करण जौहर ला रहे हैं 20 सेलिब्रिटीज के साथ नया रियलिटी शो ”THE TRAITORS”

The Traitors show का फौर्मेट धोखा , भरोसा, रणनीति और गेम प्ले है. इस शो में बीस सेलिब्रिटी हिस्सा ले रहे है . जो दिमागी तौर पर दूसरे प्रतियोगी को पूरी तरह धोखा देकर मानसिक तौर पर उस प्रतियोगी का खून करेंगे और फिर वो शो से आउट हो जाएगा. इस शो में खिलाड़ियों को अपने दिमाग का इस्तेमाल करके सामाजिक गतिविधियों और चालाकी के साथ सामने वाले का दिमाग पढ़ कर सामने वाले प्रतियोगी को अपने फेवर में लेकर शक पैदा करना है और उसको हराना है.

शतरंज के खेल की तरह इसमें भी सारे प्रतियोगी एक दूसरे को मार देते नजर आएंगे. इस शो की शूटिंग राजस्थान के रॉयल सूर्यगढ़ पैलेस में हो रही है, जिसमें फिल्म इंडस्ट्री टी वी इंडस्ट्री और सोशल मीडिया से जुड़ी कई जानी मानी हस्तियां भाग ले रही हैं जैसे आशीष विद्यार्थी, राज कुंद्रा, करण कुंद्रा, जैस्मिन भसीन, अंशुला कपूर, महीप कपूर ,जन्नत जुबेर, रफ्तार रैपर, सुधांशु पांडे, मुकेश छाबरा कास्टिंग डायरेक्टर, ऊर्फी जावेद आदि कई सेलिब्रिटीज इस शो का हिस्सा बन रहे हैं.

इस शो का आखरी हिस्सा सबसे दिलचस्प होगा. जिसमें अगर वफादार खिलाड़ी सब गद्दारों को पकड़ लेगा तो इनाम की राशि उनमें आपस में बट जाएगी. लेकिन अगर कोई भी गद्दार अंत में बच जाता है तो वह पूरी रकम अकेले ही जीत जाएगा. अर्थात यह शो ईमानदारी पर नहीं बेईमानी पर केंद्रित है. जिसका विजेता वही होगा जो सबसे ज्यादा गद्दार और बेईमान है.

लिफ्ट में काम करके स्टार एक्टर बने Nawazuddin Siddiqui की बेटी ने की जब ढाई लाख के पर्स की मांग

Nawazuddin Siddiqui : प्रसिद्ध एक्टर नवाजुद्दीन सिद्दीकी जिनके अभिनय करियर की शुरुआत छोटे से रोल के साथ हुई थी. यहां तक कि संघर्ष के दिनों में जब उनको कमल हासन के साथ एक फिल्म मिली और उन्होंने खुशी खुशी सभी से अपनी इस फिल्म की चर्चा की, लेकिन उसी फिल्म की रिलीज के समय पता चला कि उस फिल्म में जो उनका छोटा सा सीन था वह भी एडिट हो गया है. जिसके बाद नवाजुद्दीन के अनुसार वह बहुत रोए थे. लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और स्ट्रगल करते-करते आज यहां तक पहुंच गए की न सिर्फ उनकी अलग पहचान है बल्कि बतौर हीरो भी नवाज ने कई फिल्मे कर ली हैं.

एक समय ऐसा था जब वह लिफ्ट मेन की नौकरी करते थे और आमिर की फिल्म सरफरोश और राम गोपाल वर्मा की फिल्म जंगल में बहुत छोटा रोल किया था. आज उनका करोड़ों का घर है. आज उनकी इतनी शानो शौकत बढ़ गई है, की उनकी बेटी ने इतने महंगे पर्स की डिमांड कर दी जिसके बारे में वह कभी सोच भी नहीं सकते थे.

नवाजुद्दीन के अनुसार मेरी बेटी इंडिया के बाहर पढ़ाई कर रही है, एक बार उसने मुझे कहा कि मुझे एक पर्स हैंड बैग बहुत पसंद आया है, क्या वह मुझे आप दिला देंगे, मुझे अपनी बेटी बहुत ज्यादा प्यारी है इसलिए मैं उसको किसी भी हालत में दुखी नहीं करना चाहता था , मैने सोचा कि होगा शायद थोड़ा महंगा दस बीस हजार तक , तो मैंने उसे हां कह दिया.  उसके बाद मेरी बेटी मुझे दुबई के एक मॉल में ले गई , जहां एक शॉप में हमने एंट्री की, वहां पर कई सारे खूबसूरत पर्स थे, लेकिन मुझे आश्चर्य तब हुआ जब मेरी बेटी का पसंदीदा पर्स मेरे सामने आया वह एक छोटा सा हैंडबैग था, लेकिन मैने जब उसकी कीमत सुनी तो कुछ समय के लिए मेरा सिर चकरा गया, उस छोटे से पर्स की कीमत ढाई लाख थी.

मुझे बहुत हैरानी हुई लेकिन बेटी के प्यार के आगे पैसों की कीमत तो होती नहीं इसलिए मैंने उसे वह पर्स दिला दिया. लेकिन साथ में मन में यही ख्याल आया पैसे की कीमत उनको ही पता होती है जिन्हें पैसा कमाने के लिए बहुत तकलीफें झेलनी पड़ती है. जैसे मैने बतौर एक्टर यहां तक पहुंचने के लिए बहुत संघर्ष किया है.

Private School : जैसा नाम वैसा दाम

Private School : पेरैंट्स के लिए स्कूली ऐजुकेशन एक बड़ा चैलेंज है और ऐडमिशन से ले कर क्लास 12 तक पेरैंट्स स्ट्रैस में रहते हैं. मथुरा रोड, दिल्ली से शुरू हुआ दिल्ली पब्लिक स्कूल आज सैकड़ों स्कूल अपने ब्र्रैंड नाम से चला रहा है पर पिछले दिनों उस का दिल्ली के द्वारका का स्कूल न्यूज में आया क्योंकि उस ने 32 स्टूडैंट्स को फीस न देने की वजह से ऐक्सपैल कर दिया. स्कूल के 102 पेरैंट्स ने एक और मामले में हाई कोर्ट में फीस बढ़़ाने के फैसले को वापस लेने की पिटीशन दायर कर रखी है.

डिपार्टमैंट औफ ऐजुकेशन और हाई कोर्ट के कहने पर ये 32 स्टूडैंट्स तो वापस ले लिए गए पर यह सवाल खड़ा रहता है कि आखिर स्कूली ऐजुकेशन इतनी महंगी क्यों है कि पेरैंट्स जो ऐडमिशन कराते समय रातदिन सिफारिशें करते फिरते हैं और मोटी रकम देने को तैयार रहते हैं, बाद में फीस नहीं देते?

स्कूल ने हाई कोर्ट में कहा कि पिछले साल उसे क्व49 करोड़ का नुकसान हुआ जो सिर्फ फीस बढ़ा कर पूरा करा जा सकता है. जो स्टूडैंट्स बढ़ी फीस नहीं दे सकते उन्हें ऐक्सपैल करने के अलावा स्कूल कुछ नहीं कर सकता. 9.64 एकड़ में फैला हुआ स्कूल 2,096 स्क्वेयर मीटर पक्की बिल्डिंग में है. 25 हजार स्क्वेयर मीटर का प्लेग्राउंड है. वैबसाइट के अनुसार स्कूल को 1,95,096 फीस हर साल देनी होती है. जो फीस बढ़ाई गई है वह इस के बाद है यह स्पष्ट नहीं है. स्कूल से घर तक बस के चार्जेज क्व5,200 से क्व3,700 महीना डिस्टैंस के हिसाब से है.

यह स्कूल दक्षिणी दिल्ली के अमीर इलाके में नहीं, कंपैरेटिव थोड़े साधारण इलाके में है जिस में डाबड़ी, ककरोला, महावीर ऐन्क्लेव, राजापुरी, मंगलापुरी, लाजवंती गार्डन, नारायणा, मायापुरी, पालम गांव, उत्तम नगर जैसे इलाकों के स्टूडैंट्स आते हैं. स्टाफ 200-300 के बीच का है जिस में प्रिंसिपल का वेतन लाखों में है क्योंकि वाइस प्रिसिंपल सुषमा अंशवाल का सरकारी ग्रेड के हिसाब से वेतन क्व2 लाख के लगभग है. प्राइमरी टीचर्स का वेतन भी क्व75 हजार के लगभग है.

जब इतना तामझाम चाहोगे तो फीस तो देनी ही होगी. अगर स्कूल कहता है कि उसे 2 लाख की फीस लेने पर भी नुकसान है तो या तो पेरैंट्स अपने बच्चों को सस्ते प्राइवेट स्कूलों में ले जाएं या फिर सरकारी मुफ्त स्कूलों में. अगर अनएडेड स्कूल में भेजना है तो फीस तो देनी ही होगी और जब बजट इतना बड़ा होगा तो कौन सा पैसा कहां जाता है यह सवाल पेरैंट्स नहीं कर सकते. उन्हें डीपीएस के लेबल के भी पैसे देने ही होंगे. स्कूल के रिजल्ट अच्छे हैं. सभी स्टूडैंट्स पास होते हैं. 12वीं क्लास के ऐग्जाम में 95% की फर्स्ट डिवीजन आती है. 98.9% वाली स्टूडैंट टौपर्स 2025 में. क्लास 10 में 229 स्टूडैंट्स में से 83 स्टूडैंट्स के 90% से ज्यादा मार्क्स थे. 83 के ही 80 से 90% के बीच मार्क्स थे. 75 से 81% के बीच 31 स्टूडैंट्स थे. 229 में से 209 स्टूडैंट्स के मार्क्स 70% से ज्यादा थे.

अब जब बड़े स्कूल में जाओगे, अच्छे रिजल्ट वाले स्कूल में जाना हो, सोशल, स्पोर्ट्स कल्चरल ऐक्टिविटीज चाहिए हों तो फीस तो देनी ही होगी और वह फीस देनी होगी जो स्कूल मांगता है न कि वह जो सरकार कहती है. ऐजुकेशन अब एक बिजनैस है. लागत और उस पर प्रौफिट स्टूडैंट्स से वसूलना उस का असली ऐम है. जिसे महंगी ऐजुकेशन नहीं लेनी है वह अपने बच्चों को न पढ़ाए. यह समाज बेहद हार्टलैस हो गया है. यहां ऐजुकेशन देश या समाज के भविष्य के लिए नहीं ली जा रही, बड़े दान पर अच्छी नौकरी पाने के लिए खरीदी जा रही है. इस में रोनेधोने की बात नहीं. कोर्ट्स के दरवाजे खटखटाना भी बेकार है क्योंकि कोर्ट्स भी केवल महंगे वकीलों की सुनते हैं. जो पैसा पेरैंट्स के पास होगा ही नहीं और यदि कहीं कोई पेरैंट जीत भी गया तो स्कूल के पास उस के बेटीबेटे को तंग करने के हजार बहाने रहेंगे. स्टूडैंट, टीचर और स्कूल का प्रेम होगा तो पढ़ाई हो सकती है.

