Women Objectification: क्या औरतों का काम सिर्फ सुंदर दिखना है?

Women Objectification: ‘मैं तो तंदूरी मुर्गी हूं यार, गटका ले सैंया अल्कोहल से…’ ‘तू बोतल है अजूल की…’ ‘लौलीपौप लागेलू…’ ऐसे जैये सैकड़ों गाने आप को मिल जाएंगे जहां औरतों को खानेपीने की चीज से जोड़ा गया हो. कभी रोमांटिक अंदाज में, कभी मजाकिया तो कभी आइटम सौंग स्टाइल में. हमारे समाज में औरतों को बचपन से ही एक खास नजरिए से देखा जाता है. चाहे वह परिवार हो, स्कूल हो या फिर मीडिया, हर जगह औरतों को एक ढांचे में फिट करने की कोशिश की जाती है.

बौलीवुड के गाने हों, टीवी विज्ञापन हों या फिर सोशल मीडिया हर जगह औरतों को अकसर एक चीज की तरह पेश किया जाता है जो या तो खूबसूरत या सैक्सी होनी चाहिए या फिर किसी मर्द के सपनों को पूरा करने वाली. इसे ही औब्जैक्टिफिकेशन कहते हैं यानी औरतों को इंसान कम और औब्जैक्ट ज्यादा सम?ा जाता है.

जब औरतों की बात आती है, तो उन्हें अकसर उन की खूबसूरती, उन के शरीर या उन की सैक्सुअल अपील के आधार पर जज किया जाता है. उन की बुद्धि, भावनाएं या इच्छाएं माने नहीं रखतीं. बौलीवुड और विज्ञापनों में यह ट्रेंड सालों से चला आ रहा है. औरतों की खानेपीने की चीजों से तुलना की जाती है जैसे तंदूरी मुर्गी या अजूल की बोतल.

बौलीवुड गानों में औरतों का औब्जैक्टिफिकेशन

फैविकोल से: इस गाने के बोल ‘मैं तो तंदूरी मुर्गी हूं यार, गटका ले सैंया अल्कोहल से…’ न सिर्फ औरत को खाने की चीज (तंदूरी मुर्गी) से तुलना करते हैं बल्कि उसे एक ऐसी चीज के तौर पर भी पेश करते हैं जो मर्दों के लिए उपभोग करने के लिए हैं. गाने में करीना का डांस और उन के कपड़े इस तरह डिजाइन किए गए हैं कि वह सिर्फ मर्दों की नजरों को आकर्षित करें.

लौलीपौप लागेलू:

‘‘तू लगावेलू जब लिपस्टिक,

हिलेला आरा डिस्ट्रिक्ट,

जिला टौप लागेलू, हो जिला टौप लागेलू…’’

बोल में कमरिया करे लपालप, लौलीपौप लागेलू’ कह कर औरत की कमर को ऐसी चीज बताया गया है, जो लहराती है और मर्दों को लुभाती है. ये औरत को एक टेस्टी औब्जैक्ट बताता है.

लैला मैं लैला: इस गाने में सनी लियोनी को एक बार डांसर के तौर पर दिखाया गया है. गाने के बोल और सनी का डांस इस तरह डिजाइन किया गया है कि वह सिर्फ मर्दों की नजरों के लिए एक आइटम बन जाए.

इन गानों में एक बात कौमन है कि औरत को सिर्फ उस की खूबसूरती, डांस या सैक्स अपील के लिए दिखाया जाता है. ये गाने औरत को एक ऐसी चीज बनाते हैं जो मर्दों के लिए देखने और मजा लेने के लिए हैं.

टीवी विज्ञापनों में औरतों का औब्जैक्टिफिकेशन

टीवी विज्ञापन भी इस मामले में पीछे नहीं हैं. चाहे वे डियोड्रैंट के ऐड हों, शैंपू केया फिर मोटरसाइकिल के, औरतों को अकसर एक सैक्सी औब्जैक्ट के तौर पर दिखाया जाता है जैसे-

डियोड्रैंट विज्ञापन (ऐक्स, वाइल्ड स्टोन आदि)

डियोड्रैंट के ज्यादातर विज्ञापनों में एक पैटर्न होता है कि एक लड़का डियो लगाता है और अचानक सारी लड़कियां उस की तरफ खिंची चली आती हैं. इन ऐड्स में औरतों को सिर्फ एक ऐसी चीज के तौर पर दिखाया जाता है जो मर्दों की खुशबू से कंट्रोल हो सकती हैं.

शैंपू और ब्यूटी प्रोडक्ट्स के विज्ञापन

शैंपू या क्रीम के विज्ञापनों में औरतों को हमेशा लंबे, चमकदार बालों या गोरी त्वचा के साथ दिखाया जाता है. डव या क्लीनिक प्लस जैसे ब्रैंड्स के ऐड में औरत को सिर्फ उस की खूबसूरती के लिए जज किया जाता है. अगर उस के बाल चमकदार नहीं तो वह अच्छी औरत नहीं. इन ऐड्स में यह मैसेज दिया जाता है कि औरत का काम है खूबसूरत दिखना और अगर वह ऐसा नहीं कर पाती तो वह नाकाम है.

मोटरसाइकिल और कार के विज्ञापन

कई बार मोटरसाइकिल या कार के विज्ञापनों में औरतों को सिर्फ एक ऐक्सैसरी की तरह दिखाया जाता है जैसे मोटरसाइकिल के कुछ पुराने ऐड में एक लड़के को बाइक चलाते दिखाया जाता है और उस के पीछे एक सैक्सी लड़की बैठी होती है. यहां औरत का रोल सिर्फ इतना है कि वह बाइक की कूलनैस को और बढ़ाए.

बचपन से शुरू हो जाता है यह खेल

बचपन से ही लड़कियों से कहा जाता है, ‘गोरी है तो शादी जल्दी हो जाएगी,’ ‘लड़की पतली होनी चाहिए, मोटी नहीं,’ ‘बहू ऐसी हो जो देखने में अच्छी लगे.’

जब औरतें बारबार यह देखती हैं कि उन की वैल्यू सिर्फ उन की खूबसूरती या सैक्स अपील में है तो वे खुद को उसी नजरिए से देखने लगती हैं. इस से उन के आत्मविश्वास पर असर पड़ता है. वे सोचने लगती हैं कि अगर वे खूबसूरत नहीं हैं तो उन की कोई वैल्यू नहीं है. ये गाने और विज्ञापन मर्दों के दिमाग में भी एक गलत छवि बनाते हैं. वे औरतों को सिर्फ एक औब्जैक्ट की तरह देखने लगते हैं न कि एक इंसान की तरह.

जैंडर स्टीरियोटाइप्स को बढ़ावा

औब्जैक्टिफिकेशन जैंडर स्टीरियोटाइप्स को और मजबूत करता है. औरतों को हमेशा खूबसूरत, सैक्सी या आकर्षक होना चाहिए जबकि मर्दों को पावरफुल और कंट्रोलिंग. ये स्टीरियोटाइप्स समाज में असमानता को और बढ़ाते हैं.

जब औरतों को सिर्फ एक सैक्सुअल औब्जैक्ट के तौर पर दिखाया जाता है तो यह यौन हिंसा को बढ़ावा देता है. मर्दों के दिमाग में यह बैठ जाता है कि औरतें उन के उपभोग करने की चीज है.

औरतों के अपने सपने हैं, अपनी महत्वाकांक्षाएं हैं और अपनी पहचान है. लेकिन समाज का एक बड़ा हिस्सा उन्हें बारबार एक औब्जैक्ट में बदल देता है.

औरतों का औब्जैक्टिफिकेशन एक गहरी सामाजिक समस्या है जो बौलीवुड के गानों और टीवी विज्ञापनों में साफ दिखती है. यह न सिर्फ औरतों की छवि को नुकसान पहुंचाता है, बल्कि समाज में जैंडर असमानता को भी बढ़ाता है.

Women Objectification

Grihshobha Inspire Awards से सम्मानित हुईं खास महिला हस्तियां

Grihshobha Inspire Awards: गृहशोभा इंस्पायर अवार्ड में ऐसी महिला हस्तियों को सम्मानित किया जाता है, जिन्होंने समाज को एक नया रास्ता दिखाया, महिलाओं के हक के लिए आवाज उठाई या फिर अपने काम से विश्व परिदृश्य में भारत का परचम लहराया. वैसी हिम्मती महिलाएं जिन्होंने अपने सामने आने वाली सभी मुश्किलों को पार कर एक नई राह बनाई. 25 मार्च को दिल्ली में इस के सफलतापूर्वक आयोजन के बाद अब नंबर था बैंगलुरु में इस के आयोजन का.

बैंगलुरु में गृहशोभा इंस्पायर अवार्ड्स 2025 का आयोजन 3 नवंबर, 2025 को बैंगलुरु इंटरनैशनल सैंटर में किया गया, जिस में उन असाधारण महिलाओं को सम्मानित किया जिन्होंने अपने क्षेत्र में स्थाई प्रभाव डाला है. इस समारोह में लोक कला, शासन, सार्वजनिक नीति, सामाजिक प्रभाव, व्यवसाय, एसटीईएम, औटोमोटिव और मनोरंजन जैसे क्षेत्रों में निर्भीक, अग्रणी, परिवर्तनकारी और खास उपलब्धि हासिल करने वाली महिलाओं को सम्मानित किया गया.

प्रसिद्ध अभिनेत्री उर्वशी को मनोरंजन के माध्यम से सशक्तीकरण- आइकन के रूप में सम्मानित किया गया. उन्हें 750 से अधिक फिल्मों में उन के मजबूत और जटिल किरदारों के लिए और उन के बहुमुखी प्रदर्शन के लिए सम्मानित किया गया. डा. कामिनी राव को एडिटर्स चौइस पुरस्कार से सम्मानित किया गया जिन्होंने चिकित्सा क्षेत्र में अग्रणी नेतृत्व और महिलाओं के स्वास्थ्य की उन्नति के लिए काम किया है. डा. सुनीता कृष्णन को सामाजिक प्रभाव आइकन के रूप में सम्मानित किया गया जिन्होंने न्याय, पुनर्वास और गरिमा के लिए अथक लड़ाई लड़ी और हजारों लोगों को तस्करी और यौन शोषण से बचाया है.

निगार शाजी को एसटीईएम आइकन के रूप में सम्मानित किया गया. आईएसआरओ के आदित्य- एल 1 मिशन की परियोजना निदेशक के रूप में निगार ने अंतरिक्ष विज्ञान में भारत की बढ़ती नेतृत्व क्षमता का उदाहरण दिया है. अन्य प्रतिष्ठित पुरस्कार विजेताओं में अभिनेत्री पार्वती थिरुवोथु जो अपने निर्भीक किरदारों के लिए जानी जाती हैं, को मनोरंजन के माध्यम से सशक्तीकरण के रूप में सम्मानित किया गया. जम्मा मल्लारी को ओग्गु कथा और अन्य मूल कला रूपों को संरक्षित और बढ़ावा देने के लिए अपने जीवन को समर्पित करने के लिए लोक कथा आइकन के रूप में सम्मानित किया गया. खेलों की दुनिया में भारत की पहली ओलिंपियन फेंसर सी.ए. भवानी देवी को सीमाओं से परे नई पीढ़ी को प्रेरित करने के लिए स्पोर्ट्स अचीवर के रूप में सम्मानित किया गया और भारत की पहली मोटरस्पोर्ट विश्व चैंपियन ऐश्वर्या पिस्से को औटोमोटिव अचीवर के रूप में सम्मानित किया गया.

व्यवसाय जगत में हरकी की संस्थापक और सीईओ नेहा बगारिया को महिलाओं की कार्यबल भागीदारी के परिदृश्य को बदलने के लिए व्यवसाय अचीवर के रूप में सम्मानित किया गया और अपर्णा त्यागराजन को भारत की समृद्ध हैंडलूम विरासत को एक वैश्विक आंदोलन का रूप देने के लिए संपादक की पसंद पुरस्कार से सम्मानित किया गया. कीर्ति जयकुमार को एक सामाजिक प्रभाव अचीवर के रूप में सम्मानित किया गया. दिनाज वर्वतवाला और धिव्या विक्रम को डिजिटल कंटैंट क्रिएटर्स के रूप में सम्मानित किया गया. इस समारोह में यशोदा प्रकाश कोट्टुकाथिरा को मनोरंजन के माध्यम से सशक्तीकरण के रूप में सम्मानित किया गया.

दिल्ली प्रैस के प्रमुख संपादक और प्रकाशक परेश नाथ ने कहा, ‘‘गृहशोभा इंस्पायर अवार्ड्स बैंगलुरु, विभिन्न क्षेत्रों में अपनी पहचान बनाने वाली महिला नेताओं को पहचानने और पुरस्कृत करने का हमारा प्रयास है. ये पुरस्कार उन लोगों को ट्रिब्यूट हैं जो और्डिनरी से संतुष्ट नहीं हैं, जो रचनात्मकता और साहस के साथ मानदंडों को चुनौती देते हैं और भविष्य को आकार देते हैं. ये पुरस्कार हमें याद दिलाते हैं कि सच्चा नेतृत्व उन लोगों के शांत लेकिन परिवर्तनकारी प्रभाव में है जो शक्ति के सामने सच बोलने और ईमानदारी से नेतृत्व करने का साहस करते हैं.’’

इस समारोह की मुख्य अतिथि मधु नटराज थीं जो एक पुरस्कार विजेता कोरियोग्राफर और आर्टप्रन्योर हैं. उन्होंने अपने प्रेरणादायक शब्दों से विजेताओं की उपलब्धियों और योगदान का सम्मान किया और उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया. इस समारोह में प्रदर्शन करने वाली अनन्य गौर थीं जो एक कलाकार, संगीतकार, शोधकर्ता और वृत्तचित्र निर्माता हैं. उन की गायकी ने लोगों के दिलों को छू लिया. गृहशोभा, दिल्ली प्रैस द्वारा प्रकाशित, भारत की सब से अधिक पढ़ी जाने वाली हिंदी महिला पत्रिका है जिस के

1 मिलियन से अधिक पाठक हैं. 8 भाषाओं (हिंदी, मराठी, गुजराती, कन्नड़, तमिल, मलयालम, तेलुगु और बंगला) में प्रकाशित गृहशोभा होम मैनेजमैंट, फैशन, सौंदर्य, कुकरी, स्वास्थ्य और संबंधों पर कहानियों और लेखों का एक आकर्षक संग्रह है.

