मेरे अपने: भाग 2- क्यों परिवार से दूर हो गई थी सुरभि

बिजली के नियमित कनैक्शन न होने के कारण मेन सड़क पर से गुजरते हाईटैंशन तार से बिजली चुराई जाती थी. मोबाइल फोन तो खैर हर छोटेबड़े के हाथ में था ही. प्रगति के नाम पर क्या ये कम था, चाहे जगहजगह कचरे के ढेर और कच्ची गलियों में जमा कीचड़ व मच्छरों की भरमार क्यों न हो. खुली नालियों में शौच करते बच्चों पर भी किसी को एतराज न था. सामुदायिक नल के काई जमे चबूतरे पर पानी भरने के इंतजार में लड़तीझगड़ती औरतों के पास फुरसत ही कहां थी वहां की गंदगी साफ करने की. मर्द चाहे निठल्ले हों या कामगार, शाम होते ही दारू के अड्डे पर जमा हो कर पीनापिलाना, औरतों पर फिकरे कसना और मारकुटाई, गालीगलौज करना उन का प्रिय टाइमपास था. बचीखुची मर्दानगी घर पहुंच कर औरतों को पीटने में खर्च होती. बच्चों को इन लोगों ने सरकारी स्कूलों में तो डाल रखा था पर उस का कारण शिक्षा के प्रति जागरूकता कतई न था. सरकार की ओर से हर विद्यार्थी को छात्रवृत्ति मिलती थी और किताबें मुफ्त बांटी जाती थीं. स्कूल में मिलने वाला भोजन भी बच्चों को वहां भेजने के मुख्य कारणों में से एक था.

जितना बुरा हाल उस बस्ती का था, उतनी ही दृढ़ता से सुरभि ने निश्चय कर लिया उसे सुधारने का. मास्टरजी का उसे पूरा सहयोग मिला. सब से पहले दोनों कई संबंधित अधिकारियों से मिले. कई दफ्तरों के चक्कर काटे. इलाके के विधायक से भी मिले. सब को उन्होंने बस्ती की दुर्दशा और अपने प्रोजैक्ट के विषय में बताया. सर्वोदय विद्यालय के प्रधानाध्यापक से भी मिले और वहां रात्रिकालीन प्रौढ़ शिक्षा केंद्र शुरू करने का प्रबंध किया. लोगों को केंद्र पर आने के लिए आकर्षित करने के लिए सुरभि ने एक अनूठा कार्यक्रम बनाया. वह यूनिवर्सिटी के टैली कम्यूनिकेशन ऐंड मल्टीमीडिया विभाग के डीन से मिली और उन्हें अपना प्रोजैक्ट समझा कर उन से सहायता मांगी.

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वह चाहती थी कि छात्र सामाजिक जागरूकता व महिला कल्याण जैसे विषयों पर कुछ ऐसी रोचक व विचारोत्तेजक फीचर और ऐनिमेशन फिल्मों का निर्माण करें जो नीरस डाक्युमैंट्री फिल्मों जैसी न हों. मनोरंजन के साथसाथ वे फिल्में उन के दिलोदिमाग को झकझोर कर सोचने पर मजबूर कर दें. छात्रों ने उन को भरपूर सहयोग दिया और ऐसी कई टैलीफिल्मों का निर्माण किया जिन का प्रदर्शन हर रविवार को केंद्र पर किया जाने लगा. इस के साथ ही सुरभि ने इंदौर युवा नाट्य कला केंद्र के नुक्कड़ नाटक करने वाले कलाकारों को भी अपने अभियान में शामिल कर लिया. ये लोग हफ्ते में 1 दिन वहां सामाजिक जागरूकता संबंधित नाटक खेलते. बड़ी भीड़ जुट जाती थी. कुछ लोग केवल फिल्में और नाटक देखने आते और कुछ केंद्र द्वारा परोसी गई चाय पीने. कुछ भी हो, चिंगारी लग चुकी थी.

बस्ती के जिन लोगों ने इन दोनों पतिपत्नी को पागल की संज्ञा दी थी वही अब उन के अथक परिश्रम और लगन से विस्मित थे. लोग हैरान थे, कुछ तो बात है इन में. जो कुछ भी ये लोग कर रहे हैं शायद सच में ही उस से हमारा भला होगा और धीरेधीरे बात बन गई. स्कूल चल निकला. सुरभि और मास्टरजी के चेहरों पर थकान तो थी पर सफलता की रौनक का तेज भी था.

सुरभि ने जो कार्य अपने खाली समय के सदुपयोग के लिए शुरू  किया था वह अब एक लक्ष्य बन गया था. सारी उम्र एक नियमित जीवन जीने वाले व्यक्तियों की दिनचर्या अब इस उम्र में आ कर अस्तव्यस्त हो रही थी. देर रात तक काम करने की वजह से अकसर सुबह की सैर छूट जाती.

नाश्ते के समय कभी नुक्कड़ नाटक वाले तो कभी मल्टीमीडिया के विद्यार्थी आ जुटते नएनए विषयों पर विचारविमर्श करने. कभी बस्ती के निवासी ही आ जाते अपनी समस्याओं के निवारणार्थ. कोई अपने घरेलू झगड़ों का निबटारा मैडमजी से करवाना चाहता तो कोई किसी सरकारी दफ्तर में फंसी अपनी किसी समस्या के निराकरण का रास्ता पूछने आता था.

कभी कुछ लोग एकत्र हो कर आते और अपनी नईनई आवश्यकताओं की सूची मास्टरजी को पकड़ा देते. खुली नालियां ढकवानी हों या बहते सीवरों की सफाई, मच्छर मारने की दवा छिड़कवानी हो या जमा हुए पानी में लाल दवाई, लोग अब सरकारी दफ्तरों के चक्कर न काट कर सीधे मास्टरजी के पास ही आते थे. सुरभि और मास्टरजी जैसे उन की हर समस्या की ‘मास्टर की’ बन गए थे.

