Crime Story: घिनौना खेल

Crime story: गुड विल सोसायटी के टावर नंबर 1 के टौप फ्लोर के कोने वाले फ्लैट में तन्मय और तमन्ना रहते हैं. एकदम एकांत फ्लैट. अपनी निजता का ध्यान रखते हुए उन्होंने यह फ्लैट मार्केट रेट से अधिक किराए पर लिया. नौजवानों के दिल कुछ जुदा ढंग से धड़कते हैं और उन के धड़कने के लिए पूरी आजादी भी चाहिए.

उन के सामने का टावर नंबर 2 था. थोड़ी दूरी अवश्य थी. निजता को ध्यान में रखते हुए सोसायटी के विभिन्न टावरों के बीच दूरी थी. दूरी तो अवश्य थी लेकिन बालकनियां आमनेसामने थीं. बालकनी में खड़े हो कर हाथ हिला कर हायहैलो हो जाती थी.

टावर नंबर 2 में तन्मय के फ्लैट के सामने वाले फ्लैट में एक अधेड़ दंपती सविता व राजेश अपने 2 छोटे बच्चों के संग रहते थे. शाम के समय उन के बच्चे सोसायटी के पार्क में खेलते और सविता बालकनी से उन पर नजर रखती थी. कहने को तो तन्मय और तमन्ना अपने को पति पत्नी कहते थे लेकिन उन का कोई विधिवत विवाह नहीं हुआ था. वास्तव में वे दोनों लिव इन पार्टनर थे. किराया आधाआधा देते थे और घर का सारा खर्च भी आधाआधा उठाते थे. सोसायटी में वे किसी से बातचीत नहीं करते थे और अपनी दुनिया में मस्त और व्यस्त रहते थे. दोनों के पास फ्लैट की 1-1 चाबी होती थी.

जो जब चाहे बिना डोरबैल बजाए घर में प्रवेश करते थे. सविता को उन दोनों का व्यवहार अजीब लगता था. न मांग में सिंदूर न ही कोई मंगलसूत्र? न ही चूडि़यां. हमेशा जींसटौप में तमन्ना दिखाई देती थी और कभीकभी मिनीस्कर्ट और हौट पैंट में आतेजाते दिखाई देती. राजेश समझता कि हम ने उन का क्या करना है. तू दूसरों के बारे में मत सोच,अपने परिवार पर ध्यान दे.

सविता भी तपाक से उत्तर देती. उस का हौटपैंट के साथ ब्लाउज से भी छोटा टौप पहनना नंगापन है. बैडरूम में जो मरजी पहने या न पहने, मैं ने क्या करना है. कम से कम घर से बाहर तो ढंग के कपड़े पहने. हमारे छोटेछोटे बच्चे हैं, कल वे ऐसे कपड़े पहनें तो क्या आप बरदास्त करोगे?

राजेश के पास इस का कोई उत्तर नहीं था. अत: बात घुमाई, ‘‘उन का प्रेम को दर्शाने का एक तरीका है. आजकल के युवा ऐसे कपड़े पहन कर रिझते हुए प्रेम करते हैं.’’

‘‘तो आप कहना चाहते हो, मैं ने आप को कभी नहीं रिझया?’’

‘‘तोबातोबा मेरे कहने का यह मतलब थोड़े था. तुम आज भी जालिम कातिल लगती हो.’’

‘‘फिर थोड़ी सी सब्जी फ्रूट ले आओ.’’

मुसकराते हुए सोसायटी के बाहर मदरडेयरी के बूथ चला गया. सब्जीफ्रूट खरीदने के बाद राजेश सोसायटी के गेट पर घुस रहा था तभी तमन्ना ओला कैब से उतरी. चुस्त जींसटौप, ऊंची ऐड़ी के सैंडल और आंखों पर बड़ा सा चश्मा पहने लंबे डग भरते हुए चल रही थी. राजेश उस की मटकती कमर देखता धीरेधीरे उस के पीछे चल रहा था. ऊपर बालकनी में खड़ी सविता सब देख रही थी.

फ्लैट के भीतर पहुंचते ही सविता ने राजेश को आड़े हाथों लिया, ‘‘पतली कमर का मजा ले आए?’’

‘‘तोबातोबा क्या बात कर रही हो.’’ ‘‘मुझे अभी चश्मा नहीं लगा है. अंधेरे में भी दूर तक दिखाई देता है.’’

‘‘मुझे तेरी शादी के टाइम वाली कमर याद आ गई. मैं बस तुलना कर रहा था. तेरी कमर ज्यादा पतली थी.’’

सविता सब समझती थी. हर मर्द की तरह राजेश भी खूबसूरत लड़की को देखता रह जाता. तमन्ना ने अपने फ्लैट का दरवाजा खोला. भीतर तन्मय डाइनिंग टेबल पर ही बोतल के साथ बैठा था. तमन्ना ने एक बीयर की बोतल खोली और गट से पी गई.

‘‘क्या बात है, मेरी जानेमन नाराज सी लग रही है?’’

‘‘एक तो औफिस वालों ने काम का प्रैशर डाला हुआ है. ऊपर से सोसायटी में घुसो तो साले खड़ूस ऐसे पीछे चलते हैं, जैसे कोई लड़की कभी देखी न हो.’’

तन्मय ने तमन्ना को अपने गले लगाते हुए गालों पर एक प्यार भरा चुंबन अंकित किया, ‘‘तू है ही इतनी सैक्सी. बेचारे बुड्ढों को गोली मार.’’

तमन्ना तन्मय से शारीरिक हो गई. ड्राइंगरूम की बालकनी का दरवाजा खुला था. खिड़की पर भी कोई परदा नहीं था.कमरे की लाइट में दोनों के हिलतेडुलते जिस्म की स्पष्ट छवि अपनी बालकनी में खड़ी सविता को दिखाई दे रही थी, ‘‘जो बंद कमरे में होना चाहिए, खुलेआम हो रहा है. आग लगे ऐसी जवानी को,’’ बड़बड़ाती हुई सविता अपने कमरे में चली गई.

सविता सही बड़बड़ा रही थी कि निगोड़ी जवानी को आग लगे. तन्मय और तमन्ना जवानी के जोश में होश खो बैठे थे. न अपना होश था न समाज की फिक्र. धड़ल्ले से बिना शादी के एकसाथ रहते हुए जीवन आजादी के साथ बिना रोकटोक के मस्ती के साथ जी रहे हैं.

1 घंटे बाद भी तन्मय और तमन्ना मदहोश थे. यही हाल उन का पिछले 2 वर्ष से चल रहा था जब से वे दोनों लिव इन में रह रहे हैं.

तमन्ना पिछले कुछ दिनों से औफिस के काम में इतनी व्यस्त रही, उसे टूर पर भी जाना पड़ा. 10 दिन का टूर बना. काम 7 दिन में ही समाप्त हो गया. वैसे तो हररोज रात को दोनों की फोन पर बातचीत होती, लेकिन मिलन नहीं हो रहा था. काम जल्दी खत्म होने पर कंपनी की अनुमति से तमन्ना जल्दी वापस रवाना हो गई. वह तन्मय को सरप्राइज देना चाहती थी.

उस ने अपने वापस आने का कार्यक्रम तन्मय को नहीं बताया.

जैसे ही तमन्ना ने अपनी चाबी से फ्लैट का दरवाजा खोला उस के खुद के लिए सरप्राइज तैयार था. तन्मय एक अन्य लड़की के साथ शारीरिक था. उन को देखते ही तमन्ना एकदम स्तब्ध हो गई. उसे उस पल कुछ नहीं सूझ.

तमन्ना को अचानक देखते ही तन्मय के होश उड़ गए. उसे तमन्ना के आने की कतई उम्मीद नहीं थी.

तन्मय और लड़की भौचक्के देखते रहे. लड़की अपने वस्त्र समेटने लगी. तमन्ना के हाथ में सूटकेस ट्रौली थी. उस ने उठा कर दोनों के ऊपर फेंक मारी. सूटकेस लड़की को लगा. वस्त्र उस के हाथ से छूट गए. एक खूंख्वार शेरनी की तरह तमन्ना उस लड़की पर झपटी और उस का हाथ पकड़ कर खींचा. लड़की छूटने की कोशिश कर रही थी. तन्मय को कुछ समझ नहीं आया कि वह क्या करे.

तमन्ना उस लड़की को खींच कर दरवाजे तक ले गई. दरवाजा खोला और बाहर धकेल दिया और फिर दरवाजा बंद कर दिया. वैसे तो फ्लैट कोने वाला था. उसी फ्लोर के दूसरे फ्लैट में एक किट्टी पार्टी थी जहां सम्मिलित होने सविता 3 और हमउम्र अधेड़ महिलाओं के साथ लिफ्ट से बाहर निकली.

तमन्ना की चीखनेचिल्लाने की आवाज के साथ गंदी गालियां उन्होंने सुनी. वे सभी रुक कर तमन्ना के फ्लैट की ओर देखने लगीं. फ्लैट के दरवाजे पर एक लगभग नग्न अवस्था में बदहवास लड़की अपने को छिपाने की असफल कोशिश कर रही थी.

फ्लैट के भीतर तन्मय और तमन्ना के झगड़ने की आवाज भी आ रही थी. सविता के साथ बाकियों को भी कुछ समझ नहीं आया. तभी दरवाजा खुला. तमन्ना गुस्से में अपशब्द बकते हुए तन्मय को धक्का दे रही थी, ‘‘तेरी हिम्मत कैसे हुई इस के साथ हमबिस्तर होने की?’’

अब तन्मय भी बोल उठा, ‘‘कौन सी तू ने मेरे साथ शादी की है जो बीवी वाला रोब झड़ रही है? मैं किस के भी साथ रहूं, तू कौन होती है मुझ से पूछने वाली, मैं तुझ से पूछता हूं तू कहां जाती है, कहां रहती है?’’

‘‘इस फ्लैट का आधा किराया देती हूं.’’

अब सविता और बाकी महिलाओं को सारा माजरा समझ आ गया. जिस फ्लैट में किट्टी पार्टी थी, वहां से एक चादर ला कर उस लड़की का तन ढक कर फ्लैट के अंदर ले गए. तमन्ना ने फ्लैट का दरवाजा बंद कर दिया. तन्मय बाहर खड़ा रहा.

महिलाओं की आंखें उसे घूर रही थीं. उस की नजर झुकी हुई थी. सविता से रुका नहीं गया. वह दो टूक बोल ही उठी, ‘‘दोनों के बारे में कुछ बताएगा या फिर बुत बन कर दोनों से पिटेगा?’’

तन्मय ने सिर्फ लोअर पहना हुआ था. वह सीढि़यों से नीचे भाग गया. महिलाओं ने उस लड़की से पूछताछ की. लड़की रो पड़ी. उस के कपड़े और पर्स फ्लैट के अंदर था.

सविता ने फ्लैट की डोरबैल बजाई. तमन्ना ने दरवाजा खोला. उसे कोई शर्म नहीं थी. उलटा सविता चढ़ गई, ‘‘क्या है? फिल्म देख ली न और क्या देखना है. मेरे मुंह मत लगना.’’

सविता चुपचाप लौट गई, ‘‘नंगों से तो कुदरत भी डरती है. हमारी क्या औकात है,’’ किट्टी पार्टी वाले फ्लैट में घुस गई.

‘‘इस नंगीमुंगी लड़की को दफा करो. जहन्नुम में जाएं तीनों. बेशर्मी की हद है. अपनी पार्टी क्यों खराब करें. शो मस्ट गो औन.’’

‘‘मैं कहां जाऊं?’’ लड़की गिड़गिड़ाने लगी.

‘‘चादर हम ने दी है. एक बार तमन्ना से अपने कपड़े मांग ले.’’

उस लड़की ने डोरबेल बजाई. हालांकि तमन्ना खुद लिव इन में थी लेकिन तन्मय को दूसरी लड़की के साथ देख नहीं सकी. उस ने लिव इन को तोड़ने का निश्चय कर लिया. तमन्ना ने उसे कपड़े नहीं दिए. बालकनी में गई और उस के कपड़ों में आग लगा दी.

‘‘आज तो इस को नंगा घूमना पड़ेगा,’’ जलते हुए कपड़े बालकनी से नीचे फेंक दिए. उस का पर्स खोल कर क्रैडिटडैबिट कार्ड तोड़ कर फेंक दिए. नकद नोटों को भी आग लगा दी और पर्स नीचे फेंक दिया.

सोसायटी में सब की जबान पर यही प्रसंग था कि फ्लैट मालिक को फोन किया जाए,

ऐसे किराएदार सोसायटी में नहीं चलेंगे. इनको हटाना होगा. तमन्ना अपना आपा खो चुकी थी. उस ने तन्मय के सारे कपड़े बालकनी में रखे और आग लगा दी. तन्मय का लैपटौप बालकनी से नीचे फेंक दिया. आग देखते सोसायटी के लोग घबरा गए. उन्होंने पुलिस और फायर ब्रिगेड को फोन किया. कुछ नौजवान आगे बढ़े. फ्लैट का दरवाजा तोड़ा गया.

पुलिस आई तमन्ना को काबू किया.आग बुझाई गई. पुलिस तमन्ना और लड़की को पुलिस स्टेशन ले गई. एक कौंस्टेबल की ड्यूटी लगा दी. जैसे तन्मय आए, पुलिस स्टेशन ले आए. महिला पुलिस ने लड़की को पहनने को कपड़े दिए. सब के परिवार को बुलाया गया. तन्मय और तमन्ना के परिवार दिल्ली से बाहर रहते थे. उन्हें नहीं मालूम था. पता चल गया. पूरी सोसायटी में बदनाम अलग हो गए. परिवार की नजरों में गिर गए. चाहे जितने आधुनिक बन जाएं, भारतीय समाज में गुपचुप तो सबकुछ स्वीकार्य है लेकिन खुल्लमखुल्ला नहीं.

तन्मय सिर्फ लोअर में घूम रहा था. आधी रात को जैसे सोसायटी के गेट के पास आया. तैनात कौंस्टेबल उसे पुलिस स्टेशन ले गया.

तमन्ना ने तन्मय को खूब खरीखोटी सुनाई. हाथापाई हो गई. सोसायटी में एक सज्जन टीवी चैनल में कार्यरत थे. वे लाइव कवरेज के लिए पुलिस स्टेशन पहुंच गए. अपनी बदनामी से बचने के लिए उस लड़की ने तन्मय पर धोखा, फुसलाना, विवाह के ?ांसे में शारीरिक संबंधों के आरोप जड़ दिए.

तमन्ना ने भी ऐसे आरोप जड़ दिए. अगर तन्मय उस के प्रति निष्ठावान नहीं है तब आसानी से उसे किसी और लड़की के साथ रहने लायक नहीं छोड़ेगी. मन ही मन उसने ठान लिया था.

