जैकी श्रौफ, सुनील शेट्टी और महिमा चौधरी मेंटल हैल्थ अवेयरनेस में एकसाथ

Mental Health Awareness: मुंबई में ‘राइड टू ऐंपावर-मुंबई साइक्लोथोन 2025’ का रविवार को एमएमआरडीए ग्राउंड, बांद्रा कुर्ला कौंप्लेक्स (बीकेसी) में सफलतापूर्वक समापन हुआ. लोहे फाउंडेशन ने स्पोर्ट्स अथारिटी औफ इंडिया (एसएआई) के सहयोग से एफाईटी इंडिया मूवमेंट के तहत इस आयोजन को सफल बनाया. 6,000 से अधिक साइकिल चालकों ने इस कार्यक्रम में भाग लिया, जिन में शौकिया साइकिल चालक, पेशेवर एथलीट, परिवार और पैरा एथलीट सभी शामिल थे.

सशक्त प्रदर्शन

यह आयोजन मानसिक स्वास्थ्य जागरूकता के समर्थन में एकजुटता का एक सशक्त प्रदर्शन रहा. बौलीवुड के जानेमाने अभिनेता और फिटनैस आइकन सुनील शेट्टी, वरिष्ठ अभिनेता जैकी श्रौफ, श्रीकृष्ण प्रकाश (आईपीएस), एडीजी फोर्स वन, प्लानिंग ऐंड कोआर्डिनेटर और अभिनेत्री महिमा चौधरी ने इस साइक्लोथोन को हरी झंडी दिखाई.

इस प्रेरणादायक शुरुआत के साथ ही शहर की सब से बड़ी सामुदायिक राइड ने मानसिक स्वास्थ्य के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दोहराई.

भारत में बढ़ती मानसिक स्वास्थ्य चुनौतियों, खासकर युवाओं में, के बीच ‘राइड टू ऐंपावर मुंबई साइक्लोथोन’ जैसी पहल व्यापक जागरूकता फैलाने में अहम है.

खुली चर्चा

नीरजा बिरला द्वारा स्थापित भारत की अग्रणी मानसिक स्वास्थ्य संस्था एम-पावर ने इस आयोजन में भावनात्मक कल्याण पर खुली चर्चा को प्रोत्साहित किया. उन्होंने मानसिक बीमारियों से जुड़े कलंक को मिटाने और समय पर मदद लेने के महत्त्व पर जोर दिया.

एम-पावर ने इस ऊर्जाभरे सामुदायिक फिटनैस इवेंट के माध्यम से यह संदेश दृढ़ किया कि मानसिक स्वास्थ्य शारीरिक स्वास्थ्य जितनी ही महत्त्वपूर्ण है. संगठन का मानना है कि सामूहिक सामाजिक प्रयास वास्तविकता में सार्थक बदलाव ला सकते हैं. इस पहल ने जनता को मानसिक कल्याण के प्रति सक्रिय योगदान देने के लिए प्रेरित किया.

प्रमुख आकर्षण

इस कार्यक्रम का एक प्रमुख आकर्षण रहा इंडिया पोस्ट द्वारा जारी किया गया ‘राइड टू ऐंपावर मुंबई साइक्लोथोन’ का विशेष स्मारक कैंसिलेशन स्टैंप.

सुनील शेट्टी, महिमा चौधरी और इंडिया पोस्ट की नौर्थ डिविजन की प्रमुख दीपशिखा बिरला ने इस का अनावरण किया. यह विशेष कैंसिलेशन सिर्फ एक दिन के लिए जीपीओ, फोर्ट पर उपलब्ध था, जिस ने मानसिक स्वास्थ्य में इस आयोजन के योगदान को आधिकारिक मान्यता दी.

मुख्य श्रेणियां

साइक्लोथोन में 5 मुख्य श्रेणियां थीं : 100 किमी, 50 किमी, 25 किमी, 10 किमी और एक विशेष व्हीलचेयर राइड. सभी प्रतिभागियों को कस्टम साइक्लिंग जर्सी, फिनिशर मैडल, ई-टाइमिंग सर्टिफिकेट और व्यक्तिगत तसवीरें मिलीं। मार्ग पर हाइड्रेशन और मैडिकल सहायता की पूरी व्यवस्था थी.

आयोजन स्थल पर मानसिक स्वास्थ्य जागरूकता कियोस्क, ऊर्जावान जुंबा सत्र, लाइव म्यूजिक और स्वस्थ नाश्ता जोन जैसी सुविधाएं भी उपलब्ध थीं.

इस के अतिरिक्त लोकप्रिय चैरिटी बीआईबी पहल ने एम-पावर के मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रमों के लिए महत्त्वपूर्ण धन जुटाने में मदद की, जिस से इस नेक कार्य को और बल मिला.

पुरस्कार व सम्मान

पुरस्कार वितरण समारोह में अभिनेत्री निकिता दत्ता सहित कई जानीमानी हस्तियों ने विभिन्न श्रेणियों के विजेताओं को सम्मानित किया. इस दौरान ‘अपने मन के लिए चलें. अपने शहर के लिए चलें. बदलाव के लिए चलें’ के प्रेरणादायक नारे ने सभी को मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूक रहने और बदलाव लाने के लिए प्रेरित किया.

आदित्य बिड़ला ऐजुकेशन ट्रस्ट द्वारा समर्थित एम-पावर भारत की एक अग्रणी समग्र मानसिक स्वास्थ्य पहल है. नीरजा बिरला, जो एक विश्वस्तर पर मान्यताप्राप्त मानसिक स्वास्थ्य समर्थक है, ने इस की स्थापना की है. एमपावर का लक्ष्य एक ऐसा वातावरण बनाना है जहां मानसिक स्वास्थ्य संबंधी चुनौतियों का सामना कर रहे लोग और उन के देखभाल करने वाले बिना किसी भेदभाव या कलंक के पेशेवर सहायता, स्वीकृति और देखभाल प्राप्त कर सकें. बहु-विषयक हस्तक्षेपों और समग्र उपचारों के माध्यम से एम-पावर मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता बढ़ाने, इस से जुड़े सामाजिक कलंक को खत्म करने और पुनर्वास में मदद करने के लिए लगातार प्रतिबद्ध है.

वर्तमान में इस की क्लिनिकल सेवाएं मुंबई, बैंगलुरु, गोवा और पिलानी जैसे शहरों में उपलब्ध हैं.

Mental Health Awareness

Bridal Makeup में क्या है स्किन फर्स्ट ट्रेंड

Bridal Makeup: ब्राइडल मेकअप से पहले स्किन को तैयार करने का मतलब होता है कि अगर स्किन में किसी भी तरह की कोई समस्या है, अनइवन स्किनटोन है, डल, रूखी, अपनी चमक खो चुकी है तो उसे मेकअप से पहले तैयार कर लें ताकि वह चमकदार हो जाए और मेकअप स्किन पर खिल कर आए.

अपनी स्किन का टाइप पता करें

पहचानें की आप की औयल स्किन है, कौंबिनेशन है या सेंसिटिव स्किन. अपने स्किन टाइप को समझने से आप अपनी त्वचा के मुताबिक सही स्किन केयर प्रोडक्ट्स खरीद सकते हैं. औयली स्किन के लिए अलग मेकअप प्रोडक्ट्स आते हैं और मिक्स स्किन के लिए अलग. इसलिए उसी के अनुसार प्रोडक्ट खरीदें.

स्किन को क्लीन करें

स्किन को क्लीन करने के लिए जो आप को सूट करता हो वो क्लींजर यूज करें और स्किन को क्लीन करें. इस से धूल, मिटटी और गंदगी निकल जाएगी.

रैगुलर ऐक्सफोलिएट करें

ऐक्सफोलिएशन की मदद से डेड स्किन सेल्स साफ होते हैं और स्किन स्मूद हो जाती है. इस के आलावा कौंप्लेक्स भी ब्राइट होता है. यह स्टेप मेकअप वाले दिन से 2-3 दिन पहले करें, न कि ठीक मेकअप से पहले, क्योंकि इस से स्किन लाल हो सकती है. एक हलका फेस स्क्रब या ऐक्सफोलिएंट का इस्तेमाल करें.

ऐक्ने या हाइपरपिगमेंटेशन  की समस्या है तो क्या करें

अगर आप को ऐक्ने की दिक्कत है तो सेलिसिलिक एसिड या बेंजौयल पेराक्साइड युक्त प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल करें. हाइपरपिग्मेंटेशन या डार्क स्पौट्स के लिए विटामिन सी या निआसिनामिड युक्त प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल करें जिस से स्किन टोन ईवन हो सके.

टोनिंग

टोनिंग करने से स्किन का पीएच संतुलन बना रहता है और यह रोमछिद्रों को भी कसने का काम करता है. इस के लिए एक रुई के फाहे पर अलकोहल-फ्री टोनर ले कर चेहरे पर हलके से थपथपाएं. इसे सूखने दें.

फेस सीरम

फेस सीरम कभी भी सीधे चेहरे पर नहीं लगाना चाहिए बल्कि सब से पहले इस की कुछ बूंदें हाथों में ले कर और मसल कर ही फेस पर लगाना चाहिए. ऐसा करने से फेस सीरम आसानी से स्किन के अंदर तक चला जाता है. अपनी स्किन की जरूरतों के हिसाब से (जैसे ह्यलूरोनिक एसिड, विटामिन सी या नियासिनमाइड युक्त) फेशियल सीरम की कुछ बूंदें लें और चेहरे पर मालिश करें.

स्किन को हाइड्रेट और मोइस्चराइज करें

क्लींजिंग करने के बाद हाइड्रेटिंग टोनर का इस्तेमाल करें, जिस से स्किन का पीएच बैलेंस वापस लौट सके. इस के बाद मोइस्चराइजर लगाएं जो आप की स्किन को सूट करता हो और अपनी स्किन को हाइड्रेटेड रखें. कई बार फाउंडेशन लगाने से चेहरा बहुत ड्राई हो जाता है, इसलिए मोइस्चराइज लगाना सही रहता है क्योंकि यह स्किन में नमी को बनाए रखता है ताकि फाउंडेशन केक जैसा न लगे. मोइस्चराइजर को पूरे चेहरे और गरदन पर लगाएं. इसे 5-10 मिनट तक स्किन में समाने दें. इस के बाद ही फाउंडेशन का उपयोग करें.

सीटीएम करें

सीटीएम यानि क्लींजिंग, टोनिंग और मोइस्चराइजिंग, मेकअप शुरू करने से पहले इस प्रोसेस को जरूर कर लें. पूरे चेहरे में अच्छे से मोइस्चराइजर की लेयर जरूर लगाएं. इस से स्किन में नमी बनी रहेगी और मेकअप करते समय स्किन ड्राई नहीं होगी. इस के बाद पूरे फेस पर प्राइमर को जरूर लगाएं. प्राइमर स्किन और मेकअप के बीच एक बैरियर का काम करता है. यह मेकअप से होने वाले किसी भी तरह के दुष्प्रभाव से चेहरे को बचाता है और साथ ही साथ प्राइमर लगाने के बाद चेहरे के ओपन पोर्स को यह ब्लर आउट कर देता है जिस से मेकअप के लिए स्किन एक कैनवस की तरह तैयार हो जाता है. इतना ही नहीं, प्राइमर लगाने से मेकअप देर तक चेहरे पर टिका रहता है.

लौंग लास्टिंग मेकअप चुनें

शादी का दिन लंबा होता है और दुलहन को घंटों तक मेकअप के साथ रहना पड़ता है. ऐसे में लौंग-लास्टिंग और वाटरप्रूफ प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल करें. खासकर बेस मेकअप और आई मेकअप लंबे समय तक परफैक्ट दिखना चाहिए. इस से पसीना, रोशनी या लगातार मूवमेंट के बावजूद मेकअप नहीं बिगड़ता.

अंडर आई क्रीम

चेहरे के साथसाथ आंखों के आसपास की त्वचा का भी खयाल रखना बेहद जरूरी होता है. ऐसा इसलिए क्योंकि चेहरे की त्वचा के मुकाबले अंडर आई स्किन का पीएच लेवल अलगअलग होता है और अंडर आई एरिया काफी सेंसिटिव भी होता है.

प्राइमर

मेकअप लगाने से पहले एक प्राइमर का उपयोग करें, जो एक बैरियर का काम करता है, रोमछिद्रों को भरता है और मेकअप को लंबे समय तक टिकाए रखता है.

होंठों की देखभाल

फटे होंठों से बचने के लिए एक पौष्टिक लिपबाम लगाएं. शिया बटर, कोको बटर या बीसवैक्स जैसे इंग्रीडिएंट्स वाला लिपबाम इस्तेमाल करें. लिपबाम को हर रोज अच्छी तरह से लगाएं खासतौर से जब सोने जा रहे हों तब जरूर लगाएं. इस से होंठ हाइड्रेटेड रहेंगे.

लिपबाम या लिपस्टिक एसपीएफ से भरपूर वाली ही लगाएं, जो होंठों को सूरज की हार्मफुल यूवी किरणों से बचा सके.

Bridal Makeup

Family Kahani: बड़ी आपा- नसीम के किस बात से घर में कोहराम मचा

Family Kahani: तार पर नजर पड़ते ही नसीम बौखला गया. उस का हृदय बड़ी तीव्रता से धड़का. लगा, हलक से बाहर आ जाएगा. किसी तरह उस ने अपनेआप को संभाला और तार ले कर घर के अंदर बढ़ गया.

घर में सुरैया और अम्मी ने खाने से निवृत्त हो कर अभी हाथ ही धोए थे कि नसीम के लटके मुंह को देख कर उस की अम्मी पूछ बैठीं, ‘‘क्या बात है, नसीम, दफ्तर नहीं गए?’’

‘‘अम्मी..’’ कहने के साथ ही नसीम की आंखें भीग गईं, ‘‘असद भाई कल सुबह दिन का दौरा पड़ने से चल बसे. यह तार आया है.’’

नसीम का इतना कहना था कि घर में कुहराम मच गया. उस की बीवी सुरैया और अम्मी बिलखबिलख कर रो पड़ीं. दुख तो नसीम को भी बहुत था, लेकिन किसी तरह उस ने अपनेआप को संभाला तथा सुरैया और अम्मी को जल्दी से तैयार होने को कह कर अपने दफ्तर को चल दिया. दफ्तर से उस ने 3 दिन की छुट्टी ली और घर लौट आया. तब तक सुरैया और अम्मी तैयार हो चुकी थीं.

वह रिकशा ले आया और अम्मी तथा सुरैया को ले कर बस अड्डे को रवाना हो गया.

7 वर्ष पूर्व शमीम आपा की शादी असद भाई के साथ हुई थी. असद भाई अपने घर में सब से बड़े थे. घर का सारा बोझ उन्हीं के कंधों पर था. शमीम आपा को पा कर असद भाई अपने सारे गम भूल गए. शमीम आपा ने अपनी बुद्धिमानी से घर की सारी जिम्मेदारी संभाल ली थी और घर की चिंता से उन्हें पूरी तरह मुक्त कर दिया था.

सीधे और सरल स्वभाव के असद भाई रोजे, नमाज के बड़े कायल थे. इस के अतिरिक्त सभी धार्मिक कार्यों में रुचि लेते थे. हर जुम्मेरात को मजार पर जाना, अगरबत्ती सुलगाना उन का पक्का नियम था. उन के उसी नियम के कारण शमीम आपा को भी उन के कार्यों में शामिल होना पड़ता था. धीरेधीरे यही आदत उन के जीवन का अंग बन गई थी.

यों तो असद भाई और शमीम आपा के जीवन में कोई अभाव नहीं था, लेकिन शादी के 7 वर्ष बीत जाने पर भी उन के कोई संतान पैदा नहीं हुई थी. इस के कारण कभीकभी वे बेहद दुखी हो जाते थे. इस का कारण हमेशा ही वह मियां, फकीरों को बताते थे. कहते थे, फलां फकीर या मियां उन से नाराज हैं. इसी कारण उन्हें औलाद का मुंह देखना नसीब नहीं हुआ है.