पेरैंट्स जिन के पास पैसा नहीं है अपने बच्चों को महंगे स्कूलों में ऐडमिशन दिला तो देते हैं पर बाद में फीस न देने पर या अच्छी पौकेट मनी देने में असमर्थ रहने पर अपने बच्चों को बेहद स्ट्रैस में डाल देते हैं. बच्चों की कंपनी में अगर ज्यादा खर्च करने वाले हैं तो उन्हें जो ह्यूमिलेशन हलकी पौकेट ले कर जाने पर होती है, वह बस एस्टिमेट की जा सकती है. असल में ये पेरैंट्स अपने बच्चों की पूरी जिंदगी बरबाद कर देते हैं क्योंकि जो स्ट्रैस पैसों की वजह से स्टूडैंट्स को ?ोलना पड़ता है वह कोर्ट्स के कौरीडोरों से निकले जजमैंट्स से दूर नहीं हो सकता.

Health Issue : मुझे कूल्हे में लगातार दर्द रहने लगा है और चलनेफिरने में भी परेशानी हो रही है, क्या करूं?

Health Issue : अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक पढ़ें

मुझे नैक फीमर फ्रैक्चर है, यह समस्या इतनी गंभीर है कि फरवरी के महीने से मैं चल भी नहीं पा रही हूं. मेरे फिजिशियन ने सलाह दी है कि मुझे जितनी जल्दी से जल्दी हो सके सर्जरी करा लेनी चाहिए. ऐसे में मुझे क्या करना चाहिए?

अगर फ्रैक्चर के कारण रक्त नलिकाओं में टूटफूट हो गई है तो फेमोरल हैड को रक्त की सप्लाई बंद हो जाएगी, जिस से अंतत: हड्डियों के ऊतक मरने लगेंगे, जिसे ऐस्क्युलर नैक्रोसिस कहते हैं. यह एक आपातकालीन स्थिति है, इसलिए आप को सर्जरी कराने में बिलकुल भी देरी नहीं करना चाहिए.

युवावस्था में मेरा ऐक्सीडैंट हो गया था, जिस से मेरे कूल्हे के साकेट में फ्रैक्चर हो गया था. उस समय औपरेशन नहीं किया गया. इतने वर्षों तक मुझे कोई समस्या नहीं थी, लेकिन अब मुझे कूल्हे में लगातार दर्द रहने लगा है और चलनेफिरने में भी परेशानी हो रही है. बताएं क्या करूं?

लगता है आप कूल्हे के जोड़ के पोस्ट ट्रामैटिक आर्थाइटिस के शिकार है. अपने कूल्हे का एक्सरे कराएं, बेहतर डायग्नोसिस के लिए एमआरआई और सीटी स्कैन भी कराएं. अगर समस्या गंभीर है तो हिप रिप्लेसमैंट सब से बेहतर समाधान है. हिप रिप्लेसमैंट सर्जरी में हिप जौइंट के क्षतिग्रस्त भाग को सर्जरी के द्वारा निकाल कर धातु या अत्याधिक कड़े प्लास्टिक के इंप्लांट से बदल दिया जाता है. मिनिमली इनवैंसिव हिप रिप्लेसमैंट सर्जरी ने सर्जरी को काफी आसान और सरल बना दिया है, परिणाम भी बहुत बेहतर आते हैं और औपरेशन के बाद ठीक होने में अधिक समय भी नहीं लगता है.

मेरी उम्र 58 वर्ष है. मुझे दोनों घुटनों के जोड़ों का औस्टियोआर्थ्राइटिस है. डाक्टर ने मुझे नीरिप्लेसमैंट की सलाह दी है, लेकिन कोविड-19 के कारण में सर्जरी कराने से डर रही हूं. कृपया बताएं कि मुझे क्या करना चाहिए?

कोरोना वायरस के संक्रमण के दौरान सर्जरी को थोड़ा समय रुक कर कराने की सलाह दी जा रही है खासकर बुजुर्गों को जो पहले से ही किसी स्वास्थ्य समस्या जैसे डायबिटीज और फेफड़ों से संबंधित किसी बीमारी के शिकार हैं, उन के लिए खतरा अधिक है. इन लोगों को संक्रमण से बचने के लिए जितना अधिक से अधिक समय तक हो सर्जरी से बचना चाहिए, क्योंकि अस्पताल में रहने के दौरान या सर्जरी के पश्चात रिकवरी के समय जैसे फिजियोथेरैपी या फोलोअप ड्रैसिंग संक्रमण की चपेट में आने का खतरा बढ़ा सकती है. वैसे आप की उम्र बहुत अधिक नहीं है, अगर आप को कोई अन्य स्वास्थ्य समस्या नहीं है और सर्जरी कराना बहुत जरूरी है तो आप अपने डाक्टर की सलाह से नीरिप्लेसमैंट सर्जरी का सही समय चुन सकती हैं.

क्या यह संभव है कि मैं अपने एक घुटने की नीरिप्लेसमैंट सर्जरी के लिए सुबह सर्जरी के लिए आऊं और सर्जरी कराने के बाद शाम तक घर वापस आऊं. कोरोना संक्रमण से खुद को बचाने के लिए मुझे रात को अस्पताल में न रुकना पड़े?

आप ऐसा कर सकती हैं, लेकिन ऐसा कर पाएं यह जरूरी नहीं है, क्योंकि अगर सर्जरी के बाद आप को दर्द होगा तो अस्पताल में रुकना जरूरी हो जाएगा. लेकिन अगर आप घर पर ही दर्द के प्रबंधन के लिए मैडिकल केयर की सुविधा जुटा सकती हैं, जरूरत पड़ने पर अपने सर्जन और ऐनेस्थीसिस्ट (सर्जरी के लिए बेहोश करने वाला डाक्टर) से आ कर मिल सकती हैं, तो आप रात में अस्पताल में न रुक कर घर जा सकती हैं. वैसे आंशिक घुटना प्रत्यारोपण सर्जरी अधिक सुरक्षित है, इसे कराने के पश्चात मरीज उसी दिन घर जा सकता है, लेकिन इस के लिए औपरेशन से पहले काउंसलिंग और पूरी प्लानिंग की जरूरत होती है.

मैं 42 वर्षीय कंटैंट राइटर हूं. मुझे पिछले कुछ समय से बल्जिंग डिस्क की समस्या है. लौकडाउन के कारण पिछले 2-21/2 महीने घर से ही काम कर रहा हूं. लगातार कंप्यूटर पर काम करने और घर पर औफिस जैसा प्रोफैशनल सैटअप नहीं होने के कारण मेरी समस्या और बढ़ गई है. कृपया बताएं कि इस से बचने के लिए क्या करूं?

सब से पहले तो घर पर काम करने के लिए सही व्यवस्था करें. अपने ऐर्गोनामिक्स को सुधारें, ऐर्गोनामिक्स में आता है कि आप कैसे बैठें, कंप्यूटर की पोजीशन क्या हो. बोर्ड कहां हो, टेबल और कुरसी की हाइट कितनी हो. इस के अलावा एक ही जगह लगातार न बैठें, थोड़ीथोड़ी देर में बे्रक लें, उठें और चलें. बैठने और खड़े रहने के दौरान अपना पोस्चर ठीक रखें ताकि रीढ़ और डिस्क पर दबाव कम पड़े. हर दिन 20-30 मिनट ऐक्सरसाइज जरूर करें.

पाठक अपनी समस्याएं इस पते पर भेजें :

गृहशोभा, ई-8, रानी झांसी मार्ग, नई दिल्ली-110055 कृपया अपना मोबाइल नंबर जरूर लिखें. स्रूस्, व्हाट्सऐप मैसेज या व्हाट्सऐप औडियो से अपनी समस्या 9650966493 पर भेजें.

Monsoon Fashion : मौनसून में ऐसे दिखें फैशनेबल और स्टाइलिश

Monsoon Fashion : मौनसून तन और मन दोनों को ही सुकून देने वाला मौसम होता है, पर बारिश के मौसम में सब से बड़ी समस्या आउटफिट को ले कर होती है क्योंकि बारिश के कारण चारों तरफ कीचड़ और मिट्टी का बोलबाला रहता है, इस के अतिरिक्त भीग जाने की भी संभावना रहती है जिस के कारण लुक और महंगे कपड़े दोनों ही खराब हो जाते हैं.

निम्न टिप्स की मदद से आप बारिश में भी फैशनेबल और स्टाइलिश दिख सकते हैं :

ब्राइट ऐक्सैसरीज का करें प्रयोग : आउटफिट पहनने के बाद यदि आप को अपना लुक डल या म्यूटेड लग रहा है तो आप कलरफुल स्टौल, ग्लिटर स्कार्फ, कलरफुल हैट, एक स्टेटमैंट बैग या ब्राइट शूज को अपने आउटफिट का हिस्सा बनाएं. ये ऐक्सैसरीज आउटफिट की डलनैस को ओवरलैप कर देंगी और आप का लुक एकदम बदल जाएगा.

वाटरप्रूफ मैटीरियल चुनें : बारिश में अकसर भीग जाने की संभावना रहती है इसलिए मौनसून के मौसम में आप ऐसे फैब्रिक का आउटफिट चुनें जो वाटरप्रूफ हो. इस के लिए आप वाटरप्रूफ कौटन, नायलोन, पौलिएस्टर और सीक्वैंस जैसे फैब्रिक का चयन कर सकते हैं. ये भीगने के बाद भी बहुत जल्दी सूख जाते हैं और भीग जाने के बाद भी अपने वास्तविक रूप में ही रहते हैं.

पार्टी फंक्शन के लिए सीक्वैंस बहुत उपयुक्त रहता है क्योंकि यह दिखने में भी अच्छा लगता है और सूखता भी बहुत जल्दी है.

ब्रीदेबल हों कपड़े

कौटन, लिनेन, खादी और रेयान जैसे फैब्रिक से बने ड्रैसेज का चयन करें. ये भीग जाने पर जल्दी सूखते तो हैं ही साथ ही शरीर पर चिपकते भी नहीं हैं. इन दिनों ऐसे कपड़े पहनें जिन में हवा का आगमन हो सके ताकि भीग जाने पर आप इन के ऊपर से जैकेट आदि कैरी कर सकें ताकि आप का लुक भी न बिगड़े और आप स्टाइलिश भी दिख सकें.