बैडरूम में होने वाला सीन सार्वजनिक हो गया. टीवी चैनल पर कवरेज हो गई. तन्मय के लिए लिव इन एक खेल था, दो नावों पर सवार तन्मय बचने के लिए गोते लगा रहा था. Crime story

Malaika Arora: सेलेब्स का फिटनैस सीक्रेट

Malaika Arora: एक्ट्रेस 49 साल की हैं लेकिन उन की फिटनैस और फिगर 20 साल वालियों पर भारी पड़ती है. उन की फिटनैस उन्हें कौन्फिडैंस देती है और वे लगभग किसी भी तरह की ड्रैस ट्राई करने से नहीं हिचकतीं. वहीं अगर आज की मैरिड वूमन की बात करें तो वे शादी के कुछ सालों बाद ही बेडौल हो जाती हैं. उन के लिए फिगर मैंटेन करना सिर्फ शादी तक ही जरूरी है.

एक रिसर्च में यह सामने आया है कि 35 से 49 साल के बीच की लगभग 50त्न महिलाएं ओवरवेट हैं. शौकिंग बात यह है कि इन में से ज्यादातर ओवरवेट होने की वजह मोटापे को नहीं बल्कि उम्र को मानती हैं. खुद को फिट और सैक्सुअली अट्रैक्टिव बनाए रखने में आखिर बुराई क्या है. आइए, जानते हैं कुछ सेलेब्स के फिटनैस सीक्रेट्स:

मलाइका का फास्टिंग फंडा

मलाइका अरोड़ा 49 वर्ष की उम्र में भी खूबसूरती और सैक्सी फिगर के चलते कम उम्र की हीरोइनों को टक्कर देती हैं. उन की खूबसूरती और सैक्सी फिगर के चर्चे हमेशा बौलीवुड में होते रहते हैं. सलमान खान की भाभी और अरबाज खान की बीवी मलाइका अरोड़ा खान अब पति से तलाक ले कर अपनी जिंदगी अच्छे से बिता रही हैं. तलाक होने के मानसिक तनाव के बावजूद मलाइका ने अपनी फिगर को ले कर कभी कोई ढील नहीं दी.

हाल ही में मलाइका ने खुद अपना रूटीन और डाइट प्लान बताया, ‘‘मैं सुबह 7 बजे और दोपहर को 12 बजे तक कुछ भी नहीं खाती हूं. सूरज ढलने के बाद मैं कुछ नहीं खाती. सुबह उठने के बाद सिर्फ 1 चम्मच घी खाती हूं.

12 बजे के बाद पूरे परिवार के साथ खाना खाती हूं. मैं एकसाथ ही पूरा खाना खाती हूं जिस में दालचावल, रोटीसब्जी, सलाद शामिल होता है. मेरा मानना है एक उम्र के बाद आप की बौडी को हर चीज की जरूरत होती है. खाने में परहेज आप की बौडी पर गलत परिणाम दे सकता है. चूंकि मैं पूरा दिन मेहनत करती हूं इसलिए मु  झे प्रौपर खाना खाने की भी जरूरत है.

‘‘मुझे लगता है शरीर को पूरी डाइट मिलनी चाहिए ताकि बाहरी तकलीफों से जू  झने की ताकत मिले. मैं इंटरमिटैंट फास्टिंग करती हूं जो मेरे लिए बहुत अच्छा काम करती है. यह वाली फास्टिंग मु  झे पूरी तरह तरोताजा रखती है मैं ठीक से सो पाती हूं और फ्रैश हो कर उठती हूं. दिमाग पर, शरीर पर कोई भारीपन नहीं लगता. मु  झे बहुत ज्यादा डाइटिंग करना पसंद नहीं है इसलिए पहले भी मैं एक दिन छोड़ एक दिन डाइटिंग या फास्टिंग करती थी लेकिन हमेशा से मैं ने एक ही बार खाना खाने का नियम फौलो किया है.

‘‘मैं ने एक पोर्शन खाने का अपने लिए तय कर के रखा है जिस में न तो मैं कम खाती हूं और न ही ज्यादा. इस के अलावा में योग और जिम कर के अपनेआप को फिट और फाइन रखती हूं. 49 की उम्र में अपनी अच्छी सेहत का राज है सही डाइट ओर ऐक्सरसाइज.’’

अनीता राज की फिटनैस

इस के अलावा 62 वर्षीय अनीता राज अपने अभिनय कैरियर को ले कर जितना सीरियस हैं, उतना ही अपनी हैल्थ और फिटनैस को ले कर भी. उन्हें फिटनैस फ्रीक भी कहा जा सकता है क्योंकि चाहे जो हो जाए वे अपना जिम और ऐक्सरसाइज मिस नहीं करतीं. अपना काफी समय वर्कआउट करते हुए जिम में बिताती हैं.

‘यह रिश्ता क्या कहलाता है’ की दादी सा अर्थात अनीता राज फिटनैस के मामले में सब को फेल करती हैं. उन के बायसैप्स देख उन के फैंस भी चौंक गए, अनीता राज इस उम्र में पुशअप और शोल्डर के लिए ज्यादा वेट उठाती हैं जिस की वजह से उन के बाइसैप्स और मसल्स काफी मजबूत और शेप में हैं. स्क्रीन पर भले ही अनीता राज सीधीसाधी, सादगी से भरी नजर आती हों  लेकिन असल जिंदगी में वे बौडीबिल्डर हैं. उन के शोल्डर और बायसैप्स काफी अच्छे बने हुए हैं.

शिल्पा की फिगर का राज

50 साल की हो चुकीं शिल्पा शेट्टी की फिगर को देख कर उन की उम्र का अंदाज लगाना मुश्किल है. शिल्पा की जबरदस्त फिटनैस का सीक्रेट बैलेंस्ड डाइट और ऐक्सरसाइज है. शिल्पा कार्डिओ और वेट ट्रेनिंग भी करती हैं ताकि स्टैमिना बढ़ने के साथसाथ मसल्स भी स्ट्रौंग रहें. प्रोसैस्ड फूड आइटम्स न तो वे अपने परिवार को देती हैं और न ही खुद खाती हैं. उन का फोकस हमेशा प्रोटीन और फाइबर वाले खाने पर ही होता है.        Malaika Arora

Teenage Life: उम्र का एक खूबसूरत पड़ाव

Teenage Life: ‘‘तितली की तरह उड़ना, झरनों की तरह बहना चाहती हूं,

सितारों की बुलंदी छूना चाहती हूं पर

कुछ छोटेछोटे सवाल सालते हैं मुझे,

जिन के जवाब हर हाल में पाना चाहती हूं,

इतने पहरे, इतने बंधन क्यों हैं आखिर?

मैं पूछना चाहती हूं. मैं पूछना चाहती हूं.’’

यह आवाज आती है हर जवां होती लड़की के दिल से…

उम्र का बहुत ही नाजुक मोड़ है यह. शुरूशुरू में शारीरिक बदलाव को मन स्वीकार नहीं करता. लगता है मानो आजादी छिन गई हो. अपने मन की बात शेयर करें तो किस से करें. मन है कि ठहर नहीं पाता और दिमाग सवालों के घेरे में उल  झ जाता है. क्या, कब, क्यों, कैसे जैसे अनेक सवाल मन को कुरेदते हैं और सही मार्गदर्शन के अभाव में एक सामान्य सहज प्रक्रिया के तहत सवालों के अपने तरीके से इंटरप्रिटेशन निकलने लगते हैं. यह महसूस होने लगता है कि हम भी कुछ कर सकते हैं. खुद निर्णय लेने की चाह होने लगती है और यकीन भी हो जाता है कि यह सही होगा.

10 से 16 वर्ष की उम्र जीवन का एक ऐसा पड़ाव जब शरीर का गठन शुरू होता है अनेक तरह के बदलाव होने लगते हैं. शारीरिक बदलाव के साथसाथ मानसिक उथलपुथल भी जारी रहती है. लड़कियों में यह बदलाव लड़कों से ज्यादा जल्दी आते हैं अर्थात व लड़कों की तुलना में जल्दी जवान होती हैं.

‘‘मेरी उम्र 13 साल है. कुछ दिनों पहले एक सुबह मैं जब बिस्तर से उठी तो मैं ने कुछ अलग महसूस किया. मेरा लोअर खराब था. चादर पर भी लाल धब्बे थे. मां ने देखा तो बोली, ‘‘चादर उठा कर धोने डाल दे.’’

मु  झे एक सूती कपड़ा ला कर दिया और उस का इस्तेमाल बताया. मैं ने मां को ऐसा करते हुए देखा था पर मां ने मु  झे कभी इस बारे में बताया नहीं था. मैं बहुत ही दुविधा में थी.’’

वहीं एक दूसरी लड़की की दास्तान, ‘‘एक दिन जब मैं स्कूल से लौटी तो पता चला कि मु  झे पीरियड्स शुरू हो गए हैं. मां को बताया तो वे मुसकराईं और फिर सैनिटरी नैपकिन ला कर मु  झे उसका प्रयोग बताया. वैसे मां मु  झे पहले भी इस बारे में बता चुकी थीं.’’

अलगअलग किशोरियों के अलगअलग अनुभव

1946 में वाल्ट डिज्नी के प्रोडक्शन ‘द स्टोरी औफ मैंस्ट्रुएशन’ में मासिकधर्म के बारे में विस्तार से बताया है और कई टिप्स भी दिए गए हैं. इस तरह का खुलापन हमारे समाज में 21वीं सदी में भी नहीं आ पाया है. इस दौरान हारमोंस में भी कई तरह के बदलाव आते हैं जिन के बारे में सिर्फ सुना ही होता है. आज से लगभग 4 दशक पहले सैनिटरी नैपकिंस का उपयोग सिर्फ संपन्न परिवारों की लड़कियों के द्वारा ही किया जाता था. सामान्य घरों की अधिकतर लड़कियां सूती कपड़े का प्रयोग करती थीं. गांव और आदिवासी महिलाओं द्वारा घासफूंस इस्तेमाल करने की बात सुनी है जो रोंगटे खड़े कर देती है.

यूनिसेफ इस संबंध में सरकारों के साथ मिल कर अनूठे प्रयोग कर रहा है. सर्व शिक्षा अभियान के तहत किशोरियों के लिए प्रशिक्षण मौड्यूल तैयार कर उन्हें आने वाले जीवन के लिए तैयार करने को वचनबद्ध दिखाई देता है.

इस उम्र में आ कर ब्रा की आवश्यकता होती है जो एक ऐसा शब्द है जिसे हम आज भी खुल कर बोलने में हिचकते हैं. कई किशोरियां तो आज भी नमी के कारण होने वाली परेशानियों से बेखबर हो कर इसे कपड़ों के बीच छिपा कर सुखाती हैं. कुछ  झिझक और कुछ लोगों की वहशी मानसिकता इस की वजह हो सकती है. जवान होती बेटी के लिए सही नाप की ब्रा भी अनिवार्य जरूरत है. इस उम्र में उसे अंत:वस्त्रों के सुंदर कलर और डिजाइनें लुभाती हैं.

शोध पर आधारित सचाई

प्राय: मान लिया जाता है कि इस उम्र में लड़कियां मासूमियत से बाहर निकल कर चंचल हो जाती हैं और उन पर बंधन और निगरानी जरूरी है, मगर शोध पर आधारित सचाई यह है कि अगर सही मार्गदर्शन न मिले तो लड़कियां चंचल नहीं बल्कि मानसिक रोग से ग्रस्त हो जाती हैं क्योंकि एक जिद मन में होती है कुछ नया जानने की. अगर जिज्ञासा शांत न हो पाई और अधकचरे ज्ञान के आधार पर कोई गलती हो गई तो अपराधबोध भी हावी हो जाता है.

स्कूली किताबों में भी इस उम्र में होने वाले परिवर्तन के बारे में पढ़ाया जाता है लेकिन मातापिता की ही तरह शिक्षकशिक्षिकाएं भी इस विषय में पूरी तरह से सहज नहीं हो पाते हैं और पूरी तरह से किशोर मन की जिज्ञासा को शांत नहीं कर पाते हैं. नतीजा यह होता है कि किशोरियां इन सवालों के जवाब कहीं और से जानना चाहती हैं.

हमारे रूढि़वादी परिवारों में मातापिता से भी लड़कियां इस बारे में खुल कर बात नहीं कर पाती हैं. इंटरनैट और साथियों के माध्यम से आधाअधूरा ज्ञान प्राप्त कर संतुष्टि करना चाहती हैं. विपरीत लिंग की तरफ आकर्षण इस उम्र में बढ़ने लगता है और कई बार उचित जानकारी के अभाव में परेशानी का सबब भी बन जाता है. मातापिता सहयोग देने वाले हों तो ठीक वरना वे दुश्मन लगने लगते हैं.

नएनए प्रयोग करना पसंद

किशोरियां मनपसंद खाना चाहती हैं. पहनावे को ले कर नएनए प्रयोग करना चाहती हैं. युगल गीत और फिल्में उन्हें बरबस आकर्षित करने लगती हैं. मनपसंद लोगों के साथ घूमनाफिरना चाहती हैं. कई बार आईने में खुद को देखती हैं. किसी सुंदर अभिनेत्री से अपनी तुलना करती हैं और अगर कुछ कमी पाती हैं तो निराश हो जाती है. प्यूबर्टी की अवस्था एक मीठी सी दस्तक दे कर हर किसी के जीवन में आती है.

इस उम्र में मुंहासे, मासिकधर्म की अन्य मुसीबतें, 4-5 दिन तक होने वाले रक्तस्राव को सहन करना, कल तक बेफिक्र घूमने वाली एक बच्ची के लिए मुश्किल तो होता ही है. बारबार अपने मुंहासों को देखती है जो चेहरे की खूबसूरती को कम करते हैं. टीवी पर आने वाले ऐड उस की दुविधा को और बढ़ा देते हैं. वह रासायन युक्त क्रीम का प्रयोग करना चाहती हैं क्योंकि उस की नजर में दागधब्बे चेहरे पर बिलकुल अच्छे नहीं. इसी तरह दांतों का टेढ़ामेड़ा या खराब होना भी इस उम्र में सालता है. कमसिन चेहरा उस पर 2 आंखें न जाने क्याक्या खोजती रहती हैं और नाउम्मीद होने पर मायूस हो कर चेहरे की रंगत उतर जाती है.

एक राजकुमार भी सपने में आने लगता है, जिस की तलाश में वह निकल पड़ती है और जब वह मिल जाए तो खुद को दुनिया में सब से खुश समझती है. इस उम्र में यह आकर्षण स्वाभाविक है.

सम्मान से जीने का अधिकार

यों तो दुनियाभर में महिलाओं की स्थिति अच्छी हुई है पर बड़ी होती लड़कियों को समानता और अहिंसा का वातावरण आज भी नहीं मिल पा रहा है. घर में लाख पहरे हैं तो बाहर उन्हें घूरती वहशी निगाहें. यह सच है कि इस उम्र में लिंग बोध यानी जैंडर की बात सम  झ आने लगती है.

