मंगेत्तर और पति से जुड़ी प्रौब्लम का जवाब दें?

सवाल-

मैं विवाहित युवती हूं. हमारे विवाह को अभी सिर्फ 1 साल हुआ है. मेरे पति कहते हैं कि सहवास करते समय उन्हें किसी प्रकार की आनंदानुभूति नहीं होती. बताएं मैं क्या करूं? मेरी तो कुछ समझ में नहीं आता.

जवाब-

आप सहवास करने से पहले परस्पर प्रेमालाप करें. समागम से पहले एकदूसरे की कामोत्तेजना बढ़ाने के लिए चुंबन, आलिंगन आदि कामक्रीडाएं यानी फोरप्ले करें. इन रतिक्रीडाओं से आप दोनों की ही कामोत्तेजना में वृद्धि होगी. उस के बाद जब आप सहवास करेंगे तो यकीनन आप दोनों को आनंदानुभूति होगी.

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मेरी सगाई हो चुकी है.6 महीने बाद शादी है. होने वाले पति का घर सुखीसंपन्न है. पर एक बात के लिए मैं मुश्किल में हूं. मंगेतर शादी पूर्व ही शारीरिक संबंध के लिए जोर दे रहा है. मैं विवाहपूर्व यह सब नहीं चाहती, मगर मंगेतर का कहना है कि विवाह तय हो चुका है तो खतरा किस बात का है? मंगेतर मिलने बुलाता है तो डर लगता है. मैं क्या करूं?

विवाहपूर्व शारीरिक संबंध के कई खतरे हैं. भले ही आप लोगों की शादी तय हो चुकी है पर फिर भी मंगेतर की जिद पर आप उन्हें समझाएं कि मात्र 6 महीने ही तो शेष हैं, जो जल्दी ही बीत जाएंगे. इस से पूर्व संबंध बनाना उचित नहीं है. इस के अलावा विवाह को ले कर वरवधू में एक रोमांच होता है, वह विवाहपूर्व संबंध स्थापित कर लेने से जाता रहेगा. समझदारी से काम लेंगी तो मंगेतर मान जाएंगे.

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‘‘नहीं, आज नहीं,’’ अजय ने जैसे ही भारती को अपने करीब खींचने की कोशिश की, भारती ने झट से उसे पीछे धकेल दिया.

‘‘यह क्या है? कुछ समय से देख रहा हूं कि जब भी मैं तुम्हारे पास आना चाहता हूं, तुम कोई न कोई बहाना बना कर दूर भागती हो. क्या अब मुझ में दिलचस्पी खत्म हो गई है?’’ अजय ने क्रोधित स्वर में पूछा.

‘‘मुझे डर लगता है,’’ भारती ने उत्तर दिया.

‘‘2 बच्चे हो गए, अब किस बात का डर लगता है?’’ अजय हैरान था.

‘‘इसीलिए तो डर लगता है कि कहीं फिर से प्रैग्नैंट न हो जाऊं. तुम से कहा था कि मैं औपरेशन करा लेती हूं, पर तुम माने नहीं. तुम गर्भनिरोधक का इस्तेमाल करना पसंद नहीं करते, इसलिए मैं किसी किस्म का रिस्क नहीं लेना चाहती हूं.’’

भारती की बात सुन कर अजय दुविधा में पड़ गया कि पत्नी कह तो ठीक रही है, लेकिन वह भी क्या करे? उसे कंडोम का इस्तेमाल करना पसंद नहीं था. उसे लगता था कि इस से सहवास का मजा बिगड़ जाता है, जबकि भारती को लगता था कि अगर वे कोई कौंट्रासेप्टिव इस्तेमाल कर लेंगे तो यौन संबंधों का वह पूरापूरा आनंद उठा सकेगी.

अब सुजाता की ही बात लें. उस का बेटा 8 महीने का ही था कि उसे दोबारा गर्भ ठहर गया. उसे अपने पति व स्वयं पर बहुत क्रोध आया. वह किसी भी हालत में उस बच्चे को जन्म देने की स्थिति में नहीं थी, न मानसिक न शारीरिक रूप से और न ही आर्थिक दृष्टि से. पहले बच्चे के जन्म से पैदा हुई कमजोरी अभी तक बनी हुई थी, उस पर उसे गर्भपात का दर्द झेलना पड़ा. वह शारीरिक व मानसिक तौर पर इतनी टूट गई कि उस ने पति से एक दूरी बना ली, जिस की वजह से उन के रिश्ते में दरार आने लगी. जब पति कंडोम का इस्तेमाल करने को राजी हुए तभी उन के बीच की दूरी खत्म हुई.

पूरी खबर पढ़ने के लिए- कौंट्रासेप्टिव सैक्सुअल : आनंद की चाबी

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दुख भरे दिन बीत रे

वरुण समुद्र के किनारे पत्थर पर बैठा विचारों में डूबा हुआ चुपचाप अंधेरे में समुद्र के ठाठें मारते पानी को घूर रहा था. समुद्र की लहरें जब किनारे से टकरातीं तो कुछ क्षण उस के विचारों का तारतम्य अवश्य टूटता मगर विचार थे कि बारबार उसे अपने पंजों में जकड़ लेते. वह सोच रहा था, आखिर, कैसे पार पाए वह अपने जीवन की इस छोटी सी साधारण लगने वाली भीषण समस्या से.

बात बस, इतनी सी थी कि उस की मां व पत्नी में जरा भी नहीं बनती थी. आएदिन छोटीछोटी बातों पर घर में महाभारत होता. कईकई दिन तक शीतयुद्ध चलता और वह घड़ी के पेंडुलम की तरह मां व पत्नी के बीच में झूलता रहता.

दोनों ही न समझ पातीं कि उस के दिल पर क्या गुजर रही है. दोनों ही रिश्ते उसे कितने प्रिय हैं. मां जब सुमी के लिए बुराभला कहतीं तो उसे मां पर गुस्सा आता और सुमी जब मां के लिए बुराभला कहती तो उसे उस पर गुस्सा आता. मगर वह दोनों पर ही गुस्सा न निकाल पाता और मन ही मन घुटता रहता. उस के मानसिक तनाव व आफिस की परेशानियों से किसी को कोई मतलब न था.

सासबहू के झगड़े का मुद्दा अकसर बहुत साधारण होता. हर झगड़े की जड़ में बस, एक ही बात मुख्य थी और वह थी अधिकार की.

मां अपना अधिकार छोड़ना नहीं चाहती थीं और सुमी आननफानन में, कम से कम समय में अपना अधिकार पा लेना चाहती थी. दोनों आपस में जुड़ने के बजाय वरुण से ही जुड़ी रहना चाहती थीं. न मां बड़ी होने के नाते उदारता से काम लेतीं न सुमी छोटी होने के नाते मां के अहं को मान देती.

आज भी वह दोनों के झगड़ों से तंग आ कर यहां आ बैठा था. उस का मन घर जाने को बिलकुल नहीं हो रहा था. उस ने घड़ी पर नजर डाली. रात के 10 बज रहे थे. क्या करे क्या न करे…वह गहरी उधेड़बुन में था. कुछ तो करना ही होगा. सारी जिंदगी ऐसे तो नहीं गुजारी जा सकती. कल उस का बेटा सोनू बड़ा होगा तो क्या संस्कार सीखेगा वह…

इसी उधेड़बुन में डूबताउतराता हुआ वरुण घर आ गया. उसे घर आतेआते 11 बज गए. देर से आने के कारण मां व सुमी दोनों ही चिंतित थीं.

दोनों का एक ही संबल, एक ही आधार फिर भी एकदूसरे से न जाने क्यों प्रतिस्पर्धा है इन्हें. यही सब सोचता हुआ वरुण दोनों के चिंतित चेहरों पर एकएक नजर डालता हुआ सोने चला गया.

सुमी एक बार उस के बेडरूम में आई थी लेकिन आज उस की बदली हुई कठोर मुखमुद्रा देख कर वह लौट गई. वरुण चादर तान कर भूखा ही सो गया.

थोड़ी देर बाद सुमी बेडरूम में चुपचाप आ कर लेट गई. उस का रोज का क्रम था कि वह बेडरूम में आ कर दिन भर की घटना पर चर्चा करती, रोती, ताने कसती. वरुण उसे मनाता, समझाता. लेकिन आज उस का सुमी से बात करने का बिलकुल भी मन नहीं था. सोचने लगा, आखिर कब तक वह यही सब करता रहेगा. 5 साल पूरे हो गए उस के विवाह को, अब तो मां व सुमी को आपस में समझौता करना आ जाना चाहिए.

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मगर आज वरुण को एक बात का एहसास हो गया था कि उस की कठोर मुखमुद्रा देख कर मां व सुमी दोनों ने ही उस से एक भी शब्द नहीं कहा था. वह आत्मविश्लेषण करने लगा कि कहीं यह उस की स्वयं की कमजोरी तो नहीं, जिस की वजह से बात बिगड़ रही है.

वह दोनों को एकसाथ खुश रखना चाहता

है. इसलिए वह मां की सुख- सुविधाओं का खुद ध्यान रखता है. मां की सेवा व उन्हें खुश रखना वह अपना फर्ज भी समझता है. शायद इसलिए मां के प्रति सुमी के हृदय में कर्तव्य व जिम्मेदारी

की भावना विकसित नहीं हो पाई बल्कि उस का स्थान ईर्ष्याजनित प्रतिस्पर्धा ने ले लिया.

