एक मौका और : भाग 3- हमेशा होती है अच्छाई की जीत

लेखिका- मरियम के. खान

तब एक दिन नूर ने असगर, सफदर, हुमा और अहमद चारों को बैठा कर बहुत समझाया. बिजनैस की ऊंचनीच बताईं. आमदनी के गिरते ग्राफ के बारे में उन से बात की. उन चारों ने सारा दोष नूर के सिर जड़ दिया. इतना ही नहीं उन्होंने यहां तक कह दिया, ‘‘आप का काम करने का तरीका गलत है. अभी तक आप पुरानी टेक्नोलौजी से काम कर रही हैं. एक बार नए जमाने के तकाजे के मुताबिक सब कुछ बदल दीजिए, फिर देखिए आमदनी में कैसी बढ़त होती है.’’

2-3 दिन तक इस मामले को ले कर उन के बीच खूब बहस होती रही. पुराने मैनेजर भी शामिल हुए. वे नूर का साथ दे रहे थे. चौथे दिन बड़े बेटे ने फैसला सुना दिया, ‘‘अम्मी, अब आप बिजनैस संभालने के काबिल नहीं रहीं. अब आप की उम्र हो गई है. लगता है, आप का दिमाग भी काम नहीं कर रहा. ऐसे में आप आराम कीजिए, बिजनैस हम संभाल लेंगे.’’

इतना सुनते ही नूर गुस्से से फट पड़ी, ‘‘तुम में से कोई भी इस काबिल नहीं है कि इस बिजनैस के एक हिस्से को भी संभाल सके. मैं ने सब कुछ तुम्हारे बाप के साथ रह कर सीखा था. तब कहीं जा कर मैं परफेक्ट हुई. जब तुम लोग भी इस लायक हो जाओगे तो मैं सब कुछ तुम्हें खुद ही सौंप दूंगी.’’

बच्चे इस बात पर राजी नहीं थे. माहौल में तनातनी फैल गई. फिर योजना बना कर बच्चों ने नूर को पागलखाने भेजने की योजना बनाई. इस संबंध में उन्होंने डा. काशान से बात की. वह मोटा पैसा ले कर किसी को भी पागल बना देता था. नूर के बच्चों ने नशीला जूस पिला कर उसे डा. काशान के क्लिनिक पहुंचा दिया.

ये भी पढ़ें- मोहमोह के धागे: मानसिक यंत्रणा झेल रही रेवती की कहानी

सारी कहानी सुन कर सोहेल ने कहा, ‘‘यह सब एक साजिश है. तुम्हारे बच्चों ने बिजनैस हड़पने के लिए तुम्हें पागलखाने में दाखिल करा दिया और डाक्टर ने तुम्हें ऐसी दवाएं दीं कि तुम पागलों जैसी हरकतें करने लगीं. मैं डा. काशान को अच्छी तरह समझ गया हूं. तुम घबराओ मत. मैं जरूर कुछ करूंगा. मेरी कहानी भी कुछ तुम्हारे जैसी ही है, बाद में कभी सुनाऊंगा.’’

उस क्लिनिक में शमा नाम की 24-25 साल की एक खूबसूरत लड़की भी कैद थी. सोहेल ने उस के बारे में बताया कि यह एक बहुत बड़े जमींदार की बेटी है. एक दुर्घटना में इस के मांबाप का इंतकाल हो गया. मांबाप ने शमा की शादी तय कर दी थी. इस से पहले कि वह उस की शादी करते, दोनों चल बसे. उन की मौत के बाद चाचा ने उन की प्रौपर्टी पर कब्जा करने के लिए शमा को यहां भरती करा दिया.

वह जवान और मजबूत इच्छाशक्ति वाली थी. दवाएं देने के बाद भी जब उस पर पागलपन नहीं दिखा तो डा. काशान ने राहिल से कहा कि शमा को दवाएं देने के साथ बिजली के शाक भी दें.

ये सारे काम राहिल करता था. 2-4 बार शाक देने के बाद राहिल के दिल में शमा की बेबसी और मासूमियत देख कर मोहब्बत जाग उठी. उस ने उसे शाक देने बंद कर दिए.

राहिल ने शमा को बताया कि उस का सगा चाचा ही उसे नशे की हालत में यहां छोड़ गया था और उसे पूरी तरह पागल बनाने के उस ने पूरे 20 लाख दिए थे.

सारी बातें सुन कर शमा रो पड़ी. तनहाई की मोहब्बत और हमदर्दी ने रंग दिखाया और वह राहिल से प्यार करने लगी. राहिल के लिए यह मोहब्बत किसी अनमोल खजाने की तरह थी. उसे जिंदगी में कभी किसी का प्यार नहीं मिला था. उस की आंखों में एक अच्छी जिंदगी के ख्वाब सजने लगे. पर उस के लिए इस जिंदगी को छोड़ना नामुमकिन था.

वह डा. काशान को छोड़ कर कहीं नहीं जा सकता था. अगर जाता भी तो उसे ढूंढ कर मार दिया जाता. क्योंकि काशान के गुनाह के खेल के सारे राज वह जानता था. उस की जबान खुलते ही काशान बरबाद हो जाता. उस ने सोचा कि उसे तो मरना ही है, क्यों न शमा की जिंदगी बचा ली जाए. उस ने कहा, ‘‘सुनो शमा, मैं तुम्हें यहां से निकाल दूंगा. तुम अपने चाचा के पास चली जाओ.’’

शमा लरज गई. उस ने तड़प कर राहिल का हाथ पकड़ लिया और कहा, ‘‘मैं कहीं नहीं जाऊंगी. मैं अब आप के साथ ही जिऊंगी और मरूंगी.’’

राहिल को तो जैसे नई जिंदगी मिल गई. उस ने कहा, ‘‘मैं तुम्हें एक राज की बात बता रहा हूं. डा. काशान ने इस क्लिनिक को तबाह करने का हुक्म दिया है, यहां कोई नहीं बचेगा.’’

‘‘राहिल, तुम इतने पत्थरदिल नहीं हो सकते. तुम इस जुर्म का हिस्सा नहीं बनोगे. यह 17 लोगों की जिंदगी का सवाल है. तुम्हें मेरी कसम है. तुम ऐसा हरगिज नहीं करना.’’ वह बोली.

‘‘मैं पूरी कोशिश करूंगा कि यह काम न करूं, पर उस से पहले मैं तुम्हें एक महफूज जगह पहुंचा देना चाहता हूं. वहां पहुंचा कर मैं तुम से मिलता रहूंगा. फोन पर बात भी करता रहूंगा.’’ राहिल ने कहा.

दूसरे दिन ही मौका देख कर उस ने बहुत खामोशी से शमा को लांड्री के कपड़े ले जाने वाली गाड़ी में कपड़ों के नीचे छिपा कर क्लिनिक से निकाल दिया. साथ ही एक फ्लैट का पता बता कर उसे उस की चाबी दे दी.

शमा सब की नजरों से बच कर उस फ्लैट तक पहुंच गई. यह फ्लैट राहिल का ही था पर इस के बारे में किसी को कुछ पता नहीं था. वहां खानेपीने का सब सामान था.

राहिल की दी हुई दवाओं से अब शमा की तबीयत भी ठीक हो रही थी. राहिल ने उसे बताया कि वह डा. काशान का क्लिनिक तबाह कर के बाहर जाने की फिराक में है. डा. काशान ने मरीजों के रिश्तेदारों को सब बता कर उन से काफी पैसे ऐंठ लिए हैं. किसी को भी उन की मौत से कोई ऐतराज नहीं है.

क्लिनिक से शमा के गायब हो जाने के बाद उस की गुमशुदगी की 1-2 दिन चर्चा रही. डा. काशान वैसे ही परेशान चल रहा था. पता चला कि शमा अपने घर नहीं पहुंची है. पर उस के चाचा के पास से कोई खबर न आने पर काशान निश्चित हो कर बैठ गया.