उधर उन के दोनों छोटे भाइयों के यहां 3-3 बच्चे थे. शमीम आपा ने जोर डाल कर डाक्टर को दिखाया था. डाक्टर से आधाअधूरा इलाज भी करवाया था. लेकिन लाभ होने से पहले ही छोड़ दिया गया, क्योंकि उन के अंदर भी यह अंधविश्वास बैठ गया था कि उन से कोई मियां नाराज हैं.

यही कारण था जब नसीम की शादी की बात आई तो उस की अम्मां ने पूरी होशियारी बरती थी. शमीम आपा तो सिर्फ मजहबी तालीम हासिल करने वाली लड़की को ही बहू बनाना चाहती थीं. लेकिन नसीम और उस की अम्मी की जिद के कारण ही सुरैया के साथ नसीम का निकाह हुआ था.

सुरैया इंटर तक शिक्षा प्राप्त सुलझे विचारों की लड़की थी. अपने छोटे से घर को उस ने आते ही व्यवस्थित कर लिया था.

अपनी इच्छा पूरी न होने के कारण बड़ी आपा नाराज हो कर अपनी ससुराल वापस लौट गई थीं तथा बहुत कोशिशों के बाद भी नसीम की शादी में शरीक नहीं हुई थीं.

पिछले 2 वर्षों से उन्होंने अपने मायके की सूरत भी नहीं देखी थी. सुरैया की सूरत से भी वह नफरत करती थीं.

अपने भाई और अम्मी को सामने देख कर शमीम आपा के धैर्य का बांध टूट गया. वह उन से लिपट कर फूटफूट कर रो पड़ीं. किसी तरह अम्मी ने समझाया, ‘‘बेटी, सब्र से काम लो. जो होना था सो हो गया. अब रोने से असद तो वापस आ नहीं सकता.’’

शमीम आपा की आंखें रोने के कारण सूज गई थीं. कई बार गम से वह बेहोश हो जाती थीं. सुरैया साए की भांति उन के साथ रहती थी. वह उन्हें दिलासा देती रहती.

तीसरे दिन नसीम सुरैया को ले कर लौट आया था. अम्मी शमीम आपा के पास ही रुक गई थीं. अभी उन्हें सहारे की आवश्यकता थी. नसीम चाहता था शमीम आपा को अपने साथ घर ले जाए. लेकिन अभी इद्धत (40 दिन तक घर से बाहर न निकलना) होना बाकी था.

घर पहुंचते ही नसीम गहरी सोच में डूब गया था. असद भाई की असमय मृत्यु ने उसे विचलित कर दिया था. उसे मालूम था, असद भाई की मृत्यु के बाद उन के भाई शमीम आपा को अपने साथ रखने से रहे. फिर वह स्वयं भी शमीम आपा को उन लोगों की मेहरबानी पर नहीं छोड़ना चाहता था.

उसे उदास और खोया देख कर सुरैया पूछ बैठी, ‘‘आप कुछ परेशान लगते हैं. मुझे बताइए, आखिर बात

क्या है?’’

‘‘आपा के बारे में सोच रहा था, सुरैया,’’ नसीम बोला, ‘‘भरी जवानी में वह विधवा हो गई हैं. शादी का सुख भी उन्हें न मिल सका.’’

‘‘हां, आप ठीक कहते हैं,’’ सुरैया ने एक गहरी सांस ली. फिर बोली, ‘‘लेकिन आप अधिक परेशान न हों. शमीम आपा को हम अपने साथ ही रखेंगे.’’

‘‘सुरैया,’’ नसीम ने आश्चर्य से कहा, ‘‘तुम्हें तो मालूम है, आपा तुम्हें पसंद नहीं करतीं.’’

‘‘तो क्या हुआ? मैं कोशिश करूंगी तो आपा मुझे पसंद करने लगेंगी.’’ सुरैया मुसकराई.

नसीम प्रसन्नता से सुरैया को देखता रह गया. उसे विश्वास हो गया, सुरैया शमीम आपा को जीने का सलीका सिखा देगी. एक बोझ सा उस ने अपने ऊपर से उतरता हुआ महसूस किया.

सवा महीने बाद शमीम आपा अम्मी के साथ अपने भाई के पास आ गईं. सुरैया ने उन्हें हाथोंहाथ लिया. उसे अपनी ननद से पूरी हमदर्दी थी. अब शमीम आपा हमेशा खामोश, उदास, परेशान सी रहती थीं. उन के होंठों की हंसी जैसे हमेशा के लिए मुरझा गई थी. सुरैया हमेशा उन का दिल बहलाने की कोशिश करती रहती थी.

एक दिन अचानक रात को चीखपुकार सुन कर नसीम और सुरैया की आंख खुल गई. कमरे से बाहर आ कर उन्होंने देखा तो चौंक पड़े. शमीम आपा अपने कमरे में बिस्तर पर पड़ी गहरीगहरी सांसें ले रही थीं. उन की आंखें बुरी तरह सुर्ख हो रही थीं. उन के पास ही घबराई हुई अम्मी खड़ी थीं.

‘‘क्या हुआ, अम्मी? क्या बात है?’’ नसीम ने पूछा.

‘‘सोतेसोते अचानक चीखने लगी, ‘अरे, मुझे बचाओ…मार डालेंगे…मार डालेंगे.’’ अम्मी ने बताया.

नसीम की समझ में कुछ नहीं आया. उस ने शमीम आपा से कुछ पूछना चाहा लेकिन वह कुछ भी बताने में असमर्थ थीं. उस रात फिर घर के किसी भी व्यक्ति को एक पल भी नींद नहीं आई.

सुबह को जब शमीम आपा की तबीयत कुछ ठीक दिखाई दी तो नसीम ने पूछा, ‘‘रात क्या हुआ था, आपा?’’

आपा ने एक गहरी सांस ली और बोली, ‘‘भैया, रात स्वप्न में तुम्हारे दूल्हा भाई मेरा गला दबा रहे थे. कह रहे थे, ‘तू सब मियां, फकीरों को भूल गई. किसी भी मजार पर नहीं जाती. हर जुम्मेरात को मजार पर नहीं जाएगी तो मैं तेरा जीना हराम कर दूंगा.’’’

नसीम ने एक गहरी सांस ली. वह समझ गया, ये सब बीती बातें हैं. इसी कारण उन्हें यह सब स्वप्न में दिखाई दिया.

अगली जुम्मेरात आने से पहले

ही एक रात को शमीम आपा फिर

चीख पड़ीं. पूरी रात वह रोती रहीं. नसीम और सुरैया ने किसी तरह उन्हें चुप कराया.

दिन निकला तो वह बोलीं, ‘‘मैं अब हर जुम्मेरात को मजार पर जाया करूंगी, नहीं तो वह मुझे जान से मार देंगे.’’

नसीम ने उन्हें इजाजत दे दी. उस ने अपने मन में सोचा, 2-4 बार मजार पर जाएंगी और इन के दिमाग से भ्रम निकल जाएगा तो वह आपा को समझा देगा. वह इन बातों को बिलकुल पसंद नहीं करता था. अंधविश्वास से उसे बुरी तरह चिढ़ थी.

अब आपा ने हर जुम्मेरात को मजार पर जाना शुरू कर दिया था. हर जुम्मेरात को आपा अच्छेअच्छे पकवान बनातीं और मजार पर जा कर नियाज दिलातीं.

नसीम चुपचाप खामोशी से सब कुछ देखता रहता. लेकिन 15 दिन में ही जब उस का वेतन इन खर्चों में समाप्त हो गया तो उसे अपने पैरों तले की जमीन खिसकती हुई सी प्रतीत हुई.

उस ने आपा को समझाना चाहा तो आपा भड़क उठीं. सारे दिन वह रोती रहीं. आपा का रोना अम्मी से न देखा गया तो वह भी नसीम को बुराभला कहने लगीं.

नसीम का परेशानी से बुरा हाल था. लेकिन वह किसी तरह सब्र कर रहा था. किसी तरह उस ने आपा को समझाया, ‘‘आपाजान, आप ही सोचो, एक मामूली सा क्लर्क हूं. मैं कोई बड़ा आदमी तो हूं नहीं, जो इस तरह से खर्च सहन करूं. लेकिन फिर भी आप थोड़ा सोचसमझ कर खर्च करें तो अच्छा होगा.’’

शमीम आपा पर उस के समझाने का इतना असर अवश्य हुआ कि खर्च में उन्होंने कुछ कमी कर दी, लेकिन मजार पर जाना कम नहीं किया.

नसीम इधर बेहद परेशान रहने लगा था. उस का बचत किया हुआ पैसा धीरेधीरे समाप्त होता जा रहा था. उधर सुरैया अपने पहले बच्चे को जन्म देने वाली थी. उसे अस्पताल में भरती कराना था, जिस के लिए रुपयों की आवश्यकता थी.

मानसिक परेशानियों के कारण एक  दिन उस की साइकिल स्रद्ध स्कूटर से टक्कर होतेहोते बची. वह तो संयोग की बात थी कि उस की साइकिल स्कूटर की टक्कर खा कर स्कूटर के आगे आ कर गिरने के स्थान पर विपरीत दिशा में गिरी जिस के कारण नसीम के हाथपैर में मामूली सी ही चोटें आईं.

सुरैया तो बेहद घबरा गई थी. शमीम आपा ने सुना तो बोलीं, ‘‘भैया, यह सब बुजुर्गों की बेअदबी के कारण हुआ है. तुम उन की अवमानना जो कर रहे थे.’’

‘‘ऐसी बातें तो मत करो, आपा,’’ सुरैया चीख पड़ी थी, ‘‘अपने ही भाई का बुरा चाहती हो? खुदा न करे उन्हें कुछ हो.’’

सुरैया की बातें सुन कर शमीम आपा रोने लगीं, ‘‘मैं तो हूं ही बुरी. मैं तो अपने भाई का बुरा ही चाहती हूं.’’

बड़ी मुश्किल से अम्मी और नसीम ने आपा को चुप कराया.

सुरैया नसीम की परेशानी को समझ गई थी. उस ने मन ही मन शमीम आपा को सही राह पर लाने की सोच ली. कई दिन तक वह योजनाएं बनाती रही. एक दिन उस के दिमाग में एक तरकीब आ ही गई.

उस रात को जब सब सो रहे थे तो अचानक सुरैया चीख पड़ी, ‘‘अरे बचाओ, मुझे भाई मार डालेंगे. अरे मेरा गला दबा रहे हैं.’’

घबरा कर शमीम आपा और अम्मी सुरैया के कमरे में पहुंचीं तो देखा सुरैया बुरी तरह चीख रही है. उस के बाल बिखरे हुए थे. वह किसी तरह संभल नहीं रही थी, हालांकि नसीम उसे बिस्तर पर बैठाने की कोशिश कर रहा था.

अचानक नसीम का बंधन ढीला पड़ गया तो सुरैया चीखती हुई शमीम आपा की ओर बढ़ी, ‘‘मैं तुझे जान से मार दूंगा,’’ अब वह पुरुषों की भाषा में बोलने लगी थी, ‘‘अरे, खापी कर मोटी भैंस हो रही है. तुझ से एक दिन यह भी न हुआ कि पांचों वक्त की नमाज पढ़े, रमजान रखे.’’

शमीम आपा का चेहरा भय से पीला पड़ गया था. वह हाथ जोड़ कर बोली, ‘‘आगे से मैं ऐसा ही करूंगी, जैसा आप कहते हैं.’’

‘‘करेगी कैसे नहीं,’’ सुरैया चीखी, ‘‘मैं तेरा जीना हराम कर दूंगा. और सुन, अब तुझे मजार पर जाने की कोई आवश्यकता नहीं. तेरे मजार पर जाने से बेपरदगी होती है जो मुझे स्वीकार नहीं.’’

किसी तरह अम्मी और नसीम ने सुरैया को काबू में किया. पूरी रात वह चीखतीचिल्लाती रही. कभी हंसने लगती तो कभी रोने लगती.

दिन निकलने पर बड़ी मुश्किल से सुरैया सो सकी. दोपहर बाद वह सो कर उठी. उस दिन घर का सारा कार्य शमीम आपा को करना पड़ा. सो कर उठने के बाद सुरैया पहले की तरह ही सामान्य थी. उस से अम्मी ने पूछा, ‘‘रात तुझे क्या हो गया था?’’

लेकिन उस ने कुछ भी बताने से इनकार कर दिया. वह बोली, ‘‘मैं तो आराम से सोती रही हूं.’’

इस से शमीम आपा और अम्मी को विश्वास हो गया कि रात सुरैया पर असद भाई की रूह का असर था. उस दिन से शमीम आपा बेहद घबराईघबराई सी रहने लगीं. उन्होंने 10 दिन से पांचों वक्त की नमाज पढ़नी शुरू कर दी. एक दिन सुरैया ने चाहा कि वह उन्हें मजार पर ले जाए, लेकिन आपा इतनी बुरी तरह डरी हुई थीं कि उन्होंने मजार पर जाने से इनकार कर दिया.

इस तरह पूरे 6 महीने गुजर गए. इस बीच सुरैया ने एक सुंदर से शिशु को जन्म दिया. शमीम आपा में इस बीच काफी परिवर्तन आ गया था. अब वह पहले के समान उदास और परेशान नहीं रहती थीं. अब उन के चेहरे पर हमेशा मुसकराहट सी रहती थी. मजार आदि पर जाना वह बिलकुल भूल गई थीं.

एक दिन नसीम दफ्तर से लौटा तो सुरैया बोली, ‘‘एक बात कहूं, बुरा तो नहीं मानेंगे आप?’’

‘‘हां, बोलो, क्या बात है?’’ नसीम ने कहा.

‘‘मैं ने सोचा है कि शमीम आपा का घर बस जाए तो अच्छा होगा.’’

‘‘क्या कह रही हो, सुरैया?’’ नसीम चौंक पड़ा, ‘‘जमाना क्या कहेगा? लोग कहेंगे एक विधवा बहन का बोझ भी नहीं उठाया जा सकता.’’

‘‘हमें लोगों से कुछ लेनादेना नहीं है. हमें आपा की खुशियां देखनी हैं. औरत मर्द के बिना अधूरी है,’’ सुरैया बोली.

सुरैया की बात सुन कर नसीम गहरी सोच में डूब गया. काफी सोचनेसमझने के बाद वह इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि सुरैया की बात सही है. उस ने उसी दिन से आपा के लिए शौहर की तलाश शुरू कर दी.

शीघ्र ही उसे लतीफ मियां जैसे नेक और शरीफ व्यक्ति का पता मिल गया. लतीफ मियां एक स्कूल में अध्यापक थे. उन की पत्नी का कई वर्ष पूर्व देहांत हो गया था. एक छोटी सी बच्ची थी. नसीम ने तुरंत रिश्ता पक्का कर दिया. पहले तो शमीम आपा ने थोड़ा इनकार किया, लेकिन फिर निकाह के लिए राजी हो गईं.

ईद के महीने में नसीम ने शमीम आपा और लतीफ मियां का निकाह कर दिया. जब शमीम आपा की विदाई का समय आया तो सुरैया उन के गले लग गई और बोली, ‘‘आपाजान, मैं आप को किसी धोखे में रखना नहीं चाहती. उस रात जब मुझ पर असर हुआ था, वह सब एक नाटक था. सिर्फ आप का अंधविश्वास समाप्त करने के लिए मुझे ऐसा करना पड़ा. मुझे उम्मीद है, मेरी इस गलती को आप माफ कर देंगी.’’

‘‘भाभी, तुम ने गलती कहां की थी?’’ शमीम आपा बोलीं, ‘‘तुम ने जो कुछ भी किया मेरे भले के लिए किया. अगर तुम ऐसा न करतीं तो मैं आज भी उन्हीं अंधविश्वासों से लिपटी होती.’’

सुरैया मुसकरा पड़ी. अम्मी और सुरैया ने हंस कर बड़ी आपा को विदा कर दिया.

शमीम आपा का निकाह हुए 2 वर्ष बीत गए थे. आपा अपने जीवन से हर तरह से संतुष्ट थीं. लतीफ मियां ने उन्हें कभी कोई शिकायत का अवसर नहीं दिया था. जब भी आपा का दिल घबराता था वह अपनी अम्मी और भाभी से मिलने उन के घर आ जाती थीं. आपा को सुखी देख कर नसीम और अम्मी को बेहद प्रसन्नता होती. सुरैया तो शमीम आपा को देख कर फूल के समान खिल जाती थी.