दिल्ली प्रैस भारत के सब से डाइवर्सिफाइड मैगजीन पब्लिशिंग हाउसेज में से एक है. इस के पब्लिकेशंस के पोर्टफोलियो में फैमिली औरिएंटेड, राजनीतिक और सामान्य हित पत्रिकाएं शामिल हैं, साथ ही महिलाओं, बच्चों और ग्रामीण लोगों के लिए पत्रिकाएं भी शामिल हैं. कुल 10 भाषाओं में 36 पत्रिकाओं के साथ दिल्ली प्रैस पूरे देश में अपनी मजबूत पहुंच रखता है.

Grihshobha Inspire Awards

Fictional Story: सूना संसार- सुनंदा आज किस रूप में विनय के सामने थी

Fictional Story: सुनंदा एयरपोर्ट पहुंच चुकी थी. लगेज बैल्ट पर अपना बैग आने का इंतजार करती हुई सोचने लगी, आज इतने सालों बाद लखनऊ आना ही पड़ा और जीवन की किताब का वह पन्ना, जो वह लखनऊ से मुंबई जाते हुए फाड़ कर फेंक गई थी, हवा के झोंके से उड़ आए पत्ते की तरह फिर उस के आंचल में आ पड़ा है. 5 साल बाद वह लखनऊ की जमीन पर कदम रखेगी, जहां से निकलते हुए उस ने सोचा था कि वह यहां कभी नहीं आएगी.

उसे इस बात का तो यकीन था कि बाहर उसे लेने विनय जरूर आया होगा. कैसा लगेगा इतने सालों बाद एकदूसरे को देख कर? कितना प्यार करता था उसे, कैसे जी पाया होगा वह उस के बिना? वह भी क्या करती, अपनी महत्त्वाकांक्षाओं, अपनी भावनाओं को कैसे दबाती? विनय ने कैसे खुद को संभाला होगा, उस के बिखरे व्यक्तित्व को देख क्या सुनंदा को अपराधबोध नहीं होगा?

अपना बैग ले कर सुनंदा एयरपोर्ट से बाहर निकली, विनय ने उसे देख कर हाथ हिलाया. हायहैलो के बाद उस के हाथ से बैग ले कर विनय ने पूछा, ‘‘कैसी हो?’’

सुनंदा ने उसे ऊपर से नीचे तक देखा, वह बहुत स्मार्ट और फ्रैश नजर आ रहा था. बोली, ‘‘मैं ठीक हूं, तुम कैसे हो.’’

विनय ने मुसकरा कर कहा, ‘‘ठीक हूं.’’

सुनंदा ने चलतेचलते उसे बताया, ‘‘कल यहां मेरी एक मीटिंग है. सोचा, यहां आने पर तुम से मिल लेना चाहिए. बस, तुम्हारा नंबर मिलाया, वही नंबर था तो बात हो गई. और सुनाओ, लाइफ कैसी चल रही है?’’

‘‘बढि़या,’’ फिर पूछा, ‘‘जाना कहां है तुम्हें?’’

सुनंदा चौंकी, फिर बोली, ‘‘होटल क्लार्क्स अवध में मेरा रूम बुक है.’’

विनय ने पूछा, ‘‘टैक्सी से जाना चाहोगी या मैं छोड़ दूं?’’

सुनंदा मुसकराई, ‘‘यह भी कोई पूछने की बात है?’’

विनय ने अपनी गाड़ी स्टार्ट की तो सुनंदा ने पूछा, ‘‘गाड़ी कब ली?’’

‘‘2 साल हुए.’’ उस के बराबर वाली सीट पर बैठ कर 5 साल पुराना समय सुनंदा की आंखों के आगे घूम गया. तब उस के स्कूटर पर बैठ कर वह उस के साथ कितना घूमी थी. विनय की कमर में हाथ डाल कर वह बैठती और वह धीरे से गरदन घुमा कर उस के गाल पर किस करता, तो वह टोकती थी, ‘‘आगे देखो, कहीं ऐक्सीडैंट न हो जाए.’’ विनय हंस कर कहता, ‘‘तो क्या हुआ, तुम्हें प्यार करतेकरते ही मरूंगा न, क्या बुरा है.’’

और आज वही विनय उसे कितना अजनबी लग रहा था. अचानक सुनंदा का कलेजा सुलगने लगा. शायद विनय बहुत नाराज होगा उस से. कितना सरलसहज जीवन था, जो विनय के आगोश में सुरक्षित सा था, पर महत्त्वाकांक्षाएं उछालें मार रही थीं. गृहस्थी की जिम्मेदारी भी कुछ ज्यादा नहीं थी, तब भी वह उस बंधन से मुक्ति मांग बैठी थी. रास्ते भर विनय औपचारिक बातें करता रहा. विनय ने होटल आने पर गाड़ी रोकी और कहा, ‘‘तुम्हारे पास मेरा फोन नंबर है ही, कोई जरूरत हो तो बताना. और हां, कब जाना है वापस?’’

‘‘परसों की फ्लाइट है, कल मीटिंग से फ्री होते ही फोन करूंगी, तब जरूर आ जाना.’’

‘‘नहीं, अभी चलता हूं, कल आऊंगा,’’ कह कर विनय चला गया.

सुनंदा अपने रूम में पहुंच कर फ्रैश हुई, फिर लैपटौप निकाला और अगले दिन की मीटिंग की तैयारी करने लगी.

एम.बी.ए. के बाद एक मल्टीनैशनल कंपनी में अच्छे पद पर काम करना उस का सपना था और उस का वह सपना पूरा हो गया था. घरगृहस्थी उसे हमेशा बंधन लगती थी. उस ने सब से मुक्ति पा ली थी. विवाह के बाद एम.बी.ए. करने में विनय ने उसे भरपूर सहयोग दिया था. विनय की मां ने उस का पढ़ने का शौक देखते हुए घर की कोई जिम्मेदारी उस पर नहीं डाली थी और जब सुनंदा को एम.बी.ए. करते ही मुंबई में जौब का औफर मिला, तो उस ने सोचने में एक पल नहीं लगाया था. विनय लखनऊ छोड़ नहीं सकता था, उस ने सुनंदा को बहुत समझाया कि तुम योग्य हो, तुम्हें लखनऊ में ही और अवसर मिल सकते हैं, लेकिन सुनंदा को अपनी आत्मनिर्भरता और महत्त्वाकांक्षाओं को तिलांजलि देने की बात सोच कर ही घुटन होने लगती थी और जब सुनंदा को विनय और जौब में कोई तालमेल बनता नहीं दिखा, तो उस ने सब रिश्ते एक झटके में तोड़ कर विनय से तलाक की मांग कर दी थी.

विनय ने उसे बहुत समझाया था, लेकिन सुनंदा किसी तरह यह अवसर छोड़ने के लिए तैयार नहीं थी और वह तलाक ले कर ही मानी थी. मुंबई आ कर वह अपने कैरियर में ऐसी व्यस्त हुई कि जीवन में आए खालीपन को भी भूल गई. उसे जितना मिलता, वह उस से संतुष्ट न होती. अधिक से अधिक पाने के लिए वह हर तरह से संघर्ष कर के अब उच्च पद पर आसीन थी. कुछ दिन वह कंपनी के फ्लैट में रही. अब उस ने अपना फ्लैट भी खरीद लिया था. अब उस के पास सारी सुविधाओं से युक्त घर था, गाड़ी थी, नौकर थे.

मेरठ में उस के मायके में सब उस से नाराज थे और विनय के मातापिता तो उस के तलाक के 1 वर्ष बाद ही जीवित नहीं रहे थे. इन सालों में वह कभी मेरठ भी नहीं गई थी. बस समय मिलने पर कभीकभी फोन कर लिया करती थी.

अगले दिन मीटिंग से फ्री होने पर उस ने विनय को फोन किया और मिलने के लिए बुलाया.

विनय ने कहा, ‘‘शाम को आ जाऊंगा..’’

सुनंदा तैयार हो कर उस का इंतजार करने लगी. सोफे पर बैठ कर आंखें मूंद कर अपने खयालों में गुम हो गई… इतने सालों में उस ने अपने दिलोदिमाग पर काबू तो पा लिया था काम की धुन में अपने को डुबो कर खुश रहने का दिखावा भी कर लेती थी, लेकिन प्यार भरा मन समुद्र सा उफनता रहता था. अपना सब कुछ लुटा कर खाली हो जाने को, किसी को अपनी चाहत में पूरी तरह भिगो देने को.

आज विनय को देख कर फिर दीवानी हो गई थी. उसे देखते ही उस के खयालों में खो गई थी. सोचती रही, क्या विनय भी उस के साथ के लिए बेचैन होगा. अगर हां, तो वह विनय से अपने व्यवहार के लिए माफी मांग लेगी. एक बार फिर उस के साथ जीवन शुरू करेगी. विनय उसे जरूर माफ कर देगा. वह उस से बहुत प्यार करता था. बहुत रह ली अकेली, चंचल नदी सागर में समा कर ही शांत होती है. सालों से पुरुषस्पर्श को तरस रहा उस का नारीमन भी आज अपना सर्वस्व त्याग कर आत्मोत्सर्ग कर शांत हो जाने को मचल उठा, विनय के साथ बीते पुराने दिनरात याद करतेकरते मिस्री की तरह कुछ मीठामीठा उस के होंठों तक आया और विनय के चेहरे को हाथों में भर चूमने की चाह से ही माथे पर पसीने की बूंदें आ गईं. वह अपनी मनोदशा पर हंस दी.

तभी डोरबैल बजी. सुनंदा ने लपक कर दरवाजा खोला और हैरान खड़ी रह गई. विनय एक लड़की के कंधे पर हाथ रख कर खड़ा था. लड़की की गोद में एक छोटा सा लगभग 2 साल का बच्चा था. विनय ने मुसकराते हुए परिचय करवाया, ‘‘यह नीता है मेरी पत्नी और हमारा बेटा राहुल और ये…’’

नीता मुसकराई, ‘‘आप के बारे में सब जानती हूं.’’

सुनंदा के चेहरे पर एक साया सा लहरा गया. उन्हें अंदर आने का इशारा करते हुए जबरन मुसकराई. उन्हें बैठने के लिए कह कर, उन से पूछ कर कौफी का और्डर दिया. बच्चा विनय की गोद में ही बैठा रहा.

सुनंदा स्वयं पर नियंत्रण रखती हुई बातें करती रही. बहुत ही मिलनसार, हंसमुख स्वभाव की नीता हंसतीबोलती रही. बीते समय की कोई बात किसी ने नहीं की. करीब 1 घंटा तीनों बैठे रहे. जाते समय नीता ने ही कहा, ‘‘अगली बार भी आएं तो मिल कर जाइएगा, अच्छा लगा आप से मिल कर.’’

उन के जाने के बाद सुनंदा बैड पर ढह सी गई. उस की आंखों के कोनों से आंसू ढलक पड़े. जिन चीजों को आधार बना कर उस ने अपने भविष्य को गढ़ा था, उन से यदि वह सुखी रह सकती, तो आज रोती ही क्यों? आज विनय का बसा हुआ सुखसंसार देखा तो लगा कि वह हार गई. अपनी सारी महत्त्वाकांक्षांओं को पूरा करने के बाद भी हार गई वह. क्या हो गया यह सब? वह हमेशा बहुत ऊंचा उड़ने की सोचती रही, विनय का प्यार, विनय की बच्चे के लिए चाह, घरगृहस्थी के कामकाज, विनय की रुचि, शौक, पसंदनापसंद सब में उसे सहभागी होना चाहिए था. तभी पनपता वह प्यार, जो उस ने नीता की आंखों में लबालब देख लिया था. वही प्यार, जो वह सुनंदा को देना चाहता था, पर अब वह पूरी तरह नीता को समर्पित है.

हां, यह प्यार ही तो है, जिसे वह ठुकरा कर चली गई थी. यही तो वह सिलसिला है, जो आगे चल कर एक सुखीसफल लंबे वैवाहिक जीवन की नींव बनता है. उस ने तो नींव रखी ही नहीं थी और अब तो ध्वस्त अवशेषों पर आंसू ही बहाने हैं. क्या पाया उस ने और क्या खो दिया? यश, नाम, रुपया, आजादी जैसे बड़े शब्द वह प्राप्ति के पलड़े में रख सकती है. पर दूसरे पलड़े में एक सुंदर घर, प्यार करने वाला पति, एक हंसतामुसकराता बच्चा आ कर बैठ जाता है, तो वह पलड़ा इतना भारी होता चला जाता है कि जमीन छूने लगता है. दूसरे पलड़े के शून्य में झूलने का एहसास बहुत कड़वा लग रहा है.

Fictional Story

Long Story in Hindi: प्रतियोगिता

Long Story in Hindi: रोज की तरह आज भी शैली सुबहसुबह सोसाइटी के पार्क में टहलने के लिए पहुंची. 32 साल की शैली खुले बालों में आकर्षक लगती थी. रंग भले ही सांवला था मगर चेहरे पर आत्मविश्वास और चमक की वजह से उस का व्यक्तित्व काफी आकर्षक नजर आता था. वह एक सिंगल स्मार्ट लड़की थी और एक कंपनी में काफी ऊंचे पद पर काम करती थी. उसे अपने सपनों से प्यार था. शैली करीब 3 महीने पहले ही इस सोसाइटी में आई थी.

खुद को फिट और हैल्दी बनाए रखने के लिए वह हर संभव प्रयास करती. हैल्दी खाना और हैल्दी लाइफ़स्टाइल अपनाती. रोज सुबह वॉक पर निकलती तो शाम में डांस क्लास के लिए जाती. आज ठंड ज्यादा थी सो उस ने वार्मर के ऊपर एक स्वेटर भी पहन रखा था. टहलतेटहलते उस की नजरें किसी को ढूंढ रही थीं. रोज की तरह आज वह लड़का उसे कहीं नजर नहीं आ रहा था जो सामने वाली फ्लैट में रहता था और रोज इसी वक्त टहलने के लिए आता था. टीशर्ट के ऊपर पतली सी जैकेट और स्लीपर्स में भी वह लड़का शैली को काफी स्मार्ट नजर आता था.

