ब्रैस्टफीडिंग: आपके बेबी को आपका पहला तोहफा

लेखक- डा. तोषी व्यास

फिजियोथैरेपिस्ट (स्त्री एवं प्रसूति विशेषज्ञ)

ब्रैस्टफीडिंग के सफ़र की शुरुआत हर बार आसान नहीं होती. कई बार बहुत सी बातों की समझ नहीं होती और कई बार कुछ बातें इतनी समझा दी जाती हैं कि हम कंफ्यूज हो जाते हैं. ब्रैस्टफीडिंग ना सिर्फ शिशु को कई प्रकार के इंफेक्शन से बचाता है जैसे निमोनिया, उल्टी दस्त, कान की तकलीफ़, बल्कि मां को भी कई गंभीर बीमारियों से बचाने में मददगार है जैसे स्तन कैंसर, पोस्टपार्टम डिप्रेशन आदि. तो आइए समझते हैं ब्रैस्टफीडिंग से जुड़ी ज़रूरी जानकारी और भ्रांति के बारे में.

1. सबसे पहली और बेहद जरूरी बात. बैलेंस डाइट. अक्सर देखने में आता है कि मां को डिलीवरी के बाद कई दिनों तक केवल दूध दलिया या लौकी गिलकी ही दी जाती है , जबकि यह वह समय है जिसमें सबसे ज्यादा न्यूट्रिएंट्स की जरूरत होती है. इसलिए मां को संपूर्ण, संतुलित आहार दें जैसे दाल, चावल, सब्जी रोटी, सलाद, दही, छाछ आदि. डिलीवरी नॉर्मल हो या सिजेरियन, दूसरे दिन से ही टमाटर, टमाटर पालक, ब्रोकोली, सब्जियों आदि का सूप काफी फायदेमंद होता है.

2. बच्चे के जन्म के तुरंत बाद का पीला गाढ़ा दूध आपके शिशु के लिए वरदान है. इसे कभी निकालकर ना फेंके.

3. प्रत्येक ब्रैस्टफीडिंग से पहले निप्पल को धोने की जरूरत नहीं होती है, यदि आप ऐसा करती हैं तो आप उस पदार्थ को भी साफ कर देती हैं जो स्वत: वहां निकलता रहता है और बच्चे की इम्युनिटी बढ़ाने में कारगर है.

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4. अक्सर मां को डिलीवरी के तुरंत बाद आराम देने के लिए शिशु को मां से अलग रखा जाता है जबकि यह समय मां और शिशु की आपसी बॉन्डिंग के लिए बहुत जरूरी है और यही वह सबसे अच्छा समय भी है जब धीरे-धीरे मां और बच्चा दोनों ही ब्रैस्टफीडिंग को सीख सकते हैं जैसे ब्रैस्टफीडिंग के समय आप का पोश्चर सही है या नहीं, आपका शिशु सही ढंग से मुंह में निप्पल और गहरे गुलाबी घेरे को भी मुंह में लेकर दूध पिए जिसे लैचिंग कहते हैं.
“कंगारू तकनीक” जिसमें मां अपनी गर्माहट शिशु को प्रदान करती है भी इसी का एक रूप है जो बेहद लाभकारी है खासकर जन्म से पहले जन्मे शिशु के लिए.

5. ब्रैस्टफीडिंग कराते समय हमेशा ध्यान रखें कि आप और शिशु दोनों कंफर्टेबल पोश्चर में हों, अपनी सुविधानुसार आप बैठकर अथवा करवट पर लेट कर ब्रैस्टफीडिंग करवा सकती हैं. कंफर्टेबल पोश्चर में रहने के लिए तकियों का इस्तेमाल एक उत्तम उपाय है.

6. यदि आप को ब्रैस्टफीडिंग करवाते समय निप्पल में दर्द, सूजन अथवा लालिमा महसूस हो तो जरूर चेक करें कि शिशु की लैचिंग ठीक तरीके से हुई है या नहीं. फिर भी आराम ना मिले तो बिना देर किए विशेषज्ञ की सलाह लें.

7. यदि शिशु की उम्र 6 माह से कम है तो ऊपर से कोई भी आहार, घुटी या पानी ना दें. मां का दूध सर्वोत्तम और संपूर्ण आहार है.

8. कई बार सुनते हैं कि व्यायाम करने से दूध का स्वाद बदल जाता है. यह एक भ्रांति है. अपनी क्षमता अनुसार व्यायाम, संतुलित भोजन, और 3 —5 लीटर पानी या तरल पदार्थ आपको हमेशा फायदा ही करेंगे.

9. एक जरूरी बात जिससे हर दूसरी मां परेशान होती है. क्या बच्चे को उसकी जरूरत के हिसाब से दूध मिलता होगा? कहीं वह कमजोर तो नहीं पड़ जाएगा? दूध का बनना “डिमांड और सप्लाई” पर निर्भर होता है यानि जितना बच्चा पिएगा उतना बनेगा. दिन भर में बच्चा कितनी बार दूध पी रहा है, लैचिंग ठीक से हो रही है या नहीं, स्तन खाली होता है या नहीं, दिन भर में बच्चा कितनी बार नैपी गीली (नॉर्मल 8 से 10) कर रहा है आदि बातों से आप अंदाजा लगा सकते हैं और यदि सब ठीक है तो निश्चिंत रहिए. पंप करके मापने की गलती ना करें. फिर भी दिक्कत हो तो विशेषज्ञ की सलाह अवश्य लें.

10. शिशु बीमार हो या मां, सही इलाज और खानपान के साथ-साथ ब्रैस्टफीडिंग जारी रखें l. यदि बच्चे को दस्त हो रहे हों तब भी ब्रैस्टफीडिंग ज़रूर जारी रखें. यदि आप बीमार हैं तो अपने डॉक्टर को बताना ना भूलें कि आप ब्रैस्टफीडिंग करवाती हैं ताकि डॉक्टर आपको वही दवाइयां दे जिनसे शिशु की सेहत को कोई नुकसान ना पहुंचे.

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11. शिशु को कम से कम 2 साल तक ब्रैस्टफीडिंग कराएं. जब भी आप ब्रैस्टफीडिंग बंद कराना चाहें, उसे जबरदस्ती या घरेलू नुस्खों (नीम, करेले का रस, हींग) की मदद से बंद ना करें. बल्कि धीरे-धीरे आपके शिशु के कंफर्ट लेवल को ध्यान में रखकर करें.

12.  आखिरी बात परिवार के सदस्यों के लिए. यदि आपके परिवार में कोई भी महिला है जो ब्रैस्टफीडिंग करवाती है तो उसे पूरा सहयोग करें, उसकी सेहत का ध्यान रखें, दवाइयां जैसे कैल्शियम, आयरन समय पर दें. उसके कामों में हाथ बटाएं, उसकी नींद और खानपान का ध्यान रखें.

तलाक के बाद बदला अनुपमा अंदाज, एक से बढ़कर लुक में आईं नजर

स्टार प्लस के सीरियल अनुपमा में इन दिनों फैमिली ड्रामा देखने को मिल रहा है. हालांकि इस दौरान अनुपमा यानी रुपाली गांगुली के लुक में काफी बदलाव देखने को मिला है. सिंपल कौटन साड़ी में नजर आने वाली अनुपमा इन दिनों अलग-अलग अवतार में नजर आ रही हैं, जिसे देखकर फैंस काफी खुश हैं. आइए आपको दिखाते हैं अनुपमा के खूबसूरत अवतार की झलक…

बदला दिखा अनुपमा का लुक

हाल ही में सीरियल अनुपमा की लीड एक्ट्रेस रुपाली गांगुली मुंबई की सड़कों पर नजर आईं. वहीं इस दौरान उनका लुक काफी खूबसूरत लग रही थीं. दरअसल, ऑरेंज रेड कलर की साड़ी में नजर आईं, जिसके साथ मैचिंग ज्वैलरी उनके लुक पर चार चांद लगा रही थीं.

 

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अनारकली सूट में छाया लुक

 

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अनुपमा के एक एपिसोड में अनुपमा का लुक फैंस को काफी पसंद आया था. दरअसल, एक एपिसोड में ब्लू कलर के अनारकली सूट के साथ हैवी दुपट्टे में नजर आईं, जिसके साथ मैचिंग ज्वैलरी में उनका लुक काफी खूबसूरत लग रहा था. इस लुक को फैंस ने काफी सराहा था.

 हर दिन बदल रहा है अनुपमा का अंदाज

 

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अनुपमा का तलाक के बाद हर दिन लुक बदल रहा है, जिसे देखकर फैंस हैरान हैं. हाल ही में फुल स्लीव्स वाले ब्लाउज के साथ प्रिंटेड साड़ी में रुपाली गांगुली लुक का लुक ट्रैंडी लग रहा था.

साड़ियों का अंदाज है काफी खूबसूरत

 

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इन दिनों अनुपमा का साड़ी कलेक्शन काफी नया है. बनारसी से लेकर हैवी वर्क वाली साड़ियों में अनुपमा का अंदाज बेहद खूबसूरत लग रहा है. हर लुक में फैंस अनुपमा की तारीफें करते नजर आ रहे हैं. अब देखना ये है कि अपकमिंग एपिसोड में अनुपमा यानी रुपाली गांगुली का नया लुक देखने को मिलता है.

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शादी के बाद आखिर क्यों निभाएं शराबी पति से

फरवरी के पहले हफ्ते में राज्य महिला आयोग के भोपाल के दफ्तर में सुमन की दास्तां सुन कर न केवल आयोग की मुखिया लता वानखेड़े, बल्कि मौजूद दूसरी मैंबर्स भी सकते में आ गई थीं.

सुमन की शादी पिछले साल 22 जनवरी को रेलवे कालोनी के वाशिंदे अमित गौतम के साथ हुई थी.

शादी के वक्त सुमन बहुत खुश थी क्योंकि पति फिल्में बनाने का काम करता था और रेलवे में अफसर भी था. सुमन को उम्मीद थी कि उसे ससुराल में किसी चीज की कमी नहीं होगी. जिंदगी खुशनुमा गुजरेगी क्योंकि रेलवे अफसर की पगार अच्छीखासी होती है और फिर फिल्में बनाने से भी बेशुमार पैसा मिलता है.

