मैसेज देखने की फुरसत नहीं रहती या उत्तर लिखने का समय नहीं रहता तो मैसेज करने वाला सोचने लगता है कि वह उन्हें जानबूझ कर इग्नोर कर रहा है. इस वजह से आपस में बिना किसी कारण गलतफहमी पैदा हो जाती है और रिश्ते में दरार पड़ने लगती है.

पहले जब लोग एकदूसरे से मिलते थे तो आंखों में आंखें डाल कर बातें किया करते थे. एकदूसरे के चेहरे के हावभाव, स्वर का उतारचढ़ाव, आपसी स्पर्श, सबकुछ संवाद का हिस्सा होता था. आज व्हाट्सऐप के माध्यम से ये सब इमोजी और टाइपिंग में बदल गया है. टैक्स्ट मैसेज में न तो कोई भावनाएं स्पष्ट होती हैं और न ही आत्मिक और भावनात्मक जुड़ाव. 45 वर्षीय नीरज की पत्नी औफिस की मीटिंग के लिए 3 दिनों के लिए मुंबई गई हुई थी. नीरज को वायरल फीवर हो गया, मेड ने भी छुट्टी ले ली तो वह 1 कप चाय के लिए भी परेशान हो गए थे. उन्होंने अपने फैमिली गु्रप में मैसेज किया कि सफरिंग फ्रौम वायरल.

लेकिन कुछ पलों में उन का फोन गैट वैल सून के मैसेज से भर गया, जबकि वे पूरा दिन अकेले यों ही बेहोश से पड़े रहे, जब उन्होंने स्वस्थ होने के बाद किसी समय लोगों से यह बात बताई तो झट से उन लोगों ने कहा कि फोन कर देते तो हम आ जाते. आदिआदि संबंधों में तनाव: व्हाट्सऐप पर होने वाली बातचीत कई बार आपस में तनाव या विवाद पैदा कर देती है जो व्यक्तिगत संबंधों में और भी तनाव पैदा कर सकता है.

जब व्हाट्सऐप पर कोई लिखता है कि ठीक हूं तो यह कहना कि वह ठीक ही है, यह समझ पाना मुश्किल रहता है कि वह सच में ठीक है या फिर टाल रहा है या यह भी संभव है कि अपनी समस्या बताना नहीं चाह रहा है.

प्रतिक्रियाओं का बोझ और अपेक्षाएं: व्हाट्सऐप पर रीड और ब्लू टिक जैसी सुविधाएं संबंधों में अनावश्यक अपेक्षाएं और तनाव पैदा करती हैं. जब किसी ने मैसेज पढ़ लिया परंतु उस ने जवाब नहीं दिया तो मैसेज करने वाला स्वयं को अनदेखा और अपमानित अनुभव करने लगता है. यह छोटी सी बात अकसर मनमुटाव, अविश्वास और लड़ाई का कारण बन जाती है.

ग्रुप्स और दिखावे की संस्कृति: व्हाट्सऐप ग्रुप्स अब संवाद से ज्यादा आपसी प्रतिस्पर्धा और तुलना का केंद्र बन गए हैं. कौन क्या शेयर कर रहा है, किस का स्टेटस कैसा है, किस ने किस को विश किया या नहीं किया, ये बातें अब आपसी संबंधों की बुनियाद तय करने लगी हैं. असली भावनाओं, संवेदनाओं, सहानुभूति, खुशी की जगह अब वर्चुअल दिखावे ने ले ली है. नीला ने मर्सिडीज कार ली तो उस ने खुशी साझ करते हुए अपनी कार की पूजा करते हुए फोटो ग्रुप में डाल दिया. दिखावे के लिए तो लोगों ने बधाई लिख कर स्माइली डाल दी लेकिन ईशा को बरदाश्त नहीं हो सका. उस ने तुरंत मेघा को फोन लगा कर उलटीसीधी बातें कर डालीं कि जानती हो नीला के पति बहुत घूस लेते हैं.

ऐसे थोड़े ही मर्सिडीज उन के दरवाजे पर आ गई है. यद्यपि मेघा को ईशा की बात अच्छी नहीं लग रही थी लेकिन वह उस से कुछ कह नहीं सकती थी. इसी तरह से वीरा केरल घूम कर आई तो उस ने थोड़े से फोटो अपने गु्रप में शेयर कर दिए. उस के बाद वह काफी देर तक लाइक्स और कमैंट्स के लिए अनावश्यक रूप से तनाव में रही कि किस ने क्या लिखा आदिआदि. उस की फ्रैंड गीता ने बताया कि रिया कह रही थी कि वीरा केरल क्या घूम आई जैसे पैरिस घूम कर आई हो. ऐसे फोटो डाल कर शो कर रही है. वीरा को खुशी मिलने की जगह आपसी रिश्तों में दरार पड़ गई. कारण कुछ भी हो लेकिन आपस में दूरी तो आ ही जाती सतही संवाद.

व्हाट्सऐप पर बातें तो बहुत होती हैं जैसे जीएम, एचबीडी, एलओएल, ओके जैसे मैसेज आते रहते हैं जिन में न ही किसी तरह की आत्मीयता होती है न ही कोई भावना. आजकल हम सभी दिनभर औनलाइन रहते हैं लेकिन अपने दिल की बात हम किसी से भी साझ नहीं कर सकते. आजकल सभी दिखावे की जिंदगी जी रहे हैं.

बातचीत में कमी: व्हाट्सऐप पर बातचीत अकसर संक्षिप्त और अनौपचारिक होती है, जिस की वजह से आपसी रिश्तों में गहराई और आपसी जुड़ाव की कमी होती है.

दूर: मैसेज के टैक्स्ट में भावनाओं और संदर्भों को व्यक्त करना मुश्किल होता है, जिस के कारण आपसी रिश्तों में दूरी बढ़ सकती है. नीरा ने अपने फ्रैंड को मैसेज किया कि औफिस के बाद 5 बजे मैं इंतजार करूंगी. वैभव ने अपनी गाड़ी निकाली और घर चला गया. वह समझ ही नहीं पाया था कि वह कहां इंतजार करेगी. उस ने जब मैसेज देखा तो उस ने नीरा को फोन कर के सौरी बोला. व्हाट्सऐप पर सौरी लिखा लेकिन आपसी संबंधों में दूरी आ गई.

व्हाट्सऐप पर लगातार नोटिफिकेशन और संदेश रिश्तों पर ध्यान केंद्रित की क्षमता कम कर देते हैं. लगातार फौरवर्डेड मैसेज देख कर लोगों के मन में भेजने वाले के प्रति गुस्सा और ऊब की भावना पैदा करता है. Social Media

Monsoon Special 2025: मौनसून की तैयारी, पति को भी दें जिम्मेदारी

Monsoon Special 2025: सीजन बदलने के साथ हाउसवाइफ के किचन से जुड़े बहुत से काम बढ़ जाते हैं. हर मौसम के हिसाब से किचन में मसालों, दालसब्जियों को अपडेट करना, किचन की सफाई करना जैसे ऐसे बहुत से काम हैं जिन्हें गिना नहीं जाता. ये तो बस औरतों के काम हैं और इन में वक्त ही कितना लगता है, यह सोच कर कोई उन की मदद के लिए आगे नहीं आता. बड़ी बात तो यह कि औरतें ही औरतों के कामों को नकार देती हैं कि आखिर वे करती ही क्या हैं.

अब वक्त आ गया है लेडीज अपने काम में अपने पति को इनवौल्व करने का. आखिर कब तक बिस्तर पर लेटे या सोफे पर बैठे बारिश की 2 बूंदें पड़ते ही चायपकौड़ों का और्डर पास करते रहेंगे और आप अकेली झलती रहेंगी हर सीजन की तैयारी?

मौनसून के साथ आती है नमी, सीलन, फफूंदी और किचन में बिन बुलाए मेहमान तिलचट्टे और कीड़ेमकोड़े. दालें सीलन से खराब न हों, मसाले महकते रहें, सब्जियां सड़ें नहीं, इन सब का इंतजाम करना कोई आसान काम नहीं.

अब जब पति को क्रिकेट के मौसम में चाय टाइम पर चाहिए तो क्या उन्हें यह नहीं पता होना चाहिए कि चायपत्ती किस डब्बे में और इलायची कहां है?

काम बांटें प्यार बढ़ाएं

– पति करें किचन की डीप क्लीनिंग, फर्श से ले कर अलमारी तक.

– पुराने मसाले, ऐक्सपायर दालें बाहर निकालें और लिस्ट बनाएं नई खरीदारी की.

– एअरटाइट कंटेनर में भरें दाल और मसाले ताकि नमी से बचें.

– सब्जियों की खरीदारी में साथ चलें और साथ में बारिश का मजा लें. और हां, अगर पति महाशय कहें कि हमें नहीं आता ये सब तो आप मुसकराते हुए कहें कि आता नहीं है, तो सीखिए. शादी सिर्फ साथ जीनेमरने का वादा नहीं, साथ मिल कर ?ाड़ूपोंछा करने का करार भी है और फिर यह घर अकेले औरत का तो नहीं. जो इस में रह रहे हैं उन सब की जिम्मेदारी है कि वे काम में हाथ बंटाएं.

क्यों जरूरी है मौनसून में किचन की खास तैयारी

मौनसून में नमी बहुत बढ़ जाती है. यह नमी सीधे असर डालती है आप की किचन की चीजों पर यानी दालों, मसालों, आटा, सब्जियों यहां तक कि लकड़ी की अलमारियों पर भी. अगर इन का ध्यान न रखा जाए तो चीजें खराब भी हो जाती हैं और फंगस व बैक्टीरिया घर कर लेते हैं. जिस से आप की किचन से बदबू सी आती है, साथ ही बीमारियां और चीजें खराब होने से ऐक्स्ट्रा खर्च भी आप की जेब पर बढ़ जाता है. इसीलिए जरूरी है कि आप थोड़ा पहले से ही किचन को मौनसून के लिए रैडी कर लें.

