Hindi Kahaniyan : अकाल्पनिक – वो रिश्ते जो न बताए जा सकते हैं न छिपाए

Hindi Kahaniyan :  रक्षाबंधन से एक रोज पहले ही मयंक को पहली तन्ख्वाह मिली थी. सो, पापामम्मी के उपहार के साथ ही उस ने मुंहबोली बहन चुन्नी दीदी के लिए सुंदर सी कलाई घड़ी खरीद ली.

‘‘सारे पैसे मेरे लिए इतनी महंगी घड़ी खरीदने में खर्च कर दिए या मम्मीपापा के लिए भी कुछ खरीदा,’’ चुन्नी ने घड़ी पहनने के बाद पूछा.

‘‘सब के लिए खरीदा है, दीदी, लेकिन अभी दिया नहीं है. शौपिंग करने और दोस्तों के साथ खाना खाने के बाद रात में बहुत देर से लौटा था. तब तक सब सो चुके थे. अभी मां ने जगा कर कहा कि आप आ गई हैं और राखी बांधने के लिए मेरा इंतजार कर रही हैं, फिर आप को जीजाजी के साथ उन की बहन के घर जाना है. सो, जल्दी से यहां आ गया, अब जा कर दूंगा.’’

‘‘अब तक तो तेरे पापा निकल गए होंगे राखी बंधवाने,’’ चुन्नी की मां ने कहा.

‘‘पापा तो कभी कहीं नहीं जाते राखी बंधवाने.’’

‘‘तो उन के हाथ में राखी अपनेआप से बंध जाती है? हमेशा दिनभर तो राखी बांधे रहते हैं और उन्हीं की राखी देख कर तो तूने भी राखी बंधवाने की इतनी जिद की कि गीता बहन और अशोक जीजू को चुन्नी को तेरी बहन बनाना पड़ा.’’ चुन्नी की मम्मी श्यामा बोली.

‘‘तो इस में गलत क्या हुआ, श्यामा आंटी, इतनी अच्छी दीदी मिल गईं मुझे. अच्छा दीदी, आप को देर हो रही होगी, आप चलो, अगली बार आओ तो जरूर देखना कि मैं ने क्या कुछ खरीदा है, पहली तन्ख्वाह से,’’ मयंक ने कहा.

मयंक के साथ ही मांबेटी भी बाहर आ गईं. सामने के घर के बरामदे में खड़े अशोक की कलाई में राखी देख कर श्यामा बोली, ‘‘देख, बंधवा आए न तेरे पापा राखी.’’

‘‘इतनी जल्दी आप कहां से राखी बंधवा आए पापा?’’ मयंक ने हैरानी से पूछा.

‘‘पीछे वाले मंदिर के पुजारी बाबा से,’’ गीता फटाक से बोली.

मयंक को लगा कि अशोक ने कृतज्ञता से गीता की ओर देखा. ‘‘लेकिन पुजारी बाबा से क्यों?’’ मयंक ने पूछा.

‘‘क्योंकि राखी के दिन अपनी बहन की

याद में पुजारी बाबा को ही कुछ दे सकते हैं न,’’ गीता बोली. ‘‘तू नाश्ता करेगा कि श्यामा बहन ने खिला दिया?’’

‘‘खिला दिया और आप भी जो चाहो खिला देना मगर अभी तो देखो, मैं क्या लाया हूं आप के लिए,’’ मयंक लपक कर अपने कमरे में चला गया. लौटा तो उस के हाथ में उपहारों के पैकेट थे.

‘‘इस इलैक्ट्रिक शेवर ने तो हर महीने शेविंग का सामान खरीदने की आप की समस्या हल कर दी,’’ अपना हेयरड्रायर सहेजती हुई गीता बोली.

‘‘हां, लेकिन उस से बड़ी समस्या तो पुजारी बाबा का नाम ले कर तुम ने हल कर दी,’’ अशोक की बात सुन कर अपने कमरे में जाता मयंक ठिठक गया. उस ने मुड़ कर देखा, मम्मीपापा बहुत ही भावविह्वल हो कर एकदूसरे को देख रहे थे. उस ने टोकना ठीक नहीं समझा और चुपचाप अपने कमरे में चला गया. बात समझ में तो नहीं आई थी पर शीघ्र ही अपने

नए खरीदे स्मार्टफोन में व्यस्त हो कर वह सब भूल गया.

एक रोज कंप्यूटर चेयरटेबल खरीदते  हुए शोरूम में बड़े आकर्षक  डबलबैड नजर आए. मम्मीपापा के कमरे में थे तो सिरहाने वाले पलंग मगर दोनों के बीच में छोटी मेज पर टेबललैंप और पत्रिकाएं वगैरा रखी रहती थीं. क्यों न मम्मीपापा के लिए आजकल के फैशन का डबलबैड और साइड टेबल खरीद ले. लेकिन डिजाइन पसंद करना मुश्किल हो गया. सो, उस ने मम्मीपापा को दिखाना बेहतर समझा. डबलबैड के ब्रोशर देखते ही गीता बौखला गई, ‘‘हमें

हमारे पुराने पलंग ही पसंद हैं, हमें डबलवबल बैड नहीं चाहिए.’’

‘‘मगर मुझे तो घर में स्टाइलिश फर्नीचर चाहिए. आप लोग अपनी पसंद नहीं बताते तो न सही, मैं अपनी पसंद का बैडरूम सैट ले आऊंगा,’’ मयंक ने दृढ़स्वर में कहा.

गीता रोंआसी हो गई और सिटपिटाए से खड़े अशोक से बोली, ‘‘आप चुप क्यों हैं,

रोकिए न इसे डबलबैड लाने से. यह अगर डबलबैड ले आया तो हम में से एक को जमीन पर सोना पड़ेगा और आप जानते हैं कि जमीन

पर से न आप आसानी से उठ सकते हैं और न मैं.’’

‘‘लेकिन किसी एक को जमीन पर सोने की मुसीबत क्या है?’’ मयंक ने झुंझला कर कहा, ‘‘पलंग इतना चौड़ा है कि आप दोनों के साथ मैं भी आराम से सो सकता हूं.’’

‘‘बात चौड़ाई की नहीं, खर्राटे लेने की मेरी आदत की है, मयंक. दूसरे पलंग पर भी तुम्हारी मां मेरे खर्राटे लेने की वजह से मुंहसिर लपेट कर सोती है. मेरे साथ एक कमरे में सोना तो उस की मजबूरी है, लेकिन एक पलंग पर सोना तो सजा हो जाएगी बेचारी के लिए. इतना जुल्म मत कर अपनी मां पर,’’ अशोक ने कातर स्वर में कहा.

‘‘ठीक है, जैसी आप की मरजी,’’ कह कर मयंक मायूसी से अपने कमरे में चला गया और सोचने लगा कि बचपन में तो अकसर कभी मम्मी और कभी पापा के साथ सोता था और अभी कुछ महीने पहले अपने कमरे का एअरकंडीशनर खराब होने पर जब फर्श पर गद्दा डाल कर मम्मीपापा के कमरे में सोया था तो उसे तो पापा के खर्राटों की आवाज नहीं आई थी.

मम्मीपापा वैसे ही बहुत परेशान लग रहे थे, जिरह कर के उन्हें और व्यथित करना ठीक नहीं होगा. जान छिड़कते हैं उस पर मम्मीपापा. मम्मी के लिए तो उस की खुशी ही सबकुछ है. ऐसे में उसे भी उन की खुशी का खयाल रखना चाहिए. उस के दिमाग में एक खयाल कौंधा, अगर मम्मीपापा को आईपैड दिलवा दे तो वे फेसबुक पर अपने पुराने दोस्तों व रिश्तेदारों को ढूंढ़ कर बहुत खुश होंगे.

हिमाचल में रहने वाले मम्मीपापा घर वालों की मरजी के बगैर भाग कर शादी कर के, दोस्तों की मदद से अहमदाबाद में बस गए थे. न कभी स्वयं घर वालों से मिलने गए और न ही उन

लोगों ने संपर्क करने की कोशिश की. वैसे तो मम्मीपापा एकदूसरे के साथ अपने घरसंसार में सर्वथा सुखी लगते थे, मयंक के सौफ्टवेयर इंजीनियर बन जाने के बाद पूरी तरह संतुष्ट भी. फिर भी गाहेबगाहे अपनों की याद तो आती ही होगी.

‘‘क्यों भूले अतीत को याद करवाना चाहता है?’’ गीता ने आईपैड देख कर चिढ़े स्वर में कहा, ‘‘मुझे गड़े मुर्दे उखाड़ने का शौक नहीं है.’’

‘‘शौक तो मुझे भी नहीं है लेकिन जब मयंक इतने चाव से आईपैड लाया है तो मैं भी उतने ही शौक से उस का उपयोग करूंगा,’’ अशोक ने कहा.

‘‘खुशी से करो, मगर मुझे कोई भूलाबिसरा चेहरा मत दिखाना,’’ गीता ने जैसे याचना की.

‘‘लगता है मम्मी को बहुत कटु अनुभव हुए हैं?’’ मयंक ने अशोक से पूछा.

‘‘हां बेटा, बहुत संत्रास झेला है बेचारी ने,’’ अशोक ने आह भर कर कहा.

‘‘और आप ने, पापा?’’

‘‘मैं ने जो भी किया, स्वेच्छा से किया, घर वाले जरूर छूटे लेकिन उन से भी अधिक स्नेहशील मित्र और सब से बढ़ कर तुम्हारे जैसा प्यारा बेटा मिल गया. सो, मुझे तो जिंदगी से कोई शिकायत नहीं है,’’ अशोक ने मुसकरा कर कहा.

कुछ समय बाद मयंक की, अपनी सहकर्मी सेजल मेहता में दिलचस्पी देख कर गीता और अशोक स्वयं मयंक के लिए सेजल का हाथ मांगने उस के घर गए.

‘‘भले ही हम हिमाचल के हैं पर वर्षों से यहां रह रहे हैं, मयंक का तो जन्म ही यहीं हुआ है. सो, हमारा रहनसहन आप लोगों जैसा ही है, सेजल को हमारे घर में कोई तकलीफ नहीं होगी, जयंतीभाई,’’ अशोक ने कहा.

‘‘सेजल की हमें फिक्र नहीं है, वह अपने को किसी भी परिवेश में ढाल सकती है,’’ जयंतीभाई मेहता ने कहा. ‘‘चिंता है तो बस उस के दादादादी की, अपनी परंपराओं को ले कर दोनों बहुत कट्टर हैं. हां, अगर शादी उन के बताए रीतिरिवाज के अनुसार होती है तो वे इस रिश्ते के लिए मना नहीं करेंगे.’’

‘‘वैसे तो हम कोई रीतिरिवाज नहीं करने वाले थे, पर सेजल की दादी की खुशी के लिए जैसा आप कहेंगे, कर लेंगे,’’ गीता ने सहजता से कहा, ‘‘आप बस जल्दी से शादी की तारीख तय कर के हमें बता दीजिए कि हमें क्या करना है.’’

सब सुनने के बाद मयंक ने कहा, ‘‘यह आप ने क्या कह दिया, मम्मी, अब तो उन के रिवाज के अनुसार, सेजल की मां, दादी, नानी सब को मेरी नाक पकड़ कर मेरा दम घोंटने का लाइसैंस मिल गया.’’

गीता हंसने लगी, ‘‘सेजल के परिवार से संबंध जोड़ने के बाद उन के तौरतरीकों और बुजुर्गों का सम्मान करना तुम्हारा ही नहीं, हमारा भी कर्तव्य है.’’