शादी के बाद कुछ दिन तो ठीकठाक गुजरे और सुमन ससुराल वालों की तिमीरदारी में लग गई. वह अपनी तरफ से किसी को शिकायत का मौका नहीं देना चाहती थी. यह बात उसे उस के मांबाप ने सिखाई भी थी कि ससुराल में सब से हिलमिल कर रहना, घर के काम करना और छोटीमोटी परेशानियां पेश आएं तो उन से घबराना नहीं बल्कि उन का मुकाबला करना और अपनी तरफ से समझौता करने से हिचकिचाना नहीं.

कुछ महीनों बाद ही सुमन को पता चल गया कि अमित न तो रेलवे में अफसर है और न ही फिल्में बनाता है, उस से झूठ बोल कर शादी की गई थी. बात गाज गिरने जैसी ही थी, लेकिन सुमन ने यह सोचते हुए खुद को तसल्ली दे ली कि इस झूठ की अनदेखी करना ही भविष्य के लिहाज से बेहतर होगा. हल्ला मचाने से कोई फायदा नहीं होने वाला. जो है उस से समझौता कर जिंदगी गुजारी जाए.

नशैला निकला पति

यहां तक तो बात बरदाश्त थी, लेकिन जल्द ही पति का दूसरा रूप भी सामने आया तो सुमन की सब्र जवाब दे गई. अमित तरहतरह के नशे का आदी था और इतना ही नहीं, नशा कर के ऐसी ऊटपटांग हरकतें करता था कि किसी भी बीवी की जिंदगी नर्क बन जाए.

पति के नशैले होने की शिकायतें ले कर आने वाली औरतों की तादाद कम नहीं होती, इसलिए महिला आयोग की अध्यक्ष को कोई खास हैरानी नहीं हुई थी पर जब उन्होंने सुबकती सुमन के मुंह से यह सुना कि पति रूमफ्रैशनर तक सूंघ कर नशा करता है और फिर नशे में नागिन डांस करता है तो उन्हें समझ आ गया कि सुमन की परेशानी वाकई बड़ी है.

सुनने वालों की आंखें उस वक्त और फटी की फटी रह गईं जब सुमन ने यह खुलासा भी किया कि पति की नशे की लत का बेजा फायदा ससुर भी उठाता है. वह अकसर उसे इधरउधर छूने की कोशिश करता है. इतना ही नहीं शायरमिजाज ससुर उस की आंखों और बालों पर गजलें भी लिखता है.

हालांकि सफाई मांगे जाने पर अमित और उस के पिता ने सुमन के आरोपों को झूठा बताया, लेकिन सुमन की बात में दम इसलिए भी था कि आमतौर पर ऐसे मामलों में बीवियां परेशान करने और दहेज का इलजाम लगाती हैं पर सुमन ने सीधे नशे की बात कही थी.

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जब पति नशे की आदी हो तो बीवी को किन और कैसी दुश्वारियों से रूबरू होना पड़ता है यह सुमन की हालत से समझ आता है कि वे कहीं की नहीं रह जाती. मायके वालों से शिकायत करो तो वे समझाते हैं कि पति से निभाने की कोशिश करो. आजकल तो हर कोई नशा करता है.

मगर बीवी पर क्या गुजरती है यह तो नशैले पति के गले बंध गई या बांध दी गई बीवी ही बेहतर जानती है. पति की इस कमजोरी का फायदा उठाते हुए उस पर हर नीयत बिगाड़ लेता है और हैरत की बात तो यह है कि इस में घर के मर्द ससुर, जेठ और देवर अव्वल रहते हैं.

बीवी की परेशानियां उस वक्त और बढ़ जाती हैं जब नशे का गुलाम पति उस की न सुन कर घर वालों की ही तरफदारी करता है. ससुर, जेठ या देवर बुरी निगाह रखते हैं यह बात बीवी किसी से कहे तो खोट उस के ही चालचलन में लोग निकालना शुरू कर देते हैं.

कैसीकैसी परेशानियां

नशे के आदी मर्दों की बीवियों की जिंदगी आम बीवियों जैसी आसान नहीं रह जाती क्योंकि नशैला पति न केवल मारपीट करता है, बल्कि उसे तरहतरह से तंग कर अपनी कमजोरी को छिपाने की भी कोशिश करता है ताकि बीवी मुंह न खोले. इस मर्दानगी से परेशान बीवियों को सैक्स सुख भी ढंग से नहीं मिल पाता क्योंकि नशे के आदी पति सैक्स में फिसड्डी होते हैं.

बात सिर्फ सैक्स की नहीं रह जाती. इस से जुड़ी दूसरी ज्यादतियों का शिकार भी बीवी को होना पड़ता है तो उस का ससुराल में दम घुटने लगता है. पर कोई सहारा या ठिकाना न होने के चलते वह ज्यादतियां बरदाश्त करती जाती है, जिस से पति का हौसला बुलंद होने लगता है. इसी दौरान अगर एकाध बच्चा भी हो जाए तो नशैले पति से छुटकारा पाना और भी मुश्किल काम हो जाता है.

पैसों की बाबत भी बीवी कुछ नहीं बोल सकती क्योंकि कमाईका बड़ा हिस्सा तो पति नशे में ही उड़ा देता है और जब शरीर कमजोर पड़ने लगता है तो वह बेशर्मों, निकम्मों की तरह घर पर पड़ा रहता है. नशीले पति का उठनाबैठना भी नशैलों में रहता है. दिक्कत उस वक्त भी पेश आती है जब पति की ली गई उधारी का तकाजा करने देनदार घर आना शुरू कर देते हैं.

भोपाल के एक प्राइवेट दफ्तर में काम करने वाली सुधा 2 बच्चों की मां है. 5 साल पहले उस की शादी सुधीर से हुई थी. सुधीर को शराब की ऐसी लत थी कि जिस दिन शराब न मिले वह छटपटाने लगता था और खुदकुशी तक करने की धौंस देने लगता था. एक कंपनी में दिहाड़ी पर काम करने वाले सुधीर की नशे की लत से आजिज आ गई सुधा ने क्व6 हजार महीने की नौकरी कर ली तो सुधीर और भी मनमानी करने लगा.

शराब के लिए पैसे देने से सुधा मना करती तो वह चिल्लाचिल्ला कर उस के चालचलन पर उंगली उठाता था और जबरदस्ती पैसे छीन कर ठेके पहुंच जाता था. छोटेछोटे बेटों का मुंह देखती सुधा अब पछताती है कि फालतू इन्हें पैदा कर लिया जिन के हिस्से में बाप का सुख और हिफाजत नहीं.

सुधा को अब कुछ नहीं सूझ रहा है कि क्या करे. पति को छोड़ने पर उसे अंदाजा है कि जिंदगी और दुश्वार हो जाएगी. बाहर दूसरे मर्द भूखे भेडि़यों की तरह उस के जिस्म पर नजरें गड़ाए बैठे हैं जो अभी सुधीर की वजह से पूरी तरह अपनी बदनीयती जाहिर नहीं कर रहे पर इशारोंइशारों में दिल और दिमाग की गंदगी उस पर फेंकने से कतई नहीं चूकते.

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क्या करें

धोखे या इत्तफाक से ही सही जब नशैला पति गले पड़ जाए तो बीवियां क्या करें, इस बात का सटीक जवाब या परेशानी का हल किसी के पास नहीं. यह फैसला तो खुद बीवियों को ही करना पड़ता है कि वे नशैले पति की ज्यादतियों को बरदाश्त करते हुए उस के गले से बंधी रहें या फिर छोड़ कर अलग जिंदगी जीएं.

खतरे घर में भी हैं और बाहर भी, इसलिए बीवियां फैसला लेने में देर कर देती हैं और बाद में पछताती ही हैं, क्योंकि बाहर के खतरे पति की नशे की लत के चलते धीरेधीरे घर में दाखिल हो कर उन्हें अपनी गिरफ्त में ले लेते हैं. पति की रजामंदी भी इस में होती है जिसे बीवी से ज्यादा नशे की जरूरत होती है.

सुमन ने ठीक किया जो वक्त रहते महिला आयोग पहुंच गई जहां से उस की परेशानी दूर न हुई तो तय है वह तलाक के लिए अदालत जाएगी और मुमकिन है तलाक के बाद कोई दूसरा अच्छा हमसफर मिल जाए और न भी मिले तो इस बदतर जिंदगी और घुटन से तो वह छुटकारा पा ही जाएगी.

भारत के लिए टोक्यो ओलंपिक बना एक गोल्डन इयर

टोक्यो ओलंपिक 2020 में भारत को 7 पदक मिलना किसी चमत्कार से कम नहीं, क्योंकि भारत के गिने चुने खिलाडी ही ओलंपिक में आज तक मेडल लेकर आये है. इस बार भारत का प्रदर्शन टोक्यो ओलंपिक में बहुत अच्छा रहा, जिसमें एक गोल्ड, एक सिल्वर और 4 कांस्य पदक शामिल है. एक गोल्ड मेडल की वजह से भारत इस समय टोक्यो ओलंपिक की अंक तालिका में 48 वें स्थान पर है, जो हरियाणा के नीरज चोपड़ा के गोल्ड से पहले 67 वें नंबर पर थी, लेकिन 23 वर्षीय नीरज ने 87.58 मीटर की दूरी पर भाला फेंककर भारत को 19 स्थान का जम्प लगवा दिया. ये वास्तव में गर्व की बात है और पूरा देश इससे उत्साहित है. इससे ये पता चलता है कि सही ट्रेनिग, डाइट, वातावरण आदि सबकुछ अगर ठीक हो, तो देश में कई ऐसे युवाओं की टीम है,जो पदक ला सकते है.इसका परिचय हॉकी के प्लेयर्स के खेल को देखकर समझा जा सकता है, जिन्होंने41 साल बाद टोक्यो ओलंपिक की सेमीफाइनल तक पहुंचे और कांस्य पदक लाने में कामयाब हुए. महिला हॉकी टीम का प्रदर्शन भी बहुत अच्छा रहा, जिसके परिणामस्वरूप उनकी टीम सेमीफाइनल में पहुँची, लेकिनग्रेटब्रिटेन को हरा नहीं पायी.