डार्क कलर का चयन करें

लाइट कलर के स्थान पर डार्क कलर्स में एक तो कीचड़ के दागधब्बे नहीं दिखते दूसरा ये भीगने पर पारदर्शी भी नहीं होते जिस से आप की पर्सनैलिटी भद्दी नहीं दिखती. इसलिए मौनसून में मैरून, नेवी ब्लू, ग्रे, ब्लैक और डार्क ग्रीन जैसे रंगों का प्रयोग करें. इस से आप फैशनेबल भी दिखेंगी और स्टाइलिश भी.

व्हाइट, क्रीम, पीच, सी ग्रीन और पिंक जैसे हलके रंगों का प्रयोग करने से बचें क्योंकि इन रंगों के आउटफिट भीगने पर शरीर से चिपक जाते हैं, दूसरा दागधब्बे भी बहुत जल्दी लग जाते हैं जिन्हें साफ करना भी काफी मुश्किल होता है.

मोटे फैब्रिक हैं अनुकूल

शिफौन, जौर्जेट, और्गेंडी, वाइल जैसे पतले फैब्रिक और सिल्क जैसे महंगे फैब्रिक से बने आउटफिट के स्थान पर कौटन, नायलोन और हौजरी मैटीरियल से बने आउटफिट का चयन करें. ये भीगने पर आप के शरीर से चिपक कर आप के लुक को खराब नहीं करेंगे.

रखें इन बातों का भी ध्यान

● बहुत महंगी ड्रैसेज इन दिनों पहनने से बचें.

● कैपरी, शौर्ट्स, मिडी, वन पीस और को और्डसैट इस मौसम के लिए उपयुक्त रहते हैं. ये कम लंबाई वाले होते हैं जिस से इन में दागधब्बे लगने का डर नहीं रहता.

● यदि आप ने किसी फंक्शन में महंगी साड़ी या आउटफिट को पहना है तो उसे प्रयोग करने के बाद तुरंत ड्राईक्लीन करवा कर रखें ताकि मिट्टी के दागधब्बे साफ हो जाएं.

● प्योर लेदर के शूज और हैंड बैग को कैरी करने से बचें क्योंकि ये बहुत महंगे आते हैं और भीग जाने पर खराब हो जाते हैं.

● बाहर जाते समय अपने साथ छतरी या रेनकोट और एक छोटा तौलिया अवश्य रखें ताकि बारिश के समय इन का प्रयोग किया जा सके.

● प्योर सिल्क बनारसी साड़ी या लहंगे के स्थान पर सेमी बनारसी का प्रयोग करें ताकि भीगने पर भी ये खराब न हों.

Secret Love : मेरी भाभी मुझसे संबंध बनाना चाहती हैं, ताकि वो मां बन सकें… मैं क्या करूं?

Secret Love : अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक पढ़ें

सवाल

मैं विवाहित पुरुष हूं. विवाह को 8 वर्ष हो गए हैं. 7 साल का एक बच्चा है. मैं बच्चे व पत्नी से बहुत प्यार करता हूं. मेरी समस्या मेरी दूर के रिश्ते की भाभी को ले कर है. उन के विवाह को 10 वर्ष हो गए हैं लेकिन वे अभी तक मां बनने का सुख हासिल नहीं कर पाई हैं. मैडिकल जांच में भाभी के पति में कमी पाई गई है. भाभी चाहती हैं कि मैं उन का साथ दूं ताकि वे मां बनने का सुख हासिल कर सकें. मुझे समझ नहीं आ रहा कि मैं क्या करूं, सलाह दें.

जवाब

आप अपने वैवाहिक जीवन में सुखी हैं तो फिर बैठे बिठाए अपने वैवाहिक जीवन को क्यों बरबाद करना चाहते हैं. आप की भाभी का मां बनने को ले कर आप से जो प्रस्ताव है वह पूरी तरह से गलत है. ऐसा करने से आप की हंसती खेलती गृहस्थी बरबाद हो जाएगी.

जहां तक भाभी के मां बनने का सवाल है उस के लिए मैडिकल औप्शन उपलब्ध है जैसे आईवीएफ. वे इस उपाय को अपना सकती हैं. इस से आप की खुशहाल गृहस्थी में भी कोई आंच नहीं आएगी और आप की भाभी मां बनने का सुख हासिल भी कर सकेंगी. आप भूल कर भी अपनी भाभी के प्रस्ताव को न स्वीकारें. इस से न केवल आप पति पत्नी के रिश्ते में दरार आएगी, बल्कि आप के अपने दूर के भाई से भी संबंध बिगड़ते देर नहीं लगेगी.

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संध्या की आंखों में नींद नहीं थी. बिस्तर पर लेटे हुए छत को एकटक निहारे जा रही थी. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे, जिस से वह आकाश के चंगुल से निकल सके. वह बुरी तरह से उस के चंगुल में फंसी हुई थी. लाचार, बेबस कुछ भी नहीं कर पा रही थी. गलती उस की ही थी जो आकाश को उसे ब्लैकमेल करने का मौका मिल गया. वह जब चाहता उसे एकांत में बुलाता और जाने क्याक्या करने की मांग करता. संध्या का जीना दूभर हो गया था. आकाश कोई और नहीं उस का देवर ही था. सगा देवर. एक ही घर, एक ही छत के नीचे रहने वाला आकाश इतना शैतान निकलेगा, संध्या ने कल्पना भी नहीं की थी. वह लगातार उसे ब्लैकमेल किए जा रहा था और वह कुछ भी नहीं कर पा रही थी. बात ज्यादा पुरानी नहीं थी. 2 माह पहले ही संध्या अपने पति साहिल के साथ यूरोप ट्रिप पर गई थी. 50 महिलापुरुषों का गु्रप दिल्ली इंटरनैशनल एअरपोर्ट से रवाना हुआ.

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Famous Hindi Stories : प्रोफाइल पिक्चर

Famous Hindi Stories : उसएक रौंग कौल ने जैसे मेरी बेरंग जिंदगी को रंगीन बना दिया. वीराने में जैसे बहार आ गई. मेरा दिल एक आजाद पंछी की तरह ऊंची उड़ान भरने लगा.

ये सब उस रौंग कौल वाले रंजीत की वजह से था. उस की आवाज में न जाने कैसी कशिश थी कि न चाहते हुए भी मैं उस की कौल का इंतजार करती रहती थी. जिस दिन उस की कौल नहीं आती, मैं तो जैसे बेजान सी हो जाती थी. उस की कौल मेरे लिए नई ऊर्जा का काम करती थी.

गुड मौर्निंग से ले कर गुड नाइट तक न जाने कितनी कौल्स आ जाती थीं उस की. उस की खनकती आवाज मेरे कानों में शहनाई सी बजाती थी. मीठीमीठी बातें रस सी घोल जाती थीं. रंजीत मुझे अपनी सारी बातें बताने में जरा भी नहीं हिचकिचाता था. और एक मैं थी, जो चाहते हुए भी सारी बात नहीं बता पाती थी. मेरे अंदर की हीनभावना कुछ बोलने ही नहीं देती थी.

रंजीत ने मुझे बताया था कि वह एक आर्मी अफसर था, पैर में दुश्मन की गोली लगने की वजह से उस का पैर काट दिया गया था. यह बात बताने में भी वह बिलकुल शरमाया नहीं था, बल्कि बड़े गर्व से बताया था.

2 दिन हो गए थे रंजीत की कौल आए हुए. ये 2 दिन 2 सालों के समान थे. वह मुझ से नाराज था. उस का नाराज होना शायद जायज भी था.

उस ने सिर्फ इतना ही तो कहा था मुझ से कि लता व्हाट्सऐप पर अपनी प्रोफाइल

पिक्चर लगा दो. मैं ने उसे डांटते हुए कहा था कि मेरी मरजी मैं लगाऊं या न लगाऊं. तुम कौन होते हो मुझे और्डर देने वाले? रंजीत चुप हो गया था.

रंजीत अपने प्रोफाइल पिक्चर रोजरोज बदलता था. सुंदरसुंदर फोटो लगाता था. आर्मी ड्रैस के फोटो में तो वह बहुत ही जंचता था.

मैं ने सोचा रंजीत को खुश करने के लिए प्रोफाइल फोटो लगा ही देती हूं. लगाने से पहले मैं ने अपनेआप को फिर एक बार आईने में निहारा.

आंखों के नीचे कालापन उस पर चढ़ा मोटे लैंस का चश्मा, चेहरे पर हलकी रेखाएं, दागधब्बे, तिल, पेट पर चरबी, कमर पर सिलवटें, मोटी छोटी सी नाक, सिर के बालों में से झांकती सफेदी. ‘नहींनहीं’ मैं अपना फोटो कैसे लगा सकती हूं, सोच मैं ने फोटो लगाने का इरादा बदल दिया.

रंजीत को कैसे समझाती मेरा फोटो लगाने लायक है ही नहीं. काश, रंजीत मेरी मजबूरी समझ पाता और नाराज नहीं होता. सारा दिन मोबाइल हाथ में पकड़ेपकड़े रंजीत की कौल का इंतजार करती रही.

अचानक मेरा मोबाइल बजा. मानो कई जलतरंगें एक साथ बज उठी हों. रंजीत का नंबर फ्लैश होने लगा. मेरी आंखें खुशी से चमक उठीं.

मैं ने बिना देर किए फोन उठा लिया. उधर से वही दिलकश आवाज, जिसे सुन कर कानों को सुकून सा मिलता था, ‘‘मेरी कौल का इंतजार कर रही थीं न.’’ रंजीत ने शरारती आवाज में पूछा.

‘‘नहीं तो,’’ मैं ने झूठ कहा.

‘‘कर तो रही थीं पर मानोगी नहीं… फोन हाथ में ही पकड़ा हुआ था… तुरंत उठा लिया… और क्या सुबूत चाहिए,’’

रंजीत ने हंसते हुए कहा.

‘‘कल कौल क्यों नहीं की?’’ मैं ने गुस्सा होते हुए पूछा.

‘‘अरे, मैं अपना फुल चैकअप कराने गया था. उस में टाइम तो लगता ही है.’’

‘‘क्या हुआ तुम्हें?’’ मैं ने घबराते हुए पूछा.

‘‘कुछ नहीं हुआ… 40 के बाद कराते रहना चाहिए… तुम भी अपना चैकअप कराती रहा करो,’’ रंजीत ने नसीहत देते हुए कहा.

‘‘अच्छा यह बताओ तुम्हारी रिपोर्ट आ गई? सब ठीक तो है न रंजीत? कुछ छिपा तो नहीं रहे हो?’’

‘‘रिपोर्ट आ गई है. सब नौर्मल है. थोड़ा ब्लड प्रैशर बढ़ा हुआ था. उस की दवा खा रहा हूं. चिंता की कोई बात नहीं है,’’ रंजीत बोला.