एक किशोरी के ही शब्दों में, ‘‘बच्चों का भी स्वाभिमान होता है. सम्मान से जीने का अधिकार होता है. मांपापा जब मेरे दोस्तों के बारे में भलाबुरा कहते हैं तो मुझे अच्छा नहीं लगता. रमन मेरा नया दोस्त बना है. क्या बुराई है उस में. पढ़ने में अच्छा है. स्कूल में स्पोर्ट्स और म्यूजिक क्लब का ऐक्टिव मैंबर है. पढ़ाई में मेरी मदद करता है. सब से बड़ी बात मु  झे उस के साथ समय बिताना पसंद है पर न जाने क्यों घर में सब को ऐतराज है.’’

कुछ और किशोरियों के सवाल

‘‘बचपन से ही हम दोनों साथ खेलते आए थे. अगलबगल में घर थे. साथ स्कूल जाना, शाम को देर तक खेलना, तितलियों के पीछे भागना, फूल तोड़ना, चिडि़यों की चहचहाहट सुनना,

जुगनू पकड़ना, कच्चेपक्के फल तोड़ना. कभी किसी ने रोकाटोका नहीं. बेधड़क हो कर मैं उस के घर चली जाती थी और खुद वह कभी भी आ जाता था.

‘‘पर ये क्या, जब से मैं 9वीं कक्षा में आई हूं मेरा स्कूल भी बदल दिया है. मु  झे उस के साथ घूमने और बात करने पर भी रोक लगा दी जाती है. यों तो अब पढ़ाई के कारण बाहर खेलने का समय नहीं मिलता लेकिन कभी कुछ पूछने उस के घर भी जाना चाहूं तो भी मना कर दिया जाता है. न जाने क्या बात है, मैं सम  झ नहीं पाती.’’

‘‘मेरी मां को लगता है कि मैं बड़ी हो रही हूं. मु  झे घर के काम आने चाहिए. मैं इनकार नहीं करती पर मु  झे सब्जी काटने, आटा गूंधने का काम दे कर जब मां किट्टी में या सहेली के घर जाती हैं तो मु  झे जरा भी अच्छा नहीं लगता.’’

एक और टीनऐजर कहती है, ‘‘मेरा स्मार्टफोन इस्तेमाल करना और दोस्तों से बातें करना खासकर पापा को बिलकुल पसंद नहीं है.

‘‘मेरी तो समझ में ही नहीं आता कि मैं छोटी हूं या बड़ी. बड़े लोग अपने ढंग से हमारी उम्र को इंटरप्रेट करते हैं. कभी कह देते हैं कि अब तुम बड़े हो गए हो. सम  झदार हो जाओ और कभी अपने मन का कुछ करना चाहो तो कहते हैं अभी तुम छोटे हो.’’

ये सारे सवाल आज के नहीं हैं. वर्षों से ये सवाल बने हुए हैं. हां, आजादी की परिभाषा और दायरा समय के साथ जरूर बदल गया है. प्रसिद्ध लेखिका मन्नू भंडारी, जिन्होंने हाल में ही इस दुनिया से विदा ले ली, अपनी रचना ‘एक कहानी यह भी’ में अपनी जीवनयात्रा का वर्णन करते हुए कहती हैं कि किशोरावस्था से ही किसी न किसी बात पर पिता से विचारों का टकराव होता रहता था. पिता उन के अंदर कुंठा बन कर रहे.

स्वतंत्रता आंदोलन के दिनों जब वे नारे लगाते हुए सड़कों में घूमतीं तो पिता विरोध करते और वह कसक आज तक उन के मन में बनी हुई है. वे बताती हैं कि बचपन में वे सांवले रंग की थीं और दुबलीपतली थीं जबकि बड़ी बहन गोरी थी और सुंदर थी. पिता दोनों बहनों में हर वक्त तुलना करते थे, जिस ने में एक ऐसी हीनग्रंथि पैदा कर दी कि नाम और प्रतिष्ठा पाने के बावजूद वे उस से उबर नहीं पाईं.    Teenage Life

Grihshobha Empower Her Event in Noida – A Colorful Affair

Grihshobha Empower Her Event in Noida : On June 28, the Grihshobha Empower Her event was held at Rama Celebration Banquet Hall, Noida. The event was scheduled to begin at 11:30 AM, but by 11 AM, women had already started arriving with great enthusiasm to register and be a part of their favorite magazine’s event.

As you know, Grihshobha, India’s No. 1 Hindi women’s magazine, is published in 8 languages. It provides knowledge on health, beauty, cooking, financial planning, and more, offering a modern and balanced perspective to empower every woman. The Empower Her initiative has already been successfully held in Mumbai, Bengaluru, Ahmedabad, Lucknow, Indore, Chandigarh, Ludhiana, and Jaipur. Now, Season 3 of Empower Her began in Delhi and Mumbai, followed by Bengaluru, and now Noida, with more cities to follow.

After breakfast, the event began. As always, the host, Kritika, welcomed the women with great energy. Women of all ages—from teenagers to young and middle-aged—were present, radiating enthusiasm. After all, this event was not just a gathering but a celebration of confident, curious, stylish, smart, and active women.

Event Partners & Activities

The event’s main partners were:

  • HDFC Mutual Fund (Financial Education Partner)

  • Kisna Diamond & Gold Jewelry (Jewelry Partner)

  • Green Leaf Aloe Vera Gel (Beauty Partner by Brihans Natural Products)

The event kicked off with promotional videos by Delhi Press, followed by a Bollywood dance warm-up game, where women danced and enjoyed themselves.

Session 1: Women’s Mental Health

Speaker: Shirley Raj (Clinical Psychologist)
Shirley Raj, a consultant psychologist, trainer, and former faculty at Amity University, emphasized the importance of self-care for women. She explained that self-care is not selfish but a necessity. Key takeaways:

  • Reduce screen time

  • Express emotions openly

  • Learn to say “NO”

  • Seek professional help if needed

  • A happy woman creates a positive home environment

Session 2: SIP Saheli – Financial Session

Speaker: Khushboo Pandey (Financial Educator & Mutual Fund Expert)
With over 10 years of experience in top financial firms like Kotak, ICICI Prudential, and DSP, Khushboo now works with HDFC AMC. She educated women on:

  • Goal-based investment strategies

  • Systematic Investment Plans (SIPs)

  • Long-term wealth creation

  • HDFC Mutual Fund’s SIP Saheli initiative

Kisna Diamond & Gold Jewelry Session

Speaker: Rajesh Purohit (COO, Kisna Diamond & Gold Jewelry)
He highlighted how gold and diamonds symbolize strength, elegance, and timeless beauty. A fun Q&A round was held, with winners receiving gifts from Kisna.

Session 3: Beauty & Skincare

Speaker: Dr. Akanksha Jain (Skin & Beauty Expert) With 20+ years of experience at top clinics like VLCC, Arogya, and Alive Wellness, Dr. Jain shared:

  • Why skincare is essential at every age

  • Customized skincare based on skin type

  • Beauty tips for glowing skin

Games, Prizes & Lunch

Throughout the event, games and Q&A rounds kept the energy high, with winners receiving exciting gifts. The event concluded with lunch and goodie bags, leaving the women happy and empowered.

This Grihshobha Empower Her event in Noida was a perfect blend of knowledge, fun, and empowerment, inspiring women to take charge of their mental health, finances, and beauty with confidence!

Inspiring Story : मैं खुद से कॉम्पीटिशन करने में बिलीव करती हूं – अनीता शेखावत 

 Inspiring Story :  जोधपुर की अनीता शेखावत उन के लिए प्रेरणा है, जो हारने के बाद हताश हो जाती हैं. मीठी सी शक्लोसूरत की अनीता का जन्म आर्मी बैकग्राउंड की फैमिली में हुआ था इसलिए बचपन में ही अनुशासन से गहरी दोस्ती हो गई थी. बड़े होकर अपनी एक अलग पहचान बनानी थी इसलिए कॉलेज की पढ़ाई खत्म होने के बाद प्रतियाेगी परीक्षाएं देनी शुरू की. काफी मेहनत करती रहीं, इस बीच शादी हो गई हालांकि उन्होंने अपनी पढ़ाई जारी रखी. 

अनीता बताती हैं, “मैंने कई सारे एग्जाम्स दिए जैसे आईएएस, राजस्थान एडमिनिस्ट्रेटिव सर्विसेज, पीओ  लेकिन फिर मैं थक गई और बुरी तरह से हताश हो गई. तब मैं खुद से इतनी निराश हो गई थी कि मन ही मन यह सोच लिया था कि अब मुझे कुछ नहीं करना है. लेकिन कुछ महीनों में ही मन की यह सोच ने हार मान लिया और कुछ करगुजरने के इरादे ने सिर उठा लिया. मैंने एक नई शुरुआत करनी चाही. खुद को एकऔर मौका देने की ठानी.” 

जहां जिंदगी ने खुशनुमा मोड़ लिया 

अनीता के अनुसार, “इन दिनों मैं एक ट्रेनिंग प्रोग्राम का विज्ञापन देखा और उसे जॉइन कर लिया.  यही से मेरी जिंदगी बदल गई.  ट्रेनिंग के ये दिन मेरी जिंदगी का टर्निंग पौइंट था, इस ट्रे निंग में मेरी कई ऐसी महिलाओं से मुलाकात हुई जिसमें से हर कोई बिजनेस कर रही थी जबकि इसके ठीक विपरीत मैं किसी व्यवसायिक घराने से ताल्लुक नहीं रखती थी, दूसरे शब्दों में कहा जाए, तो मेरी फैमिली में दूरदूर तक किसी का बिजनेस से कोई लेनादेना नहीं था. मेरे लिए यह दुनिया बहुत ही अलग थी.”

बिजनेस का गणित समझना आसान नहीं था
पंद्रह दिनों की ट्रैनिंग के दौरान अनीता की मुलाकात कई ऐसी महिलाओं से हुई जो बिजनेस कर रही थी जबकि इसके ठीक विपरीत अनीता किसी व्यवसायिक घराने से ताल्लुक नहीं रखती थी, दूसरे शब्दों में कहा जाए, तो उनकी फैमिली में दूरदूर तक किसी का बिजनेस से कोई लेनादेना नहीं था. उनके लिए यह दुनिया बहुत ही अलग थी. फिर भी वह इसमें जाने को आतुर थी, रिस्क लेने को तैयार थी लेकिन अभी भी एक सवाल उनके सामने मुंह बाये खड़ा था.

.अनीता बताती हैं, “मैंने बिजनेस में हाथ आजमाना चाहा लेकिन तब भी एक प्रश्न था कि किस बिजनेस में हाथ आजमाया जाए और आखिरकार काफी सोचने और रिसर्च करने के बाद मैंने टेक्सटाइल की विशाल दुनिया में अपने लिए छोटी जगह तलाशने की मुहिम शुरू कर दी. इसके लिए मैंने फैशन डिजाइनिंग करने की सोची और इसका डिप्लोमा कोर्स किया.”  

महिला होने का सच 

अब भी अनीता शेखावत के पास कई चैलेंज थे, वह शादीशुदा थी, एक पारंपरिक राजपूत फैमिली की बहू थी इसलिए ससुरालवालों को इस नई शुरुआत के लिए मनाना टेढ़ी खीर था. अनीता इस बात पर जोर देती है कि इस वक्त केवल मेरे साइंटिस्ट हसबैंड का साथ था.  अनीता के लिए बिजनेस शुरू करने के रास्ते में एक और बाधा थी और वह थी व्यापार के लिए पूंजी कहां से आएगी, स्वाभिमानी अनीता किसी से पैसे नहीं लेना चाहती थी इसलिए उन्होंने जीरो से ही शुरुआत करने की ठानी. 

शुरुआत के वे दिन

उन दिनों को याद करते हुए अनीता बताती हैं कि फाइनैंस की बात तो दूर है मोरल सपोर्ट तक नहीं मिल पा रहा था, हर किसी की बातें निराश करने वाली थी. सदियों से महिलाओं पर जो बंदिशें डाली गई है या समाज के नाम पर स्त्रियों के सपनों को जिन बेड़ियों में बांधा गया है, उसे तोड़ना आसान नहीं था लेकिन इस बार उनका इरादा पक्का था,  जिद पक्की थी. इसी जिद ने उनके क्लोदिंग ब्रांड की महारानीसा डिजाइन की नींव रखी. उन्होंने राजपूताना पंरपराओं को अपने क्लाेदिंग ब्रांड के प्रोडक्ट्स में पेश किया. पत्ते, फूल, पंछी के मोटिफ्स में गोल्डन, सिल्वर जरी, चटक रंगों से इमोशन्स भरा और एक से बढ़ कर एक डिजाइन की रचना कर डाली. 

ढूढ़िंए, अपने अंदर की अनीता को

उन दिनों को याद करते हुए अनीता ने सुनाया कि चुनौतियां आज भी है, महिला होने की वजह से पारिवारिक जिम्मेदारियां अधिक है, बिजनेसवुमन होने की वजह से मार्केट की व्यवस्था को लेकर भी प्रेशर होता है. करीब आठ साल हो गए हैं बिजनेस को शुरू किए हुए लेकिन आज भी मेरी ऊर्जा उस दिन की तरह है जब मैंने इसे शुरू किया था. 

अनीता शेखावत की आज अलग पहचान है. वह एक सफल बिजनेसवुमन बन गई हैं. आज बिजनेस से जुड़े इवेंट्स का अहम हिस्सा बन चुकी हैं. आज ढेरों महिलाओं को वह सफल बिजनेस व होने के गुर बताती हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि उन्हें सुननेवाली हर महिला में एक अनीता शेखावत छिपी है, सफलता जिसकी राह देख रही है.

 

Hindi Social Story: ठीक फरमाया जानेमन

Hindi Social Story: बाहर की आवाज सुन कर ड्राइंगरूम में बैठे पल्लवी और रोहित के चेहरों पर घबराहट के भाव उभरे.

फ्लैट की मालकिन शिखा रसोई से निकल कर दरवाजा खोलने बढ़ गई. मन में चोर होने के कारण पल्लवी और रोहित के दिलों की धड़कनें पलपल बढ़ने लगीं.

शिखा फौरन बदहवास सी वापस लौटी और धीमी, उत्तेजित आवाज में उन्हें बताया कि विकास आया है.

‘‘ओह अब क्या करें?’’ अपने पति के आगमन की बात सुन कर पल्लवी का चेहरा पीला पड़ गया.

‘‘इतना मत डरो. हम उसे बताएंगे कि मैं शिखा का परिचित हूं, तुम्हारा नहीं,’’ खुद को संयत रखने का प्रयास करते हुए रोहित ने पल्लवी को बचाव का रास्ता सुझाया.

‘‘तब मैं अंदर वाले कमरे में जा कर बैठती हूं,’’ कह पल्लवी झटके से उठी और लगभग भागती हुई शिखा के शयनकक्ष में घुस गई.

अपनी घबराहट पर काबू पाने के लिए पल्लवी पलंग पर बैठ गहरीगहरी सांसें लेने लगी. ड्राइंगरूम से आ रही इन तीनों की आवाजें उसे साफ सुनाई दे रही थीं.