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सारी उम्र मास्टरजी ने एक जगह बैठ कर मात्र अध्यापन कार्य ही किया था. इस तरह की भागदौड़ उन के स्वास्थ्य पर भारी पड़ रही थी. उत्तरदायित्वों को अपने आराम के लिए बीच में ही अधूरा छोड़ देना उन्होंने न तो स्वयं सीखा था न अपने विद्यार्थियों को सिखाया था. सुरभि कभी आराम करने या समय पर खानेपीने को टोकती भी तो वे नजरअंदाज कर जाते. काम के जनून में वे अब अकसर अपनी छोटीमोटी शारीरिक परेशानियों और थकावट को सुरभि से छिपा जाते थे. उसी का नतीजा आज सामने था.

रात को सोते समय दी गई डायजीन की गोलियां कुछ काम न आई थीं. अपनी बेचैनी को वे भरसक दबा रहे थे. उधर, सुरभि रजाई में घुसते ही सो गई थी. मास्टरजी कुछ देर तक यों ही बेचैनी में करवटें बदलते रहे. फिर धीरे से उठ कर कमरे में ही टहलने लगे. उन्हें पसीना आने लगा. अचानक सीने में और बाएं बाजू में उन्हें तेज दर्द महसूस हुआ. आंखों के आगे अंधेरा छाने लगा. सीने में एक बार फिर तेज दर्द की लहर उठी और वे कराह कर बिस्तर पर लुढ़क गए.

सुरभि की नींद टूट गई. वह घबरा कर उठी और मास्टरजी को अर्धबेहोशी में पसीने से भीगा व दर्द से कराहते देख कर उस की चीख निकल गई. सारे संकेत हार्ट अटैक की ओर इशारा कर रहे थे. उस ने दौड़ कर दवाओं का डब्बा उठाया और एक एस्प्रिन टैबलेट पानी में घोल कर मास्टरजी को पिला दी. फिर उन्हें शाल ओढ़ाई और भाग कर गाड़ी की चाबी उठाई. दरवाजा खोल कर चौकीदार को बुलाया और उस की सहायता से मास्टरजी को गाड़ी में लिटाया. फिर घर के दरवाजे तक बंद करने की चिंता किए बिना तूफानी गति से गाड़ी दौड़ाती वह अस्पताल पहुंच गई.

आपातकालीन विभाग में तुरंत उन्हें डाक्टरों ने घेर लिया. आवश्यक टैस्ट किए गए. यह एक मेजर हार्ट अटैक था. मास्टरजी को आननफानन औपरेशन थिएटर में शिफ्ट कर दिया गया. सुरभि को रिसैप्शन पर जा कर औपरेशन संबंधी आवश्यक कार्यवाही पूरी करने को कहा गया. खून का प्रबंध भी करना था. सुरभि जैसे सम्मोहन अवस्था में थी. वह यंत्रवत भागभाग कर सारी व्यवस्था करने लगी. औपरेशन शुरू हो गया था. सुबह के 6 बजे थे. औपरेशन थिएटर के बाहर सूने गलियारे में सुरभि 2 घंटे से मूर्तिवत जड़ बैठी थी.

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भवानी को सई के खिलाफ भड़काएगी पाखी, उलटा पड़ेगा दांव

सीरियल गुम है किसी के प्‍यार में (Ghum Hai Kisikey Pyaar Meiin) की कहानी दर्शकों को बहद पसंद आती है, जिसके चलते ये सीरियल लगातार टीआरपी चार्ट्स में पहले नंबर पर बना रहता है. वहीं सीरियल की बात करें तो सई के घर वापस आने से जहां पूरा परिवार खुश है तो पाखी परेशान है. हालांकि भवानी भी सई को पसंद करने लगी है. लेकिन पाखी एक बार फिर सई के खिलाफ भवानी को भड़काने वाली है. आइए आपको बताते हैं क्या होगा शो में आगे…

सई और विराट करेंगे तैयारी

 

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अब तक आपने देखा कि सई और विराट के बीच दोस्ती का रिश्ता एक बार फिर देखने को मिल रहा है, जिससे पाखी परेशान है. हालांकि इन दिनों सई और विराट मिलकर अपने आई और बाबा यानी अश्विनी-निनाद की शादी की 35वीं एनिवर्सरी मनाते नजर आ रहे हैं, जिसमें सई, अपनी सास के मायके वालों को भी बुलाती है. ताकि अश्विनी खुश हो जाए. और निनाद और वह एक-दूसरे के करीब आ जाएं.

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निनाद का बिहेवियर देख भड़केगी अश्विनी की बहन

अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि निनाद को अश्विनी का साथ देता देख भवानी चौंक जाएगी, जिसे देखकर पाखी, भवानी को भड़काएगी कि निनाद में यह बदलाव सई के काऱण आएगा. वहीं पार्टी में निनाद मेहमानों के सामने अश्विनी पर गुस्सा करता नजर आएगा, जिसे देखकर अश्विनी की बहन गुस्सा करती नजर आएगी और पूरे परिवार को सुनाएगी. वहीं पाखी आग में घी डालने का काम करेगी, जिसके कारण भवानी भड़क कर कहेगी कि अगर उसे अपनी बहन के लिए बुरा लग रहा है तो वह अपनी बहन अश्विनी को ले जाए, जिसे सुनकर विराट और सई चौंक जाएंगे.

सई को फैसला सुनाएगी भवानी

 

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दूसरी तरफ अश्विनी पर भड़की भवानी सई और विराट को एक कमरे में रहने का फरमान सुनाएगी और कहेगी अगले साल तक उन्हें घर का चिराग चाहिए, जिसे सुनकर पाखी जहां हैरान होगी तो वहीं भवानी का ये फैसला सुनकर सई का दिल टूट जाएगा.