सुमी भी उस की कमजोर रग है. वह उस की नाराजगी ज्यादा दिन बरदाश्त नहीं कर पाता इसलिए मां की तरफ से वह उसे खुद ही मनाता रहता है.

मगर मां चाहती हैं कि वह सुमी की गलतियों के कारण उस के प्रति उदासीन रहे, उसे टोके. जबकि वह उस की कमियों के साथ समझौता करना चाहता है. दोनों में उसे अपने पक्ष में करने की होड़ सी है.

लेकिन आज की घटना व अपने रुख से उसे लग रहा था कि उसे दोनों के बीच से हट जाना चाहिए. उस का दोनों को खुश करने की कोशिश करने वाला रुख उन्हें एकदूसरे से अलग करता है. जब वह दोनों के प्रति एकसाथ तटस्थ हो जाएगा तो शायद दोनों उस से जुड़ने के बजाय एकदूसरे से जुड़ने की कोशिश करेंगी. बहाव जब एक तरफ रुकेगा तो दूसरी तरफ बहेगा ही.

इसी उधेड़बुन में रात बीत गई. सुबह चाय का इंतजाम किए बिना वह उठ कर बाथरूम चला गया और नित्यकर्म से निबट कर अखबार पढ़ने लगा. अखबार पढ़ कर वह तैयार होने चला गया और तैयार हो कर आया तो सुमी ने मेज पर नाश्ता लगा दिया. उस ने चुपचाप नाश्ता किया मगर सुमी की तरफ देखा तक नहीं. फिर अपना बैग उठाया और दोनों से कोई बात किए बिना आफिस चला गया.

दूसरा दिन भी ऐसा ही बीता. सुमी ने सोचा, शायद रात को शारीरिक इच्छा के हाथों वह मजबूर हो जाएगा. लेकिन उस ने अपनी इच्छाशक्ति से स्वयं को तटस्थ बनाए रखा.

4-5 दिन इसी तरह बीत गए. उसकी तरफ से बातचीत के कोई आसार न देख कर सासबहू दोनों ने आपस में अब थोड़ा- बहुत बातचीत करना शुरू कर दिया था.

अगले दिन आफिस जाने से  पहले वह नाश्ता कर रहा था कि मां उस की बगल वाली कुरसी पर आ कर बैठ गईं और कराहती हुई बोलीं, ‘‘वरुण, डाक्टर से समय ले लेता तो मुझे डाक्टर को दिखा देता. मेरी तबीयत ठीक नहीं है. लगता है बुखार है.’’

‘‘बुखार है…’’ वरुण के मुंह से तुरंत निकला लेकिन दूसरे ही पल उस ने अपनी आवाज संयत कर ली. माथा छू कर देखा, मां को सचमुच बुखार था.

वरुण का मन छटपटा उठा. मन में आया कि दफ्तर से आधे दिन की छुट्टी ले कर मां को डाक्टर को दिखा लाए, लेकिन मन मजबूत कर लिया. वह चाहता था कि मां की तबीयत खराब है तो उन्हें डाक्टर को दिखाना चाहिए, उन की देखभाल होनी चाहिए, यह जिम्मेदारी की भावना सुमी के मन में आए.

‘‘बुखार तो नहीं है, मां,’’ वरुण लापरवाही से बोला, ‘‘यों ही सर्दीजुकाम हो गया होगा. काम वाली आएगी तो उस से सर्दीजुकाम की कोई टेबलेट मंगवा लेना.’’

मां चौंक कर उसे देखने लगीं. बुखार से भी ज्यादा शायद बेटे का व्यवहार उन्हें आहत कर गया था. वरुण ने किचन के दरवाजे पर खड़ी सुमी के चेहरे को पढ़ने की कोशिश की जिस से उसे साफ नजर आ रहा था, मानो वह कह रही हो कि कितने लापरवाह हो, लेकिन उस ने कहा कुछ नहीं.

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शाम को वह जब आफिस से आया तो सीधे अपने कमरे में चला गया. रात के खाने तक उस ने मां की तबीयत के बारे में नहीं पूछा. मां अपने कमरे में बिस्तर पर लेटी थीं. रात में जब वह खाने के लिए नहीं आईं तब उस ने जैसे अचानक याद आने वाले अंदाज में सुमी से पूछा, ‘‘मां का बुखार कैसा है?’’

‘‘वैसा ही है,’’ उस ने संक्षिप्त सा उत्तर दिया.

वह देखना चाहता था कि आखिर सुमी मां की बीमारी कब तक देख सकती है. रात जब बिस्तर पर लेटा तो पलकें नहीं झपक पा रही थीं. बारबार मां पर ध्यान जा रहा था. सुमी कुहनी से आंखें ढके चुपचाप लेटी थी. मां के कमरे से कराहने की हलकी सी आवाज आ रही थी.

वरुण सोच रहा था कि अब तो मां को सुबह डाक्टर के पास ले जाना ही पड़ेगा. इधर सुमी के प्रति उस के मन में वितृष्णा का भाव जागा, ‘कितनी कठोर है यह.’

थकान के कारण वरुण को झपकी लगी ही थी कि किसी के बात करने की आवाज से आंखें खुल गईं. पलट कर देखा तो सुमी पलंग पर नहीं थी. वह धीरे से उठ कर मां के कमरे की ओर गया. मां के कमरे में रोशनी हो रही थी. उस ने परदे की ओट से अंदर झांका. देखा, सुमी मां का माथा सहला रही है.

‘‘आप का बुखार तो काफी तेज हो गया है, मांजी. यह गोली ले लीजिए,’’ कह कर सुमी ने मां को हाथ के सहारे से उठाया, गोली खिलाई और लिटा दिया. फिर खुद बगल में बैठ कर धीरेधीरे सिर दबाने लगी.

‘‘ये भी तो इतने लापरवाह हैं. ऐसी भी क्या नाराजगी है मां से. नाराज हैं तो नाराज रहते पर कम से कम डाक्टर को तो दिखा लाते,’’ सुमी कह रही थी.

‘‘ऐसा पहले तो कभी नहीं किया वरुण ने. पता नहीं इतनी नाराजगी किस बात की है. तुम से कुछ कहा?’’ मां नेपूछा.

‘‘नहीं, मुझ से तो आजकल बात ही नहीं करते. मेरे से न सही कम से कम आप से तो बात करते. मां से कहीं कोई ऐसे नाराज होता है.’’

वरुण को बेहद सुखद आश्चर्य हुआ. वह लौट कर पलंग पर आ लेटा. सोचने लगा कि पिछले 5 सालों में ऐसा कभी हुआ नहीं कि सुमी ने मां के सिरहाने बैठ कर उन का हालचाल पूछा हो. खाना, नाश्ता, चाय जैसे उस के लिए बनाया वैसे ही मां को दे दिया और बस, कर्तव्यों की इतिश्री हो गई.

वरुण सुबह जब अखबार पढ़  रहा था तो सुमी उस के पास आ कर बैठ गई और बोली, ‘‘सुनो, आप आफिस जाने से पहले मां को डाक्टर को दिखा लाओ. उन का बुखार बढ़ रहा है. सर्दी लग गई है शायद…’’

‘‘मुझे फुरसत नहीं है. बदलता मौसम है,’’ वह लापरवाही से बोला, ‘‘सर्दी- जुकाम 2-4 दिन में अपनेआप ठीक हो जाएगा. मां भी तो बस, छोटीछोटी बातों से परेशान हो जाती हैं.’’

‘‘कैसे बेटे हो तुम,’’ सुमी रोष से बोली, ‘‘उन का बुखार पूरी रात नहीं उतरा. बूढ़ा शरीर कब तक इतना बुखार सहन करता रहेगा.’’

‘‘मुझे आज आफिस जल्दी जाना है. शाम को जल्दी आ गया तो दिखा दूंगा,’’ कह कर वरुण ने अखबार फेंका और उठ खड़ा हुआ.

‘‘कैसी बात कर रहे हैं आप. मां को डाक्टर को दिखाना क्या जरूरी काम नहीं?’’ सुमी सख्ती से बोली.

‘‘मेरा सिर मत खाओ. वैसे ही आफिस की सौ परेशानियां हैं. जल्दी से नाश्ता लगाओ, मुझे आफिस जाना है,’’ कह कर वरुण बाथरूम में घुस गया.

सुमी का चेहरा गुस्से से लाल हो गया. उस ने उलटासीधा नाश्ता बना कर मेज पर लगा दिया.

तैयार हो कर वरुण नाश्ता कर के आफिस चला गया, मगर ध्यान मां पर ही लगा हुआ था. आफिस पहुंच कर उस ने फोन पर डाक्टर से समय लिया.

आफिस से घंटे भर की छुट्टी ले कर वह घर आ गया.

अपने फ्लैट के दरवाजे पर पहुंच कर वह जैसे ही कालबेल बजाने को हुआ कि बगल वाले फ्लैट का दरवाजा खुल गया. पड़ोसिन शालिनी बोली, ‘‘भाई साहब, सुमी तो माताजी को ले कर डाक्टर के पास गई है.’’

‘‘डाक्टर के पास…’’ वरुण चकित रह गया, ‘‘सोनू को भी ले गई?’’

‘‘नहीं, सोनू तो मेरे पास सो रहा है.’’

वरुण पल भर खड़ा रहा. फिर जैसे ही चलने को हुआ वह बोल पड़ी, ‘‘आप चाहें तो अंदर बैठ कर इंतजार कर लीजिए.’’