एक दिन नसीम दफ्तर से लौटा तो बेहद प्रसन्न था. आते ही अपनी अम्मी और सुरैया से बोला, ‘‘अम्मीजान, एक खुशखबरी, शमीम आपा के घर चांद सा बेटा आया है.’’

‘‘सच,’’ दोनों ने आश्चर्यमिश्रित खुशी के साथ पूछा.

‘‘हां, अम्मीजान,’’ नसीम बोला, ‘‘आज लतीफ भाई दफ्तर में आए थे और मुझे यह खबर दे गए.’’

उसी समय तीनों तैयार हो कर शमीम आपा को बधाई देने उन के घर जा पहुंचे.

सुरैया अधिक देर अपने कुतूहल को न छिपा सकी. पूछ ही बैठी, ‘‘आपाजान, आप तो कहती थीं आप से मियां नाराज हैं, इसी कारण आप को संतान नहीं होती. लेकिन यहां आ कर तो सब उलटा ही हो गया. क्या मियां आप से खुश हो गए?’’

नजदीक ही बैठे लतीफ मियां ने सुरैया की बात पर एक ठहाका लगाया और बोले, ‘‘सुरैया, यह सब इन के अंधविश्वास का कारण था. असद मियां को एक लंबे इलाज की आवश्यकता थी. लेकिन वह अपने अंधविश्वास के कारण यह सब नहीं कर सके. उन्हें विश्वास था वह नियाज दिलवा कर, मजारों पर जा कर अपने लिए संतान मांग लेंगे. लेकिन क्या मजारों से भी संतानें मिली हैं?’’

उन्होंने शमीम आपा की तरफ देखा तो उन्होंने शरमा कर मुंह दूसरी ओर कर लिया.

Family Kahani

Short Story: नीली झील में गुलाबी कमल- ईशानी ने कौनसा प्रस्ताव रखा था

Short Story: ईशानी अपनी दीदी शर्मिला से बहुत प्यार करती थी. शर्मिला भी हमेशा अपनी ममता उस पर लुटाती रहती थी, तभी तो वह जबतब हमारे घर आ जाया करती थी. जब मैं ने शुरूशुरू में शर्मिला को देने के लिए एक पत्र उस के हाथों में सौंपा था, तब वह मात्र 12 वर्ष की थी. वह लापरवाह सी साइकिल द्वारा इधरउधर बेरोकटोक आयाजाया करती थी. मेरा और शर्मिला का गठबंधन कराने में ईशानी का ही हाथ था. जाति, बिरादरी से भरे शहर में हम दोनों छिपछिप कर मिलते रहे, लेकिन किसी को पता ही न चला. ईशानी ने एक दिन कहा, ‘‘तुम दोनों में क्या गुटरगूं चल रही है… मां को बता दूं?’’

उस की चंचल आंखों ने मानो हम दोनों को चौराहे पर ला खड़ा कर दिया. किसी तरह शर्मिला ने अंधेरे में तीर मार कर मामला संभाला, ‘‘मैं भी मां को बता दूंगी कि तू टैस्ट में फेल हो गई है.’’ वह सहम गई और विवाह तक उस ने हम लोगों की मुहब्बत को राज ही रहने दिया.

बड़ी बहन होने के नाते शर्मिला ने ईशानी की टीचर से मिल कर उस के इतिहासभूगोल के अंक बढ़वाए और पास करवा दिय?. शर्मिला ही ईशानी की देखरेख करती, सो, दोनों में मांबेटी जैसा ममतापूर्ण स्नेह भी पनपता रहा. अपनी सहेलियों से मजाक करतेकरते ईशानी दावा कर दिया करती थी, ‘मैं शर्मिला दीदी को ‘मां’ कह सकती हूं.’ यह बात मेरे दोस्त की बहन ने बताई थी, जो ईशानी की सहेली थी. समय ने करवट ली. एक दिन बाजार से लौटते समय ईशानी की मां को एक तीव्र गति से आती हुई कार ने धक्का दे दिया. उन्हें अस्पताल ले जाया गया, परंतु बिना कुछ कहे, बताए वे संसार से विदा हो गईं. ईशानी के बड़े भाई प्रशांत का इंजीनियरिंग का अंतिम वर्ष था. वह किशोरी अपने बड़े भैया को समझाती रही, तसल्ली देती रही, जैसे परिवार में वह सब से बड़ी हो.

उस की मां ने अपने पति के रहते हुए ही तीनों बच्चों में संपत्ति का बंटवारा करवा लिया था. इस से उन लोगों के न रहने पर भी आपस में मधुर संबंध बने रहे. मैं परिवार का बड़ा बेटा था. मुझ से छोटी 2 बहनें सुधा, सीमा हाई स्कूल और इंटर बोर्ड की तैयारी कर रही थीं. मैं बैंक में नौकरी करता था. पिता बचपन में ही चल बसे थे. मां ने अपनेआप को अकेलेपन से बचाने के लिए एक प्राइमरी स्कूल में पढ़ाने का काम ले लिया था. कुल मिला कर जीवन आराम से चल रहा था.

एक दिन ईशानी बोली, ‘‘होने वाले जीजाजी, अब आप लोग जल्दी से शादी कर लीजिए.’’

मैं ने पूछा, ‘‘ऐसा क्यों कह रही हो… क्या भैया ने कुछ कह दिया है.’’

‘‘नहीं,’’ वह बोली, ‘‘बात यह है कि कल मामाजी आए थे. भैया ने उन से दीदी के लिए लड़का ढूंढ़ने को बोला है.’’

‘‘तो क्या हुआ, हम तुझ से शादी कर लेंगे.’’ यह सुन कर वह ऐसे मुसकराई जैसे मुझे बच्चा समझ रही हो. मैं ने झेंपते हुए उस से कहा, ‘‘फिर क्या करें? मेरे घर में तो सब मान जाएंगे… हां, तुम्हारे भैया…’’

‘‘उन को मैं मनाऊंगी,’’ वह चुटकी बजाते हुए हंसती हुई चली गई.

पता नहीं उस ने भैया को कौन सी घुट्टी पिलाई कि वे एक बार में ही हम लोगों का विवाह करने को राजी हो गए.

ईशानी हमारे यहां आतीजाती रहती थी और भैया के समाचार देती रहती थी. भैया इंजीनियर के पद पर नियुक्त हुए तो उस दिन वह बहुत खुश हुई और आ कर मुझ से लिपट गई. फिर झेंपती हुई अपनी दीदी के पास चली गई. हाई स्कूल का फार्म भरते समय ईशानी ने अभिभावक के स्थान पर भैया का नाम न लिख कर मेरा लिखा था. तब मैं ने उस से कहा, ‘‘ईशानी, गलती से तुम ने यहां मेरा नाम लिख दिया है.’’ ‘‘वाह जीजाजी, आप तो अपुन के माईबाप हो, मैं ने तो समझबूझ कर ही आप का नाम लिखा है,’’ कहते हुए वह खिलखिला पड़ी थी.

मेरे पिता बनने का समाचार भी ईशानी ने ही मुझे दिया था. पर मैं ने इस बात को सामान्यतौर पर ही लिया था.

‘‘जीजाजी, आज हम सब इस खुशी में आइसक्रीम खाएंगे,’’ वह चहक रही थी.

शर्मिला भी बोली, ‘‘सच तो है, चलिए…आज सब लोग आइसक्रीम खाएंगे.’’

‘‘ठीक है, आइसक्रीम खिला देंगे पर मैं तो इतनी बड़ी घोड़ी का बाप पहले से ही बना दिया गया हूं. तब तो किसी ने कुछ खिलाने की बात नहीं की,’’ मैं ने ईशानी की ओर देख कर कहा.

मेरी बात पर वह जोर से हंस पड़ी. फिर बोली, ‘‘बगल में खड़ी हो जाऊं तो आधी घरवाली लगूंगी और उंगली पकड़ लूं तो…’’

शर्मिला ने मीठी झिड़की दी, ‘‘चल हट, यह मुंह और मसूर की दाल…’’

मेरी बहन सुधा के विवाह में उस की विदाई पर ईशानी मुझे सांत्वना दे रही थी, ‘‘बेटियां तो पराए घर जाती ही हैं.’’

सीमा प्रेमविवाह करना चाहती थी, पर मां इस के लिए तैयार नहीं थीं, तब मैं ईशानी की बात सुन कर दंग रह गया. वह मां को समझा रही थी, ‘‘आप सीमा से नाराज मत होइए. आप के जो भी अरमान रह गए हों, मेरी शादी में पूरे कर लीजिएगा. आप जैसी कहेंगी मैं वैसी ही शादी करूंगी और जिस से कहेंगी, उस से कर लूंगी. बस, अब आप शांत हो जाइए.’’ मैं ने वातावरण को सहज करने के लिए मजाक किया, ‘‘मां कहेंगी, बच्चों के बापू से विवाह कर लो तो करना पड़ेगा…’’

मैं कई वर्षों बाद बेटे का बाप बना था. इस सुख ने मुझे अंदर से पुलकित और पूर्ण बना दिया था. बेटे का नाम रखना था, सो, सब ने अपनेअपने सोचे हुए नाम सुझाए पर निश्चित नहीं हो पा रहा था कि किस के द्वारा सुझाया हुआ नाम रखा जाए. फिर तय किया गया कि सब बारीबारी से बच्चे के कान में नाम का उच्चारण करेंगे, जिस के नाम पर वह जबान खोलेगा उसी का सुझाया गया नाम रखा जाएगा. सब से पहले शर्मिला ने उस का नाम लिया, ‘विराट’, सुधा ने ‘विक्रम’, सीमा ने ‘राघव’, मां ने पुकारा, ‘पुरुषोत्तम’. आखिर में ईशानी की बारी थी. उस ने बच्चे के कान के पास फूंक मारी और ‘अंकित’ कहते ही वह ‘ममम…ऊं…अं…मम…’ गुनगुना उठा.

सब लोग हंस पड़े, तालियां बज उठीं. मेरे मुंह से अनायास ही निकल गया, ‘‘ईशानी, तू ने आधी घरवाली का रोल अदा किया है.’’ य-पि सुधा को यह अच्छा नहीं लगा था, परंतु मां का चेहरा दमक रहा था. वे बोलीं, ‘‘मौसी है न, मां ही होती है, गया भी तो मौसी पर ही है.’’

सुधा से न रहा गया. वह बोली, ‘‘सब कुछ मौसी का ही लिया है, क्या बात है ईशानी?’’ इस मजाक में य-पि सुधा की चिढ़ छिपी थी पर ईशानी झेंप गई थी. उस की झुकीझुकी पलकें मर्यादा से बोझिल थीं, परंतु होंठों की मुसकराहट में गौरव की झलक थी, ‘‘हां, मुझे मौसी होने पर गर्व है.’’

शर्मिला बीमार पड़ी तो पता चला कि उसे कैंसर ने दबोच लिया है. हम सब लोगों के तो जैसे हाथपांव ही फूल गए. एक ईशानी ही सब को दिलासा दे रही थी. अंकित की देखभाल अब ईशानी ही करती थी.

एक दिन ईशानी डाक्टर के सामने रो पड़ी, ‘‘डाक्टर साहब, मेरी दीदी को बचा लीजिए.’’ मृत्यु के पूर्व शर्मिला का चेहरा चमकने लगा था. उस के कष्ट जैसे समाप्त ही हो गए थे. ईशानी यह देख कर खुश थी. लेकिन उसे क्या पता था कि मृत्यु इतनी निकट आ गई है. ईशानी अंकित को पैरों पर बिठा कर झुला रही थी, ‘‘बता, तू मुझे दीदी कहेगा या मौसी? बता न, तू मुझे दीदी कहेगा… हां…’’

मैं आरामकुरसी पर बैठा आंखें मूंदे सोने की चेष्टा कर रहा था. पर ईशानी की तोतली बोली में ‘दीदी’ का संबोधन सुन कर मन ही मन हंस पड़ा. मां पास बैठी थीं, बोलीं, ‘‘ईशानी, नीचे गद्दी रख ले, गीला कर देगा,’’ और उन्होंने गद्दी उठा कर उसे दे दी. ईशानी गद्दी रखते हुए दुलार से अंकित से बोली, ‘‘अगर तू दीदी कहेगा तो गीला नहीं करना, मौसी कहेगा तो गीला…’’ मैं हंस पड़ा, ‘‘तुम मौसी हो तो मौसी ही कहेगा न.’’

शर्मिला की सहेलियां उस से मिल कर जा चुकी थीं. भैया भी आ गए थे. शाम हो गई, पर अंकित ने गद्दी गीली नहीं की थी. मां बोलीं, ‘‘देखो तो इस अंकू को, आज गद्दी गीली ही नहीं की.’’ ईशानी जूस बना रही थी, झट से देखने आ गई, ‘‘अरे, वाह, यह हुई न बात.’’ फिर मुझे आवाज दे कर बोली, ‘‘जीजाजी, देखिए, अंकू ने गद्दी गीली नहीं की,’’ और फिर खुद ही झेंप गई. उसी रात साढ़े 11 बजे शर्मिला हम सब से विदा हो गई. अंदर से मैं पूरी तरह ध्वस्त हो गया था, परंतु कुछ ऐसा अनुभव कर रहा था कि ईशानी मुझ से भी ज्यादा बिखर कर चूरचूर हो गई है. उस की गंभीर आंखें देख कर मेरा मन और भी उदास होने लगता. मैं अपना दुख भूल कर उसे समझाने की चेष्टा करता, परंतु वह मेरे सामने पड़ने से कतरा जाती.

समय बीतने लगा. अंकित ईशानी के बिना नहीं रहता था. वह उसे कईकई दिनों के लिए अपने साथ ले जाने लगी. मैं ही अंकित से मिलने चला जाता. अंकित का जन्मदिन आने वाला था. मां अपनी योजनाएं बनाने लगीं. सुधा, सीमा को भी निमंत्रण भेजा गया. ईशानी और मैं बड़े पैमाने पर जन्मदिन मनाने के पक्ष में नहीं थे. पर मां का कहना था कि वे अपने पोते के जन्मदिन पर शानदार दावत देंगी.

मां और ईशानी का विवाद चल रहा था. ऐसा लग रहा था कि मां खिसिया गई हैं, तभी उन्होंने यह प्रस्ताव रख दिया, ‘‘ईशानी, तुम जब अंकित पर इतना अधिकार समझती हो तो उसे सौतेला बेटा बनने से बचा लो,’’ और वे रोने लगीं. सब चुप थे. शीघ्र ही मां ने धीरेधीरे कहा, ‘‘तुम एक बार यहां इस की मां बन कर आ जाओ, बेटी. अंकित अनाथ होने से बच जाएगा…’’ ईशानी उठ कर चली गई थी. वह अंकित के जन्मदिन पर भी नहीं आई. अंकित रोता, चिड़चिड़ाता, बीमार पड़ा, तब भी वह नहीं आई. मां अंकित की देखरेख करती थक जातीं. मेरा बेटा ईशानी के बिना नहीं रह सकता, यह मैं जानता था. वह निरंतर दुर्बल होता जा रहा था. क्या करें, कुछ समझ नहीं आ रहा था. लगभग 2 माह बीत गए. फिर इस विषय पर कोई बातचीत न हुई. एक शाम मैं उदास बैठा ईशानी के बारे में ही सोच रहा था. साथ ही, मां के प्रस्ताव की भी याद आ गई. लेकिन मैं ने ईशानी को कभी उस नजर से नहीं देखा था. मुझे उम्मीद नहीं थी कि विशाल नभ के नीचे फैली नीली नदी में भी झील उतर सकती है और उस में गुलाबी कमल खिल सकते हैं.

तभी भैया को आते देखा तो मैं उठ खड़ा हुआ, ‘‘आइए, मां देखो तो, भैया आए हैं.’’ मां झट से अंकित को गोद में उठाए आ गईं.

भैया ने कहा, ‘‘यह पत्र ईशानी ने दिया है,’’ और वह पत्र मेरे हाथ में दे दिया.

