पुरुष सत्तात्मक समाज में महिलाओं को शमशान घाट जाने की कभी इजाजत नहीं होती, लेकिन अगर कोई महिला पिछले 3 साल से लावारिस लाशों और अब कोविड महामारी में जान गवां चुके हजारों लाशों को पूरे जतन से वैकुण्ठ धाम के लिए ले जाकर, उनके दाह संस्कार करने में मदद करने वाली महिला के लिए, समाज के विशिष्ट वर्ग क्या सोचते है, इसका ध्यान वह नहीं देती. यही वजह है कि आज संकट की इस घड़ी में, ऐसे कठिन काम को अंजाम देने वाली, लखनऊ की संस्था ‘एक कोशिश ऐसी भी’ की 42 वर्षीय सामाजिक कार्यकर्त्ता वर्षा वर्मा, है. उन्होंने कोविड महामारी के बीच परेशान गरीब जरुरत मंदो के लिए सुबह 9 बजे से शाम 8 बजे तक लगातार काम कर रही है.

मिली प्रेरणा  

इस काम की प्रेरणा के बारें में पूछने पर वह बताती है कि मेरे दोस्त की कुछ दिनों पहले मत्यु हो गयी और मैं उसकी लाश को ले जाने के लिए गाड़ी की व्यवस्था नहीं कर पाई, क्योंकि मार्केट में कोई भी गाडी के लिए 10 से 20 हज़ार रुपये मांग रहे थे, जबकि राम मनोहर लोहिया अस्पताल से शमशान घाट नजदीक है, ऐसे में लगा कि जिस तरह मैं परेशान हो रही हूँ, हजारों लोग भी परेशान हो रहे होंगे, क्योंकि लखनऊ में लाश ले जाने के लिए सभी गाड़ियों की रेट बहुत अधिक हो चुकी है. फिर मैंने किराये पर लेकर वैन चलवाने की सोची और सोशल मीडिया पर मैंने अपनी इच्छा को यह कहकर स्प्रेड कर दिया कि मुझे सफ़ेद रंग की एक वैन चाहिए और जब मुझे वैन मिल गयी, तो मैंने अगले दिन पीछे की सीट हटा दी और एक ड्राईवर लगाकर काम शुरू कर दिया. इसमें कोविड पोजिटिव और नॉन पोजिटिव सभी लाशों को ले जाया जाता है. सैकड़ों लोगों की सेवा मैं कर चुकी हूँ. घरों से बुलाने पर या अस्पताल से बैकुंठधाम पहुँचाने का सारा काम ये गाड़ी करती है, साथ ही जिन लावारिश लाशों की कोई नहीं होता, उनका दाह संस्कार भी मैं करती हूँ. 

ये भी पढ़ें- कोरोनो और महिलाओं की हालत

उद्देश्य, सामाजिक कार्य करना  

ये संस्था पिछले 6 साल से लखनऊ में काम कर रही है, लेकिन वर्षा को टीनेज से ही सेवा करना अच्छा लगता था. स्कूल से आने के बाद वह पास के अस्पताल में एक घंटे के लिए चली जाया करती थी. वह कहती है कि अस्पताल जाने के बाद मरीजो के रिपोर्ट लाना, उनके खाने-पीने की चीजे लाना आदि छोटे-छोटे काम करने के अलावा उनके हाथ-पाँव दबा देना आदि करती थी. वह मेरा ट्रेनिंग पीरियड था, इसके बाद धीरे-धीरे काम बढ़ता गया और पिछले 3 साल से लावारिश शव को भी ले जाकर उसका अंतिम संस्कार करती हूँ. इसमें मेरे साथ दीपक महाजन है और हम दोनों साथ मिलकर संस्था के लिए काम करते है. 

सहयोग परिवार का

परिवार के सहयोग के बारें में वर्षा हंसती हुई कहती है कि कोरोना से पहले सबने सहयोग दिया और तारीफे की, लेकिन जबसे मैंने कोरोना की लाशों को दाह संस्कार के लिए ले जाने का काम शुरू किया है, तबसे चिंता के साथ थोड़ी नाराजगी है. मैंने वैक्सीनेशन नहीं करवाया है और अब 100 में से 90 लाश कोरोना से दम तोड़ने वालों की होती है. सावधानी के लिए मैं पूरा पीपीई किट पहनती हूँ. ग्लव्स, शील्ड, मास्क आदि सब मैं पहनती हूँ. घर से निकलने से पहले नाश्ते के बाद इम्युनिटी की टेबलेट लेती हूँ, जिसे मेरे पति देते है, क्योंकि ये उनकी चिंता है. इससे मेरी रोग प्रतिरोधक क्षमता अच्छी रहती है और विश्वास के साथ काम पर निकल जाती हूँ.

वर्षा के परिवार में उनके पति पीडब्लुडी में अस्सिटेंट इंजिनीयर है और उनकी एक बेटी हाई स्कूल में है. कोरोना से दम तोड़ने वालों को जबसे वर्षा बैकुंठ धाम ले जा रही है, तबसे पति को चिंता के साथ नाराजगी भी है, लेकिन अब उन्होंने वर्षा के काम को स्वीकार कर लिया है. वर्षा हर दिन सुनियोजित ढंग से घर का काम निपटाकर बाहर निकल जाती है. इससे उन्हें कोई समस्या नहीं होती. 