लगातार अच्छे परफोर्मेंस की कमी

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इस बारें में मुंबई की बोईसर जिमखाना के उपाध्यक्ष करुनाकर शेट्टी जो 20 साल से कार्यरत है, उन्होंने सभी पदक विजेता खिलाडी को बधाई देते हुए कहते है कि मुझे ख़ुशी इस बात से हो रही है कि इस बार एथलीट्स ने सबसे अधिक मेडल हासिल की है, जिसमें नीरज चोपड़ा की गोल्ड मेडल, साल 2008 में बीजिंग ओलंपिक अभिनव बिंद्रा के बाद दूसरा गोल्ड मेडल है. यहाँ एक और बात कहना आवश्यक है कि भारत के पदक विजेता खिलाडी बहुत कम अपने रैंक को ओलंपिक में बनाये रखने में समर्थ होते है, जबकि विदेश के एथलीट्स तक़रीबन 2 से 3 साल तक ओलंपिक में अपनी रैंक को कायम रख पाते है. इसकी वजह है पदक के बाद भी प्रैक्टिसऔर लगातार कॉम्पिटीशन में भाग लेना नहीं छोड़ते, जिससे वे हमेशा एक्टिव रहते है. मेरा सभी खिलाड़ियों से कहना है कि सारे पदक विजेता लगातार प्रैक्टिस को बनाए रखे, ताकि वे अगले पैरिस ओलंपिक में और अच्छा प्रदर्शन कर कई मैडल ला सकें. जिन खिलाड़ियों ने इस बार पदक न पाने से मायूस हुए है, उन्हें अधिक मेहनत के साथ आगे अच्छा करना है. यहाँ नीरज चोपड़ा यंग है, उसके पास जॉब है और उसे ट्रेनिंग भी अच्छी मिल रही है, आगे भी वह अपनी स्वर्ण पदक कायम रखने की उम्मीद है. असल में हमारे देश में अधिकतर खिलाडी ओलंपिक पदक पा लेने के बाद सुस्त हो जाते है और वे नए यूथ खिलाडी के लिए रोल मॉडल नहीं बन पाते. इसके अलावा यहाँ खिलाडी को प्रैक्टिस के लिए ग्राउंड नहीं है, वैसे ट्रेंड कोच नहीं है, इंफ्रास्ट्रक्चर ठीक नहीं है. यही वजह है कि सारे भारतीय खिलाड़ियों को विदेशी कोच का सहारा लेना पड़ता है. मेरे यहाँ 10 कक्षा के पहले अगर 100 एथलीट्स होते है, तो वही 10 वीं के बाद 2 या 3 रह जाते है, क्योंकि खिलाडी को किसी प्रकार की स्कॉलरशिप नहीं मिलती. पेरेंट्स बच्चे को खेल में जाने से रोकते है, क्योंकि खेल का भविष्य नहीं है, जबकि सरकार और बड़ी प्राइवेट कंपनियों को आगे आकर सही खिलाड़ी को प्रोत्साहित करने की जरुरत है, क्योंकि भारत में टेलेंट की कोई कमी नहीं है और अच्छी तैयारी होने पर ओलंपिक में 2 डिजिट में मेडल लाना कोई बड़ी बात नहीं होगी.

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नहीं आसान मेडल लाना

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ज्वेलिन थ्रो ट्रैक एंड फील्ड एथेलिट नीरज चोपड़ा को शुरू से माता-पिता का पूरा सपोर्ट रहा, जिससे उसे सेना में जॉब मिला और उसकी ट्रेनिंग उसकी क्षमता के अनुसार विदेशी कोच से की गयी. जिसका परिणाम पूरे देश को दिखाई पड़ा. मुंबई सबर्बन के एथलेटिक्स एसोसिएशन के सेक्रेटरी और 110 मीटर हर्डल्स नेशनल चैम्पियन कोच आर्थर फ़र्नान्डिज कहते है कि नीरज को पटियाला में एक्सपर्ट कोच से ट्रेनिंग दी गयी और उसने इससे पहले जूनियर वर्ड कप, एशियन चैम्पियनशिप आदि सभी टूर्नामेंट में गोल्ड मेडल लिया है. इसके बाद विदेशी एक्सपर्ट कोच से ट्रेनिंग लेने और मेहनत करने से उसे ओलंपिक में स्वर्ण पदक मिला. इसके अलावा कोविड की वजह से खेल 2020 को 2021 में करना पड़ा, इससे उसके हाथ की चोट और ऑपरेशन को ठीक होने का समय मिला, जिससे वह बेहतर परफोर्मेंस कर पाए . अच्छे परफोर्मेंस के लिए सही डाइट, क्लाइमेट, कोच आदि सब सही होने की जरुरत है. उम्मीद है नीरज चोपड़ा ही नहीं, अभी आगे और भी एथलीट पदक ला सकेंगे. आज के युवा खेल में 18 साल के नीचे तक ही अच्छा परफोर्मेंस देते है. इसके बाद उन्हें खेल में किसी प्रकार कि रूचि नहीं दिखाई पड़ती, क्योंकि उस समय उन्हें सही डाइट, सही ट्रेनिंग,स्कॉलरशिप आदि कुछ नहीं मिलता, जिससे वे आगे खेल नहीं पाते. एथलेटिक में मेडल लाना सबसे कठिन होता है. ये एक इंडिविजुअल इवेंट होता है और मेहनत ग्राउंड पर दिखाई पड़ता है. क्रिकेट में एक खिलाडी के आउट होने पर दूसरा फिर तीसरा आता है, लेकिन एथलेटिक में ऐसा संभव नहीं होता . ये वन टाइम परफोर्मेंस वाला खेल है, जिसकी तैयारी मानसिक और शारीरिक दोनों को मजबूती से करना पड़ता है. इसके अलावा यहाँ माता-पिता का सहयोग बच्चों के लिए नहीं होता. कई बार खिलाडी के लिए किसी टूर्नामेंट में जानेका खर्चा एफोर्डेबल नहीं होता. राज्य सरकार ऐसे खिलाडी को वित्तीय सहायता नहीं देती. कमियां भी यहाँ कई है, जैसे एथलेटिक्स ग्राउंड की कमी होना, बांद्रा में एक सिंथेटिक ट्रैक बना है, लेकिन वहां जाने के लिए 2 से 3 हजार रुपये देना पड़ते है, जो हर खिलाडी के लिए संभव नहीं होता.  पूरा मनी मेकिंग रैकेट है. राज्य सरकार को ऐसे कई ट्रैक वाले ग्राउंड बनाने चाहिए, जिसमे कम पैसा देकर या फ्री में खिलाडी को प्रैक्टिस करने का मौका मिले. ऐसे ग्राउंड में 400 मीटर की ट्रैक बना देना जरुरी है.

कमी प्रोत्साहन देने की

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एथलीट सुजोय का कहना है कि देश में दौड़ने के लिए एक अच्छी ट्रैक नहीं है, किसी ग्राउंड में अगर क्रिकेट का खेल होता है, तो वहां मैं दौड़ नहीं सकता. इस तरीके की दादागिरी चलती है, ऐसे में दौड़ने के लिए सही जगह नहीं मिल पाता. यहाँ ये कहा जा सकता है कि अफ्रीकन प्लेयर्स बिना ग्राउंड के भी मेडल ला रहे है, पर उनके यहाँ खाली जगह है,जहाँ वे प्रैक्टिस को बनाये रखते है, जो मुंबई जैसे बड़े शहरों में मुमकिन नहीं. सही जगह न मिलने से उत्साह में कमी होती है और पूरा समय खिलाडी खेल में दे सकें, इसके लिए वित्तीय सहायता भी नहीं मिलती. खेल का भविष्य खिलाडी को नहीं दिखता.

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इस प्रकार सही ग्राउंड, पेरेंट्स की सहयोगिता, कोच, डाइट और स्कॉलरशिप मिलकर ही एक एथलीट को ओलंपिक में पदक के लिए तैयार कर सकते है, जिसके लिए अब सरकार प्राइवेट कंपनियों को स्पोंसर करने के बारें में सोचना होगा.

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पाखी ने अनुपमा से मांगी माफी तो गुस्से से लाल हुई काव्या

स्टार प्लस के सीरियल अनुपमा में इन दिनों पाखी और काव्या की दोस्ती देखने को मिल रही है, जिसके चलते शाह परिवार काफी परेशान नजर आ रहा है. लेकिन अपकमिंग एपिसोड में पाखी और काव्या के बीच दरार देखने को मिलने वाली है. वहीं फैंस का इंतजार खत्म होने वाला है. जहां पाखी अपनी मां अनुपमा से माफी मांगेगी, जिसके चलते काव्या का गुस्सा देखने लायक होगा. आइए आपको बताते हैं क्या होगा शो में आगे…

काव्या ने छोड़ा पाखी का साथ

अब तक आपने देखा कि डांस कौम्पीटिशन के लिए पाखी, अनुपमा को छोड़ काव्या का साथ मांगती है, जिसके चलते वह अनुपमा की कदम कदम पर बेज्जती करती हुई नजर आती है. लेकिन काव्या, पाखी को धोखा देती है और कौम्पटीशन से गायब हो जाती है. वहीं पाखी उसे जगह-जगह ढूंढती है. वहीं स्टेज पर काव्या-पाखी के नाम की अनाउंसमेंट होती है, जिसके कारण पूरा परिवार दोनों का इंतजार करते नजर आता है.

 

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अनुपमा से मांगी मदद

अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि काव्या के कौम्पीटिशन से जाने के बाद पाखी टूट जाएगी. वहीं पाखी को इस हालत में देखकर अनुपमा उसकी मदद करने की कोशिश करेगी. वहीं पाखी, अनुपमा को काव्या की पूरी बात बताएगी, जिसके बाद वह दोनों स्टेज पर जाकर खूबसूरत डांस करेंगे. दूसरी तरफ अनुपमा और पाखी को साथ में डांस करता देख जहां पूरा शाह परिवार खुश होगा. तो काव्या गुस्से से लाल हो जाएगी. वहीं डांस खत्म होने के बाद पाखी, अनुपमा से मांफी मांगती नजर आएगी.