शमा की मोहब्बत ने राहिल को पूरी तरह बदल दिया था. बचपन से वह डा. काशान के साथ था. इस बीच उस के सामने 30 मरीज दुनिया से रुखसत हो चुके थे. जिस किसी को मारना होता था, उसे एक इंजेक्शन दे दिया जाता था, वह पागलों जैसी हरकतें करने लगता था. उस के 12 घंटे बाद डा. काशान मरीज को एक और इंजेक्शन लगाता. उस इंजेक्शन के लगाने के कुछ मिनट बाद ही मरीज ऐंठ कर खत्म हो जाता.

ये भी पढ़ें- मीनू: एक सच्ची कहानी

मौत इतनी भयानक होती थी कि राहिल खुद कांप जाता था. डा. काशान मरीज की लाश डेथ सर्टिफिकेट के साथ उस के रिश्तेदारों को सौंप देता था. जिस की एवज में वह उन से एक मोटी रकम वसूल करता था.

शमा की मोहब्बत ने राहिल के अंदर के इंसान को जगा दिया था. 17 लोगों को एक साथ मारना उस के वश की बात नहीं थी. उस ने सोचा कि अगर वह पुलिस को खबर करता है तो वह खुद भी पकड़ा जाएगा. यह दरिंदा तो पैसे दे कर छूट जाएगा.

डा. काशान ने क्लिनिक खत्म करने की सारी जिम्मेदारी राहिल को सौंप दी थी. राहिल और क्लिनिक में काम करने वालों को काशान ने अच्छीखासी रकम दे दी थी. उसी रात क्लिनिक उड़ाना था. डा. काशान ने अपनी पूरी तैयारी कर ली.

रकम वह पहले ही बाहर के बैंकों में भेज चुका था. 10 हजार डौलर वह अपने साथ ले जा रहा था. रात 2 बजे उस की फ्लाइट थी. वह बैठा हुआ बड़ी बेचैनी से तबाही की खबर मिलने का इंतजार कर रहा था. तभी 8 बजे उस के मोबाइल पर राहिल का फोन आया, ‘‘बौस, यहां एक बड़ा मसला हो गया है.’’

‘‘कैसा मसला? जो भी है तुम उसे खुद सौल्व करो.’’ डा. काशान ने उस से कहा.

‘‘मैं नहीं कर सकता. आप का यहां आना जरूरी है, नहीं तो आज रात के प्लान पर अमल नहीं किया जा सकेगा. मैं आप को फोन पर कुछ नहीं बता सकता.’’ राहिल ने बताया.

डा. काशान ने सोचा आज की रात क्लिनिक बरबाद होना जरूरी है, क्योंकि कुछ लोगों को इस की भनक मिल चुकी थी. कहीं कोई मसला न खड़ा हो जाए, सोचते हुए उस ने अपना एक सूटकेस कार में रखा और क्लिनिक की तरफ रवाना हो गया.

आगे पढ़ें- सूटकेस में 10 हजार डौलर और…

ये भी पढ़ें- यह जीवन है: अदिति-अनुराग को कौनसी मुसीबत झेलनी पड़ी

सई से दूर ड्राइव डेट पर गए विराट-पाखी, वीडियो हुई वायरल

सीरियल ‘गुम है किसी के प्यार में’ (Ghum Hai Kisikey Pyaar Meiin) की कहानी इन दिनों नया मोड़ ले रही हैं. जहां पाखी अपनी नई चाल चलने में लगी है तो वहीं सई और विराट के बीच बढ़ती गलतफहमियां उनके रिश्ते को कमजोर बना रही है. इसी बीच सीरियल के लीड रोल में नजर आ रहे विराट यानी नील भट्ट (Neil Bhatt) और उनकी मंगेतर पाखी यानी ऐश्वर्या शर्मा (Aishwarya Sharma) दोनों ड्राइव डेट पर मस्ती करते नजर आएं. आइए आपको दिखाते हैं वायरल वीडियो…

ड्राइव पर गए विराट-पाखी

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Aishwarya Sharma (@aisharma812)

‘गुम है किसी के प्यार में’ (Ghum Hai Kisikey Pyaar Meiin) के रियल लाइफ कपल नील भट्ट (Neil Bhatt) और उनकी मंगेतर ऐश्वर्या शर्मा (Aishwarya Sharma) दोनों एक-दूसरे के साथ क्वालिटी टाइम बिताते नजर आए. वीडियो में टीवी एक्ट्रेस ऐश्वर्या शर्मा (Aishwarya Sharma) ‘बचपन का प्यार’ गाने पर अपने मंगेतर नील का वीडियो बनाती दिख रही हैं. वहीं इस दौरान कार में बैठे हुए दोनों डांस करते दिख रहे हैं. फैंस को ये वीडियो काफी पसंद आ रहा है और वह मजेदार रिएक्शन देते दिख रहे हैं.

ये भी पढें- Anupama की तरफ वनराज देख अनुज को आएगा गुस्सा, सिखाएगा सबक

सीरियल में होगी पाखी-सई में जंग

 

View this post on Instagram

 

A post shared by indian serial lover (@narya600)

सीरियल के लेटेस्ट ट्रैक की बात करें तो जन्माष्टमी सेलिब्रेशन के बीच सई और विराट के बीच गलतफहमी देखने को मिल रही है. वहीं सम्राट का पाखी का विराट के लिए बढ़ता प्यार उसे तोड़ रहा है. इसी बीच अपकमिंग एपिसोड में जन्माष्टमी में पाखी विराट के लिए चीयर करेगी, जिसके चलते सई उसे कहेगी की उसकी बात और उसकी हरकतें बहुत अलग है. वहीं इस दौरान पता चलेगा कि सई ने ही विराट का ट्रांसफर रुकवाया है. वहीं सई के दौस्त उससे दिल की बात जानने की कोशिश करेगें. इसी बीच विराट उसकी बात सुन लेगा.

ये भी पढ़ें- REVIEW: जानें कैसी हैं रिचा चड्ढा और रोनित रौय की वेब सीरीज ‘Candy’

Anupama की तरफ वनराज देख अनुज को आएगा गुस्सा, सिखाएगा सबक

सीरियल ‘अनुपमा’ (Anupama) में वनराज और अनुज के बीच बिहेवियर फैंस को बेहद पसंद आ रहा है. वहीं काव्या भी आग में घी डालने का काम करती नजर आ रही है. इसी बीच अनुपमा के साथ वनराज के रिश्ते पर अनुज कपाड़िया का रिएक्शन सामने आने वाला हे, जिसे देखकर फैंस को बेहद मजा आएगा. आइए आपको बताते हैं क्या होगा शो में आगे.

वनराज को हुई जलन

अब तक आपने देखा कि शाह फैमिली में जन्माष्टमी के सेलिब्रेशन पर गरबा करते नजर आते हैं. वहं इसमें अनुपमा (Anupama) और अनुज कपाड़िया साथ में डांस करते हैं. वहीं वनराज दोनों को साथ देखकर जल भुन जाता है और उससे देखा नहीं जाता, जिसके बाद वनराज, अनुज से बात करता है. इस बीच अनुपमा, अनुज के लिए केक बनाती है, जो उनको बहुत पसंद आता है और इसके बाद वह शाह निवास से जाता है.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Anupama (@anup11ama_fcx21)

ये भी पढ़ें- अनुज के लिए वनराज मारेगा Anupama को ताना, मिलेगा ऐसा करारा जवाब

समर – नंदिनी में बढ़ेगी दूरी

अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि एक्स बौयफ्रेंड के आने से समर और नंदिनी के बीच दोबारा झगड़ा होगा, जिसके कारण अनुपमा, समर को समझाएगी कि वो नंदिनी पर भरोसा करे. लेकिन समर कहेगा कि वह अब नंदिनी पर भरोसा नहीं करना चाहता. हालांकि वनराज, अनुपमा से नंदिनी को समझाने की बात कहता है.