‘‘नहींनहीं, बस, ठीक है. मैं आफिस जा रहा हूं. मुझे कुछ जरूरी कागज लेने थे,’’ कह कर वरुण सीढि़यां उतर गया.

वरुण पता नहीं क्यों आज खुद को इतना हलकाफुलका महसूस कर रहा था. सुमी को अपनी जिम्मेदारियां निभानी आती हैं, पर शायद मां के प्रति उस के बेहद समर्पित भाव ने उसे अलग छिटका दिया था. जब वरुण की लापरवाही देखी तो उसे अपनी जिम्मेदारियों का एहसास हो गया.

शाम को जब वरुण घर आया तो मां आराम से अपने कमरे में सो रही थीं. उस ने अपनी तरफ से कुछ न पूछा. वह तटस्थ ही बना रहा. 3-4 दिन में मां बिलकुल ठीक हो गईं. इस दौरान सुमी ने मां की बहुत देखभाल की. रात में जागजाग कर वह मां का कई बार बुखार देखती थी. एक तरफ छोटा सोनू उसे चैन न लेने देता, दूसरी तरफ मां की देखभाल, सुमी पर काम का बहुत बोझ बढ़ गया था.

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वरुण का दिल करता उसे सीने से लगा ले. उस पर बहुत प्यार आता. उस के मन से सुमी के प्रति सारी नफरत खत्म हो गई थी लेकिन उस ने भरसक प्रयास कर खुद को तटस्थ ही बनाए रखा.

एक शाम मां सत्संग में गई हुई थीं. वह आफिस से आ कर बालकनी में बैठा ही था कि सुमी चाय ले कर आ गई. दोनों चुपचाप बैठ कर चाय पीने लगे.

सुमी बीचबीच में छिटपुट बात करने की कोशिश कर रही थी, पर वह ‘हूं…हां’ में ही जवाब दे रहा था.

‘‘सुनो,’’ अचानक सुमी बोली, ‘‘मुझ से बहुत नाराज हो क्या?’’

उस की आवाज नम थी. उस ने अचकचा कर सुमी के चेहरे पर नजर डाली, आवाज की नमी आंखों में भी तैर रही थी लेकिन चेहरा अपनी जिम्मेदारियां निभाने के कारण आत्म- विश्वास से दमक रहा था. बहू की तरफ से इतनी देखभाल होने के कारण मां से जो प्यार व स्नेह उसे मिल रहा था उस से वह खुश थी और उसे पूर्ण विश्वास था कि वरुण भी मन ही मन उस से जरूर खुश हुआ होगा. लेकिन शायद इस बात को वह उसी के मुंह से सुनना चाहती थी, मगर प्रत्यक्ष में वरुण ने स्वयं को अप्रभावित ही दिखाया.

‘‘नहीं तो.’’

‘‘तो फिर ऐसे क्यों रहते हो. आप ऐसे अच्छे नहीं लगते,’’ भरी आंखों से उस की तरफ देख कर सुमी मुसकरा पड़ी.

‘‘जो हुआ उसे भूल जाओ न. आगे से नहीं होगा,’’ वरुण ने धीरे से उस के हाथों के ऊपर अपना हाथ रख दिया और प्यार से सुमी की तरफ देखा. वह आगे कुछ कहता इस से पहले ही कालबेल बज उठी.

‘‘लगता है मां आ गईं,’’ कह कर सुमी दरवाजा खोलने चली गई.

मां आ गई थीं. उन्हें शायद पता नहीं था कि वरुण आफिस से आ गया है. वह सुमी को सत्संग का विवरण सुनाने लगीं. सुमी भी पूरी दिलचस्पी से सुन रही थी, साथ ही साथ चाय बना रही थी.

वरुण के विवाह के बाद शायद यह पहला मौका था जब उस ने मां व सुमी को ऐसे मांबेटी की तरह घुलमिल कर बातें करते देखा होगा. उस की नाराजगी व तटस्थता की वजह से दोनों एकदूसरे के नजदीक आ गई थीं.

वरुण चाहता था कि जैसे सुमी को अपनी जिम्मेदारियों का एहसास हुआ है वैसे ही मां को भी एहसास हो कि सुमी उन की बेटी है. उस के सुखदुख की परवा करना उन का कर्तव्य है. एक मां की तरह उसे बेटी समझ कर उस की कमजोरियों व गलतियों को नजरअंदाज करना भी उन के लिए जरूरी है. समय के साथ सुमी कई काम अपनेआप सीख जाएगी. सभी धीरेधीरे परिपक्व हो जाते हैं, वह भी हो जाएगी.

जल्दी ही वह क्षण भी आ गया. वरुण आफिस के लिए निकल रहा था. सुमी सोनू के साथ बाथरूम में थी.

बाहर निकलते हुए उसे किचन में गैस पर रखी दूध की पतीली दिख गई. दूध उबलउबल कर फैलता जा रहा था.

सुमी अकसर ही दूसरे कामों में उलझ कर या सोनू के साथ उलझ कर गैस पर रखे दूध का खयाल भूल जाती थी और वरुण देख कर भी नजरअंदाज कर देता था, लेकिन मां देख लेतीं तो कुहराम मचा देतीं. ऐसी छोटीमोटी गलतियों पर सुमी को कोसने का मौका वह कभी नहीं चूकतीं. वह तब तक कोसती रहतीं जब तक झगड़ा नहीं हो जाता.

किसी और दिन की बात होती तो वरुण गैस बंद कर के सुमी को बता कर चुपचाप आफिस चला जाता और सुमी भी चुपचाप किचन साफ कर देती, लेकिन उस दिन वह जोर से चिल्ला पड़ा, ‘‘सुमी…’’

वरुण की आवाज इतनी तेज थी कि सुमी व मां एकसाथ आ कर उस के सामने खड़ी हो गईं.

‘‘क्या हुआ?’’ दोनों एकसाथ बोल  पड़ीं.

‘‘वहां किचन में देखो क्या हुआ. तुम रोजाना ही गैस पर कुछ न कुछ रख कर भूल जाती हो. तुम्हारी लापरवाही से तो मैं तंग आ गया. अगर थोड़ी देर और रह जाता तो आग लग जाती. पतीली का दूध सारा का सारा उबल कर गिर गया. क्या करती रहती हो दिन भर…बाकी काम तुम बाद में नहीं कर सकतीं.’’

सुमी के मुंह से एक शब्द भी न निकला. उस ने 5 साल में पहली बार वरुण की इतनी ऊंची व क्रुद्ध आवाज सुनी थी. वह बुरी तरह से अपमानित हो उठी. मां के सामने तो और भी ज्यादा.

उमड़ते हुए आंसुओं को दबाते हुए वह किचन में चली गई और दूध साफ करने लगी, लेकिन सुमी की हर गलती व लापरवाही पर हमेशा बखेड़ा खड़ा करने वाली मां चुप रह गईं और उलटा वरुण पर ही बरस पड़ीं.

‘‘कैसे चिल्ला कर बात कर रहा है, वरुण. ऐसे कोई बोलता है पत्नी से. अरे, छोटे बच्चे के साथ इतने काम होते हैं कि लापरवाही हो ही जाती है. तुझे तो आजकल पता नहीं क्या हो गया है. न सीधे मुंह बात करता है न हंसताबोलता है, जब देखो, गुस्से में भरा बैठा रहता है. एक औरत के लिए दिन भर के घरगृहस्थी के कितने काम होते हैं आदमी क्या जाने…’’ मां बड़बड़ाती जा रही थीं और साथ ही सुमी की मदद भी करती जा रही थीं.

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मां की तरफदारी से सुमी रो पड़ी. वह उस के आंसू पोंछती हुई बोलीं, ‘‘तू इस की परवा मत किया कर. इसे तो सचमुच कुछ हो गया है. दिन भर बीवी घरगृहस्थी में खटती रहती है पर यह नहीं होता कि हंस कर जरा दो बात कर ले, शाम को थोड़ी देर बीवीबच्चे को कहीं घुमा लाए.’’

यह सुन कर तो वरुण चकित रह गया. कुछ सोचता हुआ सा सीढि़यां उतरने लगा.

यही मां उन दोनों के घूमने जाने पर अकसर कोई न कोई ताना मार देती थीं और उन का मूड खराब हो जाता था, आज वही मां उसे बीवी को न घुमाने के लिए डांट रही थीं. उसे लगा उस का जीवन खुशियों के इंद्रधनुषी रंगों से सराबोर हो गया.

सीढि़यों से उतरते हुए उस का ध्यान एक पुराने गीत ‘दुख भरे दिन बीते रहे भैया…’ के बजने की आवाज में खो कर रह गया जो किसी फ्लैट से आ रही थी.

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भेदभाव समाज के लिए घातक

स्कूली लड़कियां हों या प्रौढ़ महिलाएं, इसलाम मानने का अर्थ यह नहीं कि आज 21वीं सदी में भी 8वीं सदी के पहनावे पर जोर दिया जाए. भारतीय जनता पार्टी की आपत्ति सिर्फ हिंदूमुसलिम विवाद भड़काने को ले कर है पर असल में हिजाब की अनिवार्यता हर जगह गलत है.

हिजाब अगर सौंदर्य और ड्रैस सैंस का हिस्सा होता तो बात दूसरी थी या इस का हैलमेट की तरह कोई फायदा होता तो माना जा सकता था पर सिर्फ इसलिए कि इसलाम कहता है, उसे पहना जाए और बच्चों पर भी लागू किया जाए, गलत है.