 

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ट्रोलिंग का शिकार हो रही हैं पाखी

सीरियल में अनुपमा के साथ बद्तमीजी करने के चलते पाखी यानी मुस्काम बामने ट्रोलिंग का शिकार हो रही हैं. सोशलमीडिया पर दर्शक उनके रोल की बुराइयां कर रहे हैं. हालाकि उनके भाई समर यानी पारस कलनावत ने हाल ही में एक फोटो शेयर करते हुए बताया था कि वह सीरियल के रोल से हटकर बेहद संस्कारी हैं.

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‘मन की आवाज- प्रतिज्ञा’ के ‘सज्जन सिंह’ का निधन, आखिरी समय में झेला था आर्थिक मंदी का दर्द

बॉलीवुड और टीवी इंडस्ट्री के जाने माने एक्टर अनुपम श्याम का लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया है. टीवी शो मन की आवाज प्रतिज्ञा में ठाकुर सज्जन सिंह के रोल में फेमस एक्टर का मल्टीपल और्गन फेलियर के कारण निधन हुआ है, जिसके बाद इंडस्ट्री में शोक की लहर छा गई है. आइए आपको बताते हैं पूरी खबर…

लंबे समय से थे बीमार

 

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बीते दिनों आर्थिक मंदी का दर्द झेल चुके एक्टर अनुपम श्याम काफी समय से बीमार चल रहे थे. हालांकि बीमार होने के बावजूद वह सीरियल मन की आवाज प्रतिज्ञा 2 की शूटिंग करने में बिजी थे. वहीं हालत बिगड़ने और मल्टीपल और्गन फेलियर के कारण 63 साल की उम्र में उनका निधन हो गया है.

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स्टार्स ने कहा अलविदा

 

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रिपोर्ट्स की मानें तो एक्टर अनुपम श्याम अपने पौपुलर टीवी शो प्रतिज्ञा के दूसरे सीजन की शूटिंग करने में बिजी थे. वहीं इस दौरान वह अपना इलाज भी करवा रहे थेय लेकिन बीती रात तबियत बिगड़ने के बाद उनका निधन हो गया. वहीं एक्टर के निधन के बाद स्टार्स उन्हें श्रद्धांजलि दे रहे हैं तो वहीं प्रतिज्ञा के स्टार्स सदमे में हैं. सोशलमीडिया पर उनके फैंस भी उन्हें याद कर रहे हैं.

 

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बता दें, एक्टर अनुपम श्याम कई फिल्मों में काम कर चुके हैं. वहीं उनकी एक्टिंग की तारीफ हर कई करता है. साथ ही सज्जन सिंह के रोल में फैंस उनके दीवाने हैं. आज भी फैंस उनके सज्जन सिंह के रोल में फैंस उन्हें पसंद करते हैं. साथ ही सोशलमीडिया पर उनकी कई वीडियो भी वायरल हैं.

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इंस्टा क्रेडिट- Viral Bhayani

Monsoon Special: बच्चों के लिए बनाएं खांडवी चाट

खांडवी चाट बनाना बहुत आसान है. बेसन से तैयार होने वाली यह डिश हर मौसम में खायी जा सकती है. यह जितनी बड़ों को पसंद आएगी, उतनी ही बच्चों को भी.

तैयारी में लगने वाला समय: 15 मिनट

पकाने में समय: 25 मिनट

क्वांटिटी: दो लोगों के लिए

सामग्री :

– दो कप बेसन

– आधा चम्मच हल्दी

– एक चम्मच कटी हुई हरी मिर्च

– सफेद तिल

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– दो चम्मच रिफाइंड ऑयल

– कड़ी पत्ता

– एक चम्मच नींबू का रस

– स्वादानुसार नमक

विधि :

– एक बड़ा बाउल ले लें. इसमें बेसन, हल्दी, हरी मिर्च, नींबू का रस, नमक डालकर अच्छी तरह मिला लें.

– एक पैन ले लें और उसे धीमी आंच पर गर्म होने के लिए रख दें. पैन में एक या आधा कप पानी लेकर उबाल लें.

– इस गर्म पानी में बेसन का मिश्रण मिलाकर अच्छी तरह पका लें. इस मिश्रण को एक समतल प्लेट में फैला लें.

– थोड़ा सख्त होने पर इसे पतला-पतला काटकर रोल बना लें. एक दूसरे पैन में कड़ी पत्ता, तिल, सरसों के दाने और नमक का तड़का लगा लें.

– अब इसे बेसन के रोल्स पर छिड़क दें. आप इन रोल्स को धनिया की चटनी या फिर सॉस के साथ सर्व कर सकते हैं.

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Family Story In Hindi: छुटकारा- बेटे-बहू के होते हुए भी क्यों अकेली थी सावित्री

लेखक- रमेश चंद्र छबीला

सावित्री आंखों की जांच कराने दीपक आई सैंटर पर पहुंचीं. वहां मरीजों की भीड़ कुछ ज्यादा ही थी. अपनी बारी का इंतजार करतेकरते 2 घंटे से भी ज्यादा हो गए. तभी एक आदमी तेजी से आया और बोला, ‘‘शहर में दंगा हो गया है, जल्दी से अपनेअपने घर पहुंच जाओ.’’

यह सुन कर वहां बैठे मरीज और दूसरे लोग बाहर की ओर निकल गए. सावित्री ने मोबाइल फोन पर बेटे राजन को सूचना देनी चाही, पर आज तो वे जल्दी में अपना मोबाइल ही घर भूल गई थीं. वे अकेली रिकशा में बैठ कर आई थीं. अब सूचना कैसे दें?

बाहर पुलिस की गाड़ी से घोषणा की जा रही थी, ‘शहर में दंगा हो जाने के चलते कर्फ्यू लग चुका है. आप लोग जल्दी अपने घर पहुंच जाएं.’

सावित्री ने 3-4 रिकशा और आटोरिकशा वालों से बात की, पर कोई गांधी नगर जाने को तैयार ही नहीं हुआ जहां उन का घर था.

निराश और परेशान सावित्री समझ नहीं पा रही थीं कि घर कैसे पहुंचें? शाम के 7 बज चुके थे.

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तभी एक स्कूटर उन के बराबर में आ कर रुक गया. स्कूटर चलाने वाले आदमी ने कहा, ‘‘भाभीजी नमस्ते, आप यहां अकेली हैं या कोई साथ है?’’

‘‘भाई साहब नमस्ते, मैं यहां अकेली आई थी, आंखों की जांच कराने. दंगा हो गया है. घर की तरफ कोई रिकशा नहीं जा रहा है.’’

‘‘इधर कोई नहीं जाएगा भाभीजी, क्योंकि दंगा पुराने शहर में हुआ है. आप चिंता न करो और मेरे साथ घर चलो.

इस तरफ नई कालोनी है, कोई डर नहीं है. आप आराम से रहना. वहां कमला

भी है.’’

‘‘लेकिन…?’’ सावित्री के मुंह से निकला.

‘‘भाभीजी, आप जरा भी चिंता न करें. घर पहुंच कर मैं राजन को फोन

कर दूंगा.’’

‘‘यह दंगा क्यों हो गया?’’ सावित्री ने स्कूटर पर बैठते हुए पूछा.

‘‘अभी सही पता नहीं चला है. मैं एक कार्यक्रम में गया था. वहां दंगा और कर्फ्यू का पता चला तो कार्यक्रम बीच में ही बंद हो गया. मैं घर की ओर लौट रहा था तो यहां मैं ने आप को सड़क पर खड़े हुए देखा.’’

सावित्री स्कूटर वाले शख्स सूरज प्रकाश को अच्छी तरह जानती थीं. सूरज प्रकाश जय भारत इंटर कालेज के प्रिंसिपल रह चुके थे. वे 5 साल पहले ही रिटायर हुए थे. परिवार के नाम पर वे और उन की पत्नी कमला थीं. जब उन के यहां 10 साल तक भी कोई औलाद नहीं हुई, तो उन्होंने अनाथ आश्रम से एक साल की लड़की गोद ले ली थी. जिस का नाम सुरेखा रखा गया था.

देखते ही देखते सुरेखा बड़ी होने लगी थी. वह पढ़नेलिखने में होशियार थी. सूरज प्रकाश सुरेखा को सरकारी अफसर बनाना चाहते थे.

जब सुरेखा 10वीं जमात में पढ़ रही थी, तब एक दिन उसे साइकिल पर स्कूल जाते हुए एक ट्रक ने बुरी तरह कुचल दिया था और उस की मौके पर ही मौत हो गई थी.

सूरज प्रकाश व उन की पत्नी कमला को दुख तो बहुत हुआ था, पर वे कर ही क्या सकते थे? उन्होंने सुरेखा को ले कर जो सपने देखे थे, वे सब टूट गए थे.

सूरज प्रकाश को समाजसेवा में भी बहुत दिलचस्पी थी और वे एक संस्था ‘संकल्प’ के अध्यक्ष थे.

सूरज प्रकाश पहले सावित्री के ही महल्ले गांधी नगर में रहते थे. दोनों परिवार एकदूसरे के घर आतेजाते थे. सूरज प्रकाश और सावित्री के पति सोमनाथ में बहुत गहरी दोस्ती थी.

घर के बाहर स्कूटर रोकते ही सूरज प्रकाश ने कहा, ‘‘आइए भाभीजी.’’

स्कूटर से उतर कर सावित्री सूरज प्रकाश के साथ घर में घुसीं. सावित्री को देखते ही कमला ने खुश हो कर कहा, ‘‘अरे दीदी आप? आइएआइए, बैठिए.’’

सावित्री सोफे पर बैठ गईं. सूरज प्रकाश ने बता दिया कि वे सावित्री को कर्फ्यू लगने के चलते यहां ले आए हैं.

‘‘दीदी, आप जरा भी चिंता न करें. यहां आप को जरा भी परेशानी नहीं होगी. पता नहीं, क्यों लोग जराजरा सी बात पर लड़नेमरने को तैयार रहते हैं. लोगों में प्यार नहीं नफरत भरी जा रही है. लोगों की नसों में जातिवाद का जहर भरा जा रहा है.

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‘‘वैसे, हमारी कालोनी में दंगे का असर कम ही होता है, पुराने शहर में ज्यादा असर होता

है. उधर मिलीजुली आबादी जो हैं.

सूरज प्रकाश ने राजन के मोबाइल का नंबर मिलाया. उधर से राजन की आवाज सुनाई दी, ‘हैलो, नमस्ते अंकल.’