अनुज के सामने आई लड़ाई

 

इसी के साथ अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि वनराज (Sudhanshu Pandey) और काव्या (Madalsa Sharma), अनुज कपाड़िया (Anuj Kapadia) के ऑफिस जाएंगे. जहां पर अनुज की सीट पर उसके काका बेठे होंगे, जिसे देखकर काव्या कहेगी कि और अपने घर के नौकर को भी सीट पर बैठने देते हैं, जिसे सुनकर वह गुस्सा हो जाएगा. इसी बीच वनराज और काव्या के साथ ना पहुंचकर अनुपमा रिक्शे में पहुंचेगी, जिसके कारण वनराज भड़क जाएगा और वह अनुपमा पर गुस्सा करेगा, जिसे सुनकर अनुज हैरान रह जाएगा. वहीं इन सबके चलते वह वनराज को तंग करता हुआ नजर आएगा.

ये भी पढ़ें- Anupama: बा- बापूजी देंगे अनुज कपाड़िया को आशीर्वाद तो खौलेगा वनराज का खून

डायबिटीज के रोगी वैक्सीन लें, पर रहे सतर्क कुछ ऐसे

मुंबई की एक फ़्लैट में रहने वाली 55 वर्षीय मधु टाइप 2 डायबिटीज और ब्लडप्रेशर से पीड़ित है, उन्हें दवा लेनी पड़ती है. इसलिए वह वैक्सीन लेना नहीं चाहती, क्योंकि वह बाहर नहीं निकलती और उनके किसी रिश्तेदार ने वैक्सीन लेने के दो दिन बाद कोविड 19 से पीड़ित हुई और इलाज के दौरान अस्पताल में दम तोड़ दिया. मधु को लगता है कि उनके रिश्तेदार की मत्यु वैक्सीन लगाने से हुई है. इसलिए वह वैक्सीन नहीं लगाएगी , जबकि वैक्सीन से किसी की मौत नहीं हो सकती, क्योंकि ये रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाती है और 18 वर्ष से ऊपर सभी वयस्कों के लिए ये वैक्सीन सुरक्षित है.

इस बारें में शांति पवन मल्टीस्पेशलिटी केयर के एम डी डॉ. रितेश कुमार अगरवाला कहते है कि टाइप 1 और टाइप 2  वाले मधुमेह रोगियों के लिए टीका लगवाने के फायदे, टीका न लगवाने से उत्पन्न  रिस्क के मुकाबले कहीं अधिक होते है .मधुमेह रोगियों को कोविड-19 होने से कोविड के अलावा कई अन्य गंभीर बीमारियाँ दिखने लग जाती हैं. इसलिए यह बेहद जरूरी है कि वैक्सीन की बारी आते ही जल्द से जल्द कोरोना वायरस का टीका लगवाए . असल में कोरोना वायरस का टीका आपको कोरोना वायरस से जुड़ी गंभीर बिमारियों से बचाने में सहायक होती है. कोरोना वायरस के टीके कोविड-19 की संक्रमण से लड़ने के लिए शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत बनाती है, इसलिए टीका लगवाने के बाद होने वाली समस्या के बारें में न सोचे, क्योंकि जब तक सभी लोग वैक्सीन नहीं लगवाते, कोविड को म्यूटेंट होने से रोकना मुश्किल है, क्योंकि जिन लोगों ने वैक्सीन नहीं लगवाया है, कोविड के वायरस उनके शरीर में प्रवेश कर अपना रूप बदलती है. जबकि वैक्सीन हमेशा वायरस के खिलाफ इम्युनिटी  को बढ़ाने में सक्षम होती है.

ये भी पढ़ें- क्यों होते हैं कम उम्र में हार्ट अटैक

डॉ. रितेश कुमार अगरवाला का आगे कहना है कि कोरोना वायरस महामारी के दौरान डॉक्टरों ने मधुमेह रोगियों को ब्लड शुगर का स्तर बरकरार रखने की सलाह दी थी. ब्लड शुगर के स्तर को नियंत्रण में रखकर मधुमेह रोगी कोरोना वायरस से जुड़ी गंभीर जटिलताओं के पैदा होने की रिस्क कम कर सकते है. डायबिटीज के मरीजों को पता होना चाहिए कि ब्लड शुगर का स्तर ठीक रखने के बावजूद उनके शरीर की इम्युनिटी कमजोर हो सकती है, ऐसे व्यक्ति को संक्रमण से लड़ना बहुत मुश्किल होता है. इसलिए उन्हें अत्यधिक संक्रामक कोरोना वायरस का टीका अवश्य लगवाना चाहिए. डायबिटीज के रोगी को कोरोना वायरस का टीका लगवाने से पहले निम्न बातों का खास ध्यान रखना आवश्यक है,

  • ब्लड शुगर के स्तर पर नजर रखें,
  • अगर आपको कभी किसी टीके से गंभीर एलर्जी हो चुकी है, तो डॉक्टर से सलाह लें,
  • तनाव से बचें,
  • टीका लगवाने की निर्धारित तिथि से पहले रात को गहरी नींद लें,
  • प्रोटीनयुक्त भोजन करें आदि

कोरोना वायरस का टीका लगवाने के बाद भी मधुमेह के रोगी को कुछ बातों का ख्याल रखना जरुरी है,

  • टीका लगवाने के बाद तुरंत होने वाली किसी भी रिएक्शन पर नजर रखें,
  • कैफीनयुक्त पेय लेने से बचें,
  • इंजेक्शन लगने वाली जगह पर आइस पैक या गर्म सेंक न लगायें,
  • टीका लगवाने के तुरंत बाद बहुत अधिक शारीरिक श्रम न करें,
  • कार्बोहाइड्रेट और वसायुक्त खाना न खाएं आदि.

आम तौर पर टीका लगवाने के बाद लोगों को हल्का बुखार होने, दाने निकलने, इंजेक्शन लगने वाली जगह पर दर्द, सिरदर्द और चक्कर आने की शिकायत रहती है. ये लक्षण टीका लगवाने के कुछ दिनों बाद ही गायब हो जाती है, लेकिन किसी कारणवश ये लक्षण दूर नहीं होते है , तो किसी डॉक्टर की सलाह अवश्य लें.

ये भी पढ़ें- वजन कम करने का बेहद आसान तरीका है वाटर वर्कआउट

इन सभी सावधानियों के अलावा मधुमेह रोगियों को ऐसे भोजन लेने चाहिए, जो एंटी-ऑक्सिडेंट और एंटी-इनफ्लेमेटरी हों, क्योंकि टीका लगवाने के बाद ऐसे भोजन रोगी की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में सहयोग देती है. मछली, अंडा और चिकन जैसे खाद्य पदार्थ एंटी-इनफ्लेमेटरी गुणों से भरपूर होते हैं, जो इंजेक्शन लगने वाली जगह की सूजन घटाते है. टीका लगवाने के बाद फल और सब्जियां खाने से भी इम्युनिटी  बढ़ सकती है.

doctor

घर पर करें ट्राई टेस्टी दही के कबाब

सेहत के लिए दही बहुत फायदेमंद होती है. हम कोशिश करते हैं कि इस मौसम में ठंडी चीजें ही खाएं, लेकिन कभी-कभी जरूरी है कि हम घर पर भी कुछ नयी चीजें ट्राई करें. इसीलिए हम आपको दही को और किस तरह इस्तेमाल कर सकते हैं, इसके बारे में बताएंगे. साथ ही एक नया डिश भी ट्राई करेंगें.

दही के कबाब बनाने के लिए हमें चाहिए

1-1/2 कप हंग दही

2 बारीक कटी हरी मिर्च

चुटकी भर काला नमक या सेंधा नमक

ये भी पढ़ें- मेहमान और फैमिली के लिए बनाएं फ्लेवर्ड मोदक

1/2 छोटा चम्मच चाट मसाला पाउडर

स्वाद अनुसार नमक

10 ब्रेड

प्रयोग अनुसार तेल

बनाने का तरीका

-दही के कबाब रेसिपी बनाने के लिए सबसे पहले हम हंग दही बनाएंगे. दही को एक मलमल के कपडे में डाले और 2 घंटे के लिए लटका दे. इससे दही में जितना भी पानी होगा सब चला जायेगा.