विकास से पल्लवी की शादी को अभी 3 महीने हुए थे. वह 2 दिनों के लिए मायके में रहने आईर् थी. विकास तो उसे शाम को साथ लिवा ले जाने के लिए आने वाला था. वह

जल्दी क्यों आ गया है, इस का कोई कारण पल्लवी की सम?ा में नहीं आया. वह यहां अपनी सब से पक्की सहेली शिखा के घर आई हुई है, यह जानकारी विकास को उस की मां ने ही दी थी.

रोहित पल्लवी का विवाहपूर्व का प्रेमी था. उस ने ही यहां शिखा के फ्लैट में उस से मिलने का कार्यक्रम बनाया था. विकास ने अचानक यहां पहुंच कर उस के पैरों तले से जमीन खिसका दी थी.

बाहर शिखा ने रोहित को अपना पुराना सहपाठी बताते हुए उस का विकास से परिचय कराया. वैसे यह सच ही था. दोनों कालेज में साथ पढ़े थे. पल्लवी से रोहित का प्रथम परिचय शिखा ने ही करीब 2 साल पहले कराया था.

‘‘तुम दोनों प्यारमुहब्बत की बातें करो, मैं इतने में चाय लाती हूं,’’ विकास को पल्लवी के पास छोड़ कर शिखा होंठों पर मुसकान और आंखों में चिंता के भाव लिए रसोई की तरफ चली गई.

‘‘कैसी हो जानेमन. याद आई मेरी?’’ विकास ने हाथ फैला कर उसे छाती से आ लगने का निमंत्रण दिया.

‘‘आप को आई?’’ आगे बढ़ कर पल्लवी अपने पति की बांहों के घेरे में समा गई.

‘‘बेहद. एक बात तो बताओ?’’

‘‘क्या?’’

‘‘यह रोहित मु?ा से घबराया हुआ सा क्यों मिला?’’

‘‘वह भला आप से क्यों घबराएगा?’’

‘‘इसी बात से मैं हैरान हुआ. अच्छा, तुम यहां क्यों बैठी हो? क्या उन दोनों ने भगा दिया.’’

‘‘ये कैसी बातें कर रहे हो आप? मेरे सिर में दर्द हो रहा था, इसलिए कुछ देर लेटने को यहां चली आई थी. वे दोनों मुझे क्यों भगाएंगे?’’

‘‘मुझे ऐसा क्यों महसूस हो रहा है कि तुम्हारी सहेली और रोहित के बीच गलत तरह का संबंध है?’’

‘‘आप को गलतफहमी हो रही है. शिखा ऐसी लड़की…’’

‘‘तुम तो अपनी सहेली का बचाव करोगी ही, पर रोहित की घबराहट. तुम्हारा यहां अकेला बैठना. शिखा का मुझ से नजरें चुराना. तुम कुछ भी कहो, पर मेरा दिल कहता है कि शिखा अपने पति नीरज के साथ विश्वासघात कर रही है,’’ विकास अचानक गुस्से से भर उठा.

‘‘ऐसा कुछ भी नहीं है. इन दोनों के बीच दोस्ती के अलावा किसी और तरह का संबंध नहीं है,’’ पल्लवी ने विकास के शक को दूर करने की कोशिश करी.

विकास ने पल्लवी की बात को अनसुना करते हुए कठोर लहजे में कहा, ‘‘शादी के बाद भी जो स्त्रियां प्रेमी पालने का अपना शौक कायम रखती हैं उन्हें गोली मार देनी चाहिए. मैं पता करता हूं सच्चाई क्या है.’’

‘‘क्या करोगे आप?’’ पल्लवी घबरा उठी.

‘‘रोहित से बातें कर के सच्चाई भांप लूंगा. दाल में कुछ काला निकला तो नीरज भाई को उस की पत्नी की चरित्रहीनता की खबर भी मैं ही दूंगा.’’

‘‘आप का शक बिलकुल बेबुनियाद है.’’

‘‘इस का फैसला कुछ ही देर में हो जाएगा, डियर. तुम मु?ो 1 गिलास पानी पिला दो, प्लीज.’’

कुछ मिनट बाद पल्लवी पानी का गिलास ले कर लौटी, तो उस ने विकास को अपना मोबाइल फोन जेब में रखते देखा.

‘‘किसे फोन किया है आप ने?’’ पल्लवी घबरा सी उठी.

‘‘नीरज को,’’ संक्षिप्त सा जवाब दे कर बेहद गंभीर नजर आता विकास पानी पीने लगा.

‘‘क्या कहा है आप ने उस से?’’

‘‘फिलहाल कुछ खास नहीं. मैं रोहित के साथ हूं,’’ विकास ने पल्लवी का माथा चूमा और फिर ड्राइंगरूम की तरफ चल पड़ा.

मन ही मन डर, घबराहट और बेचैनी का शिकार बनी पल्लवी उस के पीछेपीछे ड्राइंगरूम में चली आई. तभी शिखा ने भी चायनाश्ते की ट्रे हाथों में पकड़े वहां कदम रखा.

चाय पीते हुए विकास ने तो रोहित से खूब बातें करने की काफी कोशिश करी, पर वह कम ही बोला. उस के गोलमोल से जवाब पल्लवी को अजीब से लग रहे थे. इस बात से उस के मन ने कुछ राहत जरूर महसूस करी कि विकास को रत्तीभर ऐसा शक नहीं हुआ कि कहीं रोहित और उस के बीच तो गलत चक्कर नहीं चल रहा है.

चाय समाप्त करते ही रोहित जाने के लिए अचानक उठ खड़ा हुआ. विकास ने उसे रोकने के लिए काफी कोशिश करी, पर वह नहीं रुका.

रोहित को विदा करने शिखा के साथसाथ विकास भी बाहर तक आया. उस की मोटरसाइकिल आंखों से ओझल हुई ही थी कि नीरज अपने स्कूटर पर घर आ पहुंचा.

‘‘आप औफिस से इस वक्त कैसे आ गए?’’ शिखा ने चौंकते हुए अपने पति से सवाल किया.

‘‘विकास ने फोन कर के बुलाया है,’’

नीरज ने उल?ानभरे अंदाज में विकास की तरफ देखा.

‘‘तुम ने बताया नहीं कि  ये आ रहे हैं?

क्या हम सब को पार्टी दे रहे हो?’’ विकास की तरफ मुसकरा कर देखते हुए शिखा ने सवाल किया.

घर के भीतर की तरफ बढ़ते हुए विकास ने बेचैन लहजे में जवाब दिया, ‘‘जिस से मिलाने को तुम्हें बुलाया था वह तो अभीअभी चला गया.’’

‘‘कौन आया था?’’ नीरज ने शिखा से सवाल किया.

‘‘रोहित. मेरे साथ कालेज में पढ़ता था. मैं पानी ले कर आती हूं,’’ अपने पति के कुछ बोलने से पहले ही शिखा रसोई की तरफ चली गई.

पल्लवी उस के पीछेपीछे रसोई में पहुंची. घबराई आवाज में उस ने विकास के मन में उपजे शक की जानकारी शिखाको दे दी.

‘‘अब अपने शक की चर्चा वह नीरज से जरूर कर रहा होगा. तू ने यह कैसी मुसीबत में फंसा दिया मुझे, पल्लवी,’’ शिखा ने दोनों हाथों से सिर थाम लिया.

‘‘देख, अब तुझे ही मेरी जान बचानी है. विकास और नीरज दोनों को ही सच्चाई पता नहीं चलनी चाहिए,’’ पल्लवी के चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं.

‘‘अगर नीरज के मन में गलत तरह का शक पैदा करने में तेरा पति सफल हो गया, तो अपने को निर्दोष साबित करने के लिए मु?ो उन्हें यह बताना ही पड़ेगा कि रोहित तुझ से मिलने आया था.’’

‘‘प्लीज, ऐसी भूल बिलकुल मत करना,’’ पल्लवी विनती कर उठी.

‘‘नीरज मेरे चरित्र पर शक करें, यह मेरे लिए डूब मरने वाली बात होगी पल्लवी.’’

‘‘वे विकास की तरह गरम दिमाग वाले इंसान नहीं हैं. तू उन्हें देरसवेर समझा लेगी, संभाल लेगी.’’

‘‘ये सब तू ही विकास के साथ कर लेना न.’’

‘‘तू समझने की कोशिश कर, प्लीज,’’ पल्लवी का गला भर आया, ‘‘हमारे बीच संबंध तनावपूर्ण चल रहे हैं. ससुराल में मेरी कोई कद्र नहीं है. मेरी अलग होने की इच्छा का विकास जबरदस्त विरोध करते हैं. यह इंसान अगर मेरी भावनाओं को सम?ाता होता, तो अपने पुराने

प्रेमी से अपना सुखदुख बांटने को मैं रोहित को क्यों बुलाती.’’

‘‘मैं ने तो तुझे पहले ही ऐसा गलत और खतरनाक कदम उठाने को मना किया था, लेकिन तू ने अपने एहसान की याद दिला कर

मु?ो चुप करा दिया. मुझे तेरी बात सुननी ही नहीं चाहिए थी,’’ शिखा बेचैनी भरे अंदाज में हाथ मलने लगी.

‘‘तुम्हें अपने पापा के दिल के औपरेशन के लिए जब रुपयों की जरूरत थी तब मैं तुम्हारे काम आई थी. अब तुम मेरी सब से अच्छी सहेली होने का फर्ज निभाओ, शिखा.’’

‘‘तेरे दिए 50 हजार रुपए तो मैं किश्तों में लौटा रही हूं, पर मेरी शादी टूट गई, तो तू कैसे मेरा नुकसान पूरा करेगी?’’

‘‘ऐसा कुछ नहीं होगा शिखा.’’

शिखा कुछ कहती उस से पहले ही नीरज ने गुस्से से भरे अंदाज में उसे आवाज दे कर ड्राइंगरूम में बुला लिया.

पल्लवी ने दयनीय अंदाज में शिखा के सामने हाथ जोड़ दिए, ‘‘प्लीज, विकास को कुछ पता नहीं चलना चाहिए.’’

शिखा ने कुछ झिझकने के बाद अपनी सहेली का कंधा प्यार से दबा कर उसे आश्वस्त किया और फिर तेजी से ड्राइंगरूम की तरफ चल पड़ी. डरीघबराई सी पल्लवी बोझील अंदाज में उस के पीछेपीछे

ड्राइंगरूम में पहुंच गई. विकास और नीरज दोनों ने ही उस की तरफ कोई ध्यान नहीं दिया. उन दोनों की नजरों का केंद्र शिखा बनी हुई थी.

‘‘यह रोहित यहां क्यों आया था?’’ गुस्से के मारे नीरज की आवाज अपनी पत्नी से यह सवाल पूछते हुए कांप रही थी.

‘‘मु?ा से मिलने,’’ शिखा ने संजीदा लहजे में जवाब दिया.

‘‘पहले कितनी बार आ चुका है?’’

‘‘मु?ो आप के सवाल पूछने का ढंग अपमानित करने वाला लग रहा है. विकास को गलतफहमी…’’

‘‘शटअप. मेरे सवाल का सीधा जवाब दो,’’ नीरज ने उसे डांट कर आगे बोलने से रोक दिया.

‘‘उस ने आज पहली बार यहां कदम रखा था.’’

‘‘सच बोल रही हो?’’

जवाब में शिखा खामोश रही और उस का मुंह फूल गया.

‘‘रोहित से तुम्हें ऐसी क्या बातें करनी थीं जो तुम ने पल्लवी को अलग कमरे में भेज दिया?’’

‘‘रोहित के आने भर से यानी इस एक सी घटना के कारण क्या आप मेरे चरित्र पर

शक कर रहे हो?’’ शिखा की आंखों में आंसू ?ालकने लगे.

‘‘इस छोटी सी घटना ने मेरे विश्वास को डगमगा दिया है. इस मामले की मैं पूरी तहकीकात करूंगा, इसलिए ?ाठ मत बोलना,’’ नीरज ने धमकी दी.

‘‘आप पहले तहकीकात ही कर लो. अब मैं आप के किसी सवाल का जवाब नहीं दूंगी.’’

‘‘मेरे सवालों के जवाब नहीं दोगी, तो इस घर में भी नहीं रह सकोगी.’’

‘‘इस छोटी सी बात के लिए आप मुझे घर से निकाल दोगे?’’

‘‘यह छोटी सी बात नहीं है,’’ नीरज यों चिल्लाया जैसे गुस्से से पागल हो गया हो.

शिखा सहमी सी उठ कर शयनकक्ष की तरफ जाने लगी तो नीरज ने आगे बढ़ कर उस का हाथ पकड़ लिया और क्रोधित लहजे में पूछा, ‘‘मेरे सवाल का जवाब दिए बिना तुम कहां जा रही हो?’’

‘‘वहीं जहां घर से पति द्वारा अपमानित कर के निकाल दी गई शादीशुदा स्त्री जाती है,’’ शिखा रोंआसी हो उठी.

‘‘अपने घर जा रही हो?’’

‘‘हां.’’

‘‘मेरे सवालों के जवाब नहीं दोगी?’’

‘‘अपनी तहकीकात से मिल जाएंगे आप को जवाब.’’

‘‘जाओ मरो. इस घर में तुम्हारे लिए अब कोईर् जगह नहीं है,’’ नीरज ने उसे जोर से धक्का दे दिया.

शिखा के पीछेपीछे पल्लवी भी उस के शयनकक्ष में पहुंच गई. अपनी सहेली को सूटकेस में कपड़े लगाना शुरू करते देख वह बहुत परेशान हो उठी.

‘‘मुझे इन से ऐसे गलत व्यवहार की उम्मीद नहीं थी,’’ शिखा की मुखमुद्रा अब कठोर हो गई, ‘‘कितनी आसानी से शक कर के मुझे नीचे गिरा दिया इन्होंने. इतना कमजोर विश्वास. जब तक ये माफी नहीं मांगेंगे, मैं नहीं लौटूंगी.

‘‘आईएम सौरी, शिखा. ये सब मेरी नादानी की वजह से हो रहा है,’’ पल्लवी ने दुखी स्वर में अफसोस प्रकट किया.

‘‘विकास तु?ा पर शक करे तो बात सम?ा में आती है क्योंकि तेरे मन में खोट है, पर मैं तो नीरज के प्रति…’’

‘‘मेरे मन में कोई खोट नहीं है. मैं तो रोहित से कुछ देर बातें कर के अपना मन हलका करना चाहती थी, बस,’’ पल्लवी ने फौरन सफाई दी.

‘‘विवाहपूर्ण के प्रेमी से मुलाकात का सिलसिला एक बार शुरू करने के बाद किस मुकाम तक पहुंचेगा, यह कोई भी नहीं जान सकता. तू एक दिन जरूर पछताएगी, पर तेरे कारण मैं तो आज ही कितनी बड़ी मुसीबत में फंस गई हूं.’’

‘‘तू यों मायके मत जा,’’ परेशान पल्लवी ने उसे सलाह दी.