गीता बड़े उत्साह से शादी की तैयारियां करने लगी. अशोक भी उतने ही हर्षोल्लास से उस का साथ दे रहा था.

शादी से कुछ रोज पहले, मेहता दंपत्ती उन के घर आए.

‘‘शादी से पहले हमारे यहां हवन करने का रिवाज है, जिस में आप का आना अनिवार्य है,’’ जयंतीभाई ने कहा, ‘‘आप को रविवार को जब भी आने में सुविधा हो, बता दें, हम उसी समय हवन का आयोजन कर लेंगे. वैसे हवन में अधिक समय नहीं लगेगा.’’

‘‘जितना लगेगा, लगने दीजिए और जो समय सेजल की दादी को हवन के लिए उपयुक्त लगता है, उसी समय  करिए,’’ गीता, अशोक के बोलने से पहले ही बोल पड़ी.

‘‘बा, मेरा मतलब है मां तो हमेशा हवन ब्रह्यबेला में यानी ब्रैकफास्ट से पहले ही करवाती हैं.’’ जयंतीभाई ने जल्दी से पत्नी की बात काटी, कहा, ‘‘ऐसा जरूरी नहीं है, भावना, गोधूलि बेला में भी हवन करते हैं.’’

‘‘सवाल करने का नहीं, बा के चाहने का है. सो, वे जिस समय चाहेंगी और जैसा करने को कहेंगी, हम सहर्ष वैसा ही करेंगे,’’ गीता ने आश्वासन दिया.

‘‘बस, हम दोनों के साथ बैठ कर आप को भी हवन करना होगा. बच्चों के मंगल भविष्य के लिए दोनों के मातापिता गठजोड़े में बैठ कर यह हवन करते हैं,’’ भावना ने कहा.

गीता के चेहरे का रंग उड़ गया और वह चाय लाने के बहाने रसोई में चली गई. जब वह चाय ले कर आई तो सहज हो चुकी थी. उस ने भावना से पूछा कि और कितनी रस्मों में वर के मातापिता को शामिल होना होगा?

‘‘वरमाला को छोड़ कर, छोटीमोटी सभी रस्मों में आप को और हमें बराबर शामिल होना पड़ेगा?’’ भावना हंसी, ‘‘अच्छा है न, कुछ देर को ही सही, भागदौड़ से तो छुट्टी मिलेगी.’’

‘‘दोनों पतिपत्नी का एकसाथ बैठना जरूरी होगा?’’ गीता ने पूछा.

‘‘रस्मों के लिए तो होता ही है,’’ भावना ने जवाब दिया.

‘‘वैसा तो हिमाचल में भी होता है,’’ अशोक ने जोड़ा, ‘‘अगर वरवधू के मातापिता में से एक न हो तो विवाह की रस्में किसी अन्य जोड़े चाचाचाची वगैरा से करवाई जाती हैं.’’

‘‘बहनबहनोई से भी करवा सकते हैं?’’ गीता ने पूछा.

‘‘हां, किसी से भी, जिसे वर या वधू का परिवार आदरणीय समझता हो,’’ भावना बोली.

मयंक को लगा कि गीता ने जैसे राहत की सांस ली है. मेहता दंपती के जाने के बाद गीता ने अशोक को बैडरूम में बुलाया और दरवाजा बंद कर लिया. मयंक को अटपटा तो लगा पर उस ने दरवाजा खटखटाना ठीक नहीं समझा. कुछ देर के बाद दोनों बाहर आ गए और गीता फोन पर नंबर मिलाने लगी.

‘‘हैलो, चुन्नी… हां, मैं ठीक हूं… अभी तुम और प्रमोदजी घर पर हो, हम मिलना चाह रहे हैं, तुम्हारे भाई की शादी है. भई, बगैर मिले कैसे काम चलेगा… यह तो बड़ी अच्छी बात है… मगर कितनी भी देर हो जाए आना जरूर, बहुत जरूरी बात करनी है.’’ फोन रख कर गीता अशोक की ओर मुड़ी, ‘‘चुन्नी और प्रमोद दोस्तों के साथ बाहर खाना खाने जा रहे हैं, लौटते हुए यहां आएंगे.’’

‘‘ऐसी क्या जरूरी बात करनी है दीदी से जिस के लिए उन्हें आज ही आना पड़ेगा?’’ मयंक ने पूछा.

गीता और अशोक ने एकदूसरे की ओर देखा. ‘‘हम चाहते हैं कि तुम्हारे विवाह की सब रस्में तुम्हारी चुन्नी दीदी और प्रमोद जीजाजी निबाहें ताकि मैं और गीता मेहमानों की यथोचित आवभगत कर सकें,’’ अशोक ने कहा.

‘‘मेहमानों की देखभाल करने को मेरे बहुत दोस्त हैं और दीदीजीजा भी. आप दोनों की जो भूमिका है यानी मातापिता वाली, आप लोग बस वही निबाहेंगे,’’ मयंक ने दृढ़ स्वर में कहा.

‘‘उस में कई बार जमीन पर बैठना पड़ता है जो अपने से नहीं होता,’’ गीता ने कहा.

‘‘जमीन पर बैठना जरूरी नहीं है, चौकियां रखवा देंगे कुशन वाली.’’

‘‘ये करवा देंगे वो करवा देंगे से बेहतर है चुन्नी और प्रमोद से रस्में करवा ले,’’ गीता ने बात काटी. ‘‘तेरी चाहत देख कर हम बगैर तेरे कुछ कहे सेजल से तेरी शादी करवा रहे हैं न, अब तू चुपचाप जैसे हम चाहते हैं वैसे शादी करवा ले.’’

‘‘कमाल करती हैं आप भी, अपने मांबाप के रहते मुंहबोली बहनबहनोई से मातापिता वाली रस्में कैसे करवा लूं?’’ मयंक ने झल्ला कर पूछा.

‘‘अरे बेटा, ये रस्मेंवस्में सेजल की दादी को खुश करने को हैं, हम कहां मानते हैं यह सब,’’ अशोक ने कहा.

‘‘अच्छा? पुजारी बाबा से राखी किसे खुश करने को बंधवाते हैं?’’ मयंक ने व्यंग्य से पूछा और आगे कहा, ‘‘मैं अब बच्चा नहीं रहा पापा, अच्छी तरह समझ रहा हूं कि आप दोनों मुझ से कुछ छिपा रहे हैं. आप को बताने को मजबूर नहीं करूंगा लेकिन एक बात समझ लीजिए, अपनों का हक मैं मुंहबोली बहन को कभी नहीं दूंगा.’’

‘‘अब बात जब अपनों और मुंहबोले रिश्ते पर आ गई है, गीता, तो हमें मयंक को असलियत भी बता देनी चाहिए,’’ अशोक मयंक की ओर मुड़ा, ‘‘मैं भी तुम्हारा अपना नहीं. मुंहबोला पापा, बल्कि मामा हूं. गीता मेरी मुंहबोली बहन है. मैं किसी पुजारी बाबा से नहीं, गीता से राखी बंधवाता हूं. पूरी कहानी सुनना चाहोगे?’’

स्तब्ध खड़े मयंक ने सहमति से सिर हिलाया.

‘‘मैं और गीता पड़ोसी थे. हमारी कोईर् बहन नहीं थी, इसलिए मैं और मेरा छोटा भाई गीता से राखी बंधवाते थे. अलग घरों में रहते हुए भी एक ही परिवार के सदस्य जैसे थे हम. जब मैं चंडीगढ़ में इंजीनियरिंग कर रहा था तो मेरे कहने पर और मेरे भरोसे गीता के घर वालों ने इसे भी चंडीगढ़ पढ़ने के लिए भेज दिया. वहां यह रहती तो गर्र्ल्स होस्टल में थी लेकिन लोकल गार्जियन होने के नाते मैं इसे छुट्टी वाले दिन बाहर ले जाता था.

‘‘मेरा रूममेट नाहर सिंह राजस्थान के किसी रजवाड़े परिवार से था, बहुत ही शालीन और सौम्य, इसलिए मैं ने गीता से उस का परिचय करवा दिया. कब और कैसे दोनों में प्यार हुआ, कब दोनों ने मंदिर में शादी कर के पतिपत्नी का रिश्ता बना लिया, मुझे नहीं मालूम. जब मैं एमबीए के लिए अहमदाबाद आया तो गीता एक सहेली के घर पर रह कर प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रही थी. नाहर चंडीगढ़ में ही मार्केटिंग का कोर्स कर रहा था.

‘‘मुझे होस्टल में जगह नहीं मिली थी और मैं एक दोस्त के घर पर रहता था. अचानक गीता मुझे ढूंढ़ती हुई वहां आ गई. उस ने जो बताया उस का सारांश यह था कि उस ने और नाहर ने मंदिर में शादी कर ली थी और उस के गर्भवती होते ही नाहर उसे यह आश्वासन दे कर घर गया था कि वह इमोशनल ब्लैकमेल कर के अपनी मां को मना लेगा और फिर सबकुछ अशोक को बता कर अपने घर वालों को सूचित कर देना.

‘‘उसे गए कई सप्ताह हो गए थे और ढीले कपड़े पहनने के बावजूद भी बढ़ता पेट दिखने लगा था. दिल्ली में कुछ हफ्तों की कोचिंग लेने के बहाने उस ने घर से पैसे मंगवाए थे और मेरे पास आ गई थी. मैं और गीता नाहर को ढूंढ़ते हुए बीकानेर पहुंचे. नाहर का घर तो मिल गया मगर नाहर नहीं, वह अपने साले के साथ शिकार पर गया हुआ था. घर पर उस की पत्नी थी. सुंदर और सुसंस्कृत, पूछने पर कि नाहर की शादी कब हुई, उस ने बताया कि चंडीगढ़ जाने से पहले ही हो गईर् थी. नाहर के आने का इंतजार किए बगैर हम वापस अहमदाबाद आ गए.

‘‘समय अधिक हो जाने के कारण न तो गीता का गर्भपात हो सकता था और न ही वह घर जा सकती थी. मैं उस से शादी करने और बच्चे को अपना नाम देने को तैयार था. लेकिन न तो यह रिश्ता गीता और मेरे घर वालों को मंजूर होता न ही गीता अपने राखीभाई यानी मुझ को पति मानने को तैयार थी.

‘‘नाहर से गीता का परिचय मैं ने ही करवाया था, सो दोनों के बीच जो हुआ, उस के लिए कुछ हद तक मैं भी जिम्मेदार था. सो, मैं ने निर्णय लिया कि मैं गीता से शादी तो करूंगा, उस के बच्चे को अपना नाम भी दूंगा लेकिन भाईबहन के रिश्ते की गरिमा निबाहते हुए दुनिया के लिए हम पतिपत्नी होंगे, मगर एकदूसरे के लिए भाईबहन. इतने साल निष्ठापूर्वक भाईबहन का रिश्ता निबाहने के बाद गीता नहीं चाहती कि अब वह गठजोड़ा वगैरा करवा कर इस सात्विक रिश्ते को झुठलाए. मैं समझता हूं कि हमें उस की भावनाओं की कद्र करनी चाहिए.’’

‘‘जैसा आप कहें,’’ मयंक ने भर्राए स्वर में कहा, ‘‘आप ने जो किया है, पापा, वह अकाल्पनिक है, जो कोई सामान्य व्यक्ति नहीं महापुरुष ही कर सकता है.’’