-अब इस दही को एक बाउल में डाले और इसमें काला नमक, चाट मसाला पाउडर, नमक, हरी मिर्च डाले और अच्छी तरह से मिला ले.

ये भी पढ़ें- फैमिली के लिए बनाएं हैल्दी और टेस्टी अरवी की कढ़ी

-अब ब्रेड को पानी में 2 सेकण्ड्स के लिए रखें और दोनों हाथों के बिच में दबा के पानी निकाल ले. अब एक बड़ा चम्मच दही का मिश्रण ले और ब्रेड के बिच में डाल दें.

-चारों तरफ से मिला लें और अच्छी तरह बंद कर ले. अपने हाथों की मदद से थोड़ा सा बीच में से दबा ले.

-अब एक तवे को मध्यम आंच पर तेल गरम करें. इसमें यह कबाब रखें और दोनों तरफ से सुनहरा भूरा होने तक पका लें. इसी तरह सारे कबाब बना ले. और दही के कबाब रेसिपी को धनिया पुदीना चटनी और मसाला चाय के साथ शाम के स्नैक्स के लिए परोसे.

दहेज: अलका के घरवाले क्यों परेशान थे

डाक्टर के केबिन से बाहर निकल कर राहुल सिर पकड़ कर बैठ गया. उस की मम्मी आईं और उस से पूछने लगीं, ‘‘डाक्टर ने ऐसा क्या कह दिया कि तू अपना सिर पकड़ कर बैठ गया?’’

राहुल बोला, ‘‘मम्मी, अलका डाक्टर बन गई है.’’

‘‘कौन अलका?’’ मम्मी ने हैरान हो कर पूछा.

‘‘वही अलका, जिस से दहेज में 5 लाख रुपए न मिलने की वजह से हम फेरों के समय बरात वापस ले आए थे.’’

‘‘पर बेटा, शादी के लिए तो उस ने ही मना किया था,’’ मम्मी बोलीं.

‘‘और क्या करती वह? ताऊजी और पापा ने उस समय उस के पापा को इतना जलील किया था कि उस ने शादी करने से मना कर दिया,’’ राहुल बोला.

‘‘पर बेटा, तू इतना परेशान क्यों हो गया है?’’

‘‘मम्मी, मैं ने तो बस यही कहा था, ‘डाक्टर, हमें तो अलका की हाय खा गई. शादी को 12-13 साल हो गए, पर औलाद का मुंह देखने को तरस गए. हर बार किसी न किसी वजह से पेट गिर जाता है. इस बार खुश थे कि अब हम औलाद का मुंह देख लेंगे, पर यह समस्या आ गई.’

‘‘हमारी डाक्टर ने अलका का नाम लिया और कहा कि अब वे ही कुछ कर सकती हैं.’’

ये भी पढ़ें- लौकडाउन : मालिनी ने शांतनु को क्यों ठुकरा दिया था?

‘‘मम्मी, अलका रिपोर्ट देखतेदेखते बोली, ‘जिस लड़की की बरात फेरों के समय वापस लौट जाए, वह कभी दुआ तो नहीं देगी.’

‘‘फिर उस ने सिर उठा कर मेरी तरफ देखा. उस की शक्ल देख कर मेरी बोलती बंद हो गई.

‘‘आगे और कोई बात होती कि तभी नर्स ने आ कर तैयारी शुरू कर दी. अलका उठ कर चलने लगी, फिर मेरी पीठ को सहलाते हुए बोली, ‘डरो मत, मैं डाक्टर पहले हूं, अलका बाद में.’’’

पर राहुल की मम्मी कुछ और ही सोच रही थीं, इसलिए उन्होंने बेटे की बात पर कोई गौर नहीं किया.

थोड़ी देर बाद मम्मी ने पूछा, ‘‘क्या अलका शादीशुदा है?’’

राहुल बोला, ‘‘नहीं मम्मी. लेकिन आप यह क्या पूछ रही हैं?’’

‘‘बेटा सोच, उस ने अभी तक शादी क्यों नहीं की? उस से कह दे कि बच्चे को बचाने की कोशिश करे. बहू न बचे, तो कोई बात नहीं.’’

राहुल चीखा, ‘‘आप कितनी बेरहम हैं. मैं वही गलती दोबारा नहीं करूंगा. एक बार ताऊजी और पापा के खिलाफ नहीं बोल कर मुझे अलका जैसी लड़की से हाथ धोना पड़ा था. मुझे अपनी बीवी और बच्चा दोनों चाहिए.’’

उधर डाक्टर अलका  के सामने लेटी कविता जिंदगी और मौत के बीच झूल रही थी. वह उस शख्स की बीवी थी, जो अलका के साथ होने वाले फेरों पर अपनी बरात वापस ले गया था.

डाक्टर अलका के सामने उस दिन का एकएक सीन घूम गया, जिस ने उन की जिंदगी बदल दी थी.

राहुल और अलका मंडप के नीचे बैठे हुए थे कि तभी राहुल के पापा की आवाज गूंजी थी, ‘रुक जाओ…’

फिर वे अलका के पापा से बोले थे, ‘5 लाख रुपए का इंतजाम और करो. अब फेरे तभी होंगे, जब आप 5 ख रुपए का इंतजाम कर लोगे.’

अलका और उस के परिवार वाले सभी चौंक कर रह गए थे. अलका के पापा और चाचा दोनों राहुल के पापा के सामने गिड़गिड़ा रहे थे, पर उन का एक ही राग था कि 5 लाख रुपए का इंतजाम करो, नहीं तो बरात वापस ले जाएंगे.

इसी बीच राहुल के ताऊजी बोले थे, ‘अरे समधीजी, आप के लिए गर्व की बात होनी चाहिए कि आप की 12वीं पास लड़की को सरकारी नौकरी वाला लड़का मिल रहा है… ऊपर से यह सांवली भी है. आप 5 लाख रुपए का इंतजाम कर लें, फिर सारी कमियां छिप जाएंगी.’

फिर पापा राहुल से बोले थे, ‘उठ बेटा, हम वापस चलते हैं.’

बहुत देर से चुपचाप सुन रही अलका उठी और दहाड़ी, ‘अरे, यह क्या उठेगा, मैं ही उठ जाती हूं.

‘मैं अब यह शादी नहीं करूंगी. आप शौक से बरात ले जाएं. लेकिन मेरे पापा का जो अब तक खर्च हुआ है, सब दे कर जाएं.’

फिर अलका अपने चाचा से बोली थी, ‘चाचाजी, आप पुलिस को बुलाइए.’

अब तक जो शेर की तरह दहाड़ रहे थे, वे भीगी बिल्ली बन गए थे. वे अलका पर शादी के लिए दबाव डालने लगे थे, पर अलका ने शादी करने से साफ मना कर दिया और बरात लौट गई थी.

कमरे में आ कर अलका रोने लगी थी. उस की बूआ पास आ गई थीं. वह उन से लिपट कर रोने लगी और बोली थी, ‘बूआ, मैं और पढ़ना चाहती हूं.’

बूआ ने अपने भाई से कहा था, ‘भैया, मैं ने पहले ही कहा था कि अभी अलका की उम्र ही क्या हुई है… पर आप को तो बस नौकरीपेशा लड़के का लालच आ गया. देख लिया नतीजा…

‘भैया, मेरे कोई बच्चा नहीं है, इसलिए अलका की जिम्मेदारी मुझे सौंप दो. इसे मैं अपने साथ ले जाऊंगी. मैं इसे आगे पढ़ाऊंगी.’

इस के बाद बूआ अलका को अपने साथ ले गई थीं. उस समय वह 12वीं जमात विज्ञान से कर रही थी, तभी पीएमटी का इश्तिहार आया था. अलका ने पीएमटी का इम्तिहान देने की इच्छा जाहिर की, तो उस की बूआ ने उस की इच्छा पूरी की.

अलका ने बहुत मेहनत की. अब उस का एक ही मकसद था कि कुछ कर के दिखाना है. उस की मेहनत रंग लाई और उस का पीएमटी में चयन हो गया.