‘‘मैं उन्हें सच्ची बात तेरी वजह से नहीं बता सकती. यहां रही तो वे मु?ो रातदिन अपमानित करेंगे. हजारों सवाल पूछेंगे. मेरा कुछ दिनों के लिए मायके चले जाना ही ठीक है. जो होगा मैं भुगतूंगी, पर तेरा विवाह इस बार तो टूटने से बच ही जाएगा,’’ शिखा ने भावुक हो कर पल्लवी को अचानक गले से लगा लिया.

‘‘आज की भूल मैं जिंदगी में कभी नहीं दोहराऊंगी. ऐसी भूल किसी भी शादीशुदा स्त्री के घरकी सुखशांति और सुरक्षा हमेशा के लिए नष्ट कर सकती है, यह बात मैं ने हमेशा के लिए सम?ा ली है,’’ पल्लवी रो पड़ी.

‘‘क्या तू सच कह रही है?’’ शिखा ने उस की आंखों में प्यार से ?ांका.

‘‘बिलकुल.’’

‘‘अगर फिर कभी तेरे पांव भटके तो तू मेरा मरा मुंह…’’

‘‘ऐसा कभी नहीं होगा. कभी नहीं,’’ पल्लवी ने शिखा के मुंह पर हाथ रखा और फिर से रोने लगी.

‘‘तू ने मु?ो खुश कर दिया. अब मेरा भी मायके जाने का कार्यक्रम रद्द,’’ शिखा ने मुसकराते हुए सूटकेस बंद कर दिया.

‘‘अब क्या कहेगी नीरज से,’’ पल्लवी के मन की चिंता फिर उभर आई.

‘‘तेरी छवि नहीं खराब होने दूंगी. तू फिक्र न कर और विकास के साथ हंसीखुशी जीवन गुजारने का प्रयास दिल से कर. पति के होते हुए किसी रोहित के साथ सुखदुख बांटने की क्या जरूरत है सहेली?’’

‘‘कोई जरूरत नहीं रहेगी अब.’’

‘‘विकास को ले कर तू निकल जा. तुम दोनों के जाते ही मैं नीरज का विश्वास जीतने का काम फौरन शुरू कराना चाहती हूं.’’

‘‘ओके,’’ कह शिखा से गले मिल कर पल्लवी ने विदा मांगी और फिर मुड़ कर ड्राइंगरूम की तरफ चली गई.

करीब 5 मिनट बाद विकास और पल्लवी को विदा कर के नीरज शयनकक्ष में आया. उसे देखते ही शिखा मुसकराती हुई उस की छाती से लग गई.

‘‘किला फतह रहा?’’ नीरज ने उस का माथा चूमने के बाद सवाल पूछा.

‘‘फतह रहा. पल्लवी को ऐसा झटका लगा है कि फिर कभी गलत राह पर चलने की सोच कर भी उस का मन कांप उठेगा,’’ शिखा ने जवाब दे कर नीरज का हाथ चूम लिया.

‘‘उसे सही राह पर लाने का असली श्रेय तो रोहित को जाता है.’’

‘‘ठीक कह रहे हैं आप. पल्लवी उस से शादी के बाद फिर से प्रेम संबंध बनाना चाहती है, इस बात से परेशान व चिंतित हो कर उस ने हम दोनों से जो संपर्क किया वह उस के

सम?ादार व नेकदिल इंसान होने का सुबूत ही तो है.’’

‘‘क्या मैं उसे फोन कर के सारा नाटक ठीकठीक समाप्त हो जाने की जानकारी दे दूं?’’

‘‘अभी नहीं,’’ शिखा ने उस का गाल चूम कर शरमाते हुए कहा, ‘‘पहले प्यार के मीठे स्वाद से नाटक में मुंह से निकाले गए कड़वे संवादों का स्वाद तो बदल लें.’’

‘‘बिलकुल ठीक फरमाया आप ने, जानेमन,’’ नीरज ने उसे गोद में उठाया और मस्त अंदाज में पलंग की तरफ बढ़ चला. Hindi Social Story

Hindi Love Story: प्यार के मायने

Hindi Love Story: उससे मेरा कोई खास परिचय नहीं था. शादी से पहले जिस औफिस में काम करती थी, वहीं था वह. आज फ्रैंच क्लास अटैंड करते वक्त उस से मुलाकात हुई. पति के कहने पर अपने फ्री टाइम का सदुपयोग करने के विचार से मैं ने यह क्लास जौइन की थी.

‘‘हाय,’’ वह चमकती आंखों के साथ अचानक मेरे सामने आ खड़ा हुआ.

मैं मुसकरा उठी, ‘‘ओह तुम… सो नाइस टु मीट यू,’’ नाम याद नहीं आ रहा था मुझे उस का. उस ने स्वयं अपना नाम याद दिलाया, ‘‘अंकित, पहचाना आप ने?’’

‘‘हांहां, बिलकुल, याद है मुझे.’’

मैं ने यह बात जाहिर नहीं होने दी कि मुझे उस का नाम भी याद नहीं.

‘‘और सब कैसा है?’’ उस ने पूछा.

‘‘फाइन. यहीं पास में घर है मेरा. पति आर्मी में हैं. 2 बेटियां हैं, बड़ी 7वीं कक्षा में और छोटी तीसरी कक्षा में पढ़ती है.’’

‘‘वाह ग्रेट,’’ वह अब मेरे साथ चलने लगा था, ‘‘मैं 2 सप्ताह पहले ही दिल्ली आया हूं. वैसे मुंबई में रहता हूं. मेरी कंपनी ने 6 माह के प्रोजैक्ट वर्क के लिए मुझे यहां भेजा है. सोचा, फ्री टाइम में यह क्लास भी जौइन कर लूं.’’

‘‘गुड. अच्छा अंकित, अब मैं चलती हूं. यहीं से औटो लेना होगा मुझे.’’

‘‘ओके बाय,’’ कह वह चला गया.

मैं घर आ गई. अगले 2 दिनों की छुट्टी ली थी मैं ने. मैं घर के कामों में पूरी तरह व्यस्त रही. बड़ी बेटी का जन्मदिन था और छोटी का नए स्कूल में दाखिला कराना था.

2 दिन बाद क्लास पहुंची तो अंकित फिर सामने आ गया, ‘‘आप 2 दिन आईं नहीं. मुझे लगा कहीं क्लास तो नहीं छोड़ दी.’

‘‘नहीं, घर में कुछ काम था.’

वह चुपचाप मेरे पीछे वाली सीट पर बैठ गया. क्लास के बाद निकलने लगी तो फिर मेरे सामने आ गया, ‘‘कौफी?’’

‘‘नो, घर जल्दी जाना है. बेटी आ गई होगी, और फिर पति आज डिनर भी बाहर कराने वाले हैं,’’ मैं ने उसे टालनाचाहा.

‘‘ओके, चलिए औटो तक छोड़ देता हूं,’’ वह बोला.

मुझे अजीब लगा, फिर भी साथ चल दी. कुछ देर तक दोनों खामोश रहे. मैं सोच रही थी, यह तो दोस्ती की फिराक में है, जब कि मैं सब कुछ बता चुकी हूं. पति हैं, बच्चे हैं मेरे. आखिर चाहता क्या है?

तभी उस की आवाज सुनाई दी, ‘‘आप को किरण याद है?’’

‘‘हां, याद है. वही न, जो आकाश सर की पीए थी?’’

‘‘हां, पता है, वह कनाडा शिफ्ट हो गई है. अपनी कंपनी खोली है वहां. सुना है किसी करोड़पति से शादी की है.’’

‘‘गुड, काफी ब्रिलिऐंट थी वह.’’

‘‘हां, मगर उस ने एक काम बहुत गलत किया. अपने प्यार को अकेला छोड़ कर चली गई.’’

‘‘प्यार? कौन आकाश?’’

‘‘हां. बहुत चाहते थे उसे. मैं जानता हूं वे किरण के लिए जान भी दे सकते थे. मगर आज के जमाने में प्यार और जज्बात की कद्र ही कहां होती है.’’

‘‘हूं… अच्छा, मैं चलती हूं,’’ कह मैं ने औटो वाले को रोका और उस में बैठ गई.

वह भी अपने रास्ते चला गया. मैं सोचने लगी, आजकल बड़ी बातें करने लगा है, जबकि पहले कितना खामोश रहता था. मैं और मेरी दोस्त रिचा अकसर मजाक उड़ाते थे इस का. पर आज तो बड़े जज्बातों की बातें कर रहा है. मैं मन ही मन मुसकरा उठी. फिर पूरे रास्ते उस पुराने औफिस की बातें ही सोचती रही. मुझे समीर याद आया. बड़ा हैंडसम था. औफिस की सारी लड़कियां उस पर फिदा थीं. मैं भी उसे पसंद करती थी. मगर मेरा डिवोशन तो अजीत की तरफ ही था. यह बात अलग है किअजीत से शादी के बाद एहसास हुआ कि 4 सालों तक हम ने मिल कर जो सपने देखे थे उन के रंग अलगअलग थे. हम एकदूसरे के साथ तो थे, पर एकदूसरे के लिए बने हैं, ऐसा कम ही महसूस होता था. शादी के बाद अजीत की बहुत सी आदतें मुझे तकलीफ देतीं. पर इंसान जिस से प्यार करता है, उस की कमियां दिखती कहां हैं?

शादी से पहले मुझे अजीत में सिर्फ अच्छाइयां दिखती थीं, मगर अब सिर्फ रिश्ता निभाने वाली बात रह गई थी. वैसे मैं जानती हूं, वे मुझे अब भी बहुत प्यार करते हैं, मगर पैसा सदा से उन के लिए पहली प्राथमिकता रही है. मैं भी कुछ उदासीन सी हो गई थी. अब दोनों बच्चियों को अच्छी परवरिश देना ही मेरे जीवन का मकसद रह गया था.

अगले दिन अंकित गेट के पास ही मिल गया. पास की दुकान पर गोलगप्पे खा रहा था. उस ने मुझे भी इनवाइट किया पर मैं साफ मना कर अंदर चली गई.

क्लास खत्म होते ही वह फिर मेरे पास आ गया, ‘‘चलिए, औटो तक छोड़ दूं.’’

‘‘हूं,’’ कह मैं अनमनी सी उस के साथ चलने लगी.

उस ने टोका, ‘‘आप को वे मैसेज याद हैं, जो आप के फोन में अनजान नंबरों से आते थे?’’

‘‘हां, याद हैं. क्यों? तुम्हें कैसे पता?’’ मैं चौंकी.

‘‘दरअसल, आप एक बार अपनी फ्रैंड को बता रही थीं, तो कैंटीन में पास में ही मैं भी बैठा था. अत: सब सुन लिया. आप ने कभी चैक नहीं किया कि उन्हें भेजता कौन है?’’

‘‘नहीं, मेरे पास इन फुजूल बातों के लिए वक्त कहां था और फिर मैं औलरैडी इंगेज थी.’’

‘‘हां, वह तो मुझे पता है. मेरे 1-2 दोस्तों ने बताया था, आप के बारे में. सच आप कितनी खुशहाल हैं. जिसे चाहा उसी से शादी की. हर किसी के जीवन में ऐसा कहां होता है? लोग सच्चे प्यार की कद्र ही नहीं करते या फिर कई दफा ऐसा होता है कि बेतहाशा प्यार कर के भी लोग अपने प्यार का इजहार नहीं कर पाते.’’

‘‘क्या बात है, कहीं तुम्हें भी किसी से बेतहाशा प्यार तो नहीं था?’’ मैं व्यंग्य से मुसकराई तो वह चुप हो गया.

मुझे लगा, मेरा इस तरह हंसना उसे बुरा लगा है. शुरू से देखा था मैं ने. बहुत भावुक था वह. छोटीछोटी बातें भी बुरी लग जाती थीं. व्यक्तित्व भी साधारण सा था. ज्यादातर अकेला ही रहता. गंभीर, मगर शालीन था. उस के 2-3 ही दोस्त थे. उन के काफी करीब भी था. मगर उसे इधरउधर वक्त बरबाद करते या लड़कियों से हंसीमजाक करते कभी नहीं देखा था.

मैं थोड़ी सीरियस हो कर बोली, ‘‘अंकित, तुम ने बताया नहीं है,’’ तुम्हारे कितने बच्चे हैं और पत्नी क्या करती है?

‘‘मैडम, आप की मंजिल आ गई, उस ने मुझे टालना चाहा.’’

‘‘ठीक है, पर मुझे जवाब दो.’’

मैं ने जिद की तो वह मुसकराते हुए बोला, ‘‘मैं ने अपना जीवन एक एनजीओ के बच्चों के नाम कर दिया है.’’

‘‘मगर क्यों? शादी क्यों नहीं की?’’

‘‘क्योंकि हर किसी की जिंदगी में प्यार नहीं लिखा होता और बिना प्यार शादी को मैं समझौता मानता हूं. फिर समझौता मैं कभी करता नहीं.’’

वह चला गया. मैं पूरे रास्ते उसी के बारे में सोचती रही. मैं पुराने औफिस में अपनी ही दुनिया में मगन रहती थी. उसे कभी अहमियत नहीं दी. मैं उस के बारे में और जानने को उत्सुक हो रही थी. मुझे उस की बातें याद आ रही थीं. मैं सोचने लगी, उस ने मैसेज वाली बात क्यों कही? मैं तो भूल भी गई थी. वैसे वे मैसेज बड़े प्यारे होते थे. 3-4 महीने तक रोज 1 या 2 मैसेज मुझे मिलते, अनजान नंबरों से. 1-2 बार मैं ने फोन भी किया, मगर कोई जवाब नहीं मिला.

घर पहुंच कर मैं पुराना फोन ढूंढ़ने लगी. स्मार्ट फोन के आते ही मैं ने पुराने फोन को रिटायर कर दिया था. 10 सालों से वह फोन मेरी अलमारी के कोने में पड़ा था. मैं ने उसे निकाल कर उस में नई बैटरी डाली और बैटरी चार्ज कर उसे औन किया. फिर उन्हीं मैसेज को पढ़ने लगी. उत्सुकता उस वक्त भी रहती थी और अब भी होने लगी कि ये मैसेज मुझे भेजे किस ने थे? जरूर अंकित इस बारे में कुछ जानता होगा, तभी बात कर रहा था. फिर मैं ने तय किया कि कल कुरेदकुरेद कर उस से यह बात जरूर उगलवाऊंगी.

पर अगले 2-3 दिनों तक अंकित नहीं आया. मैं परेशान थी. रोज बेसब्री से उस का इंतजार करती. चौथे दिन वह दिखा.मुझ से रहा नहीं गया, तो मैं उस के पास चली गई. फिर पूछा, ‘‘अंकित, इतने दिन कहां थे?’’

वह चौंका. मुझे करीब देख कर थोड़ा सकपकाया, फिर बोला, ‘‘तबीयत ठीक नहीं थी.’’

‘‘तबीयत तो मेरी भी कुछ महीनों से ठीक नहीं रहती.’’