कुछ देर बाद वह लौटा और बोला, ‘‘पापा, मैं सेजल की दादी से बता कर आता हूं. हम दोनों अदालत में शादी करेंगे और फिर शानदार रिसैप्शन आप दे सकते हैं. दादी को सेजल ने कैसे बताया, क्या बताया, मुझे नहीं मालूम. पर आप की बात सुन कर वह तुरंत तैयार हो गई.’’

गीता और अशोक ने एकदूसरे को देखा. उन के बेटे ने उन की इज्जत रख ली.

Hindi Stories Online : चिड़िया खुश है – बड़े घर की बहू बनते ही अपनी पहचान भूल गई नमिता

Hindi Stories Online :  नमिता और अजय की आज शादी है. हमारे शहर के सब से बड़े उद्योगी परिवार का बेटा है अजय, जो अमेरिका से पढ़ाई पूरी कर के अपना कारोबार संभालने हिंदुस्तान आ गया है. अजय के बारे में अखबारों में बहुत कुछ पढ़ने को मिला था. उस की उद्योग विस्तार की योजना, उस की सोच, उस की दूरदृष्टि वगैरहवगैरह और नमिता, हमारे साथ पढ़ने वाली बेहद खूबसूरत लड़की. नमिता की खूबसूरती और उस के कमिश्नर पापा का समाज में रुतबा, इसी के बलबूते पर तो यह शादी तय हुई थी.

कला, काव्य, संगीत आदि सारे रचनात्मक क्षेत्रों में रुचि रखने वाली और पढ़ाई कर के कुछ बनने की चाह रखने वाली नमिता ने अजय जैसा अमीर और पढ़ालिखा वर पाने के लिए अपनी पढ़ाई अधूरी छोड़ दी. रईस खानदान में शादी की तुलना में पढ़ाई का कोई महत्त्व नहीं रहा.

शादी में पानी की तरह पैसा बहाया गया. शादी के फोटो न केवल भारत में बल्कि विदेशी पत्रिकाओं में भी छपवाए गए. नमिता की खूबसूरती के बहुत चर्चे हुए. नवविवाहित जोड़ा हनीमून के लिए कहां गया, इस के भी चर्चे अखबारों में हुए. फिर आए दिन नमिता की तसवीरें गौसिप पत्रिकाओं में छपने लगीं. लोग उसे रईस कहने लगे और वह पेज 3 की सदस्य बन गई.

एक दिन उस्ताद जाकिर हुसैन का तबलावादन का कार्यक्रम हमारे शहर में था. हम दोस्तों ने नमिता को फोन किया और पूछा, ‘‘चलोगी उस्ताद जाकिर हुसैन का तबला सुनने?’’

हंस कर वह बोली, ‘‘मैं तो कल शाम ही उन से मिलने होटल में गई थी. हमारे बिजनैस हाउस ने ही तो यह कार्यक्रम आयोजित किया है. आज रात उन का खाना हमारे घर पर है. अजय चाहते हैं घर की सजावट खास भारतीय ढंग से हो और व्यंजन भी लजीज हों. इसलिए आज मुझे घर पर रह कर सभी इंतजाम देखने होंगे. आप लोग तबलावादन सुन कर आओ न. हां, आप लोगों को फ्री पास चाहिए तो बताना, मैं इंतजाम कर दूंगी.’’

हम दोस्तों ने उस का आभार मानते हुए फोन रख दिया.

एक दिन पेज 3 पर हम ने उस की तसवीरें देखीं. बेशकीमती साड़ी पहने, मेकअप से सजीधजी गुडि़या जैसी नमिता अनाथालय के बच्चों को लड्डू बांट रही थी. ऐसे बच्चे, जो एक वक्त की रोटी के लिए किसी के एहसान के मुहताज हैं. उन के पास जाते हुए कीमती साड़ी व गहने पहन कर जाना कितना उचित था? वह चाहे गलत हो या सही, मगर बड़े उद्योगी परिवार की सोच शायद यही थी कि बहू की फोटो अनाथों के साथ छपेगी तो वह ऐसी ही दिखनी चाहिए.

उस के जन्मदिन पर बधाई देने के लिए हम ने उसे फोन मिलाना चाहा. काफी देर तक कोई जवाब नहीं मिला, तो हम ने सोचा नमिता अजय के साथ अपना जन्मदिन मना रही होगी. दोनों कहीं बाहर घूमने गए होंगे.

2 घंटे बाद उस का फोन आया, ‘‘मैं तो फलां मंत्रीजी की पत्नी के साथ चाय पार्टी में व्यस्त थी.’’

‘‘मगर उस मंत्री की बीवी के साथ तुम क्या कर रही थीं, वह भी आज के दिन? काफी देर तक तुम ने फोन नहीं उठाया, तो हमें लगा तुम और अजय कहीं घूमने गए होगे.’’

‘‘नहीं रे, अजय एक नई फैक्टरी शुरू करना चाहते हैं. कल उसी फैक्टरी के प्रोजैक्ट की फाइल मंत्रीजी के दफ्तर में जाने वाली है. सब काम सही ढंग से हो जाए, इस के लिए मंत्रीजी की पत्नी से मैं मिलने गई थी. जब पापा कमिश्नर थे, तब इन मंत्रीजी से थोड़ीबहुत जानपहचान थी. अजय कहते हैं, ऐसे निजी संबंध बड़े काम आते हैं.’’

‘‘फिर भी नमिता… शादी के बाद अजय के साथ यह तुम्हारा पहला जन्मदिन है?’’

‘‘अजय ने तो सवेरे ही मुझे सरप्राइज गिफ्ट दे कर मेरा जन्मदिन मनाया. पैरिस से मेरे लिए औरेंज कलर की साड़ी ले कर आए थे.’’

‘‘नमिता, औरेंज कलर तो तुम्हें बिलकुल पसंद नहीं है. क्या वाकई तुम्हें वह साड़ी अच्छी लगी?’’ हम ने पूछा.

‘‘अजय चाहते थे कि मैं औरेंज कलर के कपड़े पहन कर मंत्रीजी की पत्नी से मिलने जाऊं. मंत्रीजी बीजेपी के हैं न.’’

शादी को 1 साल हो गया, तो नमिता के बंगले के लौन में ही बड़ी सी पार्टी का आयोजन था. हम दोस्तों को भी नमिता ने न्योता भेजा, तो हम सारे दोस्त उसे बधाई देने उस के बंगले पर पहुंचे. बंगले के सामने ही बड़ी सी विदेशी 2 करोड़ की गाड़ी खड़ी थी.

नमिता ने चहकते हुए कहा, ‘‘डैडीजी, यानी ससुरजी ने यह कार हमें तोहफे में दी है.’’

‘‘नमिता, तुम्हें तो जंगल ट्रैक में ले जाने लायक ओपन जीप पसंद है.’’

‘‘हां, मगर अजय कहते हैं ऐसी जीप में घूमना फूहड़ लगता है. यह रंग और मौडल अजय ने पसंद किया और डैडी ने खरीद ली. अच्छी है न?’’

पार्टी में ढेरों फोटो खींचे जा रहे थे. गौसिप मैगजीन में अब चर्चे होंगे. नमिता ने किस डिजाइनर की साड़ी पहनी थी, कौन से मेक के जूते पहने थे, कौन से डायमंड हाउस से उस का हीरों का सैट बन कर आया था वगैरहवगैरह…

मम्मीडैडी की पसंद ऐसी है, अजय ऐसा चाहते हैं, अजय वैसा सोचते हैं, पार्टी का आयोजन कैसा होगा, मेन्यू क्या होगा, यह सब कुछ जैसा अजय चाहते हैं वैसा होता है, हम ने नमिता से सुना.

दया आई नमिता पर. नमिता, एक बार अपने अंदर झांक कर तो देखो कि तुम क्या चाहती हो? तुम्हारा वजूद क्या है? तुम्हारी अपनी पहचान क्या है? तुम किस व्यक्तित्व की मलिका हो?

शादी के बाद मात्र एक दिखावटी गुडि़या बन कर रह गई हो. अच्छे कपड़े, भारी गहने, बेशकीमती गाडि़यों में घूमने वाली रईस. मंत्री की पत्नी तक पहुंचने का एक जरिया. यह सब जो तुम कर रही हो, इस में तुम्हारी सोच, चाहत, पसंदनापसंद कहां है? तुम तो एक नुमाइश की चीज बन कर रह गई हो.

फिर भी तुम खुश हो? इंसान पढ़लिख कर अपनी सोच से समाज में अपना स्थान, अपनी पहचान बनाना चाहता है. शादी के बाद अमीरी के साथसाथ समाज में रुतबा तो तुम्हें मिल गया. फिर अपने सोचविचारों से कुछ बनने की, अपना अस्तित्व, अपनी पहचान बनाने की तुम ने जरूरत ही नहीं समझी? दूसरों की सोच तुम्हारा दायरा बन कर रह गई. दूसरों का कहना व उन की पसंदनापसंद को मानते हुए तुम चारदीवारी में सिमट कर रह गईं.

चिडि़या जैसी चहकती हुई नमिता पार्टी में इधरउधर घूम रही थी. मोतियों का चारा पा कर यह चिडि़या बहुत खुश थी. चांदी की थाली में खाना खाते हुए उसे बड़ा आनंद आ रहा था.

अपनी उपलब्धि पर इतराती नमिता अपनेआप को बड़ी खुशकिस्मत समझती थी. नमिता को देख कर ऐसा लगता था, उस की खुशी व चहचहाना इसलिए है, क्योंकि वह समझ नहीं रही है कि वह सोने के पिंजरे की चिडि़या बन गई है. यहां उस के लिए अपनी सोच की उड़ान भरना नामुमकिन है.

अपनी पसंदनापसंद से जिंदगी जीने की उसे इजाजत नहीं है. खुद की जिंदगी पर वह अपने व्यक्तित्व की मुहर नहीं लगा सकती. अपनी जिंदगी पर उस का कोई अधिकार नहीं है.

सोने के पिंजरे में बंद वह बड़ी खुशहाल जिंदगी बिता रही है, लेकिन वह अपनी पहचान मिटा रही है. सोने के पिंजरे में यह चिडि़या इसलिए बहुत खुश है, क्योंकि इसे अपनी कैद का एहसास नहीं है.

Summer Recipe Ideas : गरमियों के लिए परफैक्ट है ये रेसिपी, खाने में है बेहद लाइट

Summer Recipe Ideas : गरमियों का मौसम शुरू हो चुका है. गरमियों में चूंकि दिन काफी लंबे होते हैं इसलिए शाम होतेहोते भूख लगना स्वाभाविक होता है पर इन दिनों सब से बड़ी समस्या यह होती है कि अधिक गरमी के कारण किचन में जाने का ही मन नहीं करता और हम ऐसी रैसिपीज की तलाश करते हैं जिन्हें आसानी से कम से कम समय में बनाया जा सके.

आज हम आप को ऐसी ही कुछ हैल्दी और मिनटों में बन जाने वाली रैसिपीज बनाना बता रहे हैं जिन्हें आप मिनटों में घर की सामग्री से ही बना सकती हैं. वर्किंग और बैचलर्स भी इन्हें आसानी से बना सकते हैं। तो आइए, जानते हैं कि इन्हें कैसे बनाते हैं :

शाकशुका ग्रेवी

नार्थ अफ्रीकन व्यंजन शाकशुका इडली को बनाने के लिए 3 टमाटर, 1 प्याज, 2 काली लहसुन और 1 इंच अदरक को एक साथ पीस लें. पिसे मिश्रण को तेल, मसालों के साथ भून लें। जब मसाला तेल छोड़ दे तो इस में 100 ग्राम पनीर क्रंबल कर के डालें. नमक और हरा धनियापत्ती डालें. अब आप इस में पके चावल या तैयार सूजी अथवा दाल की इडली डाल कर शाकशुका इडली, शाकशुका राइस तैयार कर सकती हैं.

