Famous Hindi Stories : निकम्मा – जिसे जिंदगीभर कोसा, उसी ने किया इंतजाम

Famous Hindi Stories :  दीपक 2 साल बाद अपने घर लौटा था. उस का कसबा भी धीरेधीरे शहर के फैशन में डूबा जा रहा था. जब वह स्टेशन पर उतरा, तो वहां तांगों की जगह आटोरिकशा नजर आए. तकरीबन हर शख्स के कान पर मोबाइल फोन लगा था.

शाम का समय हो चुका था. घर थोड़ा दूर था, इसलिए बीच बाजार में से आटोरिकशा जाता था. बाजार की रंगत भी बदल गई थी. कांच के बड़े दरवाजों वाली दुकानें हो गई थीं. 1-2 जगह आदमीऔरतों के पुतले रखे थे. उन पर नए फैशन के कपड़े चढ़े हुए थे. दीपक को इन 2 सालों में इतनी रौनक की उम्मीद नहीं थी. आटोरिकशा चालक ने भी कानों में ईयरफोन लगाया हुआ था, जो न जाने किस गाने को सुन कर सिर को हिला रहा था.

दीपक अपने महल्ले में घुस रहा था, तो बड़ी सी एक किराना की दुकान पर नजर गई, ‘उमेश किराना भंडार’. नीचे लिखा था, ‘यहां सब तरह का सामान थोक के भाव में मिलता है’. पहले यह दुकान भी यहां नहीं थी.

दीपक के लिए उस का कसबा या यों कह लें कि शहर बनता कसबा हैरानी की चीज लग रहा था.

आटोरिकशा चालक को रुपए दे कर जब दीपक घर में घुसा, तो उस ने देखा कि उस के बापू एक खाट पर लेटे हुए थे. अम्मां चूल्हे पर रोटी सेंक रही थीं, जबकि एक ओर गैस का चूल्हा और गैस सिलैंडर रखा हुआ था.

दीपक को आया देख अम्मां ने जल्दी से हाथ धोए और अपने गले से लगा लिया. छोटी बहन, जो पढ़ाई कर रही थी, आ कर उस से लिपट गई.

दीपक ने अटैची रखी और बापू के पास आ कर बैठ गया. बापू ने उस का हालचाल जाना. दीपक ने गौर किया कि घर में पीले बल्ब की जगह तेज पावर वाले सफेद बल्ब लग गए थे. एक रंगीन टैलीविजन आ गया था.

बहन के पास एक टचस्क्रीन मोबाइल फोन था, तो अम्मां के पास एक पुराना मोबाइल फोन था, जिस से वे अकसर दीपक से बातें कर के अपनी परेशानियां सुनाया करती थीं.

शायद अम्मां सोचती हैं कि शहर में सब बहुत खुश हैं और बिना चिंता व परेशानियों के रहते हैं. नल से 24 घंटे पानी आता है. बिजली, सड़क, साफसुथरी दुकानें, खाने से ले कर नाश्ते की कई वैराइटी. शहर यानी रुपया भरभर के पास हो. लेकिन यह रुपया ही शहर में इनसान को मार देता है. रुपयारुपया सोचते और देखते एक समय में इनसान केवल एक मशीन बन कर रह जाता है, जहां आपसी रिश्ते ही खत्म हो जाते हैं. लेकिन अम्मां को वह क्या समझाए?

वैसे, एक बार दीपक अम्मां, बापू और अपनी बहन को ले कर शहर गया था. 3-4 दिनों बाद ही अम्मां ने कह दिया था, ‘बेटा, हमें गांव भिजवा दो.’

बहन की इच्छा जाने की नहीं थी, फिर भी वह साथ लौट गई थी. शहर में रहने का दर्द दीपक समझ सकता है, जहां इनसान घड़ी के कांटों की तरह जिंदगी जीने को मजबूर होता है.

अम्मां ने दीपक से हाथपैर धो कर आने को कह दिया, ताकि सीधे तवे पर से रोटियां उतार कर उसे खाने को दे सकें. बापू को गैस पर सिंकी रोटियां पसंद नहीं हैं, जिस के चलते रोटियां तो चूल्हे पर ही सेंकी जाती हैं. बहन ने हाथपैर धुलवाए. दीपक और बापू खाने के लिए बैठ गए.

दीपक जानता था कि अब बापू का एक खटराग शुरू होगा, ‘पिछले हफ्ते भैंस मर गई. खेती बिगड़ गई. बहुत तंगी में चल रहे हैं और इस साल तुम्हारी शादी भी करनी है…’

दीपक मन ही मन सोच रहा था कि बापू अभी शुरू होंगे और वह चुपचाप कौर तोड़ता जाएगा और हुंकार भरता जाएगा, लेकिन बापू ने इस तरह की कोई बात नहीं छेड़ी थी.

पूरे महल्ले में एक अजीब सी खामोशी थी. कानों में चीखनेचिल्लाने या रोनेगाने की कोई आवाज नहीं आ रही थी, वरना 2 घर छोड़ कर बद्रीनाथ का मकान था, जिन के 2 बेटे थे. बड़ा बेटा गणेश हाईस्कूल में चपरासी था, जबकि दूसरा छोटा बेटा उमेश पोस्ट औफिस में डाक रेलगाड़ी से डाक उतारने का काम करता था.

अचानक न जाने क्या हुआ कि उन के छोटे बेटे उमेश का ट्रांसफर कहीं और हो गया. तनख्वाह बहुत कम थी, इसलिए उस ने जाने से इनकार कर दिया. जाता भी कैसे? क्या खाता? क्या बचाता? इसी के चलते वह नौकरी छोड़ कर घर बैठ गया था.

इस के बाद न जाने किस गम में या बुरी संगति के चक्कर में उमेश को शराब पीने की लत लग गई. पहले तो परिवार वाले बात छिपाते रहे, लेकिन जब आदत ज्यादा बढ़ गई, तो आवाजें चारदीवारी से बाहर आने लगीं.

उमेश ने शराब की लत के चलते चोरी कर के घर के बरतन बेचने शुरू कर दिए, फिर घर से गेहूंदाल और तेल वगैरह चुरा कर और उन्हें बेच कर शराब पीना शुरू कर दिया. जब परिवार वालों ने सख्ती की, तो घर में कलह मचना शुरू हो गया.

उमेश दुबलापतला सा सांवले रंग का लड़का था. जब उस के साथ परिवार वाले मारपीट करते थे, तो वह मुझे कहता था, ‘चाचा, बचा लो… चाचा, बचा लो…’

2-3 दिनों तक सब ठीक चलता, फिर वह शराब पीना शुरू कर देता. न जाने उसे कौन उधार पिलाता था? न जाने वह कहां से रुपए लाता था? लेकिन रात होते ही हम सब को मानो इंतजार होता था कि अब इन की फिल्म शुरू होगी. चीखना, मारनापीटना, गली में भागना और उमेश का चीखचीख कर अपना हिस्सा मांगना… उस के पिता का गालियां देना… यह सब पड़ोसियों के जीने का अंग हो गया था.

इस बीच 1-2 बार महल्ले वालों ने पुलिस को बुला भी लिया था, लेकिन उमेश की हालत इतनी गईगुजरी थी कि एक जोर का थप्पड़ भी उस की जान ले लेता. कौन हत्या का भागीदार बने? सब बालबच्चों वाले हैं. नतीजतन, पुलिस भी खबर होने पर कभी नहीं आती थी.

उमेश को शराब पीते हुए 4-5 साल हो गए थे. उस की हरकतों को सब ने जिंदगी का हिस्सा मान लिया था. जब उस का सुबह नशा उतरता, तो वह नीची गरदन किए गुमसुम रहता था, लेकिन वह क्यों पी लेता था, वह खुद भी शायद नहीं जानता था. महल्ले के लिए वह मनोरंजन का एक साधन था. उस की मित्रमंडली भी नहीं थी. जो कुछ था परिवार, महल्ला और शराब थी. परिवार के सदस्य भी अब उस से ऊब गए थे और उस के मरने का इंतजार करने लगे थे. एक तो निकम्मा, ऊपर से नशेबाज भी.

लेकिन कौऐ के कोसने से जानवर मरता थोड़े ही है. वह जिंदा था और शराब पी कर सब की नाक में दम किए हुए था.

लेकिन आज खाना खाते समय दीपक को पड़ोस से किसी भी तरह की आवाज नहीं आ रही थी. बापू हाथ धोने के लिए जा चुके थे.

दीपक ने अम्मां से रोटी ली और पूछ बैठा, ‘‘अम्मां, आज तो पड़ोस की तरफ से लड़ाईझगड़े की कोई आवाज नहीं आ रही है. क्या उमेश ने शराब पीना छोड़ दिया है?’’

अम्मां ने आखिरी रोटी तवे पर डाली और कहने लगीं, ‘‘तुझे नहीं मालूम?’’

‘‘क्या?’’ दीपक ने हैरानी से पूछा.

‘‘अरे, जिसे ये लोग निकम्मा समझते थे, वह इन सब की जिंदगी बना कर चला गया…’’ अम्मां ने चूल्हे से लकडि़यां बाहर निकाल कर अंगारों पर रोटी को डाल दिया, जो पूरी तरह से फूल गई थी.

‘‘क्या हुआ अम्मां?’’

‘‘अरे, क्या बताऊं… एक दिन उमेश ने रात में खूब छक कर शराब पी, जो सुबह उतर गई होगी. दोबारा नशा करने के लिए वह बाजार की तरफ गया कि एक ट्रक ने उसे टक्कर मार दी. बस, वह वहीं खत्म हो गया.’’

‘‘अरे, उमेश मर गया?’’

‘‘हां बेटा, लेकिन इन्हें जिंदा कर गया. इस हादसे के मुआवजे में उस के परिवार को 18-20 लाख रुपए मिले थे. उन्हीं रुपयों से घर बनवा लिया और तू ने देखा होगा कि महल्ले के नुक्कड़ पर ‘उमेश किराने की दुकान’ खोल ली है. कुछ रुपए बैंक में जमा कर दिए. बस, इन की घर की गाड़ी चल निकली.

‘‘जिसे जिंदगीभर कोसा, उसी ने इन का पूरा इंतजाम कर दिया,’’ अम्मां ने अंगारों से रोटी उठाते हुए कहा.

दीपक यह सुन कर सन्न रह गया. क्या कोई ऐसा निकम्मा भी हो सकता है, जो उपयोगी न होने पर भी किसी की जिंदगी को चलाने के लिए अचानक ही सबकुछ कर जाए? जैसे कोई हराभरा फलदार पेड़ फल देने के बाद सूख जाए और उस की लकडि़यां भी जल कर आप को गरमागरम रोटियां खाने को दे जाएं. हम ऐसी अनहोनी के बारे में कभी सोच भी नहीं सकते.

Famous Hindi Stories : सच होते सपने – गोपुली ने कैसे बदली अपनी जिदंगी

Famous Hindi Stories :  गोपुली को लगने लगा कि उस के मां बाप ने उस की जिंदगी तबाह कर दी है. उन्होंने न जाने क्या सोच कर इस कंगले परिवार में उसे ब्याहा था?

वह तो बचपन से ही हसीन जिंदगी के ख्वाब देखती आई थी.

‘‘ऐ बहू…’’ सास फिर से बड़बड़ाने लगी, ‘‘कमाने का कुछ हुनर सीख. इस खानदान में ऐसा ही चला आ रहा है.’’

‘‘वाह रे खानदान…’’ गोपुली फट पड़ी, ‘‘औरत कमाए और मर्द उस की कमाई पर गुलछर्रे उड़ाए. लानत है, ऐसे खानदान पर.’’

उस गांव में दक्षिण दिशा में कुछ कारीगर परिवार सालों से रह रहे थे. न जाने कितनी ही पीढि़यों से वे लोग ठाकुरों की चाकरी करते आ रहे थे. तरक्की के नाम पर उन्हें कुछ भी तो नहीं मिला था. आज भी वे दूसरों पर निर्भर थे.

पनराम का परिवार नाचमुजरे से अपना गुजरा करता आ रहा था. उस की दादी, मां, बीवी सभी तो नाचमुजरे से ही परिवार पालते रहे थे. शादीब्याह के मौकों पर उन्हें दूरदूर से बुलावा आया करता था. औरतें महफिलों में नाचमुजरे करतीं और मर्द नशे में डूबे रहते.