‘‘नमस्ते बेटे… तुम्हारी मम्मी डाक्टर दीपक के यहां आंखों की जांच कराने गई थीं न…’’

‘हांहां, गई थीं. क्या हुआ मम्मी को? दंगे में कहीं…’

‘‘नहींनहीं बेटे, वे बिलकुल ठीक हैं. तुम्हारी मम्मी को मैं अपने साथ घर ले आया हूं. तुम जरा भी चिंता न करना. वे बिलकुल ठीक हैं.’’

‘चलो, यह बहुत अच्छा किया जो आप मम्मी को अपने साथ ले आए. हमें तो चिंता हो रही थी, क्योंकि वे अपना मोबाइल फोन यहीं भूल गई थीं.’

सूरज प्रकाश ने सावित्री को मोबाइल देते हुए कहा, ‘‘लो भाभी, राजन से बात कर लो.’’

सावित्री ने मोबाइल ले कर कहा, ‘‘हां राजन, मैं बिलकुल ठीक हूं. कर्फ्यू खुलेगा तो तू आ जाना.’’

‘ठीक है मम्मी,’ राजन ने कहा.

तभी कमला एक ट्रे में चाय व खाने का कुछ सामान ले आईं.

रात को खाना खा कर वे तीनों काफी देर तक बातें करते रहे.

11 बज गए तो कमला व सूरज प्रकाश उठ कर दूसरे कमरे में चले गए.

सावित्री के पति सोमनाथ एक सरकारी महकमे में बाबू थे. बेटे राजन की शादी हो चुकी थी.

सोमनाथ के रिटायर होने के बाद वे दोनों ऐतिहासिक नगरों में घूमनेफिरने जाने लगे थे. जिंदगी की गाड़ी बहुत अच्छी चल रही थी कि एक दिन… सावित्री और सोमनाथ आगरा से ट्रेन से लौट रहे थे. रात का समय था. सभी मुसाफिर सो चुके थे. अचानक ट्रेन का ऐक्सीडैंट हो गया. सावित्री अपनी बर्थ से गिर कर बेहोश हो गई थीं. अस्पताल में जब उन्हें होश आया तो पता चला कि सोमनाथ बच नहीं सके थे.

कुछ दिनों तक राजन व उस की पत्नी भारती सावित्री की भरपूर सेवा करते रहे. उन्हें जरूरत की हर चीज बिना कहे ही मिल जाती थी, पर धीरेधीरे उन के बरताव में बदलाव आने लगा था. उन्होंने सावित्री की अनदेखी करनी शुरू कर दी थी.

एक दिन भारती जब बाहर से लौटी तो अपने बेटे राजू के सिर पर पट्टी बंधी देख कर वह बुरी तरह चौंक उठी थी.

भारती के पूछने से पहले ही सावित्री ने कहा था, ‘इसे एक मोटरसाइकिल वाला टक्कर मार कर भाग गया. यह चौकलेट खाने की जिद कर रहा था. मैं ने बहुत मना किया, पर माना नहीं. चौकलेट ले कर लौट रहा था तो टक्कर हो गई. मैं डाक्टर से पट्टी करा लाई हूं. मामूली सी चोट लगी है. 2-4 दिनों में ठीक हो जाएगी.’

भारती के मन में तो जैसे ज्वालामुखी धधक रहा था. वह घूरते हुए बोली, ‘इसे ज्यादा चोट लग जाती तो… हाथपैर भी टूट सकते थे. अगर मेरे राजू को कुछ हो जाता तो हमारे घर में अंधेरा हो जाता. मैं 2-3 घंटे के लिए घर से गई और आप राजू को संभाल भी न सकीं.’

तभी राजन भी ड्यूटी से लौट आया. वह राजू की ओर देख कर चौंक उठा और बोला, ‘इसे क्या हो गया?’

‘पूछो अपनी मम्मी से, यह इन की ही करतूत है. मैं एक सहेली के घर शोक मनाने गई थी. उस के जवान भाई की हादसे में मौत हो गई है. मुझे आनेजाने में 3 घंटे भी नहीं लगे. मेरे पीछे राजू को चौकलेट लाने भेज दिया. सोचा होगा कि चौकलेट आएगी तो खाने को मिलेगी.

‘सड़क पर राजू को किसी बाइक ने टक्कर मार दी. पता नहीं, इस उम्र में लोगों को क्या हो जाता है?’

‘सठिया जाते हैं. सोचते हैं कि किसी बहाने कुछ न कुछ खाने को मिल जाए. मम्मी, यह आप ने क्या किया?’ राजन ने उन की ओर देख कर पूछा.

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‘मैं ने तो बहुत मना किया था, पर मेरी सुनता ही कौन है?’ सावित्री ने दुखी मन से कहा था.

‘जिन्हें मरना चाहिए वे परिवार की छाती पर मूंग दल रहे हैं और जिन को जीना चाहिए वे अचानक ही बेमौत मर रहे हैं,’ भारती बुरा सा मुंह बना कर बोली थी.

सावित्री चुपचाप सुनती रहीं. थोड़ी देर बाद वे वहां से अपने कमरे में आ गईं और बिस्तर पर गिर कर रोने लगीं.

इसी तरह दिन बीतते रहे. सावित्री को लग रहा था कि अपना घर, बेटा

और पोता होते हुए भी वे बिलकुल अकेली हैं.

कर्फ्यू की अगली सुबह जब सावित्री की नींद खुली तो 7 बज रहे थे. जब वे नहाने के लिए जाने लगीं तो कमला ने कहा, ‘‘दीदी, आप मेरे ही कपड़े पहन लेना.’’

‘‘हांहां क्यों नहीं,’’ सावित्री ने कहा और कमला से उस के कपड़े ले कर बाथरूम में नहाने चली गईं.

नाश्ता करने के बाद वे तीनों एक कमरे में बैठ गए. टैलीविजन चला दिया और खबरें सुनने लगे.

दंगे की वजह पता चली कि नगर में धार्मिक शोभा यात्रा निकल रही थी. दूसरे समुदाय के किसी शरारती तत्त्व ने पत्थर मार दिए. भगदड़ मच गई. देखते ही देखते लूटमार व आगजनी शुरू हो गई. प्रशासन ने तुरंत कर्फ्यू की घोषणा कर दी.

सूरज प्रकाश ने कहा, ‘‘भाभीजी, राजन व बहू के बरताव में कुछ सुधार हुआ है या वैसा ही चल रहा है?’’

‘‘सुधार क्या होना है भाई साहब… देख कर लगता ही नहीं कि यह अपना बेटा राजन ही है जो शादी से पहले हर काम मुझ से या अपने पापा से पूछ कर ही करता था. शादी के बाद यह इतना बदल जाएगा, सपने में भी नहीं सोचा था,’’ सावित्री ने दुखड़ा सुनाया.

‘‘पता नहीं, बहुएं कौन सा जादू कर देती हैं कि बेटे मांबाप को बेकार और फालतू समझने लगते हैं…’ सूरज प्रकाश ने कहा.

शहर में अचानक दंगा भड़क जाने से सावित्री कर्फ्यू में फंस गईं. कोई भी घर जाने में उन की मदद नहीं कर रहा था कि तभी सावित्री के पुराने परिचित सूरज प्रकाश मिल गए और उन्हें अपने घर ले गए. सावित्री के बेटे राजन को यह बात पता चली तो उस ने राहत की सांस ली, पर उन्हें लेने नहीं गया.

त भी कमला बोल उठीं, ‘‘मैं ने तो ऐसा कोई जादू नहीं किया था आप पर. आप ने तो अपने मातापिता की भरपूर सेवा की है. यह बेटे के ऊपर भी निर्भर करता है कि वह उस जादू से कितना बदलता है.’’

सूरज प्रकाश ने कहा, ‘‘भाभीजी, ऐसा लगता है दुनिया में दुखी लोग ज्यादा हैं. देखो न हम इसलिए दुखी हैं कि हमारे कोई औलाद नहीं है. आप इसलिए दुखी हैं कि अपना बेटा भी अपना न रहा. वह आप की नहीं, बल्कि बहू की ही सुनता और मानता है.’’

‘‘हां, सोचती हूं कि इस से तो अच्छा था कि बेटा नहीं, बल्कि एक बेटी ही हो जाती, क्योंकि बेटी कभी अपने मांबाप को बोझ नहीं समझती.’’

‘‘इस दुनिया में सब के अपनेअपने दुख हैं,’’ कमला ने कहा.

5 दिन तक कर्फ्यू लगा रहा. इन 5 दिनों में राजन ने एक दिन भी फोन कर के सावित्री का हाल नहीं पूछा.

5 दिन बाद कर्फ्यू में 4 घंटे की ढील दी गई. सावित्री ने सूरज प्रकाश से कह कर राजन को फोन मिलवाया.

सूरज प्रकाश ने कहा, ‘‘कैसे हो राजन, सब ठीक तो है न?’’

‘हांहां अंकल, सब ठीक है. मम्मी कैसी हैं?’ उधर से राजन की आवाज सुनाई दी.

‘‘वे भी ठीक हैं बेटे. लो, अपनी मां से बात कर लो,’’ कहते हुए सूरज प्रकाश ने सावित्री को फोन दे दिया.

‘कैसी हो मम्मी?’

‘‘मैं बिलकुल ठीक हूं. भाई साहब के यहां कोई परेशानी हो सकती है क्या? इन दोनों ने तो मेरी भरपूर सेवा की है. तू ने 5 दिनों में एक दिन भी फोन कर के नहीं पूछा कि मम्मी कैसी हो?’’

‘‘अंकल बहुत अच्छे इनसान हैं. उन की सभी तारीफ करते हैं. मैं जानता था कि अंकल के यहां आप सहीसलामत रहोगी.’’

‘‘कर्फ्यू में 4 घंटे की ढील है. तू यहां आ जा. मैं तेरे साथ घर आ जाऊंगी.’’

‘मम्मी, मैं तो बाजार जा रहा हूं कुछ जरूरी सामान खरीदना है. तुम ऐसा करो कि रिकशा या आटोरिकशा कर के घर आ जाना, क्योंकि मुझे बाजार में देर हो जाएगी.’

‘‘ऐसा ही करती हूं,’’ बुझे मन से सावित्री ने कहा और फोन काट दिया.