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Anupama को ‘घटिया औरत’ कहेगा बेटा तोषू, पड़ेगा जोरदार थप्पड़

स्टार प्लस के टीवी सीरियल ‘अनुपमा’ (Anupama) के हाल ही में मेकर्स द्वारा रिलीज किए गए प्रोमो ने फैंस को चौंका दिया है, जिसके बाद फैंस शो के आगे की कहानी जानने के लिए बेताब हैं. दरअसल, हाल ही में अनुपमा अपने नए घर में शिफ्ट हुई है, जिसके बाद जहां पूरा शाह परिवार अनुपमा के साथ है तो वहीं बा, काव्या और वनराज उसके खिलाफ प्लानिंग में लग गए हैं. इसी बीच अनुपमा को अनुज के प्यार के बारे में पता लगने वाला है, जिसे जानने के बाद अनुपमा का क्या हाल होगा ये जानने दिलचस्प होगा. लेकिन इससे पहले परिवार में बड़ा हंगामा होता दिखेगा. आइए आपको बताते हैं क्या होगा शो में आगे…

डौली और वनराज के बीच होती है बहस

अब तक आपने देखा कि बड़ी मुश्किलों के बाद अनुपमा (Anupama) को घर मिल गया है, जिसके बाद पूरा परिवार उसके नए गृहप्रवेश में शामिल होता नजर आ रहा है. हालांकि बा, काव्या और वनराज इस बात से नाखुश नजर आते हैं. साथ ही बा, अनुपमा से उसके सारे रिश्ते छीन लेने की बात कहती. लेकिन इसी बीच डॉली आकर ताना मारती है कि वो सारे रिश्ते खत्म करने आई है, जिसके कारण वनराज और डॉली में खूब बहस होती है और वह उसे प्रौपर्टी छोड़ने के लिए कहता है.

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तोषू को पड़ेगा जोरदार थप्पड़

अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि घर में हो रही लड़ाईयों के चलते अनुपमा का बड़ा बेटा तोषू गुस्से में नजर आएगा और वह अनुपमा को कहेगा कि नानी का घर छोड़कर अनुज के साथ रंगरलिया मनाने के लिएनए घर में आकर मेरी मां ने साबित कर दिया कि वह कितनी घटिया और गिरी हुई औरत हैं, जिसे सुनकर अनुपमा का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच जाता है और वह उसे जोरदार थप्पड़ मारती है, जिसके कारण वह गिर जाता है.

अनुज के प्यार को जानेगी अनुपमा

 

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दूसरी तरफ आप देखेंगे की तोषू की हरकत देखकर अनुज, वनराज के पास जाएगा. जहां पर वनराज उससे अपना प्यार कूबूल करने के लिए कहेगा और गुस्से में अनुज शाह परिवार के सामने कहेगा कि वह अनुपमा (Anupama) को पसंद करता है, लेकिन उसका इसमें कोई कसूर नहीं. साथ ही वह ये भी कहेगा कि वो अनुपमा को 26 सालों से प्यार करता है और आज तक प्यार करता है. वहं घर के बाहर खड़ी अनुपमा, अनज की बाते सुन लेगी, जिसके बाद देखना होगा कि अनुपमा क्या फैसला लेती है.

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Anik Ghee के साथ बनाएं कौटेज चीज मूज

ड्रिंक के काफी सारे औप्शन आज मौजूद हैं. लेकिन आज हम आपको घर बैठे रेस्टोरेंट स्टाइल रेसिपी के बारे में बताएंगे. अगर आप मेहमानों के लिए ड्रिंक के औप्शन तलाश कर रही हैं तो आज हम आपको कौटेज चीज मूज की रेसिप बताएंगे, जिसे बनाकर आप तारीफ पा सकेंगी.

सामग्री

100 ग्राम अनिक पनीर

3 छोटे चम्मच चीनी पाउडर

3 छोटे चम्मच क्रीम

1 1/2 छोटे चम्मच ड्रिंकिंग चौकलेट

3 छोटे चम्मच कंडेस्ड मिल्क

बनाने का तरीका

अनिक पनीर, चीनी, पाउडर कंडैंस्ड मिल्क व क्रीम को एक साथ फेंट लें. हल्का होने तक फेंटे. पनीर को 2 भागों में बांटें. एक भाग में ड्रिंकिंग चकलेट मिला कर फेंट लें. इसे गिलास में पहले डालें फिर पनीर का मिश्रण नट्स व चौकलेट से गार्निश करें.

शादी से पहले प्यार की सीमाएं

प्राय: मंगनी होते ही लड़कालड़की एकदूसरे को समझने के लिए, प्यार के सागर में गोते लगाना चाहते हैं. एक बात तो तय रहती है खासकर लड़के की ओर से, क्या फर्क पड़ता है, अब तो कुछ दिनों में हम एक होने वाले हैं, फिर क्यों न अभी साथ में घूमेंफिरें. उस की ओर से ये प्रस्ताव अकसर रहते हैं कि चलो रात में घूमने चलते हैं, लौंग ड्राइव पर चलते हैं. वैसे तो आजकल पढ़ीलिखी पीढ़ी है, अपना भलाबुरा समझ सकती है. वह जानती है उस की सीमाएं क्या हैं. भावनाओं पर अंकुश लगाना भी शायद कुछकुछ जानती है. पर क्या यह बेहतर न होगा कि जिसे जीवनसाथी चुन लिया है, उसे अपने तरीके से आप समझाएं कि मुझे आनंद के ऐसे क्षणों से पहले एकदूसरे की भावनाओं व सोच को समझने की बात ज्यादा जरूरी लगती है. मन न माने तो ऐसा कुछ भी न करें, जिस से बाद में पछतावा हो.