कभी गोपुली की सहेली ने कहा था, ‘गोपा, वहां तो जाते ही तुझे ठुमके लगाने होंगे. पैरों में घुंघरू बांधने होंगे.’

गोपुली ने मुंह बना कर जवाब दिया था, ‘‘नाचे मेरी जूती, मैं ऐसे खोटे काम कभी नहीं करूंगी.’’

लेकिन उस दिन गोपुली की उम्मीदों पर पानी फिर गया, जब उस के पति हयात ने कहा, ‘‘2 दिन बाद हमें अमधार की बरात में जाना है. वहां के ठाकुर खुद ही न्योता देने आए थे.’’

‘‘नहीं…’’ गोपुली ने साफसाफ लहजे में मना कर दिया, ‘‘मैं नाचमुजरा नहीं करूंगी.’’

‘‘क्या…’’ हयात के हाथों से मानो तोते उड़ गए.

‘‘कान खोल कर सुन लो…’’ जैसे गोपुली शेरनी ही बन बैठी थी, ‘‘अपने मांबाप से कह दो कि गोपुली महफिल में नहीं नाचेगी.’’

‘‘फिर हमारे पेट कैसे भरेंगे बहू?’’ सामने ही हुक्का गुड़गुड़ा रहे ससुर पनराम ने उस की ओर देखते हुए सवाल दाग दिया.

‘‘यह तुम सोचो…’’ उस का वही मुंहफट जवाब था, ‘‘यह सोचना मर्दों का काम हुआ करता है.’’

गोपुली के रवैए से परिवार को गहरा धक्का लगा. आंगन के कोने में बैठा हुआ पनराम हुक्का गुड़गुड़ा रहा था. गोपुली की सास बीमार थी. आंगन की दीवार पर बैठा हुआ हयात भांग की पत्तियों को हथेली पर रगड़ रहा था.

‘‘फिर क्या कहती हो?’’ हयात ने वहीं से पूछा.

‘‘देखो…’’ गोपुली अपनी बात दोहराने लगी, ‘‘मैं मेहनतमजदूरी कर के तुम लोगों का पेट पाल लूंगी, पर पैरों में घुंघरू नहीं बांधूंगी.’’

कानों में घुंघरू शब्द पड़ते ही सास हरकत में आ गई. उसे लगा कि बहू का दिमाग ठिकाने लग गया है. वह खाट से उठ कर पुराना संदूक खोलने लगी. उस में नाचमुजरे का सामान रखा हुआ था.

सास ने संदूक से वे घुंघरू निकाल लिए, जिन के साथ उस के खानदान का इतिहास जुड़ा हुआ था. उन पर हाथ फेरते हुए वह आंगन में चली आई. उस ने पूछा, ‘‘हां बहू, तू पैरों में पायल बांधेगी या घुंघरू?’’

‘‘कुछ भी नहीं,’’ गोपुली चिल्ला कर बोली.

हयात सुल्फे की तैयारी कर चुका था. उस ने जोर का सुट्टा लगाया. चिलम का सारा तंबाकू एकसाथ ही भभक उठा. 2-3 कश खींच कर उस ने चिलम पनराम को थमा दी, ‘‘लो बापू, तुम भी अपनी परेशानी दूर करो.’’

पनराम ने भी जोर से सुट्टा लगाया. बापबेटे दोनों ही नशे में धुत्त हो गए. सास बोली, ‘‘ये दोनों तो ऐसे ही रहेंगे.’’

‘‘हां…’’ गोपुली ने भी कहा, ‘‘ये काम करने वाले आदमी नहीं हैं.’’

सामने से अमधार के ठाकुर कर्ण सिंह आते हुए दिखाई दिए. सास ने परेशान हो कर कहा, ‘‘ठाकुर साहब आ रहे हैं. उन से क्या कहें?’’

‘‘जैसे आ रहे हैं, वैसे ही वापस चले जाएंगे,’’ गोपुली ने जवाब दिया.

‘‘लेकिन… उन के बयाने का क्या होगा?’’

‘‘जिस को दिया है, वह लौटा देगा,’’ गोपुली बोली.

ठाकुर कर्ण सिंह आए, तो उन्होंने छूटते ही कहा, ‘‘देखो पनराम, तुम लोग समय पर पहुंच जाना बरात में.’’

‘‘नहीं…’’ गोपुली ने बीच में ही कहा, ‘‘हम लोग नहीं आएंगे.’’

गोपुली की बात सुन कर ठाकुर साहब को अपने कानों पर यकीन ही नहीं हो रहा था. उन्होंने पनराम से पूछा. ‘‘क्यों रे पनिया, मैं क्या सुन रहा हूं?’’

‘‘मालिक, न जाने कहां से यह मनहूस औरत हमारे परिवार में आ गई है,’’ पनराम ठाकुर के लिए दरी बिछाते हुए बोला.

ठाकुर दरी पर बैठ गए. वे गोपुली की नापजोख करने लगे. गोपुली को उन का इस तरह देखना अच्छा नहीं लगा. वह क्यारियों में जा कर गुड़ाईनिराई करने लगी और सोचने लगी कि अगर उस के पास भी कुछ खेत होते, तो कितना अच्छा होता.

अमधार के ठाकुर बैरंग ही लौट गए. गोपुली सारे गांव में मशहूर होने लगी. जितने मुंह उतनी ही बातें. सास ने पूछा, ‘‘क्यों री, नाचेगी नहीं, तो खाएगी क्या?’’

‘‘मेरे पास 2 हाथ हैं…’’ गोपुली अपने हाथों को देख कर बोली, ‘‘इन्हीं से कमाऊंगीखाऊंगी और तुम सब का पेट भी भरूंगी.’’

तीसरे दिन उस गांव में पटवारी आया. वह गोपुली के मायके का था, इसलिए वह गोपुली से भी मिलने चला आया. गोपुली ने उस से पूछा, ‘‘क्यों बिशन दा, हमें सरकार की ओर से जमीन नहीं मिल सकती क्या?’’

‘‘उस पर तो हाड़तोड़ मेहनत करनी होती है,’’ पटवारी के कुछ कहने से पहले ही हयात ने कहा.

‘‘तो हराम की कब तक खाते रहोगे?’’ गोपुली पति हयात की ओर आंखें तरेर कर बोली, ‘‘निखट्टू रहने की आदत जो पड़ चुकी है.’’

‘‘जमीन क्यों नहीं मिल सकती…’’ पटवारी ने कहा, ‘‘तुम लोग मुझे अर्जी लिख कर तो दो.’’

‘‘फिलहाल तो मुझे यहींकहीं मजदूरी दिलवा दो,’’ गोपुली ने कहा.

‘‘सड़क पर काम कर लेगी?’’ पटवारी ने पूछा.

‘‘हांहां, कर लूंगी,’’ गोपुली को एक नई राह दिखाई देने लगी.

‘‘ठीक है…’’ पटवारी बिशन उठ खड़ा हुआ, ‘‘कल सुबह तुम सड़क पर चली जाना. वहां गोपाल से बात कर लेना. वह तुम्हें रख लेगा. मैं उस से बात कर लूंगा.’’

सुबह बिस्तर से उठते ही गोपुली ने 2 बासी टिक्कड़ खाए और काम के लिए सड़क की ओर चल दी. वह उसी दिन से मजदूरी करने लगी. छुट्टी के बाद गोपाल ने उसे 40 रुपए थमा दिए.

गोपुली ने दुकान से आटा, नमक, चीनी, चायपत्ती खरीदी और अपने घर पहुंच गई. चूल्हा जला कर वह रात के लिए रोटियां बनाने लगी.

सास ने कहा, ‘‘ऐ बहू, तू तो बहुत ही समझदार निकली री.’’

‘‘क्या करें…’’ गोपुली बोली, ‘‘परिवार में किसी न किसी को तो समझदार होना ही पड़ता है.’’

गोपुली सासससुर के लिए रोटियां परोसने लगी. उन्हें खिलाने के बाद वह खुद भी पति के साथ रोटियां खाने लगी. हयात ने पानी का घूंट पी कर पूछा, ‘‘तुझे यह सब कैसे सूझा?’’

गोपुली ने उसे उलाहना दे दिया, ‘‘तुम लोग तो घर में चूडि़यां पहने हुए होते हो न. तुम ने तो कभी तिनका तक नहीं तोड़ा.’’ इस पर हयात ने गरदन झुका ली.

गोपुली को लगने लगा कि उस निठल्ले परिवार की बागडोर उसे ही संभालनी पड़ेगी. वह मन लगा कर सड़क पर मजदूरी करने लगी.

एक दिन उस ने गोपाल से पूछा, ‘‘मैं उन्हें भी काम दिलवाना चाहती हूं.’’

‘‘हांहां…’’ गोपाल ने कहा, ‘‘काम मिल जाएगा.’’

गोपुली जब घर पहुंची, तो हयात कोने में बैठा हुआ चिलम की तैयारी कर रहा था. गोपुली ने उसे समझाते हुए कहा, ‘‘ये गंदी आदतें छोड़ दो. कल से मेरे साथ तुम भी सड़क पर काम किया करो. मैं ने गोपाल से बात कर ली है.’’

‘‘मैं मजदूरी करूंगा?’’ हयात ने घबरा कर पूछा.

‘‘तो औरत की कमाई ही खाते रहोगे,’’ गोपुली ने ताना मारा.

‘‘नहीं, ऐसी बात तो नहीं है,’’ हयात सिर खुजलाते हुए बोला, ‘‘तुम कहती हो, तो तुम्हारे साथ मैं भी कर लूंगा.’’ दूसरे दिन से हयात भी सड़क पर मजदूरी करने लगा. अब उन्हें दोगुनी मजदूरी मिलने लगी. गोपुली को सासससुर का खाली रहना भी अखरने लगा.

एक दिन गोपुली ने ससुर से पूछा, ‘‘क्या आप रस्सियां बंट लेंगे?’’

‘‘आज तक तो नहीं बंटीं,’’ पनराम ने कहा, ‘‘पर, तुम कहती हो तो…’’

‘‘खाली बैठने से तो यही ठीक रहेगा…’’ गोपुली बोली, ‘‘दुकानों में उन की अच्छी कीमत मिल जाया करती है.’’ ‘‘बहू, मुझे भी कुछ करने को कह न,’’ सास ने कहा.

‘‘आप लंबी घास से झाड़ू बना लिया करें,’’ गोपुली बोली.

अब उस परिवार में सभी कमाऊ हो गए थे. एक दिन गोपुली सभापति के घर जा पहुंची और उन से कहने लगी, ‘‘ताऊजी, हमें भी जमीन दिलवाइए न.’’

तभी उधर ग्राम सेवक चले आए. सभापति ने कहा, ‘‘अरे हां, मैं तो तेरे ससुर से कब से कहता आ रहा हूं कि खेती के लिए जमीन ले ले, पर वह तो बिलकुल निखट्टू है.’’

‘‘आप हमारी मदद कीजिए न,’’ गोपुली ने ग्राम सेवक से कहा.

ग्राम सेवक ने एक फार्म निकाल कर गोपुली को दे दिया और बोले, ‘‘इस पर अपने दस्तखत कर दो.’’

‘‘नहीं,’’ गोपुली बोली, ‘‘इस पर मेरे ससुर के दस्तखत होंगे. अभी तो हमारे सिर पर उन्हीं की छाया है.’’

‘‘ठीक है…’’ सभापति ने कहा, ‘‘उन्हीं से करा लो.’’

गोपुली खुशीखुशी उस फार्म को ले कर घर पहुंची और अपने ससुर से बोली, ‘‘आप इस पर दस्तखत कर दें.’’

‘‘यह क्या है?’’ ससुर ने पूछा.

गोपुली ने उन्हें सबकुछ बतला दिया.

पनराम ने गहरी सांस खींच कर कहा, ‘‘अब तू ही हम लोगों की जिंदगी सुधारेगी.’’ उस दिन आंगन में सास लकड़ी के उसी संदूक को खोले बैठी थी, जिस में नाचमुजरे का सामान रखा हुआ था. गोपुली को देख उस ने पूछा, ‘‘हां तो बहू, इन घुंघरुओं को फेंक दूं?’’