मैं ने रात को ही व्हाट्सऐप पर गुलाब के फूलों वाली प्रोफाइल पिक्चर लगा दी. रंजीत को गुलाब के फूल बहुत पसंद थे. व्हाट्सऐप पर तो सिर्फ गुडमौर्निंग और गुड नाइट ही होती थी. बाकी बातें तो फोन पर ही होती थीं.

समय पंख लगा कर उड़ रहा था. 1 महीना कब बीत गया, पता ही नहीं चला. मैं अपनेआप को आईने में देखती तो 16 साल की लड़की की तरह शरमा जाती. गाल सिंदूरी हो जाते. चेहरा चमकने लगता.

लताजी के गाने सुनती तो साथ में गुनगुनाने लगती. कभीकभी तो

अपनेआप ही पैर भी थिरकने लगते थे. यह मुझे क्या होता जा रहा था… शायद रंजीत की दोस्ती का खुमार था.

रंजीत ने फोन पर मिलने की अनुमति मांग कर मुझे उलझन में डाल दिया था. उस समय तो मैं ने कह दिया था, सोच कर बताऊंगी,पर मैं तय ही नहीं कर पा रही थी कि उस का फोन आएगा तो मुझे क्या कहना है.

मोबाइल बजने लगा. कांपते हाथ से उठाया. मेरे हैलो बोलने से पहले ही रंजीत ने बोलना शुरू कर दिया, ‘‘लता हम को अब मिल ही लेना चाहिए… जिंदगी का कोई भरोसा नहीं है. आज है, कल न रहे.’’

‘‘ऐसा क्यों कह रहे हो? कुछ हुआ है क्या? मैं ने कुछ रुंधी आवाज में पूछा.’’

‘‘नहीं, कुछ नहीं हुआ,’’ रंजीत हंसते हुए बोला, ‘‘इतने दिनों से बस फोन पर ही बातें कर रहे हैं. एक बार मिलना भी तो चाहिए… अब आमनेसामने ही बातें करेंगे.’’

रंजीत ने खुद ही जगह और टाइम तय कर दिया, ‘‘और हां तुम तो मुझे पहचान ही लोगी, एक पैर वाला वहां मेरे सिवा कोई दूसरा नहीं होगा.’’

‘‘पता तुम गुलाबी साड़ी पहन कर आना, पहचानने में आसानी होगी.’’

‘‘गुलाबी साड़ी?’’ मैं ने जोर दे कर कहा.

‘‘गुलाबी नहीं तो किसी और रंग की पहन लेना,’’ रंजीत ने कहा, ‘‘लता कल 4 बजे मैं तुम्हारा इंतजार करूंगा और हां, अब मैं फोन नहीं करूंगा. आमनेसामने ही बातें करेंगे.’’

मैं कुछ बोल पाती उस से पहले ही उस ने फोन काट दिया. यह रंजीत को क्या हो गया है? मिलने के लिए इतनी जिद क्यों कर रहा है? मेरी बात तो उस ने सुनी ही नहीं, अपना ही राग अलापता रहा.

‘‘गुलाबी साड़ी,’’ मुझे मेरे अतीत में खींच ले गई…

मां ने बताया, मुझे देखने लड़के वाले आ रहे हैं. लड़के का नाम मनोज था, जो इंजीनियर था. मां ने गुलाबी साड़ी देते हुए कहा, ‘‘यह साड़ी पहन लेना रूप निखर कर आएगा.’’

अब मां को कौन समझाए, रूपरंग जैसा है वैसा ही रहेगा. मां उबटन लगाने के लिए भी दे गईं. मां चाह रही थीं किसी भी तरह मैं पसंद आ जाऊं और मेरे हाथ पीले हो जाएं.

शाम को मनोज और उस के मातापिता मुझे देखने के लिए आए. वही दिखावा, चाय की ट्रे ले कर मैं लड़के वालों के सामने उपस्थित हुई. मेरे साथ मेरी छोटी बहन उमा भी थी. उन्होंने 1-2 प्रश्न भी मुझ से पूछे.

मनोज अपने पिता के कान में कुछ फुसफुसाया. देखने मुझे आया था पर नजर उमा पर गड़ाए था. उस की मंशा मैं कुछकुछ समझ

गई थी.

मनोज के पिता मां से बोले, ‘‘हमारे लड़के को आप की छोटी बेटी पसंद है. आप चाहें तो हम अभी शकुन कर देते हैं.’’

मां उठ खड़ी हुई और फिर साफ इनकार करते हुए बोलीं, ‘‘पहले हम बड़ी बेटी का रिश्ता तय करेंगे उस के बाद छोटी बेटी का,’’ और हाथ जोड़ते हुए चले जाने को कहा.

मां अपनी जिद पर अड़ी रहीं. मैं ने उन्हें बहुत समझाया कि जिस की शादी पहले हो रही है होने दो. बड़ी मुश्किल से मां को समझाबुझा कर उमा की शादी मनोज से करवा दी.

मुझे तो जैसे शादी के नाम से ही नफरत सी हो गई थी. मैं ने शादी न करने का फैसला कर लिया. मैं बारबार अपनी नुमाइश नहीं लगाना चाहती थी. मां ने मुझे बहुत समझाया पर मैं अपनी जिद पर अड़ी रही. पढ़ाई पूरी कर के मैं ने एक स्कूल में नौकरी कर ली. मां मेरी शादी की हसरत लिए हुए इस दुनिया से चली गईं.

मैं जिस अतीत से पीछा छुड़ाना चाहती थी, आज वह फिर एक बार मेरे सामने पंख फैला खड़ा हो गया था.

मोबाइल बजते ही मैं अतीत से बाहर आ गई. फोन मेरी छोटी बहन उमा

का था, ‘‘दीदी कैसी हो? आप से बात किए बहुत दिन हो गए… अब तो आप के स्कूल में छुट्टियां चल रही होंगी. कुछ दिनों के लिए यहां आ जाओ… आप का मन भी बदल जाएगा… दीदी आप बोल क्यों नहीं रहीं?’’

‘‘तुम बोलने दोगी तब तो बोलूंगी,’’ मैं ने हंसते हुए कहा.

उमा अपने को मेरा दोषी मानती थी, इसलिए अकसर खुद ही फोन कर लेती थी. मां के जाने के बाद उस के फोन भी आने कम हो गए थे.

घड़ी में 3 बजने का संकेत दिया. मैं बेमन से उठी… रंजीत से मिलने के लिए तैयारी करने लगी.

औटो कर के रंजीत की तय करी जगह पहुंच गई. रंजीत को मेरी आंखें ढूंढ़ने लगीं. उसे ढूंढ़ने में ज्यादा देर नहीं लगी. सामने ही एक कुरसी पर रंजीत बैठा था. पास ही बैसाखी रखी हुई थी. हाथ में गुलाब का ताजा फूल था.

मैं एक पेड़ की ओट में खड़ी हो कर रंजीत को देखने लगी. इस उम्र में भी वह बहुत ही आकर्षक लग रहा था. गोरा रंग, बड़ीबड़ी आंखें, चौड़ा सीना, लंबा कद, काले सफेद खिचड़ी वाले बाल, जो उस की मासूमियत और बढ़ा रहे थे.

रंजीत को देख कर मेरे अंदर दबी हीनभावना फिर से जाग्रत हो गई. मन में अजीबअजीब से खयाल आने लगे. रंजीत मुझे देख कर क्या सोचेगा? इस औरत से मिलने के लिए बेचैन था, जिस का न रूप न रंग. मैं ने रंजीत की तरफ से खुद ही सोच लिया.

नहींनहीं, मैं रंजीत के सामने नहीं जा सकती… दूसरी बार नापसंदी का बोझ नहीं झेल पाऊंगी और फिर रंजीत से मिले बिना मैं घर लौट आई. मुझे मालूम था रंजीत बहुत गुस्सा होगा.

घर पहुंची ही थी कि मोबाइल बज उठा. पर्स में से कांपते हाथ से मोबाइल निकाला. दिल जोरजोर से धड़क रहा था. मेरे हैलो बोलने से पहले ही रंजीत गुस्से बोला, ‘‘तुम आई क्यों नहीं?’’

झूठ बोलते हुए मैं ने दबी आवाज में कहा, ‘‘पड़ोस में एक सहेली का ऐक्सिडैंट हो गया था. वहीं थी मैं.’’

‘‘बताना तो था मुझे या वो भी जरूरी नहीं समझा,’’ गुस्से से झल्लाते हुए रंजीत ने फोन काट दिया.

मैं समझ गई रंजीत बहुत ही नाराज है मुझ से. शायद आज मैं ने अपना सब से अच्छा दोस्त खो दिया. भरी आंखों से आंसू गालों तक लुढ़क गए.

सुबह उठ कर सब से पहले व्हाट्सऐप देखा. रंजीत का गुडमौर्निंग नहीं आया था. रोज बदलने वाली प्रोफाइल पिक्चर भी नहीं बदली थी. पूरे दिन में रंजीत ने 1 बार भी व्हाट्सऐप चैक नहीं किया. पूरा दिन निकल गया रंजीत के फोन का इंतजार करते हुए. अब तो रात भी आधी बीत चुकी थी.

मैं ने सोच लिया था सुबह उठ कर सब से पहले रंजीत को फोन कर के माफी मांगूंगी… उसे मना लूंगी. वह फोन नहीं कर रहा तो क्या हुआ? मैं तो उसे कर सकती हूं.

रात जैसेतैसे कटी. सुबह उठते ही व्हाट्सऐप खोल कर देखा. जल्दी में अपना चश्मा

लगाना भी भूल गई, धुंधला सा दिखाई दिया. लगता है रंजीत ने अपनी प्रोफाइल पिक्चर भी बदली है और एक मैसेज भी भेजा है. मेरी आंखें चमक उठी. जान में जान आ गई.

मैं ने जल्दी से अपना चश्मा साइड में रखे स्टूल से उठा कर लगाया और फोटो देखने लगी. यह क्या? रंजीत के फोटो पर फूलों का हार? दिल धक्क से रह गया. जल्दी से मैसेज पढ़ना शुरू किया… आज शाम 4 बजे उठावनी की रम्म है… रंजीत को हार्टअटैक…

इस से ज्यादा पढ़ने की हिम्मत नहीं हुई. आंखें पथरा सी गईं. कलेजा मुंह को आने लगा, दिल जोरजोर से धड़कने लगा… जोर की हिचकी के साथ चीख निकल गई.

‘‘रंजीत मुझे छोड़ कर ऐसे नहीं जा सकते हो… प्लीज एक बार लौट आओ… मैं गुलाबी साड़ी पहन कर ही आऊंगी… हम आमनेसामने बातें करेंगे. मैं तुम से मिलने आऊंगी,’’ विलाप करती रही, फूटफूट कर रोती रही, न कोई देखने वाला न कोई सुनने वाला.

हाय री विडंबना… मेरा अतीत फिर सामने पंख फैलाए दस्तक दे रहा था.

