दफ्तर की दिनभर की थकावट के बाद हर कोई घर लौट कर राहत की सांस लेना चाहता है. मगर मल्टीनैशनल कंपनी में काम करने वाली स्मिता जब अपने घर लौटती है तो बिखरा घर, अव्यस्थित फर्नीचर, कम रोशनी और दीवारों पर पुते गहरे रंग उसे अवसाद में खींच ले जाते हैं. कुछ ऐसा ही मोहिता के साथ होता है जब उस की नजरें अपने बैडरूम की दीवार से सटे भारीभरकम फर्नीचर पर पड़ती हैं.
स्मिता और मोहिता की तरह कई महिलाएं हैं, जिन्हें अपने घर पर सुकून न मिलने पर वे शारीरिक और मानसिक तौर पर अस्वस्थ हो जाती हैं. न्यूरो विशेषज्ञों की मानें तो घर की संरचना और सजावट का मनुष्य की शारीरिक और मानसिक सेहत पर गहरा असर पड़ता है. यदि घर का इंटीरियर सही न हो तो तनाव, बेचैनी और अवसाद की स्थिति बनी रहती है.
1. हर रंग की है अलग परिभाषा
इस कड़ी में दीवारों पर किए गए रंग बड़ी भूमिका निभाते हैं. आर्किटैक्ट नीता सिन्हा इस बाबत कहती हैं, ‘‘जिस तरह मनुष्य का चेहरा उस के व्यक्तित्व की पहचान होता है उसी तरह घर की दीवारों पर किया गया रंग घर की खूबसूरती की पहली झलक होता है.’’
रंगों की अपनी एक अलग खूबी होती है. वे व्यक्ति के मन के भावों को प्रतिबिंबित करते हैं. इस में अपनी सहमति जताते हुए इंटीरियर डिजाइनर नताशा कहती हैं, ‘‘रंगों का प्रतिबिंब व्यक्ति को तनावमुक्त भी कर सकता है और अवसाद भी दे सकता है. इसलिए इन का चुनाव सावधानी से होना चाहिए.’’
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कौन सा रंग किस भाव को परिभाषित करता है, यह बताते हुए नताशा कहती हैं, ‘‘गहरे रंग जैसे लाल, नीला, गहरा, हरा गरमाहट महसूस कराते हैं. मगर सेहत के लिहाज से किसी खास कमरे जैसे बैडरूम में इन का चुनाव ठीक नहीं होता.’’
एक अध्ययन के मुताबिक लाल रंग जहां ब्लड प्रैशर और हार्टबीट बढ़ा देता है, वहीं गहरा हरा रंग तनाव बढ़ाता है. गहरा पीला रंग भी व्यक्ति को चिड़चिड़ा बनाता है. यह रंग बच्चों को भी मानसिक तनाव देता है, उन्हें चिड़चिड़ा बना देता है.
मगर इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि लोग इन रंगों का भी शौक से चुनाव करते हैं. हर व्यक्ति की पसंदनापसंद अलग होती है. इसलिए जरूरत है कि रंगों के बीच सही तालमेल बैठाया जाए. गहरे रंगों के साथ हलके रंगों को क्लब कर के एक अच्छी थीम भी तैयार की जा सकती है. ट्रैंड के मुताबिक आजकल काला, मैरून और गहरा भूरा रंग चलन में है. इन के साथ गोल्डन और सिल्वर का कौंबिनेशन भी बहुत ही रौयल लुक देता है.
2. लाइट की सही सैटिंग भी जरूरी
रंगों के साथ इंटीरियर का दूसरा प्रमुख हिस्सा होती है रोशनी, जिस में अकसर महिलाएं कंजूसी दिखाती हैं. खासतौर पर होम मिनिस्टर कही जाने वाली गृहिणियां घर पर बिजली का इस्तेमाल करने में इतनी कंजूसी करती हैं कि जैसे सारी सेविंग्स बिजली का बिल कम कर ही की जा सकती है.
नीता सिन्हा कहती हैं, ‘‘अब ऐसे अपार्टमैंट्स बनाना बड़ा मुश्किल है, जिन में बड़े रोशनदान और खुली बालकनियां हों, क्योंकि लोग ज्यादा हैं और रहने की जगह कम. ऐसे में घर पर प्राकृतिक रोशनी की कमी होती है, इसलिए पर्याप्त इलैक्ट्रिक लाइट्स का होना आवश्यक है. खासतौर पर लिविंगरूम और रसोई में लाइट्स की सही व्यवस्था होनी बेहद जरूरी है, क्योंकि ये वे स्थान होते हैं जहां गृहिणी और परिवार के अन्य सदस्यों का सब से अधिक समय बीतता है.’’