मैं कुछ घबरा गया, ‘‘सब ठीक तो है न, भैया?’’ ‘‘हां, सब ठीक ही है,’’ कहते हुए उन्होंने अंकित को गोद में ले लिया, ‘‘मैं इसे ले जा रहा हूं. घुमा कर थोड़ी देर में ले आऊंगा,’’ और वे अंकित को ले कर चले गए. ‘‘क्या बात है बेटा, देखो तो क्या लिखा है? मालूम नहीं, वह क्या सोच रही होगी, मुझे ऐसा प्रस्ताव नहीं रखना चाहिए था. सचमुच उस दिन से मैं पछता रही हूं. वह घर नहीं आती तो अच्छा नहीं लगता…’’ और मां की आंखों में आंसू आ गए. मैं ने पत्र खोला. उस में लिखा था…

‘मां, मैं बहुत सोचविचार कर, भैया से पूछ कर फैसला कर रही हूं. मुझे आप का प्रस्ताव स्वीकार है, ईशानी.’ मुझे अचानक महसूस हुआ जैसे सचमुच नीली झील में गुलाबी कमल खिल गए हैं.

Short Story

Emotional Story: मां- क्या मीरा को छोड़ कर चला गया सनी

Emotional Story: तीसरी बार फिर मोबाइल की घंटी बजी थी. सम झते देर नहीं लगी थी मीरा को कि फिर वही राजुल का फोन होगा. आज जैसी बेचैनी उसे कभी महसूस नहीं हुई थी. सनी भी तो अब तक आया नहीं था. यह भी अच्छा है कि उस के सामने फोन नहीं आया. मोबाइल की घंटी लगातार बजती जा रही थी. कांपते हाथों से उस ने मोबाइल उठाया-‘‘हां, तो मीरा आंटी, फिर क्या सोचा आप ने?’’ राजुल की आवाज ठहरी हुई थी.‘‘तुम फिर एक बार सोच लो,’’ मीरा ने वे ही वाक्य फिर से दोहराने चाहे थे.

‘मेरा तो एकमात्र सहारा है सनी, तुम्हारा क्या, तुम तो किसी को भी गोद ले सकती हो.’’‘‘अरे, आप सम झती क्यों नहीं हैं? किसी और में और सनी में तो फर्क है न. फिर मैं कह तो रही हूं कि आप को कोई कमी नहीं होगी.’’ ‘‘देखो, सनी से ही आ कर कल सुबह बात कर लेना,’’ कह कर मीरा ने फोन रख दिया था. उस की जैसे अब बोलने की शक्ति भी चुकती जा रही थी.यहां मैं इतनी दूर इस शहर में बेटे को ले कर रह रही हूं. ठीक है, बहुत संपन्न नहीं है, फिर भी गुजारा तो हो ही रहा है. पर राजुल इतने वर्षों बाद पता लगा कर यहां आ धमकेगी, यह तो सपने में भी नहीं सोचा था. बेटे की इतनी चिंता थी, तो पहले आती.अब जब पालपोस कर इतना बड़ा कर दिया, बेटा युवा हो गया तो… एकाएक फिर  झटका लगा था.

यह क्या निकल गया मुंह से, क्यों कल सुबह आने को कह दिया, सनी तो चला ही जाएगा, वियोग की कल्पना करते ही आंखें भर आई थीं. सनी उस का एकमात्र सहारा.पिछले 3 दिनों से लगातार फोन आ रहे थे राजुल के. शायद यहां किसी होटल में ठहरी है, पुराने मकान मालिक से ही पता ले कर यहां आई है. और 3 दिनों से मीरा का रातदिन का चैन गायब हो गया है. पता नहीं कैसे जल्दबाजी में उस के मुंह से निकल गया कि यहां आ कर सनी से बात कर लेना. यह क्या कह दिया उस ने, उस की तो मति ही मारी गई.‘‘मां, मां, कितनी देर से घंटी बजा रहा हूं, सो गईं क्या?’’ खिड़की से सनी ने आवाज दी, तब ध्यान टूटा.‘‘आई बेटा, तेरा ही इंतजार कर रही थी,’’ हड़बड़ा कर उठी थी मीरा.‘‘अरे, इंतजार कर रही थीं तो दरवाजा तो खोलतीं. देखो, बाहर कितनी ठंड है,’’ कहते हुए अंदर आया था सनी, ‘‘अब जल्दी से खाना गरम कर दो, बहुत भूख लगी है और नींद भी आ रही है.’’किचन में आ कर भी विचारतंद्रा टूटी नहीं थी मीरा की. अभी बेटा कहेगा कि फिर वही सब्जी और रोटी,

कभी तो कुछ और नया बना दिया करो. पर आज तो जैसेतैसे खाना बन गया, वही बहुत है.‘‘यह क्या, तुम नहीं खा रही हो?’’ एक ही थाली देख कर सनी चौंका था.‘‘हां बेटा, भूख नहीं है, तू खा ले, अचार निकाल दूं?’’‘‘नहीं रहने दो, मु झे पता था कि तुम वही खाना बना दोगी. अच्छा होता, प्रवीण के घर ही खाना खा आता. उस की मां कितनी जिद कर रही थीं. पनीर, कोफ्ते, परांठे, खीर और पता नहीं क्याक्या बनाया था.’’मीरा जैसे सुन कर भी सुन नहीं पा रही थी.‘‘मां, कहां खो गईं?’’ सनी की आवाज से फिर चौंक गई थी.‘‘पता है, प्रवीण का भी सलैक्शन हो गया है. कोचिंग से फर्क तो पड़ता है न, अब राजू, मोहन, शिशिर और प्रवीण सभी चले जाएंगे अच्छे कालेज में. बस मैं ही, हमारे पास भी इतना पैसा होता, तो मैं भी कहीं अच्छी जगह पढ़ लेता,’’ सनी का वही पुराना राग शुरू हो गया था.‘

‘हां बेटा, अब तू भी अच्छे कालेज में पढ़ लेना, मन चाहे कालेज में ऐडमिशन ले लेना, बस, सुबह का इंतजार.’’‘‘क्या? कैसी पहेलियां बु झा रही हो मां. सुबह क्या मेरी कोईर् लौटरी लगने वाली है, अब क्या दिन में भी बैठेबैठे सपने देखने लगी हो. तबीयत भी तुम्हारी ठीक नहीं लग रही है. कल चैकअप करवा दूंगा, चलना अस्पताल मेरे साथ,’’ सनी ने दो ही रोटी खा कर थाली खिसका दी थी.‘‘अरे खाना तो ढंग से खा लेता,’’ मीरा ने रोकना चाहा था.‘‘नहीं, बस. और हां, तुम किस लौटरी की बात कर रही थीं?’’ ‘‘हां, लौटरी ही है, कल सुबह कोई आएगा तु झ से मिलने.’’‘‘कौन? कौन आएगा मां,’’ सनी चौंक गया था.‘‘तू हाथमुंह धो कर अंदर चल, फिर कमरे में आराम से बैठ कर सब सम झाती हूं.’’मीरा ने किसी तरह मन को मजबूत करना चाहा था. क्या कहेगी किस प्रकार कहेगी.‘‘हां मां, आओ,’’ कमरे से सनी ने आवाज दी थी.मन फिर से भ्रमित होने लगा. पैर भी कांपे. किसी तरफ कमरे में आ कर पलंग के पास पड़ी कुरसी पर बैठ गई थी मीरा.‘‘क्या कह रही थीं तुम, किस लौटरी के बारे में?’’ सनी का स्वर उत्सुकता से भरा हुआ था. मीरा ने किसी तरह बोलना शुरू किया,

‘‘बेटा, मैं आज तु झे सबकुछ बता रही हूं, जो अब तक बता नहीं पाई. तेरी असली मां का नाम राजुल है, जोकि बहुत बड़ी प्रौपर्टी की मालिक हैं. उन की कोई और औलाद नहीं है. वे अब तु झे लेने आ रही हैं,’’ यह कहते हुए गला भर्रा गया था मीरा का और आंसू छिपाने के लिए मुंह दूसरी ओर मोड़ लिया था उस ने.मां, आप कह क्या रही हो, मेरी असली मां कोई और है. तो अब तक कहां थी, आई क्यों नहीं?’’ सनी सम झ नहीं पा रहा था कि आज मां को हुआ क्या है? क्यों इतनी बहकीबहकी बातें कर रही हैं.‘‘हां बेटा, तेरी असली मां वही है. बस, तु झे जन्म नहीं देना चाह रही थी तो मैं ने ही रोक दिया था और कहा था कि जो भी संतान होगी, मैं ले लूंगी. मेरे भी कोईर् औलाद नहीं थी. मैं वहीं अस्पताल में नर्स थी. बस, तु झे जन्म दे कर और मु झे सौंप कर वह चली गई.’’‘‘अब तू जो भी सम झ ले. हो सके तो मु झे माफ कर दे. मैं ने अब तक तु झ से यह सब छिपाए रखा था. मेरे लिए तो तू बेटे से भी बढ़ कर है. बस, अब और कुछ मत पूछ,’’ यह कहते फफक पड़ी थी मीरा और जोर की रुलाई को रोकते हुए कमरे से बाहर निकल गई.अपने कमरे में आ कर गिर रुलाई फूट ही पड़ी थी. सनी उस का बेटा इतने लाड़प्यार से पाला उसे.

कल पराया हो जाएगा. सोचते ही कलेजा मुंह को आने लगता है. कैसे जी पाएगी वह सनी के बिना. इतना दुख तो उसे अपने पति जोसेफ के आकस्मिक निधन पर भी नहीं हुआ था. तब तो यही सोच कर संतोष कर लिया था कि बेटा तो है उस के पास. उस के सहारे बची जिंदगी निकल जाएगी. यही सोच कर पुराना शहर छोड़ कर यहां आ कर अस्पताल में नौकरी कर ली थी. तब क्या पता था कि नियति ने उस के जीवन में सुख लिखा ही नहीं. तभी तो, आज राजुल पता लगाते हुए यहां आ धमकी है. शायद वक्त को यही मंजूर होगा कि सनी को अच्छा, संपन्न परिवार मिले, उस का कैरियर बने, तभी तो राजुल आ रही है. बेटा भी तो यही चाहता है कि उसे अच्छा कालेज मिले. अब कालेज क्या, राजुल तो उसे ऐसे ही कई फैक्ट्री का मालिक बना देगी.ठीक है, उसे तो खुश होना चाहिए. आखिर, सनी की खुशी में ही तो उस की भी खुशी है. और उस की स्वयं की जिंदगी अब बची ही कितनी है, काट लेगी किसी तरह.लेकिन अपने मन को लाख उपाय कर के भी वह सम झा नहीं पा रही थी. पुराने दिन फिर से सामने घूमने लगे थे. तब वह राजुल के पड़ोस में ही रहा करती थी. राजुल के पिता नगर के नामी व्यवसायी थे.

उन्हीं के अस्पताल में वह नर्स की नौकरी कर रही थी. राजुल अपने पिता की एकमात्र संतान थी. खूब धूमधाम से उस की शादी हुई पर शादी के चारपांच माह बाद ही वह तलाक ले कर पिता के घर आ गईर् थी. तब उसे 3 माह का गर्भ था. इसीलिए वह एबौर्शन करा कर नई जिंदगी जीना चाह रही थी. इस काम के लिए मीरा से संपर्क किया गया. तब तक मीरा और जोसेफ की शादी हुए एक लंबा अरसा हो चुका था और उन की कोई संतान नहीं थी.मीरा ने राजुल को सम झाया था. ‘तुम्हारी जो भी संतान होगी, मैं ले लूंगी. तुम एबौर्शन मत करवाओ.’ बड़ी मुश्किल से इस बात के लिए राजुल तैयार हुई थी. और बेटे को जन्म दे कर ही उस शहर से चली गई. बेटे का मुंह भी नहीं देखना चाहा था उस ने.सनी का पालनपोषण उस ने और जोसेफ ने बड़े लाड़प्यार से किया था. राजुल की शादी फिर किसी नामी परिवार के बेटे से हो गई थी और वह विदेश चली गई थी.यह तो उसे राजुल के फोन से ही मालूम पड़ा कि वहां उस के पति का निधन हो गया और अब वह अपनी जायदाद संभालने भारत आ गई है, चूंकि निसंतान है, इसलिए चाह रही है कि सनी को गोद ले ले, आखिर वह उसी का तो बेटा है.

मीरा समझ नहीं पा रही थी कि नियति क्यों उस के साथ इतना क्रूर खेल खेल रही है. सनी उस का एकमात्र सहारा, वह भी अलग हो जाएगा, तो वह किस के सहारे जिएगी.आंखों में नींद का नाम नहीं था. शरीर जैसे जला जा रहा था. 2 बार उठ कर पानी पिया.सुबह उठ कर रोज की तरह दूध लाने गई, चाय बनाई. सोचा, कमरा थोड़ा ठीकठाक कर दे, राजुल आती होगी. सनी को भी जगा दे, पर वह जागा हुआ ही था. उसे चाय थमा कर वह अपने कमरे में आ गई. बेटे को देखते ही कमजोर पड़ जाएगी. नहीं, वह राजुल के सामने भी नहीं जाएगी.जब राजुल की कार घर के सामने रुकी, तो उस ने उसे सनी के ही कमरे में भेज दिया था. ठीक है, मांबेटा आपस में बात कर लें. अब उस का काम ही क्या है? वैसे भी राजुल के पिता के इतने एहसान हैं उस पर, अब किस मुंह से वह सनी को रोक पाएगी. पर मन था कि मान ही नहीं रहा था और राजुल और सनी के वार्त्तालाप के शब्द पास के कमरे से उस के कानों में पड़ भी रहे थे.‘‘बस बेटा, अब मैं तु झे लेने आ गईर् हूं. मीरा ने बताया था कि तू अपने कैरियर को ले कर बहुत चिंतित है.

पर तु झे चिंता करने की कोई जरूरत नहीं. करोड़ों की जायदाद का मालिक होगा तू,’’ राजुल कह रही थी.‘‘कौन बेटा, कैसी जायदाद, मैं अपनी मां के साथ ही हूं, और यहीं रहूंगा. ठीक है, बहुत पैसा नहीं है हमारे पास, पर जो है, हम खुश हैं. मेरी मां ने मु झे पालपोस कर बड़ा किया है और आप चाहती हैं कि इस उम्र में उन्हें छोड़ कर चल दूं. आप होती कौन हैं मेरे कैरियर की चिंता करने वाली, कैसे सोच लिया आप ने कि मैं आप के साथ चल दूंगा?’’ सनी का स्वर ऊंचा होता जा रहा था.इतने कठोर शब्द तो कभी नहीं बोलता था सनी. मीरा भी चौंकी थी. उधर, राजुल का अनुनयभरा स्वर, ‘‘बेटे, तू मीरा की चिंता मत कर, उन की सारी व्यवस्था मैं कर दूंगी. आखिर तू मेरा बेटा ही है, न तो मैं ने तु झे गोद दिया था, न कानूनीरूप से तेरा गोदनामा हुआ है. मैं तेरी मां हूं, अदालत भी यही कहेगी मैं ही तेरी मां हूं. परिस्थितियां थीं, मैं तु झे अपने पास नहीं रख पाई. मीरा को मैं उस का खर्चा दूंगी. तू चाहेगा तो उसे भी साथ रख लेंगे.

मु झे तेरे भविष्य की चिंता है. मैं तेरा अमेरिका में दाखिला करा दूंगी, यहां तु झे सड़ने नहीं दूंगी. तू मेरा ही बेटा है.’’ ‘‘मत कहिए मु झे बारबार बेटा, आप तो मु झे जन्म देने से पहले ही मारना चाहती थीं. आप को तो मेरा मुंह देखना भी गवारा नहीं था. यह तो मां ही थीं जिन्होंने मु झे संभाला और अब इस उम्र में वे आप पर आश्रित नहीं होंगी. मैं हूं उन का बेटा, उन की संभाल करने वाला, आप को चिंता करने की जरूरत नहीं है, सम झीं? और अब आप कृपया यहां से चली जाएं, आगे से कभी सोचना भी मत कि मैं आप के साथ चल दूंगा.’’सनी ने जैसे अपना निर्णय सुना दिया था. फिर राजुल शायद धीमे स्वर में रो भी रही थी. मीरा सम झ नहीं पा रही थी कि क्या कह रही है.तभी सनी का तेज स्वर सुनाई दिया, ‘‘मैं जो कुछ कह रहा हूं, आप सम झ क्यों नहीं पा रही हैं. मैं कोई बिकाऊ कमोडिटी नहीं हूं. फिर जब आप ने मु झे मार ही दिया था तो अब क्यों आ गई हैं मु झे लेने. मैं बालिग हूं, मु झे अपना भविष्य सोचने का हक है. आप चाहें तो आप भी हमारे साथ रह सकती हैं. पर मैं, आप के साथ मां को छोड़ कर जाने वाला नहीं हूं. आप मु झे भी सम झने की कोशिश करें. मेरा अपना भी उत्तरदायित्व है.