‘‘क्यों, क्या हुआ?’’ उस ने चिंतित स्वर में पूछा.

‘‘बस किडनी में कुछ प्रौब्लम है.’’

‘‘अच्छा, तभी आप के चेहरे पर थकान और कमजोरी सी नजर आती है. मैं सोच भी रहा था कि पहले जैसी रौनक चेहरे पर नहीं दिखती.’’

‘‘हां, दवा जो खा रही हूं,’’ मैं ने कहा.

फिर सहज ही मुझे मैसेज वाली बात याद आई. मैं ने पूछा, ‘‘अच्छा अंकित, यह बताओ कि वे मैसेज कौन भेजता था मुझे? क्या तुम जानते हो उसे?’’

वह मेरी तरफ एकटक देखते हुए बोला, ‘‘हां, असल में मेरा एक दोस्त था. बहुत प्यार करता था आप से पर कभी कह नहीं पाया. और फिर जानता भी था कि आप की जिंदगी में कोई और है, इसलिए कभी मिलने भी नहीं आया.’’

‘‘हूं,’’ मैं ने लंबी सांस ली, ‘‘अच्छा, अब कहां है तुम्हारा वह दोस्त?’’

वह मुसकराया, ‘‘अब निधि वह इस दुनिया की भीड़ में कहीं खो चुका है और फिर आप भी तो अपनी जिंदगी में खुश हैं. आप को परेशान करने वह कभी नहीं आएगा.’’

‘‘यह सही बात है अंकित, पर मुझे यह जानने का हक तो है कि वह कौन है और उस का नाम क्या है’’

‘‘वक्त आया तो मैं उसे आप से मिलवाने जरूर लाऊंगा, मगर फिलहाल आप अपनी जिंदगी में खुश रहिए.’’

मैं अंकित को देखती रह गई कि यह इस तरह की बातें भी कर सकता है. मैं मुसकरा उठी. क्लास खत्म होते ही अंकित मेरे पास आया और औटो तक मुझे छोड़ कर चला गया.

उस शाम तबीयत ज्यादा बिगड़ गई. 2-3 दिन मैं ने पूरा आराम किया. चौथे दिन क्लास के लिए निकली तो बड़ी बेटी भी साथ हो ली. उस की छुट्टी थी. उसी रास्ते उसे दोस्त के यहां जाना था. इंस्टिट्यूट के बाहर ही अंकित दिख गया. मैं ने अपनी बेटी का उस से परिचय कराते हुए बेटी से कहा, ‘‘बेटा, ये हैं आप के अंकित अंकल.’’

तभी अंकित ने बैग से चौकलेट निकाला और फिर बेटी को देते हुए बोला, ‘‘बेटा, देखो अंकल आप के लिए क्या लाए हैं.’’

‘‘थैंक्यू अंकल,’’ उस ने खुशी से चौकलेट लेते हुए कहा, ‘‘अंकल, आप को कैसे पता चला कि मैं आने वाली हूं?’’

‘‘अरे बेटा, यह सब तो महसूस करने की बात है. मुझे लग रहा था कि आज तुम मम्मी के साथ आओगी.’’

वह मुसकरा उठी. फिर हम दोनों को बायबाय कह कर अपने दोस्त के घर चली गई. हम अपनी क्लास में चले गए.

अंकित अब मुझे काफी भला लगने लगा था. किसी को करीब से जानने के बाद ही उस की असलियत समझ में आती है. अंकित भी अब मुझे एक दोस्त की तरह ट्रीट करने लगा, मगर हमारी बातचीत और मुलाकातें सीमित ही रहीं. इधर कुछ दिनों से मेरी तबीयत ज्यादा खराब रहने लगी थी. फिर एक दिन अचानक मुझे हौस्पिटल में दाखिल होना पड़ा. सभी जांचें हुईं. पता चला कि मेरी एक किडनी बिलकुल खराब हो गई है. दूसरी तो पहले ही बहुत वीक हो गई थी, इसलिए अब नई किडनी की जरूरत थी. मगर मुझ से मैच करती किडनी मिल नहीं रही थी. सब परेशान थे. डाक्टर भी प्रयास में लगे थे.

एक दिन मेरे फोन पर अंकित की काल आई. उस ने मेरे इतने दिनों से क्लास में न आने पर हालचाल पूछने के लिए फोन किया था. फिर पूरी बात जान उस ने हौस्पिटल का पता लिया. मुझे लगा कि वह मुझ से मिलने आएगा, मगर वह नहीं आया. सारे रिश्तेदार, मित्र मुझ से मिलने आए थे. एक उम्मीद थी कि वह भी आएगा. मगर फिर सोचा कि हमारे बीच कोई ऐसी दोस्ती तो थी नहीं. बस एकदूसरे से पूर्वपरिचित थी, इसलिए थोड़ीबहुत बातचीत हो जाती थी. ऐसे में यह अपेक्षा करना कि वह आएगा, मेरी ही गलती थी.

समय के साथ मेरी तबीयत और बिगड़ती गई. किडनी का इंतजाम नहीं हो पा रहा था. फिर एक दिन पता चला कि किडनी डोनर मिल गया है. मुझे नई किडनी लगा दी गई. सर्जरी के बाद कुछ दिन मैं हौस्पिटल में ही रही. थोड़ी ठीक हुई तो घर भेज दिया गया. फ्रैंच क्लासेज पूरी तरह छूट गई थीं. सोचा एक दफा अंकित से फोन कर के पूछूं कि क्लास और कितने दिन चलेंगी. फिर यह सोच कर कि वह तो मुझे देखने तक नहीं आया, मैं भला उसे फोन क्यों करूं, अपना विचार बदल दिया. समय बीतता गया.

अब मैं पहले से काफी ठीक थी. फिर भी पूरे आराम की हिदायत थी. एक दिन शाम को अजीत मेरे पास बैठे हुए थे कि तभी फ्रैंच क्लासेज का जिक्र हुआ. अजीत ने सहसा ही मुझ से पूछा, ‘‘क्या अंकित तुम्हारा गहरा दोस्त था? क्या रिश्ता है तुम्हारा उस से?’’

‘‘आप ऐसा क्यों पूछ रहे हैं?’’ मैं ने चौंकते हुए कहा.

‘‘अब ऐसे तो कोई अपनी किडनी नहीं देता न. किडनी डोनर और कोई नहीं, अंकित नाम का व्यक्ति था. उस ने मुझे बताया कि वह तुम्हारे साथ फ्रैंच क्लास में जाता है और तुम्हें अपनी एक किडनी देना चाहता है. तभी से यह बात मुझे बेचैन किए हुए है. बस इसलिए पूछ लिया.’’ अजीत की आंखों में शक साफ नजर आ रहा था. मैं अंदर तक व्यथित हो गई, ‘‘अंकित सचमुच केवल क्लासफैलो था और कुछ नहीं.’’

‘‘चलो, यदि ऐसा है, तो अच्छा वरना अब क्या कहूं,’’ कह कर वे चले गए. पर उन का यह व्यवहार मुझे अंदर तक बेध गया कि क्या मुझे इतनी भी समझ नहीं कि क्या गलत है और क्या सही? किसी के साथ भी मेरा नाम जोड़ दिया जाए.

मैं बहुत देर तक परेशान सी बैठी रही. कुछ अजीब भी लग रहा था. आखिर उस ने मुझे किडनी डोनेट की क्यों? दूसरी तरफ मुझ से मिलने भी नहीं आया. बात करनी होगी, सोचते हुए मैं ने अंकित का फोन मिलाया, मगर उस ने फोन काट दिया. मैं और ज्यादा चिढ़ गई. फोन पटक कर सिर पकड़ कर बैठ गई.

तभी अंकित का मैसेज आया, ‘‘मुझे माफ कर देना निधि. मैं आप से बिना मिले चला आया. कहा था न मैं ने कि दीवानों को अपने प्यार की खातिर कितनी भी तकलीफ सहनी मंजूर होती है. मगर वे अपनी मुहब्बत की आंखों में तकलीफ नहीं सह सकते, इसलिए मिलने नहीं आया.’’

मैं हैरान सी उस का यह मैसेज पढ़ कर समझने का प्रयास करने लगी कि वह कहना क्या चाहता है. मगर तभी उस का दूसरा मैसेज आ गया, ‘‘आप से वादा किया था न मैं ने कि उस मैसेज भेजने वाले का नाम बताऊंगा. दरअसल, मैं ही आप को मैसेज भेजा करता था. मैं आप से बहुत प्यार करता हूं. आप जानती हैं न कि इनसान जिस से प्यार करता है उस के आगे बहुत कमजोर महसूस करने लगता है. बस यही समस्या है मेरी. एक बार फिर आप से बहुत दूर जा रहा हूं.

अब बुढ़ापे में ही मुलाकात करने आऊंगा. पर उम्मीद करता हूं, इस दफा आप मेरा नाम नहीं भूलेंगी, गुडबाय.’’ अंकित का यह मैसेज पढ़ कर मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि मैं मुसकराऊं या रोऊं. अंदर तक एक दर्द मेरे दिल को बेध गया था. सोच रही थी, मेरे लिए ज्यादा गहरा प्यार किस का है, अजीत का, जिन्हें मैं ने अपना सब कुछ दे दिया फिर भी वे मुझ पर शक करने से नहीं चूके या फिर अंकित का, जिसे मैं ने अपना एक पल भी नहीं दिया, मगर उस ने आजीवन मेरी खुशी चाही. Hindi Love Story

Female Relatives: रिश्ते को दिल से निभाती हैं

Female Relatives: आज के दौर में जहां परिवार छोटे होते जा रहे हैं, वहीं अकेलापन और तनाव बढ़ता जा रहा है. रिश्तेदारों से अपनापन बनाए रखना केवल सामाजिक कर्तव्य नहीं, एक भावनात्मक निवेश है खासकर महिला रिश्तेदारों से अच्छा संबंध बच्चों के लिए सुरक्षाकवच का काम कर सकता है. जीवन का भरोसा नहीं लेकिन रिश्तों की मजबूती आप के बच्चों को अकेलेपन और असुरक्षा से जरूर बचा सकती है.

 

रिश्तों का दायरा सीमित न रखें

अकसर महिलाएं ससुराल और मायके के बीच बंटी रहती हैं और अपने रिश्तों को केवल औपचारिकता तक सीमित कर लेती हैं. मगर अगर हम अपने रिश्तेदारों से दिल से जुड़ें, त्योहारों में मिलें, आम दिनों में बात करें, बच्चों को उन के पास भेजें तो ये रिश्ते गहराते हैं. ताई, चाची, मामी, मौसी ये सिर्फ रिश्ते नहीं, एक नैटवर्क है. ये रिश्तेदार हमारे बच्चों के लिए ‘मां जैसी’ दूसरी छाया बन सकते हैं. अगर हम उन के साथ आज प्रेम, सम्मान और समझदारी का रिश्ता बनाएंगे तो कल वे बिना झिझक हमारे बच्चों की मदद करेंगी.

 

अपने व्यवहार से दिल जीतें, अधिकार जता कर नहीं

रिश्तों में अधिकार से ज्यादा अपनापन और समझ जरूरी होती है. ताई या मामी अगर किसी बात पर सलाह दें तो उसे तुरंत टालने के बजाय सुनें. जब हम दूसरों की इज्जत करते हैं तो वही इज्जत हमारे बच्चों को भी मिलती है.

बच्चों को भी इन रिश्तों से जोड़ें

बच्चों को सिर्फ मम्मीपापा तक सीमित न रखें. उन्हें मौसी के घर भेजिए, मामी के हाथ का खाना खिलाइए, चाची की कहानियां सुनाई ताकि एक भावनात्मक जुड़ाव बने.

 

मतभेद हों तो भी संवाद बना रहे

हर रिश्ते में खटास आ सकती है लेकिन संवाद का दरवाजा कभी बंद न करें. कभीकभी एक फोन कौल, एक त्योहार पर बुलाना या कैसी हो? पूछ लेना बहुत गहराई से रिश्ता बचा सकता है.

 

अपने बच्चों के भविष्य के लिए यह निवेश जरूरी है

मकान, जेवर और पैसे छोड़ना एक तरह की विरासत है लेकिन रिश्ते सहेज कर जाना उस से कहीं बड़ी अमानत है. आप के जाने के बाद वही रिश्ते आप के बच्चों की परछाईं बन सकते हैं.

 

बच्चों के लिए पारिवारिक जाल की जरूरत

अगर आप अपने बच्चों को अकेलेपन से बचाना चाहती हैं तो जरूरी है कि वे सिर्फ मम्मीपापा तक सीमित न रहें. उन्हें अपने बाकी रिश्तेदारों से जोडि़ए ताकि उन्हें लगे कि वे एक बड़े और मजबूत परिवार का हिस्सा हैं जो हर हाल में उन के साथ है.

 

बूआ और फूफाजी से जुड़े रिश्ते को भी बनाएं बच्चों के लिए सहारा

अकसर बूआ को घर से दूर मान लिया जाता है लेकिन अगर उन से प्यार और अपनापन बना रहे तो वे बच्चों के लिए दूसरी मां जैसी भूमिका निभा सकती हैं. त्योहारों, पारिवारिक मेलों और बातचीत के जरीए बूआ से रिश्ता गहरा किया जा सकता है. उन के अनुभव और भावनाएं बच्चों को आत्मिक सुरक्षा दे सकती हैं.                  Female Relatives:

Hindi Drama Story: नई बहू

Hindi Drama story: ‘‘दुलहन आ गई. नई बहू आ  गई,’’ कार के दरवाजे पर  रुकते ही शोर सा मच गया.

‘‘अजय की मां, जल्दी आओ,’’ किसी ने आवाज लगाई, ‘‘बहू का स्वागत करो, अरे भई, गीत गाओ.’’

अजय की मां राधा देवी ने बेटेबहू की अगवानी की. अजय जैसे ही आगे बढ़ने लगा कि घर का दरवाजा उस की बहन रेखा ने रोक लिया, ‘‘अरे भैया, आज भी क्या ऐसे ही अंदर चले जाओगे. पहले मेरा नेग दो.’’

‘‘एक चवन्नी से काम चल जाएगा,’’ अजय ने छेड़ा.

भाईबहन की नोकझोंक शुरू हो गई. सब औरतें भी रेखा की तरफदारी करती जा रही थीं.

केतकी ने धीरे से नजर उठा कर ससुराल के मकान का जायजा लिया. पुराने तरीके का मकान था. केतकी ने देखा, ऊपर की मंजिल पर कोने में खड़ी एक औरत और उस के साथ खड़े 2 बच्चे हसरत भरी निगाह से उस को ही देख रहे थे. आंख मिलते ही बड़ा लड़का मुसकरा दिया. वह औरत भी जैसे कुछ कहना चाह रही थी, लेकिन जबरन अपनेआप को रोक रखा था. तभी छोटी बच्ची ने कुछ कहा कि वह अपने दोनों बच्चों को ले कर अंदर चली गई.

तभी रेखा ने कहा, ‘‘अरे भाभी, अंदर चलो, भैया को जितनी जल्दी लग रही है, आप उतनी ही देर लगा रही हैं.’’ केतकी अजय के पीछेपीछे घर में प्रवेश कर गई.

करीब 15 दिन बीत गए. केतकी ने आतेजाते कई बार उस औरत को देखा जो देखते ही मुसकरा देती, पर बात नहीं करती थी. कभी केतकी बात करने की कोशिश करती तो वह जल्दीजल्दी ‘हां’, ‘ना’ में जवाब दे कर या हंस कर टाल जाती. केतकी की समझ में न आता कि माजरा क्या है.

लेकिन धीरेधीरे टुकड़ोंटुकड़ों में उसे जानकारी मिली कि वह औरत उस के पति अजय की चाची हैं, लेकिन जायदाद के झगड़े को ले कर उन में अब कोई संबंध नहीं है. जायदाद का बंटवारा देख कर केतकी को लगा कि उस के ससुर के हिस्से में एक कमरा ज्यादा ही है. फिर क्या चाचीजी इस कारण शादी में शामिल नहीं हुईं या उस के सासससुर ने ही उन को शादी में निमंत्रण नहीं दिया, ‘पता नहीं कौन कितना गलत है,’ उस ने सोचा.

एक दिन केतकी जब अपनी सास राधा के पास फुरसत में बैठी थी  तो उन्होंने पुरानी बातें बताते हुए कहा, ‘‘तुम्हें पता है, मैं इसी तरह चाव से एक दिन कमला को अपनी देवरानी नहीं, बहू बना कर लाई थी. मेरी सास तो बिस्तर से ही नहीं उठ सकती थीं. वे तो जैसे अपने छोटे बेटे की शादी देखने के लिए ही जिंदा थीं. शादी के बाद सिर्फ 1 माह ही तो निकाल पाईं. मैं ने सास की तरह ही इस की देखभाल की और देखा जाए तो देवर प्रकाश को मैं ने अपने बेटे की तरह ही पाला है. तुम्हारे पति अजय और प्रकाश में सिर्फ 7 साल का अंतर है. उस की पढ़ाईलिखाई, कामधंधा, शादीब्याह आदि सबकुछ मेरे प्रयासों से ही तो हुआ…फिर बेटे जैसा ही तो हुआ,’’ राधा ने केतकी की ओर समर्थन की आशा में देखते हुए कहा.

‘‘हां, बिलकुल,’’ केतकी ने आगे उत्सुकता दिखाई.

‘‘वैसे शुरू में तो कमला ने भी मुझे सास के बराबर आदरसम्मान दिया और प्रकाश ने तो कभी मुझे किसी बात का पलट कर जवाब नहीं दिया…’’ वे जैसे अतीत को अपनी आंखों के सामने देखने लगीं, ‘‘लेकिन बुरा हो इन महल्लेवालियों का, किसी का बनता घर किसी से नहीं देखा जाता न…और यह नादान कमला भी उन की बातों में आ कर बंटवारे की मांग कर बैठी,’’ राधा ने मुंह बनाते हुए कहा.

‘‘क्या बात हुई थी?’’ केतकी उत्सुकता दबा न पाई.

‘‘इस की शादी के बाद 3 साल तक तो ठीकठाक चलता रहा, लेकिन पता नहीं लोगों ने इस के मन में क्याक्या भर दिया कि धीरेधीरे इस ने घर के कामकाज से हाथ खींचना शुरू कर दिया. हर बात में हमारी उपेक्षा करने लगी. फिर एक दिन प्रकाश ने तुम्हारे ससुर से कहा, ‘भैया, मैं सोचता हूं कि अब मां और पिताजी तो रहे नहीं, हमें मकान का बंटवारा कर लेना चाहिए जिस से हम अपनी जरूरत के मुताबिक जो रद्दोबदल करवाना चाहें, करवा कर अपनेअपने तरीके से रह सकें.’

‘‘‘यह आज तुझे क्या सूझी? तुझे कोई कमी है क्या?’ प्रकाश को ऊपर से नीचे तक देखते हुए तुम्हारे ससुर ने कहा.

‘‘‘नहीं, यह बात नहीं, लेकिन बंटवारा आज नहीं तो कल होगा ही, होता आया है. अभी कर लेंगे तो आप भी निश्ंिचत हो कर अजय, विजय के लिए कमरे तैयार करवा पाएंगे. मैं अपना गोदाम और दफ्तर भी यहीं बनवाना चाहता हूं. इसलिए यदि ढंग से हिस्सा हो जाए तो…’

‘‘‘अच्छा, शायद तू अजय, विजय को अपने से अलग मानता है? लेकिन मैं तो नहीं मानता, मैं तो तुम तीनों का बराबर बंटवारा करूंगा और वह भी अभी नहीं…’

‘‘‘यह आप अन्याय कर रहे हैं, भैया,’ प्रकाश की आंखें भर आईं और वह चला गया.

‘‘बाद में काफी देर तक उन के कमरे से जोरजोर से बहस की आवाजें आती रहीं.

‘‘खैर, कुछ दिन बीते और फिर वही बात. अब बातबात में कमला भी कुछ कह देती. कामकाज में भी बराबरी करती. घर में तनाव रहने लगा. बात मरदों की बैठक से निकल कर औरतों में आ गई. घर में चैन से खानापीना मुश्किल होने लगा तो महल्ले और रिश्ते के 5 बुजुर्गों को बैठा कर फैसला करवाने की सोची. प्रकाश कहता कि मुझे आधा हिस्सा दो. हम कहते थे कि हम ने तुम्हें बेटे की तरह पाला है, तुम्हारी पढ़ाईलिखाई, शादीब्याह सभी किया, हम 3 हिस्से करेंगे.’’

‘‘लेकिन जब बंटवारा हो गया तो अब इस तरह संबंध न रखने की क्या तुक है?’’ केतकी ने पूछ ही लिया.

‘‘रोजरोज की किटकिट से मन खट्टा हो गया हमारा, इसलिए जब बंटवारा हो गया तो हम ने तय कर लिया कि उन से किसी तरह का संबंध नहीं रखेंगे,’’ राधा ने बात साफ करते हुए कहा.

‘‘लेकिन शादीब्याह, जन्म, मृत्यु में आनाजाना भी…?’’

‘‘अब यह उन की मरजी. अच्छा बताओ, तुम्हारी शादी में कामकाज के बाबत पूछना, शामिल होना क्या उन का कर्र्तव्य नहीं था, लेकिन प्रकाश तो शादी के 3 दिन पहले अपने धंधे के सिलसिले में बाहर चला गया था…जैसे उस के बिना काम ही नहीं चलेगा,’’ राधा ने अपने मन की भड़ास निकाली.

‘‘आप ने उन से आने को कहा तो होगा न?’’

‘‘अच्छा,’’ राधा ने मुंह बिचकाया, ‘‘जिसे मैं घर में लाई, उसे न्योता देने जाऊंगी? कल विजय की शादी में तुम को न्योता दूंगी, तब तुम आओगी?’’

केतकी को लगा, अब पुरानी बातों पर आया गुस्सा कहीं उस पर न निकले. वह धीरे से बोली, ‘‘मैं चाय का इंतजाम करती हूं.’’

केतकी सोचने लगी कि कभी चाची से बात कर के ही वास्तविक बात पता चलेगी. उस ने चाची व उन के बच्चों से संपर्क बढ़ाना शुरू किया. जब भी उन को देखती, 1-2 मिनट बात कर लेती. एक दिन तो कमला ने कहा भी, ‘‘तुम हम से बात करती हो, भैयाभाभी कहीं नाराज हो गए तो?’’

‘‘आप भी कैसी बात करती हैं, वे भला क्यों नाराज होंगे?’’ केतकी ने हंसते हुए कहा.

अब केतकी ने दृढ़ निश्चय कर लिया कि एकदूसरे के मन पर जमा मैल हटाना है. इसलिए एक दिन सास से बोली, ‘‘चाचीजी कह रही थीं कि आप कढ़ी बहुत बढि़या बनाती हैं. कभी मुझे भी खिलाइए न.’’

इसी तरह केतकी कमला से बात करती तो कहती, ‘‘मांजी कह रही थीं कि आप भरवां बैगन बहुत बढि़या बनाती हैं.’’

कहने की जरूरत नहीं कि ये बातें वह किसी और के मुंह से सुनती, पर सास को कहती तो चाची का नाम बताती और चाची से कहती तो सास का नाम बताती. वह जानती थी कि अपनी प्रशंसा किसे अच्छी नहीं लगती. फिर अगर वह अपने दुश्मन के मुंह से हो तो दुश्मनी भी कम हो जाती है.

इस तरह बातों के जरिए केतकी एकदूसरे के मन में बैठी गलतफहमी और वैमनस्य को दूर करने लगी. एक दिन तो उस को लगा कि उस ने गढ़ जीत लिया. हुआ क्या कि केतकी के नाम की चिट्ठी पिंकी ले कर आई और गैलरी से उस ने आवाज लगाई, ‘‘भाभीजी.’’

केतकी उस समय रसोई में थी. वहीं से बोली, ‘‘क्या बात है?’’

‘‘आप की चिट्ठी.’’

केतकी जैसे ही बाहर आने लगी, पिंकी गैलरी से चिट्ठी फेंक कर भाग गई. जब उस की सास ने यह देखा तो बरबस पुकार बैठी, ‘‘पिंकी…अंदर तो आ…’’

तब केतकी को आशा की किरण ही नजर नहीं आई, उसे विश्वास हो गया कि अब दिल्ली दूर नहीं है.  तभी राधा को बेटी की बातचीत के सिलसिले में पति और बेटी के साथ एक हफ्ते के लिए बनारस जाना था. केतकी को दिन चढ़े हुए थे. इसलिए उन्हें चिंता थी कि क्या करें. पहला बच्चा है, घर में कोई बुजुर्ग औरत होनी ही चाहिए. आखिरकार केतकी को सब तरह की हिदायतें दे कर वह रवाना हो गईं.

3-4 दिन आराम से निकले. एक दिन दोपहर के समय घर में अजय और विजय भी नहीं थे. ऐसे में केतकी परेशान सी कमला के पास आई. उस की हैरानपरेशान हालत देख कर कमला को कुछ खटका हुआ, ‘‘क्या बात है, ठीक तो हो…?’’

‘‘पता नहीं, बड़ी बेचैनी हो रही है. सिर घूम रहा है,’’ बड़ी मुश्किल से केतकी बोली.

‘‘लेट जाओ तुरंत, बिलकुल आराम से,’’ कहती हुई कमला नीचे पति को बुलाने चली गई.

कमला और प्रकाश उसे अस्पताल ले गए और भरती करा दिया. फिर अजय के दफ्तर फोन किया.

अजय ने आते ही पूछा, ‘‘क्या बात है?’’ वह बदहवास सा हो रहा था.

‘‘शायद चिंता से रक्तचाप बहुत बढ़ गया है,’’ कमला ने जवाब दिया.

‘‘मैं इस के पीहर से किसी को बुला लेता हूं. आप को बहुत तकलीफ होगी,’’ अजय ने कहा.

‘‘ऐसा है बेटे, तकलीफ के दिन हैं तो तकलीफ होगी ही…घबराने की कोई बात नहीं…सब ठीक हो जाएगा,’’ प्रकाश ने अजय के कंधे पर हाथ रख कर कहा, ‘‘बाकी जैसा तुम उचित समझो.’’

‘‘वैसे डाक्टर ने क्या कहा है?’’ अजय ने चाचा से पूछा.

‘‘रक्तचाप सामान्य हो रहा है. कोई विशेष बात नहीं है.’’

केतकी को 2 दिन अस्पताल में रहना पड़ा. फिर छुट्टी मिल गई, पर डाक्टर ने आराम करने की सख्त हिदायत दे दी.

घर आने पर सारा काम कमला ने संभाल लिया. केतकी इस बीच कमला का व्यवहार देख कर सोच रही थी कि गलती कहां है? कमला कभी भी उस के सासससुर के लिए कोई टिप्पणी नहीं करती थी.  लेकिन एक दिन केतकी ने बातोंबातों में कमला को उकसा ही दिया. उन्होंने बताया, ‘‘मैं ने बंटवारा कराया, यह सब कहते हैं, लेकिन क्या गलत कराया? माना उम्र में वे मेरे सासससुर के बराबर हैं. इन को पढ़ायालिखाया भी, लेकिन सासससुर तो नहीं हैं न? यदि ऐसा ही होता तो क्या तुम्हारी शादी में हम इतने बेगाने समझे जाते. फिर यदि मैं लड़ाकी ही होती तो क्या बंटवारे के समय लड़ती नहीं?

‘‘सब यही कहते हैं कि मैं ने तनाव पैदा किया, पर मैं ने यह तो नहीं कहा कि संबंध ही तोड़ दो. एकदूसरे के दुश्मन ही बन जाओ. अपनेअपने परिवार में हम आराम से रहें, एकदूसरे के काम आएं, लेकिन भैयाभाभी तो उस दिन के बाद से आज तक हम से क्या, इन बच्चों से भी नहीं बोले. यदि वे किसी बात पर अजय से नाराज हो जाएं तो क्या विजय की शादी में तुम्हें बुलाएंगे नहीं? ऐसे बेगानों जैसा व्यवहार करेंगे क्या? बस, यही फर्क होता है और होता आया है…उस के लिए मैं किसी को दोष नहीं देती. खैर, छोड़ो इस बात को…जो होना था, हो गया. बस, मैं तो यह चाहती हूं कि दोनों परिवारों में सदा मधुर संबंध बने रहें.’’

‘‘मांजी भी यही कहती हैं,’’ केतकी ने अपनेपन से कहा.

‘‘सच?’’ कमला ने आश्चर्य प्रकट किया.

‘‘हां.’’

‘‘फिर वे हम से बेगानों जैसा व्यवहार क्यों करती हैं?’’

‘‘वे बड़ी हैं न, अपना बड़प्पन बनाए रखना चाहती हैं. आप जानती ही हैं, वे उस दौर की हैं कि टूट जाएंगी, पर झुक नहीं सकतीं.’’

केतकी की बात सुन कर कमला कुछ सोचने लगी.  शाम तक राधा, रेखा और दुर्गाचरण आ गए. आ कर जब देखा कि केतकी बिस्तर पर पड़ी है तो राधा के हाथपांव फूल गए.

राधा ने सहमे स्वर में पूछा, ‘‘क्या हो गया?’’

‘‘कुछ नहीं, अब तो बिलकुल ठीक हूं, पर चाचीजी मुझे उठने ही नहीं देतीं,’’ केतकी ने कहा.

‘‘ठीक है…ठीक है…तुम आराम करो. अब सब मैं कर लूंगी,’’ राधा ने केतकी की बात अनसुनी करते हुए अपने सफर की बातें बतानी शुरू कर दीं.

तभी कमला ने कहा, ‘‘आप थक कर आए हैं. शाम का खाना मैं ही बना दूंगी.’’