कर्नाटक में सरकारी स्कूलों में हिजाब पहन कर आने पर आपत्ति करना अपनेआप में गलत नहीं है. असल में न तो तिलक की परमीशन होनी चाहिए, न बिंदी की. औरतों को अपना धर्म प्रदर्शित करने की हर कंपलशन का जम कर विरोध होना चाहिए. फ्रांस ने वर्षों से इस हिजाब पर बैन लगा रखा है जो असल में मुसलिम औरतों के लिए एक राहत है क्योंकि उन के कट्टरपंथी घर वाले धर्म के आदेश के हिसाब से उन पर जबरदस्ती नहीं थोप सकते.

कठिनाई यह है कि इस हिजाब का विरोध मुसलिम औरतों की ओर से नहीं हो रहा, उन हिंदू कट्टरपंथियों द्वारा किया जा रहा है जो हर तरह का बहाना ढूंढ़ कर हिंदूमुसलिम खाई को चौड़ा करना चाहते हैं और हिंदू जनता को भरमाना चाहते हैं कि देखो हम ने मुसलमानों को सीधा कर के रख रखा है वरना ये हावी हो जाते.

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यह भेदभाव वाली भावना देश और समाज के लिए घातक है. जब आप हिंदूमुसलिम दीवारें बनाएंगे तो दलित, पिछड़ों की दीवारें भी बनने लगेंगी और यही नहीं ब्राह्मण, क्षत्रिय, बनियों के बीच भी ऊंचेनीचे गोत्र की दीवारें भी बन जाएंगी. मुंबई शहर की किसी भी हाउसिंग सोसायटी में चले जाएं और लगे नामों की लिस्ट पढ़ने लगें, तो आमतौर पर एक ही जाति के लोगों के नाम दिखेंगे.

प्रेम होते ही मांबाप सब से पहला सवाल यह पूछते हैं कि लड़के या लड़की का धर्म, जाति उपजाति, गोत्र क्या है? वह क्या पढ़ रहा है, क्या कमा रहा है, मांबाप कैसे हैं, व्यवहार कैसा है जैसे सवाल बाद में जातेआते हैं.

हिजाब पहन कर स्कूल या कालेज आने वाली लड़कियों पर एकदम कट्टरपंथी और अलग होने का ठप्पा लग जाएगा. ऐसा ठप्पा हिंदू लड़के भी लगा कर आते हैं जब वे जाति के अनुसार लाल या सफेद टीका लगा कर आते हैं.

लड़कियां आमतौर पर बिंदी ही लगाती हैं, इसलिए अगर हिजाब नहीं पहन रखा तो धार्मिक पहचान का प्रदर्शन नहीं होता. हां, लड़कियां हाथों में 3-4 रंगों से कलेवा बांधे रहती हैं जो स्कूल में भी नहीं चलना चाहिए. आमतौर पर ईसाई लड़कियां क्रौस का लौकेट गले में लटकाए रखती हैं जो हिजाब की तरह धर्म की घोषणा होता है. बच्चों को धार्मिक हथियार बना कर उन्हें कुछ सोचनेसमझने से पहले पाखंड और रस्मोंरिवाजों के जंजाल में उलझा दिया जाता है.

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हिजाब को जीवनभर ढोना एक बोझ है और मुसलिम देशों में तो छोडि़ए, यह पश्चिमी देशों में पहुंची मुसलिम औरतों पर भी उन के परिवार थोप देते हैं. धार्मिक आजादी के नाम पर बहुत सी लड़कियां इसे काम की जगह बाजारों में, थिएटरों में पहला हक समझती हैं. यह आदत नहीं है, जरूरत नहीं है, कोरी हठधर्मी है जो इसलामी कानूनों और रिवाजों को थोपने वालों की देन है. यही लोग पुरुषों को दाढ़ी रखने और खास तरह स्कल कैप पहनने को मजबूर करते हैं और दूर से अलगाव की भावना को पैदा रखते हैं. किसी धर्म ने कभी किसी समाज का कल्याण नहीं किया है. धर्म के नाम पर सिर्फ खून हुआ है, अपनों का भी और विधर्मियों का भी. लड़कियों को स्कूली दिनों में इस विवाद में धकेलना सब से बड़े अफसोस की बात है.

Holi Special: फैमिली के लिए बनाएं कुरकुरी कमल ककड़ी

फैमिली के लिए टेस्टी और हेल्दी डिश बनाना काफी मुश्किल है. लेकिन आज हम आपको कुरकुरी कमल ककड़ी की रेसिपी के बारे में बताएंगे, जिसे आप फैमिली के लिए आसानी से बना सकते हैं.

सामग्री

– 500 ग्राम कमल ककड़ी

– 1 बड़ा चम्मच शहद

– 1 छोटा चम्मच सिरका

– 1 बड़ा चम्मच सफेद तिल

– 1 छोटा चम्मच देगीमिर्च

– तेल तलने के लिए

– 1 बड़ा चम्मच चावल का आटा

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– थोड़ी सी धनियापत्ती

– 2-3 हरीमिर्चें

– 1 बड़ा चम्मच शेजवान सौस

– एकचौथाई कप हरे प्याज के पत्ते

– 1 बड़ा चम्मच अदरकलहसुन का पेस्ट

– नमक स्वादानुसार.

विधि

कमल ककड़ी को छील कर तिरछे टुकड़ों में काट लें. इन्हें नमक मिले पानी में कुछ देर भिगो दें. फिर पानी निकाल दें. एक कड़ाही में तेल गरम कर कमल ककड़ी के टुकड़ों पर चावल का आटा मिला सुनहरा होने व गल जाने तक धीमी आंच पर तलें. एक दूसरे पैन में 1 चम्मच तेल गरम कर अदरकलहसुन का पेस्ट डाल कर कुछ देर भूनें. तली कमल ककड़ी डालें. सारी सौस और मसाले डाल कर अच्छी तरह मिलाएं. लंबाई में कटी हरीमिर्च मिलाएं. ऊपर से हरे प्याज के पत्ते व तिल बुरक कर गरमगरम परोसें.

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Anupama से लेकर अक्षरा तक, ITA अवौर्ड्स में दिखा एक्ट्रेसेस का जलवा

बौलीवुड हो या टीवी हसीनाएं, इन दिनों फैशन का जलवा हर कहीं देखने को मिलता है. सीरियल की दुनिया से लेकर रियल लाइफ तक एक्ट्रेसेस का फैशन सुर्खियों में रहता है. इसी बीच हाल ही में हुए एक अवौर्ड शो में टीवी हसीनाओं का फैशन देखने को मिला. जहां अनुपमा एक्ट्रेस रुपाली गांगुली ने इंडियन अवतार में फैंस का दिल जीता तो वहीं अक्षरा के रोल में नजर आने वाली प्रणाली ठाकुर ने वेस्टर्न लुक में सुर्खियां बटोरी. आइए आपको दिखाते हैं अवौर्ड नाइट में कैसा था टीवी हसीनाओं का अवतार…

अनुपमा ने जीता फैंस का दिल


हाल ही में हुए आईटीए अवौर्ड्स में अनुपमा एक्ट्रेस रुपाली गांगुली ने एक खिताब अपने नाम किया. वहीं लुक की बात करें तो वह ब्लैक और डार्क ग्रीन कलर के लहंगे में पहुंची, जिसे देखकर फैंस हैरान हैं. वहीं उनके लुक की तारीफें करते नजर आ रहे हैं.

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मौर्डन अंदाज में दिखीं अक्षरा

अनुपमा के अलावा सीरियल ये रिश्ता क्या कहलाता है कि अक्षरा यानी प्रणाली ठाकुर भी इस अवौर्ड शो में पहुंची. जहां वह वेस्टर्न अंदाज में नजर आईं. औफ शोल्डर टौप के साथ वाइट पैंट को गाउन जैसा लुक देकर प्रणाली बेहद खूबसूरत लग रही थीं.

हिना खान का दिखा हौट अंदाज

 

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इसके अलावा एक्ट्रेस हिना खान भी अवौर्ड शो में हौटनेस के जलवे बिखेरती नजर आईं. ब्लैक कलर के औफ शोल्डर वाले आउटफिट में हिना खान का अंदाज बेहद खूबसूरत लग रहा था. वहीं सोशलमीडिया पर फैंस उनके लुक की तारीफें करते हुए नजर आ रहे हैं.

बबीता जी भी नहीं रहीं पीछे

इसी के साथ तारक मेहता का उलटा चश्मा की बबीता जी यानी मुनमुन दत्ता भी जेठालाल यानी दिलीप जोशी के साथ पहुंची. इस दौरान वह वाइट थाई स्लिट गाउन में नजर आईं. इस लुक में बबीता जी बेहद एलीगेंट लग रही थीं. वहीं फैंस उनके इस लुक को निहारते हुए नजर आए.

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जिद्दी पत्नी से कैसे निभाएं

पत्नियों की जिद का खमियाजा पतियों को कैसेकैसे भुगतना पड़ता है इस का सटीक उदाहरण सीता की वह जिद है जिस के चलते वह खुद तो रावण की कैद में रही ही, साथ ही पति राम और देवर लक्ष्मण को भी जोखिम में डाल दिया. किस्सा बहुत प्रचलित है कि वनवास के दौरान सीता ने जंगल में सोने का हिरण देखा और जिद पकड़ बैठी कि मु  झे वह चाहिए.