जिस ने मुझे पालापोसा, बड़ा किया, मैं उसे इस उम्र में अंधकार में नहीं छोड़ सकता. कानून आप की मदद नहीं करेगा. दुनिया में आप की बदनामी अलग होगी. आप भी शांति से रहें, हमें भी रहने दें. आप मु झे सम झने की कोशिश करें. अब मैं और कुछ कहूं और अपशब्द निकल जाएं मेरे मुंह से, मेरी रिक्वैस्ट है, आप चली जाएं. सुना नहीं आप ने?’’ सनी की आवाज फिर और तेज हो गई थी.इधर, राजुल धड़ाम से दरवाजा बंद करते हुए निकल गई थी. फिर कार के जाने की आवाज आई. मीरा की जैसे रुकी सांसें फिर लौट आई थीं. सनी कमरे से बाहर आया और मां के गले लग गया और बोला, ‘‘मेरी मां सिर्फ आप हो. कहीं नहीं जाऊंगा आप को छोड़ कर.’’ मीरा को लगा कि उस की ममता जीत गई है.

Emotional Story

Best Hindi Story: हाईवे का प्रेम- शिवांगी ने कैसे सिंदूरा का पर्दाफाश किया

Best Hindi Story: सिंदूरा शाह, बैंगलुरु शहर में रेस्तरां के बिजनैस में एक उभरता हुआ नाम था. वह एक महत्त्वाकांक्षी औरत थी और अन्य शहरों में भी रेस्तरां खोलना चाहती थी.

सिंदूरा एक बड़ी बिजनैस आइकोन बनना चाहती थी पर वह जानती थी कि मर्दों की बनाई इस दुनिया में मर्दों के बीच रह कर उन्हें पछाड़ना कितना कठिन है और इस के लिए सिर्फ मेहनत ही काफी नहीं है बल्कि उसे सफलता पाने के लिए उस के पास मौजूद हर चीज को इस्तेमाल करना आना चाहिए.

रेस्तरां के बिजनैस का गुर उसे अपने पिताजी से विरासत में मिला था, सिंदूरा ने उनके द्वारा दिए गए एकमात्र रेस्तरां को 2 और फिर 3 में तबदील किया था.सिंदूरा शाह 45 साल की अविवाहितमहिला थी. उस ने शादी क्यों नहीं करी इस का उत्तर कोई नहीं जानता सिवा सिंदूरा के.

शायदउसे उस के मन का कोई पुरुष मिला नहीं था.पर इस उम्र में भी सिंदूरा बहुत आकर्षक दिखती थी. उस की ताजगी और सुंदरता देख कर लोग हैरानी में पड़ जाते थे. गोरा रंग और गहरी काली आंखें तथा तीखी सी नाक.

अपने गोरे शरीर पर जब सिंदूरा स्लीवलैस ब्लाउज पहनती और साड़ी को नाभि प्रदर्शना ढंग से बांधती तो बहुत आकर्षक लगती.अपनी इस खूबसूरती को अपने व्यवसाय की प्रगति के लिए बखूबी इस्तेमाल करती थी सिंदूरा.

वह अगर साड़ी का पल्लू अपने कंधेपर सजाना जानती  तो उसे गिरा कर अपनेजिस्म को दिखा कर भरपूर फायदा भी उठाना जानती थी.सिंदूरा ठीक इसी रेस्तरां की तर्ज पर एक और रेस्तरां शहर से बाहर जाने वाले हाईवे पर खोलना चाहती थी और इस के लिए वह हाईवेपर जमीन खरीदने के लिए प्रयासरत थी पर हर बार उसे निराशा ही हाथ लगती थी क्योंकि इस एरिए का प्रौपर्टी डीलर शुभांग सिंह जमीन को बेचना नहीं चाहता था, सिंदूरा ने कई बार अपने आदमियों को शुभांग के पास भेजा पर कोईलाभ नहीं हुआ.

प्रौपर्टी डीलर जमीन के मुद्दे पर कोई बात नहीं करना चाहता था क्योंकि वह जानता था कि मौके की जमीन को जितना देरमें बेचा जाए उतनी ही कीमत बढ़ने का अवसर रहता है.जब सिंदूरा को और कोई रास्ता नहीं सूझ तब उस ने शुभांग से डाइरैक्ट मिल कर बात करने की बात सोची और एक दिन शुभांग के औफिस पहुंच गई.

शुभांग सिंह एक 38 वर्षीय विवाहित और काफी आकर्षक व्यक्ति था जो अपने औफिस में अपनी रिवौल्विंग चेयर पर बैठा हुआ काम कर रहा था. उस की आंखों पर चश्मा लगा हुआ था और उस ने अपने कंधे तक के लंबे बालों को ऊपर की ओर कस कर एक जूडे़ की शक्ल में बांधा हुआ था.

जिस तरह से उस ने सिंदूरा को ऊपर से नीचे तक घूरा था उस से सिंदूरा समझ गई कि वह खूबसूरती का पारखी है और उस का काम आसान होने वाला है.औपचारिक परिचय के बाद दोनों के बीच काम की बातचीत शुरू हुई पर सिंदूरा को झटका तब लगा जब शुभांग ने सिंदूरा को हाईवे वाली जमीन को बेचने से साफ मना कर दिया. सिंदूरा ने दोगुनी कीमत देने को कहा पर फिर भी शुभांग सिंह राजी नहीं हुआ.

सिंदूरा ने बहुत कोशिश करी पर शुभांग सिंह टस से मस नहीं हुआ. सिंदूरा हार कर अपने औफिस आ गई. उस ने कौफी मंगवाई और कुरसी पर बैठ कर सोचने लगी कि कैसे शुभांग सिंह से हाईवे वाली जमीन ली जाए, काम कठिन था और शुभांग भी अडि़यल मालूम होता है, पर थोड़ा दिमाग लगाने के बाद ही सिंदूरा को एक आइडिया आ ही गया.

शुभांग सिंह सोशल मीडिया पर अपने बिजनैस से संबंधित जानकारी अपलोड करता रहता था. सिंदूरा ने उस की सोशल मीडिया पोस्ट को लाइक और कमैंट करना शुरू कर दिया. उस के कमैंट्स तारीफ भरे और चुटकीलापन लिए होते थे.

इस के अलावा सिंदूरा ने शुभांग के व्हाट्सऐप नंबर पर गुड मौर्निंग और सुविचार जैसे मैसेज भी भेजने शुरू कर दिए जिन के बदले शुभांग सिंह भी कभीकभी रिप्लाई कर देता.एक रात शुभांग सिंह के मोबाइल पर सिंदूरा के नंबर से फोटोज की शक्ल में लगातार 3 मैसेज आए पर इस से पहले कि शुभांग उन्हें देख पाता, सिंदूरा ने वे मैसेज डिलीट कर दिए पर एक फोटो डिलीट न हो सका तो उस ने घबराए से स्वर में शुभांग को फोन किया कि उस के मोबाइल पर सिंदूरा की कुछ निजी तसवीरें फौरवर्ड हो गई हैं जिन में से 2 तो डिलीट हो गई हैं पर एक किसी तकनीकी दिक्कत के कारण डिलीट नहीं हो पा रही है इसलिए वह प्लीज उसे न देखे और बिना देखे ही डिलीट कर दे.

मगर बिना देखे तो कुछ डिलीट हो भी नहीं सकता और फिर मनुष्य का स्वभाव होता है कि जो काम उसे करने के लिए मना किया जाए उसे  वह अवश्य करता है. शुभांग सिंह भी कोई अपवाद नहीं था इसलिए उस ने फौरन अपने मोबाइल में सिंदूरा के भेजे गए मैसेज को देखा. उसे देख कर वह दंग रह गया. यह सिंदूरा की एक ऐसी तसवीर थी जिस में वह लाल रंग की बिकिनी पहने थी और उस का गोरा शरीर गजब ढा रहा था. शुभांग सिंह हुस्न का पारखी था.

वह कई लड़कियों के साथ हमबिस्तर हो चुका था इसलिए सिंदूरा की ऐसी तसवीर देख कर वह उस के जिस्म को चूमने के लिए उतावला हो गया और  सिंदूरा के साथ रात गुजारने का मौका ढूंढ़ने लगा.कुछ दिन और बीते. इस बीच सिंदूरा ने शुभांग को हाईवे वाली जमीन के लिए टटोला पर वह तस से टस नहीं हुआ. लेकिन आज शुभांग सिंह को वह मौका मिल ही गया जिस की उसे तलाश थी.

वे दोनों एक पार्टी में मिले और शुभांग सिंह ने पार्टी समाप्त होने के बाद सिंदूरा को अपनी बड़ी सी गाड़ी में लिफ्ट औफर करी जिसे सिंदूरा ने मुसकरा कर स्वीकार कर लिया और अपने ड्राइवर को आंख के इशारे से गाड़ी घर ले जाने को कह दिया.शुभांग सिंह और सिंदूरा दोनों शहर से बाहर बने शुभांग के फार्महाउस पर पहुचे. यह एक शानदार जगह थी.

चारों तरफ रातरानी के फूलों की महक फैली थी और रंगबिरंगी रोशनी से हरा लौन एक नए ही रंग में नजर आ रहा था. दूसरी तरफ पूल में भरा पानी और उस पानी पर तैरते हुए टिमटिमाते दीए अलग ही माहौल बना रहे थे. शुभांग और सिंदूरा बैडरूम में न जा कर वहीं लौन में फूस से बनी एक गोल झोंपड़ी में बैठ गए जहां पर महंगी शराब और गोश्त का इंतजाम पहले से ही था.

शुभांग ने गोश्त खाया और शराब भी पी जबकि सिंदूरा ने सिर्फ शराब पी और गोश्त खाने से परहेज किया.शराब पीते समय शुभांग सिंदूरा के भीगे हुए होंठों को चूम भी ले रहा था. धीरेधीरे सिंदूरा की आंखें नशीली हो गईं और शुभांग उस पर छाता चला गया. दोनों जोश में थे. शुभांग ने सिंदूरा के कपड़ों को उतारने में देर नहीं करी.

सिंदूरा ने पहले तो शरमाने का अभिनय किया पर बाद में वह खुद सहज हो गई. चालक सिंदूरा ने इस सारे दृश्य को अपने मोबाइल में कैद कर लिया ताकि शुभांग को ब्लैकमेल कर के हाईवे वाली जगह हासिल कर सके.आधे घंटे बाद कमरे में आया तूफान ठंडा पड़ चुका था.

सिंदूरा ने जीवन में पहली बार किसी पुरुष के साथ को जीया था. कितना अच्छा था यह क्षणभर का आनंद, पर जैसे ही इसे जीना चाहा यह छूटता सा गया और मन फिर दोबारा इसी क्षण की मांग करने लगा. इस समय सिंदूरा द बिजनैस वूमन कहीं खो गई थी और जो बिस्तर पर निढाल पड़ी थी वह एक औरत थी.सिंदूरा ने देखा कि शुभांग के लंबे बाल बिखरे हुए थे और उस की आंखें भी गहन तृप्ति के भाव से भरी हुई थीं.

यह ठीक वही पल था जब सिंदूरा के मन में शुभांग के प्रति प्रेम का अंकुर फूटा और उस ने कुछ सोचते हुए मोबाइल में शूट की गई क्लिप्स को एक मुसकराहट के साथ डिलीट कर दिया.‘‘अब मुझे घर जाना होगा नहीं तो बीवी घर से बाहर कर देगी,’’ शुभांग ने नाटकीयता दिखाते हुए कहा और कपड़े पहनने लगा. सिंदूरा मुसकरा कर रह गई.

अगली शाम सिंदूरा को फोन कर केशुभांग ने बताया कि उस की खूबसूरती और बिस्तर पर उस की परफौर्मैंस देख कर वह सिंदूरा को हाईवे वाली जगह उसे देने को तैयार है. अब वह रेस्तरां का अपना बिजनैस उस जगह पर कर सकती है.

सिंदूरा जगह मिल जाने से खुश थी. वह गर्व भी कर रही थी कि आज फिर उस की सुंदरता ने उस के बिजनैस में उस की मदद करी है.सिंदूरा ने अब तक शादी नहीं करी थी क्योंकि उसे उस का मनचाहा पुरुष नहीं मिला था और आज शुभांग के रूप में उसे एक ऐसा व्यक्ति मिला है जिस से वह सच में प्रेम करने लगी है पर उस से विवाह नहीं कर सकती क्योंकि शुभांग पहले से ही विवाहित है.

तो क्या हुआ? प्रेम एक तरफ है तो प्रेम का विवाह में बदल जाना दूसरी तरफ, वह शुभांग को प्रेम करती है और ऐसे ही प्रेम करती भी रहेगी.आज सिंदूरा का जन्मदिन था. शुभांग ने उस के घर पर एक बड़ा सा पीले फूलों का बुके भेजा और फिर शाम तक तो तमाम गिफ्ट्स भेजने का क्रम यों ही चलता रहा.

सच कहा जाए तो सिंदूरा को यह लड़कपन वाला प्यार जताने का तरीका बहुत अच्छा लग रहा था.वे दोनों शाम को एक होटल में मिले और एकदूसरे के साथ समय गुजारा. शुभांग ने सिंदूरा को यह भी बताया कि वह आज से 3 दिन बाद  काम के सिलसिले में थाईलैंड के लिए रवाना हो रहा है जहां पर कुछ दिन बिताएगा और उस ने सिंदूरा को भी साथ चलने का औफर दिया.

‘‘पर मैं सारा बिजनैस कैसे छोड़ कर जाऊं?’’ सिंदूरा ने असमर्थता दिखाते हुए कहा.मगर शुभांग ने उस की एक न चलने दी और उसे थाईलैंड चलने के लिए मना ही लिया. सिंदूरा फूले नहीं समा रही थी. किसी ने कितने अधिकार से उस से अपने साथ चलने को कहा.

वह कहा टाल न सकी और थाईलैंड जाने की तैयारी करने लगी. लगभग 4 हजार किलोमीटर का सफर तय कर के वे दोनों थाईलैंड के बैंकौक शहर पहुंच गए, दिन में आराम करने के बाद दोनों एक रेस्तरां में खाने पहुंचे. बैंकाक का मुख्य भोजन ‘पैड थाई नूडल्स’ है जिस में चिकन तथा अन्य मांस की अधिकता रहती है. वैसे भी बैंकौक में सिंदूरा ने नौनवैज स्ट्रीट फूड बहुत देखा था.

तभी उस के दिमाग में आइडिया आया कि क्यों न बैंकाक में एक शाकाहारी रेस्तरां खोला जाए जो भारतीयों और शाकाहारी लोगों को बहुत आकर्षित करेगा.सिंदूरा थाई नूडल्स का मजा लेतेलेते इस आइडिया के बारे में और विचार करने लगी.

इस बीच शुभांग फोन पर अपनी पत्नी से बात कररहा था.ऐसा लगता था कि उस की पत्नी शुभांग के बारे में कुछ ज्यादा ही चिंतित हो रही थी. शुभांग ने उसे समझयाबुझाया और फिर वह भी नूडल्स खाने में व्यस्त हो गया.खाने के बाद दोनों शौपिंग करने के लिए ‘एशियाटिक द रिवरफ्रंट’ नाम के विशाल मौल में गए, यह काफी बड़ा मौल है जिस में पचासों बुटीक और रेस्तरां हैं. सिंदूरा ने इतनी चकाचौंध और विविधताओं से भरा हुआ मौल पहले कभी नहीं देखा था.

यहां दोनों ने अपनी फुट मसाज कराई और स्पा भी लिया तथा जम कर शौपिंग भी करी. रात हो चली थी. दोनों थक कर चूर हो गए थे. इसलिए अपने होटल के कमरे में चले आए. सिंदूरा ने कमरे में आ कर मौल से खरीदी हुई नाइटी पहनी जिस के अंदर उस का गोरा बदन और भी मादक लगने लगा.शुभांग और सिंदूरा कमरे में अकेले थे.