मेघा की शादी बहुत ही सज्जन परिवार में तय हुई. पढ़ालिखा, खातापीता परिवार था. मेघा मल्टीनैशनल कंपनी में अच्छे ओहदे पर थी. खुले विचारों की लड़की थी. मंगनी के होते ही लड़के के घर आनेजाने लगी. जिस बेबाकी से वह घर में आतीजाती थी, लगता था वह भूल रही थी कि वह दफ्तर में नहीं, ससुराल परिवार में है. शुरूशुरू में राहुल खुश था. साथ आताजाता, शौपिंग करता. ज्योंज्यों शादी के दिन नजदीक आते गए दूरियां और भी सिमटती जा रही थीं. एक दिन लौंग ड्राइव पर जाने के लिए मेघा ने राहुल से कहा कि क्यों न आज शाम को औफिस के बाद मैं तुम्हें ले लूं. लौंग ड्राइव पर चलेंगे. एंजौय करेंगे. पर यह क्या, यहां तो अच्छाखास रिश्ता ही फ्रीज हो चला. राहुल ने शादी से इनकार कर दिया. कार्ड बंट चुके थे, तैयारियां पूरी हो चली थीं. पर ऐसा क्या हुआ, कब हुआ, कैसे हुआ? पूछने पर नहीं बताया, बस इतना दोटूक शब्दों में कहा कि रिश्ता खत्म. बहुत बाद में जा कर किसी से सुनने में आया कि मेघा बहुत ही बेशर्म, चालू टाइप की लड़की है. राहुल ने मेघा के पर्स में लौंग ड्राइव के समय रखे कंडोम देख लिए. यह देख कर उस ने रिश्ता ही तोड़ना तय कर लिया. शायद उसे भ्रम था मेघा पहले भी ऐसे ही कई पुरुषों के साथ इस बेबाकी से पेश आ चुकी होगी. आजकल की लड़कियों में धीरेधीरे लुप्त होती जा रही लोकलाज, लज्जा की भनक भी मेघा के सरल व्यवहार में मिलने लगी थी. इन बातों की वजह से ही रिश्ता टूटने वाली बात हुई.

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कौन सी बातें जरूरी

इसलिए बेहतर है कोर्टशिप के दौरान आचरण पर, अपने तौरतरीकों पर, बौडी लैंग्वेज पर विशेष ध्यान दें. वह व्यक्ति जिस से आप घुलमिल रही हैं, भावी जीवनसाथी है, होने वाला पति है, हुआ नहीं. तर्क यह भी हो सकता है, सब कुछ साफसाफ बताना ही ठीक है. भविष्य की बुनियाद झूठ पर रखनी भी तो ठीक नहीं. लेकिन रिश्तों में मधुरता, आकर्षण बनाए रखने के लिए धैर्य की भावनाओं को वश में रखने की व उन पर अंकुश लगाने की जरूरत होती है.

प्यार में डूबें नहीं

शादी के पहले प्यार के सागर में गोते लगाना कोई अक्षम्य अपराध नहीं. मगर डूब न जाएं. कुछ ऐसे गुर जरूर सीखें कि मजे से तैर सकें. सगाई और शादी के बीच का यह समय यादगार बन जाए, पतिदेव उन पलों को याद कर सिहर उठें और आप का प्यार उन के लिए गरूर बन जाए और वे कहें, काश, वे पल लौट आएं. इस के लिए इन बातों के लिए सजग रहें- 

हो सके तो अकेले बाहर न जाएं. अपने छोटे भाईबहन को साथ रखें.

बहुत ज्यादा घुलनामिलना ठीक नहीं.

मुलाकात शौर्ट ऐंड स्वीट रहे.

घर की बातें न करें.

अभी से घर वालों में, रिश्तेदारों में मीनमेख न निकालें.

एकदूसरे की भावनाओं का सम्मान करें.

अनर्गल बातें न करें.

बेबाकी न करें. बेबाक को बेशर्म बनते देर नहीं लगती.

याद रहे, जहां सम्मान नहीं वहां प्यार नहीं, इसलिए रिश्तों को सम्मान दें.

कोशिश कर दिल में जगह बनाएं. घर वाले खुली बांहों से आप का स्वागत करेंगे.

मनमानी को ‘न’ कहने का कौशल सीखें.

चटोरी न बनें

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Housewives ऐसे करें Financial प्लानिंग

भारत में ऐसी हाउसवाइव्स की तादाद बहुत ज्यादा है जो अपने पति पर निर्भर हैं और किसी भी तरह के वित्तीय फैसलों में उनकी भागीदारी न के बराबर हैं. इसके बावजूद वह घर की मैनेजर होती हैं और उनकी जिम्मेदारी अपने घर के बजट को मैनेज करने की होती है.

पिछले कुछ सालों में महंगाई तो बढ़ी है लेकिन उस अनुपात में सैलरी नहीं बढ़ी है. लेकिन कई बार जब घर में कोई इमर्जेंसी आती है जैसे, पति की जॉब छूट जाना या कोई हेल्थ प्रॉब्लम तो ऐसे वक्त में महिलाओं की फाइनेंशियल प्लानिंग ही काम आती है

मनी फ्लो मैनेजमेंट

ज्यादातर घरों में हाउसवाइव्स केवल ग्रॉसरी की खरीदारी तक ही सीमित हो जाती हैं. लेकिन हाउसवाइव्स को इसके आगे बढ़ते हुए फाइनेंस को मैनेज करने का तरीका पता होना चाहिेए. इससे पता चलेगा कि कहां आपको ज्यादा खर्च करना है और कहां बचाना है. और यह कोई रॉकेट साइंस नहीं और न ही इसके लिए किसी एक्सपर्ट की सलाह की जरूरत है. आप इसे खुद से या अपने पति के सलाह से भी कर सकती हैं.

खर्च कंट्रोल करना

अब जब आप मनी फ्लो मैनेजमेंट करना जान गईं हैं तो अब बारी है खर्चों पर कंट्रोल करने की, जैसे- अगर आपके घर का बिजली का बिल 2 हजार हर महीने आता है तो आपको सोचने की जरूरत है कि कैसे आप इसे कम कर सकती हैं. अगर आप हर रोज वॉशिंग मशीन का इस्तेमाल करती हैं तो हफ्ते में 3-4 दिन ही इस्तेमाल करें. ऐसी ही कई चीजों का ध्यान रखकर आप खर्चों में कटौती कर सकती हैं.

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बचत, बचत और सिर्फ बचत

हमेशा पैसों की बचत के बारे में सोचें. इसके लिए सबसे पहला कदम है एक अकाउंट खोलना. इसके अलावा आप सरकार की ओर से चलाई जा रही जीवन ज्योति जैसी तमाम तरह की योजनाओं में भी अपना रजिस्ट्रेशन करवा कर फायदा उठा सकती हैं. आप चाहें तो महंगी ब्रांडेड दवाओं की जगह सस्ती जेनेरिक दवाओं का इस्तेमाल करके भी पैसे बचा सकती हैं.