‘‘नहीं…’’ गोपुली ने मना करते हुए कहा, ‘‘ये पड़े रहेंगे, तो गुलामी के दिनों की याद दिलाते रहेंगे.’’

गोपुली ने उस परिवार की काया ही बदल दी. उस के साहस पर गांव वाले दांतों तले उंगली दबाने लगे. घर के आगे जो भांग की क्यारियां थीं, वहां उस ने प्याजलहसुन लगा दिया था.

सासससुर भी अपने काम में लगे रहते. पति के साथ गोपुली सड़क पर मजदूरी करती रहती. गोपुली की शादी को 3 साल हो चुके थे, लेकिन अभी तक उस के पैर भारी नहीं हुए थे. सास जबतब उस की जांचपरख करती रहती. एक दिन उस ने पूछा, ‘‘बहू, है कुछ?’’

‘‘नहीं…’’ गोपुली मुसकरा दी, ‘‘अभी तो हमारे खानेखेलने के दिन हैं. अभी क्या जल्दी है?’’ सास चुप हो गई. हयात और पनराम ने भांग छोड़ दी. अब वे दोनों बीडि़यां ही पी लेते थे.

एक दिन गोपुली ने पति से कहा, ‘‘अब बीड़ी पीना छोड़ दो. यह आदमी को सुखा कर रख देती है.’’

‘‘ठीक?है,’’ हयात ने कहा, ‘‘मैं कोशिश करूंगा.’’

आदमी अगर कोशिश करे, तो क्या नहीं कर सकता. गोपुली की कोशिशें रंग लाने लगीं. अब उसे उस दिन का इंतजार था, जब उसे खेती के लिए जमीन मिलेगी.

उस दिन सभापति ने हयात को अपने पास बुलवा लिया. उन्होंने उसे एक कागज थमा कर कहा, ‘‘ले रे, सरकार ने तुम को खेती के लिए जमीन दी है.’’

‘‘किधर दी है ताऊजी?’’ हयात ने पूछा.

‘‘मोहन के आगे सुंगरखाल में,’’ सभापति ने बताया. हयात ने घर जा कर जमीन का कागज गोपुली को दे दिया, ‘‘गोपुली, सरकार ने हमें खेती के लिए जमीन दे दी है.’’

गोपुली ने वह कागज ससुर को थमा दिया, ‘‘मालिक तो आप ही हैं न.’’ पनराम ने उस सरकारी कागज को सिरमाथे लगाया और कहा, ‘‘तुम जैसी बहू सभी को मिले.’

Latest Hindi Stories : अनोखा रिश्ता

Latest Hindi Stories : ‘‘बायमां, मैं निकल रही हूं… और हां भूलना मत,

दोपहर के खाने से पहले दवा जरूर खा लेना,’’ कह पल्लवी औफिस जाने लगी.

तभी ललिता ने उसे रोक कहा, ‘‘यह पकड़ो टिफिन. रोज भूल जाती हो और हां, पहुंचते ही फोन जरूर कर देना.’’

‘‘मैं भूल भी जाऊं तो क्या आप भूलने देती हो मां? पकड़ा ही देती हो खाने का टिफिन,’’ लाड़ दिखाते हुए पल्लवी ने कहा, तो ललिता भी प्यार के साथ नसीहतें देने लगीं कि वह कैंटीन में कुछ न खाए.

‘‘हांहां, नहीं खाऊंगी मेरी मां… वैसे याद है न शाम को 5 बजे… आप तैयार रहना मैं जल्दी आने की कोशिश करूंगी,’’ यह बात पल्लवी ने इशारों में कही, तो ललिता ने भी इशारों में ही जवाब दिया कि वे तैयार रहेंगी.

‘‘क्या इशारे हो रहे हैं दोनों के बीच?’’ ललिता और पल्लवी को इशारों में बात करते देख विपुल ने कहा, ‘‘देख लो पापा, जरूर यहां सासबहू और साजिश चल रही है.’’

विपुल की बातें सुन शंभुजी भी हंसे बिना नहीं रह पाए. मगर विपुल तो अपनी मां के पीछे ही पड़ गया, यह जानने के लिए कि इशारों में पल्लवी ने उन से क्या कहा.

‘‘यह हम सासबहू के बीच की बात है,’’ प्यार से बेटे का कान खींचते हुए ललिता बोलीं.

बेचारा विपुल बिना बात को जाने ही औफिस चला गया. दोनों को

औफिस भेज कर ललिता 2 कप चाय बना लाईं और फिर इतमीनान से शंभूजी की बगल में बैठ गईं.

चाय पीते हुए शंभूजी एकटक ललिता को देखदेख कर मुसकराए जा रहे थे.

‘‘इतना क्यों मुसकरा रहे हो? क्या गम है जिसे छिपा रहे हो…?’’ ललिता ने शायराना अंदाज में पूछा, तो उन की हंसी छूट गई.

कहने लगे, ‘‘मुसकरा इसलिए रहा हूं कि तुम भी न अजीब हो. अरे, बता देती बेचारे को कि तुम सासबहू का क्या प्रोग्राम है. लेकिन जो भी हो तुम सासबहू की बौडिंग देख कर मन को बड़ा सुकून मिलता है वरना तो मेरा सासबहू के झगड़े सुनसुन कर दिमाग घूम जाता है. हाल ही में मैं ने अखबार में एक खबर पढ़ी, जिस में लिखा था सास से तंग आ कर एक बहू 12वीं मंजिल से कूद गई और जानती हो पहले उस ने अपने ढाई साल के बेटे को फेंका और फिर खुद कूद गई, जिस से दोनों की मौत हो गई. सच कह रहा हूं ललिता यह पढ़ कर मेरा तो दिल बैठ गया था.’’

शंभूजी की बातें सुन कर ललिता का भी दिल दहल गया.

‘‘सोचा जरा उस इंसान पर क्या बीतती होगी जिसे न तो मां समझ पाती हैं और न पत्नी. पिसता रहता है बेचारा मां और पत्नी के बीच.’’

‘‘हूं, सही कह रहे हैं आप. हमारे समाज में जब एक लड़की शादी के बाद अपना मायका छोड़ कर जहां उस ने लगभग अपनी आधी जिंदगी पूरे हक के साथ गुजारी होती है, ससुराल में कदम रखते ही उस के दिल में घबराहट सी होने लगती है कि यहां सब उसे दिल से तो अपनाएंगे न? अपने परिवार का हिस्सा समझेंगे न? ज्यादातर घरों में यही होता है कि बहू को आए अभी कुछ दिन हुए नहीं कि जिम्मेदारी की टोकरी उसे पकड़ा दी जाती है. उसे यह तो समझा दिया जाता है कि सासससुर के साथसाथ ननददेवर और नातेरिश्तेदारों को भी सम्मान देना होगा, लेकिन यह नहीं समझाया जाता कि आज से यह घर उस का भी है और ससुराल में उस की राय भी उतनी ही मान्य होगी जितनी घर के बाकी सदस्यों की.

‘‘क्या एक बहू का यह अधिकार नहीं कि घर के हित के लिए जो भी फैसले लिए जाएं उन में उस की भी राय शामिल हो? क्यों सास को लगने लगता है कि बहू आते ही उस से उस के बेटे को छीन लेगी? अगर ऐसा ही है, तो फिर न करें वे अपने बेटे की शादी. रखें अपने आंचल में ही छिपा कर. अगर शादी के बाद बेटा अपने परिवार को कुछ बोल जाए, तो सब को यही लगने लगता है कि बीवी ने ही सिखाया होगा

उसे ऐसा बोलने के लिए और यही झगड़े की जड़ है. हर बात के लिए बहू को ही दोषी ठहराया जाने लगता है. और तो और उस के मायके को भी नहीं छोड़ते लोग,’’ कहते हुए ललिता की आंखें गीली हो गईं, जो शंभूजी से भी छिपी न रह पाईं.

वे समझ रहे थे कि आज ललिता के मन का गुब्बार निकल रहा है और वह वही सब बोल रही है जो उस के साथ हुआ है. उन्हें भी तो याद है… कभी उन की मां ने ललिता को चैन से जीने नहीं दिया. बातबात पर तानेउलाहने, गालीगलौच यहां तक कि थप्पड़ भी चला देती थीं वे ललिता पर और बेचारी रो कर रह जाती. लेकिन क्या कोई भी लड़की अपने मायके की बेइज्जती सहन कर सकती है भला? जब ललिता की सास उस के मायके के खिलाफ कुछ बोल देतीं, तो उस से सहन नहीं होता और वह पलट कर जवाब दे देती. यह बात उन की मां की बरदाश्त के बाहर चली जाती. गरजते हुए कहतीं कि अगर फिर कभी ललिता ने कैंची की तरह जबान चलाई तो वे उसे हमेशा के लिए उस के मायके भेज देगी, क्योंकि उन के बेटे के लिए लड़कियों की कमी नहीं है.

बेचारे शंभूजी भी क्या करते? खून का घूंट पी कर रह जाते पर अपनी मां से कुछ कह न पाते. अगर कुछ बोलते तो जोरू का गुलाम कहलाते और पहले के जमाने में कहां बेटे को इतना हक होता था कि वह पत्नी की तरफदारी में कुछ बोल सके.

‘‘मैं ने तो पहले ही सोच लिया था शंभूजी कि जब मेरी बहू का गृहप्रवेश होगा, तो उसे सिर्फ कर्तव्यों, दायित्वों, जिम्मेदारियों और फर्ज की टोकरी ही नहीं थमाऊंगी वरन उसे उस के हक और अधिकारों का गुलदस्ता भी दूंगी, क्योंकि आखिर वह भी तो अपनी ससुराल में कुछ उम्मीदें ले कर आएगी.’’

‘‘और अगर तुम्हारी बहू ही अच्छे विचारों वाली नहीं आती तब? तब कैसे निभाती उस से?’’ शंभूजी ने पूछा.

अपने पति की बातों पर वे हंसीं और फिर कहने लगीं, ‘‘मैं ने यह भी सोचा था

कि शायद मेरी बहू मेरे मनमुताबिक न आए, लेकिन फिर भी मैं उस से निभाऊंगी. उसे इतना प्यार दूंगी कि वह भी मेरे रंग में रंग जाएगी. जानते हैं शंभूजी, अगर एक औरत चाहे तो फिर चाहे वह सास हो या बहू, अपने रिश्ते को बिगाड़ भी सकती है और चाहे तो अपनी सूझबूझ से रिश्ते को कभी न टूटने वाले पक्के धागे में पिरो कर भी रख सकती है. हर लड़की चाहती है कि वह एक अच्छी बहू बने, पर इस के लिए सास को भी तो अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी न. अगर घर के किसी फैसले में बहू की सहमति न लें, उसे पराई समझें, तो वह हमें कितना अपना पाएगी, बोलिए? उफ, बातोंबातों में समय का पता  ही नहीं चला,’’ घड़ी की तरफ देखते हुए ललिता ने कहा, ‘‘आज आप को दुकान पर नहीं जाना क्या?’’

‘‘सोच रहा हूं आज न जाऊं. वैसे भी लेट हो गया और मंदी के कारण वैसे भी ग्राहक कम ही आते हैं,’’ शंभूजी ने कहा. उन का अपना कपड़े का व्यापार था.

‘‘पर यह तो बताओ कि तुम सासबहू ने क्या प्रोग्राम बनाया है? मुझे तो बता दो,’’ वे बोले.

शंभूजी के पूछने पर पहले तो ललिता झूठेसच्चे बहाने बनाने लगीं, पर जब उन्होंने जोर दिया, तो बोलीं, ‘‘आज हम सासबहू फिल्म देखने जा रही हैं.’’

‘‘अच्छा, कौन सी?’’ पूछते हुए शंभूजी की आंखें चमक उठीं.

‘‘अरे, वह करीना कपूर और सोनम कपूर की कोई नई फिल्म आई है न… क्या नाम है उस का… हां, याद आया, ‘वीरे दी वैडिंग.’ वही देखने जा रही हैं. आज आप घर पर ही हैं, तो ध्यान रखना घर का.’’

‘‘अच्छा, तो अब तुम सासबहू फिल्म देखो और हम बापबेटा खाना पकाएं, यही कहना चाहती हो न?’’