जरूरी यह भी है कि ये सब ऐक्स्ट्रा की जिम्मेदारी आप अकेले न लें. पति को भी किचन में बुलाएं और उन्हें दालआटे का भाव ही नहीं, वे कैसे रखने हैं, कहां रखने हैं और कैसे इस्तेमाल करने हैं यह भी सिखाएं.

अब यह कोई अकेली पत्नी की जिम्मेदारी तो नहीं कि वह अकेले सब संभालें. अब अगर आप के पति को समझ न आ रहा हो कि काम कहां से शुरू किया जाए तो आप के लिए हम सिंपल सी टू डू लिस्ट ले कर आए हैं जिसे देख कर आप के पति आसानी से किचन में अपना काम समझ सकते हैं.

मसाले और दालें फ्रैश रखने के देशी जुगाड़

एअरटाइट डब्बों का करें इस्तेमाल: सभी मसाले और दालों को प्लास्टिक की थैलियों से निकाल कर एअरटाइट कंटेनर में डालें. इस से नमी से बचाव होगा और खुशबू भी बनी रहेगी और जब पति अपने हाथों से किचन को सैट करने में मदद करेंगे तो जरूरत के टाइम उन्हें मसालों के नाम से ले कर वे कहां रखे हैं और कैसे यूज करने हैं यह भी समझ पैदा होगी.

तेजपत्ता और लौंग का कमाल: चावल, आटा और दालों में 1-2 तेजपत्ते या लौंग डाल दें. इस से कीड़े नहीं लगते और एक हलकी सी नैचुरल खुशबू भी बनी रहती है. कोशिश करें कि ज्यादा दालचावल स्टोर कर के न रखें. हफ्ते या 10 दिन के हिसाब से चीजे खरीदें. पति को बोलें पैंट्री में नई चीजें भरने से पहले जो पुरानी बची चीजें हैं उन की लिस्ट बनाएं और दोनों मिल कर पहले हफ्ते की ऐसी मिल प्लान करें कि उस में सभी पुरानी ग्रौसरी इस्तेमाल हो जाए. यह कोई साल में एक बार करने का काम नहीं है. तो पति को ऐक्टिवली इस काम की जिम्मेदारी दें. हर हफ्ते उन्हें पैंट्री से गो थ्रू करने का काम थमाएं

दालों को धूप दिखाएं: अगर 1-2 दिन धूप निकलती है तो दालों को प्लेट में निकाल कर छांव में सुखा लें. इस से अंदर की सीलन निकल जाती है. अब धूप दिखाने का जिम्मा जब पति को मिलेगा तो उन को दालों के नाम भी पता चलेंगे. अब जब कभी आप का फ्रैंड्स ट्रिप या मायके जाने का मन हो तो यह न हो कि कौन सी दाल है कहां रखी है यही पूछपूछ कर पति आप की नाक में दम करें. उन्हें पहले से कुछ बेसिक मूंग, मसूर, अरहर, चने की दाल कैसी दिखती और बनती है, यह सिखाएं.

ड्रायर्स या सिलिका जैल का उपयोग: मसालों के डब्बों में एक छोटा सा ड्रायर पैकेट रखें (जैसे जो जूतों या दवाइयों में आते हैं), नमी सोखने में मदद करेगा. यह सस्ता और सफल तरीका है चीजों को सीलन से बचाने का.

प्याजआलू को स्टोर करें स्मार्टली

कपड़े की बोरियों या टोकरी में रखें: प्लास्टिक की थैली में प्याजआलू जल्दी गलते हैं. इन्हें खुले जूट बैग या बांस की टोकरी में रखें. अपने पति को ही यह काम दें. हर 2-3 दिन में इन्हें उलटपलट दें ताकि हवा पास होती रहे और ये सड़ें नहीं.

एकसाथ न रखें: प्याज और आलू को कभी एकसाथ न रखें. दोनों से निकलने वाली गैसें एकदूसरे को जल्दी सड़ा देती हैं.

सूखे व हवादार स्थान पर रखें: किसी ऐसी जगह रखें जहां थोड़ी हवा आती रहे. बिलकुल बंद जगह में न रखें वरना नमी से सड़न बढ़ती है.

नीचे अखबार बिछाएं: इस से नमी सोखने में मदद मिलेगी और सड़ने पर साफ करना भी आसान रहेगा.

किचन क्लीनिंग

बेकिंग सोडा+विनेगर=मैजिक क्लीनर: यह कौंबो न केवल चिकनाई हटाता है बल्कि बदबू को भी भगाता है. टाइल्स, गैस चूल्हा, सिंक सब के लिए एकदम सही.

नीबू और नमक से चमकाएं स्टील के बरतन: ये पुराना नुसखा आज भी सब से ज्यादा असरदार है, साथ ही हाथों को नुकसान भी नहीं पहुंचाता. वैसे तो डिशवाशर का जमाना है या फिर हाउस हैल्प ये काम कर देती हैं लेकिन अगर मजबूरी हो तो बरतन साफ करने की जरूरत आ पड़े तो अपने ऊपर सारी जिम्मेदारी न लें. अगर खाना आप ने बनाया है तो बरतन साफ करने का जिम्मा पति को दें.

हैवी ड्यूटी क्लीनर इस्तेमाल करें

(कम समय, ज्यादा असर): मार्केट में कोलीन हैवी ड्यूटी, लाइजोल किचन डीग्रीजर, एमआर मसल और डी 40 जैसे बजट फ्रैंडली क्लीनर आते हैं जो बिना ज्यादा मेहनत के तेल की परतें हटा देते हैं.

चिमनी की टाइमटूटाइम सफाई

जरूरी है: हर 15 दिन में चिमनी के

फिल्टर को निकाल कर गरम पानी, बेकिंग

सोडा और डिशवाशिंग लिक्विड में भिगो कर साफ करें वरना तेल जमने से बदबू और कीड़े पनप सकते हैं. आप मार्केट में उपलब्ध ग्रीस क्लीनर भी यूज कर सकते हैं. Monsoon Special 2025

Beauty Tips: क्या बर्फ चेहरे पर रगड़ना ठीक रहता है?

Beauty Tips

क्या बर्फ चेहरे पर रगड़ना ठीक रहता है?

चेहरे पर बर्फ रगड़ना कई मामलों में फायदेमंद हो सकता है जैसे पसीना कम करना, सूजन अथवा पफीनैस घटाना या गरमियों में स्किन को ठंडक देना. लेकिन बर्फ को सीधे स्किन पर लगाना सही नहीं है क्योंकि इस से स्किन को झटका लग सकता है और रैडनैस या जलन हो सकती है. बेहतर होगा कि आप बर्फ को एक मुलायम सूती कपड़े में लपेट कर हलके हाथों से गोलाई में चेहरे पर घुमाएं, साथ ही अगर स्किन बहुत ड्राई या सैंसिटिव है तो बर्फ से बचना चाहिए या किसी ऐक्सपर्ट से सलाह ले कर ही इस्तेमाल करनी चाहिए.

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क्या रोज मेकअप करना स्किन को खराब करता है?

रोज मेकअप करना अपनेआप में स्किन के लिए नुकसानदायक नहीं होता लेकिन अगर मेकअप ठीक से साफ न किया जाए तो उस से पोर्स बंद हो सकते हैं, मुंहासे निकल सकते हैं या स्किन डल दिखने लगती है. असल में स्किन को नुकसान मेकअप से नहीं बल्कि रात को मेकअप उतारे बिना सोने से होता है. अगर आप मेकअप के बाद सही क्लींजर से चेहरा साफ करती हैं, टोनर और मौइस्चराइजर लगाती हैं तो स्किन को कोई खतरा नहीं होता, साथ ही मेकअप प्रोडक्ट्स हमेशा भरोसेमंद और स्किन टाइप के हिसाब से चुने जाएं तभी स्किन सुरक्षित रहती है.

क्या सिर्फ फेस वाश से चेहरा साफ करना काफी है?

अगर आप सिर्फ धूल या पसीने से चेहरा धो रही हैं तो फेस वाश काफी होता है लेकिन अगर आप ने मेकअप लगाया है या सनस्क्रीन यूज किया है तो सिर्फ फेस वाश से स्किन पूरी तरह से साफ नहीं होती. ऐसे में पहले किसी अच्छे मेकअप रिमूवर या माइसेलर वाटर अथवा क्लींजिंग बाम से चेहरा साफ करना चाहिए और उस के बाद फेस वाश का इस्तेमाल करना चाहिए. इसे डबल क्लींजिंग कहते हैं, जो स्किन को गहराई से साफ करता है और पोर्स में गंदगी जमा नहीं होने देता. रोजाना रात को सोने से पहले कम से कम एक बार अच्छे से चेहरा साफ करना बहुत जरूरी है.

  • समस्याओं के समाधान ऐल्प्स ब्यूटी क्लीनिक की फाउंडर, डाइरैक्टर डा. भारती तनेजा द्वारा द्य पाठक अपनी समस्याएं इस पते पर भेजें : गृहशोभा, ई-8, रानी झंसी मार्ग, नई दिल्ली-110055 कृपया अपना मोबाइल नंबर जरूर लिखें. स्रूस्, व्हाट्सऐप मैसेज या व्हाट्सऐप औडियो से अपनी समस्या 9650966493 पर भेजें.

Relationship Problems: शिफ्ट ड्यूटी से हो रही रिश्तों में शिफ्टिंग, क्या करें?

मैं 31 वर्षीय वर्किंग वूमन हूं. पति भी वर्किंग हैं. हमारी शिफ्ट ड्यूटी की वजह से हमारे बीच ठीक से बातचीत नहीं हो पाती है. यह हमारे झगड़े का कारण बन गया है. अब तो हालत यह हो गई है कि लीव वाले दिन भी हम बात नहीं करते. हमारे बीच प्यार खत्म सा हो गया है. कई बार मुझे यह भी लगता है कि मेरे पति का किसी और के साथ अफेयर है. बताएं मैं क्या करूं?