दोनों के दिल एकदूसरे को देख कर धड़क उठे और दोनों ने एकदूसरे को आगोश में भर लिया. शुभांग के हाथ सिंदूरा के चिकने बदन पर फिसल रहे थे. दोनों एकदूसरे में डूब जाना चाहते थे पर जैसे ही शुभांग ने सिंदूरा के शरीर में प्रवेश करना चाहा, वह कराह उठा.

उसे दर्द हो रहा था. वह दर्द किडनी वाली जगह पर था. शुभांग परेशान हो गया और दर्द के मारे सिंदूरा से अलग हो गया और बिस्तर पर करवट बदलते हुए बेहोश हो गया. सिंदूरा ने तुरंत रूम सर्विस को कौल कर के मैडिकल सुविधा प्रदान करने की गुहार लगाई.

होटल मैनेजमैंट ने तुरंत ऐक्शन लिया और होटल में ही मौजूद एक डाक्टर को बुलाया जिस ने तुरंत शुभांग को अस्पताल के लिए रैफर किया और वह खुद भी साथ में अस्पताल गया.डाक्टरों ने शुभांग के खून के ढेर सारेटैस्ट किए और उस के यूरिन को भी जांचा.

जब रिपोर्ट आने पर उन्होंने सिंदूरा को बताया कि रिपोर्ट गंभीर है और शुभांग की किडनिया जवाब दे चुकी हैं. सिंदूरा बिलख पड़ी. जीवन के इतने वर्ष के बाद उसे किसी मनचाहे पुरुष का साथ मिला था, भले ही वह एक विवाहित पुरुष था पर सिंदूरा ने उसे प्रेम किया था, सच्चा प्रेम और आज जब वह अपने प्रेमी के साथ समय बिताने विदेश आई तब शुभांग की किडनियां खराब हो गईं और वह मौत के मुंह में जा रहा है.

तो क्या शुभांग उस का साथ छोड़ जाएगा? डाक्टर को शुभांग की जान बचाने के लिए एक किडनी की तलाश थी पर इतनी जल्दी किडनी की व्यवस्था अस्पताल में नहीं थी और डोनर मिलने में पता नहीं कितना समय लगता.‘‘तो आप मेरी किडनी ले लीजिए.

मैं शुभांग को किडनी डोनेट करने के लिए तैयार हूं.’’ ‘‘देखिए, आप अच्छी तरह से सोच लीजिए. यदि आप अपने पति को किडनी देना ही चाहती हैं तो हम आप के शरीर की कुछ जांच करने के बाद ही बता पाएंगे कि आप की किडनी शुभांग के लायक है भी या नहीं,’’ डाक्टरों ने कहा. डाक्टरों के मुंह से शुभांग को उस के पति के रूप में बुलाया जाना सिंदूरा को बहुत अच्छा लगा था.सिंदूरा की भावनाएं प्रबल होती जा रही थीं. वह किसी भी हालत में शुभांग को नहीं खोना चाहती थी.

उस ने झट से अपने सारे टैस्ट करा लिए. सारी रिपोर्ट्स नौर्मल आईं. डाक्टर ने उसे यह भी बताया कि उस की किडनी शुभांग को सूट कर जाएगी और वे आराम से उस की किडनी ट्रांसप्लांट कर सकते हैं. एक सुकून की सांस ली थी सिंदूरा ने.

किडनी सफलतापूर्वक ट्रांसप्लांट हो गई थी और आज 1 हफ्ता हो गया था और किडनी शुभांग के शरीर में सही तरीके से काम भी कर रही थी. सिंदूरा और शुभांग दोनों एक ही कमरे में पास के बैड पर थे.

सिंदूरा की हालत में तेजी से सुधार आ रहा था जबकि शुभांग को अभी भी काफी देखरेख की आवश्यकता थी. तभी नर्स ने आ कर बताया कि भारत से कोई महिला शुभांग सिंह से मिलना चाहती है.भारत से आई महिला का नाम सुन कर दोनों चौंक गए थे. आखिर वह कौन हो सकता है? जब वह महिला सामने लाई गई तो और कोई नहीं बल्कि शुभांग की पतनी रूही थी.

अपनी पत्नी को थाईलैंड में देख कर शुभांग बुरी तरह चौंक गया.‘‘रूही तुम यहां कैसे?’’ पर रूही ने जवाब देने की बजाय सवालों की ?ाड़ी लगा दी, ‘‘तुम्हें क्या हो गया? अगर तुम्हें कुछ समस्या थी तो तुम ने अपनी पत्नी को बताने की भी जरूरत नहीं समझ… एक फोन तो कर सकते थे? शुभांग मैं तुम्हारी पत्नी हूं, कोई गैर नहीं.’’

उस की व्यग्रता और प्रेम समझते हुएशुभांग मुसकरा उठा और बदले में उस ने सिर्फ इतना ही कहा, ‘‘मेरी किडनी में भयंकर दर्द हुआ और मैं बेहोश हो गया. फिर क्या हुआ मुझे कुछ नहीं पता. उस के बाद जब मेरी आंख खुली तब मेरा औपरेशन हो चुका था और मुझे एक नई किडनी लगा दी गई थी,’’ शुभांग ने मुसकराते हुए उत्तर दिया. ‘‘पर तुम अचानक इतनी दूर यहां कैसे आईं?’’ रूही थोड़ा नौर्मल हुई तो उस ने बताया कि जब कई दिनों तक शुभांग का नंबर घंटीबजने के बाद भी नहीं उठा तब रूही ने शुभांग द्वारा चैकइन करने के समय भेजी गई होटलकी लोकेशन के अनुसार होटल के रिसैप्शनसे शुभांग सिंह का नाम पूछ कर जानकारीहासिल करी.

उन्होंने बताया कि इस नाम के मरीजकी हालत अचानक बिगड़ गई थी जिस के पश्चात उन्हें अस्पताल में भरती कराया गया है और वे किडनी की समस्या से जूझ रहे हैं. इतनी खबर पाते ही रूही वहां से थाईलैंड के लिए निकल पड़ी.‘‘पर अचानक तुम्हारे लिए किडनी की व्यवस्था कैसी हुई? आई मीन किस ने डोनेट की?’’ रूही ने पूछा.पहले तो शुभांग ने सबकुछ छिपाना चाहा पर शायद अब उस की गुंजाइश नहीं बची थी. अत: उस ने बताया कि वह और सिंदूरा एकसाथ काम करते हैं और वह सिंदूरा के ही साथ थाईलैंड आया था और दोनों एक ही होटल में रुके थे.

तभी यह हादसा हुआ. सिंदूरा ने मुझे अपनी किडनी डोनेट कर के मुझ पर बहुत बड़ा उपकार किया है.‘‘आगे मुझे कुछ जानने की जरूरत नहीं है. होटल के रिकौर्ड में सिंदूरा का नाम तुम ने अपनी पत्नी के नाम पर दर्ज कराया है,’’ रूही के स्वर में एक दर्द और कसैलापन था.

शुभांग कुछ न बोल सका. अब बारीसिंदूरा के बोलने की थी. बोली, ‘‘मैं क्या करती मैं इस उम्र में आ कर तुम्हारे पति से प्रेम करबैठी और जब मैं ने दिल दे ही दिया तो भला किडनी दे कर जान बचाने में क्यों चूंकती? हां, हम थोड़ी देर के लिए बहक जरूर गए थे, पर यकीन मानो मेरा शुभांग के प्रति प्रेम एकदम निस्वार्थ है.’’ रूही अजीब स्थिति में थी.

एक तरफ तो उसे सिंदूरा में अपनी सौतन नजर आ रही थी, एक ऐसी औरत जिस ने उस के पति के साथ बिस्तर पर रात बिताई है और दूसरी तरफ सिंदूरा में उस के पति की जान बचाने वाली औरत भी दिख रही थी जिस ने अपनी किडनी देने का निर्णय कर के उस के सुहाग की रक्षा करी है. बेचैनी रूही के मन में थी तो सिंदूरा के मन में भी और इस बेचैनी को खत्म करने का जिम्मा रूही ने ही उठाया.

बोली, ‘‘मैं तुम्हारी बहुत शुक्रगुजार हूं जो तुम ने मेरे पति की जान बचाई और मेरे लिए यह स्थिति भी बहुत विचित्र है कि तुम शुभांग से प्रेम करती हो, पर वे मेरा पति हैं.

मैं उन्हें तुम्हारे साथ किसी हालत में नहीं बांट सकती और मैं तुम्हारे और शुभांग के प्रेम को भी परवान चढ़ने नहीं देना चाहती, पर तुम ने मेरे पति की जान बचाई है इसलिए तुम उन के साथ एक हैल्दी रिलेशन रख सकती हो और वह रिलेशन है दोस्ती का. तुम मेरे पति की अच्छी दोस्त बन कर रह सकती हो.

उन से जब चाहे मिल सकती हो और मिलने घर भी आ सकती हो,’’ कह कर रूही ने सिंदूरा का हाथ अपने हाथों में ले लिया.सिंदूरा की आंखें नम हो चली थीं. रूही के चेहरे पर तनाव और मुसकराहट का मेलजोल दिख रहा था.शुभांग यह सब देख और सुन कर चकित हो रहा था.

उस के सामने 2 स्त्रियां थीं जिन में एक उस की पत्नी थी और दूसरी वह महिला थी जिस ने उस से प्रेम किया था.आज शुभांग अपनेआप को एक हाईवे पर खड़ा हुआ पा रहा था जहां चारों ओर कोई ट्रैफिक नहीं था, कोई शोर भी नहीं था बल्कि प्रेम ही प्रेम था, रिश्तों का अजबगजब प्रेम,हाईवे का प्रेम.

Best Hindi Story

Best Romantic Story: प्रेम की उदास गाथा

Best Romantic Story: चपरासी एक स्लिप दे गया था. जब उस की निगाहें उस पर पड़ीं तो वह चौंक गया, ‘क्या वे ही होंगे जिन के बारे में वह सोच रहा है.’ उसे कुछ असमंजस सा हुआ. उस ने खिड़की से झांक कर देखने का प्रयास किया पर वहां से उसे कुछ नजर नहीं आया. वह अपनी सीट से उठा. उसे यों इस तरह उठता देख औफिस के कर्मचारी भी अपनीअपनी सीट से उठ खड़े हुए. वह तेजी से दरवाजे की ओर लपका. सामने रखी एक बैंच पर एक बुजुर्ग बैठे थे और शायद उस के बुलाने की प्रतीक्षा कर रहे थे.

हालांकि वह उन्हें पहचान नहीं पा रहा था पर उसे जाने क्यों भरोसा सा हो गया था कि यह रामलाल काका ही होंगे. वह सालों से उन से मिला नहीं था. जब वह बहुत छोटा था तब पिताजी ने परिचय कराया था…

‘अक्षत, ये रामलालजी हैं. कहानियां और कविताएं वगैरह लिखते हैं और एक प्राइवेट स्कूल में गणित पढ़ाते हैं.’

मुझे आश्चर्य हुआ था कि भला गणित के शिक्षक कहानियां और कविताएं कैसे लिख सकते हैं. मैं ने उन्हें देखा. गोरा, गोल चेहरा, लंबा और बलिष्ठ शरीर, चेहरे पर तेज.

‘तुम इन से गणित पढ़ सकते हो,’ कहते हुए पिताजी ने काका की ओर देखा था जैसे स्वीकृति लेना चाह रहे हों. उन्होंने सहमति में केवल अपना सिर हिला दिया था. मेरे पिताजी मनसुख और रामलाल काका बचपन के मित्र थे. दोनों ने साथसाथ कालेज तक की पढ़ाई की थी. पढ़ाई के बाद मेरे पिताजी सरकारी नौकरी में आ गए पर रामलाल काका प्रतिभाशाली होने के बाद भी नौकरी नहीं पा सके थे.

उन्हें एक प्राइवेट स्कूल में अध्यापन का कार्य कर अपनी रोजीरोटी चलानी पड़ रही थी. वे गणित के बहुत अच्छे शिक्षक थे. उन के द्वारा पढ़ाया गया कोई भी छात्र गणित में कभी फेल नहीं होता था, यह बात मु?ो बाद में पता चली.

मैं इंजीनियर बनना चाहता था. इस कारण पिताजी के मना करने के बाद भी मैं ने गणित विषय ले लिया था पर कक्षाएं प्रारंभ होते ही मुझे लगने लगा था कि यह चुनाव मेरा गलत था. मुझे गणित समझ में आ ही नहीं रहा था. इस के लिए मैं क्लास के शिक्षक को दोषी मान सकता था. वे जो समझते मेरे ऊपर से निकल जाता.

तीसरी सैमेस्टर परीक्षा में जब मुझे गणित में बहुत कम अंक मिले तो मैं उदास हो गया. मुझे यों उदास देख कर एक दिन पिताजी ने प्यार से मुझे से पूछ ही लिया, वैसे तो मैं उन्हें कुछ भी बताना ही नहीं चाह रहा था क्योंकि उन्होंने तो मुझे मना किया था पर उन के प्यार से पूछने से मैं अपनी पीड़ा व्यक्त करने से नहीं रह सका.

पिताजी ने धैर्य के साथ सारी बात समझे और मुसकराते हुए रामलाल काका से गणित पढ़ने की सलाह दे दी. पिताजी मुझे खुद ले कर काका के पास आए थे. रामलाल काका ट्यूशन कभी नहीं पढ़ाते थे, इस कारण ही तो मुझे उन के पास जाने में हिचक हो रही थी पर वे पिताजी के बचपन के मित्र थे, यह जान कर मुझे भरोसा था कि वे मुझे मना नहीं करेंगे. हुआ भी ऐसा ही. मैं रोज उन के घर पढ़ने जाने लगा.

मेरे जीवन में चमत्कारी परिवर्तन दूसरे तो महसूस कर ही रहे थे, मैं स्वयं भी महसूस करने लगा था. मेरा बहुत सारा समय अब काका के घर में ही गुजरने लगा था. मैं उन के परिवार का एक हिस्सा बन गया था. उन्होंने शादी नहीं की थी, इस कारण वे अकेले ही रहते थे. स्वयं खाना बनाते और घर के सारे काम करते. काका से मैं गणित की बारीकियां तो सीख ही रहा था, साथ ही, जीवन की बारीकियों को भी सीखने का अवसर मुझे मिल रहा था.

काका बहुत ही सुलझे हुए इंसान थे. ‘न काहू से दोस्ती और न काहू से बैर’ की कहावत का जीवंत प्रमाण थे वे. शायद इसी कारण समाज में उन की बहुत इज्जत भी थी. लोग उन्हें बहुत प्यार करते थे और सम्मान भी देते थे. उन की दिनचर्या बहुत सीमित थी. वे स्कूल के अलावा घर से केवल शाम को ही निकलते थे, सब्जी वगैरह लेने. इस के अलावा वे पूरे समय घर पर ही रहते थे. वे अकसर कहानियां या कविता लिखते नजर आते.

‘काका इन कहानियों के लिखने से समाज नहीं बदलता. आप कुछ और लिखा करिए,’ एक दिन मैं बोल पड़ा.

‘मैं समाज को बदलने के लिए और उन्हें सिखाने के लिए कहानियां नहीं लिखता हूं. मैं अपने सुख के लिए कहानियां लिखता हूं. किसी को पसंद आए या न आए.’

मैं चुप हो जाता. पहले मैं सोचता था कि यह मेरा विषय नहीं है, इसलिए न तो मैं उन की लिखी कहानी पढ़ता और न ही उन में रुचि लेता पर कहते हैं न कि संगत का असर आखिर पड़ ही जाता है, इसलिए मुझे भी पड़ गया. एक दिन जब काका सब्जी लेने बाजार गए थे, मैं बोर हो रहा था. मैं ने यों ही उन की अधूरी कहानी उठा ली और पढ़ता चला गया था.