‘‘हां, सही तो है,’’ हंसते हुए ललिता बोलीं और फिर किचन की तरफ बढ़ गईं.

‘‘अच्छा ठीक है, खाना हम बना लेंगे, पर

1 कप चाय और पिला दो,’’ शंभूजी ने कहा तो ललिता भुनभुनाईं यह कह कर कि घर में रहते हैं, तो बारबार चाय बनवा कर परेशान कर देते हैं.

जो भी हो पतिपत्नी अपने जीवन में बहुत खुश थे और हों भी क्यों न, जब पल्लवी जैसी बहू हो. शादी के 4 साल हो गए, पर कभी उस ने ललिता को यह एहसास नहीं दिलवाया कि वह उन की बहू है. पासपड़ोस, नातेरिश्तेदार इन दोनों के रिश्ते को देख कर आश्चर्य करते और कहते कि क्या सासबहू भी कभी ऐसे एकसाथ इतनी खुश रह सकती हैं? लगता ही नहीं है कि दोनों सासबहू हैं.

पल्लवी एक मल्टीनैशनल कंपनी में अच्छे पैकेज पर नौकरी कर रही थी और वहीं उस की मुलाकात विपुल से हुई, जो जानपहचान के बाद दोस्ती और फिर प्यार में बदल गई. 2 साल तक बेरोकटोक उन का प्यार चलता रहा और फिर दोनों परिवारों की सहमति से विवाह के बंधन में बंध गए. वैसे तो बचपन से ही पल्लवी को सास नाम के प्राणी से डर लगता था, क्योंकि उस के जेहन में एक हौआ सा बैठ गया था कि सास और बहू में कभी नहीं पटती, क्योंकि अपने घर में भी तो उस ने आएदिन अपनी मां और दादी को लड़तेझगड़ते ही देखा था.

ज्योंज्यों वह बड़ी होती गई दादी और मां में लड़ाइयां भी बढ़ती चली गईं. उसे याद है जब उस की मांदादी में झगड़ा होता और उस के पापा किसी एक की तरफदारी करते, तो दूसरी का मुंह फूल जाता. हालत यह हो गई कि फिर उन्होंने बोलना ही छोड़ दिया. जब भी दोनों में झगड़ा होता, पल्लवी के पापा घर से बाहर निकल जाते. नातेरिश्तेदारों और पासपड़ोस में भी तो आएदिन सासबहू के झगड़े सुनतेदेखते वह घबरा सी जाती.

उसे याद है जब पड़ोस की शकुंतला चाची की बहू ने अपने शरीर पर मिट्टी का तेल छिड़क कर आग लगा ली थी. तब यह सुन कर पल्लवी की रूह कांप उठी थी. वैसे हल्ला तो यही हुआ था कि उस की सास ने ही उसे जला कर मार डाला, मगर कोई सुबूत न मिलने के कारण वह कुछ सजा पा कर ही बच गई थी. मगर मारा तो उसे उस की सास ने ही था, क्योंकि उस की बहू तो गाय समान सीधी थी. ऐसा पल्लवी की दादी कहा करती थीं. पल्लवी की दादी भी किसी सांपनाथ से कम नहीं थीं और मां तो नागनाथ थीं ही, क्योंकि दादी एक सुनातीं, तो मां हजार सुना डालतीं.

खैर, एक दिन पल्लवी की दादी इस दुनिया को छोड़ कर चली गईं. लेकिन आश्चर्य तो उसे तब हुआ जब दादी की 13वीं पर महल्ले की औरतों के सामने घडि़याली आंसू बहाते हुए पल्लवी की मां शांति कहने लगीं कि उन की सास, सास नहीं मां थीं उन की. जाने अब वे उन के बगैर कैसे जी पाएंगी.

मन तो हुआ पल्लवी का कि कह दे कि क्यों झूठे आंसू बहा रही हो मां? कब तुम ने दादी को मां माना? मगर वह चुप रही. मन ही मन सोचने लगी कि बस नाम ही शांति है उस की मां का, काम तो सारे अशांति वाले ही करती हैं.

सासबहू के झगड़े सुनदेख कर पल्लवी का तो शादी पर से विश्वास ही उठ गया था. जब भी उस की शादी की बात चलती, वह सिहर जाती. सोचती, जाने कैसी ससुराल मिलेगी. कहीं उस की सास भी शकुंतला चाची जैसी निकली तो या कहीं उस में भी उस की मां का गुण आ गया तो? ऐसे कई सवाल उस के मन को डराते रहते.

अपने मन का डर उस ने विपुल को भी बताया, जिसे सुन उस की हंसी रुक नहीं रही थी. किसी तरह अपनी हंसी रोक वह कहने लगा, ‘‘हां, मेरी मां सच में ललिता पवार हैं. सोच लो अब भी समय है. कहीं ऐसा न हो तुम्हें बाद में पछताना पड़े? पागल, मेरी मां पुराने जमाने की सास नहीं हैं. तुम्हें उन से मिलने के बाद खुद ही पता चल जाएगा.’’

विपुल की बातों ने उस का डर जरा कम तो कर दिया, पर पूरी तरह से खत्म नहीं हो पाया. अब भी सास को ले कर दिल के किसी कोने में डर तो था ही.

बिदाई के वक्त बड़े प्यार से शांति ने भी अपनी बेटी के कान फूंकते हुए समझाया था, ‘‘देख बिटिया, सास को कभी मां समझने की भूल न करना, क्योंकि सास चुड़ैल का दूसरा रूप होती है. देखा नहीं अपनी दादी को? मांजीमांजी कह कर उसे सिर पर मत बैठा लेना. पैरों में तेल मालिशवालिश की आदत तो डालना ही मत नहीं तो मरते दम तक तुम से सेवा करवाती रहेगी… सब से बड़ी बात पति को अपनी मुट्ठी में रखना और उस के कमाए पैसों को भी. अपनी कमाई तो उसे छूने भी मत देना. एक बार मुंह को खून लग जाए, तो आदत पड़ जाती है. समझ रही हो न मेरे कहने का मतलब?’’

अपनी मां की कुछ बातों को उस ने आत्मसात कर लिया तो कुछ को नहीं.

ससुराल में जब पल्लवी ने पहला कदम रखा, तो सब से पहले उस का

सामना ललिता यानी अपनी सास से ही हुआ. उन का भरा हुआ रोबीला चेहरा, लंबा चरबी से लदा शरीर देख कर ही वह डर गई. लगा जैसा नाम वैसा ही रूप. और जिस तरह से वे आत्मविश्वास से भरी आवाज में बातें करतीं, पल्लवी कांप जाती. वह समझ गई कि उस का हाल वही होने वाला है जो और बेचारी बहुओं का होता आया है.

मगर हफ्ता 10 दिन में ही जान लिया पल्लवी ने कि यथा नाम तथा गुण वाली कहावत ललिता पर कहीं से भी लागू नहीं होती है. तेजतर्रार, कैंची की तरह जबान और सासों वाला रोब जरा भी नहीं था उन के पास.

एक रोज जब वह अपनी मां को याद कर रोने लगी, तो उस की सास ने उसे सीने से लगा लिया और कहा कि वह उसे सास नहीं मां समझे और जब मन हो जा कर अपनी मां से मिल आए. किसी बात की रोकटोक नहीं है यहां उस पर, क्योंकि यह उस का भी घर है. जैसे उन के लिए उन की बेटी है वैसे ही बहू भी… और सिर्फ कहा ही नहीं ललिता ने कर के भी दिखाया, क्योंकि पल्लवी को नए माहौल में ढलने और वहां के लोगों की पसंदनापसंद को समझने के लिए उसे पर्याप्त समय दिया.

अगर पल्लवी से कोई गलती हो जाती, तो एक मां की  तरह बड़े प्यार से उसे

सिखाने का प्रयास करतीं. पाककला में तो उस की सास ने ही उसे माहिर किया था वरना एक मैगी और अंडा उबालने के सिवा और कुछ कहां बनाना आता था उसे. लेकिन कभी ललिता ने उसे इस बात के लिए तानाउलाहना नहीं मारा, बल्कि बोलने वालों का भी यह कह कर मुंह चुप करा देतीं कि आज की लड़कियां चांद पर पहुंच चुकी हैं, पर अफसोस कि हमारी सोच आज भी वहीं की वहीं है. क्यों हमें बहू सर्वगुण संपन्न चाहिए? क्या हम सासें भी हैं सर्वगुण संपन्न और यही उम्मीद हम अपनी बेटियों से क्यों नहीं लगाते? फिर क्या मजाल जो कोई पल्लवी के बारे में कुछ बोल भी दे.

उस दिन ललिता की बातें सुन कर दिल से पल्लवी ने अपनी सास को मां समझा और सोच लिया कि वह कैसा रिश्ता निभाएगी अपनी सास से.

कभी ललिता ने यह नहीं जताया कि विपुल उन का बेटा है तो विपुल पर पहला अधिकार भी उन का ही है और न ही कभी पल्लवी ने ऐसा जताया कि अब उस के पति पर सिर्फ उस का अधिकार है. जब कभी बेटेबहू में किसी बात को ले कर बहस छिड़ जाती, तो ललिता बहू का ही साथ देतीं. इस से पल्लवी के मन में ललिता के प्रति और सम्मान बढ़ता गया. धीरेधीरे वह अपनी सास के और करीब आने लगी. पूरी तरह से खुलने लगी उन के साथ. कोई भी काम होता वह ललिता से पूछ कर ही करती. उस का जो भय था सास को ले कर वह दूर हो चुका था.

लोग कहते हैं अच्छी बहू बनना और सूर्य पर जाना एक ही बात है. लेकिन अगर मैं एक अच्छी बेटी हूं, तो अच्छी बहू क्यों नहीं बन सकती? मांदादी को मैं ने हमेशा लड़तेझगड़ते देखा है, लेकिन गलती सिर्फ दादी की ही नहीं होती थी. मां चाहतीं तो सासबहू के रिश्ते को संवार सकती थीं, पर उन्होंने और बिगाड़ा रिश्ते को. मुझे भी उन्होंने वही सब सिखाया सास के प्रति, पर मैं उन की एक भी बात में नहीं आई, क्योंकि मैं जानती थी कि सामने वाले मुझे वही देंगे, जो मैं उन्हें दूंगी और ताली कभी एक हाथ से नहीं बजती. शादी के बाद एक लड़की का रिश्ता सिर्फ अपने पति से ही नहीं जुड़ता, बल्कि ससुराल के बाकी सदस्यों से भी खास रिश्ता बन जाता है, यह बात क्यों नहीं समझती लड़कियां? अगर अपने घर का माहौल हमेशा अच्छा और खुशी भरा रखना है, तो मुझे अपनी मां की बातें भूलनी होंगी और फिर सिर्फ पतिपत्नी में ही 7 वचन क्यों? सासबहू भी क्यों न कुछ वचनों में बंध जाएं ताकि जीवन सुखमय बीत सके, अपनेआप से ही कहती पल्लवी.

उसी दिन ठान लिया पल्लवी ने कि वे सासबहू भी कुछ वचनों में बंधेंगी और अपने रिश्ते को एक नया नाम देंगी-अनोखा रिश्ता. अब पल्लवी अपनी सास की हर पसंदनापसंद को जाननेसमझने लगी थी. चाहे शौपिंग पर जाना हो, फिल्म देखने जाना हो या घर में बैठ कर सासबहू सीरियल देखना हो, दोनों साथ देखतीं.

अब तो पल्लवी ने ललिता को व्हाट्सऐप, फेसबुक, लैपटौप यहां तक कि कार चलाना भी सिखा दिया था. सब के औफिस चले जाने के बाद ललिता घर में बोर न हों, इसलिए उस ने जबरदस्ती उन्हें किट्टी भी जौइन करवा दी.

शुरूशुरू में ललिता को अजीब लगा था, पर फिर मजा आने लगा. अब वे भी अपनी बहू के साथ जा कर और औरतों की तरह स्टाइलिश कपड़े खरीद लातीं. वजन भी बहुत कम कर लिया था. आखिर दोनों सासबहू रोज वाक पर जो जाती थीं. अपने हलके शरीर को देख बहुत खुश होतीं ललिता और उस का सारा श्रेय देतीं अपनी बहू को, जिस के कारण उन में इतना बदलाव आया था वरना तो 5 गज की साड़ी में ही लिपटी उन की जिंदगी गुजर रही थी.