पतिपत्नी के रिश्ते में कभी प्यार तो कभी तकरार होना स्वाभाविक है. आप की लाइफ इतनी बिजी हो गई है कि आप अपने परिवार के साथ ज्यादा टाइम नहीं बिना पाते. पतिपत्नी के रिश्ते को मजबूत करने के लिए एकदूसरे को समय दें. एकदूसरे की रिस्पैक्ट करना बहुत जरूरी है. जो भी बात आप को परेशान कर रही हो उसे अपने पार्टनर से शेयर करें और फिर साथ मिल कर उस का समाधान निकालें. फिर भी समाधान न निकल पाए तो काउंसलर या कपल थेरैपिस्ट की मदद लें.

 

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मैं 34 साल का हूं और प्राइवेट सैक्टर में काम करता हूं. घर की टैंशन और औफिस की टैंशन की वजह से मुझे रात को नींद नहीं आती है. इस वजह से मैं ने नींद की गोलियां खानी शुरू कर दीं. मगर कुछ प्रौब्लम खत्म नहीं हुई, बल्कि और बढ़ गई. प्लीज मुझे गाइड करें?

हैल्दी जीवन गुजारने के लिए यह बहुत जरूरी है कि हम कम से कम तनाव लें. सब से पहले तो आप अपने थौट्स और फीलिंग्स पर गौर करें. जानें कि आप को क्या बात परेशान कर रही है. फिर उन्हें दूर करने की कोशिश करें. मैडिटेटिंग ऐक्टिविटीज जैसे ब्रीदिंग ऐक्सरसाइज करने से आप का माइंड रिलैक्स होगा और आप अपने काम पर फोकस कर पाएंगे. अपनी फैमिली के साथ समय बिताएं. उन से बातचीत करें, उन को समझें. धीरेधीरे आप अपनी लाइफ ऐंजौय करने लगेंगे.

मैं 30 साल की हूं. 1 साल से लीविंग रिलेशनशिप में थी. कुछ वक्त पहले मुझे पता चला कि वह लड़का किसी और से शादी कर रहा है. यह जानने के बाद मैं मैंटली ब्रेकडाउन हो गई हूं. मेरी जौब भी चली गई है. मैं मैंटल स्ट्रैस में हूं. कृपया बताएं मैं क्या करूं?

ब्रेकअप इमोशनली या मैंटली डिस्टर्ब कर देता है. हमें अकसर ऐसे खयाल आते हैं जैसे सब खत्म हो गया हो. मगर आप यह जानें कि यह बस बिगनिंग है, थोड़ी सी गाइडैंस से आप अपनेआप को संभाल सकती हैं. अपने पास्ट के बारे में सोच कर दुखी न हों. अपने फ्यूचर पर फोकस करें. उस की औनलाइन या औफलाइन ऐक्टिविटीज का ट्रैक नहीं रखें. इस से आप को ही तकलीफ होगी या आप आगे बढ़ पाएंगी. अपनी फीलिंग्स शेयर करें. सब से जरूरी यह है कि आप अपनेआप को थोड़ा वक्त दें. मैं 34 साल और 2 बच्चों की मां हूं. मैं

स्कूल टीचर हूं. मुझे हर समय मरने के खयाल आते हैं अगर मेरी तबीयत हलकी सी भी खराब हो जाए तो मुझे ऐसा लगता है कि मैं मरने वाली हूं. बस से सफर करते समय ऐसा लगता है जैसे बस का ऐक्सिडैंट हो जाएगा और मैं मर जाऊंगी. ये खयाल मेरे दिमाग में हमेशा रहते हैं. जो मुझे मैंटल स्ट्रैस में डाल रहे हैं. इस डर से मैं ने बाहर आनाजाना भी छोड़ दिया है. बताएं मैं क्या करूं?

सब से पहले तो इस बात पर गौर करें कि आप को ये थौट्स कब और किस सिचुएशन में आते हैं. जब भी आप को ये थौट्स परेशान करें आप उन्हें डायरी में रिकौर्ड करें. जब आप को वे थौट्स समझ आ जाएं और कि किस सिचुएशन में आते हैं यह समझ आ जाए तो फिर उन्हें पौजिटिव थौट्स से बलदने की कोशिश करें. अपना ध्यान उन चीजों पर लगाएं जो आप के नियंत्रण में हों. मैडिटेटिंग ऐक्टिविटीज का सहारा लें. अगर फिर भी सिचुएशन कंट्रोल में न आए तो थेरैपिस्ट की मदद लें.

मैं 27 साल की हूं. शादी को ले कर मेरे घर वाले मुझ पर प्रैशर डाल रहे हैं. कई लड़कों से मिली, लेकिन बात नहीं बनी. भविष्य को ले कर काफी टैंशन में हो जाती हूं और अपना वर्तमान समय उस से खराब कर लेती हूं. जब ऐसे विचार आते हैं तब ऐसा लगता जैसे भविष्य एकदम अंधकारमय है. मैं कुछ नहीं कर पाऊंगी. बताएं मैं क्या करूं?

कभीकभार फैमिली का प्रैशर हमें कुछ निर्णय लेने पर मजबूर कर देता है. मगर शादी एक बहुत ही अहम निर्णय है. इसे किसी के दबाव में आ कर न लिया जाए. जब आप को लगे कि आप इमोशनली, मैंटली और फाइनैंशियली तैयार हैं तभी शादी करने का निर्णय लें. फैमिली मैंबर्स से बात कर उन्हें समझएं कि आप फिलहाल शादी के लिए तैयार नहीं हैं. जब हो जाएंगी तब खुद उन्हें बता देंगी. आप के ऐसा करने से वे रिलैक्स फील करेंगे.

 

  • पाठक अपनी समस्याएं इस पते पर भेजें : गृहशोभा, ई-8, रानी झंसी मार्ग, नई दिल्ली-110055 कृपया अपना मोबाइल नंबर जरूर लिखें. sms, व्हाट्सऐप मैसेज या व्हाट्सऐप औडियो से अपनी समस्या 9650966493 पर भेजें.

स्टाइल और ऐलिगैंस की बात हो तो Modern Handloom का जवाब नहीं…

Modern Handloom: एक समय हैंडलूम का मतलब सिर्फ साडि़यां और दुपट्टे हुआ करते थे. लेकिन आज की फैशन इंडस्ट्री ने हैंडलूम को एक नया रंग, नया रूप और नई पहचान दे दी है. अब यह केवल परंपरा नहीं बल्कि ट्रेंड बन चुका है और वह भी ग्लोबल ट्रेंड. आजकल युवा हों या उम्रदराज, जहां स्टाइल और ऐलिगैंस को जोड़ कर देखा जाए वहां आप को स्टाइल में हैंडलूम का तड़का जरूर देखने को मिलेगा. आजकल लड़कियां फ्लोरल प्रिंट्स से ज्यादा जयपुरी स्टैंप पैंट और बांधनी प्रिंट को पहन कर ज्यादा कौन्फिडैंट फील करती हैं.

ब्रोकेड फैब्रिक का इस्तेमाल

अब ब्रोकेड के जंपसूट्स और कोटपैंट सैट काफी ट्रेंड में हैं. खादी को पहले जहां धोती तक सीमित रखा जाता था वहीं अब उस कौटन की मिनी ड्रैस, हैंडलूम कोआर्ड सैट्स, जैकेटपैंट औफिस वियर और यहां तक कि कैजुअल स्ट्रीट स्टाइल तक में मौडर्न हैंडलूम की ?ालक दिखती है. डिजाइनर्स ने इसे केवल साडि़यों या शालों तक सीमित न रख कर वर्सेटाइल फैशन ऐलिमैंट बना दिया है जो वैस्टर्न और इंडियन दोनों सिलुएट्स में खूबसूरती से फिट होता है.

तो आइए जानते हैं कैसे अब हैंडलूम टाइम टेकिंग कपड़ा न रह कर पहले से अधिक किफायती हो गया है और हमारे देश के हर स्टेट में कौन सा हैंडलूम सदियों से फैमस है उसे अब नई पहचान दी जा रही है.

हैंडलूम की रफ्तार अब मशीनों के साथ

पहले एक बुनकर को एक जटिल डिजाइन वाली साड़ी या कपड़ा तैयार करने में कई दिन, कभीकभी महीने भी लग जाते थे लेकिन आज टैक्नोलौजी की मदद से वही डिजाइनें कुछ घंटों में तैयार हो जाती हैं, जिन में कुछ ट्रैडिशनल और कुछ मौडर्न टैक्नोलौजी इस्तेमाल की जाती है जैसे सेमी औटोमैटेड करघे, जैक्वार्ड और डौबी तकनीक.

जैक्वार्ड वीविंग में हर धागा अलगअलग कंट्रोल किया जा सकता है. इस की मदद से बहुत मुश्किल और डिटेल्ड पैटर्न बनाए जाते हैं जैसे फूल, पत्तियां, जालीदार डिजाइन, जानवर आदि. इस का इस्तेमाल भी आसान है. करघे यानी लूम पर एक जैक्वार्ड अटैचमैंट जोड़ा जाता है जो हर धागे को इंडिविजुअली उठा या गिरा कर बदल सकता है.

पहले यह मैन्युअल पंच कार्ड से चलता था, अब डिजिटल जैक्वार्ड भी है. इस तकनीक से बनारसी ब्रोकेड साड़ी, कांजीवरम सिल्क, जरी वाले भारी फैब्रिक बनाए जाते हैं. थोड़ी डिटेल्ड होने के चलते यह प्रोसैस थोड़ा टाइम टेकिंग जरूर है लेकिन इस में बहुत ही बारीक डिजाइनें बनाइ जाती हैं और इस मशीन से एकसाथ हजारों धागों को इस साथ कंट्रोल किया जा सकता है.