अलका को पता था कि बूआ भी माली रूप से कमजोर थीं, लेकिन बूआ ने किसी तरह उसे डाक्टरी पढ़ने के लिए बाहर भेज दिया था.

अलका को बाद में पता चला था कि उस की बूआ ने उस के दाखिले के लिए अपने कुछ जेवर बेचे थे, इसलिए उस ने अपने सहपाठियों से कहा कि उस के लिए कुछ ट्यूशन बता दें, जिस से वह अपनी बूआ को कुछ राहत दे सके.

अलका के सहपाठी उस के काम आए. उन्हीं में डाक्टर विश्वास भी थे. उन्होंने कुछ ट्यूशन बता दिए. बस, यहीं से अलका की निकटता डाक्टर विश्वास से बढ़ने लगी और उस हद तक पहुंच गई, जहां दोनों एकदूसरे के बिना नहीं रह पा रहे थे.

ये भी पढ़ें- आखिरी लोकल : शिवानी और शिवेश की कहानी

3 साल बाद अलका एक नर्सिंगहोम की मालकिन थी. इस नर्सिंगहोम की मालकिन बनने में भी डाक्टर विश्वास ने ही मदद की थी.

अब अलका इतनी काबिल डाक्टर हो गई थी कि बिगड़े केस भी ठीक कर देती थी. कविता का केस भी तभी अलका के पास आया, जब दूसरे डाक्टरों ने हाथ खड़े कर दिए थे.

डाक्टर अलका के लिए यह सब से मुश्किल केस था, क्योंकि अगर वह अपने काम में नाकाम हुई तो लोग यही कहेंगे कि अलका ने अपना बदला ले लिया. उस का कैरियर भी चौपट हो जाएगा, जबकि उस को पता था कि उस के सामने लेटी औरत का कोई कुसूर नहीं था.

अलका को बारबार पसीना आ रहा था. उस की ऐसी हालत देख कर नर्स बोली, ‘‘डाक्टर क्या हुआ? आप अपनेआप को संभालो.’’

अलका बोली, ‘‘डाक्टर विश्वास को फोन लगाओ.’’

थोड़ी देर बाद जब नर्स ने कहा कि डाक्टर विश्वास कुछ ही देर में पहुंचने वाले हैं, तब जैसे अलका को हिम्मत मिली. अब उस के लिए कविता एक आम मरीज थी. 2 घंटे बाद जब बच्चे के रोने की आवाज गूंजी, तब सब खुशी से उछल पड़े.

बाकी काम अपने सहायकों पर छोड़ कर डाक्टर अलका डाक्टर विश्वास के साथ बाहर निकल गई.

कविता 3 दिन अस्पताल में रही. राहुल और अलका की मुलाकात नहीं हुई या राहुल ही खुद अलका से कन्नी काट लेता था.

3 महीने बीत गए थे. अलका अस्पताल जाने की तैयारी कर रही थी कि तभी एक आवाज ने उसे चौंकाया. उस ने आवाज की तरफ देखा और बोली, ‘‘अरे कविताजी, आप?’’

अपने बच्चे को डाक्टर अलका की गोद में सौंपते हुए कविता बोली, ‘‘मुझे सब पता चल गया है, जो इन्होंने आप के साथ किया था.’’

‘‘मैं तो अब सबकुछ भूल गई हूं, क्योंकि आज मैं जिस मुकाम पर खड़ी हूं, तब मैं सोचती हूं कि अगर उस समय मेरी शादी हो गई होती, तब मैं इस मुकाम पर नहीं पहुंच पाती.’’

‘‘पर इन्होंने जो किया, वह गलत किया.’’

‘‘हां, मुझे भी उस समय बुरा लगा था कि राहुल ने अपने पापा का विरोध नहीं किया था. तब मुझे लगा कि अगर मेरी शादी राहुल के साथ हो जाती, तो हो सकता है कि बाद में भी दहेज ही मेरी मौत की वजह बन जाए, इसलिए मैं ने शादी के लिए मना कर दिया.’’

फिर अलका ने कविता से पूछा, ‘‘क्या अब भी राहुल ऐसे ही हैं?’’

‘‘नहीं, अब वे बदल गए हैं. मुझे आप के अस्पताल की नर्स ने बताया कि उस दिन भी इन की मम्मी ने दबाव डाला था कि डाक्टर से कह दे कि अगर बचाने की बात हो, तो बहू को नहीं, बल्कि बच्चे को बचा ले. तब इन्होंने मम्मी को डांट दिया था.

‘‘इन्होंने अपनी मां से कहा था कि एक बार पापा की बात का विरोध न कर के अलका जैसी लड़की को खो बैठा हूं, पर वह गलती अब दोबारा नहीं करूंगा.

‘‘तब मुझे यह पता नहीं था कि वह लड़की आप हैं.’’

बात को मोड़ देते हुए अलका ने पूछा, ‘‘इस बच्चे का क्या नाम रखा?’’

‘‘विश्वास,’’ कविता बोली.

तभी डाक्टर विश्वास वहां आए. अपना नाम सुन कर वे बोले, ‘‘मेरा नाम क्यों लिया जा रहा है?’’

कविता ने बताया, ‘‘हम ने अपने बच्चे का नाम आप के नाम पर रखा है.’’

ये भी पढ़ें- और सीता जीत गई

डाक्टर विश्वास बोले, ‘‘अरे, विश्वास नाम मत रखो, वरना मेरी तरह कुंआरा ही रह जाएगा.’’

‘‘देखो, कैसे ताना मार रहे हैं,’’ अलका बोली, ‘‘आज से पहले कभी इन्होंने प्रपोज नहीं किया? और आज प्रपोज किया है, तो ताना भी मार रहे हैं. अब मुझे क्या सपना आया था कि आप से केवल दोस्ती नहीं है, कुछ और भी है.’’

डाक्टर विश्वास के बोलने से पहले ही कविता बोली, ‘‘बहुत खूब. दोनों ने प्रपोज भी किया और ताना भी मारा. अब शादी की तारीख भी तय कर लो.’’

‘शादी की तारीख तो हमारे बड़े तय करेंगे,’ वे दोनों एकसाथ बोले.

कुछ दिन बाद अलका और विश्वास की शादी की तारीख तय हो गई. राहुल और कविता उन के खास मेहमान थे.

लमहे पराकाष्ठा के : रूपा और आदित्य की खुशी अधूरी क्यों थी

लेखक- डा. शशि मंगल

लगातार टैलीफोन की घंटी बज रही थी. जब घर के किसी सदस्य ने फोन नहीं उठाया तो तुलसी अनमनी सी अपने कमरे से बाहर आई और फोन का रिसीवर उठाया, ‘‘रूपा की कोई गुड न्यूज?’’ तुलसी की छोटी बहन अपर्णा की आवाज सुनाई दी.

‘‘नहीं, अभी नहीं. ये तो सब जगह हो आए. कितने ही डाक्टरों को दिखा लिया. पर, कुछ नहीं हुआ,’’ तुलसी ने जवाब दिया.

थोड़ी देर के बाद फिर आवाज गूंजी, ‘‘हैलो, हैलो, रूपा ने तो बहुत देर कर दी, पहले तो बच्चा नहीं किया फिर वह व उस के पति उलटीसीधी दवा खाते रहे और अब दोनों भटक रहे हैं इधरउधर. तू अपनी पुत्री स्वीटी को ऐसा मत करने देना. इन लोगों ने जो गलती की है उस को वह गलती मत करने देना,’’ तुलसी ने अपर्णा को समझाते हुए आगे कहा, ‘‘उलटीसीधी दवाओं के सेवन से शरीर खराब हो जाता है और फिर बच्चा जनने की क्षमता प्रभावित होती है. भ्रू्रण ठहर नहीं पाता. तू स्वीटी के लिए इस बात का ध्यान रखना. पहला एक बच्चा हो जाने देना चाहिए. उस के बाद भले ही गैप रख लो.’’

‘‘ठीक है, मैं ध्यान रखूंगी,’’ अपर्णा ने बड़ी बहन की सलाह को सिरआंखों पर लिया.