अभी दोनों अजनबी थे. इसलिए बस एकदूसरे को निगाह भर कर देखते और आगे बढ़ जाते. इधर कुछ दिनों से दोनों के बीच हल्की सी मुस्कान का आदानप्रदान भी होने लगा था. आज उस लड़के को न देख कर शैली थोड़ी अचंभित थी क्योंकि मौसम कैसा भी हो, कुहासे की चादर फैली हो या फिर बारिश हो कर चुकी हो, वह लड़का जरूर आता था. अगले दो दिनों तक शैली को वह नजर नहीं आया तो शैली उस के लिए थोड़ी चिंतित हो गई. कोई रिश्ता न होते हुए भी उस लड़के के लिए वह एक अपनापन सा महसूस करने लगी थी. वह सोचने लगी कि हो सकता है उस के घर में कोई बीमार हो या वह कहीं गया हुआ हो.

तीसरे दिन जब वह लड़का दिखा तो शैली एकदम से उस के करीब पहुँच गई और पूछा,” आप कई दिनों से दिख नहीं रहे थे, सब ठीक तो है?”

“कई दिनों से कहां, केवल 2 दिन ही तो… ”

“हां वही कह रही थी. सब ठीक है न? ”

“यस एवरीथिंग इज फाइन. थैंक यू…  वैसे आज मुझे पता चला कि आप मुझे औब्जर्व भी करती हैं,” चमकीली आंखों से देखते हुए उस ने कहा.

“अरे नहीं वह तो रोज देखती थी न..,” शैली शरमा गई.

” एक्चुअली मेरे नौकर की बेटी बीमार थी. उसी के इलाज के चक्कर में हॉस्पिटलबाजी में लगा था,” उस लड़के ने बताया.

“आप अपने नौकर की बेटी के लिए भी इतनी तकलीफ उठाते हैं?” आश्चर्य से शैली ने पूछा.

” क्यों नहीं आखिर वह भी हमारे परिवार की सदस्य जैसी ही तो है.”

“नाइस. आप के घर में और कौनकौन है?”

“बस अपनी मां के साथ रहता हूं. पत्नी से तलाक हुए 3 साल हो चुके हैं. .., ” कहते हुए उस लड़के ने परिचय के लिए हाथ बढ़ाया.

शैली ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया,” मैं यहां अकेली ही रहती हूं, अब तक शादी नहीं की है. मेरा नाम शैली है और आप का?”

” माईसेल्फ रोहित. नाइस टू मीट यू.”

इस के बाद काफी समय तक दोनों वाक करने के साथ ही बातें करते रहे. आधे घंटे की वाक पूरी करतेकरते दोनों के बीच अच्छीखासी दोस्ती हो गई. मोबाइल नंबर का आदानप्रदान भी हो गया. अब दोनों फोन पर भी एकदूसरे से कनेक्टेड रहने लगे. धीरेधीरे दोनों की जानपहचान गहरी दोस्ती में बदल गई. दोनों को ही एकदूसरे का साथ बहुत पसंद आने लगा. दोनों फिटनेस फ्रीक होने के साथ स्ट्रांग मेंटल स्टेटस वाले लोग थे. दूसरों की परवाह न करना, अपने काम से काम रखना, रिश्तों को अहमियत देना और काम के साथसाथ स्टाइल में जीवन जीना. जीवन के प्रति दोनों की ही सोच एक जैसी थी. वे काफी समय साथ बिताने लगे. वक्त इसी तरह गुजरता जा रहा था.

इधर उन दोनों की दोस्ती सोसाइटी में बहुत से लोगों को नागवार गुजर रही थी. खासकर रोहित की पड़ोसन माला बहुत अपसेट थी. उस की कभी कभार शैली से भी बातचीत हो जाती थी. उस दिन भी शैली घर लौट रही थी तो रास्ते में वह मिल गई.

फॉर्मल बातचीत के बाद माला शुरू हो गई,” यार मैं ने कितनी कोशिश की कि रोहित मुझ से पट जाए. उस के लिए क्याक्या नहीं किया. कभी उस की पसंद का खाना बना कर उस के घर ले गई तो कभी उस के लिए अपने बालों की स्मूथनिंग कराई. कभी उसे रिझाने के लिए एक से बेहतर एक कपड़े खरीदे तो कभी उस के पीछे अपना पूरा दिन बर्बाद किया. मगर उस ने कभी मेरी तरफ ढंग से देखा भी नहीं. देख जरा कितनी खूबसूरत हूं मैं. कॉलेज में सब मुझे मिस ब्यूटी कहते थे. एक बात और जानती है, उस की तरह मैं भी राजपूत हूं. उबलता हुआ खून है हम दोनों का. मगर देख न मेरा तो चक्कर ही नहीं चल सका. अब तू बता, तूने ऐसी कौन सी घुट्टी पिला दी उसे जो वह….”

जो वह ..? क्या मतलब है तुम्हारा?”

“मतलब तुम दोनों के बीच इलूइलू की शुरुआत कैसे हुई? ”

“देखिए इलूविलू मैं नहीं जानती. मैं बस इतना जानती हूं कि वह मेरा दोस्त बन चुका है और हमेशा रहेगा. इस से ज्यादा न मैं जानती हूं न तुम से या किसी और से सुनना या बात करना चाहती हूं,”  टका सा जवाब दे कर शैली अपने फ्लैट में घुस गई.

शैली के जाते ही पड़ोस की रीमा आंटी माला के पास आ गई. माला गुस्से में बोली,” आंटी तेवर तो देखो इस के. सोसाइटी में आए दिन ही कितने बीते हैं और इस चालाक लोमड़ी ने रोहित को अपने जाल में फंसा लिया.”

“बहुत ऊंचा दांव खेला है इस लड़की ने. सोचा होगा कि इस उम्र में कुंवारे कहां मिलेंगे. चलो तलाकशुदा को ही पकड़ लिया जाए और तलाकशुदा जब रोहित जैसा हो तो कहना ही क्या. धनदौलत की कमी नहीं. देखने में भी किसी चार्मिंग हीरो से कम नहीं लगता. मैं ने तो अपनी नेहा के लिए इस से कितनी बार बात करनी चाही पर यह हमेशा ऐसा नादान बन जाता है जैसे कुछ समझ ही न रहा हो.”

“नेहा कौन आंटी, आप की भतीजी?”

“हां वही. जब भी मेरे घर आती है तो रोहित की ही बातें करती रहती है. रोहित के घर भी जाती है, उस की मां से भी अच्छी फ्रेंडशिप कर ली है, पर वह उसे भाव ही नहीं देता.”

“आंटी नेहा तो अभी बच्ची है. आप उस के लिए कोई और लड़का देख लीजिये. मैं तो अपनी बात कर रही थी. बताओ मुझ में क्या कमी है?” माला ने पूछा.

“सही कह रही है माला. मेरे लिए तो जैसे नेहा है वैसी ही तू है. मेरी नेहा न सही वह तुझ से ही शादी कर ले तो भी मैं खुश हो जाउंगी. फूल सी बच्ची है तू भी पर आजकल तेरी शक्ल पर 12 क्यों बजे रहते हैं? कई दिनों से ब्यूटी पार्लर नहीं गई क्या?” रीमा आंटी ने माला को गौर से देखते हुए कहा.

“हां आंटी आप सच कह रही हो. कल ही पार्लर जा कर आती हूं. अपना लुक बिल्कुल ही बदल डालूंगी फिर देखूंगी रोहित कैसे मुझे छोड़ कर किसी और पर नजर भी डालता है?”

“सही है. मैं भी अपनी नेहा के लिए लेटेस्ट फैशन के कुछ कपड़े और ज्वेलरी लाने जाने वाली हूं,” आँख मारते हुए आंटी ने कहा तो दोनों हंस पड़ी.

शैली और रोहित को साथ देख कर इन की तरह कुछ और लोगों के सीने पर भी सांप लोटने लगे थे. शैली के बगल में रहने वाली देवलीना आंटी को अपने बेटे के लिए शैली बहुत पसंद थी. जॉब करने वाली इतनी कॉन्फिडेंट और खूबसूरत लड़की को ही वह अपनी बहू बनाना चाहती थी. शैली दिखने में आकर्षक होने के साथसाथ एक कमाऊ लड़की भी थी. जब कि उन के इकलौते बेटे पीयूष का बिज़नेस ठीक नहीं चल रहा था. जाहिर था कि अगर शैली उन के घर में आ जाती तो सब कुछ चमक जाता. इसी चक्कर में पिछले 2 महीने से उन्होंने अपने बेटे के लुक पर मेहनत करनी शुरू कर दी थी. उन के बेटे का पेट थोड़ा निकला हुआ था. वह एक्सरसाइज वगैरह से दूर भागता था जब कि शैली को उन्होंने जिम जाते और मॉर्निंग वॉक करते देखा था.

देवलीना आंटी ने बेटे को जिम भेजना शुरू कर दिया था ताकि वह भी आकर्षक नजर आए. इस बीच शैली और रोहित को साथ मॉर्निंग वाक करते देख आंटी के मन में कंपटीशन की भावना बढ़ने लगी.

सुबह 7 बजे भी बेटे को सोता देख कर उन्होंने उस की चादर खींची और चिल्लाती हुई बोली,” रोहित जानबूझ कर शैली के साथ वॉक करने लगा है ताकि उस के करीब आ सके और एक तू है…  तू क्या कर रहा है ? चादर तान कर सो रहा है? चल उठ और पता कर कि शैली जिम करने किस समय जाती है. कल से तुझे भी उसी समय जिम जाना होगा.”

बेटे ने भुनभुनाते हुए चादर फिर से ओढ़ ली और बोला,” यार मम्मी मुझे नहीं जाना जिमविम.”

“समय रहते चेत जा लड़के. ऐसी लड़की घर की बहू बन कर आ गई तो पैसों की कमी नहीं रहेगी. तेरा बिजनेस तो सही चलता नहीं है, कम से कम बहू तो कमाऊ ले आ. चल उठ मैं ने कोई बहाना नहीं सुनना. खुद तो बात आगे बढ़ा नहीं पाता बस उसे देख कर दांत भर निकाल देता है. कभी यह कोशिश नहीं करता कि कैसे उसे अपने प्यार में पागल किया जाए.”

” ओह मम्मी, प्यार ज़बरदस्ती नहीं किया जाता. जिस से होना होगा हो जाएगा.”

” तो क्या बुढ़ापे में प्यार होगा और शादी भी बुढ़ापे में करेगा?”

” मम्मी अरैंज मैरिज कर लूंगा. डोंट वरी. मुझे सोने दो,” उनींदी आवाज़ में पियूष ने कहा और करवट बदल कर सो गया.

आंटी को गुस्सा आ गया. इस बार उन्होंने एक गिलास पानी उस के मुंह पर उड़ेल दिया और चिल्लाईं,” चल उठ और जिम हो कर आ. चल जा… ”

शैली को रोहित के साथ देख कर ऐसी हालत केवल देवलीना आंटी की ही नहीं थी बल्कि कुछ और लोग भी थे जो शैली को अपनी बहू या बीवी बनाने के सपने देख रहे थे. उन के दिल में भी रोहित को ले कर प्रतियोगिता की भावना घर करने लगी थी. सब अपनेअपने तरीके से इस प्रतियोगिता को जीतने की कोशिश में लग गए.

निलय मित्तल तो शैली के घर ही पहुंच गए. शैली का निलय जी से सिर्फ इतना ही परिचय था कि वह इसी सोसाइटी में रहते हैं और किसी कंपनी में मैनेजर हैं. उन्हें अपने घर देख कर शैली चकित थी.

चाय वगैरह पूछने के बाद शैली ने आने की वजह पूछी तो निलय मित्तल बड़े प्यार से शैली से कहने लगे, “बेटा तू जिस कंपनी में  है उस में मेरा दोस्त भी काम करता है. उस ने तेरे बारे में एक बार बताया था. इतनी कम उम्र में तूने कंपनी में अपनी खास जगह बना ली है. मेरा बेटा विकास भी इसी फील्ड में है. तभी मैं ने सोचा कि तुम दोनों की दोस्ती करा दूँ. वैसे तो दोनों ऑफिस चले जाते हो सो एकदूसरे से मिल नहीं पाते. मगर यह तुझे कभी भी आतेजाते देखता है तो तारीफ करता है. मेरी वाइफ भी तुझे पसंद करती और जानती है हम भी इलाहाबाद के वैश्य परिवार से ताल्लुक रखते हैं. हम भी महाराजा अग्रसेन के वंशज हैं. तेरे घर के बुजुर्ग हमारे परिवार को जरूर जानते होंगे”

” जी अंकल हो सकता है. मुझे आप से और विकास से मिल कर अच्छा लगा. कभी जरूरत पड़ी तो मैं विकास को जरूर याद करूंगी.”

” अरे बेटा कभी जरूरत पड़ी की क्या बात है ? हम एक ही जगह से हैं, तुम दोनों एक ही फील्ड के हो, एक ही जाति के भी हो. आपस में मिलते रहा करो. समझ रही है न बेटी? मेरा विकास तो बहुत शर्मीला है. तुझे ही बात करनी होगी. स्विमिंग पूल के बगल वाली बिल्डिंग के पांचवें फ्लोर पर हम रहते हैं. मैं तो कहता हूं आज रात तू हमारे यहां खाने पर आ जा.”

” जी अंकल बिल्कुल मैं ख्याल रखूंगी मगर खाने पर नहीं आ पाऊंगी क्योंकि मुझे आज ऑफिस में देर हो जाएगी. अच्छा अंकल मुझे अभी ऑफिस के लिए निकलना होगा. आप बताइए चायकॉफी कुछ बना दूं ?” शैली ने पीछा छुड़ाने की गरज से कहा.

” अरे नहीं बेटा. बस तुझ से ही मिलने आए थे.”

शैली की बिल्डिंग के सब से ऊपरी फ्लोर पर रहने वाले गुप्ता जी भी एक दिन लिफ्ट में मिल गए. वह शैली से पूछने लगे, “तुम इलाहाबाद की हो न.”

“जी,” शैली ने जवाब दिया.

“मेरा दोस्त भी उधर का ही है और वह भी बनिया ही है . उस के बेटे की फोटो दिखाता हूं. यह देख कितना स्मार्ट है. तुझे बहुत पसंद करता है,” गुप्ता जी ने मौका देखते ही निशाना साधने की कोशिश की थी.

“अरे यह तो सूरज है. मैं जब बास्केटबॉल खेलने जाती हूं तो एक कोने में खड़े रह कर मुझे देखता रहता है. जिम जाती हूं तब भी नजर आता है और ऑफिस जाते समय भी…” शैली ने उसे पहचानते हुए कहा.