ओनियन पीनट रायता

रोस्टेड पीनट्स, बारीक कटे प्याज को ताजे गाढ़े दही में मिक्स करें. अब इस में कालीमिर्च पाउडर, रोस्टेड जीरा पाउडर, कालानमक, भुना सौंफ पाउडर डालें. ¼ टीस्पून सरसों के तेल को गरम करके करी लीव्स, राई के दाने और हींग का बघार लगाएं. बारीक कटे हरे प्याज से गार्निश कर के सर्व करें.

साउथ इंडियन सलाद

भीगी हुई धुली 1 कप मूंगदाल में बारीक कटी ककड़ी, बारीक कटी हरीमिर्च, घिसा गाजर, घिसा हरा नारियल, कटा हरा धनिया, नीबू का रस, कालानमक, कालीमिर्च पाउडर अच्छी तरह मिलाएं. अब ½ टीस्पून सरसों के तेल में राई, सूखी लालमिर्च, करीपत्ता और हींग का बघार लगा कर सलाद में मिक्स करें. हाई प्रोटीन साउथ इंडियन सलाद को आप किसी भी मील में खा सकते हैं.

कैबेज पैनकेक

1 कप चावल का आटा, 1 कप बेसन, बारीक कटे गाजर, पत्तागोभी, प्याज, हरीमिर्च, धनियापत्ती, नमक, हींग, जीरा को एक मिक्सिंग बाउल में डाल कर अच्छी तरह चलाएं. 1 कप पानी डाल कर 10 मिनट के लिए ढंक कर रखें. एक नौनस्टिक पैन में चिकनाई लगाकर मोटामोटा पैनकेक बनाएं. दोनों तरफ से सुनहरा होने तक सेंक कर चटनी या दही के साथ सर्व करें.

ड्रमस्टिक राइस

1 कप चावल को 2 कप पानी में 20 मिनट के लिए भिगो दें. ड्रमस्टिक अथवा सहजन की फली को बीच से काट कर गूदे को निकाल कर चौपर से बारीक काट लें. गरम तेल में प्याज, लहसुन, अदरक और हरीमिर्च को भून कर मसाले, कटी सब्जियां और सहजन का गूदा मिलाकर चलाएं. भीगे चावल और नमक डाल कर प्रेशर कुकर बंद कर दें. फुल फ्लेम पर 1 सीटी ले कर और धीमी आंच पर 1 सीटी ले कर गैस बंद कर दें. 5 मिनट बाद कुकर खोल कर दही और अचार के साथ सर्व करें.

Film Promotion के लिए प्रेस कौन्फ्रेंस है दिखावा

Film Promotion : बौलीवुड के बहुत से कलाकार आजकल अपनी फिल्म का प्रमोशन करने के लिए प्रेस कौन्फ्रेंस और सोशल मीडिया का सहारा लेते हैं. उन्हें लगता है इससे उनकी फिल्में दर्शकों तक पहुंच जाएगी, लेकिन ऐसा नहीं होता. दिखावे का प्रेस कौन्फ्रेंस और रियलिटी शो तक पब्लिसिटी करने से फिल्म को किसी प्रकार की माइलेज नहीं मिलती. यही वजह है कि बौलीवुड के कई कलाकार, प्रेस कौन्फ्रेंस कर फिल्म के हिट होने का इंतजार करते हैं और अंत में फिल्म फ्लौप हो जाती हैं, क्योंकि दर्शकों को पता ही नहीं चलता है कि फिल्म कब आई और कब गई.

आज के अधिकतर बड़ेबड़े फिल्मों के कलाकार चाहे शाहरुख खान हो या सलमान खान या आमिर खान सभी आर्टिस्ट और निर्देशक आजकल वैसे ही नियमों को अपनाते जा रहे हैं. यही वजह है कि उनकी अधिकतर फिल्में फ्लौप हो रही हैं, क्योंकि दर्शकों को फिल्म की सही कहानी का पता नहीं चलता, प्रेस कौन्फ्रेंस के दौरान जो बातें सार्वजनिक तौर पर कही जाती है, उसे दर्शक फिल्मों में नहीं देख पाते और हौल खाली रहते है. केवल फोटोग्राफर की मारा मारी वाली भीड़ और हजारों की संख्या में क्लिक, किसी फिल्म को प्रमोट नहीं कर सकती, क्योंकि बिना कंटेन्ट के ये फोटोग्राफ किसी काम की नहीं होती.

असल में आज के प्रेस कौन्फ्रेंस सिर्फ एक दिखावा मात्र रह गया है, जिसमें फिल्मों के लिए किए गए पब्लिसिटी पहले से फिक्स किये हुए होते हैं, मसलन पैड क्राउड की आजकल भरमार है, जानकारों के अनुसार प्रेस कौन्फ्रेंस में भीड़ इकट्ठा करने के लिए एजेंसी का सहारा लेती है, जिसमें पैसे देकर लोगों को बुलाया जाता है, ऐसे कई लोग है, जहां उन्हे एक दिन के लिए दो सौ रुपये दिए जाते है, उनका काम किसी भी कलाकार के बात करने पर प्रेस कौन्फ्रेंस में ताली या सीटी बजाना होता है.

किये जाते हैं तैयार फैंस

इन स्थानों पर फैंस भी तैयार किये जाते है, जानकारों की मानें तो बौलीवुड स्टार्स को फिल्मों मे आने से पहले आजकल उन्हे फैंस से बातें करना सिखाया जाता है, ताकि उनके फैन फौलोअर्स बढ़े और उनकी फिल्में सफल हो.

पैड इंफ्लुएंसर

पैड इंफ्लुएंसर आज सोशल मीडिया पर लाखों की संख्या में है. ये लोग पैसा देने पर उस फिल्म की पब्लिसीटी करते है और हाइप देने की कोशिश करते है, जो कई बार किसी काम की नहीं होती.

एआई जेनरेटेड डीप फेक

एआई जेनरेटेड डीप फेक का सहारा लेकर आज के बौलीवुड स्टार्स किसी फिल्म फेक पब्लिसिटी और गलत इनफार्मेशन चारों तरफ फैलाते हैं, इतना ही नहीं वे पैसे देखकर फेक रिव्यू भी निकालते हैं, जिसमें फिल्म की अच्छी बातों को गिनाया जाता है और दर्शक को उस फिल्म को देखने पर निराशा हाथ लगती है, ऐसी फिल्में दर्शकों के लिए तरसती है, जैसा फिल्म सिकंदर के साथ हुआ.

संवाद की कमी पड़ती है भारी

असल में किसी फ़िल्म की सफलता के लिए प्रचारप्रसार बहुत जरूरी होता है. सही प्रचार से दर्शकों में फिल्म के प्रति रुचि पैदा होती है और ज्यादा से ज़्यादा लोग उससे जुड़ी जानकारी पाते हैं. यहां प्रेस कौन्फ्रेंस में कोई भी कलाकार किसी पत्रकार से सही संवाद नहीं कर पाते, क्योंकि प्रेस कौन्फ्रेंस अरैन्ज करने वाली एजेंसिया मीडिया से बात करने नहीं देती, केवल पहले से लिखी गई कुछ बनी बनाई प्रश्नों के एक जैसे उत्तर ही कलाकार देते रहते है. सही संवाद की कमी फिल्म की कला को दर्शकों तक पहुंचाने में असमर्थ होती है और फिल्म प्रेमी को अंत में मायूसी हाथ लगती है. इतना ही नहीं फिल्म के कलाकार और निर्माता, निर्देशक भी इस बात से अनजान होते है कि आखिर फिल्म फ्लौप क्यों हुई, क्योंकि उनका मीडिया से सीधे संवाद नहीं बन पाता.

कहां गए वो दिन

कभी ऐसा समय था, जब कलाकार मीडिया के साथ बैठकर घंटों फिल्म के बारें में बात करते थे और मीडिया कर्मी फिल्म के ईमोशन को अखबार या मैगज़ीन में सही तरीके से छापते थे, जिससे फिल्म को पसंद करने वालों की लिस्ट पहले से तैयार हो जाया करती थी, जिसमें फिल्म मेकर और ऐक्टर देवानंद, राजकपूर, राजेश खन्ना, विनोद खन्ना आदि कई फिल्मी हस्तियों ने अपनी फिल्मों का प्रमोशन सेट पर या स्टूडियों में किया और उनके फिल्में हिट रही. आज भी अभिनेता धर्मेन्द्र किसी भी मीडिया कर्मी के साथ बैठकर ही फिल्म प्रमोशन को करना पसंद करते है, जहां वे फिल्म की इमोशन को अच्छी तरह से बयां करते है.

सही मीडिया चुनना नहीं आसान

ये भी सही है कि आज मीडिया कर्मी की भरमार हो चुकी है, हर गली कूचे में हर दिन एक नई मीडिया का जन्म हो रहा है, जबकि पहले कुछ चुनिंदा पब्लिकेशन हाउस ही हुआ करते थे, जिनके कर्मी कला की गहराई को समझते थे, जो आज नहीं है. इतना ही नहीं आज हर कोई अपनी खबरों को बेचने में लगा हुआ है, ऐसे में सही मीडिया को चुनना किसी कलाकार के लिए भी कम मुश्किल नहीं. अभिनेत्री दीपिका पादुकोण और अभिनेत्री तब्बू हमेशा किसी मीडिया कर्मी से बात करते समय पब्लिकेशन की जानकारी खुद लेती है, ताकि दर्शकों तक उनकी सही बातें पहुंचे और अंत में उसे पढ़ती भी है, क्योंकि किसी भी प्रकार की गलत जानकारी उनके इमेज को खराब कर सकती है.

सही पब्लिसिटी जरूरी

एक जगह अभिनेता सलमान खान ने कहा है कि फिल्मों की सही पब्लिसिटी करना जरूरी है, क्योंकि इससे दर्शक फिल्म तक पहुंच पाते हैं. उन्होंने यह भी कहा है कि पहले फिल्मों का प्रचार अलग ढंग से होता था. जब फिल्मों का प्रचार अधिकतर प्रिन्ट मीडिया या फिर पिक्चर हौल, सड़कों के किनारे या गलियारे में लगे पोस्टर को देखकर दर्शक उस फिल्म के आने का इंतजार करते थे. इससे फिल्म को पहले से ही दर्शक मिल जाया करता था, जो अब नहीं है. अब सोशल मीडिया हावी हो चुका है, इसलिए फिल्मों के प्रचारप्रसार भी अलग ढंग से होने लगा है. इसका असर कई बार फिल्मों के साथ सही, तो कई बार गलत भी होता है.

एक इंटरव्यू में फिल्म मेकर और निर्देशक अनीस बज़मी ने कहा है कि फिल्मों का सही प्रचारप्रसार करना बहुत जरूरी होता है और संवाद फिल्म के कलाकार और निर्देशक के साथ सीधे संवाद के जरिए होना चाहिए, ताकि उसे उस दर्शक वर्ग तक पहुंचाया जाय, जिसे वे देखना चाहते है. मसलन किसी को रोमांटिक तो किसी को थ्रिल या कॉमेडी पसंद होता है, ऐसे में सही दर्शक अगर सही फिल्म को मिलती है, तो फिल्म सफल होती है.