सूरज प्रकाश ने पूछा, ‘‘क्या कहा राजन ने?’’

‘‘कह रहा है कि कुछ जरूरी सामान खरीदने बाजार जा रहा हूं तुम रिकशा या आटोरिकशा कर के घर आ जाओ. भाई साहब, अभी 3 घंटे से भी ज्यादा का समय बाकी है. मैं बाहर से कोई रिकशा या आटोरिकशा पकड़ कर घर चली जाऊंगी,’’ सावित्री ने निराशा भरी आवाज में कहा.

‘‘भाभीजी, आप क्या बात कर रही हैं? आप अकेली जाएंगी? क्या हम से मन ऊब गया है जो इस तरह जाना चाहती हो?’’

‘‘नहींनहीं, ऐसी बात नहीं है. इन 5 दिनों में तो मुझे इतना अच्छा लगा कि मैं बता नहीं सकती.’’

‘‘वैसे तो मैं भी आप को घर छोड़ कर आ सकता हूं, पर मैं नहीं जाऊंगा. जब कर्फ्यू पूरी तरह खुल जाएगा तब आप चली जाना. हम सभी अच्छी तरह जानते हैं कि राजन क्यों नहीं आया.’’

‘‘ठीक कहते हैं आप, लेकिन घर जाना भी तो जरूरी है.’’

‘‘मैं ने कब मना किया है. 3 दिन बाद कर्फ्यू खुल जाएगा, तब आप चली जाना,’’ सूरज प्रकाश ने कहा.

3 दिनों के बाद जब पूरी तरह कर्फ्यू खुला तो सावित्री ने अकेले ही घर जाने के लिए कहा.

कमला ने टोक दिया, ‘‘नहीं दीदी, आप अकेली नहीं जाएंगी. ये आप को घर छोड़ आएंगे.’’

‘‘हां भाभीजी, आप के साथ चल रहा हूं.’’ सूरज प्रकाश ने कहा.

स्कूटर सावित्री के मकान के सामने रुका. सावित्री ने कहा, ‘‘अंदर आइए.’’

‘‘मैं फिर कभी आऊंगा भाभीजी. आज तो बहुत काम करने हैं. समय नहीं मिल पाएगा.’’

सावित्री घर में घुसी.

‘‘तुम किस के साथ आई हो मम्मी?’’ राजन ने पूछा.

‘‘सूरज प्रकाश घर छोड़ कर गए हैं. मैं ने उन से बहुत कहा कि अकेली चली जाऊंगी, पर वे दोनों ही नहीं माने. कमला दीदी भी कहने लगीं कि अकेली नहीं जाने दूंगी.’’

भारती चुप रही. उसे सावित्री के आने की जरा भी खुशी नहीं हुई, पर पोता राजू बहुत खुश था.

राजन व भारती के बरताव में कोई फर्क नहीं पड़ा. सावित्री को लग रहा था कि उन्हें जानबूझ कर परेशान किया जा रहा है.

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रविवार का दिन था. सावित्री दोपहर का खाना खा रही थी, पर सब्जी में मिर्च बहुत ज्यादा थी. एक टुकड़ा खाना भी मुश्किल हो गया. उस ने चुपचाप 3-4 टुकड़े रोटी के खा लिए, पर मुंह में जैसे आग लग गई हो. पानी पी कर राजन को आवाज दी.

राजन ने पूछा, ‘‘क्या हुआ मम्मी?’’

‘‘सब्जी में मिर्च बहुत तेज है. मुझ से तो खाई नहीं जा रही है.’’

‘‘मम्मी, सब्जी तो एकजैसी बनती है. तुम्हारी अलग से नहीं बनती.’’

‘‘तू सब्जी चख कर तो देख.’’

‘‘तुम्हारे मुंह का जायका खराब हो गया है. कल तुम डाक्टर को दिखा कर आना.’’

तभी भारती रसोई से निकल कर आई और तेज आवाज में बोली, ‘‘क्या हुआ?’’

‘‘मम्मी कह रही हैं कि सब्जी में मिर्च बहुत तेज है.’’

‘‘बनाबनाया खाना बैठेबिठाए मिल जाता है. खाना खराब है तो छोड़ क्यों नहीं देतीं. क्यों खा लेती हो दोनों टाइम?’’

‘‘छोड़ो भारती, तुम रसोई में जाओ. मम्मी तो सठियाती जा रही हैं.’’

सावित्री ने खाने की थाली एक तरफ सरकाते हुए कहा, ‘‘रहने दे राजन, मुझे नहीं खाना है. डाक्टर ने तेज मिर्च, नमक, मसाले व ज्यादा घीतेल खाने को मना कर रखा है. इस उम्र में बहुत नुकसान पहुंचाते हैं. अभी तो मेरे हाथपैर चल रहे हैं. मैं अपना नाश्ता और खाना खुद बना लूंगी.’’

राजन चुपचाप कमरे से बाहर निकल गया.

उस दिन के बाद सावित्री ने खुद ही अपना चायनाश्ता व खाना बनाना शुरू कर दिया.

एक रात सावित्री की सोते हुए आंख खुली. रात के 12 बज रहे थे. वे उठीं और आंगन के एक कोने में बने बाथरूम की ओर चल दीं. राजन के कमरे में बहुत कम आवाज में टैलीविजन चल रहा था. राजन और भारती की बातचीत सुन कर उन के कदम रुक गए.

‘‘तुम्हारी मम्मी से तो मैं बहुत ही परेशान हूं. तुम्हारे पापा तो चले गए और इस मुसीबत को मेरी छाती पर छोड़ गए. अगर दंगे में मारी जातीं तो हमेशा के लिए हमें भी चैन की सांस मिलती,’’ भारती बोल रही थी.

‘‘और सरकार से 5 लाख रुपए भी मिलते, जैसा कि अखबारों में छपा था कि दंगे में मरने वालों के परिवार को सरकार द्वारा 5 लाख रुपए की मदद की जाएगी,’’ राजन बोला.

यह सुन कर सावित्री सन्न रह गईं. वे थके कदमों से बाथरूम पहुंचीं और लौट कर अपने बिस्तर पर लेट गईं.

अगली सुबह सावित्री उठीं. नहाधो कर बिना नाश्ता किए सूरज प्रकाश के घर पहुंच गईं.

कमला ने चेहरे पर खुशी बिखेरते हुए पूछा, ‘‘दीदी, कैसी हैं आप?’’

‘‘हां, बस ठीक हूं,’’ सावित्री ने उदास लहजे में कहा.

‘‘भाभीजी, पहले आप नाश्ता कर लीजिए,’’ सूरज प्रकाश ने कहा.

नाश्ता करने के बाद सावित्री ने सारी बातें बता दीं. रात की बात सुन कर तो उन दोनों को भी बहुत दुख हुआ.

सावित्री ने दुखी मन से कहा, ‘‘भाई साहब, समझ में नहीं आ रहा है कि मैं क्या करूं? घरपरिवार होते हुए भी मैं बिलकुल अकेली सी हो गई हूं. अब तो वह घर मुझे जेल की कोठरी की तरह लगने लगा है. आप मुझे किसी वृद्धाश्रम का पता बता दीजिए. मैं अपनी जिंदगी के बाकी दिन वहां बिता लूंगी,’’ कहतेकहते सावित्री रोने लगीं.

‘‘भाभीजी, क्या बात कर रही हैं आप? आप वृद्धाश्रम में क्यों रहेंगी? आप अपने घर में न रहें, यह आप की इच्छा है, पर हमारी भी एक इच्छा है, अगर आप बुरा न मानो तो कह दूं?’’

‘‘हांहां, कहिए.’’

‘‘क्या यह नहीं हो सकता कि आप हम दोनों के साथ इसी घर में रहें. हम दोनों भी बूढ़े हैं और अकेले हैं. हम तीनों मिलजुल कर रहें, इस से हम तीनों का अकेलापन दूर हो जाएगा,’ सूरज प्रकाश ने कहा.

तभी कमला बोल उठीं, ‘‘दीदी, मना मत करना. मैं एक बात जानना चाहती हूं कि हमारी दलित जाति के चलते आप को कोई एतराज तो नहीं है?’’

‘‘नहींनहीं, हम दोनों परिवारों के बीच यह जाति कहां से आ गई. आप के यहां इतने दिन रह कर तो मैं ने देख लिया है. आप जैसे परिवार का साथ पाने को भला कौन मना कर सकता है.’’

‘‘भाभी, क्या ऐसा नहीं हो सकता कि सभी शहरों में अकेलेपन की पीड़ा से छुटकारा पाने के लिए समान विचारों के 3-4 बूढ़े इकट्ठा रहने लगें?’’

‘‘हांहां, क्यों नहीं हो सकता ऐसा,’’ सावित्री ने कहा. उन्हें लग रहा था कि उन के दिल से भारी बोझ उतर रहा है.

शाम को जब सावित्री घर पहुंचीं तो राजन ने कहा, ‘‘आप कहां चली गई थीं? फोन भी यहीं छोड़ गई थीं. कहां रहीं सुबह से अब तक?’’

सावित्री ने अपने कमरे में कुरसी पर बैठते हुए कहा, ‘‘भारती को भी बुला ले. मुझे तुम दोनों से बात करनी है.’’

राजन ने भारती को आवाज दी. उसे लग रहा था कि मम्मी के दिल में कोई ज्वालामुखी धधक रहा है. भारती भी कमरे में आ गई.

सावित्री बोल उठीं, ‘‘मैं ने कल रात तुम दोनों की बातें सुन ली हैं. मैं अपने ही घर में अपनी औलाद पर बोझ बन गई हूं. मैं इतनी बड़ी मुसीबत बन गई हूं कि तुम दोनों मुझ से छुटकारा चाहते हो. तुम चाहते थे कि मैं भी दंगे में मारी जाती और तुम्हें 5 लाख रुपए सरकार से मिल जाते.’’

राजन और भारती यह सुन कर सन्न रह गए.

‘‘बेटे, अब तक तो मैं तेरे और पोते के मोह के जाल में थी. अपने खून का मोह होता है, पर रात को जो मैं ने सुना उसे सुन कर सारा मोह खत्म हो गया है.’’