वीविंग की दूसरी तकनीक है डाबी

ये थोड़े छोटे और रिपीटेड पैटर्न जैसे जिओमैट्रिक और सिंपल मोटिफ्स के लिए होती है. इस में डौबी मैकेनिज्म को करघे पर सैट कर के कुछ खास धागों को उठायागिराया जाता है, जिस से सिंपल डिजाइनें बनती हैं जैसे चैक्स, डायमंड्स, डौट्स, जिगजैग आदि. इस तकनीक से खादी कुरता फैब्रिक, लिनन या कौटन जैकेट मैटीरियल बनाया जाता है. कुछ ओडिशा की परंपरागत इकत और संबलपुरी डिजाइनों में भी डौबी का प्रयोग होता है.

डिजिटल डिजाइन टूल्स के आने से बुनाई न केवल आसान हुई है बल्कि इस का उत्पादन और कमर्शियल स्कोप भी बढ़ा है. इस ने न केवल हमारी विरासत को नया जीवन दिया है बल्कि यह बुनकरों और डिजाइनर्स दोनों के लिए आमदनी और रोजगार का नया जरीया भी बन गया है.

परंपरा से ट्रेंड तक की कहानी

भारतीय हैंडलूम की गिनती दुनिया की सब से पुरानी और समृद्ध कला परंपराओं में होती है. यह सिर्फ एक कपड़ा बुनने की प्रक्रिया नहीं बल्कि संस्कृति, शिल्प, धैर्य और आत्मनिर्भरता का भी प्रतीक है. सदियों से बुनकर अपने करघों पर सिर्फ धागों को नहीं बल्कि कहानियों, परंपराओं और भावनाओं को भी बुनते आए हैं. बहुत से बुनकरों ने तो साडि़यों पर महाभारत और रामायण तक ऊकेर दी है. कहीं बुनाई में सोने, चांदी का संगम देखने को मिलता है. लेकिन टाइम के साथ बढ़ती टैक्सटाइल की डिमांड में हथकरघा कहीं पीछे छूट गया था. लेकिन अब मौडर्न हैंडलूम के रूप में पारंपरिक हथकरघा को एक नया जीवन मिल रहा है.

भारत की फेमस हैंडलूम का जिक्र करें तो राज्यवार यह जानना जरूरी है कि कौन से राज्य में कौन से हैंडलूम प्रचलित हैं और उन का अब कैसे नए सिरे से इस्तेमाल किया जा रहा है.

उत्तर प्रदेश: बनारसी ब्रोकेड

बनारसी साडि़यों में जरी का बारीक काम, मुगलकालीन डिजाइन और सोनेचांदी के धागों का इस्तेमाल होता था. ट्रैडिशनल तरीके से बनाई जाने वाली एक भारी बनारसी साड़ी बुनने में 15 से 30 दिन तक लग सकते हैं. आज इसी ब्रोकेड फैब्रिक से जंपसूट, जैकेट्स और कोआर्ड सैट्स तैयार किए जा रहे हैं. युवा अपनी मां के वार्डरोब में रखी सालों पुरानी साडि़यों को भी रियूज कर उन्हें नया जीवनदान दे रहे हैं ताकि वे कपड़े सिर्फ अलमारियों की भीड़ न बन कर पार्टी की जान बन सकें.

पश्चिम बंगाल: जामदानी और तांत

जामदानी की बुनाई इतनी मुश्किल होती है कि हर डिजाइन को धागों के बीच अलग से इंसर्ट करना पड़ता है. इस में महीन कौटन इस्तेमाल होता है और एक साड़ी बनाने में 20 से 60 दिन तक लग सकते हैं. लेकिन अब इस का प्रोडक्शन नई तकनीक के इस्तेमाल से कुछ आसान हुआ है. आज इस कपड़े से टेपरड ड्रैसेस और कैप स्टाइल कुरतियां बनती हैं, साथ ही इस के बने काफतान भी लोग काफी पसंद कर रहे हैं.

तमिलनाडु: कांजीवरम सिल्क

कांजीवरम साड़ी को साडि़यों की रानी कहा जाता है. मोटी रेशमी जरी वाली इस बुनाई में साड़ी के बौर्डर और पल्लू अलग बुन कर जोड़े जाते हैं. पारंपरिक तरीके से इस की वीविंग में एक से डेढ़ महीना लग सकता है. अब इस के मोटिफ्स से क्लच बैग्स, ब्लेजर और इंडोवैस्टर्न गाउन भी बन रहे हैं.

तेलंगाना: पोचमपल्ली इकत

इकत एक खास बुनाई तकनीक है, जिस में पहले धागे को रंग कर फिर बुनाई की जाती है. इस में सिंक्रनाइज डिजाइन का मिलान बहुत मुश्किल होता है, इसलिए इसे मैथेमैटिक्स औफ थ्रैड भी कहा जाता है. अब पोचमपल्ली इकत से फ्लोई ड्रैस, पैंट और कुरता सैट बनते हैं जो हर वर्ग में काफी पौपुलर हैं.

ओडिशा: संबलपुरी और पासापल्ली इकत

संबलपुरी इकत की बुनाई में मुश्किल जिओमैट्रिक डिजाइनें बनाई जाती हैं. एक ड्रैस मैटेरियल तैयार करने में 2-3 सप्ताह लगते हैं. अब इस के ब्लौक पैटर्न का इस्तेमाल स्कर्ट और जैकेट जैसे आउटफिट्स बनाने में भी किया जा रहा है.

राजस्थान और गुजरात: बंधेज और पटोला

बंधेज यानी टाईडाई और पटोला बुनाई दोनों ही काफी पुरानी कारीगरी हैं. पटोला डबल इकत में आता है जो सब से कठिन बुनाई में गिना जाता है. पटोला की एक साड़ी में 5 महीने तक का समय लग सकता है. साडि़यों के अलावा अब इस से दुपट्टे, काफतान और कैप्सूल ड्रैसेज तैयार की जा रही हैं. जो काफी ऐलिगैंट लगती हैं.

हैंडलूम की मौडर्न वापसी

मौडर्न हैंडलूम की खासीयत यही है कि यह परंपरा को तोड़ता नहीं बल्कि उसे आज के फैशन में ढाल देता है. ब्रोकेड के जंपसूट, इकत की मिनी ड्रैसेज, खादी कौटन का औफिस वियर जैकेटपैंट, जामदानी की मैक्सी ड्रैस या संबलपुरी की ऐथनिक स्कर्ट्स, ये सब दिखाते हैं कि कैसे हैंडलूम अब सिर्फ शोपीस नहीं बल्कि डेली वियर फैशन का हिस्सा बन गया है.

टैक्नोलौजी और ट्रैडिशन की भागीदारी

फिलहाल हैंडलूम डिजाइनर सिर्फ हाथों से नहीं, कंप्यूटर डिजाइन सौफ्टवेयर से भी डिजाइनें बनाते हैं. सीएडी यानी कंप्यूटर ऐडेड डिजाइन टूल से डिजाइन तैयार कर जैक्वार्ड या डाबी करघों में ट्रांसलेट किया जाता है. इस से कपड़ा बुनने से पहले उस की डिजाइन को तैयार करने में काफी समय की बचत होती है, साथ ही इस से न सिर्फ प्रोडक्शन टाइम में बचत हुई बल्कि बुनकरों को नई डिजाइन में काम करने का मौका भी मिला है. इस से प्रोडक्शन भी बढ़ा है.

मौडर्न हैंडलूम सिर्फ फैशन ट्रेंड नहीं, इस में हम अपनी विरासत को सम्मान भी देते हैं, कारीगर को रोजगार मिलता है और फैशन को स्टैबिलिटी मिलती है. हैंडलूम पहनना सिर्फ स्टाइलिश होना ही नहीं, समझदारी और सामाजिक जिम्मेदारी भी है क्योंकि इस से हमारी लोकल इकौनोमी भी स्ट्रौंग होती है.  Modern Handloom

Youth Future Planning: भविष्य तय करते हैं जिंदगी के ये 5 साल

Youth Future Planning: युवा किताबें छोड़ मोबाइल पकड़े हुए हैं और आर्ट ऐंड डिजाइन की जगह बेतुकी रील्स बना रहे हैं. युवा निर्भय और बेशर्म हो अपना निजी जीवन इन रील्स में एक चटपटी मूवी की तरह दुनिया को दिखा रहे हैं. ये रील्स बनाने की प्रतिस्पर्धा मे यों लगे हैं जैसे आगे निकलने वाला देश का नया प्रैसिडैंट बनेगा.

एक आम व्यक्ति का जीवन लगभग 80 वर्ष का होता है और इन्हीं 80 वर्षों में 5 साल का एक ऐसा पड़ाव आता है जो बहुत महत्त्वपूर्ण होता है और वह पड़ाव है 16 से 20 की उम्र का. ये 5 साल खास व कीमती इसलिए हैं क्योंकि इन्हीं 5 सालों में किसी भी विद्यार्थी के पूरे जीवन की रूपरेखा तैयार होती है. इन 5 सालों में स्कूल व कालेज में चुने गए विषयों का गहन अध्ययन कर सफलता हासिल करनी होती है. यहां अगर वह अपने लक्ष्य से भटक गया तो उस का खमियाजा पूरे 65 वर्ष उठाना पड़ सकता है.

भविष्य की नींव इन्हीं 5 सालों में रखी जाती है. हमें भविष्य में क्या करना है, कैसे करना है और उस कार्य में कैसे सफल हों उस की रणनीति तैयार करनी होती है. ये 5 साल न केवल शैक्षणिक विकास के लिए महत्त्वपूर्ण हैं बल्कि कैरियर बनने के लिए भी. हायर स्टडी, स्कौलरशिप, मशहूर यूनिवर्सिटी में एडमिशन, प्रतियोगी परीक्षाओं, टौप एमएनसी की जौब इन सभी तक पहुंचने की सीढ़ी यहीं से शुरू होती है.