मीडिया कर्मी को नहीं मिलती इज्जत

प्रेस कौन्फ्रेंस को लेकर मीडिया मे कई सवाल आज है, सूत्रों की माने तो जब अभिनेता शाहरुख खान की फिल्म जवान आई थी, तो एक बड़ी प्रेस कौन्फ्रेंस का आयोजन किया गया था, जिसमें शुरू के कतारों में फैंस थे, जबकि मीडिया को शाहरुख ने अंतिम पंक्ति में रखा गया, जहां से किसी भी मीडिया कर्मी की आवाज कलाकार तक नहीं पहुंच सकती थी. एंकर के द्वारा पूछे गए प्रश्नों पर ही कलाकार उत्तर दे रहे थे. अंत में माइक भी कुछ गिने चुने फिक्स्ड मीडिया कर्मी को पकड़ाया गया, जिनके पास पहले से लिखे प्रश्न एजेंसी ने दे रखे थे, ऐसे में सही प्रश्नों का उत्तर मिलना मुश्किल था. अगर कोई मीडिया कर्मी कोई सवाल पूछना भी चाहता है, तो कई बार उससे माइक छीन भी लिए जाते है.

होती है असुरक्षा की भावना

दरअसल आज कई ऐसे निर्माता, निर्देशक और कलाकर भी है, जो मीडिया को फेस करना नहीं चाहते, उनमें फिल्म को लेकर असुरक्षा की भावना होती है, ऐसे में वे बनावटी प्रेस कौन्फ्रेंस का सहारा लेते है, जिससे न तो उनके फिल्म को दर्शक मिलते है और न ही फिल्म सफल होती है. इतना ही नहीं कुछ मीडिया की कई अटपटे प्रश्न उन्हें जवाब देना नागवार गुजरता है. ऐसे फिल्म मेकर को इस तरह की प्रेस कौन्फ्रेंस अच्छी लगती है.

इस प्रकार ऐसे फेक प्रेस कौन्फ्रेंस की संख्या भले ही बढ़ गई हो, लेकिन इसका फायदा फिल्मों को नहीं मिलता, क्योंकि वहां कही गई बातें और रियल में काफी अंतर होता है, जिसे आज के जागरूक दर्शक महसूस करने लगे है और उसका असर फिल्मों पर प्रत्यक्ष रूप में दिखाई पड़ने लगा है.

के. के. शैलजा : कोरोना महामारी की रोकथाम के लिए दृढ़ता से खड़ी थीं

K.K Shailaja :  केरल की स्वास्थ्य मंत्री रहीं के.के. शैलजा ने कोरोना महामारी के दौरान जिस तरह लोगों को संक्रमित होने से बचाने में महती भूमिका निभाई उस ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उन की एक पहचान स्थापित की. शैलजा वर्तमान में 15वीं केरल विधानसभा में मट्टनूर निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करती हैं.

कोरोना महामारी की रोकथाम के लिए शैलजा ने जिस तत्परता और दृढ़ता से मोरचा संभाला, उसे देख कर दुनिया हत्प्रभ थी.

द गार्जियन ने उन्हें ‘कोरोना वायरस कातिल’ और ‘राक स्टार स्वास्थ्य मंत्री’ के रूप में वर्णित किया तो बीबीसी ने उन्हें एशियाई महिला कोरोना सेनानियों की सूची में शामिल किया. ब्रिटिश पत्रिका प्रास्पैक्ट ने उन्हें 2020 के विश्व के ‘शीर्ष विचारक’ के रूप में स्थापित किया.

संयुक्त राष्ट्र ने उन्हें आमंत्रित कर सम्मानित किया. ब्रिटिश अखबार फाइनैंशियल टाइम्स ने उन्हें 2020 की सब से प्रभावशाली महिलाओं की लिस्ट में जगह दी.

राजनीतिक सफर

कन्नूर जिले के मट्टानूर में जन्मीं शैलजा ने बीएससी और बीएड की पढ़ाई की. राजनीति में उन की ऐंट्री ‘स्टूडैंट फैडरेशन आफ इंडिया’ यानी एसएफआई के जरीए हुई. के.के. शैलजा पहली बार 1996 में कुथुपरंबा सीट से विधायक चुनी गईं. उस के बाद 2006, 2016 में फिर से विधायक बनीं.

के. के. शैलजा जब 2018 में स्वास्थ्य मंत्री थीं, तब केरल में निपाह वायरस ने दस्तक दी थी. निपाह कोरोना से भी ज्यादा खतरनाक था क्योंकि इस में डैथ रेट 70% था. कोरोना में डेथ रेट 2% से भी कम है. निपाह से निबटने के लिए उन्होंने एक अच्छी रणनीति बनाई. खुद अस्पतालों का दौरा किया. हर दिन प्रैस कौन्फ्रैंस कर हालात की जानकारी दी. केरल इस से पहले इबोला वायरस की मार भी  झेल चुका था.

कभी सोचा नहीं था

एक छोटे से कसबे में पलीबढ़ी शैलजा कहती हैं कि उन्हें अपनी अम्मां और दादी से बहुत प्रेरणा मिली जो एक कट्टर कम्युनिस्ट नेता थीं और जिन्होंने केरल में चेचक के प्रकोप से निबटने में मदद की थी. अपनी अम्मां के जरीए उन्होंने सीखा कि कम्युनिस्ट पार्टी किस तरह डर और गलत सूचना से निबटती है और लोगों को सिखाती है कि संक्रामक बीमारी से कैसे निबटा जाए. उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि एक दिन उन्हें भी ऐसा ही करने का मौका मिलेगा.

इबोला और निपाह वायरस को मैनेज करने की रणनीति का फायदा कोरोना को काबू करने में भी मिला. उल्लेखनीय है कि केरल में ही देश का पहला कोरोना मरीज मिला था.

के.के. शैलजा का मानना है कि कोई भी बीमारी हो, एक अच्छी योजना बना कर और उस  पर अमल कर के उस पर काबू पाया जा सकता था. के.के. शैलजा के नेतृत्व में जनवरी, 2020 से ही सभी एअरपोर्ट, रेलवे स्टेशनों पर स्क्रीनिंग शुरू कर दी और जिन में भी कोरोना के लक्षण मिले, उसे सीधे अस्पताल भेजा गया. कुछ ही महीनों में केरल में कोरोना काबू में आ गया.

महिलाओं की लीडरशिप को दर्शाया

सही प्लानिंग और लीडरशिप किस तरह बड़ी मुश्किलों से बाहर निकाल सकती है यह के. के. शैलजा ने उदाहरण के साथ दुनिया को बताया. बड़ी महामारी के दौर में जब लोग अपने घरों से बाहर तक निकलने से डर रहे थे तब शैलजा ने ऐसी मुश्किल से लोगों को बाहर निकालने के लिए कमर कस ली. शैलजा उन सभी महिलाओं के लिए मिसाल हैं जिन्हें यह लगता है कि महिलाएं सिर्फ घर संभालना जानती हैं. अपने कामों से न सिर्फ उन्होंने लाखों लोगों की जिंदगी बचाई बल्कि दुनिया में अपनी अलग पहचान भी बनाई.

डा. किरुबा मुनुसामी : दलित समाज में औरतों की पीड़ा को महसूस किया

Dr. Kiruba Munusamy : डा.  किरुबा मुनुसामी का जन्म 1986 में तमिलनाडु में एक दलित परिवार में हुआ. सदियों से हाशिए पर पड़े समाज में पैदा होने का दंश वही सम झ सकता है जो दलित के घर पैदा हुआ हो. दलित समाज में लड़की के रूप में जन्म लेना तो और भी बुरी बात है.

किरुबा ने बचपन से ही दलितों के साथ ऊंची जातियों के गलत बरताव को देखा और दलित समाज में औरतों की पीड़ा को महसूस किया. यही कारण है कि किरुबा मुनुसामी ने कानून के क्षेत्र में अपना कैरियर बनाने का प्रण किया लेकिन दलित समाज की लड़की के लिए इतना ऊंचा ख्वाब देखना आसान नहीं था. इस के लिए उन्होंने कई सामाजिकआर्थिक चुनौतियों का सामना किया.

सामाजिक न्याय के लिए प्रतिबद्ध

किरुबा को स्कूल से ले कर कालेज तक में जातिवाद को  झेलना पड़ा. हर कदम पर मिले तिरस्कार और अपमान को वे अपनी ताकत बनाती रहीं. आज किरुबा मुनुसामी एक प्रतिष्ठित मानवाधिकार वकील और अंबेडकरवादी कार्यकर्ता हैं और सामाजिक न्याय के प्रति अपनी अटूट प्रतिबद्धता के लिए विश्वभर में अपनी पहचान बना चुकी हैं. भारत में जातिगत भेदभाव और लैंगिक हिंसा के विरुद्ध किरुबा ने लंबी लड़ाई लड़ी है और आज भी वे इस मानसिकता के विरुद्ध लड़ रही हैं.

किरुबा भारत के सर्वोच्च न्यायालय में एक स्वतंत्र वकील हैं. वे जातिगत अत्याचार, लिंग आधारित हिंसा और सामाजिक अन्याय जैसे मामलों में पीडि़तों का केस लड़ती हैं.

किरुबा, ‘लीगल इनिशिएटिव फौर इक्वैलिटी’ की संस्थापक और कार्यकारी निदेशक भी हैं. किरुबा की यह संस्था हाशिए पर पड़े लोगों को कानूनी सहायता देने का काम करती है. किरुबा ने संयुक्त राष्ट्र सहित विभित्र राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर जातिगत भेदभाव और मानवाधिकारों के मामले उठाए हैं.

समर्पण और संघर्ष

किरुबा ने ‘ओनर किलिंग’ के हाईप्रोफाइल मामलों में दोषियों को सजा दिलवाई है, साथ ही ट्रांसजैंडर के विरुद्ध होने वाले अपराधों में भी पीडि़तों के पक्ष में कानूनी लड़ाई लड़ी है.

किरुबा ने 2017 में नीदरलैंड के निजमेगेन में आयोजित ह्यूमन राइट के एक कार्यक्रम में भाग लिया. वोग इंडिया सहित विभिन्न मीडिया आउटलेट्स में उन की यात्रा और सामाजिक न्याय के लिए उन के योगदान को सराहा गया.

न्याय और समानता के लिए समर्पण और अन्याय के विरुद्ध निरंतर संघर्ष की बदौलत ही किरुबा मुनुस्वामी ने भारत ही नही विश्वभर में अपनी पहचान बनाई है. यदि किरुबा को हम आज की ‘फीमेल अंबेडकर’ कहें तो इस में कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी. किरुबा मुनुस्वामी के सामाजिक न्याय के लिए किए गए कार्यों को देखते हुए ही गृहशोभा ने उन्हें ‘इंस्पायर अवार्ड’ के लिए चुना.

हिम्मत चाहिए

किरुबा ने आज तक जो भी काम किए हैं उन्हें करने के लिए महिला तो छोडि़ए एक पुरुष को भी काफी हिम्मतवाला बनना पड़ेगा. एक महिला होते हुए सामाजिक कुरीतियों को चैलेंज करना कोई आम बात नहीं. ओनर किलिग जैसे मामले अपने में ही खतरनाक होते हैं और लोग ऐसे मामलों में चुप्पी साधना बेहतर समझते हैं. लेकिन किरुबा ने इन सब बातों की परवा किए बगैर कई अपराधियों को जेल का रास्ता दिखाया. आदिवासी महिलाओं की जिंदगी सुधारने के उन के प्रयासों की जितनी सराहना की जाए कम है.