एक दिन चुटकी लेते हुए शंभूजी ने कहा भी, ‘‘कहीं तुम ललिता पवार से 0 फिगर साइज वाली करीना न बन जाओ. फिर मेरा क्या होगा मेरी जान?’’

‘‘हां, बनूंगी ही, आप को क्यों जलन हो रही है?’’ ललिता बोलीं.

‘‘अरे, मैं क्यों जलने लगा भई. अच्छा है बन जाओ करीना की तरह. मेरे लिए तो और अच्छा ही है न वरना तो ट्रक के साथ आधी से ज्यादा उम्र बीत ही गई मेरी,’’ कह कर शंभूजी हंस पड़े पर ललिता बड़बड़ा उठीं.

दोनों की इस तरह की नोकझोंक देख पल्लवी और विपुल हंस पड़ते.

एक दिन जब पल्लवी ने अपने लिए जींस और टीशर्ट खरीदी, तो ललिता के लिए भी खरीद लाई. वैसे विपुल ने मना किया था कि मत खरीदो, मां नहीं पहनेगी, पर वह ले ही आई.

‘‘अरे, यह क्या ले आई बहू? नहींनहीं मैं ये सब नहीं पहनूंगी. लोग क्या कहेंगे और मेरी उम्र तो देखो,’’ जींस व टीशर्ट एक तरफ रखते हुए ललिता ने कहा.

‘‘उम्र क्यों नहीं है? अभी आप की उम्र ही क्या हुई है मां? लगता है आप 50 की हैं? लोगों की परवाह छोडि़ए, बस वही पहनिए जो आप को अच्छा लगता है और मुझे पता है आप का जींस पहनने का मन है. आप यह जरूर पहनेंगी,’’ हुक्म सुना कर पल्लवी फ्रैश होने चली गई. ललिता उसे जाते देखते हुए सोचने लगीं कि यह कैसा अनोखा रिश्ता है उन का.

Hindi Moral Tales : जान पहचान – हिमांशुजी से मिलने को क्यों आतुर थी सीमा?

Hindi Moral Tales : जुलाई की एक शाम थी. कुछ देर पहले ही बरसात हुई थी. मौसम में अभी भी नमी बनी हुई थी. गीली मिट्टी की सौंधी सुगंध चारों ओर फैली हुई थी. सीमा को 2 घंटे हो गए थे. वह अपने कपड़े फाइनल नहीं कर पा रही थी, ‘क्या पहनूं? बरसात भी बंद हो गई है’. समय देखने के लिए उस ने घड़ी पर नजर डाली, ‘साढ़े 5 बज गए. लगता है मुझे देर हो जाएगी.’ उस ने जल्दी से कपड़े चेंज कर मां को आवाज लगाई, ‘‘मां, मैं जा रही हूं, मुझे आने में शायद देर हो जाएगी,’’ सीमा लगभग भागती हुई रैस्टोरैंट पहुंची.

लतिका मैम ने उसे देखते ही कहा, ‘‘कम, लतिका.’’

‘‘यस, मैम,’’ यह कहते ही सीमा उस लेडी के पीछे हो ली. लतिका नए हेयरकट में बेहद सुंदर लग रही थी. साथ ही टाइट जींस और टाइट टीशर्ट, गले में बीड्स की माला और पैरों में सफेद रंग की हाई हील. उस के हेयरकट के साथ उस की सुंदरता को और बढ़ा रहे थे. कालेज में हमेशा लतिका मैडम को साड़ी और सूटसलवार में ही देखा था. उसे थोड़ा अटपटा जरूर लगा, लेकिन ठीक है उसे क्या लेनादेना, वह तो सिर्फ अपने काम के लिए आई है.

‘‘रैस्टोरेंट ढूंढ़ने में कोई परेशानी तो नहीं हुई,’’ लतिका मैडम ने उस के कपड़ों पर नजर डालते हुए पूछा.

सीमा लौंग स्कर्ट और ढीला सा कुरता पहन कर आई थी और बालों की पोनी बना कर उन्हें बांधा था. ‘‘नहीं मैडम, ज्यादा परेशानी नहीं हुई.’’

‘‘अच्छा है, अभी हिमांशुजी आ रहे हैं. तुम अपने सारे सर्टिफिकेट तो लाई हो न.’’

‘‘जी मैडम,’’ उस ने अपने आसपास देखा और बोली, ‘‘वैसे मुझे लगा था कि देर हो गई है.’’

लतिका के साथ बैठा रोनी हंसते हुए बोला, ‘‘तुम्हें अगर देर हो जाती तो यह रोल किसी और को मिल जाता. वैसे भी बड़े लोग जल्दी कहां आते हैं.’’

लतिका मैडम ने उसे घूरा और बोली, ‘‘रोनी, तुम कब सीरियस होगे,’’ फिर सीमा की तरफ देख कर बोली, ‘‘इसे तो तुम जानती हो न, यह रोनी है.’’

‘‘यस, मैडम.’’

तभी 2 और लड़कों ने रैस्टोरैंट में प्रवेश किया. वे तेजी से चलते हुए लतिका मैडम की तरफ आ रहे थे.

‘‘आज तो गरमी ने हद कर दी है,’’ उस में से एक ने अपनी जेब से रुमाल निकाला और पसीना पोंछने लगा.

‘‘इतनी देर कहां कर दी, सुमेर.’’

‘‘मैडम बरसात हो रही थी इसलिए थोड़ी देर हो गई.’’

‘‘यह तो अच्छा है कि अभी तक हिमांशुजी नहीं आए हैं वरना…’’

‘‘कितनी उमस है आज,’’ फिर लतिका मैडम की तरफ देख कर बोला, ‘‘मैडम, हिमांशुजी आएंगे भी या नहीं या आज फिर खाली हाथ लौटना होगा.’’

‘‘मेरी उन से फोन पर बात हुई थी, वे थोड़ी देर में पहुंचने ही वाले हैं,’’ वेटर को और्डर दे कर वह सीमा का सब से परिचय कराने लगी, ‘‘सीमा, यह सुमेर है और यह अर्जुन.’’

‘‘मैडम, नम्रता और दीपाली नहीं आईं.’’

‘‘वे आज नहीं आएंगी क्योंकि उन का घर बहुत दूर है. इस बारिश ने सबकुछ गड़बड़ कर दिया.’’

वे सब आपस में बातें करने लगे. सीमा आसपास मौजूद एकएक वस्तु का मुआयना करने लगी. वह सोच रही थी, ‘कैसे होंगे हिमांशुजी जिन का सब इंतजार कर रहे हैं.’

उस ने अपने चारों तरफ नजरें दौड़ाईं, साथ वाली टेबल पर अधेड़ उम्र के 2 आदमी बैठे थे.

‘‘अरे यार, फिर से बीवी का फोन है, जरा सा मजा भी नहीं लेने देती.’’

‘‘सुन ले न,’’ दूसरा आदमी बोला.

‘‘हां, तू विस्की और्डर कर मैं फोन सुन कर आता हूं.’’

कुछ देर बाद दोनों शराब की चुसकियों के साथ पता नहीं किस के खयालों में खो गए.

‘‘ये आजकल के लड़कों ने अच्छी रीत बना रखी है, डेट पर जाने की.’’

‘‘सीमा, लो न, कहां खो गई हो,’’ उस ने देखा उस के सामने बियर की बोतलें पड़ी हैं.

‘‘नहीं मैडम, मैं नहीं पीती.’’

‘‘अरे लो न, आज से तुम हमारी मंडली में शामिल हो रही हो तो हम जैसा तो बनना ही पड़ेगा.’’

‘‘नहीं मैडम, प्लीज, आप मेरे लिए कौफी मंगवा दें.’’

‘‘ठीक है, जैसी तुम्हारी मरजी. आज पहला दिन है इसलिए आज तुम्हें छोड़ देते हैं, लेकिन आगे से नहीं,’’ लतिका मैडम ने यह कह कर वेटर को आवाज लगाई.

2 टेबल छोड़ कर एक नवविवाहित जोड़ा बैठा हुआ था. सीमा ने देखा कि उस नवविवाहिता ने गुलाबी रंग की साड़ी पहनी थी और बहुत मेकअप किया हुआ था. उस की साड़ी का पल्लू बारबार गिर जाता था. पता नहीं वह अपने पति को आकर्षित कर रही थी या फिर हौल में बैठे लोगों को.

पति उस के मुंह में चम्मच से आइसक्रीम डाल रहा था और वह अदाओं से उस की तरफ देख रही थी. बीचबीच में वह अपने आसपास भी देख लेती थी.

‘‘क्या आइटम है,’’ तभी उस के कानों में आवाज आई, सुमेर उस नवविवाहिता के लिए कह रहा था.

‘‘छोड़ो न उसे, तुम इधर ध्यान दो,’’ लतिका मैडम ने उसे डांट लगाते हुए कहा.

‘‘स्क्रिप्ट क्या है मैडम?’’

‘‘अभी मुझे कुछ नहीं पता, हिमांशुजी के आने पर ही सब फाइनल होगा.’’

‘‘वैसे प्ले का नाम क्या है?’’

‘‘एक मुट्ठी आसमान.’’

‘‘और हीरोइन कौन है?’’

‘‘तुम्हारे सामने तो बैठी है.’’

‘‘क्या?’’ सब ने आश्चर्य से सीमा को देखा, जैसे कोई अनोखी लड़की देख ली हो.

‘‘अरे, अभी नाम फाइनल नहीं हुआ है. वैसे मैं ने सीमा को कालेज के प्ले में परफौर्म करते देखा है. क्या कमाल की अदाकारा है.’’

‘‘लेकिन क्या यह हिमांशुजी को…’’ अर्जुन कहतेकहते रुक गया.

‘‘हां, क्यों नहीं.’’

सीमा अपनेआप में सिकुड़ रही थी. भले ही उस के प्ले ने कालेज में धूम मचाई थी, पर प्रोफैशनली वह पहली बार किसी से मिलने आई थी, ऐसी अजीबोगरीब जगह पर.

‘‘आप कुछ बोलती भी हैं या सिर्फ प्ले में ही अपनी जबान खोलती हैं,’’ रोनी उस का मजाक उड़ाते हुए बोला तो सब हंस पड़े.

‘‘अभी नई है न, फिर देखना,’’ लतिका मैडम ने उस का बचाव किया.

‘‘अच्छा, कौफी तो लो.’’

‘‘हां,’’ ऐसा कह कर सीमा ने हलकेहलके सिप लेने शुरू किए और बाकी सब बियर की बोतलें खाली करने लगे.

सीमा को ये सब अजीब लग रहा था. लतिका मैडम की आजादी, उस की तरफ उन का झुकाव, क्यों कर रही हैं वे उस के लिए, क्यों उसे ही मिलने के लिए बुलाया है, इसी उधेड़बुन में डूबी सीमा ने फिर सोचा, ‘बस, एक बार काम मिल जाए तो अपनी प्रतिभा दिखा दूंगी और फिर सब बातों से पीछा छूट जाएगा.’

तभी अर्जुन ने अपनी घड़ी देखी, ‘‘मैडम, लगता है आज भी हिमांशुजी से मुलाकात नहीं होगी. बहुत देर हो गई है मुझे, इसलिए जाना पड़ेगा.’’

‘‘फिर तो मुझे भी तेरे साथ जाना पड़ेगा क्योंकि मैं तेरे साथ बाइक पर आया था. वरना 200 रुपए खर्च कर के वापस जाना पड़ेगा,’’ सुमेर कहते हुए खड़ा हो गया.

‘‘मैडम, मैं भी चलती हूं. बहुत देर हो गई है. इतनी रात तक मैं अकेली कभी भी घर से बाहर नहीं रही,’’ सीमा भी खड़ी हो गई.

‘‘लेकिन तुम नहीं जा सकती सीमा क्योंकि ये दोनों तो पहले भी हिमांशुजी से मिल चुके हैं और इन के रोल फाइनल हैं, लेकिन यह तुम्हारी पहली मुलाकात है, फिर बड़े आदमी तो हमेशा देर से ही आते हैं. अगर तुम्हारे जाने के बाद हिमांशुजी आए तो तुम्हें न पा कर बुरा मान जाएंगे और यह न तो तुम्हारे लिए सही होगा और न ही मेरे लिए,’’ लतिका मैडम एक सांस में इतना कुछ बोल गई.