“तू गौर करती है न इस पर, असल में यह बस तुझे नजर भर कर देखने को ही तेरा पीछा करता है. दिल का बहुत अच्छा है बस बोल नहीं पाता.”

“पर अंकल मैं तो इसे स्टॉकर समझ कर पुलिस में देने वाली थी. ”

“अरे बेटा यह कैसी बात कर रही है? यह तो बस इस का प्यार है,” गुप्ता जी ने समझाने के अंदाज़ में कहा.

“बहुत अजीब प्यार है अंकल. इसे कहिए थोड़ा ग्रूम करे,” कह कर हंसी छिपाती शैली वहां से निकल गई.

इस तरह शैली और रोहित की दोस्ती ने सोसायटी के बहुत सारे लोगों के दिलों में दर्द पैदा कर दिया था. शैली और रोहित इन लोगों के बारे में एकदूसरे को बता कर खूब हंसते. उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था कि उन की दोस्ती इतने लोगों के दिलोदिमाग में खलबली मचा देगी. दोनों एकदूसरे का साथ एंजॉय करते. अब वे सोसाइटी के बाहर भी एकदूसरे से मिलने लगे थे. धीरेधीरे उन के बीच की दोस्ती प्यार में तब्दील होने लगी. दोनों काबिल थे. एकदूसरे को पसंद करते थे. रोहित की मां को भी इस रिश्ते से कोई गुरेज नहीं था.

उस दिल शैली का जन्मदिन था. रोहित ने तय किया था कि वह इस बार शैली को बर्थडे पर सरप्राइज देगा. इस के लिए उस ने एक रिसोर्ट बुक कराया. शानदार तरीके से उस का बर्थडे मनाया. रात 12 बजे केक काटा गया.

उस रात रोहित ने प्यार से शैली से पूछा,” आज के दिन तुम मुझ से जो भी मांगोगी मैं उसे पूरा करूंगा. बताओ तुम्हें मुझ से क्या चाहिए?”

“रियली ?”

“यस ”

“तो फिर ठीक है. मुझे आज कुछ लोगों की आंखों का सपना छीन कर उसे अपना बनाना है.”

“मतलब ?”

” मतलब जिन की आंखों में तुम्हें या मुझे ले कर सपने सजते रहते हैं उन्हें उन के सपनों से हमेशा के लिए दूर करना है. उन सपनों को अपनी आंखों में सजाना है यानी तुम्हें अपना बनाना है,” एक अलग ही अंदाज में शैली ने कहा और मुस्कुरा उठी.

रोहित को जैसे ही बात समझ में आई तो उस ने शैली को अपनी बाहों में भर लिया और उसी अंदाज में बोला,” तो ठीक है सपनों को नया अंजाम देते हैं. इस रिश्ते को प्यारा सा नाम देते हैं. ”

दोनों की आँखों में उमंग भरी एक नई जिंदगी की मस्ती घुल गई और दोनों एकदूसरे में खो गए. एक महीने के अंदर शादी कर शैली रोहित की बन गई और इस के साथ ही बहुतों के सपने एक झटके में टूट गए.

Long Story in Hindi

Hindi Drama Story: पासवर्ड- क्या आगे बढ़ पाया प्रकाश और श्रुति का रिश्ता

Hindi Drama Story: लिफ्ट की साफसफाई चल रही थी, इसलिए प्रकाश तीसरी मंजिल पर स्थित अपने फ्लैट में जाने के लिए सीढि़यां चढ़ने लगा. वह 2-4 सीढि़यां चढ़ा ही था कि उसे लगा उस के पीछे कोई आ रहा है.

उस ने पलट कर देखा तो उस के पीछे एक लड़की सीढि़यां चढ़ रही थी. उस ने उसे देखा तो उस की नजर उस के चेहरे से फिसल कर कहीं और ही मुड़ गई. उसे यह अनुभव पहली नजर में ही नहीं बल्कि उस ने जब भी लड़की को देखा, तबतब हुआ था. पता नहीं उस के चेहरे में ऐसा क्या था कि वह जब भी दिखाई दे जाती, अनायास प्रकाश की आंखें उस की ओर चली जाती थीं. मगर टिकी नहीं रहती थीं. क्या यह उस के आकर्षण की वजह से था. लेकिन उसे लगता था, आकर्षण के अलावा भी उस में कुछ और था.

सहज आत्मविश्वास और हर किसी के प्रति अवहेलना का भाव. अपने आकर्षक होने की सहज अनुभूति और मिलीजुली मासूमियत. जैसे उसे इस बात का गहरा अहसास हो कि वह युवा है, पर उसे इस का अहसास न हो कि जवानी क्या है. उस के चेहरे का खोजता हुआ भाव उस की सुंदरता को और बढ़ा देता था. उस की आंखों से ऐसा लगता था, जैसे वह बाहर कम अपने अंदर ज्यादा देखती है. चुस्त जींस और चुस्त टौप, मानो उस ने अपनी नजरों से नहीं, दूसरों की नजरों से प्रकाश की ओर देखा हो.

उस के बड़ेबड़े बालों और सुंदर चेहरे की बड़ीबड़ी आंखों के अलावा प्रकाश की नजर फिसल कर जहां मुड़ी थी, वह उसी में खो गया था, जिस की वजह से उस की चाल धीमी हो गई थी. पर उस पर कोई फर्क नहीं पड़ा था. वह उसी तरह तेजी से सीढि़यां चढ़ती हुई उस के बगल से निकल गई.

प्रकाश को लगा, अब उसे भी चाल बढ़ानी होगी. क्योंकि अब वह यह देखे बिना नहीं रह सकता था कि वह किस फ्लैट में जाती है.यह जानने के लिए प्रकाश ने अपनी चाल बढ़ा दी. वह उसी तीसरी मंजिल पर पहुंच कर रुक गई, जहां प्रकाश को जाना था. वह फ्लैट नंबर था 303. प्रकाश का फ्लैट नंबर 301 था. वह लड़की सामने वाले फ्लैट में आई है, यह जान कर उसे बहुत खुशी हुई. पर यह कौन है, क्योंकि उस फ्लैट में प्रकाश ने उसे आज पहली बार देखा था.

उसे लगा, कोई रिश्तेदार होगी, किसी काम से आई होगी. वह प्रकाश के मन को भा गई थी, इसलिए एक बार और देखने के लोभ में उस ने अपने फ्लैट का मुख्य दरवाजा खुला छोड़ दिया. इस में वक्त ने उस का साथ यह दिया कि उस दिन उस के फ्लैट में कोई नहीं था. सभी एक शादी में गए हुए थे. प्रकाश दरवाजे के बाहर नजरें टिकाए बेचैनी से ताक रहा था कि वह बाहर निकले ताकि वह उसे एक नजर देख ले.

घंटों बीत गए, पर वह नहीं निकली. वह टकटकी लगाए उस के फ्लैट का दरवाजा ताकता रहा. धीरेधीरे वह निराश होने लगा.

पर शाम होते ही फ्लैट का दरवाजा खुला. प्रकाश के शरीर में जैसे जान आ गई. एक बार उसे और देखने के लिए वह फुरती से उठा और बाहर आ गया. तब तक वह लिफ्ट में घुस गई थी. प्रकाश ने फटाफट दरवाजा लौक किया और लिफ्ट के चक्कर में न पड़ कर तेजी से सीढि़यां उतरने लगा. उस के ग्राउंड फ्लोर पर पहुंचने के साथ ही लिफ्ट भी नीचे पहुंच गई थी. लिफ्ट का दरवाजा खोल कर वह बाहर निकली और सामने सड़क की ओर चल पड़ी.

लड़की के रेशम जैसे काले लंबे बाल, सुडौल देह, वह लड़की सुंदर ही नहीं प्रकाश को अद्भुत भी लगी. उस की चाल गजब की थी. उसे देख कर कोई भी उस के प्रेम में पड़ सकता था. प्रकाश की नजर उस पर से हट नहीं रही थी. वह मेनरोड पार कर के सामने दुकान पर पहुंच गई. अब प्रकाश उसे सामने से मन भर कर देखना चाहता था. इसलिए वह वहीं सोसाइटी के गेट पर खड़ा रहा. उसे सामने से आता देख वह खो गया.

इस के बाद तो क्रम सा बन गया. प्रकाश उस के आगेपीछे चक्कर लगाने लगा. इसी के साथ उस ने लड़की के बारे में एकएक जानकारी जुटा ली. उस का नाम श्रुति था. उस के सामने वाले फ्लैट में उस की मौसी रहती थीं. वह मौसी के यहां रह कर बीटेक की अपनी पढ़ाई कर रही थी. इस के पहले वह हौस्टल में रह कर पढ़ रही थी. वहां कोई बवाल हो गया था, जिस की वजह से वह मौसी के यहां रहने आ गई थी.

प्रकाश ने उस से बात करने की कोशिश शुरू कर दी. पर उस की बातों का वह छोटा सा जवाब दे कर उसे टाल देती थी. फिर भी वह उस के पीछे पड़ा रहा. प्रकाश अकसर देखता, वह उस के फ्लैट के दरवाजे के पास खड़ी हो कर अपने मोबाइल में कुछ करती रहती थी. ऐसे में जब प्रकाश से उस का सामना होता तो धीरे से मुसकरा देती. इस से प्रकाश को लगा कि शायद वह उसे पसंद करने लगी है. पर क्यों, यह उसे पता नहीं था.

पर एक दिन जब प्रकाश ने अपने ओपन वाईफाई में पासवर्ड सेट कर दिया तो सच्चाई का पता चल गया. उस के पासवर्ड सेट करने के बाद जब वह बाहर निकला तो वह उस की ओर बढ़ी. उसे अपनी ओर आते देख प्रकाश के दिल की धड़कन बढ़ गई. शरीर में रोमांच सा हुआ.

प्रकाश के पास आ कर उस ने अपनी आवाज में शहद सी मिठास लाते हुए कहा, ‘‘आप अपने वाईफाई का पासवर्ड दे देंगे क्या?’’

‘‘क्यों नहीं, श्योर. लाइए, मैं आप के मोबाइल में कनेक्ट कर देता हूं.’’

श्रुति ने मोबाइल दिया, तो प्रकाश ने कांपते हाथों से वाईफाई का पासवर्ड सेट कर दिया. उस ने थैंक्स कहते हुए उस का मोबाइल नंबर मांगा तो प्रकाश ने फटाफट अपना नंबर सेव करा दिया. प्रकाश ने उस का नंबर मांगा तो उस ने भी बेहिचक अपना नंबर बता दिया. प्रकाश को उस का नाम पता था, फिर भी बात को आगे बढ़ाने के लिए उस ने उस का नाम पूछा.

‘‘मेरा नाम श्रुति है.’’ कह कर वह चली गई.

नंबर मिलने के बाद प्रकाश वाट्सऐप पर गुडमौर्निंग और गुडनाइट के मैसेज भेजने लगा. श्रुति की ओर से बराबर जवाब भी आता था. अकसर जानबूझ कर प्रकाश पासवर्ड बदल देता था. श्रुति का तुरंत फोन आ जाता था. कभीकभार वह वाट्सऐप पर मैसेज कर के पूछ लेती थी. एक दिन पासवर्ड बदल कर जैसे ही प्रकाश बाहर निकला, श्रुति सामने आ गई. उस ने पासवर्ड पूछा तो जवाब में प्रकाश ने कहा, ‘‘आई लव यू.’’

गुस्सा हो कर श्रुति ने कहा, ‘‘मैं वाईफाई का पासवर्ड पूछ रही हूं और तुम ‘आई लव यू’ कह रहे हो. तुम इस तरह की बात करोगे, मैं ने कभी सोचा भी नहीं था.’’

इस के अलावा भी श्रुति ने बहुत कुछ कहा. प्रकाश जवाब में जो कुछ कहना चाहता था, वह उसे सुनने को तैयार ही नहीं थी. अपनी बात कह कर वह पैर पटकती हुई चली गई. प्रकाश ने वाट्सऐप पर रिक्वेस्ट की, पर उस ने मैसेज खोल कर देखा ही नहीं. अंत में प्रकाश ने टेक्स्ट मैसेज भेजा कि ‘आई लव यू’ मैं ने तुम्हें नहीं कहा, वह तो वाईफाई का पासवर्ड है.

अगले दिन श्रुति मिली तो उस ने कहा, ‘‘तुम ने ऐसा जानबूझ कर किया था न? ऐसा कर के मुझे परेशान किया. तुम्हें ऐसा नहीं करना चाहिए. तुम्हें बता दूं कि मुझे ऐसी बातों में रुचि नहीं है.’’

‘‘अगर किसी को किसी से पहली नजर में प्यार हो जाए तो…’’ प्रकाश ने कहा.

‘‘और दूसरी नजर में ब्रेकअप हो जाए तो…’’ जवाब में श्रुति ने कहा.

‘‘यह तुम्हारा वहम है.’’

‘‘और प्रेम हो जाए यह?’’ श्रुति ने कहा.

‘‘यह मेरा अनुभव है. किस से हुआ है प्रेम?’’ प्रकाश ने पूछा.

‘‘मैं यह नहीं बताऊंगी. पर हुआ है, यह निश्चित है.’’

‘‘क्यों नहीं बता सकती?’’ प्रकाश ने सवाल कर दिया.

‘‘अगर वह मांगे तो जीवन ही नहीं, सांसें भी दे दूं,‘‘ श्रुति ने कहा, ‘‘तुम ने कभी किसी से प्यार किया है या सिर्फ वाईफाई का पासवर्ड ही ‘आई लव यू’ रखा है?’’

‘‘किया है न, तभी तो  ‘आई लव यू’ पासवर्ड रखा है. सीधेसीधे कहने की हिम्मत नहीं पड़ी तो पासवर्ड के बहाने कह दिया. अब तुम कहो, उस दिन तो तुम ने बहुत कुछ कह दिया. उस से तो..’’

‘‘मुझे अच्छे तो तुम भी लगते थे, पर तब तक इस बारे में कुछ सोचा नहीं था. पर जब सोचा तो लगा कि तुम ने यह पासवर्ड सेट करने के बजाय सच में ‘आई लव यू’ कहा होता तो…’’ श्रुति ने कहा.

उस की बात बीच में ही काट कर प्रकाश ने कहा, ‘‘तो क्या तुम भी..?’’