घर बैठे कमाएं पैसे

अगर आप पढ़ी लिखी हैं इसके बावजूद घर की जिम्मेदारियों के चलते आप अपने पति की कोई मदद नहीं कर पा रही हैं तो घर बैठे पैसे कमाने की तरकीब ढूंढना शुरू कर दें. आप फ्रीलांसर की तरह काम कर सकती हैं. इसके अलावा अगर आपकी पेंटिंग, डांसिंग, टीचिंग जैसी कोई हॉबी है तो आप इसके लिए अलग से क्लास चला सकती हैं और घर में क्लास लेकर पैसे कमा सकती हैं.

निवेश करें

निवेश की पहली सीढ़ी है बचत. अगर आप हर महीने पैसे बचाती हैं तो आपको सोचना चाहिए कि महंगाई को काटते हुए कैसे आप अपने पैसे को बढ़ा सकती हैं. कभी भी पैसे को अकाउंट में या घर पर भी खाली पड़े नहीं देना चाहिए. उसे फिक्स या फिर रिकरिंग डिपॉसिट में निवेश करना चाहिए. अगर आपका पैसा 10 हजार से बढ़कर 11 हजार भी हो जाता है तो यह एक फायदे का सौदा है.

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Diwali 2021: झटपट बनाएं ये मिठाईयां

त्यौहार मिठाइयों के बिना अधूरा सा होता है. त्यौहार पर बाजार में मिलने वाली मिठाइयों में बहुत अधिक मिलावट होने का अंदेशा होता है. तो क्यों न इस बार आप घर पर ही कुछ मिठाईयां बनाएं वह भी घर में उपलब्ध वस्तुओं से ही. घर पर बनी मिठाईयां शुद्ध तो होतीं ही हैं साथ ही बाजार की मिठाइयों की अपेक्षा सस्ती भी पड़तीं हैं. आज हम आपको सूजी, बेसन और मूंगफली से बनाई जाने वाली बर्फी बनाना बता रहे हैं जिन्हें बनाना भी बहुत आसान है तो आइए देखते हैं कि इन्हें कैसे बनाते हैं-

-सूजी की बर्फी

कितने लोगों के लिए         6

बनने में लगने वाला समय   30 मिनट

मील टाइप                        वेज

सामग्री

सूजी                      1 कप

मिल्क पाउडर           1 कप

फुल क्रीम दूध             2 कप

शकर                        1 कप

इलायची पाउडर         1/2 टीस्पून

पानी                        1/2 कप

नारियल बुरादा            1 कप

नारियल लच्छा            1/4 कप

घी                              1 कप

बारीक कटे मेवा             1/2 कप

विधि

घी में से 2 चम्मच घी अलग करके शेष को एक पैन में डाल दें. जब घी गरम हो जाये तो सूजी डालकर धीमी आंच पर सुनहरा होने तक भूनें. जब सूजी लगभग भुनने को हो तो मेवा भी सूजी के साथ ही भून लें. अब इसमें नारियल बुरादा और मिल्क पाउडर डालकर 2 मिनट तक भूनें और गैस को बंद कर दें. अब एक दूसरे पैन में पानी में शकर डाल दें. जब शकर पिघल जाए तो इसमें दूध डालकर एक दो उबाल लें लें. अब इस शकर की चाशनी को भुनी सूजी में मिलाएं. बचा 2 चम्मच घी और इलायची पाउडर डालकर गैस पर रखें. सूजी को तब तक चलाते हुए मद्धिम आंच पर भूनें जब तक कि मिश्रण पैन के किनारे छोड़कर बीच में इकट्ठा न हो जाये. तैयार मिश्रण को चिकनाई लगी थाली या ट्रे में जमाएं. आधे घण्टे के लिए फ्रिज में सेट होने दें. आधे घण्टे बाद मनचाहे आकार में काटकर सर्व करें.

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-बेसन मलाई बर्फी

कितने लोंगों के लिए        6

बनने में लगने वाला समय    30 मिनट

मील टाइप                       वेज

सामग्री

बेसन                         1 कप

ताजी मलाई                1 कप

पिसी शकर                1 कप

इलायची पाउडर         1 टीस्पून

घी                            1 टेबलस्पून

विधि

1 टीस्पून घी में कटी मेवा को हल्का सा भूनकर एक प्लेट में निकाल लें. अब इसी घी में बेसन और मलाई डालकर धीमी आंच पर सुनहरा होने तक भूनें. भुने बेसन में पिसी शकर डालकर शकर के घुलने तक लगातार चलाते हुए पकाएं. इलायची पाउडर और  कटी मेवा डालकर तब तक पकाएं जब तक कि मिश्रण गाढ़ा होकर पैन के किनारे न छोड़ दें. चिकनाई लगी ट्रे में जमाएं. ठंडा होने पर चौकोर टुकड़ों में काटकर सर्व करें.

-पीनट बर्फी

कितने लोगों के लिए         8

बनने में लगने वाला समय    30 मिनट

मील टाइप                        वेज

सामग्री

मूंगफली दाना                  1 कप

काजू                               1 कप

पिसी शकर                        डेढ़ कप

इलायची पाउडर             1/4 टीस्पून

घी                                   1 टेबलस्पून

सिल्वर फॉयल                   सजाने के लिए

विधि

मूंगफली दाना को धीमी आंच पर भूनकर ठंडा होने पर छिल्का अलग कर दें. अब काजू और मूंगफली को मिक्सी में पाउडर फॉर्म में पीस लें. एक पैन में घी गर्म करके पिसी मूंगफली, पिसे काजू, इलायची पाउडर और पिसी शकर डालकर अच्छी तरह चलाएं. जब मिश्रण बीच में इकट्ठा सा होने लगे तो चिकनाई लगी ट्रे में जमाएं. ऊपर से सिल्वर फॉयल चिपकाएं. ठंडा होने पर चौकोर टुकड़ों में काटकर एयरटाइट जार में भरकर रखें.

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अपहरण नहीं हरण : क्या हरिराम के जुल्मों से छूट पाई मुनिया?

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मां का दिल महान: भाग 3- क्या हुआ था कामिनी के साथ

अगले दिन नाश्ता करने के बाद शुचि रम्या के घर जा पहुंची. द्वार खोलते ही उसे देख कर चौंक गई थी रम्या.