कुछ देर बाद रोनी भी बहाना बना कर चलता बना. ‘‘बहुत देर से तलब लग रही थी, अब मौका मिला है,’’ सब के जाने के बाद लतिका ने सिगरेट जला ली. सीमा को उस का धुआं बरदाश्त नहीं हो रहा था. चारों तरफ शराब और सिगरेट की गंध फैली हुई थी. सीमा का मन कर रहा था कि वह वहां से उठ कर भाग जाए पर हिमांशुजी से मिलना भी जरूरी था.

‘‘तुम्हें पता है, इस रोल के लिए कितनी लड़कियां मेरे पास आई थीं, पर मुझे सब से ज्यादा प्रतिभा तुम में दिखाई दी और इसलिए मैं ने तुम्हें हिमांशुजी से मिलवाने का फैसला किया है.’’

तभी लतिका मैडम बोली, ‘‘वह देखो, हिमांशुजी आ गए हैं.’’

सीमा ने देखा, एक अधेड़ उम्र का गंजा आदमी उस की ओर चला आ रहा है. उस ने महंगे कपड़े पहने हुए हैं. उस के साथ 2 और आदमी हैं पर हिमांशुजी ने उन्हें वहीं रुकने का इशारा किया.

‘‘अरे, बैठोबैठो, मुझे बहुत ज्यादा देर तो नहीं हो गई लतिका,’’ कहते हुए वे सीमा के पास वाली कुरसी पर बैठ गए.

‘‘अरे, नहीं सर.’’

सीमा हैरानी से उन्हें देखे जा रही थी.

‘‘सर, यह है सीमा. मैं ने आप से इस के बारे में बात की थी.’’

उस ने सीमा को ऐसे देखा जैसे हलाल करने से पहले कसाई अपने बकरे को देखता है. सीमा ने डर कर अपनी नजरें झुका लीं.

‘‘ओह, तो आप हैं सीमाजी.’’

‘‘यह बहुत प्रतिभावान है सर, आप इस के सर्टिफिकेट्स देखिए.’’

‘‘हांहां, जरूर देखेंगे इन के सर्टिफिकेट्स,’’ उन की नजर अभी भी सीमा के चेहरे पर गड़ी हुई थी.

‘‘सीमा दिखाओ, इन्हें अपने सर्टिफिकेट्स.’’

‘‘जी, मैडम.’’

‘‘बहुत बढि़या,’’ उन्होंने एक उड़ती हुई नजर उन सर्टिफिकेट्स पर डाली, ‘‘वैसे तुम ने इन्हें सब समझा दिया है न,’’ उन्होंने अपना एक हाथ सीमा के कंधे पर रख दिया.

‘‘समझाना क्या है सर, आजकल की लड़कियां तो वैसे भी बहुत समझदार होती हैं,’’ और उस ने अपनी एक आंख झपका कर इशारा किया.

‘‘लगता है आप वैजिटेरियन हैं,’’ हिमांशुजी ने उस के आगे पड़े हुए कौफी के कप को देख कर कहा.

‘‘जी, मैं समझी नहीं.’’

‘‘आप कौफी पी रही हैं.’’ कौफी और वैजिटेरियन का संबंध सीमा को समझ नहीं आया.

‘‘हां, तो सीमा हमारी शर्तें क्याक्या होंगी, वह तुम्हें लतिका समझा देगी,’’ उन का हाथ धीरेधीरे सीमा की पीठ पर सरकने लगा था.

‘‘जी, सर,’’ सीमा की सोचनेसमझने की शक्ति खत्म होती जा रही थी.

‘‘रिहर्सल कब से शुरू होगी वह भी तुम्हें लतिका ही समझा देगी,’’ कहते हुए इस बार उन का हाथ सीमा की जांघ पर आ गया. सीमा को लगा जैसे हजार चींटियां उस के बदन पर रेंग रही हैं.

सीमा झटके से खड़ी हो गई, ‘’मैडम मुझे अब चलना चाहिए.‘’

‘’लेकिन अभी तो जानपहचान नहीं हुई है,‘’ लतिका बोली.

सीमा का चेहरा क्रोध से लाल हो रहा था. अपना पर्स उठाते हुए तेजी से उस ने कहा ‘’इतनी जानपहचान मेरे लिए काफी है.‘’

वह भाग कर बाहर आ गई और घर की ओर बढ़ने लगी. पूरा घटनाक्रम उस के दिमाग में चल रहा था. हिमांशु का उसे देखना, छूना सर्टिफिकेट तो मात्र बहाना था. यह सब लतिका की एक चाल थी. फिल्म दिलवाने के नाम पर वह उसे किसी और ही काम में फंसा रही थी.

यह सब सोचते हुए उसे लगा मानो दिमाग की नसें फट जाएगी. वह जोरजोर से सांस लेने लगी. बाहर अभी भी बहुत उमस थी पर उसे वह उमस अंदर की ठंडी हवा से कहीं ज्यादा अच्छी लग रही थी. वह एक मुट्ठी आसमान के लिए अपना सारा जहां कुरबान नहीं कर सकती थी.

Dahi Vada : गर्मियों में बनाएं ब्रैड दही वड़ा, बहुत आसान है रेसिपी

Dahi Vada : अगर आम गरमी के दिनों में कुछ हल्का और टेस्टी डिश बनाना चाहते हैं तो ब्रेड दही वड़ा आपके लिए परफेक्ट डिश है. ब्रैड दही वड़ा बनाने में आसान और किफायती है, जिसे आप कम समय में अपनी फैमिली के लिए बना सकते हैं.

हमें चाहिए- 

–  जरूरतानुसार ब्रैड

–  जरूरतानुसार दूध ब्रैड सोक करने के लिए

–  2 बड़े चम्मच इमली की चटनी

–  1 बड़ा चम्मच हरी चटनी

–  4 बड़े चम्मच दही

–  थोड़े से अनारदाने

–  1 छोटा चम्मच भुना जीरा पाउडर

–  काला नमक स्वादानुसार

– 1/2 छोटा चम्मच लालमिर्च पाउडर

–  1 बड़ा चम्मच ड्राईफ्रूट्स कटे

–  नमक व काला नमक स्वादानुसार.

बनाने का तरीका-

ब्रैड के किनारे हटा कर ब्रैड स्लाइसेज को दूध में सोक करें. सोक हो जाने के बाद एकएक ब्रैड स्लाइस को निकल कर हलके हाथों से निचोड़ कर उन में ड्राईफ्रूट्स स्टफ करें और बड़े का आकार दे कर सर्विंग बाउल में रखती जाएं. वड़े अच्छी तरह सील हो जाने चाहिए. अब इन में ऊपर से दही, इमली चटनी, हरी चटनी, भुना जीरा, लालमिर्च पाउडर, अनारदाने और ड्राईफ्रूट्स डाल कर ठंडा कर सर्व करें.

ऐसी औरतें जो खुद को समझती हैं यूजलेस

कई पतियों को अपनी पत्नियों से शिकायत होती है कि वे कभी सजती सवरती नहीं है? हमेशा वही बेकार से कपड़ों में नजर आती है फिर चाहे कितनी भी अलमारियां अच्छे कपड़ों से क्यों ना भरी हो. वाकई यह बात सही है महिलाओं के पास अकसर कपड़ों की कमी नहीं होती लेकिन वह उन्हें आने जाने में ही पहनना पसंद करती है और घर पर वही पुराने कपडे और बिखरे हुए बाल वाले अंदाज में रहती हैं. अगर उनसे पूछा जाए वे ऐसा क्यों करती है? तो उनका साफ है. घर में हम सारे दिन काम में लगे रहते हैं तो हमे कम्फर्ट चाहिए. दूसरे, घर में हमें कौन आकर देख रहा है जिसके लिए सजा जाएं जब कभी बहार जाएंगे तो तैयार भी हों लेंगें.

सच तो यह है अगर एक औरत कहे कि मुझे सुबह से उठकर इसी 2 कमरे के मकान में रहना है और कहीं जाना नहीं है.  मेरी दाएं बाएं वाली पड़ोसन भी ऐसे ही रहती है. तो मैं ही क्यों सजधज कर बैठूं और कहां जाऊं. जिस औरत को हफ्ते के 6 दिन घर पर रहना है ना कहीं जाना है ना आना है. ना ही उसके घर पर किसी को आना है. तो हम टिप टौप होकर क्यों बैठे जबकि बरमूडा और टीशर्ट में हमे आराम मिलता है. उनकी बात सही हो सकती है. लेकिन यहां मेरा एक सवाल है?

घर में बैठी हो तो बहार क्यों नहीं निकलती हो? आप यूजलेस हैं क्या? क्या वाकई बाहर जाने के आपके पास कोई वजह नहीं है?  या फिर आप आलसी हैं ? आपका कोई फ्रेंड सर्कल नहीं है? आखिर क्या वजह है ऐसे रहने की?

क्या आप सोशली और इकोनौमिकली  निरर्थक हैं?

आप हर वक्त घर पर बेकार क्यों बैठी रहती हैं. अगर जौब नहीं कर रही तो भी घर से निकले. अपना कोई सोशल सर्कल बनाये. उनके साथ अपनी कोई हॉबी क्लास ज्वाइन करें, कुछ सोशल वर्क के काम में लग जाएँ. घर से ही छोटा मोटा कोई काम करें जैसे डांस सीखना, कुकिंग सीखना आदि क्यूंकि आप भी चाहे तो बहुत कुछ कर सकती हां क्योंकि आप सोशली और इकोनौमिकली निरर्थक नहीं है.

घर के काम से आगे भी है जिंदगी

क्या आपका जन्म सिर्फ घर की देखभाल करने के लिए ही हुआ है, अपनी सारी पढ़ाई लिखाई क्यों वेस्ट कर रही हैं महिलाएं. जमाना इतना आगे निकल चूका है. घर के हर काम के लिए आज माइड और मशीनें अवलेबल है. यहां तक कि साफसफाई के लिए रौबर्ट मशीन, बर्तन मांजने धोने के लिए मशीन है और फिर माइड भी तो है 5 -10 हजार रूपए में घर का सारा काम मेड कर सकती है. अगर आप जौब करने पर कम से कम 40 भी कमाती हैं और उसमें से 10 -15 माइड आदि पर खर्च हो भी जाता है तो क्या बात हो गए. ये आपके अपने लिए जरूरी है.

कहीं आप अपना व्यक्तित्व अपने निकम्मेपन से तो नहीं खो रही हो

कई महलाओं में काबिलियत की कमी नहीं होती वे पढ़ी लिखी भी होती है और दिमाग की भी तेज होती है लेकिन अपने आलसी और निकम्मेपन से सब गावंती रहती है. उन्हें लगता है पड़े पड़े पति की कमाई खाने को तो मिल ही रही है फिर हम बेकार की महत्व कम करें. जबकि ये सोच गलत है बात सिर्फ पैसा कमाने की नहीं है बल्कि इससे भी जाया आपकी अपनी पहचान की है. जिसे आप बखूबी बना सकती हैं लेकिन बनाना नहीं चाहती.

रेडी न होने के एक्सक्यूसेस देती हैं

कुछ महिलाओं के पति उनसे हमेशा इस बात पर खफा रहते हैं कि तुम कभी ढंग से तैयार नहीं होती हो. लेकिन ये महिलाएं पतिओं की इस बात को हमेशा नज़रअंदाज करती हैं क्योंकि उन्हें लगता है हम किस के लिए घर में सज सवरकर बैठे आखिर घर का काम और बच्चों की देखभाल ही तो करनी है इसके लिए अपने अच्छे कपडे क्यों खराब किये. घर में तो गाउन पहनना ही आरामदायक होता है. लेकिन इन्हें ऐसी हालत में देखा कर पति का मुद ख़राब हो जाता है और यही बात उनके बहार किसी अन्य औरत को ताकने की आदत को बढ़ावा देता है. ये कड़वा है मगर सच यही है.