मर्यादापुरुषोत्तम कहे जाने वाले राम ने लाख सम  झाया, लेकिन उन की एक नहीं चली. लिहाजा वे दौड़ पड़े मारीच नाम के हिरण के पीछे. फिर इस के बाद जो हुआ उसे रामायण न पढ़ने वाले भी जानते हैं कि रामरावण युद्ध में लाखों लोग मारे गए.

सीता की इस जिद को समीक्षक और टीकाकार भले ही भगवान की लीला बताते भक्तों को ठगते रहें, लेकिन इस सवाल का जवाब वे भी नहीं ढूंढ़ पाए कि आखिर निर्जन वन में एक स्त्री का स्वर्णप्रेम क्यों इतना परवान चढ़ा कि उस ने पुत्र समान अपने देवर पर भी चारित्रिक लांछन तक लगा दिया.

त्रेता युग से ले कर आज तक पत्नियों की जिद में कोई खास बदलाव नहीं हुआ है. उन्हें इस बात से आज भी कोई सरोकार नहीं कि उन की बेजा जिद पति और परिवार पर कितनी भारी पड़ती है. उन्हें तो बस जो चाहिए उसे पाने के लिए वे कुछ भी करने को तैयार रहती हैं. कभीकभी तो लगता है कि पतियों को मुश्किल में डालना ही उन की प्राथमिकता रहती है.

आज की सीता

भोपाल के आनंद नगर इलाके में रहने वाली 22 वर्षीय पूजा आर्य की जिद किसी सीता से कम नहीं कही जा सकती. फर्क बस इतना था कि उसे अकल्पनीय सोने का हिरण नहीं बल्कि क्व15 हजार वाला खास ब्रैंड का एक मोबाइल फोन चाहिए था. पूजा का पति विशाल रेलिंग लगाने का कारोबार करता है. उस की आमदनी या हैसियत कुछ भी कह लें इतनी नहीं थी कि वह पूजा की पंसद का महंगा मोबाइल फोन खरीद पाता.

लिहाजा उस ने पूजा को सम  झाया. कम आमदनी और बढ़े खर्चों के साथसाथ महंगाई और मोबाइल की उपयोगिता का हवाला भी दिया लेकिन पूजा के कान पर जूं तक नहीं रेंगी. वह भी सीता की तरह जिद पर अड़ गईर् कि लूंगी तो क्व15 हजार वाला मोबाइल ही नहीं तो…

जिद ने उजाड़ दी दुनिया

बीती 11 जुलाई को विशाल ने मोबाइल फोन की जरूरत सम  झते हुए बाजार से क्व7 हजार की कीमत वाला फोन खरीद कर पूजा की दे दिया. बात पूजा को नागवार गुजरी तो वह पति से कलह करने लगी. इस पर विशाल को गुस्सा आना स्वाभाविक बात थी जो दिनरात मेहनत कर जैसेतैसे घर चलाता था. उस ने गुस्से में आ कर पूजा को पीट दिया. इस पर और ज्यादा गुस्साई पूजा ने डेढ़ साल की बेटी के बारे में भी नहीं सोचा और फांसी लगा कर जान दे दी.

अब विशाल सकते में है और थाने के चक्कर लगाते सफाई देता फिर रहा है कि उस ने कोई हिंसा नहीं की थी. मुमकिन है 2-4 साल में कानून के फंदे से वह छूट जाए, लेकिन तय है उसे जिंदगीभर इस बात का मलाल तो रहेगा ही कि अगर क्व8 हजार और मिला कर क्व15 हजार वाला मोबाइल ला ही देता तो पूजा बच तो जाती.

मगर इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि पूजा उस के बाद कभी महंगी चीजों की जिद नहीं करती बल्कि आशंका है कि उस की जिद और बढ़ती जाती क्योंकि उसे पति और नन्ही बेटी से ज्यादा महंगे मोबाइल से लगाव था.

कहने का मतलब यह नहीं कि जो हुआ सो ठीक हुआ बल्कि यह है कि जिद्दी पत्नियां भलाबुरा कुछ नहीं सोचतीं. पूजा को यह सम  झना चाहिए था कि मोबाइल के उपयोग का उस की कीमत से कोई खास संबंध नहीं होता और पति ने उस की मांग या इच्छा का अनादर नहीं किया बल्कि अपनी हैसियत के मुताबिक मोबाइल ला कर दिया. मगर पूजा की इस जिद के चलते बेवजह एक हंसताखेलता परिवार उजड़ गया तो इस की जिम्मेदार भी पूजा ही कही जाएगी.

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ऐसे करती हैं परेशान

जैसे राम सीता की जिद के आगे बेबस और लाचार हो गए थे वैसा ही विशाल के साथ हुआ और वैसा ही लगभग हर उस पति के साथ होता है जिसे जिद्दी पत्नी मिलती है. उन की जिद पति पूरी न करें तो वे उन का उठनाबैठना, खानापीना और सोना तक हराम कर देती हैं. और तो और उन्हें शारीरिक सुख के अपने हक से वंचित करने से भी बाज नहीं आतीं.

भोपाल के ही एक व्यापारी रिव अरोरा का रोना यह है कि उन की पत्नी जब किसी चीज की जिद पकड़ लेती है जिसे वे पूरा नहीं कर पाते तो वह हाथ नहीं लगाने देती. सब्जी में नमक ज्यादा डाल देती है और हर बात का उलटा जवाब देती है.

दिनभर अपनी दुकान में तरहतरह के ग्राहकों के सामने सिर खपा कर रोजाना क्व2-3 हजार कमाने वाले रवि की जिंदगी का दर्द हरकोई आसानी से नहीं सम  झ सकता. वह अपनी पत्नी को बेइंतहा प्यार करता है लेकिन पत्नी की जिद जब जोर पकड़ती है तो वह सिर पकड़ कर बैठ जाता है कि अब क्या करे. आखिर में मन मार कर करता यही है कि पत्नी की हर जायजनाजायज जिद पूरी कर देता है ताकि घर में सुखशांति बनी रहे.

डरते हैं पति

इसी तरह का एक और दिलचस्प मामला भोपाल में ही जिला विधिक सेवा प्राधिकरण में आया. इस मामले में पत्नी की जिद यह थी कि पति उस के कमरे में अलग टीवी लगवाए क्योंकि वह अपना पसंदीदा धारावाहिक ‘बिग बौस’ नहीं देख पाती. पत्नी की शिकायत थी कि घर में एक ही टीवी है जिस में ससुरजी अपनी पसंद का सीरियल ‘क्राइम पैट्रोल’ देखते रहते हैं.

पति ने जब नया टीवी खरीदने में असमर्थता जताई तो पत्नी ने मायके जाने की जिद पकड़ ली. पत्नियों के ‘मैं मायके चली जाऊंगी…’ वाले सनातनी हथियार से अच्छेअच्छे पति डरते हैं.

समस्या का हल नहीं

जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के सचिव आशुतोष मिश्रा ने पूरा मामला सुनने के बाद पति को आदेश दिया कि वह पत्नी के लिए 1 महीने में टीवी की व्यवस्था करे. आशुतोष मिश्रा के मुताबिक ऐसा हाल ही में एक नहीं बल्कि 3 मामलों में हुआ कि पतियों को इस बात का आदेश दिया गया कि वे पत्नियों को अलग मोबाइल व टीवी का इंतजाम करें. हालांकि पत्नियों को भी सम  झाया गया कि वे परिवार के साथ तालमेल बैठा कर चलें.

मगर यह समस्या का हल नहीं है उलटा पत्नियों की बेजा जिद को शह देने जैसी बात है. यह ठीक है कि उन की अपनी भी इच्छाएं और जरूरतें होती हैं, लेकिन देखा यह जाना चाहिए कि वे कैसी हैं और पति इन्हें पूरा करने में समर्थ हैं या नहीं.

टीवी या मोबाइल ऐसे गैजेट्स नहीं हैं जिन के बिना पत्नी का गुजारा न होता हो. हर पति की मुमकिन कोशिश रहती है कि वह पत्नी को ये चीजें ला कर दे. लेकिन बजट और आर्थिक स्थिति अच्छी न रहे तो वह कैसे इस जिद को पूरा करे? इस सवाल का जवाब यह निकलता है कि कलह और दुर्घटनाओं से बचने के लिए जरूरी है कि पति पत्नियों की जिद को ठुकराएं नहीं बल्कि मैनेज करना सीखें.

कलह नहीं कोशिश करें

पत्नी को रास्ते पर लाने के लिए अपने खर्चों और जरूरतों में कटौती करे और उसे बताए कि ऐसा वह उस की जिद या इच्छा पूरी करने के लिए कर रहा है तो भी वास्तविकता उसे सम  झ आ सकती है.

इस के बाद भी वह न माने तो उस की बात मानने के अलावा कोई रास्ता नहीं रह जाता. वह किसी तरह का असहयोग खासतौर से सैक्स में करे तो उसे चुनौती की शक्ल में न ले बल्कि कोशिश करे कि सामान्य जीवन में खलल पैदा न हो.

पत्नी अगर गुस्से में आ कर धमकियां देने लगे तो उन्हें हलके में न ले. यही वह जिद है जहां आ कर पत्नी मन ही मन अपनी बात मनवाने का फैसला ले चुकी होती है और जिद पूरी न हो तो धमकी पर अमल भी कर डालती है. नतीजा पति बेचारा फंस जाता है. पत्नी आत्महत्या भी कर सकती है, मायके भी जा सकती है और घरेलू हिंसा की रिपोर्ट लिखाने थाने भी जा सकती है, इसलिए पति सोच ले कि मुनाफे का सौदा क्या है.