‘‘यह मकान, नकदी जोकुछ भी मेरे पास है, सब तुम्हारा ही तो था, पर तब जब मेरी सेवा करते. मेरे बुढ़ापे का सहारा बनते. अब तो मेरी इच्छा है कि मैं अपनी सारी जायदाद किसी ऐसे वृद्धाश्रम को दान कर दूं, जहां लोग अपनी नालायक औलाद से पीडि़त और दुखी हो कर पहुंचते हैं. अब मैं यहां नहीं रहूंगी. कल ही मैं यहां से चली जाऊंगी.’’

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‘‘कहां जाओगी?’’ राजन के मुंह से आवाज नहीं निकल रही थी.

‘‘मैं सूरज प्रकाश के घर जा रही हूं. हम तीनों मिल कर अपना बुढ़ापा आराम से काट लेंगे.’’

‘‘सूरज अंकल तो दलित हैं… क्या आप उन के घर में रहोगी?’’

‘‘मैं ने कर्फ्यू में वहां इतने दिन गुजारे तब तो तू ने कुछ नहीं कहा. अब मैं वहां हमेशा रहने की बात कर रही हूं तो तुझे उन की जाति दिखाई दे रही है,’’ सावित्री ने गुस्से भरे लहजे में कहा.

राजन और भारती उन से नजरें नहीं मिला पा रहे थे.

Family Story In Hindi: शेष शर्त – प्रभा के मामा की अनूठी शर्त

लेखिका- सरोज दुबे

मैं जब मामा के घर पहुंची तो विभा बाहर जाने की तैयारी में थी.

‘‘हाय दीदी, आप. आज ? जरा जल्दी में हूं, प्रैस जाने का समय हो गया है, शाम को मिलते हैं,’’ वह उल्लास से बोली.

‘‘प्रभा को तुम्हारे दर्शन हो गए, यही क्या कम है. अब शाम को तुम कब लौटोगी, इस का कोई ठिकाना है क्या?’’ तभी मामी की आवाज सुनाई दी.

‘‘नहींनहीं, तुम निकलो, विभा. थोड़ी देर बाद मुझे भी बाहर जाना है,’’ मैं ने कहा.

मामाजी कहीं गए हुए थे. अमित के स्नान कर के आते ही मामी ने खाना मेज पर लगा दिया. पारिवारिक चर्र्चा करते हुए हम ने भोजन आरंभ किया. मामी थकीथकी सी लग रही थीं. मैं ने पूछा तो बोलीं, ‘‘इन बापबेटों को नौकरी वाली बहू चाहिए थी. अब बहू जब नौकरी पर जाएगी तो घर का काम कौन करेगा? नौकरानी अभी तक आई नहीं.’’

मैं ने देखा, अमित इस चर्चा से असुविधा महसूस कर रहा था. बात का रुख पलटने के लिए मैं ने कहा, ‘‘हां, नौकरानियों का सब जगह यही हाल है. पर वे भी क्या करें, उन्हें भी तो हमारी तरह जिंदगी के और काम रहते हैं.’’

अमित जल्दीजल्दी कपड़े बदल कर बाहर निकल गया. मैं ने मामी के साथ मेज साफ करवाई. बचा खाना फ्रिज में रखा और रसोई की सफाई में लग गई. मामी बारबार मना करती रहीं, ‘‘नहीं प्रभा, तुम रहने दो, बिटिया. मैं धीरेधीरे सब कर लूंगी. एक दिन के लिए तो आई हो, आराम करो.’’

मुझे दोपहर में ही कई काम निबटाने थे, इसलिए बिना आराम किए ही बाहर निकलना पड़ा.

जब मैं लौटी तो शाम ढल चुकी थी. मामी नौकरानी के साथ रसोई में थीं. मामाजी उदास से सामने दीवान पर बैठे थे. मैं ने अभिवादन किया तो क्षणभर को प्रसन्न हुए. परिवार की कुशलक्षेम पूछी. फिर चुपचाप बालकनी में घूमने लगे. बात कुछ मेरी समझ में न आई. अमित और विभा भी कहीं दिखाई नहीं दे रहे थे. मामाजी का गंभीर रुख देख कर उन से कुछ पूछने की हिम्मत न हुई.

तभी मामी आ गईं, ‘‘कब आईं, बिटिया?’’

‘‘बस, अभी, मामाजी कुछ परेशान से दिखाई दे रहे हैं.’’

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‘‘विभा अभी तक औफिस से नहीं लौटी है, जाने कैसी नौकरी है उस की.’’

कुछ देर बाद अमित और विभा साथसाथ ही आए. दोनों के मुख पर अजीब सा तनाव था. विभा बिना किसी से बोले तेजी से अपने कमरे में चली गई. अमित हम लोगों के पास बैठ कर टीवी देखने लगा. वातावरण सहसा असहज लगने लगा. किसी अनर्थ की आशंका से मन व्याकुल हो उठा.

विभा कपड़े बदल कर कमरे में आई तो मामी ने उलाहने के स्वर में कहा, ‘‘खाना तो हम ने बना लिया है. अब मेज पर लगा लोगी या वह भी हम जा कर ही लगाएं?’’

मामाजी मानो राह ही देख रहे थे, तमक कर बोले, ‘‘तुम बैठो चुपचाप, बुढ़ापे में मरी जाती हो. अभी पसीना सूखा नहीं कि फिर चलीं रसोई में. तुम ने क्या ठेका ले रखा है.’’

बात यहीं तक रहती तो शायद विभा चुप रह जाती, मामाजी दूसरे ही क्षण फिर गरजे, ‘‘लोग बाहर मौज करते हैं. पता है न कि घर में 24 घंटे की नौकरानी है.’’

इस आरोप से विभा हतप्रभ रह गई. कम से कम उसे यह आशा नहीं रही होगी कि मामाजी मेरी उपस्थिति में भी ऐसी बातें कह जाएंगे. उस ने वितृष्णा से कहा, ‘‘आप लोगों को दूसरों के सामने तमाशा करने की आदत हो गई है.’’

‘‘हम लोग तमाशा करते हैं? तमाशा करने वाले आदमी हैं, हम लोग? पहले खुद को देखो, अच्छे खानदान की लड़कियां घरपरिवार से बेफिक्र इतनी रात तक बाहर नहीं घूमतीं.’’

‘‘आप को मेरा खानदान शादी के पहले देखना था, बाबूजी.’’

मामाजी भड़क उठे, ‘‘मुझ से जबान मत चलाना, वरना ठीक न होगा.’’ बात बढ़ती देख अमित पत्नी को धकियाते हुए अंदर ले गया. मैं लज्जा से गड़ी जा रही थी. पछता रही थी कि आज रुक क्यों गई. अच्छा होता, जो शाम की बस से घर निकल जाती. यों बादल बहुत दिनों से गहरातेघुमड़ते रहे होंगे, वे तो उपयुक्त अवसर देख कर फट पड़े थे.

थोड़ी देर बाद मामी ने नौकरानी की सहायता से खाना मेज पर लगाया. मामी के हाथ का बना स्वादिष्ठ भोजन भी बेस्वाद लग रहा था. सब चुपचाप अपने में ही खोए भोजन कर रहे थे. बस, मामी ही भोजन परोसते हुए और लेने का आग्रह करती रहीं.

भोजन समाप्त होते ही मामाजी और अमित उठ कर बाहर वाले कमरे में चले गए. मैं ने धीरे से मामी से पूछा, ‘‘विभा…?’’

‘‘वह कमरे से आएगी थोड़े ही.’’

‘‘पर?’’

‘‘बाहर खातीपीती रहती है,’’ उन्होंने फुसफुसा कर कहा.

मैं सोच रही थी कि विभा बहू की जगह बेटी होती तो आज का दृश्य कितना अलग होता.

‘‘देखा, सब लोगों का खाना हो गया, पर वह आई नहीं,’’ मामी ने कहा.

‘‘मैं उसे बुला लाऊं?’’

‘‘जाओ, देखो.’’

मैं उस के  कमरे में गई. उस की आंखों में अब भी आंसू थे. मुझे यह जान कर आश्चर्य हुआ कि अमित उसे मेरे कारण औफिस का काम बीच में ही छुड़वा कर ले आया था और ऐसा पहली बार नहीं हुआ था. जब भी कोई मेहमान आता, उसे औफिस से बुलवा लिया जाता.

‘‘तुम ने अमित को समझाने की कोशिश नहीं की?’’

‘‘कई बार कह चुकी हूं.’’

‘‘वह क्या कहता है?’’

‘‘औफिस का काम छोड़ कर आने में तकलीफ होती है तो नौकरी छोड़ दो.’’

क्षणभर को मैं स्तब्ध ही रह गई कि जब नए जमाने का पढ़ालिखा युवक उस के काम की अहमियत नहीं समझता तो पुराने विचारों के मामामामी का क्या दोष.

‘‘चिंता न करो, सब ठीक हो जाएगा. शुरू में सभी को ससुराल में कुछ न कुछ कष्ट उठाना ही पड़ता है,’’ मैं ने उसे धैर्य बंधाते हुए कहा.

फिर घर आ कर इस घटना को मैं लगभग भूल ही गई. संयुक्त परिवार की यह एक साधारण सी घटना ही तो थी. किंतु कुछ माह बीतते न बीतते, एक दिन मामाजी का पत्र आया. उन्होंने लिखा था कि अमित का तबादला अमरावती हो गया है, परंतु विभा ने उस के साथ जाने से इनकार कर दिया है.

पत्र पढ़ कर मुझे पिछली कितनी ही बातें याद हो आईं… अमित मामाजी का एकलौता बेटा था. घर में धनदौलत की कोई कमी न थी, तिस पर उस ने इंजीनियरिंग की परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास की थी. देखने में भी वह लंबाचौड़ा आकर्षक युवक था. इन तमाम विशेषताओं के कारण लड़की वालों की भीड़ उस के पीछे हाथ धो कर पड़ी थी.

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किंतु मामाजी भी बड़े जीवट आदमी थे. उन्होंने तय कर लिया था कि लड़की वाले चाहे जितना जोर लगा लें, पर अमित का विवाह तो वे अपनी शर्तों पर ही करेंगे. जिन दिनों अमित के रिश्ते की बात चल रही थी, मैं ने भी मामाजी को एक मित्रपरिवार की लड़की के विषय में लिखा था. लड़की मध्यवर्गीय परिवार की थी. अर्थशास्त्र में एमए कर रही थी. देखने में भली थी. मेरे विचार में एक अच्छी लड़की में जो गुण होने चाहिए, वे सब उस में थे.