‘‘मांजी की तो तबीयत ठीक नहीं है. मैं ने सोचा मैं ही तुम्हारी सहायता कर दूं,’’ शुचि सोफे पर पसरते हुए लापरवाही से बोली.

‘‘क्या कह रही हो, तुम? आज औफिस नहीं जाना क्या?’’ रम्या चौंक कर बोली.

‘‘आज छुट्टी ले ली है मैं ने. पड़ोसियों के लिए इतना त्याग तो करना ही पड़ता है. सोचा, पहले तुम्हारा हाथ बंटा दूं, उस के बाद हम सब का घूमने जाने का कार्यक्रम है. चलो बताओ, क्या करना है? मेरे पास अधिक समय नहीं है,’’ शुचि बोली.

‘‘काम तो बहुत सारा है. दहीबड़े बनाने हैं. खट्टीमीठी दोनों तरह की चटनी बनानी हैं. कचौड़ी बनाने की तैयारी भी करनी है. तुम्हें आता है ये सब?’’

‘‘पहले ही कहे देती हूं. मांजी की तरह कुशल नहीं हूं मैं. वैसे भी थोड़ा जल्दी थक जाती हूं.’’

‘‘तुम चिंता मत करो, मैं सब संभाल लूंगी.’’

‘‘कैसी बातें कर रही हो? पड़ोसी धर्म भी कोई चीज होती है. पर पहले थोड़ी चाय तो बनाओ. क्या है न, बिना पैट्रोल के गाड़ी चलती नहीं है,’’ शुचि बेबाकी से हंस दी.

‘‘अभी बना देती हूं. हम दोनों ने भी चाय कहां पी है. पलक को ट्यूशन के लिए भेज कर अभी जरा सा समय मिला है. अभी तक सुषमा भी नहीं आई है. हर रोज तो 7 बजे तक आ जाती थी,’’ रम्या चाय बनाने की तैयारी करते हुए बोली.

‘‘इन कामवालियों के संबंध में तो कुछ न कहना ही अच्छा है. इन्हें कुछ भी दो पर इन का मुंह तो कभी सीधा होता ही नहीं,’’ रम्या अब भी केवल अपनी कामवाली सुषमा को कोस रही थी.

‘‘तो काम शुरू करें,’’ चाय के कप उठाते हुए रम्या बोली.

‘‘अवश्य, पर यह तो बताओ कि तुम मुझे दोगी क्या?’’ शुचि पूछ बैठी.

कुछ देर के लिए तो मानो कक्ष की हवा थम सी गई और शुचि का प्रश्न दीवारों से टकरा कर लौट आया.

‘‘क्या कह रही हो तुम? ऐसी बात भला तुम सोच भी कैसे सकती हो?’’

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‘‘कमाल है, आज तुम्हें यह बात बड़ी विचित्र लग रही है. पर कल तो तुम ने यही बात मेरी मांजी से कही थी. तुम तो किसी से बिना पारिश्रमिक दिए काम करवाती ही नहीं हो. है न?’’ शुचि ने व्यंग्य किया.

‘‘वह तो मैं ने यों ही कह दिया था. म…म…मुझे लगा, मांजी खुश हो जाएंगी,’’ रम्या न चाहते हुए भी हकला गई.

‘‘मुझे भी खुश कर दो न. क्या है न, घर में खाने को नहीं है, तुम कुछ दे दोगी तो काम चल जाएगा,’’ शुचि अब भी क्रोध में थी.

‘‘तुम तो व्यर्थ ही बात का बतंगड़ बना रही हो. तुम इन वृद्धों की मानसिकता को समझती नहीं हो. यह कोई भी कार्य कुछ पाने की आशा से ही करते हैं,’’ रम्या अपनी ही बात पर अड़ी थी.

‘‘तुम्हारे विचार जान कर प्रसन्नता हुई. पर इन्हें अपने पास ही रखो. मांजी को बहुत बुरा लगा है, यह तो तुम समझ ही गई होंगी. मैं तो तुम्हें केवल यह बताने आई थी, भविष्य में तुम ने उन्हें अपमानित करने का प्रयत्न किया तो पता नहीं शायक क्या कर बैठें. अभी तो हम ने यह बात उन से छिपा कर रखी है,’’ तीखे स्वर में बोल कर शुचि बाहर निकल गई. रम्या सामने रखी ठंडी होती चाय को देखती रही.

‘‘स्वयं ही चाय बनवाई और छोड़ कर चली गईं. तुम तो अपनी चाय पी लो,’’ सुहास बोला.

‘‘वह मुझे इतना कुछ सुना कर चली गई और तुम चुप बैठे देखते रहे,’’ रम्या सुहास पर ही बरस पड़ी.

‘‘तुम क्या चाहती थीं मैं ढालतलवार ले कर मैदान में कूद पड़ता?’’

‘‘वह तो कोई विरला ही दिन होगा. पर मैं भी चुप नहीं बैठूंगी. ऐसा मजा चखाऊंगी कि शुचि याद रखेगी.’’

‘‘होश की बात करो, रम्या. स्वीकार कर लो कि भूल तुम्हारी थी. तुम ने कामिनी आंटी का अपमान किया है. जा कर क्षमा मांग लो और बात को यहीं समाप्त कर दो. तुम नहीं जाना चाहतीं तो मुझ से कहो, मैं क्षमा मांग लूंगा. वे बड़ी हैं, हमारी मां की आयु की हैं, क्षमा मांगने से हम छोटे नहीं हो जाएंगे. सोचता हूं तो मुझे भी आश्चर्य हो रहा है कि तुम ने उन से ऐसा व्यवहार किया. तुम्हें शायद पता नहीं है कि शायक के पिता रंगपुर के जानेमाने चिकित्सक थे.’’

कुछ देर के लिए रम्या चित्रलिखित सी बैठी रही. बात इतनी बढ़ जाएगी, यह तो उस ने सोचा ही नहीं था. पर अब कुछ न कुछ तो करना ही पड़ेगा. अदिति और आर्यन पलक की जन्मदिन पार्टी में नहीं आए तो पलक को कितना बुरा लगेगा.