फिर वही बेरंग जिंदगी, उजड़ा चमन, सूनापन, बेजान सा मोबाइल, धूल खाता रेडियो, सबकुछ पहले जैसा… इस सब की जिम्मेदार सिर्फ मैं ही तो थी…

Short Story : महिला सशक्तीकरण के 3 तल्ले

Short Story : पूरे देश में महिलाओं का सशक्तीकरण आंदोलन जोरशोर से चल रहा था. कहीं छोटीछोटी गोष्ठियों तो कहीं बड़ीबड़ी सभाओं के द्वारा महिलाओं को सशक्तीकरण के लिए जाग्रत किया जा रहा था. एक दिन हम भी महिला सशक्तीकरण आंदोलन की अध्यक्षा नीलम का भाषण सुनने उन की सभा में पहुंच गए. यह तो अनादिकाल से ही चला आ रहा है कि जहां महिलाएं हों, उन के पीछेपीछे पुरुष पहुंच ही जाते हैं. लेकिन हम इस परंपरा के तहत महिलाओं की सभा में नहीं पहुंचे थे. हमें तो अपने लेख के लिए कुछ सामग्री चाहिए थी, जो जीवंत सत्य और यथार्थपरक हो.

नीलम मंच से कह रही थीं, ‘‘बहनो, इस पुरुष जाति ने युगोंयुगों से हम पर अत्याचार किए हैं. कभी अहिल्या को शाप दे कर शिला बना दिया, तो कभी सीता को घर से निकाल दिया. हद तो तब हो गई बहनो, जब भरी सभा में कौरवों ने द्रौपदी का चीरहरण कर लिया. बहनो, इस पुरुषप्रधान समाज में आज भी यही हो रहा है. हम इसे बरदाश्त करने वाली नहीं. क्या बहनो, हमें यह सब बरदाश्त करना चाहिए?’’ ‘‘नहींनहीं बिलकुल नहीं,’’ भीड़ से जोरदार आवाज आई. फिर जोरदार तालियां बजीं. कुछ महिलाओं ने खड़े हो कर ‘नीलम जिंदाबाद’, के नारे भी लगाए.

‘‘बहनो, दुख तो इस बात का है कि इन मर्दों ने आज भी महिलाओं को दोयम दर्जे का बना रखा है. कोई 4 बीवियां रखने का अधिकार रखता है, तो कोई चुटकी बजाते ही तलाक दे देता है. बहनो, तुम्हीं बताओ हमें 4 पति रखने का अधिकार क्यों नहीं? महंगाई के इस जमाने में एक पति की आमदनी से ढंग से घर का खर्च चलता है क्या? 4 पति होंगे तो हमें 4 गुना खर्च करने को मिलेगा कि नहीं? हमें सरकार के सामने यह मांग रखनी चाहिए कि औरत को भी एक से अधिक पति रखने का कानूनी अधिकार मिलना चाहिए.’’

नीलम की यह बात सुन कर हमें लगा कि ये बहक गई हैं. अब इन का विरोध होगा. लेकिन हमारी सोच के विपरीत भीड़ से उन को जबरदस्त समर्थन प्राप्त हुआ. एक दबंग महिला ने उठ कर कह ही दिया, ‘‘बिलकुल ऐसा होना चाहिए. जिन के पति कम कमाते हैं उन्हें तो तुरंत एक पति और कर लेना चाहिए.’’

उस दबंग महिला की बात सुन कर वहां खड़े अनेक मर्द वहां से इसलिए खिसक लिए कि कहीं उन की पत्नी दूसरे पति की तलाश में तो नहीं निकल पड़ी. नीलम के क्रांतिकारी विचारों को सुन कर अपना दिल उन का साक्षात्कार लेने को मचल उठा. हम शाम को ही उन के घर पहुंच गए. उन्होंने अपने पति का परिचय कराते हुए कहा, ‘‘इन से मिलिए, ये मेरे दूसरे पति हैं. ये पहले मेरे स्टैनो हुआ करते थे. पहले पति को तलाक देने के बाद मैं ने इन से प्रेम विवाह कर लिया. मेरा बड़ा बेटा बस इन से 4 साल छोटा है.’’

महिला सशक्तीकरण की बात आगे बढ़ाते हुए उन्होंने कहा, ‘‘देखिए भाई साहब, समाज में महिलाओं के साथ कितना अन्याय हो रहा है. बालिका भू्रण हत्या, अबोध बालिकाओं के साथ बलात्कार की घटनाएं, शिक्षा में भेदभाव, नौकरियों में भेदभाव, धर्म के नाम पर बुरके से ढांकना, यह सब अन्याय और अत्याचार नहीं तो और क्या है? यह सब बंद होना चाहिए.’’

हम नीलम के विचारों से बड़े प्रसन्न हुए. फिर हम ने पत्रकार के अंदाज में पूछा, ‘‘लेकिन नीलमजी, यह सब कैसे होगा?’’

‘‘यह सब होगा. महिलाओं को जागरूक कर के होगा. उन्हें शिक्षा प्रदान कर के होगा. हर बालिका को स्कूल भेज कर होगा.’’

उसी समय एक 12-13 साल की लड़की वहां कपप्लेट उठाने के लिए आई. जब हम ने नीलमजी से उस के बारे में पूछा तो वे बोलीं, ‘‘नौकरानी की बेटी है. जिस दिन वह बीमार पड़ती है, तो अपनी बेटी को काम पर भेज देती है. अब इन नौकरों की क्या कहें, बड़े नालायक होते जा रहे हैं. कुछ काम तो करना नहीं चाहते, पढ़नालिखना तो बहुत दूर की बात है. इन जाहिलों को कोई नहीं सुधार सकता.’’ नीलमजी का असली चेहरा हमारे सामने आ गया था. अब हम ने वहां से उठना ही बेहतर समझा. लेकिन हम ने यह सोच लिया था कि महिलाओं के सशक्तीकरण आंदोलन की तह में पहुंच कर ही रहना है. आखिर देशविदेश में इतने आंदोलन होने के बावजूद महिलाएं सशक्त क्यों नहीं बन सकीं? हमारे कविगणों को यह कहने के लिए मजबूर क्यों होना पड़ा कि अबला तेरी यही कहानी, आंचल में है दूध और आंखों में पानी?

शहरों से अधिक हमारी आबादी गांवों में बसती है, इसलिए हम चल पड़े गांव की ओर. भरी दोपहरी में एक आम के पेड़ की छांव मेंएक चौधराइन चौधरी को दोपहर का खाना खिला रही थीं. चौधरी हाथ पर रोटी रखे बड़े मजे से आम की चटनी के साथ खा रहे थे. हमें देख कर कुछ सकपका गए, ‘अतिथि देवो भव:’ का खयाल कर के उन्होंने हमें छांव में बैठने की जगह दी.

फिर पूछा, ‘‘तो क्या सेवा करूं थारी?’’

‘‘चौधरी साहब, महिला सशक्तीकरण पर मैं चौधराइनजी से कुछ प्रश्न पूछना चाहता हूं.’’

चौधरी ने चौधराइन से कहा, ‘‘चौधराइन, ये शहरी बाबू शक्तिवक्ति पर कुछ पुच्छड़ चाहें, बता दिए कुछ इन्हें.’’

‘‘बताओ तो क्या बताऊं?’’ चौधराइन हम से बोलीं, तो हम ने 10-15 मिनट चौधराइन को विषय समझाया.

तब चौधराइन बोलीं, ‘‘देखो शहरी बाबू, बड़ीबड़ी बातें तो हमारी समझ में न आवें. हम तो इतना जाणे कि हमारा मरद चाहे हमें कितना भी मारेछेत्ते, है तो वह अपना ही. घर में 4 बरतन हों तो खड़केंगे ही. शहरवालियों को मैं कुछ न कैती, वे तो फैशन करे घूमे सै. कोईकोई तो कईकई खसम रखे सै. हम तो अपने मरद के खूंटे से बंधीं सै. अरे हां, हमारे मरद के खिलाफ कुछ न कहयो, नहीं तो हम से बुरी कोई न होवे.’’

‘‘अरी तू बावली होरी सी? वे तेरे सै बात करणे की खातिर आए और तू झगड़ा कर रई. ले उठा अपने बरतनभांडे और जा घर कू. और शहरी बाबू तुम बुरा मत मानियो इस की बातों का. हम गांव वाले क्या जानें इन सब बलाओं को, जो सरकार कर दे वही ठीक है.’’

चौधराइन हमें खरीखरी सुना कर चली गई थीं. ऐसा लगता था कि वे गांव में बसने वाली 70% महिलाओं का प्रतिनिधित्व कर रही थीं. चौधराइनजी की बातें सुन कर हमें नीलमजी की बातें फीकी लगने लगी थीं. अब हम ने कालेज गोइंग छात्रा के विचार लेना भी जरूरी समझा. आखिर वे हमारे देश की भावी पीढ़ी का नेतृत्व करने वाली में से हैं, जो एक बहुत बड़ा तबका है. इन्हीं के हाथों में भावी महिला समाज है. अकस्मात हमारी मुलाकात एक विश्वविद्यालय की छात्रा से हो गई. महिला सशक्तीकरण शब्द का प्रयोग करने पर उस ने हमें अनपढ़ समझा. महिला सशक्तीकरण का सही उच्चारण न कर पाने के कारण उस ने अंगरेजी की बैसाखी का सहारा लिया और कहा, ‘‘सर, यू नो, वूमन इंपावरमैंट तो तभी होगा न जब हम को बिलकुल फ्री कर दिया जाएगा. यू नो, वी आर ऐवरीवेयर इन बाउंडेशन. उस की चेन को तोड़ना होगा. लड़की किस से मैरिज करना चाहती है, यह मौम और डैड का मैटर नहीं होना चाहिए. यू नो, लाइफ पार्टनर के साथ तो हमें रहना है, मौम और डैड को तो नहीं.’’

मुझे छात्रा की बातों में दम नजर आ रहा था. वह आगे बोली, ‘‘सैकंड थिंग इज दिस, हर वूमन को अपने पैरों पर जरूर स्टैंड करना चाहिए. यदि हसबैंड धोखा देना चाहे तो उस के धोखा देने से पहले हमें उसे किक आउट कर देना चाहिए. यह तभी होगा जब हम सैल्फ डिपैंड होंगी. जहां तक संबंधों की बात है यह हमारा निजी मामला है यानी पर्सनल मैटर. हम किस से संबंध बनाएं यह हमारी मरजी. मैं खुद लिव इन रिलेशनशिप में रह रही हूं. किसी को इस बात से क्या परेशानी जब मेरी मौम और डैड को कोई प्रौब्लम नहीं? मेरी मौम और डैड को मेरे बारे में सब पता है. हम एकदूसरे से कुछ भी छिपा कर नहीं रखते. सब बातों पर खुल कर चर्चा करते हैं. यही तो है वूमन इंपावरमैंट.’’