कहानी मुझे कुछकुछ उन के जीवन परिचय का बोध कराती सी महसूस हुई थी. वह एक प्रणय गाथा थी. किन्ही कारणों से नायिका की शादी कहीं और हो जाती है. नायक शादी नहीं करता. चूंकि कहानी अधूरी थी, इसलिए आगे का विवरण जानने के लिए मेरी उत्सुकता बढ़ गई थी.

मैं ने यह जाहिर नहीं होने दिया था कि मैं ने कहानी को पढ़ा है. काकाजी की यह कहानी 2-3 दिनों में पूरी हो गई थी. अवसर निकाल कर मैं ने शेष भाग पढ़ा था.

नायिका की एक संतान है. वह विधवा हो जाती है. उस का बेटा उच्च शिक्षा ले कर अमेरिका चला जाता है. यहां नायिका अकेली रह जाती है. उस के परिवार के लोग उस पर अत्याचार करते हैं और उसे घर से निकाल देते हैं. वह एक वृद्धाश्रम में रहने लगती है. कहानी अभी भी अधूरी सी ही लगी पर काकाजी ने कहानी में जिस तरह की वेदना का समावेश किया था उसे पढ़ने वाले की आंखें नम हुए बगैर नहीं रह पाती थीं. आंखें तो मेरी भी नम हो गई थीं. यह शब्दों का ही चमत्कार नहीं हो सकता था, शायद आपबीती थी. तभी तो इतना बेहतर लेखन हो पाया था. मैं ने काकाजी को बता दिया था कि मैं ने उन की कहानी को पढ़ा है और कुछ प्रश्न मेरे दिमाग में घूम रहे हैं. काकाजी नाखुश नहीं हुए थे.

‘देखो, कहानी समसामयिक है, इसलिए तुम्हारे प्रश्नों का जवाब देना जरूरी नहीं है. पर तुम्हारी जिज्ञासा को दबाना भी उचित नहीं है, इसलिए पूछ सकते हो,’ काकाजी के चेहरे पर हलकी सी वेदना दिखाई दे रही थी.

‘कहानी पढ़ कर मुझे लगा कि शायद आप इन घटनाक्रम के गवाह हैं.’ वे मौन रहे.

‘इस कहानी के नायक में आप की छवि नजर आ रही है, ऐसा सोचना मेरी गलती है,’ मैं ने काकाजी के चेहरे की ओर नजर गड़ा ली थी. उन के चेहरे पर अतीत में खो जाने के भाव नजर आने लगे थे मानो वे अपने जीवन के अतीत के पन्ने उलट रहे हों.

काकाजी ने गहरी सांस ली थी, ‘वैसे तो मैं तुम को बोल सकता हूं कि यह सही नहीं है, पर मैं ऐसा नहीं बोलूंगा. तुम ने कहानी को वाकई ध्यान से पढ़ा है, इस कारण ही यह प्रश्न तुम्हारे ध्यान में आया. हां, यह सच है. कहानी का बहुत सारा भाग मेरा अपना ही है.’

‘नायक और नायिका भी?’

‘हां…’ हम दोनों मौन हो गए थे.

काकाजी ने उस दिन फिर और कोई बात नहीं की. दूसरे दिन मैं ने ही बात छेड़ी थी, ‘‘वह कहानी प्रकाशन के लिए भेज दी क्या?’’

‘नहीं, वह प्रकाशन के लिए नहीं लिखी,’ उन्होंने संक्षिप्त सा जबाब दिया था.

‘काकाजी, आप ने उन के कारण ही शादी नहीं की क्या?’ वे मौन बने रहे.

‘पर इस से नुकसान तो आप का ही हुआ न,’ मैं आज उन का अतीत जान लेना चाहता था.

‘प्यार में नुकसान और फायदा नहीं देखा जाता, बेटा.’

‘जिस जीवन को आप बेहतर ढंग से जी सकते थे, वह तो अधूरा ही रह गया न और इधर नायिका का जीवन बहुत अच्छा भले ही न रहा हो पर आप के जीवन से अच्छा रहा,’’ वे मौन बने रहे.

‘‘मेरे जीवन का निर्णय मैं ने लिया है. उसे तराजू में तोल कर नहीं देखा जा सकता,’ काकाजी की आंखों में आंसू की बूंदें नजर आने लगी थीं.

हम ने फिर और कोई बात नहीं की पर अब चूंकि बातों का सिलसिला शुरू हो गया था, इस कारण काकाजी ने टुकड़ोंटुकड़ों में मुझे सारी दास्तां सुना दी थी.

कालेज के दिनों उन के प्यार का सिलसिला प्रारंभ हुआ था. रेणू नाम था उस का. सांवली रंगत पर मनमोहक छवि, बड़ीबड़ी आंखें और काले व लंबे घने बाल. पढ़ने में भी बहुत होशियार. उन्होंने ही उस से पहले बात की थी. उन्हें कुछ नोट्स की जरूरत थी और वे सिर्फ रेणू के पास थे. काकाजी अभावों में पढ़ाई कर रहे थे. किताबें खरीदने की गुंजाइश नहीं थी.

उन्हें नोट्स चाहिए थे ताकि वे उसे ही पढ़ कर परीक्षा की तैयारी कर सकें. साथियों का मानना था कि रेणू बेहद घमंडी लड़की है और वह उन्हें नोट्स नहीं देगी. निराश तो वे भी थे पर उन के पास इस के अलावा और कोई विकल्प था भी नहीं. उन्होंने डरतेडरते रेणू से नोट्स देने का अनुरोध किया था. रेणू ने बगैर किसी आनाकानी के उन्हें नोट्स दे भी दिए थे. उन्हें और उन के साथियों को वाकई आश्चर्य हुआ था. रेणू शायद उन की आवश्यकताओं से परिचित थी, इस कारण वह उन्हें पुस्तकों से ले कर कौपीपेन तक की मदद करने लगी थी. संपर्क बढ़ा और प्यार की कसमों पर आ गया.

काकाजी तो अकेले जीव थे. उन के न तो कोई आगे था और न पीछे. उन्होंने जब अपनी आंखें खोली थीं तो केवल मां को ही पाया था. मां भी ज्यादा दिन उन का साथ नहीं निभा सकीं और एक दिन उन की मृत्यु हो गई. काकाजी अकेले रह गए. काकाजी का अनाथ होना उन के प्यार के लिए भारी पड़ गया. रेणू के पिताजी ने रेणू के भारी विरोध के बावजूद उस की शादी कहीं और करा दी. रेणू के दूर चले जाने के बाद काकाजी के जीवन का महकता फलसफा खत्म हो गया था .

काकाजी गांव वापस आ गए और नए सिरे से अपनी दिनचर्या को बनाने में जुट गए. कहानी सुनातेसुनाते कई बार काकाजी फूटफूट कर रोए थे. मैं ने उन को बच्चों जैसा रोते देखा था. शायद वे बहुत दिनों से अपने दर्द को अपने सीने में समेटे थे. मैं ने उन को जी भर रोने दिया था. इस के बाद हमारे बीच इस विषय को ले कर फिर कभी कोई बात नहीं हुई.

मैं उन के पास नियमित गणित पढ़ने जाता और वे पूरी मेहनत के साथ मुझे पढ़ाते भी. उन की पढ़ाई के कारण मेरा गणित बहुत अच्छा हो गया था. उन्होंने मुझे इंग्लिश विषय की पढ़ाई भी कराई.

काकाजी की मदद से मेरा इंजीनियर बनने का स्वप्न पूरा हो गया था पर मैं ज्यादा दिन इंजीनियर न रह कर आईएएस में सलैक्ट हो गया और कलैक्टर बन कर यहां पदस्थ हो गया था. लगभग 10 सालों का समय यों ही व्यतीत हो गया था. इन सालों में मैं काकाजी से फिर नहीं मिल पाया था. मैं 1-2 बार जब भी गांव गया, काकाजी से मिलने का प्रयास किया. पर काकाजी गांव में नहीं मिले.

कलैक्टर का पदभार ग्रहण करने के पहले भी मैं गांव गया था. तभी पता चला था कि काकाजी तो कहीं गए हैं और तब से यहां लौटे ही नहीं. उन के घर पर ताला पड़ा है. गांव के लोग नहीं जानते थे कि आखिर काकाजी चले कहां गए. आज जब अचानक उन की स्लिप चपरासी ले कर आया तो गुम हो चुका पूरा परिदृश्य सामने आ खड़ा हुआ. औफिस के बाहर मिलने आने वालों के लिए लगी बैंच पर वे बैठे थे, सिर झुकाए और कुछ सोचते हुए से.

मैं पूरी तरह तय नहीं कर पा रहा था पर मुझे लग रहा था कि वे ही हैं. बैंच पर और भी कुछ लोग बैठे थे जो मुझ से मिलने की प्रतीक्षा कर रहे थे. मुझे इस तरह भाग कर आता देख सभी चौंक गए थे. बैंच पर बैठे लोग उठ खड़े हुए पर काकाजी यों ही बैठे रहे. उन का ध्यान इस ओर नहीं था.

मैं ने ही आवाज लगाई थी, ‘‘काकाजी…’’ वे चौंक गए. उन्होंने यहांवहां देखा भी पर समझ नहीं पाए कि आवाज कौन लगा रहा है. बाकी लोगों को खड़ा हुआ देख कर वे भी खड़े हो गए. उन्होंने मुझे देखा अवश्य पर वे पहचान नहीं पाए थे.

मैं ने फिर से आवाज लगाई, ‘‘काकाजी,’’ उन की निगाह सीधे मुझ से जा टकराई. यह तो तय हो चुका था कि वे काकाजी ही थे. मैं ने दौड़ कर उन को अपनी बांहों में भर लिया था.

‘‘काकाजी, नहीं पहचाना? मैं मनसुखजी का बेटा. आप ने मुझे गणित पढ़ाई थी, ‘‘काकाजी के चेहरे पर पहचान के भाव उभर आए थे.

‘‘अरे अक्षत,’’ अब की बार उन्होंने मुझे सीने से लगा लिया था.

औफिस के रिटायररूम के सोफे पर वे इत्मीनान के साथ बैठे थे और मैं सामने वाली कुरसी पर बैठा हुआ उन के चेहरे के भावों को पढ़ने का प्रयास कर रहा था. चपरासी के हाथों से पानी ले कर वे एक ही घूंट में पी गए थे.

‘‘आप यहां कैसे, काकाजी?’’

‘‘तुम, यहां के कलैक्टर हो? जब नाम सुना था तब कुछ पहचाना सा जरूर लगा था पर तुम तो इंजीनियर…’’

‘‘हां, बन गया था. आप ने ही तो मुझे बनवाया था. फिर आईएएस में सिलैक्शन हो गया और मैं कलैक्टर बन गया.’’ उन्होंने मेरा चेहरा अपने हाथों में ले लिया.

‘‘आप यहां कैसे, मैं ने तो आप को गांव में कितना ढूंढ़ा?’’

‘‘मैं यहां आ गया था. रेणू को मेरी जरूरत थी,’’ उन्होंने कुछ सकुचाते हुए बोला था.

मेरे दिमाग में काकाजी की कहानी की नायिका ‘रेणू’ सामने आ गई. उन्होंने ही बोला, ‘‘रेणू को उस के परिवार के लोग सता रहे थे. मैं ने बताया था न?’’

‘‘हां, पर यह तो बहुत पुरानी बात है.’’

‘‘वह अकेली पड़ गई थी. उसे एक सहारा चाहिए था.’’

‘‘उन्होंने आप को बुलाया था?’’

‘‘नहीं, मैं खुद ही आ गया था.’’

‘‘यों इस तरह गांव में किसी को बताए बगैर?’’

‘‘सोचा था कि उस की समस्या दूर कर के जल्दी लोट जाऊंगा पर…’’

‘‘क्या आप उस के साथ ही रह रहे हैं?’’

‘‘नहीं, मैं ने यहां एक कमरा ले लिया है.’’

‘‘और… वो… उन्हें भी तो घर से निकाल दिया था…’’

दरअसल, मेरे दिमाग में ढेरों प्रश्न आजा रहे थे.

‘‘हां, वह वृद्धाश्रम में रह रही है.’’

‘‘अच्छा…’’

‘‘यहां अदालत में उन का केस चल रहा है.’’

वे मुझे आप कहने लगे थे, शायद उन्हें याद आया कि मैं यहां का कलैक्टर हूं.

‘‘काकाजी, यह ‘आप’ क्यों लगा रहे

हैं, आप?’’

‘‘वह… बेटा, अब तुम इतने बड़े पद पर हो…’’

‘‘तो?’’

‘‘देखो अक्षत, रेणू का केस सुलझा दो. यह मेरे ऊपर तुम्हारा बड़ा एहसान होगा,’’ कहतेकहते काकाजी ने मेरे सामने हाथ जोड़ लिए.

कमरे में पूरी तरह निस्तब्धता छा चुकी थी. काकाजी की आंखों से आंसू बह रहे थे. वे रेणू के लिए दुखी थे. वह रेणू जिस के कारण काकाजी ने विवाह तक नहीं किया था और सारी उम्र यों ही अकेले गुजार दी थी. मैं ने काकाजी को ध्यान से देखा. वे इन

10 सालों में कुछ ज्यादा ही बूढ़े हो गए थे. चेहरे की लालिमा जा चुकी थी उस पर उदासी ने स्थायी डेरा जमा लिया था. बाल सफेद हो चुके थे और बोलने में हांफने भी लगे थे.

 

औफिस के कोने में लगे कैक्टस के पौधे को वे बड़े ध्यान से देख रहे थे और मैं उन्हें. उन का सारा जीवन रेणू के लिए समर्पित हो चुका था. आज भी वे रेणू के लिए ही संघर्ष कर रहे थे.

‘‘काकाजी, मैं केस की फाइल पढ़ं ूगा और जल्दी ही फैसला दे दूंगा,’’ मैं उन्हें झूठा आश्वासन नहीं देना चाह रहा था.

‘‘केस तो तुम को मालूम ही है न, मैं ने बताया था, ’’काकाजी ने आशाभरी निगाहों से मुझे देखा.

‘‘हां, आप ने बताया था पर फाइल देखनी पड़ेगी तब ही तो कुछ समझ पाऊंगा न,’’ मैं उन के चेहरे की बेबसी को पढ़ रहा था पर मैं भी मजबूर था. यों बगैर केस को पढ़े कुछ कह नहीं पा रहा था.

काकाजी के चेहरे पर भाव आजा रहे थे. मुझ से मिलने के बाद उन्हें उम्मीद हो गई थी कि रेणू के केस का फैसला आज ही हो जाएगा और वह उन के पक्ष में ही रहेगा पर मेरी ओर से ऐसा कोई आश्वासन न मिल पाने से वे फिर से हताश नजर आने लगे थे.

‘‘काकाजी, आप भरोसा रखें, मैं बहुत जल्दी फाइल देख लूंगा,’’ मैं उन्हें आश्वस्त करना चाह रहा था.

 

काकाजी थके कदमों से बाहर चले गए थे. वे 2-3 दिन बाद मुझे मेरे औफिस के सामने बैठे दिखे थे. चपरासी को भेज कर मैं ने उन्हें अंदर बुला लिया था. उन के चेहरे पर उदासी साफ झलक रही थी. काम की व्यस्तता के कारण फाइल नहीं देख पाया था. मैं मौन रहा. चपरासी ने चाय का प्याला उन की ओर बढ़ा दिया, ‘‘काकाजी, कुछ खाएंगे क्या?’’ मैं  उन से बोल नहीं पा रहा था कि मैं फाइल नहीं देख पाया हूं पर काकाजी समझ गए थे. वे बगैर कुछ बोले औफिस से निकल गए थे.

फाइल का पूरा अध्ययन मैं ने कर लिया था. यह तो समझ में आ ही गया था कि रेणूजी के साथ अन्याय हुआ है पर फाइल में लगे कागज रेणूजी के खिलाफ थे. दरअसल, रेणू को उन के पिताजी ने एक मकान शादी के समय दिया था. शादी के बाद जब तक हालात अच्छे रहते आए तब तक रेणू ने कभी उस मकान के बारे में जानने और समझने की जरूरत नहीं समझ. उन के पति यह बता दिया था कि उसे किराए पर उठा रखा है पर जब रेणू की अपने ससुराल में अनबन हो गई और उन्हें अपने पति का घर छोड़ना पड़ा तब अपने पिताजी द्वारा दिए गए मकान का ध्यान आया.