मामाजी ने पत्रोत्तर जल्दी ही दिया था. उन्होंने लिखा था… ‘बेटी, तुम अमित के लिए जो रिश्ता देखोगी, वह अच्छा ही होगा, इस का मुझे पूरा विश्वास है. पर अमित को विज्ञान स्नातक लड़की चाहिए. दहेज मुझे नहीं चाहिए, लेकिन तुम तो जानती हो, रिश्तेदारी बराबरी में ही भली. जहां तक हो सके, लड़की नौकरी वाली देखो. अमित भी नौकरी वाली लड़की चाहता है.’

मामाजी का पत्र पढ़ कर मैं हैरान रह गई. मामाजी उस युग के आदमी थे जिस में कुलीनता ही लड़की की सब से बड़ी विशेषता मानी जाती थी. लड़की थोड़ीबहुत पढ़ीलिखी और सुंदर हो तो सोने पर सुहागा. जमाने के हिसाब से विचारों में परिवर्तन होना स्वाभाविक है. लेकिन लगता था कि वे बिना यह सोचेविचारे कि उन के अपने परिवार के लिए कैसी लड़की उपयुक्त रहेगी, जमाने के साथ नहीं बल्कि उस से आगे चल रहे थे.

संयोग से दूसरे ही सप्ताह मुझे नागपुर जाने का अवसर मिला. मामाजी से मिलने गई तो देखा, वे बैठक में किसी महिला से बातें कर रहे हैं. वे उस महिला को समझा रहे थे कि अमित के लिए उन्हें कैसी लड़की चाहिए.

उन्होंने दीवार पर 5 फुट से 5 फुट 5 इंच तक के निशान बना रखे थे और उस महिला को समझा रहे थे, ‘‘अपना अमित 5 फुट 10 इंच लंबा है. उस के लिए लड़की कम से कम 5 फुट 3 इंच ऊंची चाहिए. यह देखो, यह हुआ 5 फुट, यह 5 फुट 1 इंच, 2 इंच, 3 इंच. 5 फुट 4 इंच हो तो भी चलेगी. लड़की गोरी चाहिए. लड़की के मामापिता, भाईबहनों के बारे में सारी बातें एक कागज पर लिख कर ले आना. लड़की हमें साइंस ग्रेजुएट चाहिए. अगर गणित वाली हो या पोस्टग्रेजुएट हो तो और भी अच्छा है.’’

सामने बैठी महिला को भलीभांति समझा कर वे मेरी ओर मुखातिब हुए, ‘बेटे, आजकल आर्ट वालों को कोई नहीं पूछता, उन्हें नौकरी मुश्किल से मिलती है. खैर, बीए में कौन सी डिवीजन थी लड़की की? फर्स्ट डिवीजन का कैरियर हो तो सोचा जा सकता है. एमए के प्रथम वर्ष में कितने प्रतिशत अंक हैं?’

मैं समझ गई कि अमित के लिए रिश्ता तय करवाना मेरे बूते के बाहर की बात है. मामाजी के विचारों के साथ अमित की कितनी सहमति थी, इसे तो वही जाने, पर इस झंझट में पड़ने से मैं ने तौबा कर ली. लगभग 2-3 वर्षों की खोजबीन- जांचपरख के बाद अमित के लिए विभा का चयन किया गया था. वह गोरी, ऊंची, छरहरे बदन की सुंदर देह की धनी थी. उस की शिक्षा कौनवैंट स्कूल में हुई थी. वह फर्राटे से अंगरेजी बोल सकती थी. उस ने राजनीतिशास्त्र में एमए किया था.

बंबई से पत्रकारिता का कोर्स करने के बाद वह नागपुर के एक प्रसिद्ध दैनिक समाचारपत्र में कार्यरत थी. इस विवाह संबंध से मामाजी, मामी और अमित सभी बहुत प्रसन्न थे. खुद मामाजी विभा की प्रशंसा करते नहीं थकते थे.

लेकिन विवाह के 3-4 महीने बाद ही स्थिति बदलने लगी. विभा के नौकरी पर जाते ही यथार्थ जीवन की समस्याएं उन के सामने थीं. मामाजी हिसाबी आदमी थे, वे यह सोच कर क्षुब्ध थे कि आखिर बहू के आने से लाभ क्या हुआ? अमित के तबादले ने इस मामले को गंभीर मोड़ पर पहुंचा दिया था.

इस के  बाद नागपुर जाने के अवसर को मैं ने जानबूझ कर टाल दिया था. किंतु लगभग सालभर बाद मुझे एक बीमार रिश्तेदार को देखने नागपुर जाना ही पड़ा. वहीं मामाजी से भेंट हो गई. अमित और विभा के विषय में पूछा तो बोले, ‘‘घर चलो, वहीं सब बातें होंगी.’’ हम लोग घर पहुंचे तो वहां सन्नाटा छाया हुआ था. मामी खिचड़ी बना कर अभीअभी लेटी थीं, उन की तबीयत ठीक नहीं लग रही थी. मुझे देखा तो उठ बैठीं और शिकायत करने लगीं कि मैं ने उन लोगों को भुला दिया है.

‘‘अमित अमरावती में है, उसे वहां बढि़या फ्लैट मिला है पर खानेपीने की कोई व्यवस्था नहीं है. कभी होटल में खा लेता है, कभी नौकर से बनवा लेता है. तुम्हारी मामी बीचबीच में जाती रहती है, इस का भी बुढ़ापा है. यह यहां मुझे देखे या उसे वहां देखे. मेरी तबीयत भी अब पहले जैसी नहीं रही. यहां का कारोबार देखना भी जरूरी है, नहीं तो सब अमरावती में ही रहते. विभा ने नौकरी छोड़ कर अमित के साथ जाने से इनकार कर दिया. सालभर से मायके में है,’’ मामाजी ने बताया.

अमित के विषय में बातें करते हुए दोनों की आंखों में आंसू भर आए. मैं ने ध्यान से देखा तो दीवार पर 5 फुट की ऊंचाई पर लगा निशान अब भी नजर आ रहा था. मन तो हुआ, उन से कहूं, ‘आप की समस्या इतनी विकट नहीं है, जिस का समाधान न हो सके. ऐसे बहुत से परिवार हैं जहां नौकरी या बच्चों की पढ़ाई के कारण पतिपत्नी को अलगअलग शहरों में रहना पड़ता है. विभा और अमित भी छुट्टियां ले कर कभी नागपुर और कभी अमरावती में साथ रह सकते हैं, ’ पर चाह कर भी कह न सकी.

दूसरे दिन सुबह हमसब नाश्ता कर रहे थे कि किसी ने घंटी बजाई. मामाजी ने द्वार खोला तो सामने एक बुजुर्ग सज्जन खड़े थे. मामी ने धीरे से परिचय दिया, ‘‘दीनानाथजी, विभा के पिता.’’ पता चला कि विभा और अमित के मतभेदों के बावजूद वे बीचबीच में मामाजी से मिलने आते रहते हैं.

मामी अंदर जा कर उन के लिए भी नाश्ता ले आईं. दीनानाथ सकुचाते से बोले, ‘‘बहनजी, आप क्यों तकलीफ कर रही हैं, मैं घर से खापी कर ही निकला हूं.’’ फिर क्षणभर रुक कर बोले, ‘‘क्या करें भई, हम तो हजार बार विभा को समझा चुके कि अमित इतने ऊंचे पद पर है, पूर्वजों का जो कुछ है, वह सब भी तुम्हारे ही लिए है, नौकरी छोड़ कर ठाट से रहे. पर वह कहती है कि ‘मैं सिर्फ पैसा कमाने के लिए नौकरी नहीं कर रही हूं. इस काम का संबंध मेरे दिलोदिमाग से है. मैं ने अपना कैरियर बनाने के लिए रातरातभर पढ़ाई की है. नौकरी के लिए कड़ी प्रतिस्पर्धा से गुजरी हूं. अब इस नौकरी को छोड़ देने में क्या सार्थकता है?’ ऐसे में आप ही बताइए,’’ उन्होंने बात अधूरी ही छोड़ दी.

मामाजी ने अखबार पढ़ने का बहाना कर के उन की बात को अनसुना कर दिया. परंतु मामी चुप न रह सकीं, ‘‘भाईसाहब, लड़की तो लड़की ही है, लेकिन हम बड़े लोगों को तो उसे यही शिक्षा देनी चाहिए कि वह अपनी घरगृहस्थी देखते हुए नौकरी कर सके तो जरूर करे. नौकरी के लिए घरपरिवार छोड़ दे, पति को छोड़ दे और मायके में जा बैठे, यह तो ठीक नहीं है.’’

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यद्यपि मामी ने अपनी बात बड़ी सरलता और सहजता से कही थी परंतु उन का सीधा आक्षेप दीनानाथजी पर था. कुछ क्षण चुप रह कर वे बोले, ‘‘बहनजी, एक समय था जब लड़कियों को सुसंस्कृत बनाने के लिए ही शिक्षा दी जाती थी. लड़की या बहू से नौकरी करवाना लोग अपमान की बात समझते थे. पर अब तो सब नौकरी वाली, कैरियर वाली लड़की को ही बहू बनाना चाहते हैं. इस कारण लड़कियों के पालनपोषण का ढंग ही बदल गया है. अब वे किसी के हाथ की कठपुतली नहीं हैं कि जब हम चाहें, तब नौकरी करने लगें और जब हम चाहें, तब नौकरी छोड़ दें.’’

कुछ देर सन्नाटा सा रहा. उन की बात का उत्तर किसी के पास नहीं था. इधरउधर की कुछ बातें कर के दीनानाथ उठ खड़े हुए. मामाजी उन्हें द्वार तक विदा कर के लौटे और बोले, ‘‘देखा बेटी, बुड्ढा कितना चालाक है. गलती मुझ से ही हो गई. शादी के पहले ही मुझे यह शर्त रख देनी थी कि हमारी मरजी होगी, तब तक लड़की से नौकरी करवाएंगे, मरजी नहीं होगी तो नहीं करवाएंगे.’’

उन की इस शेष शर्त को सुन कर मैं अवाक रह गई.

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