किरुबा आज की महिलाओं के लिए किसी मिसाल से कम नहीं. महिलाएं यदि अपनी पूरी क्षमता का इस्तेमाल करें तो वे खुद के साथसाथ दूसरी महिलाओं की जिंदगी भी संवार सकती हैं.

राइटर- शकील

Safe Drive : कभी न करें स्टाइल में ड्राइव

Safe Drive :  अकसर दौलतमंद मांबाप दौलत के नशे में हमेशा चूर रहते हैं. उन को यह भी नहीं पता होता कि उन्हें अपने बच्चों को अच्छे संस्कार दे कर देश का अच्छा नागरिक बनाना चाहिए या नहीं. वे तो अपनी संतान को पैसे के बल पर बड़ा कर के छोड़ देते हैं और कह देते हैं, ‘जा बेटा तू भी ऐश कर और हमें भी ऐश करने दे.’

अब बेटा तो बेटा उसे क्या गरज पड़ी है, मेहनत जैसी फालतू चीज करने की. बेटा तो भलीभांति जानता है कि उस का बाप कमा रहा है, 7 पीढि़यों के लिए धन जुटा रहा है तो हम क्यों कोई कामधाम करें. हम तो दोनों हाथ खोल कर धन लुटाएंगे.

बचत और सद्व्यवहार जैसी दकियानूसी चीज तो गरीबों के बच्चे सीखते हैं. लायक बनना और फर्ज निभाना ये तो गरीब के बच्चों की जिम्मेदारी है. बेचारे दौलत तो कभी खुली आंखों से देखे नहीं होते तो बंद आंखों से क्या देखेंगे. गरीब बच्चे ही रातदिन भूखे प्यासे शरीर को तपा कर काबिल बनते हैं. तब जा कर चार पैसे उन्हें देखने को मिलते हैं. यही इन की नियति भी है.

स्टाइल ही इन का जीवन

रईसजादे तो अकसर पेरैंट्स बाप के बेटे हैं इसलिए उन के शौक भी करोड़पतियों वाले होते हैं. ये जब घर से निकलते हैं तो अपनी सवारी पर सवार हो  झूमतेगाते, मोबाइल से बतियाते और शौर्ट कट मारते ऐसे निकलते हैं जैसे इन का काम ही काम है बाकी सब बेकार हैं. बीच सड़क पर कहीं भी गाड़ी पार्क कर देते हैं क्योंकि सड़क तो इन के बाप की संपत्ति है न.

जाम लगता है तो लगे इन की बला से, लोग परेशान होते हैं तो हों उन का तो काम ही है परेशान होना और जब कभी साहबजादे जाम में फंस जाएं तो फिर मत पूछिए हौर्न बजाबजा कर पूरी दुनिया को बता देते हैं कि कोई अमीरजादा फंसा है जाम में, सब लोग अपनीअपनी गाड़ी को साइड लगा दो ताकि अमीरजादे को रास्ता मिल सके और यह अपनी डिस्को पार्टी अटैंड कर सके. स्टाइल में रहना स्टाइल में खाना, स्टाइल में बतियाना स्टाइल ही इन का जीवन है.

ये तो ताल ठोंक के कहते हैं भाई अपुन स्टाइल में धुआंधार ड्राइव करेंगे. डरना अपुन ने सीखा नहीं और डराने वाला अभी कोई पैदा हुआ नहीं. ऐसी बिगड़ी हुई औलादें कानून को कुछ नहीं सम झतीं. इन्हें कानून का कोई डर नहीं होता. इन के लिए फुटपाथ पर रहने वाले, पद यात्रा करने वाले, बाइक स्कूटी से आनेजाने वाले कीड़ेमकोड़ों के समान होते हैं. इन का फंडा ही यही है कि नशे में गाड़ी चलाओ जिंदगी का लुत्फ उठाओ.

जान की कोई कीमत नहीं

यदि गाड़ी के सामने कोई आ जाए तो उसे ठोकतेबजाते आगे निकल जाओ. ये भावनाहीन होते हैं. इन के लिए किसी अन्य व्यक्ति के जान की कोई कीमत नहीं होती. इन की हरकतों से न जाने कितने घर बिखर जाते हैं. कितनी औरतों के सिंदूर उजड़ जाते हैं, कितने बच्चे अनाथ हो जाते हैं.

रईसजादे इस बात से भलीभांति परिचित हैं कि यदि ये अपनी कीमती गाड़ी से किसी को उड़ा देंगे तो कानून इन का कुछ भी नहीं बिगाड़ पाएगा. इन की नजर में कानून बिकता है और इन जैसे अमीर लोग जब चाहें तब पैसों से कानून को खरीद सकते हैं.ये खुद तो बिगड़े हुए होते ही हैं और न जाने कितने लोगों को अपने साथ बिगाड़ देते हैं.

इन की नजर में ट्रैफिक के नियम गरीब तबके के लोगों के लिए होते हैं, जिन के पास समय ही समय होता है. अमीर लोग तो बहुत व्यस्त होते हैं. अगर अमीर लोग ट्रैफिक के नियमों का पालन करने लगेंगे तो अमीर और गरीब में अंतर क्या रह जाएगा? अमीर लोगों को बड़ीबड़ी पार्टियों में जाना होता है. 4 लोफरों को इकट्ठा कर दारू की बोतल चढ़ानी होती है.तभी तो दुनिया को पता चलेगा ये रईसजादे अपने मांबाप की बिगड़ी औलादें हैं.

सावधानी हटी दुर्घटना घटी इस कहावत का मान और ध्यान तो सिर्फ सरीफ लोग रखते है. नशेड़ी, जुआरी और बिगड़े लोगों के लिए यह कहावत कोई माने नहीं रखती. उन्हें तो अपने हिसाब से चलना है. वे जिधर से गुजरते हैं वह जगह वह सड़क उन की हो जाती है.

Tips For Sex Life : फिजिकल रिलेशनशिप में एड्स होने का डर लगा हुआ है, मैं क्या करूं?

Tips For Sex Life :  अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल

मैं 32 साल का हूं. मैंने पड़ोस की औरत के साथ हमबिस्तरी की है, पर डर है कि कहीं मुझे एड्स न हो जाए. वैसे, जिस्मानी संबंध बनाने के 5 दिन बाद मैंने जांच कराई, तो नतीजा निगेटिव रहा. औरत ने 10 दिन बाद जांच कराई, तो उस का नतीजा भी निगेटिव ही था. कोई डर तो नहीं है?

जवाब

एक ओर तो आप को जिस्मानी संबंधों का मजा चाहिए, वहीं दूसरी ओर मौत का डर भी है. आखिर ऐसा काम किया ही क्यों जाए, जिस में खौफ हो. वैसे, जांच रिपोर्टों के मुताबिक आप दोनों ही महफूज हैं, लेकिन यह खेल दूसरे तरीके से भी खतरनाक हो सकता है. औरत के पति को पता चलेगा, तो वह एड्स से भी ज्यादा दर्द देगा.

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2017 के अंत तक भारत में अनुमानत: 21.40 लाख लोग एचआईवी संक्रमित है. खतरनाक बात ये है कि उनमें से 20 प्रतिशत अपने संक्रमित होने को ले कर अनजान हैं. हालांकि एचआईवी पर जागरूकता पैदा करने, एड्स के साथ जीने, असुरक्षित यौन संबंधों से बचने को ले कर बहुत कुछ किया जा रहा है. लेकिन आज जरूरी है कि भारत की बड़ी आबादी को विभिन्न तरीकों से एचआईवी संक्रमण के संचारित होने को ले कर जागरूक किया जाए. लोगों को इस घातक संक्रमण से बचने के लिए रक्ताधान से पहले रक्त परीक्षण के लिए प्रोत्साहित करने की जरूरत है, ताकि जो संक्रमित है वे आगे संक्रमण न फैलाए.

2016 में किए रक्त बैंकों का राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन (एनएसीओ) ने मूल्यांकन किया था. इसके मुताबिक, देश में कुल 2626 कार्यात्मक रक्त बैंक हैं. भारत को प्रति वर्ष 12.2 मिलियन करोड़ यूनिट रक्त की जरूरत होती है, जिसमें से केवल 11 मिलियन ब्लड यूनिट ही मिल पाते हैं. ऐसे में, सुरक्षित रक्ताधान पर ध्यान केंद्रित करना बहुत आवश्यक है.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

Amla Ruia’s Fight for Water: A Story of Resilience & Change

Amla Ruia, born in 1946 into an affluent family in Uttar Pradesh, was raised in a literary and spiritual environment. However, from a young age, she recognized her responsibilities toward society. This led her to dedicate herself to social causes at the first opportunity.

Tackling Water Scarcity in Rajasthan

Rajasthan is a region frequently grappling with water scarcity, where many households struggle even for drinking water, let alone water for bathing. Women often walk miles to fetch water, carrying pots on their heads to meet their families’ needs.

The daily challenges faced by rural women in Rajasthan deeply impacted young Amla Ruia and shaped her perspective. The severe droughts of 1999-2000 and 2003 troubled her greatly, inspiring her to take action. She became passionate about water conservation in villages and established the Aakar Charitable Trust (ACT) to collaborate with communities in building check dams for water security.

Transforming Villages

Her initiative to construct check dams has transformed the lives of over 2 million people across 450+ villages in India. These small structures, built on seasonal streams, allow water to percolate into the ground, recharge aquifers, and ensure year-round water availability. Amla motivated communities to contribute labor and resources, fostering a sense of ownership and sustainability.

Using traditional water-harvesting techniques and check dams, Amla Ruia changed the face of Rajasthan’s villages, all by involving local communities.

No Looking Back

Her first project was in Mandawar village, which became a huge success. Farmers earned ₹12 crores within a year thanks to the two check dams built by her trust. After this, she never looked back. ACT has since constructed 200 check dams in 100 villages across Rajasthan, benefiting over 200,000 people, who now collectively earn ₹300 crores annually.

Changing Farmers’ Lives

The impact of Amla’s efforts meant that farmers who once struggled to grow one crop a year could now harvest three crops annually. Increased income allowed them to take up livestock farming as well. Gradually, Amla’s hard work transformed their lives.

Households benefiting from water conservation now have 8-10 cattle each, earning additional income from milk, ghee, and khoa. Rising incomes also mean that every family owns 1-2 motorcycles, and each village has 4-5 tractors—a significant achievement for rural India.

Recognition

For her relentless efforts in water conservation and rural empowerment, Amla Ruia has been honored with the Grassroots Changemaker Achiever Award, celebrating her as a true agent of change.

Hindi Fiction Stories : आखिर क्या कमी थी – जब पत्नी ने किया जीना हराम

Hindi Fiction Stories :  ‘‘मेरा जीना हराम कर दिया है मेरी पत्नी ने. उठतेबैठते, सोतेजागते एक ही रट कि मेरा बाहर की औरतों से संबंध है. घर के बाहर गया नहीं कि चीखनाचिल्लाना शुरू. क्या करूं मैं? उसे न बच्चों की शर्म है न महल्ले वालों की. नौकरचाकर सामने रहते हैं और वह अनापशनाप बकने लगती है,’’ विजय की बातें सुन कर मैं अवाक् रह गया. नीरा भाभी भला ऐसा क्यों करने लगीं. पढ़ीलिखी समझदार हैं. जब मेरी शादी हुई थी तब भाभी ने बड़ी बहन की तरह सारा काम संभाला था. अपनी बहन सी लगने वाली भाभी पर उस के पति विजय का आरोप मैं कैसे सह लेता.

‘‘ऐसा कैसे हो गया एकाएक?’’

झुंझला पड़ा था विजय, ‘‘पता नहीं.’’