लाइट इंटीरियर को उभारने का काम करती है और मूड को रिफ्रैश करती है. मगर एलईडी लाइट बचत के लिहाज से आजकल काफी प्रचलित है. लोगों को यह समझाना बहुत मुश्किल है कि एलईडी लाइट की कम रोशनी इंटीरियर और सेहत के लिहाज से सही नहीं है.
मगर घर में अधिक इलैक्ट्रिक लाइट भी नुकसानदायक हो सकती है. स्किन विशेषज्ञों का मानना है कि घर में इस्तेमाल किए जाने वाले बल्ब और ट्यूब लाइट्स से भी यूवी किरणें निकलती हैं, जिन से त्वचा संबंधी रोग होने का खतरा रहता है.
इस बाबत नताशा कहती हैं, ‘‘हम जिस स्थान पर खड़े हों वहां से आसपास की सभी वस्तुएं हमें आसानी से दिखनी चाहिए. फिर चाहे किसी भी तरह की लाइट का इस्तेमाल किया जा रहा हो. बात यदि एलईडी लाइट्स की है, तो इन की सैटिंग्स पर ध्यान देने की जरूरत होती है. इस से इंटीरियर और सेहत दोनों से जुड़ी समस्याओं का हल किया जा सकता है.
‘‘नए ट्रैंड के मुताबिक आजकल ओवर हैड लाइट्स, फ्लोर लैंप्स और सैडो लाइटिंग्स का काफी क्रेज है और इन सभी में एलईडी लाइट्स का ही प्रयोग होता है. इस तरह की लाइट्स जगह विशेष पर फोकस करती हैं और पर्याप्त प्रकाश की जरूरत को भी पूरी करती हैं. जहां एक तरफ इन से इंटीरियर को एक नया स्वरूप दिया जा सकता है, वहीं दूसरी तरफ लाइट्स की सही सैटिंग्स आंखों को भी प्रभावित नहीं करती है.’’
3. फर्नीचर का सही चुनाव और प्रबंधन
सेहत पर अच्छा और बुरा प्रभाव घर में मौजूद फर्नीचर से पड़ता है. खूबसूरत फर्नीचर की मौजूदगी घर के इंटीरियर पर भी असर डालती है. फर्नीचर इंटीरियर को खूबसूरत भी बनाता है और उसे व्यवस्थित रखने में भी मददगार होता है. मगर जब इसे सही स्थान पर नहीं रखा जाता है तो इस का सेहत पर असर भी पड़ता है. उदाहरण के तौर पर यदि बिस्तर के सिरहाने की तरफ वाली दीवार पर भारीभरकम वुडनवर्क है तो सिर में हमेशा भारीपन बना रहेगा. इसलिए सिरहाने की तरफ वाली दीवार को हमेशा खाली रखना चाहिए.
बैडरूम में भारी वुडनवर्क भी नहीं होना चाहिए, मगर स्टोरेज की सही व्यवस्था जरूर होनी चाहिए. पूरी दीवार को वुडन स्टोरेज में ढकना पुराना फैशन हो चुका है. अब ट्रैंड में ऐसा फर्नीचर है जिस में स्टोरेज की भरपूर जगह होती है.
यदि घर छोटा है तो फर्नीचर के चुनाव पर और अधिक ध्यान देना जरूरी है, क्योंकि छोटे घरों में अधिक फर्नीचर चलनेफिरने में परेशानी बन जाता है. जरूरी नहीं कि बैडरूम में ड्रैसिंग टेबल ही हो. एक डिजाइनर सिंगल मिरर से भी जरूरत पूरी हो सकती है और यह ज्यादा रोचक भी लगता है. इसी तरह यह भी जरूरी नहीं कि लिविंगरूम में सोफा सैट ही रखा जाए. थ्री सीटर सोफे के साथ 2 हाई बैक चेयर्स भी सिटिंग अरेंजमैंट के लिए काफी होती है.
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महिलाओं के लिहाज से देखा जाए तो उन्हें घर में चल कर बहुत सारे काम करने पड़ते हैं और सेहत के लिए चलना अच्छा भी होता है, इसलिए घर में फर्नीचर की भीड़ करने से अच्छा है कि जरूरत भर का और स्टाइलिश फर्नीचर ही लिया जाए.
इस तरह घर की सजावट पर थोड़ा ध्यान दिया जाए तो घर आने पर दिन भर की थकावट से राहत मिलती है.
 
             
             
             
           
                 
  
           
        



 
                
                
                
                
                
                
               