रूट टू प्रोग्रैस: स्कूल के वे 2 अंतिम वर्ष अर्थात 11वीं और 12वीं कक्षा आगे की पढ़ाई का मार्ग तैयार करती हैं. अगर इन 2 वर्षों मे खासकर अंतिम वर्ष में विद्यार्थी अच्छे अंक प्राप्त करने में असफल रहा तो विशेष कालेज और यूनिवर्सिटी में एडमिशन पाने की रेस से बाहर निकल जाएगा. इसलिए अति आवश्यक है कि वह अपना पूरा ध्यान सिर्फ और सिऊर् अपनी पढ़ाई पर दे.

स्कौलरशिप बूस्टर: कुछ बच्चे कठिन परिश्रम कर स्कौलरशिप प्राप्त करते हैं. यह एक तरह का इनाम है जो किसी विद्यार्थी को हार्ड वर्क से मिलता है. यह केवल उसे वित्तीय सहायता नहीं देता है बल्कि उस का उत्साह, उस का कौन्फिडैंस भी बूस्ट करता है. साथ ही जब इस तरह का इनाम आप के प्रोफाइल व रिज्यूम में लिखा जाता है तो आप की काबिलीयत भी दिखती है जो आगे के कंपीटिशन या इंटरव्यू में एक अच्छा इंप्रैशन जमाती है.

अर्निंग ऐंड डैवलपमैंट: अगर इन 5 सालों में पूरा परिश्रम करें तो उस का फल एक अच्छी अर्निंग के रूप में मिल सकता है. कोई भी बड़ी कंपनी उन्हीं कैंडीडेट्स को हायर करती है जिन्होंने ऊंच अंक की डिगरी प्राप्त कर अपनी काबिलीयत दिखाई हो. एक बड़ी कंपनी में नौकरी केवल ज्यादा कमाई का साधन नहीं होती बल्कि अपनी खुद की योग्यता को निखारने और विस्तार करने का माध्यम भी होती है.

स्टैबिलिटी ऐंड रिलायबिलिटी: युवा इन 5 सालों का सही उपयोग करें तो आने वाले कल में उन का जीवन स्टैबल तो बनेगा ही साथ में एक स्टैबिलिटी भी आ जाती है. अच्छे अंकों से डिगरी प्राप्त कर किसी कंपनी को जौइन करेंगे तो वे आर्थिक रूप से इंडिपैंडैंट ऐंड कौन्फिडैंट बनेगे. अपनी यह सफलता देख उन का खुद पर विश्वास भी बढ़ेगा, साथ ही उन का परिवार भी उन पर विश्वास करेगा कि वे भौतिक और आ्रिथक रूप से उन का सहारा बनने में सक्षम हैं.

पर्सनल ग्रोथ: केवल शैक्षणिक योग्यता एवं कैरियर के लिहाज से ही नहीं मानसिक और व्यक्तिगत रूप से भी यह समय बहुत महत्त्वपूर्ण होता है. इस समय किसी भी विद्यार्थी का मनमस्तिष्क दुनिया के उतारचढ़ाव, उस की तेज दौड़ से, उस के बदलाव से मानसिक व भावनात्मक रूप से जुड़ता है और खुद को भी इस दुनिया में चली आ रही रेस के लिए तैयार करने की कोशिश करता है.

आपातकालीन परेशानियों से बचाव: अगर युवा इन 5 सालों में मेहनत कर अपने जीवन में स्टैबिलिटी ऐंड रिलायबिलिटीज पता हैं तो भविष्य में आने वाली आपातकालीन परेशानियों जैसे कोई गंभीर बीमारी का खर्चा, आकस्मिक पारिवारिक खर्चा या किसी अन्य आर्थिक विपत्ति का सामना करने की हिम्मत रखता है.

मगर इन 5 सालों का सही उपयोग करना इतना भी आसान नहीं होता बल्कि ये साल अब बड़ी चुनौती बनते जा रहे हैं और इस के पीछे का कारण है भटकाव और इस भटकाव के कई कारण हैं जैसे:

अनिश्चितता: बहुत से युवाओं को यह पता नहीं होता कि उन्हें अपना कैरियर किस फील्ड में बनाना है. आगे पढ़ाई में विषय क्या लेना है. या तो वे एक विकल्प का चयन नहीं कर पाते या उन्हें सारे ही विकल्प पसंद होते हैं या कोई भी नहीं.कभी तो अपना चयन किया विषय ही उन्हें बेकार या कठिन लगने लगता है. अपने विषयों के प्रति अनिश्चतता उन्हें अपना लक्ष्य निर्धारित करने से रोकती है.

कूल दिखने की होड़: हमारे युवा कूल दिखने की होड़ में गलत रास्ते पर निकल पड़े हैं. उन्हें लगता है सिगरेट की डिबिया खत्म करने से या शराब पीने की रेस में आगे निकलने से वे कूल दिख रहे हैं और लोगों को इंप्रैस कर रहे हैं जबकि सत्य यही है कि सिगरेट उन के फेफड़ों को जला रही है और शराब उन का लिवर व किडनियां सड़ा रही है. लेकिन यह बात उन्हें तब तक समझ नहीं आती जब तक वे स्वयं इस घात को देख नहीं लेते.

रिलेशनशिप हाई स्टेटस: कूल दिखने की होड़ के साथ एक और होड़ चली आ रही है और वह है रिलेशनशिप की. युवाओं को लगता कि किसी के साथ प्रेम संबंध में होना उन का स्टेटस अपने फ्रैंड सर्कल मे ऊंचा उठा देगा. यह होड़ युवा लड़कियों में अब अधिक हो गई है जिस उम्र में उन्हें प्रेम शब्द का वास्तविक अर्थ भी नहीं पता होता उस उम्र में वे भ्रमित प्रेम संबंधों में पड़ कर अपना भविष्य खराब कर रहे होते हैं.

नो टाइम मैनेजमैंट: टाइम इसे युवा अनेक नामों से जानते होंगे लेकिन इस का सदुपयोग तो बिलकुल नहीं. पूरा जीवन सिर्फ समय के सही उपयोग पर टिका है. मगर आज के युवा इस पर ध्यान नहीं देते हैं. न तो उन्हें समय पर पढ़ाई करने का होश है, न खाना खाने का, न सोने का और न ही किसी अन्य कार्य को सही समय पर करने का. उन के लिए टाइम का मतलब है डेटिंग टाइम, चैटिंग टाइम, हैंग आउट टाइम और ब्रेक टाइम. ब्रेक भी पढ़ाई से. पढ़ाई को तो टाइम दिया जाता ही नहीं. व्यर्थ के कामों के लिए उन का शेड्यूल बना रहता है. लेकिन अपने भविष्य की योजना और उस पर परिश्रम के लिए उन्हें समय मिलता ही नहीं.

रील्स किंग: पहले रील्स शब्द म्यूजिक, थिएटर, कैमरा के लिए बोलासुना जाता था, मगर अब यह किसी की पर्सनैलिटी, उस के लाइफस्टाइल से जुड़ चुका है. युवा किताबें छोड़ मोबाइल पकड़े हुए हैं और आर्ट ऐंड डिजाइन की जगह बेतुकी रील्स बना रहे हैं. युवा निर्भय और बेशर्म हो अपना निजी जीवन इन रील्स में एक चटपटी मूवी की तरह दुनिया को दिखा रहे हैं. ये रील्स बनाने की प्रतिस्पर्धा मे यों लगे हैं जैसे आगे निकलने वाला देश का नया प्रैसिडैंट बनेगा.

मांबाप के पैसे का कचरा: बच्चों को मातापिता बचपन से बचत कैसी करनी है सिखाते आ रहे हैं लेकिन बहुत कम है जो इस सीख से कुछ सीख पाए. 16-20 साल की उम्र मे इन्हें बचत का मंत्र अपना लेना चाहिए. इस उम्र में पैसे का मूल्य जान गए तो पूरा जीवन आर्थिक परेशानियों से बच सकता है. लेकिन बचत मंत्र छोड़ ये खर्चा धुन अपनाए हुए हैं. अपनी पौकेट मनी तो ये फुजूल की चीजों पर खत्म करते ही हैं, साथ मातापिता की पूंजी को भी उड़ा रहे होते हैं. इन्हें लगता है इन का परिवार धन कमा ही सिर्फ इसलिए रहा हैं कि ये अपने शौक पूरे कर सकें. इन्हें यह कैसे समझएं कि धन कमाने और बचत करने से बढ़ता है न कि अंधाधुंध खर्च करने से. इन्हें यह भी याद रखना चाहिए की हमेशा के लिए न तो मातापिता का धन रहेगा और न ही कमाने के लिए मातापिता.

बीमारियों को न्योता: इन का लाइफस्टाइल इतना दूषित हो चुका है कि लाइफ कितनी लंबी और स्वस्थ्य होगी इस की शंका बन गई है. जहां हम 80 वर्ष जीवनआयु की बात कर रहे हैं इन के 40-60 वर्ष पूरे न होने का भय भी है. इन का खानापान बहुत अनहाईजीनिक हो चुका. पोषण मिले ऐसा भोजन तो इन्हें भाता ही नहीं. रैडी टू ईट, जंकफूड, स्ट्रीट फूड और क्वीन के नाम पर बहुत मात्र में केवल अनहैल्दी फूड ही खाया जा रहा है जो इन्हें कम उम्र मे ही फैटी लिवर, डायबिटीज, ओबीसीटी, पीसीओडी, डाइजेशन प्रौब्लम जैसी तकलीफें दे कर न सिर्फ शरीर बीमार कर रहा है बल्कि इन का भविष्य भी.

मानसिक कैद: इस उम्र में कल्पनाओं को नई उड़ान मिलती है. उस उम्र में युवा कूल बनने के चक्कर में प्रेम प्रसंगों, नशे की लत में फंस खुद के लिए कई मानसिक पीड़ा पैदा कर लेते हैं. जिस समय इस का मस्तिष्क सृजनात्मक कार्यों व कलाओं में व्यस्त होना चाहिए, उस समय ये डिप्रैशन, ऐंग्जाइटी, लोअर कौन्फिडैंस, सैल्फ इनसिक्यूरिटी से घिर रहे हैं.