अपनी बड़ी बहन का अनुभव व उन के द्वारा दी गई नसीहतों को सुन कर अपर्णा ने कहा, ‘‘अब क्या होगा?’’ तो बड़ी बहन तुलसी ने कहा, ‘‘होगा क्या? टैस्टट्यूब बेबी के लिए ट्राई कर रहे हैं वे.’’

‘‘दोनों ने अपना चैकअप तो करवा लिया?’’

‘‘हां,’’ अपर्णा के सवाल के जवाब में तुलसी ने छोटा सा जवाब दिया.

अपर्णा ने फिर पूछा, ‘‘डाक्टर ने क्या कहा?’’

ये भी पढ़ें- खुशियों का उजास: बानी की जिंदगी में कौनसा नया मोड़ा आया

तुलसी ने बताया, ‘‘कमी आदित्य में है.’’

‘‘तो फिर क्या निर्णय लिया?’’

‘‘निर्णय मुझे क्या लेना था? ये लोग ही लेंगे. टैस्टट्यूब बेबी के लिए डाक्टर से डेट ले आए हैं. पहले चैकअप होगा. देखते हैं क्या होता है.’’

दोनों बहनें आपस में एकदूसरे के और उन के परिवार के सुखदुख की बातें फोन पर कर रही थीं.

कुछ दिनों के बाद अपर्णा ने फिर फोन किया, ‘‘हां, जीजी, क्या रहा? ये लोग डाक्टर के यहां गए थे? क्या कहा डाक्टर ने?’’

‘‘काम तो हो गया…अब आगे देखो क्या होता है.’’

‘‘सब ठीक ही होगा, अच्छा ही होगा,’’ छोटी ने बड़ी को उम्मीद जताई.

‘‘हैलो, हैलो, हां अब तो काफी टाइम हो गया. अब रूपा की क्या स्थिति है?’’ अपर्णा ने काफी दिनों के बाद तुलसी को फोन किया.

‘‘कुछ नहीं, सक्सैसफुल नहीं रहा. मैं ने तो रूपा से कह दिया है अब इधरउधर, दुनियाभर के इंजैक्शन लेना बंद कर. उलटीसीधी दवाओं की भी जरूरत नहीं, इन के साइड इफैक्ट होते हैं. अभी ही तुम क्या कम भुगत रही हो. शरीर, पैसा, समय और ताकत सभी बरबाद हो रहे हैं. बाकी सब तो जाने दो, आदमी कोशिश ही करता है, इधरउधर हाथपैर मारता ही है पर शरीर का क्या करे? ज्यादा खराब हो गया तो और मुसीबत हो जाएगी.’’

‘‘फिर क्या कहा उन्होंने?’’ अपनी जीजी और उन के बेटीदामाद की दुखभरी हालत जानने के बाद अपर्णा ने सवाल किया.

‘‘कहना क्या था? सुनते कहां हैं? अभी भी डाक्टरों के चक्कर काटते फिर रहे हैं. करेंगे तो वही जो इन्हें करना है.’’

‘‘चलो, ठीक है. अब बाद में बात करते हैं. अभी कोई आया है. मैं देखती हूं, कौन है.’’

‘‘चल, ठीक है.’’

‘‘फोन करना, क्या रहा, बताना.’’

‘‘हां, मैं बताऊंगी.’’

फोन बंद हो चुका था. दोनों अपनीअपनी व्यस्तता में इतनी खो गईं कि एकदूसरे से बात करे अरसा बीत गया. कितना लंबा समय बीत गया शायद किसी को भी न तो फुरसत ही मिली और न होश ही रहा.

ट्रिन…ट्रिन…ट्रिन…फोन की घंटी खनखनाई.

‘‘हैलो,’’ अपर्णा ने फोन उठाया.

‘‘बधाई हो, तू नानी बन गई,’’ तुलसी ने खुशी का इजहार किया.

‘‘अरे वाह, यह तो बड़ी अच्छी न्यूज है. आप भी तो नानी बन गई हैं, आप को भी बधाई.’’

‘‘हां, दोनों ही नानी बन गईं.’’

‘‘क्या हुआ, कब हुआ, कहां हुआ?’’

‘‘रूपा के ट्विंस हुए हैं. मैं अस्पताल से ही बोल रही हूं. प्रीमैच्यौर डिलीवरी हुई है. अभी इंटैंसिव केयर में हैं. डाक्टर उन से किसी को मिलने नहीं दे रहीं.’’

‘‘अरे, यह तो बहुत गड़बड़ है. बड़ी मुसीबत हो गई यह तो. रूपा कैसी है, ठीक तो है?’’

‘‘हां, वह तो ठीक है. चिंता की कोई बात नहीं. डाक्टर दोनों बच्चियों को अपने साथ ले गई हैं. इन में से एक तो बहुत कमजोर है, उसे तो वैंटीलेटर पर रखा गया है. दूसरी भी डाक्टर के पास है. अच्छा चल, मैं तुझ से बाद में बात करती हूं.’’

‘‘ठीक है. जब भी मौका मिले, बात कर लेना.’’

‘‘हां, हां, मैं कर लूंगी.’’

‘‘तुम्हारा फोन नहीं आएगा तो मैं फोन कर लूंगी.’’

‘‘ठीक है.’’

दोनों बहनों के वार्त्तालाप में एक बार फिर विराम आ गया था. दोनों ही फिर व्यस्त हो गई थीं अपनेअपने काम में.

‘‘हैलो…हैलो…हैलो, हां, क्या रहा? तुम ने फोन नहीं किया,’’ अपर्णा ने अपनी जीजी से कहा.

‘‘हां, मैं अभी अस्पताल में हूं,’’ तुलसी ने अभी इतना ही कहा था कि अपर्णा ने उस से सवाल कर लिया, ‘‘बच्चियां कैसी हैं?’’

‘‘रूपा की एक बेटी, जो बहुत कमजोर थी, नहीं रही.’’

‘‘अरे, यह क्या हुआ?’’

‘‘वह कमजोर ही बहुत थी. वैंटीलेटर पर थी.’’

‘‘दूसरी कैसी है?’’ अपर्णा ने संभलते व अपने को साधते हुए सवाल किया.

ये भी पढ़ें- बदबू : कमली की अनोखी कहानी

‘‘दूसरी ठीक है. उस से डाक्टर ने मिलवा तो दिया पर रखा हुआ अभी अपने पास ही है. डेढ़ महीने तक वह अस्पताल में ही रहेगी. रूपा को छुट्टी मिल गई है. वह उसे दूध पिलाने आई है. मैं उस के साथ ही अस्पताल आई हूं,’’ तुलसी एक ही सांस में कह गई सबकुछ.

‘‘अरे, यह तो बड़ी परेशानी की बात है. रूपा नहीं रह सकती थी यहां?’’ अपर्णा ने पूछा.

‘‘मैं ने डाक्टर से पूछा तो था पर संभव नहीं हो पाया. वैसे घर भी तो देखना है और यों भी अस्पताल में रह कर वह करती भी क्या? दिमाग फालतू परेशान ही होता. बच्ची तो उस को मिलती नहीं.’’

डेढ़ महीने का समय गुजरा. रूपा और आदित्य नाम के मातापिता, दोनों ही बहुत खुश थे. उन की बेटी घर आ गई थी. वे दोनों उस की नानीदादी के साथ जा कर उसे अस्पताल से घर ले आए थे.

रूपा के पास फुरसत नहीं थी अपनी खोई हुई बच्ची का मातम मनाने की. वह उस का मातम मनाती या दूसरी को पालती? वह तो डरी हुई थी एक को खो कर. उसे डर था कहीं इसे पालने में, इस की परवरिश में कोई कमी न रह जाए.