उन्होंने अपने पति से अपना मकान मांगा ताकि वे रह सकें पर उन्होंने साफ इनकार कर दिया. रेणू ने मकान में कब्जा दिलाए जाने के लिए एक आवेदन कलैक्टर की कोर्ट में लगा दिया. रेणू को नहीं मालूम था कि उन के पति ने वह मकान अपने नाम करा लिया है. कागजों और दस्तावेजों के विपरीत जा कर मैं फैसला दे नहीं सकता था. मैं समझ नहीं पा रहा था कि मैं काकाजी से क्या बोलूंगा.

वृद्धाश्राम के एक कार्यक्रम में मैं ने पहली बार रेणूजी को देखा था. आश्रम की ओर से पुष्पगुच्छ भेंट किया था उन्होंने मुझे. तब तक तो मैं समझ नहीं पाया था कि यही रेणूजी हैं पर कार्यक्रम के बाद जब मैं लौटने लगा था तो गेट पर काकाजी ने हाथ दे कर मेरी गाड़ी को रोका था. उन के साथ रेणूजी भी थीं. ‘‘अक्षत, मैं और रेणू गांव जा रहे हैं. हम ने फैसला कर लिया है कि हम दोनों वहीं साथ में रहेंगे,’’ काकाजी के बूढ़े चेहरे पर लालिमा नजर आ रही थी. मैं ने रेणूजी को पहली बार नख से सिर तक देखा था. बुजुर्गियत से ज्यादा उन के चेहरे पर परेशानी के निशान थे पर वे बहुत खूबसूरत रही होंगी, यह साफ झलक रहा था.

‘‘सुनो बेटा, अब हमें तुम्हारे फैसले से भी कुछ लेनादेना नहीं है. जो लगे, वह कर देना.’’ उन्होंने रेणू का हाथ अपने हाथों में ले लिया था.

‘‘तुम ने मेरी अधूरी कहानी पढ़ी थी न. वह आज पूरी हुई,’’ काकाजी के कदमों में नौजवानों जैसी फुरती दिखाई दे रही थी. काकाजी के ओ?ाल होते ही मेरी निगाह आश्रम के गेट पर कांटों के बीच खिले गुलाब पर जा टिकी.

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Dreame Mova K10 Pro: घर की सफाई में एक संपूर्ण क्रांति

Dreame Mova K10 Pro: हमारे घरों की सफाई पुराने समय में जहाँ झाड़ू और पोछे से होती थी उस की जगह अब आकर्षक, स्मार्ट मशीनों ने ले लिया है. ये सफाई के झंझटों को कम करती हैं. इस में सबसे आगे है ड्रीम मोवा K10 प्रो जो एक स्मार्ट वेट और ड्राई वैक्यूम क्लीनर है. अपनी अत्याधुनिक सक्शन पावर, स्मार्ट डर्ट डिटेक्शन तकनीक और स्वचालित डिजाइन के साथ K10 प्रो सिर्फ़ एक वैक्यूम क्लीनर नहीं है बल्कि यह घर की सफाई में एक संपूर्ण क्रांति है.

शक्तिशाली वैक्यूमिंग, बहुमुखी सफाई

ड्रीम मोवा K10 प्रो 120,000 RPM मोटर से लैस है जो 15,000 Pa तक की सक्शन पावर प्रदान करता है. यह धूल, गंदगी, टुकड़ों और यहाँ तक कि सबसे ज़िद्दी मलबे को भी कुशलता से समेट लेता है. यह शक्तिशाली मोटर आपके घर के हर कोने को बेदाग बनाए रखने में मदद करती है जबकि स्मार्ट डर्ट डिटेक्शन तकनीक समझदारी से गंदगी के प्रकार और मात्रा की पहचान करती है.

चाहे रात के खाने के बाद जल्दी सफाई हो, बारिश के बाद कीचड़ भरे पैरों के निशान हों या लिविंग रूम में बिखरे पालतू जानवरों के बाल हों, K10 Pro आसानी से इनका ध्यान रखता है. यह डिवाइस गीली और सूखी सफाई के बीच सहजता से बदलाव करता ह जिससे उपयोगकर्ता एक ही बार में वैक्यूम और पोछा लगा सकते हैं – जिससे समय और ऊर्जा दोनों की बचत होती है. यह दोहरी कार्यक्षमता मोवा K10 Pro को व्यस्त, आधुनिक घरों के लिए एक जरूरी उपकरण बनाती है.

सटीक सफाई के लिए विशेष सुविधाएँ

इसका डिजाइन किनारों और कोनों में 6 मिमी तक की सटीक सफाई सुनिश्चित करता है ताकि कोई गंदगी या अवशेष पीछे न छूटे. ट्विन स्क्रैपर सिस्टम इसके प्रदर्शन को और बेहतर बनाता है: आगे वाला स्क्रैपर बालों की उलझनों को सुलझाने और गंदगी को कुशलता से हटाने का काम करता है जबकि पीछे वाला रबर स्क्रैपर पानी के अवशेषों को कम करता है जिससे फर्श बेदाग और दाग-धब्बों से मुक्त रहता है.

यह अनोखा सिस्टम सुनिश्चित करता है कि बाल रोलर्स को जाम न करें जो कि ज्यादातर वैक्यूम क्लीनर्स की एक आम समस्या है.

लंबा रन टाइम और बड़ी क्षमता

ड्रीम मोवा K10 प्रो अपनी श्रेणी के सबसे बड़े स्वच्छ पानी के टैंकों में से एक – 890 मिलीलीटर – के साथ आता है. यह पर्याप्त क्षमता रीफिलिंग की आवृत्ति को कम करती है और बाधारहित सफाई अनुभव सुनिश्चित करती है. चाहे आप एक छोटे से अपार्टमेंट की सफाई कर रहे हों या बड़े घर की आप अपना काम एक ही बार में पूरा कर सकते हैं.

इस क्षमता को एक 7 × 2400mAh बैटरी पैक शक्ति प्रदान करता है जो लंबे समय तक चलने वाला रन टाइम और विश्वसनीय प्रदर्शन प्रदान करता है. ऑटो मोड में K10 Pro एक बार चार्ज करने पर 200 वर्ग मीटर तक की सतह को 30 मिनट तक कुशलतापूर्वक साफ कर सकता है जिस से गीली और सूखी दोनों तरह की गंदगी साफ हो जाती है. इसका मतलब है ज्यादा सफाई और कम इंतज़ार जो इसे गहरी सफाई के लिए एक बेहतरीन साथी बनाता है.

हल्का लेकिन मजबूत सफाई: सेल्फ-प्रोपेल्ड पावर ट्रैक्शन

सिर्फ़ 3.8 किलोग्राम वज़न के साथ मोवा K10 Pro हल्के वजन और मजबूत परफॉर्मेंस का बेहतरीन संगम है. इसे कमरों के बीच ले जाने से लेकर ऊपर ले जाने तक सफाई को आसान बनाने के लिए डिज़ाइन किया गया है. अपने कॉम्पैक्ट डिजाइन के बावजूद K10 Pro में 540 RPM क्लीनिंग मोटर के साथ ज़बरदस्त पावर है जो बिना किसी परेशानी के गीली और सूखी दोनों तरह की गंदगी को साफ कर देती है.

इसकी इस्तेमाल में आसानी के लिए सेल्फ-प्रोपेल्ड पावर ट्रैक्शन सिस्टम भी है. यह सफाई से जुड़े शारीरिक तनाव को कम करता है जिससे सफाई प्रक्रिया तेज़ और आसान हो जाती है. एर्गोनॉमिक हैंडल और लचीला स्विवेल डिज़ाइन गतिशीलता को और बेहतर बनाता है. एक्सप्रेसिववॉइस प्रॉम्प्ट और रीयल-टाइम इंटरैक्शन

एक्सप्रेसिव वॉइस प्रॉम्प्ट और रीयल-टाइम इंटरैक्शन

ड्रीम मोवा K10 प्रो सिर्फ़ सफ़ाई ही नहीं करता बल्कि संचार भी करता है. इस डिवाइस में ऑडिबल वॉइस प्रॉम्प्ट हैं जो उपयोगकर्ताओं को सफाई प्रक्रिया के दौरान मार्गदर्शन करते हैं, रीयल-टाइम अपडेट और रिमाइंडर प्रदान करते हैं. चाहे बैटरी कम होने का अलर्ट हो, टैंक फुल होने की सूचना हो या मोड बदलने की पुष्टि हो K10 प्रो आपको हर कदम पर सूचित रखता है.

इसके साथ ही एक आकर्षक एलईडी डिस्प्ले भी है जो बैटरी की स्थिति, सफाई मोड और रखरखाव अलर्ट जैसी ज़रूरी जानकारी प्रदान करता है. ये स्मार्ट फीचर मिल कर एक सहज सफ़ाई अनुभव प्रदान करते हैं ताकि आप ज़रूरी चीज़ों पर ध्यान केंद्रित कर सकें जबकि आपका K10 प्रो बाकी काम संभाल लेगा.

बिक्री के बाद सेवाएँ और वारंटी

Mova K10 Pro एक साल की वारंटी के साथ आता है. बिक्री के बाद सहायता टीम भी उपलब्ध है जो सुबह 9:00 बजे से शाम 6:00 बजे तक (सोमवार-शनिवार) और सुबह 10:00 बजे से शाम 4:00 बजे तक (रविवार) उपलब्ध है. कंपनी पिक-अप और ड्रॉप के साथ-साथ ऑन-साइट मरम्मत सेवाएं भी प्रदान करती है जो वर्तमान में भारत भर के 165 से अधिक शहरों में उपलब्ध हैं. वर्चुअल डेमो भी उपलब्ध हैं. ऑनलाइन प्रदर्शनों के माध्यम से ग्राहक अपने ड्रीमी उपकरणों को सेटअप और उपयोग करना सीख सकते हैं.

उपलब्धता और अनुभव क्षेत्र

ड्रीम मोवा K10 प्रो वेट एंड ड्राई वैक्यूम क्लीनर की कीमत ₹19,999 है और यह अमेज़न इंडिया और देश भर के क्रोमा स्टोर्स पर उपलब्ध है.

Dreame Mova K10 Pro

Kapil Sharma कलर्स पर लौटे और लाफ्टर शेप्स का बने हिस्सा

Kapil Sharma: वह पल आ चुका है, जो स्क्रीन पर किसी प्यारी सी याद की तरह लौटता महसूस होता है, जो एक झटके में माहौल खुशनुमा कर दे.

कपिल शर्मा कलर्स पर अपनी बहुप्रतीक्षित ‘घर वापसी’ के लिए पूरी तरह तैयार हैं. वही मंच जिस ने कभी उन्हें देशभर में स्टार बनाया था.

लंबी प्रतीक्षा

पूरे 11 साल बाद, टीवी के मनोरंजन सितारे ‘लाफ्टर शेफ अनलिमिटेड ऐंटरटेनमेंट’ में एक शानदार और बेहद चर्चित कमबैक करने जा रहे हैं. सीजन 3 पहले से ही अपने मसालेदार टैंपरिंग, हंसीमजाक और डिनरटेनमेंट के तड़के से धमाल मचा रहा हैं और अब कपिल की ऐंट्री के साथ स्क्रीन पर वही खास चार्म लौटने वाला है, जिसे सिर्फ वे ही ला सकते हैं.

कमबैक

इस कमबैक की मिठास तब और बढ़ जाती है, जब उन के साथ लौट रही है उन की आइकोनिक तिकड़ी कृष्णा अभिषेक और भारती सिंह, जिन के साथ मिल कर कभी कपिल ने भारतीय कौमेडी जगत पर राज किया था.

तीनों की बेफिक्र नोकझोंक, नैचुरल कौमिक तालमेल और अनफिल्टर्ड मस्ती अब एक बार फिर स्क्रीन पर जादू बिखेरने को तैयार है. इस बार लाफ्टर शेफ्स के उस किचन में जहां मसाले उड़ते हैं, सब्जियां तेजी से कटती हैं और हर पल कौमेडी से भरपूर अफरातफरी देखने को मिलती है.

नया सेटअप

कपिल पहली बार कलर्स के अपने किचन फैमिली ड्रामा में रचतेबसते नजर आएंगे, एक बिलकुल नया सेटअप, लेकिन कपिल की स्पौंटेनियस, फ्री-फ्लोइंग कौमेडी स्टाइल के लिए एकदम परफैक्ट मंच. जब प्रतियोगी जलतीउबलती कड़ाही, टफ प्रेप और मजेदार कुकिंग मुसीबतों के बीच दौड़तेभागते दिखेंगे.

कपिल अपनी सिग्नैचर पंचलाइंस, चटकदार टाइमिंग और शरारती ऊर्जा से हर सीन में तड़का लगाएंगे और हर मोमेंट को प्योर ऐंटरटेनमेंट बना देंगे.

दर्शकों के लिए यह एक ऐसी ट्रीट होने वाली है, जिस में होगी पुरानी यादों की खुशबू और कपिल के चुटीले वन लाइनर्स की भरपूर सर्विंग.

तो तैयार हो जाइए ‘लाफ्टर शेफ्स अनलिमिटेड ऐंटरटेनमेंट सीजन 3’  हर शनिवार और रविवार रात 9:00 बजे सिर्फ कलर्स पर.

Kapil Sharma

Big Boss Winner: गौरव खन्ना बने विनर, जानें क्या थी उनकी स्ट्रैटजी

Big Boss Winner: कलर्स चैनल का सबसे प्रसिद्ध रियलिटी शो बिग बौस पूरे हिंदुस्तान में प्रसिद्ध है, हर साल हिंदुस्तान के कोने-कोने से कई प्रतिभावान प्रतियोगी इस शो का हिस्सा बनते हैं, और इस शो की वजह से ग्लैमर इंडस्ट्री में अपनी अलग पहचान बनाते हैं.

इस बार भी बिग बौस 19 काफी चर्चा में रहा खास तौर पर इसलिए कि इस बार के बिग बौस में लड़ाईझगड़े से ज्यादा कौमेडी, इमोशंस और दोस्ती का रिश्ता ज्यादा चर्चा में रहा.

पिछले कई सीजन से बिग बौस में वही दिखता और बिकता था जो लड़ाई झगड़ा करता है, गाली गलौज करता है ताकि वह चर्चा में बना रहे और आखिर तक दिखे लेकिन इस बार बिग बौस के इतिहास में कुछ अलग हुआ.

इस बार बिग बौस का हिस्सा बने गौरव खन्ना जो पिछले 20 सालों से टीवी इंडस्ट्री का चेहरा है, और टीवी के प्रसिद्ध सीरियल अनुपमा, सीआईडी, यह प्यार ना होगा कम जैसे कई प्रसिद्ध सीरियल में काम कर चुके हैं. हाल ही में मास्टर शेफ में जीत भी हासिल कर चुके हैं. जब बिग बौस में उनकी एंट्री हुई तो कई लोगों ने उनको बिग बौस के प्रतियोगी के लायक ही नहीं समझा, क्योंकि गौरव खन्ना शांत स्वभाव के हैं किसी से लड़ना झगड़ना उनको पसंद नहीं था, वह तभी बोलते थे जब जरूरत होती थी, ऐसे में कई लोगों का मानना था कि वह लंबे समय तक इस शो में नहीं टिक पाएंगे, लेकिन सभी को गलत साबित करके गौरव खन्ना ने मास्टरमाइंड के साथ ना सिर्फ बिग बौस 19 की जीत हासिल की , बल्कि गौरव खन्ना ने साबित किया कि बिना लड़ाई झगड़ा किए दिमाग से खेल कर भी जीत हासिल की जा सकती है.

गौरव खन्ना ने अपने मास्टरमाइंड के साथ ना सिर्फ बिग बौस की ट्रॉफी अपने नाम की बल्कि इसके साथ 50 लाख का इनाम भी जीता. इसके साथ ही गौरव खन्ना से प्रभावित शो के होस्ट सलमान खान ने गौरव खन्ना को अपनी फिल्म में काम देने का ऑफर भी दिया. इसके साथ ही गौरव खन्ना बिग बौस 19 के फाइनल में फरहाना भट्ट को हराकर होस्ट सलमान खान के हाथों से जीत का ताज पहनकर बिग बौस 19 के विनर घोषित हुए.

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