‘‘हां, पर अब यह पासवर्ड किसी दूसरी लड़की को मत बताना.’’ श्रुति ने कहा.

इसी के साथ दोनों हंस पड़े.

Hindi Drama Story

Emotional Story: कढ़ा हुआ रूमाल- शिवानी के निस्वार्थ प्यार की कहानी

Emotional Story: तिनसुखिया मेल के एसी कोच में बैठे प्रोफैसर महेश एक पुस्तक पढ़ने में मशगूल थे. वे एक सैमिनार में भाग लेने गुवाहाटी जा रहे थे.

पास की एक सीट पर बैठी प्रौढ़ महिला बारबार प्रोफैसर महेश को देख रही थी. वह शायद उन्हें पहचानने का प्रयास कर रही थी. जब वह पूरी तरह आश्वस्त हो गई तो उठ कर उन की सीट के पास गई और शिष्टतापूर्वक पूछा, ‘‘सर, क्या आप प्रोफैसर महेश हैं?’’

यह अप्रत्याशित सा प्रश्न सुन कर प्रोफैसर महेश असमंजस में पड़ गए. उन्होंने महिला की ओर देखते हुए कहा, ‘‘मैं ने आप को पहचाना नहीं, मैडम.’’

‘‘मेरा नाम माधवी है. मैं लखनऊ यूनिवर्सिटी में प्रोफैसर हूं. मेरी एक सहेली थी प्रोफैसर शिवानी,’’ वह महिला बोली.

‘‘थी… से आप का क्या मतलब है?’’ प्रोफैसर महेश ने उस की ओर देखते हुए पूछा.

‘‘वह अब इस दुनिया में नहीं है. उस ने किसी को अपनी किडनी डोनेट की थी. उसी दौरान शरीर में सैप्टिक फैल जाने के कारण उस की मृत्यु हो गई थी,’’ महिला ने कहा.

‘‘क्या?’’ प्रोफैसर महेश का मुंह आश्चर्य से खुला रह गया था.

‘‘जी सर. उसे शायद अपनी मृत्यु का एहसास पहले ही हो गया था. मरने से 2 दिन पहले उस ने मु?ो यह रूमाल और एक पत्र आप को देने के लिए कहा था. उस के द्वारा दिए पते पर मैं आप से मिलने दिल्ली कई बार गई. मगर आप शायद वहां से कहीं और शिफ्ट हो गए थे.’’ यह कह कर उस महिला ने वह रूमाल और पत्र प्रोफैसर को दे दिया.

वह महिला जा कर अपनी सीट पर बैठ गई. प्रोफैसर महेश बुत बने अपनी सीट पर बैठे थे.

तिनसुखिया मेल अपनी पूरी रफ्तार से दौड़ रही थी और उस से भी तेज रफ्तार से अतीत की स्मृतियां प्रोफैसर महेश के मानसपटल पर दौड़ रही थीं.

आज से 25 वर्ष पूर्व उन की तैनाती एक कसबे के डिग्री कालेज में प्रोफैसर के रूप में हुई थी. कालेज कसबे से दोढाई किलोमीटर दूर था. कालेज में छात्रछात्राएं दोनों पढ़ते थे. कालेज का अधिकांश स्टाफ कसबे में ही रहता था.

प्रोफैसर महेश का व्यक्तित्व बड़ा आकर्षक था और उन के पढ़ाने का ढंग बहुत प्रभावी. इसलिए छात्रछात्राएं उन का बड़ा सम्मान करते थे. वे बड़े मिलनसार और सहयोगी स्वभाव के थे. इसलिए स्टाफ में भी उन के सब से बड़े मधुर संबंध थे.

एक दिन वे क्लास में पढ़ा रहे थे, तभी चपरासी उन के पास आया और बोला, ‘सर, प्रिंसिपल सर आप को अपने औफिस में बुला रहे हैं.’

प्रोफैसर महेश सोच में पड़ गए. फिर वे प्रिंसिपल रूम की ओर चल दिए.

उन्हें देख कर प्रिंसिपल साहब बोले, ‘प्रोफैसर महेश, बीए सैकंड ईयर की छात्रा शिवानी अचानक क्लास में बेहोश हो गई है. उसे किसी तरह होश तो आ गया है मगर अभी उस की तबीयत पूरी तरह ठीक नहीं है. आप ऐसा करिए, उसे अपने स्कूटर से उस के घर छोड़ आइए.’

उस समय स्टाफ के 2-3 लोगों के पास ही स्कूटर था. शायद इसी कारण प्राचार्यजी ने उन्हें यह कार्य सौंपा था.

वे शिवानी को स्कूटर पर बैठा कर कसबे की ओर चल दिए. वे कसबे में पहुंचने ही वाले थे कि सड़क के किनारे खड़े बरगद के पेड़ के पास शिवानी ने कहा, ‘सर, स्कूटर रोक दीजिए.’

प्रोफैसर महेश ने स्कूटर रोक दिया और शिवानी से पूछा, ‘‘क्या बात है शिवानी, क्या तुम्हें फिर चक्कर आ रहा है?’

‘मु?ो कुछ नहीं हुआ सर, मैं तो आप से एकांत में बात करना चाहती थी, इसलिए मैं ने कालेज में बेहोश होने का नाटक किया था,’ उस ने बड़े भोलेपन से कहा.

‘क्या?’ प्रोफैसर ने हैरानी से उस की ओर देखा. फिर पूछा, ‘आखिर, तुम ने ऐसा क्यों किया और तुम मु?ा से क्या बात करना चाहती हो?’

‘सर, मैं आप से प्यार करती हूं और आप को यही बात बताने के लिए मैं ने यह नाटक किया था,’ वह प्रोफैसर की ओर देख कर मुसकरा रही थी.

प्रोफैसर हतप्रभ खड़े थे. उन्हें सम?ा में ही नहीं आ रहा था कि वे उस से क्या कहें. काफी देर तक वे चुप रहे. फिर बोले, ‘यह तुम्हारी पढ़ने की उम्र है, प्यार करने की नहीं. अभी तो तुम प्यार का मतलब भी नहीं जानतीं.’

‘आप ठीक कह रहे हैं, सर. मगर मैं अपने इस दिल का क्या करूं, यह तो आप से प्यार कर बैठा है,’ वह प्रोफैसर की ओर देख कर मुसकराते हुए बोली.

‘तुम्हें मालूम है कि मैं शादीशुदा हूं और मेरे 2 बच्चे हैं. और मेरी तथा तुम्हारी उम्र में कम से कम 20 साल का अंतर है,’ प्रोफैसर ने उसे सम?ाते हुए कहा.

‘मु?ो इन बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता, सर. मैं तो केवल एक ही बात जानती हूं कि मैं आप से प्यार करती हूं, बेपनाह प्यार,’ वह दार्शनिक अंदाज में बोली.

प्रोफैसर ने उसे सम?ाने का हरसंभव प्रयास किया. मगर उस पर कोई असर नहीं हुआ. तो उन्होंने यह कह कर कि, अब तुम ठीक हो इसलिए यहां से अपने घर पैदल चली जाना, वे कालेज लौट गए.

प्रोफैसर महेश ने इस बात को उस का बचपना समझ और गंभीरता से नहीं लिया. शिवानी किसी न किसी बहाने से उन के करीब आने और उन से बात करने का प्रयास करती रहती. परंतु वह उन के जितना करीब आने का प्रयास करती, वे उतना ही उस से दूर भागते. वे नहीं चाहते थे कि कालेज में यह बात चर्चा का विषय बने.

कसबे में छोटे बच्चों का कोई कौन्वैंट स्कूल नहीं था, इसलिए वे यहां अकेले ही किराए के मकान में रहते थे. उन की पत्नी और बच्चे उन के मम्मीपापा के साथ रहते थे.

एक दिन शाम का समय था. प्रोफैसर कमरे में अकेले बैठे एक किताब पढ़ रहे थे. तभी दरवाजे पर खटखट हुई. उन्होंने दरवाजा खोला. सामने शिवानी खड़ी थी. उसे इस प्रकार अकेले अपने घर पर देख वे असमंजस में पड़ गए.

इस से पहले कि वे कुछ कहते, वह कमरे में आ कर एक कुरसी पर बैठ गई. आज पहली बार प्रोफैसर ने शिवानी को ध्यान से देखा. 20-21 वर्ष की उम्र, लंबा व छरहरा बदन, गोराचिट्टा रंग और आकर्षक नैननक्श. उस के लंबे घने बाल उस की कमर को छू रहे थे. सादे कपड़ों में भी वह बेहद सुंदर लग रही थी.

कमरे के एकांत में एक बेहद सुंदर नवयुवती प्रोफैसर के सामने बैठी थी और वह उन से प्यार करती है, यह सोच कर प्रोफैसर के मन में गुदगुदी सी होने लगी. उन्होंने अपने मन को संयत करने का बहुत प्रयास किया मगर वे अपनी भावनाओं पर नियंत्रण रखने में असफल रहे. उन के मन में तरहतरह की हसीन कल्पनाएं उठने लगीं, चेहरे का रंग पलपल बदलने लगा.

इस सब से बेखबर शिवानी कुरसी पर शांत और निश्चल बैठी थी. उस के एक हाथ में सफेद रंग का रूमाल था. प्रोफैसर उठ कर उस के पास गए और उस के गालों को थपथपाते हुए पूछा, ‘शिवानी, तुम यहां अकेले क्या करने आई हो?’

उस ने प्रोफैसर की आंखों में झांक कर देखा, पता नहीं उसे उन की आंखों में क्या दिखाई दिया, वह ?ाटके के साथ कुरसी से उठ कर खड़ी हो गई. उस के चेहरे के भाव एकाएक बदल गए थे. प्रोफैसर के हाथों को अपने गालों से झटके के साथ हटाते हुए वह बोली, ‘प्लीज, डोंट टच मी. आई डोंट लाइक दिस.’

प्रोफैसर के ऊपर पड़ा बुद्धिजीवी का लबादा फट कर तारतार हो चुका था. शिवानी का यह व्यवहार उन के लिए अप्रत्याशित था. उन्हें समझ ही नहीं आ रहा था कि वे उस से क्या कहें.

‘तुम तो कहती हो कि तुम मुझ से बहुत प्यार करती हो,’ प्रोफैसर महेश ने शिवानी की ओर देखते हुए कहा.

‘हां सर, मैं आप को बहुत प्यार करती हूं. मगर मेरा प्यार गंगाजल की तरह निर्मल और कंचन की तरह खरा है,’ उस ने दृढ़ स्वर में कहा.

‘ये सब फिल्मी डायलौग हैं,’ प्रोफैसर ने खिसियानी हंसी हंसते हुए कहा.

‘सर, जरूरत पड़ने पर मैं यह सबित कर दूंगी कि आप के प्रति मेरा प्यार कितना गहरा है,’ यह कह कर वह कमरे से चली गई थी. काफी देर तक प्रोफैसर अवाक खड़े रहे थे, फिर अपने काम में लग गए थे.

इस के बाद शिवानी ने उन से बात करने या मिलने का प्रयास नहीं किया. वे भी धीरेधीरे उसे भूल गए. कुछ समय बाद उन का उस कालेज से स्थानांतरण हो गया. सरकारी सेवा होने के कारण कई जगह स्थानांतरण हुए और आखिर में वे दिल्ली में सैटल्ड हो गए.

2 साल पहले प्रोफैसर को किडनी प्रौब्लम हो गई. कई महीने तक तो डाइलिसिस पर रहे, फिर डाक्टरों ने कहा कि अब किडनी ट्रांसप्लांट के अलावा कोई चारा नहीं है. तब प्रोफैसर ने अपने परिवार में इस संबंध में सब से बातचीत की. उन की पत्नी, दोनों बेटों और बेटी ने राय दी कि पहले किडनी के लिए विज्ञापन देना चाहिए. हो सकता है कि कोई जरूरतमंद पैसे के लिए अपनी किडनी डोनेट करने के लिए तैयार हो जाए. अगर 2-3 बार विज्ञापन देने के बाद भी कोई डोनर नहीं मिलता है तो हम लोग फिर इस बारे में बातचीत करेंगे.

बेटे ने राजधानी के सभी अखबारों में किडनी डोनेट करने वाले को 20 लाख रुपए देने का विज्ञापन छपवाया. विज्ञापन में प्रोफैसर का नाम, पूरा पता दिया गया. विज्ञापन दिए एक महीना हो गया था. जिस अस्पताल में प्रोफैसर महेश का इलाज चल रहा था. एक दिन वहां से फोन आया.

‘सर, आप के लिए गुड न्यूज है. आप को किडनी देने के लिए एक डोनर मिल गई है. उस की उम्र 45 साल के करीब है और वह आप को किडनी डोनेट करने के लिए तैयार है. मगर उस की एक शर्त है कि, किडनी ट्रांसप्लांट होने से पहले उस का नाम व पता किसी को न बताया जाए.’

मुझे यह जान कर हैरानी हुई कि डोनर अपना नाम, पता क्यों नहीं बताना चाहती. फिर हम सब ने सोचा कि शायद उस की कोई मजबूरी होगी.

ट्रांसप्लांट की सारी फौर्मैलिटीज पूरी कर ली गईं और नियत तारीख पर उन की किडनी का ट्रांसप्लांटेशन हो गया, जो पूरी तरह से सफल रहा.

इस के कई दिनों बाद जब प्रोफैसर महेश अपने को काफी सहज अनुभव करने लगे तो उन्होंने एक दिन डाक्टर साहब से पूछा कि ‘डाक्टर साहब, वे लेडी कैसी हैं जिन्होंने उन्हें अपनी किडनी डोनेट की थी.’

कुछ देर तक डाक्टर साहब खामोश रहे, फिर बोले कि वह लेडी तो परसों बिना किसी को कुछ बताए अस्पताल से चली गई. हैरानी की बात यह है कि वह अपनी डोनेशन फीस भी नहीं ले गई.

‘क्या..?’ प्रोफैसर का मुंह विस्मय से खुला का खुला रह गया था. जब उन्होंने यह बात अपने परिवार के लोगों को बताई तो उन सब को बड़ी हैरानी हुई. सभी को यह बात सम?ा ही नहीं आ रही थी कि आज के इस आपाधापी के दौर में 20 लाख रुपए ठुकरा देने वाली यह लेडी आखिर कौन थी. काफी दिनों तक प्रोफैसर इसी उधेड़बुन में रहे. उन्होंने उस लेडी का पता लगाने की हरसंभव कोशिश की, मगर इस के बारे में कुछ पता नहीं चला.