फेक इंडिपैंडैंट: अकसर युवा इंडिपैंडैंस का गलत मतलब निकाल लेते हैं. उन्हें लगता है इंडिपैंडैंट होना सिर्फ अपनी मरजी का करना, परिवार की बातों को अनसुना करना और सामाजिक मूल्यों व नियमों को तोड़ना है. इस तरह का आचरण कर ये खुद को इंडिपैंडैंस बोलते हैं जबकि सचाई इस के विपरीत है. पहले तो ये हर रूप से अपने परिवार पर डिपैंडैंट होते हैं दूसरा अगर ये अपने किसी कार्य व व्यवहार के कारण किसी मुश्किल में आ गए तो उस का जिम्मा भी अपनों या दूसरों पर डाल देते हैं कि उन्होंने समय पर उन्हें क्यों नहीं समझया या रोका. यह पीढ़ी अपनी गलतियों का न बीड़ा उठाना चाहती है और न ही उस से सीख ले कर सुधरना.

खोखले रोल मौडल: युवा अवस्था में कोई रोल मौडल होना आम बात है. बहुत युवा अपने रोल मौडल से प्रभावित हो, प्रेरणा ले स्वयं को सफल बनाते हैं लेकिन ये तब जब प्रेरणा लेने वाला दृढ़ निश्चय वाला हो और प्रेरणा देने वाला योग्य व सफल. परंतु आज युवाओं के रोल मौडल खोखले विचार और चरित्र वाले होते हैं. आज रोल मौडल वे हैं जो सोशल मीडिया पर बिना तर्क की बातों का लैक्चर दिए जा रहे हैं, शरीर या पैसे का दिखावा कर रहे हों या आर्ट, पैशन और फ्रीडम के नाम पर किसी भी तरह की गंदगी दिखा व फैला रहे हों.

खानाबदोश बनने का ट्रेंड: बहुत से युवा फिल्मों को देख या सोशल मीडिया पर ट्रैवलिंग इन्फ्लुएंसर को देख इतने प्रभावित होते है कि स्वंय भी एक बैग उठा जीवन के सफर पर निकल पड़ते हैं. इन्हें लगता दुनिया में यों ही घूमते रहना ही जीवन है. ये यह भूल जाते हैं कि इन का जीवन न कोई मूवी है न ये कोई ऐक्टर, जिन्हें किसी जंगल या जटिल माहौल में पूरी सुखसुविधा के साथ सरवाइवल औफ द फिटैस्ट की सिर्फ ऐक्टिंग करनी होती है.

बड़ों को नाकाबिल समझना: युवाओं को अपने बड़ेबुजुर्ग ओल्ड फैशंड सामान की तरह लगते है और उन की बात और सलाह बेबुनियाद या मूर्खतापूर्ण. उन के लिए उन का अपना जीवनअनुभव ही काफी है दुनिया के उतारचढ़ाव समझने के लिए. इन्हें यह पता ही नहीं कि जिसे वे जीवन का अनुभव समझ रहे हैं वह केवल जीवन का एक छोटा सा समय है. जो ज्ञान उन्हें उन लोगों से मिल सकता है जो किसी ने जीवन के 60 वर्षों में अर्जित किया है, उस ज्ञान को वे सिर्फ कुछ समय में हुए व्यवहारों के आगे नकार देते हैं, साथ ही अगर वे देखते हैं कि उन के मातापिता आम जीवन जी रहे हैं, किसी बड़ी पूंजी, बड़ी पोस्ट या समाज के बड़े ठेकेदारों में से एक नहीं तो वे नाकाबिल हैं. इन के अनुसार जो अपने जीवन मे अमीर न बन सके, उन्हें अपने बच्चों को किसी भी तरह की सलाह या ज्ञान नहीं देना चाहिए. Youth Future Planning

Moving Abroad? उस से पहले यह जरूर जान लें, वरना पछताना पड़ेगा

Things to Consider Before Moving Abroad: हमारे देश में लोगों को विदेश जाने का बहुत क्रेज रहता है. सोचते हैं विदेश जा कर बस जाएंगे तो जैसे कोई खजाना हाथ लग जाएगा. किसी की नौकरी विदेश में लगती है तो परिवार वाले, दोस्त, रिश्तेदार सब उम्मीद लगाते हैं कि बस किसी तरह वह उन्हें भी विदेश बुला ले. कई बार ऐसा हो भी जाता है लेकिन उस के बाद क्या?

उस के बाद शुरू होती हैं असली मुश्किलें. जी हां, किसी देश का वीजा लगने से कहीं ज्यादा मुश्किल है उस देश के मुताबिक खुद को ढालना. बहुत कम लोग हैं जो इस पर खरा उतरते हैं. कितने ही इंडियन पश्चिमी और एशियन देशों की जेलों में लंबी सजा काट रहे हैं. कुछ तो जानकारी के अभाव में हुई गलतियों की सजा भुगत रहे हैं.

बच्चों की परवरिश

अमेरिका में 8 साल के एक बच्चे ने अपनी मदर का फोन ले कर अमेजन से 70 हजार लौलीपौप और्डर कर दिए. 4 हजार डौलर का बिल देख कर महिला के होश उड़ गए.

सोचिए, अगर किसी इंडियन बच्चे ने ऐसा किया होता तो पेरैंट्स क्या करते? जाहिर है, गुस्से में बच्चे को पीटने लगते. लेकिन अमेरिकी मौम ने ऐसा कुछ नहीं किया.

पश्चिमी देशों में आप अपने बच्चे पर हाथ नहीं उठा सकते. बच्चों को हाथ से खाना नहीं खिला सकते. माना जाएगा कि आप जबरदस्ती उन के मुंह में खाना ठूंस रहे हैं. वहां इसे ‘फोर्स फीडिंग’ कहा जाता है. बच्चों का कमरा और बिस्तर आप से अलग होना चाहिए. वे आप के साथ नहीं सो सकते. उन के कमरे में उन की उम्र के मुताबिक खिलौने होने जरूरी हैं.

नाबालिग बच्चे के सामने बैठ कर शराब नहीं पी सकते. उस के सामने गाली दे कर बात नहीं कर सकते. उस के सामने एकदूसरे पर चिल्ला नहीं सकते. ऐसा कुछ भी करते हैं तो आप को अयोग्य पेरैंट्स करार दे कर बच्चों को चाइल्ड केयर एजेंसी के हवाले किया जा सकता है.

कुछ साल पहले रानी मुखर्जी की एक फिल्म आई थी, ‘मिसेज चटर्जी वर्सेज नार्वे.’ यह फिल्म सागरिका चक्रवर्ती की असली जिंदगी पर आधारित है जो पति के साथ नार्वे चली गई थी. सरकारी एजेंसियों को भनक पड़ी कि सागरिका अपने बच्चों को हाथ से खाना खिलाती है. उन के घर पर निगरानी होने लगी. निगरानी करने वाली टीम ने नैगेटिव रिपोर्ट दी तो उन के दोनों बच्चों को चाइल्ड केयर एजेंसी को सौंप दिया गया.

सालों की लंबी लड़ाई के बाद सागरिका को अपने बच्चे वापस मिले. नार्वे सरकार ने उसे कस्टडी न दे कर, बच्चों को उस के रिश्तेदारों को ही सौंपा क्योंकि उन की नजर में वह एक अनफिट मां थी. सागरिका ने अपनी औटोबायोग्राफी ‘द जर्नी औफ ए मदर’ में इस पूरे संघर्ष का जिक्र किया है.

बच्ची के साथ क्रूरता

मगर गुजरात का एक और परिवार है, जिस की बच्ची फोस्टर केयर में पल रही है. एक दिन बच्ची के डायपर में खून आया. वे उसे डाक्टर के पास ले कर गए. डाक्टर ने दवाई दी. फौलोअप के लिए दोबारा गए तो बच्ची को उन के साथ घर नहीं आने दिया गया. कहा गया कि पेरैंट्स ने बच्ची के साथ क्रूरता की है. चाइल्ड केयर एजेंसी की टीम क्लीनिक से ही बच्ची को ले कर चली गई. उस समय बच्ची 7 महीने की थी. सालों बीत गए, वह परिवार अब तक बच्ची को वापस पाने के लिए संघर्ष कर रहा है.

ऐसे मामलों में अगर पेरैंट्स खुद को बेकुसूर साबित नहीं कर पाते हैं तो बच्चा 18 साल की उम्र तक फोस्टर केयर में रहता है. मतलब चाइल्ड केयर एजेंसी कुछ लोगों को बच्चों की देखभाल की जिम्मेदारी देती है. ये लोग फोस्टर पेरैंट्स कहलाते हैं. इन्हें सरकार की तरफ से, ऐसे बच्चों को पालने की तनख्वाह मिलती है. 18 साल के बाद बच्चे की मरजी होती है.

मनप्रीत सालों पहले पंजाब से यूरोप जा कर बस गया था. एक दिन गुस्से में पत्नी पर हाथ उठा दिया. पत्नी ने पुलिस को फोन कर दिया. वह अरैस्ट हो गया. पत्नी ने बताया कि उस ने बच्चों के सामने उस पर हाथ उठाया था. इन्वैस्टिगेशन में यह भी पता चला कि वह रोज शराब पीता था और वह भी बच्चों के सामने तो कोर्ट और ज्यादा सख्ती से पेश आया. सालों की सजा काटने के बाद जेल से छूटा तो भी घर नहीं जा सका क्योंकि कोर्ट ने माना कि वह बच्चों के सामने फिर से ऐसा कर सकता है और बच्चों के लिए ऐसा माहौल ठीक नहीं है. वह घर के कम से कम 100 फुट के दायरे में नहीं जा सकता.