बड़ी मुश्किल, बड़ी मन्नतों से और दुनियाभर के डाक्टरों के अनगिनत चक्कर लगाने के बाद ये बच्चियां मिली थीं, उन में से भी एक तो बची ही नहीं. दूसरी को भी डेढ़ महीने बाद डाक्टर ने उसे दिया था. बड़ी मुश्किल से मां बनी थी रूपा. वह भी शादी के 10 साल बाद. वह घबराती भी तो कैसे न घबराती. अपनी बच्ची को ले कर असुरक्षित महसूस करती भी तो क्यों न करती? वह एक बहुत घबराई हुई मां थी. वह व्यस्त नहीं, अतिव्यस्त थी, बच्ची के कामों में. उसे नहलानाधुलाना, पहनाना, इतने से बच्चे के ये सब काम करना भी तो कोई कम साधना नहीं है. वह भी ऐसी बच्ची के काम जिसे पैदा होते ही इंटैंसिव केयर में रखना पड़ा हो. जिसे दूध पिलाने जाने के लिए उस मां को डेढ़ महीने तक रोज 4 घंटे का आनेजाने का सफर तय करना पड़ा हो, ऐसी मां घबराई हुई और परेशान न हो तो क्यों न हो.

रूपा का पति यानी नवजात का पिता आदित्य भी कम व्यस्त नहीं था. रोज रूपा को इतनी लंबी ड्राइव कर के अस्पताल लाना, ले जाना. घर के सारे सामान की व्यवस्था करना. अपनी मां के लिए अलग, जच्चा पत्नी के लिए अलग और बच्ची के लिए अलग. ऊपर से दवाएं और इंजैक्शन लाना भी कम मुसीबत का काम है क्या. एक दुकान पर यदि कोई दवा नहीं मिली तो दूसरी पर पूछना और फिर भी न मिलने पर डाक्टर के निर्देशानुसार दूसरी दवा की व्यवस्था करना, कम सिरदर्द, कम व्यस्तता और कम थका देने वाले काम हैं क्या? अपनी बच्ची से बेइंतहा प्यार और बेशुमार व्यस्तता के बावजूद उस में अपनी बच्ची के प्रति असुरक्षा व भय की भावना नहीं थी बिलकुल भी नहीं, क्योंकि उस को कार्यों व कार्यक्षेत्रों में ऐसी गुंजाइश की स्थिति नहीं के बराबर ही थी.

रूपा और आदित्य के कार्यों व दायित्वों के अलगअलग पूरक होने के बावजूद उन की मानसिक और भावनात्मक स्थितियां भी इसी प्रकार पूरक किंतु, स्पष्ट रूप से अलगअलग हो गई थीं. जहां रूपा को अपनी एकमात्र बच्ची की व्यवस्था और रक्षा के सिवा और कुछ सूझता ही नहीं था, वहीं आदित्य को अन्य सब कामों में व्यस्त रहने के बावजूद अपनी खोई हुई बेटी के लिए सोचने का वक्त ही वक्त था.

मनुष्य का शरीर अपनी जगह व्यस्त रहता है, दिलदिमाग अपनी जगह. कई स्थितियों में शरीर और दिलदिमाग एक जगह इतने डूब जाते हैं, इतने लीन हो जाते हैं, खो जाते हैं और व्यस्त हो जाते हैं कि उसे और कुछ सोचने की तो दूर, खुद अपना तक होश नहीं रहता जैसा कि रूपा के साथ था. उस की स्थिति व उस के दायित्व ही कुछ इस प्रकार के थे कि उस का उन्हीं में खोना और खोए रहना स्वाभाविक था किंतु आदित्य? उस की स्थिति व दायित्व इस के ठीक उलट थे, इसलिए उसे अपनी खोई हुई बेटी का बहुत गम था. उस का गम तो सभी को था मां, नानी, दादी सभी को. कई बार उस की चर्चा भी होती थी पर अलग ही ढंग से.

‘‘उसे जाना ही था तो आई ही क्यों थी? उस ने फालतू ही इतने कष्ट भोगे. इस से तो अच्छा था वह आती ही नहीं. क्यों आई थी वह?’’ अपनी सासू मां की दुखभरी आह सुन कर आदित्य के भीतर का दर्द एकाएक बाहर आ कर बह पड़ा.

ये भी पढ़ें- वो भूली दास्तां लो फिर याद आ गई

कहते हैं न, दर्द जब तक भीतर होता है, वश में होता है. उस को जरा सा छेड़ते ही वह बेकाबू हो जाता है. यही हुआ आदित्य के साथ भी. उस की तमाम पीड़ा, तमाम आह एकाएक एक छोटे से वाक्य में फूट ही पड़ी और अपनी सासू मां के निकले आह भरे शब्द ‘जाना ही था तो आई ही क्यों थी’ उस के जेहन से टकराए और एक उत्तर बन कर बाहर आ गए. उत्तर, हां एक उत्तर. एक मर्मात्मक उत्तर देने. अचानक ही सब चौंक कर एकसाथ बोल उठे. रूपा, नानी, दादी सब ही, ‘‘क्या दिया उस ने?’’

‘‘अपना प्यार. अपनी बहन को अपना सारा प्यार दे दिया. हम सब से अपने हिस्से का सारा प्यार उसे दिलवा दिया. अपने हिस्से का सबकुछ इसे दे कर चली गई. कुछ भी नहीं लिया उस ने किसी से. जमीनजायदाद, कुछ भी नहीं. वह तो अपने हिस्से का अपनी मां का दूध भी इसे दे कर चली गई. अपनी बहन को दे गई वह सबकुछ. यहां ताकि अपने हिस्से का अपनी मां का दूध भी.’’

सभी शांत थीं. स्तब्ध रह गई थीं आदित्य के उत्तर से. हवा में गूंज रहे थे आदित्य के कुछ स्पष्ट और कुछ अस्पष्ट से शब्द, ‘चली गई वह अपने हिस्से का सबकुछ अपनी बहन को दे कर. यहां तक कि अपनी मां का दूध भी…’

रिजर्च बैक और सोना

सोना गृहिणियों को सजने के लिए नहीं होता, यह आप के समय काम में आने वाली बचत भी है. इस साल जब सरकार तरहतरह की प्रगति के ढिढ़ोरे पीट रही है और नागरिक संशोधन कानून, तीन तलाक कानून, धारा 370 कानून का हल्ला मचा रही है, देशभर में औरतें अपना सोना गिरवी रख कर पैसा कर्ज पर ले रही हैं. आप ने अंधूरे आंकड़ों के अनुसार बैंकों में ही सोने को रख कर लिए कर्ज में 77′ की वृद्धि हो गई है.

यही नहीं बैंकों के जारी क्रेडिट कार्डों पर उधारी भी 10,000 करोड़ से बढ़ गर्ई है. आज लोगों द्वारा लिया गया कर्ज जिसे बैंकिंग की भाषा में रिटेल कर्ज कहते हैं पिछले साल 10 से ज्यादा प्रतिशब बढ़ गया है. इस के मुकाबले उद्योगों और व्यापारों क कर्ज मुश्किल से 2 प्रतिशत बढ़ा है.

यह असल में टिप औफ आईस वर्ग है. समुद्र के पानी में तैरतीं बर्फ की चट्टानें जितनी बड़ी पानी के बाहर दिखती हैं, उस से कई गुना बड़ी पानी के नीचे होती है और इस बात को टिप औफ आईस वर्ग कहा जाता है और घरेलू या निजी वर्गों के थे आंकड़े कितने पूरे हैं, इस का सिर्फ अंदाजा देते हैं.

ये भी पढ़ें- अफगान औरतें और तालिबानी राज

देश की अधिकांश जनता उधार अपने संबंधियों या छोटे महाजनों से लेती है जो बैंकों से कई गुना ज्यादा ब्याज लेते हैं. सोना गिरवी रखा गया है वह वापिस लिया जाएगा इस की संभावना इसी से नहीं है कि मुथुड गोल्ड लोन और मनापुरम फाइनेंस गिरवी रखे गए सोने की निकाली के पूरेपूरे पेज के विज्ञापन अखबारों में छपवाती रहती है.