‘‘आप को कहां तक जाना है, सर,’’ अचानक टीटीई ने आ कर प्रोफैसर महेश की तंद्रा को भंग कर दिया. वे अतीत से वर्तमान में लौट आए. टिकट चैक करने के बाद टीटीई चला गया.

प्रोफैसर महेश ने वह रूमाल उठाया जो शिवानी ने उन्हें देने के लिए प्रोफैसर माधवी को दिया था. उन्होंने रूमाल को पहचानने की कोशिश की. यह शायद वही कढ़ा हुआ रूमाल था जो शिवानी उन्हें देने उन के कमरे पर आई थी. सफेद रंग के उस रूमाल के एक कोने में सुनहरे रंग से इंग्लिश का अक्षर एस कढ़ा हुआ था. एस यानी शिवानी के नाम का पहला अक्षर.

अब प्रोफैसर महेश को डोनर की सारी पहेली समझ में आ गई थी. उन्होंने रूमाल में रखे हुए मुड़ेतुड़े पत्र को खोल कर पढ़ा, लिखा था-

‘‘प्रोफैसर साहब,

‘‘आप का जीवन मेरे लिए बहुत बहुमूल्य है, इसलिए मैं ने अपने जीवन को संकट में डाल कर आप की जान को बचाया. मगर मैं ने ऐसा कर के आप पर कोई एहसान नहीं किया. मुझे तो इस बात की खुशी है कि मैं जिसे हृदय की गहराइयों से प्यार करती थी, उस के किसी काम आ सकी.

‘‘आप की शिवानी.’’

पत्र पढ़ कर प्रोफैसर महेश का मन गहरी वेदना से भर उठा. शिवानी का यह निस्वार्थ प्यार देख कर उन की आंखों से आंसू बहने लगे. उन्होंने शिवानी का दिया हुआ रूमाल उठाया और उस से अपने आंसुओं को पोंछने लगे. ऐसा कर के शायद उन्होंने शिवानी के सच्चे अमर प्रेम को स्वीकार कर लिया था.

Emotional Story

Best Hindi Story: मन का बोझ- क्या हुआ आखिर अवनि और अंबर के बीच

Best Hindi Story: अंबर से उस के विवाह को हुए एक माह होने को आया था. इस दौरान कितनी नाटकीय घटना या कितने सपने सच हुए थे. इस घटनाक्रम को अवनि ने बहुत नजदीक से जाना था. अगर ऐसा न होता तो निखिला से विवाह होतेहोते अंबर उस का कैसे हो जाता? हां, सच ही तो था यह. विवाह से एक दिन पहले तक किसी ने सपने में भी नहीं सोचा था कि निखिला की जगह अवनि दुलहन बन कर विवाहमंडप में बैठेगी. विवाह की तैयारियां लगभग पूर्ण हो चुकी थीं. सारे मेहमान आ चुके थे. अचानक ही इस समाचार ने सब को बुरी तरह चौंका दिया था कि भावी वधू यानी निखिला ने अपने सहकर्मी विधु से कचहरी में विवाह कर लिया है. सब हतप्रभ रह गए थे. खुशी के मौके पर यह कैसी अनहोनी हो गई थी.

अंबर तो बुरी तरह हैरान, परेशान हो गया था. अमेरिका से उस की बहन शालिनी आई हुई थी और विवाह के ठीक 2 दिन बाद उस की वापसी का टिकट आरक्षित था. मांजी की आंखों में पढ़ी- लिखी, सुंदर बहू के आने का जो सपना तैर रहा था वह क्षण भर में बिखर गया था. वैसे ही अकसर बीमार रहती थीं. अब सब यही सोच रहे थे कि कहीं से जल्दी से जल्दी दूसरी लड़की को अंबर के लिए ढूंढ़ा जाए, लेकिन मांजी नहीं चाहती थीं कि जल्दबाजी में उन के सुयोग्य बेटे के गले कोई ऐसीवैसी लड़की बांध दी जाए.

अंबर के ही मकान में किराएदार की हैसियत से रहने वाली साधारण सी लड़की अवनि तो अपने को अंबर के योग्य कभी भी नहीं समझती थी. वैसे अंबर को उस ने चाहा था, पर उसे सदैव के लिए पाने की इच्छा वह जुटा ही नहीं पाती थी. वह सोचती थी, ‘कहां अंबर और कहां वह. कितना सुदर्शन और शिक्षित है अंबर. इतना बड़ा इंजीनियर हो कर भी पद का घमंड उसे कतई नहीं है. सुंदर से सुंदर लड़की उसे पा कर गर्व कर सकती है और वह तो रूप और शिक्षा दोनों में ही साधारण है.’

अवनि तो एकाएक चौंक ही गई थी मां से सुन कर, ‘‘सुना तुम ने अवनि, अंबर की मां ने अंबर के लिए तुझे मांगा है. चल जल्दी से दुलहन बनने की तैयारी कर और हां…सरला बहन 5 मिनट के लिए तुम से मिलना चाहती हैं.’’ अवनि तो जैसे जड़ हो गई थी. उस का सपना इस प्रकार साकार हो जाएगा, ऐसा तो उस ने सोचा भी न था. अचानक उस की आंखों से आंसू बहने लगे तो उस की मां घबरा गईं, ‘‘क्या बात है, अवनि, क्या तुझे अंबर पसंद नहीं? सच बता बेटी, तू क्यों रो रही है?’’

‘‘कुछ नहीं मां, बस ऐसे ही दिल घबरा सा गया था.’’ तभी मांजी कमरे में आ गईं, ‘‘अवनि, बता तुझे यह विवाह मंजूर है न? देखो, कोई जबरदस्ती नहीं है. अंबर से भी मैं ने पूछ लिया है. इतने सारे चिरपरिचित चेहरों में मुझे तुम ही अपनी बहू बनाने योग्य लगी हो. इनकार मत करना बेटी.’’

‘‘यह आप क्या कह रही हैं, मांजी,’’ इस से आगे अवनि एक शब्द भी न कह सकी और आगे बढ़ कर उस ने मांजी के चरण छू लिए. अगले दिन विवाह भी हो गया. कैसे सब एकदम से घटित हो गया, आज भी अवनि समझ नहीं पाती. वह दिन भी उसे अच्छी तरह याद है जब अंबर की बहन नेहा और अंबर लड़की देखने गए थे. आते ही नेहा ने उसे नीचे से आवाज लगाई थी, ‘‘अवनि दीदी, नीचे आओ.’’

‘‘क्या है, नेहा?’’ नीचे आ कर उस ने पूछा, ‘‘बड़ी खुश नजर आ रही हो.’’ ‘‘खुश तो होना ही है दीदी, अपने लिए भाभी जो पसंद कर के आ रही हूं.’’

‘‘सच, क्या नाम है उन का?’’ ‘‘निखिला, बड़ी सुंदर है मेरी भाभी.’’

‘‘यह तो बड़ी खुशी की बात है. बधाई हो नेहा…और आप को भी,’’ पास बैठे मंदमंद मुसकरा रहे अंबर की ओर मुखातिब हो कर अवनि ने कहा था. ‘‘धन्यवाद अवनि,’’ कह कर अंबर दूसरे कमरे में चला गया था.

अंबर की खुशी से अवनि भी खुश थी. कैसा विचित्र प्यार था उस का, जिसे चाहती थी उसे पाने की कामना नहीं करती थी, पर अपने मन की थाह तक वह खुद ही नहीं पहुंच सकी थी. बस एक ही तो चाह थी कि अंबर हमेशा खुश रहे. एक ही घर में रहने के कारण अवनि का रोज ही तो अंबर से मिलना होता था. अंबर के परिवार में थे नेहा, मांजी, अंबर, छोटा भाई सृजन तथा शालिनी दीदी, जो विवाह होने के बाद अमेरिका में रह रही थीं. सृजन बाहर छात्रावास में रह कर पढ़ाई कर रहा था. अंबर तो अकसर दौरों पर रहता था.

पर अंबर को देखते ही अवनि उन के घर से खिसक आती थी. शांत, सौम्य सा व्यक्तित्व था उस का, परंतु उस की उपस्थिति में अवनि की मुखरता, जड़ता का रूप ले लेती थी. वैसे जब कभी भी अनजाने में अंबर की आंखें अवनि को अपने पर टिकी सी लगतीं, वह सिहर जाती थी. जाने कब उसे अंबर बहुत अच्छा लगने लगा था. अंबर के मन तक उस की पहुंच नहीं थी. कभीकभी उसे लगता भी था कि अंबर के मन में भी एक कोमल कोना उस के लिए है. फिर वह सोचने लगती, ‘नहीं, भला अंबर व अवनि (धरती) का भी कभी मिलन हुआ है.’ जब कभी दौरे से लौटने में अंबर को देर हो जाती तो मांजी और नेहा के साथसाथ अवनि भी चिंतित हो जाती थी. कभीकभी उसे खुद ही आश्चर्य होता था कि आखिर वह अंबर की इतनी चिंता क्यों करती है, भला उस का क्या रिश्ता है उस से? कहीं उस की आंखों में किसी ने प्रेम की भाषा पढ़ ली तो? फिर वह स्वयं ही अपने मन को समझाती, ‘जो राह मंजिल तक न पहुंचा सके, उस पर चलना ही नहीं चाहिए.’

अवनि भी तो खुशीखुशी अंबर के विवाह की तैयारियां नेहा के साथ मिल कर कर रही थी. विवाह का अधिकांश सामान नेहा और उस ने मिल कर ही खरीदा था. निखिला की हर साड़ी पर उस की स्वीकृति की मुहर लगी थी. अवनि का दिल चुपके से चटका था, पर उस की आवाज किसी ने नहीं सुनी थी. आंसू आंखों में ही छिप कर ठहर गए थे. बाबूजी उस के लिए भी लड़का ढूंढ़ रहे थे. पर संयोगिक घटनाओं की विचित्रता को भला कौन समझ सकता है. नेहा और मांजी ने उसे खुले मन से स्वीकार कर लिया था. मांजी का तो बहूबहू कहते मुंह न थकता था.

एक अंबर ही ऐसा था जिसे पा कर भी अवनि उस के मन तक नहीं पहुंची थी. शादी के बाद वह कुछ ज्यादा ही व्यस्त दिखाई दे रहा था. कितना चाहा था अवनि ने कि अंबर से दो घड़ी मन की बातें कर ले. उस के मन पर एक बोझ था कि कहीं अंबर उसे पा कर नाखुश तो नहीं था. वैसे भी परिस्थितियों से समझौता कर के किसी को स्वीकार करना, स्वीकार करना तो नहीं कहा जा सकता. हो सकता है मांजी और शालिनी दीदी ने उस पर दबाव डाला हो या अपनी मां के स्वास्थ्य का खयाल कर के उस ने शादी कर ली हो.

अवनि के परिवार ने विवाह के दूसरे दिन ही अपने लिए दूसरा मकान किराए पर ले लिया था. शालिनी दीदी को भी दूसरे दिन दिल्ली जाना था. अंबर उन्हें छोड़ने चला गया था. मेहमान भी लगभग जा चुके थे.

अवनि मांजी के पास रहते हुए भी मानो कहीं दूर थी. काश, वह किसी भी तरह अंबर के मन तक पहुंच पाती. दिल्ली से लौट कर अंबर अपने दफ्तर के कामों में व्यस्त हो गया था. स्वयं तो अवनि अंबर से कुछ पूछने का साहस ही नहीं जुटा पा रही थी. प्रारंभ में अंबर की व्यस्ततावश और फिर संकोचवश चाह कर भी वह कुछ न पूछ सकी थी. अंबर भी अपने मन की बातें उस से कम ही करता था. इस से भी अवनि का मन और अधिक शंकित हो जाता था कि पता नहीं अंबर उसे पसंद करता है या नहीं.

अंबर शायद मन से अवनि को स्वीकार नहीं कर पाया था. वैसे वह उस के सामने सामान्य ही बने रहने का प्रयास करता था. कभी भी उस ने अपने मन के अनमनेपन को अवनि को महसूस नहीं होने दिया था. ऊपरी तौर से उसे अवनि में कोई कमी दिखती भी नहीं थी, पर जबजब वह उस की तुलना निखिला से करता तो कुछ परेशान हो जाता. निखिला की सुंदरता, योग्यता आदि सभी कुछ तो उस के मन के अनुकूल था. अवनि को अंबर प्रारंभ से ही एक अच्छी लड़की के रूप में पसंद करता था, पर जीवनसाथी बनाने की कल्पना तो उस ने कभी नहीं की थी. सबकुछ कितने अप्रत्याशित ढंग से घटित हो गया था.

दिन बीत रहे थे. धीरेधीरे अवनि का सुंदर, सरल रूप अंबर के समक्ष उद्घाटित होता जा रहा था. घरभर को अवनि ने अपने मधुर व्यवहार से मोह लिया था. मांजी और नेहा उस की प्रशंसा करते न थकती थीं. उस के समस्त गुण अब साथ रहने से अंबर के सामने आ रहे थे, जिन्हें वह पहले एक ही घर में रहने पर भी नहीं देख पाया था. उन दिनों नेहा की परीक्षाएं चल रही थीं और मां भी अस्वस्थ थीं. अवनि के पिताजी एकाएक उसे लेने आ गए थे, क्योंकि उन्होंने नया घर बनवाया था. पीहर जाने की लालसा किस लड़की में नहीं होती, पर अवनि ने जाने से इनकार कर दिया था. मांजी ने कहा था, ‘‘चली जाओ, दोचार दिन की ही तो बात है, सब ठीक हो जाएगा.’’

पर अवनि ही तैयार नहीं हुई थी. वह नहीं चाहती थी कि नेहा की पढ़ाई में व्यवधान पड़े. अंबर सोचने लगा, जिस तरह अवनि ने उस के घरपरिवार के साथ सामंजस्य बैठा लिया था, क्या निखिला भी वैसा कर पाती? मांबाप की इकलौती बेटी, धनऐश्वर्य, लाड़प्यार में पली, उच्च शिक्षित, रूपगर्विता निखिला क्या इतना कुछ कर सकती थी? शायद कभी नहीं. वह व्यर्थ ही भटक रहा था. जो कुछ भी हुआ, ठीक ही हुआ. अंबर अब महसूस करने लगा था कि मां ने सोचसमझ कर ही अवनि का हाथ उस के हाथ में दिया था.