‘‘पता क्यों नहीं, तुम्हारी पत्नी है… कुछ तो ऐसा होगा ही जिस की वजह से वे ऐसा व्यवहार कर रही हैं वरना दिमाग खराब है क्या उन का?’’

‘‘हां, यही लगता है मुझे भी,’’ बदबुदाया विजय.

‘‘क्या कह रहे हो तुम, होश में हो न. जिस औरत ने तुम्हारे साथ 15 साल की खुशहाल गृहस्थी काटी है, तुम्हारे हर सुखदुख में तुम्हारा साथ दिया, एकाएक उस का व्यवहार क्यों बदल गया है, तुम्हें पता नहीं और उस पर यह दावा कि उस का दिमाग खराब हो गया है?’’

‘‘दिमाग ही तो खराब है जो मुझ पर शक करती है. क्या यह सही दिमाग की निशानी है?’’

‘‘तुम ने कुछ ऐसा किया है क्या जो भाभी को तुम पर शक करने का मौका मिला? आखिर इस शक की कोई तो वजह होगी.’’

‘‘मुझे तो लगता है उसी का किसी के साथ संबंध है,’’ विजय बोला, ‘‘जो खुद गलत करता है वही सामने वाले पर आरोप लगाता है…’’

चटाक की आवाज के साथ मेरा हाथ विजय के गाल पर पड़ा. ऐसा लगा विश्वास और निष्ठा का सुंदर भवन मेरे सामने भरभरा कर गिर गया. धूलमिट्टी उड़ कर कुछ मेरे कपड़ों पर पड़ी और कुछ मेरी आंखों में भी. किसी ने मानो मेरी जीभ ही खींच ली. क्या विजय की आंखों की शर्म इतनी मर गई है कि मेरे सामने भाभी को चरित्रहीन कहते उसे लज्जा नहीं आई.

मर्द तो सदा ही अपनी मर्दानगी प्रमाणित करता आया है यहांवहां मुंह मार कर, कम से कम अपनी पत्नी का मान- सम्मान तो वह इस तरह न उछालता. क्या समझूं मैं? विजय के इस व्यवहार पर कैसे अपनी सोच का निर्धारण करूं? हद होती है हर बात की.

अवाक् था विजय. उस ने भी कहां सोचा होगा कि मैं नीरा भाभी का पक्ष ले कर उसी पर हाथ उठा बैठूंगा.

‘‘मुझे लगता है तुम ही कहीं भटक गए हो और अपनी किसी करतूत पर परदा डाल रहे हो. शायद तुम्हीं नहीं चाहते कि नीरा भाभी तुम्हारे साथ रहें और इसलिए उन्हें अपमानित कर अपने जीवन से निकालना चाहते हो. कहीं तो कुछ है…’’

‘‘वही कुछ तो मैं भी समझाना चाह रहा हूं तुम्हें…कहीं तो कुछ है जिस की आड़ ले कर वह मेरा अपमान कर रही है. मैं तो कहीं मुंह दिखाने के लायक भी नहीं रहा. अब तो बच्चों के सामने भी आंख उठाते हुए मुझे शर्म आती है.’’

विजय का रोनापीटना, चीखना- चिल्लाना सब सत्य था लेकिन भाभी का चरित्र खोटा है मैं इसे भी कैसे मान लूं, ‘‘बच्चों पर क्या असर होगा तुम्हारे झगड़ों का, सोचा है कभी तुम ने…’’

‘‘वही सब तो तुम से पूछना चाहता हूं कि नीरा के इस पागलपन की वजह से मेरे घर का भविष्य क्या होगा?’’

विजय की पीड़ा कहींकहीं मुझे भेदने लगी. कहीं सचमुच कुछ है तो नहीं, ‘‘तुम दोनों के आपसी संबंध कैसे हैं?’’

‘‘पिछले कुछ महीनों से हम अलगअलग कमरे में सोते हैं. मेरी परछाईं से भी वह दूर भागती है. मेरी सूरत देखते ही जैसे उसे दौरा पड़ जाता है. मैं आत्महत्या ही कर लूंगा, मुझे ऐसा लगता है. तुम्हारे पास इसीलिए आया हूं. तुम नीरा से बात करो, पूछो उस से, वह क्या चाहती है…’’

विजय का कंधा थपथपा दिया मैं ने. थोड़ी देर के लिए खुद को विजय के स्थान पर रख कर सोचा, मेरी पत्नी अगर मेरी परछाईं से भी दूर भागे या मेरी सूरत देखते ही चीखनेचिल्लाने लगे तो क्या हो? जाहिर सा लगा कि कहीं मैं ने ही ऐसा कुछ किया है जो मेरी पत्नी के गले में कांटे सा फंस गया है.

नीरा भाभी जैसी संतोषी औरत बहुत कम नजरों के सामने आती हैं. जब वे ब्याह कर आई थीं तब ब्याहने लायक विजय की एक बहन भी घर में थी. पिता का साया उठ चुका था. पूरा घर विजय के कंधों पर था. अच्छा वर मिल गया तो एक क्षण भी नहीं लगाया था, भाभी ने अपनी कोरी, अनछुई साडि़यां और गहने ला कर विजय के सामने रख दिए थे.

भाभी ने बड़ी सहजता से अपना सब बांट लिया था इस परिवार के साथ. नीरा भाभी का निष्कपट रूप किसी गहने का मोहताज नहीं था, फिर भी एक शाम उन के कानों में छोटीछोटी चमकती बालियों को देखा तो सहसा मेरे होंठों से निकल गया था, ‘‘भाभी, आज कुछ बदलाबदला सा है आप में?’’

‘‘भैया, नई बाली पहनी है. थोड़ेथोड़े रुपए बचा कर आज ही लाई हूं.’’

मन भर आया था मेरा. सच में भाभी पर बालियां बहुत खिल रही थीं और फिर जिस औरत ने अपने मायके का सारा सोना विजय की बहन पर कुरबान कर दिया था वही औरत पाईपाई जोड़ अपने लिए पुन: एक छोटा सा गहना संजो पाई थी और उसी में बहुत संतुष्ट भी थी.

इसी तरह जराजरा संजोतेसंजोते, पता नहीं कहांकहां अपना मन मारते नीरा भाभी पूरी तरह विजय के जीवन में रचबस गई थीं. मेरी पत्नी के साथ भी भाभी का गहरा जुड़ाव है. हैरान हूं कि मेरी पत्नी ने भी कभी कुछ नहीं बताया. अगर पतिपत्नी में कुछ दूरी होती तो कभी तो नीरा भाभी उसे बतातीं.

‘‘नीरा भाभी से मिले तुम्हें कितने दिन होे गए?’’ मैं ने शोभा से पूछा जो उस समय शीना को खाना खिला रही थी.

‘‘काफी समय हो गया है. पहले उन के बच्चों के पेपर चल रहे थे इसलिए मैं नहीं गई. फिर भाभी के मायके में कोई शादी थी उस में वे व्यस्त रहीं, उस के बाद मैं शीना की वजह से नहीं मिल पाई,’’ सहज ही थी शोभा. सहसा बोली, ‘‘हां, मैं ने फोन किया था पर ज्यादा बात नहीं हो पाई थी…चलिए, आज चलें उन के घर.’’

मैं बिना कुछ बात बढ़ाए मान गया. शोभा को कुछ नहीं बताया क्योंकि मैं नहीं चाहता था कि वह पहले से ही कोई पूर्वाग्रह पाल ले. यदि नीरा भाभी में कुछ समस्या होगी तो अपनेआप ही शोभा भांप जाएगी.

शाम को हम दोनों उन के घर पहुंचे. भाभी को देख धक्का सा लगा. बीमार लग रही थीं. मैं पछता उठा कि कैसा इनसान हूं मैं कि जिसे इतना मानता हूं उसी की सुध लेने में काफी समय लगा दिया. समीप जा कर भाभी की बांह पकड़ी, इस से पहले कि मैं कुछ पूछूं, भाभी मेरी छाती से लग कर चीखचीख कर रोने लगीं.

‘‘सब खत्म हो गया भैया…मेरा सब समाप्त हो गया.’’

शोभा भी घबरा गई. भाभी की पीठ सहलासहला कर दुलारने लगी. वह ऐसी कोई भी बात नहीं जानती थी जिस का सिरा पकड़ बात शुरू कर पाती. किसी तरह शांत किया हम ने भाभी को.

‘‘क्या हो गया, भाभी? ऐसा क्या हो गया है जो आप ऐसा कहने लगीं? कितनी कमजोर हो गई हैं आप, बीमार हैं क्या?’’

भाभी चुप थीं. टकटकी लगा कर कभी हमारा मुंह देखतीं और कभी शून्य में कुछ निहारतीं. शोभा बारबार प्रश्न करती रही.

‘‘मेरा घर उजड़ गया है प्रकाश भैया, आप का भाई अब मेरा नहीं रहा…’’

‘‘आप को ऐसा क्यों लगा, भाभी, आप ने ऐसा क्या देखा?’’

मैं शोभा से नजरें चुरा रहा था. मैं नहीं चाहता था, वह जाने कि मैं भी कुछ जानता हूं.

‘‘पुरुष का तो कार्यक्षेत्र ही बाहर होता है भाभी, पूरे दिन में आधे से ज्यादा समय वह घर के बाहर खटता है, किसलिए? अपने परिवार के लिए ही न. विश्वास की डोर पर ही वह दूरदूर तक उड़ता है और अगर आप ही डोर तोड़ देंगी तो कैसे चलेगा.’’

‘‘जानती थी कि तुम अपने भाई की वकालत करोगे. उसी विजय के सगे हो न. वही तुम्हारा सबकुछ है. मैं तो कल भी आप सब के लिए मुफ्त की नौकरानी थी और आज भी. इस घर में मेरी बस इतनी ही जगह है कि आने वाले को सलाम करूं और जाने वाले से कुछ भी न पूछूं…इस में मैं किसी को कोई दोष नहीं देती क्योंकि मेरा यही हाल होना चाहिए था. ज्यादा शराफत भी इनसान को कहीं का नहीं छोड़ती.’’

अवाक् रह गए थे हम दोनों. शोभा की सूरत तो रोने जैसी हो गई. नीरा भाभी का यह रूप उस ने कहां सोचा था. कभी मेरा मुंह देखती और कभी भाभी का.

‘‘भाभी, आप ऐसा क्यों कह रही हैं? मेरी जान निकल जाएगी घबराहट से.’’

‘‘मैं ने भी सोचा था, मेरी जान निकल जाएगी लेकिन निकली कहां है… देखो न मैं जिंदा हूं. रिश्तों की मानमर्यादा का बहुत महत्त्व होता है. इतना तो तुम जानते हो न. सच कहा तुम ने, इनसान विश्वास की डोर के सहारे ही दूरदूर तक उड़ता है. मैं भी उसी डोर के सहारे 15 साल से उड़ रही थी. कितना कर्ज था विजय के सिर पर. सब तुम जानते हो न, तब कैसेकैसे मेहनत कर मैं पैसे बचाती रही. कुछ पैसे जमा हो जाते तो कर्ज की एक किस्त उतर जाती. मैं पाईपाई जोड़ती रही और तुम्हारा दोस्त पाईपाई बाहर लुटाता रहा.

‘‘बोनस मिलता रहा और आफिस के काम के बहाने दोस्तों के साथ बाहर घूमनेफिरने जाता रहा. वह हर साल जाता है. उसे कभी मेरा सूना गला या सूनी कलाइयां नजर नहीं आईं? मेरी कुरबानी को उस ने अपना अधिकार ही मान लिया, क्या यह घर सिर्फ मेरा है?