कमाऊं बहु के आगे जमाना ही नहीं ससुराल भी झुकता है

अभी हाल ही में आपने मिसेज मूवी तो देखी ही होगी, तब तो आपको पता ही चल गया होगा कि घर के जिन कामों की वजह से आप अपना करियर दांव पर रख रही है उसकी कोई वैल्यू नहीं है वही अगर आप कमाने बाहर जाती है तो घर के लोग आपकी ज्यादा कदर करेंगे. इससे आपकी पर्सनैलिटी में भी एक अलग ही चेंज आएगा. इसलिए आप अपने किसी भी हुनर को अपना करियर बनाये. अगर सिलाई कड़ाई, टूशन पढ़ाना या फिर पार्लर का काम आता है तो कुछ घंटे दिन में इस काम को करने में भी बुराई नहीं है. इससे आप एक्टिव भी बानी रहेंगी.

धर्म भी कम जिम्मेवार नहीं है

काफी हद तक तो ये निकम्मापन औरतों में धर्म की ही देन है. जहां उन्हें पति की दासी और बच्चों की आया ही बनने का सुझाव दिया जाता है. ये धर्म गुरु चाहते हैं कि महिलाएं घर में बैठे रहें कुछ काम न करें बहार जाकर क्योंकि अगर ये बिजी हो गए तो इन बाबावों की दुकानदारी कौन चमकाएंगे. ये दिन में फ्री होती है और टाइम पास करने पहुंच जाती हैं इन बाबावों के प्रवचन सुनने. इनकी ऊंटपटांग और गलत बातों का नतीजा होता है महिलाएं अपने वैल्यू नहीं कर पाती क्योंकि इन्हें तो ये घुटी पिलाई जाती है कि तुम तो पति और बच्चों की सेवा के लिए बनी है. यही वजह है इन औरतों की ना ससुराल में कोई पूछ होती है और न ही इनके पातियो इन्हें सम्मान की नजरों से देखते हैं. रोजरोज के इन्हें कलेशों से परेशान होकर ये महिलाएं अपनी समस्याओं के हल के लिए इन बाबावों के पास जाती है और अपना समय, पैसा सब लुटाती रहती है और बाबा इन्हें पहले से भी ज्यादा गर्त में धकेलते रहते हैं.

कोई क्लब ज्वाइन करें

आजकल हर सोसाइटी में महिलाओं के अपने क्लब चलते हैं जिनमे तरहतरह की एक्टिविटी होती हैं उन्हें ज्वाइन करें. आप चाहे तो सोशल वर्क के काम से भी जुड़ सकती हैं.

अपना फ्रेंड सर्कल बनाये

अपनी दोस्तों के साथ टाइम पास करें और कभी कभार उनके साथ घूमने जाएं और मूवी आदि भी देखें जरुरी नहीं के हर बार पति और बच्चों के साथ ही जाया जाएं बल्कि कुछ टाइम अपनी सहेलियों के साथ भी बेटियां इससे आपको कुछ अलग महसूस होगा.

शाम में वाक पर जाएं– शाम के समय अपनी दिनचर्या में से थोड़ा सा समय चुराकर वाक पर भी जाएं. वहां वाक करते समय कई नए दोस्त भी बनने लगेंगी और आप तैयार होकर ही जाएंगी भले ही जिम सूट में जाएं लेकिन वो भी ठीक थक ही होगा तो ऐसे में पति की शिकायत भी दूर होगी कि आप तैयार नहीं होती.

Skin Care Tips : विटामिन-सी से पाएं ग्लोइंग स्किन

Skin Care Tips :  नेहा जो अपने आउटफिट्स का तो काफी ध्यान रखती थी लेकिन अपनी स्किन का जरा भी नहीं. जिससे धीरे धीरे उसकी स्किन से ग्लो खत्म होने के साथसाथ स्किन डल व बेजान होने लगी. अब चाहे वह कितने भी स्मार्ट आउटफिट्स क्यों नहीं पहन लेती थी लेकिन फिर भी उसके लुक में वो बात नहीं आ पाती थी जो आनी चाहिए थी. ऐसे में जब नेहा को कोई वाहवाही नहीं मिलती थी तो वह काफी परेशान रहने लगी. उसे परेशान देख जब स्नेहा ने उससे पूछा तो उसने बताया कि मैं चाहे कितना भी स्मार्ट कपड़ा क्यों न पहन लू लेकिन कोई मेरी तारीफ ही नहीं करता. यह सुन स्नेहा बोली यार तेरे आउटफिट्स तो काफी स्टाइलिश होते हैं लेकिन तेरी रूखी बेजान स्किन के कारण तेरे आउट फिट्स पर किसी की नजर ही नहीं जाती है. ऐसे में तुझे आउट फिट्स से ज्यादा अपने फेस को ग्लोइंग बनाने की और ध्यान देना होगा. तब नेहा ने उसे ग्लोइंग स्किन बनाने के जो टिप्स दिए उससे आज हर कोई उसकी तारीफ किये बिना नहीं थकता.

अगर आप भी ग्लोइंग स्किन पाना चाहती हैं और हर कोशिश कर करके थक चुकी हैं तो आपको बता दें कि विटामिन सी में छिपा है ग्लोइंग स्किन का राज. ये आपको आसानी से हर्ब्स, फ्रूट्स और लीव्स से मिल जाएगा. इससे स्किन पर नेचुरल ग्लो नजर आने के साथ साथ आपकी स्किन की इलास्टिसिटी भी बरक़रार रहेगी. आपको बता दें कि आमला , संतरा, नीम्बू , बेर्री विटामिन सी के बहुत अच्छे स्रोत माने जाते हैं. जो आसानी से मिलने के साथ साथ ये एन्टिओक्सीडैंट्स से भरपूर होते हैं. ये सेल्स के पुनु निर्माण के साथ साथ आपकी इम्युनिटी को भी बूस्ट करने का काम करते हैं. यानी स्किन के साथ साथ आपकी बोडी के लिए भी फायदेमंद हैं . इसके साथ ही ये स्किन रिपेयरिंग, डार्क स्पोट्स को कम करने , स्किन ब्राइट निंग और ग्लो लाने का भी काम करते हैं .

1. कैसे पाए फ्लौलेस स्किन

हर दिन की शुरुवात के साथ ही हमें अपनी स्किन की केयर करने का मौका मिलता है. ऐसे में जरूरी है कि आप अपनी स्किन की केयर के लिए केमिकल बेस्ड प्रोडक्ट्स लगाने से बचे. और अपने स्किन केयर रूटीन में क्लींजिंग, टोनिंग और मॉइस्चरिंग को जरूर शामिल करें. रोजाना 30 एस पी फ वाला सनस्क्रीन जरूर लगाएं. इससे आपकी स्किन को मोइस्चरेर भी मिलेगा और प्रोटेक्शन भी .

साथ ही अपनी स्किन को हाइड्रेट करने वाली विटामिन सी युक्त मास्क जरूर लगाएं. क्योंकि हर रोज हमारी स्किन डैमेज करने वाले रेडिकल्स के प्रभाव में जो आती है, जिससे स्किन की इलास्टिसिटी और स्किन में नेचुरल तरीके से कोलेजन की सप्लाई नहीं हो पाती है. जो हाइड्रेट करने वाले मास्क से आसानी से हो पाती है. इस बात का भी ध्यान रखें कि स्किन प्रोडक्ट्स में हमेशा नेचुरल इंग्रेडिएंट्स हो, एनिमल फैट्स न हो और सिलिकोन्स , पैराबेन्स और सल्फेट फ्री हो.

2. घर पर कैसे पाए बेहतर त्वचा

घर पर बेहतर त्वचा पाने के लिए हमें अपने रूटीन में स्किन केयर को जरूर शामिल करना होगा. इसके लिए आप अपनी स्किन की एसेंशियल ऑयल्स, जैसे लेमन, टी ट्री आयल , रोज, लैवेंडर आदि से केयर करें. इससे स्किन पर जमा गंदगी रिमूव होने से स्किन क्लियर होती है. साथ ही एक अलग ही ग्लो नजर आने लगता है.

3. नेचुरल सोर्स ऑफ़ विटामिन सी

अमला जूस जो न सिर्फ हमारी स्किन बल्कि हमारी ओवरआल हैल्थ को इम्प्रूव करने का काम करता है. क्योंकि ये शरीर से टोक्सिंस को बाहर निकाल कर बॉडी को डीटोक्स करने के साथ साथ स्किन पर ग्लो को बनाए रखता है. साथ ही आप रोजाना खली पेट हलके गरम पानी में नीम्बू मिलकर भी पी सकती हैं , इससे भी स्किन से डेड सेल्स रिमूव होते हैं. ये नेचुरल एस्ट्रिंजेंट का भी काम करता है, जिससे स्किन कॉम्प्लेक्शन धीरे धीरे इम्प्रूव होने लगता है.

4. फेस पैक फौर डेली रूटीन

आपके लिए जहां रोजाना स्किन की टोनिंग,, क्लींजिंग और मॉइस्चराइजिंग करना जरूरी होता है वहीं आपके लिए हफ्ते में 2 बार स्किन पर फेस पैक लगाना भी बहुत जरूरी है. क्योंकि इससे स्किन हाइड्रेट होने के साथ साथ स्किन से एक्सेस आयल रिमूव होता है. इसके लिए आप संतरे के छिलके को छील कर सुखा लें , फिर इसका पाउडर तैयार कर इसमें एक छोटा चम्मच शहद, दही और चुटकी भर हलदी मिलाकर तैयार पेस्ट को 10 मिनट के लिए चेहरे पर अप्लाई करके छोड़ दें और फिर धो दें. आपको इस पैक से स्किन पर इंस्टेंट ग्लो नजर आएगा. खास बात यह है कि ये पैक हर स्किन टाइप पर सूट करता है.

5. ब्राइटनिंग आयल और सीरम है बेस्ट

ब्राइटनिंग आयल और सीरम से जहां डार्क स्पोट्स कम होने के साथ साथ झुर्रियों की समस्या भी कम होती है. वहीं स्किन टोन भी काफी इम्प्रूव होता है. लेकिन मार्केट में इस तरह के ढेरों प्रोडक्ट्स भरे पड़े हैं , ऐसे में हम यही सोचते हैं कि कौन सा ब्राइटनिंग आयल और सीरम हमारी स्किन के लिए बेस्ट होगा तो आपको बता दें कि आप ऐसे प्रोडक्ट्स अवोइड करें जिसमें मिनरल आयल और सिलिकनेस हो. जिन प्रोडक्ट्स में नेचुरल इंग्रेडिएंट्स हो उन्हें ही यूज़ करने को प्राथमिकता दें. जैसे जिनमें विटामिन इ , विटामिन सी , कोलेजन और hyaluronic एसिड हो स्किन के लिए काफी अच्छे होते हैं. साथ ही स्किन टाइप को देखकर ही प्रोडक्ट खरीदें.

जैसे अगर आपकी ड्राई स्किन है तो प्रोडक्ट में शी बटर, आलमंड आयल, chamomile जरूर हो .
अगर आपकी ऑयली और एक्ने प्रोन स्किन है तो प्रोडक्ट में टी ट्री , लेमन, बेसिल , चारकोल, थाइम , मानगो बटर जरूर हो. ठीक इसी तरह अगर आपकी सेंसिटिव स्किन है तो उसमें लैवेंडर, नेरोली, जेरेनियम में से कुछ जरूर हो. इससे स्किन की पूरी केयर भी होगी और ग्लो भी आएगा.

Diljit Dosanjh ने दिया फिल्म सरदार जी 3 में पाकिस्तानी एक्ट्रेस हानिया आमिर को बड़ा ब्रेक

Diljit Dosanjh : पंजाबी और बौलीवुड सिनेमा के सुपरस्टार दिलजीत दोसांझ जो करीना कपूर, आलिया भट्ट, कियारा आडवाणी, अक्षय कुमार, शाहिद कपूर जैसे कई बड़े कलाकारों के साथ ना सिर्फ फिल्में कर चुके हैं. बल्कि बतौर गायक गाने में भी उनका कोई मुकाबला नहीं है. दिलजीत दोसांझ जो भी करते हैं. पूरे दिल से और पूरी ईमानदारी से करते हैं, फिर चाहे वह फिल्म निर्माण एक्टिंग हो या सिंगिंग ही क्यों ना हो.