फिर एक दिन स्वयं ही अंबर कह उठा था, ‘‘सच अवनि, मैं बहुत खुश हूं कि मुझे तुम्हारे जैसी पत्नी मिली. वैसे तुम से मेरा विवाह होना आज भी स्वप्न जैसा ही लगता है.’’ ‘‘क्या आप को निखिला से विवाह टूटने का दुख नहीं हुआ. कहां निखिला और कहां मैं.’’

‘‘नहीं अवनि, ऐसा नहीं है,’’ अंबर ने गंभीर स्वर में कहा, ‘‘निखिला से जब मेरा रिश्ता तय हुआ तो उस से लगाव भी स्वाभाविक रूप से हो गया था. फिर शादी से एक दिन पूर्व ही रिश्ता टूटने से ठेस भी बहुत लगी थी. वैसे भी निखिला से मैं काफी प्रभावित था. ‘‘सच कहूं, प्रारंभ में मैं एकाएक तुम से विवाह हो जाने पर बहुत प्रसन्न हुआ हूं, ऐसा नहीं था क्योंकि एक ही घर में रहते हुए तुम्हें जानता तो था, पर उतना नहीं, जितना तुम्हें अपनी सहचरी बना कर जाना. तुम्हारे वास्तविक गुण भी तभी मेरे सामने आए. तुम्हें एक अच्छी लड़की के रूप में मैं सदा ही पसंद करता रहा था. तुम्हारी सौम्यता मेरे आकर्षण का केंद्र भी रही थी, पर विवाह करने का मेरा मापदंड दूसरा ही था. इसीलिए मैं शायद तुम्हारे गुणों व नैसर्गिक सौंदर्य को अनदेखा करता रहा था, पर अब मुझे एहसास हो रहा है कि शायद मैं ही गलत था.

‘‘वैसे भी अवनि और अंबर को तो एक दिन क्षितिज पर मिलना ही था,’’ अंबर ने मुसकराते हुए कहा. ‘‘सच,’’ अंबर की स्पष्ट रूप से कही गई बातों से अवनि के मन का बोझ भी उतर गया था.

Best Hindi Story

Love Story: फ्रैंड जोन- क्या कार्तिक को दोस्ती में मिल पाया अपना प्यार

Love Story: ‘‘नौकरी के साथसाथ अपनी सेहत का भी ध्यान रखना बेटा, अच्छा?’’ कार्तिक को ट्रेन में विदा करते समय मातापिता ने अपना प्यार उड़ेलने के साथ यह कह डाला.

कार्तिक पहली बार घर से दूर जा रहा था. आज तक तो मां ने ही उस का पूरा ध्यान रखा था, पर अब उसे स्वयं यह जिम्मेदारी उठानी थी. इंजीनियरिंग कर कालेज से ही कैंपस प्लेसमैंट से उस की नौकरी लग गई थी, और वह भी उस शहर में जहां उस के मौसामौसी रहते थे. सो अब किसी प्रकार की चिंता की कोई बात नहीं थी. मौसी के घर पहुंच कर कार्तिक ने मां द्वारा दी गई चीजें देनी आरंभ कर दीं.

‘‘ओ हो, क्या क्या भेज दिया जीजी ने,’’ मौसी सामान रखने में व्यस्त हो गईं और मौसाजी कार्तिक से उस की नई नौकरी के बारे में पूछने लगे. उन्हें नौकरी अच्छी लग रही थी, कार्यभार से भी और तनख्वाह से भी.

अगले दिन कार्तिककी जौइनिंग थी. उसे अपना दफ्तर काफी पसंद आया. पूरा दिन जौइनिंग प्रोसैस में ही बीत गया. उसे उस की मेज, उस का लैपटौप व डाटाकार्ड और दफ्तर में प्रवेश पाने के लिए स्मार्टकार्ड मिल गया था. शाम को घर लौट कर मौसाजी ने दिनभर का ब्योरा लिया तो कार्तिक ने बताया, ‘‘कंपनी अच्छी लग रही है, मौसाजी. तकनीकी दृष्टि से वहां नएनए सौफ्टवेयर हैं, आधुनिक मशीनें हैं और साथ ही मेरे जैसा यंगक्राउड भी है. वीकैंड्स पर पार्टियों का आयोजन भी होता रहता है.’’

‘‘ओ हो, यंगक्राउड और पार्टियां, तो यहां मामला जम सकता है,’’ मौसाजी ने उस की खिंचाई की तो कार्तिक शरमा गया. कार्तिक थोड़ा शर्मीला किस्म का लड़का था. इसी कारण आज तक उस की कोई गर्लफ्रैंड नहीं बन पाई थी.

‘‘क्यों छेड़ रहे हो बच्चे को,’’ मौसी बीच में बोल पड़ीं तब भी मौसाजी चुप नहीं रहे, ‘‘तो क्या यों ही सारी जवानी निकाल देगा ये बुद्धूराम.’’

कार्तिक काम में चपल था. दफ्तर का काम चल पड़ा. कुछ ही दिनों में अपने मैनेजमैंट को उस ने लुभा लिया था. लेकिन उस को भी किसी ने लुभा लिया था, वह थी मान्या. वह दूसरे विभाग में कार्यरत थी, लेकिन उस का भी काम में काफी नाम था और साथ ही, वह काफी मिलनसार भी थी. खुले विचारों की, सब से हंस कर दोस्ती करने वाली, हर पार्टी की जान थी मान्या.

वह कार्तिक को पसंद अवश्य थी, लेकिन अपने शर्मीले स्वभाव के चलते उस से कुछ कहने की हिम्मत तो दूर, कार्तिक आंखों से भी कुछ बयान करने की हिम्मत नहीं कर सकता था. मान्या हर पार्टी में जाती, खूब हंसतीनाचती, सब से घुलमिल कर बातें करती. कार्तिक बस उसे दूर से निहारा ही करता. पास आते ही इधरउधर देखने लगता. 2 महीने बीततेबीतते मान्या ने खुद ही कार्तिक से दूसरे सहकर्मियों की तरह दोस्ती कर ली. अब वह कार्तिक को अपने दोस्तों के साथ रखने लगी थी.

‘‘आज शाम को पार्टी में आओगे न, कार्तिक? पता है न आज का थीम रेट्रो,’’ मान्या के कहने पर कार्तिक ने 70 के दशक वाले कपड़े पहने. मान्या चमकीली सी ड्रैस पहने, माथे पर एक चमकीली डोरी बांधे बहुत ही सुंदर लग रही थी.

‘‘क्या गजब ढा रही हो, जानेमन,’’ कहते हुए इसी टोली के एक सदस्य, नितिन ने मान्या की कमर में हाथ डाल दिया, ‘‘चलो, थोड़ा डांस हो जाए.’’

‘‘डांस से मुझे परहेज नहीं है पर इस से जरूर है,’’ कमर में नितिन के हाथ की तरफ इशारा करते हुए मान्या ने आराम से उस का हाथ हटा दिया. जब काफी देर दोनों नाच लिए तो मान्या ने कार्तिक से कहा, ‘‘गला सूख रहा है, थोड़ा कोल्डड्रिंक ला दो न, प्लीज.’’

कार्तिक की यही भूमिका रहती थी अकसर पार्टियों में. वह नाचता तो नहीं था, बस मान्या के लिए ठंडापेय लाता रहता था. लेकिन आज की घटना ने उसे कुछ उदास कर दिया था. नितिन का यों मान्या की कमर में आसानी से अपनी बांह डालना उसे जरा भी नहीं भाया था. हालांकि मान्या ने ऐतराज जता कर उस का हाथ हटा दिया था. मगर नितिन की इस हरकत का सीधा तात्पर्य यह था कि मान्या को सब लड़के अकेली जान कर अवेलेबल समझ रहे थे. जिस का दांव लग गया, मान्या उस की. तो क्या कार्तिक का महत्त्व मान्या के जीवन में बस खानेपीने की सामग्री लाने के लिए था?

इन्हीं सब विचारों में उलझा कार्तिक घर वापस आ गया. कमरे में अनमना सा, सोच में डूबे हुए उस को यह भी नहीं पता चला कि मौसाजी कब कमरे में आ कर बत्ती जला चुके थे. बत्ती की रोशनी ने कमरे की दीवारों को तो उज्ज्वलित कर दिया पर कार्तिक के भीतर चिंतन के जिस अंधेरे ने मजबूती से पैर जमाए थे, उसे डिगाने के लिए मौसाजी को पुकारना पड़ा, ‘‘अरे यार कार्तिक, आज क्या हो गया जो इतने गुमसुम हुए बैठे हो? किस की मजाल कि मेरे भांजे को इतना परेशान कर रखा है, बताओ मुझे उस का नाम.’’

‘‘मौसाजी, आप? आइए… आइए… कुछ नहीं, कोई भी तो नहीं,’’ सकपकाते हुए कार्तिक के मुंह से कुछ अस्फुटित शब्द निकले.

‘‘बच्चू, हम से ही होशियारी? हम ने भी कांच की गोटियां नहीं खेलीं, बता भी दे कौन है?’’ कार्तिक के कंधे पर हाथ रखते हुए मौसाजी वहीं विराजमान हो गए. उन के हावभाव स्पष्ट कर रहे थे कि आज वे बिना बात जाने जाएंगे नहीं. मौसी से कह कर खाना भी वहीं लगवा लिया गया. जब खाना लगा कर मौसी जाने को हुईं तो मौसाजी ने कमरे का दरवाजा बंद करते हुए मौसी को हिदायत दी, ‘‘आज हम दोनों की मैन टु मैन टौक है, प्लीज डौंट डिस्टर्ब,’’ मौसी हंसती हुई वापस रसोई में चली गईं तो मौसाजी फिर शुरू हो गए, ‘‘हां, यार, तो बता…’’

कार्तिक ने हथियार डालते हुए सब उगल दिया.

‘‘हम्म, तो अभी यही नहीं पता कि बात एकतरफा है या आग दोनों तरफ बराबर लगी हुई है’’, मौसाजी का स्वभाव एक दोस्त जैसा था. उन्होंने सदा से कार्तिक को सही सलाह दी थी और आज भी उन्हें अपनी वही परंपरा निभानी थी.

‘‘देख यार, पहली बात तो यह कि यदि तुम किसी लड़की को पसंद करते हो, तो उस के फ्रैंड जोन से फौरन बाहर निकलो. मान्या के लिए तू कोई वेटर नहीं है. सब से पहले किसी भी पार्टी में जा कर उस के लिए खानापीना लाना बंद कर. लड़कियों को आकर्षित करना हो तो 3 बातों का ध्यान रख, पहली, उन्हें बराबरी का दर्जा दो और खुद को भी उन के बराबर रखो. अगली पार्टी कब है? मान्या को अपना यह नया रूप तुझे उसी पार्टी में दिखाना है. जब तू इस इम्तिहान में पास हो जाएगा, तो अगला स्टैप फौलो करेंगे.’’

हालांकि कार्तिक तीनों बातें जानने को उत्सुक था, मौसाजी ने एकएक कदम चलना ही ठीक समझा. जल्द ही अगली पार्टी आ गई. पूरी हिम्मत जुटा कर, अपने नए रूप को ध्यान में रखते हुए कार्तिक वहां पहुंचा. इस बार नाचने के बाद जब मान्या ने कार्तिक की ओर देखा तो पाया कि वह अन्य लोगों से बातचीत में मगन है. कार्तिक को अचंभा हुआ जब उस ने यह देखा कि मान्या न सिर्फ अपने लिए, बल्कि उस के लिए भी ठंडेपेय का गिलास पकड़े उस की ओर आ रही है.

‘‘लो, आज मैं तुम्हें कोल्डड्रिंक सर्व करती हूं,’’ हंसते हुए मान्या ने कहा. फिर धीरे से उस के कान में फुसफुसाई, ‘‘मुझे अच्छा लगा यह देख कर कि तुम भी सोशलाइज हो.’’

मौसाजी की बात सही निकली. मान्या पर उस के इस नए रूप का सार्थक असर पड़ा था. घर लौट कर कार्तिक खुश था. कारण स्पष्ट था. मौसाजी ने आज मैन टु मैन टौक का दूसरा स्टैप बताया. ‘‘इस सीढ़ी के बाद अब तुझे और भी हिम्मत जुटा कर अगली पारी खेलनी है. फ्रैंड जोन से बाहर आने के लिए तुझे उस के आसपास से परे देखना होगा. एक औरत के लिए यह झेलना मुश्किल है कि जो अब तक उस के इर्दगिर्द घूमता था, अब वह किसी और की तरफ आकर्षित हो रहा है. और इस से हमें यह भी पता चल जाएगा कि वह तुझे किस नजर से देखती है. उस से तुलनात्मक तरीके से उस की सहेली की, उस की प्रतिद्वंद्वी की, यहां तक कि उस की मां की तारीफ कर. इस का परिणाम मुझे बताना, फिर हम आखिरी स्टैप की बात करेंगे.’’

अगले दिन से ही कार्तिक ने अपने मौसाजी की बात पर अमल करना शुरू कर दिया. ‘‘कितनी अच्छी प्रैजेंटेशन बनाई आज रवीना ने. इस से अच्छी प्रैजेंटेशन मैं ने आज तक इस दफ्तर में नहीं देखी’’, कार्तिक के यह कहने पर मान्या से रहा नहीं गया, ‘‘क्यों मेरी प्रैजेंटेशन नहीं देखी थी तुम ने पिछले हफ्ते? मेरे हिसाब से इस से बेहतर थी.’’

लंच के दौरान सभी साथ खाना खा रहे थे. एकदूसरे के घर का खाना बांट कर खाते हुए कार्तिक बोला, ‘‘वाह  मान्या, तुम्हारी मम्मी कितना स्वादिप्ठ भोजन पकाती हैं. तुम भी कुछ सीखती हो उन से, या नहीं?’’