हम उस छात्रा के खुलेपन और जिंदादिली के कायल हो गए. उस से मुलाकात कर हम महिला सशक्तीकरण आंदोलन के तीसरे तल्ले तक पहुंच चुके थे, जिस का वर्णन हम ने आप के सामने कर दिया. मेरी दृष्टि में तीनों तल्लों की महिलाओं ने अपने स्तर से सशक्त प्रदर्शन किया. आप को किस के विचार अच्छे लगे? इस प्रश्न को आप पर छोड़ता हूं एक सार्थक बहस के लिए. प्रतिक्रियाओं का इंतजार रहेगा.

Family Drama : सिर्फ कहना नहीं है

Family Drama :  अलकाऔर संदीप को कोरोना से ठीक हुए 2 महीने हो चुके थे पर अजीब सी कमजोरी थी जो जाने का नाम ही नहीं ले रही थी. कहां तो रातदिन भागभाग कर पहली मंजिल से नीचे किचन की तरफ जाने के चक्कर कोई गिन ही नहीं सकता था पर अब तो अगर उतर जाती तो वापस ऊपर बैडरूम तक आने में नानी याद आ जाती.

संदीप ने तो ऊपर ही बैडरूम में अपना थोड़ाथोड़ा वर्क फ्रौम होम शुरू कर दिया था. थक जाते तो फिर आराम करने लगते. पर अलका क्या करे. हालत संभलते ही अपना चूल्हाचौका याद आने लगा था. अलका और संदीप एक हौस्पिटल में 15 दिन एडमिट रहे थे. बेटे सुजय का विवाह रश्मि से सालभर पहले ही हुआ था. दोनों अच्छी  कंपनी में थे. अब तो काफी दिनों से वर्क फ्रौम होम कर रहे थे. सुंदर सा खूब खुलाखुला सा घर था, नीचे किचन और लिविंगरूम था, 2 कमरे थे जिन में से एक सुजय और रश्मि का बैडरूम था और दूसरा रूम अकसर आनेजाने वालों के काम आ जाता. सुजय से बड़ी सीमा जब भी परिवार के साथ आती, उसी रूम में आराम से रह लेती. सीमा दिल्ली में अपनी ससुराल में जौइंट फैमिली में रहती थी और खुश थी. अब तक किचन की जिम्मेदारी पूरी तरह से अलका ने ही संभाल रखी थी. वह अभी तक स्वस्थ रहती तो उसे कोई परेशानी भी नहीं थी. मेड के साथ मिल कर सब ठीक से चल जाता.

आज बहुत दिन बाद अलका किचन में आई तो आहट सुन कर जल्दी से रश्मि भागती सी आई, ‘‘अरे मम्मी, आप क्यों नीचे उतर आई, कल भी आप को चक्कर आ गया था… पसीना पसीने हो गई थीं. मु?ो बताइए, क्या चाहिए आप को?’’

‘‘नहीं, कुछ चाहिए नहीं, बहुत आराम कर लिया, थोड़ा काम शुरू करती हूं,’’ कहतेकहते अलका की नजर चारों तरफ दौड़ी, उसे ऐसा लगा जैसे यह उस की किचन नहीं वह किसी और की किचन में खड़ी है.

अलका के चेहरे के भाव सम?ा गई रश्मि, बोली, ‘‘मम्मी, आप सब तो बहुत लंबे हो. मैं तो आप सब से लंबाई में बहुत छोटी हूं, मेरे हाथ ऊपर रखे डब्बों तक पहुंच ही नहीं पाते थे… और भी जो सैटिंग थी वह मु?ो सूट नहीं कर रही थी.  अत: मैं ने अपने हिसाब से किचन नए तरीके से सैट कर ली. गलत तो नहीं किया न?’’

क्या कहती अलका… शौक सा लगा उसे किचन का बदलाव देख कर… उस की सालों की व्यवस्था जैसे किसी ने अस्तव्यस्त कर दी… जहां जीवन का लंबा समय बीत गया, वह जगह जैसे एक पल में पराई सी लगी. मुंह से बोल ही न फूटा.

रश्मि ने दोबारा पूछा, ‘‘मम्मी, क्या

सोचने लगीं?’’

अकबका गई अलका. बस किसी तरह इतना ही कह पाई, ‘‘कुछ नहीं, तुम ने तो बहुत काम कर लिया सैटिंग का… तुम्हारे सिर तो खूब काम आया न.’’

‘‘आप दोनों ठीक हो गए… बस, काम का क्या है, हो ही जाता है.’’

अलका थोड़ी देर जा कर सोफे पर बैठी रही. रश्मि उस के पास ही अपना लैपटौप उठा लाई थी. थोड़ी बातें भी बीचबीच में करती जा रही थी.

अनमनी हो आई थी अलका, ‘‘जा कर थोड़ा लेटती हूं,’’ कह कर चुपचाप धीरेधीरे चलती हुई अपने बैडरूम में आ कर लेट गई.

उस का उतरा चेहरा देख संदीप चौंके,

‘‘क्या हुआ?’’

अलका ने गरदन हिला कर बस ‘कुछ नहीं’ का इशारा कर दिया पर अलका के चेहरे के भाव देख संदीप उस के पास आ कर बैठ गए, ‘‘थकान हो रही है न ऊपरनीचे आनेजाने में? अभी यह कमजोरी रहेगी कुछ दिन… अभी किसी काम के चक्कर में मत पड़ो. पहले पूरी तरह  से ठीक हो जाओ, काम तो सारी उम्र होते ही रहेंगे.’’

अलका ने कुछ नहीं कहा बस आंखें बंद कर चुपचाप लेट गई. लड़ाई?ागड़ा, चिल्लाना, गुस्सा करना उस के स्वभाव में न था. उस ने खुद संयुक्त परिवार में बहू बन कर सारे दायित्व खुशीखुशी संभाले थे और सब से निभाया था. पर एक ही ?ाटके में किचन का पूरी तरह बदल जाना उसे हिला गया था.

कोरोना के शिकार होने के दिन तक जिस किचन का सामान वह अंधेरे में भी ढूंढ़ सकती थी, वहां तो आज कुछ भी पहचाना हुआ नहीं था, कैसे चलेगा? उस समय तो संदीप और उस की तबीयत बहुत गंभीर थी, दोनों को लग रहा था कि बचना मुश्किल है, सुजय और रश्मि ने रातदिन एक कर दिए थे. जब से हौस्पिटल से घर आए हैं, दोनों रातदिन सेवा कर रहे हैं. संदीप को तो कपड़े पहनने में भी कमजोरी लग रही थी. सुजय ही हैल्प करता है उन की. शरीर का दर्द दोनों को कितना तोड़ गया है, वही जानते हैं.

हौस्पिटल में बैड पर लेटेलेटे भी अलका को घरगृहस्थी की चिंता सता रही थी कि क्या होगा, कैसे होगा, रश्मि को तो कुछ आता भी नहीं… यह सच था कि रश्मि को कुकिंग ठीक से नहीं आती थी पर इन दिनों गूगल पर, यू ट्यूब पर देखदेख कर उस ने सब कुछ बनाया था, उन की बीमारी में उन की डाइट का बहुत ज्यादा ध्यान रखा था. अलका की पसंद का खाना सीमा को फोन करकर के पूछपूछ कर बनाया था. सीमा उस समय आ नहीं पाई थी. वह परेशान होती तो रश्मि ही उसे तसल्ली देती, वीडियो कौल करवा देती.

अचानक विचारों ने एक करवट सी ली. आज किचन में जो बदलाव देख कर मन में टूटा सा था, अब जुड़ता सा लगा जब ध्यान आया कि जब रश्मि बहू बन कर आई तो उसे अलका ने और बाकी सब लोगों ने यही तो कहा था कि यह तुम्हारा घर है, इसे अपना घर सम?ा कर आराम से बिना संकोच के रहो तो वह तो अपना घर सम?ा कर ही तो पूरे मन से हर चीज कर रही है.

ये जो किचन में उस ने सारे बदलाव कर दिए, अपना घर ही तो सम?ा होगा न… किसी दूसरे की किचन में कोई इस तरह से अधिकार नहीं जमा सकता न… बहू को सिर्फ यह कहने से थोड़े ही काम चलता है कि यह तुम्हारा घर है, जो चाहे करो, उसे करने देने से रोकना नहीं है… यह उस का भी तो घर है… अलका सोच रही थी कि उसे कुछ परेशानी होगी, वह प्यार से अपनी परेशानी बता देगी, नहीं तो सब ऐसे ही चलने देगी जैसे रश्मि घर चला रही है. सिर्फ कहना नहीं है, उसे पूरा हक देना है अपनी मरजी से जीने का, घर को अपनी सहूलियतों के साथ चलाने का.

अचानक अलका के मन में न जाने कैसी ताकत सी महसूस हुई.

वह फिर नीचे जाने के लिए खड़ी हो गई कि जा कर अब आराम से देखती हूं कि कहां क्या सामान रख दिया है बहू रानी ने… नए हाथों में नई सी व्यवस्था देखने के लिए अब की बार वह मुसकराते हुए सीढि़यां उतर रही थी.

Moral Stories in Hindi : संधि प्रस्ताव – क्या विश्वानंद बच पाया

Moral Stories in Hindi : अर्पिता अपने पति मलय का सामान सहेज रही थी. उसे उस के कागजों के बीच एक फोटो मिली जिस में एक दंपती और 2 लड़के थे. अर्पिता ने ध्यान से देखा तो छोटे बच्चे का चेहरा मलय जैसा लग रहा था. उस ने औफिस से लौटने पर मलय से उस फोटो के बारे में पूछा तो उस ने बताया कि फोटो में उस के माता, पिता, बड़े भाई और वह स्वयं है. अर्पिता ने कहा, ‘‘अरे, तुम्हारा भाई भी है, पर तुम तो अपने चाचा के साथ रहते थे न, तो इन सब का क्या हुआ?’’

पहले तो वह टालमटोल करता रहा पर जब अर्पिता रूठ कर बैठ गई तो नईनवेली पत्नी से वह उस रहस्य को ज्यादा देर छिपा न सका.

उस ने बताया, ‘‘यथार्थ घर का बड़ा बेटा था. वह परिवार में सब की आशाओं का केंद्र था. परिवार के गर्व का कारण था. होता भी क्यों न, मम्मा हों या पापा या छोटा भाई, उसे सब की चिंता रहती थी. वह मुसकरा देता, बस. कम बोलना उस की प्रकृति थी. पता ही नहीं चलता कि उस के मन में क्या चल रहा है, वह क्या सोच रहा है. पर उसे सब पता रहता था कि क्या समस्या है, किस को उस की आवश्यकता है. मम्मा के तो हृदय का टुकड़ा था वह. आज के युग में बच्चे जरा सा अपने पैरों पर खड़े हो ते ही अपना संसार रच लेते हैं और उस में विस्मृत हो जाते हैं, लेकिन यथार्थ के लिए दूसरों का दुख सदा निज आकांक्षाओं पर भारी था.