रिजर्च बैक के एक स्रोत के अनुसार तो लोगों का 600 अरब रुपए का सोना बैंकों के पास है जो जनवरी 2020 में 185 अरब रुपए था. यह देश की प्रगति और विकास की निशानी है कि घरों की औरतों को अपना सोना बेच कर खाना जुटाना पड़ रहा है या इलाज कराना पड़ रहा है और सरकार चारों ओर मंदिर मठ बनवा रही है जो अधिकांश समय बेकार ही पड़े रहते हैं.

सोना शृंगार से ज्यादा जीवन का अंग है और जब यही बिक जाए तो घरों का आत्मविश्वास चकनाचूर हो जाता है. देश नारों से नहीं चलते. औरतों पर अत्याचार तालिबानियों राइफलों से ही नहीं होता है, चूल्हे की गैस महंगी कर के और बेकारी बढ़ा कर भी किया जा सकता है.

ये भी पढ़ें- जिम्मेदार कौन: कानून या धर्म

मेरी 66 साल मां को पार्किंसंस बीमारी के लक्षण महसूस हो रहे हैं, मैं क्या करुं?

सवाल-

मेरी मां 66 साल की घरेलू महिला हैं. उन्हें सिर में कभी कोई चोट नहीं लगी और उन के साथ कभी कोई दुर्घटना भी नहीं हुई. लेकिन कुछ समय से उन्हें पार्किंसंस बीमारी के लक्षण महसूस हो रहे हैं. जैसे चलते समय कंपकंपाहट महसूस होना और लिखने में दिक्कत होना. क्या इस उम्र में बिना किसी शारीरिक चोट के पार्किंसंस बीमारी होना संभव है? क्या हमें न्यूरोलौजिस्ट से परामर्श लेना चाहिए या फिर ये सिर्फ कमजोरी के लक्षण हैं?

जवाब-

पार्किंसंस को बुजुर्गों की बीमारी ही कहा जाता है और यह बीमारी आमतौर पर 60 साल के बाद होती है. आप की मां को लिखने में दिक्कत और चलने में परेशानी हो रही है तो ये लक्षण पार्किंसंस बीमारी की हैं और यह जरूरी नहीं है कि सिर पर चोट लगने या दुर्घटना होने से ही पार्किंसंस बीमारी होने की संभावना रहती है. इसलिए समय रहते आप अपनी मां को न्यूरोलौजिस्ट को दिखाएं.

ये भी पढें- मै भाभी के भाई को पसंद करती हूं?

ये भी पढ़ें- 

हमारे मस्तिष्क का अनगिनत तंत्रतंत्रिकाओं का विस्तृत नैटवर्क एक कंप्यूटर के समान है, जो हमें निर्देश देता है कि किस प्रकार विभिन्न संवेदों, जैसे गरम, ठंडा, दबाव, दर्द आदि के प्रति प्रतिक्रिया व्यक्त की जाए. इस के साथ ही यह बोनसस्वरूप हमें भावनाओं व विचारों को सोचनेसमझने की शक्ति भी देता है. हम जो चीज खाते हैं, उस का सीधा असर हमारे मस्तिष्क के कार्य पर पड़ता है. यह सिद्ध किया जा चुका है कि सही भोजन खाने से हमारा आई.क्यू. बेहतर होता है, मनोदशा (मूड) अच्छी रहती है, हम भावनात्मक रूप से ज्यादा मजबूत बनते हैं, स्मरणशक्ति तेज होती है व हमारा मस्तिष्क जवान रहता है. यही नहीं, यदि मस्तिष्क को सही पोषक तत्त्व दिए जाएं तो हमारी चिंतन करने की क्षमता बढ़ती है, एकाग्रता बेहतर होती है व हम ज्यादा संतुलित व व्यवस्थित व्यवहार करते हैं.

पूरी खबर पढ़ने के लिए- दिमागी शक्ति बढ़ाता आहार

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

भारत का फ्रांस है पुडुचेरी, विदेश से कम नहीं है यह खूबसूरत जगह

आप कब से विदेश घूमने का प्लान बना रही हैं लेकिन किसी वजह से आपका सपना पूरा नहीं हो पा रहा है. इसकी सबसे बड़ी वजह पैसे हो सकती हैं. विदेश की ट्रिप के लिए अच्छे-खासे पैसे होने चाहिए. अगर हम आपसे कहें कि आप कम पैसों में ही विदेश घूमने का मजा ले सकती हैं, तो आपको शायद ये बात मजाक लगे, पुडुचेरी एक ऐसी जगह है, जिसे भारत का फ्रांस भी कहा जाता है. सबसे खास बात ये कि आप यहां बिना पासपोर्ट और वीजा के जा सकती हैं.

फ्रांस से जुड़ा है इतिहास, मिलती है खास झलक

इस छोटे से प्रदेश का इतिहास फ्रांस से जुड़ा हुआ है. 1673 ईस्वी में फ्रेंच लोग यहां आए और 1954 में ये भारतीय संघ का हिस्सा बना. इसकी बसावट समुद्र के किनारे होने के कारण भी यहां काफी टूरिस्ट आते हैं. दिल्ली से 2400 किलोमीटर दूर स्थित पुडुचेरी, भारत के खूबसूरत शहरों में से एक है.

टाउन प्लानिंग

पुडुचेरी अपनी बेहतरीन टाउन प्लानिंग के लिए जाना जाता है. फ्रांसिसी लोगों के लिए यहां बनाई गयी टाउनशिप व्हाइट टाउन के नाम से पहचानी जाती है.

महात्मा गांधी बीच

देश के कई महापुरुषों की मूर्तियों को पुडुचेरी के बीच पर लगाया गया है और प्रौमीनाड बीच पर महात्मा गांधी की मूर्ति लगाई गई है, इसलिए इस बीच को महात्मा गांधी बीच भी कहा जाता है.

ये भी पढ़ें- गुजरात की खूबसूरती का लेना है आनंद तो इन जगहों पर जाएं

फ्रेंच वौर मेमोरियल

प्रौमीनाड बीच पर लगी गांधी जी की मूर्ति के सामने ही फ्रेंच वौर मेमोरियल है जिसे उन फ्रांसिसी सैनिकों की याद में बनाया गया है, जो प्रथम विश्व युद्ध में शहीद हुए थे और इसी स्थान पर हर साल 14 जुलाई को फ्रेंच सैनिकों की स्मृति में कार्यक्रम आयोजित किया जाता है.

मनाकुला विलय कुलौन मंदिर

पुडुचेरी में मौजूद भगवान गणेश का प्राचीन मंदिर 1673 से पहले बना था और इसे मनाकुला विलय कुलौन मंदिर के नाम से जाना जाता है. इस मंदिर में हाथी द्वारा भक्तों को आशीर्वाद दिया जाता है इसलिए इस मंदिर की मान्यता के साथ-साथ सैलानियों का रोमांच भी बढ़ जाता है.

सेक्रेड हार्ट कैथोलिक चर्च

पुडुचेरी का सेक्रेड हार्ट कैथोलिक चर्च पूरी दुनिया में मशहूर है, जिसका निर्माण 1902 में शुरू हुआ था. इस चर्च में तमिल और अंग्रेजी भाषाओं में प्रार्थना होती है और एक साथ 2000 लोग इसमें प्रार्थना कर सकती हैं.

travel in hindi

ये भी पढ़ें- ट्रेवल के दौरान इन 8 बातों का रखें ध्यान

कैसे पहुंचे

यहां पहुंचने का सबसे आसान रास्ता तो ट्रेन या हवाई जहाज से चेन्नई पहुंचकर वहां से बस या टैक्सी से पुडुचेरी पहुंचने का है. वैसे ट्रेन से 40 किलोमीटर दूर विल्लुपुरम तक भी आया जा सकता है.

घूमने का बेस्ट टाइम : अक्टूबर से अप्रैल का महीना सबसे उचित है.

कहां ठहरे : आपको 1500 से 5000 में होटल मिल जाएगा. साथ ही आपकी जेब के हिसाब से यहां रिसौर्ट भी हैं.

खास जगह : पैराडाइस बीच, पुडुचेरी म्यूजियम के अलावा यहां पुरानी इमारतें भी देखी जा सकती हैं.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें