Job vs Household Chores: जॉब जरूरी या घर के अनप्रोडक्टिव काम

Job vs Household Chores: चीन की एक अदालत ने कुछ समय पहले तलाक से जुड़े एक मामले में ऐतिहासिक फैसला दिया. कोर्ट ने एक व्यक्ति को निर्देश दिया कि वह 5 साल तक चली अपनी शादी के दौरान पत्नी द्वारा किए गए घरेलू काम के बदले में उसे मुआवजा दे. इस मामले में महिला को 5.65 लाख दिए जाने का फैसला हुआ. इस फैसले ने चीन समेत दुनियाभर में बड़ी बहस को जन्म दिया.

कुछ लोगों का मानना था कि महिला घर के काम के बदले में मुआवजे के रूप में कुछ भी लेने की हकदार नहीं है. वहीं कुछ लोगों के अनुसार जब महिला अपने कैरियर से जुड़े अवसरों को त्याग कर रोज घंटों घरेलू काम करती है तो उसे मुआवजा क्यों नहीं मिलना चाहिए.

इस से कुछ समय पहले भारत की सर्वोच्च अदालत ने अपने फैसले में लिखा था कि घर का काम परिवार की आर्थिक स्थिति में वास्तविक रूप से योगदान करता है और राष्ट्र की अर्थव्यवस्था में भी योगदान करता है.

दरअसल, चीन से ले कर भारत और पश्चिमी दुनिया के देशों में भी अदालतें बारबार महिलाओं द्वारा की गई अनपेड लेबर को आर्थिक उत्पादन के रूप में स्थापित करने वाले फैसले देती रही हैं. लेकिन इस के बावजूद घर के काम को जीडीपी में योगदान के रूप में नहीं देखा जाता है. यही नहीं समाज घर के काम को वह अहमियत नहीं देता है जितनी नौकरी या व्यवसाय में किए गए काम को देता है.

सवाल अहम है

ऐसे में सवाल उठता है कि महिलाएं घर के अनप्रोडक्टिव काम छोड़ कर नौकरी या व्यवसाय क्यों न शुरू करें? जब उन के पास स्किल है, काबिलीयत है तो वे क्यों न ऐसे काम करें जिन में वे अपनी स्किल दिखा कर अच्छी कमाई कर आत्मनिर्भर बन सकें? घर के कामों में पूरे दिन समय बरबाद कर के जब उन्हें कुछ हासिल नहीं हो रहा तो वे इन कामों को हाउस हैल्प के द्वारा करा कर अपने समय का सदुपयोग कर सकती हैं, पैसे कमा सकती हैं और अपनी कमाई के कुछ रुपए हाउस हैल्प को दे कर अपने काम का बोझ हलका कर सकती हैं.

उधर जिन कामों के लिए उन्हें सैलरी नहीं मिल रही थी वही काम जब हाउस हैल्प यानी कामवाली करती है तो उसे भी कमाई का अवसर मिलता है. यानी वही काम एक स्त्री अपने घर पर करे तो वह प्रोडक्टिव काम नहीं जबकि कामवाली करे तो वह प्रोडक्टिव हो जाता है.

घरेलू काम की अहमियत नहीं

दुनिया की अधिकांश महिलाएं इस सवाल से जूझती हैं कि समाज एक गृहिणी के रूप में उन के द्वारा किए गए घर के कामों को वह सम्मान क्यों नहीं दिया जाता जो पुरुषों द्वारा किए गए कामों को दिया जाता है, जबकि एक गृहिणी के रूप में महिलाओं के काम के घंटे पुरुषों के किए गए काम के घंटों की तुलना में कहीं अधिक होते हैं? नौकरी की तरह उन्हें कभी संडे नहीं मिलता. वे सातों दिन सुबह से रात तक काम में जुटी होती हैं.

भले ही वे बीमार क्यों न हों पर वे छुट्टी नहीं ले पातीं क्योंकि ये बहुत जिम्मेदारी वाले काम होते हैं. मसलन, घर पर अगर किसी को तय समय पर दवा देनी है तो वह काम छोड़ा नहीं जा सकता है. खाना तय समय पर बनना है तो वह भी बनना जरूरी है. सब को भूखा नहीं छोड़ा जा सकता.

घर के काम करने वाली महिला को ‘अलादीन का चिराग’ समझा जाता है. अगर कभी सहयोग की मांग की भी जाए तो कहा जाता है कि करती ही क्या हो. आंकड़ों को देखें तो पता चलता है कि भारत में घर में महिलाएं पुरुषों की तुलना में काफी ज्यादा काम करती हैं.

ताजा टाइम यूज सर्वे के मुताबिक महिलाएं हर दिन घर के कामों, जिन के लिए उन्हें कोई सैलरी नहीं मिलती, में 299 मिनट लगाती हैं. वहीं भारतीय पुरुष दिन में सिर्फ 97 मिनट घर के कामों में लगाते हैं. इस सर्वे में येहभी सामने आया है कि महिलाएं घर के सदस्यों का खयाल रखने में रोज 134 मिनट लगाती हैं, वहीं पुरुष इस काम में सिर्फ 76 मिनट खर्च करते हैं. महिलाओं के किए गए बिना सैलरी वाले घर के काम का मूल्य 3 तरह से निकाला जा सकता है:

अपौर्च्युनिटी कौस्ट मैथड, रिप्लेसमैंट कौस्ट मैथड, इनपुट/आउटपुट कास्ट मेथड.

पहले फौर्मूले के मुताबिक अगर कोई महिला बाहर जा कर 50 हजार रुपए कमा सकती है और इस के बावजूद वह घर के काम करती है तो उस के काम की कीमत 50 हजार रुपए मानी जानी चाहिए.

दूसरे फौर्मूले के मुताबिक एक महिला द्वारा किए गए ‘घर के काम’ का मूल्य उन सेवाओं के लिए किए किए जाने वाले खर्च के आधार पर तय होता है. सरल शब्दों में कहें तो अगर एक महिला की जगह घर पर कोई और काम करता है तो जो खर्च उस की सेवाएं लेने के बदले में होगा, वही उस महिला के द्वारा किए गए काम का मूल्य होगा. इसी तरह तीसरे फौर्मूले में एक महिला द्वारा घर पर किए गए काम की मार्केट वैल्यू निकाली जाती है.

अर्थव्यवस्था में महिलाओं का योगदान

अंतर्राष्ट्रीय संस्था औक्सफेम के एक अध्ययन के मुताबिक महिलाओं द्वारा किए गए ‘घर के काम’ का मूल्य भारतीय अर्थव्यवस्था का 3.1 फीसदी है. 2019 में महिलाओं द्वारा किए गए ‘घर के काम’ की कीमत 10 ट्रिलियन अमेरिकी डौलर से भी ज्यादा थी. ये फौर्च्यून ग्लोबल 500 लिस्ट की 50 सब से बड़ी कंपनियों जैसे वालमार्ट, ऐप्पल और अमेजन आदि की कुल आमदनी से भी ज्यादा थी.

सरल शब्दों में कहें तो एक महिला अपने पति के कपड़े धोने, प्रैस करने से ले कर उन के खानेपीने, शारीरिक एवं मानसिक सेहत आदि का खयाल रखती है ताकि औफिस जा कर काम कर सके. वह बच्चों को पढ़ाती है ताकि वे बाद में देश के मानव संसाधन का हिस्सा बन सकें. वह अपने मातापिता और सासससुर की सेहत का ध्यान रखती है जो देश की आर्थिक प्रगति में अपना योगदान दे चुके होते हैं. अब अगर इस पूरे समीकरण में से गृहिणी को निकाल दिया जाए तो सरकार को बच्चों का ध्यान रखने के लिए बाल कल्याण सेवाओं, वरिष्ठ नागरिकों का ध्यान रखने के वृद्धाश्रम, केयर गिवर आदि पर बेतहाशा खर्च करना पड़ेगा. यदि महिलाएं घर के काम ही बंद कर दें तो यह सिस्टम पूरी तरह ठप हो जाएगा.

हमें समझना होगा कि विकास तब होगा जब सभी लोग अपने मन का काम कर सकें. जो महिला डाक्टर बनना चाहे वह डाक्टर बन सके, जो महिला इंजीनियर बनना चाहे वह इंजीनियर बन सके. लेकिन पुरुषप्रधान समाज ने महिलाओं पर घर के काम थोप दिए हैं. इस से उन के पैरों में एक तरह की बेडि़यां पड़ गई हैं. उन पर ये दबाव होता है कि वे पहले घर के काम करें फिर कोई अन्य काम.

घरेलू कामों के बोझ के चलते भारतीय शहरों में भी लगभग आधी महिलाएं दिन में एक बार भी घर से बाहर नहीं निकल पातीं. यह चौंकाने वाला तथ्य है ‘ट्रैवल बिहेवियर ऐंड सोसायटी’ नामक जर्नल में प्रकाशित एक शोध पत्र का.

काम का बोझ बनाता है बीमार

जो महिलाएं नौकरी या कामकाज के सिलसिले में घर से बाहर निकलती हैं उन्हें नौकरी से घर लौट कर दूसरी ‘कामकाजी शिफ्ट’ में जुटना पड़ता है. भारत सरकार के नैशनल सैंपल सर्वे औफिस ने 2019 में दैनिक जीवन को ले कर कई आंकड़े जुटाए थे. आईआईएम अहमदाबाद के एक प्रोफैसर ने इन आंकड़ों का विश्लेषण कर के बताया कि 15 से 60 साल की स्त्रियां रोजाना औसतन 7.2 घंटे घरेलू काम करती हैं. पुरुषों का योगदान इस का आधा भी नहीं है. यही नहीं कमाने वाली महिलाएं भी कमाऊ पुरुषों की तुलना में घर के कामों को दोगुना वक्त देती हैं.

यह सिर्फ काम के घंटों की बात नहीं है क्योंकि ये महज काम होते तो इन के पूरे हो जाने के बाद आराम भी मिल जाता. परंतु ये तो जिम्मेदारियां हैं जिन में से कुछ स्त्री को विरासत में मिली हैं और कुछ उस ने खुद ओढ़ रखी हैं. मसलन, रात तक सारे काम निबटा कर सोते समय भी महिला के दिमाग में यह चल रहा होता है कि सुबह जल्दी उठ कर बच्चे को तैयार कर के टिफिन बनाएगी. घर में हफ्तेभर बाद मेहमान आने वाले हों तो उस के मन में तैयारी उसी समय से शुरू हो जाती है.

देखा जाए तो कामवाली या औफिस वालों को भी छुट्टी मिल जाती है परंतु घरेलू महिला के लिए हर दिन कामकाजी होता है. इस का असर शारीरिक, मानसिक स्वास्थ्य के साथसाथ उस के व्यवहार और रिश्तों पर भी पड़ता है. काम का तनाव अवसाद या ऐंग्जाइटी की तरफ भी ले जा सकता है. व्यवहार में नकारात्मकता आ सकती है. कामों का बो?ा स्वयं को अन्याय का शिकार मानने की मानसिकता बना सकता है. महिला चिड़चिड़ी हो सकती है. छोटीछोटी बातों पर गुस्सा आ सकता है. इस तरह के व्यवहार से पारिवारिक सदस्यों से रिश्ते खराब होने की आशंका बढ़ती है.

काम के चक्कर में महिलाएं न तो समय पर खाती हैं और न ही पौष्टिक आहार लेती हैं. सैर, योग, ध्यान जैसी गतिविधियों के लिए समय निकालने की कल्पना भी नहीं की जा सकती. ये सारी बातें कुछ समय बाद शारीरिक स्वास्थ्य को बुरी तरह बिगाड़ देती हैं.

क्या है उपाय

कामों का बंटवारा करें: सभी को घर के कामों में मदद करनी है ऐसा नियम बनाएं. जब सब हाथ बंटाएंगे तो हर काम समय पर होगा और सब की आप पर छोटीछोटी बातों के लिए निर्भरता कम होगी. बेटी के साथ बेटे को भी बराबर काम सौंपें. वैसे भी अब खाना बनाना जैसे घरेलू काम लाइफ स्किल बन चुके हैं जो सब को आने ही चाहिए. जब बच्चे बड़े होते हैं तो उन्हें जौब के लिए कई दफा दूसरे शहर में अकेले रहना होता है. पति के साथ भी ऐसा मौका आ सकता है. एकल परिवारों में पत्नी कभी बीमार है या कहीं गई है तब खाना बनाना आता हो तो सबकुछ आसान हो जाता है.

परफैक्शन की चाह छोड़ें: परफैक्शन अच्छी चीज है परंतु हर काम में नहीं. कुछ छोटेमोटे कामों में हर किसी से परफैक्शन की उम्मीद न रखें. आप को लगता है कि हर चीज जगह पर होनी चाहिए इसलिए धीरेधीरे आप को सब की अव्यवस्था सुधारने की आदत हो जाती है. बच्चे स्कूल से आने के बाद कपड़े इधरउधर फेंक देते हैं तो उन्हें आप उठाती हैं. आप को लगता है कि जितनी देर में उन्हें कहेंगी आप खुद बेहतर ढंग से काम कर देंगी. मगर इस आदत से बाहर निकालिए. आप ऐसे काम मत करीए फिर देखिए कभी न कभी वे खुद सब संभालना सीख जाएंगे.

गैजेट्स खरीदें: जिन घरों में तरहतरह के घरेलू काम निबटाने वाले गैजेट्स होते हैं वहां महिलाओं का काफी समय बचता है. घरेलू कामकाज में सहायक गैजेट्स खरीदना अपनी प्राथमिकता बनाएं. उदाहरण के लिए डिशवाशर, रोटी मेकर, प्रैशर कुकर, राइस कुकर, स्टीमर, एअर फ्रायर, जूसर, वैक्यूम क्लीनर, रोबोटिक स्वीपर, वौशिंग मशीन आदि कुछ ऐसे गैजेट हैं जो घर के काम को आसान और अधिक कुशल बना सकते हैं. अपनी आवश्यकताओं और प्राथमिकताओं के अनुसार गैजेट चुन सकते हैं. इन से आप का बहुत सा समय और मेहनत बचेगी और तनाव घटेगा.

वाशिंग मशीन घर में हो तो आप को घंटों कपड़े धो कर निकालने की मेहनत नहीं करनी होगी. बस मशीन में डाले और सही समय पर निकाल लिए. यह काम घर का कोई भी सदस्य कर सकता है. इसी तरह डिशवाशर में बरतनों को धोने के लिए कोई मेहनत नहीं करनी. कोई भी यह काम कर सकता है. इसी तरह रोटी मेकर से रोटियां पकाना या जूसर से जूस निकालना, कुकर में चावल पकाना जैसे काम कोई भी कर सकता है. स्त्री खुद भी करती है तो उस का बहुत सारा समय बचता है.

अपना ध्यान रखें: औफिस जाने और घर संभालने के साथसाथ अपने शौक, मनोरंजन और नींद के लिए समय अवश्य निकालें. यह समय की बरबादी नहीं है. इन से सुकून और आराम मिलता है, जिस के बाद आप कम समय में बेहतर काम कर सकती हैं. समय की कमी लगे तो घर के काम घटाएं पर अपना आराम नहीं.

हाल में ही एक ऐसा शोध आया है जिस में यह बात सामने आईं है कि कई लोग खासतौर पर महिलाएं घर से ज्यादा औफिस में रिलैक्स फील करती हैं. उन्हें औफिस में कम तनाव महसूस होता है.

वैज्ञानिकों ने स्टडी में शामिल 122 प्रतिभागियों का पूरा सप्ताह कार्टिसोल यानी स्ट्रैस हारमोन के लैवल की जांच की और साथ ही उन्हें दिन के अलगअलग समय पर अपने मूड को रेट करने के लिए भी कहा. इस स्टडी के नतीजे बताते हैं कि अपनी वर्कप्लेस पर घर की तुलना में लोग कम तनाव में दिखे. जांच की गई तो रिसर्चर्स ने पाया कि महिलाएं घर की तुलना में औफिस में ज्यादा खुश रहती हैं तो वहीं पुरुष औफिस से ज्यादा घर पर खुश रहते हैं.

एक महिला घर से औफिस आनेजाने के लिए रोज करती है फ्लाइट का इस्तेमाल

हर महिला के लिए घर और औफिस दोनों को संभालना एक बड़ी चुनौती होती है. कुछ महिलाएं इस से थक कर हार मान लेती हैं तो कुछ सभी कठिनाइयों का सामना कर अपनी जिम्मेदारियों को पूरी लगन से निभाती हैं. ऐसी ही एक महिला है मलयेशिया में रहने वाली भारतीय मूल की रेशेल कौर जिन के बारे में सोशल मीडिया पर तारीफों के पुल बांधे गए. वे अपने अद्भुत संघर्ष और अनुशासन के कारण सुर्खियों में आईं. रेशेल कौर एअर एशिया के फाइनैंस औपरेशन डिपार्टमैंट में असिस्टैंट मैनेजर हैं. उन का डेली रूटीन इतना कठिन है कि लोग उसे देख कर हैरान रह जाते हैं.

रेशेल रोजाना सुबह 4 बजे उठती हैं और तैयार हो कर अपने काम के लिए निकल जाती हैं. वे हफ्ते में 5 दिन मलयेशिया से सिंगापुर फ्लाइट से सफर करती हैं. पूरा दिन औफिस में काम करने के बाद शाम को वापस अपने घर लौट आती हैं. इस पूरी दिनचर्या के बावजूद वे अपने बच्चों के साथ समय बिताने को प्राथमिकता देती हैं. उन के अनुसार, यह तरीका न केवल किफायती है बल्कि उन्हें अपने बच्चों के साथ समय बिताने का मौका भी मिलता है.

पहले के कुआलालंपुर में औफिस के पास ही रहती थीं लेकिन वहां रहना बहुत महंगा था और वे घर में सिर्फ एक बार अपने बच्चों से मिल पाती थीं. इसलिए, उन्होंने रोजाना अपडाउन करने का फैसला किया ताकि वे घर और औफिस दोनों को अच्छे से मैनेज कर सकें.

सुबह 4 बजे उठना और तैयार होना. इस के बाद 5.55 बजे की फ्लाइट से सिंगापुर के लिए रवाना होना. फिर पूरा दिन औफिस में काम करना और शाम को दूसरी फ्लाइट से वापस मलयेशिया लौटना. फिर रात 8 बजे तक घर पहुंच कर बच्चों के साथ समय बिताना. यानी स्त्री चाहे तो कुछ भी कर सकती है. औफिस की डगर कितनी भी कठिन हो, वर्किंग वूमन बनने का रास्ता कितना भी चुनौती भरा क्यों न हो, अपने स्वाभिमान से कभी समझता नहीं करना चाहिए.

एक स्त्री को कुछ भी हो जाए अपना काम नहीं छोड़ना चाहिए. क्योंकि यही काम उस के वजूद को स्थापित करता है. वह कमाती है तो अपनेआप पर भरोसा कर पाती है.

महिलाएं औफिस के घरेलू काम ज्यादा करती हैं

रिसर्च बताती हैं कि महिलाएं कार्यालय के घरेलू कामों के लिए भी अधिक जिम्मेदार होती हैं. पार्टियों की योजना बनाना, भोजन का और्डर देना और बैठकों में नोट्स लेना कुछ ऐसे काम हैं जो महिलाओं को अकसर काम पर करने पड़ते हैं. अकसर ‘औफिस हाउस वर्क’ कहे जाने वाले ये काम कार्यस्थल के सुचारु संचालन में योगदान करते हैं लेकिन जब पदोन्नति या वेतन वृद्धि की बात आती है तो इन पर ध्यान नहीं दिया जाता.

कार्यालय के घरेलू काम में आप के कार्यस्थल को सुचारु रूप से चलाने के लिए आवश्यक सभी प्रशासनिक कार्य, छोटेमोटे काम और कम मूल्य वाले असाइनमैंट शामिल हैं.

हालांकि वे समय और ऊर्जा लेते हैं और उन्हें पूरा करने की आवश्यकता होती है लेकिन उन्हें आमतौर पर कार्यस्थल में तुच्छ या महत्त्वहीन योगदान माना जाता है. यह अनुमान लगाया गया है कि महिलाएं श्वेत पुरुषों की तुलना में 29% अधिक कार्यालय घरेलू काम करती हैं.

अध्ययनों से पता चलता है कि इन कार्यों को पूरा करने के लिए महिलाओं से संपर्क किए जाने की संभावना अधिक होती है और पुरुषों की तुलना में उन के द्वारा स्वयंसेवा करने के लिए सीधे अनुरोध स्वीकार करने की संभावना अधिक होती है. महिलाएं स्वयंसेवा इसलिए नहीं करती हैं क्योंकि वे इन कार्यों में बेहतर हैं या उन्हें करने में उन्हें मजा आता है. इस के बजाय गहराई से स्थापित लैंगिक रूढि़वादिता ही इस की वजह है. Job vs Household Chores

Youth Travel Trends: यूथ की खास पसंद रिजोर्ट

Youth Travel Trends: अगर आप पहले कभी किसी रिजोर्ट में नहीं गए हैं तो आप को अपनी अगली छुट्टियों में इसे आजमाना चाहिए. ऐसे कई कारण हैं, जिन की वजह से लोग दूसरे तरह के आवासों की तुलना में रिजोर्ट को प्राथमिकता देने लगे हैं और हाल के वर्षों में रिजोर्ट में परिवार के साथ जाना तेजी से लोकप्रिय हो रहा है. इस के अलावा रिजोर्ट में रहने का खर्च होटल में रहने के खर्च से कम ही होता है. शहरों से निकल कर शांत वातावरण में प्राकृतिक दृश्यों का आनंद लेना ही रिजोर्ट की खूबी होती है. इसलिए आजकल अधिकतर यूथ छुट्टियों का आनंद लेने के लिए रिजोर्ट जाने का प्लान बनाते हैं जिसे कई बार परिवार या दोस्तों के संग बनाते हैं.

किसी रिजोर्ट में ठहरने का सब से बड़ा लाभ वहां का एक अलग अनुभव प्राप्त करना होता है. किसी सामान्य होटल में ठहर कर ऐसा अनुभव आप प्राप्त नहीं कर सकते जैसा रिजोर्ट में जाने से होता है. रिजोर्ट का वातावरण और डिजाइन होटल से अलग और साफसुथरा व अलग होता है, जहां कई प्रकार के मनोरंजन के साधन होते हैं. हर रिजोर्ट की अपनी एक अलग खूबी होती है मसलन, पहाडि़यों में स्थित रिजोर्ट हो या समुद्र तट पर, हर स्थान का अनुभव शानदार और अनोखा होता है.

इस बारे में तपोला के ओंकार ‘एग्रो टूरिज्म ऐंड रिजोर्ट’ के गणेश उतेनकर कहते हैं कि आजकल छुट्टियों में 2-3 दिन के लिए रिजार्ट में जाना एक ट्रैंड बन चुका है, जिस में यूथ और कौरपोरेट वालों की संख्या सब से अधिक होती है क्योंकि मुंबई जैसे बड़े, भीड़भाड़ वाले शहर में काम करने वाले शहर से दूर लोग एकांत की तलाश करते हैं. ऐसे में उन्हें 2-3 दिन रिजोर्ट में रहना पसंद होता है. यही वजह है कि मुंबई के आसपास कई रिजोर्ट हैं, जहां कुछ समय आराम से बिताया जा सकता है.

समय के साथ बदली है सोच

रिजोर्ट की पौपुलैरिटी के बारे में गणेश का कहना है कि सालों पहले लोग एकदूसरे के रिश्तेदार के पास जाते थे, समय के साथसाथ इस में बदलाव आया है. लोग अब किसी के घर पर जाना पसंद नहीं करते. इस की वजह से मोटेल और होटल प्रचलित हुए. लेकिन अब बड़ेबड़े हाइवे बनने से रिजोर्ट का निर्माण होने लगा. रिजोर्ट में होटल जैसे अनुभव के साथसाथ गांव के परिवेश को भी लोग पसंद करने लगे हैं. रिजोर्ट बनाने में काफी जगह लगती है, इसलिए ये मुंबई से दूर लोनावाला, सातारा, खंडाला आदि स्थानों पर अधिक हैं, जहां व्यक्ति सड़क परिवहन से जा सकता है.

सभी विकल्प एक स्थान पर

रिजोर्ट में आजकल एकसाथ सभी विकल्प मुहैया कराए जाते हैं, जिन में कई प्रकार के ऐडवैंचर के साथसाथ कई ऐक्टिविटीज का चलन होने लगा है. मसलन, एक अच्छा गार्डन, स्विमिंग पूल, खेल की कई सुविधाएं, लंच, डिनर की सुविधा, बच्चों के लिए आकर्षक स्पोर्ट्स, अच्छे रूम आदि होते हैं, जिन में व्यक्ति अपने बजट के अनुसार रह सकता है.

आराम और सुविधा

रिजोर्ट्स आप के आराम और सुविधा के लिए सिंगल रूम, डबल रूम और फैमिली रूम प्रदान करते हैं. इस के अलावा आप एक विला किराए पर ले सकते हैं, जिस में आकार के आधार पर 6 या उस से अधिक लोग ठहर सकते हैं. कई बार इन जगहों पर रसोईघर भी शामिल होता है, जहां आप अपनी पसंद का कुछ भी बना कर खा सकते हैं.

अच्छी वैलनैस और ऐडवैंचर फैसिलिटी

रिजोर्ट में रहने का एक और मजेदार लाभ यह भी है कि यहां कई तरह की ऐक्टिविटीज आम जनजीवन से अलग हो देखने को मिलती हैं, जिस में आप स्पा में आराम करते हुए दिन बिता सकते हैं. इस के अलावा किसी खूबसूरत   झील में मछली पकड़ सकते हैं, वाटर स्पोर्ट्स में कायाकिंग कर सकते हैं या पहाड़ों पर ट्रैकिंग भी कर सकते हैं जो आप की छुट्टियों को अधिक यादगार बना सकता है.

एग्रो बेस्ड फूड की है खास डिमांड

रिजोर्ट में खाने पर भी काफी फोकस देखा गया है, जिस में वे उस स्थान की ट्रैडिशनल और औथेंटिक फूड को खाना अधिक पसंद करते हैं जो कैमिकल फ्री उगाया जाता है. गणेश कहते है कि अधितर एग्रो बेस्ड रिजोर्ट में आसपास में उगाए गए फलों और सब्जियों के प्रयोग से व्यंजन बनाए जाते हैं जो अधिकतर महाराष्ट्रीयन व्यंजन होते हैं. इस से पर्यटकों को एक औरिजिनल स्वाद के साथसाथ वहां के कल्चर का भी अनुभव होता है जो उन्हें शहरी वातावरण से अच्छा फील कराता है.

बाहर जाने की जरूरत नहीं

वहां कोई टैक्सी, बस या सवारी की आवश्यकता नहीं पड़ती. जरूरत की सारी चीजें आप को रिजोर्ट में ही मिल जाती हैं, जिस से आप शांति से हौलिडेज को ऐंजौय कर सकते हैं.

सभी के लिए मनोरंजन

चूंकि ये रिजोर्ट परिवारों और कौरपोरेट सभी के लिए हैं, इसलिए यहां बच्चों, यूथ और वयस्कों सभी के लिए कई तरह की ऐक्टिविटीज होती हैं. पूरी यात्रा के दौरान रिजोर्ट में रहते हुए व्यक्ति कभी बोर नहीं होता.

सुरक्षा और गोपनीयता

कुछ लोग अपनी छुट्टियां रिजोर्ट में बिताना पसंद करते हैं क्योंकि उन्हें पता है कि वे जहां भी जाएंगे, सुरक्षित रहेंगे. सभी रिजोर्ट सभी प्रकार के आपराधिक व्यवहार को रोकने के लिए अत्याधुनिक तकनीक का उपयोग करते हैं. छुट्टियां मनाने वालों को रिजोर्ट इसलिए पसंद आते हैं क्योंकि वे पर्याप्त एकांत प्रदान करते हैं.

सुविधाएं

इस के अलावा कुछ रिजोर्ट के भीतर रिजोर्ट या सभी उम्र के बच्चों के लिए विभिन्न गतिविधियों के साथ डे कैंप सेवाएं मौजूद होती हैं, जिस से उन के पेरैंट्स को आराम और तनावमुक्त होने का एक शानदार अवसर मिलता है.

इस प्रकार रिजोर्ट कल्चर आजकल काफी पौपुलर है लेकिन वहां के परिवेश का आनंद आप तभी उठा सकते हैं. जब आप वहां पर खाने या रहने की कुछ कमियों को नजरअंदाज करें और अपने परिवार या दोस्तों के साथ उस अनमोल समय का आनंद उठाएं.  Youth Travel Trends

Aamir Khan Interview: नई गर्लफ्रेंड गौरी के रिश्ते को लेकर खास बातचीत

Aamir Khan Interview: आमिर खान उन ऐक्टरों में से एक हैं जो अपनेआप को स्टार नहीं बल्कि आम इंसान मानते हैं. वे दिल की सुनते हैं, बौक्स औफिस आंकड़ों के पीछे नहीं भागते. फिल्म की कहानी उन के लिए सब से ज्यादा महत्त्वपूर्ण होती है. फिर वह कहानी किसी फिल्म की रीमेक ही क्यों न हो. करीब 3 साल के बाद आमिर खान की फिल्म ‘सितारे जमीन पर’ चर्चा में है जो उन की पिछली फिल्म ‘तारे जमीन पर’ की सीक्वल है. फिल्म की कहानी 10 ऐसे बच्चों पर केंद्रित है जो इंटलैक्चुअल डिसेबल्ड, न्यूरो औप्टिकल बच्चे हैं.

फिल्म में आमिर खान ने फुटबाल कोच का किरदार निभाया है. ‘लाल सिंह चड्ढा’ की असफलता के 3 साल बाद आमिर खान की फिल्म ‘सितारे जमीन पर’ चर्चा में है. इस फिल्म को ले कर उन की क्या सोच है? इस फिल्म में काम करने का अनुभव कैसा रहा, ऐसे कई दिलचस्प सवालों के जवाब दिए आमिर खान ने अपने खास अंदाज में:

आप की हालिया रिलीज फिल्म ‘सितारे जमीन पर’ में आप का काम करने का अनुभव कैसा रहा?

बहुत ही मजेदार, शूटिंग के दौरान हर दिन अपने साथी कलाकारों से जो 10 बच्चे हैं, मुझे बहुत कुछ सीखने को मिला. सैट का माहौल भी एकदम कूल और पौजिटिव होता था. फिल्म की शूटिंग कब खत्म हो गई पता ही नहीं चला.

क्या आप को लगता है आज के समय में फिल्म बनाना जितना मुश्किल है उस से कहीं ज्यादा फिल्म रिलीज करना है? कई सारी बातों का टैंशन रहती है, फिल्म का सैंसर के तहत अटकना, विवादों में घिरने की टैंशन, बात का बतंगड़ होने का डर, फिल्म को ले कर नकारात्मक लोगों की नैगेटिव प्रतिक्रिया और आखिरी में फिल्म पायरेसी की टैंशन आदि?

हां यह सब तो होता है क्योंकि यह फिल्म प्रकिया का एक हिस्सा ही है, जिस से मुझे ही नहीं सब को गुजरना पड़ता है. मगर एक बात यह भी है कि ऐक्सीडैंट के डर से रास्ते पर चलना तो नहीं छोड़ सकते न. अगर हमारे ऊपर कोई इल्जाम लगता है या फिल्म को ले कर कोई अफवाह उड़ती है तो उस के लिए हमारा जवाब देना भी जरूरी होता है और अगर आप सच्चे हैं तो आप किसी बात से नहीं घबराएंगे.

मेरे साथ ऐसा ही कुछ है. मैं किसी बात से नहीं घबराता क्योंकि मुझे पर्सनली पता है कि मैं ने कुछ गलत नहीं किया है. मैं बस इतना जानता हूं कि मैं ने अपना काम ईमानदारी से किया है. अगर मेरा काम दर्शकों को अच्छा लगा,तो वे मेरी फिल्म को पसंद करेंगे और अगर अच्छा नहीं लगा तो फिल्म को नकार देंगे. दोनों ही सूरत में मुझे दर्शकों का फैसला मंजूर है क्योंकि अगर उन्होंने मुझे इतना प्यार किया है तो उन की पसंद मेरे लिए सब से ज्यादा माने रखती है.

आप की फिल्म का नाम ‘सितारे जमीन पर’. आप की नजर में असल में सितारा कौन है क्योंकि आप को ज्यादातर ऐसे लोगों के साथ जुड़ते और काम करते देखा है जिन्हें समाज ने नहीं अपनाया जैसे ऐबनौर्मल बच्चों पर आप की फिल्में ‘तारे जमीन पर’ और ‘सितारे जमीन पर’ के अलावा आप काफी समय से महाराष्ट्र के गांव के लिए पानी योजना पर भी कई सालों से काम कर रहे हैं?

सितारे या सुपरस्टारों का चलन बौलीवुड में एक ट्रैंड है लेकिन अगर मैं अपनी बात करूं तो मेरी नजर में हरकोई सितारा है, मेरी नजर में हरकोई अपना है हम सभी के तार एकदूसरे से जुड़े हैं भले ही हमारे प्रोफैशन अलग हैं. कोई दूसरा नहीं होता सब अपने होते हैं, यही मेरी असली सोच है.

मेरी नजर में सब स्टार हैं क्योंकि वे हमारे अपने हैं हम से अलग नहीं हैं. यह जो कौंसैप्ट है अद्वैता का, नौनडीवैलिटी का, मैं उस पर स्ट्रौंग्ली बिलीव करता हूं. हम सब कहीं न कहीं जुड़े हुए हैं. इंडियन फिलौसफी में हमें यह बताया जाता है कि हम सब एक हैं और हम में कोई फर्क नहीं है. मेरी सोच भी बिलकुल ऐसी ही है इसलिए मेरी नजर में हरकोई स्टार है.

आप अपनी हर फिल्म में कुछ नया पेश करने की कोशिश करते रहते हैं फिर चाहे फिल्म हिट हो या फ्लौप लेकिन आप का नजरिया जागरूकता से भरा होता है. ‘सितारे जमीन पर’ अपनी नई फिल्म में आप ने 10 स्पैशली ऐबल्ड ऐक्टर्स को इंट्रोड्यूस किया है. इस के पीछे क्या कोई खास वजह है?

मेरी हमेशा कोशिश रहती है कि मैं अपनी जिंदगी से या अपने से जुड़े लोगों की जिंदगी से कुछ न कुछ सबक लूं, ‘सितारे जमीन पर’ में मैं ने ऐसे बच्चों के साथ काम किया है जिन से मैं ने बहुत कुछ सीखा है. शायद यह पहली बार होगा जब इतनी बड़ी फिल्म के मुख्य किरदार इंटलैक्चुअल डिसैबल्ड 10 बच्चे हैं. इन के साथ काम करना मेरे लिए जहां एक तरफ ऐक्साइटमेंट और चैलेंज था, वहीं दूसरी तरफ उन के साथ काम करना एक अलग अनुभव भी था.

क्या फिल्म की सफलता को ले कर आप पूरी तरह संतुष्ट हैं?

इस बारे में कोई भी कमैंट करना आज के समय में बहुत मुश्किल है. कोशिश तो यही है कि दर्शकों को हमारी फिल्म पसंद आए. फिल्म पूरी तरह कौमेडी और मनोरंजन से भरपूर है, लेकिन कई बार मेरे साथ गड़बड़ हो जाती है. जब मैं ने ‘लाल सिंह चड्ढा’ कौमेडी फिल्म बनाई तो ऐक्शन फिल्मों का दौर था, जब मेरी फिल्म ‘गजनी’ रिलीज हुई तो कौमेडी फिल्मों का दौर था तो कई बार मैं खुद ही कन्फ्यूज हो जाता हूं कि दर्शकों का मूड किस ओर है. लिहाजा, मैं हिट और फ्लौप के चक्कर में न पड़ कर अपने काम पर ध्यान देता हूं और बाकी सब दर्शकों की पसंद पर छोड़ देता हूं.

आप की फिल्म में हमेशा सोशल मैसेज होता है, क्या आप की पहली पसंद सोशल मैसेज की कहानी है?

दर्शकों की तरह अगर फिल्म की कहानी मुझे हर भावना का एहसास कराती है तो मेरे लिए वह अच्छी है. अगर वह सोशल मैसेज देती है तो अच्छी बात है, लेकिन मैं सिर्फ इसलिए फिल्म साइन करूं कि उस फिल्म में सोशल मैसेज है तो ऐसा नहीं है क्योंकि मैं एक ऐंटरटेनर हूं और मेरी जिम्मेदारी है कि मेरी फिल्में दर्शकों को अच्छी लगें और मैं दर्शकों का मनोरंजन कर सकूं.

आप की ज्यादातर फिल्में रीमेक होती हैं जैसे ‘लाल सिंह चड्ढा,’ ‘गजनी’ और ‘अब ‘सितारे जमीन पर’ की कहानी भी स्पेनिश फिल्म केपिओंस की रीमेक है इस के अलावा यही फिल्म हौलीवुड में भी ‘चैंपियंस’ नाम से बनी थी. अब यही फिल्म हिंदी में ‘सितारे जमीन पर’ के नाम से बन रही है, इस बारे में आप क्या कहेंगे?

मुझे पर्सनली रीमेक से कोई प्रौब्लम नहीं है. मुझे नहीं लगता कि रीमेक फिल्मों में काम करना गलत है, मैं इस से पहले भी कई रीमेक फिल्मों में काम कर चुका हूं. अगर इस फिल्म की कहानी स्पेनिश या हौलीवुड से प्रेरित है तो इस में बुराई क्या है. कितने लोगों ने स्पेनिश, हौलीवुड फिल्म देखी होंगी, मेरा मकसद अच्छी कहानियों पर काम करना है फिर वह रीमेक हो या औरिजनल इस से मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता.

ज्यादातर लोग एक उम्र के बाद खुले तौर पर समाज के डर से अपना प्यार स्वीकारने से डरते हैं, लेकिन आप ने अपने प्यार गौरी से मीडिया को मिलाया और खुले तौर पर अपना प्यार स्वीकार भी किया जो एक औरत को सम्मान देने जैसी बात है, साथ ही आप ने यह भी साबित कर दिया कि प्यार की कोई उम्र नहीं होती, वह कभी भी हो सकता है. इस बारे में आप क्या कहेंगे?

हां यह सच है, मुझे भी नहीं पता चला कब मैं गौरी के प्यार में पड़ गया, लेकिन मैं गौरी के साथ अपनेआप को पूरा महसूस करता हूं. मुझे उस का साथ अच्छा लगता है यह स्वीकारने में मुझे कोई झिझाक नहीं है. शुरुआत में हम दोनों पहले अच्छे दोस्त थे और हम दोनों एकदम अलग हैं. वह जितनी शांत है मैं उतना ही उद्यमी हूं.

मेरे दिमाग में कुछ न कुछ चलता रहता है जबकि वह बहुत सुलझा हुई है. उस के साथ रहने के बाद मुझे एहसास हुआ कि मैं उस के बगैर अधूरा था और आज मैं अपनेआप को पूरा और संतुष्ट महसूस करता हूं. मेरा लेडीज के साथ हमेशा पौजिटिव अप्रोच रहा है. पूर्व पत्नी रीना और किरण के साथ भी मेरे आज अच्छे संबंध हैं. शायद इस की वजह यह है कि मैं रिश्ते थोपने में नहीं बल्कि निभाने में विश्वास रखता हूं. Aamir Khan Interview:

Language Skill: भाषाओं का ज्ञान क्यों है एक स्किल

Language Skill: साउथ सुपरस्टार कमल हासन कन्नड़ पर दिए गए बयान से विवादों में हैं. उन्होंने कहा था कि कन्नड़ तमिल से जन्मी है. विवाद बढ़ने पर कर्नाटक में उन की फिल्म ‘ठग लाइफ’ रिलीज नहीं होने दी गई. वहीं कर्नाटक हाईकोर्ट ने भी उन्हें बयान के लिए फटकार लगाई. अब कमल हासन का हिंदी पर एक बयान सामने आया है, जिस में उन्होंने कहा है कि हिंदी को अचानक थोपा नहीं जाना चाहिए क्योंकि अचानक हुए भाषा के बदलाव से हम कई लोगों को अनपढ़ बना देंगे.

भाषा को सीखें बिना झिझक

एक इंटरव्यू में कमल हासन से भाषा विवाद पर सवाल किए जाने पर उन्होंने मजाकिया अंदाज में कहा कि मैं पंजाब के साथ खड़ा हूं. हालांकि आगे उन्होंने संजीदगी से कहा कि मैं कर्नाटक और आंध्र प्रदेश के साथ खड़ा हूं. सिर्फ यही वे जगहें नहीं हैं, जहां भाषा थोपी जा रही है. मैं फिल्म ‘एक दूजे के लिए’ का ऐक्टर था. बिना थोपे मैं ने भाषा सीखी. थोपो मत क्योंकि एक तरह से यह शिक्षा है.

आप को शिक्षा के लिए सब से आसान रास्ता अपनाना चाहिए न कि बाधाएं डालनी चाहिए. उन्होंने कहा कि अगर आप को वाकई इंटरनैशनली सफलता चाहिए तो आप को एक भाषा सीखनी चाहिए और मुझे इंग्लिश काफी उचित लगती है. आप स्पेनिश या चीनी भी सीख सकते हैं, लेकिन सब से आसान रास्ता यह है कि हमारे पास 350 साल पुरानी इंग्लिश ऐजुकेशन है जो धीरेधीरे लेकिन लगातार चली आ रही है. जब आप अचानक इसे बदलते हैं तो आप बेवजह कई लोगों को अनपढ़ बना सकते हैं.

भाषा है एक ऐक्स्प्रैशन

यहां यह समझना होगा कि हर व्यक्ति की शारीरिक ऊंचाई, वजन, स्वभाव एकजैसा नहीं होता जैसाकि सैन्य रैजीमैंट में होता है, जहां आप को पता चल जाता है कि फलां व्यक्ति किस रैजीमैंट में किस पद पर काम कर रहा है क्योंकि वहां काम करने वाले का एकजैसा सीना, वजन, शारीरिक बनावट आदि की रिक्वायरमैंट होती है और वहां रैजीमैंट के आधार पर सब को चलना पड़ता है.

भाषा सीखना है गर्व

असल में भाषा एक ऐक्स्प्रैशन है, जिस के द्वारा आप अपनी भावनाओं को व्यक्त करते हैं, फिर इसे ले कर आपसी तनातनी क्यों? क्या आप बता सकते हैं कि आप किस भाषा में हंसते या रोते है? इंसान की ये भावनाएं पूरे विश्व में एकजैसी ही होती हैं. भाषा न जानने पर भी आप सामने वाले व्यक्ति को हंसता या रोता हुआ देख कर उस की मनोदशा को समझ लेते हैं यानी किसी की भावना को समझने के लिए भाषा की जरूरत नहीं पड़ती. भावनाएं चेहरे पर अनायास ही आ जाती हैं.

हर भाषा का अपना सौंदर्य होता है और उसे किसी के द्वारा सीख लेना गर्व की बात होती है. जो व्यक्ति जितना अधिक भाषा का ज्ञान रखता है वह उतना अधिक विद्वान माना जाता है. पड़ोस में कोल्हापुरी चप्पल बेचने वाले को 5 भाषाएं आती हैं, जबकि वह बहुत कम पढ़ालिखा है. उस ने मराठी में 5वीं तक पढ़ाई की, लेकिन उस की दुकान पर कोल्हापुरी चप्पलें खरीदने वालों की भीड़ लगी रहती है क्योंकि वह जिस किसी भी भाषा में संवाद छोटा सही पर कर लेता है. बड़ी हैरानी तब हुई, जब उस ने बंगला, पंजाबी, गुजराती, इंग्लिश सभी भाषाओं में अपनी चप्पलों की तारीफ ग्राहकों से की. भाषा के इस ज्ञान का विकास उस ने अपने व्यवसाय में कामयाबी के लिए किया है जो बहुत जरूरी है.

है एक स्किल

माथेरान में घुमाने वाला घोड़े वाला व्यक्ति भी मराठी, गुजराती, हिंदी के अलावा इंग्लिश और फ्रैंच जानता है क्योंकि उसे वहां की वादियों के बारे में पर्यटकों को बताना पड़ता है ताकि उस के घोड़े पर सवार हो कर व्यक्ति वहां के दृश्यों का आनंद उठा सकें. उस ने फ्रैंच और इंग्लिश पर्यटकों से सुनसुन कर सीख ली है. यही वजह है कि कोई भी उस के घोड़े को सवारी के लिए ले जाना पसंद करता है, जबकि उस के घोड़े की सवारी महंगी है, लेकिन भाषा ज्ञान उसे सब से अलग और कामयाबी की श्रेणी में रखता है. दिल्ली प्रैस समूह ने भी गृहशोभा मैगजीन को कई भाषाओं में प्रकाशित कर यह सिद्ध कर दिया है कि भाषा कोई भी हो, आप इस मैगजीन के लेखों से खुद को ऐन्हैंस कर सकते हैं.

मूल रूप से गृहशोभा हिंदी में शुरू हुई थी, लेकिन बाद में बंगला, गुजराती, कन्नड़, मलयालम, मराठी, तमिल और तेलुगु भाषाओं में भी उपलब्ध होने लगी. इस से इस पत्रिका से अलगअलग भाषा जानने वाले हर वर्ग के पाठक को रुचिकर और उपयोगी सामग्री मिलने लगी. इसे पूरे देश में सभी तक पहुंचाना आसान नहीं था क्योंकि पाठकों की रुचि को देखते हुए लेखों को अनुवाद किया जाने लगा. आज देश का हर नागरिक इस के लेखों, कहानियों को पढ़ सकता है. यहां यह साबित हुआ कि किसी भाषा को सीखना कोई बड़ी बात नहीं, जिस की राजनीति आज देखने को मिल रही है.

राजनेता भाषा के माध्यम से अपने वोटबैंक की रोटियां सेंक रहे हैं और चाहते हैं कि हिंदी के जानकार को दक्षिण में हिंदी पढ़ाने की जौब मिल जाए, जिसे ये अपनी कामयाबी कहेंगे. कोई भी व्यक्ति आसानी से किसी भाषा को सीख सकता है. असल में यह एक अच्छी स्किल है, जिसे सभी को सीख लेना चाहिए, जितनी भाषाएं व्यक्ति बोल सकता है, उतना ही उस की पहचान का दायरा बढ़ता जाता है.

सिखाएं एकदूसरे को

बड़ेबड़े शहरों में हाई राइज बिल्डिंग्स में जहां हर भाषा के लोग आज एकसाथ रहते हैं, वहां भी सोसाइटी के किसी गैटटूगैदर में सब अपनीअपनी भाषा के साथ गु्रप बना लेते हैं. ऐसे स्थानों पर दूसरी भाषा बोलने वाले लोग जाने से परहेज करते हैं क्योंकि उन्हें उन के संवाद समझ में नहीं आते. ऐसे में अगर हर सोसाइटी आपस में एकदूसरे की भाषा की फ्री में एक क्लास चला दे तो कोई भी उसे सीख सकता है और ग्रुप में होने वाली दूरियां भी मिट सकती हैं.

धारावाहिक ‘सपनों की छलांग’ फेन अभिनेत्री मेघा रे कहती हैं कि भाषा पर विवाद कभी सही नहीं होता, भाषा खुद की भावनाओं को व्यक्त करने का एक जरीया मात्र है. जानवरों की भी अपनी भाषा होती है, जिसे हम समझ नहीं पाते, लेकिन उन की मनोदशा को समझ सकते हैं. आज हम किसी भी भाषा की फिल्में और वैब सीरीज सबटाइटल के साथ देखते और ऐंजौय करते हैं. मैं ओडिसा की हूं, लेकिन मराठी, हिंदी, इंग्लिश और गुजराती अच्छी तरह से बोल लेती हूं. भाषा ज्ञान से ही हम उस स्थान की कला और संस्कृति से परिचित होते हैं जो अच्छी बात है. मुझे भाषा सीखना पसंद है और इंडस्ट्री में अच्छा काम करने के लिए कई भाषाओं का ज्ञान होना जरूरी है ताकि किसी संवाद को अच्छी तरह से परदे पर उतारा जाए.

इस प्रकार भाषा विवाद का समाधान टकराव में नहीं बल्कि समावेशी दृष्टिकोण अपनाने में है. यूथ को मातृभाषा के अलावा अन्य भाषाओं का भी ज्ञान प्राप्त करने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए ताकि वे जहां भी पढ़ाई करने या जौब के लिए जाएं तो उन्हें किसी भी प्रकार की समस्या न हो. वहां से भागे नहीं. वे जहां भी जाएं वहां की भाषा पहले से सीख लेने की कोशिश करें ताकि वे खुद को अकेले नहीं बल्कि उसी परिवेश का हिस्सा समझें.

Hindi Family Story: यह घर मेरा भी है

Hindi Family Story: मैं और मेरे पति समीर अपनी 8 वर्षीय बेटी के साथ एक रैस्टोरैंट में डिनर कर रहे थे, अचानक बेटी चीनू के हाथ के दबाव से चम्मच उस की प्लेट से छिटक कर उस के कपड़ों पर गिर गया और सब्जी छलक कर फैल गई.

यह देखते ही समीर ने आंखें तरेरते हुए उसे डांटते हुए कहा, ‘‘चीनू, तुम्हें कब अक्ल आएगी? कितनी बार समझाया है कि प्लेट को संभाल कर पकड़ा करो, लेकिन तुम्हें समझ ही नहीं आता… आखिर अपनी मां के गंवारपन के गुण तो तुम में आएंगे ही न.’’

यह सुनते ही मैं तमतमा कर बोली, ‘‘अभी बच्ची है… यदि प्लेट से सब्जी गिर भी गई तो कौन सी आफत आ गई है… तुम से क्या कभी कोई गलती नहीं होती और इस में गंवारपन वाली कौन सी बात है? बस तुम्हें मुझे नीचा दिखाने का कोई न कोई बहाना चाहिए.’’

‘‘सुमन, तुम्हें बीच में बोलने की जरूरत नहीं है… इसे टेबल मैनर्स आने चाहिए. मैं नहीं चाहता इस में तुम्हारे गुण आएं… मैं जो चाहूंगा, इसे सीखना पड़ेगा…’’

मैं ने रोष में आ कर उस की बात बीच में काटते हुए कहा, ‘‘यह तुम्हारे हाथ की कठपुतली नहीं है कि उसे जिस तरह चाहो नचा लो और फिर कभी तुम ने सोचा है कि इतनी सख्ती करने का इस नन्ही सी जान पर क्या असर होगा? वह तुम से दूर भागने लगेगी.’’

‘‘मुझे तुम्हारी बकवास नहीं सुननी,’’ कहते हुए समीर चम्मच प्लेट में पटक कर बड़बड़ाता हुआ रैस्टोरैंट के बाहर निकल गया और गाड़ी स्टार्ट कर घर लौट गया.

मेरी नजर चीनू पर पड़ी. वह चम्मच को हाथ में

पकड़े हमारी बातें मूक दर्शक बनी सुन रही थी. उस का चेहरा बुझ गया था, उस के हावभाव से लग रहा था, जैसे वह बहुत आहत है कि उस से ऐसी गलती हुई, जिस की वजह से हमारा झगड़ा हुआ. मैं ने उस का फ्रौक नैपकिन से साफ किया और फिर पुचकारते हुए कहा, ‘‘कोई बात नहीं बेटा, गलती तो किसी से भी हो सकती है. तुम अपना खाना खाओ.’’

‘‘नहीं ममा मुझे भूख नहीं है… मैं ने खा लिया,’’ कहते हुए वह उठ गई.

मुझे पता था कि अब वह नहीं खाएगी. सुबह वह कितनी खुश थी, जब उसे पता चला था कि आज हम बाहर डिनर पर जाएंगे. यह सोच कर मेरा मन रोंआसा हो गया कि मैं समीर की बात पर प्रतिक्रिया नहीं देती तो बात इतनी नहीं बढ़ती. मगर मैं भी क्या करती. आखिर कब तक बरदाश्त करती? मुझे नीचा दिखाने के लिए बातबात में चीनू को मेरा उदाहरण दे कर कि आपनी मां जैसी मत बन जाना, उसे डांटता रहता है. मेरी चिढ़ को उस पर निकालने की उस की आदत बनती जा रही थी.

हम दोनों कैब ले कर घर आए तो देखा समीर दरवाजा बंद कर के अपने कमरे में था. हम भी आ कर सो गए, लेकिन मेरा मन इतना अशांत था कि उस के कारण मेरी आंखों में नींद आने का नाम ही नहीं ले रही थी. मैं ने बगल में लेटी चीनू को भरपूर दृष्टि से देखा, कितनी मासूम लग रही थी वह. आखिर उस की क्या गलती थी कि वह हम दोनों के झगड़े में पिसे?

विवाह होते ही समीर का पैशाचिक व्यवहार मुझे खलने लगा था. मुझे हैरानी होती थी यह देख कर कि विवाह के पहले प्रेमी समीर के व्यवहार में पति बनते ही कितना अंतर आ गया. वह मेरे हर काम में मीनमेख निकाल कर यह जताना कभी नहीं चूकता कि मैं छोटे शहर में पली हूं. यहां तक कि वह किसी और की उपस्थिति का भी ध्यान नहीं रखता था.

इस से पहले कि मैं समीर को अच्छी तरह समझूं, चीनू मेरे गर्भ में आ गई. उस के बाद तो मेरा पूरा ध्यान ही आने वाले बच्चे की अगवानी की तैयारी में लग गया था. मैं ने सोचा कि बच्चा होने के बाद शायद उस का व्यवहार बदल जाएगा. मैं उस के पालनपोषण में इतनी व्यस्त हो गई कि अपने मानअपमान पर ध्यान देने का मुझे वक्त ही नहीं मिला. वैसे चीनू की भौतिक सुखसुविधा में वह कभी कोई कमी नहीं छोड़ता था.

वक्त मुट्ठी में रेत की तरह फिसलता गया और चीनू 3 साल की हो गई. इन सालों में मेरे प्रति समीर के व्यवहार में रत्तीभर परिवर्तन नहीं आया. खुद तो चीनू के लिए सुविधाओं को उपलब्ध करा कर ही अपने कर्तव्यों की इतिश्री समझता था, लेकिन उस के पालनपोषण में मेरी कमी निकाल कर वह मुझे नीचा दिखाने का कोई मौका नहीं छोड़ता था.

धीरेधीरे वह इस के लिए चीनू को अपना हथियार बनाने लगा कि वह भी

मेरी आदतें सीख रही है, जोकि मेरे लिए असहनीय होने लगा था. इस प्रकार का वादविवाद रोज का ही हिस्सा बन गया था और बढ़ता ही जा रहा था. मैं नहीं चाहती थी कि वह हमारे झगड़े के दलदल में चीनू को भी घसीटे. चीनू तो सहमी हुई मूकदर्शक बनी रहती थी और आज तो हद हो गई थी. वास्तविकता तो यह है कि समीर को इस बात का बड़ा घमंड है कि वह इतना कमाता है और उस ने सारी सुखसुविधाएं हमें दे रखी हैं और वह पैसे से सारे रिश्ते खरीद सकता है.

मैं सोच में पड़ गई कि स्त्री को हर अवस्था में पुरुष का सुरक्षा कवच चाहिए होता है. फिर चाहे वह सुरक्षाकवच स्त्री के लिए सोने के पिंजरे में कैद होने के समान ही क्यों न हो? इस कैद में रह कर स्त्री बाहरी दुनिया से तो सुरक्षित हो जाती है, लेकिन इस के अंदर की यातनाएं भी कम नहीं होतीं. पिछली पीढ़ी में स्त्रियां आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर नहीं होती थीं, इसलिए असहाय होने के कारण पति द्वारा दी गई यातनाओं को मनमार कर स्वीकार लेती थीं. उन्हें बचपन से ही घुट्टी पिला दी जाती थी कि उन के लिए विवाह करना आवश्यक है और पति के साथ रह कर ही वे सामाजिक मान्यता प्राप्त कर सकती हैं, इस के इतर उन का कोई वजूद ही नहीं है.

मगर अब स्त्रियां आत्मनिर्भर होने के साथसाथ अपने अधिकारों के लिए भी जागरूक हो गई हैं. फिर भी कितनी स्त्रियां हैं जो पुरुष के बिना रहने का निर्णय ले पा रही हैं? लेकिन मैं यह निर्णय ले कर समाज की सोच को झुठला कर रहूंगी. तलाक ले कर नहीं, बल्कि साथ रह कर. तलाक ही हर दुखद वैवाहिक रिश्ते का अंत नहीं होता. आखिर यह मेरा भी घर है, जिसे मैं ने तनमनधन से संवारा है. इसे छोड़ कर मैं क्यों जाऊं?

लड़कियों का विवाह हो जाता है तो उन का अपने मायके पर अधिकार नहीं रहता, विवाह के बाद पति से अलग रहने की सोचें तो वही उस घर को छोड़ कर जाती हैं, फिर उन का अपना घर कौन सा है, जिस पर वे अपना पूरा अधिकार जता सकें? अधिकार मांगने से नहीं मिलता, उसे छीनना पड़ता है. मैं ने मन ही मन एक निर्णय लिया और बेफिक्र हो कर सो गई.

सुबह उठी तो मन बड़ा भारी हो रहा था. समीर अभी भी सामान्य नहीं था. वह

औफिस के लिए तैयार हो रहा था तो मैं ने टेबल पर नाश्ता लगाया, लेकिन वह ‘मैं औफिस में नाश्ता कर लूंगा’ बड़बड़ाते हुए निकल गया. मैं ने भी उस की बात पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी.

चीनू आ कर मुझ से लिपट गई. बोली, ‘‘ममा, पापा को इतना गुस्सा क्यों आता है? मुझ से थोड़ी सब्जी ही तो गिरी थी…आप को याद है उन से भी चाय का कप लुढ़क गया था और आप ने उन से कहा था कि कोई बात नहीं, ऐसा हो जाता है. फिर तुरंत कपड़ा ला कर आप ने सफाई की थी. मेरी गलती पर पापा ऐसा क्यों नहीं कहते? मुझे पापा बिलकुल अच्छे नहीं लगते. जब वे औफिस चले जाते हैं, तब घर में कितना अच्छा लगता है.’’

‘‘सब ठीक हो जाएगा बेटा, तू परेशान मत हो… मैं हूं न,’’ कह कर मैं ने उसे अपनी छाती से लगा लिया और सोचने लगी कि इतनी प्यारी बच्ची पर कोई कैसे गुस्सा कर सकता है? यह समीर के व्यवहार का कितना अवलोकन करती है और इस के बालसुलभ मन पर उस का कितना नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है.

समीर और मुझ में बोलचाल बंद रही. कभीकभी वह औपचारिकतावश चीनू से पूछता कहीं जाने के लिए तो वह यह देख कर कि वह मुझ से बात नहीं करता है, उसे साफ मना कर देती थी. वह सोचता था कि कोई प्रलोभन दे कर वह चीनू को अपने पक्ष में कर लेगा, लेकिन वह सफल नहीं हुआ. समीर की बेरुखी दिनबदिन बढ़ती जा रही थी, मनमानी भी धीरेधीरे बढ़ रही थी. जबतब घर का खाना छोड़ कर बाहर खाने चला जाता, मैं भी उस के व्यवहार को अनदेखा कर के चीनू के साथ खुश रहती. यह स्थिति 15 दिन रही.

एक दिन मैं चीनू के साथ कहीं से लौटी तो देखा समीर औफिस से अप्रत्याशित जल्दी लौट कर घर में बैठा था. मुझे देखते ही गुस्से में बोला, ‘‘क्या बात है, आजकल कहां जाती हो बताने की भीजरूरत नहीं समझी जाती…’’ उस की बात बीच में काट कर मैं बोली, ‘‘तुम बताते हो कि तुम कहां जाते हो?’’

‘‘मेरी बात और है.’’

‘‘क्यों? तुम्हें गुलछर्रे उड़ाने की इजाजत है, क्योंकि तुम पुरुष हो, मुझे नहीं. क्योंकि…’’

‘‘लेकिन तुम्हें तकलीफ क्या है? तुम्हें किस चीज की कमी है? हर सुख घर में मौजूद है. पैसे की कोई कमी नहीं. जो चाहे कर सकती हो,’’ गुलछर्रे उड़ाने वाली बात सुन कर वह थोड़ा संयत हो कर मेरी बात को बीच में ही रोक कर बोला, क्योंकि उस के और उस की कुलीग सुमन के विवाहेतर संबंध से मैं अनभिज्ञ नहीं थी.

‘‘तुम्हें क्या लगता है, इन भौतिक सुखों के लिए ही स्त्री अपने पूर्व रिश्तों को विवाह की सप्तपदी लेते समय ही हवनकुंड में झोंक देती है और बदले में पुरुष उस के शरीर पर अपना प्रभुत्व समझ कर जब चाहे नोचखसोट कर अपनी मर्दानगी दिखाता है… स्त्री भी हाड़मांस की बनी होती है, उस के पास भी दिल होता है, उस का भी स्वाभिमान होता है, वह अपने पति से आर्थिक सुरक्षा के साथसाथ मानसिक और सामाजिक सुरक्षा की भी अपेक्षा करती है. तुम्हारे घर वाले तुम्हारे सामने मुझे कितना भी नीचा दिखा लें, लेकिन तुम्हारी कोई प्रतिक्रिया नहीं होती. तुम मूकदर्शक बने खड़े देखते रहते हो… स्वयं हर समय मुझे नीचा दिखा कर मेरे मन को कितना आहत करते हो, यह कभी सोचा है?’’

‘‘ठीक है यदि तुम यहां खुश नहीं हो तो अपने मायके जा कर रहो, लेकिन चीनू तुम्हारे साथ नहीं जाएगी, वह मेरी बेटी है, उस की परवरिश में मैं कोई कमी नहीं रहने देना चाहता. मैं उस का पालनपोषण अपने तरीके से करूंगा… मैं नहीं चाहता कि वह तुम्हारे साथ रह कर तुम्हारे स्तर की बने,’’ समीर के पास जवाब देने को कुछ नहीं बचा था, इसलिए अधिकतर पुरुषों द्वारा प्रयोग किया जाने वाला अंतिम वार करते हुए चिल्ला कर बोला.

‘‘चिल्लाओ मत. सिर्फ पैदा करने से ही तुम चीनू के बाप बनने के अधिकारी नहीं हो सकते. वह तुम्हारे व्यवहार से आहत होती है. आजकल के बच्चे हमारे जमाने के बच्चे नहीं हैं कि उन पर अपने विचारों को थोपा जाए, हम उन को उस तरह नहीं पाल सकते जैसे हमें पाला गया है. इन के पैदा होने तक समय बहुत बदल गया है.

‘‘मैं उसे तुम्हारे शाश्नात्मक तरीके की परवरिश के दलदल में नहीं धंसने दूंगी…

मैं उस के लिए वह सब करूंगी जिस से कि वह अपने निर्णय स्वयं ले सके और मैं तुम्हारी पत्नी हूं, तुम्हारी संपत्ति नहीं. यह घर मेरा भी है. जाना है तो तुम जाओ. मैं क्यों जाऊं?

‘‘इस घर पर जितना तुम्हारा अधिकार है, उतना ही मेरा भी है. समाज के सामने मुझ से विवाह किया है. तुम्हारी रखैल नहीं हूं… जमाना बदल गया, लेकिन तुम पुरुषों की स्त्रियों के प्रति सोच नहीं बदली. सारी वर्जनाएं, सारे कर्तव्य स्त्रियों के लिए ही क्यों? उन की इच्छाओं, आकांक्षाओं का तुम पुरुषों की नजरों में कोई मूल्य नहीं है.

‘‘उन के वजूद का किसी को एहसास तक भी नहीं. लेकिन स्त्रियां भी क्यों उर्मिला की तरह अपने पति के निर्णय को ही अपनी नियत समझ कर स्वीकार लेती हैं? क्यों अपने सपनों का गला घोंट कर पुरुषों के दिखाए मार्ग पर आंख मूंद कर चल देती हैं? क्यों अपने जीवन के निर्णय स्वयं नहीं ले पातीं? क्यों औरों के सुख के लिए अपना बलिदान करती हैं? अभी तक मैं ने भी यही किया, लेकिन अब नहीं करूंगी. मैं इसी घर में स्वतंत्र हो कर अपनी इच्छानुसार रहूंगी,’’ समीर पहली बार मुझे भाषणात्मक तरीके से बोलते हुए देख कर अवाक रह गया.

‘‘पापा, मैं आप के पास नहीं रहूंगी, आप मुझे प्यार नहीं करते. हमेशा डांटते रहते हैं… मैं ममा के साथ रहूंगी और मैं उन की तरह ही बनना चाहती हूं… आई हेट यू पापा…’’ परदे के पीछे खड़ी चीनू, जोकि हमारी सारी बातें सुन रही थी, बाहर निकल कर रोष और खुशी के मिश्रित आंसू बहने लगी. मैं ने देखा कि समीर पहली बार चेहरे पर हारे हुए खिलाड़ी के से भाव लिए मूकदर्शक बना रह गया. Hindi Family Story

Romantic Story: एक प्यार ऐसा भी

Romantic Story: इंटर कॉलेज वादविवाद प्रतियोगिता में विजयी प्रतिभागी के रूप में मेरा नाम सुनते ही कॉलेज के सभी छात्र खुशी से तालियां पीटने लगे. जैसे ही मैं स्टेज से टॉफी ले कर नीचे उतरा मेरे दोस्तों ने मुझे कंधों पर बिठा लिया. मुझे लगा जैसे मैं सातवें आसमान पर पहुंच गया हूं. हर किसी की निगाहें मुझ पर टिकी हुई थीं.

चमचमाती ट्रॉफी को चूमते हुए मैं ने चीयर करते छात्रछात्राओं की तरफ देखा. सहसा ही मेरी नजरें सामने की रो में बैठी एक लड़की की नजरों से टकराईं. कुछ पलों के लिए हमारी नजरें उलझ कर रह गईं. तब तक नीचे उतारते हुए मेरे दोस्त मुझे गले लगाने लगे और मेरी तारीफें करने लगे.

“यार तूने तो कमाल ही कर दिया. पिछले 2 साल से हमारा कॉलेज तेरी वजह से ही जीत रहा है.”

“अरे नहीं ऐसी कोई बात नहीं. मैं तो शुक्रगुजार हूं तुम सबों का जो मुझे इतना प्यार देते हो और विनोद सर का भी जिन्होंने हमेशा मेरा मार्गदर्शन किया है.”

“पर आप हो कमाल के. वाकई कितनी फर्राटेदार इंग्लिश बोलते हो. मैं श्वेता मिश्रा… न्यू एडमिशन.”

सामने वही लड़की मुस्कुराती हुई हाथ बढ़ाए खड़ी थी जिस से कुछ वक्त पहले मेरी नजरें टकराई थीं. उस की मुस्कुराती हुई आंखों में अजीब सी कशिश थी. चेहरे पर नूर और आवाज में संगीत की स्वर लहरी थी. हल्के गुलाबी रंग के फ्रॉक सूट और नेट के दुपट्टे में वह आसमान से उतरी परी जैसी खूबसूरत लग रही थी. मैं उस से हाथ मिलाने का लोभ छोड़ न सका और तुरंत उस के हाथों को थाम लिया.

उस पल लगा जैसे मेरी धड़कनें रुक जाएंगी. मगर मैं ने मन के भाव चेहरे पर नहीं आने दिए और दूर होता हुआ बोला,”श्वेता मिश्रा यानी एक ऊंची जाति की कन्या. आई गेस ब्राह्मण हो न तुम.”

“हां वह तो मैं हूं वैसे तुम भी कम नहीं लगते.”

“अरे कहां मैडम, मैं तो किसान का छोरा, पूरा जाट हूं. वैसे कोई नहीं. आप से मिल कर दिल खुश हो गया. अब चलता हूं.” कह कर मैं आगे बढ़ गया.

पीछेपीछे मेरे दोस्त भी आ गये और मुझे छेड़ने लगे. तभी मेरा जिगरी दोस्त वासु बोला,” यह क्या यार, तेरे पिता नगर पार्षद हैं न फिर तुम ने उस से झूठ क्यों कहा?”

“वह इसलिए मेरे भाई … क्योंकि हमारे घर के लड़कों को लड़कियों से दोस्ती करने की इजाजत नहीं है. जानता है मां ने कॉलेज के पहले दिन मुझ से क्या कहा था?”

“क्या कहा था ?”

“यही कि कभी भी किसी लड़की के प्यार में मत पड़ना. हमारे खानदान में प्यार के चक्कर में कई जानें जा चुकी हैं. सख्त हिदायत दी थी उन्होंने मुझे.”

“अच्छा तो यही वजह है कि तू लड़कियों से दूर भागता है.”

“हां यार पर यह लड़की तो बिल्कुल ही अलग है. एक नजर में ही मन को भा गई. इसलिए इस से और भी ज्यादा दूर भागना पड़ेगा.”

श्वेता के साथ यह थी मेरी पहली मुलाकात. उस दिन के बाद से श्वेता अक्सर मुझ से टकरा जाती.

कभीकभी लगता कि वह मेरा पीछा करती है. पर मन का भ्रम मान कर मैं इग्नोर कर देता. यह बात अलग थी कि आजकल मन के गलियारे में उसी के ख्याल चक्कर लगाते रहते थे. वह कैसे हंसती है, कैसे चोर नजरों से मेरी तरफ देखती है, कैसे चलती है, वगैरह वगैरह .

धीरेधीरे मैं ने उस के बारे में जानकारियां जुटानी शुरू कीं तो पता चला कि वह अपने कॉलेज की टॉपर है और गाने बहुत अच्छे गाती है. उस के पिता ज्यादा अमीर तो नहीं मगर शहर में एक कोठी जरूर बना रखी है. वह अकेली बहन है और 2 बड़े भाई हैं.

न चाहते हुए भी मेरी नजरें उस से टकरा ही जातीं. मैं हौले से मुस्कुरा कर दूसरी तरफ देखने लगता. कई बार वह मुझे लाइब्रेरी में भी मिली. किसी न किसी बहाने बातें करने का प्रयास करती. कभी कोई सवाल पूछती तो कभी टीचर्स के बारे में बातें करने के नाम पर मेरे पास आ कर बैठ जाती.

वह जैसे ही पास आती मेरी धड़कनें बेकाबू होने लगतीं और मैं उसे इग्नोर कर के उठ जाता.

एक दिन उस ने मुझ से पूछ ही लिया,”तुम्हें किसी और से प्यार है क्या?”

उस का सवाल सुन कर मैं चौंक उठा. मुस्कुराते हुए उस की तरफ देखा और फिर नज़रें नीचे कर बाहर की तरफ देखने लगा. श्वेता ने शायद इस का मतलब हां समझा था. उसे विश्वास हो गया था कि मैं उस में इंटरेस्टेड नहीं हूं और मेरे जीवन में कोई और है.

अब वह मुझ से कटीकटी रहने लगी. दो माह बाद ही सुनने में आया कि उस की शादी कहीं और हो गई है. उस ने पिता की मर्जी से शादी कर ली थी. अब उस का कॉलेज आना भी बंद हो गया.

इस तरह मेरे जीवन का एक खूबसूरत अध्याय अचानक ही बंद हो गया. मैं अंदर से खालीपन महसूस करने लगा.

इस बीच पिताजी ने मेरी शादी निभा नाम की लड़की से करा दी. वह हमारी जाति की थी और काफी पढ़ीलिखी भी थी. उस के पिता काफी अमीर बिजनेसमैन थे. हमारी शुरू में तो ठीक ही निभ गई मगर धीरेधीरे विवाद होने लगे. छोटीछोटी बातों पर हम झगड़ पड़ते. हम दोनों का ही ईगो आड़े आ जाता. वैसे भी निभा के लिए मैं कभी वैसा आकर्षण महसूस नहीं कर पाया जैसा श्वेता के लिए महसूस करता था. निभा अब अक्सर मायके में ही रहने लगी.

इधर मैं राजनीति में सक्रिय हो गया. पहले कार्यकर्ता फिर एमएलए और फिर राज्य का मुख्यमंत्री भी बन गया. यह सब इतनी तेजी से हुआ कि कभीकभी मैं भी यकीन नहीं कर पाता था. राजनीतिक गलियारे में मेरा अच्छाखासा नाम था. लोग मुझे होशियार, शरीफ और फर्राटेदार इंग्लिश बोलने वाले युवा नेता के रूप में पहचानते थे. विदेश तक में मेरी धाक थी. मैं कई पत्रिकाओं के कवर पेज पर आने लगा था. जनता मुझे प्यार करती. मेरे काम की तारीफ होती. मैं हर काम में अपनी नई सोच और युवा कार्यशैली को अपनाता था. पीएम भी मेरी कद्र करते. अक्सर देश की छोटीबड़ी समस्याओं पर मुझ से विचारविमर्श करते.

इसी दरम्यान निभा और मैं ने आपसी सहमति से तलाक भी ले लिया. वह अब मेरे साथ रहना नहीं चाहती थी. मैं ने भी तुरंत सहमति दे दी. क्योंकि मैं भी यही चाहता था.

मैं अभी तक श्वेता को भूल नहीं पाया था. जब भी कोई दूसरी शादी की बात करता तो श्वेता का चेहरा मेरी आंखों के आगे आ जाता. जब कोई रोमांटिक मूवी देखता तो भी श्वेता का ख्याल आ जाता. जब बादलों के पीछे चांद छिपता देखता तो भी श्वेता का ही ख्याल आता.

एक दिन मेरे जिगरी यार वासु ने मुझे खबर दी कि मेरा पहला प्यार यानी श्वेता इसी शहर में है.

मैं ने उत्साहित हो कर पूछा,” श्वेता कहां है? कैसी है वह ? किस के साथ है?”

“अरे यार अपने पति के साथ है. पति का काम सही नहीं चल रहा है इसलिए इधर ट्रांसफर करवा लिया है.”

“ओके तू पता दे. मैं मिल कर आता हूं.”

“यह क्या कह रहा है? अब तू साधारण आदमी नहीं एक सीएम है.”

“तो क्या हुआ? उस के लिए तो वही हूं न जो 15 साल पहले था.”

मैं ने वासु से पता लिया और अगले ही दिन उस के घर पहुंच गया. निभा मुझे पहचान नहीं पाई मगर उस के पति ने मुझे पहचान लिया और पैर छूता हुआ बोला,”सीएम साहब आप इस गरीब की कुटिया में ? मैं तो धन्य हो गया ”

“मैं श्वेता से यानी अपनी पुरानी सहपाठी से मिलने आया हूं.”

श्वेता ने आश्चर्य से मेरी तरफ देखा. अब तक वह भी मुझे पहचान गई थी. नजरें झुका कर बोली,” आप कॉलेज के सुपर हीरो मतलब कुशल राज हैं न?”

“हां मैं वही कुशल हूं. तुम बताओ कैसी हो?”

“मैं ठीक हूं मगर आप मेरे घर?”

वह चकित भी थी और खुश भी. तभी उस के पति ने मुझे बैठाते हुए श्वेता से चायनाश्ता लगाने को कहा और हाथ जोड़ कर पास में ही बैठ गया.

मैं ने उस के बारे में पूछा तो वह कहने लगा कि हाल ही में उस की नौकरी छूट गई है. अब वह यहां नौकरी की तलाश में आया है.

मैं ने तुरंत अपने एक दोस्त को फोन किया और श्वेता के पति को उस के यहां अकाउंटेंट का काम दिलवा दिया. श्वेता का पति मेरे आगे नतमस्तक हो गया. बारबार धन्यवाद कहने लगा.

तबतक श्वेता चायनाश्ता ले आई. श्वेता अब भी थोड़ी ज्यादा कांशस हो रही थी. वह खुल कर बात नहीं कर पा रही थी. ऐसा लग रहा था जैसे हमदोनों के बीच एक अजीब सी दूरी आ गई है.

दोचार दिन बाद मैं फिर से श्वेता के यहां पहुंचा. आज श्वेता घर में अकेली थी. मुझे खुल कर बात करने का मौका मिल गया.

मैं ने उस के करीब बैठते हुए कहा,” श्वेता क्या तुम जानती हो तुम ही मेरा पहला प्यार हो. तुम ही एकमात्र ऐसी लड़की हो जिसे मेरे दिल ने चाहा है. आज से 15 साल पहले जब पहली दफा तुम्हें देखा था उसी दिन तुम्हें अपना दिल दे दिया था. तभी तो जब मैं ने किसी और से शादी की तो उसे प्यार कर ही नहीं पाया. मेरा दिल तो मेरे पास था ही नहीं न. ये धड़कनें तो बस तुम्हें देख कर ही बढ़ती हैं.”

श्वेता एकटक मेरी तरफ देख रही थी. जैसे मेरी नजरों से मेरी रूह तक झांक लेना चाहती हो.

थोड़े शिकायत भरे स्वर में उस ने कहा,” यदि ऐसा था तो फिर मुझ से दूर क्यों भागते थे? कभी भी मेरे प्यार को स्वीकार क्यों नहीं किया तुम ने ?”

“…क्योंकि हमारी जाति अलग थी. मेरे अंदर इतनी हिम्मत नहीं थी कि मैं समाज से लड़ पाता. प्यार में जान गंवाना आसान है. मगर प्यार दिल में रख कर दूर रहना कठिन है. मैं तुम से दूर भले ही रहा पर दिल तुम्हारे पास ही था. आज मुझ में हिम्मत है कि मैं तुम से खुल कर कह सकूं कि बस तुम ही हो जिस से मैं ने प्यार किया है. मेरी पत्नी निभा के साथ रह कर भी मैं उस से दूर था. अब तो हम ने  आपसी सहमति से तलाक भी ले लिया है.”

श्वेता ने आगे बढ़ कर मुझे गले से लगा लिया. हम दोनों की आंखों में आंसू और धड़कनें तेज थीं. हम एकदूसरे के दिल में अपने हिस्से की मोहब्बत महसूस कर रहे थे.

अब हम दोनों ही 40 साल के करीब थे. लोग कहते हैं कि प्यार तो युवावस्था में होता है. हमें भी तो प्यार युवावस्था में ही हुआ था. मगर इस प्यार को जीने का वक्त हमें अब मिला था. श्वेता को कहीं न कहीं समाज और पति का डर अब भी था. मगर हमारा प्यार पवित्र था. यह रिश्ता ऐसा था जिसे हम बंद आंखों से भी महसूस कर सकते थे.

धीरेधीरे हमारा रिश्ता गहरा होता गया. अब हम साथ होते तो कॉलेज जैसी मस्ती करते. कहीं घूमने निकल जाते. आजाद पंछियों की तरह गीत गुनगुनाते. हंसीमजाक करते. कभी आइसक्रीम खाते तो कभी गोलगप्पे. कभी श्वेता कुछ खास बना कर मुझे बुलाती तो कभी मैं श्वेता को अपना एस्टेट दिखाने ले जाता.

ऐसा नहीं था कि हम यह सब लोगों से या श्वेता के पति से छुपा कर करते. हमारे मन में मैल नहीं था. एक परिवार के सदस्य की तरह मैं उस के घर में दाखिल होता. उस के लिए तोहफे खरीदता.

एक दिन मैं शाम के समय श्वेता के घर पहुंचा. इस वक्त उस का पति ऑफिस में होता है. हम खुल कर बातें कर रहे थे. तभी श्वेता का पति दाखिल हुआ. वह आज जल्दी आ गया था.

श्वेता उठ कर चाय बनाने चली गई.  श्वेता के पति ने मुझ से कहा,”जानते हैं आज मेरा एक दोस्त क्या पूछ रहा था?”

“क्या पूछ रहा था ?”

“यही कि तुम्हारी बीवी और सीएम साहब के बीच क्या चल रहा है ?”

अब तक श्वेता भी चाय ले कर आ गई थी. वह अवाक पति का मुंह देखने लगी.

“फिर क्या कहा आप ने ?” मैं ने पूछा .

कहीं न कहीं मेरे दिल में एक अपराधबोध पैदा हो गया था. श्वेता के पति के लिए तो आखिर मैं एक दूसरा पुरुष ही हूं न.

मगर श्वेता के पति ने मेरी सोच से अलग जवाब दिया. हंसता हुआ बोला,” मैं ने उसे कह दिया कि सीएम साहब श्वेता के दोस्त हैं. उन के प्यार में कोई मैल नहीं. उन के प्यार में कोई धोखा नहीं. मेरा और श्वेता का रिश्ता अलग है. जबकि कुशल जी वह एहसास बन कर श्वेता की जिंदगी में आए हैं जिस की वजह से श्वेता के मन में जो एक खालीपन था वह भर गया है. मैं उन दोनों के रिश्ते का सम्मान करता हूं.”

श्वेता अपने पति के कंधे पर सर रखती हुई बोली,” दुनिया में प्यार तो बहुतों ने किया है मगर इस प्यार पर जो विश्वास आपने किया वह शायद ही किसी ने किया हो. मैं वादा करती हूं आप का यह विश्वास कभी नहीं टूटने दूंगी.”

उस पर मुझे लगा जैसे आज हमारे प्यार को एक नया आयाम मिल गया था. Romantic Story

Grihshobha’s ‘Empower Her’ Event: A Grand Celebration of Women’s Strength in Bangaluru

Grihshobha’s ‘Empower Her’ Event: Grihshobha, with the aim of fostering special development, personality building, and upliftment of its women readers, recently organized the grand “Empower Her” event in collaboration with Delhi Press Publications and the Grihshobha monthly magazine. The event was majestically held with key sponsors including:

  • Financial Education Partner: HDFC

  • Silk Purity Partner: Silk Mark

  • Jewelry Partner: GRT Jewellers

  • Beauty Partner: Green Leaf

  • Associate Sponsor: Nandini

  • Media Partners: Prajapragati and Pragati TV

grihshobha empower her
grihshobha empower her

The event took place on 22nd June at The Capitol Hotel, Raj Bhavan Road, Bangalore, focusing entirely on women’s empowerment. Hundreds of women from the city gathered enthusiastically to gain insights on skincare, health, financial literacy, Silk Mark-related knowledge, and entertainment.

Mental Health Session

Dr. Bhavana Prasad, a renowned Consultant Neuropsychiatrist, Child Psychiatry Specialist, and De-addiction Motivational Speaker from Tumkur, highlighted how women often face mental stress due to daily household chores, caregiving for husbands, children, and elders, office work (for working women), and routine responsibilities.

She emphasized that women can experience mental health issues at any stage of life—from childhood to old age. Just like physical ailments, mental health problems also require professional treatment. Dr. Bhavana debunked myths and taboos surrounding mental health, discussing issues like bedwetting in children, postpartum problems, and depression in teenagers, while also answering attendees’ questions.

SIP Saheli Session

Girija Rani Kavdappu, Joint AVP at HDFC AMC Ltd. with over 20 years of experience in finance, explained the basics of Morgan Assets and Kotak Mutual Funds. She discussed why women should invest in mutual funds, how they outperform traditional bank SB and RD accounts, and the benefits of Systematic Investment Plans (SIPs) for wealth growth. She also elaborated on different types of mutual funds and women’s participation in them.

Skincare & Beauty Session

Anita Shirley, President of the All-Karnataka Beauticians Association, celebrity makeup artist, and senior beautician at Shreele Beauty Training Academy, demonstrated how makeup boosts confidence and its importance for modern women. Through live demos with models, she shared tips on avoiding common makeup mistakes and maintaining skincare routines.

Silk Mark Session

D.N. Sandeep, Assistant Director (Inspection) at the Central Silk Board, explained how Silk Mark Organization of India certifies the purity of silk. He detailed the origins, history, and four types of silk—Mulberry, Tussar, Eri, and Muga—along with topics like cocoons, wild silk, flame tests, washing care, storage, chemical tests, and the importance of buying Silk Mark-labeled products.

Social Media Influencer Session

Asha Somanath, a well-known cooking expert and TV personality, inspired women to pursue their passions with confidence and become successful influencers. She shared motivating real-life examples to encourage attendees.

Fun & Games Session

Anchor Samayra kept the event lively with engaging entertainment, including music, dance, and interactive quizzes. Winners received attractive on-the-spot prizes from the Grihshobha team.

The event successfully empowered women with knowledge, inspiration, and entertainment, making it a memorable experience for all attendees.

Hindi Story: कारावास- क्यों सुनीता का मन खुशी से नाच उठा?

Hindi Story: ‘‘नहीं दीदी, आप न नहीं कहोगी. पहले भी तो 2 बार आप ऐसे टूर टाल चुकी हैं. अब फिर आप को मौका दिया जा रहा है, तो फायदा उठाइए न. फिर आप ही तो बता रही थीं कि इस ट्रेनिंग के बाद प्रमोशन का चांस भी मिल सकता है,’’ पम्मी ने चाय की ट्रे मेज पर रखते हुए फिर से वही जिक्र छेड़ दिया.

सुनीता अपना चाय का कप उठाते हुए बोली, ‘‘अब मेरी बात ध्यान से सुन. मुझे इस ट्रेनिंग से कोई खास फायदा नहीं होगा और न ही मैं अगले प्रमोशन के लिए अधिक लालायित हूं. हां, हमारे ही बैंक के किसी और सहयोगी को अगर यह चांस मिलता है, तो उस को व उस के परिवार को अधिक लाभ पहुंचेगा. फिर रामबाबू, सुधीरजी जैसे लोग तो अपनेअपने परिवार को भी साथ ले जाना चाह रहे हैं, घूमने के लिए.’’

‘‘दीदी, जब बौस ने आप की सिफारिश की है, तो रामबाबू, सुधीर, ये सब कहां से टपक पड़े? आप सब से सीनियर हो, आप को चांस मिल रहा है बस… मैं अब और कुछ सुनने वाली नहीं हूं. मैं तो 3 दिन की छुट्टी ले कर आई ही इसलिए हूं कि आप के जाने की तैयारी करा दूं… आप तैयार हो जाओ, बाजार चलती हैं. मैं तब तक आप की वार्डरोब चैक करती हूं कि क्याक्या लेना है आप को,’’ कहते हुए पम्मी ने चाय के बरतन समेटने शुरू कर दिए.

‘‘तू भी जिद की पक्की है,’’ कह सुनीता को हंसी आ गई.

वैसे देखा जाए तो सुनीता से रिश्ता भी क्या है पम्मी का… बस जब तक यहां इस की नौकरी थी तो इसी फ्लैट में सुनीता के साथ रही थी. फिर अपनापन इतना बढ़ा कि सगी बहन से भी अधिक स्नेह हो गया. अब शादी कर के दूसरे शहर चली गई तो भी आए दिन फोन पर बात करती रहती है. फिर पता नहीं कैसे इसे टूर की भनक लगी तो बिना बताए आ धमकी.

‘‘तू तो शादी कर के अब बड़ी बहन की तरह रोब झाड़ने लगी है मुझ पर.’’

‘‘वह तो है ही… अब कोई तो आप को सही राय देगा. चलो, अब और बातें नहीं, आप जल्दी से नहा कर तैयार हो जाओ, तब तक मैं नाश्ता तैयार करती हूं,’’ कह पम्मी रसोई में चली गई.

जब तक सुनीता नहा कर निकली तब तक पम्मी ने उस की अलमारी भी टटोल ली थी. बोली, ‘‘यह क्या दीदी, सारे पुराने फैशन के कपड़े हैं और इतने फीके रंगों के… अरे, विदेश जा रही हो तो थोड़े चटक रंग भी लो न… आज मैं पसंद करूंगी आप के लिए कपड़े. आप टोकना मत… मैं पिछली बार कुछ सूट लाई थी आप के लिए, आप ने सिलवाए नहीं?’’

‘‘अरे हां, उन्हें तो मैं रश्मि और आशा को दे आई थी. उन के गोरे रंग पर वे बहुत फब रहे थे और फिर उन की उम्र भी है.’’

‘‘दीदी, फिर वही बात. अभी आप कौन सी बुढ़ा गई हो कि वे कपड़े उन पर फबते और आप पर नहीं… अरे, मैं इतने शौक से आप के लिए लाई थी और आप भी बस… विनी, रश्मि, गीता, आशा आदि के बारे में ही सोचती रहती हो.’’

‘‘पम्मी, मेरा परिवार है यह,’’ सुनीता ने धीरे से कहा.

‘‘मैं कब कह रही हूं कि आप का परिवार नहीं है यह, पर वे लोग भी तो कभी आप के बारे में सोचें. कभी आएं आप के पास… आप ने अपने फ्लैट में गृहप्रवेश किया था तो आया था कोई? आप इतनी बीमार पड़ीं कि अस्पताल में भरती रहीं. क्या कोई आया था आप को देखने? तब कहां था यह परिवार?’’

फिर सुनीता को चुप देख कर आगे बोली, ‘‘सौरी दीदी, मेरा मकसद आप का दिल दुखाना नहीं था. मैं तो बस यही कहना चाह रही थी कि कभी तो आप अपने बारे में सोचें कि आप को क्या अच्छा लगता है, किस बात से खुशी मिलती है… क्या इतना भी हक नहीं बनता आप का…? चलें अब नाश्ता कर लें, ठंडा हो रहा है.’’

सुनीता सोच रही थी कि बातों का रुख बदलने में कितनी माहिर हो गई है यह लड़की. जब अपने बारे में सोचने का समय था तब नहीं सोचा तो अब उम्र के इस पड़ाव पर क्या सोचना. फिर नाश्ता करते हुए बोली, ‘‘तो इस बार तू मुझे लंदन भेज कर ही मानेगी.’’

‘‘हां दीदी, मैं आई ही इसलिए हूं कि आप कहीं पहले की तरह इस बार भी अपना ट्रिप कैंसिल न कर दें.’’

नाश्ता करने के बाद दोनों औटोरिकशा से बाजार चल दीं. बाजार पहुंच जब पम्मी ने औटो रूपाली ब्यूटीपार्लर के सामने रुकवाया तो सुनीता चौंक उठी. बोली, ‘‘अरे, यहां क्या करना है?’’

‘‘दीदी, आप जल्दी अंदर चलिए, मैं रूपाली से आप का अपौइंटमैंट ले चुकी हूं,’’ पम्मी सुनीता की बात को अनसुना कर औटो वाले को रुपए देती हुई बोली.

पम्मी ने सुनीता के केश सैट करवाए, कलरिंग भी करवाई, फेशियल के लिए भी जिद कर के बैठा ही दिया और फिर बोली, ‘‘दीदी, आप को यहां थोड़ी देर लगेगी. तब तक मैं बाजार से कुछ सामान खरीद लाती हूं.’’

बाजार पहुंच कर पम्मी ने कुछ कौस्मैटिक्स और महंगे सूट खरीदे. जब ब्यूटीपार्लर लौटी तो सुनीता का एकदम बदला रूप पाया. बोली, ‘‘वाह दीदी, आप की तो उम्र ही 10 साल कम कर दी रूपाली ने. चलिए, अब आप को टेलर के यहां नाप देना है. कपड़े मैं ले चुकी हूं. मुझे पता था, आप के सामने लेती तो आप खरीदने नहीं देतीं.’’

‘‘पम्मी, आखिर तू चाहती क्या है?’’

‘‘देखो दीदी, अच्छी तरह से तैयार होने पर स्वयं को भी अच्छा लगता है और दूसरों को भी और फिर इस में बुराई क्या है. अब मैं जैसे डिजाइन पसंद करूं, आप मना मत करना,’’ और पम्मी ने टेलर को सूटों के डिजाइन बता दिए.

वे खाना बाहर ही खा कर घर लौटीं तो सुनीता को थकान महसूस होने लगी थी, पर पम्मी सूटकेस खोल कर उस का सामान जमाती रही. रात को उस ने कह भी दिया, ‘‘दीदी, आप की सारी तैयारी कर दी है. अब टिकट, वीजा वगैरह का इंतजाम तो आप के औफिस की तरफ से हो रहा है. आप यात्रा का पूरापूरा आनंद उठाना,’’ कहते हुए पम्मी भावुक हो उठी.

‘‘अच्छा अब तू इतमीनान रख, मैं यात्रा का पूर्ण आनंद लूंगी और कुछ नहीं सोचूंगी,’’ कहतेकहते सुनीता का भी गला भर आया था कि कोई तो है उस की जिंदगी में, जो उस के बारे में इतना सोचता है.

पम्पी के जाने के बाद 3-4 दिन सफर की तैयारी की अफरातफरी में बीत गए. जब सारी औपचारिकताएं पूरी कर के दिल्ली से हवाईजहाज में बैठी तो इतमीनान की सांस ली उस ने.

ऐसे टूर के मौके तो पहले भी कई बार आए थे उस की जिंदगी में पर वही टालती रही थी. क्या करती, मन ही नहीं करता था इतने लंबे और अकेले सफर पर जाने का… छुट्टी मिलती तो बस भाईबहनों के पास आनाजाना हो जाता… वही काफी था. इस बार पम्मी ने तो उसे मना ही किया था कि जब दीदी और भैया लोग पसंद ही नहीं करते कि आप कहीं जाओ तो आप उन्हें बताना भी नहीं.

सुनीता तब फीकी हंसी हंस कर रह गई.

पम्मी उस के परिवार के लोगों की मानसिकता से परिचित हो गई थी इसीलिए सब कुछ कह देती थी. कई बार तो यह भी कह चुकी थी कि अच्छा हुआ आप ने यह फ्लैट खरीद लिया, रिटायरमैंट के बाद कोई ठिकाना तो होगा रहने के लिए… भाईबहनों से अपेक्षा रखो तो बुढ़ापे में ठोकरें ही खानी पड़ती हैं. आप को तो पैंशन भी अच्छीखासी मिलेगी. आराम से रहना, यह नहीं कि सब लुटाती रहो…

पम्मी की बातें कभीकभी सुनीता को चुभ तो जाती थीं, पर वह ठीक ही बोलती थी, क्योंकि ऐसे कई उदाहरण सुनीता देख भी चुकी है, कब तक आंखें मूंदे रहे सब से…

प्लेन में बैठेबैठे सुनीता का मन अतीत में डूबने लगा था. पूरे 44 वर्ष की हो गई है वह. क्या खोया, क्या पाया… कभीकभी विश्लेषण करती है तो लगता है कि खोया ही खोया है उस ने.

पढ़ाई में मेधावी रही तो कम उम्र में ही बैंक में नौकरी लग गई. फिर अकस्मात पिता का देहांत हो गया तो भाईबहनों का दायित्व आ पड़ा उस के कमजोर कंधों पर. दीदी की शादी, भैया की पढ़ाई, छोटी बहनों के खर्चे… सब वहन करतेकरते अपनी शादी का खयाल तो उसे बस एक बार ही आया था जब प्रखर को देखा था. प्रखर आर्मी मेजर था. वहीं झांसी में ट्रेनिंग के लिए आया था. तब उस की सहेली ने ही परिचय करवाया था. प्रखर शानदार व्यक्तित्व और हंसमुख स्वभाव का था. उस ने तो बातों ही बातों में प्रपोज भी कर दिया था, पर घर वालों का विरोध… वह नौकरी छोड़ कर प्रखर के साथ चली गई तो भाईबहनों का दायित्व कौन वहन करेगा? प्रखर इस दोटूक इनकार से इतना नाराज हुआ कि अपनी ट्रेनिंग बीच में ही छोड़ कर चला गया था.

सुनीता भी तो कई दिनों तक भूल नहीं पाई थी उसे… कई दिनों तक ही क्यों, प्रखर का व्यक्तित्व तो आज भी ताजा है उस की आंखों में… बाद में भी कई बार रिश्ते की बात चली पर कभी किसी तो कभी किसी कारण अस्वीकार होती रही.

पूर्वा दीदी ने तो एक बार अपनी तरफ से रिश्ता तय ही कर दिया. बोलीं, ‘सुनीता, दीपक भी बैंक में ही अफसर है, पारिवारिक कारणों से अब तक विवाह नहीं किया. मैं ने तेरी बात चलाई है, शाम को खाने पर बुला लिया है उसे… ठीक तरह से तैयार हो कर आ जाना. पुरानी किसी बात का जिक्र मत करना, समझी?’

वह ठीक समय पर पहुंच गई थी. खानेपीने तक माहौल सामान्य रहा. दीपक देखने में ठीकठाक ही था.

फिर पूर्वा ने ही प्रस्ताव रखा, ‘दीपक, अब तुम सुनीता को ले कर कहीं घूम आओ.’

‘ठीक है.’

दीपक के साथ बगल में कार में बैठते समय सुनीता कुछ असहज हो गई थी. पुराने रिश्ते याद आए… कई बार अस्वीकार होने का बोध हुआ… दीपक ने धीरे से उस का हाथ सहलाया था, पर वह तो पसीने से नहा उठी थी.

‘क्या बात है… तबीयत ठीक नहीं है क्या?’

‘हां, शायद ऐसा ही कुछ…’ वह स्वयं नहीं समझ पाई थी कि हुआ क्या है?

‘और लड़कियां तो शादी के नाम से ही खुश हो जाती हैं, पर आप तो इतनी ठंडी…’

दीपक के ये शब्द भीतर तक चुभते चले गए थे सुनीता के. वह जिद कर के बीच रास्ते में ही उतर गई थी. उस ने निश्चय कर लिया था कि अब कभी विवाह के बारे में सोचेगी भी नहीं.

‘‘मैडम, आप शायद सो गई थीं, आप का नाश्ता,’’ एयरहोस्टेस पूछ रही थी.

सुनीता को तब खयाल आया कि शायद उनींदेपन में भी मन विचारतंद्रा में ही डूबा रहा. थोड़ा जूस ले कर वह कुछ सहज हुई तो साथ लाई पुस्तक के पन्ने पलटने चाहे, पर मन तो फिर पुरानी बातों में भटकने लगा था…

अब पम्मी को कैसे बताए अपने मन की स्थिति? वह तो जबतब कह देती है दीदी, अभी आप की ऐसी उम्र नहीं हुई है कि शादी के बारे में सोचें ही नहीं. कोई मनपसंद साथी मिले तो जरूर विचार करना, बड़ी उम्र में भी एक अच्छे साथी की जरूरत होती ही है.

‘पम्मी, अब मैं एक तरह से वैरागिनी हो गई हूं,’ उस दिन पता नहीं कैसे सुनीता के मुंह से निकल गया था.

‘कोई वैरागिनी नहीं हुई हैं. मैं ने आप की एक डायरी देखी है… कितनी प्रेमकविताएं लिखी हैं आप ने.’

पम्मी के कहे एकएक शब्द के बारे में गंभीरता से सोचती सुनीता को पता ही नहीं चला कि उस का प्लेन हीथ्रो एअरपोर्ट पर लैंड कर रहा है.

हीथ्रो एअरपोर्ट की चकाचौंध मन को लुभा गई थी… कस्टम औफिस से बाहर आते ही चमकती दुकानें, लोगों की भीड़भाड़… लंबाचौड़ा एअरपोर्ट… फिर बाहर औफिस की ही टैक्सी लेने आ गई थी.

विदेशी धरती पर पहला कदम, सब कुछ बदलाबदला… साफसुथरा और मन को मोह लेने वाला था. फिर होटल में रिसैप्शन से चाबी लेते समय पता चला कि उस का कमरा नंबर 302 है और 303 में भी एक भारतीय ही हैं, नारायण… जो बेंगलुरु से आए हैं.

‘‘हैलो, आई एम नारायण,’’ नारायण ने हाथ आगे बढ़ाया था.

‘‘आई एम सुनीता,’’ सुनीता ने भी हाथ बढ़ा दिया था.

एक बार तो चौंक ही गई थी सुनीता… लगा, जैसे प्रखर ही सामने आ गया हो… वही डीलडौल… वही कद… कानों के पास के बालों में जरूर हलकी सफेदी झांक रही थी… पर प्रखर भी इस उम्र में…

‘‘चलिए, हमारे कमरे पासपास ही हैं,’’ कह कर नारायण ने उस का बैग उठा लिया.

नारायण उसे पहली मुलाकात में ही काफी मिलनसार और मजाकिया स्वभाव का लगा था. बातों से लगा ही नहीं कि अब वे विदेशी भूमि पर हैं.

कमरे में सामान रख कर दोनों कौफी पीने लाउंज में आ गए थे और कौफी पीतेपीते ही नारायण ने उसे होटल की सारी व्यवस्थाओं से भी परिचित करवा दिया था.

‘‘चलिए, अब आप कमरे में जा कर काम कीजिए, मैं थोड़ी देर अपने लैपटौप पर काम करूंगा, शाम को खाने पर मिलते हैं,’’ नारायण ने बड़े अपनेपन से कहा था.

सुनीता स्वयं सोच रही थी कि प्लेन में तो ठीक से सो नहीं पाई, अब नहाधो कर गहरी नींद लेगी ताकि शाम तक कुछ ताजगी महसूस हो.

शाम को खाने के समय और भी सहयोगियों से परिचय हुआ, नारायण ने सब से मिलवा दिया था.

‘‘आप दोनों पुराने परिचित हैं?’’ एक विदेशी ने तो सुनीता से पूछ ही लिया था और तब नारायण उसे देख कर मुसकरा दिया था.

कुल मिला कर सुनीता को सारा माहौल सौहार्दपूर्ण लगा था… कहीं कुछ पूछना हो तो नारायण बड़े अपनेपन से मदद कर देता था.

1 हफ्ता कौन्फ्रैंस चली और फिर 1 हफ्ते का वहीं से यूरोप घूमने का प्रोग्राम बन गया.

नए शहर, ऐतिहासिक इमारतें, खूबसूरत वादियां, झीलें, फूलों से लहलहाते बगीचे, सभी कुछ भव्य था… और नारायण के सान्निध्य ने दोनों को काफी पास ला दिया था. इतने दिन कब बीत गए, सुनीता को पता ही नहीं चला था. एक बार भी अपने घर, पुराने परिचितों की याद नहीं आई.

लंदन से वापसी की उड़ान थी अत: फिर उसी होटल में 1 रात रुकना था. दूसरे दिन लौटना था, लग रहा था जैसे वह और नारायण दोनों ही कुछ मिस कर रहे हैं… नारायण अपने स्वभाव के विपरीत उस दिन बहुत गंभीर और चुपचुप सा था.

‘‘आप का सान्निध्य बहुत अच्छा लगा,’’ सुनीता ने अपनी तरफ से धन्यवाद देने का प्रयास किया.

नारायण फिर भी चुप ही था, आंखों में उदासी की झलक थी.

‘‘चलो, कमरे में चल कर कौफी पीते हैं,’’ कह सुनीता ने कौफी का और्डर दिया.

कौफी पीते समय भी दोनों चुप थे. बहुत कुछ कहना चाहते हुए भी कुछ कह नहीं पा रहे थे.

फिर कब क्या हुआ… कब नारायण उठ कर उस के पास सोफे पर इतने करीब आ गया… कब वह उस के कंधे पर सिर रख कर सिसक पड़ी… कब उस ने उसे बांहों में ले लिया… कब… कब…

‘‘तुम्हें भूल नहीं पाऊंगा सुनीता… हो सके तो मुझे माफ कर देना… मैं… मैं… अपनेआप को रोक नहीं पाया…’’

‘‘नहीं,’’ सुनीता ने धीरे से उस के होंठों को छुआ, ‘‘माफी क्यों और किस से? बहुत अच्छी यादें ले कर जा रहे हैं हम दोनों… थैंक्स ए लौट…’’

फिर लगा कि शायद शब्दों से वह सब कुछ बयान नहीं कर पा रही है, जो महसूस कर रही है… आखिर आज नारायण ने उसे एक स्वनिर्मित कारावास से मुक्त जो कर दिया था.

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Monsoon Special: सोया कीमा करी

सामग्री

– 100 ग्राम सोया कीमा

– 50 ग्राम प्याज

– 50 ग्राम टमाटर

– 5 ग्राम जीरा

– 5 ग्राम लहसुन

– 5 ग्राम अदरक

– 5 ग्राम देगी मिर्च

– 5 ग्राम गरममसाला

– 5 ग्राम हलदी पाउडर

– 5 ग्राम जीरा पाउडर

– 5 ग्राम धनिया पाउडर

– 5 ग्राम देसी घी

– 5 ग्राम मक्खन

– थोड़ी सी धनियापत्ती

– 10 ग्राम चीज

– 10 ग्राम तेल

– 10 एमएल गार्लिक सौस

– थोड़ी सी राई

– 4 स्प्रिंग रोल शीट.

विधि

स्प्रिंग रोल मिश्रण के लिए सोया कीमा को 2 घंटों के लिए भिगो दें. सोया कीमा सारी सामग्री के साथ सारे मसाले डाल कर तब तक पकाएं जब तक कि वह मुलायम हो कर तेल न छोड़ने लगे. अब इसे ठंडा होने दें. स्प्रिंग रोल शीट फैलाएं. मिश्रण को शीट पर फैला कर रोल करें. तैयार स्प्रिंग रोल को सुनहरा होने तक तलें और फिर गार्लिक सौस के साथ गरमगरम सर्व करें.

Family Story: मैं नहीं बेवफा

Family Story: औफिस का समय समाप्त होने में करीब 10 मिनट थे, जब आलोक के पास शिखा का फोन आया.

‘‘मुझे घर तक लिफ्ट दे देना, जीजू. मैं गेट के पास आप के बाहर आने का इंतजार कर रही हूं.’’

अपनी पत्नी रितु की सब से पक्की सहेली का ऐसा संदेश पा कर आलोक ने अपना काम जल्दी समेटना शुरू कर दिया.

अपनी दराज में ताला लगाने के बाद आलोक ने रितु को फोन कर के शिखा के साथ जाने की सूचना दे दी.

मोटरसाइकिल पर शिखा उस के पीछे कुछ ज्यादा ही चिपक कर बैठी है, इस बात का एहसास आलोक को सारे रास्ते बना रहा. आलोक ने उसे पहुंचा कर घर जाने की बात कही, तो शिखा चाय पिलाने का आग्रह कर उसे जबरदस्ती अपने घर तक ले आई. उसे ताला खोलते देख आलोक ने सवाल किया, ‘‘तुम्हारे भैयाभाभी और मम्मीपापा कहां गए हुए हैं?’’

‘‘भाभी रूठ कर मायके में जमी हुई हैं, इसलिए भैया उन्हें वापस लाने के लिए ससुराल गए हैं. वे कल लौटेंगे. मम्मी अपनी बीमार बड़ी बहन का हालचाल पूछने गई हैं, पापा के साथ,’’ शिखा ने मुसकराते हुए जानकारी दी.

‘‘तब तुम आराम करो. मैं रितु के साथ बाद में चाय पीने आता हूं,’’ आलोक ने फिर अंदर जाने से बचने का प्रयास किया.

‘‘मेरे साथ अकेले में कुछ समय बिताने से डर रहे हो, जीजू?’’ शिखा ने उसे शरारती अंदाज में छेड़ा.

‘‘अरे, मैं क्यों डरूं, तुम डरो. लड़की तो तुम ही हो न,’’ आलोक ने हंस कर जवाब दिया.

‘‘मुझे लेकर तुम्हारी नीयत खराब है क्या?’’

‘‘न बाबा न.’’

‘‘मेरी है.’’

‘‘तुम्हारी क्या है?’’ आलोक उलझन में पड़ गया.

‘‘कुछ नहीं,’’ शिखा अचानक खिलखिला के हंस पड़ी और फिर दोस्ताना अंदाज में उस ने आलोक का हाथ पकड़ा और ड्राइंगरूम की तरफ चल पड़ी.

‘‘चाय लोगे या कौफी?’’ अंदर आ कर भी शिखा ने आलोक का हाथ नहीं छोड़ा.

‘‘चाय चलेगी.’’

‘‘आओ, रसोई में गपशप भी करेंगे,’’ उस का हाथ पकड़ेपकड़े ही शिखा रसोई की तरफ चल पड़ी?

चाय का पानी गैस पर रखते हुए अचानक शिखा का मूड बदला और वह शिकायती लहजे में बोलने लगी, ‘‘देख रहे हो जीजू, यह रसोई और सारा घर कितना गंदा और बेतरतीब हुआ पड़ा है. मेरी भाभी बहुत लापरवाह और कामचोर है.’’

‘‘अभी उस की शादी को 2 महीने ही तो हुए हैं, शिखा. धीरेधीरे सब सीख लेगी… सब करने लगेगी,’’ आलोक ने उसे सांत्वना दी.

‘‘रितु और तुम्हारी शादी को भी तो 2 महीने ही हुए हैं. तुम्हारा घर तो हर समय साफसुथरा रहता है.’’

‘‘रितु एक समझदार और सलीकेदार लड़की है.’’

‘‘और मेरी भाभी एकदम फूहड़. मेरा इस घर में रहने का बिलकुल मन नहीं करता.’’

‘‘तुम्हारा ससुराल जाने का नंबर जल्दी आ जाएगा, फिक्र न करो.’

आलोक के मजाक को नजरअंदाज कर शिखा आक्रामक से लहजे में बोली, ‘‘भैया की शादी के बाद से इस घर में 24 घंटे क्लेश और लड़ाई झगड़ा रहता है. मुझे अपना भविष्य तो बिलकुल अनिश्चित और असुरक्षित नजर आता है. इस के लिए पता है मैं किसे जिम्मेदार मानती हूं.’’

‘‘किसे?’’

‘‘रितु को.’’

‘‘उसे क्यों?’’ आलोक ने चौंक कर पूछा.

‘‘क्योंकि उसे ही इस घर में मेरी भाभी बन कर आना था.’’

‘‘यह क्या कह रही हो?’’

‘‘मैं सच कह रही हूं, जीजू. मेरे भैया और मेरी सब से अच्छी सहेली आपस में प्रेम करते थे. फिर रितु ने रिश्ता तोड़ लिया, क्योंकि मेरे भाई के पास न दौलत है, न बढि़या नौकरी. उस के बदले जो लड़की मेरी भाभी बन कर आई है, वह इस घर के बिगड़ने का कारण हो गई है,’’ शिखा का स्वर बेहद कड़वा हो उठा था.

‘‘घर का माहौल खराब करने में क्या तुम्हारे भाई की शराब पीने की आदत जिम्मेदार नहीं है, शिखा?’’ आलोक ने गंभीर स्वर में सवाल किया. ‘‘अपने वैवाहिक जीवन से तंग आ कर वह ज्यादा पीने लगा है.’’

‘‘अपनी घरगृहस्थी में उसे अगर सुखशांति व खुशियां चाहिए, तो उसे शराब छोड़नी ही होगी,’’ आलोक ने अपना मत प्रकट किया.

‘‘न रितु उसे धोखा देती, न इस घर पर काले बादल मंडराते,’’ शिखा का अचानक गला भर आया.

‘‘सब ठीक हो जाएगा,’’ आलोक ने उस का कंधा छू कर हौसला ही बढ़ाया पर शिखा तो पलट कर उस की छाती से लग गई.

‘‘कभीकभी मुझे बहुत डर लगता है, आलोक,’’ शिखा का स्वर अचानक कोमल और भावुक हो गया.

‘‘शादी कर लो, तो डर चला जाएगा,’’ आलोक ने मजाक कर के माहौल सामान्य करना चाहा.

‘‘मुझे तुम जैसा जीवनसाथी चाहिए,’’ शिखा ने कहा.

‘‘तुम्हें मुझ से बेहतर जीवनसाथी मिलेगा, शिखा.’’

‘‘मैं तुम से प्यार करने लगी हूं, आलोक.’’

‘‘पगली, मैं तो तुम्हारी बैस्ट फ्रैंड का पति हूं. तुम मेरी अच्छी दोस्त बनी रहो और प्रेम को अपने भावी पति के लिए बचा कर रखो.’’

‘‘मेरा दिल अब मेरे बस में नहीं है,’’ शिखा बड़ी अदा से मुसकराई.

‘‘रितु को तुम्हारे इरादों का पता लग गया, तो हम दोनों की खैर नहीं.’’

‘‘उसे हम शक करने ही नहीं देंगे, आलोक. सब के सामने तुम मेरे जीजू ही रहोगे. मुझे और कुछ नहीं चाहिए तुम से… बस, मेरे प्रेम को स्वीकार कर लो, आलोक.’’ ‘‘और अगर मुझे और कुछ चाहिए हो तो?’’ आलोक शरारती अंदाज में मुसकराया.

‘‘तुम्हें जो चाहिए, ले लो,’’ शिखा ने आंखें मूंद कर अपना सुंदर चेहरा आलोक के चेहरे के बहुत करीब कर दिया.

‘‘यू आर वैरी ब्यूटीफुल, साली साहिबा,’’ आलोक ने उस के माथे को हलके से चूमा और फिर शिखा को गैस के सामने खड़ा कर के हंसता हुआ बोला, ‘‘चाय उबलउबल कर कड़वी हो जाएगी, मैडम. तुम चाय पलटो, इतने में मैं रितु को फोन कर लेता हूं.’’

‘‘उसे क्यों फोन कर रहे हो?’’ शिखा बेचैन नजर आने लगी.

‘‘आज का दिन हमेशा के लिए यादगार बन जाए, इस के लिए मैं तुम तीनों को शानदार पार्टी देने जा रहा हूं.’’

‘‘तीनों को? यह तीसरा कौन होगा?’’

‘‘तुम्हारी पक्की सहेली वंदना.’’

‘‘पार्टी के लिए मैं कभी मना नहीं करती हूं, लेकिन रितु को मेरे दिल की बात मत बताना.’’

‘‘मैं न बताऊं, पर इश्क छिपाने से छिपता नहीं है, शिखा.’’

‘‘यह बात भी ठीक है.’’

‘‘तब रितु से दोस्ती टूट जाने का तुम्हें दुख नहीं होगा?’’

‘‘ऐसा कुछ नहीं होगा, क्योंकि मेरा

इरादा तुम्हें उस से छीनने का कतई नहीं है. 2 लड़कियां क्या एक ही पुरुष से प्यार करते हुए अच्छी सहेलियां नहीं बनी रह सकती हैं?’’

‘‘तुम्हारे इस सवाल का जवाब रितु से पूछ कर दूंगा,’’ आलोक ने हंसते हुए जवाब दिया और फिर अपनी पत्नी को फोन करने ड्राइंगरूम की तरफ चला गया.

रितु और वंदना सिर्फ 15 मिनट में शिखा के घर पहुंच गईं. दोनों ही गंभीर नजर आ रही थीं, पर बड़े प्यार से शिखा से गले मिलीं.

‘‘किस खुशी में पार्टी दे रहे हो, जीजाजी?’’

‘‘शिखा के साथ एक नया रिश्ता कायम करने जा रहा हूं, पार्टी इसी खुशी में होगी,’’ आलोक ने शिखा का हाथ दोस्ताना अंदाज में पकड़ते हुए जवाब दिया.

शिखा ने अपना हाथ छुड़ाने का कोई प्रयास नहीं किया. वैसे उस की आंखों में तनाव के भाव झलक उठे थे. रितु और वंदना की तरफ वह निडर व विद्रोही अंदाज में देख रही थी. ‘‘किस तरह का नया रिश्ता, जीजाजी?’’ वंदना ने उत्सुकता जताई. ‘‘कुछ देर में मालूम पड़ जाएगा, सालीजी.’’

‘‘पार्टी कितनी देर में और कहां होगी?’’

‘‘जब तुम और रितु इस घर में करीब

8 महीने पहले घटी घटना का ब्योरा सुना चुकी होगी, तब हम बढि़या सी जगह डिनर करने निकलेंगे.’’

‘‘यहां कौन सी घटना घटी थी?’’ शिखा ने चौंक कर पूछा.

‘‘उस का ब्योरा मैं बताना शुरू करती हूं, सहेली,’’ रितु ने पास आ कर शिखा का दूसरा हाथ थामा और उस के पास में बैठ गई, ‘‘गरमियों की उस शाम को वंदना और मैं ने तुम से तुम्हारे घर पर मिलने का कार्यक्रम बनाया था. वंदना मु?ा से पहले यहां आ पहुंची थी.’’

घटना के ब्योरे को वंदना ने आगे बढ़ाया, ‘‘मैं  ने घंटी बजाई तो दरवाजा तुम्हारे भाई समीर ने खोला. वह घर में अकेला था. उस के साथ अंदर बैठने में मैं जरा भी नहीं हिचकिचाई क्योंकि वह तो मेरी सब से अच्छी सहेली रितु का जीवनसाथी बनने जा रहा था.’’

‘‘समीर पर विश्वास करना उस शाम वंदना को बड़ा महंगा पड़ा, शिखा,’’ रितु की आंखों में अचानक आंसू आ गए.

‘‘क्या हुआ था उस शाम?’’ शिखा ने कांपती आवाज में वंदना से पूछा.

‘‘अचानक बिजली चली गई और समीर ने मुझे रेप करने की कोशिश की. वह शराब के नशे में न होता तो शायद ऐसा न करता.

‘‘मैं ने उस का विरोध किया, तो उस ने मेरा गला दबा कर मुझे डराया… मेरा कुरता फाड़ डाला. उस का पागलपन देख कर मेरे हाथपैर और दिमाग बिलकुल सुन्न पड़ गए थे. अगर उसी समय रितु ने पहुंच कर घंटी न बजाई होती, तो बड़ी आसानी से तुम्हारा भाई अपनी हवस पूरी कर लेता, शिखा,’’ वंदना ने अपना भयानक अनुभव शिखा को बता दिया.

‘‘मुझे विश्वास नहीं हो रहा है इस बात पर,’’ शिखा बोली.

‘‘उस शाम वंदना को तुम्हारा नीला सूट पहन कर लौटना पड़ा था. जब उस ने वह सूट लौटाया था तो तुम ने मु?ा से पूछा भी था कि वंदना सूट क्यों ले गई तुम्हारे घर से. उस सवाल का सही जवाब आज मिल रहा है तुम्हें, शिखा,’’ रितु का स्पष्टीकरण सुन शिखा के चेहरे का रंग उड़ गया.

‘‘तुम दोनों ने यह बात आज तक मुझ से छिपाई क्यों?’’ शिखा रोंआसी हो उठी.

‘‘समीर की प्रार्थना पर… एक भाई को हम उस की बहन की नजरों में गिराना नहीं चाहते थे,’’ वंदना भी उठ कर शिखा के पास आ गई.

‘‘मैं समीर की जिंदगी से क्यों निकल गई, इस का सही कारण भी आज तुम्हें पता चल गया है. मैं बेवफा नहीं, बल्कि समीर कमजोर चरित्र का इंसान निकला. उसे अपना जीवनसाथी बनाने के लिए मेरे दिल ने साफ इनकार कर दिया था. वह आज दुखी है, इस बात का मुझे अफसोस है. पर उस की घिनौनी हरकत के बाद मैं उस से जुड़ी नहीं रह सकती थी,’’ रितु बोली.

‘‘मैं तुम्हें कितना गलत समझती रही,’’ शिखा अफसोस से भर उठी.

आलोक ने कहा, ‘‘मेरी सलाह पर ही आज इन दोनों ने सचाई को तुम्हारे सामने प्रकट किया है, शिखा. ऐसा करने के पीछे कारण यही था कि हम सब तुम्हारी दोस्ती को खोना नहीं चाहते हैं.’’

शिखा ने अपना सिर झुका लिया और शर्मिंदगी से बोली, ‘‘मैं अपने कुसूर को समझ रही हूं. मैं तुम सब की अच्छी दोस्त कहलाने के लायक नहीं हूं.’’

‘‘तुम हम दोनों की सब से अच्छी, सब से प्यारी सहेली हो, यार,’’ रितु बोली.

‘‘मैं तो तुम्हारे ही हक पर डाका डाल रही थी, रितु,’’ शिखा की आवाज भर्रा उठी, ‘‘अपने भाई को धोखा देने का दोषी मैं तुम्हें मान रही थी. इस घर की खुशियां और सुखशांति नष्ट करने की जिम्मेदारी तुम्हारे कंधों पर डाल रही थी.

‘‘मेरे मन में गुस्सा था… गहरी शिकायत और कड़वाहट थी. तभी तो मैं ने आज तुम्हारे आलोक को अपने प्रेमजाल में फांसने की कोशिश की. मैं तुम्हें सजा देना चाहती थी… तुम्हें जलाना और तड़पाना चाहती थी… मुझे माफ कर दो, रितु… मेरी गिरी हुई हरकत के लिए मुझे क्षमा कर दो, प्लीज.’’

रितु ने उसे समझया, ‘‘पगली, तुझे माफी मांगने की कोई जरूरत नहीं, क्योंकि हम तुम्हें किसी भी तरह का दोषी नहीं मानते हैं.’’

‘‘रितु ठीक कह रही है, साली साहिबा,’’ आलोक ने कहा, ‘‘तुम्हारे गुस्से को हम सब समझ रहे थे. मुझे अपनी तरफ आकर्षित करने के तुम्हारे प्रयास हमारी नजरों से छिपे नहीं थे. इस विषय पर हम तीनों अकसर चर्चा करते थे.’’

‘‘आज मजबूरन उस पुरानी घटना की चर्चा हमें तुम्हारे सामने करनी पड़ी है. मेरी प्रार्थना है कि तुम इस बारे में कभी अपने भाई से कहासुनी मत करना. हम ने उस से वादा किया था कि सचाई तुम्हें कभी नहीं पता चलेगी,’’ वंदना ने शिखा से विनती की.

‘‘हम सब को पक्का विश्वास है कि तुम्हारा गुस्सा अब हमेशा के लिए शांत हो जाएगा और मेरे पतिदेव पर तुम अपने रंगरूप का जादू चलाना बंद कर दोगी,’’ रितु ने मजाकिया लहजे में शिखा को छेड़ा, तो  वह मुसकरा उठी.

‘‘आई एम सौरी, रितु.’’

‘‘जो अब तक नासमझ में घटा है, उस के लिए सौरी कभी मत कहना,’’ रितु ने उस के मुंह पर हाथ रख दिया.

‘‘साली साहिबा, वैसे तो तुम्हें प्रेमिका बना कर भी मैं खुश रहता, पर…’’

‘‘शक्ल देखी है कभी शीशे में? मेरी इन सहेलियों को प्रेमिका बनाने का सपना भी देखा, तो पत्नी से ही हाथ धो बैठोगे,’’ रितु बोली.

आलोक मुसकराते हुए बोला, तो फिर दोस्ती के नाम पर देता हूं बढि़या सी पार्टी… हम चारों के बीच दोस्ती और विश्वास का रिश्ता सदा मजबूत बना रहे. Family Story

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