‘‘जब वह 4 वर्ष की इंजीनियरिंग की डिगरी ले कर घर लौट रहा था तो मेरी मां सुनीता की प्रसन्नता का ठिकाना न था. उन का बेटा घर आ रहा था, सोने पर सुहागा यह कि वह इंजीनियर बन कर आ रहा था. सुनीता ने मेरे पिता तपन से कहा, ‘सुनिए, यथार्थ को नौकरी मिलते ही हम उस की शादी की बात करेंगे.’

‘‘तपन ने हंसते हुए कहा, ‘खयालीपुलाव पकाने में तुम्हारा जवाब नहीं. अभी तो यथार्थ को सिर्फ इंजीनियरिंग की डिगरी मिली है. पहले उसे नौकरी तो मिलने दो.’

‘‘अभी तो वे न जाने किनकिन सतरंगी सपनों की गलियों में भटकतीं कि तपन ने आ कर कहा, ‘सुनीता, ट्रेन का समय तो निकल गया, यथार्थ आया नहीं?’

‘‘तपन ने कहा, ‘मैं पहले ही पूछ चुका हूं, अब तो गाड़ी को आए भी एक घंटा हो गया है.’ फिर चिंतातुर हो कर वे बोले, ‘यथार्थ का मोबाइल स्विचऔफ आ रहा है.’

‘‘सुनीता ने घबरा कर कहा, ‘पर कल तो उस ने कहा था कि रात को चल कर सुबह पहुंच जाऊंगा. भोपाल फोन करिए. मालूम पड़े कि वह चला भी कि नहीं. कहीं बीमार तो नहीं पड़ गया, मेरा बच्चा.’

‘‘तपन ने कहा, ‘मैं सब मालूम कर चुका हूं, वह कल रात में वहां से चल दिया था.’

‘‘फिर सुनीता का श्वेत पड़ता चेहरा देख कर कुछ सुनीता और कुछ स्वयं को समझाते हुए वे बोले, ‘अरे, जानती तो हो उसे अपना ध्यान कहां रहता है, मोबाइल चार्ज नहीं किया होगा और दिल्ली का ट्रैफिक तो ऐसे ही है, फंस गया होगा कहीं जाम में.’

‘‘दोनों मन ही मन मना रहे थे कि यही सच हो. पर घड़ी की निरंतर आगे बढ़ती निष्ठुर सुइयां उन की सोच को झुठलाने को ठाने बैठी थीं. समय के साथसाथ उन की आशा को अनहोनी की आकांक्षा के काले बादल ढंकते चले जा रहे थे. पलपल कर के घंटे और दिन बीत गए. हर जगह पता किया, यथार्थ के जानने वालों को फोन किया पर कहीं से कोई सुराग नहीं मिल रहा था. किसी अनहोनी का भय सुरसा सा मुंह फैलाता जा रहा था.

‘‘यथार्थ के घर न आने का समाचार जानने वालों में आग के समान फैल गया और लोग आग में हाथ सेंकने से बाज न आए. जितने मुंह उतनी बातें. कोई कहता, किसी लड़की के चक्कर में पड़ गया होगा. आजकल तो यह आम बात है. उसी में किसी प्रतिद्वंद्वी ने ठिकाने लगा दिया होगा. कोई कहता लूटपाट का चक्कर होगा.

‘‘2 दिन बीत जाने के बाद सभी ने यही राय दी कि पुलिस की सहायता ली जाए. तपन ने वह भी किया पर कोई पता न चला. बीतते दिनों के साथ उन की आशा की किरण धूमिल पड़ने लगी थी.

‘‘एक दिन तपन को कूरियर से एक पत्र मिला. उस में लिखा था, ‘आप का बेटा जीवित है.’ उन के हृदय में आशा की बुझती लौ को मानो तेल मिल गया. उन्होंने हाथ जोड़ कर प्रकृति को धन्यवाद दिया और सुनीता को यह समाचार दिया. उन्होंने भी तुरंत ही प्रकृति को धन्यवाद दिया. लेकिन शायद धन्यवाद देने में दोनों ने कुछ जल्दबाजी दिखा दी थी. आगे के समाचार ने उन्हें यथार्थ के जीवित होने की पुष्टि तो की पर आगे जो लिखा था वह कोई कम बड़ा आघात न था. उस में लिखा था कि उन का बेटा योगी आश्रम में है और उस ने आश्रम में दीक्षा ले ली है.

‘‘सुनीता बोलीं, ‘यह किसी ने झूठ लिखा है. अरे, मेरे यथार्थ ने मुझ से फोन पर बात कर के आने को कहा था और अचानक उस ने आश्रम में दीक्षा ले ली? यह नहीं हो सकता. उस का दीक्षा लेने का मन होता तो कभी तो हम से जिक्र करता. वह तो हम से अपने मन की हर बात कहता है.’

‘‘‘अब तो सच वहां जा कर ही मालूम होग, सुनीता,’ तपन ने चिंतातुर वाणी में कहा.

‘‘आश्रम के द्वार पर ही सुनीता, तपन और उन के साथ आए यथार्थ के मामा राजन और तपन के अभिन्न मित्र विकास को रोक दिया गया. तपन ने वह पत्र दिखाया जिस में लिखा था कि उन के हृदय के टुकड़े ने आश्रम में दीक्षा ले ली है.

‘‘वहां स्वामीजी के कुछ शिष्य थे. उन्होंने उन के आने का उद्देश्य पूछा. सुनीता ने कहा, ‘हम अपने बेटे को लेने आए हैं.’

‘‘इस पर वहां का मुख्य कार्यकर्ता अखिलानंद बोला, ‘पर उन्होंने दीक्षा ले ली है. अब वे आप के बेटे नहीं हैं, बल्कि यहां के दीक्षित प्रशिक्षु हैं. कुछ समय बाद वे संत की उपाधि पा जाएंगे.’

‘‘यह सुन कर सुनीता व्यग्र हो गईं. उन्होंने कहा, ‘ऐसे कैसे आप मेरे बेटे को मुझ से छीन सकते हैं? आप कौन होते हैं यह कहने वाले कि वह मेरा बेटा नहीं है?’

‘‘तपन ने कहा, ‘वह एक पढ़ालिखा इंजीनियर है. अभी तो उसे अपना कैरियर बनाना है. अभी कोई आयु है दीक्षा लेने की?’

‘‘इस पर विकास ने कहा, ‘अरे तपन, इन लोगों से बहस करने से क्या लाभ, पहले यथार्थ से मिलो, दूध का दूध पानी का पानी हो जाएगा.’

‘‘‘आप उन से नहीं मिल सकते,’ अखिलानंद ने कहा.

‘‘‘अरे, मेरा बेटा है और हम ही नहीं मिल सकते, आप कौन होते हैं हमें रोकने वाले?’

‘‘तभी अखिलानंद के एक साथी ने आ कर उस के कान में कुछ कहा. फिर अखिलानंद ने तपन से कहा, ‘आप लोग खुश हो जाएं स्वामीजी ने आज्ञा दी है कि आप लोगों को विश्वानंदजी से मिलवा दिया जाए.’

‘‘‘ये विश्वानंद कौन हैं, हम उन से मिलना नहीं चाहते. हमें, बस, अपने बेटे से मिलना है.’

‘‘‘जी, आप के जो बेटे थे उन का ही सांसारिक नाम त्याग कर नया नाम विश्वानंद रखा गया है.’

‘‘सुनीता को यह स्वीकार नहीं था. उन्होंने कहा, ‘आप के कहने से उस का नाम बदल जाएगा क्या? उस का नाम कानूनीरूप से यथार्थ है और वही रहेगा.’

‘‘तपन ने बात को विराम देते हुए कहा, ‘चलिए, पहले आप हमें उस से मिलवाइए.’

‘‘आखिलानंद और उस का वह साथी उन्हें आश्रम के पिछवाड़े एक गर्भकक्ष में ले गए जहां अंधकार पांव पसारे था. बस, एक रोशनदान से प्रकाश की रश्मियां घुसपैठ करने को प्रयासरत थीं वरना दिन या रात का निर्णय कठिन हो जाता.

‘‘अखिलानंद ने आवाज दी, ‘विश्वानंद, देखो कुछ लोग तुम से मिलना चाहते हैं.’

‘‘बैठे हुए व्यक्ति को देख कर आगंतुक कुछ क्षण तो हतप्रभ रह गए. कहां जींस पहने, बालों में जेल लगाए सुंदरस्मार्ट यथार्थ और कहां बाल मुंडाए गेरुए वस्त्र पहने यह युवक. पर मां की दृष्टि तो सात परदों में भी अपने बेटे को पहचान लेती है. उस ने यथार्थ को देख कर कहा, ‘बेटा, इन लोगों ने तुम्हारा यह क्या हाल किया है?’

‘‘‘आप कौन?’ यथार्थ ने सुनीता को देख कर कहा.

‘‘सुनीता को लगा मानो किसी ने उस के गाल पर तमाचा जड़ दिया हो. उस ने कहा, ‘मैं तेरी मम्मा, बेटू.’

‘‘‘मेरी कोई मां नहीं,’ यथार्थ ने कहा. उस की आंखें लाल हो रही थीं. वह आंखें नीची कर के बात कर रहा था.

‘‘तपन ने कहा, ‘बेटा, तुझे क्या हो गया है. मैं तेरा पापा, ये मम्मा, जरा होश में तो आ.’

‘‘पर यथार्थ ने उन की ओर दृष्टि नहीं उठाई. वह नीची दृष्टि किए हुए एक ही बात कह रहा था, ‘मैं किसी को नहीं जानता, मेरी कोई मां नहीं, कोई पिता नहीं.’

‘‘सुनीता ने उस का हाथ थामा तो उस ने झटक दिया और बोला, ‘मैं एक संत हूं. मैं सांसारिक लोगों से नहीं मिलता. मुझ से दूर रहें.’

‘‘‘बेटा, मैं तेरी मां हूं. इन लोगों ने तुझे बहका दिया है.’

‘‘इस पर वह खोईखोई वाणी में बोला, ‘मेरी मांपिता सब ऊपर वाला है. इस नश्वर संसार में मेरा कोई नहीं.’

‘‘सुनीता रो पड़ीं. वे तपन से बोलीं, ‘देखो, मेरे बेटे को क्या हो गया है. यह मुझे ही नहीं पहचान रहा है. जरूर इस पर किसी ने कोई जादूटोना कर दिया है.’ वे यथार्थ को हिलाने लगीं, अखिलानंद ने उन्हें रोक दिया, ‘आप इन्हें छू नहीं सकतीं. ये पवित्र आत्मा हो गए हैं.’