आखिर में यह सोच कर तसल्ली कर ले कि जब राम की भी अपनी पत्नी के आगे नहीं चली तो उस की बिसात क्या है.

ऐसे करें मैनेज

हालांकि यह बात सोलह आने सच है कि पत्नी एक बार अगर किसी जिद पर अड़ कर उसे अहम का सवाल बना ले तो पति के पास उसे मानने के अलावा कोई रास्ता नहीं रह जाता. लेकिन अगर पति खुद भी पत्नी की जिद पूरी न कर उसे अहम और प्रतिष्ठा का सवाल बना ले तो फसाद खड़ा होना तय है, इसलिए बेहतर है कि ऐसी नौबत ही न आने दी जाए यानी तब पति इन बातों पर गौर करे:

– पत्नी की जिद पर एकदम भड़के नहीं बल्कि सब्र से उस की बात सुनें.

– शुरू में उस से सहमति भड़के नहीं बल्कि सब्र से उस की बात सुने.

– जब पत्नी बात पूरी कर ले तो कुछ देर बाद अपनी बात कहें.

– पत्नी को सम  झाए कि वह उस की भावनाओं (दरअसल में जिद) का सम्मान करता है, लेकिन हालफिलहाल पैसों की तंगी या किसी दूसरी वाजिब वजह के चलते ऐसा होना संभव नहीं.

– पत्नी को चुनौती या धमकी न दे कि वह ऐसा नहीं कर सकता. फिर भले ही वह जो चाहे सो कर ले. बात यही से बिगड़ती है.

– मिसाल अगर मोबाइल फोन की ही लें तो पत्नी को सम  झाए कि वह क्व7 हजार का हो या क्व15 हजार का उस का उपयोग या फीचर्स तो करीबकरीब समान ही रहेंगे फर्क ब्रैंड का है, जिस से सम  झौता किया जा सकता है.

– अपने और पत्नी के बीच परिवारजनों को न घसीटे न ही उन के सामने पत्नी को उस की जिद की बाबत बेइज्जत करे.

– घर से बाहर ले जा कर पत्नी को घुमाएफिराए, होटल में खाना खिलाए और तब एकांत में अपनी बात कहे कि उस की जिद पूरी करने से उसे क्या परेशानियां पेश आ रही हैं.

– पत्नी को एहसास कराए कि वह उस से बहुत प्यार करता है और खुद चाहता है कि उस की हर इच्छा पूरी करे, लेकिन वह भी सोचे कि घर की खासतौर से आर्थिक स्थिति कैसी है. एक ही बात पर बारबार कलह न करें.

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आपके बालों को नुकसान पहुंचाती है हीट, जानें कैसे

अगर बालों की सेहत काफी खराब है तो इसके पीछे कई कारण हो सकते हैं और सबसे मुख्य कारण है ब्लीच, केमिकल्स और हीट का प्रयोग करना. अगर हेयर स्टाइलिंग प्रोडक्ट का काफी ज्यादा प्रयोग करती हैं तो इसका अर्थ है आपके बालों को काफी हीट मिल रही है और उन्हें इससे बहुत नुकसान पहुंच रहा है. ब्लो ड्रायर, स्ट्रेटनर, कर्लर का प्रयोग करना बालों के लिए बहुत ज्यादा नुकसान दायक कब हो सकता है बता रही हैं काव्या कृष्णन नायर डिजाइन इंजीनियर. आइए जानते हैं .

अगर हीट निकलने वाले प्रोडक्ट्स जैसे स्ट्रेटनर, ब्लो ड्रायर और कर्ल आयरन का ज्यादा प्रयोग कर रही हैं तो बालों की दशा काफी खराब होती नजर आ रही होगी. ऐसे कुछ उपकरणों में तो तापमान नियंत्रित करने का भी विकल्प नहीं होता है. कुछ टूल्स में 400 डिग्री फारेनहाइट से भी ज्यादा तापमान पहुंच जाता है. आपको यह लग रहा होगा कि तापमान जितना ज्यादा होगा उतना ही अधिक अच्छी स्टाइलिंग भी होगी. हाई हीट से आपके बालों के केराटिन स्ट्रैंड की शेप में बदलाव देखने को मिलता है. 300 डिग्री f से अधिक तापमान ए केराटिन बालों को बी केराटिन में बदल देते है. इससे बाल कमजोर हो जाते हैं और डेमेज होने का रिस्क भी काफी बढ़ जाता है. जब बालों का केराटिन पूरी तरह से पिघल जाता है तो मॉलिक्युलर लेवल की शेप बदल जाती है और इसे दुबारा ठीक नहीं किया जा सकता है.

डेमेज बालों में मॉइश्चर की होती है कमी

हीट मिलने से बालों में मॉइश्चर की कमी उत्पन्न होती है. आपके बाल अलग अलग बॉन्ड्स से बने होते हैं जिसमे 4% फैट, ऑयल, पिगमेंट्स और 17% पानी, 79% केराटिन प्रोटीन होते हैं. आपके बालों के अंदरूनी भाग को कॉर्टेक्स कहा जाता है. इसमें वॉटर मॉलिक्यूल्स होते हैं और यह केराटिन बाउंड से बंधे हुए होते हैं.

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जैसे ही बालों को हीट मिलती है तो उनमें मौजूद प्राकृतिक ऑयल उनसे निकल जाते हैं और वॉटर मॉलिक्यूल एवापोरेट हो जाते हैं. इससे बालों का प्रोटीन स्ट्रक्चर बदल जाता है. अधिक तापमान के कारण पानी जल्दी से सूख जाता है जिससे हर बाल का स्ट्रक्चर प्रभावित होता है. इससे बालों के क्यूटिकल्स क्रैक होने लगते हैं. इससे बालों की बाहरी परत और अधिक नुकसान झेलने के रिस्क से घिर जाती है.

जैसे ही बाल डेमेज होते हैं तो बालों की शिंगल्स खुल जाती हैं, इससे स्प्लिट एंड्स और उलझे हुए बाल अधिक देखने को मिल सकते हैं.

हीट से डेमेज हुए बालों को किस तरह मैनेज करें?

अगर एक बार आपके बालों का स्ट्रक्चर हीट द्वारा बदल जाता है तो ऐसा फिर हमेशा के लिए हो जाता है. इस स्थिति को मैनेज करने के बहुत कम ही ऑप्शन उपलब्ध होते हैं. आप अपने बालों को काटने से डेमेज को कम कर सकती हैं. अगर बाल अधिक ऊंचाई तक डेमेज हो गए हैं तो काफी ज्यादा कटवाने की जरूरत पड़ सकती है. अगर आप छोटे बाल नहीं करवाना चाहती हैं तो हर बार बालों के एंड को काट दें और अगली बार बाल बढ़ने का इंतजार करें.

अगर बाल पोरस हो गए हैं तो उनमें लीव इन कंडीशनर लगा सकती हैं. इससे बालों में मॉइश्चर सील होने में मदद मिलेगी जिससे बालों को सॉफ्ट महसूस होगा. ऐसे प्रोडक्ट्स का ज्यादा प्रयोग करें जिनमें केराटिन, सिल्क और व्हीट प्रोटीन जैसे इंग्रेडिएंट्स मिले हुए हों.

निष्कर्ष

बालों को डेमेज होने से बचाने के लिए हीट प्रोडक्ट्स का काफी कम प्रयोग करें और अगर करना चाह भी रही हैं तो उनका तापमान 200 या 300 डिग्री एफ से अधिक न रखे. इसके साथ ही हीट प्रोटेक्टेंट स्प्रे का प्रयोग जरूर करें.

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एक्सरसाइज काे लिए सबसे अच्छा औप्शन है साइकिलिंग

शारीरिक फिटनैस को ले कर हमेशा यह उलझन रही है कि कौन सी गतिविधियां सुडौल और छरहरे बदन के लिए मददगार हैं. हम में से ज्यादातर लोग बाहर घूमने से परहेज करते हैं, क्योंकि हम अपनी अन्य समस्याओं को दूर करने पर ज्यादा समय बिताते हैं.

साइकिलिंग हम में से उन लोगों के लिए एक खास विकल्प है, जो जिम की चारदीवारी से अलग व्यायाम संबंधी अन्य गतिविधियों को पसंद नहीं करते हैं. साइकिल पर घूमना शारीरिक रूप से फायदेमंद हो सकता है. आप साइकिल के पैडल मार कर ही यह महसूस कर सकते हैं कि आप की मांसपेशियों में उत्तेजतना बढ़ी है. शारीरिक गतिविधि एड्रेनलिन से संबद्ध है, जो आप को बेहद ताकतवर कसरत का मौका प्रदान करती है. यह आप को बाकी व्यायाम के लिए भी उत्साहित करती है.

जिम की तुलना में जिन कारणों ने साइकिलिंग को अधिक प्रभावी बनाया है, वे मूलरूप से काफी सामान्य हैं. शरीर में सिर्फ एक मांसपेशी के व्यायाम के तहत आप को हमेशा दिल को तरजीह देनी चाहिए. इस का मतलब है दिल के लिए कसरत करना जिस से दिल संबंधी विभिन्न रोगों का जोखिम घटता है. महज एक स्वस्थ शरीर की तुलना में स्वस्थ दिल अधिक महत्त्वपूर्ण है.