रिस्ट्रेनिंग और्डर

इस और्डर को रिस्ट्रेनिंग और्डर कहा जाता है. अगर वह इसे नहीं मानता है तो उसे फिर से जेल भेजा जा सकता है. उसे बच्चों से केवल निगरानी वाली मुलाकात की इजाजत दी गई. मतलब बच्चों के साथ कोई और बालिग हो तभी वह बच्चों से मिल सकता है वह भी घर के बाहर.

कई लोगों को तो कोर्ट जीपीएस ऐंकल ब्रेसलेट पहनने का भी हुक्म देता है ताकि कोर्ट को पता चलता रहे कि कहीं वह रिस्ट्रेनिंग और्डर का उल्लंघन तो नहीं कर रहा है.

शैलजा कुछ साल पहले पति और बच्चों के साथ मुंबई से यूके जा कर बस गई. एक दिन पड़ोसियों ने उस के घर से लड़ाई की और बच्चों के जोरजोर से रोने की आवाजें सुनीं और पुलिस को फोन कर दिया. पुलिस ने उसे और उस के पति को अरैस्ट कर लिया और बच्चों को चाइल्ड केयर एजेंसी ले गई. कोर्ट ने उन्हें अच्छे पेरैंट्स नहीं माना. बच्चों की कस्टडी के लिए दोनों को करीबी रिश्तेदारों के नाम देने के लिए कहा गया. वहां करीबी रिश्तेदारों जैसे दादादादी, नानानानी, चाचाचाची आदि को ईएंड टैंडेर फैमिली कहा जाता है. शैलजा के पेरैंट्स नहीं थे, न कोई और जो उस के बच्चों की जिम्मेदारी ले पाता. लिहाजा उस के पति ने अपने पेरैंट्स के नाम दिए.

यूके से एक टीम छानबीन करने मुंबई दादादादी के घर आई. जांच हुई कि दादादादी के पास कमाई का क्या साधन है, उन का बैंक बैलैंस कितना है, उन का लाइफस्टाइल कैसा है, वे बच्चों को कहां रखेंगे, उन की पढ़ाई कैसे होगी, उन के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य का ध्यान कैसे रखा जाएगा, बच्चों के पोषण के लिए वे उन्हें क्या खिलाएंगे, बच्चों को आसपास का कैसा माहौल मिलेगा, बच्चे किस के साथ खेलेंगे. जी हां, आप को जान कर शायद हैरानी होगी कि वे बच्चों के कमरे का साइज तक चैक करते हैं. बहुत गहन छानबीन के बाद उन्होंने दादादादी को बच्चों की परवरिश के लिए फिट नहीं पाया. अब बच्चे फोस्टर केयर में पल रहे हैं.

आसान नहीं देखभाल

प्राइवेट डिटैक्टिव राहुल राय गुप्ता बताते हैं, ‘‘वैस्टर्न कंट्रीज में बच्चों को ले कर कानून बेहद सख्त है. बच्चों को कार में ले कर जा रहे हैं तो गोद में नहीं बैठा सकते. उन के लिए अलग से सीट इंस्टौल करानी पड़ती है और वह भी उन की उम्र के मुताबिक अलगअलग होती है. अगर स्कूल में बच्चे के सिर में जूएं मिल जाएं, कपड़े अच्छी तरह से धुले हुए न हों या प्रैस न किए हुए हों तो टीचर के माइंड में यह मैसेज जाता है कि पेरैंट्स बच्चों का खयाल नहीं रखते. किसी बौडी पार्ट पर हलकीफुलकी चोट दिखाई दे तो इन्वैस्टिगेशन होती है.

अगर बच्चा कह दे कि उस के मम्मी या पापा या बड़े भाईबहन ने उसे धक्का दिया था या मारा था या फिर कुछ न भी कहे तो भी स्कूल चाइल्ड केयर एजेंसी को खबर कर देता है. पेरैंट्स की इन्वैस्टिगेशन की जाती है. चाइल्ड केयर एजेंसी वाले बच्चे के घर जाते हैं. पूरा सैटअप देखते हैं, बच्चे को कैसे सुलाया जाता है, क्या और कैसे खिलाया जाता है. चूंकि हमारे देश का सिस्टम बिलकुल अलग है. पेरैंट्स को पता ही नहीं होता कि टीम आए तो उस के सामने बच्चे के साथ कैसे पेश आना है. लिहाजा ज्यादातर पेरैंट्स उस इन्वैस्टिगेशन में फेल हो जाते हैं.

‘‘इन देशों में 18 साल के होने पर बच्चों की लाइफ पेरैंट्स का अधिकार पूरी तरह से खत्म हो जाता है. पेरैंट्स उन को किसी भी चीज के लिए फोर्स नहीं कर सकते. कई बच्चे बालिग होते ही पेरैंट्स से अलग रहने लगते हैं. आप बालिग बच्चों के रहनसहन, पहननेघूमने पर रोकटोक नहीं कर सकते. उन के दोस्तों पर सवाल नहीं उठा सकते. शादी के लिए उन के साथ जबरदस्ती नहीं कर सकते. टोकाटाकी करेंगे तो भी वे पुलिस को फोन कर सकते हैं. इसलिए विदेश जाने से पहले पेरैंट्स को खुद से सवाल करना चाहिए कि क्या वे इस के लिए तैयार हैं.’’

कमर कस लें

नताशा के पति की कनाडा में नौकरी लगी तो पूरी फैमिली कनाडा जा कर बस गई. वहां सारा काम खुद करना पड़ता था. नताशा उम्मीद करती थी कि पति उस का हाथ बंटाए लेकिन पति को लगता था कि वह जौब नहीं करती तो घर का काम वही करे. एक दिन लड़ाई के दौरान नताशा के पति ने उसे धक्का दे दिया. नताशा ने पुलिस को काल कर के कहा कि उस का पति उसे मार रहा है. पुलिस तुरंत पहुंच गई और उस के पति को अरैस्ट कर लिया.

विदेश जा कर बसने से पहले समझ लें कि खाना बनाना, बरतन धोना, घर साफ करना, कपड़े धोना, प्रैस करना, फ्रिज साफ करना, बाथरूम, टौयलेट साफ करना, पौधों की देखभाल करना, ए टू जैड काम खुद करने होंगे.

सफाई वाला कूड़ा घर से ले कर नहीं जाएगा. वहां हर घर में सूखे, गीले, प्लास्टिक के कचरे के अलगअलग बड़ेबड़े कूड़ेदान होते हैं. प्लास्टिक कचरे वाली डस्टबिन को रिसाइक्लिंग बौक्स या रिसाइक्लिंग बिन कहा जाता है. जिस दिन कूड़े का पिक अप हो यानी सरकारी गाड़ी आनी हो, उस दिन औफिस जाने से पहले वे कूड़ेदान बाहर रखने होंगे. वह भी साफसुथरी हालत में. कूड़ेदान गंदे होंगे या निर्धारित डब्बों में कूड़ा नहीं रखा होगा तो गाड़ी कूड़ा नहीं ले कर जाएगी. मोटा फाइन भी लग सकता है.

ऐसे देश जा रहे हैं, जहां बर्फ पड़ती है तो जान लें कि अपने घर के आगे की बर्फ खुद साफ करनी पड़ेगी. कार पर रोजाना बर्फ की मोटी परत जम जाती है, वह भी रोज साफ करनी होगी वरना जुरमाना लग जाएगा.

सरकारी गाडि़यां केवल गलियों में से बर्फ साफ करती हैं. नमक भी बिछाया जाता है. बर्फ गिरने के दिनों में आप अपनी गाड़ी गली में पार्क नहीं कर सकते वरना मोटा जुरमाना देना पड़ेगा. बर्फ हटाने और नमक बिछाने की गाडि़यों को गली के अंदर आने के लिए पूरी जगह चाहिए होती है. बुजुर्गों या विकलांग व्यक्तियों के लिए घर की बर्फ हटाने के लिए सरकारी सहायता मुफ्त मिलती है. उस का लाभ लिया जा सकता है.

पालतू जानवरों का शौक है तो

घर में डौग वगैरह पालने के लिए अलग नियम हैं. ज्यादातर देशों में डौग पार्क बने होते हैं. वहां उन्हें खुला छोड़ सकते हैं. बाकी किसी भी पार्क के बाहर लिखा होता है कि पालतू जानवरों को अंदर जाने की परमिशन है या नहीं. लेकिन वहां भी उन्हें बिना जंजीर के नहीं रख सकते. नियमों को न मानने पर मोटा जुरमाना लगेगा.

डौग रास्ते या पार्क में टौयलेट कर दें तो उसे उठाना पड़ेगा. उस के लिए वहां के लोग साथ में पौलीबैग ले कर चलते हैं. जैसे ही पालतू जानवर टौयलेट करता है वे तुरंत उसे उस बैग में उठा लेते हैं. ऐसा न करने पर भी जुरमाना लगता है.

चाहे डौग पालें या बिल्ली, कबूतर, मुरगा या मुरगी, उस का लाइसैंस लेना जरूरी है. पालतू जानवर को टैग लगाने की सिफारिश भी की जाती है. मतलब, उस के गले में उस का नाम, उम्र, मालिक का नाम, पता, लाइसैंस नंबर लिख कर लटकाना. इस से गुम होने की स्थिति में डिपार्टमैंट को उसे वापस मालिक से मिलाने में आसानी होती है. कुछ देशों में एक परिवार 3 से ज्यादा डौग नहीं रख सकता. पालतू जानवरों की बुनियादी जरूरतें जैसे भोजन, पानी, रहने की जगह, व्यायाम करने या खुले में घूमने के लिए अलग जगह, साफसफाई, सुरक्षा प्रदान करना उस के मालिक की जिम्मेदारी है. इस में कमी पाई गई तो सजा हो सकती है.