‘‘हां, हां, सीखती हूं न,’’ मान्या स्तब्ध थी कि अचानक कार्तिक उस से कितने अलगअलग विषयों पर बात करने लगा था. अगले कुछ दिन यही क्रम चला. मान्या अकसर कार्तिक को कभी कोई सफाई दे रही होती या कभी अपना पक्ष रख रही होती. कार्तिक कभी मान्या की किसी से तुलना करता तो वह चिढ़ जाती और फौरन खुद को बेहतर सिद्ध करने लग जाती. फिर मौसाजी द्वारा राह दिखाने पर कार्तिक ने एक और बदलाव किया. उस ने अपने दफ्तर में मान्या की क्लोजफ्रैंड शीतल को समय देना शुरू कर दिया. शीतल खुश थी क्योंकि कार्तिक के साथ काम कर के उसे बहुत कुछ सीखने को मिल रहा था. मान्या थोड़ी हैरान थी क्योंकि आजकल कार्तिक उस के बजाय शीतल के साथ लंच करने लगा था, कभी किसी दूसरे दफ्तर जाना होता तब भी वह शीतल को ही संग ले जाता.

‘‘क्या बात है, कार्तिक, आजकल तुम शीतल को ही अपने साथ हर प्रोजैक्ट में रखते हो? किसी बात पर मुझ से नाराज हो क्या?’’, आखिर मान्या एक दिन पूछ ही बैठी.

‘‘नहीं मान्या, ऐसी कोई बात नहीं है. वह तो शीतल ही चाह रही थी कि वह मेरे साथ एकदो प्रोजैक्ट कर ले तो मैं ने भी हामी भर दी,’’ कह कर कार्तिक ने बात टाल दी. लेकिन घर लौटते ही मौसाजी से सारी बातें शेयर की.

‘‘अब समय आ गया है हमारी मैन टु मैन टौक के आखिरी स्टैप का, अब तुम्हारा रिश्ता इतना तैयार है कि जो मैं तुम से कहलवाना चाहता हूं वह तुम कह सकते हो. अब तुम में एक आत्मविश्वास है और मान्या के मन में तुम्हारे प्रति एक ललक. लोहा गरम है तो मार दे हथोड़ा,’’ कहते हुए मौसाजी ने कार्तिक को आखिरी स्टैप की राह दिखा दी.

अगले दिन कार्तिक ने मान्या को शाम की कौफी पीने के लिए आमंत्रित किया. मान्या फौरन तैयार हो गई. दफ्तर के बाद दोनों एक कौफी शौप पर पहुंचे. ‘‘मान्या, मैं तुम से कुछ कहना चाहता हूं,’’ कार्तिक के कहने के साथ ही मान्या भी बोली, ‘‘कार्तिक, मैं तुम से कुछ कहना चाहती हूं.’’

‘‘तो कहो, लेडीज फर्स्ट,’’ कार्तिक के कहने पर मान्या ने अपनी बात पहले रखी. पर जो मान्या ने कहा वह सुनने के बाद कार्तिक को अपनी बात कहने की आवश्यकता ही नहीं रही.

‘‘कार्तिक, मैं बाद में पछताना नहीं चाहती कि मैं ने अपने दिल की बात दिल में ही रहने दी और समय मेरे हाथ से निकल गया. मैं… मैं… तुम से प्यार करने लगी हूं. मुझे नहीं पता कि तुम्हारे मन में क्या है, लेकिन मैं अपने मन की बात तुम से कह कर निश्चिंत हो चुकी हूं.’’

अंधा क्या चाहे, दो आंखें, कार्तिक सुन कर झूम उठा, उस ने तत्काल मान्या को प्रपोज कर दिया, ‘‘मान्या, मैं न जाने कब से तुम्हारी आस मन में लिए था. आज तुम से भी वही बात सुन कर मेरे दिल को सुकून मिल गया. लेकिन सब से पहले मैं तुम्हें किसी से मिलवाना चाहता हूं. अपने गुरु से,’’ और कार्तिक मान्या को ले कर सीधा अपने मौसाजी के पास घर की ओर चल दिया.

Love Story

Winter Recipes: सर्द मौसम में गरमी का एहसास दिलाएंगी ये रैसिपी

Winter Recipes

ऐप्पल टी सामग्री

–  2 कप पानी

–  1 सेब टुकड़ों में कटा

–  ग्रीन टी बैग

–  1 टुकड़ा दालचीनी का

–  थोड़ा सा शहद व नीबू का रस

–  थोड़ा सा अदरक बारीक कटा.

विधि

एक सौसपैन में पानी डाल कर उस में दालचीनी, ग्रीन टी बैग, ऐप्पल के टुकड़े व अदरक डाल कर 9-10 मिनट तक उबालें. फिर उसे छान कर उस में शहद व नीबू का रस डाल कर सर्व करें.

‘टोमैटो सूप बैस्ट ऐपिटाइजर है और इस का स्वाद भी बेहतरीन वैजिटेबल टोमैटो सूप’

सामग्री

–  3-4 टोमैटो

–  7-8 बींस

–  1 गाजर

–  आधा घीया

–  थोड़ा सा कालीमिर्च पाउडर

–  2 बड़े चम्मच टोमैटो कैचअप

–  2 गिलास पानी

–  थोड़े से ब्रैड क्रूटौंस

–  नमक स्वादानुसार.

विधि

प्रैशर कूकर में टोमैटो कैचअप और क्रूटौंस को छोड़ कर बाकी सारी सामग्री डाल कर 2 गिलास पानी डालें. फिर 7-8 मिनट तक पकने दें. फिर सूप को ब्लैंड कर के छान लें. अब इस में टोमैटो कैचअप डालें. क्रूटौंस डाल कर गरमगरम सूप सर्व करें.

‘चिकन सूप के स्वाद को इस तरह से भी बढ़ाया जा सकता है.’

सामग्री

–  3-4 पीस बोनलैस चिकन

–  आधा घीया

–  1 आलू

–  1 प्याज

–  1/2 छोटा चम्मच अदरक

–  1/2 छोटा चम्मच लहसुन

–  थोड़ी सी कालीमिर्च

–  2 गिलास पानी

–  नमक स्वादानुसार.

विधि

सारी सामग्री को प्रैशर कूकर में डाल कर 10 मिनट तक पकाएं. फिर ब्लैंडर में ब्लैंड कर के गरमगरम सर्व करें.

Winter Recipes

Multistarrer Movies: 2 हीरो अभिनीत फिल्में क्यों हैं दर्शकों की पहली पसंद

Multistarrer Movies: मल्टीस्टार फिल्मों का दौर आज से 57 साल पहले यश चोपङा निर्देशित फिल्म ‘वक्त’ से शुरू हुआ. इस फिल्म में बलराज साहनी, सुनील दत्त, राजकुमार, शर्मिला टैगोर, साधना जैसे दिग्गज कलाकारों को एक ही फ्रेम में ला कर फिल्म बनाई गई थी.

मशहूर कलाकारों से सजी फिल्म ‘वक्त’ न सिर्फ उस जमाने की सुपरहिट फिल्म थी, बल्कि एक मल्टीस्टारर फिल्म के जरीए एक ही टिकट के दाम पर दर्शकों को अपने पसंदीदा कलाकारों को एकसाथ फिल्म में देखने का मौका मिल गया.

इस फिल्म की लोकप्रियता के बाद  कई सारी मल्टीस्टारर फिल्में बनीं, जैसे ‘रोटी कपड़ा और मकान’, ‘क्रांति’, ‘डौन’, ‘नमक हलाल’, ‘शान’, ‘शोले’, ‘मुकद्दर का सिकंदर’, ‘अमर अकबर एंथनी’, ‘पूरब पश्चिम’ आदि.

तकरीबन हर सफल हीरोहीरोइन के दौर में मल्टीस्टारर फिल्मों का बोलबाला रहा, फिर चाहे वह शाहरुख खान की ‘दिलवाले दुलहनिया ले जाएंगे’, ‘कभी खुशी कभी गम’, ‘दिल तो पागल है’ हो या सलमान खान के दौर में ‘हम आप के हैं कौन’, ‘जुड़वां’, ‘हम साथसाथ हैं’ आदि फिल्में ही क्यों न हों.

कहने का मतलब यह है कि सुनील दत्त, राजकुमार, शत्रुघ्न सिन्हा से ले कर अमिताभ बच्चन, शाहरुख खान, सलमान खान तक करीबन सभी हीरो ने मल्टीस्टारर और 2 हीरो वाली फिल्मों में काम किया है. लेकिन पिछले कुछ सालों में मल्टीस्टारर फिल्में बननी कम हो गई हैं. इस के पीछे क्या वजह है? कई कलाकारों से सजी फिल्मों के क्या फायदेनुकसान हैं? आने वाले समय में कौनकौन सी मल्टीस्टारर और 2 हीरो वाली फिल्में रिलीज होने जा रही हैं, आइए जानते हैं :

मल्टीस्टारर और 2 हीरो वाली फिल्मों के फायदेनुकसान

जब से फिल्मों का निर्माण शुरू हुआ है, तब से फिल्म निर्माण को ले कर नएनए आयाम मेकर्स पेश कर रहे हैं, जिस के तहत रोमांटिक, हौरर, सामाजिक, ऐक्शन आदि फिल्मों का निर्माण बरसों से चला आ रहा है.

ऐसे ही फिल्मों के दौर में एक नया आयाम शुरू हुआ और वह आयाम है मल्टीस्टारर और 2 हीरो 2 हीरोइन अभिनित फिल्मों का दौर. जैसे अमिताभ बच्चन, धर्मेंद्र, विनोद खन्ना, शशि कपूर, रेखा, हेमा मालिनी आदि कलाकारों की फिल्में देखने के लिए दर्शक हमेशा उत्साहित रहते थे.

ऐसे में जब मेकर्स इन सितारों को एकसाथ जमा कर के एक ही फ्रेम में ला कर कोई फिल्म बनाते थे तो वह मल्टीस्टारर फिल्म सुपरहिट होती थी. जैसे सुभाष गई की फिल्म ‘राम लखन’, ‘विधाता’, ‘खलनायक’, ‘कर्मा’, ‘ताल.’

पहलाज निहलानी की फिल्में ‘आंखें’, ‘शोला और शबनम’, ‘हथकड़ी’, ‘पाप की दुनिया.’ प्रकाश मेहरा की फिल्में ‘मुकद्दर का सिकंदर’, ‘नमक हलाल’, ‘शराबी’, ‘लावारिस’ आदि.

सूरज बड़जात्या की फिल्में ‘हम आप के हैं कौन’, ‘हम साथसाथ हैं’, करण जौहर की फिल्म ‘कुछकुछ होता है’, जिस में शाहरुख, सलमान, काजोल और रानी मुखर्जी थे, बरसों से मल्टीस्टारर फिल्मों को दर्शकों द्वारा हमेशा पसंद किया जा रहा था.

लेकिन पिछले दिनों एक वक्त ऐसा भी आया जब मल्टीस्टार फिल्में बननी कम होने लगीं, जिस की वजह से कई मल्टीस्टार फिल्म का फ्लौप होना अहम वजह रही.

कई बिग बजट मल्टीस्टारर फिल्में जैसे संजय लीला भंसाली की रणबीर कपूर, सलमान खान, रानी मुखर्जी, सोनम कपूर अभिनीत ‘सांवरिया’, बोनी कपूर की फिल्म ‘रूप की रानी चोरों का राजा’, श्रीदेवी और अनिल कपूर अभिनीत, मल्टीस्टार कलाकारों से सजी ‘जानी दुश्मन’, सलमान खान की फिल्म ‘किसी का भाई किसी की जान’, ‘सिकंदर’, ‘रेस 3’, ‘ट्यूबलाइट’, ‘अंदाज अपना अपना’, अक्षय कुमार स्टारर ‘सम्राट पृथ्वीराज’, ‘सैल्फी’, ‘बड़े मियां छोटे मियां 2’, ‘खेलखेल में’, शाहरुख खान अभिनीत मल्टीस्टार फिल्में ‘त्रिमूर्ति’, ‘जीरो’, ‘दिल से’, ‘किंग अंकल’ आदि कई मल्टीस्टार फिल्में फ्लौप रहीं, जिस के बाद मेकर्स ऐसी भव्य मल्टीस्टारर फिल्में बनाने से पीछे हटने लगे क्योंकि ऐसी फिल्मों का बजट बहुत ज्यादा होता है और सभी को एकसाथ जमा कर के सभी की डेट्स ऐडजस्ट करना, सभी कलाकारों का ध्यान रखना आसान नहीं होता. इसलिए अगर एक मल्टीस्टार फिल्म फ्लौप होती है तो उस का असर ऐक्टर पर कम मेकर्स पर ज्यादा होता है.

मल्टीस्टार और 2 हीरो वाली फिल्मों में काम करने को ले कर आज के हीरोज की प्रतिक्रिया

बौलीवुड में आज के समय में कई ऐसे कलाकार हैं, जो मल्टीस्टार फिल्में करने के इच्छुक हैं. फिर चाहे वह अक्षय कुमार, आयुष्मान खुराना हों या शाहरुख खान, सलमान खान ही क्यों न हों, कई कलाकार ऐसे भी हैं जो मल्टीस्टारर फिल्में करने से हिचकिचाते हैं. इस की वजह है कई सारे कलाकारों से सजी मल्टीस्टारर फिल्म में भीड़ का हिस्सा बनने से इनकार होना, अपने रोल को ले कर एडिटिंग में कट जाने या कम होने का डर, बड़े ऐक्टर्स के साथ काम करते वक्त खुद की मौजूदगी का कम होना आदि कई बातों से डर कर आज कई सारे ऐक्टर्स मल्टीस्टार फिल्में रिजैक्ट कर देते हैं जबकि कुछ पुराने मेकर्स के अनुसार पहले के ऐक्टर के साथ में काम करना इतना पसंद करते थे कि फिल्म की कहानी भी नहीं सुनते थे और सिर्फ अपने पसंदीदा ऐक्टरों के साथ काम करने के लिए फिल्म साइन कर लेते थे ताकि काम के साथसाथ मौजमस्ती करने का भी मौका मिल जाए.

इस के अलावा पहले के कलाकार अपना ईगो साइड में रख कर दूसरे कलाकारों के हिसाब से अपनी शूटिंग की डेट ऐडजस्ट कर लेते थे. लेकिन आज के भागदौड़ वाले युग में निर्माताओं के लिए ऐक्टर की डेट्स शूटिंग के लिए ऐडजस्ट करना बहुत ज्यादा मुश्किल हो जाता है.

यही वजह है कि पहले के मुकाबले आज के समय में मल्टीस्टारर फिल्में कम बनती हैं जबकि आज भी मल्टीस्टार फिल्मों की डिमांड उतनी ही है जितनी कि पहले के समय में थी.

Multistarrer Movies

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