‘‘रोज खाना कौन बनाती थी?’’ राधा ने जानना चाहा.

‘‘चाचीजी ने ही सब संभाल रखा था अभी तक तो…’’ अजय ने बताया.

‘‘अस्पताल में भी ये ही रहीं. एक मिनट भी भाभीजी को अकेला नहीं छोड़ा,’’ विजय ने बात आगे बढ़ाई.

‘‘तो फिर अब क्या पूछ रही हो?’’ दुर्गाचरण ने राधा की ओर सहमति की मुद्रा में देखते हुए कहा.

‘‘हां, और क्या, हम क्या पराए हैं जो अब हम को खाना नहीं खिलाओगी?’’ राधा ने कमला की ओर देख कर कहा.

‘‘जी…अच्छा,’’ कमला जाने लगी.

दुर्गाचरण और राधा ने एकदूसरे की   ओर देखा, फिर दुर्गाचरण ने    कहा, ‘‘अपना आखिर अपना ही होता है.’’

‘‘हम यह बात भूल गए थे.’’

तभी कमला कुछ पूछने आई तो राधा ने कहा, ‘‘हमें माफ करना बहू…’’

‘‘छि: भाभीजी…आप बड़ी हैं. कैसी बात करती हैं…’’

‘‘यह सही कह रही है, बहू, बड़े भी कभीकभी गलती करते हैं,’’ दुर्गाचरण बोले तो केतकी के होंठों पर मुसकान खिल उठी.  Hindi Drama Story

Family Story: मोहब्बत में कोई छोटा नहीं होता

Family Story: शाम ढलने लगी थी. तालाब के हिलते पानी में पेड़ों की लंबी छाया भी नाचने लगी थी. तालाब के किनारे बैठी विनीता अपनी सोच में गुम थी. वह 2 दिन पहले ही लखनऊ से वाराणसी अपनी मां से मिलने आई थी, तो आज शाम होते ही अपनी इस प्रिय जगह की ओर पैर अपनेआप बढ़ गए थे.

‘‘अरे, वीनू…’’ इस आवाज कोे विनीता पीछे मुड़ कर देखे बिना पहचान सकती थी कि कौन है. वह एक झटके से उठ खड़ी हुई. पलटी तो सामने आशीष ही था.

आशीष बोला, ‘‘कैसी हो? कब आईं?’’

‘‘2 दिन पहले,’’ वह स्वयं को संभालती हुई बोली, ‘‘तुम कैसे हो?’’

आशीष ने अपनी चिरपरिचित मुसकराहट के साथ पूछा, ‘‘कैसा दिख रहा हूं?’’

विनीता मुसकरा दी.

‘‘अभी रहोगी न?’’

‘‘परसों जाना है, अब चलती हूं.’’

‘‘थोड़ा रुको.’’

‘‘मां इंतजार कर रही होंगी.’’

‘‘कल इसी समय आओगी यहां?’’

‘‘हां, आऊंगी.’’

‘‘तो फिर कल मिलेंगे.’’

‘‘ठीक है,’’ कह कर विनीता घर चल दी.

घर आते समय विनीता का मन उत्साह से भर उठा. वही एहसास, वही चाहत, वही आकर्षण… यह सब सालों बाद महसूस किया था उस ने. रात को सोने लेटी तो पहला प्यार, जो आशीष के रूप में जीवन में आया था,

याद आ गया. याद आया वह दिन जिस दिन आशीष के दहेजलोभी पिता के कारण उन का पहला प्यार खो गया था. इस के बिना विनीता ने एक लंबा सफर तय कर लिया था. कैसे जी लिया जाता है पहले प्यार के बिना भी, यह वही जान सकता है, जिस ने यह सब  झेला हो.

विनीता का मन अतीत में कुलांचें भरने लगा… आशीष के पिता ने एक धनी परिवार की एकमात्र संतान दिव्या से आशीष का विवाह करा कर अपनी जिद पूरी कर ली थी और फिर अपने मातापिता की इच्छा के आगे विनीता ने भी एक आज्ञाकारी बेटी की तरह सिर झुका दिया था.

विवाह की रात विनीता ने जितने आंसू थे आशीष की याद में बहा दिए थे, फिर वह पूरी ईमानदारी के साथ पति नवीन के जीवन में शामिल हो गई थी और आज विवाह के 8 सालों के बाद भी पूरी तरह नवीन और बेटी सिद्धि के साथ गृहस्थी के लिए समर्पित थी. इतने सालों में मायके आने पर 1-2 बार ही आशीष से सामना हुआ था और बात बस औपचारिक हालचाल पर ही खत्म हो गई थी.

कई दिनों से विनीता बहुत उदास थी. घर, पति, बेटी, रिश्तेनाते इन सब में उलझा खुद समय के किस फंदे में उलझ, जान नहीं सकी. अब जान सकी है कि दिलदिमाग के स्तर में समानता न हो तो प्यार की बेल जल्दी सूख जाती है… उसे लगता है दिन ब दिन तरक्की की सीढि़यां चढ़ता नवीन घर में भी अपने को अधिकारी समझने लगा है और पत्नी को अधीनस्थ कर्मचारी… उस की हर बात आदेशात्मक लहजा लिए होती है, फिर चाहे वे अंतरंग पल ही क्यों न हों. आज तक उस के और नवीन के बीच भावनात्मक तालमेल नहीं बैठा था.

नवीन के साथ तो तसल्ली से बैठ कर 2 बातें करने के लिए भी तरस जाती है वह. उसे लगता है जैसे उन का ढीला पड़ गया प्रेमसूत्र बस औपचारिकताओं पर ही टिका रह गया है. नवीन मन की कोमल भावनाओं को व्यक्त करना नहीं जानता. पत्नी की तारीफ करना शायद उस के अहं को चोट पहुंचाता है. विनीता को अब नवीन की हृदयहीनता की आदत सी हो गई थी. अतीत और वर्तमान में विचरते हुए विनीता की कब आंख लग गई, पता ही न चला.

कुछ दिन पहले विनीता के पिता का देहांत हो गया था. अगले दिन सिद्धि को मां के पास छोड़ कर विनीता ‘थोड़ी देर में आती हूं’ कह कर तालाब के किनारे पहुंच गई. आशीष वहां पहले से ही उस की प्रतीक्षा कर रहा था. उस के हाथ में विनीता का मनपसंद नाश्ता था.

विनीता हैरान रह गई, पूछ बैठी, ‘‘तुम्हें आज भी याद है?’’

आशीष कुछ नहीं बोला, बस मुसकरा कर रह गया.

विनीता चुपचाप गंभीर मुद्रा में एक पत्थर पर बैठ गई. आशीष ने विनीता को गंभीर मुद्रा में देखा, तो सोच में पड़ गया कि वह तो हर समय, हर जगह हंसी की फुहार में भीगती रहती थी, सपनों की तितलियां, चाहतों के जुगनू उस के साथ होते थे, फिर आज वह इतनी गंभीर क्यों लग रही है? क्या इन सालों में उस की हंसी, वे सपने, वे तितलियां, सब कहीं उड़ गए हैं? फिर आशीष ने उसे नाश्ता पकड़ाते हुए पूछा, ‘‘लाइफ कैसी चल रही है?’’

‘‘ठीक ही है,’’ कह कर विनीता ने गहरी सांस ली.

‘‘ठीक ही है या ठीक है? दोनों में

फर्क होता है, जानती हो न? उदास क्यों लग रही हो?’’

विनीता ने आशीष की आंखों में  झंका, कितनी सचाई है, कोई छल नहीं, कितनी सहजता से वह उस के मन के भावों को पढ़ उस की उदासी को समझ कर बांटने की कोशिश कर रहा है. अचानक विनीता को लगा कि वह एक घने, मजबूत बरगद के साए में निश्चिंत और सुरक्षित बैठी है.

‘‘तुम बताओ, तुम्हारी पत्नी और बच्चे कैसे हैं?’’

‘‘दिव्या ठीक है, क्लब, पार्टियों में व्यस्त रहती है, बेटा सार्थक 6 साल का है. तुम्हारे पति और बच्चे नहीं आए?’’

‘‘नवीन को काम से छुट्टी लेना अच्छा नहीं लगता और सिद्धि को मां के पास छोड़ कर आई हूं.’’

‘‘तो क्या नवीन बहुत व्यस्त रहते हैं?’’

विनीता ने कोई जवाब नहीं दिया.

‘‘क्या सोच रही हो वीनू?’’

विनीता को आशीष के मुंह से ‘वीनू’

सुन कर अच्छा लगा. फिर बोली, ‘‘यही, बंद मुट्ठी की फिसलती रेत की तरह तुम जीवन

से निकल गए थे और फिर न जाने कैसे आज हम दोनों यों बैठे हैं.’’

‘‘तुम खुश तो हो न वीनू?’’

‘‘जिस के साथ मन जुड़ा होता है उस का साथ हमेशा के लिए क्यों नहीं मिलता आशू?’’ कहतेकहते विनीता ने आशीष को अपलक देखा, अभी भी कुछ था, जो उसे अतीत से जोड़ रहा था… वही सम्मोहक मुसकराहट, आंखों में वही स्नेहिल, विश्वसनीय भाव.

‘‘तुम आज भी बहुत भावुक हो वीनू.’’

‘‘हम कितनी ही ईमानदार कोशिश क्यों न करें पर फिर भी कभीकभी बहुत गहरी चोट लग ही जाती है.’’

‘‘लेकिन तुम्हारा और नवीन का रिश्ता दुनिया का सब से मजबूत रिश्ता है, यह क्यों भूल रही हो?’’

‘‘रिश्ते मन के होते हैं पर नवीन के मामले में न जाने कहां सब चुक सा रहा है,’’ आज विनीता आशीष से मिल कर स्वयं पर नियंत्रण न रख सकी. उस ने अपने मन की पीड़ा आशीष के सामने व्यक्त कर ही दी, ‘‘आशू, नवीन बहुत प्रैक्टिकल इंसान है. हमारे घर में सुखसुविधाओं का कोई अभाव नहीं है, लेकिन नवीन भावनाओं के प्रदर्शन में एकदम अनुदार है… एक रूटीन सा नीरस जीवन है हमारा.

‘‘हम दोनों के साथ बैठे होने पर भी कभीकभी दोनों के बीच कोई बात नहीं होती. वैसे जीवन में साथ रहना, सोना, खाना पारिवारिक कार्यक्रमों में जाना सब कुछ है पर हमारे रिश्ते की गरमी न जाने कहां खो गई है. मैं नवीन को अपने मन से बहुत दूर महसूस करती हूं. अब तो लगता है नवीन और मैं नदी के 2 किनारे हैं, जो अपने बीच के फासले को समेट नहीं पाएंगे… आज पता नहीं क्यों तुम से कुछ छिपा नहीं पाई.’’

‘‘पर हमें फिर भी उस फासले को पाट कर उन के पास जाने की कोशिश करनी होगी वीनू. मुझे अब तकलीफ नहीं होती, क्योंकि दिव्या के अहं के आगे मैं ने हथियार डाल दिए हैं. उसे अपने पिता के पैसों का बहुत घमंड है और उस की नजरों में मेरी कोई हैसियत नहीं है, लेकिन इस में मैं कुछ नहीं कर सकता. इन स्थितियों को बदला नहीं जा सकता. हमारा विवाह, जिस से हुआ है, इस सच को हम नकार नहीं सकते… नवीन और दिव्या जैसे हैं हमें उन्हें वैसे ही स्वीकार करना होगा. उन्हें बदलने की कोशिश करना मूर्खता है… बेहतर होगा कि हम उन के अनुसार स्वयं को ढाल लें वरना सारा जीवन कुढ़ते, खीजते और बहस में ही गुजर जाएगा.’’

‘‘लेकिन क्या यह समझौता करने जैसा नहीं हुआ? समझौते में खुशी व प्यार कहां होता है?’’

आशीष से विनीता की उदासी देखी नहीं जा रही थी. अत: उसे समझते हुए बोला, ‘‘समझौता हम कहां नहीं करते वीनू? औफिस से ले कर अपने मित्रों, पड़ोसियों, रिश्तेदारों के साथ हर जगह, हर मोड़ पर हम ऐडजस्ट करने के लिए तैयार रहते हैं और वह भी खुशीखुशी, तो फिर इस रिश्ते में समझौता करने में कैसी तकलीफ जिसे जीवन भर जीना है?’’

आशीष की बात सुनतेसुनते विनीता इसी सोच में डूब गई कि सुना था पहला प्यार ऐसी महक लिए आता है, जो संजीवनी और विष दोनों का काम करता है, मगर उन्हें अमृत नहीं विष मिला जिस के घूंट वे आज तक पी रहे हैं. निर्मल प्रेम का सागर दोनों के दिलों में हिलोरें ले रहा था. आशीष भी शायद ऐसी ही मनोस्थिति से गुजर रहा था.

विनीता ने आशीष को अपनी तरफ देखते पाया तो मुसकराने का भरसक प्रयत्न करती हुई बोली, ‘‘क्या हुआ, एकदम चुप्पी क्यों साध ली? क्या तुम भी ऐडजस्ट करतेकरते मानसिक रूप से थक चुके हो?’’

‘‘नहींनहीं, मैं आज भी यही सोचता हूं कि विवाह जीवन का बेहद खूबसूरत मोड़ है, जहां संयम और धैर्य बनाए रखने की जरूरत होती है. केवल समझौतावादी स्वभाव से ही इस मोड़ के सुंदर दृश्यों का आनंद लिया जा सकता है. मेरी बात पर यकीन कर के देखो वीनू, जीना कुछ आसान हो जाएगा… तुम स्वयं को संभालो, हम दोनों कहीं भी रहें, मन से हमेशा साथ रहेंगे. भला मन से जुड़े रिश्ते को कौन तोड़ सकता है? हमें तो एकदूसरे को विश्वास का वह आधार देना है, जिस से हमारे वैवाहिक जीवन की नींव खोखली न हो. हम अगली बार मिलें तो तुम्हारे चेहरे पर वही हंसी हो, जिसे इस बार तुम लखनऊ में छोड़ आई हो,’’ कहतेकहते आशीष के होंठों पर हंसी फैल गई, तो विनीता भी मुसकरा दी.

‘‘अब चलें, तुम्हारी बेटी इंतजार कर रही होगी? अगली बार आओ तो बिना मिले मत जाना,’’ आशीष हंसा.

दोनों अपनेअपने घर लौट गए. आशीष के निश्छल, निर्मल प्रेम के प्रति विनीता का मन श्रद्धा से भर उठा.

घर लौटते विनीता ने फैसला कर लिया कि वह नए सिरे से नवीन को अपनाएगी, वह जैसा है वैसा ही. प्रेम करने, समर्पण करने से कोई छोटा नहीं हो जाता. वह एक बार फिर से अप?ने बिखरे सपनों को इकट्ठा करने की कोशिश करेगी… मन में नवीन के प्रति जो रोष था, वह अब खत्म हो गया था. Family Story

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