ब्रिटिश मैडिकल ऐसोसिएशन के अनुसार, प्रति सप्ताह महज 32 किलोमीटर साइकिलिंग करने से दिल की कोरोनरी बीमारी के खतरे को 50% तक कम किया जा सकता है. एक अध्ययन में यह भी पता चला है कि जो व्यक्ति प्रति सप्ताह 32 किलोमीटर तक साइकिल चलाते हैं, उन्हें दिल की किसी बीमारी के होने की आशंका नहीं रहती है.

फायदे अनेक

साइकिलिंग का खास फायदा यह है कि इस का लाभ अबाधित तरीके से मिलता है और आप को इस का पता भी नहीं चलता. साइकिलिंग में महज पैडल मारने से ही आसान तरीके से आप की कसरत शुरू हो जाती है. इसे आराम से या उत्साहपूर्वक घुमाएं, दोनों ही मामलों में दिल की धड़कन बढ़ती है. इस से शरीर में प्रत्येक कोशिका के लिए औक्सीजनयुक्त रक्त का प्रवाह बढ़ता है, दिल और फेफड़े मजबूत होते हैं.

ये भी पढ़ें- ले न डूबे यह लत

साइकिलिंग उन लोगों के लिए कसरत का श्रेष्ठ विकल्प है, जो किसी चोट से रिकवर हो रहे हों. क्रौस टे्रनिंग विकल्प ढूंढ़ रहे हों या 85 की उम्र में मैराथन में भाग लेने के लिए अपने घुटनों को मजबूत बनाए रखने की कोशिश कर रहे हों. दौड़ने या जिम में ऐक्सरसाइज की तुलना में टांगों, एडि़यों, घुटनों और पैरों के लिए साइकिलिंग अधिक आसान एवं फायदेमंद है. इस से दिल शरीर के विभिन्न जोड़ों पर अधिक दबाव डाले बगैर पंपिंग करता है.

अधिक समय तक दौड़ने से शरीर पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है. वहीं दूसरी तरफ साइकिलिंग का कम प्रभाव है और यह घुटनों पर अधिक दबाव डाले बगैर टांगों की मांसपेशियों की कसरत है. इस के अलावा साइकिलिंग जोश बढ़ाती है.

हम में से ज्यादातर लोग साइकिलिंग के वक्त अपनी क्षमता से अधिक आगे बढ़ जाते हैं, क्योंकि यह बेहद आनंददायक है. इस के अलावा यह काफी कैलोरी भी अवशोषित करती है और उन लोगों के लिए फायदेमंद है, जो अपना अतिरिक्त वजन घटाना चाहते हैं. नियमित साइकिल चलाने से लगभग 300 कैलोरी प्रति घंटे खर्च हो सकती है और रोजाना आधा घंटा साइकिल चलाने से 1 साल में आप का 8 किलोग्राम वजन घट सकता है. यह मांसपेशियों को मजबूत बनाने और उपापचय दर बनाने में भी मददगार है.

साइकिलिंग सस्ता व्यायाम

विशेष स्वास्थ्य फायदों के अलावा साइकिलिंग जिम की तुलना में आप के मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी कई मानों में लाभदायक हो सकती है. बाहर की ताजा हवा लेना, सुबह के समय सूर्य की गरमी को महसूस करना या शाम को त्वचा को ठंडी हवा आदि ऐसे लाभ हैं, जो जिम की कसरत में हासिल नहीं हो सकते. साइकिलिंग तनाव कम कर सकती है क्योंकि आप बाहर घूमते वक्त प्राकृतिक तौर पर ताजा हवा लेते हैं. यह क्रिया दिमाग के उस हिस्से को नियंत्रित करती है, जो चिंता और आशंका से जुड़ा होता है और उस हिस्से को सक्रिय करती है, जो सुंदरता, गति से संबद्ध है.

इन स्वास्थ्य फायदों के अलावा साइकिलिंग आप का काफी समय बचाने में भी मददगार है. यह सर्वोच्च क्रम का मल्टीटास्किंग है. आप काम पर जाने के लिए साइकिल का चयन कर सकते हैं और फिटनैस व्यवस्था पर किसी तरह का दबाव पड़ने की चिंता से भी मुक्त रह सकते हैं.

साइकिलिंग श्रेष्ठ गतिविधियों में से एक है, आप अपनी शारीरिक फिटनैस के साथसाथ मानसिक फिटनैस के लिए भी कर सकते हैं. यह रक्तप्रवाह को बराकरार रखती है और आप के शरीर के अच्छा महसूस कराने वाले हारमोन पैदा करती है. अत: इसे अपने दैनिक रूटीन में जरूर शामिल करें.

शारीरिक फिटनैस को ले कर हमेशा यह उलझन रही है कि कौन सी गतिविधियां सुडौल और छरहरे बदन के लिए मददगार हैं. हम में से ज्यादातर लोग बाहर घूमने से परहेज करते हैं, क्योंकि हम अपनी अन्य समस्याओं को दूर करने पर ज्यादा समय बिताते हैं.

साइकिलिंग हम में से उन लोगों के लिए एक खास विकल्प है, जो जिम की चारदीवारी से अलग व्यायाम संबंधी अन्य गतिविधियों को पसंद नहीं करते हैं. साइकिल पर घूमना शारीरिक रूप से फायदेमंद हो सकता है. आप साइकिल के पैडल मार कर ही यह महसूस कर सकते हैं कि आप की मांसपेशियों में उत्तेजतना बढ़ी है. शारीरिक गतिविधि एड्रेनलिन से संबद्ध है, जो आप को बेहद ताकतवर कसरत का मौका प्रदान करती है. यह आप को बाकी व्यायाम के लिए भी उत्साहित करती है.

जिम की तुलना में जिन कारणों ने साइकिलिंग को अधिक प्रभावी बनाया है, वे मूलरूप से काफी सामान्य हैं. शरीर में सिर्फ एक मांसपेशी के व्यायाम के तहत आप को हमेशा दिल को तरजीह देनी चाहिए. इस का मतलब है दिल के लिए कसरत करना जिस से दिल संबंधी विभिन्न रोगों का जोखिम घटता है. महज एक स्वस्थ शरीर की तुलना में स्वस्थ दिल अधिक महत्त्वपूर्ण है.

ब्रिटिश मैडिकल ऐसोसिएशन के अनुसार, प्रति सप्ताह महज 32 किलोमीटर साइकिलिंग करने से दिल की कोरोनरी बीमारी के खतरे को 50% तक कम किया जा सकता है. एक अध्ययन में यह भी पता चला है कि जो व्यक्ति प्रति सप्ताह 32 किलोमीटर तक साइकिल चलाते हैं, उन्हें दिल की किसी बीमारी के होने की आशंका नहीं रहती है.

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फायदे अनेक

साइकिलिंग का खास फायदा यह है कि इस का लाभ अबाधित तरीके से मिलता है और आप को इस का पता भी नहीं चलता. साइकिलिंग में महज पैडल मारने से ही आसान तरीके से आप की कसरत शुरू हो जाती है. इसे आराम से या उत्साहपूर्वक घुमाएं, दोनों ही मामलों में दिल की धड़कन बढ़ती है. इस से शरीर में प्रत्येक कोशिका के लिए औक्सीजनयुक्त रक्त का प्रवाह बढ़ता है, दिल और फेफड़े मजबूत होते हैं.

साइकिलिंग उन लोगों के लिए कसरत का श्रेष्ठ विकल्प है, जो किसी चोट से रिकवर हो रहे हों. क्रौस टे्रनिंग विकल्प ढूंढ़ रहे हों या 85 की उम्र में मैराथन में भाग लेने के लिए अपने घुटनों को मजबूत बनाए रखने की कोशिश कर रहे हों. दौड़ने या जिम में ऐक्सरसाइज की तुलना में टांगों, एडि़यों, घुटनों और पैरों के लिए साइकिलिंग अधिक आसान एवं फायदेमंद है. इस से दिल शरीर के विभिन्न जोड़ों पर अधिक दबाव डाले बगैर पंपिंग करता है.

अधिक समय तक दौड़ने से शरीर पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है. वहीं दूसरी तरफ साइकिलिंग का कम प्रभाव है और यह घुटनों पर अधिक दबाव डाले बगैर टांगों की मांसपेशियों की कसरत है. इस के अलावा साइकिलिंग जोश बढ़ाती है.

हम में से ज्यादातर लोग साइकिलिंग के वक्त अपनी क्षमता से अधिक आगे बढ़ जाते हैं, क्योंकि यह बेहद आनंददायक है. इस के अलावा यह काफी कैलोरी भी अवशोषित करती है और उन लोगों के लिए फायदेमंद है, जो अपना अतिरिक्त वजन घटाना चाहते हैं. नियमित साइकिल चलाने से लगभग 300 कैलोरी प्रति घंटे खर्च हो सकती है और रोजाना आधा घंटा साइकिल चलाने से 1 साल में आप का 8 किलोग्राम वजन घट सकता है. यह मांसपेशियों को मजबूत बनाने और उपापचय दर बनाने में भी मददगार है.

साइकिलिंग सस्ता व्यायाम

विशेष स्वास्थ्य फायदों के अलावा साइकिलिंग जिम की तुलना में आप के मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी कई मानों में लाभदायक हो सकती है. बाहर की ताजा हवा लेना, सुबह के समय सूर्य की गरमी को महसूस करना या शाम को त्वचा को ठंडी हवा आदि ऐसे लाभ हैं, जो जिम की कसरत में हासिल नहीं हो सकते. साइकिलिंग तनाव कम कर सकती है क्योंकि आप बाहर घूमते वक्त प्राकृतिक तौर पर ताजा हवा लेते हैं. यह क्रिया दिमाग के उस हिस्से को नियंत्रित करती है, जो चिंता और आशंका से जुड़ा होता है और उस हिस्से को सक्रिय करती है, जो सुंदरता, गति से संबद्ध है.