दिलजीत हर मंच पर अपनी लोकप्रियता के झंडे गाड़ते हैं. पंजाब से लेकर मुंबई तक अपनी बेहतरीन फिल्मों और अभिनय के जरिए अपनी अलग पहचान बनाने वाले दिलजीत दोसांझ एक बार फिर नई फिल्म के साथ अपनी एक्टिंग के जरिए चार चांद लगाने आ रहे है. उनकी फिल्म सरदार 3 को लेकर दर्शकों के बीच भारी उत्साह देखने को मिल रहा है सरदार जी फिल्म का तीसरा भाग प्रस्तुत होने जा रहा है. फिल्म का निर्देशन अमर हुंदल ने किया है सरदार जी हौरर कौमेडी जानर की फिल्म हैं जो 27 जून 2025 को रिलीज होगी .  इससे पहले सरदार जी का पहला भाग 2015 में बना था और सरदार जी का दूसरा भाग 2016 में रिलीज हो चुका है.

दिलजीत दोसांझ जो अब तक हिंदी फिल्मों में गुड न्यूज़, जट्ट एंड जूलियट, उड़ता पंजाब, हाउसफुल 4, और अमर सिंह चमकीला आदि फिल्मों में बेहतरीन अभिनेता करके दर्शकों को पूरी तरह से लुभा चुके है. अब सरदार जी 3 में दिलजीत दोसांझ एक नए रूप में नजर आएंगे जिसमें दिलजीत की दोहरी भूमिका होगी ,और उनके साथ दो हीरोइन नीरू बाजवा  और पाकिस्तान की प्रसिद्ध हीरोइन हानिया अमीर प्रमुख किरदारों में नजर आएंगी हानिया अमीर की यह पहली बॉलीवुड फिल्म है , जिसे लेकर वह बेहद एक्साइटेड है .

इस फिल्म में अन्य कलाकार गुलशन ग्रोवर मानव विच मोनिका शर्मा सलीम अलबेला नासिर चिन्योती आदि कलाकार भी है जो अहम भूमिका निभाते नजर आएंगे. सरदार जी 3 के अलावा दिलजीत दोसांझ और दो बड़ी फिल्मों में नजर आने वाले हैं, 1997 में बनी बौर्डर की सीक्वेल बौर्डर 2 मैं दिलजीत दोसांझ अहम भूमिका में नजर आएंगे .इस फिल्म में दमदार एक्शन और देश भक्ति का मेल देखने को मिलेगा. यह फिल्म 2026 में रिलीज होगी .इसके अलावा 2005 की सुपरहिट कौमेडी फिल्म नो एंट्री के सीक्वल मे दिलजीत दोसांझ मजेदार किरदार में नजर आएंगे जो की 2025 मैं रिलीज होगी.

ब्लड कैंसर से पीड़ित ‘कसूर’ फेम Lisa Ray जब सेरोगेसी के जरिए बनी जुड़वा बेटियों की मां

Lisa Ray : भारतीय कनाडियन एक्ट्रेस लीजा रे ने बौलीवुड में फिल्म कसूर के जरिए हिंदी फिल्मों में पदार्पण किया. इससे पहले वह फैशन मौडल थी. कसूर के बाद लीजा रे ने रामगोपाल वर्मा की वीरप्पन, दोबारा, पानी और इश्क फौर एवर में भी काम किया. सन 2009 में उनको ब्लड कैंसर हो गया और 2012 में उनकी शादी जेसन देहनी से कैलिफोर्निया में हुई थी.

शादी से पहले लिजा की बच्चा पैदा करने की कोई इच्छा नहीं थी. लेकिन शादी के बाद बच्चों की चाह हुई . लेकिन क्योंकि वह कैंसर की गोली खाने की वजह से बच्चा पैदा करने में असमर्थ थी. इसलिए उन्होंने सरोगेसी का सहारा लिया. लिजा के अनुसार कैंसर की वजह से बच्चा ना होने के कारण वह बहुत आहत थी. लिहाजा लीजा रे ने बच्चा पाने के लिए सरोगेसी का सहारा लिया.

सेरोगेसी का प्रोसीजर भी आसान नहीं था बहुत लंबा प्रोसीजर था और निराशा से भरा हुआ था. इसलिए मैं कई बार निराश भी हो गई थी. लेकिन मैंने हिम्मत नहीं हारी. सरोगेसी के जरिए दो बेटियों को जन्म दिया . जब फूल सी प्यारी दोनों बेटियां मेरी गोद में आई तो मैं अपना सारा दुख दर्द भूल गई.

Sweet Kiss : चुंबन – हंगामा है क्यों बरपा

Sweet Kiss : प्यार का प्रतीक या प्यारभरे रिश्ते की आखिरी मंजिल या यों कहें कि होंठों पर चुंबन के जरीए प्यारभरे रिश्ते की शुरुआत. अगर प्यार का प्रतीक है चुंबन और प्यारभरे रिश्ते की सचाई है, तो यही अगर प्यार का इजहार पब्लिकली होता है तो उस पर बवाल क्यों हो जाता है? चुंबन जिसे गलत माना जाता है और सब के सामने करना बेशर्मी का प्रतीक माना जाता है, वही चुंबन प्यार को उस वक्त परिभाषित करता है जब पूरी दुनिया में धर्मअधर्म जातपात, अमीरीगरीबी के भेदभाव के चलते नफरत का बोलबाला हो रहा है, वही प्यार भरा चुंबन पौजिटिव वाइव्स का संचार करता है क्योंकि चुंबन किसी भी तरह का हो, किसी के भी साथ हो वह खुशी प्रदान करता है, अगर वह गलत तरीके से या जबरदस्ती में न किया गया है तो.

प्रेमीप्रेमिका, पतिपत्नी के लिए होंठों पर लिया हुआ पहला चुंबन हमेशा के लिए यादगार लमहा बन जाता है, इसी तरह मातापिता अपने बेटे या बेटी को अपना प्यार जताने के लिए माथे पर किस अर्थात चुंबन करते हैं. एक दोस्त दूसरे दोस्त से अपना प्यार या खुशी जाहिर करने के लिए उस के गाल पर किस कर देता है।

एक सभ्य आदमी अगर किसी से दोस्ती का हाथ बढ़ाता है तो वह उस के हाथ पर चुंबन करता है. कहने का मतलब यह है कि जिस चुंबन को कुछ लोग बेशर्मी मानते हैं असल में वह प्यार का प्रतीक और एक अच्छे रिश्ते की शुरुआत का पौजिटिव साइन है. लेकिन अगर वही चुंबन गलत तरीके से पेश हो जाए या गलत तरीके से वह चुंबन लिया गया है तो उस पर बड़ा बवाल भी हो जाता है. खासतौर पर ग्लैमर वर्ल्ड में कई ऐसे चुंबन को ले कर किस्से हुए हैं जिस की वजह से न सिर्फ बवाल हो गया, बल्कि वह सारे चुंबन दृश्य आज भी चर्चा का विषय है.

इतना ही नहीं, उन चुंबन दृश्यों की वजह से वह कलाकार भी चर्चा में बने रहे जो इस लिप टू लिप वाले चुंबन कांड में शामिल थे. पेश हैं इसी सिलसिले पर एक नजर :

ग्लैमर वर्ल्ड में चुंबन को ले कर ढेर सारे बवाल

ग्लैमर वर्ल्ड में गाल से गाल टच कर किस करना या बहुत करीबी है तो लिप पर किस कर देना आम बात है. लेकिन बावजूद इस के वही चुंबन पब्लिकली या बिना इजाजत के जबरदस्ती में लिया गया हो या फिल्म के दौरान इंटिमेट सीन के चलते लंबा किस हो तो वह चर्चा का विषय बन जाता है. जैसेकि हाल ही में रौकी रानी की फिल्म ‘प्रेम कहानी’ में 82 साल के धर्मेंद्र और बड़ी उम्र की शबाना आजमी के बीच एक लिप किस फिल्माया गया था जो बाद में बहुत चर्चा में रहा। इसी तरह फिल्म ‘मर्डर’ फिल्म में हीरो इमरान हाशमी ने मल्लिका शेरावत के पूरी फिल्म में इतने चुंबन लिए कि इमरान हाशमी का नाम ही चुंबन देवता पड़ गया.

विश्व सुंदरी ऐश्वर्या राय बच्चन ने अपनी शादी के ठीक कुछ दिन पहले फिल्म ‘धूम’ के लिए रितिक रोशन के साथ एक लंबा चुंबन दृश्य दिया था. इस के बाद ऐश्वर्या राय को बहुत ट्रोल किया गया. बौलीवुड अभिनेत्री शिल्पा शेट्टी को एक फंक्शन के दौरान विदेशी रिचर्ड ने कई सारे चुंबन शिल्पा के चेहरे पर जड़ दिए। इस चुंबन को ले कर भी रिचर्ड गेरे और शिल्पा शेट्टी दोनों ही बहुत ट्रोल हुए.

गायक मीका सिंह ने अपने जन्मदिन पर ड्रामा क्वीन राखी को जबरदस्ती होंठों पर चुंबन जड़ दिया था जो बाद में बहुत चर्चा में रहा ओर इस कांड के बाद मीका की बदनामी भी बहुत हुई। हाल ही में गायक उदित नारायण ने अपनी एक प्रशंसक को औटोग्राफ की जगह होंठों पर किस कर दिया, जिस के बाद उदित की सोशल मीडिया पर बहुत खिंचाई हुई.

इसी तरह बिग बी यानी अमिताभ बच्चन ने फिल्म ‘ब्लैक’ में रानी मुखर्जी के साथ और फिल्म ‘निशब्द’ में जिया खान के साथ लिप किस किया था जिस पर बहुत बवाल हो गया था. ऐसे ही डाइरैक्टर महेश भट्ट ने अपनी बेटी पूजा भट्ट के साथ जब एक मैग्जीन के कवर के लिए लिप टू लिप किस दिया, तो उस दौरान बापबेटी दोनों की बहुत बेइज्जती हुई थी.

चुंबन पर बनने वाले हिट गाने

चुंबन पर कई सारे गाने बने हैं जो काफी लोकप्रिय हुए हैं जैसे शिल्पा शेट्टी पर फिल्माया गीत ‘एक चुम्मा तू मुझ को उधार दे दे और बदले में यूपी बिहार ले ले…’ इमरान हाशमी और मल्लिका शेरावत पर फिल्माया गाना ‘भीगे होंठ तेरे प्यासा दिल यह मेरा…’ सलमान खान पर फिल्माया गाना ‘जुम्मे की रात है चुम्मे की रात है…’ अमिताभ बच्चन पर फिल्माया गाना ‘जुम्मा चुम्मा दे दे…’ वगैरा.

आज भले ही फिल्मों में या पब्लिकली मौडर्न जमाने के होने की वजह से चुंबन देना आम बात हो, लेकिन कुछ साल पहले एक समय ऐसा भी था जब किस सीन को फिल्माने के लिए फूलों से फूल टकराए जाते थे या पंछियों को चोंच लड़ाते हुए दिखा दिया जाता था. इतना ही नहीं सेंसर भी चुंबन दृश्यों पर कैंची चला देती थी. चुंबन पर बवाल के पीछे खास वजह यही है कि भले ही हम आज 21वीं सदी में जी रहे हों लेकिन आज भी हमारे यहां पर हाथ मिलाने से ज्यादा हाथ जोड़ने और पैर छूने की परंपरा है.

आज भी भारत में लोग अपने मांबाप के सामने इंटिमेट सीन या चुंबन दृश्य एकसाथ बैठ कर नहीं देखते.

ऐसे में निष्कर्ष यही निकलता है कि चुंबन जो प्यार की निशानी है, प्यारभरे रिश्ते की शुरुआत का पहला कदम है, वह सब के सामने करना सभ्यता के खिलाफ माना जाता है, क्योंकि आज भी हमारा समाज प्यारमोहब्बत के ऐसे लमहों को सब के सामने बेशर्मी मानता है, उन के हिसाब से परदे के पीछे रहने वाली चीजें सब के सामने करना असभ्यता और बेशर्मी की निशानी है. प्रेमीप्रेमिका के बीच लिप टू लिप किस बुरा नहीं है बशर्ते वह बेशर्मी की हद पार न करें. यही वजह है कि 21वीं सदी में भी चुंबन दृश्यों को ले कर हमेशा बवाल हो जाता है जबकि वह सब के सामने और पब्लिकली होता है.

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