‘‘मैं किसी शक के बिना पर ऐसा नहीं कह रही हूं. अपने कानों से मैं ने विजय को अग्रवाल के साथ बातें करते सुना है. 3 महीने पहले उसे जो बोनस मिला उस का इस्तेमाल कैसे हुआ था. वही चटखारे लगालगा कर दोनों आपस में बातें कर रहे थे. विजय को लगा था कि मैं घर पर नहीं हूं. अपने भीतर के जानवर को उस ने कबकब, कहांकहां और कैसेकैसे खुश किया, कहो तो एकएक शब्द बोल कर सुनाऊं आप दोनों को? सुनोगे?’’

मुझ में काटो तो खून नहीं रहा. यह तो सच है कि हर साल विजय कुछ दिन के लिए बाहर जाता है. वैसे भी जब से उस की पदोन्नति हुई है, उस का बाहर का काम ज्यादा रहता है. कोई कब कहां जा रहा है और वहां क्या करता है, कोई कैसे जान सकता है?

‘‘तुम्हारे दोस्त के पास पत्नी के लिए एक सूती धोती तक लाने के पैसे कभी नहीं हुए. खुद बाहर से मौजमस्ती कर के आता रहा और मैं आगेपीछे घूमती रही कि बेचारे आफिस के काम से थक कर आए हैं.

‘‘तुम्हीं बताओ मुझ से कहां चूक हुई? कभी कुछ मांगा नहीं, क्या इसी का असर यह हुआ कि मेरी सारी इच्छाएं ही मर गईं. उन की हर इच्छा जागती रही और मेरी इच्छाओं का क्या?’’

रो रही थीं भाभी. तनिक झुकीं फिर आंसू पोंछ हंस दीं.

‘‘अच्छा बेवकूफ बनाया मुझे मेरे पति ने…’’

‘‘आप के इस व्यवहार का बच्चों पर क्या असर होगा, भाभी?’’

‘‘बच्चे सिर्फ मेरे हैं क्या? अब तो जो हो गया सो हो गया. जब बच्चों के पिता ने घर की चौखट लांघी थी तब क्या उस ने सोचा था कि इस का उस

के बच्चों पर क्या असर होगा. जानती हूं, विजय ने ही तुम्हें मेरे पास समझाने के लिए भेजा है क्योंकि अब घर पर उन के पैर दबाने को मैं जो नहीं मिलती उन्हें.’’

क्या उत्तर देता मैं? भाभी कहां गलत हैं? क्या करतीं वे जब उन्होंने अपने पति की रासलीलाएं उसी के मुंह से सुनी होंगी. बुरी तरह ठगा हुआ महसूस किया होगा स्वयं को. रिश्ते को काट कर फेंक न देती तो क्या करतीं. मुझे भी तो ठगा है न विजय ने, इतनी पुरानी दोस्ती में अपने चरित्र का यह रूप तो मुझे कभी दिखाया ही नहीं. अपनी वकालत के लिए भाभी के पास भी भेज दिया. चुपचाप वापस लौट आए हम, लेकिन रात भर सो नहीं पाए. शोभा की नजर मुझ पर यों पड़ रही थी मानो मैं भी कहीं न कहीं भाभी का गुनहगार हूं.

दूसरी सुबह विजय मुझ से मिला. तरस भी आ रहा था मुझे उस पर और क्रोध भी.

‘‘भाभी ने सब से पहले कब तुम पर चीखनाचिल्लाना शुरू किया बता सकते हो, कोई बात हुई थी क्या?’’

‘‘नहीं तो, कोई भी बात नहीं हुई थी.’’

‘‘पिछली बार जब तुम शिमला गए थे तब वहां होटल में क्याक्या किया था, क्या याद है तुम्हें…दिल्ली और उदयपुर का तजरबा भी खासा रंगीन था, याद आया…’’

विजय के चेहरे का उड़ता रंग मुझे सारी सचाई बता गया और उसी पल मुझे लगा भाभी की तरह मैं ने भी विजय को खो दिया.

‘‘भाभी ने तुम्हारी वे सारी बातें सुन ली थीं जब तुम शिमला से वापस आने पर अपने सहयोगी अग्रवाल से बात कर रहे थे. तब तुम्हें यह पता नहीं था कि वे घर में ही हैं.’’

मानो विजय नंगा हो गया. क्या कहे अपनी सफाई में? प्रत्यक्ष को प्रमाण की क्या जरूरत थी.

‘‘अपनी गृहस्थी में तुम ने खुद आग लगाई है. चरित्र तुम्हारा घिनौना है और आरोप भाभी पर लगा रहे हो. क्या तुम्हारी आंखों में जरा सी भी शर्म है? सारी कालोनी में तुम बदनाम हो गए, इस में दोष किस का है?…

‘‘…और कैसे प्रतिक्रिया करे वह औरत जिस के अटूट विश्वास को ही तुम ने चौराहे का मजाक बना दिया. ईमानदार पति तो पत्नी का अभिमान होता है न. तुम ने जो किया उस के बाद वे तुम्हारी परछाईं से दूर न भागें तो क्या करेें. बेचारी अपना लहूलुहान विश्वास ले कर अलग कमरे में क्यों न चली जाएं.’’

‘क्योंभरोसा करें भाभी उस इनसान पर जो खुद को पाकसाफ बताता रहा और भाभी को ही चरित्रहीन कहता रहा. वजह यह बताई कि शायद वही अपनी जरूरतों के लिए कहीं और से जुड़ गई है जिस कारण अब विजय की जरूरत कभी महसूस ही नहीं होती उन्हें.

‘‘तुम्हें आज भी बच्चों के भविष्य की चिंता नहीं है. तकलीफ है तो इस बात की कि अब भाभी ने तुम्हारी जरूरतें पूरी करनी छोड़ दी हैं. मुफ्त की औरत नसीब नहीं होती तुम्हें.’’

‘‘नीरा सबकुछ जान कर भी चुप रह सकती थी. अकेला मैं ही तो ऐसा नहीं हूं जो बाहर से मौजमस्ती कर के लौटता हूं,’’ विजय का उत्तर था.

वास्तव में मुझे उस पर शर्म आई उस पल. क्या यह वही विजय है? सच कहा है बुजुर्गों ने. कोई भी अनैतिकता अपनाने जाओ तो बस एक बार की ही जरा सी झिझक होती है. किसी पर गोली चलाने वाले के हाथ भी बस पहली बार ही कांपते हैं. समझ नहीं पा रहा हूं विजय के संस्कार क्यों और कब भटक गए. वह इतना कमजोर तो कभी नहीं था.

‘‘इतने महंगे शौक क्या उस इनसान को शोभा देते हैं जिस के सिर पर आज तक बहन की शादी का कर्ज है.

‘‘ईमानदार के सामने चरित्रहीनता परोस दोगे तो बेचारा कैसे निगल पाएगा? नहीं पचा सकीं सो उलट दिया उस गरीब ने. सहने की भी एक सीमा होती है, विजय. और मुझे अफसोस हो रहा है कि अपनी करनी पर तुम्हें जरा सी भी आत्म- ग्लानि नहीं है.’’

चुप रहा विजय. अपनी भूल पर शर्म तो नहीं आई उसे लेकिन इस बात की चिंता अवश्य हो रही थी कि लोग क्या कहेंगे. समाज क्या कहेगा, क्योंकि समाज से कट कर रहने के लिए बहुत बड़ा कलेजा चाहिए.

‘‘जवान होते बेटों के पिता हो तुम. यह मत सोचना भाभी अकेली हैं. जरूरत पड़ी तो मैं भी तुम्हारा साथ नहीं दूंगा. जो कर चुके हो सो कर चुके हो, आगे की सोचो, तुम्हारी भूल तुम्हारी है, प्रायश्चित्त भी तुम्हीं को करना है. किसी तरह अपना घर बचाने का प्रयत्न करो, विजय.’’

विजय को समझाबुझा कर किसी तरह मैं चला तो आया लेकिन मेरे प्रयास का क्या प्रभाव होगा, नहीं जानता. आसार भी इस तरह के नहीं लग रहे थे कि जल्दी कोई अच्छी खबर सुनने को मिलेगी.

‘‘भाभी ने कल बच्चों का और अपना एचआईवी टैस्ट कराया है. अभी रिपोर्ट नहीं आई. पता नहीं क्या होगा. दम घुट रहा है मेरा.’’

शाम को रोंआसी सी शोभा ने खबर सुनाई. सकते में आ गया मैं भी. एक इनसान का गलत कदम पूरे परिवार को कैसे मुसीबत में डाल देता है, मैं बड़ी गहराई से महसूस कर रहा था.

कल से शोभा के चेहरे की भावभंगिमा भी विचित्र सी ही है. प्रश्न सा लिए मुझे निहारती हैं उस की बड़ीबड़ी आंखें. भाभी का परिवार सदा से मेरा भी परिवार रहा है. कहीं उसी का दुष्प्रभाव तो नहीं, जो शोभा की आंखों में भी संदेह के बादल मैं साफसाफ पढ़ रहा हूं.

‘‘क्या मैं भी शीना और अपना टैस्ट करवा लूं? क्या मुझे भी इस की जरूरत है?’’

हजारों प्रश्न अपने एक ही प्रश्न में समेटे शोभा ने अपने होंठ खोले. कल रात से ही शोभा भी परेशान सी है. चौंक कर मैं ने उस की ओर देखा.

‘‘क्या मतलब?’’ बड़ी मेहनत करनी पड़ी मुझे यह सवाल पूछने में 10 साल पुराना संबंध क्या किसी ऐेसे प्रश्न का मोहताज हो गया? विजय का परम मित्र हूं न जिस का हरजाना मुझे भी भरना पड़ेगा, विजय के घर में उठने वाला तूफान मेरे भी घर की दीवारें फाड़ कर भीतर चला आया था.

शोभा का चेहरा सफेद पड़ गया मेरा चेहरा देख कर. क्या समझ रही है वह मेरे चुप रहने का मतलब. लपक कर समीप चला आया मैं. यह क्या हो रहा है शोभा को?

‘‘अगर आप भी वैसे ही हैं तो पास मत आइए…’’

‘‘शोभा, यह क्या कह रही हो तुम?’’

‘‘अगर मेरी आंखों पर कोई परदा है तो बता दीजिए…विजय भैया की तरह आधे रास्ते में…’’

‘‘पागल हो गई हो क्या?’’

रो पड़ा था मैं भी. कस कर छाती से भींच लिया शोभा को. माथे पर प्रगाढ़ चुंबन देते हुए समझाने का प्रयास किया.

‘‘शीना की कसम. कहीं कोई परदा नहीं है. जो तुम्हारी आंखों के सामने है वही तुम्हारी पीठ के पीछे भी है.’’

फूटफूट कर रोने लगी शोभा. पास खड़ी शीना भी सहम गई मां की इस हालत पर. इशारे से बच्ची को पास बुलाया. अपने छोटे से परिवार को बांहों में बांध मैं सोचने लगा, ‘आखिर क्या कमी थी विजय को? क्षणिक सुख की चाह में क्यों उस ने पूरे परिवार की खुशी और जान सूली पर चढ़ा दी.’

शीना मेरे गाल चूम रही थी और उस मासूम के चुंबन में भी मैं इस का उत्तर खोज रहा था कि क्या कमी है मुझे जो मैं भटक जाऊं? क्या कमी थी विजय के पास जो वह भटक गया? आखिर क्या कमी थी?

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