‘‘सुनीता बिगड़ गईं, ‘मैं, जिस ने उसे जन्म दिया है उस की मां, उसे छू नहीं सकती?’ उन्होंने यथार्थ से कहा, ‘बोल बेटा, बता दे इन्हें कि मैं तेरी मां हूं.’ पर वे लोग उन्हें और तपन वगैरा को जबरदस्ती बाहर ले आए और बोले, ‘बस, इस से ज्यादा आप उन से नहीं मिल सकते.’

‘‘विवशता में उन्हें वहां से आना पड़ा पर अपना बेटा कैसे खो सकते थे वे. दूसरे दिन अपने साथ 15-20 लोगों को ले कर वे फिर आश्रम गए. पर इस बार उन्हें अंदर जाने से ही रोक दिया गया. तपन के साथ यथार्थ के मित्र शिशिर और पवन भी थे. वे दोनों गुस्से में आ गए. उन्होंने जबरदस्ती अंदर जाने का प्रयास किया. उधर, स्वामीजी के शिष्यों का समूह बाहर आ गया. वे लोग इन्हें रोकने लगे जिस में आपस में हाथापाई की स्थिति आ गई. इसी हाथापाई में पवन को चोट लग गई और खून बहने लगा.

‘‘जब इन लोगों का अंदर जाने का प्रयास असफल हो गया, तो ये लोग वहीं धरना दे कर बैठ गए. और नारे लगाने लगे, ‘मेरा बेटा वापस दो, स्वामी जी हायहाय, धर्म के नाम पर धांधली नहीं चलेगी’ आदि.

‘‘इन के चारों ओर लोगों की भीड़ लग गई. जब आश्रम वालों ने देखा कि ये नहीं हट रहे हैं तो उन्होंने पुलिस को बुला लिया.

‘‘पुलिस ने स्वामीजी की शिकायत पर धरने वालों को हटाने का प्रयास किया तो इन लोगों ने आश्रम के विरुद्ध शिकायत की. इस पर पुलिस ने पूछताछ की. पर जब यथार्थ से पुलिस ने पूछा तो उस ने साफसाफ कह दिया कि वह अपनी इच्छा से आया है.

‘‘पुलिस इंस्पैक्टर ने तपन से कहा, ‘देखिए, आप का बेटा वयस्क है और यदि वह अपनी इच्छा से आश्रम में रह रहा है तो हम कुछ नहीं कर सकते.’

‘‘‘पर आश्रम वालों ने उस का ब्रेनवाश किया है, उसे बहका कर फंसाया है.’

‘‘‘जी, मैं सब समझ रहा हूं पर इस का कोई साक्ष्य नहीं है.’

‘‘तपन ने कहा, ‘पर आप हमें अपने ढंग से अपने बेटे को वापस लेने दीजिए.’

‘‘इंस्पैक्टर ने कहा, ‘देखिए तपनजी, मैं आप को अपने हाथ में कानून नहीं लेने दे सकता.’

‘‘सुनीता ने कहा, ‘यह कैसी बात है कि आप जानते हैं कि उन्होंने मेरे बेटे को बरगलाया है, वे गलत हैं और हम सही, फिर भी हमें ही रोक रहे हैं?’

‘‘‘देखिए, मन से हम आप के साथ हैं पर हम विवश हैं. कानून की सीमा के बाहर कुछ भी करना या करने देना हमारे लिए संभव नहीं. आप जो भी करें, कानून के अनुसार करें. कृपया आप लोग चले जाएं वरना हमें आप को जबरदस्ती हटाना पड़ेगा.’

‘‘तपन के साथ आए उन के मित्र ने उन्हें समझाया, ‘देखो, अगर पुलिस के चक्कर में पड़ गए तो हम दूसरी झंझटों में उलझ जाएंगे और यथार्थ को वापस कभी नहीं ला पाएंगे. इस से तो अच्छा है कि कुछ उपाय सोचो उसे वापस लाने का.’

‘‘‘‘पर मेरे बच्चे को हुआ क्या है? चलो, किसी झाड़फूंक वाले का पता करें,’ सुनीता ने कहा.

‘‘राजन ने कहा, ‘दीदी, टोटका नहीं, इन्होंने कोई नशा दिया है और इस का ब्रेनवाश किया है. देखा नहीं, उस की आंखें कैसी लाललाल थीं और वह अपनी सुध में नहीं लग रहा था.’

‘‘‘पर मेरे बच्चे ने इन का क्या बिगाड़ा था?’

‘‘‘कुछ नहीं, इन्हें अपना प्रचारप्रसार करने के लिए मेधावी और आकर्षक व्यक्तित्व के युवा चाहिए. ये इसी तरह मेधावी मगर सीधेसाधे बच्चों को फंसाते हैं.’

‘‘तपन ने कहा, ‘पर हम इन की चाल कामयाब नहीं होने देंगे. हम अपने बच्चे को लिए बिना वापस नहीं जाएंगे.’

‘‘तपन और सुनीता ने बहुत हाथपैर मारे, धरतीआकाश एक कर दिया पर वे दोबारा अपने बेटे की एक झलक भी नहीं पा सके. पता नहीं उसे उन लोगों ने कहां भेज दिया.

‘‘तपन ने पुलिस से संपर्क किया पर पुलिस ने भी पल्ला झाड़ दिया. वे एसपी तक के पास गए पर उन्होंने भी कहा, ‘देखिए, आप का बेटा वयस्क है और जब वह कह रहा है कि वह अपनी इच्छा से वहां रहना चाहता है तो हम उस में क्या कर सकते हैं?’

‘‘सुनीता ने कहा, ‘पर उन लोगों ने उसे कोई नशा दिया है, उस पर जादूटोना किया है. वरना जिस लड़के ने एक दिन पहले मुझ से कहा कि वह घर आ रहा है, अचानक आश्रम कैसे पहुंच गया?’

‘‘‘और तो और, उन लोगों ने उसे एक तहखाने में बंद कर रखा है यदि वह अपने मन से गया है तो उसे बंद तहखाने में किसी कैदी की तरह रखने की आवश्यकता क्या है?’ तपन ने कहा.

‘‘‘देखिए, आप की बात ठीक है पर जब हमारे इंस्पैक्टर गए थे तो आप का बेटा आश्रम में ही था. और उस ने स्वयं उन से कहा कि वह अपनी इच्छा से आश्रम में रहना चाहता है,’ एसपी ने कहा, ‘और बिना किसी साक्ष्य के हम क्या कर सकते हैं?’

‘‘सुनीता बोलीं, ‘आप टैस्ट करवाइए. वे मेरे बेटे को कोई नशा अवश्य देते हैं क्योंकि जब वह हम से मिला तो उस ने एक बार भी मेरी ओर नहीं देखा और अनायास ही उस की दृष्टि मुझ से मिली तो उस ने तुरंत हटा ली. पर मैं ने उस क्षणांश में ही देख लिया कि उस की आंखें लाल थीं और चढ़ी हुई थीं. वह सामान्य तो बिलकुल नहीं था.’

‘‘पर पुलिस ने साक्ष्य के अभाव में या संभवतया किसी दबाव में सहायता करने से मना कर दिया.

‘‘तपन को याद आया प्रभास. उस ने सोचा कि अभी तक उस ने क्यों नहीं सोचा प्रभास के बारे में. वह तो जनादेश चैनल में प्रोड्यूसर है. वह उस की सहायता कर सकता है. मीडिया साक्ष्य एकत्र करने में लग गई. पर प्रहरी इतने दृढ़ थे कि उन के दुर्ग में सेंध लगाना सरल न था. मीडिया ने साक्ष्य प्राप्त भी किए कि आश्रम में अफीम आती है. उस का अभियान धीरेधीरे सफलता के सोपान चढ़ रहा था कि अचानक एक दिन प्रभास के औफिस पर हमला हो गया और कई बहुमूल्य कैमरे आदि नष्ट कर दिए गए. फिर पता नहीं क्या हुआ कि प्रभास ने उस केस में धीरेधीरे रुचि लेनी बंद कर दी. एक दिन तपन ने उस से पूछा तो उलटे वह उन्हीं को समझाने लगा, ‘मेरी मानो तो तुम उसे भूल जाओ, जब तुम्हारा बेटा ही संन्यास लेना चाहता है तो क्या कर सकते हो, शायद प्रकृति यही चाहती है.’

‘‘सब ओर से हार कर तपन फिर स्वामीजी की शरण में गए उन से अपने बेटे की भीख मांगने. स्वामीजी ने मिलने से मना कर दिया. सब ओर से निराश हो कर तपन वापस लौटने को उठ खड़े हुए. तभी अखिलानंदजी से उन के साथी ने आ कर धीरे से कुछ कहा. अखिलानंद ने कहा, ‘आप खुश हो जाएं कि स्वामीजी को बेटे के प्रति आप की व्याकुलता देख कर दया आ गई.’

‘‘‘तो क्या वे यथार्थ को हमारे पास वापस भेज देंगे?’ तपन ने अधीर होते हुए पूछा.

‘‘‘नहीं, विश्वानंद तो हमारे आश्रम का अभिन्न अंग हैं. उन के प्रभावी व्यक्तित्व, ओजपूर्ण वाणी, और हिंदी व अंगरेजी दोनों में ही समानरूप से भाषण देने की क्षमता ने तो हम भक्तों की संख्या कई गुना बढ़ा दी है. वे तो हमारे लिए अनमोल हीरा हैं,’ अखिलानंद ने यथार्थ को दीक्षा देने का रहस्य उजागर किया. तपन की आशा की किरण फिर धूमिल होने लगी.

‘‘कुछ क्षण ठहर कर अखिलानंद बोले, ‘हां, यदि आप चाहें तो एक तरीका है अपने बेटे के पास रहने का?’

‘‘‘वह क्या?’ तपन ने कुछ न समझते हुए पूछा.

‘‘‘आप भी हमारे आश्रम में सेवा करें. दीक्षा ले कर अपनी संपत्ति आश्रम को दान कर दें. भगवत भजन करें. आराम से रहें और भक्तों के हृदय पर राज करें,’ अखिलानंद ने तपन के सामने प्रस्ताव रखा.

‘‘इस में दोनों का हित निहित था. सो, दोनों इस संधि प्रस्ताव से सहमत हो गए.

‘‘तपन का छोटा बेटा मलय, जो पायलट का प्रशिक्षण ले रहा था, इस सब से सहमत नहीं था. सो, उस ने अपने चाचा के साथ रहने का निर्णय ले लिया.’’

मलय के मुख से इस संधि प्रस्ताव के बारे में सुन कर अर्पिता हतप्रभ थी. 

लेखिका- अलका प्रमोद

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