हटती नहीं मार्मिक दृश्य आँखों से  

वह आगे दुखी होकर कहती है कि अब मैंने दो वैन इस काम में लगा दिए है, क्योंकि लाशों को ले जाने का बहुत काम था. पिछले दो दिन में कोविड से दम तोड़ने वालों की संख्या अस्पतालों और शमशान घाटों में बहुत थी. इसकी वजह समय पर इलाज का न मिलने से आंकड़ा बहुत बढ़ गया है. ऑक्सीजन की कमी से मरीजों की हालत देखना, लगातार जलती हुई चिताओं को देखना, जिसमें दो चिता के बीच एक फुट की भी जगह का न होना, इतनी सारी डेड बॉडीज एक साथ जलना, परिवार जनों की चींख अस्पतालों और शमशान घाटों पर देखकर मेरा दिल दहल गया, ये चीजे मेरी आँखों के सामने से हटती नहीं है, लेकिन यही दृश्य मुझे अधिक काम करने के लिए प्रेरणा भी देती है. इसके अलावा मैं सोचती हूँ कि ऐसे जरुरत मंदों के लिए काम करना ही मेरे जीवन का हमेशा उद्देश्य रहा है.

ये भी पढ़ें- अंधविश्वास के अंधेरे में क्यों मासिकधर्म

सशक्त होती है महिलाये   

वर्षा को कभी नहीं लगा कि वह महिला है और वह शमशान घाट नहीं जा सकती. उसका कहना है कि ये देश पुरुष प्रधान है, ऐसे में महिलाओं को कोमल और कमजोर दिल की माना जाता रहा है. इसलिए शायद महिलाओं को शमशान घाट जाने से मना किया जाता है, वैज्ञानिक रूप से महिलाएं और पुरुषों में कोई अंतर नहीं है, क्योंकि महिला एक सृष्टि को जिम्मेदारी के साथ, धैर्यपूर्वक पृथ्वी पर ला सकती है. इसके अलावा महिलाएं किसी भी काम को एक मंजिल तक पहुँचाने में समर्थ होती है.

करती है कई काम 

इस काम के अलावा वर्षा की एनजीओ कई बड़े काम भी करती है, जिसमें गरीब बच्चों की शिक्षा का पूरा इंतजाम करना, जिन घरों में लोग कमाकर खा नहीं सकते, उन घरों में कच्चा राशन का पहुंचाना, मानसिक रूप से विक्षिप्त व्यक्ति को भोजन देना आदि है. वर्षा कहती है कि दो बुजुर्ग महिलाये,जो मानसिक रूप से बीमार दो बहने है, कभी उनके पिता लखनऊ के सीएम्ओ हुआ करते थे, संपन्न परिवार की है. दोनों महिलाओं को छोड़ सबकी मृत्यु हो चुकी है, शायद सबको पता होगा कि इन दोनों ने 3 दिन तक अपने भाई की डेड बॉडी को जिन्दा समझकर घर में घर में रख दिया था. बहुत मुश्किल से उसे घर से निकाला गया था. इन महिलाओं की परवरिश मैं कर रही हूँ. उनके भतीजे दोनों बुजुर्ग महिला को हटाकर मकान को दखल करना चाहते है, जो मैं होने नहीं दूंगी.  इसके अलावा भिखारी प्रवृत्ति से लोगों को निकालकर उन्हें छोटे-छोटे रोजगार दिलाती हूँ, ताकि वे अपने परिवार का पेट पाल सकें. 

नहीं मिलती वित्तीय सुविधा  

वर्षा को सरकार की तरफ से कुछ भी नहीं मिलता, लेकिन वह अपना काम लगातार कर रही है. सरकार की तरफ से बुजुर्गों को हर महीने केवल 200 रुपये मेडिकल के लिए मिलते है, जो बहुत कम है, ऐसे में वर्षा खुद फण्ड इकठ्ठा कर बुजुर्गों के हार्ट का ऑपरेशन करवाया है. 

देश को सोचने की है जरुरत 

 कोविड महामारी के लगातार बढ़ते हुए ग्राफ को देखने के बाद वर्षा कहती है कि किसी भी सरकार को देश की जनसँख्या पर लगाम लगाना उनकी पहली प्रायोरिटी होनी चाहिए, क्योंकि कोई भी स्कीम सारे लोगों तक नहीं पहुँच पाती. इसलिए उसे लागू करने से पहले जनसँख्या को सीमित करना होगा. मेरा फील्ड वर्क होने की वजह से मैंने अस्पताल, स्कूल, ऑफिस हर जगह भीड़ ही भीड़ देखी है. इतनी बड़ी जनसँख्या में ये स्कीम मुट्ठी भर है. इसके अलावा जागरूकता की कमी जनता में है. उन्हें पता नहीं होता है कि उनके लिए सरकार ने कुछ स्कीम्स निकाले है. बात चाहे कुछ भी हो मेरा काम हमेशा लोगों की सेवा करना ही रहेगा.

ये भी पढ़ें- महिला नेताएं महिलाओं के मुद्दे क्यों नहीं उठातीं

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...