इन स्वास्थ्य फायदों के अलावा साइकिलिंग आप का काफी समय बचाने में भी मददगार है. यह सर्वोच्च क्रम का मल्टीटास्किंग है. आप काम पर जाने के लिए साइकिल का चयन कर सकते हैं और फिटनैस व्यवस्था पर किसी तरह का दबाव पड़ने की चिंता से भी मुक्त रह सकते हैं.

साइकिलिंग श्रेष्ठ गतिविधियों में से एक है, आप अपनी शारीरिक फिटनैस के साथसाथ मानसिक फिटनैस के लिए भी कर सकते हैं. यह रक्तप्रवाह को बराकरार रखती है और आप के शरीर के अच्छा महसूस कराने वाले हारमोन पैदा करती है. अत: इसे अपने दैनिक रूटीन में जरूर शामिल करें.

शिव इंदर सिंह
एम.डी., फायरफौक्स बाइक्स प्रा.लि.

तो होम लोन लेना हो जाएगा आसान

हर इंसान का सपना होता है कि उस का अपना एक प्यार खूबसूरत सा घर हो. इस सपने को साकार करने के लिए वह उधार लेने को भी तैयार रहता है. बैंकों तथा नौनबैंकिंग फाइनैंशियल कौरपोरेशन द्वारा इसी उद्देश्य की पूर्ति हेतु होम लोन की सुविधा उपलब्ध है. सरल किस्तों में कम ब्याज पर होम लोन एक सुरक्षित लोन है जो कौलेटरल के रूप में प्रौपर्टी खरीदने के लिए प्राप्त किया जाता है.

होम लोन किफायती ब्याज दरों पर लंबी अवधि के लिए अधिक रकम की फंडिंग प्रदान करते हैं. यह रकम बाद में ईएमआई के माध्यम से चुकाई जाती है. ईएमआई पूरी होने के बाद प्रौपर्टी आप के नाम हो जाती है. पर यदि आप पूरी रकम का भुगतान नहीं कर पाते यानी ईएमआई बीच में देना बंद कर देते हैं तो प्रौपर्टी की बिक्री से बकाया लोन राशि को रिकवर करने का कानूनी अधिकार ऋणदाता के पास होता है.

यदि सरल भाषा में समझें तो आप की संपत्ति आप के उधारदाता के पास गिरवी रहेगी. आप प्रतिमाह निश्चित ईएमआई की रकम उसे देते रहेंगे. कुल मूलधन तथा ब्याज जब आप वापस कर देते हैं तो वह संपत्ति आप को मिल जाती है. न्यूनतम ब्याज 6.50% होता है जो संबंधित बैंक या एनबीएफसी के द्वारा निश्चित होता है. ब्याज दर आप के सीआईबीआईएल स्कोर और प्रौपर्टी किस एरिया में है इस से भी निर्धारित होती है.

डिफाल्टर न बने

सीआईबीआईएल का फुल फौर्म है क्रैडिट इनफौर्मेशन ब्यूरो इंडिया लिमिटेड. इस का कार्य है किसी व्यक्ति की लोने के लिए साख तथा वित्तीय स्थिति तय करना. क्रैडिट स्कोर 3 अंकों की संख्या होती है जो 300 से 900 के बीच होती है. होम लोन के लिए योग्य होने के लिए सीआईबीआईएल स्कोर 700 से ऊपर रहना चाहिए अर्थात तब आसानी से होम लोन मिल जाता है.

सीआईबीआईएल स्कोर को सही रखने के लिए जरूरी है कि आप अपने अन्य ऋणों की ईएमआई का समय पर भुगतान करें, क्रैडिट कार्ड की लिमिट्स का ध्यान रख कर ही उपयोग करें, किसी पूर्व के ऋण वापसी में आप डिफाल्टर न हों.

प्रौपर्टी के मूल्य का अधिकतम 80% तक होम लोन के रूप में लिया जा सकता है. नया घर खरीदने, नया घर बनाने, घर की मरम्मत करने या पुनर्निर्माण के लिए या फिर प्लाट खरीदने के लिए होम लोन आसानी से मिल जाता है.

नौकरीपेशा व्यक्ति को होम लोन लेने के लिए आधार कार्ड, पैन कार्ड के साथसाथ 3 महीने की सैलरी स्लिप और 6 महीने की बैंक स्टेटमैंट देनी होती है. व्यवसायी से 1 साल की बैंक स्टेटमैंट मांगी जाती है. साथ ही प्रौपर्टी के पेपर्स जांच के लिए देने पड़ते हैं. आप के सीआईबीआईएल स्कोर तथा प्रौपर्टी के मूल्य के आधार पर होम लोन की राशि स्वीकृत होती है.

किसी भी बैंक या संस्था से होम लोन लेने के पहले सभी पेपर्स की जांच स्वयं करें. ब्याज का प्रतिशत कितना है यह अवश्य जांच लें. जागरूकता के साथ लिए होम लोन से आप अपने घर के सपने को साकार कर सकते हैं, किराए के घर की जगह अपने स्वयं के घर के स्वामी बन सकते हैं. होम लोन की ईएमआई की रकम में टैक्स बैनिफिट भी लेना संभव है.

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आप को कितना लोन मिल सकता है

बैंक आप की कमाई के हिसाब से लोन देता है. दरअसल, आप की होम लोन लेने की क्षमता उसे चुकाने की कैपैसिटी पर निर्भर करती है. यह आप की मासिक कमाई, खर्च और परिजनों की कमाई, संपत्ति, देनदारी जैसे मसलों पर निर्भर करती है.

बैंक सब से पहले यह देखते हैं कि आप समय पर होम लोन चुका पाएंगे या नहीं. आमतौर पर कोई बैंक या कर्ज देने वाली कंपनी का ध्यान इस बात पर जाता है कि आप अपनी मासिक आमदनी का 50% होम लोन की किस्त के रूप में दे पाएंगे या नहीं. इस के अलावा बैंक होम लोन के लिए उम्र की ऊपरी सीमा भी फिक्स कर चलते हैं.

किसी मकान या फ्लैट की कीमत का 10 से 20% तक डाउन पेमैंट करनी पड़ती है यानी प्रौपर्टी की वैल्यू का 80-90% तक लोन मिल सकता है. इस में रजिस्ट्रेशन, ट्रांसफर और स्टांप ड्यूटी जैसे चार्ज भी शामिल होते हैं. अगर कर्ज देने वाली संस्था आप को ज्यादा रकम होम लोन के रूप में देने को तैयार है तब भी जरूरी नहीं कि आप सारी रकम लोन के रूप में ले लें. समझदारी इसी में है कि आप अधिक से अधिक अमाउंट डाउन पेमैंट कर दें ताकि लोन का बोझ कम से कम रहे और आप को ब्याज के रूप में बहुत ज्यादा रकम लंबे समय तक न देनी पड़े.

होम लोन लेने की पात्रता

आप की प्रति माह की कुल आय का 60 गुना लोन मिल सकता है. अगर आप ने कोई दूसरा लोन लिया है जो चालू है तो लोन देने वाला बैंक उस की मासिक किस्त आप की आमदनी से घटाने के बाद होम लोन की रकम पर विचार करेगा. अगर आप होम लोन लेना चाहते हैं, मगर आप का क्रैडिट स्कोर सही नहीं है या आप के पिछले किसी लोन/उधार के भुगतान में चूक हुई है तो बैंक लोन देने से मना कर सकता है.

आमतौर पर बैंक आप की कुल मासिक आय के 40 से 50% रकम को व्यक्तिगत खर्च के लिए जरूरी मानते हैं. इस के बाद बची रकम के हिसाब से होम लोन दिया जाता है.

उदाहरण के लिए अगर आप की मासिक आमदनी 60 हजार रुपए है तो बैंक यह मानता है कि आप का पर्सनल खर्च 25 से 30 हजार रुपए प्रति महीना होगा. अगर आप ने कोई और लोन नहीं लिया है तो आप 20 साल के लिए 9% सालाना ब्याज दर पर होम लोन के रूप में 35-40 लाख रुपए तक पा सकते हैं.

होम लोन के फायदे

निवेश: अगर आप होम लोन ले कर अपना घर खरीदते हैं तो समय के साथ आप के घर की कीमत में इजाफा होता रहता है. यह वास्तव में निवेश का एक अच्छा जरीया भी है.

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इनकम टैक्स में बचत

होम लोन की मासिक किस्त के रूप में चुकाई जाने वाली रकम में मूलधन और ब्याज दोनों ही होता है. अगर आप मूलधन के हिसाब से सोचें तो इनकम टैक्स कानून के सैक्शन 80सी के तहत आप सालभर में 1.5 लाख रुपए के भुगतान पर आयकर में राहत पा सकते हैं.

इस के साथ ही आप ने होम लोन की किस्त में ब्याज के रूप में जो रकम चुकाई है उस के लिए साल में 2 लाख रुपए तक की रकम पर अलग से इनकम टैक्स में छूट मिलती है.

रहने में सुविधा

अगर आप अपना घर लेते हैं तो भविष्य में आप होम लोन शिफ्टिंग के झंझट से मुक्त रह कर अपने काम पर पूरा ध्यान दे सकते हैं.

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