रम्या चुपचाप शुचि के घर की तरफ चल पड़ी. शुचि ने द्वार खोला तो सामने रम्या को खड़े देख कर हैरान रह गई.

‘‘मांजी, कहां हैं आप? शुचि बता रही थी कि आप नाराज हैं,’’ रम्या उन के पास बैठते हुए बोली, ‘‘मेरा इरादा आप का अपमान करने का नहीं था, न ही मैं आप को दुख पहुंचाना चाहती थी. पता नहीं कैसे वह सब मेरे मुंह से निकल गया. भूल हो गई, क्षमा कर दीजिए.’’

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‘‘अरे बैठो, मैं ने किसी बात का बुरा नहीं माना. समय बहुत बदल गया है. अब न किसी के पास दूसरों के लिए समय है और न ही प्रेम या आदर. ऐसे में क्या बुरा मानना,’’ कामिनी हर शब्द पर जोर दे कर बोलीं.

वे अपनी बात पूरी कर पातीं कि उस से पहले ही सुजाताजी के बेटे अनुराग ने प्रवेश किया. वह बदहवास हो रहा  था.

‘‘क्या हुआ, अनुराग?’’ शुचि उस की हड़बड़ाहट देख कर बोली.

‘‘मां स्नानघर में फिसल कर गिर गईं. शायद हड्डी टूट गई है. अस्पताल ले जाना पड़ेगा. मां ने कामिनी आंटी को फौरन आने को कहा है. कह रही थीं कि भूलचूक माफ कर के तुरंत आ जाएं,’’ वह बोला.

‘‘कैसी भूलचूक?’’ शुचि ने प्रश्न किया.

‘‘मुझे क्या पता. यह तो मां ही बता सकती हैं,’’ अनुराग ने कंधे उचका कर अपनी विवशता प्रकट की तो शुचि ने प्रश्नवाचक मुद्रा में कामिनी पर दृष्टि डाली.

‘‘वह सब बाद में, चल कर सुजाताजी को देखते हैं,’’ कामिनी अनुराग के साथ चल दीं.

सभी लपक कर सुजाताजी के फ्लैट में पहुंचे.

‘‘देखो न कामिनी, यह क्या हो गया,’’ सुजाता कामिनी को देखते ही बोलीं, ‘‘मुझ से तो चला भी नहीं जा रहा.’’ सुजाता ने कस कर कामिनी के हाथ पकड़ लिए. तब तक ऐंबुलैंस आ गई थी. सुजाता को ऐंबुलैंस से अस्पताल पहुंचाया.

सुजाता के पैर की हड्डी न केवल टूट गई थी बल्कि अपने स्थान से खिसक भी गई थी. तुरंत उन का औपरेशन किया गया. पूरे समय सगी बहन से भी बढ़ कर कामिनी ने सुजाता की सेवा की.

3 माह के बाद सुजाता ने बैसाखी के सहारे चलना प्रारंभ किया. सदाशय हाइट्स का तो अब कायाकल्प ही हो गया है. अब केवल कामिनी ही नहीं सब एकदूसरे के इस तरह काम आते हैं मानो एक ही परिवार के सदस्य हों. कामिनी का मन भी शायक और शुचि के पास रम सा गया है, अदिति और आर्यन छात्रावास से घर जो आ गए हैं.

सुजाताजी ने किस भूलचूक की माफी मांगी थी, शुचि ने यह कई बार पूछने का यत्न किया पर हर बार कामिनी ने मुसकरा कर टाल दिया.

‘‘जाने भी दे, शुचि. जब कोई माफी मांग ले तो माफ करने में ही समझदारी है. है कि नहीं?’’

‘‘ठीक है,’’ शुचि बोली पर उस के मन में मां की महानता के लिए सम्मान और बढ़ गया था.

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मेरे अपने: भाग 1- क्यों परिवार से दूर हो गई थी सुरभि

सुबह के 4 बजे थे. फरवरी का  महीना था. नैशनल हार्ट इंस्टिट्यूट की सूनी व सर्द गैलरी की ठंडी बैंच पर बैठी सुरभि को न तो कुछ महसूस हो रहा था न कुछ सूझ रहा था. कोमा की सी स्थिति में सुन्न सुरभि औपरेशन थिएटर के दरवाजे पर नजरें टिकाए बैठी थी. भीतर मास्टरजी का औपरेशन हो रहा था. उन्हें हार्ट अटैक हुआ था.

रात को सोते समय उन्हें कुछ बेचैनी महसूस हो रही थी. उन्होंने सुरभि को बताया तो सुरभि रसोई समेटते हुए बोली, ‘गैस हो गई है पेट में. मैं अभी डायजीन ले कर आती हूं,’ उस ने सपने में भी न सोचा था कि जिन को आज तक साधारण तकलीफों के अतिरिक्त कभी कुछ न हुआ था उन की इस बेचैनी का गैस या बदहजमी के अलावा कोई दूसरा कारण भी हो सकता है. उन्होंने सदा एक नियमित जीवन जीया था. सैर और योगाभ्यास नियम से करते थे. खानपान भी उन का बिलकुल सादा था.

दोनों सुबह 7 बजे अपनेअपने स्कूल के लिए निकल जाते थे. मास्टरजी कार से सुरभि को उस के कन्या विद्यालय छोड़ते, जहां वह अध्यापन कार्य करती थी. उस के बाद अपने राजकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय पहुंचते जहां वे गणित के अध्यापक थे. लौटते भी दोनों एक ही साथ थे. उन के कोई संतान न थी. इसलिए बचे समय में वे अपने विद्यार्थियों को ट्यूशन पढ़ाते थे. ये कक्षाएं वित्तीय कारणों से नहीं ली जाती थीं, बल्कि जो होनहार छात्र बड़ेबड़े कोचिंग सैंटरों की मोटी फीस भर पाने में असमर्थ होते थे, उन से नाममात्र की गुरुदक्षिणा ले ये दोनों उन्हें पढ़ाते थे.