  कुछ जरूरी टिप्स पर ध्यान दें

– ड्राइव करते हैं तो गाड़ी तय स्पीड लिमिट में ही चलानी होगी. पैदल चलने वालों के लिए

अलग ट्रैफिक लाइट होती है. बिना लाइट के भी कोई सड़क पार कर रहा हो तो भी आप को ही ध्यान देना पड़ेगा. आप की नजर चूकी और ऐक्सिडैंट हो गया तो कोर्ट में यह सफाई नहीं चलेगी कि वह अचानक आप की गाड़ी के आगे आ गया. गलती चाहे पैदल चलने वाले की हो, सजा आप को मिलेगी कि गाड़ी क्यों नहीं रोकी. वहां ड्राइविंग लाइसैंस देते समय ऐसी ट्रेनिंग दी जाती है.

– घर के पिछले हिस्से (वहां इसे बैकयार्ड कहा जाता है) में लौन की बेकार घास को बढ़ने से पहले ही काटना जरूरी है. कई जगह नियम है कि ये 6 इंच से बड़ी नहीं होनी चाहिए. लौन में टूटाफूटा सामान स्टोर नहीं कर सकते. इन नियमों को न मानने पर फाइन लगता है.

– वहां छोटे से छोटे जुर्म को भी काफी सीरियसली लिया जाता है. चाहे जानबूझ कर हुआ हो या अनजाने में. लंबी सजा भी मिलती है. नियम न मानने की आदत है तो इस आदत को बदल लें या फिर विदेश बसने का खयाल.

– अमेरिका में गन कल्चर काफी बढ़ रहा है. किसी से बहस करने से बचें. कोई गलत करे तो उस से उलझने के बजाय पुलिस को खबर कर दें.

– दुकान या स्टोर से शराब खरीदने का भी समय तय होता है. किसीकिसी दुकानदार के पास सुबह शराब बेचने का परमिट नहीं होता. इसलिए आप उसे इस के लिए फोर्स नहीं कर सकते.

– बार या रैस्टोरैंट में तय लिमिट से ज्यादा शराब सर्व नहीं की जाती. अगर बार या रेस्टोरेंट में आने से पहले कहीं पी है तो तय लिमिट से कम शराब ही सर्व की जाएगी. वेटर को पूरी ट्रेनिंग मिली होती है, यह पहचानने की कि व्यक्ति ने कितनी शराब पी हुई है. थोड़ा भी ऊंचा बोलते या वेटर से बहस करते हैं तो जेल की हवा खानी पड़ेगी.

– कई देशों में हर घर में धुएं के अलार्म हमेशा चालू स्थिति में होने जरूरी हैं. बैटरियों को साल में एक बार बदलना जरूरी होता है. अलार्म में कोई खराबी हो तो तुरंत ठीक करा लें. वरना जुरमाना लगेगा.

– किसी की हैल्प करने से पहले सोच लें. अमेरिका में रहने वाला करीब 60 साल का एक इंडियन वहां के एक स्टोर में गया. उस ने देखा कि किसी महिला का बच्चा गिर गया है. बच्चे को उठाने के लिए नीचे ?ाका तो महिला ने शोर मचा दिया कि वह उस के बच्चे को किडनैप कर रहा है. पुलिस आई और उसे अरैस्ट कर के ले गई. सीसीटीवी फुटेज में उस के खिलाफ कुछ नहीं मिला तब वह जेल से छूटा.

– पब्लिक ट्रांसपोर्ट का इस्तेमाल करते समय ध्यान रखें कि बस, ट्रेन, ट्राम बिलकुल टाइम पर चलती हैं.

– लाइन में लगना ही पड़ेगा. चाहे कितनी भी जल्दी क्यों न हो. धक्कामुक्की करेंगे तो जेल जा सकते हैं. कई जगह 2 लोग हों तो भी लाइन में खड़े होते हैं.

– वहां आम लोगों के लिए मनोरंजन केंद्र होते हैं. उन में कुछ न कुछ ऐक्टिविटीज और फैस्टिवल चलते रहते हैं. क्या फ्री है, किस ऐक्टिविटी पर फीस लगती है, इस के बारे में पहले से पता कर लें.

How To Gain Weight: बीमारी के बाद ऐसे बढ़ाएं वजन

How To Gain Weight: शरीर का वजन बढ़ना अपने साथ जहां मोटापा और शर्मिंदगी लाता है, वहीं वजन का कम होना भी कोई अच्छी बात नहीं. फिर वजन किसी बीमारी की वजह से कम हुआ हो या फिर आप की अपनी लापरवाही से, या फिर आप अपनी हैल्थ का ध्यान नहीं रखते, लेकिन अगर वजन कम है तो उसे बढ़ाना चाहिए.

कई लोग अपना वजन बढ़ाने के लिए कुछ भी खानेपीने लगते हैं और सोचते हैं कि अब तो मोटा हो ही जाऊंगा/जाऊंगी. लेकिन यह सही तरीका नहीं है वजन बढ़ाने के लिए.

डाक्टर रिया अग्रवाल यहां कुछ ऐसे ही तरीके बता रही हैं, जिन से आप सही तरीके से अपना वजन बढ़ा सकते हैं.

भोजन में कैलोरी की मात्रा को बढ़ा दें

जिस तरह वजन कम करने के लिए कैलोरी कम लेना जरूरी होता है, उसी तरह वजन बढ़ाने के लिए अपने खाने में कैलोरी की मात्रा को बढ़ा देना सही रहता है. कैलोरी का मुख्य कार्य शरीर में ऊर्जा और ऊतकों का निर्माण करना है, जिस से शरीर को आवश्यक ईंधन भी मिलता है. लेकिन कैलोरी लेने का मतलब यह नहीं है कि बस आप मीठा या कोई भी जंक फूड खाने लग जाएं. बल्कि जो भी खाएं हैल्दी और घर का बना शुद्ध खाना.

मैक्रोन्यूट्रिऐंट्स भी है जरूरी

मैक्रोन्यूट्रिऐंट्स वजन बढ़ाने के लिए बहुत जरूरी होता है. इस में कार्ब्स भी जरूरी है जोकि ऐनर्जी देने का काम भी करता है. हमें हर रोज अपने कामों को करने के लिए 45-65% कार्ब्स की जरूरत होती है.

इस के साथ ही प्रोटीन का इंटेक बढ़ाना भी सही रहेगा. मांसपेशियों के निर्माण और रिपेयर के लिए प्रोटीन की आवश्यकता होती है. यही नहीं बल्कि अपनी ऐनर्जी को सेव करने के लिए और हारमोंस की ग्रोथ के लिए वसा भी बहुत जरूरी है.

विटामिन डी भी है जरूरी

विटामिन डी वेट कंट्रोल के लिए अच्छा माना जाता है और यह शरीर को स्वस्थ रखने का काम भी करता है.

यदि व्यक्ति सही मात्रा में विटामिन का सेवन करता है तो शरीर कैल्सियम को अवशोषित करने में सक्षम होता है. इस से हड्डियों का वजन बढ़ता है, खासकर कमजोर लोगों के लिए यह काफी अच्छा रहता है. इसलिए अपने डाक्टर से पूछ कर और टेस्ट करवाने के बाद ही विटामिन डी लें.

लाइफस्टाइल सही करें

खाना खाने का समय निश्चित करें और उसी हिसाब से समय पर रोज खाना खाएं. खाने को जल्दबाजी में न खाएं बल्कि टेस्टी खाना बनाएं और स्वाद लेते हुए आराम से ऐंजौय करते हुए खाएं, तभी खाना शरीर को लगेगा. रात के उल्लू न बनें और रात को जल्दी सोना और सुबह जल्दी उठने की अपनी साइकिल बना लें. हां, 7-8 घंटे की नींद जरूर लें. नियमित एक्सरसाइज करें.

अच्छी नींद लें

हर रोज 7-8 घंटे की भरपूर नींद लें ताकि शरीर फिट रहे. इस से मानसिक थकावट भी दूर होती है.

खाने में क्या शामिल करें जिस से वजन बढ़े

*पीनट बटर : वजन बढ़ाने के लिए पीनट बटर सब से अच्छी चीजों में से एक है. 2 बड़े चम्मच पीनट बटर रोज खाएं. इस में कैलोरी, प्रोटीन, फैट और कार्बोहाइड्रेट होते हैं. मूंगफली अमीनो एसिड होते हैं जो इम्यून सिस्टम को मजबूत करते हैं और वजन भी बढ़ाते हैं. आप इसे कैसे भी खा सकते हैं, मसलन ब्रैड पर लगा कर या फिर रोटी के साथ. इस में हाई कैलोरी तो होती ही है साथ ही कार्बोहाइड्रेट्स भी भरपूर मात्रा में होते हैं.

*अनार :रोजाना अनार का जूस पीने से वजन तेजी से बढ़ता है.

*चना और खजूर : पतले लोग अगर चने के साथ खजूर खाएं तो वे बहुत जल्दी वेट गेन करते हैं.

*अखरोट  और शहद : किशमिश को दूध मिला कर खाने से भी वजन बढ़ता है. इस के अलावा अगर अखरोट में शहद मिला कर खाया जाए तो पतले लोग जल्दी मोटे होते हैं.

*केला खाएं : आप मोटे होने की दवा के रूप में केले खा सकते हैं. दिन में कम से कम 3-4 केले खाएं. केला पौष्टिक एवं पोषक तत्त्वों से भरपूर होता है. इसे दूध या दही के साथ खा सकते हैं. यह वजन में वृद्धि करने में मदद करता है. बनाना शेक पीना भी बहुत अच्छा रहता  इस से वेट बढ़ता है.

*बींस से वजन बढ़ता है : बींस को मोटे होने के लिए दवा के रूप  में ले सकते हैं. सब्जी में बींस का प्रयोग अधिक करें. यह पौष्टिक होने के साथसाथ वजन बढ़ाने में भी मदद करता है.

*सोयाबीन का प्रयोग : नाश्ते में सोयाबीन एवं अंकुरित अनाज का सेवन करें. इस में भरपूर मात्रा में प्रोटीन होता है. शरीर को मजबूत बनाने और वजन में वृद्धि के लिए इसे मोटा होने की दवा के रूप में उपयोग किया जाता है. How To Gain Weight

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