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मास्टरजी अपने छात्रों में बहुत लोकप्रिय थे. वे अपने हंसमुख और मित्रवत व्यवहार से छात्रों के गुरु ही नहीं, मित्र भी बन जाते थे. वहीं, टीचर आंटी हालांकि अपने गंभीर और अंतर्मुखी स्वभाव के कारण छात्रों से अधिक घुलतीमिलती नहीं थीं परंतु उन का स्नेह बच्चों के लिए कम न था. पूरा दिन इतने सारे बच्चों में घिरे रह कर उन्हें कभी अपनी संतान के न होने की कमी महसूस ही न हुई थी. अवकाश के दिनों में भी बच्चे अकसर उन के घर कुछ न कुछ पूछनेपढ़ने चले आते थे. पूरा जीवन एक ही ढर्रे पर चलते बीत रहा था.

आखिरकार, एक दिन मास्टरजी रिटायर हो गए. अब उन्हें अपना सरकारी आवास खाली करना था. मास्टरजी उम्र के इस पड़ाव पर आ कर किराए के मकानों में भटकना नहीं चाहते थे. इंदौर में उन का अपना घर था जो वर्षों से बंद पड़ा था. मास्टरजी चाहते थे कि अब वे अपना बाकी का बचा समय अपने उसी पैतृक निवास में व्यतीत करें, जहां उन का बचपन बीता था. सुरभि के रिटायरमैंट को अभी 5 साल बाकी थे. पर उस ने मास्टरजी की इच्छा का सम्मान किया और सेवानिवृत्ति ले ली. इंदौर शिफ्ट होने से पहले उन के मित्रों और छात्रों ने मिल कर उन के लिए विदाई समारोह का आयोजन किया और अश्रुपूरित आंखों से उन्हें विदा किया.

इंदौर हालांकि मास्टरजी का पैतृक निवास था पर जीवन के 40-45 वर्ष उन्होंने कानपुर में व्यतीत किए थे. इतने लंबे अरसे में वे कभी लौट कर यहां नहीं आए थे. अब यहां की दुनिया उन के लिए लगभग अनजान ही थी. शुरू के 8-10 दिन तो सामान इत्यादि व्यवस्थित करने में व्यतीत हो गए. उस के बाद करने को कुछ था ही नहीं. दोनों जैसे नौकरी से सेवानिवृत्त ही न हुए थे बल्कि जीवन की तेज बहती धार से छिटक कर दूर आ गिरे थे.

अपने ही शहर में अपरिचय का एक महासागर ढाढें़ मार रहा था और दोनों पतिपत्नी उस के किनारे हतप्रभ से खड़े थे. अकेले, उदास और किंकर्तव्यविमूढ़. सुरभि रोंआसी हो उठती. इस उम्र में किसी नए स्थान पर फिर अपनी जड़ें जमाना आसान तो नहीं. ऐसा विकराल अकेलापन जीवन में उन्हें कभी महसूस नहीं हुआ था. इंदौर आने का निर्णय कहीं उन की भूल तो नहीं थी.

जिस ‘अपने’ शहर में लौटने को मास्टरजी इतने लालायित थे, वहां दूरदूर तक कोई अपना दिखाई नहीं दे रहा था. अपनी संतान के न होने का दुख भी अब सालने लगा था सुरभि को. काश, समय रहते उन्होंने कोई बच्चा गोद ले लिया होता तो आज उसी के सहारे जिंदगी कट जाती. सुरभि तो सदा अपने आदर्शवादी पति की परछाईं बनी, उन्हीं के पदचिह्नों पर चलती आई थी. मास्टरजी कहते थे कि 1 या 2 स्वयं के पैदा किए बच्चों की रगों में अपना खून दौड़ने से कहीं बेहतर है, पराए कहे जाने वाले बच्चों की रगरग में नैतिकता, मनुष्यता और उत्तम आचारविचार भर दिए जाएं. पूरी उम्र पतिपत्नी दोनों इन्हीं उसूलों और आदर्शों पर चलते आए थे.

आज सुरभि का मन डोलने लगा था. उदास तो मास्टरजी भी थे. पर उन्होंने हौसला नहीं छोड़ा था. बरसों पहले एक अनजान शहर को उन्होंने अपना बना लिया था तो इस अपने शहर को फिर से अपना बनाने में कितना समय लगेगा. इसी तरह की उत्साहवर्धक बातों से उन्होंने सुरभि का हौसला बनाए रखा. शीघ्र ही घबरा कर हतोत्साहित हो जाने वालों में से तो सुरभि भी न थी. उस ने शीघ्र ही खुद पर काबू पाया और अपने करने के लिए कुछ रचनात्मक कार्य खोजने लगी.

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सुरभि के घर जो कामवाली बाई आती थी उसे पढ़नालिखना न आता था. अध्यापकों के घर में अशिक्षित? न, यह नहीं हो सकता. सुरभि को काम मिल गया था. उस ने उसे शिक्षित करने का बीड़ा उठा लिया. बड़े ही उत्साह से सुरभि उस के लिए स्लेट, पैंसिल व आवश्यक सामान जुटा लाई.

दुलारी की शिक्षा का बीड़ा उन्होंने उठा लिया. 2-4 दिन तो वह बड़े उत्साह से पढ़ने आई लेकिन शीघ्र ही वह इस कवायद से ऊब गई. पढ़ने में आनाकानी करने के उस के पास सौ बहाने थे. दुलारी के अनुसार, वास्तव में अब इस उम्र में उसे पढ़ने की कोई आवश्यकता ही न थी. पर सुरभि ने हार न मानी. उस ने ठान लिया था कि वह दुलारी और उस के जैसी अन्य स्त्रियों को शिक्षा का महत्त्व समझा कर उन्हें पढ़नेलिखने योग्य बना कर ही दम लेगी.

दुलारी पास की बस्ती में रहती थी. सुरभि ने मास्टरजी को अपना मंतव्य बताया और दोनों अब रोज शाम को बस्ती में चक्कर लगाने जाते. उन्हें यह देख कर हैरानी हुई कि वहां लगभग हर कच्चेपक्के घर में रंगीन टीवी, कूलर, फ्रिज इत्यादि मौजूद थे.

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